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अश्विनी के पिस्तौल की 7 गोलियां लगने के बाद निकिता दूसरे गेट की ओर भागी, लेकिन गिर पड़ी. जातेजाते उस ने धमकी दी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा.
निकिता पर गोलियां बरसाने के बाद अश्विनी दूसरे गेट से बाहर निकल कर पास ही सड़क पर जाते हुए एक बैटरी रिक्शा में बैठ गया. थोड़ा आगे जा कर वह उतरा और गन्ने के खेत में घुस गया.
निकिता 2 महीने पहले ही शादी के लिए दुबई से घर लौटी थी. उस की शादी मुरादाबाद के मोहल्ला कांशीराम नगर में रहने वाले नीतीश कुमार से तय हुई थी. नीतीश सीआईएसएफ में सबइंसपेक्टर हैं और विशाखापट्टनम में तैनात हैं. नीतीश के कहने पर निकिता ने अपनी नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था.
निकिता के पिता हरिओम शर्मा श्योहारा के विदुर ग्रामीण बैंक में नौकरी करते थे. घर वालों ने इस घटना की सूचना हरिओम शर्मा को दी. शर्माजी की बैंक के पास ही थाना था. उन्होंने थाने जा कर यह बात थानाप्रभारी उदय प्रताप को बताई. उदय प्रताप उसी समय पुलिस टीम के साथ दौलताबाद के लिए रवाना हो गए.
बुरी तरह घायल निकिता को श्योहारा के एक प्राइवेट डाक्टर को दिखाया गया. उस डाक्टर ने निकिता को तुरंत बड़े अस्पताल ले जाने की राय दी. इस के बाद उसे मुरादाबाद के मशहूर कौसमोस अस्पताल ले जाया गया.
भरती होने के बाद अस्पताल के मशहूर डाक्टर अनुराग अग्रवाल ने निकिता का इलाज शुरू किया. उसे 7 गोलियां लगी थीं, जिन में गले में फंसी एक गोली घातक थी. बहरहाल, डा. अनुराग अग्रवाल के तमाम प्रयासों के बावजूद रात 9 बजे निकिता ने दम तोड़ दिया.
दूसरी ओर पुलिस ने ईरिक्शा के ड्राइवर द्वारा बताए गए गन्ने के खेत के साथसाथ आसपास के सभी गन्ने के खेतों में कौंबिंग की. लेकिन अश्विनी का कोई पता नहीं चला. उसी दिन आईजी (मुरादाबाद जोन) रमित शर्मा ने अश्विनी उर्फ जौनी को पकड़ने या पकड़वाने पर 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.
पुलिस ने आसपास के शहरों के बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों के अलावा अन्य तमाम जगहों के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.
जब 2 दिन और बीत गए तो मुरादाबाद, बरेली परिक्षेत्र के एडीजे अविनाश चंद्र ने अश्विनी पर ईनाम राशि 50 हजार से बढ़ा कर एक लाख कर दी. इस के बाद पुलिस ने जौनी से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं. उस के फोन की लोकेशन का पता लगाने की कोशिश की गई. लेकिन उस का फोन 26 सितंबर से ही बंद था.
जब पुलिस की सभी कोशिशें बेकार गईं तो बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी ने जिले के सभी पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग की, जिस में तय हुआ कि बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों और आटोरिक्शा, ईरिक्शा के अड्डों पर विशेष रूप से नजर रखी जाए. इस अभियान में संजीव त्यागी खुद भी शामिल हुए.
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3 अक्तूबर को किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि अश्विनी उर्फ जौनी को नगीना के तुलाराम हलवाई की दुकान पर रसगुल्ले खाते देखा गया है. तुलाराम के रसगुल्ले जिला भर में मशहूर हैं.
सूचना मिलते ही पुलिस चौराहे के पास स्थित तुलाराम की दुकान पर पहुंच गई, लेकिन तब तक जौनी वहां से जा चुका था. पूछताछ में पता चला कि जौनी ने वहां बैठ कर 8 रसगुल्ले खाए थे. बाद में वह बराबर में स्थित मोहन रेस्टोरेंट में भी गया था, जहां वह काफी देर बैठा रहा.
पुलिस ने रात में ही तुलाराम हलवाई की दुकान के आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस से यह जानकारी मिली कि चौराहे से जौनी हरिद्वार जाने वाली बस में सवार हुआ था. पुलिस ने हरिद्वार वाली बस को रुकवा कर चैक किया.
साथ ही पूरे नगीना को भी छान मारा. लेकिन अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. वह एक बार फिर पुलिस को चकमा दे गया था. अश्विनी को पकड़ने के लिए बिजनौर पुलिस जो भी कर सकती थी, उस ने किया. फिर भी रही खाली हाथ ही.
5/6 अक्तूबर की रात को बढ़ापुर के थानाप्रभारी कृपाशंकर सक्सेना ने बढ़ापुर की ओर आने वाले वाहनों की चैकिंग के लिए बैरिकेड लगा रखे थे. रात करीब 12 बजे पुलिस ने दिल्ली से आ रही एक बस को रोका. ड्राइवर ने बस सड़क किनारे लगा दी. बस में करीब एक दरजन यात्री थे.
10 दिन के खेल के बाद
कृपाशंकर सक्सेना ने 2 सिपाहियों मोनू यादव और बादल पंवार से बस की चैकिंग करने को कहा. चैकिंग के दौरान यात्री अलर्ट हो कर बैठ गए. कंडक्टर के आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा था. बस के किसी यात्री, यहां तक कि पुलिस ने भी नहीं सोचा था कि वह एक लाख का ईनामी अश्विनी उर्फ जौनी हो सकता है.
मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा युवक नींद में था, नींद में उस का सिर एक ओर को झुका हुआ था. सिपाही मोनू और बादल ने उस के कंधे पर हाथ रख कर मुंह से कपड़ा हटाया तो वह चौंक कर जागा. वह अश्विनी ही था.
सामने पुलिस को देख अश्विनी को लगा कि उस का खेल खत्म हो गया है. उस ने बिना देर किए कमर से पिस्तौल निकाली और दाईं कनपटी पर रख कर ट्रिगर दबा दिया. एक धमाके के साथ खून का फव्वारा छूटा और वह एक ओर को लुढ़क गया. पुलिस वाले समझ गए कि वह अश्विनी उर्फ जौनी ही था.
आंखों के सामने एक युवक को सुसाइड करते देख पूरी बस के यात्री सन्न थे. वैसे असलियत यह थी कि अगर अश्विनी के चेहरे पर कपड़ा न होता तो निस्संदेह पुलिस वाले उसे पहचान ही नहीं पाते. वजह यह कि वह पिछले 10 दिनों से छिपताछिपाता घूम रहा था, न खानापीना और न आराम. नहानाधोना तो दूर की बात थी.
बहरहाल, बस खाली करा कर पुलिस ने कंडक्टर से पूछताछ की. उस ने बताया कि जौनी नगीना रेलवे फाटक पर पैट्रोलपंप चौराहे से बस में सवार हुआ था. वह कंडक्टर से आगे वाली सीट पर बैठ गया. उस के पास केवल एक छोटा सा बैग था. कंडक्टर से टिकट लेते समय उस ने कहा था कि उसे बढ़ापुर से पहले उतरना है. इस पर कंडक्टर ने कहा, ‘‘जहां उतरना हो, उतर जाना लेकिन टिकट बढ़ापुर का ही लगेगा.’’
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कंडक्टर से टिकट लेने के बाद उस ने मुंह पर सफेद कपड़ा लपेट लिया था.
पुलिस ने जौनी की लाश की तलाशी ली तो उस के पास यूएस मेड पिस्तौल के अलावा एक बैग मिला. उस के बैग में जैकेट व एक जोड़ी कपड़े थे. साथ ही सैमसंग का मोबाइल, 67 रुपए, 16 कारतूस, आधार कार्ड, पैन कार्ड और इनकम टैक्स का एक सर्टिफिकेट भी बैग में मिले.
दरअसल, जौनी कहीं से पिस्तौल हासिल कर के अकेला ही अपने दुश्मनों को खत्म करने निकला था. लेकिन उस के सामने 2 दिन में ही कई समस्याएं आ खड़ी हुई थीं. न उस के पास खाना खाने को पैसा था और न सोनेछिपने की जगह. किसी से उसे कोई मदद भी नहीं मिल पा रही थी. 26 सितंबर के बाद से उस ने अपना मोबाइल फोन भी इस्तेमाल नहीं किया था. कह सकते हैं कि वह किसी के भी संपर्क में नहीं था.
बहरहाल, जौनी की मौत के बाद पुलिस ने चैन की सांस ली. यह रहस्य ही रहा कि जौनी ने अपनी बेइज्जती के मामले को इतनी लंबी अवधि तक क्यों पाले रखा. जाहिर है जरूर कोई ऐसी बात रही होगी जो उस के दिल में कांटे की तरह नहीं चुभी, बल्कि छुरी बन कर दिल में उतरी होगी. वरना उच्चशिक्षा प्राप्त जौनी इतना बड़ा खूनी खेल नहीं खेलता.
जो भी हो, जौनी ने 3 कत्ल किए थे. पकड़ा जाता तो निस्संदेह या तो उस की पूरी जिंदगी जेल में बीतती या फिर उस के गले में फांसी का फंदा पड़ता.
लगता है कि इस बात को जौनी अच्छी तरह समझता था और उस ने अपनी मौत की राह पहले ही तय कर ली थी.
जौनी के 2 पत्र
26 सितंबर को राहुल और कृष्णा की हत्या के बाद भीमसेन कश्यप की शिकायत पर पुलिस ने अश्विनी उर्फ जौनी के अलावा उस के पिता, भाई और अन्य को भले ही केस में शामिल कर लिया था, लेकिन हकीकत यह थी कि जौनी खुद अपने घर वालों के व्यवहार से आहत था.
पुलिस को जौनी के लिखे 2 पत्र मिले थे, जिन में से एक उस की पैंट की जेब से मिला था और दूसरा उस के घर से. घर से मिले पत्र में यह बात साफ हो गई कि घर वाले उसे पसंद नहीं करते थे. उसे इस बात का दुख था कि घर वालों ने भी उस की भावनाओं को नहीं समझा.
घर से मिले पत्र में जौनी ने लिखा, ‘मेरी बहन को एक युवक ने छेड़ा तो मैं ने उसे सबक सिखाया. डांस करते हुए बहन की वीडियो बना ली गई तो मैं वीडियो बनाने वाले से भिड़ गया. बहन की शादी में जो बाइक दी गई, वह मैं ने अपने पैसों से, अपने नाम से खरीदी थी. बहन ने दूसरी जगह शादी की तब भी मैं ने पूरी तरह उस का साथ दिया. इस के बावजूद बहन ने मुझे गलत ठहराया.’
इस पत्र में जौनी ने और भी कई मामलों का जिक्र करते हुए घर वालों के गिलेशिकवों का जिक्र किया था. जबकि वह शुरू से ही उन की मदद करता आया था. जौनी की जेब से जो पत्र मिला, उस पत्र को वह पुलिस थाने तक पहुंचाना चाहता था. इस पत्र में उस ने लिखा कि वह जानता है कि उस ने 3 हत्याएं की हैं. लेकिन इस अपराध के लिए वह सरेंडर करना चाहता है.
उस ने आगे लिखा, बढ़ापुर थाने के कुछ पुलिसकर्मी बहुत अच्छे हैं. उन की वह इज्जत करता है. वह सरेंडर करना चाहता है, लेकिन उस के साथ मारपीट न हो, बेइज्जत न किया जाए. पुलिस अच्छा काम कर रही है, मुझे ढूंढ रही है. मैं सरेंडर करने को तैयार हूं.
लेकिन वह अपने इस पत्र को पुलिस तक पहुंचा नहीं पाया. हो सकता है, सुसाइड वाली रात वह सरेंडर करने के लिए ही बढ़ापुर जा रहा हो.
जो भी हो, मामला पत्रों का हो या फेसबुक का, अश्विनी उर्फ जौनी ने स्वयं को पीडि़त साबित करने की कोशिश की. लेकिन पीडि़त होने का मतलब यह नहीं है कि अपराधों की राह पर उतर जाओ.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां