Best of Crime Story: मोहब्बत के लिए- इश्क के चक्कर में हत्या

10 मई, 2017 की सुबह कानपुर के थाना काकादेव के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह रात में पकड़े गए 2 अपराधियों से पूछताछ कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन रिसीव कर के उन्होंने कहा, ‘‘थाना काकादेव से मैं इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह बोल रहा हूं, आप कौन?’’

‘‘सर, मैं लोहारन भट्ठा से बोल रहा हूं. जीटी रोड पर स्थित रामरती के होटल पर एक युवक की हत्या हो गई है.’’ इतना कह कर फोन करने वाले ने फोन तो काट ही दिया, उस का स्विच भी औफ कर दिया.

सूचना हत्या की थी, इसलिए मनोज कुमार सिंह ने पहले तो इस घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी, उस के बाद खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. रामरती का होटल जीटी रोड पर जहां था, सिपाहियों को उस की जानकारी थी.

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इसलिए पुलिस वालों को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. पुलिस के पहुंचने तक वहां काफी लोग इकट्ठा हो गए थे. मनोज कुमार सिंह भीड़ को हटा कर वहां पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. एक अधेड़ उम्र महिला लाश के पास बैठी रो रही थी.

मनोज कुमार सिंह ने महिला को सांत्वना देते हुए लाश से अलग किया. उन्होंने उस से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम रामरती है. मैं ही यह होटल चलाती हूं. जिसे मारा गया है, उस का नाम छोटू है. यह मेरा मुंहबोला भाई है. रात में किसी ने इस का कत्ल कर दिया है.’’

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लाश की शिनाख्त हो ही गई थी. मनोज कुमार सिंह ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतक छोटू की लाश तख्त पर पड़ी थी. किसी भारी चीज से उस के सिर पर कई वार किए गए थे, जिस से उस का सिर फट गया था.

शायद ज्यादा खून बह जाने से उस की मौत हो गई थी. खून से तख्त पर बिछा गद्दा, चादर, कंबल और तकिया भीगा हुआ था. तख्त के पास एक बाल्टी रखी थी, जिस का पानी लाल था. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्या करने के बाद हत्यारे ने बाल्टी के पानी में खून सने हाथ धोए थे.

मनोज कुमार सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि एसएसपी सोनिया सिंह और सीओ गौरव कुमार वंशवाल भी आ गए. अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम भी बुला ली थी. उन्होंने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और रामरती से पूछताछ की.

फोरैंसिक टीम ने कई जगहों से फिंगरप्रिंट लिए. उस के बाद खून से सनी चादर, तकिया, कंबल, एक जोड़ी चप्पल और मृतक के बाल जांच के लिए कब्जे में ले लिए. पुलिस ने अन्य औपचारिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया.

मनोज कुमार सिंह ने हत्या का खुलासा करने के लिए रामरती और आसपास वालों से पूछताछ की. इस पूछताछ में पता चला कि होटल में रात को 2 लड़के और सोए थे. मनोज कुमार सिंह ने तुरंत उन दोनों लड़कों बुधराम और सलाउद्दीन को हिरासत में ले लिया.

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थाने ला कर दोनों लड़कों से सख्ती से पूछताछ की गई. तमाम सख्ती के बावजूद दोनों लड़कों ने छोटू की हत्या करने से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि वे रात में होटल पर सोए जरूर थे, लेकिन उन्हें हत्या के बारे में पता ही नहीं चला. काफी सख्ती के बावजूद जब दोनों ने हामी नहीं भरी तो मनोज कुमार सिंह को लगा कि ये दोनों निर्दोष हैं. उन्होंने उन्हें छोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने हत्यारे का पता लगाने के लिए अपने मुखबिरों को लगा दिया.

12 मई, 2017 को मुखबिर से पता चला कि छोटू की हत्या नाजायज रिश्तों में रुकावट बनने की वजह से हुई है. लोहारन भट्ठा का ही रहने वाला संजय रामरती की बेटी सुनयना से प्यार करता था. दोनों के प्यार में छोटू बाधक बन रहा था, इसलिए अंदाजा है कि संजय ने ही छोटू की हत्या की है.

मुखबिर की बात पर विश्वास कर के मनोज कुमार सिंह ने रामरती की बेटी सुनयना से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह संजय से प्यार करती थी. उस के प्यार में छोटू मामा बाधक बन रहे थे. उन के मिलने को ले कर अकसर संजय और मामा में कहासुनी होती रहती थी. मामा की शिकायत पर उसे मां की डांट सुननी पड़ती थी.

सुनयना के इस बयान पर मनोज कुमार सिंह को पक्का यकीन हो गया कि छोटू की हत्या संजय ने ही की थी. संजय को गिरफ्तार करने के लिए उन्होंने संजय के घर छापा मारा तो वह घर पर नहीं मिला. उन्होंने उस के बारे में पता करने के लिए मुखबिरों को लगा दिया. इस के बाद मुखबिरों की सूचना पर उन्होंने उसे गोल चौराहे से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए स्वरूपनगर स्थित सीओ औफिस ले आए.

सीओ गौरव कुमार वंशवाल की उपस्थिति में संजय से छोटू की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई तो उस ने हत्या करने से साफ मना कर दिया. लेकिन जब उस से थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने छोटू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि वह सुनयना से बहुत प्यार करता था. लेकिन सुनयना का मामा छोटू दोनों को मिलने नहीं देता था. इसीलिए उस ने उसे मौत की नींद सुला दिया था. अपराध स्वीकार करने के बाद संजय ने वह हथौड़ा, जिस से उस ने छोटू की हत्या की थी और खून से सने अपने कपड़े घर से बरामद करा दिए थे.

चूंकि संजय ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था और हथियार भी बरामद करा दिया था, इसलिए थाना काकादेव पुलिस ने रामरती को वादी बना कर अपराध संख्या 337/2017 पर आईपीसी की धारा 302 के तहत संजय के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया था. संजय से की गई पूछताछ में प्यार के जुनून में की गई छोटू की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर महानगर के थाना काकादेव का एक मोहल्ला लोहारन भट्ठा है. इस के एक ओर जीटी रोड है तो दूसरी ओर चर्चित जेके मंदिर है. वैसे यह मोहल्ला गंगनहर की जमीन पर अवैध रूप से बसा है. यहां ज्यादातर गरीब और निम्मध्यवर्ग के लोग रहते हैं. इसी मोहल्ले में धर्मेंद्र अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामरती के अलावा बेटी सुनयना थी.

धर्मेंद्र का जीटी रोड पर चायपान का होटल था, जिसे उस की पत्नी रामरती चलाती थी. वह काफी व्यवहारकुशल थी, इसलिए उस का यह होटल खूब चलता था. इसी होटल की कमाई से वह अपने पूरे परिवार का खर्चा चलाती थी.

रामरती के इसी होटल पर छोटू काम करता था. वह मूलरूप से आजमगढ़ का रहने वाला था. मांबाप की मौत के बाद रोजीरोटी की तलाश में वह कानपुर आ गया था. कई दिनों तक भटकने के बाद उसे रामरती के होटल पर ठिकाना मिला था. उस ने अपने काम और व्यवहार से रामरती का दिल जीत लिया, जिस से रामरती ने उसे अपना मुंहबोला भाई बना लिया.

इस के बाद तो छोटू का घर में अच्छाखासा दखल हो गया. रामरती कोई भी काम उस से पूछे बिना नहीं करती थी. रामरती ने छोटू को भाई बना लिया तो उस की बेटी सुनयना उसे मामा कहने लगी थी.

सुनयना, रामरती की एकलौती बेटी थी. 16 साल की होतेहोते वह युवकों की नजरों का केंद्र बन गई. मोहल्ले के जिस गली से वह निकलती, लड़के उसे देखते रह जाते. विधाता ने उसे अद्भुत रूप दिया था. मोहल्ले के लोग कहते थे कि यह कीचड़ में कमल की तरह है.

सुनयना भी जवानी का नशा महसूस करने लगी थी. हिरनी की तरह कुलांचे भरती जब वह घर से निकलती तो मोहल्ले वाले उसे ताकते ही रह जाते. उसे लगता कि लोगों की नजरें उस की देह को भेद कर उसे सुख दे रही हैं. उस समय वह अपने अंदर सिहरन सी महसूस करती. उस की इच्छा होती कि कोई उस का हाथ थाम कर उसे कहीं एकांत में ले जाए और उस से ढेर सारी प्यार की बातें करे.

सुनयना के ही मोहल्ले के दूसरे छोर पर संजय रहता था. उस के पिता बाबूराम नगर निगम में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. वह प्राइवेट नौकरी करता था. उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं थी, इसलिए खूब बनसंवर कर रहता था. उसे भजन और कीर्तन सुनने का बहुत शौक था, इसलिए अकसर वह राधाकृष्ण (जेके) मंदिर जाता रहता था.

किसी दिन मंदिर में संजय की नजर सुनयना पर पड़ी तो वह उसे देखता ही रह गया. सुनयना भी खूब सजधज कर मंदिर आई थी. पहली ही नजर में संजय का दिल सुनयना पर आ गया. वह उसे तब तक ताकता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

सुनयना संजय के मन को भाई तो वह उस का दीवाना हो गया. अब वह उस के इंतजार में मंदिर के गेट पर खड़ा रहने लगा. सुनयना उसे दिखाई पड़ती तो वह उसे चाहतभरी नजरों से ताकता रहता. उस की इन्हीं हरकतों से सुनयना समझ गई कि यह कोई प्रेम दीवाना है, जो उसे चाहतभरी नजरों से ताकता है. लेकिन उस ने उस की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

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जबकि संजय सुनयना के लिए तड़प रहा था. हर पल उस के मन में सुनयना ही छाई रहती थी. उस का काम में भी मन नहीं लग रहा था. एक तरह सुनयना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. उसे पाने की तड़प जब संजय के लिए बरदाश्त से बाहर हो गई तो उस ने सुनयना के बारे में पता किया. पता चला कि वह उस रामरती की बेटी है, जिस का जीटी रोड पर चायपान का होटल है.

संजय रामरती के होटल पर चाय पीने जाने लगा. अपनी लच्छेदार बातों से जल्दी ही उस ने रामरती से नजदीकी बना ली. यही नहीं, उस ने उस के मुंहबोले भाई छोटू से भी दोस्ती गांठ ली. दोनों में खूब पटने लगी.

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रामरती और छोटू से मधुर संबंध बना कर संजय रामरती के घर भी जाने लगा. वहां वह बातें भले ही किसी से करता था, लेकिन उस की नजरें सुनयना पर ही टिकी रहती थीं. सुनयना ने जल्दी ही इस बात को ताड़ लिया. संजय की नजरों में अपने लिए चाहत देख कर सुनयना भी उस के प्रति आकर्षित होने लगी. अब वह भी संजय के आने का इंतजार करने लगी.

दोनों ही एकदूसरे की नजदीकी पाने के लिए बेचैन रहने लगे. लेकिन यह सब अभी नजरों ही नजरों में था. संजय को भी सुनयना के इरादे का पता चल गया था. जब भी उस की चाहत भरी नजरें सुनयना के मुखड़े पर पड़तीं, सुनयना मुसकराए बिना नहीं रह पाती. वह भी उसे तिरछी नजरों से ताकते हुए उस के आगेपीछे घूमती रहती.

सुनयना की कातिल नजरों और मुसकान का मतलब संजय अच्छी तरह समझ रहा था. लेकिन उसे अपनी बात कहने का मौका नहीं मिल रहा था. जबकि सुनयना अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहती थी.

संजय अब ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात सुनयना से कह सके. चाह को राह मिल ही जाती है. एक दिन संजय को मौका मिल गया. उस ने अपने दिल की बात सुनयना से कह दी. सुनयना तो कब से उस के मुंह से यही सुनने का इंतजार कर रही थी.

उस दिन के बाद संजय और सुनयना का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा. सुनयना कोई न कोई बहाना बना कर घर से निकलती और संजय से जा कर मिलती. संजय उसे साथ ले कर सैरसपाटे के लिए निकल जाता. वह अकसर सुनयना को मोतीरेव ले जाता और वहां दोनों साथसाथ सिनेमा देखते. कभी मोतीझील के रमणीक उद्यान में बैठ कर प्यार भरी बातें करते और साथ जीनेमरने की कसमें खाते.

कहते हैं, बैर, प्रीति, खांसी और खुशी कभी छिपाए नहीं छिपती. यही हाल संजय और सुनयना के प्यार का भी यही हुआ. एक दिन कारगिल पार्क में मोहल्ले के एक युवक ने संजय और सुनयना को आपस में हंसतेबतियाते देख लिया. उस ने यह बात होटल पर जा कर सुनयना के मामा छोटू को बता दी. छोटू तुरंत घर गया. घर से सुनयना गायब थी, जिस से छोटू को विश्वास को गया कि सुनयना संजय के साथ है. उस ने सारी बात रामरती को बताई, जिसे सुन कर रामरती सन्न रह गई.

शाम को सुनयना घर लौटी तो मां का तमतमाया चेहरा देख कर वह समझ गई कि कुछ गड़बड़ जरूर है. वह रसोई की तरफ बढ़ी तो रामरती ने उसे टोका, ‘‘पहले मेरे पास आ कर बैठ और सचसच बता कि तू कहां गई थी?’’

मां की बात सुन कर सुनयना का हलक सूख गया. उस ने धीरे से कहा, ‘‘मां, मैं साईं मंदिर गई थी.’’

‘‘झूठ, तू साईं मंदिर नहीं, बल्कि संजय के साथ पार्क में बैठ कर प्यार की बातें कर रही थी.’’

‘‘नहीं मां, यह सच नहीं है. किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं.’’

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‘‘फिर झूठ.’’ गुस्से में रामरती ने सुनयना के गाल पर 2 तमाचे जड़ दिए. वह गाल सहलाती हुई कमरे में चली गई.

दूसरी ओर छोटू ने संजय को आड़े हाथों लिया, ‘‘देख संजय, सुनयना मेरी भांजी है. उस की तरफ आंख उठा कर भी तूने देखा तो तेरी आंखें निकाल लूंगा. आज के बाद मेरीतेरी दोस्ती खत्म. तू मेरे घर के आसपास भी दिखा तो तेरे हाथपैर तोड़ डालूंगा.’’

रामरती ने भी संजय को खूब खरीखोटी सुनाई. इस के बाद संजय और सुनयना का मिलना बंद हो गया. रामरती और छोटू सुनयना पर कड़ी नजर रखने लगे. सुनयना जब कभी घर से बाहर जाती, उस के साथ रामरती या छोटू होता. छोटू ने अपने कुछ खास लोगों को भी संजय और सुनयना की निगरानी में लगा दिया था. छोटू किसी भी तरह संजय को सुनयना से मिलने नहीं दे रहा था.

4 मई, 2017 को किसी तरह सुनयना को मौका मिल गया तो वह शास्त्रीनगर के सिंधी कालोनी पार्क पहुंच गई. फोन कर के उस ने संजय को वहीं बुला लिया. संजय और सुनयना पार्क में बैठ कर बातें कर रहे थे, तभी पीछा करता हुआ छोटू वहां पहुंच गया. उस ने पार्क में ही संजय को पीटना शुरू कर दिया. संजय किसी तरह खुद को छुड़ा कर भागा. सुनयना को पकड़ कर छोटू घर ले आया और रामरती से शिकायत कर के उसे भी पिटवाया. यही नहीं, उस ने आननफानन में दूसरे दिन ही सुनयना का रिश्ता तय कर दिया.

संजय और सुनयना की पिटाई ने आग में घी का काम किया. संजय समझ गया कि जब तक सुनयना का मामा छोटू जिंदा है, तब तक वह अपना प्यार नहीं पा सकता. वह यह भी जान गया था कि छोटू ने सुनयना का रिश्ता इसलिए तय कर दिया है, ताकि वह उस से दूर चली जाए. छोटू उस के प्यार में दीवार बन कर खड़ा था, इसलिए छोटू को ठिकाने लगाने का निश्चय कर वह उचित मौके की तलाश में लग गया.

10 मई, 2017 की रात 10 बजे छोटू होटल बंद कर के सोने की तैयारी कर रहा था, तभी उधर से संजय निकला. छोटू को देख कर उस का खून खौल उठा. रात 12 बजे तक वह शराब के नशे में धुत हो कर जेके मंदिर के बाहर टहलता रहा. उस के बाद घर गया और लोहे का हथौड़ा ले कर छोटू के होटल पर जा पहुंचा.

छोटू गहरी नींद में सो रहा था. संजय ने उसे दबोच लिया और छाती पर सवार हो कर हथौड़े से उस के सिर पर वार पर वार करने लगा. हथौड़े के वार से छोटू का सिर फट गया और खून का फव्वारा फूट पड़ा. कुछ देर तड़प कर छोटू ने दम तोड़ दिया. हत्या करने के बाद संजय ने बाल्टी में रखे पानी में हाथ धोए और घर जा कर कपडे़ बदल लिए. खून से सना हथौड़ा और कपड़े उस ने बड़े बक्से के पीछे छिपा दिए.

रामरती सुबह होटल पर पहुंची तो छोटू तख्त पर मृत मिला. वह चीखने लगी. थोड़ी ही देर में तमाम लोग वहां जमा हो गए. उसी भीड़ में से किसी ने पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने जांच शुरू की तो मोहब्बत के जुनून में की गई हत्या का खुलासा हो गया.

13 मई, 2017 को थाना काकादेव पुलिस ने अभियुक्त संजय को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक उस की जमानत नहीं हुई थी

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

18 नवंबर, 2016 की रात के यही कोई डेढ़ बजे मुंबई से सटे जनपद थाणे के उल्लासनगर के थाना विट्ठलवाड़ी के एआई वाई.आर. खैरनार को सूचना मिली कि आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेक्स की तीसरी मंजिल स्थित एक फ्लैट में काले रंग के बैग में लाश रखी है. सूचना देने वाले ने बताया था कि उस का नाम शफीउल्ला खान है और उस फ्लैट की चाबी उस के पास है. 35 साल का शफीउल्ला पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. रोजीरोटी की तलाश में वह करीब 8 साल पहले थाणे आया था, जहां वह उल्लासनगर के आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेकस के तीसरी मंजिल स्थित फ्लैट नंबर 308 में अपने परिवार के साथ रहता था. वह राजमिस्त्री का काम कर के गुजरबसर कर रहा था.

उस के फ्लैट से 2 फ्लैट छोड़ कर उस का मामा राजेश खान अपनी प्रेमिकापत्नी खुशबू उर्फ जमीला शेख के साथ रहता था. 10-11 महीने पहले ही खुशबू राजेश खान के साथ इस फ्लैट में रहने आई थी. वह अपना कमातीखाती थी, इसलिए वह राजेश खान पर निर्भर नहीं थी. राजेश खान कभीकभार ही उस के यहां आता था. ज्यादातर वह पश्चिम बंगाल स्थित गांव में ही रहता था.

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18 नवंबर की दोपहर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर जा रहा था, तभी इमारत की सीढि़यों पर उस की मुलाकात राजेश खान से हो गई. उस समय काफी घबराया होने के साथसाथ वह जल्दबाजी में भी था. लेकिन शफीउल्ला सामने पड़ गया तो उस ने रुक कर कहा, ‘‘शफी, अगर तुम मेरे साथ नीचे चलते तो मैं तुम्हें एक जरूरी बात बताता.’’

‘‘इस समय तो मैं कहीं नहीं जा सकता, क्योंकि मुझे बहुत तेज भूख लगी है. जो भी बात है, बाद में कर लेंगे.’’ कह कर शफीउल्ला जैसे ही आगे बढ़ा, राजेश खान ने पीछे से कहा, ‘‘यह रही मेरे फ्लैट की चाबी, रख लो. तुम्हारी मामी मुझ से लड़झगड़ कर कहीं चली गई है. मैं उसे खोजने जा रहा हूं. मेरी अनुपस्थिति में अगर वह आ जाए तो यह चाबी उसे दे देना. बाकी बातें मैं फोन से कर लूंगा.’’

राजेश खान से फ्लैट की चाबी ले कर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर चला गया तो राजेश खान नीचे उतर गया.  करीब 12 घंटे बीत गए. इस बीच न राजेश खान आया और न ही उस की पत्नी खुशबू आई. शफीउल्ला को चिंता हुई तो उस ने दोनों को फोन कर के संपर्क करना चाहा. लेकिन दोनों के ही नंबर बंद मिले.

शफीउल्ला सोचने लगा कि अब उसे क्या करना चाहिए. वह कुछ करता, उस के पहले ही रात के करीब एक बजे उस के फोन पर राजेश खान का फोन आया. उस के फोन रिसीव करते ही उस ने पूछा, ‘‘तेरी मामी आई या नहीं?’’

‘‘नहीं मामी तो अभी तक नहीं आई. यह बताओ कि इस समय तुम कहां हो?’’ शफीउल्ला ने पूछा.

‘‘तुम्हें राज की एक बात बताता हूं. अब तुम्हारी मामी कभी नहीं आएगी, क्योंकि मैं ने उसे मार दिया है. इस में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए. मेरे फ्लैट के बैडरूम में बैड के नीचे काले रंग का एक बैग पड़ा है, उसी में तुम्हारी मामी की लाश रखी है. तुम उसे ले जा कर कहीं फेंक दो. जल्दबाजी में मैं उसे फेंक नहीं पाया. इस समय मैं ट्रेन में हूं और गांव जा रहा हूं.’’

खुशबू की हत्या की बात सुन कर शफीउल्ला के होश उड़ गए. उस ने उस बैग के बारे में आसपड़ोस वालों को बताया तो सभी इकट्ठा हो गए. उन्हीं के सुझाव पर इस बात की सूचना शफीउल्ला ने थाना विट्ठलवाड़ी पुलिस को दे दी थी.

एआई वाई.आर. खैरनार ने तुरंत इस सूचना की डायरी बनवाई और थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट तथा पुलिस कंट्रोल रूम एवं पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर वह कुछ सिपाहियों के साथ राजाराम कौंपलेक्स पहुंच गए. रात का समय था, फिर भी उस फ्लैट के बाहर इमारत के काफी लोग जमा थे. उन के पहुंचते ही शफीउल्ला ने आगे बढ़ कर उन्हें फ्लैट की चाबी थमा दी.

फ्लैट का ताला खोल कर वाई.आर. खैरनार सहायकों के साथ अंदर दाखिल हुए तो बैडरूम में रखा वह काले रंग का बैग मिल गया. उन्होंने उसे हौल में मंगा कर खुलवाया तो उस में उन्हें एक महिला की लाश मिली.

बैग से बरामद लाश की शिनाख्त की कोई परेशानी नहीं हुई. शफीउल्ला ने उस के बारे में सब कुछ बता दिया. लाश बैग से निकाल कर वाई.आर. खैरनार जांच में जुट गए. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट, एसीपी अतितोष डुंबरे, एडिशनल सीपी शरद शेलार, डीसीपी सुनील भारद्वाज, अंबरनाथ घोरपड़े के साथ आ पहुंचे.

फोरैंसिक टीम के साथ पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण किया. अपना काम निपटा कर थोड़ी ही देर में सारे अधिकारी चले गए.

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लाश के निरीक्षण में स्पष्ट नजर आ रहा था कि मृतका की बेल्ट से जम कर पिटाई की गई थी. उस के शरीर पर तमाम लालकाले निशान उभरे हुए थे. कुछ घावों से अभी भी खून रिस रहा था. उस के गले पर दबाने का निशान था. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर के सुरेंद्र शिरसाट ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए उल्लासनगर के मध्यवर्ती अस्पताल भिजवा दिया.

घटनास्थल की पूरी काररवाई निपटा कर सुरेंद्र शिरसाट थाने लौट आए और सहयोगियों से सलाहमशविरा कर के इस हत्याकांड की जांच एआई वाई.आर. खैरनार को सौंप दी.

वाई.आर. खैरनार ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में उन्होंने एआई प्रमोद चौधरी, ए. शेख के अलावा हैडकांस्टेबल दादाभाऊ पाटिल, दिनेश चित्ते, अजित सांलुके तथा महिला सिपाही ज्योति शिंदे को शामिल किया.

पुलिस को शफीउल्ला से पूछताछ में पता चल गया था कि राजेश खान ने कत्ल कर के गांव जाने के लिए कल्याण रेलवे स्टेशन से ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ ली है. अब पुलिस के लिए यह चुनौती थी कि वह गांव पहुंचे, उस के पहले ही उसे पकड़ ले. अगर वह गांव पहुंच गया और उसे पुलिस के बारे में पता चल गया तो वह भाग सकता था.

इस बात का अंदाजा लगते ही पुलिस टीम ने जांच में तेजी लाते हुए राजेश खान के मोबाइल की लोकेशन पता की तो वह जिस ट्रेन से गांव जा रहा था, वहां से उसे गांव पहुंचने में करीब 10 घंटे का समय लगता.

पुलिस टीम किसी भी तरह उसे हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी, इसलिए वाई.आर. खैरनार ने सीनियर अधिकारियों से बात कर के राजेश खान की गिरफ्तारी के लिए एआई ए. शेख और हैडकांस्टेबल माने को हवाई जहाज से कोलकाता भेज दिया. दोनों राजेश के पहुंचने से पहले ही हावड़ा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए और उसे गिरफ्तार कर लिया.

26 साल के राजेश खान को मुंबई ला कर पूछताछ की गई तो उस ने खुशबू से प्रेम होने से ले कर उस की हत्या तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

राजेश खान पश्चिम बंगाल के जनपद मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. गांव में वह मातापिता एवं भाईबहनों के साथ रहता था. गांव में उस के पास खेती की जमीन तो थी ही, बाजार में कपड़ों की दुकान भी थी, जो ठीकठाक चलती थी. उसी दुकान के लिए वह कपड़ा लेने थाणे के उल्लासनगर आता था. वह जब भी कपड़े लेने उल्लासनगर आता था, अपने भांजे शफीउल्ला से मिलने जरूर आता था.

24 साल की खुशबू उर्फ जमीला से राजेश खान की मुलाकात उस की कपड़ों की दुकान पर हुई थी. वह उसी के गांव के पास की ही रहने वाली थी. उस की शादी ऐसे परिवार में हुई थी, जिस की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. वह जिन सपनों और उम्मीदों के साथ ससुराल आई थी, वे उसे पूरे होते नजर नहीं आ रहे थे. खुली हवा में सांस लेना घूमनाफिरना, मनमाफिक पहननाओढ़ना उस परिवार में कभी संभव नहीं था.

इसलिए जल्दी ही वहां खुशबू का दम घुटने लगा. खुली हवा में सांस लेने के लिए उस का मन मचल उठा. दुकान पर आनेजाने में जब उस ने राजेश खान की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो उठी.

चाहत दोनों ओर थी, इसलिए कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. जल्दी ही उन की हालत यह हो गई कि दिन में जब तक दोनों एक बार एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन्हें चैन नहीं मिलता. उन के प्यार की जानकारी गांव वालों को हुई तो उन के प्यार को ले कर हंगामा होता, उस के पहले ही वह खुशबू को ले कर मुंबई आ गया और किराए का फ्लैट ले कर उसी में उस के साथ रहने लगा. मुंबई में उस ने उस से निकाह भी कर लिया.

मुंबई पहुंच कर खुशबू ने आत्मनिर्भर होने के लिए एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर ली. इस से राजेश खान चिंता मुक्त हो गया. वह महीने में 10-15 दिन मुंबई में खुशबू के साथ रहता था तो बाकी दिन गांव में रहता था.

मुंबई आ कर खुशबू में काफी बदलाव आ गया था. ब्यूटीपार्लर में काम करने के बाद उस के पास जो समय बचता था, उस समय का सदुपयोग करते हुए अधिक कमाई के लिए वह बीयर बार में काम करने चली जाती थी. पैसा आया तो उस ने रहने का ठिकाना बदल दिया. अब वह उसी इमारत में आ कर रहने लगी, जहां शफीउल्ला अपने परिवार के साथ रहता था. वहां उस ने सुखसुविधा के सारे साधन भी जुटा लिए थे.

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खुशबू के रहनसहन को देख कर राजेश खान के मन संदेह हुआ. उस ने उस के बारे में पता किया. जब उसे पता चला कि खुशबू ब्यूटीपार्लर में काम करने के अलावा बीयर बार में भी काम करती है तो उस ने उसे बीयर बार में काम करने से मना किया. लेकिन उस के मना करने के बावजूद खुशबू बीयर बार में काम करती रही. इस से राजेश खान का संदेह बढ़ता गया.

18 नवंबर की सुबह खुशबू बीयर बार की ड्यूटी खत्म कर के फ्लैट पर आई तो राजेश खान को अपना इंतजार करते पाया. उस समय वह काफी गुस्से में था. उस के पूछने पर खुशबू ने जब सीधा उत्तर नहीं दिया तो वह उस पर भड़क उठा. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो खुशबू ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वहीं करूंगी.’’

‘‘खुशबू, तुम मेरी पत्नी ही नहीं, प्रेमिका भी हो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. तुम अपनी ब्यूटीपार्लर वाली नौकरी करो, मैं उस के लिए मना नहीं करता. लेकिन बीयर बार में काम करना मुझे पसंद नहीं है. मैं नहीं चाहता कि लोग तुम्हें गंदी नजरों से ताकें.’’

‘‘मैं जो कर रही हूं, सोचसमझ कर कर रही हूं. अभी मेरी कमानेखाने की उम्र है, इसलिए मैं जो करना चाहती हूं, वह मुझे करने दो.’’ कह कर खुशबू बैडरूम में जा कर कपड़े बदलने लगी.

राजेश खान को खुशबू से ऐसी बातों की जरा भी उम्मीद नहीं थी. वह भी खुशबू के पीछेपीछे बैडरूम में चला गया और उसे समझाने की गरज से बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझे प्यार नहीं करती. लगता है, तुम्हारी जिंदगी में कोई और आ गया है?’’

‘‘तुम्हें जो समझना है, समझो. लेकिन इस समय मैं थकी हुई हूं और मुझे नींद आ रही है. अब मैं सोने जा रही हूं. अच्छा होगा कि तुम अभी मुझे परेशान मत करो.’’

खुशबू की इन बातों से राजेश खान का गुस्सा बढ़ गया. उस की आंखों में नफरत उतर आई. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मेरी नींद को हराम कर के तुम सोने जा रही हो. लेकिन अब मैं तुम्हें सोने नहीं दूंगा.’’

यह कह कर राजेश खान खुशबू की बुरी तरह से पिटाई करने लगा. हाथपैर से ही नहीं, उस ने उसे बेल्ट से भी मारा. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो फर्श पर पड़ी दर्द से कराह रही खुशबू के सीने पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

खुशबू के मर जाने के बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे जेल जाने का डर सताने लगा. वह लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने लाश को फ्लैट में ही छिपा कर गांव भाग जाने में अपनी भलाई समझी. उस का सोचना था कि अगर वह गांव पहुंच गया तो पुलिस उसे कभी पकड़ नहीं पाएगी.

उस ने बैडरूम मे रखे खुशबू के बैग को खाली किया और उस में उस की लाश को मोड़ कर रख कर उसे बैड के नीचे खिसका दिया. वह दरवाजे पर ताला लगा कर बाहर निकल रहा था, तभी उस का भांजा शफीउल्ला उसे सीढि़यों पर मिल गया, जिस की वजह से खुशबू की हत्या का रहस्य उजागर हो गया.

घर की चाबी शफीउल्ला को दे कर वह सीधे कल्याण रेलवे स्टेशन पहुंचा और वहां से कोलकाता जाने वाली ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ कर गांव के लिए चल पड़ा.

राजेश खान से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ अपराध संख्या 324/2016 पर खुशबू की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच एआई वाई.आर. खैरनार कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

धोखाधड़ी: न्यूड वीडियो कालिंग से लुटते लोग

मध्य प्रदेश में ग्वालियर की शिंदे की छावनी में रहने वाले 32 साला जयराज सिंह तोमर (बदला हुआ नाम) अपने ह्वाट्सएप पर मैसेज देख रहे थे कि तभी उन के पास एक अनजान फोन नंबर से वीडियो काल आया.

क्या पता किस का होगा, यह सोचते हुए उन्होंने काल रिसीव किया, तो स्क्रीन का नजारा देखते ही उन के एकदम से पसीने छूट गए.

मोबाइल फोन की स्क्रीन पर तकरीबन 20-22 साल की एक खूबसूरत लड़की मदमस्त अंदाज में अपनी दोनों छातियों को मसलते हुए जीभ लपलपा रही थी और उन की तरफ फ्लाइंग किस भी दे रही थी.

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थोड़ी देर के लिए उस लड़की ने उभारों से अपने हाथ हटाए, तो जयराज सिंह तोमर पगला उठे. एक बार तो मन में आया कि हाथ बढ़ा कर स्क्रीन में ही उस सुंदरी को दबोच लें, लेकिन वह जिस अंदाज में आंधी की तरह आई थी, उस से भी बड़ा तूफान उन के दिलोदिमाग में मचा कर छू हो गई यानी उस ने फोन काट दिया.

यह सब कुल 20 सैकंड में हुआ. जयराज सिंह तोमर की कनपटियां तो इतने में ही गरम हो गई थीं और सांस धौंकनी की तरह चलने लगी थी.

लौकडाउन यानी फुरसत के दिन थे. उन की हार्डवेयर की दुकान बंद थी, लिहाजा दिन बड़ी मुश्किल से कट रहे थे. खाली समय में वे या तो यूट्यूब पर पोर्न साइटें खोज कर ब्लू फिल्में देख रहे थे या फिर नजदीकी दोस्तों की भेजी गई पोर्न फिल्मों के टुकड़े देख कर समय गुजार रहे थे.

कभीकभार तो अपने जोश में जयराज सिंह तोमर पत्नी के साथ हमबिस्तरी कर शांत हो लेते थे, लेकिन जाने क्यों ये फिल्में देख कर उन्हें सैक्स के नएनए तरीके आजमाने का मन करने लगा था, जिन में पत्नी को दिलचस्पी नहीं थी.

आज इस जवान और हसीन लड़की की मस्त अदाओं ने तो जयराज सिंह तोमर के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं. बारबार वे अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन और वह नंबर देख रहे थे मानो उस लड़की का वीडियो काल दोबारा आएगा और वह फिर से उन्हें जन्नत की मुफ्त सैर करवाएगी.

कौन हो सकती है वह लड़की और क्यों उस ने उन्हें काल किया? इन सवालों के जवाब खोजतेखोजते कुछ देर बाद उन्होंने कांपते हाथों से वह नंबर डायल किया और एक घंटी दे कर काट दिया.

कुछ सैकंड बाद ही उसी नंबर से मैसेज आया, जिस में लिखा था, ‘और देखोगे बाबू?’

‘हां…’ जयराज सिंह तोमर ने बिना देरी किए जवाब भेज दिया.

‘तो बाथरूम में जाओ और अपना अंग दिखाओ,’ वहां से दोबारा मैसेज आया.

जयराज सिंह तोमर चाबी भरे खिलौने की तरह बाथरूम में तो चले गए, लेकिन अपने कपड़े उन्होंने नहीं उतारे. बाथरूम जाने की एक वजह यह भी थी कि वहां किसी के आ जाने का डर नहीं था.

फिर वीडियो काल आया और वही लड़की अपने उभारों को पहले की तरह ही मसलते, उछालते और दबाते दिखी, तो वे तो पगला उठे. लड़की कुछ बोल नहीं रही थी. एक बार वह अपना हाथ इस अंदाज में अंडरवियर तक ले गई मानो उसे भी उतार फेंकेगी.

दुनियाजहान भूलभाल कर जयराज सिंह तोमर नजरें गड़ाए उस के संगमरमरी बदन और अदाओं में खोए हुए थे कि फिर मैसेज आया, ‘अपना दिखाओ…’

अब तक जयराज सिंह तोमर इतने जोश में आ चुके थे कि मैसेज न भी आता तो खुद कपड़े उतारने वाले थे, पर अब तो उन्हें यह ज्ञान भी हासिल हो

गया था कि अगर लड़की से उस का अंडरवियर उतरवाना  है, तो पहले खुद का उतारना पड़ेगा.

एक हाथ में मोबाइल फोन पकड़े जयराज सिंह तोमर ने गजब की फुरती  से दूसरे हाथ से लुंगी की गांठ खोली और फिर अंडरवियर भी निकाल दिया. उधर लड़की ने भी मानो उन की नकल की, फिर तो जयराज सिंह तोमर बेकाबू  हो गए.

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उस लड़की के बदन पर एक भी बाल नहीं था और वह तरहतरह से ऐसी अदाएं दिखा रही थी कि जयराज सिंह तोमर को होश नहीं रहा और वे हस्तमैथुन करने लगे.

जब होश आया तो…

कोई 4 मिनट बाद काल बंद हो गया, तो जयराज सिंह तोमर भी कपड़े पहन कर बाहर आ गए. बिस्तर पर आ कर ऐसे गिरे जैसे मीलों दौड़ कर आए हों. कितना अच्छा हो अगर वह लड़की रोजरोज ऐसा ही करे, यह सोच ही रहे थे कि उसी नंबर से एक वीडियो आया.

उन्हें लगा कि उस लड़की ने एक और खास वीडियो उन के लिए भेजा है. लेकिन जैसे ही वीडियो चलाया तो उन के हाथों के तोते उड़ गए, क्योंकि वीडियो लड़की का नहीं, बल्कि उन्हीं का था जिस में वे बेकाबू होते अपने बाथरूम में हस्तमैथुन करते नजर आ रहे थे.

चंद सैकंड में ही दिमाग की बत्तियां जलीं, तो जयराज सिंह तोमर के हाथपैर कांपने लगे. लड़की की मंशा उन्हें सम झ आ गई थी. आगे कुछ और सोचसम झ पाते, इस के पहले ही मैसेज आया, ‘2 घंटे के अंदर 5,000 रुपए हमारे खाते में डाल दो, नहीं तो यह वीडियो तुम्हारी पत्नी और तमाम रिश्तेदारों को भेज दिया जाएगा.’

मैसेज में ही बैंक एकाउंट के डिटेल्स दिए हुए थे. जयराज सिंह तोमर ने खूब सोचा और फिर भलाई इसी में सम झी कि बदनामी और जगहंसाई से बचना है, तो बिना किसी चूंचपड़ के पैसे दे दिए जाएं यानी ब्लैकमेल हो जाया जाए.

पैसे ट्रांसफर करने से पहले हिम्मत जुटाते हुए उन्होंने लड़की के नंबर पर काल किया तो घंटी जाती रही. मैसेज किया तो वह डिलीवर ही नहीं हुआ. थकहार कर उन्होंने वौइस काल किया तो नंबर नौट रीचेबल आने लगा. ट्रूकौलर पर चैक किया, तो किसी पूनम रानी का नाम आया.

सोचनेसम झने के लिए अब कुछ खास नहीं बचा था सिवा इस के कि 5,000 रुपए खाते में डाल दिए जाएं, नहीं तो इज्जत का पंचनामा बन जाएगा.

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हालांकि मन में खटका यह भी आया कि अब तो वह लड़की कभी भी ब्लैकमेल करेगी, लेकिन हालफिलहाल 2 घंटे की मीआद से बचना जरूरी था, सो उन्होंने पैसे ट्रांसफर कर दिए और लुटेपिटे से बैठे अपनी बाथरूम वाली बेवकूफी को कोसते रहे, जो बहुत ज्यादा महंगी पड़ी थी.

एक ढूंढ़ो मिलते हैं हजार

अच्छा तो यह रहा कि दोबारा उस कमबख्त पूनम रानी का मैसेज नहीं आया, जिस के बाबत जयराज सिंह तोमर सरीखे लोग हलकान हैं, क्योंकि उन से भी  झांसे या सैक्सी नजारे देखने के लालच में वही गलती की थी, जो जयराज सिंह तोमर से हुई थी.

ऐसे लोगों की ठीकठाक तादाद तो शायद ही कोई बता पाए, लेकिन एक अंदाजे के मुताबिक यह हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में हो सकती है. इस का अंदाजा अभी तक पकड़े गए ब्लैकमेलर्स के बयानों से भी लगता है, जो बाकायदा गिरोह बना कर काम करते हैं.

ऐसा ही एक गिरोह बीते दिनों भोपाल में पकड़ा गया था, जिस के सरगना थे पेशे से ठेकेदार यादराम और एमए में पढ़ रहा पुरुषोत्तम मीणा, जिन्हें यह काम वसीम नाम के एक दोस्त ने सिखाया था. इन दोनों ने सैकड़ों लोगों से लाखों रुपए की रकम उन के न्यूड वीडियो बना कर ऐंठी थी.

इन लोगों ने बताया था कि वे हर महीने साढ़े 5 लाख रुपए तक इस अनूठे धंधे से कमा रहे थे. ये लोग एक शिकार से 20,000 रुपए से ले कर 60,000 रुपए तक वसूलते थे. दिलचस्प बात यह कि एक बार जिस से पैसे ले लेते थे, उसे दोबारा तंग नहीं करते थे, जिस से कि  वह शिकायत ले कर पुलिस में रिपोर्ट  न लिखवाए.

वसीम को फिरोजपुर के  िझरका से और पुरुषोत्तम और यादराम को राजस्थान के अलवर से गिरफ्तार किया था.

मई और जून के महीने में अकेले मुरैना में 72 लोगों को एक और गिरोह ने चूना लगाया था. आम तो आम खास लोग भी इन से या सैक्सी लड़कियों के नंगे बदन और अदाएं देखने की हसरत  से खुद को बचा नहीं सके थे. इन के शिकारों में मुरैना का एक नामी नेता और कई बड़े बिजनैस में भी शामिल हैं.

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के कांग्रेसी विधायक नीरज दीक्षित को भी एक गिरोह ने ब्लैकमेल किया था.

ऐसे कितने गिरोह देशभर में ब्लैकमेलिंग की वारदात को अंजाम दे रहे हैं, इस की गिनती भी कोई नहीं कर सकता, क्योंकि बैठेबिठाए मुफ्त के इस धंधे से इन दिनों हर कोई चांदी काट रहा है.

ग्वालियर में ही एक कृषि अधिकारी और एक बड़े व्यापारी से ऐसे गिरोह ने लाखों रुपए  झटके थे. पिछले साल सितंबर महीने में रायपुर में भी एक ऐसे गिरोह की शिकायत भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन यानी एनएसयूआई के छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष आकाश शर्मा ने की थी.

आकाश शर्मा ने इन के  झांसे में न आ कर पुलिस में शिकायत कर दी थी. यह गिरोह उत्तर प्रदेश के नोएडा का था, जिस में किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. हां, ठगने की कोशिश जयराज सिंह तोमर की तर्ज पर की गई थी.

पुलिस की जांच में यह खुलासा हुआ था कि यह गिरोह सैकड़ों लोगों से लाखों रुपए वसूल चुका है, क्योंकि ज्यादातर लोग डर और बदनामी के चलते रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते. पुलिस को शक है कि कुछ लोगों ने घबरा कर खुदकुशी भी कर ली.

उत्तर प्रदेश के ही  झांसी से साइबर क्राइम पुलिस ने 14 जून को इंजीनियरिंग के 3 छात्रों अशफाक खान, जावेद खान और मोहम्मद शोएब को गिरफ्तार किया था.

इन की शिकायत अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के एक सीनियर और इज्जतदार प्रोफैसर ने की थी, जिन से ये तीनों 3 लाख रुपए  झटक चुके थे और फिर पैसों की मांग कर रहे थे. तंग आ कर प्रोफैसर साहब ने इन की शिकायत अलीगढ़ पुलिस को की थी.

पूछताछ में इन तीनों ने माना था कि वे उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान और मध्य प्रदेश में कई लोगों को ब्लैकमेल कर चुके हैं.

ऐसे फंसते हैं लोग

जैसे ग्वालियर के जयराज सिंह तोमर और अलीगढ़ के प्रोफैसर साहब फंसे, वैसे ही लड़कियों की न्यूड वीडियो देखने के तमाम शौकीन फंसते हैं. जान कर हैरानी होती है कि इन गिरोहों  में लड़कियां न के बराबर होती हैं.

दरअसल, गिरोह वाले मोबाइल फोन चालू होते ही पहले से रिकौर्ड वीडियो की क्लिप चला देते हैं. देखने वाले को लगता है कि वे लड़की को लाइव देख रहे हैं, इस से उन का जोश और बढ़ जाता है.

शिकार फांसने के लिए ये गिरोह सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं, खासतौर से फेसबुक का जिस पर किसी खूबसूरत लड़की की फर्जी प्रोफाइल बना कर ये शिकार को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजते हैं और धीरेधीरे सैक्सी बातें करना शुरू कर देते हैं.

सामने लड़का है या लड़की, यह शिकार को तब पता चलता है, जब वह पूरी तरह इन के जाल में फंस जाता है. फेसबुक पर ही ये शिकार का ह्वाट्सएप नंबर लेते हैं और फिर न्यूड वीडियो दिखा कर बाथरूम या अकेले में जाने के लिए उकसाते हैं. इस के बाद ये मैसेज के जरीए जैसा करने के लिए कहते हैं, शिकार वैसा ही करने लगता है, जिस की ये लोग रिकौर्डिंग कर लेते हैं.

नया हथकंडा है सैक्स्टौर्शन

जब लोग फंसने लगे, तो इन ब्लैकमेलर्स ने सैक्स्टौर्शन का हथकंडा भी अपनाना शुरू कर दिया. जैसा कि रायपुर के आकाश शर्मा के साथ करने की कोशिश की थी.

सैक्स्टौर्शन को आसान जबान में सम झें, तो इस में वीडियो कालिंग के दौरान काल करने वाला काल उठाने वाले की रिकौर्डिंग कर लेता है. इस के बाद उस का चेहरा किसी मिलतीजुलती कदकाठी वाले शख्स के नंगे वीडियो में जोड़ दिया जाता है.

यह काम इतनी सफाई से किया जाता है कि शिकार खुद चकरा उठता है कि वीडियो में दिख रहा शख्स वही है. फिर यह वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर उसे निचोड़ा जाता है. बदनामी के डर से शिकार इन्हें पैसे दे देता है.

सैक्स्टौर्शन का मकसद नंगे वीडियो दिखाना कम शिकार की रिकौर्डिंग करना ज्यादा होता है, जिस से बाद में इतमीनान से उस में हेरफेर और ऐडिटिंग कर पोर्न वीडियो की शक्ल में उसे तबदील कर लिया जाए.

इस टैक्निक को अमल में लाने वाले ज्यादातर गांवदेहात के तेज दिमाग वाले नौजवान होते हैं. इन्हीं लोगों ने हकीकत में कोरोना के लौकडाउन की आपदा को अवसर में बदलते खूब मौज की और धड़ल्ले से अभी भी कर रहे हैं.

ऐसे बचें इन चालबाजों से

यह तो बिना सम झाए सम झने वाली बात है कि न्यूड वीडियो कालिंग और सैक्स्टौर्शन से बचने का बड़ा कारगर तरीका अनजान नंबर से आए वीडियो काल को रिसीव नहीं करना चाहिए, जिस से न रहेगा बांस और न बजेगा आप का बैंड, लेकिन इस के अलावा  भी ये एहतियात हमेशा बरतनी चाहिए, जिस से आप इन ब्लैकमेलर्स का शिकार न बनें :

* अपने फेसबुक एकाउंट पर किसी भी अनजान को न जोड़ें. उस की फ्रैंड रिक्वैस्ट रिजैक्ट कर दें.

* अपनी फेसबुक प्रोफाइल लौक कर के रखें. यह सहूलियत सैटिंग्स में जा कर आसानी से मिल जाती है.

* मोबाइल फोन पर कोई भी अनजान वीडियो काल अटैंड करते समय फ्रंट कैमरा बंद कर दें या अंधेरे में जा कर उठाएं.

* अपने जज्बातों और मुफ्त की नग्न होती लड़की को देखने की ख्वाहिश को काबू में रखते हुए बाद के नतीजों पर गौर कर लें.

* अपने घरपरिवार की जानकारी सोशल मीडिया पर सा झा न करें.

* इस के बाद भी फंस ही जाएं, तो ब्लैकमेल होने के बजाय पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएं. इस से ब्लैकमेलर्स के हौसले पस्त पड़ते हैं.

एक अंदाजे के मुताबिक, लौकडाउन के दौरान यह धंधा 500 फीसदी तक बढ़ा है और अभी भी लगातार बढ़ ही रहा है. इस की एक बड़ी वजह वे लोग भी हैं, जिन्होंने बजाय पुलिस में जाने के ब्लैकमेल होने का रास्ता चुना.

Crime: करीबी रिश्तो में बढ़ते अपराध

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज इलाके में कुछ ही समय में आधा दर्जन ऐसी घटनाएं घटीं, जिन से करीबी रिश्तों में बढ़ रहे अपराध का पता चलता है.

वैसे, यह बात केवल एक जगह की नहीं है. समाज में हर जगह एक सा हाल है. अपराध की घटनाओं की पड़ताल करने पर यह सच उजागर हो जाता है.

प्रेमी संग मंगेतर की हत्या

शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशा के साथ तय हुई थी. निशा लखनऊ पीजीआई अस्पताल के पास ही एकता नगर में रहती थी. वह अपने 2 भाइयों में सब से छोटी और लाड़ली भी थी.

शहाबुद्दीन भी अपने घर में सब से छोटा था. वह बंथरा में रहता था. दोनों के घर के बीच 35 किलोमीटर की दूरी थी. शहाबुद्दीन ट्रासपोर्ट नगर में दुकान पर नौकरी करता था, जो दोनों के घरों के बीच थी.

हसमतुल निशा ने अपने घर वालों के कहने पर शहाबुद्दीन के साथ शादी के लिए हामी तो भर दी थी, पर वह अपने प्रेमी शाने अली को भूलने के लिए भी तैयार नहीं थी. ऐसे में जैसेजैसे शहाबुद्दीन के साथ शादी का दिन करीब आ रहा था, दोनों के बीच तनाव बढ़ रहा था.

हसमतुल निशा को लगता था कि वह शादी का दिखावा ही करेगी. बाकी वह मन से अपने प्रेमी शाने अली के साथ रहना चाहती थी.

शहाबुद्दीन के साथ हसमतुल निशा की सगाई होने के बाद उन दोनों के बीच बातचीत होने लगी. शहाबुद्दीन अकसर उसे फोन करने लगा और मिलने के लिए भी दबाव बनाने लगा.

यह बात हसमतुल निशा को अच्छी नहीं लग रही थी. शाने अली भी चाहता था कि हसमतुल निशा अपने होने वाले पति शहाबुद्दीन से मिलने न जाए. जब भी उसे यह पता चलता था कि दोनों की फोन पर बातचीत होती है और वह आपस में मिलते भी हैं, इस बात को ले कर हसमतुल निशा और शाने अली के बीच  झगड़ा होता था.

उन दोनों के बीच लड़ाई झगड़े के बाद यह तय हुआ कि अब शहाबुद्दीन को रास्ते से हटाना ही होगा.

शहाबुद्दीन को अपनी होने वाली पत्नी और उस के प्रेमी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह उन दोनों को आपस में रिश्तेदार सम झता था और उन पर भरोसा भी करता था.

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अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशा को शादी के पहले वह अच्छी तरह से जाननेसम झने के लिए करीब आने की कोशिश कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि उस की यह कोशिश उसे मौत की तरफ ले जा सकती थी.

शहाबुद्दीन अपनी होने वाली पत्नी के साथ संबंधों को मधुर बनाने का काम कर रहा था, पर प्रेमी के मायाजाल में फंसी हसमतुल निशा खुद को उस से दूर करना चाहती थी. परिवार के दबाव में वह खुल कर बोल नहीं पा रही थी.

हसमतुल निशा ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर योजना बनाई. हसमतुल निशा चाहती थी कि शाने अली उस के मंगेतर शहाबुद्दीन को रास्ते से हटा दे. योजना को सही आकार देने के लिए शाने अली ने अपने जन्मदिन पर  11 मार्च, 2021 को शहाबुद्दीन को मिलने के लिए बुलाया.

गुरुवार की रात तकरीबन साढ़े 8 बजे शाने अली और उस के दोस्त बाराबंकी निवासी अरकान, मोहनलालगंज निवासी संजू गौतम, अमन कश्यप और पीजीआई निवासी समीर मोहम्मद बाबूखेड़ा में जमा हुए. जैसे ही शहाबुद्दीन वहां पहुंचा, शाने अली और उन के दोस्तों ने उस पर चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

कई वार होने के बाद भी शहाबुद्दीन ने हार नहीं मानी और अपनी जान बचाने के लिए वह हमलावरों से भिड़ गया.

शाने अली और उस के हमलावर दोस्तों को जब लगा कि शहाबुद्दीन बच निकलेगा तो उन लोगों ने कुत्ते को बांधी जाने वाली जंजीर से शहाबुद्दीन का गला घोंट दिया, जिस से वह अपना बचाव नहीं कर पाया और मर गया.

बाद में हसमतुल निशा ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर मंगेतर शहाबुद्दीन की हत्या कर दी.

चौथे पति का बेरहमी से कत्ल

लखनऊ के नगराम थाने के महगुआ गांव की रहने वाली ज्ञानवती ने अवधेश के साथ चौथी शादी की थी.

ज्ञानवती की पहली शादी 20 साल की उम्र में नगराम के रहने वाले दिलीप से हुई थी. शादी के कुछ दिन बाद ही उन दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई.

दिलीप को केवल ज्ञानवती की याद तब ही आती थी, जब उसे उस का जिस्म चाहिए होता था. पतिपत्नी के रिश्ते में जिस्मानी संबंधों के साथ जिम्मेदारी भरा अहसास भी होता है. ज्ञानवती को कभी यह नहीं लगा कि दिलीप उस के साथ ऐसे संबंधों को निभा पाएगा.

अच्छी बात यह थी कि ज्ञानवती के समाज में तलाक लेने में कोई दिक्कत नहीं आती थी. पंचायत के फैसलों पर ही तलाक हो जाता था. शादी के कुछ साल बाद ज्ञानवती और दिलीप अलग हो गए.

ज्ञानवती की दूसरी शादी चौराहपुर के श्यामलाल के साथ हुई. श्यामलाल से उस के एक बच्चा भी हो गया, जिस का नाम सूरज रखा गया था.

सूरज के आने के बाद भी ज्ञानवती की जिंदगी में बहुत दिनों तक उजाला नहीं रह सका. जिस तरह से दिलीप के साथ ज्ञानवती का मनमुटाव शुरू हुआ था, उसी तरह से श्यामलाल के साथ भी होने लगा.

मनमुटाव  झगड़े में बदला और ज्ञानवती ने अलग रहने का फैसला कर लिया. श्यामलाल ने भी कह दिया कि बेटा सूरज उस के साथ ही रहेगा.

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इस के बाद भी ज्ञानवती ने अपना फैसला नहीं बदला. अब वह फिर से अपनी शादीशुदा जिंदगी बसाने के लिए कोशिश करने लगी.

इस बार ज्ञानवती ने सुखलाल खेड़ा नवी नगर निवासी सुनील रावत के साथ तीसरी शादी कर ली.

ज्ञानवती ने अब सोच लिया था कि सुनील ही उस की जिंदगी को सुखमय बनाएगा. पहले की दोनों शादियों के मुकाबले ज्ञानवती की तीसरी शादी उसे अच्छी लग रही थी.

सुनील का स्वभाव भी बहुत अच्छा था. ज्ञानवती के साथ उस का समय अच्छा गुजर रहा था. दोनों के 2 बच्चे राम और नरेश पैदा हुए. बच्चों के होने के बाद सुनील और ज्ञानवती के बीच संबंध पहले जैसे मधुर नहीं रहे थे. अब दोनों के बीच टकराव होने लगा था.

ज्ञानवती ने  झुकना नहीं सीखा था और सुनील से अलग रास्ता उस ने बना लिया. अब उस ने मंहगुआ गांव के रहने वाले अवधेश से अपनी चौथी शादी कर ली. 14 साल में चौथी शादी करने के बाद भी ज्ञानवती को संतोष नहीं हो रहा था.

ज्ञानवती का स्वभाव विद्रोही होने लगता था. अवधेश जब भी नशा कर के आता था. इस वजह से ज्ञानवती की उस से लड़ाई होने लगती थी. ज्ञानवती और अवधेश के बीच संबंध एक साल के अंदर फिर से हाशिए पर पहुंच गए थे.

पहले 3 पतियों को छोड़ कर शादी करने वाली ज्ञानवती ने चौथे पति को रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या ही कर दी.

ज्ञानवती ने पुलिस को बताया, ‘‘अवधेश मेरे चौथे पति थे. मैं ने सोचा था कि चौथी शादी के बाद मैं सुकून और शांति के साथ रह सकूंगी. अवधेश ने भी मु झ से यही वादा किया था.

‘‘पर शादी के कुछ ही दिनों के बाद हमारे बीच लड़ाई झगड़ा शुरू हो गया. तब मैं इस रिश्ते से भी छुटकारा पाने की सोचने लगी. 24 मई को इच्छाखेड़ा में मेरे रिश्तेदार के यहां शादी थी. वहीं मेरे दोनों लड़के गए थे. घर में मैं और अवधेश ही थे.

‘‘अवधेश कहीं गए थे. वहां से नशा कर के जब वे वापस घर आए तो पीने के लिए पानी मांगा. मु झे लगा कि यही सही मौका है. मैं ने सिंघाड़ा बोने में काम आने वाली कीटनाशक दवा पानी में मिला दी. इस के बाद मु झे डर लगने लगा कि वे यहीं मर जाएंगे तो मैं फंस जाऊंगी.

‘‘इस के बाद डंडे से सिर पर वार  कर दिया और लकड़ी की 2 फट्टी गले के दोनों तरफ रख कर दबा दिया.  जब वे बेहोश हो गए, तो खींच कर चारपाई से नीचे गिरा दिया.

‘‘ब्लेड से शरीर के कई हिस्सों हाथ और सीने पर पचासों निशान बना दिए. आंख की पलक भी काट दी और पूरे शरीर पर मिट्टी लगा दी, जिस से यह लगे कि कहीं और से मारपीट कर के यहां डाल दिया गया है.’’

प्रेमी से कराई अपने घर चोरी

रसूलपुर आशिक अली थाना गोसाईंगंज जिला लखनऊ के रहने वाले मनोज कुमार की 19 साल की बेटी खुशबू कुमारी का पुरवा मलौली थाना गोसाईंगंज के रहने वाले विनय यादव के साथ प्रेम हो गया. विनय खुशबू को बेहद प्यार करता था. दोनों के बीच जातपांत की गहरी खाई थी.

दोनों ही परिवारों को इन की दोस्ती पसंद नहीं थी. इस के बाद भी विनय और खुशबू अपनी दोस्ती को छोड़ना नहीं चाहते थे. लेकिन परेशानी यह थी कि उन को साथ रहने का रास्ता नहीं दिख रहा था.

अच्छी बात यह थी कि विनय और खुशबू के बीच एक तालमेल बना हुआ था. दोनों ही अपने विचारों का आदानप्रदान कर लेते थे. दोनों ने सोचा था कि विनय नौकरी करेगा, तो फिर वे दोनों शहर में अपना अलग घर ले कर रहेंगे.

कोरोना काल में लौकडाउन के चलते जिस तरह से कामधंधों पर रोक लगी, उस से विनय और खुशबू जैसे नौजवानों के सामने भी अपने भविष्य को ले कर सवालिया निशान लगा दिया. बेरोजगारी ने आगे के सभी रास्ते बंद कर दिए. यह उम्मीद थी कि 3 महीने के बाद जब लौकडाउन खुलेगा, तो सबकुछ वापस पटरी पर आ जाएगा. इस के बाद भी कोई कामधंधा नहीं बढ़ा.

मार्च, 2021 में जब कोरोना का संकट फिर से बढ़ा, तो विनय को जो कामधंधा मिल जाता था, वह भी बंद हो गया. ऐसे में खुशबू ने योजना बनाई कि विनय उस के घर में रखे रुपए चोरी कर ले.

खुशबू को उस के घर वाले भी मानसिक रूप से इतना परेशान करते थे कि वह किसी भी तरह से अपने घर में रहने को तैयार नहीं थी. अपने घर में चोरी की योजना बनाते समय उसे किसी भी तरह का डर नहीं हुआ.

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इधर विनय ने अपने साथी अपने ही गांव के रहने वाले शुभम यादव को भी इस योजना में जोड़ लिया. खुशबू के साथ योजना बनाते समय विनय ने उसे नींद की 8 गोली दी और कहा कि  4-4 गोली काढ़े में डाल कर रात में अपने मम्मी और पापा को पिला देना, जिस से वे रातभर आराम से सोते रहेंगे.

खुशबू ने 28 मई की रात ऐसा ही किया. जब मांबाप दोनों गहरी नींद में सो गए, तो विनय और शुभम ने खुशबू के साथ मिल कर उस के घर से 13 लाख रुपए नकद और 3 लाख रुपए के जेवर चोरी कर लिए.

खुशबू के पिता मनोज कुमार ने थाना गोसाईंगंज में चोरी का मुकदमा लिखाया. पुलिस ने खुशबू, विनय और उस के दोस्तों को जेल भेज दिया.

अशिक्षा और गरीबी

निगोहां गांव के रहने वाले राधेश्याम  के बेटे संदीप की दिमागी हालत खराब हो गई थी. तंग आ कर राधेश्याम ने उसे घर के पास के बिजली के खंभे से जंजीर से जकड़ कर बांध दिया.

जब यह बात समाजसेवियों को पता चली, तो उन्होंने विरोध किया और तब निगोहां इंस्पैक्टर नंदकिशोर ने जंजीर में जकड़े संदीप को खुलवा कर चचेरे भाई संजय को देखभाल के लिए सौंप दिया.

मोहनलालगंज थाना क्षेत्र में ही एक बेटे ने 3 बिस्वा जमीन के लिए अपनी मां की हत्या कर दी और लाश को मोहनलालगंज तहसील के पीछे फेंक दिया. ऐसी घटनाओं के पीछे मूल वजह अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी है.

पुलिस अफसर पूर्णेंदु सिंह कहते हैं, ‘‘गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी के साथसाथ लोगों में सहनशीलता और संस्कार खत्म हो गए हैं. इस की वजह से बेटा अपनी बूढ़ी मां की हत्या कर दे रहा है.

‘‘हत्याओं के पीछे निजी संबंधों का हाथ सब से ज्यादा पाया जा रहा है. चाहे वह करीबी संबंधी हो या करीबी दोस्त हो. पैसों का लालच इस कदर है कि लोग अपराध में हिस्सा ले लेते हैं. उस समय वे उस के अंजाम की बात भी नहीं सोचते हैं.’’

नशे और संगत का असर

लंबे समय से पत्रकारिता और समाजसेवा में लगे अखिलेश द्विवेदी कहते हैं, ‘‘बड़ी घटनाएं तो प्रकाश में आ जाती हैं, पर छोटीछोटी घटनाओं पर चर्चा कम होती है. अगर सभी आपराधिक घटनाओं को मिला कर देखें, तो पता चलता है कि अपराध करने वाले नशे का शिकार होते हैं, जिस की वजह से वे सहीगलत का फैसला नहीं कर पाते हैं और आपराधिक घटनाओं में शामिल हो जाते हैं.

‘‘वे एक बार छोटे अपराध करते हैं, फिर बड़ेबड़े अपराध करने से भी पीछे नहीं हटते. नौजवान तबका ऐसे लोगों के निशाने पर होता है, जो अपने गलत कामों के लिए उस का इस्तेमाल करने की कोशिश में रहते हैं.’’

इस सिलसिले में पत्रकार अनुपम मिश्र कहते हैं, ‘‘नौजवान तबके में संबंधों के प्रति सहनशीलता खत्म हो रही है. इस वजह से वे अपराध करने के पहले किसी भी तरह से सोचविचार नहीं कर रहे. सब से खतरनाक बात यह है कि महिलाएं भी अपराध करने से पीछे नहीं रह रही हैं. ये घटनाएं समाज के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं.

‘‘अब समाज को इस से बचने का उपाय देखना होगा. कानून की भूमिका भी अहम है. अपराधों में जल्दी सुनवाई और सजा का मिलना शुरू हो जाए, तो अपराध करने से लोग डरेंगे. साथ ही साथ समाज में इस के प्रति जागरूकता भी बढ़ानी होगी.’’

Satyakatha: प्यार की ये कैसी डोर

सौजन्य- सत्यकथा

छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला आदिवासी बाहुल्य है. यहां का लैलूंगा शहर जिला मुख्यालय से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. लैलूंगा घोर जनजातीय आदिवासी बाहुल्य विकास खंड है. धीरेधीरे यहां का मिश्रित माहौल अपने आप में एक आकर्षण का माहौल पैदा करने लगा है, क्योंकि यहां पर अब भले ही बहुतेरे मारवाड़ी, ब्राह्मण, कायस्थ समाज के लोग आ कर रचबस रहे हैं, लेकिन आदिवासी सभ्यता और संस्कृति की महक यहां आज भी स्वाभाविक रूप से महसूस की जा सकती है.

लैलूंगा थाना अंतर्गत एक छोटे से गांव कमरगा में शदाराम सिदार एक सामान्य काश्तकार हैं. वह 2 बेटे और एक बेटी वाले छोटे से परिवार का बमुश्किल पालनपोषण कर रहे  थे. शदाराम का बड़ा बेटा जय कुमार सिदार प्राइमरी तक पढ़ने के बाद पिता के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटा रहा था.

गरीबी और परिवार की दयनीय हालत देख कर के एक दिन 21 वर्ष की उम्र में वह अपने एक दोस्त रमेश के साथ छत्तीसगढ़ से सटे झारखंड राज्य के बोकारो शहर में रोजगार  के लिए चला गया.

जल्द ही जय कुमार को स्थानीय राजू टिंबर ट्यूनिंग प्लांट में क्लीनर मशीन चलाने का काम मिल गया और जय का मित्र रमेश भी वहीं काम करने लगा. फिर उन्होंने बोकारो के एक मोहल्ले में कमरा किराए पर ले लिया.

समय अपनी गति से बीत रहा था कि एक दिन जय और रमेश सुबह घर से अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे कि जय को साइकिल के साथ खड़ी एक परेशान सी लड़की दिख गई. जय कुमार और रमेश थोड़ा आगे बढ़े तो जय ने रुक कर कहा, ‘‘यार, लगता है इस लड़की को कुछ मदद की जरूरत है.’’

दोनों  मुड़ कर वापस आए. तब युवती की ओर मुखातिब हो कर जय  ने कहा, ‘‘क्या बात है, आप क्यों परेशान खड़ी हो?’’

युवती थोड़ा सकुचाई  फिर बोली, ‘‘देखो न, साइकिल में पता नहीं क्या हो गया है, आगे ही नहीं बढ़ रही.’’

जय ने कहा, ‘‘लगता है साइकिल की चैन फंस गई है, किसी मिस्त्री को दिखानी होगी.’’

और नीचे बैठ कर वह साइकिल को ठीक करने की असफल कोशिश करने लगा. मगर चैन बुरी तरह फंस गई थी. थोड़ी देर तक प्रयास करने के बाद जय ने रमेश की ओर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, इस की थोड़ी मदद कर देते हैं.’’

इस पर रमेश ने कहा, ‘‘यार, देर हो जाएगी, काम पर न पहुंचे तो प्रसादजी नाराज हो जाते हैं, तुम को तो पता ही है कि काम पर समय पर पहुंचना बहुत जरूरी है.’’

इस पर सहज रूप से जय सिदार ने कहा, ‘‘बात तो सही है, ऐसा करते हैं, तुम काम पर चले जाओ और उन से बता देना कि आज मैं छुट्टी पर रहूंगा… मैं इन की साइकिल ठीक करा देता हूं.’’

जय को रमेश आश्चर्य से देखता हुआ ड्यूटी पर चला गया. इधर जय ने युवती की मदद के लिए साइकिल अपने कंधे पर उठा ली और धीरेधीरे साइकिल मिस्त्री के पास पहुंचा. थोड़ी ही देर में मिस्त्री ने साइकिल ठीक कर दी.

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युवती जय के व्यवहार और हमदर्दी को देख कर बहुत प्रभावित हुई. फिर दोनों ने बातचीत में एकदूसरे का नाम और परिचय पूछा. युवती ने अपना नाम सरस्वती मरांडी बताया. जब जय वहां से जाने लगा तो सरस्वती ने उसे अचानक रोक कर कहा, ‘‘आप ने मेरे कारण आज अपना बहुत नुकसान कर लिया है बुरा न मानें तो क्या आप मेरे साथ एक कप चाय पी सकते हैं?’’

जय सिदार 19 वर्षीय सरस्वती की बातें सुन कर हंसता हुआ राजी हो गया. अब वह उसे अच्छी लगने लगी थी. मंत्रमुग्ध सा जय उस के साथ एक रेस्टोरेंट में चला गया.

बातोंबातों में सरस्वती ने उसे बताया कि वह अपने गांव ढांगी करतस, जिला धनबाद की रहने वाली है और यहां स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में शिक्षिका है. इस बीच जय ने सरस्वती का मोबाइल नंबर ले लिया और अपने बारे में सब कुछ बताता चला गया.

अब अकसर जय सिदार सरस्वती से बातें करता. सरस्वती भी उसे पसंद करती और दोनों के बीच प्रेम की बेलें फूट पड़ीं. जल्द ही एक दिन जय कुमार ने सरस्वती से झिझकते हुए कहा, ‘‘सरस्वती, मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. तुम प्लीज मना मत करना, नहीं तो मैं मर ही जाऊंगा.’’

इस पर सरस्वती मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, बताओ तो इस का तुम्हारे पास क्या सबूत है.’’

‘‘सरस्वती, तुम्हारे लिए मैं सब कुछ करने को तैयार हूं. बताओ, मुझे क्या करना है.’’ जय सिदार ने हिचकते हुए कहा.

‘‘मैं तो मजाक कर रही थी, मैं जानती हूं कि तुम मुझे बहुत पसंद करते हो.’’ सरस्वती बोली.

यह सुन कर जय की हिम्मत बढ़ गई. वह बोला, ‘‘…और मैं.’’

सरस्वती ने धीरे से  कहा, ‘‘लगता है तुम तो प्यार के खेल में अनाड़ी हो. अरे बुद्धू, अगर कोई लड़की मुसकराए, बात करे, इस का मतलब तुम नहीं समझते…’’

यह सुन कर जय खुशी से उछल पड़ा. इस के बाद उन का प्यार परवान चढ़ता गया. फिर एक दिन सरस्वती और जय ने एक मंदिर में विवाह कर लिया.

सन 2017 से ले कर मार्च, 2020 अर्थात कोरोना काल से पहले तक दोनों ही प्रेमपूर्वक झारखंड में एक छत के नीचे रह रहे थे. इस बीच दोनों ने मंदिर में विवाह कर लिया और पतिपत्नी के रूप में आनंदपूर्वक रहने लगे.

मार्च 2020 में जब कोविड 19 का संक्रमण फैलने लगा तो जय का काम छूट गया. घर में खाली बैठेबैठे जय को अपने गांव और मातापिता की याद आने लगी. एक दिन जय ने सरस्वती से कहा, ‘‘चलो, हम गांव चलते हैं, वहां इस समय रहना ठीक रहेगा, पता नहीं ये हालात कब तक सुधरेंगे. और जहां तक रोजीरोटी का सवाल है तो हम गांव में ही कमा लेंगे. फिर आज सवाल तो जान बचाने का है.’’

सरस्वती को बात पसंद आ गई. उस समय गांव जाने के लिए कोई साधन नहीं था. तब जय कुमार पत्नी सरस्वती को अपनी साइकिल पर बैठा कर जिला रायगढ़ के गांव कामरगा में स्थित अपने घर की ओर चल दिया. लगभग 300 किलोमीटर की दूरी तय कर के जय कुमार अपने घर पहुंच गया.

घर में पिता शदाराम और परिजनों ने जब जय को देखा, सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. साथ में सरस्वती को देखा तो पिता शदाराम ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

जय ने सकुचाते हुए सरस्वती का परिचय पत्नी के रूप में परिजनों को करा दिया. उस समय किसी ने भी कुछ नहीं कहा.

लौकडाउन का यह समय सभी को चिंतित किए हुए था. मगर स्थितियां सुधरने लगीं तो जय कुमार से सवालजवाब होने लगा. एक दिन पिता शदाराम ने कहा, ‘‘बेटा जय, गांव के लोग पूछ रहे हैं कि तुम्हारी बहू कहां की है किस जाति की है? जब मैं ने बताया तो समाज के लोगों ने नाराजगी प्रकट की है. इस से शादी कर के तुम ने बहुत बड़ी भूल की है बेटा.’’

‘‘पिताजी, अब मैं क्या करूं, जो होना था, वह तो हो चुका है.’’ यह सुन कर जय बोला.

‘‘बेटा, हम को भी समाज में रहना है, यहीं जीना है. यह हाल रहेगा तो हम, हमारा परिवार भारी मुसीबत में पड़ जाएगा. कोई हम से रोटीबेटी का रिश्ता तक नहीं रखेगा. ऐसे में हो सके तो तुम लोग कहीं और जा कर के जीवन बसर करो, ताकि समाज के लोग अंगुली न उठा सकें.’’

जय ने कहा, ‘‘पिताजी, अब क्या हो सकता है, मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा.’’

एक दिन एक निकट के परिजन ने जय से कहा, ‘‘अब देख लो, सोचसमझ के कुछ निर्णय लो. वैसे, पास के गांव के हमारे परिचित रामसाय ने अपनी बेटी के साथ तुम्हारे विवाह का प्रस्ताव भेजा था. वह पैसे वाले लोग भी हैं और हमारे समाज के भी हैं. ऐसा करो, सरस्वती को तुम छोड़ दो. फिर हम बात आगे बढ़ाते हैं.’’

यह सुन कर जय का मन भी बदल गया. क्योंकि सुमन को वह बचपन में पसंद करता था.

वह सोचने लगा कि काश! वह सरस्वती के चक्कर में नहीं पड़ता तो आज सुमन उस की होती.

इसी दरमियान जय गांव में ही तेजराम के यहां ट्रैक्टर चलाने लगा था. नौसिखिए जय सिदार से एक दिन अचानक दुर्घटना हो गई तो तेजराम ने उस की पिटाई कर दी और उस से नुकसान की भरपाई मांगने लगा.

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परिस्थितियों को देख कर जय पत्नी सरस्वती को ले कर पास के दूसरे गांव सरकेदा में अपने जीजा रवि के यहां गुजरबसर करने आ गया. जय का रवि के साथ अच्छा याराना था. बातोंबातों में एक दिन रवि ने कहा, ‘‘भैया, यह तुम्हारे गले कैसे पड़ गई, इस से कितनी सुंदर लड़कियां हमारे समाज में हैं.’’

यह सुन कर के जय मानो फट पड़ा. बोला, ‘‘भाटो (जीजा), बस यह भूल मुझ से हो गई है, अब मैं क्या करूं, मुझे तो लगता है कि सरस्वती से शादी कर के मैं फंस गया हूं.’’

रवि ने जय कुमार को बताया कि परिवार में चर्चा हुई थी कि सुमन के पिता तुम्हारे लिए 2-3 बार आ चुके हैं. अब क्या हो.’’

‘‘क्या करूं, क्या इसे बोकारो छोड़ आऊं?’’ विवशता जताता जय कुमार बोला.

‘‘…और अगर कहीं फिर वापस आ गई तो..?’’  रवि कुमार ने चिंता जताई.

जय कुमार असहाय भाव से जीजा रवि की ओर देखने लगा.

रवि मुसकराते हुए बोला, ‘‘एक रास्ता है…’’

और दोनों ने बातचीत कर के एक ऐसी योजना बनाई, जिस ने आगे चल कर दोनों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

वह 7 जनवरी, 2021 का दिन था. एक दिन पहले ही जय और रवि ने सरस्वती से बात कर के पिकनिक के लिए झरन डैम चलने की योजना बना ली थी. एक बाइक पर तीनों सुबहसुबह पिकनिक के लिए निकल गए. लैलूंगा शहर घूमने, खरीदारी के बाद 7 किलोमीटर आगे खम्हार जंगल के पास झरन डैम में पहुंच कर तीनों ने खूब मस्ती की. मोबाइल से फोटो खींचे और खायापीया.

इस बीच सरस्वती ने एक दफा सहजता से कहा, ‘‘कितना अच्छा होता, आज सारे परिवार वाले भी हमारे साथ होते तो पिकनिक यादगार हो जाती.’’

इस पर रवि ने बात बनाते हुए कहा, ‘‘भाभी, आएंगे आगे सब को ले कर के आएंगे. आज तो हम लोगों ने सोचा कि चलो देखें, यहां का कैसा माहौल है अगली बार  सब को ले कर के पिकनिक मनाएंगे.’’

आज जय सिदार कुछ उखड़ाउखड़ा भी दिखाई दे रहा था. इस पर सरस्वती ने कहा था, ‘‘पिकनिक मनाने आए हो या फिर किसी और काम से…’’

यह सुन कर अचकचाए जय कुमार ने मुसकरा कर कहा, ‘‘ऐसीवैसी कोई बात होती तो मैं भला क्यों आता. तुम गलत समझ रही हो. क्या है सारे कामधंधे रुके पड़े हैं. पैसा कहीं से तो आ नहीं पा रहा है, बस इसी बात की टेंशन है सरस्वती.’’

सरस्वती को लगा कि जय जायज बात कर रहा है. थोड़ी देर बाद जब वापस चलने का समय हुआ तो एक जगह रवि कुमार रुक गया और छोटी अंगुली दिखा कर बोला, ‘‘मैं अभी फारिग हो कर आता हूं.’’

रवि झाडि़यों के अंदर चला गया. सही मौका देख कर के जय ने अचानक सरस्वती पर हमला कर दिया और उस के बाल पकड़ कर उसे मारने लगा और एक रस्सी निकाल कर के गला घोंटने लगा. वह वहीं गिर पड़ी और फटी आंखों से उसे देखती रह गई.

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जय आखिरी तक सरस्वती पर प्राणघातक हमला भी करता रहा. इतनी देर में रवि भी दौड़ कर आ गया और जय का साथ देने लगा.  देखते ही देखते सरस्वती के प्राणपखेरू उड़ गए. सरस्वती की मौत के बाद रवि ने उस के गले में एक नीली रस्सी बांधी और झाडि़यों में घसीट कर सरस्वती की लाश छिपा दी.

12 जनवरी, मंगलवार को शाम लगभग 5 बजे थाना लैलूंगा मैं अपने कक्ष में थानाप्रभारी एल.पी. पटेल रोजमर्रा के कामों को निपटा रहे थे कि दरवाजे पर आहट सुनाई दी. उन्होंने देखा 3-4 ग्रामीणों के साथ खम्हार गांव के सरपंच शिवप्रसाद खड़े हैं. थानाप्रभारी ने उन सभी को अंदर बुला लिया. तभी सरपंच ने उन से कहा, ‘‘सर, जंगल में एक महिला की लाश मिली है. कुछ लोगों ने देखा तो मैं सूचना देने के लिए आया हूं.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसआई व 2 कांस्टेबलों को थानाप्रभारी पटेल ने घटनास्थल की ओर रवाना किया और अपने काम में लग गए. लगभग एक घंटे बाद उन्हें सूचना मिली कि लाश किसी महिला की है. उन्होंने एसआई को स्थिति को देखते हुए सारे सबूतों को इकट्ठा करने और फोटोग्राफ लेने के निर्देश दिए और कहा कि वह स्वयं घटनास्थल पर आ रहे हैं.

थाने से निकलने से पहले एल.पी. पटेल ने एसपी (रायगढ़) संतोष सिंह और एएसपी अभिषेक वर्मा को महिला की लाश मिलने की जानकारी दी और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

जब वह वहां पहुंचे तो थोड़ी देर में ही जिला मुख्यालय से डौग स्क्वायड टीम भी आ गई  और महिला की लाश को देख कर के उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि यह सीधेसीधे एक ब्लाइंड मर्डर का मामला है.

पुलिस विवेचना में जांच अधिकारी एल. पी. पटेल के सामने शुरुआती परेशानी मृतका की पहचान की थी, जिस के लिए मशक्कत शुरू कर दी गई. इस कड़ी में रायगढ़ जिले के सभी थानों के गुम इंसानों के हुलिया से मृतका का मिलान किया गया. जब सफलता नहीं मिली तो छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस पोर्टल पर राज्य के लगभग सभी जिलों के गुम इंसानों से हुलिया का मिलान कराया गया. सभी सोशल मीडिया ग्रुप में मृतका के फोटो वायरल किया जाने लगा. मगर सुराग नहीं मिल रहा था.

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आखिरकार एक दिन पुलिस को अच्छे नतीजे मिले. सोशल मीडिया में वायरल की गई तसवीर के जरिए मृतका की शिनाख्त सरस्वती मरांडी, पुत्री सुजीत मरांडी, उम्र 23 वर्ष निवासी ढांगी करतस, जिला धनबाद (झारखंड) के रूप में हुई.

मृतका की शिनाख्त के बाद मामले में नया पहलू सामने आया, जिस से अनसुलझे हत्याकांड की गुत्थी सुलझती चली गई. लैलूंगा पुलिस को हत्याकांड में कमरगा गांव, थाना लैलूंगा के जयकुमार सिदार के मृतका का कथित पति होने की जानकारी भी मिली.

लैलूंगा पुलिस द्वारा गोपनीय तरीके से जयकुमार सिदार का उस के गांव में पता लगाया गया तो जानकारी मिली कि वह तथा उस का जीजा रवि कुमार सिदार दोनों ही अपनेअपने गांव से गायब हैं.

हत्या के इस गंभीर मामले में एसपी संतोष सिंह द्वारा अज्ञात महिला के वारिसों और संदिग्धों की तलाश के लिए थाना लैलूंगा, धरमजयगढ़, चौकी बकारूमा की 3 अलगअलग टीमें बनाई गईं. एक टीम में एसडीपीओ सुशील नायक, एसआई प्रवीण मिंज, हैडकांस्टेबल सोमेश गोस्वामी, कांस्टेबल प्रदीप जौन, राजेंद्र राठिया, दूसरी टीम में थानाप्रभारी लैलूंगा इंसपेक्टर लक्ष्मण प्रसाद पटेल, कांस्टेबल मायाराम राठिया, धनुर्जय बेहरा, जुगित राठिया, अमरदीप एक्का और तीसरी टीम में एसआई बी.एस. पैकरा, एएसआई माधवराम साहू, हैडकांस्टेबल संजय यादव, कांस्टेबल इलियास केरकेट्टा को शामिल किया गया.

पहली टीम को किलकिला, फरसाबहार, बागबाहर और तपकरा तथा दूसरी टीम को पत्थलगांव, घरघोड़ा, लारीपानी, चिमटीपानी एवं टीम नंबर 3 को बागबाहर, कांसाबेल, कापू, दरिमा, अंबिकापुर की ओर जांच के लिए लगाया गया था.

तीनों टीमों के अथक प्रयास पर आरोपियों को जिला जशपुर के गांव रजौरी से 20 जनवरी को हिरासत में ले कर थाने लाया गया. दोनों आरोपी पुलिस से लुकछिप कर रजौरी के जंगल में लकड़ी काटने का काम कर रहे थे.

दोनों ने कड़ी पूछताछ में अंतत: सरस्वती मरांडी की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार लिया.

रोजगार के सिलसिले में वह बोकारो, झारखंड गया था. वहां राजू टिंबर ट्यूनिंग प्लांट में क्लीनर मशीन चलाता था और किराए के मकान में रहा करता था. वहीं सरस्वती मरांडी से उस की जानपहचान हुई.

जय कुमार परेशान था और उस ने अपने जीजा रवि के साथ सरस्वती की हत्या का प्लान बनाया और उसी प्लान के तहत 7 जनवरी, 2021 को पिकनिक का बहाना कर सरस्वती को मोटरसाइकिल पर बिठा कर लैलूंगा ले कर आए.

लैलूंगा बसस्टैंड पर खानेपीने के सामान व सरस्वती ने कपड़े खरीदे. तीनों फिर खम्हार के झरन डैम गए, जहां सरस्वती ने वही पीले रंग की सलवारकुरती पहनी, जो उस ने गांव कमरगा की सुनीता सिदार (टेलर) से बनवाई थी. वहां उन्होंने मोबाइल पर खूब सेल्फी ली.

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शाम करीब 5 बजे भेलवाटोली एवं खम्हार के बीच पगडंडी के रास्ते में रवि सिदार पेशाब करने का बहाना कर रुका. उसी समय जयकुमार सिदार ने सरस्वती के बाल पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया और गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद रवि और जयकुमार सिदार ने सरस्वती के गले में चुनरी से गांठ बांध कर खींचा और लाश सरई झाडि़यों के बीच छिपा दी. दोनों आरोपी भागने की हड़बड़ी में अपनी चप्पलें, गमछा भी घटनास्थल के पास छोड़ आए.

लैलूंगा पुलिस ने आरोपी जय कुमार सिदार (25 साल) और रवि सिदार (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर घरघोड़ा की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

Satyakatha: सपना का ‘अधूरा सपना’

 सौजन्य- सत्यकथा

कानपुर जिले के घाटमपुर थाना अंतर्गत एक गांव है बिहारिनपुर. इसी गांव में शिवआसरे परिवार सहित रहता था. उस के परिवार में पत्नी मीना के अलावा 2 बेटियां सपना, रत्ना तथा 2 बेटे कमल व विमल थे. शिवआसरे ट्रक ड्राइवर था. उस के 2 अन्य भाई रामआसरे व दीपक थे, जो अलग रहते थे और खेतीबाड़ी से घर खर्च चलाते थे.

शिवआसरे की बेटी सपना भाईबहनों में सब से बड़ी थी. वह जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. 16 साल की होतेहोते सपना की सुंदरता में चारचांद लग गए. मतवाली चाल से जब वह चलती, तो लोगों की आंखें बरबस उस की ओर निहारने को मजबूर हो जाती थीं.

सपना जितनी सुंदर थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने पतारा स्थित सुखदेव इंटर कालेज में 9वीं कक्षा में एडमिशन ले लिया था. जबकि उस की मां मीना उसे मिडिल कक्षा से आगे नहीं पढ़ाना चाहती थी, लेकिन सपना की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा.

सपना के घर से कुछ दूरी पर शालू रहता था. शालू के पिता बैजनाथ किसान थे. उन के 3 बच्चों में शालू सब से बड़ा था. 17 वर्षीय शालू हाईस्कूल की परीक्षा पास कर चुका था और इंटरमीडिएट की पढ़ाई घाटमपुर के राजकीय इंटर कालेज से कर रहा था.

शालू के पिता बैजनाथ और सपना के पिता शिवआसरे एक ही बिरादरी के थे, सो उन में गहरी दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे का दुखदर्द समझते थे. किसी एक को तकलीफ हो तो दूसरे को दर्द खुद होने लगता.

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बैजनाथ और शिवआसरे बीते एक दशक से गांव में बटाई पर खेत ले कर खेती करते थे. हालांकि शिवआसरे ट्रक चालक था और खेतीबाड़ी में कम समय देता था. इस के बावजूद दोनों की पार्टनरशिप चलती रही. दोनों परिवारों में घरेलू संबंध भी थे. लिहाजा उन के बच्चों का भी एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था.

शालू सपना को चाहता था. सपना भी उस की आंखों की भाषा समझती थी. सपना के लिए शालू की आंखों में प्यार का सागर हिलोरें मारता था. सपना भी उस की दीवानी होने लगी. धीरेधीरे उस के मन में भी शालू के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.सपना पड़ोस में रहने वाले शालू को न सिर्फ प्यार करती थी, बल्कि वह शादी भी करना चाहती थी.

सपना शालू के मन को भाई तो वह उस का दीवाना बन गया. सपना के स्कूल जाने के समय वह बाहर खड़ा उस का इंतजार करता रहता. सपना उसे दिखाई पड़ती तो वह उसे चाहत भरी नजरों से तब तक देखता रहता, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती. अब वह सपना के लिए तड़पने लगा था. हर पल उस के मन में सपना ही समाई रहती थी. न उस का मन काम में लगता था, न ही पढ़ाई में.

शालू का शिवआसरे के घर जबतब आनाजाना लगा ही रहता था. घर आनाजाना काम से ही होता था. लेकिन जब से सपना शालू के मन में बसी, शालू अकसर उस के घर ज्यादा जाने लगा. इस के लिए उस के पास बहाने भी अनेक थे.

शिवआसरे के घर पहुंच कर वह बातें भले ही दूसरे से करता, लेकिन उस क ी नजरें सपना पर ही जमी रहती थीं. शालू की अपने प्रति चाहत देख कर उस का मन भी विचलित हो उठा. अब वह भी शालू के आने का इंतजार करने लगी.

दोनों ही अब एकदूसरे का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगे थे. लेकिन यह सब अभी नजरों ही नजरों में था.

शालू की चाहत भरी नजरें सपना के सुंदर मुखड़े पर पड़तीं तो सपना मुसकराए बिना न रह पाती. वह भी उसे तिरछी निगाहों से घूरते हुए उस के आगेपीछे चक्कर लगाती रहती. अब शालू अपने दिल की बात सपना से कहने के लिए बेचैन रहने लगा.

शालू अब ऐसे अवसर की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात सपना से कह सके. कोशिश करने पर चाह को राह मिल ही जाती है. एक दिन शालू को मौका मिल ही गया. उस दिन सपना के भाईबहन मां मीणा के साथ ननिहाल चले गए थे और शिवआसरे ट्रक ले कर बाहर गया था. सपना को घर में अकेला पा कर शालू बोला, ‘‘सपना, यदि तुम बुरा न मानो तो मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

सपना जानती थी कि शालू उस से क्या कहेगा. इसलिए उस का दिल जोरजोर धड़कने लगा. घबराई सी वह शालू की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगी. शालू ने हकलाते हुए कहा, ‘‘सपना वो क्या है कि मैं तुम्हारे बारे में कुछ…’’

‘‘मेरे बारे में…’’ चौंकने का नाटक करते हुए सपना बोली, ‘‘जो भी कहना है, जल्दी कहिए.’’ शायद वह भी शालू से प्यार के शब्द सुनने के लिए बेकरार थी.

‘‘कहीं तुम मेरी बात सुन कर नाराज न हो जाओ…’’ शालू ने थोड़ा झेंपते हुए कहा.

‘‘अरे नहीं…’’ मुसकराते हुए सपना बोली, ‘‘नाराज क्यों हो जाऊंगी. तुम मुझे गालियां तो दोगे नहीं. जो भी कहना है, तुम दिल खोल कर कहो, मैं तुम्हारी बातों का बुरा नहीं मानूंगी.’’

सपना जानबूझ कर अंजान बनी थी. जब शालू को सपना की ओर से कुछ भी कहने की छूट मिल गई तो उस ने कहा, ‘‘सपना, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मुझे तुम्हारे अलावा कुछ अच्छा नहीं लगता. हर पल तुम्हारी ही सूरत मेरी नजरों के सामने घूमती रहती है.’’

शालू की बातें सुन कर सपना मन ही मन खुश हुई, फिर बोली, ‘‘शालू, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘कैसा डर सपना?’’ शालू ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘यही कि हमारेतुम्हारे प्यार को घर वाले स्वीकार करेगें क्या?’’

‘‘हम एक ही जाति के हैं. दोनों परिवारों के बीच संबंध भी अच्छे हैं. हम दोनों अपनेअपने घर वालों को मनाएंगे तो वे जरूर मान जाएंगे.’’

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उस दिन दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ, तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर वे अकसर ही मिलने लगे. सपना और शालू के दिलोदिमाग पर प्यार का ऐसा जादू चढ़ा कि उन्हें एकदूजे के बिना सब कुछ सूना लगने लगा.

जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में एक साथ बैठते और अपने ख्वाबों की दुनिया में खो जाते. प्यार में वे इस कदर खो गए कि उन्होंने जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें भी खा लीं. एक बार मन से मन मिला तो फिर दोनों के तन मिलने में भी देर नहीं लगी.

सपना और शालू ने लाख कोशिश की कि उन के संबंधों की जानकारी किसी को न हो. लेकिन प्यार की महक को भला कोई रोक सका है. एक दिन पतारा बाजार से लौटते समय गांव में ही रहने वाले उन्हीं की जाति के युवक मोहन ने उन दोनों को रास्ते में हंसीठिठोली करते देख लिया. घर आते ही उस ने सारी बात शिवआसरे को बता दी. कुछ देर बाद जब सपना घर लौटी तो शिवआसरे ने सपना को डांटाफटकारा और पिटाई करते हुए हिदायत दी कि भविष्य में वह शालू से न मिले.

सपना की मां मीना ने भी इज्जत का हवाला दे कर बेटी को खूब समझाया. सपना पर लगाम कसने के लिए मां ने उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया. साथ ही उस पर कड़ी निगरानी रखने लगी. मीना ने शालू के घर जा कर उस के मांबाप से शिकायत की कि वह अपने बेटे को समझाएं कि वह उस की इज्जत से खिलवाड़ न करे.

लेकिन कहावत है कि लाख पहरे बिठाने के बाद भी प्यार कभी कैद नहीं होता. सपना के साथ भी ऐसा ही हुआ. मां की निगरानी के बावजूद सपना और शालू का मिलन बंद नहीं हुआ. किसी न किसी बहाने वह शालू से मिलने का मौका ढूंढ ही लेती थी.

कभी दोनों नहीं मिल पाते तो वे मोबाइल फोन पर बतिया लेते और दिल की लगी बुझा लेते. सपना को मोबाइल फोन शालू ने ही खरीद कर दिया था. इस तरह बंदिशों के बावजूद उन का प्यार बढ़ता ही जा रहा था. दबी जुबान से पूरे गांव में उन के प्यार के चर्चे होने लगे थे.

एक शाम सहेली के घर जाने का बहाना बना कर सपना घर से निकली और शालू से मिलने गांव के बाहर बगीचे में पहुंच गई. इस की जानकारी मीना को हुई तो सपना के घर लौटने पर मां का गुस्सा फट पड़ा, ‘‘बदजात, कुलच्छिनी, मेरे मना करने के बावजूद तू शालू से मिलने क्यों गई थी. क्या मेरी इज्जत का कतई खयाल नहीं?’’

‘‘मां, मैं शालू से प्यार करती हूं. वह भी मुझे चाहता है.’’

‘‘आने दे तेरे बाप को. प्यार का भूत न उतरवाया तो मेरा नाम मीना नहीं.’’ मीना गुस्से से बोली.

‘‘आखिर शालू में बुराई क्या है मां? अपनी बिरादरी का है. पढ़ालिखा स्मार्ट भी है.’’ सपना ने मां को समझाया.

‘‘बुराई यह है कि शालू तुम्हारे चाचा का लड़का है. जातिबिरादरी के नाते तुम दोनों का रिश्ता चचेरे भाईबहन का है. अत: उस से नाता जोड़ना संभव नहीं है.’’ मां ने समझाया.

मांबेटी में नोकझोंक हो ही रही थी कि शिवआसरे घर आ गया. उस ने पत्नी का तमतमाया चेहरा देखा तो पूछा, ‘‘मीना, क्या बात है, तुम गुस्से से लाल क्यों हो?’’

‘‘तुम्हारी लाडली बेटी सपना के कारण. लगता है कि यह बिरादरी में हमारी नाक कटवा कर ही रहेगी. मना करने के बावजूद भी यह कुछ देर पहले शालू से मिल कर आई है और उस की तरफदारी कर जुबान लड़ा रही है.’’ मीना ने कहा.

पत्नी की बात सुन कर शिवआसरे का गुस्सा बेकाबू हो गया. उस ने सपना की जम कर पिटाई की और कमरा बंद कर दिया. गुस्से में उस ने खाना भी नहीं खाया और चारपाई पर जा कर लेट गया. रात भर वह यही सोचता रहा कि इज्जत को कैसे बचाया जाए.

सुबह होते ही शिवआसरे शालू के पिता बैजनाथ के घर जा पहुंचा, ‘‘तुम शालू को समझाओ कि वह सपना से दूर रहे. अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होगा. अपनी इज्जत के लिए वह किसी हद तक जा सकता है.’’

इस घटना के बाद दोनों परिवारों के बीच दरार पड़ गई. शिवआसरे और बैजनाथ के बीच साझेदारी भी टूट गई. इधर चौकसी बढ़ने पर शालू और सपना का मिलनाजुलना लगभग बंद हो गया था. जिस से दोनों परेशान रहने लगे थे. अब दोनों की बात चोरीछिपे मोबाइल फोन पर ही हो पाती थी.

14 मई, 2021 को शिवआसरे के साले मनोज की शादी थी. शिवआसरे ने घर की देखभाल की जिम्मेदारी भाई दीपक को सौंपी और सुबह ही पत्नी मीना व 2 बच्चों के साथ बांदा के बरुआ गांव चला गया. घर में रह गई सपना और सब से छोटा बेटा विमल.

दिन भर सपना घर के काम में व्यस्त रही फिर शाम होते ही उसे प्रेमी शालू की याद सताने लगी. लेकिन चाचा दीपक की निगरानी से वह सहमी हुई थी.

रात 12 बजे जब पूरा गांव सो गया, तो सपना ने सोचा कि उस का चाचा भी सो गया होगा. अत: उस ने शालू से मोबाइल फोन पर बात की और मिलने के लिए उसे घर बुलाया.

शालू चोरीछिपे सपना के घर आ गया. लेकिन उसे घर में घुसते हुए दीपक ने देख लिया. वह समझ गया कि वह सपना से मिलने आया है. उस ने तब दरवाजा बाहर से बंद कर ताला लगा दिया और बड़े भाई शिवआसरे को फोन कर के सूचना दे दी.

शिवआसरे को जब यह सूचना मिली तो वह साले की शादी बीच में ही छोड़ कर अकेले ही बरुआ गांव से चल दिया. 15 मई की सुबह 7 बजे वह अपने घर पहुंच गया. तब तक शालू के मातापिता सीमा और बैजनाथ को भी पता चल चुका था कि उन के बेटे शालू को बंधक बना लिया गया है. वे लोग शिवआसरे के घर पहले से मौजूद थे. शिवआसरे घर के अंदर जाने लगा तो बैजनाथ ने पीछे से आवाज लगाई.

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इस पर शिवआसरे ने कहा कि वह बस बात कर मामला हल कर देगा और घर के अंदर चला गया. पीछे से बैजनाथ और सीमा भी घर के अंदर दाखिल हुए. लेकिन वे अपने बेटे शालू तक पहुंच पाते, उस के पहले ही शिवआसरे शालू और सपना को ले कर एक कमरे में चला गया और उस में लगा लोहे का गेट बंद कर लिया.

शालू के पिता बैजनाथ व मां सीमा खिड़की पर खड़े हो गए, जहां से वे अंदर देख सकते थे. बैजनाथ ने एक बार फिर शिवआसरे से मामला सुलझाने की बात कही. इस पर उस का जवाब यही था कि बस 10 मिनट बात कर के मामला सुलझा देगा.

इधर पिता का रौद्र रूप देख कर सपना कांप उठी. शिवआसरे ने दोनों से सवालजवाब किए तो सपना पिता से उलझ गई. इस पर उसे गुस्सा आ गया. शिवआसरे ने डंडे से सपना को पीटा. उस ने शालू की भी डंडे से पिटाई की.

लेकिन पिटने के बाद भी सपना का प्यार कम नहीं हुआ. वह बोली, ‘‘पिताजी, मारपीट कर मेरी जान भले ही ले लो, पर मेरा प्यार कम न होगा. आखिरी सांस तक मेरी जुबान पर शालू का नाम ही होगा.’’

बेटी की ढिठाई पर शिवआसरे आपा खो बैठा. उस ने कमरे में रखी कुल्हाड़ी उठाई और सपना के सिर व गरदन पर कई वार किए. जिस से उस की गरदन कट गई और मौत हो गई. इस के बाद उस ने कुल्हाड़ी से वार कर शालू को भी वहीं मौत के घाट उतार दिया.

यह खौफनाक मंजर देख कर शालू की मां सीमा की चीख निकल गई. सीमा और बैजनाथ जोरजोर से चिल्लाने लगे. सीमा ने मदद के लिए कई घरों के दरवाजे खटखटाए लेकिन कोई मदद को नहीं आया.

प्रधान पति राजेश कुमार को गांव में डबल मर्डर की जानकारी हुई तो उन्होंने थाना घाटमपुर पुलिस तथा बड़े पुलिस अधिकारियों को फोन द्वारा सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धनेश प्रसाद, एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रताप सिंह, एएसपी आदित्य कुमार शुक्ला तथा डीएसपी पवन गौतम पहुंच गए.

शिवआसरे 2 लाशों के बीच कमरे में बैठा था. थानाप्रभारी धनेश प्रसाद ने उसे हिरासत में ले लिया. आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी कमरे में पड़ी थी. पुलिस ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. जबकि शिवआसरे के अन्य भाई दीपक व रामआसरे पुलिस के आने से पहले ही फरार हो गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने शिवआसरे से पूछताछ की तो उस ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया और कहा कि उसे दोनों को मारने का कोई गम नहीं है.

पुलिस अधिकारियों ने गांव वालों तथा मृतक शालू के पिता बैजनाथ से पूछताछ की. बैजनाथ ने बताया कि वह और उस की पत्नी सीमा बराबर शिवआसरे से हाथ जोड़ कर कह रहे थे कि बेटे को बख्श दे. लेकिन वह नहीं माना और आंखों के सामने बेटे पर कुल्हाड़ी से वार कर उस की जान ले ली.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतक शालू व सपना के शवों को पोस्टमार्टम हेतु हैलट अस्पताल, कानपुर भिजवा दिया.

चूंकि शिवआसरे ने डबल मर्डर का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई थी, अत: थानाप्रभारी धनेश प्रसाद ने बैजनाथ की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत शिवआसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे गिरफ्तार कर लिया.

16 मई, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त शिवआसरे को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Satyakatha: चरित्रहीन कंचन

सौजन्य: सत्यकथा

रामकुमार की जानकारी में अपनी पत्नी कंचन की कुछ ऐसी बातें आई थीं, जिस के बाद कंचन उस के लिए अविश्वसनीय हो गई थी. बताने वाले ने रामकुमार को यह तक कह दिया, ‘‘कैसे पति हो तुम, घर वाली पर तुम्हारा जरा भी अकुंश नहीं. इधर तुम काम पर निकले, उधर कंचन सजधज कर घर से निकल जाती है. दिन भर अपने यार के साथ ऐश करती है और शाम को तुम्हारे आने से पहले घर पहुंच जाती है.’’

रामकुमार कंचन पर अगाध भरोसा करता था. पति अगर पत्नी पर भरोसा न करे तो किस पर करे. यही कारण था कि रामकुमार को उस व्यक्ति की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘हमारी तुम्हारी कोई नाराजगी या आपसी रंजिश नहीं है, मैं ने कभी तुम्हारा बुरा नहीं किया. इस के बावजूद तुम मेरी पत्नी को किसलिए बदनाम कर रहे हो, मैं नहीं जानता. हां, इतना जरूर जानता हूं कि कंचन मेकअपबाज नहीं है. शाम को जब मैं घर पहुंचता हूं तो वह सजीधजी कतई नहीं मिलती.’’

‘‘कंचन जैसी औरतें पति की आंखों में धूल झोंकने का हुनर बहुत अच्छी तरह जानती हैं.’’ उस व्यक्ति ने बताया, ‘‘तुम्हें शक न हो, इसलिए वह मेकअप धो कर घर के कपड़े पहन लेती होगी.’’

रामकुमार को तब भी उस व्यक्ति की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. वह उस का करीबी था, इसलिए उस ने उसे थोड़ा डांट दिया.

रामकुमार ने उस शख्स को डांट जरूर दिया था, लेकिन उस के मन में यह भी खयाल आया कि कोई इतनी बड़ी बात कह रहा है तो वह हवा में तो कह नहीं रहा होगा. उस ने खुद देखा होगा या उस के पास कोई ठोस सबूत या गवाह होगा. वैसे भी धुंआ वहीं उठता है, जहां आग लगी होती है. लिहाजा वह बेचैन हो गया. उस ने सोचा कि अपनी तसल्ली के लिए वह इस बारे में कंचन से बात जरूर करेगा.

घर पहुंचतेपहुंचते रामकुमार ने कंचन से उक्त संदर्भ में बात करने का इरादा बदल दिया. इस के पीछे कारण यह था कि कोई भी औरत अपनी बदचलनी स्वीकार नहीं करती तो कंचन कैसे कर लेगी. इसीलिए उस ने स्वयं मामले की असलियत का पता लगाने का फैसला कर लिया.

पत्नी के चरित्र को ले कर रामकुमार तनाव में था. उस का वह तनाव चेहरे और आंखों से साफ झलक रहा था. एक दिन कंचन ने उस से पूछा भी, लेकिन रामकुमार ने टाल दिया, बोला, ‘‘मन ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हारी दवा घर में रखी तो है, पी लो. जी भी ठीक हो जाएगा और चैन की नींद भी सो जाओगे.’’ वह बोली.

तनाव की अधिकता से रामकुमार का सिर फट रहा था. सिर हलका करने और चैन से सोने के लिए उसे स्वयं भी शराब की तलब महसूस हो रही थी. इसलिए वह कंचन से बोला, ‘‘ले आओ.’’

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कंचन ने शराब की बोतल, पानी, नमकीन और एक गिलास ला कर पति के सामने रख दिया. रामकुमार ने एक बड़ा पैग बना कर हलक में उड़ेला और सोचने लगा कि कल उसे क्या करना चाहिए.

उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के गांव गोहानी में रहता था शंभू सिंह. शंभू सिंह के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा एक बेटा कुलदीप और एक बेटी कंचन थी. कुलदीप पंजाब में रह कर काम करता था. उस की पत्नी गांव में रहती थी.

शंभू सिंह खेतिहर मजदूर था. कमाई कम थी, इसलिए घरपरिवार में किसी न किसी चीज का सदैव अभाव बना रहता था. सुंदर व चुलबुली कंचन मामूली चीजों तक को तरसती रहती थी.

पिता की कमाई कम थी और खर्च अधिक, इसलिए निजी जरूरतें और शौक पूरा करने के लिए कंचन को घर से वांछित रुपए मिल नहीं  सकते थे. इसीलिए वह कभी कोई चीज खाने को तरसती, कभी किसी को अच्छे कपड़े पहने देख ललचाती तो कभी सोचती कि सजनेसंवरने का सामान कैसे खरीदे.

किशोर उम्र की लड़कियों की मानसिकता समझने और उन से लाभ उठाने वालों की दुनिया में कोई कमी नहीं है. गोहानी गांव में भी कुछ ऐसे ठरकी थे. उन्होंने कंचन का लालच समझा तो वह उसे रिझाने लगे. खिलानेपिलाने या कुछ सामान दिलाने के नाम पर वह कंचन के साथ अश्लील हरकत करते.

कुछ समय में ही कंचन समझ गई कि कोई यूं मेहरबान नहीं होता. जो पैसा खर्च करता है, उस के एवज में कुछ चाहता भी है. वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों की इच्छाएं पूरी करने लगी. परिणाम यह हुआ कि कंचन कुछ ही दिनों में पूरे गांव में बदनाम हो गई.

बात पिता शंभू सिंह और मां पार्वती तक पहुंची तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया कि बेटी है या आफत की परकाला. छोटी सी उम्र में इतने बड़े गुल खिला रही है. दोनों ने कंचन को खूब मारापीटा, मगर कंचन ने अपनी राह नहीं बदली.

शंभू सिंह और पार्वती जब सारी कोशिश कर के हार गए तब उन्होंने सोचा कि कंचन की जल्द शादी कर के उसे ससुराल भेज दिया जाए, तभी थोड़ीबहुत इज्जत बची रह सकती है.

इस फैसले के बाद शंभू सिंह ने कंचन के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. जल्द ही एक अच्छा रिश्ता मिल गया. प्रतापगढ़ जनपद के गांव धर्मपुर निवासी राजेश पटेल से कंचन का रिश्ता तय हो गया. 12 वर्ष पूर्व कंचन का विवाह राजेश पटेल से हो गया.

कंचन को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अब किसी और की जरूरत नहीं थी. पति राजेश उस की हर जरूरत पूरी करता था. कालांतर में कंचन ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

धीरेधीरे कंचन और राजेश में मतभेद रहने लगे, जिस वजह से उन के बीच वादविवाद होता था. यह वादविवाद कभीकभी विकराल रूप धारण कर लेता था. कंचन को अब अपनी ससुराल काटने को दौड़ती थी. उस का वहां मन नहीं लगता था.

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इसी बीच कंचन की मुलाकात रामकुमार दुबे से हो गई. रामकुमार दुबे कन्नौज के गुरसहायगंज का रहने वाला था. 10 सालों से वह हरदोई जिले में रहने वाली अपनी बहन मिथलेश की ससुराल में रहता था. काम की तलाश में वह प्रतापगढ़ आ गया. यहीं पर उसे कंचन मिल गई.

पहली मुलाकात हुई तो उन के बीच बातें हुईं. दोनों की यह मुलाकात काफी अच्छी रही. दोनों ने एकदूसरे को अपना नंबर दे दिया. इस के बाद तो उन की मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. फोन पर भी बातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में दोनों इतने करीब आ गए कि शादी कर के साथ रहने की सोचने लगे.

दोनों ने साथ रहने का फैसला लिया तो कंचन अपनी ससुराल छोड़ कर उस के पास आ गई. रामकुमार ने साथ रहने के लिए कंचन के कहने पर पहले ही जौनपुर के भुईधरा गांव में जमीन ले कर 2 कमरों का मकान बनवा लिया था. दोनों शादी कर के यहीं रहने लगे. यह 8 साल पहले की बात है. 4 साल पहले कंचन ने एक बेटे को जन्म दिया.

लेकिन अभावों ने कंचन का यहां भी पीछा न छोड़ा. रामकुमार की भी कमाई अधिक नहीं थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. कंचन की मुश्किलें बढ़ने लगीं तो उस ने इधरउधर देखना शुरू कर दिया. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उस की जरूरतों पर पैसा खर्च कर सके. इस खेल की तो वह पुरानी खिलाड़ी थी.

उस की तलाश रामाश्रय पटेल पर जा कर खत्म हुई. रामाश्रय जौनपुर के मुगरा बादशाहपुर थाना क्षेत्र के बेरमाव गांव का निवासी था. बेरमाव पंवारा थाना क्षेत्र की सीमा से सटा गांव था. रामाश्रय दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में काम करता था. कुछ दिनों बाद वह घर आता रहता था. रामाश्रय विवाहित था और उस के 3 बच्चे भी थे. लेकिन उस की अपनी पत्नी से नहीं बनती थी.

रामाश्रय भुईधरा गांव आता रहता था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात कंचन से हो गई थी. कंचन जान गई थी कि रामाश्रय आर्थिक रूप से काफी मजबूत है. कंचन और रामाश्रय की मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों में कंचन ने रामाश्रय के बारे में काफी कुछ जान लिया.

वह यह भी जान गई कि रामाश्रय की अपनी पत्नी से नहीं बनती. यह जान कर वह काफी खुश हुई, उस का काम आसान जो हो गया था. पत्नी से परेशान मर्द को बहला कर अपने पहलू में लाना आसान होता है, यह कंचन बखूबी जानती थी.

कंचन ने अब रामाश्रय को अपने लटकेझटके दिखाने शुरू कर दिए. रामाश्रय भी कंचन के नजदीक आ कर उसे पाने की चाहत रखता था. कंचन के लटकेझटके देख कर वह भी समझ गया कि मछली खुद शिकार होने को आतुर है. वह भी कंचन पर अपना प्रभाव जमाने के लिए खुल कर उस पर अपना पैसा लुटाने लगा.

कंचन की रामाश्रय से नजदीकी क्या हुई, कंचन के अंदर की अभिलाषा जाग गई. कंचन ने अपनी कामकलाओं का ऐसा जादू बिखेरा कि रामाश्रय सौसौ जान से उस पर न्यौछावर हो गया.

रामकुमार के काम पर जाते ही कंचन सजधज कर घर से निकल जाती और रामाश्रय के साथ घूमती और मटरगश्ती करती. रामाश्रय पर कंचन के रूप का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. रामकुमार के घर आने से पहले कंचन घर आ जाती थी. घर आने के बाद अपना मेकअप धो कर साफ कर लेती. घर के कपड़े पहन कर घर का काम करने लगती.

कंचन समझती थी कि किसी को उस की रंगरलियों की खबर नहीं है. जबकि वास्तविकता सब जान रहे थे. एक दिन किसी शुभचिंतक ने रामकुमार को उस की पत्नी की रंगरलियों की दास्तान बयां कर दी.

रामकुमार ने इस बाबत कंचन से कोई सवाल नहीं किया. बल्कि उस ने अपने सारे पैग पीतेपीते सोच लिया कि हकीकत का पता करने के लिए उसे क्या करना है.

दूसरे दिन रामकुमार काम पर जाने के लिए घर से तो निकला, पर गया नहीं. कुछ दूरी पर एक जगह छिप कर बैठ गया. उस की नजर घर की ओर से आने वाले रास्ते पर जमी थी.

मुश्किल से आधा घंटा बीता होगा कि कंचन आती दिखाई दी. अच्छे कपड़े, आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक, कलाइयों में खनकती चूडि़यां उस की खूबसूरती बढ़ा रही थी.

कंचन जैसे ही नजदीक आई. रामकुमार एकदम से छिपे हुए स्थान से निकल कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. पति को अचानक सामने देख कर कंचन भौचक्की रह गई. वह रामकुमार से पूछना चाहती थी कि वह यहां कैसे, काम पर गए नहीं या लौट आए. मगर मानो वह गूंगी हो गई. चाह कर भी आवाज उस के गले से नहीं निकली.

रामकुमार ने कंचन की आंखों में देख कर भौंहें उचकाईं, ‘‘छमिया बन कर कहां चलीं… यार से मिलने? अपना मुंह काला करने और मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाने.’’

कंचन घबराई, लेकिन जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहाधो कर घर से निकलना भी अब जुल्म हो गया. दुखी हो गई हूं मैं तुम से.’’

‘‘घर चल, तब मैं बताता हूं कि कौन किस से दुखी है.’’

दोनों घर आए तो उन के बीच जम कर झगड़ा हुआ. कंचन अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह रामाश्रय से मिलने नहीं, अपनी सहेली से मिलने जा रही थी.

रामकुमार ने कंचन पर अंकुश लगाने का हरसंभव प्रयास किया, मगर वह नाकाम रहा.

14 मई को गांव रामपुर हरगिर के पास शारदा नहर के किनारे लोगों ने एक लाश देखी. देखते ही देखते वहां काफी संख्या में लोग जमा हो गए. लाश को ले कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे. इसी बीच रामपुर हरगिर गांव के अजय कुमार नाम के व्यक्ति ने संबंधित थाना पंवारा को लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी सेतांशु शेखर पंकज अपनी टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र लगभग 35-36 वर्ष रही होगी. मृतक के शरीर की खाल पानी में रहने से गल गई थी. लाश देखने में 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. मृतक के दाएं हाथ पर रामकुमार पटेल और कंचन गुदा हुआ था.

थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश के कई कोणों से फोटो खींचने के साथ नाम का जो टैटू था, उस की भी फोटो खींच ली. घटनास्थल का निरीक्षण किया गया तो पास से चाकू, रस्सी और कपड़े बरामद हुए.

वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश पोस्टमार्टम हेतु भेज दी. फिर अजय कुमार को साथ ले कर थाने आ गए.

अजय कुमार की लिखित तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. थाने के सिपाहियों को लाश पर मिले टैटू की फोटो दे कर अपने थाना क्षेत्र और आसपास के थाना क्षेत्र में भेजा, जिस से मृतक के बारे में कोई जानकारी मिल सके. उन का यह प्रयास सफल भी हुआ.

गोहानी गांव में टैटू देख कर लोगों ने पहचाना कि कंचन तो उसी गांव की बेटी है, रामकुमार उस का पति है. वह टैटू देख कर यह लगा कि वह लाश रामकुमार की थी.

जानकारी मिली तो थानाप्रभारी सेतांशु शेखर गोहानी गांव पहुंच गए. रामकुमार की ससुराल गोहानी में थी. वहां रामकुमार की पत्नी कंचन मौजूद थी. उस के साथ में रामाश्रय था. रामाश्रय का पता पूछा तो उस का गांव बेरमाव था जोकि घटनास्थल से काफी करीब था.

रामकुमार की हत्या होना, उस समय उस की पत्नी कंचन का मायके में होना और उस के साथ जो व्यक्ति रामाश्रय मिला उस के गांव के नजदीक रामकुमार की लाश मिलना, यह सब इत्तिफाक नहीं था. सुनियोजित साजिश के तहत घटना को अंजाम देने की ओर इशारा कर रहा था.

इस बात को थानाप्रभारी बखूबी समझ गए थे. इसलिए उन्होंने शक के आधार पर पूछताछ हेतु दोनों को हिरासत में ले लिया और थाने वापस आ गए.

थाने ला कर उन दोनों से पहले अलगअलग फिर आमनेसामने बैठा कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो वे दोनों टूट गए और हत्या के पीछे की वजह बयान कर दी.

कंचन और रामाश्रय दोनों के संबंधों को ले कर हर रोज घर में रामकुमार झगड़ा करने लगा. वह उन के मिलने में अड़चनें पैदा करने लगा तो कंचन ने रामाश्रय से रामकुमार को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. यह घटना से करीब एक हफ्ते पहले की बात है. दोनों ने पूरी योजना बना ली.

योजनानुसार कंचन अपने मायके गोहानी चली गई. 11/12 मई की रात रामाश्रय रामकुमार के पास गया. उस से कंचन से संबंध खत्म करने की बात कही. फिर एक नई शुरुआत करने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. रामकुमार को उस ने जम कर शराब पिलाई. देर रात एक बजे रामाश्रय रामकुमार को रामपुर हरगिर गांव के पास ले गया. उस समय रामकुमार नशे में धुत था.

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रामाश्रय ने साथ लाए चाकू से गला काट कर रामकुमार की हत्या कर दी. उस के बाद उस के हाथपैर रस्सी और कपड़े से बांध कर लाश नहर में डाल दी लेकिन लाश नदी में स्थित बिजली के आरसीसी के बने खंभों में फंस कर रह गई. नदी के बहाव में वह नहीं बह सकी. रामाश्रय यह नहीं देख पाया.

वह तो चाकू वहीं फेंक कर घर चला गया. अगले दिन वह कंचन के पास उस के मायके पहुंच गया. वहां वह कंचन के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

मुकदमे में भादंवि की धारा 201/120बी/34 और जोड़ दी गईं. कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

बात 28 मई की है. शाम के करीब पौने 5 बजे का वक्त रहा होगा. राजस्थान के भरतपुर शहर में डा. सुदीप गुप्ता अपनी पत्नी डा. सीमा गुप्ता के साथ कार से कुम्हेर गेट पर जाहरवीर मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे. रोजाना शाम को मंदिर में जा कर दर्शन करना उन की दिनचर्या में शुमार था.

गुप्ता दंपति का शहर में काली की बगीची पर श्रीराम गुप्ता मेमोरियल हौस्पिटल है. इसी हौस्पिटल के ऊपरी हिस्से में वह अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में डा. सुदीप की मां सुरेखा, पत्नी डा. सीमा और 18 साल का बेटा तथा 15 साल की बेटी थी.

डाक्टर दंपति 5 मिनट पहले ही अपने हौस्पिटल से मंदिर के लिए रवाना हुए थे. कार डा. सुदीप चला रहे थे. डा. सीमा उन के साथ आगे की सीट पर बैठी हुई थी. वह घर से करीब 750 मीटर दूर ही पहुंचे थे कि सरकुलर रोड पर नीम दा गेट के पास पीछे से आए एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवकों ने साइड से ओवरटेक कर अपनी बाइक उन की कार के आगे लगा दी.

सड़क के बीच बाइक रुकने से डा. सुदीप ने फुरती से कार के ब्रेक लगाए. सुदीप कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बाइक से उतर कर दोनों युवक कार की ड्राइविंग साइड में डा. सुदीप की तरफ आए. इन में एक युवक ने लाल कपड़े से अपना मुंह ढक रखा था और दूसरे युवक ने न तो मास्क लगाया हुआ था और न ही हेलमेट पहना हुआ था.

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इन दोनों युवकों को डा. सुदीप पहचान नहीं सके. कार के सामने बाइक लगाने की वजह जानने के लिए डा. सुदीप ने अपनी कार के गेट का शीशा नीचे किया.

डा. सुदीप उन युवकों से सवाल पूछते, इस से पहले ही मुंह पर कपड़ा बांधे युवक ने अपनी पैंट में छिपी पिस्तौल निकाली. उस ने बिना कुछ कहेसुने डा. सुदीप की कनपटी के पास 2-3 गोलियां मार दीं. डा. सुदीप के पास आगे की सीट पर ही बैठी डा. सीमा कुछ समझती, इस से पहले ही उस युवक ने उसे भी गोलियों से भून दिया.

डाक्टर दंपति पर गोलियां चलाने के बाद उस युवक ने कुछ पल रुक कर यह तसल्ली की कि दोनों की मौत हुई या नहीं. इस के बाद डा. सुदीप को एक गोली और मारी. फिर सड़क के दोनों ओर से गुजर रहे लोगों को डराने के लिए पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाईं.

दोनों युवक बाइक पर सवार हो कर भागने लगे, लेकिन बाइक स्टार्ट नहीं हुई. इस पर गोलियां चलाने वाले युवक ने धक्का दिया. बाइक स्टार्ट होने पर दोनों उस पर सवार हो कर यूटर्न ले कर भाग गए. भागते हुए भी उन्होंने पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाईं.

गोलियां लगने से डा. सुदीप और सीमा अपनी कार में ही लुढ़क गए. शहर के सब से प्रमुख रोड पर दिनदहाड़े हुई इस वारदात के समय सड़क के दोनों ओर वाहन लगातार आजा रहे थे, लेकिन किसी ने भी न तो बदमाशों को रोकने की हिम्मत की और न ही उन का पीछा किया. इसीलिए दोनों युवक जिस तरफ से आए थे, बाइक से उसी तरफ भाग गए. यह वारदात वहां आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद जरूर हो गई.

खास बात यह हुई कि डाक्टर दंपति को सरेआम गोलियां मारने की वारदात लौकडाउन के दौरान हुई. कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए पूरे राजस्थान में अप्रैल महीने के तीसरे सप्ताह से ही लौकडाउन लगा हुआ था. लौकडाउन में हालांकि आम लोगों के घर से निकलने पर रोक लगी हुई थी, लेकिन फिर भी लोग किसी न किसी बहाने घर से बाहर निकलते ही थे. हरेक चौराहों के अलावा जगहजगह पुलिस तैनात रहती थी. इतनी सख्ती होने के बावजूद दोनों युवक पिस्तौल से गोलियां चलाते हुए भाग गए और पुलिस को पता भी नहीं चला.

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दोनों युवकों के भागने के बाद आसपास के लोग मौके पर एकत्र हो गए. उन्होंने कार में लुढ़के पड़े डा. सुदीप और उस की पत्नी सीमा को पहचान लिया और पुलिस को सूचना दी. कुछ ही देर में पुलिस पहुंच गई. मौके पर एकत्र लोगों ने बताया कि ये डा. सुदीप और उस की पत्नी है. पुलिस ने लोगों की मदद से दोनों को कार से निकाला और तुरंत अस्पताल ले गए. अस्पताल में डाक्टर दंपति को मृत घोषित कर दिया.

दिनदहाड़े डाक्टर दंपति की हत्या की घटना से शहर में दहशत फैल गई. पुलिस के अफसर मौके पर पहुंच गए. शुरुआती जांचपड़ताल में ही साफ हो गया कि डाक्टर दंपति की हत्या बदला लेने के लिए की गई थी.

डाक्टर दंपति के खौफनाक अंत के पीछे की कहानी इस से भी ज्यादा खौफनाक है. उस कहानी तक ले चलने से पहले आप को बता दें कि डा. सुदीप की एक प्रेमिका थी. उस का नाम था दीपा गुर्जर. दीपा के 6 साल का बेटा शौर्य था.

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Crime: अपराध अर्थात “खून” बोलता है!

कहते हैं जघन्य अपराध कभी छुपता नहीं है, खास तौर पर हत्या. यह एक ऐसा गंभीर अपराध है जो हत्यारे की जिंदगी को तबाह कर देता है हत्या का आरोपी जिंदगी भर तिल तिल कर पश्चाताप अथवा भय से मरता रहता है.

अगर कानून और पुलिस से बच भी जाए तो यह अपराध उसे माफ नहीं करता और एक न एक दिन उसे सजा अवश्य मिलती है. ऐसा ही एक सच्चा घटनाक्रम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर घटित हुआ है. पुलिस को युवक की हत्या की गुत्थी को सुलझाने में 10 साल लग गए. आखिरकार उसे 10 साल बाद अपने अपराध की सजा मिल ही गई. देखिए! क्या और कैसे घटनाक्रम बदला. दरअसल,  पुलिस हत्या की फाइल तक बंद कर चुकी थी. लेकिन आखिरकार अब नया सुराग मिलते ही पुलिस ने हत्या के आरोप में दो आरोपीयों को गिरफ्तार कर सजा दिलाई है. तथ्य सामने आया है कि आरोपी ने अपने “अवैध संबंध” को छुपाने के लिए युवक की हत्या की थी. लेकिन उसने बातों में आखिरकार दस साल बाद इसकी जानकारी अपने दोस्त को  दे दी और बात पुलिस तक पहुंच गई. इस तरह एक दोस्त ने ही कानून की मदद कर अपने अपराधी दोस्त को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

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सर कुचल कर हत्या

10 साल पहले जनवरी 2011 में राजधानी रायपुर के खरोरा थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की हत्या हुई थी.  ग्राम कोसरंगी  में पुलिस को लेखराम सेन नाम के व्यक्ति की खेत में लाश मिली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि उसकी हत्या बेल्ट से गला दबाकर और सिर कुचलकर की गई थी. पुलिस इस अंधे कत्ल को सुलझाने की भरसक कोशिश की मगर जब कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने केस को खत्म कर दिया . लेकिन एक दिन अचानक पुलिस को 10 साल बाद सुराग मिला और आरोपी का राज खुल गया.

मुख्य आरोपी संतोष यादव ने कुछ दिन पहले इसी हत्या की पूरी दास्तां बातों बातों में अपने दोस्त को बताई . उसी दोस्त का जमीर जाग उठा और यह सच्चाई पुलिस तक पहुंच तक पहुंचा दी. फिर क्या था, पुलिस ने दो आरोपीयों संतोष यादव और लोकेश यादव को धर दबोचा. पुलिस का भी मानना है यदि आरोपी इस हत्या के राज को राज ही रखता, तो उसका पकड़ा जाना नामुमकिन था. लेकिन हत्या का अपराध छुपता नहीं सो एक बार फिर सिद्ध हो गया कि खून सचमुच बोलता है!

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अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्रामीण तारकेश्वर पटेल ने हमारे संवाददाता को बताया दस साल पहले हत्या के मामले में पुलिस ने अज्ञात आरोपी के खिलाफ अपराध दर्ज किया था. सालों साल तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी. रायपुर पुलिस ने पुराने गंभीर लंबित मामलों की समीक्षा की. जिसके बाद इस मामले को भी सुलझाने के निर्देश दिए गए थे. मामले की नए सिरे से जांच की गई. संदेह के आधार पर 2 युवक संतोष यादव और लोकेश यादव को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई.

पुलिस  पूछताछ में दोनों ने अंततः हत्या करना स्वीकार कर लिया. आरोपियों ने पुलिस को बताया कि मुख्य आरोपी संतोष यादव अपनी प्रेमिका को मिलने बुलाया था. जिस जगह पर वह मिल रहा था, वहां अचानक लेखराम सेन पहुंच गया और धमकाने लगा. अपने अवैध संबंध को छुपाने के लिए दोनों ने उसकी हत्या कर दी और शव को खेत में छोड़कर भाग गए. पुलिस ने दोनों आरोपी को प्रारंभिक साक्ष्य के आधार पर गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है.

Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

नोएडा के ककराला गांव की पुस्ता कालोनी में रात के ढाई बजे सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एक घर के बाहर जमा कालोनी के लोगों की भीड़ इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि वहां कोई अनहोनी हुई है. दरअसल, 7 मई 2021 की दरमियानी रात को पुस्ता कालोनी में रामचंद्र सिंह के मकान में किराए पर रहने वाले 52 वर्षीय संतराम की घर में घुस कर कुछ बदमाशों ने हत्या कर दी थी.

जिस वक्त ये वारदात हुई, रात के करीब एक बजे का वक्त था. पुलिस घटनास्थल पर सूचना मिलने के बाद करीब ढाई बजे पहुंची. ककराला गांव गौतमबुद्ध नगर कमिश्नरेट के फेज-2 थानाक्षेत्र के अंर्तगत आता है.

फेज-2 थाने के प्रभारी सुजीत कुमार उपाध्याय उस समय कुछ सिपाहियों के साथ गश्त कर रहे थे. जब कंट्रोलरूम ने उन्हें ककराला में रहने वाले संतराम की उस के घर में हुई हत्या की खबर दी.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय अगले कुछ ही मिनटों में बताए गए घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर तब तक मकान में रहने वाले कुछ दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. संतराम की हत्या उस के सिर व चेहरे पर ईंटों के वार कर के की गई थी. पास ही खून से लथपथ एक ईंट इस बात की पुष्टि कर रही थी. कमरे का सारा सामान इधरउधर फैला पड़ा था.

मृतक की पत्नी सुशीला जिस की उम्र करीब 55 साल थी, पति के शव के साथ लिपटलिपट कर रो रही थी. किसी तरह पुलिस ने सुशीला को दिलासा दी तो उस ने सुबकते हुए बताया कि रात करीब साढे़ 12 बजे किसी ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया.

मैं ने जैसे ही दरवाजा खोला तो 3 लोग जबरदस्ती कमरे में घुस आए. कमरे में घुसते ही उन्होंने मुझे दबोच लिया और पूछा घर में कितने लोग हैं, जेवर और नकदी कहां रखे हैं. पूछताछ करते हुए उन्होंने मुझे एक के बाद एक साथ 3-4 थप्पड़ मारे और लातघूंसों की बारिश करते हुए मुझे जोर से जमीन पर धक्का दे दिया.

दीवार से सिर टकराने के कारण मैं उसी वक्त बेहोश हो गई. इस के बाद बदमाशों ने क्या किया, मुझे नहीं मालूम. जब कुछ देर बाद मुझे होश आया तो मैं ने अपने पति का शव इसी अवस्था में देखा जैसा इस समय आप देख रहे हैं.

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इस के बाद मैं ने शोर मचा कर अपने मकान के दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों को एकत्र किया. बाद में अपने जेठ लालूराम को फोन किया. वह गौतमबुद्ध नगर के गांव धूममानिकपुर में रहता था. वह भी एक घंटे में सूचना पा कर आ गया.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को घटना का निरीक्षण करने और सुशीला के बयान से साफ लग रहा था कि संभवत: कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में घुसे होंगे.

घटना का जो खाका तैयार हुआ था उस की पुष्टि के लिए थानाप्रभारी उपाध्याय ने एकएक कर उस मकान में रहने वाले सभी किराएदारों, आसपड़ोस के लोगों और संतराम के बड़े भाई लालूराम से पूछताछ की तो पता चला कि संतराम घरों का निर्माण करने वाला छोटामोटा ठेकेदार था. ठेकेदारी में वह राजमिस्त्रियों की टीम ले कर निर्माण का काम करता था.

इस काम में वहीं आसपास रहने वाले उस के जानकार उस की टीम में शामिल होते थे. संतराम के बारे में एक अहम जानकारी यह मिली कि वह बेहद सरल स्वभाव का इंसान था. आज तक उस का किसी से झगड़ा या दुश्मनी की बात भी किसी को पता नहीं चली थी.

पुलिस को पूछताछ में किसी से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जिस से हत्याकांड के बारे में तत्काल कोई सुराग मिल पाता.

सुशीला इस घटना की एकमात्र चश्मदीद थी, लेकिन उस ने पूछताछ में बताया कि उस ने आज से पहले कभी उन हमलावरों को नहीं देखा था, वह उन के चेहरे और हुलिए के बारे में भी कोई खास जानकारी नहीं दे सकी. अलबत्ता उस ने यह जरूर कहा कि अगर वे लोग दोबारा उस के सामने आए तो वह उन्हें पहचान सकती है.

चूंकि जिस तरह बदमाशों ने घर में घुसते ही सुशीला के ऊपर हमला किया था, उस से जाहिर तौर पर कोई भी इंसान इतना घबरा जाता है कि वह किसी के चेहरेमोहरे को देखने की जगह पहले अपना बचाव और जान बचाने की कोशिश करता है.

लेकिन 2 ऐसी बातें थीं जो अब तक की जांच व पूछताछ में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को परेशान कर रही थीं. एक तो यह बात कि सुशीला के शरीर के सभी हिस्सों  का निरीक्षण करने के बाद भी उन्हें ऐसी कोई गुम या खुली हुई चोट नहीं मिली, जिस से साबित हो कि वह बेहोश हो गई थी. मतलब उस के शरीर पर खरोंच तक के निशान नहीं थे. दूसरे वह पुलिस को घर में लूटपाट होने वाले सामान की जानकारी नहीं दे सकी.

दरअसल, जिन बदमाशों ने घर में घुस कर एक आदमी की विरोध करने पर हत्या कर दी हो, क्या वह बिना कोई लूटपाट किए चले गए होंगे. दूसरे संतराम जिस हैसियत का इंसान था और किराए के मकान में जिस तरह का सामान मौजूद था, उसे देख कर कहीं से भी नहीं लग रहा था कि उस घर में लूटपाट करने के लिए बदमाश किसी की हत्या भी कर सकते हैं.

ऐसे तमाम सवाल थे जिन के कारण सुशीला पुलिस की निगाहों में संदिग्ध हो चुकी थी. लेकिन उस के पति की हत्या हुई थी इसलिए तत्काल उस से पूछताछ करना उपाध्याय ने उचित नहीं समझा.

इस वारदात की सूचना मध्य क्षेत्र के डीसीपी हरीश चंदर व एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल व इलाके के एसीपी योगेंद्र सिंह को भी लग चुकी थी. सूचना मिलने के बाद वे भी मौके पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन व फोरैंसिक टीम के अफसर भी मौके पर पहुंच गए थे.

घटनास्थल से जरूरी साक्ष्य एकत्र किए गए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक संतराम के भाई लालूराम जो धूममानिकपुर थाना बादलपुर जिला गौतमबुद्ध नगर में रहता है, की शिकायत पर पुलिस ने 7 मई की सुबह भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया, जिस की जांच का जिम्मा खुद थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय ने अपने हाथों में ले लिया.

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डीसीपी हरीश चंदर ने एसीपी योगेंद्र सिंह की निगरानी में हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय के साथ एसएसआई राजकुमार चौहान, एसआई रामचंद्र सिंह, नीरज शर्मा, हैडकांस्टेबल फिरोज, कांस्टेबल आकाश, जुबैर, विकुल तोमर, गौरव कुमार तथा महिला कांस्टेबल नीलम को शामिल किया गया. पूरे केस में पुलिस काररवाई पर नजर रखने के लिए एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल को जिम्मेदारी सौंपी गई.

हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने सब से पहले संतराम के शव का पोस्टमार्टम कर शव को उस के परिजनों को सौंपा, जिन्होंने उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इस दौरान दिल्ली व आसपास रहने वाले संतराम के काफी रिश्तेदार उस के घर पहुंच चुके थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो चुकी थी कि संतराम की मौत उस के सिर व चेहरे पर लगी चोटों के कारण हुई थी.

पुलिस टीम ने सभी बिंदुओं को ध्यान में रख क र अपनी  जांच शुरू कर दी. टीम ने सुशीला, उस के पति मृतक संतराम और उन के परिवार की कुंडली को खंगालना शुरू कर दिया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने वारदात वाली रात को घटनास्थल के आसपास सक्रिय रहे मोबाइल नंबरों का डंप डाटा भी उठा लिया और उन सभी मोबाइल नंबरों की जांचपड़ताल शुरू की जाने लगी, जो वहां सक्रिय थे.

पुलिस ने संतराम व सुशीला के फोन नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली. इस के अलावा गांव में अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया.

संतराम पुत्र शंकर राम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के कस्बा व थाना रोजा का रहने वाला था. उस के परिवार में एक भाई लालू राम के अलावा 4 बहनें थी.

यह बात करीब 18-19 साल पहले की है. उन दिनों संतराम अपने गांव व आसपास के इलाकों में राजमिस्त्री का काम करता था. उम्र बढ़ रही थी और उस ने शादी की नहीं थी, इसलिए जो भी कमाता उसे अपने ऊपर खर्च करता था. इंसान के ऊपर जिम्मेदारियां न हों तो शराब ही अधिकांश लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन जाती है.

उसी के गांव में बालकराम भी रहता था, जो उसी की बिरादरी का होने के साथ पेशे से राजमिस्त्री का ही काम करता था. यही कारण था कि संतराम की बालकराम से खासी गहरी दोस्ती थी. संतराम का उस के घर भी आनाजाना था. बालकराम विवाहित था परिवार में पत्नी सुशीला और 5 बच्चे थे. 3 बेटे व 2 बेटियों में सब से बड़ा बेटा था.

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संतराम बालकराम के साथ उस के घर में बैठ कर शराब भी पीता था. बालकराम की पत्नी सुशीला 5 बच्चे होने के बाद भी गेहुएं रंग और छरहरे बदन की इतनी आकर्षक महिला थी कि पहली ही नजर में कोई भी उस की तरफ आकर्षित हो जाता था. सुशीला थोड़ा चंचल स्वभाव की महिला थी.

अगले भाग में पढ़ें- संतराम व सुशीला की खुली पोल

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