मंदिर: क्या अपनी पत्नी और बच्चों का कष्ट दूर कर पाएगा परमहंस- भाग 3

पूजापाठ खत्म होने के बाद उस ने कमेटी वालों के सामने मंदिर की बात छेड़ी. युवाओं ने जहां तेजी दिखाई वहीं लंपट किस्म के लोग, जिन का मकसद चंदे के जरिए होंठ तर करना था, ने तनमन से इस पुण्य के काम में हाथ बंटाना स्वीकार किया. घर से दुत्कारे ऐसे लोगों को मंदिर बनने के साथ पीनेखाने का एक स्थायी आसरा मिल जाएगा. इसलिए वे जहां भी जाते मंदिर की चर्चा जरूर करते, ‘‘चचा, जरा सोचो, कितना लाभ होगा मंदिर बनने से. कितना दूर जाना पड़ता है हमें दर्शन करने के लिए. बच्चों को परीक्षा के समय हनुमानजी का ही आसरा होता है. ऐसे में उन्हें कितना आत्मबल मिलेगा. वैसे भी राम ने कलयुग में अपने से अधिक हनुमान की पूजा का जिक्र किया है.’’ धीरेधीरे लोगों की समझ में आने लगा कि मंदिर बनना पुण्य का काम है. आखिर उन का अन्नदाता ईश्वर ही है.

हम कितने स्वार्थी हैं कि भगवान के रहने के लिए थोड़ी सी जगह नहीं दे सकते, जबकि खुद आलिशान मकानों के लिए जीवन भर जोड़तोड़ करते रहते हैं. इस तरह आसपास मंदिर चर्चा का विषय बन गया. कुछ ने विरोध किया तो परमहंस के गुर्गों ने कहा, ‘‘दूसरे मजहब के लोगों को देखो, बड़ीबड़ी मीनार खड़ी करने में जरा भी कोताही नहीं बरतते. एक हम हिंदू ही हैं जो अव्वल दरजे के खुदगर्ज होते हैं. जिस का खाते हैं उसी को कोसते हैं. हम क्या इतने गएगुजरे हैं कि 2-4 सौ धर्मकर्म के नाम पर नहीं खर्च कर सकते?’’ चंदा उगाही शुरू हुई तो आगेआगे परमहंस पीछेपीछे उस के आदमी.

उन्होंने ऐसा माहौल बनाया कि दूसरे लोग भी अभियान में जुट गए. अच्छीखासी भीड़ जब न देने वालों के पास जाती तो दबाववश उन्हें भी देना पड़ता. परमहंस ने एक समझदारी दिखाई. फूटी कौड़ी भी घालमेल नहीं किया. वह जनता के बीच अपने को गिराना नहीं चाहता था क्योंकि उस ने तो कुछ और ही सोच रखा था. मंदिर के लिए जब कोई जगह देने को तैयार नहीं हुआ तो सड़क के किनारे खाली जमीन पर एक रात कुछ शोहदों ने हनुमान की मूर्ति रख कर श्रीगणेश कर दिया और अगले दिन से भजनकीर्तन शुरू हो गया. दान पेटिका रखी गई ताकि राहगीरों का भी सहयोग मिलता रहे.

फिरकापरस्त नेता को बुलवा कर बाकायदा निर्माण की नींव रखी गई ताकि अतिक्रमण के नाम पर कोई सरकारी अधिकारी व्यवधान न डाले. सावित्री खुश थी. चलो, परमहंसजी महाराज की बदौलत उस के कष्टों का निवारण हो रहा था. तमाम कामचोर महिलाओं को भजनपूजन के नाम पर समय काटने की स्थायी जगह मिल रही थी. सावित्री के रिश्तेदारों ने सुना कि उस ने मंदिर बनवाने में आर्थिक सहयोग दिया है तो प्रसन्न हो कर बोले, ‘‘चलो उस ने अपना विधवा जीवन सार्थक कर लिया.’’ मंदिर बन कर तैयार हो गया. प्राणप्रतिष्ठा के दिन अनेक साधुसंतों व संन्यासियों को बुलाया गया

यह सब देख कर परमहंस की छाती फूल कर दोगुनी हो गई. परमहंस ने मंदिर निर्माण का सारा श्रेय खुद ले कर खूब वाहवाही लूटी. उस का सपना पूरा हो चुका था. आज उस की पत्नी भी मौजूद थी. काशी में उस के पति ने धर्म की स्थायी दुकान खोल ली थी इसलिए वह फूली न समा रही थी. इस में कोई शक भी नहीं था कि थोड़े समय में ही परमहंस ने जो कर दिखाया वह किसी के लिए भी ईर्ष्या का विषय हो सकता था. परमहंस के विशेष आग्रह पर सावित्री भी आई जबकि उस के बच्चे की तबीयत ठीक नहीं थी.

पूजापाठ के दौरान ही किसी ने सावित्री को खबर दी कि उस के बेटे की हालत ठीक नहीं है. वह भागते हुए घर आई. बच्चा एकदम सुस्त पड़ गया था. उसे सांस लेने में दिक्कत आ रही थी. वह किस से कहे जो उस की मदद के लिए आगे आए. सारा महल्ला तो मंदिर में जुटा था. अंतत वह खुद बच्चे को ले कर अस्पताल की ओर भागी परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी. निमोनिया के चलते बच्चा रास्ते में ही दम तोड़ चुका था.

जो बीत गई सो बात गई- भाग 2

आज तो विशाल को सामने देख कर नंदिता और बेचैन हो गई थी.

अगले दिन वसंत औफिस चला गया और रिंकी स्कूल. उमा देवी अपने कमरे में बैठी टीवी देख रही थीं. नंदिता ने फिर विशाल को फोन मिलाया. इस बार विशाल ने ही उठाया, पूछा, ‘‘क्या रात भी तुम ने फोन किया था?’’

‘‘हां, किस ने उठाया था?’’

‘‘मेरी पत्नी नीता ने.’’

पल भर को चुप रही नंदिता, फिर बोली, ‘‘विवाह कब किया?’’

‘‘2 साल पहले.’’

‘‘विशाल, मुझे अपने औफिस का पता दो, मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यह तुम मुझ से पूछ रहे हो?’’

‘‘हां, अब क्या जरूरत है मिलने की?’’

‘‘विशाल, मैं हमेशा तुम्हें याद करती रही हूं, कभी नहीं भूली हूं. प्लीज, विशाल, मुझ से मिलो. तुम से बहुत सी बातें करनी हैं.’’

विशाल ने उसे अपने औफिस का पता बता दिया. नंदिता नहाधो कर तैयार हुई. घर में 2 मेड थीं, एक घर के काम करती थी और दूसरी रिंकी को संभालती थी. घर में पैसे की कमी तो थी नहीं, सारी सुखसुविधाएं उसे प्राप्त थीं. उमा देवी को उस ने बताया कि उस की एक पुरानी सहेली मुंबई आई हुई है. वह उस से मिलने जा रही है. नंदिता ने ड्राइवर को गाड़ी निकालने के लिए कहा. एक गाड़ी वसंत ले जाता था. एक गाड़ी और ड्राइवर वसंत ने नंदिता की सुविधा के लिए रखा हुआ था. नंदिता को विशाल के औफिस मुलुंड में जाना था. जो उस के घर बांद्रा से डेढ़ घंटे की दूरी पर था.

नंदिता सीट पर सिर टिका कर सोच में गुम थी. वह सोच रही थी कि उस के पास सब कुछ तो है, फिर वह अपने जीवन से पूर्णरूप से संतुष्ट व प्रसन्न क्यों नहीं है? उस ने हमेशा विशाल को याद किया. अब तो जीवन ऐसे ही बिताना है यही सोच कर मन को समझा लिया था. लेकिन अब उसे देखते ही उस के स्थिर जीवन में हलचल मच गई थी.

नंदिता को चपरासी ने विशाल के कैबिन में पहुंचा दिया. नंदिता उस के आकर्षक व्यक्तित्व को अपलक देखती रही. विशाल ने भी नंदिता पर एक गंभीर, औपचारिक नजर डाली. वह आज भी सुंदर और संतुलित देहयष्टि की स्वामिनी थी.

विशाल ने उसे बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘कहो नंदिता, क्यों मिलना था मुझ से?’’

नंदिता ने बेचैनी से कहा, ‘‘विशाल, तुम ने यहां आने के बाद मुझ से मिलने की कोशिश भी नहीं की?’’

‘‘मैं मिलना नहीं चाहता था और अब तुम भी आगे मिलने की मत सोचना. अब हमारे रास्ते बदल चुके हैं, अब उन्हीं पुरानी बातों को करने का कोई मतलब नहीं है. खैर, बताओ, तुम्हारे परिवार में कौनकौन है?’’ विशाल ने हलके मूड में पूछा.

नंदिता ने अनमने ढंग से बताया और पूछने लगी, ‘‘विशाल, क्या तुम सच में मुझ से मिलना नहीं चाहते?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या तुम मुझ से बहुत नाराज हो?’’

‘‘नंदिता, मैं चाहता हूं तुम अपने परिवार में खुश रहो अब.’’

‘‘विशाल, सच कहती हूं, वसंत से विवाह तो कर लिया पर मैं कहां खुश रह पाई तुम्हारे बिना. मन हर समय बेचैन और व्याकुल ही तो रहा है. हर पल अनमनी और निर्विकार भाव से ही तो जीती रही. इतने सालों के वैवाहिक जीवन में मैं तुम्हें कभी नहीं भूली. मैं वसंत को कभी उस प्रकार प्रेम कर ही नहीं सकी जैसा पत्नी के दिल में पति के प्रति होना आवश्यक है. ऐसा भी नहीं कि वसंत मुझे चाहते नहीं हैं या मेरा ध्यान नहीं रखते पर न जाने क्यों मेरे मन में उन के लिए वह प्यार, वह तड़प, वह आकर्षण कभी जन्म ही नहीं ले सका, जो तुम्हारे लिए था. मैं ने अपने मन को साधने का बहुत प्रयास किया पर असफल रही. मैं उन की हर जरूरत का ध्यान रखती हूं, उन की चिंता भी रहती है और वे मेरे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण भी हैं, लेकिन तुम्हारे लिए जो…’’

उसे बीच में ही टोक कर विशाल ने कहा, ‘‘बस करो नंदिता, अब इन बातों का कोई फायदा नहीं है, तुम घर जाओ.’’

‘‘नहीं, विशाल, मेरी बात तो सुन लो.’’

विशाल असहज सा हो कर उठ खड़ा हुआ, ‘‘नंदिता, मुझे कहीं जरूरी काम से जाना है.’’

‘‘चलो, मैं छोड़ देती हूं.’’

‘‘नहीं, मैं चला जाऊंगा.’’

‘‘चलो न विशाल, इस बहाने कुछ देर साथ रह लेंगे.’’

‘‘नहीं नंदिता, तुम जाओ, मुझे देर हो रही है, मैं चलता हूं,’’ कह कर विशाल कैबिन से निकल गया.

नंदिता बेचैन सी घर लौट आई. उस का किसी काम में मन नहीं लगा. नंदिता के अंदर कुछ टूट गया था, वह अपने लिए जिस प्यार और चाहत को विशाल की आंखों में देखना चाहती थी, उस का नामोनिशान भी विशाल की आंखों में दूरदूर तक नहीं था. वह सब भूल गया था, नई डगर पर चल पड़ा था.

नंदिता की हमेशा से इच्छा थी कि काश, एक बार विशाल मिल जाए और आज वह मिल गया, लेकिन अजनबीपन से और उसे इस मिलने पर कष्ट हो रहा था.

शाम को वसंत आया तो उस ने नंदिता की बेचैनी नोट की. पूछा, ‘‘तबीयत तो ठीक है?’’

नंदिता ने बस ‘हां’ में सिर हिला दिया. रिंकी से भी अनमने ढंग से बात करती रही.

वसंत ने फिर कहा, ‘‘चलो, बाहर घूम आते हैं.’’

‘‘अभी नहीं,’’ कह कर वह चुपचाप लेट गई. सोच रही थी आज उसे क्या हो गया है, आज इतनी बेचैनी क्यों? मन में अटपटे विचार आने लगे. मन और शरीर में कोई मेल ही नहीं रहा. मन अनजान राहों पर भटकने लगा था. वसंत नंदिता का हर तरह से ध्यान रखता, उसे घूमनेफिरने की पूरी छूट थी.

अपने काम की व्यस्तता और भागदौड़ के बीच भी वह नंदिता की हर सुविधा का ध्यान रखता. लेकिन नंदिता का मन कहीं नहीं लग रहा था. उस के मन में एक अजीब सा वीरानापन भर रहा था.

GHKKPM: पति पर शक करेगी पाखी, तो फूटेगा विराट का गुस्सा

गुम है किसी के प्यार में अपकमिंग एपिसोड में एक दिलचस्प मोड़ आएगा . विराट सवी और विनायक दोनों के लिए अपने पिता के कर्तव्यों को पूरा कर रहा है. बच्चों, सवी और विनायक को शो गुम है किसी के प्यार में पेश किया गया था. दो बच्चों ने सई,विराट और पाखी के जीवन को बदल दिया है. जहां विराट दोनों बच्चों के लिए वहां रहना चाहता है, वही दोनों महिलाएं एक ही बात को लेकर बंटी हुई है. और अब पाखी की असुरक्षा का भाव उस पर भारी पड़ रहा है. गुम है किसी के प्यार में के अपकमिंग एपिसोड में पाखी विराट और सई पर जमकर बरसेगी.

 

विराट पर भड़केगी पाखी:

पाखी बेचैन हो जाएगी जब वह विराट तक नहीं पहुंच पाएगी. बाद वाला कुछ समय सई के घर पर अपना प्रोजेक्ट कर रहा है. पाखी और मोहित एक बैठक में भाग ले रहे थे, जबकि विराट उनके प्रोजेक्ट में बच्चों की मदद कर रहे है. जब मीटिंग खत्म हो जाती है तो पाखी विराट के संपर्क करने की कोशिश करती है, हालंकि ऐसा कुछ लगता है की कोई नेटवर्क समस्या है. जब पाखी घर पहुंचती है, तो वह विराट का संदेश पढ़ती है जिसमे सवी के बीमार पड़ने पर उसे सई के यहां रहने की सूचना दी जाती है.

 

पाखी हुई नाराज:

पाखी, विराट को ढूंढते हुए सई के घर पहुंच जाती है. वह चिंतित हो जाती है और सई और विराट के बीच एक परिदृश्य की कल्पना करने लगती है. बाद में, जब पाखी सई के घर पहुंचती है, तो वह विराट को बानियान और तौलिया में देखकर चौक जाती है और उसे डांटने लगती है. जब सई उसे विश्वास दिलाती है की जैसा वह सोच रही है वैसा कुछ नहीं हुआ, पाखी भी उस पर भड़क जाती है. विराट ने उसे थप्पड़ मारा और सच्चाई का खुलासा किया. हालंकि बाद वाला हर बात के लिए सवी को दोषी ठहरती है. इस शो में हर दिन एंटरटेनमेंट न्यूज में सुर्खियां बटोरते है.

बिग बॉस 16: प्रियंका के लिए दूल्हा ढूंढेंगी अर्चना, क्या होगा अंकित का ?

एक भारी हफ्ते के बाद बिग बॉस 16 का कल का एपिसोड शांत था. बड़े झगड़े के बजाय, प्रतियोगी एक-दूसरे से बात करने और अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए बैठ गए. शालिन भनोट और टीना दत्ता इन दिनों अपने रिश्ते को लेकर विवादों के बीच है. फैंस का ये कहना है की शालिन भनोट टीना के पीछे भागती रहती है, वह उनसे दूरी बनाना चाहती है. इसके अलावा प्रियंका चौधरी और अंकित गुप्ता ने भी अपने मतभेद सुलझाए. वे गले मिले और एक साथ वापस आ गए. लेकिन उससे पहले अर्चना गौतम ने प्रियंका चाहर चौधरी से एक वादा किया.

 

 

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बिग बॉस के घर में शादी की बातचीत:

एक बातचीत के दौरान, प्रियंका चाहर ने व्यक्त किया की उन्हे डर है की उन्हे किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जायगा जो बाहरी दुनिया में लगातार शिकायत करता है. उसने शेयर किया की वह अपने काम को लेकर और अपनी शादी को लेकर भी डरी हुई है. वह शादी करना चाहती है लेकिन डरती है की घर के अंदर उसके व्यवहार को देखकर उसे कैसे समझा जाएगा. अर्चना गौतम उन्हे अंकित गुप्ता का नाम लेकर चिढ़ाती है. लेकिन प्रियंका का कहना है की अंकित कभी शादी नहीं करना चाहता. तब दोनों ने मजाक में कहा की उन्हे जाकर वर की तलाश करनी होगी. अर्चना गौतम ने प्रियंका से वादा किया की वह उनके लिए दूल्हा तलाशेंगी. वह दो दूल्हे देखेंगी एक अपने लिए और एक प्रियंका के लिए.

 

सुन रहे हो अंकित गुप्ता? :

ठीक है, तो ठीक है! सुन रहे हो अंकित गुप्ता? शादी की बाते, भविष्य की योजनाएं पहले से ही बन रही है. ऐसे बहुत से प्रशंसक है जो प्रियंका चौधरी और अंकित गुप्ता को एक जोड़े के रूप में देखना चाहते है. उड़ारियां में उनकी जोड़ी हिट रही थी. फैंस उनकी केमिस्ट्री पर फिदा होने से नहीं रोक सके.

जिस गली जाना नहीं: क्या हुआ था सोम के साथ- भाग 1

अवाक खड़ा था सोम. भौचक्का सा. सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो जाएगा उस के साथ. जीवन कितना विचित्र है. सारी उम्र बीत जाती है कुछकुछ सोचते और जीवन के अंत में पता चलता है कि जो सोचा वह तो कहीं था ही नहीं. उसे लग रहा था जिसे जहां छोड़ कर गया था वह वहीं पर खड़ा उस का इंतजार कर रहा होगा. वही सब होगा जैसा तब था जब उस ने यह शहर छोड़ा था.

‘‘कैसे हो सोम, कब आए अमेरिका से, कुछ दिन रहोगे न, अकेले ही आए हो या परिवार भी साथ है?’’

अजय का ठंडा सा व्यवहार उसे कचोट गया था. उस ने तो सोचा था बरसों पुराना मित्र लपक कर गले मिलेगा और उसे छोड़ेगा ही नहीं. रो देगा, उस से पूछेगा वह इतने समय कहां रहा, उसे एक भी पत्र नहीं लिखा, उस के किसी भी फोन का उत्तर नहीं दिया. उस ने उस के लिए कितनाकुछ भेजा था, हर दीवाली, होली पर उपहार और महकदार गुलाल. उस के हर जन्मदिन पर खूबसूरत कार्ड और नए वर्ष पर उज्ज्वल भविष्य के लिए हार्दिक सुखसंदेश. यह सत्य है कि सोम ने कभी उत्तर नहीं दिया क्योंकि कभी समय ही नहीं मिला. मन में यह विश्वास भी था कि जब वापस लौटना ही नहीं है तो क्यों समय भी खराब किया जाए. 10 साल का लंबा अंतराल बीत गया था और आज अचानक वह प्यार की चाह में उसी अजय के सामने खड़ा है जिस के प्यार और स्नेह को सदा उसी ने अनदेखा किया और नकारा.

‘‘आओ न, बैठो,’’ सामने लगे सोफों की तरफ इशारा किया अजय ने, ‘‘त्योहारों के दिन चल रहे हैं न. आजकल हमारा ‘सीजन’ है. दीवाली पर हर कोई अपना घर सजाता है न यथाशक्ति. नए परदे, नया बैडकवर…और नहीं तो नया तौलिया ही सही. बिरजू, साहब के लिए कुछ लाना, ठंडागर्म. क्या लोगे, सोम?’’

‘‘नहीं, मैं बाहर का कुछ भी नहीं लूंगा,’’ सोम ने अजय की लदीफंदी दुकान में नजर दौड़ाई. 10 साल पहले छोटी सी दुकान थी. इसी जगह जब दोनों पढ़ कर निकले थे वह बाहर जाने के लिए हाथपैर मारने लगा और अजय पिता की छोटी सी दुकान को ही बड़ा करने का सपना देखने लगा. बचपन का साथ था, साथसाथ पलेबढ़े थे. स्कूलकालेज में सब साथसाथ किया था. शरारतें, प्रतियोगिताएं, कुश्ती करते हुए मिट्टी में साथसाथ लोटे थे और आज वही मिट्टी उसे बहुत सता रही है जब से अपने देश की मिट्टी पर पैर रखा है. जहां देखता है मिट्टी ही मिट्टी महसूस होती है. कितनी धूल है न यहां.

‘‘तो फिर घर आओ न, सोम. बाहर तो बाहर का ही मिलेगा.’’

अजय अतिव्यस्त था. व्यस्तता का समय तो है ही. दीवाली के दिन ही कितने रह गए हैं. दुकान ग्राहकों से घिरी है. वह उस से बात कर पा रहा है, यही गनीमत है वरना वह स्वयं तो उस से कभी बात तक नहीं कर पाया. 10 साल में कभी बात करने में पहल नहीं की. डौलर का भाव बढ़ता गया था और रुपए का घटता मूल्य उस की मानसिकता को इतना दीनहीन बना गया था मानो आज ही कमा लो सब संसार. कल का क्या पता, आए न आए. मानो आज न कमाया तो समूल जीवन ही रसातल में चला जाएगा. दिनरात का काम उसे कहां से कहां ले आया, आज समझ में आ रहा है. काम का बहाना ऐसा, मानो एक वही है जो संसार में कमा रहा है, बाकी सब निठल्ले हैं जो मात्र जीवन व्यर्थ करने आए हैं. अपनी सोच कितनी बेबुनियाद लग रही है उसे. कैसी पहेली है न हमारा जीवन. जिसे सत्य मान कर उसी पर विश्वास और भरोसा करते रहते हैं वही एक दिन संपूर्ण मिथ्या प्रतीत होता है.

अजय का ध्यान उस से जैसे ही हटा वह चुपचाप दुकान से बाहर चला आया. हफ्ते बाद ही तो दीवाली है. सोम ने सोचा, उस दिन उस के घर जा कर सब से पहले बधाई देगा. क्या तोहफा देगा अजय को. कैसा उपहार जिस में धन न झलके, जिस में ‘भाव’ न हो ‘भाव’ हो. जिस में मूल्य न हो, वह अमूल्य हो.

विचित्र सी मनोस्थिति हो गई है सोम की. एक खालीपन सा भर गया है मन में. ऐसा महसूस हो रहा है जमीन से कट गया है. लावारिस कपास के फूल जैसा जो पूरी तरह हवा के बहाव पर ही निर्भर है, जहां चाहे उसे ले जाए. मां और पिताजी भीपरेशान हैं उस की चुप्पी पर. बारबार उस से पूछ रहे हैं उस की परेशानी आखिर है क्या? क्या बताए वह? कैसे कहे कि खाली हाथ लौट आया है जो कमाया उसे वहीं छोड़ आ गया है अपनी जमीन पर, मात्र इस उम्मीद में कि वह तो उसे अपना ही लेगी.

विदेशी लड़की से शादी कर के वहीं का हो गया था. सोचा था अब पीछे देखने की आखिर जरूरत ही क्या है? जिस गली अब जाना नहीं उधर देखना भी क्यों? उसे याद है एक बार उस की एक चाची ने मीठा सा उलाहना दिया था, ‘मिलते ही नहीं हो, सोम. कभी आते हो तो मिला तो करो.’

‘क्या जरूरत है मिलने की, जब मुझे यहां रहना ही नहीं,’ फोन पर बात कर रहा था इसलिए चाची का चेहरा नहीं देख पाया था. चाची का स्वर सहसा मौन हो गया था उस के उत्तर पर. तब नहीं सोचा था लेकिन आज सोचता है कितना आघात लगा होगा तब चाची को. कुछ पल मौन रहा था उधर, फिर स्वर उभरा था, ‘तुम्हें तो जीवन का फलसफा बड़ी जल्दी समझ में आ गया मेरे बच्चे. हम तो अभी तक मोहममता में फंसे हैं. धागे तोड़ पाना सीख ही नहीं पाए. सदा सुखी रहो, बेटा.’

मेरे पेरेंट्स हर बात के लिए चीख पड़ते हैं जैसे मैं छोटा बच्चा हूं, ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मेरे पिता ऐसी नौकरी नहीं करते जिसे वे घरबैठे जारी रख सकें. सो, घर का सारा खर्च मेरे कंधों पर है. मेरी तनख्वाह से जो पैसा आता है वह मैं घर में दे देता हूं. लेकिन मुझे लगता है जैसे मेरे इतना सब करने पर भी मेरे मातापिता को मेरी बिलकुल कद्र नहीं है. वे मुझ पर किसी भी बात के लिए ऐसे चीख पड़ते हैं जैसे मैं अब भी छोटा बच्चा हूं. कभीकभी तो इतना गुस्सा आता है कि मन करता है नौकरी छोड़ कर बैठ जाऊं, शायद तब उन्हें समझ आए कि उन्हें कम से कम अब मुझ से इस तरह पेश नहीं आना चाहिए.

जवाब

आप जानते हैं कि इस समय आप के मातापिता को आप की जरूरत है और इस समय आप का इस तरह बातें करना बेहद दुखी करता है. माना आप के मातापिता का आप पर इस तरह चिल्लाना सही नहीं लेकिन आप का भी इस तरह की बात करना सही नहीं है. आखिर वे आप के मातापिता हैं और उन्हें आप की इस समय सब से ज्यादा जरूरत है. आप उन से कह दीजिए कि उन का इस तरह पेश आना आप को पसंद नहीं व इस से आप को गुस्सा आता है, यकीनन वे समझेंगे. लौकडाउन में आज जहां देश आर्थिक संकट की तरफ अग्रसर है वहां यदि आप नौकरी छोड़ देंगे तो यह अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा. किसी भी स्थिति में गुस्से में कोई फैसला मत लीजिए.

अगर आप भी करते हैं रक्तदान तो जरूर ध्यान रखें इन बातों का

आज के समय में ब्लड डोनेट (रक्तदान) करके आप दूसरों की मदद तो करते ही हैं साथ ही आपको भी इसके बहुत फायदे होते हैं. कई लोगों को लगता है कि रक्तदान करने के बाद शरीर में कमजोरी आ जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. रक्तदान करने के 21 दिन बाद यह दोबारा बन जाता है. इसलिए रक्तदान करने से पहले घबराए नहीं बल्कि रक्तदान करते समय इन बातों का खास खयाल रखें.

– कोई भी हेल्दी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है. बात करें पुरुष की तो वह 3 माह में एक बार रक्तदान कर सकते हैं वहीं महिलाएं 4 माह में एक बार ब्लड डोनेट कर सकती हैं.

– एक बार में किसी के शरीर से भी 471ml से ज्यादा रक्त नहीं लिया जा सकता.

– अगर आप रक्तदान करने के योग्य हैं और रक्तदान करने की सोच रही हैं तो एक दिन पहले से स्मोक करना बंद कर दें. इसके अलावा रक्तदान करने के तीन घंटे बाद ही धुम्रपान करें.

– रक्तदान करने के बाद हर तीन घंटे में हैवी डाइट लें. इसमें आप ज्यादा से ज्यादा हैल्दी खाना ही लें. आप चाहे तो फल खा सकती हैं.

– ज्यादातर रक्तदान करने के बाद रक्तदाता को खाने के लिए जूस, चिप्स, फल आदि दिए जाते हैं, इन्हें लेने से परहेज नहीं करना चाहिए.

– रक्तदान करने के 12 घंटे बाद तक आप हैवी एक्सरसाइज न करें. खून देने के तुरंत बाद गर्मजोशी अच्छी नहीं होती. पहले अपने शरीर में खून के संचार को नौर्मल होने दें.

– रक्तदान करने से 48 घंटे पहले से शराब का सेवन बंद कर दें. अगर आपने 48 घंटों के बीच शराब का सेवन किया है तो आप ब्लड डोनेट नहीं कर सकते हैं

– रक्तदान करने के बाद अगर आप हेल्दी डाइट न लेकर तरल पदार्थ लेती रहेंगी, तो इससे आपको कमजोरी महसूस होगी.

– लोगों को गलतफहमी होती है कि रक्तदान करने से हीमोग्लोबिन में कमी आती है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है.

 

ऐताहासिक कहानी: वंश की मर्यादा- भाग 2

राणाजी द्वारा पत्र में लिखे आखिरी वाक्य माजी साहब के नजरों के आगे घूमने लगे, ‘हुक्म की तामील नहीं की गई तो जागीर जब्त कर ली जाएगी. देशद्रोह व हरामखोरी समझा जाएगा.’

पत्र के आखिरी वाक्यों ने माजीसा के मन में ढेरों विचारों का सैलाब उठा दिया, ‘जागीर जब्त हो जाएगी… देशद्रोह… हरामखोरी समझा जाएगा. मेरा बेटा अपने पूर्वजों के राज्य से बाहर बेदखल हो जाएगा और ऐसा हुआ तो उन की समाज में कौन इज्जत करेगा?

‘पर उस का आज बाप जिंदा नहीं है तो क्या हुआ, मां तो जिंदा है. यदि मेरे जीते जी मेरे बेटे का अधिकार छिन जाए तो मेरा जीना बेकार है. ऐसे जीवन पर धिक्कार और फिर मैं ऐसी तो नहीं जो अपने पूर्वजों के वंश पर कायरता का दाग लगने दूं. उस वंश पर जिस ने कई पीढि़यों से बलिदान दे कर इस भूमि को पाया है. मैं उन की इस बलिदानी भूमि को ऐसे आसानी से कैसे जाने दूं?’

ऐसे विचार करते हुए माजीसा की आंखों में वे दृश्य घूमने लगे जो युद्ध में नहीं जाने के बाद हो सकते थे कि उन का जवान बेटा एक ओर खड़ा है और उस के सगेसंबंधी और गांव वाले बातें कर रहे हैं कि इन्हें देखिए ये युद्ध में नहीं गए थे तो राणाजी ने इन की जागीर जब्त कर ली थी. वैसे इन चूंडावतों को अपनी बहादुरी और वीरता पर बड़ा नाज है. हरावल में भी यही रहते हैं. और ऐसे व्यंग्य सुन उन का बेटा नजरें झुकाए दांत पीस कर रह जाता है.

ऐसे ही दृश्यों के बारे में सोचतेसोचते माजीसा का सिर चकराने लगा. वे सोचने लगीं, ‘यदि ऐसा हुआ तो बेटा बड़ा हो कर मुझ मां को भी धिक्कारेगा. ऐसे विचारों के बीच ही माजीसा को अपने पिता के मुंह से सुनी उन राजपूत वीरांगनाओं की कहानियां याद आ गईं, जिन्होंने युद्ध में तलवार हाथ में ले घोड़े पर सवार हो कर दुश्मन सेना को गाजरमूली की तरह काटते हुए खलबली मचा कर अपनी वीरता का परिचय दिया था.

‘दूसरे उदाहरण क्यों उन के ही खानदान में पत्ताजी चूंडावत की ठकुरानी उन्हें याद आ गईं, जिन्होंने अकबर की सेना से युद्ध किया और अकबर की सेना पर गोलियों की बौछार कर दी थी.

‘जब इसी खानदान की वह ठकुरानी युद्ध में जा सकती थी तो मैं क्यों नहीं? क्या मैं वीर नहीं? क्या मैं ने भी एक राजपूतानी का दूध नहीं पीया? बेटा मासूम है तो क्या हुआ? मैं तो हूं. मैं खुद अपनी सैन्य टुकड़ी का युद्ध में नेतृत्व करूंगी और जब तक शरीर में जान है दुश्मन से टक्कर लूंगी.’

और ऐेसे वीरता से भरे विचार आते ही माजीसा का मन स्थिर हो गया. उन की आंखों में चमक आ गई, चेहरे पर तेज चमकने लगा और उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रधानजी को हुक्म दिया, ‘‘राणाजी का हुक्म सिरमाथे. आप युद्ध की तैयारी के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी को तैयार कीजिए. हम अपने स्वामी के लिए यह करेंगे और उस में जान की बाजी लगा देंगे.’’

प्रधानजी ने ये सुन कहा, ‘‘माजीसा, वो तो सब ठीक है, पर बिना स्वामी के कैसी फौज?’’

माजीसा बोलीं, ‘‘हम हैं ना. अपनी फौज का नेतृत्व हम करेंगे.’’

प्रधान ने आश्चर्यचकित हो कर माजीसा की ओर देखा. यह देख माजीसा बोलीं, ‘‘क्या आज तक महिलाएं कभी युद्ध में नहीं गईं? क्या आप ने उन महिलाओं की कभी कोई कहानी नहीं सुनी, जिन्होंने युद्धों में वीरता दिखाई थी? क्या इसी खानदान में पत्ताजी की ठकुरानीसा ने अकबर के खिलाफ युद्ध में भाग ले कर वीरगति नहीं प्राप्त की थी? मैं भी उसी खानदान की बहू हूं तो मैं उन

का अनुसरण करते हर युद्ध में क्यों नहीं भाग ले सकती?’’

बस, फिर क्या था. प्रधानजी ने कोसीथल की सेना को तैयार कर सेना के कूच का नगाड़ा बजा दिया. माजीसा शरीर पर जिरह बख्तर पहने, सिर पर टोप, हाथ में तलवार और गोद में अपने बालक को बिठा कर घोड़े पर सवार हो कर युद्ध में कूच के लिए चल पड़ीं.

कोसीथल की फौज के आगेआगे माजीसा जिरह वस्त्र पहने हाथ में भाला लिए कमर पर तलवार लटकाए उदयपुर पहुंच हाजिरी लगवाई, ‘‘कोसीथल की फौज हाजिर है.’’

अगले दिन मेवाड़ की फौज ने मराठा फौज पर हमला किया. हरावल (आगे की पंक्ति) में चूंडावतों की फौज थी, जिस में माजीसा की सैन्य टकड़ी भी थी. चूंडावतों के पाटवी सलूंबर के रावजी थे.

उन्होंने फौज को हमला करने से पहले संबोधित किया, ‘‘वीर मर्द राजपूतो, मर जाना पर पीठ मत दिखाना. हमारी वीरता के बल पर ही हमारे चूंडावत वंश को हरावल में रहने का अधिकार मिला. जिसे हमारे पूर्वजों ने सिर कटवा कर कायम रखा है.

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