भोजपुरी एक्ट्रेसेस की चोली करती है कमाल, डिजाइन में ये है ट्विस्ट

भोजपुरी एक्ट्रेसेस की जब भी बात आती है तो सबसे पहले उनके बोल्ड लुक और देसी लिबास ही दिमाग में आता है. क्योकि भोजपुरी सिनेमा में देसी लुक ज्यादा देखने को मिलता है. एक्ट्रेसेस के देसी लुक में सबसे ज्यादा अगर चर्चा रहती है तो वो है चोली. जो फिल्मों और गानों में अपना अलग ही कमाल दिखाती हैं. इतना ही नहीं, भोजपुरी एक्ट्रेसेस Bulky भी होती है और भोजपुरी सिनेमा ऐसी ही एक्ट्रेसेस की डीमांड ज्यादा बनीं रहती है.

 

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जी हां, भोजपुरी एक्ट्रेसेस की चोली के डिजाइन ही है ऐसे की उनमें ढेर सारा ट्विस्ट भरा हुआ है. उनके डिजाइन और डीप नेक उनके फैंस को उनका दीवाना बनाती है और हमेशा ही मीडिया की लाइमलाइट से जोड़ कर रखती हैं. ऐसे में आज हम उनक एक्ट्रेसेस की चोली की डिजाइन की चर्चा करेंगे जिनके लोग फैन हो गए.

 

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इस फोटो में एक्ट्रेस मोनालिसा अपने देसी अंदाज में नजर आ रही है जिसमें उनकी साड़ी का ब्लाउज सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा है. मोनालिसा अक्सर देसी अवतार में अपनी फोटोज सोशल मीडिया पर शेयर करती है. जिनमें उनकी चोली के डिजाइन एक से बढ़कर एक होते है.

 

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ये है एक्ट्रेस भोजपुरी की हीरोइन अक्षरा सिंह, जिनको कभी आप सोशल मीडिया पर सादगी के साथ देखेंगे तो कभी, इनकी देसी लुक देखेंगे. अक्षरा सिंह भी साड़ी के साथ एकदम हटकर चोली कैरी करती है. उनका डीप नेक ब्लाउज लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है.

भोजपुरी की बोल्ड एक्ट्रेस रानी चटर्जी तो चोली के मामले में पीछे रह ही नहीं सकती है एक्ट्रेस की चोली देख लोग निगाहें नहीं भटकाते है. उनकी चोली के डिजाइन और रंग बेहद ही हटकर होते है उनका देसी लुक किलर होता हैं.

आपको बता दें, कि भोजपुरी सिनेमा में जिस तरह के हम कपड़ों की डिजाइन और बोल्ड लुक देखते है ऐसा साउथ में भी देखने को मिलता है. जहां कि एक्ट्रेसेस भी Bulky और देसी ज्यादा नजर आती हैं. लेकिन इन्ही दोनों सिनेमा ने अपनी रगींनी को अभीतक जिंदा रखा है और दर्शोकों एक रगींन दुनिया से रूबारू कराया है. क्योकि चोली का फैशन हिंदी सिनेमा में कम भोजपुरी सिनेमा में ज्यादा देखने को मिलता है. जिसने आज भी देसी लुक को अपनी एक पहचान दे रखी हैं.

मैं कई दिनों से सेक्स एंजौय नहीं कर रही, ऐसे में क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 49 वर्ष है. मेरे पति और मैं रैगुलर सैक्स कर एंजौय करते हैं. इधर कई दिनों से मैं महसूस कर रही हूं कि मुझे और्गेज्म नहीं हो रहा. यह बात मैंने पति को बताई तो वे पूरी कोशिश करते हैं मु झे सैटिस्फाइड करने की. जब हसबैंड पूछते हैं कि और्गेज्म हो गया तो मैं  झूठ बोल देती हूं कि हो गया ताकि इन्हें कहीं बुरा न लगे. क्या मु झे डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए या उम्र के साथ यह सब नैचुरल है?

जवाब

इंटरकोर्स के दौरान महिलाओं का और्गेज्म तक न पहुंच पाना एक आम समस्या है. यह समस्या मानसिक तनाव, महिला का ठीक से एक्साइटेड न होना या सैक्स के दौरान दर्द आदि के कारण हो सकती है. इस के अलावा, महिलाओं की वैजाइना में लुब्रिकेशन यानी गीलेपन को उत्तेजना का पैमाना माना जाता है, उम्र बढ़ने के साथ उन में लुब्रिकेशन की कमी होना आम बात है. पार्टनर का टच ही लुब्रिकेशन में काफी मददगार होता है. सैक्स से पहले फोरप्ले पर ज्यादा ध्यान दें और सैक्स के दौरान मन को भटकने से रोकें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पतिव्रता: कैसा था वैदेही का पति

पूरे समर्पण के साथ पतिव्रता का धर्म निभाने वाली वैदेही के प्रति उस के पति की मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ चुकी थीं. रात की खामोशी को तोड़ते हुए दरवाजा पीटने की बढ़ती आवाज से चौंक कर भास्कर बाबू जाग गए थे. घड़ी पर नजर डाली तो रात के 2 बजे थे. इस समय कौन हो सकता है? यह सोच कर दिल किसी आशंका से धड़क उठा.

उन्होंने एक नजर गहरी नींद में सोती अपनी पत्नी सौंदर्या पर डाली और दूसरे ही क्षण उसे झकझोर कर जगा दिया. ‘‘क्या हुआ? कौन है?’’ वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. ‘‘क्या हुआ, यह तो मुझे भी नहीं पता पर काफी देर से कोई हमारा दरवाजा पीट रहा है,’’ भास्कर ने स्पष्ट किया. ‘‘अच्छा, पर आधी रात को कौन हो सकता है?’’ सौंदर्या ने कहा और दरवाजे के पास जा कर खड़ी हो गई. ‘‘कौन है? कौन दरवाजा पीट रहा है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘आंटी, मैं हूं प्रिंसी.’’ ‘‘यह तो धीरज बाबू की बेटी प्रिंसी का स्वर है,’’ सौंदर्या बोली और उस ने दरवाजा खोल दिया. देखा तो प्रिंसी और उस की छोटी बहन शुचि खड़ी हैं. ‘‘क्या हुआ, बेटी?’’ सौंदर्या ने चिंतित स्वर में पूछा. ‘‘मेरी मम्मी के सिर में चोट लगी है, आंटी. बहुत खून बह रहा है,’’ प्रिंसी बदहवास स्वर में बोली. ‘‘तुम्हारे पापा कहां हैं?’’ ‘‘पता नहीं आंटी, मम्मी को मारनेपीटने के बाद कहीं चले गए,’’ प्रिंसी सुबक उठी. सौंदर्या दोनों बच्चियों का हाथ थामे सामने के फ्लैट में चली गई. वहां का दृश्य देख कर तो उस के होश उड़ गए. उस की पड़ोसिन वैदेही खून में लथपथ बेसुध पड़ी थी.

वह उलटे पांव लगभग दौड़ते हुए अपने घर पहुंची और पति से बोली, ‘‘भास्कर, वैदेही बेहोश पड़ी है. सिर से खून बह रहा है. लगता है उस के पति भास्कर ने सिर फाड़ दिया है. बच्चियां रोरो कर बेहाल हुई जा रही हैं.’’ ‘‘तो कहो न उस के पति से कि वह अस्पताल ले जाए, हम कब तक पड़ोसियों के झमेले में पड़ते रहेंगे.’’ ‘‘वह घर में नहीं है.’’ ‘‘क्या? घर में नहीं है….पत्नी को मरने के लिए छोड़ कर आधी रात को कहां भाग गया डरपोक?’’ ‘‘मुझे क्या पता, पर जल्दी कुछ करो नहीं तो वैदेही मर जाएगी.’’ ‘‘तुम्हीं बताओ, आधी रात को बच्चों को अकेले छोड़ कर कहां जाएं?’’ भास्कर खीज उठा. ‘‘तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं, बस, जल्दी से फोन कर के एंबुलेंस बुला लो. तब तक मैं श्यामा बहन को जगा कर बच्चों के पास रहने की उन से विनती करती हूं,’’ इतना कह कर सौंदर्या पड़ोसिन श्यामा के दरवाजे पर दस्तक देने चली गई थी और भास्कर बेमन से फोन कर एंबुलेंस बुलाने की कोशिश करने लगा. श्यामा सुनते ही दौड़ी आई और दोनों पड़ोसिनें मिल कर वैदेही के बहते खून को रोकने की कोशिश करने लगीं. एंबुलेंस आते ही बच्चों को श्यामा की देखरेख में छोड़ कर भास्कर और सौंदर्या वैदेही को ले कर अस्पताल चले गए.

‘‘इस बेचारी की ऐसी दशा किस ने की है? कैसे इस का सिर फटा है?’’ आपातकालीन कक्ष की नर्स ने वैदेही को देखते ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी. ‘‘देखिए, सिस्टर, यह समय इन सब बातों को जानने का नहीं है. आप तुरंत इन की चिकित्सा शुरू कीजिए.’’ ‘‘यह तो पुलिस केस है. आप इन्हें सरकारी अस्पताल ले जाइए,’’ नर्स पर वैदेही की गंभीर दशा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. भास्कर नर्स के साथ बहस करने के बजाय मरीज को सरकारी अस्पताल ले कर चल पडे़. वैदेही को अस्पताल में दाखिल करते ही गहन चिकित्सा कक्ष में ले जाया गया. कक्ष के बाहर बैठे भास्कर और सौंदर्या वैदेही के होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे. बहुत देर से खुद पर नियंत्रण रखती सौंदर्या अचानक फूटफूट कर रो पड़ी. झिलमिलाते आंसुओं के बीच पिछले कुछ समय की घटनाएं उस के दिलोदिमाग पर हथौडे़ जैसी चोट कर रही थीं. कुछ बातें तो उस के स्मृति पटल पर आज भी ज्यों की त्यों अंकित थीं. उस रात कुछ चीखनेचिल्लाने के स्वर सुन कर सौंदर्या चौंक कर उठ बैठी थी. कुछ देर ध्यान से सुनने के बाद उस की समझ में आया था कि जो कुछ उस ने सुना वह कोई स्वप्न नहीं बल्कि हकीकत थी. चीखनेचिल्लाने के स्वर लगातार पड़ोस से आ रहे थे. अवश्य ही कहीं कोई मारपीट पर उतर आया था. सौंदर्या ने पास सोते भास्कर पर एक नजर डाली थी. क्या गहरी नींद है.

एक बार सोचा कि भास्कर को जगा दे पर उस की गहरी नींद देख कर साहस नहीं हुआ था. वह करवट बदल कर खुद भी सोने का उपक्रम करने लगी पर चीखनेचिल्लाने के पूर्ववत आते स्वर उसे परेशान करते रहे थे. सौंदर्या सुबह उठी तो सिर बहुत भारी था. ‘क्या हो गया? सुबह के 7 बजे हैं. अब सो कर उठी हो? आज बच्चों की छुट्टी है क्या?’ भास्कर ने चाय की प्याली थामे कमरे में प्रवेश किया था. ‘पता नहीं क्या हुआ है जो सुबह ही सुबह सिरदर्द से फटा जा रहा है.’ ‘चाय पी कर कुछ देर सो जाओ. जगह बदल गई है इसीलिए शायद रात में ठीक से नींद न आई हो,’ भास्कर ने आश्वासन दिया तो सौंदर्या रोंआसी हो उठी थी. ‘सोचा था अपने नए फ्लैट में आराम से चैन की बंसी बजाएंगे. पर यहां तो पहली ही रात को सारा रोमांच जाता रहा.’ ‘ऐसा क्या हो गया? उस दिन तो तुम बेहद उत्साहित थीं कि पुरानी गलियों से पीछा छूटा. नई पौश कालोनी मेें सभ्य और सलीकेदार लोगों के बीच रहने का अवसर मिलेगा,’ भास्कर ने प्रश्न किया था. ‘यहां तो पहली रात को ही भ्रम टूट गया.’ ‘ऐसा क्या हो गया जो सारी रात नींद नहीं आई,’ भास्कर ने कुछ रोमांटिक अंदाज में कहा, ‘प्रिय, देखो तो कितना सुंदर परिदृश्य है. उगता हुआ सूरज और दूर तक फैला हुआ सजासंवरा हराभरा बगीचा. एक अपना वह पुराना बारादरी महल्ला था जहां सूर्य निकलने से पहले ही लोग कुत्तेबिल्लियों की तरह झगड़ते थे. वह भी छोटीछोटी बातों को ले कर. ‘इतना प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है. वह घर हम अवश्य छोड़ आए हैं पर वहां का वातावरण हमारे साथ ही आया है.’ ‘क्या तात्पर्य है तुम्हारा?’ ‘यही कि जगह बदलने से मानव स्वभाव नहीं बदल जाता. रात को पड़ोस के फ्लैट से रोनेबिलखने के ऐसे दयनीय स्वर उभर रहे थे कि मेरी तो आंखों की नींद ही उड़ गई. बच्चे भी जोर से चीख कर कह रहे थे कि पापा मत मारो, मत मारो मम्मी को.’ ‘अच्छा, मैं ने तो समझा था कि यह सभ्य लोगों की बस्ती है, पुरानी बारादरी थोडे़ ही है. यहां के लोग तो मानवीय संबंधों का महत्त्व समझते होंगे पर लगता है कि…

सौंदर्या ने पति की बात बीच में काट कर वाक्य पूरा किया, ‘कि मानव स्वभाव कभी नहीं बदलता, फिर चाहे वह पुरानी बारादरी महल्ला हो या फिर शहर का सभ्य सुसंस्कृत आधुनिक महल्ला.’ ‘तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं, मैं तभी जा कर उस वीर पति को सबक सिखा देता. अपने से कमजोर पर रौब दिखाना, हाथ उठाना बड़ा सरल है. ऐसे लोगों के तो हाथ तोड़ कर हाथ में दे देना चाहिए.’ ‘देखो, बारादरी की बात अलग थी. यहां हम नए आए हैं. हम क्यों व्यर्थ ही दूसरों के फटे में पांव डालें,’ सौंदर्या ने सलाह दी. ‘यही तो बुराई है हम भारतीयों में, पड़ोस में खून तक हो जाए पर कोई खिड़की तक नहीं खुलती,’ भास्कर खीज गया था. दिनचर्या शुरू हुई तो रात की बात सौंदर्या भूल ही गई थी पर नीलम और नीलेश को स्कूल बस मेें बिठा कर लौटी तो सामने के फ्लैट से 3 प्यारी सी बच्चियों को निकलते देख कर ठिठक गई थी. सब से बड़ी 10 वर्षीय और दूसरी दोनों उस से छोटी थीं. तीनों लड़कियां मानों सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं. सीढि़यां चढ़ते ही सामने के फ्लैट का दरवाजा पकडे़ एक महिला खड़ी थी.

दूधिया रंगत, तीखे नाकनक्श. सौंदर्या ने महिला का अभिवादन किया तो वह मुसकरा दी थी. बेहद उदास फीकी सी मुसकान. ‘मैं आप की नई पड़ोसिन सौंदर्या हूं,’ उस ने अपना परिचय दिया था. ‘जी, मैं वैदेही’ इतना कहतेकहते उस ने अपने फ्लैट में घुस कर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था, मानो कोई उस का पीछा कर रहा हो. भारी कदमों से सौंदर्या अपने फ्लैट में आई थी. अजीब बस्ती है. यहां कोई किसी से बात तक नहीं करता. इस से तो अपनी पुरानी बारादरी अच्छी थी कि लोग आतेजाते हालचाल तो पूछ लेते थे. दालचावल बीनते, सब्जी काटते पड़ोसिनें बालकनी में भी छत पर खड़ी हो सुखदुख की बातें तो कर लेती थीं और मन हलका हो जाता था. पर इस नए परिवेश में तो दो मीठे बोल सुनने को मन तरस जाता था. यही क्रम जब हर 2-3 दिन पर दोहराया जाने लगा तो सौंदर्या का जीना दूभर हो गया. बारादरी में तो ऐसा कुछ होने पर पड़ोसी मिल कर बात को सुलझाने का प्रयत्न करते थे, पर यहां तो भास्कर ने साफ कह दिया था कि वह इस झमेले में नहीं पड़ने वाला. और वह कानों में रूई के फाहे लगा कर चैन की नींद सोता था. पड़ोसियों के पचडे़ में न पड़ने के अपने फैसले पर भास्कर भी अधिक दिनों तक टिक नहीं पाया. हुआ यों कि कार्यालय से लौटते समय अपने फ्लैट के ठीक सामने वाले फ्लैट के पड़ोसी धीरज द्वारा अपनी पत्नी पर लातघूंसों की बरसात को भास्कर सह नहीं सका था.

उस ने लपक कर उस का गिरेबान पकड़ा था और दोचार हाथ जमा दिए. ‘मैं तो आप को सज्जन इनसान समझता था पर आप का व्यवहार तो जानवरों से भी गयागुजरा निकला,’ भास्कर ने पड़ोसी की बांह इस प्रकार मरोड़ी कि वह दर्द से कराह उठा था. भास्कर ने जैसे ही धीरज का हाथ छोड़ा वह शेर हो गया. ‘आप होते कौन हैं हमारे व्यक्तिगत मामलों में दखल देने वाले. मेरी पत्नी है वह. मेरी इच्छा, मैं उस से कैसा भी व्यवहार करूं.’ ‘लानत है तुम्हारे पति होने पर जो मारपीट को ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हो,’ दांत पीसते हुए भास्कर पड़ोसी की ओर बढ़ा पर दूसरे ही क्षण वैदेही हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी थी. ‘भाई साहब, मैं आप के हाथ जोड़ती हूं, आप हमारे बीच पड़ कर नई मुसीबत न खड़ी करें.’ भास्कर को झटका सा लगा था. दूसरी ओर अपने फ्लैट का द्वार खोले सौंदर्या खड़ी थी. वैदेही पर एक पैनी नजर डाल कर भास्कर अपने फ्लैट की ओर मुड़ गया था. सौंदर्या उस के पीछे आई थी. वह सौंदर्या पर ही बरस पड़ा था. ‘कोई जरूरत नहीं है ऐसे पड़ोसियों से सहानुभूति रखने की. अपने काम से काम रखो, पड़ोस में कोई मरे या जिए. नहीं सहन होता तो दरवाजेखिड़कियां बंद कर लो, कानों में रूई डाल लो और चैन की नींद सो जाओ.’ सौंदर्या भास्कर की बात भली प्रकार समझती थी. उस का क्रोध सही था पर चुप रहने के अलावा किया भी क्या जा सकता था. धीरेधीरे सौंदर्या और वैदेही के बीच मित्रता पनपने लगी थी. ‘क्या है वैदेही, ऐसे भी कोई अत्याचार सहता है क्या? सिर पर गुलम्मा पड़ा है, आंखों के नीचे नील पडे़ हैं जगहजगह चोट के निशान हैं… तुम कुछ करती क्यों नहीं,’ एक दिन सौंदर्या ने पूछ ही लिया था. ‘क्या करूं दीदी, तुम्हीं बताओ. मेरे पिता और भाइयों ने साम, दाम, दंड, भेद सभी का प्रयोग किया पर कुछ नहीं हुआ. आखिर उन्होंने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया. मुझे तो लगता है एक दिन ऐसे ही मेरा अंत आ जाएगा.’ ‘क्या कह रही हो. इस आधुनिक युग में भी औरतों की ऐसी दुर्दशा? मुझे तो तुम्हारी बातें आदिम युग की जान पड़ती हैं.’ ‘समय भले ही बदला हो दीदी पर समाज नहीं बदला. जिस समाज में सीताद्रौपदी जैसी महारानियों की भी घोर अवमानना हुई हो वहां मेरी जैसी साधारण औरत किस खेत की मूली है.’ ‘मैं नहीं मानती, पतिपत्नी यदि एकदूसरे का सम्मान न करें तो दांपत्य का अर्थ ही क्या है.’ ‘हमारे समाज में यह संबंध स्वामी और सेवक का है,’ वैदेही बोली थी.

‘बहस में तो तुम से कोई जीत नहीं सकता. इतनी अच्छी बातें करती हो तुम पर धीरज को समझाती क्यों नहीं,’ सौंदर्या मुसकरा दी थी. ‘समझाया इनसान को जाता है हैवान को नहीं,’ वैदेही की आंखें डबडबा आईं और गला भर आया था. सौंदर्या गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर बेंच पर बैठी थी कि चौंक कर उठ खड़ी हुई. अचानक ही वर्तमान में लौट आई वह. ‘‘मरीज को होश आ गया है,’’ सामने खड़ी नर्स कह रही थी, ‘‘आप चाहें तो मरीज से मिल सकती हैं.’’ सौंदर्या को देखते ही वैदेही की आंखों से आंसुओं की धारा बह चली. ‘‘मैं घर चलता हूं. कल काम पर भी जाना है,’’ भास्कर ने कहा. ‘‘भाई साहब, अब भी नाराज हैं क्या? कोई भूल हो गई हो तो क्षमा कर दीजिए इस अभागिन को,’’ वैदेही का स्वर बेहद धीमा था, मानो कहीं दूर से आ रहा हो. ‘‘गांधी नगर में मेरी बहन रहती है. उसे आप फोन कर दीजिएगा,’’ इतना कह कर वैदेही ने फोन नंबर दिया पर वह चिंतित थी कि न जाने कब तक अस्पताल में रहना पड़ेगा. भास्कर घर पहुंचा तो धीरज वापस आ चुका था. उसे देख कर बाहर निकल आया. ‘‘वैदेही कहां है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘कौन वैदेही? मैं किसी वैदेही को नहीं जानता,’’ भास्कर तीखे स्वर में बोला. ‘‘देखो, सीधे से बता दो नहीं तो मैं पुलिस को सूचित करूंगा,’’ धीरज ने धमकी दी. ‘‘उस की चिंता मत करो, पुलिस खुद तुम्हें ढूंढ़ती आ रही होगी.

वैसे तुम्हारी पतिव्रता पत्नी तो तुम्हारे विरोध में कुछ कहेगी नहीं, पर हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं,’’ भास्कर का क्रोध हर पल बढ़ता जा रहा था. तभी भास्कर ने देखा कि उस माउंट अपार्टमेंट के फ्लैटों के दरवाजे एकएक कर खुल गए थे और उन में रहने वाले लोग मुट्ठियां ताने धीरज की ओर बढ़ने लगे थे. ‘‘इस राक्षस को सबक हम सिखाएंगे,’’ वे चीख रहे थे. भास्कर के होंठों पर मुसकान खेल गई. इस सभ्यसुसंस्कृत लोगों की बस्ती में भी मानवीय संवेदना अभी पूरी तरह मरी नहीं है. उसे वैदेही और उस की बच्चियों के भविष्य के लिए आशा की नई किरण नजर आई. उधर धीरज वहां से भागने की राह न पा कर हाथ जोडे़ सब से दया की भीख मांग रहा था.

लुट गई जोगी तेरे प्यार में : क्या थी मौलाना की शर्त

जमीला और शर्मिला पक्की सहेलियां थीं. उन की दोस्ती को देख कर घरपरिवार वाले और पड़ोसी उन्हें दो जिस्म एक जान कहते थे.

दोनों सहेलियों ने गांव में ही एकसाथ पढ़ाई की थी. आगे की पढ़ाई के लिए गांव में स्कूल न होने, गरीबी और परदा प्रथा की वजह से उन के परिवारों ने आगे दिलचस्पी नहीं दिखाई. नतीजतन, वे दोनों घर पर ही रह कर परिवार के साथ बीड़ी बनाने का काम करने लगीं.

जमीला कब जवान हो गई, उस की समझ में नहीं आया. घर के बड़ेबूढ़े जब उसे टोकते, ‘बड़ी हो गई है तू, ठीक से दुपट्टा ओढ़ कर बाहर निकला कर. अकेले घूमने मत जाना. बहू, इसे नकाब ला कर दे. अब कोई छोटी बच्ची थोड़े ही है, बड़ी हो गई…’

वह सोचती, ‘आखिर मुझ में ऐसा क्या हुआ है? जब मैं स्कूल जाती थी, तब कोई कुछ नहीं कहता था.’

शर्मिला की शादी पास के गांव में हो गई और जमीला अकेली रह गई. दिल की बात कहनेसुनने वाला कोई न रहा. उस की जिंदगी कैद के पंछी की तरह रह गई. बीड़ी बनाते और घर का काम करतेकरते उस का दम घुटने लगा.

समय पंख लगा कर उड़ने लगा. जवानी जमीला को जिंदगी का मजा लूटने की दावत देने लगी. वह अंदर ही अंदर कसमसाने लगी. जब वह जवान जोड़ों को देखती, तो उस की बेचैनी और बढ़ जाती. शहनाई की आवाज सुन कर वह जोश में आ जाती.

‘‘जमीला के अब्बू, देखना… जमीला को क्या हुआ है…’’ उस की मां ने घबरा कर आवाज दी.

‘‘आया बेगम,’’ बाहर अपने दोस्तों के साथ बैठे जमीला के अब्बू जावेद मियां ने कहा.

वे दौड़ेदौड़े बैठक में आए, जहां जमीला अकेली बैठी बीड़ी बनातेबनाते बेहोश हो कर गिर गई थी.

‘‘क्या हुआ बेटी, देखो मुझे… आंखें खोलो… बेगम, पानी लाओ… इस के मुंह पर पानी के छींटे मारो,’’ जावेद मियां ने कहा.

तब तक उन के दोस्त भी अंदर आ गए थे.

‘‘कैसे हो गया यह सब?’’ मौलाना ने पूछा, जो जावेद के दोस्त थे.

‘‘क्या बताऊं… जमीला बैठी बीड़ी बना रही थी कि एकाएक बेहोश हो कर गिर पड़ी,’’ जमीला की मां ने बताया.

मौलाना ने झाड़फूंक शुरू कर दी. मुंह पर पानी के छींटे मारे, प्याज

सुंघाई गई और तकरीबन आधा घंटे बाद जमीला को होश आ गया.

जमीला कुछ थकीथकी सी लग

रही थी, इसलिए उसे आराम करने की सलाह दे कर जावेद मियां के दोस्त वहां से चले गए.

दूसरे दिन मौलाना ने जावेद मियां के घर पर दस्तक दी. दोनों बैठ कर जमीला की बीमारी पर बातचीत करने लगे.

‘‘देखो जावेद मियां, ऐसे हालात

में लड़की की शादी करने में मुश्किल आएगी,’’ मौलवी ने कहा.

‘‘बात तो सही है, पर इस का कोई उपाय तो बताओ?

‘‘जमीला के ठीक होते ही मुझे जैसा भी लड़का मिलेगा, मैं उस की शादी कर दूंगा,’’ कह कर जावेद मियां चुप हो गए.

‘‘ठीक है, मैं पता करता हूं, फिर तुम्हें खबर करूंगा…’’ मौलाना ने कहा, ‘‘अब मैं चलता हूं.’’

तकरीबन हफ्तेभर बाद मौलाना जावेद मियां के घर दोबारा आए.

‘‘आओ मौलाना, काफी दिन बाद आना हुआ,’’ जावेद मियां ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे काम में लगा था. बड़ी मुश्किल से एक शख्स मिला है. उस का कहना है कि वह लड़की को ठीक कर देगा. कुछ वक्त लगेगा, पैसा भी खर्च होगा. जब तक झाड़फूंक चलेगी, तब तक यह बात किसी तक न पहुंचे, वरना इल्म टूट जाएगा.’’

‘‘मौलाना, मुझे हर शर्त मंजूर है. तुम आज से ही इलाज शुरू करा दो. अपनी बेटी की बेहतरी के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं.’’

मौलाना के मन में खोट था. उस ने अपने एक दूर के साले असद से इस पूरे मसले पर पहले ही बात कर ली थी.

मौलाना ने उस से कहा था, ‘देखो मियां, मैं ने सौदा पटा लिया है. जावेद मियां की जमीन अपनी जमीन से लगी हुई है. हमें उसे हड़पना है. अब जा कर फंसा है. पहले तो बड़ीबड़ी बातें करता था, खेत जाने का रास्ता बंद कर दिया था, इसलिए मजबूरी में मुझे उस से दोस्ती करनी पड़ी.

‘तुम ऐसी चाल चलो कि जावेद की जमीन बिक जाए और वह मुझे मिल जाए.’

असद एक शातिर बदमाश था. उस की बीवी उस की हरकतों से तंग आ कर पिछले 10 सालों से अपने मायके में बैठी थी. गांव के भोलेभाले लोगों को गंडेतावीज बना कर देना, उन से रकम ऐंठना उस का पेशा था.

असद ने जावेद मियां के घर आ कर अपना काम शुरू कर दिया.

शुरूशुरू में तो जमीला को कुछ अच्छा न लगा, लेकिन अकेले में पराए मर्द को पा कर वह धीरेधीरे खुश रहने लगी.

जब असद को महसूस हुआ कि जमीला उस की ओर खिंच रही है, तो उस ने जावेद मियां से कहा, ‘‘जावेद साहब, कुछ जरूरी काम से मैं 1-2 दिन के लिए घर जा रहा हूं, लेकिन जल्दी ही वापस आ जाऊंगा.’’

जाने से पहले मौलाना और असद के बीच साजिश की लंबी बात चली. इसी के तहत वह अचानक अपने घर चला गया.

इधर जावेद मियां परेशान हो उठे, क्योंकि जमीला फिर से बारबार बेहोश होने लगी थी.

वे घबरा कर मौलाना के पास गए और असद को जल्द से जल्द बुलाने की गुहार लगाई.

मौलाना की खबर पा कर असद वापस आया ही था कि 8-10 मर्द और औरत उसे ढूंढ़ते हुए जावेद मियां के घर जा पहुंचे.

वे सभी गुजारिश करने लगे, ‘जोगी बाबा गांव वापस चलो, हम सब परेशान होने लगे हैं.’

इसी बीच मौलाना ने आ कर लोगों को समझीया कि आप के जोगी बाबा 2 दिन बाद आप के पास आ जाएंगे.

रात में असद उर्फ जोगी बाबा के शरीर में भयानक हलचल होने लगी और वह जोरजोर से हंसने लगा. घर के सभी लोग जाग गए. बाहर से आए उस के चेले दुआ मांगने लगे, परेशानी से बचने के उपाय पूछने लगे.

जोगी बाबा का गुस्से से भरा मिजाज देख कर सब डर गए. असद ने बताया कि जावेद के घर के पीछे किसी ने काला जादू कर दिया है, उसे निकाल कर नदी में डाल दो.

पर सावधान, किसी की जान जा सकती है. 5 क्विंटल पुलाव बना कर फातिहा दिलाओ और पहले कहीं से काले जादू की पुडि़या ढूंढ़ो. ज्यादा से ज्यादा लोगों को खाना खिलाओ. जोगी बाबा जो कहे वह करो. सब ठीक हो जाएगा.

काफी मशक्कत के बाद आखिर कपड़े में लिपटी एक पुडि़या मिल गई.

उस पुडि़या में हड्डी, काजल, सिंदूर, अनाज, काली चूड़ी वगैरह मिली. शक अब यकीन में बदल गया.

‘‘जावेद मियां, बात को समझे…’’ मौलाना ने कहा, ‘‘बच्ची प्यारी है या जायदाद. तुम ऐसा करो कि मेरे नाम जमीन की रजिस्ट्री कर दो. पूरा खर्चा मैं करता हूं. जब पैसा हो, तो मेरा पैसा लौटा देना और जमीन वापस ले लेना.’’

मौलाना ने अपनी चाल से जावेद को फांस लिया. अंधविश्वास में फंसे जावेद ने मौलाना की बात मान कर जमीन की रजिस्ट्री उन के नाम कर दी.

इधर असद उर्फ जोगी बाबा ने ऐसी चाल चली कि जमीला ने अपनेआप को उस के हवाले कर दिया.

अब वे दोनों बीमारी की आड़ले कर जिंदगी का मजा लूटने लगे. झाड़फूंक के बहाने अब दोनों को कोई नहीं रोक पाता था.

जमीला को जब से पराए मर्द का चसका लगा था, तब से वह खुश रहने लगी थी. उस के मांबाप इसे जोगी बाबा की झाड़फूंक का नतीजा मान रहे थे.

धीरेधीरे साल पूरा होने को आया. उस के मांबाप को जमीला की शादी

की फिक्र होने लगी और वे लड़के की तलाश में जुट गए.

इस बात की भनक असद को लग गई. वह मौका पा कर वहां से रफूचक्कर हो गया.

इसी बीच जमीला की शादी पक्की हो गई, लेकिन एक दिन वह अचानक बेहोश हो कर गिर पड़ी.

लोगों के झकझोरने पर भी होश नहीं आया, तो उसे अस्पताल ले जाया गया.

लेडी डाक्टर ने जांच करने के बाद कहा, ‘‘हम ने बच्ची को देख लिया है. अब वह होश में आ गई है. आप

उस का खयाल रखिए. भारी चीज न उठाने दें, क्योंकि आप की बेटी मां बनने वाली है.’’

लेडी डाक्टर की यह बात सुन कर जावेद, उस की बेगम और रिश्तेदारों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. उन की जमीला ढोंगी जोगी के प्यार में लुट चुकी थी.

नैटवर्क ही नहीं मिलता : फोन पर नंदिनी की क्या हुई बातचीत

फोन की घंटी बज रही थी. नंदिनी ने नहीं उठाया. यह सोच कर कि बाऊजी का फोन तो होगा नहीं. दूसरी, तीसरी, चौथी बार भी घंटी बजी तो विराज हाथ में किताब लिए हड़बड़ाए से आए.

‘‘नंदू, फोन बज रहा है भई?’’

विराज ने उसे देखते हुए फोन उठाया पर समझ न पाए कि नंदिनी ने कुछ सुना या नहीं? फोन किस का है, पूछे बिना नंदिनी गैलरी में आ गई. वह जानती है कि बाऊजी का फोन तो नहीं होगा.

मायके से लौटे महीनाभर हो चला है. वह फ्लैट से बाहर नहीं निकली है. शाम को धुंधलका होते ही गैलरी में आ खड़ी होती है. अंधेरा गहराते ही बत्तियां जगमगा उठती हैं मानो महानगर में होड़ शुरू हो जाती है भागदौड़ की. वह हंसतेबतियाते लोगों को ताकते हुए और भी उदास हो जाती है.

विराज उस की मनोस्थिति समझ कर भी बेबस थे. वे जानते हैं बाऊजी के एकाएक चले जाने से नंदिनी के जीवन में आए खालीपन को. बाऊजी नंदिनी के पिता तो बाद में थे, पिता से ज्यादा वे नंदिनी के भरोसेमंद मित्र एवं मां भी थे. मां से ही मन की बातें करती हैं बेटियां. नंदिनी की मां भी बाऊजी ही थे और पिता भी. मां को तो उस ने देखा ही नहीं. हमेशा बाऊजी से सुना कि ‘मां मिट्टी से नहीं, बल्कि फूलों से बनी थीं, बेहद नाजुक. गरम हवा के एक थपेड़े से ही पंखुरीपंखुरी हो बिखर गईं.’

अस्पताल के झूले में गुलाबी गोरी बिटिया को देखते ही बाऊजी ने सीने पर पत्थर रख लिया और अपनी बिटिया के लिए खुद फौलाद बन गए. उन्हें जीना होगा बिटिया के लिए.

विराज ने विवाह के बाद नंदिनी के रिश्तेदारों से पितापुत्री के प्रगाढ़ संबंध, बाऊजी की करुण संघर्ष गाथा को इतनी बार सुना है कि उन्हें रट गई हैं सब बातें. उन्हें भी बाऊजी की कमी खलती है. नंदिनी ने तो बाऊजी की गोद में आंखें खोली थीं. वे समझ रहे हैं उस की मनोस्थिति. नंदिनी को समय देना ही होगा.

नंदिनी कंधे पर स्पर्श पा कर चौंक गई, कैसी जानीपहचानी ममता से भरी कोमल छुअन है. गरदन घुमा कर देखा, विराज हैं.

‘‘क्या सोच रही हो नंदू?’’

‘‘आकाश देख रही हूं, तारे कम नहीं नजर आ रहे?’’

‘‘दिन के ज्यादा उजाले में चौंधिया रहा है पूरा शहर, जमीन से आसमान तक. ऐसे में तारे कम ही नजर आते हैं. चांदतारों का असल सौंदर्य व प्रकाश तो अंधेरे में दिखता है,’’ यह तर्क देतेदेते रुक गए विराज.

नंदू ने बात सिरे से नकार दी, ‘‘नहीं तो, बल्कि मुझे तो एक तारा ज्यादा नजर आ रहा है. वह देखो, वह वाला, एकदम अपनी गैलरी के ऊपर चमकदार.’’

‘‘तुम्हें देख रहा है प्यार से मुसकराते हुए बाऊजी की तरह.’’

यह सुनते ही नंदिनी को करंट सा लगा. विराज का हाथ झटक कर गुमसुम अंदर चली गई. विराज बातबात पर प्रयत्न करते हैं कि किसी तरह नंदिनी का दुखदर्द बाहर निकले किंतु आंसू तो दूर, उस की आंखें नम तक नहीं हो रहीं, मानो सारे आंसू ही सूख चुके हों. न सिर्फ बाऊजी की बातें और यादें, मानो पूरे के पूरे बाऊजी सिर्फ उसी के थे. यादोंबातों तक में किसी की हिस्सेदारी उसे मंजूर नहीं.

नंदिनी सीधे बैडरूम में आ गई. बैडरूम में अकसर पिता की तसवीरें नहीं होतीं पर नंदिनी की तो बात ही अलहदा है. उस के बैडरूम की दाईं दीवार पर सिर्फ तसवीरें ही तसवीरें हैं. बाऊजी के साथ वह या उस के संग बाऊजी. विदाई वेला की तसवीरें. वह तसवीरों पर उंगलियां फेर रही थी कि ड्राइंगरूम में रखा फोन फिर बज उठा. उस का जी धक से रह गया.

घड़ी देखी, 8 बज रहे हैं. उसी ने तो बाऊजी को समय बताए थे – सुबह 10 बजे के बाद और शाम को 7 के बाद.

वरना वे तो उठते ही फोन लगा देते थे. ‘बेटा, तू ठीक तो है? नींद अच्छी आई? नाश्ता जरूर करना? खाना क्याक्या बनाएगी? बढि़या कपड़े पहनना. तमाम सवाल.’

और शाम होते ही ‘विराज औफिस से आ गए? नवेली ने तुझे तंग तो नहीं किया? शाम को घूमने जाते हो न?’ आदि.

सवाल अकसर वही होने के बावजूद उन में इतनी परवा, फिक्र होती कि नंदिनी का मन गुलाबगुलाब हो जाता. कई बार वह सुबह बिस्तर या बाथरूम में होती या शाम को विराज औफिस से ही नहीं लौटते होते, तब पितापुत्री के मध्य समय तय हुआ था. हड़बड़ी में वह बाऊजी से मन की बातें ही नहीं कर पाती थी.

अकसर बेटियां मन की बातें मां से करती हैं, इसी हिसाब से बाऊजी उस के मातापिता दोनों ही थे. उस का तो मायका ही खत्म हो गया. कहने को तमाम नातेरिश्ते हैं, पर सब कहनेभर के. महीने दो महीने में औपचारिक बातें ही होती हैं.

फिर फोन बजा. विचारशृंखला में बाधा पड़ते ही नंदिनी पैर पटकती ड्राइंगरूम में पहुंची ही कि देखा, विराज फोन को डिस्कनैक्ट कर रहे थे. एक हाथ में फोन का प्लग और दूसरे में नवेली को थामे वे ठगे से खड़े रह गए.

नवेली, नाना की प्यारी नातिन, बाऊजी का नन्हा सा खिलौना. इसे तो समझ भी नहीं होगी कि नाना अब कभी नहीं नजर आएंगे. नंदिनी एकटक अपनी बिटिया को देखने लगी.

और विराज…नंदिनी को. वे द्रवित हो उठे उस के दुख से. क्या बीती होगी नंदू के हृदय पर पिता की निश्चल देह देख कर, क्या गुजरी होगी पिता की अस्थियों से भरा कलश देख कर, इतना हाहाकार, ऐसा झंझावात कि अश्रु तक उड़ा ले गए.

उन्होंने बढ़ कर नवेली को नंदिनी की गोद में दे कर अपने पास बैठा लिया. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था, कैसे सांत्वना दें कि नंदिनी इस सदमे से उबर आए. धीमे से प्रस्ताव रखा.

‘‘नंदू, कितने दिन हो गए तुम्हें घूमने निकले, आज चलें?’’

‘‘नहीं, मन नहीं होता.’’

अंधेरे की छाया : किस बीमारी का शिकार हुई प्रमिला

महेंद्र सिंह ने अपनी पत्नी प्रमिला के कमरे में झांक कर देखा. अंदर पासपड़ोस की 5-6 महिलाएं बैठी थीं. वे न केवल प्रमिला का हालचाल पूछने आई थीं बल्कि उस से इसलिए भी बतिया रही थीं कि उस की दिलजोई होती रहे. जब से प्रमिला फालिज की शिकार हुई थी, महल्ले के जानपहचान वालों ने अपना यह रोज का क्रम बना लिया था कि 2-4 की टोलियों में सुबह से शाम तक उस का मन बहलाने के लिए उस के पास मौजूद रहते थे. पुरुष नीचे बैठक में महेंद्र सिंह के पास बैठ जाते थे औैर औरतें ऊपर प्रमिला के कमरे में फर्श पर बिछी दरी पर विराजमान रहती थीं.

वे लोग प्रमिला एवं महेंद्र की प्रत्येक छोटीबड़ी जरूरतों का ध्यान रखते थे. महेंद्र को पिछले 3-4 महीनों के दौरान उसे कुछ कहना या मांगना नहीं पड़ा था. आसपास मौजूद लोग मुंह से निकलने से पहले ही उस की जरूरत का एहसास कर लेते थे और तुरंत इस तरह उस की पूर्ति करते थे मानो वे उस घर के ही लोग हों. उस समय भी 2 औरतें प्रमिला की सेवाटहल में लगी थीं. एक स्टोव पर पानी गरम कर रही थी ताकि उसे रबर की थैली में भर कर प्रमिला के सुन्न अंगों का सेंक किया जा सके. दूसरी औरत प्रमिला के सुन्न हुए अंगों की मालिश कर रही थी ताकि पुट्ठों की अकड़न व पीड़ा कम हो. कमरे में झांकने से पहले महेंद्र सिंह ने सुना था कि प्रमिला वहां बैठी महिलाओं से कह रही थी, ‘‘तुम देखना, मेरा गौरव मेरी बीमारी का पत्र मिलते ही दौड़ादौड़ा चला आएगा. लाठी मारे से पानी जुदा थोड़े ही होता है. मां का दर्द उसे नहीं आएगा तो किस को आएगा? मेरी यह दशा देख कर वह मुझे पीठ पर उठाएउठाए फिरेगा. तुरंत मुझे दिल्ली ले जाएगा और बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा.’’ महेंद्र के कमरे में घुसते ही वहां मौन छा गया था. कोई महिला दबी जबान से बोली थी, ‘‘चलो, खिसको यहां से निठल्लियो, मुंशीजी चाची से कुछ जरूरी बातें करने आए हैं.’’ देखतेदेखते वहां बैठी स्त्रियां उठ कर कमरे के दूसरे दरवाजे से निकल गईं. महेंद्र्र ऐेनक ठीक करता हुआ प्रमिला के पलंग के समीप पहुंचा. उस ने बिस्तर पर लेटी हुई प्रमिला को ध्यान से देखा.

शरीर के पूरे बाएं भाग पर पक्षाघात का असर हुआ था. मुंह पर भी हलका सा टेढ़ापन आ गया था और बोलने में जीभ लड़खड़ाने लगी थी. महेंद्र प्रमिला से आंखें चार होते ही जबरदस्ती मुसकराया था और पूछा था, ‘‘नए इंजेक्शनों से कोई फर्क पड़ा?’’ ‘‘हां जी, दर्द बहुत कम हो गया है,’’ प्रमिला ने लड़खड़ाती आवाज में जवाब दिया था और बाएं हाथ को थोड़ा उठा कर बताया था, ‘‘यह देखो, अब तो मैं हाथ को थोड़ा हरकत दे सकती हूं. पहले तो दर्द के मारे जोर ही नहीं दे पाती थी.’’ ‘‘और टांग?’’ ‘‘यह तो बिलकुल पथरा गई है. जाने कब तक मैं यों ही अपंगों की तरह पलंग पर पड़ी रहूंगी.’’ ‘‘बीमारी आती हाथी की चाल से है औैर जाती चींटी की चाल से है. देखो, 3 महीने के इलाज से कितना मामूली अंतर आया है, लेकिन अब मैं तुम्हारा और इलाज नहीं करा सकता. सारा पैसा खत्म हो चुका है. तमाम जेवर भी ठिकाने लग गए हैं. बस, 50 रुपए और तुम्हारे 6 तोले के कंगन और चूडि़यां बची हैं.’’ ‘‘हां,’’ प्रमिला ने लंबी सांस ली, ‘‘तुम तो पहले ही बहुत सारा रुपया गौरव और उस के बच्चों के लिए यह घर बनाने में लगा चुके थे. पर वे नहीं आए. अब मेरी बीमारी की सुन कर तो आएंगे. फिर मेरा गौरव रुपयों का ढेर…’’ ‘‘नहीं, मैं और इंतजार नहीं कर सकता,’’ महेंद्र बाहर जाते हुए बोला, ‘‘तुम इंतजार कर लो अपने बेटे का. मैं डा. बिहारी के पास जा रहा हूं, कंपाउंडर की नौकरी के लिए…’’ ‘‘तुम करोगे वही जो तुम्हारे मन में होगा,’’ प्रमिला चिढ़ कर बोली, ‘‘आने दो गौरव को, एक मिनट में छुड़वा देगा वह तुम्हारी नौकरी.’’ ‘‘आने तो दें,’’ महेंद्र बाहर निकल कर जोर से बोला, ‘‘लो, सलमा बाजी और उन की बहुएं आ गई हैं तुम्हारी सेवा को.’’ ‘‘हांहां तुम जाओ, मेरी सेवा करने वाले बहुत हैं यहां. पूरा महल्ला क्या, पूरा कसबा मेरा परिवार है. अच्छी थी तो मैं इन सब के घरों पर जा कर सिलाईकढ़ाई सिखाती थी. कितना आनंद आता था दूसरों की सेवा में. ऐसा सुख तो अपनी संतान की सेवा में भी नहीं मिलता था.’’ ‘‘हां, प्रमिला भाभी,’’ सलमा ने अपनी दोनों बहुओं के साथ कमरे में आ कर आदाब किया और प्रमिला की बात के जवाब में बोली, ‘‘तुम से ज्यादा मुंशीजी को मजा आता था दूसरों की खिदमत में.

अपनी दवाओं की दुकान लुटा दी दीनदुखियों की सेवा में. डाक्टरों का धंधा चौपट कर रखा था इन्होंने. कहते थे गौरव हजारों रुपया महीना कमाता है, अब मुझे दुकान की क्या जरूरत है. बस, गरीबों की खिदमत के लिए ही खोल रखी है. वरना घर बैठ कर आराम करने के दिन हैं.’’ ‘‘ठीक कहती हो, बाजी,’’ प्रमिला का कलेजा फटने लगा, ‘‘क्या दिन थे वे भी. कैसा सुखी परिवार था हमारा.’’ कभी महेंद्र और प्रमिला का परिवार बहुत सुखी था. दुख तो जैसे उन लोगों ने देखा ही नहीं था. जहां आज शानदार गौरव निवास खड़ा है वहां कभी 2 कमरों का एक कच्चापक्का घर था. महेंद्र का परिवार छोटा सा था. पतिपत्नी और इकलौता बेटा गौरव. महेंद्र की स्टेशन रोड पर दवाओं की दुकान थी, जिस से अच्छी आय थी. उसी आय से उन्होंने गौरव को उच्च शिक्षादीक्षा दिला कर इस योग्य बनाया था कि आज वह दिल्ली में मुख्य इंजीनियर है. अशोक विहार में उस की लाखों की कोठी है. वह देश का हाकी का जानामाना खिलाड़ी भी तो था. बड़ेबडे़ लोगों तक उस की पहुंच थी और आएदिन देश की विख्यात पत्रपत्रिकाओं में उस के चर्चे होते रहते थे. गौरव ने दिल्ली में नौकरी मिलने के साथ ही अपनी एक प्रशंसक शीला से शादी कर ली थी. महेंद्र व प्रमिला ने सहर्ष खुद दिल्ली जा कर अपने हाथों से यह कार्य संपन्न किया था. शीला न केवल बहुत सुंदर थी बल्कि बहुत धनवान एवं कुलीन घराने से थी. बस, यहीं वे चूक गए. चूंकि शादी गौरव एवं शीला की सहमति से हुई थी, इसलिए वे महेंद्र और प्रमिला को अपनी हर बात से अलग रखने लगे. यहां तक कि शीला शादी के बाद सिर्फ एक बार अपनी ससुराल नसीराबाद आई थी.

फिर वह उन्हें गंवार और उन के घर को जानवरों के रहने का तबेला कह कर दिल्ली चली गई थी. पिछले 15 वर्षों में उस ने कभी पलट कर नहीं झांका था. महेंद्र और प्रमिला पहले तो खुद भी ख्ंिचेखिंचे रहे थे, लेकिन जब उन के पोता और पोती शिखा औैर सुदीप हो गए तो वे खुद को न रोक सके. किसी न किसी बहाने वे बहूबेटे के पास दिल्ली पहुंच जाते. गौरव और शीला उन का स्वागत करते, उन्हें पूरा मानसम्मान देते. लेकिन 2-4 दिन बाद वे अपने बड़प्पन के अधिकारों का प्रयोग शुरू कर देते, उन के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर देते. वे उन्हें अपने फैसले मानने और उन की इच्छानुसार चलने पर विवश करते. यहीं बात बिगड़ जाती. संबंध बोझ लगने लगते और छोटीछोटी बातों को ले कर कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि महेंद्र और प्रमिला को वहां से भागना पड़ जाता. प्रमिला और महेंद्र आखिरी बार शीला के पिता की मृत्यु पर दिल्ली गए थे. तब शिखा और सुदीप क्रमश: 10 और 8 वर्ष के हो चुके थे.

उन के मन में हर बात को जानने और समझने की जिज्ञासा थी. उन्होंने दादादादी से बारबार आग्रह किया था कि वे उन्हें अपने कसबे ले जाएं ताकि वे वहां का जीवन व रहनसहन देख सकें. गौरव के दिल में मांबाप के लिए बहुत प्यार व आदर था. उस ने घर ठीक कराने के लिए शीला से छिपा कर मां को 10 हजार रुपए दे दिए ताकि शीला को बच्चों को ले कर वहां जाने में कोई आपत्ति न हो. परंतु प्रमिला की असावधानी से बात खुल गई. सासबहू में महाभारत छिड़ गया और एकदूसरे की शक्ल न देखने की सौगंध खा ली गई. परंतु नसीराबाद पहुंचते ही प्रमिला का क्रोध शांत हो गया. वह पोतापोती और गौरव को नसीराबाद लाने के लिए मकान बनवाने लगी. गृहप्रवेश के दिन वे नहीं आए तो प्रमिला को ऐसा दुख पहुंचा कि वह पक्षाघात का शिकार हो गईर् औैर अब प्रमिला को चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दीख रहा था.

महेंद्र डा. बिहारी के यहां से लौटा तो अंधेरा हो चुका था. पर घर का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया. प्रमिला का कमरा अड़ोसपड़ोस के लोगों से भरा हुआ था. प्रमिला अपने पलंग पर रखी नोटों की गड्डियां उठाउठा कर एक अजनबी आदमी पर फेंकती हुई चीख रही थी, ‘‘ले जाओ इन को मेरे पास से और उस से कहना, न मुझे इन की जरूरत है, न उस की.’’ आदमी नोट उठा कर बौखलाया हुआ बाहर आ गया था. उसे भीतर खड़े लोगों ने जबरदस्ती बाहर धकेल दिया था. कमरे से कईकई तरह की आवाजें आ रही थीं. ‘‘जाओ, भाई साहब, जाओ. देखते नहीं यह कितनी बीमार हैं.’’ ‘‘रक्तचाप बढ़ गया तो फिर कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. जल्दी निकालो इन्हें यहां से.’’ और 2 लड़के उस आदमी को बाजुओं से पकड़ कर जबरदस्ती बाहर ले गए. वह अजनबी महेंद्र से टकरताटकराता बचा था. महेंद्र ने भी गुस्से में पूछा था, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘मैं गौरव का निजी सहायक हूं, जगदीश. साहब ने ये 50 हजार रुपए भेजे हैं और यह पत्र.’’ महेंद्र ने नोटोें को तो नहीं छुआ, लेकिन जगदीश के हाथ से पत्र ले लिया. पत्र को पहले ही खोला जा चुका था और शायद पढ़ा भी जा चुका था. महेंद्र ने तत्काल फटे लिफाफे से पत्र निकाल कर खोला. पत्र गौरव ने लिखा था: पूज्य पिताजी एवं माताजी, सादर प्रणाम, आप का पत्र मिला. माताजी के बारे में पढ़ कर बहुत दुख हुआ. मन तो करता है कि उड़ कर आ जाऊं, मगर मजबूरी है. शीला और बच्चे इसलिए नहीं आ सकते, क्योंकि वे परीक्षा की तैयारी में लगे हैं. मैं एशियाड के कारण इतना व्यस्त हूं कि दम लेने की भी फुरसत नहीं है. बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर ये चंद पंक्तियां लिख रहा हूं. मैं समय मिलते ही आऊंगा. फिलहाल अपने सहायक को 50 हजार रुपए दे कर भेज रहा हूं ताकि मां का उचित इलाज हो सके. आप ने लिखा है कि आप ने हर तरफ से पैसा समेट कर नए मकान के निर्माण में लगा दिया है, जो बचा मां की बीमारी खा गईर्.

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यह आप ने ठीक नहीं किया. बेकार मकान बनवाया, हम लोगों के लिए वह किसी काम का नहीं है. हम कभी नसीराबाद आ कर नहीं बसेंगे. मां की बीमारी पर भी व्यर्थ खर्च किया. पक्षाघात के रोग का कोई इलाज नहीं है. मैं ने कईर् विशेषज्ञ डाक्टरों से पूछा है. उन सब का यही कहना है मां को अधिकाधिक आराम दें. यही इलाज है इस रोग का. मां को दिल्ली लाने की भूल तो कभी न करें. यात्रा उन के लिए बहुत कष्टदायक होगी. रक्तचाप बढ़ गया तो दूसरा आक्रमण जानलेवा सिद्ध होगा. एक्यूपंक्चर विधि से भी इस रोग में कोई लाभ नहीं होता. सब धोखा है… महेंद्र इस से आगे न पढ़ सका. उस का मन हुआ कि उस पत्र को लाने वाले के मुंह पर दे मारे. लेकिन उस में उस का क्या दोष था. उस ने बड़ी कठिनाई से अपने को संभाला और जगदीश को पत्र लौटाते हुए कहा, ‘‘आप उस से जा कर वही कहिए जो उसे जन्म देने वाली ने कहा है. मेरी तरफ से इतना और जोड़ दीजिए कि हम तो उस के लिए मरे हुए ही थे, आज से वह हमारे लिए मर गया.

काश, वह पैदा होते ही मर जाता.’’ जगदीश सिर झुका कर चला गया. महेंद्र प्रमिला के कमरे में घुसा. उस ने देखा कि वहां सब लोग मुसकरा रहे थे. प्रमिला की आंखें भीग रही थीं, लेकिन उस के होंठ बहुत दिनों के बाद हंसना चाह रहे थे. महेंद्र ने प्रमिला के पास जाते हुए कहा, ‘‘तुम ने बिलकुल ठीक किया, पम्मी.’’ तभी बिजली चली गई. कमरे में अंधेरा छा गया. प्रमिला ने देखा कि अंधेरे में खड़े लोगों की परछाइयां उस के समीप आती जा रही हैं. कोई चिल्लाया, ‘‘अरे, कोई मोमबत्ती जलाओ.’’ ‘‘नहीं, कमरे में अंधेरा रहने दो,’’ प्रमिला तत्काल चीख उठी, ‘‘यह अंधेरा मुझे अच्छा लग रहा है. कहते हैं कि अंधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है. मगर मेरे चारों तरफ फैले अंधेरे में तो साए ही साए हैं. मैं हाथ बढ़ा कर इन सायों का सहारा ले सकती हूं,’’ प्रमिला ने पास खड़े लोगों को छूना शुरू किया, ‘‘अब मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता, अंधेरे में भी कुछ साए हैं जो धोखा नहीं हैं, ये साए नहीं हैं बल्कि मेरे अपने हैं, मेरे असली संबंधी, मेरा सहारा…यह तुम हो न जी?’’ ‘‘हां, पम्मी, यह मैं हूं,’’ महेंद्र ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारे अंधेरों का भी साथी, तुम्हारा साया.’’ ‘‘तुम नौकरी करना डा. बिहारी की. रोगियों की सेवा करना. अपनी संतान से भी ज्यादा सुख मिलता है परोपकार में. मुझे संभालने वाले यहां मेरे अपने बहुत हैं. मैं निचली मंजिल पर सिलाई स्कूल खोल लूंगी, मेरे कंगन औैर चूडि़यां बेच कर सिलाई की कुछ मशीनें ले आना औैर पहियों वाली एक कुरसी ला देना.’’ ‘‘पम्मी.’’ ‘‘हां जी, मेरा एक हाथ तो चलता है. ऊपर की मंजिल किराए पर उठा देना. वह पैसा भी मैं अपने इन परिवार वालों की भलाई पर खर्च करना चाहती हूं. हमारे मरने के बाद हमारा जो कुछ है, इन्हें ही तो मिलेगा.’’ एकाएक बिजली आ गई. कमरे में उजाला फैल गया. सब के साथ महेंद्र ने देखा था कि प्रमिला अपने एक हाथ पर जोर लगा कर उठ बैठी थी. इस से पहले वह सहारा देने पर ही बैठ पाती थी. महेंद्र ने खुशी से छलकती आवाज में कहा, ‘‘पम्पी, तुम तो बिना सहारे के उठ बैठी हो.’’ ‘‘हां, इनसान को झूठे सहारे ही बेसहारा करते हैं.

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मैं इस आशा में पड़ी रही कि कोई आएगा, मुझे अपनी पीठ पर उठा कर ले जाएगा औैर दुनिया के बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा. मेरा यह झूठा सहारा खत्म हो चुका है. मुझे सच्चा सहारा मिल चुका है…अपनी हिम्मत का सहारा. फिर मुझे किस बात की कमी है? मेरा इतना बड़ा परिवार जो खड़ा है यहां, जो जरा से पुकारने पर दौड़ कर मेरे चारों ओर इकट्ठा हो जाता है.’’ यह सुन कर महेंद्र की छलछलाई आंखें बरस पड़ीं. उसे रोता देख कर वहां खड़े लोगों की आंखें भी गीली होने लगीं. महेंद्र आंसुओं को पोंछते हुए सोच रहा था, ‘ये कैसे दुख हैं, जो बूंद बन कर मन की सीप में टपकते हैं और प्यार व त्याग की गरमी पा कर खुशी के मोती बन जाते हैं.

संबंधों का कातिल: जब आंखों पर चढ़ जाए स्वार्थ का चश्मा  

‘‘माफ करना भाई, तुम्हें तो बात भी करना नहीं आता,’’ इतना बोल कर सुबोध ने अपने हाथ जोड़ लिए तो मानव खीज कर रह गया.

अचानक बात करतेकरते दोनों को ऐसा करता देख मैं भी घबरा गया. कमरे में झगड़ा हो और नकारात्मक माहौल बन जाए तो बड़ी घुटन होती है. मैं तनाव में नहीं जी सकता. पता नहीं कैसाकैसा लगने लगता है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने नाक तक मुझे पानी में डुबो दिया हो.

‘‘शांत रहो भाई, तुम दोनों को क्या हो गया है?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं भूल गया था कि कुपात्र को सीख नहीं देनी चाहिए. जिसे कुछ लेने की चाह ही न हो उसे कुछ कैसे दिया जा सकता है. बरतन सीधे मुंह रखा हो तभी उस में कोई चीज डाली जा सकती है, उलटे बरतन में कुछ नहीं डाला जा सकता. चाहे पूरी की पूरी सावन की बदली बरस कर चली जाए पर उलटे पात्र में एक बूंद तक नहीं डाली जा सकती. जिस चरित्र का यह मालिक है उस चरित्र पर तो किसी की अच्छी सलाह काम ही नहीं कर सकती. ऐसे लोग कभी किसी के हो कर नहीं रहते.’’

मानव चेहरे पर विचित्र भाव लिए कभी मेरा मुंह देख रहा था और कभी सुबोध का…जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो, जैसे उस का कोई परदा उठा दिया हो किसी ने. अभी कुछ दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. हम तीनों एक ही कमरा शेयर करते हैं. हमारे पेशे अलगअलग हैं लेकिन रहने को छत एक ही है जिस के नीचे हमारी रात और सुबह बीतती है.

‘‘चरित्र से…क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘क्या इस का मतलब तुम्हें नहीं पता? इतने तो नासमझ नहीं हो तुम, जो तुम्हें चरित्र का मतलब पता ही न हो. पढ़ेलिखे हो, अच्छी कंपनी में काम करते हो, हर महीने अच्छाखासा वेतन पाते हो, जूता तक तो तुम्हारा ब्रांडेड होता है. कंपनी में ऊपर तक जाने की जितनी तीव्र इच्छा  तुम्हें है उस के लिए अनैतिकता के कितने गहरे गड्ढे में धंस चुके हो, तुम्हें खुद ही नहीं पता…तुम कहां से हो और कहां जा रहे हो तुम्हें जरा सी भी समझ है? क्या जानते भी हो, कहां जा रहे हो…और कहां तक जाना चाहते हो उस की कोई तो सीमा होगी?’’

‘‘सीमा…सीमा कौन? किस की बात कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी सीमा की बात नहीं कर रहा हूं. मैं तो उस सीमा की बात कर रहा हूं जिसे हद भी कहा जाता है. हद यानी एक वह सूक्ष्म सी रेखा जिस के पार जाने से पहले मनुष्य को लाख बार सोचना चाहिए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. सीमा नाम की लड़की मानव की पत्नी है लेकिन मानव ने तो कहा था कि वह अविवाहित है और अपनी ही कंपनी में साथ काम कर रही एक सहयोगी के साथ उस के संबंध बहुत गहराई तक जुड़े हैं, सब जानते हैं. तो क्या मानव सब के साथ झूठ बोल रहा है? हाथ का काम छोड़ मैं सुबोध के समीप चला आया. मानव की शक्ल से तो लग रहा था जैसे काटो तो खून का कतरा भी न निकले. एक निश्छल सी मुसकान थी सुबोध के होंठों पर. बेदाग चरित्र है उस का. पहले ही दिन जब मिला था बहुत प्यारा सा लगा था. बड़े मस्त भाव से दाढ़ी बनाता जा रहा था.

‘‘हर इच्छा की सीमा होती है, कितनी भूख है तुम्हें पैसे की? सोचा जाए तो मात्र पैसे की ही नहीं, तुम्हें तो हर शह की भूख है. इतनी भूख से पेट फट जाएगा मानव, बदहजमी हो जाती है. प्रकृति ने इंसानों का हाजमा इतना मजबूत नहीं बनाया कि पत्थर या शीशा खा सके. हम अनाज या ज्यादा से ज्यादा जानवर खा सकते हैं.’’

यह कह कर मुंह धोने चला गया सुबोध और मानव मेरे सामने बुत बना यों खड़ा था मानो उसे बीच चौराहे पर किसी ने नंगा कर दिया हो.

‘‘तुम ये कैसी बातें कर रहे हो, सुबोध?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्या हुआ? जी मिचलाने लगा क्या? मानव का जी तो नहीं मिचलाता. पूछो, इसे इंसान का गोश्त कितना स्वाद लगता है. पिछले 4 साल से यह इंसान का गोश्त ही तो खा रहा है…अपने मांबाप का गोश्त, उस के बाद अपनी पत्नी और उस के पिता का गोश्त, यह तो एक बच्चे का पिता भी होता यदि पत्नी का गर्भपात न हो जाता. एक तरह से अपने बच्चे का गोश्त भी खा चुका है यह इंसान.’’

‘‘बकवास बंद करो सुबोध,’’ मानव ने चिढ़ कर कहा.

‘‘मेरी क्या मजाल है जो मैं बकवास करूं. उस का ठेका तो तुम ने ले रखा है. साल भर पहले घर गए थे तुम, सोचो, तब वहां क्या बकवास कर के आए थे? पत्नी को छोड़ना चाहते थे इसलिए उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा दिया.

‘‘एमबीए करने के लिए अपनी पत्नी के पिता से 8 लाख रुपए ले लिए. उन की बेटी का घरसंसार समृद्धि से भर जाएगा, उन को तुम ने ऐसा आश्वासन दिया था. पत्नी बेचारी घर पर इस के मातापिता की सेवा करती रही, इसी उम्मीद पर कि उस का पति बड़ा आदमी बन कर लौटेगा.

‘‘अजन्मा बच्चा अपने पिता का दोषारोपण सुनते ही चलता बना. मुड़ कर कभी नहीं देखता पीछे क्याक्या छूट गया. किसकिस के सिर पर पैर रख कर यहां तक पहुंचे हो, मानव. क्या जरा सा भी एहसास है?

‘‘अब क्या उस नेहा नाम की लड़की के कंधे पर पैर नहीं हैं तुम्हारे, जिस का भाई तुम्हें अमेरिका ले जाने वाला है? अमेरिका पहुंच कर नेहा को भी छोड़ देना. मानव नहीं हो तुम तो दानव बन गए हो. क्या तुम्हारे अंदर सारी की सारी संवेदनाएं मर गई हैं? पता है न तुम्हें कि कौनकौन कोस रहा है तुम्हें. तुम्हारे मातापिता, तुम्हारे ससुर…जिन की भविष्यनिधि भी तुम खा गए और उन की बेटी का घर भी नहीं बस पाया.’’

मानव की अवस्था विचित्र सी हो गई. बारबार कुछ कहने को वह मुंह खोलता तो सुबोध उस पर नया वार कर देता. प्याज के छिलकों की तरह परतदरपरत उस के भूतकाल की परतें उतारता जा रहा था. सफाई दे भी तो कैसे दे और शुरू कहां से करे, उस का तो आदि से अंत सब ही विश्वास और अपनत्व से शून्य था. जो इंसान अपने मांबाप का सगा न हुआ, अपनी पत्नी के प्रति वफादार न हुआ वह किसी और का भी क्या होगा? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. अपनी संतान के प्रति भी जिस ने कोई जिम्मेदारी न समझी, वह कहांकहां से पलायन कर रहा है समझा जा सकता है.

‘‘सुबोध, तुम यह सब कैसे जानते हो. जरा बताओ तो?’’ मैं ने सुबोध का हाथ पकड़ कर पूछा था. शांत रहने वाला सुबोध इस पल जरा आवेश में था.

‘‘तुम मुझ से क्यों पूछ रहे हो कि मैं यह सब कैसे जानता हूं. तुम इस नाशुक्रे इंसान से सिर्फ यह पूछो कि जो कुछ भी मैं ने इस के लिए कहा है वह सच है या नहीं. मैं कैसे जानता हूं कैसे नहीं, इस से क्या फर्क पड़ता है. पूछो इस से कि इस के मातापिता आजकल कहां हैं? जिंदा भी हैं या मर गए? तलाक के बाद इस की पत्नी और उस के पिता का क्या हुआ? क्या यह जानता है? अपने ससुर के 8 लाख रुपए यह कब लौटाने वाला है जो अब सूद मिला कर 10-12 लाख रुपए तो होने ही चाहिए.’’

‘‘सीमा ने अभी मुझे तलाक दिया कहां है…’’ पहली बार मानव ने अपने होंठ खोले, ‘‘और क्या सुबूत है उस के पास कि वे रुपए उस के पिता ने ही दिए थे.’’

‘‘जिस दिन अदालत का नोटिस तुम्हारे औफिस पहुंच जाएगा, उस दिन अपनेआप पता चल जाएगा किस के पास कितने और कैसे सुबूत हैं…इतना लाचार और बेवकूफ किसे समझ रहे हो तुम?’’

सुबोध इतना सब कह कर अपने कपड़े बदलने लगा.

‘‘आजकल मुंह छिपा कर भागना आसान कहां है. इंसान मोबाइल नंबर से पकड़ा जाता है, जिस कंपनी में काम करो वहां से छोड़ कर कहीं और भी चले जाओ तो भी सिरा हाथ में आ जाता है. यह दुनिया इतनी बड़ी कहां रह गई है कि इंसान पकड़ में ही न आए. जल्दी ही नेहा को भी पता चल जाएगा तुम्हारा कच्चा चिट्ठा. यह मत सोचो कि तुम सारी दुनिया को बेवकूफ बना लोगे.’’

बदहवास सा होने लगा मानव. 15 दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. उस ने कहा था जम्मू से है, मानव भी जम्मू से है, तब मुझे क्षण भर को लगा भी था कि मानव जम्मू का नाम सुन कर जरा सा परेशान हो गया था, बड़ी गहराई से परख रहा था कि वह किस हिस्से से है, किस कोने से है.

‘‘अगर इंसान जिंदा है और अच्छी नौकरी में है तो छिप नहीं सकता और मुझे पूरा विश्वास है तुम अभी जिंदा हो.’’

धड़ाम से वहीं बैठ गया मानव. सुबोध जल्दीजल्दी तैयार होने लगा. उस ने अपना नाश्ता किया और जातेजाते मानव का कंधा थपथपा दिया.

‘‘अभी भी देर नहीं हुई. मर जाओ या जिंदा रहो, अपने ही काम आते हैं. रोते भी अपने ही हैं, ऐसा दुनिया कहती है. अपना घरपरिवार संभालो, अपनों के साथ छल मत करो वरना वह दिन दूर नहीं जब यही छल घूमफिर कर तुम्हारे ही सामने परोसा जाएगा…अपने घर जाओ मानव, तुम्हारी मां बहुत बीमार हैं.’’

‘‘क्या?’’ मानव के होंठों से पहली बार यह शब्द अपनेआप ही निकला था.

‘‘अपनी मां तो याद हैं न. जाओ उन के पास. नेहा जैसी कल बहुत मिल जाएंगी. आज मां हाथ से निकल गईं तो पूरी उम्र जमीन से जुड़ने को ही तरस जाओगे. पत्नी को छोड़ा है, जाहिर है वह भी मर तो नहीं जाएगी. वह तो कल अपना रास्ता स्वयं ढूंढ़ लेगी, लेकिन आज जो छूट जाएगा वह कभी हाथ नहीं आएगा. अच्छे इंसान बनो मानव…मांबाप ने इतना अच्छा नाम रखा था…कुछ तो उसे सार्थक करो.’’

सुबोध चला गया. कहां से बात शुरू हुई थी और कहां आ पहुंची थी. हैरान हूं मानव के बारे में इतना सब जानते हुए वह 15 दिन से चुप क्यों था. और मानव का चरित्र भी कैसा था, जिस ने साल भर में कभी मांबाप का जिक्र तक नहीं किया. घर में पालतू जानवर पाल लो तो उस का भी नाम कभीकभार इंसान ले ही लेता है.

सुबोध ने बताया था कि उस के कई मित्र मानव के गांव से हैं. हो सकता है उन्हीं से उसे सारी कहानी पता चली हो. मैं तो कितना अच्छा दोस्त समझ रहा था मानव को. अब लग रहा है अपनी समझ को अभी मुझे और परिपक्व करना पड़ेगा. इंसान को परखना अभी मुझे नहीं आया.

मैं सोचने लगा हूं…मानव, जो अच्छा इंसान ही नहीं है वह अच्छा मित्र कैसे होगा. प्यार पाने के लिए तो प्यार बोना पड़ता है और विश्वास पाने के लिए विश्वास. मानव के तो दोनों हाथ खाली हैं, यह क्या लेगा जब कभी दिया ही नहीं. इस के हिस्से तो मात्र खालीपन और अकेलापन ही है. मानव बुत बना चुपचाप बैठा रहा.

क्या आपका पति कर रहा है आपसे बेवफाई? जानें 5 Tricks

सभी को सच्चा प्यार मिले मुमकिन नहीं है. हसबैंड का प्यार किसी को मिलता है तो किसी नहीं मिल पाता है. लेकिन पार्टनर आपके साथ कितना वफादार है ये जानना भी जरूरी है. ये कुछ ट्रिक्‍स की मदद से वुमन यह जान सकती है कि पति कितना लॉयल है. इनसे पता चलाना आसान होगा कि पति‍ आपसे बेवफाई तो नहीं कर रहा है साथ ही रिश्‍ते में बेवफाई की वजह क्‍या है, दिन का चैन और रातों की नींद छिनने वाली इस प्रौब्‍लम को कैसे दूर किया जा सकता है.

 

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-अगर हमेशा आपके आसपास घूमने वाला पति दूर-दूर रहा रहा है. आपके बीच फिजिकल रिलेशनशिप ना के बराबर अचानक से हो गया है. तो समझ जाएं ये एक बड़ा लक्षण है कि वो किसी और के प्यार में हो सकता है. ध्यान दें कि रात के समय आपका पार्टनर किसके साथ बातचीत कर रहा है, ये बातचीत फोन के अलावा लैपटॉप पर भी चिट चैट के जरिए हो सकती है.

-अगर अपना पानी का गिलास तक मांगने वाला पति अचानक मददगार हो जाए. आपको घर से बाहर जाने या दोस्तों के साथ वक्त बिताने के लिए कहें. तो भी सतर्क रहें. ये बदला हुआ बर्ताव आपकी सुविधा के लिए नहीं बल्कि उसकी खुद की सुविधा के लिए है.

-पहले काम के बाद फोन या लैपटॉप को हाथ ना लगाने वाला पति अगर अचानक लैपटॉप या फोन से ज्यादा प्यार दिखाने लगे. तो आपके लिए ये परेशानी हो सकता है और अगर पासवर्ड भी बदल जाए तो भी आपको सर्तक रहने की जरूरत है.

-अगर पति घर से या फिर आप से दूर रहने के बहाने बनाने लगा है. या घर से बाहर ज्यादा समय बिताने लगा है तो इसका मतलब है कि वो आपको धोखा दे रहा है. बहाने भी ऐसे होंगे की आपको पहली बार में ही शक हो जाएगा.

-अगर पहले पड़ोस के सैलून में जाने वाला पति दूर के सैलून में जाने लगे. अपनी मोटी तोंद और थुलथुल शरीर को जिम में संवारने लगे. खुद पर कॉस्मेटिक का यूज और मंहगे परफ्यूम छिड़कने लगें. हमेशा क्लीन शेव या लेटेस्ट हेयरस्टाल में रहना पसंद करने लगे. तो ये खतरे की घंटी है.

पति कर रहा है बेवफाई तो क्या करें

– कुछ लोग ये सोचने लगते हैं कि कहीं उनकी किसी गलती के कारण तो नहीं पार्टनर ने धोखा दिया है या छोड़ने का फैसला लिया है. इस तरह के विचार मन में आना बेहद स्वाभाविक होता है, लेकिन यह आपकी गलती नहीं है, इसलिए ऐसा बिल्कुल भी ना सोचें.

– कभी कभी आप पति के साथ रह कर अपने मायका का जिक्र ज्यादा करती है ये भी एक कारण आपके पति को आपसे दूर करता है.

– कई बार आप फैमिली में इतना बीजी हो जाती है कि अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पाती है जिस वजह से भी आपके पति का ध्यान किसी ओर की तरफ आकर्षित होता है. तो इसलिए ज्यादा से ज्यादा समय अपने ऊपर दें.

– आमने सामने बिठा कर बात करें. अगर ये स्थिति भी नहीं रहती है तो फिर पीछा करना भी अच्छा विकल्प हो सकता है. देंखे की वो कहां जा रहा है और क्या कर रहा है. बेवफाई का सबूत मिलते ही या तो पति को प्यार से समझाएं. वरना सख्त रवैय्या आपके लिए आखिरी तरीका है. ये सब आपके लिए मुश्किल भरा हो सकता है. लेकिन झूठ के साथ जीनें से अच्छा है, सच्च के साथ जिया जाएं और बात को सुलझाया भी जाएं.

कम स्मार्ट नहीं है इन Business Tycoons की पत्नियां, देती हैं बौलीवुड हसीनाओं को टक्कर

इंडिया के Business Tycoons की जब भी बात आती है तो सबसे पहला नाम मुकेश अंबानी का सामने आता है. जिनके बेटे अंनत अंबानी की शादी की तैयारी जोरोशोरो से चल रही हैं. अंनत, राधिका मर्चेंट के साथ 12 जुलाई को एक बंधन में बंधने जा रहे है.

radhika merchant

बिजनेस मैन की पत्नियों की बात करें, तो वे किसी एक्ट्रेस से कम नहीं है. मीडिया में इन दिनों गौसिप हो रही है कि अंनत की पत्नी राधिका बेहद सुंदर है. वही, नीता अंबानी की खूबसूरती किसी से छिपी नहीं है. तो कहना गलता नहीं है कि बिजनेस मैन की बीवीयां खूबसूरती में बौलीवुड की ऐश्वर्या से लेकर आज की आलिया भट्ट तक को टक्कर देती हैं. तो आज कुछ ऐसे ही बिजनेस टॉयकून की पत्नियों के बारें में बताएं जिनकी बीवी किसी अप्सरा से कम नहीं है.

Bollywood

बता करें, Easemytrip के सीईओ की. जिनकी तरक्की से हर कोई वाकिफ है. जी हां, Easemytrip के सीईओ निशांत पिट्टी की पत्नी भी बेहद खूबसूरत है. लेकिन वे मीडिया और सोशल मीडिया से बेहद परे है जिस वजह से एक बार निशांत पिट्टी को एक अफवाह के कारण खबरों में आना पड़ा था कि उनका अफेयर कंगना रनौत के साथ चल रहा है तब कंगना ने मीडिया को जवाब दिया था कि ‘ @nishantpitti जी खुशहाल शादीशुदा हैं और मैं किसी और को डेट कर रही हूँ, सही समय का इंतज़ार करें कृपया हमें शर्मिंदा न करें, हर रोज़ एक युवा महिला को एक नए आदमी से जोड़ना अच्छा नहीं है, सिर्फ़ इसलिए कि उन्होंने साथ में तस्वीरें क्लिक की हैं. कृपया ऐसा न करें.”

poonawala

रिशद प्रेमजी ये नाम तो आपने सुना होगा. विप्रो के प्रमुख अजीम प्रेमजी के पुत्र हैं और अब वे 31 जुलाई से विप्रो के चेयरमैन हैं. चेयरमैन बनाये जाने से पहले वह विप्रो में ही मुख्य रणनीति अधिकारी थे. वही, रिशद की पत्नी है जिनका नाम अदिति प्रेमजी है और बात करें उनकी खूबसूरती की तो इस मामले में वे बौलीवुड की तापसी पन्नू को भी टक्कर देती हैं.

Natasha

बिजनेस टॉयकून की दुनिया में अदार पूनावाला का नाम भी टॉप लिस्ट में शामिल है जो कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) हैं. वे भी शादीशुदा है और उनकी पत्नी का नाम Natasha Poonawalla है. जो कि अपने पति के साथ ही उनके बिजनेस में कार्यकारी है. उनकी बिजनेस स्मार्टनेस के चर्चे हर जगह है.

Pridhi

कर्ण अडानी अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशियल इकोनोमिक जोन (APSEZ) लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) हैं. जो कि शादीशुदा है और उनकी बेहद ही सिंपल है इसका अंदाजा आप उनकी तस्वीरों से ही लगा सकते हैं. कर्ण अडानी की पत्नी का नाम परीधि अडानी है.

isha

आनंद पीरामल जिनके पिता का नाम अजय पीरमाल है जो कि रियल एस्टेट और फार्मास्युटिकल व्यवसाय के मालिक है. आनंद पीरामल की शादी मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी से हुई थी. जिनके दो ट्विन्स है ईशा अपने पिता के साथ बिजनेस में हाथ बंटाती हैं. वे जीयो के साथ जुड़ी हुई है.

अनंत की शादी में जाहन्वी और शिखर दिखें साथसाथ, जानें कौन हैं ये मिस्ट्री Boy

बौलीवुड एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर अपनी खूबसूरती और फैशन सेंस को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहती हैं. लेकिन एक्ट्रेस लंबे समय से एक मिस्ट्री बॉय लेकर खासा मीडिया में बनी हुई है. जी हां, हाल में इसी मिस्ट्री बॉय शिखर पहाड़िया के साथ इन्हे अनंत के वेडिंग वेन्यू ईटली में दोनों को साथ देखा गया. लेकिन जाहन्वी के फैंस ये जानना चाहते है कि आखिर शिखर है कौन जिसके साथ जाहन्वी के अफेयर की चर्चा हो रही हैं.

 

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जाह्नवी कपूर इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ को लेकर सुर्खियों में हैं. एक्ट्रेस जमकर फिल्म का प्रमोशन कर रही हैं और इसी बीच उन्होंने बताया कि उन्हें एक ऐसा हसबैंड चाहिए जो उनका ख्याल रखे. इसी के साथ वे एक बार फिर शिखर पहाडिया के साथ नजर भी आई है. जिसे लेकर वे इन दिनों मीडिया में छाई हुई है. जिनके साथ वे पहले भी कई बार स्पॉट हो चुकी हैं.

 

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आपको बता दें कि शिखर पहाड़िया महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे के पोते हैं. शिखर के प्रोफेशन की बात करें तो वो एक बिजनेसमैन हैं. उनका बॉलीवुड से कोई नाता नहीं है मगर इंडस्ट्री में उनके कई दोस्त जरुर हैं. शिखर और जान्हवी दोनों को अक्सर एक-दूसरे के साथ घूमते हुए देखा जाता है. इतना ही नहीं, जान्हवी एक बार शिखर और ओरी के साथ तिरुमाला मंदिर भी गईं थी, जहां एक्ट्रेस को पारंपरिक पोशाक पहने देखा गया. जाहन्वी शिखर को प्यार से ‘शेखू’ भी कहती हैं. इस बात का जिक्र उन्होंने Coffee with karan के शो में भी कहा था.

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