लेखक- उदय नारायण सिंह ‘निर्झर’

सुरक्षित सीट से चुनाव जीत कर राजबली विधायक क्या बन गया, उस की तो मानो लौटरी ही खुल गई. खेतों में मजदूरी कर के अपने परिवार को पालता हुआ वह पहले गांव की राजनीति में लगा रहता था.

ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़तेलड़ते राजबली विधायक बंसीधर का चुनाव में प्रचार कर के जब उन का चहेता बन गया तो राजनीति के सारे हथकंडे समझने लगा.

चुनाव लड़ रहे बंसीधर को जब अपना पलड़ा हलका लगने लगा तो उन्होंने अपनी जीत के लिए राजबली को ही उस की बिरादरी के वोट काटने के लिए अपने खर्चे से टिकट दिलवा कर मैदान में उतार दिया.

अपनी मेहनत, अच्छे बरताव और बंसीधर की जीत के लिए बिरादरी के वोट काटता राजबली जब खुद चुनाव जीत गया तो मानो उसे राजगद्दी मिल गई. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. जहां पहले वह खुद नेताओं के आगेपीछे आस लिए घूमता रहता था, वहीं अब उस के आगेपीछे तमाम लोग जीहुजूरी कर लाइन में आस लगाए खड़े रहते थे.

राजबली के चुनाव की बागडोर संभाल चुका हरीलाल उस का बहुत नजदीकी बन कर अब उस के नुमाइंदे के रूप में काम करने लगा था.

जब राजबली को तमाम सरकारी योजनाओं में कमीशन मिलने लगा, तो उस का समाजसेवा का भाव बदल गया. विधायक निधि से भी अगर वह किसी को पैसे देता तो 40 फीसदी पहले ही ले लेता.

गांव के छप्पर में रहने वाला राजबली जब लखनऊ के शानदार इलाके में जमीन खरीद कर आलीशान मकान बनवाने लगा तो उस के गांव वाले हैरान रह गए. वे उस की और ज्यादा इज्जत करने लगे.

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4 सहयोगियों और 2 पुलिस वालों के साथ जब राजबली अपने इलाके में घूमते हुए किसी गांव में जाता तो पूरे गांव के लोग उस के स्वागत में इकट्ठा हो कर अपनीअपनी समस्याएं सुनाने लगते.

एक दिन श्रीधर नाम के एक शिक्षक राजबली के करीब जा कर बोले, ‘‘विधायकजी, आप को जिताने में हम ने बड़ी मेहनत की है. मेरी एक समस्या है. इसे आप ही दूर कर सकते हैं.’’

‘‘बताओ गुरुजी, हमारे लायक क्या सेवा है. आप सभी के आशीर्वाद से ही तो मुझे विधायिकी मिली है,’’ जब राजबली ने हाथ जोड़ कर कहा तो श्रीधर बोले, ‘‘इतनी पढ़ाई करने के बाद भी मेरा बेटा दिलीप बेकार घूम रहा है. उसे अगर कोई नौकरी मिल जाती तो उस के साथ मेरा भी भला हो जाता.’’

‘‘नौकरी के लिए उस ने कहीं फार्म भरा है कि नहीं?’’

‘‘भरा है साहब, लोक निर्माण महकमे में.’’

श्रीधर की बात सुन कर राजबली ने हरीलाल को बुला कर कहा, ‘‘गुरुजी से पूरी जानकारी ले लो और सारी बातें समझा दो.’’

‘‘जी विधायकजी…’’ कह कर हरीलाल श्रीधर से बोला, ‘‘गुरुजी, 2-4 दिन में जब आप को समय मिले तब आप अपने बेटे को ले कर लखनऊ आ जाना, तब तक हम महकमे से बात कर लेंगे.’’

दिलीप को ले कर जब श्रीधर लखनऊ विधायक निवास पहुंचे तो हरीलाल ने उन से कहा, ‘‘लोक निर्माण महकमे से विधायकजी की बात हो गई है. आप का काम हो जाएगा, लेकिन एक समस्या है.’’

‘‘वह क्या है…?’’ जब श्रीधर ने पूछा तो हरीलाल बोला, ‘‘वहां का डायरैक्टर बिना रुपए लिए अपौइंटमैंट लैटर पर दस्तखत नहीं करेगा.’’

‘‘कितने पैसे मांग रहा?है?’’

‘‘उस की मांग तो 10 लाख रुपए की है, पर विधायकजी के कहने पर वह 5 लाख रुपए में मान गया है. 2 पद खाली हैं. लिस्ट में 10 लोग हैं.

एक हफ्ते का समय है. अब आप जैसा कहें.’’

‘‘ठीक है, मैं पैसों का इंतजाम कर के आऊंगा.’’

5 लाख रुपए घूस देने के बाद जब दिलीप को नौकरी मिल गई तो हरीलाल पर लोगों का पूरा विश्वास जम गया. ईमानदार समाजसेवक, जनता का शुभचिंतक और अपनी बिरादरी का मसीहा का तमगा लिए विधायक राजबली हरीलाल के जरीए पैसा और नाम दोनों कमाने लगा.

जब गलत ढंग से पैसा आने लगता है तब बुद्धि और विचार दोनों गंदे हो जाते हैं. राजबली न तो खानदानी रईस था और न ही नेता. जब आमदनी बढ़ी तो इच्छाएं बढ़ने लगीं. उपहार के साथसाथ जब पार्टियों में सुरा का दौर चला तो सुंदरी की भी कमी खलने लगी.

राजबली सोचता था कि अगली बार विधायकी मिलेगी भी या नहीं, क्या भरोसा, इसलिए जितना कमा सको, कमा लो.

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एक दिन दूर गांव का मनेश हरीलाल के पास आ कर बोला, ‘‘भैया, मैं बहुत गरीब हूं. मेरी बेटी ग्रेजुएशन कर के घर बैठी है. बेसिक शिक्षा महकमे में फार्म भी भरा है. विधायकजी से सिफारिश लगवा कर उसे नौकरी दिलवा देते तो उस की जिंदगी सुधर जाती और मैं उस की शादी किसी अच्छे घर में कर देता.’’

‘‘लड़की का क्या नाम है?’’

‘‘संगीता.’’

‘‘किस विषय में ग्रेजुएट है?’’

‘‘यह तो मुझे नहीं मालूम. कल उसे साथ ले आऊंगा, तो उसी से पूछ लेना.’’

‘‘ठीक है, कल उसे ले आना. पर पहले यह तो बताओ कि तुम कितना खर्च कर सकते हो? विधायकजी तो कुछ लेते नहीं, पर अफसरों को तो देना पड़ता है. तुम तो जानते ही हो कि आजकल बिना घूस दिए कोई काम नहीं होता है.’’

‘‘हां भैया, जानता तो हूं, लेकिन विधायकजी के जरीए काम होगा तो कम से कम पैसा देना होगा न. वैसे, कम से कम कितने में काम हो जाएगा?’’ जब मनेश ने पूछा तो हरीलाल ने कहा, ‘‘8-10 लाख रुपए से कम तो कोई लेता नहीं. लेकिन तुम गरीब हो, करीबी भी हो और तुम्हारी बेटी की बात है तो कम से कम 5 लाख रुपए का इंतजाम कर देना. रुपए का इंतजाम कर के जब लखनऊ आओगे तब संगीता को साथ जरूर लाना. लेकिन जरा मुझे उस से मिला तो दो.’’

‘‘हां भैया, जरूर. आप आज शाम को मेरी कुटिया पर आ जाते तो मुझे आप की सेवा का मौका मिल जाता,’’ मनेश ने कहा.

‘‘हां, मैं जरूर आऊंगा.’’

शाम को हरीलाल जब मनेश के घर गया तो उस की बड़ी खातिरदारी हुई. संगीता ने उसे अपने हाथ से मिठाई, चायनमकीन परोस कर उस को प्रभावित करने की कोशिश की.

संगीता का पतला व सुडौल बदन, हलका सांवला रंगरूप देख कर हरीलाल खुश हो गया. वह यही तो करता था. वह अपने भगवान राजबली विधायक को मिठाई अर्पित कर प्रसाद खुद खाता था. वह विधायक के मंदिर का पुजारी जो था.

जलपान करने के बाद हरीलाल ने संगीता से पूछा, ‘‘कितना पढ़ी हो?’’

‘‘एमए कर चुकी हूं सर.’’

‘‘किस विषय में?’’

‘‘शिक्षा शास्त्र में.’’

‘‘बहुत अच्छा. शिक्षा भी सुंदर, रूपरंग भी सुंदर…’’ संगीता की आंखों में झांकते हुए हरीलाल ने कहा, ‘‘अपने सारे प्रमाणपत्र ले कर पिता के साथ लखनऊ आ जाना. तुम्हारा काम हो जाएगा.’’

हरीलाल के आश्वासन से संगीता के भीतर खुशी की लहर दौड़ गई. तय समय पर वह मनेश के साथ लखनऊ गई. बंद कमरे में हरीलाल ने उसे विधायक राजबली से मिलाया, बात कराई और पक्का आश्वासन दे कर संगीता को विश्वास में ले लिया.

नौकरी पाने के लालच में संगीता उन दोनों को अपना सबकुछ सौंपती रही. उस की मजबूरी का वे दोनों जम कर फायदा उठाते रहे. यह कोई बलात्कार तो था नहीं इसलिए संगीता यह बात किसी से कह भी नहीं सकती थी.

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अपना सबकुछ लुटाने के बाद भी संगीता को नौकरी नहीं मिली, क्योंकि

5 लाख रुपए का इंतजाम नहीं हो पाया था. जब निराश संगीता ने हरीलाल से नाता तोड़ लिया, तो वह अगले मुरगे की तलाश करने लगा.

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