Crime: अब यू ट्यूब पर लोभी लालची सीखते हैं तंत्र मन्त्र!

रुपए की लालची एक गुरु चेले की जोड़ी ने कई लोगो को तंत्र मन्त्र के झांसे में लेकर शिकार बनाया था. और इसका अंत हुआ एक हत्या से, अंततः दोनों आरोपी 9 वर्ष बाद पुलिस के हत्थे चढ़े और अब जेल की चक्की पीस रहे हैं.

आज आधुनिक सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव अब दिखाई देने लगे हैं. दुर्भाग्य है कि यूट्यूब ऐसा माध्यम बन गया है जहां से अपराध के गुर सीखे जाते हैं और उन्हें अंजाम देकर के अशिक्षित और पैसों के लालची अपनी जिंदगी दांव पर लगा करके जेल जा रहे हैं.

दरअसल, हुआ यह कि  राम प्रसाद साहू ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला के थाना हिर्री आकर रिपोर्ट कराई कि उसके छोटे भाई सुरेश कुमार साहू को किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा धारदार हथियार  से गले व  चहरे में वार कर हत्या कर दी गई है.  हत्या कुछ रहस्यमय ढंग से की गई थी. जिसका अपराध पंजीबद्ध कर पुलिस विवेचना में लिया गया. मामले में पेंच दर पेंच देखते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक  दीपक कुमार झा  द्वारा अधिनस्थों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए गये जिनके अनुसार आरोपियों की लगातार पतासाजी की जा रही थी, परन्तु आरोपियों का कोई पता नहीं चल रहा था.मगर पुलिस द्वारा लगातार प्रयास जारी था.

ये भी पढ़ें- मनीष गुप्ता केस: जब रक्षक बन गए भक्षक

मृतक सुरेश साहू से सम्बंधित सभी व्यक्तियों के सम्बन्ध में पुलिस  पृष्ठभूमि की‌ भीतरी जानकारी निकाल रही थी, इसी दौरान मृतक सुरेश साहू के जादू टोन व गड़े धन को तलाश करने में संलग्न रहने का पता पुलिस को चला. पुलिस अधिकारी दीपक झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि ऐसे में ऐसे व्यक्तियों जो मृतक से जुड़े थे उनकी पतासाजी प्रारम्भ की गयी. अनवरत प्रयास के बाद पुलिस को पता चला की घटना के बाद से सम्बंधित व्यक्तियों में आरोपी सुभाष दास मानिकपुरी एवं माखन दास दोनों ही आसपास से घटना के  बाद  से गायब है.

पुलिस ने अपने ढंग से इनके सम्बन्ध में पतासाजी प्रारम्भ की गयी परन्तु कई वर्षो से इन दोनों के परिवार वालो से इनका सम्बन्ध ख़राब होने के कारण कोई भी व्यक्ति इनके संपर्क में नहीं था , जिसके कारण इनके सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. इसी दौरान  जानकारी प्राप्त हुई कि घटना के कुछ दिन बाद माखन दास ने बताया था कि वह सुभाष के साथ जबलपुर, मध्य प्रदेश में रह रहे है.

इसी आधार पर आरोपियों की पतासाजी हेतु टीम रवाना की गयी जो जबलपुर जाकर पतासाजी करने पर आरोपी के सतना, मध्यप्रदेश में मेडिकल कालेज में काम करने की  जानकारी मिली. अब यहां पुलिस ने  गहन छानबीन करने के बाद बामुश्किल आरोपी माखन दास को हिरासत में लिया . पुलिस पूछताछ में उसने सुभाष को जबलपुर में गार्ड की नौकरी करना बताया जिसकी निशानदेही पर आरोपी सुभाष को भी पकड़ा गया. जिनसे घटना के सम्बन्ध में कड़ाई से पूछताछ करने पर अपना जुर्म कबूला और पुलिस को अपने दिए गए इकबालिया बयान ने बताया कि गड़े धन व हंडा के लालच में आकर मृतक सुरेश साहू की बलि दी गई थी.

ये भी पढ़ें- इश्क का जुनून: प्यार को खत्म कर गई नफरत की आग

जादू टोना, तंत्र मंत्र का परिणाम हत्या

पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि पूछताछ करने पर  आरोपी सुभाष वर्ष 2012 से गड़े धन की तलाश कर रहा है व जादू टोना का काम कर रहा है जिसकी पहचान गड़े धन खोजने के चक्क्कर में माखन दास से हुई जो सुभाष को नए नए लोग से मिलवाता था जिनको कोई पारिवारिक समस्या रहती थी. जिसे सुभाष जादू टोने से ठीक करने का दावा कर पैसे वसूल लेता था. इसी दौरान माखन ने अपने पूर्व परिचित अपने गाँव के सुरेश साहू का भी परिचय सुभाष से कराया सुरेश भी कई वर्षो से गड़े धन की तलाश कर रहा था. जिससे इनके बीच घनिष्टता बढ़ गयी. आगे रुपयों पैसों के लालची यह लोग गुगल के ‌ यू ट्यूब पर जादू टोने के नए नए विडियो देखते व उसपर अलग अलग जगहों पर प्रयोग करते थे.

इसी बीच सुभाष और माखन ने सुरेश की बलि देकर गड़े खजाने को खोज निकालने का प्लान बनाया. जिसके लिए नवरात्रि के पहले की अमावस्या का दिन तय किया और उसी दिन मुरु पथराली खार क्षेत्र में तंत्र मन्त्र कर कुल्हाड़ी से सुरेश की हत्या कर दी हत्या के बाद जब कोई चमत्कार नहीं हुआ तंत्र मंत्र ने काम नहीं किया तो उन्हें हकीकत का एहसास हुआ कि हमारे हाथों को अपराध हो गया है और अब जेल जाना पड़ेगा और पकडे जाने के भय से फरार हो गये . कहते हैं ना कि अपराध छुपाए नहीं छुपता आखिर लगभग 9 वर्ष पश्चात मामले का खुलासा हुआ आरोपी जेल में चक्की पीसने के लिए मजबूर हो गए.

Satyakatha- अय्याशी में गई जान: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- प्रमोद गौडि़या

अनैतिक रिश्ते को अधिक दिनों तक परदे में नहीं छिपाया जा सकता. इस से परदा हटते ही भूचाल आ जाता है. कई बार इस कारण आक्रोश की भड़की ज्वाला में जीवनलीला ही भस्म हो जाती है. ऐसा ही कानपुर के एक बैंककर्मी के साथ हुआ. अवैध संबंध में न केवल उस की जान गई, बल्कि 3 जिंदगियां भी तबाह हो गईं.  गुमशुदा विशाल अग्रवाल की लाश बरामद होने पर उन्नाव के दही थाने की पुलिस ने पहली जांच में ही उस के हत्या किए जाने की पुष्टि कर दी थी. करीब 25 वर्षीय विशाल एक बैंककर्मी था, जिस की लाश जिले में शारदा नहर के किनारे झाडि़यों में लावारिस हालत में पड़े ड्रम से मिली थी. लाश को एक प्लास्टिक के ड्रम में ठूंस कर पैक किया गया था. ड्रम पुरवा मार्ग पर स्थित बंद पड़ी एलए आयरन फैक्ट्री से एक किलोमीटर दूर सराय करियान गांव के पास गुजरने वाली नहर के किनारे पड़ा था.

ड्रम से दुर्गंध आने की सूचना ग्रामीणों ने पुलिस को दी थी. सूचना के आधार पर ही खेड़ा चौकीप्रभारी अंशुमान सिंह ने ड्रम को खुलवाया, जिस में से 25 वर्षीय युवक की रक्तरंजित लाश बरामद हुई.

वहीं पास में ही एक स्कूटी की चाबी भी मिली. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और उस की शिनाख्त के लिए जिले के सभी थानों में सूचना प्रसारित करवा दी.

उन्हीं दिनों नौबस्ता थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह विशाल अग्रवाल नामक युवक की तलाशी कर रहे थे. उस के लापता होने की सूचना अंशुल अग्रवाल ने दर्ज करवाई थी. वह अंशुल का छोटा भाई था. नौबस्ता थानाप्रभारी को दही थानाक्षेत्र में एक युवक की लाश बरामद होने की सूचना मिली तो वह अंशुल को साथ ले कर उन्नाव के थाना दही जा पहुंचे.

वहां पहुंच कर उन्होंने चौकीप्रभारी अंशुमान सिंह से मुलाकात की. तब चौकीप्रभारी ने मोर्चरी ले जा कर बरामद लाश थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह और उन के साथ आए युवक अंशुल को दिखाई. अंशुल ने उस लाश की शिनाख्त अपने छोटे भाई विशाल अग्रवाल के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी नौबस्ता लौट आए. उन्होंने सब से पहले गुमशुदगी के मामले को हत्या में तरमीम कराया फिर वह हत्यारे की तलाश में जुट गए.

ये भी पढ़ें- मुंबई का असली सिंघम: समीर वानखेड़े

उन्होंने पहले मृतक के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस का मोबाइल 7 सितंबर को रात 10 बजे के बाद स्विच्ड औफ हो गया था. उस मोबाइल से अंतिम बातचीत 8 बज कर 50 मिनट पर हुई थी, जबकि साढ़े 8 बजे उस पर एक मिस्ड काल भी आई थी. जांच का सिलसिला मोबाइल से मिली कुछ जानकारियों के साथ शुरू किया गया.

जिस नंबर से विशाल के मोबाइल पर काल की गई थी, वह नंबर सत्यम ओमर नाम के व्यक्ति का था. सत्यम कानपुर निवासी अनिल ओमर का बेटा था. पुलिस द्वारा उस मोबाइल नंबर पर काल की गई तो वह बंद मिला. फिर पुलिस ने नंबर से मिले पते पर दबिश दी, किंतु वहां सत्यम नहीं मिला. सिर्फ इतना मालूम हुआ कि वह इस पते पर ढाई साल पहले रहता था.

हालांकि जल्द ही थानाप्रभारी को मुखबिरों से सत्यम के नए पते की जानकारी मिल गई.

पता चला कि वह अब रामनारायण बाजार स्थित फ्लैट में रहता है. पुलिस को मुखबिर से उस के उस फ्लैट में उपस्थित रहने के समय का भी पता लग गया.

इस सूचना के आधार पर थानाप्रभारी ने क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर छत्रपाल सिंह, उस्मानपुर चौकीइंचार्ज प्रमोद कुमार, बसंत विहार चौकीइंचार्ज मनीष कुमार, एसआई रवींद्र कुमार, हैडकांस्टेबल अरविंद सिंह, सुरेंद्र सिंह, दीपू भारतीय, राजीव यादव, कांस्टेबल सौरभ पाडेय, महिला सिपाही पल्लवी के साथ उक्त फ्लैट पर दबिश दी.

ये भी पढ़ें- Crime- बुराई: ऐसे जीजा से बचियो

उस समय फ्लैट से 2 युवक सीढि़यों से उतर रहे थे. पुलिसकर्मियों को देखते ही दोनों भागने लगे, लेकिन वे पकड़ लिए गए.

पुलिस दोनों को ले कर उस फ्लैट में गई. उन से पूछताछ करने पर एक युवक ने अपना नाम सत्यम ओमर, जबकि दूसरे ने सरवन बताया. वहीं 16-17 साल की एक लड़की भी मौजूद थी. उस ने पुलिस को बताया कि वह सत्यम की मौसेरी बहन है और पास ही दूसरे मकान में रहती है. उस का नाम राधा (परिवर्तित) था.

उन से पूछताछ के बाद पुलिस ने फ्लैट के बारीकी से निरीक्षण में पाया कि कमरे की दीवारों को जगहजगह खुरचा गया है. इस का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि डिस्टेंपर करवाना है. यह बात पुलिस को हजम नहीं हुई, क्योंकि वहां डिस्टेंपर के लिए किसी तरह के इंतजाम कहीं नहीं दिखा. दीवारों पर खुरचने के निशान भी जहांतहां मिले. उस बारे में सभी ने हिचकिचाट के साथ बताया.

थानाप्रभारी ने राधा के चेहरे पर भी गौर किया, जिस का रंग अचानक तब फीका पड़ गया था, जब उन्होंने कहा कि वे विशाल अग्रवाल की हत्या के सिलसिले में पूछताछ करने आए हैं. इस में उस ने साथ नहीं दिया तो वह भी मुश्किल में पड़ जाएगी.

इसी के साथ थानाप्रभारी दोनों युवकों को विशेष पूछताछ के लिए थाने ले आए. उन्होंने सत्यम से सीधा सवाल किया, ‘‘तुम ने 7 सितंबर की शाम साढ़े 8 बजे विशाल को मिस्ड काल क्यों की थी?’’

ये भी पढ़ें- Satyakatha: ऑपरेशन करोड़पति- भाग 1

इस का जवाब देते हुए सत्यम हकबकाता हुआ बोला, ‘‘वह नंबर मैं नहीं, मेरी मौसेरी बहन इस्तेमाल करती है. उसी से पूछना होगा.’’

‘‘वह विशाल को कैसे जानती है?’’ सिंह ने सवाल किया.

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ सत्यम बोला.

उस के बाद थानाप्रभारी को उस की मौसेरी बहन राधा भी संदिग्ध लगी. उन्होंने उसे भी तुरंत थाने बुलाया और पूछताछ शुरू की. उस से फोन काल के बारे में नहीं पूछा, बल्कि सीधे लहजे में पूछ लिया कि विशाल से उस के क्या संबंध थे.

यह सवाल सुन कर सामने बैठे अपने भाई और उस के दोस्त सरवन को देख कर घबरा गई. उस के कुछ बोलने से पहले ही थानाप्रभारी ने समझाया, ‘‘तुम्हारे विशाल से जो भी संबंध रहे, वे उस की मौत के साथ खत्म हो गए. तुम्हारे भाई ने भी मुझे कई बातें बताई हैं, जिस से तुम पर भी उस की हत्या में साथ देने का शक है. मुझे पता है कि विशाल ने तुम्हारे मिस्ड काल के थोड़ी देर बाद फोन किया था. तुम सिर्फ इतना बता दो कि उस से तुम्हारी क्या बात हुई थी.’’

अगले भाग में पढ़ें-  6 साल पहले उस के मामा की भी मृत्यु हो गई थी

पांच साल बाद- भाग 1: क्या निशांत को स्निग्धा भूल पाई?

उस दिन सुबह से ही मौसम खुशगवार था. निशांत के घर में फूलों की महक थी, हवा गुनगुना रही थी. उस के मम्मी और डैडी कल ही कानपुर से आ गए थे. निशांत ने उन्हें सबकुछ बता दिया था. उन्हें खुशी थी कि बेटा 5 साल बाद ही सही, ठीक रास्ते पर आ गया था वरना न जाने उसे कौन सा रोग लग गया था कि शादी के नाम से भड़क जाता था.

मम्मीपापा के सामने स्निग्धा को खड़ा कर के निशांत ने कहा, ‘‘अब आप देख लीजिए. जैसा आप चाहते थे वैसा ही मैं ने किया. आप एक सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छी बहू अपने बेटे के लिए चाहते थे. क्या इस से अच्छी व सुंदर बहू कोई और हो सकती है?’’

स्निग्धा निशांत की मम्मी के चरण स्पर्श करने के लिए नीचे की तरफ झुकने लगी, परंतु उन्होंने स्निग्धा को अपने कदमों पर झुकने का मौका ही नहीं दिया. उस के पहले ही उसे अपने सीने से लगा लिया.

स्निग्धा पहली नजर में ही सब को पसंद आ गई थी.

निशांत ने मम्मीडैडी को स्निग्धा के बारे में बताना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि स्निग्धा के दुखद और कष्टमय विगत को बताने से मम्मीडैडी को मानसिक संताप पहुंच सकता था. इसलिए उस ने थोड़े से झूठ का सहारा लिया और उन्हें केवल इतना बताया कि स्निग्धा को एक रिश्तेदार ने पालापोसा और पढ़ायालिखाया था. इलाहाबाद में वह उस के साथ पढ़ती थी, तभी उन दोनों की जानपहचान हुई थी. अब वह अपने पैरों पर खड़ी थी और दिल्ली में रह कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर रही थी. निशांत के परिवार वाले समझदार थे. स्निग्धा की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उस के परिवार के बारे में कोई बात नहीं की.

ये भी पढ़ें- तांक झांक: क्यों शालू को रणवीर की सूरत से नफरत होने लगी?

निशांत और स्निग्धा की शादी हो गई. बहुत सादगी और परंपरागत तरीके से उन दोनों की शादी का आयोजन किया गया था. निशांत तथा उस के घर वाले शादीब्याह में बहुत ज्यादा तामझाम और दिखावे के खिलाफ थे. थोड़े से खास रिश्तेदारों और मित्रों के बीच में उन की शादी संपन्न हो गई.

शादी के पहले एक दिन एकांत में निशांत ने स्निग्धा से पूछा, ‘अगर तुम्हारा मन हो तो हम दोनों चल कर तुम्हारे मम्मीपापा को मना लाते हैं. उन का आशीर्वाद मिलेगा तो हम सब को अच्छा लगेगा.’

‘चाहती तो मैं भी हूं परंतु अभी मेरे पास इतना नैतिक साहस नहीं है. एक बार तुम्हारे साथ शादी कर के घरगृहस्थी सजा लूं तब फिर चल कर मम्मीपापा से मिलेंगे. तब वे मेरे अतीत की भूलों को माफ भी कर सकेंगे.’

‘जैसी तुम्हारी इच्छा,’ और बात वहीं समाप्त हो गई थी.

ये भी पढ़ें- छोटे शहर की लड़की: जब पूजा ने दी दस्तक

पति, सास, ससुर और एक पारिवारिक जीवन, बिलकुल नया अनुभव था स्निग्धा के लिए. कितना सुखद और स्निग्ध, वसंत के फूलों की खुशबू से भरा हुआ, वर्षा की पहली फुहारों की तरह मदहोश करता हुआ और पायल की मधुर झंकार की तरह कानों में संगीत घोलता हुआ, यह था जीवन का असली संगीत, जिस की धुनों के बीच हर व्यक्ति झूमझूम जाता है. और आज स्निग्धा जीवन के बीहड़ रास्तों के घुमावदार मोड़ों को पार करती हुई अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुई थी.

शादी के बाद स्निग्धा ने निशांत के घरपरिवार को ही नहीं, बल्कि उस के व्यक्तित्व को भी संवार दिया था. इस में निशांत की मम्मी का बहुत बड़ा हाथ था. उन्होंने स्निग्धा को एक बेटी की तरह घरपरिवार की जिम्मेदारी से अवगत कराया. उस ने भी अपनी सास से कुछ सीखने में संकोच नहीं किया. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उस ने एक समझदार पत्नी, आदर्श बहू और सुलझी हुई गृहिणी के रूप में सब के दिलों में स्थान बना लिया.

अब उसे स्वयं विश्वास नहीं होता था कि वह 5 साल पहले की एक बिगड़ैल और गैरजिम्मेदार, सामाजिक परंपराओं को तोड़ने वाली लड़की थी.

निशांत इतना शांत और सरल स्वभाव का व्यक्ति था कि वह कभी भी स्निग्धा के अतीत की चर्चा नहीं करता था, परंतु वह स्वयं कभीकभी एकांत के क्षणों में सोचने पर मजबूर हो जाती थी कि शादी के पहले वह किस प्रकार का गंदा जीवन व्यतीत कर रही थी. उस ने तब अपने जीवन के लिए जो राह चुनी थी वह एक न एक दिन उसे पतन के गर्त में डुबो देती. बिना शादी के किसी पुरुष के साथ रहना और शादी कर के अपने पति व एक परिवार के बीच रहने में कितना अंतर था. अब उसे महसूस हो रहा था कि शादी के पहले वह एक डरासहमा, उपेक्षित और घृणास्पद जीवन व्यतीत कर रही थी.

अपने रूप और सौंदर्य पर स्निग्धा को बहुत अभिमान था. वह सुशिक्षित और संपन्न परिवार की लड़की थी, इसलिए लालनपालन बहुत प्यार व दुलार के साथ हुआ था. उस ने अपने जीवन में किसी अभाव को कभी महसूस नहीं किया था, उस के ऊपर किसी प्रकार के पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबंध नहीं थे, वह जिद्दी और विद्रोही स्वभाव की हो गई थी.

लौटती बहारें- भाग 6: मीनू के मायके वालों में क्या बदलाव आया

राजू भी दिन भर बाहर रहता है. खानेपीने का कोई नियम नहीं. तेरे पापा ने चाय बनानी सीख ली है. चाय तो वे ही बना लेते हैं.

ये सब सुन कर मन बेहद दुखी हुआ. मैं भी रेनू और राजू के बहकते कदमों के बारे में मम्मी को सतर्क करना चाहती थी पर उन के स्वास्थ्य को देखते हुए मैं ने इस विषय पर चुप्पी ही साध ली.

अगले दिन मैं ने अपनी सहेली चित्रा को फोन किया. वह मुझ से मिलने घर आ गई. विवाह के बाद मैं उसे मिल न पाई थी. चित्रा मेरी बचपन की एक मात्र अंतरंग सखी थी. वह एक धनी व्यवसायी की बेटी थी, परंतु घमंड से कोसों दूर थी. बेहद स्नेहमयी थी. इसीलिए वह हमेशा मेरे दिल के करीब रही. दोनों एकदूसरे के दुखसुख में भागीदार रहती थीं.

चित्रा के आने पर मेरा मन खुश हो उठा. हम दोनों पहले मम्मी के पास बैठीं.

मम्मी बोलीं, ‘‘अरे चित्रा, आज तो तू मीनू को कहीं बाहर घुमा ला. जब से आई है मेरी सेवा में लगी है. अब मैं ठीक हूं.’’

चित्रा ने चलने का अनुरोध किया तो मैं मना न कर पाई. वह अपनी कार में आई थी. दोनों एक रेस्तरां में पहुंच गईं. चित्रा ने कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. फिर दोनों बतियाने लगीं. चित्रा मुझ से मेरे विवाह और ससुराल के अनुभव सुनने के लिए बेताब थी. फिर अचानक चित्रा गंभीर हो गई. बोली, ‘‘मीनू, हम दोनों कितने समय बाद मिले हैं. मैं तेरा दिल दुखाना नहीं चाहती हूं पर इस विषय पर चुप्पी साध कर भी मैं तेरा और तेरे परिवार का नुकसान नहीं करना चाहती.’’

मैं ने उसे सब कुछ खुल कर बताने को कहा तो चित्रा ने कहा, ‘‘मीनू तू तो जानती है

कि मेरा छोटा भाई रजत और राजू कालेज में एकसाथ ही हैं. रजत ने मुझे बताया कि राजू 3-4 महीनों से कालेज में बहुत कम दिखाई देता है. वह कुछ दादा टाइप लड़कों के साथ घूमता है. प्रोफैसर उसे कई बार चेतावनी दे चुके हैं. मुझे लगता है उसे अभी न रोका गया तो वह गलत रास्ते पर आगे बढ़ जाएगा, फिर वहां से लौटना कठिन हो जाएगा.’’

मैं ने चित्रा को शुक्रिया कहा और बोली, ‘‘तू ने सही समय पर मुझे सचेत कर दिया. राजू से आज ही बात करती हूं.’’

बात निकली तो मैं ने रेनू के बारे में भी चित्रा को सब बता दिया. मेरी बात सुन कर चित्रा कहने लगी, ‘‘वैसे तो इस उम्र में लड़कियों और लड़कों में आकर्षण आम बात है पर परेशानी तब होती है जब लड़के मासूम लड़कियों को बहलाफुसला कर उन से संबंध बना कर उन के आपत्तिजनक वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने लगते हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘बस चित्रा मुझे यही चिंता खा रही है. रेनू सुनने को तैयार ही नहीं है.

क्या करूं?’’

ये भी पढ़ें- दीप जल उठे: प्रतिमा ने सासूमां का दिल कैसे जीता?

अभी हम बातें कर ही रही थीं कि एकाएक मेरी नजर सामने की टेबल पर पड़ी. वहां एक नवयुवक और एक नवयुवती हाथों में हाथ डाले जूस पी रहे थे. वे धीरेधीरे बातें कर रहे थे. मुझे लगा कि इस लड़के को कहीं देखा है. दिमाग पर जोर डाला और ध्यान से देखा तो याद आ गया. यह वही लड़का है, जिस के साथ रेनू बाइक पर घूमती है.

बस अब मेरा दिमाग तेजी से काम करने लगा. इस फ्लर्टी लड़के के चक्कर में रेनू मेरा इतना अपमान कर रही थी. मैं ने झटपट एक प्लान बनाया और चित्रा को समझाया. चित्रा वाशरूम जाने के बहाने उन दोनों के पास जा कर रुकेगी और मैं समय नष्ट न करते हुए मोबाइल से उन का फोटो ले लूंगी. अगर वह जोड़ा सचेत हो जाता है, तो मैं कैमरे का रुख चित्रा की ओर कर के उसे पोज देने को कहने लगूंगी. मगर दोनों प्रेमी अपने आसपास की चहलपहल से बेखबर एक ही गिलास में जूस पीने में मस्त थे. मैं ने जल्दी से फोटो लिए और हम दोनों रेस्तरां से बाहर आ गईं.

घर पर रेनू और राजू भी आ चुके थे. राजू तो चित्रा को घर आया देख सकपका सा गया

पर चित्रा को रेनू बहुत पसंद करती थी, इसलिए वह चित्रा से बहुत प्यार से मिली. एकदूसरे का हालचाल पूछ कर रेनू सब के लिए चाय बनाने चली गई.

कुछ देर रुक राजू मौका देख कर कोचिंग क्लास के बहाने बाहर जाने लगा तो चित्रा ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोली, ‘‘क्यों मैं इतने दिनों बाद आई हूं, मुझ से बातचीत नहीं करोगे? मीनू के ससुराल जाने के बाद अब मैं ही तुम्हारी दीदी हूं. मुझ से अपने मन की बात कह सकते हो,’’ यह कहतेकहते वह राजू को अलग कमरे में ले गई.

चित्रा ने राजू को समझाया, ‘‘तुम्हारी हरकतों से तुम्हारा कैरियर तो खराब होगा ही, पूरे घर के मानसम्मान पर भी धब्बा लगेगा. तुम्हारे मातापिता तुम से कितनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं.’’

राजू सब सिर झुकाए सुनता रहा.

चित्रा ने आगे कहा, ‘‘तुम कल से नियमित कालेज जाओ… उन लड़कों से मिलनाजुलना बंद करो. अगर इस में कोई भी समस्या सामने आती है, तो प्रोफैसर आदित्य के पास चले जाना. वे मेरे कजिन हैं. हर तरह से तुम्हारी मदद करेंगे. हां, अब तुम्हारी सारी गतिविधियों पर ध्यान भी रखा जाएगा. याद रहे तुम्हारी मीनू दीदी उसी कालेज में टौपर रह चुकी हैं.’’

राजू चित्रा का बहुत आदर करता था. अत: ये सब सुन कर रो पड़ा. उस ने चित्रा से वादा किया कि वह उन की बातों पर अमल करेगा. चित्रा ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई. तभी

रेनू चाय बना कर कर ले आई. उधर मैं ने भी अपना काम कर लिया. मैं ने रेस्तरां में खींचे गए फोटो वहीं रख दिए जहां टेबल पर रेनू ने चाय रखी थी. मैं वहां से उठ कर मम्मी के कमरे में चली गई.

रेनू चाय के लिए सब को बुलाने लगी. हम सब हंसतेखिलाते चाय पीने लगे. तभी रेनू की नजर फोटो पर पड़ गई, ‘‘किस के फोटो हैं ये?’’ कह कर उन्हें उठा लिया.

चित्रा बोली, ‘‘ये मेरे फोटो खींच रही थी. मेरे तो खींच नहीं पाई. यह जोड़ा रेस्तरां में बैठा था, उस की खिंच गई. मीनू तू तो मोबाइल से भी फोटो नहीं खींच पाती.’’

फोटो देखते ही रेनू के चेहरे का रंग बदल गया. हम चुपचाप अनजान बने चाय पीते रहे.

ये भी पढ़ें- नमस्ते जी- भाग 1: नीतिन की पत्नी क्यों परेशान थी?

रेनू चुपचाप वहां से चली गई. हम थोड़ी देर बाद रेनू के कमरे में जा पहुंचे. वह बिस्तर पर पड़ी रो रही थी.

चित्रा ने उस से प्यार से रोने का कारण पूछा तो उस ने पहले तो बहाना किया पर उस का बहाना मेरे और चित्रा के सामने नहीं चला. मैं ने पुचकार कर पूछा तो उस ने उस लड़के के बारे में सब बता दिया. मैं ने और चित्रा ने उसे इस उम्र में होने वाली गलतियों से आगाह किया और पढ़ाईलिखाई में ध्यान देने को कहा.

रेनू रोतेरोते मेरे गले लग गई और बोली, ‘‘दीदी, मुझे डांटो, मैं बहुत खराब हूं.’’

तब मैं ने प्यार से समझाया, ‘‘सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. अब मम्मीपापा की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी है.’’

रेनू ने हां में सिर हिला दिया. राजू भी सिर झुकाए खड़ा था. वह भी मेरे गले लग गया.

चित्रा जाते समय मम्मीपापा से मिलने गई तो हंस कर बोली, ‘‘अंकल जिस काम के लिए मैं यहां आई थी उसे तो भूल कर जा रही थी. दरअसल, पापा ने मुझे आप के पास इसलिए भेजा था कि पापा को अपने व्यवसाय के लिए एक अनुभवी अकाउंटैंट चाहिए. यदि आप यह कार्य संभाल लें तो उन की चिंता कम हो जाएगी.’’

पापा की खुशी की सीमा न रही. बोले, ‘‘नेकी और पूछपूछ. चित्रा बेटी तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा.’’

यह सुन कर चित्रा प्यार भरे गुस्से से बोली, ‘‘अंकल आप ऐसा कहेंगे तो मैं आप से बहुत नाराज हो जाऊंगी.’’

पापा ने मुसकरा कर अपने कान पकड़ लिए तो सभी जोर से हंस पड़े. सारा माहौल खुशगवार हो गया.

मम्मी अब ठीक थीं. रेनू ने भी घर के कामकाज में ध्यान देना शुरू कर दिया था. मैं ने भी ससुराल लौटने की इच्छा जताई. इस बार राजू मुझे ससुराल छोड़ने जा रहा था. अगले दिन मैं जाने से पहले मम्मीपापा के कमरे के पास से गुजर रही थी तो मुझे उन की बातचीत सुनाई पड़ी.

मम्मी कह रही थीं, ‘‘देखो हम बेटियों को पराया धन, पराई अमानत कह कर दुखी करते हैं परंतु बेटियां पति के घर जा कर भी पिता की चिंता नहीं छोड़तीं.’’

पापा हंस कर बोले, ‘‘तुम ने वह कहावत नहीं सुनी है कि बेटे अपने तब तक रहते हैं जब तक न हो वाइफ और बेटियां तब तक साथ रहती हैं जब तक हो लाइफ.’’

यह सुन कर मैं भी मुसकरा दी. अगले दिन मैं मायके से विदा हो कर ससुराल आ गई. सभी मुझ से और राजू से बहुत प्यार से मिले. शेखर ने राजू को पूरी दिल्ली घुमाया. कई तोहफे दिए. नीलम जीजी भी राजू से मिलने आईं. राजू बहुत ही अच्छे मूड में विदा हुआ.

अम्मां के घुटनों के दर्द के लिए मैं एक तेल लाई थी. उस से मालिश कर के अम्मां और पापाजी के कमरे से निकली तो पापा की आवाज सुनाई दी, ‘‘बहुएं तो प्यार की भूखी होती हैं. जब तक उन्हें पराए घर की, पराए खून की कहते रहेंगे वे ससुराल में अपनी जगह कैसे बनाएंगी?’’

ये भी पढ़ें- नमस्ते जी: नीतिन की पत्नी क्यों परेशान थी?

अम्मां बोलीं, ‘‘सच कह रहे हो शेखर के पापा… वे बेचारियां अपना मायके का सब कुछ छोड़ कर हमारे आसरे आती हैं और हम उन्हें अपनाने में पीछे हटते हैं.’’

‘‘ये नादानियां तुम्हीं ने सब से ज्यादा की हैं,’’ पापा ने कहा तो अम्मां ने शर्म से सिर झुका लिया.

Satyakatha- इश्क का जुनून: प्यार को खत्म कर गई नफरत की आग- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक-  दिनेश बैजल ‘राज’/संजीव दुबे

उत्तर प्रदेश का फिरोजाबाद जिला चूडि़यों एवं कांच के सामान बनाने के लिए प्रसिद्ध है. इसी जिले के थाना सिरसागंज

के गांव जहांगीरपुर में देवीराम यादव अपने परिवार के साथ रहता था. देवीराम खेतीकिसानी करता था.

परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटियां व सब से छोटा बेटा था. इन में तीसरे नंबर की बेटी नेहा थी. सुंदर होने के साथसाथ चंचल स्वभाव की नेहा गांव से करीब 10 किलोमीटर दूर सिरसागंज के एक इंटर कालेज में 10वीं कक्षा में पढ़ती थी.

इसी गांव में देवीराम के मकान के सामने सुघर सिंह यादव भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह भी खेतीकिसानी करता था. इस काम में उस के बेटे उस का हाथ बंटाते थे. 4 बेटों में उत्तम तीसरे नंबर का था. कक्षा 10 में फेल होने के बाद उस का मन पढ़ाई से उचट गया. इस के बाद वह शटरिंग का काम करने लगा था.

नेहा और उत्तम के घर आमनेसामने होने और एक ही जाति के होने से दोनों के परिवारों में नजदीकियां थीं. 16 वर्षीय नेहा जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. इस उम्र में लड़कियों का लड़कों के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक बात है. नेहा के साथ भी यही हुआ.

जब कभी घर के सामने दरवाजे पर खड़े उत्तम पर उस की नजर पड़ जाती, वह चोर निगाह से उसे देख लेती. धीरेधीरे उसे उत्तम अच्छा लगने लगा. जब वह स्कूल जाती तो रास्ते में अकसर उत्तम मिल जाता था. वह भी उसे चाहत की नजरों से देखता था. उस की उम्र करीब 20 साल थी. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए.

नेहा और उत्तम के बीच लुकाछिपी का यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. दोनों एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार करने में सकुचा रहे थे, क्योंकि उन का यह पहलापहला प्यार था.

एक दिन स्कूल जाते समय रास्ते में उत्तम ने हिम्मत जुटा कर नेहा से पूछ ही लिया, नेहा कैसी हो? तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?

ये भी पढ़ें- मन बहुत प्यासा है: मीरा क्यों शेखर से अलग हो गई?

नेहा तो इस पल का न जाने कब से इंतजार कर रही थी. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी पढ़ाई तो ठीक चल रही है, पर तुम कैसे हो?

‘‘मैं भी अच्छा हूं.’’ उत्तम ने जवाब दिया.

‘‘उत्तम तुम ने पढ़ाई क्यों छोड़ दी?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘मेरा मन नहीं लगता था. कुछ काम करूंगा तो चार पैसे इकट्ठा कर लूंगा.’’

जब भी दोनों मिलते एकदूसरे की तरफ देख कर मुसकरा देते थे. इस दौरान दोनों का झुकाव एकदूसरे के प्रति गया. धीरेधीरे नेहा और उत्तम के प्रेम संबंध हो गए.

दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे. जिस से उन के बीच फोन पर भी बातचीत होने लगी. रही बात मिलने की तो नेहा से वह उस के स्कूल जाने पर सिरसागंज में बेरोकटोक मिल लेता था.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों किसी न किसी बहाने मिल लेते थे. उन के प्रेमसंबंध यहां तक पहुंच गए थे कि उन्होंने शादी तक करने का फैसला कर लिया था.

वे एक ही जाति के थे, इसलिए उन्हें पूरा विश्वास था कि उन के घर वालों को उन की शादी पर कोई ऐतराज नहीं होगा. लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि नेहा से बड़ी 2 बहनें अभी अविवाहित थीं.

नेहा और उत्तम मिलने और मोबाइल पर बात करने में पूरी सावधानी बरतते थे. लेकिन गांवों में प्यारमोहब्बत या अवैध संबंधों की बातें ज्यादा दिनों तक छिपती नहीं हैं. नेहा और उत्तम के मामले में भी यही हुआ.

ये भी पढ़ें- मर्यादा: स्वाति को फ्लर्टिंग करना क्यों अच्छा लगता था

प्यार पर पहरा भी हुआ नाकाम

कई बार दोनों को साथ पकड़ा गया. इस के बाद नेहा के घर वालों ने उसे काफी समझाया और उत्तम से न मिलने की धमकी भी दी गई. किशोरी के परिजनों ने मेलजोल पर रोक के लिए उत्तम और उस के परिवार से भी शिकायत की. चेतावनी के बाद भी नेहा और उत्तम मिलते रहे, भविष्य की भूमिका बनाते रहे. हां, दोनों ने अब सावधानी जरूर बरतनी शुरू कर दी थी.

लेकिन प्रेम का रंग हलका हो या गाढ़ा, अपना रंग आसानी से नहीं छोड़ता. ज्यादा अंकुश लगाने का परिणाम यह हुआ कि प्रेमीयुगल पर प्यार का ऐसा खुमार चढ़ा कि दोनों ने घर से भाग कर शादी का निर्णय ले लिया. और फिर दोनों मार्च 2021 में अपनेअपने घरों से भाग गए.

किसी तरह इस बात का पता नेहा के घर वालों को लग गया. उन्होंने दोनों की तलाश शुरू कर दी. दोनों प्रेमी अभी सिरसागंज ही पहुंचे थे कि धर लिए गए.

दोनों को घर लाया गया. हंगामा भी हुआ. गांव वालों ने बीचबचाव कर दोनों पक्षों में समझौता करा दिया. समझौता भले ही हो गया हो, लेकिन दोनों परिवारों में तल्खी बढ़ती गई. अब नेहा पर कड़ा पहरा रहने लगा.

प्रेमी युगल किसी तरह सीने पर पत्थर रख कर कई महीने शांत रहे. नेहा के घर वालों ने भी सोचा कि अब शायद नेहा के सिर से प्यार का भूत उतर गया है. लेकिन उन की सोच गलत थी. दोनों के दिल में प्यार की आग धधक रही थी.

नेहा ने इस बात का फायदा उठाया और एक दिन मौका मिलते ही उत्तम से मिली.

वह उत्तम को देखते ही उस से लिपट गई.

उस की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘उत्तम, मेरे घर वालों और गांव वालों से डर कर तुम मुझे कहीं भूल तो नहीं जाआगे?’’

इस पर उत्तम ने उस के होंठों पर हाथ रख कर उसे चुप कराते हुए कहा, ‘‘नेहा दो सच्चे प्रेमियों को मिलने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. हमारे प्यार के बीच चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, मैं वादा करता हूं कि तुम्हारा हर तरह से साथ दूंगा. मैं जिंदगी भर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगा.’’

31 जुलाई, 2021 की सुबह 10 बजे दोनों अचानक लापता हो गए. उस समय दोनों के परिवार व आसपास के लोग अपनेअपने काम पर चले गए थे. प्रेमी युगल के फिर से लापता होने की किसी को खबर नहीं हुई.

काफी देर बाद दोनों के घर वालों को इस बात का पता चला. घर वाले उन्हें खोजने में जुट गए. कई घंटे की तलाश के बाद भी उन का सुराग नहीं लगा.

गांव वालों ने इस संबंध में पुलिस को सूचना देने की बात कही. लेकिन बदनामी के डर से नेहा के पिता देवीराम ने थाने में सूचना देने या रिपोर्ट करने से मना कर दिया.

सुघर सिंह और उस के परिजन बेटे उत्तम को रिश्तेदारियों व संभावित स्थानों पर तलाश करते रहे. इस के बाद 10 अगस्त को थाना सिरसागंज में सुघर सिंह ने अपने बेटे उत्तम की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद गांव में उसे पता चला कि उत्तम का नेहा के घरवालों ने अपहरण कर लिया है.

पुलिस की 6 टीमें जुटीं जांच में

इस बात की जानकारी होने पर सुघर सिंह ने 12 अगस्त को जान से मारने की नीयत से उत्तम के अपहरण की रिपोर्ट भादंवि की धारा 364 के अंतर्गत नेहा के पिता देवीराम, चाचा शिवराज व गांव के ही श्याम बिहारी, रोहित, राहुल, अमन उर्फ मोनू तथा चालक गुंजन निवासी कुतुकपुर के विरुद्ध दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज होने की भनक मिलते ही आरोपी फरार हो गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसएसपी अशोक कुमार शुक्ला ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एसपी (ग्रामीण) डा. अखिलेश नारायण के नेतृत्व में 6 टीमों का गठन किया.

अगले भाग में पढ़ें- दगाबाज निकला जिगरी दोस्त वीनेश

जीने की राह- भाग 1: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

Writer- संध्या 

उस दिन सुबह से ही मौसम खुशगवार था. निशांत के घर में फूलों की महक थी, हवा गुनगुना रही थी. उस के मम्मी और डैडी कल ही कानपुर से आ गए थे. निशांत ने उन्हें सबकुछ बता दिया था. उन्हें खुशी थी कि बेटा 5 साल बाद ही सही, ठीक रास्ते पर आ गया था वरना न जाने उसे कौन सा रोग लग गया था कि शादी के नाम से भड़क जाता था.

मम्मीपापा के सामने स्निग्धा को खड़ा कर के निशांत ने कहा, ‘‘अब आप देख लीजिए. जैसा आप चाहते थे वैसा ही मैं ने किया. आप एक सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छी बहू अपने बेटे के लिए चाहते थे. क्या इस से अच्छी व सुंदर बहू कोई और हो सकती है?’’

स्निग्धा निशांत की मम्मी के चरण स्पर्श करने के लिए नीचे की तरफ झुकने लगी, परंतु उन्होंने स्निग्धा को अपने कदमों पर झुकने का मौका ही नहीं दिया. उस के पहले ही उसे अपने सीने से लगा लिया.

स्निग्धा पहली नजर में ही सब को पसंद आ गई थी.

निशांत ने मम्मीडैडी को स्निग्धा के बारे में बताना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि स्निग्धा के दुखद और कष्टमय विगत को बताने से मम्मीडैडी को मानसिक संताप पहुंच सकता था. इसलिए उस ने थोड़े से झूठ का सहारा लिया और उन्हें केवल इतना बताया कि स्निग्धा को एक रिश्तेदार ने पालापोसा और पढ़ायालिखाया था. इलाहाबाद में वह उस के साथ पढ़ती थी, तभी उन दोनों की जानपहचान हुई थी. अब वह अपने पैरों पर खड़ी थी और दिल्ली में रह कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर रही थी. निशांत के परिवार वाले समझदार थे. स्निग्धा की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उस के परिवार के बारे में कोई बात नहीं की.

निशांत और स्निग्धा की शादी हो गई. बहुत सादगी और परंपरागत तरीके से उन दोनों की शादी का आयोजन किया गया था. निशांत तथा उस के घर वाले शादीब्याह में बहुत ज्यादा तामझाम और दिखावे के खिलाफ थे. थोड़े से खास रिश्तेदारों और मित्रों के बीच में उन की शादी संपन्न हो गई.

ये भी पढ़ें- जन्मपत्री: रश्मि की जन्मपत्री में क्या लिखा था?

शादी के पहले एक दिन एकांत में निशांत ने स्निग्धा से पूछा, ‘अगर तुम्हारा मन हो तो हम दोनों चल कर तुम्हारे मम्मीपापा को मना लाते हैं. उन का आशीर्वाद मिलेगा तो हम सब को अच्छा लगेगा.’

‘चाहती तो मैं भी हूं परंतु अभी मेरे पास इतना नैतिक साहस नहीं है. एक बार तुम्हारे साथ शादी कर के घरगृहस्थी सजा लूं तब फिर चल कर मम्मीपापा से मिलेंगे. तब वे मेरे अतीत की भूलों को माफ भी कर सकेंगे.’

‘जैसी तुम्हारी इच्छा,’ और बात वहीं समाप्त हो गई थी.

पति, सास, ससुर और एक पारिवारिक जीवन, बिलकुल नया अनुभव था स्निग्धा के लिए. कितना सुखद और स्निग्ध, वसंत के फूलों की खुशबू से भरा हुआ, वर्षा की पहली फुहारों की तरह मदहोश करता हुआ और पायल की मधुर झंकार की तरह कानों में संगीत घोलता हुआ, यह था जीवन का असली संगीत, जिस की धुनों के बीच हर व्यक्ति झूमझूम जाता है. और आज स्निग्धा जीवन के बीहड़ रास्तों के घुमावदार मोड़ों को पार करती हुई अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुई थी.

शादी के बाद स्निग्धा ने निशांत के घरपरिवार को ही नहीं, बल्कि उस के व्यक्तित्व को भी संवार दिया था. इस में निशांत की मम्मी का बहुत बड़ा हाथ था. उन्होंने स्निग्धा को एक बेटी की तरह घरपरिवार की जिम्मेदारी से अवगत कराया. उस ने भी अपनी सास से कुछ सीखने में संकोच नहीं किया. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उस ने एक समझदार पत्नी, आदर्श बहू और सुलझी हुई गृहिणी के रूप में सब के दिलों में स्थान बना लिया.

अब उसे स्वयं विश्वास नहीं होता था कि वह 5 साल पहले की एक बिगड़ैल और गैरजिम्मेदार, सामाजिक परंपराओं को तोड़ने वाली लड़की थी.

ये भी पढ़ें- प्रेम गली अति सांकरी

निशांत इतना शांत और सरल स्वभाव का व्यक्ति था कि वह कभी भी स्निग्धा के अतीत की चर्चा नहीं करता था, परंतु वह स्वयं कभीकभी एकांत के क्षणों में सोचने पर मजबूर हो जाती थी कि शादी के पहले वह किस प्रकार का गंदा जीवन व्यतीत कर रही थी. उस ने तब अपने जीवन के लिए जो राह चुनी थी वह एक न एक दिन उसे पतन के गर्त में डुबो देती. बिना शादी के किसी पुरुष के साथ रहना और शादी कर के अपने पति व एक परिवार के बीच रहने में कितना अंतर था. अब उसे महसूस हो रहा था कि शादी के पहले वह एक डरासहमा, उपेक्षित और घृणास्पद जीवन व्यतीत कर रही थी.

अपने रूप और सौंदर्य पर स्निग्धा को बहुत अभिमान था. वह सुशिक्षित और संपन्न परिवार की लड़की थी, इसलिए लालनपालन बहुत प्यार व दुलार के साथ हुआ था. उस ने अपने जीवन में किसी अभाव को कभी महसूस नहीं किया था, उस के ऊपर किसी प्रकार के पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबंध नहीं थे, वह जिद्दी और विद्रोही स्वभाव की हो गई थी.

Satyakatha: प्रेमी ने खोदी मोहब्बत की कब्र- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

अगले ही दिन जबलपुर शहर से निकलने वाले समाचार पत्रों में खुशबू की फोटो के साथ उस की गुमशुदगी की सूचना छप चुकी थी. सोशल मीडिया में भी खुशबू के गुम होने का समाचार उस की फोटो के साथ जम कर वायरल हो चुका था.

नंदकिशोर का हर दिन अब अपनी दुकान का कामधंधा छोड़ कर बेटी की खोजखबर लेने में बीतने लगा था. इधर रांझी पुलिस ने आसपास के इलाकों में खुशबू की तलाश की.

खुशबू के घर वालों और पड़ोसियों से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि खुशबू का आकाश बेन नाम के लड़के से प्रेम प्रसंग था. खुशबू के मोबाइल की काल डिटेल्स में भी 31 मई को करीब आधे घंटे तक उस की बातचीत आकाश से होने की जानकारी मिली. इस से पुलिस को पूरा भरोसा हो गया था कि खुशबू के अपहरण में आकाश बेन का ही हाथ होगा.

पुलिस ने जब आकाश को थाने बुला कर पूछताछ की तो उस ने खुशबू से प्रेम होने की बात तो कुबूल ली, परंतु उस ने पुलिस को बताया कि वह लौकडाउन के बाद से खुशबू से मिला तक नहीं है.

ये भी पढ़ें- बिन सजनी घर- भाग 1: मौली के जाने के बाद क्या हुआ

पुलिस ने लगातार आकाश से खुशबू के बारे में पूछताछ की, लेकिन हर बार वह भावुक हो कर पुलिस को यही कहता कि मैं भी खुशबू की तलाश में लगा हूं. मैं उस के बिना जिंदा नहीं रह सकता.

नंदकिशोर और उस की पत्नी सुधा को खुशबू और आकाश की नजदीकियों की जानकारी थी, इसलिए दोनों का शक आकाश पर ही था, परंतु आकाश नंदकिशोर के साथ खुशबू को खोजने में उस का साथ दे रहा था. इसलिए कई बार नंदकिशोर को लगता कि खुशबू के गायब होने में आकाश का हाथ न हो.

रांझी पुलिस ने जब खुशबू की मम्मी सुधा से पूछा कि तुम्हें किसी पर शक है, जो खुशबू को अगवा कर सकता है तो सुधा ने बेहिचक आकाश का नाम लिया था.

पुलिस टीम ने आकाश को 4 बार हिरासत में ले कर पूछताछ की, मगर वह हर बार वह यही कहता कि उसे खुशबू के गायब होने के संबंध में कोई जानकारी नहीं है.

धीरेधीरे समय बीत रहा था और पुलिस खुशबू को नहीं खोज पाई थी. नंदकिशोर पुलिस के बड़े अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगा चुका था, लेकिन उस की शिकायत दर्ज कर उसे केवल आश्वासन ही दिया जा रहा था.

पुलिस की हीलाहवाली से परेशान हो कर नंदकिशोर ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज करा दी. शिकायत की जांच हेतु जब रांझी पुलिस थाने के टीआई पर दबाव पड़ा तो टीआई आर.के. मालवीय ने खुशबू को तलाश करने के बजाय नंदकिशोर को थाने में तलब किया.

टीआई ने नंदकिशोर को 2 दिन के भीतर खुशबू को खोज निकालने का भरोसा दिला कर उस पर दबाव बना कर शिकायत वापस करवा ली.

2 दिन बाद नंदकिशोर जब पुलिस स्टेशन गया तो टीआई बेकाबू हो कर बोले, ‘‘पुलिस के पास बहुत सारे काम हैं, एक अकेली तुम्हारी लड़की को खोजने नहीं बैठे रहेंगे.’’

पुलिस के इस व्यवहार से नंदकिशोर बहुत दुखी हुआ. अपनी बेटी के बारे में पता लगाने के लिए नंदकिशोर पिछले 3 महीनों में 50 बार से अधिक रांझी थाने और 5 बार एसपी से मिल चुका था, परंतु उसे कोरे आश्वासन ही मिलते थे. जिस से वंशकार समाज के लोग लामबंद हो कर पुलिस की इस लापरवाही पर आक्रोशित थे.

इस के बाद टीआई आर.के. मालवीय का तबादला कर दिया गया और रांझी पुलिस थाने की कमान तेजतर्रार टीआई विजय परस्ते को सौंप दी गई. टीआई विजय परस्ते ने एएसआई रामकुमार मार्को की मदद से पूरे केस की फिर से पड़ताल शुरू कर दी.

टीआई विजय परस्ते के निर्देश पर पुलिस टीम ने लापता खुशबू के प्रेमी आकाश की निगरानी शुरू कर दी. उस की हर गतिविधि पर कड़ी नजर रखी जा रही थी.

इधर चारों तरफ से घोर निराशा मिलने के बाद नंदकिशोर ने वकील से मिल कर जबलपुर हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगा दी. हाईकोर्ट ने इस मामले में दखल दे कर जबलपुर एसपी को खुशबू को खोजने का आदेश दिया तो एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने प्रकरण में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

पूरे मामले में शुरू से ही आकाश बेन पहला संदेही था. क्राइम ब्रांच और रांझी पुलिस ने 23 सितंबर, 2021 की रात को आकाश को थाने में बुला कर जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. पुलिस पूछताछ में दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई.

रांझी के बजरंग नगर के गंगा मैया इलाके में रहने वाला सूरज बेन व्हीकल फैक्ट्री के मेस में खानसामा था. उस के 2 बेटे आकाश और प्रकाश थे. 24 साल का आकाश कुछ समय पहले रिछाई के इंडस्ट्रियल एरिया में एक इंजेक्शन बनाने वाली फार्मा कंपनी में काम करता था.

बाद में अपने पिता सूरज बेन के कहने पर वह उस के साथ ही व्हीकल फैक्ट्री के मेस में वेटर का काम करने लगा. लौकडाउन के चलते व्हीकल फैक्ट्री का मेस जब बंद हो गया तो आकाश का काम छूट गया.

लौकडाउन खत्म होने के बाद वह काम की तलाश में राइस मिल गया तो उसे हम्माल का काम मिल गया. राइस मिल में चावल के बोरे काटने, भरने और सिलने का काम करने वाले मजदूरों को हम्माल कहा जाता है. आकाश मैट्रिक तक ही पढ़ा था, लेकिन वह फैशनपरस्त लड़का था.

पिता की आमदनी भी परिवार के लिए ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर थी, इस वजह से आकाश ने हम्माली के काम को शौक से अपना लिया था.

आकाश और खुशबू दसवीं कक्षा तक जबलपुर के स्कूल में साथसाथ ही पढ़े थे और दोनों के परिवारों की आपस में नजदीकियां थीं.

रोज ही उन का एकदूसरे के घरों में आनाजाना लगा रहता था. इसलिए उन के मेलजोल पर किसी को ऐतराज भी नहीं था.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: कल्पना की अधूरी उड़ान

स्कूल में हुई बचपन की दोस्ती जवां होते ही कब प्यार में बदल गई, दोनों को पता ही नहीं चला. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे. आकाश और खुशबू के घरवाले भी उन की परवान चढ़ती मोहब्बत से अंजान नहीं थे.  आकाश अकसर ही खुशबू को बाइक से शहर घुमाने ले जाता था. जबलपुर शहर के पार्क में घंटों वे बांहों में बांहें डाल अपने प्यार की पींगें बढ़ाने लगे थे. दोनों को जब भी एकांत मिलता तो आकाश खुशबू के होंठों को चूमते हुए कहता, ‘‘खुशबू, मैं तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा चाहता हूं और जल्दी ही तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

आकाश खुशबू की हर ख्वाहिश का ध्यान रखता था. वह उसे घुमानेफिराने के साथ उसे नए कपड़े गिफ्ट करता था. यही वजह थी कि खुशबू भी आकाश की दीवानी थी.

पिछले साल मार्च 2020 में कोरोना महामारी के चलते जब लौकडाउन हुआ तो आकाश की फैक्ट्री बंद हो गई और उसे पैसे की तंगी होने लगा.

आकाश खुशबू की फरमाइशें पूरी नहीं कर पा रहा था. घूमनेफिरने की आदी और स्मार्टफोन की शौकीन खुशबू सोशल मीडिया के जरिए दूसरे लड़कों से नजदीकियां बढ़ाने लगी तो खुशबू के पिता नंदकिशोर और उस की पत्नी बेटी की इन हरकतों से परेशान रहने लगे.

मोहल्ले में नंदकिशोर की बदनामी होने लगी तो उस ने घमापुर में रहने वाले दिनेश नाम के लड़के से खुशबू की शादी तय कर दी. जून महीने में खुशबू की शादी होने वाली थी. खुशबू भी इस रिश्ते को ले कर अब गंभीर हो गई थी.

खुशबू आकाश से बेपनाह मोहब्बत करती थी, मगर वह पिता के द्वारा दिनेश के साथ तय किए गए शादी के रिश्ते के बाद अपने भविष्य के नए सपने बुनने लगी थी.

दिनेश एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था और स्मार्ट भी था, जबकि आकाश की माली हालत उतनी अच्छी नहीं थी. यही सोच कर खुशबू आकाश से दूरी बनाने लगी. इस से आकाश तो जैसे पागल ही हो गया.

शादी का रिश्ता तय होते ही खुशबू ने आकाश से फोन पर बातचीत भी बंद कर दी. इसे ले कर आकाश परेशान रहने लगा. आकाश ने खुशबू के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं और अब आकाश को यह लगने लगा था कि खुशबू किसी दूसरे लड़के से प्रेम करने लगी है.

अगले भाग में पढ़ें- घटनास्थल पर युवती के पहने हुए कपड़े और जूते भी पड़े हुए थे

Satyakatha- सुहागन की साजिश: सिंदूर की आड़ में इश्क की उड़ान- भाग 1

सौजन्य: सत्यकथा

ममता ने एक सरसरी नजर देवरानी के चेहरे पर डाली फिर उत्सुकता से पूछा, ‘‘रीता, कई दिनों से देवरजी नहीं दिखरहे हैं, क्या वह कहीं बाहर गए हैं?’’

‘‘हां दीदी, वह शायद दिल्ली गए हैं काम की तलाश में.’’ रीता ने जवाब दिया.

‘‘तुम ने परिवार में किसी को बताया क्यों नहीं कि शिवगोविंद दिल्ली गया है?’’

‘‘दीदी वह मुझ से लड़झगड़ कर कर गए हैं. जेवरजट्टा भी साथ ले गए हैं. गुस्से में मैं ने किसी को कुछ नहीं बताया. लेकिन दीदी, मुझे उन की चिंता सता रही है.’’

‘‘तुम्हारी शिवगोविंद से फोन पर बात हुई?’’ ममता ने पूछा.

‘‘नहीं दीदी, उन से फोन पर बात तो नहीं हुई?’’ रीता नजरें चुरा कर बोली.

‘‘तुम अपना फोन मुझे दो. मैं अभी शिवगोविंद से बात करती हूं.’’ ममता झुंझला कर बोली.

‘‘दीदी मेरा फोन पानी में गिर गया था, जिस से वह बंद हो गया है.’’ रीता ने जवाब दिया.

ममता पढ़ीलिखी सभ्य महिला थी. वह समझ गई कि रीता बात न कराने के लिए बहाने पर बहाने बना रही है. वह यह भी जान गई कि शिवगोविंद के गायब होने का रहस्य रीता के पेट में छिपा है, लेकिन वह बाहर नहीं लाना चाहती है.

अब ममता के मन में अनेक आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह सोचने लगी, ‘कहीं रीता ने देवर के साथ कोई षडयंत्र तो नहीं रच डाला.’

ममता ने अपनी आशंकाओं से पति बालगोविंद को अवगत कराया तो उन का कलेजा कांप उठा. बालगोविंद ने भाई की खोज हर संभावित स्थान पर की, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चल पा रहा था. फोन भी उस का बंद था. उस के यारदोस्त भी कुछ नहीं बता पा रहे थे.

ममता व उस के पति बालगोविंद की समझ में नहीं आ रहा था कि शिवगोविंद को जमीन निगल गई या आसमान.

आखिरकार जब शिवगोविंद का कुछ भी पता नहीं चला तो उस ने 10 जून, 2021 की सुबह 9 बजे गुमशुदगी दर्ज कराने अकबरपुर कोतवाली जा पहुंचा.

थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय उस समय थाने पर मौजूद थे. बालगोविंद ने उन्हें अपना परिचय दिया, ‘‘सर, मेरा नाम बालगोविंद यादव है. मैं बलिहारा गांव में रहता हूं. मेरा छोटा भाई शिवगोविंद 6 जून से घर से लापता है. मैं ने उस की खोज हर जगह की. लेकिन कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है. आप गुमशुदगी दर्ज कर भाई की खोज में मदद करें.’’

कोतवाल तुलसीराम पांडेय ने बालगोविंद की बात को गौर से सुना और फिर गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हारे भाई शिवगोविंद की गांव में किसी से रंजिश या लेनदेन का झगड़ा तो नहीं था.’’

‘‘सर, शिवगोविंद सीधासादा इंसान है. उस की गांव में किसी से रंजिश नहीं है और न ही किसी से लेनदेन का कोई झगड़ा है.’’ बालगोविंद ने जवाब दिया.

ये भी पढ़ें- मनीष गुप्ता केस: जब रक्षक बन गए भक्षक

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने पूछा.

‘‘हां सर, रीता पर शक है.’’ बालगोविंद ने बताया.

‘‘ये रीता कौन है?’’ थानाप्रभारी बोले.

‘‘सर, रीता शिवगोविंद की ही पत्नी है. वह रंगीनमिजाज औरत है. मुझे शक है कि भाई के लापता होने का रहस्य उसी के पेट में छिपा है.’’

तुलसीराम पांडेय समझ गए कि मामला अवैध संबंधों का है और ऐसे रिश्तों में कुछ भी घटित हो सकता है. उन्होंने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया और सच्चाई जानने के लिए खास खबरियों को लगा दिया.

दूसरे दिन ही एक खबरी ने उन्हें बताया कि रीता रंगीनमिजाज औरत है. उस का चालचलन ठीक नहीं है. गांव के दीपक उर्फ लल्ला का उस के घर आनाजाना है. दोनों के बीच नाजायज रिश्ता है.

इस रिश्ते का रीता का पति शिवगोविंद विरोध करता था. शिवगोविंद के लापता होने का रहस्य इन्हीं दोनों से पता चल सकता है.

यह पता चलते ही कोतवाल तुलसीराम पांडेय ने आवश्यक पुलिस बल साथ लिया और बलिहारा गांव पहुंच कर रीता यादव को उस के घर से हिरासत में ले लिया. उसे थाने लाया गया. महिला पुलिस की मौजूदगी में रीता से पूछताछ शुरू की गई.

थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘रीता सचसच बताओ, शिवगोविंद कहां है?’’

‘‘सर, मुझे पता नहीं, वह कहां हैं. वह मुझ से लड़झगड़ कर साथ में जेवर ले कर घर से दिल्ली जाने को निकले थे.’’ रीता ने जवाब दिया.

‘‘देखो, मुझे गुमराह करने की कोशिश मत करो. वरना सच्चाई उगलवाना मुझे आता है.’’

‘‘सर, मैं सच ही कह रही हूं.’’ वह बोली.

‘‘फिर झूठ. लगता है, तुम सीधी तरह मुंह नहीं खोलोगी.’’ थानाप्रभारी ने धमकाया.

इसी के साथ उन्होंने एक महिला कांस्टेबल को इशारा किया. इशारा पाते ही महिला पुलिस ने रीता से सख्ती की तो उसे मुंह खोलते ज्यादा वक्त नहीं लगा.

रीता ने कुबूला जुर्म

रीता ने मुंह खोला तो थानाप्रभारी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. रीता ने बताया, ‘‘सर, शिवगोविंद अब इस दुनिया में नहीं है. दीपक उर्फ लल्ला और उस के दोस्त अमन व निखिल ने मेरे कहने पर उस की हत्या कर दी है.’’

इस के बाद ताबड़तोड़ छापा मार कर तुलसीराम पांडेय ने 12 जून की सुबह दीपक उर्फ लल्ला तथा उस के साथी अमन को भी बाराजोड़ से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें कोतवाली अकबरपुर लाया गया. वहां दोनों का सामना रीता से हुआ तो वे समझ गए कि हत्या का परदाफाश हो गया है. अत: उन दोनों ने सहज ही जुर्म कुबूल कर लिया. निखिल फरार हो गया.

थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने इस सनसनीखेज मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी. फिर शिवगोविंद का शव बरामद करने बलिहारा गांव के पास नोन नदी के किनारे पहुंचे.

उन्होंने खुदाई के लिए जेसीबी भी मंगवा ली. इस के बाद अमन व दीपक की निशानदेही पर खुदाई की गई तो गहरे गड्ढे से शिवगोविंद का सड़ागला शव बरामद हो गया, जिस से तेज दुर्गंध आ रही थी.

शिवगोविंद की लाश बरामद होने की सूचना बलिहारा गांव पहुंची तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई. बालगोविंद, उस की पत्नी ममता व परिवार के अन्य लोग घटनास्थल पहुंचे और शव देख कर फफक पड़े.

ये भी पढ़ें- मुंबई का असली सिंघम: समीर वानखेड़े

इसी बीच खबर पा कर एसपी केशव कुमार चौधरी, एएसपी घनश्याम तथा डीएसपी (अकबरपुर) अरुण कुमार सिंह घटनास्थल आ गए. उन्होंने शव का निरीक्षण किया तथा मृतक के घर वालों से पूछताछ की. पुलिस अधिकारियों ने आरोपी अमन व दीपक से भी विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ के बाद आरोपियों ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल साबड़ तथा फावड़ा भी बरामद करा दिया, जिसे उन्होंने छिपा दिया था. पूछताछ के बाद अधिकारियों ने शिवगोविंद के शव को माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

चूंकि आरोपियों ने जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने मृतक के भाई बालगोविंद की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201, 120बी तथा 34 के तहत रीता, दीपक उर्फ लल्ला, अमन तथा निखिल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और रीता, अमन व दीपक को न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस जांच में एक ऐसी औरत की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने स्वयं ही अपना सिंदूर मिटा दिया.

कानपुर (देहात) जनपद के अकबरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है बलिहारा. रामसिंह यादव अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे थे— हरगोविंद, बालगोविंद तथा शिवगोविंद. रामसिंह किसान था. खेती की आय से ही घरपरिवार चलाता था. उस की आर्थिक स्थिति तो मजबूत नहीं थी, लेकिन बिरादरी में मानसम्मान था.

भाइयों में हरगोविंद सब से बड़ा था. उस का विवाह रीता से हुआ था. खूबसूरत रीता को पत्नी के रूप में पा कर हरगोविंद बहुत खुश था. लेकिन आर्थिक अभाव उस की चाहत के बीच दीवार बने हुए थे.

पति की मौत के बाद रीता देवर के साथ रहने लगी थी

हरगोविंद पिता के साथ खेती में हाथ बंटाता था. वह इतना नहीं कमा पाता था कि मौजमजे से गुजर होती रहती. फिर भी हालात से उबरने की जद्दोजहद चलती रही.

समय के साथ जब हालात नहीं सुधरे, तब रीता ने पति को कोई और काम करने की सलाह दी. लेकिन हरगोविंद तो अपनी खेतीकिसानी में ही खुश था.

सहयोगी : जय कुमार मिश्र

अगले भाग में पढ़ें- रीता को भी मिल गया सहारा

वेटिंग रूम- भाग 1: सिद्धार्थ और जानकी की छोटी सी मुलाकात के बाद क्या नया मोड़ आया?

Writer- जागृति भागवत 

हाथ में एक छोटा सा हैंडबैग लिए हलके पीले रंग का चूड़ीदार कुरता पहने जानकी तेज कदमों से प्रतीक्षालय की ओर बढ़ी आ रही थी. यहां आ कर देखा तो प्रतीक्षालय यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था. बारिश की वजह से आज काफी गाडि़यां देरी से आ रही थीं. उस ने भीड़ में देखा, एक नौजवान एक कुरसी पर बैठा था तथा दूसरी पर अपना बैग रख कर उस पर टिक कर सो रहा था, पता नहीं सो रहा था या नहीं. एक बार उस ने सोचा कि उस नौजवान से कहे कि बैग को नीचे रखे ताकि एक यात्री वहां बैठ सके, परंतु कानों में लगे इयरफोंस, बिखरे बेढंगे बाल, घुटने से फटी जींस, ठोड़ी पर थोड़ी सी दाढ़ी, मानो किसी ने काले स्कैचपैन से बना दी हो, इस तरह के हुलिया वाले नौजवान से कुछ समझदारी की बात कहना उसे व्यर्थ लगा. वह चुपचाप प्रतीक्षालय के बाहर चली गई.

मनमाड़ स्टेशन के प्लेटफौर्म पर यात्रियों के लिए कुछ ढंग की व्यवस्था भी नहीं है, बाहर बड़ी मुश्किल से जानकी को बैठने के लिए एक जगह मिली. ट्रेन रात 2:30 बजे की थी और अभी शाम के 6:30 बजे थे. रोशनी मंद थी, फिर भी उस ने अपने बैग में से मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ निकाला और पढ़ने लगी. गाडि़यां आतीजाती रहीं. प्लेटफौर्म पर कभी भीड़ बढ़ जाती तो कभी एकदम गायब हो जाती. 8 बज चुके थे, प्लेटफौर्म पर अंधेरा हो गया था. प्लेटफौर्म की मंद बत्तियों से मोमबत्ती जैसी रोशनी आ रही थी. सारे दिन की बारिश के बाद मौसम में ठंडक घुल गई थी. जानकी ने एक बार फिर प्रतीक्षालय जा कर देखा तो वहां अब काफी जगह हो गई थी.

जानकी एक अनुकूल जगह देख कर वहां बैठ गई. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो लगभग 15-20 लोग अब भी प्रतीक्षालय में बैठे थे. वह नौजवान अब भी वहीं बैठा था. कुरसियां खाली होने का फायदा उठा कर अब वह आराम से लेट गया था. 2 लड़कियां थीं. पहनावे, बालों का ढंग और बातचीत के अंदाज से काफी आजाद खयालों वाली लग रही थीं. उन के अलावा कुछ और यात्री भी थे, जो जाने की तैयारी में लग रहे थे, शायद उन की गाड़ी के आने की घोषणा हो चुकी थी. जल्द ही उन की गाड़ी आ गई और अब प्रतीक्षालय में जानकी के अलावा सिर्फ वे 2 युवतियां और वह नौजवान था, जो अब सो कर उठ चुका था. देखने से तो वह किसी अच्छे घर का लगता था पर कुछ बिगड़ा हुआ, जैसे किसी की इकलौती संतान हो या 5-6 बेटियों के बाद पैदा हुआ बेटा हो.

ये भी पढ़ें- प्रेम गली अति सांकरी: भाग 1

नौजवान उठ कर बाहर गया और थोड़ी देर में चाय का गिलास ले कर वापस आया. अब तक जानकी दोबारा उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो चुकी थी. थोड़ी देर बाद युवतियों की आवाज तेज होने से उस का ध्यान उन पर गया. वे मौडर्न लड़कियां उस नौजवान में काफी रुचि लेती दिख रही थीं. नौजवान भी बारबार उन की तरफ देख रहा था. लग रहा था जैसे इस तरह वे तीनों टाइमपास कर रहे हों. जानकी को टाइमपास का यह तरीका अजीब लग रहा था. उन तीनों की ये नौटंकी काफी देर तक चलती रही. इस बीच प्रतीक्षालय में काफी यात्री आए और चले गए. जानकी को एहसास हो रहा था कि वह नौजवान कई बार उस का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहा था, परंतु उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब तक 9:00 बज चुके थे. जानकी को अब भूख का एहसास होने लगा था. उस ने अपने साथ ब्रैड और मक्खन रखा था. आज यही उस का रात का खाना था. तभी किसी गाड़ी के आने की घोषणा हुई और वे लड़कियां सामान उठा कर चली गईं. अब 2-4 यात्रियों के अलावा प्रतीक्षालय में सिर्फ वह नौजवान और जानकी ही बचे थे. नौजवान को भी अब खाने की तलाश करनी थी. प्रतीक्षालय में जानकी ही उसे सब से पुरानी लगी, सो उस ने पास जा कर धीरे से उस से कहा, ‘‘एक्सक्यूज मी मैम, क्या मैं आप से थोड़ी सी मदद ले सकता हूं?’’

जानकी ने काफी आश्चर्य और असमंजस से नौजवान की तरफ देखा, थोड़ी घबराहट में बोली, ‘‘कहिए.’’ ‘‘मुझे खाना खाने जाना है, अगर आप की गाड़ी अभी न आ रही हो तो प्लीज मेरे सामान का ध्यान रख सकेंगी?’’ ‘‘ओके,’’ जानकी ने अतिसंक्षिप्त उत्तर दिया और नौजवान चला गया. लगभग 1 घंटे बाद वह वापस आया, जानकी को थैंक्स कहने के बहाने उस के पास आया और कहा, ‘‘यहां मनमाड़ में खाने के लिए कोई ढंग का होटल तक नहीं है.’’

ये भी पढ़ें- मन बहुत प्यासा है: मीरा क्यों शेखर से अलग हो गई?

‘‘अच्छा?’’ फिर जानकी ने कम से कम शब्दों का इस्तेमाल करना उचित समझा.

‘‘आप यहां पहली बार आई हैं क्या?’’ बात को बढ़ाते हुए नौजवान ने पूछा.

‘‘जी हां.’’ जानकी ने नौजवान की ओर देखे बिना ही उत्तर दिया. अब तक शायद नौजवान की समझ में आ गया था कि जानकी को उस से बात करने में ज्यादा रुचि नहीं है.

Satyakatha: पत्नी की बेवफाई- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- मुकेश तिवारी

रामऔतार ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. बगैर विरोध किए मालती उस की ओर खिसक आई.

दूसरे हाथ से उस ने पास जल रही लालटेन की लौ धीमी कर दी. अगले पल मालती का सिर रामऔतार की गोद में था और रामऔतार के हाथ उस के नाजुक शरीर पर रेंगने लगे थे. जल्द ही दोनों बेकाबू हो गए. वासना की आग में जल उठे.

कुछ समय में वे एकदूसरे की कामाग्नि शांत कर निढाल हो चुके थे. मालती को होश तब आया जब फेरन ने उसे लात मारी. हड़बड़ा कर उठी. कपड़े समेटने लगी. कुछ कपड़ों पर रामऔतार बेसुध लेटा हुआ था, ब्लाउज और ब्रा उस ने खींच कर निकाला.

फेरन यह सब देख कर गुस्से में तमतमा रहा था, उस के उठते ही फेरन ने पत्नी मालती के बाल पकड़ लिए. गुस्से में बदजात, बेहया, बदलचन बोलता हुआ भद्दीभद्दी गालियां देने लगा.

आधी रात का समय था. फेरन को गुस्से में देख कर रामऔतार मामला समझ गया. कुछ कहेसुने बगैर वह चुपके से निकल गया. उस के जाते ही फेरन ने लातघूंसों से मालती की जम कर पिटाई कर दी. उसे तब तक पीटता रहा जब तक वह थक नहीं गया.

अगले दिन सुबह मालती चुपचाप आंगन में पड़ी रात की गंदगी को साफ करने लगी. थोड़ी देर में रामऔतार भी आ गया. वह आते ही चुपचाप दातून करते फेरन के पैरों पर गिर पड़ा.

फेरन ने उसे झटक दिया. गुस्से में बोला, ‘‘तूने मेरी पीठ में खंजर घोंपा. बहुत बुरा किया. अब देखना मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूं.’’

ये भी पढ़ें- Satyakatha: पैसे का गुमान- भाग 2

रामऔतार ने मालती की ओर देखा. इस से पहले कि वह कुछ बोलता, मालती ने उसे चुप रहने और चले जाने का इशारा किया. थोड़ी देर में फेरन बिना कुछ खाएपिए घर से निकल पड़ा.

भारत की आजादी के जश्न का दिन था. कोरोना काल की वजह से भितरवार थाने में सादगी के साथ 15 अगस्त 2020 का झंडा फहराने का कार्यक्रम संपन्न हो चुका था. दोपहर का समय था. थानाप्रभारी पंकज त्यागी रोजाना की तरह ड्यूटी पर मौजूद थे. मालती बदहवास घबराई हुई थाने आई. आते ही वह फफकफफक कर रोने लगी.

पूछने पर उस ने बताया कि पिछले 9 दिन से उस के पति का कुछ पता नहीं चल पा रहा है, वह 6 अगस्त से ही लापता है. उस की कई जगहों पर  तलाश की जा चुकी है, लेकिन कोई पता नहीं चल पा रहा है. उस ने बताया कि वह 6 अगस्त को काम पर निकले थे. उस के बाद वह घर नहीं लौटे.

उन के पास पुराना मोबाइल फोन था, लेकिन वह बंद आ रहा है. हो सकता है खराब हो गया हो. इसी के साथ मालती किसी अनहोनी की आशंका जताते हुए थाने में रोने लगी.

थाना प्रभारी ने उसे ढांढस बंधाते हुए जल्द ही पता लगाने का आश्वासन दिया. उन्होंने उस के लापता होने की सूचना दर्ज कर ली. इसी के साथ उसे भी कहा कि पति के बारे में जो भी बात मालूम हो, वह थाने में तुरंत बताए.

उस के बाद हर दूसरे दिन मालती थाने आती और अपने पति के बारे में पूछती थी.

एक दिन थाने में मालती पति को ले कर जोरजोर से हायहाय कर रोने लगी. देर तक थाने में हंगामा होता रहा. महिला पुलिसकर्मी ने उसे चुप कराया, खाना खिलाया.

थानाप्रभारी ने उसे बताया कि उन्होंने उस के पति की तलाश के लिए कई लोगों से पूछताछ की है. काम देने वाले ठेकेदार से भी फेरन के बारे में पूछा गया है, उस के एक खास दोस्त रामऔतार से पूछताछ बाकी थी.

पुलिस ने तय कर लिया था कि कोई संदिग्ध सुराग हाथ लगते ही रामऔतार को भी थाने बुला कर उस से पूछताछ की जाएगी. इस काम के लिए थानाप्रभारी ने कई भरोसेमंद मुखबिर भी लगा दिए.

कई महीने बीतने पर भी फेरन का कुछ पता नहीं चला. धीरेधीरे उस की गुमशुदगी की फाइल पर धूल जम गई. उस के ऊपर कई दूसरी फाइलें रख दी गईं. किंतु मालती चुप नहीं बैठी.

उस ने 14 सितंबर, 2020 को पुलिस पर पति को नहीं ढूंढने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगा दी. इस पर कोर्ट ने ग्वालियर एसपी अमित सांघी को जांच के आदेश दिए.

सांघी ने फेरन की गुमशुदगी के मामले को गंभीरता से लेते हुए एएसपी (देहात) जयराज कुबेर के नेतृत्व में टीम गठित कर दी. इस के अलावा उन्होंने भितरवार एसडीओपी अभिनव बारंगे को भी इस केस को खोलने में लगा दिया.

यह मामला पुलिस के लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं था, क्योंकि पिछली तफ्तीश में पुलिस के हाथ कोई ऐसा तथ्य नहीं लग पाया था, जिस से पुलिस को कोई मदद मिल सके.

एसडीओपी  बारंगे ने इस सनसनीखेज मामले की 7 जुलाई, 2021 को नए सिरे से बारीकी से अध्ययन करते हुए जांच शुरू की. जांच की शुरुआत उस के अजीज दोस्त रामऔतार से हुई.

ये भी पढ़ें- अपराध: लव, सैक्स और गोली

थानाप्रभारी पंकज त्यागी को अपने साथ ले कर फेरन के गांव मोहनगढ़ गए. वहीं उस से फेरन के बारे में हर छोटीछोटी बातें पूछी गईं. उस से मिली कई जानकारियां काफी चौंकाने वाली थीं. उसी सिलसिले में मालूम हुआ कि फेरन की पत्नी मालती का चालचलन ठीक नहीं है.

फेरन के लापता होने वाले दिन से ही वह रामऔतार के घर पर रह रही है. जबकि इस बात का मालती ने पुलिस से जरा भी जिक्र तक नहीं किया था. यहां तक कि उस ने फेरन और रामऔतार के जिगरी दोस्त होने की बात तक नहीं बताई थी.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. पंकज त्यागी ने 26 जुलाई, 2021 को रामऔतार को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. उस ने न तो फेरन के बारे में कोई खास नई जानकरी दी और न ही मालती से संबंध के बारे में कुछ बताया. उस ने अपने दोस्त के लापता होने पर काफी दुख भी जताया.

मालती भी रामऔतार के फेरन का परम मित्र होने का वास्ता देती रही. दोनों की बातों पर भरोसा कर एसडीओपी ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन टीआई भितरवार को दोनों पर चौकस नजर रखने को कहा.

दूसरे दिन एसडीओपी ने बिना वक्त गंवाए दूसरे राउंड की पूछताछ के लिए मालती और रामऔतार को फिर से बुलवा लिया. उन्होंने पूछताछ के लिए सब से पहले मालती को अपने कक्ष में बुलाया. उस से फेरन और रामऔतार के बारे में कई कोणों से पूछताछ की.

हर सवाल का जवाब उस ने अपने सुहाग का हवाला दे कर कसम के साथ दिया.

बातोंबातों में उस ने बोल दिया कि मैं अपने सुहाग को क्यों मिटाऊंगी? यही बात पुलिस के गले नहीं उतरी कि आखिर मालती के दिमाग में अपने सुहाग को मिटाने की बात क्यों आई? कहीं उस ने सच में ऐसा तो नहीं किया है? जरूर कुछ तो बात है, जो वह छिपा रही है.

अगले भाग में पढ़ें- तीर निशाने पर लगता देख एसडीओपी  ने बिना विलंब किए तपाक से कहा कि…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें