(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)
फर्रूखाबाद के कोतवाली इंसपेक्टर संजीव राठौर अपने औफिस में बैठे थे, तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने उन के औफिस में प्रवेश किया. दिखने में वह संभ्रांत लग रहा था, लेकिन उस के माथे पर परेशानी की लकीरें थीं. राठौर ने उस व्यक्ति को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. आप अपनी परेशानी बताएं ताकि हम आप की मदद कर सकें.’’ ‘‘सर, मेरा नाम रमेशचंद्र दिवाकर है. मैं एटा जिले के अलीगंज थाना अंतर्गत झकरई गांव का रहने वाला हूं. मेरा छोटा भाई दिनेश कुमार दिवाकर पत्नी व बच्चों के साथ आप के ही क्षेत्र के गांव झगुवा नगला में रहता है. दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में है और श्रीनगर में तैनात है.
‘‘दिनेश 15 दिन की छुट्टी ले कर 6 जून को आया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचा. उस ने मुझे रात साढ़े10 बजे मोबाइल पर फोन कर के जानकारी दी थी कि वह घर के नजदीक पहुंच गया है. लेकिन 8 जून को उस की पत्नी रमा ने मेरी मां को जानकारी दी कि दिनेश घर आया ही नहीं है. उस का फोन भी नहीं लग रहा है. श्रीनगर कंट्रोल रूम को भी रमा ने दिनेश का फोन बंद होने की जानकारी दी है. भाई के लापता होने से मैं परेशान हूं और इसी सिलसिले में आप के पास आया हूं. इस मामले में आप मेरी मदद कीजिए.’’
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यह बात 10 जून की है.
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