Satyakatha: मियां-बीवी और वो- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

देवेंद्र ने थानाप्रभारी को जो बयान दिया था, उस में कहा था कि घटना के समय 2 लोगों ने अचानक हमला किया था, वह लघुशंका के लिए कुछ कदम आगे चला गया था. इसी दरमियान गाड़ी में लूटपाट की घटना हुई और उन लोगों ने दीप्ति के गले में रस्सी डाल कर के हत्या कर दी.

जब वह पास आया था तो उस के भी हाथ बांध दिए गए थे, मगर उस ने एक लात मार कर भाग कर अपनी जान बचाई थी.

देवेंद्र ने यह भी बताया था कि किसी एक ने उस की कनपटी पर पिस्टल रख कर के धमकी भी दी थी. इन सारी

बातों की विवेचना जब पुलिस ने की तो देवेंद्र सोनी की बातों में विरोधाभास दिखा. सब से बड़ा सवाल यह था कि जब लूटपाट करने वालों के पास पिस्टल थी तो उन्होंने दीप्ति को नायलोन की रस्सी से क्यों मारा? और मोबाइल के सिम को क्यों निकाला था?

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पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि देवेंद्र अपने बयान में कहीं झूठ बोल रहा है और उस की बातों की सत्यता जानने के लिए अब पुलिस को देवेंद्र से पूछताछ करनी थी. पुलिस ने पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए उसे रात को घर भेज दिया गया था, साथ ही यह निर्देश भी दिए कि जरूरत पड़ने पर बयान के लिए फिर से थाने आना होगा.

दीप्ति के अंतिम संस्कार के बाद अगले दिन 16 जून को जब देवेंद्र को जांच अधिकारी अविनाश कुमार श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला. देवेंद्र का फोन बंद हो जाने से पुलिस का शक और भी गहरा  गया.

अंतत: बिलासपुर जिला पुलिस के सहयोग से थाना पंतोरा और बलौदा की पुलिस टीम ने देर शाम को देवेंद्र सोनी का मोबाइल ट्रैक कर के उसे बिलासपुर से हिरासत में ले लिया.

जांजगीर ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो पहले तो वह कुछ भी कहने से गुरेज करता रहा. पुलिस ने जब उस के मोबाइल की जांच की तो पता चला कि घटना के कुछ समय पहले वह लगातार शालू सोनी नाम की एक महिला से बात करता रहा था.

पुलिस ने उस से शालू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रदीप सोनी उस के रिश्तेदार के यहां नौकर है और शालू प्रदीप की पत्नी है.

पुलिस ने दूसरे दिन प्रदीप सोनी और उस की पत्नी शालू सोनी, जो अपने घर से गायब थे, को जिला मुंगेली के एक मकान से हिरासत में लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए.

प्रदीप ने पुलिस के समक्ष घबरा कर अपना  अपराध स्वीकार कर लिया और दोनों पतिपत्नी ने जो कहानी बताई, उस से दीप्ति हत्याकांड से परदा उठता चला गया.

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अपनेअपने इकबालिया बयान में दोनों ने बताया कि वे सरकंडा बंगाली पारा में झोपड़ी में रहते हैं और देवेंद्र सोनी ने उन्हें डेढ़ लाख रुपए देने की बात कह कर के इस हत्याकांड में शामिल किया था.

शालू ने बताया देवेंद्र अकसर उस के साथ हंसीमजाक किया करता था और एक दिन बातोंबातों में कहने लगा, ‘‘तुम लोग आखिर कब तक इस तरह नौकरी करते रहोगे. कुछ अपना भविष्य भी बनाओगे कि नहीं.’’

इस पर शालू सोनी ने कहा, ‘‘भैया, इन की तबीयत तो हमेशा खराब रहती है. आखिर हमारा क्या होगा यह पता नहीं.’’

इस पर देवेंद्र ने मासूमियत से कहा, ‘‘देखो, तुम चाहो तो अपनी तकदीर खुद बना सकती हो. कहो तो मैं तुम्हें एक तरकीब बताऊं, तुम्हें एकडेढ़ लाख रुपए तो यूं ही मिल जाएगा.’’

देवेंद्र ने उन से कहा, ‘‘बस, तुम्हें किसी भी तरीके से मेरी पत्नी दीप्ति को मेरे रास्ते से हटाना है.’’

पहले तो शालू और प्रदीप ने इंकार कर दिया, मगर जब डेढ़ लाख रुपए की एक बड़ी रकम उन की आंखों के आगे झूलने लगी तो वे लालच के फंदे में फंस गए और दीप्ति हत्याकांड की पटकथा बुनी जाने लगी.

एक दिन देवेंद्र ने ही कहा कि सोमवार, 14 जून की रात को दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर की तरफ आऊंगा. इस रास्ते में जिला जांजगीर चांपा का घनघोर छाता जंगल पड़ता है. जहां हम दीप्ति का काम तमाम कर  सकते हैं.

इस तरह देवेंद्र ने पूरी हत्याकांड की पटकथा बनाई. 3 दिन पहले ही पंतोरा के वन बैरियर के पास रैकी कर के घटना को अंजाम देने की प्लानिंग कर ली गई थी. जिसे उन्होंने 14 जून की रात को अंजाम दे दिया था.

जब प्रदीप और शालू सोनी से पुलिस ने देवेंद्र का सामना कराया तो देवेंद्र टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि हत्या उसी ने करवाई है क्योंकि अकसर उन का झगड़ा होता रहता था.

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उस ने पुलिस को बताया कि दीप्ति हमेशा उस पर शक किया करती थी. दूसरी तरफ उसे दीप्ति पर शक था और एक बार उस ने दीप्ति को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. मगर इस का कोई सबूत देवेंद्र पुलिस को नहीं दे सका.

पुलिस ने जांच के बाद दोनों मोबाइल फोन, जो प्रदीप सोनी ने फेंक दिए थे, बरामद कर लिए. लैपटौप देवेंद्र सोनी के घर से ही बरामद कर लिया गया. आरोपी प्रदीप सोनी और शालू ने जिस स्कूटी को घटना के लिए इस्तेमाल किया था, उसे भी पुलिस ने जब्त कर लिया गया.

घटना के खुलासे के बाद जिला चांपा जांजगीर की एसपी पारुल माथुर ने देर शाम एक पत्रकारवार्ता आयोजित कर वारदात का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने थाना पंतोरा में भादंवि की धारा 397, 302 के  तहत मुख्य आरोपी देवेंद्र सोनी, प्रदीप सोनी तथा शालू सोनी को 17 जून, 2021 को गिरफ्तार कर चांपा जांजगीर के प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: खोखले निकले मोहब्बत के वादे- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कुल मिला कर गीता निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी. परिवार उन दिनों गीता की शादी को ले कर चिंतित था. गीता तीखे नाकनक्श वाली बेहद खूबसूरत थी.

परिवार चाहता था कि गीता की शादी बिरादरी में ही किसी अच्छे परिवार के ठीकठाक कमाई करने वाले लड़के से हो. लेकिन जहां भी पसंद का लड़का मिलता तो दहेज की ऐसी मांग होती कि गीता के परिवार के लिए दहेज की मांग पूरी करना मुश्किल हो जाता. इसीलिए गीता की उम्र तेजी से बढ़ रही थी और गीता के परिवार की चिंताएं भी.

पहली मुलाकात में हो गया था दीवाना

लेकिन जब मनोरंजन ने गीता को देखा तो उसे पहली ही नजर में उस से प्यार हो गया. कुछ समय पहले तक वह नहीं मानता था कि किसी लड़की को देख कर उस के मन में ऐसा मीठामीठा अहसास जगेगा.

जब उस ने गीता को देखा था, तब उस से कुछ पल की मुलाकात हुई थी. लेकिन तभी से न जाने कब उस का दिल खो सा गया. हालांकि मनोरंजन ने गीता से भी ज्यादा हसीन लड़कियां देखी थीं. लेकिन गीता की हसीन मुसकराहट और खिलखिलाहट भरी खनखनाती मीठी आवाज ने उस पर अजीब सा जादू कर दिया था.

पहली बार किसी लड़की की याद में उस ने एक शेर लिख डाला ‘न तीर न तलवार से, उन की नजर के वार से, हम तो घायल हो गए, उन की भोली सी मुसकान पे.’

उस दिन रात भर नींद की तलाश में मनोरजन करवटें बदलता रहा. लेकिन आंखें बंद करते ही कानों में उस की मीठी आवाज गूंजने लगती थी. इस अहसास के बाद उसे लगने लगा कि सालों बाद हो रहा ये अहसास प्यार है.

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अगला पूरा दिन मनोरंजन ने गीता के इंतजार में बिता दिया. क्योंकि उसे अपने फोटो लेने के लिए आना था. आंखें उस का इंतजार करते हुए थक गईं लेकिन वह नहीं आई.

फिर उस रात वही बेकरारी, रात भर उस का खयाल और यही सोचना… आखिर ये प्यार क्या चीज है. 3 दिन हो गए लेकिन गीता फोटो लेने नहीं आई. इंतजार जैसेजैसे बढ़ता जा रहा था, बेकरारी भी उसी तरह बढ़ती जा रही थी.

आखिर चौथे दिन जब गीता अपना फोटो लेने के लिए उस के स्टूडियो पर आई तो दिल को वैसे ही सुकून मिला, जैसे तपती रेत पर पानी गिरने से ठंडक का अहसास होता है.

संयोग ये भी था कि पहले दिन जब गीता फोटो खिंचाने आई थी तो उस के साथ पड़ोस में रहने वाली कोई महिला थी. लेकिन उस दिन वह अकेली पहुंची.

‘‘आप की फोटो उतनी खूबसूरत नहीं आई, जितनी खूबसूरत आप हो.’’ फोटो का लिफाफा गीता के हाथ में थमाते हुए मनोरंजन ने कहा.

‘‘फिर तो मैं फोटो का कोई पैसा नहीं दूंगी.’’ गीता बोली.

‘‘आप की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने की गुस्ताखी तो हम कर चुके हैं, इसलिए आप का पैसा नहीं देना हमें मंजूर है.’’ मनोरंजन ने हिम्मत जुटा कर थोड़ा सा खुलना शुरू किया.

‘‘वैसे अगर आप मांग में सिंदूर और माथे पर बिंदी लगातीं तो आप की फोटो और भी खूबसूरत आती.’’ कुछ जानकारी की जिज्ञासा लिए मनोरंजन ने कहा.

मनोरंजन के इतना कहते ही गीता ने नाक सिकोड़ते हुए कह, ‘‘छि: हम क्यों मांग में सिंदूर लगाएं, वो तो शादीशुदा औरतें लगाती हैं. हमारी तो अभी शादी भी नहीं हुई.’’

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गीता ने नाराजगी का इजहार किया तो मनोरंजन का दिल खुशियों से उछलता हुआ सीने से बाहर आने को हो गया. क्योंकि घुमाफिरा कर वह यही तो पूछना चाहता था कि गीता शादीशुदा है या नहीं.

उस का काम हो गया क्योंकि जो लड़की उसे पसंद आई थी वो सिंगल है या शादीशुदा, यह जानना उस के लिए जरूरी था.

बस, उस के बाद मनोरंजन के लिए गीता से दोस्ती करना आसान हो गया. गीता की तरह वह भी भोलाभाला था. उस ने गीता का नामपता पूछा, उस के परिवार के बारे में जानकारी ली और उस का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे भी अपना मोबाइल नंबर दे दिया.

गीता भी चाहने लगी मनोरंजन को

गीता को उस ने यह बात इशारेइशारे में बता दी कि वह उस को पसंद करता है और फोन पर उस से बात करेगा. इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

कुछ दिनों बाद दोनों एकदूसरे से मुलाकात भी करने लगे. साथ में सिनेमा देखने, रेस्टोरेंट में साथ जा कर खाना खाने का सिलसिला भी शुरू हो गया.

एकदो महीने के बाद मनोरंजन की तरह गीता भी उसे पूरे दिल से प्यार करने लगी. एक दिन मनोरंजन ने अपने दिल का इजहार करते हुए गीता से कह दिया. गीता क्या तुम मेरी सूनी जिंदगी में आ कर उसे रोशन कर सकती हो. गीता खुद भी मनोरंजन से कुछ ऐसा ही कहना चाहती थी. दोनों ने उस दिन साथ जीनेमरने की सौगंध खा ली.

बस, एक ही अड़चन थी. मनोरंजन जाति से ब्राह्मण था, जबकि गीता यादव बिरादरी से थी. मनोरंजन को तो कोई ऐतराज नहीं था. लेकिन गीता के परिवार को ऐतराज न हो, इसलिए उस ने गीता से अपने परिवार की राय जानने के लिए कहा.

गीता ने जब अपनी मां शांति व भाई राजेश यादव को मनोरंजन के बारे में बताया तो पहले उन्होंने नाराजगी दिखाई कि एक गैरबिरादरी के लड़के से हम कैसे उस की शादी कर दें. लेकिन फिर यही सवाल उठा कि बिरादरी में अच्छे लड़के तो मोटा दहेज मांग रहे हैं.

जबकि मनोरंजन अच्छा लड़का भी है और कमाता भी अच्छा है. ऊपर से वह गीता को बेहद प्यार भी करता है. अगर वह मनोरंजन से गीता की शादी करते हैं तो अच्छा लड़का भी मिल जाएगा और दहेज भी नहीं देना पड़ेगा.

ना ना करतेकरते गीता की मां और भाई दोनों मान गए और उन्होंने शादी के लिए हां कर दी. फरवरी, 2007 में दोनों परिवार वालों की रजामंदी से मंदिर में जा कर मनोरंजन और गीता ने शादी कर ली.

शादी के बाद मनोरंजन को मानो जीने का मकसद मिल गया. उस की चाहत गीता उस की जिंदगी की रोशनी बन चुकी थी. 6 महीने कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. मनोरंजन पूरी तरह गीता के प्यार के आगोश में डूब चुका था.

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वक्त का पहिया तेजी से घूमने लगा. महीने गुजरे फिर साल गुजरने लगे. दोनों के प्यार की तपिश के वक्त के साथ तेजी से बढ़ती गई. लेकिन 2 साल गुजर गए तो एक कमी दोनों को खलने लगी. उन की चाहत थी कि घरआंगन में एक बच्चे की किलकारी गूंजे. लेकिन वो चाहत पूरी नहीं हो रही थी.

3 साल हो गए, लेकिन गीता मां नहीं बन सकी. जब मनोरंजन अपनी इस चाहत का जिक्र कर गीता से इस कमी को पूरा करने की फरमाइश करता तो वह कहती, ‘‘इस में मेरा क्या दोष है. तुम्हारी मर्दानगी में कमी होगी, जो बच्चा पैदा नहीं हो रहा.’’

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Crime: अठारह साल बाद शातिर अपराधी की स्वीकारोक्ति

कहते हैं- हत्या का अपराध छुपता नहीं है, यह बात एक बार पुनः सत्य हो गई हत्या करने के बाद सालों साल आत्मग्लानि से पीड़ित शख्स ने अाखिर कानून के सामने यह स्वीकार कर लिया कि उसने अपने दोस्त की हत्या 18 साल पहले की थी.

यह आत्म स्वीकारोक्ति बताती है कि हत्या जैसे संगीन अपराध इंसान की जिंदगी को किस तरह तबाह और बर्बाद कर देता है.

अपने दोस्त को मौत के घाट उतार कर उसे जंगल में दफनाने की घटना का खुलासा 18 साल बाद स्वयं आरोपी ने किया है. यह घटना छत्तीसगढ़ के जिला बालोद की है आरोपी के पुलिस के समक्ष स्वीकारोक्ति के बाद  प्रशासन और नगर में में हड़कंप मच गया है.

यह घटना हम आपको तपसील से बताते हैं – बालोद के करकभाट गांव के आरोपी की निशानदेही पर दो दिन तक स्थानीय प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने जंगल में खुदाई करवाई लेकिन मृतक का शव या कोई भी अवशेष नहीं मिल पाया है.

आरोपी हत्या के बाद  परिवार के साथ रोजी-रोटी की तलाश में कहीं चला गया था जब वापस आया तो गुमसुम रहने लगा था धीरे धीरे उसकी मानसिक हालत खराब होने  लगी रातों को नींद नहीं आती थी वह बैचेन रहने लगा था.

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दरअसल, यह सनसनीखेज मामला छत्तीसगढ़ के बालोद थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम करकभाट में रहने वाले टीकम कोलियार का है. उसने अचानक अपने परिवार और गांववालों को बताया कि 2003 में उसने अपने दोस्त छवेश्वर गोयल की हत्या कर दी थी. हत्या करने के बाद में उसे गांव के पास की जंगल में दफना दिया था. इस मामले की सूचना ग्रामीणों ने अंततः पुलिस को दी.और पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर दो दिन तक खुदाई जरूर की लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा. पुलिस का मानना है कि घटना घटित हो सकती है क्योंकि मृतक युवक 2003 से लापता है उस दरमियान लापता युवक की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई गई थी. यह भी तथ्य सामने आए हैं दोनों ही अच्छे मित्र थे साथ साथ रहते थे पता पुलिसि यह मान के चल रही है घटना में सत्यता हो सकती है.मगर जब तक मृतक का कोई अवशेष बरामद नहीं होता फॉरेंसिक जांच नहीं हो जाती पुलिस मामला दर्ज करने में अपने आप को असमर्थ पा रही है.जो कानूनी रूप से सही भी है.

पुलिस के मुताबिक आरोपी का बयान है कि मृतक दोस्त अब उसे सपने में आकर सताने लगा है, इस वजह से उसने इस पूरे मामले को लोगों को बताया. वहीं इस घटना का कारण उसने बताया कि उसकी जो प्रेमिका थी और जो वर्तमान में उसकी धर्म पत्नी है उसे देखकर उसका दोस्त उससे लगातार जबरदस्ती संबंध बनाने की कोशिश करता था उसकी हरकतों से नाराज़ हो कर उसने गुस्से में आकर दोस्त छवेश्वर गोयल की हत्या कर दी थी.

शातिर अपराधी है हत्यारा

हत्या की घटना स्वीकार करने के‌ पश्चात रोते हुए उसने पुलिस को बताया कि 2003 फरवरी में छबेश्वर ने उसकी होने वाली पत्नी के साथ छेड़छाड़ की थी.  इसकी जानकारी उसे मिली उसकी छबेश्वर से अच्छी दोस्ती थी उसे समझाया मगर वह नहीं माना जिसके बाद वह गांव के खेत तरफ छबेश्वर के साथ  गया, शाम 7 बजे अचानक लोहे की रॉड से उसके सिर पर हमला कर हत्या कर दी.

गांव में किसी को इसकी जानकारी न हो, इसलिए घटना स्थल से 300 मीटर दूर देर रात गड्ढा खोदकर शव को बोरे में भरकर दफना दिया. घटना के दो साल बाद छेड़छाड़ की शिकार लड़की से टीकम ने विवाह कर लिया.

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इस घटना में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मृतक के पिता जगदीश व मां सरस्वती के मुताबिक  जब उनका बेटा घर नहीं आया तो इसकी सूचना थाने में भी दी.  उम्मीद थी कि उनका बेटा एक दिन वापस  आएगा. अब टीकम के द्वारा हत्या की बात बताई जाने पर उन्होंने  आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है.

हमारे संवाददाता को पुलिस ने बताया  छबेश्वर के घर वाले लगातार खोजबीन कर रहे थे तो  इसलिए वह गांव के एक लैंडलाइन फोन से मित्र के पिता और मां को फोन लगाकर बात करता था . वह छबेश्वर बनकर उसके माता-पिता से बात करता था. कहता था – वह जहां भी है, खुश है,अच्छा सा काम कर रहा है. मेरी फिक्र मत करना. यह इसलिए कहता था ताकि अहसास न हो कि उनका बेटा मर गया है. यह सच  टीकम ने छबेश्वर के पिता जगदीश को भी बताई सुन कर आवाक रह गए.

मजाक: लोकसेवक सेवकराम की घरवाली और कामवाली

सेवकराम अपनी कोठी में बाहर बने बरामदे में पड़े एक सोफे पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे. अखबार पढ़तेपढ़ते उन का ध्यान घर का काम करने के लिए रखी गई नई कामवाली पर चला गया.

सेवकराम ने नईनकोर कामवाली को देख कर अखबार पढ़ना बंद कर दिया और उसे गौर से देखते हुए पूछा, “तुम कौन हो? आज से पहले तो तुम्हें मैं ने नहीं देखा?”

“मैं संतू हूं साहब.”

“तुम कब से काम करने आने लगी?” सेवकराम ने पूछा.

“बस, कल से.”

“पर मैं ने तो तुम्हें कल नहीं देखा.”

“साहब, आप कल बाहर गए थे. रात को आए होंगे. मैं तो काम खत्म कर के अंधेरा होने से पहले ही चली गई थी.

“मालकिन मायके गई हैं. एक हफ्ते बाद आएंगी. मुझ से कह गई हैं कि घर का खयाल रखना, साहब का नहीं,” संतू ने कहा.

“मतलब?”

“वह तो आप को पता होना चाहिए साहब. मालकिन घर में नहीं हैं, इसलिए आप को अकेलाअकेला लगता होगा न?”

सेवकराम ने कहा, “अरे संतू, तुम्हारी मालकिन मायके गई हैं, इसलिए मुझे लग रहा है कि हिंदुस्तान आज ही आजाद हुआ है. अकेले रहने में ऐसा मजा आता है कि पूछो मत.”

“ऐसा क्यों साहब?”

“संतू, तुम्हारी मालकिन घर में होती हैं तो मैं अखबार में क्या पढ़़ रहा हूं, इस पर भी नजर रखती हैं. सिनेमा वाला पेज तो देखने भी नहीं देती हैं. मैं किसी हीरोइन का फोटो देख रहा होता हूं तो अखबार खींच लेती हैं. मैं फोन पर बात कर रहा होता हूं तो दरवाजे पर खड़ी हो कर सुन रही होती हैं.

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“एक दिन मैं झूठ बोल कर बाहर चला गया कि शहर में दंगा हो गया है, तो मुझे शांति समिति की मीटिंग में जाना है. उस ने पुलिस को फोन कर के पता कर लिया कि शहर में दंगा कहां हो रहा है. दंगा हुआ ही नहीं था. उस रात मुझे भूखे ही सोना पड़ा था,” सेवकराम ने कहा.

संतू ने हाथ में झाड़ू लिए हुए ही पूछा, “आप कोई नेता हैं क्या साहब?”

“यह बात बाद में करेंगे, पहले मुझे यह बताओ कि तुम कहां रहती हो?”

संतू ने कहा, “मैं कहां रहती हूं साहब, इस बात को छोड़ो, पहले यह बताओ कि मैं कैसी लगती हूं?”

“मस्त लगती हो.”

“थैंक्यू साहब.”

“तुम इंगलिश बोलना भी जानती हो?”

“हां साहब, मैं 12वीं जमात तक पढ़ी हूं.”

“तुम्हारी उम्र कितनी है संतू?”

“24 साल की हूं साहब.”

“पर अभी तो तुम 20 की ही लगती हो.”

“दूसरे एक घर में काम करती थी न, वहां के साहब तो मुझे 16 साल की ही कहते थे.”

“तुम्हारी बात सच है. तुम सचमुच बहुत सुंदर हो संतू.”

कचरा निकालते हुए संतू ने पूछा, “साहब, आप का नाम क्या है?”

“सेवकराम.”

“इस तरह का गंवारू नाम क्यों रखा है साहब आप ने?”

“बात यह है संतू कि मेरा असली नाम तो विकास है, पर ‘विकास तो पागल हो गया है’. बस, मुझे भी लोग पागल कहने लगे, इसलिए 4 साल पहले मैं ने अपना नाम बदल दिया था.

“पर संतू, तुम भी तो इतनी सुंदर हो, तुम ने अपना यह गंवारू नाम क्यों रखा है?”

संतू बोली, “साहब मेरा असली नाम संतू नहीं है. मेरा असली नाम तो प्रियतमा है. मैं जहां भी काम करने जाती थी, उस घर के साहब मुझे प्रियतमा कह कर बुलाते थे. यह मालकिन लोगों को अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मुझे बारबार काम की तलाश करनी पड़ती थी, बारबार घर बदलना पड़ता था, फिर मैं ने भी अपना नाम बदल कर संतू रख लिया.”

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“वाह संतू, तुम सुंदर ही नहीं, बल्कि होशियार भी हो.”

संतू ने पूछा, “साहब, आप का कामकाज क्या है?”

“देखो संतू, मैं नेता बनने की फिराक में हूं,” इसीलिए मैं ने अपना नाम सेवकराम रखा है. मैं पौलिटिक्स जौइन करने वाला हूं.”

“तो आप भाजपा से जुड़ जाइए.”

“संतू, तुम सचमुच मेरी घरवाली से बहुत ज्यादा होशियार लगती हो. तुम्हारी बात सच है. आजकल भाजपा का ही जमाना है, पर भाजपा की ट्रेन के डब्बे में जगह ही नहीं है. कितने लोग तो खिड़कियों में लटके हैं, कितने छत पर बैठे हैं, कितने ट्रेन के पीछे भाग रहे हैं.”

“तो फिर आप क्या करेंगे साहब?”

मैं कांग्रेस पार्टी में जौइन करूंगा. उस की ट्रेन के डब्बे में जगह ही जगह है.”

“पर वह ट्रेन न चली तो?”

“मैं आशावादी हूं. एक जमाने मेे भाजपा की लोकसभा में महज 2 सीटें थीं, पर आज 300 सौ भी ज्यादा सीटें हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले अमित शाह जब तक हैं, तब तक कांग्रेस का चांस नहीं दिखाई दे रहा है, फिर भी मैं कांग्रेस में ही जाऊंगा.”

संतू ने पूछा, “ऐसा क्यों साहब?”

“सीधी सी बात है. चुनाव में कांग्रेस पार्टी से मैं टिकट मांगूंगा, भले ही हार जाऊं.”

“इस से आप को क्या फायदा होगा?”

सेवकराम ने कहा, “देखो संतू, मुझे टिकट मिलेगा तो चुनाव लड़ने के लिए चुनाव फंड भी मिलेगा. उस में से मैं आधा पैसा ही खर्च करूंगा, बाकी का आधा पैसा बचा लूंगा. बोलो, है न फायदे का सौदा?”

“आप जैसे लोगों की वजह से ही कांग्रेस हार रही है.”

“अरे संतू, मुझे तो पैसे का फायदा हो रहा है न.”

“आप की यह बात तो सही है. आप का सचमुच में फायदा होगा. ऐसा कीजिए साहब, जब आप का इतना फायदा होने वाला है तो आप मुझे एडवांस में एक बढ़िया साड़ी दे दीजिए न.”

“अरे, तुम कहो तो तुम्हारे लिए आज ही बढ़िया साड़ी ला दूं.”

“थैंक्यू साहब, मुझे अब कांग्रेस पार्टी अच्छी लगने लगी है.”

“मैं नहीं अच्छा लग रहा हूं?”

“अच्छे लग रहे हैं न साहब आप भी, पर मुझे तो साड़ी आज ही चाहिए.”

सेवकराम ने कहा, “एक काम करो संतू, मेरी घरवाली की अलमारी खोल कर तुम्हें जो साड़ी अच्छी लगे, तुम अभी ले लो.”

“हफ्तेभर बाद मालकिन आएंगी और एक साड़ी गायब पाएंगी, तब?”

“मैं कह दूंगा कि लौंड्री वाले को धोने के लिए दी थी, उस ने गायब कर दी.”

“इस का मतलब आप अपनी घरवाली से झूठ बोलेंगे?”

“तुम्हारे जैसी सुंदर कामवाली के लिए तो मैं एक नहीं, सौ झूठ बोल सकता हूं. मैं तुम्हें एक शर्त पर अभी अपनी घरवाली की साड़ी दे सकता हूं.”

“कौन सी शर्त?”

सेवकराम ने कहा, “अलमारी से कोई भी एक साड़ी तुम ले लो, पर कल सुबह तुम मेरे घर काम करने आना तो वही साड़ी पहन कर आना. तुम्हारा चेहरा न दिखाई दे, इस तरह मुंह ढक कर रखना. पड़ोसियों को लगे कि मेरी घरवाली आ रही है.

“पूरे दिन तुम्हें मेरी घरवाली की साड़ी पहन कर काम करना होगा. कल सुबह की चाय भी तुम्हें वही साड़ी पहन कर बनानी होगी. चाय बना कर मुंह ढके हुए ही शरमाते हुए मुझे सोते से उठा कर मुझे चाय देनी होगी.

“मैं तुम्हें घर की चाबी दे दूंगा. तुम खुद ही दरवाजा खोल कर अंदर आ जाना. घर की एक चाबी मालकिन के पास है और एक मेरे पास. अपनी चाबी मैं तुम्हें दे दूंगा.”

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ठीक है साहब, आप की शर्त मंजूर है.”

“पर मुंह ढक कर आना. तुम्हारा चेहरा दिखाई नहीं देना चाहिए. मुझे चेहरा ढके हुए घूंघट वाली औरतें बहुत अच्छी लगती हैं.”

“साहब, मैं तो गांव की हूं. हमारे गांव में तो साड़ी सिर से ओढ़ने का रिवाज है, इसलिए मुझे साड़ी सिर से ओढ़ना खूब अच्छी तरह आता है. सिर से साड़ी ओढ़ने के बाद तो मैं और सुंदर लगती हूं.”

“ठीक हे, तुम अंदर जाओ और अलमारी से जो साड़ी अच्छी लगे, ले लो.”

“ठीक है साहब,” कह कर संतू अंदर गई और काम खत्म कर के एक सुंदर और कीमती साड़ी ले कर चली गई.

संतू के इंतजार में सेवकराम को उस पूरी रात नींद नहीं आई. सुबह हुई. सेवकराम की आंखें लग ही रही थीं कि तभी उन्हें लगा रसोई में चाय बन रही है. जागते हुए भी उन्होंने आंखें बंद कर लीं.

थोड़ी देर बाद साड़ी बांधे शरमाते हुए एक नईनवेली की तरह हाथ में चाय की ट्रे लिए वह आई.

सेवकराम ने कहा, “आ गई डार्लिंग?”

“हां, लो यह चाय.”

सेवकराम को लगा यह आवाज तो संतू की नहीं है. वे उठ कर बैठ गए.

चाय ले कर आई औरत ने सिर से पल्लू हटाया, उस के बाद आंखें निकाल कर बोली, “मैं तुम्हारी कामवाली नहीं, घरवाली हूं. एक ही दिन में कामवाली को डार्लिंग बना लिया.”

घबराते हुए सेवकराम ने कहा, “अरे तुम, तुम तो एक हफ्ते के लिए गई थी, दूसरे ही दिन कैसे आ गई?”

“मुझे तुम्हारे लक्षण पता थे, इसलिए मैं संतू को अपना मोबाइल नंबर दे कर गई थी. मैं ने उस से कहा था कि मेरा घरवाला कोई उलटीसीधी हरकत करे तो मुझे फोन कर देना.

“कल रात को ही संतू ने फोन कर के मुझे सारी बात बता दी थी, इसलिए मैं सुबह ही आ गई और मैं ने तुम्हें रंगे हाथ पकड़ लिया. तुम्हारी जासूसी करने के लिए मैं ने संतू को एक बढ़िया साड़ी पहले ही दे दी थी. समझे?”

“सौरी, मैं तो मजाक कर रहा था.”

“घरवाली को छोड़ कर कामवाली से मजाक? तुम्हेें पता होना चाहिए कि संतू जिस वार्ड में रहती है, उस वार्ड की वह भाजपा की महिला मोरचा की अध्यक्ष है.”

“सच में…”

सेवकराम की घरवाली ने कहा, “मैं अभी फोन कर के कांग्रेस और भाजपा के जिला अध्यक्षों से कह देती हूं कि वे दोनों तुम्हें अपनी पार्टी में कतई न लें.”

“ऐसा क्यों?”

“जो आदमी अपनी घरवाली का नहीं हो सकता, वह जनता का क्या होगा.”

सेवकराम ने देखा कि संतू बाहर बरामदे में खड़ी हंस रही थी.

पापाज बौय- भाग 3: ऐसे व्यक्ति पर क्या कोई युवती अपना प्यार लुटाएगी?

Writer- सतीश सक्सेना 

अलसाते हुए शायनी पलंग पर उठ बैठी. उस ने पापा को पास बैठाते हुए कहा, ‘‘आज कालेज जाने का मन नहीं है,’’ फिर उन की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘पापा, मैं ने फैसला किया है कि मैं शादी नहीं करूंगी.’’ रविराय उस की बात पर जरा भी नहीं चौंके. वे बात की गंभीरता को समझते हुए बोले, ‘‘साफ क्यों नहीं कहती कि शतांश अब तेरी जिंदगी से दूर जा चुका है. मैं कई दिन से महसूस कर रहा था कि अब न तो तेरे लिए उस के फोन आते हैं और न ही तू मुझ से उस के साथ देर रात तक रुकने के लिए अनुमति मांगती है. चल, जो भी हुआ, ठीक हुआ. शायद तुम दोनों एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे.

‘‘बेटे, लाइफ एक बंपी राइड है. यह सपाट और सरल कभी नहीं होती इसलिए संभलो और आगे बढ़ो. नैवर रिग्रैट फौर एनीथिंग,’’ कहते हुए रविराय ने उसे बांहों में बांध कर उस के माथे को चूम लिया.

खनक की कार जब होटल ड्रीमलैंड की पार्किंग में रुकी तो शतांश अपनी कार लौक कर के उस के आने का इंतजार करने लगा. खनक ने कार से उतरते ही शतांश से कहा, ‘‘मैं समझती हूं, हमें अंदर रेस्तरां में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. अपने विवाह के संबंध में हमें जो भी निर्णय लेना है, वह यहीं लिया जा सकता है. वैसे मैं तुम्हारे और शायनी के बारे में बहुतकुछ जानती हूं. मैं यह भी जानती हूं कि तुम ने मुझ से शादी करने के लिए उस से ब्रेकअप किया है.’’ थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, तुम में और मुझ में एक बड़ा अंतर यह है कि यू आर पापाज बौय. तुम वही करते हो जो वे तुम्हें करने के लिए कहते हैं. यहां तुम उन के कहने पर ही मुझे प्रपोज करने आए हो.

‘‘जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं अपने डैडी की इज्जत करती हूं. उन के कहने पर मैं यहां आई तो जरूर हूं, लेकिन अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार मैं किसी को नहीं देती, क्योंकि यह मेरी जिंदगी है, जो मुझे अपने ढंग से जीनी है, डैडी की इच्छा से नहीं.’’ अपनी बातों को समाप्त करते हुए वह बोली, ‘‘अब बेहतर यही है कि तुम लौट कर अपने पापा को यह बता दो कि खनक तुम्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह न तो हमारे घर में निभ पाएगी और न ही आप की सेवा कर पाएगी. मुझे अपने डैडी से क्या कहना है, यह मैं भलीभांति जानती हूं.’’

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शतांश मूक रह गया. वह चेहरे पर उभर आई फीकी सी मुसकान के पीछे छिपे दर्द को ढकने का प्रयास करने लगा. वह समझ नहीं पाया कि कैसे वह खनक को अपने मन के भाव दिखाए. ‘‘चलें,’’ अचानक खनक के शब्द ने उसे चौंका दिया.

खनक उसे उसी अवस्था में छोड़ कर अपनी कार में बैठी और कार स्टार्ट कर पार्किंग से बाहर निकल गई. शतांश किंकर्तव्यविमूढ़ सा उसे देखता रह गया. समय किसी के लिए नहीं रुकता. शतांश के लिए भी नहीं रुका और न ही शायनी के लिए. 4 साल बाद नैनीताल में एक दिन शायनी जैसे ही अपने क्लीनिक

से बाहर निकली, उसे शतांश कार में सड़क से गुजरता हुआ दिखाई दिया. शायनी उसे नैनीताल में देख कर विस्मित हुए बिना नहीं रही. उसी पल शतांश को भी वह सड़क के किनारे चलती हुई नजर आ गई. उसे नैनीताल में देख कर वह भी चकित रह गया. वह कार से उतरा और शायनी के पास आ पहुंचा.

उसे रोकने का प्रयास करते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम यहां?’’ शतांश को अपने सामने देख कर शायनी के मन से नफरत का लावा भरभरा कर बह निकला. उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना शायनी ने अपनी गति तेज

कर दी. शतांश ने भी उस का पीछा नहीं छोड़ा. बढ़ कर फिर उस के समीप आ गया. बोला, ‘‘शायनी, सुनो तो. हम इतने भी अजनबी नहीं हैं कि तुम मुझ से कतरा कर भागने लगो. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि तुम यहां कैसे?’’

अब शायनी रुक गई. वह अपने को संयमित करते हुए बोली, ‘‘मैं यहीं रहती हूं. यहां मेरा क्लीनिक है.’’ ‘‘सरप्राइजिंग, मेरी यहां एक फैक्टरी है. मैं भी यहीं रहता हूं,’’ फिर कुछ सोचते हुए उस ने शायनी से अनुरोध किया, ‘‘क्या

हम थोड़े समय के लिए एकसाथ कहीं बैठ सकते हैं?’’ ‘‘नहीं,’’ वह बोली.

‘‘शायनी तुम्हें मेरे और अपने उन पलों की कसम, जो कभी हम ने साथ जिए थे.’’

‘‘जो कहना है यहीं कहो,’’ बड़ी असहज स्थिति में उस का अनुरोध स्वीकार करते हुए शायनी ने कहा. शतांश वहीं एक लैंप पोस्ट के सहारे खड़ा हो गया. शायनी भी उस के पास खड़ी हो गई. अपने दिल के बोझ को हलका करने का प्रयास करते हुए शतांश बोला, ‘‘शायनी, मैं अब पापाज बौय नहीं रहा हूं. पापा से अलग हो कर मैं ने अपनी फैक्टरी यहां लगा ली है. फैक्टरी लगाने के बाद मैं ने तुम्हें हर जगह ढूंढ़ा.

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’’तुम्हारे साथियों से भी पूछा कि तुम आजकल कहां हो, लेकिन जब कोई कुछ नहीं बता पाया तो मैं ने तुम्हारे पापा से बात की. उन्होंने मुझे तुम्हारे बारे में कुछ भी बताने से साफ इनकार कर दिया. हां, यह जरूर बताया कि तुम ने भविष्य में शादी करने से इनकार कर दिया है.’’ शायनी शतांश की बातें सुनती चली गई. उस की बातों पर उस ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. बस, सड़क पर चलती हुई भीड़ और सामने से गुजरते वाहनों को देखती रही.

थोड़ी चुप्पी के बाद शतांश ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘शायनी, सच मानो, अपने बे्रकअप के बाद से मैं पश्चात्ताप की आग में जल रहा हूं. वह बे्रकअप मेरे जीवन की एक बड़ी भूल थी. मैं तुम से क्षमा मांग कर उस भूल को सुधारना चाहता हूं. मेरी बाहें तुम्हें आज भी उसी गर्मजोशी से बांधने को तैयार हैं. प्लीज शायनी, फौरगैट एवरी थिंग.’’ शायनी ने शतांश को सिर से ले कर पैर तक देखा मानो किसी गिरगिट को रंग बदलते हुए देख रही हो. क्षितिज पर डूबा सूरज पल भर के लिए आग बरसाता हुआ सा लगा.

अपने मन के कष्ट को दबाते हुए वह फट पड़ी, ‘‘मिस्टर शतांश, जो उलझन, उथलपुथल, तनाव और दुख इस दौर में मैं ने झेले हैं, उन्हें सिर्फ वही युवती समझ सकती है जिस ने बे्रकअप झेला हो. मैं एक स्वाभिमानी युवती हूं. रिश्तों में इतनी कड़वाहट आने के बाद तुम से फिर रिश्ता कायम कर लूंगी, यह तुम्हारी समझ का एक बड़ा दोष है. ‘‘जरा सोचो, जिस इंसान के साथ बिताए पलों की याद आते ही मेरे मन में नफरत का एक तूफान उठने लगता है, उस के चेहरे को जिंदगी भर मैं अपने सामने कैसे देख पाऊंगी? कभी नहीं, सौरी.’’

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तभी एक औटोरिक्शा शायनी के पास से गुजरा. शायनी ने हाथ दे कर उसे रोका. उस में बैठी और चली गई. औटो से निकले काले धुएं ने शतांश के सपनों पर गहरी कालिख बिछा दी.

Manohar Kahaniya: बच्चा चोर गैंग- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अलीगढ़ में महुआखेड़ा थाने के थानाप्रभारी विनोद कुमार पिछले कुछ महीने से इलाके में बच्चा चोरी या लापता होने की घटनाओं को लेकर काफी उलझन में थे. इस तरह की घटनाओं की शिकायतें दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं. गरीब परिवार के लोगों की अपने छोटे बच्चे के अचानक लापता होने की कई शिकायतें दर्ज थीं.

चिंता इस बात की थी कि न तो चोरी का बच्चा बरामद हो पा रहा था और न ही उस का कोई सुराग ही मिल रहा था. उन की रातों की नींद उड़ी हुई थी. हर पल आंखों के सामने बच्चे की तलाश में आने वाली रोतीबिलखती मांओं का चेहरा घूम जाता था.

आखिर कौन हैं बच्चे चुराने वाले? गायब बच्चे कहां होंगे? बच्चे की देखभाल कौन कर रहा होगा? उन की मां का क्या हाल होगा? आदि सवालों के इसी उधेड़बुन के साथ थानाप्रभारी 22 जून को अपने क्वार्टर थाने में स्थित औफिस आ रहे थे.

अभी वह औफिस के गेट तक ही पहुंचे थे कि एक औरत और एक आदमी को थाने में जमीन पर बैठे देखा. औरत की आंखों से आंसू टपक रहे थे. वह बारबार अपने दुपट्टे से आंसू पोछे जा रही थी. उस के साथ बैठा आदमी उसे ढांढस बंधा रहा था.

थानाप्रभारी विनोद कुमार ने उन्हें इशारे से अपने औफिस में बुलाया. आदर भाव से पूछा, ‘‘अरे, आप लोग जमीन पर क्यों बैठे हो, अंदर आओ.’’

बुरी तरह से बिलख रही महिला को शांत  करते हुए पूछा, ‘‘हांहां, बताइए क्या परेशानी है?’’

‘‘श्रीमान जी, मैं राजा हूं. ये मेरी घरवाली रेखा है. आज सुबह मेरी बच्ची को कोई उठा ले गया.’’ औरत के साथ बैठा आदमी बोला.

थानाप्रभारी फिर बच्चा चोरी की शिकायत सुन कर विचलित हो गए. उन्होंने उन से पूरी मामले की जानकारी ली. उस के बाद उन को बच्चे का पता जल्द पता लगा लिए जाने का आश्वासन देते हुए तसल्ली दी. बच्चा मिलने का भरोसा पा कर पतिपत्नी चले गए. किंतु विनोद कुमार के माथे पर शिकन और गहरा गई.

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कुछ समय में ही रामकरण नाम का एक मुखबिर आया. दूर से ही रामराम किया. वह एक फेरीवाला था. साइकिल पर स्कूलों के बाहर बच्चों के लिए खानेपीने का सामान बेचने का काम करता था. स्कूल बंद होने के कारण वह गलीमोहल्ले में घूमघूम कर सामान बेचने लगा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार का वह पूर्व परिचित था.

‘‘साब जी, अभीअभी जो औरत आप से मिल कर गई है, उस पर मुझे शक है,’’ फेरीवाला बोला.

‘‘क्या कहते हो रामकरण! वह तो अपने बच्चे के चोरी होने की शिकायत ले कर आई थी,’’ थानाप्रभारी चौंक गए.

‘‘मैं सही कह रहा हूं साब जी, उस का तो कोई बच्चा है ही नहीं. उस के साथ जो आदमी था, वह उस का पति भी नहीं है,’’ रामकरण ने बताया. ‘‘तो फिर वे कौन लोग हैं?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘औरत तो अलीगढ़ की रहने वाली ही नहीं है. और रही बात उस के साथ आए आदमी की तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह भी मेरी तरह फेरीवाला है. वह घूमघूम कर फलसब्जियां बेचता है. उसे मैं ने कई बार सुबह के समय में सब्जी मंडी में थोक में सब्जियां खरीदते हुए देखा है.’’ रामकरण बोला.

‘‘यदि वे दोनों पतिपत्नी नहीं हैं तो उन्होंने बच्चा चोरी की शिकायत क्यों दर्ज कराई?’’ थानाप्रभारी ने सवाल किया.

‘‘ताकि आप एक और बच्चा चोरी की तलाश में उलझ जाएं.’’ फेरीवाला रामकरण बोला.

‘‘ठीक है, तुम अब जाओ,’’ कहने के बाद थानाप्रभारी एक बार फिर सोच में पड़ गए.

घटनाक्रम का पेंच

मुखबिर रामकरण ने जो कुछ बताया अगर उस में जरा सी सच्चाई है, तो इस का मतलब है कि बच्चा चोरी की वारदातों में कोई गिरोह पूरी तरह से योजना बना कर काम कर रहा है.

इसे आधार बना कर थानाप्रभारी ने बच्चों के गुमशुदा मामलों की तहकीकात नए सिरे से शुरू करने की योजना बनाई.

उत्तर प्रदेश का जिला अलीगढ़ तरहतरह के ताले बनाने के लिए देशविदेश में प्रसिद्ध है. तालों की जरूरत तो कोठियों, बंगलों, आलीशान मकानों, दुकानों, गोदामों आदि की सुरक्षा के लिए होती है. किंतु सड़क के किनारे खानाबदोशों की जिंदगी उतनी ही असुरक्षित बनी रहती है. वे अपनी बैलगाड़ी के ऊपर और नीचे तंबू तान कर जैसेतैसे अपनी जिंदगी गुजारते हैं. वे बंजारे के नाम से जाने जाते हैं. उन के घरों में दरवाजे ही नहीं होते हैं. पूरा परिवार सड़कों या कहीं नालों के किनारे खाली पड़ी जगहों पर रहता है.

वहीं उन का खाना पकाना, खाना और नहानाधोना होता है. उन्हें तालों की जरूरत हो न हो, लेकिन उन के जानमाल की सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन की जरूरत बनी रहती है.

यही कारण है कि वहां के लोग अकसर पुलिस के पास अपनी तरहतरह की शिकायतें ले कर पहुंचते रहते हैं.

अलीगढ़ के इसी इलाके में बंजारों का एक परिवार क्वारसी बाईपास स्थित सरोज नगर की गली नंबर 6 के पास रहता था. वे पारंपरिक भट्ठी में लोहे को तपा कर सामान्य जरूरत के सामान छेनी, हथौड़ी, बाल्टी, कड़ाही आदि बनाते हैं. इस काम में दिमाग लगाने वाला काम पुरुष और हथौड़ा चलाने का काम अधिकतर औरतें करती रहती हैं.

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बात 21 जून, 2021 की है. रोज की तरह राजा भट्ठी पर लोहा तपा रहा था. तभी उस के सामने एक कार आ कर रुकी. उस में से 3 युवक निकल कर राजा के पास आए. उन से किसी बात को ले कर राजा से नोकझोंक हो गई. तभी उस की पत्नी रेखा भी आ गई. वह चीखती हुई बोली, ‘‘क्यों धमका रहे हो मेरे पति को?’’

‘‘तू क्या महारानी है?’’ एक युवक चिल्लाया और दूसरे ने राजा को पकड़ लिया. उन के आक्रामक तेवर देख वह घबरा गई.

‘‘बाबू हम गरीब लोग हैं, हमारे पति को माफ कर दो. आपलोग चले जाओ.’’ वह बोली.

ये सारी बातें थानाप्रभारी विनोद कुमार को रेखा ने तब बताईं, जब उसे रामकरण फेरीवाला के कहने पर दोबारा थाने बुला कर पूछा गया.

अगले भाग में पढ़ें- रेखा की बातों पर हुआ शक

विषबेल- भाग 1: आखिर शर्मिला हर छोटी समस्या को क्यों विकराल बना देती थी

समीर न जाने कब से आराम कुरसी पर बैठा हुआ था. कहने को लैपटौप खुला हुआ था, पर शायद एक भी मेल उस ने पढ़ी नहीं थी. रविवार के दिन वह अकसर नंदिनी मौसी से बालकनी में कुरसी डलवा कर बैठ जाया करता था. पर आज तो सूरज की अंतिम किरण अपना आंचल समेट चुकी थी, शीत ऋतु की ठंडी हवाएं अजीब सी सिहरन उत्पन्न कर रही थीं, पर वह फिर भी यों ही बैठा रहा. एक बार नंदिनी मौसी फिर चाय के लिए पूछ गई थीं. बड़े ही प्यार से उन्होंने समीर के कंधे पर हाथ रखा तो उस की आंखें भीग आई थीं.

एक सांस छोड़ते हुए उस ने बस, इतना ही कहा, ‘‘नहीं मौसी, आज जी नहीं कर रहा कुछ भी खाने को.’’

‘‘मैं जानती हूं, क्यों नहीं जी कर रहा. पर कम से कम अंदर तो चलो, ठंडी हवाएं हड्डियों को छेद देती हैं.’’

कैसे कहे मौसी से कि जब मन लहूलुहान हो गया है तो शरीर की चिंता किसे होगी? नंदिनी मौसी जबरन लैपटौप, मोबाइल उठा कर चली गईं, तो हार कर उसे उठना पड़ा. कभीकभी वह खुद से प्रश्न करता, क्या इस घर को कोई घर कह सकता है?

मां के मुख से उस ने हमेशा एक ही बात सुनी थी, ‘‘घर बनता है अपनत्व, प्यार, ममता, समर्पण और सामंजस्य से. अगर ईंट, सीमेंट, गारे और रेत की दीवारों से घर बनता तो लोग सराय में न रह लेते.’’

अपनी पत्नी के रूप में उस ने ऐसी सहचरी की कामना की थी जो मन, वचन और कर्म से उस का साथ देती. विवाह तो प्रणयबंधन है, लेकिन शर्मिला व्यवहार, शिष्टाचार, मानअपमान से पूर्णतया विमुख थी. यदि दबे स्वर में कभी कोई कुछ कहता भी, तो इतना चिल्लाती कि वह स्तब्ध रह जाता. न जाने शर्मिला की अपेक्षाएं अधिक थीं या खुद उस की, पर इतना अवश्य था कि घुटने हमेशा उस ने या उस के परिवार के सदस्यों ने ही टेके थे.

पुरानी बातें चलचित्र की तरह आंखों के आगे चल पड़ीं…

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मां और बाबूजी कितने चाव से शर्मिला को अपने घर की बहू बना कर लाए थे. बड़े भाई की असामयिक मौत से कराहते घर में एक लंबे समय के बाद खुशियों की कोंपलें फूटी थीं. मां सब से कहतीं, ‘शर्मिला हमारे घर की बहू नहीं, बेटी है.’

लेकिन उस ने अगले ही दिन से अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए. समीर ने याद किया, मुंहदिखाई की रस्म पर ड्राइंगरूम में काफी महिलाएं जमा थीं. रस्म संपन्न होने के बाद मां ने शर्मिला से प्यार से कहा, ‘समीर अपने कमरे में नाश्ता कर रहा है, बहू तू जा कर उस के पास बैठ.’

‘मैं क्या उस के मुंह में ग्रास दूंगी,’ शर्मिला बोली थी. ऐसा लगा, जैसे महाभारत प्रारंभ होने से पहले अर्जुन का सलामी तीर हो.

यह सुनते ही उपस्थित सभी महिलाओं ने एकदूसरे को निहारा, फिर मां को उलाहना दिया, ‘खूबसूरती के चक्कर में दहेज छोड़ा और रकम को भी लात मारी, अब भुगतो बहू के तेवर.’

‘निसंदेह देवयानी, सौंदर्य, शिक्षा और स्वास्थ्य के चयन के आधार पर तो तुम्हारा चयन श्रेष्ठ है, किंतु तुम्हारी बहू में भावुकता और संवेदनशीलता नाम को भी नहीं है.’ एक अन्य महिला बोली, ‘अरे, देवयानी तो हीरा सम झ कर लाई थी. अब बहू कांच का टुकड़ा निकली, तो जख्म भी वह ही बरदाश्त करेगी.’

‘तुम लोग बहू का मजाक तो सम झती नहीं हो, बात का बतंगड़ बना रही हो,’ हंसते हुए यह कहने के साथ चायनाश्तामिष्ठान प्रस्तुत कर मां ने हंस कर बात का प्रसंग वहीं समाप्त कर दिया था. लेकिन समीर का मन बेचैन हो गया था. क्या सोचती होंगी ये महिलाएं? बाहर निकल कर कितनी बातें बनाएंगी शर्मिला और उस के परिवार के बारे में?

रात को जब सभी अपनेअपने कमरे में सोने के लिए चले गए तो समीर ने शर्मिला को उस की गलती का एहसास दिलाया, ‘मां से बात करने का तुम्हारा तरीका सही नहीं था शर्मिला.’

‘ऐसा क्या कह दिया मैं ने तुम्हारी मां से?’

‘रिश्ते का न सही, उम्र का लिहाज तो किया होता.’

‘देखो समीर, मेरा तो यही तरीका है बात करने का, चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा.’

शर्मिला ने चादर ओढ़ी और मुंह दूसरी ओर फेर कर सो गई. लेकिन समीर पूरी रात करवट बदलता रहा. सुबह उठा तो आंखें लाल थीं. चेहरा बु झा हुआ. देवयानी बेटे का चेहरा देखते ही पहचान गईं कि अंदर से कोई बात उसे बुरी तरह कचोट रही है. चाय का कप थमा कर उन्होंने जैसे ही समीर के कंधे पर हाथ रखा, उस के मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘नम्रता, सहिष्णुता और बड़ों का आदर तो मानवीय भावनाएं हैं न मां, इन्हीं से तो सुख का संचार होता है.’

‘लेकिन स्वभाव और संस्कार तो विरासत में मिलते हैं,’ जवाब बड़ी बूआ ने दिया था. फिर वे देवयानी से मुखातिब हो कर बोलीं, ‘मैं ने तो भाभी तुम्हें पहले ही सचेत किया था कि इस घर से रिश्ता मत जोड़ो. शर्मिला की बड़ी बहन, शादी के एक साल के बाद ही तलाक ले कर मायके लौट आई थी.’

‘लेकिन दुनिया में सारी उंगलियां बराबर तो नहीं होतीं, जीजी,’’ देवयानी ने मुसकरा कर जवाब दिया.

‘तुम्हारी बहू के भी लच्छन सही नहीं दिख रहे,’ बूआ बोली थीं.

‘किसी पौधे को अपनी जड़ जमाने में थोड़ा समय तो लगता है,’ देवयानी ने ननद को चुप रहने का संकेत किया. फिर वे समीर से बोलीं, ‘समीर, जाने की तैयारी शुरू कर दो, कल रात की ट्रेन से तुम दोनों को मनाली के लिए निकलना है.’

धीरेधीरे सभी रिश्तेदार विदा हो गए. समीर का छोटा भाई अरविंद भी 2 दिनों बाद इंटर्नशिप के लिए लखनऊ विदा हो गया. अब घर में 4 सदस्य थे. सास, ससुर, समीर और शर्मिला. तीनों ही हंसमुख और शर्मिला से स्नेह करने वाले. सुधाकर, मेरठ में बैंक मैनेजर थे. समीर को भी प्रोजैक्ट मैनेजर होने के नाते अच्छा वेतन मिलता था. खानेपीने, पहननेओढ़ने का स्तर जरूर मध्यवर्गीय था लेकिन घर में आधुनिक सुखसुविधाओं के सभी साधन उपलब्ध थे. देवयानी पूरी तरह आश्वस्त थीं कि बहू ससुराल में रम जाएगी.

लेकिन, शर्मिला ने अगले दिन से ही शांत सरोवर में पत्थर फेंकना शुरू कर दिया. दरअसल, समीर के ग्रुप लीडर ने उस की छुट्टी कैंसिल कर के उसे तुरंत औफिस पहुंचने की ताकीद की थी.

‘नहीं मां, मु झे कल से ही औफिस जौइन करना होगा. प्रोजैक्ट की डैडलाइन नजदीक है, कल रात ही मेल आया था.’

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टिकट कैंसिल कराए गए तो शर्मिला ने तूफान मचा दिया. वह किसी भी कीमत पर मनाली जाना चाहती थी. समीर ने आश्वस्त किया, ‘प्रोजैक्ट समाप्त हो जाने के बाद हम जरूर कहीं घूमने चलेंगे.’

लेकिन शर्मिला ने तो जिद पकड़ ली थी. एक मत से उस ने तय किया कि जब तक समीर दफ्तर के काम में व्यस्त है, शर्मिला पीहर जा कर घूम आए, मन बहल जाएगा.

अगले 15 दिन समीर के व्यस्तता में कटे. देररात तक वह दफ्तर में ही बैठा रहता. घर लौटने के बाद कौल पर व्यस्त रहता. काम की व्यस्तता के चलते उसे शर्मिला से बात करने का भी समय न मिलता था.

प्रोजैक्ट समाप्त होने के बाद समीर ने दोबारा मनाली के टिकट बुक करवाने के लिए शर्मिला को फोन किया, तो उस ने चिढ़ कर जवाब दिया, ‘‘3 टिकट बुक करना, नीरा भी हमारे साथ चलेगी.’’

‘नी… रा… हनीमून पर… हमारे साथ…?’

‘जी हां, समीर साहब, तुम मु झे तब नहीं ले गए थे न, हर्जाना तो भुगतना ही पड़ेगा.’

फिर थोड़ा विनम्र स्वर में बोली, ‘तलाक के बाद बेचारी नीरा घर में कैद हो कर रह गई है, हमारे साथ चलेगी तो उस का दिल बहल जाएगा.’

समीर संयत रहा. उस समय उसे कोई जवाब नहीं सू झ रहा था. ‘ठीक है,’ कह कर उस ने फोन काट दिया और 3 टिकट बुक करवा लिए.

हंसती, खिलखिलाती दोनों बहनें हिचकोले खाती बसयात्रा का भरपूर आनंद लूट रही थीं. पिछली सीट पर बैठा समीर सहयात्रियों से बातें कर के मन बहलाता, कभी ऊंघने लगता. शर्मिला ने नीरा को अपनी जिद के बारे में बताया, तो उस ने शर्मिला की पीठ थपथपा दी, बोल पड़ी, ‘वाह, तू ने तो मैदान मार लिया.’

8 दिन मनाली भ्रमण के दौरान दोनों बहनों ने ट्रैकिंग, ग्लाइडिंग, घुड़सवारी से ले कर हर महंगे रैस्टोरैंट में जम कर लंचडिनर के स्वाद चखे. पेमैंट समीर करता रहा. वापसी में शर्मिला ने पश्मीना शौल खरीदने की फरमाइश की, तो समीर ने एक शौल मां के लिए भी खरीद ली. इस पर शर्मिला अड़ गई, ‘अपनी मां के लिए, मु झे भी एक शौल खरीदनी है.’

समीर अनुमान से ज्यादा खर्चा कर चुका था. उस का बैंक बैलेंस बुरी तरह बिगड़ चुका था. फिर भी, शर्मिला की बात का मान रखने के लिए उस ने एक शौल अपनी सास के लिए और एक स्टौल छोटी बहन जया के लिए भी खरीद लिया.

अपने अपने रास्ते- भाग 3: क्या विवेक औऱ सविता की दोबारा शादी हुई?

तीनों ने हाथ मिलाए. फिर पहले से बुक की गई मेज के इर्दगिर्द बैठ गए. वेटर चांदी के गिलासों में ठंडा पानी सर्व कर गया.

थोड़ी देर बाद वही वेटर उन के पास आया और सिर नवा कर खड़ा हो गया तो सविता ने ड्रिंक लाने का आर्डर दिया.

थोड़ी देर बाद वेटर आर्डर सर्व कर गया. सभी अपनाअपना ड्रिंक पीने लगे. तभी हाल की बत्तियां बुझ गईं. डायस पर धीमाधीमा संगीत बजने लगा. हाल में एक तरफ डांसिंग फ्लोर था. कुछ जोड़े उठ कर डांसिंग फ्लोर पर चले गए.

वहां का माहौल बहुत रोमानी हो चला था. विवेक ने अपना गिलास खत्म किया और उठ खड़ा हुआ. सिर नवाता हुआ मिस रोज की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘लैट अस हैव ए राउंड.’’

मिस रोज मुसकराई. उस ने अपना गिलास खत्म किया और उठ कर अपना बायां हाथ विवेक के हाथ में  थमा दिया. उस की पीठ पर अपनी बांह फिसला विवेक उसे डांसिंग फ्लोर की तरफ ले गया. दोनों साथसाथ थिरकने लगे.

सविता ईर्ष्यालु नहीं थी. उस ने कभी ईर्ष्या नहीं की. मुकाबला नहीं किया था. मगर आज जाने क्यों ईर्ष्या से भर उठी थी. हालांकि वह जानती थी. आयात- निर्यात के धंधे में विदेशी ग्राहकों को ऐंटरटेन करना व्यवसाय सुलभ था, कोई अनोखी बात न थी.

मगर आज वह एक खास मकसद से विवेक के पास आई थी. इस खास अवसर पर उस का किसी अन्य के साथ जाना, चाहे वह ग्राहक ही क्यों न हो, उसे सहन नहीं हो रहा था.

पहला राउंड खत्म हुआ. विवेक बतरा चहकता हुआ मिस रोज को बांहों में पिरोए वापस आया. मिस रोज ने कुरसी पर बैठते हुए कहा, ‘‘सविताजी, आप के साथी बतरा बहुत मंझे हुए डांसर हैं, मेरी तो कमर टूट रही है.’’

‘‘मिस रोज, यह डांसर के साथसाथ और भी बहुत कुछ हैं,’’ सविता ने हंसते हुए कहा.

‘‘बहुत कुछ का क्या मतलब है?’’

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‘‘यह मिस्टर बतरा धीरेधीरे समझा देंगे.’’

डांस का दूसरा दौर शुरू हुआ. विवेक उठ खड़ा हुआ. उस ने अपना हाथ मिस रोज की तरफ बढ़ाया, ‘‘कम अलांग मिस रोज लैट अस हैव अ न्यू राउंड.’’

‘‘आई एम सौरी, मिस्टर बतरा. मैं थक रही हूं. आप अपनी पार्टनर को ले जाएं,’’ मिस रोजी ने अर्थपूर्ण नजरों से सविता की तरफ देखते हुए कहा.

इस पर विवेक बतरा ने अपना हाथ सविता की तरफ बढ़ा दिया. सविता निर्विकार ढंग से उठी. विवेक बतरा ने अपनी एक बांह उस की कमर में पिरोई और उसे अपने साथ सहारा दे कर डांसिंग फ्लोर पर ले गया.

सविता पहले भी विवेक के साथ डांसिंग फ्लोर पर आई थी. मगर आज उस को विवेक के बाहुपाश में वैसी शिद्दत, वैसा जोश, उमंग और शोखी नहीं महसूस हुई जिन्हें वह हर डांस में महसूस करती थी. दोनों को लग रहा था मानो वे प्रोफेशनल डांसर हों, जो औपचारिक तौर पर डांस कर रहे थे.

विवेक बतरा मुड़मुड़ कर मिस रोज की तरफ देख रहा था. स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है. वह न सौत सह सकती है न मुकाबला या तुलना. विवेक बतरा अनजाने में यह सब कर उसे उत्पीडि़त कर रहा था.

आज से पहले सविता ने कभी विवेक बतरा के व्यवहार की समीक्षा न की थी. उस ने अपने दफ्तर और व्यापार में उस  की खामखा की दखलंदाजी और अनावश्यक रौब जमाने की प्रवृत्ति को यह सोच कर सह लिया था कि वह उस से शादी करने वाली था. मगर आज मात्र 1 घंटे में उस की सोच बदल गई थी.

उस के पूर्व पति ने अपनी हीन भावनावश उस को हमेशा सताया था. बेवजह शक किया था. विवेक बतरा उस के पूर्व पति की तुलना में प्रभावशाली व्यक्तित्व का था. वह भी कल को शादी के बाद उसे सता सकता है. एक बार पति का दर्जा पाने पर या पार्टनर बन जाने पर कंपनी का सारा नियंत्रण अपने हाथ में ले सकता है.

आज मात्र एक नई उम्र की हसीना के रूबरू होने पर उस का ऐसा व्यवहार था, कल न जाने क्या होगा?

विवेक बतरा को भी मिस रोज, जो आयु में सविता से काफी छोटी थी, ताजे और खिले गुलाब जैसी लगी थी. उस की तुलना में सविता एक पके फल जैसी थी, जिस में मिठास पूरी थी, मगर यह मिठास ज्यादा होने पर उबा देती थी. इस मिठास में जीभ को ताजगी भरने वाली खास मिठास न थी जो पेड़ से तोड़े गए ताजे फल में होती थी.

डांस का दूसरा दौर समाप्त हुआ. कई महीने से जो फैसला न हो पाया था, मात्र 45 मिनट के डांसिंग सेशन में हो गया था.

नई मोमबत्तियां लग गईं. खाना काफी लजीज था. मिस रोज ने खाने की तारीफ के साथ आगे फिर मिलने की बात कहते हुई विदा ली. विवेक बतरा उसे छोड़ने बाहर तक गया. सविता निर्विकार भाव से सब देख रही थी.

मिस रोज को छोड़ कर विवेक वापस आया तो बोला, ‘‘सविता डार्लिंग, आज आप को अपना फैसला सुनाना था?’’

‘‘क्या जरूरत है?’’ लापरवाही से सविता ने कहा.

‘‘आप ने आज ही तो कहा था,’’ विवेक बतरा जैसे याद दिला रहा था.

‘‘हम दोनों में जो है वह शादी के बिना भी चल सकता है.’’

‘‘मगर शादी फिर शादी होती है.’’

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‘‘देखिए, मिस्टर बतरा, जब तक फासला होता है तभी तक हर चीज आकर्षक नजर आती है. पहाड़ हम से दूर हैं, हमें सुंदर लगते हैं मगर जब हम उन पर जाते हैं तब हमें पत्थर नजर आते हैं. आज मैं थोड़ी जवान हूं, कल को प्रौढ़, वृद्धा हो जाऊंगी मगर आप तब भी जवान होंगे. तब आप को संतुष्टि के लिए नई कली का रस ही सुहाएगा, इसलिए अच्छा है आप अभी से नई कली ढूंढ़ लें. मैं आप की व्यापार में सहयोगी ही ठीक हूं.’’

विवेक बतरा भौचक्क था. उसे ऐसे रोमानी माहौल में ऐसे विपरीत फैसले की उम्मीद न थी. वेटर को 500 रुपए का नोट टिप के लिए थमा, सविता सधे कदमों से वापस चली गई. ‘रिंग सेरेमनी’ की अंगूठी बंद की बंद ही रह गई थी.

डांस फ्लोर पर डांस का नया दौर आरंभ हो रहा था.

पांच साल बाद- भाग 5: क्या निशांत को स्निग्धा भूल पाई?

स्निग्धा दिल की बुरी नहीं थी. अत्यधिक प्यारदुलार और अनुचित छूट से वह उद्दंड और उच्छृंखल हो गई थी. वह हर उस काम को करती थी जिसे करने के लिए उसे मना किया जाता था. इस से उसे मानसिक संतुष्टि मिलती. जब लोग उसे भलाबुरा कहते और उस की तरफ नफरतभरी नजर से देखते तो उसे लगता कि उस ने इस संसार को हरा दिया है, यहां के लोगों को पराजित कर दिया है. वह इन सब से अलग ही नहीं, इन सब से महान है. दूसरे लोगों के बारे में उस की सोच थी कि ये लोग परंपराओं और मर्यादाओं में बंधे हुए गुलामों की तरह अपनी जिंदगी जी रहे हैं.

शादी को वह एक बंधन समझती थी. इसे स्त्री की पुरुष के प्रति गुलामी समझती थी. उस की सोच थी कि शादी करने के बाद पुरुष केवल स्त्री पर अत्याचार करता है. इसलिए उस ने ठान लिया था कि वह शादी कभी नहीं करेगी.

परंतु बिना शादी किए किसी पुरुष के साथ रहना उसे अनुचित न लगा.

उसे इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं जब राघवेंद्र के साथ रहते हुए पीठ पीछे उसे लोग न जाने किनकिन विशेषणों से संबोधित करते थे, जैसे- ‘चालू लड़की’, ‘चंट’, ‘छिछोरी’, ‘रखैल’ आदिआदि. तब उसे इन संबोधनों से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह किसी की बात पर कान नहीं धरती थी. वह बेफिक्री का आलम था और राघवेंद्र जैसे राजनीतिक नेता से उस का संपर्क था. वह सातवें आसमान पर थी और जमीन पर चल रहे कीड़ेमकोड़ों से वह कोई वास्ता नहीं रखना चाहती थी. उन दिनों उसे अच्छी बात अच्छी नहीं लगती थी और बुरी बात को वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी. लोग उस के बारे में क्या सोचते थे, इस से उस को कोई लेनादेना नहीं था.

स्निग्धा के जीवन के साथ खिलवाड़ करने के लिए केवल राघवेंद्र ही जिम्मेदार नहीं था, इस के लिए स्निग्धा स्वयं जिम्मेदार और दोषी थी. अपनी गलती से उस ने सबक लिया था कि परंपराओं का उल्लंघन हमेशा उचित नहीं होता. राघवेंद्र ने भी स्निग्धा के शरीर से खेलने के बाद उसे छोड़ कर अच्छा नहीं किया था. इस प्रकार के चरित्र से उस का राजनीतिक जीवन तहसनहस हो गया था. इलाहाबाद बहुत आधुनिक शहर नहीं था कि बिना ब्याह के स्त्रीपुरुषों के संबंधों को आसानी से स्वीकार कर लेता. अगले आम चुनाव में उसे पार्टी की तरफ से टिकट नहीं दिया गया. उस ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, परंतु बुरी तरह हार गया.

स्निग्धा को आज एहसास हो रहा था कि अपने अति आत्मविश्वास के कारण मांबाप द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता का उस ने नाजायज फायदा उठाया था और अपने पांवों को गंदे दलदल में फंसा दिया था. वह अपने परिवार, संबंधियों और परिचितों से दूर हो गई. दोस्त उस का साथ छोड़ गए और आज वह इतनी बड़ी दुनिया में अकेली है. कोई उसे अपना कहने वाला नहीं है. थोड़ी देर के लिए अगर कोई सुखदुख बांटने वाला है तो वह है रश्मि, जो सच्चे मन से उस की बात सुनती है और सलाह देती है.

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दिल्ली आ कर वह अपने इलाहाबाद के दिनों की कड़वी यादों को भुलाने में काफी हद तक सफल हो गई थी. वहां रहती तो शहर के रास्तों, गलीकूचों और बागबगीचों से गुजरते हुए अपने कटु अनुभवों को भुला पाना उस के लिए आसान न था. अब निशांत से मिलने के बाद क्या वह अपना पिछला जीवन भूल सकेगी? उस के मन में कोई फांस तो नहीं रह जाएगी कि वह निशांत को धोखा दे रही है. परंतु वह ऐसा क्यों सोच रही है? क्या वह समझती है कि निशांत उसे अपना बना लेगा? उस के दिल में एक टीस सी उठी. अगर निशांत ने उसे ठुकरा दिया तो. इस तो के आगे उस के पास कोई जवाब नहीं था. हो भी नहीं सकता था, परंतु संसार में क्या अच्छे पुरुषों की कमी है? अगर वह चाहती है कि शादी कर के अपना घर बसा ले और एक आम गृहिणी की तरह जीवन व्यतीत करे तो उसे कौन रोक सकता था. निशांत न सही, कोई भी पुरुष उस का हाथ थामने के लिए तैयार हो जाएगा. उस में कमी क्या है?

सच तो यह है कि आज पहली बार उस का दिल सच्चे मन से किसी के लिए धड़का है और वह है निशांत.

स्निग्धा को बाराखंभा वाली जौब मिल गई, उस के जीवन में खुशियों के पलों में इजाफा हो गया, लेकिन जीवन में एक ठहराव सा था. पुरुष हो या स्त्री, एकाकी जीवन दोनों के लिए कष्टमय होता है. यह बात निशांत भी जानता था और स्निग्धा भी, परंतु अभी तक उन्होंने अपने मन की पर्तों को नहीं खोला था. ताश के खिलाडि़यों की तरह दोनों ही अपनेअपने पत्ते छिपा कर चालें चल रहे थे.

प्रतिदिन शाम को वे दोनों मिलते थे. मिलने की एक निश्चित अवधि थी और निश्चित स्थान. इंडिया गेट के लंबेचौड़े, खुले मैदान. कभी बैठ कर, कभी घास पर चलते हुए और कभी फूलों के पौधों के किनारे चलते हुए वे दुनियाजहान की बातें करते, वहां घूम रहे लोगों के बारे में बातें करते, चांदतारों की बातें करते और लैंपपोस्ट की हलकी रोशनी में एकदूसरे की आंखों में चांद ढूंढ़ने की कोशिश करते.

उन को मिलते हुए कई महीने बीत गए. चांद अभी भी उन की पकड़ से दूर था. स्निग्धा पहले जितनी वाचाल और चंचल थी, अब उतनी ही अंतर्मुखी हो गई थी या शायद निशांत के संसर्ग में आ कर उस के जैसी हो गई थी. यह उस के स्वभाव के विपरीत था, परंतु मानव मन परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है. स्निग्धा उस के सामने अपने मन को बहुत ज्यादा नहीं खोल सकती थी, क्योंकि निशांत उस के बारे में सबकुछ जानता था. परंतु वह न तो उस के भूतकाल की कोई बात करता, न भविष्य के बारे में कोई बात. दोनों के बीच अनिश्चितता का एक लंबा ऊसर पसरा हुआ था. क्या इस ऊसर में प्यार का कोई अंकुर पनपेगा?

वोट क्लब के छोटेछोटे कृत्रिम तालाबों के किनारे चलते हुए निशांत ने पूछा, ‘जीवनभर अकेले ही रहने का इरादा है या कुछ सोचा है?’

‘क्या मतलब…?’ उस ने आंखों को चौड़ा कर के पूछा.

निशांत गंभीर था.

‘मांबाप के पास जाने का इरादा है?’ निशांत ने घुमा कर पूछा.

स्निग्धा के हृदय में कुछ चटक गया. फिर भी अपने को संभाल कर कहा, ‘उस तरफ के सारे रास्ते मेरे लिए बंद हो चुके हैं. न मुझ में इतना साहस है, न कोई इच्छा. उन के पास जा कर मुझे क्या मिलेगा? मुझे ही इस संसार सागर को पार करना है, अकेले या किसी के साथ?’ उस का स्वर भीगा हुआ था.

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‘किस के साथ?’ निशांत ने उस का हाथ पकड़ लिया.

स्निग्धा के शरीर में एक मीठी सिहरन दौड़ गई. वह सिमटते हुए बोली, ‘जो भी मेरे मन को समझ लेगा.’

‘तो कोई ऐसा मिला है?’ वह जैसे उस के मन को परखने का प्रयास कर रहा था. स्निग्धा मन ही मन हंसी, ‘तो मुझ से बनने की कोशिश की जा रही है.’

वह आसमान की तरफ देखती हुई बोली, ‘देख तो रही हूं, सूरज के रथ पर सवार हो कर कोई औरों से बिलकुल अलग एक पुरुष मेरे जीवन में प्रवेश कर रहा है,’ आसमान में तारों का साम्राज्य था. चांद कहीं नहीं दिख रहा था, परंतु तारों की झिलमिलाहट आंखों को बहुत भली लग रही थी.’

‘परंतु आसमान में तो कहीं सूरज नहीं है, फिर उस का रथ कहां से आएगा?’ उस ने चुटकी ली.

‘अभी रात्रि है. रथ में जुते घोड़े थक गए हैं, वे विश्राम कर रहे हैं. कल फिर यात्रा मार्ग पर निकलेंगे,’ वह हंसी.

‘अच्छा, तो कल शाम तक यहां पहुंच जाएंगे?’

‘कह नहीं सकती. मार्ग लंबा है, समय लग सकता है,’ वह जमीन पर देखने लगी.

निशांत ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. वह उस से सट गई.

‘जब सूरज का रथ तुम्हारे पास आ जाए तो उस पुरुष को ले कर मेरे पास आना, मेरे घर.’

‘अवश्य.’

एक दिन स्निग्धा ने मिलते ही एटम बम फोड़ा.

‘मैं तुम्हारे घर आना चाहती हूं.’

‘क्या सूरज का रथ और वह पुरुष आ चुका है?’ उस ने मुसकराती आंखों से स्निग्धा को देखते हुए पूछा.

‘हां,’ उस ने शरमाते हुए कहा.

‘कहां है?’

‘तुम्हारे घर पर ही उस से मिलवाऊंगी.’

‘तो फिर मुझे 2 दिन का समय दो. आने वाले इतवार को मैं घर पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. ढूंढ़ लोगी न, भटक तो नहीं जाओगी?’

‘अब कभी नहीं,’ स्निग्धा ने आत्मविश्वास से कहा.

अगले इतवार को स्निग्धा उस के घर पर थी और कुछ ही महीनों बाद उस की बांहों में. कुछ साल में वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. यह तो बताने की जरूरत नहीं पर दोनों बच्चे मां से ज्यादा दादादादी से चिपटे रहते और दादादादी बहू के बिना न कहीं जाते न उस से पूछे बिना कुछ करते. निशांत कई बार कहता, ‘‘तुम भी अजीब हो, मैं ने तुम्हें पाया, बदले में मेरे मातापिता को छीन कर तुम ने अपनी तरफ कर लिया.’’

Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुने जाने के बाद नरेंद्र गिरि का कद तेजी से बढ़ने लगा. उन से मिलने वालों में नेताओं और अधिकारियों की लाइन लगने लगी. जिस निरंजनी अखाडे़ में वह हाशिए पर रहते थे, वहां भी उन का महत्त्व बढ़ गया था.

अखाड़े के तमाम प्रभावशाली लोग किनारे हो गए थे. ऐसे लोगों को नरेंद्र गिरि का बढ़ता कद अखरने लगा था. नरेंद्र गिरि ने तमाम ऐसे फैसले करने शुरू कर दिए, जो लोगों को नागवार गुजरने लगे थे. अखाड़ा परिषद का प्रमुख कार्य संतों के अलगअलग अखाड़ों को मान्यता देने का होता है. ऐसे में नरेंद्र गिरि ने 2017 में किन्नर और परी अखाडे़ को मान्यता देने से इंकार कर दिया था.

अखाड़ा परिषद में नरेंद्र गिरि की छवि कड़े फैसले लेने वाले अध्यक्ष की बन गई थी. महंत नरेंद्र गिरि ने फरजी संतों की एक लिस्ट जारी कर दी थी. इस में 19 संतों के नाम शामिल थे, जिस की वजह से वह काफी चर्चा में रहे थे.

मीडिया में यह सूची जारी करने के बाद उन पर दबाव पड़ रहा था कि वह इस सूची को वापस ले लें, लेकिन नरेंद्र गिरि सूची वापस लेने को तैयार नहीं थे. ऐसे में उन के खिलाफ विरोधियों की साजिश शुरू हो गई.

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नरेंद्र गिरि का एक वीडियो वायरल किया गया, जिस में वह एक शादी समारोह में डांस करने वाली लड़कियों पर नोट लुटा रहे थे.

नरेंद्र गिरि की तरफ से सफाई देते यह कहा गया था कि वह शादी रिश्तेदारी में थी, जिस में वह खुशीखुशी डांस करने वाली लड़कियों को नोट दे रहे थे. इस वीडियो के वायरल होने के बाद से नरेंद्र गिरि की छवि को काफी धक्का लगा था.

जायदाद और जमीन से जुडे़ विवाद

बाघंबरी गद्दी मठ और निरजंनी अखाड़े के पास अकूत धन और संपदा है. इसे ले कर साजिशों का दौर चल रहा था. प्रभावशाली लोग संतों के साथ मिल कर इस की जायदाद पर कब्जा करने का काम कर रहे थे. संतमहंत ही नहीं सेवादार भी अपने परिजनों के नाम जमीनें खरीद रहे थे.

इस तरह की बातों को ले कर ही नरेंद्र गिरि का अपने ही शिष्य आंनद गिरि के साथ विवाद शुरू हो गया. मठ मंदिर से जुडे़ लोग किसी न किसी तरह से ऐसे मसले तलाश करने लगे, जिस से वह नरेंद्र गिरि से अपनी बात मनवा सकें.

आनंद गिरि मूलरूप से उत्तराखंड के रहने वाले थे. किशोरावस्था में ही वह हरिद्वार के आश्रम में नरेंद्र गिरि को मिले थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि उन को प्रयागराज ले आए थे. 2007 में आनंद गिरि निरजंनी अखाड़े से जुड़े और महंत भी बने. गुरु के करीबी होने के कारण लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महंत के नाम से भी उन्हें जाना जाता था.

यह मंदिर भी बाघंबरी ट्रस्ट के द्वारा ही संचालित होता था. आनंद गिरि को योग गुरु के नाम से भी जाना जाता था. वह देशविदेश में योग सिखाने के लिए भी जाता था.

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महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि ने खुद को नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी भी घोषित कर लिया था. बाद में विवाद होने के बाद नरेंद्र गिरि ने इस का खंडन किया था.

आनंद गिरि ने गंगा सफाई के लिए गंगा सेना भी बनाई थी. वह हरिद्वार में एक आश्रम भी बना रहा था. इस के बाद नरेंद्र गिरि के साथ उन का विवाद बढ़ गया था.

दूसरे शिष्य भी खफा रहते थे आनंद गिरि से

महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि दूसरे शिष्यों की आंखों में खटकता था. ऐसे में उस को ले कर सभी इस कोशिश में रहते थे कि वह नरेंद्र गिरि से दूर हो जाए.

आनंद गिरि के विरोधियों को तब मौका मिल गया, जब आनंद गिरि 2016 और 2018 के पुराने मामलों में अपनी ही 2 शिष्याआें के साथ मारपीट और अभद्रता को ले कर 2019 में सुर्खियों में आया था.

मई, 2019 में उसे जेल भी जाना पड़ा था. इस के बाद सितंबर माह में सिडनी कोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया था. इस के बाद उस का पासपोर्ट भी रिलीज कर दिया गया था. तब आनंद गिरि भारत आ गया.

आनंद गिरि का हवाई जहाज में शराब पीते हुए एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. आंनद गिरि ने इसे शराब नहीं जूस बताया था. आनंद गिरि शौकीन किस्म का था. महंगी कार, बाइक और ऐशोआराम का उसे शौक था.

नरेंद्र गिरि से पहले भी ऐसे ही विवादों के बीच ही मठ के 2 महंतों की संदिग्ध हालत में मौत हो चुकी है. नरेंद्र गिरि का अपने ही षिष्य आनंद गिरि के साथ विवाद की वजह 80 फीट चौड़ी और 120 फीट लंबी गौशाला की जमीन का टुकड़ा बना. आनंद गिरि के नाम यह जमीन लीज पर थी. यहां पर पेट्रोल पंप बनना था.

कुछ दिनों के बाद महंत नरेंद्र गिरि ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि यहां पर पेट्रोल पंप नहीं चल सकता. उन का कहना था कि यहां पर मार्केट बना दी जाए, जिस से मठ की आमदनी बढ़ेगी.

आनंद गिरि का कहना था कि नरेंद्र गिरि उस जमीन को बेचना चाहते हैं. इस कारण लीज कैंसिल कराई गई थी.

मठ की इस करोड़ों रुपए की जमीन को ले कर नरेंद्र गिरि और उन के शिष्य आनंद गिरि के बीच घमासान इस कदर बढ़ गया कि नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि को निरंजनी अखाड़े और मठ से निकाल दिया था. इस के बाद आंनद गिरि भाग कर हरिद्वार पहुंच गया था.

आनंद गिरि ने इस के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के ऐसे वीडियो वायरल किए, जिन में नरेंद्र गिरि के शिष्यों के पास करोड़ों की संपत्ति होने का दावा किया गया था.

नरेंद्र गिरि ने इन मुद्दों पर सफाई देते कहा था कि ये आरोप बेबुनियाद हैं. उन की छवि को धूमिल करने के लिए यह काम किया गया है. कुछ समय के बाद आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि से माफी मांग ली थी. माफी मांगने के वीडियो भी खूब वायरल हुए थे.

नरेंद्र गिरि का एक और विवाद लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी आद्या तिवारी और उस के बेटे संदीप तिवारी के साथ बताया जाता है. लेनेदेन के इस विवाद की वजह से दोनों के बीच बातचीत बंद थी.

जायदाद के ऐसे विवादों के अलावा भी नरेंद्र गिरि कई तरह के दूसरे विवादों में भी घिरे थे. नरेंद्र गिरि के करीबी रहे शिष्य और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत आशीष गिरि ने 17 नवंबर, 2019 को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. आशीष गिरि ने जमीन बेचने का विरोध किया था.

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दारागंज स्थित अखाड़े के आश्रम में आशीष गिरि ने गोली मार कर आत्महत्या की थी. इस की वजह यह बताई जा रही थी कि 2011 और 2012 में बाघंबरी गद्दी की जमीन समाजवादी पार्टी के नेता को बेची जा रही थी. पुलिस ने आशीष गिरि की आत्महत्या का कारण डिप्रेशन बताया था.

वीडियो में छिपे राज

जानकार लोगों का मानना है कि नरेंद्र गिरि का कोई ऐसा वीडियो था, जिस के वायरल होने से उन को अपने मानसम्मान के धूमिल होने का डर लग रहा था. एक ऐसा ही वीडियो पहले भी वायरल हो चुका था, जिस में वह डांस करने वाली लड़कियों पर रुपए लुटा रहे थे.

यह माना जा रहा है कि उस की तरह का या उस से अधिक घातक वीडियो और भी हो सकता है. जिस की आड़ में उन को ब्लैकमेल किया जा रहा था. ऐसे में अपना मानसम्मान खोने के डर से नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या जैसा फैसला कर लिया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने नरेंद्र गिरि की मौत की जांच कराने के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. 18 सदस्यों वाली इस जांच टीम की निगरानी 4 अफसरों को सौंपी.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए आरोपी आनंद गिरि, आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी को भादंवि की धारा 306 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर नैनी जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी.

नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट लिखने के अलावा अपना बयान रिकौर्ड कर के भी मोबाइल में रखा है. मौत की वजह जायदाद और मठ के महंत पद का लालच है.

महंत नरेंद्र गिरि की मौत से पता चलता है कि मंदिर और मठ कितनी भी धर्म की बातें कर लें पर वहां भी लालच और एक दूसरे के खिलाफ षडयंत्र हावी रहता है, जिस की वजह से ऐसी घटनाएं घटती रहती है.

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