आम लोगों को एक सरकार से बहुत उम्मीदें होती हैं चाहे हर 5 साल बाद पता चले कि सरकार उम्मीदों पर पूरी नहीं उतरी. सरकार चलाने वालों के वादे असल में पंडेपुजारियों की तरह होते हैं कि हमें दान दो, सुख मिलेगा. हमें वोट दो, पैसा बरसेगा. अब के तो जैसे हम लोगों ने पंडेपुजारियों को ही संसद में चुन कर भेजा है. यह तब पक्का हो गया जब संसद सदस्यों ने लोकसभा में शपथ ली.

भाजपा सांसद कभी गुरुओं का नाम लेते, कभी ‘भारत माता की जय’ का नारा बोलते, तो कभी ‘वंदे मातरम’ और ‘जय श्रीराम’ एकसुर में चिल्लाते रहे. यह सीन एक धीरगंभीर लोकसभा का नहीं, एक प्रवचन सुनने के लिए जमा हुई भीड़ का सा लगने लगा था. भाजपा की यह जीत धर्म के दुकानदारों, धर्म की देन जातिवाद के रखवालों, हिंदू राष्ट्र की सपनीली जिंदगी की उम्मीदें लगाए थोड़े से लोगों की अगुआई वाली पार्टी के अंधे समर्थकों को चाहे अच्छी लगे, पर यह देश में एक गहरी खाई खोद रही हो, तो पता नहीं.

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जिन्हें हिंदू धर्मग्रंथों का पता है वे तो जानते हैं कि हम किस कंकड़ भरे रास्ते पर चल रहे हैं जहां झंडा उठाने वाले और जयजयकार करने वाले तो हैं, पर काम करने वाले कम हैं. ज्यादातर धर्मग्रंथ, हर धर्म के, चमत्कारों की झूठी कहानियों से भरे हैं. ये कहानियां सुनने में अच्छी लगती हैं पर जब इन को जीवन पर थोपा जाता है तो सिर्फ भेदभाव, डर, हिंसा, लूट, बलात्कार मिलता है.

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