करामात : भाग 2 – आखिर सुखदेव क्या चाहता था राजेश्वरी से?

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:

सनीचरी की तेरहवीं कराने के चक्कर में सुखदेव एक तांत्रिक बाबा के हत्थे चढ़ गया. बाबा ने उसे भूतप्रेत का डर दिखाया. सुखदेव का बेटा कार्तिक इस अंधविश्वास को नहीं मानता था. उसे पता था कि उस की मां को कैंसर है, पर सुखदेव उसे डाक्टर के बजाय तांत्रिक बाबा के पास ले गया. कार्तिक को अपने पिता को धूर्त बाबा से बचाना था. वह अपनी मौसी के गांव गया, जो एक बिंदास औरत थी.

अब पढ़िए आगे…

‘‘हां मौसी, पहले मुझे बैठ तो लेने दे, थक गया हूं,’’ कार्तिक बोला. नानी भी अब तक दालान में आ गई थीं. कार्तिक का यहां बड़ा मन लगता है. मौसी के दालान के एक किनारे मुरगियों के दड़बे और कुएं के पास बकरियों के रहने के ठिकाने हैं. कुल 7 बकरियां हैं. मौसी इन्हें बेचती भी है.

दालान से ऊपर चबूतरा और उस से लगे 2 बड़े हवादार कमरे हैं. पलंग, कुरसी, बड़ा शीशा, पंखा, टैलीविजन सबकुछ है मौसी के पास. मोपैड भी है, जो अब मौसी ही चलाती है.

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कार्तिक ने मौसी को ढोंगी बाबा और अपने बापू की सारी बातें बताईं. मौसी ने कहा, ‘‘देख बेटा, तेरा भविष्य तो जीजा के पास एकदम चौपट है. कहीं तांत्रिक तेरे बापू से तुझे ही न मांग ले.

‘‘नशा इनसान का दिमाग खराब कर देता है. वह ढोंगी गांव वालों को नशे का आदी इसलिए बनाता होगा, ताकि अपनी मनमानी करता रहे.

‘‘तू अब हमारे पास ही रुक जा. मैं तुझे कसबे के बड़े वाले स्कूल में भरती करवा दूंगी.’’

‘‘मौसी, आप ने मेरे लिए जो सोचा है, वह तो अच्छी बात है, मगर गुनेसर बाबा को हमारे गांव से भगाओ न आप. किसी की भी हिम्मत नहीं कि उस से लड़े. वह मेरे बापू को नशे के चक्कर में एक दिन खत्म ही न कर दे.’’

कार्तिक की बात सुन कर राजेश्वरी पसीज गई थी. सुबह होते ही वह अकेले ही उमाशंकर पहलवान से मिलने जा पहुंची. उन से सारी बातें तय कर के राजेश्वरी पहले खेत और फिर घर पहुंची.

वहां जीजा को दालान में बैठा देख राजेश्वरी चौंक गई. वह कार्तिक को डांटफटकार रहा था.

राजेश्वरी खीझ गई और पूछा, ‘‘ऐसे कैसे चले आए जीजा? कार्तिक की फिक्र में…’’

‘‘कुछ होश भी है तुम को? लड़का चुपचाप बैठा लिया, कोई खोजखबर नहीं दी,’’ सुखदेव बोला.

‘‘जीजा, तुम ने बेटे को ऐसा लाचार कर दिया कि भागा आया इधर. जिस बाप का खुद का ठिकाना नहीं, उसे खबर कैसे दूं? बाप हो तो सलीके से क्यों न रहते बेटे के साथ?’’

सुखदेव उस बाबा के डर के साए में रह कर नशेड़ी हो कर अपनी सोचने की ताकत खो बैठा था. वह थोड़ी सी धमक पर ही डर कर बैठ गया और अपना सिर खुजाने लगा. नानी ने कार्तिक को दोपहर का खाना खिलाया और वापस जाने को कहा.

लेकिन राजेश्वरी ने दोटूक कहा, ‘‘कार्तिक को कब भेजना है, मैं सोचूंगी. बेचारा खानेपीने को तरस गया है. यह जीजा के साथ नहीं जाएगा.’’ नानी चुप हो गईं. कार्तिक हफ्ताभर और वहां रहा, फिर अपने घर लौट गया.

उधर उमाशंकर ने पहलवान छात्रों को कुछ निर्देश दिए और अपने भतीजे रंजन के घर नारायणपुरा में ही आ गए.

इधर कार्तिक के गांव वालों के रंगढंग देख कर राजेश्वरी दंग रह गई. सभी गांव वाले बिना कोई पूछताछ किए बाबा के कदमों में लोटे रहते थे.

आज की रात दिल की धड़कन बढ़ाने वाली थी. राजेश्वरी मंदिर के पीछे बने मकान के कमरे तक पहुंच चुकी थी. खिड़की खुली थी. उस ने भीतर झांका. गुनेसर भूरे, सफेद पाउडर के पैकेट के बदले 3 लोगों से रुपयों की गड्डी ले रहा था. उस का चेहरा ठीक सामने था. राजेश्वरी हटने को हुई, तो बाबा की नजर उस पर पड़ी. बाबा चिल्लाया, ‘‘पकड़ो इसे.’’

उन में से एक दौड़ कर जैसे ही उसे पकड़ने को हुआ, राजेश्वरी उसे धक्का दे कर भाग खड़ी हुई.

बाबा ने कहा, ‘‘यह तो सुखदेव की साली है. मंदिर के आसपास 2 दिन से घूम रही थी. गांव वालों से पता किया है. पहलवानी करती है. औरत जात पर कलंक है. यहां जासूसी करने आई थी.

‘‘यह कुछ खुराफात करे, इस से पहले अभी अपने आदमियों से कह दो कि रातोंरात इस की चिता सजा दें.

‘‘लोगों की फसल में जगहजगह आग लगा दो, लोगों के मवेशी चुरा लो, कई घरों में सेंधमारी करो और फिर सुबह से ही बात फैलाओ कि यह पहलवान टोनही है, जो जादूटोना कर के सब का नाश कर रही है. देखो, कैसे मेरी बात मान कर सब गांव वाले इस का क्रियाकर्म करते हैं.’’

तीनों हुक्म के गुलाम चल दिए. इधर भोर होने तक राजेश्वरी अपनी मोपैड से उमाशंकर के भतीजे रंजन के घर पहुंची. उमाशंकर सुबह की कसरत कर रहे थे. उन का 30 साला भतीजा रंजन अपनी चाय की दुकान खोलने की तैयारी में था.

राजेश्वरी ने बताया, ‘‘मैं ने आते वक्त खेतों को जलते देखा है. यह निश्चित ही उस गुनेसर का काम है, जो अब यह इलजाम मुझ पर लगाने वाला है.’’

उमाशंकर बोले, ‘‘राजेश्वरी, अब वह वक्त आ चुका है, जिस का हम इंतजार कर रहे थे. कार्तिक पर भी हमला हो सकता है, इसलिए अभी सीधे तुम उस के पास जाओ. मैं सगुणा को अपने गांव फोन कर देता हूं, वह तैयार हो जाएगा. दूसरे छात्रों को भी अब बुलवा लेता हूं.

‘‘मैं बस पकड़ कर सीधे शहर पहुंच रहा हूं. वहां से मैं अपने एक पत्रकार दोस्त को ले कर जल्दी लौटूंगा. फोन पर उस को इत्तिला कर देता हूं कि वह मेरे साथ चलने को तैयार रहे.’’

इधर तांत्रिक गांव वालों को इकट्ठा कर चुका था और मंदिर के सामने पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर खड़ा हो कर भाषण झाड़ रहा था, ‘‘हमारे गांव में टोनही घुस आई है. सुखदेव की साली. कब से जानता हूं मैं इसे. उस ने तुम लोगों के खेत जला डाले, बकरियां गायब कर दीं…’’

‘‘मेरी मुरगियां भी बाबा,’’ एक गांव वाले ने कहा.

‘‘खाती है सब. जादूटोना करने वाले उन्हें कच्चा खा जाते हैं…’’ बाबा ने बताया, ‘‘वह तुम लोगों के पास आ कर यह कहे कि बाबा चोर है, तुम लोगों को ठग रहा है, उस से पहले तुम सब उसे यहां पकड़ लाओ.’’

‘हां बाबा, अभी लाते हैं,’ कई गांव वाले एकसाथ बोले.

‘‘सुखदेव मिले तो उसे भी ले आओ,’’ बाबा ने कहा.

सुखदेव के घर में राजेश्वरी तो नहीं मिली, अलबत्ता सुखदेव को ही लोग घसीटते हुए ले गए.

सुखदेव को देखते ही बाबा ने हुंकार भरी, ‘‘क्यों रे सुखदेव, बहुत मचल रहा था. जो पहलवान साली घर में बिठा ली? और कोई औरत नहीं मिली तुझे?’’

एक औरत ने तांत्रिक को खुली चुनौती दी थी. उस की चोरी पकड़ी गई थी. वह तिलमिला उठा था. चरसगांजे की मारी जनता ‘हेहे’ कर के हंस पड़ी.

सुखदेव डर के मारे बाबा के पैरों में लोट गया और कहा, ‘‘उस औरत से मेरा कोई नाता नहीं है. बेटे को खिलानेपिलाने की खातिर जबरदस्ती इधर पहुंच गई. हमें क्या पता, वह गांव में क्या कर रही है.’’

‘‘टोनही है वह. टोनाटोटका कर के मेरे रहते गांव वालों का इतना नुकसान कर दिया. गांव वालों की ओर जो आंख उठा कर देखेगा, मैं उस की बलि कालभैरव के सामने चढ़ा दूंगा.’’

‘‘आप राजेश्वरी को ला कर जो करना है करो, मुझे कोई मतलब नहीं. मेरे बेटे और मुझे छोड़ दो बाबा,’’ सुखदेव ने कहा.

‘‘जा, फिर ढूंढ़ कर ला उसे गांव वालों के साथ जा कर.’’

इधर गांव वाले गांव छानते रहे, उधर कार्तिक को ले कर राजेश्वरी गांव के बाहर अपने पहलवान गुरुभाई के घर छिप कर बैठी रही. जब तक तांत्रिक का इलाज नहीं हो जाता, उस के हिलनेडुलने से बात बिगड़ सकती थी.

रात के वक्त मंदिर के पास पत्रकार और उमाशंकर छिप गए. अंदर गुनेसर के कमरे में कुछ बातचीत चल रही थी. ‘‘बाबा, मैं आप के पैर पड़ता हूं. सामान है मेरे पास… आप दे दो.’’ ‘‘चलचल, यह सब यहां नहीं है. तुझे गलत बात पता चली है.’’

सगुना उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘बाबा, बड़ी मुश्किल से मां की 2 पायल उठा कर लाया हूं.’’

‘‘ठीक है, देखता हूं,’’ बाबा ने अपने मन की कूदफांद को काबू में रखते हुए कहा.

लेकिन अचानक बाबा सतर्क हो गया और पूछा, ‘‘तू कहीं जासूस तो नहीं है? क्या नाम है तेरा?’’

‘‘नहीं बाबा, आप तो अंतर्यामी हैं. सब समझ सकते हैं. ये पायल मां की ही हैं. मैं उन्हें चुरा कर लाया था कि पुडि़या मिल जाए. कहीं पकड़ा गया तो पुलिस जो न करेगी, उस से ज्यादा घर वाले मेरा कर देंगे. आप दे दो बाबा, तो मैं निकल जाऊं जल्दी.’’

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बाबा को विश्वास हो चला था. उन्होंने ड्रग का एक पैकेट निकाला. उस में चरस थी.

‘‘बाबा, हेरोइन की भी एक छोटी पुडि़या दे दो न.’’

‘‘पाकिस्तान बौर्डर पर लड़ाई चल रही है. अफगानिस्तान का सारा माल रुका हुआ है. इसी पर संतोष कर और चल भाग यहां से. फिर कभी दोबारा इधर दिखना मत, वरना जिंदा जमीन में गड़वा दूंगा.’’

‘‘जा रहा हूं बाबा, मगर एक बात रह गई.’’

‘‘क्या…? जल्दी बोल?’’

‘‘बाबा, हमारे गांव की एक लड़की थी. मैं उस से शादी करना चाहता था, मगर उस के बाप ने मुझे निकम्मा और चरसखोर कह कर बहुत पिटवाया. अब लड़की को बहला कर मैं आप के पास छोड़ देना चाहता हूं. आप उस का पूजन करते रहना.’’

‘‘बहुत होशियार है रे तू चल, ले आना. कितनी उम्र है उस की?’’ उस हवस के भूखे भेडि़ए ने कुटिल मुसकान के साथ पूछा.

‘‘24 साल की होगी. बहुत खूबसूरत है वह.’’

‘‘कब लाएगा?’’

‘‘हफ्तेभर बाद.’’

‘‘भूलना मत.’’

सगुना ने बहुत बड़ा खतरा मोल लिया था. छिपतेछिपते उस ने उमाशंकर और पत्रकार को इशारा कर दिया. वे तीनों वहां से निकल लिए.

सगुना अपने गांव चला गया. उमाशंकर और पत्रकार शहर पुलिस को यह स्टिंग वीडियो दिखाने चले गए, जो सगुना की कमीज के बटन में लगालगा सबकुछ कैद कर रहा था.

उमाशंकर ने फोन पर राजेश्वरी को अब सब के सामने आने को कह दिया था, क्योंकि उन के हिसाब से तांत्रिक के पापों का आज आखिरी दिन था.

पुलिस सादा लिबास में उमाशंकर और पत्रकार के साथ नारायणपुरा गांव पहुंची. राजेश्वरी गांव वालों की पकड़ में आ चुकी थी. उसे ‘टोनही’ पुकारते हुए लोग उस पर कीचड़ मल रहे थे.

राजेश्वरी चाहती, तो उन्हें अपने ‘धोबी पछाड़’ से पटकनी दे देती, लेकिन वह चाहती थी कि तांत्रिक का कियाधरा पुलिस की नजर में आ जाए.

इधर राजेश्वरी के साथ भीड़ मंदिर के सामने पीपल के पेड़ तक चली आ रही थी, उधर बाबा की धरपकड़ के बाद उस के कमरे की तलाशी में सैकड़ों की तादाद में गंदी फिल्मों के वीडियो, लड़कियों के फोटो, चरसगांजा और रुपयों की अनगिनत गड्डियां पुलिस को मिल चुकी थीं.

‘‘सब पीपल पेड़ के पास इकट्ठा हो चुके थे. इतने में उमाशंकर तलाशी लेने वाले अफसर के सामने आए और कहा, ‘‘सर, राजेश्वरी राज्यस्तरीय कुश्ती चैंपियन है. हमारे कुछ छात्र भी यहां मौजूद हैं, जो पहलवानी करते हैं. राजेश्वरी भी हम से कुश्ती सीखती है. इसे टोनही कह कर बदनाम करने वाले ठग बाबा का भंडाफोड़ कराने में राजेश्वरी और उस के भांजे कार्तिक का बड़ा हाथ है. सर, आप इजाजत दें, तो इस का स्टिंग वीडियो चलाया जाए.’’

बाबा वहां मुंह लटकाए खड़ा था. लोगों में कानाफूसी चल रही थी. अफसर ने कहा, ‘‘पुलिस को इस गुनेसर के घर से काफी सुबूत मिले हैं, जिन से साफ जाहिर है कि वह गलत धंधा कर के पैसे कमा रहा था और आप सब को ठग रहा था. हमारे पास छिप कर बनाया गया वीडियो है, जिस से सच का पता लगा है. ये महाशय जेल जाने वाले हैं. आगे से आप लोग ऐसे किसी करामाती बाबा के चंगुल में मत फंसिएगा.’’

कार्तिक, राजेश्वरी और उमाशंकर सुखदेव के घर पहुंचे. राजेश्वरी अपना सामान बांध रही थी. उमाशंकर के साथ वह सुबह ही निकल जाने वाली थी. कार्तिक सुखदेव से नजरें चुरा रहा था.

उमाशंकर ने कहा, ‘‘सुखदेव, अब तो सारा सच तुम्हारे सामने है. बाबा की पोलपट्टी खुल चुकी है. तुम्हारे गहने, रुपए मवेशी सब गए. बीवी भी गई. अब बेटे को कैसे पालोगे?’’

सुखदेव सिर खुजाते हुए बोला, ‘‘क्या करूंगा? जैसे पहले जाता था स्कूल, जाएगा.’’ कार्तिक के मन को पढ़ते हुए राजेश्वरी ने कहा, ‘‘जीजा, मैं तुम्हें जितना समझती हूं, लगता नहीं कि इसे पाल पाओगे. जी लेना और जिंदगी बनाने में बड़ा फर्क है. होनहार बच्चा है. मैं इसे पालूंगी. ले जाती हूं अपने साथ.’’

सुखदेव कसमसाता सा बोला, ‘‘तू इधर ही रह जा.’’ राजेश्वरी को तरस भी आया और गुस्सा भी. फिर भी वह संभल कर बोली, ‘‘देखो जीजा, मैं तुम्हारी घरवाली बन कर तो रह नहीं सकती… तेरी अक्ल क्या चरस और भांग चरने गई है?’’

कार्तिक हंस पड़ा.

‘‘अपने जीजा की देखभाल की नहीं सोच रही है,’’ कुढ़ता हुआ सुखदेव फिर भी बोल पड़ा.

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‘‘अरे जीजा, ज्यादा बोला तो दूंगी पटक के… तू कर ले न दूसरी औरत. मेरे पीछे क्यों पड़ गया?

‘‘मेरे लिए बहुत काम पड़े हैं. तू अपना रास्ता देख और कभी बेटे से लाड़ करने का मन करे, तो हमारे घर का दरवाजा खुला है, आ जाना,’’ राजेश्वरी बोली. उमाशंकर अपनी साइकिल पर, कार्तिक अपनी छोटी सी पोटली के साथ राजेश्वरी की मोपैड पर अपनी मौसी के गांव की ओर चल दिया.

वहशीपन: 6 साल की मासूम के साथ ज्यादती

दिमाग में चढ़ा वहशियानापन इस हद तक पहुंच जाएगा कि न आगे सोचा न पीछे. अब तो रेप शब्द का नाम सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. चाहे किशोरी हो या मासूम, इससे फर्क नहीं पड़ता. बस, हवस पूरी करने का मौका चाहिए.

जी हां, ऐसा ही एक मामला 3 जुलाई, 2019 को सामने आया है. मासूम के साथ हुई घटना यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि वहशी कितना शातिर है. बच्ची के मां-बाप काम के सिलसिले में मेहनत मजदूरी करते हैं. घर में बच्ची के अकेले रहने का फायदा उठाते हैं वहशी. ऐसे शख्स जगह-जगह अपने शिकार की तलाश में रहते हैं. मौका मिलते ही ये बच्चियों व किशोरियों को धर दबोचते हैं और अपने मकसद को अंजाम देते हैं.

6 साल की बच्ची के साथ रेप…

3 जुलाई, 2019 को दिल्ली के द्वारका सेक्टर 23 के पास के एक गांव में 6 साल की एक मासूम के साथ रेप की घटना घटी. भले ही सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपी 24 साला मोहम्मद नन्हे को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बच्ची की हालत बेहद नाजुक है.

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सीसीटीवी फुटेज में घटना वाले दिन आरोपी लड़की के साथ दिखा है. उसे एक अलग जगह ले जाने के बाद आरोपी ने लड़की के साथ बलात्कार किया और भाग गया.

बच्ची की हालत नाजुक…

इलाके के एक बाशिंदे ने बच्ची को सड़क पर बेहोश और खून से लथपथ देखा. उस ने तुरंत ही पीसीआर को फोन किया. बच्ची को सफदरजंग अस्पताल ले जा कर भरती कराया गया. डाक्टरों ने कहा कि उस के प्राइवेट पार्ट की नसें फट गई हैं. अब तक वह कई सर्जरी से गुजर चुकी है.

पुलिस ने कहा कि आरोपी मोहम्मद नन्हे बेरोजगार था और उसी इलाके में रहता था. आरोपी भी लहूलुहान हालत में मिला था. उस ने अपना अपराध कबूल कर लिया है.

सामने आया पिता का दर्द…

आंखों में हताशा, निराशा लिए बच्ची के पिता ने कहा कि बिटिया आज ही बोली है, ”पापा, पापा.” वे कहते हैं, ”दिल्ली का बड़ा नाम सुना था. दो वक्त की रोटी के लिए कमाने आए थे यहां. क्या बताएं कि क्या हुआ.”

पीड़िता के पिता ने बताया, ”मेरे 4 बच्चे हैं. बिटिया दूसरे नंबर की है. इकलौती है. कमरे का किराया और बच्चों को पालने के लिए पैसों की जरूरत है, इसलिए दोनों काम करते हैं. 2 साल पहले काफी उम्मीदें लेकर दिल्ली आया था. लेकिन यहां गरीब के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. थोड़े दिन ठीक से चलता रहा, मगर अब बिटिया के साथ गलत काम हो गया.”

वहीं, बच्ची की मां ने बताया कि वहशी बच्ची को बहला कर मंदिर से ले गया था. उस ने टौफी का लालच दिया. बच्ची के साथ खेल रहे बच्चों को आरोपी ने धमका कर वहां से भगा दिया था.

क्या इंसाफ के लिए करना होगा आंदोलन…

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति जयहिंद का कहना है कि रेप करने वालों के खिलाफ, आंदोलन के बाद, दोषियों के लिए फांसी का कानून बना है, मगर यह कानून लागू नहीं हो पा रहा है. क्या दोबारा आंदोलन छेड़ना पड़ेगा ताकि दोषियों को फांसी की सजा मिल सके.

सफदरजंग अस्पताल में भरती पीड़ित बच्ची को देखने स्वाति जयहिंद पहुंचीं. उन्होंने कहा कि उस बच्ची के शरीर के हर हिस्से में खरोंच और चोट के निशान हैं. जगहजगह शरीर नोंचने के निशान रेप करने वाले के वहशीपन को उजागर करते हैं. बेशक, रेप का आरोपी गिरफ्तार हो गया हो, लेकिन क्या यह काफी है. उन्होंने सवाल उठाया कि कब ऐसा सिस्टम बनेगा जिस में बच्चों के रेपिस्ट को जल्द से जल्द फांसी हो?

उन्होंने मांग की कि मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो और आरोपी को फांसी की सजा दी जाए.

केजरीवाल पहुंचे बच्ची को देखने…

वहीं दूसरी ओर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस बच्ची को देखने सफदरगंज अस्पताल गए. उन्होंने कहा कि एक हैवान ने छोटी सी बच्ची के साथ गलत काम किया. डाक्टर ने बताया कि जब वे यहां आई थी तब उस की हालत बेहद खराब थी, पर अब ठीक है. मैं बच्ची के पिता से मिला. दिल्ली सरकार 10 लाख रुपए का मुआवजा देगी और अच्छा वकील खड़ा करेगी. जो दोषी है, सरकार उसे सजा दिलाएगी, ताकि यह दूसरों के लिए सबक बन सके.

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शासन-प्रशासन कानून अगर समय रहते सबक ले सके तो ठीक, वरना आने वाला समय रेपिस्टों का होगा. मासूमों को बचा सकते हो तो बचा लो. कोई कुछ न कर सकेगा.

अदालतें सुबूतों पर चलती हैं. अपराध को कोर्ट में साबित करना होगा. क्या पता, पुलिस की मार से बचने के लिए आरोपी ने हामी भरी हो.

यह तो समय ही बताएगा कि अदालत आरोपी की क्या सजा तय करती है, पर आप सावधान हो जाइए और ऐसे लोगों पर पैनी निगाह रखिए, चाहे पड़ोसी ही क्यों न हो.

यौन अपराध: लोमहर्षक कांड

जैसे-जैसे हम कथित रूप से सभ्य होते जा रहे हैं, देश में यौन अपराध बढ़ते चले जा रहे हैं. साथ साथ कानून भी सख्त होता जा रहा है. वस्तुतः यौन अपराध  जिस गति से बढ़ते चले जा रहे हैं वह एक सभ्य समाज के लिए चिंता का सबब है. दरअसल, पूर्व मे बलात्कार के बाद महिलाओं को अधमरा ही सही छोड़ दिया जाता था. क्योंकि कानून लाचर था. मगर अब जब कानून में तब्दीली करके उसे सरकार द्वारा सख्त बना दिया गया है,  यहां तक की फांसी प्रावधान किया गया है अपराधियों द्वारा अब कानून के भय के कारण बलात्कार के बाद  लड़कियों को मौत के घाट उतार दिया जाने लगा  है.

ऐसा ही एक लोमहर्षक कांड  छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के एक गांव में घटित हुआ है. जहां 14 वर्षीय एक  किशोरी को दो लोगों ने सिर्फ इसलिए जलाकर मार दिया कि उनके खिलाफ कानून  के पास कोई सबूत ना रह पाए और वे कानून के शिकंजे से बच जाएं.

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बेमेतरा जिले में एक  दिल दहला देने वाली शर्मनाक घटना हुई है. जिसकी गूंज आज संपूर्ण छत्तीसगढ़ में हो रही है.

जिले के दाढ़ी थाना क्षेत्र के मजगाँव में एक 14 वर्षीय किशोरी के साथ दो युवकों ने बलात्कार  की असफल  कोशिश की. बलात्कार की घटना को अंजाम देने विफल रहने वाले दोनों  युवकों ने  अपनी जान बचाने  किशोरी  पर मिट्टी तेल डालकर ज़िंदा जलाने का  असफल प्रयास किया.

80 पर्सेंट जल गई किशोरी

आरोपियों ने बलात्कार की असफल कोशिश के पश्चात किशोरी  पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर उसे 80 पर्सेंट से अधिक जला दिया. आरोपियों की मंशा यह थी कि उनके कुकृत्य को ना पुलिस जान पाए और ना मामला लोगों तक पहुंच सके. इसीलिए बड़े ही शातिर  तरीके से उन्होंने  किशोरी  को जला डाला. यही कारण है कि  हॉस्पिटल में उसकी मृत्यु हो गई. घटना की जानकारी  प्राप्त होते ही  जहां पुलिस अलर्ट हो गई और आरोपियों को धर दबोचा वहीं यह गंभीर घटना जब बेमेतरा जिला से लेकर संपूर्ण छत्तीसगढ़ में प्रसारित होती चली गई तो लोगों में रोष पैदा हो गया. बेमेतरा जिला की पुलिस के मुताबिक इस घटना की जानकारी मिलते ही किशोरी को राजधानी रायपुर रिफर किया गया. मगर महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि किशोरी  ने मृत्यु  से पुलिसवालों को अपना अंतिम  बयान दर्ज करा दिया था.

बेमेतरा पुलिस अधीक्षक दिव्यांग पटेल ने हमारे संवाददाता को  बताया  घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस ने तत्काल इस मामले में संज्ञान ले लिया था. यहां यह भी गौरतलब है कि घटना 22 जून सोमवार को  घटित हुई थी. बलात्कार की शिकार किशोरी का बयान लेने के बाद आरोपी दोनों युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया . पकड़े गए आरोपियों में जहाँ  एक नाबालिग 13 वर्ष का है वहीं दूसरा 22 वर्ष का    है. दोनों ही युवा गाँव के ही रहने वाले हैं.

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उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पूर्व इसी तरह हुई एक घटना में बेमेतरा सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र अंतर्गत  एक मासूम बच्ची को अगवा उसका रेप किया गया था. इस मामले को लेकर बेमेतरा शहर में जमकर हड़बोंग  हुआ था. पुलिस प्रशासन पर  लगातार सवाल उठाये जा  रहे थे. लगातार हो रहे प्रदर्शनों के बाद पुलिस आरोपी ट्रक ड्राईवर को गिरफ्तार करने सफल हो पाई थी. और अब यह मामला शांत ही हुआ है कि एक दूसरी लोमहर्षक घटना क्रम घटित हो गयी है.

8 वर्षीय बच्ची के साथ

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा  जिले में ही,  इसी  जून  माह के प्रारंभ में, एक 8 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म  का मामला सामने आया था.  घर के आंगन में सो रही बालिका का  अपहरण किया गया. फिर  रेप की घटना को अंजाम दिया गया. आरोपी कथित रूप से बालिका  को घर से करीब 20 मीटर दूर छोड़कर भाग गये . ग्रामीणों ने बच्ची को सड़क किनारे देखा था. पूछताछ में  बालिका ने परिजनों को अपने साथ हुई पूरी घटना बताई. इसके बाद मामले की शिकायत पुलिस से की गई. शिकायत मिलते ही पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया.   पुलिस को सूचना देकर बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया गया .

बालिका ने अपने साथ हुए वारदात की जानकारी दी जिसके बाद जिले में हड़कंप मच गया. फौरन पुलिस अधीक्षक दिव्यांग पटेल  अस्पताल पहुंचे. एसपी दिव्यांग पटेल ने  बताया कि बालिका ने अपने बयान में  वारदात की जानकारी दी.  अपहरणकर्ता ट्रक में उसे लेकर गया था और ट्रक से ही उसे छोड़कर चला गया. इस आधार पर बेमेतरा पुलिस चौक-चौराहों में लगे सीसीटीवी को खंगाल रही  रही थी मगर घटनाक्रम के पश्चात लोगों में आक्रोश फूट पड़ा और शिकायत गृहमंत्री तक पहुंच गई. अभी यह बलात्कार की घटना लोगों के जेहन से उतरी ही नहीं है कि पुनः दूसरी लोमहर्षक घटना घट गई.

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हल: आखिर क्यों पति से अलग होना चाहती थी इरा?

हल : भाग 2

पहला भाग पढ़ें- हल: आखिर क्यों पति से अलग होना चाहती थी इरा?

लेखक- विजया वासुदेवा

भाग-2

इरा हैरत से अपूर्व को देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों?’’

‘‘जब आप और पापा 15 साल एकदूसरे के साथ रह कर भी एकदूसरे के साथ नहीं रह सकते, अलग होना चाहते हैं तब हम तो आप के साथ 12 साल से रह रहे हैं. हमें आप कैसे जानेंगे? आप और पापा अगर अलग हो रहे हैं तो हमें होस्टल भेज देना, हम आप दोनों से ही नहीं मिलेंगे,’’ अपूर्व तिलमिला उठा था.

‘‘पागल है क्या तू?’’ इरा हैरान थी, ‘‘नहीं बिलकुल नहीं. इतने वर्षों साथ रह कर भी आप को एकदूसरे का आदर करना, एकदूसरे को अपनाना नहीं आया, तो आप हमें कैसे अपनाएंगे.

‘‘पापा आप का सम्मान नहीं करते तभी आप को घर छोड़ कर जाने देंगे. आप पापा को और घर को इतने सालों में भी समझा नहीं पाईं तभी घर छोड़ कर जाने की बात कर सकती हैं. इसलिए हम आप दोनों का ही आदर नहीं कर सकेंगे और हम मिलना भी नहीं चाहेंगे आप दोनों से,’’ अपूर्व के चेहरे पर उत्तेजना और आक्रोश झलक रहा था.

इरा ने अपूर्व के कंधे को कस कर पकड़ लिया. उस का बेटा इतना समझदार होगा उस ने सोचा भी नहीं था. नवीन से अलग हो कर उस ने सोचा भी नहीं था कि अपने बेटे की नजरों में वह इतनी गिर जाएगी. अगर नवीन उसे सम्मान नहीं दे रहा, तो वह भी अलग हो रही है नवीन का तिरस्कार कर के. इस से वह नवीन को भी तो अपमानित कर रही है. परिवार टूट रहा है, बच्चे असंतुलित हो रहे हैं. वह विवाहविच्छेद नहीं करेगी. उस के आशियाने के तिनके उस के आत्मसम्मान की आंधी में नहीं उड़ेंगे. उसे नवीन के साथ अब किसी अलग ही धरातल पर बात करनी होगी.

अक्सर ही नवीन झगड़े के बाद 2-4 दिन देर से घर आता है. औफिस में अधिक काम का बहाना कर के देर रात तक बैठा रहता. इरा उस की इस मानसिकता को अच्छी तरह समझती है.

इरा ने औफिस से 10 दिनों का अवकाश लिया. नवीन 2-4 दिन तटस्थता से इरा का रवैया देखता रहा. फिर एक दिन बोला, ‘‘ये बेमतलब की छुट्टियां क्यों ली जा रही हैं?’’

छुट्टियां खत्म हो जाएंगी तो हाफ पे ले लूंगी, जब औफिस जाना ही

नहीं है तो पिछले काम की छुट्टियों का हिसाब पूरा कर लूं,’’ इरा ने स्थिर स्वर में कहा.

‘‘किस ने कहा तुम औफिस छोड़ रही हो?’’ नवीन ने ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैडम, आजकल नौकरी मिलती कहां है जो तुम यों आराम से लगीलगाई नौकरी को लात मार रही हो?’’

‘‘और क्या करूं?’’ इरा ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘जिन शर्तों पर नौकरी करनी है वह मेरे बस के बाहर की बात है.’’

‘‘कौन सी शर्तें?’’ ‘‘नवीन ने अनजान बनते हुए पूछा.’’

‘‘देरसबेर होना, जनसंपर्क के काम में सभी से मिलनाजुलना होता है, वह भी तुम्हें पसंद

नहीं. कैरियर या होम केयर में से एक का चुनाव करना था. सो मैं ने कर लिया. मैं ने नौकरी

छोड़ने का निर्णय कर लिया है,’’ इरा ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘क्या बच्चों जैसी जिद करती हो,’’ नवीन झल्लाई आवाज में बोला, ‘‘एक जने की सैलरी में घरखर्च और बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?’’

‘‘पर नौकरी छोड़ कर तुम सारा दिन करोगी क्या?’’ नवीन को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह इरा का निर्णय बदले.

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‘‘जैसे घर पर रहने वाली औरतें खुशी से दिन बिताती हैं. टीवी, वीडियो, ताश, बागबानी, कुकिंग, किटी पार्टी हजार तरह के शौक हैं. मेरा भी टाइम बीत जाएगा. टाइम काटना कोई समस्या नहीं है,’’ इरा आराम से दलीलें दे रही थी.

‘‘तुम्हारा कितना सम्मान है, तुम्हारे और मेरे सर्किल में लोग तुम्हें कितना मानते हैं. कितने लोगों के लिए तुम प्रेरणा हो, सार्थक काम कर रही हो,’’ नवीन ने इरा को बहलाना चाहा.

‘‘तो क्या इस के लिए मैं घर में रोजरोज कलहकलेश सहूं, नीचा देखूं, हर बात पर मुजरिम की तरह कठघरे में खड़ी कर दी जाऊं बिना किसी गुनाह के?

‘‘क्यों सहूं मैं इतना अपमान इस नौकरी के लिए? इस के बिना भी मैं खुश रह सकती हूं. आराम से जी सकती हूं,’’ इरा ने बिना किसी तनाव के अपना निर्णय सुनाया.

‘‘इरा आई एम वैरी सौरी, मेरा मतलब तुम्हें अपमानित करने का नहीं था. जब भी तुम्हें आने में देर होती है मेरा मन तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाता है. उसी तनाव में तुम्हें बहुत कुछ उलटासीधा बोल दिया होगा. मुझे माफ कर दो. मेरा इरादा तुम्हें पीड़ा पहुंचाने या अपमानित करने का नहीं था,’’ नवीन के चेहरे पर पीड़ा और विवशता दोनों झलक रही थीं.

‘‘ठीक है कल से काम पर चली जाऊंगी. पर उस के लिए आप को भी वचन देना होगा कि इस स्थिति को तूल नहीं देंगे. मैं नौकरी करती हूं. मेरे लिए भी समय के बंधन होते हैं. मुझे भी आप की तरह समय और शक्ति काम के प्रति लगानी पड़ती है. आप के काम में भी देरसबेर होती ही है पर मैं यों शक कर के क्लेश नहीं करती,’’ कहतेकहते इरा रोआंसी हो उठी.

‘‘यार कह दिया न आगे से ऐसा नहीं करूंगा. अब बारबार बोल कर क्यों नीचा दिखाती हो,’’ इरा का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम कर नवीन ने कहा.

इरा सोच रही थी कि रिश्ता तोड़ कर अलग हो जाना कितना सरल हल लग रहा था. लेकिन कितना पीड़ा दायक. परिवार के टूटने का त्रास सहन करना क्या आसान बात थी. मन ही मन वह अपने बेटे की ऋणी थी, जिस की जरा सी परिपक्वता ने यह हल निकाल दिया था, उस की समस्या का.

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9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज

हल : भाग 1

लेखक- विजया वासुदेवा

इरा कल रात के नवीन के व्यवहार से बेहद गुस्से में थी. अब मुख्यमंत्री की प्रैस कौन्फ्रैंस हो और वह मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हो कर जल्दी कैसे घर आ सकती थी. पर नहीं. नवीन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. माना लौटने में रात के 11 बज गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री को बिदा करते ही वह घर आ गई थी. नवीन के मूड ने उसे वहां एक

भी निवाला गले से नीचे नहीं उतारने दिया. दिनभर की भागदौड़ से थकी जब वह रात को भूखी घर आई, तो मन में कहीं हुमक उठी कि अम्मां की तरह कोई उसे दुलारे कि नन्ही कैसे मुंह सूख रहा है तुम्हारा. चलो हम खाना परोस

दें. लेकिन कहां वह कोमलता और ममत्व की कामना और कहां वास्तविकता में क्रोध से उबलता चहलकदमी करता नवीन. उसे देखते ही उबल पड़ा, ‘‘यह वक्त है घर आने का? 12 बज रहे हैं?’’

‘‘आप को पता तो था आज सीएम की प्रैस कौन्फ्रैंस थी. आप की नाराजगी के डर से मैं ने वहां खाना भी नहीं खाया और आप हैं कि…’’ इरा रोआंसी हो आई थी.

‘‘छोड़ो, आप का पेट तो लोगों की सराहना से ही भर गया होगा. खाने के लिए जगह ही कहां थी? हम ने भी बहुत सी प्रैस कौन्फ्रैंस अटैंड की हैं. सब जानते हैं महिलाओं की उपस्थिति वहां सिर्फ वातावरण को कुछ सजाए रखने से अधिक कुछ नहीं?’’

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‘‘शर्म करो… जो कुछ भी मुंह में आ रहा है बोले चले जा रहे हो,’’ इरा साड़ी हैंगर में लगाते हुए बोली.’’

‘‘इस घर में रहना है, तो समय पर आनाजाना होगा… यह नहीं कि जब जी चाहा घर से चली गई जब भी चाहा चली आई. यह घर है कोई सराय नहीं.’’

‘‘क्या मैं तफरीह कर के आ रही हूं? तुम इतने बड़े व्यापारिक संस्थान में काम करते हो, तुम्हें नहीं पता, देरसबेर होना अपने हाथ की बात नहीं होती?’’ इरा को इस बेमतलब की बहस पर गुस्सा आ रहा था.

गुस्से से उस की भूख और थकान दोनों ही गायब हो गई. फिर कौफी बना कप में डाल कर बच्चों के कमरे में चली गई. दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे.

इरा ने शांति की सांस ली. नवीन की टोकाटाकी उस के लिए असहनीय हो गई थी.

फोन किसी का भी हो, नवीन के रहते आएगा तो वही उठाएगा. फोन पर पूरी जिरह करेगा क्या काम है? क्या बात करनी है? कहां से बोल रहे हो?

लोग इरा का कितना मजाक उड़ाते हैं. नवीन को उस का जेलर कहते हैं. कुछ लोगों की नजरों में तो वह दया की पात्र बन गई है.

इरा सोच कर सिहर उठी कि अगर ये बातें बच्चे सुनते तो? तो क्या होती उस की छवि बच्चों की नजरों में. वैसे जिस तरह के आसार हो रहे हैं जल्द ही बच्चे भी साक्षी हो जाएंगे ऐसे अवसरों के. इरा ने कौफी का घूंट पीते हुए निर्णय लिया, बस और नहीं. उसे अब नवीन के साथ रह कर और अपमान नहीं करवाना है. पुरुष है तो क्या हुआ? उसे हक मिल गया है उस के सही और ईमानदार व्यवहार पर भी आएदिन प्रश्नचिन्ह लगाने का और नीचा दिखाने का…अब वह और देर नहीं करेगी. उसे जल्द से जल्द निर्णय लेना होगा वरना उस की छवि बच्चों की नजरों में मलीन हो जाएगी. इसी ऊहापोह में कब वह वहीं सोफे पर सो गई पता ही नहीं चला.

अगले दिन बच्चों को स्कूल भेजा. नवीन ऐसा दिखा रहा था मानो कल की रात रोज गुजर जाने वाली सामान्य सी रात थी. लेकिन इरा का व्यवहार बहुत सीमित रहा.

इरा को 9 बजे तक घर में घूमते देख, नवीन बोला, ‘‘क्या आज औफिस नहीं जाना है? आज छुट्टी है? अभी तक तैयार नहीं हुई.’’

‘‘मैं ने छुट्टी ली है,’’ इरा ने कहा.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक लग रही है, फिर छुट्टी क्यों?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘कभीकभी मन भी बीमार हो जाता है इसीलिए,’’ इरा ने कसैले स्वर में कहा.

‘‘समझ गया,’’ नवीन बोला, ‘‘आज तुम्हारा मन क्या चाह रहा है. क्यों बेकार में अपनी छुट्टी खराब कर रही हो, जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

‘‘नहीं,’’ इरा बोली, ‘‘आज मैं किसी हाल में भी जाने वाली नहीं हूं,’’ इरा की आवाज में जिद थी. नवीन कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘ठीक है तुम्हारी मरजी.’’

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बच्चों और पति को भेजने के बाद वह देर तक घर में इधरउधर चहलकदमी करती रही. उस का मन स्थिर नहीं था. अगर नवीन की नोकझोंक से तंग आ कर नौकरी छोड़ भी दूं तो क्या भरोसा कि नवीन के व्यवहार में अंतर आएगा या फिर बात का बतंगड़ नहीं बनाएगा… लड़ने वाले को तो बहाने की भी जरूरत नहीं होती. नवीन के पिता के इसी कड़वे स्वभाव के कारण ही उस की मां हमेशा घुटघुट कर जी रही थीं. पैसेपैसे के लिए उन्हें तरसा कर रखा था नवीन के पिता ने.

अपनी मरजी से हजारों उड़ा देंगे. नवीन की नजरों में उस के पिता ही उस के आदर्श पुरुष थे और मां का पिता से दब कर रहना ही नवीन के लिए मां की सेवा और बलिदान था.

इरा जितना सोचती उतना ही उलझती जाती, उसे लग रहा था अगर वह इसी तरह मानसिक तनाव और उलझन में रही तो पागल हो जाएगी. हर जगह सम्मानित होने वाली इरा अपने ही घर में यों प्रताडि़त होगी उस ने सोचा भी न था. असहाय से आंसू उस की आंखों में उतर आए. अचानक उस की नजर घड़ी पर पड़ी. अरे, डेढ़ बज गया… फटाफट उठ कर नहाने के लिए गई. वह बच्चों को अपनी पीड़ा और अपमान का आभास नहीं होने देना चाहती थी. नहा कर सूती साड़ी पहन हलका सा मेकअप किया. फिर बच्चों के लिए सलाद काटा, जलजीरा बनाया, खाने की मेज लगाई.

दोनों बेटे मां को देख कर खिल उठे. बिना छुट्टी के मां का घर होना उन के लिए कोई पर्व सा बन जाता है. तीनों ने मिल कर खाना खाया. फिर बच्चे होमवर्क करने लग गए.

5 बजे के लगभग इरा को याद आया कि उस की सहेली मानसी पाकिस्तानी नाटक का वीडियो दे कर गई थी. बच्चे होमवर्क कर चुके थे. इरा ने उन्हें नाटक देखने के लिए आवाज लगाई. दोनों बेटे उस की गोदी में सिर रख कर नाटक देख रहे थे. अजीब इत्तफाक था. नाटक में भी नायिका अपने पति की ज्यादतियों से तंग आ कर अपने अजन्मे बच्चे के संग घर छोड़ कर चली जाती है हमेशा के लिए.

इरा की तरफ देख कर अपूर्व बोला, ‘‘मां, आप ये रोनेधोने वाली फिल्में मत देखा करो. मन उदास हो जाता है.’’

‘‘मन उदास हो जाता है इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’ इरा ने सवाल किया.

‘‘बेकार का आईडिया है एकदम,’’ अपूर्व खीज कर बोला, ‘‘इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’

‘‘अपूर्व,’’ इरा ने कहा, ‘‘समझो इसी औरत की तरह अगर हम भी घर छोड़ना चाहें तो तुम किस के साथ रहोगे?’’

‘‘कैसी बेकार की बातें करती हैं आप भी मां,’’ अपूर्व नाराजगी के साथ बोला, ‘‘आप ऐसा क्यों करेंगी?’’

‘‘यों समझो कि हम भी तुम्हारे पापा के साथ इस घर में नहीं रह सकते तो तुम किस के साथ रहोगे?’’ इरा ने पूछा.

‘‘जरूरी नहीं है कि आप के हर सवाल का जवाब दिया जाए,’’ 13 वर्ष का अपूर्व अपनी आयु से अधिक समझदार था.

‘‘अच्छा अनूप तुम बताओ कि तुम क्या करोगे?’’ इरा ने छोटे बेटे का मन टटोला.

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अनूप को बड़े भाई पर बड़प्पन दिखाने का अवसर मिल गया. बोला, ‘‘वैसे तो हम चाहते हैं कि आप दोनों साथ रहें? लेकिन अगर आप जा रही हैं तो हम आप के साथ चलेंगे. हम आप को बहुत प्यार करते हैं,’’ अनूप बोला, ‘‘चल झूठे…’’ अर्पूव बोला, ‘‘मां, अगर पापा आप की जगह होते तो यह उन्हीं को भी यही जवाब देता.’’

‘‘नहीं मां, भैया झूठ बोल रहा है. यही पापा के साथ जाता. पापा हमें डांटते हैं. हमें नहीं रहना उन के साथ. आप हमें प्यार करती हैं. हम आप के साथ रहेंगे,’’ अनूप प्यार से इरा के गले में बांहें डालते हुए बोला.

‘‘डांटते तो हम भी है,’’ इरा ने पूछा, ‘‘क्या तब तुम हमारे साथ नहीं रहोगे?’’

‘‘आप डांटती हैं तो क्या हुआ, प्यार भी तो करती हैं, फिर आप को खाना बनाना भी आता है. पापा क्या करेंगे?’’ अगर नौकर नहीं होगा तो? अनूप ने कहा.

‘‘अच्छा अपूर्व तुम जवाब दो,’’ इरा ने अपूर्व के सिर पर हाथ रख कर उस का मन फिर से टटोलना चाहा.

इरा का हाथ सिर से हटा कर अपूर्र्व एक ही झटके में उठ बैठा. बोला, ‘‘आप उत्तर चाहती हैं तो सुन लीजिए, हम आप दोनों के साथ ही रहेंगे.’’

अगले भाग में पढ़िए- क्या पति को छोड़ पाएगी इरा?

9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज : भाग 3

घर से निकलने से पहले रफीका ने बच्चों से कह दिया था कि वह संजय के साथ मां से मिलने कोलकाता जा रही है. 4 दिनों बाद वह वापस लौट आएगी. तुम सब ठीक से रहना, अपना खयाल रखना. किसी चीज की जरूरत पड़े तो निशा फूफी से कह कर ले लेना.

खैर, उस रात रेलगाड़ी वारंगल से तडेपल्लगुडम पहुंची तो रफीका की पलकें झपकने लगीं. वह सो गई तो संजय ट्रेन से प्लेटफार्म पर उतरा. स्टाल से उस ने एक पैकेट छाछ का लिया और वापस ट्रेन में अपनी सीट पर बैठ गया.

एक डिब्बे में छाछ पलट कर उस ने बड़ी सफाई से उस ने उस में नींद की 10 गोलियों का चूण मिला दिया. जब दवा छाछ में घुल गई तो उस ने नींद में सोई रफीका को जगा कर छाछ पिला दी.

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छाछ पीने के बाद वह फिर सो गई. उसे क्या पता था कि जीवन का हमसफर बनने वाला संजय यमराज बन कर उस की जिंदगी छीनने वाला है और अब वह चंद पलों की मेहमान है.

थोड़ी देर बाद दवा ने अपना असर दिखाना शुरू किया. संजय ने रफीका को हिलाडुला कर देखा. वह बेसुध पड़ी थी. उसी दौरान बड़ी सफाई से उस ने उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

फिर मौका देख कर रफीका को अंधेर में तडेपल्लीगुडम और राजमुंद्री रेलवे स्टेशन के बीच रेलगाड़ी से नीचे गिरा दिया. वह मन ही मन खुश हो रहा था. क्योंकि उस के और शाइस्ता के बीच का रोड़ा हमेशाहमेशा के लिए निकल गया था.

रफीका को ठिकाने लगाने के बाद सितमगर आशिक संजय अगले स्टेशन राजमुंद्री पर उतर गया. पूरी रात उस ने स्टेशन पर बिताई. फिर अगले 2 दिनों तक वह राजमुंद्री शहर में रहा और तीसरे दिन अकेले वारंगल वापस लौट आया.

संजय को अकेले आया देख कर मकसूद को अजीब लगा. उस ने उस से रफीका के बारे में पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया कि रफीका अपने एक रिश्तेदार के यहां रुक गई है. 2-4 दिनों में वापस लौट आएगी.

पता नहीं क्यों संजय का यह जवाब मकसूद के गले नहीं उतर रहा था. फिर उस ने सोचा कि हो सकता है लंबे समय के बाद वह मायके गई है, किसी रिश्तेदार से मिलने का मन हुआ हो, तो रुक गई हो. 2-4 दिन में खुद ही लौट आएगी. आखिर बच्चों की भी तो चिंता होगी उसे.

रफीका को कोलकाता गए 10 दिन बीच चुके थे. न तो रफीका घर वापस लौटी थी और न ही उस ने फोन किया था. मां को ले कर बच्चे भी परेशान हो रहे थे. संजय से पूछने पर वह गोलमोल जवाब दे देता था. मकसूद भी उस से पूछपूछ कर परेशान हो चुका था.

फिर मकसूद ने रफीका की मां के पास फोन किया और उस के बारे में पूछा. उस की मां ने कहा कि रफीका तो यहां आई ही नहीं. यह सुन कर मकसूद का माथा ठनक गया. उसे यह समझते देर नहीं लगी कि दाल में कुछ काला है. संजय ने रफीका के साथ जरूर कुछ ऐसावैसा कर दिया है.

इसी बीच कोरोना संकट को ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लौकडाउन की घोषणा कर दी, जिस से लोगों के घरों से निकलने पर सख्त पाबंदी लग गई.

मकसूद जिस कारखाने में काम करता था, ऐहतियात के तौर पर उस के मालिक ने उसे परिवार सहित शहर से गांव गोर्रेकुंठा शिफ्ट कर दिया था. जबकि संजय रफीका के बच्चों को साथ ले कर रहता था.

झूठी बातें कह कर उस ने बच्चों को अपनी बातोें में उलझाए रखा. उधर मकसूद संजय से फोन कर के पूछता रहा कि बताओ रफीका का तुम ने क्या किया. वह कहां है?

रफीका जिंदा होती तो वह आती. वह मर चुकी थी, फिर संजय क्या जवाब देता. इसलिए वह मकसूद से बचने लगा था. संजय समझ गया था कि मकसूद को सच के बारे में पता चल चुका है. कहीं मकसूद ने पुलिस को बता दिया तो उसे जेल जाना पड़ सकता है.

जेल जाने की सोच कर संजय डर गया. वह जेल नहीं जाना चाहता था. उसी समय उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म ले लिया. उस ने सोचा कि क्यों न वह मकसूद के पूरे परिवार को खत्म कर दे. जब परिवार में कोई जीवित नहीं रहेगा तो रफीका के बारे में पूछने वाला कोई नहीं होगा और यह राज सदा के लिए दफन हो जाएगा.

खतरनाक विचार मन में आते ही संजय आगे की योजना बनाने लगा. 20 मई, 2020 को मकसूद के बड़े बेटे शादाब का जन्मदिन था. संजय जानता था मकसूद बेटे का जन्मदिन धूमधाम से मनाता है. उस ने सोचा कि अगर खाने में जहर मिला दे तो खाना खाते ही पूरा परिवार यमलोक सिधार जाएगा और यह राज राज बन कर रह जाएगा.

मकसूद कई दिनों से संजय को बुला रहा था. लेकिन संजय उस से मिलने उस के घर नहीं जा रहा था. वह जान था कि मकसूद उसे क्यों बुला रहा है. 16 मई को फोन कर के मकसूद ने संजय को बेटे के जन्मदिन पर अपने यहां आमंत्रित किया. घर पर ही छोटी सी पार्टी का आयोजन है, तुम जरूर आना.

मकसूद जान रहा था कि वैसे तो संजय आ नहीं रहा है, लेकिन बर्थडे के नाम पर वह जरूर आएगा. उसी दौरान उस से रफीका के बारे में पूछूंगा. संजय ने पार्टी में सही समय पर आने के लिए हामी भर दी थी.

18 मई को संजय ने मैडिकल स्टोर से नींद की 60 गोलियां खरीदीं और घर में पीस कर रख दी. 20 मई की शाम मकसूद ने संजय को फोन कर के याद दिलाया कि उसे बेटे के जन्मदिन पर आना है. संजय ने हां में जवाब दिया और कहा कि वह पार्टी में जरूर आएगा.

20 मई, 2020 की रात 8 बजे संजय मकसूद के घर पहुंचा. घर में उस के परिवार के सभी लोग यानी पत्नी निशा, बेटी बुशरा खातून, बेटे शादाब आलम, सोहेल आलम, 3 वर्षीय नाती के साथ मकसूद का दोस्त शकील मौजूद थे. कारखाने के 2 और मजदूर श्रीराम और श्याम भी वहां आए थे. वे दोनों ऊपर के कमरे में ठहरे हुए थे.

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इसी बीच संजय मौका देख कर किचन में गया और नींद की 60 गोलियों का पाउडर दाल में मिला दिया और बाहर निकल आया. रात साढे़ 9 बजे खाना शुरू हुआ. संजय ने खाना खाने से साफ मना कर दिया. मकसूद और उस के परिवार वाले, शकील, श्रीराम और श्याम ने खाना खाया. खाना खाने के कुछ ही देर बाद नींद की गोलियों ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. एकएक कर सभी नींद के आगोश में समाते चले गए. संजय भी वहीं सो गया था.

संजय रात साढ़े 12 बजे उठा. सभी को हिलाडुला कर देखा. किसी के शरीर में हरकत नहीं हो रही थी. इस के बाद संजय ने घर में रखे बोरे में एकएक कर के सभी को भरा और घर से बोरा घसीटते हुए गांव के बाहर गोदाम के पास स्थित कुएं में डालता गया. उस का यह काम सुबह 5 बजे तक चला. सभी 9 लोगों को जिंदा कुएं में डालने के बाद संजय इत्मीनान से घर लौट आया और सो गया. वहां पानी में डूबने के बाद उन की मौत होती गई.

21 मई को कुछ चरवाहे अपनी भैंसों को चराते हुए कुएं की ओर गए. उन्होंने भैंसों को चरने के लिए छोड़ दिया और खेलने लगे. खेलतेखेलते उन की प्लास्टिक की गेंद कुएं में चली गई. गेंद को देखने के लिए उन्होंने कुएं में झांका तो भीतर का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए.

चरवाहे चीखते हुए उलटे पांव वहां से भागे. कुएं के भीतर पानी में लाशें तैर रही थीं. चरवाहों ने गांव पहुंच कर इस की सूचना ग्राम प्रधान को दी. ग्राम प्रधान ने इस घटना की खबर गिचिकोंडा थाने को दे दी.

घटना की सूचना मिलते ही एसओ शिवरामे पुलिस टीम ले कर गांव पहुंच गए. कुएं का निरीक्षण किया तो उस में 4 लाशें तैरती नजर आईं. जबकि 5 लाशें कुएं की तलहटी में बैठ गई थीं, जो अगले दिन पानी पर उतराती दिखाई दीं.

पूछताछ के बाद पुलिस कमिश्नर वी. रविंद्र ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के घटना की जानकारी पत्रकारों को दी. संजय ने एक हत्या छिपाने के लिए 9 और हत्याओं को अंजाम दिया था. सबूत मिटाने के लिए उस ने सभी के मोबाइल फोन छिपा दिए थे, जो बरामद कर लिए गए.

सीसीटीवी फुटेज में भी उसे देखा गया. संजय की घिनौनी करतूत से पूरी मानवता शर्मसार हुई. उसे उस के किए की सजा जरूर मिलेगी.

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– कथा में शाइस्ता परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज : भाग 2

दिल दहला देने वाली घटना को घटे 3 दिन बीत चुके थे. घटना को ले कर समूचे राज्य में दहशत थी. पुलिस पर जनता का काफी दबाव था.

लोग मांग कर रहे थे कि घटना का खुलासा जल्द से जल्द कर के हत्यारों को जेल भेजा जाए. जल्द खुलासा न होने पर लोगों ने पुलिस प्रशासन के खिलाफ बड़ा आंदोलन करने की चेतावनी भी दी. पुलिस कमिश्नर वी. रविंद्र ने डीसीपी वेंकट रेड्डी को घटना का खुलासा जल्द से जल्द करने के आदेश दे दिए.

घटना की छानबीन में यह मामला आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का प्रमाणित हो चुका था. मृतक मकसूद का दोस्त संजय कुमार यादव शक के दायरे में पहले ही आ चुका था. अब तक की जांच के दौरान जुटाए गए साक्ष्य संजय के खिलाफ थे.

24 मई, 2020 को पुलिस ने शक के आधार पर संजय को गिचिकोंडा से हिरासत में ले लिया. जब उस से पूछताछ की तो वह बारबार खुद को निर्दोष बताता रहा. पुलिस ने जब उस से सख्ती से रफीका के बारे में पूछा तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

संजय समझ चुका था अब और देर तक उस का नाटक चलने वाला नहीं है. इस के बाद वह डीसीपी रेड्डी के पैरों पर वह गिर कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘साहब, मुझे मत मारिए. मैं सचसच बताता हूं. सभी हत्याएं मैं ने ही की हैं.’’

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‘‘क्याऽऽ’’ संजय के मुंह से हत्या की बात सुन कर सभी पुलिसकर्मी हैरान रह गए.

‘‘क्या करता, सर. मैं मजबूर था. रफीका के बारे में सवाल पूछपूछ कर मकसूद और उस के घर वालों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था. राज छिपाने का मेरे पास यही आखिरी रास्ता बचा था…’’ इस के बाद संजय पूरी कहानी से परतदरपरत परदा उठाता चला गया.

संजय के बयान के आधार पर दिल हदला देने वाली कहानी कुछ ऐसे सामने आई –

45 वर्षीय मोहम्मद मकसूद आलम मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कोलकाता का रहने वाला था. करीब 25 साल पहले अपनी बीवीबच्चों को साथ ले कर तेलंगाना के वारंगल जिले के गोर्रेकुंठा में बस गया था. तब वारंगल जिला आंध्र प्रदेश में पड़ता था. पत्नी निशा आलम और 3 बच्चे शादाब, बुशरा खातून और सोहेल, मकसूद का बस यही घरसंसार था. ब्याह के बाद से बेटी बुशरा मायके में बेटे के साथ रहती थी.

मोहम्मद मकसूद आलम और उस की पत्नी निशा आलम बोरे बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करते थे. उसी फैक्ट्री में बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला 26 वर्षीय संजय कुमार यादव भी काम करता था.

मिलनसार, कर्मठ और व्यवहार कुशल संजय ने अपने व्यवहार से मकसूद ही नहीं, सभी कर्मचारियों के दिलों में जगह बना ली थी. मकसूद भले ही उम्र में संजय से 20 साल बड़ा था, लेकिन वह संजय को अपना दोस्त मानता था.

उस का मकसूद के घर भी आनाजाना था. मकसूद के बच्चे उसे चाचा कहते थे.

संजय की मकसूद के घर के भीतर तक पैठ बन गई थी. उस के घर वाले जानते थे कि वह नेक इंसान है और अकेला रहता है. मकसूद की पत्नी निशा जब भी कुछ अच्छा पकाती थी तो संजय को खाने पर जरूर बुलाती थी.

संजय की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक और मजे से चल रहा था. इसी बीच उस की किस्मत में रफीका आ कर बैठ गई. रफीका, मकसूद की पत्नी निशा के भाई की बेटी थी. किस्मत की मारी रफीका कई साल पहले कोलकाता से बच्चों को साथ ले कर फूफी के पास रहने आई थी. रफीका के 3 बच्चे थे. बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी.

5 साल पहले रफीका को उसके पति ने तलाक दे दिया था. तलाक के बाद से रफीका की जिंदगी तबाह हो गई थी. इस महंगाई के जमाने में 3-3 बच्चों का भरणपोषण करना कोई मामूली बात नहीं थी. वह भी तब जब आय का कोई स्रोत न हो. वह दिनरात इसी चिंता में रहती थी कि जीवन की नैया कैसे चलेगी, कौन हमारा खेवनहार होगा?

रफीका की सब से बड़ी बेटी शाइस्ता 15 साल की हो चुकी थी. रफीका को सब से ज्यादा उसी की चिंता सताती थी. रफीका की जिंदगी दूसरों के रहमोकरम पर चल रही थी. निशा से भतीजी की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी तो उस ने उसे कोलकाता से अपने पास गोर्रेकुंठा बुला लिया.

मालिक से सिफारिश कर के मकसूद ने रफीका को भी अपनी फैक्ट्री में नौकरी दिलवा दी. तभी से वह बच्चों को ले कर फूफी के साथ रह रही थी.

संजय मकसूद का दोस्त था. उस की घर में भीतर तक पैठ भी थी. संजय की नजर रफीका के गोरे चेहरे पर पड़ी तो वह उसे मन भा गई. कुंवारे संजय ने अपने दिल पर रफीका का नाम लिख दिया. जब संजय ने रफीका की कारुणिक कहानी सुनी तो उस के प्रति उस का प्रेम और भी बढ़ गया था.

उस दिन से संजय रफीका और उस के बच्चों का खास खयाल रखने लगा. वह उन की जरूरत के सामान ला कर देता रहता था. कह सकते हैं कि वह अभिभावक की तरह बच्चों की जरूरतें पूरी करने लगा. उस का समर्पण देख रफीका भी संजय की ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकी.

दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ते बनते गए. अब रफीका संजय के लिए दोनों वक्त का खाना पकाती, उसे खिलाती और उस के कपड़े भी धो कर देती थी.

दोनों ओर प्यार की चाहत थी. यह बात मकसूद और उस की पत्नी निशा को भी पता चल गई थी, लेकिन उन्होंने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की. संजय ने शहर में किराए का एक कमरा ले लिया था. रफीका और उस के बच्चों को साथ ले कर वह उसी कमरे में रहने लगा. दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. उन के बीच जिस्मानी संबंध भी बन चुके थे.

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रफीका संजय पर शादी करने के लिए दबाव बनाने लगी थी. वह अपने रिश्ते को छिपा कर नहीं जीना चाहती थी. क्योंकि समाज ऐसे रिश्ते को गंदी निगाहों से देखता है. वह पत्नी का पूरा हक चाहती थी. संजय ने उस से थोड़ा वक्त मांगा. इस पर रफीका राजी हो गई.

एक दिन संजय की शर्मनाक हरकत देख कर रफीका हैरान रह गई. वह बेटी समान शाइस्ता के गदराए जिस्म के साथ छेड़छाड़ कर रहा था. शाइस्ता उस से बचने के लिए इधरउधर भाग रही थी. संयोग से इसी बीच रफीका की नजर उस पर पड़ गई.

संजय की घिनौनी हरकत देख कर रफीका का खून खौल उठा. उस ने संजय को आड़े हाथों लेते हुए खबरदार किया और कहा कि आइंदा मेरी बेटी से दूर रहना. उस पर बुरी नजर डालने की कभी कोशिश की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. सीधे पुलिस में शिकायत कर दूंगी.

रफीका की धमकी काम कर गई. उस दिन के बाद से संजय शाइस्ता से दूरी बना कर रहने लगा. उस ने शाइस्ता को ले कर अपने मन में जो अरमान पाले थे, उन पर पानी फिर गया था, लेकिन वो ऐसा हरगिज होने देना नहीं चाहता था.

दरअसल, शातिर दिमाग वाला खतरनाक संजय दोहरा चरित्र जी रहा था. रफीका तो उस के लिए एकमात्र सीढ़ी थी, उस का निशाना तो उस की खूबसूरत और कमसिन बेटी शाइस्ता थी. रफीका से वह दिखावे के लिए प्यार करता था, जबकि शाइस्ता उस के दिल की रानी बन चुकी थी.

रानी को हासिल करने के लिए संजय के दिमाग में एक बड़ी योजना चल रही थी. योजना ऐसी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. संजय ने रफीका को रास्ते से हटा कर उस की बेटी शाइस्ता से ब्याह रचाने की योजना बना ली. वह समझ चुका था कि जब तक रफीका जिंदा रहेगी, शाइस्ता उस की नहीं हो सकती.

योजना के मुताबिक, 8 मार्च, 2020 को संजय मकसूद से यह कह कर रफीका के साथ गरीब रथ एक्सप्रैस से कोलकाता के लिए रवाना हुआ कि वह रफीका से निकाह करना चाहता है.

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वह उस के मांबाप के पास शादी की बात करने जा रहा है. इस पर न तो मकसूद ने कोई आपत्ति की और न ही उस की पत्नी निशा ने. मकसूद की ओर से रजामंदी मिलने के बाद ही 8 मार्च, 2020 की रात वारंगल से दोनों कोलकाता के लिए रवाना हुए थे. उस के तीनों बच्चे घर पर ही थे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज : भाग 1

9 लातेलंगाना का एक जिला है वारंगल. इसी जिले के थाना गिचिकोंडा क्षेत्र के गोर्रेकुंठा गांव के बाहर गोदाम से सटे कुएं के पास सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा थी.

गिचिकोंडा थाने के एसओ शिवरामे, डीसीपी (अर्बन) वेंकट लक्ष्मी, एसीपी श्याम सुंदर, पुलिस कमिश्नर वी. रविंद्र, थाना परवंथगिरी के एसओ किशन और साइबर क्राइम इंसपेक्टर जनार्दन रेड्डी भी वहां मौजूद थे.

दरअसल, कुएं के भीतर पानी में 4 लाशें तैर रही थीं. जरा सी देर में यह खबर आसपास के गांवों में भी फैल गई. इस के चलते क्षेत्र में सनसनी फैल गई. शवों को निकालने के लिए पुलिस ने मोटी रस्सी के सहारे कुएं में गोताखोरों को उतार दिया. घंटे भर की मशक्कत के बाद एकएक कर चारों लाशें बाहर निकाल ली गईं.

गांव के लोगों ने बताया कि चारों लाशें एक ही परिवार के लोगों की हैं, जो पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. यह परिवार कई साल पहले यहां आ कर बस गया था. मृतकों के नाम थे मोहम्मद मकसूद आलम, उस की पत्नी निशा आलम, बेटी बुशरा खातून और बेटा शादाब.

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ताज्जुब की बात यह थी कि ँस परिवार के 2 सदस्य लापता थे, जिस में एक मकसूद का बेटा सोहेल आलम और बुशरा खातून का 3 वर्षीय बेटा. उन का कहीं पता नहीं था. इन दोनों के लापता होने से पुलिस के माथे पर परेशानी की लकीरें खिंच गई थीं.

पुलिस ने लाशों का मुआयना किया, तो उन की स्थिति देख कर आत्महत्या करने का मामला लग रहा था, क्योंकि उन के शरीर पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे. अगर मृतकों की हत्या की गई होती तो उन के शरीर पर कहीं न कहीं चोट के निशान होते. जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था.

मामला आत्महत्या का है या हत्या का, इस का पता पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही चल सकता था. पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के चारों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल वारंगल भिजवा दिए. यह 21 मई, 2020 की बात है.

आगे की काररवाई करने के लिए पुलिस को चारों शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. लेकिन अगले दिन सुबह उसी कुएं में 5 और लाशें तैरती हुई दिखीं तो गांव ही नहीं समूचे जिले में सनसनी फैल गई. यह सोच कर पुलिस के भी हाथपांव फूल गए कि आखिर ये लाशें आ कहां से रही हैं.

पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और मोटी रस्सी के सहारे गोताखोरों को कुएं में उतार कर सभी लाशें बाहर निकलवाई. स्थानीय लोगों से लाशों की पहचान कराई गई तो उन में से 2 लाशों की शिनाख्त आसानी से हो गई. उन में से एक लाश मोहम्मद मकसूद परिवार के सोहेल आलम की और दूसरी बुशरा खातून के 3 वर्षीय बेटे की लाश थी.

थोड़ी कोशिश के बाद 3 लाशों की पहचान त्रिपुरा के रहने वाले प्रवासी मजदूर शकील अहमद और बिहार के रहने वाले प्रवासी मजदूर श्रीराम और श्याम के रूप में हुई. शकील, श्रीराम और श्याम के शरीर पर कई जगह चोटों के निशान थे, जबकि सोहेल और बच्चे के शरीर पर कोई चोट नहीं थी.

इस बार पुलिस को यह मामला आत्महत्या का नहीं लगा. शकील, श्रीराम और श्याम के शरीर पर चोटों को देख कर पुलिस का माथा ठनका कि कोई तो है जो इन की हत्याओं को आत्महत्या का रूप देना चाहता है. अगर ये आत्महत्या का मामला होता तो उन के शरीर पर कोई चोट नहीं होती, जबकि तीनों के शरीर पर चोटों के निशान थे.

इस का मतलब यह कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का था. हत्यारा जो भी है बहुत ही शातिर है. खैर, कानूनी काररवाई कर के पुलिस ने पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल गिचिकोंडा भिजवा दिया. साथ ही पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

23 मई को पुलिस के पास 9 लाशों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सभी की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक उन्हें कुएं में फेंका गया था, जिस से पानी में डूबने से उन की मौत हो गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मामला और भी पेंचीदा हो गया था. एक साथ इतने लोगों ने कुएं में कूद कर कैसे आत्महत्या की होगी, निश्चय ही यह मामला आत्महत्या के बजाय हत्या की ओर इशारा कर रहा था. इस घटना में कई लोगों के शामिल होने के संकेत मिल रहे थे. इस दिल दहलाने वाली घटना को जिस ने भी देखा, उस का कलेजा कांप उठा. लाशों के अंबार से समूचे इलाके में सनसनी फैली थी.

पुलिस ने घटना की जांचपड़ताल शुरू कर दी. घटना के एकएक पहलू पर बड़ी बारीकी से जांच की थी. छानबीन के दौरान पुलिस क ो पता चला कि मोहम्मद मकसूद आलम के पूरे परिवार की हत्या की जा चुकी है. उस परिवार में ऐसा कोई नहीं बचा है, जिस से कोई जानकारी हासिल हो सके.

इस से एक बात स्पष्ट हो गई कि हत्यारे जो भी थे, इस परिवार से रंजिश रखते थे, तभी पूरे परिवार का खात्मा कर दिया था. पुलिस का माथा यह सोच कर ठनका हुआ था कि हत्यारों ने मकसूद के परिवार के साथसाथ 3 प्रवासी मजदूरों की हत्या क्यों की? उस परिवार से इन का क्या कनेक्शन हो सकता है?

इस गुत्थी को सुलझाने का पुलिस के पास एक ही रास्ता बचा था. वह था मृतकों के फोन की काल डिटेल्स. काल डिटेल्स के आधार पर ही गुत्थी सुलझाई जा सकती थी. लेकिन पुलिस के पास मृतकों के फोन नंबर नहीं थे.

ताज्जुब की बात यह थी कि मकसूद के घर से सभी मोबाइल फोन गायब थे. इस से एक बात तो पक्की थी कि इस लोमहर्षक घटना में मकसूद का कोई बहुत करीबी शामिल रहा होगा. उस के पकड़े जाने पर ही घटना का खुलासा हो सकता है.

बहरहाल, जांचपड़ताल के दौरान पुलिस के हाथ एक मजबूत सूत्र लगा, जिस के सहारे वह मृतकों के फोन नंबर हासिल करने में कामयाब हो गई. दरअसल मोहम्मद मकसूद की पत्नी निशा आलम के बड़े भाई की बेटी रफीका मकसूद के घर से थोड़ी दूरी पर अपने 3 बच्चों के साथ किराए के कमरे में रहती थी.

रफीका की सब से बड़ी बेटी 15 साल की थी. उस का नाम शाइस्ता था. शाइस्ता की मां रफीका करीब 2 महीने से रहस्यमय ढंग से लापता थी. रफीका मकसूद के दोस्त संजय कुमार यादव के साथ वारंगल से कोलकाता मां से मिलने गई थी. 3 दिनों बाद संजय तो वारंगल वापस लौट आया था, जबकि रफीका वापस नहीं लौटी थी.

मकसूद के पूछने पर संजय ने उसे बताया था कि रफीका अपने रिश्तेदार के यहां रुक गई है, कुछ दिनों बाद घूमफिर कर लौट आएगी, चिंता की कोई बात नहीं. कई दिन बीत जाने के बाद भी जब रफीका बच्चों के पास वापस नहीं लौटी, तो मकसूद को चिंता सताने लगी. पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि मोहम्मद मकसूद ने जब संजय से रफीका के बारे में पूछा तो वह बिदक गया. उस के बाद दोनों के बीच विवाद हुआ.

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20 मई, 2020 को मकसूद के बड़े बेटे शादाब का जन्मदिन था. बेटे के जन्मदिन पर उस ने घर पर एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था.

पार्टी में मकसूद के परिवार के अलावा उस का दोस्त शकील और पड़ोस के 2 प्रवासी मजदूर श्रीराम और श्याम शरीक हुए थे. पार्टी रात 10 बजे तक चली थी.

शाइस्ता के बयान से संजय का चरित्र शक के दायरे में आ गया था. शाइस्ता से पुलिस को मकसूद आलम, उस की पत्नी निशा आलम, बेटी बुशरा और दोनों बेटों शादाब और सोहेल के फोन नंबर मिल गए.

पुलिस ने मकसूद आलम के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. शाइस्ता के द्वारा पुलिस ने संजय का भी फोन नबंर हासिल कर लिया था. उस के नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा दिया था, ताकि उस की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सके.

मकसूद की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि संजय और मकसूद के बीच कई बार लंबीलंबी बातें हुई थीं. घटना वाले दिन शाम 6 बजे के करीब मकसूद ने संजय को काल की. मकसूद का फोन 4 घंटे चालू रहा, फिर रात 10 बजे उस का और उस के पूरे परिवार के फोन बंद हो गए थे.

परेशान करने वाली बात यह थी कि घर के सभी सदस्यों के फोन एक ही समय पर कैसे बंद हुए. इस का मतलब साफ था कि उस वक्त हत्यारे मकसूद के घर में मौजूद थे. उन्होंने ने ही फोन स्विच्ड औफ कर के अपने कब्जे में ले लिए होंगे ताकि पुलिस उन तक आसानी से न पहुंच सके.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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