लेखक- भानु प्रकाश राणा
अरहर में पाई जाने वाली मजबूत जड़ें सीमित नमी की दशा में भी फसल की बढ़वार को बनाए रखने के साथसाथ मिट्टी की रासायनिक और जैविक दशाओं में सुधार ला कर उस की पैदावार कूवत सुधारने में सहायक होती है. इस की पत्तियां झड़ कर मिट्टी में मिलने के बाद कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में बढ़ोतरी करती हैं और अरहर के पौधे की लकड़ी भी गांवदेहात में अनेक कामों में लाई जाती है. जैसे, भूस की बोगी बनाना और इस की लकड़ी को जलावन के रूप में?भी इस्तेमाल किया जाता?है.
खेत का चुनाव : अरहर की खेती के लिए ज्यादा पानी ठीक नहीं रहता इसलिए जमीन का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि खेत ऊंचा और समतल हो. खेत में बरसाती पानी के निकलने का अच्छा बंदोबस्त हो यानी अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी अरहर के लिए मुफीद रहती है.
उन्नतशील प्रजातियां : अरहर का अधिकतम उत्पादन लेने के लिए प्रजाति का चुनाव बोआई के समय के आधार पर करना चाहिए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आमतौर पर 2 तरह की प्रजातियों की बोआई की जाती है.
प्रगतिशील किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी का कहना है कि अरहर कुदरत 3 अधिक उपज देने वाली किस्म है और यह कीट व रोगों से मुक्त है. इस की बोआई में 3 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज लगता है. 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार मिलती है. अधिक जानकारी के लिए किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी के मोबाइल नंबर 9935281300 पर संपर्क कर सकते हैं.
बोआई का समय : जून माह में अरहर की अगेती प्रजातियों की बोआई कर देनी चाहिए जिस से कि गेहूं की बोआई समय से की जा सके और देरी से पकने वाली प्रजातियों की बोआई जुलाई माह तक कर देनी चाहिए.
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