Crime: करोड़ों की है यह ‘गंदी बात’

टिन की छत के बने तंबूनुमा बदबूदार देशी थिएटर के बाहर कुछ लोगों की भीड़ जमा थी. उन में अधेड़ उम्र के ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा थी, जो बस्ती के पास के बड़े शहर में मजदूर थे या फिर रिकशा वगैरह चला कर अपना पेट पालते थे. कुछ ने तो दिन में ही शराब पी रखी थी.

उस वीडियो थिएटर में सीडी से बड़े टैलीविजन पर फिल्म दिखाई जाती थी. बाहर एक हिंदी फिल्म ‘बदले की आग’ का पोस्टर लगा था. बस्ती के बाहर की तरफ बने इस थिएटर में स्कूल से गुठली मार कर कुछ बच्चे भी फिल्म देखने चले आए थे.

जब थोड़ी भीड़ बढ़ी तो सब से पैसे ले कर उन्हें भीतर तंबू में बिठा दिया गया. फिल्म के शुरू होते ही वहां थोड़ी रोशनी हुई. पर यह क्या, फिल्म ‘बदले की आग’ न जाने कैसे ‘जिस्म की आग’ में बदल गई. हिंदी के बदले कोई इंगलिश फिल्म चालू हो गई और देखने वालों की बांछें खिल गईं.

चंद मिनट बाद ही फिल्म में एक गोरी विलायती औरत किसी अफ्रीकन मर्द के साथ बिस्तर पर थी. इस के बाद उन के बीच सैक्स का ऐसा खुला खेल चला कि देखने वालों का जिस्म भी  खुल गया.

सवा घंटे की उस फिल्म में मर्दऔरत के जिस्मानी रिश्तों का पलंगतोड़ मजा था कि वह थिएटर ही गरमा गया. मतलब, लोगों ने ब्लू फिल्म यानी पोर्न फिल्म का मजा लिया था और अपने पूरे पैसे वसूल किए थे.

दुनियाभर में इन पोर्न फिल्मों का बहुत बड़ा बाजार है. इन के कलाकार भी बहुत मशहूर हैं. हालिया चर्चा में रही मिया खलीफा और हिंदी फिल्मों में ऐंट्री कर चुकी सनी लियोनी ऐसी ही पोर्न स्टार रह चुकी हैं.

सवाल उठता है कि ये फिल्में बनती कैसे हैं? इस का जवाब है कि विदेश में इन्हें बनाने के लिए तगड़ा पैसा खर्च होता है. पोर्न कलाकारों के जिस्म और उन की अदाओं के मुताबिक पैसा मिलता है. इन की सेहत और शरीर की साफसफाई पर बड़ा ध्यान दिया जाता है.

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एक पोर्न फिल्म बनाने पर कई दिन भी लग जाते हैं. इन में भी आम फिल्मों की तरह पैसा लगाने वाले, डायरैक्टर, कैमरामैन, स्क्रिप्ट लिखने वाले के साथसाथ कलाकारों की टीम होती है. सीन को एकदम रीयल दिखाने के लिए कलाकारों को सीन सम?ाए जाते हैं. ऐसे में कुछ मुश्किलें भी सामने आती हैं, जैसे पूरी शूटिंग के दौरान कई घंटों तक पोर्न फिल्म के मर्द कलाकार का जोश में रहना जरूरी होता है.

लड़कियां भी काफी मेहनत करती हैं. शूटिंग के पहले उन्हें खाना खाने की मनाही होती है, ताकि शूटिंग के समय उन का पेट सपाट और सुडौल दिखे. पर चूंकि उन्हें पैसा अच्छा मिलता है, तो यह सब उन्हें करना पड़ता है.

आज जबकि ऐसी पोर्न फिल्मों का भारत भी एक बड़ा बाजार है और जब से वैब सीरीज के नाम पर यहां भी सैक्स सीन और गालियां दिखानेसुनाने की छूट मिली है, तब से इन की आड़ में देशी पोर्न फिल्में भी बनने लगी हैं, जो चोरीछिपे बनाई जाती हैं. जो काम चोरीछिपे होता है, वहां अपराध होने में कितनी देर लगती है.

इसी अपराध की दुनिया बड़ी भयावह है और जल्दी से जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में लोग ऐसे काले काम कर देते हैं, जिन के बारे में सोच कर भी रोंगटे खड़े हो जाएं.

ऐसा ही एक मामला तब दुनिया के सामने आया, जब मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सैल ने 5 फरवरी, 2021 को पोर्न फिल्म बनाने वाली एक प्रोडक्शन कंपनी का परदाफाश किया. यह कंपनी फिल्मों में काम करने की चाहत रखने वाले लोगों से शौर्ट फिल्म में काम करने का एग्रीमैंट कराती थी, फिर शूटिंग के दौरान अगर कोई न्यूड शूट के लिए मना करता था तो करार तोड़ने पर जुर्माने की धमकी दे कर उसे ऐसे सीन करने के लिए मजबूर किया जाता था.

पुलिस ने इस सिलसिले में मालाड (पश्चिम) में मढ़ के ग्रीन पार्क बंगले  पर छापा मार कर 5 लोगों को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार आरोपियों में 40  साल की फोटोग्राफर यासमीन खान और ग्राफिक डिजाइनर प्रतिभा नलावडे भी शामिल थीं. प्रतिभा नलावडे पोर्न फिल्म की प्रोडक्शन इंचार्ज भी थीं.

पकड़े गए बाकी 3 लोगों में से मोनू जोशी कैमरामैन और लाइटमैन का काम करता था, जबकि भानु ठाकुर और मोहम्मद नासिर ऐक्टर थे.

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मुबंई पुलिस क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सैल के मुताबिक, इस गिरोह की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ने ‘हौटहिट मूवीज’ नाम का एक एप भी बना रखा है, जिस में वे लोग अपनी पोर्न फिल्मों को अपलोड करते थे. इस एप के लिए वे देखने वाले से सबस्क्रिप्शन फीस लेते थे.

पुलिस ने इस गिरोह के पास से स्क्रिप्ट के साथ 6 मोबाइल फोन, एक लैपटौप, लाइट स्टैंड, नामी कंपनी के कैमरे समेत तकरीबन 5,68,000 रुपए का सामान जब्त किया. इस के अलावा पोर्न फिल्म के धंधे से कमाए गए 36,60,000 रुपए भी बरामद किए.

मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सैल ने एक मिडिलमैन उमेश कामत को भी गिरफ्तार किया, जिस का काम मुंबई में शूट की गई पोर्न फिल्मों को विदेशों से कब और कैसे अपलोड कराना है, यह सब देखना था.

मोटा है मुनाफा

प्रौपर्टी सैल के एक बड़े अफसर केदारी पवार ने बताया कि उन्हें ऐसी जानकारी मिली थी कि एक गिरोह मुंबई में इस धंधे से करोड़ों रुपए का मुनाफा कमा रहा है. जानकारी मिलने के बाद क्राइम ब्रांच ने एक टीम बना कर मालवणी मढ़ इलाके में बने ग्रीन विला नाम के बंगले पर दबिश दी और पोर्न मूवी की शूटिंग के दौरान 5 लोगों को गिरफ्तार किया और एक 23 साल की लड़की को उन के चंगुल से छुड़ाया.

केदारी पवार ने आगे बताया कि ये लोग ऐसे नौजवानों को टारगेट करते थे जो काफी स्ट्रगल कर रहे हैं. ये आरोपी उन लोगों को बौलीवुड, टैलीविजन सीरियल या फिर किसी बड़ी वैब सीरीज में अच्छा रोल दिलाने का सपना दिखाते थे और फिर उन्हें अपने साथ काम करने के लिए मना लेते थे.

आधी फिल्म तक ये लोग अच्छी कहानी बता कर शूट करते थे और उस के बाद सैकंड हाफ में बोल्ड सीन शूट के नाम पर पोर्न सीन शूट करने लगते थे.

पुलिस की मानें, तो पकड़ी गई  40 साल की फोटोग्राफर यासमीन खान खुद पहले फिल्मों और टैलीविजन सीरियल में छोटेमोटे रोल कर चुकी है. यही वजह है कि उस के पास ऐसी लड़कियों की लिस्ट है, जो लोग बौलीवुड या फिर टैलीविजन सीरियल में एक चांस मिलने को ले कर सालों से जद्दोजेहद कर रही हैं.

यासमीन खान इन लड़कियों को शौर्ट फिल्म के नाम पर औफर देती थी. इस के बाद वह इन स्ट्रगलर को  20 मिनट की फिल्म बनाने के हिसाब से एक स्क्रिप्ट सुनाती थी, लेकिन किसी भी न्यूड सीन की जानकारी नहीं देती थी. इस के बाद वह इस छोटी फिल्म की शूटिंग के लिए कलाकारों को 25,000 से 30,000 रुपए देने का वादा करती थी.

इस के बाद यासमीन खान इन कलाकारों से एक एग्रीमैंट पर दस्तखत कराती थी, जिसे उन्हें पूरा पढ़ने भी नहीं दिया जाता था. इस एग्रीमैंट पर दस्तखत मिलने के बाद उन कलाकारों को शूटिंग के लिए मालवणी मढ़ इलाके में बने किसी बंगले पर बुलाया जाता था, फिर जैसेजैसे शूटिंग आगे बढ़ती थी, वैसेवैसे उन कलाकारों को कपड़े निकालने को कहा जाता था.

अगर कोई कलाकार ऐसा करने से मना करता, तो उसे एग्रीमैंट दिखा कर और बात न मानने पर उस पर कानूनी कार्यवाही करने की धमकी दी जाती थी.

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एक और खुलासा

इस सनसनीखेज मामले में ?ारखंड की एक लड़की ने मुंबई पुलिस को बताया कि जब उस ने पोर्न फिल्म की शूटिंग करने से इनकार कर दिया, तो आरोपियों ने उसे धमकाया कि उस ने जो एग्रीमैंट किया है, उस में साफ लिखा हुआ है कि अगर वह ऐसा नहीं करेगी, तो उसे बतौर जुर्माना 10 लाख रुपए देने पड़ेंगे और साथ ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज की जाएगी.

वह लड़की झारखंड और कुछ दूसरे शहरों में मौडलिंग के कई कंपीटिशन में हिस्सा ले चुकी थी. 29 दिसंबर, 2020 को उस के पास संतोष नाम के एक आदमी का फोन आया था और उसे बताया गया कि उन लोगों ने उसे एक वैब सीरीज के लिए चुन लिया है, जिस की शूटिंग लोनावाला में है. एक दिन की शूटिंग के लिए उस लड़की को बतौर मेहनताना 25,000 से 30,000 रुपए  दिए जाएंगे.

संतोष से हुई बातचीत के बाद उस लड़की के पास अलीशा का फोन आया. उस ने बताया कि इस वैब सीरीज का प्रसारण ‘हौटहिट मूवीज’ पर होगा, जो एक पेड ओटीटी एप है.

झारखंड की उस मौडल लड़की ने बताया कि अगले दिन उस के पास फोन आया कि किसी वजह से लोनावाला की शूटिंग कैंसिल हो गई है, जो अब मालाड के मड आईलैंड में होगी. उसे वहां बुलाया गया और इंगलिश भाषा में लिखे हुए एक एग्रीमैंट पर उस से दस्तखत करवाए गए और हिंदी भाषा में मतलब भी सम?ाया गया.

लड़की ने बताया कि वैब सीरीज की शूटिंग शुरू होने के कुछ मिनट बाद उस पर गलत सीन करने का दबाव डाला गया. उस ने मना किया, तो उसे धमकाया गया. लड़की ने फिर वैसे ही सीन किए, जैसे उसे बताए गए थे.

उस लड़की ने बताया कि  31 दिसंबर, 2021 को अलीशा का फोन आया कि तुम्हारे अकाउंट में रकम ट्रांसफर नहीं हो रही है. लड़की ने फिर किसी परिचित का बैंक औफ बड़ौदा, लखनऊ ब्रांच का अकाउंट नंबर दिया. उस अकाउंट में रकम भेजी गई.

कहां है चूक

वैब सीरीज में जिस तरह एडल्ट सीन करने की छूट मिली हुई है, उसी के चलते पोर्न फिल्म या वीडियो बनाने वालों को हिम्मत मिलती है. नए कलाकार भी जब तक पकड़े नहीं जाते हैं, तब तक ऐसी फिल्मों में काम करते रहते हैं, क्योंकि उन्हें एकमुश्त अच्छा पैसा जो मिलता रहता है, जो उन्हें मुंबई में टिके रहने के लिए बहुत जरूरी है.

बहुत से नए कलाकार तो अपने खर्चे निकालने के लिए देह धंधे के बाजार में उतर जाते हैं. पोर्न फिल्मों में चूंकि लोग उन्हें स्क्रीन पर ऐसे सीन करते देखते हैं, तो बनाने वालों को भी मोटा मुनाफा मिल जाता है. इस लालच में वे ऐसे गंदे काम करते हैं. पुलिस की एक दबिश से या कुछ लोगों के पकड़े जाने से यह गोलमाल खत्म हो जाएगा, ऐसा दावा करना जल्दबाजी होगी.

गहना वशिष्ठ भी धरी गई. इस कांड में तब और ज्यादा दिलचस्प मोड़ आया, जब टैलीविजन हीरोइन और मौडल गहना वशिष्ठ को मुंबई क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सैल ने 6 जनवरी, 2021 की शाम को गिरफ्तार किया. आरोप था कि वैब सीरीज ‘गंदी बात’ में भी काम कर चुकी गहना वशिष्ठ नए कलाकारों को अच्छा रोल दिलाने का ?ांसा दे कर उन्हें पोर्न वीडियो में काम करने को कहती थी और फिर उस वीडियो को 2 अलगअलग वैबसाइटों पर अपलोड कर लाखों रुपए कमाती थी.

पुलिस के एक बड़े अफसर ने बताया कि गहना वशिष्ठ का ‘जीवी स्टूडियो’ नाम का एक प्रोडक्शन हाउस है, जिस के तहत वह ऐसे गंदे वीडियो शूट करती थी. पुलिस की मानें, तो साल 2019 से गहना वशिष्ठ इस तरह के वीडियो बनवा रही है. पुलिस को अब तक ऐसे तकरीबन 90 पोर्न वीडियो मिले हैं, जिसे गहना ने शूट कराया है.

क्राइम ब्रांच के एक अफसर ने बताया कि 3 फरवरी, 2021 को गहना वशिष्ठ के घर पर दबिश दी गई थी, जिस के बाद उस के घर से 3 मोबाइल फोन, एक लैपटौप और बैंक से संबंधित कुछ दस्तावेजों को जब्त किया गया.

पुलिस ने गहना वशिष्ठ से की गई जांच के दौरान पाया कि उस के पास 2 वैबसाइट हैं, जिन पर वह इस तरह के वीडियो अपलोड करती थी. उस के बनाए गए पोर्न वीडियो को देखने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करना पड़ता है, जिस के लिए 2,000 रुपए लगते हैं.

छोटी छोटी खुशियां- भाग 5: शादी के बाद प्रताप की स्थिति क्यों बदल गई?

Writer- वीरेंद्र सिंह

सभी अपनेअपने काम में लग गए. प्रताप अपनी सीट पर अकेला रह गया तो विचारों में खो गया. उस के दिमाग में सुधा से कहासुनी से ले कर मैनेजर साहब को खरीखोटी सुनाने तक की एकएक घटना चलचित्र की तरह घूम गई. पैन निकालने के लिए उस ने जेब में हाथ डाला तो पुलिस द्वारा दी गई रसीद भी पैन के साथ बाहर आ गई. रसीद देख कर उस का दिमाग भन्ना उठा. मेज पर रखे पानी के गिलास को खाली कर के वह आहिस्ता से उठा. पैर में दर्द होने के बावजूद वह धीरेधीरे आगे बढ़ा. टैलीफोन मैनेजर साहब की ही मेज पर था. प्रताप उसी ओर बढ़ रहा था. प्रताप के गंभीर चेहरे को देख कर मैनेजर घबराए. उन की हालत देख कर प्रताप के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. मैनेजर साहब की ओर देखे बगैर ही वह उन के सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. टैलीफोन अपनी ओर खींच कर पुलिस की ट्रैफिक शाखा का नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘नमस्कारजी, मैं ट्रैफिक शाखा से हैडकौंस्टेबल ईश्वर सिंह बोल रहा हूं.’’

‘‘नमस्कार ईश्वर सिंहजी, आप ब्लूलाइन बसों के खिलाफ मेरी एक शिकायत लिखिए.’’

‘‘आप की जो शिकायत हो, लिख कर भेज दीजिए.’’

‘‘लिख कर भेजूंगा तो तुम्हें अपनी औकात का पता चल जाएगा…’’ प्रताप थोड़ा रोष में बोला, ‘‘फोन किसी जिम्मेदार अधिकारी को दीजिए.’’

‘‘औफिस में इस समय और कोई नहीं है. इंस्पैक्टर साहब और एसीपी साहब राउंड पर हैं.’’

‘‘एसीपी साहब के पास तो मोबाइल फोन होगा, उन का नंबर दो.’’

कौंस्टेबल ईश्वर सिंह ने जो नंबर दिया था, उसे मिलाते हुए प्रताप खुन्नस में था. उधर से स्विच औन होते ही वह बोला, ‘‘सर, मैं प्रताप सिंह बोल रहा हूं. मेरी एक शिकायत है.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘आप के टै्रफिक के नियम सिर्फ स्कूटर वालों के लिए ही हैं क्या? सड़क पर जिस तरह अंधेरगर्दी के साथ ब्लूलाइन बसें दौड़ रही हैं, आप के स्टाफ वालों को दिखाई नहीं देतीं?’’ प्रताप की आवाज क्रोध में कांप रही थी.

‘‘देखिए साहब, जो पकड़ी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाती है.’’

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‘‘क्या कार्यवाही करते हैं आप लोग, वह सब मैं जानता हूं,’’ प्रताप काफी गुस्से में था इसलिए उस के स्वर में थोड़ा तल्खी थी. उसी तल्ख आवाज में वह बोला, ‘‘यहां आश्रम रोड पर आ कर थोड़ी देर खड़े रहिए. ड्राइवर बसें किस तरह बीच सड़क पर खड़ी कर के सवारियां भरते हैं, देख लेंगे. उस व्यस्त सड़क पर भी ओवरटेक करने में उन्हें जरा हिचक नहीं होती. आप के पुलिस वाले खड़े यह सब देखते रहते हैं.’’

‘‘देखिए प्रतापजी, डिपार्टमैंट अपनी तरह से काम करता है.’’

‘‘कुछ नहीं करता, साहब, आप का पूरा का पूरा डिपार्टमैंट बेकार है. आप के पुलिसकर्मी घूस लेने में लगे रहते हैं. बस वालों से हफ्ता लेते हैं, ऐसे में उन के खिलाफ कैसे कार्यवाही करेंगे?’’

‘‘माइंड योर लैंग्वेज. आप अपनी शिकायत लिख कर भेज दीजिए. दैट्स आल,’’ दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

‘लिखित शिकायत करूंगा…जरूर करूंगा?’ बड़बड़ाता हुआ प्रताप अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. पैन उठाया और जिस तरह तोप में गोला भरा जाता है, उसी तरह ठूंसठूंस कर पूरे पेज में एकएक बात लिखी. होंठ भींचे वह लिखता रहा. उस का आक्रोश अक्षर के रूप में कागज पर उतरता रहा. शिकायत का पत्र पूरा हुआ तो उस ने संतोष की सांस ली. पूरे कागज पर एक नजर डाल कर उसे मोड़ा और डायरी में रख लिया. डायरी हाथ में ले कर वह उठ खड़ा हुआ. घुटने में अभी भी दर्द हो रहा था. मगर उस की परवा किए बगैर वह बैंक से बाहर आया. बैंक के सामने ही पीसीओ में फैक्स की सुविधा भी थी. वह सीधे पीसीओ पर पहुंचा. सामने बैठे पीसीओ के मालिक लालबाबू के हाथ में कागज और एक चिट पकड़ाते हुए कहा, ‘‘चिट में लिखे नंबरों पर इसे फैक्स करना है.’’

लालबाबू उन सभी नंबरों के बगल में लिखे नामों को देख कर प्रताप को ताकने लगा. मुख्यमंत्री, राज्यपाल, गृहमंत्री से ले कर पुलिस कमिश्नर तक के नंबर थे वे. उस चिट में शहर के प्रमुख अखबारों के भी फैक्स नंबर थे. अपनी ओर एकटक देख रहे लालबाबू से उस ने कहा, ‘‘सभी नंबरों पर इसे फैक्स कर दीजिए.’’

‘‘जी,’’ उस ने प्रताप द्वारा दिए कागज को फैक्स मशीन में इंसर्ट किया. फिर एकएक नंबर डायल करता रहा. फैक्स मशीन में कागज एक तरफ से घुस कर, दूसरी ओर से निकलने लगा. प्रताप खड़ा इस प्रक्रिया को ध्यान से देख रहा था. सारे फैक्स ठीक से हो गए हैं, इस के कन्फर्मेशन की रिपोर्ट की कौपी लालबाबू ने प्रताप के हाथ में पकड़ाने के साथ ही बिल भी थमा दिया. पैसे दे कर सभी कन्फर्मेशन रिपोर्ट्स प्रताप ने डायरी में संभाल कर रखी और पीसीओ से बाहर निकल आया. अब प्रताप के दिमाग की तनी नसें थोड़ी ढीली हुईं. जिस से उस ने स्वयं को काफी हलका महसूस किया. कितने दिनों से वह इस काम के बारे में सोच रहा था. आखिर आज पूरा हो ही गया.

फैक्स सभी को मिल ही गया होगा. अब मजा आएगा. फैक्स जैसे ही मिलेगा, मुख्यमंत्री गृहमंत्री से कहेंगे. उन्हें भी फैक्स की कौपी मिल गई होगी. राज्यपाल के यहां से भी सूचना आएगी. सब की नाराजगी पुलिस कमिश्नर को झेलनी पड़ेगी. फिर वे एसीपी ट्रैफिक को गरम करेंगे. उस के बाद नंबर आएगा कौंस्टेबलों का. एसीपी एकएक कौंस्टेबल का तेल निकालेगा. बैंक में आ कर वह अपनी सीट पर बैठ गया. अब उसे बड़े भाई की याद आ गई. पिछली रात वे पैसे के लिए उस से किस तरह गिड़गिड़ा रहे थे. उसी क्षण उस की आंखों के सामने सुधा का तमतमाया चेहरा नाच गया. मन ही मन उसे एक साथ 4-5 गालियां दे कर वह कुरसी से उठ खड़ा हुआ. बैंक के कर्मचारियों की के्रडिट सोसायटी बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रही थी. सोसायटी के सैके्रटरी नरेंद्र नीचे के फ्लोर पर बैठते थे. वह लिफ्ट से नीचे उतरा. नरेंद्र अपनी केबिन में बैठे थे. उन की मेज के सामने पड़ी कुरसी खींच कर वह बैठ गया. लोन के लिए फौर्म ले कर उस ने भरा और नरेंद्र की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘नरेंद्र साहब, बड़े भाई थोड़े गरीब हैं. उन्हें मकान की मरम्मत करानी है. यदि मरम्मत नहीं हुई तो बरसात में दिक्कत हो सकती है. इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि मेरी अर्जी पर विशेष ध्यान दीजिएगा.’’

‘‘नरेंद्र साहब ने अत्यंत मधुर स्वर में कहा, ‘‘इस महीने खास दबाव नहीं है, इसलिए आप का काम आराम से हो जाएगा. आप को 80 हजार रुपए चाहिए न?’’

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प्रताप ने स्वीकृति में सिर हिलाया. नरेंद्र साहब ने फौर्म में लगी रसीद फाड़ कर प्रताप की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अपने भाईसाहब से कहना कि वे

सारी व्यवस्था करें. 3 तारीख को पैसा मिल जाएगा.’’

‘‘थैंक्स,’’ प्रताप ने सैक्रेटरी साहब का हाथ थाम कर कहा, ‘‘थैंक्यू वैरी मच.’’

नरेंद्र द्वारा दी गई रसीद जेब में रख कर प्रताप खड़ा हुआ. उस की एक बहुत बड़ी टैंशन खत्म हो गई थी. पैसा पा कर बेचारा बड़ा भाई खुश हो जाएगा. यदि भैया हर महीने आ कर अपनी किस्त दे जाएंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी. सुधा को इस बात का पता ही नहीं चलेगा. सुधा की याद आते ही उस की मुट्ठियां भिंच गईं.

उस की विचारयात्रा आगे बढ़ी. यदि उसे पता चल भी जाएगा तो क्या कर लेगी? ज्यादा से ज्यादा झगड़ा करेगी. जब तक कान सहन करेंगे, सहता रहूंगा. उस के बाद अपने हाथों का उपयोग करूंगा. एक बार उलटा जवाब मिल जाएगा तो उस का दिमाग अपनेआप ही ठिकाने पर आ जाएगा.

सुधा के विचारों से मुक्त होना प्रताप के लिए आसान नहीं था. फिर भी उस ने औफिस की फाइलों में मन लगाने का प्रयास किया. बैंक की बिल्ंिडग के गेट के पास जो मैकेनिक था, प्रताप ने स्कूटर की चाबी दे कर उसे लाने के लिए भेज दिया था. साथ ही, यह भी कह दिया था कि शाम तक वह स्कूटर बना कर तैयार कर देगा.

शाम को प्रताप बैंक से निकला तो मैकेनिक ने स्कूटर बना कर तैयार कर दिया था. वह स्कूटर स्टार्ट कर ही रहा था कि उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. उस ने पलट कर देखा, दीपेश बैग टांगे खड़ा था. उस के साथ आकाश और दीपक भी थे. दीपेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुझ से मिलने तेरे बैंक आया हूं और तू घर भागने की तैयारी कर रहा है? लगता है, भाभी से बहुत डरता है?’’

‘‘यार, सुबहसुबह ऐक्सिडैंट हो गया था, जिस में यह देखो घुटना छिल गया है,’’ प्रताप ने पैर उठा कर फटे पैंट के नीचे घुटना दिखाते हुए कहा, ‘‘परंतु अब जब तुम तीनों मिल गए हो तो

सारी तकलीफ दूर हो गई है. हम

चारों अंतिम बार कब मिले थे? मेरे खयाल से साल, डेढ़ साल तो हो ही गए होंगे?’’

‘‘नहीं, भाई, पूरे 2 साल हो गए हैं,’’ दीपक ने कहा, ‘‘यहीं मिले थे. फिर सामने वाले होटल में सब ने रात का डिनर किया था. अरे हां यार प्रताप, वह तेरा साथी पान सिंह नहीं दिखाई दे रहा है.’’

‘‘दिखाई कहां से देगा, आजकल कभी उस की सब्जी नहीं पकती तो कभी बेचारे को बासी रोटी मिलती है.’’

‘‘क्या मतलब? तेरी मजाक करने

की आदत अभी भी नहीं गई,’’ आकाश ने कहा.

‘‘सच कह रहा हं. जानते हो, एक दिन मैं बिग बाजार गया. एक किलोग्राम जीरा और कुछ सामान खरीदा. वहां मुझे एक कूपन मिला, जिस से मेरा समान फ्री हो गया. जब से इस बात का पता पान सिंह की बीवी को चला है, वह रोज सुबह उसे लंच में बासी रोटी बांध देती है.’’

‘‘चल, बहुत हो गया. अब उस का ज्यादा मजाक मत उड़ा,’’ दीपेश ने टोका.

दीपेश तो उस के साथ ही देहरादून में बोर्डिंग में रहता था. आकाश और दीपक भी उस के क्लास में साथ ही थे. पान सिंह उस के गांव का ही रहने वाला था, जिस की अनुपस्थिति में वह उस का मजाक उड़ा रहा था. कालेज लाइफ में पांचों की मित्रता सगे भाइयों जैसी थी. 2 साल बाद चारों इकट्ठा हुए थे. फिर चारों बैठ कर बातें करने लगे. बातें करते रात के 9 बज गए. तब दीपेश ने कहा, ‘‘यार, अब तो भूख लगी है, खाने के लिए कुछ करो.’’

‘‘सामने अभी हाल ही एक नया रैस्टोरैंट खुला है, वहां वाजिब दाम में बढि़या खाना मिलता है,’’ प्रताप ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा.

वह अपने तीनों मित्रों के साथ रैस्टोरैंट की ओर बढ़ रहा था, तब भी उस के दिमाग में विचार चल रहे थे. हर बुधवार को मूंग की दाल बनाने का भूत सुधा के दिमाग से निकालना ही पड़ेगा. आने वाले बुधवार को वह मूंग की दाल खाने से साफ मना कर देगा और यहां आसपास तमाम होटल हैं, जा कर खा लेगा. उस ने पक्का निर्णय कर लिया कि कुछ भी हो, इस बार बुधवार को वह मूंग की दाल बिलकुल नहीं खाएगा.

चारों रैस्टोरैंट में जा कर एक मेज पर बैठ गए. इधरउधर निगाहें डाल कर आकाश ने कहा, ‘‘यार प्रताप, रैस्टोरैंट तो अच्छा है. आज की पार्टी मेरी ओर से. पिछले महीने पुत्ररत्न प्राप्त हुआ है, उसी की खुशी में.’’

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फिर तो सभी ने उसे बधाई दी. पुरानी यादों को ताजा करते हुए हंसतेखिलखिलाते उन्होंने खाना खाया. खाना अच्छा था. खाना खाने के बाद उठते हुए प्रताप

ने कहा, ‘‘आज तुम लोग मिले, बहुत अच्छा लगा. रोजाना तो बैंक से सीधे घर.’’

‘‘औफिस से सीधे घर, यही लगभग सभी पुरुषों की कहानी होती है,’’ दीपक ने कहा, ‘‘कालेज लाइफ के भी क्या मजे थे, यार.’’

‘‘अब वे दिन कहानी बन गए हैं. जरा भी देर हो जाती है तो पत्नी हिसाब मांगने लगती है,’’ दीपेश बोला.

खापी कर डकार लेते हुए चारों रैस्टोरैंट से बाहर निकले. प्रताप के तीनों मित्र विदा हो गए तो उस ने भी अपना स्कूटर स्टार्ट किया. 10 बजने में मात्र 20 मिनट बाकी थे. घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. सुधा लालपीली हो रही होगी. दरवाजे पर ही कुरसी डाले बैठी होगी. वर्षों बाद आज पुराने दोस्त मिले थे, उन के साथ भी तो बैठना जरूरी था. स्कूटर की गति के साथसाथ उस के विचारों की गति भी बढ़ती जा रही थी. देर होने पर सुधा अवश्य बवाल करेगी. वह लड़ने को भी तैयार होगी. इस बात का उसे पूरा आभास था. वह होंठों ही होंठों में मुसकराते हुए बड़बड़ाया, ‘मुझे पता है वह झगड़ा करेगी. लेकिन यदि आज उस ने झगड़ा किया तो मैं उस का वह हश्र करूंगा जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.’

प्रताप घर पहुंचा. उस के घर में घुसते ही सुधा ने जलती नजरों से पहले प्रताप की ओर, फिर घड़ी की ओर देखा. उस के बाद कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अब तक कहां थे? किस के साथ घूम रहे थे?’’

‘‘तुम्हारी बहन के साथ घूम रहा था,’’ दांत भींच कर प्रताप ने कहा.

प्रताप ऐसा जवाब देगा, सुधा को उम्मीद नहीं थी. उस ने आंखें फाड़ कर प्रताप की ओर देखा. फिर आगे बढ़ कर प्रताप की आंखों में आंखें डाल कर चीखते हुए बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने?’’

‘‘जो तुम ने सुना,’’ प्रताप ने दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कहा.

‘‘बेशर्म, कुछ लाजशर्म है या नहीं?’’ सुधा ने प्रताप का कौलर पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, ‘‘नीच कहीं के, इस तरह की बात कहते शर्म नहीं आती?’’

‘‘पहले तुम अपने बारे में सोचो,’’ प्रताप ने सुधा से कौलर छुड़ाते हुए शांति से कहा, ‘‘घर से बाहर निकलने पर रास्ते में बीस तरह की परेशानियां आती हैं. पति को घर आने से जरा सी देर हो जाए तो शांति से पूछना चाहिए. वह जो कहे उसे सुनना चाहिए. ऐसा करने के बजाय तुम रणचंडी बन जाती हो. मेरी समझ में यह नहीं आता कि हमेशा तुम उलटा ही क्यों सोचती हो?’’

‘‘तुम्हारे उपदेश मुझे नहीं सुनने,’’ सुधा की आंखों से आग बरस रही थी. वह तेज स्वर में बोली, ‘‘तुम ने जो कहा है वह मैं मम्मीपापा को फोन कर के बताऊंगी.’’

‘‘तुम्हें जिस से भी कहना हो, कह देना,’’ प्रताप ने कंधे उचका कर कहा, ‘‘साथ ही तुम ने जो पूछा है वह भी बता देना. और हां, देर क्यों हुई, यह जरूर बता देना,’’ कह कर प्रताप ने अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाया. घुटने पर फटी पैंट और खून के दाग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. उस ने पैंट उठा कर घुटने पर बंधी पट्टी दिखाते हुए कहा, ‘‘लहूलुहान हो कर भी घर पहुंचो, तब भी तुम्हारे दिमाग में उलटीसीधी बातें ही आती हैं.’’

प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा चुप रह गई. वह गरदन झुका कर कुछ सोचने लगी तो उंगली से इशारा कर के प्रताप थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारे पास बुद्धि है. कभी उस का भी उपयोग कर लिया करो. हमेशा तुम्हारा व्यवहार एक जैसा ही रहता है. आदमी के साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है.’’

प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा सहम सी गई थी. एक तो प्रताप को चोट लग गई थी. फिर 4 साल में पहली बार प्रताप ने इस तरह सुधा को जवाब दिया था. वह आश्चर्य से आंखें फाड़े प्रताप को ही ताक रही थी. प्रताप ने उसे हिकारतभरी नजरों से देखा. आज वह अपने मन की भड़ास निकाल रहा था, ‘‘तुम अपने व्यवहार को सुधारो, स्वभाव को बदलो और इंसान की तरह रहना सीखो. नहीं सीखा तो फिर मैं सिखा दूंगा.’’

सुधा आंखें फैलाए, होंठ भींचे प्रताप की बातें सुनती रही. प्रताप का आज जो मन हो रहा था, बके जा रहा था. सुधा से सहन नहीं हुआ तो वह मारे गुस्से के पैर पटकते हुए रसोई में चली गई.

प्रताप ने बैडरूम में जा कर कपड़े बदले और लेट गया.

सवेरे उठ कर वह बहुत खुश था. शरीर की थकान एक ही रात में उतर गई थी. फटाफट फ्रैश हो कर वह अखबार ले कर पढ़ने बैठ गया. एक जागरूक नागरिक ने टै्रफिक पुलिस को नींद से जगाया, हैडिंग के साथ उस का समाचार छपा था. उस के द्वारा फैक्स किए गए पत्र का मुख्य अंश भी छपा था. वह खुशी से झूम उठा. होंठों को गोल कर के सीटी बजाते हुए बाथरूम में घुसा.

सुधा आश्चर्य से प्रताप की प्रत्येक अदा को ध्यान से देख रही थी. प्रताप खाने के लिए बैठा तो सुधा उस की बगल में आ कर खड़ी हो गई. पिछली रात प्रताप ने उस के साथ जो व्यवहार किया था उस की नाखुशी अभी भी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. वह भी कोई कच्ची मिट्टी की नहीं बनी थी. क्रैडिट सोसायटी से रुपए ले कर बड़े भाई को देने वाली बात अभी भी उस के दिमाग में घूम रही थी. प्रताप के चेहरे पर नजरें जमा कर आहिस्ता से बोली, ‘‘भैया को फोन कर दिया था न?’’ सुधा ने यह बात आज जिस तरह कही थी, उस में कल जैसी उग्रता नहीं थी. सुधा को शांति से बात करते देख प्रताप को आश्चर्य हुआ था.

मुंह में निवाला डाल कर प्रताप ने सिर हिला दिया. सुधा का चेहरा खिल उठा था. सुधा के चेहरे पर एक निगाह डाल कर प्रताप मन ही मन बड़बड़ाया, ‘उन्हें तो मैं इस तरह पैसा दूंगा कि तुझे पता ही नहीं चलेगा.’

जूते पहन कर प्रताप ने स्कूटर की  चाबी ली और दरवाजा बंद कर  के बाहर आ गया. सीढि़यों से उतर कर स्कूटर के पास पहुंचा तो देखा तंबाकू और गुटखे के पाउच स्कूटर पर पड़े थे. सब्जी का कुछ कचरा स्कूटर की सीट पर तो कुछ फुटरैस्ट पर पड़ा था. यह देख कर प्रताप की सांस तेज हो गई. उस ने ऊपर की ओर देखा. संयोग से तीसरी मंजिल पर रहने वाले दंपती बालकनी में खड़े थे. प्रताप ने चीख कर कहा, ‘‘अरे ओ जंगलियो,’’ प्रताप इतने जोर से चीखा था कि अगलबगल फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए थे. सभी की आंखों में आश्चर्य था. मारे गुस्से के प्रताप कांप रहा था.

प्रताप ने अपने दाहिने हाथ की उंगलियां बालकनी की ओर उठा कर कहा, ‘‘मैं तुम से ही कह रहा हूं. कोई कुछ कहता नहीं है तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि गंदगी करने का ठेका तुम्हें मिल गया है. नीचे भी आदमी रहते हैं, जानवर नहीं. इस तरह कचरा फेंकने में आप लोगों को शर्म भी नहीं आती?’’

प्रताप जिस तरह चीखचीख कर अपनी बात कह रहा था, उस से सभी पड़ोसी स्तब्ध रह गए थे. दरवाजे पर खड़ी सुधा की आंखों में भी आश्चर्य था. प्रताप दांत पीस कर बोला, ‘‘सुन लो, आज के बाद यदि कचरा नीचे आया तो सारा कचरा समेट कर मैं तुम्हारे घर में फेंक दूंगा.’’

सभी की नजरें तीसरी मंजिल की बालकनी पर खड़े दंपती पर जम गई थीं. जबकि पतिपत्नी नीचे खड़े प्रताप को एकटक ताक रहे थे. प्रताप ने जो कहा था, उस का असर झांक रहे लोगों पर क्या पड़ा, यह देखने के लिए प्रताप ने चारों ओर नजरें दौड़ाईं. सभी लोग तीसरी मंजिल पर खड़े पतिपत्नी को हिकारत भरी निगाह से देख रहे थे. फिर उस ने विजेता की तरह गर्व के साथ स्कूटर में किक मारी. स्कूटर स्टार्ट हुआ तो सवार हो कर सड़क पर आ गया. आज सड़क पर बसें कायदे से खड़ी थीं. ट्रैफिक पुलिस भी चौराहे पर मुस्तैदी से खड़ा था. इस का मतलब उस की कार्यवाही का असर हुआ था. परंतु यह सब कितने दिन चलने वाला था.

उस ने बैंक में जैसे ही प्रवेश किया, सामने बैठे मैनेजर साहब ने पूछा, ‘‘भई प्रताप, तुम्हारा पैर कैसा है?’’

‘‘ठीक है, बैटर दैन यस्टरडे,’’ खुश होते हुए प्रताप ने कहा. उस ने अपनी सीट की ओर बढ़ते हुए सोचा, बेटा लाइन पर आ गया. सिधाई का जमाना नहीं रहा. एक बार आंखें लाल कर दो, सभी लाइन पर आ जाते हैं. उस दिन उस ने बैंक में काफी हलकापन महसूस किया. मैनेजर साहब का चमचा दिनेश 2 बार उस की मेज पर आ कर हालचाल पूछ गया था. उस ने चाय भी पिलाई थी. शाम को बैंक से घर जाते हुए वह काफी खुश था. स्कूटर खड़ा करते हुए उस ने देखा, आज पूरा मैदान साफ था. वह स्कूटर खड़ा कर रहा था, तभी सामने वाले फ्लैट में रहने वाले सुधीर ने उस के पास आ कर शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘सुबह आप ने बहुत अच्छा किया. ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही करना चाहिए. यदि आदमी होंगे तो अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’

व्यंग्य: मेरा उधार लौटा दो

लेखक-  अशोक गौतम 

मैं थोड़ाबहुत लिखलाख लेता हूं, इधरउधर से मारमूर कर. इसी के बूते आज अपने देश का मूर्धन्य हो धन्य हो गया हूं. मुझे लिखना आता हो या न पर चुराने की कला में मैं सिद्धहस्त हूं. दो लाइनें इस की उठाईं तो दो उस की और हो गई धांसू रचना तैयार. नहृदयी उसे सुनते हैं तो आहआह कर उठते हैं. उन की इसी आहआह का परिणाम है कि न चाहते हुए भी मेरे हाथ औरों के संग्रह को खंगालने के लिए अपनेआप ही उठ जाते हैं.

लाइनें चुराने की कला में निपुण हूं भी क्यों न? इत्ते साल जो हो गए हैं यह काम करतेकरते. अब तो इस काम में लगे सिर के बाल भी सफेद होने लग गए हैं. कई बार सोचता हूं कि यह चोरीचकारी का काम छोड़ दूं और जिंदगी में कम से कम तो दोचार लाइनें अपनेआप लिखूं. पर जब सामने ढेर सारा मित्रों का लिखा हुआ आता है तो मेरी सृजनात्मकता जवाब दे जाती है.

पीने वाला जैसे पिए बिना नहीं रह सकता, नेता जैसे अंटशंट कहे बिना नहीं रह सकता, हमारी गली का लाला जैसे किलो के बदले 900 ग्राम दिए बिना नहीं रह सकता, वैसे ही मैं किसी के भी साहित्य पर हाथ साफ किए बिना नहीं रह सकता. अब तो यह चोरनेचुराने की लत ऐसी लग गई है कि बिन कुछ चुरा कर लिखे बिना रोटी ही नहीं पचती. लाख गोलियां हाजमोला खा लूं तो खा लूं, पर क्या मजाल जो खट्टे डकार रुक जाएं.

मुझ में दूसरी अच्छी आदत है मैं किसी से उधार ले कर लौटाता नहीं. मैं किसी से उधार ले कर वैसे ही भूल जाता हूं जैसे नेता चुनाव के वक्त जनता से वादे  कर चुनाव जीतने के बाद भूल जाते हैं. वैसे भी उधार लेने की चीज है, ले कर देने की नहीं. जो लोग इस सत्य को जान लेते हैं वे सात जनम तक लिया उधार नहीं लौटाते.

उन के लिए बेचारे उधार देने वाले उन के साथ न चाहते हुए भी जन्म लेते रहते हैं कि हो सकता है वे इस जन्म में उन से लिया उधार लौटा दें. सब में शर्म हो सकती है पर मैं ने जो नोट किया है कि उधार ले कर देने के मामले में बहुत कम लोगों में शर्म होती है. और जो उधार ले कर देने के मामले में शर्म फील करें, ऐसी आत्माएं नीच होती हैं. गधे हैं वे जो उधार ले कर लौटाते हैं.

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वे आज फिर अपना दिया उधार मांगने आए थोबड़ा लटकाए, ठिठकते हुए. जैसे उन्होंने मुझे उधार दे कर मुझ पर बड़ा भारी एहसान किया हो. असल में आज की डेट में उधार लेने वाला उधार देने वाले का एहसानमंद नहीं होता. उधार लेने वाला उधार देने वाले पर एहसान करता है. उधार देने वाला उधार लेने वाले की नजरों में भले ही गधा हो, पर वह किसी को उधार देते हुए अपनी नजरों में खुद को गोल्डन जुबली फिल्म के हीरो से कम नहीं समझता. उधार दे कर दिए उधार के वापस आने की चिंता उधार देने वाले की व्यक्तिगत होती है, लेने वाले की नहीं. एक आदर्श कर्जदार वही है जो लिए उधार को देने की रंच भर भी चिंता नहीं करता. मित्रो, उधार ले कर फिर देने की चिंता में घुलते रहे तो उधार ले कर भी जिए तो क्या जिए? मेरी तरह के उधार लेने वालों की इसी प्रवृत्ति का मैं कायल हूं.

सच कहूं, उधार लेने वाले को जितना उधार दिया उस को वापस लेने की उतनी चिंता नहीं होती है जितनी देने वाले को होती है. उधार ले कर भी चिंता में जिए तो क्या जिए? उधार देने वालों की इसी प्रवृत्ति का मैं कायल हूं. उधार देने वाले अभी फिर आते ही मेरे आगे दोनों हाथ जोड़े गिड़गिड़ाते बोले, ‘यार, अब की मेरा दिया लौटा दे. बड़े साल हो गए. सोच रहा था तुम मेरा दिया लौटा देते तो अब के दीवाली पर कमरे में सफेदी ही करवा लेता. कैसे कमीने साहित्यकार हो तुम भी. देखो उन को जिन्होंने सामाजिक असहिष्णुता के विरोध में अपने सम्मान तक लौटा दिए और एक तुम हो मेरा उधार तक नहीं लौटा रहे?

‘हे मेरी आस्तीन के साहित्यकार दोस्त, जानता हूं, सम्मान के नाम पर तुम्हारे पास भूजी भांग भी नहीं पर कम से कम इस परंपरा का निर्वाह करते मेरा उधार ही लौटा देते तो मुझे भी लगता कि…’

‘हद है यार, जब भी मिलते हो बस उधार लिए को देने की ही परोक्षअपरोक्ष अपील करते हो. दोस्तों को उधार देने के बाद क्या ऐसे पेश आते हैं? तुम मरे जा रहे हो क्या? हम मरे जा रहे हैं क्या?

‘जब कोई नहीं मर रहा तो चिंता काहे की? सच कहूं, ऐसा उधार दे कर मांगने वाला बेशर्म मैं ने आज तक नहीं देखा. रही बात लौटाने की, तो यह व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है. वे सम्मान लौटा रहे हैं, उन की मरजी.

‘मैं तुम से उधार लिया लौटाऊं या न, यह मेरी मरजी,’ इतना कहने के बाद कोई गधा ही आगे कहने की हिम्मत करेगा. वे भी नहीं कर पाए. उधार देने वाले की यही तो एक सब से बड़ी खासियत होती है भाई साहब कि वह उधार देने के बाद गुर्राता नहीं, गिड़गिड़ाता है.  द्य

जीवन की मुसकान

मातापिता उंगली थाम अपने बच्चों को कदम उठाना सिखाते हैं, पर वृद्धावस्था में वे अपना कदम उठाने के लिए बच्चों की ओर ताकते रह जाते हैं. धुंधलाई दृष्टि, बच्चों का सहारा ढूंढ़ती है और सहारा न मिलने पर निराश हो उठती है, एक ऐसा ही अनुभव मैं ने महसूस किया.

रिश्ते की 85 वर्षीय बूआजी अपने इकलौते पोते आशीष की शादी का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थीं. उन का कहना था कि दुनिया से जाने से पहले अपने आशीष की दुलहन देख जाऊं. बस अब और कोई इच्छा नहीं है. फूफाजी को गुजरे 4 वर्ष हो गए थे. अब बूआजी पिछले 2 वर्षों से बिस्तर पर ही थीं, पर वे एक ही रट लगाए थीं कि मैं भी शादी में जाऊंगी, फेरे देखूंगी. कहते हैं न मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है. पोता उन का बचपन से लाडला रहा. बस उस की शादी देखने की और पोता और उस की नईनवेली दुलहन को अपने हाथों से आशीष देने की अपनी इच्छा पूरी करना चाहती थीं.

बूआजी की बहू यानी मेरी भाभी इस बात पर चिढ़ रही थीं कि भला इन को कौन ले जाए और कैसे, कहतीं, ‘मोहमाया ही नहीं छूटती इन की.’ तब मैं ने बूआ की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. भाभी को आश्वस्त कर दिया कि वे बेफिक्री से शादी संभालें. बूआ की इतनी इच्छा है तो उसे मैं पूरा करने की पूरीपूरी कोशिश करूंगी. मेरी बूआ हैं मेरा भी तो इन के प्रति कुछ करने का फर्ज बनता है.

एडल्ट डाइपर पहना कर बूआजी को अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर लिटा दिया और ह्वीलचेयर फोल्ड कर के साथ रख ली. उन्होंने मजे से फेरे देखे, अपने कांपते हाथों से दूल्हादुलहन को आशीष दिया.

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शादी की जब सारी रस्में पूरी हो गईं तो मेरे दोनों हाथ थामे और स्नेह से चूम लिया. उस समय उन की आंखें खुशी से बरस रही थीं. आसपास के सभी लोगों ने मेरी तारीफ की और तालियां भी बजाईं.

सही बात तो यह है कि जितनी बूआजी को खुशी हुई उस से ज्यादा मुझे हुई कि मैं उन को एक मनचाही संतुष्टि दे सकी. ऐसा लगा मानो जिंदगी की बहुत बड़ी खुशी पा ली है. विवाह के एक हफ्ते बाद ही बूआ जो  रात को सोईं तो फिर उठी ही नहीं. उन के चेहरे पर शांति की आभा थी.

वृद्धजनों को थोड़ी सी तरकीब से खुशी दे पाना, अधिक कठिन नहीं होता. बस, थोड़ा धैर्य और इच्छा का साथ चाहिए होता है.

Crime Story: प्यार ही बना प्यार की राह का कांटा

घंटी बजते ही फराह ने मोबाइल उठा कर स्क्रीन पर नजर डाली तो अनायास ही उस के मुंह से निकल गया, ‘अम्मी का फोन.’ फोन रिसीव करते हुए उस ने उत्साह से कहा, ‘‘अम्मी सलाम.’’

‘‘वालेकुम सलाम, कैसी हो फराह?’’ अम्मी ने पूछा.

‘‘ठीक हूं अम्मीजान, आप कैसी हैं?’’

‘‘सब ठीक है बेटी, आप के शौहर हैं घर पर?’’

‘‘वह तो दुकान पर गए हैं. क्यों, क्या बात है?’’ फराह ने पूछा.

‘‘कोई खास बात नहीं है. आज सलीम मामू के बेटे शोएब की बर्थडे पार्टी है, आप दोनों को भी आना है. शोएब खासतौर पर तुम दोनों के लिए कह कर गया है.’’

‘‘हम उन से पूछ लेंगे, अगर इजाजत दे दी तो जरूर आएंगे.’’ कह कर फराह ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने अपने शौहर पुष्पेंद्र को फोन कर के घर बुला लिया. पुष्पेंद्र ने इस तरह बुलाने की वजह पूछी तो फराह ने कहा, ‘‘अम्मी का फोन आया था, कह रही थीं कि हम दोनों को मामू के यहां बर्थडे पार्टी में आना है.’’

‘‘तुम ने क्या कहा?’’ पुष्पेंद्र ने पूछा.

‘‘मैं क्या कहती, कह दिया कि इजाजत मिली तो जरूर आ जाएंगे.’’ फराह बोली.

‘‘तुम चली जाओ. बेटी को भी साथ ले जाओ. मैं तुम दोनों को छोड़ आऊंगा. तुम तैयारी करो, जब तैयार हो जाओ तो मुझे फोन कर देना, मैं दुकान से आ जाऊंगा.’’ पुष्पेंद्र ने कहा.

जवाब में फराह बोली, ‘‘आप बिना वजह परेशान होंगे. हम दोनों रिक्शे से चले जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, पर रात गहराती दिखे तो फोन कर देना. मैं छोड़ आऊंगा.’’ कह कर पुष्पेंद्र दुकान पर चला गया.

फराह बेटी स्नेहा को तैयार कर के खुद तैयार होने लगी. तैयार होने के बाद फराह बेटी को ले कर रिक्शे से मायके पहुंचीं तो वहां उस के बड़े भाई तारिक और अम्मी तैयार थे, उन्हें ले कर फराह शोएब की बर्थडे पार्टी में शामिल होने मामू के घर पहुंच गईं.

चांद सी सुंदर फराह को आया देख शोएब ने पलकें बिछा दीं. जब तक फराह वहां रही, वह उसी के इर्दगिर्द घूमता रहा, उस की खातिरदारी में लगा रहा. घर जाने से पहले फराह ने शोएब से हंसते हुए कहा, ‘‘शोएब, अब मैं आप के निकाह की दावत खाने वलीमा में ही आऊंगी.’’

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‘‘आप मुझे बददुआ मत दीजिए. मैं निकाह की बात ख्वाब में भी नहीं सोच सकता.’’ शोएब ने दुखी स्वर में कहा.

‘‘क्यों, कहीं प्यार में चोट खाई है क्या आप ने?’’ चंचल स्वभाव की फराह ने यूं ही पूछ लिया.

‘‘कुछ लोगों को तो मन की मुरादें मिल जाती हैं, जबकि कुछ लोग मेरी तरह रह जाते हैं.’’

‘‘क्यों नहीं हो पाई मुराद पूरी?’’ फराह ने यूं ही पूछ लिया.

‘‘मेरी ही गलती थी फराह, जिसे मैं चाहता था, उस से कभी कह नहीं पाया कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

‘‘कौन थी वह और अब कहां है? आप मुझे बताएं. मैं बात करती हूं उस से.’’ फराह ने अफसोस जताते हुए शोएब से मदद की पेशकश की.

‘‘क्या करेंगी जान कर आप?’’ कह कर शोएब ने पल्ला झाड़ना चाहा, पर फराह अपनी आदत से मजबूर थी.

वह उस के पीछे पड़ने वाले अंदाज में बोली, ‘‘शोएब, अगर तुम उसे दिल से चाहते हो तो मैं वादा करती हूं, वह तुम्हारे कदमों में होगी. मुझे पूरा यकीन है, वह तुम्हें जरूर मिल जाएगी.’’

‘‘अगर हम आप से कहें कि वह लड़की आप ही थीं तो..?’’ शोएब ने मन की बात कह दी.

‘‘शोएब, लगता है आप की दीवानगी से आप का दिमाग घूम गया है.’’ चेहरे पर हलका सा गुस्सा लाते हुए फराह ने कहा, ‘‘आप मेरे मुंह पर ही मेरी मोहब्बत को गाली दे रहे हैं. यह जानते हुए भी कि मैं किसी की बीवी हूं और एक बच्ची की मां भी.’’

‘‘आप खामख्वाह ताव में आ गईं. आप पूछती रहीं और मैं टालने की कोशिश करता रहा. लेकिन आप ने मुझे मजबूर कर दिया तो मैं अपने जज्बात को छिपा नहीं पाया.’’ कह कर शोएब वहां से चला गया.

फराह अपनी 7 साल की बेटी स्नेहा के साथ घर लौट आई. दुकान पर दोस्तों के साथ गप्पें मारता पुष्पेंद्र उसी के फोन का इंतजार कर रहा था. रात साढ़े 10 बजे फराह ने फोन कर के कहा, ‘‘आज घर नहीं आना क्या?’’

‘‘तुम अकेली ही आ गईं? मैं तो तुम्हारे फोन का इंतजार कर रहा था, बता देतीं तो मैं आ जाता लेने.’’

‘‘बड़े भाई छोड़ गए थे. आप घर आ जाइए.’’ कह कर फराह ने पूछा, ‘‘सब्जी क्या बनाऊं?’’

‘‘खाना बनाने की जरूरत नहीं है. मैं ने होटल से मंगा कर खा लिया है. मैं घर आ रहा हूं.’’ कह कर पुष्पेंद्र ने दुकान का शटर गिरा कर ताले लगाए और मोटरसाइकिल से घर के लिए चल पड़ा.

फराह और पुष्पेंद्र एकदूसरे पर जान न्यौछावर करते थे. दोनों की मुलाकात सन 2006 में अलीगढ़ शहर के एक सिनेमाघर में हुई थी. पुष्पेंद्र शहर के थाना सासनीगेट के मोहल्ला खिरनीगेट (हाथरस अड्डा) निवासी हेमेंद्र अग्रवाल का बड़ा बेटा था. वह अपने पिता के साथ कारोबार में हाथ बंटाता था.

जबकि फराह शहर के थाना सिविललाइंस की पौश कालोनी मैरिस रोड निवासी मोहम्मद शमीम की बेटी थी. उन की 2 संतानों में बड़ा बेटा था तारिक और छोटी बेटी थी फराह. मांबाप के लाड़प्यार ने खूबसूरत फराह को बंदिशों से आजाद कर रखा था.

पुष्पेंद्र से हुई मुलाकात में न जाने ऐसी क्या कशिश थी कि फराह के दिल में अजीब सी हलचल मच गई थी. यही वजह थी कि सिनेमाहाल में बैठेबैठे दोनों ने एकदूसरे के नाम तक जान लिए थे. इतना ही नहीं, दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे.

इस के बाद दोनों के बीच मोबाइल पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. इस का नतीजा यह निकला कि फराह और पुष्पेंद्र ने जल्दी ही एकदूसरे के दिलों में ऐसी जगह बना ली, जहां से पीछे लौटना संभव नहीं था. दोनों ने प्यार में साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए वादा कर लिया कि जल्दी ही शादी के बंधन में बंध कर अपनी अलग दुनिया बसा लेंगे.

आखिर पुष्पेंद्र ने फराह की जिद पर कोर्ट मैरिज कर ली. जब वह फराह को दुलहन के रूप में ले कर घर पहुंचा तो उसे उलटे पांव लौटना पड़ा. घर वालों ने मुसलिम लड़की को बहू के रूप में स्वीकार नहीं किया और साफ कह दिया कि वह उसे ले कर कहीं दूसरी जगह जा कर रहे.

पुष्पेंद्र ने जरा भी हिम्मत नहीं हारी. फराह को ले कर वह कभी कहीं तो कभी कहीं रहता रहा. दूसरी ओर कट्टरपंथियों ने फराह द्वारा एक हिंदू युवक से शादी करने की बात को तूल दे कर अलीगढ़ में तनाव की स्थिति पैदा करने की कोशिश की.

लेकिन फराह की दृढ इच्छाशक्ति के सामने कट्टरपंथियों को घुटने टेकने पड़े. धीरेधीरे माहौल शांत हो गया. कुछ समय बाद पुष्पेंद्र ने फराह के नाम शहर की पौश कालोनी मैरिस रोड पर नंदनी अपार्टमेंट में 55 लाख रुपए में एक शानदार फ्लैट खरीदा और उसी में रहने लगा. पुष्पेंद्र थोक दवाओं की बाजार फफाला मार्केट में दवाइयों की थोक की दुकान थी. वह अपनी उसी दुकान पर बैठता था. चूंकि आमदनी अच्छी थी, इसलिए उसे परिवार द्वारा अलग कर दिए जाने के बाद भी कोई परेशानी नहीं हुई.

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डेढ़ साल बाद फराह और पुष्पेंद्र एक बेटी के मातापिता बन गए. उन्होंने बेटी का नाम रखा स्नेहा. धीरेधीरे 4 साल गुजर गए. गुजरते वक्त के साथ फराह के मायके वालों की उस के प्रति कटुता खत्म होती गई. जब फराह की मां का दिल नहीं माना तो उन्होंने एक दिन बेटी से फोन पर बात कर के घर आने का न्यौता दे दिया.

पुष्पेंद्र से पूछ कर फराह बेटी स्नेहा को ले कर मायके चली गई. जब मायके वालों को पता चला कि पुष्पेंद्र ने जो फ्लैट खरीदा है, वह फराह के नाम है तो उन्हें खुशी हुई. इस के बाद फराह मायके आनेजाना शुरू हो गया. धीरेधीरे मायके के अलावा दूसरी करीबी रिश्तेदारियों में भी उस का आनाजाना शुरू हो गया.

इसी के चलते फराह शोएब की बर्थडे पार्टी में गई थी, जहां शोएब से उस की जो बातें हुईं, उन्हें सुन कर उस के दिल को चोट सी लगी.

29 अक्तूबर, 2016 की रात फराह को जो खबर मिली, उसे सुन कर वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. छोटी दिवाली की रात 9 बजे से पहले फराह ने पुष्पेंद्र को फोन कर के कहा था, ‘‘आप कह कर गए थे कि तैयार रहना बाजार चलेंगे. मैं तैयार हूं, आप आ जाइए.’’

पुष्पेंद्र ने 15 मिनट में आने को कह कर फोन काट दिया. वह दुकान बंद कर के केलानगर के पास पहुंचा ही था कि पीछा कर रहे बदमाशों ने उसे घेर लिया. उन्होंने पहले उस के साथ लूटपाट की, उस के बाद उसे गोली मार कर हत्या कर दी. लूटा हुआ माल ले कर वे फरार हो गए.

यह सूचना थाना क्वारसी पुलिस को मिली तो वह तुरंत घटनास्थल पर पहुंची. इंसपेक्टर श्रीप्रकाश चंद्र यादव ने आननफानन में घायल पुष्पेंद्र को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

श्रीप्रकाश चंद्र यादव को पता चल गया था कि मृतक थोक दवा विक्रेता पुष्पेंद्र अग्रवाल है. उन्होंने उस की पत्नी फराह के साथसाथ उस के घर वालों को भी घटना की सूचना दे दी थी. हत्या की सूचना पा कर फराह का रोरो कर बुरा हाल था. वह बदहवास हालत में अस्पताल पहुंची तो पति की लाश देख कर बेहोश हो गई.

पुष्पेंद्र की विधवा मां राजरानी और घर के अन्य लोग भी रोतेबिलखते अस्पताल पहुंचे. इस घटना से क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. पुष्पेंद्र की हत्या की खबर पा कर जिला कैमिस्ट ऐंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू, महामंत्री आलोक गुप्ता भी अन्य पदाधिकारियों के साथ अस्पताल आ गए थे. उन्होंने पुलिस के प्रति आक्रोश जताते हुए हत्यारों को तुरंत पकड़ने की मांग की.

दवाई व्यापारी की हत्या की सूचना पर एसएसपी राजेश पांडेय, एसपी (सिटी) अतुल श्रीवास्तव, सीओ तृतीय राजीव सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल का निरीक्षण कर के सभी लोग अस्पताल गए, जहां अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू सहित तमाम दवा विक्रेताओं की पुलिस से नोकझोंक भी हुई. काफी मशक्कत के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा सका.

लूट और हत्या का यह मामला थाना क्वारसी में अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया. एसपी (सिटी) के निर्देशन में थाना क्वारसी के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश चंद्र यादव की टीम हत्यारों की टोह में लग गई. दवा विक्रेताओं की एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू ने पुलिस को अल्टीमेटम दिया कि अगर 7 दिनों में हत्याकांड का खुलासा नहीं हुआ तो सभी दवा व्यापारी हड़ताल करने को बाध्य हो जाएंगे.

30 अक्तूबर, 2016 दिवाली के दिन पोस्टमार्टम के बाद पुष्पेंद्र के शव को उस के पैतृक निवास हाथरस अड्डा, खिरनीगेट लाया गया, जहां नारेबाजी के साथ पुलिस को अल्टीमेटम दे कर अंतिम संस्कार किया गया. दवा व्यापारियों ने फफाला मार्केट बंद करने का ऐलान कर दिया. अगले दिन थोक दवा व्यापारियों ने एकजुटता का परिचय देते हुए सभी दुकानें बंद रखीं.

श्रीप्रकाश चंद्र यादव को घटना के तीसरे दिन इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पेंद्र की हत्या में अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं उस की पत्नी फराह का हाथ है. लेकिन शोकग्रस्त पत्नी की हालत देखते हुए वे उस पर हाथ डालने में घबरा रहे थे. वैसे भी जब तक ठोस सबूत हाथ में न आ जाएं, तब तक पुलिस चुप ही रहना चाहती है. बहरहाल श्रीप्रकाश चंद्र रातदिन लग कर इस केस की कडि़यां जोड़ने में लगे थे.

पुलिस जब 7 दिनों में हत्याकांड का खुलासा करने के आश्वासन को पूरा नहीं कर सकी तो अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू ने शहर भर की दवा की दुकानों को बंद करने का ऐलान कर दिया. शहर भर की दवा की दुकानें यहां तक कि निजी नर्सिंग होम के अंदर की दुकानों पर भी ताले जड़ दिए गए. 2 दिन तक दुकानों के बंद होने से मरीज इधरउधर भटकते रहे.

तीसरे दिन शहर के साथ ब्लौक और देहातों की दवाई की दुकानें भी बंद रखने का ऐलान कर दिया गया. पूरे अलीगढ़ जिले के दवाई व्यापारी दुकानें बंद कर के आंदोलन में शामिल हो गए. मरीजों की परेशानी के साथ पुलिस की कार्यशैली की चारों ओर भर्त्सना होने से एसएसपी राजेश पांडेय ने एसोसिएशन के सभी पदाधिकारियों के साथ मीटिंग कर कहा कि पुलिस हत्याकांड के खुलासे के एकदम करीब पहुंच चुकी है, इसलिए उन्हें 72 घंटे की मोहलत और दी जाए.

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अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू और अन्य उपस्थित पदाधिकारियों ने 72 घंटे की मोहलत दे कर दुकान खोलना स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस के काम में तेजी आ गई. एसपी सिटी के निर्देशन में लगी सर्विलांस टीम प्रभारी के साथ तेजतर्रार एसओजी प्रभारी छोटेलाल के अलावा कई अन्य तेजतर्रार पुलिस वालों को भी इस में लगा दिया गया.

2 दिनों तक यह टीम श्रीप्रकाश चंद्र यादव के साथ पुष्पेंद्र की हत्या व लूट के खुलासे में लगी रही, तब कहीं जा कर श्रीप्रकाश चंद्र को उम्मीद की किरण दिखाई दी. उन का अनुमान सही साबित हुआ. सीसीटीवी कैमरे और सर्विलांस की मदद से पता चला कि पुष्पेंद्र की हत्या में उस की पत्नी फराह और उस के प्रेमी शोएब, निवासी 179 नई आबादी, केलानगर, मैरिस रोड का हाथ था.

श्रीप्रकाश चंद यादव ने महिला पुलिस की मदद से मृतक की पत्नी फराह और उस के प्रेमी शोएब को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस पूछताछ में फराह ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी और अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

हत्या किस उद्देश्य से की गई, उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया. शोएब ने भी हत्या और लूट की कहानी बयान करते हुए अपने साथियों के नामपते बता दिए. पुलिस ने समय गंवाए बिना अरहम, निवासी मोहल्ला रंगरेजान मामूभांजा, थाना गांधीपार्क, अलीगढ़, दीपक चौधरी निवासी गांव आमरी, शिकोहाबाद, जिला फिरोजाबाद को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उस के एक अन्य साथी आशू को गिरफ्तार नहीं कर पाई.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए शोएब, अरहम और दीपक से लूटे गए 1 लाख 53 हजार रुपयों में से 42 हजार रुपए के अलावा एक 32 बोर की पिस्टल, 2 तमंचे, कारतूस, करिज्मा बाइक नंबर यूपी81ए के5766, बैग और चाबियां बरामद कर लीं.

पूछताछ में फराह ने हत्या के बारे में विस्तार से जो कुछ बताया, उस से पुष्पेंद्र की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

फराह जब शोएब की बर्थडे पार्टी में गई थी, वहां शोएब से हुई बातों के बाद उस का खिंचाव शोएब की ओर होने लगा था. फोन पर दोनों के बीच घंटों बातें होने लगी थीं. इस के बाद दोनों की घर के बाहर मुलाकातें भी होने लगीं. इन मुलाकातों ने जब जिस्मानी संबंध का रूप ले लिया तो फराह पूरी तरह शोएब की होने की योजना बनाने लगी.

अब वह पुष्पेंद्र के प्यार को भूल जाना चाहती थी. लेकिन शोएब की वह तभी बन सकती थी, जब पुष्पेंद्र रास्ते से हट जाता. इस के लिए वह शोएब के साथ मिल कर पुष्पेंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगी.

पुष्पेंद्र पत्नी में आए बदलाव का जरा भी अंदाजा नहीं लगा सका. फराह की बेरुखी को उस ने बेटी के साथ व्यस्तता माना. उस ने फराह के सामने बेटी की देखरेख के लिए किसी आया को रखने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन उस ने मना कर दिया.

पुष्पेंद्र सुबह दुकान पर जाता था तो रात 9-10 बजे तक लौटता था. इस लंबे वक्त में फराह किस से मिलती है, कहां आतीजाती है? पुष्पेंद्र को भनक तक नहीं थी. जबकि खुद को वफा की देवी बताने वाली फराह अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां ही नहीं मनाती थी, बल्कि उस की हत्या की योजना भी बना रही थी.

शोएब भी कम घाघ नहीं था. उस की नीयत पुष्पेंद्र के फ्लैट, बैंकों में जमा धन और फराह व उस की बेटी की लाखों की एफडी पर थी, जो सब मिला कर करोड़ों की रकम थी. फ्लैट फराह के ही नाम था, जिस पर वह गिद्धदृष्टि जमाए बैठा था. इसी के लिए उस ने फराह को अपने जाल में फंसाया था.

फराह के प्यार में अंधे पुष्पेंद्र को फराह की साजिश का आभास तक नहीं हुआ. जबकि वह अपने यार के साथ मिल कर उस की हत्या की योजना बना चुकी थी. पहले इन लोगों की योजना पुष्पेंद्र को दुर्घटना में मरवाने की थी. लेकिन इस में उस के बच जाने का डर था, इसलिए उसे गोली मारने का फैसला लिया गया.

शोएब ने अपने साथियों को एकत्र कर के लूट की योजना बना डाली. किसे लूटना है, उस ने अपने साथियों को यह भी बता दिया. दोस्तों को इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि लूट के पीछे शोएब का असल मकसद क्या है.

लूट की तारीख तय हुई 27 अक्तूबर, 2016. लेकिन उस दिन ये लोग कामयाब नहीं हुए. इस के बाद 29 अक्तूबर को पांचों लोग केलानगर तक पुष्पेंद्र के पीछे लगे रहे. मौका मिलते ही उन्होंने उस की स्कूटी रुकवा ली और गन पौइंट पर उस से एक लाख 53 हजार रुपए का बैग छीन लिया.

पुष्पेंद्र ने कोई विरोध नहीं किया. करिज्मा मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे शोएब ने पिस्तौल से 3 गोलियां पुष्पेंद्र के शरीर में उतार कर उसे हमेशाहमेशा के लिए शांत कर दिया. गाड़ी चला रहे आशू ने उस से तुरंत कहा कि जब उस ने चुपचाप रकम हमारे हवाले कर दी थी, तो तूने उस की हत्या क्यों की? शोएब चुप बैठा रहा. काम हो जाने के बाद शोएब ने इस की सूचना फराह को दे दी.

पकड़े जाने के बाद शोएब के साथियों को पता चला कि उस का असल मकसद हत्या करना था. पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के इस पूरी घटना का खुलासा किया. 23 नवंबर, 2016 को फराह, शोएब, अरहम व दीपक चौधरी को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

थाना क्वारसी इंसपेक्टर श्रीप्रकाश चंद्र यादव की भूमिका प्रशंसनीय रही, जिन्होंने लूट और हत्या के दूसरे ही दिन इस गहरी साजिश बताते हुए मृतक की पत्नी को अपने राडार पर ले लिया था. लेकिन ठोस सबूत न मिल पाने की वजह से उन्होंने फराह पर हाथ नहीं डाला था.

Manohar Kahaniya: सेक्स चेंज की जिद में परिवार हुआ स्वाहा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शाहनवाज

यह कहते हुए प्रवीण ने भी एक एक कर सब के नंबर पर फोन किया. जब उन का फोन भी किसी ने नहीं उठाया तो बिना देरी किए प्रवीण ने अपनी गाड़ी निकाली, उस से तुरंत ही अभिषेक के घर के लिए निकल गए और रास्ते में उन्होंने अभिषेक को फोन किया.

प्रवीण ने अभिषेक से कहा, ‘‘सुन अभिषेक, मैं अपने घर से निकल गया हूं वहां आने के लिए. तू घबरा मत. मैं 15 मिनट में पहुंच जाऊंगा. तब तक मैं कुछ जानकारों को फोन कर के वहां पहुंचने के लिए कहता हूं.’’

प्रवीण ने ये कह कर फोन काट दिया और अपनी कार में बैठेबैठे उन्होंने उसी इलाके में अपने जानकारों को फोन कर जल्द से जल्द अभिषेक के घर पर पहुंचने को कहा.

उधर देखते ही देखते मलिक परिवार के घर के आगे लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी. अभिषेक के साथ मिल कर कुछ लोग घर का दरवाजा तोड़ने में लगे थे, जोकि आसान काम बिलकुल भी नहीं था.

अभिषेक के घर से लग कर साथ वाले मकान से तमाशा देख रहे लोगों ने उसे अपनी छत से उस के घर में प्रवेश करने के लिए कहा तो अभिषेक भाग कर उन की छत पर

जा पहुंचा और छत फांद कर वह अपने घर में जा घुसा.

घर में घुसते ही उस ने सब से पहले नीचे आ कर मकान का मेन गेट खोला और एकएक कर बाकी लोग उस के घर में आ घुसे. ग्राउंड फ्लोर में जिस कमरे में अभिषेक ने आखिरी बार अपने पापा को देखा था उस के नीचे से खून बह रहा था. ये देख कर अभिषेक की आंखों से आंसू बहने शुरू हो गए और बाकी लोग दंग रह गए.

सब लोगों ने मिल कर कमरे का दरवाजा तोड़ा और अंदर प्रदीप मलिक उर्फ बबलू पहलवान की लाश सोफे पर बैठी हालत में मिली. यह देख कर अभिषेक खुद को रोक नहीं पाया और वह जोरजोर से ‘पापा…पापा’ कहते हुए चिल्लाने लगा.

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इतने में उस के मामा प्रवीण आ पहुंचे और वह अपने बहनोई प्रदीप की लाश देख कर टूट गए. लेकिन हिम्मत जुटाते हुए उन्होंने अभिषेक को ले कर ऊपर कमरे की ओर जाने को कहा, जहां घर के अन्य सदस्य मौजूद हो सकते थे. अभिषेक ने भी अचानक से अपने आंसू पोंछे और ‘नेहा…नेहा’ चीखतेचिल्लाते हुए वह घर की पहली मंजिल पर बने कमरे में जा पहुंचा.

यह कमरा भी बाहर से बंद था तो सब ने मिल कर दरवाजा तोड़ा और कमरे में घुसते के साथ अभिषेक और प्रवीण समेत बाकी सभी ने जो देखा उसे देख कर सभी के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई.

पहली मंजिल के कमरे का दरवाजा टूटा तो अभिषेक ने सब से पहले अपनी मां संतोष देवी, उस के बाद अपनी नानी रोशनी देवी और अंत में अपनी बहन नेहा की लाश देखी. यह देख कर अभिषेक पागलों की तरह रोनेपीटने लगा. प्रवीण समेत मकान में मौजूद कुछ लोग अभिषेक को संभालने में लगे थे. अभिषेक का पूरा परिवार ही उजड़ गया था.

वक्त बरबाद न करते हुए प्रवीण ने भीड़ से हटते हुए बाहर निकल कर पुलिस को फोन कर इस घटना की सूचना दी और पलक झपकते ही रोहतक के थाना शिवाजी कालोनी के थानाप्रभारी सुरेश कुमार टीम के साथ वहां पहुंच गए.

पुलिस की टीम के आते ही सब से पहले सभी लोगों को बाहर निकाला गया ताकि वहां से कुछ सबूत जुटाए जा सकें. घटनास्थल की जांच की गई. एकएक कर मृतकों के शरीर को लपेटते हुए बाहर निकाला गया और एक टीम ने इस हत्याकांड में एकमात्र बचे शख्स, अभिषेक का बयान लिया. शुरुआती पूछताछ में अभिषेक ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि प्रौपर्टी डीलर होने की वजह से उस के पिता की लोगों से दुश्मनी थी. उस ने एकदो लोगों के नाम भी पुलिस टीम को दिए.

जानकारी मिलते ही शिवाजी कालोनी पुलिस थाने के थानाप्रभारी एसआई सुरेश कुमार ने मामले की जांच तुरंत शुरू कर दी. सभी की हत्या गोली मार कर की गई थी. घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. टैक्निकल टीम की मदद ले कर घर के सभी लोगों की लोकेशन का पता लगाया गया और लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार किया गया.

इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर बलवंत सिंह ने बारीकी से इस केस के संबंधित हर व्यक्ति की आखिरी लोकेशन का पता लगाया. लेकिन अभिषेक की लोकेशन और उस के द्वारा दिए गए बयान आपस में मेल नहीं खा रहे थे.

इस बिंदु को संज्ञान में लेते हुए इंसपेक्टर बलवंत सिंह ने फिर से अभिषेक से पूछताछ की और अभिषेक ने अपना बयान बदल दिया. थानाप्रभारी को अभिषेक पर शक गहराता गया. उसी दौरान जब मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई तो अभिषेक पर शक की सुई और गहराती चली गई.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पीडि़तों को गोली मारने का टाइम उस समय का था, जब अभिषेक अपने घर पर ही था. अंत में जब शक की सभी सुई अभिषेक पर आ रुकीं तो अभिषेक को हिरासत में लेते हुए इंसपेक्टर बलवंत सिंह से कड़ाई से पूछताछ की.

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इस पूछताछ के दौरान भी अभिषेक ने पुलिस टीम को गुमराह करने का प्रयास किया लेकिन उस का यह प्रयास व्यर्थ गया. इंसपेक्टर बलवंत सिंह और थानाप्रभारी रमेश कुमार ने अभिषेक को सब कुछ सचसच बताने को कहा.

उन्होंने अभिषेक को बताया कि इस हत्याकांड के सारे सबूत उसी की ओर इशारा कर रहे हैं, बेहतर है की वह अब सच बता दे.

अभिषेक ने भी अंत में हार मान ली और जांच अधिकारी बलवंत सिंह को बताया कि उस ने अपने घर के 4 जनों को गोली मारी थी. इस चौहरे हत्याकांड की जो वजह सामने आई, वह इस प्रकार निकली.

बात 3 साल पहले की है. अभिषेक ने जब 12वीं क्लास पास की तो उस के पिता प्रदीप मलिक ने उसे कोई भी एक स्किल कोर्स करने की सलाह दी. वैसे उन के पास पैसों की कभी कोई किल्लत नहीं थी. फिर भी प्रदीप रोहतक में प्रौपर्टी डीलिंग करते थे. वह चाहते थे कि अभिषेक भी खाली न बैठे. इसलिए उन्होंने उसे कुछ भी करने की छूट दे दी थी. तब अभिषेक ने जानबूझ कर रोहतक से दूर दिल्ली में स्थित एक इंस्टीट्यूट में एयरप्लेन कैबिन क्रू का कोर्स करने की जिद की.

प्रदीप मलिक ने अपने इकलौते बेटे की इच्छा का ध्यान रखते हुए उसे कोर्स करने के लिए दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. तब अभिषेक ने दिल्ली जा कर एक इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया और उस के एक हफ्ते बाद ही उस की क्लासेज शुरू हो गईं. अभिषेक को उस दौरान पहली बार आजादी महसूस हुई थी. नए लोगों से मिलना उन से बातें करना उसे बेहद अच्छा लगने लगा.

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इंस्टीट्यूट में उस के बैच में सिर्फ 10-12 स्टूडेंट्स ही थे. सब से उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी, लेकिन उन में से कार्तिक उस का करीबी दोस्त बन गया था. वह उत्तराखंड का रहने वाला था और दिल्ली में अपने रिश्तेदार के साथ रहता था.

अगले भाग में पढ़ें- खुद को लड़की मानता था अभिषेक

एक और बेटे की मां- भाग 1: रूपा अपने बेटे से क्यों दूर रहना चाहती थी?

मुन्ने के मासूम सवाल पर जैसे वह  जड़ हो गई. क्या जवाब दे वह?  सामने वाले फ्लैट में ही राजेशजी  अपनी पत्नी रूपा और मुन्ना के साथ रहते हैं. इस समय दोनों ही पतिपत्नी कोरोना पौजिटिव हो अस्पताल में भरती हैं. उन का एकलौता बेटा किशोर आया के साथ था.

आज वह आया भी काम छोड़ कर अपने घर भाग गई कि यहां जरूर कोई साया है, जो इस घर को बीमार कर जाता है. उस ने उसे कितना सम झाया कि ऐसी कोई बात नहीं और उसे उस छोटे बच्चे का वास्ता भी दिया कि वह अकेले कैसे रहेगा? मगर, वह नहीं मानी और चली गई. दोपहर में वही उसे खाना पहुंचा गई और तमाम सावधानियां बरतने की सलाह दे डाली. मगर 6 साल का बच्चा आखिर क्या सम झा होगा. आखिर वह मुन्ना से सालभर छोटा ही है.

मगर, मुन्ने का सवाल अपनी जगह था. कुछ सोचते हुए वह बोली, ‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. उस के मम्मीपापा दोनों ही बाहर नौकरी करने वाले ठहरे. शुरू से उस की अकेले रहने की आदत है. तुम्हारी तरह डरपोक थोड़े ही है.’’

‘‘जब किसी के मम्मीपापा नहीं होंगे, तो कोई भी डरेगा मम्मी,’’ वह बोल रहा था, ‘‘आया भी चली गई. अब वह क्या करेगा?’’

‘‘अब ज्यादा सवालजवाब मत करो. मैं उसे खानानाश्ता दे दूंगी. और क्या कर सकती हूं. बहुत हुआ तो उस से फोन पर बात कर लेना.’’

‘‘उसे उस की मम्मी हौर्लिक्स देती थीं. और उसे कौर्नफ्लैक्स बहुत पसंद है.’’

‘‘ठीक है, वह भी उसे दे दूंगी. मगर अभी सवाल पूछपूछ कर मु झे तंग मत करो. और श्वेता को देखो कि वह क्या कर रही है.’’

‘‘वह अपने खिलौनों की बास्केट खोले पापा के पास बैठी खेल रही है.’’

‘‘ठीक है, तो तुम भी वहीं जाओ और उस के साथ खेलो. मु झे किचन में बहुत काम है. कामवाली नहीं आ रही है.’’

‘‘मगर, मु झे खेलने का मन नहीं करता. और पापा टीवी खोलने नहीं देते.’’

‘‘ठीक ही तो करते हैं. टीवी में केवल कोरोना के डरावने समाचार आते हैं. फिर वे कंप्यूटर पर बैठे औफिस का काम कर रहे होंगे,’’ उस ने उसे टालने की गरज से कहा, ‘‘तुम्हें मैं ने जो पत्रिकाएं और किताबें ला कर दी हैं, उन्हें पढ़ो.’’

किचन का सारा काम समेट वह कमरे में जा कर लेट गई, तो उस के सामने किशोर का चेहरा उभर कर आ गया. ओह, इतना छोटा बच्चा, कैसे अकेले रहता होगा? उस के सामने राजेशजी और उन की पत्नी रूपा का अक्स आने लगा था.

पहले राजेशजी ही एक सप्ताह पहले अस्पताल में भरती हुए थे. और 3 दिनों पहले उन की पत्नी रूपा भी अस्पताल में भरती हो गई. अब सुनने में आया है कि वह आईसीयू में है और उसे औक्सीजन दी जा रही है. अगर उस के साथ ऐसा होता, तो मुन्ना और श्वेता का क्या होता. बहुत अच्छा होगा कि वह जल्दी घर लौट आए और अपने बच्चे को देखे. राजेशजी अपने किसी रिश्तेदार को बुला लेते या किसी के यहां किशोर को भेज देते, तो कितना ठीक रहता. मगर अभी के दौर में रखेगा भी कौन? सभी तो इस छूत की बीमारी कोरोना के नाम से ही दूर भागते हैं.

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वैसे, राजेशजी भी कम नहीं हैं. उन्हें इस बात का अहंकार है कि वे एक संस्थान में उपनिदेशक हैं. पैसे और रसूख वाले हैं. रूपा भी बैंककर्मी है, तो पैसों की क्या कमी. मगर, इन के पीछे बच्चे का क्या हाल होगा, शायद यह भी उन्हें सोचना चाहिए था. उन के रूखे व्यवहार के कारण ही नीरज भी उन के प्रति तटस्थ ही रहते हैं. किसी एक का अहंकार दूसरे को सहज भी तो नहीं रहने देता.

रूपा भी एक तो अपनी व्यस्तता के चलते, दूसरे अपने पति की सोच की वजह से किसी से कोई खास मतलब नहीं रखती. वह तो उन का बेटा, उसी विद्यालय में पढ़ता है, जिस में मुन्ना पढ़ता है. फिर एक ही अपार्टमैंट में आमनेसामने रहने की वजह से वे मिलतेजुलते भी रहते हैं. इसलिए मुन्ना जरूरत से ज्यादा संवेदनशील हो सोच रहा है. सोच तो वह भी रही है. मगर इस कोरोना की वजह से वह उस घर में चाह कर भी नहीं जा पाती और न ही उसे बुला पाती है.

शाम को उस के घर की घंटी बजी, तो उस ने घर का दरवाजा खोला. उस के सामने हाथ में मोबाइल फोन लिए बदहवास सा किशोर खड़ा था. वह बोला,  ‘‘आंटी, अस्पताल से फोन आया था,’’ घबराए स्वर में किशोर बोलने लगा, ‘‘उधर से कोई कुछ कह रहा था. मैं कुछ सम झा नहीं. बाद में कोई पूछ रहा था कि घर में कोई बड़ा नहीं है क्या?’’

वह असमंजस में पड़ गई. बच्चे को घर के अंदर बुलाऊं कि नहीं. जिस के मांबाप दोनों ही संक्रमित हों, उस के साथ क्या व्यवहार करना चाहिए. फिर भी ममता ने जोर मारा. उस में उसे अपने मुन्ने का अक्स दिखाई दिया, तो उसे घर के अंदर बुला कर बिठाया. और उस से मोबाइल फोन ले कौल बैक किया. मगर वह रिंग हो कर रह जा रहा था. तब तक मुन्ना और नीरज ड्राइंगरूम में आ गए थे. मुन्ना उछल कर उस के पास चला गया. वह अभी कुछ कहती कि नीरज बोले, ‘‘बच्चा है, उसे कुछ हुआ नहीं है. उस का भी आरटीपीसीआर हुआ था. कुछ नहीं निकला है.’’

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धुंधली सी इक याद- भाग 3: राज अपनी पत्नी से क्यों दूर रहना चाहता था?

Writer- Rochika Sharma

‘‘वैसे तो मुझे आप से बात कर के सब ठीक ही लगता है फिर भी राज आप अपने हारमोन लैवल की जांच के लिए टैस्ट करवा लें और टैस्ट रिपोर्ट मुझे दिखाएं.’’  राज की हारमोन रिपोर्ट में कोई कमी नहीं थी. वह शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ था. डाक्टर चकित थी कि आखिर ऐसा क्या है कि राज ईशा को इतना चाहता है फिर भी वह वैवाहिक सुख से वंचित है?  डाक्टर ने काफी सोचविचार कर कहा, ‘‘राज व ईशा तुम दोनों सैक्स काउंसलर के पास जाओ. मैं आप को रैफर कर देती हूं.’’  अगले ही दिन राज व ईशा सैक्स काउंसलर के पास पहुंचे. काउंसलर ने उन की समस्या को ध्यान से सुना और समझा. फिर दोनों से उन के रहनसहन और जीवनशैली के बारे में पूछा. राज व ईशा ने उन्हें जवाब में जो बताया उस के हिसाब से तो दोनों के बीच सब ठीक ही चल रहा है. राज को दफ्तर में भी कोई समस्या नहीं थी, बल्कि इन 8 सालों में उसे हाल ही में तीसरी प्रमोशन मिली थी. ‘तो फिर आखिर क्या है, जो चाहते हुए भी राज को सैक्स के समय असफल कर देता है?’ सोच काउंसलर ने राज से अकेले में बात करने की इच्छा जाहिर की. ईशा काउंसलर का इशारा समझ कमरे से बाहर चली गई. अब काउंसलर ने राज से उस की शादी से पहले की जीवनी पूछी. उस से उसे पता चला कि राज गोद लिया बच्चा है. और सब जो राज ने डाक्टर को बताया वह इस तरह था, ‘‘सर मेरे परिवार में मैं, मेरी बड़ी बहन और मेरे मातापिता थे. बहन मुझ से 10 साल बड़ी थी. उस की शादी मात्र 18 वर्ष में पापा के दोस्त के इकलौते बेटे से कर दी गई. मेरे पापा ने अपनी वसीयत का ज्यादा हिस्सा मेरे नाम और कुछ हिस्सा दीदी के नाम किया.

अचानक एक कार ऐक्सिडैंट में मम्मीपापा की मृत्यु हो गई.  उस समय मैं 8 वर्ष का था. दीदी के सिवा मेरा कोई न था. अत: दीदी अब मुझे अपने पास रखने लगी थी. जीजाजी को भी कोई ऐतराज न था. जीजाजी के मातापिता को पैसों का लालच आ गया. फिर धीरेधीरे जीजाजी भी उन की बातों में आ गए. वे रोजरोज दीदी से कहने लगे कि वह वसीयत के कागज उन्हें दे दे. लेकिन दीदी ने नहीं दिए. वे दीदी को रोज मारनेपीटने लगे. दीदी समझ गई थी कि मुझे खतरा है.  ‘‘दीदी की एक सहेली थी. उन की कोई संतान न थी. वे एक बच्चा गोद लेना चाहते थे. दीदी ने उन से बात की और मुझे गोद लेने को कहा. वे झट से राजी हो गए. दीदी ने मुझे गोद देने के कागज तैयार करवा लिए. जीजाजी का व्यवहार दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था. अब वे रोज शराब पी कर दीदी को मारनेपीटने लगे थे. मैं तब दीदी के पास ही रह रहा था.  ‘‘एक रात जीजाजी देर से आए. मैं उस वक्त दीदी के कमरे में था. जीजाजी बहुत ज्यादा शराब पीए थे. जीजाजी ने आते ही अंदर से कमरा बंद कर लिया और मुझे व दीदी को लातघूंसों से बहुत मारा. उस के बाद दीदी को बिस्तर पर पटक दिया और उस के साथ सैक्स किया. मैं उस वक्त 10 वर्ष का था. वह दृश्य बहुत डरावना था.  ‘‘मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मुझे वहीं नींद आ गई. सुबह दीदी जिंदा नहीं थी. सिर्फ एक लाश थी. मुझे और तो कुछ खास याद नहीं कि उस के बाद क्या हुआ, हां उस के बाद मेरे वर्तमान मातापिता मुझे अपने घर ले आए. अब जब भी मैं ईशा से करीबियां बढ़ाना चाहता हूं, मेरी आंखों के सामने उस रात की डरावनी धुंधली सी वह याद आ जाती है.

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‘‘मुझे लगता है दीदी की तरह कहीं मैं ईशा को भी न खो दूं. मैं ईशा से कुछ कह भी नहीं पाता हूं. हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं. बस इसीलिए अपनेआप ही ईशा से दूर हो जाता हूं. यह सब अपनेआप होता है. मेरा अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रहता और दीदी की लाश वहां दिखाई देती है.’’  राज की सारी बात सुन कर काउंसलर सब समझ गए कि क्यों चाह कर भी राज ईशा के साथ संबंध कायम करने में असफल रहता है. काउंसलर ने राज को घर जाने को कहा और अगले दिन आने को कहा. अगले दिन उन्होंने राज को प्यार से समझाया, ‘‘राज, तुम्हारी दीदी सैक्स के कारण नहीं मरीं, तुम्हारे जीजाजी ने उन्हें लातघूंसों से मारा. इस के कारण उन्हें कुछ अंदरूनी चोटें लगीं और वे उस दर्द को सहन नहीं कर पाईं और मौत हो गई.  ‘‘तुम ने दीदी को पिटते तो कई बार देखा था, लेकिन उस रात तुम ने जो दृश्य देखा वह पहली बार था और सुबह दीदी की लाश देखी तो तुम्हें ऐसा लगा कि दीदी सैक्स के कारण मर गई… आज इतने वर्षों बाद भी वह धुंधली सी याद तुम्हारे वैवाहिक जीवन को असफल कर रही है.’’  काउंसलर ने ईशा से भी इस बारे में बात की. उन्होंने राज के वर्तमान मातापिता को भी राज की स्थिति बताई. जब उन्हें हकीकत मालूम हुई तो उन्होंने राज की दीदी की मृत्यु की पोस्टमार्टम रिपोर्ट राज को दिखाई, जिस में साफ लिखा था कि राज की दीदी की जान दिमाग व पसलियों में चोट लगने से हुई थी और इसीलिए उस के जीजा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

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अब सारी स्थिति राज के सामने थी. ईशा राज को उस पुरानी याद से दूर ले जाना  चाहती थी. अत: उस ने गोवा में होटल बुक किया और राज से वहां चलने का आग्रह किया. राज ने खुशीखुशी हामी भर दी.  ईशा वहां राज को उस की खूबियां बताते हुए कहने लगी, ‘‘राज तुम बहुत नेक और होशियार हो… तुम्हें पा कर मैं धन्य हो गई हूं. मैं तुम्हारी हर हार व जीत में तुम्हारे साथ हूं.’’  ऐसी बातें कर वह राज का मनोबल बढ़ाना चाहती थी. फिर रात के समय जैसे ही राज उस के करीब आ कर उस के बालों को सहलाने लगा, तो वह कहने लगी, ‘‘आगे बढ़ो राज. जब तक तुम मेरे साथ हो मुझे कुछ नहीं होगा, हिम्मत  करो राज.’’

7 दिन बस इसी तरह गुजर गए. अब राज का आत्मविश्वास लौटने लगा था. उस धुंधली सी याद की हकीकत वह समझ चुका था. ईशा ने राज की मम्मी व काउंसलर को खुशी से फोन कर बताया, ‘‘हम सफल हुए.’’  हालांकि राज एक बार तो डर गया था… सैक्स में सफल होने के बाद वह काफी देर  तक ईशा को टकटकी लगाए देखता रहा. फिर कहने लगा, ‘‘दुनिया तो सिर्फ तुम्हारी ऊपरी खूबसूरती देखती है ईशा… तुम्हारा दिल कितना सुंदर है… 8 वर्षों में तुम ने मेरी असफलता को एक राज रखा और हर वक्त मुसकराती रहीं.  आज मैं सफल हूं तो सिर्फ तुम्हारे कारण. तुम  ने इतनी मेहनत की, इतना सहा, विवाहित हो  कर भी 8 वर्षों तक कुंआरी का जीवनयापन करती रहीं और चेहरे पर शिकन भी न आने दी. तुम्हारा दिल कितना सुंदर है ईशा. तुम से सुंदर कोई नहीं.’’

दोनों जब गोवा से लौटे तो उन के चेहरे पर कुछ अलग ही चमक थी. वह चमक थी विश्वास और प्यार की. राज की मां भी बहुत खुश थीं. 3 महीने बाद ईशा ने खुशखबरी दी कि वह मां बनने वाली है.  राज की मां उसे ढेरों आशीर्वाद देते हुए बोलीं, ‘‘मैं दुनिया की सब से खुशहाल सास हूं, जिसे तुम जैसी बहू मिली.’’

ममता- भाग 2: क्या माधुरी को सासुमां का प्यार मिला

माधुरी के मातापिता अतिव्यस्त अवश्य थे किंतु अपने संस्कारों तथा रीतिरिवाजों को नहीं छोड़ पाए थे इसलिए विजातीय पल्लव से विवाह की बात सुन कर पहले तो काफी क्रोधित हुए थे और विरोध भी किया था, लेकिन बेटी की दृढ़ता तथा निष्ठा देख कर आखिरकार तैयार हो गए थे तथा उस परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की थी.

दोनों परिवारों की इच्छा एवं सुविधानुसार होटल में मुलाकात का समय निर्धारित किया गया था. बातों का सूत्र भी मम्मीजी ने ही संभाल रखा था. पंकज और पल्लव तो मूकदर्शक ही थे. उन का जो भी निर्णय होता उसी पर उन्हें स्वीकृति की मुहर लगानी थी. यह बात जान कर माधुरी अत्यंत तनाव में थी तथा पल्लव भी मांजी की स्वीकृति का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.

बातोंबातों में मां ने झिझक कर कहा था, ‘बहनजी, माधुरी को हम ने लाड़प्यार से पाला है, इस की प्रत्येक इच्छा को पूरा करने का प्रयास किया है. इस के पापा ने तो इसे कभी रसोई में घुसने ही नहीं दिया.’

‘रसोई में तो मैं भी कभी नहीं गई तो यह क्या जाएगी,’ बात को बीच में ही काट कर गर्वभरे स्वर के साथ मम्मीजी ने कहा.

मम्मीजी के इस वाक्य ने अनिश्चितता के बादल हटा दिए थे तथा पल्लव और माधुरी को उस पल एकाएक ऐसा महसूस हुआ कि मानो सारा आकाश उन की मुट्ठियों में समा गया हो. उन के स्वप्न साकार होने को मचलने लगे थे तथा शीघ्र ही शहनाई की धुन ने 2 शरीरों को एक कर दिया था.

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पल्लव के परिवार तथा माधुरी के परिवार के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था. समानता थी तो सिर्फ इस बात में कि मम्मीजी भी मां की तरह घर को नौकरों के हाथ में छोड़ कर समाजसेवा में व्यस्त रहती थीं. अंतर इतना था कि वहां एक नौकर था तथा यहां 4, मां नौकरी करती थीं तो ससुराल में सास समाजसेवा से जुड़ी थीं.

मम्मीजी नारी मुक्ति आंदोलन जैसी अनेक संस्थाओं से जुड़ी हुई थीं, जहां गरीब और सताई गई स्त्रियों को न्याय और संरक्षण दिया जाता था. उन्होंने शुरू में उसे भी अपने साथ चलने के लिए कहा और उन का मन रखने के लिए वह गई भी, किंतु उसे यह सब कभी अच्छा नहीं लगा था.

उस का विश्वास था कि नारी मुक्ति आंदोलन के नाम पर गरीब महिलाओं को गुमराह किया जा रहा है. एक महिला जिस पर अपने घरपरिवार का दायित्व रहता है, वह अपने घरपरिवार को छोड़ कर दूसरे के घरपरिवार के बारे में चिंतित रहे, यह कहां तक उचित है? कभीकभी तो ऐसी संस्थाएं अपने नाम और शोहरत के लिए भोलीभाली युवतियों को भड़का कर स्थिति को और भी भयावह बना देती हैं.

उसे आज भी याद है कि उस की सहेली नीता का विवाह दिनेश के साथ हुआ था. एक दिन दिनेश अपने मित्रों के कहने पर शराब पी कर आया था तथा नीता के टोकने पर नशे में उस ने नीता को चांटा मार दिया. यद्यपि दूसरे दिन दिनेश ने माफी मांग ली थी तथा फिर से ऐसा न करने का वादा तक कर लिया था, किंतु नीता, जो महिला मुक्ति संस्था की सदस्य थी, ने इस बात को ऐसे पेश किया कि उस की ससुराल की इज्जत तो गई ही, साथ ही तलाक की स्थिति भी आ गई और आज उस का फल उन के मासूम बच्चे भोग रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि ये संस्थाएं भलाई का कोई काम ही नहीं करतीं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि किसी भी प्रतिष्ठान की अच्छाइयां छिप जाती हैं जबकि बुराइयां न चाहते हुए भी उभर कर सामने आ जाती हैं.

वास्तव में स्त्रीपुरुष का संबंध अटूट विश्वास, प्यार और सहयोग पर आधारित होता है. जीवन एक समझौता है. जब 2 अजनबी सामाजिक दायित्वों के निर्वाह हेतु विवाह के बंधन में बंधते हैं तो उन्हें एकदूसरे की अच्छाइयों के साथसाथ बुराइयों को भी आत्मसात करने का प्रयत्न करना चाहिए. प्रेम और सद्भाव से उस की कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए, न कि लड़झगड़ कर अलग हो जाना चाहिए.

मम्मीजी की आएदिन समाचारपत्रों में फोटो छपती. कभी वह किसी समारोह का उद्घाटन कर रही होतीं तो कभी विधवा विवाह पर अपने विचार प्रकट कर रही होतीं, कभी वह अनाथाश्रम जा कर अनाथों को कपड़े बांट रही होतीं तो कभी किसी गरीब को अपने हाथों से खाना खिलाती दिखतीं. वह अत्यंत व्यस्त रहती थीं. वास्तव में वह एक सामाजिक शख्सियत बन चुकी थीं, उन का जीवन घरपरिवार तक सीमित न रह कर दूरदराज तक फैल गया था. वह खुद ऊंची, बहुत ऊंची उठ चुकी थीं, लेकिन घर उपेक्षित रह गया था, जिस का खमियाजा परिवार वालों को भुगतना पड़ा था. घर में कीमती चीजें मौजूद थीं किंतु उन का उपयोग नहीं हो पाता था.

मम्मीजी ने समय गुजारने के लिए उसे किसी क्लब की सदस्यता लेने के लिए कहा था किंतु उस ने अनिच्छा जाहिर कर दी थी. उस के अनुसार घर की 24 घंटे की नौकरी किसी काम से कम तो नहीं है. जहां तक समय गुजारने की बात है उस के लिए घर में ही बहुत से साधन मौजूद थे. उसे पढ़नेलिखने का शौक था, उस के कुछ लेख पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो चुके थे. वह घर में रहते हुए अपनी इन रुचियों को पूरा करना चाहती थी.

यह बात अलग है कि घर के कामों में लगी रहने वाली महिलाओं को शायद वह इज्जत और शोहरत नहीं मिल पाती है जो बाहर काम करने वाली को मिलती है. घरेलू औरतों को हीनता की नजर से देखा जाता है लेकिन माधुरी ने स्वेच्छा से घर के कामों से अपने को जोड़ लिया था. घर के लोग, यहां तक कि पल्लव ने भी यह कह कर विरोध किया था कि नौकरों के रहते क्या उस का काम करना उचित लगेगा.

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तब उस ने कहा था कि ‘अपने घर का काम अपने हाथ से करने में क्या बुराई है, वह कोई निम्न स्तर का काम तो कर नहीं रही है. वह तो घर के लोगों को अपने हाथ का बना खाना खिलाना चाहती है. घर की सजावट में अपनी इच्छानुसार बदलाव लाना चाहती है और इस में भी वह नौकरों की सहायता लेगी, उन्हें गाइड करेगी.

उस की बात सुन कर मम्मीजी ने मुंह बिचका दिया था लेकिन जो घर नौकरों के द्वारा चलने से बेजान हो गया था माधुरी के हाथ लगाने मात्र से सजीव हो उठा था. इस बात को पापाजी और पल्लव के साथ मम्मीजी ने भी महसूस किया था.

पल्लव, जो पहले रात में 10 बजे से पहले घर में कदम नहीं रखता था. वही अब ठीक 5 बजे घर आने लगा. यही हाल उस के पापाजी का भी था. एक बार भावुक हो कर पापा ने कहा भी था, ‘बेटा, तुम ने इस धर्मशाला बन चुके घर को पुन: घर बना दिया. सचमुच जब तक घरवाली का हाथ घर में नहीं लगता तब तक घर सुव्यवस्थित नहीं हो पाता है.’

एक बार पापाजी उस के हाथ के बने पनीर के पकवान की तारीफ कर रहे थे कि मम्मीजी चिढ़ कर बोलीं, ‘भई, मुझे तो बाहर के कामों से ही फुरसत नहीं है. इन बेकार के कामों के लिए समय कहां से निकालूं?’

‘बाहर के लोगों के लिए समय है, किंतु घर वालों के लिए नहीं,’ तीखे स्वर में ससुरजी ने उत्तर दिया था जो सास के जरूरत से अधिक घर से बाहर रहने के कारण अब परेशान हो उठे थे.

मेरा पति सिर्फ मेरा है- भाग 1: अनुषा ने अपने पति को टीना के चंगुल से कैसे निकाला?

सुबहबह के 6 बज गए थे. अनुषा नहाधो कर तैयार हो गई. ससुराल में उस का पहला दिन जो था वरना घर में क्या मजाल कि कभी सुबह 8 बजे से पहले उठी हो.

विदाई के समय मां ने समझाया, ‘‘बेटी, लड़कियां कितनी भी पढ़लिख जाएं उन्हें अपने संस्कार और पत्नी धर्म कभी नहीं भूलना चाहिए. सुबह जल्दी उठ कर सिर पर पल्लू रख कर रोजाना सासससुर का आशीर्वाद लेना. कभी पति का साथ न छोड़ना. कैसी भी परिस्थिति आ जाए धैर्य न खोना और मुंह से कभी कटु वचन न निकालना.’’

‘‘जैसी आप की आज्ञा माताश्री…’’

जिस अंदाज में अनुषा ने कहा था उसे सुन कर विदाई के क्षणों में भी मां के चेहरे पर हंसी आ गई थी.

अनुषा ड्रैसिंग टेबल के आगे बैठी थी. बीती रात की रौनक उस के चेहरे पर लाली बन कर बिखरी हुई थी. भीगी जुल्फें संवारते हुए प्यारभरी नजरों से उस ने बेसुध भुवन की तरफ देखा.

भुवन से वैसे तो उस की अरेंज्ड मैरिज हुई थी, मगर सगाई और शादी के बीच के समय में वे कई दफा मिले थे. इसी दरमियान उस के दिल में भुवन के लिए प्यार उमड़ पड़ा था. तभी तो शादी के समय उसे महसूस ही नहीं हुआ कि वह अरेंज्ड मैरिज कर किसी अजनबी को जीवनसाथी बना रही है. उसे लग रहा था जैसे लव मैरिज कर अपने प्रियतम के घर जा रही है.

बाल संवार सिर पर पल्लू रख कर अनुषा सीढि़यों से नीचे उतर आई. सासससुर बैठकरूम में सोफे पर बैठे अखबार पढ़ते हुए चाय की चुसकियों का आनंद ले रहे थे. अनुषा ने उन को अभिवादन किया और किचन में घुस गई. उस ने अपने हाथों से सुबह का नाश्ता तैयार कर खिलाया तो ससुर ने आशीषस्वरूप उसे 5 हजार रुपए नोट दिए. सास ने अपने गले से सोने की चेन निकाल कर दी. तब तक भुवन भी तैयार हो कर नीचे आ चुका था.

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भुवन ने अनुषा को बताया था कि अभी औफिस में कुछ जरूरी मीटिंग्स हैं, इसलिए

2-3 दिन मीटिंग्स और दूसरे काम निबटा कर

अगले सप्ताह दोनों हनीमून के लिए निकलेंगे. इस के लिए भुवन ने 10 दिनों की छुट्टी भी ले रखी थी.

भुवन का औफिस टाइम 10 बजे का था. औफिस ज्यादा दूर भी नहीं था और जाना भी अपनी गाड़ी से ही था. फिर भी भुवन ठीक 9 बजे घर से निकल गया तो अनुषा को कुछ अजीब लगा. मगर फिर सामान्य हो कर वह खाने की तैयारी में जुट गई.

तब तक कामवाली भी आ गई थी. अनुषा को ऊपर से नीचे तक तारीफभरी नजरों से देखने के बाद धीरे से बोली, ‘‘शायद अब भुवन भैया उस नागिन के चंगुल से बच जाएंगे.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम?’’ कामवाली की बात पर आश्चर्य और गुस्से में अनुषा ने कहा.

वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘बस बहूरानी कुछ ही दिनों में आप को मेरी बात का मतलब समझ आ जाएगा… 2-3 दिन इंतजार कर लो,’’ कह कर वह काम में लग गई.

फिर अनुषा की तारीफ करती हुई बोली, ‘‘वैसे बहूरानी बड़ी खूबसूरत हो तुम.’’

अनुषा ने उस की बात अनसुनी कर दी. उस के दिमाग में तो नागिन शब्द घूम रहा था. उसे नागिन का मतलब समझ नहीं आ रहा था.

पूरा दिन अनुषा भुवन के फोन का इंतजार करती रही. दोपहर में भुवन का फोन आया. दोनों ने आधे घंटे प्यारभरी बातें कीं. शाम में भुवन को आने में देर हुई तो अनुषा ने सास से पूछा.

सास ने निश्चिंतता भरे स्वर में कहा, ‘‘आ रहा होगा… थोड़ा औफिस के दोस्तों में बिजी होगा.’’

8 बजे के करीब भुवन घर लौटा. साथ में एक महिला भी थी. लंबी, छरहरी, नजाकत और

अदाओं से लबरेज व्यक्तित्व वाली उस महिला ने स्लीवलैस वनपीस ड्रैस पहन रखी थी. होंठों पर गहरी लिपस्टिक और हाई हील्स में वह किसी मौडल से कम नहीं लग रही थी. अनुषा को भरपूर निगाहों से देखने के बाद भुवन की ओर मुखातिब हुई और हंस कर बोली, ‘‘गुड चौइस. तो यह है आप की बैटर हाफ… अच्छी है.’’

बिना किसी के कहे ही वह सोफे पर पसर गई. सास जल्दी से 2 गिलास शरबत ले आई, शरबत पीते हुए उस ने शरबती आवाज में कहा, ‘‘भुवन, जिस दिल में मैं हूं उसे किसी और को किराए पर तो नहीं दे दोगे?’’

उस महिला के मुंह से ऐसी बेतुकी बात सुन कर अनुषा की भंवें चढ़ गईं. उस ने प्रश्नवाचक नजरों से भुवन की ओर देखा और फिर सास की तरफ.

सास ने नजरें नीचे कर लीं और भुवन ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘यार टीना तुम्हारी मजाक करने की आदत नहीं गई.’’

‘‘मजाक कौन कर रहा है? मैं तो हकीकत बयां कर रही हूं. वैसे अनुषा तुम से मिल कर अच्छा लगा. आगे भी मुलाकातें होती रहेंगी हमारी. आखिर मैं भुवन की दोस्त जो हूं. तुम्हारी भी दोस्त हुई न. बैटर हाफ जो हो तुम उस की.’’

वह बारबार बैटर हाफ शब्द पर जोर दे रही थी. अनुषा उस का मतलब अच्छी तरह समझ रही थी.

टीना ने फिर से अदाएं बिखेरते हुए कहा, ‘‘आज की रात तो नींद नहीं, चैन नहीं, है न भुवन.’’

5-10 मिनट रुक कर वह जाने के लिए खड़ी हो गई. भुवन उसे घर छोड़ने चला गया.

अनुषा ने सास से सवाल किया, ‘‘यह

कौन है मांजी जो भुवन पर इतना अधिकार जता रही है?’’

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‘‘देखो बेटा, अब तुम भुवन की पत्नी हो इसलिए इतना तो तुम्हें जानने का हक है ही कि वह कौन थी? दरअसल, बेटा तुम्हें उसे भुवन

की जिंदगी में स्वीकार करना पड़ेगा. हमारी मजबूरी है बेटा. हम सब को भी उसे स्वीकार करना पड़ा है बेटे.’’

‘‘पर क्यों सासूमां? क्या भुवन का उस के साथ कोई रिश्ता है?’’

‘‘ऐसा कोई रिश्ता तो नहीं बहू पर बस यह जान लो कि उस के बहुत से एहसान हैं हमारे ऊपर. वैसे तो वह उस की बौस है, मगर भुवन को इस मुकाम तक पहुंचाने में काफी मदद की है उस ने. अपनी पावर का उपयोग कर भुवन को काफी अच्छा ओहदा दिया है. बस भुवन पसंद है उसे और कुछ नहीं.’’

‘‘इतना कम है क्या सासूमां? वह तो पत्नी की तरह हक दिखाती है भुवन पर.’’

ये घर बहुत हसीन है- भाग 2: उस फोन कॉल ने आन्या के मन को क्यों अशांत कर दिया

लेखक- मधु शर्मा कटिहा

वान्या का मुंह खुला का खुला रह गया. इस से पहले कि वह कुछ और बोलती आर्यन बाथरूम से आ बाहर आ गया. ‘‘किस का फोन है?’’ पूछते हुए उस ने वान्या के हाथ से मोबाइल ले लिया और तोतली आवाज में बातें करने लगा.

निराश वान्या कपड़े हाथ में ले कर बाथरूम की ओर चल दी. ‘किस ने किया होगा फोन? आर्यन भी जुटा हुआ है उस से बातें करने में. क्या आर्यन की पहले शादी हो चुकी है? हां, लगता तो यही है. तलाक हो चुका है शायद. मुझे बताया भी नहीं… यह तो धोखा है.’ वान्या अपनेआप में उलझती जा रही थी.

आधुनिक सुखसुविधाओं से लैस कमरे के आकार का बाथरूम जिस के वह सपने देखती थी, उस की निराशा को कम नहीं कर रहा था. एअर फ्रैशनर की भीनीभीनी खुशबू, हलकी ठंड और गरम पानी से भरा बाथटब, जी चाह रहा था कि अभी आर्यन आ जाए और अठखेलियां करते हुए उसे कहे कि ‘फोन उस के लिए नहीं था, किसी और आर्यन का नंबर मिलाना चाहता था वह बच्चा. मुझे पापा कब बनना है, यह तो तुम बताओगी…’ वान्या फूटफूट कर रोने लगी.

बाहर आई तो डायनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए आर्यन उस की प्रतीक्षा कर रहा

था. ऊंची बैक वाली गद्देदार काले रंग की कुरसियां वान्या को कोरी शान लग रही थीं. वान्या के बैठते ही आर्यन उस के बालों से नाक सटा कर लंबी सांस लेता हुआ बोला, ‘‘कौन सा शैंपू लगाया है? कहीं यह खुशबू तुम्हारे बालों की तो नहीं? महक रहा हूं अंदर तक मैं.’’

वान्या को आर्यन की शरारती मुसकान फिर से मोहने लगी. सब कुछ भूल वह इस पल में खो जाना चाहती थी. ‘‘जल्दी से खा लो. अभी प्रेमा सफाई कर रही है. उसे जल्दी से वापस भेज देंगे… अपना बैडरूम तो तुम ने देखा ही नहीं अब तक. कब से इंतजार कर रहा है मेरा बिस्तर तुम्हारा,’’ आर्यन का नटखट अंदाज वान्या को मदहोश कर रहा था.

नाश्ता कर वान्या बैडरूम में पहुंच गई. शानदार कमरे में कदम रखते ही रोमांस की खुमारी बढ़ने लगी. ‘‘मुझे जरूर गलतफहमी हुई है, आर्यन के साथ कोई हादसा हुआ होता तो वह प्यार के लम्हों को जीने के लिए इतना बेताब न दिखता. उस का इजहार तो उस आशिक जैसा लग रहा है, जिसे नईनई मोहब्बत हुई हो.’’ सोचते हुए वान्या बैड पर लेट गई. फोम के गद्दे में धंसेधंसे ही मखमली चादर पर अपना गाल रख सहलाने लगी. प्रेमा और नरेंद्र के जाते ही आर्यन भी कमरे में आ गया. खड़ेखड़े ही झुक कर वान्या की आंखों को चूम मुसकराते हुए उसे अपने बाहुपाश में ले लिया.

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‘‘कैसा है यह मिरर? कुछ दिन पहले ही लगवाया है मैं ने?’’ बैड के पास लगे विंटेज कलर फ्रेम के सात फुटिया मिरर की ओर इशारा करते हुए आर्यन बोला.

दर्पण में स्वयं को आर्यन की बाहों में देख वान्या के चेहरे का रंग भी आईने के फ्रेम सा सुर्ख हो गया.

प्रेमासिक्त युगल एकाकार हो एकदूसरे की आगोश में खोएखोए कब नींद की आगोश में चले गए, पता ही नहीं लगा.

शाम को प्रेमा ने घंटी बजाई तो उन की नींद खुली. ग्रीन टी बनवा कर अपनेअपने हाथों में मग थामे दोनों घर के पीछे की ओर बने गार्डन में रखी बेंत की कुरसियों पर जा कर बैठ गए. वहां रंगबिरंगे फूल खिले थे. कतार में ऊंचेऊंचे पेड़ों की शाखाएं हवा चलने से एकदूसरे के साथ बारबार लिपट रहीं थीं. सभी पेड़ों पर भिन्न आकार के फल टक रहे थे, रंग हरा ही था सब का. वान्या की उत्सुक निगाहों को देख आर्यन बताने लगा, ‘‘मेरे राइट हैंड साइड वाले 4 पेड़ आलूबुखारे के और आगे वाले 3 खुबानी के हैं. अभी कच्चे हैं, इसलिए रंग हरा दिख रहा है. दीदी की बेटी को बहुत पसंद हैं कच्ची खुबानी. हमारी शादी में नहीं आ सकी, वरना खूब ऐंजौय करतीं.’’

‘‘अपने बच्चों को साथ क्यों नहीं लाईं दीदी? वे दोनों आ गए तो बच्चे भी आ सकते थे. दीदी की बेटी का नाम वंशिका है न? सुबह इसी नाम से कौल आई तो मैं ने अटेंड कर ली, पर वह तो किसी और का था. किस बच्चे का साथ बात कर रहे थे तुम?’’ वान्या का मस्तिष्क फिर सुबह वाली घटना में जा कर अटक गया.

‘‘तुम्हें देखते ही शादी को मन मचलने लगा था मेरा. दीदी से कह दिया था कि कोई आ सकता है तो आ जाए, वरना मैं अकेले ही चला जाऊंगा बारात ले कर. सब को लाना पौसिबल नहीं हुआ होगा तो जीजू को ले कर आ गईं देखने कि वह कौन सी परी है जिस पर मेरा भाई लट्टू हो गया.’’

आर्यन का मजाक सुन वान्या मुसकरा कर रह गई.

‘‘एक मिनट… शायद प्रेमा ने आवाज दी है, वापस जा रही होगी, मैं दरवाजा बंद कर अभी आया.’’ वान्या की पूरी बात का जवाब दिए बिना ही आर्यन दौड़ता हुआ अंदर चला गया.

कुछ देर तक जब वह लौट कर नहीं आया तो वान्या उस बच्चे के विषय में सोच

कर फिर संदेह से घिर गई. व्याकुलता बढ़ने लगी तो बगीचे से ऊपर की ओर जाती हुई सफेद रंग की घुमावदार लोहे की सीढि़यों पर चढ़ गई. ऊपर खुली छत थी, जहां से दूर तक का दृश्य साफ दिखाई दे रहा था. ऊंचीऊंची फैली हुई पहाडि़यों पर पेड़ों के झुरमुट, सर्प से बलखाते रास्ते और छोटेबड़े मकान, मकानों की छतों का रंग अधिकतर लाल या सलेटी था. सभी मकान एकदूसरे से कुछ दूरी पर थे. ‘क्या ऐसी ही दूरी मेरे और आर्यन के बीच तो नहीं? साथ हैं, लेकिन एक फसाला भी है. क्या राज है उस फोन का आखिर?’ वान्या सोच में डूबी थी. सहसा दबे पांव आ कर आर्यन ने अपने हाथों से उस की आंखें बंद कर दीं.

‘‘तुम भी न आर्यन… कब आए छत पर?’’

‘‘हो सकता है यहां मेरे अलावा कोई और भी रहता हो और तुम्हें कानोंकान खबर भी न हो.’’ आर्यन शरारत से बोला.

‘‘और कौन होगा?’’ वान्या घबरा उठी.

‘‘अरे कितनी डरपोक हो यार… यहां कौन हो सकता है?’’ वान्या की आंखों से हाथों को हटा उस की कमर पर एक हाथ से घेरा बना कर आर्यन ने अपने पास खींच लिया. ‘‘चलो, छत पर और आगे. तुम्हें यहां से ही कुछ सुंदर नजारे दिखाता हूं.’’

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आर्यन से सट कर चलते हुए वान्या को बेहद सुकून मिल रहा था. उस की छुअन और खुशबू में डूब वान्या के मन में चल रही हलचल शांत हो गईं. दोनों साथसाथ चलते हुए छत की मुंडेर तक जा पहुंचे. देवदार के बड़ेबड़े शहतीरों को जोड़ कर बनाई गई मुंडेर की कारीगरी देखते ही बनती थी. ‘काश, इन शहतीरों की तरह मैं और आर्यन भी हमेशा जुड़े रहें,’ वान्या सोच रही थी.

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