पूर्व कथा

दिल्ली से दूर नदी के एकांत होटल में दिव्या 1 सप्ताह गुजार देती है तो वहां उसे देवयानी मिल जाती है. वह बताती है कि अब वह यहीं रह रही है, सो वह उस से जिद करती है कि होटल में नहीं उस के घर में रहे लेकिन दिव्या उसे टाल देती है. वह होटल आ कर अतीत में खो जाती है. पीएच.डी. कर दिव्या कालेज में जौब करती है. जब वह एम.ए. प्रथम वर्ष की छात्रा थी, देवयानी का महेश के साथ विवाह हो गया था?. वह खुश थी. दिव्या की चाहत थी कि देवयानी की तरह उसे भी खुशमिजाज परिवार मिले. उसे मिला भी लेकिन वह सुख, शांति, प्यार, सम्मान नहीं. कामेश विवाह के 3 दिन बाद ही दिव्या को नौकरी न करने का अल्टीमेटम दे देता है.

कामेश समय पर घर आते नहीं, दिव्या प्रतीक्षा करतेकरते सो जाती. देर रात कामेश का स्पर्श उसे बिच्छू के डंक सा लगता. उस ने दिव्या की जरूरत को कभी समझा ही नहीं.

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एक दिन दिव्या को देवयानी का फोन आता है कि कामेश का अंबाला ट्रांसफर हो गया है, वे अंबाला ट्रेन से जा रहे हैं. इसलिए मिलने दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आ जाए. दिव्या और कामेश स्टेशन पहुंच कर मुलाकात करते हैं. दिव्या महेश और देवयानी से हंसहंस कर बातें करती है. कामेश दिव्या को ताना देता है कि ‘ऐसी खुश तो तुम कभी नहीं होतीं, जितनी महेश की बातें सुन कर हो रही हो.’ कामेश का यह ताना दिव्या को अच्छा नहीं लगा. अब आगे...

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