Politics से जुड़े हैं ये Bhojpuri Stars, जानें कौन हैं इनकी पत्नियां

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई स्टार्स हैं जो राजनीति से जुड़ हुए है. सभी स्टार्स शादीशुदा है और अपनी पत्नियों के साथ लाइमलाइट में भी रहते है और एक अच्छे मुकाम पर भी है जैसा कि कहा जाता है कि हर एक कामयाब पुरूष के पीछे एक महिला का हाथ होता है. ऐसे ही ये भोजपुरी स्टार्स है जो शादियों के बाद राजनीति से जुड़े. लेकिन कुछ ऐसे ही जिनकी पत्नियां लाइमलाइट में रहती है तो कुछ ऐसे जो मीडिया से कोसो दूर है. तो आइए जानते है ऐसे कुछ भोजपुरी के उन पॉलिटिशियन के बारें में जिनकी पत्नियां है और वे कौन है उनकी मुलाकात उनसे कैसी हुई और आज वे क्या करती हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarassalil (@sarassalil_magazine)


इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है मनोज तिवारी का, जो भोजपुरी के जाने माने स्टार है लेकिन अब ये राजनीति में नजर आते है और हाल में मनोज तिवारी लोकसभा चुनाव 2024 नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से कनहिया कुमार को हरा कर बहुमत के साथ जीते है. बात करें मनोज की शादीशुदा लाइफ की, तो मनोज तिवारी ने साल 1999 में रानी तिवारी से की थी. जिनसे उनकी एक बेटी है. लेकिन 11 साल बाद, 2012 में उन्होंने तलाक ले लिया. जिसके बाद मनोज ने दूसरी शादी सुरभि से की. सुरभि से उनकी दो बेटियां हुई. सुरभि उम्र में मनोज तिवारी से 10 साल छोटी हैं.

पवन सिंह भोजपुरी सिनेमा के जानेमाने स्टार और सिंगर हैं जिनका राजनीति में भी दबदबा रहा है. पवन सिंह की भी दो शादियां हुई थी. साल 2014 में उन्होंने नीलम सिंह से पहली शादी रचाई थी. लेकिन साल 2015 में नीलम ने घर में सुसाइड कर लिया था. इसके बाद साल 2018 में पवन सिंह ने ज्योति सिंह से शादी रचाई. लेकिन साल 2022 में पवन सिंह ने ज्योति के साथ नहीं रहने का फैसला किया और तलाक ले लिया. लेकिन हाल ही चुनावी कैंपेन में पवन सिंह अपनी तलाकशुदा पत्नी ज्योति के साथ नजर आए, हालांकि पवन सिंह का नाम स्मृति सिन्हा के साथ भी जुड़ा था कि ये दोनों शादी करेंगे, क्योंकि ये एक दूसरे को डेट कर रहे थे.

दिनेश लाल यादव भोजपुरी के सबसे लोकप्रिय एक्टर हैं जिनके फैंस की करोड़ो में है. ये भी राजनीति से जुड़े हुए है. निरहुआ के नाम से फेमस की पत्नी का नाम मंशा देवी है. लेकिन दिनेश लाल यादव का नाम अक्सर मीडिया में एक्ट्रेस आम्रपाली के साथ जोड़ा गया है. जबकि पत्नी मंशा से इनके तीन बच्चे हैं. भोजपुरी स्टार निरहुआ मंशा को लाइमलाइट से दूर ही रखते हैं. यही वजह से है कि वह सोशल मीडिया पर भी अपनी वाइफ संग फोटोज शेयर नहीं करते हैं.

रवि किशन की पत्नी प्रीती किशन एक बिजनेस वुमन है, जो मीडिया में छाई रहती है रवि किशन कई बार उनके साथ सोशल मीडिया पर फोटोज अपडेट करते है. बता दें कि लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुंबई की रहने वाली अपर्णा सोनी उर्फ अपर्णा ठाकुर ने आरोप लगाया कि उनकी 25 साल की बेटी शिनोवा सोनी बीजेपी सांसद और एक्टर रवि किशन की बेटी है. अपर्णा का कहना है कि रवि किशन बेटी शिनोवा को उसका हक नहीं दे रहे हैं. चुनावी माहौल के बीच गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी रवि किशन पर लगे इस आरोप से हंगामा खड़ा हो गया.  जिसके बाद रवि किशन की वाइफ ने प्रीती शुक्ला ने सभी पर एफआईआर दर्ज करा दी थी.

भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव की पत्नी का नाम चन्दा देवी है, चंदा बहुत खूबसूरत हैं. स्टार की वाइफ होने के बावजूद खेसारी की चंदा का रहनसहन बेहद सिम्पल मिडिल क्लास महिला की तरह है रिपोर्ट के अनुसार शादी के वक्त खेसारी लाल यादव बेहद गरीब थे, उस वक्त उनके ससुर ने भैंस बेचकर दोनों की शादी कराई थी. खेसारी लाल शादी के बाद दिल्ली आकर रहने लगे और पत्नी के साथ लिट्ठी-चोखा बेचकर अपना गुजारा करते थे. लेकिन आज वे उस मुकाम पर है जहां सब उनके फैन है.

बेहतर सैक्स के लिए यौन रोगों से बचिए

16प्रतिभा की शादी को कई साल हो गए थे. समय पर 2 बच्चे भी हो गए पर कुछ समय के बाद प्रतिभा को लगा कि उस के अंग से कभी कभी तरल पदार्थ निकलता है. शुरुआत में प्रतिभा ने इसे मामूली समझ कर नजरअंदाज कर दिया. मगर कुछ दिनों बाद उसे महसूस हुआ कि इस तरल पदार्थ में बदबू भी है जिस से अंग में खुजली होती है. प्रतिभा ने यह बात स्त्रीरोग विशेषज्ञा को बताई. उस ने जांच कर के प्रतिभा से कहा कि उस को यौनरोग हो गया है, लेकिन इस में घबराने वाली कोई बात नहीं है. प्रतिभा ने तो समय पर डाक्टर को अपनी समस्या बता दी पर बहुत सारी औरतें प्रतिभा जैसी समझदार नहीं होतीं. वे इस तरह के रोगों को छिपाती हैं. पर यौनरोगों को कभी छिपाना नहीं चाहिए. दीपा जब अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती थी, तो उसे दर्द होता था. इस परेशानी के बारे में उस ने डाक्टर को बताया. डाक्टर ने दीपा के अंग की जांच कर के बताया कि उसे यौनरोग हो गया है. डाक्टर ने उस का इलाज किया. इस के बाद दीपा की बीमारी दूर हो गई.

प्रदीप को पेशाब के रास्ते में जलन होती थी. वह नीमहकीमों के चक्कर में पड़ गया पर उसे कोई लाभ नहीं हुआ. तब उस ने अच्छे डाक्टर से इस संबंध में बात की तो डाक्टर ने कुछ दवाएं लिखीं, जिन से प्रदीप को लाभ हुआ. डाक्टर ने प्रदीप को बताया कि उस को यौनरोग हो गया था. इस का इलाज नीमहकीमों से कराने के बजाय जानकार डाक्टरों से ही कराना चाहिए.

क्या होते हैं यौनरोग

मक्कड़ मैडिकल सैंटर, लखनऊ के डाक्टर गिरीश चंद्र मक्कड़ का कहना है कि यौनरोग शरीर के अंदरूनी अंग में होने वाली बीमारियों को कहा जाता है. ये पतिपत्नी के शारीरिक संपर्क करने से भी हो सकते हैं और बहुतों के साथ संबंध रखने से भी हो सकते हैं. अगर मां को कोई यौनरोग है, तो बच्चे का जन्म औपरेशन के जरिए कराना चाहिए. इस से बच्चा योनि के संपर्क में नहीं आता और यौनरोग से बच जाता है.

कभीकभी यौनरोग इतना मामूली होता है कि उस के लक्षण नजर ही नहीं आते. इस के बाद भी इस के परिणाम घातक हो सकते हैं. इसलिए यौनरोग के मामूली लक्षण को भी नजरअंदाज न करें. मामूली यौनरोग कभीकभी खुद ठीक हो जाते हैं. पर इन के बैक्टीरिया शरीर में पड़े रहते हैं और कुछ समय बाद वे शरीर में तेजी से हमला करते हैं. यौनरोग शरीर के खुले और छिले स्थान वाली त्वचा से ही फैलते हैं.

हारपीज : यह बहुत ही सामान्य किस्म का यौनरोग है. इस में पेशाब करने में जलन होती है. पेशाब के साथ कई बार मवाद भी आता है. बारबार पेशाब जाने का मन करता है. किसीकिसी को बुखार भी हो जाता है. शौच जाने में भी परेशानी होेने लगती है. जिस को हारपीज होता है उस के जननांग में छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. शुरुआत में यह अपनेआप ठीक हो जाता है, मगर यह दोबारा हो तो इलाज जरूर कराएं.

वाट्स : वाट्स में शरीर के तमाम हिस्सों में छोटीछोटी गांठें पड़ जाती हैं. वाट्स एचपीवी वायरस के चलते फैलता है. ये 70 प्रकार के होते हैं. ये गांठें अगर शरीर के बाहर हों और 10 मिलीमीटर के अंदर हों तो इन को जलाया जा सकता है. इस से बड़ी होने पर औपरेशन के जरिए हटाया जा सकता है. योनि में फैलने वाले वायरस को जेनेटल वाट्स कहते हैं. ये योनि में बच्चेदानी के द्वार पर हो जाते हैं. समय पर इलाज न हो तो इन का घाव कैंसर का रूप ले लेता है. इसलिए 35 साल की उम्र के बाद एचपीवी वायरस का कल्चर जरूर करा लें.

गनोरिया : इस रोग में पेशाब नली में घाव हो जाता है जिस से पेशाब नली में जलन होने लगती है. कई बार खून और मवाद भी आने लगता है. इस का इलाज ऐंटीबायोटिक दवाओं के जरिए किया जाता है. अगर यह रोग बारबार होता है, तो इस का घाव पेशाब नली को बंद कर देता है. इसे बाद में औपरेशन के जरिए ठीक किया जाता है. गनोरिया को सुजाक भी कहा जाता है. इस के होने पर तेज बुखार भी आता है. इस के बैक्टीरिया की जांच के लिए मवाद की फिल्म बनाई जाती है. शुरू में ही यह बीमारी पकड़ में आ जाए तो अच्छा रहता है.

सिफलिस : यह यौनरोग भी बैक्टीरिया के कारण फैलता है. यह यौन संबंधों के कारण ही फैलता है. इस रोग के चलते पुरुषों के अंग के ऊपर गांठ सी बन जाती है. कुछ समय के बाद यह ठीक भी हो जाती है. इस गांठ को शैंकर भी कहा जाता है. शैंकर से पानी ले कर माइक्रोस्कोप के सहारे देखा जाता है. पहली स्टेज पर माइक्रोस्कोप के सहारे ही बैक्टीरिया को देखा जा सकता है. इस बीमारी की दूसरी स्टेज पर शरीर में लाल दाने से पड़ जाते हैं. यह बीमारी कुछ समय के बाद शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करने लगती है. इस बीमारी का इलाज तीसरी स्टेज के बाद संभव नहीं होता. यह शरीर की धमनियों को प्रभावित करती है. इस से धमनियां फट भी जाती हैं. यह रोग आदमी और औरत दोनों को हो सकता है. दवा और इंजैक्शन से इस का इलाज होता है.

क्लामेडिया : यह रोग योनि के द्वारा बच्चेदानी तक फैल जाता है. यह बांझपन का सब से बड़ा कारण होता है. बीमारी की शुरुआत में ही इलाज हो जाए तो अच्छा रहता है. क्लामेडिया के चलते औरतों को पेशाब में जलन, पेट दर्द, माहवारी के समय में दर्द, शौच के समय दर्द, बुखार आदि की शिकायत होने लगती है.

यौनरोगों से बचाव

  • अंग पर किसी भी तरह के छाले, खुजलाहट, दाने, कटनेछिलने और त्वचा के रंग में बदलाव की अनदेखी न करें.
  • जब भी शारीरिक संबंध बनाएं कंडोम का प्रयोग जरूर करें. यह यौनरोगों से बचाव का आसान तरीका है.
  • कंडोम का प्रयोग ठीक तरह से न करने पर भी यौनरोगों का खतरा बना रहता है.
  • ओरल सैक्स करने वालों को अपनेअपने अंग की साफसफाई का पूरा खयाल रखना चाहिए.
  • यौनरोग का इलाज शुरुआत में सस्ता और आसान होता है. शुरुआत में इस से शरीर को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता है.
  • गर्भवती औरतों को अपनी जांच समयसमय पर करानी चाहिए ताकि उस से बच्चे को यौनरोग न लग सके.
  • नीमहकीमों के चक्कर में पड़ने के बजाय डाक्टर की सलाह से ही दवा लें.
  • अंग की साफसफाई से यौनरोगों से दूर रहा जा सकता है.
  • औरतों को यौनरोग ज्यादा होते हैं. अत: उन्हें पुरुषों से ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.
  • यौनरोगी के संपर्क में जाने से बचें. बाथरूम की ठीक से साफसफाई न करने से भी एक व्यक्ति का यौनरोग दूसरों को लग सकता है.

भगत सिंह का लव कन्फैशन

भ गत सिंह लाहौर के नैशनल कालेज के स्टूडैंट थे. तब भारतपाकिस्तान वाली सरहदें न थीं. उम्र कोई 20-21 साल. जवान और बेतहाशा खूबसूरत. औसत ऊंचाई, पतला व लंबा चेहरा, चेहरे पर हलके से चकत्ते, झानी दाढ़ी और छोटी सी मूंछ. उम्र की इस नाजुक दहलीज में विचारों की धार पैनी थी.

उस दौरान एक सुंदर सी लड़की कालेज में उन्हें देख कर मुसकरा दिया करती थी. चर्चा थी कि वह लड़की भगत सिंह को पसंद करती थी और उन्हीं की वजह से वह क्रांतिकारी दल के करीब आ गई थी. वही क्रांतिकारी दल जिस का नाम रूसी क्रांति से प्रेरित हो कर भगत सिंह ने फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन कर दिया था.

इस दल के बीच जब असैंबली में बम फेंकने की योजना बन रही थी तो भगत सिंह को दल की जरूरत बता कर साथियों ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपने से इनकार कर दिया. भगत सिंह के खास दोस्त सुखदेव ने उन्हें ताना मारा कि ‘भगत, तुम मरने से डरते हो और ऐसा उस लड़की की वजह से है.’

इस आरोप से भगत सिंह उदास हो गए और उन्होंने दोबारा दल की मीटिंग बुलाई और असैंबली में बम फेंकने का जिम्मा जोर दे कर अपने नाम करवाया. यह वही परिघटना है जिस पर आगे जा कर वामपंथी विचारकों में बड़ी बहस भी हुई कि भगत सिंह का खुद आगे आ कर बम फेंकने का निर्णय कितना सही था, जबकि बम फेंकने के बाद हश्र क्या होगा, यह सब को मालूम था.

8 अप्रैल, 1929 को असैंबली में बम फेंकने की योजना थी. लेकिन इस से पहले वे प्रेम को ले कर अपनी भावनाओं को अपने प्रिय दोस्त सुखदेव को बता देना चाहते थे. वे बता देना चाहते थे कि प्यार कभी बाधा नहीं बनता, बल्कि वह तो सहयोगी होता है लक्ष्य की प्राप्ति में.

5 अप्रैल को दिल्ली के सीताराम बाजार के एक घर में भगत सिंह ने सुखदेव को पत्र लिखा, जिसे दल के एक अन्य सदस्य शिव वर्मा ने उन तक पहुंचाया. शिव वर्मा, जो आगे जा कर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए थे.

पत्र 13 अप्रैल को सुखदेव की गिरफ्तारी के वक्त उन के पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सुबूत के तौर पर पेश किया गया. भगत सिंह ने इस पत्र में एक हिस्सा प्रेम को ले कर अपनी समझदारी को ले कर कहा.

उन्होंने कहा, ‘‘प्रिय सुखदेव, जैसे ही यह पत्र तुम्हें मिलेगा, मैं जा चुका होऊंगा, दूर एक मंजिल की तरफ. मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज बहुत खुश हूं. हमेशा से ज्यादा. मैं यात्रा के लिए तैयार हूं, अनेकानेक मधुर स्मृतियों के होते और अपने जीवन की सब खुशियों के होते भी. एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि, मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझ और मुझे पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए कमजोरी के.

‘‘आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं. पहले से कहीं अधिक. आज मैं महसूस करता हूं कि वह बात कुछ भी नहीं थी, एक गलतफहमी थी. मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन सम?ा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी. मैं कमजोर नहीं हूं. अपनों में से किसी से भी कमजोर नहीं.’’

वे आगे लिखते हैं, ‘‘किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बातचीत करते हुए एक बात सोचनी चाहिए कि क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के लिए सहायक सिद्ध हुआ है? मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देता हूं : हां, यह मेजिनी (इटली के राष्ट्रवादी आंदोलनकारी) था. तुम ने अवश्य ही पढ़ा होगा कि अपनी पहली विद्रोही असफलता, मन को कुचल डालने वाली हार, मरे हुए साथियों की याद वह बरदाश्त नहीं कर सकता था. वह पागल हो जाता या आत्महत्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका के एक ही पत्र से वह मजबूत हो गया, बल्कि सब से अधिक मजबूत हो गया.

‘‘जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं यह कह सकता हूं कि यह अपने में कुछ नहीं है सिवा एक आवेग के, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यंत मधुर भावना है. प्यार अपनेआप में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है. प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाता है. सच्चा प्यार कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता. वह अपने ही मार्ग से आता है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि कब?’’

वे पत्र में आगे कहते हैं, ‘‘हां, मैं यह कह सकता हूं कि एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाए रख सकते हैं.’’

प्रेम को ले कर इतनी स्पष्टता हैरान करती है कि उस दौरान भगत सिंह महज 21 साल के थे और 2 साल बाद वे 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ा दिए गए. इतनी गहरी समझ रखने वाले भगत सिंह को आज घंटों इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप और 16 सैकंड की रील्स देखने वाली जेनरेशन कितना समझ पाएगी, यह कहना मुश्किल है, पर अपने समय के वे असल इन्फ्लुएंसर जरूर थे. क्या आज यह उम्मीद लगाई जा सकती है कि युवा इस तरह के पत्र, लिखना तो दूर, लिखने की सोच भी सकता है?

6 इंच के स्क्रीन में फंसा युवा अपनी मानवीय भावनाएं खोता जा रहा है. युवाओं के पास प्रेम का सही अर्थ नहीं है. गर्लफ्रैंड/बौयफ्रैंड तो है पर प्यार नहीं है. युवा कुंठित है. डरा हुआ है. भविष्य निश्चित नहीं. लिखना तक नहीं आता. न अपनी बातों को साफ शब्दों में रखना आता है. जाहिर है, युवा को इस तरह के पत्र लिखने या अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सब से पहले 6 इंच की आभासी दुनिया से विराम लेने की सख्त जरूरत है, पर क्या वह करेगा? बिलकुल नहीं.

तेरी देहरी : अनुभा और अनुभव के अनोखी दास्तां

क्लास रूम से बाहर निकलते ही अनुभा ने अनुभव से कहा, ‘‘अरे अनुभव, कैमिस्ट्री मेरी सम झ में नहीं आ रही है. क्या तुम मेरे कमरे पर आ कर मुझे समझा सकते हो?’’

‘‘हां, लेकिन छुट्टी के दिन ही आ पाऊंगा.’’

‘‘ठीक है. तुम मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना नंबर दे दो. मैं इस रविवार को तुम्हारा इंतजार करूंगी. मेरा कमरा नीलम टौकीज के पास ही है. वहां पहुंच कर मु झे फोन कर देना. मैं तुम्हें ले लूंगी.’’

रविवार को अनुभव अनुभा के घर में पहुंचा. अनुभा ने बताया कि उस के साथ एक लड़की और रहती है. वह कंप्यूटर का कोर्स कर रही है. अभी वह अपने गांव गई है.

अनुभव ने अनुभा से कहा कि वह कैमिस्ट्री की किताब निकाले और जो समझ में न आया है वह पूछ ले. अनुभा ने किताब निकाली और बहुत देर तक दोनों सूत्र हल करते रहे.

अचानक अनुभा उठी औैर बोली, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

अनुभव मना करना चाह रहा था लेकिन तब तक वह किचन में पहुंच गई थी. थोड़ी देर में वह एक बडे़ से मग में चाय ले कर आ गई. अनुभव ने मग लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी मग की चाय उस की शर्टपैंट पर गिर गई.

‘‘सौरी अनुभव, गलती मेरी थी. मैं दूसरी चाय बना कर लाती हूं. तुम्हारी शर्टपैंट दोनों खराब हो गई हैं. ऐसा करो, कुछ देर के लिए तौलिया लपेट लो. मैं इन्हें धो कर लाती हूं. पंखे की हवा में जल्दी सूख जाएंगे. तब मैं प्रैस कर दूंगी.’’

अनुभव न… न… करता रहा, लेकिन अनुभा उस की ओर तौलिया उछाल कर भीतर चली गई.

अनुभव ने शर्टपैंट उतार कर तौलिया लपेट लिया. तब तक अनुभा दूसरे मग में चाय ले कर आ गई थी. वह शर्टपैंट ले कर धोने चली गई.

अनुभव ने चाय खत्म की ही थी कि अनुभा कपड़े फैला कर वापस आ गई. उस ने ढीलाढाला गाउन पहन रखा था. अनुभव ने सोचा शायद कपड़े धोने के लिए उस ने ड्रैस बदली हो.

अचानक अनुभा असहज महसूस करने लगी मानो गाउन के भीतर कोई कीड़ा घुस गया हो. अनुभा ने तुरंत अपना गाउन उतार फेंका और उसे उलटपलट कर देखने लगी.

अनुभव ने देखा कि अनुभा गाउन के भीतर ब्रा और पैंटी में थी. वह जोश और संकोच से भर उठा. एकाएक हाथ बढ़ा कर अनुभा ने उस का तौलिया खींच लिया.

अनुभव अंडरवियर में सामने खड़ा था. अनुभा उस से लिपट गई. अनुभव भी अपनेआप को संभाल नहीं सका. दोनों वासना के दलदल में रपट गए.

अगले रविवार को अनुभा ने फोन कर अनुभव को आने का न्योता दिया. अनुभव ने आने में आनाकानी की, पर अनुभा के यह कहने पर कि पिछले रविवार की कहानी वह सब को बता देगी, वह आने को तैयार हो गया.

अनुभव के आते ही अनुभा उसे पकड़ कर चूमने लगी और गाउन की चेन खींच कर तकरीबन बिना कपड़ों के बाहर आ गई. अनुभव भी जोश में था. पिछली बार की कहानी एक बार फिर दोहराई गई. जब ज्वार शांत हो गया, अनुभा उसे ले कर गोद में बैठ गई और उस के नाजुक अंगों से खेलने लगी.

अनुभा ने पहले से रखा हुआ दूध का गिलास उसे पीने को दिया. अनुभव ने एक ही घूंट में गिलास खाली कर दिया.

अभी वे बातें कर ही रहे थे कि भीतर के कमरे से उस की सहेली रमा निकल कर बाहर आ गई.

रमा को देख कर अनुभव चौंक उठा. अनुभा ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है. वह उस की सहेली है और उसी के साथ रहती है.

रमा दोनों के बीच आ कर बैठ गई. अचानक अनुभा उठ कर भीतर चली गई.

रमा ने अनुभव को बांहों में भींच लिया. न चाहते हुए भी अनुभव को रमा के साथ वही सब करना पड़ा. जब अनुभव घर जाने के लिए उठा तो बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था. दोनों ने चुंबन ले कर उसे विदा किया.

इस के बाद से अनुभव उन से मिलने में कतराने लगा. उन के फोन आते ही वह काट देता.

एक दिन अनुभा ने स्कूल में उसे मोबाइल फोन पर उतारी वीडियो क्लिपिंग दिखाई और कहा कि अगर वह आने से इनकार करेगा तो वह इसे सब को दिखा देगी.

अनुभव डर गया और गाहेबगाहे उन के कमरे पर जाने लगा.

एक दिन अनुभव के दोस्त सुरेश ने उस से कहा कि वह थकाथका सा क्यों लगता है? इम्तिहान में भी उसे कम नंबर मिले थे.

अनुभव रोने लगा. उस ने सुरेश को सारी बात बता दी.

सुरेश के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. सुरेश ने अनुभव को अपने पिता से मिलवाया. सारी बात सुनने के बाद वे बोले, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

‘‘18 साल.’’

‘‘और उन की?’’

‘‘इसी के लगभग.’’

‘‘क्या तुम उन का मोबाइल फोन उठा कर ला सकते हो?’’

‘‘मुझे फिर वहां जाना होगा?’’

‘‘हां, एक बार.’’

अब की बार जब अनुभा का फोन आया तो अनुभव काफी नानुकर के बाद हूबहू उसी के जैसा मोबाइल ले कर उन के कमरे में पहुंचा.

2 घंटे समय बिताने के बाद जब वह लौटा तो उस के पास अनुभा का मोबाइल फोन था.

मोबाइल क्लिपिंग देख कर इंस्पैक्टर चकित रह गए. यह उन की जिंदगी में अजीब तरह का केस था. उन्होंने अनुभव से एक शिकायत लिखवा कर दोनों लड़कियों को थाने बुला लिया.

पूछताछ के दौरान लड़कियां बिफर गईं और उलटे पुलिस पर चरित्र हनन का इलजाम लगाने लगीं. उन्होंने कहा कि अनुभव सहपाठी के नाते आया जरूर था, पर उस के साथ ऐसीवैसी कोई गंदी हरकत नहीं की गई.

अब इंस्पैक्टर ने मोबाइल क्लिपिंग दिखाई. दोनों के सिर शर्म से  झुक गए. इंस्पैक्टर ने कहा कि वे उन के मातापिता और प्रिंसिपल को उन की इस हरकत के बारे में बताएंगे.

लड़कियां इंस्पैक्टर के पैर पकड़ कर रोने लगीं. इंस्पैक्टर ने कहा कि इस जुर्म में उन्हें सजा हो सकती है. समाज में बदनामी होगी और स्कूल से निकाली जाएंगी सो अलग. उन के द्वारा बारबार माफी मांगने के बाद इंस्पैक्टर ने अनुभव की शिकायत पर लिखवा लिया कि वे आगे से ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगी.

अनुभव ने वह स्कूल छोड़ कर दूसरे स्कूल में दाखिला ले लिया. साथ ही उस ने अपने मोबाइल की सिम बदल दी. इस घटना को 7 साल गुजर गए.

अनुभव पढ़लिख कर कंप्यूटर इंजीनियर बन गया. इसी बीच उस के पिता नहीं रहे. मां की जिद थी कि वह शादी कर ले.

अनुभव ने मां से कहा कि वे अपनी पसंद की जिस लड़की को चुनेंगी, वह उसी से शादी कर लेगा.

अनुभव को अपनी कंपनी से बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐन फेरों के दिन वह घर आ पाया. शादी खूब धूमधाम से हो गई.

सुहागरात के दिन अनुभव ने जैसे ही दुलहन का घूंघट उठाया, वह चौंक पड़ा. पलंग पर लाजवंती सी घुटनों में सिर दबाए अनुभा बैठी थी.

‘‘तुम…?’’ अनुभव ने चौंकते हुए कहा.

‘‘हां, मैं. अपनी गलती का प्रायश्चित्त करने के लिए अब जिंदगीभर के लिए फिर तुम्हारी देहरी पर मैं आ गई हूं. हो सके तो मु झे माफ कर देना,’’ इतना कह कर अनुभा ने अनुभव को गले लगा लिया.

तराई : कैसी था मकान मालिक

शहर से दूर बस रही सैटेलाइट कालोनी में शानदार कोठी बन रही थी. मिक्सर मशीन की तेज आवाज के बीच में मजदूर काम में लगे हुए थे. उन में जवान, अधेड़ उम्र के आदमी और औरतें थीं. उन में जवानी की दहलीज पर खड़ी एक लड़की भी थी. वह सिर पर ईंटें ढो रही थी. तराई भी हो रही थी, इसलिए उस के गीले बदन से जवानी  झांक रही थी.

बनते हुए मकान के सामने ठेकेदार खड़ा हो कर उस जवान होती लड़की की तरफ देखते हुए चिल्ला कर कह रहा था, ‘‘जल्दीजल्दी काम करो.’’

ठेकेदार के पास ही मकान मालिक खड़ा था, जो बहुत बड़ा अफसर था. ठेकेदार को उम्मीद थी कि साहब उसे दूसरे कामों के ठेके भी दिलाएंगे इसलिए उन्हें खुश करने का वह कोई मौका नहीं छोड़ता था.

ठेकेदार ने मकान मालिक की तरफ देखा तो उस को जवान होती मजदूर लड़की की तरफ देखते हुए पाया. मकान मालिक ने सब को सुना कर जोर से कहा, ‘‘मकान की तराई अच्छी तरह से कराना, तभी मकान मजबूत होगा.’’

ठेकेदार ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता न करें साहब, इस काम में अच्छी लड़की को लगाऊंगा.’’

ठेकेदार ने काम की देखभाल करने वाले सुपरवाइजर को इशारे से अपने पास बुला कर उस के कान में कुछ कहा.

सुपरवाइजर ने सहमति से सिर हिलाया. उस ने जा कर ईंट ढोती लड़की को कहा, ‘‘आज से मकान की तराई का काम तू करेगी.’’

यह सुन कर वह मजदूर लड़की खुश हो गई क्योंकि तराई का काम सब से हलका होता है. उस ने तुरंत ईंटों का तसला नीचे रख पानी का पाइप उस मजदूर लड़के से ले कर दीवार के प्लास्टर पर पानी छिड़कना शुरू कर दिया.

मकान मालिक ने 5 सौ का नोट निकाल कर सुपरवाइजर को दिया और मजदूरों को नाश्ता कराने को कहा. वह तराई करने वाली लड़की का ध्यान रखने की कह कर उस लड़की को देखने लगा. किसी भी मजदूर लड़की को फांसने का यह एक तरीका था कि उसे हलका काम खासकर मकान में तराई का काम दे दिया जाता था.

यह एक जाल होता था जिस में जवान होती मजदूर लड़की के फंसने की उम्मीद ज्यादा होती थी. मिक्सर मशीन में सीमेंट, रेत, पानी और वाटरप्रूफ कैमिकल की मिक्सिंग के साथ कितनी गरीब मजदूर लड़कियों की इज्जत भी मिक्स हो जाती थी और यह आलीशान मकानों में रहने वालों को पता भी नहीं चलता होगा.

दुनियादारी को कुछ सम झने और कुछ नासम झने वाली लड़की खुशीखुशी तराई का काम कर रही थी. उसे मालूम नहीं था कि ठेकेदार और मकान मालिक उस पर इतने मेहरबान क्यों हो रहे हैं.

उस मजदूर लड़की को रोजाना चायनाश्ते की खास सुविधा और काम के बीच में बैठ कर आराम करने की छूट मिली हुई थी और काम भी क्या था, पानी का पाइप पकड़ कर दीवारों और फर्श पर दिन में 3 बार पानी से तराई करना.

ठेकेदार और मकान मालिक को कोई जल्दी नहीं थी. वे जानते थे कि सब्र का फल मीठा होता है.

एक हफ्ते बाद मकान मालिक ने दोमंजिला बनते मकान के किसी सूने कमरे में तराई करती उस लड़की का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है. तुम को कोई परेशानी हो तो मु झे बताना,’’ और धीरे से उस की पीठ पर हाथ फेरने की कोशिश करने लगा.

लड़की चौंकते हुए डर कर पीछे हट गई. उस ने मकान मालिक की आंखों में ऐसा कुछ देखा जो उसे ठीक नहीं लगा. पानी में भीगा उस का बदन ठंड और डर से कांप रहा था. उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. पानी का पाइप उस के हाथ से छूट कर कंक्रीट से बने फर्श पर बह रहा था. उस ने कमरे से निकलने की कोशिश की, पर बिना दरवाजे के उस कमरे में निकलने के रास्ते पर मकान मालिक खड़ा था.

मकान मालिक पुराना खिलाड़ी था. उस ने लड़की से कहा, ‘‘कुछ नहीं. तू अपना काम कर,’’ कहते हुए वह बाहर निकल कर ठेकेदार के पास आ गया.

ठेकेदार ने आंखों ही आंखों में उस से पूछा, पर उस ने असहमति से गरदन हिला कर मना कर दिया. उस के बाद शाम तक उस लड़की से किसी ने कुछ नहीं कहा.

हफ्ते का आखिरी दिन शनिवार था. उस दिन सभी मजदूरों को मजदूरी का पैसा मिलता था. सुपरवाइजर ने सभी मजदूरों को उन की हाजिरी के हिसाब से रजिस्टर पर दस्तख्त करा कर या अंगूठा लगवा कर पैसा दे दिया. अगले दिन रविवार की छुट्टी थी.

सोमवार को सभी मजदूर काम पर आ गए थे. वह लड़की भी डरीडरी सी काम पर आई थी. काम शुरू होते ही रोज की तरह उस ने पानी का पाइप पकड़ कर जैसे ही तराई शुरू की, सुपरवाइजर ने उसे मना कर के ईंटें ढोने और दूसरे भारी कामों पर लगा दिया.

अब उस लड़की को भारी काम देने और बातबात पर डांटने का सिलसिला शुरू हो गया. काम से निकालने की धमकी भी ठेकेदार द्वारा दी जाने लगी थी.

जवान मजदूर लड़की परेशान होने लगी थी, क्योंकि इतने दिन उस ने तराई करने का काम किया था. उसे ईंटें ढोने जैसा भारी काम करना अच्छा नहीं लग रहा था.

खाने की छुट्टी के दौरान उस ने अधेड़ उम्र की पुरानी मजदूर, जिसे सब मौसी कहते थे, से जा कर अपनी समस्या बताई और ठेकेदार से सिफारिश करने को कहा कि उसे फिर से तराई का काम मिल जाए.

उस अधेड़ मजदूर की बात ठेकेदार मानता था. वह कई सालों से उस के साथ काम कर रही थी और काम करने में भी बहुत तेज थी. उस ने लड़की से कहा, ‘‘मैं ठेकेदार से बात करूंगी.’’

दिनभर काम करने के बाद घर जा कर वह लड़की थक कर चूर हो गई थी. वैसे भी उस ने भारी काम कई दिनों बाद किया था. बीच में उसे कमर सीधी करने का मौका भी नहीं मिला था, पर उसे भरोसा था कि मौसी अगर कहेंगी तो उसे तराई का काम फिर से मिल जाएगा.

इसी तरह काम करते हुए 3 दिन हो गए. भारी काम करतेकरते वह लड़की लस्तपस्त हो गई थी. बीच में चायनाश्ते और आराम की सुविधा भी खत्म हो गई थी.

ठेकेदार और मकान मालिक में गजब का सब्र था और अपनेआप पर यकीन था कि दूसरा तरीका कामयाबी दिलाएगा.

शनिवार को मजदूरी बंटने का दिन आ गया था. सुपरवाइजर ने रजिस्टर पर अंगूठा लगवा कर रुपए उस के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘तु झ से ठीक से काम नहीं हो रहा है. ठेकेदार नाराज हो रहे हैं कि इस लड़की को हटा कर दूसरी लड़की को काम पर लगा दो. मैं ने अभी तो उन्हें मना लिया है, पर आगे से काम ठीक से करना.’’

काम ठीक से करने के बावजूद काम से हटाने की धमकी से उस लड़की को कुछकुछ सम झ में आने लगा था कि उस के साथ ऐसा क्यों हो रहा था. गरीबी और बेरोजगारी से भूखे रहने की नौबत आ सकती थी, इसलिए उस ने मौसी से एक बार और उस के घर जा कर मिलने की सोची.

रात को खाना खा कर वह सीधा पास की  झुग्गी बस्ती में रहने वाली मौसी के घर गई और जा कर उन से कहा कि ठेकेदार ने काम से निकालने की धमकी दी है.

मौसी ने पूरी बात सुन कर उसे दुनियादारी की बातें सम झाते हुए कहा, ‘‘देख बेटी, हम गरीब मजदूर हैं. हमारे साथ तो ऐसा होता ही है. मेरे साथ भी हो चुका है. यह ठेकेदार नहीं होगा तो दूसरा होगा, यह साहब नहीं होगा तो दूसरा साहब होगा.

‘‘तेरी किस्मत और हिम्मत हो तो अपनेआप को बचा ले या काम से बचना है तो जो वे चाहते हैं कर ले.’’

मौसी ने अपने ब्लाउज में से 500 का नोट निकाल कर उस की मुट्ठी में दबाते हुए कहा,’’ ठेकेदार ने दिया है और कहा है कि तू चिंता मत कर. वे तेरा बहुत खयाल रखेंगे.’’

500 का नोट जोर से पकड़ कर वह लड़की चुपचाप अपने घर आ गई. उसे देर तक नींद नहीं आई. ठेकेदार द्वारा आराम का काम देने और मकान मालिक द्वारा रोज स्वादिष्ठ नाश्ता कराने की याद कर के उस के मुंह में पानी आ गया था. वह सोचने लगी कि किस तरह ज्यादा मेहनत करने से रात को उस का बदन थक कर चूर हो जाता था.

उस ने अपनेआप से कहा कि इतनी मेहनत का काम मैं कैसे और कब तक करूंगी. फिर उसे मौसी की बात याद आ गई कि उस के साथ भी ऐसा हो चुका है, जब वह जवान थी.

कुछ देर सोचने के बाद वह सो गई. दूसरे दिन रविवार था. आज वह निश्चिंत और बेफिक्र थी. मौसी भी उस से मिलने आई थीं. उस ने उन से भी खूब हंस कर बातें कीं.

मौसी सम झ गईं कि उन का काम हो गया है. उन्होंने शाम को ही ठेकेदार को खबर कर दी कि लड़की ने 500 रुपए ले लिए हैं.

दूसरे दिन सोमवार को वह लड़की नहाधो कर अच्छी तरह तैयार हो कर काम करने निकली. साइट पर सब उसे देखने लगे.

सुपरवाइजर ने भी हलकी मुसकान से उसे देखा क्योंकि साहब लोगों के बाद बची हुई मलाई पर उसे भी मुंह मारने का मौका मिलने की उम्मीद थी.

मौसी ने ठेकेदार को जो बताया था, उस से उसे लग रहा था कि बड़े साहब आज खुश हो जाएंगे. वह उन का ही इंतजार कर रहा था. साहब दफ्तर से बीच में कोठी का काम देखने आने ही वाले थे.

सुपरवाइजर ने उस लड़की को ऊपर के कमरों में जिन का प्लास्टर हो गया था तराई करने को कहा. वह ऊपर जा कर पाइप उठा कर तराई का काम करने लगी. बालकनी से उस ने साहब को कार से उतरते देखा. ठेकेदार तेजी से उन के पास गया और ऊपर देखते हुए वे आपस में कुछ बात कर रहे थे. काम की रफ्तार बढ़ गई थी. मिक्सर मशीन का शोर भी तेज था. लड़की भी दीवारों पर पानी फेंक कर दीवारों को मजबूत बना रही थी.

थोड़ी देर बाद ठेकेदार उसी कमरे में आ गया और मुसकराते हुए कहने लगा, ‘‘चल, जरा स्टोररूम में… एक काम है.’’

लड़की ने धीरे से, लेकिन मजबूत आवाज में कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि क्या काम है, लेकिन मैं यह सब नहीं करूंगी,’’ उस ने तुरंत पानी का पाइप नीचे पटका और साड़ी के पल्लू में बंधा 500 का नोट निकाल कर उसे वापस करते हुए कहा, ‘‘ठेकेदार, साहब, काम जितना मरजी करा लो, आज से मैं तराई का काम नहीं करूंगी. तुम कहोगे तो

2 मजदूरों के बराबर काम करूंगी, लेकिन अपनी इज्जत नहीं दूंगी,’’ इतना कह कर वह नीचे उतर कर सुपरवाइजर से कहने लगी, ‘‘मैं तराई का काम नहीं, ईंटें ढोने का काम करूंगी.’’ इतना कह कर उस लड़की ने तसले में ईंटें भरनी शुरू कर दीं.

अज्ञातवास : मरने से पहले अर्चना ने किसे सुनाई कहानी

सोशल मीडिया की यदि बहुत सी बुराइयां हम गिना सकते हैं तो फायदे भी इस के कम नहीं. राधा ने मुझे जब फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी तो मैं ने उसे एक्सैप्ट कर लिया. वह मेरे पीहर के शहर की थी तो अपनेआप अपनत्व आ जाना स्वाभाविक है. कहते हैं न, पीहर का कुत्ता भी प्यारा होता है. इस उम्र में भी पीहर का मोह नहीं छूटता.

राधा सरकारी अफसर से रिटायर हुई है. उस में पढ़नेलिखने की बहुत रुचि थी. मैं भी थोड़ीबहुत पत्रपत्रिकाओं में लिख लेती हूं. चांस की बात है, उसे मेरी कहानियां पसंद आईं. वह मेरी फैन हो गई. मैं ने कहा, ‘‘तुम मुंबई कैसे पहुंच गईं.’’ ‘‘रिटायरमैंट के बाद बेटा मुंबई में नौकरी करता है तो मैं उस के साथ ही रहती हूं.’’ फिर इधरउधर की गप हम अकसर करने लगे. ‘‘तुम लोग भी ग्वालियर में रहे हो न,’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, थाटीपुर में रहे हैं.’’

‘‘हम भी वहीं रहते थे. फिर तो तुम अर्चना को जानती होगी.’’

‘‘अर्चना को तो मैं जानती हूं क्योंकि वह हमारे पड़ोस में ही रहती थी पर वह मेरे से सीनियर थी, सो बात नहीं होती थी.’’

‘‘अर्चना मेरी खास सहेली थी. हम साथसाथ पढ़ते थे. तुम्हारे पास उसका नंबर है?’’

‘‘नहीं, उस से मेरा कौन्टैक्ट नहीं है. परंतु उन के रिश्तेदार से मेरा कौन्टैक्ट है. आप कहें तो मैं उस से नंबर ले कर दे दूं.’’

अर्चना से मिले 60 साल हो गए थे. शादी के बाद कभी नहीं मिली. उस के बारे में भी मुझे कोई खबर नहीं थी. उस के नंबर देते ही मैं ने अर्चना से कौन्टैक्ट किया.

‘‘मैं नीरा बोल रही हूं.’’

‘‘कौन सी नीरा?’’

‘‘यार अर्चना, हम नागपुर और ग्वालियर में साथसाथ पढ़े हैं. याद आया, हम ने 1960 में 10वीं का एग्जाम भी साथसाथ दिया.’’

‘‘अरे नीरा, तुम… इतने साल बाद,

60 साल हो गए तुम से मिले. आज फोन किया? मेरा फोन नंबर कहां से मिला? मुझे तो बहुत आश्चर्य हो रहा है. आज यह क्या सरप्राइज है. तुम ऐसे कैसे प्रकट हो गईं?’’

‘‘मेरी तो छोड़, अर्चना तुम्हें खोजने की मैं ने बहुत कोशिश की पर तुम कहीं नहीं मिलीं. तुम तो जैसे अंर्तधान हो गईं. तुम अभी कहां हो?’’

‘‘मेरी छोड़ो नीरा, अपनी बताओ कहां व कैसी हो? बच्चे सैटल हो गए?’’

‘‘मेरा तो सब ठीक है. 77 साल की उम्र है. इस उम्र में जैसे होते हैं, वैसी ही हूं. मैं तो राजस्थान में हूं. तुम अपनी कहानी सुनाओ? तुम्हारे बारे में जानने के लिए मैं बहुत उत्सुक हूं. तुम कहां गायब हो गईं?’’

‘‘मेरी कहानी सुन कर नीरा तुम बहुत दुखी होगी. क्या सुनाऊं, अपनी गलती बताऊं, दूसरों का धोखा बताऊं, समय का खेल कहूं? तुम तो जानती हो कि बचपन में ही मेरे मांबाप गुजर गए थे पर मैं हमेशा खुश रहती थी. हमेशा हंसती रहती थी. नीरा, अभी भी मैं हमेशा हंसती रहती हूं.’’

‘‘मैं तो अर्चना तुम्हें जानती हूं. तुम तो बड़ीबड़ी बातों को भी हंस कर टाल देती थीं. ठहाके मार कर हंसना तो कोई तुम से ही सीखे. इस के बावजूद तुम्हारे साथ क्या हुआ जो तुम अज्ञातवास में चली गईं? मैं ने तुम्हारे बारे में जानने की बहुत कोशिश की, पर सब व्यर्थ गया.’’

‘‘तुम्हें मेरा नंबर कैसे मिला?’’

‘‘यह कमाल सोशल मीडिया का है. पहले तो राधा ने तुम्हारे रिश्तेदार से नंबर मांगा तो उन्होंने नहीं दिया, फिर पता नहीं क्या सोच कर दे दिया. खैर, तुम मुझे अपनी कहानी सुनाओ.’’

‘‘सुनाती हूं बाबा, मैं ने आज तक अपनी कहानी किसी को नहीं सुनाई पर तुम्हें जरूर सुनाऊंगी. मुझे भी अपना मन हलका करना है. इस समय नहीं. रात को 8 बजे डिनर के बाद. तुम तो फ्री होगी न उस समय?’’

‘‘मैं तो हमेशा फ्री हूं. मैं तो अकेली रहती हूं. इसीलिए तुझे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है. बिना किसी रोकटोक के तुम अपनी कहानी और सच्ची कहानी सुना देना क्योंकि 60 साल मैं ने बहुत सब्र किया पर तुम्हारे बारे में कुछ भी पता न चला. आज रात सो नहीं पाए तो कोई बात नहीं. आज तो तुम्हारी कहानी सुननी ही है. मैं बड़ी उत्सुकता से रात के 8 बजे का इंतजार करूंगी. बाय, बाय.’’

रात को जल्दी से खाना खा कर मैं अर्चना के फोन का इंतजार कर रही थी. क्या बात हुई होगी? अर्चना ने मन बदल लिया होगा क्या? बड़े पसोपेश में मन जाने कहांकहां भटक गया. एक बार को मुझे लगा कि मुझे उस से उस की कहानी नहीं पूछनी थी. शायद मुझसे बात नहीं करेगी. देखा, तो घड़ी में

9 बज गए. मैं कुछ निराश हो गई. तभी फोन की घंटी बजी. अर्चना का ही फोन था.

‘‘हैलो अर्चना.’’‘‘हैलो नीरा, मैं ने तुम्हें बहुत इंतजार करवाया. मुझे गलत मत समझ  ना. मेरी एक सहेली है यहां पर. उस को कोई परेशानी थी. वह मुझे ही सबकुछ मानती है. सो मैं उस से बात करने लगी और उस की समस्या का समाधान भी कर दिया.’’

‘‘अरे वाह, अर्चना तुम तो दूसरों की समस्या का समाधान भी कर रही हो. बहुत अच्छी बात है.’’

‘‘नीरा, मैं कभी दूसरों के भरोसे थी. अब मैं दूसरों की मदद करती हूं. जब हम सक्षम हैं तो दूसरों की मदद करनी ही चाहिए. तू तो शुक्र मना नीरा, तू इस हालत में मुझसे से मिल रही है. वरना पहले मिलती तो मेरा बहुत बुरा हाल था.’’

‘‘अर्चना, अब यह बात रहने दे मुझे तो अपनी इस अचानक गायब होने की कहानी सुना. अभी तुम कहां हो?’’

‘‘मैं तो अनाथाश्रम में हूं.’’

मैं चौंक गई, ‘‘क्या बक रही है अर्चना? ऐसा क्या हुआ? कैसे हुआ?’’

‘‘मैं सही कह रही हूं नीरा? शायद मेरे जीवन में यही लिखा था.’’

‘‘क्या कह रही है तू? तेरा भाई तो बहुत बड़ा अफसर था.’’

‘‘हां, वे तो मुझे अच्छी तरह रखते थे. मुझसे ही गलती हुई जिस का दंड मैं ने भुगता.’’

‘‘तुझे तो पता था नीरा, मेरे मम्मीपापा बचपन में ही मर गए थे जब मैं तीसरी में पढ़ती थी. यह तो तुम्हारे सामने की बात है. पहले मम्मी गईं, एक साल बाद पापा चले गए. बड़े भैया के साथ ही मैं रही. ग्वालियर से जब तुम लोग भोपाल चले गए, उसी समय भैया का ट्रांसफर हो गया और हम इंदौर आ गए.’’

‘‘यह तो मुझे पता था, उस के बाद तुम लोग भोपाल आ गए, यह तो मैं ने सुना था. पर हम आपस में मिल नहीं पाए. मेरा भोपाल आना बहुत कम हो गया था.’’

‘‘भैया ने मुझसे कह दिया, मैं तुम्हें 10वीं के बाद आगे नहीं पढ़ा सकता क्योंकि मेरी अपनी भी 2 लड़कियां हैं. मुझे उन की भी शादी करनी है. तुम्हें ज्यादा पढ़ाऊंगा तो उस लायक लड़का भी देखना पड़ेगा? मैं तुम्हारी शादी कर देता हूं. लड़का देखने की प्रक्रिया शुरू हो गई. हमारी जाति में दहेज की मांग बहुत ज्यादा होती है, तुझे पता है. इस के अलावा कभी लड़का मुझे पसंद नहीं आता, कभी लड़के को मैं पसंद नहीं आती. न कुछ बैठना था, न बैठा. मैं 35 साल की हो गई.’’

‘‘इस बीच अर्चना, तुम ने कुछ नहीं किया, बैठी रहीं?’’

‘‘नहीं नीरा, मैं कैसे बैठी रहती. पहले सिलाई वगैरह सीखी. उस के बाद म्यूजिक सीखने लगी. बीए तो मैं ने म्यूजिक से कर लिया पर आगे कुछ करने के लिए मुझे ग्रेजुएट होना जरूरी था. भाभी से मैं ने कहा. उन्होंने कहा, प्राइवेट भर दो. इंटर किया, फिर बीए भी कर लिया. एमए करने के लिए यूनिवर्सिटी जौइन की. गाने के साथ एमए भी करने लगी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है अर्चना. तू ने तो अच्छा काम किया.’’

‘‘यहीं से तो मेरी बरबादी के दिन शुरू हो गए. मैं ने सबकुछ खो दिया.’’

‘‘क्या कह रही है अर्चना?’’

‘‘सही कह रही हूं. अभी तक तो सब सही चल रहा था, पता नहीं कैसे एक सज्जन मुझसे से टकरा गए और उन का व्यक्तित्व इतना आकर्षित था कि मैं उन की ओर आकर्षित हो गई.’’

‘‘अर्चना, यह तो कोई बुरी बात नहीं है.’’

‘‘सही कह रही हो नीरा. पहले मुझे भी ऐसा ही लगा था. इस में क्या बुराई है. वैसे भी तुम्हें पता है, मैं जातिधर्म, छुआछूत इन सब से बचपन से ही दूर रहती थी पर हमारा समाज तो ऐसा नहीं है. उस ने कहा, मंदिर में शादी कर लेते हैं. मैं ने अज्ञानता में उसे स्वीकार कर लिया और अपने को भी पूरी तरह से समर्पित कर दिया. उस ने भी कहा, मैं कुछ नहीं मानता हूं, मानवता ही सबकुछ है. पर मुझे  बरबाद करने के बाद वह कहता है, मांबाप से पूछना पड़ेगा. बोल, मैं ने कहा, पहले क्यों नहीं पूछा? लेकिन पूछूंगापूछूंगा कहता रहा. मेरे पेट में गर्भ ठहर गया. ‘अभी भैयाभाभी से मत कहना. पहले मैं अपने मांबाप से कह देता हूं, फिर तुम कहना.’ लेकिन अब तो मेरे लिए रुकने का सवाल ही नहीं. भैयाभाभी से कहना पड़ा.’’

‘‘फिर?’’

‘‘लड़का तो उन्हें भी पसंद था पर उस की बातें बड़ी अनोखी थीं. बारबार बेवकूफ बना रहा था. अब रुकने का तो सवाल ही नहीं था. भैया ने कहा, लड़के पर कार्यवाही करते हैं, जिस के लिए मैं राजी नहीं हुई. जिस को मैं ने एक बार चाहा उस के लिए ऐसी बात कैसे सोच सकती हूं?’’

‘‘अर्चना, यह क्या मूर्खता हुई? अबौर्शन करवा लेतीं.’’

‘‘भैयाभाभी ने भी इसी की सलाह दी थी. अर्चना, तू बता इन सब के चक्कर में मैं 38 साल की हो गई. अबौर्शन करवाना भी रिस्की था. इस के अलावा मुझे बच्चा चाहिए था. उस के जैसे आकर्षित व्यक्तित्व, सर्वगुण संपन्न और बुद्धिमान लड़का ही मुझे चाहिए था. जो मुझे सिर्फ एक बार मिला. सोचा, यही मेरी जिंदगी है. इस से लड़का या लड़की जो होगा, वैसा ही होगा, वही मुझे चाहिए था. कब मेरी शादी होती? कब बच्चा होता? इन सब बातों ने मुझे व्यथित कर दिया था. जो एक बार मुझे मिल गया, उसे मैं खोना नहीं चाहती थी. औरत अपने को तब तक संपूर्ण नहीं मानती जब तक वह मां नहीं बन जाती. तू कुछ भी कह नीरा, यह बात मेरे अंदर बहुत गहराई से बैठ गई थी. इस के लिए मैं कोई भी रिस्क उठाने को तैयार थी. सब तकलीफ बरदाश्त कर सकती थी. मैं तुझे बेवकूफ, मूर्ख, पागल या पिछड़ी हुई लग सकती हूं पर मैं बच्चा चाहती थी. मैं ने भैया से साफसाफ कह दिया. मुझे बच्चा चाहिए.’’

‘‘फिर?’’

‘‘भैया ने कहा, ‘यदि तू यही चाहती है तो समाज वाले तुझे स्वीकार नहीं करेंगे? यही नहीं, मुझे भी अपनी लड़कियों की शादी करनी है. फिर मेरी लड़कियों की शादी कैसे होगी? यदि तू बच्चा ही चाहती है तो इस के लिए तुझे बहुत सैक्रिफाइस करना पड़ेगा. क्या तू इस के लिए राजी है?’ मैं ने कहा, मैं इस के लिए तैयार हूं.’’

‘‘क्या भैया ने तुझे घर से निकल जाने को कहा?’’

‘‘नहीं, उन्होंने कहा जहां तुझे कोई नहीं जानता हो ऐसी जगह तुझे जाना पड़ेगा और किसी भी पहचान के लोगों से संबंध नहीं रखना होगा? क्या इस के लिए तू तैयार है? मैं बच्चे के लिए यह शर्त मानने को तैयार हो गई.’’

‘‘यार अर्चना, तू तो पागल हो गई थी.’’

‘‘अब नीरा, तू कुछ भी कह सकती है. पर मुझे जो समझ में आया, मैं ने वही किया. अब मैं कल तुम्हें बाकी बातें बताऊंगी क्योंकि मेरी एक सहेली आ गई है, उस को कुछ जरूरी काम है. बाय, बाय.’’

‘‘बाय, बाय अर्चना, कल 8 बजे इंतजार करूंगी?’’

‘‘बिलकुल, बिलकुल.’’

कह तो दिया मैं ने, पर दूसरे दिन रात के 8 बजे तक बड़े अजीबअजीब खयाल मेरे दिमाग में आए. क्या अच्छे घर की लड़की थी और आज एक अनाथाश्रम में रह रही है? वक्त कब, किस के साथ, कैसा खेल खेल जाए, कुछ पता नहीं चलता. मन उमड़घुमड़ कर अर्चना के आसपास ही घूम रहा था. सारा दिन मेरा मन किसी काम में नहीं लगा.

बारबार घड़ी की तरफ देखने लगती. अरे, यह क्या, अर्चना के फोन की घंटी है. मैं ने देखा, क्या 8 बज गए, नहीं अभी तो 7 ही बज रहे थे. मैं ने उठाते ही बोला, ‘‘व्हाट्स अ ग्रेट सरप्राइस, अभी तो 7 ही बजे हैं अर्चना.’’

‘‘तुझे काम है नीरा तो मैं बाद में करती हूं.’’

‘‘अरे नहीं रे, मैं तो तेरे फोन का इंतजार कर रही थी पर तुम ने कहा था 8 बजे, इसीलिए अभी तो 7 ही बज रहे हैं. मैं तो फ्री हूं तुम्हारी कथा सुनने के लिए. कल क्या बात हो गई थी? तुम क्यों चली गईं?’’

‘‘ऐसा है मेरे साथ इसी आश्रम में एक युवा लड़की रहती है. उस के साथ मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. वह मुझे बड़ी दीदी कहती है. वह अपनी सारी समस्याएं मुझे बताती है. कई बार मुझे से सलाह की भी अपेक्षा करती है. जब छोटी बहन बन ही गई तो उसे समझना और उस को उचित सलाह देना मेरा कर्तव्य तो है न.’’

‘‘बिलकुल, क्या हो गया था?’’

‘‘ऐसा है उस का नाम प्रिया है. बहुत ही सुंदर, प्यारी सी लड़की है. सिर्फ 30 साल की है. यहां पर वह 15 साल की थी, तब आई थी क्योंकि उस का किसी ने रेप कर दिया था. अब वह 15 साल बाद 30 की हो गई. हमारे इस आश्रम में हम लड़कियों की शादी भी करवाते हैं पर यह किसी लड़के को चाहती है. उसे मेरी मदद की जरूरत है. अब मैं यहां इतने सालों से रह रही हूं तो मेरी बात को ये लोग महत्त्व देते हैं. उसी के लिए आजकल मैं कोशिश कर रही हूं. उस की शादी उस लड़के से हो जाए तो अच्छी बात है.’’

‘‘अर्चना, तेरी कहानी के बीच में यह प्रिया की कहानी और शुरू हो गई. अब तू बता तुम्हारी संस्था का क्या नाम है? मुझे तो पूरी रात यही बात परेशान कर रही थी?’’

‘‘सबकुछ बताऊंगी नीरा, तसल्ली रख. हमारी संस्था का नाम ‘आनंद आश्रम’ है. इस में कई संस्थाएं हैं. वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम और गर्ल्स कालेज. इस के अलावा कई तरह की ट्रेनिंग भी दी जाती है. चेन्नई शहर से काफी दूरी पर है. बस से आजा सकते हैं. इस का कैंपस बहुत बड़ा है.’’

‘‘यार अर्चना, तू तो इस की तारीफों के पुल बांध रही है.’’

‘‘नीरा, तुम्हें एक बात बताऊं जब मैं शुरू में यहां आई तो बहुत ही परेशान थी परंतु बाद में मुझे इस जगह से बड़ा प्रेम हो गया. अनाथाश्रम की लड़कियों को भी हम पैरों पर न केवल खड़ा करते हैं बल्कि अच्छा वर देख कर उन की शादी भी कर देते हैं. अब प्रिया की शादी जुलाई में होगी. नीरा तुम भी आना और इस बहाने मुझसे भी मिल लोगी.’’

‘‘अर्चना, तुम कहां से कहां पहुंच गईं? मुझे अपनी कहानी पहले पूरी बताओ? फिर क्या भैया ने तुम्हें निकाल दिया.’’

‘‘हां, हां, यही तो बता रही थी, बीच में प्रिया की समस्या आ गई थी. उसे मैं ने ठीक कर दिया. ऐसा है, मेरे भैया ने तो कह दिया, ‘तुम डिलीवरी करा सकती हो पर तुम्हें ऐसी जगह भेजूंगा कि तुम्हारा संबंध हम से तो क्या, किसी पहचान वाले से नहीं होना चाहिए? क्या इस बात के लिए तुम राजी हो?’ मुझे तो बच्चा चाहिए था, मैं ने पक्का सोच लिया था. भैया ने कह दिया कि तुम्हारी मरजी, खूब अच्छी तरह सोच लो. मैं ने तो पक्का फैसला कर लिया था तो भैया ने मुझे साउथ में एक छोटे शहर में, जहां मेरी बड़ी बहन रहती थी, उस के यहां भेज दिया. फिर बोले कि यहां तुम सिर्फ डिलीवरी करवाओगी. उस के बाद तुम्हारे रहने के लिए मैं दूसरी जगह इंतजाम कर दूंगा. खर्चा भी भैया ने ही भेजा. बहन से कह दिया गया, इस का आदमी अरब कंट्री में नौकरी के लिए गया हुआ है.’’

‘‘तुम्हारी बहन ने मान लिया?’’

‘‘हां, लव मैरिज कर ली, बता दिया. फिर इस ‘आनंद आश्रम’ ने मु?ो सहारा दिया. 3 महीने के बच्चे को ले कर मैं यहां आ गई. शुरू में तो भैया थोड़ेथोड़े रुपए भेजते. मैं क्वालिफाइड तो थी, फिर मैं ने यहीं पर सर्विस कर ली और यहीं पर शिशुगृह भी है. बेटे को वहीं पर छोड़ देती थी. शाम को बच्चे को अपने पास ले लेती. बच्चा बहुत ही प्यारा था. हर कोई उसे उठा लेता था. इसलिए कोई ज्यादा परेशानी नहीं हुई. भैया के घर जाती तो भैया की बदनामी होती और मेरी भतीजियों की भी शादी की समस्या हो जाती.’’

‘‘जब नौकरी कर रही थी तो अनाथाश्रम में रहने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘मेरी सुरक्षा का तो प्रश्न था? यहां तो बाउंड्री वाल से बाहर कहीं जा नहीं सकते थे. बेटे की सुरक्षा भी थी.’’

‘‘अर्चना, तुम बुरा मत मानना, तुम में हिम्मत की तो कमी थी. आजकल ऐक्टर नीना गुप्ता ‘मेरा बच्चा है’ कह कर रख रही है न? करण जौहर को देखो, 2-2 बच्चे.’’

‘‘यह बात नहीं है नीरा. आज से 40 साल पहले की बात सोच. हम तो साधारण मध्यवर्गीय लोग बहुत ज्यादा डरते हैं. तुझे तो पता ही है. मैं ने गलती की, उस की सजा मुझे मिलनी चाहिए.’’

‘‘अरी पागल, तू ने कोई गलती नहीं की, मनुष्य को जैसे भूख लगती है, ऐसे ही इस उम्र में शरीर की भूख होती है. कामशक्ति को भी शांत करना जरूरी है. इस शारीरिक भूख को भी यदि तरीके से शांत न किया जाए तो कई मनोवैज्ञानिक व शारीरिक परेशानियां हो जाती हैं. तुम 35 साल की हो गई थीं. तुम्हारी शादी नहीं हो रही थी. उसी समय तुम्हारा एक आकर्षक व्यक्तित्व से मिलना, उस का भी तुम्हारी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक बात थी. तुम ने जो कदम उठाया वह गलत था, यह तो मैं नहीं कहूंगी. इस उम्र में गलती हो सकती है, उसे सुधारना चाहिए था. गलती मनुष्य से ही होती है. फिर आगे क्या हुआ, यह बताओ?’’

‘‘बेटा पढ़ लिया. बेटा होशियार था. सब ने मदद की. मैं भी वहीं पर नौकरी करती थी. पर बहुत ही कम रुपयों पर. खानापीना फ्री था ही, हाथखर्ची हो जाती थी.’’

‘‘पर बता तू ने किसी से संबंध क्यों नहीं रखा?’’

‘‘भैया ने मना कर दिया था न, तुम किसी से संपर्क नहीं रखोगी? मुझे  उन की बात रखनी थी न. बदनामी का मुझे भी डर था.’’

‘‘भैया ने तुम्हारी सुध नहीं ली?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं. भैया तो मेरी राजीखुशी का समाचार पूछते रहते थे. जबतब रुपए भी भेजते थे.’’

‘‘तुम से मिलने कोई नहीं आया?’’

‘‘एक बार भैया आए थे और एक बार भाभी आई थीं. पर मेरा समय ही खराब रहा कि भैया और भाभी दोनों ही बहुत जल्दी एक साल के अंदर ही गुजर गए. एक बार बड़ा भतीजा आया था, उसी समय मैं ने उस को नंबर दे दिया था. तभी तो इतने दिन बाद तुम्हें मेरा नंबर मिल गया. यह मेरा अहो भाग्य.’’

‘‘तुम अज्ञातवास में रहीं. मैं ने सुना, रामायण में एक प्रसंग आता है कि अहिल्या को भी इसी तरह अज्ञातवास में रहना पड़ा. खुद ही खेती करती, फसल उगाती, उसे स्वयं अकेले काटती और स्वयं ही बना कर खातीपीती रही. जैसे लोगों ने फैला दिया अहिल्या पत्थर की शिला नहीं थी, उस ने तो कठोर अज्ञातवास ही सहन किया था, जिसे तुम भुगत रही हो. सचमुच में अज्ञातवास में रहना बहुत ही कष्टकारक है. खाना, कपड़ा और मकान जितना जरूरी है, हमें अपने लोग, हमारी पहचान इस की भी बहुत जरूरत है. इस के बिना रह कर तुम ने कितना कष्ट महसूस किया होगा, मैं सोच सकती हूं. इस  लौकडाउन में तो हर कोई तुम्हारी तकलीफ को महसूस कर सकता है परंतु इस समय तो इंटरनैट, मोबाइल सबकुछ है, उस समय तुम ने अपना समय कैसे काटा होगा?’’

‘‘नीरा, अब तो मेरा समय निकल गया. अब तो मेरी कइयों से दोस्ती हो गई. जो गलती हो गई, उस का फल भुगत लिया.’’

‘‘बारबार गलती मत कर, अर्चना. मुझे एक बात का दुख है कि तू समाज से अपने हक के लिए लड़ी नहीं. जिस आदमी ने तुझे धोखा दिया वह आराम से रह रहा है. तू तो उस के बारे में नहीं जानती पर उस ने तो शादी भी कर ली होगी, बीवीबच्चे भी होंगे उस के, वह तो आदमी है, उस के सात खून माफ हैं? हम स्त्रियों की कोख है और हम मोहवश बच्चे को भी छोड़ना नहीं चाहतीं. यही हमारी कमजोरी है और हम बदनामी से डरते हैं.’’

‘‘अब क्या हो सकता है नीरा, जो बीत गई सो बीत गई.’’

‘‘अब तू वहां क्यों रह रही है? तेरा बेटा तो अब कमाने लगा, विदेश में रहता है.’’

‘‘जैसे ही मेरा बेटा कमाने लगा, मैं ने मकान ले लिया और हम सुविधापूर्वक रहने लगे. बेटे की शादी भी हो गई. बहू आ गई और 2 बच्चे भी हो गए. फिर उसे एक अच्छा औफर मिला तो वह विदेश चला गया.’’

‘‘तू क्यों नहीं गई?’’

‘‘मैं ने 3 बार वीजा के लिए अप्लाई किया था पर अफसोस मुझे नहीं मिला. मैं वहीं रहती रही. फिर मुझे लगा, इस उम्र में अकेले रहना मुश्किल है. तब मैं सारे सामान को जरूरतमंद गरीबों में बांट कर यहां सेवा करने के लिए आ गई. मेरे बेटे ने बहुत मना किया. मुझे देखने वाला कोई नहीं है. कल कोई हारीबीमारी हो तो कौन ध्यान रखेगा? यहां लोग तो हैं. मैं ने इन लोगों से रिक्वैस्ट की. ये लोग मान गए. पहले कुछ रुपए देने की बात हुई थी पर ये लोग मुकर गए, कहने लगे कि तुम्हारा बेटा कमाता है. खैर, खानापीनारहना फ्री है और खर्चे के लिए बेटा पैसे भेज देता है.’’

‘‘यह जिंदगी तुझे रास आ गई?’’

‘‘रास आए न आए, क्या कर सकते हैं?  एक बात सुन, मेरी भोपाल जाने की इच्छा हो रही है. हम दोनों चलें.’’

‘‘अर्चना, बड़ा आश्चर्य… अभी भी तेरे मन के एक कोने में सब से मिलने की इच्छा हो रही है. अब कितनी मुश्किल है. हम दोनों 77 साल के हो गए. इस समय जाना ठीक नहीं है. अभी तो कोरोना है. मेरे घर वाले भी नहीं भेजेंगे. एक चेंज के लिए कभी हो सका तो चलेंगे. अभी अपनी फोटो भेज. मैं भी अपनी भेजती हूं.’’

‘‘मेरे पास तो स्मार्टफोन नहीं है. बेटे ने ले कर देने के लिए कहा था पर मैं ने ही मना कर दिया. खैर, कोई बात नहीं, प्रिया के मोबाइल से भेज दूंगी. उस का नंबर तुम्हें दूंगी. तुम उस में भेज देना. प्लीज, मुझे फोन करते रहना. क्या मैं तुम्हें फोन कभी भी कर सकती हूं?’’

‘‘जरूर, तू ऐसे क्यों बोली,मुझे बहुत रोना आ रहा है? तू इतनी दयनीय कैसे बन गई? तुम कैसी थीं और कैसी हो गईं? यार, तुम्हारी क्या हालत हो गई.’’

‘‘नीरा, 60 साल बाद मुझे जो खुशी मिली, उस को कैसे भूल जाऊंगी. अब मैं सही हो जाऊंगी, देख, मरने के पहले किसी को यह कहानी सुनाना चाहती थी. तुम्हें सुना दी. मैं हलकी हो गई. गुडबाय, फिर मिलेंगे.’’

‘‘गुडबाय, गुडनाइट’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

अपनी सहेली के मिलने की खुशी मनाऊं या उस की बरबादी पर रोऊं.कुछ समझ में नहीं आ रहा. हमारा समाज आखिर कब बदलेगा…

विश्वासघात : अमृता ने कैसे लिया पति और बहन से बदला

एक शाम मैं सीडी पर अपनी मनपसंद फिल्म ‘बंदिनी’ देख रही थी कि अपने सामने के खाली पड़े दोमंजिले मकान के सामने ट्रक रुकने और कुछ देर बाद अपने दरवाजे पर दस्तक पड़ते ही समझ गई कि अब मैं फिल्म पूरी नहीं देख पाऊंगी. खिन्नतापूर्वक मैंने दरवाजा खोला तो सामने ट्रक ड्राइवर को खड़े पाया. वह कह रहा था, ‘‘सामने जब रस्तोगी साहब आ जाएं तो उन्हें कह दीजिएगा, मैं कल आ कर किराया ले जाऊंगा.’’

मैं कुछ कहती, इस से पहले वह चला गया.

मैं बालकनी में ही कुरसी डाल कर बैठ गई. शाम को सामने वाले घर पर आटोरिकशा रुकते देख मैं समझ गई कि वे लोग पहुंच गए हैं.

घंटे भर में नमकीन-पूरी और आलू-मटर की सब्जी बना कर टिफिन में पैक कर के मैं अपने नौकर के साथ सामने वाले घर पहुंची. कालबैल बजाने पर 5 साल की बच्ची ने दरवाजा खोला. तब तक रस्तोगीजी अपनी पत्नी सहित वहीं आ पहुंचे.

मैंने बताया कि मैं सामने के मकान में रहती हूं. मिसेज रस्तोगी ने नमस्कार किया और बताया कि उन का मेरठ से दिल्ली स्थानांतरण हुआ है. सफर से थकी हुई हैं,

घर भी व्यवस्थित करना है और बच्चे भूखे हैं, अभी तुरंत तो गैस का कनैक्शन नहीं मिलेगा. कुछ समझ में नहीं आ रहा है, क्या करूं?

मैंने कहा, ‘‘घबराइए नहीं. मैं घर से खाना बना कर लाई हूं. नहा-धो कर खाना वगैरह खा लीजिए. वैसे मेरे घर में 1 अतिरिक्त सिलेंडर है, फिलहाल उस से काम चला लीजिए. बाद में कनैक्शन मिलने पर वापस कर दीजिएगा.’’

इस तरह मेरा परिचय रस्तोगी परिवार से हुआ. उन्होंने अपने तीनों बच्चों का नाम पास के मिशनरी स्कूल में लिखवा दिया था. धीरे-धीरे वे नए माहौल में एडजस्ट हो गए.

मेरे चारों बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे रहते थे. बेटी पारुल ने मैट्रिक का इम्तहान दिया था, प्रिया आई.काम. कर रही थी. पीयूष एम.बी.ए. और अनुराग मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहा था. इस तरह सभी व्यस्त थे.

कभीकभार मैं सामने रस्तोगीजी के घर उन की पत्नी से गपशप करने पहुंच जाती, कभी वह मेरे घर आ जाती. 27 वर्षीय अमृता बहुत जिंदादिल औरत थी, हमेशा हंसती और हंसाती रहती. मैंने घर में ही बाहर के कमरे में ब्यूटीपार्लर खोल रखा था. अमृता पार्लर के कामों में मेरी मदद भी कर देती थी.

इधर 3-4 दिनों से वह मेरे घर नहीं आ रही थी तो मैं उस के घर पहुंच गई. कालबैल बजाने पर एक अपरिचित चेहरे ने दरवाजा खोला. मैं अंदर गई. तभी किचन से ही अमृता ने आवाज लगा कर मुझे वहीं बुला लिया. मैं किचन में गई. अमृता आलूगोभी के पकौड़े  तल रही थी. उसी ने बताया कि उस की छोटी बहन रति का दाखिला उन लोगों ने यहीं कराने का फैसला किया है. कालेज के होस्टल में रहने के बजाय वह उन के साथ ही रहेगी.

अमृता का अब पार्लर या मेरे घर आना बहुत कम हो गया था. अब वह बहन, बच्चे और पति की तीमारदारी में ही लगी रहती. कभी घर आती भी तो अपनी बहन रति को फेशियल या हेयर कटिंग कराने. मैं उस से कहती, ‘‘अमृता, कभी अपनी तरफ भी ध्यान दिया करो.’’

अपने चिरपरिचित हंसोड़ अंदाज में वह कहती, ‘‘मुझे कौन सा किसी को दिखाना है. रति को कालेज जाना पड़ता है, इसे ही ब्यूटी ट्रीटमेंट दीजिए.’’

रति नाम के ही अनुरूप खूबसूरत थी, गोरी, लंबी, सुराहीदार गरदन और छरहरा बदन. उस के जिस्म पर पाश्चात्य पोशाकें भी बहुत फबती थीं.

दिन बीतते गए, मैं अपने घर और पार्लर में व्यस्त थी. अमृता का आना बिलकुल खत्म हो गया था. एक दिन मैं पारुल के साथ शौपिंग के लिए निकली हुई थी, कि मार्केट से सटे गायनोकोलोजिस्ट के क्लीनिक की सीढि़यों से उतरते अमृता को देखा. शुरू में तो मैं उसे पहचान भी नहीं पाई. कभी गदराए जिस्म वाली अमृता सिर्फ हड्डियों का ढांचा नजर आ रही थी. जब तक मैं उस तक पहुंचती, उस की टैक्सी दूर निकल गई थी.

शाम को मैंने उस के घर जाने का निश्चय किया. मैं उस के घर गई तो मुझे देख कर उसे प्रसन्नता नहीं हुई. वह दरवाजे पर ही खड़ी रही तो मैंने ही कहा, ‘‘क्या अंदर नहीं बुलाओगी?’’

हिचकते हुए वह दरवाजे से हट गई. मैं अंदर घुसी ही थी कि रस्तोगी और रति की सम्मिलित हंसी गूंज उठी. अमृता लगभग खींचते हुए मुझे अपने कमरे में ले आई.

मैंने ही शुरुआत की, ‘‘सचसच बताना अमृता, क्या बात है?’’

जोर देने पर जैसे रुका हुआ बांध टूट पड़ा. उसने कहा, ‘‘दीदी, आप ने सही कहा था, मुझे खुद पर भी ध्यान देना चाहिए था. मैंने कभी जिस बात की कल्पना भी नहीं की थी, वह हुआ. रति और विजय में नाजायज संबंध हैं. मैं जब रति को वापस भेजने की बात करती हूं तो रति तो कुछ नहीं कहती पर विजय मुझे मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से प्रताडि़त करते हैं. कहते हैं, ‘रति नहीं जाएगी, तुम्हें जहां जाना हो जाओ.’ रति प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहती पर अकेले में मुझे घर से बाहर निकालने की जिद विजय से करती है.’’ मैं सुन कर स्तब्ध रह गई.

‘‘मैं तो डाक्टर के पास भी गई थी. घर में यह स्थिति है और मैं प्रैगनेंट हूं. मैं इससे छुटकारा चाहती थी, पर डाक्टर ने कहा, ‘‘तुम बहुत कमजोर हो, ऐसा नहीं हो सकता,’’

मैंने कहा, ‘‘तुम इतनी कमजोर कैसे हो गई हो?’’

उसने कहा, ‘‘सब समय की मार है.’’

6 महीने बीत गए. एक रात 12 बजे विजय रस्तोगी हांफता हुआ मेरे घर आया. उसने बताया, ‘‘अमृता को ब्लीडिंग हो रही है, वह तड़प रही है. उसे हास्पिटल ले जाना है, प्लीज अपनी गाड़ी दीजिएगा.’’

यह सुनते ही हम आननफानन उसे गाड़ी पर लाद कर साथ ही अस्पताल पहुंचे. तुरंत उसे आई.सी.यू. में भरती किया गया, सिजेरियन द्वारा उसने एक पुत्र को जन्म दिया, 4 घंटे बाद वह होश में आई तो उसने सिर्फ मुझ से मिलना चाहा. नर्स ने सब को बाहर रोक दिया. मैं जब अंदर पहुंची तो उसने अटकते हुए कुछ कहना चाहा और इशारे से अपने पास बुलाया. मैं पहुंची तो बगल ही में फलों के पास रखी हुई अत्याधुनिक टार्च को उठाने को कहा. उसने इशारे से फोटो खींचने की बात जैसे ही की कि उस के प्राण पखेरू उड़ गए. मैंने उस टार्च को अपने बैग में रख लिया.

सभी लोग रोने लगे. रति रोते हुए कह रही थी, ‘‘दीदी का पैर फिसलना उन के लिए काल हो गया. काश, उन का पैर न फिसला होता.’’ अमृता के घर मातमी माहौल था. क्रियाकर्म से निबटने के बाद मैं घर में बैठी आया हुआ ईमेल चेक कर रही थी. उस में मुझे अमृता का मेल मिला, जिस में मुझे पता चला कि हादसे वाले दिन उसने सेल्समैन से सिस्टेमैटिक टार्च कम वीडियो कैमरा खरीदा था, जो देखने साधारण टार्च लगता था, परंतु वह वीडियोग्राफी और रोशनी दोनों का काम करता था. वह मुझसे मिल तो नहीं सकती थी, इसलिए मुझे मेल किया था.

मैंने उसकी टार्च को उलटपुलट कर देखा, तो उस में मुझे एक कैसेट मिला. मैंने उसे सीडी में लगाया. औन करने पर मैं यह देख कर दंग रह गई कि उस में विजय रस्तोगी और रति लात-घूंसों से अमृता की पिटाई कर रहे थे. रस्तोगी की लात जोर से पेट पर पड़ने से अमृता छटपटाती हुई फर्श पर गिर कर बेहोश हो गई. पूरा फर्श खून से लाल होने लगा था. महंगी टार्च की असलियत जाने बगैर दोनों ने अमृता को फिजूलखर्ची के लिए पिटाई की थी.

मैंने तुरंत हरिया को भेज कर अमृता के मम्मी-पापा को अपने घर बुला कर उन्हें कैसेट दिखलाया, जिसे देख कर उन्होंने सिर पीट लिया. सहसा उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि रति ऐसा घृणित कार्य कर सकती है, परंतु आंखों देखी को झुठलाया नहीं जा सकता था.

रति और विजय से पूछने पर दोनों बिफर पड़े. तब अमृता के पापा ने उन्हें सीडी औन कर उन की करतूतों का कच्चा चिट्ठा उन्हें दिखा दिया. शर्म, ग्लानि और क्षोभ से रति ने कीटनाशक पी लिया. अस्पताल ले जाने के क्रम में ही रति की मौत हो गई.

अमृता के मातापिता ने तुरंत विजय के नाम केस फाइल किया और सबूत के तौर पर सीडी को पेश किया गया, जिस के आधार पर अमृता की हत्या के जुर्म में विजय रस्तोगी को जेल की सजा हो गई. बच्चों को नाना-नानी अपने साथ ले गए. मुझे इस बात की बेहद खुशी हुई कि अमृता को तड़पा-तड़पा कर मारने वाले भी अपने अंजाम को पहुंच गए.

मैं अपने पति के कारण तनाव में रहती हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 30 साल की एक शादीशुदा औरत हूं. मेरे पति रात को बिस्तर पर बहुत ज्यादा हैवान हो जाते हैं. वे मुझे अपने जीवनसाथी की तरह नहीं, बल्कि किसी खिलौने की तरह इस्तेमाल करते हैं और सैक्स को मजा नहीं सजा बना देते हैं. इस बात से मैं बहुत ज्यादा तनाव में रहती हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के पति जरूरत से ज्यादा सैक्स एडिक्ट हैं, जो एक तरह की बीमारी ही है. पति को बताएं और समझाएं कि आप को किस तरह के सैक्स में मजा आता है और कैसे आता है.

सैक्स का असली सुख उसे ही मिलता है, जो अपने पार्टनर के मजे का भी ध्यान रखता है. आप धीरेधीरे कोशिश करें और पति के अंग को किसी भी तरह सैक्स के पहले ही डिस्चार्ज कराएं.

इस पर भी बात न बने तो किसी माहिर डाक्टर से मशवरा लें. हैरत तो इस बात की है कि सैक्स पावर बढ़ाने की तो कई दवाएं आती हैं, लेकिन कम करने की नहीं आती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लोकसभा चुनाव 2024 : ‘डबल इंजन’ की सरकार पर जनता का ‘ब्रेकडाउन’

साल 2024 के चुनाव नतीजों में जो सब से बड़ी बात निकल कर सामने आई है, वह यह है कि देश की आम, गरीब, वंचित जनता ने भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के नारे को सिरे से नकार दिया है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, बिहार और महाराष्ट्र में, जहां के गरीब लोग सिर्फ रोजीरोटी की आस में सरकार की तरफ देखते हैं और अपने घरबार छोड़ कर परदेश में एक अदना सी नौकरी पाने के लालच में बिना कुछ सोचेसमझे निकल पड़ते हैं, उन्हें राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, यूनिफार्म सिविल कोड, एक देश एक चुनाव जैसे मोदी की गारंटी वाले वादों से कुछ लेनादेना नहीं है.

इस का नतीजा भी देखने को मिला, जहां भारतीय जनता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. पंजाब में तो इस बार भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई. हरियाणा में उस ने साल 2019 के चुनाव में 10 में से 10 सीटें जीती थीं, पर इस बार वह 5 सीटें गंवा बैठी.

यही हाल राजस्थान में रहा. भाजपा को 14 सीटें मिलीं. पिछली बार के मुकाबले 10 सीटें गंवाईं. महाराष्ट्र में 9 सीटें जीतीं और 14 सीटें गंवाईं. बिहार में 40 में से कुल 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटें गंवाईं.

उत्तर प्रदेश में तो भारतीय जनता पार्टी को मुंह की खानी पड़ी. उसे वहां महज 33 सीटें ही मिलीं, जबकि उसे 29 सीटों का नुकसान हुआ.

इस प्रदेश में भाजपा को और ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता अगर बहुजन समाज पार्टी की मायावती अपने वोटरों से दगा न करतीं. इसे कुछ सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की जीत के अंतर से समझते हैं.

मेरठ से भारतीय जनता पार्टी के अरुण गोविल 10,585 वोटों से जीते थे. यहां बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार देवव्रत कुमार त्यागी को 87,025 वोट मिले थे. अगर ये वोट समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को मिल जाते तो भाजपा का जीतना नामुमकिन था.

ऐसे ही अमरोहा में बहुजन समाज पार्टी को मिले वोटों ने भारतीय जनता पार्टी को जिताने का काम किया. वहां कांग्रेस के कुंअर दानिश अली 28,670 वोटों से हारे थे, जबकि बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार मुजाहिद हुसैन को 1,64,099 वोट मिले थे.

हम यह बात यहां इसलिए कह रहे हैं कि इस बार का वंचित तबका भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा में कहीं फिट नहीं बैठ रहा था. वैसे भी मायावती अब कांशीराम के विचारों पर नहीं आगे बढ़ रही हैं और उन्हें अपने दबेकुचले समाज की भी कोई परवाह नहीं दिखती है.

अगर इस बार बहुजन समाज पार्टी इंडी गठबंधन से तालमेल कर लेती तो उसे प्रदेश में सीटें भी मिलतीं और भारतीय जनता पार्टी का और ज्यादा बुरा हाल होता.

इस बार के चुनाव नतीजे इस लिहाज से भी माने रखते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह देश को मंदिरमय कर के अपना हिंदुत्व का कार्ड खेलने की कोशिश की थी, उस की हवा निकल गई. ‘जो राम को लाए हैं, हम उन को लाएंगे’ जुमले ने लोगों में निराशा भर दी कि ये हैं कौन और इन की क्या हैसियत है, जो राम को लाएंगे?

जिस किसी ने अपने ईष्ट को मानना है वह उसे अपने घर में मंदिर तक सीमित रखना चाहता है. यह उस का निजी हक है. पुराने जमाने में ऐसा ही होता था. फिर धीरेधीरे कहींकहीं धार्मिक स्थल दिखाई देने लगे जो अकसर राहगीरों की सेवा करने या उन्हें आराम करने की जगह की तरह इस्तेमाल होते थे. चूंकि वहां ईश्वर का वास मान लिया जाता था, तो चोरीचकारी का डर भी कम ही रहता था. राहगीर इस मिली सेवा के बदले वहां की साफसफाई कर देते थे या दान में कुछ दे देते थे.

पर जब से धार्मिक स्थलों पर पैसे की बरसात होने लगी है, तब से ये कमाई के साधन बन गए हैं. दान के नाम पर लोगों को बहलायाफुसलाया जाने लगा है और इसे कमाई का धंधा बना लिया है. अब तो मंदिरों को भव्य बनाने के लिए कोरिडोर बनने लगे हैं.

भारतीय जनता पार्टी को लगा था कि अगर वह देश के बड़े मंदिरों को भव्य बना देगी तो उस का वोटबैंक मजबूत हो जाएगा और देशभर में मंदिरों के नाम पर राजनीति भी चमक जाएगी. वाराणसी, उज्जैन के बाद वह अयोध्या की तरफ गई और उसे ऐसे चमका दिया जैसे कोरोना के बाद भारत ने इतनी कमाई की है कि ऐसे पुण्य के काम तो होते रहने चाहिए.

पर मोदी सरकार यह भूल गई कि वह जिन 80 करोड़ भूखों को मुफ्त अनाज देने का दावा कर रही है, उन्हें इन भव्य मंदिरों से मिलेगा क्या? कोढ़ पर खाज यह रही कि देश में बढ़ती महंगाई पर केंद्र सरकार ने कोई रोक नहीं लगाई. भारतीय जनता पार्टी ने इसे कभी मुद्दा माना ही नहीं. उसे तो लग रहा था कि मंदिर चमका दो तो लोगों का पेट अपनेआप भर जाएगा.

पर हुआ क्या? अयोध्या को समाहित करने वाली फैजाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लल्लू सिंह को पटकनी दे दी. खुद नरेंद्र मोदी, जो वाराणसी से उम्मीदवार थे, की जीत का अंतर कम हो गया.

इस धार्मिक प्रपंच को एक उदाहरण से भी समझते हैं. 4 जून, 2024 की शाम. मेरी अपने औफिस की एक महिला साथी से लोकसभा चुनाव पर आ रहे नतीजों पर चर्चा हो रही थी. तब उन्होंने जो कहा, वह एक जागरूक वोटर के बड़े सटीक विचार थे. उन का मानना था कि यह सच है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को बहुमत जरूर मिला है, पर यह उस ब्रांड पर करारी चोट है, जिसे मोदी के नाम का मुल्लमा चढ़ा कर जनता के सामने पेश किया गया.

फिर मैं ने सवाल किया कि भारतीय जनता पार्टी ने तो ‘इस बार 400 पार’ का नारा दिया था और ऐसा लग भी रहा था कि जनता सत्ता पक्ष को भरभर कर वोट देगी, इस के बावजूद राजग 300 सीटें भी क्यों नहीं पार कर पाया?

इस पर उन महिला साथी ने कहा, ”इन लोगों ने राम को राजनीति में घसीट दिया. मुझे राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाना बिलकुल पसंद नहीं आया. इतना ही नहीं, इन लोगों ने अपने काम न गिना कर विपक्ष को कोसने का काम ज्यादा किया. शिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी वगैरह पर तो कोई बात ही नहीं की. मेरी नजर में इस चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि मोदी और शाह की जोड़ी को हराना नामुमकिन नहीं है.”

कभीकभार एक वोटर के विचार पूरे देश का मिजाज बता देते हैं और सत्ता पक्ष पर इस तरह चोट करते हैं कि ‘सावधान हो जाओ, ‘डबल इंजन’ की सरकार को पटरी से उतारना कोई मुश्किल काम नहीं है’.

बेरोजगारों को छला

दूसरी तरफ, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने इन चुनाव में नौकरियों की कमी का मुद्दा अच्छे ढंग से हैंडल किया. उन्होंने केंद्र सरकार की ‘अग्निवीर योजना’ को आड़े हाथ लिया. यह सच भी था कि देश के नौजवान नौकरी की कमी का दंश झेल रहे थे. उन्हें कांवड़ जैसी धार्मिक यात्राओं का भागीदार बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि वे चाहते थे एक अदद नौकरी.

कोरोना के बाद तो बेरोजगारों की फौज बढ़ती ही चली गई. कहीं चंद नौकरियों का इश्तिहार निकलता तो बेरोजगार नौजवानों के झुंड के झुंड उस तरफ दौड़ पड़ते. रेलों और बसों में धक्के खा कर सैंटर पर पहुंचते, तो पता चलता कि पेपर ही लीक हो गया है.

पर इन 10 सालों में भारतीय जनता पार्टी ने कभी रोजगार देने को बड़ी और ठोस पहल नहीं की. हां, सेना में भरती के नाम पर ‘अग्निवीर’ का कारतूस जरूर छोड़ा, पर वह फायरबैक कर गया. केंद्र सरकार के खुद के ही हाथ झुलस गए.

विपक्ष को ताने मारे

सत्ता पक्ष के प्रवक्ता से ले कर प्रधानमंत्री तक अपने काम गिनाने से ज्यादा विपक्ष के नेताओं पर निशाना साधते नजर आए और यही बात जनता जनार्दन को रास नहीं आई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ ‘शहजादा’ शब्द का कई बार इस्तेमाल किया और इसे हिंदूमुसलिम रंग देने की कोशिश की. उन्होंने यह शब्द इतनी बार बोला कि जनता ने राहुल गांधी को इस चुनाव का वाकई शहजादा बना दिया और इंडी गठबंधन को सरकार बनाने की दहलीज पर खड़ा कर दिया.

भारतीय जनता पार्टी ने पूरी कोशिश की कि वह विपक्ष को देश का दुश्मन और पाकिस्तान व चीन का एजेंट बता दे या कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुसलिम लीग की छाप होने की बात कहे, पर यह भी जनता को रास नहीं आया.

इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर सत्ता में आने के बाद लोगों की संपत्ति छीन कर अल्पसंख्यकों देने की साजिश रचने का आरोप लगाया, लेकिन यह बात भी लोगों को हजम नहीं हुई.

मजदूरकिसान सब नाराज

नरेंद्र मोदी की सरकार ने हर किसी को नाराज किया, नाउम्मीद किया. कोरोना में मजदूर दरदर भटके, मर गए, खप गए, पर उन्हें राहत पहुंचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. गरीब जमात की कहीं सुनवाई नहीं हुई.

एक मेहनती मजदूर को तो रहने के लिए घर और पीने के लिए पानी की सहूलियत मिल जाए, रोटी तो वह खुद ही कमा लेगा. पर तरक्की के नाम पर सरकार ने उसे घर से बड़ी सड़क तक पक्का खड़ंजा नहीं दिया, बल्कि ऐसे हाईवे बना दिए जो उस के किसी काम के नहीं. किसी बड़ी कार वाले के लिए ऐसे महंगे हाईवे पर जाने से उस का वक्त तो थोड़ा कम हो जाएगा, पर आम जनता तो अभी भी उन भीड़ भरी सड़कों पर चलती है, जहां उस के समय की कोई बचत नहीं होती है.

याद रहे कि केंद्र सरकार जब 3 कृषि कानून लाई थी तब किसान आंदोलन करने पर उतर आए थे और मजबूरी में मोदी सरकार को वे तीनों कानून वापस लेने पड़े थे. हालांकि, तब केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन करने वाले लोगों को देश का दुश्मन साबित करने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई थी. इस के बाद से उत्तर भारत के किसान सत्ता पक्ष से नाराज हो गया था.

होता भी क्यों नहीं, जब फसल ज्यादा उगा ली जाती है तो सरकार उसे कम दाम पर खरीदती है और अब भी उपज कम होती है तो विदेश से खरीदी कर ली जाती है. दोनों तरफ से किसान की मार होती है. लेकिन यह वर्ग आज भी बहुत बड़ा वोटर है और किसी की चूलें हिलाने की ताकत रखता है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान तबके ने इस बार के चुनाव में भारतीय पार्टी को आईना दिखाया है.

कुलमिला कर इस लोकसभा चुनाव ने साबित कर दिया है कि लोकतंत्र में जनता से ऊपर कोई नहीं. कांग्रेस अभी खत्म नहीं हुई है. देश को तरक्की चाहिए, मंदिरमसजिद का पचड़ा नहीं. संविधान सब से ऊपर है, फिर चाहे कोई कितना ही 56 इंच का सीना फुला कर खड़ा हो जाए.

भारतीय जनता पार्टी को याद रखना चाहिए कि उस के घटक दलों जैसे जनता दल (यूनाइटेड), तेलुगु देशम पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोरचा (सैक्युलर) वगैरह ने कभी भी मंदिरमसजिद की राजनीति को हवा नहीं दी है. महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की शिव सेना जरूर अपने नाम से हिंदुत्ववादी पार्टी लगती है, पर उस ने भी कभी खुल कर भारतीय जनता पार्टी की धर्म से जुड़ी कट्टरता का समर्थन नहीं किया.

बहुत से नेता भाजपा के साथ जरूर हैं, पर उन की नीतियां और सोच भी तुष्टिकरण की नहीं हैं. मध्य प्रदेश में जो चुनावी नतीजे आए हैं, उन में शिवराज सिंह चौहान की छवि का बहुत बड़ा हाथ है. वे कई साल यहां के मुख्यमंत्री रहे हैं और किरार समुदाय से हैं. मतलब वे कर्मकांडी परिवार से नहीं हैं. इसी तरह वर्तमान मुख्यमंत्री डाक्टर मोहन यादव भी ओबीसी तबके से आते हैं.

ऐसे बहुत से नेताओं ने अपने काम के दम पर यह चुनाव जीता है खासकर एसीएसटी और ओबीसी तबके के नेताओं ने अपना वजूद अपने दम पर बनाया है और अब जब भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का कद घटा है, तो वे भी सोच रहे होंगे कि उन्हें आगे की अपनी राजनीति को क्या दिशा देनी है.

बौलीवुड हसीनाओं में होती है खूब Cat Fight, ऋचा चड्ढा हैं इन सबसे अलग

Bollywood Cat Fight: एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा ने भले ही अपनी फिल्मों के दम पर लोगों के बीच पहचान न बनाई हो लेकिन उनका बेबाकी से बोलना और एक्सेसे का स्पोर्ट करना लोगों खूब पसंद आता है जिसकी वजह वे अक्सर सुर्खियों में रहता है. हाल ही में ऋचा चड्ढा स्टारर फिल्म हिरामंडी 1 मई को लोगों के बीच रिलीज हुई है जिस फिल्म को डायरेक्ट संजय लीला भंसाली ने किया है इस फिल्म में उनकी भांजी शर्मिन सेगल ने भी एक्ट किया है. जो कि हाल में सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रही है, लेकिन इसी के स्पोर्ट में ऋचा चड्ढा ने ट्रोलर्स को मुंह तोड़ जवाब दिया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarassalil (@sarassalil_magazine)

दरअसल ऋचा चड्ढा  के एक फैन ने एक्ट्रेस को सलाह देते हुए कहा था, “अब उस शो पर दोबारा मत जाना. यह शो खास तौर पर इमोशनलेस नेपो किड के लिए बना है.” फैन द्वारा शर्मिन सहगल को ट्रोल करने पर एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा भड़क गईं और उन्होंने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरीज पर ट्रोल्स को फटकार लगाते हुए लिखा, ‘पिछले एक महीने से मैं जब भी चीजें देख पाई हूं और जितना भी ट्रैक कर पाई हूं, तबसे मैं एक को-स्टार को लेकर किए गए नेगेटिव कमेंट्स को ही डिलीट कर रही हूं. दोस्तो, क्रिएटिव क्रिटिसिज्म करें, पर इतनी गहरी नफरत? किसी की परफॉर्मेंस को अस्वीकार करना एक बात है, ठीक है. मत करो पसंद, आपका हक है. पर ऐसे चटकारे ले के ट्रोल तो मत करो? प्लीज?’

ऋचा चड्ढा ने आगे लिखा है, ‘मैं जानती हूं कि किसी ट्रेंड पर कूद पड़ना लुभावना है, लेकिन किसी दूसरे इंसान को क्लिक बेट बनाना सही है? मुझे लगता है कि हम सब उससे बेहतर कर सकते हैं, उससे बेहतर बन सकते हैं. थोड़ा दयालु बनें. यह किसी के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है. अभी-अभी एक बड़ा चुनाव हुआ है, गर्मी की लहर चल रही है, दुनिया में बहुत कुछ चल रहा है! प्लीज आगे बढ़ें.

Bollywood

हालांकि इससे पहले ऋचा चड्ढा ने एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय का भी स्पोर्ट किया था, ऐश्वर्या पैरिस फेशन वीक के लिए गई थी. जहां ऐश ने जो लुक कैरी किया था, उसे लेकर वो ट्रोल हो गई थी. लोगों ने कद्दू जैसी शक्ल बोल दिया था. इसके बाद ऋचा चड्ढा उनके स्पोर्ट में बोली थी कि आप ऐश्वर्या से जलते है. वे हिन्दुस्तान की सबसे खूबसूरत महिला है. हालांकि एक्ट्रेसेस में ऐसा कम देखने को मिलता है क्योंकि एक्ट्रेसेस में कैट वाइट ज्यादा रहती है लेकिन ऋचा चड्ढा की ये खूबी है कि अन्य एक्ट्रेसेस को स्पोर्ट करती है.

ऋचा चड्ढा की पर्सन लाइफ के बारे में बता करें तो एक्टर अली फजल से उन्होंने साल 2022 में शादी की थी. अब इन दिनों वे प्रेग्नेंट है, वे अपने बेबी बंप को लेकर भी सुर्खियों में बनीं हुई है एक्ट्रेस अपनी प्रेग्नेंसी पीरियड को खूब एंजौय कर रही है. वही एक्ट्रेस रेखा ने उनके बेबी बंप को Kiss किया है जिसकी फोटो सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल हो रही हैं. एक्ट्रेस के वर्क फ्रंट की बात करें तो हाल में हीरमंड़ी में नजर आई थी, अब हो सकता है कि हीरमंड़ी 2 में ऋचा चड्ढा लज्जो 2.0 का किरदार निभाएंगी. जिसकी जानकारी उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर वीडियो शेयर करके दी है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें