Hindi Family Story: काकुली

Hindi Family Story, लेखक – एसी ठाकुर

जब वह मिली तो बहुत उदास सी लगी थी. अलबत्ता वह मां तो बन चुकी थी. एक खूबसूरत बेटी थी उस की गोद में. ठीक उसी की तरह बड़ीबड़ी आंखें और हलकी चपटी नाक. वह गुमसुम बैठी कहीं खोई हुई थी.
‘‘कब आई हो?’’ न चाहते हुए भी मैं ने ही पहले टोक दिया.

मेरी आवाज सुन वह जैसे कहीं से तुरंत वापस हुई हो, बोली, ‘‘ओह, आप हैं… नमस्कार…’’ थोड़ी सी सूखी मुसकराहट उस के होंठों पर तैर गई. उस ने अपने पल्लू को तुरंत ठीक किया. अपने माथे को पोंछने के अंदाज में हाथ फिराया. सहज होने की भरसक कोशिश की. कुछ पलों की यह कोशिश बहुतकुछ कह गई.

‘‘आप बैठिए न,’’ कहते हुए वह सोफे पर एक किनारे खिसक गई.

‘‘कब आई हो?’’ मैं ने सवाल दोहराया.

‘‘कल ही तो…’’

‘‘क्या आनंद बाबू भी आए हैं?’’

उस ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘तो फिर किस के साथ आई हो?’’

इस बार उस की नजरें झुक गईं. चेहरे पर बल पड़ता दिखाई दिया. फिर वह बोली, ‘‘अकेली.’’

‘‘सच? वाह, तब तो तुम बहुत होशियार हो गई हो.’’

‘‘होशियार हुई नहीं, होने जा रही हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब जानना चाहेंगे?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मैं ने आप के आनंद बाबू से तलाक ले लिया है.’’

‘‘क्या?’’ मैं हैरानी से उसे देखता रह गया.

‘‘यह सच है…’’ वह धीरे से बोली.

यह सुन कर मेरी धड़कन तेज हो गई.

‘‘मैं दोबारा अपनी जगह वापस आना चाहती हूं. लेकिन कुछ वक्त के बाद. पहले मैं अकेली थी, अब मेरी छोटी सी बेटी भी है. इतना ही नहीं, पहले मैं घमंडी थी, अब ऐसी बात नहीं है,’’ वह थोड़ा रुकी, फिर बोली, ‘‘लेकिन ठहरिए, क्या मेरी ‘जगह’ मुझे अपना लेगी? यही चिंता है…’’

‘‘तुम्हें हैरानी होगी कि उस ‘जगह’ को भूचाल भी नहीं बदल सका. वह न हिली है, न डुली है. आज भी पहले जैसी है,’’ इस बार अनचाहा सन्नाटा छा गया.

मैं ने सोफे पर बैठेबैठे आंखें चारों ओर घुमाईं. उस वक्त कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा था. वह घर अतीत को हूबहू जीने लगा था.

मैं यानी किशन और काकुली साथसाथ पढ़ते थे. मैं था शांत और वह नटखट. मैं पढ़ने में तेज और वह नाचने और गाने में. वह पिता की तीसरी और आखिरी औलाद थी. 2 बड़े भाई थे. वह घरभर की दुलारी थी, बड़े बाप की बेटी. घर में किसी चीज की कमी न थी.

मेरे पिता की काकुली के पिता से दोस्ती थी. मैं बचपन से ही वहां आताजाता था, कोई रोकटोक नहीं. सच पूछिए, तो कब हम दोनों में प्यार हुआ, जानता नहीं.

समय बीता. काकुली पीछे छूट गई, मैं आगे बढ़ा. मैं बैंक में अफसर बन गया. मेरी शादी हुई. बीवी काफी वक्त साथ रही. खुश थी. मुझे बहुत मानती थी. किंतु एक बात उसे बरदाश्त नहीं थी कि मैं काकुली की खूबसूरती का बखान करूं. इस बात पर वह रूठ जाती थी.

काकुली का तब तक मुझ से और मेरा उस से लगाव भर बाकी था. वह कभीकभार मेरी बीवी से
मिलने के बहाने आ जाती थी.

एक दिन पत्नी ने काकुली से कहा था, ‘‘तुम रविवार को मेरे यहां मत आया करो.’’

काकुली हंस कर टाल गई थी, पर चोट गहरी थी.

बैंक के अफसर को फुरसत कम ही मिल पाती है, इसलिए बीवी कहती, ‘‘एक तो काकुली है और यह बैंक भी मेरी सौत हो गया है.’’

इस बात पर हम दोनों हंसते थे, किंतु इस में कहीं न कहीं सचाई थी. फिर भी, हम दोनों में काफी मेलमिलाप था.

किंतु, कुदरत का विधान मेरे लिए कुचक्र रच चुका था. मेरी पत्नी मां बनने वाली थी. दर्द शुरू होते ही डाक्टर के यहां ले गया.

डाक्टर ने जांच के बाद बताया, ‘‘बच्चा पेट में मर चुका है. जच्चा बच जाए, यही काफी है. हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं.’’

उसी दरमियान मेरी बीवी ने हमेशाहमेशा के लिए आंखें मूंद लीं.

घर में कुहराम मच गया. मैं पागल सा हो गया. काकुली, उस की मां और दूसरे सभी लोग आए. सब ने
धीरज बांधने की पूरी कोशिश की.

मैं ने बैंक से छुट्टी ले ली. माहौल बदलने के लिए पिताजी और काकुली की मां की जिद पर उस के यहां भी भेज दिया गया.

मैं धीरेधीरे सहज होने लगा. काकुली ने अपनी भरपूर कोशिश से मुझे उदासी से दूर करना चाहा था. अब उस के साथ गुजरा पुराना जमाना भी मेरा पीछा करने लगा था.

कुछ दिनों बाद काकुली से मौका पा कर बोला, ‘‘मैं दूसरी शादी तुम से करना चाहता हूं.’’

काकुली ने मेरे हाथ झटक दिए और दूर हट गई.

‘‘याद करो वह दिन, जिस दिन तुम्हारी शादी थी,’’ वह अकड़ कर बोली, ‘‘मैं ने खबर भेजी थी कि तुम एक बार मुझ से मिलो, पर तुम ने साफ इनकार कर दिया था. मुझे तुम्हारे लिए हमदर्दी है, पर इस का मतलब…’’

‘‘मैं ने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया था…’’ मैं ने बीच में ही सफाई देनी चाही, ‘‘असल में, मैं बहुत परेशान था. वह शादी तो जबरदस्ती की थी… तुम सब जानती हो.’’

‘‘मैं सब जानती हूं,’’ काकुली गुस्से से बोली.

मैं उठ कर पिछले दिनों की तरह उसे पकड़ने लगा, उसे बांहों में भरना चाहा. पर वह छिटक गई और चीख कर बोली, ‘‘खबरदार, जो इस निगाह से फिर देखा,’’ और वह सीढि़यां उतरती चली गई.

मैं उस दिन बहुत रोया. मौका पा कर काकुली के सामने कई बार गिड़गिड़ाया, पर वह नहीं मानी.

मैं फिर दूसरी शादी नहीं कर पाया. पहली बीवी की याद तो आती ही थी, पर काकुली की याद भी सताती. बीवी के रूप में उसे ही देखा था.

कई बार मां ने समझाया, ‘‘किशन, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? दूसरी शादी कर लो.’’

पर मैं ने इनकार कर दिया था.

सोफे पर बैठाबैठा मैं गुजरे वक्त की यादों में डूबा हुआ था कि नौकरानी ने आ कर हम दोनों के सामने चाय रखी.

‘‘क्या सोच रहे हैं? आप चाय पीजिए,’’ चुप्पी तोड़ते हुए काकुली बोली.

मैं ने चाय लेते हुए कहा, ‘‘काकुली, यह ‘आपआप’ सुन कर मेरे कान पक गए.’’

वह चुप रही.

मैं ने पूछा, ‘‘पर तुम ने अपने पति से तलाक क्यों लिया?’’

‘‘तलाक?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं तंग आ चुकी थी उन के बरताव से, उन की दौलत के नशे से, उन के दोस्तों से, उन की लत से. महीने में एक दिन आना, न आना, शराब पीना, छोटीछोटी बातों पर मुझे पीटना, गालियां देना,’’ काकुली गुस्से में बोल रही थी.

मुझे काकुली पर बहुत प्यार आ रहा था, वहीं डर भी हो रहा था कि कोई आ न जाए. मैं ने इधरउधर झांका, फिर आ कर उस के पास बैठते हुए कहा, ‘‘यकीन करो, तुम्हें पहली जगह जरूर मिलेगी.’’

मैं अपने रूमाल से काकुली के आंसू पोंछ ही रहा था कि सीढि़यों से किसी के आने की आवाज सुनाई दी. मैं छिटक कर दूर हट गया.

तभी नौकरानी काकुली की 6 महीने की बेटी को लिए अंदर आई और बोली, ‘‘यह जग गई थी, इसे भूख लगी है.’’

वह बड़ी प्यारी गुडि़या थी. मैं ने झपट कर उसे उठा लिया और चूमते हुए कहा, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है.’’

बच्ची जोरजोर से चिल्लाने लगी. काकुली चुपचाप मुसकराते हुए हमें देखती रही. मैं बेखबर बच्ची को
चूमता रहा. Hindi Family Story

Hindi Kahani: धंधेवाली का दर्द

Hindi Kahani: सैक्स वर्करों के दर्द पर लेख तैयार करने के लिए विनय रैडलाइट एरिया पहुंचा. शहर की भीड़ से हट कर गंदी सी बस्ती में देह धंधे की एक ऐसी मंडी, जहां इनसानी सोच की बदबू को दबाने के लिए अलगअलग दड़बेनुमा कमरों से मोगरा, चमेली से ले कर रूम फ्रैशनर की मिलीजुली महक बाहर आ रही थी.

कम उम्र की लड़कियों से ले कर अधेड़ उम्र वाली औरतें सजधज कर ऐसे तैयार बैठी थीं, जैसे शोरूम में पुतले के ऊपर ब्रांडेड कपड़े नुमाइश के लिए रखे गए हों.

कस्टमर समझ कर हर कोई विनय को अपनी ओर लुभाने और रिझाने की कोशिश कर रही थी. किसी के चेहरे पर असली मुसकराहट थी, तो कोई बनावटी मुसकान बिखेर रही थी.

इसी दौरान सामने से आ रही जींसटीशर्ट पहने एक लड़की ने विनय की कमर में हाथ डाल दिया और बोली ‘‘साथ ले चलोगे या मेरे साथ चलोगे… फुलटाइम या पार्टटाइम?’’

विनय ने अपनी कमर से उस लड़की का हाथ हटाते हुए समझाया, ‘‘अरे, आप गलत समझ रही हैं. दरअसल, मैं एक पत्रकार हूं…’’

‘‘तो इस में समझना क्या है बाबू. पत्रकार ‘करते’ नहीं क्या?’’ इस भद्दी सी बात के साथ उस लड़की ने अपनी मुसकान बिखेरी.

विनय उस लड़की को समझाने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘देखो…’’

‘‘दिखाओ…’’ बीच में ही टोकते हुए उस लड़की ने कहा और हंस पड़ी.

विनय झेंपते हुए बोला, ‘‘देखिए, मैं आप लोगों की जिंदगी पर एक प्रोजैक्ट तैयार कर रहा हूं, जिस से आप की बदहाली को सरकार तक पहुंचाया जा सके, ताकि सरकार आप लोगों के लिए अच्छी जिंदगी का इंतजाम कर सके.’’

‘‘अरे छोडि़ए साहब, हमारी इज्जत और जिंदगी को. हम तो नरक के पिल्लू हैं, नरक में ही जीना और नरक में ही मरना…

‘‘अब चलो, मजा लेते हैं. फुलटाइम सर्विस में कुछ डिस्काउंट दे दूंगी, आखिर पत्रकार जो ठहरे…’’ उस लड़की ने विनय की बात को हंसी में टालते हुए कहा और विनय की छाती पर हाथ फेरने लगी.

उस लड़की के इस बरताव से विनय काफी चिढ़ गया. वह गुस्से में तमतमाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम लोगों के भले के लिए कुछ तैयार कर रहा हूं, ताकि प्रशासन और सरकार के सामने उस रिपोर्ट को रख सकूं. मैं चाहता हूं कि तुम्हें सभ्य समाज में इज्जत की जिंदगी और रोजगार मिल सके और तुम धंधे की बात कर रही हो…

‘‘आखिर हो तो धंधेवाली ही न और वह तो समाज के बजाय कोठे पर ही अच्छी लगती है…’’ इतना कह
विनय वहां से आगे बढ़ गया.

‘‘एक मिनट साहब,’’ पीछे से आवाज देते हुए उस लड़की ने विनय को रोका.

विनय अनमने ढंग से रुक गया. वह लड़की आगे बोली, ‘‘किस इज्जत और रोजगार की बात आप करते हैं साहब… कई बार दोबारा बसाने के नाम पर हमारी बस्तियों को तोड़ा गया है, लेकिन रोजगार तो मिलता नहीं कुछ…

‘‘धंधेवाली का लेबल लगा है, सो गांव में दुकान भी खोलना चाहें, तो लोग दुकानदार के बजाय हमें बिकाऊ माल ही समझते हैं और फिर पेट पालने के लिए नैशनल हाईवे, बसस्टैंड, लौज या धुलाई के लिए स्टेशन यार्ड में खड़ी रेलगाड़ी के डब्बों को ही अपना आशियाना बनाना पड़ता है… बात करते हैं दोबारा बसाने और रोजगार की.

‘‘और हां, यह जो समाज या सरकार की बात कर रहें है न आप, तो कभी आइए शाम में हमारे कोठे पर, फिर देखिए आप को आप का तथाकथित सभ्य समाज वहीं मिल जाएगा और आप के सरकारी नुमाइंदों की पतलून धंधेवालियों के पलंग के नीचे…

‘‘और रही बात सरकार की, तो वीआईपी और माननीय महोदय के लिए हर रात छोटी उम्र की सील पैक फ्रैश माल उन की सरकारी कोठी पर भेज दी जाती हैं…

‘‘अब आप ही बताओ कि अगर हमारी दुकान बंद हो जाएगी, तो तुम्हारी सरकार कैसे चलेगी?’’

उस लड़की के भद्दे और तीखे शब्दों की चोट में छिपे दर्द ने विनय को सभ्य समाज के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया. Hindi Kahani

Social Story In Hindi: भटका हुआ नेता

Social Story In Hindi अमन एक छोटे से कसबे से निकल कर बड़े शहर के नामी कालेज में आया था. वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए बहुत जोश में था, लेकिन कालेज का माहौल उस की उम्मीद से बिलकुल अलग था. वहां पढ़ाईलिखाई से ज्यादा दबदबे और राजनीति का जोर था.

कालेज के कुछ छात्र, जो खुद को ‘छात्र नेता’ कहते थे, पूरे कैंपस में अपनी धाक जमाए हुए थे. उन के पीछे लोकल नेताओं का हाथ था, इसलिए वे मनमानी करते थे और कोई भी उन के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था.

अमन ने खुद को इन सब चीजों से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन ऐसे नेता हर जगह थे… क्लासरूम, कैंटीन, यहां तक कि लाइब्रेरी में भी.

वे पढ़ाईलिखाई के बजाय राजनीति और गुंडागर्दी में बिजी रहते थे.

क्लास में प्रोफैसरों से बहस करना और उन पर दबाव बनाना उन की आदत बन गई थी.

कई बार कालेज के ये तथाकथित छात्र नेता प्रोफैसरों के साथ बहुत ही गलत बरताव करते थे. वे अपनी मरजी से क्लासरूम में आतेजाते थे, फिर चाहे लैक्चर चल रहा हो या नहीं. जब भी प्रोफैसर उन्हें अनुशासन में रहने के लिए कहते, तो वे उलटा उन्हें ही धमकाना शुरू कर देते.

छात्र राजनीति का जाल ऐसा फैला कि कालेज की दीवारों पर नारे लिखे जाने लगे और क्लासरूम बहस का अड्डा बन गए.

रवि कालेज का सब से खतरनाक और असरदार छात्र नेता बन चुका था. कुछ ही समय में उस ने अपने ग्रुप के साथ कालेज पर ऐसा कब्जा जमा लिया था कि बाकी छात्र और यहां तक कि प्रोफैसर भी उस से डरने लगे थे. छात्र राजनीति में उस की पकड़ इतनी मजबूत हो गई थी कि लोग उसे ‘नेताजी’ कहने लगे थे.

रवि की दबंगई का आलम यह था कि उस की मौजूदगी में पूरा क्लासरूम सहम जाता था. उस का रवैया इतना खतरनाक हो चुका था कि वह किसी की भी इज्जत करने को तैयार नहीं था.

एक दिन जब प्रोफैसर शर्मा ने रवि को क्लास में देर से आने पर टोका, तो उस ने पूरी क्लास के सामने उन की बेइज्जती करनी शुरू कर दी.

‘‘आप को यहां पढ़ाने के लिए रखा गया है, हमारे बौस मत बनिए,’’ रवि ने तंज कसते हुए कहा.

प्रोफैसर शर्मा ने जब रवि को शांत रहने को कहा, तो वह और ज्यादा भड़क गया. गुस्से से उस ने जवाब दिया, ‘‘हमारी पौलिटिकल पहुंच का अंदाजा है आप को? हम चाहें तो एक फोन कर के आप का ट्रांसफर करवा सकते हैं.’’

यह सुनते ही क्लास में सन्नाटा छा गया. प्रोफैसर शर्मा भले ही उम्र में बड़े थे, लेकिन वे इस तरह की धमकियों से डरने वाले नहीं थे. उन्होंने शांत रहते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यहां पढ़ाई करनी चाहिए, राजनीति नहीं. यह तुम्हारे भविष्य के लिए सही नहीं है.’’

रवि हंसते हुए बोला, ‘‘आप का जमाना चला गया, सर. अब हम जैसे लोगों का वक्त है. देखना, इस कालेज में अब वही होगा, जो हम चाहेंगे.’’

रवि का असर धीरेधीरे पूरे कालेज पर दिखने लगा. उस की बातें हवा में उड़ती जरूर थीं, लेकिन उन के पीछे छिपी असंतोष की चिनगारी छात्रों के मन में गहरी पैठ बना रही थी. वह न केवल अपने विचारों से, बल्कि अपनी बोलने की कला और शानदार शख्सीयत से भी छात्रों को अपनी तरफ खींच रहा था. उस का ग्रुप, जो पहले केवल कुछ दोस्तों तक सीमित था, अब धीरेधीरे एक बड़ा और ताकतवर संगठन बनता जा रहा था.

रवि ने छात्रों को भरोसा दिलाया कि वे केवल पढ़ाईलिखाई के लिए नहीं, बल्कि अपने हकों के लिए लड़ने को भी कालेज में हैं. उस के इन विचारों ने एक क्रांतिकारी लहर को जन्म दिया. ‘छात्र एकता जिंदाबाद’ के नारों से कालेज की दीवारें गूंजने लगीं.

रवि ने कालेज प्रशासन के खिलाफ एक मजबूत मोरचा खड़ा कर दिया और छात्रों को यह यकीन दिलाया कि अगर वे संगठित रहेंगे, तो प्रशासन उन की किसी भी मांग को नजरअंदाज नहीं कर पाएगा.

छोटेछोटे मुद्दों को ले कर हड़तालें होना अब रोजमर्रा की बात हो गई थी. कैंटीन के बढ़े हुए दाम हों या लाइब्रेरी में किताबों की कमी, हर मुद्दा छात्रों के लिए अब एक बड़ा आंदोलन बन जाता. रवि का हर शब्द उन्हें जद्दोजेहद करने के लिए उकसाता.

धीरेधीरे कालेज में एक असंतोष की भावना बढ़ने लगी. छात्र खुद को पहले से ज्यादा ताकतवर महसूस करने लगे, लेकिन इस ताकत के साथ एक सवाल यह भी था कि क्या यह लड़ाई सही दिशा में जा रही थी?

इस उथलपुथल के बीच कालेज प्रशासन भी अब इस बढ़ते विद्रोह से निबटने की योजना बनाने लगा था.
प्रिंसिपल श्रीवास्तव इन घटनाओं से परेशान थे. उन्होंने कई बार रवि को समझाने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह उग्र प्रदर्शन करने की धमकी देता.

आखिरकार प्रिंसिपल ने सख्त कदम उठाते हुए रवि को कालेज से निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया.

यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई. रवि ने इसे अपने खिलाफ राजनीतिक साजिश बताया और अपने दोस्तों को उकसाया, ‘‘देखो, कालेज प्रशासन हमें दबाना चाहता है. हमें मिल कर इस का जवाब देना होगा.’’

अगले ही दिन कालेज में छात्रों की एक बड़ी सभा हुई. नारे और तेज हो गए… ‘प्रिंसिपल मुर्दाबाद’, ‘छात्रों का शोषण बंद करो, बंद करो’.

रवि कालेज के बाहर धरने पर बैठ गया और राजनीतिक दलों ने इस का फायदा उठाते हुए उसे समर्थन देना शुरू कर दिया. लोकल नेताओं ने छात्रों के बीच भाषण दे कर आंदोलन को और भड़काया.

छात्रों में गुस्सा बढ़ गया और वे रवि के निलंबन को गलत मानने लगे. राजनीतिक दलों की दखलअंदाजी
से यह आंदोलन कालेज से बाहर निकल कर एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया.

निलंबन के बाद रवि ने खुद को छात्रों का मसीहा बना लिया. धरने और प्रदर्शनों ने उस के राजनीतिक सफर की शुरुआत की और उस की लोकप्रियता बढ़ती गई.

स्थानीय दलों ने उसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश की और जल्दी ही रवि ने एक मनचाही पार्टी चुन ली,
जिस से उस की पहचान और मजबूत हो गई.

जल्द ही रवि चुनाव प्रचार में जुट गया और उस के जोरदार भाषणों व छात्रों के समर्थन ने उसे राजनीति का उभरता सितारा बना दिया. रवि का असर अब कालेज से निकल कर सियासत के गलियारों तक पहुंच चुका था.

समय के साथसाथ उस राजनीतिक दल ने रवि को अपनी युवा विंग में शामिल कर लिया, जिस से उस का राजनीतिक सफर और तेज हो गया. वह अब सिर्फ छात्र नेता नहीं रहा, बल्कि लोकल राजनीति में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा.

जब भी किसी कालेज या यूनिवर्सिटी में कोई विवाद उठता, रवि तुरंत वहां पहुंच कर छात्रों को संगठित करता और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करता. उस की बढ़ती ताकत और असर ने उसे बड़े नेताओं के साथ मंच साझा करने का मौका दिया और वह राजनीति में एक उभरते हुए चेहरे के रूप में नाम कमाता चला गया.

कुछ सालों बाद रवि स्थानीय चुनावों में खुद भी उम्मीदवार बन गया. उस की पहचान एक साहसी युवा नेता के रूप में बन चुकी थी, जिस का छात्र राजनीति से ऊपर उठ कर बड़ी राजनीति में कदम रखने का सपना था. आखिरकार, उस ने अपना पहला चुनाव जीता और वह विधायक बन गया.

विधायक बनने के बाद रवि के सामने बेरोजगारी दूर करने का वादा सब से बड़ी चुनौती बन गया. चुनाव प्रचार में उस ने नौजवानों को रोजगार का सपना दिखाया था, लेकिन सत्ता में आते ही हकीकत का सामना करना पड़ा. बेरोजगारी सिर्फ भाषणों से हल नहीं हो सकती थी, बल्कि इस के लिए तो नीतियों और इन्वैस्टमैंट की जरूरत थी. अनुभव की कमी के चलते रवि की शुरुआती कोशिशें सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहीं और वह ठोस समाधान पेश करने में नाकाम रहा.

रवि के समर्थक तब धीरेधीरे निराश होने लगे, जब उन्हें एहसास हुआ कि उस की राजनीति सिर्फ वादों पर टिकी थी, लेकिन उन्हें पूरा करने की ताकत उस में नहीं थी. चुनाव जीतने के बाद रवि के सियासी सपने बढ़े, लेकिन बेरोजगारी और पढ़ाईलिखाई जैसे असली मुद्दे अनदेखे रह गए.

बेरोजगारी से निबटने में नाकाम रवि का राजनीतिक कैरियर तो आगे बढ़ता गया, लेकिन वादे अधूरे रह गए. छात्रों में हताशा और गुस्सा पनपने लगा और वे खुद को उस के राजनीतिक एजेंडे का मोहरा महसूस करने लगे.

कई छात्र जब अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी तलाशने लगे, तो उन्हें याद आया कि रवि ने वादे किए थे कि वह उन के लिए रोजगार के मौके पैदा करेगा. कुछ छात्र इस उम्मीद के साथ रवि के पास गए कि उस की राजनीतिक पहुंच और दबदबे से उन्हें आसानी से नौकरी मिल जाएगी.

लेकिन जब वे रवि से मिले, तो उन्हें हकीकत का सामना करना पड़ा. रवि अब एक बिजी और ताकतवर विधायक बन चुका था और उसे अपने शुरुआती समर्थकों की परवाह नहीं थी.

रवि ने कहा, ‘‘सरकार की नीतियां फिलहाल बदल रही हैं, इसलिए थोड़ा इंतजार करो. मैं तुम्हारे लिए जरूर कुछ करूंगा, लेकिन अभी समय सही नहीं है.’’

छात्रों को झूठे दिलासे और वादे मिलते रहे, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया.

रवि के कुछ दोस्तों ने छात्रों को बताया कि विधायकजी बहुत बिजी हैं, इसलिए वे महीनों तक रवि के दफ्तर के चक्कर काटते रहते और उन की फाइलें धूल खाती रहतीं. रवि के कुछ चाटुकार पैसे के बदले छात्रों को उस से मिलने का मौका देते थे.

कुछ मामलों में तो रवि ने साफसाफ कह दिया कि वह तभी मदद करेगा, जब छात्र उस के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा होंगे. इस से छात्रों को एहसास हो गया कि रवि सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए उन का इस्तेमाल कर रहा है.

रवि अब राजनीति में पूरी तरह रचबस गया था. उस के इर्दगिर्द हमेशा नए चेहरे रहते थे… कभी चमचों की टोली, तो कभी खूबसूरत लड़कियां. कालेज के दिनों से ही रवि की नजर लड़कियों पर रहती थी. विधायक बनने के बाद यह सब और भी बढ़ गया.

रवि की लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए कई लड़कियां खुद उस के करीब आने की कोशिश करती थीं. उन में से नेहा भी एक थी, जो कालेज में रवि की समर्थक थी. राजनीति का उसे भी चसका लग चुका था. उस ने सोचा कि रवि के करीब रह कर वह भी राजनीति में अपना कैरियर बना लेगी.

लेकिन रवि के लिए नेहा सिर्फ एक शौक थी. वह उसे कभीकभार अपने साथ मीटिंग में ले जाता, उस के हावभाव की तारीफ करता और फिर उसे नजरअंदाज करना रवि का रवैया बन गया था.

इसी तरह रवि को हर पड़ाव पर एक नई लड़की मिलती रही. उस के पास अपने लोगों के लिए समय नहीं था, क्योंकि वह हमेशा किसी न किसी लड़की की बांहों में रहता था. यहां तक कि लोग भी अपना काम करवाने के लिए लड़कियों को उस के पास भेजते थे.

मीरा, जो अपनी नौकरी में मदद मांगने रवि के पास आई थी, को रवि ने यह कह कर अपने करीब खींच लिया कि तुम्हारे जैसे सम?ादार लोगों को राजनीति में होना चाहिए.

मीरा को लगा कि रवि उस की प्रतिभा को पहचान रहा है, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे एहसास हुआ कि वह रवि की ‘सोशल मीडिया शोपीस’ थी, जिसे उस ने बेकार कर छोड़ दिया था.

बाद में कई छात्रों ने भी महसूस किया कि राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के चलते वे अपनी पढ़ाई और स्किल से दूर हो गए थे. जब वे नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गए, तो उन्हें यह एहसास हुआ कि उन के पास न तो सही जानकारी थी और न ही जरूरी काबिलीयत, जिस से वे नौकरी पाने की दौड़ में टिक पाते.

नतीजतन, बहुत से छात्रों को निराशा हाथ लगी. उन्होंने रवि से जो उम्मीदें लगाई थीं, वे मिट्टी में मिल गई थीं. उन की नौकरियों की तलाश अधूरी रही और वे धीरेधीरे यह समझने लगे कि रवि की राजनीति ने उन के भविष्य को संवारने के बजाय बरबाद कर दिया था.

रवि की फायदे की राजनीति ने कई छात्रों को छात्र राजनीति से हटा दिया. वे अब इसे पढ़ाईलिखाई और कैरियर के लिए हानिकारक मानने लगे थे.

जो छात्र पहले अपने हकों के लिए जद्दोजेहद करते थे, वे अब राजनीति से दूर हो कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगे. इस से छात्र राजनीति धीरेधीरे कमजोर हो गई.

कुछ समय बाद रवि के समर्थक ही उस के विरोधी बन गए. छात्रों ने कालेजों में रवि के खिलाफ पोस्टर लगाए और उसे धोखेबाज करार दिया. सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ लिखा गया. औनलाइन अभियान चला कर उस की नीतियों और वादों की कड़ी आलोचना की. नतीजतन, रवि अगला चुनाव बुरी तरह हार गया और उस की राजनीतिक जमीन खिसक गई.

रवि ने देखा कि अमन, जो कालेज के दौरान राजनीति से दूर रह कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था, अब एक आईएएस बन चुका था और समाज में इज्जत पा रहा था.

एक मुलाकात में अमन ने रवि को समझाया, ‘‘सच्ची कामयाबी लोगों की भलाई और अपने फर्ज निभाने में है, न कि केवल राजनीति में पद और पावर हासिल करने में.’’

रवि को एहसास हुआ कि अमन की मेहनत और अनुशासन ने उसे असली कामयाबी दिलाई, जबकि उस ने खुद सत्ता की भूख में अपना असली मकसद खो दिया था. Social Story In Hindi

Hindi Family Story: बहन बनी दुश्मन

Hindi Family Story: अफसाना का जब से अपने शौहर से तलाक हुआ था और वह उसे छोड़ कर अपने मायके आई थी, तब से उस के अंदर अपनी बहन शहाना के लिए एक अलग ही किस्म की जलन थी. वह नहीं चाहती थी कि शहाना का निकाह हो और वह खुश रहे.

शादी से पहले अफसाना मोटी और सांवले रंग की एक साधारण सी लड़की थी. उस की उम्र भी काफी हो चुकी थी. उस के लिए जो भी रिश्ते आते थे, वे अफसाना की जगह शहाना को पसंद करते थे, जिस से अफसाना की वक्त रहते शादी नहीं हो पा रही थी और उस की उम्र बढ़ती ही जा रही थी.

इस के उलट शहाना देखने में गदराए बदन के साथसाथ खूबसूरती का भंडार थी. जो भी उसे देखता, बस देखता रह जाता. बड़ीबड़ी आंखें, सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे.
अफसाना और शहाना की उम्र में 7 साल का फर्क था और उस के अम्मीअब्बू पहले अफसाना की शादी करना चाहते थे, ताकि सही वक्त पर उस की घरगृहस्थी बस जाए, तो उस के बाद शहाना के निकाह के बारे में सोचें.

वैसे भी अभी शहाना की उम्र सिर्फ 17 साल थी, जबकि अफसाना 24 पार कर चुकी थी. शहाना की खूबसूरती और चंचलता देख कर अब अफसाना के दिल में धीरेधीरे शहाना के प्रति जलन पैदा होने लगी थी और वह अंदर ही अंदर शहाना से कुढ़ने लगी थी, क्योंकि अपनी शादी न होने की वजह वह शहाना को ही मान रही थी, इसलिए वह उस के लिए अपने दिल में नफरत भरती जा रही थी.

कहते हैं न कि हर चीज का एक वक्त होता है, ठीक ऐसा ही अफसाना के साथ भी हुआ और आखिरकार उस का रिश्ता पक्का हो गया और जल्द ही अफसाना का निकाह सुहेल से हो गया और वह दुलहन बन कर अपनी ससुराल पहुंच गई.

सुहेल के साथ शादी होने के बाद अफसाना जितना खुश थी, उस से कहीं ज्यादा उस के अम्मीअब्बू खुश थे, क्योंकि बड़ी मुश्किल से यह रिश्ता हुआ था.

सुहेल और अफसाना हंसीखुशी अपनी जिंदगी गुजार रहे थे. शादी को एक महीना बीत चुका था. शहाना भी अकसर अफसाना की सुसराल आतीजाती रहती थी. कभीकभार सुहेल भी अफसाना के साथ अपनी सुसराल आता रहता था.

शहाना जल्द ही सुहेल से काफी घुलमिल गई थी और खूब हंसीमजाक करने लगी थी. सुहेल भी धीरेधीरे उस की तरफ खिंचने लगा था.

इसी हंसीमजाक में सुहेल अकसर शहाना के नाजुक अंगों से भी छेड़छाड़ करता था और उस की उठी हुई मस्त छातियों पर हाथ तक फेरने से वह नहीं झिझकता था.

शहाना सुहेल की इस हरकत का बुरा नहीं मानती थी, तो सुहेल की हिम्मत बढ़ती चली गई.

एक दिन ऐसी घटना भी हो गई कि जिस ने अफसाना और सुहेल के बीच में ऐसी लकीर खींच दी, जिस से वे हमेशाहमेशा के लिए एकदूसरे से अलग हो गए.

हुआ यों था कि घर के सभी लोग कहीं बाहर गए थे. घर में शहाना और सुहेल के आलावा कोई नहीं था. अच्छा मौका देख कर सुहेल ने शहाना को अपनी बांहों में भरा और बिस्तर पर ले जाने लगा.

शहाना बोली, ‘‘जीजू, यह क्या कर रहे हो. छोड़ दो मुझे. दीदी को पता चलेगा तो वे बहुत गुस्सा होंगी. छोड़ दो मुझे. नीचे उतारो.’’

सुहेल ने अभी शहाना को गोद में उठा ही रखा था कि अचानक अफसाना अपने अम्मीअब्बू के साथ घर में आ गई.

शहाना को सुहेल की गोद में देख कर अफसाना का खून खौल उठा और वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘शहाना, तुम्हें शर्म नहीं आती अपने जीजू के साथ यह सब गंदी हरकत करते हुए…’’

शहाना बोली, ‘‘दीदी, मैं तो कब से जीजू को मना कर रही थी, पर ये ही जबरदस्ती मुझे अपनी गोद में उठा कर ले जा रहे थे.’’

यह सुनते ही अफसाना गुस्से से तिलमिला उठी और सब के सामने उस ने सुहेल के मुंह पर एक जोरदार तमाचा रसीद करते हुए उसे बुराभला कह कर घर से निकाल दिया.

बस, फिर क्या था. सुहेल को यह बात इतनी बुरी लगी कि कुछ ही दिनों में अफसाना और सुहेल का तलाक
हो गया.

अफसाना और उस के घर वालों ने सुहेल को बहुत समझाने की कोशिश की, अफसाना ने भी अपनी गलती की माफ़ी मांगी, पर सुहेल अपनी जिद पर अड़ा रहा.

अफसाना की जिंदगी देखते ही देखते बरबाद हो चुकी थी और उस के मन में शहाना के लिए नफरत भर चुकी थी.

घर वाले अब शहाना के लिए रिश्ता ढूंढ़ने में लगे थे. कई रिश्ते आ भी रहे थे, पर जब भी वे शहाना को देखने आते तो अफसाना उन के सामने अपनी बहन की खूबसूरती की तारीफ करतेकरते यह भी बता देती कि शहाना इतनी खूबसूरत है कि इस के हुस्न के दीवाने कुंआरे ही क्या, शादीशुदा भी हैं. वह अपने शौहर वाली बात का भी जिक्र कर देती थी कि वे तो शहाना को गोद में उठाए फिरते थे.

अफसाना की ऐसी बातें सुन कर रिश्ते वाले रिश्ता करना तो दूर मुंह बना कर वहां से चले जाते थे.

शहाना समझ चुकी थी कि उस की बहन उस के लिए जलन रखती है. वह नहीं चाहती है कि उस का घर बसे और वह खुश रहे.

पर एक दिन अफसाना जब अपनी खाला के घर गई थी, तो शहाना को देखने वाले आए और उसे पसंद कर के उन्होंने रिश्ता तय कर दिया.

जब अफसाना को इस बात का पता चला तो वह उन के घर पहुंच गई और बोली, ‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया, जो आप ने मेरी बहन को पसंद किया और शादी के लिए हां बोल दी.’’

लड़के ने कहा, ‘‘इस में शुक्रिया की क्या बात है. आप की बहन शहाना है ही इतनी खूबसूरत कि जो भी उसे देखे, बस देखता रह जाए.’’

अफसाना बोली, ‘‘आप ने एकदम सही कहा. शहाना जैसी खूबसूरत लड़की तो लाखो में एक होती है. उस की खूबसूरती के तो शादीशुदा मर्द भी दीवाने हैं.’’

लड़के के अब्बा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘क्या मतलब? हम समझे नहीं?’’

अफसाना ने कहा, ‘‘मेरे शौहर तो शहाना के ऐसे दीवाने थे कि उन्हें अपनी बीवी से ज्यादा उसी में लगाव था. उसे हर वक्त अपनी बांहों में उठाए फिरते थे और उसी की खातिर मुझे तलाक दे दिया.’’

यह बात सुन कर लड़के के अब्बा ने कहा, ‘‘कितने घटिया लोग हैं. हमें नहीं करनी ऐसी लड़की से शादी जो अपने जीजा के साथ रंगरेलिया मनाती हो.’’

अगले ही दिन उन लोगों ने शहाना से यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि हम तो इसे सीधीसादी लड़की समझ रहे थे. हमें क्या मालूम था कि यह अपने जीजा के साथ भी चक्कर चला चुकी है.

शहाना के घर वालों को यह समझते देर न लगी कि जरूर उन के कान अफसाना ने भरे हैं. अफसाना इस हद तक गिर जाएगी, उन्होंने सोचा भी न था.

इसी तरह 3 साल गुजर गए. न तो कोई अफसाना को ही अपना पा रहा था और शहाना का भी रिश्ता नहीं हो पा रहा था. दोनों बहनें एकदूसरे से बहुत ज्यादा जलने लगी थीं.

थोड़ा वक्त और गुजरा तो शहाना के लिए एक जगह रिश्ता भी मिल गया. लड़का शाहिद शहाना के हुस्न का दीवाना बन बैठा था और वह किसी भी कीमत पर उस से शादी करने को तैयार था.

इस बार अफसाना की कोई भी बात उस रिश्ते पर नहीं चली. उन्होंने यह कह कर अफसाना को नजरअंदाज कर दिया कि शादी से पहले जो कुछ हुआ, उस से हमें कोई लेनादेना नहीं है.

अफसाना ने बात का रुख मोड़ते हुए कहा, ‘‘वाह, क्या बात है. मुझे बहुत खुशी हुई आप लोगों से मिल कर. दरअसल, मैं भी खुले विचारों वाली ही हूं.’’

अगले दिन अफसाना शाहिद को फोन करते हुए बोली, ‘‘जीजू, क्या कर रहे हो. अगर फुरसत हो तो मेरे साथ बाजार चलो, कुछ खरीदारी करनी है.

शाहिद बोला, ‘‘ठीक है. मैं आप के घर आता हूं. वहीं से दोनों साथ चलेंगे.’’

अफसाना की चाल कामयाब हो गई. वैसे भी शहाना अम्मीअब्बू के साथ खरीदारी करने गई थी. अफसाना ने अपनेआप को संवारा और एक हलकी से गुलाबी रंग की ?ानी नाईटी पहन कर शाहिद के आने का इंतजार करने लगी.

कुछ ही देर में दरवाजे पर दस्तक हुई. अफसाना ने फौरन दरवाजा खोला, तो सामने शाहिद खड़ा था.

अफसाना बोली, ‘‘जीजू, आप अंदर आ जाओ. अम्मीअब्बू शहाना को ले कर कहीं गए हैं.

शाहिद अफसाना का यह रूप देख कर हैरान था. उस की नजरें अफसाना की उठी हुई छातियों पर टिकी हुई थीं.

अफसाना बोली, ‘‘जीजू, आप क्या देख रहे हो…’’ फिर अपने बदन को शाहिद के करीब लाते हुए वह बोली, ‘‘आप क्या पियोगे जीजू?’’

शाहिद के बदन से जैसे ही अफसाना का बदन का छुआ, उस के बदन में एक अजीब बिजली दौड़ पड़ी. अफसाना भी मस्त हो रही थी.

अफसाना की यह अदा शाहिद के अंदर हवस का तूफान मचाने लगी. उस ने अफसाना की उठी हुई छातियों पर अपना हाथ रख दिया.

‘‘बस इतना ही करोगे क्या?’’ अफसाना सिसक कर बोली.

यह सुनते ही शाहिद ने अफसाना को अपनी बांहों में भर लिया और उस की छातियों पर अपने होंठ रख दिए.

अफसाना ने अपने बदन से नाइटी को ढीला कर दिया और खुद को शाहिद की बांहों में सौंप दिया.

शाहिद पागलों की तरह अफसाना के बदन का रसपान करते हुए उस के बदन से खेलने लगा.

अफसाना मौका देख कर शाहिद और अपने बीच चल रहे प्रेमप्रसंग के फोटो लेती रही.

दोनों जज्बात में बहते रहे और एकदूसरे के बदन से खेलते रहे. अपने बदन की प्यास बुझते ही शाहिद अचानक उठा और वहां से चला गया. अफसाना ने तब तक अपनी और शाहिद की रासलीला की वीडियो क्लिप तक बना ली थी.

शाम को जब शहाना और उस के घर वाले वापस आए, तो अफसाना ने अपने और शाहिद के बीच हो रहे प्रेमप्रसंग की वीडियो क्लिप अपनी बहन शहाना को दिखाते हुए कहा, ‘‘लो देखो अपने होने वाले शौहर की करतूत.’’

शहाना ने जैसे ही अफसाना और शाहिद के फोटो और वीडियो क्लिप देखी, तो वह फूटफूट कर रोने लगी और अपने अम्मीअब्बू से बोली, ‘‘मुझे नहीं करनी ऐसे आदमी से शादी, जो शादी से पहले ही मेरी बहन के साथ ऐयाशी करता हो.’’

इस तरह अफसाना ने शहाना का यह रिश्ता भी अपने जिस्म का सहारा ले कर तुड़वा दिया.

अफसाना के दिल को सुकून मिला और उस की शहाना के लिए पनपी जलन ने दोनों बहनों के रिश्ते को दुश्मनी की ऐसी आग में झोंक दिया, जिस में शहाना का घर कभी नहीं बस पाया. Hindi Family Story

Social Story In Hindi: अमीर भिखारिन

Social Story In Hindi: ‘‘यह क्या है? मैं 10 रुपए से कम नहीं लेती,’’ जैसे ही वरुण ने एक रुपए का सिक्का उस भिखारिन के हाथ पर रखा, तो यह जवाब सुन कर वह हैरान रह गया.

सफेद बालों वाली उस औरत के चेहरे पर तेज था और आवाज के साथसाथ भाषा पर भी अधिकार.
वरुण ने चुपचाप 50 रुपए का नोट निकाला और उस औरत की हथेली पर रख कर पूछा, ‘‘आप तो किसी अच्छे घर की जान पड़ती हैं, फिर यह भीख मांगना समझ नहीं आया?’’

50 रुपए के नोट को खोल कर परखती वह भिखारिन बोली, ‘‘मैं कभी एक अमीर घर से ताल्लुक रखती थी, पर अब मैं यह जो हूं, वह मैं हूं.’’

वरुण उस औरत के बगल में बैठ गया और बोला, ‘‘मैं एक पत्रकार हूं और एक लेखक भी. आप का इतिहास शायद एक उम्दा कहानी समेटे हुए है. अगर आप को एतराज न हो तो मेरे जिज्ञासु मन को शांत करने में मेरी मदद करेंगी?’’

वह औरत जोर से हंसी और बोली, ‘‘जरूर बताऊंगी, पर 500 रुपए फीस लूंगी. बोलो, मंजूर है?’’

वरुण ने जेब टटोली तो 200 रुपए का एक नोट मिला. उस औरत को नोट थमाते हुए वह बोला, ‘‘अभी मेरे पास इतने ही हैं. मैं फिर आ कर बाकी पैसे भी दे दूंगा, पर मुझे आप की कहानी अभी जानने की इच्छा है.’’

वह औरत इस बार धीरे से मुसकराई, कुछ पल वरुण के चेहरे को घूरा, फिर बोली, ‘‘चल, पप्पू चाय वाले के पास चलते हैं. वहां चाय की चुसकी लेते हुए बात करेंगे.’’

अब वे दोनों पैदल 400 मीटर दूर पप्पू चाय वाले की दुकान की तरफ बढ़ चले. चलते ही भिखारिन ने बोलना शुरू किया, ‘‘मेरा नाम प्रभजोत कौर है, पर यहां हरिद्वार में मुझे जानने वाले ‘अमीर भिखारिन’ के नाम से ही जानते हैं. यहां मेरी खूब चलती है. सारे भिखारी मेरी बात मानते हैं. किसी का कोई झगड़ाटंटा होता है, तो मैं ही उस का निबटारा करती हूं. 5 साल हो गए मुझे यहां आए हुए, पर लगता है कि कई सालों से मैं यहीं रह रही हूं.’’

‘‘आप पहले कौन से शहर में रहती थीं?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘सब बताऊंगी, थोड़ा शांति से सुनो. मैं लुधियाना में पलीबढ़ी हूं. मेरे पिता बैटरी का बिजनैस करते थे. मैं पढ़ने में ठीकठाक थी, पर बाकी गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

‘‘शुरू से ही मुझे खूबसूरत दिखने का शौक था, इसलिए 12वीं क्लास पास होते ही मैं ने ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. घर में किसी तरह की रोकटोक नहीं थी, इसलिए मनमरजी से जो करना चाहती, वह कर लेती थी.

‘‘2 साल में मैं ‘मिस लुधियाना’ और फिर ‘मिस चंडीगढ़’ बन गई. जिस दिन मैं ‘मिस चंडीगढ़’ बनी उसी दिन मेरी मुलाकात मनजीत से हुई. वह एक अमीर नौजवान था. उस के 4 शहरों में बड़ेबड़े होटल थे.
‘‘मनजीत मुझ पर फिदा हो गया था और मुझ से शादी करना चाहता था. मुझे भी वह पसंद आने लगा और हमारी शादी हो गई. मैं आजादखयाल लड़की अमृतसर के एक 15 लोगों के संयुक्त परिवार में रहने आ गई.’’

अब तक चाय का गिलास प्रभजोत कौर के हाथ में आ चुका था. उस ने एक गरम घूंट गले से उतारा और फिर कहना शुरू किया, ‘‘बहुत अमीर परिवार था. कार एजेंसी, होटल, टायर बहुत तरह के बिजनैस थे. बेहिसाब कमाई, महल जैसा घर, महंगी विदेशी गाडि़यां. कुलमिला कर मैं तो वहां की चकाचौंध में सब
भूल गई.

‘‘एक साल तो ऐसे ही बीत गया. मनजीत अकसर होटल के काम से बाहर जाता रहता था. मेरी सास बहुत खड़ूस थी. वह दिनभर ताने मारती रहती थी. मनजीत के घर पर न होने पर तो वह हद ही कर देती थी. मुझ से पता नहीं क्यों चिढ़ी रहती थी. शायद वह अपने बेटे का ब्याह किसी और लड़की के साथ कराना चाहती थी.’’

‘‘आगे क्या हुआ?’’ वरुण ने पूछा.

चाय का आखिरी घूंट भरते हुए प्रभजोत कौर ने चाय वाले को इशारा करते हुए कहा, ‘‘एक चाय और…’’ फिर गहरी सांस भरते हुए वरुण से बोली, ‘‘बस, फिर धीरेधीरे मेरे अपनी सास से संबंध खराब होते चले गए.

‘‘मैं ने भी ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर दिया. अब आएदिन घर में क्लेश होने लगा. मनजीत ने बीचबचाव करने की कोशिश की, पर सुलह न हो सकी.

‘‘इस किचकिच से दूर रहने के लिए मैं ने फिर से मौडलिंग स्टार्ट कर दी. अब तो सास ने और तहलका मचाना शुरू कर दिया. उस ने मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठाना शुरू कर दिया. मेरा घर पर रहना दूभर हो गया.

‘‘मैं ने कई बार मनजीत से अलग रहने की बात कही, पर वह हर बार साथ रहने के लिए मुझे मना लेता, क्योंकि कोई भी अब तक उस घर से अलग नहीं हुआ था, इसलिए वह यह बुराई अपने सिर लेने से बचना चाहता था.

‘‘मेरा मन बहुत बैचेन रहने लगा, पर कुछ भी सम?ा नहीं आ रहा था. एक दिन मौडलिंग करते हुए एक साथी ने मुझे दवा के नाम पर कोई नशीली चीज पिला दी. मैं तो जैसे दूसरी दुनिया के सुख में पहुंच गई. सबकुछ भूल गई. पहले हफ्ते में एक बार, फिर रोज ड्रग्स लेना शुरू हो गया.

‘‘एक दिन शाम को मैं ड्रग्स के नशे में घर पहुंची, तो घर पर सास अकेली थी. मुझे देखते ही वह मुझ पर राशनपानी ले कर चढ़ गई. ‘कुल्टा’, ‘कुलच्छनी’, ‘आवारा’ और न जाने वह मुझे कौनकौन सी गालियां दिए जा रही थी और बिना बोले मेरा गुस्सा अंदर ही अंदर बढ़ता जा रहा था.

‘‘जब सहा नहीं गया तो मैं ने किचन में जा कर बड़ा सा चाकू उठाया और सीधे अपनी सास के सीने में घोंप दिया. मेरे हाथों खून हो चुका था, पर मुझे बड़ा सुकून मिला. पर थोड़ी देर के बाद मु?ो अहसास हुआ कि मैं ने यह क्या कर दिया.

‘‘थोड़ी देर बाद ही मेरी एक जेठानी आई और फिर उस ने सब को बुलाया. मैं चुपचाप वहीं बैठी रही. पुलिस आई और मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. मेरे मातापिता ने भी मुझ से मुंह मोड़ लिया. 7 साल की जेल हुई. कोई मुझ से मिलने तक नहीं आया. मैं दिमाग से सुन्न हो चुकी थी.

‘‘7 साल की जेल से मैं बुरी तरह टूट गई. बाहर आई तो कोई लेने नहीं आया. अपनी ससुराल गई तो दुत्कार कर वहां से भगा दिया गया. मांबाप को फोन किया, तो उन के रूखे जवाब ने मेरा मन तोड़ दिया.

‘‘एक जोड़ी कपड़े और जेल में कमाए कुछ पैसे ले कर मैं ट्रेन में बैठ कर दिल्ली आ गई. मौडलिंग के कुछ जानकार लोगों से मदद की गुहार लगाने की कोशिश की, पर सब जगह मेरे किए गए कांड की खबर पहुंच चुकी थी.

‘‘दिल्ली में बिताए साल जहन्नुम से कटे. कभी भीख मांगी, कभी शरीर बेचा, तो कभी ?ाड़ूबरतन किए. बस, किसी तरह जिंदा थी.

‘‘मैं एक घर में झाड़ूपोंछा करती थी. वहां एक बूढ़ी माई को उस के बहूबेटा बहुत सताते थे. एक दिन उस ने मुझे हरिद्वार चलने के लिए पूछा, तो मैं ने अनमने मन से ‘हां’ कह दिया.

‘‘वह बुढि़या घर पर बिना बताए मेरे साथ हरिद्वार आ गई. हम कुछ महीने धर्मशाला में रहे, पर न उसे ढूंढ़ता कोई आया, न उसे किसी की याद आई. वह मेरा बच्चे की तरह खयाल रखती और मैं भी उस की आदर के साथ हर मदद करती. उस का अब यहीं रहने का मूड था और मुझे भी यह शहर भाने लगा था.

‘‘फिर एक दिन वह बुढि़या अचानक चल बसी. उन की इच्छा को ध्यान में रखते हुए बिना उस के बेटे को बताए वहीं अंतिम संस्कार कर दिया. मैं फिर सड़क पर थी. अब तक सब शर्म, शिकवे और झिझक खत्म हो चुके थे. खुली जबान से इंगलिशहिंदी बोल कर लोगों से भीख मांगना शुरू कर दिया. अच्छी भीख मिलने लगी, पर अब पेट की भूख शांत करने के सिवा कोई चाह नहीं थी, तो भिखारियों से ही दोस्ती हो गई.

‘‘अब इन के साथ ही जिंदगी अच्छी कट रही है. अब ये ही मेरे दुखसुख के साथी हैं. मंडली में रोज कोई नया सदस्य जुड़ जाता है. सब कोई न कोई अलग कहानी समेटे हुए हैं. इन के साथ प्यारमुहब्बत से रहना सीख रही हूं,’’ ऐसा बोलते हुए प्रभजोत कौर ने एक लंबी सांस खींची और चुप हो गई.

वरुण भी कुछ देर खामोश रहा, फिर बोला, ‘‘आप के मातापिता ने भी कभी आप को तलाशने की कोशिश
नहीं की?’’

‘‘बाबू, यह दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती. सब अपने तरीके को सही मानते हुए जीते हैं. पर यहां आ कर मुझे समझ आया कि जीना सिर्फ अपने लिए नहीं होता, बल्कि यह तो दूसरों के लिए होता है.

‘‘यहां मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी मैं दिल से अमीर हूं, इसलिए लोग मुझे ‘अमीर भिखारिन’ कहते हैं…’’

यह कहते हुए प्रभजोत कौर ने अपने हाथ में रखा 200 रुपए का नोट वरुण को लौटाते हुए कहा, ‘‘अभी इस की तुम्हें ज्यादा जरूरत है. मेरे लिए तो यह 50 रुपए का नोट ही काफी है. तुम्हें और तुम्हारी इनसानियत को परखने के लिए मैं ने ये पैसे लिए थे.

‘‘मैं उम्मीद करती हूं कि तुम्हें एक कहानी लिखने का अच्छा मसाला मिल गया होगा. हां, इस की न्यूज मत बनाना, क्योंकि गुमनामी में जीने का जो मजा है, वह ज्यादा पहचान के साथ नहीं है. यह मैं दोनों को अनुभव करने के बाद कह रही हूं. यह ‘अमीर भिखारिन’ तुम्हें खुश रहने का आशीर्वाद देती है.’’ Social Story In Hindi

Bollywood Latest Updates: रिया चक्रवर्ती का बुरा हाल

Bollywood Latest Updates, रिया चक्रवर्ती का बुरा हाल

रिया चक्रवर्ती का नाम सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े केस में सामने आया था और वे जेल भी गई थीं. लेकिन अब रिया इस केस से बरी हो गई हैं और उन पर कोई आरोप साबित नहीं हुआ. पर तब से ले कर आज तक उन का फिल्म कैरियर जहां का तहां रह गया है. साथ ही, उन के भाई शोविक का कैरियर भी ठप हो गया.

रिया चक्रवर्ती ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘जब हम उस ट्रैजिडी से गुजर रहे थे, तो हम दोनों ने अपना कैरियर खो दिया था. मुझे ऐक्टिंग का काम मिलना बंद हो गया था. ‘कैट’ में शोविक के 96 परसैंटाइल आए थे. लेकिन यह भी उसी समय हुआ था, जब वह अरैस्ट हुआ था. उस का एमबीए कैरियर और फ्यूचर की प्लानिंग भी खत्म हो चुकी थी.

‘‘इस के बाद उस के लिए काम मिलना बहुत मुश्किल था. कुछ समय के लिए हमें समझ ही नहीं आ रहा था कि जिंदगी कहां जा रही है.’’

अब रिया चक्रवर्ती ने अपना पहला क्लोदिंग (कपड़ों का) स्टोर खोला है, जिस का नाम उन्होंने ‘चैप्टर 2’ रखा है.

विशाल जेठवा ने बयां किया दर्द

हिंदी फिल्म ‘मर्दानी 2’ में रानी मुखर्जी की नाक में दम करने वाले विलेन विशाल जेठवा अब फिल्म ‘होमबाउंड’ में ईशान खट्टर और जाह्नवी कपूर के साथ नजर आएंगे. इस फिल्म को कान फिल्म फैस्टिवल में दिखाया गया था, जहां 9 मिनट तक लोगों ने खड़े हो कर तालियां बजाई थीं.

विशाल जेठवा ने बताया कि वे कान फिल्म फैस्टिवल में जाने से डर रहे थे, क्योंकि वे बहुत गरीब परिवार से आते हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, ‘‘मैं एक कामवाली बाई का बेटा हूं. मेरी मां ने लोगों के घर पर झाड़ूपोंछा किया है. वे एक सुपरमार्केट में सैनेटरी पैड बेचती थीं. मेरे पिता नारियल पानी बेचते थे. मैं ने यह सब देखा है.’’

विशाल जेठवा ने यह भी बताया कि फिल्म ‘होमबाउंड’ में उन का निभाया गया किरदार उन से काफी हद तक मिलताजुलता है, क्योंकि वे एक गरीब परिवार से आते हैं.

जब सोनम कपूर को सरेआम छेड़ा

सोनम कपूर ने अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत साल 2007 में आई फिल्म ‘सावरिया’ से की थी. उन्होंने ‘रांझणा’, ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘संजू’, ‘प्रेम रतन धन पायो’, ‘नीरजा’, ‘वीरे दी वैडिंग’ जैसी फिल्मों में दर्शकों को खूब ऐंटरटेन किया.

हाल ही में एक इंटरव्यू में सोनम कपूर ने बताया कि बचपन में उन के साथ ऐसा हादसा हुआ था, जो उन के लिए काफी डरावना था.

सोनम कपूर ने आगे बताया, ‘‘मैं अपने दोस्तों के साथ गैटी गैलेक्सी थिएटर में रवीना टंडन और अक्षय कुमार की फिल्म देखने गई थी. उस वक्त मेरी उम्र कुछ 13-14 साल होगी. हम सभी लड़कियां समोसा खरीदने गईं. ऐसे में कोई आदमी पीछे से आया और उस ने मेरे ब्रैस्ट दबोच लिए. ऐसा होने पर मैं कांप गई. मैं पूरी तरह से अंदर से हिल गई. मैं बस रोने लगी.’’

मुजम्मिल इब्राहिम का सनसनीखेज दावा

ऐक्टर मुजम्मिल इब्राहिम ने एक इंटरव्यू में दावा किया है कि उन्होंने हीरोइन दीपिका पादुकोण को मुंबई में उन के शुरुआती दिनों में 2 साल तक डेट किया था.

मुजम्मिल इब्राहिम ने एक पौडकास्ट पर दीपिका पादुकोण के बारे में बताया, ‘‘हम ने मौडलिंग के दिनों में डेट किया था. उस ने मुझे ‘ग्लैडरैग्स’, ‘परदेसिया’ और ऐसी ही दूसरी फिल्मों में देखा था और वह मुझे बहुत पसंद करती थी.

‘‘मैं उस समय एक स्टार था, वह नहीं थी. वह एक मौडल थी, लेकिन मैं पहले ही एक ऐक्टर बन चुका था. हम दोनों उस समय बहुत छोटे थे और जब हम शहर में बारिश के दौरान आटोरिकशा में घूमते थे, तो यह बहुत अच्छा लगता था.’’

मुजम्मिल इब्राहिम ने साल 2007 में हिंदी फिल्म ‘धोखा’ से अपना ऐक्टिंग डैब्यू किया था.

Social Problem: स्कैम का जन्म

Social Problem, लेखिका सावित्री रानी

हमारे इस मौडर्न और हाईटैक समाज की नई और जबरदस्त खोज या कहिए कि नई टैक्निकल बीमारी है डिजिटल स्कैम, जो धीरेधीरे समाज की नसों में अपनी जगह बना रही है. स्पैम काल कहो या अकाउंट हैकिंग या फिर साइबर क्राइम, सब इसी बीमारी के भाईबंधु हैं और आज के समाज का कोई भी शख्स इस नई खतरनाक समस्या से अनजान नहीं है.

स्कैमर आज के पढ़ेलिखे समाज का वह डाकू है, जो अपने अड्डे से निकलने की जहमत उठाए बगैर किसी को भी लूट सकता है और लुटने वाले के पास बचने का कोई रास्ता नहीं छोड़ता, क्योंकि वह पहला अटैक इनसान की सोचनेसमझने की ताकत पर ही करता है.

हमारे दिमागों से गोटी खेलते ये ‘स्कैम भाई साहब’ अपने का पुरजोर ऐलान करते हुए हर जगह अपनी हाजिरी दर्ज करा चुके हैं. आज हर किसी को, कभी न कभी, कहीं न कहीं, इन भाई साहब के दिमाग से उपजे कांड का नमूना पढ़ने, सुनने और देखने को मिल जाता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो आप के शरीर से पहले आप के बैंक अकाउंट पर अटैक करती है. खून आप के शरीर से तो नहीं बहता, लेकिन आप के पैसे पर की गई चोट किसी को भी खून के आंसू रुलाने के लिए काफी होती है.

हर बार जब हम किसी स्कैम के बारे में सुनते हैं, तो इन स्कैमर्स के दिमाग की दाद दिए बिना नहीं रह पाते. इनसानी फितरत को ये लोग कितना बखूबी सम?ाते हैं और कितनी सफाई से इस कला का इस्तेमाल अपनी जेबें भरने के लिए करते हैं, यह बात सचमुच काबिल ए तारीफ है.

फर्स्ट वर्ल्ड कहे जाने वाले बहुत ज्यादा विकसित देशों की अकेली अमीर औरतों को बड़ी सफाई से ये लोग चूना लगाते हैं. इन के इशारों पर हिप्नोटाइज सी डोलती ये अबलाएं, अपने सपनों के शहजादों को पाने की खुशी में पूरी तरह डूबी होती हैं. परफैक्ट मैन जैसी कोई चीज दुनिया में न सिर्फ उपलब्ध है, बल्कि अब उन्हें बस मिलने भी वाली है, इस निराली खुशी के सामने भला कुछ लाख डौलर क्या माने रखते हैं.

सभी इनसानी खूबियों को गूंथ कर बना, जो मानवपुत्र इन के ख्वाबों में बसाया जाता है, वह तो आंख खुलते ही गायब हो जाता है, लेकिन बैंक अकाउंट के बदले नंबर वही रहते हैं. यानी जब तक ये बेचारी नींद से जागें और हालात को समझें, तब तक तो उन के राजकुमार के साथ उन का बैंक अकाउंट भी उन से बेवफा हो चुका होता है.

हमारे अति बुद्धिमान टैक धुरंधरों के बड़े से बड़े प्रोडक्ट का तोड़ निकालने में ये लोग समय नहीं लगाते. इधर प्रोडक्ट आया, उधर उस का तोड़ निकला और इस से पहले कि हमारे टैक्निकल महापुरुष संभलें, सोचे और कुछ करें, ये महानुभाव लोगों को मोटा चूना लगा कर अपनी जेब सहला चुके होते हैं. फिर बस आप लकीर पीटते रहिए, सांप तो निकल गया.

साइबर स्कैम इस कद्र हमारे समाज का हिस्सा बनता जा रहा है कि किसी भी सिक्योरिटी के दायरे को इस से सिक्योर रख पाना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है. आज की दुनिया को कोई और एक सूत्र में बांध सका हो या नहीं, लेकिन स्कैमर्स ने यह काम अपने तरीके से बखूबी किया है. उन की नजर में सब बराबर हैं.

विकसित देश हो या विकाशसील या फिर गरीब देश ही क्यों न हो, हमारे ये समानता के पुजारी सब को एक ही नजर से देखते हैं. इन्हें हर चलताफिरता इनसान एक बकरा और हर किसी की जेब अपनी सी ही लगती है. इस को कहते हैं दुनिया बराबर करना, जो हमारे बड़ेबड़े नेता तो बस कहते ही रह गए, लेकिन इन अकाउंट भक्तों ने कर दिखाया.

किसी ने इस समस्या का एक पक्ष देखा है तो किसी ने दूसरा. किसी के अकाउंट पर गाज गिरी है तो किसी के फोन को हैक कर के ही, उस के दोस्तों व रिश्तेदारों तक को चूना लगाया गया है. कोई अगर इस जाल में अभी नहीं फंसा तो इस का यह मतलब कतई नहीं है कि वह बहुत बुद्धिमान है. इस का सिर्फ एक ही मतलब है कि उस का नंबर अभी नहीं आया.

अब यह समस्या और भी भीषण है, यह तो सब को पता है, लेकिन समाधान के नाम पर सब चुप.

हमारे महान दार्शनिक हमेशा से कहते आए हैं कि हर समस्या अपने समाधान के साथ ही जन्म लेती है, बस उसे देखने वाली नजर और समझने वाला नजरिया चाहिए. तो ठीक है उसी नजरिए से देख लेते हैं. अब किसी भी दुश्मन को मिटाने के 2 ही तरीके हैं, या तो दुश्मन खत्म कर दो या दुश्मनी.

अब अगर दुश्मन कमजोर है, तब तो कोई समस्या ही नहीं है. कमजोर को मिटाने में तो हम वैसे भी माहिर हैं फिर चाहे वह गरीब मजदूर हो, किसान हो या फिर कोई पिछड़ा अल्पसंख्यक. रही बात ताकतवर की तो उस की ओर तो दोस्ती का हाथ ही बढ़ाया जा सकता है. इतिहास गवाह है कि पहाड़ से सिर टकराने
पर सिर ही फूटता है, पहाड़ का कुछ नहीं बिगड़ता.

अब देखिए, जब शराब और सिगरेट के पहाड़ से सिर टकरा टकरा कर समाज थक गया और बीमारी, गरीबी, पारिवारिक असुरक्षा, कोई भी डर चेन स्मोकर्स और शराबियों को उन की राह से न हिला सका, तो थकहार कर सरकार ने भी नशा और धूम्रपान निषेध के नाम पर हर सिगरेट की डब्बी और शराब
की बोतल पर लिखवा दिया कि ‘शराब और धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ और अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिए.

अब इन नुकसानदायक चीजों से लाभदायक टैक्स बटोर कर, हमारे शराबी भाइयों को देश की अर्थव्यवस्था को संभालने का मजबूत खंभा ही बता दिया. हींग लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा आ गया. देखी अपनी चतुराई, है न गजब का कमाल.

तो पिछले अनुभवों से सीख लेते हुए क्या हमें स्कैम इंडस्ट्री को भी सिगरेट और शराब की तरह कानूनी कर देना चाहिए? क्या ‘यह’ दुश्मन भी पहाड़ बन चुका है, जिस से सिर ही फूटता है? क्या यह दुश्मन भी दुश्मन मिटाने वाले दायरे से निकल चुका है?

शायद हां, शायद न. अब न की हालत में तो कोई समस्या ही नहीं है, बस एक और कमजोर को कुचलना है. फिर यह तो दुश्मन भी है.

लेकिन, लेकिन… इस बड़े ‘लेकिन’ का क्या किया जाए जो मुंह बाए हमारी ओर बढ़ा चला आ रहा है? तो क्या एक बार फिर इस दुश्मन को नहीं, दुश्मनी को मिटाना होगा? क्या एक बार फिर इसे बैंक अकाउंट के स्वास्थ्य के लिए ‘हानिकारक, समाज और मानवता के लिए हानिकारक’, लिखवा कर इन स्कैमस को भी डब्बियों और बोतलों में भर कर बेचना होगा?

सोचो, सोच कर देखो कि अगर ऐसा हुआ तो किसकिस लैवल पर बदलाव किए जाएंगे और क्याक्या फायदेनुकसान, किसकिस को मिलने और झेलने होंगे. यह एक व्यंग्यकार की उड़ान है. आप भी सवारी का मजा लीजिए और मजे को साथ ले जाइए, सवारी नहीं.

इतिहास गवाह है कि जिस से जीता न जा सके उस दुश्मन से हाथ मिला लेना चाहिए. जो खिलाड़ी जितना मजबूत हो, उस का अपनी टीम में खेलना उतना ही जरूरी है.

इस ज्ञान के साए तले क्या हमें स्कैम इंडस्ट्री को भी कानूनी कर देना चाहिए, जैसे सिगरेट और शराब को किया गया था? अगर हां, तो फिर बहुत से बदलाव बेसिक ढांचे से ही शुरू करने होंगे.

स्कैम कोर्स स्कूल के सिलेबस में शामिल करने होंगे और हर सर्टिफिकेट पर लिखवाना होगा ‘स्कैम समाज के लिए हानिकारक हैं’. समाज की जिम्मेदारी से पल्लू झाड़ने का फुलप्रूफ तरीका. बाकी सवारी अपने समान की खुद जिम्मेदार है.

इस के अलावा डिगरी लैवल के कोर्स यूनिवर्सिटी में करवाए जाने होंगे. किस ने, कितने लोगों को, कितने का चूना लगाया है, यह सिलैक्शन का आधार होगा. ऐंट्रैंस ऐग्जाम किताबी कीड़ों के नहीं, असली खिलाडि़यों के अनुभवों पर आधारित होंगे. नकल की कोई गुंजाइश ही नहीं. असली शुद्ध क्रीम ही चुन कर आएगी.

यों भी हमारी डिगरियां आज नौजवानों को नौकरी दिलवाने में तो मददगार ही होती हैं, ऊपर से उन्हें हाथ से काम करने लायक भी नही छोड़तीं. फिर आजकल पोस्ट स्कूल नौलेज तो ह्वाट्सअप यूनिवर्सिटी मुफ्त में मुहैया कर ही रही है, तो उस के लिए भला स्कूलकालेज खोल कर क्यों टाइम और पैसा खोटी करने का रे बाबा. यह बाबू राव का स्टाइल है. कुछ करने का नहीं रे बाबा.

इधर बैंकों को भी चाहिए कि स्कैमर्स को महंगी मैंबरशिप औफर करें, जिस से हैकर्स को बैंक अकाउंट में बेरोकटोक ऐंट्री मिल सके और बैंकों को मोटी फीस.

वैसे भी आजकल बैंकों के महंगे कर्मचारी बैंकिंग का काम छोड़ कर, पौलिसी बेचने वाले दलाल ही तो बन कर रह गए हैं. क्या मजाल किसी टैक्निकल जाल में फंसे ग्राहक की खातिर जरा भी टस से मस हो जाएं, लेकिन एक बार इन की पौलिसी खरीद लो, दामाद की तरह आप की खातिरदारी करेंगे. तो बस स्कैमर्स की मोटी फीस इन की टपकती लार को भी दोबाला (दोगुना) कर देगी.

इस के साथ ही स्कैमर्स का इनकम टैक्स भी बाकी लोगों के मुकाबले ज्यादा होना चाहिए. इस से सरकारी खेतों को भी पानी मिलता रहेगा. इस के लिए सरकार को ज्यादा कुछ करना भी नहीं होगा, बस कभीकभार स्कैमर्स की भलाई के लिए एकाध अमैंडमैंट करना होगा. इतने से ही सरकार की कमाई का चांद रातोंरात पूर्णिमा को प्राप्त हो जाएगा.

देश के नौजवानों को रोजगार मुहैया न करवाने की जो तोहमत सरकार पर बरसों से लगती आई है, उस का समाधान भी इसी खेत के एक कोने में आसानी से उगाया जा सकता है.

इस मुहिम में लोकल यूथ को शामिल कर के, बेरोजगारी के कलंक से भी छुटकारा मिल सकता है.
लोकल यूथ को फटाफट छोटेमोटे क्रैश कोर्स करवा कर ग्रास रूट लैवल पर खड़ा किया जा सकता है. हजारों गरीबों को रातोंरात काम मिल जाएगा और सरकार को वोटों का आशीर्वाद.

यों भी साइबर क्राइम वाले, जामताड़ा और दूसरे पिछड़े इलाकों से औपरेट कर के, पहले से ही आदिवासियों और पिछड़े इलाकों में अपनी सेवाएं शुरू कर ही चुके हैं. अब किसी को तो पिछड़े इलाकों के विकास के बारे में भी सोचना होगा न. महानगरों के विकास के चूल्हे पर कब तक रोटी पकाइएगा. इधर नूह को अपना हैडक्वार्टर बनाने वाले भी अल्पसंख्यकों के ही हमदर्द लगते हैं.

यह एक व्यंग्यकार की खयाली थाली है. इसे दिल पर न लें. अगर इसे पचा न सकें, तो अगली गोली का इंतजार करें. Social Problem

Family Story In Hindi: मोटी बहू – भव्या को देख गीता की ख्वाहिश कैसे अधूरी रह गई

Family Story In Hindi: गीता और विपिन बहुत उत्साहित थे. आज उन का बेटा पराग अपनी गर्लफ्रैंड भव्या को उन से मिलवाने लाने वाला था. पराग से 5 साल छोटी वन्या अभी पढ़ रही थी. पराग इंजीनियर था. भव्या उस की कुलीग थी. आधुनिक सोच वाले गीता और विपिन को पराग की पसंद की लड़की को अपनी बहू बनाने में कोई आपत्ति न थी.

भव्या पंजाबी परिवार से थी जबकि गीता और विपिन ब्राह्मण थे. किसी के लिए जातिधर्म का महत्त्व नहीं था. भव्या के मातापिता की कुछ वर्ष पहले एक ऐक्सिडैंट में मृत्यु हो गई थी. जालंधर में रह रहे उस के मामामामी ही उस के गार्जियन थे.

भव्या मुंबई के अंधेरी इलाके में 4 लड़कियों के साथ एक फ्लैट शेयर कर के रहती थी. गीता ने बड़े मन से भव्या के लिए लंच तैयार किया था. गीता, विपिन और वन्या फिगर के प्रति एकदम सचेत रहते थे. गीता और विपिन तो फिगर और स्वास्थ्य के प्रति इतने सजग थे कि उन्हें देख कर पता ही नहीं चलता था कि उन के इतने बड़े बच्चे हैं, तीनों एकदम स्लिमट्रिम लेकिन जंकफूड के शौकीन पराग ने बाहर का खाना खाखा कर काफी वजन बढ़ा लिया था, जिस के लिए तीनों उसे टोकते रहते थे. गीता ने तो मजाकमजाक में कई बार कहा था, ‘पराग, आजकल लड़कियां भी मोटे लड़कों को पसंद नहीं करतीं, मैं तुम्हारे लिए लड़की कहां से ढूंढंगी. तुम एक काम करना, खुद ही ढूंढ़ लेना.’

विपिन का भी यही कहना था, ‘कुछ ऐक्सरसाइज करो, शरीर फैलता जा रहा है, शादीब्याह सब होना बाकी है.’ लेकिन पराग के कान पर कभी जूं नहीं रेंगी और अब जब शरमाते हुए पराग ने पिछले हफ्ते भव्या के बारे में बताया तो सब एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. बच्चों से फ्रैंक गीता ने कहा, ‘‘तुम्हें कैसे मिल गई गर्लफ्रैंड?’’

पराग ने हंस कर कहा, ‘‘बस, मिल गई, आप बेकार में मुझे इतने दिनों से ताने मार रही थीं.’’

और आज संडे को पराग भव्या को ले कर आ रहा था. पराग ने गीता से पूछा था, ‘‘मौम, आप अपनी बहू में कौन सा गुण देखना चाहेंगी?’’

गीता बेटे के सिर पर हाथ फेर कर बोली थीं, ‘‘बस, तुम्हारे जैसी.’’

‘‘तो मौम, बी हैप्पी, वह बिलकुल मेरे जैसी है.’’

तीनों पराग और भव्या का इंतजार कर रहे थे. मौडर्न गीता टौप और जींस में थी. डोरबैल बजी. अधीरता से गीता ने ही दरवाजा खोला. पराग जिस पर्सनैलिटी के साथ अंदर आया, गीता को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस ने बाहर फिर झांका, क्या भव्या इन के पीछे है. लेकिन बस, वही दोनों खड़े थे.

होने वाली बहू को देख कर गीता के चेहरे का रंग उड़ गया. लगा, पराग ने ठीक कहा था, वह बिलकुल उस के जैसी ही तो थी, एकदम गोरी, गोलमटोल. साफसाफ कहा जाए तो एक मोटी लड़की. वह मुसकराते हुए सब को हायहैलो कर रही थी. विपिन और वन्या भी बुत बने खड़े थे. पराग ने गला खंखारा और कहा, ‘‘डैड, मौम, वन्या, यह है भव्या.’’

विपिन ने सब से पहले अपने को सामान्य किया और मुसकराते हुए उसे अंदर आ कर बैठने के लिए कहा. वन्या भी भव्या के साथ ही बैठ गई. गीता को अपने को संभालने में काफी समय लगा. गीता ने औपचारिक हालचाल के बाद पूछा, ‘‘क्या लोगी, भव्या? चाय, कौफी या कोल्डडिं्रक?’’

‘‘मौम, कुछ ठंडा.’’

गीता किचन में गईं और टे्र में सब के लिए नीबूपानी, मिठाई, फू्रट्स और कुछ नाश्ता ले आईं. भव्या से बातें होती रहीं. गीता ने टे्र उस की तरफ खिसकाई, कहा, ‘‘लो बेटा, कुछ खाओ.’’

‘‘हां मौम, भूख तो लगी है, आज संडे था, सब फ्रैंड्स सो रही थीं, कुछ नाश्ता नहीं किया अभी तक. बस, एक सैंडविच और दूध पी कर चली थी, अंधेरी से ठाणे आने में वह तो हजम हो गया,’’ हंस कर उस ने मिठाई खानी शुरू की.

पराग ने भी उस का साथ दिया. विपिन और गीता की नजरें मिलीं, विपिन आंखोंआंखों में ही हंस दिए. नाश्ता खत्म होने तक भव्या सब से फ्री हो चुकी थी. खुल कर हंसबोल रही थी. घर में एक रौनक सी थी. वन्या भव्या को पूरा फ्लैट दिखा कर अपने रूम में बैठा कर बातें करने लगी. मूवी, म्यूजिक, कालेज, औफिस की खूब बातें होती रहीं. गीता लंच की तैयारी के लिए किचन में गईं तो भव्या भी आ गई.

‘‘मौम, कुछ हैल्प करूं?’’

‘‘नहींनहीं, तुम बैठो.’’

‘‘मौम, मिल कर करते हैं न,’’ फिर अपनेआप ही साइड में रखी प्लेट उठा कर सलाद काटने लगी. विपिन भी किचन में आ गए थे. भव्या हंसते हुए बोली, ‘‘मौम, आप को पता है, मुझे सलाद बिलकुल नहीं पसंद.’’

गीता ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘मुझे तो सौलिड चीजें खानी पसंद हैं, ये सलादवलाद तो डाइटिंग वालों की चीज लगती है मुझे. मौम, आप तीनों कितने स्लिम हैं. मैं और पराग तो अलग ही दिख रहे हैं घर में,’’ कह कर हंसी भव्या.

गीता हैरान थीं, क्या है यह लड़की, अपने मोटापे पर कोई शर्म नहीं. कोई चिंता नहीं.

भव्या ने फिर कहा, ‘‘मुझे खानेपीने का बहुत शौक है, मौम. मम्मीपापा को भी खानेपीने का बहुत शौक था,’’ कहते हुए भव्या थोड़ा उदास हुई, इतने में अंदर आते हुए पराग ने पूछा, ‘‘मौम, क्या बनाया है?’’

‘‘छोले, पनीर, आलूगोभी की सब्जी, रायता. बस, अब रोटी बना रही हूं.’’

भव्या ने चहक कर कहा, ‘‘मौम, पूरी बनाइए न. इस खाने के साथ गरमगरम पूरी कितनी अच्छी लगेंगी.’’

गीता चौंकीं. उन्हें झटका सा लगा, सोचा, ‘खुद पूरी जैसी क्यों हो गई यह लड़की, अब समझ में आ रहा है.’

पराग भी कहने लगा, ‘‘हां मौम, पूरी बनाओ न.’’

वन्या भी आ गई किचन में, बोली, ‘‘मौम, मैं तो रोटी ही खाऊंगी.’’

गीता ने कहा, ‘‘ठीक है, इन दोनों के लिए पूरी बना देती हूं.’’

गीता ने वन्या की हैल्प से खाना टेबल पर लगाया. गीता, विपिन और वन्या ने दोदो फुलके खाए. पराग और भव्या पूरी पर पूरी साफ करते रहे. गीता ने दोनों को देखा, ‘कैसे लग रहे हैं दोनों, शौक से खाते हुए मोटे गोलमटोल बच्चे, इन की शादी होगी तो कैसे लगेंगे दोनों. इस लड़की को फिगर से तो कोई मतलब ही नहीं है, क्या होगा इस का आगे,’ गीता मन ही मन पता नहीं क्याक्या सोचती रही.

सब खाना खा कर उठ गए. बातें होती रहीं, फिर भव्या ने कहा, ‘‘अच्छा मौम, अब मैं चलूंगी. आप सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा,’’ और अपना बैग उठा लिया फिर वन्या को गले लगा कर ‘बाय’ बोला और गीता व विपिन को ‘बाय मौम’, ‘बाय डैड’ बोल कर मुसकराती हुई आत्मविश्वास से भरे कदमों से चली गई. पराग से बस मुसकराहट का ही आदानप्रदान हुआ.

उस के जाने के बाद जब सब बैठे तो पराग ने झिझकते हुए पूछा, ‘‘मौम, डैड, वन्या, कैसी लगी भव्या?’’

गीता तो कुछ बोल नहीं पाईं, विपिन ने कहा, ‘‘स्वभाव अच्छा लगा.’’

वन्या पराग को छेड़ते हुए हंस कर बोली, ‘‘भैया, जैसा नाम है वैसी ही भव्य पर्सनैलिटी है. मुझे तो अच्छी लगी.’’

गीता चुप थीं.

पराग ने कहा, ‘‘आप तो कुछ बोलो, मौम.’’

गीता ने एक ठंडी सांस भर कर कहा, ‘‘तुम्हें पसंद है न? बस, मेरे लिए यही महत्त्वपूर्ण है कि तुम खुश हो. अब शादी कब करनी है, बताओ. इस के मामामामी से फोन पर बात कर लेती हूं.’’

पराग ने जींस की जेब से झट से एक पेपर निकाल कर दिया, कहा, ‘‘यह है उस के मामा का फोन नंबर.’’

विपिन को हंसी आ गई, ‘‘वाह बेटा, बहुत जल्दी है शादी की.’’

फिर सब अपनेअपने रूम में थोड़ा आराम करने चले गए.

विपिन ने बराबर में लेटी गीता से पूछा, ‘‘क्या हुआ, पसंद नहीं आई भव्या? जानता हूं, क्यों? तुम्हें बेडौल फिगर पसंद नहीं है न. पराग भी तो स्लिमट्रिम नहीं है, कुछ तो बोलो गीता. चुप क्यों हो इतनी?’’

रोंआसी हो गईं गीता, ‘‘क्या सोचा था क्या हो गया. हमेशा एक फिगर कांशस स्मार्ट सी बहू का सपना देखती आई हूं. मेरी सहेलियां फिटनैस के प्रति मेरा शौक देख कर कहती हैं, ‘गीता, तुम तो जरूर एक मौडल जैसी बहू लाओगी ढूंढ़ कर,’ मैं ने भी गर्व से हां में गरदन हिलाई है हमेशा. इस उम्र में भी मैं फिगर का इतना ध्यान रखती हूं और यह लड़की तो जैसे फिटनैस और फिगर जैसे शब्द ही नहीं जानती और उस पर कितने गर्व से बता रही थी कि उसे खानेपीने का शौक है. मैं तो पराग के मोटापे पर गुस्सा होती थी और अब बहू भी मोटी, मेरी सहेलियां मेरा कितना मजाक उड़ाएंगी,’’ कहतेकहते उन का मुंह लटक गया.

विपिन ने शांत और प्यारभरे स्वर में कहा, ‘‘अरे, प्यार से समझाएंगे तो ध्यान रखना सीख जाएगी सेहत का, न मांबाप हैं न भाईबहन, अकेली जी रही है. हमारे साथ रहेगी तो प्यार से धीरेधीरे सब सिखा देंगे. तुम दिल छोटा मत करो. स्वभाव अच्छा है उस का, बस.’’

दिन बीत रहे थे, दिन में एक बार तो भव्या गीता को जरूर फोन करती, हालचाल पूछती. गीता को अच्छा लगता. वन्या से तो वह अकसर मैसेज में चैटिंग करती रहती. विपिन ने भव्या के मामा अनिल से दोनों के विवाह के बारे में बात कर ली थी. किसी पंडित से दोनों की कुंडली मिलाने के अंधविश्वास में विपिन और गीता बिलकुल नहीं पड़े. उन की सिंपल सी सोच थी, उन के बेटे को भव्या पसंद है, बस. भव्या का स्वभाव तो सब को अच्छा लगा ही था, बस गीता को जैसी स्लिम बहू चाहिए थी, भव्या उस कसौटी पर खरी नहीं उतरी थी. यही बात गीता को कचोटती थी कि उस की सहेलियां भव्या को देख कर जरूर मजाक बनाएंगी. अच्छी तरह जानती थी गीता अपनी सभी सहेलियों को.

एक महीने बाद सगाई का समय रखा गया. विपिन ने गीता से कहा, ‘‘अपनी फ्रैंड्स की लिस्ट बना लो.’’

‘‘नहीं, मैं अपनी फ्रैंड्स को नहीं बुला पाऊंगी, सीधा शादी में ही बुलाऊंगी.

नहीं तो सगाई से शादी तक ताने मारमार कर मेरा दिमाग खराब करती रहेंगी.

बस, सगाई की मिठाई भिजवा दूंगी सब के घर.’’

सब थोड़ीबहुत तैयारियों में व्यस्त हो गए, अनिल अपनी पत्नी रेखा के साथ आ कर एक होटल में रुके. विपिन और गीता ने उन्हें अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया लेकिन संकोचवश वे होटल में ही रुके. सब को एकदूसरे से मिल कर अच्छा लगा.

गीता ने किसी सहेली को नहीं बुलाया. बस, बच्चे और विपिन के दोस्त थे. तैयार हो कर भव्या अच्छी लग रही थी. चेहरा काफी आकर्षक था उस का. उस ने कई बार गीता से पूछा, ‘‘मौम, आप ने अपनी किसी फ्रैंड को नहीं बुलाया?’’

गीता ने यह कह कर टाला, ‘‘बस, सब को शादी पर ही बुलाऊंगी.’’

दोनों ने एकदूसरे को अंगूठी पहना दी, सगाई हो गई. अनिल और रेखा भव्या के भावी ससुराल वालों का व्यवहार देख कर बहुत खुश थे. शादी की तारीख 2 महीने बाद की पक्की हो गई. अनिल और रेखा चले गए, तय यही हुआ कि अनिल और रेखा ही कुछ खास रिश्तेदारों के साथ मुंबई आ जाएंगे.

विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं. भव्या और पराग वीकेंड में ही फ्री हो कर शौपिंग कर पाते थे. भव्या शनिवार को सुबह आती, पूरा दिन शौपिंग होती. गीता उसी की पसंद के कपड़े, ज्वैलरी दिलवा रही थीं. जब मीडियम, लार्ज साइज न आ कर भव्या को डबलएक्सएल आता, गीता मन ही मन झुंझला जातीं.

एक संडे पूरा परिवार शौपिंग पर निकला, गीता हैरान रह गईं जब भव्या ने कहा, ‘‘मौम, पिज्जा खाएंगे.’’

‘‘लेकिन बेटा, लंच कर के ही तो निकले हैं अभी.’’

‘‘तो क्या हुआ, मौम, शौपिंग करतेकरते कुछ खाने में बहुत मजा आता है.’’

पराग भी शुरू हो गया, ‘‘चलो न मौम, कुछ खाएंगे.’’

‘‘नहीं पराग, तुम्हें पता है मैं अभी कुछ नहीं खा सकती.’’

‘‘तो ठीक है, आप साथ तो बैठिए.’’

‘‘ऐसा करो, तुम दोनों खा लो, हम यहीं जूस कौर्नर पर तुम्हारा वेट करेंगे.’’

भव्या तुरंत बोली, ‘‘मौम, बस जूस? जूस से होता क्या है?’’

विपिन ने दोनों को ही भेज दिया. विपिन, गीता और वन्या जूस पीने लगे. गीता ने कहा, ‘‘क्या लड़की है, अभी लंच किए 1 घंटा भी नहीं हुआ है.’’

विपिन बोले, ‘‘तुम्हारी बहू लाइफ ऐंजौय कर रही है, बेचारी अपनी मरजी से खाएगीपिएगी नहीं क्या?’’

‘‘तो मैं कौन सा मना कर रही हूं,’’ गीता ने चिढ़ते हुए कहा.

दोनों पिज्जा खा कर खुश होते हुए आए. विपिन ने कहा, ‘‘पराग, चलो, हम दोनों चल कर कार्ड देख आते हैं, तब तक ये तीनों ज्वैलरी का काम देख लेंगी.’’

विपिन और पराग चले गए.

ज्वैलरी की शौप से जब तीनों निकलीं तो एक आवारा सा लड़का वन्या की कमर को बदतमीजी से छू कर बढ़ा तो वन्या चिल्लाई, ‘‘बेशर्म, तमीज नहीं है क्या?’’

भव्या फौरन बोली, ‘‘क्या हुआ, वन्या?’’

‘‘उस लड़के ने बदतमीजी की है.’’

भव्या ने आव देखा न ताव, फौरन भागी और लड़के की कमर पर पीछे से एक हाथ मारा. लड़का संतुलन खो बैठा और नीचे गिर गया. भव्या जोर से चिल्लाई, ‘‘बदतमीजी करता है.’’ लड़का उठने की कोशिश कर रहा था, भव्या ने पुन: धक्का दिया और उसे नीचे गिरा कर उस के सीने पर चढ़ बैठी और कुहनी जमा दी.

लड़के की चीख निकल गई. वह हिल भी नहीं सका. दृश्य गंभीर था लेकिन लड़के के सीने पर गोलमटोल भव्या की यह बहादुरी देख कर गीता को मन ही मन हंसी आ गई. भव्या जोर से चिल्लाई, ‘‘हैल्प, हैल्प.’’

तुरंत लोग इकट्ठे हो गए. भव्या की बात सुन कर लड़के को पीटने लगे. एक पुलिस वाला भी आ गया और लड़के को 2 डंडे लगा कर जीप में बिठा लिया. पूरे प्रकरण में गीता और वन्या हक्कीबक्की खड़ी थीं. देखते ही देखते भव्या ने जो किया था, दोनों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था. भव्या को शाबाशी देते हुए लोग आजकल लड़कों की बढ़ती बदतमीजी पर बात करते हुए इधरउधर हो गए.

गीता ने देखा, किसी की नजरों में भव्या के लिए उपहास नहीं था. सब की नजरों में उस के लिए तारीफ थी. भव्या ने गीता को जैसे सपने से जगाया, ‘‘मौम, ठीक किया न?’’

गीता उस के कंधे पर हाथ रख कर इतना ही बोल पाईं, ‘‘वैल डन, भव्या, शाबाश.’’

वन्या तो भव्या से सड़क पर ही चिपट गई, ‘‘आप कितनी स्ट्रौंग हो.’’

‘‘वह तो मुझे देख कर ही पता चलता है,’’ कह कर भव्या हंस दी.

इतने में विपिन और पराग भी आ गए, गाड़ी में बैठ कर वन्या ने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया तो वे हैरान रह गए.

विपिन ने भी कहा, ‘‘वैल डन, भव्या.’’

पराग ने हंस कर उसे छेड़ा,

‘‘बेचारा लड़का.’’

सब हंस पड़े. गीता को तो आज इतना प्यार आ रहा था भव्या पर कि उस का मन हो रहा था यहीं उसे गले से लगा ले. लग रहा था, बेकार में अपने मन को इतने दिनों से छोटा कर रखा है. वह जैसी है बहुत अच्छी है. मोटापे का क्या है, धीरेधीरे उसे प्यार से समझा कर सेहत के प्रति सजग बना देंगी, और वैसे पराग को भी कहां रोक पाती हैं लापरवाही से. अब जैसा बेटा, वैसी बहू है तो दुख किस बात का.

अब वे शान से भव्या को अपनी सहेलियों से मिलवाने के लिए उंगलियों पर शादी में बचे दिन गिन रही थीं. आज पहली बार अपनी मोटी बहू पर उन्हें बहुत प्यार आ रहा था. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: कुछ हट कर

Hindi Family Story: एक सुबह कविता सो कर उठी और फ्रैश हुई. तभी अचानक उस की नजर कैलेंडर पर पड़ी तो वह जरा ठिठकी, ओह, कुछ ही दिनों में वह 42 साल की हो जाएगी. बस यही ठंडी सी सांस उस के मुंह से निकली. किचन में चाय बनाते हुए मन अजीब सा हुआ कि क्या सच में काफी उम्र हो रही है? चाय ले जा कर मेज पर रखी और फिर विनय का बाथरूम से निकलने का इंतजार करने लगी. लगा इतने सालों से वह बस इंतजार ही तो कर रही है…

आजकल कई दिनों से मन में फैली अजीब सी उदासीनता कविता से सहन नहीं होती. उसे अपने जीवन में शांत झील का ठहराव नहीं, बल्कि समुद्र की तूफानी लहरों का उफान चाहिए, कुछ तो खट्टामीठा स्वाद हो जीवन का.

दोनों बच्चे अभिजीत और अनन्या बड़े हो गए हैं, दोनों ने अपनीअपनी डगर ले ली है. ‘लगता है, अब किसी को मेरी जरूरत नहीं है, कैसे ढोऊं अब उद्देश्यहीन जीवन का भार?’ आजकल कविता बस ऐसी ही बातें सोचती रहती. उसे अपनी मनोदशा स्वयं समझ नहीं आती. जितना सोचती उतना ही अपने बनाए

हुए भ्रमजाल में उलझती जाती. आज जब बच्चे उस के स्नेह की छांव को छोड़ कर अपने क्षितिज की तलाश में बढ़ चले हैं, तो वह नितांत अकेली खड़ी महसूस करती है, निराधार, अर्थहीन.

‘‘अरे, तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है, कविता,’’ विनय की आवाज से कविता की

तंद्रा भंग हुई.

‘‘क्या सोच रही थी, तबीयत तो ठीक है न?’’ पूछतेपूछते विनय ने चाय के साथ पेपर उठा लिया तो कविता और अनमनी हो गई, सोचा, बस पेपर पढ़ कर औफिस चले जाएंगे, बच्चे भी कालेज चले जाएंगे, तीनों शाम तक ही लौटेंगे. बस, उस का वही बोरिंग रूटीन शुरू हो जाएगा. मेड से काम करवाएगी, नहाधो कर थोड़ी देर टीवी देखेगी, कोई पत्रिका पढ़ेगी और फिर शाम होतेहोते सब के आने का इंतजार शुरू हो जाएगा.

कविता सोचती वह पोस्ट ग्रैजुएट है. विवाह के बाद विनय और उस के सासससुर उस के नौकरी करने के पक्षधर नहीं थे, उस ने भी घरगृहस्थी खुशीखुशी संभाल ली थी. सब ठीक था, बस, इन कुछ सालों में कुछ कमी सी लगती है. वह अपने रूटीन से बोर हो रही है, आजकल उस का कुछ हट कर, कुछ नया करने को जी चाहता है. इन्हीं खयालों में डूबे उस ने दिन भर के काम निबटाए, शाम को सोसायटी के गार्डन में सैर करने गई. यह अब भी उस की दिनचर्या का सब से प्रिय काम था.

कविता आधा घंटा सैर करती, फिर गार्डन से क्लबहाउस के टैरेस पर जाने का जो रास्ता है, वहां जा कर थोड़ी देर घूमती. टैरेस से नीचे बना स्विमिंगपूल दिखता, उस में हाथपैर मारते छोटेछोटे बच्चे उसे बहुत अच्छे लगते. शाम को ज्यादातर बच्चे ही दिखते थे, टीनएजर्स कभीकभी ही दिखते थे. पूल का नीलापन जैसे आसमान का आईना लगता. वह नीलापन कविता को आकर्षित करता. वह खड़ीखड़ी कभी आसमान को देखती तो कभी स्विमिंगपूल के नीलेपन को.

क्लब हाउस का पास तो कविता के पास था ही. अत: एक दिन वह ऐसे ही टहलतेटहलते पूल के पास पहुंच गई और फिर किनारे पर रखी चेयर पर बैठ गई. स्विमिंग

पूल से पानी की हलकीहलकी आवाजें आ रही थीं, अत: पानी में जाने की तीव्र इच्छा उस पर हावी हुई. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था. उस के अंदर जैसे किसी ने कहा, कुछ हट कर करना है न तो स्विमिंग क्यों नहीं? दिल किया वह अभी इसी समय अपने इस एहसास को किसी के साथ बांटे. पूल में उतरने और तैरने के खयाल से ही वह उत्साहित हो गई. हां, यह ठीक रहेगा, वह हमेशा स्विमिंग से डरती है, पानी से उसे डर लगता है, जब भी जुहू या और किसी बीच पर जाती है, हमेशा पानी से दूर टहलती है.

2 साल पहले जब चारों गोआ घूमने गए थे, उसे बहुत मजा आया था. लेकिन वह लहरों के बीच जाने से कतराती रही थी. पिछले साल फिर जब उस ने विनय से गोआ चलने के लिए कहा तो अभिजीत और अनन्या दोनों ने ही कहा, ‘‘मम्मी, आप को गोआ जा कर करना क्या है? आप को दूरदूर किनारे ही तो घूमना है. उस के लिए तो यहीं मुंबई में ही जुहू बीच पर चली जाया करो.’’

कविता क्या करे, उसे लहरों के अंदर घबराहट सी होती और यह घबराहट उसे पहले नहीं होती थी. वह तो 10 साल पहले जब विनय की पोस्टिंग नईनई ठाणे में हुई थी तो वे घर के पास ही स्थित ‘टिकुजीनिवाड़ी वाटर पार्क’ में गए थे. वहां पहुंच कर कविता बहुत उत्साहित थी. यह किसी वाटरपार्क का उस का पहला अनुभव था. वहीं एक स्लाइड से नीचे आते हुए उस का संतुलन बिगड़ गया और वह सिर के बल पानी में गिर गई और घबराहट में स्वयं को संभाल नहीं पाई.

विनय ने ही उसे सहारा दे कर खड़ा किया. वे कुछ क्षण जब उसे अपनी सांस रुकती हुई लगी थी, उसे अब तक याद थे.

और आज जब कुछ नया करने की इच्छा है, तो वह क्यों न पानी में उतर जाए, वह मन ही मन संतुष्ट हुई, हां, स्विमिंग ठीक रहेगी और विनय और बच्चों को अभी नहीं बताऊंगी वरना इस उम्र में यह शौक देख कर वे तीनों हंसने लगेंगे. यह मैं अपने लिए करूंगी, कई सालों में बहुत दिनों बाद, जो मैं चाहती हूं वह करूंगी न कि वह जो सब सोचते हैं. उस ने अभी से अपने को युवा सा महसूस किया. पानी के किनारे बैठेबैठे अपनी योजना को आकार दिया. फिर उत्साहित कदमों से रिसैप्शन पर गई और पूछा, ‘‘लेडीज कोच है?’’

‘‘इस समय बस बच्चों के लिए ही एक कोच आता है, लेडीज के लिए बैच गरमियों में शुरू होगा,’’ रिसैप्शनिस्ट बोली.

अभी तो नवंबर है, कविता को अपना उत्साह काफूर होता लगा. लेकिन बस पल भर के लिए. फिर उस का उत्साह यह सोचते ही लौट आया कि वह खुद अपने बलबूते स्विमिंग सीखने की कोशिश करेगी.

घर आ कर कविता मन ही मन प्लानिंग करती रही. विनय ने हमेशा की तरह टीवी देखा, लैपटौप पर काम किया, बच्चे भी अपनेअपने क्रियाकलापों में व्यस्त थे. किसी ने उस के उत्साह पर ध्यान नहीं दिया. वह भी चुपचाप क्या करना है, कैसे करना है, सोचती रही.

अगले दिन तीनों के जाने के बाद कविता स्विमसूट खरीदने मार्केट गई. उसे बड़ा अजीब लग रहा था. उस ने शरीर को ज्यादा से ज्यादा ढकने वाला स्विमसूट खरीदा, ट्रायलरूम में पहन कर देखा और मन ही मन संतुष्ट हुई. सैर से अभी फिगर ठीक ही थी. वह खुश हुई. अगले 8-10 दिन वह पूल के किनारे बैठ जाती, बच्चों को देखती, कैसे वे पानी में पैर मारते हैं, कैसे बांहें चलाते हैं, किस तरह उन के पैर उन्हें आगे धकेलते हैं और कैसे यह सब वे सांस खींच कर हवा को अपने अंदर भरते हैं. उस ने गहरी सांस ली और रोक ली. उसे निराशा हुई. लगा, नहीं कर पाएगी. नहीं, वह हारेगी नहीं, उसे कुछ नया, कुछ अलग करना है. रात को जब वह सोने के लिए लेटी तो उस के सामने बस वह पल था जब वह पूल के पानी को अपने चारों ओर महसूस कर सकेगी.

10 दिन बाद वह पूल की ओर बढ़ी तो मन में कुछ डर भी था तो कुछ जोश भी. यह पल उसे उस समय की याद दिला गया जब सुहागरात पर दुलहन बनी उसे फूलों से सजे बैडरूम में ले जाया जा रहा था. वहां विनय इंतजार में थे, यहां पूल. मन ही मन इस तुलना पर उसे हंसी आ गई. वह चेंजिंगरूम में गई, सनस्क्रीन लोशन लगाया और फिर घुटनों तक के शौर्ट्स के ऊपर स्विमसूट पहन लिया. शरीर का काफी हिस्सा ढक गया था. खाली स्विमसूट पहनने से उसे संकोच हो रहा था. अब वह सहज थी, केशों को सूखा रखने के लिए उस ने कैप लगाई और शरीर पर तौलिया लपेट लिया.

11 बज रहे थे, यह क्लबहाउस में स्विमिंग का लेडीज टाइम था. बस एक लड़की स्विमिंग कर रही थी. कविता पूल के किनारे बने खुले शावर की ओर बढ़ी. वह जानती थी पूल में उतरने से पहले शावर लेना नियम है. उस ने तौलिया हटा दिया, शावर के ठंडे पानी की तेज बौछार से पल भर को उस की सांसें जैसे रुक सी गईं.

कविता पूल के कम पानी वाले किनारे खड़ी हो कर फिल्मों में पूल में उतरने के दृश्य याद करने लगी. वह इस पल का क्या खूब आनंद उठा रही है, यह सोच कर उस के होंठों पर मुसकान आ गई. उसे लाइफगार्ड किनारे बैठा नजर आया तो वह थोड़ा निश्चिंत हो गई. अब जो भी करना था अपने बलबूते करना था. पानी ठंडा था, उस ने याद किया, कैसे बच्चों का कोच बच्चों को सिखाता था, नीचे जाओ, सांस रोको, ठंड नहीं लगेगी. उस ने ऐसा ही किया. रौड पकड़ी, पानी में चेहरा डाला और पैर चलाने की कोशिश की. बस थोड़ी देर ही कर पाई. बाहर निकली, थोड़ी निराश थी, कैसे करेगी वह यह.

घर पहुंचते ही थोड़ी देर लेट गई. अगला1 हफ्ता वह बस पानी में पैर चलाती रही. थक जाती तो पानी के अंदर डुबकी लगा कर आंखें खुली रखने की कोशिश करती. क्लोरीनयुक्त पानी से आंखें लाल हो जातीं. वह खुद को समझाती कि इस की आदत भी हो जाएगी. फिर अपनी पीठ उठा लेती जैसे पीठ के बल तैर रही हो.

शाम की सैर के बाद कविता पूल के किनारे चेयर पर जरूर बैठती, अपने कान बच्चों के कोच के 1-1 शब्द पर लगाए रखती और अगले दिन वैसा ही करने की कोशिश करती. उसे इस खेल में विचित्र आनंद आने लगा था.

एक दिन कविता ने सोचा, वह रौड को नहीं छुएगी. उस ने पूल की दीवार से टांग टिकाई, मुंह में खूब हवा भरी और एक रबड़रिंग को पकड़ कर खुद को आगे धकेला. उस ने रबड़रिंग को छोड़ने की कोशिश की तो वह डूबने लगी. वह घबरा गई. लगा वह मर रही है, डूब रही है. फिर वह पानी के ऊपर आ गई. उस ने फिर स्टील की रौड को पकड़ लिया. उसे लगा वह अभी तैयार नहीं है.

20वें दिन जब वह कम पानी वाले पूल की चौड़ाई नाप रही थी, तो लाइफगार्ड, जो उसे रोज कोशिश करते देख रहा था, ने पूछा, ‘‘मैडम आप की लंबाई कितनी है?’’

‘‘5 फुट 5 इंच.’’

वह मुसकराया, ‘‘आप 4 फुट गहरे पानी में हैं, आप नहीं डूबेंगी. डूबने भी लगेंगी तो फौरन आप के पैर तली पर लग जाएंगे और आप ऊपर होंगी, आप को तो रिंग की भी जरूरत नहीं है.’’

कविता को लगा उस की बात में दम है. अत: उस ने फिर तैरने की कोशिश की और अब 1 घंटे में वह कई बार पूल की चौड़ाई में तैर चुकी थी.

हफ्ते में 1 दिन क्लबहाउस बंद रहता था, वह आराम करती, संडे को भी स्विमिंग के लिए नहीं जाती थी, क्योंकि विनय और बच्चे घर में होते थे. उस दिन संडे था. रात को वह जब सोने के लिए लेटी तो उसे अपने अंदर इच्छाओं की बंद मुट्ठी खुलती महसूस हुई, उस का शरीर जैसे खिल गया था. कुछ अलग करने के जोश से मन खुश था.

उस ने विनय के सीने पर हाथ रखा, तो विनय को कुछ अलग सा महसूस हुआ. उस ने करवट ले कर कविता की कमर पर हाथ रखा, फिर उस के शरीर पर हाथ फेरा तो चौंका. कविता के शरीर में नया कसाव था. बोला, ‘‘अरे, बहुत बढि़या फिगर लग रही है, क्या करती हो आजकल?’’

‘‘कुछ नहीं, बस आजकल मछली बनी हुई हूं,’’ कविता खुल कर हंसी.

विनय ने उसे हैरानी से देखा, एक पल विनय को लगा, आज उस ने पहले वाली कविता को देखा है, जो अपनी कातिल मुसकराहटों, घातक अदाओं और उत्तेजक देह से उस के होश उड़ा देती थी. आजकल तो कविता बस उस के घर की स्वामिनी और उस के बच्चों की मां थी. उधर कविता विनय की उधेड़बुन से बिलकुल अनजान थी.

विनय ने कहा, ‘‘बहुत चेंज लग रहा है तुम में, बताओ न, क्या चक्कर है?’’

कविता ने उसे स्विमिंग के बारे में सब बताया तो वह हैरान रह गया और फिर उसे बांहों में भर लिया. कविता वह जिन इच्छाओं को समझ रही थी कि हमेशा के लिए मर गई हैं, उन के जागने के आनंद में डूब गई. आखिरी बार वह कब भावनाओं के इस सागर में डूबी थी, याद करने लगी.

अगले दिन फिर उस ने गहरी सांस ली, खुद को आगे धकेला, उस के नीचे पूल की टाइल्स चमक रही थीं. शांत पानी उसे अपने चारों ओर लिपटता सा लगा. पूरे शरीर में हलकापन महसूस हुआ. मन में एक जीत की भावना तैर गई. उस ने कुछ अपने बोरिंग रूटीन से हट कर कर लिया है. परमसंतोष के इस पल की बराबरी नहीं है. जब उसे महसूस हुआ कि वह स्विमिंग कर सकती है. स्विमिंग का 1-1 प्रयास कविता के हिमशिला बने मनमस्तिष्क को पिघलाता जा रहा था. तेज हुए रक्तप्रवाह ने शिथिल पड़ी धमनियों को फिर से थरथरा दिया था. मन के समस्त पूर्वाग्रह न जाने कहां हवा हो चले थे और कई दिन पुराने कुछ नया कर गुजरने के तूफानी उद्वेग उन की जगह लेते जा रहे थे. उसे पता चल गया था उम्र बिलकुल भी माने नहीं रखती है, माने रखता है तो भीतर समाया उत्साह और हर पल जीने की इच्छा, जो हर दिन को आनंदमयी दिन में बदलने की चाह रखती हो. Hindi Family Story

Hindi Family Story: यह तो पागल है

Hindi Family Story: अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’

डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’

पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए.

मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा? कैसी है मेरी पत्नी? क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं?’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. डाक्टर अपना इलाज पूरा कर चुके हैं. उन की सांसें चल रही हैं. लेकिन बेहोश हैं. 72 घंटे औब्जर्वेशन में रहेंगी. होश में आने पर उन के बयान लिए जाएंगे. तब तक आप उन से नहीं मिल सकते. हमें यह भी पता चल जाएगा कि उन को कौन सा जहर दिया गया है,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और मुझे गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘बताएं कि वास्तव में हुआ क्या था?’’

‘‘दोपहर 3 बजे हम लंच करते हैं. लंच करने से पहले मैं वाशरूम गया और हाथ धोए. सरला, मेरी पत्नी, लंच शुरू कर चुकी थी. मैं ने कुरसी खींची और लंच करने के लिए बैठ गया. अभी पहला कौर मेरे हाथ में ही था कि वह कुरसी से नीचे गिर गई. मुंह से झाग निकलने लगा. मैं समझ गया, उस के खाने में जहर है. मैं तुरंत उस को कार में बैठा कर अस्पताल ले आया.’’

‘‘दोपहर का खाना कौन बनाता है?’’

‘‘मेड खाना बनाती है घर की बड़ी बहू के निर्देशन में.’’

‘‘बड़ी बहू इस समय घर में मिलेगी?’’

‘‘नहीं, खाना बनवाने के बाद वह यह कह कर अपने मायके चली गई कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है.’’

‘‘इस का मतलब है, वह खाना अभी भी टेबल पर पड़ा होगा?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘और कौनकौन है, घर में?’’

‘‘इस समय तो घर में कोई नहीं होगा. मेरे दोनों बेटों का औफिस ग्रेटर नोएडा में है. वे दोनों 11 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं. छोटी बहू गुड़गांव में काम करती है. वह सुबह ही घर से निकल जाती है और शाम को घर आती है. दोनों पोते सुबह ही स्कूल के लिए चले जाते हैं. अब तक आ गए होंगे. मैं गार्ड को कह आया था कि उन से कहना, दादू, दादी को ले कर अस्पताल गए हैं, वे पार्क में खेलते रहें.’’

इंस्पैक्टर ने साथ खड़े कौंस्टेबल से कहा, ‘‘आप कर्नल साहब के साथ इन के फ्लैट में जाएं और टेबल पर पड़ा सारा खाना उठा कर ले आएं. किचन में पड़े खाने के सैंपल भी ले लें. पीने के पानी का सैंपल भी लेना न भूलना. ठहरो, मैं ने फोरैंसिक टीम को बुलाया है. वह अभी आती होगी. उन को साथ ले कर जाना. वे अपने हिसाब से सारे सैंपल ले लेंगे.’’

‘‘घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं?’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से पूछा.

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘सेना के बड़े अधिकारी हो कर भी कैमरे न लगवा कर आप ने कितनी बड़ी भूल की है. यह तो आज की अहम जरूरत है. यह पता भी चल गया कि जहर दिया गया है तो इसे प्रूफ करना मुश्किल होगा. कैमरे होने से आसानी होती. खैर, जो होगा, देखा जाएगा.’’

 

इतनी देर में फोरैंसिक टीम भी आ गई. उन को निर्देश दे कर इंस्पैक्टर ने मुझ से उन के साथ जाने के लिए कहा.

‘‘आप ने अपने बेटों को बताया?’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ व्यस्त था.’’

‘‘आप मुझे अपना मोबाइल दे दें और नाम बता दें. मैं उन को सूचना दे दूंगा.’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से मोबाइल ले लिया.

फोरैंसिक टीम को सारी कार्यवाही के लिए एक घंटा लगा. टीम के सदस्यों ने जहर की शीशी ढूंढ़ ली. चूहे मारने का जहर था. मैं जब पोतों को ले कर दोबारा अस्पताल पहुंचा तो मेरे दोनों बेटे आ चुके थे. एक महिला कौंस्टेबल, जो सरला के पास खड़ी थी, को छोड़ कर बाकी पुलिस टीम जा चुकी थी. मुझे देखते ही, दोनों बेटे मेरे पास आ गए.

‘‘पापा, क्या हुआ?’’

‘‘मैं ने सारी घटना के बारे में बताया.’’

‘‘राजी कहां है?’’ बड़े बेटे ने पूछा.

‘‘कह कर गई थी कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है. तुम्हें तो बताया होगा?’’

‘‘नहीं, मुझे कहां बता कर जाती है.’’

‘‘वह तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है. मैं तुम्हें समझाता रहा कि जमाना बदल गया है. एक ही छत के नीचे रहना मुश्किल है. संयुक्त परिवार का सपना, एक सपना ही रह गया है. पर तुम ने मेरी एक बात न सुनी. तब भी जब तुम ने रोहित के साथ पार्टनरशिप की थी. तुम्हें 50-60 लाख रुपए का चूना लगा कर चला गया.

‘‘तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सबकुछ पता था. मौल में चोरी करते रंगेहाथों पकड़ी गई थी. चोरी की हद यह थी कि हम कैंटीन से 2-3 महीने के लिए सामान लाते थे और यह पैक की पैक चायपत्ती, साबुन, टूथपेस्ट और जाने क्याक्या चोरी कर के अपने मायके दे आती थी और वे मांबाप कैसे भूखेनंगे होंगे जो बेटी के घर के सामान से घर चलाते थे. जब हम ने अपने कमरे में सामान रखना शुरू किया तो बात स्पष्ट होने में देर नहीं लगी.

‘‘चोरी की हद यहां तक थी कि तुम्हारी जेबों से पैसे निकलने लगे. घर में आए कैश की गड्डियों से नोट गुम होने लगे. तुम ने कैश हमारे पास रखना शुरू किया. तब कहीं जा कर चोरी रुकी. यही नहीं, बच्चों के सारे नएनए कपड़े मायके दे आती. बच्चे जब कपड़ों के बारे में पूछते तो उस के पास कोई जवाब नहीं होता. तुम्हारे पास उस पर हाथ उठाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.

‘‘अब तो वह इतनी बेशर्म हो गई है कि मार का भी कोई असर नहीं होता. वह पागल हो गई है घर में सबकुछ होते हुए भी. मानता हूं, औरत को मारना बुरी बात है, गुनाह है पर तुम्हारी मजबूरी भी है. ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता है.

‘‘तुम्हें तब भी समझ नहीं आई. दूसरी सोसाइटी की दीवारें फांदती हुई पकड़ी गई. उन के गार्डो ने तुम्हें बताया. 5 बार घर में पुलिस आई कि तुम्हारी मम्मी तुम्हें सिखाती है और तुम उसे मारते हो. जबकि सारे उलटे काम वह करती है. हमें बच्चों के जूठे दूध की चाय पिलाती थी. बच्चों का बचा जूठा पानी पिलाती थी. झूठा पानी न हो तो गंदे टैंक का पानी पिला देती थी. हमारे पेट इतने खराब हो जाते थे कि हमें अस्पताल में दाखिल होना पड़ता था. पिछली बार तो तुम्हारी मम्मी मरतेमरते बची थी.

‘‘जब से हम अपना पानी खुद भरने लगे, तब से ठीक हैं.’’ मैं थोड़ी देर के लिए सांस लेने के लिए रुका, ‘‘तुम मारते हो और सभी दहेज मांगते हैं, इस के लिए वह मंत्रीजी के पास चली गई. पुलिस आयुक्त के पास चली गई. कहीं बात नहीं बनी तो वुमेन सैल में केस कर दिया. उस के लिए हम सब 3 महीने परेशान रहे, तुम अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारी ससुराल के 10-10 लोग तुम्हें दबाने और मारने के लिए घर तक पहुंच गए. तुम हर जगह अपने रसूख से बच गए, वह बात अलग है. वरना उस ने तुम्हें और हमें जेल भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इतना सब होने पर भी तुम उसे घर ले आए जबकि वह घर में रहने लायक लड़की नहीं थी.

‘‘हम सब लिखित माफीनामे के बिना उसे घर लाना नहीं चाहते थे. उस के लिए मैं ने ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों ने भी ड्राफ्ट बना कर दिए पर तुम बिना किसी लिखतपढ़त के उसे घर ले आए. परिणाम क्या हुआ, तुम जानते हो. वुमेन सैल में तुम्हारे और उस के बीच क्या समझौता हुआ, हमें नहीं पता. तुम भी उस के साथ मिले हुए हो. तुम केवल अपने स्वार्थ के लिए हमें अपने पास रखे हो. तुम महास्वार्थी हो.

‘‘शायद बच्चों के कारण तुम्हारा उसे घर लाना तुम्हारी मजबूरी रही होगी या तुम मुकदमेबाजी नहीं चाहते होगे. पर, जिन बच्चों के लिए तुम उसे घर ले कर आए, उन का क्या हुआ? पढ़ने के लिए तुम्हें अपनी बेटी को होस्टल भेजना पड़ा और बेटे को भेजने के लिए तैयार हो. उस ने तुम्हें हर जगह धोखा दिया. तुम्हें किन परिस्थितियों में उस का 5वें महीने में गर्भपात करवाना पड़ा, तुम्हें पता है. उस ने तुम्हें बताया ही नहीं कि वह गर्भवती है. पूछा तो क्या बताया कि उसे पता ही नहीं चला. यह मानने वाली बात नहीं है कि कोई लड़की गर्भवती हो और उसे पता न हो.’’

‘‘जब हम ने तुम्हें दूसरे घर जाने के लिए डैडलाइन दे दी तो तुम ने खाना बनाने वाली रख दी. ऐसा करना भी तुम्हारी मजबूरी रही होगी. हमारा खाना बनाने के लिए मना कर दिया होगा. वह दोपहर का खाना कैसा गंदा और खराब बनाती थी, तुम जानते थे. मिनरल वाटर होते हुए भी, टैंक के पानी से खाना बनाती थी.

‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से आशंका व्यक्त की थी कि यह पागल हो गई है. यह कुछ भी कर सकती है. हमें जहर भी दे सकती है. किचन में कैमरे लगवाओ, नौकरानी और राजी पर नजर रखी जा सकेगी. तुम ने हामी भी भरी, परंतु ऐसा किया नहीं. और नतीजा तुम्हारे सामने है. वह तो शुक्र करो कि खाना तुम्हारी मम्मी ने पहले खाया और मैं उसे अस्पताल ले आया. अगर मैं भी खा लेता तो हम दोनों ही मर जाते. अस्पताल तक कोई नहीं पहुंच पाता.’’

इतने में पुलिस इंस्पैक्टर आए और कहने लगे, ‘‘आप सब को थाने चल कर बयान देने हैं. डीसीपी साहब इस के लिए वहीं बैठे हैं.’’ थाने पहुंचे तो मेरे मित्र डीसीपी मोहित साहब बयान लेने के लिए बैठे थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सब से पहले आप की छोटी बहू के बयान लेने हैं. पता करें, वह स्कूल से आ गई हो, तो तुरंत बुला लें.’’

छोटी बहू आई तो उसे सीधे डीसीपी साहब के सामने पेश किया गया. उसे हम में से किसी से मिलने नहीं दिया गया. डीसीपी साहब ने उसे अपने सामने कुरसी पर बैठा, बयान लेने शुरू किए.

2 इंस्पैक्टर बातचीत रिकौर्ड करने के लिए तैयार खड़े थे. एक लिपिबद्ध करने के लिए और एक वीडियोग्राफी के लिए.

डीसीपी साहब ने पूछना शुरू किया-

‘‘आप का नाम?’’

‘‘जी, निवेदिका.’’

‘‘आप की शादी कब हुई? कितने वर्षों से आप कर्नल चोपड़ा साहब की बहू हैं?’’

‘‘जी, मेरी शादी 2011 में हुई थी.

6 वर्ष हो गए.’’

‘‘आप के कोई बच्चा?’’

‘‘जी, एक बेटा है जो मौडर्न स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ता है.’’

‘‘आप को अपनी सास और ससुर से कोई समस्या? मेरे कहने का मतलब वे अच्छे या आम सासससुर की तरह तंग करते हैं?’’

‘‘सर, मेरे सासससुर जैसा कोई नहीं हो सकता. वे इतने जैंटल हैं कि उन का दुश्मन भी उन को बुरा नहीं कह सकता. मेरे पापा नहीं हैं. कर्नल साहब ने इतना प्यार दिया कि मैं पापा को भूल गई. वे दोनों अपने किसी भी बच्चे पर भार नहीं हैं. पैंशन उन की इतनी आती है कि अच्छेअच्छों की सैलरी नहीं है. दवा का खर्चा भी सरकार देती है. कैंटीन की सुविधा अलग से है.’’

‘‘फिर समस्या कहां है?’’

‘‘सर, समस्या राजी के दिमाग में है, उस के विचारों में है. उस के गंदे संस्कारों में है जो उस की मां ने उसे विरासत में दिए. सर, मां की प्रयोगशाला में बेटी पलती और बड़ी होती है, संस्कार पाती है. अगर मां अच्छी है तो बेटी भी अच्छी होगी. अगर मां खराब है तो मान लें, बेटी कभी अच्छी नहीं होगी. यही सत्य है.

‘‘सर, सत्य यह भी है कि राजी महाचोर है. मेरे मायके से 5 किलो दान में आई मूंग की दाल भी चोरी कर के ले गई. मेरे घर से आया शगुन का लिफाफा भी चोरी कर लिया, उस की बेटी ने ऐसा करते खुद देखा. थोड़ा सा गुस्सा आने पर जो अपनी बेटी का बस्ता और किताबें कमरे के बाहर फेंक सकती है, वह पागल नहीं तो और क्या है. उस की बेटी चाहे होस्टल चली गई परंतु यह बात वह कभी नहीं भूल पाई.’’

‘‘ठीक है, मुझे आप के ही बयान लेने थे. सास के बाद आप ही राजी की सब से बड़ी राइवल हैं.’’

उसी समय एक कौंस्टेबल अंदर आया और कहा, ‘‘सर, राजी अपने मायके में पकड़ी गई है और उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है. उस की मां भी साथ है.’’

‘‘उन को अंदर बुलाओ. कर्नल साहब, उन के बेटों को भी बुलाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम सब डीसीपी साहब के सामने थे. राजी और उस की मां भी थीं. राजी की मां ने कहा, ‘‘सर, यह तो पागल है. उसी पागलपन के दौरे में इस ने अपनी सास को जहर दिया. ये रहे उस के पागलपन के कागज. हम शादी के बाद भी इस का इलाज करवाते रहे हैं.’’

‘‘क्या? यह बीमारी शादी से पहले की है?’’

‘‘जी हां, सर.’’

‘‘क्या आप ने राजी की ससुराल वालों को इस के बारे में बताया था?’’ डीसीपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, बता देते तो इस की शादी नहीं होती. वह कुंआरी रह जाती.’’

‘‘अच्छा था, कुंआरी रह जाती. एक अच्छाभला परिवार बरबाद तो न होता. आप ने अपनी पागल लड़की को थोप कर गुनाह किया है. इस की सख्त से सख्त सजा मिलेगी. आप भी बराबर की गुनाहगार हैं. दोनों को इस की सजा मिलेगी.’’

‘‘डीसीपी साहब किसी पागल लड़की को इस प्रकार थोपने की क्रिया ही गुनाह है. कानून इन को सजा भी देगा. पर हमारे बेटे की जो जिंदगी बरबाद हुई उस का क्या? हो सकता है, इस के पागलपन का प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़े. उस का कौन जिम्मेदार होगा? हमारा खानदान बरबाद हो गया. सबकुछ खत्म हो गया.’’

‘‘मानता हूं, कर्नल साहब, इस की पीड़ा आप को और आप के बेटे को जीवनभर सहनी पड़ेगी, लेकिन कोई कानून इस मामले में आप की मदद नहीं कर पाएगा.’’

थाने से हम घर आ गए. सरला की तबीयत ठीक हो गई थी. वह अस्पताल से घर आ गई थी. महीनों वह इस हादसे को भूल नहीं पाई थी. कानून ने राजी और उस की मां को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि औरतों के प्रति गुनाह होते तो सुना था लेकिन जो इन्होंने किया उस के लिए 7 साल की सजा बहुत कम है. अगर उम्रकैद का प्रावधान होता तो वे उसे उम्रकैद की सजा देते. Hindi Family Story

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