मर कर भी न होंगे जुदा

उत्तर प्रदेश का एक शहर एवं जिला मुख्यालय है फिरोजाबाद. यह शहर कांच की चूडि़यों के लिए प्रसिद्ध है. इसी जिले के थाना बसई मोहम्मदपुर के गांव आलमपुर कनैटा में राजवीर सिंह लोधी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की पत्नी की करीब 3 साल पहले मौत हो गई थी.

राजवीर की गांव में आटा चक्की थी. उस के 2 बेटे बलजीत व जितेंद्र के अलावा 2 बेटियां राधा, ललिता उर्फ लता थीं. वह एक बेटे और एक बेटी की शादी कर चुका था. छोटा बेटा जितेंद्र पिता के साथ चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि ललिता उर्फ लता गांव के ही स्कूल में पढ़ रही थी.

इसी गांव में रामवीर सिंह लोधी भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह निजी तौर पर पशुओं का इलाज करने का काम करता था. उस के 4 बेटों में अनिल कुमार सब से छोटा था. वह बीएससी कर चुका था और नौकरी की तलाश में था. अनिल का बड़ा भाई जितेंद्र दिल्ली के एक होटल में नौकरी करता था.

ललिता 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. जब वह स्कूल जाती, तो रास्ते में अकसर उसे गांव का युवक अनिल मिल जाता था. वह उसे चाहत भरी नजरों से देखता था. उस की उम्र करीब 20 साल थी. लता ने भी उन्हीं दिनों जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. अनिल लता की जाति का ही था. लता को भी अनिल अच्छा लगता था. उस का झुकाव भी अनिल की तरफ होने लगा. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे.

दोनों के बीच यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करने में सकुचा रहे थे, क्योंकि उन का यह पहलापहला प्यार था. आखिर एक दिन अनिल ने हिम्मत कर के लता से पूछ ही लिया, ‘‘लता, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

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लता को तो जैसे इसी पल का ही इंतजार था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी पढ़ाई तो ठीक चल रही है, पर तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं अच्छा हूं,’’ अनिल ने जवाब दिया.

इस औपचारिक बातचीत के बाद दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर भी दे दिए थे, जिस से उन के बीच फोन पर भी बातचीत होने लगी. रही बात मिलने की तो लता के स्कूल जातेआते समय अनिल पहुंच जाता था, जिस से वे एकदूसरे से मिल लेते थे.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभीकभी लता सहेली के पास जाने की बात कह कर घर से निकल जाती और अनिल से एक निश्चित जगह पर मिल लेती थी. उन के प्रेम संबंध यहां तक पहुंच गए थे कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.

उस समय अनिल बेरोजगार था. उस ने लता से वादा किया कि शादी के लिए हम तब तक इंतजार करेेंगे, जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता. नौकरी लगने के बाद वह उसे अपने साथ ले जाएगा. यह बात सुन कर ललिता बहुत खुश हुई.

दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए उन्हें पूरा विश्वास था कि दोनों के घर वालों को उन की शादी पर कोई ऐतराज नहीं होगा. पिछले डेढ़ साल से दोनों का प्रेम प्रसंग बिना किसी बाधा के चल रहा था.

मिलने और मोबाइल पर बात करने में दोनों पूरी सावधानी बरतते थे. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. किसी तरह लता के परिजनों को उन के प्रेम संबंधों की भनक लग गई.

लिहाजा उन्होंने लता को समझाया कि वह अनिल से मिलना बंद कर दे. इस से परिवार की बदनामी ही हो रही है. लता ने उस समय तो उन से वादा कर दिया कि वह घर की मानमर्यादा का ध्यान रखेगी. उस के वादे से घर वाले निश्चिंत हो गए.

2-4 दिनों तक तो लता ने अनिल से बात नहीं की. लेकिन इस के बाद प्रेमी की यादें उसे विचलित करने लगीं. उधर अनिल भी परेशान रहने लगा. दोनों की यह बेचैनी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

दिल की लगी नहीं छूटी

घर वालों की बातों को दरकिनार कर के लता ने अनिल से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह सावधानी बरतने लगी ताकि घर वालों को पता न चले.

लेकिन एक बार लता की मां ने रात में उसे मोबाइल पर बात करते देख लिया. उस ने यह बात पति राजवीर को बताई. उस ने जब लता का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह अनिल से ही बात कर रही थी.

यह जान कर राजवीर का खून खौल उठा. उस ने लता को बहुत लताड़ा और उस पर पहरा लगा दिया. इतना ही नहीं, राजवीर ने इसकी शिकायत अनिल के पिता रामवीर सिंह से भी कर दी. रामवीर ने भी अनिल को बहुत डांटा.

अब दोनों पर ही पाबंदियां लग गई थीं, जिस से वे बेचैन रहने लगे. लता का फोन भी उस के घर वालों ने अपने पास रख लिया था. लता किसी भी तरह अनिल से बात करना चाहती थी. एक दिन लता को यह मौका मिल गया. घर पर उस की सहेली मिलने आई थी. लता ने उस के मोबाइल फोन से अनिल से बात की और कहा कि यह दूरियां अब उस से सही नहीं जा रही हैं.

तब अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘लता, कुछ दिनों के लिए मैं भाई के पास दिल्ली जा रहा हूं. जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तो मैं गांव आ जाऊंगा.’’

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लता को भी अनिल की बात सही लगी और उस ने न चाहते हुए भी दिल पर पत्थर रख कर उसे दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. अनिल अपने भाई जितेंद्र के पास दिल्ली पहुंच गया. जितेंद्र ने अनिल की नौकरी एक निजी अस्पताल में लगवा दी.

दिल्ली जा कर अनिल के नौकरी करने की जानकारी लता के पिता राजवीर को हुई तो उस ने राहत की सांस ली. उस ने निर्णय लिया कि मौका अच्छा है, क्यों न लता के हाथ पीले कर दिए जाएं. लिहाजा आननफानन में उस ने लता के लिए लड़का तलाशना शुरू कर दिया गया.

यह तलाश जल्द ही पूरी हो गई. एटा जिले के जलेसर नगर में सुनील नाम का लड़का पसंद कर लिया गया. शादी की बात भी पक्की कर दी गई. दोनों पक्षों ने इसी साल नवंबर महीने में देवउठान के पर्व पर शादी करने की बात तय कर ली.

लता को जब अपनी शादी तय होने की बात पता चली, तो उस की नींद उड़ गई. क्योंकि वह तो अनिल की दुलहन बनने का सपना संजोए बैठी थी. लता ने अपनी शादी का विरोध किया लेकिन घर वालों के आगे उस की एक नहीं चली.

अनिल भी उस समय दिल्ली में था. लता ने उसे फोन कर के अपनी शादी तय होने की बात बता दी. यह बात सुन कर वह भी परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करे.

जुलाई के पहले सप्ताह में गोदभराई की रस्म संपन्न हो गई. लता गोदभराई के दिन चाह कर भी किसी से कुछ नहीं कह सकी. वह उदास थी. उस का दिल रो रहा था. वह अनिल से मिलने के लिए तड़प रही थी.

15 अगस्त को रक्षाबंधन था. लता को पता था कि रक्षाबंधन पर अनिल गांव जरूर आएगा. उस ने सोचा तभी अनिल से मिल कर अपने मन की बात कहेगी. इतना ही नहीं, लता ने निर्णय ले लिया था कि अनिल के गांव आने पर वह अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ अनिल के साथ शादी कर लेगी, चाहे इस के लिए उसे अपना घर छोड़ कर भागना ही क्यों न पड़े.

प्रेमी के लिए तड़प रही थी लता

लेकिन लता के अरमानों पर उस समय बिजली गिर गई, जब रक्षाबंधन के दिन भी अनिल गांव नहीं आया, इस से वह बहुत निराश हुई. घर वालों ने लता को उस का मोबाइल फोन लौटा दिया था. लता ने अनिल को फोन किया तो उस ने बताया कि छुट्टी नहीं मिलने की वजह से वह इस बार घर नहीं आ सका. लेकिन अगले महीने गांव जरूर आएगा.

लता को अब तसल्ली नहीं हो रही थी. उस के घर वालों ने शादी की खरीदारी शुरू कर दी थी. उसे अपने ही घर में एकएक दिन काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था. सारीसारी रात वह बिस्तर पर करवटें बदलती रहती. उस ने एक दिन रात में ही निर्णय लिया, जिस की भनक उस ने अपने परिजनों को नहीं लगने दी.

16-17 अगस्त, 2019 की रात को जब लता के घर वाले सोए हुए थे, सुबह 4 बजे वह घर से गायब हो गई. परिजन जब सो कर उठे तो ललिता घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा कि वह मंदिर गई होगी. जब काफी देर तक वह वापस नहीं आई तो उस की तलाश की गई. उस का मोबाइल भी बंद था.

बदनामी के डर से इस की सूचना पुलिस को भी नहीं दी गई. सुबह के समय गांव के कुछ लोगों ने ललिता को बाइक पर किसी युवक के साथ जाते देखा था. यह जानकारी राजवीर सिंह को मिली तो उस ने बदनामी की वजह से यह बात भी पुलिस तक को बताना ठीक नहीं समझा.

राजवीर व उस के परिवार वालों को शक था कि ललिता अनिल के पास दिल्ली चली गई होगी. राजवीर ने रामवीर से दिल्ली में रह रहे उस के बेटे अनिल का मोबाइल नंबर ले कर उस से बात की. अनिल ने बताया कि लता उस के पास नहीं आई है. इस के बाद घर वाले लगातार लता के मोबाइल पर फोन करते रहे, लेकिन उस का फोन बंद मिला. 17 अगस्त की दोपहर में राजवीर ने जब लता को फोन मिलाया तो उस से बात हो गई.

19 अगस्त, 2019 की सुबह थाना मटसेना के आकलपुर गांव की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने गांव के बाहर बेर की बगिया में एक पेड़ से फंदों पर 2 शव लटके देखे. इन में एक शव युवक का था और दूसरा युवती का.

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यह देख कर महिलाएं भाग कर घर आईं और यह बात लोगों को बता दी. इस के बाद तो आकलपुर गांव में कोहराम मच गया. जिस ने सुना, वही बगिया की ओर दौड़ पड़ा.

सूरज की पौ फटतेफटते वहां सैकड़ों की भीड़ जुट गई. गांव के लोगों ने पेड़ पर शव लटके देख पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानप्रभारी मोहम्मद उमर फारुक पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने फोटो खींचने के बाद दोनों शव नीचे उतरवाए. उन की तलाशी ली तो दोनों के पास आधार कार्ड मिले. पुलिस को पता चला कि मृतक युवक आलमपुर कनैटा निवासी रामवीर का 20 वर्षीय बेटा अनिल कुमार था, जबकि मृतका उसी गांव के रहने वाले राजवीर की बेटी ललिता उर्फ लता थी.

थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी अपने आला अधिकारियों के साथ ही युवकयुवती के घर वालों को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों परिवारों में कोहराम मच गया. आकलपुर गांव आलमपुर गांव की सीमा से सटा हुआ था, इसलिए घर वाले रोतेबिलखते वहां पहुंच गए. इसी दौरान सीओ (सदर) बलदेव सिंह खनेड़ा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अपने बच्चों की लाशें देख कर दोनों के परिजनों का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस को दोनों के पास से सुसाइड नोट भी मिले. अनिल का सुसाइड नोट उस की पैंट की जेब से जबकि ललिता ने सुसाइड नोट अपनी कलाई में बंधे कलावे से बांध रखा था. आधार कार्ड, सुसाइड नोट के अलावा दोनों के मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए. जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

पुलिस ने जब केस की जांच शुरू की तो पता चला कि अनिल और ललिता ने गांव लौटने का फैसला कर लिया था और यह बात घर वालों को बता दी थी. ऐसे में दोनों के शव पेड़ से लटके मिलने पर सवाल उठने लगे.

मिलन नहीं तो मौत ही सही

इस प्रेमी युगल की प्रेम कहानी की इबारत सुसाइड नोट में लिखी मिली. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम खाई और सुसाइड नोट लिखे. ललिता ने अपने सुसाइड नोट में अनिल के अलावा किसी और से शादी न करने की बात लिखी थी. एक पेज के सुसाइड नोट में उस ने लिखा था कि मैं अनिल के पास दिल्ली चली गई थी.

मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी थी, जबकि मैं किसी दूसरे से शादी नहीं कर सकती थी. अनिल मुझ से घर वापस जाने के लिए कह रहा था, लेकिन मैं घर नहीं जाना चाहती थी. मैं अनिल के बिना नहीं रह सकती. इसलिए अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

वहीं अनिल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि ललिता मेरे पास दिल्ली आ गई थी. 18 अगस्त को वह उसे गांव छोड़ने आया था, लेकिन लता ने अपने घर जाने से इनकार कर दिया. उस ने लिखा कि मम्मीपापा मुझे माफ कर देना. मैं लता के बिना नहीं रह सकता. मैं अपनी मरजी से आत्महत्या कर रहा हूं.

पुलिस ने अनिल के घर मिले एक रजिस्टर से उस के सुसाइड नोट की राइटिंग का मिलान भी किया.

प्रेम विवाह को ले कर परिवार के लोगों ने दोनों के बीच में दीवारें खड़ी कर दीं तो प्रेमी युगल ने मरने का फैसला ले लिया. प्रेमी जोड़े ने इतना बड़ा कदम उठा लिया कि एक पेड़ पर एक ही दुपट्टे से एक ही फंदे पर लटक कर मौत को गले लगा लिया.

इस प्रेम कहानी का अंत लता के घर वालों की जिद के कारण हुआ. 16 अगस्त को जब लता अचानक गांव से गायब हो गई थी, तब वह सीधे दिल्ली में रह रहे अपने प्रेमी अनिल के पास पहुंची थी. 17 अगस्त को लता के पिता की उस से मोबाइल पर बात भी हुई.

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लता ने परिजनों को सारी बात बताई और कहा कि उस ने अनिल के साथ शादी करने का फैसला कर लिया है. घर वालों ने इस रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया और उसे ऊंचनीच समझाते हुए घर लौटने को कहा. इस के बाद प्रेमी युगल ने घर वालों से 18 अगस्त को गांव आने की बात कही थी. लेकिन 19 अगस्त को दोनों ने आत्महत्या कर ली.

चूंकि मृतकों के परिजनों ने पुलिस को कानूनी काररवाई करने की कोई तहरीर नहीं दी, इसलिए पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया. इस के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया कि अनिल और लता ने आत्महत्या की थी. अत: पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story in Hindi: वर्चस्व का मोह- भाग 3: आखिर किसने दादजी की हत्या की?

‘‘क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद पापा ने मुझे अकेले ऊपर नहीं रहने दिया. हां, तो मैं बता रही थी कि उस रात पत्तों की आवाज सुन कर मुझे लगा कि आलोक आ गया है. मैं बाहर आई. पत्ते तो हिल रहे थे, लेकिन छत पर कोई नहीं था. मैं ने नीचे से झांक कर देखा तो पेड़ से उतर कोई भागता नजर आया और दादाजी के कमरे से उन के नौकर राजू के चिल्लाने की आवाजें आईं कि देखो दादाजी को क्या हो गया. मैं भाग कर नीचे आई और सब को राजू के चिल्लाने के बारे में बताया. हम लोग आलोक के घर गए. दादाजी के मुंह पर तकिया रख कर किसी ने दम घोंट कर उन की हत्या कर दी थी.

‘‘राजू दादाजी के लिए दूध ले कर ऊपर जा रहा था कि गिलास पर ढक्कन की जगह रखी कटोरी गिर सीढि़यों से झनझनाती हुई नीचे चली गई. शायद उसी की आवाज सुन कर हत्यारा कहीं छिप गया था. सब उस की तलाश करने लगे. मगर मैं ने किसी को नहीं बताया कि मैं ने हत्यारे को पेड़ से उतरते और दीवार फांदते देखा था. क्योंकि मैं ने उस की शक्ल तो नहीं सिर्फ लिबास देखा था.

‘‘वैसा ही रेशमी कुरतापाजामा जैसा आलोक पहने हुए था. पापा ने मेरे छोटे भाई बंटी को फंक्शन हौल से आलोक को लाने भेजा. मेरा खयाल था कि आलोक वहां नहीं होगा, लेकिन बंटी आलोक को ले कर आ गया. गौर से देखने पर भी आलोक के कपड़ों पर पेड़ पर चढ़नेउतरने के निशान नहीं थे. और आलोक भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही हैरान था…’’

‘‘फिर तुम्हें यह शक क्यों है कि हत्यारा आलोक ही है?’’ देव ने बीच में पूछा.

‘‘क्योंकि अगले दिन जब पुलिस ने पेड़ के नीचे जूतों के निशान देखे तो वे जोधपुरी जूतियों के थे जिन्हें आलोक उस समय भी पहने हुए था. सही साइज का पता नहीं चल रहा था क्योंकि भागने की वजह से निशान अधूरे थे. आलोक शक के घेरे में आ गया, मगर उस ने अपने बचाव में रवि की शादी की वे तसवीरें दिखाई, जिन में वह उस समय तक रवि के साथ था जब तक बंटी उसे बुलाने नहीं गया था. पुलिस ने भले ही उसे छोड़ दिया हो, लेकिन मुझे लगता है कि वह आलोक ही था. एक तो पेड़ पर से चढ़नेउतरने का रास्ता उसे ही मालूम है, दूसरे दादाजी की मौत से फायदा भी उसे ही हुआ.

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‘‘13वीं के तुरंत बाद उस ने एजेंसी लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. रहा सवाल तसवीर का, तो खाने और फेरों के दरम्यान तो लगातार तसवीरें कहां खिंचती हैं सर? फोटोग्राफर भी उसी दौरान खाना खाते हैं. फंक्शन हौल घर के पीछे ही तो था. दीवार फांद कर आनेजाने और तकिए से मुंह दबा कर किसी बुजुर्ग को मारने में समय ही कितना लगता है?’’

‘‘तुम ने इस बारे में आलोक से बात की?’’

‘‘नहीं सर, आज पहली बार आप को बता रही हूं.’’

‘‘तुम ने अपनी सगाई या शादी कैसे टाली?’’

‘‘दादाजी की मृत्यु के तुरंत बाद तो सवाल ही नहीं उठता था. उस के बाद आलोक भी बहुत व्यस्त हो गया था. घर पर आता तो था, मगर पापा से सलाहमशवरा करने और मैं अपनी तरफ से उस से अकेले मिलने की कोशिश ही नहीं करती थी. साल भर बाद जब मां ने सगाई की जल्दी मचाई तो मैं ने उन से साफ कहा कि मुझे शादी से पहले कुछ समय चाहिए. आलोक के घर वाले भी उस की व्यस्तता के चलते अभी शादी करने की जल्दी में नहीं थे सो मेरे घर वाले भी मान गए.’’

‘‘और आलोक से मिलनाजुलना कैसे कम किया?’’

किरण मुसकराई, ‘‘उसे समझा दिया सर कि हमें ज्यादा मिलतेजुलते देख कर मां शादी जल्दी करवा देंगी. चूंकि आलोक भी धंधा जमने के बाद ही शादी करना चाहता था सो मान गया. वैसे भी उसे फुरसत तो थी नहीं, लेकिन अब जब भी फुरसत मिलती है आ जाता है और मां का शादी वाला राग शुरू हो जाता है. अब आप ही बताइए सर, जिस आदमी पर मैं शक करती हूं उस से शादी करना मुनासिब होगा?’’

‘‘बिलकुल नहीं. मैं कल ही इस केस की फाइल देखता हूं. मुझे दादाजी का नाम और हत्या की तारीख बताओ,’’ देव ने कहा, ‘‘तुम भी अब शादी के लिए मना मत करो. जब तक घर वाले तैयारी करेंगे, तब तक मैं हत्यारे को पकड़ लूंगा. अगर आलोक हुआ तो शादी का सवाल ही नहीं उठता और कोई दूसरा हुआ तो तुम्हारे इनकार करने की, फिर मना कर के घर में सब को परेशान करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘जी सर.’’

रास्ते में देव ने नीना को बताया कि उस ने किरण को समझा दिया है और वह शादी के लिए मना नहीं करेगी. सोनिया को फिलहाल परेशान होने की जरूरत नहीं है.

अगले दिन देव ने कमिश्नर साहब को सारी बात बता कर केस की फाइल निकलवा ली. उस में लिखे तथ्यों के मुताबिक सुबूत न के बराबर थे, जिन के आधार पर हत्यारे को पकड़ना भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने के समान था. लेकिन देव ने कमिश्नर साहब से आग्रह किया कि वे यह केस उस के सुपुर्द कर दें.

आलोक के घर वालों को दोबारा तफ्तीश की बात सुन कर पहले हैरान और फिर खुश होना स्वाभाविक ही था. सब से ज्यादा खुश आलोक लगा.

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‘‘मैं अपने को जानबूझ कर व्यस्त रखता हूं सर क्योंकि जहां जरा सी फुरसत मिली, मैं

यही सोचने लगता हूं कि दादाजी की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘और क्यों की होगी?’’ देव ने जोड़ा.

‘‘चोरी के लिए सर दादाजी गले में सोने की मोटी चेन, उंगलियों में हीरेपन्ने की अंगूठियां, सोने की कलाई घड़ी और सोने के बटन वाले कुरते पहनते थे. उन के बटुए में भी हजारों रुपए रहते थे. कमरे में मेरा भी लैपटौप, आईपौड वगैरह पड़े थे, लेकिन इस से पहले कि चोर ये सब समेट सकता, राजू के हाथ से सीढि़यों में कटोरी गिर गई और उस की आवाज से वह डर कर भाग गया,’’ आलोक ने कहा.

‘‘पेड़ से चढ़नेउतरने का रास्ता नए आदमी को तो मालूम नहीं हो सकता?’’

‘‘यही तो परेशानी है सर, हत्या तो किसी जानपहचान वाले ने ही की है. आप को एक बात बतांऊ, पेड़ के नीचे मिले निशान मेरी राजस्थानी जूतियों से मेल खा रहे थे. मैं शक के घेरे में तो आ गया था, लेकिन उसी दिन मेरे एक दोस्त की शादी थी और हर तसवीर और वीडियो के फ्रेम में होने की वजह से मैं बच गया.’’

‘‘मैं वह अलबम और वीडियो देख सकता हूं?’’

‘‘जरूर सर. मैं रवि के घर से अलबम और वीडियो कैसेट ला कर आप को फोन करूंगा,’’ आलोक ने कहा.

कुछ देर बाद आलोक ने देव को फोन किया कि उसे अलबम तो मिल गया है, मगर वीडियो कैसेट बारबार चलाने के कारण इतनी घिस गई है कि देखने में उलझन होती है सो न जाने कहां रख दी है. ढूंढ़ने को कह दिया है.

‘‘ठीक किया. फिलहाल अलबम मेरे औफिस में ला या भिजवा सकते हो?’’

‘‘अभी भेज देता हूं सर और अगर मेरी जरूरत हो तो फोन कर दीजिएगा, मैं फौरन हाजिर हो जाऊंगा.’’

अलबम देखने के बाद देव ने किरण को फोन किया, ‘‘किरण, उस रात तुम ने भागने वाले के कपड़ों का रंग भी देखा था?’’

‘‘नहीं सर, इतनी रोशनी नहीं थी…सिर्फ चमक और कुरते की लंबाई देखी थी.’’

‘‘वैसे उस शादी में आलोक के अलावा और कई लोग सिल्क के कुरतेपाजामों में थे.’’

‘‘हां सर, यह उस समय का खास फैशन था.’’

‘‘तो फिर भागने वाला आलोक ही क्यों, कोई और भी तो हो सकता है?’’

‘‘आलोक इसलिए सर कि एक तो भागने का रास्ता सिर्फ उसे ही मालूम था और दूसरे दादाजी के न रहने से फायदा भी तो उसी को हुआ.’’

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किरण के तर्क में दम तो था, लेकिन देव फिलहाल उस से सहमत होने को तैयार नहीं था. उस ने तसवीरों को फिर गौर से देखा. फिर आलोक को फोन कर के बुलाया.

‘‘इन तसवीरों में दूल्हा और तुम्हारे दूसरे सभी दोस्त तो अपने कालेज के साथी ही हैं सिवा एक के जो हर तसवीर में तुम से सट कर खड़ा है,’’ देव ने टिप्पणी की.

‘‘वह मेरा बिजनैस पाटर्नर नकुल है सर. अमेरिका से कंप्यूटर में डिप्लोमा कर के आया है. आप को तो मालूम ही होगा सर, आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए कंप्यूटर स्पैशलिस्ट होना अनिवार्य है, इस के अलावा इलैक्ट्रौनिक प्रोडक्ट्स बेचने का अनुभव और एक बड़े एअरकंडीशंड शोरूम का मालिक होना भी. मैं ने और नकुल ने साथ मिल कर ये सब शर्तें पूरी कर के जोनल डिस्ट्रिब्यूटरशिप ली है.’’

‘‘कब से जानते हो नकुल को?’’

Crime Story in Hindi: वर्चस्व का मोह- भाग 4: आखिर किसने दादजी की हत्या की?

‘‘बचपन से सर. हमारे घर में एक बहुत बड़ा जामुन का पेड़ है. हम दोनों अकसर उस पर बैठ कर कुछ बड़ा, कुछ हट कर करने की सोचा करते थे. उस पेड़ की तरह ही विशाल. नकुल तो इसी फिराक में अमेरिका निकल गया. मैं दादाजी के मोह और किरण की मुहब्बत में कहीं नहीं जा सका, मगर नकुल बचपन की दोस्ती और सपने नहीं भूला था. उस ने वापस आ कर मुझ से भी कुछ अलग और बड़ा करवा ही दिया.’’

‘‘आलोक, इस केस को सुलझाने के लिए हो सकता है कि मुझे इन तसवीरों में मौजूद तुम्हारे सभी दोस्तों से पूछताछ करनी पड़े.’’

‘‘आप जब कहेंगे सब को ले आऊंगा सर, लेकिन उस से पहले अगर आप

किरण से पूछताछ करें तो हो सकता है कोई अहम बात पता चल जाए.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मालूम नहीं सर, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि किरण को कुछ पता है, क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद वह पहले वाली किरण नहीं रही है. हमेशा बुझीबुझी सी रहती है.’’

‘‘दादाजी से खास लगाव था उसे?’’

‘‘वह तो सभी को था सर. उन की शख्सीयत ही ऐसी थी.’’

‘‘दादाजी की हत्या की खबर सुनते ही तुम्हारे साथ कितने दोस्त आए थे?’’

‘‘कोई नहीं सर क्योंकि बंटी से यह सुनते ही कि दादाजी बेहोश हो गए हैं, मैं किसी से कुछ कहे बिना फौरन उस के स्कूटर के पीछे बैठ कर आ गया था.’’

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‘‘कोई तुम्हारी तलाश में तुम्हारे पीछेपीछे नहीं आया?’’

‘‘नहीं सर,’’ आलोक ने इनकार में सिर हिलाया, ‘‘मुझे अच्छी तरह याद है कि उस रात तो डाक्टर और पुलिस के अलावा हमारे परिवार के साथ सिर्फ किरण के घर वाले ही थे. सुबह होने पर उन लोगों ने औरों को सूचित किया था.’’

अगली दोपहर को किरण के साथ इंस्पैक्टर देव को अपने शोरूम में देख कर आलोक हैरान रह गया, ‘‘खैरियत तो है सर?’’

‘‘फिलहाल तो है,’’ देव ने लापरवाही से कहा, ‘‘तुम ने कहा था कि किरण से पूछताछ करूं सो बातचीत करने को इसे यहां ले आया हूं. तुम्हारे बिजनैस पार्टनर नहीं है?’’

‘‘हैं सर, अपने कैबिन में.’’

‘‘तो चलो उन्हीं के कैबिन में बैठते हैं,’’ देव ने कहा.

आलोक दोनों को बराबर वाले कैबिन में ले गया. नकुल से देव का परिचय करवाया.

‘‘कहिए क्या मंगवांऊ. ठंडा या गरम?’’ नकुल ने औपचारिकता के बाद पूछा.

‘‘वे सब बाद में, अभी तो बस आलोक के दादाजी की हत्या के बारे में कुछ सवालों के जवाब दे दीजिए,’’ देव ने कहा.

नकुल एकदम बौखला गया, ‘‘उस बारे में भला मैं क्या बता सकता हूं? मुझे तो हत्या की सूचना भी किरण से अगली सुबह मिली थी.’’

‘‘यही तो मैं पूछना चाह रहा हूं नकुल कि जब पूरी शाम आप आलोक के साथ थे तो आप ने इसे बंटी के साथ जाते हुए कैसे नहीं देखा?’’

नकुल सकपका गया, लेकिन आलोक बोला, ‘‘असल में सर उस समय कंगना खेला जा रहा था और सब दोस्त एक घेरे में बैठ कर रवि को उत्साहित करने में लगे हुए थे.’’

‘‘बिलकुल. असल में मैं ने सब को रोका ही रवि को कंगने के खेल में जितवाने के लिए था,’’ नकुल तपाक से बोला.

‘‘मगर आप स्वयं तो उस समय वहां नहीं थे…’’

‘‘क्या बात कर रहे हैं इंस्पैक्टर साहब?’’ नकुल ने उत्तेजित स्वर में देव की बात काटी, ‘‘मैं रवि की बगल में बैठ कर उस की पीठ थपथपा रहा था.’’

‘‘तो फिर आप इस तसवीर में नजर क्यों नहीं आ रहे?’’ देव ने अलबम दिखाया, ‘‘न आप इस तसवीर में हैं और न इस के बाद की तसवीरों में. आप तकलीफ न करिए, मैं ही बता देता हूं कि आप कहां थे?’’

‘‘बाथरूम में था, ज्यादा खानेपीने के बाद जाना ही पड़ता है,’’ नकुल ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘जी नहीं, उस समय आप दादाजी के कमरे में थे,’’ देव ने शांत स्वर में कहा, ‘‘आप की योजना हो सकती है हत्या कर के फिर मंडप में आने की हो, लेकिन जल्दीजल्दी पेड़ से उतरते हुए आप के कपड़े खराब हो गए थे सो आप ने वापस आना मुनासिब नहीं समझा.’’

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‘‘आप जो भी कह रहे हैं उस का कोई सुबूत है आप के पास?’’ नकुल ने चुनौती के स्वर में पूछा.

‘‘अभी लीजिए. जरा पीठ कर के खड़े होने की जहमत उठाएंगे आप और आलोक तुम भी इन के साथ पीठ कर के खड़े हो जाओ,’’

कह देव किरण की ओर मुड़ा, ‘‘इन दोनों को गौर से देखो किरण, प्राय: एक सा ही ढांचा है और अंधेरे में ढीलेढाले कुरते में यह पहचानना मुश्किल था कि पेड़ से कूद कर भागने वाला आलोक था या नकुल.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं सर,’’ किरण चिल्लाई, ‘‘मुझे यह खयाल पहले क्यों नहीं आया कि नकुल ने भी आलोक के जैसे ही कपड़े पहने हुए थे और उस के पास तो हत्या करने की आलोक से भी बड़ी वजह थी. उस ने तो आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था सर. वह नौकरी छोड़ कर और अपना ग्रीन कार्ड वापस कर के अमेरिका से वापस आया था…’’

आलोक ने किरण के कंधे पकड़ कर उसे झंझोड़ा, ‘‘यह क्या कह रही हो किरण, तुम ने पहले कभी तो बताया नहीं कि तुम ने किसी को भागते हुए देखा था?’’

‘‘कैसे बताती, उसे शक जो था कि भागने वाले तुम हो. इसीलिए बेचारी शादी टाल रही थी और गुमसुम रहती थी. संयोग से मुझ से मुलाकात हो गई और असलियत सामने आ गई… भागने की बेवकूफी मत करना नकुल, मेरे आदमियों ने तुम्हारा शोरूम घेरा हुआ है. मैं नहीं चाहूंगा कि तुम्हारे स्टाफ के सामने तुम्हें हथकड़ी लगा कर ले जाऊं, इसलिए चुपचाप मेरे साथ चलो, क्योंकि उस रात कमरे के दरवाजों, छत की मुंडेर वगैरह पर से पुलिस ने जो उंगलियों के निशान उठाए थे, वे तुम्हारी उंगलियों के निशानों से मिल ही जाएंगे. वैसे किरण ने वजह तो बता ही दी है, फिर भी मैं चाहूंगा कि तुम चलने से पहले आलोक को बता ही दो कि ऐसा तुम ने क्यों किया?’’ देव ने कहा.

‘‘हां नकुल, तूने तो मुझे भरोसा दिया था कि तू लाभ का पूरा ब्योरा दे कर दादाजी को मना लेगा या एक और शोरूम लेने की व्यवस्था कर लेगा, फिर तूने ऐसा क्यों किया?’’ आलोक ने दुखी स्वर में पूछा.

‘‘और करने को था ही क्या? दादाजी कुछ सुनने या अपने शोरूम का सामान छोटे शोरूम में शिफ्ट करने को तैयार ही नहीं थे और बड़ा शोरूम लेने की मेरी हैसियत नहीं थी. तेरे यह बताने पर कि तूने शोरूम अपने नाम करवा लिया है, मैं अपनी बढि़या नौकरी छोड़ और ग्रीन कार्ड वापस कर के यानी अपने भविष्य को दांव पर लगा यहां आया था. दादाजी यह जाननेसमझने के बाद भी कि कंप्यूटर बेचने में बहुत फायदा होगा, अपने वर्चस्व का मोह त्यागने को तैयार ही नहीं थे. उन की इस जिद के कारण मैं हाथ पर हाथ धर कर तो नहीं बैठ सकता था न?’’ नकुल ने कड़वे स्वर में पूछा.

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‘‘अच्छा किया नकुल बता दिया, तुम्हारे लिए इतना तो करवा ही दूंगा कि जेल में तुम्हें एक दिन भी हाथ पर हाथ धर कर बैठना न पड़े,’’ देव की बात पर उस बोझिल वातावरण में भी आलोक और किरण मुसकराए बगैर न रह सके.

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सौजन्य-मनोहर कहानियां

रविवार 14 जुलाई, 2019 का दिन था. दोपहर का समय था. जालौर के एसपी हिम्मत अभिलाष टाक को फोन पर सूचना मिली कि बोरटा-लेदरमेर ग्रेवल सड़क के पास वन विभाग की जमीन पर एक व्यक्ति का नग्न अवस्था में शव पड़ा है.

एसपी टाक ने तत्काल भीनमाल के डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई को घटना से अवगत कराया और घटनास्थल पर जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए. एसपी के निर्देश पर डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए, साथ ही उन्होंने थाना रामसीन में भी सूचना दे दी. उस दिन थाना रामसीन के थानाप्रभारी छतरसिंह देवड़ा अवकाश पर थे. इसलिए सूचना मिलते ही मौजूदा थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर आसपास के गांव वालों की भीड़ जमा थी. वहां वन विभाग की खाई में एक आदमी का नग्न शव पड़ा था. आधा शव रेत में दफन था. उस का चेहरा कुचला हुआ था. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या शायद कई दिन पहले की गई है.

वहां पड़ा शव सब से पहले एक चरवाहे ने देखा था. वह वहां सड़क किनारे बकरियां चरा रहा था. उसी चरवाहे ने यह खबर आसपास के लोगों को दी थी. कुछ लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस को खबर कर दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को खाई से बाहर निकाल कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, मगर जमा भीड़ में से कोई भी मृतक की शिनाख्त नहीं कर सका. शव से करीब 20 मीटर की दूरी पर किसी चारपहिया वाहन के टायरों के निशान मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारे शव को किसी गाड़ी में ले कर आए और यहां डाल कर चले गए.

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पुलिस ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. शव के पास ही खून से सनी सीमेंट की टूटी हुई ईंट भी मिली. लग रहा था कि उसी ईंट से उस के चेहरे को कुचला गया था. कुचलते समय वह ईंट भी टूट गई थी.

मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया. डाक्टरों की टीम ने उस का पोस्टमार्टम किया.

जब तक शव की शिनाख्त नहीं हो जाती, तब तक जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मृतक के फोटो वाट्सऐप पर शेयर कर दिए. साथ ही लाश के फोटो भीनमाल, जालौर और बोरटा में तमाम लोगों को दिखाए. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

सोशल मीडिया पर मृतक का फोटो वायरल हो चुका था. जालौर के थाना सिटी कोतवाली में 2 दिन पहले कालेटी गांव के शैतानदान चारण नाम के एक शख्स ने अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

कोतवाली प्रभारी को जब थाना रामसीन क्षेत्र में एक अज्ञात लाश मिलने की जानकारी मिली तो उन्होंने लाश से संबंधित बातों पर गौर किया. उस लाश का हुलिया लापता डूंगरदान चारण के हुलिए से मिलताजुलता था. कोतवाली प्रभारी बाघ सिंह ने डीएसपी भीनमाल हुकमाराम को सारी बातें बताईं.

मारा गया व्यक्ति डूंगरदान चारण था

इस के बाद एसपी जालौर ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया, इन में एक टीम भीनमाल थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद के नेतृत्व में गठित की गई, जिस में एएसआई रघुनाथ राम, हैडकांस्टेबल शहजाद खान, तेजाराम, संग्राम सिंह, कांस्टेबल विक्रम नैण, मदनलाल, ओमप्रकाश, रामलाल, भागीरथ राम, महिला कांस्टेबल ब्रह्मा शामिल थी.

दूसरी पुलिस टीम में रामसीन थाने के एएसआई विरधाराम, हैडकांस्टेबल प्रेम सिंह, नरेंद्र, कांस्टेबल पारसाराम, राकेश कुमार, गिरधारी लाल, कुंपाराम, मायंगाराम, गोविंद राम और महिला कांस्टेबल धोली, ममता आदि को शामिल किया गया.

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डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई दोनों पुलिस टीमों का निर्देशन कर रहे थे. जालौर के कोतवाली निरीक्षक बाघ सिंह ने उच्चाधिकारियों के आदेश पर डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराने वाले उस के रिश्तेदार शैतानदान को राजदीप चिकित्सालय की मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण के रूप में कर दी.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उस के परिजनों से संपर्क किया तो इस मामले में अहम जानकारी मिली. मृतक की पत्नी रसाल कंवर ने पुलिस को बताया कि उस के पति डूंगरदान 12 जुलाई, 2019 को जालौर के सरकारी अस्पताल में दवा लेने गए थे.

वहां से घर लौटने के बाद पता नहीं वे कहां लापता हो गए, जिस की थाने में सूचना भी दर्ज करा दी थी. रसाल कंवर ने पुलिस को अस्पताल की परची भी दिखाई. पुलिस टीम ने अस्पताल की परची के आधार पर जांच की.

पुलिस ने राजकीय चिकित्सालय जालौर के 12 जुलाई, 2019 के सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो पता चला कि डूंगरदान को काले रंग की बोलेरो आरजे14यू बी7612 में अस्पताल तक लाया गया था.

उस समय डूंगरदान के साथ उस की पत्नी रसाल कंवर के अलावा 2 व्यक्ति भी फुटेज में दिखे. उन दोनों की पहचान मोहन सिंह और मांगीलाल निवासी भीनमाल के रूप में हुई. पुलिस जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज जांच के बाद गांव के विभिन्न लोगों से पूछताछ की तो सामने आया कि मृतक डूंगरदान चारण की पत्नी रसाल कंवर से मोहन सिंह राव के अवैध संबंध थे. इस जानकारी के बाद पुलिस ने रसाल कंवर और मोहन सिंह को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

मांगीलाल फरार हो गया था. रसाल कंवर और मोहन सिंह राव ने आसानी से डूंगरदान की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

केस का खुलासा होने की जानकारी मिलने पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी थाने पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के सामने आरोपियों से पूछताछ कर डूंगरदान हत्याकांड से परदा उठ गया.

पुलिस ने 16 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों मृतक की पत्नी रसाल कंवर एवं उस के प्रेमी मोहन सिंह राव को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो डूंगरदान चारण की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

मृतक डूंगरदान चारण मूलरूप से राजस्थान के जालौर जिले के बागौड़ा थानान्तर्गत गांव कालेटी का निवासी था. उस के पास खेती की थोड़ी सी जमीन थी. वह उस जमीन पर खेती के अलावा दूसरी जगह मेहनतमजदूरी करता था. उस की शादी करीब एक दशक पहले जालौर की ही रसाल कंवर से हुई थी.

करीब एक साल बाद रसाल कंवर एक बेटे की मां बनी तो परिवार में खुशियां बढ़ गईं. बाद में वह एक और बेटी की मां बन गई. जब डूंगरदान के बच्चे बड़े होने लगे तो वह उन के भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगा.

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गांव में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा डूंगरदान अपने बीवीबच्चों के साथ गांव कालेटी छोड़ कर भीनमाल चला गया और वहां लक्ष्मीमाता मंदिर के पास किराए का कमरा ले कर रहने लगा. भीनमाल कस्बा है. वहां डूंगरदान को मजदूरी भी मिल जाती थी. जबकि गांव में हफ्तेहफ्ते तक उसे मजदूरी नहीं मिलती थी.

आशिकी के लिए दोस्ती

डूंगरदान के पड़ोस में ही मोहन सिंह राव का आनाजाना था. मोहन सिंह राव पुराना भीनमाल के नरता रोड पर रहता था. वह अपराधी प्रवृत्ति का रसिकमिजाज व्यक्ति था. उस की नजर रसाल कंवर पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. मोहन सिंह ने इस के लिए ही डूंगरदान से दोस्ती की थी. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा.

अगले भाग में पढ़ें- रसाल कंवर पति के खून से अपने हाथ रंगने को  हुई तैयार 

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सौजन्य-मनोहर कहानियां

मोहन सिंह रसाल कंवर से भी बड़ी चिकनीचुपड़ी बातें करता था. जब डूंगरदान मजदूरी करने चला जाता और उस के बच्चे स्कूल तो घर में रसाल कंवर अकेली रह जाती. ऐसे मौके पर मोहन सिंह उस के यहां आने लगा. मीठीमीठी बातों में रसाल को भी रस आने लगा. मोहन सिंह अच्छीखासी कदकाठी का युवक था.रसाल और मोहन के बीच धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं.

थोड़े दिनों के बाद दोनों के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. इस के बाद रसाल कंवर उस की दीवानी हो गई. डूंगरदान हर रोज सुबह मजदूरी पर निकल जाता तो फिर शाम होने पर ही घर लौटता था.

रसाल और मोहन पूरे दिन रासलीला में लगे रहते. डूंगरदान की पीठ पीछे उस की ब्याहता कुलटा बन गई थी. दिन भर का साथ उन्हें कम लगने लगा था. मोहन चाहता था कि रसाल कंवर रात में भी उसी के साथ रहे, मगर यह संभव नहीं था. क्योंकि रात में पति घर पर होता था.

ऐसे में एक दिन मोहन सिंह ने रसाल कंवर से कहा, ‘‘रसाल, जीवन भर तुम्हारा साथ तो निभाऊंगा ही, साथ ही एक प्लौट भी तुम्हें ले कर दूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारे बदन को अब मेरे सिवा और कोई न छुए. तुम्हारे तनमन पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है.’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारा साथ निभाऊंगी.’’ रसाल कंवर ने प्रेमी की हां में हां मिलाते हुए कहा.

रसाल के दिलोदिमाग में यह बात गहराई तक उतर गई थी कि मोहन उसे बहुत चाहता है. वह उस पर जान छिड़कता है. रसाल भी पति को दरकिनार कर पूरी तरह से मोहन के रंग में रंग गई. इसलिए दोनों ने डूंगरदान को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. लेकिन इस से पहले ही डूंगरदान को पता चल गया कि उस की गैरमौजूदगी में मोहन सिंह दिन भर उस के घर में पत्नी के पास बैठा रहता है.

यह सुनते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. गुस्से से भरा डूंगरदान घर आ कर चिल्ला कर पत्नी से बोला, ‘‘मेरी गैरमौजूदगी में मोहन यहां क्यों आता है, घंटों तक यहां क्या करता है? बताओ, तुम से उस का क्या संबंध है?’’ कहते हुए उस ने पत्नी का गला पकड़ लिया.

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रसाल मिमियाते हुए बोली, ‘‘वह तुम्हारा दोस्त है और तुम्हें ही पूछने आता है. मेरा उस से कोई रिश्ता नहीं है. जरूर किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं. हमारी गृहस्थी में कोई आग लगाना चाहता है. तुम्हारी कसम खा कर कहती हूं कि मोहन सिंह से मैं कह दूंगी कि वह अब घर कभी न आए.’’

पत्नी की यह बात सुन कर डूंगरदान को लगा कि शायद रसाल सच कह रही है. कोई जानबूझ कर उन की गृहस्थी तोड़ना चाहता है. डूंगरदान शरीफ व्यक्ति था. वह बीवी पर विश्वास कर बैठा. रसाल कंवर ने अपने प्रेमी मोहन को भी सचेत कर दिया कि किसी ने उस के पति को उस के बारे में बता दिया है. इसलिए अब सावधान रहना जरूरी है.

उधर डूंगरदान के मन में पत्नी को ले कर शक उत्पन्न तो हो ही गया था. इसलिए वह वक्तबेवक्त घर आने लगा. एक रोज डूंगरदान मजदूरी पर गया और 2 घंटे बाद घर लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. खटखटाने पर थोड़ी देर बाद उस की पत्नी रसाल कंवर ने दरवाजा खोला. पति को अचानक सामने देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डूंगरदान की नजर कमरे में अंदर बैठे मोहन सिंह पर पड़ी तो वह आगबबूला हो गया. उस ने मोहन सिंह पर गालियों की बौछार कर दी. मोहन सिंह गालियां सुन कर वहां से चला गया. इस के बाद डूंगरदान ने पत्नी की लातघूंसों से खूब पिटाई की. रसाल लाख कहती रही कि मोहन सिंह 5 मिनट पहले ही आया था. मगर पति ने उस की एक न सुनी.

पत्नी के पैर बहक चुके थे. डूंगरदान सोचता था कि गलत रास्ते से पत्नी को वापस कैसे लौटाया जाए. वह इसी चिंता में रहने लगा. उस का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. वह चिड़चिड़ा भी हो गया था. बातबात पर उस का पत्नी से झगड़ा हो जाता था.

आखिर, रसाल कंवर पति से तंग आ गई. यह दुख उस ने अपने प्रेमी के सामने जाहिर कर दिया. तब दोनों ने तय कर लिया कि डूंगरदान को जितनी जल्दी हो सके, निपटा दिया जाए.

रसाल कंवर पति के खून से अपने हाथ रंगने को तैयार हो गई. मोहन सिंह ने योजना में अपने दोस्त मांगीलाल को भी शामिल कर लिया. मांगीलाल भीनमाल में ही रहता था.

साजिश के तहत रसाल और मोहन सिंह 12 जुलाई, 2019 को डूंगरदान को उपचार के बहाने बोलेरो गाड़ी में जालौर के राजकीय चिकित्सालय ले गए. मांगीलाल भी साथ था. वहां उस के नाम की परची कटाई. डाक्टर से चैकअप करवाया और वापस भीनमाल रवाना हो गए. रास्ते में मौका देख कर रसाल कंवर और मोहन सिंह ने डूंगरदान को मारपीट कर अधमरा कर दिया. फिर उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

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इस के बाद डूंगरदान की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बोलेरो में डाल कर बोरटा से लेदरमेर जाने वाले सुनसान कच्चे रास्ते पर ले गए, जिस के बाद डूंगरदान के शरीर पर पहने हुए कपड़े पैंटशर्ट उतार कर नग्न लाश वन विभाग की खाली पड़ी जमीन पर डाल कर रेत से दबा दी. उस के बाद वे भीनमाल लौट गए.

भीनमाल में रसाल कंवर ने आसपास के लोगों से कह दिया कि उस का पति जालौर अस्पताल चैकअप कराने गया था. मगर अब उस का कोई पता नहीं चल रहा. तब डूंगरदान की गुमशुदगी उस के रिश्तेदार शैतानदान चारण ने जालौर सिटी कोतवाली में दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपी मोहन सिंह आपराधिक प्रवृत्ति का है. उस ने अपने साले की बीवी की हत्या की थी. इन दिनों वह जमानत पर था. मोहन सिंह शादीशुदा था, मगर बीवी मायके में ही रहती थी. भीनमाल निवासी मांगीलाल उस का मित्र था. वारदात के बाद मांगीलाल फरार हो गया था.

थाना रामसीन के इंचार्ज छतरसिंह देवड़ा अवकाश से ड्यूटी लौट आए थे. उन्होंने भी रिमांड पर चल रहे रसाल कंवर और मोहन सिंह राव से पूछताछ की.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने 19 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों रसाल कंवर और मोहन सिंह को फिर से कोर्ट में पेश कर दोबारा 2 दिन के रिमांड पर लिया और उन से पूछताछ कर कई सबूत जुटाए. उन की निशानदेही पर मृतक के कपड़े, वारदात में प्रयुक्त बोलेरो गाड़ी नंबर आरजे14यू बी7612 बरामद की गई. मृतक डूंगरदान के कपडे़ व चप्पलें रामसीन रोड बीएड कालेज के पास रेल पटरी के पास से बरामद कर ली गईं.

पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को 21 जुलाई, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस तीसरे आरोपी मांगीलाल माली को तलाश कर रही है.

अश्लीलता: डांस गुरु के कारनामे

सौजन्य- सत्यकथा

आज आपको छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक ऐसे डांस गुरु की सच्ची कहानी बताते हैं जो डांस सिखाने के आड़ में अपनी ही शियाओं के साथ अश्लील हरकतें करता और उनके वीडियो बना लेता. पुलिस ने डांस गुरु को गिरफ्त में लेकर जेल दाखिल कर दिया है. दरअसल, अक्सर सुनने को मिलता है कि फलां युवक ने फलां युवती अथवा महिला का अंतरंग समय में, अथवा नहाते वीडियो बना लिया. और आगे चलकर पकड़ा गया या फिर ब्लैक मेलिंग भय दोहन पर उतर आया.

सोशल मीडिया और आधुनिक टेक्नोलॉजी के इस समय काल में यह सब सामान्य घटनाक्रम जैसा बन गया है . मगर इस संपूर्ण घटनाक्रम के पीछे के अपराधिक मनोविज्ञान को समझना और इससे अपने आप को बचाव करते हुए सुखमय जीवन व्यतीत करना एक महत्वपूर्ण विषय है.

आज हम इस पेचीदा मसले पर महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए यह बताना चाहते हैं कि इन दिनों युवतियों के वीडियो बनाने के अनेक प्रकरण सामने आ चुके हैं, और लगातार आ रहे हैं. ऐसे में आवश्यकता है समझदारी और सामान्य जानकारी गांठ बांध कर रखने की. अगर आप अपनी आंखें और दिमाग खुला रखेंगी तो आने वाली इस विपत्ति से आसानी से बच सकती हैं. यहां हम आपको कुछ ऐसी घटनाएं बता रहे हैं जो यह इंगित करती है कि युवती और महिलाओं की थोड़ी सी लापरवाही किस तरह उन्हें परेशानी में डालती है. “और थोड़ी सी समझदारी” किस तरह उन्हें भविष्य के संकट से बचाती है. ऐसे ही एक अन्य घटनाक्रम में…

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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक सांसद के रसोइये ने पास के एक मकान में रहने वाली महिला का छुपकर वीडियो बना लिया यह घटनाक्रम पकड़ में आने के बाद सुर्खियों का विषय बन गया.
राजधानी रायपुर में ही एक दूसरे घटना क्रम में टिकरापारा सुदामा नगर में युवती का बाथरुम में नहाते वक्त एमएमएस बनाकर वीडियो वायरल करने की धमकी देकर रेप करने का मामला प्रकाश में आया है. आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. आरोपी युवक का नाम आशीष राजपूत है. पुलिस बताती है – आरोपी आशीष राजपूत 24 वर्षीय शादीशुदा युवती का वीडियो बनाकर वायरल करने की धमकी देकर लगातार रेप करता था. बीती रात महिला ने पति के साथ पुलिस थाने पहुंचकर मामले की शिकायत दर्ज कराई. अप पुलिस ने युवक को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. ऐसी अनेक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि अश्लील वायरल वीडियो करने का यह खेल आधुनिक समय का एक बड़ा अपराध बनकर सामने आया है.

अंतरंग वीडियो बनाने का “खेला”

पूर्व में मानसिक रूप से अपंग लोग अक्सर युवतियों और महिलाओं का अंतरंग समय का फोटोग्राफ्स खींचकर भय दोहन ब्लैकमेलिंग का काम किया करते थे जो आज आधुनिक समय में मोबाइल अथवा छुपे हुए कैमरे से वीडियो बनाकर पूर्ण किया जा रहा है. अक्सर इस तरह की घटना पढ़ने सुनने को मिलती है-

पहला प्रसंग-
रायपुर के पंडरी क्षेत्र में एक कपड़े दुकान में जब महिला कपड़े चेंज करने गई तो देखा कि वहां छुपा हुआ कैमरा है. महिला ने पुलिस बुलाई तो मामले का खुलासा हुआ दुकानदार पर हुआ मामला दर्ज.
दूसरा प्रसंग- महिला नहा रही थी तो उसने देखा खिड़की से कोई कैमरा लेकर उसका फोटो खींच रहा है महिला ने हल्ला मचाया तब उस युवक को पकड़ा गया.

तीसरा प्रसंग-
एक युवक ने युवती का छुपकर अंतरंग समय का वीडियो बना लिया और उसे ब्लैकमेल करते हुए संबंध बनाने का दबाव बना उसकी अस्मत लूट ली

इस तरह की अनेक घटनाएं घटित हो रही हैं और लोग पकड़े भी जा रहे हैं. पुलिस कार्रवाई कर रही है मगर इसके बावजूद घटनाएं कम होने की जगह बढ़ते चली जा रही है जो यह इंगित करता है कि आपको स्वयं सतर्क और सजग रहना होगा.

अश्लीलता की सारी हदें पार !

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पंडरी इलाके के वीआईपी स्टेट में रहने वाली सराफाकर्मी को परेशान करने के लिए एक युवक ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी. शहर के कचना हाउसिंग बोर्ड के डांस गुरु ने युवती के मोबाइल पर अश्लील वीडियो की झडी लगा दी. सराफाकर्मी युवती ने आरोपी को मना किया तो फोन करके परेशान करने लगा. बार-बार समझाइस के बाद जब नहीं माना तो युवती ने मामले की शिकायत पर पुलिस से की. पुलिस ने आरोपी को हिरासत में लेकर जेल दाखिल करवा दिया. दरअसल, वह अलग-अलग नंबरों से अश्लील वीडियो भेजता रहा.

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पंडरी टीआई ने बताया कि वीआईपी स्टेट पंडरी में रहने वाली सराफा कर्मी ने शिकायत की थी, कि अलग-अलग नंबरों से उसके वीडियो आ रहे है.

जब भी नंबरों पर कॉल करते है तो कॉलर गंदी-गंदी बात करता है.युवती की शिकायत पर नंबरों के आधार पर पुलिस ने आरोपी को पकड़ा तो पुलिस की पूछताछ में आरोपी ने अपना नाम हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी कचना निवासी डांस गुरू कुमार मनोज बताया. आरोपी के फोन से पुलिसकर्मियों ने युवती का नंबर और उसे भेजे गए वीडियो का स्क्रीन शॉट जब्त किया है. आरोपी युवक पर धारा 509 ख के तहत पुलिसकर्मियों ने कार्रवाई की है

दरअसल सेक्स के मनोरोगी का मनोविज्ञान बताता है. यह घटनाक्रम यह स्पष्ट करता है कि इस तरह युवतियां और महिलाएं सेक्स के मनोरोगी की आंतरिक बीमारी का शिकार होकर परेशान होती है. अक्सर उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाती और जानकारी के अभाव में पुलिस और कानून से सहयोग नहीं लेकर अपना जीवन दुश्वार बना लेती हैं.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के मुताबिक महिलाओं को ऐसे विषम समय में निर्भीक होकर पुलिस की सहायता लेनी चाहिए और संपूर्ण घटनाक्रम को बताना चाहिए दोषी आरोपी को जेल के सींखचों में भेजा जा सके. वही डांस गुरु कुमार मनोज की शिकार बनी युवती ने हमारे संवाददाता को बताया मुझे यह डांस गुरु मनो रोगी जान पड़ता है इसे मैंने समझाने का प्रयास किया था मगर वह किसी भी स्थिति में समझने को तैयार नहीं था इसलिए मुझे पुलिस में शिकायत करनी पड़ी.

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पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लाख के इनामी माफिया डौन अखिलेश  सिंह को झारखंड और बिहार की पुलिस सालों से तलाश रही थी. वह जमशेदपुर के अदालत परिसर में की गई झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और रीयल एस्टेट कारोबारी उपेंद्र सिंह की हत्या में जेल से पैरोल पर बाहर आने के बाद से फरार चल रहा था. जेलर उमाशंकर पांडेय हत्याकांड में भी उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी थी.

दोनों मामलों में उसे न्यायालय में पेश होने का आदेश दिया जा चुका था, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था. जमशेदपुर के जिला जज (पंचम) सुभाष ने पुलिस को आदेश दिया था कि अखिलेश सिंह को किसी भी तरह ढूंढ कर 11 दिसंबर, 2017 को अदालत में पेश किया जाए. पुलिस को यह आदेश अगस्त, 2017 में दिया गया था.

जिला न्यायालय से आदेश आने के बाद जमशेदपुर पुलिस ऊहापोह की स्थिति में थी. हार्डकोर क्रिमिनल अखिलेश सिंह झारखंड और बिहार पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. 36 मुकदमों में वांछित डौन अखिलेश सिंह पर प्रदेश के बड़े पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं का वरदहस्त था, इसलिए पुलिस उस के गिरेबान पर हाथ डालने से कतराती थी. डौन सालों से कहां छिपा था, किसी को पता नहीं था. झारखंड पुलिस कई महीनों से उस की तलाश में जुटी थी.

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आखिर जमशेदपुर पुलिस की मेहनत रंग लाई. सर्विलांस के जरिए जमशेदपुर (झारखंड) पुलिस को माफिया डौन अखिलेश सिंह की लोकेशन हरियाणा के गुरुग्राम की मिली. पुलिस ने सूचना की पुष्टि की तो वह पक्की निकली. अखिलेश सिंह महीनों से अपनी पत्नी गरिमा सिंह के साथ गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित एक गेस्टहाउस में छिपा बैठा था और किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहा था.

आखिर निशाने पर आ ही गया डौन अखिलेश

जमशेदपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनूप टी. मैथ्यू ने गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार से संपर्क कर के 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह को गिरफ्तार कराने में सहयोग मांगा. संदीप खिरवार इस के लिए तैयार हो गए. इस के बाद 8 सितंबर, 2017 को झारखंड पुलिस गुरुग्राम पहुंच गई.

दोनों प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों ने डौन अखिलेश सिंह को जिंदा पकड़ने का एक ब्लूप्रिंट तैयार किया. पुलिस जानती थी कि अखिलेश सिंह के पास आधुनिक हथियार हो सकते हैं, इसलिए इस योजना को बड़े ही गोपनीय ढंग से तैयार किया गया.

इस औपरेशन में जमशेदपुर पुलिस के एसपी (ग्रामीण) प्रभात कुमार, एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू, गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार, डीसीपी (क्राइम) सुमित कुमार और सीआईए यूनिट-9 के इंचार्ज इंसपेक्टर राजकुमार सहित चुनिंदा पुलिसकर्मी शामिल हुए.

डौन की पहचान के लिए एसएसपी मैथ्यू के पास उस की युवावस्था की एक पुरानी तसवीर थी, जिस में वह काफी खूबसूरत दिख रहा था. गोपनीय तरीके से बनाई गई योजना पूरी हुई तो 9 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित उस गेस्टहाउस को चारों ओर से घेर लिया, जिस में अखिलेश रह रहा था.

एसपी प्रभात कुमार, डीसीपी सुमित कुमार और इंसपेक्टर राजकुमार ने रिसैप्शन पर अखिलेश सिंह नाम के गेस्ट का पता किया तो एंट्री रजिस्टर में उस नाम से कोई कस्टमर नहीं मिला. गेस्टहाउस के कमरा नंबर 102 में अजय कुमार नाम का एक कस्टमर अपनी पत्नी के साथ ठहरा था.

पुलिस कमरा नंबर 102 पर पहुंची. एसपी प्रभात कुमार ने दरवाजे की झिर्री से भीतर झांक कर देखा तो बैड पर एक युवक बैठा था. उस के चेहरे पर काली और घनी दाढ़ी थी. देखते ही वह पहचान गए कि अजय

कुमार नाम से ठहरा गेस्ट अखिलेश सिंह ही है. कमरे के सामने पहुंच कर सुमित कुमार ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया तो भीतर से गोलियां चलने लगीं. मौके पर पोजीशन लिए पुलिस अधिकारी सतर्क हो कर साइड हो गए. उस के बाद आधा दरवाजा तोड़ कर पुलिस की ओर से कई राउंड गोलियां चलाई गईं.

भीतर से गोलियां चलनी बंद हो चुकी थीं. जब अंदर कोई हलचल नहीं हुई तो पोजीशन ले कर पुलिस टीम पूरा दरवाजा तोड़ कर भीतर घुसी. कमरे में कसरती बदन वाला एक युवक और एक महिला मौजूद थी. युवक के चेहरे पर घनी दाढ़ी थी और उस के दोनों पैरों के घुटने के ऊपर गोली लगी थी. गोली लगने से घायल हो कर बिस्तर पर पड़ा तड़प रहा था.

पूछताछ में पता चला कि वही माफिया डौन अखिलेश सिंह है और महिला उस की पत्नी गरिमा सिंह. जब पुलिस अखिलेश को वहां से ले जाने लगी तो गरिमा सिंह इंसपेक्टर राजकुमार की सर्विस रिवौल्वर छीनने की कोशिश करने लगी. इस से पहले कि कोई अप्रिय घटना घटती, महिला पुलिस ने उसे दबोच लिया.

मुठभेड़ के बाद 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह और उस की पत्नी गरिमा सिंह के गिरफ्तार होने की सूचना जैसे ही पत्रकारों को मिली, वे गुरुग्राम के थाना सुशांत लोक पहुंच गए. इस बीच पुलिस ने अखिलेश सिंह के विरुद्ध गुरुग्राम के थाना सेक्टर-29 में भादंवि की धारा 307, 353, 436 और शस्त्र अधिनियम का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

अखिलेश के दोनों पैरों में घुटनों के ऊपर गोलियां लगी थीं. इलाज के लिए उसे गुरुग्राम के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने संयुक्त प्रैसवार्ता कर मुठभेड़ की पूरी कहानी विस्तार से बताई.

बिजनैस से कैरियर की शुरुआत की अखिलेश ने

अखिलेश सिंह मामूली हैसियत वाला आदमी नहीं था. वह सेवानिवृत्त सबइंसपेक्टर और आजसू पार्टी (औल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी) के नेता चंद्रगुप्त सिंह का बेटा था. अखिलेश ने ट्रांसपोर्ट का धंधा शुरू किया था, लेकिन वह ऐसी बुरी संगत में पड़ गया कि एक मामूली ट्रांसपोर्टर से झारखंड राज्य का 5 लाख का सब से बड़ा मोस्टवांटेड डौन बन गया, जिस की एक बोली पर बड़ेबड़े व्यापारियों की तिजोरियां खुल जाती थीं.

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अखिलेश सिंह मूलत: जमशेदपुर जिले के थाना बिष्टुपुर क्षेत्र के बिष्टुपुर इलाके का रहने वाला था. वह चंद्रगुप्त सिंह का बड़ा बेटा था. उन का दूसरा बेटा अमलेश सिंह है.

चंद्रगुप्त सिंह ने पुलिस में सिपाही के पद से नौकरी शुरू की थी. अपनी ईमानदारी, लगन और मेहनत से वह सबंइसपेक्टर के ओहदे तक पहुंचे. अतिमहत्त्वाकांक्षी और तेजदिमाग का अखिलेश सिंह पढ़लिख कर पिता की तरह काबिल अफसर बनना चाहता था. इस के लिए उस ने पोस्टग्रैजुएशन भी किया. लेकिन वह पिता जैसे मुकाम को छू तक नहीं पाया.

व्यवसाय के रूप में अखिलेश सिंह ने पार्टनरशिप में ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया था. उस ने और अशोक शर्मा ने गुलशन रोडलाइंस की शुरुआत की थी. अखिलेश और अशोक का यह व्यवसाय चल निकला. वैसे भी अशोक शर्मा इस धंधे का पुराना मास्टर था. उस का ट्रांसपोर्ट का धंधा सालों से मजे में चल रहा था. अखिलेश के आने से उस का काम और भी अच्छा चलने लगा था.

अशोक ने अखिलेश को इसलिए पार्टनर बनाया था, क्योंकि वह एक ताकतवर आदमी का बेटा था. उस के पिता चंद्रग्रप्त सिंह की पुलिस और सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. कोई परेशानी आने पर वह काम आ सकता था. वैसे भी अखिलेश व्यवसाय के प्रति काफी ईमानदार था.

ट्रांसपोर्ट की कमाई से अशोक शर्मा ने करोड़ों की प्रौपर्टी अर्जित की थी. उस के खास दोस्तों में एक था हरीश अरोड़ा. वह उस से अपने दिल की हर बात शेयर करता था. हरीश को उस की यही बात सब से अच्छी लगती थी.

हरीश जानता था कि अशोक के पास किसी चीज की कमी नहीं है. अगर किसी चीज की कमी थी तो वह थी बीवीबच्चों की. हरीश ने सन 1997 में अपनी परिचित मधु शर्मा उर्फ पिंकी नाम की युवती के साथ उस की शादी करा दी. इस के बाद अशोक हरीश को पहले से ज्यादा मानने लगा.

शादी के करीब 1 साल बाद की बात है. उस दिन तारीख थी 18 सितंबर, 1998 और समय दिन. अशोक शर्मा किसी काम से घर से बाहर जा रहे थे. बिष्टुपुर थानाक्षेत्र में हिलव्यू रोड स्थित सेक्रेड हार्ट कौन्वेंट स्कूल के पास कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने दिनदहाड़े गोली मार कर उन की हत्या कर दी.

अपराध की राह खुद उतर आई अखिलेश की जिंदगी में

ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा की हत्या से जमशेदपुर में सनसनी फैल गई. व्यवसाई एकजुट हो कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए. वैसे भी दिन पर दिन जिले की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी और अपराधियों के हौसले बुलंद थे. हरीश अरोड़ा ने थाना बिष्टुपुर में अशोक के व्यावसायिक पार्टनर अखिलेश सिंह के साथ 3 अन्य लोगों बालाजी बालकृष्णन, विक्रम शर्मा और विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

अशोक शर्मा हत्याकांड में नामजद होते ही अखिलेश सिंह जमशेदपुर छोड़ कर फरार हो गया. विक्रम शर्मा और विजय कुमार गिरफ्तार कर लिए गए. अखिलेश सिंह के खिलाफ पहली बार हत्या जैसे संगीन मामले में मुकदमा दर्ज हुआ. इस के बाद वह चर्चाओं में आ गया.

3 साल तक बिष्टुपुर पुलिस हत्या के कारणों की जांच करती रही, लेकिन उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. इस घटना की जांच सबइंसपेक्टर विश्वेश्वरनाथ पांडेय कर रहे थे. जांच के दौरान पता चला कि अशोक शर्मा को शूटर रवि चौरसिया ने गोली मार कर हत्या की थी. पुलिस ने रवि चौरसिया को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. 28 जनवरी, 2000 को रवि चौरसिया के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के न्यायालय को सौंप दिया गया.

बिष्टुपुर पुलिस द्वारा मामले की लीपापोती के बाद सन 2001 में अशोक हत्याकांड की जांच सीआईडी को सौंप दी गई. सीआईडी इंसपेक्टर कन्हैया उपाध्याय ने अशोक हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. जांच में घटना का असल सूत्रधार हरीश अरोड़ा ही निकला. उसी ने दोस्त की संपत्ति हथियाने और उस की पत्नी को पाने के लिए यह दांव खेला था.

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घटना का खुलासा उस समय हुआ, जब सन 2001 में जमशेदपुर के एक बड़े मोबाइल व्यापारी ओमप्रकाश काबरा का अपहरण कर लिया गया. काबरा के अपहरण में एक बार फिर अखिलेश सिंह का नाम उछला तो पुलिस की पेशानी पर बल पड़ गए. अब तक अखिलेश सिंह गैंगस्टर बन चुका था.

खैर, पुलिस ने ओमप्रकाश काबरा अपहरण की जांच शुरू की तो ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा हत्याकांड में एक चौंकाने वाले राज का खुलासा हुआ. इस मामले की जांच करते हुए पुलिस को पता चला कि अशोक शर्मा की हत्या की साजिश हरीश अरोड़ा ने रची थी.

यह लालच, विश्वासघात और प्रेम का मामला था. दरअसल, पुलिस जांच में पता चला कि मधु शर्मा उर्फ पिंकी और हरीश अरोड़ा आपस में एकदूसरे से प्रेम करते थे. हरीश अरोड़ा ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा का जिगरी यार था. करोड़पति अशोक शर्मा की शादी नहीं हुई थी.

हरीश अरोड़ा की नीयत अपने दोस्त अशोक की संपत्ति पर थी. वह एक झटके में उस की संपत्ति हासिल कर लेना चाहता था. इस के लिए उस ने एक बड़ी साजिश रची.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 3

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(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लेकिन अखिलेश सिंह ने बीच में आ कर आशीष डे को हट जाने को कहा. आशीष डे ने अखिलेश की बात नहीं मानी तो उस ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी. इस के बाद भी आशीष डे ने अखिलेश की बात नहीं सुनी. मामला दोनों के बीच अहं पर आ टिका.

2 नवंबर, 2007 की सुबह साढ़े 9 बजे आशीष डे अपने चेनार रोड स्थित घर से साकची बाजार स्थित दुकान पर जा रहे थे. बाजार में गाड़ी पार्किंग की समस्या थी. इस वजह से वह पैदल ही जा रहे थे. इस का फायदा उठाते हुए अखिलेश सिंह ने अपने शूटरों के साथ मिल कर बीच चौराहे पर एके 47 से आशीष डे को भून डाला और हवा में असलहे लहराता हुआ फरार हो गया. जबकि आशीष डे का अखिलेश के पिता चंद्रगुप्त सिंह से पारिवारिक रिश्ता था.

दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था, फिर भी 2 गज जमीन के लिए अखिलेश ने आशीष डे की जान लेने से तनिक भी संकोच नहीं किया. हत्या करने के बाद उस ने राज्य के एक पुलिस अफसर के घर पनाह ली. उस की तलाश में पुलिस यहांवहां मारी फिर रही थी, लेकिन उसे पकड़ना तो दूर, पुलिस उस की परछाईं तक नहीं छू पाई थी.

मार्च, 2008 में पूर्व न्यायाधीश आर.पी. रवि के घर पर फायरिंग, टाटा स्टील के सुरक्षा अधिकारी जयराम सिंह की हत्या, प्रतिद्वंदी परमजीत सिंह के घर पर फायरिंग वगैरह में अखिलेश शामिल था. पकड़े जाने के डर से वह फरार था. अखिलेश सिंह को 31 दिसंबर, 2011 को उत्तर प्रदेश के विशेष कार्यबल और झारखंड पुलिस ने नोएडा के एक मौल से गिरफ्तार किया. सन 2014 में जेल के भीतर अफवाह उड़ी कि वह राजनीति में शामिल हो रहा है. यह अफवाह उस के सहयोगियों ने उड़ाई थी. इस के बाद पुलिस ने उसे साकची जेल से दुमका जेल में ट्रांसफर कर दिया.

मई, 2015 में जेलर उमाशंकर पांडेय के हत्यारे अखिलेश को दोषी ठहराया गया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. हालांकि 4 सितंबर, 2015 को उसे जमानत मिल गई.

जबकि उस पर क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत अपराध दर्ज किया गया था, जिस के तहत एक साल के लिए कोई जमानत याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता था. लेकिन उस ने अपनी ऊपर तक की पहुंच के बल पर झारखंड हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और स्टे के आधार पर उच्च न्यायालय से जमानत ले ली. जमानत मिलने के बाद एक बार फिर वह जेल से बाहर आ गया.

जमानत पर बाहर आने के बाद अखिलेश करीब 15 महीने तक खामोश रहा. 30 नवंबर, 2016 को जमशेदपुर न्यायालय के भीतर उस के गुर्गों ने रीयल एस्टेट कारोबारी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता उपेंद्र सिंह को एके 47 से भून कर राज्य भर में सनसनी फैला दी.

झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता उपेंद्र सिंह कोई दूध का धुला नहीं था. वह हत्या, हत्या के प्रयास और अपहरण जैसे कई संगीन मामलों का आरोपी था. 30 नवंबर, 2016 को दिन के डेढ़ बजे नेता उपेंद्र सिंह एक मुकदमे में अगली तारीख लेने जमशेदपुर न्यायालय आया था.

1 अगस्त, 2015 को बिजनैस पार्टनर और ठेकेदार रामशकल यादव की सुबह मौर्निंग वाक करते समय मोटरसाइकिल सवार कुछ अज्ञात हमलावरों ने एके47 से हत्या कर दी थी.

उपेंद्र सिंह के मर्डर ने फैलाई सनसनी

इस हत्याकांड में नेता उपेंद्र सिंह का नाम उछला था. यही नहीं दोनों के बीच खिंची दुश्मनी की रेखा भी किसी से छिपी नहीं थी. उपेंद्र सिंह और विकी टापरिया ने पटना के हार्डकोर गैंगस्टर मनोज सिंह के साथ मिल कर रामशकल यादव की हत्या की 75 लाख रुपए में डील की थी.

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जिस में से 25 लाख बतौर पेशगी मनोज सिंह को एडवांस में दिए गए थे और बाकी के 50 लाख रुपए काम हो जाने के बाद देना तय हुआ था. कारोबारी रामशकल यादव की हत्या के मामले में उपेंद्र सिंह को आरोपी बनाया गया था. उसी सिलसिले में उपेंद्र सिंह अदालत में हाजिर हो कर मुकदमे की अगली तारीख लेने आया था.

पुलिस के अनुसार, विनोद सिंह अखिलेश सिंह का सब से निकटतम सहयोगी था. विनोद सिंह को 1 दिसंबर, 2016 को तड़के 3 बजे पुलिस ने उस के घर से उठाया. पहले उसे मानगो थाना में रखा गया. उस के बाद उस से साकची थाने में पूछताछ की गई. साथ ही शहर के विभिन्न इलाकों से अनिल सिंह, विजय यादव, मनोज सिंह, एक महिला सहित 15 लोगों को उठाया गया.

इन में अनिल सिंह और मनोज सिंह, उपेंद्र सिंह पर गोली चलाने वाले विनोद सिंह उर्फ मोगली के भाई थे. विनोद सिंह ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि हत्या अखिलेश सिंह के कहने पर की गई थी. उपेंद्र की हत्या रंगदारी न देने की वजह से की गई थी. इस के 6 दिनों बाद 6 दिसंबर, 2016 को रंगदारी न देने पर उपेंद्र सिंह के करीबी अमित राय की गोली मार कर हत्या कर दी गई.

एक के बाद एक ताबड़तोड़ 2 हत्याओं से जमशेदपुर हिल उठा. दोनों हत्याओं में पुलिस को अखिलेश सिंह के शामिल होने के पर्याप्त सबूत भी मिल गए. पुलिस अखिलेश की तलाश में लग गई. लेकिन उसे पकड़ना तो दूर की बात, उस का पता तक नहीं चल रहा था. अखिलेश पर दबाव बनाने के लिए उस के घर की कुर्की और जब्ती हुई, पुलिस ने उस के घर में सीसीटीवी कैमरा, बंदूक, कारतूस, पलंग, फ्रिज, टीवी, एसी से ले कर अलमारी, एक्वेरियम, शोकेस, गैस चूल्हा, गद्दा, अटैची, पाजामाकुरता, चौकीबेलन, डिब्बा, कटोरी और चम्मच तक कुछ नहीं छोड़ा.

सिदगोड़ा के क्वार्टर नंबर 28 से सारे सामान को उठा कर गोलमुरी थाने में रख दिया गया. चंद्रगुप्त सिंह के 2 लाइसेंसी हथियार और 12 बोर के कारतूसों का डिब्बा भी पुलिस ले गई.

यहां यह बताना जरूरी होगा कि जिस फ्लैट में कुर्कीजब्ती की गई, वहां अखिलेश के पिता चंद्रगुप्त सिंह रहते थे, जबकि अखिलेश सिंह बारीडीह के सृष्टि अपार्टमेंट के एक फ्लैट में रहता था. केस में चूंकि अखिलेश का आवासीय पता उसी क्वार्टर था, इसलिए वहीं काररवाई हुई.

पूरे मामले को देखते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख डी. कश्मीर पांडेय को निर्देश दिया कि वह प्रदेश भर में अदालतों और उस के आसपास सुरक्षा का व्यापक प्रबंध करें. एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू ने हत्या के मामले में लिप्त लोगों को गिरफ्तार करने के लिए 8 टीमों का गठन किया. इन का काम अखिलेश सिंह से जुड़े लोगों का लिंक तलाशना था. एक टीम को शहर से बाहर भी भेजा गया.

अखिलेश सिंह तो पुलिस के हाथ नहीं लगा, लेकिन पुलिस को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई. 4 अप्रैल, 2017 को पुलिस को उत्तराखंड के देहरादून में अखिलेश सिंह के आपराधिक गुरु विक्रम शर्मा के छिपे होने की सूचना मिली.

देहरादून पुलिस की मदद से जमशेदपुर पुलिस ने विक्रम शर्मा को गिरफ्तार कर लिया और जमशेदपुर ले आई. वह सन 2006 से फरार चल रहा था. विक्रम शर्मा के गिरफ्तार होने के 6 महीने बाद 2 सितंबर, 2017 को जमशेदपुर पुलिस और उड़ीसा पुलिस ने संयुक्त रूप से मिल कर अखिलेश सिंह के भाई अमलेश सिंह को उड़ीसा के भुवनेश्वर एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया. अखिलेश के साथ उस का नाम भी 20 वारदातों में दर्ज था.

गिरफ्तारी के बाद अमलेश सिंह को 8 सितंबर को जमशेदपुर न्यायालय में पेश किया गया. जमशेदपुर पुलिस ने न्यायालय से 5 दिनों का रिमांड मांगा, लेकिन न्यायालय ने 3 दिनों का रिमांड दिया. कुछ मामलों में पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया.

दो राज्यों की पुलिस परेशान थी अखिलेश के लिए

अखिलेश सिंह को काबू करने के लिए एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू ने विक्रम शर्मा पर दांव खेला. विक्रम से पुलिस को अखिलेश का नंबर मिल गया. पुलिस ने उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. सर्विलांस के जरिए जमशेदपुर पुलिस को उस की लोकेशन राजस्थान की मिली. पुलिस जब तक राजस्थान जाने की तैयारी करती, तब तक उस ने अपना ठिकाना बदल दिया. दोबारा उस की लोकेशन हरियाणा के गुरुग्राम में मिली. इस के बाद क्या हुआ, ऊपर बताया जा चुका है.

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गुरुग्राम से डौन अखिलेश सिंह को गिरफ्तार करने के पहले 31 मार्च, 2017 को पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर बिरसानगर थाना इलाके में स्थित अखिलेश सिंह के सृष्टि अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 508 में छापेमारी की थी. इस दौरान फ्लैट के अंदर से एक बैग बरामद किया गया, जिस में बहुत सारे दस्तावेज मिले थे.

इस में चलअचल संपत्ति के दस्तावेज भी थे, जिस में सेल डीड, एग्रीमेंट की मूल कौपी, आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस सहित बैंक पासबुक और अन्य दस्तावेज शामिल थे. दस्तावेजों की जांच करने पर पाया गया कि इन में नाम किसी और का था और फोटो अखिलेश सिंह का था. अधिकतर दस्तावेजों में उस का फर्जी नाम संजय सिंह, अजीत सिंह पुत्र हरिद्वार सिंह, दिलीप सिंह पुत्र रमेश सिंह लिखा था और गरिमा सिंह के नाम की जगह अन्नू सिंह लिखा हुआ था.

झारखंड का अब तक का सब से बड़ा 5 लाख का इनामी डौन अखिलेश सिंह जमशेदपुर की घाघीडीह जेल में बंद था. बाद में उसे दुमका जेल भेज दिया गया. डौन के जेल में आने के बाद उस की सेवा करने के लिए उस के कई गुर्गे अपनी जमानत रद्द करा कर जेल चले गए थे.

घाघीडीह जेल में बंद अखिलेश सिंह के लिए 23 अपराधी रंगदारी वसूलने और व्यापारियों की गतिविधियों की सूचना देने का काम कर रहे हैं. इस संबंध में स्पैशल ब्रांच के एडीजी ने 10 नवंबर को अपनी रिपोर्ट डीजीपी को भेजी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अखिलेश गुट और जेल के गांधी वार्ड में बंद अपराधियों के बीच कभी भी खूनी संघर्ष हो सकता है.

अखिलेश सिंह के साथसाथ आशीष श्रीवास्तव उर्फ भूरिया और नीरज सिंह पर कड़ी निगरानी रखने की भी बात कही गई है. बताया गया है कि 10 नवंबर को अखिलेश गुट के आशीष और परमजीत गुट के झब्बू के बीच मारपीट हुई थी. इस के बाद उसे सेल में डाला गया. पत्र में यह भी लिखा गया है कि जेल में बंद नीरज सिंह अखिलेश सिंह के लिए जासूसी का काम कर रहा है. अखिलेश सिंह पर दर्ज कुल 52 मुकदमों में से वह 36 मुकदमों में वांछित रहा था, बाकी के 16 मुकदमों में वह बरी किया जा चुका था.????

 – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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