होली में ‘दीवाली’ का मजा लेंगे नेता

5 राज्यों के विधानसभा चुनाव अब खत्म हो चुके हैं. नेताओं को चुनाव परिणाम का इंतजार है. 11 मार्च को मतगणना का काम होगा. 11 मार्च की दोपहर तक मतगणना से यह पता चल जायेगा कि किस पार्टी में कितना दम है  जीत का मजा लेने वाले नेता होली में ‘दीवाली’ का मजा लेंगे. उसके बाद होली के रंग खेलेंगे. हारने वाले नेताओं की होली फीकी होगी. उनके लिये होली का मजा नहीं रह जायेगा. नेताओं से अधिक उनके समर्थकों में जोश है. हर तरह होली में ‘दीवाली’ मनाने की तैयारी चल रही है. नेता और उनके समर्थक पूरी तरह से दीवाली मनाने की तैयारी में पहले ही पटाखे और फुलझडी खरीद रहे हैं. नेताओं का दावा है कि 11 मार्च को पहले जीत की खुशी में ‘दीवाली’ मनाई जायेगी इसके बाद होली का रंग और फाग खेला जायेगा.

गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश में से सबसे अधिक कड़ा मुकाबला उत्तर प्रदेश में था. यहा 7 चरणों में चले चुनाव ने नेताओं को थका दिया. प्रदेश में एक माह से अधिक केवल चुनाव ही हुआ. बाकी जरूरी काम टाल दिये गये थे. तहसील और थाने तक सूने पड़ गये. चुनाव किसी रोजगार सरीखा दिखने लगा था. चुनाव प्रचार का यह हाल था कि बड़े नेताओं के उतरने से लग ही नहीं रहा था कि यह विधानसभा के चुनाव हैं. राहुल गांधी-अखिलेश यादव को जवाब देने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पूरी कैबिनेट प्रचार में उतार दी थी.

करोडों खर्च करने के बाद भी नेताओं को अपनी जीत का भरोसा नहीं हुआ. चुनाव के प्रचार से लेकर मतगणना के बीच के समय में वह लोग पूजा पाठ से लेकर तंत्रमंत्र तक का सहारा लेने लगे. चुनाव प्रचार के समय मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, मजार, सभी जगह माथा टेकते यह लोग देखे गये. चुनाव के बाद बहुत सारे नेता पंडितों और ज्योतिषयों के चक्कर लगाते देखे गये. कई लोगों ने तो गुप्त स्थानों पर विशेष पूजा अभियान भी शुरू कर रखा है. मीडिया और दूसरों की नजर से बचने के लिये यह लोग बहुत ही गोपनीय तरीके से पूजा करा रहे हैं.

कई बड़े नेताओं के समर्थक तो अपने नेता की जीत के लिये उसके कपडे रखकर तंत्रमंत्र करने में लगे हैं. तंत्रमंत्र और ऐसी पूजा करने वाले के पौ बारह हो रहे हैं. इनको पता है कि अगर इनके कहे अनुसार नेता जीत गया तो आने वाले पूरे 5 साल इनकी चांदी रहेगी. अपने नेता से मनचाहा काम करा सकेंगे. चुनाव के समय से लेकर मतगणना तक कई नेताओं के हाथ में पहने जाने वाली अंगूठियों की संख्या में इजाफा हो गया. कुछ के गले में लाकेट बढ गया तो कुछ नेताओं ने रत्न लगा ब्रेसलेट पहन लिया.

विधायक का चुनाव लड़ रहे एक नेता जी तो चुनाव में पर्चा दाखिल करने से लेकर अब तक हर दिन के रंग के हिसाब से कपड़े अपने साथ रखने लगे. जिस दिन के रंग के हिसाब से वह कपड़े नहीं पहन पाते उस दिन के रंग का रूमाल उनकी जेब में आ गया. एक नेता जी को पंडित ने बताया कि प्रचार भर अपने बाल मत कटाना तो वह पूरे महीने बाल कटवाने नहीं गये. कई नेताओं की पत्नियों ने अपने पति की जीत के लिये व्रत रखा. मजे की बात यह है कि इसमें कई दलित नेता भी शामिल हैं जो पूजा का विरोध करते हैं. देखने वाली बात यह है कि जीत किसके पक्ष में रहती है. जिसके पक्ष में जीत होगी उसका पुजारी खुलकर बतायेगा और जो हारेगा उसका पुजारी मौन व्रत रख लेगा.

इस फिल्म के लिए वजन बढ़ाएगी यह अभिनेत्री

एमी जैक्सन अपनी आने वाली फिल्म के लिए वजन बढ़ाएंगी. एमी को फिल्म मेकर और म्यूजिक वीडियो प्रोड्यूसर एंडी मोरहन ने अपनी नई फिल्म के लिए संपर्क किया है, जिसमें फिल्म में हृष्ट-पुष्ट दिखने के लिए वह 10 किलो तक वजन बढ़ाएंगी. फिल्म की कहानी एक इंडियन ब्रिटिश शख्स पर आधारित है, जिसमें एमी उनकी गर्लफ्रेंड के किरदार में होंगी.

एमी इसके अलावा फिल्म “2.0” में सुपरस्टार रजनीकांत के साथ अहम किरदार में नजर आने वाली हैं, जिसमें उनके साथ सह-अभिनेता अक्षय कुमार भी होंगे. फिल्म का निर्देशन एस शंकर कर रहे हैं, जबकि फिल्म में संगीत एआर रहमान ने दिया है. इस फिल्म में एमी का किरदार काफी अहम माना जा रहा है. इस फिल्म के इसी साल रिलीज होने की उम्मीद है.

समेकित प्रणाली ने अनीता को दिलाई अलग पहचान

अगर इनसान में कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है, तो कामयाबी उस के कदम चूमती है. नालंदा जिले के चंडी प्रखंड के अनंतपुर गांव की रहने वाली अनीता कुमारी का जज्बा कुछ ऐसा ही है. अनीता ने बताया कि वे बीए (गृहविज्ञान) पास कुशल गृहणी थीं. उन के पति संजय कुमार बीए पास करने के बाद नौकरी की तलाश में काफी भटके, मगर जब नौकरी नहीं मिल पाई तो खेती करने लगे. उन लोगों के पास खेती लायक 3 एकड़ 23 डिसीमल जमीन थी. पति के साथ मेहनत करने के बाद किसी तरह अनीता के परिवार का गुजारा चल रहा था. अनीता सोचती थीं कि किस प्रकार से बच्चों को अच्छी तालीम दी जाए. इसी समस्या को ले कर अनीता कृषि विज्ञान केंद्र हरनौत गईं. वहां के कार्यक्रम संचालक से उन की मुलाकात हुई. उन्होंने अनीता को मशरूम उत्पादन की सलाह दी. कार्यक्रम संचालक के सहयोग से अनीता कृषि तकनीकी प्रबंध अभिकरण (आस्था) के जरीए सब से पहले रांची के कृषि विश्वविद्यालय गईं. वहां उन्होंने मशरूम उत्पादन के तौरतरीके सीखे और उस के फायदे आदि के बारे में जानकारी हासिल की.

इस के बाद अनीता ने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर और पंतनगर के कृषि विश्वविद्यालय में जा कर मशरूम उत्पादन के साथसाथ उस के बीज उत्पादन की तकनीक भी सीखी. आज अनीता इस काम में इतनी माहिर हो चुकी हैं कि अपने गांव में रोजाना 100 किलोग्राम मशरूम उत्पादन के लक्ष्य को अगले सीजन तक हासिल कर लेंगी. अनीता के समझाने से 200 लोग मशरूम उत्पादन की तालीम ले चुके हैं, जिन में ज्यादातर महिलाएं हैं. इन लोगों ने मशरूम उत्पादन भी शुरू कर दिया है.

अनीता मशरूम के बीज भी तैयार कर रही हैं. कृषक हित समूह की सचिव अनीता विकलांग महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हैं. राष्ट्रीय बागबानी मिशन के तहत अनीता को मशरूम स्पानलैब स्थापित करने के लिए करीब 15 लाख रुपए की जरूरत थी. उन्हें सरकार की ओर से 90 फीसदी सब्सिडी यानी 13 लाख 50 हजार रुपए अनुदान के रूप में दिए गए.

मशरूम उत्पादन व मधुमक्खीपालन की बदौलत अनीता की डिमांड जिले और राज्य के बड़े अधिकारियों के किचन तक हो गई है. ग्रामीण महिलाओं की माली हालत सुधारने के लिए राज्य सरकार की ओर से चलाए जा रहे ग्रामीण जीविकोपार्जन कार्यक्रम ‘जीविका’ की जिम्मेदारी भी उन्हीं को दी गई है.

समेकित कृषि प्रणाली ने अनीता व उन के परिवार की हालत ही बदल दी है. आज अनीता बदहाली की जिंदगी से निकल कर खुशहाल जिंदगी गुजार रही हैं. आज वे मशरूम उत्पादन, मशरूम बीज उत्पादन, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन व मुरगीपालन वगैरह के साथसाथ अन्य फसलों की खेती भी कर रही हैं.

मशरूम व मशरूम बीजों की 5 जिलों में बिक्री : अनीता आज मशरूम उत्पादन कक्ष व मशरूम बीज लैब की स्थापना कर चुकी हैं. उन के यहां रोजाना 20 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन हो रहा है. इस के अलावा रोजाना 100 किलोग्राम मशरूम बीज का उत्पादन भी हो रहा है. मशरूम व मशरूम के बीजों को 5 जिलों भागलपुर, पटना, हाजीपुर, नालंदा व मुंगेर में सप्लाई किया जा रहा है.

पटना के 575 घरों में हो रही होम डिलीवरी : अनीता मशरूम का अचार भी बनाती हैं. उन का क्षितिज एग्रोटेक से टाईअप हुआ है. इस के जरीए पटना के 575 घरों में मोबाइल से होम डिलीवरी हो रही है. शहद, अचार, सत्तू, आटा, चावल, मसूर दाल, चना दाल, अरहर दाल व बासमती चावल की डिलीवरी की जा रही है. वे एमेजेन कंपनी से भी बात कर रही हैं, ताकि उन के उत्पाद देश के हर राज्य व विदेशों में रहने वाले लोगों को आसानी से मिल सकें.

हर साल 3 क्विंटल शहद का उत्पादन : अनीता को मधुमक्खी के 50 बक्सों से हर साल 3 क्विंटल शहद हासिल हो रहा है. इस से करीब 45000 रुपए सालाना की आमदनी हो रही है.

सम्मान से काम का जोश बढ़ा : साल 2012 में उन्हें बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर द्वारा नवाचार कृषक पुरस्कार से नवाजा गया. साल 2015 में उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार से नवाजा गया.

इन सम्मानों से नवाजे जाने पर अनीता कहती हैं कि यह तो उन के काम का इनाम है. ये पुरस्कार मिलने से उन में नया जोश व उत्साह पैदा हुआ है और भविष्य में कुछ और बेहतर करने की प्रेरणा मिली है.

मुलायम परिवार विवाद का ये है पार्ट 2

समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के ताजा बयान से यह साफ हो चुका है कि मुलायम परिवार का विवाद खत्म नहीं हुआ था. साधना गुप्ता के बयान से यह भी साफ हो गया है कि उनकी अपनी महत्वाकांक्षा है. अब वह खुद राजनीति में न आना चाहती हों, पर अब वह पर्दे के पीछे नहीं रहना चाहती. साधना चाहती हैं कि उनका बेटा प्रतीक राजनीति में आये. साधना गुप्ता का मर्म कुछ ऐसा ही है जैसा साल 2000 के करीब था. साल 2000 में जब साधना गुप्ता की कोई पहचान नहीं नही थी. साल 2003 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो पहली बार साधना गुप्ता उनके साथ मुख्यमंत्री आवास में रहने गई. पहली बार मुलायम के सर्मथकों को यह पता चला था कि मुलायम की दूसरी पत्नी है.

इसी दौर में मुलायम पर आय से अधिक जायदाद का मसला उठा. वहां से प्रमाण मिला कि प्रतीक यादव मुलायम का बेटा है. उसके बाद साधना गुप्ता को सबकुछ ठीक लगने लगा था. परिवार में अंदर और बाहर साधना गुप्ता का अपना प्रभाव बन गया था. साल 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तब से साधना गुप्ता को परिवार में दूरी का अहसास होने लगा. यह सच है कि मुलायम और साधना की मुलाकात जिस समय हुई थी उस समय साधना राजनीति में आना चाहती थीं. अब साधना खुद स्वीकार करती हैं कि नेताजी ने उनको राजनीति में नहीं आने दिया.

2017 के विधानसभा चुनाव के पहले मुलायम परिवार में उठे झगड़े में साधना गुप्ता पूरी तरह से चुप थीं. चुनाव खत्म होते होते जिस तरह से साधना गुप्ता ने खुलकर अपनी बातचीत की और उसको बाकायदा प्रचारित किया गया उससे साफ है कि चुनाव परिणाम के बाद अगर सपा की प्रदेश में सरकार नहीं बनी तो अखिलेश यादव के खिलाफ मुलायम परिवार में विरोध के नये सुर सुनाई देंगे. अभी तक अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, इस कारण सपा संगठन पर उनका कब्जा आसानी से हो गया. अगर अखिलेश दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बने तो हालात बदले होंगे. ऐसे में कुर्सी से हटने के बाद अखिलेश को चुनौतियों का सामना करना सरल नहीं होगा.

अखिलेश के स्वभाव से वाकिफ लोगों का अंदाजा है कि अखिलेश यादव झुकने वाले नहीं हैं. कुर्सी पर रहें या कुर्सी पर न रहें, परिवार के विवाद पर उनका जो स्टैंड पहले था, वही आगे भी रहेगा. मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद विरोधी ही नहीं परिवार के लोग भी लाभ लेने के लिये अखिलेश को दवाब में लेंगे. साधना गुप्ता कहती हैं कि ‘अब तक चुप थी अब जवाब दूंगी. दुष्ट लोगों ने परिवार को तोड़ा है.’ पूरी बातचीत में साधना गुप्ता ने यह नहीं बताया कि दुष्ट कौन थे? अखिलेश की नजर में अमर सिंह इसके जिम्मेदार थे, अब वह पार्टी से बाहर हैं. असल में मुलायम के परिवार का विवाद राजनीतिक उत्तराधिकार से जुड़ा है. इसका पार्ट वन भले ही खत्म हो गया हो पर पार्ट टू बाकी है.

इस एक्ट्रेस ने पोस्ट की बिना कपड़ों की बाथरूम सेल्फी

टीवी के साथ ही साथ बॉलीवुड की फिल्म में भी अपने हुस्न का मायाजाल फैला चुकी मोहतरमा गीजेल ठकराल जो की टीवी के चर्चित रियलिट शो ‘बिग बॉस’ की एक्स-कंटेस्टेंट भी रह चुकी है वह फिर से अपने घर के बाथरूम में धूम मचाती हुई हमें नजर आ रही हैं. जी हां, अभी कुछ समय पहले ही ‘बिग बॉस’ की एक्स-कंटेस्टेंट गीजेल ठकराल ने अपना सिजलिंग फोटोशूट इंस्टाग्राम पर शेयर किया था, जो वायरल हुआ था.

जिसके बाद अब एक बार फिर से वह कुछ हॉट बाथरूम सेल्फी लेकर आई जिन्हें  हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे है. वैसे गीजेल ठकराल वही हैं जिन्होंने ‘बिग बॉस’ के 9वें सीजन में बतौर वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट एंट्री ली थी.

इसके अलावा वे फेमस किंगफिशर कैलेंडर में भी नजर आ चुकी हैं. टीवी पर वे लाइफ ओके के शो ‘वेलकम : बाजी मेहमानवाजी की’ और ‘सर्वाइवर इंडिया’ जैसे शोज में नजर आ चुकी हैं. उन्हें 2016 में रिलीज हुईं दो फिल्मों ‘मस्तीजादे’ और ‘क्या सुपरकूल हैं हम 3’ में देखा गया था. अबकी बार हॉट गीजेल ठकराल ने हाल ही में बाथरूम सेल्फी पोस्ट की हैं, जिसमें व्हाइट कलर के बाथरोब में नजर आ रहीं गीजेल एक ब्यूटी प्रोडक्ट को प्रमोट करती दिखाई दे रही हैं.

मेकअप से बढ़ता है महिलाओं का आत्मविश्वास

कामकाजी महिलाएं दफ्तरों में लिपीपुती हों या सुबह मुंह धोया, बाल बनाए और पुरुषों की तरह दफ्तरों में जा पहुंचीं, सवाल काफी दिनों से चर्चा में है. कुछ का कहना है कि महिलाओं को दफ्तरों, कारखानों, व्यवसायों में पुरुषों की तरह सधे कपड़ों में पर बिना मेकअप के आना चाहिए, तो कुछ का कहना है कि उन्हें भरसक आकर्षक बन कर रहना चाहिए. असल में यह विवाद वृद्ध होती कामकाजी महिलाओं और युवा महिलाओं के बीच है. पुरुषों को इस से क्या फर्क पड़ता है कि कामकाजी महिला कैसी दिख रही है. 2 नजर उठा कर देख लेने के बाद यह बेमानी हो जाता है और आदमी को काम से मतलब रह जाता है.

दूसरी साथी औरतें जरूर जलभुन जाती हैं. अनुभवी, होशियार पर शरीर पर कम ध्यान देने वाली औरतों को तब बुरा लगता है जब उन्हें लगे कि उन की प्रतियोगिता केवल काम में ही नहीं दिखने में भी है, वे इस बात पर सख्त एतराज करती हैं कि कामकाजी औरतें मेकअप कर के आएं.

बड़ी उम्र के पुरुष बौसों को रिझाने में अकसर मेकअप की हुई औरतें सफल हो जाती हैं और अपनी व्यावसायिक योग्यता में कमी को छिपा जाती हैं. इस का बहुतों को मलाल रहता है.

जिन क्षेत्रों में पर्सनैलिटी की खास जरूरत न हो वहां तो मेकअप विवाद का मामला बन जाता है. दरअसल, मेकअप करना हर औरत का प्राकृतिक अधिकार होना चाहिए. यह उस के व्यक्तित्व का हिस्सा है. जैसे बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, फटी कमीज वाले पुरुष किसी भी क्षेत्र में स्वीकार्य नहीं हैं, वैसे ही बिना स्मार्ट बने औरतें किसी भी क्षेत्र में स्वीकार्य नहीं रहतीं.

मेकअप आत्मविश्वास देता है, बल देता है, प्राकृतिक गुणों को उभारता है और उन्हें कैश करने का हक हर सुंदर स्त्री को है. जैसे कुछ बुद्धि का इस्तेमाल करती हैं, वैसे ही कुछ जन्म से मिले सौंदर्य का इस्तेमाल कर सकती हैं.

शिक्षा, खेलकूद, अभिनय, विवाह, मित्रता आदि में व्यक्तित्व का असर होता है और स्मार्ट स्त्रीपुरुष दोनों ही कुछ ज्यादा सफलता पाते हैं. इस पर एतराज नहीं होना चाहिए. इसे नकारना तो गलत ही होगा. मेकअप करना चाहे घर में हो, राजनीति में हो या फिर दफ्तरोंकारखानों में, गलत नहीं है पर अति हर चीज की बुरी होती है.

जल्लीकट्टू : पशुओं को सताना इंसानियत नहीं

जल्लीकट्टू खेल का यह नाम सल्ली कासू से बना है. सल्ली का मतलब सिक्का और कासू का मतलब सींगों में बंधा हुआ. सींगों में बंधे सिक्कों को हासिल करना इस खेल का मकसद होता है. धीरेधीरे सल्लीकासू का नाम जल्लीकट्टू हो गया. इस खेल से जुड़ी एक रोचक बात यह भी सुनी जाती है कि खेल के दौरान जो मर्द बंधन खोल देता था, उस को शादी के लिए दुलहन मिलती थी. लेकिन, अब यह प्रचलन में नहीं है. जल्लीकट्टू की परंपरा कई सालों से चली आ रही है और स्थानीय लोगों का कहना है कि यह खेल तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में बड़ा लोकप्रिय है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि सांड को काबू में करने के लिए उस के साथ कू्ररता बरती जाती थी.

तमिलनाडु के रहने वाले कुतुबुद्दीन कहते हैं, ‘‘लेकिन क्या इस वजह से जल्लीकट्टू पर ही रोक लगा दी जाए? शायद कड़ाई से इतनाभर कहना काफी होता कि पशु के साथ हिंसा का बरताव नहीं होना चाहिए. जानवर को कोई नुकसान न पहुंचे, यह पक्का करने के लिए जिला प्रशासन और पुलिस को निर्देश दिए जा सकते थे. इस से विवाद का दोनों पक्षों के लिए संतोषजनक हल निकलता, अदालत के फैसले और जनभावना के बीच टकराव नहीं होता.’’

चेन्नई के मरीना बीच पर लाखों लोग विरोधप्रदर्शन के लिए जुटे. रजनीकांत, ए आर रहमान, जग्गी वासुदेव जैसी फिल्मी हस्तियों समेत कई दूसरी शख्सीयतें इस आंदोलन को समर्थन देती दिखीं. मुंबई में भी लोग मानव श्रंखला बना कर जल्लीकट्टू के समर्थन में विरोधप्रदर्शन कर रहे थे.

वोटबैंक की राजनीति

तमिलनाडु में कोई राजनीतिक पार्टी इस खेल पर पूरे बैन का समर्थन नहीं करती. एक अखिल भारतीय औनलाइन जनमत के अनुसार 79.56 प्रतिशत लोग चाहते थे कि यह प्र्रथा बंद हो जाए जबकि सिर्फ 14.53 प्रतिशत चाहते थे कि यह प्रथा चलती रहनी चाहिए. लेकिन सवाल यह है कि क्या वे 14.53 प्रतिशत इतने प्रभावी हैं कि पूरी चेन्नई उन के प्रभाव से ग्रस्त है और सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़ रहे हैं?

जल्लीकट्टू के आयोजन पर लगी रोक के खिलाफ जारी विरोधप्रदर्शन के बीच केंद्र सरकार ने इस खेल के आयोजन को मंजूरी दे दी और अध्यादेश राज्य सरकार को सौंप दिया. क्यों? क्या आज की सरकार में इतना भी दम नहीं है कि वह 14 प्रतिशत लोगों का सामना कर सके, उन को समझा सके? क्यों हर बार सरकार को कुछ चंद लोगों के आगे झुकना पड़ जाता है? क्यों हर बार किसी प्रदेश, किसी जाति के लोगों से जुड़ी भावनाएं और विश्वास का हवाला दे कर किसी अच्छे विचार को टाल दिया जाता है या दबा दिया जाता है?

रजनीकांत व कमल हासन जैसी चर्चित हस्तियां और कुछ नेतावर्ग क्यों चाहते थे कि यह प्रथा चलती रहे? क्यों वे इस क्रूर प्रथा पर रोक के खिलाफ थे? क्या सदियों से चली आ रही नकारात्मक प्रथा को खत्म करना सही नहीं? असल में ये सब वोटबैंक की राजनीति है. अगर ये सब मुद्दे उठेंगे ही नहीं, तो ये सब लोग प्रसिद्घि कैसे पाएंगे, इन को पूछेगा कौन?

पशुओं के साथ क्रूरता

भोजन के लिए जानवर को मारा जाता है तो वह फिर भी न्यायसंगत है क्योंकि यह प्रकृतिदत्त है. पर अपने शौक के लिए किसी बेगुनाह को मारना या कष्ट देना कहां का न्याय है. कड़वी हकीकत यह है कि कुछ भद्र लोग सिर्फ अपने भय और आशंका को दूर करने के लिए बलि जैसे टोनेटोटके अपनाते हैं. यहां तक कि पाकिस्तान जैसे कई देश हैं, जहां के नेता या नामी लोग उड़ान से पहले रनवे पर एक काले बकरे की बलि देते हैं ताकि यात्रा सुगम व सुरक्षित रहे. क्या यह न्याय है, कतई नहीं.

जानीमानी कुछ जमीनी हस्तियों के मुताबिक, ‘‘जल्लीकट्टू के आयोजन के जरिए वे सांडों की बेहतर नस्ल संरक्षित करते हैं. उन के अनुसार, यह मशीनी युग है. मशीनी खेतीबाड़ी के इस दौर में पशुधन उपयोगी नहीं रह गया है.’’ कई का कहना है कि शायद इस प्रथा के जरिए वे पौरुष यानी मर्दवाद को स्थापित करना चाहते हैं.

आज की तारीख में जितने भी सभ्य माने जाने वाले अभिनेता जल्लीकट्टू का समर्थन करते हैं, उन्हें किसी समय में हम सब ने रुपहले परदे पर सांड के साथ भिड़ते हुए व जीतते हुए देखा है. वे शायद वही वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं. इस खेल में सांड को क्रूरता के साथ पीटा जाता है, कई लोग एकसाथ उस की पीठ पर सवार होते हैं, उसे शराब या नशीला पेय पिला कर हिंसक व उन्मुक्त किया जाता है, उन की आंखों में मिर्च तक डाली जाती है और उन की पूंछों को मरोड़ा भी जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें. परंपरा के नाम पर बेजबानों को तकलीफ देना आखिर कहां की इंसानियत है?

आफत बनते त्योहार

देश का हर तीजत्योहार अपने साथ कुछ न कुछ सिरदर्दी का मसला ले कर आता है. पूजा के दौरान लाउडस्पीकर गरजते हैं. प्रतिमाविसर्जन के समय ट्रैफिक की हालत खस्ता हो जाती है. लेकिन इन बातों का त्योहार के मूलभाव से कोई रिश्ता नहीं है. त्योहार का मूलभाव अकसर धार्मिक होता है. बहुत से लोगों को परेशानी होती है, परेशानी के मारे कुछ लोग अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं.

ज्यादा दिन नहीं हुए जब अदालत का फैसला आया था कि एक खास वक्त के बाद लाउडस्पीकर नहीं बजाया जा सकता. दीवाली के दिन ज्यादा शोर न हो, इसे ले कर भी एक सीमा निर्धारित की गई थी. सिरदर्दी पैदा करने वाली ऐसी बातों पर रोक लगती है, पर इस तरह की रोकथाम हमेशा विवाद पैदा करती है और फिर राजनीतिक विवाद के रूप में सामने आती है. यह शायद इंसानी प्रवृत्ति ही है कि वह जीव को तकलीफ दे कर खुश होता है. इसलिए ही, वह नहीं चाहता कि ऐसे उत्सव बंद हों.

त्योहार जैसे दशहरा, दीवाली, मकरसंक्रांति, पोंगल तथा होली का उत्साह मनोरंजन के लिए पशुओं पर शामत बन कर आते हैं. इन त्योहारों में सांडों की लड़ाई व बैलगाड़ी दौड़ जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन देश के अनेक हिस्सों में किया जाता है तथा पशुओं के साथ कू्ररतम तरीके से व्यवहार किया जाता है. इस प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन को आयोजक एवं दर्शक बड़े गौरव की बात मानते हैं, जबकि ये कृत्य भारतीय दंड विधान के अनुसार दंडनीय अपराधों की श्रेणी में शामिल हैं.

पशु कू्ररता अधिनियम 1960 एवं भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के अंतर्गत यह कृत्य वर्जित एवं दंडनीय है. इन के आयोजक एवं प्रायोजक सभी अपराधी माने जाते हैं. सांडों की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी प्रतिबंध लगाया जा चुका है. बग्घी दौड़ जैसे आयोजनों पर भी विभिन्न राज्यों की न्यायपालिका ने रोक लगाई है.

तमाम रोकों के बाद भी पशुओं की लड़ाई एवं बैलगाड़ी दौड़ का आयोजन लगातार किया जा रहा है. इस प्रकार के आयोजनों के बाकायदा विज्ञापन दिए जाते हैं. प्रिंट व टीवी चैनलों द्वारा ऐसे कार्यक्रमों का कवरेज भी किया जाता है. इसी प्रकार मध्य प्रदेश के महाकौशल एवं महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में बग्घी दौड़ के आयोजनों की खबरें भी मिलती हैं. वास्तव में ये तमाम घटनाएं हमारी परंपरा के खिलाफ तो हैं ही, साथ ही पशु प्रेमियों को परेशान करती हैं कि तमाम कानूनों के बाद भी पशुओं पर इस प्रकार के अत्याचार जारी हैं.

मुंबई में रहने वाले चेतन का कहना है, ‘‘यह एक ऐसी परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है. जल्लीकट्टू में वक्त बीतने के साथ कुछ बुराइयां आई हैं, जैसे सांड को चोट पहुंचाना आदि. इन्हें रोकने के लिए कोई नियम बनता है तो लोग

उसे मानेंगे. सांड को चोट पहुंचाना जल्लीकट्टू का असल मकसद नहीं है. यह बहुतकुछ वैसा ही है जैसे कि त्योहार में लाउडस्पीकर बजाना. रोक लगाने की जगह पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार के पक्षधर लोग यानी पीपल्स फौर द ऐथिकल ट्रीटमैंट औफ ऐनिमल्स संस्था के कार्यकर्ताओं और कोर्ट को जल्लीकट्टू के इस पहलू पर विचार करना चाहिए था. महाराष्ट्र के दहीहांडी वाले मामले में जैसा आदेश दिया गया था, कुछ वैसा ही जल्लीकट्टू के मामले में कारगर होता.’’

आंकड़े यह भी बताते हैं कि ऐसे आयोजनों में बहुत से लोग घायल होते हैं या मारे जाते हैं. यह हिंसा फिर मानव की, मानव के खिलाफ इस्तेमाल होती है. कुछ लोगों, जो इस प्रथा का समर्थन करते हैं, का मानना है, ‘‘यह स्पेन की बुल फाइट से अलग है. जल्लीकट्टू हजारों वर्षों से खेला जाने वाला खेल है. इस में सांड को मारा नहीं जाता. सारा खेल तीखे सींग वाले सांड पर बांधे गए सोने या पैसे को खोलने का होता है.’’

इस के विपरीत, इस खेल का समर्थन करने वाले बालकुमारन सोमू कहते हैं, ‘‘तमिलनाडु में 6 स्थानीय नस्लें थीं. उन में से एक नस्ल अलामबदी को तो आधिकारिक तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया गया है. सरकार का बैन लगा रहा तो बची नस्लें भी खत्म हो जाएंगी.’’ वहीं कार्तिकेयन शिव सेनापति कहते हैं, ‘‘जल्लीकट्टू ने लोगों को उत्साहित किया है कि वे अपने बैलों, सांडों को पालें. चूंकि यह परिवार और समुदाय की इज्जत की बात है, किसान उन का अच्छा खयाल रखते हैं. ये बैन लागू रहा तो लोगों में सांडों को रखने का उत्साह नहीं बचेगा.’’

जल्लीकट्टू का समर्थन करने वालों का कहना है, ‘‘घोड़ों की रेस पर क्यों कोई रोक नहीं लगाई जाती, या मंदिरों में रखे जाने वाले हाथियों पर कोई कुछ क्यों नहीं कहता? अगर कोई सांड को मारता है, उसे चोट पहुंचाता है तो उसे पकड़ें, सजा दें, इस में कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन इस के लिए इस खेल पर बैन लगाना सही नहीं.’’

कोलकाता निवासी अमित अंबस्था का मानना है, ‘‘संस्कृति और परंपरा के नाम पर बेजबान जानवरों से हिंसक खेल 21वीं सदी में स्वीकार्य नहीं है. अकसर हम लोगों में से ही कुछ या सरकार कहती है कि ‘सोच बदलो, तो देश बदलेगा.’ पर क्या, ऐसी सोच के साथ देश बदलेगा? सोच बदलने के लिए पहले हम को खुद भी तो बदलना होगा.’’

मनुष्य, पशु, धर्म और कानून

मनुष्य पशुपक्षियों पर कितना और किसकिस प्रकार अत्याचार करता है, कितनी बुरी तरह से उन का उत्पीड़न कर रहा है, इस को आएदिन सामान्य जीवन में देखा जा सकता है. यह और भी दुख व खेद की बात है कि मनुष्य का यह अत्याचार उन्हीं पशुपक्षियों पर चल रहा है जो उस के लिए उपयोगी, उस के मित्र, सेवक तथा सुखदुख के साथी व आज्ञाकारी हैं.

पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार यह सही नहीं है कि एक जानवर को बस अपनी नस्ल बचाने के लिए हिंसाभरी जिंदगी जीनी पड़े. जल्लीकट्टू के लिए सर्वोच्च न्यायालय की सहमति हासिल करने के तमिलनाडु सरकार के प्रयास नाकाम हो गए. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह 3,500 वर्षों पुरानी परंपरा है जो धर्म से जुड़ी है. पर न्यायपीठ ने कहा, ‘‘यह धर्म से मेल या जुड़ाव नहीं है.’’

यहां तक कि वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर ने भी कहा, ‘‘यही एक सामाजिक, सांस्कृतिक आयोजन है जो फसलों की कटाई से जुड़ा है. यह धार्मिक प्रचलन नहीं है. इस का धर्म से कोई लेनादेना नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत दी गईर् धर्म की स्वतंत्रता की धारणा से यह बाहर है.’’ इसे वर्ष 1964 के पशु अत्याचार निरोध कानून के खिलाफ करार देते हुए अदालत ने 7 मई, 2014 के फैसले में सांड से लड़ाई पर प्रतिबंध लगाया था. उस में कहा गया था, ‘‘सांड को किसी अभिनय में भाग लेने का हिस्सा नहीं बनाया जाए चाहे वह जल्लीकट्टू का कार्यक्रम हो या बैलगाड़ी की दौड़.’’

नेता, अभिनेता या कुछ सभ्रांत लोग अगर कुछ करते हैं तो किसी न किसी राजनीति के तहत ही करते हैं. किसी भी मुद्दे को उठाओ और उस को बीच में ही छोड़ दो, क्योंकि अगर मुद्दा खत्म हो गया तो जिन्हें लाभ होता है उन को पूछेगा कौन? इसलिए हर मुद्दा 2-4 दिनों या कुछ महीनों तक चर्चा में रहता है. बाद में इस मसले को बीच में ही दबा दिया जाता है. यह सब राजनीति का तरीका है.

2 युवतियों का साथ रहना ज्यादा सुखद

पुलिस ने परिवारों की शिकायतों पर 2 युवतियों को 2 साल तक लापता रहने के बाद साथ रहते पाया और पता चला कि दोनों ने मरजी से परिवारों के खिलाफ जा कर साथ रहने का फैसला किया था. एक जयपुर में अकाउंटैंट का काम कर रही है तो दूसरी रिसैप्शनिस्ट है. दोनों में शारीरिक संबंध हैं या नहीं, यह तो जांचा नहीं गया पर पुलिस बीच में इसलिए पड़ी कि परिवारों ने उन के अपहरण की आशंका जताई थी. गनीमत है कि पुलिस ने बयान ले कर उन्हें छोड़ दिया और परिवारों को कहा कि वे अपनी बेटियों को समझाना चाहें तो समझाएं.

2 युवतियों का साथ रहना अब धीरेधीरे बहुत आम होता जाएगा. लिव इन रिलेशनशिप में युवक के साथ रहना युवती पर बहुत भारी पड़ता है. उसे हर समय गर्भवती होने का डर तो रहता ही है, पड़ोसियों और सहयोगियों के मजाक का भी पात्र बनना पड़ता है. 2 लड़कियां साथ रहें तो आमतौर पर आपत्तियां नहीं उठतीं और समाज उलटे थोड़ा सहयोगी बना रहता है. लोग उन्हें छेड़ने वालों से बचाते हैं, चाहे बंद दरवाजे के पीछे वे कैसे भी रहती हों.

अगर कसबों, गांवों से आकर शहरों में रहना पड़े तो 2-3 लड़कियों का साथ रहना सब से ज्यादा सुखद व सरल है. उन के बीच अगर यौन संबंध हों तो शायद लड़कों का दखल भी न हो और वे आराम से वर्षों साथ रह सकती हैं. हां, पैसे को ले कर विवाद खड़े हो सकते हैं पर ये विवाद तो स्त्रीपुरुष विवादों में भी खड़े होते हैं.

घरों से दूर रह रही लड़कियों के मातापिताओं के लिए भी यह स्थिति सुखद है, क्योंकि इस में जो बहनापा या मित्रता पनपती है, वह ज्यादा स्थाई, सुरक्षित व स्नेहभरी होती है. लड़कियां एकदूसरे को अच्छी तरह समझती हैं.

इस मामले में लड़कियां लापता हुईं या परिवारों को बता कर गईं अभी पता नहीं है पर यह पक्का है कि घर वाले जानते थे कि वे कहां और कैसी हैं वरना 2 साल तक हल्ला मचाते रहते.

वे खुद नहीं चाहते होंगे कि लोग बातें बनाएं. असल में तो परिवारों को इस तरह के संबंधों को विवाह से पहले प्रोत्साहन देना चाहिए, क्योंकि 2 लड़कियां जब बहनें न हो कर साथ रहें तो ही जान पाती हैं कि साथ रहने में कैसा लेनदेन और कैसी अपेक्षाएं होती हैं. यही ज्ञान विवाह बाद काम आता है.

2 लड़कियों को साथ रहने पर जमीनी हकीकत पता चल जाती है और वे बेहतर पत्नियां बन सकती हैं.

इस हसीना की ये तस्वीरें बढ़ा सकती हैं तापमान

रियलिटी स्टार और मॉडल काइली जेनर के बोल्ड लुक की कुछ फोटोज सामने आई हैं. उन्होंने एक फोटोशूट करवाया है. काइली के ऐसे फोटोज उनके फैन्स ने शायद पहले नहीं देखे होंगे.

उनकी शूट की फोटोज सोशल साइट्स पर भी खूब वायरल हो रही हैं. शूट की फोटोज ब्लैक एंड व्हाइट हैं. बता दें कि उन्होंने इंस्टाग्राम पर भी इस शूट की कुछ फोटोज शेयर किए हैं.

फैशन शो में टॉपलेस हो पहुंची ये गायिका

अमेरिकन रैपर निकी मिनाज अपनी कई विवादित फोटोज की वजह से चर्चा में बनी रहती हैं. निकी हाल ही में पेरिस फैशन वीक में नजर आई. वह इस शो में बेहद हॉट तो लग रही थी लेकिन उन्होंने ऐसा टॉप पहना था जिसके कारण उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा. निकी ने हाफ साइड कवर करने वाला टॉप पहना था जिसमें उनका प्राइवेट पार्ट दिख रहा था. हाफ टॉपलेस होने की वजह से निकी की फोटोज सोशल साइट पर चर्चा में आ गई. इंटरनेशनल मीडिया में भी इन्हें काफी पब्लिश किया गया.

बता दें कि 34 साल की रैपर दुनिया भर में जानी जाती हैं. इससे पहले सिंगर लिल किम ने 1999 में एमटीवी वीडियो म्यूजिक अवॉर्ड में खुद के ब्रेस्ट को खुला छोड़ दिया था. साल 2004 से ही निकी सिंगिंग कर रही हैं. इस दौरान अलग-अलग देशों में उन्होंने परफॉर्मेंस दी है.

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