‘Bajigar 2’ में दोबारा दिखेंगे शाहरुख और काजोल, बाजीगर के सीक्‍वेल की तैयारी शुरू

शाहरुख खान (Shahrukh khan) बौलीवुड की जान है और उनकी जोड़ी काजोल (Kajal) के साथ आज भी पर्दे पर या किसी रिएलिटी शो में देखने के लिए फैंस बेताब रहते हैं. उनकी जोड़ी दोनों की पहली फिल्म ‘बाजीगर’ से हिट हुई थी. इसी मूवी ने शाहरुख का पैर बौलीवुड में जमाने में मदद की . जल्‍दी ही फिल्म ‘बाजीगर’ का सीक्‍वेल बनने जा रही है. इसके लीड रोल में शाहरुख खान ही नजर आने वाले हैं, यही बात मूवी की एक्‍ट्रैस काजोल के लिए भी कही जा रही है.

मिली थी जान से मारने की धमकी

आपको बता दें कि इन दिनों शाहरुख खान सुर्खियों में है क्योंकि उनको जान से मारने की धमकियां मिल रही थी. इसी बीच शाहरुख के चाहने वालों के लिए ‘बाजीगर 2’ की खबर आ गई. बता दें कि ‘बाजीगर’ को रिलीज हुए 31 साल हो चुके हैं. फिल्म के प्रोड्यूसर रतन जैन का कहना है कि बाजीगर 2 के स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है. यह फिल्म जरूर बनेंगी और शाहरुख ही इस फिल्म में  हीरो का रोल करेंगे.

आपको बता दें, कि शाहरुख खान के करियर के शुरुआती दिनों की ये फिल्म है जिसमें उन्हें नेगेटिव रोल किया था. शाहरुख खान का यह रोल विलेन जैसा था. इन्होंने फिल्म में एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी के किरदार का मर्डर किया था, फिर उसकी बहन काजोल को प्यार में फंसाया था. दरअसल वह ये सब अपनी पिता और बहन की मौत का बदला लेने के लिए करते हैं. कहा जाता है कि यह रोल शाहरुख खान से पहले अक्षय कुमार को औफर किया गया था लेकिन अक्षय ने नेगेटिव रोल को देख कर बाजीगर करने से इनकार कर दिया.

शाहरुख के करियर के शुरुआती दिनों में उनके लुक के बारे में यह कहा जाता था कि वह हीरो की तरह तो बिलकुल नहीं दिखते हैं. इस कारण वह हिंदी मूवीज में हीरो का रोल नहीं निभा पाएंगे. इस वजह से पहले उन्हें  दूरदर्शन पर  फौजी  नाम के सीरियल में एक्टिंग करने का मौका मिला. हिंदी मूवीज में बाजीगर को एक लैंडमार्क मूवी माना जा सकता है कि क्‍योंकि इसी के बाद हीरो के किरदार को ग्रे शेड में नजर आना शुरू हुआ, ग्रे से यहां मतलब है अच्‍छा और बुरा दोनों का अंश.

अब एक बार फिर से बाजीगर के मेकर्स में नई उम्मीद जागी है इसलिए वे ‘बाजीगर पार्ट 2’ लेकर आ रहे हैं इसमें शाहरुख नए रोल में पुराने एक्टर के तौर पर नजर आएंगे. मेकर्स का कहना है कि वे शाहरुख से इस बारे में बात कर रहे हैं लेकिन उनकी तरफ से अभी तक कोई रिएक्शन नहीं आया है. अभी स्क्रिप्ट की तलाश में है और डायरेक्‍शन भी नया रखना चाहते हैं. इस मूवी के तीनों स्‍टार शिल्‍पा शेट्टी, काजोल और शाहरुख खान आज बौलीवुड में अपनी जबरदस्‍त पहचान बना चुके हैं.

सलमान खान और अजय देवगन दिखेंगे साथ साथ, चुलबुल पांडे वर्सेज सिंघम

सालो पहले रोहित शेट्टी ने अजय देवगन को एक निडर पुलिस ओफिसर बाजीराव सिंघम  तौर पर सभी दर्शको से मिलवाया. दर्शक आज सिंघम बने अजय देवगन को टीवी पर देखने के लिए बेकरार रहते है.

अब इस आइकोनिक किरदार में नजर आ रहे है. हाल में एक इंटरव्यू में रोहिट शेट्टी ने बात पर खुलासा किया है कि क्या वे सलमान खान और अजय देवगन को स्टैंडओन फिल्म चुनबुल पांडे vs. सिंघम की योजना बना रहे है. जो उनके कौप यूनिवर्स से अलग है.

 

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मीडियो में रोहित और अजय से सवाल किया गया है कि क्या दर्शक बाजीराव सिंघम और चुलबुल पांडे को एक साथ देखना चाहेंगे. दर्शको का इस बात रिएक्शन आया कि हौल में ही खलबली मच उठी. जब उनसे पूछा गया कि इन दो किरदारों को आमने सामने देखना चाहते है. तो इस पर खुद अजय देवगन बोल उठे की ‘मुझे तो पता ही था.’

जब रोहित से फ्यूचर प्लांस के बारें में आगे पूछा जाता है तो उन्हे मजाक में कहा जाया है कि अभी तो सिंघम अगेन को एक हफ्ता भी नहीं हुआ है. थोड़ा वक्त दो.” साथ ही जब उनसे मिशन चुलबुल सिंघम के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “इसमें वक्त लगेगा.” उन्होंने यह भी साफ किया कि अगर चुलबुल पांडे Vs सिंघम जैसी कोई फिल्म बनेगी, तो वह एक स्टैंडअलोन फिल्म होगी.

सलमान खान और अजय देवगन अपने बौन्ड को देखकर कि हमने साथ शुरुआत की थी.वो एक दो साल पहले आए थे. हमने हमेशा बढ़ियो बौन्ड शेयर किया.हम सभी ने जब शुरुआत की थी अच्छा रिश्ता शेयर करते थे. हम एक दूसरे को आधी रात में भी कौल कर देते थे. हमे पता है कि हम एक दूसरे के लिए खड़े रहते है.

सलमान खान की शूटिंग की बात करें तो वे इन दिनों फिल्म सिंकदर की शूटिंग में बीजी है. बता दें कि ईश 2025 को सलमान खान कि सिंकदर रीलीज होगी.  उम्‍मीद है कि फैंस को भी अजय और सलमान को आमने सामने देखने में ज्‍यादा मजा आएगा.

बेरहम बेटी : प्यार पाने के लिए कर दी अपने पिता की हत्या

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु देश का तीसरा सब से बड़ा नगर है. बेंगलुरु के राजाजी नगर थाना क्षेत्र में भाष्यम सर्कल के पास वाटल नागराज रोड स्थित पांचवें ब्लौक के 17वें बी क्रौस में जयकुमार जैन अपने परिवार के साथ रहते थे.

जयकुमार जैन का कपड़े का थोक व्यापार था. पत्नी पूजा के अलावा उन के परिवार में 15 वर्षीय बेटी राशि (काल्पनिक नाम) और उस से छोटा एक बेटा था. जयकुमार मूलरूप से राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर के पास स्थित मेढ़ गांव के निवासी थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐशोआराम की जिंदगी जीने में यकीन करते थे.

जैन परिवार को देख कर कोई भी वैसी ही जिंदगी की तमन्ना कर सकता था. इस परिवार में सब कुछ था. सुख, शांति और समृद्धि के अलावा संपन्नता भी. ये सभी चीजें आमतौर से हर घर में एक साथ नहीं रह पातीं. मातापिता अपनी बेटी व बेटे पर जान छिड़कते थे. 41 वर्षीय जयकुमार जैन चाहते थे कि उन की बेटी राशि जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे.

उन की पत्नी पूजा व बेटे को पुडुचेरी में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना था. जयकुमार जैन शाम 7 बजे पत्नी व बेटे को कार से रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए गए. इस बीच घर पर उन की बेटी राशि अकेली रही. यह बात 17 अगस्त, 2019 शनिवार की है.

पत्नी व बेटे को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद जयकुमार घर वापस आ गए. घर आने के बाद बापबेटी ने साथसाथ डिनर किया. रात को उन की बेटी राशि पापा के लिए दूध का गिलास ले कर कमरे में आई और उन्हें पकड़ाते हुए बोली, ‘‘पापा, दूध पी लीजिए.’’

वैसे तो प्रतिदिन रात को सोते समय ये कार्य उन की पत्नी करती थी. लेकिन आज पत्नी के चले जाने पर बेटी ने यह फर्ज निभाया था. दूध पीने के बाद जयकुमार जैन अपने कमरे में जा कर सो गए. दूसरे दिन यानी 18 अगस्त रविवार को सुबह लगभग 7 बजे पड़ोसियों ने जयकुमार जैन के मकान के बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें और धुआं निकलते देख कर फायर ब्रिगेड के साथसाथ पुलिस को सूचना दी. इस बीच जयकुमार की बेटी राशि ने भी शोर मचाया.सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी बताए गए पते पर पहुंची और जयकुमार के मकान के अंदर पहुंच कर उन के बाथरूम में लगी आग को बुझाया. दमकलकर्मियों ने बाथरूम के अंदर जयकुमार जैन का झुलसा हुआ शव देखा.

कपड़ा व्यापारी जयकुमार के मकान के बाथरूम में आग लगने और आग में जल कर उन की मृत्यु होने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते जयकुमार जैन के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा हो गई. जिस ने भी सुना कि कपड़ा व्यवसाई की जलने से मौत हो गई, वह सकते में आ गया.

आग बुझाने के दौरान थाना राजाजीपुरम की पुलिस भी पहुंच गई थी. मौकाएवारदात पर पुलिस ने पूछताछ शुरू की.

बेटी का बयान  मृतक जयकुमार की बेटी ने पुलिस को बताया कि सुबह पापा नहाने के लिए बाथरूम में गए थे, तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट से आग लगने से पापा झुलस गए और उन की मौत हो गई. घटना के समय जयकुमार के घर पर मौजूद युवक प्रवीण ने बताया कि आग लगने पर हम दोनों ने आग बुझाने का प्रयास किया. आग बुझाने के दौरान हम लोगों के हाथपैर भी झुलस गए.

मामला चूंकि एक धनाढ्य प्रतिष्ठित व्यवसाई परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया था. खबर पा कर सहायक पुलिस आयुक्त वी. धनंजय कुमार व डीसीपी एन. शशिकुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. मौके से आवश्यक साक्ष्य जुटाने व जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने व्यवसाई जयकुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए विक्टोरिया हौस्पिटल भेज दी.

पुलिस ने भी यही अनुमान लगाया कि व्यवसाई जयकुमार की मौत शौर्ट सर्किट से लगी आग में झुलसने की वजह से हुई होगी. लेकिन जयकुमार के शव की स्थिति देख कर पुलिस को संदेह हुआ. प्राथमिक जांच में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया, इसलिए पुलिस ने इसे संदेहास्पद करार देते हुए मामला दर्ज कर गहन पड़ताल शुरू कर दी.

डीसीपी एन. शशिकुमार ने इस सनसनीखेज घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए तुरंत अलगअलग टीमें गठित कर आवश्यक निर्देश दिए. पुलिस टीमों द्वारा आसपास रहने वाले लोगों व बच्चों से अलगअलग पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली बात सामने आई.

पुलिस को मृतक जयकुमार की बेटी राशि व पड़ोसी युवक प्रवीण के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिली. घटना के समय भी प्रवीण जयकुमार के घर पर मौजूद था.

पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जरूर दाल में कुछ काला है. मकान में जांच के दौरान फोरैंसिक टीम को गद्दे पर खून के दाग मिले थे, जिन्हें साफ किया गया था. इस के साथ ही फर्श व दीवार पर भी खून साफ किए जाने के चिह्न थे.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के झुलसने से पहले उस की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. इस के बाद उच्चाधिकारियों को पूरी जानकारी से अवगत कराया गया. पुलिस का शक मृतक की बेटी राशि व उस के बौयफ्रैंड प्रवीण पर गया.

पुलिस ने दूसरे दिन ही दोनों को हिरासत में ले कर उन से घटना के संबंध में अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही दोनों के मोबाइल भी पुलिस ने कब्जे में ले लिए. जब राशि और प्रवीण से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और सवालों में उलझ कर पूरा घटनाक्रम बता दिया. दोनों ने जयकुमार की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप देने की बात कबूल कर ली.

डीसीपी एन. शशिकुमार ने सोमवार 19 अगस्त को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर गहन पड़ताल की. इस के साथ ही जयकुमार जैन हत्याकांड 24 घंटे में सुलझा कर मृतक की 15 वर्षीय नाबालिग बेटी राशि और उस के 19 वर्षीय प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जिसे घर में छिपा कर रखा गया था, बरामद कर लिया गया. साथ ही खून से सना गद्दा, कपड़े व अन्य साक्ष्य भी जुटा लिए गए. हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जयकुमार जैन की बेटी बेंगलुरु शहर के ही एक इंटरनैशनल स्कूल में पढ़ती थी. उसी स्कूल में जयकुमार के पड़ोस में ही तीसरे ब्लौक में रहने वाला प्रवीण कुमार भी पढ़ता था. प्रवीण के पिता एक निजी कंपनी में काम करते थे.

कुछ महीने पहले उस के पिता सहित कई कर्मचारियों को कुछ लाख रुपए दे कर कंपनी ने हटा दिया था. ये रुपए पिता ने प्रवीण के नाम से बैंक में जमा कर दिए थे. इन रुपयों के ब्याज से ही परिवार का गुजारा चलता था. प्रवीण उन का एकलौता बेटा था.

राशि और प्रवीण में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे. प्रवीण राशि से 3 साल सीनियर था. फिलहाल राशि 10वीं की छात्रा थी, जबकि इंटर करने के बाद प्रवीण ने शहर के एक प्राइवेट कालेज में बी.कौम फर्स्ट ईयर में एडमीशन ले लिया था. अलगअलग कालेज होने के कारण दोनों का मिलना कम ही हो पाता था. इस के चलते राशि अपने प्रेमी से अकसर फोन पर बात करती रहती थी.

मौडल बनने की चाह  अकसर देर तक बेटी का मोबाइल पर बात करना और चैटिंग में लगे रहना पिता जयकुमार को पसंद नहीं था. बेटी को ले कर उन के मन में सुनहरे सपने थे. राशि और प्रवीण की दोस्ती को ले कर भी पिता को आपत्ति थी. जयकुमार ने कई बार राशि को प्रवीण से दूर रहने को कहा था. राशि को पिता की ये सब हिदायतें पसंद नहीं थीं.

महत्त्वाकांक्षी राशि देखने में स्मार्ट थी. गठा बदन व अच्छी लंबाई के कारण वह अपनी उम्र से अधिक की दिखाई देती थी. उसे फैशन के हिसाब से कपड़े पहनना पसंद था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो मौडलिंग, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही बात होती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि एक बार परिवार को गुमराह कर के राशि अपनी सहेलियों के साथ शहर से बाहर घूमने के बहाने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. मुंबई में 4 दिन रह कर उस ने कई फोटो शूट कराए थे और फैशन शो में भी भाग लिया.

उस ने मुंबई से अपनी मां को फोन कर बताया था कि वह मुंबई में है और 5 दिन बाद घर लौटेगी. बेटी के चुपचाप मुंबई जाने की जानकारी जब पिता जयकुमार को लगी तो वह बेहद नाराज हुए. राशि के लौटने पर उन्होंने उस की बेल्ट से पिटाई की और उस का मोबाइल छीन लिया.

जयकुमार को बेटी की सहेलियों से पता चला था कि राशि उन के साथ नहीं, बल्कि अपने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. इस जानकारी ने उन के गुस्से में आग में घी का काम किया.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता जयकुमार को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता रहती थी. जबकि राशि के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने प्रवीण की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का दीवाना हर पल उस की आंखों के सामने रहे. पिता द्वारा जब राशि पर ज्यादा पाबंदियां लगा दी गईं, तब दोनों चोरीचोरी शौपिंग मौल में मिलने लगे.

पिता द्वारा मोबाइल छीनने की बात जब राशि ने अपने प्रेमी को बताई तो उस ने राशि को दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया. अब राशि चोरीछिपे प्रवीण के दिए मोबाइल से बात करने लगी. जल्दी ही इस का पता राशि के पिता को चल गया. उन्होंने उस का वह मोबाइल भी छीन लिया. इस से राशि का मन विद्रोही हो गया.

पिता की हिदायत व रोकटोक से नाराज राशि ने प्रवीण को पूरी बात बताने के साथ अपनी खोई आजादी वापस पाने के लिए कोई कदम उठाने की बात कही. हत्या के आरोप में गिरफ्तार मृतक की नाबालिग बेटी ने खुलासा किया कि वह पिछले एक महीने से पिता की हत्या की योजना बना रही थी.

इस दौरान उस ने टीवी सीरियल, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हत्या करने के विभिन्न तरीकों की पड़ताल की थी. उस ने प्रेमी दोस्त प्रवीण के साथ मिल कर हत्या की योजना को अंजाम देने का षडयंत्र रचा. दोनों जुलाई महीने से ही जयकुमार की हत्या के प्रयास में लगे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.

अंतत: 17 अगस्त को जब राशि की मां और भाई एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पुडुचेरी गए तो उन्हें मौका मिल गया. यह कलयुगी बेटी अपने पिता की हत्या करने तक को उतारू हो गई. उस ने हत्या की पूरी योजना बना डाली.

जालिम बेटी  राशि ने घर में किसी के नहीं होने का फायदा उठा कर योजना के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद पिता को पीने को जो दूध दिया, उस में नींद की 6 गोलियां मिला दी थीं. कुछ ही देर में पिता बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

पिता को सोया देख राशि ने उन्हें आवाज दे कर व थपथपा कर जाना कि वह पूरी तरह बेहोश हुए या नहीं.  संतुष्ट हो जाने पर राशि ने प्रवीण  को फोन कर घर बुला लिया. वह चाकू साथ ले कर आया था. घर में रखे चाकू व प्रवीण द्वारा लाए चाकू से दोनों ने बिस्तर पर बेहोश पड़े जयकुमार जैन के गले व शरीर पर बेरहमी से कई वार किए, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद दोनों शव को घसीट कर बाथरूम में ले गए.

हत्या के सबूत मिटाने के लिए कमरे में फैला खून व दीवार पर लगे खून के छींटे साफ करने के बाद बिस्तर की चादर वाशिंग मशीन में धो कर सूखने के लिए फैला दी. इस के बाद दोनों आगे की योजना बनाने लगे. सुबह 7 बजते ही राशि घर से निकली और 3 बोतलों में पैट्रोल ले कर आ गई. दोनों ने बाथरूम में लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

इस दौरान दोनों के पैर व प्रवीण के हाथ भी आंशिक रूप से झुलस गए. आग लगते ही पैट्रोल की वजह से तेजी से आग की लपटें और धुआं निकलने लगा. बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें व धुआं निकलता देख कर पड़ोसियों ने फायर ब्रिगेड व पुलिस को फोन कर दिया था.

इस बीच राशि ने नाटक करते हुए मदद के लिए शोर मचाया और लोगों को बताया कि उस के पिता बाथरूम में नहाने गए थे तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट होने से आग लग गई, जिस से वह जल गए. इस तरह दोनों ने हत्या को दुर्घटना का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए.

बेटी को पिता की हत्या करने का फिलहाल कोई मलाल नहीं है. हत्याकांड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तब परिवार के सभी लोग अचंभित रह गए. सोमवार की शाम को राशि की मां व भाई भी लौट आए थे. मां ने कहा कि शायद हमारी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी.

हालांकि घर वालों ने उसे पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने को कहा, लेकिन राशि ने साफ इनकार कर दिया. उधर प्रवीण के मातापिता को अपने बेटे के प्रेम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी.

प्रवीण राशि के पिता से नाराज था. उस ने गिरफ्तारी के बाद बताया कि उन्होंने उसे सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए अपनी बेटी से दूर रहने को कहा था. साथ ही कुछ दिन पहले उन्होंने राशि का मोबाइल छीन लिया था.

इस पर उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को नया मोबाइल गिफ्ट किया तो उस के पिता ने वह भी छीन लिया. वह उस की गर्लफ्रैंड को पीटते, डांटते थे, जो उसे अच्छा नहीं लगता था. आखिर में प्रवीण ने अपनी गर्लफ्रैंड को पिता की प्रताड़ना से बचाने का फैसला लिया.

मंगलवार को हत्यारोपी बेटी से मिलने कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा. लड़की की मां भी घर पर ही रही. राशि ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने पिता को चाकू नहीं मारा, लेकिन घटना के समय वह मौजूद थी.  राजाजीनगर पुलिस द्वारा मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सामने राशि को पेश किया, जहां के आदेश के बाद उसे बलकियारा बाल मंदिर भेज दिया गया. राशि सामान्य दिखाई दे रही थी.

जब उसे जेजेबी के सामने ले जाया गया तो उस के चेहरे पर अपने पिता की हत्या करने का कोई पश्चाताप नहीं दिखा. वहीं राशि के प्रेमी प्रवीण को मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

हत्या करना इतना आसान काम नहीं होता. प्रवीण और राशि ने योजना बनाते समय अपनी तरफ से तमाम ऐहतियात बरती. दोनों हत्या को हादसा साबित करना चाहते थे. लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता.

बेटा हो या बेटी, मांबाप को उन के चरित्र और व्यक्तित्व का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर गलत राहों पर उतर जाते हैं तो उन्हें संभाल पाना आसान नहीं होता.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गर्लफ्रैंड के साथ सैक्स करने का मन करता है, उसे कैसे मनाऊं?

सवाल

मैं कालेज में पढ़ने वाला युवक हूं. इसी कालेज में एक लड़की से मेरी मुलाकात हुई. धीरेधीरे हम दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे. हम दोनों एकदूसरे को प्यार भी करने लगे. अब उसे इस कदर चाहने लगा हूं कि उस के साथ सैक्स करना चाहता हूं. मैं उसे सैक्स के लिए किस तरह राजी करूं?

जवाब

अगर आप अपनी गर्लफ्रैंड के साथ सैक्स करना चाहते हैं तो यह आप की इच्छा है लेकिन इस के लिए अपनी गर्लफ्रैंड की राय भी आप को जान लेनी चाहिए कि क्या वह भी आप के साथ सैक्स करने को इच्छुक है?

आप दोनों ही रिलेशन में हैं और युवकयुवती हैं. इसलिए सैक्स का होना एक आम बात है मगर यह आपसी रजामंदी से हो तभी ठीक है। लेकिन आप की परेशानी यह है कि आप अपनी गर्लफ्रैंड को सैक्स के लिए कैसे मनाएं.

  • किसी भी युवती को सैक्स के लिए मनाने से पहले उस पर अपना भरोसा बनाएं. उसे हर बात की पहले जानकारी दें कि इस तरह या ऐसे करने से सैक्स होता है.
  • आप उसे कंडोम की जानकारी दें क्योंकि हो सकता है कि उसे इस बात की जानकारी न हो या फिर उसे डर हो कि सैक्स के बाद वह असमय प्रैगनैंट न हो जाए.
  • अलबत्ता, भरोसा जीतने के साथसाथ आप उस की बातों पर गौर करें कि वह क्या चाह रही है, उस के अंदर आप के लिए फीलिंग्स है या नहीं. इस तरह आप जान पाएंगे कि आप की गर्लफ्रैंड सैक्स करना चाहती है या नहीं क्योंकि रिलेशनशिप में किसी भी तरह की जोरजबरदस्ती करना बेकार है.
  • सैक्स के लिए यह भी जरूरी है कि अभी आप चोरीछिपे ही इस का आनंद उठाएं और भूल कर भी किसी तीसरे को जानकारी नहीं लगने दें। एक गर्लफ्रैंड इस शर्त पर भी सैक्स के लिए राजी होती है जब उसे यकीन हो जाता है कि बौयफ्रैंड इस की भनक किसी को नहीं चलने देगा. अकसर लड़के खुशीखुशी में बात को अपने रिश्तेदारों या दोस्तों से शेयर कर बैठते हैं, जो बिलकुल गलत है.
  • भरोसा, विश्वास और मजबूत संबंध के बावजूद भी अगर आप की गर्लफ्रैंड सैक्स के लिए राजी नहीं होती तो भूल कर भी जोरजबरदस्ती न करें. रिलेशनशिप को समय दें और यह अपनी गर्लफ्रैंड पर छोङ दें.

फिलहाल, बेहतर तो यही होगा कि दोनों पढ़ाई पर ध्यान दें और कैरियर बनाएं. इस के बाद ही अपनी लव लाइफ पर ध्यान दें. फिजिकल होना बेकार नहीं है, यह कुदरत का दिया एक अनमोल उपहार है और एकदूसरे के कनैक्शन को मजबूत करता है. लेकिन आप की गर्लफ्रैंड के लिए यह इमोश्नली बड़ा घातक है क्योंकि लड़कियां भावुक होती हैं और ज्यादा भावुक हो कर किसी से कुछ शेयर नहीं करतीं. उन्हें डर रहता है कि कहीं बात न फैल जाए.

इसलिए कालेज के दौरान आप पढ़ाई पर ध्यान दें. एकदूसरे के साथ रहें और कैरियर को पीछे छोड़ कर प्यार में न पड़ें.

अगर आप की भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सच्ची सलाह के लिए कैसी भी परेशानी टैक्स्ट या वौइस मैसेज से भेजें. मोबाइल नंबर : 08826099608

Sex Problem: क्या आपकी पत्नी को भी हैं ये 5 सैक्स समस्याएं

कहते हैं कि सफल दांपत्य जीवन में सैक्स एक बहुत बड़ी भूमिका निभाता है और विवाह के बिखराव का एक कारण सेक्स भी हो सकता है. आम धारणा है कि पुरुष को ही सैक्स में ज़्यादा रुचि होती है और महिला अमूमन इससे बचती है. लेकिन ऐसा नहीं है. पुरुष की तरह महिलाओं की भी सेक्स इच्छा होती है. अधूरा और सही समय पर संभोग के पूरा न होने पर महिलाओं को शारीरिक और मानसिक परेशानी होती है. दरअसल महिलाओं का सेक्स केवल संभोग तक सीमित नहीं होता, बल्कि स्पर्श, चुंबन आदि से भी उन्हें संतुष्टि मिलती है.

आइए हम आपको बताते है कि कौन कौन सी सैक्स समस्याएं आती है और उनका समाधान क्या है.

सैक्स में कमी

महिलाओं में सेक्स में कमी डिप्रेशन, थकान या तनाव की वजह से हो सकती है. इसके अलावा और भी वजह हो सकती है जैसे पार्टनर जिस तरह छूता है, वह पसंद नहीं आना, पसीना से या उसके मुंह से पान-तंबाकू वगैरह की बदबू आना आदि. कई महिलाओं को शरीर के कुछ खास हिस्सों पर हाथ लगाने से दर्द महसूस होता है या अच्छा नहीं लगता. इससे भी वे सेक्स से बचने लगती हैं.

लुब्रिकेशन की कमी

महिलाओं के जनन अंग (vagina) में लुब्रिकेशन (गीलापन) को उत्तेजना का पैमाना माना जाता है. कुछ महिलाओं को कम लुब्रिकेशन की शिकायत होती है और ज़ाहिर है ऐसे में सैक्स काफी तकलीफदेह हो जाता है. लुब्रिकेशन में कमी तीन वजहों से हो सकती है. इन्फेक्शन, हार्मोंस में गड़बड़ी या फिर तरीके से फोर प्ले न करना.

सैक्स के दौरान दर्द

कुछ महिलाओं को सैक्स के दौरान दर्द होता है. कई बार यह दर्द बहुत ज़्यादा होता है और ऐसे में महिला सेक्स से बचने लगती है. साथी को इस दर्द का अहसास नहीं होता और उसे लगता है कि साथी महिला की दिलचस्पी नही है या फिर सहयोग नहीं कर रही है.

और्गेज्म न होना

महिलाओं में यह शिकायत आम होती है कि उनका पार्टनर उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाता यानी उनका और्गेज्म नहीं हो पाता. कुछ को और्गेज्म नहीं होता और कुछ को होता तो है पर महसूस नहीं होता. कुछ महिलाओं को लुब्रिकेशन के दौरान ही जल्दी ऑर्गेज्म हो जाता है. कुछ को बहुत देर से और्गेज्म होता है.

वैजाइनल पेन

कभी-कभी महिलाओं को नाभि के नीचे और प्यूबिक एरिया के आसपास दर्द महसूस होता है. यह दर्द वैसा ही होता है, जैसा पीरियड्स के दौरान होता है. इसकी वजह यह है कि उत्तेजना होने पर प्राइवेट पार्ट के आसपास खून का बहाव होता है. ऐसे में लुब्रिकेशन होता है पर क्लाइमैक्स नहीं होता. इससे इस एरिया में खून जम जाता है और दर्द होने लगता है.

समाधान

सैक्स समस्या का सबसे बड़ा कारण है पति-पत्नी का सैक्स समस्याओं के बारे में बात ही नहीं करना. पति और पत्नी दोनों को इस मामले में खुलकर बात करनी चाहिए और कोई भी छुपाना नहीं चाहिए. हो सकता है इस मामले में पत्नी पहल न करें तो ऐसे में पति को चाहिए कि उनका व्यवहार ऐसा हो कि उनकी पत्नी उनसे हर बात शेयर कर सकें. यदि आप चाहते हैं कि आप अपने साथी से सभी समस्याओं खासकर सेक्स समस्याओं के बारे में बातचीत कर सकें तो आपको अपने साथी को विश्वास में लेना होगा. यदि आप अपने साथी को अपनी कोई सैक्स समस्या के बारे में बताना चाहते हैं तो आप उसे सीधे-सपाट शब्दों में ना कहें बल्कि उसके लिए थोड़ा समय लें और अपने साथी को बातचीत और प्यार से सहज करें. इसके बात सामान्य बातचीत के बाद ही अपनी समस्या बताएं.

शादी से पहले इन 10 बातों का रखें खास ध्यान

आमतौर पर सगाई होते ही लड़का लड़की एकदूसरे को समझने के लिए, प्यार के सागर में गोते लगाना चाहते हैं. एक बात तो तय रहती है खासकर लड़के की ओर से, क्या फर्क पड़ता है, अब तो कुछ दिनों में हम एक होने वाले हैं, फिर क्यों न अभी साथ में घूमेंफिरें. उस की ओर से ये प्रस्ताव अकसर रहते हैं कि चलो रात में घूमने चलते हैं, लौंग ड्राइव पर चलते हैं.

वैसे तो आजकल पढ़ीलिखी पीढ़ी है, अपना भलाबुरा समझ सकती है. वह जानती है उस की सीमाएं क्या हैं. भावनाओं पर अंकुश लगाना भी शायद कुछकुछ जानती है. पर क्या यह बेहतर न होगा कि जिसे जीवनसाथी चुन लिया है, उसे अपने तरीके से आप समझाएं कि मुझे आनंद के ऐसे क्षणों से पहले एकदूसरे की भावनाओं व सोच को समझने की बात ज्यादा जरूरी लगती है. मन न माने तो ऐसा कुछ भी न करें, जिस से बाद में पछतावा हो.

मेघा की शादी बहुत ही सज्जन परिवार में तय हुई. पढ़ालिखा, खातापीता परिवार था. मेघा मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे ओहदे पर थी. खुले विचारों की लड़की थी. मंगनी के होते ही लड़के के घर आनेजाने लगी. जिस बेबाकी से वह घर में आतीजाती थी, लगता था वह भूल रही थी कि वह दफ्तर में नहीं, ससुराल परिवार में है. शुरूशुरू में राहुल खुश था. साथ आताजाता, शौपिंग करता. ज्योंज्यों शादी के दिन नजदीक आते गए दूरियां और भी सिमटती जा रही थीं. एक दिन लौंग ड्राइव पर जाने के लिए मेघा ने राहुल से कहा कि क्यों न आज शाम को औफिस के बाद मैं तुम्हें ले लूं. लौंग ड्राइव पर चलेंगे. एंजौय करेंगे.

पर यह क्या, यहां तो अच्छाखास रिश्ता ही फ्रीज हो चला. राहुल ने शादी से इनकार कर दिया. कार्ड बंट चुके थे, तैयारियां पूरी हो चली थीं. पर ऐसा क्या हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ? पूछने पर नहीं बताया, बस इतना दोटूक शब्दों में कहा कि रिश्ता खत्म. बहुत बाद में जा कर किसी से सुनने में आया कि मेघा बहुत ही बेशर्म, चालू टाइप की लड़की है. राहुल ने मेघा के पर्स में लौंग ड्राइव के समय रखे कंडोम देख लिए. यह देख कर उस ने रिश्ता ही तोड़ना तय कर लिया. शायद उसे भ्रम था मेघा पहले भी ऐसे ही कई पुरुषों के साथ इस बेबाकी से पेश आ चुकी होगी.

कौन सी बातें जरूरी

इसलिए बेहतर है कोर्टशिप के दौरान आचरण पर, अपने तौरतरीकों पर, बौडी लैंग्वेज पर विशेष ध्यान दें. वह व्यक्ति जिस से आप घुलमिल रही हैं, भावी जीवनसाथी है, होने वाला पति है, हुआ नहीं. तर्क यह भी हो सकता है, सब कुछ साफसाफ बताना ही ठीक है. भविष्य की बुनियाद झूठ पर रखनी भी तो ठीक नहीं. लेकिन रिश्तों में मधुरता, आकर्षण बनाए रखने के लिए धैर्य की भावनाओं को वश में रखने की व उन पर अंकुश लगाने की जरूरत होती है.

प्यार में डूबें नहीं

शादी के पहले प्यार के सागर में गोते लगाना कोई अक्षम्य अपराध नहीं. मगर डूब न जाएं. कुछ ऐसे गुर जरूर सीखें कि मजे से तैर सकें. सगाई और शादी के बीच का यह समय यादगार बन जाए, पतिदेव उन पलों को याद कर सिहर उठें और आप का प्यार उन के लिए गरूर बन जाए और वे कहें, काश, वे पल लौट आएं. इस के लिए इन बातों के लिए सजग रहें-

  1. बहुत ज्यादा घुलना-मिलना ठीक नहीं.
  2. मुलाकात शौर्ट ऐंड स्वीट रहे.
  3. घर की बातें न करें.
  4. अभी से घर वालों में, रिश्तेदारों में मीनमेख न निकालें.
  5. एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करें.
  6. अनर्गल बातें न करें.
  7. बेबाकी न करें. बेबाक को बेशर्म बनते देर नहीं लगती.
  8. याद रहे, जहां सम्मान नहीं वहां प्यार नहीं, इसलिए रिश्तों को सम्मान दें.
  9. कोशिश कर दिल में जगह बनाएं. घर वाले खुली बांहों से आप का स्वागत करेंगे.
  10. मनमानी को ‘न’ कहने का कौशल सीखें.

अपनी मरजी: उन बच्चों को किसने सहारा दिया?

मैंने जैसे ही जनाजे को कंधा दिया, बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई. दिल बिलख उठा. लाश के आखिरी दीदार के लिए आई औरतें एकबारगी रोनेसिसकने लगीं. पर इन सब से ज्यादा दर्द में डूबी आवाजें बच्चों की थीं. 4 छोटेबड़े बच्चे एकसाथ बिलख रहे थे.

अमीना भाभी अपने पीछे 4 बच्चे छोड़ गई थीं. 5वें को जन्म देते वक्त वे खुद बच्चे के साथ ही इस दुनिया से कूच कर गई थीं.

पिछली रात जब उसे दर्द उठा था, तो अनवर भाई ने उसे शहर के एक अच्छे अस्पताल में भरती कराया. पर डाक्टर अमीना भाभी को मौत के मुंह में जाने से नहीं बचा पाए और न ही उस के 5वें बच्चे को ही.

हंसमुख अमीना भाभी की लाश को जब मैं हमेशा के लिए विदा देने जा रहा था, तो गुजरे वक्त की यादों में डूब गया.

अनवर मेरी बूआ का एकलौता बेटा था. हम एक ही शहर में रहते थे, इसलिए अकसर एकदूसरे के यहां आनाजाना लगा रहता था. वह मुझ से

4 साल बड़ा था, इसलिए मुझ पर बड़े भाई का रोब झाड़ता रहता था. पर जब उस की शादी हुई, तब मैं ने उसे और अमीना भाभी को खूब सताया.

सुहारागत को भाभी के कमरे में अनवर के जाने से पहले मैं पहुंच गया. अमीना शर्म व हया की गठरी बनी लंबा सा घूंघट निकाले पलंग पर बैठी थी. मेरी आहट पा कर वह और सिमट गई.

मैं आहिस्ताआहिस्ता चलता पलंग तक पहुंचा और बड़ी अदा के साथ उस की कलाई पकड़ी और घूंघट उलट दिया.

मुझे सामने पा कर वह एकदम डर गई. पर मेरे पीछेपीछे आई मेरी बहनों की खिलखिलाहट ने उस के डर को दूर कर दिया. फिर वह भी मुसकराए बिना न रह सकी.

इधर जब अनवर झूमता कमरे की तरफ बढ़ रहा था, तो हम से मुठभेड़ हो गई. वह बनावटी गुस्से से आंखें तरेर कर पूछने लगा, ‘‘तुम सब मेरे कमरे में क्या कर रहे थे?’’

‘‘बात यह है… मियां…’’ मैं हकलाते हुए बोला.

‘‘क्या बात है?’’ वह बेताबी से पूछ बैठा.

‘‘तुम सब जाओ,’’ मैं बहनों को इशारा करते हुए बोला, ‘‘हां, तो बात यह है जनाब, भाभी मायके से एक अनमोल तोहफा साथ लाई?है.’’

‘‘तोहफा हो या और कुछ, वह तो मेरे लिए है. तुम्हें इस से क्या? चलो फूटो,’’ अनवर हाथ में बांधे फूलों को सूंघते हुए बोला.

‘‘पर मियां साहब, वह तो तोहफे में 4 महीने का पेट लाई है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, असरारी और फातमा ने बताया,’’ मैं बनावटी भोलेपन से बोला.

मेरे इतना कहते ही अनवर का खिला चेहरा एकबारगी मुरझा गया. पर दूर खड़ी मेरी बहनें फिर खिलखिला पड़ीं और वह मेरा कान मरोड़ता हुआ कमरे की तरफ बढ़ गया.

पर फिर शुरू हुआ बच्चों का पैदाइशी दौर. शादी का एक साल बीततेबीतते अनवर एक बच्ची का बाप बन बैठा. हम सब ने उसे पहली औलाद के लिए मुबारकबाद दी और दूसरी के लिए संभलसंभल कर कदम रखने की हिदायतें भी दीं.

पर अनवर कब मानने वाला था. पहली बेटी 2 साल की भी न होने पाई थी कि दूसरे का पैगाम आ गया. चौथे साल के आखिर में अमीना भाभी ने एक लड़के को जन्म दिया. अनवर लड़का पा कर खुशी से पागल हो गया. रिश्तेदारों को खूब खिलायापिलाया.

छठी के दिन मैं ने उसे नसीहत दी, ‘‘मियां, अब मेरी मानो तो यहीं रुक जाओ. छोटा परिवार, सुखी परिवार.’’

वह बोला, ‘‘भाई, इस में आदमी क्या कर सकता है. यह सब तो ऊपर वाले की मरजी है. वह देता है, बंदे

लेते हैं. उस की मरजी में दखल देना गुनाह है.’’

मैं चुप ही रहा. क्या करता? समझदारों को भी समझाना कभीकभी मुश्किल हो जाता है. बीए पास स्कूल के मास्टर को भला मैं क्या समझाता.

देखते ही देखते गुजरे सालों के साथ वह 4 बच्चों का बाप बन बैठा यानी 1 बेटा और 3 बेटियां.

अब तक देश में सत्ता बदल चुकी थी. हिंदूमुसलिम बहुत होने लगा था. यह कहना कि कोई चौथा बच्चा है, एक बेइज्जती लगता था. फिर भी कुछ कट्टरपंथी अपनी धार्मिक दुकानदारी बचाने के लिए बच्चों को ऊपर वाले की अमानत ही मानते रहे हैं और इस का भरपूर प्रचार करते रहे हैं.

अनवर ने जब चौथे बच्चे पर हमें दावत दी, तो हम तकरीबन बिगड़ ही पड़े थे, ‘‘क्यों दकियानूसी का लिबास ओढ़े हुए हो, अनवर? भाभी की सेहत का भी खयाल करो. बेचारी की हड्डियां नजर आने लगी है. जवानी में ही बूढ़ी हो गई?है.’’

पर अनवर सफाई देते हुए कहने लगा, ‘‘यकीन करो भाई, मैं तो नहीं चाहता था. पर क्या करूं, ऊपर वाले की मरजी के आगे हमारी कहां चलती हैं. और भाई, यह मर्दानगी का भी तो सवाल है. मैं अभी बूढ़ा नहीं हुआ हूं, यह बात हर बच्चा साबित करता है.’’

मैं उस की इस दलील से झुंझला उठा, ‘‘इसे ऊपर वाले की मरजी नहीं, खुद की मरजी कहो. तुम अगर

परिवार नियोजन के तरीके अपनाओगे, तो बच्चे कैसे पैदा होंगे? मर्दानगी का मतलब सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं है. अच्छा कमा कर घर को खुशहाल करना भी है.’’

मेरी दलील के आगे अनवर कुछ नरम पड़ गया और कहने लगा, ‘‘भाई, आगे मैं खयाल रखूंगा. अब से कंडोम जरूर इस्तेमाल करूंगा. पर ऐसी खबर अम्मी तक नहीं पहुंचनी चाहिए कि मैं अगला बच्चा रोकने के लिए कुछ उपाय कर रहा हूं.’’

मैं ने हामी भर ली और अनवर बेफिक्र हो गया.

दरअसल बात यह थी कि मेरी बूआ और फूफा जान दोनों कट्टर मजहबी खयालों के थे. वह हर नए जमाने की चीज को मजहब पर चोट मानते थे. टीवी, सिनेमा, मोबाइल और परिवार नियोजन से उन्हें काफी चिढ़ थी. इन सब का साया अनवर पर बचपन से ही पड़ा था. सो, वह भी मजहब का लिबास पहने हुए था. हालांकि वह स्कूल मास्टर था, पर था पुराने खयालों का ही.

सिनेमा से अनवर को परहेज नहीं था, पर घर में लगे टीवी से उसे उसी तरह चिढ़ थी, जिस तरह मेरी बूआ और फूफा को थी. उन में से कोई भी अगर मेरे घर आता तो हमें उन की खातिर टीवी बंद करना पड़ता था.

घर में मोबाइल भी बड़ी मुश्किल से आया. जब हर जगह उस की जरूरत हर काम में पड़ने लगी. अनवर और बूआ ने बेटियों को ज्यादा पढ़ने भी नहीं दिया. वे फटेहाल रहती थीं, जबकि हम सब कुनबे के लोग अपनेअपने कामों में अच्छी कमाई भी कर रहे थे और बेटेबेटियों को प्राइवेट स्कूलों में भी भेज रहे थे.

इस मामले में अनवर और बूआ से कई बार बहस भी हो चुकी थी. एक बार मैं बूआ को पाकिस्तान और दूसरे मुसलिम देशों के बारे में बताने

लगा, ‘‘बूआ, पाकिस्तान में भी तो धड़ल्ले से फिल्में बनती हैं. वहां भी घरों में टीवी बड़े चाव से देखा जाता है. साथ ही, अब होटलों में कैबरे भी होने लगे हैं.’’

तब बूआ गरम हो कर कहने लगीं, ‘‘पाकिस्तान या दुनिया जाए भाड़ में.

उन को देख कर हम अपना ईमान क्यों खराब करें…’’

‘‘पर, वे भी तो मुसलमान हैं. हम से ज्यादा मजहब को मानने वाले हैं, फिर मजहब के खिलाफ ऐसे काम क्यों करते हैं?’’ मैं ने दलील दी.

इस पर बूआ चोट करने के अंदाज से कहने लगीं, ‘‘अब अगर कोई जानबूझ कर सूअर खाए, तो दूसरा कोई क्या कर सकता है? जब मैं तुम्हें ही नहीं समझा पाई, तो पाकिस्तान या अरब के बारे में क्या कह सकती हूं.’’

‘‘पर बूआ, टीवी या परिवार नियोजन सूअर नहीं हैं,’’ मैं ने बहस को आगे बढ़ाया.

इस पर वह बिफर पड़ीं, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, बहूबेटियों के साथ घर पर नाच देखना नेकी का काम है. खूब देखो. पर हमें इस से परहेज है.’’

‘‘पर, इस के अलावा भी तो इस में अच्छे नाटक आते हैं.’’

‘‘अरे, खाक अच्छे आते हैं. वही कूल्हे मटकाती चिकने चेहरे वालियों के सिवा और क्या आ सकता है, जिस पर तुम जैसे बिगड़ैल ही जान देते हैं.’’

मैं बूआ को और भड़काता कि इस से पहले ही अब्बा ने मुझे किसी काम से बाहर भेज दिया.

इन्हीं साएदार पेड़ों के बीच अनवर भी पला था. सो, पढ़ालिखा होने के बावजूद वह अपनेआप को ढकोसलों की दुनिया से बाहर निकाल नहीं पाया था. यही वजह थी कि चौथे बच्चे के बाद किए गए वादे के बावजूद वह 5वें बच्चे का बाप बनता, इस से पहले ही उस की दुनिया उजड़ गई.

हम जब जनाजे के साथ कब्रिस्तान पहुंचे, तब तक कब्र तैयार हो चुकी थी. हम सब ने लाश को कब्र में लिटाया. आखिरी दीदार के लिए अमीना भाभी के चेहरे से कफन हटाया गया. सूखी लकड़ी की तरह पिचका चेहरा दिख रहा था.

अनवर अपनी बीवी का आखिरी दीदार कर के मुझ से लिपट गया और सिसकने लगा, ‘‘मैं ने खुदा की मरजी का लबादा ओढ़ कर अपनी मरजी चलाई… काश, मैं तुम्हारी एक भी बात पर अमल करता. मेरे बच्चों का अब

क्या होगा…’’

मैं उस के कंधों को थपथपा कर हौसला देने लगा था, ‘‘अब पछताने से क्या फायदा… आंसू पोंछ लो और बच्चों की परवरिश के बारे में कुछ सोचो.’’

लिव इन पार्टनर की मौत का राज

9 सितंबर, 2019 को अनीता अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. अगले दिन अपराह्न 2 बजे जब वह दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित अपने फ्लैट में पहुंची तो वहां का खौफनाक मंजर देखते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. उस के पैर दरवाजे पर ही ठिठक गए.

उस के लिवइन पार्टनर सुनील तमांग की लहूलुहान लाश फर्श पर पड़ी थी. उस की गरदन से खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था, जो अब जम चुका था. अनीता ने सब से पहले अपने फ्लैट के मालिक ए.के. दत्ता को फोन कर इस घटना की जानकारी दी. ए.के. दत्ता पास की ही एक दूसरी कालोनी में रहते थे. लिहाजा कुछ देर में वह अपने लाजपत नगर वाले फ्लैट पर पहुंचे, जहां बुरी तरह घबराई अनीता उन का इंतजार कर रही थी.

सुनील की खून से सनी लाश देखने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को दी तो कुछ ही देर के बाद थाना अमर कालोनी के थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और घटनास्थल की जांच में जुट गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

घटनास्थल की फोटोग्राफी और वहां पर मौजूद खून के धब्बों के नमूने एकत्र करने के बाद थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने तहकीकात शुरू की. मृतक सुनील की गरदन पर पीछे की तरफ से किसी तेज धारदार हथियार से जोरदार वार किया गया था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर फर्श पर फैल गया था.

कमरे के सभी कीमती सामान अपनी जगह मौजूद थे, जिसे देख कर लगता था कि यह हत्या लूटपाट के लिए नहीं बल्कि रंजिशन की गई होगी. उन्होंने अनीता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और सुनील पिछले एक साल से इस फ्लैट में लिवइन पार्टनर के रूप में रह रहे थे. वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी, जबकि सुनील एक रेस्टोरेंट में कुक था. लेकिन कई महीने पहले किसी वजह से उस की नौकरी छूट गई थी.

कल रात साढ़े 11 बजे किसी जरूरी काम से वह अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. रात को वह वहीं रुक गई थी. रात में उस ने फोन पर काफी देर तक सुनील से बातें की थीं.

आज दोपहर को वह यहां पहुंची तो देखा फ्लैट का दरवाजा खुला था और अंदर प्रवेश करते ही उस की नजर सुनील की लाश पर पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने मकान मालिक को फोन कर इस घटना के बारे में बताया तो उन्होंने यहां पहुंचने के बाद इस घटना की सूचना पुलिस को दी.

थानाप्रभारी ने मकान मालिक ए.के. दत्ता से भी पूछताछ की तो उन्होंने भी वही बातें बताईं जो अनीता ने बताई थीं.

सारी काररवाई से निपटने के बाद थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और थाने लौट कर सुनील की हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस की गुत्थी सुलझाने के लिए दक्षिणपूर्वी दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल ने कालकाजी के एसीपी गोविंद शर्मा की देखरेख में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन, एसआई अभिषेक शर्मा, ईश्वर, आर.एस. डागर, एएसआई जगदीश, कांस्टेबल राजेश राय, मनोज, सज्जन आदि शामिल थे.

विरोधाभासी बयानों से हुआ शक  अगले दिन थानाप्रभारी ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई, ताकि वारदात की रात फ्लैट के आसपास घटने वाली सभी गतिविधियों की बारीकी से जांच की जा सके. साथ ही मृतक सुनील तमांग और अनीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स और सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से जांचपड़ताल करने के बाद थानाप्रभारी ने गौर किया कि अनीता के बयान विरोधाभासी थे. इसलिए अनीता को पुन: पूछताछ के लिए अमर कालोनी थाने बुलाया गया. उस से सघन पूछताछ की गई तो अनीता यही कहती रही कि वह रात साढ़े 11 बजे अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी, लेकिन वह वहां देर रात को क्यों गई, इस की वजह नहीं बता पाई.

पुलिस को लग रहा था कि वह झूठ पर झूठ बोल रही है. उस ने उस रात जिनजिन नंबरों पर बात की थी, उन के बारे में भी वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी. लिहाजा उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई और सुनील तमांग की हत्या में खुद के शामिल होने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि इस हत्याकांड में उस का भाई विजय छेत्री तथा जीजा राजेंद्र छेत्री भी शामिल थे. ये दोनों पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग शहर के रहने वाले थे. अनीता द्वारा अपने लिवइन पार्टनर की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

बाकी आरोपियों विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने एसआई अभिषेक शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित की. यह टीम 13 सितंबर, 2019 को वेस्ट बंगाल के कालिंपोंग शहर पहुंच गई. स्थानीय पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस ने विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से जब सुनील तमांग की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन दोनों ने पुलिस को बरगलाने की काफी कोशिश की लेकिन बाद में जब उन्हें बताया गया कि अनीता गिरफ्तार हो चुकी है और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, तो उन दोनों ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

वेस्ट बंगाल की स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद दिल्ली पुलिस दोनों आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर दिल्ली लौट आई.

अनीता, विजय और राजेंद्र से की गई पूछताछ तथा पुलिस की जांच के आधार पर इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अनीता मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग की रहने वाली थी. करीब 5 साल पहले वह अपने पति से अनबन होने पर उसे छोड़ कर अपने सपनों को पंख लगाने के मकसद से दिल्ली आ गई थी. यहां उस की एक सहेली थी, जो बहुत शानोशौकत से रहती थी. वह सहेली जरूरत पड़ने पर उस की मदद भी कर दिया करती थी.

दरअसल, अनीता स्कूली दिनों से ही खुले विचारों वाली एक बिंदास लड़की थी. वह जिंदगी को अपनी ही शर्तों पर जीना चाहती थी, जबकि उस का पति एक सीधासादा युवक था. उसे अनीता का ज्यादा फैशनेबल होना तथा लड़कों से ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था.

विपरीत स्वभाव होने के कारण शादी के थोड़े दिनों बाद ही वे एकदूसरे को नापसंद करने लगे थे. बाद में जब बात काफी बढ़ गई तो एक दिन अनीता ने पति को छोड़ दिया और वापस अपने मायके चली आई. कुछ दिन तो वह मायके में रही, फिर बाद में उस ने अपने पैरों पर खडे़ होने का फैसला कर लिया. और वह दिल्ली आ गई.

वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, महज 8वीं पास थी. छोटे शहर की होने और कम शिक्षित होने के बावजूद उस का रहने का स्टाइल ऐसा था, जिसे देख कर लगता था कि वह काफी मौडर्न है.

दिल्ली पहुंचने के बाद अनीता ने अपनी उसी सहेली की मदद से ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग ली. इस के बाद वह एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने लगी. नौकरी करने से उस की माली हालत अच्छी हो गई और जिंदगी पटरी पर आ गई.

इसी दौरान एक दिन उस की मुलाकात सुनील तमांग नाम के युवक से हुई जो नेपाल का रहने वाला था. उस की मां कुल्लू हिमाचल प्रदेश की थी. 28 वर्षीय सुनील दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित एक रेस्टोरेंट में कुक था.

दोनों एकदूसरे को चाहने लगे  कुछ दिनों तक दोस्ती के बाद वह सुनील को अपना दिल दे बैठी. सुनील अनीता की खूबसूरती पर पहले से ही फिदा था. एक दिन सुनील ने अनीता को अपने दिल की बात बता दी और कहा कि वह उसे दिलोजान से प्यार करता है. इतना ही नहीं, वह उस से शादी रचाना चाहता है.

अनीता उस के दिल की बात जान कर खुशी से झूम उठी. उस ने सुनील से कहा कि पहले कुछ दिनों तक हम लोग साथ रह लेते हैं. फिर घर वालों की रजामंदी से शादी कर लेंगे. इस की एक वजह यह भी थी कि अभी पहले पति से अनीता का तलाक नहीं हुआ था. तलाक के बाद ही दूसरी शादी संभव हो सकती थी.

कोई 4 साल पहले अनीता ने सुनील तमांग के साथ चिराग दिल्ली में किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. दोनों एकदूसरे को पा कर बेहद खुश थे. सुनील अनीता का काफी खयाल रखता था. अनीता भी सुनील के साथ लिवइन में रह कर खुद को भाग्यशाली समझती थी.

सुनील न केवल देखने में स्मार्ट था, बल्कि एक अच्छे पार्टनर की तरह उस की प्रत्येक छोटीछोटी बात का विशेष ध्यान रखता था. अनीता भी सुनील की खुशियों का खूब खयाल रखती थी. वह अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करती थी, जिस से सुनील की कोई भावना आहत हो.

अनीता और सुनील 3 सालों तक चिराग दिल्ली स्थित इस मकान में रहे. इस बीच जब अनीता की पगार अच्छी हो गई तो वह चिराग दिल्ली से लाजपत नगर आ गई. यहां वह ए.के. दत्ता के फ्लैट में किराए पर रहने लगी. यहां उस का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था.

इतने दिनों तक लिवइन रिलेशन में रहने के कारण दोनों के परिवार वाले भी उन के संबंधों से परिचित हो गए थे. अनीता का भाई विजय छेत्री जबतब कालिंपोंग से दिल्ली में उस के पास आता रहता था. उसे सुनील का व्यवहार पसंद नहीं था.

विजय ने अनीता की पसंद पर ऐतराज तो नहीं जताया लेकिन एक दिन उस ने सुनील की गैरमौजूदगी में अपने मन की बात अनीता को बता दी. चूंकि अनीता सुनील से प्यार करती थी, इसलिए उस ने भाई से सुनील का पक्ष लेते हुए कहा कि सुनील दिल का बुरा नहीं है लेकिन फिर भी अगर सुनील की कोई बात उसे अच्छी नहीं लगती है तो वह उसे कह कर इस में सुधार लाने का प्रयास करेगी.

विजय ने जब देखा कि उस की बहन ने उस की बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है तो उस ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. सुनील और अनीता को विजय की बातों से जरा भी फर्क नहीं पड़ा था.

लेकिन कहते हैं कि हर आदमी का वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता है. सुनील तमांग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. किसी बात को ले कर सुनील की रेस्टोरेंट से नौकरी छूट गई. नौकरी छूट जाने की वजह से वह परेशान तो हुआ लेकिन अनीता अच्छा कमा रही थी, इसलिए घर का खर्च आराम से चल जाता था.

हालांकि कुछ दिन बाद अनीता सुनील को समझाबुझा कर जल्दी कहीं नौकरी खोजने का दबाव बना रही थी, मगर 6 महीने तक सुनील को उस के मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली.

धीरेधीरे अनीता को ऐसा लगने लगा जैसे सुनील जानबूझ कर नौकरी नहीं करना चाहता है और अब वह उस के ही पैसों पर मौज करना चाहता है. ऐसा विचार मन में आते ही उस ने एक दिन तीखे स्वर में सुनील से कहा, ‘‘सुनील, या तो तुम जल्दी कहीं पर नौकरी ढूंढ लो अन्यथा मेरा साथ छोड़ कर यहां से कहीं और चले जाओ.’’

हालांकि अनीता ने यह बात सुनील को समझाने के लिए कही थी, लेकिन उस दिन के बाद सुनील के तेवर बदल गए. उस ने अनीता से कहा कि वह उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा और फिर भी अगर वह उसे जबरन खुद से दूर करने की कोशिश करेगी तो उस के पास अंतरंग क्षणों के कई फोटो मोबाइल पर पड़े हैं, जिन्हें वह उस के सगेसंबंधियों के मोबाइल पर भेज देगा, जिस के बाद वह कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

रुपयों की तंगी तथा सुनील की धमकी को सुन कर अनीता कांप उठी. इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अनीता ने सुनील को नौकरी ढूंढने पर जोर देती रही, लेकिन सुनील पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

अंत में अनीता ने कालिंपोंग स्थित अपने भाई विजय को अपनी मुसीबत के बारे में बताया तो विजय गुस्से से भर उठा. उस ने अनीता से कहा कि वह जल्द ही सुनील नाम के इस कांटे को उस की जिंदगी से निकाल फेंकेगा.

भाई ने बनाया हत्या का प्लान  भाई की बात सुन कर अनीता को राहत महसूस हुई. विजय को सुनील पहले से नापसंद था. अब जब अनीता खुद ही उस से छुटकारा पाना चाहती थी तो उस ने अपने रिश्ते के बहनोई राजेंद्र के साथ मिल कर सुनील को मौत की नींद सुलाने की योजना तैयार कर ली. इस के बाद उस ने अनीता को अपनी योजना के बारे में बताया तो अनीता ने दोनों को दिल्ली पहुंचने के लिए कह दिया.

7 सितंबर, 2019 को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग से नई दिल्ली पहुंचे और पहाड़गंज के एक होटल में रुके. अनीता फोन से बराबर भाई के संपर्क में थी. लेकिन सुनील अनीता और विजय के षडयंत्र से अनजान था. उसे सपने में भी गुमान नहीं था कि अनीता उस की ज्यादतियों से तंग आ कर उस का कत्ल भी करवा सकती है.

9 सितंबर को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पूर्वनियोजित योजना के अनुसार रात के 10 बजे अनीता के फ्लैट पर पहुंचे. अनीता दोनों से ऐसे मिली जैसे उन्हें पहली बार देखा हो. सुनील भी उन से घुलमिल कर बातें करने लगा.

साढ़े 11 बजे उस ने अचानक सब को बताया कि उसे अभी इसी वक्त अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा जाना है. इस के बाद वह तैयार हो कर फ्लैट से बाहर निकल गई.  रात में अनीता सुनील के मोबाइल पर काल कर के उस से 2-3 घंटे तक मीठीमीठी बातें करती रही.

तड़के करीब 4 बजे जैसे ही सुनील सोया, तभी विजय ने राजेंद्र के साथ मिल कर उस की गरदन पर चाकू से वार किया. थोड़ी देर तड़पने के बाद जब उस का शरीर ठंडा पड़ गया तो दोनों वहां से आनंद विहार के लिए निकल गए, क्योंकि वहां से उन्हें कालिंपोंग के लिए ट्रेन पकड़नी थी.

आनंद विहार जाने के दौरान रास्ते में विजय ने खून से सना चाकू एक सुनसान जगह पर फेंक दिया. आनंद विहार स्टेशन से रेलगाड़ी द्वारा वे कालिंपोंग पहुंच गए.

इन से विस्तार से पूछताछ करने के बाद अगले दिन 16 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने सुनील तमांग की हत्या के आरोप में उस की लिवइन पार्टनर अनीता, विजय छेत्री तथा राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन कर रहे थे.

बड़ी बहन : रोशनी का छोटा भाई कैसा था

मेरा नाम रोशनी है. यह मेरी कहानी है और एक ऐसी जगह से शुरू होती है, जहां पिछले कुछ दिनों से मच्छरों ने हम सब का जीना हराम कर दिया था. जिन गरीबों के पास जालीदार दरवाजे लगाने के पैसे नहीं होते, उन्हें मच्छरों के साथ जीना भी सीखना पड़ता है.

मच्छरों से बचने के लिए मैं ने पंखे की रफ्तार बढ़ाई और डबलबैड की चादर ओढ़ कर सोने की कोशिश करने लगी. मुझे लगा कि इतनी बड़ी चादर मुझे मच्छरों से बचा लेगी. मैं ने मन ही मन प्रमिला मैडम को शुक्रिया कहा, जिन्होंने आज ही यह चादर मां को दी थी.

मेरी मां प्रमिला मैडम के घर का सारा काम करती हैं… झाड़ूपोंछे से ले कर रसोई के बरतन और घर के दूसरे काम भी. प्रमिला मैडम बहुत दयालु हैं. वे हमें जबतब बहुत सा सामान देती रहती हैं. सामान भले ही पुराना हो, लेकिन वह बड़े काम का होता है.

प्रमिला मैडम ने हमारे इस छोटे से घर को कई तरह के सामान से भर दिया है, जिस में एक छोटा एलईडी, पुरानी मिक्सी, वाशिंग मशीन और कूलर भी हैं. इस सामान को देख कर सगेसंबंधी हम से जलते हैं.

सुबह मां ने जगाया, तो मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और बोली, ‘‘वाह मां, वाह, आज तो बहुत अच्छी नींद आई. मच्छर मुझे जरा भी न काट सके. यह सब इस चादर की ही करामात है वरना सिंगल बैड की चादर में तो मच्छर आसानी से घुस जाते हैं और फिर तो खुजलातेखुजलाते मेरा बुरा हाल.’’

मां शायद जल्दी में थीं. वे बोलीं, ‘‘बेटी, मैं मैडम के यहां जा रही हूं. तू जल्दी से उठ कर बाकी काम निबटा कर कालेज चली जाना.’’

‘‘ठीक है मां, आप जाओ,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने जब से होश संभाला है, तब से मां को जिंदगी की जद्दोजेहद झोलते या उस से लड़तेरोते ही देखा है. मैं ने जिस जाति में जन्म लिया है, उस में ऐसा कोई घर नहीं, जहां घर के लोग पियक्कड़ न हों और यही वजह हमारी जाति के पिछड़ेपन की भी रही है.

घर के मर्द शराब पी कर घर की औरतों को बुरी तरह मारतेपीटते हैं, उन्हें भद्दीभद्दी गालियां देते हैं और औरत के कमाए पैसे भी झपट कर अपनी झूठी मर्दानगी दिखाते हैं. घर के बच्चे भी यह सब देख कर दहशत में जीते हैं.

मैं ने घर में सब से बड़ी औलाद के रूप में जन्म लिया था. मां मेरे जन्म के बाद मुझे सीने से चिपकाए पता नहीं कितने घरों में जा कर झाड़ूपोंछा, बरतन धोने का काम करती थीं.

सुबह वे घर से रोटी बना कर निकलती थीं, तो शाम को ही वापस घर का मुंह देखती थीं. घर पर आ कर ही मां को पता चलता था कि बापू आज बेलदारी पर गए हैं या नहीं.

अगर बापू घर पर मिलते, तो मां को गालियों का सामना करना पड़ता था और उन्हें बापू को कुछ रुपए शराब पीने के लिए देने ही पड़ते थे. अगर बापू बेलदारी के लिए चले जाते, तो उन के घर न लौटने तक ही शांति रहती थी. जब वे घर लौटते थे, तो शराब के नशे में चूर हो कर लड़खड़ाते कदमों से घर में घुसते और हमारी जिंदगी नरक बना देते थे.

जब मैं ने मां का हाथ पकड़ कर चलना सीख लिया था, तभी मां के पैर फिर भारी हो गए थे और इस तरह उन की मुसीबतें भी और ज्यादा बढ़ गई थीं.

मैं ने रसोईघर में आ कर कटोरदान देखा… मां कल शाम की बनाई एक रोटी चाय के साथ खा कर चली गई थीं. यह रोजाना का सिलसिला था, क्योंकि मां कभी कोई नागा नहीं करती थीं, जब तक कि उन्हें तेज बुखार न चढ़ जाए.

आटा गूंदते हुए मैं फिर से उन दिनों में गोता लगाने लगी थी, जब मेरे खेलनेकूदने के दिन थे. यह बात अलग है कि मु?ो खेलनाकूदना जरा भी पसंद नहीं था.

तब मेरा छोटा भाई राजू घुटने के बल चलने लगा था और मां लोगों के घरों में जातीं, तो राजू को मेरे भरोसे छोड़ कर बेफिक्र हो जाती थीं.

राजू को छोड़ कर मैं कोई भी काम नहीं कर सकती थी, लेकिन जब वह थक कर सो जाता था, तब मैं जल्द से जल्द सारे काम निबटाने की कोशिश किया करती थी.

बापू को शराब पीने की लत बहुत ज्यादा बढ़ गई थी और उन्होंने काम पर जाना तकरीबन बंद ही कर दिया था. वैसे भी नशे में चूर रहने वाले को कौन काम पर रखेगा?

बापू के शराब के पैसे की कमी मां की खूनपसीने की कमाई से ही पूरी होती थी. अगर कभी मां के पास पैसे न होते, तो गालियों के अलावा मां को मार भी खानी पड़ती थी.

तब मां रोतेरोते कहती थीं, ‘‘मु?ो इस जिंदगी में सुख तो तभी मिलेगा, जब मेरा राजू बड़ा होगा और मैं घरबैठे उस के कमाए पैसों से चैन से रह सकूंगी.’’

‘‘मां, अपनी बिरादरी में तो सारे मर्द औरतों पर जुल्म करने के लिए ही पैदा होते हैं, इसलिए तुम्हें राजू से कोई आस नहीं बांधनी चाहिए,’’ मेरी बात को मां ने सिरे से कई बार खारिज कर दिया था.

मां को यकीन था और वे कहती थीं, ‘‘नहीं, राजू हमारी बिरादरी के मर्दों जैसा नहीं होगा. वह अपनी मां के साथ हो रही नाइंसाफी की वजह से कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाएगा.’’

‘‘काश, ऐसा ही हो मां,’’ मेरे मुंह से यह बात निकलती थी.

दिन हवा में उड़ान भरतेभरते एक दिन ठहर से गए. उस दिन मां के पास पैसे न होने के चलते बापू ने उन्हें बहुत मारा था… मारतेमारते किसी तरह बापू के हाथ मां की एकमात्र पैर की उंगली में अटकी चांदी की बिछिया को छू गए.

बस, फिर क्या था. बापू ने बिछिया को इतनी तेजी से खींचा कि मां की बिछिया के निकलने के साथ ही पैर की उंगली भी लहूलुहान हो गई. खैर, बापू को तो मां की बिछिया से मतलब था, खून निकलने से नहीं.

बापू के पास शराब पीने का इंतजाम होते ही वे पीने चले गए और मां को रोताबिलखता छोड़ गए.

उस दिन मां ने दिल से बापू के मरने की कामना की थी. उन की इस कामना को मेरा भी साथ मिला था… और शाम को सचमुच उन की लाश ही घर पर आई. बापू मां की बिछिया बेच कर दिनभर शराब ही पीते रहे और अचानक लुढ़क गए.

कुछ दिनों तक रोनापीटना हुआ, फिर घर में मां की मेहनत की कमाई का एकदम सही इस्तेमाल होने लगा. हालांकि, मां ने मेरा दाखिला सरकारी स्कूल में ही कराया था, लेकिन मैं अपना ध्यान पढ़ाई पर देने में कामयाब रही.

पता नहीं, मुझे अपनी जाति के समाज के सामने एक उदाहरण बनने की सनक सवार हो गई कि जिस जाति में सब के सब मर्द पियक्कड़ और आवारा हैं, उसी समाज की एक लड़की ऐसे मर्दों को पछाड़ कर बहुत आगे भी निकल सकती है. इतना ही नहीं, पढ़लिख कर और अच्छा पद पाने के बाद उस लड़की पर समाज के मर्दों की मनमानी नहीं चल सकती.

हालांकि मां ने राजू का दाखिला एक प्राइवेट इंगलिश मीडियम स्कूल में कराया था, लेकिन उस का मन कभी भी पढ़ने में लगा ही नहीं. मैं उसे पढ़ाने की कोशिश करती, तो वह उलटे मुझ पर ही बरसने लगता था. मुझे न जाने क्यों लगता था कि वह बापू की ही तरह का बरताव करने पर आमादा रहता है.

राजू ने मां की कुछ हजार रुपए की कमाई पर पानी फेर दिया था और एक बिगड़ैल लड़के का तमगा लगा कर उसे स्कूल के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

उस दिन मां फूटफूट कर रोई थीं. मां के सपने की उड़ान एकाएक ही क्रैश हो गई थी.

मैं ने मां को बहुत प्यार से सम?ाया, ‘‘मेरी अच्छी मां, तुम मत रोओ… भले राजू न सही, लेकिन मैं तुम्हें कुछ

अच्छा बन कर दिखाऊंगी… और मैं ने सोच लिया है कि मेरी नौकरी लगते ही तुम्हें किसी के घर में काम करने नहीं दूंगी.’’

मां ने तुरंत कहा, ‘‘शादी के बाद तो बेटी पराई हो जाती है पगली.’’

‘‘तो मां, शादी कर कौन रहा है? और क्या तुम उम्मीद करती हो कि मैं किसी पियक्कड़ या शराबी के लिए हां भर दूंगी?’’

मां को चुप हो जाना पड़ा.

इंगलिश में एमए और बीऐड करने के बाद उन दिनों मैं स्कूल टीचर के पद के लिए तैयारी में जुटी थी कि एकाएक छोटा भाई पहली बार शराब पी कर घर में घुसा था.

राजू को नशे की हालत में देख कर मैं और मां सकते में आ गईं.

पहली बार मां का हाथ अपने बेटे पर उठा… मां गुस्से में चिल्लाई थीं, ‘‘तो अब यही देखना बाकी रह गया था. तेरे बाप ने भी शराबी बन कर मुझे खूब मारापीटा और मेरी जिंदगी तबाह कर दी थी.

‘‘मैं ने तुझे अच्छे संस्कार दिए और तुझे कभी शराब को हाथ न लगाने का पाठ पढ़ाया था, लेकिन तू… तू भी वही शैतान की औलाद निकला.

‘‘मैं ने खूब कोशिश की थी कि तू पढ़लिख जाए और इसीलिए तुझे अपना पेट काट कर एक सभ्य इनसान बनाने की कोशिश करती रही, लेकिन आज यह दिन दिखाने के लिए तुझे बड़ा किया था मैं ने? अरे, कुछ तो सीख ले लेता अपनी बड़ी बहन से, लेकिन नहीं… तू तो गंदी नाली के कीड़े की जिंदगी ही जीना चाहता है न, बिलकुल अपने बाप की ही तरह?’’

‘‘मां, आज तू ने थप्पड़ मारा है मुझे? मैं ने क्या गुनाह कर दिया? शराब ही तो पी है, बल्कि शराब न पीना एक भद्दा मजाक ही तो है हमारे समाज में और मैं तो वही कर रहा हूं, जो सब करते हैं. और नहीं पीऊंगा तो मजाक नहीं उड़ेगा मेरा?’’

मां को कोने में पड़ी एक लकड़ी दिखाई दे गई. मां ने वही उठा ली थी… वह फुफकारी, ‘‘इस के पहले कि शराब तुझे पी कर खत्म करे, मैं ही तुझे खत्म कर देती हूं.’’

मैं किताबें छोड़ कर भागी और लपक कर मां को पकड़ लिया और बोली, ‘‘नहीं मां, मैं तुम्हें यह नहीं करने दूंगी, कभी नहीं. राजू के शराब पीने की सजा तुम्हें नहीं भुगतने दूंगी.’’

‘‘हो जाने दे मुझे जेल… लेकिन, लोगों के घरों में जिंदगीभर जूठे बरतन रगड़ने से तो अच्छा है, हो जाए मुझे जेल. कम से कम एक जगह बैठ कर चैन से जी तो सकूंगी. मुझे जिंदगीभर घर में तो सुख नहीं मिला, शायद जेल में ही मिल जाए?’’

मां दहाड़ें मार कर रो रही थीं और महल्ले वाले इकट्ठा हो कर तमाशा देखने लगे.

मां टूट गई थीं आज. मैं ने उन्हें इतना हताश कभी नहीं देखा था. मुझे लगा, कोई भी पत्नी अपने बिगड़ैल पति को एक बार सहन कर सकती है, लेकिन जिस बेटे से इतनी उम्मीद पाल ले, उसे गड्ढे में गिरते देख कर वह बरदाश्त नहीं कर सकती.

खैर, कुछ दिनों के बाद मेरी पहली कोशिश में ही एक दूसरे जिले के सरकारी स्कूल में इंगलिश टीचर की नौकरी मिल गई.

मां को निराशा के भंवर से निकालते हुए मैं ने कहा, ‘‘मां, तुम्हारे लिए यह घर किसी मनहूस से कम नहीं. तुम्हें सुख ही क्या मिला है इस घर में? मैं चाहती हूं कि तुम अब मेरे साथ वहीं रहो. हम किराए के मकान में खुशीखुशी साथ रह लेंगे.’’

जाते समय मकान को राजू के हवाले कर मैं ने कहा, ‘‘वादा करो भाई कि अब कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाओगे. जिस मां ने हम को इतने कष्ट सह कर बड़ा किया, उस का रत्तीभर कर्ज भी अगर उतार सकें तो बड़ी बात होगी. और उसे सुख नहीं तो कम से कम दुख तो न ही दें.’’

राजू बोला, ‘‘ठीक है बड़ी बहन. मैं वादा करता हूं, शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊंगा और काबिल इनसान बन कर भी दिखाऊंगा.’’

भाई द्वारा किए इस वादे को मैं गांठ बांध कर साथ ले गई.

मां को मेरी काम करने की जगह पर आ कर बहुत सुकून मिला. मां ने जिंदगीभर न जाने कितने कष्ट सहे और अपनी काया को मशीन की तरह बना दिया था. अब जा कर उन्होंने चैन की सांस ली थी. बीते दिनों में बेटे ने मां की काया को इतना छील दिया था कि अब वे उस का नाम भी नहीं लेना चाहती थीं.

धीरेधीरे कर के मैं ने सभी जरूरी सामान खरीद लिया था और मकान भी थोड़ा और सुविधाजनक ही लिया था.

अभी 6 महीने ही गुजरे थे कि एक दिन राजू मेरे स्कूल में कार ले कर चला आया और बोला, ‘‘बड़ी बहन, मैं ने आप से जो वादा किया था, बिलकुल भी नहीं तोड़ा है और न कभी तोड़ूंगा. लेकिन एक संकट खड़ा हो गया है.’’

‘‘कैसा संकट…?’’ मैं ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘आप के यहां आने के बाद मैं ने सोचा था कि एक कार लोन पर ले कर टैक्सी के रूप में चलाऊं?’’

‘‘लोन कैसे मिला?’’

‘‘इस के लिए मुझे मकान के कागजात बैंक में रखने पड़े और 10 लाख रुपए का लोन जुटा कर यह कार खरीदी.

‘‘मैं 6 महीने से टैक्सी चला रहा हूं, लेकिन पूरी किस्तें नहीं चुका पा रहा हूं. क्या करूं? अब बैंक वाले तकाजा कर रहे हैं.’’

भरी दोपहरी में सूरज की गरमी जब सहन नहीं हुई, तो मैं राजू को नीम के पेड़ के नीचे ले आई और पूछा, ‘‘कितना लोन लिया और किस्त कितनी है?’’

‘‘लोन 10 लाख रुपए का है और किस्त 20,000 रुपए महीना.’’

‘‘तो आमदनी कितनी हुई?’’

‘‘जो आमदनी हुई, उस से 2 किस्तें ही चुका पाया हूं.’’

‘‘तो कार बेच दो.’’

‘‘कार के 6 लाख रुपए से ज्यादा नहीं मिलेंगे.’’

‘‘जितने भी मिलें… फिर जो किस्त आएगी, देखेंगे. किस्त नहीं चुकाने से मकान की नीलामी हो जाएगी न.’’

‘‘इसीलिए मजबूर हो कर आया हूं बड़ी बहन.’’

‘‘भाई, बड़ी बहन हूं, इसलिए अपना फर्ज निभाने से पीछे नहीं हटूंगी. कार बेच कर पहले जो पैसा मिले, वह सारा बैंक वालों को जमा करा दो. फिर मुझे बैंक से डिटेल्स ले कर माहवार किस्त का ब्योरा भेज देना, ताकि मैं हर महीने किस्त समय पर सीधे बैंक में भेज सकूं.’’

‘‘ठीक है, मैं यह काम जाते ही करता हूं.’’

‘‘सुनो भाई, ध्यान रहे कि नया धंधा ऐसा हो जिस में पैसा कम लगे, नुकसान भी न हो. अगर तुम ईमानदार रहोगे तभी मुझ से मदद की उम्मीद कर पाओगे. कभी मेरा भरोसा मत तोड़ना. तुम्हारा शराब पीना मां ही नहीं, मैं भी सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘बड़ी बहन, मेरा वादा है कि जिंदगी में किसी भी हालात में शराब के पास नहीं फटकूंगा और आप का भरोसा कभी तोड़ने की हिम्मत तो हरगिज नहीं करूंगा.’’

‘‘फोन पर अपडेट करते रहना,’’ मेरे कहने पर उस ने हां भरी, फिर पूछा, ‘‘मां कैसी हैं?’’

‘‘अब ठीक हैं.’’

वह बोला, ‘‘मैं उन से तभी मिलूंगा, जब कुछ कमाने लायक हो जाऊंगा,’’ कहते हुए उस ने विदा ली. कार स्टार्ट होने से ले कर उस के वहां से जाने तक मैं बुत बनी खड़ी रह गई.

इस बीच सूरज बादलों की ओट में छिप गया था. चारों ओर सुहावनी छाया घिर आई थी. मैं उम्मीद से भरी अपने क्लासरूम में लौट आई.

महकती विदाई : अंजू और उस की अम्मां सास

अम्मां की नजरों में शारीरिक सुंदरता का कोई मोल नहीं था इसीलिए उन्होंने बेटे राज के लिए अंजू जैसी साधारण लड़की को चुना. खाने का डब्बा और कपड़ों का बैग उठाए हुए अंजू ने तेज कदमों से अस्पताल का बरामदा पार किया. वह जल्द से जल्द अम्मां के पास पहुंचना चाहती थी. उस की सास जिन्हें वह प्यार से अम्मां कह कर बुलाती है, अस्पताल के आई.सी.यू. में पड़ी जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं. एक साल पहले उन्हें कैंसर हुआ था और धीरेधीरे वह उन के पूरे शरीर को ही खोखला बना गया था. अब तो डाक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी.

आज जब वह डा. वर्मा से मिली तो वह बोले, ‘‘आप रोगी को घर ले जा सकती हैं. जितनी सांसें बाकी हैं उन्हें आराम से लेने दो.’’

पापा मानने को तैयार नहीं थे. वह बोले, ‘‘डाक्टर साहब, आप इन का इलाज जारी रखें. शायद कोई चमत्कार हो ही जाए.’’

‘‘अब किसी चमत्कार की आशा नहीं है,’’ डा. वर्मा बोले, ‘‘लाइफ सपोर्ट सिस्टम उतारते ही शायद उन्हें अपनी तकलीफों से मुक्ति मिल जाए.’’

पिछले 2 माह में अम्मां का अस्पताल का यह चौथा चक्कर था. हर बार उन्हें आई.सी.यू. में भरती किया जाता और 3-4 दिन बाद उन्हें घर लौटा दिया जाता. डाक्टर के कहने पर अम्मां की फिर से घर लौटने की व्यवस्था की गई लेकिन इस बार रास्ते में ही अम्मां के प्राणपखेरू अलविदा कह गए.

घर आने पर अम्मां के शव की अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू हुई. वह सुहागन थीं इसलिए उन के शव को दुलहन की तरह सजाया गया. अंजू ने अम्मां के खूबसूरत चेहरे का इतना शृंगार किया कि सब देखते ही रह गए.

अंजू जानती थी कि अम्मां को सजनासंवरना कितना अच्छा लगता था. वह अपने रूप के प्रति हमेशा ही सजग रही थीं. बीमारी की अवस्था में भी उन्हें अपने चेहरे की बहुत चिंता रहती थी.

उस दिन तो हद ही हो गई जब अम्मां को 4 दिन तक अस्पताल में रहना पड़ा था. कैंसर ब्रेन तक फैल चुका था इसलिए वह ठीक से बोल नहीं पाती थीं. अंजू जब उन के कमरे में पहुंची तो नर्स ने मुसकरा कर कहा, ‘दीदी, आप की अम्मां मुझ से कह रही थीं कि मैं पार्लर वाली लड़की को बुला कर लाऊं. पहले तो मुझे समझ में नहीं आया, फिर उन्होंने लिख कर बताया तो मुझे समझ में आया. आंटी मरने वाली हैं फिर भी पार्लर वाली को बुलाना चाहती हैं.’

यह बता कर नर्स कमरे से चली गई तो अंजू ने पूछा, ‘अम्मां, क्या चाहिए?’

अम्मां ने इशारे से बताया कि थ्रेडिंग करवानी है. जब से उन की कीमोथेरैपी हुई थी उन के सिर के बाल तो खत्म हो गए थे पर दाढ़ीमूंछ उगनी शुरू हो गई थी. घर में थीं तो वह अंजू से प्लकिंग करवाती रहती थीं पर अस्पताल जा कर उन्होंने महसूस किया कि 4-5 बाल चेहरे पर उग आए हैं इसलिए वह पार्लर वाली लड़की को बुलाना चाहती थीं.

अम्मां की तीव्र इच्छा को देख कर अंजू ने ही उन की थे्रडिंग कर दी थी. फिर उन के कहने पर भवों को भी तराश दिया था. एक संतोष की आभा उन के चेहरे पर फैल गई थी और थक कर वह सो गई थीं.

नर्स जब दोबारा आई तो उस ने अम्मां के चेहरे को देखा और मुसकरा दी. उस ने पहले तो अम्मां को गौर से देखा फिर एक भरपूर नजर अंजू पर डाल कर बोली, ‘दीदी, आप की लवमैरिज हुई थी क्या?’

‘नहीं.’

‘ऐसा नहीं हो सकता,’ नर्स बोली, ‘अम्मां तो इतनी गोरी और सुंदर हैं फिर आप जैसी साउथ इंडियन लगने वाली लड़की को उन्होंने कैसे अपनी बहू बनाया?’

ऐसे प्रश्न का सामना अंजू अब तक हजारों बार कर चुकी थी. सासबहू की जोड़ी को एकसाथ जिस किसी ने देखा उस ने ही यह प्रश्न किया कि क्या उस का प्रेमविवाह था?

यह तो आज तक अंजू भी नहीं जान पाई थी कि अम्मां ने उसे अपने बेटे राज के लिए कैसे पसंद कर लिया था. जितना दमकता हुआ रूप अम्मां का था वैसा ही राज का भी था, यानी राज अम्मां की प्रतिमूर्ति था. जब अंजू को देखने अम्मां अपने पति और बेटे के साथ पहुंची थीं तो उन्हें देखते ही अंजू और उस के मातापिता ने सोच लिया था कि यहां से ‘ना’ ही होने वाली है पर उन के आश्चर्य का तब ठिकाना नहीं रहा था जब दूसरे दिन फोन पर अम्मां ने अंजू के लिए ‘हां’ कह दी थी.

अम्मां कुंडली के मिलान पर भरोसा रखती थीं और परिवार के ज्योतिषी ने अम्मां को इतना भरोसा दिला दिया था कि अंजू के साथ राज की कुंडली मिल रही है. लड़की परिवार के लिए शुभ है.

अंजू कुंडली में विश्वास नहीं रखती थी. हां, कर्तव्य पालन की भावना उस के मन में कूटकूट कर भरी थी इसीलिए वह अम्मां के लिए उन की बेटी भी थी, बहू भी और सहेली भी. सच है कि दोनों ही एकदूसरे की पूरक बन गई थीं. उन के मधुर संबंधों के कारण परिवार में हमेशा ही खुशहाली रही.

अम्मां के रूप को देख कर अंजू के मन में कभी भी ईर्ष्या उत्पन्न नहीं हुई थी. कहीं पार्टी में जाना होता तो अम्मां, अंजू की सलाह से ही तैयार होतीं और अंजू को भी उन को सजाने में बड़ा आनंद आता था. अंजू खुद भी बहुत अच्छी तरह से तैयार होती थी. उस की सजावट में सादगी का समावेश होता था. अंजू की सरलता, सौम्यता और आत्म- विश्वास से भरा व्यवहार जल्दी ही सब को अपनी ओर खींच लेता था.

घर में भी अंजू ने अपनी सेवा से अम्मां को वशीभूत कर रखा था. जबजब अम्मां को कोई कष्ट हुआतबतब अंजू ने तनमन से उन की सेवा की. 10 साल पहले जब अम्मां का पांव टूट गया था और वह घर में कैदी बन गई थीं, ऐसे में अंजू 3 सप्ताह तक जैसे अम्मां की परछाई ही बन गई थी.

उन्हीं दिनों अम्मां एक दिन बहुत भावुक हो गईं और उन की आंखों में अंजू ने पहली बार आंसू देखे थे. उन को दुखी देख कर अंजू ने पूछा था, ‘अम्मां क्या बात है? क्या मुझ से कोई गलती हो गई है?’

‘नहींनहीं, तेरे जैसी लड़की से कोई गलती हो ही नहीं सकती है. मैं तो अपने बीते दिनों को याद कर के रो रही हूं.’

‘अम्मां, जितने सुंदर आप के पति हैं, उतना ही सुंदर और आज्ञाकारी आप का बेटा भी है. घर में कोई आर्थिक तंगी भी नहीं है फिर आप के जीवन में दुख कैसे आया?’

‘अंजू, दूर के ढोल सुहाने लगते हैं, यह कहावत तो तुम ने भी सुनी होगी. मेरी ओर देख कर सभी सोचते हैं कि मैं सब से सुखी औरत हूं. मेरे पास सबकुछ है. शोहरत है, पैसा है और एक भरापूरा परिवार भी है.’

‘अम्मां, साफसाफ बताओ न क्या बात है?’

‘आज तेरे सामने ही मैं ने अपना दिल खोला है. इस राज को राज ही बना रहने देना.’

‘हां, अम्मां, आप बताओ. यह राज मेरे दिल में दफन हो जाएगा.’

‘जानना चाहती है तो सुन. राज के पापा की बहुत सारी महिला दोस्त हैं जिन पर वे तन और धन दोनों से ही न्यौछावर रहते हैं.’

‘आप जैसी सुंदर पत्नी के होते हुए भी?’ अंजु हैरानी से बोली.

‘हां, मेरा रूप भी उस आवारा इनसान को बांध नहीं पाया. यही मेरी तकदीर है.’

‘आप को कैसे पता लगा?’

‘खुद उन्होंने ही बताया. शादी के 2 साल बाद जब एक रात बहुत देर से घर लौटे तो पूछने पर बोले, ‘राज की मां, औरतें मेरी कमजोरी हैं. पर तुम्हें कभी कोई कमी नहीं आएगी. लड़नेझगड़ने या धमकियां देने के बदले यदि तुम इस सच को स्वीकार कर लोगी तो इसी में हम दोनों की भलाई है.’

‘और जल्दी ही यह सचाई मुझे समझ में आ गई. मैं ने अपने इस दुख को कभी दुनिया के सामने जाहिर नहीं किया. आज पहली बार तुम को बता रही हूं. मैं उसी दिन समझ गई थी कि शारीरिक सुंदरता महत्त्वपूर्ण नहीं है इसीलिए जब तुम्हें देखा तो न जाने तुम्हारे साधारण रंगरूप ने भी मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं तुम्हें बहू बना कर घर ले आई. राज भी इस सच को शायद जानता है इसीलिए उस ने भी तुम्हें स्वीकार कर लिया. यह बेहद अच्छी बात है कि बाप की कोई भी बुरी आदत उस में नहीं है.’

अम्मां की आपबीती सुन कर अंजू को इस घर की बहू बनने का रहस्य समझ में आ गया. राज अपनी मां से भावनात्मक रूप से इतना अधिक जुड़ा हुआ था कि उस की मां की पसंद ही उस की पसंद थी.

‘अरे, तू क्यों रो रही है पगली. इन्हीं विसंगतियों का नाम तो जीवन है. हर इनसान पूर्ण सुखी नहीं है. परिस्थितियों को जान कर उन्हें मान लेना ही जीवन है.’

‘अम्मां, आप ने यह सब क्यों बरदाश्त किया? छोड़ कर चली जातीं.’

‘सच जानने के बाद मैं ने अपने जीवन को अपने हाथों में ले लिया था. अपने दुखों के ऊपर रोते रहने के बदले मैं ने अपने सुखों में हंसना सीख लिया. मैं ने अपना ध्यान अपनी कला में लगा दिया. कला का शौक मुझे बचपन से था. मैं ने अपने चित्रों की प्रदर्शनियां लगानी शुरू कर दीं. जरूरतमंद कलाकारों को प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया. कला और सेवा ने मेरे जीवन को बदल दिया.’

‘सच, अम्मां, आप ने सही कदम उठाया. मुझे आप पर गर्व है.’

‘मुझे स्वयं पर भी गर्व है कि एक आदमी के पीछे मैं ने अपना जीवन नरक नहीं बनाया,’ अम्मां बोलीं, ‘ऐसी बात नहीं थी कि वह मुझ से प्यार नहीं करते थे. जब एक बार मुझे टायफाइड और मलेरिया एकसाथ हुआ तो वे मेरे पास ही रहे. जैसे आज तुम मेरी सेवा कर रही हो वैसे ही 21 दिन इन्होंने दिनरात मेरी सेवा की थी.’

अब जब से अम्मां को कैंसर हुआ था तब से पापा ही दिनरात अम्मां की सेवा में लगे थे. आज उन की मृत्यु पर वे ही सब से ज्यादा रो रहे थे. उन के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. अम्मां के अंतिम दर्शन पर वे बोले, ‘‘अंजू बेटा, तुम ने अपनी मां को सजा तो दिया है पर एक बात तुम बिलकुल भूल गई हो.’’

‘‘पापा, क्या बात?’’

‘‘परफ्यूम लगाना भूल गई हो. वह बिना परफ्यूम लगाए कभी बाहर नहीं जाती थीं. आज तो लंबी यात्रा पर जा रही हैं. उन के लिए एक बढि़या परफ्यूम लाओ और उन पर छिड़क दो. मेरे लिए उन की यही पहचान थी. जब भी किसी बढि़या परफ्यूम की खुशबू आती तो मैं बिना देखे ही समझ जाता था कि मेरी पत्नी यहां से गुजरी है. आज भी जब वह जाए तो बढि़या परफ्यूम की खुशबू मुझ तक पहुंचे. मैं इसी महक के सहारे बाकी के बचे हुए दिन निकाल लूंगा,’’ इतना कह कर पापा फफकफफक कर रो पड़े. अंजू ने परफ्यूम की सारी शीशी अम्मां के शव पर छिड़क दी और 4 लोग उन की अर्थी को उठा कर अंतिम मुकाम की ओर बढ़ चले.

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