ऐसे कई खर्च उन्होंने गिनाते हुए कहा, ‘‘संस्था की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए हम सब से सहयोग लेते हैं. चंदा करते हैं. ऐसे में लेखकों का दायित्व भी है कि वे अपने ही सम्मान के लिए कुछ तो खर्च करें. आखिर नाम तो लेखकों का ही होता है. हमारी जेब से भी बहुत खर्च होता है. लेकिन साहित्य सेवा का बीड़ा उठाया है, तो कर रहे हैं साहित्य की सेवा. आप जल्दी करिए. हमें गर्व होगा आप को सम्मानित करने में. भविष्य में योजना है कि लेखकों को नकद पुरस्कार भी दिया जाए. आनेजाने का खर्च भी. अब आप से इतने सहयोग की तो अपेक्षा कर ही सकते हैं.’’
मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, बाकी तो सब भेज दूंगा लेकिन जिसे आप प्रविष्टि शुल्क या रजिस्ट्रेशन शुल्क कहते हैं वह भेज पाना संभव नहीं है.’’
उधर से कुछ नाराजगीभरी आवाज आई, ‘‘संस्था का नियम है कि बिना शुल्क के सम्मान पर विचार नहीं किया जाएगा. बाकी भले ही कुछ न भेजें लेकिन शुल्क जरूर भेजें. आजकल तो बड़ीबड़ी पत्रिकाएं छापने से पहले शर्त रखती हैं कि पत्रिका की वार्षिक, आजीवन सदस्यता लेने वालों की रचनाएं ही छापी जाएंगी. फिर, हमारी संस्था तो छोटी है.’’
मैं ने कहा, ‘‘विचार कर के बताता हूं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘जल्दी करिए.’’
मैं ने दूसरे पत्र को पढ़ कर उस के अंत में दिए फोन नंबर पर फोन लगाया.
मैं ने कहा, ‘‘महोदय, आप ने मुझे कविता पर सम्मान देने के लिए आमंत्रणपत्र भेजा है. लेकिन मैं तो कविताएं लिखता ही नहीं हूं.’’
‘‘अरे, तो साहब लिख डालिए. न लिख सकें तो जो लिखा है उसी पर सम्मान दे देंगे. फोटो, परिचय और 2,500 रुपए का मनीऔर्डर भेज दीजिए. जल्दी करिए.’’
ऐसा लगा जैसे किसी कंपनी का लुभावना औफर निकला हो. मैं ने प्रविष्टि/सहयोग/रजिस्ट्रेशन शुल्क के विषय में पूछा तो पहले सेवा करने वाले की तरह ही उत्तर मिला, ‘‘बिना शुल्क के कुछ नहीं. पहली और अनिवार्य शर्त है शुल्क.’’
समझ में तो सब आ रहा था लेकिन मन में सम्मान की इच्छा थी, तो सोचा, एक बार चल कर देखा जाए और मैं ने प्रविष्टि शुल्क सहित सबकुछ भेज दिया. कुछ समय बाद निमंत्रणपत्र आया कि आप को सम्मान 28 अगस्त, 2019 समय 2 बजे रामप्रसाद शासकीय विद्यालय में दिया जाएगा. हम अपने साथ 2 जोड़ी कपड़े ले कर ट्रेन में चढ़े. समयपूर्व रिजर्वेशन करवा लिया था. 500 किलोमीटर के लंबे सफर की थकान के बाद एक होटल पहुंचे. 1,000 रुपए एक दिन के हिसाब से होटल में कमरा मिला. 100 रुपए प्लेट के हिसाब से भोजन किया. फिर रिकशा कर के नियत समय पर कार्यक्रम में सम्मानित होने की लालसा लिए पहुंचे. वहां अपना परिचय दिया. संस्था के सचिव ने हाथ मिला कर बधाई देते हुए कहा, ‘‘आप बैठिए.’’
समारोह कब शुरू होगा?’’
‘‘मुख्य अतिथि के आने पर. वे ठहरे बड़े आदमी. आराम से आएंगे. तब तक बैनर, पोस्टर लग जाएंगे. आप चाहें तो थोड़ी मदद कर सकते हैं.’’
मैं ने हामी भर दी. उन्होंने मुझे मंच पर मुख्य अतिथियों की कुरसी लगाने में लगा दिया. धीरेधीरे लोग आते रहे. मैं अपना काम समाप्त कर के दर्शक दीर्घा में पड़ी कुरसी पर बैठ गया. छोटा सा हौल भर गया. हौल में 50 लोगों के बैठने की जगह थी. कैमरामैन भी आ गया.
मंच पर 8-10 लोगों को नाम ले कर बिठाया गया जिन में कोई शिक्षा विभाग का कुलपति, अखबार का प्रधान संपादक, राजनीति से जुड़े हुए स्थानीय नेता थे. एक वयोवृद्ध लेखक जिन का नाम तभी पता चला कि ये लेखक हैं, इस शहर के बहुत बड़े लेखक. एकदो ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपने दिवंगत मातापिता के नाम पर पुरस्कार रखे थे.
सारा मंच मुख्य अतिथियों से भरा हुआ था और दर्शक दीर्घा में मेरे जैसे लेखक बैठे हुए थे.
जनता हम ही थे. दर्शक हम लेखक लोग ही थे. पढ़ने वाला, सुनने वाला कोई नहीं था. सब से पहले मुख्य अतिथियों महोदय ने दीप प्रज्ज्वलित किए. इसी बीच कुछ कन्याओं ने अपने गीतों से सब को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस के बाद संस्था अध्यक्ष, जोकि मंच संचालक भी थे, ने एक घंटे तक संस्था के कार्यों पर, सेवा पर उल्लेखनीय प्रकाश डाला.
दर्शक दीर्घा में बैठे लेखक ताली बजाते प्रतीक्षा करते रहे कि कब उन्हें सम्मान मिलेगा. लेकिन अभी तो कार्यक्रम की शुरुआत थी. इस के बाद अपनेअपने क्षेत्र के आमंत्रित 10 मुख्य अतिथियों को फूलमाला पहना कर उन्हें बोलने के लिए बुलाया गया. अपनेअपने क्षेत्र के मुख्य अतिथि अपनेअपने क्षेत्र की बातें बोलते रहे. बोलते रहने का तात्पर्य यह है कि वे अपने विरोधी लेखकों, दूसरी विचारधाराओं के लोगों, अपने शत्रुओं को जीभर कर कोसते रहे. अपने मन की भड़ास निकालते रहे.
संस्था के अध्यक्ष ने तमाम साहित्यिक संस्थाओं को जीभर कर कोसा. सब को उन्होंने फर्जी, झूठा और ठग करार दिया. भारत सरकार, राज्य सरकार और तमाम बड़े संगठनों को कोसा जिन्होंने उन की संस्था को आर्थिक सहायता देना मंजूर नहीं किया था. उन के आमंत्रण पर जो लोग नहीं आए थे और सहायता देने में असमर्थता जाहिर की थी, उन्हें भी मंच से आड़ेहाथों लिया. तमाम वरिष्ठ, गरिष्ठ और कनिष्ठ लेखकों, संपादकों, प्रकाशकों को भरभर कर कोसा. क्योंकि मंच संचालक उर्फ संस्था अध्यक्ष स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय लेखक कह चुके थे और उन की रचनाओं को सभी बड़ीछोटी पत्रिकाएं अस्वीकृत कर चुकी थीं. उन्होंने उन सब को साहित्यविरोधी, राष्ट्रविरोधी कहा.
भोजपुरी इंडस्ट्री की मशहूर ऐक्ट्रिस आम्रपाली दुबे और ऐक्टर दिनेश लाल यादव की जोड़ी को फैंस बहुत पसंद करते हैं . दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया है. वही कुछ लोगों का ये मानना है की आम्रपाली और दिनेश एक दूसरे को डेट कर रहे है, हालांकि इन दिनों ने ही कई बार ये बताया है की वो सिर्फ दोस्त है. बीते दिन दिनेश लाल यानि निरहुआ के बेटे आदित्य यादव का बर्थडे था. इस मौके पर उन्हे कई लोगों ने विश किया है. निरहुआ की खास दोस्त आम्रपाली दुबे ने खास अंदाज में आदित्य को जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयां दी है.
View this post on Instagram
आम्रपाली ने किया खास आदित्य को बर्थडे विश:
आम्रपाली दुबे ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट को शेयर करते हुए एक तस्वीर शेयर की है, जिसमे वो आदित्य और निरहुआ दिखाई दे रहे है. ऐक्ट्रिस ने इस फोटो को शेयर करते हुए लिखा, ‘आदित्य को ढेर सारी शुभकामनाए. आपको हमारी तरफ से ढेर सारा प्यार. आम्रपाली का ये पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. फैंस इस फोटो को जमकर प्यार बरस रहे है. और दूसरी तरफ कई कलाकार ने कमेंट्स करते हुए आदित्य को हैप्पी बर्थडे कह रहे है.
View this post on Instagram
सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहती है आम्रपाली दुबे:
आम्रपाली दुबे सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती है. ऐक्ट्रिस अक्सर अपने फैंस के साथ फोटो और वीडिओ शेयर करती रहती है, जिसे उनके चाहने वाले खूब पसंद करते है. बता दें की आम्रपाली ने कई फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा है. फैंस उन्हें इंडस्ट्री की सबसे बोल्ड और खूबसूरत ऐक्ट्रिस मानते है. वही उनकी पर्सनल लाइफ की बात करे तो आम्रपाली ने अबतक शादी नहीं की, 35 साल की आम्रपाली अभी तक सिंगल है. अभी हालही में एक इंस्टाग्राम के पोस्ट में आम्रपाली दुल्हन के अवतार में और निरहुआ दूल्हे के अवतार में दिखे थे फैंस को लगा दोनों ने शादी कर ली पर बाद में पता चला की वो किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे है.
सलमान खान का धमाकेदार शो ‘बिग बॉस 16’ इन दिनों खूब चर्चा में बना हुआ है. खासकर सुबुंल तौकीर खान, टीना दत्ता और शालीन भनोट का मुद्दा और बढ़ता जा रहा है. बीते दिन ‘बिग बॉस 16’ के एपिसोड में सुबुंल तौकीर खान और उनके पिता की कॉल दिखाई गई. जिसमे उनके पिता टीना दत्ता और शालीन भनोट पर नाराजगी जाहिर करते दिखाई दिए.
इतना ही नहीं सुम्बुल के पिता ने टीना को बुरा भला भी कहा था. इस बात को टीना दत्ता और शालीन भनोट, सुबुंल तौकीर खान पर बुरी तरह भड़क गए और उनके साथ जमकर झगड़ा भी किया. हालंकी सुम्बुल और उनके पिता की कॉल घरवालों को दिखने के लिए दर्शकों ने नाराजगी जाहिर की और साथ ही में उन्होंने मकर्स पर टीआरपी के खातिर का आरोप भी लगाया.
View this post on Instagram
खास होगा ये वीकेंड:
‘बिग बॉस 16’ अपनी रफ्तार पकड़ चुका है. ऐसे में अब हर दिन ही शो में कुछ नया पंगा होता दिख ही जाता है. इसी बीच अब आने वाला वीकेंड बिग बॉस फैंस के लिए मजेदार होने वाला है. क्योंकि बॉलीवुड की रोमांस क्वीन काजोल और रेवती रियलिटी टेलीविजन शो ‘बिग बॉस 16’ के वीकेंड का वार एपिसोड में अपनी अपकमिंग फिल्म ‘सलाम वेंकी’ का प्रमोशन करने आ रही हैं. दूसरी तरफ शालीन भनोट, सुम्बुल तौकीर और टीना दत्ता के परिवार भी शो में आएंगे. तो इस तरह से बहुत कुछ देखने को मिलेगा.
View this post on Instagram
वीकेंड पर आमने सामने होंगे पेरेंट्स:
तो इस सब विवाद की वजह से टीना, सुम्बुल और शालीन के माता-पिता वीकेंड एपिसोड के लिए आ रहे हैं , इन सभी मुद्दों को उठाया जाएगा और प्रतियोगियों , परिवारों और दोस्तों के बीच चर्चा की जाएगी. यह देखना दिलचस्प होगा कि मेजबान इस सब पर कैसी प्रतिक्रिया देने वाला है.
सुम्बुल के पिता ने दी सलाह :
हाल ही के एपिसोड में, सुबुंल तौकीर खान को कन्फेशन रूम में बुलाया गया और उसने अपने पिता से बात की जो टीना और शालीन के माता-पिता को पसंद नहीं आया. बातचीत के दौरान , सुम्बुल के पिता ने उसे टीना और शालीन से दूर रहने के लिए कहा और उसने उससे कहा कि उन्हें उनकी औकात दिखाओ.
सूचनाएं, किस तरह की?’
‘यही कि शहर में हो रही घटनाओं में आप का हाथ है.’
‘लेकिन…?’
उस ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘आप को बताने में क्या समस्या है? हम आप से एक सभ्य शहरी की तरह ही तो बात कर रहे हैं. पुलिस की मदद करना हर अच्छे नागरिक का कर्तव्य है.’
अब मैं क्या बताऊं उसे कि हर बार थाने बुलाया जाना और पुलिस के प्रश्नों का उत्तर देना, थाने में घंटों बैठना किसी शरीफ आदमी के लिए किसी यातना से कम नहीं होता. उस की मानसिक स्थिति क्या होती है, यह वही जानता है. पलपल ऐसा लगता है कि सामने जहरीला सांप बैठा हो और उस ने अब डसा कि तब डसा.
इस तरह मुझे बुलावा आता रहा और मैं जाता रहा. यह समय मेरे जीवन के सब से बुरे समय में से था. फिर मेरे बारबार आनेजाने से थाने के आसपास की दुकानवालों और मेरे महल्ले के लोगों को लगने लगा कि या तो मैं पेशेवर अपराधी हूं या पुलिस का कोई मुखबिर. कुछ लोगों को शायद यह भी लगा होगा कि मैं पुलिस विभाग में काम करने वाला सादी वर्दी में कोई सीआईडी का आदमी हूं. मैं ने पुलिस अधिकारी से कहा, ‘सर, मैं कब तक आताजाता रहूंगा? मेरे अपने काम भी हैं.’
उस ने चिढ़ कर कहा, ‘मैं भी कोई फालतू तो बैठा नहीं हूं. मेरे पास भी अपने काम हैं. मैं भी तुम से पूछपूछ कर परेशान हो गया हूं. न तुम कुछ बताते हो, न कुबूल करते हो. प्रैस के आदमी हो. तुम पर कठोरता का व्यवहार भी नहीं कर रहा इस कारण.’
‘सर, आप कुछ तो रास्ता सुझाएं?’
‘अब क्या बताएं? तुम स्वयं समझदार हो. प्रैस वाले से सीधे तो नहीं कुछ मांग सकता.’
‘फिर भी कुछ तो बताइए. मैं आप की क्या सेवा करूं?’
‘चलो, ऐसा करो, तुम 10 हजार रुपए दे दो. मेरे रहते तक अब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी. न तुम्हें थाने बुलाया जाएगा.’
मैं ने थोड़ा समय मांगा. इधरउधर से रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे दिए और उस ने मुझे आश्वस्त किया कि मेरे होते अब तुम्हें नहीं आना पड़ेगा.
मैं निश्ंचत हो गया. भ्रष्टाचार के विरोध में लिखने वाले को स्वयं रिश्वत देनी पड़ी अपने बचाव में. अपनी बारबार की परेशानी से बचने के लिए और कोई रास्ता भी नहीं था. मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं था. न मेरा किसी बड़े व्यापारी, राजनेता, पुलिस अधिकारी से परिचय था. रही मीडिया की बात, तो मैं कोई पत्रकार नहीं था. मैं मात्र लेखक था, जो अपनी रचनाएं आज भी डाक से भेजता हूं. मेरा किसी मीडियाकर्मी से कोई परिचय नहीं था. एक लेखक एक साधारण व्यक्ति से भी कम होता है सांसारिक कार्यों में. वह नहीं समझ पाता कि उसे कब क्या करना है. वह बस लिखना जानता है.
अपने महल्ले में भी लोग मुझे अजीब निगाहों से देखने लगे थे, जैसे किसी जरायमपेशा मुजरिम को देखते हैं. मैं देख रहा था कि मुझे देख कर लोग अपने घर के अंदर चले जाते थे. मुझे देखते ही तुरंत अपना दरवाजा बंद कर लेते थे. महल्ले में लोग धीरेधीरे मेरे विषय में बातें करने लगे थे. मैं कौन हूं? क्या हूं? क्यों हूं? मेरे रहने से महल्ले का वातावरण खराब हो रहा है. और भी न जाने क्याक्या. मेरे मुंह पर कोई नहीं बोलता था. बोलने की हिम्मत ही नहीं थी. मैं ठहरा उन की नजर में अपराधी और वे शरीफ आदमी. अभी कुछ ही समय हुआ था कि फिर एक पुलिस की गाड़ी सायरन बजाते हुए रुकी और मुझ से थाने चलने के लिए कहा. मेरी सांस हलक में अटक गई. लेकिन इस बार मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’
‘‘साहब ने बुलाया है. आप को चलना ही पड़ेगा.’’
यह तो कृपा थी उन की कि उन्होंने मुझे कपड़े पहनने, घर में ताला लगाने का मौका दे दिया. मैं सांस रोके, पसीना पोंछते, पुलिस की गाड़ी में बैठा सोचता रहा, ‘साहब से तो तय हो गया था.’ महल्ले के लोग अपनीअपनी खिड़कियों, दरवाजों में से झांक रहे थे.
थाने पहुंच कर पता चला जो पुलिस अधिकारी अब तक पूछताछ करता रहा और जिसे मैं ने रिश्वत दी थी उस का तबादला हो गया है. उस की जगह कोई नया पुलिस अधिकारी था.
मेरे लिए खतरनाक यह था कि उस के नाम के बाद उस का सरनेम मेरे विरोध में था. वह बुद्धिस्ट, अंबेडकरवादी था और मैं सवर्ण. मैं समझ गया कि अपने पूर्वजों का कुछ हिसाबकिताब यह मुझे अपमानित और पीडि़त कर के चुकाने का प्रयास अवश्य करेगा. इस समय मुझे अपना ऊंची जाति का होना अखर रहा था.
मैं ने कई पीडि़त सवर्णों से सुना है कि थाने में यदि कोई दलित अफसर होता है तो वह कई तरह से प्रताडि़त करता है. मेरे साथ वही हुआ. मेरा सारा सामान मुंशी के पास जमा करवाया गया. मेरे जूते उतरवा कर एक तरफ रखवाए गए. मुझे ठंडे और गंदे फर्श पर बिठाया गया. फिर एक काला सा, घनी मूंछों वाला पुलिस अधिकारी बेंत लिए मेरे पास आया और ठीक सामने कुरसी डाल कर बैठ गया. उस ने हवा में अपना बेंत लहराया और फिर कुछ सोच कर रुक गया. उस ने मुझे घूर कर देखा. नाम, पता पूछा. फिर शहर में घटित तथाकथित अपराधों के विषय में पूछा.
मैं ने अब की बार दृढ़स्वर में कहा, ‘‘मैं पिछले 6 महीने से परेशान हूं. मेरा जीना मुश्किल हो रहा है. मेरा खानापीना हराम हो गया है. मेरी रातों की नींद उड़ गई है. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जेल में डाल दें. मुझे नक्सलवादी, आतंकवादी समझ कर मेरा एनकाउंटर कर दें. आप जहां चाहें, दस्तखत ले लें. आप जो कहें मैं सब कुबूल करने को तैयार हूं. लेकिन बारबार इस तरह यदि आप ने मुझे अपमानित और प्रताडि़त किया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा,’’ यह कहतेकहते मेरी आंखों से आंसू बहने लगे.
नया पुलिस अधिकारी व्यंग्यात्मक ढंग से बोला, ‘‘आप शोषण करते रहे हजारों साल. हम ने नीचा दिखाया तो तड़प उठे पंडित महाराज.’’
उस के ये शब्द सुन कर मैं चौंका, ‘पंडित महाराज, तो एक ही व्यक्ति कहता था मुझ से. मेरे कालेज का दोस्त. छात्र कम गुंडा ज्यादा.’
‘‘पहचाना पंडित महाराज?’’ उस ने मेरी तरफ हंसते हुए कहा.
‘‘रामचरण अंबेडकर,’’ मेरे मुंह से अनायास ही निकला.
सवाल
मैं 24 वर्षीय युवती हूं. 3 महीने बाद मेरा विवाह है. समस्या यह है कि मेरी छाती बिलकुल सपाट है. स्तन बहुत छोटे हैं. मेरी सहेली जो विवाहित है, का कहना है कि मुझे ऐसा कोई उपाय करना चाहिए जिस से स्तन उन्नत आकार में आ सकें. क्या किसी दवा, तेल, क्रीम या ऐक्सरसाइज की मदद से इन में मनवांछित सुधार लाया जा सकता है? कोई घरेलू नुसखा हो तो बताएं?
जवाब
कई आयुर्वेदिक दवा बेचने वाली कंपनियां बड़ बड़े दावे जरूर करती रहती हैं कि उन की दवा या तेल में स्तनों को बढ़ाने की क्षमता है, लेकिन सचाई यह है कि ये दावे लोगों को मूर्ख बनाने की चेष्टा भर होते हैं.
सच यह है कि चेहरे के रूप आकार और दैहिक बनावट की तरह हर स्त्री में स्तनों का स्वरूप भी प्राकृतिक रूप से भिन्न भिन्न होता है. उस के जींस में छिपे आनुवंशिक गुण और उस की आंतरिक हारमोनल दुनिया ही यह निर्धारित करती है कि उस की दैहिक छवि का विन्यास कैसा होगा.
स्तनों के आकार को सैक्स से सीधा जोड़ कर देखना मात्र वहम है. उन का छोटा होना न तो यौनसुख में बाधक होता है और न बड़ा होना चरमसुख में प्राप्तिकारक. शारीरिक बनावट के संबंध में यह आकुलता रखना सर्वथा अनावश्यक है. मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह सदा दूसरों से अपनी तुलना करता है और उस की यह इच्छा होती है कि वह दुनिया के नाए मानदंडों पर श्रेष्ठ उतरे. लेकिन इस पर किसी का वश नहीं चलता.
आप खुशीखुशी वैवाहिक जीवन में प्रवेश करें और किसी प्रकार के हीन भावना को अपने भीतर न पनपने दें.
शाम के 8 बज गए थे. राजस्थान के कोटा नगर निगम में अपनी रोजमर्रा की ड्यूटी पर तैनात इमरान अंसारी के पास पत्नी अंजुम का फोन आया. अंजुम उस समय बुरी तरह हड़बड़ाई हुई थी. कांपतीलरजती हुई आवाज में उस ने बताया, ‘‘अबीर कहीं नहीं मिल रहा है.’’
डेढ़ वर्षीय अबीर इमरान का इकलौता बेटा था. बेहद खूबसूरत और चंचल अबीर पूरे परिवार का ही नहीं पूरे मोहल्ले का भी दुलारा था.
अंजुम ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘मैं बावर्चीखाने में खाना बना रही थी, अबीर उस समय नीचे कमरे में खेल रहा था. खाना पक गया तो मेरी तवज्जो उस की तरफ गई, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया. अपनी छत की तरफ गई, लेकिन वहां भी नहीं दिखा.
‘‘मम्मी की छत की मुंडेर पर खड़े हो कर मैं ने चौतरफा आवाज लगाई. लेकिन कोई जवाब नहीं. आसपड़ोस में भी देख आई, लेकिन कोई नहीं बता सका कि अबीर कहां है. अबीर की तो कहीं किलकारी तक नहीं सुनाई दी. जब कोई नतीजा नहीं निकला तो आप को फोन किया.’’ इस के साथ ही अंजुम फूटफूट कर रोने लगी.
इमरान ने बीवी को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘इस तरह घबराओ मत. वो तो पूरे मोहल्ले का लाडला है, जरूर कोई घुमाने ले गया होगा.’’ इमरान ने अपने छोटे भाई का नाम लेते हुए कहा, ‘‘तुम ने जीशान भाई से पूछा.’’
अंजुम बिलख पड़ी, ‘‘मैं ने तो सब से पूछ लिया. जब कोई नतीजा नहीं निकला, तब कहीं जा कर आप को फोन किया.’’
अब तो इमरान का भी माथा ठनकने लगा. भला उस मासूम बच्चे का कौन दुश्मन हो सकता है? अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए उस ने बीवी अंजुम को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम परेशान मत होओ. बस, मैं आधे घंटे में पहुंच रहा हूं.’’
यह बात 25 अप्रैल, 2022 की है. बेटे को ले कर अंजुम फूटफूट कर रोने लगी.
उस के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए. औरतों ने अंजुम को दिलासा दिलाई, ‘‘घबराओ मत, बच्चा मिल जाएगा.’’
उधर इमरान औफिस से सीधा घर पहुंचने के बजाय मोहल्ले में बच्चे को तलाश करने लगा. तभी पत्नी का फोन आया, अबीर अम्मी वाले मकान की छत पर रखी पानी की टंकी में मिल गया है.
हतप्रभ इमरान लपकता हुआ घर पहुंचा. बेटे को अंजुम की गोद में बेहोश पड़ा देख कर इमरान फफक पड़ा. बिलखते हुए वह अपने छोटे भाइयों शाकिर और इफ्तखार के साथ बेसुध बच्चे को ले कर जे.के. लोन अस्पताल की तरफ दौड़ा. लेकिन डाक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया.
लाडले की मौत से घरपरिवार और बस्ती में कोहराम मच गया. दहाड़ मारती पत्नी को संभालना इमरान के लिए मुश्किल हो गया. आखिरकार आंसुओं का सैलाब बहाते हुए परिवार के लोगों ने रात में ही बच्चे को कब्रिस्तान में दफना दिया.
कब्रिस्तान से घर लौटने के बाद परिवार के लोग एकजुट हो कर बैठे तो इस बात पर चर्चा होने लगी कि नन्हा बच्चा कैसे इतनी ऊंचाई पर रखी टंकी तक पहुंचा? फिर अबीर को जिस टंकी से बरामद किया गया है, उस का ढक्कन तो बंद था. आखिर माजरा क्या है?
अंजुम बुरी तरह फफक पड़ी कि जरूर किसी ने हमारे बच्चे की हत्या की है. घुटने पर चलने वाला अबीर सीढि़यां कैसे चढ़ गया? पानी की टंकी का ढक्कन बंद था तो कैसे खोला?
बात सोलह आने सच थी. ऐसा कौन करेगा, कहते हुए सभी के मुंह खुले के खुले रह गए.
बेटे की रहस्यमय और दर्दनाक मौत से पगलाए हुए इमरान की रात को पलक तक नहीं झपकी. भोर का झुटपुटा होते ही वह रामपुरा कोतवाली पहुंच कर एसएचओ हंसराज मीणा के पावों में गिर कर बिलख पड़ा, ‘‘साहब, मेरे मासूम बच्चे को पता नहीं किस ने मार डाला.’’
एसएचओ मीणा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘पूरी बात डिटेल में बताओ, कैसे क्या हुआ?’’
इमरान ने सुबकते हुए पूरी घटना उन्हें बता दी, ‘‘साहब, बीती शाम को कोई साढ़े 5 बजे, जिस वक्त मेरी बीवी अंजुम खाना पका रही थी, नीचे कमरे में खेलता हुआ हमारा डेढ़ साल का बेटा अबीर पता नहीं कहां निकल गया. बाद में घंटों की भागदौड़ में तलाश किया तो वह मेरी अम्मा के मकान की छत पर रखी पानी से भरी टंकी में मिला.
‘‘उसे ले कर हम फौरन अस्पताल पहुंचे, लेकिन डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. अब यह अहम सवाल सामने आ रहा है कि घुटने पर चलने वाला बच्चा सीढि़यां कैसे चढ़ा? टंकी का ढक्कन बंद था, कैसे उसे खोला? बाद में किस ने ढक्कन बंद किया? इस से तो यही लगता है कि बच्चे की हत्या की गई है.’’
इमरान की बात सुन कर एसएचओ मीणा भी सकते में आ गए. उन्होंने कहा कि बच्चे की ऐसी खौफनाक मौत की वजह रंजिश के अलावा कुछ नहीं हो सकती. बच्चे को जिस दर्दनाक तरीके से मारा गया है, उस के पीछे कोई अदावत ही हो सकती है. उन्होंने उस से पूछा कि तुम्हारी किसी से कोई रंजिश तो नहीं है?
‘‘नहीं साहब, मेरी या मेरे परिवार की किसी से कोई भी अदावत नहीं है. यह काम तो कोई बददिमाग आदमी ही कर सकता है.’’ इमरान बोला.
घटना इस कदर दहलाने वाली थी कि आग की तरह पूरे शहर में फैल गई. नतीजतन पूरा शहर कोतवाली की तरफ उमड़ पड़ा. एडिशनल एसपी प्रवीण चंद जैन ने लोगों को समझाबुझा कर विश्वास दिलाया, ‘‘आप निश्चिंत रहें. अपराधी जो भी होगा, जल्दी ही कानून की गिरफ्त में होगा.’’
उन के विश्वास दिलाने पर आहिस्ताआहिस्ता भीड़ छंटने लगी. उधर पुलिस आईजी रविदत्त गौड़ के निर्देश पर एडिशनल एसपी प्रवीण चंद जैन की अगुवाई में मामले की पड़ताल के लिए एसएचओ हंसराज मीणा समेत एक दरजन पुलिसकर्मियों को एक टीम में शामिल किया गया.
आईजी के निर्देश पर मजिस्टै्रट बोर्ड का गठन किया गया. बोर्ड ने इमरान तथा उस के परिवार की सहमति पर अबीर का शव कब्रिस्तान से निकाल कर उस का पोस्टमार्टम करवाया.
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट चौंकाने वाली थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्चे को टंकी के पानी में जबरन डुबोए रखा गया था. नतीजतन बच्चे ने छटपटाते हुए दम तोड़ा था. रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि बच्चा किसी साजिश का शिकार हुआ है.
मामले की पड़ताल को ले कर पुलिस ने 3 बातों पर अपना ध्यान केंद्रित किया. पहला— वारदात के दिन घरपरिवार में महिलाओं और बच्चों के अलावा कोई मर्द नहीं था. दूसरा— किसी बाहरी शख्स की घर में आवाजाही तो कतई नहीं थी. तीसरा— कुछ अरसा पहले अबीर की चाची सोबिया ने गुस्से में बच्चे को बुरी तरह खरोंच दिया था. इस पर परिवार में भूचाल आ गया था. पूरे परिवार ने उस की लानतमलामत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
अबीर भी इस घटना से इस कदर सहम गया था कि सोबिया के करीब जाने से भी डरता था. पुलिस को सुराग मिल गया था. लेकिन फिलहाल पुलिस घर वालों से पूछताछ करने से कतरा रही थी.
दरअसल, एक तरफ तो परिवार सदमे में था, दूसरी तरफ रमजान चल रहे थे. ऐसे में पुलिस के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई थी. किस से पूछताछ की जाए और सिलसिले की शुरुआत कैसे की जाए? जबकि दूसरी तरफ मीडिया का भी जबरदस्त दबाव था.
पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए बीच का रास्ता अपनाते हुए एक एएसआई और महिला पुलिसकर्मियों को सादा वेशभूषा में परिवार के लोगों की निगरानी में लगा दिया. पुलिस परिवार के हर सदस्य के तौरतरीकों पर नजर गड़ाए हुए थी.
इस दौरान अबीर की चाची सोबिया की गतिविधियों ने संदेह पैदा कर दिया. सोबिया घटना वाले दिन से लगातार सामने वाले मकान में रहने वाले 3 बच्चों से ज्यादा मिलजुल रही थी और घर में चल रही हलचल का ब्यौरा पूछ रही थी.
पुलिस ने बच्चों को बुला कर सोबिया से मिलने की वजह पूछी तो बच्चों के चेहरे फक पड़ गए. उन्होंने पलभर में सारा रहस्य उगल दिया. पुलिस के सामने सोबिया का चेहरा बेनकाब हो गया था. अफसरों ने जब सोबिया से सच उगलवाने के लिए पुलिसिया अंदाज अपनाया तो वह टूट गई और सब कुछ सच उगलने लगी.
सोबिया के मुंह से हत्याकांड का सच सुन कर पुलिस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. डेढ़ वर्षीय मासूम बालक की निर्मम हत्या करने वाली एक महिला है और वह भी सगी चाची… यह सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए. सोबिया द्वारा पुलिस को दिए गए बयान से कहानी इस प्रकार सामने आई—
राजस्थान के शहर कोटा के रामपुरा इलाके के आखिरी छोर पर लाडपुरा में एक मुसलिम बाहुल्य बस्ती है कर्बला. इसी बस्ती में शबाना मंजिल के पास इमरान अंसारी अपनी बीवी अंजुम और डेढ़ वर्षीय बेटे अबीर के साथ करीब 21 लोगों के कुनबे के बीच रहता था.
इमरान अंसारी कोटा नगर निगम में नौकरी करता था. उसे अपने अब्बू मुस्तकीम अहमद की मौत के बाद निगम में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी. इमरान 9 भाइयों में सब से बड़ा था. उस से छोटे भाई का नाम जीशान अहमद था. पिता की विरासत में उस का भी बराबर का हक था.
हालांकि सभी भाइयों ने अब्बू की मौत के बाद इमरान के लिए नौकरी की रजामंदी दे दी थी. लेकिन दिली तौर पर जीशान चाहता था कि पिता के करीब वो ज्यादा था. इसलिए अब्बू की नौकरी पाने का पहला हकदार वह था.
जीशान अहमद की बीवी सोबिया इस बात से खफा थी और गाहेबगाहे अपने शौहर को उकसाती रहती थी कि इस तरह खामोश रहने से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला.
आखिर बीवी की ख्वाहिशों ने जोर मारा तो जीशान भी उखड़ गया. बिफरते हुए उस ने कह दिया, ‘‘भाईजान, वालिद की खिदमत जिस तरह मैं ने की, उस के मद्देनजर उन की नौकरी का हकदार मैं हुआ. आप तो नाजायज रूप से इस पर काबिज हो गए.’’
इमरान जानता था कि जीशान गलत नहीं है. लेकिन निगम की आरामपसंद नौकरी और अच्छीखासी पगार का लालच उस के दिलोदिमाग पर पूरी तरह हावी हो चुका था. ऐसे में नौकरी के हाथ से निकल जाने की सोच भी उस के लिए गमजदा करने वाली थी.
इमरान यह भी जानता था कि जीशान दिमागी तौर पर ज्यादा तेजतर्रार नहीं है. लेकिन जिस तरह वो बदसलूकी पर आमादा है, उस के पीछे पूरी तरह उस की बीवी सोबिया की भड़काऊ कोशिशें हैं.
इमरान समझदार था. उस ने तनिक ठंडे दिमाग से काम लिया. उस ने पूरी तरह दरियादिली दिखाते हुए कहा, ‘ठीक है भाई, महज नौकरी के लिए भाइयों की मोहब्बत में फर्क नहीं आना चाहिए. लेकिन रजामंदी के कागज पर दस्तखतों के बाद ही मुझे नौकरी मिली है. अब नौकरी तुम्हारे नाम करवाने के लिए फिर सब कुछ नए सिरे से लिखनापढ़ना होगा. पता नहीं इस काररवाई में कितना वक्त लग जाए? अफसर इस से खफा भी हो सकते हैं, नतीजतन घरेलू झगड़े के मद्देनजर नौकरी खटाई में भी पड़ सकती है. फिर तो दोनों भाई खाली हाथ रह जाएंगे.’’
इमरान ने थोड़ी समझाइश करते हुए कहा, ‘‘ऐसा है भाई, मैं तुम्हें माली इमदाद करता रहूंगा और नौकरी भी घर में ही बनी रहेगी.’’ जीशान मान गया, लेकिन इमरान अपने वादे पर खरा नहीं उतरा.
अपने शौहर जीशान अहमद की नौकरी हजम करना और आर्थिक मदद के वादे से मुकरना सोबिया के दिल में कील की तरह चुभ गया. रंजिश के कोढ़ में खुजली तब पैदा हुई जब नौकरी और ऊपरी आमदनी ने इमरान और उस की बीवी अंजुम के रहनसहन और बरताव में भी तब्दीली पैदा कर दी.
कहते हैं कि औरत ही औरत की सब से बड़ी दुश्मन होती है. इस कहावत को अंजुम के सोबिया के प्रति नफरत के बरताव ने भी रंजिश के शोलों को हवा दी. परिवार में किसी भी मसले पर इमरान और अंजुम को अहमियत दी जाती थी, यह सोबिया के लिए बरदाश्त से बाहर हो गया था. उसे लगता था कि परिवार में उस की कद्र नहीं है.
उस के 2 बेटों की अपेक्षा इमरान के बेटे अबीर को जिस तरह हर किसी का प्यारदुलार मिलता था, वह उस की आंखों की किरकिरी बन गया था.
खुंदक की वजह से वह यह नहीं समझ पाती थी कि अबीर जितना मासूम और खूबसूरत लगता है, उस की वजह से वो हर किसी का लाडला था. एक दिन तो अबीर खेलते हुए उस के दुपट्टे को खींचने लगा तो सोबिया इस कदर गुस्साई कि उस ने अबीर को बुरी तरह नोचते हुए खून भी निकाल दिया.
सोबिया के लिए यह फितूर बड़ा महंगा पड़ा. नतीजतन पूरे परिवार ने उस की जबरदस्त लानतमलामत कर दी. सरेआम बेइज्जती का यह कड़वा घूंट सोबिया को बरदाश्त नहीं हुआ. इस घटना ने रंजिश के शोलों को भड़काने में जबरदस्त हवा दी और वह बदला लेने पर आमादा हो गई.
वह बखूबी जानती थी कि मां की ममता ऐसी होती है कि वह अपनी औलाद को जिगर का टुकड़ा मानती है और लख्तेजिगर को ही खत्म कर दिया जाए तो औरत एक तरह से ताउम्र के लिए लहूलुहान हो जाती है.
सोबिया अंजुम को ऐसा ही सबक सिखाना चाहती थी. नतीजतन उस ने अबीर को ही अपना निशाना बनाया. अबीर की हत्या का शक उस पर न हो, इसलिए उस ने पड़ोस के 3 बच्चों को अपनी योजना में शामिल किया. तीनों बच्चों का उस की योजना में शामिल होना उन की मजबूरी थी.
दरअसल, तीनों बच्चे गलत सोहबत की वजह से सोबिया के जाल में फंसे हुए थे. बच्चों की करतूतों की राजदार सोबिया ने बच्चों को डराते हुए कहा कि अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारे वालिदैन के सामने तुम्हारा सारा कच्चा चिट्ठा खोल दूंगी. इस कारण बच्चे पूरी तरह से सोबिया की मुट्ठी में थे.
पहले सोबिया ने अबीर को नदी में फेंक आने की योजना बनाई, लेकिन बच्चे इस में जोखिम बता कर बिदक गए. उन का कहना था कि बच्चे को नदी तक ले जाने में वे किसी की भी निगाह में आ सकते हैं.
बाद में उस ने अबीर को पानी की टंकी में डालने की योजना बनाई. उस ने इस के लिए सोमवार 25 अप्रैल, 2022 का दिन चुना. उस समय परिवार का कोई मर्द घर पर नहीं होता. उस ने सोमवार को दोपहर से शाम के बीच का वक्त चुना.
शाम को तकरीबन साढ़े 5 बजे अंजुम जब सामने वाले बड़े मकान में बनी रसोई में खाना बना रही थी और अबीर नीचे मकान में खेल रहा था. उसी दौरान उन 3 बच्चों में से एक अबीर को ले कर दूसरी मंजिल पर गया. वहां से 2 बच्चे भी उस के साथ हो लिए.
उन्होंने छत पर जा कर 500 लीटर की पानी की टंकी का ढक्कन खोल दिया. फिर डेढ़ साल के अबीर को टंकी में डाल दिया. वारदात के समय सोबिया सामने वाली छत पर खड़ी हो कर इशारों से उन्हें गाइड कर रही थी.
अबीर को पानी की टंकी में डालने के बाद बच्चे घबरा गए. एक बार तो उन्होंने अबीर को बाहर निकाल लिया, लेकिन सोबिया ने सामने वाली छत से इशारों में उन बच्चों को धमकाया. जिस से बच्चे डर गए और अबीर को फिर से पानी की टंकी में डाल दिया.
इस के बाद बच्चे नीचे आ गए. साबिया ने सामने वाले मकान से बड़े मकान में आ कर टंकी का ढक्कन चैक किया. वह पूरी तरह से नहीं लगा था. सोबिया ढंग से टंकी का ढक्कन लगा कर चली गई.
इस बीच जब मां अंजुम को अबीर नजर नहीं आया तो उस ने परिवार की औरतों के साथ उसे तलाशना शुरू किया. छत की 2 टंकियों को चैक किया. अबीर शाम को साढ़े 5 बजे करीब गायब हुआ था. रात को साढ़े 7 बजे के आसपास पानी की टंकी में उस का शव मिला.
पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 120बी के तहत सोबिया को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया और तीनों बच्चों को पुलिस ने बेकुसूर मान कर छोड़ दिया.
अपने संगीन अपराध के बावजूद सोबिया के चेहरे पर शर्मिंदगी तक नहीं दिख रही थी. उस ने इस तर्क के साथ जमानत पर बाहर आने की कोशिश की कि मुझे झूठा फंसाया गया है. लेकिन उस का यह घिसा हुआ तर्क नहीं चला. सोबिया अभी न्यायिक अभिरक्षा में है. पुलिस उस के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है.
मॉडल और एक्ट्रेस उर्फी जावेद की बहन अस्फी जावेद भी सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती है. वह अक्सर अपनी तस्वीरे शेयर करती रहती है. बिग बॉस ओटीटी फेम उर्फी जावेद अपने फैशन और ड्रेसिंग सेन्स को लेकर अक्सर चर्चा में रहते है, हालांकि वो काफी बार ट्रोल हो जाती है लेकिन उन्हे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की कौन क्या कह रहा है. उर्फी जावेद की बहन अस्फी जावेद भी सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव है, आपने अगर अस्फी जावेद को नहीं देखा है यहा देखे. अस्फी जावेद का फैशन सेन्स देख कर आप उनकी बहन उर्फी जावेद को भूल जाएंगे.
View this post on Instagram
खूबसूरत है उर्फी की बहन अस्फी जावेद
उर्फी की बहन अस्फी जावेद भी खूबसूरती के मामले में किसी से काम नहीं है. हाल ही में अस्फी ने इंस्टाग्राम पर अपनी सुपरसेक्सी फोटोस शेयर की है इन्हे देख कर फैंस शायद उरफी को भी भूल जाए. उर्फी जावेद की छोटी बहन अस्फी जावेद इन दिनों सोशल मीडिया पर छाई है. उनकी तस्वीरे आते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है. अस्फी जावेद ने इंस्टाग्राम पर अपनी कुछ नई तस्वीरे शेयर की जिसमे वो एकदम अलग अंदाज में नजर आ रही है और अपनी बहन उर्फी से ज्यादा हसीन लग रही है
View this post on Instagram
म्यूजिक विडियो में आउटफिट की वजह से मुसीबत में फसी ,उर्फी लगे अश्लीलता फैलाने के आरोप:
उर्फी जावेद हमेशा सुर्खियों में बनी रहती है. उनका अतरंगी फैशन स्टाइल उन्हे हमेशा पब्लिसिटी दिलाता रहता है, टीवी स्टार से फैशन क्वीन बन गई है जिनका हर एक अपीयरेन्स चर्चा का विषय बन जाता है लेकिन हाल ही में एक विवाद की वजह से वह चर्चा में आ गई है. दरअसल अपने हाल ही में रिलीज हुए एक म्यूजिक विडियो “हाए हाए ये मजबूरी” की वजह से उरफी मुसीबत में फंस गई है. उनके खिलाफ दिल्ली पुलिस में एक शिकायत दर्ज की गई है. उनपर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाया गया है
राजधानी दिल्ली में जगमगाते इंडिया गेट के पास की एक सरकारी इमारत के एक कोने की ओट लिए सांवली सी लड़की बैठी थी. रात के 10 बज रहे थे. खंभों पर चमकती एलईडी लाइटों में गंदे, फटे कपड़े, बिखरे बाल, धूलमिट्टी लगे चेहरे के बीच उस की सिर्फ दोनों आंखों में गजब की चमक दिख रही थी.
उस की आंखों की बारबार घूमती पुतलियों को देख कर कोई भी उस की चंचलता, चपलता और चतुराई के साथ जिज्ञासा और जरूरतों का अंदाजा लगा सकता था. हालांकि, साधारण देह, छोटी कदकाठी की वह दुबलीपतली कमजोर सी दिख रही थी.
उस की पसरी दोनों टांगों के बगल में जमीन पर छोटे से पौलीथिन के टुकड़े पर 3-4 माह का छोटा बच्चा लेटा बोतल से दूध पी रहा था. वह सामने सड़क पर आतीजाती गाडि़यों की चमकदार हेडलाइटों से दिख जाता था. जब कभी तेज रोशनी उस बच्चे पर पड़ती तो बोतल का निप्पल उस के मुंह से छूट जाता था और वह रोने लगता था.
लड़की गाड़ी वाले को अपनी भाषा में कोसती हुई गुस्से में बोतल का निप्पल फिर से बच्चे के मुंह में ठूंस देती थी. ऐसा वह कुछ मिनटों में ही कई बार कर चुकी थी.
कुछ देर में ही बच्चे ने तो हद ही कर दी. उस का रोना बंद ही नहीं हो पा रहा था. गुस्से में उस ने उसे अपनी गोद में लिया और अपना दूध पिलाने की कोशिश करने लगी. फिर भी बच्चा चुप होने के बजाय रोए जा रहा था. लड़की ने दूसरे हाथ से वहीं पड़ी बोतल को उठा कर देखा. उस में दूध खत्म हो चुका था.
लड़की बड़बड़ाई, ‘‘इतनी रात में दूध किधर मिलेगा…’’
सामने सड़क के दूसरी ओर नजर उठा कर देखा. चायवाला दुकान बंद कर जा चुका था, लेकिन दुकान के पीछे थोड़ी चहलपहल नजर आ रही थी. दुकान के 2 नौकरों का वही घर था. वे वहीं रहते थे. दुकान की छत पर सोते थे.
लड़की की आंखों में चमक आ गई. वह एक हाथ से बच्चे को गोद में पकड़े दूसरे हाथ में दूध की बोतल लिए सड़क पर उन के पास चली गई. वे अपने लिए छोटे सिलेंडर पर रोटियां सेंक रहे थे. भगोने में पके भोजन की खुशबू फैल रही थी.
खैर, लड़की ने कुछ बोले बगैर दूध की बोतल उन के आगे कर दी. आटे की लोई बेलता हुआ नौकर बोल पड़ा, ‘‘देख, इसी को कहते हैं, दानेदाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम.’’
…और फिर वहां से उठ कर अपने बरतनों के बीच से एक दूध की बोतल निकाल लाया. राजस्थानी भाषा में बोला और बोतल उसे पकड़ा दी.
‘‘कुछ देर पहले ही कार से एक बच्चे ने यह फेंक दी थी. उस में दूध भरा था, इसलिए मैं ने उठा कर रख ली. देखो इस के काम आ गया.’’ नौकर बोला.
लड़की ने भी तुरंत बोतल ली और उस की निप्पल वहीं रखे पानी से धोई और रोते बच्चे के मुंह में लगा दी. बच्चा चुप हो गया. लड़की उसे गोद में ले कर वहीं बैठ गई.
तवे की रोटी को गैस की आंच में सेंकता हुआ अपने दूसरे नौकर दोस्त से बोला, ‘‘अच्छा किया भाई, तूने बहुत ही अच्छा काम किया आज. लेकिन इस का मरद कहां है, इसे छोड़ दिया क्या?’’
‘‘पता नहीं क्या हुआ है इस के साथ, लेकिन ये लड़की पिछले 2 दिनों से यहीं सड़क के उस पार म्यूजियम की दीवार के साथ रह रही है. मैं इस की बोली कुछकुछ समझता हूं. राजस्थान की आदिवासी लगती है,’’ नौकर बोला.
‘‘और क्या जानता है इस के बारे में?’’ दूसरे नौकर ने कुछ और जानने की जिज्ञासा दिखाई.
‘‘पूछता हूं,’’ कहता हुआ पहले वाले नौकर ने लड़की की ओर देख कर उस की बोली में पूछा, ‘‘खाना खाया?’’
लड़की ने नहीं में सिर हिला दिया.
‘‘रोटी खाएगी. चिकन भी है. दूं खाएगी?’’
‘‘तू तो ऐसे बोल रहा है जैसे उसे चिकन पता हो… अरे बोल न कि मुर्गा बना है.’’
‘‘हां, सही बोला दोस्त!’’ पहला नौकर बोला और लड़की की ओर दयाभरी नजर से देखा. उसे लड़की की हालत और हुलिया देख कर तरस आ गया.
लड़की चुपचाप कभी उसे देख रही थी तो कभी उस की नजरें रोटी और भगोने में रखे चिकन पर भी घूम रही थीं. नौकर समझ गया. उस के कहे बगैर उस ने 3 रोटी और एक कटोरे में थोड़ा चिकन निकाल कर दे दिया. रोटियां मोटीमोटी थीं. लड़की ने अंगुली से 2 रोटी का इशारा किया.
नौकर ने कागज की प्लेट में 2 रोटियां और एक कटोरे में 2 पीस चिकन के साथ ग्रेवी दे दी. लड़की रोटी और चिकन ले कर वहीं बैठ कर खाने लगी. उसे खाता देख दोनों दोस्त एकदूसरे को देख मुसकराए और फिर बची रोटियां पकाने में जुट गए. पहले नौकर ने लड़की से उसी दौरान उस के मरद के बारे में पूछ लिया.
लड़की ने बताया उस की शादी नहीं हुई है, लेकिन जिस के साथ साल भर से रह रही थी, वह सिरोही में उसी के गांव के पास वाले गांव में रहता था. वही उस का मरद है. उस से प्रेम करती है. लड़की ने बताया कि उस का मरद एक महीना पहले दिल्ली आया था. उसी से मिलने वह भी दिल्ली आ गई है.
वह भी पहली बार ही दिल्ली आया है. यह बता कर लड़की चिंतित हो गई. अपने बच्चे की ओर देखने लगी. उस की आंखों में पानी आ गया.
दोनों ने कहा, ‘‘अरे मत रोओ, हम लोगों से जितना बन पड़ेगा, हम तुम्हारी मदद करेंगे. कल दिन में तुम्हारे रहने, खानेपीने का इंतजाम करवा देंगे. 3 टाइम यहां खाना देने वाला आता है, तुम उस से अपना खाना ले लेना. हम लोग बच्चे का दूध दे देंगे. उधर ही सरकारी नहानेधोने की जगह है. बच्चे की देखरेख भी जरूरी है. उधर तुम्हारी तरह और भी लोग रहते हैं. डरना नहीं…एक डंडा साथ में रखना… आवारा कुत्ते घूमते रहते हैं उन्हें भगाते रहना.’’
खाना खाने के बाद वह लड़की कुछ सामान्य हुई. फिर उस से बातचीत की तो पता चला कि उस की तरह आदिवासी समाज की कम उम्र की तमाम लड़कियां दापा प्रथा के तहत अपने मरद का चुनाव कर लेती हैं और फिर उस के साथ बिना शादी के पतिपत्नी की तरह रहती हैं.
इस तरह सिरोही इलाके में आदिवासी समाज के हर दूसरे घर में नाबालिग लड़कियां मां बन रही हैं. इस से होने वाली मौत के खतरे से वे सभी एकदम अनजान रहती हैं.
यह सब गांवों के लड़केलड़कियों में अपनी मरजी के जीवनसाथी चुनने और शादी से पहले लिवइन रिलेशनशिप की परंपरा के कारण हो रहा है.
वहां न केवल मनपसंद जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, बल्कि कुछ महीने और सालों तक साथ रहने की छूट है. यहां तक कि बच्चे पैदा करने पर भी किसी को कोई शिकायत नहीं है.
ये हकीकत है राजस्थान के उदयपुर, सिरोही, पाली और प्रतापगढ़ जैसे जिलों की, जहां 12-13 साल की उम्र में लड़कियां दापा प्रथा के तहत अपनी पसंद का दूल्हा चुन लेती हैं. पारिवारिक और सामाजिक रीतिरिवाज से शादी होने से पहले ही 15-16 साल की उम्र में ही मां भी बन जाती हैं. यह प्रथा गरासिया जनजाति में तो आम है.
खेलनेकूदने की उम्र की लड़कियां अपनी गोद में बच्चा संभालती रहती हैं. ऐसी सैकड़ों लड़कियों की उम्र से पहले किशोरावस्था में ही गर्भवती होने के कारण प्रसव के दौरान ही मौत हो चुकी है. शिक्षा, जागरूकता से कोसों दूर गरासिया जनजाति की ये लड़कियां पुरानी परंपराओं को ही किस्मत मान बैठी हैं.
इन जिलो के गांवों की यह स्थिति बेहद चिंताजनक बन चुकी है. ऐसी सैकड़ों लड़कियों ने मीडिया से बातचीत में अपनी अनंत समस्याएं गिनाईं, जबकि इसे ले कर शासनप्रशासन चुप है.
सिरोही जिले की पिंडवाड़ा तहसील से लगा आदिवासी गांव रानीदरा है. झोपड़ीनुमा बने एक अधपक्के मकान के बाहर एक लड़की गोद में एक बच्चे को लिए उसे खिला रही थी, जबकि आसपास 5-7 साल के कुछ दूसरे बच्चे भी खेल रहे थे. एक रिपोर्टर जैसे ही उस के पास गया, खेल रहे बच्चों के साथ लड़की भी खेतों की ओर दौड़ पड़ी.
रिपोर्टर ने उसे आवाज दे कर बुलाया. तभी उस घर से अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला. रिपोर्टर का नामठिकाना जानने के बाद उस के वहां आने का कारण पूछा. फिर बताया कि खेतों की तरफ भागी लड़की उस के बेटे की बहू महती है. उस की गोद में खेलने वाला 8 महीने का बच्चा उस का पोता है. व्यक्ति ने महती को आवाज दे कर बुलाया.
महती ने बातचीत में बताया कि करीब डेढ़ साल पहले उसे मनोहर (18) बहुत पसंद था और वह अपनी मरजी से उस के साथ रहने लगी थी. मनोहर उसे गांव के एक मेले में मिला था. वहीं उस की जानपहचान हुई थी. मनोहर आसपास की खदानों में पत्थर काटने का काम करता है. बच्चे की मां बनने के बाद उस की मंदिर में शादी करवा दी गई. सामाजिक रीतिरिवाज कुछ नहीं हुआ.
अपने बारे में महती ने बताया कि वह अनपढ़ है. स्कूल को उस ने दूर से ही देखा है. उस के गांव की लड़कियां स्कूल नहीं जातीं. बताया कि स्कूल में मास्टर उन बच्चों से बहुत काम करवाते हैं और मना करने पर बहुत पीटते हैं, जो उस के आदिवासी समाज के होते हैं. यह सब उस ने गांव के ही लोगों से सुना है.
अपने और पति के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पाई. किंतु जब उस से कम उम्र में बच्चे की मां बनने के बारे पूछा गया, तब उस ने तपाक से कहा कि मां बनना कोई गलत है क्या? और फिर वह शरमाती हुई चली गई.
उस के ससुर और गांव के दूसरे बुजुर्गों से ही मालूम हुआ कि 70-80 घरों वाले इस रानीदरा गांव में मात्र 10-12 पुरुष ही जिंदा बचे हैं. अधिकतर औरतें विधवा हो चुकी हैं.
इस का कारण उन्होंने बताया कि यहां पत्थरों से जुड़ा काम करने के कारण अधिकतर मर्द खतरनाक बीमारी के शिकार हो जाते हैं. उस बारे में और अधिक जानकारी जुटाने पर पता चला कि इलाके में पत्थरों की खदानों के कारण लोग सिलिकोसिस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं.
रानीदरा से ही करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव लोटाना है. यहां की लगभग पूरी आबादी आदिवासियों की है. इस गांव की उपसरपंच भी एक महिला है. गांव की कम उम्र में लड़कियों के मां बनने के बारे में जब उन से पूछा गया, तब उन्हें आश्चर्य हुआ कि उन से यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है.
पहले तो वह हंसी, फिर इस बारे में बात करने से ही इनकार कर दिया. वह न तो अपने बारे में और न ही अपने मर्द के बारे में कुछ बता पाई. जबकि वह खुद लिवइन रिलेशन में रहने के बाद कम उम्र में मां बनी थी.
उसी दौरान मोटरसाइकिल पर कम उम्र का एक जोड़ा वहां से गुजरा. पीछे बैठी लड़की की गोद में छोटा बच्चा किलक रहा था. रिपोर्टर ने अपनी गाड़ी से उन का पीछा किया. आवाज देने पर उन्होंने बाइक रोकी. दोनों पिंडवाड़ा बाजार से सब्जी खरीद कर लौट रहे थे.
लड़की ने अपना नाम सोनिया बताया. उस की उम्र 14 साल सुन कर रिपोर्टर चौंक गया, क्योंकि उस की गोद में बच्चा ही करीब डेढ़ साल का था. इस का मतलब था वह 12 साल की उम्र में ही गर्भवती हो गई थी.
उस का पति भी 20 साल का था, जिस के साथ उस की शादी बच्चा पैदा होने के बाद हुई थी. जब वह गर्भवती हुई थी, तब उसे काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था. बीमार रहती थी. कभी पेट दर्द तो कभी कमजोरी. डाक्टर बताता था कि उस की देह में खून नहीं है. बच्चे के जन्म के समय तो उस की तबीयत काफी बिगड़ गई थी. अब वह खुश है क्योंकि उस का बेटा डेढ़ साल का हो चुका है.
उसी गांव की एक औरत ने बताया कि उस की 16 साल की बेटी मां बनने वाली है. उस ने अपनी पसंद का लड़का देखा है, जिस के साथ बगैर शादी किए रहने के बाद गर्भवती हो गई है.
कुछ दिन पहले ही मायके आई है. करीब उस की उम्र की बहू 4 माह के बच्चे की मां बन चुकी है. उस ने अपनी पसंद का लड़का चुना था. दोनों ने कुछ दिनों तक अपनेअपने जीवनसाथी के साथ रहने के बाद गर्भवती होने पर मंदिर में जा कर शादी कर ली थी.
आदिवासी इलाके में सैकड़ों सालों से दापा प्रथा चली आ रही है. उस के मुताबिक लड़की ही अपनी पसंद का लड़का तलाशती है. पसंद आने पर दोनों परिवारों की सहमति से बगैर शादी किए कुछ महीनों और सालों तक साथ रहते हैं. इस के पीछे दोनों में प्रजनन क्षमता का परीक्षण करना होता है.
वहां सात फेरों वाली शादी या किसी तरह का मांगलिक आयोजन जरूरी नहीं होता है. साल भर में आदिवासी समाज के 4-5 स्नेह मिलन कार्यक्रम होते हैं. उन में आदिवासी समाज के लड़के और लड़कियों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने की छूट होती है. लड़कियां किशोर उम्र 12 से 15 साल की होती हैं. लड़के भी उन के हमउम्र ही होते हैं.
कई रातदिन कार्यक्रम में साथ बिताने के बाद ये अपना हमसफर चुन लेते हैं. इस के बाद लिवइन में रहना शुरू कर देते हैं. इस रिलेशनशिप को ले कर घर व समाज में भी कोई आपत्ति नहीं करता है. जल्द ही वे यौन संबंध बना लेते हैं और लड़की गर्भधारण कर लेती है.
सामान्य तौर पर लड़की 13-14 साल की उम्र में ही गर्भवती हो जाती है. यह उस के भविष्य के जीवन का एक शुभ संकेत और संदेश माना जाता है. घर वाले निश्चिंत हो जाते हैं कि उन की बेटी का परिवार बन गया.
इस समाज को उस कानून से कोई लेनादेना नहीं है, जिसे सरकार ने शादी के लिए बनाया है. जैसे लड़की की उम्र 18 और लड़का 21 साल का हो, तभी वे बालिग होंगे और शादी कर पाएंगे. या फिर लिवइन में रह सकेंगे. इस के नहीं मानने के कारण आदिवासी इलाके में किशोरावस्था में गर्भवती होने से जुड़ी सेहत संबंधी समस्या लगातार बढ़ती जा रही है.
महिला रोग विशेषज्ञ के अनुसार किसी भी महिला को गर्भधारण की सही उम्र 20 साल या इस से अधिक ठीक रहती है. किशोरावस्था में गर्भधारण मां और बच्चे दोनों के लिए घातक होता है.
गांवों में ऐसी मांओं की देखभाल मुख्य तौर पर दाइयों की सलाह पर निर्भर करती है. उन के अनुसार ही गर्भवती औरतों की देखभाल प्रसव और उस के कुछ दिनों बाद तक की जाती है.
यही कारण है कि आदिवासी इलाके में पोषण की बड़ी समस्या है. ऐसे में किशोरावस्था में गर्भधारण करने वाली लड़कियों के गर्भ में पलने वाले बच्चों पर खतरा बढ़ जाता है. उस का उचित विकास नहीं हो पाता है.
ऐसे लोगों के घर अभी भी कच्चे हैं, अधिकतर नाबालिग लड़के स्कूल जाने के बजाय शुरू से ही पत्थर की खदानों में काम करने लगते हैं. उन्हें भी इस का पता नहीं चल पाता है कि उस की पत्नी या साथ रह रही लड़की की तबीयत बिगड़ गई तो अस्पताल ले जाएं. उन की आमदनी भी इतनी नहीं होती कि वे इलाज पर खर्च कर पाएं.
अब सोनिया के पति रमेश को ही लें. वह मजदूरी करता है. खेतों में काम कर महीने में 10-12 हजार कमा पाता है. आनेजाने के लिए उस ने पुरानी बाइक ले रखी है. पत्नी भी साथ में मजदूरी करती है. दोनों मिल कर किसी तरह से घर का खर्च निकाल पाते हैं.
ऐसे गांवों में बच्चे और मांओं का कोई रिकौर्ड नहीं है. शादियों के दफ्तर में तो इन के रिकौर्ड होते ही नहीं हैं. यहां तक कि पैदा होने वाले बच्चे का भी किसी सरकारी संस्था में रजिस्ट्रैशन नहीं करवाया जाता है. इन की संख्या रानीदर, लोटाना, नादिया, वारकी खेड़ा, गरट, मोरस, वरली, भूला, पंच देवल, ठंडी बेरी आदि गांवों में अधिक है.
बहरहाल, प्रशासन और कानून का जो पक्ष है, वह इन के किसी काम का नहीं है. पूर्व सीडब्ल्यूसी सदस्य बी.के. गुप्ता के अनुसार चाइल्ड मैरिज एक्ट और पोक्सो के प्रावधान तभी लागू होते हैं, जब कोई शिकायत प्रशासन या पुलिस तक पहुंचे या फिर पुलिस या प्रशासन की नजर में कोई मामला आ जाए. जब शिकायत नहीं होती तो सरकारी सहायता भी ऐसी लड़कियों को नहीं मिल पाती.
उन के पैरेंट्स पढ़ेलिखे नहीं होते और वे परंपरा के नाम पर अपने बच्चों को साथ रहने की अनुमति देते हैं. फिर चाहे शादी हो या बिना शादी साथ रहें. खुद 13 से 15 साल की उम्र में ही साथ रहने की वजह से बच्चे भी स्कूल नहीं जाते. ऐसे में अर्ली चाइल्ड प्रेग्नेंसी के नुकसान का इन्हें पता ही नहीं है.
आदिवासी नेता रतन लाल गासिया की शिकायत सरकार से है. उन का कहना है कि कम उम्र में मां बनी इन लड़कियों को ले कर सरकार के पास कोई जानकारी ही नहीं है, जबकि सिरोही, उदयपुर, प्रतापगढ़ और पाली जिलों के आदिवासी इलाके में ऐसी हजारों लड़कियां हैं.
कम उम्र में प्रेग्नेंट हो जाने के चलते इन किशोरियों को कमजोरी, खून की कमी, कुपोषण और कई सैक्सुअल बीमारियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इन किशोरियों की डिलीवरी के दौरान जान तक भी चली जाती है.
यह एक गंभीर समस्या है. गैरसरकारी संस्थाओं को आगे बढ़ कर इन इलाकों में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. साथ ही प्रशासन को भी अपनी कुंभकर्णी नींद से जागना होगा वरना यह समस्या जटिल होती जाएगी.
कलर्स के रीऐलिटी शो बिग बॉस में कुछ दिनों से सिर्फ झगड़े ही हो रहे है, घरवाले अपनी आवाज के शीर्ष पर चिल्लाते है. कल के एपिसोड में अर्चना गौतम और साजिद खान के बीच जमकर लड़ाई हुई. इसकी शुरुआत अर्चना द्वारा साजिद खान को ताना मारने से हुई की वह एक फेयर कप्तान नहीं थे. बात इतनी बढ़ गई की दोनों एक दूसरे को गाली देने लगे. साजिद खान ने कहा “किसी का बाप चला रहा है “बिग बॉस” और इसके बाद से ही हंगामा मच गया, अर्चना गौतम ने साजिद खान के पिता के बारे में एक टिप्पणी की.
अर्चना गौतम को गाली देने पर ट्रोल हुए साजिद खान
पूर्व प्रतियोगी गौहर खान और राहुल वैद्य ने अपने अपने ट्विटर हैन्डल पर साजिद खान को उनकी अपमानजनक भाषा के लिए फटकार लगाई. उन्होंने कहा की अर्चना गौतम इस बार गलत नहीं थी और साजिद खान ने बेहूदा टिप्पणी की. वे साजिद खान की आलोचना करते है उन्हे गलत कहते है.
View this post on Instagram
अर्चना बौखलाई, कहा- ‘मेरी मां पर बाद में जाना अपने बाप पर जा’
इस समय बिग बॉस में तमाशा नहीं तांडव हो रहा है, यह तांडव कोई और नहीं बिलकी अर्चना गौतम कर रही है, अर्चना ने साजिद खान पर ऐसा तमाशा किया है की वह बौखला उठे है. अर्चना ने कहा मेरे बाप इतने अमीर होते तो वो बिग बॉस को चला सकते. आप अपने पापा को बोल दीजिए ना वही चला लेंगे और यह बात सुनते है साजिद उन्हे मारने के लिए दौड़ पड़ते है
View this post on Instagram
साजिद, अर्चना के खिलाफ घरवालों को भड़काने का काम कर रहे
52 वां दिन, सुबह की शुरुआत शांति से होती है. साजिद कहते है- तुम लोग सब डरपोक हो. साजिद कहते है- अर्चना को भेज गया है हमे भड़काने के लिए. जिसको 1200 वोट मिले है पब्लिक में उसे क्या सपोर्ट मिलेगा लोगों से. साजिद सुंबुल को सीखाते है की उसे प्रोवोग करो ताकि वो हाथ उठाए.