कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने शुरू किए गए लौक डाउन का असर हर जगह दिखाई दे रहा है. फल, फूल, सब्जी उगाने वाले किसानों के साथ देश के विभिन्न इलाकों में पान की खेती करने वाले किसान भी इससे अछूते नहीं हैं. बिना किसी सुरक्षा उपायों के कोरोना वायरस से लड़ी जा रही इस जंग से गरीब किसान जिंदा बच भी गया तो कर्ज के बोझ और भूख से मर जायेगा.

25 मार्च से पूरे देश में लागू किए गए लौक डाउन में पान की दुकानों के बंद होने से पनवाड़ी के साथ पान पत्तों की खेती से जुड़े किसान परिवार की हालत खराब है. पान के पत्तों की तुड़ाई और बिक्री बंद होने से बरेजों में लगी पान की फसल सड़ने की कगार पर  है. पान उत्पादक किसानों की साल भर की मेहनत पर पानी फिर गया है और उनके समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

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मध्यप्रदेश में पान की खेती मुख्य रूप से  छतरपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर, दतिया, पन्ना, सतना, रीवा, सागर, दमोह, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, मंदसौर, रतलाम, खंण्डवा, होशंगावाद, छिदवाड़ा, सिवनी, मंडला, डिंडौरी सहित 21 जिलों में होती है. वैसे तो प्रदेश में चौरसिया जाति के लोगों का व्यवसाय पान की खेती से जुड़ा हुआ है,लेकिन पान बरेजों में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग भी मजदूरी का काम करते हैं. चौरसिया समाज के लोग पान के पत्तों को उगाने के अलावा पान की दुकान पर भी पान और पान मसाला बेचने का धंधा करते हैं.

नरसिंहपुर जिले में करेली तहसील के गांव निवारी, तेंदूखेड़ा तहसील के पीपरवानी और गाडरवारा तहसील के गांव बारहा बड़ा में पान की खेती होती है.

अकेले नरसिंहपुर जिले में चार सौ हेक्टेयर में होने वाली पान की खेती के व्यवसाय से लगभग एक हजार पान उत्पादक किसानों की आजीविका चलती है.पान उत्पादकों द्वारा जिले के बाहर भी अपने पान पत्ते की सप्लाई की जाती है.पिछले एक महीने में इन किसानों की फसल की तुड़ाई और सप्लाई न होने से धीरे धीरे वह सड़ने लगी है.

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निवारी गांव में चौरसिया जाति के एक सौ से अधिक परिवार तीन पीढ़ियों से  पान की खेती कर रहे हैं. गांव के 75 साल के बुजुर्ग खेमचंद चौरसिया अपना दर्द वयां करते हुए कहते हैं -” मेरे दस सदस्यों का परिवार पान की खेती से गुजारा करता है,लेकिन महिने भर से इस लौक डाउन ने खाने पीने को मोहताज कर दिया है”. करेली के साप्ताहिक बाजार में पान की थोक और फुटकर बिक्री करके मिलने वाले रूपयों से रोजमर्रा की चीजों को खरीद कर रोज़ी रोटी चलाते हैं. वे सरकार को कोसते हुए कहते हैं – “ये सरकार की गलत प्लानिंग के कारण हुआ है. जब जनवरी माह में ही दूसरे देशों में कोरोना का अटैक शुरू हो गया था ,तो हमारी सरकार विदेशों में रह रहे अमीर, नौकरशाह और कारपोरेट जगत के लोगों को हवाई जहाज से भारत ला रही थी. यदि उसी समय विदेशों से आवाजाही बंद कर देते तो आज ये दिन न देखने पड़ते”.

बारहा बड़ा के पान उत्पादक ओमप्रकाश  चौरसिया बताते हैं कि पान की फसल नाजुक फसलों में शुमार होती है. पान के पत्तों को तोड़ने के बाद ज्यादा दिनों तक उसे सहेजकर नहीं रखा जा सकता है और पान पत्तों की तुड़ाई भी एक निश्चित अंतराल पर करना होती है.लौक डाउन की वजह से पहले से तोड़ी गई फसल की सप्लाई न होने से सड़ गई है.वे कहते हैं कि उनके पान की सप्लाई छिंदवाड़ा और सागर जिले में तक होता है. मोदी के पहले ही नरसिंहपुर जिले के अफसरों ने 23 मार्च से लौक डाउन कर दिया . इसकी वजह से  पान के रैक नहीं पार्टियों तक न पहुंच कर ट्रांसपोर्ट में ही सड़ गये.अफसरों की सख्ती अब हमें रोजी रोटी को मोहताज रख रही है.

पीपरवानी गांव के औंकार चौरसिया का कहना है कि हमारे गांव के किसानों की आजीविका का इकलौता साधन पान की खेती है. बास की लकड़ी से बने बरेंजो में लगी पान की बेलाओं में  नियमित रूप से पानी देकर सहेजना पड़ता है. कोरोना की महामारी पान उत्पादक किसानों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बनकर आई है. पान की बिक्री न होने और तुड़ाई न कर पाने के कारण हरी भरी फसल सड़ने लगी है.वे  कहते हैं कि सरकार अभी तक किसी प्रकार की मदद के लिए नहीं आगे नहीं है.गांव के अगड़े जाति के लोग तो मोदी के भजन गाने में इतने मस्त हैं कि उन्हें गरीब मजदूर की कोई फ़िक्र ही नहीं है. धर्म का धंधा करने वाले ये लोग कभी थाली, ताली बजाने का फरमान सुनाते हैं तो कभी दिया जलाने का.ये सब नौटंकी न करो तो गांव के लोग शंका की निगाह से देखते हैं.

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निवारी गांव के पढ़े लिखे युवा पंकज चौरसिया बताते हैं कि सप्ताह के अलग-अलग दिनों में जिले के गांव कस्बों में लगने वाले हाट बाजारों में जाकर वे पान की बिक्री से करते हैं और इसी  आमदनी से घर का चूल्हा चौका चलता है . 22 मार्च से पूरा महिना बीतने को है ,पान पत्तों की कोई बिक्री न होने से गुजर बसर मुश्किल हो गई है. पंकज बताते हैं कि उनके पास थोड़ी सी खेती में गेहूं चना की फसल भी हो जाने से राहत है, परन्तु बरेजों में मजदूरी कर रहे लोगों  के परिवार पर रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.लौक डाउन में सब्जियां बनाने तेल ,मसाले तक नहीं मिल रहे, मजबूरन गर्म पानी में उबालकर नमक मिलाकर काम चला रहे हैं.

लंबे समय से मध्यप्रदेश के पान की खेती करके वाले किसान पान विकास निगम बनाने की मांग कर रहे हैं. विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदायें आने की स्थिति में शासन प्रशासन द्वारा इन कृषकों को समय पर उचित लाभ नहीं मिल पाता हैं, जिस कारण से मजबूर होकर किसानों का इस खेती से मोह भंग भी होने लगा है.

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