ब्रेकअप के दर्द को चुटकियों में गायब करेंगे ये 5 टिप्स, पढ़ें

आज कल के युवाओं में जो सबसे बड़ी समस्या देखने को मिल रही है वो ये है कि वे किसी भी लड़की के साथ अपने रिश्ते के टूटने पर खुद को संभाल नहीं पाते और इसी के चलते वे कुछ ऐसे कदम उठा बैठते हैं जो कि उनके और उनके परिवार वालों के लिए काफी नुकसानदायक साबित होता है. ब्रेक-अप की समस्या इन दिनों आम बात हो गई है और हर दूसरा इंसान इस समस्या से गुजर रहा है.

कई लोग इस समस्या का बड़े ही समझदारी से सामना करते हैं पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें लगता है कि उनके ब्रेक-अप के बाद तो मानो उनकी जिंदगी ही खत्म हो गई है. आजकल हर कोई किसी ना किसी के साथ रिलेशनशिप में आना चाहता है लेकिन हर किसी के साथ रिश्तों को निभाने की समझ नहीं होती जिस वजह से बहुत ही जल्द उनका रिश्ता खत्म हो जाता है और उसके बाद से वे काफी दुखी रहने लगते हैं.

तो आज हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बताने जा रहे हैं जिससे कि आप अपने ब्रेक-अप के दर्द से आसानी से मूव ऑन कर पाएंगे.

1. दोस्तों से करें बात

ऐसी सिच्यूएशंस में कई लोग अपने दोस्तों से मिलना और उनके बात तक करना छोड़ देते हैं जो कि काफी गलत है. इस दुनिया में अगर कोई थैरेपी सबसे लाभदायक साबित हुई है तो वो ये है कि अपने दोस्तों के साथ अपना मन हल्का करें. अपने दोस्तों से बात करने से ना सिर्फ आप अपने ब्रेक-अप के दर्द को हल्का कर सकते हैं बल्कि से थैरेपी आपको अंदर से खुश रहने में भी काफी मदद करती है.

2. फैमिली के साथ बिताएं समय

लोग अपने ब्रेक-अप के बाद अकेला रहने शुरू कर देते हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि उनके दर्द को समझने वाला कोई नहीं है पर ये बिल्कुल गलत है. अगर आप अपना ज्यादा से ज्यादा समय अपनी फैमिली के साथ बिताएंगे तो आपको पता चलेगा कि आप अपनी फैमिली के कितने करीब हैं और इससे आप अपने ब्रेक-अप से जल्द ही बाहर निकल सकते हैं.

3. खुद का रखें ख्याल

ऐसा देखने को मिला है कि कई लोग अपने ब्रेक-अप के बाद खुद का ख्यान रखना छोड़ देते हैं क्योंकि वे सारा टाइम अपने पार्टनर को याद करने में लगे रहते हैं. ऐसी सिच्यूएशंस में हमें सबसे ज्यादा अगर किसी का ख्याल रखना है तो वो खुद का. खाना हमेशा समय पर खाएं और ज्यादा से ज्यादा हैल्दी डाइट लें क्योंकि अगर आप अपने शरीर को स्वस्थ रखेंगे तभी आप अपने मन को स्वस्थ रख पाएंगे.

4. करियर पर करें फोकस

ब्रेक-अप के बाद से कई लोग अपनी फैमिली और दोस्तों के साथ साथ अपने करियर से भी दूर हा जाएं हैं और उनका किसी भी काम में मन नहीं लगता जबकी ऐसा करना बिल्कुल गलत है. जो चला गया उसका हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन जो हमारी जिंदगी में आने वाला है उसका तो हमें ख्याल रखना ही है और उसके लिए हमें सबसे पहले अपना करियर बनाना है.

5. अपनी हॉबी पर दें ध्यान

ब्रेक-अप के बाद हमें वो सब करना चाहिए जो हमें अंदर से खुश रखे और हमें खुश वोही चीज़ें रख सकती हैं जिसे करने में हमें मजा आता है. तो जो भी आपकी हॉबी है आपको वह चीज ज्यादा से ज्यादा करनी है जैसे कि पेंटिंग, डांसिंग, सिंगिंग, आदी

कहीं आप भी सैक्स से दूर तो नहीं भाग रहे

वर्तमान में विवाहित जोड़ों के जीवन से सैक्स बाहर होता जा रहा है. यह समस्या दिनदूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है, जबकि बैस्ट सेलर उपन्यास ‘हाउ टु गैट द मोस्ट आउट औफ सैक्स’ के लेखक डैविड रूबेन का कहना है, ‘‘यदि सैक्स सही है तो सब कुछ सही है और यदि यह गलत है तो कुछ भी सही नहीं हो सकता. यही कारण है कि यह सहीगलत का समीकरण बहुतों के जीवन पर हावी हो रहा है.’’

27 वर्षीय माया त्यागी के जीवन पर भी यह समीकरण हावी हो रहा है. कुछ माह पहले हुए इस विवाह ने युवा मीडिया प्रोफैशनल के जीवन में सब गड़बड़ कर दिया, क्योंकि माया का पति कार्य के प्रति पूर्णतया समर्पित है, इसलिए उन के आपसी संबंधों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है. माया का पति हमेशा व्यस्त रहता है. शाम को भी घर देर से आता है और इतना थका होता है कि उस के लिए कुछ भी करना मुश्किल होता है. शादी के बाद भी उस का व्यस्त कार्यक्रम नहीं बदला.

माया कहती है,‘‘वैसे, शुरू में सैक्स ज्यादा बड़ी समस्या नहीं थी. जब भी हम साथ होते थे तो सैक्स होता था और मुझे यह जीवनशैली बुरी नहीं लगती थी. लेकिन धीरेधीरे हमारे यौन संबंधों में कुछ दिन का अंतराल आने लगा और फिर धीरेधीरे यह अंतराल बढ़ता चला गया. मेरे पति को इस बात से जैसे अब कोई मतलब नहीं रहा. अब हम मुश्किल से महीने में 1 बार सैक्स करते होंगे और वह भी आननफानन में.’’

पहली रात में अलगाव

बहुत सारे ऐसे केस हैं जहां शारीरिक समस्याएं पहली रात से ही शुरू हो जाती हैं. सुनील व रेशमा के साथ ऐसा ही हुआ. वे शादी के बंधन में बंधने से पहले ही अच्छे दोस्त बन चुके थे. उन के बीच से अजनबीपन पूरी तरह से मिट गया था. लेकिन पहली बार बिस्तर पर सैक्स करने के बाद ही उन की समस्या की शुरुआत हो गई.

29 वर्षीय सुनील उस रात प्यार की सारी सीमाएं तोड़ना चाहता था, जबकि उस की मित्र से पत्नी बनी रेशमा अपनी सुंदर दोस्ती को बरबाद नहीं होने देना चाहती थी. रेशमा के प्रतिकार की वजह से उस रात उन्होंने कुछ नहीं किया और फिर यही सामान्यतया रोज होने लगा. आदमी रोजाना जिद करे और पत्नी मना करे तो क्लेश होता ही है.

कुछ माह के बाद सुनील ने तलाक का केस दायर कर दिया. जब भी वह अलगाव का मुद्दा छेड़ता तो उस के विवाहित साथी उसे अलग होने को कहते जबकि अविवाहित साथी सुनील से कहते कि वह धैर्य रखे, उदास न हो, क्योंकि उस के पास पत्नी के रूप में एक बहुत अच्छी दोस्त है, जिस के साथ वह सब कुछ बांट सकता है और सैक्स तो वैसे भी कुछ सालों में हवा हो जाता है.

इन सब परेशानियों के होते हुए भी सुनील व रेशमा बाहर फिल्म, कला प्रदर्शनी देखने जाते, भोजन के लिए जाते. खास मौकों पर एकदूसरे को तोहफा भी देते. बल्कि रेशमा ने तो सुनील के जन्मदिन व विवाह की वर्षगांठ को भी बड़े अच्छे तरीके से मनाया. अब 3 साल बाद दोनों के रिश्ते में सैक्स भी है और प्यार भी.

सुनील का कहना है ,‘‘मैं रेशमा के साथ खुश हूं. वह एक बहुत अच्छी दोस्त है. मैं उसे औफिस में क्या हुआ से ले कर मां से लड़ाई तक सब कुछ बता सकता हूं. यद्यपि शुरू में हमारे बीच लड़ाई होती थी. मैं उस के साथ सैक्स करना चाहता था, परंतु वह कहती थी कि दोस्ती और सैक्स हमेशा साथ नहीं चल सकते. तब मेरी मरजी थी. हम में से किसी का विवाहेतर संबंध नहीं था, परंतु स्वयं आनंद भी अनदेखा नहीं किया जा सकता.’’

सैक्स में कमी क्यों

आज सैक्स शहरीकरण की बहुत बड़ी समस्या है. विशेषज्ञ शहरी जोड़ों में सैक्स से दूरी के अलगअलग कारण बताते हैं. कुछ जोड़ों की डबल इनकम, आलीशान जीवनशैली, उच्च वेतन वाली नौकरियां, ब्रैंड लेबल आदि सब सैक्स की कमी के लिए जिम्मेदार हैं. उच्च आय वाले कामकाजी जोड़े अपने बैडरूम से ज्यादा समय अपने औफिस में बिताते हैं. उन का व्यस्त जीवन सैक्स के लिए जगह नहीं छोड़ता और फिर वे कोशिश करने में भी पीछे रह जाते हैं. हर चीज से मिलने वाली तुरंत संतुष्टि एक आदत बन जाती है.

डा. मन्नु भोंसले का कहना है कि आज के युवा जोड़ों के पास अपने साथी को यौन संतुष्टि प्रदान करने के लिए समय का अभाव होता है तथा घंटों काम करने से होने वाली शारीरिक थकान उन्हें सैक्स से दूर करती है, नशा भी सैक्स से दूरी बढ़ाता है. पत्नी की सैक्स में रुचिहीनता भी एक कारण है, क्योंकि ज्यादातर पुरुष औनलाइन सैक्स व खुद आनंद के आदि हो जाते हैं. ध्यान रखें सैक्स पतिपत्नी के लिए एकदूसरे के करीब आने का जरूरी माध्यम है. इसे नजरअंदाज करना दोनों के अलगाव का कारण बन सकता है.

हिंदी की दुकान : क्या पूरा हुआ सपना

मेरे रिटायरमेंट का दिन ज्योंज्यों नजदीक आ रहा था, एक ही चिंता सताए जा रही थी कि इतने वर्षों तक बेहद सक्रिय जीवन जीने के बाद घर में बैठ कर दिन गुजारना कितना कष्टप्रद होगा, इस का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. इसी उधेड़बुन में कई महीने बीत गए. एक दिन अचानक याद आया कि चंदू चाचा कुछ दिन पहले ही रिटायर हुए हैं. उन से बात कर के देखा जा सकता है, शायद उन के पास कोई योजना हो जो मेरे भावी जीवन की गति निर्धारित कर सके.

यह सोच कर एक दिन फुरसत निकाल कर उन से मिला और अपनी समस्या उन के सामने रखी, ‘‘चाचा, मेरे रिटायरमेंट का दिन नजदीक आ रहा है. आप के दिमाग में कोई योजना हो तो मेरा मार्गदर्शन करें कि रिटायरमेंट के बाद मैं अपना समय कैसे बिताऊं?’’

मेरी बात सुनते ही चाचा अचानक चहक उठे, ‘‘अरे, तुम ने तो इतने दिन हिंदी की सेवा की है, अब रिटायरमेंट के बाद क्या चिंता करनी है. क्यों नहीं हिंदी की एक दुकान खोल लेते.’’

‘‘हिंदी की दुकान? चाचा, मैं समझा नहीं,’’ मैं ने अचरज से पूछा.

‘‘देखो, आजकल सभी केंद्र सरकार के कार्यालयों, बैंकों और सार्वजनिक उपक्रमों में हिंदी सेल काम कर रहा है,’’ चाचा बोले, ‘‘सरकार की ओर से इन कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग करने और उसे बढ़ावा देने के लिए तरहतरह के प्रयास किए जा रहे हैं. कार्यालयों के आला अफसर भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं. इन दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों को समयसमय पर प्रशिक्षण आदि की जरूरत तो पड़ती ही रहती है और जहां तक हिंदी का सवाल है, यह मामला वैसे ही संवेदनशील है. इसी का लाभ उठाते हुए हिंदी की दुकान खोली जा सकती है. मैं समझता हूं कि यह दुकानदारी अच्छी चलेगी.’’

‘‘तो मुझे इस के लिए क्या करना होगा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘करना क्या होगा,’’ चाचा बोले, ‘‘हिंदी के नाम पर एक संस्था खोल लो, जिस में राजभाषा शब्द का प्रयोग हो. जैसे राजभाषा विकास निगम, राजभाषा उन्नयन परिषद, राजभाषा प्रचारप्रसार संगठन आदि.’’

‘‘संस्था का उद्देश्य क्या होगा?’’

‘‘संस्था का उद्देश्य होगा राजभाषा का प्रचारप्रसार, हिंदी का प्रगामी प्रयोग तथा कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन में आने वाली समस्याओं का समाधान. पर वास्तविक उद्देश्य होगा अपनी दुकान को ठीक ढंग से चलाना. इन सब के लिए विभिन्न प्रकार की कार्यशालाओं का आयोजन किया जा सकता है.’’

‘‘चाचा, इन कार्यशालाओं में किनकिन विषय पर चर्चाएं होंगी?’’

‘‘कार्यशालाओं में शामिल किए जाने वाले विषयों में हो सकते हैं :राजभाषा कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाइयां और उन का समाधान, वर्तनी का मानकीकरण, अनुवाद के सिद्धांत, व्याकरण एवं भाषा, राजभाषा नीति और उस का संवैधानिक पहलू, संसदीय राजभाषा समिति की प्रश्नावली का भरना आदि.’’

‘‘कार्यशाला कितने दिन की होनी चाहिए?’’ मैं ने अपनी शंका का समाधान किया.

‘‘मेरे खयाल से 2 दिन की करना ठीक रहेगा.’’

‘‘इन कार्यशालाओं में भाग कौन लोग लेंगे?’’

‘‘केंद्र सरकार के कार्यालयों, बैंकों तथा उपक्रमों के हिंदी अधिकारी, हिंदी अनुवादक, हिंदी सहायक तथा हिंदी अनुभाग से जुड़े तमाम कर्मचारी इन कार्यशालाओं में भाग लेने के पात्र होंगे. इन कार्यालयों के मुख्यालयों एवं निगमित कार्यालयों को परिपत्र भेज कर नामांकन आमंत्रित किए जा सकते हैं.’’

‘‘परंतु उन के वरिष्ठ अधिकारी इन कार्यशालाओं में उन्हें नामांकित करेंगे तब न?’’

‘‘क्यों नहीं करेंगे,’’ चाचा बोले, ‘‘इस के लिए इन कार्यशालाओं में तुम्हें कुछ आकर्षण पैदा करना होगा.’’

मैं आश्चर्य में भर कर बोला, ‘‘आकर्षण?’’

‘‘इन कार्यशालाओं को जहांतहां आयोजित न कर के चुनिंदा स्थानों पर आयोजित करना होगा, जो पर्यटन की दृष्टि से भी मशहूर हों. जैसे शिमला, मनाली, नैनीताल, श्रीनगर, ऊटी, जयपुर, हरिद्वार, मसूरी, गोआ, दार्जिलिंग, पुरी, अंडमान निकोबार आदि. इन स्थानों के भ्रमण का लोभ वरिष्ठ अधिकारी भी संवरण नहीं कर पाएंगे और अपने मातहत कर्मचारियों के साथसाथ वे अपना नाम भी नामांकित करेंगे. इस प्रकार सहभागियों की अच्छी संख्या मिल जाएगी.’’

‘‘इस प्रकार के पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर कार्यशालाएं आयोजित करने पर खर्च भी तो आएगा?’’

‘‘खर्च की चिंता तुम्हें थोड़े ही करनी है. अधिकारी स्वयं ही खर्च का अनुमोदन करेंगे/कराएंगे… ऐसे स्थानों पर अच्छे होटलों में आयोजन से माहौल भी अच्छा रहेगा. लोग रुचि ले कर इन कार्यशालाओं में भाग लेंगे. बहुत से सहभागी तो अपने परिवार के साथ आएंगे, क्योंकि कम खर्च में परिवार को लाने का अच्छा मौका उन्हें मिलेगा.’’

‘‘इन कार्यशालाओं के लिए प्रतिव्यक्ति नामांकन के लिए कितना शुल्क निर्धारित किया जाना चाहिए?’’ मैं ने पूछा.

चाचा ने बताया, ‘‘2 दिन की आवासीय कार्यशालाओं का नामांकन शुल्क स्थान के अनुसार 9 से 10 हजार रुपए प्रतिव्यक्ति ठीक रहेगा. जो सहभागी खुद रहने की व्यवस्था कर लेंगे उन्हें गैर आवासीय शुल्क के रूप में 7 से 8 हजार रुपए देने होंगे. जो सहभागी अपने परिवारों के साथ आएंगे उन के लिए 4 से 5 हजार रुपए प्रतिव्यक्ति अदा करने होंगे. इस शुल्क में नाश्ता, चाय, दोपहर का भोजन, शाम की चाय, रात्रि भोजन, स्टेशनरी तथा भ्रमण खर्च शामिल होगा.’’

‘‘लेकिन चाचा, सहभागी अपनेअपने कार्यालयों में इन कार्यशालाओं का औचित्य कैसे साबित करेंगे?’’

‘‘उस के लिए भी समुचित व्यवस्था करनी होगी,’’ चाचा ने समझाया, ‘‘कार्यशाला के अंत में प्रश्नावली का सत्र रखा जाएगा, जिस में प्रथम, द्वितीय, तृतीय के अलावा कम से कम 4-5 सांत्वना पुरस्कार विजेताओं को प्रदान किए जाएंगे. इस में ट्राफी तथा शील्ड भी पुरस्कार विजेताओं को दी जा सकती हैं. जब संबंधित कार्यालय पुरस्कार में मिली इन ट्राफियों को देखेंगे, तो कार्यशाला का औचित्य स्वयं सिद्ध हो जाएगा. विजेता सहभागी अपनेअपने कार्यालयों में कार्यशाला की उपयोगिता एवं उस के औचित्य का गुणगान स्वयं ही करेंगे. इसे और उपयोगी साबित करने के लिए परिपत्र के माध्यम से कार्यशाला में प्रस्तुत किए जाने वाले उपयोगी लेख तथा पोस्टर व प्रचार सामग्री भी मंगाई जा सकती है.’’

‘‘इन कार्यशालाओं के आयोजन की आवृत्ति क्या होगी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वर्ष में कम से कम 2-3 कार्य-शालाएं आयोजित की जा सकती हैं.’’

‘‘कार्यशाला के अतिरिक्त क्या इस में और भी कोई गतिविधि शामिल की जा सकती है?’’

मेरे इस सवाल पर चाचा बताने लगे, ‘‘दुकान को थोड़ा और लाभप्रद बनाने के लिए हिंदी पुस्तकों की एजेंसी ली जा सकती है. आज प्राय: हर कार्यालय में हिंदी पुस्तकालय है. इन पुस्तकालयों को हिंदी पुस्तकों की आपूर्ति की जा सकती है. कार्यशाला में भाग लेने वाले सहभागियों अथवा परिपत्र के माध्यम से पुस्तकों की आपूर्ति की जा सकती है. आजकल पुस्तकों की कीमतें इतनी ज्यादा रखी जाती हैं कि डिस्काउंट देने के बाद भी अच्छी कमाई हो जाती है.’’

‘‘लेकिन चाचा, इस से हिंदी कार्यान्वयन को कितना लाभ मिलेगा?’’

‘‘हिंदी कार्यान्वयन को मारो गोली,’’ चाचा बोले, ‘‘तुम्हारी दुकान चलनी चाहिए. आज लगभग 60 साल का समय बीत गया हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिले हुए. किस को चिंता है राजभाषा कार्यान्वयन की? जो कुछ भी हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है वह हिंदी सिनेमा व टेलीविजन की देन है.

‘‘उच्चाधिकारी भी इस दिशा में कहां ईमानदार हैं. जब संसदीय राजभाषा समिति का निरीक्षण होना होता है तब निरीक्षण तक जरूर ये निष्ठा दिखाते हैं, पर उस के बाद फिर वही ढाक के तीन पात. यह राजकाज है, ऐसे ही चलता रहेगा पर तुम्हें इस में मगजमारी करने की क्या जरूरत? अगर और भी 100 साल लगते हैं तो लगने दो. तुम्हारा ध्यान तो अपनी दुकानदारी की ओर होना चाहिए.’’

‘‘अच्छा तो चाचा, अब मैं चलता हूं,’’ मैं बोला, ‘‘आप से बहुत कुछ जानकारी मिली. मुझे उम्मीद है कि आप के अनुभवों का लाभ मैं उठा पाऊंगा. इतनी सारी जानकारियों के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

चंदू चाचा के घर से मैं निकल पड़ा. रास्ते में तरहतरह के विचार मन को उद्वेलित कर रहे थे. हिंदी की स्थिति पर तरस आ रहा था. सोच रहा था और कितने दिन लगेंगे हिंदी को अपनी प्रतिष्ठा व पद हासिल करने में? कितना भला होगा हिंदी का इस प्रकार की दुकानदारी से?

चरित्रहीन कौन: क्या उषा अपने पति को बचा पाई?

ऊषा का पति प्रकाश शादी के 3 महीने बाद ही नौकरी ढूंढ़ने मुंबई चला गया था. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था और एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मजदूरी कर रहा था. जो भी कमाई होती थी उस में से आधा हिस्सा वह ऊषा को भेजता था और आधे हिस्से में खुद गुजारा करता था.

दीवाली की छुट्टियां थीं तो प्रकाश एक साल बाद घर आ रहा था. मुंबई में खुद के रहने का कोई ठौरठिकाना नहीं था, ऐसे में वह ऊषा को कहां ले जाता.

ऊषा बिहार के एक छोटे से गांव में अकेली रहती थी. वह इस उम्मीद में पति की याद में दिन बिता रही थी कि कभी तो प्रकाश उसे मुंबई ले जाएगा.

प्रकाश के आते ही ऊषा मानो जी उठी. एक साल बाद पति से मिल कर वह ताजा गुलाब सी खिल गई.

प्रकाश महीनेभर की छुट्टी ले कर आया था, पर कुछ ही दिनों में उस की तबीयत बिगड़ने लगी. सरकारी अस्पताल में सारे टैस्ट कराने पर पता चला कि प्रकाश को एड्स है. इस खबर से दोनों पतिपत्नी पर मानो आसमान टूट पड़ा.

प्रकाश ने ऊषा से माफी मांगते हुए कहा, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मुंबई में मैं अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और 1-2 बार रैड लाइट एरिया की धंधे वालियों से मुलाकात का यह नतीजा है. हो सके तो मुझे माफ कर देना.”

ऊषा के ऊपर दर्द का पहाड़ सा गिरा. नफरत, दुख और दर्द से उस का मन तड़प उठा, पर आखिर पति था, लिहाजा उसे माफ कर दिया. जो होना था, वह तो हो चुका, अब वह हालात को बदल तो नहीं सकती.

आहिस्ताआहिस्ता प्रकाश सूख कर कांटा हो गया. ऊषा ने बचाबचा कर जो थोड़ीबहुत पूंजी जमा की थी वह सारी प्रकाश के इलाज में लगा दी, लेकिन कोई दवा काम न आई और एक दिन प्रकाश ऊषा को इस दुनिया में अकेली छोड़ कर चल बसा.

इस बेरहम दुनिया में ऊषा अकेली रह गई. आज तक तो मांग का सिंदूर उस की हिफाजत करता था, पर अब उस की सूनी मांग मानो गांव में सब की जागीर हो गई. ऊपर से कमाने वाला भी चला गया. अब अकेली जान को भी दो वक्त की रोटी भी तो चाहिए, लिहाजा वह गांव के मुखिया के घर काम मांगने गई.

ऊषा को देख कर मुखिया की आंखों में हवस के सांप लोटने लगे और अबला, लाचार सी ऊषा के ऊपर वह किसी भेड़िए की तरह टूट पड़ा.

बेबस ऊषा यह जुल्म सह तो गई, पर आज मुखिया ने उस के मन में मर्द जात के प्रति नफरत का एक बीज बो दिया था. अब तो हर कोई उस की देह का पुजारी बन बैठा था. किसकिस से बचती वह…

ऊषा आसपास के शहर में बने बड़े बंगलों में जा कर झाड़ूपोंछा और बरतन धोने का काम कर के अपना गुजारा करती थी, पर कुछ ही दिनों में प्रकाश से मिला प्यार का तोहफा ऊषा के शरीर को दीमक की तरह खोखला करने लगा, क्योंकि उसे भी एड्स की जानलेवा बीमारी हो गई थी.

अस्पताल में टैस्ट कराने पर इस बीमारी का पता चला, पर ऊषा खुश थी कि इस दरिंदगी भरी दुनिया से डरती, बिलखती वह जी तो रही थी, लेकिन सोच रही थी कि ऐसी जिंदगी से तो बेहतर है कि उसे मौत आ जाए.

एक दिन ऊषा काम से घर लौट रही थी कि रास्ते में 2 गुंडों ने उसे घेर लिया और पास के खंडहर में घसीटते हुए ले जा कर उस की इज्जत एक बार और तारतार कर दी.

अब ऊषा ने ठान लिया कि जब मर्दों की फितरत यही है तो यही सही, अब वह देह तो देगी, साथ में एकएक को यह बीमारी भी देगी.

अब ऊषा अपने जिस्म की दुकान खोल कर बैठ गई. हर रोज लाइन लगती थी जिस्म के भूखे दरिंदों की. ऊषा को पैसे भी मिलते थे और उस का मकसद भी पूरा होता था.

ऊषा की झोंपड़ी के सामने ही एक मंदिर था, जिस का पुजारी रोज ऊषा को नफरत या दया के भाव से देखता था, पर ऊषा हमेशा उस पुजारी को हाथ जोड़ कर नमस्ते करती थी.

इस इज्जत की वजह से वह पुजारी ऊषा की जवानी को पाने की ललक होते हुए भी पहल नहीं कर पाता था, पर एक दिन उस पुजारी का सब्र जवाब दे गया और उस ने आधी रात को ऊषा की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया.

ऊषा ने दरवाजा खोल कर पूछा, “पुजारीजी, आप यहां?”

पुजारी ने कहा, “पुजारी हूं तो क्या हुआ, हूं तो मैं भी इनसान ही न. तन की आग मुझे भी जलाती है. थोड़ी खुशी मुझे भी दे दो, बदले में जितना चाहे पैसा ले लो. पर गांव में किसी को पता न चले, आखिर लोगों की मेरे ऊपर श्रद्धा जो है.”

ऊषा के दिल में नफरत का सैलाब उठा. खुद ऊपर वाले का तथाकथित सेवक भी औरत देह का भूखा है और साथ ही यह भी चाहता है कि उस का पाप दबा रहे. पुजारी क्या ऊषा की देह को दागदार करता, ऊषा ने ही उसे बीमारी का तोहफा दे दिया.

कुछ ही दिनों में सब से पहले मुखिया के शरीर में एड्स कहर ढाने लगा. वह आगबबूला हो कर सीधा ऊषा की झोंपड़ी में घुस कर गालीगलौज करने लगा और चिल्लाचिल्ला कर कहने लगा, “सुनो गांव वालो, यह एक चरित्रहीन औरत है. इसे यहां रहने का कोई हक नहीं है. यह गांव के लड़कों को खा जाएगी. अगर अपने बेटों की सलामती चाहते हो तो इस औरत को पत्थर मारमार कर गांव से बाहर निकाल दो.”

यह सुन कर सारा गांव वहां जमा हो गया और सब ऊषा की झोंपड़ी पर पत्थर मारने लगे. ऊषा भी अब रणचंडी बन कर घर में रखी कुल्हाड़ी ले कर बाहर निकली और दहाड़ते हुए बोली, “खबरदार, अगर किसी ने मेरी तरफ पत्थर फेंका तो चीर कर रख दूंगी.

“हां हूं मैं चरित्रहीन, पर मुझे चरित्रहीन बनाया किस ने? मुखिया, पहले तू अपने गरीबान में झांक कर देख. पहली बार मेरे तन को दाग तू ने ही तो लगाया था, तो मैं अकेली चरित्रहीन कैसे कहलाऊंगी? सब से बड़ा चरित्रहीन तो तू है.

“यहां पर जमा हुए बहुत से नामर्द भी चरित्रहीन हैं, तो मेरे साथ पूरा गांव भी तो चरित्रहीन कहलाएगा. और एक बात कान खोल कर सुन लो कि मुझे एड्स नाम का गुप्त रोग है और सब से पहले इस मुखिया को मैं ने दान दी यह बीमारी. इसी वजह से यह अब उछलउछल कर सब को भड़का रहा है.”

ऊषा की यह बात सुन कर पुजारी का दिल बैठ गया, फिर वह भी अपनी भड़ास निकालते हुए गांव वालों को भड़काने आगे आ गया और बोला, “सही कहा मुखियाजी ने, ऐसी औरतों को गांव में रहने का कोई हक नहीं है.”

ऊषा ने आंखें तरेरते हुए कहा, “पुजारीजी, इन अनपढ़, गंवारों की ओछी सोच तो समझ में आ सकती है, पर आप जैसे ज्ञानी और ऊपर वाले के सेवक ने भी मुझे इनसान न समझ कर एक भोगने की चीज ही समझा न?

“सुनो, इस पुजारी की असलियत. इस ने भी कई बार आधी रात को मेरा दरवाजा खटखटा कर अपना मुंह काला कराया है. सब से बड़ा चरित्रहीन तो यह पुजारी है, जिस ने खुद ऊपर वाले को भी धोखा दिया है.

“और हां, जिसजिस ने मेरे साथ जिस्मानी रिश्ता बनाया है, वे सब पहले अस्पताल पहुंचो, फिर इस चरित्रहीन औरत का हिसाब करने आना.”

इतना सुनते ही ज्यादातर मर्द वहां से भागे. ऊषा ने मुखिया और पुजारी से कहा, “कोई औरत अपनी मरजी से चरित्रहीन नहीं बनती, बल्कि उस के पीछे कहीं न कहीं किसी मर्द का ही हाथ होता है.

“बेबस, लाचार, अबला के सिर पर कोई पल्लू डालने की नहीं सोचता, हर एक को औरत के सीने के भीतर लटक रहा मांस का टुकड़ा ललचाता है. आज के बाद किसी अबला को रौंदने से पहले सौ बार सोचना.”

पुजारी और मुखिया दोनों शर्मिंदा थे. पुजारी ने कहा, “आज मेरी आंखें खुल गई हैं. मैं बहुत शर्मिंदा हूं. डूब तो हम सब को मरना चाहिए. तुम ने बिलकुल सही कहा कि अगर मर्द जात अपनी हवस को काबू में रख कर अपनी हद में रहे तो कोई औरत कभी चरित्रहीन नहीं बनेगी.”

पुजारी के इतना कहते ही वहां जमा इक्कादुक्का लोग भी चले गए. ऊषा ने अपनी झोंपड़ी का दरवाजा बंद कर लिया और बक्से में से नींद की गोलियों की शीशी निकाल कर सारी की सारी गोलियां निगल गई.

अगली सुबह एक चरित्रहीन औरत की श्मशान यात्रा में पूरा गांव तो उमड़ा, पर सब से पहले मुखिया और पुजारी ने उस की अर्थी को कंधा दिया. उन नकारों के मुंह से ‘राम नाम सत्य है’ की आवाज सुनते ही ऊषा के बेजान होंठ भी मानो हंस दिए.

उलटा पड़ गया दांव : मीना की जवनी पर क्यों उठे इतने सवाल

किशन ने रात के 11 बजे घर की घंटी बजाई. उस के पिता अविनाश ने दरवाजा खोला. साथ में लड़की को देख कर अविनाश का पारा चढ़ गया. वे चिल्लाए, ‘‘कौन है यह लड़की?’’

‘‘बाबूजी, यह मीना है.’’

‘‘मैं नाम नहीं पूछ रहा हूं.’’

‘‘बाबूजी, यह बहुत दुखी थी.’’

‘‘दुखी थी तो? हर दुखी लड़की को अपने साथ ले आएगा? तू इसे जहां से लाया है, वहीं छोड़ कर आ. अभी इसी समय.’’

‘‘इसे घर लाना मेरी मजबूरी थी बाबूजी?’’

‘‘क्या मजबूरी थी…’’

‘‘हमें अंदर तो आने दो, सब बताता हूं,’’ किशन ने जब गुजारिश की तब अविनाश थोड़े पिघले. वे रास्ता छोड़ते हुए बोले, ‘‘हां, आओ.’’

वे तीनों ड्रांइगरूम में आ कर सोफे पर बैठ गए. कुछ पलों का सन्नाटा पसरा रहा, फिर अविनाश बोले, ‘‘बोल, क्यों ले कर आया है इसे?’’

‘‘बाबूजी, मैं पटनी बाजार से गुजर रहा था. गोपाल मंदिर पार कर ही रहा था कि मेरी गाड़ी के पास आ कर यह बोली, ‘मु झे बचा लो बाबूजी. एक गुंडा मेरे पीछे पड़ा हुआ है.’

‘‘मु झे कुछ नहीं सू झा और मैं ने इसे बिठाने का फैसला कर लिया. इस के बाद का किस्सा आप इसी से सुन लो. मीना, बताओ अपने बारे में.’’

मीना ने जो बताया वह इस तरह था:

मीना की मां तभी गुजर गई थीं

जब मीना 5 साल की थी. उस के पिता भेरूलाल ने समाज के दबाव में आ कर कलावती से शादी कर ली थी.

शुरुआत में तो सौतेली मां ने प्यार दिया, पर जब उस की कोख से 2 बेटियां और एक बेटा जन्म ले चुके थे, तब वह उन पर प्यार लुटाने लगी थी और मीना से नफरत करने लगी थी.

इसी बीच भेरूलाल को कैंसर हो गया. इलाज के लिए पैसा नहीं था. तब सौतेली मां और सौतेली होती गई.

एक दिन पिता मर गए. अब सौतेली मां कई घरों में बरतन मांजने जाने लगी थी. वह अपने साथ मीना को भी ले जाने लगी थी.

मीना कब जवान हो गई, यह उसे तब पता चला जब बस्ती में आवारा लड़कों की कामुक निगाहें उस पर पड़ने लगी थीं. इस बात से सौतेली मां परेशान हो गई.

तब मीना की इच्छा होती थी कि वह घर छोड़ कर चली जाए मगर इस जालिम दुनिया में कहां जाएगी? उस की सगाई के लिए जहां भी बात चलती थी, गरीबी आड़े आ जाती थी.

तब सौतेली मां सारा गुस्सा उस पर निकाल कर कहती थी, ‘आग लगे इस गरीबी को और तेरी जवानी को. तु झ से खेलना तो सब चाहते हैं, मगर शादी कोई नहीं करना चाहता है.

‘न जाने किस मनहूस घड़ी में तेरी मां तु झे पैदा कर गई और सारा बो झ मेरे ऊपर डाल गई. अगर तु झ पर सारा पैसा लुटा दूंगी तो मेरी बेटियों का क्या होगा?’

जब मीना के पिता जिंदा थे तब उन का मुंह लगा दोस्त मांगीलाल अब गंदी नीयत से घर आने लगा था. वह सौतेली मां से घंटों बातें करता और चुपकेचुपके मीना की जवानी को देख कर लार टपकाता रहता था.

आखिरकार एक दिन जब सौतेली मां तंग हो गई, तब मांगीलाल पास आ कर बोला था, ‘भाभी, भैया के जाने के बाद तुम बहुत टूट गई हो. गरीबी के चलते चिड़चिड़ापन भी आ गया है.’

‘हां देवरजी, टूट तो गई हूं. अकेली रह गई हूं. कमाने वाली मैं अकेली, फिर भी पेट नहीं भरता है…’ अफसोस जताते हुई सौतेली मां बोली थी, ‘ऊपर से मीना की चिंता अलग सता रही है.’

‘भाभी, मैं ने एक तरकीब सोची है.’

‘तरकीब… कौन सी तरकीब देवरजी?’ सौतेली मां ने जब यह पूछा, तब आड़ में रह कर मीना सब सुन रही थी. अगली बात मांगीलाल क्या कहेगा, यह सुनने के लिए उस के कान चौकन्ने हो गए थे.

मांगीलाल बोला था, ‘देखो भाभी, मीना जब जवान हो गई है. वह तुम्हारे लिए कमाई का बहुत बड़ा साधन हो सकती है…’

‘मैं तुम्हारी बात बिलकुल नहीं सम झी देवरजी…’

‘इस में सम झना क्या है भाभी. मीना को धंधे पर बिठा दो. पैसे उगलने की मशीन है वह,’ मांगीलाल ने यह बात कही, तब उस का इशारा सौतेली मां सम झ जरूर गई, फिर भी विरोध करते हुए वह बोली थी, ‘नहीं देवरजी, मैं यह घिनौना काम नहीं करा सकती हूं. वह मेरी बेटी है.’

‘बेटी तो है भाभी, पर मगर पेट से पैदा नहीं हुई है,’ सम झाते हुए मांगीलाल बोला था, ‘है तो सौतेली. आज के जमाने में यह सब चल रहा है. अब आप सोचेंगी कि इस का इंतजाम कैसे होगा? यह सब मेरे जिम्मे छोड़ दीजिए…’

‘मगर इस से मेरी बदनामी होगी.’

‘अगर आप बदनामी से डरती रहीं तो कमाने वाली इस मशीन से हाथ धो बैठोगी. जब मीना किसी के साथ भाग जाएगी, तब बदनामी होगी सो होगी. अगर धंधा करेगी तब किसी को पता भी नहीं चलने देंगे. यह सब आप मु झ पर छोड़ दीजिए,’ उस दिन मांगीलाल ने सौतेली मां के दिमाग में यह बात पूरी तरह से बिठा दी  थी. वह राजी भी हो गई थी.

आज मांगीलाल मीना को कंचनबाई के कोठे पर ले जाने वाला था. उस के इनकार करने पर सौतेली मां ने उस की चोटी पकड़ कर जबरदस्ती उस के साथ कर दिया था. वह भी साथ थी.

वे तीनों कंचनबाई के कोठे से कुछ ही दूरी पर थे कि मांगीलाल पेशाब करने के बहाने पेशाबघर में घुस गया. मीना समय का फायदा उठाया और तत्काल वहां से भाग गई.

भागने के बाद पहली गाड़ी बाबूजी की मिली. गाड़ी रोकते हुए वह बोली थी, ‘साहब, मु झे बचाइए. एक गुंडा मेरे पीछे पड़ा हुआ है…’

अविनाश ने मीना की यह आपबीती सुनी. घर में सन्नाटा छा गया.

अविनाश बोले, ‘‘क्या तुम अपनी सौतेली मां के पास अब जाना ही नहीं चाहती हो?’’

‘‘मु झे उस से नफरत है?’’ मीना इनकार करते हुए बोली.

तभी दरवाजे की घंटी बजी.

अविनाश थोड़ा घबरा कर बोले, ‘‘कौन आया होगा इतनी रात गए?’’

‘‘मैं देखता हूं,’’ कह कर किशन ने उठ कर दरवाजा खोला.

सामने पुलिस के साथ अधेड़ मर्दऔरत को खड़ा देख कर किशन को हैरानी हुई.

पुलिस वाला बोला, ‘‘हमें किशन से मिलना है.’’

‘‘मैं ही हूं किशन,’’ उस ने कहा.

‘‘इन दोनों ने रिपोर्ट लिखाई है कि आप ने इन की बेटी मीना को अगवा किया है.’’

‘‘यह सरासर  झूठ है.’’

‘‘सच झूठ का फैसला तो अदालत करेगी…’’ पुलिस वाले ने कहा, ‘‘चलिए थाने में.’’

‘‘किशन ने कहा, ‘‘आइए, भीतर चल कर बात करते हैं.’’

वे तीनों जब भीतर आए तो वह औरत बोली, ‘‘यही मेरी बेटी मीना

है थानेदार साहब.’’

‘‘चलिए मिस्टर किशन, इन की रिपोर्ट पर मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं.’’

‘‘मगर मैं बेकुसूर हूं थानेदार साहब. यह औरत इस की सौतली मां है…’’ किशन बोला, ‘‘मु झे भी अपनी बात कहने का मौका दें.’’

‘‘जोकुछ बात कहना है थाने में चल कर कहना,’’ थानेदार फिर गरजा.

‘‘रुकिए थानेदार साहब,’’ मीना बीच आ कर बोली, ‘‘ये मु झे अगवा कर के नहीं लाए हैं.’’

‘‘अरे, तु झे  झूठ बोलते शर्म नहीं आती है…’’ मांगीलाल, जो अब तक खामोश था, बोला, ‘‘मु झ से छीन कर यह तु झे गाड़ी में बिठा कर ले गया.’’

‘‘थानेदार साहब, मैं इन के साथ नहीं जाना चाहती हूं,’’ मीना बोली.

‘‘क्यों नहीं जाना चाहती हो?’’ थानेदार ने पूछा.

‘‘यह मेरी सौतेली मां कोठे पर बिठा कर मु झ से धंधा कराना चाहती है. यह आदमी मु झे कंचनबाई के कोठे पर ले जा रहा था. मैं खुद ही इन से पीछा छुड़ा कर भागी थी.’’

थानेदार ने सौतेली मां से पूछा, ‘‘यह जोकुछ कह रही है क्या वह सच है?’’

पहले तो सौतेली मां भीतर ही भीतर डरी, फिर बोली, ‘‘नहीं थानेदार साहब, यह लड़की  झूठ बोल रही है. यह इसे अगवा कर के लाया है.’’

‘‘ये बाबूजी मु झे अगवा कर के नहीं लाए हैं. मैं खुद ही अपनी जान बचा कर इन की गाड़ी में बैठी और यहां आई,’’ कह कर मीना ने एक बार फिर किशन का पक्ष लिया.

थानेदार सौतेली मां को डांटते हुए बोला, ‘‘सहीसही बता, क्या तू अपनी बेटी से धंधा कराना चाहती है? बोल, चुप क्यों है? तेरा चुप रहना इस बात का सुबूत है कि यह लड़की सही कह रही है. चलो तुम दोनों थाने में.’’

सौतेली मां घबरा उठी. कुछ बोलते नहीं बना. थानेदार ने फिर धमकी दी, तब हाथ जोड़ते हुए वह बोली, ‘‘हां थानेदार साहब, यह सही कह रही है. मैं इस से धंधा करा कर पैसे कमाना चाहती थी. इस मांगीलाल के चलते ही मैं ने यह सब किया. असली गुनाहगार यह मांगीलाल है. पकड़ लीजिए इसे.’’

‘‘मैं तुम दोनों को  झूठी रिपोर्ट लिखाने के आरोप में पकड़ता हूं,’’ थानेदार ने जब गुस्से से यह बात कही, तब सारा सच उगलते हुए सौतेली मां बोली, ‘‘मैं अपनी रिपोर्ट वापस लेती हूं थानेदार साहब. मु झे माफ कर दो. मैं गुनाहगार हूं. अब इसे मैं यह धंधा करने को नहीं कहूंगी… चल बेटी.’’

‘‘जब अपने ऊपर आ गई न तो कैसी सतीसावित्री बन गई. मु झे नहीं चलना तेरे साथ…’’ मीना उसी तरह गुस्से से बोली, ‘‘तुम और तुम्हारा यह मुंहलगा देवर एकजैसे हो.’’

‘‘देख बेटी, अपनी जगह तू सही है. मगर मैं ने कहा न इस ने अपनी गलती का पछतावा कर लिया है. इस के साथ चली जा. अगर यह फिर से तुम्हें कंचनबाई के कोठे पर बिठाने की कोशिश करे, तो मेरे पास चली आना. मैं इसे जेल में बंद कर दूंगा,’’ यकीन दिलाते हुए थानेदार ने जब यह कहा, तो मीना बोली, ‘‘ठीक है थानेदार साहब, आप कहते हैं तो मैं चली जाती हूं.’’

थानेदार मांगीलाल से बोला, ‘‘चल बे थाने. एक लड़की से जबरदस्ती धंधा कराने की सोचने के जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार करता हूं.’’

इतना कह कर थानेदार ने एक लात जमा कर मांगीलाल को हथकड़ी पहना दी और उसे ले कर बाहर निकल गया. बाद में मीना भी बाबूजी से माफी मांगते हुए अपनी सौतेली मां के साथ बाहर निकल गई.

कुछ पलों तक घर में सन्नाटा रहा, फिर किशन बोला, ‘‘बाबूजी, चलो, मीना को फिर अपनी मां मिल गई.’’

‘‘यह तुम्हारा भरम है किशन…’’ पिता अविनाश बोले, ‘‘जो चक्रव्यूह उस की मां ने तुम्हारे खिलाफ रचा था, उसी चक्रव्यूह में वह खुद ही फंस गई. मीना को गले लगाना उस की मजबूरी थी.’’

‘‘मगर थानेदार साहब ने भी तो इस में अहम रोल निभाया.’’

‘‘किशन, ये तीनों आपस में मिले हुए थे. थानेदार भी बिका हुआ था. लेकिन मीना ने जब सारा राज उगल दिया, तब उन का दांव उलटा पड़ गया और उन्होंने अपने मोहरे बदल लिए.

शादी की पहली रात ये 7 चीजें करते हैं दूल्हा-दुल्हन

शादी से पहले हर लड़का-लड़की अपनी पहली सुहागरात के बारे में काफी कुछ सोचते हैं. उन्‍हें अपनी शादी से जितनी ज्‍यादा उम्मीदें होती हैं उतनी ही पहली रात के बारे में सोच कर घबराहट भी होती है. पहली रात का मतलब केवल यही नहीं होता कि अपने नए नवेले पति या पत्‍नी के साथ हमबिस्‍तर हो कर गुजारेंगे. अगर आप लोगों के मन में भी यही विचार आतें हैं, तो हम आपको बता दें, कि जरुरी नहीं है कि सबकी सुहागरात ऐसे ही गुजरे.

वे लोग जो शादी से अभी कोसों दूरी पर हैं, उनके मन में सुहागरात के बारे में कई विचार आते हैं. आज हम आपका इंतजार यहीं पर खत्म करते हैं क्‍योंकि हम आपको बताने जा रहें हैं कि भारतीय शादियों में वर-वधु शादी की अपनी पहली रात को क्या करते हैं.

1. थकान की वजह से सो जाते हैं

हमारे भारतीय समाज में शादी के बहुत सारे विधि विधान होते हैं और यह सब ज्यादातर वर-वधू ही करते हैं. जिन्हें करते-करते वे इतना थक जाते हैं कि अपने कमरे में पहुँचते ही वे सोने की तैयारी करते हैं.

2. शादी के कपड़ों और सामान से निजात पाना

शादी के कपड़े काफी भारी होते हैं, फिर चाहे वह लड़के की शेरवानी हो या लड़की का लहंगा. वे दोनों ही यह कपडे काफी देर तक पहने रहते हैं. इसलिए वे जैसे ही अपने कमरे में पहुँचते हैं, तो सब कुछ उतारने लग जाते हैं. लड़के के लिए तो आसान है लेकिन लड़की को सिर्फ अपना लहंगा या गहने ही नहीं उतारने पड़ते हैं, बल्कि उसके जूड़े में लगी ढेर सारी पिन भी निकलनी पड़ती हैं जिसमें लड़का भी मदद करता है.

3. दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों की मजाक मस्‍ती से निपटना

हर नव वर वधू को दोस्तों और चचेरे भाई बहनो के कुछ अनचाहे मज़ाक झेलने पड़ते हैं, जैसे आधी रात फोन करना, घड़ी का अलार्म बजाना और दरवाजा खटखटाना. यह सब पूरी रात चलता रहता है.

4. दिल खोल कर बातें करना

जैसे जैसे शादी का दिन नज़दीक आता है, दोनों लड़का और लड़की अपनी-अपनी तैयारियों में इतना मशरूफ हो जाते हैं, कि उन्हें एक दूसरे से बात भी करने का समय नहीं मिलता है. इसलिए यह देखा गया है कि शादी की पहली रात को दोनों एक दूसरे से दिल खोल कर बात करतें हैं.

5. दुल्हन के उपहारों को खोलना

थोड़ी आश्चर्य की बात तो है लेकिन हैं सच है कि दुल्हन अपने पति के लिए बहुत सारे उपहार लती है और उन्हें दिखने के लिए वे दोनों शादी की पहली रात सारे ही सरे गिफ्ट्स खोल कर देखते हैं.

6. शादी के बारे में बात करते हैं

इतना लंबा समय बिताने के बाद शादी की पहली रात को दोनों अकेले एक साथ होते हैं, और शादी के दुरान गुज़ारे अच्छे पालों को याद करते हैं. एक दूसरे के करीब आने के बजाये वे उन पलों के बारे में बात करते हैं.

7. सेक्स के बारे में सोचना

जो वर वधू शादी की पहली रात को कुछ अनचाहे कारणों से एक दूसरे के करीब ना आ सके, वे आराम से शर्माते हुए सो जाते हैं. अपनी अगली सुबह के इंतज़ार में.

राहें जुदा जुदा : संबंधों की अनसुलझी कहानी

‘‘निशा….’’ मयंक ने आवाज दी. निशा एक शौपिंग मौल के बाहर खड़ी थी, तभी मयंक की निगाह उस पर पड़ी. निशा ने शायद सुना नहीं था, वह उसी प्रकार बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़ी रही. ‘निशा…’ अब मयंक निशा के एकदम ही निकट आ चुका था. निशा ने पलट कर देखा तो भौचक्की हो गई. वैसे भी बेंगलुरु में इस नाम से उसे कोई पुकारता भी नहीं था. यहां तो वह मिसेज निशा वशिष्ठ थी. तो क्या यह कोई पुराना जानने वाला है. वह सोचने को मजबूर हो गई. लेकिन फौरन ही उस ने पहचान लिया. अरे, यह तो मयंक है पर यहां कैसे?

‘मयंक, तुम?’ उस ने कहना चाहा पर स्तब्ध खड़ी ही रही, जबान तालू से चिपक गई थी. स्तब्ध तो मयंक भी था. वैसे भी, जब हम किसी प्रिय को बहुत वर्षों बाद अनापेक्षित देखते हैं तो स्तब्धता आ ही जाती है. दोनों एकदूसरे के आमनेसामने खड़े थे. उन के मध्य एक शून्य पसरा पड़ा था. उन के कानों में किसी की भी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पूरा ब्रह्मांड ही थम गया हो, धरती स्थिर हो गई हो. दोनों ही अपलक एकदूसरे को निहार रहे थे. तभी ‘एक्सक्यूज मी,’ कहते हुए एक व्यक्ति दोनों के बीच से उन्हें घूरता हुआ निकल गया. उन की निस्तब्धता भंग हो गई. दोनों ही वर्तमान में लौट आए.

‘‘क्यों, कैसी लग रही हूं?’’ निशा ने थोड़ा मुसकराते हुए नटखटपने से कहा.

अब मयंक थोड़ा सकुंचित हो गया. फिर अपने को संभाल कर बोला, ‘‘यहीं खड़ेखड़े सारी बातें करेंगे या कहीं बैठेंगे भी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, चलो इस मौल में एक रैस्टोरैंट है, वहीं चल कर बैठते हैं.’’ और मयंक को ले कर निशा अंदर चली गई. दोनों एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गए. धूमिल अंधेरा छाया हुआ था. मंदमंद संगीत बज रहा था. वेटर को मयंक ने 2 कोल्ड कौफी विद आइसक्रीम का और्डर दिया.

‘‘तुम्हें अभी भी मेरी पसंदनापंसद याद है,’’ निशा ने तनिक मुसकराते हुए कहा.

‘‘याद की क्या बात है, याद तो उसे किया जाता है जिसे भूल जाया जाए. मैं अब भी वहीं खड़ा हूं निशा, जहां तुम मुझे छोड़ कर गई थीं,’’ मयंक का स्वर दिल की गहराइयों से आता प्रतीत हो रहा था. निशा ने उस स्वर की आर्द्रता को महसूस किया किंतु तुरंत संभल गई और एकदम ही वर्षों से बिछड़े हुए मित्रों के चोले में आ गई.

‘‘और सुनाओ मयंक, कैसे हो? कितने वर्षों बाद हम मिल रहे हैं. तुम्हारा सैमिनार कब तक चलेगा. और हां, तुम्हारी पत्नी तथा बच्चे कैसे हैं?’’ निशा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘उफ, निशा थोड़ी सांस तो ले लो, लगातार बोलने वाली तुम्हारी आदत अभी तक गई नहीं,’’ मयंक ने निशा को चुप कराते हुए कहा.

‘‘अच्छा बाबा, अब कुछ नही बोलूंगी, अब तुम बोलोगे और मैं सुनूंगी,’’ निशा ने उसी नटखटपने से कहा.

मयंक देख रहा था आज 25 वर्षों बाद दोनों मिल रहे थे. उम्र बढ़ चली थी दोनों की पर 45 वर्ष की उम्र में भी निशा के चुलबुलेपन में कोई भी कमी नहीं आई थी जबकि मयंक पर अधेड़ होने की झलक स्पष्ट दिख रही थी. वह शांत दिखने का प्रयास कर रहा था किंतु उस के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह बहुतकुछ पूछना चाह रहा था. बहुतकुछ कहना चाह रहा था. पर जबान रुक सी गई थी.

शायद निशा ने उस के मनोभावों को पढ़ लिया था, संयत स्वर में बोली, ‘‘क्या हुआ मयंक, चुप क्यों हो? कुछ तो बोलो.’’

‘‘अ…हां,’’ मयंक जैसे सोते से जागा, ‘‘निशा, तुम बताओ क्या हालचाल हैं तुम्हारे पति व बच्चे कैसे हैं? तुम खुश तो हो न?’’

निशा थोड़ी अनमनी सी हो गई, उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मयंक के प्रश्नों का क्या उत्तर दे. फिर अपने को स्थिर कर के बोली, ‘‘हां मयंक, मैं बहुत खुश हूं. आदित्य को पतिरूप में पा कर मैं धन्य हो गई. बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित, संपन्न परिवार के इकलौते पुत्र की वधू होने के कारण मेरी जिंदगी में चारचांद लग गए थे. मेरे ससुर का साउथ सिल्क की साडि़यों का एक्सपोर्ट का व्यवसाय था. कांजीवरम, साउथ सिल्क, साउथ कौटन, बेंगलौरी सिल्क मुख्य थे. एमबीए कर के आदित्य भी उसी व्यवसाय को संभालने लगे. जब मैं ससुराल में आई तो बड़ा ही लाड़दुलार मिला. सासससुर की इकलौती बहू थी, उन की आंखों का तारा थी.’

‘‘विवाह के 15 दिनों बाद मुझे थोड़ाथोड़ा चक्कर आने लगा था और जब मुझे पहली उलटी हुई तो मेरी सासूमां ने मुझे डाक्टर को दिखाया. कुछ परीक्षणों के बाद डाक्टर ने कहा, ‘खुशखबरी है मांजी, आप दादी बनने वाली हैं. पूरे घर में उत्सव का सा माहौल छा गया था. सासूमां खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. बस, आदित्य ही थोड़े चुपचुप से थे. रात्रि में मुझ से बोले,’ ‘निशा, मैं तुम्हारा हृदय से आभारी हूं.’

‘क्यों.’ मैं चौंक उठी.

‘क्योंकि तुम ने मेरी इज्जत रख ली. अब मैं भी पिता बन सकूंगा. कोई मुझे भी पापा कहेगा,’ आदित्य ने शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं अपराधबोध से दबी जा रही थी क्योंकि यह बच्चा तुम्हारा ही था. आदित्य का इस में कोई भी अंश नहीं था. फिर भी मैं चुप रही. आदित्य ने तनिक रुंधी हुई आवाज में कहा, ‘निशा, मैं एक अधूरा पुरुष हूं. जब 20 साल का था तो पता चला मैं संतानोत्पत्ति में अक्षम हूं, जब दोस्त लोग लड़की के पास ले गए, अवसर तो मिला था पर उस से वहां पर कुछ ज्यादा नहीं हो सका. नहीं समझ पाता हूं कि नियति ने मेरे साथ यह गंदा मजाक क्यों किया? मांपापा को यदि यह बात पता चलती तो वे लोग जीतेजी मर जाते और मैं उन्हें खोना नहीं चाहता था. मुझ पर विवाह के लिए दबाव पड़ने लगा और मैं कुछ भी कह सकने में असमर्थ था. सोचता था, मेरी पत्नी के प्रति यह मेरा अन्याय होगा और मैं निरंतर हीनता का शिकार हो रहा था.

‘मैं ने निर्णय ले लिया था कि मैं विवाह नहीं करूंगा किंतु मातापिता पर पंडेपुजारी दबाव डाल रहे थे. उन्हें क्या पता था कि उन का बेटा उन की मनोकामना पूर्र्ण करने में असमर्थ है. और फिर मैं ने उन की इच्छा का सम्मान करते हुए विवाह के लिए हां कर दी. सोचा था कि घरवालों का तो मुंह बंद हो जाएगा. अपनी पत्नी से कुछ भी नहीं छिपाऊंगा. यदि उसे मुझ से नफरत होगी तो उसे मैं आजाद कर दूंगा. जब तुम पत्नी बन कर आई तब मुझे बहुत अच्छी लगी. तुम्हारे रूप और भोलेपन पर मैं मर मिटा.

‘हिम्मत जुटा रहा था कि तुम्हें इस कटु सत्य से अवगत करा दूं किंतु मौका ही न मिला और जब मुझे पता चला कि तुम गर्भवती हो तो मैं समझ गया कि यह शिशु विवाह के कुछ ही समय पूर्व तुम्हारे गर्भ में आया है. अवश्य ही तुम्हारा किसी अन्य से संबंध रहा होगा. जो भी रहा हो, यह बच्चा मुझे स्वीकार्य है.’ कह कर आदित्य चुप हो गए और मैं यह सोचने पर बाध्य हो गई कि मैं आदित्य की अपराधिनी हूं या उन की खुशियों का स्रोत हूं. ये किस प्रकार के इंसान हैं जिन्हें जरा भी क्रोध नहीं आया. किसी परपुरुष के बच्चे को सहर्ष अपनाने को तैयार हैं. शायद क्षणिक आवेग में किए गए मेरे पाप की यह सजा थी जो मुझे अनायास ही विधाता ने दे दी थी और मेरा सिर उन के समक्ष श्रद्धा से झुक गया.

‘‘9 माह बाद प्रसून का जन्म हुआ. आदित्य ने ही प्रसून नाम रखा था. ठीक भी था, सूर्य की किरणें पड़ते ही फूल खिल उठते हैं, उसी प्रकार आदित्य को देखते ही प्रसून खिल उठता था. हर समय वे उसे अपने सीने से लगाए रखते थे. रात्रि में यदि मैं सो जाती थी तो भी वे प्रसून की एक आहट पर जाग जाते थे. उस की नैपी बदलते थे. मुझ से कहते थे, ‘मैं प्रसून को एयरफोर्स में भेजूंगा, मेरा बेटा बहुत नाम कमाएगा.’

‘‘मेरे दिल में आदित्य के लिए सम्मान बढ़ता जा रहा था, देखतेदखते 15 वर्ष बीत चुके थे. मैं खुश थी जो आदित्य मुझे पतिरूप में मिले. लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था. अकस्मात एक दिन एक ट्रक से उन की गाड़ी टकराई और उन की मौके पर ही मौत हो गई. तब प्रसून 14 वर्ष का था.’’

मयंक निशब्द निशा की जीवनगाथा सुन रहा था. कुछ बोलने या पूछने की गुंजाइश ही नहीं रह गई थी. क्षणिक मौन के बाद निशा फिर बोली, ‘‘आज मैं अपने बेटे के साथ अपने ससुर का व्यवसाय संभाल रही हूं. प्रसून एयरफोर्स में जाना नहीं चाहता था, अब वह 25 वर्ष का होने वाला है. उस ने एमबीए किया और अपने पुश्तैनी व्यवसाय में मेरा हाथ बंटा रहा है या यों कहो कि अब सबकुछ वही संभाल रहा है.’

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मयंक ने मुंह खोला, ‘‘निशा, तुम्हें अतीत की कोई बात याद है?’’

‘‘हां, मयंक, सबकुछ याद है जब तुम ने मेरे नाम का मतलब पूछा था और मैं ने अपने नाम का अर्थ तुम्हें बताया, ‘निशा का अर्र्थ है रात्रि.’ तुम मेरे नाम का मजाक बनाने लगे तब मैं ने तुम से पूछा, ‘आप को अपने नाम का अर्थ पता है?’

‘‘तुम ने बड़े गर्व से कहा, ‘हांहां, क्यों नहीं, मेरा नाम मयंक है जिस का अर्थ है चंद्रमा, जिस की चांदनी सब को शीतलता प्रदान करती है’ बोलो याद है न?’’ निशा ने भी मयंक से प्रश्न किया.

मयंक थोड़ा मुसकरा कर बोला, ‘‘और तुम ने कहा था, ‘मयंक जी, निशा है तभी तो चंद्रमा का अस्तित्व है, वरना चांद नजर ही कहां आएगा.’ अच्छा निशा, तुम्हें वह रात याद है जब मैं तुम्हारे बुलाने पर तुम्हारे घर आया था. हमारे बीच संयम की सब दीवारें टूट चुकी थीं.’’ मयंक निशा को अतीत में भटका रहा था.

‘‘हां,’’ तभी निशा बोल पड़ी, ‘‘प्रसून उस रात्रि का ही प्रतीक है. लेकिन मयंक, अब इन बातों का क्या फायदा? इस से तो मेरी 25 वर्षों की तपस्या भंग हो जाएगी. और वैसे भी, अतीत को वर्तमान में बदलने का प्रयास न ही करो तो बेहतर होगा क्योंकि तब हम न वर्तमान के होंगे, न अतीत के, एक त्रिशंकु बन कर रह जाएंगे. मैं उस अतीत को अब याद भी नहीं करना चाहती हूं जिस से हमारा आज और हमारे अपनों का जीवन प्रभावित हो. और हां मयंक, अब मुझ से दोबारा मिलने का प्रयास मत करना.’’

‘‘क्यों निशा, ऐसा क्यों कह रही हो?’’ मयंक विचलित हो उठा.

‘‘क्योंकि तुम अपने परिवार के प्रति ही समर्पित रहो, तभी ठीक होगा. मुझे नहीं पता तुम्हारा जीवन कैसा चल रहा है पर इतना जरूर समझती हूं कि तुम्हें पा कर तुम्हारी पत्नी बहुत खुश होगी,’’ कह कर निशा उठ खड़ी हुई.

मयंक उठते हुए बोला, ‘‘मैं एक बार अपने बेटे को देखना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारा बेटा? नहीं मयंक, वह आदित्य का बेटा है. यही सत्य है, और प्रसून अपने पिता को ही अपना आदर्श मानता है. वह तुम्हारा ही प्रतिरूप है, यह एक कटु सत्य है और इसे नकारा भी नहीं जा सकता किंतु मातृत्व के जिस बीज का रोपण तुम ने किया उस को पल्लवित तथा पुष्पित तो आदित्य ने ही किया. यदि वे मुझे मां नहीं बना सकते थे, तो क्या हुआ, यद्यपि वे खुद को एक अधूरा पुरुष मानते थे पर मेरे लिए तो वे परिपूर्ण थे. एक आदर्श पति की जीवनसंगिनी बन कर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करती हूं. मेरे अपराध को उन्होंने अपराध नहीं माना, इसलिए वे मेरी दृष्टि में सचमुच ही महान हैं.

‘‘प्रसून तुम्हारा अंश है, यह बात हम दोनों ही भूल जाएं तो ही अच्छा रहेगा. तुम्हें देख कर वह टूट जाएगा, मुझे कलंकिनी समझेगा. हजारों प्रश्न करेगा जिन का कोई भी उत्तर शायद मैं न दे सकूंगी. अपने पिता को अधूरा इंसान समझेगा. युवा है, हो  सकता है कोई गलत कदम ही उठा ले. हमारा हंसताखेलता संसार बिखर जाएगा और मैं भी कलंक के इस विष को नहीं पी सकूंगी. तुम्हें वह गीत याद है न ‘मंजिल वही है प्यार की, राही बदल गए…’

‘‘भूल जाओ कि कभी हम दो जिस्म एक जान थे, एक साथ जीनेमरने का वादा किया था. उन सब के अब कोई माने नहीं है. आज से हमारी तुम्हारी राहें जुदाजुदा हैं. हमारा आज का मिलना एक इत्तफाक है किंतु अब यह इत्तफाक दोबारा नहीं होना चाहिए,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और रैस्टोरैंट के गेट की ओर बढ़ चली. तभी मयंक बोल उठा, ‘‘निशा…एक बात और सुनती जाओ.’’ निशा ठिठक गई.

‘‘मैं ने विवाह नहीं किया है, यह जीवन तुम्हारे ही नाम कर रखा है.’’ और वह रैस्टोरैंट से बाहर आ गया. निशा थोड़ी देर चुप खड़ी रही, फिर किसी अपरिचित की भांति रैस्टोरैंट से बाहर आ गई और दोनों 2 विपरीत दिशाओं की ओर मुड़ गए.

चलतेचलते निशा ने अंत में कहा, ‘‘मयंक, इतने जज्बाती न बनो. अगर कोई मिले तो विवाह कर लेना, मुझे शादी का कार्ड भेज देना ताकि मैं सुकून से जी सकूं.’’

मुझसे जबरदस्ती तलाक के पेपर पर Signature करा लिए गए, मैं क्या करूं?

सवाल

हमारी अदालती शादी 3 महीने पहले हुई थी. अलगअलग जाति का होने के चलते हम दोनों को अलग  कर दिया गया है और जबरन हम से तलाक के कागजों पर दस्तखत करा लिए गए हैं. हम साथ रहना चाहते हैं, पर कैसे रहें?

जवाब

घर वालों का मिजाज जानते हुए जब आप लोगों ने अदालती शादी की है, तो आप में कुछ दम तो होना चाहिए था. आप को तलाक के कागजों पर दस्तखत नहीं करने चाहिए थे. बहरहाल, अब मजबूती से हालात का सामना करें और जरूरत के मुताबिक पुलिस व कानून का सहारा भी लें. तलाक की कार्यवाही चले, तो साफसाफ बता दें कि आप को तलाक नहीं चाहिए और ये दस्तखत आप लोगों ने मजबूरन किए हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

प्रेम की भोर : कैसे थे भोर के भइया-भाभी

भोर के मातापिता की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी. भैयाभाभी ने भोर की जिम्मेदारी संभाल ली थी. भोर आकाशवाणी में काम करना चाहती थी, पर भैया के बिस्तर पर आ जाने से उस के सपने बिखर गए. ऊपर से भाभी अलग ही चालें चल रही थीं. क्या भोर की जिंदगी में कभी उजाला हो पाया?

मां बाप ने उस का नाम भोर रखा था, पर भोर की जिंदगी में अभी तक  अंधियारा ही छाया हुआ था. आज भोर 20 साल की हो गई थी, पर अपने जन्मदिन की उस के मन में बिलकुल भी खुशी नहीं थी. बारबार उस का मन रोने को कर रहा था, क्योंकि आज से 4 साल पहले जब वह 16 साल की थी, तभी उस के मम्मीपापा एक सड़क हादसे में गुजर गए थे.

मम्मीपापा की मौत के बाद भोर के एकलौते बड़े भाई विपिन ने उस की पढ़ाईलिखाई और पालनपोषण की जिम्मेदारी ले ली थी और तब से आज तक भोर अपने भैयाभाभी के साथ ही रह रही थी.

भोर के भैया विपिन एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे और भाभी नमिता हाउसवाइफ थीं. मम्मीपापा के गुजर जाने के बाद भोर की पढ़ाईलिखाई और पालनपोषण का जिम्मा जब उस के भैयाभाभी ने उठाया, तब पूरे महल्ले में विपिन और नमिता की खूब तारीफ हुई थी.

‘विपिन ने एक बड़े भाई का फर्ज निभाते हुए अपनी छोटी बहन को अपने पास रख लिया है. कितना अच्छा है विपिन. आजकल के जमाने में ऐसे भाईभाभी मिलते ही कहां हैं…’ पूरे महल्ले में ऐसी बातें होने लगी थीं.

शुरुआत में जब भोर मासूम थी, तब उसे भी लगा था कि भाभी उस का बहुत ध्यान रख रही हैं और वह अगर भोर से घर का काम कराती भी हैं, तो क्या हुआ? थोड़ा बहुत काम तो हर लड़की को करना ही पड़ता है. पर समय बीतने के साथसाथ यह थोड़ाबहुत काम ढेर सारे काम में बदल गया और नमिता भोर से पूरे घर का काम कराने लगीं.

नमिता का एक 6 साल का बेटा भी था, जिसे संभालने और नीचे घुमाने की जिम्मेदारी भी भोर को दे दी गई थी. भोर की जरा सी गलती पर ही नमिता उस पर बरस पड़ती थीं और काम ठीक से न कर पाने पर नसीहत भी देती थीं.

1-2 बार नमिता ने विपिन के सामने ही जब भोर को डांटा, तो विपिन ने प्यार से फुसफुसाते हुए नमिता से कहा, ‘‘अरे, इस सोने के अंडे देने वाली मुरगी को ऐसे मत धमकाओ, नहीं तो सारा किएधरे पर पानी फिर जाएगा.’’

‘‘आप को तो यही लगता है कि मैं उसे बुराभला कहती हूं, पर आप मेरा भोर के लिए प्यार नहीं देखते, कितना ध्यान रखती हूं मैं उस का…’’ इठलाते हुए फिल्मी अंदाज में जब नमिता ने यह बात कही, तो विपिन और नमिता दोनों एकदूसरे को आंख मार कर हंसने लगे.

विपिन और नमिता ने भोर को इसलिए अपने पास रखा हुआ था, ताकि एक न एक दिन वे लोग भोर के नाम पर आई हुई जायदाद को जबरदस्ती या धोखे से अपने नाम कर लें, पर तब तक उन्हें भोर को अपने पास इस तरह रखना था, ताकि वह किसी से विपिन और नमिता की बुराई न कर सके और न ही किसी नातेरिश्तेदारों को भैयाभाभी की हकीकत का पता चल सके.

लखनऊ शहर के प्रवास ऐनक्लेव में रहने वाली भोर हर दिन के साथ बड़ी होती जा रही थी. उस की आवाज बहुत अच्छी थी, इसलिए वह चाहती थी कि आकाशवाणी लखनऊ में काम करे.

पर यह सब कैसे होगा, यह तो भोर को पता ही नहीं था और अब तक भोर अपनी भाभी का रवैया भी समझ गई थी और फिलहाल तो उसे अपनी भाभी के रंगढंग देख कर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था कि वे उसे आगे पढ़ने या घर से बाहर का कोई काम करने देंगी, पर मन के किसी कोने में अपने बड़े भाई पर भरोसा था कि वे उसे पढ़ाई में सहयोग करेंगे और इसी भरोसे के साथ भोर हर कष्ट हंसीखुशी सहे जा रही थी.

भोर आगे पढ़ सके, इसलिए उस के बड़े भाई विपिन का सहयोग भोर के लिए बहुत जरूरी था, पर अभी भोर के लिए सबकुछ आसान नहीं होने वाला था, क्योंकि एक दिन अचानक विपिन सड़क हादसे में अपाहिज हो कर बिस्तर पर आ गया था.

विपिन की नौकरी तो प्राइवेट थी, जो कुछ महीने बाद जाती रही. बैंक में जो पैसे थे, वे सब तो विपिन के इलाज में लग गए थे और अब घरखर्च के लिए पैसों की जरूरत थी.

भाभी नमिता हमेशा परेशान रहती थीं. भोर वैसे भी नमिता को फूटी आंख नहीं सुहाती थी, इसलिए वे भोर को खरीखोटी सुनाती रहती थीं और विपिन की इस हालत के लिए भी भोर को जिम्मेदार मानती थीं, ‘‘तू पहले तो अपने मांबाप को खा गई और अब मेरे पति के प्राण जातेजाते बचे… कितनी अपशुकनी है तू…’’

भोर अच्छी तरह समझ रही थी कि भैया विपिन की नौकरी जाने के बाद उस के लिए जिंदगी की राह और मुश्किल हो गई है, इसलिए अब उसे अपने कैरियर के सपने देखने बंद करने होंगे और पैसे कमाने के लिए कोई रोजगार ढूंढ़ना होगा.

भोर ने अपने कुछ खास दोस्तों से नौकरी के बारे में बात की, तो भोर को उस की अच्छी आवाज के चलते एक काल सैंटर में काम मिल गया. पर वह यह भी जानती थी कि आजकल पढ़ाईलिखाई की बड़ी अहमियत है, इसलिए वह थोड़ाबहुत समय पढ़ाई के लिए भी निकाल ही लेती थी.

भोर को जब भी तनख्वाह मिलती, तो वह सैलेरी क्रेडिट हो जाने के मैसेज का स्क्रीनशौट खुशीखुशी विपिन को दिखाती और एटीएम से पैसे निकाल कर नमिता को दे देती.

भोर की दरियादिली देख कर विपिन का दिल पिघलने लगा, पर नमिता का मन भोर के लिए अब भी साफ नहीं था, बल्कि वे लगातार इस फिराक में थीं कि कैसे भोर के नाम पर जमा फंड और बाकी की जायदाद अपने नाम की जाए.

अपने इस प्लान को अमलीजामा पहनाने के लिए नमिता के मन में यह प्लान आया कि अगर वे अपने 25 साल के सगे भाई अमन की शादी भोर के साथ करा दें, तो भोर के सारे पैसों पर अमन का हक हो जाएगा और उस के बाद अमन और नमिता मिल कर भोर के पैसों पर मौज कर सकेंगे.

जब नमिता ने यह बात अमन से शेयर की, तो बेरोजगार और आलसी अमन को यह आइडिया बहुत जम गया और उस ने शादी के लिए तुरंत हां कर दी.

भोर की शादी अमन से करवाने के लिए विपिन को भी अपने प्लान में शामिल करना जरूरी था, इसलिए जब नमिता ने यह बात विपिन को बताई, तब विपिन को यह सब थोड़ा नागवार गुजरा… आखिर विपिन भोर का सगा बड़ा भाई था.

‘‘अरे नहीं, आज भोर अकेले ही हमारा खर्चा उठा रही है. हम जानबू?ा कर उस के साथ गलत नहीं कर सकते, बल्कि हमें तो उस के लिए खुद कोई अच्छा सा लड़का तलाशना होगा.’’

विपिन की इस बात से नमिता चिढ़ गईं और उन्होंने विपिन को चेताया कि अगर भोर इस घर से चली गई, तो आमदनी का जरीया बंद हो जाएगा. उन की इस बात ने विपिन को थोड़ा सोचने पर मजबूर कर दिया.

अगली सुबह भोर को अपने काम पर जाने के लिए देर हो गई और कैब भी आने में देर कर रही थी. उसे परेशान देख फौरन ही नमिता ने अमन को फोन कर के अपने फ्लैट पर बुला लिया और भोर को काल सैंटर तक छोड़ आने को कहा.

उस दिन के बाद से नमिता ने लगातार ऐसी कई कोशिशें करनी शुरू कर दीं, जिस से भोर और अमन में निकटता बढ़ जाए और उन दोनों के बीच प्यार का रिश्ता कायम हो जाए.

अमन ने भी भोर को पटाने के लिए कई हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए और फिर एक दिन नमिता ने मौका देख कर भोर से अपने मन की बात कह ही दी, ‘‘अमन तो तुझे भी अच्छा लगता ही है. तू कहे तो तुम दोनों की शादी करा दूं?’’

नमिता की यह बात सुन कर भोर सिर्फ फीके मन से मुसकरा दी.

इसी बीच भोर की दोस्ती उस के साथ काल सैंटर में काम करने वाले एक लड़के प्रज्ञान से हो गई थी. 23 साल का प्रज्ञान एक दलित नौजवान  था. प्रज्ञान की कई भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी, इसलिए भोर और उस में अच्छी बनती थी. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को पसंद भी करने लगे थे, पर अभी किसी ने खुल कर अपने प्यार का इजहार नहीं किया था.

नमिता धीरेधीरे भोर पर अमन से शादी करने का दबाव बना रही थीं, पर भोर इस बात को लगातार टाल रही थी.

आज भोर की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी, इसलिए वह घर पर ही आराम कर रही थी. नमिता ने अमन को फोन कर के दवा लाने को कहा और नमिता ने खुद ही बड़े प्यार से भोर को दवा खिला दी.

दवा खाते ही भोर सो गई. अगले दिन जब वह उठी, तो उस का सिर भारी हो रहा था. नमिता ने उसे चाय पिलाई. 2 दिन बाद भोर एकदम ठीक हो गई थी.

एक शाम को नमिता भोर के पास आई और उसे कुछ तसवीरें दिखाईं, जिन में अमन भोर से चिपका हुआ था और भोर के कपड़े अस्तव्यस्त थे.

‘‘अब भी समय है, अमन से शादी कर ले, वरना पूरे शहर में तुझे इतना बदनाम कर दूंगी कि तुझ से कोई शादी नहीं करेगा,’’ नमिता ने भोर को धमकी दी.

अपनी ऐसी गंदी तसवीरें देख कर भोर सन्न रह गई थी और उस की समझ में आ चुका था कि रात में अमन से दवा मंगवाना इसी साजिश का हिस्सा है, पर उस की भाभी इस हद तक गिर जाएंगी, उसे उम्मीद नहीं थी. और फिर आखिर भाभी उस की शादी अमन से जबरदस्ती क्यों कराना चाहती हैं, यह उस की समझ से परे था.

भोर कई दिन तक घर से बाहर नहीं निकली. प्रज्ञान भी भोर के काम पर न आने से परेशान था. कई बार फोन किया, पर कोई जवाब नहीं. भला प्रज्ञान क्या करता? पर सबकुछ ठीक नहीं है, यह बात वह जान गया था.

एक दिन जब भोर काल सैंटर गई, तो उस का रंगरूप ही बिगड़ा हुआ था. तनाव से उस का सिर भारी हो रहा था और उस की आंखें सूजी हुई थीं.

‘‘क्या हुआ…? तुम इतनी परेशान क्यों हो भोर?’’ प्रज्ञान ने पूछा, तो भोर सारी शर्मोहया भूल कर उस से लिपट गई और रोते हुए अपना सारा हाल कह सुनाया.

प्रज्ञान ने उस के आंसू पोंछे और उसे चुप कराते हुए अखबार में निकला इश्तिहार दिखाया, जिस पर लखनऊ आकाशवाणी में एक सुरीली आवाज वाली एंकर की जरूरत थी.

प्रज्ञान ने भोर से कहा कि वह सारा तनाव छोड़ कर इस नौकरी के लिए इंटरव्यू की तैयारी करे और बाकी सब उस पर छोड़ दे. भोर ने पलकें ?ाका कर अपनी सहमति दे दी.

प्रज्ञान वहां से सीधा अपने एक दोस्त मैसी के पास पहुंचा, जो एक जिम चलाता था और उस के पापा पुलिस महकमे में सबइंस्पैक्टर थे. प्रज्ञान ने उन्हें भोर की कहानी सुनाते हुए मदद मांगी और उन्होंने मदद देने का वादा भी किया.

प्रज्ञान के लिए सब से मुश्किल काम भोर को मानसिक रूप से मजबूत बनाना था. वह भोर को ‘मानसरोवर महल’ में ले कर गया. यह एक ऐसी जगह थी, जहां पर पानी को भर कर एक बड़ा सा तालाब बनाया गया था, जिस में लोग बोटिंग कर रहे थे और चारों तरफ हरियाली फैली हुई थी.

प्रज्ञान ने भोर से कहा, ‘‘न जाने ऐसे कितने वीडियो के डर से लड़कियां खुदकुशी कर लेती हैं, पर तुम धमकी से मत डरो. अगर अमन तुम्हारी कोई तसवीर या वीडियो इंटरनैट पर डालता है, तो उसे डालने दो.

‘‘अगर लोग तुम्हें पहचान भी लें तो यह शर्म की बात अमन के लिए है, तुम्हारे लिए नहीं, क्योंकि तुम्हें नशे की गोली दे कर बेहोश किया गया और फिर वीडियो बनाई गई.’’

भोर को प्रज्ञान की बात समझ आ रही थी और धीरेधीरे उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक लौट रही थी.

प्रज्ञान लगातार भोर को समझ रहा था कि उसे अपने खिलाफ बने हुए हालात का सामना भाग कर नहीं, बल्कि डट कर सामना करना है.

भोर ने प्रज्ञान को भरोसा दिलाया कि वह ऐसा ही करेगी. प्रज्ञान ने देखा कि भोर ने अपने मोबाइल के बैक कवर में लगा हुआ वह इश्तिहार निकाल लिया था, जिस पर आकाशवाणी में एंकर की नौकरी के लिए इंटरव्यू की डिटेल लिखी हुई थी.

मैसी के पापा ने अमन और उस की बहन नमिता को एक लड़की का वीडियो बना कर उसे धमकाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था और अमन के पास से वीडियो ले कर डिलीट कर दिए थे.

आज जब भोर आकाशवाणी में एंकर का इंटरव्यू दे कर आई, तो बहुत खुश थी. उस ने घर पहुंचते ही अपने भैया विपिन को गले लगा लिया था, क्योंकि उसे आकाशवाणी में एंकर की नौकरी मिल गई थी. अब तो विपिन समेत बहुत सारे लोग रेडियो पर भोर की सुरीली आवाज सुन सकेंगे.

अभी विपिन और भोर अपनी खुशियां बांट ही रहे थे कि वहां पर प्रज्ञान आ गया. उस ने विपिन का आशीर्वाद लिया और सीधे शब्दों में विपिन से भोर का हाथ मांग लिया, साथ ही प्रज्ञान ने विपिन को यह भी बता दिया कि वह दलित है.

‘‘जातियां तो हम इनसान बनाते हैं प्रज्ञान. हमारी असली पहचान तो इनसान होना है और हमें एकदूसरे की मदद और प्यार करना आना ही चाहिए,’’ यह कहते हुए विपिन ने देखा कि भोर की आंखों में प्रज्ञान के लिए प्यार तैर रहा था.

आज आकाशवाणी लखनऊ पर भोर की सुरीली आवाज एक प्रोग्राम में गूंज रही थी, जिस में भोर महिलाओं को निडर हो कर हर हालात से लड़ने के हौसले के बारे में बता रही थी. विपिन और प्रज्ञान एकसाथ बैठे हुए रेडियो पर भोर की आवाज सुन रहे थे. भोर की जिंदगी में अब सचमुच भोर आ चुकी थी.

टूटी लड़ियां: क्या फिर से जुड़ पाईं सना की जिंदगी की लड़ियां

सना की अम्मी कमरे से सूटकेस उठा लाईं और उस में रखा सामान बाहर निकालने लगीं. ये रहे सातों सूट, यह रहा लहंगा, यह कुरती, यह चुन्नी, यह रहा बुरका, यह मेकअप का सामान और यह रहा नेकलेस…

नेकलेस का केस हाथ में आना था कि उन्हें गुस्सा आ गया और बोलीं, ‘‘कंजूस मक्खीचूस, कितना हलका नेकलेस है. एक तोले से भी कम वजन का होगा.’’

सना के अब्बू बोल पड़े, ‘‘सना की अम्मी, वे लोग कंजूस नहीं हैं, बड़े चालाक किस्म के इनसान हैं. यह सोने का हार सना के मेहर में होता न और मेहर पर सिर्फ लड़की का हक होता है, इसलिए इतना हलका बनवा कर लाए. जिन की नीयत में खोट होता है, वे ही ऐसा करते हैं… इसलिए कि कोई अनबन हो जाए, मंगनी टूट जाए या फिर तलाक हो जाए, तो ज्यादा नुकसान नहीं होता. हार वापस मिला तो मिला, न मिला तो न सही…’’

सना के अब्बू ने थोड़ा दम लिया, फिर अपने दोस्त अबरार से बोले, ‘‘अबरार भाई, यह सारा सामान उठा कर ले जाइए और उन के यहां पटक आइए…’’

अबरार सोचविचार में गुम थे. कहां तो उन्हें हज पर जाने का मौका मिलने वाला था, अब कहां वे पचड़े में पड़ गए. शादी कराना कोई आसान काम है? नेकियां भी मिलती हैं, जिल्लत भी. निबट जाए तो अच्छा, नहीं तो बड़ी फजीहत.

सना के अब्बू दोबारा बोले, ‘‘अबरार भाई, कहां खो गए? सामान उठाइए और ले जाइए.’’

अबरार चौंक पड़े, फिर सामान सूटकेस में रखने लगे.

सना के अब्बू कुछ याद करते हुए फिर बोले, ‘‘और हां, उन्होंने यह जो 10 हजार रुपए भिजवाए हैं, इन्हें भी लेते जाइए, उन के मुंह पर मार देना. बड़े गैरतमंद बनते हैं. हमें मुआवजा दे रहे हैं… 10 हजार रुपए ही खर्च हुए हैं हमारे… मंगनी में कमोबेश 50 हजार रुपए खर्च हुए हैं.’’

सना की अम्मी बोलीं, ‘‘मंगनी में पूरे 50 लोग आए थे. मंगनी क्या पूरी बरात थी. आप तो थे ही… आप ने सबकुछ देखा है… हम ने कोई कोरकसर रख छोड़ी थी भला? ऐसा क्या था, जो हम ने न बनवाया हो? बिरयानी, कोरमा, कबाब, खीर और शीरमाल भी. ऊपर से सागसब्जी सो अलग…’’

कमरे का दरवाजा पकड़े खड़ी सना सिसक पड़ी. उस के गुलाबी मखमली गालों पर आंसू मोतियों की तरह लुढ़क आए. मंगनी के दिन कितनी धूमधाम थी. उस की होने वाली सास और जेठानी आई थीं और ननद भी.

सभी को उस की ससुराल से आया सामान दिखाया गया. कुछ ने तारीफ की, तो कुछ ने मुंह बिचका दिया. इतने नाम वाले बनते हैं और इतना कम सामान. कम से कम 11 सूट तो होते ही. खाली हार उठा लाए. न झुमके हैं, न नथ और न ही अंगूठी.

सना की ननद ने उसे लहंगाकुरती पहनाई थी. चुन्नी सिर पर डाली थी. सब ने मिलजुल कर उसे सजायासंवारा था. माथे पर टीका, गले में नेकलेस, कानों में झुमके और नाक में एक छोटी सी नथ पहनाई थी. नथ, टीका और झुमके सना की अम्मी ने उस के लिए जबतब बनवाए थे, ताकि शादी में गहनों की कमी न रहे.

सना की नजर सामने रखे सिंगारदान पर पड़ गई. आईने में अपना अक्स देख कर उसे शर्म आ गई थी. वह किसी शहजादी से कम नहीं लग रही थी. उस की अम्मी उस की बलाएं लेने लगी थीं. सास और ननद को अपनी पसंद पर गर्व होने लगा था, पर जेठानी जलभुन गई थी. उस का बस चले तो वह यह रिश्ता होने ही न दे.

वह घर में अपने से ज्यादा खूबसूरत औरत नहीं चाहती थी. उस का मान जो कम हो जाएगा. सभी लोग देवरानी की तारीफ करेंगे और फिर यह पढ़ीलिखी भी तो है. उस की तरह अंगूठाटेक तो नहीं है.

उस दिन से सना बहुत खिलीखिली सी रहने लगी थी. सुबहशाम सजनेसंवरने लगी थी, मंगनी में आए सूट पहनपहन कर देखने लगी थी कि किस सूट में वह कैसी लगती है. हार भी पहन कर देखती थी, फिर खुद शरमा जाती थी.

सना सपने देखने लगी कि उस की बरात गाजेबाजे के साथ बड़ी ही धूमधाम से आ रही है. वह दुलहन बनी बैठी है. बड़े सलीके से उस का सिंगार किया गया है. हाथपैरों में मेहंदी तो एक दिन पहले ही लगा दी गई थी. लहंगा, कुरती और चुन्नी में वह किसी हूर से कम नहीं लग रही है.

कभी सना सोचती, कैसा है उस का हमसफर? मोबाइल फोन की वीडियो क्लिप में तो बिलकुल फिल्मी हीरो जैसा लगता है. खूबसूरत तो बहुत है, उस की सीरत कैसी है? पढ़ालिखा है. सरकारी नौकरी करता है, तो उस की सोच भी अच्छी ही होगी.

यह वीडियो क्लिप सना का छोटा भाई बना कर लाया था. वह इसी वीडियो क्लिप को देखा करती थी और तरहतरह की बातें सोचा करती थी.

उधर सना के मंगेतर आफताब का हाल भी कुछ अलग न था. मंगनी वाले दिन जब सना का बनावसिंगार किया गया था, तो उस की ननद ने भी उस की वीडियो क्लिप बना ली थी और जब से आफताब ने इस क्लिप को देखा था, वह बेताब हो उठा था. सना से बातें करने की कोशिश करने लगा था, पर सना को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था.

अलबत्ता, जब सास और ननद के फोन आते, तो सना सलामदुआ कर लिया करती थी, पर आफताब से नहीं. उसे बहुत अजीब सा लग रहा था.

एक दिन जब सना अपनी ननद से बातें कर रही थी, तो बातें करतेकरते उस की ननद ने मोबाइल फोन आफताब को पकड़ा दिया था.

कुछ देर सना यों ही बातें करती रही. सास और जेठानी की खैरियत पूछती रही, फिर उसे लगा कि उधर उस की ननद नहीं कोई और है. उस ने फोन काटना चाहा, पर आफताब बोल पड़ा, ‘सना, प्लीज फोन मत काटना, तुम्हें मेरी कसम है…’

इतना सुनना था कि सना का रोमरोम जैसे खिल उठा. वह बेसुध सी हो गई. फिर आफताब ने क्या कहा, क्या उस ने जवाब दिया, उसे कुछ पता नहीं.

फिर उस दिन से यह सिलसिला ऐसा चला कि दिन हो या रात, सुबह हो या शाम दोनों एकदूसरे से बातें करते नहीं थकते थे. बातें भी क्या… एकदूसरे की पसंदनापसंद की. कौनकौन से हीरोहीरोइन पसंद हैं? फिल्में कैसी अच्छी लगती हैं? टैलीविजन सीरियल कौनकौन से देखते हैं? सहेलियां कितनी हैं और बौयफ्रैंड कितने हैं?

बौयफ्रैंड का नाम पूछने पर सना नाराज हो जाती और गुस्से में कहती, ‘‘7 बौयफ्रैंड्स हैं मेरे. शादी करनी है तो करो, वरना रास्ता पकड़ो…’’

यह सुन कर आफताब को मजा आ जाता. वह लोटपोट हो जाता. फिर सना को मनाने लगता. प्यारमुहब्बत का इजहार और वादे होने लगते.

इस तरह बहुत ही हंसीखुशी से दिन गुजर रहे थे. अब तो बस शादी का इंतजार था. शादी भी ज्यादा दूर न थी. कमोबेश 2 महीने रह गए थे. शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं.

एक दिन अबरार सना के घर आए. वे कुछ परेशान से थे. सना की अम्मी ने पूछा, ‘‘क्या बात है अबरार भाई? आप कुछ परेशान से लग रहे हैं?’’

‘‘परेशानी वाली बात ही है भाभी,’’ असरार बोले.

‘‘क्या बात है? बताइए भी.’’

अबरार ने धीरे से कहा, ‘‘लड़के ने मोटरसाइकिल की मांग की है.’’

यह सुन कर सना की अम्मी को हंसी आ गई, ‘‘बड़ा नादान लड़का है. यह भी कोई कहने की बात है… क्या हम इतने गएगुजरे हैं कि मोटरसाइकिल भी नहीं देंगे.’’

शाम को जब सना के अब्बू घर आए और उन्हें यह बात पता चली, तो उन्हें बड़ा अफसोस हुआ. वे बोले, ‘‘सना की अम्मी, लड़के वाले बहुत लालची किस्म के लग रहे हैं.’’

बात आईगई हो गई. धीरेधीरे समय गुजरता रहा. इधर एक बात और हुई. आफताब का फोन आना बंद हो गया. सना को चिंता हुई. क्या वह बीमार है? बीमार होता, तो पता चलता. कहीं बाहर गया है? बाहर कहां जाएगा. वैसे तो दिन हो या रात, दम ही नहीं लेता था. पर अब. अब उसे चैन कैसे पड़ रहा है. आज कितने दिन हो गए हैं उस से बातें किए हुए?

आखिरकार सना ने उस का फोन नंबर मिलाया. उधर से काल रिसीव नहीं की गई. उस ने दोबारा फोन मिलाया. फिर नहीं रिसीव की गई. इस के बाद फोन बिजी बताने लगा.

सना पर उदासी छा गई. वह बारबार मोबाइल फोन की ओर हसरत भरी नजरों से देखती. शायद अब आफताब का फोन आए. शायद अब. कभीकभी जब किसी और का या फिर कंपनी का फोन आता, वह खुश हो कर दौड़ पड़ती, अगले ही पल निराश हो जाती.

आखिर में उस ने एक एसएमएस टाइप किया, ‘प्लीज, आफताब बात करो. इतना मत सताओ. तुम्हें मेरी कसम.’ कई दिन गुजर गए, उधर से न तो एसएमएस आया और न ही काल हुई.

इसी बीच एक दिन अबरार का आना हुआ. आज फिर वे कुछ परेशान से थे. पूछने पर वे बोले, ‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि लड़के वालों की मरजी क्या है?’’

यह सुनते ही सना के अब्बूअम्मी डर गए. अबरार ने बताया, ‘‘लड़के की मां कह रही थीं कि उन के बेटे के रिश्ते अब भी आ रहे हैं. एक लड़की वाले तो कार देने को तैयार हैं…’’

इतना सुनना था कि सना के अब्बू उठ खड़े हुए. वे गुस्से से कांपने लगे, ‘‘अबरार भाई, मैं उन के हथकडि़यां लगवा दूंगा… उन का लालच दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. अरे, उन का लड़का सरकारी नौकरी करता है… बैंक में मुलाजिम है… तो हमारी लड़की भी कोई जाहिल नहीं है.’’

अबरार भाई सकते में आ गए. वे उठ खड़े हुए और सना के अब्बू को समझाने लगे, ‘‘गफ्फार भाई, ऐसा मत बोलिए, ठंडे दिमाग से काम लीजिए. गुस्से में सब बिगड़ जाता है.’’

‘‘क्या खाक ठंडे दिमाग से काम लें… क्या आप को नहीं लगता कि सबकुछ बिगड़ रहा है… वे मंगनी तोड़ने के मूड में हैं. उन्हें हम से बड़ी मुरगी मिल गई है.’’

‘‘आप ठीक फरमा रहे हैं. शायद उन्हें हम से ऊंची पार्टी मिल गई है.’’

‘‘तो क्या ऐसी हालत में मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूंगा… जेल भिजवा दूंगा उन्हें… समझ क्या रखा है?’’

‘‘गफ्फार भाई, जरा सोचिए, अगर आप ने ऐसा किया, तो बड़ी बदनामी होगी…’’

‘‘बदनामी, किस की बदनामी?’’

‘‘आप की, लोग कहेंगे कि लड़की का बाप हो कर लड़के वालों को हथकड़ी लगवाता है… जेल भिजवाता है… सना बिटिया के लिए रिश्ते आने बंद हो जाएंगे. लड़की वालों को बड़े सब्र से काम लेना पड़ता है.’’

‘‘तो क्या किया जाए?’’

‘‘इस से पहले कि वे मंगनी तोड़ें, हम उन के रिश्ते को लात मार देते हैं… इस से वे बदनाम हो जाएंगे कि दहेज में गाड़ी मांग रहे थे. उन्हें रिश्ता ढूंढ़े नहीं मिलेगा. हमारी सना बेटी के लिए हजारों रिश्ते आएंगे. आखिर उस में क्या कमी है? खूबसूरत है और खूब सीरत भी. अभी उस की उम्र ही क्या हुई है.’’

फिर एक दिन लड़के वालों की तरफ से 3-4 लोग आए. इन लोगों में उन के यहां की मसजिद के इमाम साहब भी थे और अबरार भी. बैठ कर तय हुआ कि दोनों पक्ष एकदूसरे का सामान वापस कर दें और लड़की वाले का मंगनी के खानेपीने में जो खर्च हुआ है, उस का मुआवजा लड़के वाले दें.

सना की अम्मी कमरे के अंदर से बोलीं, ‘‘दिखाई में हम लोग लड़के को सोने की अंगूठी पहना आए थे और 5 हजार रुपए नकद भी दिए थे. मिठाई और फल भी ले गए थे, सो अलग…’’

‘‘यही कहा जा रहा है कि जो भी दियालिया है, वह एकदूसरे को वापस कर दें. मिठाई और फल तो लड़के वाले भी लाए होंगे?’’ इमाम साहब बोले.

सना की अम्मी बोलीं, ‘‘वे ठहरे लड़के वाले, वे भला क्यों लाने लगे मिठाई और फल. बिटिया को सिर्फ 251 रुपल्ली पकड़ा गए थे, बस…’’

आज अबरार मंगनी का वह सारा सामान जो लड़के के यहां से आया था, लेने आए थे और साथ में 15 हजार रुपए भी लाए थे. 10 हजार रुपए मुआवजे के और 5 हजार रुपए जो लड़की वाले लड़के को दे आए थे. सोने की अंगूठी भी ले कर आए थे.

अबरार जब सूटकेस उठा कर चलने लगे, तो सना बोली, ‘‘अंकल, एक चीज रह गई है, वह भी लेते जाइए.’’

‘‘वह क्या है बेटी? जल्दी से ले आइए,’’ वे बोले.

‘‘अंकल, आप सूटकेस मुझे दे दीजिए, मैं इसी में रख दूंगी,’’ सना ने उन से सूटकेस लेते हुए कहा.

सना कमरे के अंदर गई. सूटकेस बिस्तर पर रखा और कैंची उठाई. शाम को जब सूटकेस आफताब के घर पहुंचा, तो उस के घर की औरतें उसे खोल कर देखने लगीं कि सारे कपड़े, मेकअप का सामान और नेकलेस है भी या नहीं.

सूट तो सारे दिखाई पड़ रहे हैं. बुरका भी है, लहंगा, कुरती और चुन्नी भी. बचाखुचा मेकअप का सामान भी है.

‘‘यह क्या…’’ आफताब की भाभी चीख पड़ीं, ‘‘यह लहंगा तो कई जगह से कटा हुआ है.’’

दोबारा देखा, लहंगा चाकचाक था. कुरती उठा कर देखी, वह भी कई जगह से कटीफटी थी. सारे के सारे सूट उठाउठा कर देख डाले. सब के सब तारतार निकले. नकाब का भी यही हाल था. जल्द से नेकलेस उठा कर देखा. उस की भी लड़ियां टूटी हुई थीं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें