लेखक- अब्बास खान ‘संगदिल’
बरसों से जमेजकड़े दादा मियां की पुश्तैनी जायजाद उन की मुहब्बत, वफादारी, गरीबों की भलाई ने उन्हें इलाके में मशहूर बना रखा था. नेता भी उन की दहलीज पर माथा टेकते थे.
बरसों पुरानी दरगाह की देखभाल, आमदनी की जिम्मेदारी भी दादा मियां के खानदान के आदमी ही किया करते थे. उन का एक ही बेटा था इस्माइल. लाड़प्यार ने उसे ज्यादा पढ़ने नहीं दिया और वह घर के कामकाज देखने लगा.
‘‘यार इस्माइल, आजकल लोगों का रुझान मजहब की तरफ ज्यादा है. औरतों को इस मामले में आगे देखा जा रहा है. वे मर्दों को इस ओर जल्दी ही अपनी तरफ कर लेती हैं. अगर हम चाहें तो...’’ कह कर उस का दोस्त रफीक रुक गया.
‘‘बात पूरी करो यार, तुम बात अधूरी मत छोड़ा करो,’’ इस्माइल ने कहा.
‘‘हम आजकल पैसों की तंगी से गुजर रहे हैं. मांबाप की जायदाद से कब तक चुपचाप लेते रहेंगे. कुछ कमाने की सोचो. मैं ने एक बात सोची है. अगर कहो तो बताऊं?’’
‘‘हांहां, बताओ,’’ इस्माइल बोला.
‘‘दादा मियां से कह कर दरगाह की देखरेख की जिम्मेदारी तुम ले लो. उन के बुढ़ापे को देख कर उन्हें आराम करने की सलाह दे दो. खादिम की जिम्मेदारी तुम उठाओ. इस से हमें खर्चे के लिए कुछ न कुछ मिल जाएगा.’’
‘‘ठीक है, मैं कोशिश करता हूं,’’ इस्माइल ने कहा.
यह बात जब इस्माइल ने दादा मियां से कही, तो वे आसानी से तैयार हो गए.
दरगाह के खादिम का काम इस्माइल ने संभाल लिया. रफीक को यह जान कर खुशी हुई कि अब उस के मन की मुराद पूरी हो जाएगी.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
- 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
- 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
- चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप
- 24 प्रिंट मैगजीन
डिजिटल

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
- 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
- 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
- चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप