Hindi Short Story: जात – एक पेंटर का दर्द

Hindi Short Story: गांव में एक शानदार मंदिर बनाया गया. मंदिर समिति ने एक बैठक कर के मंदिर में रंगरोगन और चित्र सज्जा के लिए एक अच्छे पेंटर को बुलाना तय किया. सब ने शहर के नामचीन पेंटर को बुला कर काम करने की सहमति दी.दूसरे दिन मंदिर समिति द्वारा चुने गए 2 लोग शहर के नामचीन पेंटर की दुकान पर पहुंचे, जिस ने कई मंदिरों और दूसरी जगहों को अपनी कला से निखारा था.

मंदिर समिति के लोगों ने उस पेंटर को बताया कि मंदिर में कौनकौन सी मूर्तियां लगेंगी और उन देवीदेवताओं की लीलाओं से संबंधित चित्र बनाने हैं और रंगरोगन करना है.उस पेंटर ने हामी भरी, तो मंदिर समिति के सदस्यों ने उसे 2,000 रुपए एडवांस दे दिए.दूसरे दिन वह पेंटर अपने रंगों व ब्रश के अलावा दूसरे तामझाम के साथ गांव पहुंच गया.

मंदिर में सामान रख कर वह एक दीवार को चित्रकारी के लिए तैयार कर ही रहा था कि मंदिर समिति का एक सदस्य वहां आया और चित्रकार से बोला, ‘‘पेंटर साहब, बापू साहब ने कहा है कि अभी कुछ दिन काम नहीं करना है, इसलिए आप अभी जाओ. काम कराना होगा तो बुला लेंगे.’’वह पेंटर अपना काम रोक कर सामान को समेटते हुए वापस शहर अपनी दुकान पर लौट आया.

4-5 दिन बाद गांव के कुछ खास लोग उस की दुकान पर पहुंचे और उन में से एक बोला, ‘‘पेंटर साहब, अभी काम बंद रखना है, इसलिए मंदिर की तरफ से जो पेशगी दी थी, वह वापस दे दो.’’पेंटर ने उन्हें वह राशि लौटा दी. सब चले गए. दूसरे दिन शहर में मंदिर समिति का एक सदस्य दिखाई दिया,

तो उस पेंटर ने इज्जत के साथ बुला कर उस से काम न कराने की वजह जाननी चाही, तो उस सदस्य ने समिति में हुई चर्चा बताते हुए कहा, ‘‘आप छोटी जाति के हो और मंदिर में उन का घुसना मना है, इसलिए आप को मना किया व दूसरे पेंटर को काम दे दिया.’’यह सुन कर वह पेंटर बोला,

‘‘पर, मैं न तो शराब पीता हूं, न मांस खाता हूं और न ही बीड़ीसिगरेट पीता हूं… मैं तो दोनों समय मंदिर जाता हूं.’’इस पर वह आदमी बोला, ‘‘वह सब तो ठीक है और बहुत सारे मंदिरों में आप ने बहुत अच्छा काम भी किया है, पर हमारे यहां बापू साहब ने मना किया, तो किस की हिम्मत जो आप के लिए बोले.’’ Hindi Short Story

Hindi Funny Story: पटनिया एडवैंचर, कुसूरवार कौन

Hindi Funny Story: पटनिया एडवैंचर आटोरिकशा ट्रिप बचपन से ही मुझे एडवैंचर ट्रिप पर जाने का शौक रहा है. जान हथेली पर रख कर स्टंट द्वारा लाइफ के साथ लाइफ से खेलने या मजा लेने की इच्छाएं मेरे खून, दिल, गुरदे, फेफड़े वगैरह में उफान मारा करती थीं, लेकिन कमजोर दिल और कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते अपने इस शौक को मैं डिस्कवरी चैनल, ऐक्शन हौलीवुड मूवी या रोहित शेट्टी की फिल्में देख कर पूरा कर लिया करता था.कहते हैं कि जिस चीज की तमन्ना शिद्दत से की जाए तो सारी कायनात उसे मिलाने की साजिश करने लगती है. कुछ इसी तरह की घटना मेरे साथ भी हुई.

कुदरत ने मेरी सुन ली और मुझे भी कम खर्च में नैचुरल एडवैंचर जर्नी का सुनहरा मौका मिल ही गया.पहली बार बिहार की राजधानी पटना जाना हुआ. फिर क्या था, साधारण टिकट ले कर रेलवे के साधारण डब्बे में सेंध लगा कर घुस गया.

सेंध लगाना मजबूरी थी, क्योंकि 103 सीट वाली अनारक्षित हर बोगी में तकरीबन 300 पैसेंजर भेड़बकरियों की तरह सीट, लगेज सीट, फर्श, टौयलैट और गेट पर बैठेखड़े, लटके या फिर टिके हुए थे.  मैं भी इमर्जैंसी विंडो के सहारे किसी तरह डब्बे में घुस कर अपने आयतन के अनुसार खड़ा रहने की जगह पर कब्जा कर बैठा. स्टेशनों पर चढ़नेउतरने वाले मुसाफिरों की धक्कामुक्की और गैरकानूनी वैंडरों की ठेलमठेल के बीच खुद को बैलेंस करते हुए 6 घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद मैं आखिरकार पटना जंक्शन पहुंच ही गया.

इस के बाद मैं पटना जंक्शन से पटना सिटी के लिए आटोरिकशा की तलाश में बाहर निकला.पटना सिटी के लिए बड़ी आसानी आटोरिकशा मिल गया. ड्राइवर ने उस के पीछे वाली चौड़ी सीट पर 3 लोगों को बैठाया, जबकि आगे की ड्राइवर सीट वाली कम जगह पर अपने अलावा 3 दूसरे पैसेंजर को बड़ी ही कुशलता से एडजस्ट कर लिया.कमोबेश सभी आटोरिकशा ड्राइवर तीनों पैसेंजर के साथ खुद को सैट कर  टेकऔफ करने के हालात में नजर आ रहे थे.

कुछ ड्राइवर ड्राइविंग सीट पर बीच में बैठ कर तो कुछ साइड में शिफ्ट हो कर बैठे थे. समझ लो कि अपनी तशरीफ को 45 डिगरी के कोण पर सैट कर के आटोरिकशा हुड़हुड़ाने को तैयार था.ड्राइवर समेत कुल 4 सीट वाले आटोरिकशा में 7 लोगों के सफर करने का हुनर देख कर मुझे समझते देर न लगी कि पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर बेहतरीन मैनेजर होते हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस तरह का रोमांचक सीन आल इंडिया लैवल पर सिर्फ और सिर्फ पटना की सड़कों पर ही देखा जा सकता है.

पटना की सड़कों पर दोपहिया और चारपहिया के बीच तिपहिया की धूम के आगे रितिक रौशन और उदय चोपड़ा की ‘धूम’ भी फेल है.पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर समय का पक्का होता है. बसस्टैंड से पैसेंजर को बैठाने के चक्कर में ड्राइवर ने भले ही जितनी देरी की हो, पर पैसेंजर सीट फुल होने के बाद वह बाएंदाएं, राइट साइड, रौंग साइड, आटोरिकशा की मैक्सिमम स्पीड और तेज शोर के साथ राकेट की रफ्तार से मंजिल की ओर कूच कर गया.

भले ही इन लोगों के चलते सड़क पर जाम लग जाए, पर लाइन में रह कर समय बरबाद करने मे ये आटोरिकशा वाले यकीन नहीं रखते और अमिताभ बच्चन की तरह अपनी लाइन खुद तैयार कर लेते हैं.शायद आगे सड़क पर जाम था या पेपर चैकिंग मुहिम चल रही थी, पता नहीं, पर इस बात का ड्राइवर को जैसे ही अंदाजा हुआ, फिर क्या था… उस ने हम सब को पटना की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी गलियों में गोलगोल घुमाया, जिन गलियों को ढूंढ़ पाना कोलंबस के वंशज के वश से बाहर था. मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर आविष्कारक या खोजी सोच के होते हैं.

हम राकेट की रफ्तार से सफर का मजा ले ही रहे थे कि फ्लाईओवर पर पीछे से हुड़हुड़ाता हुआ एक आटोरिकशा काफी तेजी से हमारे आगे निकल गया. शायद सवारियों से ज्यादा मंजिल तक पहुंचने की जल्दी ड्राइवर को थी. इसी मकसद को पूरा करने के लिए वह तीखे मोड़ पर टर्न लेने के दौरान तेज रफ्तार से बिना ब्रेक लिए पलटीमार सीन का लाइव प्रसारण कर बैठा.हमारे खुद के आटोरिकशा की बेहिसाब स्पीड और रेस में आगे निकल रहे दूसरे आटोरिकशा का हश्र देख कर मेरे कलेजे के अंदर डीजे बजने लगा. समझते देर न लगी कि पटनिया सड़कों पर ड्राइवर के रूप में यमराज के दूत भी मौजूद हैं, जो अपनी हवाहवाई स्पीड और रेस से सवारियों को परिवार या परिचित तक पहुंचाने के साथसाथ अस्पताल से ऊपर वाले के दर्शन तक कराने में भी मास्टर होते हैं.

ऐसा नहीं है कि बिना सैंसर बोर्ड वाले वाहियात भोजपुरी गीत इंडस्ट्री की तरह पटनिया परिवहन बिना ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम वाली है.

सौ से सवा सौ मीटर पर यातायात पुलिस वाले मौजूद रहते हैं. ये पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर की औकात से ज्यादा सवारी ढोने और जिगजैग ड्राइविंग जैसे साहसिक कारनामे के दौरान धृतराष्ट्र मोड में, जबकि हैलमैट, सीट बैल्ट, कागजात वगैरह चैक करने के दौरान संजय मोड में अपनी जिम्मेदारी पूरी करते नजर आते हैं.बातोंबातों में एक बात बताना भूल ही गया कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर किराया मीटर या दूरी के बजाय पैसेंजर की मजबूरी के मुताबिक तय कर लेते हैं.

घटतेबढ़ते पैट्रोल के कीमत की तरह समय, स्टैंड पर आटोरिकशा की तादाद और मुसाफिरों के मंजिल तक पहुंचने की जरूरत के हिसाब से ड्राइवर को किराया तय करते देख और सफर के दौरान ब्लूटूथ स्पीकर से सवारियों को भोंड़े भोजपुरी गीत सुनवाने की इन की आदत से मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर कुशल अर्थशास्त्री और संगीत प्रेमी भी हैं.

अगर आप भी रोहित शेट्टी के प्रोग्राम ‘खतरों के खिलाड़ी’ में नहीं जा सके हों और महंगाई के आलम में जान हथेली पर वाले एडवैंचर ट्रिप के शौक को पूरा करने से चूक गए हैं, तो महज 10 से 20 रुपए में पटनिया टैंपू ट्रैवल एडवैंचर ट्रिप का मजा किसी भी सीजन में ले सकते हैं. मेरी गारंटी है कि इस शानदार ट्रिप में आप को हर पल यादगार रोमांच हासिल होगा. Hindi Funny Story

Bollywood Gossip: जया बच्चन को आया ‘निरहुआ’ पर गुस्सा, कर दी डंडे से पिटाई

Bollywood Gossip: बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है. अमिताभ बच्चन ने ना सिर्फ हिंदी सिनेमा बल्कि साउथ और भोजपुरी फिल्मों में भी अपनी एक्टिंग का जादू दिखाया है. 55 साल से भी ज्यादा का फिल्मी करियर तय कर आज अमिताभ बच्चन उस मुकाम पर हैं जहां पहुंचना हर किसी का सपना होता है. वहीं उनकी पत्नी और जानी-मानी एक्ट्रेस जया बच्चन अपने गुस्सैल स्वभाव के लिए अक्सर चर्चा में रहती हैं.

जया बच्चन अपने बेबाक और गुस्सैल स्वभाव के लिए जानी जाती हैं. उन्हें ना तो कैमरे की परवाह होती है और ना ही माहौल की, अगर उन्हें किसी पर नाराजगी जतानी हो तो वे तुरंत ही अपना गुस्सा दिखा देती हैं. यही वजह है कि उनकी झल्लाहट वाले वीडियो अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल हो जाते हैं, जिनमें वे किसी न किसी को डांटते हुए नजर आती हैं.

अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने भोजपुरी फिल्म ‘गंगा देवी’ में दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के साथ काम किया था. यह फिल्म साल 2013 में रिलीज हुई थी. इसी के चलते भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ का एक इंटरव्यू सामने आया है, जिसमें उन्होंने जया बच्चन से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया. निरहुआ ने बताया कि साल 2013 में रिलीज हुई फिल्म ‘गंगा देवी’ की शूटिंग के दौरान एक सीन में उन्हें अपनी पत्नी को डांटकर थप्पड़ मारना था. इसके बाद जया बच्चन, जो फिल्म में उनकी मां बनी थीं, को गुस्सा दिखाते हुए उन्हें डंडे से मारना था.

निरहुआ ने बताया, “जया जी ने उस सीन में मुझे सचमुच डंडे से पीट दिया और वो भी पूरे जोर से. उन्होंने मुझे दो-तीन बार मारा, क्योंकि उनका स्वभाव ही थोड़ा गुस्सैल है.” हालांकि निरहुआ ने इसे बुरा मानने के बजाय बड़े पौजिटिव अंदाज में लिया. उन्होंने हंसते हुए कहा, “मैंने इसे प्रसाद समझा. आखिर कितने लोगों को ऐसा मौका मिलता है कि वे अमिताभ बच्चन और जया बच्चन जैसे दिग्गज सितारों के साथ स्क्रीन शेयर कर पाएं?”

आपको बता दें कि जया बच्चन जानबूझ कर हर किसी पर गुस्सा नहीं करतीं बल्कि उनको एक बिमारी है जिसका नाम है क्लौस्ट्रफ़ोबिक. जब उनके आस-पास बहुत सारे लोग होते हैं तो उन्हें बहुत घुटन महसूस होती है जिस वजह से बिना कुछ सोचेसमझे उनका गुस्सा फूट पड़ता है. Bollywood Gossip

Hindi Story: फंसे ऐश करने में – क्या प्रकाश और सुरेंद्र की लालसा हो पाई पूरी

Hindi Story: सुरेंद्र पहले ऐसा नहीं था. वह अपने परिवार में मस्त रहता था, पर काम करते उस के दोस्त प्रकाश ने उस की सोच बदल दी. वे दोनों सैंट्रल रेलवे मुंबई के तकनीकी विभाग में थे और बहुमंजिला इमारत में अपने फ्लैट में रहते थे.

सुरेंद्र का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था, जबकि प्रकाश का पहली मंजिल पर. सुरेंद्र तकरीबन 54 साल का था और प्रकाश भी उसी का हमउम्र था. दोनों के पत्नी व बच्चे उन के साथ ही रहते थे.एक बार उन दोनों के परिवार वाले त्योहार में शामिल होने के लिए किसी रिश्तेदारी में चले गए.

शाम को दफ्तर से लौटने पर दोनों बैठ कर जाम चढ़ाते, फिर घूमने निकल जाते. खापी कर दोनों देर रात को लौटते.  बच्चे बड़े हो गए थे. उन की पढ़ाई और कैरियर बनाने की चिंता सताने लगती. बड़ी होती बेटियों की शादी की चिंता से छुटकारा पाने के लिए दोनों बोतल खोल कर बैठ जाते. ह्विस्की के रंगीन नशे में आसपास घूमती खूबसूरत लड़कियों को पाने की लालसा उन की बातचीत का मुद्दा बनने लगीं.

बुढ़ाती पत्नियां पुरानी लगने लगीं. वे दोनों किसी जवान लड़की के आगोश में खोने के सपने देखने लगे. प्रकाश ने मौजमस्ती के लिए सुरेंद्र को राजी किया और एक कालगर्ल को ले आया. शराब और शबाब के मेल से दोनों रातें रंगीन करते रहे. बीवीबच्चों के लौट आने पर ही यह सिलसिला बंद हुआ.

दिसंबर का महीना था. मौसम खुशगवार था. प्रकाश अपने परिवार के साथ कहीं बाहर गया था. सुरेंद्र के परिवार वाले भी मुंबई में ही एक रिश्तेदारी में गए थे और उन सब का रात को वहीं रुकने का प्रोग्राम था.दफ्तर से लौटते समय रास्ते में सुरेंद्र को जूली मिल गई.

जूली को वह और प्रकाश 2-3 बार अपने फ्लैट पर ला चुके थे.जूली 35 साल के आसपास की अच्छी कदकाठी की खूबसूरत औरत थी, जो चोरीछिपे कालगर्ल का धंधा कर के चार पैसे कमा लेती थी. लटके?ाटके दिखा कर वह अपने कुछ चुने हुए ग्राहकों को संतुष्ट करने की कला बखूबी जानती थी, इसलिए उस की मांग बनी हुई थी.5 सौ रुपए और 2 बीयर की बोतलों पर सौदा पक्का हुआ.

बृहस्पतिवार का दिन था.रात को तकरीबन 9 बजे अपने वादे के मुताबिक जूली आ गई और दोनों खानेपीने और रासरंग में मस्त हो गए.रात को 2 बजे सुरेंद्र के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. पत्नी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं दरवाजे पर खड़ीखड़ी कालबेल बजा रही हूं और तुम घोड़े बेच कर सो रहे हो क्या? जल्दी से दरवाजा खोलो.’यह सुन कर सुरेंद्र के बदन में डर की एक ठंडी लहर घूम गई.

पत्नी और बेटी ने अगर जूली को देख लिया तो…? पत्नी तो हंगामा खड़ा कर देगी. बेटी को तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. अड़ोसपड़ोस में जो बदनामी होगी, सो अलग.सुरेंद्र ने जूली को तुरंत पीछे बालकनी से नीचे कूद जाने को कहा.‘‘कैसे?’’ जूली घबरा कर बोली.सुरेंद्र ने डबलबैड की बैडशीट उठा कर बालकनी की रेलिंग से बांध कर लटका दी, पर वह छोटी पड़ रही थी.

उस ने पत्नी की एक साड़ी निकाल कर बैडशीट के निचले सिरे से बांध कर साड़ी लटका दी. अब उस का सिरा नीचे जमीन तक पहुंच रहा था.‘‘इसी चादर और साड़ी की रस्सी को पकड़ कर तुम लटक जाओ और धीरेधीरे उतर जाओ,’’ सुरेंद्र ने जूली को सम?ाते हुए कहा.जूली ने वैसा ही किया.

रस्सी से लटक कर वह नीचे की ओर जाने लगी.यह देख कर सुरेंद्र ने राहत की सांस ली. बालकनी का दरवाजा बंद कर के उस ने कमरे का दरवाजा खोल दिया. पत्नी और बेटी ?ाल्लाती हुईं अंदर आ गईं. थोड़ी ही देर में वे तीनों सो गए.रात के 3 बजे दरवाजे पर जोरजोर से  खटखटाने की आवाज सुन कर ?ां?ालाते हुए सुरेंद्र ने दरवाजा खोला, तो देखा सामने पुलिस खड़ी थी.

डंडा हिलाते हुए इंस्पैक्टर ने बालकनी का दरवाजा खोला और वहां से नीचे ?ांकने लगा. सुरेंद्र की पत्नी और बेटी डर के मारे इंस्पैक्टर को हैरानी से देखने लगीं.‘‘गार्ड ने बताया कि आप का नाम सुरेंद्र है और आप इसी फ्लैट में रहते हैं?’’ इंस्पैक्टर ने सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा. ‘‘जी हां…’’ सुरेंद्र सकपकाते हुए बोला, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आधी रात को अचानक… आखिर बात क्या है?’’‘‘बात बहुत ही गंभीर है मिस्टर सुरेंद्र. हम आप को इसी समय हिरासत में ले रहे हैं.

’’‘लेकिन क्यों?’ सुरेंद्र की पत्नी और बेटी दोनों एकसाथ चिल्लाईं.बालकनी की रेलिंग से बंधी चादर व साड़ी को दिखाते हुए इंस्पैक्टर बोला, ‘‘नीचे एक औरत की लाश पाई गई है. वह इसी रस्सी के सहारे इस फ्लैट से भाग रही थी, मगर साड़ी उस का वजन न सह सकी और गांठ खुल गई, जिस से वह फर्श पर जा गिरी और सिर फट जाने से तुरंत मर गई.’’‘‘वह चोरी कर के भाग रही होगी,’’

पत्नी ने कहा.‘‘नहीं, उसे आप के पति ने आप के आने पर भगाया. वह चोर नहीं कालगर्ल थी. ‘‘मु?ो इस बिल्डिंग के गार्ड ने बताया कि आप रात को 2 बजे बाहर से आई हो. 2 बज कर, 15 मिनट पर गार्ड को किसी के गिरने व चीखने की आवाज सुनाई पड़ी. उस ने जा कर देखा और पुलिस को सूचित किया.’’रात के साढ़े 3 बजे सुरेंद्र को पुलिस गिरफ्तार कर के थाने ले गई और सुबह 10 बजे कोर्ट में पेश कर के रिमांड की मांग की. कोर्ट ने गैरइरादतन हत्या का आरोपी मानते हुए सुरेंद्र को 3 दिन की रिमांड पर पुलिस कस्टडी में दे दिया. Hindi Story

Hindi Kahani: इनाम – मोनू की कहानी

Hindi Kahani: मोनू की भाभी का पूरा बदन जैसे कच्चे दूध में केसर मिला कर बनाया गया था. चेहरा मानो ताजा मक्खन में हलका सा गुलाबी रंग डाल कर तैयार किया गया था. उन की आवाज भी मानो चाशनी में तर रहती थी.वे बिहार के एक बड़े जमींदार की बेटी थीं. उन की शादी भैया के फौज में चुने जाने से पहले ही हो गई थी.भैया के नौकरी पर जाने के बाद अम्मां और बस 2 जने ही परिवार में रह गए थे.

कभीकभी शादीशुदा बड़ी बहन भी आ जाती. भाभी के आ जाने से अब 3 जने हो गए थे. मोनू के पिताजी की मौत उस के पैदा होने के पहले ही एक कार हादसे में हो गई थी. उस के परिवार की गिनती इलाके के बड़े जमींदारों में होती थी. कोठिया के कुंवर साहब का नाम दूरदूर तक मशहूर था.पहले कुछ दिन मोनू भाभी से डरता था. तब वह छोटा भी था. डरता तो अब भी है, लेकिन अब डर इस बात का रहता है कि कहीं नाराज हो कर वे उस से बोलना ही बंद न कर दें.एक बार गरमी का मौसम था.

बगीचे में आम लदे हुए थे. भाभी ने कहा, ‘‘मोनू चलो बाग देख आएं. ?ोला ले चलो, आम भी ले आएंगे.’’मोनू ने कहा, ‘‘भाभी, थोड़ा रुको. मैं बगीचे से सभी को भगा दूं, तब आप को ले चलूंगा.’’थोड़ी देर बाद मोनू आया, तो बोला, ‘‘चलिए भाभी.’’भाभी ने पूछा, ‘‘कहां गए थे?’’मोनू बोला, ‘‘मैं सभी को बाग से भगा कर आया हूं.’’‘‘क्यों भगा दिया?’’ भाभी ने पूछा.‘‘भाभी,

आप नहीं जानतीं, किसी की नजर लग जाती तो…’’भाभी हंसने लगीं. अम्मां भी वहां आ गईं और पूछने लगीं, ‘‘क्या हुआ बहू?’’‘‘अम्मां, मोनू बगीचे में जा कर सभी को भगा आया है. कहता है कि आप नहीं जानतीं, किसी की नजर लग जाएगी.

’’यह सुन कर अम्मां भी हंसने लगीं और बोलीं, ‘‘तेरे पीछे पागल है बहू. इस की चले, तो किसी को देखने ही न दे.’’बगीचे में पहुंचे अभी थोड़ी ही देर हुई थी. मोनू आमों से ?ोला भर चुका था, तभी आंधी आ गई. मोनू बोला, ‘‘भाभी, पेड़ों के नीचे से इधर आ जाओ.’’भाभी बोलीं, ‘‘आंधी तो चली गई मोनू, शायद बवंडर था.’’मोनू की आंखें आंसुओं से भरी थीं.भाभी ने पूछा, ‘‘मिट्टी गिर गई है क्या आंख में?’’मोनू बोला, ‘‘आंखों में कुछ नहीं पड़ा है भाभी.’’‘‘तब रो क्यों रहे हो?’’‘‘आप के ऊपर कितनी धूलमिट्टी पड़ गई है.’’भाभी हंसने लगीं, ‘‘अभी चल कर नहा लूंगी.’’अम्मां पूछने लगीं, ‘‘चोट तो नहीं लगी बहू?’’भाभी बोलीं, ‘‘मां, मोनू रो रहा था. कहता है कि तुम्हारे ऊपर धूलमिट्टी पड़ गई है.’’

ऐसा सुन कर अम्मां भी हंसने लगीं.मई का महीना था. गरमी अपने शबाब पर थी. मोनू कहने लगा, ‘‘20 मई को मेरा रिजल्ट आएगा भाभी.’’भाभी बोलीं, ‘‘मोनू, अगर तू फर्स्ट डिविजन लाया, तो मैं तु?ो इनाम दूंगी.’’‘‘क्या दोगी भाभी?’’‘‘अभी नहीं बताऊंगी, लेकिन बहुत मजेदार तोहफा रहेगा.’’‘‘रुपयापैसा दोगी भाभी?’’ मोनू ने खुश होते हुए पूछा.

‘‘हम लोग कोई जुआरी तो हैं नहीं और न ही बनियामहाजन हैं.’’‘‘तब क्या दोगी भाभी?’’ उस ने चिरौरी की, ‘‘बता दो भाभी.’’मोनू के जिद करने पर भाभी बोलीं, ‘‘मैं तु?ो अपने पास सुलाऊंगी.’’‘‘सोता तो मैं आप के पास रोज ही हूं. जब पढ़ते हुए मु?ो नींद आ जाती है, तो आप के पास ही तो मैं सो जाता हूं. फिर आप के जगाने पर ही मैं अपने बिस्तर पर जाता हूं.’’भाभी हंसने लगीं, ‘‘अरे, वैसा नहीं, जैसा तेरे भैया के साथ सोती हूं, वैसा…’’मोनू की सम?ा में ज्यादा कुछ तो नहीं आया, लेकिन वह 20 मई का बेसब्री से इंतजार करने लग गया.20 मई आई, तो सुबहसवेरे मोनू को दहीभात खिला कर अम्मां ने शहर भेज दिया. वह अपने किसी दोस्त की मोटरसाइकिल से रिजल्ट देखने चला गया था.

भाभी को तो चैन ही नहीं पड़ रहा था. दोपहर के 12 बजे के बाद से ही भाभी 4-5 जगह फोन कर के मोनू का रोल नंबर लिखवा चुकी थीं. 3 बजे किसी ने फोन पर बताया कि मोनू फर्स्ट डिवीजन में पास हो गया है. उन की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए.मोनू रात के 9 बजे घर लौटा, तो हाथ में अखबार लिए भाभी के पास जा रहा था. अम्मां बोलीं, ‘‘पहले खाना खा ले, तब भाभी के पास जाना. पड़ोस में रात का कीर्तन शुरू हो गया होगा. मैं 2 घंटे बाद ही लौटूंगी.

वैसे, तेरा रिजल्ट तो बहू को पता है कि तू पास हो गया है. हो गया है न…?’’मोनू जल्दीजल्दी खाना खाने लगा, तो अम्मां बोलीं, ‘‘बेटा, दरवाजा बंद कर लेना. मैं जा रही हूं.’’आधा खाना खा कर मोनू ने हाथमुंह धोए और अखबार उठा कर भाभी के पास पहुंच गया. भाभी सो रही थीं. गरमी होने की वजह से उन्होंने ब्लाउज भी नहीं पहना हुआ था. आंचल भी बिस्तर पर गिर गया था.

मोनू उन्हें इस हालत में ठगा सा खड़ा देख रहा था. वह सोच ही रहा था कि वह देखता रहे या लौट जाए, तभी भाभी को शायद आहट लगी, उन्होंने आंखें खोलीं और पूछा, ‘‘अभी तक कहां था मोनू?’’‘‘मोटरसाइकिल वाले दोस्त ने बहुत देर कर दी भाभी.’’‘‘खाना खा लिया क्या तुम ने?’’‘‘हां भाभी. अम्मां बोल कर गई हैं कि 2 घंटे बाद लौटेंगी.’’भाभी ने कहा, ‘‘तुम्हारा रिजल्ट तो मु?ो दोपहर में ही पता चल गया था. अब जा कर सो जाओ. मु?ो नींद आ रही है.’’

‘‘मेरा इनाम भाभी?’’यह सुन कर भाभी हंसने लगीं, ‘‘अच्छा जा कर दरवाजा लगा आ.’’‘‘वह तो लगा दिया है भाभी.’’‘‘तु?ो गरमी नहीं लगती मोनू? अपने सब कपड़े निकाल दे.’’‘‘कच्छी रहने दूं भाभी?’’‘‘नहीं, सब निकाल दे. इतनी तो उमस है अभी, फिर पहन लेना.’’‘‘ठीक है.’’‘‘अब आ कर इधर लेट जा.’’16 साल का गोराचिट्टा सेहतमंद किशोर मोनू बगल में लेटा था. भाभी ने उस का चेहरा अपने हाथों में ले लिया और होंठों को चूमने लगीं, फिर उसे उठा कर अपने ऊपर ही लिटा लिया और बोलीं,

‘‘जैसा मैं ने किया है, वैसा ही तू भी कर मोनू.’’मोनू ने डरतेडरते उन के गालों को चूमा, फिर होंठों को मुंह में ले कर चूसने लगा. थोड़ी ही देर में वह अपनी मंजिल तक पहुंच गया.अलग होने के बाद भाभी देर तक मोनू को दुलारती रहीं. वे बोलीं, ‘‘अब कपडे़ पहन लो मोनू और जा कर सो जाओ.’’भैया की शादी हुए 7 साल हो रहे थे, लेकिन अभी तक कोई बच्चा नहीं था. अम्मां अकसर कहतीं, ‘‘इस बार दोनों जा कर अपनी जांच करा लो.’’भाभी हंसने लगतीं, ‘‘मु?ो क्या तकलीफ है अम्मां? उन से कह दो, वे अपनी जांच करा लें.’’अम्मां कहतीं कि तु?ो कोई फिक्र नहीं है बहू,

तो भाभी बहुत दुखी हो जातीं. वे बोलतीं, ‘‘बताओ, मैं क्या करूं अम्मां?’’20 मई के बाद से ही भाभी के चेहरे की रौनक दोगुनी हो गई थी. वे कहतीं, ‘‘मोनू, अब मैं तु?ो पढ़ा नहीं पाऊंगी. तेरे लिए कोई मास्टर लगा दूंगी. अब मेरे पास सोने भी न आया करो. यहां अब तुम्हारा लड़का सोएगा.’’मोनू पूछता, ‘‘कहां है मेरा लड़का भाभी?’’ तो वे हंसने लगतीं और कहतीं,

‘‘जब आएगा, तब देख लेना.’’एक शाम को भैया आ गए. वे खुश होते हुए भाभी से बोले, ‘‘अब मोनू को मोटरसाइकिल दिला देते हैं, वह तुम्हें भी घुमा लाया करेगा.’’भाभी नाराज होने लगीं, ‘‘अभी रहने दो. अभी मोनू को बाइक दे कर आप उसे मौत के मुंह में ढकेल देंगे. जब इंटर पास करेगा, तब दिला देना मोटरसाइकिल.’’भैया ने पूछा, ‘‘तुम मोनू को पढ़ाती कैसे थीं? साइंस तो तुम ने पढ़ी ही नहीं है.’’भाभी बोलीं, ‘‘उस की किताबें पढ़ लेती थी. थोड़े नोट्स भी मिल गए थे.’’भैया हंसने लगे, ‘‘मैं तो सम?ाता था कि यह साल भी उस का बरबाद ही होगा, लेकिन तुम ने तो कमाल ही कर दिया.’’वे बोलीं,

‘‘अब नहीं पढ़ा पाऊंगी, कोई मास्टर लगा दूंगी.’’भैया को वापस गए 3 महीने से ज्यादा हो रहा था. मोनू कभी हाथ जोड़ कर चिरौरी कर के, पैर पकड़ कर या भूख हड़ताल कर के 3-4 बार ऐसा ही इनाम ले चुका था. एक दिन आंगन में लगे हैंडपंप के पास वे उलटी कर रही थीं. मोनू हैरान सा खड़ा उन्हें देख रहा था. पूछने लगा, ‘‘उलटी की दवा ले आऊं भाभी?’’वे हंसते हुए बोलीं, ‘‘सब शरारत तो तुम्हारी ही है मोनू. यह इनाम भी तो तुम ने ही दिया है.’’अम्मां भी वहां आ गईं. बहू को उलटी करते देखा, तो अनुभवी आंखें खुशी से चमक उठीं.अम्मां ने भैया को भी सूचना दे देने को कहा,

तो भाभी मुश्किल से ही तैयार हुई थीं.अम्मां ने कहा, ‘‘बहू, अब कामधाम रहने दो. कोई तकलीफ हो, तो मोनू को भेज कर दवा मंगा लेना.’’मोनू की सम?ा में यह बदलाव नहीं आ रहा था. भाभी से पूछा, तो वे बोलीं, ‘‘कुछ दिन बाद तुम खुद जान जाओगे.’’कसबे की डाक्टरनी भी आ कर बता गईं, ‘‘अम्मां, अब बहू को दिन में 4-5 बार हलका भोजन दिया करो. फल तो जितना मन हो खाए, दूधदही भी रोज देती रहना. कोई तकलीफ हो, तो मु?ो घर पर ही बुला लेना. बहू कोई दवा अपनेआप न खाए.’’एक दिन गांव का ही एक आदमी नगाड़ा लिए बधाई बजाने आ गया. तमाम औरतेंबच्चे उसे घेरे खड़े थे.मोनू ने पूछा, ‘‘भाभी, यह क्यों बजा रहा है?’’भाभी ने कहा, ‘‘शायद, अम्मां ने बुलाया होगा.’’‘‘क्यों?’’ मोनू ने पूछा.‘‘अरे, तुम्हारे लड़के का स्वागत नहीं करेंगी…’’ भाभी ने हंसते हुए बताया. Hindi Kahani

Story In Hindi: गुच्चूपानी – राहुल क्यों मायूस हो गया?

Story In Hindi: एकसाथ 3 दिन की छुट्टी देखते हुए पापा ने मसूरी घूमने का प्रोग्राम जब राहुल को बताया तो वह फूला न समाया. पहाड़ों की रानी मसूरी में चारों तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़, उन पर बने छोटेछोटे घर, चारों ओर फैली हरियाली की कल्पना से ही उस का मन रोमांचित हो उठा.

राहुल की बहन कमला भी पापा द्वारा बनाए गए प्रोग्राम से बहुत खुश थी. पापा की हिदायत थी कि वे इन 3 दिन का भरपूर इस्तेमाल कर ऐजौंय करेंगे. एक मिनट भी बेकार न जाने देंगे, जितनी ज्यादा जगह घूम सकेंगे, घूमेंगे.

निश्चित समय पर तैयार हो कर वे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. सुबह पौने 7 बजे शताब्दी ऐक्सप्रैस में बैठे तो राहुल काफी रोमांचित महसूस कर रहा था, उस ने स्मार्टफोन उठाया और साथ की सीट पर बैठी कमला के साथ सैल्फी क्लिक की.

तभी पापा ने बताया कि वे रास्ते में हरिद्वार में उतरेंगे और वहां घूमते हुए रात को देहरादून पहुंच जाएंगे. फिर वहां रात में औफिस के गैस्ट हाउस में रुकेंगे और सुबह मसूरी के लिए रवाना होंगे.

यह सुन कर राहुल मायूस हो गया. हरिद्वार का नाम सुनते ही जैसे उसे सांप सूंघ गया. उसे लग रहा था सारा ट्रिप अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाएगा. यह सुनते ही वह कमला से बोला, ‘‘शिट् यार, लगता है हम घूमने नहीं तीर्थयात्रा करने जा रहे हैं.’’

‘‘हां, पापा आप भी न….’’ कमला ने कुछ कहना चाहा लेकिन कुछ सोच कर रुक गई.

लगभग 12 बजे हरिद्वार पहुंच कर उन्होंने टैक्सी ली, जो उन्हें 2-3 जगह घुमाती हुई शाम को गंगा घाट उतारती और फिर वहां से देहरादून उन के गैस्ट हाउस छोड़ देती.

राहुल ट्रिप के मजे में खलल से आहत चुपचाप चला जा रहा था. शाम को हरिद्वार में गंगा घाट पर घूमते हुए प्राकृतिक आनंद आया, लेकिन गंगा के घाट असल में उसे लूटखसोट के अड्डे ज्यादा लगे. जगहजगह धर्म व गंगा के प्रति श्रद्धा के नाम पर पैसा ऐंठा जा रहा था. उसे तब और अचंभा हुआ जब निशुल्क जूतेचप्पल रखने का बोर्ड लगाए उस दुकानदार ने उन से जूते रखने के 100 रुपए ऐंठ लिए. इस सब से उस के मन का रोमांच काफूर हो गया. फिर भी वह चुपचाप चला जा रहा था.

रात को वे टैक्सी से देहरादून पहुंचे और गैस्टहाउस में ठहरे. पापा ने गैस्टहाउस के रसोइए के जरिए मसूरी के लिए टैक्सी बुक करवा ली. टैक्सी सुबह 8 बजे आनी थी. अत: वे जल्दी खाना खा कर सो गए ताकि सुबह समय से उठ कर तैयार हो पाएं.

वे सफर के कारण थके हुए थे, सो जल्दी ही गहरी नींद में सो गए और सुबह गैस्टहाउस के रसोइए के जगाने पर ही जगे. तैयार हो कर अभी वे खाना खा ही रहे थे कि टैक्सी आ गई. राहुल अब भी चुप था. उसे यात्रा में कुछ रोमांच नजर नहीं आ रहा था.

टैक्सी में बैठते ही पापा ने स्वभावानुसार ड्राइवर को हिदायत दी, ‘‘भई, हमें कम समय में ज्यादा जगह घूमना है इसलिए भले ही दोचार सौ रुपए फालतू ले लेना, लेकिन देहरादून में भी हर जगह घुमाते हुए ले चलना.’’

ज्यादा पैसे मिलने की बात सुन ड्राइवर खुश हुआ और बोला, ‘‘सर, उत्तराखंड में तो सारा का सारा प्राकृतिक सौंदर्य भरा पड़ा है, आप जहां कहें मैं वहां घुमा दूं, लेकिन आप को दोपहर तक मसूरी पहुंचना है इसलिए एकाध जगह ही घुमा सकता हूं. आप ही बताइए कहां जाना चाहेंगे?’’

पापा ने मम्मी से सलाह की और बोले, ‘‘ऐसा करो, टपकेश्वर मंदिर ले चलो. फिर वहां से साईंबाबा मंदिर होते हुए मसूरी कूच कर लेना.’’

‘‘क्या पापा, आप भी न. हम से भी पूछ लेते, सिर्फ मम्मी से सलाह कर ली… और हम क्या तीर्थयात्रा पर हैं, जो मंदिर घुमाएंगे,’’ कमला बोली.

तभी नाराज होता हुआ राहुल बोल पड़ा, ‘‘क्या करते हैं आप पापा, सारे ट्रिप की वाट लगा दी. बेकार हो गया हमारा आना. अभी ड्राइवर अंकल ने बताया कि उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है और एक आप हैं कि देखने को सूझे तो सिर्फ मंदिर, जहां सिर्फ ठगे जाते हैं. आप की सोच दकियानूसी ही रहेगी.’’

पापा कुछ कहते इस से पहले ही ड्राइवर बोल पड़ा, ‘‘आप का बेटा ठीक कह रहा है सर, घूमनेफिरने आने वाले ज्यादातर लोग इसी तरह मंदिर आदि देख कर यात्रा की इतिश्री कर लेते हैं और असली यात्रा के रोमांच से वंचित रह जाते हैं. तिस पर अपनी सोच भी बच्चों पर थोपना सही नहीं. तभी तो आज की किशोर पीढ़ी उग्र स्वभाव की होती जा रही है. हमें इन की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए.

‘‘यहां प्राकृतिक नजारों की कमी नहीं. आप कहें तो आप को ऐसी जगह ले चलता हूं जहां के प्राकृतिक नजारे देख आप रोमांचित हुए बिना नहीं रहेंगे. इस समय हम देहरादून के सैंटर में हैं. यहां से महज 8 किलोमीटर दूर अनार वाला गांव के पास स्थित एक पर्यटन स्थल है, ‘गुच्चूपानी,’ जिसे रौबर्स केव यानी डाकुओं की गुफा भी कहा जाता है.

‘‘गुच्चूपानी एक प्राकृतिक पिकनिक स्थल है जहां प्रकृति का अनूठा अनुपम सौंदर्य बिखरा पड़ा है. दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाडि़यों के मध्य गुफानुमा स्थल में बीचोंबीच बहता पानी यहां के सौंदर्य में चारचांद लगा देता है. दोनों पहाडि़यां जो मिलती नहीं, पर गुफा का रूप लेती प्रतीत होती हैं.

‘‘यहां पहुंच कर आत्मिक शांति मिलती है. प्रकृति की गोद में बसे गुच्चूपानी के लिए यह कहना गलत न होगा कि यह प्रेम, शांति और सौंदर्य का अद्भुत प्राकृतिक तोहफा है.

‘‘गुच्चूपानी यानी रौबर्स केव लगभग 600 मीटर लंबी है. इस के मध्य में पहुंच कर तब अद्भुत नजारे का दीदार होता है जब 10 मीटर ऊंचाई से गिरते झरने नजर आते हैं. यह मनमोहक नजारा है. इस के मध्य भाग में किले की दीवार का ढांचा भी है जो अब क्षतविक्षत हो चुका है.’’

‘‘गुच्चूपानी…’’ नाम से ही अचंभित हो राहुल एकदम रोमांचित होता हुआ बोला, ‘‘यह गुच्चूपानी क्या नाम हुआ?’’

तभी साथ बैठी कमला भी बोल पड़ी, ‘‘और ड्राइवर अंकल, इस का नाम रौबर्स केव क्यों पड़ा?’’

मुसकराते हुए ड्राइवर ने बताया, ‘‘दरअसल, गुच्चूपानी इस का लोकल नाम है. अंगरेजों के जमाने में इसे ‘डकैतों की गुफा’  के नाम से जाना जाता था. ऐसा माना जाता है कि उस समय डाकू डाका डालने के बाद छिपने के लिए इसी गुफा का इस्तेमाल करते थे. सो, अंगरेजों ने इस का नाम रौबर्स केव रख दिया.’’

‘‘तो क्या अब भी वहां डाकू रहते हैं. वहां जाने में कोई खतरा तो नहीं है?’’ कमला ने पूछा.

‘‘नहींनहीं, अब वहां ऐसी कोई बात नहीं बल्कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया गया है. अब इस का रखरखाव उत्तराखंड सरकार द्वारा किया जाता है,’’ ड्राइवर ने बताया, फिर वह हंसते हुए बोला, ‘‘हां, एक डर है, पैरों के नीचे बहती नदी का पानी. दरअसल, पिछले साल जनवरी में भारी बरसात के कारण अचानक इस नदी का जलस्तर बढ़ गया था, जिस से यहां अफरातफरी मच गई थी. यहां कई पर्यटक फंस गए थे, जिस से काफी शोरशराबा मचा.

‘‘फिर मौके पर पहुंची एनडीआरएफ की टीमों ने पर्यटकों को सकुशल बाहर निकाला था. इस में महिलाएं और बच्चे भी थे. इसलिए जरा संभल कर जाइएगा.’’

‘‘अंकल आप भी न, डराइए मत, बस पहुंचाइए, ऐसी अद्भुत प्राकृतिक जगह पर,’’ राहुल रोमांचित होता हुआ बोला.

‘‘पहुंचाइए नहीं, पहुंच गए बेटा,’’ कहते हुए ड्राइवर ने टैक्सी रोकी और इशारा कर बताया कि उस ओर जाएं. जाने से पहले अपने जूते उतार लें व यहां से किराए पर चप्पलें ले लें.’’

राहुल और कमला भागते हुए आगे बढ़े और वहां बैठे चप्पल वाले से किराए की चप्पलें लीं. इन चप्पलों को पहन कर वे पहुंच गए गुच्चूपानी के गेट पर. यहां 25 रुपए प्रति व्यक्ति टिकट था. पापा ने सब के टिकट लिए और सब ने पानी में जाने के लिए अपनीअपनी पैंट फोल्ड की व ऐंट्री ली.

चारों ओर फैले ऊंचे पहाड़ों के बीच बसा यह क्षेत्र अद्भुत सौंदर्य से भरा था. पानी में घुसते ही दिखने वाला वह 2 पहाडि़यों के बीच का गुफानुमा रास्ता और मध्य में बहती नदी के बीच चलना, जैसा ड्राइवर अंकल ने बताया था, उस से भी अधिक रोमांचित करने वाला था.

मम्मीपापा भी यह नजारा देख स्तब्ध रह गए थे. पहाड़ों के बीच बहते पानी में चलना उन्हें किसी हौरर फिल्म के रौंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य की भांति लगा, जैसे अभी वहां छिपे डाकू निकलेंगे और उन्हें लूट लेंगे.

अत्यंत रोमांचक इस मंजर ने उन्हें तब और रोमांचित कर दिया जब बिलकुल मध्य में पहुंचने पर ऊपर से गिरते झरने ने उन का स्वागत किया. राहुल तो पानी में ऐसे खेल रहा था मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. सामने खड़ी किले की क्षतविक्षत दीवार के अवशेष उन्हें काफी भा रहे थे. इस मनोरम दृश्य को देख किस का मन अभिभूत नहीं होगा.

इस पूरे नजारे की उन्होंने कई सैल्फी लीं. एकदूसरे के फोटो खींचे और वीडियो क्लिप भी बनाई. पानी में उठखेलियां करते जब वे बाहर आ रहे थे तो पापा भी कह उठे, ‘‘अमेजिंग राहुल, वाकई तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. हम तो सिर्फ मंदिर आदि देख कर ही लौट जाते. प्रकृति का असली आनंद व यात्रा की पूर्णता तो वाकई ऐसे नजारे देखने में है.’’

फिर बाहर आ कर उन्होंने ड्राइवर का भी धन्यवाद किया ऐसी अनूठी जगह का दीदार करवाने के लिए. साथ ही हिदायत दी कि मसूरी में भी धार्मिक स्थलों पर आस्था के नाम पर लूट का शिकार होने के बजाय ऐसे स्थान देखेंगे. इस पर जब राहुल ने ठहाका लगाया तो पापा बोले, ‘‘बेटा, हमें मसूरी के ऐसे अद्भुत स्थल ही देखने चाहिए. जल्दी चलो, कहीं समय की कमी के कारण कोई नजारा छूट न जाए.’’

अब टैक्सी मसूरी की ओर रवाना हो गई थी. टैक्सी की पिछली सीट पर बैठे राहुल और कमला रहरह कर गुच्चूपानी में ली गईं सैल्फी, फोटोज और वीडियोज में वहां के अद्भुत दृश्य देख कर रोमांचित हो रहे थे, इस आशा के साथ कि मसूरी यानी पहाड़ों की रानी में भी ऐसा ही रोमांच मिलेगा. Story In Hindi

Story In Hindi: खोखले चमत्कार – कैसे दूर हुआ दादी का अंधविश्वास

Story In Hindi: संजू की दादी का मन सुबह से ही उखड़ा हुआ था. कारण यह था कि जब वे मंदिर से पूजा कर के लौट रही थीं तो चौराहे पर उन का पैर एक बुझे हुए दीए पर पड़ गया था. पास ही फूल, चावल, काली दाल, काले तिल तथा सिंदूर बिखरा हुआ था. वे डर गईं और अपशकुन मनाती हुई अपने घर आ पहुंचीं .

घर पर संजू अकेला बैठा हुआ पढ़ रहा था. उस की मां को बाहर काम था. वे घर से जा चुकी थीं. पिताजी औफिस के काम से शहर से बाहर चले गए थे. उन्हें 2 दिन बाद लौटना था.

दादी के बड़बड़ाने से संजू चुप न रह सका. वह अपनी दादी से पूछ बैठा, ‘‘दादी, क्या बात हुई? क्यों सुबहसुबह परेशान हो रही हो?’’

अंधविश्वासी दादी ने सोचा, ‘संजू मुझे टोक रहा है.’ इसलिए वे उसे डांटती हुई फौरन बोलीं, ‘‘संजू, तू भी कैसी बातें करता है. बड़ा अपशकुन हो गया. किसी ने चौराहे पर टोनाटोटका कर रखा था. उसी में मेरा पैर पड़ गया. उस वक्त से मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

संजू बोला, ‘‘दादी, अगर ऐसा है तो मैं डाक्टर को बुला लाता हूं.’’  पर दादी अकड़ गईं और बोलीं, ‘‘तेरा भेजा तो नहीं फिर गया कहीं. ऐसे टोनेटोटके में डाक्टर को बुलाया जाता है या ओझा को. रहने दे, मैं अपनेआप संभाल लूंगी. वैसे भी आज सारा दिन बुरा निकलेगा.’’

संजू ने उन की बात पर कोई ध्यान न दिया और अपना होमवर्क करने लगा. संजू स्कूल चला गया तो दादी घर पर अकेली रह गईं. पर दादी का मन बेचैन था. उन्हें लगा कि कहीं किसी के साथ कोई अप्रिय घटना न घट जाए, क्योंकि जब से चौराहे में टोनेटोटके पर उन का पैर पड़ा था, वे अपशकुन की आशंका से कांप रही थीं. तभी कुरियर वाला आया और उन से हस्ताक्षर करवा उन्हें एक लिफाफा थमा कर चला गया. अब तो उन का दिल ही बैठ गया. लिफाफे में एक पत्र था जो अंगरेजी में था और अंगरेजी वे जानती नहीं थीं. उन्हें लगा जरूर इस में कोई बुरी खबर होगी.

इसी डर से उन्होंने वह पत्र किसी से नहीं पढ़वाया. दिन भर परेशान रहीं कि कहीं इस में कोई बुरी खबर न हो. शाम को जब संजू और उस की मां घर लौटे, तब दादी कांपते हाथों से संजू की मां जानकी को पत्र देती हुई बोलीं, ‘‘बहू, जरूर कोई बुरी खबर है. अपशकुन तो सुबह ही हो गया था. अब पढ़ो, यह पत्र कहां से आया है और इस में क्या लिखा है? जरूर कोई संकट आने वाला है. हाय, अब क्या होगा?’’

जानकी ने तार खोल कर पढ़ा लिखा था, ‘‘बधाई, संजय ने छात्रवृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है.’’

पढ़ कर जानकी खिलखिला उठीं और अपनी सास से बोलीं, ‘‘मांजी, आप बेकार घबरा रही थीं, खबर बुरी नहीं बल्कि अच्छी है. हमारे संजू को छात्रवृत्ति मिलेगी. उस ने जो परीक्षा दी थी, उत्तीर्ण कर ली.’’ तब दादी का चेहरा देखने लायक था. किंतु दादी अंधविश्वास पर टिकी रहीं. वे रोज मंदिर जाया करती थीं. एक रोज सुबहसुबह दादी मंदिर गईं. थाली में नारियल, केला और लड्डू ले गईं. थाली मूर्ति के सामने ही रख दी और आंखें बंद कर के मन ही मन जाप करने लगीं. इसी बीच वहीं पेड़ पर बैठा एक बंदर पेड़ से उतरा और चुपके से केला व लड्डू ले कर पेड़ पर चढ़ गया.

दादी ने जब आंखें खोलीं और थाली में से केला व लड्डू गायब पाया तो खुश हो कर अपनेआप से बोलीं, ‘‘प्रभु, चमत्कार हो गया. आज आप ने स्वयं ही भोजन ग्रहण कर लिया.’’ वे खुशीखुशी मंदिर से घर लौट आईं. घर पर जब उन्हें सब ने खुश देखा तो संजू कहने लगा, ‘‘दादी, आज तो लगता है कोई वरदान मिल गया?’’

दादी प्रसन्न थी, बोलीं, ‘‘और नहीं तो क्या?’’

फिर दादी ने सारा किस्सा कह सुनाया. संजू खिलखिला कर हंस पड़ा तथा यह कहता हुआ बाहर दौड़ गया, ‘‘इस महल्ले में चोरउचक्कों की भी कमी नहीं है. फिर पिछले कुछ समय से यहां काफी बंदर आए हुए हैं लगता है प्रसाद कोई बंदर ही ले गया होगा.’’ सुन कर दादी ने मुंह बिचकाया. फिर सोचने लगीं कि आज शुभ दिन है. आज मेरी मनौती पूरी हुई. मैं चाहती थी कि मेरा बुढ़ापा सुखचैन से बीते. रोज की तरह उस शाम को दादी टहलने निकल गईं. वे पार्क में जाने के लिए सड़क के किनारे चली जा रही थीं. साथ ही सुबह हुए चमत्कार के बारे में सोच रही थीं.

तभी एक किशोर स्कूटी सीखता हुआ आया और दादी को धकियाता हुआ आगे बढ़ गया. दादी को पता ही नहीं चला, वे लड़खड़ा कर हाथों के बल सड़क पर जा गिरीं. हड़बड़ाहट में उठ तो गईं, पर घर आतेआते उन के दाएं हाथ में सूजन आ गई. वे दर्द के मारे कराहने लगीं. उन्हें फौरन डाक्टर को दिखाया गया. एक्सरे करने पर पता चला कि कलाई की हड्डी चटक गई है

एक माह के लिए प्लास्टर बंध गया. दादी ‘हाय मर गई, हाय मर गई’ की दुहाई देती रहीं.संजू चुटकी लेता हुआ दादी से बोला, ‘‘दादी, यही है वह चमत्कार, जिस के लिए आप सुबह से ही खुश हो रही थीं. तुम्हारी दोनों बातें गलत निकलीं. इसलिए भविष्य में ऐसे अंधविश्वासों के चक्कर में मत पड़ना.’’  दादी रोंआसी हो कर बोलीं, ‘‘हां बेटा, तुम ठीक कहते हो. हम ने तो सारी जिंदगी ही ऐसे भ्रमों में बिता दी पर मैं अब कभी शेष जीवन में इन खोखले चमत्कारों के जाल में नहीं पडूंगी.’’ Story In Hindi

Hindi Family Story: दत्तक बेटी ने झुका दिया सिर

Hindi Family Story: लंदन के वेंबली इलाके में ज्यादातर गुजराती रहते हैं. नैरोबी से लंदन आ कर बसे घनश्याम सुंदरलाल अमीन भी अपनी पत्नी सुनंदा के साथ वेंबली में ही रहते थे. वे लंदन में अंडरग्राउंड ट्रेन के ड्राइवर थे. नौकरी से रिटायर होने के बाद वे पत्नी के साथ आराम से रह रहे थे.

घनश्यामभाई को सोशल स्कीम के तहत अच्छा पैसा मिल रहा था. इस के अलावा उन की खुद की बचत भी थी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी. बस, एक कमी के अलावा कि वे बेऔलाद थे. गोद में खेलने वाला कोई नहीं था, जिस का पतिपत्नी को काफी दुख था.

किसी दोस्त ने घनश्यामभाई को सलाह दी कि वे कोई बच्चा गोद ले लें. ब्रिटेन में बच्चा गोद लेना बहुत मुश्किल है, वह भी भारतीय परिवार के लिए तो और भी मुश्किल है, इसलिए घनश्यामभाई ने अपने किसी भारतीय दोस्त की सलाह पर कोलकाता की एक स्वयंसेवी संस्था से बात की. उस संस्था ने एक अनाथाश्रम से उन का परिचय करा दिया.

अनाथाश्रम वालों ने घनश्यामभाई से कोलकाता आने को कहा. वे पत्नी के साथ कोलकाता आ गए.

कोलकाता के उस अनाथाश्रम में उन्हें सुचित्र नाम की एक लड़की पसंद आ गई. वह 15 साल की थी. जन्म से बंगाली और महज बंगाली व हिंदी बोलती थी. देखने में एकदम भोली, सुंदर और मुग्धा थी.

पतिपत्नी ने सुचित्र को पसंद कर लिया. सुचित्र भी उन के साथ लंदन जाने को तैयार हो गई. घनश्यामभाई ने सुचित्र को गोद लेने की तमाम कानूनी कार्यवाही पूरी कर ली. सुचित्र को वीजा दिलाने में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा. तरहतरह के प्रमाणपत्र देने पड़े. आखिरकार 6 महीने बाद सुचित्र को वीजा मिल गया.

सुचित्र अब लंदन पहुंच गई. उस के लिए वहां सबकुछ नया नया था. देश नया, दुनिया नई, भाषा नई, लोग नए. वहां उस का एक स्कूल में दाखिल करा दिया गया. उस ने जल्दी ही इंगलिश भाषा सीख ली. वह गोरी थी और छोटी भी, इसलिए जल्दी से गोरे बच्चों के साथ घुलमिल गई. स्कूल में गुजराती, पंजाबी और बंगलादेश से आए परिवारों के तमाम बच्चे पढ़ते थे.

सुचित्र अब बड़ी होने लगी. वह अकेली लंदन में अंडरग्राउंड ट्रेन में सफर कर सकती थी. वह बिलकुल अकेली पिकाडाली तक जा सकती थी. वह पढ़ने में भी अच्छी थी.

सुचित्र को गोद लेने वाले घनश्यामभाई और उन की पत्नी सुनंदा खुश थे अपनी इस बेेटी से. छुट्टी के दिनों में वे कभी उसे मैडम तुसाद म्यूजियम दिखाने ले जाते तो कभी उसे हाइड पार्क घुमाने ले जाते. दोस्तों के घर पार्टी में भी वे सुचित्र को हमेशा साथ रखते. सुचित्र सुनंदा को ‘मम्मी’ कहती तो वे खुश हो जातीं. उन्हें ऐसा लगता कि सुचित्र उन्हीं की बेटी है. वह स्कूल तो जा ही रही थी, अब कभीकभार अपनी सहेली के घर रुक जाती. समय के साथ अब वह हर शनिवार को सहेली के घर रुकने की बात करने लगी थी. अभी वह 17 साल की ही थी.

एक दिन सुनंदा को पता चला कि सुचित्र घर से तो अपनी सहेली के घर जा कर रुकने की बोल कर गई थी, पर वह सहेली के घर गई नहीं थी. उन्होंने सुचित्र से सख्ती से पूछताछ की तो सुचित्र खीज कर बोली, “मैं कहीं भी जाऊं, इस से आप को क्या मतलब…”

सुचित्र की इस बात से घनश्यामभाई और सुनंदा को गहरा धक्का लगा. कुछ दिनों बाद एक दूसरी घटना घटी. सुचित्र अकसर स्कूल नहीं जाती थी. घनश्यामभाई और सुनंदा ने जब उस से पूछा तो उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

पतिपत्नी ने सुचित्र की सहेलियों से पूछताछ की तो पता चला कि सुचित्र सुखबीर नाम के एक पंजाबी लड़के के साथ घूमती है. वह स्कूल छोड़ कर उस के साथ बाहर घूमने चली जाती है.

घनश्यामभाई ने शाम को सुचित्र से पूछा, “मुझे पता चला है कि तुम सुखबीर नाम के किसी लड़के के साथ घूमती हो, क्या यह सच है?”

यह सुन कर सुचित्र ने कहा, “मैं कहां जाती हूं और बाहर जा कर क्या करती हूं, यह आप को बिलकुल नहीं पूछना चाहिए.”

सुनंदा ने कहा, “तुम हमारी बेटी हो. हमें चिंता होती है. तुम अभी 17 साल की ही तो हो.”

“मैं आप की बेटी नहीं हूं. आप ने अपने फायदे के लिए मुझे गोद लिया है. मैं आप की कोख से पैदा नहीं हुई हूं. मेरे ऊपर आप के बहुत कम अधिकार हैं, समझीं?”

“मतलब?” सुनंदा ने पूछा.

“मैं तुम्हारे शरीर का कोई भी हिस्सा नहीं हूं. मेरे शरीर पर मेरा ही अधिकार है?”

सुचित्र की बात सुन कर घनश्यामभाई को गुस्सा आ गया. उन्होंने सुचित्र को एक तमाचा मार दिया.

सुचित्र चिल्लाई, “अगर दूसरी बार आप ने ऐसा किया तो मैं पुलिस बुला लूंगी.”

घनश्यामभाई ने कहा, “मैं खुद ही पुलिस को बताऊंगा कि मेरे द्वारा गोद ली गई बेटी पढ़ने की उम्र में गलत काम करती है. तुम्हें सामाजिक काउंसलिंग में भेज दूंगा।. उस के बाद भी नहीं सुधरी तो फिर भारत वापस भेज दूंगा.”

भारत वापस भेजने की बात सुन कर सुचित्र सोच में पड़ गई. वह एकदम चुप हो गई और अपने बैडरूम में चली गई. अगले दिन उठ कर उस ने मम्मीपापा से माफी मांगी. यह सुन कर घनश्यामभाई और सुनंदा शांत हो गए.

सुनंदा ने कहा, “देखो बेटा, यह तुम्हारी पढ़नेलिखने की उम है. तुम अच्छी तरह पढ़लिख कर अपना कैरियर बना लो. अभी तुम टीनएज हो. जिस लड़के के साथ मन हो, नहीं घूम सकती हो.”

सुचित्र ने सिर झुका कर कहा, “मम्मी, इस तरह की गलती अब दोबारा नहीं करूंगी.”

इस के बाद सुचित्र नियमित रूप से स्कूल जाने लगी. धीरेधीरे इस बात को काफी समय बीत गया.

एक दिन घनश्यामभाई और सुनंदा के पड़ोसियों ने पुलिस से शिकायत की कि हमारे बगल वाले घर से बहुत तेज बदबू आ रही है. तुरंत पुलिस आ गई. घर का दरवाजा बंद था, पर अंदर से ताला नहीं लगा था. पुलिस ने धक्का मारा तो दरवाजा खुल गया.

पुलिस ने अंदर जा कर देखा तो बैडरूम में घनश्यामभाई और उन की पत्नी की लाशें पड़ी थीं. पूछताछ में पड़ोसियों ने बताया कि इन के साथ गोद ली गई एक बेटी भी रहती थी. उस समय वह घर में नहीं थी.

दोनों लाशों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उन की गोद ली गई बेटी गायब थी. पता चला कि वह कई दिनों से स्कूल भी नहीं गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि पतिपत्नी की मरने से पहले खाने मेेें नींद की दवा दी गई थी. उस के बाद घनश्यामभाई की हत्या चाकू से और सुनंदा की हत्या मुंह पर तकिया रख कर की गई थी.

पुलिस का पहला शक मारे गए पतिपत्नी की गोद ली गई बेटी सुचित्र पर गया. उन्होंने घनश्यामभाई और सुचित्र के मोबाइल का काल रिकौर्ड चैक किया. 2 ही दिनों में पुलिस सुचित्र के बौयफ्रैंड सुखबीर के घर पहुंच गई.

सुखबीर अकेला ही अपनी विधवा मां के साथ रहता था. सुचित्र भी उसी के घर पर मिल गई. पुलिस ने दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो सुचित्र और सुखबीर ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने प्रेम का विरोध करते की वजह से घनश्यामभाई और सुनंदा की हत्या की है

सुचित्र ने बताया, “उस रात मैं ने ही अपने मम्मीपापा के खाने में नींद की गोलियां मिला दी थीं, जिस से वे जाग न सकें. दोनों गहरी नींद सो गए तो मैं ने सुखबीर को बुला लिया. उस के बाद मम्मी के मुंह पर तकिया रख कर पूरी ताकत से दबाए रखा तो उन की सांसों की डोर टूट गई.

“मम्मी के छटपटाने की आवाज सुन कर मेरे पापा जाग गए. सुखबीर अपने साथ चाकू लाया था. उसी चाकू से उस ने पापा पर ताबड़तोड़ वार कर के उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया. उस के बाद हम दोनों भाग गए.”

दोनों के बयान सुन कर पुलिस हैरान रह गई. सुचित्र अभी नाबालिग थी. पुलिस ने उस की मैडिकल जांच कराई तो पता चला कि वह पेट है. सुचित्र ने जो किया, उसे सुन कर तो अब यही लगता है कि इस तरह बच्चे को गोद लेने में भी कई बार सोचना पड़ेगा. Hindi Family Story

Hindi Family Story: वो कमजोर पल – क्या सीमा ने राज से दूसरी शादी की?

Hindi Family Story: वही हुआ जिस का सीमा को डर था. उस के पति को पता चल ही गया कि उस का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. अब क्या होगा? वह सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारा एक प्यारा बेटा. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.

हां, मैं ने धोखा दिया है अपने पति को, अपने शादीशुदा जीवन के साथ छल किया है मैं ने. मैं एक गिरी हुई औरत हूं. मुझे कोई अधिकार नहीं किसी के नाम का सिंदूर भर कर किसी और के साथ बिस्तर सजाने का. यह बेईमानी है, धोखा है. लेकिन जिस्म के इस इंद्रजाल में फंस ही गई आखिर.

मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चे के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे राज मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. हां, मैं एक साधारण नारी, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. राज चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.

उन दिनों मेरे पति अकाउंट की ट्रेनिंग पर 9 माह के लिए राजधानी गए हुए थे. फोन पर अकसर बातें होती रहती थीं. बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन की आदी मैं अपने को रोकती, संभालती रही. अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गई मैं.

मैं अपनी सहेली रीता के घर बैठने जाती. पति घर पर थे नहीं. बेटा नानानानी के घर गया हुआ था गरमियों की छुट्टी में. रीता के घर कभी पार्टी होती, कभी शेरोशायरी, कभी गीतसंगीत की महफिल सजती, कभी पत्ते खेलते. ऐसी ही पार्टी में एक दिन राज आया. और्केस्ट्रा में गाता था. रीता का चचेरा भाई था. रात का खाना वह अपनी चचेरी बहन के यहां खाता और दिनभर स्ट्रगल करता. एक दिन रीता के कहने पर उस ने कुछ प्रेमभरे, कुछ दर्दभरे गीत सुनाए. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जबजब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता.

राज अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे छेड़ता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ एक दिन मुझे राज के बहुत करीब ले आई. मैं रीता के घर पहुंची. रीता कहीं गई हुई थी काम से. राज मिला. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में राज ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैं ने कहा, ‘राज, मैं शादीशुदा हूं.’

राज ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं एक बच्चे की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीनेमरने की मैं ने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, राज की बांहों में खो जाना, इस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया.

मैं और राज अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. राज ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब रीता ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं राज के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी. यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति आनंद का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ राज के साथ कई रातें गुजारीं. राज की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि आनंद के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.

मैं ने एक दिन राज से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’

मुझे अपने बेवफा होने का एहसास राज ने हंसीहंसी में करा दिया था. एक रात राज के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’

‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित संस्था है.’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम अपने पति का सामना कर सकोगी? उस से तलाक मांग सकोगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के वापस आते ही प्यार टूट जाए और शादी जीत जाए?’

मुझ पर तो राज का नशा हावी था. मैं ने कहा, ‘तुम हां तो कहो. मैं सबकुछ छोड़ने को तैयार हूं.’

‘अपना बच्चा भी,’ राज ने मुझे घूरते हुए कहा. उफ यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘राज, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चे को अपने साथ रख लें?’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारा बेटा, मुझे अपना पिता मानेगा? कभी नहीं. क्या मैं उसे उस के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चा तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चा मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलाएगा कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या उस बच्चे में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो सीमा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.

‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, देवरननद अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पलपल. यहां तक कि अपना बच्चा भी क्योंकि यह बच्चा सिर्फ तुम्हारा नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ राज कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन वफा के वादे के साथ.’

मैं रो पड़ी. मैं ने राज से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक कमजोर पल था. वह वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस कमजोर पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

राज की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन कमजोर पलों को भूलना चाहिए था जिन में मैं ने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर राज से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.  मैं ने राज से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

राज हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपनेआप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

राज ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें राज की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि राज का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

राज ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ राज ने फिर दोहराया.

इधर, आनंद, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? आनंद के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी. एक पत्नी बन कर रहना. मेरा बेटा भी वापस आ चुका था. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे. लेकिन आनंद के दफ्तर और बेटे के स्कूल जाते ही राज आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने राज से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ राज ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी राज ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरा बेटा और दूसरी तरफ उन कमजोर पलों का साथी राज जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. पति को भनक लगी. उन्होंने दोटूक कहा, ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

मैं फिर राज के पास पहुंची. वह कलाकार था. गायक था. उसे मैं ने बताया कि मेरे पति ने मुझ से क्याक्या कहा है और अपने शर्मसार होने के विषय में भी. उस ने कहा, ‘‘यदि तुम्हें शर्मिंदगी है तो तुम अब तक गुनाह कर रही थीं. तुम्हारा पति सज्जन है. यदि हिंसक होता तो तुम नहीं आतीं, तुम्हारे मरने की खबर आती. अब मेरा निर्णय सुनो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे कमजोर पल मेरी पूरी जिंदगी को कमजोर बना कर गिरा देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन कमजोर पलों को भूलने में ही भलाई है.’’

मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली राज से. रीता ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन कमजोर पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. राज जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभीकभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है. Hindi Family Story

Intercaste Love: मैं एक दलित लड़की से प्यार कर बैठा हूं

Intercaste Love: अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें.

सवाल –

मैं 24 साल का लड़का हूं और झारखंड का रहने वाला हूं. हाल ही में मेरी मुलाकात एक बहुत ही सुंदर लड़की से हुई जिस ने मेरी ही कोचिंग जौइन की है. हम दोनों सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं. मैं पहली ही नजर में उस लड़की को अपना दिल दे बैठा हूं. वह लड़की पढ़ने में भी काफी होशियार है और उस के पीछे हमारे कोचिंग के सभी लड़के पागल हैं. मैं उस से बहुत प्यार करने लगा हूं और एक दिन मैं ने सोचा कि जो भी हो मैं उसे प्रोपोज कर ही दूंगा. जैसे ही मैं ने उस लड़की को प्रोपोज किया, तो उस लड़की ने सीधा मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा कि मैं दलित समाज की लड़की हूं. मुझे समझ नहीं आया कि उस ने ऐसा क्यों कहा. मैं जातपांत को नहीं मानता, फिर भी उस ने ऐसा क्यों कहा मुझे समझ नहीं आया. अब मेरी हिम्मत नहीं हो रही है उस से कुछ भी पूछने की, तो ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब –

आप की बातों से साफ पता चल रहा है कि आप को जिस लड़की से प्यार हुआ है वह काफी स्ट्रेट फौर्वर्ड लड़की है और कुछ छिपाना नहीं चाहती. वह लड़की अपने बारे में पहले से ही सब क्लियर कर देना चाहती है, क्योंकि अकसर ऐसा होता है कि कुछ लोग प्यार तो कर बैठते हैं, लेकिन जब बात शादी की आती है, तो जातपांत का बहाना कर शादी से मुकर जाते हैं.

भले ही आप जातपांत को नहीं मानते हों, पर एक बार अपने घर वालों से बात कीजिए कि क्या वे एक दलित लड़की को अपने घर की बहू बनाने को तैयार होंगे. आज के समय में भी कई लोग ऐसे हैं जो जातपांत जैसी सोच रखते हैं. इसी वजह से शायद उस लड़की ने आप को पहले ही सब बता दिया.

अगर आप और आप के घर वालों को इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता है, तो आप को उस लड़की के पास जाना चाहिए और कहना चाहिए कि उस की जाति कोई भी हो, आप उसे बहुत प्यार करते हैं और हमेशा करते रहेंगे. आप दोनों की शादी में जातपांत जैसी समस्याएं नहीं आएंगी. ऐसा विश्वास दिलाने से हो सकता है कि वह लड़की आप के प्यार को स्वीकार कर ले. Intercaste Love

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