अस्पताल में अफरा तफरी का माहौल था. हर ओर भय में जकड़ी निगाहें और चिंता में डूबे चेहरे थे. ऐसा समय आ गया जिसके बारे में किसी ने सोचा भी ना था. आज तक जितनी पीढ़ियां पैदा हुई कौन जानता था कि एक यह वक्त भी आएगा जब इंसान ही इंसान का दुश्मन लगने लगेगा और वह भी बिना किसी दोष के. कोरोना जैसे छोटे से वायरस ने किसी एक समाज को नहीं अपितु समूची दुनिया को हिला कर रख दिया. बीमारी ऐसी जो हर रोज तेजी से फैल रही और जिसका कोई इलाज भी नहीं. कोरोना पर देश में गंभीरता कम और चुटकुले ज्यादा बनने लगे. कई अफवाहें भी उड़ी. लेकिन जरूरी नहीं कि हर अफवाह केवल अफवाह ही हो. अनपढ़ों के मोहल्ले से आती अफवाहें और उनसे उपजी आशंका और भय का आधार झूठा हो यह जरूरी नहीं.
बीमारी से जनता को बचाने के लिए लॉक डाउन किया गया. जो लोग दूसरे देशों में फंस गए थे वो अपने घर आने को आतुर, मजदूर वर्ग जो दूसरे राज्यों में फंस गया वह भी अपने घरों को लौटने को बेचैन. सारी सुविधाओं को विराम लग चुका था लॉक डाउन के कारण. ऐसे में कोई करे तो क्या करे, खासकर वह जिन्हें ऐसी आपदा में सारे देश की सेवा करनी है जैसे हमारे सफाई कर्मचारी, पुलिस व डॉक्टर.
डॉ. बंसी लाल जी भी एक सरकारी कर्मचारी हैं जो इस आपदा के समय में अपने अस्पताल में आने वाले मरीजों की देखभाल करना चाहते हैं. सरकारी अस्पताल के अधीक्षक होने के नाते उनके कई कर्तव्य भी हैं. लेकिन कई बार केवल हक की लड़ाई के लिए नहीं बल्कि कर्तव्य निभाने के लिए भी ठोकरें खानी पड़ती है.
“कैसे हैं डॉक्टर साहब?”, डॉ. महेंद्र ने अपना मास्क एड्जस्ट करते हुए पूछा. डॉ. महेंद्र भी इसी सरकारी अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर थे.
“अनिश्चितता के इस वातावरण में जैसे हो सकते हैं, बस वैसे ही हैं डॉक्टर साहब”, डॉ बंसीलाल ने उत्तर दिया. दोनों की अच्छी घुटती थी सो कुछ देर बातें करके लंबी सर्विस ड्यूटी को थोड़ा विराम दे लिया करते.
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तभी वहाँ एक जूनियर डॉक्टर आयी और ज़रा तल्खी में कहने लगी, “सर, पिछले न जाने कितने हफ्तों से हम लोग यहां अस्पताल में लगातार ड्यूटी कर रहे हैं. हम अपने लिए कुछ नहीं मांगते लेकिन अगर हम ढंग का खाना भी नहीं खाएंगे तो हमारी इम्यूनिटी का क्या होगा? क्या फिर हमें ही कोरोना नहीं हो जाएगा? क्या आपने हमको दिया जाने वाला खाना देखा है – फ्रिज से निकाला हुआ ठंडा खाना! जिसकी मात्रा भी इतनी कम है कि किसी का पेट उसमें ना भरे. नाश्ते में हमें दो ब्रेड और एक केला देते हैं, लंच और डिनर में ठंडे चावल और जरा सी दाल देते हैं. कितनी बार कह दिया कि यह खाना खाने लायक नहीं है. आप लोग हमसे क्या उम्मीद करते हैं?” ज़ाहिर था कि ये शिकायत केवल इसी एक डॉक्टर की नहीं अपितु सभी डॉक्टरों की सामूहिक शिकायत थी जो ये अकेली अपने सीनियर्स तक पहुंचाने आई थी.
डॉ बंसीलाल उसकी बात सुनकर कुछ मायूस हो उठे. वो तो पहले से ही वर्तमान स्थिति के कारण परेशान थे. उन्होंने बस इतना ही कहा, “राष्ट्रीय आपदा के इस समय में जो आप सब का योगदान है उसे पूरा देश याद रखेगा.”
जूनियर डॉक्टर अपनी भड़ास निकालकर चली गई तो डॉ महेंद्र कहने लगे, “आपकी बात पर विश्वास करने का मन तो करता है परन्तु जो खबरें सुन रहे हैं उनसे तो कुछ और ही लग रहा है. कहीं डॉक्टरों को सोसायटी में आने नहीं दिया जा रहा, कहीं एम्ब्युलेंस पर पथराव हो रहा है. चेन्नई में तो हद ही हो गई जब कोरोना के कारण डॉ सायमन की मृत्यु के उपरांत उन्हें दफनाने भी नहीं दिया जा रहा था. उनके मित्र डॉ प्रदीप कुमार ने स्वयं गड्ढा खोदकर उन्हें दफनाया!”
“ऐसी खबरों से हमारा मनोबल कैसे न गिरे…”, डॉ बंसीलाल कह रहे थे तभी हेड नर्स ने आकर बताया कि सीएमओ की जानपहचान का एक मरीज़ दाखिल हुआ है. उनके लिए खास कमरा, साफ बिस्तर का इंतजाम किया जा रहा है. “पहले आओ पहले पाओ का जो जाल फैला हुआ है इसका फायदा केवल अमीर और रसूख वाले लोग उठा पा रहे हैं क्योंकि इस लॉक डाउन में केवल उन्हीं के बस में है ये पता करना कि कहां क्या मिल रहा है. कहां पर वेंटिलेटर हैं, कहां पर बेड उपलब्ध है और वही सही डॉक्टर के पास समय पर पहुंच पाते हैं. आम आदमी तो बेचारा दर-दर की ठोकर खाता भटकता फिरता है.”
डॉ बंसीलाल की बात से डॉ महेंद्र ने सहमति जताई. दोनों बात कर अपना मन हल्का कर रहे थे तभी बंसी लाल जी की पत्नी का फोन आया.
“अरे, क्यों इतनी चिंता करती हो ? सभी तो यहां काम कर रहे हैं – डॉक्टर्स है, नर्सें हैं, वार्डबॉय हैं, सफाई कर्मचारी हैं, टेस्ट करने वाले और उन्हें जांचने वाली टीम्स है, और भी न जाने कितना स्टाफ काम कर रहा है. तुम अगर यूं बार बार मुझ पर दबाव डालोगी कि मैं घर आ जाऊं तो यह न तो संभव है और ना ही मैं इस तरीके से काम कर पाऊंगा… अब नाराज क्यों होती हो? मैं समझता हूं इसके पीछे तुम्हारी चिंता है, मेरे लिए फिक्र है.” बंसी लाल जी की पत्नी ने फोन काट दिया.
“हम सभी के घरवालों का यही हाल है. सभी एक ही चिंता में घुल रहे हैं कि कहीं हमें भी कोरोना ना हो जाए, और ठीक भी है. लगभग हर अस्पताल से डॉक्टरों और नर्सों को कोरोना होने की खबरें आ ही रही है”, डॉ महेंद्र ने भी अपना पुट लगाया.
डॉ बंसीलाल के पास अस्पताल की कोऑर्डिनेटर का फोन आया और उन्होंने बताया कि पीपीई किट्स खत्म हो रहे हैं, और की जरूरत है. उस पर टेस्टिंग किट्स भी कम पड़ रहे हैं.
“हम डॉक्टरों और नर्सों को युद्ध स्तर पर काम करवा रहे हैं लेकिन अगर अच्छी क्वालिटी की पीपीई किट्स उन्हें नहीं दे सके तो यह उनके लिए मौत का खेल बन जाएगा. यही बात टेस्टिंग किट्स पर भी लागू होती है. बिना टेस्टिंग के डॉक्टरों को इतने सारे मरीजों में जाने देना एक तरह से उनकी जान से खेलने वाली बात होगी”, कोऑर्डिनेटर अपनी बात पर ज़ोर डाल रही थी.
डॉ बंसीलाल क्या करें! सामान काफी कब मात्रा में आ रहा है. क्या करें सरकारी काम की अपनी एक गति होती है. ऐसे में प्राइवेट सेक्टर से सीएसआर के माध्यम से काफी सामान आने की उम्मीद रहती है लेकिन अधिकतर सामान लॉक डाउन के कारण दूर दूसरी जगहों से आ नहीं पा रहा.
एक युगल जोड़ा जिसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी एंबुलेंस में अस्पताल लाया गया. सरकारी अस्पताल के हालात देखकर मयंक और प्रेरणा उद्वेलित हो उठे. अस्पताल में बेहद भीड़ थी. सभी लोग आसपास बैठे थे कोई ऊपर बेंचो पर तो कोई जमीन पर. हांलाकि अधिकतर लोगों ने मास्क लगाए हुए थे लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग कर पाना शायद इतनी जगह में संभव नहीं था.
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वहां उस समय ऑन ड्यूटी जो डॉक्टर थी उसने दूर से ही प्रेरणा से उसके सिम्टम्स पूछे. प्रेरणा के बताने पर उन्होंने कहा कि आप दोनों को कोरोना का टेस्ट करना पड़ेगा. रिपोर्ट 48 घंटे में आ जाएगी. और अगर आप कोरोना का टेस्ट करवाते हैं तो आपको आईसोलेट होना पड़ेगा, “अब आप अपना सैंपल दे दो.”
यूं भीड़ में पास पास बैठने से मयंक की चिंता और बढ़ गई. उसे आशंका होने लगी कि यदि इनमें से कोई कोरोना पॉजिटिव निकला तो अब उन्हें कोरोना होने के पूरे चांस थे.
“सरकार इतना शोर मचा रही है की सोशल डिस्टेंसिंग करो और आप लोगों ने यहां पर इतनी भीड़ मचा रखी है. ऐसे करेंगे आप लोगों का इलाज? जिनको कोरोना नहीं है उन्हें भी हो जाएगा”, अस्पताल की हालत देखकर मयंक जोर जोर से चिल्लाने लगा. आइसोलेशन की बात सुनकर अधिकतर लोग ऐसे ही बौखला जाते हैं.
स्थिति को काबू करने पास के कॉरिडोर में खड़े बंसी लाल जी वही पहुंच गए और मयंक व प्रेरणा को आश्वस्त करने लगे की वह हालातों को संभाल लेंगे.
“क्या संभालेंगे आप? जब तक यह सच्चाई लोगों तक नहीं पहुंचेगी, इस जगह का कुछ नहीं होगा. पर आप चिंता मत कीजिए, मैंने यहां का एक वीडियो बनाकर अपने ट्विटर अकाउंट पर डाल दिया है. अब जल्दी ही कुछ होगा इंटरनेट में बहुत ताकत है”, मयंक ने तल्खी से बोला.
तभी वहां एक भिकारिन सी दिखने वाली बुढ़िया को पुलिस लेकर पहुंची.
“इसे मास्क दिलवाइए साहब”, पुलिसवाला बोला.
“अरे, कहां से दिलवाऊँ! सब कुछ सरकार की मर्जी से कहां होता है सरकारी महकमों में”, फिर बंसी लाल जी धीरे से पुलिसवाले के कान में खुसफुसाए, “अपनी कमाई तो सबको चाहिए न, सो मास्क तो अब है नहीं.” पुलिसवाला फौरन उनकी बात का आशय समझ गया.
सैंपलिंग के बाद मयंक और प्रेरणा को आइसोलेशन के लिए ले जाया गया. प्रेरणा को लेडीज वार्ड भेज दिया गया और मयंक को जेंट्स वार्ड में ले जाया गया.
जेंट्स और लेडीज़ दोनों का वॉशरूम कॉमन था. जब मयंक को एक रूम दिया गया तो वहां चारपाई पर बेडशीट के नाम पर एक पतला सा कपड़ा पड़ा हुआ था. मयंक को दूसरा कपड़ा दिया गया और बोला गया कि आप पुराना बेडशीट हटा कर ये बिछा लेना.
रात के एक बज रहे थे, मयंक ने बेड शीट चेंज की और सो गया.
उसके बाद जब वो सुबह उठा तो फ्रेश होने बाथरूम गया. जब दिन के उजाले में वह बाहर पहुंचा तो उसने अपने आसपास का नजारा देखा – बाथरूम बेहद गंदा था, शायद कई लोगों के इस्तेमाल करने के कारण. इंडियन स्टाइल टॉयलेट का बुरा हाल था, वाश बेसिन में पान की पीक पड़ी थी, सीढ़ियों के नीचे कूड़े का ढेर जमा था जिससे काफी बदबू आ रही थी. हर विभाग बहुत कम लोगों के साथ काम कर रहा था इसलिए हालात भी वैसे ही थे.
मयंक का मन खराब हो गया. लेकिन क्या करता मजबूरी थी, इस्तमाल तो यही करना पड़ेगा. वहां रह रहे करीब 30 लोगों के लिए एक ही साबुन की बट्टी थी जिससे सभी नहा धो रहे थे. मयंक ने अपने दिल को बहलाया कि केवल 48 घंटे की बात है, काट लेंगे
वहां बदलने के कपड़ों के ना होने की वजह से मयंक और प्रेरणा की हालत खराब हो रही थी.
48 घंटे के बाद जब मयंक पूछने गया तो उसे बताया गया कि इतनी जल्दी नहीं आती है रिपोर्ट, 3-4 दिन इंतजार करना होगा.
मयंक ने सीएमओ को कॉल करना शुरू किया किंतु उन्होंने कॉल नहीं उठाया. फिर उसने डिप्टी सीएमओ को भी कॉल किया लेकिन फोन नहीं उठा. काफी हाथ-पैर मारने के कारण मयंक का फ्रस्ट्रेशन बहुत बढ गया.
दरअसल मयंक वाले कमरे के साथ लगे कमरे में विदेश से आए एक लड़के को शिफ्ट किया गया. वह लड़का खुद ही अपना भारी सामान सीढ़ियों से घसीटा हुआ कमरे तक लाया, और वहां पहुंचकर गंदगी और गर्मी के कारण बेहोश हो गया. कोई उसे उठाने, उसे छूने के लिए, उसके पास जाने को राजी नहीं था.
एक वार्डबॉय ने तो बेहद रुखाई से ये तक।कह कि दूर रहो हमसे, तुम सब मरने वाले हो…
अपने अपने घरों से जुदा, अपने परिवारजनों से दूर, चिंता की इस घड़ी में ऐसा कुछ सुन लेने से किसी पर क्या बीत सकती है यह वही जानता है.
दिन चढ़ते हुए जब मयंक और प्रेरणा को खाना दिया गया तो वह भी ठीक नहीं था. इस बार मयंक को फिर गुस्सा आया और उसने अपने बेड के पास ही खड़े होकर चिल्लाना शुरू किया, “इतनी बड़ी महामारी के समय में आप लोग इतने सारे लोगों को एक साबुन की टिक्की दे रहे हैं, पीने के पानी की खुली बोतलों में दे रहे हैं, खाने का हालत देखिए कितना खराब खाना है. क्या इस तरह लड़ेगा भारत इस बीमारी से?”
इस बात का जवाब जब तक बंसी लाल जी देते तब तक क्षेत्र की कॉरपोरेटर, जो वहां दौरे पर आई हुई थी, उन्होंने बीच बचाव करना शुरू कर दिया. उन्होंने वहां मौजूद सरकारी मुलाजिमों को ऑर्डर देने शुरू किए. जो सरकारी मुलाजिम बंसी लाल जी की बात पूरी तरह से नहीं मानते थे वह कॉरपोरेटर साहिबा के सामने उनकी बात सुनने लगे.
“आप किसी प्रकार की कोई चिंता न करें. आपको जो चाहिए होगा वह हम दिलवा देंगे”, कॉरपोरेटर साहिबा मयंक द्वारा उठाई गई मांगों को जांचने लगी और वहां मौजूद मुलाजिमों से उनको पूरा करने की बात कहने लगी, “आप लोगों को आम आदमी की जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए. यह जो मांग रहे हैं इनके लिए फौरन लेकर आइए”.
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उनके कहते ही मयंक को एक नई साबुन की बट्टी दी गई, पीने के पानी को बदलकर बिसलेरी की बोतल दी गई.
इस प्रकरण से बंसी लाल जी बेहद चिढ़ गए. आखिर वह भी तो यही चाहते थे कि अस्पताल में जो मरीज आए उनकी अच्छी तरह देखभाल हो, उन्हें किसी प्रकार की कोई शिकायत ना हो. और वह इसके लिए पूरी मेहनत, पूरे परिश्रम से कदम उठाने के भरसक प्रयास कर रहे थे. लेकिन उनके मातहत थे तो सरकारी मुलाजिम ही और उनके ऊपर जितना बंसी लाल जी का जोर चलता वह उतना ही सुन रहे थे. लेकिन एक सत्ताधारी के दृश्य में आ जाने से पूरी काया ही पलटने लगी थी.
एक तो भयावह जमीनी स्तर पर काम करने की जटिल स्थिति, उसपर सत्ताधारियों के दखल की मार!
अगली शाम तक मयंक व प्रेरणा की रिपोर्ट आ गईं. उन दोनों ने संतोष की सांस ली जब दोनों की ही रिपोर्ट नेगेटिव आई. मगर मयंक का मन फिर परेशान हुआ जब उसने देखा कि इस बार उन्हें घर छोड़ने जो एंबुलेंस जा रही है उसमें भी चार-पांच लोग बैठे हैं. लेकिन क्या कर सकते थे. यह लॉकडाउन की सिचुएशन की बात है जिसमें कोई भी आने जाने का साधन सड़क पर नहीं मिलता है. और इस कारण मयंक और प्रेरणा एंबुलेंस में ही लौटने को विवश थे. एहतियातन इस बार इन दोनों के चेहरे पर मास्क था और उन्होंने किसी चीज को हाथ भी नहीं लगाया.
रास्ते में ड्राइवर बताने लगा, “ऐसे हालात हो गए हैं कि मैं आपको क्या बताऊं. मैं खुद 4 दिन से घर नहीं गया हूं. घर वाले अलग परेशान रहते हैं. जो आप और हम जैसे आम लोग हैं उनके सोलेशन के लिए हॉस्टलों व स्कूलों जैसी जगहों पर इंतजाम किए गए हैं. वरना जो खास लोग हैं या हमारे साहब लोगों के रिश्तेदार हैं उनके लिए तो फाइव स्टार बंदोबस्त किए जाते हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से कोई कमी पेशी हो रही है. बस जमीनी हकीकत अलग है.”
यहां एंबुलेंस का ड्राइवर परेशान है और वहां बंसी लाल जी के घर वाले पूरा जोर लगा रहे हैं कि वह किसी भी बहाने अब अस्पताल में न जाया करें. उन्हें भी डर है कि कहीं कोरोना हमारे घर ही ना आ धमके.
सच ही है. विपदा अभी भी विकराल रूप धरे वहीं खड़ी है. घर परिवार वाले सबके चिंता करते हैं. यह तो कोरोना फाइटर्स ही है जो ऐसी स्थिति संभाले हुए हैं, और भयावह जमीनी हकीकत के सामने भी डटकर खड़े हुए हैं.
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