कदमों पर मौत

लेखक-  आर.के. राजू  

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद का एक इलाका है लाइनपार. समय के साथ अब यह इलाका काफी विकसित हो चुका है, जिस के चलते अब यहां की आबादी काफी बढ़ गई है. बात 9 मई, 2019 की है. रात के करीब साढ़े 11 बजे थे. दुर्गानगर, लाइनपार के अधिकांश लोग उस समय अपनेअपने घरों में सो चुके थे. तभी अचानक हुए एक फायर की आवाज ने कुछ लोगों की नींद उड़ा दी.

गोली की आवाज सुनते ही कुछ लोग अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जानने की कोशिश करने लगे कि आवाज कहां से आई. पता चला कि गोली चलने की आवाज विष्णु शर्मा के घर से आई थी. उस के घर का दरवाजा भी खुला हुआ था.

लोगों ने जिज्ञासावश उस के घर में झांक कर देखा तो एक महिला फर्श पर गिरी पड़ी थी और फर्श पर काफी खून भी फैला हुआ था. यह देख कर किसी की भी उस के घर के अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई. मामले की गंभीरता को देखते हुए किसी ने फोन द्वारा सूचना थाना मझोला को दे दी. थानाप्रभारी विकास सक्सेना रात की गश्त पर निकलने वाले थे. उन्हें यह सूचना मिली तो पुलिस टीम के साथ वह दुर्गानगर के लिए रवाना हो गए.

दुर्गानगर में लोगों से पूछताछ करते हुए पुलिस विष्णु शर्मा के घर पहुंच गई. उस समय वहां खड़े पड़ोस के लोग कानाफूसी कर रहे थे. विष्णु शर्मा के घर का दरवाजा खुला हुआ था. थानाप्रभारी टीम के साथ उस के घर में घुस गए. उन के पीछेपीछे मोहल्ले के लोग भी आ गए. तभी उन्होंने देखा कि फर्श पर एक महिला लहूलुहान पड़ी हुई थी. वहीं पर एक शख्स खड़ा था. उस ने अपना नाम विष्णु शर्मा बताया. वहीं बिछी चारपाई पर एक देशी तमंचा भी रखा हुआ था.

पुलिस ने सब से पहले वह तमंचा अपने कब्जे में लिया. इस के बाद थानाप्रभारी और मोहल्ले के लोगों ने घायलावस्था में पड़ी महिला की नब्ज टटोली तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. विष्णु शर्मा ने बताया कि मृतका उस की पत्नी आशु है. विष्णु ने बताया कि इस ने आत्महत्या कर ली है. तमंचा यह साथ लाई थी.

विष्णु की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले, ‘‘क्या यह तुम्हारे साथ नहीं रहती थी?’’

‘‘नहीं सर, यह पिछले काफी दिनों से दोनों बच्चों को ले कर अपने प्रेमी सनी के साथ कांशीराम नगर में रह रही थी.’’ विष्णु ने बताया. थानाप्रभारी ने इस बिंदु पर फिलहाल विस्तार से जांच करना जरूरी नहीं समझा. उन्होंने हत्या के इस मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर रात में ही सीओ (सिविल लाइंस) राजेश कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने अगले दिन जरूरी काररवाई कर के आशु की लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा दी. चूंकि घटना के संबंध में पुलिस को विष्णु शर्मा से पूछताछ करनी थी, इसलिए वह उसे थाना मझोला ले गई. सीओ राजेश कुमार भी मझोला थाने पहुंच गए.

सीओ राजेश कुमार की मौजूदगी में थानाप्रभारी विकास सक्सेना ने विष्णु शर्मा से पूछताछ की. उस ने बताया, ‘‘करीब 8-9 महीने पहले आशु अपने पुराने प्रेमी सनी नागपाल के साथ भाग गई थी. अपनी दोनों बेटियों को भी वह साथ ले गई थी. पिछले कई दिनों से आशु मेरे ऊपर काफी दबाव बना रही थी कि मैं दोनों बेटियों को अपने पास रख लूं. लेकिन मैं ने उन्हें पास रखने से मना कर दिया था.

‘‘कल रात साढ़े 11 बजे उस ने आ कर दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. जैसे ही मैं ने किवाड़ खोले, आशु अंदर आ गई. बाहर उस का प्रेमी सनी नागपाल और दोनों बेटियां खड़ी थीं. घर में घुसते ही वह मुझ से इस बात पर झगड़ने लगी कि मैं बेटियों को अपने पास रख लूं. जिद में मैं ने भी मना कर दिया.

‘‘तभी उस ने अपने साथ लाए तमंचे से खुद को गोली मार ली. मैं ने उसे रोकना भी चाहा लेकिन तब तक वह गोली चला चुकी थी. आशु के नीचे गिरते ही सनी नागपाल दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर भाग गया.’’

पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी को विष्णु शर्मा के मुंह से शराब की दुर्गंध आती महसूस हुई तो उन्होंने पूछा, ‘‘तुम ने शराब पी रखी है?’’

‘‘हां सर, मैं ने कल रात पी थी.’’ विष्णु शर्मा ने कहा. दोनों पुलिस अधिकारियों को विष्णु की बातों में झोल नजर आ रहा था. इस की वजह यह थी कि जिस तमंचे से आशु को गोली लगी थी, वह उस की लाश से दूर चारपाई पर रखा था. ऐसा संभव नहीं था कि खुद को गोली मारने के बाद वह चारपाई पर तमंचा रखने जाए. अगर आशु ने खुद को गोली मारी होती तो तमंचा उस की लाश के नजदीक ही पड़ा होता.

सीओ राजेश कुमार के निर्देश पर थानाप्रभारी ने विष्णु शर्मा से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने कहा कि आशु की हत्या उस के हाथों ही हुई है. पत्नी की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली—

आशु शर्मा का प्रेमी सनी नागपाल मूलरूप से मुरादाबाद के लाजपतनगर का रहने वाला था. उस के पिता कोयला कारोबारी हैं. उन्होंने कोयले का डिपो गोविंदनगर सरस्वती विहार में बना रखा था. डिपो के पास में ही आशु का घर था. सनी नागपाल कारोबार के सिलसिले में अकसर कोयले की डिपो पर आता रहता था. वहीं पर उस की मुलाकात आशु से हुई थी. यह करीब 10 साल पुरानी बात है. यह मुलाकात पहले दोस्ती में बदली और फिर प्यार में. सनी नागपाल पैसे वाला था, इसलिए वह आशु पर दिल खोल कर पैसे खर्च करता था.

इसी दौरान आशु के घर वालों ने उस का रिश्ता शहर के ही दुर्गानगर निवासी विष्णु शर्मा से कर दिया. विष्णु उस समय बीए में पढ़ रहा था. सन 2009 में विष्णु शर्मा और आशु का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह हो गया. विष्णु के पिता अशोक शर्मा थाना हयातनगर, संभल के कस्बा एंचोली के रहने वाले थे. वह खेतीकिसानी करते थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. विष्णु पत्नी के साथ मुरादाबाद में रहता था. आटा, दाल, चावल आदि सामान उस के गांव से आ जाता था. विष्णु व आशु दोनों हंसीखुशी से रह रहे थे. इसी दौरान आशु ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. आशु अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. लिहाजा विष्णु ने अपने खर्च से आशु को अंगरेजी विषय से एमए कराया. इसी दौरान आशु 2 बेटियों की मां बन गई. ग्रैजुएशन के बाद भी विष्णु बेरोजगार था. उस की सास कृष्णा शर्मा समाजवादी पार्टी की नेता थीं, उन्होंने पार्षद का चुनाव भी लड़ा था.

सास ने दिलाई नौकरी

अपनी पहुंच के चलते उन्होंने दामाद विष्णु की भारतीय खाद्य निगम में संविदा के आधार पर मुंशी के पद पर नौकरी लगवा दी. एफसीआई का गोदाम मुरादाबाद के लाइनपार में ही था, विष्णु के घर के एकदम पास था. वह मन लगा कर नौकरी करने लगा.

आशु शर्मा शुरू से ही जिद्दी और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के शौक महंगे थे. मौल में शौपिंग करना, स्टाइलिश कपड़े पहनना उस का शगल था. शुरुआती सालों में विष्णु पत्नी की हर जरूरत पूरी करता रहा. लेकिन बाद में वह पत्नी की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं और खर्च को पूरा करने में असफल हो गया तो उस ने पत्नी को मौल में शौपिंग करानी बंद कर दी.

घटना से करीब एक साल पहले आशु अचानक बिना बताए दोनों बेटियों को साथ ले कर घर से गायब हो गई. विष्णु व आशु के मायके वालों ने उसे बहुत तलाश किया, पर वह नहीं मिली. इस पर विष्णु ने पत्नी की गुमशुदगी थाना मझोला में दर्ज करवा दी.बाद में पता चला कि वह अपने पुराने प्रेमी सनी नागपाल के साथ कांशीराम नगर में किराए का कमरा ले कर लिवइन रिलेशन में रह रही है. जब यह बात विष्णु और आशु के मायके वालों को पता चली तो उन्होंने आशु को समझाया और घर चलने को कहा. लेकिन आशु अपने प्रेमी सनी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई. आशु की शादी विष्णु से होने के बाद भी उस का प्रेमी सनी नागपाल उसे भूला नहीं था. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी आशु बनठन कर रहती थी. लगता ही नहीं था कि वह 2 बच्चों की मां है.

आशु जानती थी कि उस का प्रेमी सनी पैसे वाला है. उस की कभीकभी सनी से फोन पर बात होती रहती थी. सनी नागपाल उसे पहले की तरह ही चाहता था. साथसाथ गुजारे पुराने पलों को दोनों भूले नहीं थे. फलस्वरूप दोनों में फिर से नजदीकियां बढ़ने लगी.

आशु को लग रहा था कि विष्णु के साथ रह कर उस के सपने पूरे नहीं हो सकेंगे, लिहाजा वह पति को छोड़ कर प्रेमी सनी नागपाल के पास पहुंच गई.

इस के बाद दोनों तरफ के रिश्तेदारों ने कई बार पंचायत की लेकिन आशु की जिद की वजह से यह कोशिश भी नाकाम साबित हुई. करीब 10 महीने से आशु अपने प्रेमी सनी नागपाल के साथ रह रही थी.

उधर सनी नागपाल भी शादीशुदा था. उस की पत्नी का नाम सिमरन था और वह 2 बच्चों की मां थी. उस की बड़ी बेटी 9 साल की और बेटा 5 साल का था.

जब सनी नागपाल की पत्नी सिमरन को पता चला कि उस का पति अपनी प्रेमिका आशु के साथ कांशीराम नगर में रह रहा है, तो उस ने मार्च 2019 में महिला थाने में पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

रिपोर्ट दर्ज हो जाने के बाद महिला थाने की पुलिस ने सनी नागपाल को गिरफ्तार कर लिया. उस के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दे कर कहा कि जब ये दोनों बालिग हैं तो दोनों को साथ रहने की आजादी है.

आशु जब अपनी मरजी से विष्णु के साथ रह रही है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. इस के बाद पुलिस ने सनी नागपाल को 41ए का नोटिस दे कर थाने से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

आशु को पति से प्रेमी लगा प्यारा

आशु शर्मा खुले हाथ खर्च करना चाहती थी, जो उस के पति विष्णु के बूते की बात नहीं थी, इसलिए वह पति को छोड़ कर प्रेमी सनी के साथ रह रही थी.

उधर सनी नागपाल ने आशु से कहा, ‘‘आशु, देखो मैं ने तुम्हारी खातिर अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को छोड़ दिया है. इसलिए अब तुम भी अपनी दोनों बेटियों को विष्णु के पास छोड़ आओ. उन की परवरिश विष्णु करेगा. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे.’’

घटना से एक दिन पहले आशु ने अपनी बड़ी बहन नीरज शर्मा से फोन पर बात की. तब उस ने कहा कि दीदी मैं अब बहुत परेशान हो गई हूं. अपनी दोनों बेटियों को विष्णु को सौंप कर सेटल होना चाहती हूं.

उधर विष्णु को जब अपनी पत्नी की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने शराब पीनी शुरू कर दी. आशु भी आए दिन विष्णु को फोन करती रहती थी कि बच्चे याद कर रहे हैं. वे अब तुम्हारे पास ही रहेंगे. क्योंकि बच्चों के असली पिता तुम ही हो.

आशु वाट्सऐप से बच्चों की तसवीरें विष्णु के फोन पर भेजती रहती थी. कई बार उस ने विष्णु को नानवेज खाते हुए भी फोटो भेजे थे. विष्णु पूरी तरह से शाकाहारी था, इसलिए उसे आशु पर बहुत गुस्सा आया कि उस ने बच्चों को नानवेज खाना सिखा दिया. उस ने पत्नी को बहुत समझाया कि वह बच्चों को नानवेज न खिलाए और उन्हें ले कर आ जाए, लेकिन वह नहीं मानी.

घटना वाले दिन 9 मई, 2019 की रात में आशु व सनी नागपाल ने दोनों बेटियों के साथ एक होटल में खाना खाया. वहीं पर दोनों ने प्लान बनाया कि दोनों बेटियों को विष्णु के हवाले कर आएंगे. आशु बोली, ‘‘रात घिरने दो. मैं जब विष्णु के पास जाऊंगी तो वह मेरी बात नहीं टालेगा. वैसे भी वह रात में ड्रिंक किए होगा. मेरी बात मान लेगा.’’

आशु की दोनों बेटियों ने मना किया कि हमें पापा के पास क्यों ले जा रहे हो. हम वहां पर क्या करेंगे. घर पर वह अकेले रहते हैं, खुद जब पापा ड्यूटी पर चले जाया करेंगे तो हमें कौन देखेगा. हम वहां बोर हो जाएंगे. पर आशु ने उन की बातों को अनसुना कर दिया.

योजना के अनुसार सनी नागपाल व आशु अपनी दोनों बेटियों के साथ 9 मई की रात करीब साढ़े 11 बजे विष्णु के दुर्गानगर स्थित घर पहुंचे. उस समय विष्णु गहरी नींद में सोया हुआ था. वहां पहुंच कर आशु ने दरवाजा पीटना शुरू किया. इस से विष्णु की नींद टूट गई. वह उठा और अपनी सुरक्षा के लिए अंटी में .315 बोर का तमंचा लोड करके रख लिया. उस समय वह शराब के नशे में था.

दरवाजे पर पहुंच कर विष्णु ने आवाज लगाई, ‘‘कौन है?’’

तो बाहर से आवाज आई, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी आशु हूं. कुंडी खोलो, कुछ बात करनी है.’’

‘‘बात करनी है तो कल दिन में आना.’’ विष्णु ने कहा.

तब आशु ने जोर दे कर कहा, ‘‘देखो कोई जरूरी बात करनी है. दरवाजा तो खोलो.’’

विष्णु ने दरवाजा खोला तो देखा, बाहर उस का सनी, जिस ने उस का घर उजाड़ दिया था, दोनों बेटियों को लिए खड़ा था.

विष्णु बोला, ‘‘बताओ, क्या काम है?’’

‘‘देखो, मुझे सेटल होना है. बच्चियां तुम्हारी हैं इसलिए इन्हें तुम्हारे हवाले करने आई हूं. आज से तुम इन दोनों की परवरिश करना.’’ आशु बोली.

विष्णु ने साफ मना कर दिया कि जो लोग मांस खाते हैं, उन से उस का कोई संबंध नहीं है, ‘‘तुम ही बेटियों को मांस खिलाती हो.’’

इस बात को ले कर आशु व विष्णु में बहस होने लगी. बात मारपीट तक पहुंच गई. दोनों में मारपीट व गुत्थमगुत्था होने लगी. तभी विष्णु ने अंटी में लगा तमंचा निकाल लिया. तमंचा देख कर आशु पहले तो घबरा गई फिर उस ने तमंचा छीनने की कोशिश की. इसी दौरान विष्णु ने फायर कर दिया. गोली लगते ही आशु जमीन पर गिर पड़ी. कुछ देर छटपटाने के बाद उस की मृत्यु हो गई.

फायर की आवाज सुन कर मकान के बाहर खड़ा सनी उस की दोनों बेटियों को ले कर भाग खड़ा हुआ. विष्णु ने तमंचा वहीं चारपाई पर रख दिया.

विष्णु शर्मा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर मुरादाबाद की जेल भेज दिया. उधर आशु का प्रेमी उस की दोनों बेटियों को ले कर रात में ही आशु की बहन नीरज शर्मा के घर पीतल बस्ती पहुंचा.

वह बोला, ‘‘आशु का विष्णु से झगड़ा हो गया है. तुम इन लड़कियों को अपने पास रख लो.’’

 

नीरज ने लड़कियों को रखने से मना कर दिया. आशु का फोन सनी नागपाल के पास था. पुलिस ने फोन किया तो फोन सनी नागपाल ने उठाया. पुलिस ने पूछा कि लड़कियां कहां हैं. उस ने बताया कि लड़कियां मेरे पास हैं. पर उस ने पुलिस को जगह नहीं बताई कि वह कहां है.

थानाप्रभारी विकास सक्सेना के नेतृत्व में एक टीम सनी नागपाल को उस के फोन की लोकेशन के आधार पर तलाशने लगी लेकिन उस के फोन की लोकेशन बारबार बदलती रही. इस के अलावा टीम उस के संभावित ठिकानों पर दबिश देने लगी.

सनी गिरफ्तारी से बचने के लिए साईं अस्पताल के सामने कांशीराम गेट के पास पहुंच गया. वहां से वह दिल्ली भागने की फिराक में था.

वह दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. तभी मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीम ने उसे हिरासत में ले लिया. यह 19 मई, 2019 की बात है. पुलिस ने सनी नागपाल से पूछताछ कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

अमीरों की सरकार

अमीरों की सरकार  यह देश धीरेधीरे अमीर और गरीब की खाई में बंटता जा रहा है. 1947 के बाद बहुत से सरकारी काम गरीबों को सहूलियतें देने के लिए शुरू किए गए थे. इन में से कुछ में दिखावा था, कुछ में घटिया काम था पर फिर भी जो गरीब इन का फायदा उठा पाते थे, उन्हें कुछ राहत थी. अब सरकार खुल्लमखुल्ला अमीरों को जन्म से ऊंची जाति के होने की वजह से हर तरह की सहूलियत देने वाली नीतियां बना रही है और इस का नतीजा यह होगा कि निचली जाति में पैदा होने वाले गरीब अब और ज्यादा बेहाल होंगे.

इतना जरूर है कि अब सरकार के पास हाथ फैलाने वाले गरीबों की गिनती बढ़ती जा रही है. पहले वे अपने खोल में बंद रहते थे. अब बीसियों चुनाव देखने के बाद उन में हिम्मत आ गई है और अगर उन का हक बनता है तो वे मांगने लगे हैं. सरकार इतने गरीबों के लिए कुछ कर नहीं सकती इसलिए अब उस ने ऐसी नीतियां बनानी शुरू कर दी हैं कि अमीर अपने पैसे के बल पर अच्छी जिंदगी जी सकें और गरीब अपने पिछले जन्मों के पापों का फल भोगते हुए बस बाबाओं के चरणों में लोट कर शुद्ध हो सकें. बिहार के अस्पतालों में सैकड़ों बच्चे पिछले माह मरे थे, वे गरीबों के थे. इंसेफलाइटिस अगर अमीरों के बच्चों को हुआ भी होगा तो उन्हें प्राइवेट नर्सिंगहोमों में जगह मिल गई थी जहां दवाएं एयरकंडीशनिंग, सफाई सब था. हजारों गरीबों को कौन मुफ्त में अस्पताल दे.

रेल मंत्रालय अब पटरियों पर प्राइवेट ट्रेनें चलाने की इजाजत देगा. इन पर बेहद महंगी पर बेहद सुविधाजनक, साफसुथरी, टाइम से ट्रेनें चलेंगी. सरकार ने कहना शुरू कर दिया है कि गरीबों के लिए सस्ते टिकटों का जमाना अब लद गया है. पढ़ाई में तो काफी सालों से यह नीति चल रही है. निजी स्कूल गांवगांव में खुल गए हैं जहां महंगी पढ़ाई दी जा रही है. सरकारी स्कूलों में दिखावा है और मोटे वेतन वाले टीचर बच्चों को पेपर बता कर 10वीं व 12वीं में पास करा कर रिजल्ट तो ठीक कर लेते हैं, पर वैसे कुछ करतेकराते नहीं हैं. इसीलिए 10वीं व 12वीं पास बेरोजगारों की बड़ी भीड़ पैदा हो गई है. सड़कों पर अब ऊबर, ओला चलने लगी हैं और सरकारी बसें न के बराबर रह गई हैं क्योंकि उतना सस्ता किराया ऊंचे लोगों को खलता है.

वैसे भी उन में हर जाति के लोग साथसाथ बैठने को मजबूर होते हैं. अरविंद केजरीवाल की औरतों को मुफ्त मैट्रो में सफर करने वाली स्कीम फेल कर दी जाएगी यह पक्का है क्योंकि फिर तो गरीबअमीर साथ बैठ सकेंगी. गरीब अपनी खाल में रहें. यह संदेश वे समझ लें. अब जन्म से तय होगा कि आप क्या पाने के हकदार हैं.

अपना कातिल ढूंढने वाली महिला

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय देश भर में प्रसिद्ध है. थाना कृष्णानगर क्षेत्र में आने वाले इस विश्वविद्यालय की पार्किंग बाउंड्री वाल के बाहर है. 23 मार्च, 2019 को जब मौर्निंग वाक पर निकले कुछ लोग उधर से गुजरे तो उन की निगाह फुटपाथ पर पड़े एक बड़े से बैग पर चली गई.

सामान्य रूप से लोगों ने समझा कि या तो कोई अपना बैग वहां रख कर भूल गया है या मौर्निंग वाक पर आए किसी व्यक्ति ने उसे वहां रख दिया है, जो वापस लौटते वक्त ले लेगा. हालांकि बैग का बड़ा साइज इन संभावनाओं को नकार रहा था.

लेकिन लोगों की यह सोच तब बदल गई, जब लौटते समय भी उन्होंने बैग को वहीं पड़े देखा. बैग में विस्फोटक रखे होने की आशंका के चलते किसी ने भी उसे हाथ लगाने की हिम्मत नहीं की. इस से बेहतर यही था कि पुलिस को बुला लिया जाए. ऐसा ही किया भी गया.

सूचना मिलते ही थाना कृष्णानगर के थानाप्रभारी दिनेश मिश्रा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने बैग खोला तो उस के होश उड़ गए. बैग में 30-40 साल की किसी महिला का सिर, दोनों पैर और दोनों हाथ थे. बैग में 521 प्रीमियम राइस की 25 किलो की बोरी और बेबी क्लब का बैग निकले. चावल की बोरी में महिला के पैर और सिर था, जबकि बेबी क्लब के बैग में दोनों हाथ रखे हुए थे. मृतका ने सोने की अंगूठी पहन रखी थी और एक हाथ पर टैटू गुदा हुआ था.

हालफिलहाल पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस महिला के धड़ को कहां और कैसे खोजा जाए. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमों ने धड़ को खोजने की कोशिश की. इस के लिए डौग स्क्वायड की भी मदद ली गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

एसएसपी कलानिधि नैथानी और सीओ लालप्रताप सिंह भी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने भी लाश के टुकड़ों और उस जगह को अपने नजरिए से देखा समझा. प्रथम संभावना में उस महिला को घरेलू हिंसा की शिकार माना गया.

अंतत: यह तय हुआ कि बरामद अंगों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाए और जितनी भी संभावनाएं हों, सभी की सिलसिलेवार जांच की जाए. पुलिस ने केस दर्ज कर के आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली. साथ ही जो भी तरीके हो सकते थे, पुलिस ने उन तरीकों से भी महिला की पहचान कराने की कोशिश की. साथ ही धड़ की खोजबीन भी जारी रखी.

जिस जगह पर बैग रखा मिला था, उस के आसपास की छानबीन में पुलिस को लाल स्याही से हाथ से लिखे एक पत्र के दरजनों टुकड़े मिले, जिन्हें समेट कर सावधानी से रख लिया गया. एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि अलसुबह 4 बजे जब वह मौर्निंग वाक पर जा रहा था तो उस ने एक व्यक्ति को पीठ पर बोरा लाद कर ले जाते देखा था. इतना ही नहीं, उस ने फुटपाथ पर बोरा भी उस के सामने ही रखा था.

पुलिस द्वारा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गईं तो उन में से एक फुटेज में एक व्यक्ति को पीठ पर बैग लाद कर ले जाते हुए देखा गया. लेकिन बैग ले जा रहे व्यक्ति का चेहरा साफ नहीं था, इसलिए उसे पहचानना संभव नहीं था.

महिला की पहचान के लिए कोई रास्ता न निकलता देख पुलिस ने महिला के हाथ में पहनी अंगूठी, हाथ पर बने टैटू, लाश वाला बैग, उस के अंदर मिली चावल की बोरी और बेबी क्लब का बैग वगैरह चीजों का कोलाज बना कर जारी किया. साथ ही घोषणा की कि उस महिला की पहचान करने या उस के बारे में सूचना देने वाले को 25 हजार रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा.

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25 मार्च रविवार की सुबह बीबीखेड़ा निवासी महिला कीर्ति सिंह जब दूध ले कर लौट रही थी तो उस ने न्यू कांशीराम कालोनी के पास स्थित हैमिल्टन स्कूल के पीछे से गुजरते समय तेज बदबू महसूस की. उस ने देखा तो पौलीथिन में कुछ लिपटा नजर आया. कीर्ति ने घर जा कर यह बात अपने पति अमरेंद्र सिंह को बताई. अमरेंद्र ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना पारा को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर देखा तो पौलीथिन में लिपटा उसी महिला का धड़ मिला, जिस का सिर और हाथपांव डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के बाहर पार्किंग में पड़े थैले में रखे मिले थे. हत्यारे ने महिला के धड़ को लाल काले रंग की दरी में लपेट कर प्लास्टिक की बोरी में डाला था ताकि खून न बहे.

एसपी (पूर्व) सुरेशचंद रावत सहित क्राइम ब्रांच, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड भी मौके पर पहुंचे. थाना पारा और थाना कृष्णानगर की पुलिस तो वहां थी ही. कृष्णानगर थानाक्षेत्र जहां महिला का सिर और पैर मिले थे, वहां से थाना पारा का वह इलाका जहां धड़ मिला था, के बीच 6 किलोमीटर की दूरी थी.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने कृष्णानगर या पारा के आसपास किसी घर में महिला की हत्या की होगी और लाश के टुकड़ों को 2 जगहों पर इसलिए फेंका होगा कि पुलिस असमंजस में पड़ जाए कि हत्या कृष्णानगर क्षेत्र में हुई या पारा क्षेत्र में. यह सब उस ने पुलिस से बचने के लिए किया होगा. पुलिस का यह भी अनुमान था कि हत्यारा कोई एक ही व्यक्ति रहा होगा.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. धड़ और अन्य अंग एक ही महिला के हैं, इस का पता लगाने के लिए डीएनए कराने को लिखा गया. घटना का खुलासा जल्दी हो, इस के लिए एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एसपी (पूर्वी) सुरेशचंद्र रावत के नेतृत्व में सीओ क्राइम, सीओ कृष्णानगर और डीसीआरबी प्रभारी को खुलासे की जिम्मेदारी सौंपते हुए 3 पुलिस टीमें बनाईं.

इन टीमों ने उसी दिन यानी 24 मार्च की शाम तक 20 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस के साथ ही पुलिस अधिकारियों ने लखनऊ जोन के सभी जिलों के थानों में दर्ज महिलाओं की गुमशुदगी व अपहरण के मुकदमों की जानकारी मांगी. गहन छानबीन के मद्देनजर बीट के 100 सिपाहियों को घूमघूम कर महिला की पहचान कराने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में भेजा गया. महिला से संबंधित जानकारी पुलिस को देने के लिए जगहजगह पोस्टर भी लगवाए गए.

पारा क्षेत्र में रहने वाले बाबूलाल कनौजिया ने 25 मार्च को थाना पारा में गुमशुदगी दर्ज कराई कि उस का भाई सुनील कनौजिया 2 हफ्ते से लापता है. बाबूलाल ने यह भी बताया कि सुनील पिछले 4-5 महीने से अपनी पत्नी भारती पांडेय के साथ हंसखेड़ा, न्यू कांशीराम कालोनी में किराए के मकान में रह रहा था.

सुनील की कोई जानकारी न मिलने पर उस के भाई बाबूलाल ने थाना चौकी के चक्कर लगाने शुरू कर दिए थे. इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर ने सुनील के फोटो लगा पोस्टर छपवा कर विभिन्न जगहों पर लगवाने को कहा.

लेकिन बाबूलाल के पास सुनील का कोई फोटो नहीं था. अंतत: सुनील के गुम होने के 11वें दिन यानी 4 अप्रैल को फोटो की तलाश में जांच अधिकारी बाबूलाल के साथ सुनील के कमरे पर पहुंचे. ताला तोड़ने के अलावा उन के पास कोई विकल्प नहीं था.

ताला तोड़ कर कमरे के अंदर छानबीन की गई तो यह रहस्य सामने आया कि सुनील की पत्नी भारती पांडेय भी लापता थी. पुलिस ने कमरे से मिले सुनील और भारती पांडेय के सामूहिक फोटो और कृष्णानगर क्षेत्र में मिली लाश के अंगों के फोटो आसपड़ोस के लोगों को दिखाए तो कई लोगों ने सोने की अंगूठी, टैटू और चेहरा पहचान लिया. ये चीजें भारती पांडेय की ही थीं.

पुलिस ने कमरे को खंगाला तो टंकी के पाइप में रखे युवक के गीले कपड़ों पर खून के धब्बे नजर आए. इस के साथ ही यह बात भी साफ हो गई कि जिस महिला का धड़, सिर और अन्य अंग मिले थे, उस की हत्या इसी कमरे में की गई थी यानी वह भारती पांडेय ही थी.

छानबीन में भारती के बारे में कई जानकारियां मिलीं. पुलिस ने मकान मालिक दिलीप कुमार को बुला कर इस मामले में पूछताछ की. उस ने बताया कि भारती पांडेय नाम की महिला ने 5 महीने पहले 18 सौ रुपए महीने पर उन के मकान का कमरा किराए पर लिया था. उस ने आईडी की प्रति देते हुए बताया था कि वह नाका क्षेत्र की एक कंपनी में काम करती है. आईडी में भारती के पति का नाम रामगोपाल पांडेय और नाका के होलीग्राम स्कूल आर्यनगर का पता दर्ज था. इसपर पुलिस ने नाका क्षेत्र में रामगोपाल की तलाश शुरू की. जांच के दौरान खुलासा हुआ कि पश्चिम बंगाल के कोलकाता की मूल निवासी भारती पांडेय 12 साल पहले अपने बेटे राजकुमार के साथ लखनऊ आई थी. उस ने रामगोपाल पांडेय से दूसरी शादी की थी. बाद में उस ने रामगोपाल को छोड़ कर सुनील से शादी कर ली थी. सुनील से भारती को कोई बच्चा नहीं था.

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भारती ने पहली शादी कोलकाता में और दूसरी गोंडा के कर्नलगंज निवासी रामगोपाल पांडेय जो होलीग्राम स्कूल का रिक्शाचालक था, से की थी. रामगोपाल पांडेय ने भारती के बेटे राजकुमार को अपना लिया था. तीनों लोग नेवाजखेड़ा में रहने लगे थे. भारती इलाके की एक चाऊमीन फैक्ट्री में काम कर के घर के खर्च में हाथ बंटाने लगी थी. इस बीच उस ने 2 बेटियों चांदनी व लक्ष्मी को जन्म दिया था.

शव की शिनाख्त के लिए पुलिस की एक टीम भारती पांडेय के दूसरे पति रामगोपाल पांडेय की तलाश में गोंडा भेजी गई. पुलिस रामगोपाल व उस की एक बेटी को लखनऊ ले आई. रामगोपाल ने बैग में मिले शरीर के टुकड़ों की पहचान अपनी पूर्वपत्नी भारती पांडेय के रूप में कर दी.

रामगोपाल ने पुलिस को जानकारी दी कि भारती के पहले पति का बेटा राजकुमार पश्चिम बंगाल में अपनी ननिहाल में रहता है. कोलकाता से आई भारती 8 साल रामगोपाल की पत्नी बन कर उस के साथ रही. इस के बाद उस के संबंध सुनील कनौजिया से हो गए. भारती का हाथ थामने से पहले सुनील ने अपनी पहली पत्नी से नाता तोड़ लिया था.

बाबूलाल व अन्य लोगों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि सुनील की पहली पत्नी इंदिरानगर इलाके में रहती है. भारती पांडेय की हत्या के बाद सुनील के पहली पत्नी के पास लौटने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने जांच की, लेकिन सुनील वहां नहीं मिला.

छानबीन में पता चला कि चाऊमीन फैक्ट्री में काम करने के दौरान दिलफेंक भारती की आंखें फ्रेमिंग का काम करने वाले सुनील कनौजिया से लड़ गई थीं. सुनील एल्युमीनियम के फ्रेम तैयार करने वाली जिस दुकान में काम करता था, वह चाऊमीन फैक्ट्री के सामने थी. जब भी भारती फैक्ट्री से निकलती, उस की नजर दुकान पर काम करते सुनील पर ही टिकी होतीं. जब कभी नजरें मिल जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. इस बीच दोनों की बातचीत होने लगी और फिर दोस्ती हो गई.

कोलकाता से साथ लाए बेटे और रामगोपाल से पैदा अपनी दोनों बेटियों को छोड़ कर भारती ने साढ़े 3 साल पहले सुनील का हाथ थाम लिया था.

रामगोपाल ने दोनों बच्चियों की देखरेख के लिए भारती को काफी समझाया. लेकिन उस के सिर पर चढ़े इश्क के भूत के आगे उसे हार माननी पड़ी. भारती को समझाने का कोई नतीजा न निकलने पर वह तीनों बच्चों को ले कर गोंडा स्थित अपने घर चला गया.

भारती करीब ढाई साल सुनील के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही. पिछले साल दोनों ने राजाजीपुरम की महिला शक्ति कल्याण समिति द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शादी कर ली थी.

पुलिस ने भारती व सुनील की शादी कराने वाली संस्था की अध्यक्ष रजनी यादव व कालोनी में रहने वाले भारती के पड़ोसियों से पूछताछ की. पता चला कि भारती का फिर किसी से अफेयर हो गया था और वह अकसर फोन पर बातचीत करती रहती थी, जिसे ले कर उस का पति सुनील उस पर शक करता था. वह उसे फोन पर बात करने से मना करता था, लेकिन भारती पर इस का कोई असर नहीं होता था.

भारती के आचरण पर शक

इसी बात को ले कर दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा था. इस पर भारती ने पति को छोड़ कर दिलीप कुमार के मकान में किराए का अलग कमरा ले लिया था. कई दिन तक भारती के न मिलने पर सुनील उस की तलाश करता रहा और आखिरकार किसी तरह उस के कमरे तक पहुंच ही गया.

सुनील ने उस से पूछा कि वह उसे अकेला छोड़ कर बिना बताए क्यों चली आई? इस बात को ले कर उस ने भारती को डांटाफटकारा, जिस ले कर दोनों में झगड़ा हो गया. हालांकि बाद में वह भारती के पास ही रहने लगा था. हालांकि कमरा लेते वक्त भारती ने मकान मालिक को बताया था कि उस का पति बाहर काम करता है और वह यहां अकेली रहेगी.

पुलिस ने भारती पांडेय के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सुनील के भाई बाबूलाल से गहराई से पूछताछ की. सुनील अपने भाई बाबूलाल की दुकान पर ही काम करता था. पुलिस ने उसी दुकान के शीशा कटिंग व फ्रेमिंग के कारीगर प्रेमप्रकाश व नरेंद्र को हिरासत में ले कर पूछताछ की, ये दोनों भारती से परिचित थे.

पड़ताल में जुटे पुलिस अफसरों का मानना था कि तीसरा पति सुनील कनौजिया भारती की अन्य लोगों से नजदीकी से नाराज था, इसीलिए उस ने उस की हत्या की थी. हत्या में अन्य लोगों के शामिल होने की भी पुलिस गहनता से जांच में लग गई. पुलिस ने आशंका व्यक्त की कि फ्रेमिंग के लिए एल्युमीनियम काटने वाली आरी से भारती के शव के टुकड़े किए गए थे.

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पुलिस का मानना था कि फोन पर बातचीत को ले कर हुए विवाद के बाद 23 मार्च की रात में सुनील ने भारती की गला दबा कर हत्या की होगी और उस के बाद आरी से उस के टुकड़े किए होंगे. बाद में वह उन टुकड़ों को 2 अलगअलग जगहों पर फेंक कर फरार हो गया होगा. जांच के दौरान यह भी पता चला कि भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हो गया था.

सुनील के बड़े भाई बाबूलाल ने पुलिस को बताया कि सुनील 24 मार्च की रात में उस के घर आया था. इस दौरान उस ने खाना भी खाया था. भतीजी ने जब सुनील से पूछा, ‘‘चाचा, चाची को साथ क्यों नहीं लाए?’’ तो सुनील ने कहा, ‘‘तुम्हारी चाची भारती अपने मायके गई हुई है.’’

सुनील ने 25 मार्च को अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था. जिस के बाद से उस का कोई सुराग नहीं लग पा रहा था.

कमरे में टंकी के पाइप पर सुनील की पीली जींस व काली शर्ट पर खून के हलके धब्बों के अलावा कोई साक्ष्य नहीं मिला. इस पर एसएसपी कलानिधि नैथानी ने फोरैंसिक टीम भेज कर जांच कराई.

बेंजिडाइन टेस्ट में कमरे में रखे वाइपर, प्लास्टिक के टब, स्टील के मग और फर्श पर खून के धब्बे नजर आने लगे. फोरैंसिक जांच में सुनील की जींस और टीशर्ट पर मिले खून के धब्बों में भारती के ब्लड सेल्स मिलने की पुष्टि हुई. हालांकि सुनील ने पूरा कमरा साफ कर दिया था, लेकिन बेंजिडाइन टेस्ट की वजह से खून के धब्बे मिल ही गए.

पुलिस व क्राइम ब्रांच की टीम ने इस बीच विधि विश्वविद्यालय की तरफ जाने वाले विभिन्न मार्गों के सीसीटीवी कैमरों के 22 मार्च की शाम से 23 मार्च की सुबह तक के फुटेज खंगाले, लेकिन सुनील या अन्य कोई संदिग्ध नजर नहीं आया.

एक फुटेज में बैग लादे एक युवक दिखा भी, लेकिन उस का चेहरा साफ नहीं दिखाई दे रहा था. अपर पुलिस अधीक्षक नगर (पूर्वी) का कहना है कि मार्ग से गुजरे एक आटो को संदेह के घेरे में लिया गया है. आशंका है कि सुनील 22 मार्च की रात आटो या किसी अन्य वाहन से भारती पांडेय के हाथ, पैर व सिर से भरा बैग ले कर राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के सामने उतरा होगा और वहां बैग को छोड़ कर चला गया होगा.

भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले दिन कृष्णानगर इलाके में बैग में महिला के शरीर के टुकड़े और 24 मार्च को पारा इलाके में बोरी में धड़ बरामद होने की खबर विभिन्न अखबारों में छपी, टीवी चैनलों के साथ सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई, लेकिन भारती के किसी भी दोस्त ने उस की सुध नहीं ली.

पुलिसकर्मियों ने उस के हाथ व चेहरे के फोटो ले कर कांशीराम कालोनी के लोगों से संपर्क किया, पोस्टर लगवाए, लेकिन उसे किसी ने नहीं पहचाना. न भारती के लापता होने की जानकारी पुलिस को दी. भारती का जेठ बाबूलाल भी चुप्पी साधे रहा. सुनील कनौजिया के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने पर पुलिस को पता चला कि उस ने 25 मार्च को अपने भाई बाबूलाल कनौजिया से बात करने के बाद फोन बंद कर लिया था.

इस पर पुलिस ने बाबूलाल से कड़ाई से पूछताछ की, तब खुलासा हुआ कि भारती की अन्य युवकों से दोस्ती के चलते सुनील बेहद नाराज था. जब सुनील 24 मार्च को भाई के घर खाना खाने आया तब उस ने पत्नी की हत्या की कोई जानकारी नहीं दी थी.

 

सुनील ने 25 मार्च को बाबूलाल को फोन किया था. उस ने बताया, ‘‘भाई, मैं ने अपनी भारती की हत्या कर दी है. उस के शव को भी ठिकाने लगा दिया है.’’

सुनील ने आगे कहा, ‘‘अब वह आत्महत्या करने जा रहा है.’’

बाबूलाल ने बताया कि वह सुनील से कुछ कहता, इस से पहले ही सुनील ने फोन काट दिया था. फिर उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. इस के बाद ही बाबूलाल ने पारा थाने में सुनील की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले ही दिन कृष्णानगर में बैग में उस की लाश मिली.

भारती की हत्या कर शव के टुकड़े करने के मामले में पुलिस आरोपित पति सुनील की लोकेशन का पता नहीं लगा पाई. हालांकि 25 मार्च के बाद से आरोपित का मोबाइल बंद है. इस मामले में पुलिस ने कई जगहों पर दबिश दी, लेकिन लापता कथित हत्यारे पति सुनील का कोई सुराग नहीं मिला.

इंसपेक्टर कृष्णानगर दिनेश मिश्रा के मुताबिक मामले की छानबीन की जा रही है. महिला के जेठ बाबूलाल से कई चरणों में पूछताछ की गई.

कपड़ों की तरह प्रेमियों को बदलने वाली स्वार्थी भारती ने अपने बच्चों की तरफ भी ध्यान नहीं दिया. उन्हें छोड़ कर उस ने अपने तीसरे प्रेमी के साथ शादी रचा ली. लेकिन जब वह चौथे प्रेमी से इश्क लड़ाने लगी तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ी. उस के तीसरे पति ने उस की हत्या कर उस की लाश को टुकड़ों में बांट दिया.  द्य

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जस्टिस फौर ट्विंकल

  लेखक:   निखिल अग्रवाल

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले का नाम मजबूत तालों के लिए देश में ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर है. इसी अलीगढ़ जिले में एक कस्बा है-टप्पल. दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर मिलीजुली आबादी वाले इस कस्बे में ढाई

साल की मासूम ट्विंकल से हुई हैवानियत ने लोगों को झकझोर कर रख दिया था. जून के पहले पखवाड़े में घटी वारदात के बाद अलीगढ़ का यह कस्बा पूरे देश में अचानक ही सुर्खियों में छा गया.

इसी 2 जून की बात है. सुबह के 9-10 बजे होंगे. टप्पल कस्बे में सफाई कर्मचारी सड़कों पर सफाई कर कूड़ाकचरा उठा रहे थे. उन्होंने एक जगह कूड़े के ढेर में कई कुत्तों को मुंह मारते हुए देखा. कुत्तों का गंदगी में मुंह मारना कोई नई बात नहीं थी. लेकिन कुत्ते वहां कचरे में कपड़े में लिपटी जिस चीज को खींच रहे थे, उस से दुर्गंध भी आ रही थी.

तेज दुर्गंध आने से सफाई कर्मचारियों को कुछ शक हुआ. कुत्तों को वहां से भगा कर वह उस जगह पर पहुंचे तो गंदे से उस फटेपुराने कपड़े से बाहर निकले हुए किसी बालक के हाथपैर देख कर सफाईकर्मियों के भी हाथपैर कांपने लगे. उन्होंने आवाज दे कर अपने अन्य साथियों को बुलाया.

2-4 सफाईकर्मी वहां और आ गए, तो उन्होंने कपड़े को खोल कर देखा. मैलेकुचैले उस कपड़े में एक बच्ची की क्षतविक्षत लाश लिपटी हुई थी. बच्ची का दाहिना हाथ कटा हुआ था, आंखें निकाली हुई थीं और पहचान छिपाने के लिए शव पर एसिड डाला गया था. शव गल चुका था. बच्ची की उम्र करीब ढाईतीन साल लग रही थी. कचरे के ढेर में किसी बच्ची का शव मिलने की खबर पूरे कस्बे में जंगल की आग की तरह फैल गई. वहां लोगों की भीड़ लग गई. तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं.

कस्बे के मोहल्ला कानूनगोयान में रहने वाले बनवारी लाल शर्मा और उन की पत्नी शिल्पा देवी को भी खबर मिली, तो वे भी मौके पर पहुंच गए. क्योंकि उन की ढाई साल की बेटी भी पिछले 3 दिनों से गायब थी. वह जगह उन के घर से केवल डेढ़ सौ मीटर दूर थी. शिल्पा ने सफाई कर्मचारियों के पास रखा कचरे में मिला शव देखा, तो वे दहाड़ मार कर रोने लगे.

वह शव शिल्पा की ढाई साल की इकलौती बेटी ट्विंकल का था. ट्विंकल 30 मई, 2019 की सुबह करीब साढ़े 8 बजे घर के बाहर खेलते समय गायब हो गई थी. ट्विंकल अपने मांबाप के साथ चाचा और दादा की भी लाडली थी. मां और पिता के साथ पूरे परिवार ने मोहल्ले भर में ट्विंकल की तलाश की थी, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल पाया था.

दोपहर तक जब पूरा परिवार ट्विंकल को ढूंढ कर निराश हो गया, तो लोगों ने उन्हें पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी. तब बनवारी लाल शर्मा पत्नी शिल्पा को ले कर उसी दिन दोपहर में टप्पल थाने गए. वहां उन्होंने थानाप्रभारी से अपनी मासूम बेटी को ढूंढने की गुहार लगाई.

बनवारी ने पड़ोस में रहने वाले जाहिद पर ट्विंकल के अपहरण का संदेह भी जताया, लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज किए बिना ही बच्ची को ढूंढने का आश्वासन दे कर पीडि़त परिवार को घर भेज दिया. आरोप है कि काफी कहासुनी के बाद पुलिस ने दूसरे दिन रिपोर्ट दर्ज की. इस के बाद भी पुलिस ने बच्ची को तलाश करने का कोई प्रयास नहीं किया.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी पुलिस का कोई सहयोग नहीं मिलने पर बनवारी लाल शर्मा और उन का परिवार अपने स्तर पर मासूम ट्विंकल को तलाश करने में जुटा रहा. 30 मई का दिन यूं ही निकल गया.

ट्ंिवकल के लापता होने के बाद से बनवारी के घर की खुशियां चली गई थीं. वह मासूम ही इस घर का चांद और सितारा थी. ट्विंकल के नहीं मिलने से उस की मां शिल्पा ज्यादा बेहाल थी. बनवारी लाल उसे बारबार दिलासा देते रहे कि हमारी लाडो कहीं खो गई है, वह जल्दी ही घर आ जाएगी.

काश, ऐसा होता. 31 मई को दूसरा दिन भी निकल गया. ट्विंकल का कोई पता नहीं चला. पहली जून को तीसरे दिन भी पूरा परिवार मासूम ट्विंकल को ढूंढने में जुटा रहा लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला.

यह भी पता नहीं चला कि ट्विंकल कहां गई. उसे आसमान निगल गया या जमीन खा गई. ढाई साल की बच्ची खुद तो कहीं जा नहीं सकती थी. ऐसा भी कुछ नहीं था कि वह बच्ची किसी पानी के टैंक या नाले वगैरह में गिर गई हो.

4 दिन से लापता ट्विंकल का शव जब कूड़े के ढेर में मिला, तो पुलिस के खिलाफ आक्रोश छा गया. इस बीच, सूचना मिलने पर पुलिस भी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने शव को कब्जे में लिया. जब वह शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने लगी, तो आक्रोशित लोगों ने पुलिस की गाड़ी को रोक लिया और बच्ची का शव अपने कब्जे में ले लिया.

गुस्साए लोगों ने टप्पल पुलिस थाने के सामने बच्ची का शव रख कर नारेबाजी करते हुए अलीगढ़पलवल मार्ग जाम कर दिया. बाद में एसएसपी, सांसद, विधायक और कई अधिकारियों ने समझाबुझा कर आक्रोशित लोगों को शांत किया. करीब 4 घंटे बाद लोगों ने रास्ता खोला.

अपहृत बच्ची का शव कूड़े के ढेर में मिलने से यह साफ  हो गया कि बच्ची की हत्या कर शव वहां फेंका गया था. पुलिस अधिकारियों ने मामला भड़कने की आशंका को देखते हुए डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को मौके पर बुलवा लिया. पुलिस ने बच्ची के शव का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के पैनल से कराया. इस के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया.

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बच्ची की नृशंस हत्या की बात जिसने भी सुनी उस का खून खौल गया. पुलिस के प्रति लोगों में तनाव बढ़ता जा रहा था. बाजार बंद हो गए. बच्ची के परिजनों ने पड़ोसी युवक पर मासूम ट्विंकल का अपहरण कर हत्या करने का आरोप लगाया. एसएसपी आकाश कुलहरि ने लोगों के आक्रोश को देखते हुए टप्पल थानाप्रभारी कुशलपाल सिंह को लापरवाही बरतने के आरोप में लाइन हाजिर कर दिया.

शव मिलने के बाद भी मासूम के हत्यारों के नहीं पकड़े जाने पर 3 जून को लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. आक्रोशित लोगों ने कस्बे के बाजार बंद कर पीडि़त परिवार के साथ थाने का घेराव किया. प्रदर्शनकारियों ने हत्या के आरोपियों को जल्द गिरफ्तार कर मामले का पूरी तरह खुलासा करने की मांग की.

खैर के सीओ पंकज श्रीवास्तव ने मौके पर पहुंच कर लोगों को समझाबुझा कर और पुलिस की ओर से की जा रही काररवाई के बारे में बता कर उन का आक्रोश शांत किया.

ट्विंकल हत्याकांड को ले कर कुछ संगठनों ने कस्बे में धरना देना शुरू कर दिया. कुछ संगठनों ने कैंडल मार्च निकाला. पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने के लिए संगठनों ने गांवों में जनसंपर्क शुरू कर दिया.

लोगों का गुस्सा 4 जून को भी शांत नहीं हुआ. विभिन्न संगठनों और ग्रामीणों का अनशन व धरना दूसरे दिन भी जारी रहा. आंदोलनकारियों ने पुलिस व प्रशासन के सामने 3 प्रमुख मांगें रखीं. इन में पहली यह कि मुख्यमंत्री मौके पर आ कर ग्रामीणों से बात करें. दूसरी यह कि हत्याकांड में कड़ी से कड़ी काररवाई की जाए ताकि कोई ऐसा करने की हिम्मत न करे. तीसरी यह कि पीडि़त परिवार को आर्थिक मदद दी जाए.

जनाक्रोश और लगातार चल रहे आंदोलन को देखते हुए टप्पल कस्बे में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई. शांति व्यवस्था के लिए आसपास के थानों की पुलिस के अलावा पीएसी और आरएएफ  को बुला लिया गया.

अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम व खैर विधायक अनूप प्रधान ने पीडि़त परिवार के घर पहुंच कर आर्थिक मदद के रूप में 2 लाख रुपए का चैक दिया.

पुलिस की काररवाई हुई शुरू

पुलिस ने ट्विंकल की हत्या के आरोप में दो अभियुक्तों जाहिद और असलम को 4 जून को गिरफ्तार कर लिया. दोनों आरोपी टप्पल कस्बे के ही रहने वाले थे. पुलिस ने दावा किया कि बनवारी लाल से रुपयों के लेनदेन के विवाद में मासूम बच्ची की हत्या की गई. आरोपी जाहिद का बच्ची के दादा और चाचा से विवाद हुआ था. जाहिद ने उन्हें अंजाम भुगतने की धमकी दी थी. जाहिद और बनवारी पड़ोस में ही रहते हैं.

जाहिद ने कुछ समय पहले बनवारी से 50 हजार रुपए उधार लिए थे. इन में से 40 हजार रुपए तो वापस लौटा दिए थे. बाकी के 10 हजार रुपयों के लिए जब तकादा किया गया, तो जाहिद ने मई के आखिरी सप्ताह में बनवारी के घर वालों को गालीगलौज करते हुए धमकी दी थी.

उधार के पैसों को ले कर जाहिद खफा था. वह बनवारी से इस का बदला लेना चाहता था. 30 मई की सुबह उसे मौका मिल गया. ढाई साल की बच्ची ट्विंकल जब अपने घर के सामने खेल रही थी, तो बिसकुट दिलाने के बहाने जाहिद उसे अपने घर ले गया.

इस के बाद उसी दिन जाहिद ने अपने दोस्त असलम के साथ मिल कर दुपट्टे से उस का गला घोंट कर उस फूल सी बच्ची की हत्या कर दी. बच्ची का शव उन्होंने भूसे के ढेर में छिपा दिया. जब शव से बदबू आने लगी, तो पहली जून को उन्होंने शव कपड़े में लपेट कर घर के पास ही कचरे के ढेर में फेंक दिया.

ट्विंकल हत्याकांड का खुलासा करते हुए पुलिस ने दोनों आरोपियों के खिलाफ  अपहरण व हत्या का मामला दर्ज कर लिया. बाद में उसी दिन अदालत में पेश कर दोनों को जेल भेज दिया गया.

5 जून को भी यह मामला गरमाया रहा. टप्पल में आंदोलन होता रहा. ट्विंकल के पिता बनवारी लाल शर्मा ने पुलिस को चेतावनी दी कि अगर आरोपियों के परिजनों के खिलाफ काररवाई नहीं की गई, तो वे 6 जून को आत्मदाह कर लेंगे.

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बनवारी लाल की इस चेतावनी को देखते हुए एसएसपी आकाश कुलहरि 5 जून की रात को ही उन के घर जा कर मिले. एसएसपी ने उन्हें हरसंभव काररवाई का आश्वासन देते हुए कहा कि आरोपियों को फास्ट ट्रेक के माध्यम से जल्द सजा दिलाने का प्रयास किया जाएगा. एसएसपी के आश्वासन पर बनवारी लाल ने आत्मदाह का इरादा त्याग दिया.

पुलिस ने भले ही आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन यह मामला तूल पकड़ता जा रहा था. पूरे देश में आंदोलन हो रहे थे. सोशल मीडिया पर ट्विंकल हत्याकांड सुर्खियां बन गया.

पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने के लिए कई सेलिब्रिटी भी आगे आ गए. क्रिकेटर शिखर धवन, वीरेंद्र सहवाग से ले कर बौलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार, अनुपम खेर, अभिनेत्री सनी लियोनी ने ट्विटर के जरिए हत्यारों को कड़ी सजा और परिवार को जल्द न्याय दिलाने की आवाज उठाई.

एसएसपी आकाश कुलहरि ने 6 जून को मासूम ट्विंकल के मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में टप्पल के तत्कालीन थानाप्रभारी कुशलपाल सिंह सहित 3 दरोगा और एक कांस्टेबल को निलंबित कर दिया. आरोप है कि अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी इन पुलिस कर्मियों ने बच्ची की बरामदगी का कोई प्रयास नहीं किया था. अभियुक्तों का पता लगने के बाद भी उन के खिलाफ  कोई काररवाई नहीं की गई थी.

टप्पल में ढाई साल की मासूम बच्ची से हुई बर्बरता पर पूरे देश में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. सड़कों से ले कर सोशल मीडिया तक पर गुनहगारों को फांसी की सजा दिलाए जाने की मांग उठ रही थी. सियासत भी गरमा गई थी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और बसपा प्रमुख मायावती ने इस मामले में जहां यूपी सरकार को आड़े हाथ लिया, वहीं बच्ची को न्याय दिलाने के लिए बौलीवुड व खेल जगत की हस्तियों ने मोर्चा खोल दिया.

इस बीच, 7 जून, 2019 को सोशल मीडिया पर वायरल हुई ट्विंकल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने लोगों को झकझोर दिया. ट्विंकल की हत्या क्रूरतापूर्ण तरीके से गला घोंट कर की गई थी. इस से पहले उसे बुरी तरह पीटा गया, जिस से उस की पसलियां टूट गई थीं. बाएं पैर में फैक्चर था. नाक की हड्डी भी टूटी हुई थी. सिर में चोट थी.

बच्ची की एक किडनी, पेशाब की थैली व प्राइवेट पार्ट गायब मिले. एक हाथ शरीर से अलग था. पहचान छिपाने के लिए मासूम के शव को एसिड डाल कर जलाया गया था. बच्ची से दुष्कर्म का भी शक है, लेकिन एसएसपी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से कहते हैं कि रेप की पुष्टि नहीं हुई है. दुष्कर्म की जांच के लिए कुछ स्लाइड और सैंपल आगरा की फोरैंसिक लैब भेजे गए.

जांच सौंप दी गई एसआईटी को

पूरे देश में यह मामला छा जाने पर उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (ला एंड और्डर) आनंद कुमार ने ट्विंकल हत्याकांड की जांच एसआईटी से कराने और दोनों हत्या आरोपियों के खिलाफ  पोक्सो एक्ट में काररवाई करने की घोषणा की. इस के लिए एसपी (क्राइम) डा. अरविंद कुमार और एसपी (देहात) मणिलाल पाटीदार के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया गया.

दिल दहला देने वाले ट्विंकल हत्याकांड में पुलिस ने 8 जून को मुख्य आरोपी जाहिद की पत्नी शाइस्ता और भाई मेहंदी हसन को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस के अनुसार, ये दोनों आरोपी ट्विंकल की हत्या के समय मौके पर मौजूद थे. बाद में ट्विंकल का शव शाइस्ता के दुपट्टे में लपेट कर फेंका गया था. पुलिस ने इन दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया.

अलीगढ़ बार एसोसिएशन ने बैठक कर फैसला किया कि कोई भी वकील दरिंदों की पैरवी नहीं करेगा और न ही किसी बाहरी वकील को पैरवी करने दिया जाएगा. वकीलों ने मासूम को न्याय दिलाने के लिए पीडि़त पक्ष का मुकदमा निशुल्क लड़ने की भी घोषणा की.

राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम ने 8 जून को टप्पल पहुंच कर पीडि़त परिवार से मुलाकात की. आयोग के अध्यक्ष डा. विशेष कुमार गुप्ता की अगुवाई में इस टीम ने पीडि़त परिवार से घटनाक्रम की जानकारी ली. पीडि़त परिवार ने कहा कि हत्याकांड में कई अन्य लोग भी शामिल हैं, जिन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए.

आयोग के दल ने इस के बाद अधिकारियों से बात की. आयोग के अध्यक्ष डा. गुप्ता ने कहा कि आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत काररवाई की सिफारिश करते हुए मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे. गैंगस्टर एक्ट में काररवाई होने पर ही आरोपियों पर रासुका लग सकेगी.

सोशल मीडिया पर ट्विंकल के हत्यारों को फांसी की मांग को ले कर महापंचायत के आयोजन का फैसला किया गया. इस की वजह से 9 जून, 2019 को टप्पल कस्बा छावनी बना रहा. पुलिस ने सुबह ही टप्पल की सीमाएं सील कर दीं. हरेक आनेजाने वाले की तलाशी ली गई. पीडि़त परिवार के घर जाने वाले रास्ते भी सील कर दिए गए. दूरदराज से आए लोगों को पुलिस ने वापस भेज दिया.

भाजपा नेत्री साध्वी प्राची को पुलिस ने जेवर टोल प्लाजा पर रोक लिया. पुलिस की सतर्कता से टप्पल में महापंचायत नहीं हो सकी. आक्रोशित लोगों ने इस दौरान कुछ वाहनों में तोड़फोड़़ भी की. एक बारात की कार पर भी पथराव हुआ.

अघोषित कर्फ्यू जैसे हालात के कारण पूरे कस्बे में बाजार बंद और गलियां सूनी रही. जिलाधिकारी चंद्रभूषण सिंह और एसएसपी आकाश कुलहरि दिनभर टप्पल में डेरा डाल कर हालात पर नजर रखे रहे.

ट्विंकल हत्याकांड में कई दिनों से विरोध प्रदर्शन के बीच अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए जिला प्रशासन ने 10 जून को टप्पल और खैर तहसील इलाके में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी. टप्पल कस्बे में आधेअधूरे बाजार खुलने से तनावपूर्ण शांति रही. आगरा जोन के एडीजी अजय आनंद ने टप्पल पहुंच कर अधिकारियों के साथ बैठ कर हालात की समीक्षा की.

महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव और कांग्रेस के कई राष्ट्रीय और प्रदेश पदाधिकारियों ने टप्पल पहुंच कर पीडि़त परिवार से मुलाकात कर उन की हिम्मत बंधाई. उन्होंने कहा कि मासूम के साथ हैवानियत करने वालों को जल्द से जल्द कठोर सजा मिलनी चाहिए.

11 जून को 6 दिन बाद बाजार खुलने से टप्पल कस्बे में पलवल मार्ग पर चहलपहल नजर आई. प्रशासन ने इंटरनेट सेवा भी बहाल कर दी. तनाव को देखते हुए कई जगह पुलिस फोर्स तैनात रही. पुलिस लगातार हर गतिविधि पर नजर रखती रही.

पुलिस की थ्यौरी अभी भी स्पष्ट नहीं

12 जून को मासूम बच्ची की आत्मा की शांति के लिए पीडि़त परिवार की ओर से टप्पल में शुद्धि हवन और शोकसभा की गई. इस में सांसद सतीश गौतम, विधायक अनूप प्रधान सहित भाजपा के कई पदाधिकारी और पुलिस अधिकारी शामिल हुए. जिला प्रशासन ने ट्विंकल मामले की न्यायिक जांच शुरू कर दी. इस के तहत 11 से 19 जून तक घटना के संबंध में जानकारी रखने वाले लोगों के बयान दर्ज किए गए.

ट्विंकल की हत्या के मामले में गिरफ्तार आरोपियों का पुलिस ने जब रिकौर्ड खंगाला तो पता चला कि 43 साल के असलम पर दुष्कर्म, अपहरण और गुंडा एक्ट सहित 5 मामले दर्ज हैं. सन 2014 में असलम के खिलाफ  टप्पल थाने में अपनी ही 4 साल की भतीजी से दुष्कर्म करने का मामला दर्ज हुआ था.

इस के बाद उस की पत्नी ने घर छोड़ दिया था. इस के अलावा उस के खिलाफ 2017 में दिल्ली के गोकलपुरी थाना इलाके से एक बच्चे के अपहरण का मामला दर्ज हुआ था.

असलम वहां से एक बालक का अपहरण कर टप्पल ले आया था और उस के घर वालों से फिरौती मांगी थी. टप्पल थाने में उस पर गुंडा एक्ट के भी 3 मामले दर्ज हैं. अलसम कुछ दिन पहले ही जमानत पर छूटा था. दूसरा आरोपी जाहिद जुआरी है. लोग उसे सट्टा किंग के नाम से भी जानते हैं.

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फिलहाल, अलीगढ़ और टप्पल में इस मामले को ले कर शांति है, लेकिन पीडि़त परिवार को अभी अपनी सुरक्षा की चिंता है. इस परिवार ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर आरोपियों को मौत की सजा दिलाने की मांग करते हुए कहा है कि अगर इन्हें फांसी नहीं हुई तो जेल से बाहर निकलने पर इन की हिम्मत और बढ़ जाएगी.

एक शेख की छठी पत्नी आखिर लापता क्यों हो गई

खाड़ी देशों के शेख राजशाही जीवन जीने के लिए खासा मशहूर है. महंगी गाड़ियां, ऐशो-आराम की जिंदगी और यहां तक कि शान की खातिर कुत्ते-बिल्ली नहीं बल्कि खूंखार टाइगर को पालने का शौक रखते हैं. लग्जरी जीवन जीना और अधिक से अधिक रानियों को रखना भी इनका पुराना शौक रहा है.

दुबई के शासक शेख मुहम्मद बिन राशिद अल मखदूम को भी रानियों का शौक रहा है. इन्होंने 5वीं शादी करने के बाद छठी शादी जौर्डन के किंग अब्दुल्ला की सौतेली बहन हया से की. हया न सिर्फ बला की खूबसूरत थी, बल्कि औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ी-लिखी व आधुनिक ख्याल की महिला रही है.

शेख मुहम्मद बिन राशिद से शादी के बाद वह दुबई में रहने तो लगी पर उन्हें हद से ज्यादा धार्मिक पाबंदियों से चिढ़ होने लगी थी.

करोड़ों रूपए के साथ हुई लापता…

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाबंदियों से उकता कर दुबई के अरबपति शासक की छठी बीवी रानी हया करोड़ों रूपए और बच्चों के साथ लापता हो गईं. खबर है कि वे अपने साथ करीब 31 मिलियन पाउंड लगभग 271 करोङ रूपए भी साथ ले गई हैं.

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आधुनिकता पर हावी कट्टरता

तेल के कुओं से अरबपति शेखों और पैसे के बल पर आज सऊदी अरब में गगनचुंबी इमारतें हैं, साफ-सुथरी सड़के हैं और वह सब है जो एक अमीर देश की पहचान होती है पर इन सब चकाचौंध के पीछे यहां धार्मिक पाबंदियां आधुनिकता पर बुरी तरह हावी हैं.

दरअसल, उच्च शिक्षा प्राप्त हया जो पश्चिमी संस्कृति में पलीबङी थीं, धार्मिक कट्टरता और रहनसहन से सामंजस्य नहीं बैठा पा रही थीं.

जौर्डन के किंग अब्दुल्ला की सौतेली बहन हया को बंदिशों से चिढ़ थी. शेख के साथ उस के रिश्ते भी अच्छे नहीं चल रहे थे. हया ने फिर एक कठोर फैसला लिया और बच्चों सहित किसी सुरक्षित स्थान की ओर चल दीं. हया अब शौहर से तलाक लेना चाहती हैं और जरमनी में बसना चाहती हैं.

किसने की मदद

अरब देशों की मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो हया को दुबई से निकलने में जरमनी के राजनयिकों ने मदद की है, क्योंकि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और पाबंदियों को धता बता कर बेशुमार दौलत के साथ भागना यों भी आसान नहीं था.

क्या कूटनीतिक संबंधों पर असर पड़ेगा

हया को देश से निकालने को ले कर जरमनी और यूएई में राजनीतिक संबंधों पर असर पङ सकता है, यह तय है क्योंकि इस के तुरंत बाद शेख मुहम्मद बिन राशिद ने जरमनी के राजनयिकों से बात कर हया को सौंपने की मांग तक कर डाली पर जरमनी ने इस के लिए किसी तरह की मदद देने से इनकार कर दिया.

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इनकी कौन सुनेगा

वहीं, सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश जैसे गरीब देशों से बड़ी संख्या में लड़किया पैसा कमाने के लिए खाड़ी देशों की ओर रूख करती हैं. कुछ जो कबूतरबाजी की शिकार हो कर वहां पहुंचती हैं उन की जिंदगी तो इतनी नारकीय होती है कि जान कर ही रौंगटे खड़े हो जाएं. यहां तक कि पढ़ी-लिखी व आधुनिक खयाल की महिलाएं भी, जो चकाचौंध भरी जिंदगी से आकर्षित हो कर वहीं रह कर नाम और पैसा कमाना चाहती हैं, कभीकभी धोखे का शिकार हो जाती हैं और फिर शुरू हो जाता है उन पर जुल्म और सितम ढाने की इंतहा.

हाल ही में केरल की कई नर्सें वहां उंचे ख्वाब ले कर गई थीं, जिन्हें बाद में सरकार के हस्तक्षेप के बाद वतन लाया गया. इन नर्सों को वहां बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता था.

हया के साथ चूंकि हाई प्रोफाइल मामला है, इसलिए संभव है इन की सुध कोई न कोई लेगा पर उन महिलाओं की आखिर कौन सुनेगा, जो ऊंचे सपने ले कर खाड़ी देशों में चली तो गईं पर वहां गुलाम सी बदतर जिंदगी जीने को आज भी विवश हैं?

अंधविश्वास: भगवान का दूत कहने वाले

ऐसे इश्तिहार देने वाले बाबाओं का दावा होता है कि वे किसी की भी बड़ी से बड़ी परेशानी को चुटकी बजाते ही हल कर सकते हैं. वे खुद को तंत्र विद्या में माहिर तांत्रिक बताते हैं. इश्तिहारों के जरीए वे घर बैठे लोगों तक आसानी से पहुंच जाते हैं.

हैरानी की बात तो यह है कि लोग इन के इस छलावे में आ भी जाते हैं. वे इन्हें फोन करते हैं, अपनी परेशानियां सुनाते हैं, कई बार तो ये ढोंगी बाबा

उन्हें फोन पर ही ऊलजुलूल सुझाव देते हैं या अपने शिविर या कहें दफ्तर में बुलाते हैं.

इन बाबाओं के पास अकसर लोग औलाद पाने की आस में ही जाते हैं और इस परेशानी से बचने के लिए या तो बाबा औरत को बहलाफुसला कर सैक्स करते हैं या फिर उसे बेहोश कर के बलात्कार.

महाराष्ट्र की एक वारदात है. खुद को ‘भगवान का दूत’ कहने वाले 45 साल के ऐसे ही एक ढोंगी के पास एक औरत पहुंची. उस औरत ने जब बाबा को अपनी परेशानी बताई तो वह उसे एक कमरे में ले गया. वहां औरत के ऊपर गंगाजल छिड़का गया और उसे नींद की दवा दी गई.

दवा का असर होने लगा तो बाबा और उस के एक नंगधड़ंग साथी ने उस औरत को यहांवहां छूना शुरू कर दिया और बाद में ढोंगी बाबा ने उस का बलात्कार किया.

इस मामले पर वकील रंजना का मानना है कि पीडि़त औरतों द्वारा ऐसे ढोंगियों के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्यवाही की मांग नहीं की जाती है क्योंकि उन्हें समाज का डर तो होता ही है, साथ ही इस बात का भी डर होता है कि कहीं उन के पति उन्हें छोड़ न दें.

औलाद के नाम पर बलात्कार ही केवल एक अपराध नहीं है जो ये ढोंगी करते हैं, बल्कि पूजापाठ और कष्टों को मिटाने के नाम पर लोगों को लूटना, बलि चढ़वाना और टोनाटोटका करना भी इन का पेशा है.

ऐसे ही 2 बाबाओं में मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद ताहिर के नाम भी शुमार हैं. हैदराबाद के इन 2 ढोंगियों ने लिबर्टी प्लाजा नाम की इमारत में अपना औफिस खोल कर लोगों को ठगने का बड़ा ही अच्छा इंतजाम कर रखा था.

ज्योति नाम की एक औरत इन के पास अपनी पारिवारिक समस्या के हल के लिए आई. इन दोनों ने उस से कहा कि उस के घरपरिवार पर बुरी ताकतों का साया है, साथ ही यह भरोसा भी दिया कि उन के द्वारा किए गए टोनेटोटके से यह साया पूरी तरह से हट जाएगा.

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नासमझी के चलते ज्योति ने अपने गहने और 50,000 रुपए इन ढोंगियों की झोली में ला कर रख दिए. पैसे और जेवर ले कर ये ढोंगी वहां से खिसक लिए, जबकि ज्योति अपना माथा पीटती रह गई.

मौडर्न बाबा

इन तांत्रिकों और वशीकरण करने वाले बाबाओं ने अपना लैवल बहुत ज्यादा बढ़ा लिया है, अब केवल अखबार, पत्रिकाएं व पोस्टर ही ऐसा जरीया नहीं हैं जिन के द्वारा ये अपना कारोबार फैला रहे हैं, बल्कि अब इन की वैबसाइट भी बनने लगी हैं.

ऐसी ही एक वैबसाइट पर लिखा हुआ था, ‘कहीं न हो काम, हम से पाएं समाधान, लवमैरिज, सौतन, दुश्मन से छुटकारा, निराश प्रेमी संपर्क करें…’

इस वाक्य को पढ़ कर जो पहला सवाल जेहन में आता है, वह यह है कि क्या सचमुच इन बेतुकी बातों पर लोग यकीन करते होंगे?

इस सवाल का जवाब पाने में ज्यादा देर नहीं लगी. नालासोपारा इलाके में फेक बाबा, सांईं के भेष में बलात्कारी और

2 भाइयों ने बलि चढ़ाया परिवार जैसी घटनाएं पढ़ कर तो यकीन हो गया है कि भारत में अंधविश्वासियों की कमी नहीं है.

मुद्दा यह नहीं है कि ये पाखंडी बाबा बन कर ये सब अपराध क्यों कर रहे हैं, बल्कि मुद्दा यह है कि लोग इन्हें ये अपराध करने ही क्यों दे रहे हैं?

ढोंगियों से बचें

इन ढोंगियों पर उंगली उठाने से पहले इन के पास जाने वाले लोगों की गलती को बड़ा मानना ज्यादा बेहतर होगा. आखिर ये वही लोग हैं जो निर्मल बाबा के ‘लाल चटनी से समोसा खाने के बजाय हरी चटनी से खाइए, सभी परेशानियां ठीक हो जाएंगी’ जैसे उपदेशों पर यकीन करते हैं.

बात वहीं आ जाती है कि बचाव क्या है? तो बचाव यही है इन ढोंगियों के चंगुल से दूर रहना. घर में, दफ्तर में या आपसी रिश्तों में जो कष्ट हैं, उन का हल आप को अपनी खुद की समझदारी से मिलेगा, किसी के टोनेटोटके से नहीं. औलाद न होने की कई वजहें हो सकती हैं और विज्ञान में उन के उपाय भी हैं. इन बाबाओं के पास जा कर कोई भभूत खा कर या बलात्कार का शिकार हो कर बच्चा पाना कोई समाधान नहीं है.     द्य

कानून है आप के साथ

द्य आईपीसी की धारा 416 : धोखाधड़ी करने पर किसी भी शख्स को एक साल तक की जेल या जुर्माना भरना पड़ सकता है

या दोनों.

द्य आईपीसी की धारा 420 : इस कानून के तहत अगर कोई आदमी किसी की निजी जायदाद से जुड़ी कोई धोखाधड़ी करता है तो उसे 7 साल तक की जेल व जुर्माना भरना पड़ सकता है.

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द्य इस के अलावा धोखाधड़ी और ठगी के लिए धारा 420, 508 और साधारण कानून के आधार पर इन पाखंडियों को जेल पहुंचाया जा सकता है.

द्य पाखंडियों द्वारा बलात्कार या कत्ल जैसी वारदातों को अंजाम दिया जाता है तो उसी के मुताबिक आईपीसी की धाराएं लागू होंगी.

रामकथा हादसा : आस्था पर कुठाराघात

सैकड़ों लोग आंखें बंद किए इस कथा का आनंद ले रहे थे और अपनी तकलीफों के समाधान का अहसास कर रहे थे.
बीती बातों को याद कर बुजुर्गों की आंखों से आंसू निकल रहे थे और वे कथा का रसास्वादन कर रहे थे. तभी आंधीतूफान ने दस्तक दी. अपलक मौसम को निहारते कथावाचक भी धोतीकुरता संभालते दौड़ते नजर आए.

यह वाकिआ राजस्थान के बाड़मेर के एक गांव जसोल में हुआ. दिन रविवार, 23 जून, 2019 की दोपहर के साढ़े 3 बजे आंधीतूफान ने अपना रंग दिखाया. तेज हवाएं चलने लगीं. तेज हवा से पंडाल उखड़ गया. वहां भगदड़ मच गई. कई लोग तो संभल भी नहीं पाए थे कि जोरदार बारिश आ गई. आंधीतूफान का कहर ही लोगों की धार्मिक आस्था पर चोट कर गया. इस हादसे में 15 से ज्यादा लोग मर गए और कई घायल हो गए. घायलों को नाहटा अस्पताल में भरती कराया गया.

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कथावाचक मुरलीधर मनोहर ने कथा बीच में ही छोड़ दी और घर चले जाने को कहा.

मौसम के साथसाथ माहौल बिगड़ता देख उन्होंने लोगों से पंडाल खाली करने की अपील की. स्टेज छोडऩे से पहले उन्होंने कहा कि हवा काफी तेज है इसलिए कथा को रोकना पड़ेगा. तेज हवा से पंडाल उखड़ रहा है. निकलिए बाहर सभी. खाली कर दीजिए पंडाल. इस के बाद पंडाल उखड़ता देख वे भी स्टेज छोड़ कर चले गए.

कथावाचक ने तो जैसेतैसे भीड़ से बचबचा कर अपनी जान बचाई, पर जो कथा में मगन थे, भगदड़ से अनजान थे, वे ही इस हादसे का शिकार हो गए. कथा सुनने वाले ज्यादातर बुजुर्ग थे जो भाग नहीं सकते थे. उस समय उन्हें अपनी लाचारी भारी पड़ी. अगर वे भी जवान होते तो अपनी जान बचा सकते थे. यानी भाग सकते थे.

पंडाल काफी बड़े एरिया में लगाया गया था, जिस में 2000 से 3000 लोग समा सकें. पर पंडाल इतना भी मजबूत नहीं था कि भगदड़ होने पर हजारों की तादाद को झेल पाता. आंधीतूफान ने पलभर मेें ही ऐसा कोहराम मचा दिया कि 15 तो यों ही चल बसे.

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तकरीबन70-80 लोग घायल हुए, वे भी अस्पताल में बैठेबैठे राम लला को ही कोस रहे होंगे कि काश, हम वहां न जाते तो बच सकते थे. पर होनी को कौन टाल सकता है.

जिला कलक्टर हिमांशु गुप्ता ने बताया कि तकरीबन हजार लोग जसोल गांव में राम कथा सुनने के लिए पहुंचे थे. दोपहर साढ़े 3 बजे तूफान आया और हादसे में तबदील हो गया.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट किया कि जसोल, बाड़मेर में राम कथा के दौरान पंडाल गिरने से हुए हादसे में बड़ी तादाद में लोगों की जानें जाने की जानकारी बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने हादसे में मारे गए लोगों के परिवारों को 5 लाख व घायलों को 2 लाख रुपए देने का ऐलान किया, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाड़मेर में पंडाल गिरना दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे ने ट्वीट किया कि बाड़मेर के जसोल गांव में राम कथा के दौरान तेज आंधी से गिरे पंडाल हादसे में 15 से अधिक लोगों की मौत की खबर सुन कर बेहद दुख हुआ.

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बाड़मेर के सांसद कैलाश चौधरी ने नाहटा अस्पताल का दौरा किया, घायलों का हालचाल जाना और कहा कि यह घटना काफी दर्दनाक है.

सिरकटी लाश ने पुलिस को कर दिया हैरान

अंबाला छावनी के रेलवे पुलिस स्टेशन में तैनात महिला हवलदार मनजीत कौर को सुबह सुबह खबर मिली कि अंबाला और छावनी रेलवे स्टेशनों के बीच खंभा नंबर 267/15 के पास अपलाइन पर एक सिरकटी लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच कर अपनी कार्यवाई में जुट गईं. धड़ रेलवे लाइन के बीचोबीच उत्तरदक्षिण दिशा में पड़ा था. धड़ पर हल्के बादामी रंग का पठानी सूट था. उस से ठीक 8 कदम की दूरी पर उत्तर दिशा में शरीर से अलग हुआ सिर पड़ा था. उस से 2 कदम की दूरी पर लाइन के बीचोबीच बायां हाथ और 5 कदम की दूरी पर सफेद रंग की पंजाबी जूतियां पड़ी थीं.

मरने वाला 35 से 40 साल के बीच था. उस की पहचान के लिए मनजीत कौर ने पठानी सूट की जेबें खंगाली, लेकिन उन में ऐसा कुछ नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. मनजीत कौर को यह मामला दुर्घटना का नहीं, आत्महत्या का लगा. लिहाजा अपने हिसाब से वह काररवाई करने लगीं. उस दिन थानाप्रभारी सतीश मेहता छुट्टी पर थे, इसलिए थाने का चार्ज इंसपेक्टर सोमदत्त के पास था.

निरीक्षण के बाद सोमदत्त ने मनजीत कौर के पास जा कर कहा, ‘‘यह आत्महत्या नहीं हो सकती. आत्महत्या करने वाला आदमी कहीं रेलवे लाइन पर इस तरह लेटता है?’’

‘‘जी सर, आप सही कह रहे हैं. यह मामला आत्महत्या का नहीं है.’’

‘‘जरूर यह हत्या का मामला है और हत्या कहीं दूसरी जगह कर के लाश यहां फेंकी गई है. इस के पीछे का षड्यंत्र तो जांच के बाद ही पता चलेगा.’’

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‘‘ठीक है, कानूनी कार्यवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाइए.’’ सोमदत्त ने एएसआई ओमवीर से कहा.

औपचारिक कानूनी काररवाई पूरी कर के ओमवीर और मनजीत कौर ने लाश को अंबाला के कमांड अस्पताल भिजवा दिया, जहां से लाश को पोस्टमार्टम के लिए रोहतक के पीजीआई अस्पताल भेज दिया.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद मृतक का विसरा रासायनिक परीक्षण के लिए मधुबन लैबोरेटरी भिजवा दिया गया. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण श्वासनली कटना बताया था. रेल के पहियों से वैसे ही उस की गरदन कट गई थी. डाक्टरों के अनुसार यह रेल दुर्घटना का मामला था.

उन दिनों रेलवे पुलिस की अंबाला डिवीजन के एसपी थे आर.पी. जोवल. यह मामला उन के संज्ञान में आया तो वह भी इस की जांच में रुचि लेने लगे.

उन के लिए यह मामला दुर्घटना या आत्महत्या का नहीं था. उन्होंने इसे हत्या ही माना, लेकिन जांच तभी आगे बढ़ सकती थी, जब लाश की शिनाख्त हो जाती. हालांकि सिरकटी लाश मिलने का समाचार सभी अखबारों में छपवा दिया गया था. इस के अलावा लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस ने भी समाचार पत्रों में अपील छपवाई थी. जिस में लाश का हुलिया और कपड़ों वगैरह का विवरण दिया गया था.

2 दिनों बाद इंसपेक्टर सतीश मेहता छुट्टी से लौटे तो उसी दिन दोपहर बाद अखबार हाथ में लिए एक आदमी उन से मिलने आया. उस ने आते ही कहा, ‘‘जिस आदमी की शिनाख्त के बारे में आप ने अखबार में विज्ञापन दिया है, मैं उस के कपड़े वगैरह देखना चाहता हूं. आप लोगों ने लाश के फोटो तो करवाए ही होंगे, आप उन्हें भी दिखा दें.’’

इंसपेक्टर मेहता ने उस का परिचय पूछा तो वह बोला, ‘‘मेरा नाम मोहनलाल मेहता है. मैं भी एक रिटायर्ड पुलिस इंसपेक्टर हूं, महेशनगर में रहता हूं,’’ कहते हुए उन्होंने हाथ में थामा अखबार खोल कर उस में छपा विज्ञापन सतीश मेहता को दिखाते हुए कहा, ‘‘आप लोगों की ओर से आज के अखबार में यह जो विज्ञापन छपवाया गया है, इस में मरने वाले का हुलिया और कपड़े वगैरह मेरे बेटे से मेल खा रहे हैं.’’

सतीश मेहता ने अखबार ले कर उस में छपी अपील को देखते हुए पूछा, ‘‘आप के बेटे का क्या नाम है?’’

‘‘उस का नाम जोगेंद्र मेहता है, मगर सभी उसे जग्गी मेहता कहते थे.’’

‘‘काम क्या करता था आप का बेटा?’’

‘‘पंजाब नैशनल बैंक में क्लर्क था. उस की पोस्टिंग मेन बाजार शाखा में थी. 14 जुलाई की रात वह अपने बैंक के चपरासी के साथ स्कूटर से कहीं गया था, उस के बाद लौट कर नहीं आया. आज 4 दिन हो चुके हैं.’’

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‘‘आप ने चपरासी से नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने अगले दिन ही उसे बैंक में फोन कर के पूछा था. उस ने बताया था कि वह किसी जरूरी काम से अंबाला से बाहर गया है. 2-4 दिनों में लौट आएगा. स्कूटर के बारे में उस ने बताया था कि वह उसी के पास है.’’

‘‘चपरासी का क्या नाम है?’’

‘‘जी मुन्ना.’’

‘‘वह कहां रहता है?’’

‘‘वह हिसार रोड पर कहीं रहता है. अगर आप को उस से कुछ पूछना है तो वह बैंक में ही मिल जाएगा. लेकिन आप मुझे कपड़े और फोटो तो दिखा दीजिए.’’

‘‘आप परेशान मत होइए. आप को सभी चीजें दिखा दी जाएंगी. लेकिन पहले आप मेरे साथ मुन्ना चपरासी के यहां चलिए. हो सकता है, हमारे पास जो कपड़े और फोटो हैं, वे आप के बेटे के न हों. फिर भी आप मेरे साथ चलिए.’’ सतीश मेहता मोहनलाल को साथ ले कर बैंक पहुंचे.

लेकिन तब तक मुन्ना घर जा चुका था. पूछने पर पता चला कि वह अंबाला शहर के हिसार रोड पर दुर्गा नर्सिंगहोम के पास किराए पर रहता है. सतीश मेहता वहां पहुंचे तो वह घर पर ही मिल गया. उस का नाम मनजीत कुमार था. पूछने पर उस ने वही सब बताया, जो वह मोहनलाल को बता चुका था.

लेकिन सतीश मेहता को उस की बातों पर यकीन नहीं हुआ. उन्होंने उसे डांटा तो उस ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘सर, 14 जुलाई की शाम मैं बैंक से जग्गी साहब के साथ उन के घर गया था. उस रात उन्होंने मुझे पार्टी देने का वादा किया था. खानेपीने के बाद आधी रात को मैं चलने लगा तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन के साथ चलूं. इस के बाद वह मुझे अपने स्कूटर पर बैठा कर विश्वासनगर ले गए. वहां एक घर के सामने उन्होंने स्कूटर रोक दी.’’

‘‘जहां स्कूटर रोका, वह घर किस का था?’’ सतीश मेहता ने मुन्ना से पूछा.

‘‘यह मुझे नहीं मालूम. उस घर की ओर इशारा कर के उन्होंने कहा था कि रात में वह वहीं रुकेंगे. इस के बाद मैं उन का स्कूटर ले कर चला आया था.’’ मुन्ना ने कहा.

‘‘तुम ने उन से पूछा नहीं कि वह मकान किस का है? उतनी रात को वह उस मकान में क्या करने जा रहे हैं?’’

‘‘पूछा था सर.’’

‘‘क्या कहा था उन्होंने?’’

‘‘सर, जग्गी साहब ने मुझ से सिर्फ यही कहा था कि रात में वह वहीं रुकेंगे. उन्होंने मुझे उस घर का फोन नंबर दे कर यह भी कहा था कि जरूरत हो तो मैं फोन कर लूं. लेकिन फोन एक लड़की उठाएगी. इस के बाद उन्होंने मुझे सुरजीत सिंह का फोन नंबर भी दिया और कहा कि कोई ऐसीवैसी बात हो जाए तो मैं सुरजीत सिंह को फोन कर लूं.’’

‘‘यह सुरजीत कौन है?’’

‘‘सुरजीत सिंह जग्गी साहब के दोस्त हैं. वह भी विश्वासनगर में रहते हैं. घूमने के लिए जग्गी साहब अकसर उन्हीं की कार मांग कर लाया करते थे.’’

‘‘टैक्सी वगैरह का धंधा करते हैं क्या?’’

‘‘यह तो मुझे नहीं मालूम. लेकिन इतना जरूर पता है कि किसी औफिस में नौकरी करते हैं.’’

‘‘अभी उन्हें छोड़ो, यह बताओ कि उस रात और क्या हुआ था?’’

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‘‘सर, जब मैं जग्गी साहब को छोड़ कर घर आया तो लेटते ही सो गया. सुबह तक जग्गी साहब नहीं आए तो मैं ने पड़ोस के पीसीओ से उन के बताए नंबर पर फोन किया. फोन सचमुच लड़की ने उठाया. मैं ने उस से जग्गी साहब के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस पर मैं ने उसे समझाते हुए कहा कि उन का पूरा नाम जोगेंद्रलाल मेहता है और वह पंजाब नैशनल बैंक में नौकरी करते हैं. इस पर भी उस ने मना कर दिया कि वह इस नाम के आदमी को नहीं जानती.’’

‘‘ठीक है, तुम हमारे साथ वहां चलो, जहां रात में जग्गी साहब को छोड़ कर गए थे.’’

मुन्ना सतीश मेहता को उस जगह ले गया, जहां उस ने जग्गी को छोड़ा था. वह विश्वासनगर का एक पुराना सा मकान था. मुन्ना ने उस मकान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘हम इसी मकान के आगे रुके थे और इसी दरवाजे से जग्गी साहब अंदर गए थे.’’

उस मकान में ताला लटक रहा था. सतीश मेहता ने पड़ोसियों से उस मकान में रहने वालों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस घर में हरीश विरमानी अपनी पत्नी कांता और 2 जवान बेटियों यवनिका तथा शामला के साथ रहते थे.

विरमानी के दिमाग की नस फट गई थी, जिस की वजह से उन दिनों इस परिवार को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही थी. विरमानी चंडीगढ़ के पीजीआई में भरती थे. परिवार के लोग अकसर चंडीगढ़ में ही रहते थे. संभव था कि उस समय भी घर पर ताला लगा कर वहीं गए हों.

वहां काम की कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इस पर सतीश सुरजीत सिंह के घर की ओर बढ़ गए. उन का घर भी विश्वासनगर में ही था. वह स्थानीय इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करते थे. सुरजीत घर पर ही मिल गए.

उन से जग्गी मेहता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जग्गी उन का दोस्त था और उन से हर तरह की बातें शेयर करता था. एक बार उस ने मुझे बताया था कि हरीश विरमानी की लड़कियां बदचलन हैं.

पलभर बाद सुरजीत ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा, ‘‘डेढ़, 2 महीने पहले की बात है. विरमानी अपनी बीमारी की वजह से चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भरती था. जग्गी ने उस का हालचाल लेने की बात कही तो मैं उसे अपनी कार से चंडीगढ़ ले गया. उस समय जग्गी के साथ विरमानी की बड़ी बेटी यवनिका भी थी. वापसी में जीरकपुर के एक होटल में जग्गी ने गाड़ी रुकवा कर मुझे बीयर पिलाई और खुद भी पी. उस के बाद मुझे बाहर बैठा कर वह खुद यवनिका को ले कर होटल के कमरे में चला गया. वहां से वह करीब पौन घंटे बाद लौटा.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि जग्गी और यवनिका के बीच गलत संबंध थे?’’ सतीश मेहता ने पूछा.

‘‘इस बारे में पक्के तौर पर तो कुछ नहीं कह सकता, लेकिन जब हम चंडीगढ़ से लौट रहे थे तो पिछली सीट पर बैठा जग्गी लगातार यवनिका के साथ अश्लील हरकतें करता रहा था.’’ सुरजीत ने कहा.

उस की इस बात पर मोहनलाल मेहता भड़क उठे. ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. मेरा बेटा 40 साल का हो चुका है और बालबच्चेदार है. उस की खूबसूरत पढ़ीलिखी बीवी है.’’

सतीश मेहता ने उन्हें समझाया कि इस तरह की बातों पर भावुक होने की जरूरत नहीं है. हमें हर बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ानी है.

इस पर मोहनलाल कुछ सोचते हुए बोले, ‘‘हरीश विरमानी की लड़कियों के पास कुछ लड़के आया करते थे. इस बारे में मेरे बेटे ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिल कर पुलिस से शिकायत भी की थी.’’

‘‘क्या हुआ था शिकायत वाले मामले में?’’

‘‘दोनों पार्टियों में समझौता करा दिया गया था. उस के बाद लड़कियों के पास फालतू लोगों का आना बंद हो गया था.’’

‘‘यह तो आप के बेटे ने अच्छा काम किया था. लेकिन अभी मुझे सुरजीत से कुछ और पूछना है.’’

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‘‘आप के कुछ पूछने से पहले मैं एक बात जानना चाहता हूं. आप जिस जग्गी मेहता के बारे में पूछ रहे हैं, उस ने कुछ कर दिया है क्या?’’

‘‘वह गायब है और हम उस की तलाश में लगे हैं.’’

सुरजीत का घर दूर नहीं था. इंसपेक्टर सतीश मेहता मोहनलाल को ले कर उस के घर पहुंचे. वह घर पर ही था. मेहता ने उस से पूछा, ‘‘14 जुलाई की रात जग्गी मेहता से तुम्हारी कोई बातचीत हुई थी?’’

‘‘जी सर, उस रात वह मेरे पास आया था. आते ही उस ने यवनिका को फोन किया था. उस के प्रोग्राम के अनुसार उस रात उसे यवनिका के साथ रहना था. उस ने मुझ से 2 हजार रुपए मांगते हुए कहा था कि अगर उसे कार की जरूरत पड़ी तो वह मेरी कार ले जाएगा. लेकिन मैं ने उसे कार देने से इनकार कर दिया था. इस की वजह यह थी कि वह मेरा दोस्त जरूर था, लेकिन वह बालबच्चेदार था, इसलिए मुझे यह ठीक नहीं लगा.’’

‘‘तुम्हारे पास वह अकेला ही आया था?’’

‘‘जी, वह अकेला ही आया था.’’

‘‘उस का चपरासी मुन्ना साथ नहीं था?’’

‘‘जी नहीं, वह साथ में नहीं था. जग्गी ने मुझे बताया कि उसे अपने घर पर बैठा कर वह शराब लेने आया था.’’

‘‘फिर क्या हुआ था?’’

‘‘वह मुझ से 2 हजार रुपए ले कर चला गया था. आधी रात के बाद उस का फोन आया था. तब उस ने कहा था कि वह यवनिका के घर से बोल रहा है. उस ने एक बार फिर कार मांगी थी, लेकिन मैं ने मना कर दिया था.’’

‘‘उस के बाद क्या किया था उस ने?’’

‘‘क्या किया, पता नहीं. शायद टैक्सी ले कर अंबाला से कहीं बाहर चला गया होगा?’’

इस के बाद सतीश मेहता मोहनलाल के घर जा पहुंचे. जग्गी मेहता की पत्नी का नाम संतोष था. वह पब्लिक स्कूल में टीचर थीं. सतीश मेहता ने शालीनता के साथ पतिपत्नी के रिश्तों के अलावा जग्गी के बारे में कुछ बातें पूछीं और मोहनलाल के साथ थाने लौट आए.

वापस लौट कर उन्होंने थाने में रखे लाश के कपड़े और फोटो मोहनलाल को दिखाए तो उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘ये कपड़े और फोटो मेरे बेटे के हैं.’’

सतीश मेहता ने उन्हें सांत्वना दी और समझा कर कहा, ‘‘आप एक अरजी लिख कर दे दें ताकि हम रिपोर्ट लिख कर आगे की काररवाई शुरू करें.’’

‘‘क्या आप इस अभागे बाप को बेटे की लाश दिखा देंगे?’’

लेकिन एक दिन पहले ही लाश को लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया था, यह बात सतीश मेहता ने उन्हें बता दी.

दुखी मन से मोहनलाल मेहता उठे और धीरेधीरे चलते हुए थाने से बाहर निकल गए. उन की मानसिक दशा देख कर सतीश मेहता ने कुछ कहना उचित नहीं समझा. मोहनलाल मेहता दोबारा थाने नहीं आए तो उन्हें बुलाने के लिए सिपाही भेजे गए, लेकिन वह टालते रहे. इस से पुलिस को लगा कि शायद वह बेटे की बदनामी से डर गए हैं.

लेकिन 2 अगस्त की सुबह मोहनलाल मेहता बेटे की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने आ पहुंचे. उन की तहरीर के आधार पर यवनिका, शामला, अमित और सुनील को संदिग्ध मानते हुए नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद सतीश मेहता ने एसपी आर.सी. जोवल से संपर्क किया तो उन्होंने काररवाई का आदेश दे दिया. सतीश मेहता ने अपनी एक टीम गठित की, जिस में एसआई सोमदत्त, एएसआई गुरमेल सिंह, हवलदार आनंद किशोर, अश्विनी कुमार, राधेश्याम के अलावा कुछ महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

जब यह टीम काररवाई के लिए मौडल टाउन की ओर जा रही थी तो रास्ते में उन्हें स्थानीय नेता दिलीप चावला मिल गए. औपचारिक बातचीत के बाद सतीश मेहता ने उन्हें जग्गी की सिरकटी लाश मिलने वाली बात बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘जग्गी मेहता का कत्ल 2 लड़कियों यवनिका, शामला और 2 लड़कों अमित और सुनील ने किया है.’’

‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘कुछ देर पहले वे चारों मेरे पास मदद के लिए आए थे. लेकिन मुझे उन की मदद करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने मना कर के उन्हें अपने घर से भगा दिया.’’

‘‘आप को पुलिस को बताना चाहिए था. खैर, इस समय वे कहां होंगे?’’

‘‘मेरे पास जाते वक्त उन्होंने अपनेअपने घर लौट जाने की बात कही थी. मैं समझता हूं कि इस समय वे अपनेअपने घरों में ही होंगे.’’

सतीश मेहता ने यह बात एसपी आर.सी. जोवल को बताई तो उन्होंने सीआईए इंसपेक्टर खुशहाल सिंह के नेतृत्व में एएसआई हरबंस लाल, हवलदार ललित कुमार, सिपाही रणबीर सिंह, बलबीर सिंह और सोहनलाल की एक टीम बना कर उन की मदद के लिए भेज दी.

अब तक सतीश मेहता के बुलाने पर थाने की महिला एएसआई सुदर्शना देवी, हवलदार संगीता, मनजीत कौर, सिपाही धर्मपाल कौर भी तैयार हो कर आ पहुंची थीं. सतीश मेहता अपनी टीम के साथ विश्वासनगर की ओर चल पड़े. ये पुलिस टीम हरीश विरमानी के घर पहुंची तो यवनिका और शामला घर पर ही मिल गईं. पुलिस वालों को देख कर उन लड़कियों को घबरा जाना चाहिए था, लेकिन घबराने के बजाय उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए आत्मसमर्पण कर दिया.

इस के बाद खुशहाल सिंह दिलीप चावला को साथ ले कर अमित और सुनील को गिरफ्तार करने चले गए. संयोग से वे दोनों भी अपनेअपने घरों पर मिल गए. उन्होंने भी जग्गी मेहता के कत्ल का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

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चारों अभियुक्तों को अगले दिन स्पैशल रेलवे दंडाधिकारी संतप्रकाश की अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. यह तब की बात है, जब जुवैनाइल एक्ट अस्तित्व में नहीं आया था. लिहाजा नाबालिग शामला के साथ भी अन्य अभियुक्तों जैसा ही व्यवहार किया जा रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में चारों ने पुलिस को जो कुछ बताया, उस से जोगेंद्र कुमार मेहता उर्फ जग्गी मेहता की हत्या की कहानी सामने आ गई.

अंबाला के विश्वासनगर के रहने वाले टेलर मास्टर लेखराज के परिवार में पत्नी सुमित्रा देवी के अलावा 3 बेटे थे. जिन में सब से बड़ा था अमित, जिस ने आठवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. कुछ दिन उस ने मिक्सी बनाने का काम सीखा. जल्दी ही उस का इस काम से जी भर गया तो वह पिता के साथ टेलरिंग का काम करने लगा. अमित से दोनों छोटे भाई अभी पढ़ रहे थे.

विश्वासनगर के ही एक मंदिर में एक दिन शाम को अमित कुमार दर्शन करने गया तो प्रसाद खरीदते समय उस की नजर एक लड़की से टकरा गई. वह पहली ही नजर में उस की ओर आकर्षित हो गया. इस के बाद वह रोजाना वहां जाने लगा. आंखों ही आंखों में उस ने उस से प्रणय निवेदन किया तो लड़की ने मौन स्वीकृति दे दी.

वह लड़की यवनिका थी. जल्दी ही दोनों की मुलाकातें अंबाला के विभिन्न स्थानों पर होने लगीं. मांबाप के घर न होने पर यवनिका उसे अपने घर भी बुलाने लगी.

हरीश विरमानी के बीमार पड़ जाने के बाद दोनों की मौज आ गई. यवनिका रात में अमित को अपने घर बुलाने लगी तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

एक दिन अमित यवनिका घर पर थे, तभी जग्गी मेहता अचानक आ पहुंचा. हरीश विरमानी से उस का अच्छा परिचय था. उसी की हालचाल लेने वह वहां आया था. मांबाप की अनुपस्थिति में अमित को देख कर जग्गी ने कहा, ‘‘विरमानी साहब तो अस्पताल में हैं. तुम्हारी मां और बहन भी शायद वहीं गई होंगी. ऐसे में तुम इस लड़के के साथ अकेली क्या कर रही हो?’’

जग्गी मेहता ने यह बात यवनिका से कही थी, लेकिन उस के बजाय जवाब अमित ने दिया, ‘‘तुम्हें क्या ऐतराज है?’’

‘‘मुझे इस में क्या ऐतराज हो सकता है. मेरे कहने का मतलब यह है कि तुम भी ऐश करो और कभीकभी मुझे भी करवा दिया करो.’’

जग्गी यवनिका के पिता का दोस्त था. उम्र में भी लगभग उन के बराबर था. पिता के दोस्त की बातें सुन कर उसे बड़ा अजीब लगा. लेकिन उस के मन में चोर था, इसलिए वह चुप रही.

जबकि अमित से यह बात बरदाश्त नहीं हुई. वह जग्गी को हड़काते हुए बोला, ‘‘तुम हमारे लिए पहले भी मुसीबत बनते रहे हो. उस दिन पुलिस बुला कर तुम हमारे ऊपर इस तरह रौब डाल रहे थे, जैसे तुम कहीं के मजिस्ट्रेट हो. ध्यान से सुन लो, यवनिका मेरी है, हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते हैं और जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘भई, जब तुम्हें शादी करनी हो, कर लेना. मैं इस से कहां शादी करने जा रहा हूं.’’

‘‘तुम शादीशुदा हो और तुम्हारे बच्चे भी हैं, इसलिए तुम्हें यह सब शोभा नहीं देता. तुम हमारे रास्ते में मत आओ.’’

‘‘वाह! तुम तो बड़े अकड़ रहे हो भाई. एक बात याद रखना, मेरा नाम जग्गी मेहता है. मैं तुम्हें ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी भर याद रखोगे.’’ कह कर जग्गी पैर पटकता चला आया.

विश्वासनगर में ही शिंगाराराम रहते थे. लेकिन कुछ समय पहले ही उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी दुलारी देवी के अलावा 3 बेटे थे. उन का बीच वाला बेटा सुनील कुमार था, जो दसवीं पास कर के सेल्समैनी करने लगा था.

अमित और सुनील एक ही कालोनी में आगेपीछे के मकानों में रहते थे. इसी वजह से दोनों में परिचय था. अमित का जिन दिनों यवनिका के साथ इश्क परवान चढ़ा था, एक दिन उस ने यवनिका को अपनी गर्लफ्रैंड बता कर सुनील से मिलवाया. इस के बाद अमित ने सुनील का परिचय यवनिका की छोटी बहन शामला से करवा दिया तो उन के बीच दोस्ती हो गई.

बड़ी बहन की देखादेखी किसी की बांहों में समाने को वह भी मचल रही थी. सुनील से दोस्ती हुई तो वह भी उस से संबंध बना बैठी. इस के बाद दोनों बहनें जब घर में अकेली होतीं, सुनील और अमित को बुला कर रासलीला रचातीं.

17 जून को जग्गी मेहता सुरजीत सिंह की कार में हरीश विरमानी का हालचाल लेने चंडीगढ़ जा रहा था. जाने से पहले उस ने फोन कर के यवनिका को भी साथ चलने को कहा. उस ने जाने से मना किया तो जग्गी ने कहा कि उस के साथ एक परिवार जा रहा है. इस के बाद यवनिका उस के साथ चंडीगढ़ चलने को तैयार हो गई.

उस दिन शाम को अंबाला लौटने पर अमित यवनिका से मिला तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘अमित आज जग्गी मेहता ने मेरे साथ बहुत गलत किया, वह बहुत गंदा आदमी है.’’

‘‘क्या किया उस ने तुम्हारे साथ…?’’

‘‘जाते वक्त तो सब ठीक रहा, लेकिन लौटते समय जीरकपुर पहुंचे तो वहां के एक होटल के सामने जग्गी ने कार रुकवा दी. अंदर जा कर दोनों ने बीयर पी. इस के बाद जग्गी मुझे होटल के कमरे में ले गया. सुरजीत बाहर ही बैठा रहा. जग्गी ने कमरे में ले जा कर मेरे साथ जबरन मुंह काला किया.’’

‘‘क्याऽऽ? उस ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की और तुम ने शोर भी नहीं मचाया?’’

‘‘मैं अकेली लड़की क्या कर सकती थी? डर के मारे मेरे मुंह से आवाज तक नहीं निकली. लेकिन अब मैं उसे जिंदा नहीं रहने दूंगी. बस, तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ यवनिका ने गुस्से में कहा.

इस के बाद दोनों ने जग्गी मेहता की हत्या की योजना बनाने के साथ शामला और सुनील से बात की. चारों ने इस मुद्दे पर एक अनूठी योजना तैयार की. उसी योजना के तहत लोहे का एक बड़ा ट्रंक खाली कर लिया गया. करंट लगा कर मारने के लिए बिजली के तार की भी व्यवस्था कर ली गई. लेकिन यवनिका को यह योजना पसंद नहीं आई.

इस के बाद खूब सोचसमझ कर जो योजना तैयार की गई, उस के अनुसार 14 जुलाई की दोपहर यवनिका ने जग्गी के घर फोन कर के बैंक का नंबर ले लिया. इस के बाद बैंक फोन किया. जिस आदमी ने फोन उठाया, उस ने लड़की की आवाज सुन कर कहा, ‘‘जग्गी का रोज का यही हाल है, कभी सविता का फोन आता है तो कभी किसी और का.’’

इस के बाद उस ने जग्गी मेहता को आवाज लगाई. जग्गी मेहता ने पहले यवनिका के पिता का हालचाल पूछा. इस के बाद जीरकपुर वाली घटना का जिक्र कर के उसे उकसाने की कोशिश करने लगा. इस के बाद यवनिका ने उसे रात में अपने घर आने को कह दिया. जग्गी ने किसी होटल में चलने को कहा तो यवनिका ने घर में ही रात बिताने को कहा.

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उसी रात साढ़े 10 बजे जग्गी मेहता ने यवनिका को फोन किया. एक बार फिर उस ने रात कहीं बाहर बिताने को कहा तो यवनिका ने साफसाफ कहा, ‘‘आना हो तो घर आ जाओ. मैं बाहर नहीं जाऊंगी. घर में कोई खतरा नहीं है. घर में शामला और मैं ही हूं.’’

‘‘ठीक है. मैं रात 12, साढ़े 12 बजे के बीच आ जाऊंगा.’’

इस के बाद योजना के अनुसार, सुनील बाजार से शराब ले आया. अमित ने नशे की गोलियों का इंतजाम किया. जिस कमरे में जग्गी मेहता को जाना था, वहां पड़े बैड पर सुनील चादर ओढ़ कर लेट गया. घर का दरवाजा खुला छोड़ दिया गया.

एकदम सही समय पर जग्गी पहुंच गया. अमित रसोई में छिप गया. शामला और यवनिका जग्गी को प्यार से अंदर ले आईं. जग्गी अपने भाग्य पर इतराते हुए शहंशाहों की तरह आया. कमरे में पहुंच कर बैड पर किसी को लेटा देख कर पूछा, ‘‘यह कौन लेटा है?’’

‘‘दादी अम्मा हैं. अभी कुछ देर पहले अचानक आ गईं. लेकिन तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. अफीम खा कर आराम से पड़ी रहती हैं. फिर तुम जरा धीरे बोलना.’’ यवनिका ने कहा.

इस के बाद वहीं से सुरजीत सिंह को फोन किया. फोन करने के बाद यवनिका ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, उधर दीवान पर चलो. अगर कपड़े उतारना चाहो तो उतार लो.’’

जग्गी अपनी जगह से उठ कर दीवान पर इत्मीनान से बैठ गया. शराब की बोतल पहले ही वहां रखी गई थी. बोतल देख कर उस ने यवनिका से गिलास लाने को कहा. नशे की गोलियां पीस कर यवनिका ने पहले से ही स्टील के गिलास में डाल रखी थीं. जग्गी के पास आ कर उस ने खुद ही गिलास में शराब डाली और उसे हिलाते हुए जग्गी की ओर बढ़ा दिया.

जग्गी पहले ही शराब पी कर आया था. यवनिका के हाथों उस ने 2 पैग और चढ़ा लिए. वह भी नशीली दवा के साथ. थोड़ी ही देर में वह नशे में झूमने लगा. उस के बाद यवनिका और शामला से बोला, ‘‘तुम दोनों भी मेरे साथ थोड़ी पियो.’’

यवनिका रसोई में गई और 2 गिलासों में थम्सअप ले आई. रसोई में जाते समय वह शराब की बोतल साथ ले गई थी. इसलिए उन्हें थम्सअप पीते देख कर जग्गी को लगा कि वे भी शराब पी रही हैं. अब तब झूमते हुए उस ने अपने कपड़े उतार दिए.

जग्गी मेहता ने जैसे ही कपड़े उतारे सुनील ने जल्दी से सामने आ कर उस की फोटो खींच ली. ठीक उसी समय अमित भी वहां आ गया. कैमरे की फ्लैश से जग्गी की आंखें चुंधिया गईं. अमित और सुनील को सामने पा कर वह आंखें मलते हुए चिल्लाया, ‘‘कबाब में हड्डी बनने के लिए तुम लोग यहां क्यों आए हो? दिनरात तुम लोग ऐश करते हो, मैं ने कभी अड़ंगा डाला है?’’

अमित ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘तुम ने मेरी यवनिका को पीजीआई ले जाने के बहाने रास्ते में होटल में दुष्कर्म किया था न?’’

‘‘नहीं तो. मैं ने कब इस से दुष्कर्म किया?’’

‘‘जीरकपुर के ब्रिस्टल होटल के कमरे में यवनिका को ले जा कर तुम ने इस के साथ क्या किया था?’’

‘‘जो भी किया, उस से क्या हो गया? तुम उस के साथ क्या करते हो? मैं ने तो कभी कुछ नहीं पूछा. और तुम लोग मेरा यह फोटो खींच कर क्या करोगे?’’

‘‘उस का क्या होगा, यह बाद की बात है.’’ यवनिका ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘अभी तो मुझ से आंख मिला कर बताओ कि ब्रिस्टल होटल में तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी या नहीं?’’

यवनिका के यह कहते ही जग्गी उस के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा. शायद उसे इस बात का आभास हो गया था कि उसे वहां मौजमस्ती के लिए नहीं, किसी साजिश के तहत बुलाया गया है.

जग्गी माफी मांग ही रहा था कि अमित ने जग्गी के मुंह पर हाथ रख कर दूसरे हाथ से उस की गरदन में चाकू घुसेड़ दिया. ठीक उसी समय सुनील ने दूसरा चाकू भी उस की गरदन में दूसरी ओर से घुसेड़ दिया.

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2 चाकुओं के वार से बिना चीखेचिल्लाए जग्गी छटपटाने लगा. फिर तो उन्होंने उस पर और भी कई वार किए. कुछ देर बाद जब उन्हें लगा कि जग्गी मर गया है तो उसे कपड़े और जूते पहना कर दीवान पर बिछे गद्दे में लपेट कर घर में रखी साइकिल पर लाद कर रेलवे लाइन पर फेंक आए. संयोग से उस समय तेज बारिश हो रही थी, इसलिए रेलवे लाइन तक लाश ले जाते समय उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई.

इस के बाद उन्होंने गद्दा और चाकू पास के गंदे नाले में फेंक दिया. वहीं साइकिल भी छिपा दी. घर लौट कर खून के छींटे और धब्बे साफ कर दिए गए.

दीवार पर खून साफ करने से जो धब्बे बन गए थे, उसे सहज बनाने के लिए यवनिका ने वहां सरसों का तेल गिरा दिया ताकि देख कर लगे कि किसी से तेल की शीशी गिर गई है.

यह सब करतेकरते 5 बज गए. इस के बाद यवनिका और शामला पहले चंडीगढ़ स्थित पीजीआई गईं और मातापिता से मिल कर हरिद्वार चली गईं. जबकि मातापिता से बताया था कि अंबाला जा रही हैं.

पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर खून लगा गद्दा, साइकिल और हत्या में प्रयुक्त दोनों चाकू बरामद कर लिए गए. रिमांड अवधि समाप्त होने पर उन्हें फिर से अदालत में पेश कर सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

विवेचक सतीश मेहता ने निर्धारित अवधि में इन के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर निचली अदालत में पेश कर दिया. अंबाला की जिला अदालत में 3 साल तक केस चला. बाद में सेशन से चारों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्टिंग औपरेशन का खेल

लेखक- निखिल अग्रवाल 

इसी 22 अप्रैल की बात है. केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री डा. महेश शर्मा नोएडा के सेक्टर-27 स्थित कैलाश हौस्पिटल में बैठे थे. यह उन का खुद का अस्पताल

है. लोकसभा चुनावों की वजह से डा. शर्मा काफी व्यस्त थे. वह खुद भी उत्तर प्रदेश की गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे.

हालांकि गौतम बुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र में 11 अप्रैल को ही मतदान हो चुका था, फिर भी डा. शर्मा की व्यस्तता इसलिए कम नहीं हुई थी कि केंद्र सरकार में मंत्री होने के नाते उन्हें पार्टी की ओर से किसी भी प्रत्याशी के चुनाव प्रचार के लिए भेजा जा सकता था. इस के अलावा वह अपने खुद के चुनाव की जीतहार का गणित भी लगा रहे थे.

दोपहर करीब 12 बजे एक युवती अस्पताल में उन के चैंबर में पहुंची. चैंबर में डा. शर्मा के पास एकदो लोग बैठे हुए थे. पतलीदुबली सी इस युवती ने पूरी आस्तीन की टीशर्ट और जींस पहन रखी थी. युवती ने डा. महेश शर्मा को नमस्ते कर के कहा, ‘‘मुझे आलोक सर ने भेजा है.’’

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मंत्री डा. शर्मा ने उस युवती की ओर देखते हुए सवाल किया, ‘‘कौन आलोकजी?’’

‘‘जी, प्रतिनिधि न्यूज चैनल वाले आलोक सर.’’ युवती ने प्रभावी तरीके से जवाब दिया.

‘‘हांहां, याद आ गया चैनल वाले आलोकजी.’’ डा. शर्मा ने युवती को सामने रखी कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए शालीनता से कहा, ‘‘बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘आलोक सर ने आप के लिए एक चिट्ठी भेजी है.’’ युवती ने यह कह कर अपने बैग से एक लिफाफा निकाल कर केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा की ओर बढ़ा दिया.

चिट्ठी बम ने उड़ाए डा. शर्मा के होश

डा. शर्मा ने युवती से लिफाफा ले कर खोला. उस में 2 पेज की एक प्रिंटेड चिट्ठी थी. चिट्ठी पढ़ कर डा. शर्मा के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए. उन्होंने अपनी टेबल पर रखे गिलास से ठंडा पानी पीया और एक बार फिर चिट्ठी को गौर से पढ़ा. सामने बैठी युवती की ओर देख कर अपनी परेशानी छिपाते हुए डा. शर्मा ने जेब से रूमाल निकाल कर चेहरा पोंछा.

दरअसल, उस चिट्ठी में ब्लैकमेलिंग और धमकी भरी कुछ ऐसी बातें लिखी थीं, जिन से डा. शर्मा का परेशान होना स्वाभाविक था. चिट्ठी में केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा से मोटे तौर पर 3 किस्तों में 9-10 करोड़ रुपए मांगे गए थे. चिट्ठी में लिखा था कि 45 लाख रुपए आज शाम 4 बजे तक दे दें. इस के 2 दिन बाद एक करोड़ 55 लाख रुपए देने की बात लिखी थी. आलोक कुमार ने बाकी 7-8 करोड़ रुपए मई के महीने में बतौर कर्ज देने की बात लिखी थी.

चिट्ठी में दोस्ती और दुश्मनी की बातें भी लिखी थीं. इन में कहा गया था कि आप से दुश्मनी करने से कोई फायदा तो है नहीं, लेकिन अगर आप से दोस्ती कर ली जाए तो हम दोनों के लिए अच्छा रहेगा. बतौर कर्ज के लिए लिखा था कि एक नई कंपनी के लिए आप 40 प्रतिशत शेयर ले कर 7-8 करोड़ रुपए की मदद करेंगे तो अच्छा रहेगा. चिट्ठी में यह बात भी लिखी थी कि इसे आप ब्लैकमेलिंग न समझें, बल्कि इसे आपसी सहभागिता के लिए जरूरी समझें.

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2 बार चिट्ठी पढ़ने के बाद यह बात साफ हो गई थी कि आलोक कुमार ने उन्हें ब्लैकमेल करने के मकसद से पत्र भेजा था. कुछ देर सोचनेविचारने के बाद उन्होंने अपने एक कर्मचारी को बुला कर युवती को दूसरे कमरे में बैठाने के लिए कह दिया.

इस के बाद डा. शर्मा ने हौस्पिटल में ही मौजूद अपने भाई अजय शर्मा को बुलाया. डाक्टर साहब को चिंता में बैठे देख कर अजय ने पूछा, ‘‘भाईसाहब, क्या बात है, कुछ परेशान नजर आ रहे हैं?’’

डा. शर्मा ने कोई जवाब देने के बजाए वह चिट्ठी पढ़ने के लिए भाई को दे दी. चिट्ठी पढ़ कर अजय शर्मा भी चिंता में पड़ गए. चिट्ठी में साफतौर पर पैसों की मांग की गई थी. यह रकम क्यों मांगी जा रही थी, यह बात स्पष्ट नहीं थी. काफी देर विचारविमर्श के बाद केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया. उन्होंने नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण को फोन लगा कर पूरी बात बताई. एसएसपी ने कहा कि वह खुद हौस्पिटल आ रहे हैं.

कुछ ही देर में एसएसपी वैभव कृष्ण, एसपी (सिटी) सुधा सिंह और इलाके के अन्य पुलिस अधिकारी कैलाश अस्पताल पहुंच गए. एसएसपी ने डा. शर्मा से मिल कर चिट्ठी और चिट्ठी देने आई युवती के बारे में पूछा. डा. शर्मा ने उन्हें वह चिट्ठी दे दी. युवती के बारे में बताया कि वह दूसरे कमरे में बैठी है.

एससपी ने 2 महिला कांस्टेबल भेज कर उस युवती को पुलिस की निगरानी में ले लिया. फिर उन्होंने डा. शर्मा से विस्तार से सारी बातें पूछीं. डा. शर्मा ने बताया कि करीब एक महीने पहले 24 मार्च को ऊषा ठाकुर के साथ आलोक कुमार नाम का युवक उन से मिलने आया था. डा. शर्मा ने बताया कि ऊषा ठाकुर को वह बड़ी बहन के रूप में मानते हैं, उन पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं.

चुनाव प्रचार के बहाने फेंका जाल

युवक ने केंद्रीय मंत्री से खुद को रचना आईटी सोल्यूशन नाम की कंपनी का सीईओ बताया और चुनाव प्रचार में मदद करने की बात कही. युवक ने उन से कहा कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उस की कंपनी की तरफ से वाहन, 60 मैनेजर और 300 कर्मचारी डोर टू डोर कैंपेन के लिए लगाए जाएंगे.

बातचीत के दौरान युवक ने कई बार डा. महेश शर्मा का नाम लिया. इस पर डा. शर्मा ने कथित तौर पर उस से कहा कि नाम लेने के बजाए वह कोड वर्ड में बात करे. बातचीत खत्म होने पर डा. शर्मा ने उस युवक को उन का चुनाव प्रबंधन देख रहे अपने भाई अजय शर्मा से मिलने को कहा.

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इस के करीब 15 दिन बाद 9 अप्रैल को आलोक ने शर्मा को फोन कर बताया कि वह प्रतिनिधि न्यूज चैनल से बोल रहा है और उस ने उन का स्टिंग औपरेशन किया है. स्टिंग औपरेशन के बारे में पूछने पर आलोक ने डा. शर्मा को 24 मई को हुई बातचीत में कोड वर्ड में बात करने वाली बातें याद दिलाई और कहा कि उस मुलाकात के दौरान वह खुफिया कैमरों से लैस था.

इस के बाद आलोक ने अपनी आवाज में नरमी ला कर केंद्रीय मंत्री को फोन पर ही बताया कि नोटबंदी के दौरान उस का चैनल घाटे में चला गया था. इस वजह से चैनल को बंद करना पड़ा. अगर वह चैनल में अपना शेयर डाल दें या खरीद लें तो वह उसे चला देगा.

उस समय चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के कारण डा. शर्मा ने आलोक से 11 अप्रैल को मतदान होने के बाद फुरसत में बात करने को कहा.

बाद में 21 अप्रैल को आलोक ने डा. शर्मा को मैसेज किया कि अगले दिन उस की एक प्रतिनिधि पत्र ले कर उन से मिलेगी. पत्र पढ़ कर क्या करना है, वह उसे बता देना. वरना वह स्टिंग को चैनल पर चला देगा.

डा. शर्मा ने एसएसपी को बताया कि स्टिंग में क्या है, यह उन्हें नहीं पता. उन की किसी से इस तरह की कोई आपत्तिजनक बात भी नहीं हुई है.

सारी बातें समझने के बाद एसएसपी वैभव कृष्ण ने एसपी सिटी सुधा सिंह को आलोक की चिट्ठी ले कर आई युवती से पूछताछ करने को कहा. युवती के पास एक खुफिया कैमरा और एक टैबलेट मिला.

रिकौर्डिंग डिवाइस लगे टैबलेट में 20 मिनट का एक वीडियो अपलोड था. इस में चुनाव प्रचार के लिए वाहनों का इंतजाम करने के साथ वोट दिलाने की बात कही गई थी. इस में एक जगह केंद्रीय मंत्री ने कोड वर्ड में बात करने का जिक्र किया था. आशंका यही थी कि इसी कोड वर्ड की बात को ले कर चैनल संचालक आलोक केंद्रीय मंत्री को ब्लैकमेल करना चाहता था.

पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम निशु था. वह नोटबंदी के दौरान बंद हो चुके यूट्यूब चैनल ‘प्रतिनिधि’ की रिपोर्टर थी. इस चैनल का संचालक आलोक कुमार था. मूलरूप से बिहार की रहने वाली निशु के पिता का निधन हो चुका है. परिवार में केवल विधवा मां है. घर का खर्च चलाने के लिए वह पत्रकारिता के ग्लैमर वाले रास्ते पर चल कर कुछ साल से आलोक कुमार के चैनल में काम कर रही थी.

निशु से पता चला कि जब वह चिट्ठी देने आई थी, तब आलोक कुमार भी अस्पताल में मौजूद था. यह पता चलने पर पुलिस ने उस की तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला. पुलिस अधिकारी निशु को थाना सेक्टर-20 ले गए और व्यापक पूछताछ की. इस में कई बातें सामने आईं.

बाद में डा. महेश शर्मा के भाई अजय शर्मा ने इस मामले में नोएडा के सेक्टर-20 पुलिस थाने में आलोक कुमार, निशु और खालिद नाम के एक शख्स के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. रिपोर्ट दर्ज होने पर पुलिस ने निशु को गिरफ्तार कर लिया.

निशु की मैडिकल जांच कराने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इस मामले में पुलिस ने उसी दिन ऊषा ठाकुर से भी पूछताछ की, लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. ऊषा ठाकुर चिट्ठी देने की घटना के दौरान कैलाश अस्पताल में ही थीं.

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ऊषा ठाकुर हिंदी के महान कवि रहे रामधारी सिंह दिनकर की नातिन हैं. बिहार के बेगूसराय जिले का सिमरिया घाट कवि दिनकर की जन्मस्थली है. ऊषा ठाकुर नोएडा इलाके की चर्चित समाजसेविका हैं. वह कई स्वयंसेवी संगठनों से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने नोएडा के निठारी से लापता हो रहे बच्चों के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए काफी भागदौड़ की थी.

इस के बाद जांच होने पर दिसंबर 2006 में निठारी का बहुचर्चित मानवभक्षी और पोर्नोग्राफी का मामला उजागर हुआ था. बाद में निठारी कांड में आरोपियों को सजा दिलाने में भी ऊषा ठाकुर ने काफी संघर्ष किया था.

ऊषा ठाकुर के संबंधों का फायदा उठाने की कोशिश

निशु की गिरफ्तारी के बाद एसएसपी वैभव कृष्ण ने दावा किया कि आलोक का 5-6 लोगों का संगठित गिरोह था. यह गिरोह ब्लैकमेलिंग के धंधे में लगा था. चुनाव के दौरान इन लोगों ने दिल्ली और नोएडा के कई दिग्गज नेताओं के स्टिंग कर वीडियो बनाए थे. इन लोगों ने नेताओं को वीडियो दिखा कर उन से मोटी रकम हड़पी थी.

इस के बाद नोएडा पुलिस मुख्य आरोपी आलोक कुमार और उस के साथियों की तलाश में जुट गई. इस के लिए पुलिस की 3 टीमें बनाई गईं. क्राइम ब्रांच और सर्विलांस टीम का भी सहयोग लिया गया. पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश दी. आलोक का पता लगाने के लिए उस के परिवार जनों से भी पूछताछ की गई. आलोक कुमार नोएडा में ही मां, पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था.

पुलिस की ओर से इस मामले में पूछताछ करने से चर्चा में आई 69 साल की ऊषा ठाकुर ने दूसरे दिन मीडिया से कहा कि आलोक कुमार उन्हें मां कह कर बोलता था. उस के पिता बिहार में आईपीएस औफिसर थे, जिन की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.

मिलनेजुलने के दौरान आलोक ने डा. महेश शर्मा से मिलने की इच्छा जताई थी. चूंकि वह खुद भी डा. महेश शर्मा को भाई मानती हैं और लंबे समय से उन के लिए चुनाव प्रचार भी करती आई हैं. इसलिए आलोक को वह मना नहीं कर सकीं और अपने साथ डा. महेश शर्मा से मिलवाने ले गई थीं. ऊषा ठाकुर का कहना था कि उन्हें यह बिलकुल नहीं पता था कि मुलाकात के दौरान आलोक ने स्टिंग औपरेशन किया है.

घटना के दौरान अस्पताल में मौजूदगी पर ऊषा ठाकुर का कहना था कि उस दिन सुबह रिटायर्ड डीएसपी के.के. गौतम का फोन आया था. उन्होंने कहा कि डा. महेश शर्मा उन से मिलना चाहते हैं. इस पर ऊषा ठाकुर ने गौतम से कहा कि वे अपनी बीमार मां को दिखाने कैलाश अस्पताल आएंगी तो वहां मंत्रीजी से भी मिल लेंगी.

नोएडा की सेक्टर-20 थाना पुलिस ने 24 अप्रैल को निशु को 7 दिन के रिमांड पर लिया. पुलिस उसे पूछताछ के लिए लुक्सर जेल ले  आई. निशु से पता चला कि स्टिंग का असली वीडियो आलोक कुमार के पास है. उस के पास टेबलेट में जो वीडियो मिला था, वह उस की मूल कौपी नहीं थी.

दूसरी ओर, पुलिस इस मामले में नामजद आरोपी आलोक कुमार और खालिद की तलाश में दिल्ली, गाजियाबाद व नोएडा सहित कई जगह छापे मारती रही. लेकिन दोनों का पता नहीं चला. उन के फरार होने से यह आशंका भी थी कि आलोक कुमार केंद्रीय मंत्री के स्टिंग का असली वीडियो वायरल न कर दे.

पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि प्रतिनिधि चैनल के मालिक आलोक कुमार के साथ निशु के अलावा एक अन्य युवती भी जुड़ी हुई थी. उस का नाम निशा था. आलोक ने नोएडा के सेक्टर-92 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था.

निशु दूसरी युवती निशा और जामिया नगर में रहने वाले खालिद का ज्यादा वक्त इसी फ्लैट में गुजरता था. आलोक ने पांडव नगर में एक औफिस बना रखा था. इस औफिस में उस ने कई रिपोर्टर और अन्य कर्मचारियों को रख रखा था. पुलिस को यह औफिस बंद मिला. पुलिस को इस औफिस से ब्लैकमेलिंग से संबंधित सबूत मिलने की उम्मीद थी.

इधर, आलोक और खालिद की तलाश में पुलिस टीमें इलाहाबाद और लखनऊ भी भेजी गईं. आलोक की तलाश में पुलिस मुंबई तक की चक्कर लगा कर आई. खालिद की दिल्ली के अलावा हापुड़ में भी तलाश की गई.

बड़ा खिलाड़ी बनने की राह पर था आलोक

रिमांड अवधि में निशु ने पूछताछ में बताया कि आलोक के कहने पर उस ने 3 नेताओं के स्टिंग किए थे. स्टिंग के दौरान निशु के साथ एक अन्य युवती भी थी. इन के वीडियो आलोक के पास ही हैं. उस ने बताया कि आलोक की स्टिंग करने वाली टीम में युवतियों सहित 6-10 लोग शामिल थे.

इस टीम को आलोक ही हिडन कैमरे मुहैया कराता था. निशु ने पुलिस को बताया कि आलोक ने उसे ब्लैकमेलिंग से मिलने वाली रकम में से हिस्सा देने का वादा किया था. आलोक ही अपनी स्टिंग टीम को नए मोबाइल और सिमकार्ड खरीद कर देता था. नए मोबाइल से ही स्टिंग में रिकौर्ड वीडियो व औडियो को संबंधित नेता तक पहुंचाया जाता था.

रंगदारी के पैसों के लेनदेन की बात भी नए मोबाइल से ही की जाती थी. इन नए मोबाइलों में केवल 8-10 नंबर ही होते थे. निशु के पास से भी पुलिस ने नया मोबाइल बरामद किया था. रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने निशु को 2 मई को अदालत में पेश कर न्यायिक हिरासत में भिजवा दिया.

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लगातार भागदौड़ करने के बाद सुराग मिलने पर पुलिस ने आलोक को 4 मई को कोलकाता से गिरफ्तार कर लिया. उस के साथ महिला पत्रकार निशा को भी गिरफ्तार किया गया. दोनों कोलकाता में न्यू मार्केट थाना इलाके के होटल रीगल में ठहरे हुए थे. दोनों को कोलकाता की अदालत में पेश कर 72 घंटे का ट्रांजिट रिमांड ले कर नोएडा लाया गया. नोएडा ला कर 5 मई को दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

बाद में पुलिस ने आलोक व निशा को 4 दिन के रिमांड पर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि सन 2017 में नोटबंदी के बाद उस का यूट्यूब चैनल ‘प्रतिनिधि’ बंद हो गया. उस पर 70 लाख रुपए का कर्ज था. कर्ज उतारने के लिए उस ने अपनी 2 कारों में एक कार बेच दी थी. इस के बाद बड़े लोगों को स्टिंग कर ब्लैकमेलिंग का रास्ता चुना. 2 साल में वह कई चर्चित नेताओं व बिजनेसमैनों  का स्टिंग कर मोटी रकम ऐंठ चुका था.

केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा से मिलने के लिए उस ने मूलरूप से बिहार की रहने वाली नोएडा में बसी चर्चित समाजसेविका ऊषा ठाकुर से संपर्क किया. उन के जरिए डा. शर्मा से मुलाकात कर लोकसभा चुनाव में मदद करने के लिए गाडि़यां और मैन पावर उपलब्ध कराने का औफर दिया.

उसी वक्त उस ने केंद्रीय मंत्री से बातचीत हिडन कैमरे के जरिए रिकौर्ड कर ली. बातचीत के बीचबीच में आलोक ने जानबूझ कर कई बार डा. महेश शर्मा का नाम लिया और कुछ ऐसी बातें कहीं, जिस पर डा. शर्मा ने उस से कोड वर्ड में बात करने को कहा.

कोड वर्ड को ले कर ही आलोक ने केंद्रीय मंत्री को ब्लैकमेलिंग करने की योजना बनाई और निशु को चिट्ठी दे कर उन के पास भेजा. वह खुद भी इस दौरान कैलाश अस्पताल पहुंच गया था. उसे उम्मीद थी कि डा. शर्मा उसे फोन कर बुलाएंगे. लेकिन बाद में जब वहां पुलिस आने लगी, तो वह वहां से खिसक गया.

यह बात भी सामने आई कि केंद्रीय मंत्री के स्टिंग का वीडियो ले कर आलोक कुमार विरोधी राजनीतिक पार्टी के पास गया था. इस वीडियो के बदले उस ने मोटी रकम की मांग की थी लेकिन विरोधी नेताओं ने उतनी रकम में वह वीडियो खरीदने से इनकार कर दिया था. इस के बाद आलोक ने खुद केंद्रीय मंत्री को फोन कर स्टिंग करने की बात बताई थी. साथ ही पैसे की बात भी कह दी थी.

पूछताछ में पता चलने पर पुलिस ने आलोक के घर से स्टिंग में उपयोग लिए गए 2 लैपटौप, 3 हिडन कैमरे, 3 मोबाइल फोन, 10 सिमकार्ड और एक टैब आदि चीजें बरामद कीं. इन में एक लैपटौप से केंद्रीय मंत्री के स्टिंग का असली वीडियो मिला. पुलिस ने लैपटौप, मोबाइल, टैब सहित अन्य डिवाइस को जांच के लिए फोेरैंसिक लैब भेज दिया. रिमांड अवधि पूरी होने पर दोनों को 11 मई को जेल भेज दिया गया.

ऊषा की भूमिका संदेह के दायरे में

इस मामले में पुलिस ने 17 मई को ऊषा ठाकुर को सेक्टर 31 स्थित उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें अदालत में पेश कर उसी दिन जेल भेज दिया गया. पुलिस का कहना है कि आलोक से पूछताछ में पता चला कि ब्लैकमेलिंग के इस मामले में ऊषा ठाकुर की सक्रिय भूमिका थी. ऊषा ठाकुर और डा. महेश शर्मा का 30 साल पुराना संबंध बताया जाता है.

पुलिस का कहना है कि ऊषा ठाकुर और आलोक कुमार दोनों ही बिहार के रहने वाले हैं. आलोक अपने न्यूज चैनल पर डिबेट के लिए ऊषा ठाकुर को बुलाता था. बाद में चैनल बंद होने की कगार पर आ गया. तब एक दिन आलोक ने ऊषा को नेताओं को ब्लैकमेलिंग कर मोटी रकम कमाने के बारे में बताया.

पहले तो उन्होंने इस काम में शामिल होने से इनकार कर दिया. फिर आलोक ने एक दिन ऊषा के घर पहुंच कर साथ देने की बात कही. इस के बाद ऊषा नेताओं को ब्लैकमेल कर वसूली करने की साजिश में शामिल हो गईं. यह साजिश अगस्त 2018 में ऊषा की मौजूदगी में उन के घर पर रची गई.

इस के बाद लोकसभा चुनाव का मौका देख कर ऊषा ने ही आलोक को एक कंपनी का सीईओ बताते हुए केंद्रीय मंत्री से मिलवाया था. ऊषा ने डा. शर्मा को यह नहीं बताया कि आलोक न्यूज चैनल चलाता है, जबकि वे खुद उस के चैनल और डिबेट में जाती थीं.

पुलिस ने पहले दिन निशु से जो टेबलेट बरामद किया था, वह उस ने ऊषा के घर से ही लिया था. निशु जब आलोक की चिट्ठी ले कर वसूली करने गई थी तब ऊषा ठाकुर भी केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा के कैलाश अस्पताल में मौजूद थीं.

कहा जाता है कि केंद्रीय मंत्री को ब्लैकमेल करने के मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय भी नजर रखे हुए था. पहले दिन जब निशु की गिरफ्तारी के बाद ऊषा ठाकुर से पुलिस द्वारा पूछताछ की गई तो पीएमओ के अधिकारियों ने उन से खेद जताया था.

साथ ही उन से इस मामले से संबंधित सारी जानकारियां भी मांगी थी. पीएमओ के अधिकारियों ने उन से कहा था कि लोकसभा चुनाव का परिणाम आने तक वे इस मामले में चुप रहें. इस के बाद उचित काररवाई की जाएगी.

ऊषा ठाकुर ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि उन्हें 30 साल की उन की सामाजिक प्रतिष्ठा को खत्म करने के लिए इस मामले में फंसाया गया है. उन्होंने तो नोटबंदी के बाद आलोक की आर्थिक रूप से मदद की थी. कुछ जानकारों से उसे पैसे भी दिलवाए थे. दूसरी ओर पुलिस का कहना है कि ऊषा और आलोक को जेल में ही आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की जाएगी.कथा लिखे जाने तक इस मामले में एक नामजद आरोपी खालिद को पुलिस तलाश कर रही थी.

पुलिस उस के घर की कुर्की की काररवाई की बात भी कह रही थी. पुलिस ने नोएडा में पहले तैनात रहे एक रिटायर्ड डीएसपी को भी शक के दायरे में रखा गया था. यह डीएसपी भी 22 अप्रैल को घटना के दौरान केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा के अस्पताल में मौजूद थे.

अब डा. महेश शर्मा के बारे में भी जान लें. वे नोएडा विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने. बाद में 2014 में वे भाजपा के टिकट पर गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ कर जीते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपनी केबिनेट में शामिल कर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बनाया.

राजस्थान के अलवर जिले की मुंडावर तहसील के मनेठी गांव में 30 सितंबर 1959 को पैदा हुए डा. महेश शर्मा पेशे से फिजिशियन हैं. उन के पिता अध्यापक थे. सेकेंडरी तक की पढ़ाई अलवर जिले में करने के बाद महेश शर्मा दिल्ली चले गए थे. बाद में उन्होंने डाक्टरी की डिग्री ली. उन का कैलाश ग्रुप औफ हौस्पिटल्स है.

नोएडा के अलावा उन का राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ में भी कैलाश हौस्पिटल है. डा. महेश शर्मा की पत्नी डा. ऊषा शर्मा गायनेकोलौजिस्ट हैं. वे कैलाश हौस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्यूट की प्रबंधन कमेटी और कैलाश हेल्थ केयर लि. की वाइस चेयनमैन हैं. इन का एक बेटा और बेटी भी मैडिकल प्रोफेशन में हैं.

क्या यही वाकई इंसाफ हैं

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र  

अशोक चंदेल को उस के गुनाह की जो सजा मिली है, क्या वो…   उस दिन अप्रैल, 2019 की 19 तारीख थी. वैसे तो रविवार को छोड़ कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हर रोज चहलपहल रहती है लेकिन उस दिन न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की स्पैशल डबल बैंच में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. पूरा कक्ष लोगों से भरा था. पीडि़त व आरोपी पक्ष के दरजनों लोग भी कक्ष में मौजूद थे.

दरअसल, उस दिन एक ऐसे मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे 22 साल पहले बुंदेलखंड क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी.

आरोपी पक्ष के लोग कयास लगा रहे थे कि इस मामले में सभी आरोपी बरी हो जाएंगे, जबकि पीडि़त पक्ष के लोगों को अदालत पर पूरा भरोसा था और उन्हें उम्मीद थी कि आरोपियों को सजा जरूर मिलेगी.

दरअसल, निचली अदालत से सभी आरोपी बरी कर दिए गए थे. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सुनवाई हो रही थी. सब से दिलचस्प बात यह थी कि इस मामले में एक पूर्व सांसद व वर्तमान में बाहुबली विधायक अशोक सिंह चंदेल आरोपी था.

उस ने साम दाम दंड भेद से इस मुकदमे को प्रभावित करने का प्रयास भी किया था. काफी हद तक वह सफल भी हो गया था, लेकिन अब यह मामला उच्च न्यायालय में था और फैसले की घड़ी आ गई थी, जिस ने उस की धड़कनें तेज कर दी थीं. लोग फैसला सुनने के लिए उतावले थे.

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स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने ठीक साढ़े 10 बजे न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और अपनीअपनी कुरसियों पर विराजमान हो गए. उन्होंने अभियोजन व बचाव पक्ष के वकीलों पर नजर डाली.

फिर अंतिम बार उन्होंने मुकदमे की फाइल का निरीक्षण किया. वकीलों की बहस पहले ही पूरी हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने ठीक 11 बजे फैसला सुना दिया. फैसले की यह घड़ी आने में 22 साल 2 महीने का समय लग गया था.

आखिर ऐसा क्या मामला था, जिस का फैसला जानने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता थी. इस के लिए हमें 2 दशक पुरानी घटना को जानना होगा जो बेहद लोमहर्षक थी.

अशोक सिंह चंदेल मूलरूप से हमीरपुर जिले के थाना भरूआ सुमेरपुर के टिकरौली गांव का रहने वाला था. लेकिन उस की शिक्षादीक्षा कानपुर में हुई थी. छात्र जीवन में ही उस ने राजनीति का ककहरा सीख लिया था.

कानपुर शहर के किदवईनगर के एम ब्लौक में पिता का पुराना मकान था. इसी मकान में रह कर उस ने पढ़ाई पूरी की थी. अशोक सिंह चंदेल तेजतर्रार था. अपनी बातों से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर लेना उस की विशेषता थी. पढ़ाई के दौरान उस ने डीवीएस कालेज से छात्र संघ के कई चुनाव लड़े, किंतु सफलता नहीं मिली. वह जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था, वह विरोधियों को मात देने में भी माहिर था.

सन 1985 में अशोक सिंह का रुझान व्यापार की तरफ हुआ. काफी सोचविचार के बाद उस ने एम ब्लौक, किदवई नगर में पंजाब नैशनल बैंक वाली बिल्डिंग में शालीमार फुटवियर के नाम से जूतेचप्पल की दुकान खोली. 14 नवंबर, 1985 को धनतेरस का त्यौहार था. इसी दिन दुकान का उद्घाटन था. उद्घाटन के बाद उस की दुकान पर ग्राहकों का आनाजाना शुरू हो गया था और बिक्री होने लगी थी.

शाम 5 बजे बाबूपुरवा कालोनी निवासी कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता उर्फ मामाजी अशोक चंदेल की दुकान पर चप्पल लेने पहुंचे. चूंकि दोनों एकदूसरे से परिचित थे, अत: बातचीत के दौरान रणधीर गुप्ता ने जूतेचप्पल की दुकान खोलने को ले कर अशोक पर कटाक्ष कर दिया. अशोक ने उस समय रणधीर से कुछ नहीं कहा. चप्पल खरीद कर वह अपने घर चले गए.

रात 10 बजे रणधीर गुप्ता किसी काम से थाना बाबूपुरवा गए थे. जब वह वहां से लौट रहे थे तो अशोक की दुकान के सामने उन के स्कूटर का पैट्रोल खत्म हो गया. अशोक नशे में धुत बंदूक लिए दुकान से बाहर खड़ा था. दिन में किए गए रणधीर के कटाक्ष को ले कर दोनों में कहासुनी होने लगी.

इस कहासुनी में अशोक सिंह चंदेल ने कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता को गोली मार दी. गोली पेट में लगी और वह गिर पड़े. गोली मारने के बाद अशोक सिंह चंदेल वहां से फरार हो गया.

यह जानकारी रणधीर गुप्ता के घर वालों को हुई तो उन की पत्नी कमलेश गुप्ता रोतेपीटते परिजनों के साथ मौके पर पहुंची और पति को उर्सला अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों के प्रयास के बावजूद रणधीर गुप्ता की जान नहीं बच सकी.

थाना बाबूपुरवा में अशोक सिंह चंदेल के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम हुआ. पुलिस ने अशोक को पकड़ने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया लेकिन वह पकड़ा नहीं गया. आखिर में तत्कालीन एसएसपी ए.के. मित्रा की अगुवाई में एसपी (सिटी) राजगोपाल ने कोर्ट के आदेश पर अशोक सिंह चंदेल के एम ब्लौक किदवईनगर स्थित पुराने घर की कुर्की कर ली.

बाद में एक साल बाद अशोक ने अदालत में सरेंडर कर दिया. कुछ ही दिनों में उस की जमानत हो गई. बाद में अशोक सिंह चंदेल ने कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने गृह जिला हमीरपुर में रहने लगा. बहुत कम समय में अशोक सिंह चंदेल ने ठाकुरों में अपनी पैठ बना ली.

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वह गरीब तबके के लोगों की मदद में जुट गया और राजनीतिक मंच पर बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा. अशोक सिंह चंदेल ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां हमीरपुर तक ही सीमित नहीं रखीं, बल्कि पूरे चित्रकूट मंडल में बढ़ा दीं. उस ने अपने समर्थकों की पूरी फौज खड़ी कर ली.

सन 1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. यह चुनाव अशोक सिंह चंदेल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हमीरपुर सदर से लड़ा और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों को धूल चटाते हुए उस ने जीत हासिल की.

इस अप्रत्याशित जीत से अशोक सिंह चंदेल का राजनीतिक कद बढ़ गया. उस ने हमीरपुर में मकान खरीद लिया और इस मकान में दरबार लगाने लगा. वह गरीबों का मसीहा बन गया था. धीरेधीरे अशोक सिंह चंदेल की क्षेत्र में प्रतिष्ठा बढ़ने लगी.

अशोक सिंह का राजनीतिक कद बढ़ा तो उस के राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी सक्रिय हो गए. इन प्रतिद्वंदियों में सब से अधिक सक्रिय थे राजीव शुक्ला. वह मूलरूप से हमीरपुर शहर के रमेडी मोहल्ला के रहने वाले थे. उन के पिता भीष्म प्रसाद शुक्ला प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. गरीबों और असहाय लोगों की मदद करना वह अपना फर्ज समझते थे. रमेडी तथा आसपास के लोग उन्हें लंबरदार कहते थे.

भीष्म प्रसाद शुक्ला के 3 बेटे थे राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला और राजीव शुक्ला. भीष्म प्रसाद भाजपा के समर्थक थे. उन की मृत्यु के बाद तीनों बेटे भी भाजपा के समर्थक बन गए. तीनों भाइयों में राजीव शुक्ला सब से ज्यादा पढ़ेलिखे थे. वह व्यापार के साथसाथ वकालत के पेशे से भी जुड़े थे. पिता की तरह राजीव शुक्ला और उन के भाई भी विधायक अशोक सिंह चंदेल के धुर विरोधी थे.

सन 1993 के विधानसभा चुनाव में अशोक सिंह चंदेल जनता दल में शामिल हो गया. पार्टी ने उसे टिकट दिया और वह चुनाव जीत गया. यह चुनाव जीतने के बाद उस के विरोधियों के हौसले पस्त पड़ गए थे. विरोधियों को धूल चटाने के लिए अशोक सिंह चंदेल अब और ज्यादा सक्रिय रहने लगा.

चंदेल और शुक्ला परिवार में राजीतिक दुश्मनी सन 1996 के विधानसभा चुनाव में खुल कर सामने आ गई. इस चुनाव में राजीव शुक्ला गुट ने अशोक सिंह चंदेल का खुल कर विरोध किया. नतीजतन अशोक सिंह चंदेल चुनाव हार गया.

हार का ठीकरा चंदेल ने राजीव शुक्ला पर फोड़ा. अब दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ गई और दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए. दोनों गुट जब भी आमनेसामने होते तो उन में तनातनी बढ़ जाती थी.

शुरू हुई राजनीति की खूनी दुश्मनी

अशोक सिंह चंदेल के पास दरजनों सिपहसालार थे, जो उस की सुरक्षा में लगे रहते थे. राजीव शुक्ला ने भी 2 सुरक्षागार्डों वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय को रख लिया था.

शुक्ला बंधु जहां भी जाते थे, ये दोनों सुरक्षा गार्ड उन के साथ रहते थे. अशोक सिंह चंदेल के मन में हार की ऐसी फांस चुभी थी जो उसे रातदिन सोने नहीं देती थी. आखिर उस ने इस फांस को निकालने का निश्चय किया.

26 जनवरी, 1997 की शाम करीब 7 बजे अपने एक दरजन सिपहसालारों के साथ अशोक सिंह चंदेल अपने दोस्त नसीम बंदूक वाले के घर पहुंचा. नसीम बंदूक वाला हमीरपुर शहर के सुभाष बाजार सब्जीमंडी के पास रहता था. बहाना था रमजान पर मिलने का. सड़क पर अशोक चंदेल व उस के समर्थकों की कारें खड़ी थीं तभी दूसरी ओर से राजीव शुक्ला की कारें आईं.

कार में राजीव शुक्ला के अलावा उन के बड़े भाई राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला, भतीजा अंबुज तथा दोनों निजी गार्ड थे. दरअसल राकेश शुक्ला अपने भतीजे को ले कर उस के जन्मदिन के लिए कुछ सामान खरीदने जा रहे थे.

चूंकि अशोक चंदेल और उस के समर्थकों की कारें सड़क पर आड़ीतिरछी खड़ी थीं, ऐसे में राजीव शुक्ला ने कारें ठीक से लगाने को कहा ताकि उन की कारें निकल सकें. अशोक चंदेल के गुर्गे जानते थे कि राजीव शुक्ला उन के आका का दुश्मन है, इसलिए गुर्गों ने कारें हटाने से मना कर दिया.

इसी बात पर विवाद शुरू हो गया. विवाद बढ़ता देख नसीम और अशोक चंदेल घर से बाहर आ गए. राजीव शुक्ला व उन के भाइयों से विवाद होता देख अशोक चंदेल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. फिर क्या था, तड़ातड़ गोलियां चलने लगीं.

चौतरफा गोलियों की तड़तड़ाहट से सुभाष बाजार गूंज उठा. कुछ देर बाद फायरिंग का शोर थमा तो चीत्कारों से लोगों के दिल दहलने लगे. सड़क खून से लाल थी और थोड़ीथोड़ी दूर पर मासूम बच्चे सहित 5 लोगों की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

मरने वालों में राजेश शुक्ला, राकेश शुक्ला, राजेश का बेटा अंबुज शुक्ला तथा उन के सुरक्षा गार्ड वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय थे. हमलावर दोनों सुरक्षा गार्डों की बंदूकें भी लूट कर ले गए थे.

इस सामूहिक नरसंहार से हमीरपुर शहर में सनसनी फैल गई. घटना की सूचना मिलते ही एसपी एस.के. माथुर भारी पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घायल राजीव शुक्ला व अन्य को जिला अस्पताल भेजा और उन की सुरक्षा में फोर्स लगा दी. इस के बाद माथुर ने नसीम बंदूक वाले के मकान पर छापा मारा. छापा पड़ते ही वहां छिपे हत्यारों ने पुलिस पर भी फायरिंग शुरू कर दी.

पुलिस ने भी मोर्चा संभाला, लेकिन हत्यारे चकमा दे कर भाग गए थे. इस के बाद एसपी माथुर ने मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इधर राजीव शुक्ला अस्पताल में भरती थे. वह रात में ही घायलावस्था में पुलिस सुरक्षा के बीच थाना हमीरपुर कोतवाली पहुंचे और पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल, सुमेरपुर निवासी श्याम सिंह, पचखुरा खुर्द के साहब सिंह, झंडू सिंह, हाथी दरवाजा के डब्बू सिंह, सुभाष बाजार निवासी नसीम, सब्जीमंडी निवासी प्रदीप सिंह, उत्तम सिंह, भान सिंह एडवोकेट तथा एक सरकारी गनर के खिलाफ इस मामले की रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह रिपोर्ट भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 395, 34 के तहत दर्ज की गई.

आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस जगहजगह छापेमारी करने लगी. पुलिस की पकड़ से बचने के लिए ज्यादातर नामजद आरोपियों ने हमीरपुर की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

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लेकिन पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल राजनीतिक आकाओं की छत्रछाया में एक साल तक छिपता रहा. उस के बाद जज से सांठगांठ कर के एक दिन वह कोर्ट में हाजिर हो गया. गंभीर केस में भी जज आर.वी. लाल ने उसे उसी दिन जमानत दे दी.

न्यायालय पर हावी रहा अशोक चंदेल

न्यायिक अधिकारी के इस फैसले से राजीव शुक्ला को अचरज हुआ. उन्होंने पैरवी करते हुए हाईकोर्ट से अशोक सिंह चंदेल की जमानत निरस्त करवा दी, जिस से उसे जेल जाना पड़ा.

यही नहीं, राजीव शुक्ला ने जमानत देने वाले जज आर.वी. लाल की भी हाईकोर्ट में शिकायत की. शिकायत सही पाए जाने पर हाईकोर्ट ने जज आर.वी. लाल को निलंबित कर दिया और उन के खिलाफ जांच बैठा दी. जांच रिपोर्ट आने के बाद जज आर.वी. लाल को बर्खास्त कर दिया गया.

इधर हाईकोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद सामूहिक नरसंहार के मुख्य आरोपी अशोक चंदेल ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जमानत निरस्त वाले फैसले पर रोक लगा दी, जिस से अशोक चंदेल जेल से बाहर तो नहीं आ सका लेकिन उसे राहत जरूर मिल गई.

इस के बाद उस ने अपने खास लोगों के मार्फत बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख सुश्री मायावती से संपर्क साधा और सन 1999 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मांगा. मायावती ने अशोक सिंह चंदेल की हिस्ट्री खंगाली और फिर बाहुबली मान कर उसे टिकट दे दिया.

सन 1999 के लोकसभा चुनाव में चंदेल को टिकट मिला तो उस ने चुनाव का संचालन जेल से ही किया और पूरी ताकत झोंक दी. परिणामस्वरूप वह जेल से ही चुनाव जीत गया.

अब तक कोतवाली हमीरपुर पुलिस अशोक सिंह चंदेल समेत 11 आरोपियों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर चुकी थी. सामूहिक नरसंहार का यह मामला अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अश्वनी कुमार की अदालत में विचाराधीन था. इसी दौरान एक आरोपी झंडू सिंह की बीमारी की वजह से मौत हो चुकी थी.

न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार ने 17 जुलाई, 2002 को इस बहुचर्चित हत्याकांड का फैसला सुनाया. उन्होंने मुख्य आरोपी अशोक सिंह चंदेल सहित सभी 10 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया.

अदालत के इस फैसले से राजीव शुक्ला को तगड़ा झटका लगा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह समझ गए कि अशोक सिंह चंदेल ने करोड़ों का खेल खेल कर जज को अपने पक्ष में कर लिया है. अत: राजीव शुक्ला ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. साथ ही न्यायिक अधिकारी पर मनमाना फैसला सुनाने का आरोप लगाया.

पीडि़त राजीव शुक्ला की शिकायत पर हाईकोर्ट ने विजिलेंस और जुडीशियल जांच कराई, जिस में न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को मुकदमे में जानबूझ कर कपट व कदाचार से ऐसा निर्णय देने का आरोप सिद्ध हुआ. जांच अधिकारी की आख्या और हाईकोर्ट की संस्तुति पर तत्कालीन गवर्नर ने न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को बर्खास्त करने की मंजूरी दे दी.

वादी राजीव शुक्ला की आंखों के सामने उन के 2 भाइयों व भतीजे को गोलियों से छलनी किया गया था. जब भी वह दृश्य उन की आंखों के सामने आता तो उन का कलेजा कांप उठता था. यही कारण था कि राजीव ने न्याय पाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था.

जब घटना घटी थी तब उन का खुद का व्यवसाय था, लेकिन घटना के बाद वह दिनरात आरोपियों को सजा दिलाने में जुट गए थे. हालांकि उन्हें सुरक्षा मिली थी, फिर भी पूरा परिवार दहशत में रहता था.

राजनीति की गोटियां बिछाता रहा अशोक चंदेल

राजीव शुक्ला जहां न्याय के लिए भटक रहे थे, वहीं अशोक सिंह चंदेल अपनी राजनीतिक गोटियां बिछा रहा था. चूंकि चंदेल सहित सभी आरोपी दोषमुक्त करार दिए गए थे, अत: अशोक चंदेल खुला घूम कर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुटा था.

अशोक सिंह चंदेल दलबदलू था. वह जिस पार्टी का पलड़ा भारी देखता, उसी पार्टी का दामन थाम लेता था. 2007 के विधानसभा चुनाव में उस ने बसपा से भी नाता तोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. सपा ने उसे टिकट दिया और वह जीत हासिल कर तीसरी बार हमीरपुर सदर से विधायक बन गया.

अगले 5 साल तक उस ने पार्टी के लिए कोई खास काम नहीं किया. इस से नाराज हो कर सन 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उसे टिकट नहीं दिया. तब उस ने सपा छोड़ कर बसपा व भाजपा से टिकट पाने की कोशिश की लेकिन दोनों पार्टियों ने उसे टिकट देने से साफ इनकार कर दिया. इस के बाद उस ने मजबूर हो कर पीस पार्टी से चुनाव लड़ा और हार गया.

अशोक सिंह चंदेल राजनीति का शातिर खिलाड़ी बन चुका था. वह हार मानने वालों में से नहीं था. अत: सन 2017 के विधानसभा चुनाव में उस ने फिर से जुगत लगाई और संघ के एक उच्च पदाधिकारी की मदद से भाजपा से नजदीकियां बढ़ाईं.

परिणामस्वरूप अशोक चंदेल भाजपा से हमीरपुर सदर से टिकट पाने में सफल हो गया. राजीव शुक्ला भी भाजपा समर्थक थे. भाजपा पदाधिकारियों में उन की भी पैठ थी. पार्टी द्वारा अशोक चंदेल को टिकट देने का उन्होंने विरोध भी किया.

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इतना ही नहीं, समर्थकों के साथ लखनऊ जा कर धरनाप्रदर्शन भी किया. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी चंदेल को टिकट देने का विरोध किया. फिर भी उस का टिकट नहीं कटा. मोदी लहर में चंदेल ने इस सीट पर विजय हासिल की और चौथी बार हमीरपुर सदर से विधायक बना.

इधर कई सालों से सामूहिक हत्या का मामला हाईकोर्ट में चल रहा था. तारीखों पर तारीखें मिल रही थीं. लेकिन निर्णय नहीं हो पा रहा था. देरी होने पर राजीव शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक हत्याकांड की परिस्थितियों को देखते हुए निर्देश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद को प्रार्थनापत्र दें.

इस के बाद राजीव शुक्ला ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को प्रार्थनापत्र दिया और जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर एक स्पैशल डबल बैंच का गठन हुआ, जिस में न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने सुनवाई शुरू की. सुनवाई शुरू हुई तो राजीव शुक्ला को जल्द न्याय पाने की आस जगी.

सामूहिक हत्याकांड मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष अधिवक्ता ओंकारनाथ दुबे ने बहस की और बचावपक्ष की ओर से अधिवक्ता फूल सिंह ने. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कृष्ण पहल भी इस बहस में शामिल थे. वकीलों की बहस और गवाहों की जिरह पूरी होने के बाद उच्च न्यायालय की स्पैशल डबल बैंच ने सभी आरोपियों को दोषी माना और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया.

आखिर मिल ही गया न्याय

19 अप्रैल, 2019 को हाईकोर्ट की स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार ने इस मामले में फैसला सुनाया. खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

सजा पाने वालों में विधायक अशोक सिंह चंदेल तथा उस के सहयोगी रघुवीर सिंह, डब्बू सिंह, उत्तम सिंह, प्रदीप सिंह, साहब सिंह, श्याम सिंह, भान सिंह, रूक्कू तथा नसीम थे. कोर्ट ने सभी दोषियों को सीजेएम हमीरपुर की अदालत में सरेंडर करने के आदेश दिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां विधायक खेमे में मायूसी छा गई, वहीं पीडि़त परिवारों में खुशी के आंसू छलक आए. साथ ही 22 साल पहले हुआ वीभत्स हत्याकांड फिर से जेहन में ताजा हो गया.

पीडि़त परिवार को मिली तसल्ली

राजीव शुक्ला के आवास पर मोमबत्तियां जला कर खुशी मनाई गई तथा दिवंगत सभी 5 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. देर शाम उन के घर की महिलाओं ने घर की रेलिंग व चबूतरे पर मोमबत्तियां जलाईं.

उधर कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता की पत्नी कमलेश गुप्ता ने कहा कि उसे इस बात की तसल्ली हुई कि भले ही उस के पति की हत्या के मामले में न सही, पर दूसरे केस में बाहुबली विधायक अशोक चंदेल और उस के गुर्गों को सजा तो मिली.

बेवा कमलेश गुप्ता ने बताया कि पति रणधीर गुप्ता की हत्या के बाद उन का परिवार आर्थिक रूप से टूट गया था. हालात यह हैं कि आज दोजून की रोटी के भी लाले हैं. उन्होंने बताया कि पति किदवईनगर के ई-ब्लौक में एक हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. साथ ही प्लंबिंग के काम की ठेकेदारी भी करते थे.

घर पर विश्व शिक्षा निकेतन के नाम से स्कूल भी चलता था. उन की हत्या के बाद बुजुर्ग ससुर ने दुकान संभाली पर वह नहीं चली और बंद हो गई. आर्थिक रूप से कमर टूटी तो बिजली का बिल भी बकाया होता चला गया. आखिर में बिजली कट गई. तब से आज तक परिवार अंधेरे में ही रहता है.

विधवा कमलेश कुछ देर शून्य में ताकती रही फिर बोली कि 40 साल की बड़ी बेटी नमन अविवाहित है. बीए तक पढ़ाई करने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. एक बेटा अखिल नौबस्ता में रह कर कार ड्राइवर की नौकरी करता है. सब से छोटा बेटा नवीन नौबस्ता की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता है. उसे 5 हजार रुपया वेतन मिलता है.

नवीन की नौकरी से ही घर चलता है. जेठ बी.एल. गुप्ता जो वडोदरा में रहते हैं, तथा पीलीभीत में रहने वाली ननद मीरा गुप्ता उन की आर्थिक मदद करती हैं, जिस से परिवार का भरणपोषण होता रहता है.

उन्होंने बताया कि आर्थिक परेशानी के कारण ही वह पति की हत्या के मुकदमे में पैरवी नहीं कर सकीं, जिस से मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है. अशोक सिंह चंदेल बाहुबली विधायक है. उस के आगे मुझ जैसी विधवा भला कैसे टिक सकती है. फिर भी सुकून है कि उसे दूसरे मामले में उम्रकैद की सजा तो मिली.

4 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अशोक सिंह चंदेल ने अकूत संपत्ति अर्जित की थी. राजनीति में आने के बाद उस ने विवादित प्रौपर्टी खरीदने का खेल शुरू किया. कानपुर किदवईनगर के एम ब्लौक में उस का तिमंजिला मकान पहले से था. उस के बाद उस ने जूही थाने के सामने एक वृद्ध महिला का मकान औनेपौने दाम में खरीदा और फिर तीन मंजिला कोठी बनाई.

इसी तरह उस ने ई-ब्लौक किदवई नगर में गुप्ता बंधुओं का विवादित मकान खरीदा. इस समय इस मकान में पहली मंजिल पर देना बैंक है. अशोक सिंह चंदेल ने जिस पीएनबी बैंक वाली बिल्डिंग में जूतेचप्पल की दुकान खोली थी, उस पर भी उस का कब्जा है.

अशोक सिंह चंदेल ने विधायक कोटे से भी 2 मकान आवंटित करा लिए थे. एक मकान गाजियाबाद में आवंटित कराया तथा दूसरा जूही कला कानपुर में. बाद में एक कोटे से 2 मकानों का आवंटन सामने आने पर मामला फंस गया. जब यह मामला कोर्ट गया तो कोर्ट ने उस का एक मकान निरस्त कर दिया. इन सब के अलावा भी हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट आदि शहरों में उस की करोड़ों की प्रौपर्टी है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने इस बारे में बताया कि उच्च न्यायालय से आजीवन सजा मिलने के बाद अशोक सिंह चंदेल की विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जाएगी. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार 2 वर्ष से अधिक सजा मिलने पर संबंधित व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व के अयोग्य हो जाता है.

इस नियम के तहत हमीरपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव निश्चित है. इस के लिए हाईकोर्ट से सूचना सचिवालय को जाएगी. इस के बाद सचिवालय इस सीट को रिक्त कर इस की सूचना चुनाव आयोग को देगा और चुनाव आयोग इस सीट पर उपचुनाव का कार्यक्रम तय करेगा.

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जिस समय उच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला सुनाया गया, विधायक अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर स्थित अपनी कोठी में था. पत्रकारों ने जब उसे उम्रकैद की सजा सुनाए जाने की जानकारी दी तो वह बोला कि उस ने हमेशा गरीबों के आंसू पोंछने का काम किया है. कोई भी ऐसा काम नहीं किया कि उसे सजा मिले. फिर भी अदालत का फैसला स्वीकार्य है. वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा.

बहरहाल कथा संकलन तक विधायक अशोक सिंह चंदेल के अलावा सभी दोषियों ने हमीरपुर की सीजेएम कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से सजा भुगतने को उन्हें जिला जेल भेज दिया गया था.

—कथा कोर्ट के फैसले तथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

 

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