रहिमन दाढ़ी राखिए : आम आदमी का गणित

मैं जवानी के दिनों में कंजूस नस्ल का आदमी था, इसलिए आदतन हमेशा बचत की तरकीबों के बारे में ही सोचता रहता था. एक दिन जब मैं अपने पड़ोसी वर्माजी से अखबार मांग कर पढ़ रहा था, तो अखबार में छपी एक खबर देख कर मुझे झटका सा लगा. सूचना इस तरह से थी, ‘एक आदमी अपनी पूरी जिंदगी में दाढ़ी बनाने पर तकरीबन एक लाख रुपए और एक साल बरबाद कर देता है’. खबर पढ़ते ही मैं अपने दूसरे पड़ोसी शर्माजी के घर भागा.

उन से कैलकुलेटर ले कर अपनी दाढ़ी बनाने पर खर्च किए गए पैसों का हिसाब लगाने लगा. हिसाब लगाने के बाद मुझे थोड़ी राहत मिली कि मैं ने दाढ़ी बनाने पर ज्यादा खर्च नहीं किया है, क्योंकि मैं हमेशा अपनी दाढ़ी दूसरों के घर बनाना पसंद करता हूं. लेकिन, जज्बाती आदमी होने की वजह से मुझे अफसोस भी हुआ कि मेरी दाढ़ी के चक्कर में मेरा न सही, पर दूसरों का ही खर्च तो हुआ.

यह बात मेरे दिल में कील की तरह चुभ गई. इसलिए मैं ने उसी दिन तय कर लिया कि आज से दाढ़ी नहीं बनाऊंगा. इरादे पर अमल करते हुए 2 महीने बीत गए. मेरी दाढ़ी अच्छीखासी बढ़ गई थी. मैं चेहरे से आतंकवादी नजर आने लगा. इस का फायदा उठा कर मेरे एक दुश्मन पड़ोसी ने थाने में मेरी शिकायत कर दी कि मेरा चेहरा ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ में दिखाए गए एक दुर्दांत अपराधी से मिलता है. बस, पुलिस को और क्या चाहिए. पहुंच गई मेरे दरवाजे पर. पुलिस मुझे पकड़ कर ले जाने लगी.

किसी तरह एक हजार रुपए दे कर इस मुसीबत से पीछा छुड़ाया, लेकिन फिर भी मैं अपने इरादे पर डटा रहा. अचानक एक दिन मेरी मुलाकात पुरानी प्रेमिका रितु से हो गई, जो कुकिंग कोर्स करने के लिए अमेरिका गई हुई थी. वह तो मुझे देखते ही डर गई. उसे लगा कि मैं ने उस की जुदाई में ही देवदास की तरह दाढ़ी बढ़ा ली है. रितु अचानक चिल्लाते हुए बोली, ‘‘अगर इसी तरह मजनूछाप चेहरा बनाए रहे, तो मुझ से शादी करना तो दूर, तुम सगाई भी नहीं कर पाओगे.’’ दाढ़ी बनाने के लिए 2 रुपए का सिक्का मेरे हाथ में थमा कर वह पैर पटकती हुई चली गई. लेकिन, मैं भी धुन का पक्का था. मैं ने भी सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए, मैं अपने इरादे पर डटा रहूंगा, इसलिए मैं ने रितु का दिल तोड़ दिया. अब लोगों में मेरी अलग ही पहचान बन चुकी थी. मैं संन्यासी निरोधानंद के नाम से जाना जाने लगा था.

बढ़ी हुई दाढ़ी मेरे लिए वरदान साबित हुई. जैसा कि अपने देश में होता है, अचानक मेरे चमत्कार के चर्चे दूरदूर तक फैलने लगे. औरत, मर्द, बच्चे और बूढ़े मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लेने लगे. इस से मैं खुशी से फूला न समाता था. लोग मेरी बातें सुनने के लिए बेचैन रहते थे. कोई मुझ से अपनी दिमागी तकलीफ का हल पूछता, तो कोई दूसरी तकलीफों से नजात पाने के बारे में पूछता. कोई अपने गुजरे समय के बारे में पूछता, तो कोई आने वाली जिंदगी के बारे में पूछता. ज्यादातर लोग तो इस लोक से ज्यादा परलोक के बारे में पूछते. मैं सभी को अपने जवाब से खुश कर के भेजता.

पहली बार मेरा संन्यासियों की ऐश्वर्य भरी जिंदगी से परिचय हुआ था. कल तक जो लड़कियां मुझे देखते ही मुंह बिदका कर भाग जाती थीं, अब वे मेरे पैर छू कर हंसते हुए अपना कोमल हाथ मेरे हाथ में दे कर अपनी तकदीर के बारे में जानना चाहती थीं. मैं उन की तकदीर बतातेबताते अपनी तकदीर पर फख्र कर उठता था. कभीकभी तो मुझे अपनेआप पर गुस्सा भी आता था कि मैं और पहले संन्यासी क्यों नहीं बना. अब तो यह हाल है कि मेरे महल्ले में कोई भी जलसा, मीटिंग या फिर किसी तरह का फंक्शन हो, मेरे बिना अधूरा समझा जाता है. किस लड़के या लड़की का रिजल्ट कैसा होगा? किस के घर लड़का होगा या लड़की होगी? किस की नौकरी लगेगी या नहीं? किस की शादी कब होगी? सभी का हिसाब मेरे पास है. अब तो कोई भी चढ़ावा चढ़ा कर अपनी तकदीर जान सकता था.

इस साल के चुनाव में तो गजब हो गया. मेरे इलाके के सांसद के पास मेरी जानकारी पहुंच गई. सुबह से ही वह मेरे आश्रम में पहुंच गए और सकुचाते हुए बोले, ‘‘देखिए स्वामीजी, अब आप के ऊपर ही मेरा सबकुछ टिका है. अगर आप चाहें, तो मुझे इस बार भी जनता की सेवा करने का मौका दिला सकते हैं. इस के बदले में आप को मुंहमांगा चढ़ावा मिलेगा.’’ मैं उन का दुख देख कर पिघल गया और उन्हें एक यज्ञ करने की नेक सलाह दे डाली. यज्ञ खत्म होतेहोते वह जीत भी गए. अब वह मुझे छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं. अब मैं उन का पारिवारिक सदस्य हूं व राजनीतिक सलाहकार भी.

पिछले दिनों उन के लड़के ने एक राह चलती लड़की के साथ बलात्कार कर दिया. लेकिन मेरी पहुंच की वजह से कोई उन का और उन के लड़के का बाल भी बांका न कर सका. अब धीरेधीरे मेरी पहुंच विदेशों में भी होने लगी है. माफिया वालों से तो मेरा संपर्क पहले से ही था. फिल्म वाले भी अब अपनी फिल्मों के मुहूर्त पर मुझे बुलाने लगे हैं. वहां जाने का मैं महज 5 लाख रुपए लेता हूं.

बहुत सारी हीरोइनें भी मेरी चेलियां बन गई हैं. कौन सी फिल्म पिटेगी या चलेगी, यह मेरे दिए गए ज्योतिष काल की तारीख पर फिल्म को रिलीज करने पर निर्भर करता है. मैं तकरीबन पूरी दुनिया घूम चुका हूं. देशविदेश में मेरे चेले बढ़ते जा रहे हैं. मेरे एयरकंडीशंड आश्रम की लंबाईचौड़ाई तकरीबन 3 एकड़ में है. फिलहाल तो मेरे पास 15 विदेशी गाडि़यां हैं. देश के सभी महानगरों में मेरी कोठियां भी हैं. मेरी जिंदगी बहुत ही अच्छे ढंग से गुजर रही है. अब तो बस एक ही तमन्ना है कि किसी तरह अमेरिका का राष्ट्रपति भी मेरा चेला बन जाए.

मैं अपने एक दोस्त से प्यार करने लगी हूं पर वो इस बारे में कोई बात नहीं करता, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 20 साल है. कुछ महीनों पहले ही मुझे एहसास हुआ कि मैं लगातार अपने एक दोस्त के लिए कुछ फील करने लगी हूं. मैं उस से बात करने के बहाने ढूंढ़ने लगी, उस के मैसेजेस का इंतजार करने लगी और न चाहते हुए भी उसे चाहने लगी. मुझ से अपनी फीलिंग्स ज्यादा दिन छिपाई नहीं गई तो मैं ने उस से सबकुछ कह दिया. उस ने ज्यादा कुछ तो नहीं कहा लेकिन यह कह दिया कि उस के मन में भी मेरे लिए कुछ है. अगले दिन जब हम मिले तो उस ने इस बारे में कोई बात ही नहीं की तो मैं ने भी कुछ नहीं कहा. उस के अगले दिन भी हम ने बात की लेकिन एक दूसरे के प्रति फीलिंग्स की नहीं. इस बात को 2 हफ्तों से ज्यादा हो गए हैं. अब मेरे लिए इंतजार करना मुश्किल हो रहा है. उस के इतना पास हो कर भी मैं इतनी दूर हूं. मैं क्या करूं, समझ नहीं आता?

जवाब-

लड़कों का स्वभाव चाहे कैसा भी हो लेकिन जब वे किसी लड़की को पसंद करते हैं तो उस से अपनी फीलिंग्स का इजहार करने से खुद को नहीं रोक पाते. आप के इजहार करने के इतने दिनों बाद भी अगर वह आप से इस विषय पर बात नहीं कर रहा तो इस का मतलब साफ है कि वह बात करना नहीं चाहता. आप की कुलबुलाहट जायज है लेकिन वह लड़का आप में इंटरैस्टेड नहीं है, यह भी झुठलाया नहीं जा सकता.

आजकल वैसे भी मैसेजेस पर लोग जो कहते हैं, जरूरी नहीं कि वह सच ही हो. हां, आप एक बार हिम्मत कर के उस से इस बारे में बात कर के देख लीजिए. बाद में पछताने से बेहतर है कि एक बार में मसला सुलझा लिया जाए. यदि वह सचमुच इंटरैस्टेड न हो तो आप भी अपनी फीलिंग्स को कंट्रोल करने की कोशिश कीजिए, नहीं तो आप को केवल दुख ही पहुंचेगा.

एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

सर्दियों में हेल्दी रहने के लिए जरूर खाएं ये 5 चीजें

सर्दियों के मौसम में सेहत का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. सर्दी से बचने के  लिये केवल गर्म कपड़े ही काफी नहीं है. बल्कि जरूरी है कि शरीर में अंदरूनी गर्माहट बनी रहे जिस के लिये हमें  अपने खान पान का ध्यान रखना अति आवश्यक है. अगर हमारा आहार पौष्टिक और शरीर को गर्माहट देने वाला होगा तो हमारी सेहत भी ठीक रहेगी व हम अपने शरीर को सर्दी से होने वाले संक्रमण से भी बचा सकते हैं. ज्यादातर लोगों  के साथ यह परेशानी होती है की सर्दी जुखाम, खासी की गिरफ्त में जल्दी ही आ जाते हैं. इसका कारण इम्युनिटी सिस्टम का कमजोर होना भी  होता है सर्दियों में  खास तौर पर बच्चों का ध्यान अधिक रखना होता है. सर्दियों के मौसम में  हमें सामान्य से 500 कैलोरी  अधिक लेनी चाहिये क्योंकि हमारा मेटाबोलिज्म रेट बढ़ जाता है जिस कारण हमें ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है. हर मौसम में मौसमी सब्जी, फल, नट्स अपनी एक अलग अहमियत रखते है. यह हमारे शरीर के तापमान को मौसम के अनुसार बना कर रखते  हैं. सर्दियों में हमारा रक्त संचार धीमी गति से होता है , जिस कारण ब्लड ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है. इससे निबटने के लिये जरूरी है कि खान पान का अधिक ध्यान रखा जाये.

रोजाना खाये गुड़

गुड़ की तासीर गर्म होती है जिससे शरीर का तापमान ठीक रहता है इसमें कैल्शियम व मैग्नीशियम तत्व पाए जाते हैं जो हड्डियों के साथ मांसपेशियों व नसों की थकान को दूर करता है. गुड़ खाने  से पाचन तंत्र तंदरुस्त रहता है डायबिटीज के शिकार लोग चीनी की जगह मीठे के रूप में गुड़ खा सकते हैं क्योंकि यह नैचुरल शुगर है.

बाजरा व मक्का  करें डाइट में शामिल  

बाजरा न केवल ऊष्मा देता है बल्कि यह  एक बहुत पौष्टिक आहार है. यह हमारे रक्त मे कोलेस्ट्रौल के स्तर को संतुलित रखता है यह रोटी खिचड़ी पुलाव के रूप मे खाया जाता है वहीं मक्का डायबेटिज के मरीजों के लिये बहुत लाभदायक होता है इसमें  विटामिन ए, बी व पोषक तत्व मौजूद होते हैं. इसे रोटी , सब्जी ,स्वीट कौर्न व पौप कौर्न के रूप मे खाया जाता है.

मूंगफली खाकर हड्डियां करें मजबूत

मूंगफली मे कैल्शियम और विटामिन डी होता है जो कि हड्डियों को कमजोर नहीं होने देता . इसके सेवन से कोलेस्ट्रौल का स्तर सही रहता है व खून की कमी नहीं होने देता. रोजाना सेवन से पाचन तंत्र ठीक रहता है मूंगफली का तेल जोड़ो की मालिश के लिये बहुत लाभदायक होता है. मूंगफली खाते समय उसका लाल छिलका उतार कर खाएं व  खाने के बाद आधा घंटे  तक पानी न पिये. क्योंकि छिलके समेत खाने से खांसी  की समस्या हो सकती है.

सरसों का साग खाएं

सर्दियां हो साग नहीं खाया तो क्या सर्दियों का  क्या मजा आया. जी हां साग स्वादिष्ट तो होता ही है और पौष्टिक भी सरसोें के साग में कैल्शियम और पोटाशियम मौजूद होता है जो कि हड्डियों को मजबूती देता है.  विटामन के, ओमेगा 3 फैटी एसिड पाए जाते हैं जो गठिए के रोग और शरीर के किसी भी भाग में सूजन से राहत दिलाने का काम करता है.

गाजर खाकर रहे तंदरुस्त

गाज़र  दिल, दिमाग, नस के साथ-साथ हेल्‍थ के लिए भी फायदेमंद है. इसमें विटामिन A, B,C,D,E, G और K पाए जाते हैं जिससे हमारी बौडी को काफी सारे न्‍यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं. इसमें बीटा-कैरोटीन भी पाए जाते हैं क्योंकि ये  लाल, गहरे हरे, पीली  या फिर नारंगी रंग की सब्जी में पाया जाता है. एक गाजर  किसी व्यक्ति के भी शरीर में विटामिन-A की दैनिक खपत का 300 % ज्यादा पूर्ति करती है.गाजर हमें रतौंधी,कैंसर ,जैसी बिमारियों से बचाती है इससे  ब्लड कोलेस्ट्रौल कन्ट्रोल रहता है.

 

कामुकता की ये 5 बातें आप शायद नहीं जानते

अगर आपको लगता है कि आप मानव कामुकता के बारे में सब कुछ जानते हैं तो ये शायद आपकी खुशफहमी है क्योंकि कामुकता की कई ऐसी बातें हैं जिनके बारे में या तो आप जानते नहीं या फिर आपकी जानकारी गलत है.

हम यहां आपको बता रहे हैं कामुकता की 5 बातें जिससे आप शायद अनभिज्ञ रहे हैं.

  1. स्थाई Erection जानलेवा हो सकता है

स्थाई Erection को प्रायप्रिज्म कहते हैं. ये दो तरह का होता है: एक लिंग में बहुत ज्यादा रक्त संचार से होता है और दूसरा ब्लौकेज से होता है जिसकी वजह से लिंग में जमा रक्त वापस नहीं लौट पाता.  प्रायप्रिज्म एक गंभीर मसला है क्योंकि इससे लिंग के टिशू को नुकसान हो सकता है.

प्रायप्रिज़्म बीमारी का नाम सुनकर आपको हंसी आ सकती है लेकिन शायद आपको पता नही कि इससे जान भी जा सकती है. एक 44 साल के व्यक्ति को ये बीमारी थी और उसकी जान बचाने के लिये डॉक्टर को उसका लिंग काटना पड़ा.

  1. इंग्लैंड ने सेक्स वर्कर्स को STD से बचाने के लिये कानून बनाया था

इंग्लैंड में विक्टोरिया शासनकाल को बहुत रुढ़िवादी माना जाता है लेकिन शायद आपको नहीं पता कि 1866 में विक्टोरिया ने सेक्स वर्कर्स और उनके सैनिक ग्राहकों को सेक्स संबंधी बीमारी से बचाने के लिये क़ानून बनाया था. इस कानून के तहत हर सेक्स वर्कर नियमित रुप से जांच की जाती थी और बीमारी होने पर मुफ्त इलाज किया जाता था.

3- साइकिल की सीट से कम हो सकती है पुरुष की कामुक-क्षमता

साइकिल चलाना सेहत और पर्यावरण के लिये अच्छा माना जाता है लेकिन इससे पुरुष की कामुक-क्षमता पर भी बुरा असर पड़ सकता है. 2005 के एक शोध में पाया गया है कि आधुनिक साइकिल की सीट से अंडकोष और लिंग पर बहुत प्रेशर पड़ता है जिससे गुदा द्वार में ट्यूमर हो सकता है और लिंग में रक्त संचार कम हो सकता है.

4- कद्दू की महक बढ़ाती है कामुकता

2014 के एक अध्ययन से पता चला है कि कद्दू की महक से कामुकता बढ़ जाती है. इसकी महक से लिंग में रक्त संचार बढ़ जाता है.

5- बहुत सेक्स का मतलब बहुत ख़ुशी नहीं है

2015 में टोरंटो यूनिवर्सिटी ने एक रिसर्च में पाया कि ज़रुरी नहीं है कि अगर आप बहुत सेक्स करते हों तो आपका जीवन भी खुशहाल हो. हफ़्ते में एक बार सेक्स करने से ही ज़्यादा ख़ुशी मिलती है जबकि एक से ज़्यादा बार सेक्स करने से खुशी में कोई इज़ाफ़ा नहीं होता.

सोचा न था: अमन के साथ क्या हुआ था

सोचा न था इंजीनियरिंग करने के बावजूद अमन इतना ज्यादा लापरवाह था कि लगीलगाई नौकरी छोड़ आता था. इस बात से उस के पिता रामचरण इस कदर परेशान हुए कि उन्हें लकवा मार गया. अमन को मजबूरन ड्राइवर बनना पड़ा. तभी उस की मुलाकात एक रूसी लड़की सोफिया से हुई, जो उस के करीब आती चली गई.

दफ्तर से घर आते ही रामचरण चारपाई पर लेट गया और अपनी पत्नी शांति को आवाज लगाते हुए बोला, ‘‘एक गिलास पानी पिला दे. बड़ी थकान हो रही है.’’

‘‘यह लो…’’ पानी का गिलास रामचरण के सामने बढ़ाते हुए शांति बोली, ‘‘क्या हुआ? आज घर जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘हां, वह जरा तबीयत ठीक नहीं लग रही थी, तो…’’ बोलतेबोलते रामचरण जोर से खांसने लगा, तो शांति ने पानी का गिलास उस के मुंह में ही लगा दिया.

‘‘आह…’’ कर के रामचरण ने फिर चारपाई पर लेटते हुए पूछा, ‘‘अमन कहां है? अभी तक घर नहीं आया क्या?’’

‘‘घर पर ही है. सोया हुआ है,’’ पानी का जूठा गिलास पास पड़े स्टूल पर रखते हुए बड़े उदास मन से शांति बोली, ‘‘पता नहीं, क्या लिखा है इस लड़के के भविष्य में? जहां पर भी नौकरी करता है, 2-4 महीने से ज्यादा टिक ही नहीं पाता.’’

‘‘तो क्या यह नौकरी भी छूट गई उस की?’’ चिंता के मारे रामचरण को फिर जोर से खांसी उठ गई, तो शांति पानी लेने भागी.

‘‘नहीं चाहिए,’’ अपने हाथ के इशारे से रामचरण ने पानी लेने से मना करते हुए कहा, ‘‘थोड़ा जहर दे दे, ताकि चैन से मर पाऊं मैं. अरे, जिंदगी तो हमारी खराब हो गई है, जो हम ने ऐसे कपूत को जन्म दिया. इस से तो अच्छा होता कि वह पैदा होते ही मर…’’ रामचरण बोलने ही जा रहा था कि शांति ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया कि वह ऐसी बातें अपने मुंह से न निकाले.

‘‘अरे, तो और क्या कहूं मैं… बोल न? 30 की उम्र पार कर चुका है, पर अब तक इस की शादी नहीं हुई है. कोई ढंग की नौकरी नहीं करता. ऐसे लड़के को कौन अपनी बेटी देगा? इस लड़के का खुद का ही ठौरठिकाना नहीं है?’’

‘‘अच्छा, तुम ज्यादा परेशान मत हो. करेगा कुछ न कुछ,’’ शांति ने उसे ढाढ़स बंधाया. पर फिक्र तो अब उसे भी होने लगी थी कि अमन की उम्र के लड़कों की शादी हो चुकी है, वे अपने घरपरिवार संभालने लगे हैं और यह लड़का अब भी ऐसे ही निठल्ला पड़ा है. कहीं नौकरी लगती भी है, तो उसे भी लात मार आता है. आखिर यह चाहता क्या है?

‘‘कुछ बोलो, समझओ, तो अपने मांबाप पर ही चढ़ बैठता है. पूरे घर में क्लेश मचा देता है और खुद बाहर निकल जाता है. इस नवाबजादे की ऐश तो देखो, बढि़याबढि़या स्वादिष्ठ खाना और फैंसी कपड़े ही चाहिए, मगर करना कुछ नहीं है.’’

रोज की तरह आज भी अमन रात के तकरीबन 12 बजे घर आया और खाना खा कर मोबाइल ले कर बैठ गया, तो रामचरण गुस्से से तमतमा उठा, क्योंकि उसे पता था कि वह कहीं किसी अड्डे पर बैठ कर अपने आवारा दोस्तों के साथ ताश और जुआ खेल रहा होगा. जब भूख और नींद ने आ घेरा तो इसे घर की याद आ गई होगी और मुंह उठा कर यहां चला आया. लेकिन यह कोई धर्मशाला या होटल नहीं है कि जिसे जब मन करे मुंह उठा कर चला आए.

रामचरण गुस्से में बकबक किए जा रहा था और अमन उस की बातों को अनसुना कर मोबाइल पर लगा पड़ा था.

बेटे की इस हरकत पर रामचरण गुस्से से उबल पड़ा और अमन के हाथ से फोन छीनते हुए गरजते हुए बोला, ‘‘सम?ाता क्या है तू अपनेआप को? कहीं का नवाब है क्या या इस घर में कोई खजाना गड़ा है, जो तू नहीं भी कमाएगा तो जिंदगी आराम से चल जाएगी? आखिर कब तक मैं तुझे कमाकमा कर खिलाता रहूंगा?’’

रामचरण की बातों को समझने के बजाय अमन उस पर ही चिल्लाते हुए कहने लगा कि उन्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह अपना देख लेगा.

‘‘हां, तो निकल जा इस घर से,’’ रामचरण भी गरजा, ‘‘इस घर में तुझ जैसे निठल्ले के लिए अब कोई जगह नहीं है. बाहर जा कर खाक छानेगा न, तब अक्ल ठिकाने आएगी,’’ बोलतेबोलते रामचरण जोर से हांफने लगा.

शांति जब तक रामचरण के लिए पानी ले कर आती, तब तक वह वहीं जमीन पर नीचे गिर पड़ा. पति को जमीन पर छटपटाते देख कर शांति बिलख कर रोने लगी.

पिता को इस हालत में देख अमन भी परेशान हो उठा कि अचानक से इन्हें क्या हो गया. एंबुलैंस को फोन लगाया, तो फोन नहीं उठाया गया.

तब अमन ने अपने एक दोस्त दीपक को फोन किया और वह जल्द ही अपनी गाड़ी ले कर पहुंच गया. आननफानन में ही रामचरण को अस्पताल में भरती कराया गया, तब जा कर उस की जान बच पाई. पर उसे लकवा मार गया और उस ने हमेशा के लिए खटिया पकड़ ली.

घर में एक रामचरण ही कमाने वाला था, लेकिन अब वही बिछावन पर पड़ गया, तो घर कैसे चलेगा? घर में शादी लायक जवान बेटी है, सब कैसे होगा? इस सोच में शांति घुली जा

रही थी. इधर पिता की बिगड़ती हालत देख कर अब अमन को लगा कि बाहर जा कर कुछ कमानाधमाना पड़ेगा, इसलिए वह अपनी इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर फिर नौकरी की तलाश में निकल पड़ा. मगर लाख हाथपैर मारने के बाद भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिली.

मिलती भी कैसे, जब अमन ने खुद लगीलगाई नौकरी को लात मार दी थी, लेकिन अब उसे अपनी गलती का  एहसास होने लगा था. भले ही नौकरी उस की पसंद की नहीं थी, मगर हर महीने तनख्वाह तो मिलती थी, जिस से वह दोस्तों के साथ मजे करता था, अपनी पसंद के कपड़े पहनता था. मगर अब तो एकएक पाई के लिए वह तरस रहा था.

शांति भी अमन को कहां से पैसे देती, जब उस का खुद ही घर चलाना मुश्किल हो रहा था. पास रखे पैसों से किसी तरह घर चल रहा था और रामचरण की दवादारू हो पा रही थी, पर यह पैसा भी कब तक चलेगा, कहा नहीं जा सकता.

अमन के पास अब एक ही रास्ता बचा था कि वह अपने दोस्त दीपक से कुछ मदद मांगे. जब उस ने अपनी परेशानी दीपक को बताई, तो दीपक कहने लगा कि वह उसे ड्राइवर की नौकरी पर लगा सकता है.

‘‘ड्राइवर की नौकरी… पर यार, मैं तो इंजीनियर…’’ अमन को लगा कि क्या इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर के वह ड्राइवर की नौकरी करेगा?

‘‘हां, तो क्या हो गया. काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, काम काम होता है और अभी तो तुझे काम की बहुत जरूरत है, क्योंकि तेरे पिता बीमार हैं. कोई कमाने वाला नहीं है तेरे घर में. तो सोच ले कि क्या करना है तुझे.. और वैसे भी, अब तेरी उम्र नहीं रही कि कोई तुझे नौकरी दे, तो क्या इंजीनियरिंग की डिगरी  ले कर चाटेगा?’’ दीपक ने अमन को साफसाफ समझ दिया.

दीपक कोई बहुत पढ़ालिखा नहीं था. 12वीं पास था, वह लेकिन समझदार था. वह जानता था कि जीने के लिए पैसा कमाना जरूरी है.

दीपक का यहीं दिल्ली में अपना गैराज था, जहां नईपुरानी गाडि़यों की मरम्मत होती थी. उस की कई लोगों से अच्छी जानपहचान बन चुकी थी. अब मरता क्या न करता. हार कर अमन ने ड्राइवर की नौकरी पकड़ ली. मगर वहां भी वह गाड़ी के मालिक की बेटी पर ही डोरे डालने लगा, तो मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया.

इसी तरह 1-2 जगहों पर उस ने ऐसी ही हरकत की और अपनी नौकरी से हाथ धो बैठा.

इस बार दीपक ने अमन को एक विधायक के यहां ड्राइवर की नौकरी पर लगवा दिया, जो उन की 23 साल की बेटी आयशा को कालेज से ला और पहुंचा सके.

लेकिन अमन ने अपने मन में कुछ और ही सोच रखा था. वह चाहता था कि विधायक साहब की बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उस से शादी कर के पूरी जिंदगी उन के पैसों पर ऐश करेगा. फिर उसे कहीं नौकरी करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

अमन आयशा को रिझाने के लिए रोज तरहतरह की हरकतें करता. समय से पहले उसे कालेज लेने पहुंच जाता. रोज धुले और चमकदार कपड़े पहनता. अपने हाथ में वह सलमान खान की तरह ब्रेसलेट पहनता, परफ्यूम लगाता, आंखों पर धूप के काले चश्मे चढ़ा लेता और फिर गाड़ी चलाते हुए रोमांटिक गाने लगा कर पूरे रास्ते आयशा को घूरता रहता था.

मगर आयशा उस पर ध्यान ही नहीं देती थी. वह अपने काम से काम रखती थी. वह बहुत ही सम?ादार लड़की थी, इसलिए अमन की बेवकूफियों को नजरअंदाज कर दिया करती थी और अमन को लगता था कि वह भी उसे पसंद करती है, इसलिए कुछ बोलती नहीं है.

लेकिन जब एक दिन अमन को अचानक से यह कह कर नौकरी से निकाल दिया गया कि अब उन्हें उस की जरूरत नहीं है, तो वह ठगा सा रह गया. लड़की तो गई ही हाथ से, नौकरी भी चली गई उस की. मुंगेरीलाल के हसीन सपने, सपने ही रह गए और वह फिर कोई दूसरी नौकरी की तलाश में जुट गया, क्योंकि घर के खर्च, रामचरण की दवाओं का खर्चा, सब तो अमन के जिम्मे ही था.

अमन ने फिर दीपक के सामने अपनी परेशानी रखी, तो इस बार दीपक ने उसे दूरिज्म टैक्सी में लगवा दिया.

एक दिन अमन की टैक्सी में एक रशियन लड़की सोफिया आ कर बैठी और बोली कि वह यहां इंडिया घूमने आई है, तो क्या वह उसे घुमाएगा? अमन ने हां बोल दी.

सोफिया अमन के साथ दिल्ली में कई जगहों पर घंटों घूमती रही और फिर शाम को एक होटल

के बाहर रुक कर अमन को भाड़े के पैसे देते हुए मुसकरा कर बोली कि वह कल भी उसे यहां से पिकअप कर ले. अमन को तो ग्राहक से मतलब था. वह कौन है, कहां से आई है, उस से उसे क्या लेनादेना, इसलिए दूसरे दिन भी वह अपनी टैक्सी उसी होटल के सामने ले आया, जहां सोफिया पहले से ही उस का इंतजार कर रही थी.

इसी तरह यह रोज का सिलसिला बन गया. सोफिया उसी होटल के सामने उस का इंतजार करती और अमन तय समय पर उसे लेने वहां पहुंच जाया करता था.

एक दिन सोफिया ने अमन को अपने परिवार के बारे में सबकुछ बताया कि उस के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक छोटा भाई है, जो यूरोप में रहते हैं. वहां उस के पापा डाक्टर हैं और उस की मम्मी एक एनजीओ चलाती हैं. उस ने यह भी बताया कि उसे बचपन से ही इंडिया और यहां के लोग बहुत पसंद हैं. वह अपने मम्मीपापा के साथ अकसर इंडिया आती रहती थी.

‘‘अमन, अब तुम बताओ, तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं? और तुम्हारे फादर, मतलब तुम्हारे ‘पिटाजी’ क्या काम करते हैं? तुम लोग अपने फादर को ‘पिटाजी’ ही बुलाते हो न?’’

सोफिया की बात पर अमन को जोर की हंसी आ गई.

‘‘अरे, तुम हंस क्यों रहे हो? मैं ने कुछ ‘गलट’ कहा क्या?’’

‘नहीं, कुछ गलत नहीं कहा आप ने. लेकिन ‘पिटाजी’ कहा न, उस पर मुझे हंसी आ गई,’’ बोल कर अमन फिर हंसने लगा, तो सोफिया भी हंस पड़ी और बोली, ‘‘तुम मुझे हिंदी बोलना सिखा दोगे क्या?’’

अमन ने हां कहते हुए जैसे ही गाड़ी घुमाई, तो सोफिया उस के ऊपर गिरतेगिरते बची.

‘‘ओह, आप को लगी तो नहीं?’’ अमन ने पूछा.

‘‘लगी है, यहां पर,’’ अपने दिल पर हाथ रख कर सोफिया मुसकरा पड़ी, तो अमन भी मुसकरा उठा.

अब सोफिया अकसर फोन पर अमन से प्यार भरी बातें करती और कहती कि उस के सपने में अकसर वही दिखता है, तो इस का यह मतलब हुआ कि वह अमन से प्यार करने लगी है.

इस बात पर अमन कुछ कहता तो नहीं था, पर उसे भी सोफिया अच्छी लगने लगी थी, इसलिए वह अब बिना बुलाए भी सोफिया को लेने उस के होटल पहुंच जाता था.

अमन जबतब अपने घर से अपनी मां के हाथ का बना खाना सोफिया के लिए ले आता था, जिसे खा कर सोफिया काफी खुश होती थी. सोफिया भी कई बार उसे टीशर्ट, जूते वगैरह गिफ्ट कर चुकी थी.

बेटे को अच्छे से कमातेधमाते देख कर रामचरण खुश तो होता, पर सोचता कि काश, वह कोई अच्छी नौकरी कर रहा होता, क्योंकि उस ने बड़े अरमानों से बेटे को इंजीनियरिंग की तालीम दिलवाई थी और सोचा था कि अमन भी एक दिन उस का नाम रोशन करेगा. खैर, अब जो है उसी में खुश रहना पड़ेगा. यह सोच कर रामचरण बिस्तर पर पड़ापड़ा राहत की सांस लेता था.

रामचरण एक सरकारी बैंक में टैंपरेरी मैसेंजर का काम करता था, जहां उसे बंधीबंधाई और वह भी बहुत कम तनख्वाह मिलती थी, जिस से ही पूरे घर का खर्चा चलता था. उन्होंने सोचा था कि बेटा अच्छा कमाने लगेगा, तो उस के भी दिन फिरेंगे. मगर यहां तो बेचारे की उसी नौकरी पर आफत आ पड़ी थी. पता नहीं, अब दोबारा से नौकरी कर भी पाएगा या नहीं.

बैंक मैनेजर साहब भले इनसान थे, जिन्होंने रामचरण की काफी मदद की थी. बैंक के बाकी सब स्टाफ ने भी चंदा कर के उस की पैसों से मदद की थी. तभी तो उतने दिन उस का घर और डाक्टर और दवा का खर्चा चल पाया, वरना तो क्या होता नहीं पता.

अमन और सोफिया के बीच अब केवल ड्राइवर और ग्राहक तक ही रिश्ता नहीं रह गया था, बल्कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ चुके थे.

इसी तरह 6 महीने बीत गए. अब अमन को सोफिया पर और सोफिया को अमन पर भरोसा होने लगा था. वे एकदूसरे से बेझिझक अपनी बात शेयर करते और साथ में समय गुजारते थे.

एक दिन सोफिया ने अमन को होटल बुला कर उसे एक बैग देते हुए कहा कि यह बैग उसे इस पते पर पहुंचाना है.

अमन ने उस से पूछा भी नहीं कि उस बैग में है क्या. उस ने उस बैग को उसी पते पर पहुंचा दिया और यह सिलसिला चल पड़ा.

अब अकसर सोफिया अमन को दूसरेतीसरे पते पर बैग पहुंचाने के लिए कहती और इस के लिए वह उसे डबलट्रिपल पैसे भी देती थी.

एक दिन फिर सोफिया ने अमन को अर्जेंट बुलाया और एक काला बैग पकड़ाते हुए कहा कि यह बैग उसे अभी इसी समय इस पते पर पहुंचाना है.

‘‘मगर, इस में है क्या और इतना अर्जेंट क्यों पहुंचाना है? कल नहीं पहुंचा सकते क्या? आज मुझे अपने पापा को डाक्टर के पास ले कर जाना है.’’

सोफिया बोली, ‘‘नहीं, यह बैग अभी इसी समय इस पते पर पहुंचाना होगा और इस के लिए मैं तुम्हें 5,000 रुपए दूंगी.’’

‘‘पैसे की बात नहीं है. मुझे आज पापा को डाक्टर के पास लेना जाना बहुत जरूरी है, इसलिए कह रहा हूं,’’ अमन ने अपनी परेशानी फिर दोहराई, मगर इस बार सोफिया झल्लाते हुए बोली, ‘‘नहीं. अर्जेंट है तो अर्जेंट है.’’

आज सोफिया के चेहरे पर वह मासूमियत नहीं दिख रही थी, बल्कि घबराहट दिख रही थी, एक डर दिख रहा था.

अमन को अब सोफिया पर कुछ शक होने लगा कि ऐसा क्या है इस बैग में, जो उसे अभी ही पहुंचाना है? आज तक वह बैग लेने वाले आदमी का चेहरा नहीं देख पाया था, क्योंकि उस के चेहरे पर मास्क लगा होता था.

खैर, अमन ने अपना माथा झटका और बैग ले कर होटल से निकल गया, क्योंकि उसे भी पैसों की जरूरत थी और फिर सोफिया को वह नाराज नहीं करना चाहता था.

अभी अमन की टैक्सी थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि तेज आवाज में पुलिस की गाड़ी सायरन बजाते हुए उसे रुकने को बोली.

‘‘जी… इंस्पैक्टर साहब…’’ गाड़ी रोक कर अमन ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नीचे उतरो और गाड़ी की डिक्की खोलो,’’ एक पुलिस वाले ने डंडा घुमाते हुए कहा.

‘‘पर इंस्पैक्टर साहब, गाड़ी में कुछ भी नहीं है,’’ अमन ने सफाई दी.

‘‘अभी पता चल जाएगा. इस बैग में क्या है? खोलो इसे…’’ पुलिस इंस्पैक्टर ने अपने सिपाही को और्डर दिया, तो उस ने बैग खोला, जिसे देख कर अमन के पसीने छूट गए, क्योंकि उस बैग में कोई मामूली सामान या कपड़े वगैरह नहीं थे, बल्कि ड्रग्स थी.

पुलिस को पक्की जानकारी मिली थी कि इसी टैक्सी से ड्रग्स की तस्करी हो रही है. घबराहट में अमन ने सोफिया को फोन लगाया, मगर उस का फोन स्विच औफ आ रहा था. दोबारा उसे फोन मिलाने ही लगा कि पुलिस ने उस के हाथ से फोन छीन लिया और पकड़ कर उसे पुलिस की गाड़ी में धकेल दिया.

स्पैशल टास्क फोर्स ने अमन से पूछताछ शुरू कर दी कि उस के इस धंधे में और कौनकौन लोग शामिल हैं, मगर हर बार वह एक ही बात दोहराता कि उसे कुछ नहीं पता.

अमन के फोन से सोफिया का नंबर मिला और जब उन्होंने पूछा कि यह लड़की कौन है और उस से उस का क्या रिश्ता है, तो अमन कहने लगा कि सोफिया ही उसे बैग अलगअलग पतों पर पहुंचाने को बोलती थी और वह पहुंचा दिया करता था. इस से ज्यादा उसे कुछ नहीं पता है.

स्पैशल टास्क फोर्स को यह तो समझ में आ गया कि इस का मास्टरमाइंड कोई और ही है और अमन केवल एक मुहरा है.

अमन से तो सोफिया यही बोल कर बैग पहुंचाने को कहती थी कि इस बैग में खानेपीने का सामान है. लेकिन उस में ड्रग्स हो सकती है, यह तो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था. काश, वह एक बार बैग खोल कर देख लेता, तो आज इतनी बड़ी मुसीबत में न फंसता.

ड्रग्स सप्लाई कोई मामूली बात नहीं, बल्कि यह एक अपराध है और ऐसे केस में लोगों को 10 से

20 साल तक की सजा हो सकती है. लेकिन, उस ने सपने में भी सोचा न था कि एक दिन जिंदगी उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा देगी. वह तो पैसे कमा कर अपने मांबाप की मदद करना चाहता था. सोच रहा था कि पैसे जमा कर के वह अपनी बहन की शादी करेगा, फिर अपना घर बसाएगा. मगर यहां तो सब गलत हो गया.

उधर अमन के मांबाप को जब पता चला कि उन के बेटे को ड्रग्स सप्लाई के केस में गिरफ्तार कर लिया गया है, तो अमन की मां तो खड़ेखड़े ही बेहोश हो कर गिर पड़ी और रामचरण के प्राण पखेरू उड़ गए. क्या मिला उन्हें जिंदगी में… न अच्छे बेटे का सुख और न समाज में इज्जत.

मगर दीपक जानता था कि अमन लाख बुरा सही, मगर वह इतना घटिया काम कभी नहीं कर सकता. वह उसे बचपन से जानता है. उस ने गाड़ी के मालिक को भी यकीन दिलाया कि अमन ऐसा कर ही नहीं सकता,, बल्कि उसे फंसाया है किसी ने.

पुलिस की मार से तो बड़े से बड़ा अपराधी अपना गुनाह कबूल कर लेता है, मगर इतनी मार खाने के बाद भी अमन एक ही बात दोहरा रहा था कि उसे कुछ नहीं पता. पुलिस की शक की सूई अब सोफिया पर जा अटकी, तो तुरंत उस ने होटल का दरवाजा खटखटाया. लेकिन पता चला कि सोफिया अभी कुछ देर पहले ही चैकआउट कर के जा चुकी है.

अभी सोफिया हवाईजहाज पर बैठने ही वाली थी कि स्पैशल टास्क फोर्स ने उसे धर दबोचा. अब सोफिया के पास कोई चारा नहीं था सबकुछ बताने के सिवा. उस ने जो बताया, वह सुन कर अमन के पैरों के नीचे से भी जमीन खिसक गई, क्योंकि सोफिया ने उसे अपने और अपने परिवार के बारे में सब ?ाठ बताया था. उस के मांबाप कई साल पहले एक हादसे में गुजर चुके थे.

सोफिया के पास रहनेखाने को कुछ नहीं बचा, तो किसी तरह वह इंडिया आ गई और यहां एक डांस बार में काम कर के अपना गुजारा चलाने लगी. मगर असली धंधा उस का ड्रग्स सप्लाई करना था.

सोफिया दिल्ली के अलगअलग हुक्का बार और क्लब में ड्रग्स सप्लाई करती थी और उस के लिए वह अमन जैसे मजबूर, सीधेसाधे लड़के को फंसा कर उस के साथ प्यार का नाटक करती थी, ताकि उस का काम आसानी से होता रहे. लेकिन इस बार वह पकड़ी गई.

पता चला कि सोफिया के साथ और 4 लोग ड्रग्स तस्करी के धंधे से जुड़े हुए थे और स्पैशल टास्क फोर्स अब उन की तलाश में जुटी है. पुलिस ने सोफिया के पास से साढ़े 6 लाख रुपए नकद भी बरामद किए.

अमन को पुलिस ने चेतावनी दे कर छोड़ दिया, क्योंकि उस की कोई गलती नहीं थी. उसे फंसाया गया था. मगर अपनी जिंदगी में उस ने जोकुछ भी खोया, क्या अब वह उसे वापस कभी मिल सकता है? शायद नहीं, क्योंकि चिडि़या खेत जो चुग चुकी थी.

एक भाई ऐसा भी

नौ शाद अपने 6 भाइयों में दूसरे नंबर पर था, जो शारीरिक रूप से तो कमजोर था ही, मानसिक रूप से भी अपने बाकी भाइयों के मुकाबले काफी कमजोर था. बचपन से ले कर बुढ़ापे तक उस ने अपना सबकुछ अपने भाइयों और उन के बच्चों पर कुरबान कर दिया, पर जब आज उस की बीवी नजमा की मौत हो गई, तो उस के भाइयों ने उसे एक वक्त का खाना भी देना गवारा न समझ. उसे ऐसे झिड़क कर भगा दिया मानो वह कोई भिखारी हो. पर नौशाद का दिल इतना बड़ा था कि उसे उन की इन बातों का बुरा नहीं लगा और वह उन के छोटेछोटे मासूम बच्चों को अपनी औलाद की तरह घुमाताफिराता, खिलाता और अपनी जमापूंजी उन पर लुटाता रहा.

नौशाद अपने भाइयों के साथ बिजनौर जिले के नगीना शहर में रहता था. घर की माली हालत काफी कमजोर थी. नौशाद की अम्मी की मौत के बाद उस के अब्बा काफी टूट गए थे. अब उन का कामकाज में मन नहीं लगता था.

नौशाद की उम्र उस समय महज 14 साल थी, जब उस ने मजदूरी कर के अपने घर का सारा खर्चा तो उठाया ही, साथ ही अपने बड़े भाई और छोटे भाइयों की पढ़ाई का भी ध्यान रखा.

वक्त गुजरता गया. नौशाद अपने भाइयों को पढ़ाता रहा. मेहनतमजदूरी कर के घर में खानेपीने का सारा इंतजाम नौशाद की कमाई से चलता रहा.

नौशाद अपने भाइयों पर जान छिड़कता था और उन सब को कामयाब इनसान बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत करता था. उस ने जैसेतैसे खुद भी इंटर पास कर लिया था.

नौशाद के बड़े भाई आरिफ का बीएएमएस में एडमिशन हो गया और वे पढ़ने के लिए जयपुर चले गए. उस से छोटा भाई जुबैर डीएमएलटी करने दिल्ली चला गया. उस से छोटा भाई शान का मन पढ़ाई में न लगा तो वह रोजगार की तलाश में मुंबई निकल गया. बाकी 2 भाई अभी नगीना में रह कर पढ़ाई कर रहे थे.

बड़े भाई आरिफ की अभी पढ़ाई पूरी भी नहीं हुई थी कि उन की शादी हो गई. कमाई का कोई जरीया नहीं था, जिस से घर में काफी दिक्कतें आ रही थीं, पर नौशाद जीतोड़ मेहनत कर के घर के खर्चे पूरे कर रहा था.

वक्त के साथसाथ बड़े भाई आरिफ डाक्टर बन गए और नौशाद से छोटा भाई जुबैर अपना कोर्स पूरा कर के मुरादाबाद में नौकरी करने लगा.

2 भाइयों के कामयाब होने के बाद नौशाद ने चैन की सांस ली और अब नौशाद ने अपना भी निकाह कर लिया. बचपन से जीतोड़ मेहनत कर के आधी खुराक में जिंदगी गुजारतेगुजारते वह काफी कमजोर हो गया था. वक्त के साथसाथ सब भाई कामयाब हो गए और सब की शादी भी हो गई. वे सब अच्छी तरह जिंदगी गुजारने लगे.

सभी भाई शादी के बाद अपनीअपनी बीवियों के साथ जिंदगी गुजार रहे थे. किसी ने भी कभी यह नहीं सोचा कि जिस भाई ने उन के लिए इतना बलिदान किया है, उस के क्या हाल हैं.

घर के ज्यादातर हिस्सों पर नौशाद के बाकी भाइयों का कब्जा था, जबकि नौशाद के हिस्से में नाममात्र के लिए एक कमरा ही था और उस में भी और भाइयों के दहेज का सामान रखा रहता या मोटरसाइकिल खड़ी रहती, जिस से नौशाद और उस की बीवी को काफी दिक्कत होती, पर वे कभी कुछ न बोलते थे.

नौशाद अब काफी कमजोर हो चुका था. वक्त की मार ने उसे वक्त से पहले ही बूढ़ा बना दिया था. जैसेतैसे वह अपना और अपनी बीवी का खर्चा उठा रहा था. कभीकभी उसे और उस की बीवी को भूखे ही रहना पड़ता था, क्योंकि कमजोरी के चलते वह अब काम भी नहीं कर पाता था.

इस गरीबी के चलते नौशाद की बीवी भी बीमार रहने लगी और जल्द ही उस ने चारपाई पकड़ ली. अब नौशाद का ज्यादा वक्त अपनी बीवी की देखभाल और घर के कामकाज में बीतने लगा.

नौशाद के अब्बा का पुश्तैनी बाग था, जो अब बेच दिया गया, पर उस का सारा पैसा नौशाद के भाइयों के हाथों में ही सिमट कर रह गया और उन्होंने उस के हिस्से के पैसे भी अपने घर और दुकान बनाने में लगा लिए.

नौशाद के हिस्से में तकरीबन 7 लाख रुपए आए, पर उसे वह पैसा मिलना तो दूर देखना भी गवारा न हुआ. जब भी नौशाद अपने भाइयों से पैसे मांगता, तो वे कोई न कोई बहाना बना कर अपना पीछा छुड़ा लेते और कहते कि ‘तुम्हें क्या पैसे की जरूरत? न तुम्हारे कोई औलाद है, न तुम्हारा कोई खर्चा है.’

भाइयों का यह जवाब सुन कर नौशाद मन मार कर रह जाता. फिर नौशाद ने जब अपने पैसे पाने के लिए अपने अब्बा से अपने भाइयों पर जोर देने को कहा, तो उन्होंने उन से बात की और नौशाद के पैसे देने के लिए कहा.

वक्त बदल चुका था. नौशाद के अब्बा अब बूढ़े हो चुके थे और औलाद काबिल बन चुकी थी. उन्होंने अपने अब्बा की कोई बात नहीं सुनी और कह दिया कि ‘अभी हमारे पास पैसा नहीं है, जब होगा, तब दे देंगे’.

नौशाद की माली हालत काफी खराब हो गई थी. उस के अब्बा ने अपनी औलादों से नौशाद का खयाल रखने और उस का पैसा देने के लिए कहा, तो वे बड़ी मुश्किल से इस बात पर राजी हुए कि ‘हम उसे इकट्ठा पैसा तो नहीं देंगे, हां 50 रुपए रोजाना दे दिया करेंगे’.

अब नौशाद को खर्चे के लिए 50 रुपए मिलने लगे. उस की बीवी की तबीयत खराब रहती थी. उन पैसों से वह घर चलाए या अपनी बीवी का इलाज कराए, उस की समझ में नहीं आ रहा था. एक भाई 50 रुपए दे रहा था, जबकि बाकी भाई बोले कि ‘जब हमारे पास होंगे दे देंगे. अभी हमारे पास पैसा नहीं है’. नौशाद घंटों उन के घर पैसे के लिए एक भिखारी की तरह पड़ा रहता.

आज अपने हिस्से के पैसे लेने के लिए नौशाद भिखारी की तरह हाथ फैलाता, पर उसे कभी पैसे मिलते, तो कभी ?िड़क कर भगा दिया जाता.

कुछ ही महीनों में उस की बीवी की तबीयत ज्यादा खराब होने की वजह से वह इस दुनिया से चल बसी.

अब नौशाद तनहा हो कर रह गया. अभी तक भाईभाभियों ने उस का साथ छोड़ा था, पर अब उस की बीवी भी उसे इस बेरहम दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गई थी.

नौशाद खर्चे से पहले ही परेशान था और अब तो उस के भाइयों ने उसे पैसा देना बिलकुल बंद कर दिया था. वह उन से पैसे मांगता, तो वे बोलते कि ‘तुझे क्या पैसों की जरूरत? तेरे कौन से बीवीबच्चे हैं. हां, अगर तुझे खाना खाना है, तो यहां आ कर खा लेना और हमारे बच्चों का खयाल रखना.’

नौशाद अब दिनभर अपने भाइयों के बच्चों की देखभाल करता, उन्हें हर वक्त गोद मे टांगे फिरता और उन का खयाल अपने बच्चों की तरह रखता, तब जा कर उसे रूखासूखा कुछ खाने को मिलता. अगर कभी तबीयत खराब होने की वजह से वह बच्चों को नहीं ले जा पाता, तो उसे बुराभला कह कर भगा दिया जाता और उसे उस दिन भूखे ही रहना पड़ता.

नौशाद के भाई जुबैर की बीवी एक नेक औरत थी. वह जब भी गांव आती, नौशाद का खयाल रखती, उसे अच्छा खाना खिलाती और इज्जत भी करती. वैसे, जुबैर ने नौशाद का कोई हक नहीं मारा. बस वह गांव से दूर अपने परिवार के साथ रहता था. गांव आनाजाना कम था, जिस वजह से वह नौशाद की कोई खास मदद नहीं कर पाता था.

जब भी जुबैर की बीवी गांव आती, नौशाद के लिए कपड़े लाती, उसे अच्छे से अच्छा खाना खिलाती और कुछ पैसे भी दे कर जाती थी.

नौशाद का छोटा भाई शान तो मुंबई में ही शिफ्ट हो गया था. वह कभी गांव नहीं आता था. उस ने अपने भाई नौशाद का कोई पैसा नहीं खाया, पर उस की इतनी गलती तो थी ही कि कभी गांव आ कर अपने भाई के हालात नहीं देखे और न ही उस की कोई मदद की.

नौशाद ने परेशान हो कर एक दुकान पर नौकरी की. वहां से उसे इतना पैसा मिल जाता, जिस से उसे दो वक्त की रोटी मिल जाती थी.

नौशाद बड़ा ही कमअक्ल इनसान था. उसे जो पैसे मिलते, वह उन्हें अपने भाइयों के छोटेछोटे बच्चों को खिलाने मे खर्च कर देता और खुद भूखा रहता.

नौशाद की भाभी हमेशा उसे बेइज्जत करती रहती और दानेदाने को मुहताज बनने पर मजबूर करती रहती. नौशाद का दिल साफ था. वह कभी अपने ऊपर हुए ज़ुल्म को दिल में नहीं रखता था और तनमन से अपने परिवार की सेवा करता था. साथ ही, सब के बच्चों को एक आया की तरह हर वक्त देखता था.

नौशाद के भाई और भाभी उसे बेवकूफ समझ कर उस का मजाक बनाते और उस की विरासत में मिली दौलत

को लूट कर अपनेआप को अक्लमंद समझते. वे लोग क्या जानें भाई के रिश्ते को. उन्हें तो ढंग से भाई शब्द का मतलब भी नहीं मालूम.

ऐसा है एक भाई जो अपनी जानमाल से अपने परिवार वालों की खिदमत कर रहा है और उन के दुख को अपना दुख समझ कर अपनी जिंदगी उन पर कुरबान कर रहा है.

ऐसे भाई लाखों में एक होते हैं, जो परिवार के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर देते हैं और ऐसे भाई भी लाखों हैं, जो अपने भाई का खून चूसने में पीछे नहीं हटते.

Winter Romance Special: सर्दसर्द सर्दी के गरमागरम गाने

फिल्म वालों की हमेशा से यह कोशिश रही है कि मौसम जो भी हो, उस पर कुछ इस तरह गाना फिल्माया जाए कि दर्शक उस से खुद को जोड़ कर देखें, तभी फिल्म हिट हो पाती है. हालांकि सर्दी पर फिल्माए गए गानों की तादाद भी अच्छीखासी है, लेकिन ज्यादातर में सर्दी के सीन एकाध मिनट के ही हैं, जो ठूंसे गए ज्यादा लगते हैं या फिर हिल स्टेशनों पर फिल्माए गए हैं. कुछ ही गानों में जाड़ों और उस के रोमांस को दिखाया गया है. उन में से कुछ खास हैं :

सरकाई लो खटिया

सर्दी पर फिल्माए गरमागरम गानों में सब से पहला नंबर फिल्म ‘राजा बाबू’ के हिट गाने ‘सरकाई लो खटिया जाड़ा लगे, जाड़े में बलमा प्यारा लगे…’ का आता है. फिल्म ‘राजा बाबू’ जनवरी, 1994 में सिनेमाघरों में लगी थी, जिस के डायरैक्टर डेविड धवन थे. पहले दिन से ही फिल्म हाउस फुल हो गई थी, क्योंकि यह कौमेडी से लबालब थी और इसकी कहानी भी उस दौर के हिसाब से मौजूं थी.

इसी लव और ड्रामा स्टोरी में खटिया वाला गाना था, जिस ने हाहाकार मचा दिया था. गोविंदा और करिश्मा कपूर की जोड़ी ने इस गाने में बेहद सैक्सी सीन दिए थे, खासतौर से करिश्मा कपूर ने तो बिना किसी लिहाज के खटिया पर तकरीबन हमबिस्तरी वाली अदाएं दिखाई थीं, तो दर्शक सिमट कर बैठने को मजबूर हो गए थे.

यह गाना उस दौर के मशहूर गीतकार समीर ने लिखा था, जिसे पूर्णिमा और कुमार शानू ने गाया था. इस गाने के रिकौर्डतोड़ कैसेट बिके थे, लेकिन धर्म और संस्कृति के ठेकेदारों ने एतराज जताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की थी, पर चूंकि यह आम दर्शकों की पसंद का था, जिन्होंने खटिया वाले गाने को देखने के लिए ही कई बार फिल्म देखी थी, इसलिए नैतिकता के ठेकेदारों का विरोध फुस हो कर रह गया था.

इस गाने की एक और खूबी यह थी कि पूरे गाने में जाड़े के कहर का जिक्र था, जो बलमा के साथ रजाई में घुस कर सोने से ही दूर हो सकता था. आज भी सर्दियों में यह गाना नौजवान शिद्दत से सुनते और गाते हैं, क्योंकि इस से सर्दी कम गरमी ज्यादा लगने लगती है और मन अपने पार्टनर के साथ रजाई में घुस जाने को होने लगता है.

मुझ को ठंड लग रही है

साल 1971 में आई फिल्म ‘मैं सुंदर हूं’ का गाना ‘मुझ को ठंड लग रही है, मुझ से दूर तू न जा…’ अपने दौर की सैक्सी हीरोइन लीना चंद्रावरकर और हीरो विश्वजीत पर फिल्माया गया था. इस में हीरोइन हीरो से कह रही है कि ठंड के चलते मुझ से दूर तू न जा. इस के जवाब में हीरो कहता है कि आग दिल में लगी है, मेरे पास तू न आ.

यह गाना हिल स्टेशन पर फिल्माया गया था, जिस के झरने और बर्फ देख कर दर्शकों को भी ठंड का एहसास होने लगता है. उन की ठंड भी गरमी में तभी तबदील होती है, जब हीरो और हीरोइन एकदूसरे से चिपक जाते हैं. 70 के दशक के इस हिट गाने को आनंद बख्शी ने लिखा था, जिसे किशोर कुमार और आशा भोसले ने गाया था. यह गाना तब के नए जोड़ों और प्रेमियों की जबान पर खासतौर पर ठंड के मौसम में रहता ही था.

सर्दसर्द रातों में…

कड़कड़ाती सर्दी हो और पति का मूड इश्क और रोमांस के साथसाथ सैक्स का भी हो रहा हो, जिस से गरमी आए, लेकिन ऐसे में बीवी कमरे के बाहर ठिठुरने के लिए छोड़ दे, तो शौहर पर क्या गुजरेगी, यह सीन 1981 में आई सुपरहिट फिल्म ‘एक ही भूल’ में दिखाया गया था, जिस में रेखा किसी बात पर गुस्सा हो कर जितेंद्र को कमरे के बाहर धकेल देती हैं.

तब जितेंद्र मजबूरी में गाते हैं, ‘सर्दसर्द रातों में थाम के दिल हाथों में, मैं ने तुझे याद किया…’ यह सुन कर रेखा गुस्से में गाती हैं, ‘तुम हो मतलब के यार पिया…’ यानी सैक्स की ख्वाहिश के वक्त ही बीवी के आगेपीछे घूमते हो.

इस गाने में ठंड को सही माने में दिखाया गया है. कांपते हुए जितेंद्र की हालत देख दर्शक भी चाहने लगते हैं कि रेखा इस ठंड में न इतनी बेरुखी दिखाएं और जितेंद्र को कमरे में आ कर सर्दी दूर करने करने के लिए वह सब करने दें, जो एक पति का हक होता है.

ऐसा होता भी है और गाने के आखिर में रेखा पिघल जाती हैं और जितेंद्र को बिस्तर में आने देती हैं. वे दोनों गुत्थमगुत्था हो कर एक ही रजाई में घुस जाते हैं. आनंद बख्सी के लिखे इस गरमागरम गाने को साउथ के गायक एसपी बालासुब्रमण्यम और आशा भोसले ने शिद्दत से गाया था.

मीठीमीठी सर्दी है

ठंड की रातों में पार्टनर पास न हो और उस की याद और जरूरत सताए, तो क्या करें? यह हालत साल 1986 की फिल्म ‘प्यार किया है प्यार करेंगे’ में पद्मिनी कोल्हापुरे की हुई थी, जो जलते अलाव को देख कर यह गाने को मजबूर हो गई थीं, ‘मीठीमीठी सर्दी है, भीगीभीगी रातें हैं, ऐसे में चले आओ तुम… मौसम मिलन का है अब और न तड़पाओ, सर्दी के महीने में माथे पे पसीना है.’

जाड़ों के मौसम की तनहा रातों में आशिक या माशूक की याद किस तरह सताती है, इसे अनिल कपूर और पद्मिनी कोल्हापुरे ने इस गाने में अपनी ऐक्टिंग के जरीए दिखाया था. उस तड़प को सर्द रातों में वही महसूस कर सकता है, जिस का पार्टनर दूर कहीं हो. एसएच बिहारी के लिखे इस गरमागरम गाने को लता मंगेशकर और मोहम्मद अजीज ने गाया था.

हवा सर्द है

अपने दौर के सदाबहार हीरो ऋषि कपूर ने फिल्मों में तरहतरह के स्वेटर पहने हैं. जब भी वे कश्मीर या शिमला शूटिंग के लिए जाते थे, तो घर के बने रंगबिरंगे स्वेटर ले जाते थे.

इन्हीं ऋषि कपूर की एक हिट फिल्म थी ‘बोल राधा बोल’, जिस की शूटिंग भी एक हिल स्टेशन पर हुई थी. इस फिल्म में उन की हीरोइन जूही चावला थीं.

फिल्म ‘बोल राधा बोल’ का अभिजीत और कविता कृष्णमूर्ति का गाया यह गाना इन दोनों पर फिल्माया गया था, ‘हवा सर्द है खिड़की बंद कर लो, बंद कमरे में चाहत बुलंद कर लो.’

इस गाने के दौरान खिड़की से ठंडी हवा आती रहती है, जिस से बचने के लिए ऋषि कपूर जूही चावला को पकड़ने उन के पीछे दौड़ते हैं और आखिर में अपनी चाहत को बुलंद कर लेते हैं.

ठंड की रातों में खुली खिड़की से आती ठंडी हवा किस तरह प्रेमियों को परेशान करती है, यह इस गाने में दिखाया गया था कि एकदूसरे के जिस्म की गरमी पाने के लिए हीरोहीरोइन आपस में लिपटलिपट जाते हैं.

साल 1992 में आई फिल्म ‘बोल राधा बोल’ में भी ऋषि कपूर ने नई डिजाइन के स्वेटर पहने थे, पर उन की ठंड जूही चावला ही दूर कर पाई थीं.

Winter Romance Special: जातिधर्म नहीं प्यार की खुमारी देखें

ये मुहब्ब्त में हादसे अकसर दिलों को तोड़ देते हैं,तुम मंजिल की बात करते हो लोग राहों में ही साथ छोड़ देते हैं इश्क की खुमारी में लोग इन बातों को गलत भी ठहरा रहे हैं. यह बात और है कि ‘ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है’.

प्यार को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं. कुछ लोग मानते हैं कि प्यार अंधा होता है. जहां दिल लग जाता है वहीं प्यार हो जाता है. बहुत से दूसरे लोग यह मानते हैं कि प्यार अंधा नहीं होता, बल्कि सूरत और शक्ल देख कर होता है.

असल में प्यार की खुमारी में जाति और धर्म देखने की जरूरत नहीं होती है. जो दिल को अच्छा लगे, जहां दिल मिले वहां प्यार करना चाहिए. प्यार जबरदस्ती का सौदा नहीं होता है. यह बात सच है कि प्यार जब शादी में बदलने वाला होता है, तब बहुत सारी दीवारें आज भी खड़ी हो जाती हैं.

समय के साथसाथ समाज और घरपरिवार ने कुछ समझते किए हैं, पर आज भी कई बातें ऐसी हैं, जिन को ले कर घरपरिवार और समाज तमाम तरह की रूढि़यों और कुरीतियों में फंसे हैं.

शेखर ने दिव्या के साथ 12 साल प्यार में गुजार दिए थे. जब वे 10वीं क्लास में थे, तभी से एकदूसरे को बखूबी जानतेपहचानते थे. शुरू से ही दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे. एक ही गांव में रहते थे.

उन दोनों के घरपरिवार वाले भी एकदूसरे को अच्छी तरह जानते थे. इन सब से बड़ी बात यह थी कि दोनों एक ही जाति के थे. ऐसे में उन की शादी में कोई अड़चन नहीं थी. इस के बावजूद भी वे 12 साल बाद शादी कर सके.

दरअसल, स्कूल की पढ़ाई के बाद वे दोनों नौकरी करने लगे. गांव से दूर एक बड़े शहर में रहने लगे. उन के परिवार के लोग भी गांव छोड़ कर शहर में बस गए थे. इस के बाद भी शेखर और दिव्या एकदूसरे से दूर नहीं हुए.

उन दोनों के लिए अपने घर वालों को राजी करने में समय लगा. घर वाले इसलिए राजी नहीं हो रहे थे कि जाति में भी गोत्र का बंधन होता है. एक ही गोत्र में लड़कालड़की की शादी नहीं हो सकती. लिहाजा, गांव के रिश्ते में दोनों भाईबहन लगते थे.

किसी तरह जब घर वाले राजी हुए, तो उन की शर्त थी कि किसी को यह नहीं बताना कि यह शादी उन दोनों की मरजी से हुई है. शेखर और दिव्या ने इस बात के लिए हामी भर ली कि वे किसी को कुछ नहीं बताएंगे.

शादी से पहले सगाई हुई. सबकुछ ठीक था. शेखर और दिव्या ने अपने 12 साल के सबंधों को यादगार बनाने के लिए केक काटने का इंतजाम किया, जिस पर लिखा था ‘12 साल एकदूजे के साथ’.

रिश्तेदारी में कुछ लोगों की निगाह केक पर पड़ गई. वह इस का मतलब निकालने लगे. आखिर में सब को इस बात का पता चल गया कि यह शादी शेखर और दिव्या की मरजी से हो रही है. इस बात की काफी बुराई हुई. घरपरिवार के लोग अलग से नाराज हुए कि केक पर यह सब क्यों लिखा था.

पर अब कुछ हो नहीं सकता था. शेखर और दिव्या की शादी हो गई. अब वे दोनों हंसीखुशी एकदूसरे के साथ रहते हैं. इस से सबक मिलता है कि आप जिस से प्यार करें, उसे जिंदगीभर निभाएं. यही इश्क की असली खुमारी है. कई ऐसे उदहारण हैं, जो इश्क में जातिधर्म जैसी बंदिशों को स्वीकार नहीं करते हैं.

गांवों में नहीं सुधरे हालात

प्यारमुहब्बत को ले कर शहरों में तो हालात बदल गए हैं, पर गांवदेहात में अभी भी प्यार बंदिशों में रहता है. वहां नौजवानों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है. कई नौजवान इस की कोशिश भी करते हैं. ऐसे में वे औनर किलिंग जैसी वारदातों के शिकार हो जाते हैं.

दरअसल, आजकल गांवदेहात में रहने वाली मुसलिम, एससीएसटी और ओबीसी जातियों की लड़कियां भी पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगी हैं. वहां उन्हें अलगअलग लड़कों का साथ मिलता है. ये लड़कियां सुंदर और आकर्षक होती हैं. ऐसे में इन के साथ इश्क करने वाले कम नहीं होते हैं.

कई बार बहुत सी लड़कियां इश्क में पड़ भी जाती हैं, पर जब बात शादी की आती है, तो तमाम तरह की परेशानियां खड़ी हो जाती हैं. पर जो लड़केलड़कियां अपने पैरों पर खड़े होते हैं, वे अपने हक में फैसले कर लेते हैं.

निशा ओबीसी समाज से थी. गैरधर्म के अकील के साथ उस का इश्क हुआ. दोनों 12वीं क्लास के बाद आगे की पढ़ाई के लिए शहर चले गए. वहां उन को अच्छी नौकरी मिल गई. 2 साल के बाद उन दोनों ने शादी करने का फैसला लिया.

उन दोनों के घर वालों को जब इस बात का पता चला, तो वहां विरोध शुरू हो गया. निशा और अकील ने अपनेअपने घर वालों को समझने की लाख कोशिश की, पर कोई भी तैयार नहीं हुआ. लिहाजा, उन्होंने स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत कोर्ट में शादी कर ली.

जो प्यार करने वाले जाति और धर्म को छोड़ कर इश्क की खुमारी देखते हैं, वे कामयाब होते हैं. कानून ने इस तरह के लोगों को सुरक्षा दे रखी है. जरूरत इस बात की है कि प्यार करने वाले अपने इश्क की खुमारी को पहचानें और एकदूसरे पर भरोसा रखें.

हां, यह बात जरूर है कि जब लड़कालड़की दोनों अपने पैरों पर खड़े होते हैं, तो किसी भी तरह की लड़ाई लड़ने में कामयाब हो जाते हैं. पर जब वे घरपरिवार के भरोसे रहते हैं, तो उन की शादी मुश्किल हो जाती है. लिहाजा, जाति और धर्म का कट्टरपन खत्म करने के लिए इश्क की खुमारी जरूरी है.

Cabs Service : कैसे बनते हैं कैब ड्राइवर, कितनी होती है महीने की कमाई

बाइक टैक्सी (Bike Taxi) वाली कंपनी रैपिडो (Repido) अब कैब सर्विस में भी आ गई है. कंपनी का कहना है कि उस की कैब सर्विस दूसरी कैब कंपनियों के मुकाबले काफी सस्ती होगी. रैपिडो कंपनी ने देशभर में एक लाख कारों के साथ अपनी कैब सर्विस की शुरुआत की है. इस से ओला (Ola) और उबर (Uber) जैसी कैब सर्विस देनी वाली कंपनियों पर असर पड़ सकता है.

पर अगर रोजगार की बात करें, तो कोई ड्राइवर किस तरह इन कैब कंपनियों के साथ जुड़ सकता है और कैसे कमाई कर सकता है, यह जानना भी जरूरी है. इसे हम एक कैब ड्राइवर इकबाल खान से हुई बातचीत से भी समझ सकते हैं, जो 47 साल के हैं और उबर व ओला दोनों कैब कंपनियों के साथ जुड़े हुए हैं.

इकबाल खान अपने परिवार के साथ दिल्ली के मयूर विहार फेस 1 के कोटला गांव में रहते हैं. वे पिछले 6 साल से ओला और उबर से जुड़े हैं, साथ ही फरीदाबाद की एक प्राइवेट कंपनी में भी काम करते हैं, जिस में वे गाजियाबाद से उस कंपनी के कर्मचारियों को सुबह फरीदाबाद छोड़ते हैं और शाम को 4 बजे उन्हें कंपनी से वापस गाजियाबाद ले जाते हैं. बाकी समय में वे कैब ड्राइवर के तौर पर सवारियों को लाते और ले जाते हैं.

इकबाल खान ने बताया, “पहले मेरी कोटला गांव में एम्ब्रोयडरी के काम की फैक्टरी थी और अच्छीखासी आमदनी थी, पर बाद में जीएसटी की वजह से हमारे काम पर बुरा असर पड़ा और धीरेधीरे कंपनी बंद हो गई.

“फिर एक दोस्त की सलाह पर मैं ने ड्राइवर के काम में हाथ आजमाया और अब फिर मेरी जिंदगी पटरी पर लौट आई है. जिस कंपनी में मेरी गाड़ी लगी है, वहां से मुझे महीने के 35,000 रुपए मिल जाते हैं और काम सोमवार से शुक्रवार तक रहता है.

“ओला और उबर में मेरी रोजाना की 10-12 राइड लग जाती हैं, जिन से अंदाजन 40 से 50 हजार रुपए महीने की आमदनी हो जाती है. मेरा रोज का सीएनजी गैस का 1,000 रुपए का खर्चा है. अगर कोई ग्राहक हमें कैश में पैसे देता है, तो हम कैब कंपनी को उस का कमीशन (जीएसटी समेत तकरीबन 25-30 फीसदी) दे देते हैं. अगर कोई ग्राहक औनलाइन पेमेंट करता है, तो कंपनी अपना कमीशन काट कर हमारे बैंक खाते में पैसे ट्रांसफर कर देती है.”

किसी कैब कंपनी से कैसे जुड़ा जाता है और किस तरह के दस्तावेज चाहिए? इस बारे में इकबाल खान ने कहा, “ओला जैसी कैब कंपनी के साथ अगर आप को जुड़ कर काम करना है, तो फिर आप को कुछ दस्तावेज जैसे पैनकार्ड, रद्द किया गया चैक या पासबुक, आधारकार्ड, पते का प्रमाण देना होगा. कार के कागजात के लिए आप को गाड़ी की आरसी, गाड़ी परमिट, गाड़ी के बीमा की जरूरत होगी. साथ ही ड्राइवर का लाइसैंस भी होना चाहिए.

“फिर आप को कैब कंपनी के औफिस जाना होगा. वहां कंपनी की टीम आप को पूरी जानकारी दे देगी. रजिस्ट्रेशन के लिए वह आप के दस्तावेज जांचेगी. कार और ड्राइवर का औडिट होगा. ड्राइवर को ट्रेनिंग दी जाएगी और फिर करार पर दस्तखत होंगे. पुलिस वैरिफिकेशन भी होता है.

“ड्राइवर को एप चलाना आता हो. वैसे, इस की ट्रेनिंग वीडियो द्वारा कंपनी भी देती है. उस के पास एक स्मार्ट फोन होना चाहिए और इंटरनैट सेवा भी.

“इस के अलावा बाद में कंपनी इस बात पर भी ध्यान देती है कि ड्राइवर का अपने ग्राहक के प्रति किस तरह का रवैया है. अगर उस की शिकायतें मिलती हैं, तो कंपनी उसे ‘औफ रोड’ कर देती है. ड्राइवर को कभी भी कोई नशा कर के ड्यूटी पर नहीं रहना चाहिए, उसे बात करने का सभ्य तरीका आना चाहिए और वह ग्राहक के प्रति ईमानदार भी होना चाहिए.

“अभी हाल ही में एक बुजुर्ग गुरुग्राम से मेरी कार में सवार हुए थे. वे दिल्ली के झंडेवाला इलाके में उतरे थे, पर गाड़ी में अपना मोबाइल फोन भूल गए थे. मैं ने गाड़ी में वहीं इंतजार किया, फिर उन का फोन वापस किया.

“यह रोजगार आमदनी का अच्छा जरीया है और आप अपनी सुविधानुसार कैब चला सकते हैं, क्योंकि इस में आप के पास 24 घंटे में से अपने मनमुताबिक काम करने की औप्शन है. जो लोग मेहनत कर के रोजीरोटी कमाना चाहते हैं, उन्हें यह क्षेत्र निराश नहीं करेगा.”

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