10 दिन का खूनी खेल: भाग 2

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अश्विनी के पिस्तौल की 7 गोलियां लगने के बाद निकिता दूसरे गेट की ओर भागी, लेकिन गिर पड़ी. जातेजाते उस ने धमकी दी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा.

निकिता पर गोलियां बरसाने के बाद अश्विनी दूसरे गेट से बाहर निकल कर पास ही सड़क पर जाते हुए एक बैटरी रिक्शा में बैठ गया. थोड़ा आगे जा कर वह उतरा और गन्ने के खेत में घुस गया.

निकिता 2 महीने पहले ही शादी के लिए दुबई से घर लौटी थी. उस की शादी मुरादाबाद के मोहल्ला कांशीराम नगर में रहने वाले नीतीश कुमार से तय हुई थी. नीतीश सीआईएसएफ में सबइंसपेक्टर हैं और विशाखापट्टनम में तैनात हैं. नीतीश के कहने पर निकिता ने अपनी नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था.

निकिता के पिता हरिओम शर्मा श्योहारा के विदुर ग्रामीण बैंक में नौकरी करते थे. घर वालों ने  इस घटना की सूचना हरिओम शर्मा को दी. शर्माजी की बैंक के पास ही थाना था. उन्होंने थाने जा कर यह बात थानाप्रभारी उदय प्रताप को बताई. उदय प्रताप उसी समय पुलिस टीम के साथ दौलताबाद के लिए रवाना हो गए.

बुरी तरह घायल निकिता को श्योहारा के एक प्राइवेट डाक्टर को दिखाया गया. उस डाक्टर ने निकिता को तुरंत बड़े अस्पताल ले जाने की राय दी. इस के बाद उसे मुरादाबाद के मशहूर कौसमोस अस्पताल ले जाया गया.

भरती होने के बाद अस्पताल के मशहूर डाक्टर अनुराग अग्रवाल ने निकिता का इलाज शुरू किया. उसे 7 गोलियां लगी थीं, जिन में गले में फंसी एक गोली घातक थी. बहरहाल, डा. अनुराग अग्रवाल के तमाम प्रयासों के बावजूद रात 9 बजे निकिता ने दम तोड़ दिया.

दूसरी ओर पुलिस ने ईरिक्शा के ड्राइवर द्वारा बताए गए गन्ने के खेत के साथसाथ आसपास के सभी गन्ने के खेतों में कौंबिंग की. लेकिन अश्विनी का कोई पता नहीं चला. उसी दिन आईजी (मुरादाबाद जोन) रमित शर्मा ने अश्विनी उर्फ जौनी को पकड़ने या पकड़वाने पर 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.

पुलिस ने आसपास के शहरों के बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों के अलावा अन्य तमाम जगहों के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

जब 2 दिन और बीत गए तो मुरादाबाद, बरेली परिक्षेत्र के एडीजे अविनाश चंद्र ने अश्विनी पर ईनाम राशि 50 हजार से बढ़ा कर एक लाख कर दी. इस के बाद पुलिस ने जौनी से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं. उस के फोन की लोकेशन का पता लगाने की कोशिश की गई. लेकिन उस का फोन 26 सितंबर से ही बंद था.

जब पुलिस की सभी कोशिशें बेकार गईं तो बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी ने जिले के सभी पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग की, जिस में तय हुआ कि बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों और आटोरिक्शा, ईरिक्शा के अड्डों पर विशेष रूप से नजर रखी जाए. इस अभियान में संजीव त्यागी खुद भी शामिल हुए.

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3 अक्तूबर को किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि अश्विनी उर्फ जौनी को नगीना के तुलाराम हलवाई की दुकान पर रसगुल्ले खाते देखा गया है. तुलाराम के रसगुल्ले जिला भर में मशहूर हैं.

सूचना मिलते ही पुलिस चौराहे के पास स्थित तुलाराम की दुकान पर पहुंच गई, लेकिन तब तक जौनी वहां से जा चुका था. पूछताछ में पता चला कि जौनी ने वहां बैठ कर 8 रसगुल्ले खाए थे. बाद में वह बराबर में स्थित मोहन रेस्टोरेंट में भी गया था, जहां वह काफी देर बैठा रहा.

पुलिस ने रात में ही तुलाराम हलवाई की दुकान के आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस से यह जानकारी मिली कि चौराहे से जौनी हरिद्वार जाने वाली बस में सवार हुआ था. पुलिस ने हरिद्वार वाली बस को रुकवा कर चैक किया.

साथ ही पूरे नगीना को भी छान मारा. लेकिन अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. वह एक बार फिर पुलिस को चकमा दे गया था. अश्विनी को पकड़ने के लिए बिजनौर पुलिस जो भी कर सकती थी, उस ने किया. फिर भी रही खाली हाथ ही.

5/6 अक्तूबर की रात को बढ़ापुर के थानाप्रभारी कृपाशंकर सक्सेना ने बढ़ापुर की ओर आने वाले वाहनों की चैकिंग के लिए बैरिकेड लगा रखे थे. रात करीब 12 बजे पुलिस ने दिल्ली से आ रही एक बस को रोका. ड्राइवर ने बस सड़क किनारे लगा दी. बस में करीब एक दरजन यात्री थे.

10 दिन के खेल के बाद

कृपाशंकर सक्सेना ने 2 सिपाहियों मोनू यादव और बादल पंवार से बस की चैकिंग करने को कहा. चैकिंग के दौरान यात्री अलर्ट हो कर बैठ गए. कंडक्टर के आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा था. बस के किसी यात्री, यहां तक कि पुलिस ने भी नहीं सोचा था कि वह एक लाख का ईनामी अश्विनी उर्फ जौनी हो सकता है.

मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा युवक नींद में था, नींद में उस का सिर एक ओर को झुका हुआ था. सिपाही मोनू और बादल ने उस के कंधे पर हाथ रख कर मुंह से कपड़ा हटाया तो वह चौंक कर जागा. वह अश्विनी ही था.

सामने पुलिस को देख अश्विनी को लगा कि उस का खेल खत्म हो गया है. उस ने बिना देर किए कमर से पिस्तौल निकाली और दाईं कनपटी पर रख कर ट्रिगर दबा दिया. एक धमाके के साथ खून का फव्वारा छूटा और वह एक ओर को लुढ़क गया. पुलिस वाले समझ गए कि वह अश्विनी उर्फ जौनी ही था.

आंखों के सामने एक युवक को सुसाइड करते देख पूरी बस के यात्री सन्न थे. वैसे असलियत यह थी कि अगर अश्विनी के चेहरे पर कपड़ा न होता तो निस्संदेह पुलिस वाले उसे पहचान ही नहीं पाते. वजह यह कि वह पिछले 10 दिनों से छिपताछिपाता घूम रहा था, न खानापीना और न आराम. नहानाधोना तो दूर की बात थी.

बहरहाल, बस खाली करा कर पुलिस ने कंडक्टर से पूछताछ की. उस ने बताया कि जौनी नगीना रेलवे फाटक पर पैट्रोलपंप चौराहे से बस में सवार हुआ था. वह कंडक्टर से आगे वाली सीट पर बैठ गया. उस के पास केवल एक छोटा सा बैग था. कंडक्टर से टिकट लेते समय उस ने कहा था कि उसे बढ़ापुर से पहले उतरना है. इस पर कंडक्टर ने कहा, ‘‘जहां उतरना हो, उतर जाना लेकिन टिकट बढ़ापुर का ही लगेगा.’’

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कंडक्टर से टिकट लेने के बाद उस ने मुंह पर सफेद कपड़ा लपेट लिया था.

पुलिस ने जौनी की लाश की तलाशी ली तो उस के पास यूएस मेड पिस्तौल के अलावा एक बैग मिला. उस के बैग में जैकेट व एक जोड़ी कपड़े थे. साथ ही सैमसंग का मोबाइल, 67 रुपए, 16 कारतूस, आधार कार्ड, पैन कार्ड और इनकम टैक्स का एक सर्टिफिकेट भी बैग में मिले.

दरअसल, जौनी कहीं से पिस्तौल हासिल कर के अकेला ही अपने दुश्मनों को खत्म करने निकला था. लेकिन उस के सामने 2 दिन में ही कई समस्याएं आ खड़ी हुई थीं. न उस के पास खाना खाने को पैसा था और न सोनेछिपने की जगह. किसी से उसे कोई मदद भी नहीं मिल पा रही थी. 26 सितंबर के बाद से उस ने अपना मोबाइल फोन भी इस्तेमाल नहीं किया था. कह सकते हैं कि वह किसी के भी संपर्क में नहीं था.

बहरहाल, जौनी की मौत के बाद पुलिस ने चैन की सांस ली. यह रहस्य ही रहा कि जौनी ने अपनी बेइज्जती के मामले को इतनी लंबी अवधि तक क्यों पाले रखा. जाहिर है जरूर कोई ऐसी बात रही होगी जो उस के दिल में कांटे की तरह नहीं चुभी, बल्कि छुरी बन कर दिल में उतरी होगी. वरना उच्चशिक्षा प्राप्त जौनी इतना बड़ा खूनी खेल नहीं खेलता.

जो भी हो, जौनी ने 3 कत्ल किए थे. पकड़ा जाता तो निस्संदेह या तो उस की पूरी जिंदगी जेल में बीतती या फिर उस के गले में फांसी का फंदा पड़ता.

लगता है कि इस बात को जौनी अच्छी तरह समझता था और उस ने अपनी मौत की राह पहले ही तय कर ली थी.

जौनी के 2 पत्र

26 सितंबर को राहुल और कृष्णा की हत्या के बाद भीमसेन कश्यप की शिकायत पर पुलिस ने अश्विनी उर्फ जौनी के अलावा उस के पिता, भाई और अन्य को भले ही केस में शामिल कर लिया था, लेकिन हकीकत यह थी कि जौनी खुद अपने घर वालों के व्यवहार से आहत था.

पुलिस को जौनी के लिखे 2 पत्र मिले थे, जिन में से एक उस की पैंट की जेब से मिला था और दूसरा उस के घर से. घर से मिले पत्र में यह बात साफ हो गई कि घर वाले उसे पसंद नहीं करते थे. उसे इस बात का दुख था कि घर वालों ने भी उस की भावनाओं को नहीं समझा.

घर से मिले पत्र में जौनी ने लिखा, ‘मेरी बहन को एक युवक ने छेड़ा तो मैं ने उसे सबक सिखाया. डांस करते हुए बहन की वीडियो बना ली गई तो मैं वीडियो बनाने वाले से भिड़ गया. बहन की शादी में जो बाइक दी गई, वह मैं ने अपने पैसों से, अपने नाम से खरीदी थी. बहन ने दूसरी जगह शादी की तब भी मैं ने पूरी तरह उस का साथ दिया. इस के बावजूद बहन ने मुझे गलत ठहराया.’

इस पत्र में जौनी ने और भी कई मामलों का जिक्र करते हुए घर वालों के गिलेशिकवों का जिक्र किया था. जबकि वह शुरू से ही उन की मदद करता आया था. जौनी की जेब से जो पत्र मिला, उस पत्र को वह पुलिस थाने तक पहुंचाना चाहता था. इस पत्र में उस ने लिखा कि वह जानता है कि उस ने 3 हत्याएं की हैं. लेकिन इस अपराध के लिए वह सरेंडर करना चाहता है.

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उस ने आगे लिखा, बढ़ापुर थाने के कुछ पुलिसकर्मी बहुत अच्छे हैं. उन की वह इज्जत करता है. वह सरेंडर करना चाहता है, लेकिन उस के साथ मारपीट न हो, बेइज्जत न किया जाए. पुलिस अच्छा काम कर रही है, मुझे ढूंढ रही है. मैं सरेंडर करने को तैयार हूं.

लेकिन वह अपने इस पत्र को पुलिस तक पहुंचा नहीं पाया. हो सकता है, सुसाइड वाली रात वह सरेंडर करने के लिए ही बढ़ापुर जा रहा हो.

जो भी हो, मामला पत्रों का हो या फेसबुक का, अश्विनी उर्फ जौनी ने स्वयं को पीडि़त साबित करने की कोशिश की. लेकिन पीडि़त होने का मतलब यह नहीं है कि अपराधों की राह पर उतर जाओ.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानलेवा गेम ब्लू व्हेल : भाग 1

4 सितंबर की बात है. रात के 11 बजने वाले थे. राजस्थान की सूर्य नगरी कहलाने वाले जोधपुर में लोग दिनभर की भागदौड़ के बाद सोने की तैयारी कर रहे थे. कुछ लोग रात का भोजन कर के टहलने निकल गए थे. कुछ लोग कायलाना सिद्धनाथ की पहाडि़यों के आसपास भी टहल रहे थे.

इसी बीच टहल रहे लोगों ने देखा कि 16-17 साल की एक किशोरी ने पहाडि़यों से नीचे कायलाना झील के पानी में छलांग लगा दी. उम्रदराज लोगों में मानवता जागी. उन्होंने वहां घूम रहे और उधर आ रहे कुछ युवाओं से कहा कि वे झील में कूद कर उस किशोरी की जान बचाने की कोशिश करें. तैरना जानने वाले 3-4 युवकों ने आगे बढ़ कर झील में छलांग लगा दी. किशोरी झील में जीवन और मौत से संघर्ष करते हुए हाथपैर चला रही थी.

उन युवकों ने किशोरी को सकुशल पानी से बाहर निकाल लिया. बाहर आ कर वह चिल्ला कर कहने लगी, ‘‘मुझे झील में कूदने दो, टास्क पूरा करना है. अगर तुम ने मुझे बचा लिया तो मेरी मम्मी मर जाएंगी.’’ वहां मौजूद लोगों ने बालिका को समझाबुझा कर शांत किया.

सूचना मिलने पर राजीव गांधी नगर थाना पुलिस भी मौके पर पहुंच गई. थाने ले जा कर किशोरी से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह 17 वर्षीया किशोरी जोधपुर के मंडोर क्षेत्र में रहने वाले बीएसएफ जवान की बेटी है और 10वीं में पढ़ती है. उस किशोरी के पास एंड्रायड फोन था. पता चला कि पिछले कुछ दिनों से वह मोबाइल पर ब्लू व्हेल गेम खेल रही थी. उस ने इस गेम की सारी स्टेज पार कर ली थीं. किशोरी ने अपने घर वालों को यह गेम खेलने की भनक तक नहीं लगने दी थी. आखिरी टास्क के रूप में उसे 4 सितंबर को पहाड़ी से कूद कर अपनी जान देनी थी.

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आखिरी टास्क को पूरा करने के लिए ही वह 4 सितंबर को दोपहर में परिवार वालों से सहेलियों के साथ बाजार जाने की बात कह कर घर से स्कूटी पर निकली थी. उस ने बाजार से एक चाकू खरीदा और उस से अपने दाहिने हाथ की कलाई पर व्हेल की आकृति उकेर कर ए.एस. लिख दिया. शाम को उस ने अपना मोबाइल रास्ते में फेंक दिया.

उस का यह मोबाइल एक भले आदमी को मिल गया, जिस ने मोबाइल पुलिस को सौंप दिया. रात करीब पौने 11 बजे वह स्कूटी ले कर कायलाना-सिद्धनाथ की पहाडि़यों के पास पहुंच गई. स्कूटी खड़ी कर के वह पहाड़ी पर चढ़ने लगी. रात का घना अंधेरा होने के कारण एक बार वह फिसली भी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. वह फिर पहाड़ी पर चढ़ी और कायलाना झील में कूद गई.

उस की किस्मत अच्छी थी कि लोगों ने उसे देख लिया और बचा लिया. बाद में पुलिस ने किशोरी को उस के मातापिता के हवाले कर दिया. घर जा कर जब दूसरे दिन भी उस के दिमाग से गेम का भूत नहीं उतरा तो उस ने कई तरह की दवाओं की गोलियां खा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया.

जब उल्टीसीधी दवाएं खाने से उस की तबीयत बिगड़ गई तो घर वाले उसे कायलाना रोड स्थित एक निजी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने किशोरी की मानसिक व शारीरिक स्थिति को देखते हुए आईसीयू वार्ड में भर्ती करा दिया. अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान इस किशोरी ने मीडिया से कहा कि कोई बच्चा भूल कर भी इस गेम के चक्कर में ना फंसे, इसे खेलना तो दूर डाउनलोड भी नहीं करें.

कैसे पड़ी चक्कर में

किशोरी ने बताया कि टीवी पर ब्लू व्हेल की खबर देखने के बाद उसे लगा कि यह झूठ होगा, लेकिन जिज्ञासावश उसने मोबाइल में यह गेम डाउनलोड कर लिया. जब उस ने गेम खेलना शुरू किया तो वह पूरी तरह गेम खेलती रही. कई स्टेप पूरे करने के बाद उस की औनलाइन चैट चलती रही. चैट के दौरान उसे मरने के लिए 4 औप्शन दिए गए. ऐसा नहीं करने पर उस की मां की जान को खतरा बताया गया. गेम के चक्कर में उस के दिमाग ने कुछ इस तरह काम करना बंद कर दिया कि वह कुछ समझने के काबिल नहीं रही.

ब्लू व्हेल गेम के इस मामले को गंभीरता से ले कर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ के न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने 6 सितंबर को इसे संज्ञान में लिया. उन्होंने किशोरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बच्चों व उन के अभिभावकों में जागरूकता लाने के लिए स्कूलों में कैंप लगाने के निर्देश जारी किए. वहीं, दूसरी ओर राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान ले कर राज्य के प्रमुख गृह सचिव से रिपोर्ट मांगी कि इस खेल को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं.

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राजस्थान के पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह के निर्देश पर जोधपुर के थाना मंडोर की पुलिस ने उस किशोरी का मोबाइल और लैपटौप जब्त कर लिया. दोनों चीजों को साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया है, ताकि पता चल सके कि छात्रा ने यह गेम कहां से डाउनलोड किया था. पुलिस ने किशोरी के परिजनों को हिदायत दी है कि वे उस की गतिविधियों पर नजर रखें और कोई भी संदिग्ध बात नजर आने पर पुलिस को सूचना दें. किशोरी को 7 सितंबर को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

ब्लू व्हेल का एक और शिकार

जोधपुर की इस घटना से पहले 21 अगस्त को जयपुर के करणी विहार का रहने वाला 10वीं का एक 16 साल का छात्र गायब हो गया था. उस के गायब होने की रिपोर्ट जयपुर के करणी विहार पुलिस थाने में दर्ज कराई गई. लापता छात्र की तलाश के दौरान पता चला कि वह औनलाइन ब्लू व्हेल गेम खेलता था.

पूरी दुनिया में कई बच्चों की जान लेने वाले ब्लू व्हेल गेम का पता चलने पर उस छात्र की तलाश के लिए वैशाली नगर एसीपी रामअवतार सोनी के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित की गई. पुलिस ने छात्र के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर पता लगाया कि वह जयपुर से मुंबई पहुंच गया है. पुलिस ने 25 अगस्त को उस छात्र को मुंबई के चर्चगेट रेलवे स्टेशन पर पकड़ कर आखिरी क्षणों में बचा लिया.

गेम का आखिरी चरण पार करने के लिए उस ने बाजार से चाकू खरीद लिया था. टास्क के तहत उसे एक ऊंची इमारत पर चढ़ना था. वह उस इमारत की लोकेशन के लिए मोबाइल पर आने वाले मैसेज के इंतजार में था, तभी जयपुर से गई पुलिस टीम और उस के घर वाले वहां पहुंच गए थे.

पूछताछ में पुलिस को छात्र ने बताया कि उस ने 5-7 दिन पहले मोबाइल के ब्राउजर पर ब्लू व्हेल लिख कर सर्च किया. एक पेज पर जौइन करने का विकल्प दिया गया था. उसे पहला टास्क मिला कि हाथ की नस काट कर फोटो शेयर करो. इस से छात्र डर गया, लेकिन टास्क पूरा करना था. इसलिए उस ने इंटरनेट से ऐसी ही एक फोटो निकाल कर शेयर कर दी. इस के बाद उसे 21 अगस्त को इंदौर जाने का टास्क मिला.

वह उसी दिन जयपुर से टे्रन द्वारा इंदौर पहुंच गया. इंदौर में अगला टास्क मुंबई पहुंच कर चाकू खरीदने का मिला. इस पर उस ने मुंबई पहुंच कर चाकू खरीद लिया. इस के बाद उसे आखिरी चरण में ऊंची इमारत पर जाने का टास्क मिलने वाला था. वह चर्चगेट स्टेशन पर बैठा, इसी मैसेज का इंतजार कर रहा था.

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पुलिस ने बताया कि छात्र के पास 2 मोबाइल और 4 सिम थीं. वह इन्हें बदलबदल कर इस्तेमाल कर रहा था. इस वजह से उस की लोकेशन तलाशने में काफी परेशानियां आईं.

पुलिस की आईटी टीम ने मोबाइल हैंडसेट के आईएमईआई नंबर से उस की लोकेशन का पता लगाया. परिवार वालों के मुताबिक छात्र बहुत सीधा, कम बातें करने और इंटरनेट से दूर रहने वाला था. उस के फेसबुक पेज पर फ्रैंड लिस्ट में परिवार व परिचितों में केवल 4-5 लोग हैं. उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि वह अपना खुद का मोबाइल भी रखता था.

जयपुर के इस बालक और जोधपुर की बालिका को तो आखिरी मौके पर बचा लिया गया, लेकिन दुनिया भर में बच्चों की जान ले रहा सुसाइड गेम ब्लू व्हेल आजकल सब से ज्यादा सुर्खियों में है. भारत में रोजाना कहीं न कहीं से किसी बच्चे या युवा के इस गेम में सुसाइड करने की खबरें आ रही हैं. देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य हो, जहां इस तरह की घटना न हुई हो.

मुंबई भी अछूता नहीं

इस साल जुलाई महीने में ब्लू व्हेल उस समय चर्चा में आया, जब मुंबई के अंधेरी ईस्ट की शेर-ए-पंजाब कालोनी में 14 साल के एक बच्चे मनप्रीत सिंह साहनी ने 7वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली थी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने इस बालक की आत्महत्या के लिए ब्लू व्हेल गेम को दोषी बताया था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानलेवा गेम ब्लू व्हेल : भाग 3

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गेम खेलने वाले एक छात्र ने बताया कि जब उसे ब्लू व्हेल गेम का पता चला तो इस के लिए ब्लू व्हेल लिख कर इंटरनेट पर सर्च किया. इस कोशिश में एक वीडियो आया, जिस में कलाई काट कर ब्लू व्हेल या एफ 57 का निशान बनाना था. खेलने का मन हुआ तो उस ने अपनी कलाई काट ली. दूसरे दिन उस ने अपने दोस्तों को दिखा कर कहा कि यह टास्क सिर्फ मैं पूरा कर सकता हूं. तुम सब डरपोक हो. जोश में आ कर उस के 5 दोस्तों ने कलाई पर वैसे ही कट बना लिए.

जानलेवा औनलाइन गेम ब्लू व्हेल चैलेंज सन 2013 में रशिया में लौंच हुआ था. इसे द ब्लू व्हेल गेम भी कहते हैं. इस की शुरुआत फिलिप बुदेइकिन नामक 21 साल के युवा ने की थी. वह साइकोलौजी का छात्र था, लेकिन यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था. बाद में फिलिप को 16 युवाओं को आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया. उसे 3 साल की सजा सुनाई गई. अभी वह जेल में है. गिरफ्तारी के बाद जब उस से यह गेम बनाने का कारण पूछा गया तो उस का जवाब था कि मैं समाज में कचरे को साफ करना चाहता हूं.

फिलिप की जगह बाद में दूसरे लोगों ने यह काम संभाल लिया. इस ग्रुप से जुडे़ लोग ऐसे बच्चों की तलाश में रहते हैं, जो सोशल मीडिया पर टौर्चर, हिंसा या अपवाद का कंटेंट शेयर करते हैं. संपर्क के बाद गेम में शामिल करने के लिए वाट्सऐप, फेसबुक या मैसेंजर का इस्तेमाल किया जाता है.

इस गेम को डाउनलोड नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कोई सौफ्टवेयर या एप्लीकेशन नहीं है. इस गेम को खेलने के लिए एक लिंक होता है, जो भी यूजर इस लिंक को ऐक्टिव करता है, वह एडमिन के शिकंजे में आ जाता है.

ऐसे दिया जाता है टास्क

50 दिन के गेम में रोजाना एक टास्क दिया जाता है. शुरुआती टास्क अपेक्षाकृत आसान होते हैं. जैसे सुबह 4 बजे उठना या रात भर जागना. 49 टास्क तक आतेआते चैलेंज इतने मुश्किल हो जाते हैं कि खेलने वाले की जान तक चली जाती है. इन में एडमिनिस्टे्रेटर को फोटो प्रूफ भी देने होते हैं. मसलन इस में शरीर पर कट लगाना, हाथ की नसें काट लेना, ब्लेड या चाकू से कलाई पर व्हेल का निशान बनाना, शरीर में सुइयां चुभाना जैसी चीजें शामिल होती हैं. कोई लड़का या लड़की 49वें टास्क तक भी चलता रहे तो 50वां टास्क होता है खुद की जान ले लो.

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यह गेम भारत समेत चीन, अमेरिका, फ्रांस, इंगलैंड, पश्मिची यूरोप एवं कई अन्य देशों में करीब 150 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है. कुछ समय पहले रशियन पुलिस ने 17 साल की एक लड़की को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने उसे ब्लू व्हेल औनलाइन गेम की मास्टरमाइंड बताया. एक समाचार एजेंसी ने रूस की इंटीरियर मिनिस्ट्री के कर्नल इरिना वौक के हवाले से कहा था कि आरोपी लड़की गेम बीच में छोड़ने वालों को जान से मारने की धमकी और उन के परिवार की हत्या जैसी धमकियां दे कर मासूमों को खुदकुशी करने के लिए मजबूर करती थी.

रशियन पुलिस को उस लड़की के कमरे से हौरर किताबें, डरावनी पेंटिंग, सुसाइड के लिए मजबूर करने वाले फोटो, डीवीडी और विवादित उपन्यास मिले थे, साथ ही साइकोलौजी के छात्र फिलिप बुदेइकिन के फोटो भी मिले थे. रूस की पुलिस के मुताबिक पहले इस लड़की ने खुद गेम खेला था, लेकिन उस ने आखिरी टास्क पूरा करने के लिए सुसाइड नहीं किया. इस के बाद वह गेम की एडमिनिस्ट्रेटर बन गई.

भारत सहित दुनिया के कई देशों में चिंता का कारण बन रहा ब्लू व्हेल गेम गूगल पर आजकल काफी सर्च किया जा रहा है. गूगल ट्रेंड रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ब्लू व्हेल गेम सर्च में 3 महीने से भारत टौप पर है. कुछ समय पहले कोलकाता गूगल सर्च में टौप पर था. इस के बाद पहले स्थान पर कोच्चि आ गया है. तिरुवनंतपुरम दूसरे और कोलकाता तीसरे नंबर पर है. भारत में दिल्ली, गुड़गांव, मुंबई व भोपाल 32वें स्थान पर हैं. इस गेम को खोजने वालों में सितंबर के पहले सप्ताह में  राजस्थान 7वें नंबर पर था.

भारत सरकार की चिंता

ब्लू व्हेल गेम को ले कर भारत सरकार काफी चिंतित है. कई राज्य सरकारों ने भी चिंता जताई है. केंद्र सरकार ने 11 अगस्त को इस गेम पर रोक लगाते हुए सभी इंटरनेट कंपनियों गूगल, फेसबुक, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम, माइक्रोसौफ्ट, याहू आदि को निर्देश जारी कर कहा था कि ये कंपनियां इस गेम को अपने प्लेटफौर्म से हटा दें.

केंद्र सरकार का मानना है कि आने वाले समय में साइबर हमला और इस तरह के लिंक बड़ी चुनौती बन सकते हैं. केंद्र सरकार की साइबर अपराध से संबंधित संस्था सीईआरटी भी इस गेम के बारे में जांच कर रही हैं. पुलिस की साइबर सेल को भी अलर्ट किया गया है.

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कई राज्य सरकारों ने विद्यार्थियों के घर वालों और टीचर्स के लिए गाइडलाइन जारी की है. विभिन्न राज्यों की पुलिस ने भी ऐतिहासिक कदम उठाए हैं. राजस्थान के पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह ने सभी पुलिस अधीक्षकों को ब्लू व्हेल गेम की रोकथाम के लिए स्कूल कालेजों में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं. कई जगह अदालतों में याचिकाएं दायर कर इस गेम पर रोक लगाने की मांग की गई है.

इतना सब कुछ होने के बावजूद अभी तक यह गेम युवाओं की जान ले रहा है. बच्चों को इस से बचाने के लिए अभिभावकों को खासतौर से सतर्क रहने की जरूरत है. ब्लू व्हेल गेम विरोधी वीडियो भी यूट्यूब पर आ गए हैं. न्यूज प्रोड्यूसर ख्याली चक्रवर्ती के ब्लू व्हेल विरोधी वीडियो को हफ्तेभर में ही 1 करोड़ 30 लाख से ज्यादा हिट मिले हैं. सायकोलौजी की पढ़ाई करने वाली ख्याली ने इस गेम की रिसर्च करने के बाद वीडियो बना कर यूट्यूब पर डाला है.

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

‘ब्लू व्हेल गेम’ जैसे जानलेवा खेल से लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक ही है. ब्लू व्हेल पर बैन लगाने के लिए मदुरै के 73 साल के अधिवक्ता एन.एस. पोन्नैया ने 15 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जिस में कहा गया है कि यह गेम अब तक 200 लोगों की जान ले चुका है, लेकिन केंद्र सरकार ने इस से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस गेम के विरोध में जागरूकता अभियान चलाए. इसी बीच कोलकाता हाईकोर्ट में ऐसी ही एक याचिका दायर की गई है. वहां के हाईकोर्ट ने इस संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश भी जारी कर दिए हैं.

सर्वोच्च न्यायालय ने भी पोन्नैया की याचिका के आधार पर केंद्र सरकार को 3 सप्ताह में जवाब देने को कहा है, साथ ही कोर्ट ने इस मामले में अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से इस मामले में सहयोग करने को कहा है.

कहांकहां बना ब्लू व्हेल गेम मौत की वजह   

वेनेजुएला : 26 अप्रैल को एक 15 साल के बच्चे ने कथित तौर पर इस खेल के लिए जान दे दी.

ब्राजील : क्रिशियन सोशल पार्टी के पास्टर ने दावा किया कि उस की भतीजी ने इस खेल के चलते अपनी जान दे दी. एक 15 साल की छात्रा को जान देने के ठीक पहले बचा लिया गया. उस के हाथ पर व्हेल के शेप में कई कट्स लगे थे.

एक 17 सल के बच्चे ने खुदकुशी की कोशिश से पहले फेसबुक पर लिखा- ‘ब्लेम इट औन द व्हेल’ यानी इस का दोष ‘व्हेल’ पर लगाया जाए.

अर्जेंटीना : एक 16 साल के बच्चे ने फाइनल स्टेज के लिए अपनी जान दे दी, वहीं  एक 14 साल के बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.

इटली : मार्च में अखबारों में इस खेल की चर्चा हुई. इसे असली रूसी खेल करार देते हुए इस के नियमों के बारे में बताया गया. कुछ दिनों बाद एक टीनएजर की खुदकुशी को इस खेल से जोड़ कर देखा गया.

कीनिया : नैरोबी में एक स्टूडेंट ने 3 मई को फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली.

पुर्तगाल : 18 साल की एक लड़की को रेलवे लाइन के पास पाया गया, उस के हाथ पर कई चोटें पाई गईं. उस ने बताया कि उसे किसी ब्लू व्हेल नाम के शख्स ने उकसाया था.

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सऊदी अरब : 5 जून को एक 13 साल के बच्चे ने अपने प्ले स्टेशन के तारों से खुद की जान लेने की कोशिश की. सऊदी में इस खेल का यह पहला मामला था.

चीन : एक 10 साल की बच्ची ने खेल के चलते खुद को नुकसान पहुंचाया और एक सुसाइड ग्रुप भी बनाया. वहां इस खेल पर कड़ी नजर रखी जा रही है.

रूस : मार्च, 2017 में प्रशासन ने इस खेल से जुड़े मामलों की जांच शुरू की. फरवरी में 15 साल के 2 बच्चों ने साइबेरिया में एक इमारत से कूद कर जान दे दी. ऐसा कदम उठाने से पहले उन्होंने सोशल मीडिया पर एक व्हेल की फोटो शेयर करते हुए कैप्शन दिया.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानलेवा गेम ब्लू व्हेल : भाग 2

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बताया गया कि मनप्रीत ने ब्लू व्हेल गेम का टास्क पूरा करने के लिए यह कदम उठाया था. उस ने 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले अपने दोस्त को मैसेज भेजा था कि गेम का टास्क पूरा करने के लिए मैं बिल्डिंग से कूद रहा हूं. हो सकता है मनप्रीत से पहले भी ब्लू व्हेल गेम के चक्कर में किसी बालक या युवा ने अपनी जान गंवाई हो, लेकिन ज्यादा चर्चा न होने से ऐसी कोई घटना उभर कर सामने नहीं आई.

इस के बाद तो ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि रोजाना किसी न किसी राज्य से इस तरह की खबरें आने लगीं. हालांकि आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार के पास अभी तक कोई ऐसा आंकड़ा नहीं है, जिस से यह पता चल सके कि इस गेम के चक्कर में कितने युवाओं की जान जा चुकी है और कितने ऐसे युवा हैं, जिन की जान बचा ली गई है.

जुलाई के चौथे सप्ताह में केरल के तिरुवंतपुरम में 11वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र मनोज ने संदिग्ध हालत में खुदकुशी कर ली. उस का शव कमरे में पंखे से लटका हुआ मिला. घर वालों का कहना है कि ब्लू व्हेल गेम ने उन के बेटे की जान ले ली. पिछले कई महीनों से उस के व्यवहार में बदलाव आ गया था.

कुछ महीने पहले मनोज ने इस गेम के बारे में अपनी मां अनु को बताया था, बाद में वह झूठ भी बोलने लगा था. मनोज कब्रिस्तान जैसी जगहों पर अकेला चला जाता था. उस के शरीर पर कई तरह के निशान बने हुए थे. वह रातरात भर जागता और सुबह 5 बजे सोता था. पुलिस ने उस के मोबाइल की जांच की.

अगस्त के दूसरे सप्ताह में पश्चिम बंगाल में बेस्ट मिदनापुर के आनंदपुर कस्बे में रहने वाले अंकन डे का शव बाथरूम में पाया गया. अंकन ने अपने सिर को प्लास्टिक बैग से ढका हुआ था और बैग को गर्दन के पास कस कर बांधा हुआ था. उस की मौत दम घुटने से हुई थी. 10वीं कक्षा के छात्र अंकन के दोस्तों ने बाद में बताया कि वह ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था.

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दिल्ली में भी दस्तक

अगस्त के तीसरे सप्ताह में दिल्ली के द्वारका में रहने वाले 17 साल के किशोर की जान उस की मां की सतर्कता से बच गई. बच्चे ने इस गेम के आधे पौइंट पार कर लिए थे. अगले चरण में उस ने गेम के निर्देश के तहत अपने चेहरे पर ज्योमेट्री बौक्स के टूल से जख्म बना लिए थे. मां ने साइकियाट्रिस्ट डाक्टरों की मदद ली. अब इस किशोर की हालत स्थिर है. इस से पहले उस का व्यवहार बदल गया था और वह अकेला रहने लगा था. पूछने पर सही जवाब भी नहीं देता था.

अगस्त के चौथे सप्ताह में उत्तर प्रदेश के शहर हमीरपुर में 13 साल के पार्थ ने पंखे से लटक कर फांसी लगा ली. घर वाले उसे अस्पताल भी ले गए, लेकिन उस की जान नहीं बचाई जा सकी. वह जयपुरिया स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ता था. बताया गया कि ब्लू व्हेल गेम का टास्क पूरा करने के लिए उस ने यह कदम उठाया था. अपनी जान देने से पहले वह मोबाइल मे ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था. इस दौरान वह अचानक कमरे में गया और बैड के ऊपर कुर्सी रख कर अंगौछे के सहारे पंखे से लटक गया.

ब्लू व्हेल बन गया फांसी

अगस्त महीने के ही आखिरी दिनों में तमिलनाडु के मदुरै में ब्लू व्हेल गेम खेल रहे 19 साल के विग्नेश ने फांसी लगा कर अपनी जान दे दी. वह बीकौम द्वितीय वर्ष का छात्र था. उस ने सुसाइड नोट में लिखा कि ब्लू व्हले गेम नहीं, बल्कि खतरा है. एक बार इस में घुसने के बाद निकल नहीं सकते. उस ने अपने हाथ पर व्हेल का निशान भी बनाया था. मां ने जब इस निशान के बारे में पूछा तो विग्नेश ने कहा था कि चिंता मत करो.

विग्नेश की मौत के दूसरे दिन अगस्त के आखिर में पुडुचेरी की सैंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले 23 साल के एमबीए के छात्र शशि कुमार वोरा ने हौस्टल के कमरे में फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. वह मूलत: असम का रहने वाला था. उस ने ब्लू व्हेल गेम की चुनौती पूरी करते हुए आत्महत्या की थी. पुलिस ने वोरा के मोबाइल फोन की जांच करने के बाद इस बात की पुष्टि की थी कि आत्महत्या करने से पहले वह ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था.

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अगस्त महीने के आखिरी दिन ही गुजरात के बनासकांठा में ब्लू व्हेल गेम खेलते हुए एक युवक ने साबरमती नदी में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली.

20 साल के अशोक मुलाणा ने अपनी जान देने से पहले फेसबुक पर एक वीडियो मैसेज पोस्ट किया, जिस में उस ने कहा कि मैं जिंदगी से परेशान हो गया हूं. मेरा शिकार ब्लू व्हेल गेम ने किया है, इसलिए सुसाइड कर रहा हूं, मेरे परिवार में किसी की कोई गलती नहीं है.

अशोक 4 बहनों का एकलौता भाई था. उस के पिता परथीभाई की मौत हो चुकी थी. वह 3 महीने से नौकरी पर भी नहीं जा रहा था. दूसरी ओर पुलिस ने इस युवक के ब्लू व्हेल गेम का शिकार होने की बात से इनकार किया है.

सितंबर के पहले दिन असम के गुवाहाटी में एक लड़के ने खुद को काट लिया. नौगांव में 5वीं कक्षा में 2 बच्चों की अपने हाथ की कलाई पर व्हेल बनाने की कोशिश करते समय खून बहने पर बचा लिया गया. जोरहाट में एक छात्र ने फेसबुक पोस्ट कर ब्लू व्हेल की एडवांस स्टेज पर पहुंचने की पोस्ट डाली. इस के बाद वह लापता हो गया.

सितंबर के पहले सप्ताह में ही मध्य प्रदेश के दमोह में सात्विक नाम का छात्र ब्लू व्हेल गेम की आखिरी स्टेज का चैलेंज पूरा करने के लिए टे्रन के आगे घुटने टेक कर बैठ गया. इस से उस के परखच्चे उड़ गए. वह विज्ञान का 11वीं का छात्र था. जहां सात्विक की मौत हुई, वहां से कुछ ही दूरी पर लगे सीसीटीवी कैमरे में इस घटना के कुछ फुटेज पुलिस ने देखे. पुलिस ने सात्विक के मोबाइल की भी जांच की. बताया गया कि घटना से कुछ दिनों पहले से वह हर जगह मोबाइल ले कर जाता था. वह ब्लू व्हेल गेम खेलने की वजह से काफी परेशान था. उस ने दोस्तों से कहा था कि मेरे पास वक्त कम है.

हिमाचल प्रदेश के सोलन में सितंबर के दूसरे सप्ताह में ब्लू व्हेल गेम का पहला मामला सामने आया. इस का पता तब चला, जब एक निजी स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे के घर वालों ने उस की कलाई पर ब्लेड के कट के निशान देखे. पूछने पर बच्चे ने बताया कि स्कूल के दूसरे छात्र भी इस गेम को खेल रहे हैं. गेम के टास्क के तहत उस ने कलाई पर कट लगाए हैं. खुद के पास मोबाइल न होने के कारण वह दोस्त के मोबाइल से और कैफे में जा कर यह खतरनाक गेम खेलता था.

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उत्तर प्रदेश में पसरे पांव

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में ब्लू व्हेल से दूसरी मौत सितंबर के दूसरे सप्ताह में हुई. इस घटना में 21 साल के दीपक वर्मा ने अपने घर की दूसरी मंजिल की छत से नीचे छलांग लगा दी थी. दूसरी घटना में लखनऊ के पौश इलाके इंदिरा नगर में 14 साल के आदित्यवर्द्धन ने अपने घर पर कमरे में फांसी लगा ली थी. दोस्तों ने बताया कि आदित्य 2 सप्ताह से मोबाइल पर ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था.

कानपुर में एक छात्र की जान अध्यापकों की सतर्कता से बच गई. बर्रा के जरौली स्थित सरदार पटेल इंटर कालेज में 11वीं में पढ़ने वाला 16 साल का छात्र इस गेम के चक्कर में फंस कर क्लास में बैठा सुसाइड नोट लिख रहा था, तभी एक टीचर की नजर उस पर पड़ गई. कई दिनों से इस छात्र को गुमशुम देख कर शिक्षक उस पर नजर रखे हुए थे.

अभी 14 सितंबर को पता चला कि छत्तीसगढ़ के बालोद में एक साथ 6 छात्र ब्लू व्हेल गेम के चक्कर में फंस कर अपनी कलाई काट बैठे. जांच में पता चला कि इन में से एक ही छात्र गेम खेलता था, बाकी को उसी ने चैलेंज दिया था. इन सभी छात्रों के हाथों पर ब्लेड से काटने के निशान मिले.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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प्रिया मेहरा मर्डर केस भाग 1 : लव कर्ज और धोखा

सालोंसाल से एक कहावत चली आ रही है कि मुंबई एक ऐसा शहर है जो कभी नहीं सोता. यह हकीकत भी है, क्योंकि मुंबई के लाखों लोग रातरात भर जागते हैं. इन में हजारों लोग फिल्म और टीवी इंडस्ट्री से जुड़े भी होते हैं, जिन की रातरात भर शूटिंग चलती है. मुंबई में बड़े लोगों की पार्टियां भी रात में ही होती हैं. रात में सैरसपाटे पर निकलने वालों की भी कोई कमी नहीं है.

मुंबई जैसी भले ही न हो, पर रातों को जागने और पार्टियां करने वालों की कमी दिल्ली में भी नहीं है. गुड़गांव में रात भर खुलने वाले रेस्तराओं, पबों, मौल और होटलों की कमी नहीं है, जिन की वजह से दिल्ली के पार्टी कल्चर को काफी बढ़ावा मिला है. तमाम लोग ऐसे भी हैं जो रहते दिल्ली में है और दोस्तों, परिवार या गर्लफ्रैंड के साथ खाना खाने हरियाणा क्षेत्र में जाते हैं. इसी के चलते दिल्ली की सीमा से लगे कुछ ढाबे और मोटल इतने मशहूर हो गए हैं कि रात में वहां बैठने की जगह नहीं मिलती.

उपर्युक्त बातों का इस कहानी से कोई लेनादेना नहीं है, यह सिर्फ प्रसंगवश कही गई हैं. क्योंकि इस कहानी के पात्र पंकज मेहरा और प्रिया मेहरा भी रात में ही घूमने निकले थे. पंकज मेहरा और प्रिया मेहरा रोहिणी सैक्टर-15 के सी ब्लौक में रहते थे. मंगलवार 24 अक्तूबर की रात को पंकज और प्रिया अपने 3 साल के बेटे नाइस को साथ ले कर अपनी मारुति रिट्ज कार से घूमने निकले.

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दोनों का इरादा गुरुद्वारा बंगला साहिब जाने का था. पंकज और प्रियंका के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. दोनों कभी गुरुद्वारा बंगला साहिब तो कभी गुरुद्वारा नानक प्याऊ जाते रहते थे. इस की एक वजह यह भी थी कि पंकज का बिजनैस था और उस का पूरा दिन व्यस्तता में बीतता था.

24 अक्तूबर की रात करीब 10 बजे पंकज और प्रिया तैयार हो कर अपनी कार से निकले. उन के साथ उन का बेटा नाइस भी था. मुखर्जीनगर की हडसन रोड पर पंकज के भाई का रेस्टोरेंट था. पहले पतिपत्नी वहीं गए. वहीं पर खाना भी खाया. तब तक आधी रात हो चुकी थी. रेस्टोरेंट में काफी वक्त गुजारने के बाद दोनों गुरुद्वारा बंगला साहिब के लिए निकले. बड़े गुरुद्वारों की खास बात यह होती है कि वहां गुरुग्रंथ साहिब का पाठ कभी नहीं रुकता. द्वार बंद होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. पाठ में शामिल होने वाले भी रात हो या दिन, कभी भी गुरुद्वारे जा सकते हैं.

बंगला साहिब पहुंच कर पंकज ने पार्किंग में कार खड़ी की और पतिपत्नी अंदर जा कर पाठ में बैठ गए. नाइस तब तक सो चुका था. काफी देर वहां रुकने के बाद पंकज ने प्रिया से कहा, ‘‘भूख लग आई है, चलो बाहर चल कर कुछ खाते हैं.’’

प्रिया बेटे को गोद में उठा कर खड़ी हो गई. दोनों गुरुद्वारे से बाहर आ गए. रात के 3 बजे बाहर कुछ मिलने का सवाल ही नहीं था. सड़कें सुनसान पड़ी थीं. पंकज ने प्रस्ताव रखा, ‘‘चलो, घर चलते हैं, रास्ते में कहीं कुछ मिला तो खा लेंगे.’’

प्रिया बेटे को ले कर आगे की सीट पर बैठ गई. पंकज ने ड्राइविंग सीट संभाली, कार सुनसान पड़ी सड़क पर दौड़ने लगी. रिंग रोड से होते हुए जब पंकज की कार रोहिणी जेल जाने वाली रोड पर पहुंची तो वहां से उस ने बादली रेडलाइट से यू टर्न ले लिया. उस जगह से रोहिणी सेक्टर-15 के सी ब्लौक स्थित उन का फ्लैट 5-7 मिनट की ड्राइविंग दूरी पर था.

बेमौत मारी गई प्रिया, पति लाश को ले कर पहुंचा अस्पताल

पंकज और प्रिया घर पहुंच पाते, इस से पहले ही एक हृदयविदारक घटना घट गई. पुलिस कंट्रोल रूम से 4 बज कर 20 मिनट पर थाना शालीमार बाग को सूचना मिली कि कार रोक कर एक महिला को गोली मार दी गई है और उस का पति घायल महिला को रोहिणी स्थित सरोज अस्पताल ले गया है. सूचना मिलते ही पुलिस सरोज अस्पताल जा पहुंची. वहां डाक्टरों ने बताया कि प्रिया की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो चुकी थी.

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मृतका प्रिया का पति पंकज मेहरा वहीं पर मौजूद था. वह 3 साल के बेटे नाइस को गोद में थामे खड़ा था, जो बुरी तरह सहमा हुआ था. जिस कार में प्रिया को गोली मारी गई थी, वह भी वहीं खड़ी थी. कार की आगे की सीट पर और उस के नीचे खून ही खून फैला था. दोनों ओर के आगे वाले शीशे भी टूटे थे. पुलिस ने प्रिया की डैडबौडी का मुआयना किया. प्रिया के गले और चेहरे पर 2 गोली लगी थीं.

प्राथमिक लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पंकज ने काफी पहले फोन कर के इस घटना के बारे में प्रिया के मायके वालों और अपने घर वालों को बता दिया था. वे लोग भी अस्पताल आ गए थे.

पुलिस ने पंकज से प्राथमिक पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘जब मैं ने बादली रेडलाइट से यू टर्न लिया, तभी हरियाणा के नंबर वाली सफेद स्विफ्ट कार नजर आई. उस ने तेज गति से ओवरटेक किया और मेरी कार को जबरन रुकवा लिया. उस कार में से आगे की ओर से एक युवक निकल कर आया, जो मुंह पर रूमाल बांधे हुए था. उस ने पहले मुझे बाहर खींच कर मेरी पिटाई की. प्रिया कार के अंदर मेरी बगल में बैठी थी, नाइस उस की गोद में सोया था.’’

पंकज ने आगे बताया, ‘‘प्रिया ने हमलावर का विरोध किया. तभी स्विफ्ट कार से एक और युवक निकल कर आया. उस ने भी मुंह पर रूमाल बांध रखा था. मारपिटाई के दौरान हाथापाई हुई तो हमलावरों में से एक ने मेरे सिर पर पिस्तौल की बट मारी और दूसरे ने चेहरे पर मुक्का.

‘‘इसी बीच हमलावरों ने गोली चला दी, जो प्रिया के गले में लगी. बेटा रोते हुए चिल्ला रहा था. तभी हमलावरों ने एक गोली और चलाई. पिस्तौल वाला तीसरी गोली चलाता, तभी मैं ने पिस्तौल का अगला हिस्सा मुट्ठी में दबोच लिया. छीनाझपटी में हमलावरों ने एक गोली और चलाई, लेकिन चल न सकी. दूसरे हमलावर ने तब तक दोनों ओर के शीशे तोड़ डाले थे.’’

पंकज के अनुसार, उस ने लहूलुहान पत्नी की हालत देखी तो स्पीड से गाड़ी दौड़ा दी और उसी वक्त 100 नंबर पर फोन कर के कंट्रोल रूम को सूचना दी. लेकिन अस्पताल में डाक्टरों ने प्रिया को मृत घोषित कर दिया.

शालीमार बाग थाने की पुलिस ने पंकज से कई बार पूछताछ की. इस पूछताछ में पंकज ने बताया कि उस ने सोनीपत के एक युवक से 5 लाख रुपए उधार ले रखे थे, जिन का वह मोटा ब्याज वसूलता था. अब उस ने यह रकम बढ़ा कर 40 लाख रुपए कर दी थी.

लेकिन इतनी बड़ी रकम वह नहीं दे सकता था. इसी वजह से उसे बारबार धमकियां मिल रही थीं. पंकज ने उसी युवक पर हत्या करवाए जाने का संदेह जाहिर किया. अपने बयान में पंकज ने 6 संदिग्ध लोगों के नाम लिए थे— मोनू, पवन, संजय, मंजीत और 2 अन्य.

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पुलिस ने सीधेसीधे हत्या का केस दर्ज किया, क्योंकि इस घटना में लूटपाट जैसा कुछ नहीं था. हत्या के इस मामले में कई झोल नजर आ रहे थे, फिर भी पुलिस ने उन लोगों को पकड़ने के लिए दबिश दी, पंकज ने जिन के नाम लिए थे. लेकिन उन में से किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. इस के कई कारण थे, जिन में सब से बड़ा कारण तो यही था कि पुलिस को पंकज की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था.

इस की एक वजह तो यह थी कि पंकज जिस जगह पर वारदात होने की बात कह रहा था, वहां कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला था, जिसे हत्या की वारदात से जोड़ा जा सकता.

दूसरे कार की जिस आगे वाली सीट पर प्रिया को गोली लगी थी, उस के नीचे कारतूस के 2 खोखे पड़े मिले थे. पंकज चूंकि दूसरी ओर से गोली चलने की बात कह रहा था, इसलिए उस स्थिति में खोखे प्रिया की सीट के नीचे नहीं, बल्कि पंकज की सीट यानी ड्राइविंग सीट के नीचे होने चाहिए थे.

यहीं से संदेह पैदा होना शुरू हुआ. शक के अंकुर फूटे तो पुलिस ने पंकज से फिर पूछताछ की. लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा रहा.

कई बार संपन्न परिवारों में परदे के पीछे का सच नजर नहीं आता

आगे बढ़ने से पहले पंकज मेहरा और प्रिया की थोड़ी बैकग्राउंड जान लें तो बेहतर होगा. पंकज और प्रिया दोनों के परिवार ही बिजनैस में थे. पंकज का परिवार शालीमार बाग में रहता था. उस के पिता सी.एल. मेहरा और भाई अनिल मेहरा का चांदनी चौक में गारमेंट का बिजनैस था. जबकि रोहिणी सेक्टर-15 में रहने वाले प्रिया के पिता अशोक मघानी और भाई कार्तिक मघानी का आजादपुर मंडी में बड़ा कारोबार था.

रोहिणी आने से पहले मघानी परिवार भी शालीमार बाग में ही रहता था. पंकज और प्रिया शालीमार बाग के एक ही स्कूल में पढ़ते थे, वहीं दोनों की मुलाकात हुई जो पहले दोस्ती में बदली फिर प्यार में. प्यार हुआ तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. साथ ही इस बारे में अपनेअपने परिवारों को भी बता दिया.

फलस्वरूप दोनों परिवारों की रजामंदी से 22 जनवरी, 2006 को दोनों की शादी हो गई. उस समय दोनों खुश थे. लेकिन शादी के 3 साल बाद ही दोनों के रिश्ते में दरार पड़ने लगी. वजह था, पंकज का आशिकाना मिजाज. इस के बावजूद दोनों की गृहस्थी चलती रही.

कई साल पहले जब पंकज के पिता सी.एल. मेहरा का गारमेंट का बिजनैस घाटे में जा रहा था, तब पंकज ने अपना अलग बिजनैस करने की सोची. उस का उद्देश्य था अपने परिवार की मदद करना. बिजनैस के लिए उस ने अपने एक परिचित के साथ मिल कर कपड़ों को डाई करने की फैक्ट्री खोली. लेकिन उस के पार्टनर ने उसे धोखा दे दिया, जिस की वजह से उसे काफी नुकसान हुआ.

पंकज ने खोला ‘किंग बार’

पंकज को भरोसा था कि प्रिया के मायके वाले उस की मदद करेंगे, इसलिए उस ने पहाड़गंज में एक बार खोलने का फैसला किया. इस बिजनैस की पूरी योजना बनाने के बाद पंकज ने अपनी ससुराल वालों से इस बारे में बात की तो वे पैसा लगाने को तैयार हो गए. पंकज ने 5-7 लाख रुपए अपने पास से लगाए और बाकी ससुराल वालों से ले कर पहाड़गंज में ‘किंग बार’ के नाम से बार खोल दिया. इस में उस ने अपने साले कार्तिक की भी हिस्सेदारी रखी.

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पहाड़गंज की तंग गलियों में सैकड़ों होटल हैं. सस्ते होने की वजह से ज्यादातर विदेशी टूरिस्ट इन्हीं होटलों में ठहरते हैं. विदेशी पर्यटकों की वजह से यहां के जो भी 2-4 बार हैं, खूब चलते हैं. पंकज का बार भी चल निकला. बिजनैस बढ़ाने के लिए उस ने 2-3 लड़कियों को भी नौकरी पर रख लिया था.

इस बीच प्रिया के मायके वाले शालीमार बाग से रोहिणी सेक्टर-15 में आ कर रहने लगे थे. दूसरी ओर घाटे से उबरने के लिए पंकज मेहरा के परिवार ने अपना शालीमार बाग का मकान 70 लाख रुपए में बेच दिया था. बताया जाता है कि मकान बेचने से मिली रकम भी पंकज मेहरा ने अपनी अय्याशियों पर उड़ा दी थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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प्रिया मेहरा मर्डर केस भाग 2 : लव कर्ज और धोखा

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बताते हैं कि उस ने दोगुनी करने के चक्कर में यह रकम सट्टे में उड़ाई थी. घर वाले उस से पैसे मागते थे तो वह यह कह कर उन्हें चुप करा देता था कि रकम बिजनैस में लगाई है, जल्द ही दोगुनी हो कर लौटेगी. इस बीच करीब 3 साल पहले प्रिया मां बन गई थी, बेटा हुआ था, जिस का नाम नाइस रखा गया.

बहरहाल, आइए लौट कर फिर क्राइम सीन पर आते हैं. यह तो हम बता ही चुके हैं कि प्राथमिक जांच में पंकज मेहरा संदेह के दायरे में आ चुका था. दूसरी ओर प्रिया के घर वालों की बातें भी पंकज को संदेह के दायरे में ला रही थीं. इस बीच पुलिस को तथाकथित घटनास्थल के पास वाले पैट्रोलपंप पर एक सीसीटीवी कैमरा मिल गया.

हकीकत सामने आई तो सब हैरान रह गए

पुलिस ने उस कैमरे की फुटेज देखी तो सारी हकीकत सामने आ गई. उस फुटेज में वहां पर रात के 4 बजे से साढ़े 4 बजे तक पंकज की कार के अलावा कोई कार नजर नहीं आई. इस का मतलब था कि पंकज सरासर झूठ बोल रहा था.

पोस्टमार्टम के बाद प्रिया का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया था. वे लोग जब उस का अंतिम संस्कार करने श्मशान पहुंचे तो पंकज मेहरा भी साथ था. चिता को मुखाग्नि भी उसी ने दी थी. पुलिस ने उसे वहीं गिरफ्तार कर लिया और सीधे थाना शालीमार बाग ले आई. थाने में उस से कई दौर में पूछताछ की गई.

आखिरकार उस ने मान ही लिया कि अपनी पत्नी प्रिया का कत्ल उसी ने किया था. ऐसा कर के वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहता था. यानी एक तरफ तो वह प्रियंका से पीछा छुड़ाना चाहता था और दूसरी ओर उस के कत्ल में वह उन लोगों को फंसाना चाहता था, जिन्होंने उसे कर्ज दे रखा था.

जब जांच शुरू हुई तो पंकज के कुकर्मों की एकएक पर्त खुलती चली गई. इस में उस का मोबाइल और लैपटौप भी सहायक बने. पता चला कि पंकज मेहरा एक बड़ा सट्टेबाज (बुकी) था. दरअसल, सट्टेबाज भी 2 तरह के होते हैं. एक सट्टा लगाने वाले और दूसरे लगवाने वाले. सट्टा लगवाने वाले को बुकी कहते हैं. पंकज तभी सट्टेबाजों के चक्कर में फंस गया था जब वह चांदनी चौक में पिता के साथ गारमेंट का कारोबार करता था.

जांच में पता चला कि प्रिया और पंकज ने घटना से कुछ महीने पहले ही रोहिणी सेक्टर-15 के सी ब्लौक में किराए के मकान में शिफ्ट किया था. इस के पहले ये दोनों पंकज के परिवार के साथ शालीमार बाग में रहते थे. रोहिणी शिफ्ट होने की एक वजह यह थी कि प्रिया के मायके वाले भी इसी ब्लौक में रहते थे.

पंकज से संबंधों में खटास के चलते बात बढ़ने पर वह कभी भी पास में स्थित अपने मायके चली जाती थी. प्रिया का रोहिणी आने का यह कारण था तो पंकज के अपने अलग कारण थे.

सट्टे के शौक ने किया बरबाद

दरअसल, सोनीपत के कुछ सट्टेबाजों की बुकिंग रोहिणी तक चलती थी. इन बुकीज से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. उन का पंकज पर काफी पैसा भी उधार था. पंकज चूंकि खुद बुकी था, इसलिए चाहता था कि किसी तरह रोहिणी की बुकिंग उस के कब्जे में आ जाए.

बहरहाल, हकीकत यही थी कि वह सट्टेबाजों की मोटी रकम का कर्जदार था. उस पर यह कर्ज तब से चला आ रहा था, जब 18 जून, 2017 को भारतपाकिस्तान मैच हुआ था. इस मैच पर पंकज ने मोटी रकम लगाई थी और हार गया था. जिन लोगों का पैसा था, वे उसे धमकाते रहते थे.

एक तरफ यह सब चल रहा था, दूसरी ओर पंकज मेहरा की रंगीनमिजाजी भी कम नहीं थी. बताया जाता है कि उस के बार में 2 लड़कियां काम करती थीं, एक दिल्ली की और दूसरी इलाहाबाद की. पंकज ने इन दोनों ही लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा था.

इतना ही नहीं, बल्कि उस के रेशमा नाम की एक 23 वर्षीया युवती से भी प्रेम संबंध थे. रेशमा को उस ने न केवल लाखों रुपए के गिफ्ट दिए थे, बल्कि उसे किराए का एक मकान भी ले कर दे रखा था. उस का पूरा खर्चा पंकज ही उठाता था. पुलिस के अनुसार पंकज प्रिया को अपने रास्ते से हटा कर रेशमा से शादी करना चाहता था.

रेशमा से संबंधों के चलते पंकज कई बार रातरात भर घर नहीं आता था. प्रिया उसे बारबार फोन करती रहती थी, लेकिन वह बहाने बना कर उसे बेवकूफ बनाता रहता था. हालांकि प्रिया इस बात को जानती थी. इसी सब के चलते एक बार प्रिया 11 महीने तक अपने मायके में रही थी, लेकिन उस के मातापिता ने उसे समझा कर पंकज के पास भेज दिया था.

एक तरफ दबंगों का कर्जदार, दूसरी ओर रेशमा के चक्कर में पत्नी से रुसवा, पंकज की स्थिति अजीब सी हो गई थी. यह अलग बात है कि इस सब का जिम्मेदार भी वह खुद ही था. जब लेनदार कुछ ज्यादा ही दबाव बनाने लगे तो ढाई महीने पहले पंकज ने अपना पहाड़गंज स्थित बार बंद कर दिया.

लेकिन इस से उस की समस्या कम होने की बजाय बढ़ती ही गई. अंतत: उस ने इस सब से निजात पाने के लिए ऐसा रास्ता खोजा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इस के लिए उस ने घटना से एक माह पहले जो योजना बनाई, वह थी प्रिया को मौत के घाट उतार कर अपने लेनदारों को फंसाने की.

  जान का खतरा बता कर खरीदी पिस्तौल

इस के लिए पंकज ने अपनी जान को खतरा बता कर एक दोस्त की मदद से एक पिस्तौल खरीदा. इस के बाद उस ने कई बार रेकी कर के वह जगह तय की, जहां आराम से प्रिया का कत्ल कर सके और पकड़ा भी न जाए. उसे यह जगह मिली बादली रेडलाइट से यू टर्न ले कर थोड़ा आगे. समय उस ने आधी रात के बाद का चुना, क्योंकि उस समय वह जगह एकदम सुनसान रहती थी. पंकज की सब से बड़ी भूल यह थी कि वह पास वाले पैट्रोल पंप पर लगे सीसीटीवी कैमरे को नहीं देख पाया.

काम नहीं आया बारबार पुलिस को गुमराह करना

पुलिस पूछताछ में पंकज ने पुलिस को गुमराह करने की पूरी कोशिश की. कभी उस ने कोई रूट बताया तो कभी कोई. पुलिस ने उसे साथ ले कर उस की बताई सभी जगहों, सभी रास्तों को देखा. उन रास्तों के सीसीटीवी कैमरे देखे, लेकिन उस का कोई भी बयान विश्वसनीय नहीं निकला. पुलिस ने जब पैट्रोल पंप पर लगे कैमरे की फुटेज देखी तो वह पूरी तरह से संदेह के घेरे में आ गया.

दरअसल, पैट्रोल पंप वाले कैमरे की फुटेज में साफ दिखाई पड़ रहा था कि भोर के 4 बज कर 15 मिनट पर पंकज ने बादली रेडलाइट से यू टर्न लिया. यू टर्न लेते समय कार की गति धीमी थी, लेकिन अचानक कार की गति बढ़ी और वह सीसीटीवी की रेंज के बाहर हो गई.

इस के 5 मिनट बाद ही पंकज ने 4 बज कर 20 मिनट पर पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था. इस का मतलब जो भी हुआ था, 5 मिनट के अंदर हुआ था. यह कांड पंकज ने खुद किया था, इस बात की पुष्टि सीसीटीवी की फुटेज से हो रही थी, क्योंकि उस एक घंटे के दौरान कोई भी कार वहां से नहीं गुजरी थी.

पुलिस ने जब पंकज मेहरा से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. उस ने अपने पहले वाले बयान को झुठलाते हुए बताया कि उस ने प्रिया के मर्डर की योजना करीब एक महीने पहले बताई थी. इस के लिए वह पिछले 6 महीने से टीवी के क्राइम पैट्रोल और सावधान इंडिया शो देख रहा था, जो क्राइम पर आधारित होते हैं. यहां तक कि उस ने लैपटौप पर अजय देवगन और तब्बू अभिनीत फिल्म ‘दृश्यम’ 17 बार देखी. यूट्यूब पर उस ने पुलिस इनवैस्टीगेशन के हर पार्ट को देखा, समझा.

इतना ही नहीं, उस ने पुलिस के सर्विलांस सिस्टम को धता बताने, मोबाइल काल और सीसीटीवी की नजर से बचने का आइडिया फिल्म ‘दृश्यम’ से लिया था. जब उस की योजना तैयार हो गई तो उस ने एक दोस्त के माध्यम से पिस्तौल खरीदा.

पूरी तैयारी के बाद 24/25 अक्तूबर की रात को वह पत्नी प्रिया और बेटे नाइस को साथ ले कर गुरुद्वारा बंगला साहिब गया. वहां से वापसी में उस ने जामा मसजिद की ओर से हो कर रिंग रोड पकड़ी. उसे तलाश थी किसी ऐसी जगह की, जहां प्रिया को मौत के घाट उतार सके.

पंकज को ऐसी जगह मिली बादली की रेडलाहट से यू टर्न ले कर. वहां उस ने कार के अंदर ही प्रिया को पहले सिर में गोली मारनी चाही, लेकिन ऐन वक्त पर उस ने सिर पीछे कर लिया, जिस की वजह से गोली उस की गरदन में लगी. इस के बाद पंकज ने प्रिया पर एक गोली और दागी, जो उस के चेहरे पर राइट साइड से लग कर लेफ्ट साइड से निकल गई.

बेटा नाइस उस वक्त सो रहा था, जो गोली की आवाज से उठ गया था. प्रिया को मौत के घाट उतार कर पंकज ने कार के दोनों ओर के शीशे तोड़े और कार तेजी से भगा दी. उसी वक्त उस ने पिस्तौल देवली लालबत्ती से आगे रोहिणी के रास्ते में पड़ने वाले जंगल में फेंक दी. इसी बीच उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था.

पुलिस ने अदालत से पंकज का 3 दिन का पुलिस कस्टडी रिमांड ले कर क्राइम सीन को भी रिक्रिएट किया और उस की फेंकी पिस्तौल भी खोजी. लेकिन कई दौर की खोजबीन के बाद भी पिस्तौल नहीं मिली. संभवत: उसे कोई उठा ले गया था.

पुलिस ने जांच के किसी भी कोण को इग्नोर नहीं किया

पंकज के मोबाइल की काल डिटेल्स और उस के लैपटौप से पुलिस को काम की काफी जानकारियां मिलीं. पता चला कि वह एक साथ कई लड़कियों से चक्कर चला रहा था. इन में उस की सब से करीबी थी रेशमा, जिस पर उस ने लाखों रुपए खर्च किए थे. सुनने में यह भी आया कि पंकज ने रेशमा से शादी कर रखी थी और वह रातों को कई बार उसी के साथ रुकता था.

यह बात भी चर्चा में आई कि पंकज पहले से शादीशुदा था और प्रिया को यह बात पंकज से शादी कर लेने के बाद पता चली थी. जो भी हो, पूरी कोशिशों के बाद भी पंकज अपने गुनाह को छिपा नहीं पाया और अपने बुने जाल में खुद ही फंस गया. ‘दृश्यम’ फिल्म से उसे अपराध की जो राह मिली, वह सीधे तिहाड़ जेल में जा कर खुली. उसे शायद यह पता नहीं था कि फिल्म और असल जिंदगी में बड़ा फर्क होता है.

अब जब वह जेल से बाहर निकलेगा तो उसका वही बेटा बड़ा हो कर उस के मुंह पर थूकेगा, जिस ने अपनी आंखों से अपनी मां को मौत के मुंह में जाते देखा. उस की आंखों के सामने एक तरफ ममतामयी मां थी तो दूसरी तरफ जल्लाद बाप.

छोटा बच्चा आज भले ही कुछ न समझता हो, बोल सकता हो, लेकिन वह बड़ा होगा और अपने क्रूरबाप का चेहरा जरूर देखना चाहेगा. वैसे 3 साल का नाइस अभी नानानानी के पास है.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

मासूम नैंसी का कातिल कौन : भाग 2

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यह संभव नहीं था कि एक व्यक्ति एक समय पर 2 अलगअलग जगह उपस्थित हो. सीसीटीवी कैमरे की फुटेज ने जांच की दिशा ही बदल दी और शक के दायरे में खुद राघवेंद्र आ गया.

सीसीटीवी फुटेज से नैंसी हत्याकांड की गुत्थी बुरी तरह उलझ गई. जांच अधिकारी एएसपी निधि रानी उलझी हुई कडि़यों को सुलझाने में जुट गईं. एक मुखबिर ने उन्हें ऐसी सूचना दी कि वह चौंक गईं. सूचना में उन्हें बताया गया कि जिस दिन बबीता की बारात आई थी, उस दिन राघवेंद्र घर पर ही था. वह न तो घर से बाहर निकला था और न ही बारात में शामिल हुआ था. जबकि उस की सगी बहन की शादी हो रही थी.

इस के साथ ही मुखबिर ने एक और चौंकाने वाली बात यह बताई कि नैंसी की हत्या घर की एक महिला के अवैध संबंध को छिपाने के लिए की गई थी. नैंसी इस बात को जानती थी. उस महिला को अपने अनैतिक रिश्ते का राज खुलने का डर सताने लगा था, इसलिए उस ने सोचीसमझी साजिश के तहत उसे रास्ते से हटवा दिया था. इस शक के दायरे में बबीता भी आ रही थी.

अब मामला काफी पेचीदा और गंभीर हो गया था. निधि रानी ने यह बात पुलिस अधीक्षक दीपक बरनवाल को बताई तो वह हैरान हुए. यह बात सोचने वाली थी कि जिस की बहन की बारात आई हो, वह घर में रहते हुए भी उस में शामिल न हो. एसपी दीपक बरनवाल ने निधि रानी को निर्देश दिया कि राघवेंद्र को हिरासत में ले कर पूछताछ करें.

नैंसी की हत्या में 2 चाचा आए संदेह के घेरे में

शक के आधार पर 5 जून, 2017 को एएसपी निधि रानी ने राघवेंद्र और पंकज झा सहित 6 लोगों को हिरासत में ले लिया. पुलिस उन्हें थाना अंधरामढ़ ले आई. उन लोगों से अलगअलग सख्ती के साथ पूछताछ की गई.

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पूछताछ में राघवेंद्र और पंकज बारबार अपना बयान बदलते हुए पुलिस को इधरउधर घुमाने की कोशिश करते रहे. इस से दोनों एएसपी निधि रानी के शक के दायरे में आ गए.

पूछताछ के बाद उन दोनों को छोड़ कर शेष 4 लोगों को जाने को कह दिया गया. शतरंज जैसे इस खेल में निधि रानी ने आखिरी दांव में पूरी बाजी ही पलट दी. नैंसी जिन 3 बच्चों के साथ खेल रही थी, उन तीनों ने निधि के सामने इस मामले की कलई खोल दी थी. बच्चों का बयान दोनों को बताया गया. इस के बाद राघवेंद्र और पंकज के सामने सच बोलने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अंतत: दोनों ने कानून के सामने घुटने टेक दिए और भतीजी की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

चचेरी भतीजी नैंसी की हत्या में दोनों आरोपी चाचाओं के इकबालिया बयान के बाद एएसपी निधि रानी और एसपी दीपक बरनवाल ने संयुक्त प्रैसवार्ता आयोजित की. एक पखवाड़े से सुर्खियों में रहे नैंसी हत्याकांड का खुलासा करते हुए एसपी दीपक बरनवाल ने संवाददाता को बताया, ‘‘नैंसी हत्याकांड का मास्टरमाइंड उस का चचेरा चाचा राघवेंद्र झा है. राघवेंद्र और पंकज के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले हैं. दोनों के बयानों में समानता भी नहीं है. साथ ही जो साक्ष्य मिले हैं, वे संकेत दे रहे हैं कि यह परिवार झूठ बोल रहा है.

‘‘जिन 2 लोगों को आरोपी बना कर एफआईआर में नैंसी के अपहरण का जो समय दर्ज कराया गया था, उस समय उन में से एक लल्लू झा पैट्रोल पंप पर काम करता पाया गया. नैंसी का अपहरण नहीं बल्कि हत्या हुई थी.’’

बरनवाल ने आगे बताया कि जिस समय नैंसी के गायब होने की बात बताई गई, जांच के दौरान पता चला कि गायब होने के समय राघवेंद्र व पंकज ही मौके पर थे. पूछताछ के दौरान इस बात की जानकारी नैंसी के साथ खेलने वाले बच्चों ने दी है.

उन्होंने यह भी बताया था कि जांच के दौरान एसआईटी ने घटना के दिन का दोबारा सीन क्रिएट किया. उस के साथ रहने वाले 3 बच्चों हिमांशु, साक्षी व भारती से विस्तृत पूछताछ की गई, तो तीनों बच्चों ने बताया कि जिस समय नैंसी गायब हुई, उस समय दरवाजे के बाहर राघवेंद्र बैठा था और बाहर वाले रास्ते पर पंकज मौजूद था. ऐसे में किसी बाहरी व्यक्ति का घर में आने का सवाल ही नहीं था. राघवेंद्र और पंकज ने अपने जुर्म कबूल लिए हैं.

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प्रैस कौंफ्रेंस के बाद पुलिस ने उसी दिन दोनों आरोपियों राघवेंद्र झा व पंकज झा को झंझारपुर कोर्ट में एसीजेएम द्वितीय शिव प्रसाद शुक्ल के न्यायालय में पेश किया. अदालत ने दोनों आरोपियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस को दिए आरोपियों के बयानों के बाद कहानी कुछ इस तरह सामने आई –

रविंद्र के पिता देवानंद झा के चचेरे भाई हैं सत्येंद्र झा. दोनों भाइयों के अपनेअपने परिवार हैं. 5 साल पहले साल 2012 की बात है. रविंद्र के मांबाप उत्तराखंड घूमने गए थे. 25 मई, 2012 की शाम 6 बजे के करीब दोनों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई. आज तक दोनों की मौत पर रहस्य की चादर लिपटी हुई है.

मांबाप की मौत के दुख से रविंद्र और उन का परिवार अभी तक नहीं उबर नहीं पाया था. रविंद्र की 2 बेटियों में नैंसी बड़ी थी और काफी समझदार व चुलबुली थी. नैंसी अपने चचेरे बडे़ दादा सत्येंद्र झा के साथ काफी घुलीमिली थी. सत्येंद्र भी उस से बहुत प्यार करते थे.

क्या बबीता के संबंधों की वजह से हुई नैंसी की हत्या?

सत्येंद्र झा के 4 बच्चों में 2 के नाम थे राघवेंद्र और बबीता. राघवेंद्र बचपन से ही उग्र स्वभाव का था. बबीता काफी खूबसूरत और चंचल स्वभाव की युवती थी. सन 2012 की बात है, एक दिन बबीता किसी काम से कहीं जा रही थी, तभी उसी गांव के रहने वाले लल्लू झा ने बबीता के साथ छेड़छाड़ कर दी. कहीं से राघवेंद्र और उस के भाइयों को इस की भनक लग गई. झा भाइयों ने लल्लू के घर में घुस कर लातघूंसों से उस की पिटाई की. उस के बाद लल्लू बबीता को जब भी देखता था, अपना रास्ता बदल देता था.

बात आई गई हो गई. धीरेधीरे 5 साल बीत गए. इस बीच बबीता का गांव के ही एक लड़के से तथाकथित प्रेम संबंध बन गया. इस बात की जानकारी परिवार वालों को भी मिल गई थी. झा परिवार एक रसूखदार परिवार था. जिले भर में उन का नाम था. उन की छोटी सी बात भी सुर्खियों में आ जाती थी. इसलिए परिवार वालों ने इज्जत की बात समझ कर इसे दबा कर रखा.

कहीं से मासूम नैंसी को इस की भनक लग गई. वह बुआ के प्रेमिल रिश्ते की हकीकत जान गई थी. बबीता को इस बात का डर सताने लगा था कि कहीं नैंसी यह राज किसी के सामने न खोल दे.

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इधर 26 मई, 2017 को बबीता की शादी पक्की हो गई थी. सूत्रों के मुताबिक, परिवार वालों को कहीं से यह भनक लग गई थी कि 5 साल पुरानी छेड़छाड़ वाली घटना में पिटे दोनों भाइयों लल्लू और पवन झा ने शादी में बाधा डालने की योजना बना रखी है. राघवेंद्र और पंकज चाहते थे कि बहन की शादी में किसी तरह की कोई बाधा न आए. इस के लिए वह हर बाधा से निपटने के लिए तैयार थे.

शादी के एक दिन पहले 25 मई को बबीता की मेंहदी की रस्म थी. नैंसी बुआ बबीता की शादी को ले कर काफी खुश थी. लेकिन बबीता के चेहरे पर वो खुशी नहीं थी जो शादी को ले कर लड़की के चेहरे पर होनी चाहिए. जैसे अंदर ही अंदर उसे कोई बड़ा डर खाए जा रहा हो. नैंसी मां और छोटी बहन के साथ अपने घर से मेंहदी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आई.

रविंद्र नारायण घर के दूसरे सदस्यों के साथ बारातियों के खानेपीने के सामानों की खरीदारी करने निर्मली बाजार गए थे. उन के घर से बबीता का घर थोड़ी दूरी पर था.

नैंसी अपने दोस्तों हिमांशु, साक्षी व भारती के साथ घर के बाहर खेलने लगी. बाद में खेलते खेलते बच्चे अंदर कमरे में पहुंच गए. कमरे में बबीता बैठी हुई थी. नैंसी बबीता के पास ही रखी एक चौकी पर बैठ गई. तभी अचानक बिजली चली गई. नैंसी के साथ हिमांशु भी था. बबीता ने हिमांशु को टौर्च दे कर घर के दूसरे कमरे में भेज दिया. थोड़ी देर बाद हिमांशु वापस लौटा तो नैंसी गायब थी और बबीता अकेली बैठी थी.

कैसे गायब हुई थी नैंसी सच्चाई बताई बच्चों ने

बच्चों के अनुसार, जब वे कमरे से बाहर निकले तो बरामदे में कुरसी पर राघवेंद्र को बैठे देखा, जबकि पंकज घर से बाहर जाने वाले रास्ते पर चहलकदमी कर रहा था. बच्चे वापस लौट कर फिर कमरे में आए और बबीता से नैंसी के बारे में पूछा. उस ने बच्चों को डांट कर भगा दिया. तब तक बिजली आ गई थी. बच्चों ने नैंसी को पूरे घर में तलाश किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

अचानक लापता हुई नैंसी को घर के बाहर और आसपास सभी जगह तलाश किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. बाजार गए रविंद्र को नैंसी के रहस्यमय ढंग से गायब होने की सूचना दे दी गई थी.

वह भी घर वापस लौट आए थे. तब तक रात के 9 बज गए थे. राघवेंद्र ने रविंद्र को बताया कि उस ने लल्लू को मोटरसाइकिल से नैंसी को अपहरण कर के ले जाते देखा था. जब तक वह उस के पास पहुंचता, तब वह भाग चुका था.

घर में शादी का माहौल था. नैंसी के अचानक गायब होने से खुशियों में खलल पड़ गई थी. चश्मदीद गवाह राघवेंद्र के बयान के आधार पर लल्लू और उस के भाई पवन को उसी रात हिरासत में ले लिया गया था. पूरी रात नैंसी की खोजबीन जारी रही. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

अगले दिन बबीता की शादी थी. राघवेंद्र घर में मौजूद होने के बावजूद बहन की शादी में शरीक नहीं हुआ.

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सोचीसमझी रणनीति के तहत ही राघवेंद्र ने बबीता की शादी में लल्लू और पवन द्वारा व्यवधान पैदा करने की अफवाहें फैलाई थीं. बहरहाल उस की शादी सकुशल संपन्न हो गई, कहीं कोई बाधा नहीं आई.

शादी बीत जाने के बाद तीनों बच्चों के बयान के आधार पर पुलिस ने बबीता से पूछताछ करनी चाही, लेकिन परिवार ने पूछताछ नहीं करने दी.

पुलिस की मिन्नतों और कानूनी मजबूरियां बताने के बाद बबीता से 10 मिनट ही पूछताछ की जा सकी. इस पूरी पूछताछ मे बबीता ने इतना ही कहा कि उसे कुछ नहीं मालूम, वह कुछ नहीं जानती.

रहस्यमय तरीके से गायब नैंसी की तीसरे दिन यानी 27 मई, 2017 को गांव से दूर नदी के किनारे लाश मिली. पुलिस की जांच में शक के दायरे में चचेरा चाचा राघवेंद्र और पंकज आए.

पूछताछ में दोनों आरोपियों ने नैंसी की हत्या करने की बात कबूल कर ली थी. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया, लेकिन घर वालों ने पुलिस की कार्यशैली पर ही सवाल उठा दिए.

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने अपनी करनीकथनी छिपाने के लिए निर्दोषों को जेल भेज दिया, जबकि नैंसी के हत्यारे वे नहीं हैं, बल्कि असली मुलजिम लल्लू और पवन हैं. बबीता की शादी न हो सके, इसलिए दोनों ने नैंसी का अपहरण कर के उस की हत्या कर दी थी.

परिजनों के बयानों से पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है. जबकि नैंसी की हत्या एक राज बन कर रह गई है.

– कथा में बबीता परिवर्तित नाम है. कथा परिजनों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

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