क्या यही वाकई इंसाफ हैं

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र  

अशोक चंदेल को उस के गुनाह की जो सजा मिली है, क्या वो…   उस दिन अप्रैल, 2019 की 19 तारीख थी. वैसे तो रविवार को छोड़ कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हर रोज चहलपहल रहती है लेकिन उस दिन न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की स्पैशल डबल बैंच में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. पूरा कक्ष लोगों से भरा था. पीडि़त व आरोपी पक्ष के दरजनों लोग भी कक्ष में मौजूद थे.

दरअसल, उस दिन एक ऐसे मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे 22 साल पहले बुंदेलखंड क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी.

आरोपी पक्ष के लोग कयास लगा रहे थे कि इस मामले में सभी आरोपी बरी हो जाएंगे, जबकि पीडि़त पक्ष के लोगों को अदालत पर पूरा भरोसा था और उन्हें उम्मीद थी कि आरोपियों को सजा जरूर मिलेगी.

दरअसल, निचली अदालत से सभी आरोपी बरी कर दिए गए थे. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सुनवाई हो रही थी. सब से दिलचस्प बात यह थी कि इस मामले में एक पूर्व सांसद व वर्तमान में बाहुबली विधायक अशोक सिंह चंदेल आरोपी था.

उस ने साम दाम दंड भेद से इस मुकदमे को प्रभावित करने का प्रयास भी किया था. काफी हद तक वह सफल भी हो गया था, लेकिन अब यह मामला उच्च न्यायालय में था और फैसले की घड़ी आ गई थी, जिस ने उस की धड़कनें तेज कर दी थीं. लोग फैसला सुनने के लिए उतावले थे.

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स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने ठीक साढ़े 10 बजे न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और अपनीअपनी कुरसियों पर विराजमान हो गए. उन्होंने अभियोजन व बचाव पक्ष के वकीलों पर नजर डाली.

फिर अंतिम बार उन्होंने मुकदमे की फाइल का निरीक्षण किया. वकीलों की बहस पहले ही पूरी हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने ठीक 11 बजे फैसला सुना दिया. फैसले की यह घड़ी आने में 22 साल 2 महीने का समय लग गया था.

आखिर ऐसा क्या मामला था, जिस का फैसला जानने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता थी. इस के लिए हमें 2 दशक पुरानी घटना को जानना होगा जो बेहद लोमहर्षक थी.

अशोक सिंह चंदेल मूलरूप से हमीरपुर जिले के थाना भरूआ सुमेरपुर के टिकरौली गांव का रहने वाला था. लेकिन उस की शिक्षादीक्षा कानपुर में हुई थी. छात्र जीवन में ही उस ने राजनीति का ककहरा सीख लिया था.

कानपुर शहर के किदवईनगर के एम ब्लौक में पिता का पुराना मकान था. इसी मकान में रह कर उस ने पढ़ाई पूरी की थी. अशोक सिंह चंदेल तेजतर्रार था. अपनी बातों से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर लेना उस की विशेषता थी. पढ़ाई के दौरान उस ने डीवीएस कालेज से छात्र संघ के कई चुनाव लड़े, किंतु सफलता नहीं मिली. वह जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था, वह विरोधियों को मात देने में भी माहिर था.

सन 1985 में अशोक सिंह का रुझान व्यापार की तरफ हुआ. काफी सोचविचार के बाद उस ने एम ब्लौक, किदवई नगर में पंजाब नैशनल बैंक वाली बिल्डिंग में शालीमार फुटवियर के नाम से जूतेचप्पल की दुकान खोली. 14 नवंबर, 1985 को धनतेरस का त्यौहार था. इसी दिन दुकान का उद्घाटन था. उद्घाटन के बाद उस की दुकान पर ग्राहकों का आनाजाना शुरू हो गया था और बिक्री होने लगी थी.

शाम 5 बजे बाबूपुरवा कालोनी निवासी कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता उर्फ मामाजी अशोक चंदेल की दुकान पर चप्पल लेने पहुंचे. चूंकि दोनों एकदूसरे से परिचित थे, अत: बातचीत के दौरान रणधीर गुप्ता ने जूतेचप्पल की दुकान खोलने को ले कर अशोक पर कटाक्ष कर दिया. अशोक ने उस समय रणधीर से कुछ नहीं कहा. चप्पल खरीद कर वह अपने घर चले गए.

रात 10 बजे रणधीर गुप्ता किसी काम से थाना बाबूपुरवा गए थे. जब वह वहां से लौट रहे थे तो अशोक की दुकान के सामने उन के स्कूटर का पैट्रोल खत्म हो गया. अशोक नशे में धुत बंदूक लिए दुकान से बाहर खड़ा था. दिन में किए गए रणधीर के कटाक्ष को ले कर दोनों में कहासुनी होने लगी.

इस कहासुनी में अशोक सिंह चंदेल ने कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता को गोली मार दी. गोली पेट में लगी और वह गिर पड़े. गोली मारने के बाद अशोक सिंह चंदेल वहां से फरार हो गया.

यह जानकारी रणधीर गुप्ता के घर वालों को हुई तो उन की पत्नी कमलेश गुप्ता रोतेपीटते परिजनों के साथ मौके पर पहुंची और पति को उर्सला अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों के प्रयास के बावजूद रणधीर गुप्ता की जान नहीं बच सकी.

थाना बाबूपुरवा में अशोक सिंह चंदेल के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम हुआ. पुलिस ने अशोक को पकड़ने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया लेकिन वह पकड़ा नहीं गया. आखिर में तत्कालीन एसएसपी ए.के. मित्रा की अगुवाई में एसपी (सिटी) राजगोपाल ने कोर्ट के आदेश पर अशोक सिंह चंदेल के एम ब्लौक किदवईनगर स्थित पुराने घर की कुर्की कर ली.

बाद में एक साल बाद अशोक ने अदालत में सरेंडर कर दिया. कुछ ही दिनों में उस की जमानत हो गई. बाद में अशोक सिंह चंदेल ने कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने गृह जिला हमीरपुर में रहने लगा. बहुत कम समय में अशोक सिंह चंदेल ने ठाकुरों में अपनी पैठ बना ली.

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वह गरीब तबके के लोगों की मदद में जुट गया और राजनीतिक मंच पर बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा. अशोक सिंह चंदेल ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां हमीरपुर तक ही सीमित नहीं रखीं, बल्कि पूरे चित्रकूट मंडल में बढ़ा दीं. उस ने अपने समर्थकों की पूरी फौज खड़ी कर ली.

सन 1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. यह चुनाव अशोक सिंह चंदेल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हमीरपुर सदर से लड़ा और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों को धूल चटाते हुए उस ने जीत हासिल की.

इस अप्रत्याशित जीत से अशोक सिंह चंदेल का राजनीतिक कद बढ़ गया. उस ने हमीरपुर में मकान खरीद लिया और इस मकान में दरबार लगाने लगा. वह गरीबों का मसीहा बन गया था. धीरेधीरे अशोक सिंह चंदेल की क्षेत्र में प्रतिष्ठा बढ़ने लगी.

अशोक सिंह का राजनीतिक कद बढ़ा तो उस के राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी सक्रिय हो गए. इन प्रतिद्वंदियों में सब से अधिक सक्रिय थे राजीव शुक्ला. वह मूलरूप से हमीरपुर शहर के रमेडी मोहल्ला के रहने वाले थे. उन के पिता भीष्म प्रसाद शुक्ला प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. गरीबों और असहाय लोगों की मदद करना वह अपना फर्ज समझते थे. रमेडी तथा आसपास के लोग उन्हें लंबरदार कहते थे.

भीष्म प्रसाद शुक्ला के 3 बेटे थे राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला और राजीव शुक्ला. भीष्म प्रसाद भाजपा के समर्थक थे. उन की मृत्यु के बाद तीनों बेटे भी भाजपा के समर्थक बन गए. तीनों भाइयों में राजीव शुक्ला सब से ज्यादा पढ़ेलिखे थे. वह व्यापार के साथसाथ वकालत के पेशे से भी जुड़े थे. पिता की तरह राजीव शुक्ला और उन के भाई भी विधायक अशोक सिंह चंदेल के धुर विरोधी थे.

सन 1993 के विधानसभा चुनाव में अशोक सिंह चंदेल जनता दल में शामिल हो गया. पार्टी ने उसे टिकट दिया और वह चुनाव जीत गया. यह चुनाव जीतने के बाद उस के विरोधियों के हौसले पस्त पड़ गए थे. विरोधियों को धूल चटाने के लिए अशोक सिंह चंदेल अब और ज्यादा सक्रिय रहने लगा.

चंदेल और शुक्ला परिवार में राजीतिक दुश्मनी सन 1996 के विधानसभा चुनाव में खुल कर सामने आ गई. इस चुनाव में राजीव शुक्ला गुट ने अशोक सिंह चंदेल का खुल कर विरोध किया. नतीजतन अशोक सिंह चंदेल चुनाव हार गया.

हार का ठीकरा चंदेल ने राजीव शुक्ला पर फोड़ा. अब दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ गई और दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए. दोनों गुट जब भी आमनेसामने होते तो उन में तनातनी बढ़ जाती थी.

शुरू हुई राजनीति की खूनी दुश्मनी

अशोक सिंह चंदेल के पास दरजनों सिपहसालार थे, जो उस की सुरक्षा में लगे रहते थे. राजीव शुक्ला ने भी 2 सुरक्षागार्डों वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय को रख लिया था.

शुक्ला बंधु जहां भी जाते थे, ये दोनों सुरक्षा गार्ड उन के साथ रहते थे. अशोक सिंह चंदेल के मन में हार की ऐसी फांस चुभी थी जो उसे रातदिन सोने नहीं देती थी. आखिर उस ने इस फांस को निकालने का निश्चय किया.

26 जनवरी, 1997 की शाम करीब 7 बजे अपने एक दरजन सिपहसालारों के साथ अशोक सिंह चंदेल अपने दोस्त नसीम बंदूक वाले के घर पहुंचा. नसीम बंदूक वाला हमीरपुर शहर के सुभाष बाजार सब्जीमंडी के पास रहता था. बहाना था रमजान पर मिलने का. सड़क पर अशोक चंदेल व उस के समर्थकों की कारें खड़ी थीं तभी दूसरी ओर से राजीव शुक्ला की कारें आईं.

कार में राजीव शुक्ला के अलावा उन के बड़े भाई राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला, भतीजा अंबुज तथा दोनों निजी गार्ड थे. दरअसल राकेश शुक्ला अपने भतीजे को ले कर उस के जन्मदिन के लिए कुछ सामान खरीदने जा रहे थे.

चूंकि अशोक चंदेल और उस के समर्थकों की कारें सड़क पर आड़ीतिरछी खड़ी थीं, ऐसे में राजीव शुक्ला ने कारें ठीक से लगाने को कहा ताकि उन की कारें निकल सकें. अशोक चंदेल के गुर्गे जानते थे कि राजीव शुक्ला उन के आका का दुश्मन है, इसलिए गुर्गों ने कारें हटाने से मना कर दिया.

इसी बात पर विवाद शुरू हो गया. विवाद बढ़ता देख नसीम और अशोक चंदेल घर से बाहर आ गए. राजीव शुक्ला व उन के भाइयों से विवाद होता देख अशोक चंदेल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. फिर क्या था, तड़ातड़ गोलियां चलने लगीं.

चौतरफा गोलियों की तड़तड़ाहट से सुभाष बाजार गूंज उठा. कुछ देर बाद फायरिंग का शोर थमा तो चीत्कारों से लोगों के दिल दहलने लगे. सड़क खून से लाल थी और थोड़ीथोड़ी दूर पर मासूम बच्चे सहित 5 लोगों की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

मरने वालों में राजेश शुक्ला, राकेश शुक्ला, राजेश का बेटा अंबुज शुक्ला तथा उन के सुरक्षा गार्ड वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय थे. हमलावर दोनों सुरक्षा गार्डों की बंदूकें भी लूट कर ले गए थे.

इस सामूहिक नरसंहार से हमीरपुर शहर में सनसनी फैल गई. घटना की सूचना मिलते ही एसपी एस.के. माथुर भारी पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घायल राजीव शुक्ला व अन्य को जिला अस्पताल भेजा और उन की सुरक्षा में फोर्स लगा दी. इस के बाद माथुर ने नसीम बंदूक वाले के मकान पर छापा मारा. छापा पड़ते ही वहां छिपे हत्यारों ने पुलिस पर भी फायरिंग शुरू कर दी.

पुलिस ने भी मोर्चा संभाला, लेकिन हत्यारे चकमा दे कर भाग गए थे. इस के बाद एसपी माथुर ने मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इधर राजीव शुक्ला अस्पताल में भरती थे. वह रात में ही घायलावस्था में पुलिस सुरक्षा के बीच थाना हमीरपुर कोतवाली पहुंचे और पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल, सुमेरपुर निवासी श्याम सिंह, पचखुरा खुर्द के साहब सिंह, झंडू सिंह, हाथी दरवाजा के डब्बू सिंह, सुभाष बाजार निवासी नसीम, सब्जीमंडी निवासी प्रदीप सिंह, उत्तम सिंह, भान सिंह एडवोकेट तथा एक सरकारी गनर के खिलाफ इस मामले की रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह रिपोर्ट भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 395, 34 के तहत दर्ज की गई.

आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस जगहजगह छापेमारी करने लगी. पुलिस की पकड़ से बचने के लिए ज्यादातर नामजद आरोपियों ने हमीरपुर की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

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लेकिन पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल राजनीतिक आकाओं की छत्रछाया में एक साल तक छिपता रहा. उस के बाद जज से सांठगांठ कर के एक दिन वह कोर्ट में हाजिर हो गया. गंभीर केस में भी जज आर.वी. लाल ने उसे उसी दिन जमानत दे दी.

न्यायालय पर हावी रहा अशोक चंदेल

न्यायिक अधिकारी के इस फैसले से राजीव शुक्ला को अचरज हुआ. उन्होंने पैरवी करते हुए हाईकोर्ट से अशोक सिंह चंदेल की जमानत निरस्त करवा दी, जिस से उसे जेल जाना पड़ा.

यही नहीं, राजीव शुक्ला ने जमानत देने वाले जज आर.वी. लाल की भी हाईकोर्ट में शिकायत की. शिकायत सही पाए जाने पर हाईकोर्ट ने जज आर.वी. लाल को निलंबित कर दिया और उन के खिलाफ जांच बैठा दी. जांच रिपोर्ट आने के बाद जज आर.वी. लाल को बर्खास्त कर दिया गया.

इधर हाईकोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद सामूहिक नरसंहार के मुख्य आरोपी अशोक चंदेल ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जमानत निरस्त वाले फैसले पर रोक लगा दी, जिस से अशोक चंदेल जेल से बाहर तो नहीं आ सका लेकिन उसे राहत जरूर मिल गई.

इस के बाद उस ने अपने खास लोगों के मार्फत बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख सुश्री मायावती से संपर्क साधा और सन 1999 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मांगा. मायावती ने अशोक सिंह चंदेल की हिस्ट्री खंगाली और फिर बाहुबली मान कर उसे टिकट दे दिया.

सन 1999 के लोकसभा चुनाव में चंदेल को टिकट मिला तो उस ने चुनाव का संचालन जेल से ही किया और पूरी ताकत झोंक दी. परिणामस्वरूप वह जेल से ही चुनाव जीत गया.

अब तक कोतवाली हमीरपुर पुलिस अशोक सिंह चंदेल समेत 11 आरोपियों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर चुकी थी. सामूहिक नरसंहार का यह मामला अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अश्वनी कुमार की अदालत में विचाराधीन था. इसी दौरान एक आरोपी झंडू सिंह की बीमारी की वजह से मौत हो चुकी थी.

न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार ने 17 जुलाई, 2002 को इस बहुचर्चित हत्याकांड का फैसला सुनाया. उन्होंने मुख्य आरोपी अशोक सिंह चंदेल सहित सभी 10 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया.

अदालत के इस फैसले से राजीव शुक्ला को तगड़ा झटका लगा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह समझ गए कि अशोक सिंह चंदेल ने करोड़ों का खेल खेल कर जज को अपने पक्ष में कर लिया है. अत: राजीव शुक्ला ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. साथ ही न्यायिक अधिकारी पर मनमाना फैसला सुनाने का आरोप लगाया.

पीडि़त राजीव शुक्ला की शिकायत पर हाईकोर्ट ने विजिलेंस और जुडीशियल जांच कराई, जिस में न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को मुकदमे में जानबूझ कर कपट व कदाचार से ऐसा निर्णय देने का आरोप सिद्ध हुआ. जांच अधिकारी की आख्या और हाईकोर्ट की संस्तुति पर तत्कालीन गवर्नर ने न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को बर्खास्त करने की मंजूरी दे दी.

वादी राजीव शुक्ला की आंखों के सामने उन के 2 भाइयों व भतीजे को गोलियों से छलनी किया गया था. जब भी वह दृश्य उन की आंखों के सामने आता तो उन का कलेजा कांप उठता था. यही कारण था कि राजीव ने न्याय पाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था.

जब घटना घटी थी तब उन का खुद का व्यवसाय था, लेकिन घटना के बाद वह दिनरात आरोपियों को सजा दिलाने में जुट गए थे. हालांकि उन्हें सुरक्षा मिली थी, फिर भी पूरा परिवार दहशत में रहता था.

राजनीति की गोटियां बिछाता रहा अशोक चंदेल

राजीव शुक्ला जहां न्याय के लिए भटक रहे थे, वहीं अशोक सिंह चंदेल अपनी राजनीतिक गोटियां बिछा रहा था. चूंकि चंदेल सहित सभी आरोपी दोषमुक्त करार दिए गए थे, अत: अशोक चंदेल खुला घूम कर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुटा था.

अशोक सिंह चंदेल दलबदलू था. वह जिस पार्टी का पलड़ा भारी देखता, उसी पार्टी का दामन थाम लेता था. 2007 के विधानसभा चुनाव में उस ने बसपा से भी नाता तोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. सपा ने उसे टिकट दिया और वह जीत हासिल कर तीसरी बार हमीरपुर सदर से विधायक बन गया.

अगले 5 साल तक उस ने पार्टी के लिए कोई खास काम नहीं किया. इस से नाराज हो कर सन 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उसे टिकट नहीं दिया. तब उस ने सपा छोड़ कर बसपा व भाजपा से टिकट पाने की कोशिश की लेकिन दोनों पार्टियों ने उसे टिकट देने से साफ इनकार कर दिया. इस के बाद उस ने मजबूर हो कर पीस पार्टी से चुनाव लड़ा और हार गया.

अशोक सिंह चंदेल राजनीति का शातिर खिलाड़ी बन चुका था. वह हार मानने वालों में से नहीं था. अत: सन 2017 के विधानसभा चुनाव में उस ने फिर से जुगत लगाई और संघ के एक उच्च पदाधिकारी की मदद से भाजपा से नजदीकियां बढ़ाईं.

परिणामस्वरूप अशोक चंदेल भाजपा से हमीरपुर सदर से टिकट पाने में सफल हो गया. राजीव शुक्ला भी भाजपा समर्थक थे. भाजपा पदाधिकारियों में उन की भी पैठ थी. पार्टी द्वारा अशोक चंदेल को टिकट देने का उन्होंने विरोध भी किया.

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इतना ही नहीं, समर्थकों के साथ लखनऊ जा कर धरनाप्रदर्शन भी किया. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी चंदेल को टिकट देने का विरोध किया. फिर भी उस का टिकट नहीं कटा. मोदी लहर में चंदेल ने इस सीट पर विजय हासिल की और चौथी बार हमीरपुर सदर से विधायक बना.

इधर कई सालों से सामूहिक हत्या का मामला हाईकोर्ट में चल रहा था. तारीखों पर तारीखें मिल रही थीं. लेकिन निर्णय नहीं हो पा रहा था. देरी होने पर राजीव शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक हत्याकांड की परिस्थितियों को देखते हुए निर्देश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद को प्रार्थनापत्र दें.

इस के बाद राजीव शुक्ला ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को प्रार्थनापत्र दिया और जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर एक स्पैशल डबल बैंच का गठन हुआ, जिस में न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने सुनवाई शुरू की. सुनवाई शुरू हुई तो राजीव शुक्ला को जल्द न्याय पाने की आस जगी.

सामूहिक हत्याकांड मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष अधिवक्ता ओंकारनाथ दुबे ने बहस की और बचावपक्ष की ओर से अधिवक्ता फूल सिंह ने. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कृष्ण पहल भी इस बहस में शामिल थे. वकीलों की बहस और गवाहों की जिरह पूरी होने के बाद उच्च न्यायालय की स्पैशल डबल बैंच ने सभी आरोपियों को दोषी माना और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया.

आखिर मिल ही गया न्याय

19 अप्रैल, 2019 को हाईकोर्ट की स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार ने इस मामले में फैसला सुनाया. खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

सजा पाने वालों में विधायक अशोक सिंह चंदेल तथा उस के सहयोगी रघुवीर सिंह, डब्बू सिंह, उत्तम सिंह, प्रदीप सिंह, साहब सिंह, श्याम सिंह, भान सिंह, रूक्कू तथा नसीम थे. कोर्ट ने सभी दोषियों को सीजेएम हमीरपुर की अदालत में सरेंडर करने के आदेश दिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां विधायक खेमे में मायूसी छा गई, वहीं पीडि़त परिवारों में खुशी के आंसू छलक आए. साथ ही 22 साल पहले हुआ वीभत्स हत्याकांड फिर से जेहन में ताजा हो गया.

पीडि़त परिवार को मिली तसल्ली

राजीव शुक्ला के आवास पर मोमबत्तियां जला कर खुशी मनाई गई तथा दिवंगत सभी 5 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. देर शाम उन के घर की महिलाओं ने घर की रेलिंग व चबूतरे पर मोमबत्तियां जलाईं.

उधर कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता की पत्नी कमलेश गुप्ता ने कहा कि उसे इस बात की तसल्ली हुई कि भले ही उस के पति की हत्या के मामले में न सही, पर दूसरे केस में बाहुबली विधायक अशोक चंदेल और उस के गुर्गों को सजा तो मिली.

बेवा कमलेश गुप्ता ने बताया कि पति रणधीर गुप्ता की हत्या के बाद उन का परिवार आर्थिक रूप से टूट गया था. हालात यह हैं कि आज दोजून की रोटी के भी लाले हैं. उन्होंने बताया कि पति किदवईनगर के ई-ब्लौक में एक हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. साथ ही प्लंबिंग के काम की ठेकेदारी भी करते थे.

घर पर विश्व शिक्षा निकेतन के नाम से स्कूल भी चलता था. उन की हत्या के बाद बुजुर्ग ससुर ने दुकान संभाली पर वह नहीं चली और बंद हो गई. आर्थिक रूप से कमर टूटी तो बिजली का बिल भी बकाया होता चला गया. आखिर में बिजली कट गई. तब से आज तक परिवार अंधेरे में ही रहता है.

विधवा कमलेश कुछ देर शून्य में ताकती रही फिर बोली कि 40 साल की बड़ी बेटी नमन अविवाहित है. बीए तक पढ़ाई करने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. एक बेटा अखिल नौबस्ता में रह कर कार ड्राइवर की नौकरी करता है. सब से छोटा बेटा नवीन नौबस्ता की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता है. उसे 5 हजार रुपया वेतन मिलता है.

नवीन की नौकरी से ही घर चलता है. जेठ बी.एल. गुप्ता जो वडोदरा में रहते हैं, तथा पीलीभीत में रहने वाली ननद मीरा गुप्ता उन की आर्थिक मदद करती हैं, जिस से परिवार का भरणपोषण होता रहता है.

उन्होंने बताया कि आर्थिक परेशानी के कारण ही वह पति की हत्या के मुकदमे में पैरवी नहीं कर सकीं, जिस से मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है. अशोक सिंह चंदेल बाहुबली विधायक है. उस के आगे मुझ जैसी विधवा भला कैसे टिक सकती है. फिर भी सुकून है कि उसे दूसरे मामले में उम्रकैद की सजा तो मिली.

4 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अशोक सिंह चंदेल ने अकूत संपत्ति अर्जित की थी. राजनीति में आने के बाद उस ने विवादित प्रौपर्टी खरीदने का खेल शुरू किया. कानपुर किदवईनगर के एम ब्लौक में उस का तिमंजिला मकान पहले से था. उस के बाद उस ने जूही थाने के सामने एक वृद्ध महिला का मकान औनेपौने दाम में खरीदा और फिर तीन मंजिला कोठी बनाई.

इसी तरह उस ने ई-ब्लौक किदवई नगर में गुप्ता बंधुओं का विवादित मकान खरीदा. इस समय इस मकान में पहली मंजिल पर देना बैंक है. अशोक सिंह चंदेल ने जिस पीएनबी बैंक वाली बिल्डिंग में जूतेचप्पल की दुकान खोली थी, उस पर भी उस का कब्जा है.

अशोक सिंह चंदेल ने विधायक कोटे से भी 2 मकान आवंटित करा लिए थे. एक मकान गाजियाबाद में आवंटित कराया तथा दूसरा जूही कला कानपुर में. बाद में एक कोटे से 2 मकानों का आवंटन सामने आने पर मामला फंस गया. जब यह मामला कोर्ट गया तो कोर्ट ने उस का एक मकान निरस्त कर दिया. इन सब के अलावा भी हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट आदि शहरों में उस की करोड़ों की प्रौपर्टी है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने इस बारे में बताया कि उच्च न्यायालय से आजीवन सजा मिलने के बाद अशोक सिंह चंदेल की विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जाएगी. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार 2 वर्ष से अधिक सजा मिलने पर संबंधित व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व के अयोग्य हो जाता है.

इस नियम के तहत हमीरपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव निश्चित है. इस के लिए हाईकोर्ट से सूचना सचिवालय को जाएगी. इस के बाद सचिवालय इस सीट को रिक्त कर इस की सूचना चुनाव आयोग को देगा और चुनाव आयोग इस सीट पर उपचुनाव का कार्यक्रम तय करेगा.

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जिस समय उच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला सुनाया गया, विधायक अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर स्थित अपनी कोठी में था. पत्रकारों ने जब उसे उम्रकैद की सजा सुनाए जाने की जानकारी दी तो वह बोला कि उस ने हमेशा गरीबों के आंसू पोंछने का काम किया है. कोई भी ऐसा काम नहीं किया कि उसे सजा मिले. फिर भी अदालत का फैसला स्वीकार्य है. वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा.

बहरहाल कथा संकलन तक विधायक अशोक सिंह चंदेल के अलावा सभी दोषियों ने हमीरपुर की सीजेएम कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से सजा भुगतने को उन्हें जिला जेल भेज दिया गया था.

—कथा कोर्ट के फैसले तथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

 

हम जनता के सेवक हैं

लेखक- सुरेश सौरभ

लखीमपुर के सिद्धार्थनगर महल्ले के बाशिंदे अमित कुमार ग्रीन फील्ड एकेडमी स्कूल से इंटर का इम्तिहान पास करने के बाद छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर यूनिवर्सिटी पढ़ने चले गए थे और वहीं से बीए करने के बाद वे दिल्ली की ओर रुख कर गए थे. अमित कुमार ने दिल्ली में बाजीराव ऐंड रवि कोचिंग में सिविल सेवा की तैयारी शुरू की और एक साल के बाद पहली ही कोशिश में इतना बड़ा इम्तिहान पास कर के लोगों के हीरो बन गए. अमित कुमार ने बताया कि वे मूल रूप से हरगांव सीतापुर के गांव नुकरी के रहने वाले हैं और वहीं उन का बचपन बीता था.

वर्तमान समय में सिविल सोसाइटी के लोग तमाम राजनीतिक दखलअंदाजी के चलते कैसे सही काम कर पाएंगे? इस सवाल के जवाब में अमित कुमार ने बताया, ‘‘सत्ता का दबाव तो रहता है, पर तमाम तरह के दबावों को दरकिनार करते हुए हमें अपने हकों और फर्ज पर अडिग रहना चाहिए और अगर हम ऐसा करते हैं तो राजनीतिक दबाव को बहुत हद तक कम किया जा सकता है और जनता का काम आसानी से किया सकता है.’’

किसी बड़ी कामयाबी को पाने के लिए नौजवानों को क्या करना चाहिए? इस सवाल के जवाब में अमित कुमार कहते हैं, ‘‘नौजवानों को अगर कोई बड़ी कामयाबी पाने की इच्छा है तो उन्हें अपना टारगेट ले कर चलना पड़ेगा और उसी टारगेट पर बिना रुके बिना थके तब तक चलना होगा जब तक कि कामयाबी नहीं मिल जाती.’’

आज के समय में जब पूरा देश भ्रष्टाचार और गरीबी से जूझ रहा है, ऐसे में सिविल सेवा में गए लोगों को क्या करना चाहिए, जिस से इस सब पर काबू पाया जा सके? इस सवाल के जवाब में अमित कुमार कहते हैं, ‘‘हमारा काम जनता की सेवा करना है. हम जनता के सेवक हैं. अगर सिविल सेवा में गए लोग सेवा भाव से काम करेंगे तो काफी हद तक इस समस्या का समाधान किया जा सकता है.’’

अमित कुमार के पिता वीरेंद्र भारती प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं और मां सुमन देवी गृहिणी हैं. अपने बेटे की कामयाबी पर पिता बहुत खुश हैं और कहते हैं, ‘‘अमित जैसा बेटा पा कर हमें गर्व महसूस होता है. हर मांबाप को अमित जैसा होनहार और काबिल बेटा मिलना चाहिए.’’

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अमित कुमार के 2 भाई और एक बहन हैं.

अमित कुमार की इस कामयाबी पर तमाम संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है. दलित महापरिसंघ के प्रमुख चंदन लाल बाल्मीकि ने अमित कुमार के सम्मान में एक बड़ी प्रैस कौंफ्रैंस कराई और उन्हें परिसंघ की ओर से सम्मानित भी किया.

अमित कुमार गौतम बुद्ध, डाक्टर भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, ज्योतिराव फुले और अपने गुरु सतीश कुमार वर्मा को अपना आदर्श मानते हैं.

सिविल सेवा में जाने के लिए नौजवानों को पढ़ने के लिए किनकिन किताबों की मदद लेनी चाहिए? इस सवाल के जवाब में अमित कुमार कहते हैं कि एनसीआरटी की किताबें इस की तैयारी के लिए बहुत ही कारगर होती हैं.

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सीसैट लागू होने पर हिंदी बैल्ट के बहुत से छात्र सिविल सेवा में नहीं जा पा रहे हैं. क्या यह बात सही है? इस सवाल के जवाब में अमित कुमार कहते हैं, ‘‘शुरुआत में हिंदी बैल्ट के छात्रों पर फर्क पड़ा था, मगर अब हालात बदल गए हैं और हिंदी बैल्ट के छात्र सीसैट पैटर्न में लगातार कामयाबी हासिल कर रहे हैं.’’

नोक वाला जूता

लेखक-  हरीश जायसवाल 

राजनगर थाने के इंचार्ज इंसपेक्टर राजेश कदम थाने में चहलकदमी कर रहे थे. उन के चेहरे पर परेशानी के भाव नहीं थे. इस की वजह यह थी कि पिछले 4-6 दिनों से मेट्रो सिटी के इस थाने में कोई गंभीर घटना नहीं हुई थी. अलबत्ता छोटीमोटी चोरी, मारपीट, जेबतराशी वगैरह की घटनाएं जरूर हुई थीं. इंसपेक्टर राजेश कदम अपनी कुरसी पर बैठने ही वाले थे कि अचानक फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो, राजनगर पुलिस स्टेशन से बोल रहे हैं?’’ फोन करने वाले ने प्रश्न किया.

‘‘जी, मैं बोल रहा हूं.’’ राजेश कदम ने जवाब दिया.

‘‘सर, मैं सुनयन हाउसिंग सोसाइटी से सिक्योरिटी गार्ड बोल रहा हूं. यहां 8वें माले के फ्लैट नंबर 3 में रहने वाले सुरेशजी ने खुद को आग लगा ली है. आत्महत्या का मामला लगता है. आप तुरंत आ जाइए.’’ सूचना देने वाले ने कहा.

‘‘सुरेशजी की मौत हो गई है या अभी जिंदा हैं?’’ राजेश कदम ने पूछा.

‘‘सर, लगता तो ऐसा ही है.’’ फोन करने वाले ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, हम वहां पहुंच रहे हैं. ध्यान रखना कोई भी व्यक्ति अंदर ना जाए और न ही कोई किसी चीज को हाथ लगाए.’’ राजेश कदम ने निर्देश दिया.

अपराह्न के करीब पौने 3 बज रहे थे. सुनयन हाउसिंग सोसायटी पुलिस स्टेशन से ज्यादा दूरी पर नहीं थी. सूचना मिलने के लगभग 10 मिनट के अंदर ही राजेश कदम अपनी पुलिस टीम के साथ सुनयन हाउसिंग सोसायटी पहुंच गए. फ्लैट के बाहर 15-20 लोग खड़े थे. लोगों में ज्यादातर महिलाएं थीं, क्योंकि पुरुष अपनेअपने काम पर गए हुए थे. गार्ड समेत 4 पुरुष और थे.

‘‘जी, नमस्कार. मेरा नाम सुरजीत है और मैं इस सोसायटी का सेक्रेटरी हूं.’’ एक 55-60 साल के आदमी ने आगे आ कर अपना परिचय दिया.

‘‘आप को इस घटना की सूचना कब और कैसे मिली?’’ इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘जी, करीब आधे घंटे पहले गार्ड राम सिंह ने राउंड लेते समय नीचे से देखा कि इस फ्लैट से काफी धुआं निकल रहा है तो उस ने इस की सूचना मुझे दी. हम लोग तुरंत यहां आए, लेकिन फ्लैट में औटो लौक होने की वजह से दरवाजा बंद था.

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‘‘सोसायटी औफिस में रखी मास्टर की से जब फ्लैट खोला गया तो यह नजारा था. सुरेश के बदन में आग लगी हुई थी, वह जमीन पर पड़ा हुआ था.

‘‘हम ने उसे काफी आवाजें दीं लेकिन कोई हलचल न होते देख हम ने समझ लिया कि यह मर चुका है. इस के बाद मैं ने आप को सूचना दी. साथ ही किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया ताकि किसी चीज से किसी तरह की छेड़छाड़ न हो.’’ सुरजीत ने सारा विवरण एक ही बार में सुना दिया.

‘‘गुड,’’ इंसपेक्टर राजेश ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा, ‘‘वैसे यह फ्लैट क्या सुरेश का खुद का है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘नहीं, इस फ्लैट के मालिक तो मिस्टर परेरा हैं, जो पुणे में रहते हैं. सुरेश किसी इंपोर्ट एक्सपोर्ट बिजनैस में डील करता था. जब कभी कोई शिपमेंट होता, तब वह 15-20 दिन यहां रहता था.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मिस्टर परेरा से तो हम बाद में बात करेंगे. वैसे आप का व्यक्तिगत मत क्या है, आप को क्या लगता है?’’ राजेश ने सुरजीत से पूछा.

‘‘ऐसा लगता है जैसे सिगरेट सुलगाते समय गलती से पहने हुए कपड़ों में आग लग गई. अचानक लगी आग से धुआं उठा और दम घुटने की वजह से सुरेश सिर के बल फ्लोर पर गिरा. सिर पर गहरी चोट लगने के कारण बेहोश हो गया और आग से उस की मौत हो गई. देखिए, उस के पास जली हुई सिगरेट भी पड़ी हुई है.’’ सुरजीत ने आशंका जाहिर की.

‘‘अच्छा औब्जर्वेशन है आप का मिस्टर सुरजीत. वैसे आप करते क्या हैं?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘जी, मैं एक प्राइवेट कंपनी में सिस्टम एनालिस्ट था, अब रिटायर हो चुका हूं.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘गुड एनालिसिस.’’ राजेश ने फिर तारीफ की और अपने साथ आए फोटोग्राफर को अलगअलग एंगल से फोटो लेने को कहा. अपनी टीम से लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने और जांच पूरी होने तक किसी भी चीज के साथ छेड़छाड़ न करने की हिदायत दे कर इंसपेक्टर राजेश कदम थाने लौट आए.

अगले दिन इंसपेक्टर कदम अपने सहयोगी एसआई आदित्य वर्मा के साथ बैठे थे. दोनों के बीच मेज पर घटनास्थल और सुरेश की लाश के फोटो फैले थे, जिन्हें वह बड़े ध्यान से देख रहे थे. बीते दिन घटनास्थल और लाश की सारी औपचारिकताएं वर्मा ने ही पूरी की थीं.

इंसपेक्टर कदम ने वर्मा से पूछा, ‘‘आप का क्या विचार है, इस केस के संदर्भ में मिस्टर वर्मा?’’ फोटोग्राफ्स को देखते हुए इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘मैं भी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत की राय से सहमत हूं. यह एक एक्सीडेंट है, जो लापरवाही से सिगरेट जलाने के कारण हुआ.’’ एसआई वर्मा ने अपनी राय दी.

‘‘अब सिगरेट कंपनियों को अपनी चेतावनी के साथ यह भी लिखना चाहिए कि सिगरेट सावधानीपूर्वक सुलगाएं वरना आप की जान भी जा सकती है.’’ पास खड़े फोटोग्राफर ने मजाक में कहा.

‘‘वैसे आप का औब्जर्वेशन क्या है, सर?’’ वर्मा ने राजेश कदम से पूछा.

‘‘मेरा औब्जर्वेशन कहता है कि सुरेश सिगरेट पीता ही नहीं था.’’ राजेश ने जवाब दिया.

‘‘क्या?’’ वर्मा व फोटोग्राफर दोनों चौंक कर आश्चर्य से राजेश का मुंह देखने लगे.

‘‘आप यह बात कैसे कह सकते हैं?’’ वर्मा ने प्रश्न किया.

‘‘इन फोटोग्राफ्स को ध्यान से देखिए. अगर सिगरेट सुलगाने से कपड़ों ने आग पकड़ी होती तो आसपास कहीं माचिस या लाइटर जरूर होता. पर यहां पर दोनों ही चीजें दिखाई नहीं पड़ रहीं, जली हुई भी नहीं.

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‘‘दूसरे सुलगाते समय सिगरेट या तो होठों के बीच होती या हाथों की अंगुलियों के बीच, जो जल चुकी होती और हम उस की राख भी नहीं देख पाते. पर यहां पर सिगरेट लाश से 2 फीट की दूरी पर पड़ी है. अगर आग लगाने की वजह से सिगरेट फेंकी गई होती तो उसे पूरी ताकत लगा कर फेंका गया होता. उस कंडीशन में सिगरेट को कम से कम 4-5 फीट की दूरी पर गिरना चाहिए था.

‘‘तीसरी बात जिस तेजी से आग फैली और काला धुआं निकला, वह सिर्फ तन के कपड़ों के जलने से नहीं निकल सकता. सब से महत्त्वपूर्ण बात धुएं से जो काले निशान जमीन पर पड़े, उस में एक हलका सा निशान जूतों का दिखाई पड़ रहा है. जोकि नुकीली नोक वाले जूते का है. सुरेश ने मरते समय घर में पहनी जाने वाली स्लीपर पहनी हुई थी, जूते नहीं.’’ राजेश कदम ने दोनों को अपनी विवेचना के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘मतलब यह एक मर्डर केस है?’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘बिलकुल. सिगरेट तो हमें बहकाने के लिए डाली गई है.’’ राजेश ने पूरे विश्वास के साथ कहा.

‘‘पर वहां जलाने के लिए पैट्रोल, डीजल, केरोसिन आदि किसी भी ज्वलनशील पदार्थ की कोई गंध नहीं है. यहां तक कि स्निफर डौग भी इस तरह की किसी गंध को आइडेंटीफाई नहीं कर पाया.’’ फोटोग्राफर ने प्रश्न किया.

‘‘यही इनवैस्टीगेट तो करनी है.’’ राजेश ने कहा.

‘‘कहां से शुरू करें सर.’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘देखो, मर्डर अपराह्न के 2 बजे के करीब हुआ है. कामकाज और औफिस वर्कर्स तो सुबह जल्दी ही निकल जाते हैं. बाहर का कोई आया भी होगा तो अपने पर्सनल व्हीकल से ही आया होगा. हमें ध्यान यह रखना होगा कि सिर्फ संकरी टो के जूते वाले को ही ट्रेस करना है. एक बजे से शाम तक सोसायटी में आने वाले सभी व्हीकल की बारीकी से जांच होनी चाहिए.’’ राजेश ने कहा.

‘‘सर, अभी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत से बात करता हूं. 2 घंटे में सीसीटीवी फुटेज मिल जाएंगे.’’ वर्मा ने कहा और सोसायटी के लिए रवाना हो गए.

‘‘वेरी गुड वर्मा. बेस्ट औफ लक.’’ राजेश ने उन का उत्साहवर्धन किया.

 

आदित्य वर्मा 2 घंटे से पहले ही लौट आए. आते ही इंसपेक्टर राजेश से बोले, ‘‘लीजिए सर, ये रही सीसीटीवी फुटेज. घटना चूंकि मिड औफिस आवर्स की है, इसीलिए मोमेंटम बहुत ही कम है. टोटल 22 व्हीकल आए या गए. इन में से भी ज्यादातर उन महिलाओं की कारें हैं, जो दोपहर को फ्री आवर्स में शौपिंग के लिए जाती हैं.

‘‘कुल 6 गाडि़यों से पुरुष आए या गए. इन में से भी एक गाड़ी बिजली विभाग के मीटर रीडर की है, जो उस वक्त मीटर रीडिंग के लिए आया हुआ था.

‘‘बची हुई 5 गाडि़यों में एक मिस्टर खन्ना की गाड़ी ही ऐसी है, जो लगभग एक बजे आई और 3 बजे के आसपास वापस गई. ध्यान देने वाली बात यह है सर, कि मिस्टर खन्ना 10 बजे औफिस जाने के बाद फिर आए थे. परंतु उन के जूते फुटेज में साफ दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘जहां शक है, वहां पुलिस है. खन्ना के बारे में डिटेल्स में कुछ पता चला है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सर, खन्ना उसी सोसायटी में छठे फ्लोर पर रहते हैं. वह बिजनैसमैन हैं.’’ वर्मा ने बताया.

‘‘ठीक है, उन्हीं से पूछताछ करते हैं. किस समय मिलते हैं खन्ना साहब?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘शाम को 8-साढ़े 8 तक मिल जाते हैं सर.’’

‘‘ठीक है या तो शाम का चाय नाश्ता उन के घर पर करते हैं या रात का खाना उन्हें थाने में खिलाते हैं.’’ राजेश ने कहा.

शाम को इंसपेक्टर राजेश कदम और आदित्य वर्मा सुनयन हाउसिंग सोसायटी में जा पहुंचे. उन्होंने फ्लैट की घंटी बजाई तो एक महिला दरवाजे पर आई. राजेश ने कहा, ‘‘हमें खन्ना साहब से मिलना है.’’

‘‘जी, अंदर आइए.’’ पुलिस की यूनिफार्म देख कर महिला ने कुछ नहीं पूछा.

‘‘गुड इवनिंग सर, मेरा नाम खन्ना है.’’ 5 मिनट में ही सिल्क का कुरता पायजामा पहने, हल्की सी फ्रेंच कट दाढ़ी वाला एक सुदर्शन आदमी अंदर से आ कर बोला. उस के चेहरे से ही रईसी झलक रही थी.

‘‘गुड इवनिंग मिस्टर खन्ना, मेरा नाम राजेश कदम है. मैं आप के एरिया के थाने का इंचार्ज हूं. यहां एक केस की तहकीकात के लिए आप के पास आया हूं. मुझे विश्वास है कि आप हमें कोऔपरेट करेंगे.’’ राजेश ने अपना परिचय देते हुए आने का मकसद बताया.

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‘‘यस…यस श्योर.’’ खन्ना बोले.

बैठ कर औपचारिक बातों के बाद राजेश कदम ने यूं ही पूछ लिया, ‘‘एक सिगरेट मिल सकती है?’’

‘‘जी हां लीजिए,’’ कहते हुए खन्ना ने अपने कुरते की जेब से सिगरेट का केस निकाल कर आगे बढ़ाया. सिगरेट केस पर गोल्डन पौलिश थी और चमक बिखेर रहा था.

‘‘काफी लंबी सिगरेट है.’’ राजेश ने सिगरेट निकालते हुए कहा.

‘‘जी हां, 120 एमएम की है. मेरे पापा भी इसी ब्रांड की सिगरेट पीते थे, इसीलिए मुझे भी यही पसंद है. वैसे आप किस केस के सिलसिले में आए हैं.’’

‘‘आप सुरेश को कब से जानते थे?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सुरेश…कौन सुरेश?’’ खन्ना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘वही सुरेश जो आठवें माले पर रहते थे, जिन का मर्डर हुआ है.’’ राजेश ने स्पष्ट किया.

‘‘अच्छा, सुरेश नाम था उस बंदे का. मुझे तो अभी पता चला. मैं ने तो आज तक कभी उस की शक्ल तक नहीं देखी. नाम भी आप के मुंह से सुन रहा हूं. उस के मर्डर केस में मुझ से पूछताछ, आश्चर्य है. मुझ से पूछताछ का कोई आधार है आप के पास.’’ खन्ना अपनी भाषा पर पूरा संयम रखते हुए बोला.

‘‘शक का कारण यह है कि आप अकेले ऐसे शख्स थे, जो दोपहर को एक बजे अपने औफिस से वापस घर आए और 3 बजे वापस चले गए. मर्डर इन्हीं 2 घंटों के दौरान हुआ, इसलिए आप से पूछताछ तो बनती है.’’ राजेश ने स्थिति को और स्पष्ट किया.

‘‘अच्छाअच्छा, तो इसलिए शक कर रहे हैं आप. दरअसल, मुझे एक गवर्नमेंट औफिस में कुछ डाक्यूमेंट्स सबमिट करने जाना था. सारे डाक्यूमेंट मेरे लैपटौप में सेव थे, लेकिन उन्हें हार्ड कौपी भी चाहिए थी, जो घर पर रखी हुई थी. वही लेने घर आया था. घर में श्रीमतीजी ने रिक्वेस्ट की, इसीलिए उन के साथ लंच के लिए रुक गया. आप चाहें तो ये डाक्यूमेंट्स चैक कर सकते हैं, जिन पर मैं ने रिसिप्ट ली है.’’ खन्ना ने जल्दी आने के संदर्भ में अपनी सफाई पेश की.

‘‘वह तो मैं आप की सिगरेट देख कर ही समझ गया था क्योंकि जो सिगरेट लाश के पास मिली है, वह सिक्स्टी नाइन एमएम की ही है.’’ राजेश अपने शक को गलत साबित होते देख निराश भाव से बोले, ‘‘वैसे घटना उसी समय की है. हो सकता है, आप की नजर से ऐसी कोई घटना या शख्स गुजरा हो, जिस से पूछताछ की जा सके.’’

‘‘ऐंऽऽऽ कुछकुछ याद आ रहा है. उस समय मुझे लिफ्ट में उदयन मिला था. वह भी ऊपर कहीं से आ रहा था और उस के पीले जूतों पर कुछ कालिख लगी हुई थी. वह उस पैर को उठा कर दूसरे पैर की पैंट के पायचे से साफ करने की कोशिश कर रहा था.’’ खन्ना ने बताया.

‘‘उदयन…कौन उदयन? कौन से फ्लैट में रहता है?’’ एक महत्त्वपूर्ण सुराग मिलते ही राजेश उछल पड़े. उन्होंने खन्ना पर सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘उदयन एक इंश्योरेंस एजेंट है जो यहां से एक्सपोर्ट किए जाने वाले मटीरियल का इंश्योरेंस करता है. इस सोसायटी में ज्यादातर लोग इंपोर्टएक्सपोर्ट से जुड़े हैं, इसलिए वह घर पर ही आ कर डील कर लेता है.’’ खन्ना ने उदयन के बारे में जानकारी दी.

‘‘उदयन के औफिस का एड्रैस या फोन नंबर है क्या आप के पास?’’ राजेश ने कुछ आशा के साथ खन्ना से पूछा.

‘‘अगर मैं उदयन जैसे लोगों के नंबर सेव करने लगा तो मेरी फोन बुक एजेंटों के नाम से ही भर जाएगी. वैसे उस का विजिटिंग कार्ड मेरे औफिस में रखा है.’’ खन्ना ने बताया.

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महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद राजेश सीधे सिक्युरिटी औफिस गए. वहां पर वह उदयन के नाम की एंट्री खोजने लगे. मगर उसे इस नाम की कोई एंट्री नहीं मिली.

‘‘उदयन नाम का आदमी कल सोसायटी में आया था लेकिन उस के नाम की कोई एंट्री दिखाई क्यों नहीं पड़ रही है?’’ राजेश ने रजिस्टर चैक करते हुए गार्ड से सख्ती दिखाते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि रजिस्टर में सिर्फ व्हीकल से आए हुए लोगों की ही एंट्री की जाती है. अगर पैदल आए लोगों की भी एंट्री करेंगे तो काम बहुत बढ़ जाएगा. वैसे भी हमारे पास इतने आदमी नहीं हैं. घरों में कितने ही नौकर काम करने के लिए आते हैं, सभी की एंट्री संभव नहीं है.

‘‘हम चेहरे से सभी को पहचानते हैं. उदयन भी पैदल ही आता है, हर 2-3 दिन में. शायद इसीलिए उस की एंट्री नहीं की गई होगी.’’ गार्ड ने जवाब दिया, ‘‘वैसे उदयन का औफिस यहां से कुछ ही दूरी पर है. पहले मैं उसी बिल्डिंग में ड्यूटी करता था.’’ गार्ड ने आगे बताया.

गार्ड से उदयन के औफिस का पता ले कर राजेश व उन की टीम वहां पहुंच गई. उस औफिस के चौकीदार से उन्हें उदयन के घर का पता मिल गया.

राजेश ने चौकीदार को भी अपने साथ ले लिया ताकि वह उदयन को फोन कर के सूचना न दे सके. दूसरे उदयन की शिनाख्त भी उसी को करनी थी.

घर की घंटी बजने पर उदयन ने ही दरवाजा खोला. चौकीदार के साथ पुलिस को आया देख वह समझ गया कि उस का राज खुल चुका है. उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस उसे थाने ले आई. थाने में सामने बैठा कर इंसपेक्टर राजेश कदम ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने सुरेश का मर्डर क्यों किया?’’

‘‘उस की वादाखिलाफी मेरी तरक्की में बाधा बन रही थी. सुरेश का एकएक शिपमेंट 15 से 20 करोड़ की कीमत का होता था. ऐसे में उस से बिजनैस मिलने से मुझे अच्छे प्रमोशंस मिल सकते थे. पिछले 6 महीनों में उस ने मुझ से 2 बार कोटेशंस ले कर कौन्ट्रैक्ट दिलवाने का वादा किया था. लेकिन उस ने काम किसी दूसरे को दिलवा दिया था.

‘‘तीसरी बार भी उस ने फिर मेरे साथ वादाखिलाफी की. यह कौन्ट्रैक्ट न मिलने की वजह से मुझे मिलने वाले सारे प्रमोशंस रुक गए और औफिस में मेरा मजाक बना अलग से. अपने अपमान का बदला लेने के लिए मैं ने उसे जला कर मार डाला. पुलिस को गुमराह करने के लिए वहां सिगरेट भी मैं ने ही डाली थी.’’ बोलतेबोलते उदयन गुस्से से भर उठा था.

‘‘पर तुम ने उसे जलाया कैसे, वहां पर तो पैट्रोल, डीजल, केरोसिन जैसी किसी भी चीज की गंध नहीं थी?’’ एसआई वर्मा ने पूछा.

‘‘मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं. मैं ने पढ़ा था कि एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे आर्गेनिक कैमिकल्स होते हैं, जो अत्यंत ज्वलनशील होते हैं. उन की गुप्त ऊष्मा भी बहुत अधिक होती है. इस से भी बड़ी विशेषता यह कि जलने के बाद इन की गंध तक नहीं आती.

‘‘2 दिनों पहले ही मुझे एक बौडी स्प्रे बनाने वाली कंपनी ने अपना प्रोडक्ट एक्सपोर्ट क्वालिटी चैक करने और सैंपल देने की दृष्टि से 1 लीटर मटीरियल दिया था. मैं ने उसी मटीरियल का इस्तेमाल सुरेश को जलाने के लिए किया.

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‘‘सुरेश को परफ्यूम लगाने का बहुत शौक था, इसीलिए उसे बातों में उलझा कर और भीनी खुशबू का हवाला दे कर उस पर एक लीटर परफ्यूम डाल दिया और अपने लाइटर से आग लगा दी.’’

उदयन ने आगे बताया, ‘‘अत्यधिक फ्लेम होने के कारण उसे तुरंत ही चक्कर आ गया और वह सिर के बल गिर कर बेहोश हो गया.’’

‘‘उदयन, तुम ने योजना तो खूब अच्छी बनाई थी. एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन का इग्नीशन तो तुम्हें याद रहा लेकिन जलने के बाद ओमिशन औफ कार्बन को भूल गए. एक्यूमुलेटेड कार्बन में वहां तुम्हारे जूतों के निशान बन गए और तुम हमारे मेहमान.’’ राजेश कदम ने मुसकराते हुए कहा.                      द्य

जैसा रंगीन राजा वैसी रंगीन नगरिया…

लेखक- निखिल अग्रवाल

भारत में भले ही आजादी के बाद राजशाही खत्म हो गई, लेकिन दुनिया के कई देशों में आज भीराजशाही कायम है. थाईलैंड भी ऐसा ही देश है. वहां चुनावों के बावजूद राजशाही की ताकत ज्यादा है. थाईलैंड में राजा को पिता के समान माना जाता है. थाईलैंड और वहां की राजधानी बैंकाक का नाम आते ही जेहन में रंगीनियत और मस्ती का चित्र उभरने लगता है. यह देश दुनिया भर में पर्यटन का सब से बड़ा केंद्र है, साथ ही सैक्स टूरिज्म के लिए भी मशहूर है. यहां की रंगीन रातों के जलवे अलग ही होते हैं, जिन की वजह से दुनियाभर के सैलानी खिंचे चले आते हैं. यहां का पर्यटन और नाइट लाइफ  जितनी रंगीन होती हैं, उतनी ही रंगीनियत से भरी है वहां के राजा महा वजीरालौंगकोर्न की कहानी.

मौजूदा राजा महा वजीरालौंगकोर्न की अंतिम प्रेम कहानी प्रेम कहानी 10 साल पुरानी है. इसी प्रेम कहानी के चलते राजा ने बीती एक मई को सुथिदा तिदजई से शादी कर पूरी दुनिया को चौंका दिया. खास बात यह है कि राजा वजीरालौंगकोर्न 66 साल के हैं और सुथिदा 40 साल की. दोनों की उम्र में 26 साल का अंतर है. सुथिदा इस से पहले राजा की बौडीगार्ड थीं. लेकिन शादी के बाद उन्हें थाईलैंड की क्वीन का दरजा मिल गया. राजा वजीरालौंगकोर्न की यह चौथी शादी है. इस से पहले वे 3 शादियां रचा चुके हैं. तीनों पत्नियों से उन का तलाक हो चुका है. तलाकशुदा पत्नियों से राजा के 7 बच्चे हैं.

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3 जून 1978 को बैंकाक में जन्मी सुथिदा तिदजई एसंपशन यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हैं. उन्होंने वर्ष 2000 में कम्युनिकेशन आर्ट्स की डिग्री हासिल की थी. पढ़ाई पूरी करने के बाद सुथिदा ने थाई एयरवेज में फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में नौकरी शुरू की. कहा जाता है कि थाईलैंड के राजकुमार वजीरालौंगकोर्न ने सुथिदा को किसी सफर के दौरान देखा था और वे उन पर मोहित हो गए थे. हालांकि उस समय तक राजकुमार के अपनी तीसरी रानी सिरीरास्म सुवादे से अच्छे संबंध थे.

राजा ने धीरेधीरे बढ़ाया अपने प्यार को

माना जाता है कि राजकुमार वजीरालौंगकोर्न के कहने पर 5 फुट 4 इंच लंबी सुथिदा ने थाई एयरवेज की नौकरी छोड़ दी और 14 मई 2010 में रौयल थाई आर्मी में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर नई नौकरी जौइन कर ली. वजीरालौंगकोर्न के कारण सुथिदा को जल्दीजल्दी पदोन्नतियां मिलने लगीं.

नवंबर 2010 में उन्हें फर्स्ट लेफ्टिनेंट बना दिया गया. एक अप्रैल 2011 को वे कैप्टन और एक अक्तूबर 2011 को मेजर बन गईं. 6 महीने के अंतराल में इस के अगले साल ही उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल और कर्नल के पद पर पदोन्नति दे दी गई. यह सब वजिरालोंगकोर्न के प्रेम की वजह से हुआ.

उधर राजकुमार वजीरालौंगकोर्न का 2014 में अपनी तीसरी रानी सिरीरास्म से 13 साल पुराना दांपत्य जीवन टूट गया. दोनों ने तलाक ले लिया. तीसरी रानी से तलाक के बाद 61 साल के वजीरालौंगकोर्न के जीवन में सूनापन आ गया.

इसी दौरान सुथिदा से राजकुमार की मुलाकातें बढ़ गईं. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. भले ही दोनों के बीच उम्र का बड़ा फासला था, लेकिन प्यार में ना अमीरीगरीबी की बंदिश होती है और ना ही उम्र की. इसलिए दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा.

इस बीच, राजकुमार वजीरालौंगकोर्न ने वर्ष 2014 में सुथिदा को अपनी निजी बौडीगार्ड यूनिट का डिप्टी कमांडर नियुक्त कर दिया था. निजी बौडीगार्ड यूनिट में नियुक्ति मिलने से वजीरालौंगकोर्न और सुथिदा की मुलाकातें बढ़ गईं. दोनों एकदूसरे के ज्यादा करीब आ गए, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इन के किस्से चर्चा में आने लगे.

राजकुमार वजीरालौंगकोर्न इस दौरान सुथिदा से डेटिंग करते रहे, सुथिदा के साथ वह विदेशों में घूमते रहे. राजकुमार काफी समय जर्मनी में भी रहे. जर्मनी में वजीरालौंगकोर्न का अपना महल है. पिछले साल राजा जर्मनी में एक बनियान पहने हुए नजर आए, साथ में उन की प्रेमिका सुथिदा भी थीं. थाईलैंड में इस की काफी आलोचना भी हुई थी.

अक्तूबर 2016 में वजीरालौंगकोर्न के पिता भूमिवोल अदुलयादेद का निधन हो गया. भूमिवोल 70 साल से थाईलैंड के राजा थे. उन के निधन पर थाईलैंड में 50 दिन तक शोक छाया रहा. पिता के निधन से राजकुमार वजीरालौंगकोर्न दुखी थे, लेकिन संवैधानिक तौर पर उन का राजा बनने का रास्ता साफ  हो गया था.

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सुथिदा ने वजीरालौंगकोर्न को पिता के निधन से शोक से उबरने में काफी मदद की. वजीरालौंगकोर्न जब शोक से उबरे, तो अपने प्यार पर इतने आसक्त हो चुके थे कि उन्होंने दिसंबर 2016 में सुथिदा को लेफ्टिनेंट जनरल का पद दे कर राजा की गार्ड की स्पैशल औपरेशन यूनिट का मुखिया बना दिया. बाद में अक्तूबर 2017 में सुथिदा को रौयल थाई आर्मी का जनरल नियुक्त कर दिया गया.

संवैधानिक तौर पर वजीरालौंगकोर्न को पिता के निधन के बाद 1 दिसंबर, 2016 को राजा की उपाधि और राजगद्दी मिल गई थी, लेकिन उन का राज्याभिषेक समारोह इस साल मई के पहले सप्ताह में बैंकाक में शुरू हुआ. राजा बनने पर वजीरालौंगकोर्न को लोग 10वें किंग रामा के नाम से जानने लगे.

राज्याभिषेक से पहले ही एक मई को राजा वजीरालौंगकोर्न ने सुथिदा से शादी कर अपनी करीब 9 साल पुरानी प्रेम कहानी को विराम दे दिया. शादी के बाद राजा ने सुथिदा को थानपुइंग यानी क्वीन की उपाधि दे दी.

परंपराओं में बंधा देश

थाईलैंड की परंपरा के मुताबिक शादी की रस्मों के लिए सुथिदा रेंग कर शाही दरबार में सोने के सिंहासन पर बैठे राजा वजीरालौंगकोर्न के सामने पहुंचीं. राजा के पैरों में नतमस्तक हो कर सुथिदा ने उन्हें उपहार दिया. राजा ने पवित्र जल छिड़क कर सुथिदा को टीका लगाया. उस समय वह सिल्क की परंपरागत सुनहरी पोशाक पहने हुए थीं.

राजा की शादी की रजिस्ट्री पर हस्ताक्षर करने के लिए रौयल कोर्ट के रजिस्ट्रार और अन्य सदस्यों को दरबार में बुलाया गया. वे भी रेंग कर दरबार में पहुंचे. इस दौरान अन्य सभी लोग पेट के बल जमीन पर बैठे रहे. बाद में राजा को शादी की बधाई देने के लिए लोग रेंगते हुए दरबार में पहुंचे. थाईलैंड में इस शाही शादी को टेलीकास्ट भी किया गया.

66 साल के वजीरालौंगकोर्न का राजतिलक समारोह 4 मई को बौद्ध और ब्राह्मण रीतिरिवाज से हुआ. बैंकाक में आयोजित इस समारोह की शुरुआत चकाचौंध भरे कार्यक्रम से शुरू हुई. 3 दिवसीय इस कार्यक्रम पर करीब 25 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है.

प्राचीन परंपराओं के तहत राजतिलक समारोह के पहले दिन सुबह राजा सब से पहले राजमहल पहुंचे. उन्होंने बौद्ध धर्म के गुरु से उपदेश लिया. इस के बाद उन्होंने सफेद राजकीय पोशाक बदल कर सोने के तारों से सिली हुई राजा की पोशाक पहनीं. सुबह 10 बज कर 9 मिनट पर राजा को थाईलैंड की विभिन्न जगहों से लाया गया पवित्र जल सौंपा गया. यह पवित्र जल राजा ने ग्रैंड पैलेस परिसर के भीतर स्थित पवित्र स्थान पर अपने चेहरे पर छिड़का. इस मौके पर राजा को तोप चला कर सलामी दी गई. बौद्ध महंतों ने मंत्रोच्चार किया. इस दौरान हिंदू ब्राह्मण भी मौजूद थे.

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राजा को पवित्र किए जाने के बाद राजसिंहासन पर बैठाया गया. ब्राह्मणों ने उन्हें राज चिह्न, सोने का राजदंड और कीमती पत्थर से बनी तलवार सौंपी. इस के बाद राजा वजीरालौंगकोर्न को साढ़े 7 किलो सोने से बना मुकुट पहनाया गया. इस मुकुट पर प्राचीन भारत का हीरा जड़ा है. इस मौके पर नए राजा ने ‘धर्म और न्याय’ के साथ शासन करने की प्रतिबद्धता जताई.

राजतिलक के बाद दूसरे दिन 5 मई को राजा वजीरालौंगकोर्न ने नगर भ्रमण किया. वे सोने की पालकी में सवार थे. यह पालकी शाही सेना के 16 सिपाहियों ने कंधों पर उठा रखी थी. राजा की सवारी का नेतृत्व लाल रंग की वरदी में बाएं चल रही महारानी जनरल सुथिदा कर रही थीं.

यह सवारी दिवंगत राजा भूमिवोल द्वारा कंपोज कराई गई धुन पर आगे बढ़ रही थी. सड़क किनारे राजा की सवारी देखने की इजाजत केवल उन लोगों को ही थी, जो पीले कपड़े पहन कर आए थे. इस से पहले बैंकाक में 1963 में तत्कालीन राजा भूमिवोल की शाही सवारी निकली थी.

राजतिलक के जश्न पर खर्च हुए 25 करोड़

3 दिवसीय राजतिलक समारोह के आखिरी दिन 6 मई को थाईलैंड के नए राजा वजीरालौंगकोर्न के सम्मान में बैंकाक के ग्रेंड पैलेस के सामने सफेद रंग के 11 हाथी लाए गए. इन हाथियों ने राजा के सम्मान में घुटने टेके. हाथियों के दांतों पर मालाएं लगी थी.

हाथियों के अलावा राजा और उन के परिवार को देखने आए लोगों ने भी नतमस्तक हो कर प्रणाम किया. नए राजा ने बालकनी से हाथ हिला कर लोगों का अभिवादन किया. थाईलैंड में हाथी को शाही ताकत का प्रतीक माना जाता है.

राजा वजीरालौंगकोर्न चक्री वंश के 10वें सम्राट हैं. थाईलैंड में इस वंश का 1782 से शासन है. पहले शासक बुद्ध योद्फ  चुललोक थे. उन्हें किंग रामा प्रथम के नाम से जाना जाता था. उन का शासनकाल 1782 से 1809 तक रहा.

किंग रामा द्वितीय के नाम से जाने गए थाईलैंड के दूसरे राजा बुद्ध लोएत्ल नभले का कार्यकाल 1809 से 1824 तक रहा. तीसरे राजा नंगलव ने 1824 से 1851 तक शासन किया. मोंग्कुट चौथे राजा बने, उन का कार्यकाल 1851 से 1868 तक रहा.

पांचवें राजा चुललंगकरण को किंग रामा-5 के नाम से जाना गया. उन का राज 1868 से 1910 तक रहा. वाजिर्वुध छठे राजा हुए, उन्होंने 1910 से 1925 तक शासन किया. थाईलैंड के सातवें राजा प्रजाधिपोक का शासनकाल 1925 से 1935 तक रहा. आठवें राजा आनंद महिदोल ने 1935 से 1946 तक शासन किया.

इस के बाद 1946 में भूमिवोल थाईलैंड के 9वें राजा बने. उन्हें किंग रामा-9 के नाम से जाना जाता था. उन का राजतिलक 1950 में किया गया था. भूमिवोल का निधन अक्तूबर 2016 हुआ. वे 70 साल तक थाईलैंड के राजा रहे.

28 जुलाई 1952 को बैंकाक में क्वीन सिरीकिट की कोख से जन्मे राजकुमार वजीरालौंगकोर्न की पहली शादी 3 जनवरी, 1977 में उन की ममेरी बहन सोमसावली से हुई थी. इन की 7 दिसंबर, 1978 को एक बेटी हुई. वजीरालौंगकोर्न का सोमसावली से जुलाई 1993 में तलाक हो गया.

इसी बीच राजकुमार वजीरालौंगकोर्न ने दूसरी शादी अभिनेत्री युवहिदा पोलप्रेजर से की. उन से राजा के 5 बच्चे हुए. बाद में दोनों का तलाक हो गया और रानी युवहिदा रहने के लिए ब्रिटेन चली गईं.

रंगीनियों में डूबे देश का सनकी राजा

राजकुमार वजीरालौंगकोर्न की तीसरी शादी 10 फरवरी 2001 को श्रीरास्मी सुवादे से हुई. इनसे 29 अप्रैल, 2005 को राजा का एक बेटा हुआ. वर्ष 2014 में श्रीरास्मी और वजीरालौंगकोर्न का तलाक हो गया. इस के बाद राजकुमार वजीरालौंगकोर्न ने अब सुथिदा से चौथी शादी की है.

राजा वजीरालौंगकोर्न के बारे में एक किस्सा मशहूर है. किस्सा यह है कि उन्होंने एक बार अपने प्रिय डौग फू फू  को रौयल थाई एयरफोर्स का चीफ मार्शल नियुक्त कर दिया था. लोगों को उन के इस फैसले पर काफी आश्चर्य हुआ था.

बाद में जब उस डौग की मौत हो गई, तो थाईलैंड में राष्ट्रीय शोक मनाया गया. जल्दी ही गुस्से में आ जाने वाले वजीरालौंगकोर्न ने अपनी तीसरी बीवी श्रीरास्मी को एक बार करीबकरीब टौपलेस कर के फोटो खिंचवाई थी. पता चलने पर इस की काफी आलोचना हुई थी.

अब बात करते हैं थाईलैंड के बारे में. दक्षिण पूर्वी एशिया के इस देश का प्राचीन नाम स्याम है. थाईलैंड की सीमाएं लाओस, कंबोडिया, मलेशिया और म्यांमार से सटी हुई हैं. वर्ष 1238 में थाईलैंड में सुखोथाई राज्य की स्थापना हुई. इसे पहला बौद्ध थाई राज्य माना जाता है.इस के एक सदी बाद अयुध्या के राजा ने सुखोथाई पर अपना राज कायम कर लिया. वर्ष 1767 में बर्मा द्वारा अयुध्या के पतन के बाद थोंबुरी राजधानी बनी. सन 1782 में थाईलैंड में चक्री राजवंश की स्थापना हुई. इसे ही आधुनिक थाईलैंड का आरंभ माना जाता है. वर्ष 1992 में थाईलैंड को नया संवैधानिक राजतंत्र घोषित कर दिया गया. यहां मुख्य रूप से बौद्ध धर्म है.थाईलैंड की राजधानी बैंकाक है. थाईलैंड में वैसे तो प्रौस्टीट्यूशन गैरकानूनी है, लेकिन इसे रोकने के लिए कभी सख्ती नहीं हुई. यही कारण रहा कि बैंकाक पूरी दुनिया में सैक्स टूरिज्म के नाम से चर्चित होता गया. एचआईवी और एड्स के आंकड़े जुटाने वाली संस्था एवीईआरटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक थाईलैंड में करीब एक लाख 23 हजार सैक्स वर्कर हैं.

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बैंकाक के साथ थाईलैंड के शहर फुकेट, पटाया और फीफी आइलैंड को नाइट लाइफ  के लिए जन्नत माना जाता है. दुनिया भर के हजारों सैलानी रोजाना थाईलैंड आते हैं. यहां आने वाले सैलानियों को खासतौर से बार और मसाज पार्लर लुभाते हैं.

अकेले पटाया शहर में ही एक हजार से ज्यादा बार और मसाज पार्लर हैं. थाईलैंड की जीडीपी में पर्यटन उद्योग की भागीदारी करीब 10 फीसदी है. थाईलैंड में डांस वैध है, लेकिन इस की आड़ में जिस्मफरोशी का कारोबार चलता है.

बैंकाक में बार और मसाज पार्लर के अलावा जुआखाने भी हैं. बौडी मसाज और बार में बीयर परोसने के बहाने यहां की लड़कियां सैक्स के अनैतिक धंधे में लिप्त हैं. पोल डांस भी सैलानियों को लुभाता है. पटाया की सड़कों पर हाथ में बार रेस्तरां के पोस्टर लिए खड़ी लड़कियां सैलानियों को रिझाती हैं.बहरहाल, थाईलैंड में जितनी रंगीनी है, वहां के राजा भी उतने ही रंगीनमिजाज हैं. थाईलैंड भले ही छोटा सा देश है, लेकिन यहां शाम होते ही रंगीनियत छा जाती है. दुनिया भर से आने वाले सैलानी आधी रात के बाद तक रंगीनियों में खोए रहते हैं. भारत से सब से ज्यादा सैलानी थाईलैंड जाते हैं. इन में अधिकांश सैलानियों का मकसद मौजमस्ती होता है. बैंकाक से अब भारत में सोने की तस्करी भी बड़े पैमाने पर होने लगी है.

इंटीरीयर डिजाइनर का खूनी इश्क

पिछले 15-20 सालों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा का बहुत तेजी से विकास हुआ है. इस के आसपास के गांव भी विकास की दौड़ में शामिल हैं. ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का गांव बिसरख 20 साल पहले भले ही गांव था, लेकिन अब छोटेमोटे शहरों से बेहतर है. यहां पर गौर सिटी-2 की टाउनशिप बन गई है. प्रशांत कुमार गौर सिटी-2 के गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 के फ्लैट नंबर ए-1468 में रहता था. उस के फ्लैट से 2 फ्लोर नीचे उस के दोस्त रूपेंद्र सिंह चंदेल का फ्लैट था. प्रशांत और रूपेंद्र के बीच गहरी दोस्ती थी. 28 अप्रैल, 2019 को रविवार की छुट्टी थी. उस दिन शाम करीब साढ़े 6 बजे प्रशांत घर पर ही था और पत्नी व बच्चों के साथ मौल घूमने जाने की तैयारी में लगा था. उसी वक्त उस के मोबाइल पर रूपेंद्र के बहनोई ओमवीर का फोन आया.

ओमवीर इसी सोसायटी के फ्लैट नंबर-244 में रहता था. ओमवीर ने फोन पर प्रशांत को जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चिंतित हो उठा. ओमवीर ने बताया था कि रूपेंद्र दोपहर में अपनी सफेद रंग की फोर्ड फिगो कार ले कर घर से गया था. उसे कुछ पैसों की जरूरत थी. वह घर से पत्नी के गहने ले कर गाजियाबाद के पी.सी. ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने के लिए निकला था. लेकिन साढ़े 3 घंटे गुजर जाने के बावजूद अभी तक वह घर नहीं लौटा है.

ओमवीर ने यह भी बताया कि रूपेंद्र की पत्नी अमृता और वह खुद कई बार रूपेंद्र से फोन पर संपर्क करने की कोशिश कर चुके हैं, मगर दूसरी ओर से काल रिसीव नहीं की जा रही.

यह ऐसी बात थी जिसे सुन कर किसी को भी चिंता हो सकती थी. रूपेंद्र तो वैसे भी प्रशांत का बहुत अच्छा दोस्त था. लिहाजा वह फटाफट जीने की सीढि़यां उतर कर रूपेंद्र के फ्लैट पर पहुंच गया. ओमवीर वहां पहले से ही मौजूद था. रूपेंद्र की पत्नी अमृता के चेहरे पर उड़ रही हवाइयां साफ बता रही थीं कि वह बेहद परेशान है. प्रशांत ने जब अमृता से रूपेंद्र के बारे में पूछा तो उस ने भी वही सब बताया जो कुछ देर पहले ओमवीर ने फोन पर उसे बताया था.

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वह घबराते हुए बोली, ‘‘भैया, वो सोने के जेवर ले कर गए हैं. इतनी देर हो गई, न तो वापस आए हैं और न ही फोन रिसीव कर रहे हैं. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है. आप को तो पता है कि यह इलाका कितना खराब है. यहां आए दिन लूटपाट और न जाने क्याक्या होता रहता है. कहीं उन के साथ कुछ ऐसावैसा तो नहीं हो गया? मैं चाहती हूं कि एक बार आप लोग सोसायटी के बाहर जा कर उन्हें आसपास के इलाके में देख लें.’’

कहतेकहते अमृता की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘घबराइए मत भाभीजी, कुछ नहीं होगा रूपेंद्र को. हम लोग अभी पुलिस को खबर कर देते हैं.’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘नहीं प्रशांत भाई, अभी हमें पुलिस को इनफौर्म नहीं करना है. मैं चाहता हूं कि पहले हम कुछ लोग मिल कर रूपेंद्र को तलाश कर लें, अगर वह नहीं मिलता तो फिर पुलिस को सूचना दे देंगे.’’ ओमवीर ने बीच में बात काट कर अपनी राय दी.

‘‘हां, यह भी ठीक है. पहले हम लोग तलाश कर लेते हैं.’’ प्रशांत बोला.

पुलिस में जाने से पहले प्रशांत की खोजबीन

इस के बाद प्रशांत और ओमवीर सोसायटी के दफ्तर में पहुंचे. वहां से ओमवीर ने सोसायटी के गार्ड और औपरेटर का काम करने वाले सुमित को अपने साथ ले लिया. प्रशांत ने सोसायटी में रहने वाले अपने दोस्तों संजीव और रोबिन को भी साथ ले लिया.

इस के बाद वे सभी कार ले कर आसपास के इलाके में रूपेंद्र को तलाश करने के लिए निकल पड़े. एक घंटे में उन लोगों ने आसपास के 6-7 किलोमीटर का रास्ता देख लिया लेकिन न तो उन्हें कहीं रूपेंद्र की कार दिखाई दी और न ही आसपास के इलाके में कहीं कोई दुर्घटना होने की जानकारी मिली.

सभी लोग आगे की काररवाई पर विचार करने के लिए वापस सोसायटी की तरफ लौटने लगे. तब तक रात के 10 बज चुके थे. गौर सिटी से कुछ दूर ब्रह्मा मंदिर है. जैसे ही वे लोग कार से मंदिर के पास से गुजरे कि तभी सुमित ने चिल्ला कर कहा, ‘‘सर, कार रोको… कार रोको.’’

‘‘क्या हुआ भाई, कुछ हो गया क्या?’’ कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे प्रशांत ने कार की गति धीमी करते हुए सुमित से पूछा.

सुमित ने मंदिर के पास सर्विस रोड की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘सर, वो देखो वहां एक सफेद रंग की कार खड़ी है. मुझे लगता है, वह रूपेंद्र सर की ही है.’’

सभी ने चौंकते हुए सर्विस रोड की तरफ देखा तो वहां वाकई एक सफेद रंग की कार खड़ी नजर आई. प्रशांत ने फौरन अपनी कार आगे बढ़ा दी. कुछ दूर आगे जा कर यू टर्न ले कर वह कार को सर्विस रोड पर वहां ले गया, जहां सफेद रंग की कार खड़ी थी.

पास पहुंचते ही प्रशांत ने देखा कि वाकई वह फोर्ड फिगो कार थी और उस का नंबर यूपी95जे 9096 था, जो रूपेंद्र की कार का था. कार का नंबर पढ़ते ही प्रशांत और ओमवीर साथियों के साथ जल्दी से नीचे उतरे और उन्होंने गाड़ी के शीशे से भीतर झांका तो उन के हलक से चीख निकल गई. क्योंकि कार के भीतर ड्राइविंग सीट पर खून से लथपथ रूपेंद्र का शव पड़ा था.

प्रशांत व ओमवीर ने दरवाजा खोल कर रूपेंद्र को हिलाडुला कर देखा तो ओमवीर की मौत हो चुकी थी.

‘‘ओह माई गौड! मुझे जिस बात का शक था, वही हुआ. लगता है बदमाशों ने लूटपाट कर के रूपेंद्र को मार दिया है.’’ कहते हुए ओमवीर ने अपना माथा पकड़ लिया.

जिस की तलाश में प्रशांत और उस के साथी निकले थे, वह तलाश पूरी हो चुकी थी. रूपेंद्र जिंदा तो नहीं मिला अलबत्ता उस की लाश जरूर मिल गई थी. उस की मौत कैसे हुई? क्या हादसा हुआ? यह पता लगाना पुलिस का काम था.

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लिहाजा करीब साढ़े 10 बजे प्रशांत ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी. कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. ओमवीर ने भी तब तक अपनी पत्नी और रूपेंद्र की पत्नी को इस बारे में खबर कर दी थी. गौर सिटी के कुछ दूसरे लोग भी रूपेंद्र की लाश मिलने की सूचना पा कर वहां पहुंच गए.

पीसीआर गाड़ी से आए पुलिसकर्मियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद यह खबर स्थानीय बिसरख थाने को दे दी. बिसरख थाने के एसएचओ मनोज पाठक पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल की जांचपड़ताल के बाद सीओ पीयूष कुमार सिंह, एसपी (देहात) विनीत जायसवाल और फोरैंसिक टीम को खबर कर दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जांचपड़ताल में पुलिस को घटनास्थल पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से पता चल पाता कि रूपेंद्र की हत्या लूटपाट के लिए या लूटपाट का विरोध करने के कारण हुई है. सब से बड़ी बात यह थी कि उस की हत्या उस के निवास से करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर हुई थी.

रूपेंद्र की पत्नी अमृता भी अपने 6 साल के बेटे आयुष्मान के साथ वहां पहुंच गई थी. पति की मौत के बाद एक पत्नी का दुख और सदमा उस पर क्या असर करता है, अमृता का विलाप देख कर समझा जा सकता था. ओमवीर की पत्नी शिखा जो रिश्ते में अमृता की ननद थी, उस ने कुछ दूसरी महिलाओं व लोगों के साथ मिल कर रो रही अमृता को सांत्वना दी.

फोरैंसिक टीम ने मृतक की कार के भीतर से फिंगरप्रिंट व दूसरी तरह के नमूने एकत्र कर लिए थे. मौके की काररवाई निपटाने के बाद इंसपेक्टर मनोज पाठक ने रूपेंद्र का शव रात में ही पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही उन्होंने मृतक के परिजनों से इस मामले की एफआईआर दर्ज कराने के लिए लिखित शिकायत देने के लिए अगली सुबह थाना बिसरख आने के लिए कहा.

थाने में रिपोर्ट लिखाने से भी किया मना

लेकिन हैरत की बात यह कि अगली सुबह रूपेंद्र की पत्नी या उस के बहनोई ओमवीर में से कोई भी थाने नहीं पहुंचा. हां, रूपेंद्र का दोस्त प्रशांत जरूर अपने दोस्तों को ले कर बिसरख थाने पहुंच गया था. इंसपेक्टर पाठक ने जब उस से पूछा कि रूपेंद्र की पत्नी या परिवार के लोगों में से कोई एफआईआर कराने क्यों नहीं आया तो प्रशांत ने बताया कि उस ने रूपेंद्र के परिवार वालों से थाने चलने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने कहा कि रिपोर्ट लिखाने से क्या होगा, इस से रूपेंद्र जिंदा तो हो नहीं जाएंगे.

परिजनों का जवाब बेहद चौंकाने वाला था, लेकिन पुलिस को जांच आगे बढ़ाने के लिए महज शिकायत की जरूरत होती है. घटना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा कोई भी शख्स शिकायत कर सकता है.

लिहाजा इंसपेक्टर पाठक ने प्रशांत से ही लिखित में शिकायत ले कर 29 अप्रैल, 2019 को भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने उसी दिन रूपेंद्र के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के घर वालों को सौंप दिया. तब तक रूपेंद्र के पिता और भाई के अलावा उस के दूसरे रिश्तेदार तथा अमृता के परिजन भी आ चुके थे.

सुबह से ही इंसपेक्टर पाठक ने रूपेंद्र हत्याकांड की जांच का काम तेज कर दिया. उन्होंने एसआई पीयूष और वीरपाल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. साथ ही उन्होंने एसपी (देहात) की टीम के कांस्टेबल सुधीर और संजीव को मृतक के परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल फोन की कालडिटेल्स निकलवाने और उन के फोन को सर्विलांस पर लगवाने की जिम्मेदारी सौंप दी.

पुलिस टीम ने रूपेंद्र के परिजनों से पूछताछ की. इस के अलावा गैलेक्सी सोसायटी में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगालनी शुरू कर दी.

काल डिटेल्स, सीसीटीवी कैमरों की फुटेज आदि की जांच के बाद पुलिस ने पहली मई को ओमवीर को हिरासत में ले लिया. ओमवीर मृतक का बहनोई था. इंसपेक्टर मनोज पाठक ने थाने ला कर जब उस से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने खिलाफ पुलिस के पास मौजूद सबूतों को देख कर आसानी से सच उगल दिया.

पुलिस के सामने जब रूपेंद्र की हत्या का सच आया तो सब हैरान रह गए क्योंकि ओमवीर ने रूपेंद्र की हत्या अपनी सोसायटी के गार्ड सुमित और एक अन्य साथी भूले के साथ मिल कर की थी. पुलिस की एक टीम ने उसी दिन उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया. ओमवीर और उस के दोनों साथियों से पूछताछ हुई तो रूपेंद्र हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

रूपेंद्र सिंह चंदेल (33 वर्ष) मूलरूप से उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के गांव मोहारी का रहने वाला था. उस के पिता अर्जुन सिंह चंदेल पीएसी में हैडकांस्टेबल हैं और इन दिनों उन की नियुक्ति प्रयागराज में है. रूपेंद्र का एक मंझला भाई राघवेंद्र भी शादीशुदा है और गांव में रहता है. राघवेंद्र वकालत की पढ़ाई कर रहा है. रूपेंद्र का एक छोटा भाई भी है, जो दिल्ली में रहता है. रूपेंद्र ने एमबीए किया था और पढ़ाई पूरी करने के बाद सन 2012 में उस की नौकरी ग्रेटर नोएडा की बिसकुट कंपनी हिंज प्राइवेट लिमिटेड में लग गई थी.

नौकरी लगने के एक साल बाद सन 2013 में परिवार वालों ने उस की शादी महोबा की रहने वाली अमृता सिंह से कर दी. अमृता न सिर्फ सुंदर थी बल्कि पोस्टग्रैजुएट भी थी. अमृता से शादी के बाद रूपेंद्र की जिंदगी में तेजी से बदलाव आने लगा.

एक साल बाद ही वह एक बच्चे का पिता बन गया, जिस का नाम आयुष्मान रखा. अमृता के जीवन में आने के बाद रूपेंद्र ने तेजी के साथ तरक्की की सीढि़यां चढ़ीं और वह सेल्स मैनेजर के ओहदे तक पहुंच गया.

करीब 3 साल पहले उस ने फोर्ड फिगो कार खरीदी थी, उस के बाद एक साल पहले यानी मई 2018 में रूपेंद्र ने गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 में 35 लाख रुपए में 2 बैडरूम का फ्लैट भी खरीद लिया था. रूपेंद्र की अच्छी सैलरी थी, इसलिए ये तमाम चीजें उस ने लोन ले कर खरीदी थीं. मकान खरीदने के बाद रूपेंद्र ने अपने मकान में 2-3 लाख रुपए खर्च कर के इंटीरियर डिजाइनिंग का कुछ काम भी कराया था.

ओमवीर इंटीरियर डिजाइनर से बना बहनोई

रूपेंद्र के फ्लैट में इंटीरियर का काम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के मोहारी गांव के रहने वाले ओमवीर सिंह ने किया था. ओमवीर गैलेक्सी-2 सोसायटी के फ्लैट संख्या ई-244 में अपने भाई कृष्णवीर तथा 2 रिश्तेदारों के साथ रहता था. ये सभी गौर सिटी की सोसायटियों में इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करते थे.

उस ने गैलेक्सी-2 सोसायटी में भी करीब 20 से अधिक फ्लैटों का इंटीरियर डिजाइन किया था. रूपेंद्र को जब ओमवीर से बातचीत में यह बात पता चली कि ओमवीर भी ठाकुर है तो उस ने अपने फ्लैट की इंटीरियर डिजाइन का काम ओमवीर से ही कराया.

कुछ दिन रूपेंद्र के घर में काम करने के दौरान ओमवीर और रूपेंद्र की दोस्ती हो गई. ओमवीर 4 भाइयों में सब से बड़ा था. उस का एक छोटा भाई कृष्णवीर उसी के साथ काम करता था जबकि बाकी दोनों भाई गांव में ही रह कर खेती करते थे. ओमवीर पढ़ालिखा और अच्छे परिवार का लड़का था.

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जब रूपेंद्र से ओमवीर की दोस्ती हो गई तो रूपेंद्र के घर उस का अकसर आनाजाना हो गया. रूपेंद्र रोजाना सुबह को नौकरी पर निकल जाता और शाम को ही घर लौटता था. लेकिन ओमवीर का अपना काम था. वह ज्यादातर गैलेक्सी सोसायटी में ही रहता था. इसलिए वह जबतब रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में भी उस के घर चला जाता था.

चूंकि ओमवीर रूपेंद्र का दोस्त था, इसलिए ओमवीर जब भी रूपेंद्र की अनुपस्थिति में उस के घर जाता तो अमृता ओमवीर को एक पारिवारिक दोस्त की तरह सम्मान और सत्कार देती थी. शुरुआत में तो ओमवीर कभीकभार ही रूपेंद्र के घर आता था, लेकिन धीरेधीरे अमृता की खूबसूरती उस के मन में बस गई.

अमृता को पति से प्यारा लगने लगा ओमवीर

इस के बाद तो वह रोज ही कुछ घंटों के लिए रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में उस के घर जाने लगा. शुरू में ओमवीर और अमृता औपचारिक रूप से ही बातचीत करते थे, लेकिन जब ओमवीर का अकसर आनाजाना शुरू हुआ तो दोनों की झिझक दूर हो गई और वे खुल कर बातचीत करने लगे.

जनवरी 2019 में दोनों की झिझक इस हद तक दूर हो गई कि ओमवीर अमृता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. जब अमृता ने उस की इस तरह की हंसीमजाक का कोई विरोध नहीं किया तो ओमवीर की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद वह इस से भी एकदो कदम आगे बढ़ गया.

उस ने हंसीमजाक में पहले अमृता को एकदो बार अपनी बांहों में भर लिया था. लेकिन जब अमृता ने इस का भी विरोध नहीं किया तो बात इस के आगे चुंबन तक पहुंच गई. दरअसल, रूपेंद्र जहां गंभीर और सीधे स्वभाव का युवक था, वहीं ओमवीर तेजतर्रार और आधुनिक विचारधारा का लड़का था.

अमृता ओमवीर जैसे तेजतर्रार लोगों को पसंद करती थी. यही कारण रहा कि उस ने कभी ओमवीर की किसी हरकत का बुरा नहीं माना था. इस से ओमवीर की हरकतें और बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूट गई. दोनों के बीच उस रिश्ते ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध संबंध कहता है. अमृता को ओमवीर के जिस्म का ऐसा चस्का लगा कि बाद में दोनों के बीच अकसर ही यह खेल खेला जाने लगा.

रूपेंद्र उन के खेल से पूरी तरह अनजान था. अमृता की शारीरिक जरूरतें पूरी होने लगीं तो उस ने धीरेधीरे पति में दिलचस्पी लेनी बंद कर दी. ओमवीर ही उस के लिए सब कुछ हो गया था. लेकिन ओमवीर के मन में कुछ और ही खिचड़ी पकने लगी थी. उस ने सोचा कि अमृता के साथ अगर रूपेंद्र का ये मकान भी उसे मिल जाए तो नोएडा जैसी औद्योगिक नगरी में वह अपना बड़ा बिजनैस खड़ा कर सकता है. इसलिए अब उस ने धीरेधीरे अमृता के दिलोदिमाग में रूपेंद्र के खिलाफ जहर के बीज बोने शुरू कर दिए.

अपनी लच्छेदार बातों में फंसा कर ओमवीर ने अमृता के दिमाग में नफरत भर दी. बात यहीं खत्म नहीं हुई. 2019 के फरवरी महीने में रूपेंद्र की मौसी की लड़की शिखा 15 दिन के लिए रूपेंद्र के घर रहने के लिए आई थी. शिखा अमृता जैसी खूबसूरत तो नहीं थी लेकिन सीधीसादी थी. उसे देख कर ही ओमवीर के मन में खयाल आया कि क्यों न रूपेंद्र के घर में बेरोकटोक आने के लिए शिखा से शादी कर ली जाए.

जब यह बात उस ने अमृता से कही तो बात उस की भी समझ में आ गई. अमृता ने इस बारे में पति से बात की तो रूपेंद्र को भी लगा कि जवान मौसेरी बहन के लिए अगर ओमवीर जैसा बिरादरी का ही लड़का मिल जाए तो इस से अच्छा और क्या होगा. ओमवीर ठीकठाक कमा भी लेता था.

रूपेंद्र ने जब महोबा में रहने वाली अपनी मौसी से यह बात की तो वह तैयार हो गईं. फरवरी के आखिरी हफ्ते में दोनों परिवारों की रजामंदी से ओमवीर और शिखा की शादी हो गई. शादी के कुछ रोज बाद शिखा अपने पति ओमवीर के पास नोएडा आ गई. वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में पति के साथ रहती थी. शिखा का अभी गौना भी होना था, लिहाजा 10 दिन बाद वह अपने मायके चली गई.

लेकिन इसी दौरान एक दिन न जाने क्यों रूपेंद्र को अमृता के किसी व्यवहार से शक हो गया कि ओमवीर से उस के संबंध कुछ अलग तरह के हो चुके हैं. हालांकि उसे सिर्फ शक था लेकिन फिर भी उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. लिहाजा रूपेंद्र ने अमृता से ओमवीर से दूरी बना कर रखने की बात कह दी. रूपेंद्र के ऐसा कहते ही अमृता समझ गई कि हो न हो रूपेंद्र को उन के संबंधों पर शक हो गया है.

बनने लगी हत्या की योजना

अमृता ने जब यह बात ओमवीर को बताई तो उसे भी लगा कि उसे अगर अमृता व उस की संपत्ति हासिल करनी है तो रूपेंद्र को रास्ते से हटाना होगा. यह काम करने का यही अच्छा मौका है. यह बात उस ने अमृता से कही. अमृता तो उस के प्यार में अंधी हो चुकी थी, लिहाजा वह पति की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई.

ओमवीर ने अमृता से कहा कि अगर वह कुछ पैसे खर्च कर दे तो वह ऐसे लोगों का इंतजाम कर देगा जो रूपेंद्र को उन के रास्ते से हटा देंगे. अमृता ने ओमवीर से कह दिया कि वह उसे पैसे दे देगी, वह भाड़े के हत्यारों का इंतजाम कर ले.

योजना के अनुसार, अमृता ने इस दौरान ओमवीर से दूरी बना ली. उसे ओमवीर से जो बात करनी होती वह या तो उसे फोन कर देती या फिर वाट्सऐप पर मैसेज कर के बात कर लेती थी. इधर रूपेंद्र इस बात से अनजान था कि ओमवीर तथा अमृता उस के खिलाफ एक खूनी साजिश रच चुके हैं. इस साजिश को अमली जामा पहनाने के लिए ओमवीर ने अपनी ही सोसायटी के एक गार्ड सुमित को भी पैसे का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

सुमित हापुड़ जिले की बाबूगढ़ तहसील के गांव भडंगपुर का रहने वाला था. पिछले 2 सालों से वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में गार्ड की नौकरी कर रहा था. सुमित हैबतपुर गांव में किराए का एक कमरा ले कर रह रहा था.

सुमित ओमवीर से कई बार कह चुका था कि वह कोई ऐसा काम बताए, जिस से उसे मोटी रकम मिल सके. उस रकम से वह अपना कोई कामधंधा शुरू कर लेगा. ओमवीर के कहने पर सुमित ने जिला बुलंदशहर के बीबीनगर के रहने वाले अपने एक दोस्त भूले को भी इस साजिश में शामिल कर लिया.

लेकिन बिना पैसा लिए वे इस काम को अंजाम देने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने इस काम के लिए 3 लाख रुपए की मांग की थी. ओमवीर ने यह बात अमृता को बताई तो अमृता ने 23 अप्रैल को ओमवीर के साथ जा कर अपनी सोने की 2 चूडि़यां और एक हार बेच कर एडवांस में डेढ़ लाख रुपए दे दिए.

लालची ओमवीर ने इन पैसों में से 50 हजार रुपए अपने पास रख कर 50-50 हजार रुपए सुमित और भूले को दे दिए. बाकी रकम उस ने काम पूरा होने के बाद देने का वायदा कर लिया.

काम को अंजाम देने के लिए सुमित ने 8 हजार रुपए में .32 बोर की कंट्री मेड पिस्टल और कुछ कारतूस खरीद लिए. अब सही मौका देख कर सुमित की हत्या की वारदात को इस तरह अंजाम देना था कि लूट की घटना लगे.

28 अप्रैल, 2019 को रविवार का दिन था और रूपेंद्र की उस दिन छुट्टी थी. ओमवीर ने उस दिन को खासतौर से इसलिए चुना था क्योंकि उन्हें जो कहानी बनानी थी, उस के लिए रूपेंद्र की छुट्टी का दिन ही सब से मुफीद लगा था.

ओमवीर छुट्टी के दिन अकसर रूपेंद्र के घर उस से मिलने चला जाता था. उस दिन भी वह उस के घर आया. वे दोनों चाय पी कर निबटे ही थे कि अमृता ने रूपेंद्र से दोपहर के वक्त कहा कि रसोई की चिमनी खराब हो गई है उसे दूसरी चिमनी खरीदनी है. लिहाजा दोपहर के वक्त रूपेंद्र चिमनी खरीदने की बात कह कर अपने फ्लैट से निकला.

घर में घुस कर विश्वास जीता फिर लगा दिया ठिकाने

रूपेंद्र के साथ लिफ्ट में नीचे तक ओमवीर भी आया. लेकिन वह नीचे आ कर रूपेंद्र से यह कह कर अपने फ्लैट की तरफ बढ़ गया कि उसे हैबतपुर जाना है, वह पार्किंग से गाड़ी निकाल कर सोसायटी के बाहर उस का इंतजार करे. तब तक वह अपने फ्लैट से कुछ सामान ले कर आता है. रूपेंद्र अपनी कार निकालने के लिए पार्किंग की तरफ चला गया. तभी ओमवीर ने सुमित और भूले को सोसायटी के बाहर पहुंचने को कहा. इतनी देर में ओमवीर अपने फ्लैट पर पहुंचा और वहां से पिस्टल और कारतूस जेब में रख कर सोसायटी के बाहर पहुंच गया.

रूपेंद्र को भी पार्किंग से कार ले कर बाहर पहुंचने में 15 मिनट का समय लगा. वहां रुक कर वह ओमवीर का इंतजार करने लगा. सोसायटी से थोड़ा आगे वह रूपेंद्र के पास पहुंचा तो उस ने कुछ ही दूरी पर खड़े सुमित व भूले से पूछा, ‘‘अरे भाई, तुम यहां कैसे खड़े हो, किस का इंतजार कर रहे हो?’’

सुमित ने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘भैया, आटो का इंतजार कर रहे हैं. तिगड़ी गोलचक्कर तक जाना है.’’

ओमवीर ने वहीं से चिल्ला कर कहा, ‘‘अरे आ जाओ, रूपेंद्र भैया उधर ही जा रहे हैं. तुम लोगों को भी छोड़ देंगे.’’

ओमवीर खुद तो रूपेंद्र की कार में बैठ ही गया, उस ने रूपेंद्र से सुमित व उस के साथी को भी तिगड़ी गोलचक्कर तक लिफ्ट देने की सिफारिश कर कार में बिठा लिया.

गरमी के कारण गौर सिटी की हैबतपुर जाने वाली सर्विस रोड पर दिन के वक्त छुट्टी वाले दिन कुछ ज्यादा ही सन्नाटा रहता है. सोसायटी के करीब ढाई किलोमीटर दूर जाने पर अचानक ओमवीर ने रूपेंद्र से कार रोकने को कहा तो रूपेंद्र ने बिना कुछ सोचेसमझे कार रोक दी.

कार रोकने के बाद उस ने ओमवीर से जैसे ही पूछा कि क्या हुआ, कार क्यों रुकवाई तो वह यह देख कर चौंक गया कि तब तक ओमवीर अपनी कमर में खोंसे पिस्टल को निकाल कर उस की तरफ तान चुका था. जब तक रूपेंद्र कुछ समझता तब तक ओमवीर ने उस की कनपटी से पिस्टल सटा कर गोली चला दी.

गोली चलते ही खून की धारा बहने के साथ ही रूपेंद्र का सिर स्टीयरिंग पर लुढ़क गया. उसे जब इत्मीनान हो गया कि वह ढेर हो चुका है तो उन तीनों ने रूपेंद्र की घड़ी, पर्स, अंगूठी और गले में पहनी सोने की चेन निकाल ली ताकि पुलिस यही समझे कि मामला लूटपाट के लिए हुई हत्या का है. चूंकि दोपहर के वक्त इलाके में सन्नाटा था, इसलिए न तो किसी ने गोली की आवाज सुनी और न ही किसी ने उन्हें वारदात को अंजाम देते हुए देखा.

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इस के बाद तीनों वहां से निकले और पिस्टल बाकी बचे कारतूसों के साथ कुछ ही दूरी पर झाडि़यों के पीछे एक गड्ढे में फेंक दी. भूले वारदात के बाद अपने गांव चला गया था, जबकि ओमवीर तथा सुमित सोसायटी में वापस आ गए. सुमित वापस आ कर सोसायटी में अपनी ड्यूटी करने लगा जबकि ओमवीर ने घर पर आ कर अपने कपड़े बदले क्योंकि उस की शर्ट पर खून के निशान लग गए थे.

इस के 3-4 घंटे बाद योजना के मुताबिक अमृता ने अपना नाटक शुरू किया. उस ने ओमवीर को बुला कर कहा कि अब सभी से यही कहना है कि रूपेंद्र घर से गहने ले कर निकला था. वह गहने उसे गाजियाबाद में पीसी ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने थे. दोनों ने यही कहानी गढ़ी.

उसी के बाद ओमवीर ने घटना का गवाह बनाने के लिए रूपेंद्र के पड़ोसी प्रशांत को फोन कर के इस बारे में बताया और उस के बाद रूपेंद्र को ढूंढने का नाटक शुरू हुआ. सब कुछ पहले से तय था. इन लोगों ने सुमित को इसलिए जानबूझ कर साथ लिया कि वह नाटक रचते हुए उन्हें रूपेंद्र की कार तक ले जाए. यही उस ने किया भी.

चूंकि पुलिस को जांच के दौरान पता चला था कि रूपेंद्र का मोबाइल तो उस की जेब में है लेकिन उस का पर्स, अंगूठी और सोने की चेन उस के पास नहीं थी, इसलिए उस रात पुलिस भी इस वारदात को लूटपाट के लिए हुई हत्या की घटना मान कर जांच करने में लगी थी.

अमृता का व्यवहार ही बना शक की वजह

लेकिन अगले दिन बिसरख के एसएचओ मनोज पाठक को पहली बार रूपेंद्र की पत्नी अमृता का यह व्यवहार अजीब लगा कि पति की हत्या की सूचना के बाद जब वह घटनास्थल पर पहुंची तो उस ने पुलिस को कोई शिकायत नहीं दी. वह बस यही कहती रही कि किसी ने जेवर लूटने के लिए उस के पति की हत्या कर दी. अगले दिन भी जब उस ने कोई शिकायत नहीं दी तो उस पर शक और गहरा गया.

जांच में एसएचओ का शक उस वक्त और भी ज्यादा बढ़ गया जब अमृता से पूछताछ की तो वह एक रटीरटाई थ्यौरी के मुताबिक बेधड़क हो कर मामले को लूटपाट का बताने पर अड़ी रही.

जब उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि जिस समय दोपहर में रूपेंद्र को गोली मारी गई थी, उसी वक्त ओमवीर ने उसे फोन कर के लंबी बातचीत की थी और वाट्सऐप पर कहा था कि काम हो गया है.

हालांकि ओमवीर और सुमित ने पूछताछ में यह बताया था कि वे वारदात के वक्त सोसायटी में थे. लेकिन वारदात के वक्त उन के मोबाइल की लोकेशन रूपेंद्र के मोबाइल की लोकेशन के साथ ही मैच हो रही थी.

सोसायटी के आउट गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे की जांच करने पर पता चला कि जिस वक्त रूपेंद्र सोसायटी के बाहर अपनी कार ले कर निकला था, उस के 2-4 मिनट के अंतराल से ओमवीर तथा सुमित एक अन्य व्यक्ति के साथ पैदल सोसायटी के बाहर निकले थे. इतना ही नहीं, सुमित और ओमवीर डेढ़ घंटे बाद एक साथ सोसायटी के अंदर प्रवेश करते हुए सीसीटीवी फुटेज में दिखे.

ओमवीर और सुमित के बीच इसी दौरान हुई बातचीत और ओमवीर की अमृता के साथ लंबीलंबी बातचीत तथा वाट्सऐप संदेशों ने भी पुलिस को ओमवीर तथा अमृता पर शक करने की वजह दे दी. ओमवीर पर पुलिस का शक उस वक्त यकीन में बदल गया जब 29 अप्रैल की सुबह रूपेंद्र के बैंक खाते से किसी ने 10 हजार रुपए की 2 बार एटीएम में ट्रांजैक्शन की. इस का मैसेज पुलिस के कब्जे में मौजूद रूपेंद्र के फोन पर आया तो पुलिस चौंकी.

पुलिस की एक टीम उसी समय उस एटीएम की जांच करने के लिए गई. शाम होतेहोते सीसीटीवी की फुटेज देखने पर पुलिस को पता चला कि यह रकम एटीएम से ओमवीर ने निकाली थी. बस फिर क्या था, पुलिस के सामने सारी कडि़यां जुड़ती चली गईं. पुलिस ने सब से पहले ओमवीर को हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की. उस ने सारा सच उगल दिया. इस के बाद इंसपेक्टर पाठक की टीम ने उसी दिन सुमित और भूले को भी धर दबोचा.

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जब तीनों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, तभी अमृता को अपनी गिरफ्तारी की आशंका हो गई थी. पुलिस उस तक पहुंचती, उस से पहले ही वह फरार हो गई. इंसपेक्टर पाठक ने ओमवीर तथा उस के साथियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और कई जिंदा कारतूस भी बरामद किए.

पुलिस ने ओमवीर, सुमित और भूले को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अमृता को पकड़ने के लिए जाल बिछाया. सर्विलांस की मदद से आखिर 4 मई को अमृता को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस से मिली जानकारी के बाद ओमवीर को एक बार फिर से पुलिस रिमांड पर लिया तो उस की शिनाख्त पर पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से डेढ़ लाख रुपए में बेचे गए आभूषण भी बरामद कर लिए.

अगर पुलिस रूपेंद्र की हत्या को केवल लूटपाट का विरोध करने के दौरान हुई मौत पर ही अपनी जांच केंद्रित करती तो अमृता और ओमवीर अपनी साजिश में कामयाब हो जाते. आरोपियों ने एक के बाद एक ऐसी कई छोटीछोटी गलतियां कर दी थीं कि पुलिस धीरेधीरे उन कडि़यों को जोड़ कर उन तक पहुंच गई.

ननदोई के इश्क में गिरफ्तार हुई अमृता के पास अब न तो पति है और न ही प्रेमी. नाजायज संबंधों के चक्कर में उस ने अपने सुखी संसार को खुद ही उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस की आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

5000 करोड़ की ठगी

सब्जी बेचने वाली और निम्नमध्यम परिवार की डा. नौहेरा शेख ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वो एक दिन 5000 करोड़ की संपत्ति वाले देश के जानेमाने हीरा ग्रुप औफ कंपनी की संस्थापक चेयरमैन और सीईओ के रूप में जानी जाएगी. देश के कई राज्यों में उस की कंपनी के आलीशान दफ्तर होंगे और वह देश और दुनिया में होने वाले बड़ेबड़े जलसों में शिरकत करेगी. जमीन से उठ कर बुलंदियों को छूने वाली नौहेरा शेख की उड़ान अभी बाकी थी. वह चाहती थी कि उस का हीरा ग्रुप और ज्यादा उन्नति करे और उस की कंपनी का पूरे भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी परचम लहराए. इसीलिए वह प्रयासरत थी. लेकिन अचानक ही उस पर गर्दिश के ऐसे बादल फटे कि वह अब अलगअलग राज्यों की जेल की सलाखों के पीछे अपना वक्त गुजार रही है.

डा. नौहेरा शेख आखिर कौन है और ऐसा क्या हुआ कि वह अचानक ही अर्श से फर्श पर आ गई. इसे समझने के लिए पहले नौहेरा के बारे में जानना जरूरी है.

नौहेरा बेगम का जन्म तिरुपति के एक सामान्य मध्यमवर्गीय शेख नानेसाहेब के परिवार में हुआ था. उस की मां शेख बिल्किस एक घरेलू महिला थीं. नौहेरा शेख उन की एकलौती संतान थी. उस ने अपनी शुरुआती शिक्षा इसलामिक मदरसे से पूरी की. घर में जब आर्थिक तंगी हुई तो शेख बिल्किस सब्जी व फैल बेचने लगी. बाद में नौहेरा शेख ने भी अपनी मां के साथ सब्जी व फल बेचने का काम शुरू किया.

कई सालों तक यही काम करने के साथसाथ उस ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और उच्चशिक्षा हासिल कर ली. बाद में उस ने ओपन इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी कोलंबो से पीएचडी की डिग्री भी हासिल कर ली. अब वह डा. नौहेरा शेख बन गई थी.

कहते हैं शिक्षा के विकास के साथ इंसान में कुछ नया करने की सोच और जज्बा पैदा हो जाता है. नौहेरा खान के अंदर भी सामाजिक कार्य करने की इच्छा जागृत हुई तो उस ने 19 साल की उम्र में लड़कियों की शिक्षा के लिए हैदराबाद में पहला मदरसा खोला. साथ ही उस ने सब्जी बेचने का काम छोड़ कर पुराने कपड़ों की सेल लगानी शुरू कर दी.

नौहेरा शेख की सोच बहुत ऊंची थी. इसे साकार करने के लिए उस ने दूसरी योजना बना रखी थी. लेकिन उस के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत थी. अपने पिता का घर बेच कर इकट्ठे किए गए पैसों से उस ने महिलाओं का एक ग्रुप बनाया. ग्रुप की महिलाओं को उस ने अपनी योजना समझा दी थी. इस के बाद उन महिलाओं ने भी अपनी क्षमता के हिसाब से नौहेरा को पैसे दिए. फिर नौहेरा ने कमेटी बना कर गोल्ड की ट्रेडिंग शुरू कर दी.

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गोल्ड ट्रेडिंग से होने वाला मुनाफा वह कमेटी की महिलाओं में ईमानदारी के साथ उन के शेयर के हिसाब से बांट देती थी. नौहेरा की यह स्कीम चल निकली और जल्द ही उसे मोटा मुनाफा होने लगा.

ब्याजमुक्त हलाल निवेश

नौहेरा ने इस कारोबार का मुनाफा देख कर 10 साल पहले हीरा गोल्ड नाम से अपनी कंपनी बनाई और इस कंपनी के मार्फत गोल्ड की ट्रेडिंग शुरू कर दी. हीरा गोल्ड कंपनी में बड़ा फंड जुटाने के लिए नौहेरा ने उन लोगों को अपना टारगेट बनाया जो इसलाम धर्म को मानते हैं और सूदखोरी के पैसे को हराम समझते हैं.

उस ने ऐसे लोगों को टारगेट कर एक पौंजी स्कीम चलाई कि अगर वह उस की हीरा गोल्ड कंपनी में पैसा निवेश करेंगे तो उन्हें मूल रकम पर हर साल 32 से 40 फीसदी का मुनाफा देगी. उस ने इस स्कीम को ब्याज मुक्त हलाल निवेश का नाम दिया.

जो लोग सूदखोरी को हराम समझते थे, उन्हें लगा कि वह एक तरह से कंपनी के हिस्सेदार हैं और हिस्सेदारी भी अच्छी है. लिहाजा जल्द ही दक्षिण के राज्यों में रहने वाले मुसलिम समुदाय के तमाम लोगों ने बड़ीबड़ी रकम नौहेरा खान की कंपनी में निवेश करनी शुरू कर दी.

नौहेरा शेख लोगों का पैसा और मुनाफा समय पर अदा करने लगी तो लोगों में उस की कंपनी के लिए भरोसा बढा. अब डा. नौहेरा शेख ने अलगअलग नाम से दूसरे तरह के काम करने वाली और भी कई कंपनियां बना लीं. हर कंपनी का शुरू का नाम हीरा रखा गया. बाद में हीरा नाम की कंपनियों के इस समूह को उस ने हीरा ग्रुप औफ कंपनी का नाम दे दिया.

नौहेरा शेख ने भारत में अपना कारोबार बढ़ाने के बाद करीब 5 साल पहले इसलामिक देशों में अपना कारोबार बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ाया और अपना पहला दफ्तर दुबई में खोल दिया. चूंकि नौहेरा शेख ने अपनी पौंजी स्कीम को ब्याजमुक्त हलाल निवेश के रूप में प्रचारित किया था इसलिए दुबई, संयुक्त अरब अमीरात, खाड़ी के दूसरे देशों में रहने वाले मुसलमान उस की कंपनियों में भारी निवेश करने लगे.

देखतेदेखते नौहेरा खान 5000 करोड़ के हीरा ग्रुप औफ कंपनीज की मालकिन बन गई. बाद में नौहेरा ने अपने कारोबार का ट्रैवल, फूड, टैक्सटाइल, कंस्ट्रक्शन और रिटेल जैसे क्षेत्र में विस्तार कर दिया. शुरुआत में उस ने हैदराबाद में एक एजुकेशन सेंटर चलाया. बाद में उसे बड़े स्कूल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया. एजुकेशन के धंधे में मोटी कमाई को देखते हुए उस ने एक डीम्ड यूनिवर्सिटी भी खोल दी जिसे शुरू करने के लिए सरकारी प्रक्रिया चल ही रही थी कि उसी दौरान वह कानून के फंदे में फंस गई.

नोटबंदी का पड़ा उलटा असर

नौहेरा शेख ने लेगों को उन की गोल्ड ट्रेडिंग कंपनियों में निवेश करने पर 36 से 40 फीसदी तक रिटर्न देने का भरोसा दिया था. उस ने अपनी 21 कंपनियों में करीब 2 लाख लोगों से निवेश कराया और करोड़ों रुपए एकत्र कर लिए थे. सन 2016 में देश में हुई नोटबंदी और सन 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद हीरा ग्रुप की मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गईं.

इस के बाद नौहेरा की कंपनियों ने निवेशकों को पहले तो हर महीने की जगह तिमाही लाभांश देना शुरू किया लेकिन सन 2017 के अंत में घाटे का बहाना बना कर वादे के मुताबिक निवेशकों को रिटर्न देना ही बंद कर दिया. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने जब मूल रकम वापस मांगी तो उस ने उन की मूल रकम भी नहीं लौटाई.

कंपनी ने तय समय में लोगों का पैसा नहीं लौटाया तो कई शहरों में नौहेरा और उस के हीरा ग्रुप के खिलाफ लोगों ने सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया. बात हैदराबाद से शुरू हुई थी और धीरेधीरे तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा तक पहुंच गई. निवेशकों ने उस के खिलाफ अलगअलग थानों में शिकायतें दर्ज करानी शुरू कर दीं. 1 लाख 72 हजार से ज्यादा लोगों ने हीरा ग्रुप में 3000 करोड़ से भी ज्यादा निवेश किया था.

इतना ही नहीं संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में रहने वाले बहुत से एनआरआई ने भी इस कंपनी में अपनी मोटी रकम का निवेश किया था लेकिन शुरुआत में कुछ रिटर्न मिलने के बाद कंपनी ने उन की रकम हड़प ली. ऐसे एनआरआई आज तक अपनी रकम पाने के लिए विदेश मंत्रालय के जरिए कानूनी काररवाई में उलझे हुए हैं.

जब नौहेरा शेख के खिलाफ आए दिन लोग सड़कों पर उतर कर विरोध करने लगे तो पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया. अंतत: 17 अक्तूबर, 2018 को नौहेरा शेख को तेलंगाना पुलिस ने पहली बार गिरफ्तार किया.

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उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के साथी बीजू थामस और उस की पत्नी मौली थामस को भी गिरफ्तार कर लिया. बीजू थामस केरल की सुवान टेक्नोलौजी सोल्यूशन इंडिया का एमडी है.

थामस ने ही हीरा ग्रुप की कंपनियों के सौफ्टवेयर बनाए थे और वह हीरा ग्रुप के लेनदेन के खाते भी संभालता था. जबकि उस की पत्नी मौली थामस नौहेरा शेख की पीए के तौर पर काम करती थी. मीडिया में उस की छवि बनाने से ले कर देश और दुनिया भर की सेलिब्रिटीज से मिलवाने में नौहेरा की मदद करती थी.

हैदराबाद के पुलिस कमिश्नर अंजनी कुमार के निर्देश पर 10 सितंबर, 2018 को हैदराबाद के बंजारा हिल पुलिस स्टेशन में फरजाना उन्नेसिया मोहम्मद खाजा नाम की महिला की शिकायत पर पुलिस ने भादंवि की धारा 406 और 420 के साथ तेलंगाना वित्तीय जमा स्थापना अधिनियम 1999 औफ द प्राइज चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम प्रतिबंध अधिनियम 1978 के तहत पहला मामला दर्ज किया था.

फरजाना ने आरोप लगाया था कि उन के पति ने हीरा रिटेल कंपनी में 25 लाख रुपए का निवेश किया था, लेकिन कंपनी ने न तो लाभांश दिया और न ही मूल रकम लौटाई. नौहेरा के खिलाफ निवेशकों से कई सौ करोड़ रुपए ठगने के 16 मामले और दर्ज हो गए.

तेलंगाना पुलिस ने फिर दबोचा

यह मामला दर्ज होने के बाद नौहेरा शेख कानूनी शरण लेने के लिए दिल्ली भाग आई और राजनीतिक आकाओं के पास चक्कर लगाने लगी. लेकिन तभी भनक लगने पर तेलंगाना पुलिस ने दिल्ली आ कर उसे धर दबोचा. यहां से तेलंगाना पुलिस उसे ट्रांजिट रिमांड पर हैदराबाद ले गई. वहीं पर उस से ठगी के कारनामों और निवेशकों से धोखाधड़ी के बारे में विस्तार से पूछताछ हुई थी.

लेकिन इस मामले में चंद रोज बाद ही उसे तीनों को जमानत मिल गई. जमानत पर जेल से बाहर आते ही मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने निवेशकों के साथ 300 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी करने के आरोप में 26 अक्तूबर को उसे गिरफ्तार कर लिया. कई निवेशकों ने उस के हीरा समूह के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायतें मुंबई की आर्थिक अपराध शाखा में दर्ज करवाई थीं.

मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 23 अक्तूबर को भिंडी बाजार निवासी शेन इलाही शेख की शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज की थी. शिकायतकर्ता का आरोप था कि उस ने हीरा गोल्ड में 6 लाख रुपए इन्वैस्ट किए थे. शेन ने पुलिस को बताया कि उसे निवेश पर 2.8 से 3.2 फीसदी की मंथली रिटर्न का वादा किया गया था. उसे कुछ महीनों तक रिटर्न मिला लेकिन जून में बंद हो गया. पुलिस को शेन की तरह दूसरे निवेशकों को 300 करोड़ रुपए की चपत लगाने से जुड़ी शिकायतें मिली थीं.

लेकिन अपने पैसे और रसूख के कारण इस मामले में भी नौहेरा शेख और उस के साथियों को जल्द जमानत मिल गई. वह खुली हवा में सांस ले पाती, उस से पहले ही ठाणे पुलिस ने नौहेरा को गिरफ्तार कर लिया. ठाणे में उस के खिलाफ करीब 150 लोगों ने ऐसे ही आरोपों के आधार पर मामला दर्ज कराया था.

अब तक अलगअलग जगह की पुलिस ने नौहेरा शेख से जो पूछताछ की थी उस के मुताबिक पता चला कि हीरा समूह की प्रबंध निदेशक नौहेरा शेख ने कई तरह की निवेश योजनाएं शुरू की हुई थीं, जिन के बारे में दावा किया गया था कि वह वित्त से जुड़े इसलामिक सिद्धांतों के अनुरूप है.

मुसलिमों को ही बनाया था टारगेट

यही कारण था कि नौहरा शेख के अधिकांश निवेशक मुसलिम समुदाय से थे, जिन्हें उस ने ब्याजमुक्त हलाल बिजनैस का वादा कर के फंसाया था. उस की कंपनियों ने सोने में इन्वैस्टमेंट की स्कीम शुरू की जिस में मूल जमा पर 36 प्रतिशत से अधिक के वार्षिक रिटर्न का वादा किया गया था.

चूंकि नौहेरा शेख व उस की कंपनियों के खिलाफ कई राज्यों में आर्थिक धोखाधड़ी के मामले दर्ज हो चुके थे और इस का सीधा संबंध वित्तीय घोटाले के अलावा फंड के दुरुपयोग से जुड़ा था, इसलिए राज्यों की पुलिस ने इस बाबत प्रवर्तन निदेशालय को पत्र लिख कर मनी लौंड्रिंग एक्ट के तहत जांच करने का अनुरोध किया. लिहाजा ईडी ने भी इन शिकायतों के आधार पर मनी लौंड्रिंग एक्ट में मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

प्रवर्तन निदेशालय की जांच में यह भी पता चला कि नौहेरा शेख ने हीरा ग्रुप की 21 कंपनियों के नाम भारत में 182 बैंक खाते खोल रखे थे. ईडी ने जांचपड़ताल शुरू की तो यह भी पता चला कि यूएई में भी उस की कंपनियों के 10 खाते हैं. ईडी इन सभी खातों में जमा धन की ट्रांजैक्शन पर रोक लगाने की काररवाई शुरू कर चुकी है.

प्रवर्तन निदेशालय भी जुटा जांच में

जांच में पता चला है कि नौहेरा शेख ने इन सभी बैंक खातों में जमा निवेशकों की रकम को अपने व साथियों के निजी बैंक खातों में ट्रांसफर कर के इस रकम से चलअचल संपत्तियां खरीद ली थीं. ज्यादातर फंड को दूसरे काम में निवेश कर दिया था.

ईडी के पास इन तमाम साक्ष्यों के बाद इस बात का पुख्ता आधार है कि उस के खिलाफ मनी लौड्रिंग एक्ट यानी धनशोधन कानून के तहत धन का गलत दुरुपयोग किया है. ईडी ने पुख्ता आधार मिलने के बाद ही 16 मई, 2019 को डा. नौहेरा शेख, उस के साथी बीजू थामस और बीजू की पत्नी मौली थामस को ठाणे पुलिस से अपनी हिरासत में ले लिया.

ईडी ने तीनों को 7 दिन की पूछताछ के लिए अपनी हिरासत में रख कर पूछताछ की तो पता चला कि महाठगिनी डा. नौहेरा शेख ने अपनी उच्चशिक्षा और मुसलिम समाज के कुछ नियमों की आड़ में ठगी के कारनामों को अंजाम दिया था.

वैसे नौहरा शेख की पहली मुसीबत सन 2016 में तब शुरू हुई थी, जब मुंबई पुलिस ने एक हवाला रैकेट का परदाफाश करते हुए उस की कंपनी में काम करने वाले 2 कर्मचारियों को गिरफ्तार किया था. उन से पता चला था कि हीरा ग्रुप का संबंध हवाला करोबार से भी है.

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लेकिन तब तक नौहेरा शेख राजनीति और नौकरशाही में अपना बड़ा रसूख बना चुकी थी. समाजसेवा के नाम पर नौहेरा ने देश के बड़े राजनेताओं और सेलिब्रिटीज से संबंध बना लिए थे. हीरा ग्रुप की कंपनियों के समारोहों में राजनेताओं के अलावा बौलीवुड के बड़ेबड़े कलाकारों को बुलाया जाता था.

कारोबार से ले कर सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यों में रसूखदार लोगों के साथ तसवीरें खिंचवा कर उन्हें सोशल मीडिया पर वायरल कर के नौहेरा शेख अपना कारोबार बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती थी. ऐसी तस्वीरें इंटरनेट पर खूब देखी जा सकती हैं.

इंटरनेट पर मौजूद ये तमाम तसवीरे इस बात की भी गवाही देती हैं कि नौहेरा देशविदेश में फैशन, फिल्म और शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले चैरिटी समारोह में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब बुलेट ट्रेन प्रोजैक्ट की आधारशिला रखी तो नौहेरा शेख ने कई शहरों में मोदी को धन्यवाद देने के लिए हीरा ग्रुप की तरफ से होर्डिंग और पोस्टर लगवाए थे, जिन में नौहेरा शेख के बड़ेबड़े फोटो लगे थे और वो पीएम मोदी का शुक्रिया अदा कर रही थी.

महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ भी नौहेरा की तसवीरें मौजूद हैं. यही कारण था कि देश के लाखों निवेशकों को नौहेरा शेख और हीरा ग्रुप की कंपनियों की विश्वसनीयता पर भरोसा हो गया था. इसे देख कर ही निवेशक हीरा ग्रुप में निवेश करने लगते थे.

सियासत की गलियों में अपना कद ऊंचा रखने के लिए भी नौहेरा शेख अपनी काली कमाई को दोनों हाथों से खर्च करती थी. केरल में बाढ़ सहायता के नाम पर जब नौहेरा शेख ने केरल सरकार को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि का चैक दिया तो अखबारों के पन्ने उस की तारीफों से रंग गए.

नौहेरा शेख अपने इसी रसूख के कारण लंबे समय तक कानून के शिकंजे में आने से बचती रही थी.

ग्रैजुएशन करने के बाद नौहेरा शेख ने बिजनैस मैनेजमेंट की डिग्री हासिल की और उस ने लड़कियों के लिए मदरसा भी शुरू किया. सन 2017 में नौहेरा शेख को दुबई के प्रिंस के हाथों संयुक्त अरब अमीरात की टौप बिजनैस वूमेन का अवार्ड भी मिला था.

सन 2017 में नौहरा शेख ने औल इंडिया महिला इंपौवरमेंट पार्टी यानी एमईएम का गठन किया और उस की पार्टी ने अगले ही साल कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.

इस चुनाव के दौरान नौहेरा की पार्टी ने तीन तलाक पर आए आदेश का सर्मथन किया तो उस की पार्टी सियासी लोगों के निशाने पर आ गई. लेकिन दिलचस्प बात यह थी कि उस की पार्टी को इस चुनाव में बौलीवुड के कई अभिनेताओं का समर्थन मिला था.

सियासत में भी हो गई फेल

बौलीवुड के दबंग सलमान खान के भाई अरबाज खान, सोहेल खान, संजय दत्त, सोनू सूद, अभिनेत्री ईशा गुप्ता, टेनिस स्टार सानिया मिर्जा, फराह खान तक ने उस की पार्टी के समर्थन में प्रचार किया था.

चुनाव के बाद जब नौहेरा खान के हीरा ग्रुप की कंपनियां निवेशकों को उन का पैसा लौटाने में नाकामयाब रही थीं, तो अलगअलग राज्यों में उस की कंपनी के खिलाफ शिकायतें दर्ज होने लगीं और फिर वह कानून के शिकंजे में फंस गई.

कथा लिखे जाने तक नौहेरा शेख, बीजू थामस और उस की पत्नी मौली थामस से प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ चल रही थी.द्य

एक और निर्भया…

इस लड़की को निर्भया नाम दिया गया था. लेकिन अब अगर गैंगरेप का कोई मामला होता है तो लड़की या महिला को निर्भया कह देते हैं. जबकि निर्भया शब्द उस के लिए सही नहीं है. अगर वह निर्भया होती तो… लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी. राजस्थान में 2 चरणों में मतदान होना था. पहले चरण में 13 सीटों के लिए 29 अप्रैल को वोट डाले जाने थे, जबकि दूसरे चरण में 12 सीटों के लिए 6 मई को मतदान होना था. पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार जोरों पर था. एक तरफ सूरज आग उगल रहा था और दूसरी तरफ सियासत की गरमी थी. अलवर जिले में एक तहसील है थानागाजी. अलवरजयपुर स्टेट हाइवे पर विश्व प्रसिद्ध सरिस्का बाघ अभयारण्य थानागाजी तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है.

बीती 26 अप्रैल की बात है, दोपहर के करीब 3 बजे थे. आसमान में कुछ बादल घिर आने से सूरज के तेवर कम हो गए थे. थानागाजी इलाके में एक नवदंपति मोटरसाइकिल पर तालवृक्ष की तरफ जा रहे थे. पति मोटरसाइकिल चला रहा था और पत्नी निर्भया उस के पीछे बैठी थी. निर्भया 19 साल की थी और उस का पति 20 साल का. दोनों की कुछ ही दिन पहले शादी हुई थी.

थानागाजी अलवर बाइपास पर दुहार चौगान वाले रास्ते से कुछ दूर अचानक 2 मोटरसाइकिलों पर सवार 5 युवक तेजी से उन के पास आए. इन युवकों ने नवदंपति की बाइक के आगे अपनी मोटरसाइकिलें लगा कर उन्हें रोक लिया. पतिपत्नी समझ ही नहीं पाए कि क्या बात हो गई, उन्हें क्यों रोका गया.

वे कुछ सवाल करते, इस से पहले ही पांचों युवक उन्हें धमकाते और अश्लील शब्द कहते हुए वहां से सड़क के एक तरफ कुछ दूर बने रेत के बड़ेबडे़ टीलों की तरफ ले गए. रेत के ये टीले इतने ऊंचेऊंचे थे कि उन के पीछे क्या हो रहा है, सड़क से गुजरते लोगों को पता नहीं लग सकता था. टीलों के पीछे से सड़क तक आवाज भी नहीं पहुंच सकती थी.

पतिपत्नी को रेत के टीलों के पीछे ले जा कर पांचों युवकों ने उन से मारपीट की. पति को अधमरा कर एक तरफ बैठा दिया गया. फिर पांचों युवकों ने 19 साल की उस निर्भया से दरिंदगी की. पति ने पत्नी को बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह दरिंदों का मुकाबला नहीं कर सका.

पांचों दरिंदे निर्भया को नोचते रहे. वह हाथ जोड़ कर छोड़ने की भीख मांगती रही, लेकिन दरिंदे अपने साथियों की मर्दानगी पर हंसते और अट्टहास लगाते रहे. निर्भया चीखती रही, लेकिन उस की आवाज उस जंगली इलाके के रेतीले टीबों में ही गूंज कर रह गई.

दरिंदों ने निर्भया के कपड़े फाड़ कर दूर फेंक दिए. इस दौरान वे हैवान अपने मोबाइल से दरिंदगी का वीडियो भी बनाते रहे. इस दौरान युवक आपस में छोटेलाल, जीतू और अशोक के नाम ले रहे थे. जब दरिंदों का मन भर गया तो उन्होंने निर्भया के पति का मोबाइल नंबर लिया. फिर उसे जान से मारने और वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर पांचों मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर भाग गए.

उन के जाने के काफी देर बाद तक लुटेपिटे पतिपत्नी एकदूसरे को ढांढस बंधाते हुए अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते रहे. कुछ देर बाद जब उन के होशहवास ठीक हुए तो वे फटे कपड़े लपेट कर मोटरसाइकिल से अपने गांव गए.

गांव पहुंच कर उन्होंने घर वालों को इस घटना के बारे में बताया. निर्भया और उस का पति अनुसूचित जाति से होने के साथ गरीब भी थे. दरिंदगी का वीडियो वायरल करने, पति को मारने की धमकी दिए जाने के कारण निर्भया ने उस समय पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई. घटना के दूसरे दिन निर्भया अपने मायके चली गई और उस का पति जयपुर चला गया, जहां वह पढ़ रहा था.

तीसरे दिन 28 अप्रैल की सुबह निर्भया के पति के मोबाइल पर छोटेलाल का फोन आया. वह मिलने के लिए कह रहा था. निर्भया के पति ने मना किया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा, मिलना तो तुझे पड़ेगा वरना वीडियो वायरल कर देंगे.’’

निर्भया के पति ने कहा कि तुम से मेरा भाई मिल लेगा. उस ने छोटेलाल को चचेरे भाई का मोबाइल नंबर दे दिया. इस के बाद पति ने यह बात अपने चचेरे भाई को बता दी. उस ने यह सच्चाई निर्भया के पति के सगे भाई को बता दी. छोटेलाल उसे कभी कराणा बुलाता तो कभी थानागाजी आने की बात कहता.

दोपहर में छोटेलाल का फिर फोन आया और उस ने 10 हजार रुपए की डिमांड की. निर्भया के पति ने कहा कि मैं पढ़ता हूं, 10 हजार कहां से दूंगा. इस पर उस ने कहा, ‘‘देने तो पड़ेंगे चाहे एक हजार रुपए कम दे देना.’’

 

वीडियो वायरल के डर से निर्भया के पति ने उसे कुछ हजार रुपए भिजवा भी दिए. पति के भाई ने यह बात पिता को बताई तो उन्होंने अपने बेटे को जयपुर से बुलवा लिया.

रुपए ऐंठने के बाद भी दरिंदों ने निर्भया के पति को काल कर के फिर पैसे मांगे तो निर्भया का परिवार अपने परिचितों के माध्यम से थानागाजी के विधायक कांती मीणा के पास पहुंचा. उन्होंने विधायक को सारी बात बताई. विधायक ने उन की रिपोर्ट दर्ज करवाने और आरोपियों के खिलाफ काररवाई कराने का आश्वासन दिया, लेकिन चुनाव के बाद.

30 अप्रैल को निर्भया और उस का पति अलवर जा कर एसपी राजीव पचार से मिले. निर्भया ने रोतेरोते एसपी को पति के सामने हुए सामूहिक दुष्कर्म की आपबीती बताई. एसपी ने थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को वाट्सऐप पर पीडि़ता की रिपोर्ट भेज कर मुकदमा दर्ज करने को कहा.

पुलिस को गैंगरेप भी मामूली सी घटना लगा

 

पुलिस ने इस शर्मनाक वारदात को भी साधारण तरीके से लिया. थानागाजी थानाप्रभारी ने 2 मई को दोपहर 2.31 बजे इस मामले में धारा 147, 149, 323, 341, 354बी, 376डी, 506 आईपीसी और एससी/एसटी ऐक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. रिपोर्ट में छोटेलाल गुर्जर निवासी कराणा बानसूर और जीतू व अशोक के नाम थे, जबकि 2 आरोपी अज्ञात थे.

भले ही पुलिस ने घटना के 7वें दिन मुकदमा दर्ज कर लिया, लेकिन मीडिया से इसे छिपा लिया. पुलिस ने मामले की जांच में भी लापरवाही बरती. उस दिन पीडि़ता का मैडिकल भी नहीं कराया गया. न ही अभियुक्तों को पकड़ने की कोई काररवाई की गई.

पुलिस को यह बात भी बता दी गई थी कि दरिंदे बारबार फोन कर के वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे हैं, लेकिन पुलिस ने न तो इसे गंभीरता से लिया और न ही इस के दूरगामी परिणामों के बारे में सोचा.

 

रिपोर्ट दर्ज होने के दूसरे दिन 3 मई को पुलिस ने अलवर में पीडि़ता का मैडिकल कराया. पुलिस ने उसी दिन पीडि़ता, उस के पति, पिता और ससुर के बयान दर्ज किए. उसी दिन पुलिस ने पीडि़ता को साथ ले जा कर मौका नक्शा बनाया.

लापरवाही इतनी रही कि एक आरोपी का नामपता और मोबाइल नंबर होने के बावजूद पुलिस ने उसे पकड़ना तो दूर, उसे थाने बुलाने की जहमत तक नहीं उठाई. इस से उन दरिंदों के हौसले बढ़ गए. इस बीच फोन पर बारबार धमकाने के बावजूद जब दोबारा पैसे नहीं मिले तो दरिंदों ने 4 मई को सोशल मीडिया पर वे वीडियो वायरल कर दिए, जो उन्होंने निर्भया से दरिंदगी करते हुए बनाए थे.

6 मई तक ये वीडियो असंख्य मोबाइलों तक पहुंच चुके थे. 6 मई को ही राजस्थान में अलवर सहित 12 लोकसभा सीटों के लिए मतदान था. मतदान के बाद पुलिस ने इस घटना को मीडिया में उजागर किया. तब तक सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो बम बन चुका था, जो किसी भी गैरतमंद आदमी को हिला देने के लिए काफी था.

7 मई को राजस्थान के मीडिया में थानागाजी गैंगरेप की सुर्खियों ने लोकसभा चुनाव की गरमी को भी ठंडा कर दिया. मीडिया ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए सवाल उठाए कि चुनाव के कारण इस घटना का खुलासा नहीं कर पुलिस क्या किसी को सियासी फायदा देना चाहती थी? या फिर समझौता कर इस मामले को रफादफा करना चाहती थी? पुलिस कहीं आरोपियों के पक्ष में तो नहीं थी? अगर ऐसा नहीं था तो वीडियो वायरल होने के बाद ही पुलिस ने यह घटना उजागर क्यों की?

 

वीडियो वायरल होने से यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई. इस के बाद सरकार और पुलिस अफसरों की नींद खुली. सरकार ने आननफानन में अलवर के एसपी आईपीएस अधिकारी राजीव पचार को हटा कर पदस्थापन की प्रतीक्षा में रख दिया. थानागाजी के थानाप्रभारी सरदार सिंह को निलंबित कर दिया गया. इसी थाने के एएसआई रूपनारायण, कांस्टेबल रामरतन, महेश कुमार और राजेंद्र को लाइन हाजिर कर दिया गया.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि पुलिस की ओर से अगर किसी भी स्तर पर लापरवाही हुई है तो सख्त काररवाई होगी. महिला सुरक्षा के प्रति सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी सामूहिक दुष्कर्म की इस घटना को बेहद शर्मनाक बताया.

डीजीपी कपिल गर्ग ने जयपुर में प्रैस कौन्फ्रैंस कर कहा कि थानागाजी थाने के सभी पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की जाएगी. रिपोर्ट दर्ज होने के 5 दिन तक निष्क्रिय बैठी पुलिस ने आननफानन में अभियुक्तों को पकड़ने के लिए 14 टीमों का गठन कर दिया. अलवर से ले कर दिल्ली, गुड़गांव और बीकानेर तक पुलिस टीमें भेजी गईं.

पुलिस ने भागदौड़ कर एक 22 वर्षीय अभियुक्त इंदराज गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. वह जयपुर जिले के प्रागपुरा का रहने वाला था. इस के अलावा वीडियो वायरल करने के आरोप में काली खोहरा निवासी मुकेश गुर्जर को सरिस्का के जंगल से पकड़ा गया.

 

गैंगरेप में भी राजनीति

 

सामूहिक दुष्कर्म की घटना सामने आने पर एक ओर जहां लोगों में गुस्सा था, वहीं राजनीति भी शुरू हो गई थी. थानागाजी कस्बे में सर्वसमाज की विशाल पंचायत हुई. इस में राज्यसभा सांसद डा. किरोड़ीलाल मीणा और थानागाजी विधायक कांती मीणा भी शामिल हुए.

पंचायत में फैसला लिया गया कि 24 घंटे में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर कस्बे के बाजार बंद कर आंदोलन किया जाएगा. डा. किरोड़ीलाल मीणा ने 8 मई को हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जयपुर में मुख्यमंत्री कार्यालय का घेराव करने की भी चेतावनी दी. राजनीति में ऐसा ही होता है.

जिला कलेक्टर इंद्रजीत सिंह ने तुरतफुरत पीडि़ता को 4 लाख 12 हजार 500 रुपए की आर्थिक सहायता राशि मंजूर कर दी. दरअसल एससी/एसटी की महिला से दुष्कर्म का मुकदमा होने पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से प्रथम किस्त के रूप में इतनी राशि देने का प्रावधान है.

 

8 मई को इस घटना के विरोध में अलवर से ले कर जयपुर तक धरनाप्रदर्शन होते रहे. थानागाजी में हजारों लोगों ने अलवरजयपुर सड़क मार्ग जाम कर दिया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की. विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, मंत्री और अधिकारी पीडि़ता से मिलने के लिए थानागाजी से 7 किलोमीटर दूर उस के गांव पहुंच गए.

लोगों ने कहा कि पुलिस प्रशासन के साथ नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. हम ने घटना की जानकारी देने के लिए कई नेताओं को फोन किए लेकिन किसी ने मदद नहीं की.

पीडि़त परिवार ने राजस्थान सरकार के श्रम राज्यमंत्री और अलवर ग्रामीण के विधायक टीकाराम जूली को 30 अप्रैल को फोन किया तो उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में व्यस्त हैं. बाद में जूली ने माना कि फोन आया था, लेकिन यह नहीं पता था कि मामला इतना गंभीर है.

जयपुर में राज्यसभा सांसद डा. किराड़ीलाल मीणा एवं पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास के पास सिविललाइन फाटक पर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस आपस में गुत्थमगुत्था हो गए. आधे घंटे तक हंगामा होता रहा.

बाद में प्रदर्शनकारियों ने राजभवन जा कर राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया. राजस्थान यूनिवर्सिटी में एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री के पुतले के साथ प्रदर्शन किया. अलवर में विभिन्न संगठनों के अलावा महिलाओं ने भी जुलूस निकाले और अधिकारियों को ज्ञापन दिए.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में प्रसंज्ञान ले कर राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया. साथ ही मुख्य सचिव और महानिदेशक से 6 सप्ताह में रिपोर्ट मांगी.

इस मामले में उस समय नया मोड़ आ गया, जब पीडि़ता के पति ने राज्य के पूर्वमंत्री और थानागाजी के पूर्व विधायक हेमसिंह भड़ाना पर समझौते का दबाव बनाने का आरोप लगाया. हालांकि भड़ाना ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता कर सिरे से नकार दिया.

पुलिस ने 8 मई की रात तक 3 अन्य आरोपियों अशोक गुर्जर, महेश गुर्जर और हंसराज गुर्जर को भी गिरफ्तार कर लिया. मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर अभी तक पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

9 मई को भी अलवर और जयपुर सहित पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन होता रहा. इस के बावजूद सरकार की लापरवाही रही कि वायरल वीडियो ब्लौक करने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को निर्देश तक नहीं दिए. यह वीडियो गूगल, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया पर 9 मई तक पीडि़तों की इज्जत तारतार करता रहा. भाजपा ने अलवर में धरना दे कर मामले की जांच सीबीआई से कराने, पीडि़ता को 50 लाख रुपए मुआवजा देने, एसपी व थानाप्रभारी पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की.

 

महिला आयोग भी आया आगे

 

राष्ट्रीय महिला आयोग के दल ने थानागाजी पहुंच कर पीडि़ता से मुलाकात की. आयोग की सदस्य डा. राहुल बेन देसाई और नेहा महाजन ने इस दौरान मौजूद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजिलेंस गोविंद गुप्ता और आईजी एस. सेंगाथिर को सोशल मीडिया पर वीडियो फोटो अपलोड करने वालों पर तुरंत एक्शन लेने के निर्देश दिए. देश भर से विभिन्न जनसंगठनों के पदाधिकारी भी थानागाजी पहुंचे और पीडि़त परिवार से मिले.

पुलिस ने घटना के 13 दिन बाद मुख्य आरोपी छोटेलाल गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. उसे सीकर जिले के अजीतगढ़ से पकड़ा गया, जहां वह एक ट्रक में छिपा हुआ था. छोटेलाल इस ट्रक में सवार हो कर गुजरात भागने की फिराक में था. छोटे शराब की दुकान पर सेल्समैन का काम करता था. बानसूर के रतनपुरा गांव निवासी छोटेलाल के खिलाफ 2 आपराधिक मामले पहले से दर्ज हैं.

दूसरी ओर, पुलिस ने अलवर की अदालत में पीडि़ता के धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराए. वहीं, राज्य सरकार ने मामले की प्रशासनिक जांच के लिए जयपुर के संभागीय आयुक्त को नियुक्त किया. इस के अलावा चुनाव आचार संहिता लगी होने के कारण निर्वाचन आयोग से अनुमति मिलने के बाद आईपीएस औफिसर देशमुख पारिस अनिल को अलवर का एसपी नियुक्त किया गया.

पूरे देश में चर्चा का विषय बन जाने पर 10 मई को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष एल. मुरुगन इस घटना की जांच करने थानागाजी पहुंचे. वे पीडि़ता और उस के परिवार से भी मिले. इस दौरान राजस्थान के मुख्य सचिव डी.बी. गुप्ता और पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग मौजूद रहे.

आयोग के उपाध्यक्ष ने पीडि़ता से मुलाकात के बाद कहा कि 30 अप्रैल को एसपी को परिवाद देने के बाद भी पुलिस ने 2 मई को मुकदमा दर्ज किया और 7 मई को ऐक्शन में आई, यह साफतौर पर सरकार की लापरवाही है. हम राज्य सरकार की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.

फिलहाल प्रशासन को पीडि़ता के परिवार की नौकरी की मांग और सरकारी सहायता देने के लिए कहा गया है. इस के अलावा केस दर्ज करने में लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और और पीडि़त परिवार की स्थाई सुरक्षा की व्यवस्था करने को भी कहा गया है.

मुरुगन ने कहा कि आयोग के निर्देश पर यूट्यूब से घटना के वीडियो हटवाए गए हैं. पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए हर जरूरी कदम उठा रहे हैं.

 

जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उच्चस्तरीय बैठक कर ऐसे मामलों में कड़े कदम उठाने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि अगर कोई थानेदार थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करेगा तो एसपी को दर्ज करनी होगी. ऐसे थानेदार के खिलाफ सख्त काररवाई होगी. महिला अत्याचार की घटनाओं की मौनिटरिंग के लिए हर जिले में महिला सुरक्षा डीएसपी का नया पद सृजित किया जाएगा.

यह सिर्फ महिलाओं के अपहरण, दुष्कर्म, गैंगरेप आदि मामलों की जांच करेगा. यह डीएसपी महिला थानों की मौनिटरिंग के साथ सामाजिक न्याय व महिला बाल विकास विभाग से समन्वय स्थापित करेगा और महिलाओं व बच्चों पर होने वाले अत्याचार के मामलों में काररवाई करेगा. गहलोत ने कहा कि थानागाजी के मामले को केस औफिसर स्कीम में ले कर आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी.

11 मई को थानागाजी गैंगरेप मामले में देश की सियासत गरमा गई. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान सरकार को सीधे निशाने पर लिया.

मोदी ने कहा कि अलवर में एक दलित बेटी के साथ कुछ दरिंदों ने सामूहिक दुष्कर्म किया, लेकिन राजस्थान में चुनाव थे इसलिए वहां की कांग्रेस सरकार और पुलिस इस मामले को दबाने में जुटी रही.

 

पीडि़त से हमदर्दी सिर्फ नाम की,

बस मुद्दा उछलता रहा

 

मायावती ने लखनऊ में आयोजित चुनावी रैली में इसे अतिघृणित घटना बताते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस सरकार के चलते उस दलित महिला को इंसाफ मिलेगा.

पुलिस ने इस मामले में अलवर जेल में न्यायिक अभिरक्षा भुगत रहे 3 आरोपियों हंसराज गुर्जर, महेश गुर्जर व इंदरराज गुर्जर की शिनाख्त परेड कराई. इस के बाद इन्हें 13 मई तक रिमांड पर लिया गया. 3 आरोपी पहले ही 13 मई तक रिमांड पर थे. बाद में अदालत से सभी 6 आरोपियों की रिमांड अवधि 16 मई तक बढ़वा ली गई.

14 मई को इस मामले में जयपुर कूच करने निकले सांसद डा. किरोड़ीलाल और उन के समर्थकों ने दौसा में जयपुरदिल्ली रेलवे ट्रैक जाम करने का प्रयास किया. पुलिस ने खदेड़ा तो किरोड़ी समर्थकों ने पथराव किया. पथराव के कारण कई ट्रेनें बीच रास्ते में रोक दी गईं. काफी देर तक लाठीभाटा जंग होती रही.

इस जंग में 5 पुलिसकर्मियों सहित 8 लोग घायल हो गए. एसपी व एडीएम सहित कई अधिकारियों को भी चोटें आईं. बाद में पुलिस ने किरोड़ी के साथ पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़, विधायक हनुमान बेनीवाल व गोपीचंद को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.

दूसरी ओर, पीडि़ता के पिता ने कहा कि उन का परिवार इस घटना के बाद लोगों के आनेजाने और इस से हुई बदनामी से परेशान है. उन्होंने सरकार से मांग की कि पीडि़त दंपति को सरकारी नौकरी दे कर किसी ऐसी जगह भेज दिया जाए, जहां उन्हें कोई न पहचान सके. 7 दिन में इतने नेता और लोग घर पहुंचे कि पूरे देश और समाज को पता चल गया कि वीडियो में दिखे पतिपत्नी का मकान यह है.

15 मई को भी अलवर व जयपुर सहित प्रदेश के कई हिस्सों में आंदोलन होते रहे. थानागाजी में सर्वसमाज ने आक्रोश रैली निकाली. इस दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का थानागाजी आने का कार्यक्रम था लेकिन मौसम खराब होने से उन का हेलीकौप्टर दिल्ली से उड़ान नहीं भर सका.

16 मई को राहुल गांधी थानागाजी क्षेत्र में पीडि़ता से मिलने उस के घर पहुंचे. राहुल ने पीडि़ता, उस के पति और उस के परिवार के लोगों से करीब 15 मिनट तक अकेले में बात कर घटना की जानकारी ली. घटना के बारे में बताते हुए पीडि़ता व उस का पति रो पड़े तो राहुल भी भावुक हो गए.

 

राजनीति के लिए नेताओं के घडि़याली आंसू

 

राहुल ने पीडि़ता के पति को गले लगाया अैर कहा कि यह राजनीति नहीं है, आप को न्याय जरूर मिलेगा. परिवार ने पीडि़ता व उस के पति के पुनर्वास, सरकारी नौकरी व आरोपियों को कठोर सजा दिलाने की मांग रखी.

इस दौरान मौजूद मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि पीडि़ता के लिए सरकारी नौकरी का इंतजाम किया जाएगा. अलवर जिले में अपराध के आंकड़ों को देखते हुए 2 एसपी लगाए जाएंगे. इस केस में 7 दिनों में चालान पेश कर दिया जाएगा.

पुलिस ने सभी आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर अलवर की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस ने अदालत में अर्जी पेश कर पीडि़ता के पति को मोबाइल पर धमकी दे कर 10 हजार रुपए मांगने के आरोपी छोटेलाल की आवाज के नमूने लेने की अनुमति मांगी.

17 मई को इस मामले की प्रशासनिक जांच कर रहे जयपुर के संभागीय आयुक्त के.सी. वर्मा ने अलवर में जनसुनवाई कर घटना से संबंधित तथ्य जुटाए. दूसरी ओर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने राजस्थान में बढ़ रहे यौन अपराधों के मामले में स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक और सरकार से जवाब तलब किया है.

यह विडंबना ही है कि चुनाव के दौरान थानागाजी का यह मामला पूरे देश में चर्चा में आ गया. इस से राजनीति में भी उबाल आया. सभी प्रमुख दलों के नेता बयानबाजी करते रहे. कुछ लोग राजनीतिक रोटियां भी सेकते रहे. जबकि जरूरत थी पीडि़ता का दर्द कम करने की. इस के लिए जरूरी था कि राजनीति बंद होती.

 

पीडि़ता का पुनर्वास होना जरूरी है. सरकारी नौकरी से उसे कुछ सहारा मिलेगा तो शायद वह अपने कामकाज में व्यस्त हो कर दिल दहलाने वाली इस घटना को भुलाने की कोशिश कर सके. साथ ही ऐसे दरिंदों को कठोर सजा मिलनी चाहिए, ताकि ऐसी मानसिकता के लोगों को सबक मिल सके.

थानागाजी गैंगरेप मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज होने के 16 दिन बाद 18 मई को अलवर की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी. 500 पेज की चार्जशीट में 6 आरोपी हैं. इनमें 5 मुलजिमों के खिलाफ गैंगरेप, अपहरण, रास्ता रोकने, मारपीट, निर्वस्त्र करने, जातिसूचक शब्द बोलने, मानसम्मान को ठेस पहुंचाने, डकैती व धमकी देने सहित प्रताडि़त करने और एक अभियुक्त पर वीडियो वायरल करने का आरोप है.

पुलिस ने मामले की त्वरित सुनवाई के लिए केस औफिसर नियुक्त किया है. अदालत में दिनप्रतिदिन सुनवाई के लिए अरजी दी गई है, ताकि आरोपियों को जल्द सजा मिल सके. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जिन धाराओं में चालान पेश किया है, उन में आरोप साबित होने पर इन दरिंदों को मरते दम तक उम्रकैद की सजा हो सकती है.

मामले का वीडियो फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करने पर पुलिस ने यूट्यूब पर बने एक चैनल टौप न्यूज 24 के खिलाफ अलवर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया है. यह मुकदमा कोतवाली थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने खुद दर्ज कराया है.

दूसरी ओर, सरकार ने पीडि़ता को सरकारी नौकरी देने की तैयारी शुरू कर दी है. सरकार ने उसे राजस्थान पुलिस या जेल पुलिस में से कोई एक कांस्टेबल पद चुनने का विकल्प दिया है. इस में पीडि़ता ने राजस्थान के जयपुर सिटी में पोस्टिंग मांगी है.   द्य

—पीडि़ता का निर्भया नाम काल्पनिक है

 

 

50 करोड़ का खेल

लेखक- निखिल अग्रवाल

21मार्च, 2019 की बात है. उस दिन होली थी. होलिका दहन के अगले दिन रंग गुलाल से खेले जाने वाले त्यौहार का आमतौर पर दोपहर तक ही धूमधड़ाका रहता है. दोपहर में रंगेपुते लोग नहाधो कर अपने चेहरों से रंग उतारते हैं. फिर अपने कामों में लग जाते हैं. कई जगह शाम के समय लोग अपने परिचितों और रिश्तेदारों से मिलने भी जाते हैं. भीलवाड़ा के पाटील नगर का रहने वाला शिवदत्त शर्मा भी होली की शाम अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने के लिए अपनी वेरना कार से बापूनगर के लिए निकला था. शिवदत्त ने जाते समय पत्नी शर्मीला से कहा था कि वह रात तक घर आ जाएगा. थोड़ी देर हो जाए तो चिंता मत करना.

शिवदत्त जब देर रात तक नहीं लौटा तो शर्मीला को चिंता हुई. रात करीब 10 बजे शर्मीला ने पति के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद शर्मीला घरेलू कामों में लग गई. उस के सारे काम निबट गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया था. शर्मीला ने दोबारा पति के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. उसे लगा कि शायद पति के मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई होगी, इसलिए स्विच्ड औफ आ रहा है.

शर्मीला बिस्तर पर लेट कर पति का इंतजार करने लगी. धीरेधीरे रात के 12 बज गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया. इस से शर्मीला को चिंता होने लगी. वह पति के दोस्त राजेश त्रिपाठी को फोन करने के लिए नंबर ढूंढने लगी, लेकिन त्रिपाठीजी का नंबर भी नहीं मिला.

शर्मीला की चिंता स्वाभाविक थी. वैसे भी शिवदत्त कह गया था कि थोड़ीबहुत देर हो जाए तो चिंता मत करना, लेकिन घर आने की भी एक समय सीमा होती है. शर्मीला बिस्तर पर लेटेलेटे पति के बारे में सोचने लगी कि क्या बात है, न तो उन का फोन आया और न ही वह खुद आए.

पति के खयालों में खोई शर्मीला की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. त्यौहार के कामकाज की वजह से वह थकी हुई थी, इसलिए जल्दी ही गहरी नींद आ गई.

 

वाट्सऐप मैसेज से मिली

पति के अपहरण की सूचना

 

22 मार्च की सुबह शर्मीला की नींद खुली तो उस ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे. पति अभी तक नहीं लौटा था. शर्मीला ने पति को फिर से फोन करने के लिए अपना मोबाइल उठाया तो देखा कि पति के नंबर से एक वाट्सऐप मैसेज आया था.

शर्मीला ने मैसेज पढ़ा. उस में लिखा था, ‘तुम्हारा घर वाला हमारे पास है. इस पर हमारे एक करोड़ रुपए उधार हैं. यह हमारे रुपए नहीं दे रहा. इसलिए हम ने इसे उठा लिया है. हम तुम्हें 2 दिन का समय देते हैं. एक करोड़ रुपए तैयार रखना. बाकी बातें हम 2 दिन बाद तुम्हें बता देंगे. हमारी नजर तुम लोगों पर है. ध्यान रखना, अगर पुलिस या किसी को बताया तो इसे वापस कभी नहीं देख पाओगी.’

 

मोबाइल पर आया मैसेज पढ़ कर शर्मीला घबरा गई. वह क्या करे, कुछ समझ नहीं पा रही थी. पति की जिंदगी का सवाल था, घबराहट से भरी शर्मीला ने अपने परिवार वालों को जगा कर मोबाइल पर आए मैसेज के बारे में बताया.

मैसेज पढ़ कर लग रहा था कि शिवदत्त का अपहरण कर लिया गया है. बदमाशों ने शिवदत्त के मोबाइल से ही मैसेज भेजा था ताकि पुष्टि हो जाए कि शिवदत्त बदमाशों के कब्जे में है. यह मैसेज 21 मार्च की रात 9 बज कर 2 मिनट पर आया था, लेकिन उस समय शर्मीला इसे देख नहीं सकी थी.

शिवदत्त के अपहरण की बात पता चलने पर पूरे परिवार में रोनापीटना शुरू हो गया. जल्दी ही बात पूरी कालोनी में फैल गई. चिंता की बात यह थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त पर अपने एक करोड़ रुपए बकाया बताए थे और वह रकम उन्होंने 2 दिन में तैयार रखने को कहा था.

शर्मीला 2 दिन में एक करोड़ का इंतजाम कहां से करती? शिवदत्त होते तो एक करोड़ इकट्ठा करना मुश्किल नहीं था लेकिन शर्मीला घरेलू महिला थी, उन्हें न तो पति के पैसों के हिसाबकिताब की जानकारी थी और न ही उन के व्यवसाय के बारे में ज्यादा पता था. शर्मीला को बस इतना पता था कि उस के पति बिल्डर हैं.

शर्मीला और उस के परिवार की चिंता को देखते हुए कुछ लोगों ने उन्हें पुलिस के पास जाने की सलाह दी. शर्मीला परिवार वालों के साथ 22 मार्च को भीलवाड़ा के सुभाषनगर थाने पहुंच गई और पुलिस को सारी जानकारी देने के बाद अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने शर्मीला और उन के परिवार के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि कपड़ा नगरी के नाम से देश भर में मशहूर भीलवाड़ा के पथिक नगर की श्रीनाथ रेजीडेंसी में रहने वाले 42 साल के शिवदत्त शर्मा की हाइपर टेक्नो कंसट्रक्शन कंपनी है. शिवदत्त का भीलवाड़ा और आसपास के इलाके में प्रौपर्टी का बड़ा काम था. उन के बिजनैस में कई साझीदार हैं और इन लोगों की करोड़ोंअरबों की प्रौपर्टी हैं.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने इस की जानकारी एडिशनल एसपी दिलीप सैनी को दे दी. इस के बाद पुलिस ने शिवदत्त की तलाश शुरू कर दी. साथ ही शिवदत्त की पत्नी से यह भी कह दिया कि अगर अपहर्त्ताओं का कोई भी मैसेज आए तो तुरंत पुलिस को बता दें.

चूंकि शिवदत्त अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी के घर जाने की बात कह कर घर से निकले थे, इसलिए पुलिस ने राजेश त्रिपाठी से पूछताछ की. राजेश ने बताया कि शिवदत्त होली के दिन शाम को उन के पास आए तो थे लेकिन वह रात करीब 8 बजे वापस चले गए थे.

 

जांचपड़ताल के दौरान 23 मार्च को पुलिस को शिवदत्त की वेरना कार भीलवाड़ा में ही सुखाडि़या सर्किल से रिंग रोड की तरफ जाने वाले रास्ते पर लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. पुलिस ने कार जब्त कर ली. पुलिस ने कार की तलाशी ली, लेकिन उस से शिवदत्त के अपहरण से संबंधित कोई सुराग नहीं मिला. कार भी सहीसलामत थी. उस में कोई तोड़फोड़ नहीं की गई थी और न ही उस में संघर्ष के कोई निशान थे.

पुलिस ने शिवदत्त के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन मोबाइल के स्विच्ड औफ होने की वजह से उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. जांच की अगली कड़ी के रूप में पुलिस ने शिवदत्त, उस की पत्नी और कंपनी के स्टाफ के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा शिवदत्त के लेनदेन, बैंक खातों, साझेदारों के लेनदेन से संबंधित जानकारियां जुटाईं. यह भी पता लगाया गया कि किसी प्रौपर्टी को ले कर कोई विवाद तो नहीं था.

 

पुलिस जुट गई जांच में

 

इस बीच 24 मार्च का दिन भी निकल गया. लेकिन अपहर्त्ताओं की ओर से कोई सूचना नहीं आई. जबकि उन्होंने 2 दिन में एक करोड़ रुपए का इंतजाम करने को कहा था. घर वाले इस बात को ले कर चिंतित थे कि कहीं अपहर्त्ताओं को उन के पुलिस में जाने की बात पता न लग गई हो. क्योंकि इस से चिढ़ कर वे शिवदत्त के साथ कोई गलत हरकत कर सकते थे.

शर्मीला पति को ले कर बहुत चिंतित थी. अपहर्त्ताओं की ओर से 3 दिन बाद भी शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क नहीं किया गया. ऐसे में पुलिस को भी उस की सलामती की चिंता थी.

पुलिस ने शिवदत्त की तलाश तेज करते हुए 4 टीमें जांचपड़ताल में लगा दी. इन टीमों ने शिवदत्त के रिश्तेदारों से ले कर मिलनेजुलने वालों और संदिग्ध लोगों से पूछताछ की, लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. शिवदत्त की कार जिस जगह लावारिस हालत में मिली थी, उस के आसपास सीसीटीवी फुटेज खंगालने की कोशिश भी की गई, लेकिन पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका.

इस पर पुलिस ने 25 मार्च को शिवदत्त के फोटो वाले पोस्टर छपवा कर भीलवाड़ा जिले के अलावा पूरे राजस्थान सहित गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के पुलिस थानों को सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करने के लिए भेजे.

 

पुलिस को भी नहीं मिला शिवदत्त

 

जांच में पता चला कि शिवदत्त ने कुछ समय पहले महाराष्ट्र में भी अपना कारोबार शुरू किया था. इसलिए किसी सुराग की तलाश में पुलिस टीम मुंबई और नासिक भेजी गई. लेकिन वहां हाथपैर मारने के बाद पुलिस खाली हाथ लौट आई.

उधर लोग इस मामले में पुलिस की लापरवाही मान रहे थे. पुलिस के प्रति लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. 26 अप्रैल, 2019 को ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि मंडल ने भीलवाड़ा के कलेक्टर और एसपी को ज्ञापन दे कर शिवदत्त को सुरक्षित बरामद कर अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार करने की मांग की. ऐसा न होने पर उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दे दी.

दिन पर दिन बीतते जा रहे थे, लेकिन न तो अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क किया था और न ही पुलिस को कोई सुराग मिला था. इस से शिवदत्त के परिजन भी परेशान थे. उन के मन में आशंका थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. क्योंकि इतने दिन बाद भी न तो अपहर्त्ता संपर्क कर रहे थे और न ही खुद शिवदत्त.

पुलिस की चिंता भी कम नहीं थी. वह भी लगातार भागदौड़ कर रही थी. पुलिस ने शिवदत्त के फेसबुक, ट्विटर, ईमेल एकाउंट खंगालने के बाद संदेह के दायरे में आए 50 से अधिक लोगों से पूछताछ की.

पुलिस की टीमें महाराष्ट्र और गुजरात भी हो कर आई थीं. शिवदत्त और उस के परिवार वालों के मोबाइल की कालडिटेल्स की भी जांच की गई. भीलवाड़ा शहर में बापूनगर, पीऐंडटी चौराहा से पांसल चौराहा और अन्य इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई, लेकिन इन सब का कोई नतीजा नहीं निकला.

बिल्डर शिवदत्त के अपहरण का मामला पुलिस के लिए एक मिस्ट्री बनता जा रहा था. पुलिस अधिकारी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर अपहर्त्ता शिवदत्त को कहां ले जा कर छिप गए. ऐसा कोई व्यक्ति भी पुलिस को नहीं मिल रहा था जिस ने राजेश त्रिपाठी के घर से निकलने के बाद शिवदत्त को देखा हो. त्रिपाठी ही ऐसा शख्स था, जिस से शिवदत्त आखिरी बार मिला था. पुलिस त्रिपाठी से पहले ही पूछताछ कर चुकी थी. उस से कोई जानकारी नहीं मिली थी तो उसे घर भेज दिया गया था.

जांचपड़ताल में सामने आया कि शिवदत्त का करीब 100 करोड़ रुपए का कारोबार था. साथ ही उस पर 20-30 करोड़ की देनदारियां भी थीं. महाराष्ट्र के नासिक और गुजरात के अहमदाबाद में भी उस ने कुछ समय पहले नया काम शुरू किया था.

 

शिवदत्त ने सन 2009 में प्रौपर्टी का कारोबार शुरू किया था. शुरुआत में उस ने इस काम में अच्छा पैसा कमाया. कमाई हुई तो उस ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए. एक साथ कई काम शुरू करने से उसे नुकसान भी हुआ. इस से उस की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी तो उस ने लोन लेने के साथ कई लोगों से करोड़ों रुपए उधार लिए. भीलवाड़ा जिले का रहने वाला एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी शिवदत्त की प्रौपर्टीज में पैसा लगाता था.

शिवदत्त भीलवाड़ा में ब्राह्मण समाज और अन्य समाजों के धार्मिक कार्यक्रमों में मोटा चंदा देता था. इस से उस ने विभिन्न समाजों के धनी और जानेमाने लोगों का भरोसा भी जीत रखा था. ऐसे कई लोगों ने शिवदत्त की प्रौपर्टीज में निवेश कर रखा था.

शिवदत्त के ऊपर उधारी बढ़ती गई तो लेनदार भी परेशान करने लगे. शिवदत्त प्रौपर्टी बेच कर उन लोगों का पैसा चुकाना चाहता था, लेकिन बाजार में मंदी के कारण प्रौपर्टी का सही भाव नहीं मिल रहा था. इस से वह परेशान रहने लगा था. लोगों के तकाजे से परेशान हो कर उसने फोन अटेंड करना भी कम कर दिया था.

हालांकि शर्मीला ने पुलिस थाने में पति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस को एक भी ऐसा सबूत नहीं मिला, जिस के उस के अपहरण की पुष्टि होती. एक सवाल यह भी था कि शिवदत्त अगर उधारी का पैसा नहीं चुका रहा था तो अपहर्त्ता उन के किसी परिजन को उठा कर ले जाते, क्योंकि लेनदारों को यह बात अच्छी तरह पता थी कि पैसों की व्यवस्था शिवदत्त के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता.

 

घूमने लगा पुलिस का दिमाग

 

आधुनिक टैक्नोलौजी के इस जमाने में पुलिस तीनचौथाई आपराधिक मामले मोबाइल लोकेशन, काल डिटेल्स व सीसीटीवी फुटेज से सुलझा लेती है, लेकिन शिवदत्त के मामले में पुलिस के ये तीनों हथियार फेल हो गए थे. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. सीसीटीवी फुटेज साफ नहीं थे. काल डिटेल्स से भी कोई खास बातें पता नहीं चलीं.

प्रौपर्टी का काम करने से पहले शिवदत्त के पास बोरिंग मशीन थी. वह हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर सहित कई राज्यों में ट्यूबवैल के बोरिंग का काम करता था. इन स्थितियों में तमाम बातों पर गौर करने के बाद पुलिस शिवदत्त के अपहरण के साथ अन्य सभी पहलुओं पर भी जांच करने लगी.

इसी बीच शिवदत्त की पत्नी शर्मीला ने राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर दी. इस में शर्मीला ने अपने पति को ढूंढ निकालने की गुहार लगाई. इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि शिवदत्त को तलाश कर जल्द से जल्द अदालत में पेश किया जाए.

अब पुलिस के सामने शिवदत्त मामले में दोहरी चुनौती पैदा हो गई. पुलिस ने शिवदत्त की तलाश ज्यादा तेजी से शुरू कर दी. मई के पहले सप्ताह में शिवदत्त का मोबाइल स्विच औन किया गया. इस से उस की लोकेशन का पता चल गया. पता चला कि वह मोबाइल देहरादून में है. भीलवाड़ा से तुरंत एक पुलिस टीम देहरादून भेजी गई. देहरादून में पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ढूंढी तो वह मोबाइल एक धोबी के पास मिला.

धोबी ने बताया कि पास के ही एक गेस्टहाउस में रहने वाले एक साहब के कपड़ों में एक दिन गलती से उन का मोबाइल आ गया. उस मोबाइल को धोबी के बेटे ने औन कर के अपने पास रख लिया था. मोबाइल औन होने से उस की लोकेशन पुलिस को पता चल गई.

पुलिस ने 4 मई, 2019 को धोबी की मदद से शिवदत्त को देहरादून के अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस से बरामद कर लिया. शिवदत्त अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से इस गेस्टहाउस में ठहरा हुआ था. देहरादून से वह लगातार जयपुर की अपनी एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस दौरान शिवदत्त ने देहरादून में एक कोचिंग सेंटर में इंग्लिश स्पीकिंग क्लास भी जौइन कर ली थी.

42 दिन तक कथित रूप से लापता रहे शिवदत्त को पुलिस देहरादून से भीलवाड़ा ले आई. उस से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी.

 

नाटक और हकीकत में फर्क होता है

 

शिवदत्त ने प्रौपर्टी व्यवसाय में कई जगह पैर पसार रखे थे. उस ने भीलवाड़ा में विनायक रेजीडेंसी, सांगानेर रोड पर मल्टीस्टोरी प्रोजैक्ट, अजमेर रोड पर श्रीमाधव रेजीडेंसी, कृष्णा विहार बाईपास, कोटा रोड पर रूपाहेली गांव के पास वृंदावन ग्रीन फार्महाउस आदि बनाए. इन के लिए उस ने बाजार से मोटी ब्याज दर पर करीब 50 करोड़ रुपए उधार लिए थे, लेकिन कुछ प्रोजैक्ट समय पर पूरे नहीं हुए.

बाद में प्रौपर्टी व्यवसाय में मंदी आ गई. इस से उसे अपनी प्रौपर्टीज के सही भाव नहीं मिल पा रहे थे. जिन लोगों ने शिवदत्त को रकम उधार दी थी, वह उन पर लगातार तकाजा कर रहे थे. ब्याज का बोझ बढ़ता जा रहा था. इस से शिवदत्त परेशान रहने लगा. वह इस समस्या से निकलने का समाधान खोजता रहता था.

इस बीच जनवरी में शिवदत्त अपने घर पर सीढि़यों से फिसल गया. उस की रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी. कुछ दिन वह अस्पताल में भरती रहा. फिर चोट के बहाने करीब 2 महीने तक घर पर ही रहा. इस दौरान उस ने अपना कारोबार पत्नी शर्मीला और स्टाफ के भरोसे छोड़ दिया था. पैसा मांगने वालों को घरवाले और स्टाफ शिवदत्त के बीमार होने की बात कह कर टरकाते रहे.

 

घर पर आराम करने के दौरान एक दिन शिवदत्त ने सारी समस्याओं से निपटने के लिए खुद के अपहरण की योजना बनाई. उस का विचार था कि अपहरण की बात से कर्जदार उस के परिवार को परेशान नहीं करेंगे. उन पर पुलिस की पूछताछ का दबाव भी नहीं रहेगा. यहां से जाने के बाद वह भीलवाड़ा से बाहर जा कर कहीं रह लेगा और मामला शांत हो जाने पर किसी दिन अचानक भीलवाड़ा पहुंच कर अपने अपहरण की कोई कहानी बना देगा.

अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए उस ने होली का दिन चुना. इस से पहले ही शिवदत्त ने अपनी कार में करीब 8-10 जोड़ी कपड़े और जरूरी सामान रख लिया था. करीब एक लाख रुपए नकद भी उस के पास थे. शिवदत्त ने अपनी योजना की जानकारी पत्नी और किसी भी परिचित को नहीं लगने दी. उसे पता था कि अगर परिवार में किसी को यह बात बता दी तो पुलिस उस का पता लगा लेगी. इसलिए उस ने इस बारे में पत्नी तक को कुछ बताना ठीक नहीं समझा.

योजना के अनुसार, शिवदत्त होली की शाम पत्नी से अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने जाने की बात कह कर कार ले कर घर से निकल गया. वह अपने दोस्त से मिला और रात करीब 8 बजे वहां से निकल गया. शिवदत्त ने राजेश त्रिपाठी के घर से आ कर अपनी कार सुखाडि़या सर्किल के पास लावारिस छोड़ दी. कार से कपड़े और जरूरी सामान निकाल लिया. कपड़े व सामान ले कर वह भीलवाड़ा से प्राइवेट बस में सवार हो कर दिल्ली के लिए चल दिया.

भीलवाड़ा से रवाना होते ही शिवदत्त ने अपने मोबाइल से पत्नी के मोबाइल पर खुद के अपहरण का मैसेज भेज दिया था. इस के बाद उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया. भीलवाड़ा से दिल्ली पहुंच कर वह ऋषिकेश चला गया.

ऋषिकेश में शिवदत्त ने अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से नया सिमकार्ड खरीदा. फिर एक नया फोन खरीद कर वह सिम मोबाइल में डाल दिया. कुछ दिन ऋषिकेश में रुकने के बाद शिवदत्त देहरादून चला गया. देहरादून में 29 मार्च को उस ने राकेश शर्मा की आईडी से अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस में कमरा ले लिया.

 

खेल एक अनाड़ी खिलाड़ी का

 

देहरादून में उस ने दिखावे के लिए इंग्लिश स्पीकिंग क्लास जौइन कर ली. वह अपने कपड़े धुलवाने और प्रैस कराने के लिए धोबी को देता था. एक दिन गलती से शिवदत्त का पुराना मोबाइल उस के कपड़ों की जेब में धोबी के पास चला गया. इसी से उस का भांडा फूटा.

शुरुआती जांच में सामने आया कि देहरादून में रहने के दौरान शिवदत्त मुख्यरूप से जयपुर की एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस महिला से शिवदत्त की रोजाना लंबीलंबी बातें होती थीं. जबकि वह अपनी पत्नी या अन्य किसी परिजन के संपर्क में नहीं था.

भीलवाड़ा के सुभाष नगर थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने शिवदत्त को 6 मई को जोधपुर ले जा कर हाईकोर्ट में पेश किया और उस के अपहरण की झूठी कहानी से कोर्ट को अवगत कराया. इस पर मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस संदीप मेहता और विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने शिवदत्त के प्रति नाराजगी जताई. जजों ने याचिका का निस्तारण करते हुए अदालत और पुलिस को गुमराह करने पर याचिकाकर्ता शर्मीला पर 5 हजार रुपए का जुरमाना लगाते हुए यह राशि पुलिस कल्याण कोष में जमा कराने के आदेश दिए.

बाद में सुभाष नगर थाना पुलिस ने शिवदत्त के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. उस के खिलाफ अपने ही अपहरण की झूठी कहानी गढ़ कर पुलिस को गुमराह करने, अवैध रूप से देनदारों पर दबाव बनाने और षडयंत्र रचने का मामला दर्ज किया गया. इस मामले की जांच सदर पुलिस उपाधीक्षक राजेश आर्य कर रहे थे.

पुलिस ने इस मामले में 7 मई, 2019 को बिल्डर शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन उसे अदालत में पेश कर 6 दिन के रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में भी शिवदत्त से विस्तार से पूछताछ की गई, फिर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

बहरहाल, बिल्डर शिवदत्त मोहमाया के लालच में अपने ही बिछाए जाल में फंस गया. अपहरण की झूठी कहानी से उस के परिजन भी 42 दिन तक परेशान रहे. पुलिस भी परेशान होती रही. भले ही वह जमानत पर छूट कर घर आ जाएगा, लेकिन सौ करोड़ के कारोबारी ने बाजार में अपनी साख तो खराब कर ही ली. इस का जिम्मेदार वह खुद और उस का लोभ है.          द्य

 

अलीगढ़ मर्डर केस : दर्दनाक घटना मासूम की हत्या ने दहला दिया दिल

मासूम बच्ची के पिता को उधारी में 50,000 रुपए मिल तो गए, पर हर रोज तकादा करना. रोजरोज तकादा करने पर किसी तरह से जाहिद को 40,000 रुपए लौटा दिए गए और बाकी की रकम 10,000 रुपए भी जल्दी ही लौटाने की बात की तो मामला तूल पकड़ गया. तय रकम समय पर न देने पर उन्हें देख लेने की धमकी देना इस कदर भारी पड़ गया कि पिता को अपनी मासूम बच्ची खोनी पड़ी.
यह वारदात तालानगरी अलीगढ़ के टप्पल गांव की है. 28 मई को पैसे न देने पर जाहिद की मासूम बच्ची के पिता से कहासुनी हुई. इस के बाद 30 मई को जाहिद ने ढाई साल की बच्ची को अगवा किया और उस की हत्या कर साथी असलम की मदद से शव को ठिकाने लगाया.
बच्ची का शव परिवार को 2 जून को घर से महज 100 मीटर की दूरी पर कूड़े के ढेर में मिला. शव को कपड़े की पोटली में लपेट कर फेंका गया था, जो गल गया था. उस का हाथ अलग मिला. उस की आंखें बाहर निकली हुई थीं.

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पुलिस ने बच्ची की मौत की वजह गला घोंटना बताया है, वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिल दहला देने वाली है. बच्ची की एक किडनी नहीं मिली. एक हाथ शरीर से अलग था. बच्ची की सारी पसलियां टूटी हुई थीं, बाएं पैर में फ्रैक्चर था, आंखों में जख्म थे और सिर पर चोट के गहरे निशान थे. मासूम को इस कदर मारा गया था कि उस की नोजल ब्रिज (नाक और माथे को जोड़ने वाली हड्डी) टूट गई थी. डाक्टरों का कहना है कि शव इस लायक नहीं था कि रेप की जांच हो सके.
ढाई साला बच्ची की जघन्य हत्या को सुन कर हर किसी का दिल दहल गया. लखनऊ में एडीजी (कानून व्यवस्था) आनंद कुमार ने कहा कि मामले के दोनों आरोपियों जाहिद और मोहम्मद असलम ने जुर्म कबूल कर लिया है. इन दोनों पर एनएसए और पाक्सो एक्ट की धाराएं लगाई गई हैं. मामला फास्टट्रैक कोर्ट में चलेगा.
वारदात को अंजाम देने वाले तीसरे आरोपी मेहंदी हसन को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है. वह आरोपी जाहिद का भाई है. जिस दिन मासूम बच्ची का शव मिला, उसी दिन लोगों ने मेहंदी की जम कर पिटाई की थी. इस के बाद से ही वह फरार हो गया था. वहीं दूसरी ओर आरोपी मेहंदी हसन के बाद महिला आरोपी को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
आरोपी मोहम्मद असलम साल 2014 में एक रिश्तेदार की बच्ची से यौनशोषण में गिरफ्तार हुआ था. वहीं साल 2017 में उस पर दिल्ली के गोकलपुरी में छेड़छाड़ और अपहरण का मामला दर्ज है. असलम के खिलाफ पहले से ही अपहरण, दुष्कर्म और गुंडा एक्ट सहित 5 मुकदमे दर्ज हैं.
इस बर्बरता की लोगों ने सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना की और इंसाफ की आवाज बुलंद की. जब मामला ज्यादा ही तूल पकड़ गया तो 5 पुलिस वाले सस्पैंड कर दिए गए. वजह, बच्ची जब गायब हुई थी तो इन्होंने रिपोर्ट नहीं लिखी थी. पीडि़त परिवार ने जब प्रदर्शन किया, तब पुलिस जागी और 2 लोगों की गिरफ्तारी की गई.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट से मामले ने तूल पकड़ा. उन्होंने लिखा कि बच्ची की भयावह हत्या से वे सदमे में हैं. कोई इनसान एक बच्ची से ऐसी बर्बरता कैसे कर सकता है. उत्तर प्रदेश पुलिस को हत्यारों को सजा दिलाने के लिए तेजी से कार्यवाही करनी चाहिए. वहीं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि इस घटना ने उन्हें हिला कर रख दिया है.

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बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा कि कानून का राज कायम करने के लिए प्रदेश सरकार को तत्काल कार्यवाही करनी चाहिए. वहीं केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि इस तरह की घटनाएं इनसानियत को कंपा देती हैं.
सोशल मीडिया भी अछूता नहीं रहा
क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने ट्वीट किया कि टप्पल में सब से भयानक तरीके से ढाई साल की बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या की खबर से बेहद परेशान हूं.
फिल्म हीरोइन सोनम कपूर ने ट्वीट किया कि इस मुद्दे का इस्तेमाल निजी स्वार्थ के लिए न करें. छोटी सी बच्ची की मौत आप के नफरत फैलाने की वजह नहीं है.
ट्विंकल खन्ना ने लिखा है कि बच्ची की भयानक हत्या के बारे में सुन कर दिल दहल गया. अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्यवाही के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से अनुरोध किया है. वहीं रवीना टंडन ने लिखा है कि यह बर्बर घटना है. कानून को तेजी से काम करना चाहिए.
अभिषेक बच्चन ने ट्वीट किया कि बच्ची के बारे में सुन कर गुस्सा आ गया. कोई ऐसा काम करने की सोच भी कैसे सकता है. यह एक घृणात्मक और गुस्सा पैदा करने वाली घटना है और वे निशब्द हैं.
सनी लियोनी ने लिखा कि वे इस घटना से बेहद दुखी हैं. वहीं आयुष्मान खुराना ने ट्वीट किया कि यह घटना अमानवीय है.
सिद्धार्थ मल्होत्रा ने लिखा कि इस खबर से मैं बेहद परेशान हूं.
फिल्म अभिनेता अर्जुन कपूर बच्ची की हत्या मानवता के लिए एक शर्म की बात है.
न आंखें गायब थीं और न एसिड अटैक : एसएसपी
टप्पल में ढाई साल की बच्ची की हत्या को ले कर एसएसपी आकाश कुलहरि ने सोशल मीडिया पर अफवाह न फैलाने की अपील की है. उन्होंने बताया कि बच्ची पर न एसिड अटैक हुआ है और न उस की आंखें गायब थीं. इस तरह की बातें सोशल मीडिया पर की जा रही हैं, जो पूरी तरह गलत हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं पाया गया है. रेप की भी पुष्टि नहीं हुई है. हालांकि जांच के लिए स्लाइड आगरा भेजी गई है, जिस की रिपोर्ट से स्थिति साफ हो पाएगी. शव 3 दिन पुराना था. काफी हिस्सा गल चुका था. कीड़े भी पड़ गए थे. आंख के नीचे चोट के निशान थे, जबकि आंखें ठीक थीं.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो यही कहती है
शव क्षतविक्षत हालत में था, जिसे कुत्ते खींच रहे थे. डाक्टर उसे जहां से भी पकडऩे की कोशिश कर रहे थे, वह अलग हो रहा था.
हत्या 3-4 दिनों पहले होने की वजह से शव में कीड़े पड़ चुके थे.
बालिका की पीठ पर कटे के निशान थे. एक पैर तोड़ दिया गया था.
बालिका का दायां हाथ गायब था.
बालिका के बाल जलाए गए थे. ऐसा लग रहा था कि शव पर एसिड डाला गया है, लेकिन इस की पुष्टि नहीं हुई.
आंख के नीचे सौफ्ट टिश्यू क्षतिग्रस्त पाए गए.

कोर्ट के इस फैसले पर पति मुश्किल में, कोर्ट ने मानी महिला की बात…

7 मई, 2006 को एक महिला की शादी केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में तैनात एक इंस्पेक्टर से हुई. किसी कारणवश यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और 15 अक्तूबर, 2006 को ही दोनों अलग हो गए.
गुजाराभत्ते को ले कर मामला अदालत पहुंचा तो कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी सैलरी का 30% हिस्सा पत्नी को दे. पति इस आदेश से संतुष्ट नहीं था. उस ने ट्रायल कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने इसे घटा कर 15% कर दिया. महिला ने तब इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी.

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कहा,”पति की कुल तनख्वाह का 30% हिस्सा पत्नी को गुजाराभत्ते के रूप में दिया जाए. अदालत ने कहा कि कमाई के बंटवारे का फार्मूला निश्चित है. इस के तहत यह नियम है कि अगर एक आमदनी पर कोई और निर्भर न हो तो पति की कुल सैलरी का 30% हिस्सा पत्नी को मिलेगा.

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दरअसल, देश में बढते तलाक के मामले को ले कर अदालत सख्त रूप अपनाती है. अदालतें चाहती हैं कि पतिपत्नी में सुलह हो जाए और वे फिर से साथ रहने लगें.
पर जब इसमें कोई रास्ता नजर नहीं आता तो ही सख्त नियमकानून के तहत तलाक मंजूर करती हैं.

शादी को खिलौना समझने वाले पतियों को अब होशियार हो जाना चाहिए. आमतौर पर जब शादी टूटती है तो अधिकतर पति यही सोचते हैं कि तलाक ले कर वे अपनी अलग दुनिया बसा लेंगे.

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अदालती फैसले के बाद अब यह पति पूरी जिंदगी अपनी सैलरी से 30% हिस्सा तलाकशुदा पत्नी को देता रहेगा और शायद पछताता भी रहेगा.

Edited by Neelesh Singh Sisodia

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