गांव पहुंचे लोग हो रहे भेदभाव का शिकार

बड़े शहरों से लौट कर अपने गांवघर पहुंचने वाले लोगों के सामने आग से निकले कड़ाही में गिरे वाले हालात बन गए हैं. गांव तक पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, ट्रक, बस या दूसरी सवारी गाडि़यों में जानवरों की तरह ठूंसठूंस कर सफर करना पड़ा.

भूखेप्यासे रह कर जब ये लोग गांव पहुंचे तो इन के और परिवार के लोगों के बीच प्रशासन और गांव के दूसरे जागरूक लोग खड़े हो गए.

कुछ लोग इन की कोरोना वायरस से जांच की मांग करने लगे तो कुछ लोग इन को अस्पताल में रखने की मांग कर रहे थे. वहीं कुछ लोग चाहते थे कि ये 14 दिनों तक अपने घर में ही अलगथलग रहें. शहरों को छोड़ अपने गांव पहुंचे इन लोगों को लग रहा था कि ये अछूत हो गए हैं.

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कोरोना वायरस के खिलाफ जागरूकता अभियान एक डर की तरह पूरे समाज के दिलों में बैठ गया है. उसे बाहर से आने वाला हर कोई कोरोना का मरीज लगता है और उस से अपनी जान का खतरा महसूस करता है.

अजनबियों सा बरताव

उत्तर प्रदेश में मोहनलालगंज के टिकरा गांव का रहने वाला आलोक रावत उत्तराखंड में नौकरी करने गया था. लौकडाउन होने के बाद वह तमाम मुश्किलों का सामना करता हुआ

30 मार्च को अपने गांव पहुंचा. गांव में घुसने के पहले ही वहां के कुछ जागरूक लोगों ने उस को रोक लिया.

इस के बाद पुलिस को डायल

112 पर फोन कर के खबर कर दी कि एक आदमी बाहर से आया है. अब आलोक को घर जाने की जगह गांव के बाहर स्कूल में ही रहना पड़ा. बाद में पुलिस और डाक्टर आए तो लगा कि उस को कोई दिक्कत नहीं है. इस के बाद भी आलोक को हिदायत दी गई कि 14 दिन वह अपने घर के अलग कमरे में रहे, किसी से न मिलेजुले.

मोहनलालगंज तहसील के गनियार गांव का शुभम ओडिशा में रहता था. वह 29 मार्च को अपने गांव आया. गांव वालों ने इस की सूचना पुलिस को दी.

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पुलिस समय पर नहीं पहुंची तो पूरा दिन और एक रात शुभम को अपने गांव आने के बाद भी घर जाने की जगह गांव के बाहर ही स्कूल में किसी अछूत की तरह रहना पड़ा. उस के घर के लोग चाहते थे कि वह वहां न रहे, पर पुलिस के डर से वे लोग भी कुछ नहीं कर सके.

सुलतानपुर जिले के भवानीपुर का रहने वाला दीपक पंजाब में मजदूरी करता था. दिल्ली के रास्ते किसी तरह 3 दिन में अपने गांव पहुंच गया. रात में उसे किसी ने देखा नहीं. सुबह वह अपने खेत पर काम करने गया. उसी समय गांव वालों ने उस को देख लिया और इस की सूचना पुलिस को दे दी.

पुलिस उस को पहले थाने ले गई. उस के घर वालों को बुराभला भी बोला. 3 घंटे थाने में बैठने के बाद डाक्टर आए तो उस को ठीक पाया गया. इस के बाद भी उस को 14 दिन घर से बाहर नहीं निकलने को कहा गया.

पुलिस का डर

असल में कोविड 19 से बचाव के लिए प्रशासन के स्तर पर हर गांव वालों को कहा गया है कि कोई भी जब बाहर से आए तो उस की सघन तलाशी ली जाए. उस का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाए. अगर उस को सर्दीखांसी, बुखार की परेशानी नहीं भी है तो उस को

14 दिन के लिए अलग रहने को कहा जाए. अगर कोई इस बात को नहीं मानता है तो उस के खिलाफ संक्रमण अधिनियम का उल्लंघन करने का मुकदमा लिखा जाए.

जेल के कैदियों सी मुहर

कई जगहों पर बाहर से आने वाले लोगों के हाथ पर एक मुहर लगा दी जाती है जिस को देखने के बाद पता चलता है कि यह आदमी किस दिन बाहर से अपने गांव आया है.

झारखंड और दूसरे प्रदेशों में यह हालत सब से अधिक गंभीर है. जिन लोगों के हाथ में यह मुहर लगी होती है उन को किसी से मिलनाजुलना नहीं होता और उन को अपने घर में भी कैदियों की तरह अलग रहना पड़ता है.

पत्नी-बच्चे तक दूर

प्रतापगढ़ के रहने वाले रमेश कुमार अपने घर वापस आए तो उन को पत्नी और बच्चों से दूर कर दिया गया.

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रमेश की पत्नी को कुछ दिन पहले ही बेटा हुआ था. बेटा होने की खुशी में वह अपने घर आया तो वहां उस पर यह प्रतिबंध लगा दिया गया कि वह 14 दिन सब से दूर रहेगा. रमेश को घर के बाहर उस कमरे में रहना पड़ा जहां जानवरों के लिए चारा रखा जाता था.

लोगों को कोरोना वायरस से अधिक डर पुलिस और प्रशासन का है. वे मुकदमा कायम करने की धमकी दे कर डराते हैं. इस के अलावा गांव के बहुत से लोग जागरूकता की आड़ में बाहर से आए लोगों की सूचना पुलिस को दे कर अपनी दुश्मनी भी निकाल रहे हैं.

केजरीवाल की नसीहत : बदलनी होगी जीने की आदत

उन्होंने कहा कि लौकडाउन बढ़ाना कोरोना का इलाज नहीं है, बस यह इस को फैलने से रोकता है. अगर सोचें कि किसी एरिया या राज्य में पूरी तरह से लौकडाउन कर दिया और वहां केस जीरो हो जाएंगे, मुश्किल है. ऐसा तो पूरी दुनिया में हो रहा है. अमेरिका, स्पेन, इटली और यूके भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. इसे ले कर लोगों के अंदर एक डर बैठ गया है. जिस दिन मौत का डर निकल जाएगा, उस दिन लोगों के मन से कोरोना का डर भी खत्म हो जाएगा.

उन्होंने आगे कहा, “अगर हम दिल्ली को लौकडाउन कर के छोड़ दें तो केस खत्म नहीं होने वाले. लौकडाउन कोरोना को कम करता जरूर है, पर खत्म नहीं. इसलिए अर्थव्यवस्था को खोलने का समय आ गया है. इस के लिए दिल्ली तैयार है.”

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी परेशानी जाहिर करते हुए कहते हैं कि अगर लौकडाउन के बाद भी पौजिटिव केस बढ़ते हैं तो हम लोगों को इस के लिए तैयार रहना होगा. केंद्र सरकार को चाहिए कि पूरी तैयारी के साथ धीरेधीरे राज्यों से लौकडाउन खोले. जो रेड जोन हैं, केवल उन इलाकों को बंद रखना चाहिए.

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दिल्ली ने कोरोना महामारी के दौरान बड़ी मुश्किल लड़ाई लड़ी. वे कहते हैं कि कोरोना से बचाव ही बेहतर इलाज है. पर हमें जीने की आदत बदलनी होगी. इस के लिए उन्होंने कुछ सुझाव दिए, जिन में 2 खास है.

पहला तो यह कि कोरोना को फैलने से रोकना है. इस के लिए हमें खूब टैस्टिंग करनी पड़ेगी. जो भी कोरोना का मरीज मिले, उसे ठीक कर के ही घर भेजो. वहीं दूसरा यह कि मौत पर कंट्रोल करना है. किसी भी हालत में मौत नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि कोरोना ने सिखा दिया है कि हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत रखो. इसलिए हमें भी अपने यहां मैडिकल रिसर्च को और मजबूत बनाना होगा.

ऐसा नहीं है कि चिंता की लकीरें सिर्फ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर ही दिख रही हैं, ऐसी चिंताओं से हर राज्य के मुख्यमंत्री जूझ रहे हैं.

एक ओर जहां पूरे देश की अर्थव्यवस्था चौपट है, वहीं आम लोगों के जीवन में भी उथलपुथल मची हुई है कि हमारा जीने का ढर्रा किस तरह का होगा. जिन लोगों की रोजीरोटी चली गई, उन्हें नए सिरे से पहल करनी होगी. गांवों की तरफ पलायन कर चुके अप्रवासी मजदूरों को वापस लाना होगा, तभी रोजगार का पहिया पुराने ढर्रे पर चल सकेगा.

अर्थव्यवस्था को ले कर सरकार का परेशान होना लाजिम है, वहीं कारोबार को पटरी पर लाना भी किसी चुनौती से कम नहीं.

कोरोना को ले कर लोगों को खुद ही जागरूक होना होगा, उन्हें अपने जीने का सलीका बदलना होगा. ऐसे माहौल में अब ढलना सीखना होगा ताकि कोरोना से बचा जा सके. वहीं दिमागी तौर पर भी तनाव से बचने के तरीकों पर ध्यान देना होगा और धैर्य व सावधानी से काम लेना होगा.

ऐसे बदलें जीने का सलीका

लौकडाउन में आप सब घर में रहें, सुरक्षित रहें. लौकडाउन खुल भी जाए तो आपाधापी न मचाएं. जोश में आ कर होश न खोएं. अब पुराने दिन इतनी जल्दी लौट कर नहीं आने वाले.

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वैसे भी यह नहीं सोचा था कि कोरोना हमारे जीवन जीने के तरीके को ही बदल देगा. हम हाथ नहीं मिलाएंगे. मास्क लगा कर बाहर जाएंगे. भीड़ वाली जगहों पर नहीं जाएंगे. आपस में दूरी बना कर काम करेंगे.

अगर जीवन को बचाना है तो सरकार द्वारा बताए नियमों पर चलना होगा. सरकार केवल रास्ता बताएगी. अपने काम एहतियात बरत कर पूरे करने होंगे. अनावश्यक बाहर रहने से बचना होगा. आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करें और इस्तेमाल भी करें. इस मोबाइल एप द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें.

जीवन में आए इस नए बदलाव को स्वीकार करना होगा. अपनेआप को महफूज रखेंगे, तभी ऐसी बीमारी से बच सकेंगे.

सब से पहले लोग अपनी इम्यूनिटी पावर बढाएं. इस से बीमारी जल्दी घेरेगी नहीं. इस के लिए घर की बनी चीजों को खाएं, फास्ट फूड या बाहर के लजीज खाने से बचें. वहीं मिर्चमसालों का ज्यादा सेवन न करें. तली हुई चीजें कम से कम लें. हाजमा दुरुस्त करने के लिए कसरत करें.

इस के साथ ही जब भी घर से निकलें, मास्क जरूर पहनें, हाथों में दस्ताने हों, बाजार या भीड़ वाली जगह पर जाने से बचें. बहुत जरूरी होने पर जब बाहर जाना ही पड़ जाए तो आपसी दूरी बना कर रखें.

ऑफिस में आपसी दूरी बनाए रखें, एकदूसरे का खाना कदापि शेयर न करें. फोन पर भी बात करने से पहले साफ कर लें, इस के बाद हाथ जरूर धोएं या सेनेटाइजर लगाएं.

ऑफिस या घर पर आए पार्सल या कोरियर से आई किसी भी चीज को तुरत इस्तेमाल न करें, उसे भी 10-12 दिनों के लिए क्वारन्टीन करें. इस के बाद इन चीजों को इस्तेमाल करें.

बाहर से जब भी आएं, तुरत घर में न घुसें. घर में घुसने से पहले हाथमुंह धोएं, उस के बाद तुरंत नहाने के बाद कपड़े बदलें.

बाजार से दूध व सब्जियों को घर में लाने के बाद पहले अच्छी तरह धोएं, फिर इस्तेमाल करें या फ्रिज वगैरह में रखें वगैरह.

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इसी तरह से अपने जीने की आदत बनानी होगी, तभी इस बीमारी से बचा जा सकता है.

तो आज से ही बदलें अपने जीने का नजरिया. बना लीजिए न अपनी ऐसी आदत…

अजीबोगरीब शादी : न बराती न शहनाई, हो गई अपनी लुगाई

समाज भले ही 21 वीं सदी में पहुंच गया है, लेकिन अभी भी आधुनिक सोच नहीं बदली है. लौकडाउन ने हमारे जीने का सलीका ही बदल गया है.

समाज का एक बड़ा तबका आज भी जाति और धर्म के बंधनों से मुक्त नहीं हो पाया है, खासकर प्रेम संबंधों और शादीविवाह के मामले में.

कई बार इस मानसिकता से जकड़े लोग अपनी आदतों के चलते बाज नहीं आ रहे, जबकि कानून के मुताबिक कोई भी किसी भी धर्म या जाति में शादी अपनी मरजी से कर सकता है.

यही वजह है कि पूरे देश में लौकडाउन की पाबंदी होने के बाद भी ऐसीऐसी तरकीबें निकाली जा रही हैं कि आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएं.

यह चौंकाने वाला मामला गाजियाबाद के साहिबाबाद थाना क्षेत्र का है. यहां 29 अप्रैल को अजीबोगरीब शादी मामला सामने आया.

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लौकडाउन के दौरान यहां एक लड़का सब्जी और राशन लेने निकला, लेकिन जब वह लौटा तो दुलहन को साथ ले कर आया.

अचानक इस तरह दुलहन के घर आने पर उस लड़के की मां के तो मानो होश ही उड़ गए. घर में कोहराम मच गया. आसपास के लोग हैरानी से नजारा देखते रहे.

दरअसल, यह लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को दुलहन बना कर ले आया था. नाराज लड़के की मां ने दुलहन को अपने घर में घुसने से रोक दिया. इस के बाद पूरा मामला थाने पहुंच गया.

थाने में दुलहन के लिबास में लड़की और उस के साथ लड़का दोनों थे. लड़के की मां ने थाने में खुले शब्दों में कह दिया कि वे बेटे को अपने घर में नहीं घुसने देंगी. बेटा राशन लेने गया था और लड़की ब्याह कर ले आया.

यह लड़का साहिबाबाद के श्याम पार्क इलाके का रहने वाला है. लड़के के मुताबिक, दोनों ने हरिद्वार में पिछले दिनों एक मंदिर में शादी कर ली है. पर, मैरिज सर्टिफिकेट लेने के लिए बाद में बुलाया था, लेकिन लौकडाउन लग जाने की वजह से सर्टिफिकेट नहीं ले पाए.

इस पर उस लड़के की मां का कहना है कि शादी हुई भी है या नहीं, इस बात का कोई सुबूत नहीं है.

जब उस लड़के से बात की गई, तो उस का कहना है कि मंदिर में शादी हुई है. अभी उन के पास कुछ भी सुबूत दिखाने को नहीं है क्योंकि पूरे देश में लौकडाउन लग जाने की वजह से पाबंदी है. जैसे ही लौकडाउन खुलेगा, वह शादी का सर्टिफिकेट ला देगा.

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यह पूरा मामला पुलिस के लिए भी सिरदर्द बन गया. हालांकि पुलिस ने लड़के और लड़की को समझा दिया है. लड़का अपनी नईनवेली दुलहन को ले कर किराए के मकान में चला गया है. वहीं लड़के की मां ने साफ शब्दों में कह दिया है कि लॉकडाउन खत्म होने से पहले घर आने की जरूरत नहीं है.

वहीं दूसरी ताजा घटना मुजफ्फरनगर की है. लौकडाउन के बीच कुछ लोग पुलिस को झांसा दे कर अपना काम निकाल रहे हैं. यहां की खतौली विधानसभा में एक लड़के ने निकाह के लिए खुद को ही मरीज बना डाला और एंबुलेंस से जा कर गाजियाबाद के शहीद नगर से दुलहन ले आया.

शादी का मामला सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने अहमद और उस की पत्नी को क्वारंटीन कर दिया. इंस्पैक्टर संतोष ने बताया कि कुछ दिन पहले खतौली कसबे के इस्लामनगर महल्ले का रहने वाला अहमद अपने पिता इसरार के साथ एक परिचित एंबुलेंस के ड्राइवर महबूब के साथ मरीज बन कर गाजियाबाद के शहीद नगर महल्ले में निकाह करने पहुंच गया. वह निकाह कर दुलहन को अपने घर ले आया.

अहमद जिस इलाके में रहता है, उसे जिला प्रशासन ने पहले ही सील किया हुआ था, क्योंकि यहां से कुछ मरीज कोरोना पौजिटिव निकले थे.

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मामले ने जब तूल पकड़ा तो पुलिस ने एंबुलेंस के ड्राइवर महबूब, अहमद और उस के पिता हाजी इसरार पर आईपीसी की धारा 188 के तहत केस दर्ज किया.

शादी या निकाह में  ऐसे पापड़ भी बेलने होंगे, यह सोचा न था. एक मामले में पुलिस को दखल देनी पड़ी, वहीं दूसरे मामले में नएनवेले मियांबीवी को क्वारंटीन किया गया. वहीं मुजफ्फरनगर में तो पुलिसिया दखल में खलल पड़ने का मामला दर्ज हुआ.

नाई से बाल कटाना कहीं भारी न पड़ जाए

कोरोना वायरस के कहर ने पूरे देश को घरों में कैद रहने मजबूर कर दिया है.अब जितने भी कोरोना के नये मामले आ रहे हैं, उनका कारण कम्यूनिटी ट्रांसफर ही है.

लौक डाउन को एक महिने से अधिक का समय हो चुका है. ऐसे में लोगों के सिर के बाल बढ़ रहे हैं. पुरूषों का सेलून,मेंस पार्लर और महिलाओं का ब्यूटी पार्लर जाना बंद है.पुरूष  घर पर सेबिंग कर दाड़ी के बालों से तो निजात पा लेते है, लेकिन गर्मी के मौसम में सिर के बढते बाल परेशानी का सबब बन रहे हैं.

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अब लोग यह सोचकर बेसब्री से लौक डाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं कि सब कुछ खुल जायेगा और सबसे पहले वे हेयर कटिंग सेलून पर जाकर अपनी हजामत करवायेंगे. लौक डाउन के खुलते ही सेलून और पार्लर पर हेयर कटिंग बनवाना आपको भारी भी पड़ सकता है.लौक डाउन खुलते ही सेलून में आने वाले लोगों की भीड़ से कोविड-19 का संक्रमण होने का खतरा ज्यादा बढ़ सकता है.

मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के छोटे से गांव बड़गांव में लौक डाउन के बाद भी एक हज्जाम ने अपने सेलून पर कटिंग दाड़ी बनाने का काम जारी रखा.गांव वाले इस बात से खुश थे कि उनकी कटिंग दाड़ी का काम आसानी से हो रहा है. सेलून चलाने वाला नाई  एक ही कपड़े से  कई लोगों की कटिंग और शेविंग करता रहा . गांव में इंदौर से आये एक युवक के कोरोना पाज़ीटिव होने के बाद जब गांव के लोगों को यह पता चला कि उस युवक ने गांव के नाई के सेलून पर दाड़ी बनवाई थी,तो गांव में हड़कंप मच गया.

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ख़बर फैलते ही खरगोन जिले के  नायब तहसीलदार मुकेश निगम ने पुलिस बल और स्वास्थ्य अमले के साथ बड़गांव पहुंचकर पूरे गांव को सील कर दिया. नायब तहसीलदार निगम ने बताया कि पिछले दिनों एक युवक इंदौर से गांव आया था. गांव आने के बाद उस व्यक्ति ने एक हज्जाम के यहां जाकर दाढ़ी बनवाई. हज्जाम को इस बात की भनक तक नहीं थी कि दाढ़ी बनाकर जो युवक गया है ,वो कोरोना से संक्रमित है. हज्जाम रूटीन काम में लगा रहा.उसके यहां गांव के बाक़ी लोग भी बाल-दाढ़ी बनवाने आते जाते रहे. बाद में पता चला कि इंदौर से लौटे युवक का तो पहले से ही जांच के लिए नमूना लिया गया था. जब रिपोर्ट आई तो पता चला युवक कोरोना पॉजिटिव है.धीरे-धीरे जब गांव में कोरोना के मरीज़ों की पहचान करने की शुरुआत हुई तो एक के बाद एक छह लोग पॉजिटिव निकले.जिन लोगों ने भी उस हज्जाम के यहां से दाढ़ी-कटिंग करवाई और जो उसके संपर्क में आए उनमें से 26 लोगों की पहचान कर उन सबके नमूने लेकर जांच के लिए भेजे गए तो  उनमें से छह लोगों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है.

प्रशासन की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि गांव के उन लोगों की शेविंग, कटिंग एक ही कपड़े से होने के कारण रह संक्रमण हुआ है.सीएमएचओ डॉक्टर दिव्येश वर्मा का कहना है कि बड़गांव के 6 ग्रामीण पॉजिटिव पाए गए हैं.गांव के नाई द्वारा एक ही संक्रमित कपड़े का उपयोग अन्य लोगों के साथ भी करने से यह संक्रमण फैला है. स्वास्थ महकमे के बीएमओ डॉक्टर दीपक वर्मा का कहना है कि 26 में से अभी 23 लोगों की ही रिपोर्ट आई है, बचे हुए तीन लोगों की रिपोर्ट आना बाकी है. पॉजिटिव मरीजों को रात में ही अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है,जहां उनका इलाज शुरू हो गया है. गांव में  मरीजों के 34 परिजनों को होम क्वारंटाइन किया गया है.इसके अलावा पंचायत गांव को सैनिटाइज कर रही है. गांव को सील कर  पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया गया है.

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वैसे 3म‌ई के बाद भी इस बात की संभावना कम है कि हेयर कटिंग सेलून या ब्यूटी पार्लर खुलेंगे. फिर भी यदि ये खुलते हैं तो अभी और कुछ दिन इनमें जाने से बचना होगा. अभी शादी विवाह के अलावा सभी प्रकार के फंक्शन पर बंदिश लगी है तो महिलाओं को भी ब्यूटी पार्लर जाने से परहेज़ करना चाहिए.यदि मजबूरन जाना ही पड़े तो ध्यान रहे कि मुंह पर मास्क और हाथों ग्लब्ज पहनकर ही इन स्थानों पर जाएं. कटिंग,सेबिंग ,फेशियल ,मसाज, थ्रेडिंग,हेयर स्टाइल कराने घर से साफ कपड़ा लेकर जाएं और हज्जाम और ब्यूटिशियन से कहें कि वो भी हर वार अपनी कैंची,कंघी,  ब्रश , ग्रूमिंग मशीन आदि उपकरणों को गर्म पानी से अच्छी तरह साफ़ करें. हज्जाम और ब्यूटिशियन भी मुंह पर मास्क, हाथों में ग्लब्ज के साथ सेनेटाइजर इस्तेमाल करे. आपके द्वारा बरती जाने वाली ये सावधानियां आपके साथ ही पूरे समाज को कोरोना के संक्रमण से बचा सकती हैं.

Corona से नहीं भूख से मर जायेंगे ऐसे लोग

लेखक- राजेश चौरसिया

  • बदहाल बुंदेलखंड की बे-दर्द दास्तां..
  • ऐसी भुखमरी से तो नासूर बन जाएगा बुंदेलखंड..
  • नमक पानी में डुबोकर सूखी रोटी खाते नौनिहाल..
  • सरकारी दावों की असलियत उजागर करते लाग डाउन की बेबसी भरी दास्तान..
  • लॉक डाउन में भूखे बच्चे और माँ की बेबसी..
  • सूखी रोटियां नमक के पानी में भिगोकर खाने को मज़बूर बच्चे..
  • पिछले एक माह से नहीं लग रही मज़दूरी तो पड़े खाने-पीने के लाले..
  • जानकारी लगते ही शहर के युवा समाजसेवियों ने पहुंचाया पूरे महीने भर का राशन..

【यहां 5 वर्षीय शैलेन्द्र, 3 वर्षीय अभय, 1 वर्षीय साधना, माँ संगीता, पिता तंनसु के साथ झोपड़ी बना रहते शहर छतरपुर में..】

एंकर- देश के कुछ राज्यों में नक्शलबाद पनपने का तर्क दिया जाता है कि भुख़मरी और आर्थिक अभाव में दूरियाँ बढ़ने के कारण अराजकता का जन्म होता है. मौजूदा हालात बुंदेलखंड में आर्थिक असमानता के बीच कोरोना विश्व व्यापी महामारी का है. जो आने बाले समय मे भयानक त्रासदी की चुनौती का डंका पीट रही है. हालांकि मौजूदा हालात महामारी के कारण लाग डाउन द्वितीय चरण के चलते कामकाज बंद है जिसकी बिभीषका का सबसे अधिक रोजमर्रा वाले दिहाड़ी श्रमिकों पर पड़ी है.

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छतरपुर कमजोर काया होने के बावजूद भी अपने मासूमों के पालन पोषण का बीड़ा उठाकर एक मजरा टोला से चल कर जिला मुख्यालय पहुंचे तनसु अहिरवार और उसकी पत्नी संगीता अहिरवार कोरोनावायरस महामारी के कारण लॉक डाउन में मजदूरी से भी हाथ धो बैठा.  बेबसी का ऐसा मंजर कि कठोर पत्थर दिल भी पिघल जाए. पत्नी संगीता अपने कलेजे के टुकड़ों को बासी सूखी रोटी नमक के पानी में भिगोकर खिलाती दिखी तो विपन्नता का असली चेहरा भी सामने आया. यह मंजर देख कर हैरत में पड़ना लाजिमी है. लेकिन भूख की बेबसी के आगे रूखी-सूखी रोटी नौनिहालों को मुस्कुराने को विवश कर देती है

नमक के पानी में रोटियां गलाकर खाते बच्चे..

मामला शहर जिला मुख्यालय का है जहां क्षेत्रीय विधायक आलोक चतुर्वेदी के आलीशान निवास (खेल ग्राम के सामने) सामने चल रही निर्माणधीन साईट पर यह दंपति (संगीता तंनसु अहिरवार) मजदूरी कर अपना भरण पोषण किया करती थी. कोरोनो और लॉक डाउन के चलते पिछले 1 माह से मजदूरी नहीं लग रही बचा खुचा राशन पानी था वह हफ़्ते भर में खत्म हो गया  अब यह आस-पड़ोस के लोगों की रहमत के सहारे उदर भरने लगे.

मौजूदा दौर में आखिर कौन कब तक किसको खिलाता है भला, रोजाना कोई किसी को मुफ्त में दुआएं तक नहीं देता फिर ऐसे बंद (लॉक डाउन) में रोजाना खाना देना तो दूर की बात है. यह निकल कर बाहर कहीं जा नहीं सकते लॉक डाउन जो है. अब मरता क्या न करता, जो लोगों से मिला हुआ बचा-खुचा था सब खत्म हो चुका था बचीं थीं तो महज़ सूखी रोटियां जिन्हें गरीब लोग (बतौर भविष्यनिधी) मुश्किल वक्त के लिये धूप में सुखाकर रख़ लेते थे. तो अब बच्चों का पेट भरने का एक यही आख़िरी तरीका बचा था जिसे माँ इन सूखी रोटियों को पानी में भिगोकर नमक डालकर खिला रही है. और तीनों मासूम भी अपनी माँ की बनाई दुनिया की सबसे लज़ीज़ डिस को खाकर प्रसन्न हैं उनके चेहरे पर भूख मिटने की चमक है पर माँ के चेहरे पर उदासी और सूनी आंखों में नमक का पानी छलक रहा है. जो मानो सैलाब बनकर सबको बहा ले जाये.

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हालांकि मानवता अभी भी जिंदा है के परिसंवाद को चरितार्थ करते हुए शहर के कुछ युवाओं ने तत्काल इस पीड़ित परिवार को ना सिर्फ राहत पहुंचाई, बल्कि खाद्य सामग्री पहनने के कपड़े इत्यादि मुहैया कराए.

इन्होंने की मदद..

मामले की जानकारी स्थानीय जनसेवक सुंदर रैकवार को लगी तो उन्होंने अपने घर से खाना बनवाया और पहुंच गये लेकर पर यह नाकाफी था इन्हें रोज़ जरूरत थी तो शहर के युवा समाजसेवी (सुऐब खान उर्फ सब्बू भाई और जवेद अख़्तर) से संपर्क किया गया (जो ऐसे लोगों की अक्सर मदद करते रहते हैं) जहां उन्होंने एक फोन कॉल पर महीने भर का राशन आटा, दाल, चावल, तेल, मसाले, नमक, शक्कर, चाय, तोष, बिस्किट, नमकीन, पेस्ट, गलूकोज, इलेक्ट्रॉल, सहित अन्य जरूरतक का एक ड़ेढ महीने का सामान अपनी गाड़ी में रखा और पहुंच गये लेकर जिसे पाकर बेबस माँ और बच्चों का चेहरा खिल उठा उनकी मुस्कान देनेवाले को दिली सुकून बिखेर रही थी.

इस बाबत स्थानीय पालिटिकल पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष और नगरपालिका अध्यक्ष पति पुष्पेंद्र प्रताप सिंह से बात की तो विधायक निवास के सामने भूखी महिला बच्चों की व्यथा को वीभत्स बताया. उन्होंने तत्काल हर संभव मदद करने की बात कही और अपने लोगों से उसे राशन भिजवाया साथ ही शासन प्रशासन से जरूरी मदद दिलाने का आस्वासन दिया.

मामला चाहे जी भी हो पर इतना तो तय है कि कोरोना कॉल की वानगी का इतिहास काल के पन्नों में समाहित होगा दूसरी ओर सभ्य समाज के बीच असमानता का भाव उजागर करता है. जबकि आज की युवा पीढ़ी के लिए एक सबक का आईना दिखाता है. उन्हें कथित युवाओं के लिए जो अपने माता पिता को राणा कसकर अपनी योग्यता पर इतराते हैं और मां-बाप का सम्मान नहीं करते.

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अपने लाड़ले बच्चों को यह दंपति भूखे रहकर सूखी ही सही, परंतु ममता की छांव में पानी में भिगोकर नमक रोटी खिलाते हैं और बचपन खिलखिलाता है.

मसलन यह तो मौजूदा परिदृश्य की पटकथा है लेकिन सरकारी सी स्वतंत्र से लेकर तमाम सेवादारों की सेवा को चुनौती भरा वाक्य है अलबत्ता यह भी नहीं की मौजूदा समय में शासन प्रशासन अनदेखी कर रहा है फिर भी सवाल उठना लाजमी है कि अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है.

यह कोरोना युद्ध का पड़ाव नहीं बल्कि इस लिहाज से तो विभीषिका के संकेत को नकारा नहीं जा  सकता.  फिर भरोसे के संकेतों पर भी गौर करना वाजिब होगा कि सामान्य स्थिति में दिहाड़ी ना मिले अथवा भूखे प्यासे इंसान कहीं इंसानी सरहदें पार ना करने लगें. इसकी चिंता भी सरकार और सरकारी अमले को करना होगी.

गौरतलब है कि बुंदेलखंड का परिदृश्य विकास के मुद्दे पर अभी भी लंबी कतार में पीछे है आर्थिक असमानता दबंगई सामंतवाद और जातीय वर्ग भेद भ्रष्टाचार का ताना-बाना यह ऐसे सवाल है जिसे हल करना ना सिर्फ जटिल है बल्कि इनका निराकरण करना अत्यावश्यक भी है.

वैश्विक महामारी में यह संकट का दौर है, दुःखद ही है कि बुंदेलखंड में योजनाओं का लाभ सीधे तौर पर उन्हें ही मिल पाता है जिनकी पहुंच सत्ता के पहरेदार हो तक हो या फिर रिश्वत की भेंट देने की दक्षता हो.

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तनसु और संगीता अहिरवार इन दोनों विधाओं में पारंगत नहीं है जिस कारण ना तो उस पंचायत में उसका गरीबी रेखा कार्ड बना और ना ही प्रधानमंत्री आवास सहित अन्य सरकारी राहत मिल सके जिससे परिवार पालने मजदूरी करने के लिए दंपति छतरपुर आ बसा.मजदूरी लगती रहती तो 2 जून की रोटी कमा खा सकता था. महामारी की परिस्थितियों से सामूहिक प्रयासों मे ही निराकृत के पायदान पर पहुंचाया जा सकता है.

मृत्युभोज: कोरोना में खत्म होने के कगार पर आर्थिक बर्बादी का वाहक सामाजिक कलंक

मृत्युभोज जैसी कुरीति को मात्र सामाजिक बुराई मानकर टालना जायज नहीं है. यह एक आर्थिक बर्बादी का बहुत बड़ा कारण है. गरीब परिवारों की तीन-तीन पीढियां इससे बर्बादी की कगार पर पहुंच जाती है.मृत्युभोज के खर्चे से बच्चों के अरमानों, मां-बाप के सपनों का कत्ल हो जाता है.जब एक पीढ़ी शिक्षा से वंचित हो जाती है तो उसका खामियाजा अगली तीन पीढ़ी भुगतती है.एक बड़ा तरक्की का जनरेशन गैप हो जाता है.

मृत्युभोज का खर्च बाकी बुनियादी जरूरतों पर होने वाले खर्च पर पाबंदियां लगा देता है.बुजुर्गों के इलाज में कोताही का कारण बन जाता है.जब कोई बुजुर्ग बीमार होता है और इलाज का बजट सामने आता है तो परिवार वालों के सामने सबसे पहले बड़ा संकट यही उभरकर सामने आता है कि इलाज पर पैसे खर्च करें व अगर नहीं बच पाया तो फिर मृत्युभोज के खर्च का इंतजाम कहाँ से होगा?ऐसे में मन मारकर परिवार वाले न्यूनतम खर्चे में इलाज करवाने का दिखावा मात्र करने को मजबूर हो जाते है.

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यह कोई सांस्कृतिक विरासत नहीं है और न धार्मिक रीति-रिवाज.यह पाखंड व बाजारवाद का गैर-मानवीय संगम है जो इंसानियत का कत्ल करके धंधे का स्वरूप लिए हुए है.एक परिवार की बर्बादी पर व्यापार होता है.रूसो ने कहा था “इंसान इतना भी अमीर नहीं होना चाहिए कि वह दूसरे इंसान को खरीद सके और इतना भी गरीब नहीं होना चाहिए कि खुद को बेचने के लिये मजबूर हो.”यहां सामाजिक बंधन या अनिवार्यता बताकर मानसिक दबाव के तहत इंसान को इतना मजबूर कर दिया जाता है कि वह खुद को बिकाऊ समझ बैठता है और चंद लोग अपने हिसाब से उसकी कीमत तय कर देते है.

तमाम मूढ़ बनी परंपरा के पीछे खड़े बेगैरत लोगों के बीच भी इंसानियत को जिंदा करने की एक खबर सामने आई है.समाज के गय्यूर नौजवानों व इज्जतदार बुजुर्गों ने एक नया चिराग दिखाया है.

मृत्युभोज जैसी विकराल कुरीति के पर कोरोना ने कतरकर सीमित कर दिए है और हमारा थोड़ा सा प्रयास इसको विदाई दे सकता है.उम्मीद की जानी चाहिए कि इस कुरीति के खिलाफ जिन जागरूक समाज बंधुओं ने जागृति की अलख जगाई वो रंग लाने लगी है.हमारे से पहले भी जागरूक बुजुर्गों ने कई प्रयास किये.हम भी पूर्ण पाबंदी की मुहिम चला रहे है और कई युवा लोग आगे आकर विभिन्न इलाकों में प्रयास कर रहे है.एक सामूहिक व सतत प्रयास जल्द ही इस बुराई से मुक्ति की राह दिखायेगा.

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कोरोना के बाद भयंकर आर्थिक मंदी उभरकर सामने आएगी और हमारे सामने भूख सबसे बड़ा मुद्दा होगा.इसलिए ऐसी गैर जरूरी कुप्रथाओं पर अभी लगाम लगा दोगे तो बचने के बेहतर अवसर उपलब्ध रह जाएंगे.पढ़े-लिखे हम जागरूक युवाओं का दायित्व बनता है कि इस संकट की घड़ी में हालातों को भांपते हुए समझाइश करें व इस सामाजिक कलंक से पीछा छुड़ाएं.

आखिर क्यों Lockdown में जंगली जानवर शहरों की ओर भाग रहे हैं?

बिहार के पटना स्थित बिहटा में पिछले सप्ताह एक तेंदुआ बेखौफ घूमता हुआ नजर आया तो लोगों ने इस की सूचना प्रशासन को दी.

लौकडाउन के बीच दिल्ली से सटे नोएडा के जीआईपी मौल के पास नील गाय तो गुरूग्राम मार्केट में मोरों को नाचते तो वहीं हरिद्वार में हिरण को सैर करते देखा गया.

दिल्ली के एक गांव मुखमेलपुर से यमुना नदी पास ही बहती है. गांव के बाहर दूर तक पेङपौधे व जंगल हैं जहां नील गाय बराबर दिखती है. आजकल ये नील गाय गांव में भी आ जा रही हैं. गांव के रहने वाले किसान व समाजसेवी अरविंद राणा के घर पिछले कई दिनों से मोर आ रहे हैं. उन्होंने छिप कर वीडियो भी बनाया है. अरविंद राणा कहते हैं,”देश में जारी लौकडाउन के बीच इधर कई दिनों से मेरे घर के छत पर मोर आ रहे हैं. मोरनी को रिझाने के लिए मोर जब पंख फैला कर नाचते हैं तो देख कर मन भावविभोर हो जाता है.

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“ये मोर काफी पहले आते थे मगर कुछ दिनों से इन का आना बंद हो गया था. मगर अब ये बराबर मेरे ही नहीं गांव के कई घरों की छतों पर आ रहे हैं. नील गाएं कभीकभी आती थीं मगर इधर कुछ दिनों से बराबर ही आ जा रही हैं.”

चिड़ियों का चहचहाना फिर से शुरू

पिछले 23 मार्च के बाद देश में जारी लौकडाउन के बीच आज जहां प्रदूषण में भारी गिरावट आई है, हवा शुद्ध बह रही है, नदियों का पानी साफ दिख रहा है, वहीं चिड़ियों का चहचहाना भी फिर से शुरू हो गया है. लेकिन इस बीच हाथियों, तेंदुओं, हिरण और यहां तक कि जंगली बिलाव देश की सङकों पर खुलेआम घूमते हुए दिख रहे हैं.

पर्यावरणविद और विशेषज्ञ इस खबर को ले कर चिंतित हैं और कहते हैं कि शहरी केंद्रों में जंगली जानवरों का आना सही नहीं है. इन्हें इंसानों द्वारा या तो भगा दिया जाएगा या फिर मार दिया जाएगा.

पर्यावरण मित्र प्रवीण मिश्रा बताते हैं,”देखिए, इंसान की तरह ही जानवरों में भी अपनी सुरक्षा को ले कर एक भय होता है. ये जानवर पहले एक हैबिटेड बनाते हैं और एक जोन ढूंढ़ते हैं. लौकडाउन से पहले एक डिस्टरवैंस बनी हुई थी. अब इन्हें साइलैंस यानी शांत वातावरण मिल रहा है तो भोजन की तलाश में ये बाहर निकल कर शहरी केंद्रों पर आ रहे हैं. यहां अब इन्हें न तो गाङियां मिल रही हैं न कोई शोरगुल और न ही चकाचौंध करती गाड़ियों की लाइटें. पर यह भी तय है कि ये चलायमान प्राणी होते हैं. साइबेरिया से हजारों मील दूर सफर कर साइबेरियन पक्षी यहां तभी तो आते हैं. हां, कुछ जानवर नैटिव होते हैं और वे वहीं रहना चाहते हैं जहां उन का आशियाना है.

“लौकडाउन में अचानक से आने का यह मामला बिलकुल नया है और यह तब हुआ है जब इन्हें लग रहा है कि यह सेफ जोन है और यहां उन्हें कोई खतरा नहीं है. दरअसल, जानवरों का स्वभाव इंसानों से बिलकुल अलग होता है और इंसानों पर हमला भी ये तभी करते हैं जब उन में असुरक्षा की भावना न घर कर जाए. इंसानों को देख कर पहले ये भागते हैं और जब इन्हें लगता है कि ये भाग नहीं सकते तभी वे हमला करते हैं. जहरीला सांप भी किसी को तब तक नहीं डंसता जब तक उसे किसी तरह का नुकसान न पहुंचाया जाए या फिर उन्हें असुरक्षा का आभास हो.”

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भूख से बेहाल हैं जानवर

देश में लौकडाउन के बीच शहरी केंद्रों की ओर जानवरों के आने से पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने एक मीडिया से बात करते हुए कहा है कि जंगलों में इंसानी घुसपैठ और पेङपौधों की अंधाधुंध कटाई से उन के सामने भुखमरी की समस्या खड़ी हो गई है. इस वजह से वे भोजन की तलाश में शहरों की ओर आने लगे हैं. पहले के समय इंसान और जानवर एकदूसरे से तालमेल बैठा कर रखते थे. मगर आज की सरकारें जंगलों को केवल कारोबार के मकसद से इस्तेमाल कर रही हैं. भूख से बेहाल ये जानवर इंसानों की बस्ती में आ रहे हैं, जो चिंता का विषय है.”

इंसानों के लिए चेतावनी तो नहीं

पर्यावरण मित्र प्रवीण मिश्रा कहते हैं कि कोरोना वायरस मनुष्य जीवन के लिए एक चेतावनी है कि वे प्रकृति से छेड़छाड़ करना छोंङें और प्रकृति के बीच रहने की कोशिश करें. इस की शुरूआत वे घरों से कर सकते हैं और अपने बच्चों को शुरू से ही जागरूक बना सकते हैं. आज के अभिभावक बच्चों को प्रकृति के गुणों के बारे में बताएं ताकि आने वाली पीढ़ियों को बेहतर जीवन दिया जा सके.

कहीं कोरोना वायरस भी इसी छेङछाङ का परिणाम तो नहीं

पर कोरोना वायरस का प्रकोप प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है इस पर बहस जारी है, शोध किए जा रहे हैं और इसलिए अभी यह कहना कि यह वायरस प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है, कहना जल्दबाजी होगी. मगर इतना तो तय है कि इंसानों ने खुद को प्रकृति से दूर कर लिया है, खानपान की आदतों को बदतर बना लिया है. इंसान आज मरे हुए जानवरों की लाशों को नोचनोच कर स्वाद के लिए खा रहे हैं तो जाहिर है कुदरत का संतुलन बिगङेगा ही.

एक खबर के मुताबिक, गौरैआ अब कम दिख रही है, कौओं की संख्या में कमी आई है, गिद्ध अब न के बराबर दिख रहे हैं तो जाहिर है इंसानों ने खुद के सुख की खातिर पशुपक्षियों को अपने से दूर कर दिया या उन्हें मार कर खा रहे हैं.

बेजबानों की भी सुनें

झारखंड के दलमा वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी में लगातार हाथियों की संख्या में कमी आ रही है. ऐसा पेङों की अंधाधुंध कटाई से हो रहा है.

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हाथी पलायन कर बंगाल और उड़ीसा के जंगलों की तरफ जा रहे हैं. साल 2017 में जहां दलमा में 96 हाथी थे, अब 47 रह गए हैं. सिर्फ हाथी ही नहीं मोरों, लंगूरों की संख्या में भी भारी कमी आई है.

मगर क्या अब इंसान बदलेगा? बेजबान जानवरों, पशुपक्षियों पर जुल्म बंद करेगा? जंगलों की कटाई नहीं होगी? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन का जवाब आज देना होगा. मगर यदि इंसानों ने अपनी आदतें नहीं बदलीं तो इस खमियाजा उन्हें ही भुगतना होगा. कोरोना वायरस भी इंसानी भूल का ही परिणाम है, इस में कोई संदेह नहीं.

जिएं तो जिएं कैसे

अस्पताल में अफरा तफरी का माहौल था. हर ओर भय में जकड़ी निगाहें और चिंता में डूबे चेहरे थे. ऐसा समय आ गया जिसके बारे में किसी ने सोचा भी ना था. आज तक जितनी पीढ़ियां पैदा हुई कौन जानता था कि एक यह वक्त भी आएगा जब इंसान ही इंसान का दुश्मन लगने लगेगा और वह भी बिना किसी दोष के. कोरोना जैसे छोटे से वायरस ने किसी एक समाज को नहीं अपितु समूची दुनिया को हिला कर रख दिया. बीमारी ऐसी जो हर रोज तेजी से फैल रही और जिसका कोई इलाज भी नहीं. कोरोना पर देश में गंभीरता कम और चुटकुले ज्यादा बनने लगे. कई अफवाहें भी उड़ी. लेकिन जरूरी नहीं कि हर अफवाह केवल अफवाह ही हो. अनपढ़ों के मोहल्ले से आती अफवाहें और उनसे उपजी आशंका और भय का आधार झूठा हो यह जरूरी नहीं.

बीमारी से जनता को बचाने के लिए लॉक डाउन किया गया. जो लोग दूसरे देशों में फंस गए थे वो अपने घर आने को आतुर, मजदूर वर्ग जो दूसरे राज्यों में फंस गया वह भी अपने घरों को लौटने को बेचैन. सारी सुविधाओं को विराम लग चुका था लॉक डाउन के कारण. ऐसे में कोई करे तो क्या करे, खासकर वह जिन्हें ऐसी आपदा में सारे देश की सेवा करनी है जैसे हमारे सफाई कर्मचारी, पुलिस व डॉक्टर.

डॉ. बंसी लाल जी भी एक सरकारी कर्मचारी हैं जो इस आपदा के समय में अपने अस्पताल में आने वाले मरीजों की देखभाल करना चाहते हैं. सरकारी अस्पताल के अधीक्षक होने के नाते उनके कई कर्तव्य भी हैं. लेकिन कई बार केवल हक की लड़ाई के लिए नहीं बल्कि कर्तव्य निभाने के लिए भी ठोकरें खानी पड़ती है.

“कैसे हैं डॉक्टर साहब?”, डॉ. महेंद्र ने अपना मास्क एड्जस्ट करते हुए पूछा. डॉ. महेंद्र भी इसी सरकारी अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर थे.

“अनिश्चितता के इस वातावरण में जैसे हो सकते हैं, बस वैसे ही हैं डॉक्टर साहब”, डॉ बंसीलाल ने उत्तर दिया. दोनों की अच्छी घुटती थी सो कुछ देर बातें करके लंबी सर्विस ड्यूटी को थोड़ा विराम दे लिया करते.

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तभी वहाँ एक जूनियर डॉक्टर आयी और ज़रा तल्खी में कहने लगी, “सर, पिछले न जाने कितने हफ्तों से हम लोग यहां अस्पताल में लगातार ड्यूटी कर रहे हैं. हम अपने लिए कुछ नहीं मांगते लेकिन अगर हम ढंग का खाना भी नहीं खाएंगे तो हमारी इम्यूनिटी का क्या होगा? क्या फिर हमें ही कोरोना नहीं हो जाएगा? क्या आपने हमको दिया जाने वाला खाना देखा है – फ्रिज से निकाला हुआ ठंडा खाना! जिसकी मात्रा भी इतनी कम है कि किसी का पेट उसमें ना भरे. नाश्ते में हमें दो ब्रेड और एक केला देते हैं, लंच और डिनर में ठंडे चावल और जरा सी दाल देते हैं. कितनी बार कह दिया कि यह खाना खाने लायक नहीं है. आप लोग हमसे क्या उम्मीद करते हैं?” ज़ाहिर था कि ये शिकायत केवल इसी एक डॉक्टर की नहीं अपितु सभी डॉक्टरों की सामूहिक शिकायत थी जो ये अकेली अपने सीनियर्स तक पहुंचाने आई थी.

डॉ बंसीलाल उसकी बात सुनकर कुछ मायूस हो उठे. वो तो पहले से ही वर्तमान स्थिति के कारण परेशान थे. उन्होंने बस इतना ही कहा, “राष्ट्रीय आपदा के इस समय में जो आप सब का योगदान है उसे पूरा देश याद रखेगा.”

जूनियर डॉक्टर अपनी भड़ास निकालकर चली गई तो डॉ महेंद्र कहने लगे, “आपकी बात पर विश्वास करने का मन तो करता है परन्तु जो खबरें सुन रहे हैं उनसे तो कुछ और ही लग रहा है. कहीं डॉक्टरों को सोसायटी में आने नहीं दिया जा रहा, कहीं एम्ब्युलेंस पर पथराव हो रहा है. चेन्नई में तो हद ही हो गई जब कोरोना के कारण डॉ सायमन की मृत्यु के उपरांत उन्हें दफनाने भी नहीं दिया जा रहा था. उनके मित्र डॉ प्रदीप कुमार ने स्वयं गड्ढा खोदकर उन्हें दफनाया!”

“ऐसी खबरों से हमारा मनोबल कैसे न गिरे…”, डॉ बंसीलाल कह रहे थे तभी हेड नर्स ने आकर बताया कि सीएमओ की जानपहचान का एक मरीज़ दाखिल हुआ है. उनके लिए खास कमरा, साफ बिस्तर का इंतजाम किया जा रहा है. “पहले आओ पहले पाओ का जो जाल फैला हुआ है इसका फायदा केवल अमीर और रसूख वाले लोग उठा पा रहे हैं क्योंकि इस लॉक डाउन में केवल उन्हीं के बस में है ये पता करना कि कहां क्या मिल रहा है. कहां पर वेंटिलेटर हैं, कहां पर बेड उपलब्ध है और वही सही डॉक्टर के पास समय पर पहुंच पाते हैं. आम आदमी तो बेचारा दर-दर की ठोकर खाता भटकता फिरता है.”

डॉ बंसीलाल की बात से डॉ महेंद्र ने सहमति जताई. दोनों बात कर अपना मन हल्का कर रहे थे तभी बंसी लाल जी की पत्नी का फोन आया.

“अरे, क्यों इतनी चिंता करती हो ? सभी तो यहां काम कर रहे हैं – डॉक्टर्स है, नर्सें हैं, वार्डबॉय हैं, सफाई कर्मचारी हैं, टेस्ट करने वाले और उन्हें जांचने वाली टीम्स है, और भी न जाने कितना स्टाफ काम कर रहा है. तुम अगर यूं बार बार मुझ पर दबाव डालोगी कि मैं घर आ जाऊं तो यह न तो संभव है और ना ही मैं इस तरीके से काम कर पाऊंगा… अब नाराज क्यों होती हो? मैं समझता हूं इसके पीछे तुम्हारी चिंता है, मेरे लिए फिक्र है.” बंसी लाल जी की पत्नी ने फोन काट दिया.

“हम सभी के घरवालों का यही हाल है. सभी एक ही चिंता में घुल रहे हैं कि कहीं हमें भी कोरोना ना हो जाए, और ठीक भी है. लगभग हर अस्पताल से डॉक्टरों और नर्सों को कोरोना होने की खबरें आ ही रही है”, डॉ महेंद्र ने भी अपना पुट लगाया.

डॉ बंसीलाल के पास अस्पताल की कोऑर्डिनेटर का फोन आया और उन्होंने बताया कि पीपीई किट्स खत्म हो रहे हैं, और की जरूरत है. उस पर टेस्टिंग किट्स भी कम पड़ रहे हैं.

“हम डॉक्टरों और नर्सों को युद्ध स्तर पर काम करवा रहे हैं लेकिन अगर अच्छी क्वालिटी की पीपीई किट्स उन्हें नहीं दे सके तो यह उनके लिए मौत का खेल बन जाएगा. यही बात टेस्टिंग किट्स पर भी लागू होती है. बिना टेस्टिंग के डॉक्टरों को इतने सारे मरीजों में जाने देना एक तरह से उनकी जान से खेलने वाली बात होगी”, कोऑर्डिनेटर अपनी बात पर ज़ोर डाल रही थी.

डॉ बंसीलाल क्या करें! सामान काफी कब मात्रा में आ रहा है. क्या करें सरकारी काम की अपनी एक गति होती है. ऐसे में प्राइवेट सेक्टर से सीएसआर के माध्यम से काफी सामान आने की उम्मीद रहती है लेकिन अधिकतर सामान लॉक डाउन के कारण दूर दूसरी जगहों से आ नहीं पा रहा.

एक युगल जोड़ा जिसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी एंबुलेंस में अस्पताल लाया गया. सरकारी अस्पताल के हालात देखकर मयंक और प्रेरणा उद्वेलित हो उठे. अस्पताल में बेहद भीड़ थी. सभी लोग आसपास बैठे थे कोई ऊपर बेंचो पर तो कोई जमीन पर. हांलाकि अधिकतर लोगों ने मास्क लगाए हुए थे लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग कर पाना शायद इतनी जगह में संभव नहीं था.

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वहां उस समय ऑन ड्यूटी जो डॉक्टर थी उसने दूर से ही प्रेरणा से उसके  सिम्टम्स पूछे. प्रेरणा के बताने पर उन्होंने कहा कि आप दोनों को कोरोना का टेस्ट करना पड़ेगा. रिपोर्ट 48 घंटे में आ जाएगी. और अगर आप कोरोना का टेस्ट करवाते हैं तो आपको आईसोलेट होना पड़ेगा, “अब आप अपना सैंपल दे दो.”

यूं भीड़ में पास पास बैठने से मयंक की चिंता और बढ़ गई. उसे आशंका होने लगी कि यदि इनमें से कोई कोरोना पॉजिटिव निकला तो अब उन्हें कोरोना होने के पूरे चांस थे.

“सरकार इतना शोर मचा रही है की सोशल डिस्टेंसिंग करो और आप लोगों ने यहां पर इतनी भीड़ मचा रखी है. ऐसे करेंगे आप लोगों का इलाज? जिनको कोरोना नहीं है उन्हें भी हो जाएगा”, अस्पताल की हालत देखकर मयंक जोर जोर से चिल्लाने लगा. आइसोलेशन की बात सुनकर अधिकतर लोग ऐसे ही बौखला जाते हैं.

स्थिति को काबू करने पास के कॉरिडोर में खड़े बंसी लाल जी वही पहुंच गए और मयंक व प्रेरणा को आश्वस्त करने लगे की वह हालातों को संभाल लेंगे.

“क्या संभालेंगे आप? जब तक यह सच्चाई लोगों तक नहीं पहुंचेगी, इस जगह का कुछ नहीं होगा. पर आप चिंता मत कीजिए, मैंने यहां का एक वीडियो बनाकर अपने ट्विटर अकाउंट पर डाल दिया है. अब जल्दी ही कुछ होगा इंटरनेट में बहुत ताकत है”, मयंक ने तल्खी से बोला.

तभी वहां एक भिकारिन सी दिखने वाली बुढ़िया को पुलिस लेकर पहुंची.

“इसे मास्क दिलवाइए साहब”, पुलिसवाला बोला.

“अरे, कहां से दिलवाऊँ! सब कुछ सरकार की मर्जी से कहां होता है सरकारी महकमों में”, फिर बंसी लाल जी धीरे से पुलिसवाले के कान में खुसफुसाए, “अपनी कमाई तो सबको चाहिए न, सो मास्क तो अब है नहीं.” पुलिसवाला फौरन उनकी बात का आशय समझ गया.

सैंपलिंग के बाद मयंक और प्रेरणा को आइसोलेशन के लिए ले जाया गया. प्रेरणा को लेडीज वार्ड भेज दिया गया और मयंक को जेंट्स वार्ड में ले जाया गया.

जेंट्स और लेडीज़ दोनों का वॉशरूम कॉमन था. जब मयंक को एक रूम दिया गया तो वहां चारपाई पर बेडशीट के नाम पर एक पतला सा कपड़ा पड़ा हुआ था. मयंक को दूसरा कपड़ा दिया गया और बोला गया कि आप पुराना बेडशीट हटा कर ये बिछा लेना.

रात के एक बज रहे थे, मयंक ने बेड शीट चेंज की और सो गया.

उसके बाद जब वो सुबह उठा तो फ्रेश होने बाथरूम गया. जब दिन के उजाले में वह बाहर पहुंचा तो उसने अपने आसपास का नजारा देखा – बाथरूम बेहद गंदा था, शायद कई लोगों के इस्तेमाल करने के कारण. इंडियन स्टाइल टॉयलेट का बुरा हाल था, वाश बेसिन में पान की पीक पड़ी थी, सीढ़ियों के नीचे कूड़े का ढेर जमा था जिससे काफी बदबू आ रही थी. हर विभाग बहुत कम लोगों के साथ काम कर रहा था इसलिए हालात भी वैसे ही थे.

मयंक का मन खराब हो गया. लेकिन क्या करता मजबूरी थी, इस्तमाल तो यही करना पड़ेगा. वहां रह रहे करीब 30 लोगों के लिए एक ही साबुन की बट्टी थी जिससे सभी नहा धो रहे थे. मयंक ने अपने दिल को बहलाया कि केवल 48 घंटे की बात है, काट लेंगे

वहां बदलने के कपड़ों के ना होने की वजह से मयंक और प्रेरणा की हालत खराब हो रही थी.

48 घंटे के बाद जब मयंक पूछने गया तो उसे बताया गया कि इतनी जल्दी नहीं आती है रिपोर्ट, 3-4 दिन इंतजार करना होगा.

मयंक ने सीएमओ को कॉल करना शुरू किया किंतु उन्होंने कॉल नहीं उठाया. फिर उसने डिप्टी सीएमओ को भी कॉल किया लेकिन फोन नहीं उठा. काफी हाथ-पैर मारने के कारण मयंक का फ्रस्ट्रेशन बहुत बढ गया.

दरअसल मयंक वाले कमरे के साथ लगे कमरे में विदेश से आए एक लड़के को शिफ्ट किया गया. वह लड़का खुद ही अपना भारी सामान सीढ़ियों से घसीटा हुआ कमरे तक लाया, और वहां पहुंचकर गंदगी और गर्मी के कारण बेहोश हो गया. कोई उसे उठाने, उसे छूने के लिए, उसके पास जाने को राजी नहीं था.

एक वार्डबॉय ने तो बेहद रुखाई से ये तक।कह कि दूर रहो हमसे, तुम सब मरने वाले हो…

अपने अपने घरों से जुदा, अपने परिवारजनों से दूर, चिंता की इस घड़ी में ऐसा कुछ सुन लेने से किसी पर क्या बीत सकती है यह वही जानता है.

दिन चढ़ते हुए जब मयंक और प्रेरणा को खाना दिया गया तो वह भी ठीक नहीं था. इस बार मयंक को फिर गुस्सा आया और उसने अपने बेड के पास ही खड़े होकर चिल्लाना शुरू किया, “इतनी बड़ी महामारी के समय में आप लोग इतने सारे लोगों को एक साबुन की टिक्की दे रहे हैं, पीने के पानी की खुली बोतलों में दे रहे हैं, खाने का हालत देखिए कितना खराब खाना है. क्या इस तरह लड़ेगा भारत इस बीमारी से?”

इस बात का जवाब जब तक बंसी लाल जी देते तब तक क्षेत्र की कॉरपोरेटर, जो वहां दौरे पर आई हुई थी, उन्होंने बीच बचाव करना शुरू कर दिया. उन्होंने वहां मौजूद सरकारी मुलाजिमों को ऑर्डर देने शुरू किए. जो सरकारी मुलाजिम बंसी लाल जी की बात पूरी तरह से नहीं मानते थे वह कॉरपोरेटर साहिबा के सामने उनकी बात सुनने लगे.

“आप किसी प्रकार की कोई चिंता न करें. आपको जो चाहिए होगा वह हम दिलवा देंगे”,     कॉरपोरेटर साहिबा मयंक द्वारा उठाई गई मांगों को जांचने लगी और वहां मौजूद मुलाजिमों से उनको पूरा करने की बात कहने लगी, “आप लोगों को आम आदमी की जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए. यह जो मांग रहे हैं इनके लिए फौरन लेकर आइए”.

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उनके कहते ही मयंक को एक नई साबुन की बट्टी दी गई, पीने के पानी को बदलकर बिसलेरी की बोतल दी गई.

इस प्रकरण से बंसी लाल जी बेहद चिढ़ गए. आखिर वह भी तो यही चाहते थे कि अस्पताल में जो मरीज आए उनकी अच्छी तरह देखभाल हो, उन्हें किसी प्रकार की कोई शिकायत ना हो. और वह इसके लिए पूरी मेहनत, पूरे परिश्रम से कदम उठाने के भरसक प्रयास कर रहे थे. लेकिन उनके मातहत थे तो सरकारी मुलाजिम ही और उनके ऊपर जितना बंसी लाल जी का जोर चलता वह उतना ही सुन रहे थे. लेकिन एक सत्ताधारी के दृश्य में आ जाने से पूरी काया ही पलटने लगी थी.

एक तो भयावह जमीनी स्तर पर काम करने की जटिल स्थिति, उसपर सत्ताधारियों के दखल की मार!

अगली शाम तक मयंक व प्रेरणा की रिपोर्ट आ गईं. उन दोनों ने संतोष की सांस ली जब दोनों की ही रिपोर्ट नेगेटिव आई. मगर मयंक का मन फिर परेशान हुआ जब उसने देखा कि इस बार उन्हें घर छोड़ने जो एंबुलेंस जा रही है उसमें भी चार-पांच लोग बैठे हैं. लेकिन क्या कर सकते थे. यह लॉकडाउन की सिचुएशन की बात है जिसमें कोई भी आने जाने का साधन सड़क पर नहीं मिलता है. और इस कारण मयंक और प्रेरणा एंबुलेंस में ही लौटने को विवश थे. एहतियातन इस बार इन दोनों के चेहरे पर मास्क था और उन्होंने किसी चीज को हाथ भी नहीं लगाया.

रास्ते में ड्राइवर बताने लगा, “ऐसे हालात हो गए हैं कि मैं आपको क्या बताऊं. मैं खुद 4 दिन से घर नहीं गया हूं. घर वाले अलग परेशान रहते हैं. जो आप और हम जैसे आम लोग हैं उनके सोलेशन के लिए हॉस्टलों व स्कूलों जैसी जगहों पर इंतजाम किए गए हैं. वरना जो खास लोग हैं या हमारे साहब लोगों के रिश्तेदार हैं उनके लिए तो फाइव स्टार बंदोबस्त किए जाते हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से कोई कमी पेशी हो रही है. बस जमीनी हकीकत अलग है.”

यहां एंबुलेंस का ड्राइवर परेशान है और वहां बंसी लाल जी के घर वाले पूरा जोर लगा रहे हैं कि वह किसी भी बहाने अब अस्पताल में न जाया करें. उन्हें भी डर है कि कहीं कोरोना हमारे घर ही ना आ धमके.

सच ही है. विपदा अभी भी विकराल रूप धरे वहीं खड़ी है. घर परिवार वाले सबके चिंता करते हैं. यह तो कोरोना फाइटर्स ही है जो ऐसी स्थिति संभाले हुए हैं, और भयावह जमीनी हकीकत के सामने भी डटकर खड़े हुए हैं.

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Lockdown में छत पर सजा मंडप और हो गई शादी

ये बात तो है 16 अप्रैल की लेकिन आप भी जानिए कि भला क्यों और कैसे हुई ये अनोखी शादी ? दरअसल जहां एक ओर लोग कोरोना के कारण अपने घर में कैद हैं, सारी शादियां, सारे फंक्शन लोगों ने कैंसिल कर दिये हैं, सारे सेलिब्रिटीज ने भी अपनी पिक्चरें, सिंगर ने अपने कौन्सर्ट, सब कुछ कैंसिल किया हुआ है वहीं दूसरी ओर राजस्थान में एक अनोखी शादी देखने को मिली.

जी हां अब चूंकि ये लौकडाउन जैसी स्थिति में हुई है तो ये अनोखी शादी ही है. दरअसल राजस्थान सूरत के रहने वाले एक व्यक्ति ने कोरोना को ही चुनौती दे दी.उसने इस लॉकडाउन में शादी रचा ली. ना ही बैंड-बाजा था, ना ही बाराती, बस पंडित थे और दुल्हा-दुल्हन और हो गई शादी. घर की छत पर ही मंडप बनवाया, पंडित जी आएं, सीमित परिजन थे,और सभी ने मास्क पहन रखा था बस इतने ही लोगों के बीच में सात फेरे हुए, सभी रस्में अदा हुईं और हो गई शादी.

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जिस व्यक्ति की शादी हुई है उसका नाम दिशांक पूनामिया है और लकड़ी का नाम पूजा बरलोता है. इनकी शादी 16 अप्रैल को तय हुई थी लेकिन इस कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चक्कर में ये शादी टालने को मजबूर थे. लेकिन फिर दुल्हा-दुल्हन और उनके परिवार ने ये फैसला किया हम शादी उसी दिन करेंगे लेकिन सीमित लोग होंगे कोई नहीं आएगा. और फिर क्या था एकदम सादगी से दिनांक सोलह अप्रैल को ये विवाह संपन्न हो गया.

हालांकि इन्होंने काफी सपने संजोये थे कि राजस्थान में धूमधाम से सारी रस्में निभाएंगे जिसकी तैयारियां भी जोरो-शोरों से हो रही थीं. लेकिन इस कोरोना उने उनके सारे सपनों को तोड़ दिया. परिजनों का कहना था कि उनके पुरोहित हैं जिनकी राय ली गई इस विषय पर कि क्या करना चाहिए? फिर तो पुरोहित जी ने जो बताया उसके बाद एकमात्र ही उपाय था की शादी उसी तय किए हुए दिन कर दी जाए. पुरोहित जी ने बताया कि आने वाले डेढ़ साल तक शादी का कोई मुहूर्त नहीं है. और होगा भी तो ये उनके लिए ठीक नहीं होगा. फिर परिजनों ने ये फैसला लिया कि शादी कर दी जाए. अब भले ही लॉकडाउन के चलते तैयारियों पर पानी फिर गया हो लेकिन इन दो लोगों को शादी करने से तो कोरोना भी नहीं रोक पाया.

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खाने को कुछ नहीं था तो कोबरा सांप को मार कर ही खा गए

पेट की भूख क्या न करा दे. देश में जारी लौकडाउन के बीच लोगों को जरूरी चीजें मुहैया कराने में एक बार फिर से सरकार विफल रही है. यह विफलता भी नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के बाद देश में फैली अव्यवस्था सरीखा ही है जब गरीब लोगों की जेब खाली है, खाने के लाले पङ गए हैं और तो और सरकार से मदद मांगने के बावजूद भी कोई ठोस व स्थाई मदद नहीं मिल रही.

इस खबर ने चौंका दिया

ताजा मामला अरूणाचल प्रदेश का है जहां भूख से बिलबिलाते लोगों तक सरकारी मदद नहीं पहुंच सकी तो कुछ लोग एक विषैला कोबरा को ही मार कर खा गए. हालांकि राज्य के लोगों के लिए मांसाहार मुख्य आहार है मगर किंग कोबरा संरक्षित प्राणी है और इसे मारना अथवा पङकना गैरकानूनी है.

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मगर देश में लागू लौकडाउन से आम लोगों को बहुत परेशानियां झेलनी पङ रही हैं. केंद्र और राज्य की सरकारें गरीब और जरूरतमंद लोगों को भले ही मुफ्त राशन और नकद राशि देने का दावा कर रही है मगर इस बीच अरूणाचल प्रदेश से आई इस खबर ने सब को चौंका दिया है.

कई दिनों से भूखे थे

सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में घर में जरूरी राशन नहीं होने की वजह से कुछ लोग लगभग 10 फुट लंबे कोबरा को मार कर खा गए.

cobra

वायरल खबर के अनुसार 3 लोग एक मरे हुए कोबरा को गले में लटकाए खङे हैं. इन में से एक ने मास्क भी लगाया है. वे बता रहे हैं कि इस कोबरा को उन्होंने जंगल से पकङा है. घर में न तो आटाचावल है न ही सब्जी. हम कई दिनों से भूखे हैं लिहाजा अब इस सांप को खाएंगे.

खारिज किया सरकार ने दावा

उधर मामला अरूणाचल प्रदेश सरकार तक पहुंचा तो सरकार ने इस दावे को खारिज कर दिया और दावा किया कि राज्य में चावल की कोई कमी नहीं है.

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सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया,”राज्य में हर जगह लगभग 3 महीने का स्टौक है और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है.”

अब कानूनी काररवाई तय

मालूम हो कि अरूणाचल प्रदेश में  किंग कोबरा सहित कई दुर्लभ प्रजातियों के सांप बङी संख्या में पाए जाते हैं. वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत किंग कोबरा संरक्षित प्राणी है जिस को मारना अथवा पङकना गैरकानूनी है, इसलिए इन लोगों पर अब कानूनी कार्रवाई होनी तय है. इस के शिकार करने वाले को 5 साल तक का जेल और 25 हजार का जुरमाना भी हो सकता है.

सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार, “इन लोगों पर केस दर्ज हो चुका है और फिलहाल ये तीनों अभी फरार हैं. इन्हें जल्द ही पकङ कर उचित कानूनी काररवाई की जाएगी.”

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राज्य के डिप्टी चीफ, वाइल्ड लाइफ वार्डन उमेश कुमार ने मीडिया से बातचीत में बताया,”किंग कोबरा के शिकार की सूचना मिलने पर जब विभाग की टीम पहुंची तो तो जांच के बाद इस घटना की पुष्टि हुई है. आरोपी को पकङने की कोशिश की गई तो गांव वाले की आङ ले कर वे फरार हो गए.”

इस मामले पर राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने भी बयान दिया है और कहा है कि जंगली जानवरों का शिकार करना कानूनी अपराध है और संबंधित लोगों के खिलाफ हर हाल में काररवाई होगी.

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