इदा चाहती कुछ थी, कहती कुछ थी और करती कुछ थी. वह मजबूर थी अपने हालात से, अपने माहौल से. दिखने में तो वह खुद एक बच्ची लगती थी, मगर उस का अपना एक 5 साल का बच्चा था.वह करीम से कहती थी, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती? किसी और की बीवी को इस तरह परेशान करते हो? वह भी तब, जब वह तुम से 5 साल बड़ी है? उस का अपना एक बच्चा है, वह भी 5 साल का?’’

ये सारी बातें वह एक सांस में कह जाती थी, बिना रुके.करीम उस की बातें सुन कर कहता था, ‘‘क्या करूं... किसी और की बीवी इतनी खूबसूरत हो और मु?ा से प्यार करती हो, तो शर्म कहां से आए?’’करीम की बातें सुन कर इदा हंस देती थी और कहती थी, ‘‘तुम बहुत अच्छे हो करीम.’’करीम को यह सुन कर बड़ी तसल्ली मिलती थी.

वह अपनी बातें कहने में मगन रहता था. इदा उस की कुछ बातों को यों ही हंसी में उड़ा देती थी, मगर जब करीम उस से मिलने की बात करता था, तब उस के चेहरे की हंसी गायब हो जाती थी.वह कहती थी, ‘‘करीम, मैं भी तुम से मिलना चाहती हूूं. तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.

मगर ऐसा हो नहीं सकता है न. मैं किसी और की हूं.’’फिर इदा रोने लगती थी. करीम उसे अपने हिसाब से हौसला देता था. उसे सम?ाता था. दूर से ही सही, उस के आंसू पोंछने की कोशिश करता था.करीम को यह बात सम?ा में नहीं आती थी कि यह दुनिया ऐसी क्यों है? यह समाज ऐसा क्यों है? उसे इदा बहुत पसंद थी. इदा को भी वह बहुत पसंद था. मगर वह किसी और की थी.

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