अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का- भाग 2: जब प्रभा को अपनी बेटी की असलियत पता चली!

2 रुपए का भी उपहार ले कर आए? और हमारी छोड़ो, क्या कभी उस ने अपनी भतीजी को एक खिलौना भी खरीद कर दिया है? नहीं, बस लेना जानती है. क्या मेरी आंखें नहीं हैं? देखता हूं मैं, तुम बहूबेटी में कितना फर्क करती हो. बहू का प्यार तुम्हें ढकोसला लगता है और बेटी का ढकोसला प्यार. ऐसे घूरो मत मुझे, पता चल जाएगा तुम्हें भी एक दिन.’’

‘‘कैसे बाप हो तुम, जो बेटी के सुख पर भी नजर लगाते रहते हो. पता नहीं क्या बिगाड़ा है रंजो ने आप का, जो हमेशा वह तुम्हारी आंखों की किरकिरी बनी रहती है?’’ अपनी आंखें लाल करते हुए प्रभा बोली.

‘‘ओ, कमअक्ल औरत, रंजो मेरी आंखों की किरकिरी नहीं बनी है बल्कि अपर्णा बहू तुम्हें फूटी आंख नहीं सुहाती है. पूरे दिन घर में बैठी आराम फरमाती रहती हो, हुक्म चलाती रहती हो. कभी यह नहीं होता कि बहू के कामों में थोड़ा हाथ बंटा दो और तुम्हारी बेटी, वह तो यहां आ कर अपना हाथपैर हिलाना भी भूल जाती है. क्या नहीं करती है बहू इस घर के लिए. बाहर जा कर कमाती भी है और अच्छे से घर भी संभाल रही है. फिर भी तुम्हें उस से कोई न कोई शिकायत रहती ही है. जाने क्यों तुम बेटीबहू में इतना भेदभाव करती हो?’’

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‘‘कमा कर लाती है और घर संभालती है, तो कौन सा एहसान कर रही है हम पर. घर उस का है, तो संभालेगा कौन?’’

‘‘अच्छा, सिर्फ उस का घर है, तुम्हारा नहीं? बेटी जब भी आती है उस की खातिरदारी में जुट जाती हो, पर कभी यह नहीं होता कि औफिस से थकीहारी आई बहू को एक गिलास पानी दे दो. बस, तानें मारना आता है तुम्हें. अरे, बहू तो बहू, उस की दोस्त को भी तुम देखना नहीं चाहती हो. जब भी आती है, कुछ न कुछ सुना ही देती हो. तुम्हें लगता है कहीं वह अपर्णा के कान न भर दे तुम्हारे खिलाफ. उफ्फ, मैं भी किस पत्थर से अपना सिर फोड़ रहा हूं, तुम से तो बात करना ही बेकार है,’’ कह कर भरत वहां से चले गए.

सही तो कह रहे थे भरत. अपर्णा क्या कुछ नहीं करती है इस घर के लिए. पर फिर भी प्रभा को उस से शिकायत ही रहती थी. नातेरिश्तेदार हों या पड़ोसी, हर किसी से वह यही कहती फिरती थी, ‘भाई, अब बहू के राज में जी रहे हैं, तो मुंह बंद कर के ही जीना पड़ेगा न, वरना जाने कब बहूबेटे हम बूढ़ेबूढ़ी को वृद्धाश्रम भेज दें.’ यह सुन कर अपर्णा अपना चेहरा नीचे कर लेती थी पर अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं बोलती थी. पर उस की आंखों के बहते आंसू उस के मन के दर्द को जरूर बयां कर देते थे.

अपर्णा ने तो आते ही प्रभा को अपनी मां मान लिया था, पर प्रभा तो आज तक उसे पराई घर की लड़की ही समझती रही. अपर्णा जो भी करती, प्रभा को वह बनावटी लगता था और रंजो का एक बार सिर्फ यह पूछ लेना, ‘मां आप की तबीयत तो ठीक है न?’ सुन कर कर प्रभा खुशी से कुप्पा हो जाती और अगर जमाई ने हालचाल पूछ लिया, तो फिर प्रभा के पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते थे.

उस दिन सिर्फ इतना ही कहा था अपर्णा ने, ‘मां, ज्यादा चाय आप की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती है और वैसे भी, डाक्टर ने आप को चाय पीने से मना किया है. वुमन हौर्लिक्स लाई हूं, यह पी लीजिए.’ यह कह कर उस ने गिलास प्रभा की ओर बढ़ाया ही था कि प्रभा ने गिलास उस के हाथों से झटक लिया और टेबल पर रखते हुए तमक कर बोली, ‘तुम मुझे ज्यादा डाक्टरी का पाठ मत पढ़ाओ बहू, जो मांगा है वही ला कर दो,’ फिर बुदबुदाते हुए अपने मन में ही कहने लगी, ‘बड़ी आई मुझे सिखाने वाली, अच्छे बनने का नाटक तो कोई इस से सीखे.’ अपर्णा की हर बात उसे नाटक सरीखी लगती थी.

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मानव औफिस के काम से शहर से बाहर गया हुआ था और अपर्णा भी अपने कजिन भाई की शादी में गई हुई थी. मन ही मन अपर्णा यह सोच कर डर रही थी कि अकेले सासससुर को छोड़ कर जा रही हूं, कहीं पीछे कुछ… यह सोच कर जाने से पहले उस ने रंजो को दोनों का खयाल रखने और दिन में कम से कम एक बार उन्हें देख आने को कहा. जिस पर रंजो ने आग उगलते हुए कहा, ‘‘आप नहीं भी कहतीं न, तो भी मैं अपने मांपापा का खयाल रखती. आप को क्या लगता हैख् एक आप ही हैं इन का खयाल रखने वाली?’’

पर अपर्णा के जाने के बाद वह एक बार भी अपने मायके नहीं आई वह इसलिए कि उसे वहां काम करना पड़ जाता. हां, फोन पर हालचाल जरूर पूछ लेती और साथ में यह बहाना भी बना देती कि वक्त नहीं मिलने के कारण वह उन से मिलने नहीं आ पा रही, पर वक्त मिलते ही आएगी.

एक रात अचानक भरत की तबीयत बहुत बिगड़ गई. प्रभा इतनी घबरा गई कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. उस ने मानव को फोन लगाया पर उस का फोन विस्तार क्षेत्र से बाहर बता रहा था. फिर उस ने अपनी बेटी रंजो को फोन लगाया. घंटी तो बज रही थी पर कोई उठा नहीं रहा था. जमाई को भी फोन लगाया, उस का भी वही हाल था. जितनी बार भी प्रभा ने रंजो और उस के पति को फोन लगाया, उन्होंने नहीं उठाया. ‘शायद सो गए होंगे’ प्रभा के मन में यह खयाल आया. फिर हार कर उस ने अपर्णा को फोन लगाया. इतनी रात गए प्रभा का फोन आया देख कर अपर्णा घबरा गई. प्रभा कुछ बोलती, उस से पहले ही वह बोल पड़ी.

गृहप्रवेश- भाग 2: किसने उज्जवल और अमोदिनी के साथ विश्वासघात किया?

अचानक मेरा हृदय कागज के फूल सा हलका हो कर उज्जवल के प्रति असीम कृतज्ञता से छलक उठा था. कैसी मूर्ख थी मैं, इतना प्यार करने वाले पति पर अविश्वास किया.

मेरी बुद्धि मेरे विश्वास को एक गुमनाम पत्र लिख चुकी थी. सबकुछ ऊपर से सामान्य नजर आ रहा था, लेकिन मेरे भीतर कुछ दरक गया था. मेरी नजरें जैसे कुछ तलाशती रहतीं. एक मालगाड़ी की तरह बिना किसी स्टेशन पर रुके, चोरों की भांति उज्जवल को निहारते, मैं जी रही थी. कभीकभी खुद के गलत होने का अनुभव भी होता.

फिर जब एक दिन ऐसा लगने लगा कि मैं इधरउधर से आई पटरियों के संगम पर हताश खड़ी हूं, तो दूर किसी इंजन की सर्चलाइट चमकी थी.

हम ने स्नेह के 10वें जन्मदिन पर शानदार पार्टी का आयोजन किया था. शाम होते ही मेहमान आने लगे थे. मैं और उज्जवल एक अच्छे होस्ट की तरह सभी का स्वागत कर रहे थे. तभी जैसे उज्जवल की आंखों में एक सुनहरी पतंग सी चमक आ गई, और उस के होंठों ने गोलाकार हो कर एक नाम पुकारा, ‘मो.’

मैं नाम तो सुन नहीं पाई लेकिन उस सुनहरी पतंग की डोरी को थामे उस चेहरे तक अवश्य पहुंच गई थी, जिस के हाथों में मां झा था. वहां मोहिनी मजूमदार खड़ी थी. उज्जवल के बचपन के दोस्त दीपक मजूमदार की पत्नी. उस की बेटी सारा, स्नेह की क्लास में ही पढ़ती थी.

अपने अंदर की शंका के सर्प को मैं ने डांट कर सुला दिया और अतिथियों के स्वागत में व्यस्त हो गई थी. केक कटा, गेम्स हुए और फिर खाना लगा.

कभीकभी नारी ही नारी के लिए जटिल पहेली बन जाती है, तो कभीकभी उस पहेली का हल भी. शंका के जिस विषम सर्प को मैं ने सुला दिया था, मोहिनी ने उसे जगा दिया. मैं ने देखा,  गिलास थामने के साथसाथ मोहिनी की कांपती उंगलियां उज्जवल की उंगलियों को थाम कर दबा दे रही थीं. मैं ने वह भी देखा, खाने की मेज पर आमनेसामने बैठते ही मोहिनी के कोमल पैरों में उज्जवल के बलिष्ठ पंजों का बंदी बन जाना, परदे की आड़ का बहाना बना, जानबू झ कर उन का टकरा जाना, और फिर ‘सौरीसौरी’ कह एकदूसरे को देख चुपके से चुंबन उछाल देना.

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मैं यह सब देख रही थी. सहसा मेरी तरफ देख कर मोहिनी ने एक आंख मूंद ली. तब मैं ने जाना कि वह चाहती थी कि मैं देखूं. उस की आंखों में जलते घमंड और वासना की ज्वाला ने मेरे वर्षों के प्रेम और समर्पण को भस्म कर दिया था.

मैं उज्जवल से कुछ पूछ ही नहीं पाई. शायद मैं डर रही थी कि मैं पूछूं और वह  झूठ बोल दे या उस से भी बुरा, अगर वह सच बोल दे.

मैं ने एक बनावटी जीवन जीना आरंभ कर दिया. बनावटी जीवन एक समय बाद आप को ही परेशान करने लगता है. जब तक आप इस बात को सम झ कर गंभीर होते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, क्योंकि तब आप की वास्तविक भावनाएं न तो कोई देखना चाहता है और न ही आप खुद उन्हें सम झ पाते हैं.

मैं शीशे के सामने खड़ी हो कर अपनी कमी को देखने का प्रयास करती. मु झे लगता कि मेरी ही किसी भूल के कारण उज्जवल मु झ से दूर हो गया था. मैं मोहिनी से खुद की तुलना करती. खुद को उस से बेहतर बनाने का प्रयास करती. उज्जवल को हरसंभव सुख देने का प्रयास करती. हमारे अंतरंग पलों को जीना, मैं ने कब का छोड़ दिया था. मेरा प्रयास मात्र उज्जवल का आनंद रह गया था. अपनी भावनाओं को दबा कर मैं खुद के प्रति इतनी कठोर हो गई थी कि हमेशा खुद को जोखिमभरे कामों में उल झा कर रखने लगी. मानो ये सब कर के मैं उसे मोहिनी के पास जाने से रोक लूंगी.

मैं यह भूल गई कि एक रिश्ता ऐसा भी होता है जिस की डोर आप से इतनी बंधी होती है कि आप के मन की दलदल में उन का जीवन भी फिसलने लगता है. वह रिश्ता होता है, एक मां और संतान का. इस का अनुभव होते ही मैं समाप्त होने से पहले जी उठी.

एक शाम जब मैं विवाहेतर संबंध क्यों बनते हैं, पर आर्टिकल पढ़ रही थी, स्नेह मेरे निकट आ कर बैठ गया.

‘‘मां.’’

‘‘हां,’’ मैं ने उस की तरफ देखे बिना पूछा था.

‘‘आई मिस यू.’’

मैं ने चौंक कर स्नेह को देखा, बोली, ‘‘क्यों बेटा?’’

‘‘आप खो गई हो, अब हंसती भी नहीं. मैं अलोन हो गया हूं.’’

दर्द के जिन बादलों को मैं ने महीनों से अपने भीतर दबा रखा था, वे फट पड़े और आंखें बरसने लगीं. जिस आदमी ने मेरे विश्वास और प्रेम को कुचलने से पहले एक बार भी नहीं सोचा, उस के लिए मैं अपने बच्चे और खुद के साथ कितना सौतेला व्यवहार करने लगी थी. मेरा मृतप्राय आत्मविश्वास जीवित हो उठा. मैं ने उस दिन मात्र स्नेह को ही नहीं, अपने घायल मैं को भी गले लगा लिया था.

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मैं ने पूरी रात सोच कर एक निर्णय लिया और अगले दिन सुबह ही दीपक मजूमदार को फोन कर दिया था.

2 दिनों बाद दीपक और मोहिनी मेरे लिविंगरूम में मेरे सामने बैठे थे. रविवार था, तो उज्जवल भी घर पर ही था. सारा को मैं ने स्नेह के कमरे में भेज दिया.

कमरे का तापमान गरम था. वहां की खामोशी में सभी की सांसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी. मैं और उज्जवल अलगअलग कुरसियों पर बैठे थे. मोहिनी और दीपक सोफे पर एकसाथ बैठे थे. सभी एकदूसरे से नजरें चुरा रहे थे.

‘‘इस रिश्ते का क्या भविष्य है?’’ उज्जवल की तरफ देख कर बात मैं ने ही शुरू की.

‘‘बताओ मोहिनी,’’ दीपक ने कहा.

उन के बीच बात हो गई थी. 2 दिनों पहले जब मैं ने दीपक को फोन किया था, तब दीपक ने मु झे उज्जवल और मोहिनी को रंगेहाथ पकड़ने की बात बताई थी. अपने और मोहिनी के मनमुटाव के बारे में भी बताया. मैं ने जब उन दोनों को घर आ कर बात करने को कहा, तो दीपक ने स्वीकार कर लिया था.

उस रात मोहिनी ने उज्जवल को फोन भी किया. लेकिन उज्जवल ने मु झ से कुछ नहीं पूछा. और मैं, मैं तो उस के कुछ कहने का इंतजार ही करती रह गई. मैं तो उस का परस्त्री के प्रति आकर्षण भी स्वीकार कर लेती, लेकिन यह छल और अनकहा अपमान मु झे स्वीकार्य नहीं था.

इसलिए जब उस दिन उज्जवल ने कहा, ‘मैं जानता हूं, जो हुआ ठीक नहीं हुआ, लेकिन प्रेम वायु है. उसे न तो सहीगलत की परिभाषा रोक सकती है और न समाज के बनाए नियम. प्रेम तो वह नदी है, जिस पर बनाए गए हर बांध को टूटना ही होता है. मैं और मोहिनी प्रेम में हैं, और सदा रहना चाहते हैं.’ उस की स्वीकारोक्ति सुन कर मेरी आंखें छलछला आई थीं.

मैं एक बार उज्जवल को देखती और फिर मोहिनी को, फिर उन दोनों को. पागल सी हो रही थी, पर मैं रोई नहीं, बहुत रो जो चुकी थी. विवाह के शुरुआती दिवसों की मधुर स्मृतियां, विवाहपूर्व उस सरल उज्जवल का प्रथम अनाड़ी चुंबन मु झे व्याकुल कर रहा था. उन दिनों वह मुस्तफा जैदी की एक शायरी मेरी आंखों को चूमते हुए कहती –

‘इन्ही पत्थरों पे चल कर

अगर आ सको तो आओ,

मेरे घर के रास्ते में

कोई कहकशां नहीं है’

आज कहां गया वह अनुरोध, वह प्रेम, वह आलिंगन. न चाहते हुए मेरी नजर मोहिनी के लंबे काले बालों पर चली गई. न जाने कितनी बार ये केश मेरे जीवन सहचर के नग्न वक्षस्थल पर लहराए होंगे. मैं ने घबरा कर नजरें नीची कर ली थीं.

‘हम सोलमेट्स हैं,’ मोहिनी ने

कहा था.

‘‘प्रेम थोपा तो जा नहीं सकता. जैसा कि मैं कल कह चुका हूं, अलग हो जाना सही विकल्प है,’’ दीपक ने इतना कह कर मेरी तरफ देखा. तीन जोड़ी आंखें मु झ पर ठहर गई थीं.

‘‘मैं अभी आर्थिक रूप से उज्जवल पर निर्भर हूं. जब शादी घरवालों की इच्छा के विरुद्ध की, तो इस का परिणाम उन पर क्यों थोपूं. मु झे नौकरी ढूंढ़ने के लिए कुछ समय चाहिए. तब तक स्नेह के साथ मेरी भी जिम्मेदारी उज्जवल को उठानी होगी. इस घर में हम दोनों का पैसा लगा है, तो शीघ्र ही उज्जवल को मेरा हिस्सा भी देना होगा. स्नेह तो खैर इन की जिम्मेदारी हमेशा रहेगा. उम्मीद करती हूं, तुम ने मात्र जीवनसाथी के पद से इस्तीफा दिया है, पिता तुम आज भी हो.’’

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न कोई आरोप, न आंसू, न क्रोध. उज्जवल खामोश मु झे देखता रहा था. जहां तूफान की आशंका हो, वहां अश्रुओं की रिम िझम का भी अभाव रहा. मेरी इस उदासीनता के लिए उज्जवल प्रस्तुत नहीं था. हमारे बीच एक छोटी सी बात अवश्य हुई, लेकिन मैं ने उज्जवल पर क्रोध नहीं किया. क्रोध तो वहां आता है जहां अधिकार हो, एक अपरिचित पर कैसा अधिकार.

उज्जवल और मोहिनी साथ रहने लगे थे. दीपक ने मोहिनी की जिम्मेदारियों से हाथ खींच लिया, जो सही भी था. वैसे सारा की जिम्मेदारियों से उस ने कभी इनकार नहीं किया. तलाक के पेपर कोर्ट में डाले जा चुके थे, जिस पर सालभर में फैसला आने की उम्मीद थी.

कोई सही रास्ता- भाग 1: स्वार्थी रज्जी क्या अपनी गृहस्थी संभाल पाई?

‘‘मैं बहुत परेशान हूं, सोम. कोई मुझ से प्यार नहीं करता. मैं कभी किसी का बुरा नहीं करती, फिर भी मेरे साथ सदा बुरा ही होता है. मैं किसी का कभी अनिष्ट नहीं चाहती, सदा अपने काम से काम रखती हूं, फिर भी समय आने पर कोई मेरा साथ नहीं देता. कोई मुझ से यह नहीं पूछता कि मुझे क्या चाहिए, मुझे कोई तकलीफ तो नहीं. मैं पूरा दिन उदास रहूं, तब चुप रहूं, तब भी मुझ से कोई नहीं पूछता कि मैं चुप क्यों हूं.’’

आज रज्जी अपनी हालत पर रो रही है तो जरा सा अच्छा भी लग रहा है मुझे. कुछ महसूस होगा तभी तो बदल पाएगी स्वयं को. अपने पांव में कांटा चुभेगा तभी तो किसी दूसरे का दर्द समझ में आएगा.

मेरी छोटी बहन रज्जी. बड़ी प्यारी, बड़ी लाड़ली. बचपन से आज तक लाड़प्यार में पलीबढ़ी. कभी किसी ने कुछ नहीं कहा, स्याह करे या सफेद करे. अकसर बेटी की गलती किसी और के सिर पर डाल कर मांबाप उसे बचा लिया करते थे. कभी शीशे का कीमती गिलास टूट जाता या अचार का मर्तबान, मां मुझे जिम्मेदार ठहरा कर सारा गुस्सा निकाल लिया करतीं. एक बार तो मैं 4 दिन से घर पर भी नहीं था, टूर पर गया था. पीछे रज्जी ने टेपरिकौर्डर तोड़ दिया. जैसे ही मैं वापस आया, रज्जी ने चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. तब पहली बार मेरे पिता भी हैरान रह गए थे.

‘‘यह लड़का तो 4 दिन से घर पर भी नहीं था. अभी 2 घंटे पहले आया और मैं इसे अपने साथ ले गया. बेचारे का बैग भी बरामदे में पड़ा है. यह कब आया और कब इस ने टेपरिकौर्डर तोड़ा. 4 दिन से मैं ने तो तेरे टेपरिकौर्डर की आवाज तक नहीं सुनी. तू क्या इंतजार कर रही थी कि कब सोम आए और कब तू इस पर इलजाम लगाए.’’

बीए फाइनल में थी तब रज्जी. इतनी भी बच्ची नहीं थी कि सहीगलत का ज्ञान तक न हो. कोई नई बात नहीं थी यह मेरे लिए, फिर भी पहली बार पिता का सहारा सुखद लगा था. मुझे कोई सजा-ए-मौत नहीं मिल जाती, फिर भी सवाल सत्यअसत्य का था. बिना कुछ किए इतने साल मैं ने रज्जी की करनी की सजा भोगी थी. उस दफा जब पिताजी ने मेरी वकालत की तब आंखें भर आई थीं मेरी. हैरानपरेशान रह गए थे पिताजी.

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‘‘यह बेटी को कैसे पाल रही हो, कृष्णा. कल क्या होगा इस का जब यह पराए घर जाएगी?’’

स्तब्ध रह गया था मैं. अकसर मां को बेटा अधिक प्रिय होता है लेकिन मेरी मां ने हाथ ही झाड़ दिए थे.

‘‘चले ही तो जाना है इसे पराए घर. क्यों कोस रहे हो?’’

‘‘सवाल कोसने का नहीं है. सवाल इस बात का है कि जराजरा सी बात का दोष किसी दूसरे पर डाल देना कहां तक उचित है. अगर कुछ टूटफूट गया भी है तो उस की जिम्मेदारी लेने में कैसा डर? यहां क्या फांसी का फंदा लटका है जिस में रज्जी को कोई लटका डालेगा. कोई गलती हो जाए तो उसे मानने की आदत होनी चाहिए इंसान में. किसी और में भी आक्रोश पनपता है जब उसे बिना बात अपमान सहना पड़ता है.’’

‘‘कोई बात नहीं. भाई है सोम रज्जी का. गाली सुन कर कमजोर नहीं हो जाएगा.’’

‘‘खबरदार, आइंदा ऐसा नहीं होगा. मेरा बच्चा तुम्हारी बेटी की वजह से बेइज्जती नहीं कराएगा.’’

पुरानी बात है यह. तब इसी बात पर हमारा परिवार बंट सा गया था. तेरी बच्ची, मेरा बच्चा. पिताजी देर तक आहत रहे थे. नाराज रहे थे मां पर. क्योंकि मां का लाड़प्यार रज्जी को पहले दरजे की स्वार्थी और ढीठ बना रहा था.

‘‘समझ में नहीं आता सुकेश भी क्यों मेरी जराजरा सी बात पर तुनके से रहते हैं.’’

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रज्जी अपने पति की बेरुखी का गिला मुझ से कर रही है. वह इंसान जो बेहद ईमानदार और सच्चा है. मैं अकसर मां से कहता भी रहता हूं. रज्जी को 24 कैरेट सोना मिला है. शुद्ध पासा सोना. और यह भी सच है कि मेरी बहन उस इंसान के लायक ही नहीं है जो निरंतर उस पासे सोने में खोट मिलाने का असफल प्रयास करती रहती है. लगता है उस इंसान की हिम्मत अब जवाब दे गई होगी जो उस ने रज्जी को वापस हमारे घर भेज दिया है.

‘‘इतना झूठ और इतनी दोगली बातें मेरी समझ से भी परे हैं. हैरान हूं मैं कि यह लड़की इतना झूठ बोल कैसे लेती है. दम नहीं घुटता इस का.’’

शर्म आ रही थी मुझे. कैसे उस सज्जन पुरुष से यह कहूं कि मुझ से क्या आशा करते हो. मैं तो खुद अपनी मां और बहन की दोगली नीतियों का भुक्तभोगी हूं.

Manohar Kahaniya: 10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अभी तक की पूछताछ में हर अधिकारी के सामने इस मामले के 3 मुख्य संदिग्ध कमल सिंगला, शकुंतला, उस का भाई राजू एक ही कहानी सुना रहे थे. अगर वे झूठ बोल रहे थे तो सच्चाई बाहर लाने का अब एक ही रास्ता बचा था कि उन का लाई डिटेक्टर टेस्ट करा लिया जाए.

वैसे भी रजनीकांत को लगा कि इस मामले में शकुंतला और कमल की मिलीभगत की आशंका ज्यादा हो सकती है. इसलिए तीनों संदिग्धों से लंबी पूछताछ के बाद रजनीकांत ने अदालत से आदेश ले कर 2 मार्च, 2012 को शकुंतला, उस के भाई राजू और कमल का पौलीग्राफ टेस्ट कराया.

लेकिन पौलीग्राफ परीक्षण की रिपोर्ट आने के बाद जांच अधिकारी रजनीकांत की उम्मीदों पर पानी फिर गया, क्योंकि तीनों ही संदिग्ध परीक्षण में खरे उतरे थे.

लेकिन न जाने क्यों रजनीकांत इन नतीजों से संतुष्ट नहीं थे. पर उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी और दूसरे पहलुओं को टटोलते हुए जांच को आगे बढ़ाते रहे.

रवि के परिवार की तरफ से शकुंतला और उस के परिवार पर आरोप लगाए जाने के बाद उन्होंने जयभगवान के घर आना भी बंद कर दिया.

संयोग से जांच अधिकारी रजनीकांत का भी तबादला हो गया तो उस के बाद एसआई सूरजभान आए. कुछ महीनों के बाद उन का भी तबादला हो गया तो एसआई धीरज के हाथ में जांच आई,

कुछ महीनों तक जांच उन के हाथ में रही फिर उन के तबादले के बाद एसआई पलविंदर को जांच का काम सौंपा गया. फिर 2017 के शुरू होते ही उन का भी तबादला हो गया. इस के बाद जांच की जिम्मेदारी मिली एसआई जोगेंद्र सिंह को.

इस दौरान मार्च, 2017 में इस केस की स्टेटस रिपोर्ट देख कर हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि तीनों संदिग्धों की ब्रेनमैपिंग (नारको टेस्ट) कराया जाए.

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टीम ने अलवर में डाला डेरा

एसआई जोगेंद्र ऐसे ही किसी मौके का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तीनों के इस टेस्ट  की प्रक्रिया शुरू कर दी. अदालत में तीनों आरोपियों को पेश कर जोगेंद्र सिंह ने ब्रेनमैपिंग के लिए उन की हामी भी हासिल कर ली.

जिस के बाद तीनों का 2 नवंबर, 2017 से 6 नवंबर, 2017 के बीच गुजरात के गांधी नगर में ब्रेनमैपिंग टेस्ट कराया. वहां जा कर कमल और राजू ने तो टेस्ट करा लिया, मगर शकुंतला ने तबीयत बिगड़ने की बात कह कर ब्रेन मैपिंग कराने से इनकार कर दिया.

लेकिन बे्रनमैंपिग के जो परिणाम पुलिस के सामने आए, उस ने जोगेंद्र सिंह को सोचने पर मजबूर कर दिया. हालांकि राजू ब्रेनमैपिंग टेस्ट में सत्य पाया गया. लेकिन ऐसे कई सवाल थे, जिन के कारण कमल सिंगला पर अब इस मामले में शामिल होने का शक शुरू हो गया था.

एसआई जोगेंद्र सिंह समझ गए कि इस जांच को आगे ले जाने के लिए उन्हें अलवर में डेरा डालना पड़ेगा.

वे आगे की काररवाई कर ही रहे थे कि मार्च 2018 में अचानक उन का भी तबादला हो गया. जोगेंद्र सिंह की जांच से कम से कम अनुसंधान का काम एक कदम आगे तो बढ़ गया था और जांच के लिए एक टारगेट भी तय हो गया था.

इसी बीच जांच के नए अधिकारी के रूप में एसआई करमवीर मलिक को रवि के अपहरण केस की फाइल सौंपी गई. उन्होंने जांच का काम हाथ में लेते ही पहले पूरी फाइल का अध्ययन किया.

केस की बारीकियों को गौर से समझने के बाद उन्होंने अपने 2 सब से खास एएसआई जयवीर और नरेश के साथ कांस्टेबल हरेंद्र की टीम बनाई. इस के बाद टीम को उन तीनों संदिग्धों को लाने के लिए अलवर रवाना किया, जिन का नाम बारबार इस केस में सामने आ रहा था.

जयवीर और नरेश जब अलवर के टपूकड़ा गए तो वहां संयोग से उन्हें राजू मिल गया. राजू ने पूछताछ में जो कुछ बताया, उस के बाद एक अलग ही कहानी सामने आई.

पता चला कि ब्रेन मैपिंग टेस्ट होने के बाद जब शकुंतला और कमल गुजरात से वापस लौटे तो कुछ रोज बाद ही अचानक शकुंतला घर से भाग गई.

पिछले कुछ समय से कमल जिस तरह शकुंतला के करीब आ रहा था और शकुंतला भी ज्यादा वक्त उस के ही साथ बिताने लगी थी, उसे देख कर घर वालों को लगा कि शकुंतला के भागने में कमल का हाथ है.  इसीलिए उन्होंने कमल से शकुंतला के बारे में पूछा. लेकिन वह साफ मुकर गया कि उसे शकुंतला के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

लिहाजा परिवार वालों ने कमल सिंगला के खिलाफ शकुंतला के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. लेकिन कमल पुलिस के हाथ आने से पहले ही फरार हो गया.

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अलवर पुलिस कमल को तलाश कर ही रही थी कि इसी बीच कमल के एक ड्राइवर बबली ने राजस्थान हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र दिया कि उस ने शकुंतला से शादी कर ली है और पुलिस बिना वजह उस के मालिक को परेशान कर रही है.

जांच में आया नया मोड़

बबली ने साथ में आर्यसमाज मंदिर में हुई शकुंतला से अपनी शादी का प्रमाण पत्र भी दिया था. उसी के साथ में शकुंतला की तरफ से भी एक शपथ पत्र संलग्न था, जिस में उस ने बबली से शादी करने की पुष्टि की थी.

हाईकोर्ट ने अलवर पुलिस को कमल के खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले को खत्म करने का आदेश दे दिया. जिस के बाद उस के खिलाफ एफआईआर रद्द हो गई.

शकुंतला के भाई राजू ने जो कुछ बताया था, उसे जानने के बाद एएसआई जयवीर की मामले में दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई.

कमल से मिलने की उन की बेताबी बढ़ गई. लेकिन इस से पहले बबली से मिलना जरूरी था. क्योंकि उस ने शकुंतला से शादी की थी, जिस कारण अब संदेह के  दायरे में सब से पहले वही आ रहा था.

पुलिस टीम ने टपूकड़ा थाने जा कर जब कमल के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर के बारे में जानकारी हासिल की तो उस केस की फाइल में बबली नाम के उस के ड्राइवर के घर का पता मिल गया.

एएसआई जयवीर ने बबली के घर का पता हासिल किया और उस के गांव बाघोर पहुंच गए.

बबली के घर उस के मातापिता के अलावा पत्नी और 3 बच्चे भी मिले. बबली की पत्नी से मिलने के बाद तो एएसआई जयवीर का सिर ही चकरा गया. क्योंकि उस की पत्नी शकुंतला नहीं बल्कि कोई अन्य महिला थी और वह भी 3 बच्चों की मां.

कहानी में अब दिलचस्प मोड़ आ गया था. पुलिस टीम ने जब परिजनों से बबली के बारे में पूछा तो पता चला कि लूटपाट के एक मामले में बबली कोटा जेल में बंद है. अब तो बबली से मिलना क्राइम ब्रांच के लिए बेहद जरूरी हो गया था.

जयवीर और नरेश ने परिजनों से बबली के बारे में तमाम जानकारी ले कर कोटा की अदालत में उस से जेल में मुलाकात कर के पूछताछ करने की अनुमति मांगी.

पुलिस टीम को पूछताछ की इजाजत मिल गई और जयवीर सिंह अपनी टीम के साथ कोटा जेल में जब बबली से मिले तो रवि के अपहरण केस की तसवीर पूरी तरह साफ हो गई.

बबली ने बताया कि वह तो पहले से ही शादीशुदा है. उस के 3 बच्चे भी हैं. वह डेढ़ साल से कमल सिंगला के पास ड्राइवर की नौकरी कर रहा है.

कुछ महीने पहले अचानक जब शकुंतला के घर से भागने के बाद उस के घर वालों ने कमल के खिलाफ शकुंतला के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई तो कमल ने बबली को कुछ रुपए दे कर दबाव डाला कि वह हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र दाखिल कर दे कि उस ने शकुंतला से शादी कर ली है.

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बबली ने खुलासा किया कि वकील कराने से ले कर शकुंतला का शपथ पत्र और शकुंतला से उस की शादी का आर्यसमाज मंदिर का प्रमाण पत्र कमल ने ही उसे उपलब्ध कराया था.

चूंकि वह नौकरी और पैसे के लालच में मजबूर था, इसलिए उस ने कमल के कहने पर ये काम कर दिया था. इसी के कारण कमल के खिलाफ दर्ज शकुंतला के अपहरण का मामला खत्म हो गया था.

पुलिस जिस कमल को मासूम मान रही थी, उस का शातिर चेहरा सामने आ चुका था. पुलिस को यकीन हो गया कि रवि के अपहरण और उस की हत्या में भी कमल का ही हाथ होगा.

अगले भाग में पढ़ें- इश्क में अंधा हुआ कमल

Best of Manohar Kahaniya: प्रेम या अभिशाप

यह कहानी है एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की सीमा की. सीमा एक साधारण परिवार में पली बढ़ी और आगे अपने जीवन संघर्ष को पुरजोर किया. जब सीमा 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी तब उसके पिता की मृत्यु बीमारी के कारण हो जाती है . उसके पिता के अकस्मात् मृत्यु के कारण पारिवारिक और अर्थिक स्तिथि पूरी तरह डावाडोल हो जाती है . घर में कोई कमाने वाला नही. बड़ी मुश्किल से उसके पिता के पेंशन के पैसे से दो वक्त की रोटी का गुजारा हो रहा था . ऐसी स्थिति में सीमा अपने आगे की पढ़ाई जैसे-तैसे पूरी की और पारिवारिक स्तिथि को सुधारने के लिए स्वयं एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करने लगी. सीमा बाहर काम करने जाती तो उसकी माँ घर संभालती. सीमा को अपने पिता की कमी बहुत खलती थी और अपने पिता को याद करके अकेले में रोती थी . छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च भी और घर का खर्च स्वयं सीमा ही उठा रही थी . इन्हीं कारणों से उसकी शादी भी नहीं हो पाई थी . कहीं से अच्छे रिश्ते भी नहीं आ रहे थे उसके लिये. सीमा घर और काम में उलझ गई थी. सोचती की मै अगर शादी कर लूंगी तो घर में माँ और भाई का क्या होगा, कौन उनका ध्यान रखेगा, उनकी जरूरतों को पूरा करेगा. 30 वर्ष पार कर चुकी सीमा अब तो शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दी.

सीमा और उसके परिवार का जीवन जैसे-तैसे चल रहा रहा था लेकिन सीमा हार नहीं मानी . उसने अच्छे स्कूल में शिक्षिका पद के लिए आवेदन किया और वहाँ उसको काम मिल गया . तन्ख्वाह भी अच्छी मिलने लगी. परिवार की स्तिथि देखते-देखते सुधरने लगी. नये-नये कपड़े बर्तन खरीदा जाने लगे
घर का मरम्मत करवाई. पूरे परिवार में खुशहाली छा गई.

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तभी इसी बीच उसकी मुलाकत रमेश नामक युवक से हुई. रमेश सीमा के स्कूल में कंप्यूटर पर कार्य करता था और शहर में नया आया था . रमेश सीमा के घर के पास ही किराए में रहने लगा. उसे कुछ सहयता और सहयोग की आवश्यकता होती तो वह सीमा के घर पहुँच जाता . सीमा को मदद के लिए बोलता और सीमा झट से उसकी मदद कर देती. अब दोनो का मेलजोल बढ़ गया. घर आने-जाने का सिलसिला हो गया. रमेश मनही मन सीमा को पसंद करने लगा और सीमा भी रमेश को चाहने लगी. दोनों एक दूसरे से मन की बात नहीं कह पा रहे थे और समय बीत रहा था . फिर सीमा लगभग 1 माह के लिए अपने रिश्तेदार के यहां छुट्टियां मनाने चली गई और रमेश भी अपने घर चला गया . रमेश सीमा को बहुत याद करता . वह रोजाना उसे फोन करता और उसका हाल चाल पूछता . उसे अहसास हो गया की वह उसके बगैर नहीं रह पायेगा . सीमा भी रमेश से अपने मन की बात नहीं कह पाई. अब दोनों की छुट्टियां समाप्त हो गई और दोनो फिर स्कूल जाने लगे. दोनो का मिलना-जुलना पहले की तरह ही चलता रहा . लोग भी उनके बारे में तरह तरह की बातें करने लगे . रमेश ने एक दिन हिम्मत जुटाई और मौका देखकर सीमा से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रमेश उससे बोला कि वह उससे बहुत प्यार करता है और उसके बगैर नहीं रह सकता . रमेश ने सीमा से पूछा कि वह उससे शादी भी करना चाहता है . सीमा ने जवाब दिया कि वह भी रमेश को बहुत चाहती है लेकिन शादी नही कर सकती.

रमेश सीमा की जात-बिरादरी का नही था और सीमा ने समाज-परिवार को देखते हुये यह निर्णय लिया . लेकिन रमेश उसको हमेशा शादी के लिए मनुहार करते रहता लेकिन सीमा बात टाल जाती . देखते-देखते 5वर्ष बीत गया . अब रमेश की नौकरी बिलासपुर के वन विभाग मे कांस्टेबल पद पर हो गई. तब से वह बिलासपुर में रहने लगा . लेकिन छुट्टी में वह सीमा से मिलने आता और सब से मिलता, उनके लिए उपहार लाता और खुशी खुशी वापस चला जाता. सीमा की माँ भी रमेश के घर आने से बहुत खुश होती और सोचती कि काश मुझे भी ऐसा दामाद मिल जाए जो मेरी बेटी को बहुत खुश रखे.

सात साल हो गये दोनो के प्रेम प्रसंग को लेकिन विवाह की कोई राह नहीं दिखी . अब सीमा सोचने लगी कि आखिर एक दिन किसी न किसी से विवाह करनी ही है तो क्यों न रमेश को ही हां कर दूँ . फिर उसने रमेश को अपने घर बुलवाया और शादी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया . उसने अपना निर्णय अपनी मां को बताया . पहले उसकी माँ जात बिरादरी और समाज के डर से नहीं मानी फिर बेटी का भला सोच कर हामी भर दी . माँ का आशीर्वाद लेकर दोनो ने मन्दिर में विवाह कर लिया . सीमा की सहेलियां, पड़ोसी और रिश्तेदार इस शादी से बहुत खुश हुए . सभी यही कहते हैं कि देर से ही सही बेचारी का घर तो बस गया. उसको जीवन साथी तो मिला.

शादी को 4 माह हो गये. सीमा अपने ससुराल भी जाकर आ गई . उसके ससुराल वाले उसे पूरी तरह से नहीं अपनाये थे. वह अभी भी अपनी मायके मे थी और स्कूल मे ही पढ़ा रही थी . रमेश भी बिलासपुर से सीमा के मायके आते-जाते रहता था.

फिर एक दिन रमेश ने सीमा से कहा कि वह उसे बिलासपुर घुमाने ले जाना चाहता है . सीमा ने कहा कि वह अभी नहीं जा सकती, स्कूल से छुट्टी नहीं मिलेगी . रमेश ने कहा कि शाम तक कैसे भी करके वह उसे वापस घर छोड़ देगा . सीमा मान गई . दोनो बिलासपुर जाने के लिए तैयार हुए और माँ की अनुमति लेकर हँसी खुशी घर से निकले. माँ ने सीमा से कहा कि ध्यान से जाना और अपना ख्याल रखना . सीमा बोली कि हम लोग शाम तक वापस लौट आयेंगे तुम खाना बनाकर रखना . अब दोनो चले गये .
शाम को सीमा की माँ खाना बनाकर सीमा और रमेश का रास्ता देख रही थी लेकिन दोनो की कोई खबर नही थी. मां ने फोन किया पर उनका फोन भी बन्द था. मां बहुत परेशान हो गई. सोची कि ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ था कि उसकी बेटी का मोबाईल बन्द हो.

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अगले दिन सुबह ऐसी खबर आई कि सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई . पता चला कि सड़क हादसे में सीमा की जान चली गई और रमेश बच गया था. फिर दुर्घटना स्थल से ही सीमा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया . कई पुलिस भी साथ में थे. इस दुखद घटना के बारे में सीमा की माँ को कुछ भी ज्ञात नहीं था . सीमा के छोटे भाई ने अपनी मां को बड़ी मुश्किल से बताया कि दीदी अब इस दुनिया में नहीं रही . मां ने जैसे ही सीमा की मौत की खबर सुनी तो होश खो बैठी और रो रो कर बुरा हाल हो गया. सीमा की मौत के दूसरे दिन लाश को घर लाया गया और उसके बाद मुक्तिधाम में उसका अन्तिम संस्कार कर दिया गया .

सीमा की मौत सच मे एक दुर्घटना थी या हत्या यह कह पाना मुश्किल है किन्तु लोगों की बातों को यदि गौर करें तो मामला हत्या का ही लग रहा था . क्योंकि उसकी माँ ने ही लोगों को बताया कि सीमा जब विवाह के लिए राजी हुई तब रमेश सीमा से विवाह नही करना चाहता था . रमेश के घरवाले उसे अपनी जाति की लड़की से विवाह करने के लिए दबाव डाल रहे थे और रमेश अपने परिवार की पसंद से शादी करना चाहता था . लेकिन सीमा ने रमेश को विवाह के लिए दबिश दी और रमेश ने हालात से घबराकर सीमा से विवाह किया था. शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनो के बीच मनमुटाव और झगड़े होने लगे. दोनो का वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं था . रमेश ने सीमा को स्पष्ट बोल दिया कि वह उसे तलाक़ दे दे या दुसरी शादी करने की अनुमति दे. सीमा इस बात के लिए कतई राजी नहीं हुई . अब रमेश उससे पीछा छुड़ाने का उपाय सोचने लगा . और आखिरकार उसने इस शर्मनाक घटना को अंजाम दे दिया . उसने न केवल सीमा का बल्कि विश्वास और प्रेम का भी खून किया.

यह बात कितना सच है या मिथ्या यह तो सीमा को, रमेश को और इश्वर को ही पता होगा क्यौंकि आंखो देखा कोई साक्ष्य नहीं था . लेकिन सीमा की लाश उसके पति के झूठे प्रेम का हाल सुना रहे थे कि उसके ही पति ने किस तरह बेरहमी से उसे मौत के घाट उतारा था . सड़क दुर्घटना और लाश में एक भी चोट नहीं, रमेश भी बिल्कुल सही सलामत, उसके चेहरे पर न दुख न शिकन . तो कोई शक भी क्यो न करे . पुलिस और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार सीमा की मृत्यु को दुर्घटना घोषित किया .

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सीमा का प्रेम उसके लिए अभिशाप बन गया . उसकी जान ले के ही छोड़ा. काश वह समय रहते ही सम्भल गई होती, उसने रमेश से विवाह ही न किया होता. काश वह उस दिन अपने पति की बातों में आकर उसके साथ बाहर ही नहीं गई होती तो शायद आज सीमा सबके बीच जीवित होती. स्कूल में काम कर रही होती और जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रही होती . लेकिन किस्मत के लिखे को कौन टाल सकता है . सीमा के जाने के बाद उसकी माँ बिल्कुल अकेले हो गई. कही आना जाना भी छोड़ दी, घर मे ही चुपचाप पड़ी रहती और सीमा की याद में खोई रहती . आज रमेश दूसरी शादी कर खुशी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहा है . यह भी उसके अपराधी होने का सबसे बड़ा साक्ष्य जान पड़ता है . सीमा, उसका प्यार, और उसकी यादें अब रमेश के जीवन से काफी ओझल हो चुका है. काश हर युवती और महिलायें अपने प्रेम के साथ वक्त और हालात की नजाकत को समझते हुए कुछ निर्णय लें तो इस दुनिया में ऐसे दुखद हादसे होना कुछ कम हो जायें .

कहीं किसी रोज- भाग 1: आखिर जोया से विमल क्या छिपा रहा था?

स्विमिंग पूल के किनारे एक तरफ जा कर विमल ने हाथ में लिए होटल के गिलास से ही सूर्य को जल चढ़ाया, सुबह की हलकीहलकी खुशनुमा सी ताजगी हर तरफ फैली थी, जल चढ़ाते हुए उस ने कितने ही शब्द होठों में बुदबुदाते हुए कनखियों से पूल के किनारे चेयर पर बैठी महिला को देखा, आज फिर वह अपनी बुक में खोई थी.

कुछ पल वहीं खड़े हो कर वह उसे फिर ध्यान से देखने लगा, सुंदर, बहुत स्मार्ट, टीशर्ट, ट्रैक पैंट में, शोल्डर कट बाल, बहुत आकर्षक, सुगठित देहयष्टि.

विमल को लगा कि वह उस से उम्र में कुछ बड़ी ही होगी, करीब चालीस की तो होगी ही, वह उसे निहार ही रहा था कि उस स्त्री ने उस की तरफ देख कर कहा, ‘‘इतनी दूर से कब तक देखते रहेंगे, आप की पूजाअर्चना हो गई हो और अगर आप चाहें तो यहां आ कर बैठ सकते हैं.‘‘

विमल बहुत बुरी तरह झेंप गया. उसे कुछ सूझा ही नहीं कि चोरी पकडे जाने पर अब क्या कहे, चुपचाप चलता हुआ उस स्त्री से कुछ दूर रखी चेयर पर जा कर बैठ गया.

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स्त्री ने ही बात शुरू की, ‘‘आप भी मेरी तरह लौकडाउन में इस होटल में फंस गए हैं न? आप को रोज देख रही हूं पूजापाठ करते. और आप भी मुझे देख ही रहे हैं, यह भी जानती हूं.‘‘

विमल झेंप रहा था, बोला, ‘‘हां, यहां देहरादून में औफिस के टूर पर आया था, अचानक लौकडाउन में फंस गया, मैं लखनऊ में रहता हूं और आप…?‘‘

‘‘मैं देहरादून घूमने आई थी. मैं बैंगलोर में रहती हूं, वहीं जौब भी करती हूं.‘‘

‘‘अकेले आई थीं घूमने?‘‘ विमल हैरान हुआ.

‘‘जी, मगर आप इतने हैरान क्यों हुए?‘‘

विमल चुप रहा, महिला उठ खड़ी हुई, ‘‘चलती हूं, मेरा एक्सरसाइज का टाइम हो गया. थोड़ी रीडिंग के बाद ही मेरा दिन शुरू होता है.‘‘

विमल ने झिझकते हुए पूछा, ‘‘आप का शुभ नाम?‘‘

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‘‘जोया.‘‘

‘‘आगे?‘‘

‘‘आगे क्या?‘‘

‘‘मतलब, सरनेम?‘‘

‘‘मुझे बस अपना नाम अच्छा लगता है, मैं सरनेम लगा कर किसी धर्म के बंधन में नहीं बंधना चाहती, सरनेम के बिना भी मेरा एक स्वतंत्र व्यक्तित्व हो सकता है. आप भी मुझे अपना नाम ही बताइए, मुझे किसी के सरनेम में कभी कोई दिलचस्पी नहीं होती.‘‘

विमल का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘यह औरत है, क्या है,’’ धीरे से बोला विमल.

‘‘ओके, बाय,‘‘ कह कर जोया चली गई. विमल जैसे एक जादू के असर में बैठा रह गया.

लौकडाउन के शुरू होने पर रूड़की के इस होटल में 8-10 लोग फंस गए थे, कुछ यंग जोड़े थे जो कभीकभी दिख जाते थे, कुछ ऐसे ही टूर पर आए लोग थे, दिनभर तो विमल लैपटौप पर औफिस के काम में बिजी रहता. वह बहुत ही धर्मभीरु, दब्बू किस्म का इनसान था, उस की पत्नी और दो बच्चे लखनऊ में रहते थे, जिन से वह लगातार टच में था, जोया को वह अकसर ऐसे ही स्विमिंग पूल के आसपास खूब देखता. अकसर वह इसी तरह बुक में ही खोई रहती.

जोया एक बिंदास, नास्तिक महिला थी, बैंगलोर में अकेली रहती थी, एक कालेज में फाइन आर्ट्स की प्रोफेसर थी, विवाह किया नहीं था. पेरेंट्स भाई के पास दिल्ली रहते थे, घूमनेफिरने का शौक था, खूब सोलो ट्रैवेलिंग करती, खूब पढ़ती, हमेशा बुक्स साथ रखती, अब लौकडाउन में फंसी  थी तो बुक्स पढ़ने के शौक में समय बीत रहा था. वह बहुत इंटेलीजेंट थी, कई फिलोसोफर्स को पढ़ चुकी थी, कई दिन से देख रही थी कि विमल उसे चोरीचोरी खूब देखता है, उसे मन ही मन हंसी भी आती, विमल देखने में स्मार्ट था, पर उसे एक नजर देखने से ही जोया को अंदाजा हो गया था कि वह धर्म में पोरपोर डूबा इनसान है.

होटल में स्टाफ अब बहुत कम  था, खानेपीने की चीजें सीमित थीं, पर काम चल रहा था. विमल का आज काम में दिल नहीं लगा, आंखों के आगे जोया का जैसे एक साया सा लहराता रह गया.

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शाम होते ही लैपटौप बंद कर स्विमिंग पूल की तरफ भागा, जोया अपनी बुक में डूबी थी. विमल उस के पास जा कर खड़ा हो गया, ‘‘गुड ईवनिंग, जोयाजी.”

बुक बंद कर जोया मुसकराई, ‘‘गुड ईवनिंग, आइए, फ्री हैं तो बैठिए.”

विमल तो उस के पास बैठने के लिए ही बेचैन था, जोया बहुत प्यारी लग रही थी, नेवई ब्लू, टीशर्ट में उस का गोरा सुनस
सुंदर चेहरा खिलाखिला लग रहा था. जोया ने छेड़ा, ‘‘देख लिया हो तो कोई बात करें.”

हंस पड़ा विमल, ‘‘आप बहुत स्मार्ट हैं, नजरों को खूब पढ़ती हैं.”

‘‘हां जी, यह तो सच है,” जोया ने दोस्ताना ढंग से कहा, तो दोनों में कुछ बढ़ा, जोया ने कहा, ‘‘आजकल तो यहां जितनी भी सुविधाएं मिल रही हैं, बहुत हैं, मेरी सुबहशाम तो स्विमिंग पूल पर कट रही है और दिन होटल के कमरे में. आप क्या करते रहते हैं?”

Crime Story: शादी के बीच पहुंची दूल्हे की प्रेमिका तो लौटानी पड़ी बरात

एक लड़की, जिसकी शादी हो रही हो, हाथों में मेहंदी लगी हो, फेरे चल रहे हों, उस वक्त होने वाले पति की प्रेमिका आ जाए, तो उसका क्या हाल होगा, कहना सहज ही समझा जा सकता है. अगर किसी शादी के खूबसूरत माहौल में ऐसा मोड़ आता है तो लड़की व उस के परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग जाता है.

भले ही लड़की के परिवार वालों ने पुलिसिया कार्यवाही से मना कर दिया हो, पर उस घर में मातम पसरा रहता है. प्रेमिका को धोखा देकर शादी करना कितना भारी पड़ सकता है, यह इस वाकए से उजागर होता है.

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घटना 7 जुलाई की है. जालंधर जिले के गोराया में उस दिन शादी समारोह चल रहा था. माहौल खुशियों से भरा था. दूल्हा-दुलहन फेरे ले रहे थे. इसी बीच एक लड़की वहां पहुंचीं और जोर-जोर से अपनी बात कहनी शुरू कर दी. वह लड़की दूल्हे की बचकाना हरकत को ऐसे बखान कर रही थी जैसे उस ने शादी कर के आफत मोल ले ली हो. हालात ऐसे हो गए कि दूल्हे को भीगी बिल्ली बन वहां से रफूचक्कर हो जाना पड़ा.

दरअसल, वह लड़की दूल्हे की प्रेमिका थी. दूल्हा उसे धोखा दे कर शादी कर रहा था, वह भी चोरीछिपे. ऐसा कैसे हो सकता था. प्रेमिका की पैनी नजर से वह बच न सका. तभी तो ऐसे हालात हो गए कि दूल्हे को बरात के संग बिना शादी किए लौट जाना पड़ा.

शेरपुर गांव के जसकरन कुमार उर्फ जस्सी बरात ले कर गोराया गांव में एक लड़की से शादी करने पहुंचा था. गुरुद्वारा साहिब में फेरों की रस्म चल रही थी. तभी वहां एक लड़की अचानक ही पहुंच गई. उस लड़की ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि लोगों की नजरें उधर ही घूम गईं. उस लड़की ने खुद को जसकरन उर्फ जस्सी की प्रेमिका बताया. उस के ऐसा कहने पर समारोह में हड़कंप मच गया.

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इस सब के बीच लड़की ने दुल्हन के परिवार को दूल्हे जसकरन से अपने प्रेम संबंध की जानकारी दी. साथ ही, जसकरन के साथ की कुछ तस्वीरें दिखाईं. तस्वीरों की सचाई की बाबत जब पूछा गया तो जसकरन ने हामी भर दी. फिर क्या था, घड़ा तो फूटना ही था. गनीमत यह थी कि कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.

उस लड़की ने यह भी बताया कि उस का जसकरन कुमार उर्फ जस्सी के साथ तकरीबन डेढ़ साल से प्रेम प्रसंग चल रहा है. वह उस के साथ रहती थी और घूमने के लिए वे दोनों दुबई भी गए थे. वह लड़की गांव में उस के परिवार के साथ भी रह चुकी है.

जस्सी ने उसे गुमराह किया था कि उस के बड़े भाई की शादी है. उसे बीती रात ही यह पता चला कि शादी जसकरन की हो रही है. तुरंत ही वह उस के गांव शेरपुर पहुंची तो सारा मामला साफ हो गया.

दुल्हन के घर वालों ने दूल्हा जसकरन से पूछा तो उस ने बताया कि उसे दुबई से लौटे 8 महीने हुए हैं. 4 महीने पहले ही उस की दोस्ती इस लड़की से हुई थी. जब उस से लड़की द्वारा दिखाई गई तस्वीरों के बारे में पूछा गया, तो उस ने प्रेम प्रसंग को स्वीकारा. इस के बाद दुल्हन के परिवार ने शादी से मना कर दिया.

थाना गोराया के प्रभारी ने इस संबंध में कहा कि जस्सी के परिवार वाले लड़की के परिवार (जिस से शादी हो रही थी) से राजीनामा कर बारात वापस ले गए. दुल्हन के परिवार ने भी मामले में किसी तरह की पुलिसिया कार्यवाही से मना कर दिया.

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शादी से बैरंग लौटना भले ही दूल्हे जस्सी के लिए इज्जत का सवाल हो गया, पर दुल्हन के परिवार वालों पर क्या बीती होगी. शादी में खर्च तो हुआ ही साथ ही सामाजिक अपमान भी झेलना पड़ा होगा. ऐसी शादियां कितने दिन तक टिक पातीं, यह तो पता नहीं, पर ऐसी शादियां न हों, तो ही बेहतर है. इसीलिए तो कहा जाता है कि शादी भले ही देर मेंं हो, पर तहकीकात बहुत जरूरी है.

Satyakatha- सोनू पंजाबन: गोरी चमड़ी के धंधे की बड़ी खिलाड़ी- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- सुनील वर्मा  सोनू

कुछ समय बाद गीता ने निक्कू से कुछ पैसा ले कर गीता कालोनी में ही अपना खुद का ब्यूटीपार्लर खोल लिया और इस की आड़ में खुद तो जिस्मफरोशी का धंधा करती ही थी, साथ में उस ने नौकरी दे कर कुछ लड़कियों को भी पार्लर में जोड़ लिया.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक बार फिर उस की खुशियों को ग्रहण लग गया. साल 2000 में एक दिन ऐसा आया जब यूपी पुलिस ने निक्कू त्यागी को हापुड़ के पास मुठभेड़ में मार गिराया.

एक बार फिर गीता के सिर से उस के सरपरस्त का साया उठ गया और वह उदास हो गई. लेकिन तब तक वह जिस्मफरोशी की दुनिया के जिस धंधे में वह उतर चुकी थी, उस ने गम की परछाई को ज्यादा दिन गीता के ऊपर रहने नहीं दिया.

गीता धीरेधीरे यमुनापार के गरीब परिवार की खूबसूरत लड़कियों को अपने साथ जोड़ कर उन से धंधा कराने लगी.

एक दिन गीता की मुलाकात दीपक जाट से हुई. दीपक उस के पास आया तो था अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए, लेकिन वह गीता की अदाओं और हुस्न के जाल में इस तरह उलझा कि तन ही नहीं, मन से भी उस से प्यार करने लगा. इस के बाद तो दीपक अकसर गीता से मिलनेजुलने लगा.

ऐसा लगता था कि तकदीर ने गीता की जिंदगी में आने वाले हर मर्द के हाथों में अपराध की लकीरें बना कर भेजी थीं. नजफगढ़ इलाके का रहने वाला दीपक भी विजय और निक्कू की तरह अपराधी ही था. उस की गिनती दिल्ली के नामी वाहन चोरों में होती थी.

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दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में दीपक और उस के छोटे भाई हेमंत उर्फ सोनू का जबरदस्त खौफ था. गीता जीवन में आई तो दीपक को लगने लगा कि जैसे भटकती जिंदगी को किनारा मिल गया हो. कुछ समय बाद दीपक ने बिना सात फेरे लिए ही गीता के साथ पतिपत्नी की तरह रहना शुरू कर दिया.

लेकिन 2003 में असम पुलिस ने दीपक को स्कौर्पियो कार चुराने के आरोप में मुठभेड़ में मार गिराया. गीता फिर तन्हा हो गई. लेकिन इस बार उस का ये तन्हापन ज्यादा दिन नहीं रहा क्योंकि इस बार उसे सहारा देने वाला कोई और नहीं वरन दीपक का छोटा भाई हेमंत उर्फ सोनू था.

दीपक के भाई हेमंत उर्फ सोनू ने भाई की मौत के बाद गीता से अपनी इकरारे मोहब्बत बयान कर उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.

सोनू भी दिल्ली से ले कर हरियाणा और यूपी के कई गैंगस्टरों के साथ मिल कर लूट, डकैती, अपहरण, जबरन वसूली और ठेके पर हत्या करने की वारदातों को अंजाम देता था.

लेकिन 6 मार्च, 2006 को स्पैशल सेल के एसीपी संजीव यादव की टीम ने गुड़गांव के सागर अपार्टमेंट में हेमंत को उस के 2 साथियों जसवंत और जयप्रकाश के साथ मुठभेड़ में मार गिराया.

हेमंत की मौत के बाद गीता एक बार फिर अकेली हो गई. लेकिन अब तक गीता का नाम बदल चुका था. सोनू की पत्नी होने के कारण लोग उसे गीता की जगह सोनू और जाति से पंजाबी होने के कारण पंजाबन ज्यादा कहने लगे थे.

एक बार सोनू नाम क्या पड़ा कि जल्द ही गीता अरोड़़ा सोनू पंजाबन के नए नाम से विख्यात हो गई. अपने अतीत की वजह से सोनू पंजाबन का अपराध से करीब का रिश्ता बन चुका था.

सोनू पंजाबन हेमंत के एक दोस्त गैंगस्टर अशोक बंटी से पहले से परिचित थी. इस के बाद उस ने बुलंदशहर के अशोक उर्फ बंटी के साथ दिलशाद गार्डन में रखैल की तरह रहना शुरू कर दिया. लेकिन सोनू को शायद पता नहीं था कि अपराध से उस ने जो नाता जोड़ा है, उस से अभी उस का पीछा छूटा नहीं है.

उसे शायद ये भी नहीं पता था कि उस की किस्मत में स्थायी रूप से किसी मर्द का साथ लिखा ही नहीं था.

बंटी को अप्रैल 2006 में एक दिन दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने मुठभेड़ में मारा गिराया.

सोनू के जीवन में जो भी मर्द आया वह पुलिस के हाथों मारा गया. इसलिए अब उस ने किसी का आसरा लेने की जगह जिस्मफरोशी के अपने धंधे को ही चमकाने और बढ़ाने का काम शुरू किया. वह अपने धंधे को संगठित रूप से बढ़ाने व चलाने लगी.

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सोनू गीता कालोनी इलाके में बदनामी के कारण अपने बेटे को अपनी मां और भाइयों के पास छोड़ कर साकेत के पर्यावरण कौंप्लैक्स में रहने चली गई और वहीं से धंधा औपरेट करने लगी.

सोनू पंजाबन को जिस्मफरोशी के आरोप में पहली बार 31 अगस्त, 2007 को प्रीत विहार पुलिस ने 7 लड़कियों के साथ गिरफ्तार किया था. इस के बाद सोनू पूरी तरह एक कालगर्ल सरगना के रूप में बदनाम हो गई.

उस ने प्रीत विहार छोड़ कर साकेत में नया ठिकाना बना लिया. लेकिन वहां भी 21 नवंबर, 2008 को साकेत पुलिस ने सोनू को सैक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

सोनू ने फिर ठिकाना बदला और प्रीत विहार में एक दूसरा बंगला किराए पर ले लिया. लेकिन 22 नवंबर, 2009 को वहां भी प्रीत विहार पुलिस ने छापा मार दिया. सोनू को फिर से 4 लड़कियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद तो सोनू के दिमाग से पुलिस का खौफ पूरी तरह निकल गया. अब वह खुल कर बड़े पैमाने पर धंधा करने लगी.

उस ने अपराध की दुनिया से जुड़े प्रेमियों और जिस्मफरोशी के कारोबार से जुटाई गई दौलत से दिल्ली के महरौली इलाके के सैदुल्लाजाब के अनुपम एनक्लेव में एक आलीशान फ्लैट खरीद लिया और वहीं से अंडरग्राउंड रह कर धंधे का संचालन करने लगी.

सोनू अब लड़कियों को खुद ले कर नहीं जाती थी उस ने एजेंट रख लिए. सोनू ने अपने सभी फोन नंबर भी बदल लिए थे. वह आमतौर पर अंजान लोगों से फोन पर बात नहीं करती बल्कि किसी पुराने ग्राहकों का रैफरेंस देने पर ही नए ग्राहकों को लड़की उपलब्ध कराती थी.

5 अप्रैल, 2011 को सोनू को महरौली पुलिस ने 5 लड़कियों और साथ धर दबोचा. इस बार पुलिस ने उस के ऊपर मकोका कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया.

इस बार उस के साथ पकड़ी गई लडकियों में ज्यादातर लड़कियां मौडल या टेलीविजन कार्यक्रमों में काम करने वाली अभिनेत्रियां थीं.

इस बार यह खुलासा हुआ कि सोनू का धंधा कई राज्यों तक फैल चुका था. उस का पूरा कारोबार संगठित तरीके से चलता था.

हालांकि पुलिस सोनू पंजाबन पर मकोका कानून के आरोप सिद्ध नहीं कर सकी, इसीलिए 2013 में वह मकोका के आरोप से बरी हो कर जेल से रिहा हो गई.

3 साल जेल में रहने के बाद सोनू पंजाबन अदालत से बरी हुई तो उस ने बेहद सावधानी से अपने धंधे को आगे बढ़ाना शुरू किया. अब वह खुद सामने नहीं आती थी बल्कि अपने लोगों को सामने रख कर इस काम को करती थी.

सोनू पंजाबन ने अब लड़कियों को अपने यहां काम पर रख लिया है. इन लड़कियों को वह ग्राहक के पैसों में हिस्सा नहीं देती थी, बल्कि उन्हें एकमुश्त सैलरी देती थी.

यूं कहें तो गलत न होगा कि उस ने अपने काम करने के तरीके को एकदम कारपोरेट शैली में बदल दिया था.

उस के सिंडीकेट से जुड़े हर शख्स का काम बंटा हुआ था. कोई लड़कियों को एस्कार्ट करता था तो कोई उन का ड्राइवर बन कर उन्हें बड़ेबड़े ग्राहकों के पास छोड़ कर आता था.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2011 में प्रीति नाम की एक लड़की को खरीदने के आरोप में उसे 24 साल तक जेल की सलाखों के पीछे रहने की सजा मिलेगी, यह उस ने कभी नहीं सोचा था.

दरअसल, उन दिनों प्रीति 13 साल की थी. जब वह कोंडली में स्थित दिल्ली सरकार के स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. गरीब परिवार में जन्मी प्रीति के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे.

अभावों में पलीबढ़ी लेकिन सूरत व शरीर से बेहद खूबसूरत प्रीति की दोस्ती स्कूल आतेजाते संदीप बेलवाल से हो गई, जो उस से 4-5 साल बड़ा था.

संदीप कभी उसे कार तो कभी मोटरसाइकिल से घुमाने लगा. संदीप से प्रभावित होने के बाद प्रीति उस के प्यार में कुछ ऐसी दीवानी हो गई कि वह उस पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगी.

एक दिन इसी विश्वास में प्रीति संदीप के साथ उस के जन्मदिन की पार्टी मनाने नजफगढ़ में उस की किसी सीमा आंटी के पास चली गई. बस यही उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी.

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संदीप ने उस दिन कोल्डड्रिंक में उसे कोई मदहोश करने वाली दवा पिला कर उस की इज्जत को तारतार कर दिया. इतना ही नहीं वह उसे सीमा आंटी के पास एक लाख रुपए में बेच कर चला गया. बाद में उसे पता चला कि सीमा आंटी देहव्यापार करने वाली औरत थी और संदीप उस के साथ जुड़ा था.

इस के बाद शुरू हुआ प्रीति की जिंदगी में हर रोज होने वाले यौनशोषण का ऐसा सिलसिला जो कई साल तक चला.

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प्रतिबद्धता- भाग 1: क्या था पीयूष की अनजाने में हुई गलती का राज?

Writer- VInita Rahurikar

बारिश शुरू हुई तो उस की पहली फुहार ने पेड़पौधों के पत्तों पर जमी धूल को धो दिया. मिट्टी से सोंधीसोंधी गंध उठने लगी. ठंडी हवा चलने लगी. सारी प्रकृति, जो अब तक गरमी से बेहाल थी बारिश से तृप्त हो जाना चाहती थी. पेड़पौधे ही नहीं, पशुपक्षी भी बारिश का आनंद लेने आ गए. कहीं गड्ढे में जमा पानी में चिडि़यों का झुंड पंख फड़फड़ाता हुआ खेल रहा था, तो कहीं छोटेछोटे बच्चे घरों से कागजों की नावें ला कर उन्हें पानी में तैराते हुए खुद भी भीग रहे थे. छतों पर कुंआरी ननदें और सयानी भाभियां भी भीगने के लोभ से बच न पाईं और बड़ों की आंखें बचा कर फुहारों में अपना आंचल भिगो कर एकदूसरे पर पानी के छींटे उड़ाने लगीं. घरों के बरामदों और गैलरियों में बड़ेबुजुर्गों की कुरसियां लग गईं और वे बैठ कर बारिश का आनंद लेने लगे.

इन सारी खुशियों के बीच खिड़की के कांच से बाहर देखती पलक के चेहरे पर खुशी बिलकुल नहीं थी. उस के चेहरे पर तो उदासी और दुख की घनी बदली छाई हुई थी. वह उदास चेहरा ले कर दुखी मन से बाहर की खुशियों को देख रही थी. सामने चंपा

के पेड़ की पत्तियों से पानी की बूंदें फिसलफिसल कर नीचे गिर रही थीं. पलक निर्विकार भाव से बूंदों का थमथम कर नीचे गिरना देख रही थी.

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पलक के मातापिता बरामदे में खड़े ठंडी हवा का मजा ले रहे थे.

‘‘भई, आज तो पकौड़े खाने का मौसम है. प्याज के बढि़या कुरकुरे पकौड़े और गरमगरम चाय हो जाए,’’ पलक के पिता ने कहा.

‘‘मैं अभी बना कर लाती हूं,’’ कह कर पलक की मां रसोईघर में चली गईं. प्याज काट कर उन्होंने पकौड़े तले और चाय भी बना ली. पकौड़े और चाय टेबल पर रख कर उन्होंने पलक को आवाज लगाई.

‘‘तुम ने पलक से बात की?’’ पलक के पिता आनंदजी ने पूछा.

‘‘अभी नहीं की. सोच रही हूं 1-2 दिन में पूछूंगी,’’ अरुणा ने उत्तर दिया.

‘‘जल्दी बात करो. जब से आई है उदास और बुझीबुझी लग रही है. अच्छा नहीं लग रहा,’’ आनंदजी ने चिंतित स्वर में कहा.

तभी पलक के आने की आहट पा कर दोनों चुप हो गए. साल भर पहले ही तो उन्होंने बड़ी धूमधाम से पलक का विवाह किया था. पलक उन की एकलौती बेटी थी, इसलिए पलक का विवाह कहीं दूर करने का उन का मन नहीं था. वे चाहते थे कि पलक का विवाह इसी शहर में हो और इत्तफाक से पिछले साल उन की इच्छा पूरी हो गई.

पलक के लिए इसी शहर से रिश्ता आया. शादी हुई तो पीयूष के रूप में उन्हें दामाद नहीं बेटा मिल गया. उस के मातापिता भी बहुत सुलझे हुए और सरल स्वभाव के थे. पलक को उन्होंने बहू की तरह नहीं, बल्कि बेटी की तरह रखा. पलक भी अपने घर में बहुत प्रसन्न थी. जब भी मायके आती चहकती रहती. उस की हंसी में उस के मन की खुशी छलकती थी.

लेकिन इस बार बात कुछ अलग ही है. एक तो पलक अचानक ही अकेली चली आई है और जब से आई है, तब से दुखी लग रही है. उन दोनों के सामने वह सामान्य और खुश रहने की भरसक कोशिश करती है, लेकिन मातापिता की अनुभवी नजरों ने ताड़ लिया है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

पहले पलक 2 दिन के लिए भी मायके आती थी, तो पीयूष औफिस से सीधे यहीं आ जाता था और रात का खाना खा कर घर जाता था. दिन में भी कई बार पलक के पास उस का फोन आता था.

लेकिन इस बार 5 दिन हो गए पलक को घर आए, एक बार भी पीयूष उस से मिलने नहीं आया. यहां तक कि उस का फोन भी नहीं आया और पलक ने भी एक बार भी पीयूष को फोन नहीं किया. आनंद और अरुणा की चिंता स्वाभाविक थी. एकलौती बेटी का दुख से मुरझाया चेहरा उन से देखा नहीं जा रहा था.

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पीयूष, उस का पीयूष. कालेज के दिनों में दोस्तों ने एक पार्टी में उसे जबरदस्ती शराब पिला दी तो नशे में चूर हो कर उस ने रात में दोस्त के फार्महाउस पर एक लड़की को अपना एक कण दे दिया. उस का पीयूष पूरा नहीं है, खंडित हो चुका है. पलक को कभी पूरा पीयूष मिला ही नहीं था. उस का एक कण तो उस लड़की ने पहले ही ले लिया था. पलक के सामने सच बोल कर पीयूष ने अपने मन का बोझ हलका कर दिया, लेकिन तब से पलक का मन पीयूष के इस सच के बोझ तले छटपटा रहा है.

पीयूष के इस सच को वह सह नहीं पाई. उस सच ने उसे अचानक ही उस के पास से उठा कर बहुत दूर पटक दिया. पल भर में ही वह इतना पराया लगने लगा, मानो कभी अपना था ही नहीं. दोनों के बीच एक अजनबीपन पसर गया. अजनबी के अजनबीपन को सहना आसान होता है, लेकिन किसी बहुत अपने के अजनबीपन को सहना बहुत मुश्किल होता है. पलक जब अजनबीपन को बरदाश्त नहीं कर पाई तो यहां चली आई.

काश, पीयूष उसे कभी सच बताता ही नहीं. कितना सही कहा है किसी ने, सच अगर कड़वा बहुत है तो मीठे झूठ की छाया में जीना अच्छा लगता है. वह भी पीयूष के झूठ की छाया में सुख से जीवन बिता लेती. कम से कम उस के सच की आंच में जिंदगी यों झुलस तो न जाती.

उधर पीयूष पश्चात्ताप की आग में जल रहा था कि क्यों उस ने अपना यह राज अपने सीने से बाहर निकाला? क्यों नहीं छिपा कर रख पाया? दरअसल पलक का निश्छल प्यार, उस का समर्पण देख कर मन ही मन उसे ग्लानि होती थी. ऐसे में बरसों पहले की गई अपनी गलती को अपने मन में दबाए रखने पर एक अपराधबोध सा सालता रहता था हर समय. इसलिए अपने मन का बोझ उस ने भावुक क्षणों में पलक के सामने रख दिया.

Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 3

खैर, अगली सुबह शिवेंद्र बेटी की खोज में निकल गए तो उन के व्यवहार के कायल रिश्तेदार भी गुडि़या की तलाश में शिमला के जंगलों की खाक छानते फिरते रहे लेकिन गुडि़या का कहीं पता नहीं चला. रहस्यमय तरीके से गुडि़या को लापता हुए 24 घंटे से ऊपर बीत चुके थे. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

6 जुलाई की सुबह कोई पौने 8 बजे कोटखाई थाना स्थित हलाइला गांव के पास तांदी के जंगल के एक गड्ढे के भीतर एक लड़की की नग्नावस्था में लाश मिली. उस की उम्र यही कोई 16-17 साल के करीब रही होगी.

लाश मिलते ही वन अधिकारी ने इस की सूचना कोटखाई थाने के इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को दे दी थी. सूचना मिलते ही वह एसआई दीपचंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक अली, महिला कांस्टेबल नेहा को साथ ले कर घटनास्थल पहुंच गए थे.

घटनास्थल पहुंच कर उन्होंने मुआयना किया और गुडि़या के पिता शिवेंद्र को भी मौके पर बुलवा लिया था. उन्हें आशंका थी कि यह लाश कहीं 2 दिनों से लापता गुडि़या की तो नहीं है. उन के यहां होने से लाश की शिनाख्त करने में आसानी होगी.

हलाइला गांव के निकट स्थित तांदी के जंगल में लड़की की लाश मिलने की सूचना मिलते ही शिवेंद्र के हाथपांव फूल गए और वह तुरंत मौकाएवारदात पर चल दिए. रास्ते भर वह यही प्रार्थना करते रहे कि बेटी जहां भी हो, सुरक्षित रहे.

खैर, थोड़ी देर बाद बेटे अमन के साथ वह मौके पर पहुंच गए. वहां भारी भीड़ जमा थी और जंगल बीच एक गड्ढे के भीतर लाश के ऊपर सफेद चादर डाल दी गई थी.

चादर से ढकी लाश देख कर शिवेंद्र का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. मानो अभी हलक के रास्ते मुंह के बाहर आ जाएगा.

पिता को एक किनारे खड़ा कर अमन ने हिम्मत जुटा कर लाश के ऊपर से चादर उठाई. चेहरा देखते ही अमन का कलेजा मुंह को आ गया और वह दहाड़ मार कर रोने लगा. पुलिस अधिकारी भी पहुंचे मौके पर अमन को रोता देख इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को समझते देर न लगी कि 2 दिनों से रहस्य बनी लाश की शिनाख्त हो गई है. बेटे को रोता देख कर पिता की आंखें भी नम हो गई थीं. तब तक घटना की सूचना पा कर एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और डीएसपी मनोज जोशी मौके पर पहुंच चुके थे.

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लाश की स्थिति देख कर पुलिस अधिकारियों की रूह कांप गई थी. गुडि़या के शरीर पर कई जगह चोट और वक्षस्थल पर दांत काटने के निशान पाए गए थे. ये देख कर लगता था कातिलों ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दी थीं.

घटना चीखचीख कर कह रही थी हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए मासूम गुडि़या को मार डाला था.

खैर, काफी खोजबीन के बाद मौके पर लाश के अलावा कुछ नहीं मिला था. गुडि़या के स्कूल की ड्रेस, जूतेमोजे और स्कूल का बैग नहीं मिला था. हत्यारों ने कहां छिपा रखा था, किसी को कुछ पता नहीं था.

जंगल में आग की तरह गुडि़या की हत्या की खबर शिमला में चारों ओर फैल गई थी. खबर मिलते ही शिवेंद्र की जानपहचान वाले मौके पर पहुंचने लगे थे. ये देख कर पुलिस के पसीने छूटने लगे थे. एसपी नेगी ने जल्द लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम भेजने का आदेश दिया.

आननफानन में इंसपेक्टर राजिंदर सिंह ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय शिमला भेज दी और गुमशुदगी की धारा को धारा 302, 376 आईपीसी एवं पोक्सो एक्ट की धारा 4 में तरमीम कर अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.

विद्रोह और जन आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

7 जुलाई की सुबह गुडि़या रेपमर्डर केस ने शिमला की सड़कों पर विद्रोह और जनआंदोलन की जो रफ्तार पकड़ी, उस से पुलिस प्रशासन हिल गया था. शिमला प्रशासन के हाथों से यह मामला निकल कर डीजीपी के दफ्तर तक पहुंच चुका था.

मामले की गंभीरता को समझते हुए डीजीपी ने कड़ा रुख अपनाया और 10 जुलाई को स्पेशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन करने का आदेश दिया. जिस में आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और इंसपेक्टर कोटखाई राजिंदर सिंह शामिल हुए.

अपने मातहतों को कड़े शब्दों में डीजीपी ने कह दिया था कि मासूम बेटी के कातिल हर हाल में सलाखों के पीछे कैद होने चाहिए.

इस बीच गुडि़या के कातिलों को सलाखों तक पहुंचाने के लिए शिमला की जानीमानी एनजीओ मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और उन की सहयोगी तनुजा थाप्टा जन आंदोलन में कूद पड़े थे.

पुलिस की नाकामी की पोल स्थानीय समाचारपत्रों ने खोल कर रख दी थी. पुलिस के ऊपर कातिलों को गिरफ्तार करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री और डीजीपी का भारी दबाव था. वह पलपल जांच की काररवाई की रिपोर्ट तलब करा रहे थे.

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पुलिस की 3 दिनों की कड़ी मेहनत ने अपना रंग दिखाया. शक के आधार पर पुलिस ने 13 जुलाई की शाम को 5 लोगों को धर दबोचा. जिन के नाम सूरज सिंह, राजेंद्र सिंह उर्फ राजू निवासी हलाइला, सुभाष बिष्ट निवासी गढ़वाल, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक निवासी पौड़ी गढ़वाल थे.

एसआईटी ने निर्दोषों को बनाया आरोपी

सभी आरोपी शिमला में ही रह रहे थे और आपस में गहरे दोस्त थे. पुलिस ने उक्त पांचों को फर्द पर नामजद करते हुए रेप और मर्डर केस का आरोपी बना दिया था. पांचों आरोपियों से लगातार 5 दिनों तक थाने में कड़ाई से पूछताछ चलती रही. पुलिस ने सूरज सिंह को गैंगरेप का सरगना मानते हुए उसे खूब प्रताडि़त किया.

पुलिस के बेइंतहा जुल्म से हिरासत में सूरज सिंह ने दम तोड़ दिया था. पुलिस हिरासत में गैंगरेप आरोपी सूरज सिंह की मौत होते ही शिमला की ठंडी वादियों में अचानक ज्वालामुखी फट गया, जिस की तपिश से पुलिस महकमा धूधू कर जलने लगा था. ये 18 जुलाई, 2021 की बात है.

आरोपी सूरज सिंह की मौत के बाद सियासी मामला गरमा गया. कांग्रेस के वीरभद्र सिंह की सरकार के खिलाफ भाजपा ने मोरचा खोल दिया और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने पर अड़ गई.

आखिरकार सरकार को उन के आगे झुकना पड़ा और 19 जुलाई को मामले की जांच सीबीआई की झोली में आ गिरी.

जांच की कमान सीबीआई के तेजतर्रार एसपी एस.एस. गुरम ने संभाली और उन का साथ दिया था डीएसपी सीमा पाहूजा ने. जांच की कमान संभालते ही एसपी गुरम ने दिल्ली मुख्यालय सीबीआई के दफ्तर में अपने तरीके से 2 अलगअलग मामले दर्ज किए.

पहला मुकदमा गुडि़या रेप और मर्डर केस में आरोपी सूरज सिंह की पुलिस हिरासत में हुई मौत का था. यह मुकदमा संख्या 101/2017 भादंवि की धारा 120बी, 302, 330, 331, 348, 323, 326, 218, 195, 196 और 201 भादंसं के तहत 22 जुलाई 2017 को दर्ज किया गया था. इस मुकदमे के आरोपी बनाए गए थे- आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी, इंसपेक्टर (कोटखाई) राजिंदर सिंह, एएसआई दीप चंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक मोहम्मद और रंजीत.

पुलिस अधिकारियों पर आरोप था कि आरोपी सूरज सिंह को हिरासत में ले कर बेरहमी से पिटाई की गई थी. जिस से हिरासत में उस की मौत हो गई थी.

वहीं आईजी जैदी ने सूरज की मौत पुलिस हिरासत की बजाय आरोपी राजेंद्र सिंह उर्फ राजू के सिर पर मढ़ कर नया बवाल खड़ा कर दिया था. लेकिन जांचपड़ताल में यह बात झूठी साबित हुई थी.

खैर, सीबीआई एसपी एस.एस. गुरम ने हिमाचल पुलिस द्वारा शक के बिना पर आरोपी बनाए गए चारों लोगों राजेंद्र सिंह उर्फ राजू, सुभाष बिष्ट, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक को जमानत पर छोड़ दिया और गुडि़या रेपमर्डर केस की जांच नए सिरे से शुरू कर दी.

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उन्होंने जांच की काररवाई जहां से गुडि़या की लाश पाई गई थी, वहीं से शुरू की. सब से पहले उन्होंने जंगल की भौगोलिक परिस्थितियों को जांचापरखा. फिर उस के आनेजाने वाले रास्ते का अवलोकन किया.

सीबीआई के हाथ लगा चश्मदीद

इधर सीबीआई के द्वारा पकड़े गए चारों आरोपियों को छोड़े जाने पर मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और तनुजा थाप्टा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मिले और सीबीआई के क्रियाकलापों पर नाराजगी जताई.

अगले भाग में पढ़ें- अनिल उर्फ नीलू की हो गई नीयत खराब

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