मिनी की न्यू ईयर पार्टी

अगले कुछ दिनों में कुछ होने वाला था. मैं चारों पैरों पर खड़ा हो कर ताकने की कोशिश कर रहा था. घर की चौकीदारी तो मेरा ही काम है न. हर जने की आवाज पहचानता हूं. मिनी की सारी सहेलियों को जानता हूं. मालिकमालकिन का दुलारा हूं और मिनी तो कई बार कह देती है कि मैं तीसरा बेटा हूं उन का. उन की बातें चाहे समझ न आएं पर चेहरा तो पढ़ ही सकता हूं न.

‘‘मिनी, घर पर दोस्तों का जमघट न लगा लेना. अंजलि या रिया को बुलाना हो तो सोने के लिए बुला लेना और किसी को नहीं.’’

‘‘ओह मम्मी, मैं छोटी बच्ची थोड़े ही हूं. औफिस जाने लगी हूं. सचमुच इतनी हिदायतें देने की जरूरत है क्या?’’

शेखर ने फौरन मिनी को हमेशा की तरह पुचकारा, ‘‘माया, मिनी बड़ी हो गई है, यह जानती है कैसे रहना है. न्यू ईयर का समय है, बच्चे भी तो ऐंजौय करेंगे. जब हम दोनों बाहर जा रहे हैं तो यह भी घर में अकेली क्यों रहे… दोस्त आ भी जाएंगे तो बुरा क्या है?’’

ये भी पढ़ें- अगला मुरगा

‘‘मेरे सामने इस के फ्रैंड्स आते ही हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं पर मेरे पीछे से आने में मुझे चिंता रहती है, साफ बात है. राहुल भी दोस्तों के साथ गोवा चला गया वरना परेशानी की कोई बात ही न होती.’’

मिनी ने अब लाड़ से माया के गले में हाथ डाल दिया, ‘‘ओके मम्मी. आप आराम से जाओ… जमघट नहीं लगेगा. खुश?’’

माया ने भी मिनी का गाल चूम लिया. मैं वहीं खड़ा यह रोचक दृश्य देख रहा था. शेखर ने मेरे सिर पर हाथ फेरा तो मैं भी पूंछ हिलाता हुआ उन से लिपट गया.

शेखर और माया हर साल तो न्यू ईयर पर मुंबई में घर पर ही रहते थे पर इस बार माया को न्यू ईयर पर कुछ दोस्तों के साथ गोवा जाना था.

राहुल भी औफिस से छुट्टी ले कर गोवा जा चुका है. उसे वैसे भी कोई ज्यादा रोकताटोकता नहीं है. अब यह मिनी… शैतान लड़की… हर साल न्यू ईयर पार्टी अंजलि के घर होती है. वहीं सब बच्चे इकट्ठा होते हैं. मिनी की एक बात मुझे पसंद है. उसे बाहर से अच्छा अपने घर पर दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद है. उस में भी माया मना कर रही है. गलत बात है. बस, न्यू ईयर पर मिनी अंजलि के घर न चली जाए वरना मैं अकेला रह जाऊंगा. वैसे आज तक अकेला नहीं रहा.

शेखर और माया चले गए. मिनी ने मुझे गोद में बैठा लिया. लिपट गई मुझ से. कैसे जान लेती है न मेरे मन की बात. बोली, ‘‘डौंट वरी बडी, तू अकेला नहीं रहेगा. मैं कहीं नहीं जाऊंगी. घर पर पार्टी करेंगे.’’

मैं मन ही मन हंसा. बडी नाम रखा था मिनी ने मेरा. अपना नाम पसंद है मुझे. मिनी सोफे पर पसर गई. मैं भी वहीं फर्श पर लेट गया. उस ने फोन स्पीकर पर रखा और चहकी, ‘‘अंजलि, गुड न्यूज. न्यू ईयर पार्टी इस बार मेरे घर पर.’’

‘‘अरे वाह, अंकलआंटी गए?’’

‘‘हां. बोल, किसेकिसे बुलाना है?’’

‘‘वही अपना पूरा ग्रुप.’’

‘‘ठीक है, डिनर और्डर करेंगे, मूवी देखेंगे… सब शाम को आ जाओ. तुम ही सब से बात कर लो.’’

मेरे कान खड़े हुए मूवी. ओह, यह मिनी की बच्ची फिर ‘ओम शांति ओम’ लगाएगी. इतनी बड़ी फैन जो है शाहरूख की. इस का मूड अच्छा हो तो यही मूवी देखती है. चलो ठीक है. शेखर और माया के हर साल के टीवी के न्यू ईयर के प्रोग्राम से तो अच्छा ही कटेगा मेरा समय.

उन दोनों की टीवी की पसंद के प्रोग्राम से परेशान हो चुका हूं. जब से शेखर रिटायर हुए हैं पूरा दिन दोनों ‘सावधान इंडिया’ या ‘क्राइम पैट्रोल’ देखते हैं. उस के बाद दोनों बातें भी वैसी ही करने लगे हैं. देखा था न, अभी जाते हुए मिनी को कैसे समझा रहे थे कि जमाना खराब है, कोई किसी का नहीं, दोस्त ही दुश्मन होते हैं, किसी पर भी विश्वास नहीं करना वगैरावगैरा.

वह तो अच्छा है मिनी एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल रही थी. यह क्राइम पैट्रोल का ज्ञान है, मिनी जानती है वरना तो पार्टी हो ही न पाती. इस के दोस्त तो बहुत अच्छे हैं. जब भी आते हैं कैसा यंग माहौल हो जाता है. वाह, आज की रात धमाल रहेगा… मजा आएगा. अभी सो लेना चाहिए.

जैसे ही आंख लगी, मिनी संजय के साथ मेन्यू डिस्कस करने लगी, शेखर और माया घर पर नहीं होते तो मिनी का फोन स्पीकर पर रहता है, इसलिए मैं सब आराम से सुनता हूं. राहुल भी स्पीकर पर रखता है. उस की भी सब बातें मुझे पता हैं. गोवा दोस्तों के साथ नहीं गया है गर्लफ्रैंड प्रीति के साथ गया है और यह सिर्फ मैं जानता हूं. बडी सब जानता है.

मिनी जोरशोर से पार्टी की तैयारी में लग गई है. न… न… कामवाम में नहीं, बस सोफे पर लेट कर फोन करने में. मिनी का बस चले तो पार्टी भी सोफे पर लेट कर निबटा लें. लेट कर फोन पर वीडियो, शो देखना या कोई किताब पढ़ना उस का शौक है पर बहुत मस्ती है उस में… मूड अच्छा हो तो मुझे बैठने ही नहीं देगी… इतना खेलेगी… क्या खेलती है? बताऊं? बुद्धू बनाती है मुझे.

ये भी पढ़ें- दरगाह का खादिम

इसी सोफे पर लेटीलेटी बारबार बौल फेंकती रहती है और

‘बडी जाओ, बौल लाओ… शाबाश’ कहती रहती है. कभी इधर फेंकेंगी, कभी उधर… कभी डाइनिंग टेबल के नीचे तो कभी सोफे के नीचे… पागल बनाती है पर मजा भी आता है. मुंबई के इन फ्लैट्स में यही खेल सकते हैं.

मिनी खाने का और्डर दे रही है. मेरे कान खड़े हो गए. यहां घर में सब वैजिटेरियन हैं, राहुल कभीकभी मेरे लिए कुछ नौनवैज पैक करवा लाता है. किसी को पता नहीं है कि वह बाहर नौनवैज खाने लगा है. बस, मुझे पता है. मुझे स्मैल आ जाती है कि जनाब बाहर नौनवैज उड़ा कर आए हैं. हां, तो जिस दिन राहुल मेरे लिए नौनवैज पैक करवा कर लाता है, अपनी पार्टी हो जाती है. वैसे माया के हाथ की सादी दाल और रोटी में भी स्वाद है पर रोजरोज… चेंज मुझे भी चाहिए.

मिनी फाइनल कर रही है… पिज्जा, चिकन बिरयानी, वेज बिरयानी, कोल्ड ड्रिंक्स, आइसक्रीम… मुझे खास इंट्रैस्ट नहीं आया. खैर, चिकन बिरयानी चलेगी. दालरोटी से तो बैटर ही रहेगी.

मिनी मेरे ऊपर गिरती हुए लिपट गई. हो गई इस की मस्ती शुरू. ‘‘बडी, पार्टी है. मजा आएगा… तेरे लिए चिकन बिरयानी, ठीक है?’’

मैं ने पूंछ हिला दी. हंसा, मिनी का हाथ चाट लिया.

‘‘चल, अब लंच करते हैं, फिर सोएंगे, शाम को फिर फ्रैश रहेंगे.’’

मिनी हम दोनों का खाना ले आई. दाल में भिगो कर रोटी के टुकड़े मेरे बरतन में मुझे दिए, खुद भी अपनी प्लेट ले कर बैठ गई. मिनी कुछ चीजों में सीधी है… जो भी माया बनाती है, चुपचाप खा लेती है. राहुल को खिला कर देखो दाल और रोटी, देखते ही कहता है कि क्या मैं बीमार हूं मां? उस समय मुझे जोर से हंसी आती है.

खाना खा कर हम दोनों सोने चले गए. बहुत सालों बाद दिन में 2 घंटे जम कर सोया, यह नींद रोज मेरे नसीब में कहां. ‘सावधान इंडिया’ और ‘क्राइम पैट्रोल’ की आवाजें सुनी हैं कभी? हर कोने में छिप कर लेट कर देख लिया… सो नहीं पाता.

शाम को मिनी मुझे बाहर घुमाने ले गई. सोसायटी की आंटियां मिनी से पूछ रही हैं कि और मिनी,

न्यू ईयर पार्टी कहां है? और शैतान मिनी कितना भोला मुंह बना कर कह रही है, ‘‘पार्टी नहीं है आंटी, घर पर ही हूं.’’

ये माया की सहेलियां हैं न… ये आंटियां नहीं, रिपोर्टर होती हैं. मिनी नहाधो कर तैयार हो रही है. दोस्तों के फोन आते रहे. सब खुश हैं… पार्टी के लिए एक घर खाली मिल गया है. 8 बजे सब आ गए. संजय, अंजलि, रोमा, टोनी, मयंक, रिया, नेहा, आरती… सब अच्छे लगते हैं मुझे.

टोनी ने पहला काम जमीन पर ही बैठ कर मुझ से खेलने का किया, ‘‘हैलो बडी, मिस यू यार.’’

यही कहता है वह हमेशा. मैं ने भी कहा, ‘‘मिस यू टू, तुम सब जल्दी आया करो… पर बोल नहीं पाता तो मेरी बात तो मुंह में ही रह जाती है न. सब मुझे ‘हैलो बडी’ कह कर प्यार कर रहे थे.’’

सैल्फी की शौकीन आरती ने सब से पहले मेरे साथ कई फोटो लिए, मैं ने भी

अच्छे पोज दिए, मुझे तो आदत हो गई है. राहुल व मिनी के सारे दोस्त मेरे साथ सैल्फी लेते हैं. तब मुझे स्टार जैसा फील होता है.

9 बजे तक खाने की डिलिवरी हो गई, रोमा ने कहा, ‘‘सुनो, खाना गरम है. पहले खा लें?’’

मिनी की चिंता सब से अलग होती है. बोली, ‘‘रातभर पार्टी करेंगे. दोबारा भूख लग आई तो?’’

संजय ने कहा, ‘‘न्यू ईयर का टाइम है, फिर मंगवा लेंगे.’’ खाने के पैकेट खुल गए. मेरे बरतन में सब से पहले मिनी ने चिकन बिरयानी परोसी. थैंक्यू मिनी, कहते हुए मैं टूट पड़ा. बहुत बढि़या सारी खत्म कर दी. सब बच्चे ड्राइंगरूम में खा

रहे थे.

मयंक ने पूछा, ‘‘बडी पिज्जा चाहिए?’’

मैं वहां से हट गया. बिरयानी के बाद पिज्जा कौन खाएगा. मुंह का स्वाद अच्छा था.

मिनी सब को समझा रही थी, ‘‘सुनो, सब लोग प्लीज 1-1 चीज कूड़ेदान में डालना…’’ सब अपनेअपने बरतन धोपोंछ कर रखना. मम्मी को बताना नहीं है कि हम ने पार्टी की है. उन के सामने पार्टी हो तो उन्हें ठीक लगता है. उन के पीछे से पार्टी हो तो उन्हें चिंता हो जाती है कि पता नहीं क्याक्या होता होगा.

ये भी पढ़ें- घुट-घुट कर क्यों जीना

रिया ने कहा, ‘‘डौंट वरी, हम सब संभाल लेंगे.’’ 10 बजे तक धीरेधीरे खाते हुए सब ने मजेदार गप्पें मारीं. कितनी अलग है इन की दुनिया. हलकीफुलकी मजेदार बातें… मूवीज की, नए गानों की… अपनेअपने औफिस की मजेदार बातें. मुझे यह साफ समझ आया कि संजय रिया का बौयफ्रैंड है, टोनी आरती का. बस, बाकी सब में अच्छी मजबूत दोस्ती है. सब ने मिल कर 1-1 चीज समेट दी.

मिनी ने कहा, ‘‘सुबह 8 बजे तक सब चले जाना वरना 9 बजे लता आंटी काम के लिए आएंगी… वे मम्मी को सब बता देंगी.’’

‘‘हांहां, डौंट वरी. आज पार्टी के लिए घर मिल गया, इतना बहुत है. न्यू ईयर पर होटलों की वेटिंग बहुत लंबी रहती है. अब आराम से खाना तो खाया… अब टाइमपास करेंगे.’’

मिनी बोली, ‘‘चलो, मूवी देखें कोई.’’

मेरे कान खड़े हो गए. कोई मूवी क्या? यह पक्का ‘ओम शांति ओम’ लगाएगी, इस का अच्छा मूड हो और यह यह मूवी न देखे… डायलौग रट गए हैं मुझे. सब अपनीअपनी पसंद बताने लगे, मैं आराम से बैठ गया, जानता हूं किसी की नहीं चलेगी. मिनी शाहरूख के अलावा किसी की मूवी नहीं देखेगी. 20 मिनट बाद तय हुआ कि ‘ओम शांति ओम’ देखी जाएगी.

देखा? वही हुआ जो मुझे सुबह से पता था. शैतान मिनी. हमेशा कैसे भोली सूरत बना कर अपनी बात मनवा लेती है… प्यारी है, दोस्त

प्यार करते हैं उसे. मूवी का नाम सुनते ही मैं मालिक और मालकिन के बैड के नीचे घुस

कर यह सोच कर लेट गया. शायद वहां आवाज कम आए.

टोनी आवाज देने लगा, ‘‘बडी आओ, मूवी देखें… कहां हो यार?’’

मैं ने कहा, ‘‘रहने दो भाई, तुम ही देख लो, तुम ने शायद एक बार ही देखी होगी… मुझे बख्शो. मैं मिनी के साथ ही रहता हूं.’’

मयंक भी आवाज दे रहा है, ‘‘कम,

बडी कम.’’

‘‘ओह, जाना पड़ेगा. कोई बुलाता है तो जाना ही पड़ता है. मैं ड्राइंगरूम में बच्चों के पास जा कर खड़ा हो गया. मयंक ने मुझे अपने से लिपटा लिया, ‘‘आओ, बडी, मूवी देखेंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘मुझे एक भी सीन नहीं देखना इस मूवी का. मुझे पूरी मूवी रट गई है, अब तो मिनी के अच्छे मूड से डर लगने लगा है. मुझे माफ करो.’’

अजी कहां, मिनी ने मेरे पास फर्श पर ही अपना तकिया रख लिया. लेट गई. बोली, ‘‘आ जा बडी, तेरे बिना मूवी देखने में मुझे मजा नहीं आता.’’

अब तो कहीं छिप कर बैठ नहीं सकता न. मूवी शुरू हो गई. मैं आंखें बंद किए लेटा तो था पर कानों में डायलौग तो पड़ने ही थे. अगर शाहरूख खान की मूवी के डायलौग का इम्तिहान हो तो मैं ही फर्स्ट आऊंगा और मिनी को श्रेय दूंगा. 12 बजने में 2 मिनट पर टीवी बंद कर दिया गया. फिर हैप्पी न्यू ईयर के शोर से ड्राइंगरूम गूंज उठा. सब एक दूसरे के गले मिल रहे थे. मुझे भी सब ने हैप्पी न्यू ईयर कहा. बच्चों में मैनर्स हैं.

रोमा चिल्लाते हुए बोली, ‘‘अब थोड़ा डांस हो जाए.’’

मुझे पता है रोमा को डांस का शौक है. एक दिन बता रही थी कि उस ने डांस क्लास जौइन की है. मैं तो बहुत किनारे जा कर बैठ गया. डांस तो देखना था. मुझे इन बच्चों का डांस देखने में मजा आता है. ड्राइंगरूम का फर्नीचर एक तरफ कर जगह बना ली गई. मुझे पता था मिनी कौन सा म्यूजिक लगाएगी, यही तो सुनती है आजकल. बादशाह के गाने…

वैसे उसे और कर्णप्रिय मधुर गाने भी पसंद हैं पर फिर वही बात, उस का मूड अच्छा हो तो आप शाहरूख की मूवीज और बादशाह के गानों से बच ही नहीं सकते. बच्चे बढि़या डांस कर रहे हैं. यह टोनी… थोड़ा मोटा है पर डांस अच्छा कर लेता है. सब रोमा के स्टैप कौपी कर रहे हैं. वह सीखती है न, सब को नएनए स्टैप बता रही है हमारी मिनी. उसे किसी के डांस से मतलब नहीं. उस का अपना ही डांस होता है. कोई उसे तो कौपी कर ही नहीं सकता. कुछ भी करती है, अच्छा करती है.

अब डांस शुरू हो गया तो जल्दी नहीं रुकेगा. बीचबीच में कोल्ड ड्रिंक पी जाती, फिर शुरू हो जाते. 3 बजे तक डांस किया सब ने. बहुत मजा आया. वैसे तो मिनी माया के बताए

घर के 2 काम करने में थक जाती है, पर इस समय देखो, अच्छा है… बच्चे मेरे सामने हैं. अच्छी पार्टी है. नहीं तो हर बार न्यू ईयर पर टीवी के बोरिंग प्रोग्राम.

डांस के बाद जिसे जो जगह समझ आई, वहीं सो गया. मिनी के बैड पर 3

लड़कियां… बाकी नीचे चादर बिछा कर सो गईं. शेखर व माया के बैडरूम में लड़के सो गए. सब इंतजाम देख मैं भी ड्राइंगरूम में फर्श पर बिछे अपने बैड पर सो गया. टोनी सोफे पर ही लेटा था, उस के खर्राटों से मेरी नींद खुलती रही. सब को पता था टोनी खर्राटे लेता है, इसलिए उसे सोफे पर सुलाया गया था, पर मैं तो फंस गया न.

मिनी के 7 बजे के अलार्म से भगदड़ सी मची. मिनटों में पूरा घर जैसे था वैसे व्यवस्थित कर दिया गया. एक बार फिर एकदूसरे को हैप्पी न्यू ईयर कहते हुए सब अपनेअपने घर चले गए. मिनी मुझे बाहर घुमा लाई. फिर लताबाई आ गई. मिनी ने लताबाई को भी न्यू ईयर विश किया. लता बाई ने पूछा, ‘‘मिनी, घर पर ही थी? कहीं गई नहीं? फ्रैंड्स लोग आए क्या?’’

ये भी पढ़ें- पहला-पहला प्यार भाग-2

‘‘नहीं, आंटी.’’

‘‘पार्टी नहीं की?’’

‘‘नहीं आंटी,’’ मिनी ने मुझे आंख मारते हुए ताली दी तो मैं ने भी आंख मारते हुए अपना पंजा उठा दिया.

‘‘ओह बडी, आई लव यू,’’ मिनी मुझ से लिपट गई, ‘‘लव यू टू, मिनी.’’

मिनी ने मेरे कान में पूछा, ‘‘बडी, मजा आया न पार्टी में?’’

‘‘हां, बहुत,’’ मैं ने जोरजोर से अपनी पूंछ हिला दी. युवा कहकहों से गूंजते घर में, हंसतेखेलते, डांस देखते मेरे नए साल की शुरुआत काफी अच्छी थी.

अधिकार : क्या रिश्ते में अधिकार की भावना जरूरी है – भाग 1

प्रेम में त्याग होता है स्वार्थ नहीं. जो यह कहता है कि अगर तुम मेरे नहीं हो सके तो किसी दूसरे के भी नहीं हो सकते…यहां प्यार नहीं स्वार्थ बोल रहा है…सच तो यह है कि प्रेम में जहां अधिकार की भावना आती है वहीं इनसान स्वार्थी होने लगता है और जहां स्वार्थ होगा वहां प्रेम समाप्त हो जाएगा. उपरोक्त पंक्तियां पढ़तेपढ़ते विनय ने आंखें मूंद लीं…

एकएक शब्द सत्य है इन पंक्तियों का. क्या उस के साथ भी ऐसा ही कुछ घटित नहीं हो रहा. अतीत का एकएक पल उस की स्मृतियों में विचरने लगा. विनय जब छोटा था तभी उस के पापा गुजर गए. उसे और उस की छोटी बहन संजना को उस की मां सपना ने बड़ी कठिनाई से पाला था.

ये भी पढ़ें- हथेली पर आत्मसम्मान

वह कैसे भूल सकता है वे दिन जब मां बड़ी कठिनाइयों से दो वक्त की रोटी जुटा पाती थीं. अपने जीवनकाल में पिता ने घर के सामान के लिए इतना कर्ज ले लिया था कि पी.एफ. में से कुछ बचा ही नहीं था. पेंशन भी ज्यादा नहीं थी. मां को आज से ज्यादा कल की चिंता थी. उस की और संजना की उच्चशिक्षा के साथसाथ उन्हें संजना के विवाह के लिए भी रकम जमा करनी थी. उन का मानना था कि दहेज का लेनदेन अभी भी समाज में विद्यमान है. कुछ रकम होगी तो दहेजलोभियों को संतुष्ट किया जा सकेगा अन्यथा बेटी के हाथ पीले करना आसान नहीं है.

बड़े प्रयत्न के बाद उन्हें एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी मिली पर वेतन इतना था कि घर का खर्च ही चल पाता था. फायदा बस इतना हुआ कि अध्यापिका की संतान होने के कारण उन को आसानी से स्कूल में दाखिला मिल गया. मां ने उन की देखभाल में कोई कमी नहीं होने दी. आवश्यकता का सभी सामान उन्हें उपलब्ध कराने की उन्होंने कोशिश की. इस के लिए ट्यूशन भी पढ़ाए. उन दोनों ने भी मां के विश्वास को भंग नहीं होने दिया. उन की खुशी की कोई सीमा नहीं रही जब मैट्रिक में उन्होंने राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया. स्कूल की तरफ से स्कौलरशिप तो मिली ही, उस को पहचान भी मिली. यही 12वीं में हुआ. उसे आई.आई.टी. में दाखिला तो नहीं मिल पाया पर निट में मिल गया.

ये भी पढ़ें- रुपहली चमक

संजना ने भी अपने भाई विनय का अनुसरण किया. उस ने भी बायो- टैक्नोलौजी को अपना कैरियर बनाया. बच्चों को अपनेअपने सपने पूरे करते देख मां को सुकून तो मिला पर मन ही मन उन्हें यह डर भी सताने लगा कि कहीं बच्चे अपनी चुनी डगर पर इतने मस्त न हो जाएं कि उन की अनदेखी करने लगें. अब वे उन के प्रति ज्यादा ही चिंतित रहने लगीं. मां स्कूल, कालेज की हर बात तो पूछती हीं, उन के मित्रों के बारे में भी हर संभव जानकारी लेने का प्रयास करतीं. विनय और संजना ने कभी उन की इस बात का बुरा नहीं माना क्योंकि उन्हें लगता था कि मां का अतिशय प्रेम ही उन से यह करवा रहा है. भला मां को उन की चिंता नहीं होगी तो किसे होगी. मां की खुशी की सीमा न रही जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते ही उस की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी लग गई. संजना का कोर्स भी पूरा होने वाला था. मां ने उस के विवाह की बात चलानी प्रारंभ कर दी…संजना रिसर्च करना चाहती थी. उस ने अपना पक्ष रखा तो मां ने यह कह कर अनसुना कर दिया कि मुझे प्रयास करने दो, यह कोई आवश्यक नहीं कि तुरंत अच्छा रिश्ता मिल ही जाए.

संयोग से एक अच्छा घरपरिवार मिल गया. संजना के मना करने के बावजूद मां ने अपने अधिकार का प्रयोग कर उस पर विवाह के लिए दबाव बनाया. विनय ने संजना का साथ देना चाहा तो मां ने उस से कहा कि मुझे अपनी एक जिम्मेदारी पूरी कर लेने दो, मैं कुछ गलत नहीं कर रही हूं. तुम स्वयं जा कर लड़के से मिल लो, अगर कुछ कमी लगे तो बता देना मैं अपना निर्णय बदल दूंगी और जहां तक संजना की पढ़ाई का प्रश्न है वह विवाह के बाद भी कर सकती है. विनय तब समीर से मिला था. उस में उसे कोई भी कमी नजर नहीं आई, आकर्षक व्यक्तित्व होने के साथ वह अच्छे खातेपीते घर से है, कमा-खा भी अच्छा रहा है.

ये भी पढ़ें- मां और मोबाइल

इंजीनियरिंग कालेज में लैक्चरर है. मां ने जैसे दिन देखे थे, जैसा जीवन जिया था उस के अनुसार उसे उन का सोचना गलत भी नहीं लगा. वे एक मां हैं, हर मां की इच्छा होती है कि उन के बच्चे जीवन में जल्दी स्थायित्व प्राप्त कर लें. आखिर वह संजना को मनाने में कामयाब हो गया. संजना और समीर का विवाह धूमधाम से हो गया. संजना के विवाह के उत्तरदायित्व से मुक्त हो कर मां कुछ दिनों की छुट्टी ले कर विनय के पास आईं. एक दिन बातोंबातों में उस ने अपने मन की बात उन के सामने रखते हुए कहा, ‘मां अब आप की सारी जिम्मेदारियां समाप्त हो गई हैं. अब नौकरी करने की क्या आवश्यकता है, अब यहीं रहो.’

बेटे के मुख से यह बात सुन कर मां भावविभोर हो गईं. आखिर इस से अधिक एक मां को और क्या चाहिए. उन्होंने त्यागपत्र भेज दिया. कुछ दिन वे उस घर को किराए पर उठा कर तथा वहां से कुछ आवश्यक सामान ले कर आ गईं. उस ने भी आज्ञाकारी पुत्र की तरह मां का कर्ज उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. घर के खर्च के पूरे पैसे मां को ला कर देता, हर जगह अपने साथ ले कर जाता. उन की हर इच्छा पूरी करने का हरसंभव प्रयत्न करता. धीरेधीरे पुत्र की जिंदगी में उन का दखल बढ़ता गया. वे उस से एकएक पैसे का हिसाब लेने लगीं, अगर वह कभी मित्रों के साथ रेस्तरां में चला जाता तो मां कहतीं, ‘बेटा फुजूलखर्ची उचित नहीं है, आज की बचत कल काम आएगी.’

ये भी पढ़ें- मैं नहीं जानती

अधिकार : क्या रिश्ते में अधिकार की भावना जरूरी है

Short Story : हथेली पर आत्मसम्मान

‘‘सो म, तुम्हारी यह मित्र इतना मीठा क्यों बोलती है?’’

श्याम के प्रश्न पर मेरे हाथ गाड़ी के स्टीयरिंग पर तनिक सख्त से हो गए. श्याम बहुत कम बात करता है लेकिन जब भी बात करता है उस का भाव और उस का अर्थ इतना गहरा होता है कि मैं नकार नहीं पाता और कभी नकारना चाहूं भी तो जानता हूं कि देरसवेर श्याम के शब्दों का गहरा अर्थ मेरी समझ में आ ही जाएगा.

‘‘जरूरत से ज्यादा मीठा बोलने वाला इनसान मुझे मीठी छुरी जैसा लगता है, जो अंदर से हमारी जड़ें काटता है और सामने चाशनी बरसाता है,’’ श्याम ने अपनी बात पूरी की.

‘‘ऐसा क्यों लगा तुम्हें? मीठा बोलना अच्छी आदत है. बचपन से हमें सिखाया जाता है सदा मीठा बोलो.’’

‘‘मीठा बोलना सिखाया जाता है न, झूठ बोलना तो नहीं सिखाया जाता. यह लड़की तो मुझे सिर से ले कर पैर तक झूठ बोलती लगी. हर भाव को प्रदर्शन करने में मनुष्य एक सीमा रेखा खींचता है. जरूरत जितनी मिठास ही मीठी लगती है. जरूरत से ज्यादा मीठा किस लिए? तुम से कोई मतलब नहीं है क्या उसे? कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर होगा वरना आज के जमाने में कोई इतना मीठा बोलता ही नहीं. किसी के पास किसी के बारे में सोचने तक का समय नहीं और वह तुम्हें अपने घर बुला कर खाना खिलाना चाहती है. कौनकौन हैं उस के घर में?’’

‘‘उस के मांबाप हैं, 1 छोटी बहन है, बस. पिता रिटायर हो चुके हैं. पिछले साल ही कोलकाता से तबादला हुआ है. साथसाथ काम करते हैं हम. अच्छी लड़की है शोभना. मीठा बोलना उस का ऐब कैसे हो गया, श्याम?’’

श्याम ने ‘छोड़ो भी’ कुछ इस तरह कहा जिस के बाद मैं कुछ कहूं भी तो उस का कोई अर्थ ही नहीं रहा. घर पहुंच कर भी वह अनमना सा चिढ़ा सा रहा, मानो कहीं का गुस्सा कहीं निकाल रहा हो.

ये भी पढ़ें- Short Story : अंतिम निर्णय

‘‘लगता है, कहीं का गुस्सा तुम कहीं निकाल रहे हो? क्या हो गया है तुम्हें? इतनी जल्दी किसी के बारे में राय बना लेना क्या इतना जरूरी है…थोड़ा तो समय दो उसे.’’

‘‘वह क्या लगती है मेरी जो मैं उसे समय दूं और फिर मैं होता कौन हूं उस के बारे में राय बनाने वाला. अरे, भाई, कोई जो चाहे सो करे…तुम्हारी मित्र है इसलिए समझा दिया. जरा आंख और कान खोल कर रखना. कहीं बेवकूफ मत बनते रहना मेरी तरह. आजकल दोस्ती और किसी की निष्ठा को डिस्पोजेबल सामान की तरह इस्तेमाल कर के डस्टबिन में फेंक देने वालों का जमाना है.’’

‘‘सभी लोग एक जैसे नहीं होते हैं, श्याम.’’

‘‘तुम से ज्यादा तजरबा है मुझे दुनिया का. 10 साल हो गए हैं मुझे धक्के खाते हुए. तुम तो अभीअभी घर छोड़ कर आए हो न इसलिए नहीं जानते, घर की छत्रछाया सिर्फ घर %A

कल तुम बिजी आज हम बिजी : भाग 2

यहां मुकेश को कंपनी की तरफ से बड़ा सा बंगला और साथ ही गाड़ी भी मिली थी. शालिनी के अरमानों को जैसे पंख लग गए थे. यहां उसे पूरी आजादी थी, जैसे चाहे रहो. मुश्किल हुई तो बस, बंटी के कारण, सुबह अफिस जाते समय मुकेश उसे पालना घर में छोड़ देते थे पर लौटते समय बहुत देर हो जाती, शालिनी और मुकेश दोनों में से एक भी समय पर उसे लेने नहीं पहुंच पाते. मुकेश देर तक आफिस में रहते तो उन से कुछ उम्मीद करना बेकार था.

शालिनी को हमेशा पालनाघर के इंचार्ज की शिकायत सुननी पड़ती. उस दिन भी जब वह आफिस से लौटी तो शाम गहराने लगी थी. सारे बच्चे जा चुके थे. सिर्फ बंटी इंचार्ज के कमरे के बाहर सीढि़यों पर घुटने पर सिर टिकाए उदास सा बैठा था. उसे देख कर बंटी धीरे से मुसकराया और उठ कर खड़ा हो गया. इंचार्ज ने बाहर आ कर कहा, ‘मैडम, आप हमेशा लेट आती हैं, सारे बच्चे चले जाते हैं. यह अकेला रह जाता है तो रोता रहता है. एक दिन की बात हो तो ठीक है पर रोजरोज तो यह नहीं चल सकता.’

शालिनी इंचार्ज की बात सुन कर समझ गई कि वह देर तक रुकने के पैसे चाहता है. उस ने इंचार्ज को अतिरिक्त पैसे दे कर बंटी के देर तक रुकने का इंतजाम कर लिया. और कोई चारा भी तो नहीं था. घर के काम के लिए नौकर भी कंपनी से ही मिला था. जिंदगी मजे से गुजर रही थी. उस में भूचाल तभी आता जब बंटी बीमार होता या पालनाघर बंद होता.  ऐसे में दोनों एकदूसरे को छुट्टी लेने को कहते.

ये भी पढ़ें- Short Story : बदलाव

गरमी के दिन थे. स्कूल बंद हो गए तब भी बंटी नियम से पालनाघर जाता. एक दिन शाम को शालिनी, बंटी को ले कर लौटी तो उसी समय लखनऊ से मुकेश के पापा का फोन आया था. उन्होंने बताया, ‘दिनेश की शादी तय हो गई है और इसी महीने की 30 तारीख को शादी है. मेरी इच्छा है कि तुम लोग समय से पहले आ कर अपनी जिम्मेदारी संभाल लो. घर की अंतिम शादी है, बहुत मेहमान आएंगे,’ पापा बहुत उत्साह से बता रहे थे.

शालिनी सोचने लगी, इस समय आफिस में ढेरों काम हैं, कैसे जाना होगा. तभी पापा ने टोका, ‘तुम सुन रही हो न,’ तो वह चौंकी, ‘हां, पापा, हम लोग समय से पहले आ जाएंगे.’

उस समय तो शालिनी ने कह दिया पर वे गए ऐन वक्त पर ही, जब शादी की सारी तैयारियां हो चुकी थीं. मेहमानों से घर भरा था. धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ. इस बार मां छांट कर अपनी पसंद की बहू लाई थीं. आते ही छोटी बहू ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली.

फिर 2 वर्षों तक मुकेश व शालिनी का लखनऊ जाना ही नहीं हुआ. एक दिन दिनेश का फोन आया कि पापा की तबीयत बहुत खराब है. आप लोग तुरंत आ जाओ. वे पहुंचे तब तक उन का देहांत हो चुका था. मां बेहद दुखी थीं. शालिनी को वापस लौटने की तैयारी करते समय कुछ ध्यान आया. बात उस ने मुकेश से कही, ‘पापा के जाने के बाद मां बहुत अकेलापन अनुभव कर रही हैं. क्यों न हम उन्हें कुछ दिनों के लिए अपने साथ ले चलें?’

ये भी पढ़ें- आज का इंसान ऐसा क्यों : जिंदगी का है फलसफा

मुकेश बोले, ‘मैं भी यही सोच रहा था. बंटी के कारण उन का मन भी लग जाएगा.’ इस के बाद शालिनी मूल उद्देश्य  पर आ गई और बोली, ‘हमें बंटी को पालनाघर में नहीं छोड़ना पडे़गा. वैसे भी अब तो बंटी का स्कूल में दाखिला हो जाएगा तो आधा दिन वह वहीं रहेगा और बाकी समय मां संभाल लेंगी.’

शालिनी की बात मुकेश को ठीक लगी पर मां पता नहीं इस के लिए तैयार होंगी या नहीं. मुकेश ने दुविधा जताई तो वह तपाक से बोली, ‘नहीं, मां कभी मना नहीं करेंगी. पोते का मोह उन्हें मना करने से रोकेगा.’

मां से पूछा तो वह आसानी से तैयार हो गईं. नन्हे बंटी का लगाव उन्हें खींच कर अपने साथ ले गया.

चंडीगढ़ में उन के बंगले के सामने बहुत बड़ा लौन था. सैकड़ों प्रकार के पेड़पौधे लौन की खूबसूरती बढ़ा रहे थे. मां बंटी को ढेरों कहानियां सुनातीं, उस के साथ लूडो खेलतीं, कई किताबें दोनों साथसाथ पढ़ते. बंटी और दादी  ने बाहर बाग में बहुत से पौधे साथसाथ लगाए. बंटी अपनी दादी से बहुत सवाल करता था. उसे पता था कि उन के जवाब सिर्फ दादी मां ही दे सकती हैं, वह उन से ही पूछपूछ कर अपनी जिज्ञासा शांत करता वरना मम्मीपापा के पास तो उस के लिए छुट्टी वाले दिन भी वक्त नहीं था.

ये भी पढ़ें- साथ वाली सीट

उस दिन रविवार था. दादी मां सुबह ही नहा कर रसोई में चली गईं. रविवार के दिन मां बंटी के लिए अपने हाथ से हलवा बनातीं और बंटी को खिलाती थीं. उन्होंने अभी कटोरी में हलवा निकाल कर रखा ही था कि बंटी के जोर से चीखने की आवाज आई. भाग कर  दादी मां बाहर गईं तो देखा बरामदे में खड़ा बंटी अपने गाल को सहला रहा है और बड़ी कातर नजरों से दादी की ओर देख रहा था. तभी वहां मुकेश आ गए, ‘क्या शालिनी, बच्चे के साथ तुम भी बच्ची बन जाती हो. यह सब काम तुम बंटी के जाने के बाद भी तो कर सकती थीं.’

कल तुम बिजी आज हम बिजी : भाग 3

‘बंटी के जाने के बाद, बंटी कहां जा रहा है?’ दादी मां ने आश्चर्य से पूछा. ‘बंटी को हम बोर्डिंग में भेज रहे हैं. कुछ दिनों से हम देख रहे हैं कि वह बिगड़ता जा रहा है. वहां रहेगा तो ठीक रहेगा,’ कहते हुए मुकेश ने उसे गोद में उठा लिया.

दादी मां ने विरोध जताते हुए कहा, ‘अभी तो बंटी बहुत छोटा है. इस समय तो उसे मां की गोद और पिता के साए की जरूरत है.’

‘मां, अब  वह समय गया जब सारी जिंदगी बच्चों को मांबाप के साए की जरूरत होती थी. आजकल बच्चों को अपने रास्ते खुद तलाश करने पड़ते हैं, तभी वे जीवन में आगे बढ़ते हैं. बंटी को गोद से उतारते हुए मुकेश ने कहा, ‘आज हमारा बेटा अपने पापा के साथ बाजार जाएगा और ढेर सारे खिलौने खरीदेगा.’

जाने वाले दिन सुबह बंटी दादी से विदा लेने आया था. वह कुछ उदास सा था, यह देख कर दादी का दिल भर आया. वह पोते को ले कर बाहर आ गईं. हरि गाड़ी निकाल चुका था. शालिनी बंटी का सामान रखवा रही थी. मुकेश बोले, ‘मां, हम बंटी को छोड़ कर रात तक वापस आ जाएंगे, तुम अपना ध्यान रखना. मैं ने हरि से कह दिया है कि वह तुम्हारे पास रहेगा.’

दादी मां ने कुछ जवाब नहीं दिया. उन की निगाहें तो बंटी पर लगी थीं, जो जाते वक्त उन से सट कर खड़ा हो गया था. पलकों से आंसू छलकने को थे. उन्होंने बंटी का हाथ पकड़ कर उसे गाड़ी में बैठा दिया. बंटी ने दादी की ओर देख कर नन्ही हथेली से अपने आंसू पोंछे और दादी ने अपने आंसू अपनी पलकों में समेट लिए और कुछ पलों के लिए मुंह फेर लिया.

गाड़ी चल पड़ी. शालिनी और बंटी हाथ हिला रहे थे. जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो गए, दादी मां देखती रहीं.

बंटी के जाने के बाद उस घर में फिर उन का मन नहीं लगा. शालिनी एवं मुकेश के आने पर उन्होंने अपना फैसला सुना दिया कि अब वह यहां नहीं रहेंगी. रुकने की कोई वजह ही नहीं थी. जिस के लिए वह आई थीं वही नहीं था, तो किस के लिए रुकतीं. उन के जाने का इंतजाम हो गया और वह चली गईं. शालिनी ने भी राहत की सांस ली.

ये भी पढ़ें- एस्कॉर्ट और साधु

शालिनी के आफिस की मीटिंग सिंगापुर में थी. कंपनी की तरफ से कुछ लोगों का चुनाव किया गया. जिन्हें भेजा जाना था उन में शालिनी का भी नाम था. उस दिन वह बेहद खुश थी. यह बात वह मुकेश को बताना चाहती थी पर मुलाकात ही नहीं हो रही थी. मुकेश भी आजकल बेहद व्यस्त थे. रात में कब आते पता ही नहीं चलता. सुबह जब वह उठते तो शालिनी जा चुकी होती. एक सप्ताह ऐसे ही निकल गया. उस दिन रविवार था. दोनों एकसाथ सो कर उठे. चाय पीते वक्त शालिनी बोली, ‘मुकेश, हमारे आफिस से एक टूर सिंगापुर जा रहा है. उस में मेरा भी नाम है.’

मुकेश को अच्छा नहीं लगा. वह बोले, ‘शालिनी, तुम शायद भूल गई हो. बंटी के पेपर खत्म होने वाले हैं और हमें उसे लेने जाना है.’

‘बंटी को तुम ले आना. वह हरि के साथ रह लेगा. मैं इतना अच्छा मौका नहीं छोड़ सकती. अगर कंपनी को फायदा होता है तो समझो मेरा प्रमोशन पक्का है,’ कह कर वह उठ खड़ी हुई.

मुकेश अकेले ही गए और बंटी को ले आए पर बंटी के आने के पहले शालिनी जा चुकी थी. बंटी हरि के साथ अपना वक्त बिताता. उस दौरान मुकेश भी बहुत व्यस्त थे.

शाम को बहुत तेज बारिश हो रही थी. बंटी बरामदे में बौल खेल रहा था. हरि घर पर नहीं था. बारबार वह बौल में जोर से किक मारता, बौल बाहर जाती तो वह उठाने दौड़ पड़ता. जब तक हरि आया तब तक बंटी पूरा भीग चुका था. हरि को लगा कहीं बंटी बीमार न हो जाए तो फौरन ही उस के कपड़े बदलवा दिए. तब भी बंटी को जुकाम हो गया था. मुकेश जब आफिस से लौटै तो वह सो चुका था. दूसरे दिन बंटी को होस्टल जाना था. हरि ने उस की सारी तैयारी कर दी. वैसे भी हर बार यह काम उस के जिम्मे ही रहता था.

मुकेश बंटी को भेज कर लौटे तो काफी रात हो गई थी. वह बहुत थक गए क्योंकि बारिश के कारण रास्ता खराब हो गया था. दूसरे दिन आफिस जाने के समय उन के मोबाइल पर रिंग आई, ‘बंटी को कल से तेज बुखार है,’ बंटी के होस्टल से मैनेजर मि. राय का फोन था.

‘मैनेजर साहब, आप जानते हैं कि मैं कल रात को उसे छोड़ कर वापस आया हूं. इतनी जल्दी मैं दोबारा कैसे आ सकता हूं?’

‘जैसा आप ठीक समझें मि. मलहोत्रा, आप को सूचित करना हमारा फर्ज था. वैसे मैं ने डाक्टर को दिखा दिया है, उन्होंने दवा दे दी है. उसे वायरल फीवर है, 2-4 दिन में ठीक हो जाएगा.’

मुकेश के बिना पूछे ही बता कर फोन काट दिया. वायरल फीवर होने की बात सुन उन्हें राहत मिल गई थी. इस में 2-3 दिन में आराम हो जाता है. आफिस जाने के पहले होस्टल के मैनेजर के नाम एक चेक भेज दिया.

जैसेजैसे बंटी बड़ा होता गया उस का घर आना धीरेधीरे कम होता गया था. इस बार आया तो मोबाइल का टूथ इयर पीस पूरे समय कान में लगाए रहता या कंप्यूटर के आगे बैठा घंटों चैटिंग करता रहता. मुकेश और शालिनी के होने न होने का उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. अपने में ही मस्त रहता. जब जितने पैसे की जरूरत होती अपने मम्मीपापा को बता देता. उसे पैसे मिल जाते.

ये भी पढ़ें- स्वदेश के परदेसी : कहां दफन हुई अलाना की इंसानियत

स्कूल की पढ़ाई खत्म होते ही उच्च शिक्षा के लिए बंटी ने आस्ट्रेलिया जाने का फैसला किया. 4 साल बाद वह वहीं नौकरी भी करने लगा. मुकेश शालिनी का बहुत मन था कि नौकरी ज्वाइन करने से पहले एक बार वह इंडिया आ जाता पर वह नहीं आया. हां, यह जरूर कहता था कि मैं आप लोगों को यहां बुलाना चाहता हूं. कुछ दिन यहां रहना, बहुत मजा आएगा.

अपने ही अतीत के बारे में सोचतेसोचते मुकेश कब सो गए उन्हें पता ही नहीं चला. शाम गहराने लगी ?आसमान में कालेकाले बादल छाने से मौसम कुछ अच्छा था, सो शालिनी ने बाहर बरामदे में नौकर से चेयर लगवा ली थी. फिर पुराने अलबम उठा कर ले आई और खोलखोल कर मुकेश को दिखाने लगी. नौकरी में थे तो कभी इतनी फुरसत ही नहीं मिली कि बैठ कर फोटो देखते.

अपने विवाह की तसवीरें, नन्हे बंटी की तस्वीरें देखतेदेखते बहुत देर हो गई तो दोनों भीतर आ गए. नौकर ने पूछा, ‘साहब, खाना लगा दूं?’ तो मुकेश बोले, ‘बंटी का फोन आने वाला है. उस से बात करने के बाद हम खाना खाएंगे.’ इस के बाद तो देर तक दोनों बंटी के फोन का इंतजार करते रहे पर फोन नहीं आया. तभी शालिनी को याद आया कि हो सकता है कि बेटे ने मेल किया हो. बहुत दिन से चैक नहीं किया. मेल बाक्स में गई तो देखा बंटी का छोटा सा नोट था.’

‘‘हाय मौम, डैड, आई एम वेरी बिजी, सो आई एम नाट कमिंग, आई एम सेंडिंग यू द चेक.’’

बंटी का लैटर पढ़ कर शालिनी सन्न खड़ी रह गई थी. लगा, इतने दिनों से वह एक भ्रम में जी रही थी. भ्रम में जीवन जिया जा सकता है पर उस के टूटने का आघात झेलना कितना मुश्किल होता है यह आज महसूस हुआ.

ये भी पढ़ें- स्वदेश के परदेसी : भाग 4

डाक्टर का सख्त निर्देश था कि ऐसी कोई भी बात नहीं होनी चाहिए जिस से मुकेश को सदमा पहुंचे. यह सोच कर फीकी सी हंसी उस के चेहरे पर आ गई. यही तो माडर्न युग की त्रासदी है. पहले संयुक्त परिवार होते थे, कई बच्चे होते थे. उन में से 1-2 पढ़ने या कमाने बाहर निकल भी गए तो घर खाली नहीं होता था. अकेलापन छू भी नहीं पाता था, पर एकल परिवार संस्कृति की वजह से आज जीवन संध्या व्यतीत करने वाले प्राय: हर परिवार के दरवाजे पर अकेलापन देखने को मिलता है.

कल तुम बिजी आज हम बिजी : भाग 1

चारों ओर पानी और गहन अंधकार फैला है. तभी पानी का तेज रेला आया और शालिनी का हाथ उन के हाथ से छूट गया. घबराहट से वह पसीनेपसीने हो गए. चीखने की कोशिश की पर आवाज जैसे गले में फंस गई थी, ऐसा महसूस कर के अपने सीने में उन्होंने तेज दबाव महसूस किया, फिर असहनीय दर्द, साथ ही नींद खुल गई. वह बुरी तरह से तड़फने लगे, बहुत भयंकर स्वप्न देखा था.

उन की हरकत से बगल में सोई शालिनी की नींद खुल गई. देखा तो सीने पर हाथ रखे मुकेश कराह रहे हैं. अपने पारिवारिक डाक्टर को शालिनी ने फोन लगाया. उस समय डाक्टर नर्सिंग होम में थे. वह बोले, ‘‘मुकेश को फौरन यहां ले आओ.’’

शालिनी ने बरामदे में सोए हरि को जोर से पुकारा. मालकिन की घबराई हुई आवाज सुन कर वह भागाभागा आया.

‘‘हरि, तुम जल्दी से गाड़ी निकालो, मैं साहब को ले कर आती हूं,’’ कह कर शालिनी मुकेश को उठाने की कोशिश में लगी. समय की गंभीरता समझ हरि जैसे आया था उन्हीं पैरों से वापस लौट कर चला गया और गाड़ी निकालने लगा.

डा. खन्ना ने मुकेश को आई.सी.यू. में एडमिट कर लिया. पूरे स्टाफ में हलचल मच गई. तत्काल सारी चिकित्सा सुविधाएं मिल गईं. पास खड़ी शालिनी का घबराहट के कारण बुरा हाल था, काफी देर बाद स्थिति काबू में आई. मुकेश खतरे से बाहर हैं, यह जान कर शालिनी ने राहत की सांस ली. 4 दिन अस्पताल में रहने के बाद डिस्चार्ज के समय डाक्टर ने शालिनी को समझाते हुए कहा, ‘‘मुकेश को माइनर अटैक आया था. दूसरा झटका जानलेवा सिद्ध हो सकता है इसलिए भविष्य में बहुत सावधानी रखने की जरूरत है.’’

घर आ कर भी मुकेश आंखें बंद किए शांत बैठे रहे. शालिनी ने गौर से उन की ओर देखा. इन 4 दिनों में वह कितने झटक गए हैं, जैसे महीनों से बीमार रहे हों. डाक्टर की सलाह के मुताबिक चलना बेहद जरूरी है.

नहा कर शालिनी सीधे रसोई में आ कर नाश्ता तैयार करने लगी. बहुत दिनों के बाद आज वह रसोई में आई थी. हरि को आवाज दी और उस की मदद से नाश्ता तैयार करने लगी. कई वर्षों से हरि इस घर में था और घर के सारे काम वही संभालता था. उस की मदद के बिना घर का एक पत्ता भी नहीं हिलता था. शालिनी और मुकेश प्राय: हर काम के लिए उस पर आश्रित थे.

ये भी पढ़ें- अलविदा काकुल : कैसा था चाहत का परिणाम

नाश्ता ले कर शालिनी मुकेश के पास आ गई. पलंग के सिरहाने तकिए का सहारा ले कर वह आंखें बंद कर बैठे थे. शालिनी ने मेज पर नाश्ता रखा तो आहट से उन्होंने अपनी आंखें खोलीं और बोले, ‘‘शालिनी, आज मेरा बंटी से बात करने का बहुत मन कर रहा है.’’

‘‘मुकेश, मैं कई बार कोशिश कर चुकी पर फोन लगता ही नहीं है. वैसे मुझे लगता है कि वह खुद ही फोन करेगा. मैं ने उसे आने को कहा है. हो सकता है आने की सोच रहा हो,’’ दलिया में चीनी डालते हुए शालिनी ने कहा तो बंटी के आने की कल्पना से ही दोनों खुश हो गए.

बंटी को आस्ट्रेलिया में रहते 4 साल हो गए हैं. जब से वह गया उस का आना ही नहीं हुआ, पहले पढ़ाई के कारण और उस के बाद नौकरी के कारण. मुकेश की तबीयत के बारे में तो उसी दिन शालिनी ने अस्पताल ले जाते वक्त बता दिया था. दोनों को उम्मीद थी कि अब आए बिना कैसे रहेगा.

नैपकिन मुकेश की गोद में डाल कर शालिनी ने दलिया का कटोरा हाथ में पकड़ाया तो उन्होंने बच्चे की तरह बुरा सा मुंह बनाया. शालिनी बोली, ‘‘दवाइयों के कारण तुम्हारे मुंह का स्वाद बिगड़ गया है पर दवाइयां खानी हैं तो नाश्ता करना पडे़गा,’’ और इसी के साथ चम्मच से उन्हें खुद खिलाने लगी.

मुकेश नाश्ता कर दवा ले कर सो गए तो शालिनी उन के पास बैठेबैठे अतीत की गलियों में खो गई. उसे लगा कि मुकेश की इस हालत के लिए बहुत कुछ दोष खुद उस का ही था.

उसे किचन में जाना बिलकुल पसंद नहीं था. बहुत मजबूरी होती तभी वह किचन में कदम रखती. कभी मुकेश किसी खास खाने की फरमाइश करते तो वह कहती, ‘हम जैसे लोगों की सुविधा के लिए ही तो बडे़ होटल खुल रहे हैं, जिन के पास समय की कमी है, होटल में आर्डर दो और खाना हाजिर.’ इस से एक तो पसंद का खाना मिल जाता, दूसरे, किचन में सामान नहीं फैलता. ड्राइंगरूम में बैठ कर खाना खा लो, उस के बाद कचरा सीधे डस्टबिन में.

मुकेश एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी से रिटायर  हुए थे. अपनी मेहनत से वह कंपनी में बडे़ ओहदे तक पहुंचे थे. आज उन के पास वह सबकुछ था जिस की कामना कर उन्होंने नौकरी शुरू की थी. अच्छा बैंक बैलेंस, बडे़ शहर में खुद का बड़ा सा बंगला, कदम से कदम मिला कर चलने वाली पत्नी, विदेश में नौकरी कर रहा बेटा…सबकुछ तो था, पर पता नहीं क्यों इतना सब होते हुए भी उन की जिंदगी में एक सूनापन अपनी जगह बनाता जा रहा है.

नौकरी में थे तो व्यस्तता की वजह से सामाजिक संबंध बनाने की न कभी जरूरत महसूस हुई और न कभी समय मिला. कभीकभी मन में विचार आते, इस से अच्छी जिंदगी तो पिताजी की थी. जब तक वह जिंदा रहे लोगों की महफिलें घर में सजी रहीं.

मुकेश के पिता निखिलेशजी बहुत बडे़ सामाजिक कार्यकर्त्ता और जनप्रतिनिधि थे. खानदानी दौलत के साथसाथ ईमानदारी की दौलत भी उन्हें विरासत में मिली थी. समाज में मानसम्मान भी बहुत था. मां लता सरल सहज स्वभाव की विदुषी महिला थीं. छोटा भाई दिनेश कालिज की पढ़ाई के साथसाथ पिता के नक्शेकदम पर चल कर राजनीति की दुनिया में प्रवेश कर चुका था.

मुकेश राजनीति की दुनिया से सैकड़ों कदम दूर रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने में लगे थे. परिवार से दूर रह कर उन की शिक्षा हुई थी. फिर दिल्ली में ही एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में नौकरी शुरू कर अपने कैरियर की ऊंचाई पाने के लिए जीजान से जुट गए.

ये भी पढ़ें- अपने लोग : आनंद ने आखिर क्या सोचा था

विवाह की उम्र हुई तो मातापिता ने विवाह के लिए जोर डालना शुरू कर दिया. मुकेश का सोचना था कि अगर मैं ने परिवार वालों की इच्छा से शादी की तो जिंदगी की वे ऊंचाइयां हासिल नहीं कर सकूंगा, जिन की चाहत है. निखिलजी और लता ये बात जानते थे इसलिए उसे अपनी पसंद की लड़की से शादी करने की छूट मिल गई.

मुकेश ने अपने दोस्त विनोद से इस मामले में राय ली तो सब से पहले उस ने सवाल किया कि क्या तुम ने कोई लड़की पसंद की है? मुकेश ने भोलेपन से नहीं में जवाब दिया तो वह खिलखिला कर हंस पड़ा और बोला, ‘लगता है यह काम भी मुझे ही करना पडे़गा.’

दूसरे दिन विनोद ने मुकेश को अपने आफिस बुलाया. लंच में वह वहां पहुंच गया. पहुंचते ही विनोद ने उस का परिचय अपने नजदीक खड़ी शालिनी से कराया. गोरीछरहरी काया की स्वामिनी शालिनी पहली नजर में  मुकेश को भा गई. उसे लगा, जिस लड़की की उसे वर्षों से तलाश थी वह यही है. विनोद उस के परिवार वालों को अच्छी तरह से जानता था. उस ने मध्यस्थता का काम कर दोनों परिवारों को मिला कर विवाह तय करवा दिया.

विवाह के पहले शालिनी की मां के मन में मुकेश के परिवार को ले कर एक दुविधा थी कि जहां पूरा परिवार परंपरावादी है वहां आधुनिक सुखसुविधाओं में पली उन की बेटी शालिनी निभा पाएगी या नहीं, पर मुकेश से मिल कर उन की सारी शंकाएं मिट गईं. मुकेश पढ़ाई के सिलसिले से प्राय: घर से बाहर ही रहे थे. महत्त्वाकांक्षी विचारों वाले खूबसूरत व्यक्तित्व के धनी मुकेश ने उन्हें बहुत प्रभावित किया. उन्हें वह हर दृष्टि से शालिनी के अनुरूप लगे. धूमधाम से विवाह संपन्न हो गया. घर में पहली शादी होने की वजह से बहुत मेहमान जमा हुए थे. अखिलेशजी ने सभी को विशेष आग्रह कर के बुलाया था. कितने दिनों के बाद घर में खुशी का मौका आया तो सभी बेहद खुश थे.

दूर के रिश्तेदारों की विदाई होने के बाद अब केवल खास मेहमान बचे थे. विवाह के 5वें दिन सुबहसुबह लता नाश्ते की व्यवस्था करने किचन में गईं तो देख कर आश्चर्य में पड़ गईं. उन्होंने देखा कि नहाधो कर तैयार नई बहू गैस के पास खड़ी थी. नवेली दुलहन इस समय यहां क्या कर रही है और कपडे़ भी इस तरह के पहने हैं जैसे कहीं जा रही हो. उन्होंने पूछा, ‘तुम यहां क्या कर रही हो, बहू? अभी तो तुम्हारा रसोई प्रवेश का दस्तूर भी नहीं हुआ. रामू से कह देतीं, वह नाश्ता तैयार कर देता.’

‘मैं आज आफिस जा रही हूं,’ शालिनी की आवाज में कुछ रुखाई थी.

‘पर आज से ही, अभी तो घर मेें मेहमान हैं, वे सब क्या कहेंगे,’ लता ने समझाने का प्रयास किया.

‘मैं घर में बोर हो जाती हूं, मांजी, फिर आफिस में जरूरी मीटिंग भी है, इसलिए मेरा जाना जरूरी है,’ कहते हुए अपना सैंडविच और काफी का मग उठा कर शालिनी वहां से चली गई.

अखिलेशजी को पता चला तो उन्हें अच्छा नहीं लगा. उस समय तो वह चुप रहे पर शाम को उन्होंने शालिनी को अपने पास बुलाया और प्यार से समझाया तो वह बोली, ‘पापा, मैं ने मुकेश के साथ शादी इस शर्त पर की थी कि बाद में नौकरी नहीं छोडूंगी.’

‘मैं नौकरी करने के लिए मना नहीं कर रहा हूं पर इस घर के कुछ नियमकानून हैं और उन का पालन करना सभी सदस्यों के लिए जरूरी है,’ उन्होंने कुछ कठोरता से कहा तो शालिनी वहां से चली गई.

ये भी पढ़ें- तुम टूट न जाना: वाणी और प्रेम की कहानी

चंद दिनों में ही उन लोगों को पता चल गया था कि बहू अपनी मनमर्जी से चलने वाली आजाद  खयालों की लड़की है. किसी भी तरह की रोकटोक उसे पसंद नहीं है और यहां का माहौल उसे रास नहीं आएगा. जल्दी ही शालिनी के पैर भारी हो गए तो वह और भी परेशान हो गई. वह कुछ दिन के लिए मायके आ गई. अपनी गर्भावस्था के ज्यादातर दिन उस ने वहीं गुजारे. डिलीवरी होने के बाद बच्चे को ले कर शालिनी ससुराल आई तो पहला पोता होने की वजह से कई दिन तक खुशियां मनाई गईं.

उन्हीं दिनों मुकेश का ट्रांसफर चंडीगढ़ हो गया तो शालिनी की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने अपना ट्रांसफर भी चंडीगढ़ करवा लिया और पति के साथ आ गई. दादादादी की पोता खिलाने की साध अधूरी ही रह गई…पर क्या करते.

प्रोजैक्ट-भाग 3: समीर के साथ शादी की दूसरी सालगिरह वाले दिन क्या हुआ

2-3 पैग पीने के बाद रंजीत ने कहा, ‘इस शहर में किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझे बताइएगा. आप की हर ख्वाहिश पूरी होगी. और फिर उसी ने हमें बताया कि समीर की पत्नी शालिनी का चालचलन कुछ ठीक नहीं है. काम के बोझ के चलते वह अपनी बीवी को पूरा वक्त नहीं दे पाता, औफिस में भी ओवरटाइम करता है. और उधर इस के घर में हर रोज नएनए लोगों का आनाजाना लगा रहता है. इस बारे में समीर को जरा भी खबर नहीं है. एकदो बार तो मैं भी जा चुका हूं. आप का भी अगर मूड हो तो बताइएगा.‘

फिर दूसरा अफसर अपनी सफाई में बोला, ‘हम उस की बातों में आ गए और अगले दिन औफिस में समीर का प्रोजैक्ट सलैक्ट करने के बाद जब हम अपने रूम में आए, तो हमारे पीछेपीछे रंजीत भी 2 व्हिस्की की बोतल ले कर रूम में आ गया. और जब हम पीने बैठे तो उस ने बातोंबातों में कहा, ‘समीर दोपहर 3 बजे की ट्रेन से नोएडा जा रहा है, इस से अच्छा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा, मैं तुम दोनों को उस के घर तक छोड़ दूंगा. और समीर के जाने के बाद शालिनी को भी तो अपने घर आने वाले खास मेहमानों का इंतजार रहेगा ही न,‘ कहते हुए उसी ने हमें समीर के घर तक अपनी गाड़ी से छोड़ा.

अब तक उन दोनों की बातों से सबकुछ स्पष्ट हो गया. उन की बातें सुन कर समीर का खून खौलने लगा था, तभी बौस बोले, ‘रंजीत ने समीर के साथ ऐसा क्यों किया? वह तो औफिस में इस का सीनियर है.‘

‘असली प्रोब्लम ही यही है सर कि वह मेरा सीनियर है, फिर भी पिछले 3 सालों से हर साल कंपनी से आने वाले अफसरों ने आज तक उस का कोई प्रोजैक्ट सलैक्ट नहीं किया. और इस बार आप ने यह काम मुझे सौंप दिया, तो उस ने इसे अपनी तौहीन समझते हुए मुझ से बदला लेने के लिए यह सब खेल खेला,‘ बौस की बात काटते हुए समीर ने अपना पक्ष रखा, तो बौस की आंखों के आगे जो भी धुंधला था सब साफ हो गया.

बौस ने पुलिस को रंजीत पर कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए और उन दोनों अफसरों की शिकायत कंपनी के हैड औफिस में कर दी, जिस के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

अपने आसपास के लोगों से भी हमें उतना ही सचेत रहने की आवश्यकता है, जितना अनजान अजनबियों से. शायद, यह बात अब शालिनी और समीर दोनों की समझ आ चुकी थी.

प्रोजैक्ट-भाग 2: समीर के साथ शादी की दूसरी सालगिरह वाले दिन क्या हुआ

लेखक-पुखराज सोलंकी

शाम 4 बजे के आसपास शालिनी किचन में चाय बना रही थी कि डोरबेल बजी. दरवाजा खोल कर देखा, तो वह भौचक्की रह गई. सामने वही 2 अफसर खड़े थे, जो थिएटर में समीर के बौस के साथ मौजूद थे. उन्हें हिलते हुए देख शालिनी को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि वे दोनों शराब के नशे में हैं. वह तो उन्हें बाहर से ही रवाना करने वाली थी, लेकिन वे अंदर आ गए तो उस ने उन्हें अनमने मन से बैठने की कह कर खुद किचन में चली गई.

जब शालिनी चाय ले कर आई, तो उन्हें चाय का कप पकड़ाते हुए पूछा, ‘समीर ने बताया नहीं कि आप आने वाले हो, और आप ने घर कैसे पहचान लिया? आप तो किसी दूसरे शहर ‘दरअसल, उस दिन हम लोग थिएटर से लौटते समय इसी रास्ते से हो कर गए थे, तो बौस ने ही हमें बताया था कि यह समीर का घर है. बस इसीलिए इधर से गुजरते हुए सोचा कि आप को बधाई देते चलें,‘ एक अफसर बोला.

‘वैसे, आप का बहुतबहुत धन्यवाद, जो आप ने समीर के प्रोजैक्ट को सलैक्ट किया. बहुत मेहनत की है उस ने इस पर,‘ शालिनी उन का अहसान जताते हुए बोली.‘अजी सलैक्ट तो उसी दिन कर लिया था जब आप को थिएटर में पहली दफा देखा था,‘ दूसरा अफसर बोला.

‘क्या मतलब…?‘ शालिनी तपाक से बोली‘जी, सच कहा है. जिसे ले कर वह गया है, वह तो कंपनी का प्रोजैक्ट है, लेकिन हमारा प्रोजैक्ट तो आप ही हो न भाभीजी,‘ कहते हुए उस ने शालिनी के हाथ पर झपट्टा मारा.

अब तक शालिनी उन की मंशा अच्छी तरह समझ चुकी थी. उस ने झटक कर अपना हाथ छुड़ाया और सीधे बाहर की ओर भागी. वे लड़खड़ाते हुए दरवाजे तक पहुंचे, तब तक शालिनी ने बाहर की कुंडी लगा कर उन्हें घर में बंद कर दिया.

बाहर निकल कर शालिनी ने मदद के लिए दाएंबाएं देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. मोबाइल भी घर के अंदर छूट गया. तभी उसे सामने से एक आटोरिकशा आता दिखा, वह उस ओर दौड़ी. आटोरिकशा जब उस के पास आ कर रुका, तो वह भौंचक्की रह गई. उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन ये सच था.

उस आटोरिकशा में समीर ही बैठा हुआ था. शालिनी को इस हालत में देख समीर कुछ समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है. शालिनी ने उसे सारी बात बताई और उस के वापस लौट आने की वजह भी पूछी, तो समीर ने कहा, ‘स्टेशन पहुंचने पर मुझे मालूम चला कि गाड़ी 3 घंटे देरी से चल रही है, इसीलिए सोचा कि यहां भीड़भाड़ में रहने से अच्छा है, घर पर ही आराम किया जाए. खैर, जो होता है अच्छे के लिए होता है,‘ कह कर उस ने मोबाइल निकाला और अपने बौस को फोन लगा कर इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया.

‘तुम लोग बाहर ही रुके रहो समीर, मैं जल्दी ही वहां पहुंचता हूं,’ कह कर बौस ने फोन रखा. उधर वे दोनों अफसर भद्दी गालियां देते हुए अंदर से लगातार दरवाजा पीट रहे थे. कुछ देर बाद सामने से बौस की कार आती दिखाई दी. पीछेपीछे पुलिस की जीप भी आ रही थी.

जब कार पास आ कर रुकी, तो बाहर निकल कर बौस ने कहा, ‘घबराओ मत समीर. ऐसे लोगों की अक्ल ठिकाने लगाना मुझे अच्छे से आता है. ये लोग समझते हैं कि अनजान शहर में हम कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन ऐसे लोगों के पर मुझे अच्छे से काटने आते हैं. पुलिस को मैं ने ही फोन किया है.’

पुलिस की जीप आ कर रुकी, तो झट से 4-5 पुलिस वाले बाहर निकले. समीर ने अपने घर की ओर इशारा किया, जिस में से उन दोनों अफसरों की भद्दी गालियों की आवाज आ रही थी. पुलिस ने दरवाजा खोला और उन दोनों को वहीं पर ही दबोच लिया और ले जा कर जीप में बिठाया.

बौस ने समीर से कहा, ‘शालिनी बेटी ने एक काम तो अच्छा किया कि इन्हें घर में बंद कर दिया, वरना आज अगर ये भाग जाते तो इन को पकड़ पाना थोड़ा मुश्किल होता, क्योंकि आज रात 9 बजे की फ्लाइट से ये दोनों मुंबई जाने वाले थे.‘

बौस ने आगे कहा, ‘दरअसल, गलती मेरी ही है, उस दिन थिएटर से लौटते  वक्त हम लोग इधर से गुजर रहे थे, तो मैं ने यों ही इन्हें कह दिया था कि हमारे औफिस में आप के सामने जो अपना प्रोजैक्ट पेश करेगा, उस समीर का घर यही है. लेकिन मुझे क्या पता था कि ये लोग शराब के नशे में अपना विवेक भूल कर ऐसी नीच हरकत कर बैठेंगे. इन्हें सिर्फ पुलिस को सौंपने से कुछ नहीं होगा. जब तक दोनों को नौकरी से न निकलवा दूं, मैं चैन की सांस नहीं लेने वाला. खैर, जो होता है अच्छे के लिए होता है.

‘तुम लोग आओ, मेरी गाड़ी में बैठो. थाने चल कर शालिनी के बयान दर्ज करवाने हैं.‘

शालिनी और समीर दोनों कार में बैठे. बौस ने कार स्टार्ट कर आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘इन का तो अभी काम हो जाएगा, रही बात तुम्हारे प्रोजैक्ट की तो उस पर की गई तुम्हारी मेहनत मैं बेकार नहीं जाने दूंगा. उस के लिए मैं कंपनी से बात कर लूंगा. तुम थोड़ा धैर्य रखो. इन दोनों की तो शिकायत कर कंपनी से निकलवाऊंगा. साथ ही, इस प्रोजैक्ट के लिए अगले महीने की तारीख तय करने की कोशिश करूंगा.

‘और इस बार जाते वक्त शालिनी को भी साथ लेते जाना. यह भी घूम आएगी तुम्हारे साथ. वहां मीटिंग में बस 2-3 घंटे का ही काम होता है. फिर ऐश करना तुम लोग,‘ बौस ने यह कहा, तो शालिनी और समीर दोनों के चेहरे एक लंबी सी मुसकान ने दस्तक दे दी.

बौस ने गाड़ी को ब्रेक लगाया. पुलिस स्टेशन आ चुका था और पीछेपीछे पुलिस की वह जीप भी आ गई थी, जिस में वे दोनों अफसर मौजूद थे जो कि लाख मना करने के बावजूद शराब के नशे में ऊलजलूल बके जा रहे थे. उन की हरकत और मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें सलाखों के पीछे धकेल दिया गया.

‘फिलहाल तो ये दोनों अभी नशे में हैं. कल सुबह इन का नशा उतरते ही पूछताछ की जाएगी. उस के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी.

‘और हां.. इस दौरान अगर आप में से किसी की जरूरत पड़ी, तो आप को फोन कर दिया जाएगा. अभी आप लोग जा सकते हैं,‘ पुलिस ने शालिनी और समीर के बयान दर्ज कर के कहा. और फिर तीनों वहां से निकल गए.

बौस ने उन दोनों को घर छोड़ते हुए कहा, ‘पुलिस स्टेशन से फोन आए, तो मुझे भी इत्तिला कर देना. मैं भी साथ चलूंगा.‘

अगले दिन सुबह फोन की घंटी के साथ ही समीर की आंख खुली. फोन पुलिस स्टेशन से था. बात कर के समीर ने शालिनी को जगाते हुए कहा, ‘सुनो डियर, पुलिस स्टेशन से फोन आया है. पुलिस ने उन दोनों से पूछताछ कर ली. सुबह साढे़ 10 बजे हमें पुलिस स्टेशन बुलाया है. तुम जल्दी से उठ कर तैयारी करो. मैं बौस को फोन मिलाता हूं,‘ शालिनी को जगा कर समीर ने अपने बौस को इस बारे में जानकारी दी. और फिर साढे़ 10 बजे तीनों पुलिस स्टेशन पहुंच गए.

उन तीनों को देख थानाधिकारी ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘आइए.. आइए.. बैठिए, आप लोग किसी रंजीत नाम के शख्स को जानते हैं, जो कि आप ही के औफिस में काम करता है.’

‘हां… हां, बिलकुल, औफिस में वह मेरा सीनियर है,‘ समीर बोला.‘लेकिन, रंजीत का इस केस से क्या ताल्लुक…?‘ बौस ने आश्चर्यमिश्रित भाव से कहा.

‘‘आप लोग मुझे उस का पूरा पता और मोबाइल नंबर दीजिए. अभी पता चल जाएगा कि इस केस से उस का क्या ताल्लुक है,’ थानाधिकारी ने प्रतिउत्तर में कहा. और फिर आवाज लगाई, ‘हवलदार, उन दोनों नशेड़ियों को बाहर लाओ जरा.’

अब दोनों अफसर अपनी झुकी गरदन के साथ उन सब के सामने थे. उन दोनों को अपनी आंखों के सामनेपा कर बौस ने कहा, ‘तुम जैसे अफसरों को पहचानने में मुझ से चूक कैसे हो गई. मैं ने अपने 22 साल के कैरियर में अब तक इतने बेशर्म और घटिया किस्म के अफसर नहीं देखे.‘‘इस में हमारी कोई गलती नहीं है, हमें माफ कर दीजिए,‘ एक अफसर बौस की बात काटते हुए बोला.

‘गलती तुम्हारी नहीं, गलती तो मेरी है, जो तुम्हें उस दिन फिल्म देख कर लौटते समय रास्ते में पड़ने वाले समीर के घर के बारे में बताया,‘ बौस ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.

‘ऐसा बिलकुल नहीं है सर, दरअसल, उस दिन फिल्म देखने के बाद आप ने तो हमें होटल के गेट तक ही छोड़ा था, लेकिन जब हम अंदर गए तो आप के औफिस में काम करने वाला रंजीत रूम के आगे खड़ा हमारा इंतजार कर रहा था. रूम में जा कर हम ने कुछ देर बात की और फिर उस ने अपने बैग में से व्हिस्की की बोतल निकाल कर हमारी मानमनौव्वल की, तो हम ने भी हामी भर दी.

प्रोजैक्ट-भाग 1: समीर की शादी की दूसरी सालगिरह वाले दिन क्या हुआ

लेखक-पुखराज सोलंकी

शनिवार को ओवर टाइम करने के बावजूद भी समीर का काम पूरा नहीं हो पाया था. रविवार को छुट्टी थी और सोमवार को औफिस की मीटिंग में किसी भी हाल में उसे प्रोजैक्ट पेश करना था, इसलिए वह औफिस का काम घर पर ले आया था, ताकि कैसे भी कर के प्रोजैक्ट समय पर पूरा हो जाए.

लेकिन, घर पहुंचते ही उसे याद आया कि रविवार को वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ फिल्म देखने जाने वाला है. और इस बार वह मना भी नहीं कर सकता था, क्योंकि अब की मैरिज एनिवर्सरी भी तो इसी रविवार को पड़ रही है.

पिछली बार की तरह इस बार वह अपने काम की वजह से शालिनी का मूड औफ नहीं करना चाहता था. रात के खाने के बाद वह शालिनी से यह कह कर अपने काम में जुट गया, ‘सौरी डियर.. आज थोड़ा काम निबटा लूं, कल पूरा दिन ऐंजौए करेंगे.‘

समीर के चेहरे पर काम का तनाव साफ झलक रहा था, जिसे चाह कर भी वह शालिनी से छुपा न सका. शालिनी उस की ओर करवट ले कर लेटी उसे देखती रही और लेटेलेटे कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला.

अगले दिन सुबह जब शालिनी तैयार हो कर समीर के सामने आई, तो वह उस की तारीफ किए बिना नही रह सका. अभी उस की तारीफ खत्म भी नहीं हुई थी कि शालिनी ने अपनी बंद मुट्ठी समीर की ओर बढ़ाई. समीर ने उस का हाथ थाम कर बंद मुट्ठी की एकएक कर उंगली खोली और मुट्ठी में बंद चमकीली सिंदूरदानी अपने हाथ में ले कर शालिनी की मांग भरी और उसे अपनी बांहों में भर लिया.

इस दौरान शालिनी को भी न जाने क्या शरारत सूझी, वह उस की पीठ पर अपनी उंगली फिराते हुए बोली, ‘बताओ, मैं ने क्या लिखा है?‘

‘तुम्हारा नाम,‘ शालिनी को अपनी बांहों में कसते हुए समीर ने कहा.‘बिलकुल गलत. अच्छा चलो, दोबारा लिखती हूं, अब ठीक से बताना.‘शालिनी  फिर से समीर की पीठ पर उंगली से कुछ लिखने लगी. अपनी पीठ पर घूमती शालिनी की उंगली के साथसाथ समीर ने अपना दिमाग भी घुमाना शुरू किया और फिर तपाक से बोला, ‘आई लव यू.‘

सही जवाब पा कर शालिनी के चेहरे पर मुसकान फैल गई, ‘आई लव यू टू मेरी जान, चलो, अब जल्दी से तैयार हो जाओ. याद है न, आज हम लोग फिल्म देखने जाने वाले थे,‘ समीर को याद दिला कर शालिनी अपने काम में बिजी हो गई.

शालिनी चाहती तो आज फिल्म देखने का प्रोग्राम कैंसिल भी कर सकती थी. उस की कोई खास इच्छा नहीं थी फिल्म देखने की और न ही थिएटर में उस के पसंद की कोई मूवी लगी थी. उसे तो बस कैसे भी कर के इस बार यह खास दिन समीर के साथ बिताना था.

हालांकि शालिनी अच्छी तरह से जानती थी कि इस बार समीर के लिए यह प्रोजैक्ट कितना माने रखता है. लेकिन फिर भी उस ने समीर की मरजी देखनी चाही और चुप रही.

शालिनी यह सब सोच ही रही थी कि समीर तैयार हो कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. वह समीर को अपलक देखती रही, समीर नीचे से ऊपर तक बिलकुल टिपटौप था. बस चेहरा थोड़ा उतरा हुआ था. तैयार होने बावजूद वह अपने चेहरे से काम का तनाव नहीं छुपा सका. अनमना सा समीर शालिनी को साथ ले कर चल पड़ा.

वहां थिएटर में पहुंच कर वे गाड़ी पार्क कर के अंदर की ओर जाने लगे कि वहां पार्किंग में पहले से खड़ी एक ब्लैक कार को देख कर समीर चैंक गया और बोला, ‘अरे, बौस की गाड़ी, मतलब, बौस भी फिल्म देखने आए हुए हैं.‘

‘इतना बड़ा शहर है, इस कंपनी और इस कलर की गाड़ी किसी और की भी तो हो सकती है, क्या नंबर याद है तुम्हें बौस की गाड़ी का?‘ शालिनी ने पूछा.

नंबर को सुनते ही समीर बोला, ‘खैर, छोड़ो जो होगा देखा जाएगा. दोनों आगे बढे़ और थिएटर में अपनी सीट पर जा कर बैठ गए. फिल्म शुरू हो चुकी थी. फिल्म का शुरुआती सीन ही इतना सस्पैंस भरा था कि समीर की उत्सुकता बढ़ गई और उस के चेहरे से काम का तनाव जाता रहा.

इंटरवल में जब वह स्नैक्स लेने कैंटीन पहुंचा, तो भीड़ में अपने कंधे पर अचानक किसी का हाथ पाया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वही हुआ जिस बात का अंदेशा था. उस का बौस सोमवार की मीटिंग में आने वाले उन दोनों अफसरों के साथ फिल्म देखने पहुंचा हुआ था.

‘क्या बात है समीर अकेलेअकेले, पहले पता होता तो तुम्हें भी साथ ले आते हम लोग,‘ बौस ने मुसकराते हुए कहा.‘नहीं सर, मैं अकेला नहीं शालिनी भी साथ में है, वह वहां बैठी है. वैसे, आज हमारी शादी की दूसरी सालगिरह है. बस इसीलिए फिल्म दिखाने ले आया.‘

‘ओहो… कांग्रेचुलेशन समीर. और हां, मैडम कहां है भई, आज तो उन्हें भी बधाई देनी बनती है,‘ बौस ने ठहाका लगाते हुए कहा.समीर अपने बौस और उस के साथ आए दोनों अफसरों को शालिनी के पास ले आया. सब ने शालिनी को बधाई दी.

‘क्या लेंगे सर आप लोग ठंडा या गरम?‘ समीर ने पूछा.‘भई, तुम्हारी शादी की सालगिरह है, सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला पूरी पार्टी देनी होगी.’समीर ने पार्टी के लिए हां भरी, तभी फिल्म शुरू हो गई, तो सभी अपनीअपनी सीटों पर जा कर बैठ गए.

फिल्म के खत्म होने पर समीर ने शालिनी को कुछ शौपिंग कराई. शहर की कई फेमस जगहों पर घुमाया, वहां सेल्फियां लीं और घर लौटते हुए खाना उसी होटल में खाया, जहां वे शादी से पहले कई बार एकसाथ गए थे.

रात गहराने लगी थी. घर पहुंच कर समीर सीधे अपने काम में जुट गया. फिर से उस के चेहरे पर वही काम का तनाव देख शालिनी समझ गई. कपड़े चेंज कर वह भी उस की मदद करने की मंशा से पास आ कर बैठ गई. उस ने भी कुछ हाथ बंटाया और देर रात तक समीर के उस महत्वाकांक्षी प्रोजैक्ट को अंजाम तक पहुंचा ही दिया.

समीर अब काफी हलका महसूस कर रह था. उसे उम्मीद नहीं थी कि दिनभर की मौजमस्ती के बाद देर रात तक प्रोजैक्ट तैयार हो जाएगा. वह खुशी से उछल पड़ा. मदद के लिए शालिनी का शुक्रिया अदा करते हुए उसे अपनी बांहों में भर लिया.

शालिनी भी तो यही चाहती थी. उसे मालूम था कि जब तक काम पूरा नहीं होगा, समीर उस के पास नहीं आने वाला इसीलिए उस ने साथ लग कर उस के काम को अंजाम तक पहुंचाया.

‘थैंक यू सो मच डियर, तुम न होती तो सुबह हो जाती,‘ कहते हुए समीर ने शालिनी के गले पर नौनस्टोप एक बाद एक किस करने लगा.

शालिनी की सांसों की रफ्तार बढ़ने लगी. वह भी उस का साथ देते हुए बोली, ‘अब सुबह एकदूसरे की बांहों में ही होगी.‘ और समीर को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया.

अगले दिन सुबह किचन में खटपट की आवाज से शालिनी की आंख खुली, तो चैंक गई. किचन में जा कर देखा तो हमेशा देर से उठने वाला समीर आज नहाधो कर नाश्ता बनाने लगा है.

‘क्यों मैडम पूरे 3 घंटे लेट उठी हो. लगता है, कल रात कुछ ज्यादा ही मेहनत कर ली थी,‘ शालिनी को देख कर समीर बोला.‘मेहनत न करती तो तुम्हारा प्रोजैक्ट कैसे पूरा होता.‘

‘मैं इस मेहनत की नहीं उस मेहनत की बात कर रहा हूं,‘ यह सुन कर शालिनी शरमा कर बाथरूम की ओर चल दी.जब तक वह बाहर निकली, तब तक समीर नाश्ता कर चुका था. और आज शाम थोड़ी देर से आने की कह कर वह औफिस के लिए निकल गया.

औफिस पहुंच कर जब उस ने मीटिंग में बौस के सामने अपना प्रोजैक्ट पेश किया, तो बौस ने बाहर से आए उन अफसरों के सामने उस प्रोजैक्ट को रखा.

कुछ देर की बातचीत, जांचपरख और नफानुकसान देखने के बाद समीर के उस महत्वाकांक्षी प्रोजैक्ट को सलैक्ट करने का डिसीजन ले लिया गया.

बौस ने उसे अगले ही दिन लखनऊ से नोएडा जाने का टिकट थमाते हुए कहा, ‘2 दिन बाद कंपनी के हैड औफिस नोएडा में एक मीटिंग है, जिस में तुम्हें देशविदेश से आए लोगों के सामने इसी प्रोजैक्ट को एक बार फिर से पेश करना होगा. यह लो टिकट. कल दोपहर 3 बजे की ट्रेन है. अब तो दोदो पार्टियां बनती हैं.‘

‘जी सर जरूर, लौट के आने पर 2 नहीं 4 पार्टियां दे दूंगा एकसाथ,‘ समीर खुशीखुशी बोला.घर पहुंच कर समीर ने शालिनी को यह खुशखबरी दी. इस प्रोजैक्ट में उस ने भी तो अपना सहयोग दिया था. यह सुन कर वह भी बहुत खुश हुई. समीर ने जब बताया कि कल वह 2 दिन के लिए दोपहर 3 बजे की ट्रेन से कंपनी के काम से नोएडा जा रहा है, इसलिए पैकिंग कर देना. तब से शालिनी पैकिंग में जुट गई.

अगले दिन समीर शालिनी को काम खत्म होते ही जल्द लौट आने का वादा कर के निश्चित समय पर स्टेशन की ओर घर से निकल गया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें