आज सुशील कुमार जिस मुकाम पर हैं, उन का नाम एक बड़े अपराध से जुड़ना वाकई दुखद है और सवाल खड़ा करता है कि क्यों किसी नामचीन पहलवान ने ऐसी वारदात को अंजाम दिया, जो उस की जिंदगी को पूरी तरह बरबाद कर सकती है?

यह सवाल उठने की एक वजह यह भी है कि सुशील कुमार ने कुश्ती में जो कारनामे किए हैं, वह कोई हंसीखेल नहीं है, वरना साल 2008 से पहले चंद खेल प्रेमियों को छोड़ दें तो बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता था कि सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, अखिल कुमार और विजेंदर सिंह में से कौन मुक्केबाज है और कौन पहलवान.

लेकिन भारत ने साल 2008 में चीन में हुए बीजिंग ओलिंपिक खेलों में जो ऐतिहासिक प्रदर्शन किया था, उस में कुश्ती में सुशील कुमार और मुक्केबाजी में विजेंदर सिंह ने कांसे का तमगा जीता था. तब से सुशील कुमार ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और वे न केवल साल 2010 में वर्ल्ड चैंपियन बने, बल्कि साल 2012 में इंगलैंड के लंदन ओलिंपिक में कांसे के तमगे का रंग बदलते हुए उसे चांदी का कर दिया था.

देश की जनता और सरकार ने भी सुशील कुमार को प्यार और तोहफे देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. खेल जगत का हर बड़ा अवार्ड तो मिला ही, उन्हें नौकरी भी ऐसी दी गई कि वे भविष्य के पहलवानों को अपनी निगरानी में तराश सकें. इतना ही नहीं, 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों के गोल्ड मेडलिस्ट और सुशील कुमार के गुरु महाबली सतपाल ने उन्हें अपना दामाद बनाया.

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