सांझ पड़े घर आना- भाग 1: नीलिमा की बौस क्यों रोने लगी

उसकी मेरे औफिस में नईनई नियुक्ति हुई थी. हमारी कंपनी का हैड औफिस बैंगलुरु में था और मैं यहां की ब्रांच मैनेजर थी. औफिस में कोई और केबिन खाली नहीं था, इसलिए मैं ने उसे अपने कमरे के बाहर वाले केबिन में जगह दे दी. उस का नाम नीलिमा था. क्योंकि उस का केबिन मेरे केबिन के बिलकुल बाहर था, इसलिए मैं उसे आतेजाते देख सकती थी. मैं जब भी अपने औफिस में आती, उसे हमेशा फाइलों या कंप्यूटर में उलझा पाती. उस का औफिस में सब से पहले पहुंचना और देर तक काम करते रहना मुझे और भी हैरान करने लगा. एक दिन मेरे पूछने पर उस ने बताया कि पति और बेटा जल्दी चले जाते हैं, इसलिए वह भी जल्दी चली आती है. फिर सुबहसुबह ट्रैफिक भी ज्यादा नहीं रहता.

वह रिजर्व तो नहीं थी, पर मिलनसार भी नहीं थी. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो आंखों को बांध लेते हैं. उस का मेकअप भी एकदम नपातुला होता. वह अधिकतर गोल गले की कुरती ही पहनती. कानों में छोटे बुंदे, मैचिंग बिंदी और नाममात्र का सिंदूर लगाती. इधर मैं कंपनी की ब्रांच मैनेजर होने के नाते स्वयं के प्रति बहुत ही संजीदा थी. दिन में जब तक 3-4 बार वाशरूम में जा कर स्वयं को देख नहीं लेती, मुझे चैन ही नहीं पड़ता. परंतु उस की सादगी के सामने मेरा सारा वजूद कभीकभी फीका सा पड़ने लगता.

लंच ब्रेक में मैं ने अकसर उसे चाय के साथ ब्रैडबटर या और कोई हलका नाश्ता करते पाया. एक दिन मैं ने उस से पूछा तो कहने लगी, ‘‘हम लोग नाश्ता इतना हैवी कर लेते हैं कि लंच की जरूरत ही महसूस नहीं होती. पर कभीकभी मैं लंच भी करती हूं. शायद आप ने ध्यान नहीं दिया होगा. वैसे भी मेरे पति उमेश और बेटे मयंक को तरहतरह के व्यंजन खाने पसंद हैं.’’ ‘‘वाह,’’ कह कर मैं ने उसे बैठने का इशारा किया, ‘‘फिर कभी हमें भी तो खिलाइए कुछ नया.’’ इसी बीच मेरा फोन बज उठा तो मैं अपने केबिन में आ गई.

एक दिन वह सचमुच बड़ा सा टिफिन ले कर आ गई. भरवां कचौरी, आलू की सब्जी और बूंदी का रायता. न केवल मेरे लिए बल्कि सारे स्टाफ के लिए. इतना कुछ देख कर मैं ने कहा, ‘‘लगता है कल शाम से ही इस की तैयारी में लग गई होगी.’’

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वह मुसकराने लगी. फिर बोली, ‘‘मुझे खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक है. यहां तक कि हमारी कालोनी में कोई भी पार्टी होती है तो सारी डिशेज मैं ही बनाती हूं.’’ नीलिमा को हमारी कंपनी में काम करते हुए 6 महीने हो गए थे. न कभी वह लेट हुई और न जाने की जल्दी करती. घर से तरहतरह का खाना या नाश्ता लाने का सिलसिला भी निरंतर चलता रहा. कई बार मैं ने उसे औफिस के बाद भी काम करते देखा. यहां तक कि वह अपने आधीन काम करने वालों की मीटिंग भी शाम 6 बजे के बाद ही करती. उस का मानना था कि औफिस के बाद मन भी थोड़ा शांत रहता है और बाहर से फोन भी नहीं आते.

एक दिन मैं ने उसे दोपहर के बाद अपने केबिन में बुलाया. मेरे लिए फुरसत से बात करने का समय दोपहर के बाद ही होता था. सुबह मैं सब को काम बांट देती थी. हमारी कंपनी बाहर से प्लास्टिक के खिलौने आयात करती और डिस्ट्रीब्यूटर्स को भेज देती थी. हमारी ब्रांच का काम और्डर ले कर हैड औफिस को भेजने तक ही सीमित था. नीलिमा ने बड़ी शालीनता से मेरे केबिन का दरवाजा खटखटा भीतर आने की इजाजत मांगी. मैं कुछ पुरानी फाइलें देख रही थी. उसे बुलाया और सामने वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया. मैं ने फाइलें बंद कीं और चपरासी को बुला कर किसी के अंदर न आने की हिदायत दे दी.

नीलिमा आप को हमारे यहां काम करते हुए 6 महीने से ज्यादा का समय हो गया. कंपनी के नियमानुसार आप का प्रोबेशन पीरियड समाप्त हो चुका है. यहां आप को कोई परेशानी तो नहीं? काम तो आपने ठीक से समझ ही लिया है. स्टाफ से किसी प्रकार की कोई शिकायत हो तो बताओ. ‘‘मैम, न मुझे यहां कोई परेशानी है और न ही किसी से कोई शिकायत. यदि आप को मेरे व्यवहार में कोई कमी लगे तो बता दीजिए. मैं खुद को सुधार लूंगी… मैं आप के जितना पढ़ीलिखी तो नहीं पर इतना जरूर विश्वास दिलाती हूं कि मैं अपने काम के प्रति समर्पित रहूंगी. यदि पिछली कंपनी बंद न हुई होती तो पूरे 10 साल एक ही कंपनी में काम करते हो जाते,’’ कह कर वह खामोश हो गई. उस की बातों में बड़ा ठहराव और विनम्रता थी.

‘‘जो भी हो, तुम्हें अपने परिवार की भी सपोर्ट है. तभी तो मन लगा कर काम कर सकती हो. ऐसा सभी के साथ नहीं होता है.’’ मैं ने थोड़े रोंआसे स्वर में कहा. वह मुझे देखती रही जैसे चेहरे के भाव पढ़ रही हो. मैं ने बात बदल कर कहा, ‘‘अच्छा मैं ने आप को यहां इसलिए बुलाया है कि अगला पूरा हफ्ता मैं छुट्टी पर रहूंगी. हो सकता है 1-2 दिन ज्यादा भी लग जाएं. मुझे उम्मीद है आप को कोई ज्यादा परेशानी नहीं होगी. मेरा मोबाइल चालू रहेगा.’’

‘‘कहीं बाहर जा रही हैं आप?’’ उस ने ऐसे पूछा जैसे मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहूंगी तो यहीं… कोर्ट की आखिरी तारीख है. शायद मेरा तलाक मंजूर हो जाए. फिर मैं कुछ दिन सुकून से रहना चाहती हूं.’’

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‘‘तलाक?’’ कह जैसे वह अपनी सीट से उछली हो. ‘‘हां.’’

‘‘इस उम्र में तलाक?’’ वह कहने लगी, ‘‘सौरी मैम मुझे पूछना तो नहीं चाहिए पर…’’

‘‘तलाक की भी कोई उम्र होती है? सदियों से मैं रिश्ता ढोती आई हूं. बेटी यूके में पढ़ने गई तो वहीं की हो कर रह गई. मेरे पति और मेरी कभी बनी ही नहीं और अब तो बात यहां तक आ गई है कि खाना भी बाहर से ही आता है. मैं थक गई यह सब निभातेनिभाते… और जब से बेटी ने वहीं रहने का निर्णय लिया है, हमारे बीच का वह पुल भी टूट गया,’’ कहतेकहते मेरी आंखों में आंसू आ गए.

Crime- बैंकिंग धोखाधड़ी: कैसे बचें!

दरअसल, हमें यह सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि ऐसा हमेशा से होता रहा है मानवीय संवेदना जहां मनुष्य की फितरत है वही धोखा देना भी एक ऐसी फितरत है जो हमेशा से रही है. अब सिर्फ एक सवाल है कि हम इससे कैसे बच सकते हैं क्योंकि इसके अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं है.

हम स्वयं जागरूक होंगे अपना बचाव करेंगे तो अपने कमाए हुए गाड़े धन की रक्षा कर सकते हैं. अगर हम स्वयं आंखें मूंद लेंगे तो धोखाधड़ी का शिकार होने की संभावना बनी रहेगी.

इस आलेख में हम यह प्रयास कर रहे हैं कि आपको कुछ ऐसी टिप्स दें ताकि आप बैंकिंग धोखा घड़ी से बच सके. इसी संदर्भ में आपको यह जानना भी जरूरी है कि हाल मैं बैंकिंग धोखा घड़ी की घटनाएं बढ़ती चली जा रही हैं. जैसे जैसे नियम कायदे कठोर हो रहे हैं प्रचार-प्रसार हो रहा है उसी स्पीड मैं धोखाधड़ी के मामले भी बढ़ते चले जा रहे हैं.

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चालू वित्त वर्ष (2021-22) की पहली छमाही में विभिन्न बैंकिंग कामकाज में धोखाधड़ी के मामले बढ़कर 4,071 हो गए, जबकि एक साल पहले की समान अवधि में यह संख्या 3,499 थी. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की बैंकिंग प्रवृत्ति एवं प्रगति के बारे में  जारी रिपोर्ट में बताया गया कि बैंकिंग कामकाज से संबंधित धोखाधड़ी के मामले आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गए हैं.

सरकार और अमिताभ बच्चन

इस रिपोर्ट में आपको यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि बैंकिंग धोखा घड़ी को ले करके जहां सरकार भारतीय रिजर्व बैंक अलर्ट है और यह प्रयास लगातार जारी है कि लोगों में जागरूकता फैले.

यही कारण है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन को भी बैंकिंग धोखाधड़ी से बचाव के लिए हायर  किया हुआ है.

देश और दुनिया में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले -“कौन बनेगा करोड़पति” कार्यक्रम जिसके होस्ट स्वयं अमिताभ  हैं कार्यक्रम में लगातार  बीच-बीच में  बैंकिंग धोखाधड़ी से बचाव के लिए लोगों को अपने अंदाज में जानकारियां देते जाते हैं.

मगर इस सब के बावजूद बैंक में रखे हुए धन में सोशल मीडिया के माध्यम से सेंध लगाए जाने का अपराध बदस्तूर जारी है. इसका यही बचाव है कि हम जागरूक हो और अपने बैंकों के दस्तावेजों आदि की जानकारी शेयर नहीं करें और गोपनीय रखें.

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आंकड़े है चौकानेवाले

हालांकि अप्रैल-सितंबर, 2021 के दौरान हुई धोखाधड़ी में शामिल रकम 36,342 करोड़ रुपए रही, जो एक साल पहले की समान अवधि में 64,261 करोड़ रुपए थी   चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में बैंकों ने 35,060

करोड़ रुपए मूल्य के अग्रिम भुगतान से संबंधित धोखाधड़ी के 1,802 मामले दर्ज किए गए. चिंता का सबब यह है कि इसके अलावा 1,532 मामले कार्ड भुगतान एवं इंटरनेट भुगतान से संबंधित थे, जिनकी कुल राशि 60 करोड़ रुपए थी.

पहली छमाही में जमाओं से संबंधित धोखाधड़ी के 208 मामले सामने आए, जिसमें 362 करोड़ रुपए की राशि का हेरफेर किया गया. बैंकिग धोखाधड़ी के

मामले में एक खास बात यह है कि इसमें आधे से भी अधिक हिस्सा निजी क्षेत्र के बैंकों का है लेकिन मूल्य के संदर्भ में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का हिस्सा इस धोखाधड़ी में अधिक रह है.

वहीं  वर्ष 2020-21 में 1,38, 42 करोड़ रुपए मूल्य के कुल 7,363 धोखाधड़ी मामले दर्ज किए गए थे.यह संख्या व 2019-20 में 8,703थी, जिनमें 1,85, 46: करोड़ रुपए की धोखाधड़ी हुई थी. इस तरह 2020-21 में बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले एक साल पहले की तुलना में कम हो गए. रिपो कहती है कि वर्ष 2020-21 में सामने आ कई मामले असल में पहले के थे, लेकिन इस समय उन्हें दर्ज किया गया. इस अवधि में निज बैंकों का अंशदान धोखाधड़ी की मात्रा ए मूल्य दोनों में अधिक रहा. यह रिपोर्ट आंकड़े हमें सूचित करते हैं कि अगर हम स्वयं जागरूक नहीं होंगे तो अभी भी बैंकिंग धोखाधड़ी का शिकार हो सकते हैं.

औरत एक पहेली- भाग 1: विनीता के मृदु स्वभाव का क्या राज था

संदीप बाहर धूप में बैठे सफेद कागजों पर आड़ी तिरछी रेखाएं बनाबना कर भांति भांति के मकानों के नक्शे खींच रहे थे. दोनों बेटे पंकज, पवन और बेटी कामना उन के इर्दगिर्द खड़े बेहद दिलचस्पी के साथ अपनी अपनी पसंद बतलाते जा रहे थे.

मुझे हमेशा की भांति अदरक की चाय और कोई लजीज सा नाश्ता बनाने का आदेश मिला था.

बापबेटों की नोकझोंक के स्वर रसोईघर के अंदर तक गूंज रहे थे. सभी चाहते थे कि मकान उन की ही पसंद के अनुरूप बने. पवन को बैडमिंटन खेलने के लिए लंबेचौड़े लान की आवश्यकता थी. व्यावसायिक बुद्धि का पंकज मकान के बाहरी हिस्से में एक दुकान बनवाने के पक्ष में था.

कामना अभी 11 वर्ष की थी, लेकिन मकान के बारे में उस की कल्पनाएं अनेक थीं. वह अपनी धनाढ्य परिवारों की सहेलियों की भांति 2-3 मंजिल की आलीशान कोठी की इच्छुक थी, जिस के सभी कमरों में टेलीफोन और रंगीन टेलीविजन की सुविधाएं हों, कार खड़ी करने के लिए गैराज हो.

संदीप ठठा कर हंस पड़े, ‘‘400 गज जमीन में पांचसितारा होटल की गुंजाइश कहां है हमारे पास. मकान बनवाने के लिए लाखों रुपए कहां हैं?’’

‘‘फिर तो बन गया मकान. पिताजी, पहले आप रुपए पैदा कीजिए,’’ कामना का मुंह फूल उठा था.

‘‘तू क्यों रूठ कर अपना भेजा खराब करती है? मकान में तो हमें ही रहना है. तेरा क्या है, विवाह के बाद पराए घर जा बैठेगी,’’ पंकज और पवन कामना को चिढ़ाने लगे थे.

बच्चों के वार्त्तालाप का लुत्फ उठाते हुए मैं ने मेज पर गरमगरम चाय, पकौड़े, पापड़ सजा दिए और संदीप से बोली, ‘‘इस प्रकार तो तुम्हारा मकान कई वर्षों में भी नहीं बन पाएगा. किसी इंजीनियर की सहायता क्यों नहीं ले लेते. वह तुम सब की पसंद के अनुसार नक्शा बना देगा.’’

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संदीप को मेरा सुझाव पसंद आया. जब से उन्होंने जमीन खरीदी थी, उन के मन में एक सुंदर, आरामदेह मकान बनवाने की इच्छाएं बलवती हो उठी थीं.

संदीप अपने रिश्तेदारों, मित्रों से इस विषय में विचारविमर्श करते रहते थे. कई मकानों को उन्होंने अंदर से ले कर बाहर तक ध्यानपूर्वक देखा भी था. कई बार फुरसत के क्षणों में बैठ कर कागजों पर भांतिभांति के नक्शे बनाएबिगाड़े थे, परंतु मन को कोई रूपरेखा संतुष्ट नहीं कर पा रही थी. कभी आंगन छोटा लगता तो कभी बैठक के लिए जगह कम पड़ने लगती.

परिवार के सभी सदस्यों के लिए पृथकपृथक स्नानघर और कमरे तो आवश्यक थे ही, एक कमरा अतिथियों के लिए भी जरूरी था. क्या मालूम भविष्य में कभी कार खरीदने की हैसियत बन जाए, इसलिए गैराज बनवाना भी आवश्यक था. कुछ ही दिनों बाद संदीप किसी अच्छे इंजीनियर की तलाश में जुट गए.

एकांत क्षणों में मैं भी मकान के बारे में सोचने लगती थी. एक बड़ा, आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण रसोईघर बनवाने की कल्पनाएं मेरे मन में उभरती रहती थीं. अपने मकान में गमलों में सजाने के लिए कई प्रकार के पेड़पौधों के नाम मैं ने लिख कर रख दिए थे.

एक दिन संदीप ने घर आ कर बतलाया कि उन्होंने एक भवन निर्माण कंपनी की मालकिन से अपने मकान के बारे में बात कर ली है. अब नक्शा बनवाने से ले कर मकान बनवाने तक की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.

सब ने राहत की सांस ली. मकान बनवाने के लिए संदीप के पास कुल डेढ़दो लाख की जमापूंजी थी. घर के खर्चों में कटौती करकर के वर्षों में जा कर इतना रुपया जमा हो पाया था.

संदीप एक दिन मुझे भवन निर्माण कंपनी की मालकिन विनीता से मिलवाने ले गए.

मैं कुछ ही क्षणों में विनीता के मृदु स्वभाव, खूबसूरती और आतिथ्य से कुछ ऐसी प्रभावित हुई कि हम दोनों के बीच अदृश्य सा आत्मीयता का सूत्र बंध गया.

हम उन्हें अपने घर आने का औपचारिक निमंत्रण दे कर चले आए. मुझे कतई उम्मीद नहीं थी कि वह हमारे घर आ कर हमारा आतिथ्य स्वीकार करेंगी. लेकिन एक शाम आकस्मिक रूप से उन की चमचमाती विदेशी कार हमारे घर के सामने आ कर रुक गई. मैं संकोच से भर उठी कि कहां बैठाऊं इन्हें, कैसे सत्कार करूं.

विनीता शायद मेरे मन की हीन भावना भांप गई. मुसकरा कर स्वत: ही एक कुरसी पर बैठ गईं, ‘‘रेखाजी, क्या एक गिलास पानी मिलेगा.’’

मैं निद्रा से जागी. लपक कर रसोई- घर से पानी ले आई. फिर चाय की चुसकियों के साथ वार्त्तालाप का लंबा सिलसिला चल निकला. इस बीच बच्चे कालिज से आ गए थे, वे भी हमारी बातचीत में शामिल हो गए. फिर विनीता यह कह कर चली गईं, ‘‘मैं ने आप की पसंद को ध्यान में रख कर मकान के कुछ नक्शे बनवाए हैं. कल मेरे दफ्तर में आ कर देख लीजिएगा.’’

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विनीत के जाने के बाद मेरे मन में अनेक अनसुलझे प्रश्न डोलते रह गए थे कि उस का परिवार कैसा है? पति कहां हैं और क्या करते हैं? इन के संपन्न होने का रहस्य क्या है?

कभीकभी ऐसा लगता है कि मैं विनीता को जानती हूं. उन का चेहरा मुझे परिचित जान पड़ता, लेकिन बहुत याद करने पर भी कोई ऐसी स्मृति जागृत नहीं हो पाती थी.

कभी मैं सोचने लगती कि शायद अधिक आत्मीयता हो जाने की वजह से ऐसा लगता होगा. अगले दिन शाम को मैं और संदीप दोनों उन के दफ्तर में नक्शा देखने गए. एक नक्शा छांट कर संतुष्ट भाव से हम ने वैसा ही मकान बनवाने की अनुमति दे दी.

बातों ही बातों में संदीप कह बैठे, ‘‘रुपए की कमी के कारण शायद हम पूरा मकान एकसाथ नहीं बनवा पाएंगे.’’

विनीता झट आश्वासन देने लगीं, ‘‘आप निश्ंिचत रहिए. मैं ने आप का मकान बनवाने की जिम्मेदारी ली है तो पूरा बनवा कर ही रहूंगी. बाकी रुपए मैं अपनी जिम्मेदारी पर आप को कर्ज दिलवा दूंगी. आप सुविधानुसार धीरेधीरे चुकाते रहिए.’’

संदीप उन के एहसान के बोझ से दब से गए. मुझे विनीता और भी अपनी सी लगने लगीं.

नक्शा पास हो जाने के पश्चात मकान का निर्माण कार्य शुरू हो गया.

अब तक विनीता का हमारे यहां आनाजाना बढ़ गया था. अब वह खाली हाथ न आ कर बच्चों के लिए फल, मिठाइयां और कुछ अन्य वस्तुएं ले कर आने लगी थीं.

सुलझती जिंदगियां- भाग 1: आखिर क्या हुआ था रागिनी के साथ?

विवाह स्थलअपनी चकाचौंध से सभी को आकर्षित कर रहा था. बरात आने में अभी समय था. कुछ बच्चे डीजे की धुनों पर थिरक रहे थे तो कुछ इधर से उधर दौड़ लगा रहे थे. मेजबान परिवार पूरी तरह व्यवस्था देखने में मुस्तैद दिखा.

इसी विवाह समारोह में मौजूद एक महिला कुछ दूर बैठी दूसरी महिला को लगता घूर रही थी. बहुत देर तक लगातार घूरने पर भी जब सामने बैठी युवती ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की तो सीमा उठ कर खुद ही उस के पास चली गई. बोली, ‘‘तुम रागिनी हो न? रागिनी मैं सीमा. पहचाना नहीं तुम ने? मैं कितनी देर से तुम्हें ही देख रही थी, मगर तुम ने नहीं देखा, तो मैं खुद उठ कर तुम्हारे पास चली आई. कितने वर्ष गुजर गए हमें बिछुड़े हुए,’’ और फिर सीमा ने उत्साहित हो कर रागिनी को लगभग झकझोर दिया.

रागिनी मानो नींद से जागी. हैरानी से सीमा को देर तक घूरती रही. फिर खुश हो कर बोली, ‘‘तू कहां चली गई थी सीमा? मैं कितनी अकेली हो गई थी तेरे बिना,’’ कह कर उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. दोनों की आंखें छलक उठीं.

‘‘तू यहां कैसे?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘मेरे पति रमन ओएनजीसी में इंजीनियर हैं और यह उन के बौस की बिटिया की शादी है, तो आना ही था अटैंड करने. पर तू यहां कैसे?’’ रागिनी ने पूछा.

‘‘सुकन्या यानी दुलहन मेरी चचेरी बहन है. अरे, तुझे याद नहीं अकसर गरमी की छुट्टियों में आती तो थी हमारे घर लखनऊ में. कितनी लड़ाका थी… याद है कभी भी अपनी गलती नहीं मानती थी. हमेशा लड़ कर कोने में बैठ जाती थी. कितनी बार डांट खाई थी मैं ने उस की वजह से,’’ सीमा ने हंस कर कहा.

‘‘ओ हां. अब कुछ ध्यान आ रहा है,’’ रागिनी जैसे अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बोली.

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फिर तो बरात आने तक शौपिंग, गहने, मेकअप, प्रेमप्रसंग और भी न जाने कहांकहां के किस्से निकले और कितने गड़े मुरदे उखड़ गए. रागिनी न जाने कितने दिनों बाद खुल कर अपना मन रख पाई किसी के सामने.

सच बचपन की दोस्ती में कोई बनावट, स्वार्थ और ढोंग नहीं होता. हम अपने मित्र के मूल स्वरूप से मित्रता रखते हैं. उस की पारिवारिक हैसियत को ध्यान नहीं रखते.

तभी शोर मच गया. किसी की 4 साल की बेटी, जिस का नाम निधि था, गुम हो गई थी. अफरातफरी सी मच गई. सभी ढूंढ़ने में जुट गए, तुरंत एकदूसरे को व्हाट्सऐप से लड़की की फोटो सैंड करने लगे. जल्दी ही सभी के पास पिक थी. शादी फार्महाउस में थी, जिस के ओरछोर का ठिकाना न था. जितने इंतजाम उतने ही ज्यादा कर्मचारी भी.

आधे घंटे की गहमागहमी के बाद वहां लगे गांव के सैट पर सिलबट्टा ले कर चटनी पीसने वाली महिला कर्मचारी के पास खेलती मिली. रागिनी तो मानो तूफान बन गई. उस ने तेज निगाह से हर तरफ  ढूंढ़ना शुरू कर दिया था. बच्ची को वही ढूंढ़ कर लाई. सब की सांस में सांस आई. निधि की मां को चारों तरफ  से सूचना भेजी जाने लगी, क्योंकि सब को पता चल गया था कि मां तो डीजे में नाचने में व्यस्त थी. बेटी कब खिसक कर भीड़ में खो गई उसे खबर ही न हई. जब निधि की दादी को उसे दूध पिलाने की याद आई, तो उस की मां को ध्यान आया कि निधि कहां है?

बस फिर क्या था. सास को मौका मिल गया. बहू को लताड़ने का और फिर शोर मचा कर सास ने सब को इकट्ठा कर लिया.

भीड़ फिर खानेपीने में व्यस्त हो गई. सीमा ने भी रागिनी से अपनी छूटी बातचीत का सिरा संभालते हुए कहा, ‘‘तेरी नजरें बड़ी तेज हैं… निधि को तुरंत ढूंढ़ लिया तूने.’’

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‘‘न ढूंढ़ पाती तो शायद और पगला जाती… आधी पागल तो हो ही गई हूं,’’ रागिनी उदास स्वर में बोली.

‘‘मुझे तो तू पागल कहीं से भी नहीं लगती. यह हीरे का सैट, ब्रैंडेड साड़ी, यह स्टाइलिश जूड़ा, यह खूबसूरत चेहरा, ऐसी पगली तो पहले नहीं देखी,’’ सीमा खिलखिलाई.

‘‘जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई. तू मेरा दुख नहीं समझ पाएगी,’’ रागिनी मुरझाए स्वर में बोली.

Satyakatha: विदेशियों से साइबर ठगी- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

यश दिल्ली की झिलमिल कालोनी में रहता था. इस साल मार्च में दोबारा हुए लौकडाउन से वह काफी टूट चुका था. नौकरी मिलने की दूरदूर तक उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. बेरोजगारी से बुरी तरह परेशान चल रहा था. वैसे उस के पास शेफ का डिप्लोमा था, लेकिन रेस्टोरेंट का काम बंद होने के चलते उसे कहीं काम नहीं मिल पा रहा था.

क्या करे, क्या नहीं करे, इसी उधेड़बुन में वह खोया हुआ अंधेरा होने पर भी पास के पार्क में चिंतित बैठा था. तभी जेब में रखे फोन की घंटी बजी. यश कुछ सेकेंड के लिए रुका. सोचा, किसी कर्ज देने वाले का फोन होगा.

कुछ देर घंटी बजने के बाद उस ने राहत की सांस ली और जेब से फोन निकाल कर देखा. फोन पर आई काल को ले कर उस की जो आशंका थी, उस से उसे राहत मिली. कारण काल किसी कर्ज देने वाले की नहीं, बल्कि उस के एक करीबी दोस्त रवि की थी. रवि को हाल में ही जयपुर में नौकरी मिली थी. यश ने उसे तुरंत कालबैक किया.

‘‘हैलो रवि! कैसे हो भाई?’’

‘‘मैं तो मजे में हूं, तू बता, कहीं नौकरी मिली या नहीं?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क्या बताऊं अपने बारे में? पहले जैसी ही हालत है. रेस्टोरेंट खुले तब न कहीं काम मिले.’’ यश निराशाभरी आवाज में बोला.

‘‘तू मेरे साथ काम करेगा?’’ रवि ने पूछा.

‘‘यह भी पूछने की बात है?’’ यश ने तपाक से कहा.

‘‘लेकिन नौकरी काल सेंटर की है.’’ रवि ने बताया.

‘‘काल सेंटर की! मैं तो उस बारे में कुछ जानता ही नहीं. तो फिर कैसे?’’ यश ने सवाल किया.

‘‘तू हां तो बोल, मैं जानता हूं कि तू कर लेगा. तुझे फर्राटेदार अंगरेजी बोलनी आती ही है. इसलिए ठीकठाक पैसा मिल जाएगा,’’ रवि ने समझाया.

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‘‘मुझे जयपुर आना होगा?’’ यश ने पूछा.

‘‘मैं तुझे एक एड्रेस वाट्सएप करता हूं. वहां जो भी हो उस से जा कर मिल लेना. मेरा रेफरेंस देना. समझ, तेरा काम हो जाएगा… और हां, अपना रेज्यूमे के साथ एक पासपोर्ट साइज फोटो और एड्रेस प्रूफ के लिए कुछ भी रख लेना,’’ रवि ने बताया.

कुछ सेकेंड बाद ही यश के मोबाइल पर दक्षिणपुरी दिल्ली का एक एड्रेस आया. उस में मोबाइल नंबर भी था. यश ने तुरंत उस नंबर पर फोन किया. जैसा रवि ने कहा था, उसे अच्छा रिस्पांस मिला और अगले रोज मिलने का समय तय हो गया.

सिर्फ 2 दिनों के भीतर ही उसे नौकरी के लिए पुष्कर बुला लिया गया. यश और उस के परिवार को काफी आश्चर्य हुआ कि उसे नौकरी मिल गई.

यश ने राहत की सांस ली कि चलो रेस्टोरेंट न सही कहीं तो नौकरी मिली. उस ने सोचा कि कुछ दिन इस नौकरी के बाद अपने सीखे हुए काम की नौकरी कर लेगा. एक सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद उसे पुष्कर भेज दिया गया.

पुष्कर राजस्थान का धार्मिक तीर्थस्थल होने के साथसाथ पर्यटन स्थल भी है. वहां विदेशी पर्यटकों का आनाजाना लगा रहता है. इस कारण एक से बढ़ कर एक रिसौर्ट और होटल बने हुए हैं.

यश को एक और आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसे पुष्कर के एक रिसौर्ट ‘द नेचर रिट्रीट’ में ठहराया गया था. अनलौक नियमों से मिली कुछ ढील के चलते उस के कुछ कमरे कामकाज के लिहाज से खोले गए थे. वहीं एक दूसरे रिसौर्ट ‘रौक्स और वुड’ में उस का दोस्त रवि ठहरा हुआ था.

यश के कमरे में एक मंहगा लैपटौप, हैडफोन और एक स्मार्टफोन रखा था. रिफ्रैशमेंट के लिए चायकौफी के साथसाथ स्नैक्स और बिस्किट के भी इंतजाम थे. यह सब देख कर यश बहुत खुश हुआ. उस ने नौकरी को ले कर जैसा सोचा था, उसे उस से भी बेहतर लगा था.

ट्रेनिंग के दौरान ही उसे बता दिया गया था कि उस का काम वर्क फ्रौम होम के तहत किया जाना है. डेटा आदि की सुरक्षा के दृष्टिकोण से कंपनी के कर्मचारियों को होटल के कमरे में तमाम तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध करवा दी गई हैं. फिर भी उसे कोई डाउट हो तो कंपनी के एचआर से उस का क्लैरिफिकेशन कर सकता है. यह जुलाई 2021 के दूसरे सप्ताह की बात है.

यश ने कुछ दिनों में ही काल सेंटर के कामकाज को समझ लिया था. काल के लिए उसे जो भी नंबर मिलते, उस के क्लाइंट को पूरी तरह संतुष्ट करने के बाद ही दम लेता था.

फिक्स मंथली सैलरी के अलावा क्लाइंट से बात करने के एवज में कमीशन भी मिलता था, जिस से बीते 2 महीने में उसे अच्छीखासी राशि मिल गई थी. वह उस के उम्मीद से कहीं अधिक थी. इस कारण उसे काल सेंटर का जौब रास आने लगा था.

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उस रोज 7 अक्तूबर की सुबहसुबह अचानक यश के कमरे का किसी ने दरवाजा खटखटाया. गहरी नींद में सो रहा यश हड़बड़ा कर उठा. एक घंटा पहले ही वह रात की शिफ्ट की ड्यूटी पूरी कर सोया था. उस ने अनिद्रा की हालत में दरवाजा खोला.

दरवाजे पर पुलिस को देख कर कुछ पूछता, इस से पहले ही 2-3 पुलिसकर्मी कमरे में घुस आए. उन्होंने झटपट बेड पर रखे लैपटौप और मोबाइल फोन को उठा कर उन्हें समेटना शुरू कर दिया. एक कांस्टेबल यश की बांह पकड़ कर बोला, ‘‘शर्टपैंट पहन लो और मेरे साथ थाने चलो.’’

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10 साल- भाग 1: क्यों नानी से सभी परेशान थे

Writer- लीला रूपायन

जब से होश संभाला था, वृद्धों को झकझक करते ही देखा था. क्या घर क्या बाहर, सब जगह यही सुनने को मिलता था, ‘ये वृद्ध तो सचमुच धरती का बोझ हैं, न जाने इन्हें मौत जल्दी क्यों नहीं आती.’ ‘हम ने इन्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया, अपनी जान की परवा तक नहीं की. आज ये कमाने लायक हुए हैं तो हमें बोझ समझने लगे हैं,’ यह वृद्धों की शिकायत होती. मेरी समझ में कुछ न आता कि दोष किस का है, वृद्धों का या जवानों का. लेकिन डर बड़ा लगता. मैं वृद्धा हो जाऊंगी तो क्या होगा? हमारे रिश्ते में एक दादी थीं. वृद्धा तो नहीं थीं, लेकिन वृद्धा बनने का ढोंग रचती थीं, इसलिए कि पूरा परिवार उन की ओर ध्यान दे. उन्हें खानेपीने का बहुत शौक था. कभी जलेबी मांगतीं, कभी कचौरी, कभी पकौड़े तो कभी हलवा. अगर बहू या बेटा खाने को दे देते तो खा कर बीमार पड़ जातीं. डाक्टर को बुलाने की नौबत आ जाती और यदि घर वाले न देते तो सौसौ गालियां देतीं.

घर वाले बेचारे बड़े परेशान रहते. करें तो मुसीबत, न करें तो मुसीबत. अगर बच्चों को कुछ खाते देख लेतीं तो उन्हें इशारों से अपने पास बुलातीं. बच्चे न आते तो जो भी पास पड़ा होता, उठा कर उन की तरफ फेंक देतीं. बच्चे खीखी कर के हंस देते और दादी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता, जहां से वे चाची के मरे हुए सभी रिश्तेदारों को एकएक कर के पृथ्वी पर घसीट लातीं और गालियां देदे कर उन का तर्पण करतीं. मुझे बड़ा बुरा लगता. हाय रे, दादी का बुढ़ापा. मैं सोचती, ‘दादी ने सारी उम्र तो खाया है, अब क्यों खानेपीने के लिए सब से झगड़ती हैं? क्यों छोटेछोटे बच्चों के मन में अपने प्रति कांटे बो रही हैं? वे क्यों नहीं अपने बच्चों का कहना मानतीं? क्या बुढ़ापा सचमुच इतना बुरा होता है?’ मैं कांप उठती, ‘अगर वृद्धावस्था ऐसा ही होती है तो मैं कभी वृद्धा नहीं होऊंगी.’

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मेरी नानी को नई सनक सवार हुई थी. उन्हें अच्छेअच्छे कपड़े पहनने का शौक चर्राया था. जब वे देखतीं कि बहू लकदक करती घूम रही है, तो सोचतीं कि वे भी क्यों न सफेद और उजले कपड़े पहनें. वे सारा दिन चारपाई पर बैठी रहतीं. आतेजाते को कोई न कोई काम कहती ही रहतीं. जब भी मेरी मामी बाहर जाने को होतीं तो नानी को न जाने क्यों कलेजे में दर्द होने लगता. नतीजा यह होता कि मामी को रुकना पड़ जाता. मामी अगर भूल से कभी यह कह देतीं, ‘आप उठ कर थोड़ा घूमाफिरा भी करो, भाजी ही काट दिया करो या बच्चों को दूधनाश्ता दे दिया करो. इस तरह थोड़ाबहुत चलने और काम करने से आप के हाथपांव अकड़ने नहीं पाएंगे,’ तो घर में कयामत आ जाती.

‘हांहां, मेरी हड्डियों को भी मत छोड़ना. काम हो सकता तो तेरी मुहताज क्यों होती? मुझे क्या शौक है कि तुम से चार बातें सुनूं? तेरी मां थोड़े हूं, जो तुझे मुझ से लगाव होता.’ मामी बेचारी चुप रह जातीं. नौकरानी जब गरम पानी में कपड़े भिगोने लगती तो कराहती हुई नानी के शरीर में न जाने कहां से ताकत आ जाती. वे भाग कर वहां जा पहुंचतीं और सब से पहले अपने कपड़े धुलवातीं. यदि कोई बच्चा उन्हें प्यार करने जाता तो उसे दूर से ही दुत्कार देतीं, ‘चल हट, मुझे नहीं अच्छा लगता यह लाड़. सिर पर ही चढ़ा जा रहा है. जा, अपनी मां से लाड़ कर.’ मामी को यह सुन कर बुरा लगता. मामी और नानी दोनों में चखचख हो जाती. नानी का बेटा समझाने आता तो वे तपाक से कहतीं, ‘बड़ा आया है समझाने वाला. अभी तो मेरा आदमी जिंदा है, अगर कहीं तेरे सहारे होती तो तू बीवी का कहना मान कर मुझे दो कौड़ी का भी न रहने देता.’

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Satyakatha: 100 लाशों के साथ सेक्स करने वाला इलेक्ट्रीशियन

सौजन्य- सत्यकथा

इंग्लैड के ईस्ट ससेक्स राज्य में ब्रिटिश पुलिस को 34 सालों से 2 युवतियों के हत्यारे की तलाश थी. इस के लिए पुलिस ने जबरदस्त जाल बिछा रखा था. फिर भी हत्यारे पकड़ से बाहर थे. इस कारण पुलिस ने जासूसों की टीम भी लगाई.

मामला 25 वर्षीया वेंडी नेल और 20 साल की कैरोलिन पियर्स की हत्याओं का था. उन के साथ दुष्कर्म भी हुआ था. दोनों टुगब्रिज वेल्स में रहती थीं और अलगअलग वारदातों में 1987 में दोनों की हत्या कर दी गई थी. उस हत्याकांड को ‘बेडसिट मर्डर्स’ के रूप में जाना गया था.

नेल गिल्डफोर्ड रोड स्थित अपने अपार्टमेंट में 23 जून, 1987 को मृत पाई गई थी. पुलिस को इस की सूचना उस के मंगेतर ने दी थी. उस के शरीर पर कई जख्म थे. जबकि पियर्स की लाश उसी साल 5 महीने बाद 24 नवंबर को उन के घर से 40 मील दूर बांध के पानी में तैरती हुई बरामद हुई थी.

उन की मौत के सिलसिले में हुई जांच में हत्या और दुष्कर्म के जो सुराग मिले थे, उस के अनुसार मृतकों के शरीर, अंगवस्त्र, तौलिए, बैडशीट आदि से मिले एक जैसे डीएनए को सबूत का आधार बनाया गया था.

उस डीएनए वाले व्यक्ति का पता लगाने के लिए 15 दिसंबर, 1987 को अदालती आदेश के बाद ब्रिटिश पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी थी.

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फोरैंसिक वैज्ञानिकों द्वारा 1999 में डीएनए जांच के आधुनिक तरीके अपनाए गए थे और इस के लिए एक नैशनल लेवल पर डेटाबेस तैयार किया गया था.

दोनों लड़कियों के सैकड़ों करीबियों से पूछताछ के साथसाथ उन के डीएनए की भी जांच की गई थी. रिश्तेदारों, दोस्तों और फिर उन के करीबियों से जांच के सिलसिले में डेविड फुलर के घर वालों के डीएनए की भी जांच हुई, जिसे हत्या के आरोप में पहले भी गिरफ्तार किया जा चुका था.

इस तरह पुलिस को अंतत: 2019 में सफलता मिल गई, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से उस की गिरफ्तारी 3 दिसंबर, 2020 को हो पाई.

67 वर्षीय डेविड फुलर को ईस्ट ससेक्स के हीथफील्ड स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उस का डीएनएन मृतकों से प्राप्त नमूने से मेल खाता था. इसी के साथ जब उस के घर की गहन तलाशी ली गई, तब यौन अपराध का जो राज खुला, वह जितना चौंकाने वाला था, उतना ही घिनौना भी था.

फुलर के अनगिनत कुकर्मों का खुलासा उस के घर और घर के कार्यालय की तलाशी के बाद हुआ. पुलिस को कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, सीडी, डीवीडी और फ्लौपी डिस्क में 14 मिलियन से अधिक अश्लील तसवीरें भरी मिलीं. उन में बच्चों की लाश के साथ अश्लील वीडियो भी थे. सभी अलगअलग फोल्डर में रखे गए थे और उन पर नाम का लेबल भी लगाया गया था. साथ ही एक डायरी में यौन अपराधों का काला चिट्ठा दर्ज था.

उसी आधार पर पुलिस ने पाया कि फुलर अपनी वासना की आग बुझाने के लिए 2 मुर्दाघरों में महिलाओं की लाशों के साथ दुष्कर्म किया करता था. यह कुकर्म वह करीब 100 लाशों के साथ कर चुका था, जिन में 9 साल की बच्ची से ले कर 100 साल की वृद्धा तक की लाशें शामिल थीं. यह सब उस ने तब किया था, जब वह हीथफील्ड अस्पताल में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी करता था.

ये सारी बातें फुलर ने मेडस्टोन क्राउन अदालत में दोनों लड़कियों की हत्या को ले कर हुई सुनवाई के दौरान स्वीकार की. उस ने यह भी बताया कि दोनों की बेरहमी से हत्या करने के बाद उस की लाश के साथ दुष्कर्म किया था. तभी नेल के तौलिए, अंडरगारमेंट, और लार में फुलर का डीएनए पाया गया था.

फुलर के जुर्म से इंग्लैंड की अदालत भी दंग थी. कोर्ट ने माना कि ब्रिटेन या कहें कि दुनिया के इतिहास में इतना खौफनाक और दर्दनाक वाकया शायद कभी नहीं गुजरा, लिहाजा कोर्ट ने इस मामले को बेहद संजीदगी से लेते हुए उसे अपराधी ठहरा दिया.

न्यायाधीश चीमा ग्रव ने फुलर को उन की हत्याओं के अलावा 51 अलगअलग मामलों के अपराधों का भी दोषी करार दिया, जिस में 44 मामले लाशों से छेड़छाड़ के थे. साथ ही मुर्दाघरों में 78 लाशों की भी पहचान कर ली गई. उसे 2 लड़कियों नेल और पियर्स की हत्या के लिए भी दोषी ठहराया गया.

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कैरोलीन पियर्स का फुलर ने 24 नवंबर, 1987 को उस के घर के बाहर ग्रोसवेन पार्क से अपहरण कर लिया था. वहीं उस की हत्या कर लाश के साथ दुष्कर्म किया था.

पड़ोसियों ने उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी थी. एक हफ्ते बाद उस की लाश उन के घर से 40 मील दूर मिली थी, जिस की सूचना पुलिस को एक खेतिहर मजदूर ने दी थी.

पुलिस ने अदालत में बताया कि फुलर दोनों लड़कियों को पहले से जानता था. वह उसी फोटो डेवलपमेंट चेन का ग्राहक था, जहां नेल काम करती थी. इस के अलावा फुलर की पियर्स से जानपहचान बस्टर ब्राउन रेस्टोरेंट में हुई थी, जहां वह मैनेजर थी.

इन वारदातों के 24 साल बाद फुलर की सितंबर 2011 में गिरफ्तारी हुई थी. तब वह सबूत नहीं मिलने के कारण छूट गया था.

उस ने अदालत में बताया कि वह 1989 से 12 साल तक हीथफील्ड अस्पताल के 2 मुर्दाघरों में बिजली संबंधी समस्याओं की देखभाल के लिए अकसर आताजाता था.

वह वहां के रखरखाव का सुपरवाइजर था. मुर्दाघर के फ्रीजर के देखभाल की जिम्मेदारी उसी पर थी. इस के लिए उसे वहां प्रवेश के लिए निजी एक्सेस स्वाइप कार्ड मिला हुआ था. मुर्दाघर में कुल 5 कर्मचारी काम करते थे, जिन की ड्यूटी सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक की होती थी. फुलर की ड्यूटी दिन के 11 बजे से शाम के 7 बजे तक की थी. इस कारण दूसरे कर्मचारियों के चले जाने के बाद भी वह मुर्दाघर में रुका रहता था. अपनी शिफ्ट के अखिरी 3 घंटों में ही उस ने यह घिनौने काम किए थे.

वैसे अस्पताल के कुली किसी भी समय नए शवों के साथ मुर्दाघर में आ सकते थे. यह फुलर के लिए पोस्टमार्टम कक्ष में प्रवेश करने का अच्छा मौका होता था. फुलर पोस्टमार्टम कक्ष में चला जाता था. ऐसा करते हुए किसी का ध्यान उस पर नहीं जाता था.

मुर्दाघर के अन्य हिस्सों की तुलना में शवों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए पोस्टमार्टम कक्ष में कोई सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए गए थे. हालांकि  मुर्दाघर की ओर जाने वाले गलियारों सहित अन्य क्षेत्रों पर निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इस नतीजे तक पहुंचने में इंग्लैंड पुलिस को 2.5 मिलियन यूरो यानी 21.42 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े थे. फुलर के अपराध मुर्दाघर की लाशों के साथ यौनाचार तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि इसे यादगार बनाए रखने के लिए  उस ने एक डायरी भी बना रखी थी.

वह लाशों के साथ यौन संबंध बनाने के बाद बाकायदा उस घटना को अपने अनुभवों के साथ डायरी में नोट करता था. यही नहीं, उस ने सैक्स की फ्यूचर प्लानिंग तक कर रखी थी.

Satyakatha: पति बदलने वाली मनप्रीत कौर को मिली ऐसी सजा- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

18सितंबर, 2021 को सुबहसुबह ही काशीपुर हरिद्वार नैशनल हाईवे पर एक औरत की लाश दिखते ही क्षेत्र में सनसनी फैल गई. लाश की बुरी हालत हो चुकी थी. रात में न जाने कितने वाहन उस के ऊपर से गुजर चुके थे. करीब 40 फीट तक सड़क पर महिला के घिसटने व टायरों के निशान मौजूद थे.

घटनास्थल को देखते ही लग रहा था कि महिला सड़क किनारे चल रही होगी. उसी वक्त किसी तेज गति से आ रहे वाहन ने महिला को टक्कर मार दी होगी. उस के बाद वह महिला वाहन की चपेट में आ कर काफी दूर तक घिसटती चली गई थी. बाद में काफी खून का रिसाव हो जाने के कारण महिला की मौके पर ही मौत हो गई थी.

जैसेजैसे यह खबर क्षेत्र में फैलती गई, घटनास्थल पर लोगों का हुजूम उमड़ता गया. आनेजाने वाले वाहन चालक भी उस महिला के शव को देखने के लिए अपनी गाडि़यां रोकरोक कर चला रहे थे. लोगों में जानने की उत्सुकता थी कि पता नहीं यह औरत कौन है और उस के साथ क्या हुआ.

तभी वहां पर मौजूद लोगों में से किसी ने थाना अफजलगढ़ में फोन कर इस घटना की जानकारी दी. हाईवे पर एक महिला की लाश पड़ी होने की सूचना पाते ही अफजलगढ़ थानाप्रभारी एम.के. सिंह व सीओ सुनीता दहिया पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे.

मौके पर जा कर पुलिस ने देखा कि महिला का चेहरा बुरी तरह से कुचला हुआ था. मामला पेचीदा होने के कारण पुलिस ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया था. पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए घटनास्थल से सारे साक्ष्य जुटाए.

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महिला के पहनावे को देख कर लग रहा था कि वह किसी अच्छे परिवार से रही होगी. उस ने नीले रंग की जींस और उस पर लाल टौप पहन रखा था. महिला के शव के दोनों ओर दूर तक खून से सने टायरों की रगड़ के निशान भी मिले थे.

पुलिस ने अपनी तहकीकात करते हुए उस महिला की शिनाख्त कराने की कोशिश की. किंतु वहां पर मौजूद लोगों ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया था. मृत महिला के पास न तो किसी तरह की कोई आईडी ही पाई गई थी, न ही कोई मोबाइल फोन और न कोई पर्स ही पाया गया था. महिला के बाएं हाथ पर अंगरेजी में प्रवदीप नाम गुदा हुआ था.

जब किसी भी तरह से उस महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई तो पुलिस ने आसपास के जिलों के थानों में इस की सूचना प्रेषित करा दी थी.

साथ ही सोशल मीडिया पर भी महिला का शव मिलने से संबधित पोस्ट वायरल की गई. लेकिन कहीं से भी उस महिला के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

इस पर पुलिस ने अपनी काररवाई को आगे बढ़ाते हुए उस की लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए सील कराने की काररवाई भी शुरू कर दी थी. तभी सोशल मीडिया पर महिला के कपड़े व हाथ पर प्रवदीप लिखे होने की जानकारी मिलते ही उस के मायके वाले मौके पर पहुंचे.

महिला के मायके वालों के पहुंचते ही उस की पहचान 30 वर्षीय मनप्रीत कौर पत्नी सुखवीर सिंह, निवासी भीकमपुर बन्नाखेड़ा, बाजपुर जिला ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड के रूप में हुई.

महिला के मायके वालों ने उस के बारे में बताया कि मृतका करीब 6 साल से अपने पति सुखवीर से अलग काशीपुर में रह रही थी. कल शाम वह अपने घर से निकली थी. लेकिन उस के बाद वह वापस नहीं लौटी.

मनप्रीत कौर की लाश मिलने की सूचना पाते ही उस का पति सुखवीर सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गया था. पुलिस पूछताछ में सुखवीर सिंह ने बताया कि मनप्रीत काफी समय पहले से ही उस से अलग काशीपुर में रह रही थी.

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वहीं पर रहते हुए उस की दोस्ती मानियावाला गांव निवासी नफीस से हो गई थी. दोस्ती होने के बाद से ही वह उसी के साथ रह रही थी. सुखवीर ने पुलिस को बताया कि उस की हत्या भी जरूर नफीस ने ही की होगी.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने नफीस को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर पर दबिश दी, लेकिन वह अपने घर से फरार मिला.

इस से पुलिस यह तो समझ ही चुकी थी कि मनप्रीत कौर के मर्डर में उस का ही हाथ रहा होगा. इसी कारण वह पुलिस के डर की वजह से घर से फरार हो गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए अपना जाल फैलाया.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगाते हुए उस की काल डिटेल्स भी निकलवा ली थी. जिस के कारण फरार नफीस की सच्चाई सामने आने लगी थी.

काल डिटेल्स से पता चला कि उस रात उस ने मनप्रीत से कई बार बात की थी. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने फरार नफीस को गिरफ्तार करने के लिए जगहजगह अपने मुखबिर भी तैनात कर दिए थे.

एक मुखबिर की सूचना पर 19 सितंबर, 2021 की शाम को ही आरोपी नफीस को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ करने के दौरान नफीस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि उस का मृतका के साथ कई साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह स्वयं पहले ही शादीशुदा है. उस के बावजूद मृतका उस पर शादी के लिए दबाव बना रही थी. जिस से तंग आ कर उसे मजबूरन उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

हत्या के इस केस पर पड़ा परदा उठते ही पुलिस ने आरोपी नफीस की निशानदेही पर मर्डर में प्रयुक्त हुए लोहे की रौड और मृतका को कुचलने में प्रयोग किए गए ट्रक को भी अपने कब्जे में ले लिया था. साथ ही पुलिस ने आरोपी के पास से मृतका का मोबाइल फोन व उस का आधार कार्ड भी बरामद कर लिया.

मृतका देखनेभालने में बहुत ही सुंदर थी. आरोपी पिछले 4 साल से उस महिला के साथ ही रह रहा था. आरोपी मृतका मनप्रीत को अपनी बीवी से ज्यादा प्यार करता था. फिर ऐसा क्या हुआ कि उसे अपनी पे्रमिका को इतनी दर्दनाक मौत देने पर मजबूर होना पड़ा.

यह कहानी उन शादीशुदा औरतों के लिए एक सबक है, जो शादीशुदा होने के बावजूद भी पराए मर्दों के प्रेम में फंस जाती हैं. उस के साथ ही वह अपनी बसीबसाई जिंदगी को तबाह कर लेती हैं.

मृतका मनप्रीत कौर शादीशुदा और एक बच्ची की मां थी. गांव हरियावाला, उत्तराखंड निवासी केसर सिंह ने अब से लगभग 8 साल पहले अपनी बेटी मनप्रीत कौर की शादी उत्तराखंड के जिला ऊधमसिंह नगर के गांव भीकमपुर निवासी सुखबीर सिंह के साथ की थी.

हालांकि हरनाम सिंह काफी समय से गांव भीकमपुर में रहते थे. लेकिन उन की अपनी जुतासे की बिलकुल भी जमीन नहीं थी.

परिवार बड़ा था. वह स्वयं एक ट्रक ड्राइवर थे, जिस के सहारे ही उन्होंने अपने 9 सदस्यों के परिवार को जैसेतैसे चला रखा था. ट्रक ड्राइवर रहते हुए ही उन्होंने अपनी 5 बेटियों और 2 बेटों की शादी भी कर दी थी.

अगले भाग में पढ़ें- पत्नी की बात सुनते ही सुखवीर परेशान हो उठा

साथी- भाग 2: क्या रजत और छवि अलग हुए?

रजत का मन करता उस के दोस्तों की बीवियों की तरह छवि भी तरहतरह की ड्रैसेज पहने, जो शालीन पर फैशनेबल हों. कम से कम चूड़ीदार सूट, अनारकली सूट ये तो वह पहन ही सकती है. यही सोच कर वह एक दिन उसे किसी तरह पटा कर बाजार ले गया. लेकिन छवि कोई भी ड्रैस, यहां तक कि सूट खरीदने को भी तैयार नहीं हुई.

‘‘अरे ये सब… मांपापा क्या कहेंगे… मैं नहीं पहन सकती ये सब.’’

‘‘मेरे सभी दोस्तों की पत्नियां पहनती हैं छवि… यह अनारकली सूट ले लो… तुम पर खूब फबेगा… अभी तुम्हारी उम्र  ही क्या है… आजकल तो 60 साल की औरतें भी ये सब पहनती हैं.’’

‘‘जो पहनती हैं उन्हें पहनने दो. मैं नहीं पहन सकती. उन के सासससुर उन के साथ नहीं रहते होंगे… मांपापा क्या कहेंगे.’’

‘‘छवि मैं जानता हूं अपने मम्मीपापा को… वे पुराने विचारों के नहीं हैं… मैं ने हर तरह का माहौल देखा है… वे आर्मी अफसर की पत्नी हैं… वे तुम्हें ये सब पहने देख कर खुश ही होंगे.’’

मगर छवि ने रजत का प्रस्ताव सिरे से नकार दिया. जब छवि अनारकली सूट जैसी शालीन ड्रैस पहनने को तैयार नहीं हुई तो जींसटौप क्या पहनेगी. पापा सही कहते थे, घर का रहनसहन, स्कूलिंग, शिक्षादीक्षा इन सब का असर इंसान की पर्सनैलिटी और विचारों पर पड़ता है. पत्नी को तरहतरह से सजानेसवारने का रजत का शौक धीरेधीरे दम तोड़ गया.

रजत नौकरी में ऊंचे पदों पर पहुंचता गया. बच्चे बड़े होते गए. मातापिता वृद्ध होते गए और फिर एक दिन इस दुनिया से चले गए. छवि की जैसेजैसे उम्र बढ़नी शुरू हुई तो खुद से बेपरवाह उस का शरीर भी फैलना शुरू हो गया. चेहरे की रौनक जो उम्र की देन थी बिना देखभाल के बेजान होने लगी. लंबे लहराते बाल उम्र के साथ पतली पूंछ जैसे रह गए. वह उन्हें लपेट कर कस कर जूड़ा बना लेती, जो उस के मोटे चेहरे को और भी अनाकर्षक बना देता.

रजत कहता, ‘‘छवि मैं तुम में 20-22 साल की लड़की नहीं ढूंढ़ता, पर चाहता हूं कि तुम अपनी उम्र के अनुसार तो खुद को संवार कर रखा करो… 42 की उम्र ज्यादा नहीं होती है.’’

मगर छवि पर कोई असर नहीं पड़ता. धीरेधीरे रजत ने बोलना ही छोड़ दिया. वह खुद 46 की उम्र में अभी भी 36 से अधिक नहीं लगता था. अपने मोटापे, पहनावे और रहनसहन की वजह से छवि उम्र में उस से बड़ी लगने लगी थी. अब रजत का उसे साथ ले जाने का भी मन नहीं करता. ऐसा नहीं था कि वह दूसरी औरतों की तरफ आकर्षित होता था पर तुलना स्वाभाविक रूप से हो जाती थी.

‘‘आप अभी तक यहां बैठे हैं… लाइट भी नहीं जलाई,’’ छवि लाइट जलाते हुए बोली, ‘‘चलो खाना खा लो.’’

खाना खा कर रजत सो गया. आज पुरानी बातें याद कर के उस के मन की खिन्नता और बढ़ गई थी. छवि के प्रति जो अजीब सा नफरत का भाव उस के मन में भर गया था वह और भी बढ़ गया.

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दूसरे दिन रजत औफिस पहुंचा. उस के एक कुलीग का तबादला हुआ था. उस की जगह कोई महिला आज जौइन करने वाली थी. रजत अपने कैबिन में पहुंचा तो चपरासी ने आ कर उसे सलाम किया. फिर बोला, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’

रजत बौस के कमरे की तरफ चल दिया. इजाजत मांग कर अंदर गया तो उस के बौस बोले, रजत ये रीतिका जोशी हैं. सहदेव की जगह इन्होंने जौइन किया है. इन्हें इन का काम समझा दो.’’

रजत ने पलट कर देखा तो खुशी से बोला, ‘‘अरे, रीतिका तुम?’’

‘‘रजत तुम यहां…’’ रीतिका सीट से उठ खड़ी हुई.

‘‘आप दोनों एकदूसरे को जानते हैं?’’

‘‘जी, हम दोनों ने साथ ही इंजीनियरिंग की थी.’’

‘‘फिर तो और भी अच्छा है… रीतिका रजत आप की मदद कर देंगे…’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर दोनों बौस के कमरे से बाहर आ गए.

रीतिका को उस का काम समझा कर लंचब्रेक में मिलने की बात कह कर रजत अपने लैपटौप में उलझ गया. लंचब्रेक में रीतिका उस के कैबिन में आ गई, ‘‘लंचब्रेक हो गया… अभी भी लैपटौप पर नजरें गड़ाए बैठे हो.’’

‘‘ओह रीतिका,’’ वह गरदन उठा कर बोला. फिर घड़ी देखी, ‘‘पता ही नहीं चला… चलो कैंटीन चलते हैं.’’

‘‘क्यों, तुम्हारी पत्नी ने जो लंच दिया है उसे नहीं खिलाओगे?’’

‘‘वही खाना है तो उसे खा लो,’’ कह रजत टिफिन खोलने लगा. खाने की खुशबू चारों तरफ बिखर गई.

दोनों खातेखाते पुरानी बातों, पुरानी यादों में खो गए. रजत देख रहा था रीतिका में उम्र के साथसाथ और भी आत्मविश्वास आ गया था. साधारण सुंदर होते हुए भी उस ने अपने व्यक्तित्व को ऐसा निखारा था कि अपनी उम्र से 10 साल कम की दिखाई दे रही थी.

रजत छेड़ते हुए बोला, ‘‘क्या बात है, तुम्हारे पति तुम्हारा बहुत खयाल रखते हैं… उम्र को 7 तालों में बंद कर रखा है.’’

‘‘हां,’’ वह हंसते हुए बोली, ‘‘जब उम्र थी तब तुम ने देखा नहीं… अब ध्यान दे रहे हो.’’

‘‘ओह रीतिका तुम भी कहां की बात ले बैठी… ये सब संयोग की बातें हैं,’’ उस का कटाक्ष समझ कर रजत बोला.

‘‘अच्छा छोड़ो इन बातों को. मुझे घर कब बुला रहे हो? तुम्हारी पत्नी से मिलने का बहुत मन है. मैं भी तो देखूं वह कैसी है, जिस के लिए तुम ने कालेज में कई लड़कियों के दिल तोड़े थे.’’

रजत चुप हो गया. थोड़ी देर अपनेअपने कारणों से दोनों चुप रहे. फिर रीतिका ही चुप्पी तोड़ती हुई बोली, ‘‘लगता है घर नहीं बुलाना चाहते.’’

‘‘नहींनहीं ऐसी बात नहीं. जिस दिन भी फुरसत हो फोन कर देना. उस दिन का डिनर घर पर साथ करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

फिर अगले काफी दिनों तक रीतिका बहुत बिजी रही. नयानया काम संभाला था. जब फुरसत मिली तो एक रविवार को फोन कर दिया, ‘‘आज शाम को आ रही हूं तुम्हारे घर, कहीं जा तो नहीं रहे हो न?’’

‘‘नहींनहीं, तुम आ जाओ… डिनर साथ करेंगे.’’

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शाम को रीतिका पहुंच गई. उस दिन तो वह और दिनों से भी ज्यादा स्मार्ट व सुंदर लग रही थी. रजत को उसे छवि से मिलाते हुए भी शर्म आ रही थी. फिर खुद को ही धिक्कारने लगा कि क्या सोच रहा है वह.

तभी छवि ड्राइंगरूम में आ गई.

‘‘छवि, यह है रीतिका… मेरे साथ इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ती थी.’’

छवि का परिचय कराते हुए रजत ने रीतिका के चेहरे के भाव साफ पढ़ लिए. वह जैसे कह रही हो कि यही है वह, जिस के लिए तुम ने मुझे ठुकरा दिया था, वह थोड़ी देर तक हैरानी से छवि को देखती रही.

‘‘बैठिए न खड़ी क्यों हैं,’’ छवि की आवाज सुन कर वह चौकन्नी हुई. छवि और रीतिका की पर्सनैलिटी में जमीनआसमान का फर्क था. दोनों की बातचीत में कुछ भी कौमन नहीं था, इसलिए ज्यादा बातें रजत व रीतिका के बीच ही होती रहीं पर साफ दिल छवि ने इसे अन्यथा नहीं लिया.

खाना खा कर रीतिका जाने लगी तो रजत कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘छवि, मैं रीतिका को घर छोड़ आता हूं.’’

अपनेअपने झंझावातों में उलझे रजत व रीतिका कार में चुप थे. तभी रजत अचानक बोल पड़ा, रीतिका छवि पहले बहुत खूबसूरत थी.

‘‘हूं.’’

‘‘पर उसे न सजनेसंवरने, न पहननेओढ़ने और न ही पढ़नेलिखने का शौक है… किसी भी बात का शौक नहीं रहा उसे कभी.’’

‘हूं,’ रीतिका ने जवाब दिया.

Satyakatha: प्रेमी ने खोदी मोहब्बत की कब्र- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर शहर का उपनगरीय इलाका रांझी पूरे देश में व्हीकल फैक्ट्री के लिए जाना जाता है, जहां पर भारतीय सेना के उपयोग में आने वाले व्हीकल का निर्माण किया जाता है. रांझी के झंडा चौक के पास ही नंदकिशोर वंशकार का परिवार रहता है. नंदकिशोर की रांझी के बाजार में एक छोटी सी दुकान है, जिस में वह टूव्हीलर वाहनों के सीट कवर बनाने का काम करता है.

नंदकिशोर के परिवार में उस की पत्नी सुधा, 2 बेटे और 2 बेटियां खुशबू और आरजू थीं. 23 साल की बड़ी बेटी खुशबू मौडर्न खयालों की थी, जिसे सजनेसंवरने के साथ घूमनेफिरने का भी शौक था.

मई 2021 की 31 तारीख की बात थी. दोपहर के करीब डेढ़ बजे का समय था. खुशबू अपनी मां सुधा से बोली, ‘‘मम्मी लौकडाउन की वजह से कई दिनों से मैं घर से बाहर नहीं निकल पाई, इसलिए आज ब्यूटीपार्लर जा रही हूं.’’

सुधा बेटी की फितरत जानती थी इसी वजह से उस ने यह कहते हुए खुशबू को ब्यूटीपार्लर जाने की अनुमति दे द

ी कि जा तो रही है, लेकिन जल्दी घर आ जाना.

इस के बाद खुशबू इठलाती हुई ब्यूटीपार्लर जाने की बोल कर घर से निकल गई और सुधा खाना बनाने में व्यस्त हो गई.

रात के 8 बजे तक जब खुशबू घर नहीं लौटी तो सुधा परेशान हो गई. सुधा ने जब खुशबू के मोबाइल पर काल किया तो उस का फोन स्विच्ड औफ बता रहा था. उस ने अपनी छोटी बेटी आरजू को आसपास के घरों में खुशबू को खोजने के लिए भेज दिया.

इसी दौरान सुधा ने अपने पति नंदकिशोर को फोन कर कहा, ‘‘आप जल्दी घर आ जाइए, खुशबू दोपहर को ब्यूटीपार्लर गई थी, लेकिन अभी तक घर नहीं लौटी है.’’

यह सुन कर नंदकिशोर भी घबरा गया. वह पत्नी को तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘चिंता मत करो, मैं जल्द ही घर पहुंच रहा हूं.’’

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इधर आरजू आसपास के घरों में चक्कर लगा कर वापस आ गई थी, लेकिन खुशबू कहीं नहीं थी. करीब 9 बजे जैसे ही नंदकिशोर अपनी दुकान से घर पहुंचा तो सुधा बहुत घबराई हुई हालत में थी. वह बारबार नंदकिशोर से कह रही थी, ‘‘आप जल्दी से खुशबू का पता कीजिए. आजकल समय बहुत खराब है.’’

नंदकिशोर भी रोज ही लड़कियों के अपहरण और उन के साथ होने वाली जोरजबरदस्ती की घटनाएं सुनता रहता था, इसलिए वह भी किसी अज्ञात आशंका के चलते भयभीत हो गया. उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे.

नंदकिशोर ने अपने पड़ोसी को साथ ले कर रांझी इलाके के 4-5 ब्यूटीपार्लरों में जा कर खुशबू के बारे में पूछताछ की, लेकिन पता चला कि खुशबू किसी पार्लर में नहीं पहुंची थी. सुधा सब रिश्तेदारों को फोन लगा कर बेटी के बारे में पूछ चुकी थी. खुशबू के छोटे भाईबहन भी अपने घर के आसपास अपनी बहन की तलाश कर चुके थे, लेकिन कहीं से भी उस की कोई खबर नहीं मिल रही थी.

तब तक रात के 12 से ज्यादा का वक्त हो चुका था. थकहार कर नंदकिशोर अपने घर आ गया. घर में तो जैसे मातम छाया हुआ था. चिंता और भय के माहौल में जैसेतैसे पूरे परिवार ने रात काटी और सुबह होते ही नंदकिशोर अपनी पत्नी सुधा के साथ रांझी पुलिस स्टेशन पहुंच गया.

थाने में टीआई आर.के. मालवीय को पूरी जानकारी बताते हुए नंदकिशोर ने बेटी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराई. सुधा रोरो कर टीआई मालवीय से बेटी को खोजने की गुहार लगा रही थी. टीआई आर.के. मालवीय ने खुशबू की फोटो, मोबाइल नंबर ले कर सूचना दर्ज करते हुए उन्हें भरोसा दिया, ‘‘आप चिंता न करें, पुलिस जल्द से जल्द आप की बेटी को खोज निकालेगी.’’

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