मैंने जैसे ही जनाजे को कंधा दिया, बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई. दिल बिलख उठा. लाश के आखिरी दीदार के लिए आई औरतें एकबारगी रोनेसिसकने लगीं. पर इन सब से ज्यादा दर्द में डूबी आवाजें बच्चों की थीं. 4 छोटेबड़े बच्चे एकसाथ बिलख रहे थे.
अमीना भाभी अपने पीछे 4 बच्चे छोड़ गई थीं. 5वें को जन्म देते वक्त वे खुद बच्चे के साथ ही इस दुनिया से कूच कर गई थीं.
पिछली रात जब उसे दर्द उठा था, तो अनवर भाई ने उसे शहर के एक अच्छे अस्पताल में भरती कराया. पर डाक्टर अमीना भाभी को मौत के मुंह में जाने से नहीं बचा पाए और न ही उस के 5वें बच्चे को ही.
हंसमुख अमीना भाभी की लाश को जब मैं हमेशा के लिए विदा देने जा रहा था, तो गुजरे वक्त की यादों में डूब गया.
अनवर मेरी बूआ का एकलौता बेटा था. हम एक ही शहर में रहते थे, इसलिए अकसर एकदूसरे के यहां आनाजाना लगा रहता था. वह मुझ से
4 साल बड़ा था, इसलिए मुझ पर बड़े भाई का रोब झाड़ता रहता था. पर जब उस की शादी हुई, तब मैं ने उसे और अमीना भाभी को खूब सताया.
सुहारागत को भाभी के कमरे में अनवर के जाने से पहले मैं पहुंच गया. अमीना शर्म व हया की गठरी बनी लंबा सा घूंघट निकाले पलंग पर बैठी थी. मेरी आहट पा कर वह और सिमट गई.
मैं आहिस्ताआहिस्ता चलता पलंग तक पहुंचा और बड़ी अदा के साथ उस की कलाई पकड़ी और घूंघट उलट दिया.
मुझे सामने पा कर वह एकदम डर गई. पर मेरे पीछेपीछे आई मेरी बहनों की खिलखिलाहट ने उस के डर को दूर कर दिया. फिर वह भी मुसकराए बिना न रह सकी.