लेखक- धीरज कुमार

आज इंटर लैवल एसएससी  का रिजल्ट आया और इस इम्तिहान को किशन के महल्ले के 2 लड़कों ने पास किया, तो यह सुन कर उसे काफी खुशी हुई.

आज से 4 साल पहले की बात है. निचले तबके से ताल्लुक रखने वाले किशन को बड़ी मेहनत के बाद सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी मिली थी. उस के मांबाप ने बड़ी मेहनत से पढ़ाईलिखाई के खर्चे का इंतजाम किया था. उन्होंने दूसरों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के किशन को पढ़ाया था.

कई सालों की कड़ी मेहनत का नतीजा था कि वह बीएड करने के बाद टीचर एलिजिबिलिटी टैस्ट पास कर के सरकारी स्कूल में टीचर बन गया था. उस के लिए अपनी बिरादरी में ऐसी नौकरी पाना बहुत बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि वह अपने मातापिता के साथ दूसरों के खेतों में मेहनतमजदूरी करता था.

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किशन के गांव में ऊंची जाति के लोगों की काफी तादाद थी. उन का दबदबा गांव में ज्ड्डयादा था, इसलिए गांव के मंदिरों में निचले तबके के लोगों को पूजापाठ करने की आजादी उतनी नहीं थी, जितनी होनी चाहिए थी.

जब किशन की नौकरी लगी, तो निचले तबके के लड़कों का एक ग्रुप उस के पास मिलने आया और उन में से एक ने कहा, ‘क्यों न अब हम लोग अपने महल्ले में एक मंदिर बना लें, ताकि अपनी जाति के लोगों को पूजापाठ करने में कोई परेशानी न हो?’

‘मंदिर बनाने से क्या होगा मेरे भाई?’ किशन ने पूछा.

‘शायद तुम अभी भूले नहीं होगे, जब हमारे बापदादा अपने गांव के मंदिर की दहलीज पर पैर तक नहीं रख पाते थे. इस के लिए ऊंची जाति के लोग कैसे हमारे लोगों की बेइज्जती करते थे. आज हमारी हैसियत ठीकठाक हो चुकी है. क्यों न हम लोग अपनी जाति के लोगों के पूजापाठ के लिए अपना मंदिर बना कर उन्हें ऊंचों की गुलामी से आजादी दिलवा दें,’ दूसरे लड़के ने उसे समझाने की कोशिश की थी.

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