खूबियों से भरी शतावरी

लेखक- प्रदीप कुमार सैनी

इन मुलायम शाखाओं द्वारा सूप व सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यहां तक कि इन शाखाओं को सब्जी उत्पादक ज्यादातर डब्बाबंदी के लिए इस्तेमाल में लाते हैं. इन मुलायम शाखाओं को 3-4 साल में पूरी तरह फसल के रूप में हासिल किया जाने लगता है. ये शाखाएं

एक तने का रूप लिए होती हैं. इन को उबाल कर भी खाने में इस्तेमाल किया जाता है. यह फसल 10-15 साल तक सही बनी रहती है. इस सब्जी को मैदानी व पहाड़ी इलाकों में उगाया जा सकता है.

यह फसल ज्यादा सर्दी या बर्फीला मौसम पसंद नहीं करती है?क्योंकि सर्दी में शाखाएं सूख जाती हैं. वसंत मौसम इस फसल के लिए ज्यादा मुफीद रहता?है और इसी मौसम में जमीन या मेंड़ों से नई शाखाएं निकल कर नए पौधे तैयार हो जाते हैं और मुलायम तने या शाखाएं निकल आती हैं. मौसम बदलाव के समय नईनई शाखाएं निकलती हैं. इन की सही बढ़ावार होने पर ही काटें, वरना कड़ी होने के बाद ये खाने लायक नहीं रहती हैं. इन्हीं शाखाओं पर पत्तियां निकलती हैं जो देखने में हरे रंग की होती?हैं. इस सब्जी की ज्यादातर मांग बड़े होटलों और बड़ेबड़े शहरों में मौडर्न सब्जी बाजार व सब्जी दुकानों में होती?है.

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जमीन व जलवायु : सब से अच्छी जमीन दोमट या हलकी बलुई दोमट रहती है. लेकिन जमीन में उपजाऊपन होना जरूरी है. इस का पीएच मान 7.0-7.5 के आसपास हो. जलवायु वसंत ऋतु वाली, जिस में तापमान 30-35 डिगरी सैंटीग्रेड हो और हलकी नमी का होना भी जरूरी है क्योंकि इसी मौसम में तने या शाखाएं ज्यादा बनती हैं. बारिश का मौसम भी बढ़वार के लिए सही रहता है.

खेत की तैयारी : खेत की सब से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए, जिस से घासफूस व दूसरी फसल के अवशेष मिट्टी में दब कर गलसड़ जाएं. इस तरह से 4-5 गहरी जुताइयों की जरूरत होती है. तैयार खेत की पहचान मिट्टी का भुरभुरा होना माना जाता है. खेत में सूखी घास वगैरह भी नहीं रहनी चाहिए.

उन्नत किस्में

एस्पेरेगस की किस्में स्थानीय रूप से जो भी मिले, उगाया जा सकता?है. एक उन्नत किस्म है परफैक्शन. इस किस्म में ज्यादा शाखाएं निकलती?हैं. किसान इस की लोकल किस्म भी उगा सकते हैं.

प्रवर्धन विधि : एस्पेरेगस का प्रवर्धन बीज वानस्पतिक विधि द्वारा किया जाता है. बीज परिपक्व शाखाओं से तैयार किया जाता है, जिन्हें अप्रैलमई माह में बो कर जूनजुलाई माह में क्यारियों में लगा दिया जाता?है.

वानस्पतिक विधि द्वारा बड़े व पुराने पौधों से फरवरीमार्च महीनों में जड़ विभाजित कर के नए पौधे तैयार किए जाते?हैं, जो आगे चल कर बढ़ोतरी करते हैं.

बीज की बोआई : बीज की बोआई आमतौर पर जूनजुलाई माह में करते हैं और खेत में इन्हें फरवरीमार्च माह में लगाते हैं. बीज 20-25 दिन के बाद ही उगते?हैं. पौधों को सालभर बाद ही लगाना चाहिए.

पौधे रोपने की दूरी : पौधों को रोपते समय पौधे से पौधे की दूरी 45 सैंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 120-150 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. पौधों को रोपने से पहले?क्यारियों में मोटी मेंड़ या नाली, जिन की गहराई 40 सैंटीमीटर और चौड़ाई 45 से 60 सैंटीमीटर रख कर मेंड़ के ऊपर पौधों की सही दूरी रखनी चाहिए और पानी नालियों में दें. इस के पौधे पेड़ों पर अधिक बढ़वार करते हैं. इन पेड़ों पर पौधों को 15 सैंटीमीटर गहरा दबाना चाहिए. पानी की सही मात्रा दें, जिस से पौधों को नमी पहुंचती रहे.

खाद और उर्वरक की मात्रा: गोबर की खाद 12-15 टन प्रति हेक्टेयर और नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की मात्रा क्रमश: 80:60:50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय या पौधे लगाने के 15 दिन पहले देनी चाहिए. नाइट्रोजन की बाकी बची आधी मात्रा को 2 बार में दें. पौधे रोपने से 20-25 दिन बाद और जनवरीफरवरी माह में खड़ी फसल में टौप ड्रेसिंग के दौरान देनी चाहिए.

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सिंचाई का इंतजाम : पौधे रोपने के तुरंत बाद सिंचाई करें. लेकिन गरमियों में पानी की विशेष व्यवस्था रहे यानी प्रति हफ्ता सिंचाई करनी चाहिए. इस तरह से सर्दियों में 15-20 दिन के अंतराल पर, गरमियों में 8-10 दिन के अंतराल पर और बारिश में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.

मिट्टी चढ़ाएं : यह एक बहुवर्षीय फसल है. साल में एक बार मिट्टी जरूर चढ़ानी चाहिए. वैसे, मिट्टी चढ़ाने का सही समय फरवरीमार्च माह का है, क्योंकि मार्च के बाद मौसम बदल जाता है और पौधे ज्यादा बढ़वार करते हैं. इस से तने या शाखाएं ज्यादा मात्रा में निकल सकें.

बीमारियां व कीट नियंत्रण : बीमारी लगने पर फफूंदीनाशक दवा का स्प्रे करें और कीट लगने पर रोगोर, इंडोसल्फान और मोनोक्रोटोफास वगैरह कीटनाशक का 1 फीसदी घोल का स्प्रे करें.

शाखाओं की कटाई: जब पौघों में से जमीन की सतह से नई कोमल शाखाएं निकलने लगें जिन का ऊपरी हिस्सा हरा और नीचे से सफेद होता?है. इन की लंबाई 20-30 सैंटीमीटर हो, तब ही जमीन की सतह से चाकू की मदद से काटें.

ध्यान रहे कि ये नई शाखाएं मुलायम ही काटी जाएं वरना कठोर होने पर स्वाद बदल जाता है और बाजार में इस की कीमत भी घट जाती है. कठोर व रेशे हो जाने पर स्वाद में बदलाव आ जाता है.

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उपज : औसतन प्रति पौधा 15-20 शाखाएं हासिल होती हैं और प्रति हेक्टेयर 80-100 क्विंटल तक उपज मिल जाती है.

बगीचे के चारों ओर करौंदा लगा कर बढ़ाई आमदनी

लेखक- रामचरण धाकड़

इस का सफल प्रयोग राजस्थान के झुंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील के तकरीबन आधा दर्जन गांवों में देखा जा सकता है. चिड़ावा तहसील में ज्यादातर बगीचे किन्नू, मौसमी, लिसोड़ा वगैरह के?हैं. इन बगीचों में आएदिन जंगली पशुओं द्वारा नुकसान होने का डर बना रहता है. इस समस्या से नजात दिलाने के लिए रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान ने बगीचे के चारों ओर की मेंड़ों पर करौंदे के पौधे लगाने की सलाह दी.

इस पर अमल करते हुए तमाम किसानों ने बारिश में एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर करौंदे के पौधे लगाए. तकरीबन 3 साल बाद ये पौधे बढ़ कर बड़ी झाडि़यों का रूप ले लेते हैं.

चूंकि करौंदे के पौधों में कांटे होते?हैं जिस से कोई जंगली जानवर बगीचे में घुस नहीं सकता है. इस से बगीचों की हिफाजत बढ़ गई है.

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बगीचे के चारों ओर करौंदे के पौधे लगाने से एक पौधे से हर साल तकरीबन 40 किलोग्राम फल आसानी से मिल जाते?हैं जो बाजार में 40 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक जाते हैं यानी तकरीबन 30 पौधों से तकरीबन 8,000 से 10,000 रुपए तक की अतिरिक्त आमदनी मिल जाती?है.

बगीचे के चारों ओर की मेंड़ों पर लगाए गए करौंदे के पौधों में अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं होती. बगीचे की सिंचाई करते समय करौंदे के पौधे जरूरत के मुताबिक पानी ले लेते हैं.

करौंदा के फल कांटेदार होने के अलावा खाने में खट्टेमीठे होते?हैं. इस से इन का अचार, मुरब्बा, जैम, चटनी वगैरह बनाने के लिए काम में लिया जाता है.

करौंदा शुष्क जलवायु का पौधा है और इस में कीट और रोग भी कम लगते?हैं. इस के अलावा करौंदे के पौधों पर फल भी साल में 2 बार लगते?हैं, किंतु बारिश के बाद आने वाले फलों का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.

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कांटेदार होने की वजह से करौंदे को तोड़ना भी इतना आसान नहीं है. हाथों में दस्ताने पहन कर इसे तोड़ें. कम लागत में करौंदे से अच्छी आमदनी हासिल की जा सकती है.

सोशल मीडिया का अंधेरा यानी अंधविश्वास

कहते हैं न हर सिक्के के दो पहलू होते हैं,जब सिनेमा आया तो सुसंस्कृत संभ्रांत जन सिनेमा मे काम करने वालों को ओछी निगाह से देखा करते थे. यही नहीं सिनेमा में काम करने वाले के अलावा देखने वालों को भी हेय की दृष्टि से देखा जाता था. धीरे-धीरे स्थिति बदली वैसे ही आज सोशल मीडिया है जिसके दो पक्ष हैं एक पक्ष उजला, दूसरा स्याय.उजले पक्ष के समर्थक सोशल मीडिया की अच्छाई बताते नहीं थकते वहीं दूसरी तरफ जो लोग सोशल मीडिया को अच्छा नहीं मानते वे इसकी बुराई करते नहीं अघाते.

मगर सत्य यह है, की किसी भी चीज के दो पहलू होते हैं- अच्छा और बुरा. यही स्थिति सोशल मीडिया के साथ भी है. दरकार होती है सिर्फ नीर क्षीर विवेक की, समझदारी की. सोशल मीडिया पर जो खबरें चलती है वह पूरी तरह सौ फीसदी सच नहीं होती बहुतेरे वीडियो, खबरें, भ्रामक होती है. अब सारा दारोमदार हमारे ऊपर है की हम सोच समझकर उसे ग्रहण करें समझे की क्या गलत है क्या सही है. इस लेख में हम सोशल मीडिया के द्वारा प्रसारित “अंधविश्वास” को बेनकाब करने की कोशिश कर रहे है-

डूबने पर “नमक” का उपचार !

पिछले दिनों व्हाट्सएप पर एक वीडियो चल रहा था, जिसमें डंके की चोट पर बताया जा रहा था की अगर कोई आपका परिजन डूब जाता है और डॉक्टर उसे मृत भी घोषित कर देते हैं तो आप निश्चित रहिए!! क्योंकि आपका परिजन नमक के उपचार से उठ खड़ा होगा उसे जीवन पुन: प्राप्त हो जाएगा.
एकबारगी, पढ़ा लिखा विवेकशील कहलाने वाला व्यक्ति भी यह वीडियो देखता तो यही मानता कि यह सही है. क्योंकि इस वीडियो को प्रसारित करने वाले ने बड़ी चतुराई से दो और दो को पांच किया है. जिसे समझने के लिए चिकित्सीय, वैज्ञानिक बौद्धिकता की दरकार होती है.

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इस वीडियो में बताया गया कि कैसे डूब कर मृत व्यक्ति को 24 घंटे नमक (खड़ा नमक) से दबाकर रखा जाए इससे उसका हृदय पुन: स्पदंन करने लगेगा. यह देख आम बुद्धि का आदमी इसे जनहित में जारी वीडियो समझेगा मगर यह पूरी तरह अवैज्ञानिक है. हाल ही में मध्यप्रदेश के इंदौर महानगर के निकट एक गांव में 2 भाई एक साथ डूब गए और डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. और इसके बाद डॉक्टर, ग्रामीण देखते रहे उनके परिजनों ने नमक मंगाया और दोनों शव को नमक से ढक कर उनके जीवित होने का इंतजार करने लगे. यह खबर भी धीरे-धीरे सोशल मीडिया में प्रसारित होने लगी अंततः चिकित्सक व प्रशासन की समझाइश पर इस अंधविश्वास का अंत हुआ.

इक्कीसवीं शताब्दी और हम !

अक्सर लोग कहते हैं हम 21वीं शताब्दी कंप्यूटर युग में जी रहे हैं और अपनी बौद्धिकता, तार्किकता, वैज्ञानिक समझ का हवाला देकर स्वयं को श्रेष्ठतम घोषित करते हैं. मगर सच्चाई यह है की आज भी हमारे देश में अपढ, गरीब तो छोड़िए पढ़े लिखे समझदार कहलाने वाले तबके में भी अंधविश्वास की छाया दिखाई देती है .साक्षरता के लिए सरकार निरंतर प्रयास कर रही है मगर शुद्र सोच और स्वार्थ परक बुद्धि के कारण बहुसंख्यक आज भी अंधविश्वास से जकड़ा हुआ है. और इस अंधविश्वास रूढिग्रस्त सोच को खत्म करने के लिए शिक्षा की ज्योति फैलानी जरूरी है.अन्यथा “नमक”जैसे अनेक अंधविश्वास हमारा माखौल उड़ाते रहेंगे.

संविधान में भी उल्लेख है !

हमारे संविधान निर्माता नि:संदेह हमारी नब्ज अपने हाथों में रखते थे. इसी कारण संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) में मानवीयता, वैज्ञानिक चेतना और तार्किक सोच को बढ़ावा देने के लिए सरकार और समाज की जिम्मेदारी तय की गई है. मगर जो अंधविश्वास, रूढ़ीवादी सोच सैकड़ों हजारों सालों से समाज के मन मस्तिष्क में अपना घर बना चुकी है वह सरकार व समाज के लिए चुनौती बनी हुई है.

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आज जब सोशल मीडिया एक ताकतवर हथियार बन चुका है तब समाज के बौद्धिक वर्ग से अपेक्षा की जा सकती है की सोशल मीडिया में फैलते कचरे पर निगाह पड़ते ही उसका पोस्टमार्टम कर दिया जाए. देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाएं, चैनल वायरल न्यूज़ के एपिसोड बनाकर झूठ, ढोंग, अंधविश्वास को बेनकाब करने का काम कर रहे हैं मगर इस काम को बढ़ाना और निरंतरता अपरिहार्य है.

किसान ने वैज्ञानिक खेती से मिसाल कायम की

लेखक-  बृहस्पति कुमार पांडेय

जबकि इन उद्योगों और उद्योगपतियों को जिन किसानों से अपना उद्योग चलाने के लिए ज्यादातर कच्चा माल मिलता है, उन के खेती उत्पादों को यही उद्योगपति और इन के बिचौलिए औनेपौने दाम में खरीद कर मोटा पैसा बनाते हैं.

देश के अन्नदाता तमाम मुसीबतों को झेल कर अनाज, फलफूल, सब्जियां, दूध उत्पाद वगैरह पैदा करते हैं और जब कीमत तय करने की बारी आती है तो इस के लिए उन्हें सरकार और बिचौलियों के भरोसे रहना पड़ता है. इसी वजह से अकसर किसानों को खेती में घाटा सहना पड़ता है.

उद्योगों के लिए सरकारी नीतियों में ढील से ले कर मनमाने तरीके से कीमत तय करने तक की छूट दी गई है, वहीं इन उद्योगपतियों के रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले किसानों और खेती उत्पादों को ले कर सरकारों का नजरिया सालों से ढीलाढाला ही रहा?है. इस का नतीजा है कि उद्योगपति दिन दूना रात चौगुना माल कमाते हैं, वहीं दूसरी ओर किसान माली तंगी का शिकार हो कर खुदकुशी जैसे सख्त कदम उठाते हैं.

सरकार द्वारा हर साल पेश होने वाले सरकारी बजट में भी किसानों को ले कर बस झुनझुना ही अब तक थमाया जाता रहा है. कभी मुफ्तखोरी, तो कभी जीरो बजट खेती का सपना दिखा कर किसानों की तरक्की के बड़ेबड़े दावे सरकारों द्वारा किए जाते रहे हैं, लेकिन किसानों की माली हालत सुधरने के बजाय दिनोंदिन बदतर होती जा रही है. नतीजतन, किसान और उस के परिवारों के लोग धीरेधीरे खेती से दूर होने लगे हैं और अपनी जरूरतभर की चीजें उगाने में लगे हैं.

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अगर किसानों को ले कर सरकारों का नजरिया ऐसा ही रहा तो एक दिन भारत की एक बड़ी आबादी को खाने के लाले पड़ जाएंगे. उस दौरान सरकार और उद्योगों के पास पछताने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा.

इन उलट हालात में भी जिन किसानों ने खुद को खेती से जोड़ कर वैज्ञानिक तरीका अपनाते हुए खेती की पहल की है, उन्हें खेती के जरीए न केवल बेहतर रोजगार मिला?है, बल्कि कीमत तय करने को ले कर सरकार और बिचौलियों से छुटकारा भी मिला है.

ऐसे किसानों ने लीक से हट कर खेती की शुरुआत की तो इन किसानों ने न केवल इज्जत और शोहरत बटोरी, बल्कि खेती भी दूसरे उद्योगों की तरह बेहतर रोजगार का जरीया बन गई.

ऐसे ही एक किसान?हैं कौशल कुमार सिंह, जो बस्ती जिले के हर्रैया तहसील के ब्लौक विक्रमजोत के रहने वाले हैं. उन्होंने खुद को उलट हालात से उबारते हुए वैज्ञानिक तरीके से नकदी फसलों की खेती कर के न केवल अपनी आमदनी में इजाफा किया है, बल्कि शानोशौकत और शोहरत भी हासिल की.

केले की खेती से शुरुआत :  कौशल कुमार सिंह ने कुछ साल पहले 3 एकड़ खेत में केले की जी 9 प्रजाति की रोपाई करने का फैसला लिया. उन्होंने प्रति एकड़ की दर से 1300 पौधे रोपे. इस पर कुल 90,000 से

1 लाख रुपए तक की लागत आई.

उन्होंने इस फसल में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई मात्रा में खाद और उर्वरक का इस्तेमाल किया. नतीजा यह रहा कि आसपास के दूसरे किसानों की अपेक्षा उन के केले की एक घार का न्यूनतम औसत वजन

30 किलोग्राम से ज्यादा आया. इस तरह से उन्होंने महज 1 एकड़ खेत से तकरीबन

400 क्विंटल उपज हासिल की. इस से उन्हें

4 लाख रुपए की खालिस कमाई हुई. तब से वे लगातार केले की खेती करते आ रहे हैं.

अच्छी बात यह रही कि केले की मार्केटिंग को ले कर उन्हें जोखिम नहीं उठाना पड़ा क्योंकि केले के आढ़तियों ने घर से ही बाजार मूल्य से ज्यादा पैसा दे कर उन की फसल खरीद ली. वर्तमान में उन के यहां से एक थोक कारोबारी तकरीबन 70 क्विंटल केले की खरीदारी आराम से कर लेता है.

उन्होंने बताया कि केले की फसल में ज्यादातर फंगस का प्रकोप होता है. इस बीमारी से बचाव के लिए कार्बंडाजिम और कौपर औक्सीक्लोराइड का इस्तेमाल करते?हैं जिस से वे फसल को होने वाले नुकसान से बचा पाते हैं.

अनार ने दिलाई कामयाबी : जहां कौशल कुमार सिंह के आसपास के गांव के किसान पारंपरिक तौर पर गेहूं, धान व तिलहन की खेती करते हैं, वहीं उन्होंने अनार की उन्नत प्रजाति रोपने का फैसला किया और उन्होंने सवा बीघा खेत में अनार के पौधे रोप दिए. पौधों की रोपाई के दौरान उन्होंने पौधे से पौधे की दूरी

9 फुट और लाइन से लाइन की दूरी 9 फुट रखी.

कौशल कुमार सिंह द्वारा लगाए गए अनार के पौधे से हर साल अच्छी तादाद में फूल मिल जाते?हैं. उन्होंने बताया कि अनार की फसल के साथ सहफसल के रूप में वे सूरन की गजेंद्र प्रजाति की खेती कर रहे हैं जिस से उन्हें अच्छीखासी आमदनी होती है. साथ ही, एक फसल के खराब होने की दशा में उन्हें नुकसान न के बराबर होने की संभावना होती है.

स्ट्राबेरी उपजाने वाले पहले किसान : कौशल कुमार सिंह बस्ती जिले के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्होंने बिना पौलीहाउस या ग्रीनहाउस लगाए भरपूर मात्रा में स्ट्राबेरी की फसल उगाने में काबयाबी पाई है.

उन्होंने स्ट्राबेरी के पौधों को हरियाणा से मंगा कर अपने खेतों में रोपा. वे स्ट्राबेरी के खेत में किसी तरह के रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं करते?हैं. साथ ही, स्ट्राबेरी से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए वे मेंड़ों पर मल्चिंग कर उस पर स्ट्राबेरी की रोपाई करते?हैं. इस से खेत में अनावश्यक रूप से खरपतवार की रोकथाम अपनेआप हो जाती है और पौधों की बढ़वार व फलों का विकास भी तेजी से होता?है.

कौशल कुमार सिंह के खेतों में तैयार स्ट्राबेरी के फल बाजार में बिकने वाले स्ट्राबेरी के फलों की अपेक्षा डेढ़ से दोगुना बड़े आकार के होते हैं और स्वाद भी उन से ज्यादा अच्छा होता?है.

रिंगपिट विधि से गन्ने की बोआई : गन्ने की खेती में किसानों को ऊंची लागत और बढ़ती मेहनत के बावजूद भी उत्पादन कम मिलता है. ऐसे किसानों को उम्मीद से कम मुनाफा मिल पाता?है.

इस समस्या से निबटने के लिए किसान कौशल कुमार सिंह ने पारंपरिक तरीके से गन्ने की खेती को छोड़ रिंगपिट विधि से खेती करने का फैसला लिया. इस से उन की खेती की लागत में न केवल कमी आई है, बल्कि उत्पादन में भी अच्छाखासा इजाफा हुआ है.

उन्होंने बताया कि रिंगपिट विधि से गन्ना बोने के लिए खेत की जुताई करने की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि इस तरह के गन्ने की बोआई के लिए रिंगपिट डिगर मशीन से खेत में गड्ढे तैयार करते?हैं. इस में एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे की दूरी 120 सैंटीमीटर होती है और हरेक गड्ढा 90 सैंटीमीटर व्यास का होता?है.

इस तरह 1 एकड़ में गड्ढे तैयार करने पर तकरीबन 2500-2700 गड्ढे तैयार हो जाते?हैं. इन गड्ढों की गहराई तकरीबन 30 सैंटीमीटर से 45 सैंटीमीटर के आसपास रखी जाती है.

उन्होंने यह भी बताया कि वे गन्ने की बोआई के पहले गड्ढों में 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 60 ग्राम एनपीके, 40 ग्राम यूरिया और 5 ग्राम फोरेट या फुराडान डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं. इस तरह प्रति एकड़ तकरीबन 100 क्विंटल गोबर की खाद की जरूरत पड़ती?है.

उर्वरक के रूप में 150 किलोग्राम एनपीके, 104 किलोग्राम यूरिया और

12 किलोग्राम फुराडौन का इस्तेमाल करते?हैं.

इस के बाद वे गन्ने के 2 से 3 आंख वाले काटे गए टुकड़ों को 0.2 फीसदी बाविस्टीन के घोल में 20 मिनट तक डुबो कर उपचारित करते?हैं और बोआई के लिए खोदे गए गन्ने के टुकड़े साइकिल के पहिए की तीलियों की तरह गोलाई में बो देते हैं.

इस तरह उन को प्रति एकड़ खेत के लिए तकरीबन 55 से 60 क्विंटल गन्ना बीज की जरूरत पड़ती है. गड्ढों में गन्ने की बोआई के बाद ऊपर से मिट्टी की परत डाल कर ढक देते?हैं. इस तरह से बोए गए गन्ने का जमाव भी अच्छा होता?है.

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रिंगपिट विधि से गन्ने की बोआई से सिंचाई, उर्वरक देना, पत्तियों की?छंटाई और कटाई आसान हो जाती?है और उपज भी अच्छी मिलती है.

उन्होंने बताया कि सामान्य विधि से गन्ने की बोआई करने पर महज 300-400 क्विंटल उपज मिलती थी. लेकिन रिंगपिंट विधि से गन्ना बोने से उपज दोगुनी मिलने लगी है.

अगर समय से रिंगपिट विधि से बोआई की जाए और संस्तुत मात्रा में खादउर्वरक का इस्तेमाल किया जाए तो यह उत्पादन 1,000 क्विंटल प्रति एकड़ तक मिल सकता है.

खेती में जरूरी संसाधनों का इस्तेमाल?: कौशल कुमार सिंह खेती में काम आने वाले सभी तरह के आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल करते हैं. वे खेती के लिए छोटेबड़े सभी यंत्र खरीद रहे?हैं. वर्तमान में उन के पास ट्रैक्टर, ट्रौली और उस में उपयोग आने वाले यंत्र जैसे रोटावेटर, रिंगपिट डिगर, कल्टीवेटर जैसे तमाम यंत्र हैं.

जंगली पशुओं से फसल बचाने के पुख्ता इंतजाम?: कौशल कुमार सिंह ने अपनी बोई गई फसल को जंगली पशुओं से बचाने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हुए हैं.

उन्होंने केला, अनार, सूरन, स्ट्राबेरी वगैरह फसलों की सुरक्षा के लिए कंटीले तारों से पूरे खेत की फेसिंग कराई है. उन के?द्वारा की

गई व्यावसायिक फसल की सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के चलते फसल को कोई नुकसान नहीं

पहुंचता है.

कौशल कुमार सिंह वर्तमान में अनार, केला, स्ट्राबेरी, गन्ना, सूरन के साथ ही साथ आलू, टमाटर, मटर, गेहूं, धान की फसलें वगैरह भी लेते हैं. इन फसलों से उन्हें भरपूर उपज मिलती है. डिजिटल और उन्नत तकनीक के चलते उन्हें किसी तरह की मार्केटिंग की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

कौशल कुमार सिंह को बस्ती जिले में आम आदमी से ले कर नेता, जनप्रतिनिधि व सरकारी महकमों के अधिकारीकर्मचारी भी इज्जत व सम्मान देते हैं.

कौशल कुमार सिंह का कहना है कि किसानों को पारंपरिक तरीकों के साथसाथ आधुनिक तरीकों को अपनाते हुए खेती करनी होगी. उन्नत तकनीक के जरीए ही किसान फसल उत्पादन बढ़ाने के साथ जोखिम और मार्केटिंग की समस्या से छुटकारा पा सकता है.

वे कहते हैं कि किसानों को खेती के आधुनिक तरीके अपनाने होंगे तभी खेती से परिवार के लोगों की सामान्य जरूरतें पूरी की जा सकें.

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उन के मुताबिक, किसान उन्नत तकनीक के जरीए न केवल खुद को दीनहीन स्थिति से उबार सकता?है, बल्कि इज्जत और सम्मान भी पा सकता है.                                   ठ्ठ

जिप्सम का इस्तेमाल क्यों, कब और कैसे करें

प्रदीप कुमार सैनी, डा. आरके यादव, डा. शंभू प्रसाद, डा. आदेश कुमार

वे कैल्शियम व सल्फर का इस्तेमाल नहीं करते हैं जिस से खेत की मिट्टी में कैल्शियम व सल्फर की कमी की समस्या धीरेधीरे बढ़ती जा रहीहै. इन की कमी सघन खेती वाली जमीन, हलकी जमीन और अपक्षरणीय जमीन में अधिक होती है.

कैल्शियम व सल्फर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन के मुख्य अवयवों में से?हैं जिन की पूर्ति के अनेक स्रोत?हैं, इन में जिप्सम एक खास उर्वरक?है. रासायनिक रूप से जिप्सम कैल्शियम सल्फेट है, जिस में 23.3 फीसदी कैल्शियम व 18.5 फीसदी सल्फर होता है.

जब जिप्सम पानी में घुलता है तो कैल्शियम व सल्फेट आयन प्रदान करता है. तुलनात्मक रूप से कुछ ज्यादा घनात्मक होने के चलते कैल्शियम के आयन मिट्टी में मौजूद विनियम सोडियम के आयनों को हटा कर उन की जगह ले लेते?हैं. आयनों का मटियार कणों पर यह बदलाव मिट्टी की रासायनिक व भौतिक अवस्था में सुधार कर देता है और मिट्टी फल के उत्पादन के लिए सही हो जाती?है. साथ ही, जिप्सम जमीन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का अनुपात बनाने में सहायता करता है.

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जिप्सम क्यों डालें?

* जिप्सम एक अच्छा भूसुधारक है. यह क्षारीय जमीन को सुधारने का काम करता है.

* तिलहनी फसलों में जिप्सम डालने से सल्फर की पूर्ति होती है.

* जिप्सम मिट्टी में कठोर परत बनने से रोकता?है और मिट्टी में पानी के प्रवेश को रोकता?है.

* फसलों में जड़ों की सामान्य बढ़ोतरी और विकास में सहायक है.

* कैल्शियम और सल्फर की जरूरत की पूर्ति के लिए.

* कैल्शियम की कमी के चलते ऊपर बढ़ती हुई पत्तियों के अग्रभाग का सफेद होना, लिपटना और संकुचित होना होता है. अत्यधिक कमी की स्थिति में पौधों की बढ़वार रुक जाती है और वर्धन शिखा भी सूख जाती है जो कि जिप्सम डालने से पूरी की जा सकती है.

* अम्लीय मिट्टी में एल्यूमिनियम के हानिकारक प्रभाव को जिप्सम कम करता है.

* जिप्सम देने से मिट्टी में पोषक

तत्त्वों आमतौर पर नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम और सल्फर की उपलब्धता में बढ़ोतरी हो जाती है.

* जिप्सम कैल्शियम का एक मुख्य स्रोत है जो कार्बनिक पदार्थों को मिट्टी के?क्ले कणों से बांधता?है जिस से मिट्टी कणों में स्थिरता प्रदान होती है और मिट्टी में हवा का आनाजाना आसान बना रहता है.

* जिप्सम का इस्तेमाल फसलों में अधिक उपज व उन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है.

* जिप्सम का इस्तेमाल फसल संरक्षण में भी किया जा सकता?है क्योंकि इस में सल्फर सही मात्रा में होता है.

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जिप्सम को कब और कैसे?डालें?

जिप्सम को मिट्टी में फसलों की बोआई से पहले डालते हैं. जिप्सम डालने से पहले खेत को पूरी तरह तैयार करें. (2-3 गहरी जुताई और पाटा लगा कर). इस के बाद एक हलकी जुताई कर के जिप्सम को मिट्टी में मिला दें.

आमतौर पर धान्य फसलें 10-20 किलोग्राम कैल्शियम प्रति हेक्टेयर और दलहनी फसलें 15 किलोग्राम कैल्शियम प्रति हेक्टेयर जमीन से लेती?हैं और सामान्य फसल पद्धति 10-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कैल्शियम जमीन से लेती?हैं.

जिप्सम को क्षारीय जमीन में मिलाने के लिए जरूरी मात्रा, क्षारीय जमीन की विकृति की सीमा, वांछित सुधार की सीमा और भूसुधार के बाद उगाई जाने वाली फसलों

पर निर्भर करती?है.

कितना सुधारक डालना है, इस की मात्रा का निर्धारण करने के लिए सब से पहले कितना जिप्सम डालने की जरूरत होगी, तय किया जाता है. इस को जिप्सम की जरूरत कहा जाता है.

जिप्सम की सही मात्रा जानने के लिए जिप्सम की विभिन्न मात्राओं को ले कर प्रयोग किए गए. इन प्रयोगों से यह प्रमाणित होता?है कि धान की फसल के लिए जिप्सम की कुल मात्रा का एकचौथाई भाग काफी है, जबकि गेहूं की फसल के लिए कुल मात्रा से आधा काफी है और मैदानी इलाकों में पाई जाने वाली क्षारीय मिट्टी के लिए तकरीबन 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिप्सम का इस्तेमाल किया जाता है.

क्षारीय जमीन सुधार के कामों को शुरू करने का सब से सही समय गरमी के महीनों में होता?है. जिप्सम फैलाने के तुरंत बाद कल्टीवेटर या देशी हल से जमीन की ऊपरी 8-12 सैंटीमीटर की सतह में मिला कर और खेती को समतल कर के मेंड़बंदी करना जरूरी है ताकि खेत में पानी सब जगह बराबर लग सके.

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जिप्सम को मिट्टी में ज्यादा गहराई तक नहीं मिलाना चाहिए. धान की फसल में जिप्सम की जरूरी मात्रा को फसल लगाने से 10-15 दिन पहले डालना चाहिए. पहले 4-5 सैंटीमीटर हलका पानी लगाना चाहिए. जब पानी थोड़ा सूख जाए, तो दोबारा 12-15 सैंटीमीटर पानी भर कर रिसाव क्रिया पूरी करनी चाहिए.

क्षारीय जमीन में जिप्सम को बारबार मिलाने की जरूरत नहीं होती है. यह पाया गया है कि यदि धान की फसल को क्षारीय जमीन में लगातार उगाते रहें तो जमीन के क्षारीयपन में कमी आती है. खेतों को भी लंबे समय तक के लिए खाली नहीं छोड़ना चाहिए.

हर किसान की पहुंच में हो ट्रैक्टर

लेखक-भानु प्रकाश राणा

अगर आप के पास ट्रैक्टर है तो वह आप के लिए यह एक अच्छी आमदनी का जरीया भी बनता है क्योंकि ज्यादातर किसानों के पास ट्रैक्टर या अन्य कृषि यंत्र नहीं होते हैं, जबकि आज जुताई का काम हो, गहाई का काम हो या खेत बोआई का काम हो, ज्यादातर खेती के काम कृषि यंत्रों पर ही आधारित हैं, इसलिए ऐसे किसान, जिन के पास ये साधन नहीं?हैं, वे खेती का काम ऐसे लोगों से ही कराते हैं जिन के पास यंत्रों की सुविधा हो.

अगर आप भी चाहते हैं कि किसी दूसरे किसान की तरह आप के पास भी ऐसी सुविधाएं हों, ट्रैक्टर हो, कृषि यंत्र हों, जिन से खेती का काम आसान हो सके, कमाई का जरीया बन सके तो आज देश में अनेक?ट्रैक्टर कंपनियां मौजूद हैं जिन के बनाए?ट्रैक्टरों की अलगअलग खूबियां?हैं, इसलिए अगर आप ट्रैक्टर खरीदना चाहते?हैं तो ट्रैक्टर खरीदने से पहले अपनी जरूरतें देखें और उसी के मुताबिक आगे कदम बढ़ाएं.

ट्रैक्टर खरीदने के लिए आप को लोन भी पास कराना होगा. इस के लिए यहां हम आप को?ट्रैक्टर खरीदने के बारे में कुछ जानकारी दे रहे?हैं जो आप के लिए फायदेमंद रहेगी.

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एसबीआई से ले सकते हैं ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ : अगर आप खेतीबारी से जुड़ा कोई काम करते?हैं और ट्रैक्टर खरीदना चाहते?हैं तो आप एसबीआई यानी भारतीय स्टेट?बैंक से लोन ले सकते?हैं. अन्य बैंक भी इस तरह के लोन उपलब्ध कराते हैं, लेकिन एसबीआई की?ट्रैक्टर खरीदने के लिए यह खास स्कीम है.

‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’, जिसे एसएसटीएल भी कह सकते?हैं के तहत आप

को अपने परिवार की किसी महिला को कर्ज

के लिए सहआवेदक बनाना होगा. इस स्कीम में आप ट्रैक्टर के अलावा दूसरे कृषि यंत्रों के लिए भी लोन ले सकते हैं.

ट्रैक्टर खरीदने के लिए किसान की सालाना आमदनी कम से कम डेढ़ लाख रुपए होनी चाहिए और किसान के पास कम से कम 2 एकड़ जमीन भी होनी चाहिए, जिस से बैंक आप पर भरोसा कर सके कि आप?ट्रैक्टर का लोन समय पर चुका सकते हैं.

इस के अलावा कोई भी व्यक्ति, स्वयंसहायता समूह या संस्था भी एसएसटीएल स्कीम के तहत लोन ले सकते हैं. बैंक द्वारा लोन देने का मकसद यही है कि किसान कृषि यंत्रों के माध्यम से खेती कर के नियमित आमदनी कर सकें और समय पर बैंक को लोन वापस

कर सकें.

महिला आवेदक क्यों जरूरी?: बैंक का ऐसा मानना है कि पुरुषों के मुकाबले महिला लोन चुकाने के मामले में ज्यादा जिम्मेदार होती हैं. इसी के चलते बैंक ने महिलाओं को प्राथमिकता दी है और ऐसे लोन पर ब्याज भी कम लगाया है.

कितना मिल सकता है लोन : मोटेतौर पर माना जाए कि अगर ट्रैक्टर की कीमत 5 लाख रुपए तक है तो आप को

4.25 लाख रुपए तक का लोन मंजूर हो सकता है. मतलब, ट्रैक्टर की कुल रकम का 80 से

85 फीसदी तक लोन मिल सकता?है. बाकी

15-20 फीसदी रकम आप को अपने पास से देनी होगी. ट्रैक्टर खरीदने के बाद उस का बीमा भी कराना जरूरी होगा.

जरूरी दस्तावेज

* आप का और सहआवेदक महिला का पासपोर्ट साइज फोटो.

* दोनों के पहचानपत्र. पता का प्रूफ दस्तावेज (वोटरकार्ड, आधारकार्ड, पैनकार्ड वगैरह हो सकते?हैं.)

* खेती के कागजात.

* बैंक पासबुक की स्टेटमैंट.

* आप की आमदनी की जानकारी.

* सहआवेदक महिला से आप का?क्या संबंध?है, उस की भी जानकारी देनी होगी.

ये सब जरूरी कागजात आप को पूरे करने होंगे.

अगर बैंक आप से ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ के लिए जमीन के कागज गिरवी रखने को कहता है या आप अपनी जमीन के कागज बैंक के पास गिरवी रखते हैं. इस से आप को कम ब्याज पर लोन मिलेगा.

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क्या हैं लोन की ब्याज दरें : अगर आप ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ लेना चाहते हैं, वह भी बिना जमीन को गिरवी रखे तो आप को तय ब्याज दर से 1.75 फीसदी अधिक ब्याज चुकाना पड़ेगा.

अगर आप बैंक के पास जमीन गिरवी रख कर ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ चाहते हैं तो आप को 1.75 फीसदी ब्याज की जगह 1.5 फीसदी ब्याज ही चुकाना पड़ेगा.

कितने समय में वापसी : अगर आप जमीन गिरवी रखे बिना लोन लेना चाहते?हैं तो आप को यह कर्ज 36 महीने में वापस करना होगा और अगर आप जमीन गिरवी रख कर लोन लेना चाहते?हैं तो आप को इसे चुकाने के लिए 48 महीने का समय मिलेगा. मतलब, बैंक के पास जमीन गिरवी रखने पर आप को अधिक छूट मिलेगी.

ट्रैक्टर खरीदने के बाद आप को एक महीने का समय ग्रेस पीरियड के?रूप में भी मिलता?है. इस का मतलब यह है कि एक महीने तक आप को लोन की किस्त चुकाने से?छूट दी जा सकती है.

अब बात आती है कि आप को कौन सा ट्रैक्टर खरीदना है, यह आप को अपनी जरूरत के हिसाब से तय करना है. आजकल बाजार में अनेक ब्रांड के ट्रैक्टर मौजूद हैं. हरेक की अपनी खूबियां हैं. यहां हम आयशर 551 ट्रैक्टर के बारे में कुछ जानकारी दे रहे?हैं.

आयशर 551 ट्रैक्टर

यह ट्रैक्टर 49 हौर्सपावर का?है और इस में 3300 सीसी का इंजन लगा है. 3 सिलैंडर, डायरैक्ट इंजैक्शन, वाटर कूल इंजन?है. इस ट्रैक्टर से 10-12 टन की ट्रौली और भारी कृषि यंत्रों से आसानी से काम लिया जा सकता है. जैसे 2 एमबी रिवर्सिएबल प्लाऊ, पावर हैरो,

7 फुटा रोटावेटर, कल्टीवेटर, स्पे्रयर आदि इस से चला सकते हैं.

यह ट्रैक्टर 1,700 किलोग्राम तक वजन उठा सकता?है. विशेष परिस्थितियों में यह वजन 1850 किलोग्राम तक भी हो सकता?है. इस में मल्टी डिस्क ब्रैक हैं जो औयल में डूबे रहते हैं. पडलिंग और धान की खेती में यह ट्रैक्टर तेजी और असरदार तरीके से काम करते?हैं. इस का रखरखाव का खर्चा भी कम है और ब्रेक की उम्र भी लंबी होती है.

मल्टी?स्पीड पीटीओ इंजन आरपीएम कम होने पर भी पीटीओ पर ज्यादा आरपीएम देता है. यह हर इंप्लीमैंट के लिए अनुकूल है. जहां अलगअलग पीटीओ स्पीड की जरूरत होती?है जैसे थ्रैशर, वाटरपंप, आल्टरनैटर आदि.

इस ट्रैक्टर में वाटर सैपरेटर भी लगा है. अगर किसी वजह से डीजल में पानी मिला है तो उस को वह डीजल से अलग कर देता है और ट्रैक्टर की इंजन टंकी में 48 लिटर तक डीजल भरा जा सकता है. इस ट्रैक्टर में सभी डिजिटल मीटर लगे हुए?हैं जिस से ट्रैक्टर किस स्पीड पर कितने आरपीएम पर चल रहा है, कितनी तेल खपत हुई है, यह सब पता चलता है.

इस ट्रैक्टर में पावर स्टेयरिंग भी है, जिसे आसानी से घुमाया जा सकता?है. इस ट्रैक्टर में

8 गियर आगे लगते हैं और 2 रिवर्स गियर हैं. इस में 12 वोल्ट की बैटरी लगी है. साथ ही, इस में मोबाइल चार्ज करने की सुविधा भी है.

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ड्राइवर के बैठने की सीट सुविधानुसार आगेपीछे की जा सकती?है. सीट के पीछे पानी की बोतल रखने की जगह दी गई है. सुरक्षा के लिहाज से ट्रैक्टर के अगले हिस्से में वजनी मजबूत बंपर लगा?है.

अधिक जानकारी के लिए आप आयशर कंपनी के फोन नंबर 022-40375754 पर बात कर सकते हैं.                                       ठ्ठ

असम में मुसलमानों और दलितों के साथ भेदभाव की शुरुआत

लेखक- दिनकर कुमार

असम में 30 जुलाई, 2019 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी का प्रकाशन होने वाला है. राज्य के लाखों भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों से नागरिकता छीन कर उन को यातना शिविरों में बंद करने की पूरी तैयारी हो चुकी है और सब से ज्यादा हैरानी की बात यह है कि यह काम उस सर्वोच्च अदालत की देखरेख में पूरा किया जा रहा है, जिस पर संविधान और मानवाधिकार की सुरक्षा की जिम्मेदारी है.

अदालत भी अपने मूल कर्तव्य को भूल कर देश के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व के साथ जुगलबंदी कर रही है. एक ऐसे प्रयोग के लिए जमीन तैयार की जा रही है जो आने वाले समय में देशभर में आजमाया जा सकता है और एक

ही झटके में अल्पसंख्यकों से नागरिकता छीन कर उन का सामूहिक संहार किया जा सकता है.

देश के नए गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी भाषणों में घुसपैठियों की तुलना दीमक से करते हुए उन को कुचलने की मंशा जाहिर करते हुए कहा था, ‘‘हम पूरे देश में एनआरसी को लागू करेंगे और एकएक घुसपैठिए को निकाल बाहर करेंगे.

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‘‘हम घुसपैठियों को अपना वोट बैंक नहीं मानते. हमारे लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सब से अहम है. हम तय करेंगे कि हर हिंदू और बौद्ध शरणार्थी को भारत की नागरिकता मिले.’’

सत्ता में आते ही अमित शाह ने अपनी घोषणा पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है. 30 मई, 2019 को भाजपा सरकार की तरफ से विदेशी (ट्रिब्यूनल) संशोधन आदेश, 2019 जारी कर देश के सभी राज्यों में ऐसे ट्रिब्यूनल बनाने का निर्देश दिया है. इस से साफ संकेत मिलता है कि अमित शाह अगले 5 सालों में एनआरसी के बहाने पूरे देश में नागरिकता छीनने का अभियान शुरू करना चाहते हैं.

इस मुद्दे पर अल्पसंख्यकों के पक्ष में संघर्ष कर रहे नागरिक अधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर का कहना है,

‘‘30 मई को जो आदेश जारी किया गया है, वह नागरिकों की राय लिए बिना ही लोकतंत्र के रूप में भारत के बुनियादी सिद्धांतों को नष्ट करने की साजिश कही जा सकती है. एनआरसी के साथ ही भाजपा पूरे देश में नागरिकता संशोधन विधेयक को भी लागू करना चाहती है. इस के नतीजे भयंकर होंगे और बड़े पैमाने पर लोगों से नागरिकता छीन ली जाएगी.

‘‘एनआरसी और विदेशी ट्रिब्यूनल की जुगलबंदी ने स्थानीय स्तर पर तानाशाही की छूट पैदा की है. इस के बहाने अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाना आसान हो जाएगा.

‘‘असल में एनआरसी और विदेशी ट्रिब्यूनल जुड़वां प्रक्रिया है. एनआरसी आप से दस्तावेजों की मदद से नागरिकता साबित करने के लिए कहता है, जबकि ट्रिब्यूनल वह उपकरण है, जो नागरिकता छीनने का काम करता है.’’

गृह मंत्रालय ने विदेशी (ट्रिब्यूनल) संशोधन आदेश, 1962 में 2 नए पैराग्राफ जोड़ कर इंसाफ के सिद्धांत पर ही सवालिया निशान लगा दिया है. अब अगर किसी शख्स को विदेशी होने के शक में गिरफ्तार किया जाता है तो वह सिर्फ ट्रिब्यूनल में ही कुछ नियमों और शर्तों के आधार पर अपील कर सकता है. अब वह ऊंची अदालत में नहीं जा पाएगा.

इस का मतलब यह है कि सेना के पूर्व जवान सानुल्ला ने जिस तरह हाईकोर्ट में जा कर अपनी नागरिकता साबित की और डिटैंशन कैंप से रिहा हो पाए, उस तरह अब कोई शख्स अपनी फरियाद ले कर ऊंची अदालत में नहीं जा पाएगा.

इस तरह ट्रिब्यूनल को असीमित हक दे दिए गए हैं. किसी भी निचली अदालत को इस तरह असीमित हक नहीं दिए गए हैं. नागरिकता के सब से ज्यादा अहम संवैधानिक हक को ले कर ट्रिब्यूनल को मनमानी करने की पूरी छूट दे दी गई है.

असल में केंद्र 31 जुलाई, 2019 से पहले ऐसे 1,000 ट्रिब्यूनल बनाने के लिए असम सरकार की मदद कर रहा है. ट्रिब्यूनल के सदस्य के तौर पर ऐसे लोगों को शामिल किया जा रहा है जो कानून के जानकार नहीं हैं और जिन की काबिलीयत पर भी शक है.

उच्चतम न्यायालय का निर्देश था कि ट्रिब्यूनल में न्यायिक सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए, पर हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा है. सरकार के नजदीकी लोगों को सदस्य बनाया जा रहा है. इन सदस्यों पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को विदेशी साबित करने का दबाव डाला गया है. यही वजह है कि एनआरसी के प्रकाशन से पहले ही सैकड़ों बेकुसूर लोगों को डिटैंशन कैंपों में ठूंस दिया गया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उस के साथी संगठन मिल कर अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का माहौल तैयार कर रहे हैं. इसी मुहिम में स्थानीय प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक मीडिया भी आग में घी डालने का काम कर रहा है.

अब तक कम से कम 40 लोग यही सोच कर खुदकुशी कर चुके हैं कि अगर उन का नाम एनआरसी में नहीं आएगा तो उन को किन बुरे हालात का सामना करना पड़ेगा.

18 फरवरी, 1983 की सुबह असम की नेली नामक जगह पर 6 घंटे के भीतर तकरीबन 3,000 बंगलाभाषी मुसलमानों की हत्या की गई थी. उस घटना को ‘नेली नरसंहार’ के नाम से याद किया जाता है. अल्पसंख्यकों को डर है कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद उस तरह की त्रासदी दोबारा हो सकती है.

‘नेली नरसंहार’ के लिए न तो किसी को जिम्मेदार ठहराया गया था और न ही किसी के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही हुई थी.

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असम में मुसलमानों पर बारबार

इस तरह के हमले हुए और हर बार ‘बंगलादेशी घुसपैठिए’ का संबोधन दे कर हमले को उचित ठहराया गया. इस तरह का आखिरी हमला मई, 2014 में मानस नैशनल पार्क के पास खगराबाड़ी गांव में किया गया, जहां 20 बच्चों समेत 38 लोगों की हत्या कर दी गई.

इस तरह की हिंसा को राज्य में कट्टर जातीय सोच रखने वालों का समर्थन मिलता रहा है और सरकारी तंत्र भी इस तबके के साथ ही रहा है.

एनआरसी को भी इसी प्रक्रिया का औपचारिक रूप माना जा सकता है,

जिस का मकसद भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों की नागरिकता खत्म कर देना है. इस की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप की अप्रवासन नीति से की जा सकती है जो अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है.                  द्य

जल्दी तैयार होती मूली की खेती

कृषि संवाददाता

लेकिन ज्यादा तापमान वाले इलाकों में मूली की फसल कठोर और तीखी होती है. मूली की खेती के लिए रेतीली दोमट और दोमट मिट्टियां उम्दा होती हैं. मटियार जमीन में इस की खेती करना फायदेमंद नहीं होता है, क्योंकि उस में मूली की जड़ें सही तरीके से पनप नहीं पाती?हैं.

मूली की खेती के लिए ऐसी जमीन का चयन करना चाहिए, जो हलकी भुरभुरी हो और उस में जैविक पदार्थों की भरपूर मात्रा हो. मूली के खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए, क्योंकि उन से जड़ों की बढ़वार रुक जाती है.

खेत की तैयारी : मूली की फसल लेने के लिए खेत की कई बार जुताई करनी चाहिए. पहले 2 बार कल्टीवेटर से जुताई कर के पाटा लगा दें, उस के बाद गहरी जुताई करने वाले हल से जुताई करें. मूली की जड़ें जमीन में गहरे तक जाती हैं, ऐसे में गहरी जुताई न करने से जड़ों की बढ़वार सही तरीके से नहीं हो पाती है.

मूली की उन्नत किस्में : मूली की फसल लेने के लिए ऐसी किस्म का चयन करना चाहिए, जो देखने में सुंदर व खाने में स्वादिष्ठ हो.

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पूसा चेतकी : 40 से 50 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म पूरी तरह सफेद, नरम व मुलायम होती है. स्वाद में तीखापन कम होता?है. इस की औसत पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टयर तक मिल सकती है. यह किस्म पूरे भारत में कहीं भी लगाई जा सकती है.

पूसा मृदुला?: बोआई के 250-300 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म लाल रंग की होती है. शीत ऋतु के लिए अच्छी फसल है. इस की औसत उपज 135 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है. पूरे भारत के लिए यह किस्म मुफीद है.

पूसा जामुनी : 55 से

60 दिनों में तैयार होने वाली यह अनूठी गुणों वाली किस्म है. यह पौष्टिकता से?भरपूर बैगनी रंग में

होती?है.

पूसा गुलाबी : यह किस्म भी 55 से

60 दिनों में तैयार होती?है. नाम के मुताबिक यह गुलाबी रंग की होती?है. यह बेलनाकार किस्म?है.

पूसा विधु : 50 से 60 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म सफेद रंग की बेलनाकार होती?है. इस की 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है. यह किस्म दिल्ली और उस के आसपास के इलाकों के लिए खास है.

इस के अलावा मूली की रैपिड रैड, पूसा हिमानी, हिसार मूली नंबर 1, पंजाब सफेद व ह्वाइट टिप वगैरह किस्मों को अच्छा माना जाता है.

मूली की खेती मैदानी इलाकों में सितंबर से जनवरी माह तक और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अगस्त माह तक आसानी से की जा सकती है. वैसे, मूली की तमाम ऐसी किस्में तैयार की गई हैं जो मैदानी व पहाड़ी इलाकों में पूरे साल उगाई जा सकती हैं. पूसा चेतकी, पूसा देसी व जापानी सफेद वगैरह किस्में ऐसी हैं, जिन्हें सालभर उगाया जा सकता है.

मूली की 1 हेक्टेयर खेती के लिए तकरीबन 10 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बारिश के मौसम में मेंड़ बना कर इस की बोआई की जाती है, जबकि दूसरे मौसमों में इसे समतल जमीन में भी उगाया जा सकता है. अगर मूली की फसल मेंड़ों पर ली जा रही?है, तो मेंड़ों से मेंड़ों की दूरी 45 सैंटीमीटर व ऊंचाई 22-25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद व उर्वरक?: चूंकि मूली की जड़ें सीधे तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं, लिहाजा इस में कम से कम रासायनिक खादों का इस्तेमाल किया जाना ठीक माना जाता है. मूली की बोआई से पहले ही मिट्टी में 120 क्विंटल गोबर की खाद व 20 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए.

इस के अलावा 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिलानी चाहिए.

सिंचाई : बारिश के मौसम में मूली की फसल को सिंचाई की कोई जरूरत नहीं होती है, लेकिन गरमी में 4-5 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करते रहना चाहिए. सर्दी वाली फसलों की सिंचाई 10-15 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए.

खरपतवार व कीट : मूली की फसल से खरपतवारों को समयसमय पर निकालते रहना चाहिए, चूंकि खरपतवारों से फसल का उत्पादन प्रभावित होता है, लिहाजा हर 15 दिनों पर खेतों में उगने वाले खरपतवारों को निकाल देना चाहिए.

मूली की फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों में पत्ता काटने वाली सूंड़ी, सरसों की मक्खी व एफिड शामिल हैं. इन कीटों की रोकथाम के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सही नहीं होता?है. इन कीटों की रोकथाम के लिए हमेशा जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस के लिए 5 लिटर गोमूत्र व 15 ग्राम हींग को आपस में अच्छी तरह मिला कर फसल पर छिड़काव करते रहना चाहिए.

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आमतौर पर मूली की फसल में कोई खास रोग नहीं लगता है, फिर भी कभीकभी इस में रतुआ रोग का हमला देखा गया है. इस की रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा, गोमूत्र व तंबाकू मिला कर फसल को पूरी तरह से तरबतर करते हुए छिड़काव करना चाहिए.

उपज व लाभ : मूली की फसल जब कोमल हो तभी इस की खुदाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि ऐसी अवस्था में इस के दाम बहुत अच्छे मिलते हैं. बोआई के 30-35 दिनों बाद मूली की फसल उखाड़नी शुरू कर देनी चाहिए.

वैज्ञानिक तरीके से तैयार करें मिर्च की पौधशाला

मिर्च को सुखा कर बेचने के लिए सर्दी के मौसम की मिर्च का इस्तेमाल होता है. मिर्च की खासीयत यह है कि यदि पौध अवस्था में ही इस की देखभाल ठीक से कर ली जाए तो अच्छा उत्पादन मिलने में कोई शंका नहीं होती है. भरपूर सिंचाई समयानुसार करने से ज्यादा फायदा लिया जा सकता है. टपक सिंचाई अपनाने से मिर्च की फसल से दोगुनी उपज हासिल की जा सकती है. टपक सिंचाई से

50-60 फीसदी जल की बचत होती है और खरपतवार से नजात मिल जाती है.

मिर्च की नर्सरी

ऐसे लगाएं

पौधशाला, रोपणी या नर्सरी एक ऐसी जगह?है, जहां पर बीज या पौधे के अन्य भागों से नए पौधों को तैयार करने के लिए सही इंतजाम किया जाता है. पौधशाला का क्षेत्र सीमित होने के कारण देखभाल करना आसान व सस्ता होता है.

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पौधशाला के लिए

जगह का चुनाव

* पौधशाला के आसपास बहुत बड़े पेड़ नहीं होने चाहिए.

* जमीन उपजाऊ, दोमट, खरपतवार से रहित व अच्छे जल निकास वाली हो, अम्लीय क्षारीय जमीन का चयन न करें.

* पौधशाला में लंबे समय तक धूप रहती हो.

* पौधशाला के पास सिंचाई की सुविधा मौजूद हो.

* चुना हुआ क्षेत्र ऊंचा हो ताकि वहां पानी न ठहरे.

* एक फसल के पौध लगाने के बाद दूसरी बार पौध उगाने की जगह बदल दें यानी फसलचक्र अपनाएं.

क्यारियों की तैयारी

व उपचार

पौधशाला की मिट्टी की एक बार गहरी जुताई करें या फिर फावड़े की मदद से खुदाई करें. खुदाई करने के बाद ढेले फोड़ कर गुड़ाई कर के मिट्टी को?भुरभुरी बना लें और उगे हुए सभी खरपतवार निकाल दें. फिर सही आकार की क्यारियां बनाएं. इन क्यारियों में प्रति वर्गमीटर की दर से 2 किलोग्राम गोबर या कंपोस्ट की सड़ी खाद या फिर 500 ग्राम केंचुए की खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाएं. यदि मिट्टी कुछ भारी हो तो प्रति वर्गमीटर 2 से

5 किलोग्राम रेत मिलाएं.

मिट्टी का उपचार

जमीन में विभिन्न प्रकार के कीडे़ और रोगों के फफूंद जीवाणु वगैरह पहले से रहते?हैं, जो मुनासिब वातावरण पा कर क्रियाशील हो जाते हैं व आगे चल कर फसल को विभिन्न अवस्थाओं में नुकसान पहुंचाते हैं. लिहाजा, नर्सरी की मिट्टी का उपचार करना जरूरी?है.

सूर्यताप से उपचार

इस विधि में पौधशाला में क्यारी बना कर उस की जुताईगुड़ाई कर के हलकी सिंचाई कर दी जाती है, जिस से मिट्टी गीली हो जाए. अब इस मिट्टी को पारदर्शी 200-300 गेज मोटाई की पौलीथिन की चादर से ढक कर किनारों को मिट्टी या ईंट से दबा दें ताकि पौलीथिन के अंदर बाहरी हवा न पहुंचे और अंदर की हवा बाहर न निकल सके. ऐसा उपचार तकरीबन

4-5 हफ्ते तक करें. यह काम 15 अप्रैल से

15 जून तक किया जा सकता?है.

उपचार के बाद पौलीथिन शीट हटा कर खेत तैयार कर के बीज बोएं. सूर्यताप उपचार से भूमिजनित रोग कारक जैसे फफूंदी, निमेटोड, कीट व खरपतवार वगैरह की संख्या में भारी कमी हो जाती है.

रसायनों द्वारा

जमीन उपचार

बोआई के 4-5 दिन पहले ही क्यारी को फोरेट 10 जी 1 ग्राम या क्लोरोपायरीफास

5 मिलीलिटर पानी के हिसाब से या कार्बोफ्यूरान 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से जमीन में मिला कर उपचार करते हैं. कभीकभी फफूंदीनाशक दवा कैप्टान 2 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से मिला कर भी जमीन को सही किया जा सकता?है.

जैविक विधि द्वारा उपचार

क्यारी की जमीन का जैविक विधि से उपचार करने के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी की

8 से 10 ग्राम मात्रा को 10 किलोग्राम गोबर की खाद में मिला कर क्यारी में बिखेर देते हैं. इस के बाद सिंचाई कर देते?हैं. जब खेत का जैविक विधि से उपचार करें, तब अन्य किसी रसायन का इस्तेमाल न करें.

बीज खरीदने में

बरतें सावधानी

* बीज अच्छी किस्म का शुद्ध व साफ होना चाहिए, अंकुरण कूवत 80-85 फीसदी हो.

* बीज किसी प्रमाणित संस्था, शासकीय बीज विक्रय केंद्र, अनुसंधान केंद्र या विश्वसनीय विक्रेता से ही लेना चाहिए. बीज प्रमाणिकता का टैग लगा पैकेट खरीदें.

* बीज खरीदते समय पैकेट पर लिखी किस्म, उत्पादन वर्ष, अंकुरण फीसदी, बीज उपचार वगैरह जरूर देख लें ताकि पुराने बीजों से बचा जा सके. बीज बोते समय ही पैकेट खोलें.

बीजों का उपचार : बीज हमेशा उपचारित कर के ही बोने चाहिए ताकि बीजजनित फफूंद से फैलने वाले रोगों को काबू किया जा सके. बीज उपचार के लिए 1.5 ग्राम थाइरम, 1.5 ग्राम कार्बंडाजिम या 2.5 ग्राम डाइथेन एम 45 या 4 ग्राम?ट्राइकोडर्मा विरडी का प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए.

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यदि क्यारी की जमीन का उपचार जैविक विधि (ट्राइकोडर्मा) से किया गया है, तो बीजोपचार भी ट्राइकोडर्मा विरडी से ही करें.

बीज बोने की विधि : क्यारियों में उस की चौड़ाई के समानांतर 7-10 सैंटीमीटर की दूरी पर 1 सैंटीमीटर गहरी लाइनें बना लें और उन्हीं लाइनों पर तकरीबन 1 सैंटीमीटर के अंतराल से बीज बोएं.

बीज बोने के बाद उसे कंपोस्ट, मिट्टी व रेत के 1:1:1 के 5-6 ग्राम थाइरम या केप्टान से उपचारित मिश्रण से 0.5 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक ढक देते?हैं.

क्यारियों को पलवार से ढकना : बीज बोने के बाद क्यारी को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पुआल, सरकंडों, गन्ने के सूखे पत्तों या ज्वारमक्का के बने टटियों से ढक देते हैं ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे और सिंचाई करने पर पानी सीधे ढके हुए बीजों पर न पड़े, वरना मिश्रण बीज से हट जाएगा और बीज का अंकुरण प्रभावित होगा.

सिंचाई : क्यारियों में बीज बोने के बाद 5-6 दिनों तक हलकी सिंचाई करें ताकि बीज ज्यादा पानी से बैठ न जाए. बरसात में क्यारी की नालियों में मौजूद ज्यादा पानी को पौधशाला

से बाहर निकालना चाहिए.

क्यारियों से घासफूस तब हटाएं, जब तकरीबन 50 फीसदी बीजों का अंकुरण हो चुका हो. बोआई के बाद यह अवस्था मिर्च में 7-8 दिनों बाद, टमाटर में 6-7 दिनों बाद व बैगन में 5-6 दिनों बाद आती है.

खरपतवार नियंत्रण : क्यारियों में उपचार के बाद भी यदि खरपतवार उगते?हैं, तो समयसमय पर उन्हें हाथ से निकालते रहना चाहिए. इस के लिए पतली और लंबी

डंडियों की भी मदद ली जा सकती है.

बेहतर रहेगा, अगर पेंडीमिथेलिन की

3 मिलीलिटर मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल कर बोआई के 48 घंटे के भीतर क्यारियों में अच्छी तरह छिड़क दें.

पौध विगलन : अगर क्यारियों में पौधे अधिक घने उग आए हैं तो उन को 1-2 सैंटीमीटर की दूरी पर छोड़ते हुए दूसरे पौधों को छोटी उम्र में ही उखाड़ देना चाहिए, वरना पौधों के तने पतले व कमजोर बने रहते?हैं.

वैसे, घने पौधे पदगलन रोग लगने की संभावना बढ़ाते हैं. उखाड़े गए पौधे खाली जगह पर रोपे जा सकते हैं.

पौध सुरक्षा?: पौधशाला में रस चूसने वाले कीट जैसे माहू, जैसिड, सफेद मक्खी व थ्रिप्स से काफी नुकसान पहुंचता है. विषाणु अन्य बीमारियों को फैलाते?हैं, लिहाजा इन के नियंत्रण के लिए नीम का तेल 5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में या डाईमिथोएट (रोगोर)

2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल

बना कर बोआई के 8-10 दिनों बाद और

25-27 दिनों बाद दोबारा छिड़कना चाहिए.

क्यारी और बीजोपचार करने के बाद भी अगर पदगलन बीमारी लगती है (जिस में पौधे जमीन की सतह से गल कर गिरने लगते हैं और सूख जाते?हैं), तो फसल पर मैंकोजेब या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

पौधे उखाड़ना : क्यारी में तैयार पौधे जब 25-30 दिनों के हो जाएं और उन की ऊंचाई 10-12 सैंटीमीटर की हो जाए या उन में 5-6 पत्तियां आ जाएं, तब उन्हें पौधशाला से खेत में रोपने के लिए निकालना चाहिए.

क्यारी से पौध निकालने से पहले उन की हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. सावधानी से पौधे निकालने के बाद 50 या 100 पौधों के बंडल बना लें.

पौधों का रोपाई से पहले उपचार : पौधशाला से निकाले गए पौध समूह या रोपी गई जड़ों को कार्बंडाजिम बाविस्टीन 10 ग्राम प्रति लिटर पानी में बने घोल में 10 मिनट तक डुबोना चाहिए, रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई जरूर करें.

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गरमी के मौसम में कतार से कतार की दूरी 45 सैंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी

30 सैंटीमीटर और बरसात में कतार से कतार की दूरी 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सैंटीमीटर रखें.

मिर्च से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए उस की नर्सरी लगा कर पौधशाला में सेहतमंद पौधे तैयार करने का अपना अलग महत्त्व है. जितनी स्वस्थ नर्सरी रहेगी, उतनी ही अच्छी रोप मिलेगी.

‘बेटी पढ़ाओ’ नारे को नहीं मानता यह समुदाय

लेखक-शंकर जालान

मूल रूप से गुजरात के अहमदाबाद व राजकोट के बीच जोटिया गांव के इस ‘गुजराती’ समुदाय का मानना है कि लड़की को चौथी जमात तक पढ़ा लिया, उसे जोड़घटाव व गुणाभाग आ गया, बस उस की पढ़ाई पूरी हो गई. मूल रूप से पुराने कपड़ों के बदले स्टील और प्लास्टिक के बरतन व दूसरा सामान दे कर उस से होने वाली मामूली आमदनी पर ये लोग किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही कर पाते हैं.

सिंधी बागान बस्ती की रहने वाली

25 साला बंदनी गुजराती ने बताया कि इस बस्ती में ‘गुजराती’ समुदाय के तकरीबन 30 परिवार रहते हैं, लेकिन किसी घर की लड़की ने 5वीं जमात की दहलीज पर पैर नहीं रखा है.

बेटियों यानी लड़कियों को पढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, इस के बावजूद भी आप लोग लड़कियों को चौथी जमात से आगे क्यों नहीं पढ़ाते हैं? इस सवाल के जवाब में इस बस्ती की सब से बुजुर्ग 55 साला विद्या गुजराती नामक औरत ने बताया कि दिनरात मेहनत कर के किसी तरह घरपरिवार का गुजारा होता है. औसतन 6 से 8 हजार रुपए महीने की कमाई में उन के लिए लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना मुमकिन नहीं है.

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23 साला चुन्नी गुजराती ने बताया कि उस के समुदाय में लड़कों का काम घर पर रहना और घर की देखरेख करना है, जबकि लड़कियों का काम गलीगली, दरवाजेदरवाजे जा कर पुराने कपड़ों की एवज में ग्राहकों को उन की जरूरत के मुताबिक स्टील व प्लास्टिक के बरतन व दूसरा सामान देना होता है.

पुराने कपड़ों का क्या करते हैं? इस सवाल के जवाब में 26 साला जैली गुजराती व 20 साला राजा गुजराती ने बताया कि पुराने कपड़ों को बेचते हैं. पुराने कपड़ों का यह बाजार चितरंजन एवेन्यू में गिरीश पार्क से ले कर बिडन स्ट्रीट तक रोजाना देर रात तक लगता है.

शिमला माठ के रहने वाले 30 साला पंकज गुजराती की बात मानें तो इन दिनों ‘गुजराती’ समुदाय की कुछ लड़कियां पढ़ना चाहती हैं, लेकिन कोई सही सलाह देने वाला नहीं है. चुनाव के समय हर पार्टी के नेता यहां आ कर उन के विकास के बाबत भरोसा दे जाते हैं, लेकिन चुनाव के बाद उन की सुध लेने वाला कोई नहीं होता है.

इस बाबत स्थानीय पार्षद और विधायक स्मिता बक्सी का कहना है कि वे अपने लैवल पर पूरी कोशिश करती हैं कि हर बच्चा चाहे वह लड़की हो या लड़का स्कूल जाए लेकिन अगर किसी लड़की के मातापिता ऐसा नहीं चाहते हैं, तो इस में वे क्या कर सकते हैं.

दूसरी ओर, कोलकाता नगरनिगम के शिक्षा विभाग के मेयर परिषद के सदस्य अभिजीत मुखर्जी का कहना है कि विभाग की सारी कोशिशों के बावजूद कुछ मातापिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते. सर्वशिक्षा अभियान के तहत नगरनिगम द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों को अपग्रेड कर 8वीं जमात तक किया गया है. कामकाजी औरतें अपनी बेटियों को अकेले छोड़ने से डरती हैं, इसलिए वे उन्हें अपने साथ ले कर काम पर निकलती हैं.

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ऐसी ही गरीब कामकाजी औरतों को ध्यान में रख कर डे बोर्डिंग स्कूल तैयार किया जा रहा है, जहां पर लड़कियां महफूज भी रह सकें और पढ़ भी सकें. द्य

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