कुंआरी ख्वाहिशें : हवस के चक्रव्यूह में फंसी गीता

‘‘गीता, ओ गीता. कहां है यार, मैं लेट हो रहा हूं औफिस के लिए. जल्दी चल… तुझे कालेज छोड़ने के चक्कर में मैं रोज लेट हो जाता हूं.’’

‘‘आ रही हूं भाई, तैयार तो होने दो, कितनी आफत मचा कर रखते हो हर रोज सुबह…’’

‘‘और तू… मैं हर रोज तेरी वजह से लेट हो जाता हूं. पता नहीं, क्या लीपापोती करती रहती है. भूतनी बन जाती है.’’

इतने में गीता तैयार हो कर कमरे से बाहर आई, ‘‘देखो न मां, आप की परी जैसी बेटी को एक लंगूर भूतनी कह रहा है… आप ने भी न मां, क्या मेरे गले में मुसीबत डाल दी है. मैं अपनेआप कालेज नहीं जा सकती क्या? मैं अब छोटी बच्ची नहीं हूं, जो मुझे हर वक्त सहारे की जरूरत पड़े.’’

मां ने कहा, ‘‘तू तो मेरी परी है. यह जब तक तेरे साथ न लड़े, इसे खाना हजम नहीं होता. और अब तू बड़ी हो गई है, इसलिए तुझे सहारे की जरूरत है. जमाना बहुत खराब है बच्चे, इसलिए तो कालेज जाते हुए तुझे भाई छोड़ता जाता है और वापसी में पापा लेने आते हैं. अब जा जल्दी से, भाई कब से तेरा इंतजार कर रहा है.’’

‘‘हांहां, जा रही हूं. पता नहीं ये मांएं हर टाइम जमाने से डरती क्यों हैं?’’ गीता बड़बड़ाते हुए बाहर चली गई.

गीता बीबीए के पहले साल में पढ़ रही थी. उस का भाई बंटी उस से 6 साल बड़ा था और नौकरी करता था. गीता का छोटा सा परिवार था. मम्मीपापा और एक बड़ा भाई, जो पंजाबी बाग, दिल्ली में रहते थे.

गीता के पापा का औफिस नारायणा में था और भाई नेहरू प्लेस में नौकरी करता था. गीता का राजधानी कालेज पंजाबी बाग में ही था, मगर घर से तकरीबन 10-15 किलोमीटर दूर, इसीलिए बस से जाने के बजाय वह भाई के साथ जाती थी.

वैसे भी जब से गीता ने कालेज में एडमिशन लिया था, मां ने सख्त हिदायत दी थी कि उसे अकेला नहीं छोड़ना, जमाना खराब है. कल को कोई ऊंचनीच हो गई, तो कौन जिम्मेदार होगा, इसलिए अपनी चीज का खयाल तो खुद ही रखना होगा न.

गीता को कालेज छोड़ने के बाद बंटी रास्ते से अपने औफिस के साथी सागर को नारायणा से ले लेता था.

एक दिन सागर ने कहा, ‘‘यार, मुझे अच्छा नहीं लगता कि तू रोज मुझे ले कर जाता है. तू परेशान न हुआ कर, मैं बस से चला जाऊंगा.’’

इस पर बंटी बोला, ‘‘यार, मेरा तो रास्ता है इधर से. मैं अकेला जाता हूं, अगर तू पीछे बाइक पर बैठ जाता है, तो क्या फर्क पड़ता है…’’

‘‘फिर भी यार, तुझे परेशानी तो होती ही है.’’

‘‘यार भी कहता है और ऐसी बातें भी करता है. देख, अगर बस के बजाय मेरे साथ जाएगा तो बस का किराया बचेगा न, वह तेरे काम आएगा. मैं जानता हूं, तेरा बड़ा परिवार है और तनख्वाह कम पड़ती है.’’

यह सुन कर सागर चुप हो गया.

इसी तरह यह सिलसिला चलता रहा. एक बार बंटी बहुत बीमार हो गया और लगातार कुछ दिनों तक औफिस नहीं गया.

सागर ने तो फोन कर के हालचाल पूछा, मगर उसे मिले बिना चैन कहां, यारी जो दिल से थी. एक दिन छुट्टी के बाद वह पहुंच गया बंटी से मिलने.

इधर जब बंटी बीमार था, तो गीता को कालेज छोड़ने कौन जाता, क्योंकि पापा तो सुबहसुबह ही काम पर चले जाते थे. लिहाजा, गीता बस से कालेज जाने लगी. बंटी ने समझा दिया था कि किस जगह से और कौन से नंबर की

बस पकड़नी है. वापसी में तो उसे पापा ले आते.

सागर ने बंटी के घर की डोरबैल बजाई, तो दरवाजा गीता ने खोला. अपने सामने 6 फुट लंबा बंदा, जो थोड़ा सांवला, मगर तीखे नैननक्श, घुंघराले बाल, जिस की एक लट माथे पर झूलती हुई, भूरी आंखें… देख कर गीता खड़ी की खड़ी रह गई.

यही हाल सागर का था. जैसे ही उस ने गीता को देखा तो हैरान रह गया. उसे लगा मानो कोई शहजादी हो या कोई परी धरती पर उतर आई हो.

सागर ने गीता को अपने बारे में बताया, तो वह उसे भीतर ले गई.

सागर बंटी के साथ बैठ कर बातें कर रहा था. मां और गीता चायपानी का इंतजाम कर रही थीं, मगर बीचबीच में सागर गीता को और गीता सागर को कनखियों से देख रहे थे. घर जा कर सागर सारी रात नहीं सो सका, इधर गीता उस के खयालों में खोई रही.

अगले दिन गीता को न जाने क्या सूझा कि बस से कालेज न जा कर नारायणा बस स्टैंड पर उतर गई, क्योंकि शाम को वह बातोंबातों में जान चुकी थी कि सागर नारायणा में रहता है, जिसे बंटी अपने साथ नेहरू प्लेस ले जाता था.जैसे ही गीता नारायणा बस स्टैंड पर उतरी, तकरीबन 5 मिनट बाद ही सागर भी वहां आ गया.

‘‘हैलो…’’ सागर ने औपचारिकता दिखाते हुए कहा.

‘‘हाय, औफिस जा रहे हैं आप?’’ गीता ने ‘हैलो’ का जवाब देते हुए और बात आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘जी हां, जा तो रहा था, मगर अब मन करता है कि न जाऊं,’’ सागर आंखों में शरारत और होंठों पर मुसकान लाते हुए बोला.

‘‘कहते हैं कि मन की बात माननी चाहिए,’’ गीता ने भी कुछ ऐसे अंदाज से कहा कि सागर ने मस्ती में आ कर उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘अरे सागरजी, छोडि़ए… कोई देख न ले…’’ गीता ने घबरा कर कहा.

‘‘ओफ्फो, यहां कौन देखेगा… चलिए, कहीं चलते हैं,’’ सागर ने कहा और गीता चुपचाप उस के साथ चल दी.

‘‘आज आप भी कालेज नहीं गईं?’’ सागर ने गीता के मन की थाह पाने

की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘बस, आज मन नहीं किया,’’ कह कर गीता ने शरमा कर आंखें झुका लीं.

सागर और गीता सारा दिन घूमते रहे, लेकिन शाम होते ही गीता बोली, ‘‘सागर, मुझे जाना है. पापा कालेज

लेने आएंगे. अगर मैं न मिली तो वे परेशान होंगे.’’

‘ठीक है जाओ, लेकिन कल ज्यादा देर रुकना. पापा से कहना कि ऐक्स्ट्रा क्लास है,’’ सागर ने कहा.

‘‘मैं ने आप को यह तो नहीं कहा कि मैं कल आऊंगी…’’ गीता ने चौंक कर कहा.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम कल भी आओगी. जैसे मुझे पता था कि तुम आज मुझ से मिलने आओगी…. तो ठीक है फिर कल मिलते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर गीता कालेज चली गई और इतने में उस के पापा आ गए. अगले दिन फिर वही सिलसिला शुरू हो गया.

बंटी ठीक हो गया और इत्तिफाक से उसे वहीं पंजाबी बाग में ही अच्छी नौकरी मिल गई. गीता की तो बल्लेबल्ले. अब तो अकेले ही बस पर जाने की छूट. उधर सागर भी फ्री हो गया कि अब न बंटी मिलेगा और न ही उसे पता चलेगा कि सागर कब औफिस गया और कब नहीं.

सागर और गीता के प्यार की पेंग ऊंची और ऊंची चढ़ने लगी. दोनों को एकदूसरे के बिना एक पल भी चैन नहीं.

सागर तो प्यासा भंवरा कली का रस चूसने को उतावला, लेकिन गीता अभी तक डर के मारे बची हुई थी और उसे ज्यादा करीब आने का मौका नहीं दिया.

गीता चाहती कि सागर भाई से शादी की बात करे, क्योंकि गीता नहीं जानती थी कि सागर शादीशुदा है, पर बंटी जानता था.

सागर हर बार गीता को कहता, ‘‘तुम बंटी से अभी कुछ मत बताना, क्योंकि उस का सपना है कि वह तुम्हें बहुत बड़े घर में ब्याहे और मैं ठहरा मिडिल क्लास… वह नहीं मानेगा हमारी शादी के लिए, इसलिए मौका देख कर मैं खुद अपने तरीके से बात करूंगा, ताकि वह मान जाए.’’गीता सागर की बातों में आ गई.एक दिन भंवरे ने कली का रस चूस लिया… सागर ने प्यार से गीता को बहलाफुसला कर उस का कुंआरापन खत्म कर दिया और कर ली अपने मन की पूरी.

कुछ दिनों तक यह खेल फिर चलता और एक दिन गीता बोली, ‘‘सागर, ऐसा न हो कि भाई को कहीं किसी और से हमारे बारे में पता चले. इस से अच्छा है कि हम खुद ही बता दें. भाई फिर मम्मीपापा से खुद बात कर लेगा.’’

सागर बोला, ‘‘गीता, अगर तुम मेरी बात मानो तो हम कोर्ट मैरिज कर लेते हैं और फिर मैं आऊंगा तुम्हारे घर और दोनों बात करेंगे. जब हमारे पास कोर्ट मैरिज का सर्टिफिकेट होगा, फिर कोई मना ही नहीं कर पाएगा.

‘‘और सोचो, तुम्हें अगर बच्चा ठहर गया, तब क्या कोई तुम से शादी करेगा… तुम्हें तो तुम्हारे घर वाले मार ही डालेंगे. फिर क्या मैं जी सकूंगा तुम्हारे बिना… मुझे मौत से डर नहीं लगता, बस मेरी छोटी बहन, बूढ़े मांबाप बेचारे किस के सहारे जिएंगे…’’

इस तरह सागर ने गीता को समझा दिया और वह बेचारी एक दिन घर से मां के जेवर और कुछ नकदी ले कर अपने सागर के पास चली गई.

‘‘सागर, चलो कोर्ट और अभी इसी समय शादी कर के फिर घर चलते हैं… और ये लो पैसे और जेवर, जितना खर्च हो कर लो.’’

सागर इन सब के लिए पहले से तैयार था. उस ने अपना परिवार कहीं और शिफ्ट कर दिया था. नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था. गीता को वह अपने किराए वाले घर में ले गया.

गीता ने देखा कि घर पर कोई नहीं है, तो उस ने पूछा, ‘‘सागर, मांबाबूजी और तुम्हारी बहन कहां हैं? यह घर खालीखाली क्यों है?’’

‘‘ओहो गीता, मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया, मुझे दूसरे औफिस से अच्छा औफर आया है और मैं नौकरी बदल रहा हूं, इसलिए सारा सामान नए घर में शिफ्ट कराया है. मांबाबूजी और छुटकी हमारे रिश्ते के चाचा की बेटी की शादी मेंगए हैं.

तुम चिंता मत करो. आज शादी होना मुश्किल है, क्योंकि अभी तक हमारी अर्जी पास नहीं हुई. कल हो जाएगी. आज रात तुम यहीं रुको, कल शादी करते ही हम तुम्हारे घर चलेंगे.’’

अभी भी न समझ पाई गीता और सबकुछ सौंप दिया सागर को. 2 दिन बाद कमरा भी बदल लिया. इस तरह सागर कई दिनों तक गीता को बेवकूफ बनाता रहा.

इधर शाम को गीता के कालेज में न मिलने पर उस के पापा परेशान हो गए. उस की सहेली से पूछा तो पता चला कि गीता तो पिछले कुछ दिनों से कालेज में कम ही आई है. बस शाम के समय बाहर नजर आती थी. उसे एक लड़का छोड़ने आता था.

पापा सारा माजरा समझ गए. उन्होंने बंटी को बताया. वे अब मान चुके थे कि कोई गीता को बहलाफुसला कर ले गया है.

गीता के साथियों से पूछने पर अंदाजा लगाया कि ये सब शायद सागर की बात कर रहे हैं. सागर को फोन मिलाया तो फोन बंद मिला. सागर ने वह नंबर बंद कर के दूसरा नंबर ले लिया था.

बंटी जा पहुंचा सागर के घर. वहां से पूछताछ की तो मकान मालिक ने बताया कि बीवी को पहले ही मायके भेज दिया था. वह एक लड़की लाया था. 2 दिन बाद उसे ले कर कहां गया, पता नहीं.

लड़की के हुलिए से वे समझ गए कि गीता ही थी. बंटी को अपनी दोस्ती पर अफसोस होने लगा कि उस ने आस्तीन में सांप पाल लिया था.

इधर गीता भी असलियत जान चुकी थी. अब वह सागर से छुटकारा पाना चाहती थी. सागर सुबह काम पर जाता तो बाहर से ताला लगा कर जाता. इधर गीता का परिवार उसे ढूंढ़ कर थक चुका था. इश्तिहार छपवा दिए गए, ताकि गीता का कहीं से कोई तो सुराग मिले.

एक दिन सागर तैयार हो रहा था कि औफिस से फोन आया कि अभी पहुंचो. वह जल्दी में ताला लगाना भूल गया. गीता के लिए यह अच्छा मौका था. वह भाग निकली और जा पहुंची अपने घर. उस ने अपने किए की माफी मांगी.

घर वालों से तो गीता को माफी मिल गई, पर आसपड़ोस के लोगों ने उस का जीना मुहाल कर दिया था.

गीता के पापा ने यह घर बेच कर रोहिणी में जा कर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत की, मगर वहां भी वे जिल्लत की जिंदगी जिए. न कहीं गीता का रिश्ता तय होता था और न ही कहीं बंटी का.

साल बीतते गए. पहले तो पापा इस सदमे से बीमार हो गए और फिर उन की मौत हो गई. मां दिनरात चिंता में घुलती रहती थीं. घरबार सब बिक गया, इज्जत चली गई.

गीता के एक मामा करनाल में रहते थे. एक दिन वे बोले, ‘‘दीदी, करनाल तो मैं आप को लाऊंगा नहीं, मेरी भी यहां इज्जत खराब होगी, पर आप कुरुक्षेत्र में शिफ्ट हो जाओ, कम से कम दिल्ली जितना महंगा तो नहीं है.’’

वे सब कुरुक्षेत्र में शिफ्ट हो गए. वहां मामा ने जैसेतैसे छोटीमोटी नौकरी का इंतजाम करवा दिया था. इस से किसी तरह गुजारा चल निकला.

गीता अब 35 साल की और बंटी 40 साल का हो गया. गीता का रिश्ता तो न हुआ. अलबत्ता, बंटी का रिश्ता वहां किसी जानकार ने करा दिया.

अब बंटी की तो शादी हो गई. क्या करता, कब तक गीता के लिए इसे भी कुंआरा रखते, आगे परिवार भी तो बढ़ाना था.

गीता का रिश्ता न होने की वजह एक और भी थी कि उसे शराब पीने की लत लग गई थी. टैंशन में होती और औफिस के स्टाफ के साथ पीने लग जाती और पी कर फिर होश कहां रहता. कभीकभी तन की आग भी सताती और कोई न कोई अपनी भी आग इस से बुझा लेता.

लेकिन ऐसा भी कब तक चलता. भाई के बच्चे भी हो गए हैं, सब समझने लगे हैं. भाभी को भी अब बुरा लगता है कि कब तक शराबी बहन उन के सिर पर मंडराएगी. उम्र भी तो कम नहीं, 45 साल की हो गई.

आखिरकार एक रिश्ता मिला शाहबाद में. लड़का क्या आदमी था, अधेड़ था. सूरज विधुर था, मगर कोई बच्चा नहीं, इसलिए सोचा कि दूसरी शादी कर के वंश आगे बढ़ाया जाए. बात बन गई तो शादी कर दी.

गीता ने भी सोचा कि अब एक अच्छी बीवी बन कर दिखाऊंगी. शराब की लत छोड़ दी धीरेधीरे. तकरीबन 6 महीने सब सही रहा.

इसी बीच पड़ोसी की बेटी रीमा दुबई से आई. 2-3 महीने यहां रही. दोनों परिवारों में अच्छाखासा लगाव भी था. रीमा जितने समय तक शाहबाद में रही, गीता संग अच्छी दोस्ती रही. वह सारा दिन ‘भाभीभाभी’ करती रहती.

जातेजाते रीमा गीता को बोल गई, ‘‘भाभी, मैं आप दोनों को दुबई बुला लूंगी. वहां की लाइफ यहां से अच्छी है. वहां सैट करूंगी आप को.’’

गीता और सूरज भी खुश थे कि वे दोनों दुबई में सैट होंगे. वैसे भी आगेपीछे कोई नहीं, दोनों ही तो हैं, तो कहीं भी रहें.

2 महीने बाद रीमा का फोन आया, ‘‘भाभी, यहां के नियम बहुत सख्त हैं, इसलिए हमें यहां के नियम से चलना होगा. मैं ने आप के पेपर सब तैयार कर दिए हैं. मैं आप को अपने बच्चे की नैनी यानी आया के रूप में बुलाऊंगी, फिर आप यहां सैट हो कर सूरज भैया को बुला लेना.’’

कुछ समय बाद गीता खुशीखुशी दुबई चली गई, लेकिन वहां के तो रंग ही कुछ और थे. सुबह 5 बजे से रात के

12 बजे तक सारे घर का काम करे, उस पर बच्चा इतना बिगड़ा हुआ था कि कभी उसे गाली दे, कभी चप्पल उठा कर मारे, खाना भी ढंग से न दे, बस जो बचाखुचा वही दे दे, चाहे उस से पेट भरे या न भरे.

गीता न तो बच्चे को डांट सके, न ही कहीं जा सके और न कोई पैसा उस के पास. खून के आंसू रोए बेचारी.

4 साल तक न तो परिवार वालों से कोई बातचीत, न ही सुख की सांस ली.

आखिरकार गीता ने एक दिन हिम्मत की, जब रीमा और उस का पति औफिस गए हुए थे. वह चुपचाप एक खिड़की

से भाग निकली और पहुंची सीधा पुलिस के पास और सबकुछ बताया. पुलिस जा पहुंची रीमा के घर.

हां, गीता भागी जरूर, पुलिस में उस के खिलाफ शिकायत भी की, मगर उस ने धोखा नहीं दिया रीमा को, जिस तरह रीमा ने उसे दिया था. वह तब भागी, जब रीमा के आने का समय हो चला था, ताकि रीमा का बेटा ज्यादा समय अकेला न रहे. पूरे घर का काम कर के तब.

जब पुलिस रीमा के घर आई, तब भी उस ने यह कहा कि उसे रीमा से अपने पासपोर्ट और पेपर वगैरह दिलवा दें और उसे वर्क परमिट मिल जाए… और उसे कुछ नहीं चाहिए, गीता अपने पति को बुलाना चाहती है.

रीमा ने उस के सब पेपर उसे सौंप दिए. गीता ने रीमा पर कोई केस नहीं किया. गीता अब दुबई में अलग काम करती है, अलग घर में शांति से रहती  है.

गीता इस समय सूरज के कागजात तैयार करवा रही है, ताकि सूरज को वहां बुला ले.

गीता सारी उम्र एक गलती की सजा भुगतती रही, वह सच्चे प्यार के लिए तरसती रही. एक छोटी सी गलती ने पूरा परिवार बिखेर दिया, लेकिन अब बुढ़ापे में कोई न कोई तो सहारा चाहिए हर एक को. कम से कम सूरज और गीता एकदूसरे का सहारा तो बनेंगे. कुंआरी ख्वाहिशें झुलस कर दम तोड़ चुकी थीं.

लेकिन गीता एक अच्छा काम और कर रही थी कि कोई भी लड़की अगर इस तरह की भूल करती, तो वह उसे समझाबुझा कर उस के घर पहुंचा आती.

मैं एक लड़की को दिल दे बैठा हूं. हम दोस्त है लेकिन अपने दिल की बात कैसे कहूं?

सवाल 

मेरी उम्र 23 साल है. मैं दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहता हूं और गुरुग्राम की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता हूं. मेरे साथ बस में एक लड़की जाती है और अब हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए हैं. कभीकभार हम डेट पर भी जाने लगे हैं, पर वह लड़की ज्यादा सीरियस नहीं लगती है और मुझे बारबार कहती है कि उस से ज्यादा उम्मीद न रखूं, पर मैं उसे मन ही मन चाहने लगा हूं और अपनी दोस्ती को शादी के रिश्ते में बदलना चाहता हूं.

मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि उस लड़की से अपने दिल की बात कैसे कहूं? आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?

जवाब

लड़की के सीरियस होने के माने आप की नजर में क्या हैं, पहले यह तय कर लीजिए. वह कह रही है कि मुझ से ज्यादा उम्मीद मत रखो, लेकिन आप ज्यादा उम्मीद रखने की ही गलती कर रहे हैं. जल्दबाजी मत कीजिए. अच्छी दोस्ती एक नियामत है, जिस को प्यार में तबदील होने में वक्त लगता है.

अभी आप का प्यार एकतरफा है. आप उस लड़की के साथ डेट पर जाते रहें और इस दौरान उस का दिल और दिमाग दोनों की ही टटोलने की कोशिश करते रहें. मुमकिन है कि उस की कोई मजबूरी हो, इसलिए वह आप की उम्मीद के मुताबिक सीरियस नहीं हो पा रही. एकाध बार हिम्मत कर के उसे प्रपोज कर ही डालिए. मुमकिन यह भी है कि वह यही चाह रही हो कि आप मर्दों जैसी बात करें.

सच्ची सलाह के लिए कैसी भी परेशानी टैक्स्ट या वौइस मैसेज से भेजें. मोबाइल नंबर : 08826099608

मैं डायबिटीज का मरीज हूं, मैं अपने खाने पीने पर कंट्रोल कैसे करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 48 साल है और मैं पिछले कई साल से डायबिटीज का मरीज हूं. इस के बावजूद मेरा मन उन्हीं चीजों को खाने का ज्यादा करता है, जिन्हें डाक्टर मुझे खाने से मना करते हैं. मैं इस समस्या से कैसे छुटकारा पाऊं?

जवाब-

जब आप टाइप 2 डायबिटीज से पीडित हों तो आप जो खाते हैं, उस से आप को ब्लड शुगर को कंट्रोल करने, भूख को कम करने में मदद मिलती है और लंबे समय तक पेट के भरे होने का अहसास होता है.

डायबिटीज तब होती है, जब आप का ब्लड शुगर या ग्लूकोज लैवल सामान्य से ज्यादा होता है. कार्बोहाइड्रेट से भरपूर चीजें जैसे रोटियां, अनाज, चावल, पास्ता, फल, दूध और मिठाई की वजह से इस की बढ़ोतरी होती है. इन का ज्यादा सेवन करने से बचें.

आप के खाने में फाइबर से भरपूर प्रोटीन और कम वसा वाली चीजें होनी चाहिए. आप को हमेशा डाक्टरी सलाह ले कर कम मात्रा में ऐसा खाना चाहिए जो आप को पसंद हो.

मेरी पत्नी दूसरे मर्दों से ज्यादा हंसबोल लेती है जिससे मुझे बहुत परेशानी होती है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 28 साल है और मैं 2 बच्चों का पिता हूं. मेरी पत्नी वैसे तो मुझ से बहुत प्यार करती है और घर को भी अच्छी तरह से संभालती है, पर वह दूसरे मर्दों से भी हंसबोल लेती है, जिस से मुझे बड़ी पीड़ा होती है. मैं उसे समझाता हूं तो वह कहती है कि मुझे उस के किरदार पर शक नहीं करना चाहिए. मैं बहुत तनाव में रहता हूं. मैं क्या करूं?

जवाब-

पराए मर्दों से हंसबोल लेना कोई गुनाह नहीं है. आप अपनी पत्नी पर बेवजह शक या गुस्सा कर रहे हैं. उसे प्यार से समझाएं कि आप को यह पसंद नहीं और इस से आप को पीड़ा होती है, तो वह मान भी सकती है. लेकिन याद रखें कि यह उस के साथ ज्यादती ही होगी.

यह अकेले आप ही की नहीं, बल्कि कई पतियों की पीड़ा है, जिन की पत्नियां दूसरे मर्दों से हंसबोल लेती हैं. हर पति अपनी पत्नी को जायदाद या चाबी वाली गुडिया समझता है, जो उस की ख्वाहिश के मुताबिक चले. इस सोच से खुद को बचा कर रख पाएं, तो आप की समस्या अपनेआप हल हो जाएगी.

काठ की हांडी : क्या हुआ जब पति की पुरानी प्रेमिका से मिली सीमा

रितु ने दोपहर में फोन कर के मु झे शाम को अपने फ्लैट पर बुलाया था.

‘‘मेरा मन बहुत उचाट हो रहा है. औफिस से निकल कर सीधे मेरे यहां आ जाओ. कुछ देर. दोनों गपशप करेंगे,’’ फोन पर रितु की आवाज में मु झे हलकी सी बेचैनी के भाव महसूस हुए.

‘‘तुम वैभव को क्यों नहीं बुला लेती हो गपशप के लिए? तुम्हारा यह नया आशिक तो सिर के बल भागा चला आएगा,’’ मैं ने जानबू झ कर वैभव को बुलाने की बात उठाई.

‘‘इस वक्त मु झे किसी नए नहीं, बल्कि पुराने आशिक के साथ की जरूरत महसूस हो रही है,’’ उस ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘सीमा भी तुम से मिलने आने की बात कह रही थी. उसे साथ लेता आऊं?’’ मैं ने उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए पूछा.

‘‘क्या तुम्हें अकेले आने में कोई परेशानी है?’’ वह खीज उठी.

‘‘मु झे कोई परेशानी होनी चाहिए क्या?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ और उस ने  झटके से फोन काट दिया.

रितु अपने फ्लैट में अकेली रहती है. शाम को उस से मिलने जाने की बात मेरे मन को बेचैन कर रही थी. अपना काम रोक कर मैं कुछ देर के लिए पिछले महीनेभर की घटनाओं के बारे में सोचने लगा…

मेरी शादी होने के करीब 8 साल बाद रितु अचानक महीनाभर पहले मेरे घर मु झ से मिलने आई तो मैं हैरान होने के साथसाथ बहुत खुश भी हुआ था.

‘‘अभी भी किसी मौडल की तरह आकर्षक नजर आ रही रितु और मैं ने एमबीए साथसाथ किया था. सीमा, हमारी शादी होने से पहले ही यह मुंबई चली गई थी वरना बहुत पहले ही तुम से इस की मुलाकात हो जाती,’’ सहज अंदाज में अपनी पत्नी का रितु से परिचय कराते हुए मैं ने अपने मन की उथलपुथल को बड़ी कुशलता से छिपा लिया.

मेरे 5 साल के बेटे रोहित के लिए रितु ढेर सारी चौकलेट और रिमोट से चलने वाली कार लाई थी. सीमा और मेरे साथ बातें करते हुए वह लगातार रोहित के साथ खेल भी रही थी. बहुत कम समय में उस ने मेरे बेटे और उस की मम्मी का दिल जीत लिया.‘‘क्या चल रहा है तुम्हारी जिंदगी में? मयंक के क्या हालचाल हैं?’’ मेरे इन सवालों को सुन कर उस ने अचानक जोरदार ठहाका लगाया तो सीमा और मैं हैरानी से उस का मुंह ताकने लगे.

हंसी थम जाने के बाद उस ने रहस्यमयी मुसकान होंठों पर सजा कर हमें बताया, ‘‘मेरी जिंदगी में सब बढि़या चल रहा है, अरुण. बहुराष्ट्रीय बैंक में जौब कर रही हूं. मयंक मजे में है. वह 2 प्यारी बेटियों का पापा बन गया है.’’

‘‘अरे वाह, वैसे तुम्हें देख कर यह कोई नहीं कह सकता है कि तुम 2 बेटियों की मम्मी हो,’’ मेरे शब्दों में उस की तारीफ साफ नजर आ रही थी.

रितु पर एक बार फिर हंसने का दौरा सा पड़ा. सीमा और मैं बेचैनीभरे अंदाज में मुसकराते हुए उस के यों बेबात हंसने का कारण जानने की प्रतीक्षा करने लगे.

‘‘माई डियर अरुण, मु झे पता था कि तुम ऐसा गलत अंदाजा जरूर लगाओगे. यार, वह 2 बेटियों का पिता है पर मैं उस की पत्नी नहीं हूं.’’

‘‘क्या तुम दोनों ने शादी नहीं की है?’’

‘‘उस ने तो की पर मैं अभी तक शुद्ध अविवाहिता हूं, तलाकशुदा या विधवा नहीं. तुम्हारी नजर में मेरे लायक कोई सही रिश्ता हो तो जरूर बताना,’’ अपने इस मजाक पर उस ने फिर से जोरदार ठहाका लगाया.

‘‘मजाक की बात नहीं है यह, रितु बताओ न कि तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’ मैं ने गंभीर लहजे में पूछा.

‘‘जब सही मौका सामने था किसी अच्छे इंसान के साथ जिंदगीभर को जुड़ने का तो मैं ने नासम झी दिखाई और वह मौका हाथ से निकल गया. लेकिन यह किस्सा फिर कभी सुनाऊंगी. अब तो मैं अपनी मस्ती में मस्त बहती धारा बनी रहना चाहती हूं… सच कहूं तो मु झे शादी का बंधन अब अरुचिकर प्रतीत होता है,’’ 33 साल की उम्र तक अविवाहित रह जाने का उसे कोई गम है, यह उस की आवाज से बिलकुल जाहिर नहीं हो रहा था.

मगर सीमा ने शादी न करने के मामले में अपनी राय उसे

उसी वक्त बता दी, ‘‘शादी नहीं करोगी तो बढ़ती उम्र के साथ अकेलेपन का एहसास लगातार बढ़ता जाएगा. अभी ज्यादा देर नहीं हुई है. मेरी सम झ से तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, रितु.’’

‘‘तुम ढूंढ़ना न मेरे लिए कोई सही जीवनसाथी, सीमा,’’ रितु बड़े अपनेपन से सीमा का हाथ पकड़ कर दोस्ताना लहजे में मुसकराई तो मेरी पत्नी ने उसी पल से उसे अपनी अच्छी सहेली मान लिया.

उन दोनों को गपशप में लगा देख मैं उस दिन भी अतीत की यादों में खो गया…

एक समय था जब साथसाथ एमबीए करते हुए हम दोनों ने जीवनसाथी बनने के रंगीन सपने देखे थे. हमारा प्रेम करीब 2 साल चला और फिर उस का  झुकाव अचानक मयंक की तरफ होता चला गया.

वैसे मयंक रितु की एक सहेली निशा का बौयफ्रैंड था. इस इत्तफाक ने बड़ा गुल खिलाया कि मयंक रितु की कालोनी में ही रहता था. इस कारण निशा द्वारा परिचय करा दिए जाने के बाद मयंक और रितु की अकसर मुलाकातें होने लगीं.

ये मुलाकातें निशा और मेरे लिए बड़ी दुखदाई साबित हुईं. अचानक एक दिन रितु ने मु झ से और मयंक ने निशा से प्रेम संबंध समाप्त कर लिए.

‘‘रितु प्लीज, तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी बहुत सूनी हो जाएगी. मेरा साथ मत छोड़ो,’’ मैं ने उस के सामने आंसू भी बहाए पर उस ने मु झ से दूर होने का अपना फैसला नहीं बदला.

‘‘आई एम सौरी अरुण… मैं मयंक के साथ कहीं ज्यादा खुश हूं. तुम्हें मु झ से बेहतर लड़की मिलेगी, फिक्र न करो,’’ हमारी आखिरी मुलाकात के समय उस ने मेरा गाल प्यार से थपथपाया और मेरी जिंदगी से निकल गई.

मु झ से कहीं ज्यादा तेज  झटका उस की सहेली निशा को लगा था. उस ने तो नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश भी करी थी.

एमबीए करने के बाद वह मुंबई चली गई. मैं सोचता था कि उस ने मयंक से शादी कर ली होगी पर मेरा अंदाजा गलत निकला.

मैं ने अपने मन को टटोला तो पाया कि रितु से जुड़ी यादों की पीड़ा को वह लगभग पूरी तरह भूल चुका है. मैं सीमा और रोहित के साथ बहुत खुश था. उस दिन रितु को सामने देख कर मु झे वैसी खुशी महसूस हुई थी जैसी किसी पुराने करीबी दोस्त के अचानक आ मिलने से होती है.

उस दिन सीमा ने अपनी नई सहेली रितु को खाना खिला कर भेजा. कुछ घंटों में ही उन दोनों के बीच दोस्ती के मजबूत संबंध की नींव पड़ गई.

रितु अकसर हमारे यहां शाम को आ जाती थी. उस की मु झ से कम और सीमा से ज्यादा बातें होतीं. रोहित भी उस के साथ खेल कर बहुत खुश होता.

रोहित के जन्मदिन की पार्टी में सीमा ने उस का परिचय अपनी सहेली वंदना के बड़े भाई वैभव से कराया. दोनों सहेलियों की मिलीभगत से यह मुलाकात संभव हो पाई थी.

वैभव तलाकशुदा इंसान था. उस की पत्नी ने तलाक देने से पहले उसे इतना दुखी कर दिया था कि अब वह शादी के नाम से ही बिदकता था.

किसी को उम्मीद नहीं थी पर रितु के साथ हुई पहली मुलाकात में ही वैभव भाई उस के प्रशंसक बन गए थे. रितु भी उस दिन फ्लर्ट करने के पूरे मूड में थी. उन दोनों के बीच आपसी पसंद को लगातार बढ़ते देख सीमा बहुत खुश हुई थी.

रितु और वैभव ने 2 दिन बाद बड़े महंगे होटल में साथ डिनर किया है, वंदना से मिली इस खबर ने सीमा को खुश कर दिया.

‘‘वैसे यह बंदा तो ठीक है सीमा, पर मेरे सपनों के राजकुमार से बहुत ज्यादा नहीं मिलता है, लेकिन तुम्हारी मेहनत सफल करने के लिए

मैं दिल से कोशिश कर रही हूं कि हमारा तालमेल बैठ जाए,’’ अगले दिन शाम को रितु ने अपने मन की बात सीमा को और मु झे साफसाफ बता दी.

‘‘अपने सपनों के राजकुमार के गुणों से हमें भी परिचित कराओ, रितु,’’ सीमा की इस जिज्ञासा का रितु क्या जवाब देगी, उसे सुनने को मैं भी उत्सुक हो उठता था.

रितु ने सीमा की पकड़ में आए बिना पहले मेरी तरफ मुड़ कर शरारती अंदाज में मु झे आंख मारी और फिर उसे बताने लगी, ‘‘मेरे सपनों का राजकुमार उतना ही अच्छा होना चाहिए जितना अच्छा तुम्हारा जीवनसाथी, सीमा. मेरी खुशियों… मेरे सुखदुख का हमेशा ध्यान रखने वाला सीधासादा हंसमुख इंसान है मेरे सपनों का राजकुमार.’’

‘‘ऐसे सीधेसादे इंसान से तुम जैसी स्मार्ट, फैशनेबल, आधुनिक स्त्री की निभ जाएगी?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर सवाल किया.

‘‘सीमा, 2 इंसानों के बीच आपसी सम झ और तालमेल गहरे प्रेम का मजबूत आधार बनता है या नहीं?’’

‘‘बिलकुल बनता है. वैभव तुम्हें अगर नहीं भी जंचा तो फिक्र नहीं. तुम्हारी शादी मु झे करानी ही है और तुम्हारे सपनों के राजकुमार से मिलताजुलता आदमी मैं ढूंढ़ ही लाऊंगी,’’ जोश से भरी सीमा भावुक भी हो उठी थी.

‘‘जो सामने मौजूद है उसे ढूंढ़ने की बात कह रही थी मेरी सहेली,’’ कुछ देर बाद जब सीमा रसोई में थी तब रितु ने मजाकिया लहजे में इन शब्दों को मुंह से निकाला तो मेरे दिल की धड़कनें बहुत तेज हो गईं.

मन में मच रही हलचल के चलते मु झ से कोई जवाब देते नहीं बना था. रितु ने हाथ बढ़ा कर अचानक मेरे बालों को शरारती अंदाज में खराब सा किया और फिर मुसकराती हुई रसोई में सीमा के पास चली गई.

उस दिन रितु की आंखों में मैं ने अपने लिए चाहत के भावों को साफ पहचाना था.

आगामी दिनों में उसे जब भी अकेले में मेरे साथ होने का मौका मिलता तो वह जरूर कुछ न कुछ ऐसा कहती या करती जो उस की मेरे प्रति चाहत को रेखांकित कर जाता. मैं ने अपनी तरफ से उसे कोई प्रोत्साहन नहीं दिया था पर मु झ से छेड़छाड़ करने का उस का हौसला बढ़ता ही जा रहा था.

इन सब बातों को सोचते हुए मैं ने शाम तक का समय गुजारा. रितु के फ्लैट की तरफ अपनी कार से जाते हुए मैं खुद को काफी तनावग्रस्त महसूस कर रहा था, इस बात को मैं स्वीकार करता हूं.

अपने ड्राइंगरूम में रितु मेरी बगल में बैठते हुए शिकायती अंदाज में बोली, ‘‘तुम ने बहुत इंतजार कराया, अरुण.’’

‘‘नहीं तो… अभी 6 ही बजे हैं. औफिस खत्म होने के आधे घंटे बाद ही मैं हाजिर हो गया हूं. कहो, कैसे याद किया है?’’ अपने स्वर को हलकाफुलका रखते हुए मैं ने जवाब दिया.

‘‘आज तुम से बहुत सारी बातें कहनेसुनने का दिल कर रहा है,’’ कहते हुए उस ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया.

‘‘तुम बेहिचक बोलना शुरू करो. मैं तुम्हारे मुंह से निकले हर शब्द को पूरे ध्यान से सुनूंगा.’’

मेरी आंखों में गहराई से  झांकते हुए उस ने भावुक लहजे में कहा, ‘‘अरुण, तुम्हारे प्यार को मैं कुछ दिनों से बहुत मिस कर रही हूं.’’

‘‘अरे, अब मेरे नहीं वैभव के प्यार को अपने दिल में जगह दो, रितु,’’ मैं ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘मेरी जिंदगी में बहुत पुरुष आए हैं और आते रहेंगे, पर मेरे दिल में तुम्हारी जगह किसी को नहीं मिल सकेगी. तुम से दूर जा कर मैं ने अपने जीवन की सब से बड़ी भूल की है.’’

‘‘पुरानी बातों को याद कर के बेकार में अपना मन क्यों दुखी कर रही हो?’’

‘‘मेरी जिंदगी में खुशियों की बौछार तुम ही कर सकते हो, अरुण. अपने प्यार के लिए मु झे अब और तरसने मत दो, प्लीज,’’ और उस ने मेरे हाथ को कई बार चूम लिया.

‘‘मैं एक शादीशुदा इंसान हूं, रितु. मु झ से ऐसी चीज मत मांगो जिसे देना गलत होगा,’’ मैं ने उसे कोमल स्वर में सम झाया.

‘‘मैं सीमा का हक छीनने की कोशिश नहीं कर रही हूं. हम उसे कुछ पता नहीं लगने देंगे,’’ मेरे हाथ को अपने वक्षस्थल से चिपका कर उस ने विनती सी करी.

कुछ पलों तक उस के चेहरे को ध्यान से निहारने के बाद मैं ने ठहरे अंदाज में बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारे बदलते हावभावों को देख कर मु झे पिछले कुछ दिनों से ऐसा कुछ घटने का अंदेशा हो गया था, रितु. अब प्लीज तुम मेरी बातों को ध्यान से सुनो.

‘‘हमारा प्रेम संबंध उसी दिन समाप्त हो गया था जिस दिन तुम ने मु झे छोड़ कर मयंक के साथ जुड़ने का निर्णय लिया था. अब हमारे पास उस अतीत की यादें हैं, लेकिन उन यादों के बल पर दोबारा प्रेम का रिश्ता कायम करने की इच्छा रखना तुम्हारी नासम झी ही है.

‘‘ऐसे प्रेम संबंध को छिपा कर रखना संभव नहीं होता है, रितु. मु झे आज भी मयंक की प्रेमिका निशा याद है. तुम ने मयंक को उस से छीना तो उस ने खुदकुशी करने की कोशिश करी थी. तुम्हें मनाने के लिए मैं किसी छोटे बच्चे की तरह रोया था, शायद तुम्हें याद होगा. किसी बिलकुल अपने विश्वासपात्र के हाथों धोखा खाने की गहन पीड़ा कल को सीमा भोगे, ऐसा मैं बिलकुल नहीं चाहूंगा.

‘‘पिछली बार तुम ने निशा और मेरी खुशियों के संसार को अपनी खुशियों की खातिर तहसनहस कर दिया था. आज तुम सीमा, रोहित और मेरी खुशियोें और सुखशांति को अपने स्वार्थ की खातिर दांव पर लगाने को तैयार हो पर काठ की हांडी फिर से चूल्हे पर नहीं चढ़ती है.

‘‘देखो, आज तुम सीमा की बहुत अच्छी सहेली बनी हुई हो. हम तुम्हें अपने घर की सदस्य मानते हैं. मैं तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त और शुभचिंतक हूं. तुम नासम झी का शिकार बन कर हमारे साथ ऐसे सुखद रिश्ते को तोड़ने व बदनाम करने की मूर्खता क्यों करना चाहती हो?’’

‘‘तुम इतना ज्यादा क्यों डर रहे हो, स्वीटहार्ट?’’ मेरे सम झाने का उस पर खास असर नहीं हुआ और वह अपनी आंखों में मुझे प्रलोभित करने वाले नशीले भाव भर कर मेरी तरफ बढ़ी.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो वह नाराजगीभरे अंदाज में मुड़ कर दरवाजा

खोलने चल पड़ी.

‘‘यह सीमा होगी,’’ मेरे मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वह  झटके से मुड़ी और मु झे गुस्से से घूरने लगी.

‘‘तुम ने बुलाया है उसे यहां?’’ उस ने दांत पीसते हुए पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं अकेले यहां नहीं आना चाहता था.’’

‘‘अब उसे क्या बताओगे?’’

‘‘कह दूंगा कि तुम उस की सौत बनने की…’’

‘‘शटअप, अरुण. अगर तुम ने हमारे बीच हुई बात का उस से कभी जिक्र भी किया तो मैं तुम्हारा मर्डर कर दूंगी.’’ वह अब घबराई सी नजर आ रही थी.

‘‘क्या तुम्हें इस वक्त डर लग रहा है?’’ मैं ने उस के नजदीक जा कर कोमल स्वर में पूछा.

‘‘म… मु झे… मैं सीमा की नजरों में अपनी छवि खराब नहीं करना चाहती हूं.’’

‘‘बिलकुल यही इच्छा मेरे भी है, माई गुड फ्रैंड.’’

‘‘अब उस से क्या कहोगे?’’ दोबारा बजाई गई घंटी की आवाज सुन कर उस की हालत और पतली हो गई.

‘‘तुम्हें वैभव कैसा लगता है?’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘इस ठीक को हम सब मिल कर बहुत अच्छा बना लेंगे, रितु. तुम बहुत भटक चुकी हो. मेरी सलाह मान अब अपनी घरगृहस्थी बसाने का निर्णय ले डालो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि सीमा को हम यह बताएंगे कि हम ने उसे यहां महत्त्वपूर्ण सलाहमश्वरे के लिए बुलाया है, क्योंकि तुम आज वैभव को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए किसी पक्के फैसले तक पहुंचना चाहती हो.’’

‘‘गुड आइडिया,’’ रितु की आंखों में राहत के भाव उभरे.

‘‘तब सुखद विवाहित जीवन के लिए मेरी अग्रिम शुभकामनाएं स्वीकार करो, रितु,’’ मैं ने उस से फटाफट हाथ मिलाया और फिर जल्दी से दरवाजा खोलने के लिए मजाकिया ढंग से धकेल सा दिया.

‘‘थैंक यू, अरुण.’’ उस ने कृतज्ञ भाव से मेरी आंखों में  झांका और फिर खुशी से भरी दरवाजा खोलने चली गई.

‘‘वैभव तलाकशुदा इंसान था. उस की पत्नी ने तलाक देने से पहले उसे इतना दुखी कर दिया था कि अब वह शादी के नाम से ही बिदकता था…’’

क्या आप प्यार कर चुके है, लेकिन आप प्यार में थे लस्ट में समझ पाएं, जानिए अंतर

फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’, ‘बेफिक्रे’, ‘ओके जानू’, ‘वजह तुम हो’ आदि फिल्मों को देखने के बाद प्यार के नाम पर परोसा जाने वाला मसाला, लव, इमोशंस, इज्जत से परे केवल ‘लस्ट’ यानी सैक्स या कामुकता के आसपास दिखाया जाता है. युवकयुवती की मुलाकात हुई, थोड़ी बातचीत हुई और बैडरूम तक पहुंच गए. आज की सारी लव स्टोरी फिल्मों से ले कर दैनिक जीवन में भी ऐसी ही कुछ देखने को मिलती है. यह सही है कि फिल्में समाज का आईना हैं और निर्मातानिर्देशक मानते हैं कि आज की जनरेशन इसे ही स्वीकारती है.

आज यूथ के लिए प्यार की परिभाषा बदल चुकी है. प्यार का अर्थ जो आज से कुछ साल पहले तक एहसास हुआ करता था, उसे आज गलत और पुरानी मानसिकता कहा जाता है. ऐसे में सामंजस्य न बनने की स्थिति में ऐसे रिश्ते को तोड़ना आज आसान हो चुका है और यूथ लिव इन रिलेशनशिप को बेहतर मानने लगा है, क्योंकि शादी के बाद अगर कोई समस्या आती है, तो कानूनी तौर पर अलग होना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन यह सही है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, कुछ अच्छा तो कुछ बुरा अवश्य होता है.

दरअसल, असल जीवन में जब युवकयुवती मिलते हैं तो उन्हें यह समझना मुश्किल होता है कि वे लव में जी रहे हैं या लस्ट में. कभीकभार वे समझते हैं कि लव में जी रहे हैं, जबकि वह लव नहीं, लस्ट होता है. जब तक वे इसे समझ पाते हैं कि उन का रिश्ता किधर जा रहा है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और रिश्ता टूट जाता है.

जानकारों की मानें तो जब आप पहली बार किसी से मिलते हैं तो पहली नजर में प्यार नहीं लस्ट होता है, जो बाद में प्यार का रूप लेता है. फिर एकदूसरे को आप पसंद कर अपने में शामिल कर लेते हैं.

एमएनसी में काम करने वाली मधु बताती है कि पहले मैं राजेश से बहुत प्यार करती थी. हम दोनों एक फैमिली फंक्शन में मिले थे. करीब एक साल बाद उस ने मुझे घर बुलाया और उस दिन हम दोनों ने सारी हदें पार कर दीं. इस तरह जब भी समय मिलता हम मिलते रहते, लेकिन जब मैं ने उस से शादी की बात कही, तो वह यह कह कर टाल गया कि थोड़े दिन में वह अपने मातापिता को बता कर फिर शादी करेगा. जब घर गया तो वहां से उस ने न तो फोन किया और न ही कोई जवाब दिया. जब मुंबई वापस आया तो उस के साथ उस की पत्नी थी.

मैं चौंक गई, वजह पूछी तो बोला कि उस के मातापिता ने जबरदस्ती शादी करवा दी है. मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. मैं क्या कर सकती थी. उस ने कहा कि वह अब भी मुझ से प्यार करता है और उसे तलाक दे कर मुझ से शादी करेगा, लेकिन आज तक कुछ समाधान नहीं निकला.

अब मुझे समझ में आया कि यह उस का लव नहीं लस्ट था, क्योंकि अगर वह असल में प्यार करता तो किसी भी प्रकार के दबाव में शादी नहीं करता.

इस बारे में मैरिज काउंसलर डा. संजय मुखर्जी कहते हैं कि युवकयुवती का रिश्ता तभी तक कायम रहता है जब तक वह एकदूसरे को खुशी दें. प्यार में पैसा जरूरी है जो केवल 10त्न तक ही खुशी दे सकता है, इस से अधिक नहीं. प्यार भी कई प्रकार का होता है, रोमांटिक प्यार जो सब से ऊपर होता है, जिस का उदाहरण रोमियोजूलिएट, हीररांझा, लैलामजनूं आदि की कहानियों में दिखाई पड़ता है. महिलाएं अधिकतर लव को महत्त्व देती हैं जबकि पुरुषों के लिए लव अधिकतर लस्ट ही होता है. तकरीबन 75 से 80त्न महिलाएं लव और लस्ट को इंटरलिंक्ड मानती हैं. महिलाएं मोनोगेमिक नेचर की होती हैं, जबकि पुरुष का नेचर पोल्य्गामिक होता है. एक स्त्री एक साल में एक ही बच्चा पैदा कर सकती है, जबकि पुरुष 100 बच्चों को जन्म दे सकता है.

आकर्षण के बाद भी लव हो सकता है और जब आकर्षण होता है, तो उस में शारीरिक आकर्षण अधिक होता है. ये सारी प्रक्रियाएं हमारे मस्तिष्क द्वारा कंट्रोल की जाती हैं.

इस के आगे वे कहते हैं कि सबकुछ हर व्यक्ति में अलगअलग होता है. ऐसा देखा गया है कि शादी के बाद भी कुछ युवतियों में शारीरिक संबंधों को ले कर कुछकुछ गलत धारणाएं होती हैं, जिन्हें ले कर भी वे अपने रिश्ते खराब कर लेती हैं और तलाक ले लेती हैं.

लव मन की भावनाओं के साथ जुड़ता है जिस के साथ लस्ट जुड़ा होता है. लव एक मानसिक जरूरत को दर्शाता है तो दूसरा शारीरिक जरूरत को बयां करता है.

कई बार महिलाएं केवल लस्ट का अनुभव करती हैं, लव का नहीं, जिस से वे रियल प्यार की खोज में विवाहेत्तर संबंध बनाती हैं. किसी एक की कमी आप के रिश्ते को खराब करती है.

लव में सैक्सुअल कंपैटिबिलिटी होना बहुत जरूरी है. रिलेशनशिप में रहना गलत नहीं, लेकिन इस में एक तरह की सोच रखने वाले ही सफल जीवनसाथी बन पाते हैं.

लव और लस्ट के बारे में चर्चा सालों से चली आ रही है. क्या पहली नजर में प्यार होता है या वह लस्ट ही होता है? क्या अच्छा है, लव या लस्ट? हमारे आर्टिस्ट जो इन्हीं विषयों पर धारावाहिक और फिल्में बनाते हैं. आइए जानें इस बारे में उन की अपनी सोच क्या है :

अदा खान :

लस्ट पूरा शारीरिक आकर्षण है. प्यार पहली नजर में हो सकता है पर इसे पनपने में समय लगता है. दोनों ही नैचुरल हैं, पर लव की परवरिश करनी पड़ती है. जब आप किसी से प्यार करते हैं तो आप का दिल जोरजोर से धड़कता है, लेकिन मेरे हिसाब से ‘रियल सोलमेट’ के मिलने से आप शांत अनुभव करते हैं. लव और लस्ट में काफी अंतर है. लस्ट आप के सिर के ऊपर से चला जाता है, लेकिन प्यार का नशा हमेशा जारी रहता है. प्यार आप एक बार ही कर सकते हैं, लेकिन लस्ट आप बारबार कहीं भी कर सकते हैं.

श्रद्धा कपूर :

श्रद्धा कपूर बताती हैं कि लव में लस्ट होता है, लेकिन इसे सहेजना पड़ता है. मुझे कोई पहली नजर में अच्छा लग सकता है, पर प्यार हो जाए यह जरूरी नहीं. उस के लिए मुझे सोचना पड़ेगा. मैं परिवार के अलावा हर निर्णय सोचसमझ कर लेती हूं. इतना सही है कि अगर प्यार मिले तो उस में लस्ट अवश्य होगा. इस के लिए सही जांचपरख भी होगी.

पूनम पांडेय :

पूनम के अनुसार लव में 60त्न लस्ट का होना जरूरी होता है. तभी उस का मजा आता है, लेकिन इस के लिए दोनों को ही सही तालमेल बनाए रखना जरूरी है. मैं यह मानती हूं कि पहली नजर में प्यार होता है और उस के बाद लस्ट आता है.

करण वाही :

क्रिकेटर से मौडल और ऐक्टर बने करण वाही कहते हैं कि पहली नजर में अगर किसी से प्यार हो जाए तो इस से बढ़ कर और अच्छी बात कोई नहीं है. जब आप किसी से मिलते हैं तो एक अजीब तरह का आकर्षण महसूस करते हैं. हालांकि लव की परिभाषा गहन है, लेकिन यही आकर्षण लव में परिवर्तित हो सकता है. जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो उस की हर बात आप को अच्छी लगने लगती है. लस्ट पूरा शारीरिक आकर्षण है. इस में फीलिंग्स की गुंजाइश कम होती है.

कृतिका सेंगर धीर :

टीवी अभिनेत्री कृतिका कहती हैं कि लस्ट खोखला इमोशन है, जो थोड़े दिन बाद खत्म हो जाता है, जबकि लव मजबूत, शक्तिशाली और जीवन को बदलने वाला होता है. लव से आप को खुशी मिलती है. इस से सकारात्मक सोच बनती है. मुझे इस का बहुत अच्छा अनुभव है, क्योंकि काम के दौरान मुझे सच्चा प्यार मेरे पति के रूप में निकितिन धीर से मिला.

सुदीपा सिंह :

धारावाहिक ‘नागार्जुन’ में मोहिनी की भूमिका निभा रहीं सुदीपा सिंह कहती हैं कि आजकल रिश्तों के माने बदल चुके हैं. ऐसे में सही प्यार का मिलना मुश्किल है, अधिकतर लस्ट ही हावी होता है. लस्ट हर जगह आसानी से मिल जाता है. एक  सही प्यार आप की जिंदगी बदल देता है और लस्ट आप को अधूरा कर सकता है. पहली नजर में प्यार कभी नहीं होता, लेकिन आप को एक एहसास जरूर होता है, जो समय के साथ प्रगाढ़ होता है. मुझे इस का अनुभव है. मैं युवाओं से कहना चाहती हूं कि किसी को भी अगर कोई ‘सोलमेट’ मिले तो उसे संभाल कर रखें.

लव और लस्ट में अंतर

–   लव एक प्रकार का आंतरिक एहसास है, जबकि लस्ट प्यार के साथसाथ एक शारीरिक खिंचाव भी है.

–   लव में एकदूसरे के प्रति मानसम्मान, इज्जत, ईमानदारी, विश्वसनीयता, आपसी सामंजस्य अधिक होता है, लेकिन लस्ट में चाहत, पैशन और गहरे इमोशंस होते हैं.

–   लव में एक व्यक्ति दूसरे की खुशी को अधिक प्राथमिकता देता है जबकि लस्ट थोड़े समय की खुशी देता है.

–       लव कुछ देने में विश्वास रखता है, जिस में व्यक्ति सुरक्षा का अनुभव करता है, जबकि लस्ट में अर्जनशीलता अधिक हावी रहती है, इस से असुरक्षा अधिक होती है.

–   लव समय के साथसाथ मजबूत होता है, जबकि लस्ट का प्रभाव धीरेधीरे कम होने लगता है.

–   लव का एहसास सालोंसाल रहता है जबकि लस्ट पूरा हो जाने पर भुलाया भी जा सकता है.

–    लव अनकंडीशनल होता है, जबकि लस्ट में व्यक्ति अपनी खुशी देखता है, कई बार लस्ट, लव में भी बदल जाता है पर वह लस्ट के साथसाथ ही चलता है. बाद में उस की अहमियत नहीं रहती.

दिल दहला देने वाली घटनाएं, शैहर की लाश को जलाया फिर, फैंके गए टुकड़े

किसी भी कामयाब जासूस के लिए तेज दिमाग और त्वरित बुद्धि होना जरूरी होता है. मोंक ऐसा ही जासूस था. तभी तो उस ने कीसले की कार को देख कर ही अनुमान लगा लिया कि वह कत्ल कर के भागी है. उस दिन हम लोग न्यूजर्सी रोड पर बिलबोर्ड के पीछे मोर्चा जमाए बैठे थे. कोई तेज रफ्तार गाड़ी आती, तो हम उसे रोक कर चालान काट देते. यह बड़ा बोरिंग काम था. क्योंकि तेज रफ्तार गाडि़यां कम ही आती थीं. हमारी परेशानी यह थी कि हमें अपना टारगेट पूरा करना था

इस टारगेट के तहत हमें तेज रफ्तार गाडि़यों के ड्राइवर्स को पकड़ कर साढ़े 3 सौ डौलर्स के चालान काटने थे. एंडरयान मोंक और मैं यानी नेल थामस सोमवार की सुबह से पहाडि़यों के बीच से गुजरने वाली डबल लेन रोड पर मौजूद थे. यह पुरानी सड़क थी. ऐसी सड़क पर रफ्तार पर काबू रखना मुश्किल होता है. इस जगह हमें 3 हफ्ते हो गए थे. मेरा काम अपराध के सुराग ढूंढना था. जबकि मोंक एक पुलिस कंसलटेंट और जासूस था. मैं मोंक का दोस्त भी था और शागिर्द भी. दरअसल मैं एक अच्छा जासूस बनने की धुन में उस के असिस्टेंट के तौर पर उस से जुड़ गया था. 

हम यहां पुलिस चीफ रेमंड डशर और उन की बीवी फे्रंकी की मेहरबानी की वजह से आए थे. रेमंड एक जमाने में सानफ्रांसिसको के होमीसाइड जासूस रह चुके थे. फ्रेंकी मोंक के साथ काम कर चुकी थी. रेमंड बहुत ज्यादा व्यस्त चल रहे थे. उन दोनों ने कानून की मदद करने की बात कह कर हमें यहां गाडि़यां चेक करने के लिए बुलाया था. मैं इस से पहले भी कत्ल के कई केस हल करने में मोंक की मदद कर चुका था. पर कभी भी मेरे नाम से कामयाबी के झंडे नहीं गड़े थे. मैं मोंक के नाम के बाद ही अपना नाम देख कर खुश हो जाता था. मेरे लिए गर्व की बात यह थी कि मोंक के साथ रह कर मुझे भी पुलिस की वरदी पहनने को मिलती थी

उस वक्त मोंक पैसेंजर सीट पर बैठा था, गन उस के हाथ में थी. वह अगले शिकार के इंतजार में था और अपनी फिलासफी सुना रहा था. मैं उस की हर बात ध्यान से सुनता था, क्योंकि उस की बातों में काम की कोई कोई बात जरूर रहती थी. 2 दिनों बाद हमें अपने जरूरी कामों से सानफ्रांसिसको जाना था. वहां रेमंड ने हमें अपने डिपार्टमेंट में जौब की औफर दी थी, जो हम दोनों ने मंजूर कर ली थी. मैं मोंक की बातें सुन रहा था कि इसी बीच लाल रंग की एक रेंजरोवर उस बिलबोर्ड के पास से तेजी से गुजरी, जिस के पीछे हमारी गाड़ी खड़ी थी

गाड़ी के टायरों और निचले हिस्से पर कीचड़ लगा था. मोंक ने जल्दी से अपनी गन नीचे करते हुए कहा, ‘‘हमें इस गाड़ी का पीछा करना है.’’ मैं ने छत पर लगी बत्तियां जलाईं और सायरन का बटन दबा दिया. इस के साथ ही हमने लाल गाड़ी का पीछा शुरू कर दिया. चंद सेकेंड में हम उस कार के करीब पहुंच गए. हम ने ड्राइवर को रुकने का इशारा किया. इशारा समझ कर उस ने गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी. कार चलाने वाली एक औरत थी और उस की कार पर न्यूजर्सी की नेमप्लेट लगी थी.

मोंक ने मुंह बनाते हुए उस गाड़ी की तरफ देखा. गाड़ी के बंपर पर कीचड़ के साथसाथ पेड़ की डालियां और पत्ते चिपके हुए थे. मैं जानता था कि मोंक को गंदगी से सख्त नफरत है, इसीलिए उस की त्यौरियां चढ़ी हुई थींमैं ने जल्दी से गाड़ी का नंबर अपने कंप्यूटर में टाइप किया, तो मुझे जरा सी देर में पता चल गया कि वह गाड़ी सिमेट की रहने वाली कीसले ट्यूरिक के नाम पर रजिस्टर्ड है. इस से पहले कभी भी उस गाड़ी का चालान नहीं हुआ था. ही वह किसी हादसे से जुड़ी थी. मैं गाड़ी से बाहर कर ड्राइविंग सीट पर बैठी औरत के करीब पहुंच गया

मोंक गाड़ी के पिछले हिस्से की तरफ पहुंचा और इतनी बारीकी से देखने लगा, जैसे वहां बैंक से लूटी गई रकम या कोकीन का जखीरा अथवा अगवा की हुई कोई लड़की मौजूद हो. कार की पिछली सीट उठी हुई थी, लेकिन वहां सिरके की एक बोतल के अलावा कुछ नहीं था. निस्संदेह सिरका रखना गैरकानूनी नहीं था. औरत ने अपनी गाड़ी का शीशा नीचे किया, तो मेरी नाक से एक अजीब सी बदबू टकराई. गाड़ी के अंदर चमड़ा मढ़ा हुआ था. शायद ये उसी की बदबू थी. उस औरत की उम्र करीब 30 साल थी और वह देखने में काफी खूबसूरत थी. उस ने लंबी आस्तीन वाली फलालेन की शर्ट और पुरानी सी जींस पहन रखी थी.

उस औरत की आंखों के नीचे और नाक पर की कुछ स्किन सुर्ख नजर रही थी. जिस का मतलब था कि वह चश्मा लगाती थी. मैं ने नम्रता से कहा, ‘‘गुड मानिंग मैडम, क्या मैं आप का लाइसेंस देख सकता हूं? प्लीज रजिस्टे्रशन बुक भी दीजिए.’’ उस ने दोनों चीजें मेरी तरफ बढ़ा दीं. उसी वक्त मैं ने उस की हथेली पर अंगूठे से जरा नीचे एक छाला देखा, पर मैं ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया. ‘‘क्या बात है औफिसर…?’’ उस ने पूछा.

उस का लाइसेंस देखने के बाद इस बात की तसदीक हो गई कि वह कीसले ट्यूरिक ही है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि इस सड़क पर गाड़ी की रफ्तार कितनी होनी चाहिए?’’ ‘‘55.’’ वह बोली. ‘‘क्या तुम जानती हो, तुम किस स्पीड से गाड़ी चला रही थी?’’ उस ने पूरे विश्वास से कहा, ‘‘55.’’

मेरी समझ में नहीं आया कि जब उस की स्पीड ठीक थी, तो उसे रोकने की वजह क्या है? मैं ने पीछे मुड़ कर मोंक से कहा, ‘‘इस की रफ्तार तो ठीक थी, फिर गाड़ी क्यों रुकवाई?’’ उस ने झुंझला कर कहा, ‘‘देखते नहीं, इस की गाड़ी पर कीचड़ लगा है और पिछले हिस्से के हुक में प्लास्टिक बैग का एक टुकड़ा भी फंसा है.’’

‘‘पर इस से ट्रैफिक कानून का तो कोई उल्लंघन नहीं होता.’’ मैं ने कहा. इसी बीच कीसले बोल उठी, ‘‘क्या मैं जा सकती हूं औफिसर?’’ मैं ने उस का लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन कार्ड उस की तरफ बढ़ाया, तो उस की उंगली पर हल्का सा सफेद दाग नजर आया, जिस से पता चलता था कि उस ने हाल ही में अपनी शादी की अंगूठी उतारी थी. ‘‘औफिसर जरा हटें, मुझे जाने दें.’’

 ‘‘हां.’’ मैं ने चौंकते हुए कहा, ‘‘तुम जा सकती हो.’’ ‘‘नहीं. तुम नहीं जा सकती.’’ पीछे से मोंक की तेज आवाज सुनाई दी. मैं ने ठंडी सांस भर कर कहा, ‘‘तुम सिमेट वापस आने के बाद अपनी गाड़ी धुलवा लेना. मेरे साथी को गंदगी से सख्त नफरत है.’’ ‘‘जी जरूर.’’ औरत ने जल्दी से कहा. ‘‘हम इसे यहां से जाने और कार धुलवाने की इजाजत हरगिज नहीं दे सकते.’’ मोंक ने आगे कर सख्त लहजे में कहा, तो मैं हैरान हुआ. मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’  ‘‘क्योंकि इस से अहम सुबूत भी धुल जाएंगे.’’ वह बोला.

‘‘कैसे सुबूत? यही कि कार पर कीचड़ लगा है?’’ मैं ने विरोध किया, तो मोंक ने जैसे धमाका किया, ‘‘नहीं, इस ने अपने शौहर का कत्ल किया है.’’ अभी मोंक की जुबान से ये शब्द निकले ही थे कि कीसले ने गाड़ी स्टार्ट की और तूफान की सी तेजी के साथ भगा कर ले गई. मैं ने जल्दी से पीछे हट कर रूमाल से चेहरा साफ किया. उस का इस तरह भागने का मतलब था कि एक तरह से वह अपना जुर्म कुबूल कर रही थी. कीसले के भागने से मैं हैरान परेशान था. मोंक ने झुंझला कर कहा, ‘‘अब खड़े क्यों हो, वह हम से बच कर भाग रही है.’’ 

मैं लपक कर गाड़ी में जा बैठा और गाड़ी का सायरन चालू कर दिया. हम कीसले की कार के पीछे रवाना हो गए. मेरी आंख में शायद धूल के कण चले गए थे, जो बड़ी तकलीफ दे रहे थे. मैं बारबार रूमाल से आंख पोंछ रहा था. मोंक ने रेडियो औन कर के यह खबर रेमंड को दे दी कि हम एक कातिल का पीछा कर रहे हैं. मोंक ने उस औरत के लिए खुले रूप से कातिल शब्द इस्तेमाल किया था. इस का मतलब था कि मोंक को उस के कातिल होने का पक्का यकीन था. हालांकि इस से पहले वह कभी भी कत्ल के किसी केस में नाकाम नहीं हुआ था. फिर भी उस का इतना आत्मविश्वास मुझे उलझन में डाल रहा था. हम तेजी से उस लाल कार के करीब पहुंचते जा रहे थे, जो 90 की स्पीड से दौड़ रही थी. हमारी स्पीड भी 90 के ऊपर थी. मैं ने मोंक से पूछा, ‘‘क्या हम कीसले को पकड़ पाएंगे?’’

‘‘तुम बिलकुल फिक्र मत करो नेल, हम उसे पकड़ लेंगे.’’ मोंक ने बड़े आत्मविश्वास से कहा. कीसले की कार के आगे एक ट्रक चल रहा था. उस ने उसे ओवरटेक करने की कोशिश की. सामने से 2 कारें रही थीं. उन्होंने उसे बचाने की कोशिश की, तो एक कार सड़क के किनारे बनी मुंडेर से टकरा गई, जबकि दूसरी कार पूरी तरह दाईं तरफ घूम गई. इसी बीच लाल कार हमारी नजरों से ओझल हो गई. मैं ने स्पीड बढ़ाई, तो थोड़ी देर बाद वह कार फिर नजर गई. मैं ने मोंक ने कहा, ‘‘तुम्हें यह खयाल क्यों आया कि कीसले ने अपने शौहर का कत्ल किया है. क्या इस की कार के पिछले हिस्से में कोई लाश थी, जो मुझे नजर नहीं आई?’’

‘‘नहीं, लाश अंदर नहीं थी. वह लाश को पहले ही  ठिकाने लगा चुकी है. उस ने लाश को काले रंग के बड़े से प्लास्टिक के थैले से डाला था. फिर घसीटती उसे हुई एक कब्र तक ले गई थी. इतना ही नहीं, उस ने लाश को दफन करने के बाद कब्र पर पानी भी छिड़का था.’’ कीसले ने एक होंडा कार को ओवरटेक किया, जिस के फलस्वरूप कार के ड्राइवर को गाड़ी सड़क के एक तरफ उतारनी पड़ी. मुझे भी अपनी स्पीड कम करनी पड़ी. मैं ने मोंक से पूछा, ‘‘तुम यह सब इतने यकीन से कैसे कह सकते हो? तुम्हारी बातों से तो ऐसा लगता है, जैसे तुम चश्मदीद गवाह हो.’’ ‘‘मैं अपनी आंखें खुली रखता हूं, इसलिए.’’ मोंक बोला.

‘‘ठीक है, पर तुम अगर मुझे हकीकत बताओगे, तो मुझे भी पता चल जाएगा. आखिर तुम्हारे साथ मैं भी भागदौड़ कर रहा हूं.’’ मैं ने रूखे लहजे में कहा. मोंक ने व्यंग्य से मुसकराते हुए मुझे देख कर कहा, ‘‘इस लाल गाड़ी पर लगी कीचड़ से जाहिर होता है कि यह जंगल में गई थी. कार के पिछले बंपर से थोड़ा कीचड़ हटा हुआ है, इस का मतलब जब उस ने कार की डिक्की से प्लास्टिक के थैले में रखी लाश बाहर निकाली होगी, तो रगड़ से उस जगह का कीचड़ साफ हो गया होगा. पिछले हुक में प्लास्टिक के बैग का टुकड़ा भी फंसा हुआ है, जिस से पता चलता है कि डिक्की से प्लास्टिक बैग में रखी हुई कोई चीज निकाली गई है.’’

‘‘पर इस से यह तो साबित नहीं होता कि उस ने अपने शौहर को कत्ल कर के उस की लाश ठिकाने लगाई है.’’ मैं ने पूछा. तब तक हम लाल गाड़ी के काफी करीब पहुंच गए थे. मोंक ने गाड़ी पर नजरें जमाते हुए कहा, ‘‘तुम ने देखा होगा कि उस की अंगुली में शादी की अंगूठी नहीं थी, जो ये बताती है कि दोनों की आपस में नहीं बनती थी. उस की हथेली का छाला साबित करता है कि उस ने हालफिलहाल ही बेलचे से खुदाई की है.’’ ‘‘तुम ठीक कह रहे हो, यह मैं ने भी देखा था.’’

‘‘उसे चमड़े के दस्ताने पहन कर खुदाई करनी चाहिए थी.’’ मोंक बोला. ‘‘उस के बजाए उस ने रबर के दास्ताने पहन रखे होंगे, जो हाथों को कीचड़ और पानी से बचा सकते थे, लेकिन खुदाई के दौरान बेलचे के दस्ते की रगड़ से नहीं बचा सके. उस ने लंबी आस्तीनों की शर्ट, जींस काला चश्मा पहन रखा था, जो उस के चेहरे के लिहाज से छोटा था. इसी वजह से उस की नाक और आंखों के नीचे का हिस्सा लाल सा हो गया था. लाश को दफन करने के बाद उस ने चश्मे, बेलचे और दास्तानों से तो छुटकारा पा लिया, लेकिन वह सिरके की वह बोतल फेंकना भूल गई, जिस पर तेजाब के धब्बे लगे थे. वैसे इस का वारदात से सीधा ताल्लुक नहीं है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘सिरके की बोतल कार में क्यों रखी थी?’’ इस पर मोंक बोला, ‘‘अगर कीसले के हाथों पर तेजाब लग जाता तो उस का असर खत्म करने के लिए सिरका बहुत फायदेमंद होता है.’’  मैं हैरतजदा सा उस की बातें सुन रहा था. जो मोंक ने देखा था, मैं ने भी वही सब देखा था, पर उस ने कितनी अकलमंदी से हर चीज का ताल्लुक कत्ल से जोड़ लिया था और उस की हर बात हकीकत सी लगती थी. निस्संदेह उस का दिमाग बहुत तेज था. इसीलिए वह जानामाना जासूस था. मुझ में मोंक की तरह चीजों को वारदात से जोड़ने की योग्यता नहीं थी. मैं ने थोड़ी रफ्तार बढ़ाई और कीसले की गाड़ी तक पहुंच गया.

मैं ने गाड़ी उस की कार के आगे रोकी. हम दोनों अपनी कार से बाहर गए. हम ने अपने हथियार निकाल लिए और उन का रुख कार की तरफ कर दिया. वह कार में अपनी सीट पर बैठी रही. ‘‘अपने हाथ ऊपर उठाओ और कार से बाहर आओ.’’ मैं ने सख्ती से कहा, तो वह हैरान सी कार के बाहर गई. मोंक की पिस्तौल उस पर तनी हुई थी, इसलिए मैं ने अपनी पिस्तौल होलस्टर में रख ली और उसे हथकड़ी डालते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया जा रहा है.’’ ‘‘मैं नहीं मानती, तुम यह कैसे कह सकते हो कि मैं ने कत्ल किया है?’’ ‘‘हम पुलिस वाले हैं, सोचसमझ कर हाथ डालते हैं.’’ मोंक ने कहा.

सूचना पा कर रेमंड 20 मिनट में वहां पहुंच गए. जबकि फोरेंसिक टीम और पैरामैडिकल स्टाफ उन से पहले ही वहां पहुंच गए थे. इन्हें मैं ने बुलवाया था. ऊंचे ओहदे पर होने के बावजूद रेमंड का रवैया बड़ा दोस्ताना था. उन्होंने दोनों कारों को देखा. दोनों में काफी टूटफूट हो चुकी थी. कीसले को एंबुलेंस में बैठा लिया गया था. रेमंड ने एंबुलेंस में बैठी कीसले पर नजर डाली. फिर वह मोंक से मुखातिब हुआ. ‘‘कमाल हो गया, किसी को मालूम भी नहीं कि कोई कत्ल हुआ है और तुम ने कातिल को पकड़ लिया. यह काम सिर्फ तुम ही कर सकते हो.’’

‘‘शुक्रिया चीफ.’’ मोंक ने उस के व्यंग्य पर ध्यान नहीं दिया. ‘‘लेकिन मोंक तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है. अगर लाश मिल जाती तो गिरफ्तारी हो सकती है, ऐसे नहीं.’’ रेमंड ने कहा. ‘‘उस का इस तरह गाड़ी ले कर भागना उस का जुर्म साबित करता है.’’ मैं ने कहा, तो रेमंड बोले, ‘‘नहीं गाड़ी ले कर भागने के कई कारण हो सकते हैं. तुम इसे इकबाले जुर्म नहीं कह सकते.’’  ‘‘चीफ जब हम ने उस पर कत्ल का इल्जाम लगाया, तो उस ने हैरान हो कर कहा था, ‘तुम्हें कैसे पता चला?’

रेमंड ने बात काटी, ‘‘अगर यह इकबाले जुर्म है तो क्या उस ने तुम्हें बताया कि लाश कहां दफन है?’’ ‘‘नहीं, न तो उस ने जुर्म कुबूल किया और न ही यह बताया कि उस के शौहर की लाश कहां दफन है?’’ मैं ने कहा, तो मोंक ने दखल दिया, ‘‘मैं साबित कर सकता हूं कि इस औरत ने अपने शौहर का कत्ल किया है.’’ मोंक ने डिटेल में बताया, ‘‘औरत की हथेली पर छाला, शादी की अंगूठी का न होना, सिरके की बोतल, काले बैग का टुकड़ा और गाड़ी के बंपर पर लगा कीचड़, ये सारे सुबूत हैं.’’ 

मोंक की बातें सुनने के बाद रेमंड सोच में पड़ गए. पलभर बाद बोले, ‘‘मोंक मैं तुम से सहमत हूं. पर इन सब तथ्यों पर तो हम कत्ल का केस बना सकते हैं और कत्ल की बात साबित कर सकते हैं. अच्छा यह बताओ, जब कीसले की गाड़ी की रफ्तार ज्यादा नहीं थी तो तुम ने गाड़ी क्यों रोकी?’’ ‘‘उस की कार बहुत गंदी थी.’’ मोंक ने जवाब दिया, तो रेमंड अपना सिर पीटते हुए बोले, ‘‘मोंक गाड़ी गंदी होना गैरकानूनी नहीं है, इस के लिए हम कोई एक्शन नहीं ले सकते. मुझे लगता है कि तुम मेरी नौकरी खत्म करवा कर दम लोगे. यह बहुत अमीर औरत है और हम पर दावा दायर कर सकती है. वैसे भी उसे कातिल साबित करने के लिए हमारे पास कोई सुबूत नहीं हैं.’’

‘‘मि. रेमंड, क्या लाश मिलने पर आप की तसल्ली हो सकती है?’’ मोंक ने पूछा. ‘‘हां मोंक, लाश मिलने से हमारी पोजीशन मजबूत हो जाएगी.’’ रेमंड ने कहा, तो मोंक बोला,  ‘‘मुमकिन है, इस सिलसिले में कीसले मुंह खोले, लेकिन उस की कार सब बता देगी.’’  मोंक कुछ सोचते हुए कीसले की कार की तरफ बढ़ा. मैं और रेमंड उस के पीछे थे. रेमंड ने जल्दी से कहा, ‘‘बिना वारंट के हम उस की गाड़ी का जीपीएस सिस्टम नहीं देख सकते मि. मोंक.’’

‘‘मुझे यह जानने की जरूरत नहीं है कि कार कहां से आ रही है.’’ मोंक ने पूरे विश्वास से कहा. फिर वह घूमघूम कर बारीकी से गाड़ी की जांच करने लगा. गाड़ी पर निगाह जमाएजमाए उस ने कहा, ‘‘गाड़ी के निचले हिस्से और टायरों पर जो कीचड़ लगा है, उस पर पत्ते भी हैं. इस का मतलब यह कि गाड़ी जंगल की तरफ गई थी. जब हम ने कार रोकी थी तो उस पर लगा कीचड़ गीला थी. हवा, मौसम और गर्मी को देखते हुए यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है कि कब्र यहां से 5-6 मिनट की ड्राइव के फासले पर होगी.’’

‘‘चलो मान लिया कि लाश यहां से 5 मिनट के फासले पर है, पर उस तक पहुंचा कैसे जाएगा?’’ मैं ने पूछा. ‘‘स्नेक की तलाश करने के बाद हम वहां तक पहुंच सकते हैं.’’ ‘‘बीच में यह स्नेक कहां से गया?’’ रेमंड ने जल्दबाजी में पूछा. ‘‘कीसले ने स्नेक पर गाड़ी चढ़ा दी थी और वह टायरों के नीचे कुचल कर मर गया. मुझे इस की अगलीपिछली साइड के पहियों पर स्नेक के टुकड़े नजर रहे हैंशायद वह गाड़ी के नीचे आने के पहले मर चुका था.’’ ‘‘पर तुम यह कैसे कह सकते हो कि स्नेक लाश दफन कर के वापस लौटते समय कीसले की गाड़ी से कुचला गया?’’

‘‘स्नेक के गोश्त के पीस कीचड़ के ऊपर लगे हैं, नीचे नहीं. इस का मतलब पहले कीचड़ लगा फिर स्नेक कुचला गया. अगर हम मरे हुए स्नेक को तलाश लें, तो मालूम हो जाएगा कि हम सही दिशा की तरफ जा रहे हैं.’’ ‘‘लेकिन इस से यह कैसे जान सकेंगे कि वहां से आगे कहां जाना है?’’ रेमंड ने पूछा तो मोंक ने कार के पहिए की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘इस से अंदाजा होता है कि कीसले कार बहुत तेज रफ्तार से चला रही थी. जब वह एक तंग और कच्चे रास्ते पर मुड़ी, तो उस की कार किसी झाड़ या खंभे से टकरा गई, जिस से दाईं ओर की लाइट टूट गई

‘‘इस टूटी हुई लाइट के अंदर भी कीचड़ लगा है. इस का मतलब लाइट कीचड़ में जाने के पहले टूटी थी. अब हमें बस, यह करना है कि हाईवे पर 5 किलोमीटर वापस जा कर एक मरे हुए स्नेक, कच्ची धूल भरी सड़क और किसी ऐसे खंभे या झाड़ को तलाशना है, जिस पर कार के रंग के लाल निशान हो. हमें अपनी सही दिशा मिल जाएगी. वहां हमें लाइट के टुकड़े और कीचड़ पर गाड़ी के टायरों के निशान भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रेमंड बोले, ‘‘फिर तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? लाश की तलाश क्यों नहीं शुरू करते? जब मिल जाए तो मुझे खबर कर देना.’’  हम ने जल्दी से गाड़ी स्टार्ट की और उस तरफ चल पड़े, जिधर कब्र होने का अंदाजा था. 20 मिनट में हम ने वह कब्र तलाश कर ली. अगले 10 मिनट में हमें एक गैस स्टेशन के पीछे कचरे के ड्रम में तेजाब की बोतल, बेलचा, दस्ताने और चश्मा भी मिल गया. वह गैस स्टेशन कच्ची सड़क से करीब 1 किलोमीटर दूर था. शौहर की लाश मिलने के बाद भी कीसले ने जुबान नहीं खोली. वह बारबार वकील को बुलाने को कहती रही. रेमंड हम सब को साथ ले कर सिमेट के लिए रवाना हो गए. रास्ते में मोंक के सवालों ने कीसले को सच बोलने पर मजबूर कर दिया. कीसले का शौहर नारमन एक मशहूर आर्किटैक्ट था. वह खुद भी अच्छे जौब पर थी. इन लोगों का सिमेट में एक खूबसूरत बंगला था, पास में 4 कीमती कारें थीं. पतिपत्नी के दोस्तों के साथ शराब की शानदार महफिलें जमती थीं. 

घटना से एक दिन पहले सुबह को नाश्ते पर नारमन ने कीसले को बताया कि वह पूरी तरह दिवालिया हो गया है. वह चोरीछिपे जुआ खेलने का आदी था और यह सोच कर बड़ीबड़ी बाजी खेलता था कि शायद किस्मत साथ दे दे और उस का नुकसान पूरा हो जाए. लेकिन उस की यह उम्मीद पूरी नहीं हुई और वह दलदल में फंसता चला गया. यहां तक कि इस के चलते वह दिवालिया हो गया. इस से ज्यादा बुरी खबर यह थी कि जुए में लगातार हारने की वजह से नारमन का बैंक एकाउंट, जिस में कीसले की भी जमापूंजी थी, एकदम खाली हो गया था. शेयर्स और कीमती चीजें भी बिक गई थीं. इस से भी बुरी बात यह थी कि उस ने अपनी कंपनी में 3 लाख डौलर्स का गबन किया था. इस मामले में नारमन का जेल जाना तय था. उस के जेल जाने के बाद देनदारी के सारे मामले और तकाजे कीसले को अकेले बिना पैसे के भुगतने पड़ते.इस खौफनाक हकीकत को जान कर कीसले की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

पहले तो उस की समझ में नहीं आया कि क्या करे? फिर वह गुस्से और हताशा में उठ कर किचन में गई. वहां से वह भारी फ्राइंगपैन उठा कर लाई और पीछे से नारमन के सिर पर 2 बार जोरदार वार किए. दूसरे वार ने नारमन की जान ले ली.  कीसले उस की लाश को घसीटते हुए गैराज में ले गई और उसे कचरा रखने वाली खाली थैली में डाल कर उस के मुंह पर एक डोरी बांध दी. इस के बाद  उस ने लाश गाड़ी में रखी और उसे ठिकाने लगाने के लिए रवाना हो गई. कीसले में इतनी ताकत थी कि बिना किसी की मदद के वह सब कुछ कर सकती थी. अगर ऐसा न होता तो उसे लाश के टुकड़े करने पड़ते.

पति की हत्या के बाद कीसले ने कंप्यूटर खोल कर नेट के जरिए ये मालूम किया कि लाश ठिकाने लगाने का बेहतरीन तरीका क्या है? उसे पता चला कि लाश दफन करने के बाद अगर उस पर तेजाब छिड़क दिया जाए तो वह जल्दी गल जाती हैअब सवाल यह था कि लाश को कहां दफन करे? उसे याद आया कि कुछ साल पहले उस के शौहर ने एक प्लाट लेने का इरादा किया था. पर कीमत पर बात नहीं बन पाई थी और वह जमीन नहीं ले सका था. वह जगह जंगल के किनारे बिलकुल सुनसान थी. वहां लाश के देख लिए जाने के चांसेज के बराबर थे. लिहाजा वह बाजार जा कर वहां से लाश ठिकाने लगाने का जरूरी सामान ले आई

रात गए उस ने अपनी गाड़ी निकाली और लाश को उसी जगह ले जा कर दफन कर दिया, वापस आते हुए उस ने रास्ते में गैस स्टेशन के पीछे कचरा घर में बेलचा, चश्मा और तेजाब की बोतल वगैरह फेंक दी. ‘‘दरअसल किसले ने सोचा था कि सब लोग यही समझेंगे कि नारमन गिरफ्तारी और बदनामी से बचने के लिए कहीं छिप गया है. किसी को इस बात का शक भी नहीं होगा कि उस की परेशान बीवी ने उसे मार डाला है. ऐसे केस में बीवी के मारने का खयाल भी किसी के दिल में नहीं आता, पर किस्मत ने उस का साथ नहीं दिया.

कीसले को ले कर हम पुलिस हेडक्वार्टर पहुंचे, जहां उस का वकील इंतजार में बैठा था. वह एक बड़ा महंगा और काबिल वकील था. पर जब उसे मालूम हुआ कि कीसले बयान दे चुकी है और उस ने जुर्म भी कुबूल कर लिया है, तो  उस ने उस के मुकदमे की पैरवी करने से साफ इनकार कर दिया. रेमंड जानते थे कि ऐसी स्थिति में कोई भी वकील उस का केस नहीं लेगा. इसलिए उन्होंने उस के लिए सरकारी वकील का इंतजाम कर दिया. इस दौरान हम ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर के रेमंड के औफिस में जमा कर दी. उसे देख कर रेमंड ने कहा, ‘‘तुम दोनों मेरी बुद्धिमत्ता की दाद दो कि मैं ने कैसे आउट औफ वे जा कर तुम दोनों को यहां बुला लिया.’’ 

इस पर मोंक ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस में आप की बीवी की मरजी भी शामिल है, क्योंकि वह मेरी तफ्तीश और मुजरिम पकड़ने की योग्यता से बहुत प्रभावित हैं. वैसे हमें अपने साथ रखने से आप भी तो फायदे में हैं. अब आप को कत्ल की खबर से पहले ही कातिल मिल जाएंगे.’’ कमरे में हम तीनों का कहकहा गूंज उठा.

पराठों के लिए मशहूर है मुरथल के ढाबों पर विदेशी कौलगर्लस का तड़का

जब आप दिल्ली से करनाल जाने वाले जीटी हाईवे पर जाएंगे तो सोनीपत के नजदीक मुरथल में हाईवे के किनारे जगमगाते व सजे हुए अनेक ढाबे दिखाई देंगे. रात में तो इन ढाबों की रौनक देखने लायक होती है.

इन ढाबों के परांठों का स्वाद भारत भर में मशहूर है. तभी तो रात में इन ढाबों की पार्किंग में सैकड़ों गाडि़यां खड़ी रहती हैं. दूरदूर से लोग मुरथल के परांठों का स्वाद लेने आते हैं. एक तरह से इन ढाबों की वजह से मुरथल की भारत भर में पहचान बनी हुई है.

इन्हें भले ही ढाबा कहते हैं लेकिन ये किसी आधुनिक होटल से कम नहीं हैं, लेकिन पैसे कमाने के लालच में कुछ लोगों ने ढाबों की परिभाषा ही बदल दी है. इन ढाबों पर ग्राहकों को मौजमस्ती कराने के लिए कालगर्ल भी बुलाई जाने लगी हैं. जिस से ग्राहकों के खाने के देशी और विदेशी देह का सुख भी मिल सके. अनैतिक देह व्यापार का धंधा भी खूब फलफूल रहा था.

7 जुलाई, 2021 की रात के तकरीबन 8 बजे का वक्त था, जब ढाबे रंगबिरंगी रोशनी से नहाए हुए थे. ढाबों के बाहर वाहनों की कतारें लगी थीं. तभी एक कार एक ढाबे के बाहर आ कर रुकी. उस में से 2 लोग उतरे. पहले उन्होंने अपनी खोजी नजरों से ढाबे का मुआयना किया और फिर आराम से टहलते हुए सीधे काउंटर पर पहुंचे.

काउंटर पर मौजूद मैनेजर ने एक नजर उन पर डालते हुए पूछा, ‘‘कहिए सर, क्या सेवा कर सकता हूं आप की?’’

‘‘हमें स्पैशल परांठे चाहिए.’’ उस ने कुरसियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘प्लीज आप बैठ कर मेन्यू देख कर और्डर कीजिए, अभी भिजवाता हूं.’’ मैनेजर बोला.

‘‘हमें खाने के नहीं, इस्तेमाल करने वाले परांठे चाहिए.’’ उन की बात सुन कर काउंटर पर बैठा व्यक्ति एक पल के लिए सकपका गया, लेकिन दूसरे ही पल उन दोनों को गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘हम ने ऐसी तो कोई बात की नहीं, जो आप समझ न सको. आप के एक पुराने ग्राहक ने ही हमें यह जगह बताई थी, इस भरोसे पर आज मनोरंजन के इरादे से यहां चले आए.’’ आगंतुक ने राजदाराना अंदाज में कहा.

तभी मैनेजर मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह समझ गया, यह बात है तो आप को पहले बताना चाहिए था. दरअसल, बात यह है सर कि पुलिस का भी चक्कर रहता है, इसलिए अंजान लोगों के साथ संभल कर बात करनी पड़ती है हमें. वैसे आप को किस तरह का परांठा चाहिए?’’

‘‘हमें एकदम बढि़या चाहिए, जो दिल खुश हो जाए.’’ एक व्यक्ति बोला.

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा कि हमारे पास देशीविदेशी दोनों तरह के हैं. अब मरजी आप की है, आप जो भी पसंद करें. सर्विस में भी आप को कोई शिकायत नहीं मिलेगी.

‘‘हमारे कई रेग्युलर कस्टमर हैं, जो हमारी शानदार सर्विस से हमेशा खुश रहते हैं. ऐसा करता हूं, मैं आप को फोटो दिखा देता हूं, आप पसंद कर लीजिए.’’ कहने के साथ ही उस ने अपना मोबाइल उन के सामने कर दिया और एकएक कर के फोटो दिखाने लगा.

उस के पास कई सुंदर लड़कियों के अदाओं के साथ खिंचे फोटोग्राफ थे. इन में विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. वास्तव में वह परांठों की नहीं, बल्कि कालगर्ल के बारे में बात कर रहे थे.

‘‘विदेशी का इंतजाम कैसे करोगे?’’

‘‘सर, आप सिर्फ पसंद कीजिए, इंतजाम हमारे कमरों में पहले से है, फिलहाल कुछ लड़कियां आई हुई हैं.’’ उस ने कहा.

आगंतुक ने उन में से एक लड़की को पसंद किया और उस का रेट तय करने के बाद एक 500 का नोट उस की तरफ बढ़ाया, ‘‘ठीक है यह आप एडवांस रख लीजिए, हमारा एक दोस्त भी मस्ती के लिए आने वाला है.’’ कहने के साथ ही आगंतुक ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को काल कर के कहा, ‘‘दोस्त, जल्दी आ जाओ बढि़या इंतजाम हो गया है.’’

उस के फोन किए अभी 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि तभी पुलिस की गाडि़यां वहां आ कर रुकीं. पुलिसकर्मी दनदनाते हुए उस ढाबे में आ गए और मैनेजर को हिरासत में लेने के बाद कमरों की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

काउंटर पर बैठा व्यक्ति व अन्य लोग यह सब देख कर सकपका गए, जबकि 2 आगंतुक जो मैनेजर से बातचीत कर रहे थे, वे मंदमंद मुसकरा रहे थे.

वास्तव में वह कोई और नहीं, बल्कि पुलिस के नकली ग्राहक थे. सटीक जानकारी होने के बाद ही पुलिस ने रेड की काररवाई की थी. पुलिस जब कमरों में पहुंची तो हैरान रह गई. कमरों में कई लड़कियां मौजूद थीं, जो पुलिस को देख कर अपना मुंह छिपाने लगीं.

महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें कमरे में ही अपनी निगरानी में ले लिया. सभी लड़कियां हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘हमें छोड़ दीजिए प्लीज, वरना हमारी बहुत बदनामी होगी.’’

‘‘क्यों, यह सब खयाल तुम लोगों को पहले नहीं आया.’’ महिला पुलिसकर्मी ने कहा.

‘‘गलती हो गई अब कभी नहीं आएंगे.’’ कई लड़कियां गिड़गिड़ाते हुए बोलीं, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उन की गुहार को नजरंदाज कर दिया. एक पुलिस अधिकारी ने अधीनस्थों को निर्देश दिया, ‘‘तुम लोग इन को यहीं रखो, कोई भी यहां से जाने न पाए, हम बाकी जगह को चैक करते हैं.’’ इस के बाद पुलिस ने अन्य 2 ढाबों पर भी रेड की.

दरअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उड़नदस्ता टीम थी, जिस का नेतृत्व डीएसपी अजीत सिंह कर रहे थे. टीम में सोनीपत की एसडीएम शशि वसुंधरा को भी शामिल किया गया था.

स्पैशल टीम को सूचना मिल रही थी कि मुरथल के कुछ ढाबों पर देह व्यापार, जुएसट्टे व नशे का धंधा जोरों पर चल रहा है. सूचना को पुख्ता करना जरूरी था. इसलिए टीम ने पहले 2 लोगों को नकली ग्राहक बना कर वहां भेजा था. जब उन की बातचीत में सब कुछ साफ हो गया तो उन का इशारा मिलने पर काररवाई की.

पुलिस टीम ने वहां स्थित हैप्पी ढाबा, राजा ढाबा व होटल वेस्ट ढाबों पर रेड की. इस काररवाई में 12 लड़कियों व 5 युवकों को देह व्यापार में जबकि 9 लोगों को जुए के आरोप में गिरफ्तार किया. वे महफिल सजा कर जुआ खेल रहे थे.

वे सभी अच्छे परिवारों से थे, इसलिए उन्होंने पुलिस पर रौब गालिब करने की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस उन के प्रभाव में नहीं आई. 9 जुआरियों से पुलिस ने एक लाख 63 हजार रुपए भी बरामद किए.

जिस्मफरोशी के आरोप में गिरफ्तार लोगों में 3 विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. इन में एक लड़की उज्बेकिस्तान, दूसरी तुर्की व तीसरी रूस की रहने वाली थी. बाकी 9 लड़कियां दिल्ली निवासी थीं. गिरफ्तार किए गए युवक सोनीपत, दिल्ली व उत्तर प्रदेश के थे.

पुलिस ने सभी लोगों के मोबाइल व नकदी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस की इस काररवाई से ढाबों पर भगदड़ मच गई. पुलिस ने सभी आरोपियों को कस्टडी में ले कर पुलिस वैन में बैठाया और उन्हें ले कर मुरथल थाने पहुंची.

वहां आरोपियों से पूछताछ की तो ढाबों पर चलने वाले अनैतिक धंधे की ऐसी परतें खुलीं, जिस पर हर कोई सोचने पर मजबूत हो जाए. क्योंकि ढाबों पर यह सब होता होगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो.

ढाबों पर अमूमन लोग खाना खाने के लिए ही आते हैं, क्योंकि ढाबे इसी काम के लिए बने होते हैं, लेकिन मुरथल के ढाबों की बात अलग है. उन्होंने जीटी करनाल हाइवे किनारे बने ढाबों की छवि को नया रूप दिया. नाम भले ही ढाबा रखा गया, लेकिन उन्हें आधुनिक होटल का रूप दिया गया.

होटल की तरह ढाबों में रूम तक बनाए गए थे. ग्राहकों को खाने के साथसाथ रुकने की सुविधा भी दी जाने लगी. ढाबों की ख्याति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली एनसीआर सहित दूरदूर से लोग यहां परांठों का स्वाद लेने आते हैं.

मुरथल के ढाबों के ज्यादातर मालिक खुद हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ढाबे बनाने के बाद वह दूसरे लोगों को किराए पर दे दिए. यानी ढाबे के चलने न चलने से उन का कोई मतलब नहीं होता, उन्हें तो बस महीने में किराए की रकम चाहिए होती है.

वैसे तो ये ढाबे इतने मशहूर हैं कि उन पर न तो कमाई की कमी है और न ही ग्राहकों की, लेकिन कुछ ढाबे वालों को इतने पर भी तसल्ली नहीं हुई, उन्होंने लालच में अपने काम को चमकाने में चारचांद लगाने शुरू कर दिए.

ढाबे वाले वह काम भी कराने लगे जो नैतिक नहीं थे. इन में जुआ, सट्टा या नशा ही नहीं, बल्कि देह व्यापार भी शामिल हो गया. ऐसे लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि ढाबों की छवि पर इस का क्या प्रभाव पड़ेगा. ऐसे ढाबों पर देह व्यापार का धंधा संगठित तरीके से चलाया जाने लगा.

ढाबे वालों से ऐसी लड़कियों के संपर्क हो गए, जो पैसे कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थीं. वहां पर ऐसी लड़कियों को सप्ताह 10 दिन के हिसाब से एकमुश्त रकम दे कर बुलाया जाता था. उन की बुकिंग का काम ढाबा संचालक व उन से जुड़े दलाल करते थे. ग्राहकों से वह खुद तयशुदा रकम लेते थे, जिस में कालगर्ल का हिस्सा नहीं होता था.

एकमुश्त रकम लेने के बाद कालगर्ल को उस व्यक्ति के इशारों पर काम करना होता था, जो उन्हें लाता था. लड़कियोें के ठहरने व खाने का खर्च भी उन्हें ही उठाना होता था.

कहते हैं कि गलत काम गुपचुप तेजी से चलता है. ढाबों का देह व्यापार भी कुछ इस तरह चला कि लड़कियां वहां शिफ्टों में काम करती थीं. इन में दिल्ली और उस के आसपास के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल व कोलकाता की लड़कियां भी शामिल होती थीं.

जो विदेशी लड़कियां पकड़ी गईं, वैसे तो वे टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थीं, लेकिन देह व्यापार में भी जुट गई थीं. उन के संपर्क कई ऐसे दलालों से थे, जो उन के लिए ग्राहक ढूंढते थे. तयशुदा कमीशन ले कर दलाल उन्हें ग्राहकों को परोसते थे.

देह के धंधे में लिप्त ढाबे वाले औन डिमांड विदेशी लड़कियां बुलाते थे. विदेशी लड़कियों को इतनी कमाई होती थी कि वह ऐसी जगहों पर आनेजाने के लिए अपने साथ पेमेंट पर गाइड भी रखती थीं. गाइड भी उन के लिए ग्राहक ढूंढने में मदद करते थे.

अमूमन कोई भी व्यक्ति सोचता है कि ढाबे तो सिर्फ खाने के लिए होते हैं, इसलिए किसी को शक नहीं होता था कि वहां के कमरों के अंदर क्या कुछ चलता है. इस बात का भी ढाबे वाले जम कर फायदा उठा रहे थे. उन्हें लगता था कि जल्दी से उन पर कोई शक भी नहीं करेगा.

ढाबों पर देह व्यापार के लिए नए ग्राहकों को जोड़ने का काम भी उन्हें औफर दे कर चलता था. ऐसे लोगों को बताया जाता था कि उन के यहां खाने के साथ शबाब का भी इंतजाम है, जो लोग इच्छुक होते थे, उन्हें लड़कियां परोस दी जाती थीं. इसी तरह चेन बनती रही.

देह व्यापार के लिए वाट्सऐप का भी इस्तेमाल किया जाता था. पुलिस से बचने के लिए नेटवर्क से जुड़े लोग वाट्सऐप के जरिए ही बातें किया करते थे और उसी से फोटो भेज कर लड़कियां पसंद कराई जाती थीं.

कई बार लड़कियों को औन डिमांड बुलाया जाता था. विदेशी लड़कियां ज्यादातर औन डिमांड आती थीं. जैसे ही उन्हें फोन किया जाता था, वे टैक्सी से कुछ देर में वहां पहुंच जाती थीं.

पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के अगले दिन अदालत में पेश किया. जुए के आरोप में पकड़े गए 9 लोगों व स्थानीय लड़कियों को तो जमानत मिल गई, जबकि तीनोें विदेशी लड़कियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

हैरानी की बात यह थी ढाबों से मुरथल थाने की दूरी करीब एक किलोमीटर थी, ऐसे में पुलिस की नाक के नीचे ही देह का धंधा आबाद था.

मामला खुलने पर स्थानीय पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई. भला यह कैसे संभव था कि ढाबों पर जुआ, सट्टा व देह व्यापार होता हो और पुलिस को पता तक न हो.

लापरवाही सामने आने पर सोनीपत के एसपी जश्नदीप सिंह रंधावा ने इसे बेहद गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी अरुण कुमार को तुरंत लाइन हाजिर करते हुए उन के विरुद्ध विभागीय जांच के आदेश दे दिए.

सुखवीर सिंह को मुरथल थाने का नया प्रभारी बनाया गया. दूसरी तरफ ढाबों की छवि को ले कर मुरथल ढाबा एसोसिएशन के पदाधिकारी भी चिंतित हो गए. ढाबा संचालक अमरीक सिंह, देवेंद्र कादियान आदि का मानना है कि कुछ लोगों की करतूत की वजह से कारोबार प्रभावित हो सकता है.

इसलिए एसोसिएशन ने बैठक कर के तय किया कि उन के द्वारा निगरानी कर के गलत काम करने वालों को बेनकाब किया जाएगा. ऐसे लोग वहां ढाबा संचालन नहीं कर सकेंगे. जल्द ही वह ढाबा संचालन की गाइडलाइन तैयार कर के उस का पालन कराएंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फोटो डेमो के तौर पर कहानी की असली फोटो का प्रयोदग नहीं किया गया है.

जब एक पति ने अपनी पत्नी की जिंदगी की वैल्यू रखी पौने 6 करोड़

Love Crime ‘‘मम्मी, मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली  हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई.

दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा, सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है. वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला.

मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था.

‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता आ रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नार्मल हो जाएगी.

बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था.

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी.

बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां न बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को सौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलना जुलना होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी.

बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए.

इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज न था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी.

सुमन एक तेजतर्रार महिला थी. अपने संबंधों से उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट भी दिलवाए. तब दीपा ने उसे अपनी संस्था का सदस्य बना दिया. इतना ही नहीं वह संस्था की ओर से सुमन को उस के कार्य की एवज में पैसे भी देने लगी. कुछ ही दिनों में सुमन के दीपा से पारिवारिक संबंध बन गए.

दीपा को ज्यादा से ज्यादा बनठन कर रहने और सजनेसंवरने का शौक था. वह हमेशा बनठन कर और ज्वैलरी पहने रहती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस में गजब का आकर्षण था. उसे देख कर कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. एनजीओ में काम करने की वजह से सुमन दीपा को अकसर अपने साथ ही रखती थी. दीपा इसे सुमन की दोस्ती समझ रही थी पर सुमन पुरुष की तरह ही दीपा को प्यार करने लगी थी.

एक बार जब सुमन दीपा को प्यार भरी नजरों से देख रही थी तो दीपा ने पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं भी तुम्हारी तरह एक महिला हूं. तुम मुझे इस तरह निहार रही हो जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका को देख रहा हो.’’

‘‘दीपा, तुम मुझे अपना प्रेमी ही समझो. मैं सच में तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूं.’’ सुमन ने मन में दबी बातें उस के सामने रख दीं.

सुमन की बातें सुनते ही वह चौंकते हुए बोली, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? कहीं 2 लड़कियां आपस में प्रेमीप्रेमिका हो सकती हैं?’’

‘‘दीपा, मैं लड़की जरूर हूं पर मेरे अंदर कभीकभी लड़के सा बदलाव महसूस होता है. मैं सबकुछ लड़कों की तरह करना चाहती हूं. प्यार और दोस्ती सबकुछ. इसीलिए तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम से शादी भी करना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पहले से शादीशुदा हूं. मेरे पति और बच्चे हैं.’’ दीपा ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं तुम्हें पति और बच्चों से अलग थोड़े न कर रही हूं. हम दोस्त और पतिपत्नी दोनों की तरह रह सकते हैं. सब से अच्छी बात तो यह है कि हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा. दीपा, मैं सच कह रही हूं कि मुझे तुम्हारे करीब रहना अच्छा लगता है.’’

‘‘ठीक है बाबा, पर कभी यह बातें किसी और से मत कहना.’’ दीपा ने सुमन से अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में कहा.

‘‘दीपा, मेरी इच्छा है कि तुम मुझे सुमन नहीं छोटू के नाम से पुकारा करो.’’

‘‘समझ गई, आज से तुम मेरे लिए सुमन नहीं छोटू हो.’’ इतना कह कर सुमन और दीपा करीब आ गए. दोनों के बीच आत्मीय संबंध बन गए थे. सुमन ने रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक दिन दीपा के साथ मंदिर जा कर शादी भी कर ली. सुमन के करीब आने से दीपा के जीवन को भी नई उमंग महसूस होने लगी थी कि कोई तो है जो उसे इतना प्यार कर रही है.

इस के बाद सुमन एक प्रेमी की तरह उस का खयाल रखने लगी थी. समय गुजरने लगा. दीपा के पति और परिवार को इस बात की कोई भनक नहीं थी. वह सुमन को उस की सहेली ही समझ रहे थे. एनजीओ के काम के कारण सुमन अकसर ही दीपा के साथ उस के घर पर ही रुक जाती थी.

सुमन को भी शराब पीने का शौक था. बबलू भी शराब पीता था. कभीकभी सुमन बबलू के साथ ही पीने बैठ जाती थी. जिस से सुमन और बबलू की दोस्ती हो गई. सुमन के लिए उस के यहां रुकना और ज्यादा आसान हो गया था. उस के रुकने पर बबलू भी कोई एतराज नहीं करता था. वह भी उसे छोटू कहने लगा.

साल 2010 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए तो सुमन ने अपने गांव कटरा शाहबाजपुर से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा. सुमन सिंह का भाई विनय सिंह करनैलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश था. उस के पिता अवधराज सिंह के खिलाफ भी कई आपराधिक मुकदमे करनैलगंज थाने में दर्ज थे. दोनों बापबेटों की दबंगई का गांव में खासा प्रभाव था. जिस के चलते सुमन ग्रामप्रधान का चुनाव जीत गई. उस ने गोंडा के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की बहन सरोज सिंह को भारी मतों से हराया.

ग्राम प्रधान बनने के बाद सुमन सिंह सीतापुर रोड पर बनी हिमगिरी में फ्लैट ले कर रहने लगी. सन 2010 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उस ने अपने संबंधों की बदौलत फिर से ठेकेदारी शुरू कर दी. अपनी सुरक्षा के लिए वह 32 एमएम की लाइसैंसी रिवाल्वर भी साथ रखने लगी. उस की और दीपा की दोस्ती अब और गहरी होने लगी थी. सुमन किसी न किसी बहाने से दीपा के पास ही रुक जाती थी.

ऐसे में दीपा और सुमन एक साथ ही रात गुजारती थीं. यह सब बातें धीरेधीरे बबलू और उस के बच्चों को भी पता चलने लगी थीं. तभी तो उन्हें सुमन का उन के यहां आना अच्छा नहीं लगता था.

सुमन महीने में 20-25 दिन दीपा के घर पर रुकती थी. शनिवार और रविवार को वह दीपा को अपने साथ हिमगिरी कालोनी ले जाती थी. दीपा को सुमन के साथ रहना कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा, लेकिन अब वह सुमन से उकता गई थी.

एक बार सुमन ने दीपा से किसी काम के लिए साढ़े 3 लाख रुपए उधार लिए थे. तयशुदा वक्त गुजर जाने के बाद भी सुमन ने पैसे नहीं लौटाए तो दीपा ने उस से तकादा करना शुरू कर दिया. तकादा करना सुमन को अच्छा नहीं लगता था. इसलिए दीपा जब कभी उस से पैसे मांगती तो सुमन उस से लड़ाईझगड़ा कर बैठी थी.

27 जनवरी, 2014 की देर रात करीब 9 बजे सुमन दीपा के घर अंगुली में अपना रिवाल्वर घुमाते हुए पहुंची. दीपा और बबलू में सुमन को ले कर सुबह ही बातचीत हो चुकी थी. अचानक उस के आ धमकने से वे लोग पशोपेश में पड़ गए.

‘‘क्या बात है छोटू आज तो बिलकुल माफिया अंदाज में दिख रहे हो.’’ दीपा बोली.

इस के पहले कि सुमन कुछ कहती. बबलू ने पूछ लिया, ‘‘छोटू अकेले ही आए हो क्या?’’

‘‘नहीं, भतीजा विपिन और उस का दोस्त शिवम मुझे छोड़ कर गए हैं. कई दिनों से दीपा के हाथ का बना खाना नहीं खाया था. उस की याद आई तो चली आई.’’

सुमन और बबलू बातें करने लगे तो दीपा किचन में चली गई. सुमन ने भी फटाफट बबलू से बातें खत्म कीं और दीपा के पीछे किचन में पहुंच कर उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. पति और बच्चोें की बातें सुन कर दीपा का मूड सुबह से ही खराब था. वह सुमन को झिड़कते हुए बोली, ‘‘छोटू ऐसे मत किया करो. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. यह सब उन को बुरा लगता है.’’

उस समय सुमन नशे में थी. उसे दीपा की बात समझ नहीं आई. उसे लगा कि दीपा उस से बेरुखी दिखा रही है. वह बोली, ‘‘दीपा, तुम अपने पति और बच्चों के बहाने मुझ से दूर जाना चाहती हो. मैं तुम्हारी बातें सब समझती हूं.’’

दीपा और सुमन के बीच बहस बढ़ चुकी थी दोनों की आवाज सुन कर बबलू भी किचन में पहुंच गया. लड़ाई आगे न बढ़े इस के लिए बबलू सिंह ने सुमन को रोका और उसे ले कर ऊपर के कमरे में चला गया. वहां दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. शराब के नशे में खाने के समय सुमन ने दीपा को फिर से बुरा भला कहा.

दीपा को भी लगा कि शराब के नशे में सुमन घर पर रुक कर हंगामा करेगी. उस की तेज आवाज पड़ोसी भी सुनेंगे जिस से घर की बेइज्जती होगी इसलिए उस ने उसे अपने यहां रुकने के लिए मना लिया. बबलू सिंह ऊपर के कमरे में सोने चला गया. दीपा के कहने के बाद भी सुमन उस रात वहां से नहीं गई बल्कि वहीं दूसरे कमरे में जा कर सो गई.

28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी.

गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया.

निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’

दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया.

चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए.

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए.

हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी (ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया.

पुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

जेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर

फोटो डेमों के तौर पर यूज की गई है असल फोटो का प्रयोग नहीं किया गया है

पराठों के लिए मशहूर है मुरथल का ढाबें, विदेशी कौलगर्लस का भी देह तड़का

जब आप दिल्ली से करनाल जाने वाले जीटी हाईवे पर जाएंगे तो सोनीपत के नजदीक मुरथल में हाईवे के किनारे जगमगाते व सजे हुए अनेक ढाबे दिखाई देंगे. रात में तो इन ढाबों की रौनक देखने लायक होती है.

इन ढाबों के परांठों का स्वाद भारत भर में मशहूर है. तभी तो रात में इन ढाबों की पार्किंग में सैकड़ों गाडि़यां खड़ी रहती हैं. दूरदूर से लोग मुरथल के परांठों का स्वाद लेने आते हैं. एक तरह से इन ढाबों की वजह से मुरथल की भारत भर में पहचान बनी हुई है.

इन्हें भले ही ढाबा कहते हैं लेकिन ये किसी आधुनिक होटल से कम नहीं हैं, लेकिन पैसे कमाने के लालच में कुछ लोगों ने ढाबों की परिभाषा ही बदल दी है. इन ढाबों पर ग्राहकों को मौजमस्ती कराने के लिए कालगर्ल भी बुलाई जाने लगी हैं. जिस से ग्राहकों के खाने के देशी और विदेशी देह का सुख भी मिल सके. अनैतिक देह व्यापार का धंधा भी खूब फलफूल रहा था.

7 जुलाई, 2021 की रात के तकरीबन 8 बजे का वक्त था, जब ढाबे रंगबिरंगी रोशनी से नहाए हुए थे. ढाबों के बाहर वाहनों की कतारें लगी थीं. तभी एक कार एक ढाबे के बाहर आ कर रुकी. उस में से 2 लोग उतरे. पहले उन्होंने अपनी खोजी नजरों से ढाबे का मुआयना किया और फिर आराम से टहलते हुए सीधे काउंटर पर पहुंचे.

काउंटर पर मौजूद मैनेजर ने एक नजर उन पर डालते हुए पूछा, ‘‘कहिए सर, क्या सेवा कर सकता हूं आप की?’’

‘‘हमें स्पैशल परांठे चाहिए.’’ उस ने कुरसियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘प्लीज आप बैठ कर मेन्यू देख कर और्डर कीजिए, अभी भिजवाता हूं.’’ मैनेजर बोला.

‘‘हमें खाने के नहीं, इस्तेमाल करने वाले परांठे चाहिए.’’ उन की बात सुन कर काउंटर पर बैठा व्यक्ति एक पल के लिए सकपका गया, लेकिन दूसरे ही पल उन दोनों को गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘हम ने ऐसी तो कोई बात की नहीं, जो आप समझ न सको. आप के एक पुराने ग्राहक ने ही हमें यह जगह बताई थी, इस भरोसे पर आज मनोरंजन के इरादे से यहां चले आए.’’ आगंतुक ने राजदाराना अंदाज में कहा.

तभी मैनेजर मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह समझ गया, यह बात है तो आप को पहले बताना चाहिए था. दरअसल, बात यह है सर कि पुलिस का भी चक्कर रहता है, इसलिए अंजान लोगों के साथ संभल कर बात करनी पड़ती है हमें. वैसे आप को किस तरह का परांठा चाहिए?’’

‘‘हमें एकदम बढि़या चाहिए, जो दिल खुश हो जाए.’’ एक व्यक्ति बोला.

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा कि हमारे पास देशीविदेशी दोनों तरह के हैं. अब मरजी आप की है, आप जो भी पसंद करें. सर्विस में भी आप को कोई शिकायत नहीं मिलेगी.

‘‘हमारे कई रेग्युलर कस्टमर हैं, जो हमारी शानदार सर्विस से हमेशा खुश रहते हैं. ऐसा करता हूं, मैं आप को फोटो दिखा देता हूं, आप पसंद कर लीजिए.’’ कहने के साथ ही उस ने अपना मोबाइल उन के सामने कर दिया और एकएक कर के फोटो दिखाने लगा.

उस के पास कई सुंदर लड़कियों के अदाओं के साथ खिंचे फोटोग्राफ थे. इन में विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. वास्तव में वह परांठों की नहीं, बल्कि कालगर्ल के बारे में बात कर रहे थे.

‘‘विदेशी का इंतजाम कैसे करोगे?’’

‘‘सर, आप सिर्फ पसंद कीजिए, इंतजाम हमारे कमरों में पहले से है, फिलहाल कुछ लड़कियां आई हुई हैं.’’ उस ने कहा.

आगंतुक ने उन में से एक लड़की को पसंद किया और उस का रेट तय करने के बाद एक 500 का नोट उस की तरफ बढ़ाया, ‘‘ठीक है यह आप एडवांस रख लीजिए, हमारा एक दोस्त भी मस्ती के लिए आने वाला है.’’ कहने के साथ ही आगंतुक ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को काल कर के कहा, ‘‘दोस्त, जल्दी आ जाओ बढि़या इंतजाम हो गया है.’’

उस के फोन किए अभी 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि तभी पुलिस की गाडि़यां वहां आ कर रुकीं. पुलिसकर्मी दनदनाते हुए उस ढाबे में आ गए और मैनेजर को हिरासत में लेने के बाद कमरों की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

काउंटर पर बैठा व्यक्ति व अन्य लोग यह सब देख कर सकपका गए, जबकि 2 आगंतुक जो मैनेजर से बातचीत कर रहे थे, वे मंदमंद मुसकरा रहे थे.

वास्तव में वह कोई और नहीं, बल्कि पुलिस के नकली ग्राहक थे. सटीक जानकारी होने के बाद ही पुलिस ने रेड की काररवाई की थी. पुलिस जब कमरों में पहुंची तो हैरान रह गई. कमरों में कई लड़कियां मौजूद थीं, जो पुलिस को देख कर अपना मुंह छिपाने लगीं.

महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें कमरे में ही अपनी निगरानी में ले लिया. सभी लड़कियां हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘हमें छोड़ दीजिए प्लीज, वरना हमारी बहुत बदनामी होगी.’’

‘‘क्यों, यह सब खयाल तुम लोगों को पहले नहीं आया.’’ महिला पुलिसकर्मी ने कहा.

‘‘गलती हो गई अब कभी नहीं आएंगे.’’ कई लड़कियां गिड़गिड़ाते हुए बोलीं, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उन की गुहार को नजरंदाज कर दिया. एक पुलिस अधिकारी ने अधीनस्थों को निर्देश दिया, ‘‘तुम लोग इन को यहीं रखो, कोई भी यहां से जाने न पाए, हम बाकी जगह को चैक करते हैं.’’ इस के बाद पुलिस ने अन्य 2 ढाबों पर भी रेड की.

दरअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उड़नदस्ता टीम थी, जिस का नेतृत्व डीएसपी अजीत सिंह कर रहे थे. टीम में सोनीपत की एसडीएम शशि वसुंधरा को भी शामिल किया गया था.

स्पैशल टीम को सूचना मिल रही थी कि मुरथल के कुछ ढाबों पर देह व्यापार, जुएसट्टे व नशे का धंधा जोरों पर चल रहा है. सूचना को पुख्ता करना जरूरी था. इसलिए टीम ने पहले 2 लोगों को नकली ग्राहक बना कर वहां भेजा था. जब उन की बातचीत में सब कुछ साफ हो गया तो उन का इशारा मिलने पर काररवाई की.

पुलिस टीम ने वहां स्थित हैप्पी ढाबा, राजा ढाबा व होटल वेस्ट ढाबों पर रेड की. इस काररवाई में 12 लड़कियों व 5 युवकों को देह व्यापार में जबकि 9 लोगों को जुए के आरोप में गिरफ्तार किया. वे महफिल सजा कर जुआ खेल रहे थे.

वे सभी अच्छे परिवारों से थे, इसलिए उन्होंने पुलिस पर रौब गालिब करने की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस उन के प्रभाव में नहीं आई. 9 जुआरियों से पुलिस ने एक लाख 63 हजार रुपए भी बरामद किए.

जिस्मफरोशी के आरोप में गिरफ्तार लोगों में 3 विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. इन में एक लड़की उज्बेकिस्तान, दूसरी तुर्की व तीसरी रूस की रहने वाली थी. बाकी 9 लड़कियां दिल्ली निवासी थीं. गिरफ्तार किए गए युवक सोनीपत, दिल्ली व उत्तर प्रदेश के थे.

पुलिस ने सभी लोगों के मोबाइल व नकदी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस की इस काररवाई से ढाबों पर भगदड़ मच गई. पुलिस ने सभी आरोपियों को कस्टडी में ले कर पुलिस वैन में बैठाया और उन्हें ले कर मुरथल थाने पहुंची.

वहां आरोपियों से पूछताछ की तो ढाबों पर चलने वाले अनैतिक धंधे की ऐसी परतें खुलीं, जिस पर हर कोई सोचने पर मजबूत हो जाए. क्योंकि ढाबों पर यह सब होता होगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो.

ढाबों पर अमूमन लोग खाना खाने के लिए ही आते हैं, क्योंकि ढाबे इसी काम के लिए बने होते हैं, लेकिन मुरथल के ढाबों की बात अलग है. उन्होंने जीटी करनाल हाइवे किनारे बने ढाबों की छवि को नया रूप दिया. नाम भले ही ढाबा रखा गया, लेकिन उन्हें आधुनिक होटल का रूप दिया गया.

होटल की तरह ढाबों में रूम तक बनाए गए थे. ग्राहकों को खाने के साथसाथ रुकने की सुविधा भी दी जाने लगी. ढाबों की ख्याति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली एनसीआर सहित दूरदूर से लोग यहां परांठों का स्वाद लेने आते हैं.

मुरथल के ढाबों के ज्यादातर मालिक खुद हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ढाबे बनाने के बाद वह दूसरे लोगों को किराए पर दे दिए. यानी ढाबे के चलने न चलने से उन का कोई मतलब नहीं होता, उन्हें तो बस महीने में किराए की रकम चाहिए होती है.

वैसे तो ये ढाबे इतने मशहूर हैं कि उन पर न तो कमाई की कमी है और न ही ग्राहकों की, लेकिन कुछ ढाबे वालों को इतने पर भी तसल्ली नहीं हुई, उन्होंने लालच में अपने काम को चमकाने में चारचांद लगाने शुरू कर दिए.

ढाबे वाले वह काम भी कराने लगे जो नैतिक नहीं थे. इन में जुआ, सट्टा या नशा ही नहीं, बल्कि देह व्यापार भी शामिल हो गया. ऐसे लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि ढाबों की छवि पर इस का क्या प्रभाव पड़ेगा. ऐसे ढाबों पर देह व्यापार का धंधा संगठित तरीके से चलाया जाने लगा.

ढाबे वालों से ऐसी लड़कियों के संपर्क हो गए, जो पैसे कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थीं. वहां पर ऐसी लड़कियों को सप्ताह 10 दिन के हिसाब से एकमुश्त रकम दे कर बुलाया जाता था. उन की बुकिंग का काम ढाबा संचालक व उन से जुड़े दलाल करते थे. ग्राहकों से वह खुद तयशुदा रकम लेते थे, जिस में कालगर्ल का हिस्सा नहीं होता था.

एकमुश्त रकम लेने के बाद कालगर्ल को उस व्यक्ति के इशारों पर काम करना होता था, जो उन्हें लाता था. लड़कियोें के ठहरने व खाने का खर्च भी उन्हें ही उठाना होता था.

कहते हैं कि गलत काम गुपचुप तेजी से चलता है. ढाबों का देह व्यापार भी कुछ इस तरह चला कि लड़कियां वहां शिफ्टों में काम करती थीं. इन में दिल्ली और उस के आसपास के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल व कोलकाता की लड़कियां भी शामिल होती थीं.

जो विदेशी लड़कियां पकड़ी गईं, वैसे तो वे टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थीं, लेकिन देह व्यापार में भी जुट गई थीं. उन के संपर्क कई ऐसे दलालों से थे, जो उन के लिए ग्राहक ढूंढते थे. तयशुदा कमीशन ले कर दलाल उन्हें ग्राहकों को परोसते थे.

देह के धंधे में लिप्त ढाबे वाले औन डिमांड विदेशी लड़कियां बुलाते थे. विदेशी लड़कियों को इतनी कमाई होती थी कि वह ऐसी जगहों पर आनेजाने के लिए अपने साथ पेमेंट पर गाइड भी रखती थीं. गाइड भी उन के लिए ग्राहक ढूंढने में मदद करते थे.

अमूमन कोई भी व्यक्ति सोचता है कि ढाबे तो सिर्फ खाने के लिए होते हैं, इसलिए किसी को शक नहीं होता था कि वहां के कमरों के अंदर क्या कुछ चलता है. इस बात का भी ढाबे वाले जम कर फायदा उठा रहे थे. उन्हें लगता था कि जल्दी से उन पर कोई शक भी नहीं करेगा.

ढाबों पर देह व्यापार के लिए नए ग्राहकों को जोड़ने का काम भी उन्हें औफर दे कर चलता था. ऐसे लोगों को बताया जाता था कि उन के यहां खाने के साथ शबाब का भी इंतजाम है, जो लोग इच्छुक होते थे, उन्हें लड़कियां परोस दी जाती थीं. इसी तरह चेन बनती रही.

देह व्यापार के लिए वाट्सऐप का भी इस्तेमाल किया जाता था. पुलिस से बचने के लिए नेटवर्क से जुड़े लोग वाट्सऐप के जरिए ही बातें किया करते थे और उसी से फोटो भेज कर लड़कियां पसंद कराई जाती थीं.

कई बार लड़कियों को औन डिमांड बुलाया जाता था. विदेशी लड़कियां ज्यादातर औन डिमांड आती थीं. जैसे ही उन्हें फोन किया जाता था, वे टैक्सी से कुछ देर में वहां पहुंच जाती थीं.

पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के अगले दिन अदालत में पेश किया. जुए के आरोप में पकड़े गए 9 लोगों व स्थानीय लड़कियों को तो जमानत मिल गई, जबकि तीनोें विदेशी लड़कियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

हैरानी की बात यह थी ढाबों से मुरथल थाने की दूरी करीब एक किलोमीटर थी, ऐसे में पुलिस की नाक के नीचे ही देह का धंधा आबाद था.

मामला खुलने पर स्थानीय पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई. भला यह कैसे संभव था कि ढाबों पर जुआ, सट्टा व देह व्यापार होता हो और पुलिस को पता तक न हो.

लापरवाही सामने आने पर सोनीपत के एसपी जश्नदीप सिंह रंधावा ने इसे बेहद गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी अरुण कुमार को तुरंत लाइन हाजिर करते हुए उन के विरुद्ध विभागीय जांच के आदेश दे दिए.

सुखवीर सिंह को मुरथल थाने का नया प्रभारी बनाया गया. दूसरी तरफ ढाबों की छवि को ले कर मुरथल ढाबा एसोसिएशन के पदाधिकारी भी चिंतित हो गए. ढाबा संचालक अमरीक सिंह, देवेंद्र कादियान आदि का मानना है कि कुछ लोगों की करतूत की वजह से कारोबार प्रभावित हो सकता है.

इसलिए एसोसिएशन ने बैठक कर के तय किया कि उन के द्वारा निगरानी कर के गलत काम करने वालों को बेनकाब किया जाएगा. ऐसे लोग वहां ढाबा संचालन नहीं कर सकेंगे. जल्द ही वह ढाबा संचालन की गाइडलाइन तैयार कर के उस का पालन कराएंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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