हिस्टेरेक्टौमी सर्जरी के बाद भी क्या सैक्स किया जा सकता है या नहीं ?

सवाल 

मेरी उम्र 48 साल है, 2 बच्चों की मां हूं. कई सालों से मुझे पीरियड्स की प्रौब्लम हो रही थी. बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती थी. आखिरकार डाक्टर ने लास्ट औप्शन हिस्टेरेक्टौमी सर्जरी ही बताया और मैं ने सर्जरी करवा ली. अभी तक मैं और मेरे पति अपनी सैक्सलाइफ काफी एंजौय कर रहे थे. क्या इस सर्जरी के बाद पहले जैसी बात रहेगी?

जवाब

आप ही नहीं, कई महिलाओं के जेहन में यह सवाल आता है क्योंकि कई महिलाएं हिस्टेरेक्टौमी यानी यूट्रस रिमूवल सर्जरी से गुजरती हैं और सर्जरी के बाद हैल्थ की चिंता के अलावा वे इस बारे में भी चिंतित होती हैं कि उन की सैक्सलाइफ अब कैसी होगी. जबकि इस सर्जरी के बाद सैक्सलाइफ पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है.

एक अध्ययन से पता चला है कि हिस्टेरेक्टौमी का एक महिला के यौन जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. खासकर, अगर वह सर्जरी से पहले, चिकित्सकीय रूप से संबंधित सैक्सुअल प्रौब्लम का सामना कर रही थी. हालांकि हर किसी की स्थिति अलग होती है.

डाक्टर सलाह देते हैं कि हिस्टेरेक्टौमी के बाद सैक्स के लिए महिलाओं को तब तक परहेज करना चाहिए जब तक वैजाइनल डिस्चार्ज बंद न हो जाए और घाव ठीक न हो जाएं. कुछ महिलाओं को सर्जरी के बाद कई हफ्तों तक वैजाइनल ब्लीडिंग और दर्द का अनुभव हो सकता है और उन्हें सैक्स में बहुत कम रुचि हो सकती है. शारीरिक प्रभावों के अलावा भावनात्मक प्रभाव भी हो सकता है. यह महिला की सैक्स करने की इच्छा को भी कम कर सकता है. हालांकि हिस्टेरेक्टौमी के बाद सैक्स में रुचि हर महिला की व्यक्तिगत स्थिति पर अलगअलग हो सकती है.

आड़ी टेढ़ी राहों पर नहीं मिलता प्यार

आगरा के गांव खुशहालपुर के रहने वाले जगदीश यादव बरहन तहसील में वकालत करते थे. उन की 3 बेटियां नीलम, पूनम और नूतन के अलावा 2 बेटे हैं मानवेंद्र और राघवेंद्र. जगदीश यादव बेटे मानवेंद्र और 2 बेटियों पूनम व नीलम की शादी कर चुके थे. शादी के लिए अब बेटी नूतन और बेटा राघवेंद्र ही बचे थे.

दोनों पढ़ाई कर रहे थे. सभी कुछ ठीक चल रहा था कि परिवार में अचानक ऐसा जलजला आया कि सब कुछ खत्म हो गया. जगदीश यादव की होनहार बेटी नूतन ने टूंडला से इंटरमीडिएट पास करने के बाद आगरा के बैकुंठी देवी कालेज में दाखिला ले लिया.

अपने ख्वाबों को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने खुद को किताबों की दुनिया में खपा दिया था लेकिन इसी बीच एक दिन रिश्ते के चाचा धनपाल यादव से उस की मुलाकात हो गई. कहा जाता है कि धनपाल और जगदीश यादव के परिवार के बीच बरसों पुरानी रंजिश चली आ रही थी. जब नूतन और धनपाल की मुलाकात हुई तो नूतन को लगा कि यदि बातचीत शुरू की जाए तो दोनों परिवारों के रिश्तों में फिर से मिठास आ सकती है.

धनपाल शादीशुदा था. अपनी पत्नी और 2 बेटों के साथ वह खुशहालपुर में ही रहता था. नूतन उसे चाचा कहती थी और पढ़ाई के दौरान आने वाली परेशानियों को भी उस से शेयर करती थी. खूबसूरत नूतन स्वभाव से शालीन और कम बात करने वाली लड़की थी. चाचा धनपाल का सहानुभूति वाला व्यवहार उसे अच्छा लगता था और वह धीरेधीरे कथित चाचा के नजदीक आने लगी.धीरेधीरे जगदीश यादव के घर में भी सब को पता चल गया कि धनपाल नूतन के सहारे सालों से चली आ रही रंजिश को खत्म करना चाहता है. इसलिए नूतन के साथ उस के मेलजोल को नूतन के घर वालों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. नूतन 20 साल की थी और अपना अच्छाबुरा समझ सकती थी.

वहीं दूसरी ओर धनपाल की पत्नी सरोज को धनपाल और नूतन की नजदीकियां रास नहीं आ रही थीं. वह पति से मना करती थी कि वह नूतन से न मिला करे. इस के बजाय वह अपनी दूध की डेरी पर ध्यान दे लेकिन धनपाल ने पत्नी की बात पर ध्यान नहीं दिया. धीरेधीरे वह नूतन की आर्थिक मदद भी करने लगा था. हालांकि नजदीकियों की शुरुआत चाचाभतीजी के रिश्ते से ही हुई थी, पर बाद में यह रिश्ता कोई दूसरा ही रूप लेने लगा.

नूतन से बढ़ रही नजदीकियों को ले कर धनपाल को पत्नी की खरीखोटी सुननी पड़ती थी, जिस से उस का पत्नी के साथ न सिर्फ झगड़ा होता था बल्कि दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ रही थीं. उधर नूतन अपने भविष्य को संवारते हुए एमए की डिग्री लेने के बाद आगरा कालेज से कानून की पढ़ाई करने लगी.

नहीं मानी पत्नी की बात कथित भतीजी नूतन के ख्वाबों को पूरा करने की धुन में धनपाल उर्फ धन्नू अपने डेरी के व्यवसाय को भी बरबाद कर बैठा. वह हर कदम पर नूतन के साथ था. घर पर पत्नी की कलह से तंग आ कर उस ने अपना आशियाना खेत में बना लिया था. वह नूतन की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठा रहा था. नूतन के एलएलबी पास कर लेने पर वह बहुत खुश हुआ. इस के बाद उस ने एलएलएम किया.

एलएलएम करने के बाद नूतन ने कोचिंग करने के लिए दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला ले लिया. होस्टल में रह कर वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगी. नूतन के दिल्ली जाने के बाद धनपाल का मन नहीं लग रहा था.

उस के पास रिवौल्वर का लाइसैंस था. अपनी दूध डेयरी बंद कर वह दिल्ली में किसी नेता के यहां सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने लगा. उस ने यह नौकरी सन 2015 से 2018 तक की. नौकरी के बहाने वह दिल्ली में रहा. दिल्ली में चाचाभतीजी की मुलाकातें जारी रहीं.

आशिकी का यह पागलपन धनपाल को किस ओर ले जा रहा था, यह बात वह समझ नहीं पाया. अपने से 10-12 साल छोटी कथित भतीजी के इश्क में वह एक तरह से अंधा हो चुका था. लेकिन दूसरी ओर इस सब के बावजूद नूतन का पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर था. वह कुछ बनना चाहती थी, जो उसे सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाए.

धनपाल ने भी उस से कह दिया था कि चाहे जितना पैसा खर्च हो वह उस की पढ़ाई में हर तरह से मदद करेगा. आखिर नूतन की मेहनत रंग लाई और न्याय विभाग में उस का सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर सेलेक्शन हो गया, जिस की ट्रेनिंग के लिए उसे मुरादाबाद भेजा गया.

नूतन की ऊंचे पद पर नौकरी लगने पर धनपाल खुश था. उसे लगने लगा कि नूतन की पोस्टिंग के बाद वह पढ़ाई आदि से मुक्ति पा लेगी. तब दोनों अपने जीवन को सही दिशा देने के बारे में सोचेंगे. लेकिन यह उस के लिए केवल खयाली पुलाव बन कर रह गया.

नूतन की सोच कुछ अलग थी. अभी तो उसे केवल सहायक अभियोजन अधिकारी का पद मिला था. जबकि उसे बहुत आगे जाना था. खूब लिखपढ़ कर वह जज बनने का सपना देख रही थी. वह इस सच्चाई से अनभिज्ञ थी कि अधिकतर सपने टूटने के लिए ही होते हैं.

ट्रेनिंग के बाद नूतन की बतौर सहायक अभियोजन अधिकारी पहली पोस्टिंग एटा जिले की जलेसर कोर्ट में हुई. नौकरी मिल जाने पर नूतन और उस के परिवार के लोग बहुत खुश थे. कथित चाचा धनपाल भी बहुत खुश था. अब उस के दिल में एक कसक यह रह गई थी कि क्या नूतन समाज के सामने उस का हाथ थामेगी?

धनपाल आशानिराशा के बीच झूल रहा था. उसे लगता था कि वह नूतन के साथ अपनी दुनिया बसाएगा और उसे सरकारी अधिकारी पत्नी का पति होने का गौरव प्राप्त होगा. पर खुशियां कब किसी की सगी होती हैं, वह तो हवा की तरह उड़ने लगती हैं.

नूतन एटा आ गई. पुलिस लाइन परिसर में उस के नाम एक क्वार्टर अलाट हो गया. यह क्वार्टर महिला थाना और दमकल केंद्र से कुछ ही दूरी था. सरकारी क्वार्टर में आने के बाद भी धनपाल ने नूतन का पूरा ध्यान रखा. उस ने घर की जरूरत का सारा सामान उस के क्वार्टर पर पहुंचा दिया. वह भतीजी के साथ क्वार्टर में रह तो नहीं सकता था, लेकिन वहां उस का आनाजाना बना रहा.

नूतन अपनी जिंदगी व्यवस्थित करने के बाद अपने छोटे भाई राघवेंद्र की जिंदगी संवारना चाहती थी. लेकिन धनपाल को नूतन का यह निर्णय बिलकुल पसंद नहीं आया. लेकिन वह यह बात अच्छी तरह समझता था कि कच्चे कमजोर रिश्तों को संभालने में सतर्कता की जरूरत होती है.

कभीकभी धनपाल के सीने में एक अजीब सी कसक उठती थी कि क्या उस का और नूतन का रिश्ता सिरे चढ़ेगा. एक दिन उस ने अपनी यह शंका अपने दोस्त भारत सिंह से जाहिर की तो उस ने कहा कि ऐसा क्यों सोचते हो, जब तुम ने नूतन को इतना सहयोग किया है तो फिर वह क्यों तुम्हें छोड़ेगी?

दरअसल, धनपाल को नूतन का बढ़ता हुआ कद परेशान कर रहा था. वह उस के सामने खुद को बौना महसूस करने लगा था. इसीलिए उस के मन में इस तरह के विचार आ रहे थे. आखिर उस ने अपनी आशिकी की हिचकोले खाती नाव तूफान के हवाले कर दी और सही समय का इंतजार करने लगा.

बेचैनी थी धनपाल के मन में  नूतन की दिनचर्या व्यवस्थित हो गई थी. वह स्कूटी पर सुबह ड्यूटी पर जाती और शाम को क्वार्टर पर लौटती. अपने पासपड़ोस में रहने वालों से न तो उस की बातचीत थी और न ही उठनाबैठना.

इस बीच नूतन ने धनपाल से कहा कि उसे घर में एक काम वाली बाई की जरूरत है, क्योंकि खाना बनाने में उस का काफी समय खराब होता है. धनपाल ने तुरंत 2700 रुपए प्रतिमाह की सैलरी पर संगीता नाम की महिला का इंतजाम कर दिया. वह नूतन के यहां जा कर रसोई का काम संभालने लगी.

नूतन के अड़ोसपड़ोस में अधिकतर पुलिसकर्मियों के ही क्वार्टर थे. उन पड़ोसियों को बस इतना पता था कि नूतन के साथ उस का छोटा भाई रहता है और जबतब गांव से उस के चाचा आ जाते हैं.

नूतन की नौकरी लग चुकी थी. यहां तक पहुंचतेपहुंचते वह 35 साल की हो गई थी. घर वाले उस की शादी के लिए उपयुक्त लड़का देख रहे थे. घर में अकसर उस की शादी का जिक्र होता था. घर वाले चाहते थे कि उस की शादी किसी अच्छे सरकारी अधिकारी से हो जाए.

शादी की चर्चा सुन कर नूतन को झटका सा लगा, क्योंकि धनपाल के रहते उस ने कभी अपने अलग अस्तित्व के बारे में सोचा ही नहीं था. इसी बीच किसी मध्यस्थ के जरिए नूतन के लिए अलीगढ़ में पोस्टेड वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह (बदला हुआ नाम) का रिश्ता आया. नूतन के परिवार वाले खुश भी थे और इस रिश्ते के पक्ष में भी. लेकिन नूतन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

कुछ नहीं सूझा तो नूतन ने घर वालों से कहा कि वे लोग जिस लड़के से उस की शादी करना चाहते हैं, पहले वह उस के बारे में जानना चाहती है. तब घर वालों ने नूतन का फोन नंबर बिचौलिया के माध्यम से उस लड़के तक पहुंचवा दिया.

फिर एक दिन राम सिंह का फोन आया दोनों ने आपस में बात की, एकदूसरे के फोटो देखे. अचानक नूतन को लगा कि बरसों की कठिन मेहनत के बाद उस ने जो पद हासिल किया है, उस के चलते धनपाल के लिए उस की जिंदगी में अब कोई जगह होनी नहीं चाहिए. जीवनसाथी के रूप में बराबरी के दरजे वाले व्यक्ति का होना ही दांपत्य जीवन को सफल बना सकता है.

उस ने महसूस किया कि अब तक जो कुछ उस के जीवन में चल रहा था, वह केवल एक खेल था. लेकिन इस खेल के सहारे जीवन तो कट नहीं सकता. इस उम्र में उस के लिए यदि रिश्ता आया है तो उस का स्वागत करना चाहिए.

इस के बाद राम सिंह और नूतन के बीच फोन पर अकसर बातचीत होने लगी. वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह को भी नूतन जैसी जीवनसाथी की ही जरूरत थी, अत: नूतन ने एक दिन घर वालों के सामने भी इस रिश्ते के लिए हामी भर ली.

एक दिन धनपाल जब नूतन के आवास पर उस से मिलने आया तो नूतन ने कहा, ‘‘बिना सोचेसमझे मुंह उठाए चले आते हो. जानते हो, अगर आसपास रहने वाले लोगों को शक हो गया तो मेरी कितनी बदनामी होगी?’’

धनपाल को नूतन की यह बात चुभ गई, वह बोला, ‘‘यह क्या कह रही हो, तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा, फिर इस में दूसरों की फिक्र का क्या मतलब?’’

‘‘हूं, यह तो है,’’ नूतन ने टालने की गरज से कहा पर धनपाल को लगा कि नूतन के मन में कुछ है, जो वह जाहिर नहीं कर रही है.

दोनों के बीच बनने लगीं दूरियां  उस दिन के बाद नूतन ने धनपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. उस ने उस का फोन भी उठाना बंद कर दिया. वह क्वार्टर पर आ कर शिकायत करता तो नूतन कह देती कि फोन साइलेंट पर था. बड़ेबड़े सपने देखने वाली नूतन को अब तनख्वाह मिलने लगी तो उसे धनपाल से आर्थिक मदद की भी जरूरत नहीं रही. वह अपनी बचकानी गलती को भूल जाना चाहती थी पर धनपाल के साथ ऐसा नहीं था.

इधर नूतन के मांबाप जल्दी ही उस की सगाई करना चाहते थे. लेकिन आने वाले वक्त को कब कोई देख पाया है. नूतन यादव ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उस ने बरसों मेहनत कर के सफलता पाई है. उस का क्या अंजाम होने वाला है. वह मौत की उस दस्तक को नहीं सुन पाई जो उस की खुशियों पर विराम लगाने वाली थी. 5 अगस्त, 2019 का दिन उस के जीवन में तूफान लाने वाला था, जिस से वह बेखबर थी.

6 अगस्त, 2019 को सुबह जब नौकरानी संगीता काम करने आई तो कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी नहीं खुला. तभी उस ने महसूस किया कि दरवाजा अंदर से बंद नहीं है. संगीता ने धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. अंदर जा कर उस ने जो कुछ देखा, सन्न रह गई. लोहे के पलंग पर नूतन औंधे मुंह पड़ी हुई थी और बिस्तर खून से लाल था.

यह देखते ही नौकरानी भागती हुई बाहर आई और सीधे एटा कोतवाली का रुख किया. वहां पहुंच कर उस ने सारी बात कोतवाल अशोक कुमार सिंह को बता दी. कत्ल की बात सुन कर कोतवाल मय फोर्स के मौके पर पहुंचे. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी इस घटना की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही मौके पर एसएसपी स्वप्निल ममगई, एएसपी संजय कुमार, एसपी (क्राइम) राहुल कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम भी मौके पर पहुंच गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला कि एपीओ नूतन यादव को बड़ी बेरहमी से मारा गया था. मौके पर पुलिस को 5 खोखे मिले. मृतका का चेहरा और शरीर क्षतविक्षत था. पुलिस को मृतका का मोबाइल भी वहीं पड़ा मिल गया.

आसपास पूछताछ करने पर लोगों ने बताया कि संभवत: गोली चलने की आवाज कूलरों की आवाज में दब गई होगी. इसलिए किसी को भी घटना का पता नहीं चल पाया.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस को लगा कि हत्यारा नूतन को मारने के इरादे से ही आया था. क्योंकि क्वार्टर का सारा सामान ज्यों का त्यों था. ऐसा लग रहा था कि कोई परिचित रहा होगा, जिस ने बिना किसी विरोध के घर में पहुंचने के बाद नूतन की हत्या की और वहां से चला गया.

घटना की सूचना मिलने पर देर रात मृतका के परिजन भी वहां पहुंच गए. उन्होंने वहां पहुंचते ही चीखचीख कर धनपाल पर अपना शक जताते हुए बताया कि धनपाल इस बात से नाराज था कि नूतन शादी करने वाली थी.

परिजनों की बातचीत से स्पष्ट हो रहा था कि मृतका और धनपाल के बीच नजदीकी संबंध थे. इसीलिए धनपाल शादी का विरोध कर रहा होगा और न मानने पर उस ने नूतन की हत्या कर दी होगी. घर वालों ने धनपाल के अलावा उस के दोस्त भारत सिंह पर भी अपना शक जताया.

पुलिस भारत सिंह और धनपाल की तलाश में लग गई. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि हत्यारे ने नूतन की हत्या बड़े ही नृशंस तरीके से की थी. उस ने मृतका के मुंह में रिवौल्वर की नाल घुसेड़ कर 3 गोलियां चलाईं और 2 शरीर के अन्य हिस्सों में मारीं.

पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगा दिए. नूतन के फोन की भी काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि घटना वाली रात को भी एक फोन काल देर तक आती रही थी. जांच में पता चला कि नूतन उस नंबर पर घंटों बातें करती थी. जांच में वह नंबर अलीगढ़ के वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह का निकला.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उन के घर दबिश डाली लेकिन वे नहीं मिले तो पुलिस ने पूछताछ के लिए धनपाल की पत्नी सरोज और श्यामवीर व उस के साले के बेटे को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो उन से अभियुक्तों के बारे में जानकारी नहीं मिली. इस के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

पकड़ा गया धनपाल  10 अगस्त को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर माया पैलेस चौराहे से भारत सिंह को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ में धनपाल और नूतन के संबंधों की बात खुल कर सामने आई. भारत सिंह ने बताया कि नूतन के कत्ल में उस का कोई हाथ नहीं है. धनपाल की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उस के सभी ठिकानों पर छापे मारे. यहां तक कि दिल्ली तक में उस की तलाश की गई.

आखिर 12 अगस्त को पुलिस ने धनपाल को गांव बरौठा, थाना हरदुआगंज, अलीगढ़ में उस के रिश्तेदार के घर से दबोच लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई.

धनपाल के चेहरे पर अपनी प्रेयसी की हत्या का जरा सा भी दुख नहीं था. पुलिस के सामने उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और कहा कि नूतन की बेवफाई ही उस की मौत का कारण बनी. जिस नूतन के लिए उस ने अपना घर, बीवीबच्चे सब उस के कहने पर छोड़ दिए थे, उस की पढ़ाई पूरी करने के लिए उस ने अपनी दूध की डेयरी तक खपा दी. उस पर लाखों रुपए का कर्ज चढ़ गया, लेकिन नौकरी मिलते ही वह बदल गई.

धनपाल ने बताया कि जब वह बीए कर रही थी तभी एक दिन आगरा के एक होटल के कमरे में उस ने नूतन की मांग भर कर उसे  अपना बना लिया था. नूतन के कहने पर उस ने पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया. वह उसे बेइंतहा प्यार करता था. पर वह पिछले 4 महीने से अचानक बदलने लगी थी. उस का फोन तक रिसीव नहीं करती थी. जिसे दिलोजान से चाहा, उसी की उपेक्षा ने उसे हत्यारा बना दिया.

नूतन ने 15 साल की मोहब्बत को एक पल में अपने पैरों तले रौंद दिया था. वह तो उस के प्यार में अपनी दुनिया लुटा चुका था, पर अपनी आशिकी को भुलाना उस के लिए मुश्किल था.

उस ने कबूला कि घटना वाले दिन उस ने भारत सिंह के जरिए पता लगा लिया था कि नूतन उस रोज छुट्टी पर है और उस के साथ रहने वाला उस का भाई राघवेंद्र भी अपने गांव गया हुआ है. बस फिर क्या था, अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर में गोलियां भर कर वह नूतन के क्वार्टर पर पहुंच गया. उस ने तय कर लिया था कि वह आरपार की बात करेगा. या तो नूतन उस की होगी या फिर वह किसी की भी नहीं.

धनपाल ने बताया, ‘‘नूतन ने मेरे साथ हमेशा रहने का वादा किया था. लेकिन नौकरी मिलने पर उसे समझ आया कि मैं उस के स्तर का नहीं हूं. मेरे प्यार की उपेक्षा कर के वह जीने का अधिकार खो बैठी थी. मैं ने नूतन को मार डाला.

‘‘नूतन ने उस रात मुझ से कहा था कि उस से दूर ही रहूं तो अच्छा, वरना वह पुलिस से मुझे पिटवाएगी. उस ने मेरे इश्क का इतना अपमान किया, जिसे मैं बरदाश्त नहीं कर सका, इसलिए मैं ने उस की जबान ही बंद कर दी. उस के मर जाने का मुझे कोई अफसोस नहीं है.’’

धनपाल ने हत्या में इस्तेमाल की गई रिवौल्वर पुलिस को वहीं परिसर में खड़ी एक पुरानी गाड़ी में से बरामद करा दी. पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल से पूछताछ की. उन्हें भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस तरह कई साल तक चली एक प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ. कथा लिखने तक दोनों अभियुक्त जेल में थे. मामले की जांच कोतवाल अशोक कुमार सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जब हुआ एक अत्याचार का खुलासा

घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले की है. घाटीगांव, ग्वालियर के सर्राफा बाजार में कमल किशोर की ‘नयन ज्योति ज्वैलर्स’ के नाम से ज्वैलरी शौप है. कमल किशोर ग्वालियर के लश्कर क्षेत्र में रहते हैं.

10 अक्तूबर को कमल के चाचा विष्णु सोनी का उस के पास फोन आया. चाचा ने बताया कि देविका इनकम टैक्स विभाग में अधिकारी बन गई है. इतना ही नहीं, देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य को भी इनकम टैक्स विभाग में अच्छी नौकरी लगवा दी है.

चचेरी बहन देविका और आदित्य के इनकम टैक्स विभाग में अफसर बनने पर कमल किशोर बहुत खुश हुआ. देविका विष्णु सोनी की एकलौती बेटी थी. विष्णु आटो चलाता था. उस की ग्वालियर के पास गुना में कुछ जमीन थी, जो उस ने बंटाई पर दे रखी थी.

देविका ने ग्वालियर के ही रहने वाले अपने जिस फुफेरे भाई आदित्य को अपने विभाग में नौकरी पर लगवाया था, वह सरकारी नौकरी पाने के लिए बहुत परेशान था. उच्चशिक्षा हासिल करने के बाद भी जब उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली तो उस ने दूध की डेयरी खोल ली थी.

इस के साथ ही विष्णु सोनी ने कमल किशोर को जो बात बताई, वह चौंकाने वाली थी. विष्णु ने बताया कि देविका बता रही थी कि इनकम टैक्स विभाग तुम्हारे ज्वैलरी शोरूम पर रेड (छापेमारी) की तैयारी कर रहा है. इस बारे में चाहो तो देविका से बात कर लेना.

इस के बाद कमल किशोर ने देविका और फुफेरे भाई आदित्य से बात की. इस पर देविका और आदित्य ने कहा कि बात तो सही है. आप के शोरूम पर रेड का आदेश आने वाला है. देविका ने कमल को बताया कि अगर ऐसा होता है तो वह उन्हें बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

रेड की सूचना की पुष्टि हो जाने पर कमल किशोर की चिंता बढ़नी स्वाभाविक थी. वैसे कमल किशोर का बहीखाता, हिसाबकिताब सही था. फिर भी उस ने हिसाबकिताब बारीकी से सही करने की कवायद शुरू कर दी. लेकिन इस के पहले ही 21 अक्तूबर की दोपहर में उस की चचेरी बहन देविका और भाई आदित्य सोनी 5 व्यक्तियों की टीम ले कर सर्राफा मार्केट स्थित उस के ज्वैलरी शोरूम पर छापेमारी करने पहुंच गए.

इस टीम ने बारीकी से ज्वैलरी खरीदने और बेचने के बिल चैक किए. 6 घंटे तक चली काररवाई में उन्होंने कमल के खातों में कई कमियां निकाल दीं, जिस की उन्होंने 18 लाख रुपए की पेनल्टी लगाई.

कमल किशोर के सभी खाते लगभग सही थे, परंतु पेनल्टी की इतनी बड़ी राशि सुन कर वह चिंता में पड़ गया. ऐसे में देविका और आदित्य ने मदद के लिए आगे आ कर 6 लाख रुपए में समझौता करने की बात कही. कमल किशोर के पास उस वक्त 60 हजार रुपए थे. देविका ने 60 हजार रुपए ले कर बाकी के 5 लाख 40 हजार रुपए का अगले दिन इंतजाम करने को कहा. इस के बाद पूरी टीम वहां से चली गई.

देविका के जाने के बाद कमल किशोर ने इस मामले पर गौर से सोचा तो उसे इनकम टैक्स विभाग का छापेमारी का यह तरीका कुछ समझ में नहीं आया.

उसे यह भी शक होने लगा कि अगर देविका किसी तरह इनकम टैक्स अधिकारी बन भी गई तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आदित्य को भी अपने विभाग में अफसर बनवा दे. क्योंकि सरकारी नौकरी पाने की भी एक प्रक्रिया होती है, जो कई महीनों में पूरी होती है. फिर इतनी जल्दी आदित्य को नौकरी कैसे मिल गई.

शक की दूसरी वजह यह भी थी कि अगले दिन से ही कमल किशोर के पास आदित्य और देविका के 5 लाख 40 हजार रुपए जमा करने के लिए फोन आने लगे. इस बारे में उस ने कुछ व्यापारियों से बात की तो उन्हें भी छापेमारी की यह काररवाई संदिग्ध लगी. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस से करने की सलाह दी. इस के बाद कमल किशोर ने ग्वालियर के भारीपुर थाने में जा कर टीआई प्रशांत यादव से मुलाकात की और उन्हें पूरी घटना से अवगत कराया.

कमल किशोर की बात सुन कर टीआई भी समझ गए कि यह किसी ठग गिरोह की करतूत हो सकती है, इसलिए उन्होंने तत्काल इस की जानकारी एसडीपीओ (थाटीपुर) प्रवीण अस्थाना के अलावा एसपी नवनीत भसीन को दे दी. उक्त अधिकारियों के निर्देशानुसार टीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी.

टीआई प्रशांत यादव ने देविका, आदित्य के मोबाइल नंबरों पर फोन लगा कर उन्हें थाने आने को कहा. लेकिन वह थाने नहीं आए. जवाब में देविका ने टीआई से कहा कि छापेमारी के सारे कागजात हम ने एसपी औफिस और कलेक्टर औफिस में जमा कर दिए हैं, इसलिए वे थाने आ कर बयान दर्ज करवाना जरूरी नहीं समझते.

इस बात से पुलिस को विश्वास हो गया कि कमल किशोर के साथ ठगी हुई है. क्योंकि इनकम टैक्स द्वारा की गई छापेमारी के कागजात एसपी या कलेक्टर औफिस जमा कराने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए पुलिस बारबार देविका और उन की टीम को फोन कर के थाने आने के लिए दबाव बनाने लगी.

इस के 3 दिन बाद 24 अक्तूबर, 2019 को देविका व आदित्य अपने साथियों इसमाइल, भूपेंद्र, गुरमीत उर्फ जिम्मी के साथ थाने पहुंच गए. इन पांचों से पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की.

सब से की गई पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि कमल किशोर के शोरूम पर छापेमारी करने वाले देविका और अन्य लोग फरजी आयकर अधिकारी थे, जिन्होंने बड़े शातिराना ढंग से अपना गिरोह बनाया था. पुलिस ने पांचों को गिरफ्तार कर दूसरे दिन अदालत में पेश किया, जहां से पुलिस ने उन्हें 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की.

करीब 6 महीने पहले देविका काम की तलाश में दिल्ली गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात जुबैर नाम के एक युवक से हुई. जुबैर ने उसे अपना परिचय सीबीआई के अंडरकवर एजेंट के रूप में दिया. देविका नहीं जानती थी कि अंडरकवर एजेंट क्या होता है. वह तो सीबीआई के नाम से ही प्रभावित हो गई थी.

अपनी बातों के प्रभाव से जुबैर ने जल्द ही देविका को शीशे में उतार लिया, जिस के बाद दोनों की अलगअलग होटलों में मुलाकात होने लगी. जुबैर शातिर था. उस के कहने पर देविका ने अपने नाम से एक मोबाइल और एक सिमकार्ड खरीद कर उसे दे दिया. जुबैर हमेशा उसी नंबर से देविका से बात करता था.

दोनों की दोस्ती बढ़ी तो जुबैर ने उसे इनकम टैक्स अधिकारी बनाने का सपना दिखाया. फिर देविका से मोटी रकम ले कर उस ने उसे आयकर विभाग में आयकर अधिकारी के पद पर जौइनिंग का लेटर दे दिया. साथ ही पूरा काम समझा कर वापस ग्वालियर भेज दिया. साथ ही यह निर्देश भी दिया कि वह वहां जा कर पूरी टीम गठित कर ले.

ग्वालियर आ कर देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य सोनी को अपनी टीम में शामिल किया. फिर आदित्य ने टोपी बाजार में चश्मे की दुकान चलाने वाले गुरमीत उर्फ जिम्मी को सीधे इनकम टैक्स अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया.

बाद में देविका ने बरई थाना परिहार में रहने वाले मोटर वाइंडिंग मैकेनिक इसमाइल खां को इनकम टैक्स इंसपेक्टर और भूपेंद्र कुशवाह को सीबीआई अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया.

इस तरह एक महीने में ही ग्वालियर में पूरी टीम खड़ी करने के बाद देविका ने इस की जानकारी जुबैर को दी तो उस ने देविका को अकेले मिलने के लिए दिल्ली बुलाया. देविका 2 दिन दिल्ली स्थित एक होटल में रही.

तभी देविका ने जुबैर को बताया कि उस के ताऊ के बेटे कमल किशोर की ज्वैलरी की दुकान है, अगर वहां छापा मारा जाए तो मोटी रकम हाथ लग सकती है. जुबैर ने देविका को समझा दिया कि छापा किस तरह मारना है और कैसे मोटी रकम ऐंठनी है.

देविका दिल्ली से ग्वालियर लौटी तो कमल किशोर की दुकान में छापा मारने की तैयारी करने लगी. फिर उस ने अपनी टीम के साथ 21 अक्तूबर को कमल किशोर की दुकान पर छापेमारी की. 18 लाख की पेनल्टी का डर दिख कर उस ने कमल से 6 लाख में समझौता कर के 60 हजार रुपए ऐंठ लिए. इस के बाद वह कमल किशोर से 5 लाख 40 हजार रुपए की मांग करती रही.

जिम्मी के पास से पुलिस ने कमल किशोर से ठगे गए रुपयों में से 4 हजार रुपए बरामद किए. जिम्मी ने बताया कि बाकी रुपए उन्होंने घूमनेफिरने पर खर्च कर दिए थे. छापेमारी के बाद सभी लोग किराए की इनोवा कार ले कर दिल्ली गए, जहां वे पहाड़गंज के एक होटल में रुके. यहां एक दिन रुकने के बाद मथुरा आए और गिरराजजी की परिक्रमा की. फिर वापस मोहना में देविका के घर गए.

पुलिस ने पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

पुराने आशिक ने किया पति पर वार

दोपहर का समय था. जालौर के एसपी हिम्मत अभिलाष टाक को फोन पर सूचना मिली कि बोरटा-लेदरमेर ग्रेवल सड़क के पास वन विभाग की जमीन पर एक व्यक्ति का नग्न अवस्था में शव पड़ा है.

एसपी टाक ने तत्काल भीनमाल के डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई को घटना से अवगत कराया और घटनास्थल पर जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए. एसपी के निर्देश पर डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए, साथ ही उन्होंने थाना रामसीन में भी सूचना दे दी. उस दिन थाना रामसीन के थानाप्रभारी छतरसिंह देवड़ा अवकाश पर थे. इसलिए सूचना मिलते ही मौजूदा थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर आसपास के गांव वालों की भीड़ जमा थी. वहां वन विभाग की खाई में एक आदमी का नग्न शव पड़ा था. आधा शव रेत में दफन था. उस का चेहरा कुचला हुआ था. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या शायद कई दिन पहले की गई है.

वहां पड़ा शव सब से पहले एक चरवाहे ने देखा था. वह वहां सड़क किनारे बकरियां चरा रहा था. उसी चरवाहे ने यह खबर आसपास के लोगों को दी थी. कुछ लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस को खबर कर दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को खाई से बाहर निकाल कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, मगर जमा भीड़ में से कोई भी मृतक की शिनाख्त नहीं कर सका. शव से करीब 20 मीटर की दूरी पर किसी चारपहिया वाहन के टायरों के निशान मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारे शव को किसी गाड़ी में ले कर आए और यहां डाल कर चले गए.

पुलिस ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. शव के पास ही खून से सनी सीमेंट की टूटी हुई ईंट भी मिली. लग रहा था कि उसी ईंट से उस के चेहरे को कुचला गया था. कुचलते समय वह ईंट भी टूट गई थी.

मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया. डाक्टरों की टीम ने उस का पोस्टमार्टम किया.

जब तक शव की शिनाख्त नहीं हो जाती, तब तक जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मृतक के फोटो वाट्सऐप पर शेयर कर दिए. साथ ही लाश के फोटो भीनमाल, जालौर और बोरटा में तमाम लोगों को दिखाए. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

सोशल मीडिया पर मृतक का फोटो वायरल हो चुका था. जालौर के थाना सिटी कोतवाली में 2 दिन पहले कालेटी गांव के शैतानदान चारण नाम के एक शख्स ने अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

कोतवाली प्रभारी को जब थाना रामसीन क्षेत्र में एक अज्ञात लाश मिलने की जानकारी मिली तो उन्होंने लाश से संबंधित बातों पर गौर किया. उस लाश का हुलिया लापता डूंगरदान चारण के हुलिए से मिलताजुलता था. कोतवाली प्रभारी बाघ सिंह ने डीएसपी भीनमाल हुकमाराम को सारी बातें बताईं.

मारा गया व्यक्ति डूंगरदान चारण था इस के बाद एसपी जालौर ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया, इन में एक टीम भीनमाल थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद के नेतृत्व में गठित की गई, जिस में एएसआई रघुनाथ राम, हैडकांस्टेबल शहजाद खान, तेजाराम, संग्राम सिंह, कांस्टेबल विक्रम नैण, मदनलाल, ओमप्रकाश, रामलाल, भागीरथ राम, महिला कांस्टेबल ब्रह्मा शामिल थी.

दूसरी पुलिस टीम में रामसीन थाने के एएसआई विरधाराम, हैडकांस्टेबल प्रेम सिंह, नरेंद्र, कांस्टेबल पारसाराम, राकेश कुमार, गिरधारी लाल, कुंपाराम, मायंगाराम, गोविंद राम और महिला कांस्टेबल धोली, ममता आदि को शामिल किया गया.

डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई दोनों पुलिस टीमों का निर्देशन कर रहे थे. जालौर के कोतवाली निरीक्षक बाघ सिंह ने उच्चाधिकारियों के आदेश पर डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराने वाले उस के रिश्तेदार शैतानदान को राजदीप चिकित्सालय की मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण के रूप में कर दी.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उस के परिजनों से संपर्क किया तो इस मामले में अहम जानकारी मिली. मृतक की पत्नी रसाल कंवर ने पुलिस को बताया कि उस के पति डूंगरदान 12 जुलाई, 2019 को जालौर के सरकारी अस्पताल में दवा लेने गए थे.

वहां से घर लौटने के बाद पता नहीं वे कहां लापता हो गए, जिस की थाने में सूचना भी दर्ज करा दी थी. रसाल कंवर ने पुलिस को अस्पताल की परची भी दिखाई. पुलिस टीम ने अस्पताल की परची के आधार पर जांच की.

पुलिस ने राजकीय चिकित्सालय जालौर के 12 जुलाई, 2019 के सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो पता चला कि डूंगरदान को काले रंग की बोलेरो आरजे14यू बी7612 में अस्पताल तक लाया गया था.

उस समय डूंगरदान के साथ उस की पत्नी रसाल कंवर के अलावा 2 व्यक्ति भी फुटेज में दिखे. उन दोनों की पहचान मोहन सिंह और मांगीलाल निवासी भीनमाल के रूप में हुई. पुलिस जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज जांच के बाद गांव के विभिन्न लोगों से पूछताछ की तो सामने आया कि मृतक डूंगरदान चारण की पत्नी रसाल कंवर से मोहन सिंह राव के अवैध संबंध थे. इस जानकारी के बाद पुलिस ने रसाल कंवर और मोहन सिंह को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

मांगीलाल फरार हो गया था. रसाल कंवर और मोहन सिंह राव ने आसानी से डूंगरदान की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

केस का खुलासा होने की जानकारी मिलने पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी थाने पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के सामने आरोपियों से पूछताछ कर डूंगरदान हत्याकांड से परदा उठ गया.

पुलिस ने 16 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों मृतक की पत्नी रसाल कंवर एवं उस के प्रेमी मोहन सिंह राव को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो डूंगरदान चारण की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

मृतक डूंगरदान चारण मूलरूप से राजस्थान के जालौर जिले के बागौड़ा थानान्तर्गत गांव कालेटी का निवासी था. उस के पास खेती की थोड़ी सी जमीन थी. वह उस जमीन पर खेती के अलावा दूसरी जगह मेहनतमजदूरी करता था. उस की शादी करीब एक दशक पहले जालौर की ही रसाल कंवर से हुई थी.

करीब एक साल बाद रसाल कंवर एक बेटे की मां बनी तो परिवार में खुशियां बढ़ गईं. बाद में वह एक और बेटी की मां बन गई. जब डूंगरदान के बच्चे बड़े होने लगे तो वह उन के भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगा.

गांव में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा डूंगरदान अपने बीवीबच्चों के साथ गांव कालेटी छोड़ कर भीनमाल चला गया और वहां लक्ष्मीमाता मंदिर के पास किराए का कमरा ले कर रहने लगा. भीनमाल कस्बा है. वहां डूंगरदान को मजदूरी भी मिल जाती थी. जबकि गांव में हफ्तेहफ्ते तक उसे मजदूरी नहीं मिलती थी.

आशिकी के लिए दोस्ती डूंगरदान के पड़ोस में ही मोहन सिंह राव का आनाजाना था. मोहन सिंह राव पुराना भीनमाल के नरता रोड पर रहता था. वह अपराधी प्रवृत्ति का रसिकमिजाज व्यक्ति था. उस की नजर रसाल कंवर पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. मोहन सिंह ने इस के लिए ही डूंगरदान से दोस्ती की थी. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा.

मोहन सिंह रसाल कंवर से भी बड़ी चिकनीचुपड़ी बातें करता था. जब डूंगरदान मजदूरी करने चला जाता और उस के बच्चे स्कूल तो घर में रसाल कंवर अकेली रह जाती. ऐसे मौके पर मोहन सिंह उस के यहां आने लगा. मीठीमीठी बातों में रसाल को भी रस आने लगा. मोहन सिंह अच्छीखासी कदकाठी का युवक था.रसाल और मोहन के बीच धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं.

थोड़े दिनों के बाद दोनों के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. इस के बाद रसाल कंवर उस की दीवानी हो गई. डूंगरदान हर रोज सुबह मजदूरी पर निकल जाता तो फिर शाम होने पर ही घर लौटता था.

रसाल और मोहन पूरे दिन रासलीला में लगे रहते. डूंगरदान की पीठ पीछे उस की ब्याहता कुलटा बन गई थी. दिन भर का साथ उन्हें कम लगने लगा था. मोहन चाहता था कि रसाल कंवर रात में भी उसी के साथ रहे, मगर यह संभव नहीं था. क्योंकि रात में पति घर पर होता था.

ऐसे में एक दिन मोहन सिंह ने रसाल कंवर से कहा, ‘‘रसाल, जीवन भर तुम्हारा साथ तो निभाऊंगा ही, साथ ही एक प्लौट भी तुम्हें ले कर दूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारे बदन को अब मेरे सिवा और कोई न छुए. तुम्हारे तनमन पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है.’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारा साथ निभाऊंगी.’’ रसाल कंवर ने प्रेमी की हां में हां मिलाते हुए कहा.

रसाल के दिलोदिमाग में यह बात गहराई तक उतर गई थी कि मोहन उसे बहुत चाहता है. वह उस पर जान छिड़कता है. रसाल भी पति को दरकिनार कर पूरी तरह से मोहन के रंग में रंग गई. इसलिए दोनों ने डूंगरदान को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. लेकिन इस से पहले ही डूंगरदान को पता चल गया कि उस की गैरमौजूदगी में मोहन सिंह दिन भर उस के घर में पत्नी के पास बैठा रहता है.

यह सुनते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. गुस्से से भरा डूंगरदान घर आ कर चिल्ला कर पत्नी से बोला, ‘‘मेरी गैरमौजूदगी में मोहन यहां क्यों आता है, घंटों तक यहां क्या करता है? बताओ, तुम से उस का क्या संबंध है?’’ कहते हुए उस ने पत्नी का गला पकड़ लिया.

रसाल मिमियाते हुए बोली, ‘‘वह तुम्हारा दोस्त है और तुम्हें ही पूछने आता है. मेरा उस से कोई रिश्ता नहीं है. जरूर किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं. हमारी गृहस्थी में कोई आग लगाना चाहता है. तुम्हारी कसम खा कर कहती हूं कि मोहन सिंह से मैं कह दूंगी कि वह अब घर कभी न आए.’’

पत्नी की यह बात सुन कर डूंगरदान को लगा कि शायद रसाल सच कह रही है. कोई जानबूझ कर उन की गृहस्थी तोड़ना चाहता है. डूंगरदान शरीफ व्यक्ति था. वह बीवी पर विश्वास कर बैठा. रसाल कंवर ने अपने प्रेमी मोहन को भी सचेत कर दिया कि किसी ने उस के पति को उस के बारे में बता दिया है. इसलिए अब सावधान रहना जरूरी है.

उधर डूंगरदान के मन में पत्नी को ले कर शक उत्पन्न तो हो ही गया था. इसलिए वह वक्तबेवक्त घर आने लगा. एक रोज डूंगरदान मजदूरी पर गया और 2 घंटे बाद घर लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. खटखटाने पर थोड़ी देर बाद उस की पत्नी रसाल कंवर ने दरवाजा खोला. पति को अचानक सामने देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डूंगरदान की नजर कमरे में अंदर बैठे मोहन सिंह पर पड़ी तो वह आगबबूला हो गया. उस ने मोहन सिंह पर गालियों की बौछार कर दी. मोहन सिंह गालियां सुन कर वहां से चला गया. इस के बाद डूंगरदान ने पत्नी की लातघूंसों से खूब पिटाई की. रसाल लाख कहती रही कि मोहन सिंह 5 मिनट पहले ही आया था. मगर पति ने उस की एक न सुनी.

पत्नी के पैर बहक चुके थे. डूंगरदान सोचता था कि गलत रास्ते से पत्नी को वापस कैसे लौटाया जाए. वह इसी चिंता में रहने लगा. उस का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. वह चिड़चिड़ा भी हो गया था. बातबात पर उस का पत्नी से झगड़ा हो जाता था.

आखिर, रसाल कंवर पति से तंग आ गई. यह दुख उस ने अपने प्रेमी के सामने जाहिर कर दिया. तब दोनों ने तय कर लिया कि डूंगरदान को जितनी जल्दी हो सके, निपटा दिया जाए.

रसाल कंवर पति के खून से अपने हाथ रंगने को तैयार हो गई. मोहन सिंह ने योजना में अपने दोस्त मांगीलाल को भी शामिल कर लिया. मांगीलाल भीनमाल में ही रहता था.

साजिश के तहत रसाल और मोहन सिंह 12 जुलाई, 2019 को डूंगरदान को उपचार के बहाने बोलेरो गाड़ी में जालौर के राजकीय चिकित्सालय ले गए. मांगीलाल भी साथ था. वहां उस के नाम की परची कटाई. डाक्टर से चैकअप करवाया और वापस भीनमाल रवाना हो गए. रास्ते में मौका देख कर रसाल कंवर और मोहन सिंह ने डूंगरदान को मारपीट कर अधमरा कर दिया. फिर उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

इस के बाद डूंगरदान की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बोलेरो में डाल कर बोरटा से लेदरमेर जाने वाले सुनसान कच्चे रास्ते पर ले गए, जिस के बाद डूंगरदान के शरीर पर पहने हुए कपड़े पैंटशर्ट उतार कर नग्न लाश वन विभाग की खाली पड़ी जमीन पर डाल कर रेत से दबा दी. उस के बाद वे भीनमाल लौट गए.

भीनमाल में रसाल कंवर ने आसपास के लोगों से कह दिया कि उस का पति जालौर अस्पताल चैकअप कराने गया था. मगर अब उस का कोई पता नहीं चल रहा. तब डूंगरदान की गुमशुदगी उस के रिश्तेदार शैतानदान चारण ने जालौर सिटी कोतवाली में दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपी मोहन सिंह आपराधिक प्रवृत्ति का है. उस ने अपने साले की बीवी की हत्या की थी. इन दिनों वह जमानत पर था. मोहन सिंह शादीशुदा था, मगर बीवी मायके में ही रहती थी. भीनमाल निवासी मांगीलाल उस का मित्र था. वारदात के बाद मांगीलाल फरार हो गया था.

थाना रामसीन के इंचार्ज छतरसिंह देवड़ा अवकाश से ड्यूटी लौट आए थे. उन्होंने भी रिमांड पर चल रहे रसाल कंवर और मोहन सिंह राव से पूछताछ की.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने 19 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों रसाल कंवर और मोहन सिंह को फिर से कोर्ट में पेश कर दोबारा 2 दिन के रिमांड पर लिया और उन से पूछताछ कर कई सबूत जुटाए. उन की निशानदेही पर मृतक के कपड़े, वारदात में प्रयुक्त बोलेरो गाड़ी नंबर आरजे14यू बी7612 बरामद की गई. मृतक डूंगरदान के कपडे़ व चप्पलें रामसीन रोड बीएड कालेज के पास रेल पटरी के पास से बरामद कर ली गईं.

पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को 21 जुलाई, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस तीसरे आरोपी मांगीलाल माली को तलाश कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मुसीबत में भोजपुरी एक्ट्रेस Akshara Singh की जान, मांगी गई लाखों रुपए की रंगदारी

भोजपुरी (Bhojpuri) की जानीमानी एक्ट्रैस अक्षरा सिंह जो अपनी एक्टिंग से सबको अपना दीवाना बनाती है. उनके ऊपर इन दिनों दुखों पहाड़ टूट पड़ा है. अक्षरा सिंह की जान मुसीबत में आ चुकी है. उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही है. इतना ही नहीं, फोन कोल कर उनसे 50 लाख रुपए मांग रहे हैं और नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. धमकी देने वाले ने उन्हें कहा कि 2 दिन के अंदर ये रकम उसे दे दी जाए. अगर ऐसा नहीं होता, तो उन्हें ‘जान से मार दिया’ जाएगा. इसे लेकर अक्षरा सिंह ने शिकायत भी दर्ज कराई है.

भोजपुरी क्‍वीन अक्षरा सिंह ने बिहार (Bihar) की राजधानी पटना के दानापुर थाने इलाके में इसकी शिकायत दर्ज करी है. बता दें कि अक्षरा सिंह दानापुर में ही रहती है. बताया गया है कि शिकायत मिलने के बाद पुलिस एक्शन में आ गई है. पुलिस का कहना है कि इस मामले की जांच की जा रही है. बताया गया है कि रंगदारी मांगने और धमकी देने के अलावा, अक्षरा सिंह को गोलियां भी दी गई है.

दो फोन कौल पर मिली धमकी

खबरों के अनुसार, अक्षरा सिंह के मोबाइल फोन पर 11 नवंबर की रात को किसी अनजान नंबर से कौल आया था. उनके मोबाइल पर दो बार कौल किया गया. कौल करने वाले ने कहा कि अगर वे दो दिन के अंदर 50 लाख रुपए नहीं देंगी, तो उन्‍हें जान से मार दिया जाएगा. फोन करने वाला अपराधी यहीं नहीं रुका. उसने फोन पर ही अक्षरा सिंह से गालीगलौज भी की. इसके बाद एक्‍ट्रैस ने फोन काट दिया. बताया जा रहा है कि इस मामले में जांच शुरू कर दी गई है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दानापुर के पुलिस स्टेशन के प्रभारी प्रशांत कुमार भारद्वाज ने भी इसकी पुष्टि की है. उन्होंने बताया कि अक्षरा ने जबरन वसूली और हत्या की धमकी के संबंध में शिकायत दर्ज कराई है. मामले की जांच की जा रही है. जल्द ही कौल करने वाले की पहचान की जाएगी और उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की जाएगी.

अक्षरा सिंह भोजपुरी सिनेमा की पौपुलर एक्ट्रैस में से एक है. उन्होंने भोजपुरी सिनेमा के स्टार और बीजेपी सांसद रवि किशन के साथ ‘सत्यमेव जयते’ में अपनी शुरुआत की थी. उन्हें भोजपुरी की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली एक्ट्रैस में गिना जाता है. बीते साल उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा था. बता दें कि अक्षरा सिंह लाइव शो भी करती हैं. डांस की दुनिया में भी उनका परचम लहराता है. हाल ही में वे यूपी के आजमगढ़ पहुंची थी. जहां जनता उन्हे देखने के लिए बेकाबू हो गई थी. भीड़ इतनी बढ़ गई कि लाठी चार्ज भी शुरु हो गया था.

अक्षरा सिंह के अफेयर

अक्षरा का नाम एक्‍टर पवन सिंह के साथ जुड़ चुका है. इन दोनों की लव स्‍टोरी जितनी पौपुलर थी, उतनी ही इनकी हेट स्‍टोरी भी चर्चा में रही. दोनों की लव स्‍टोरी 2015 में शुरू हुई. दोनों ने चार साल तक डेटिंग भी की. इसके बाद दोनों की शादी होने की खबरें भी आती रही हालांकि यह शादी कभी हुई नहीं. पवन पहले से शादीशुदा थे लेकिन पतिपत्‍नी दोनों अलग ही रहते थे. ऐसा कहा गया कि जब अक्षरा और पवन रिलेशनशिप में थे तब पवन अक्षरा को चीट कर रहे थे. उन्‍हीं दिनों पवन का अफेयर ज्‍योति सिंह के साथ भी चल रहा था. बाद में दोनों का ब्रेकअप हो गया.

डिजिटल सैक्स का फैला कारोबार

आजकल सबकुछ डिजिटल हो रहा है. स्कूलकालेज, औफिस, पुलिस स्टेशन, अदालत सबकुछ डिजिटल हो रहे हैं, ठीक इसी प्रकार संबंध भी डिजिटल हो रहे हैं. शादी ब्याह के न्योते हों या कोई अन्य खुशखबरी या फिर शोक समाचार सबकुछ ईमेल, व्हाट्सऐप, एसएमएस, ट्विटर या फेसबुक के जरिए दोस्तों और सगेसंबंधियों तक पहुंचाया जा रहा है. मिठाई का डब्बा या खुद कार्ड ले कर पहुंचने की परंपरा धीरेधीरे लुप्त हो रही है.

कुछ ऐसा ही प्रयोग युवकयुवतियों के संबंधों में भी हो रहा है. ऐसे युवकों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो यौन सुख के लिए वास्तविक सैक्स संबंधों के बजाय डिजिटल सैक्स और औनलाइन पोर्नोग्राफी पर ज्यादा निर्भर हैं. ऐसे युवकों को वास्तविक दुनिया के बजाय आभासी दुनिया के सैक्स में ज्यादा आनंद आता है और ज्यादा आसानी महसूस होती है. इन्हें युवतियों को टैकल करना और उन से भावनात्मक व शारीरिक संबंधों का निर्वाह करना बेहद मुश्किल लगता है, इसलिए ये उन से कन्नी काटते हैं. पढ़ेलिखे और शहरी लोगों में डिजिटल सैक्स की आदत ज्यादा देखी जाती है. मनोवैज्ञानिक इन्हें ‘हौलो मैन’ यानी खोखला आदमी कहते हैं. ऐसे लोगों को वास्तविक यौन सुख या इमोशनल सपोर्ट तो मिल नहीं पाता नतीजतन ये ऐंग्जायटी और डिप्रैशन का शिकार होने लगते हैं और भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं.

मुंबई की काउंसलर शेफाली, जो ‘टीन मैटर्स’ पुस्तक की लेखिका भी हैं, हफ्ते में कम से कम एक ऐसे युवक से जरूर मिलती हैं, जो पोर्न देखने का अभ्यस्त होता है और वास्तविक सैक्स से कतराता है. दरअसल, युवावस्था में लगभग हर युवक डिजिटल सैक्स का शौकीन होता है. कुछ युवक इस के इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें इस का नशा हो जाता है और वे सामाजिक जीवन से कतराने लगते हैं. उन्हें जो युवतियां मिलती भी हैं उन में वे आकर्षण नहीं ढूंढ़ पाते, क्योंकि उन की ब्रैस्ट या अन्य अंग पोर्न ऐक्ट्रैस जैसे नहीं होते. कई बार घर वालों के कहने या सामाजिक दबाव में आ कर ये शादी तो कर लेते हैं, लेकिन अपनी बीवी से इन की ज्यादा दिन तक पटरी नहीं बैठती, क्योंकि ये अपनी बीवी के साथ सैक्स संबंध बनाते वक्त उस से पोर्न जैसी ऊटपटांग हरकतें और वैसी ही सैक्सुअल पोजिशंस चाहते हैं. कोई भी बीवी यह सब कब तक बरदाश्त कर सकती है? नतीजतन या तो बीवी इन्हें छोड़ देती है या फिर ये खुद ही ऊब कर अलग हो जाते हैं.

व्यवहार विशेषज्ञों के मुताबिक इंटरनैट पर पोर्न साइट्स की बाढ़, थ्रीडी सैक्स गेम, कार्टून सैक्स गेम, वर्चुअल रिएलिटी सैक्स गेम और अन्य तरहतरह की पोर्न फिल्में जिन में एक युवती या युवक को 3-4 लोगों के साथ सैक्स संबंध बनाते हुए दिखाया जाता है, ने युवाओं के दिमाग को बुरी तरह डिस्टर्ब कर के रख दिया है. स्मार्टफोन पर आसानी से इन की उपलब्धता ने स्थिति ज्यादा बिगाड़ दी है. यह स्थिति सिर्फ भारत की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की है. ‘मेन (डिस) कनैक्टेड : हाउ टैक्नोलौजी हैज सबोटेज्ड व्हाट इट मीन्स टू बी मेल’ में मनोविज्ञानी फिलिप जिम्वार्डो ने लिखा है, ‘औनलाइन पोर्नोग्राफी और गेमिंग टैक्नोलौजी पौरुष को नष्ट कर रही है. अलगअलग देशों के 20 हजार से ज्यादा युवाओं पर किए गए सर्वे में हम ने पाया कि आसानी से उपलब्ध पोर्न से हर देश में पोर्न एडिक्टों की भरमार हो गई. यूथ्स को युवतियों के साथ यौन संबंध बनाने के बजाय पोर्न देखते हुए हस्तमैथुन करने में ज्यादा आनंद आता है.’

मेन (डिस) कनैक्टेड की सह लेखिका निकिता कूलोंबे कहती हैं, ‘इंटरनैट युवाओं को अंतहीन नौवेल्टी और वर्चुअल हरमखाने की सुविधा देता है. 10 मिनट में ये यूथ इतनी निर्वस्त्र और सैक्सरत युवतियों को देख लेते हैं, जितनी इन के पुरखों ने ताउम्र नहीं देखी होंगी.’

व्यवहार विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल युग में कई यूथ ऐसे मिलेंगे जो स्क्रीन पर चिपके रहेंगे और सोशल साइट्स पर तो युवतियों से खूब गुफ्तगू करेंगे, लेकिन वास्तविक दुनिया में उन्हें युवतियों के सामने जाने पर घबराहट होती है और ये अपनी भावनाएं उन के साथ शेयर करने का सही तरीका नहीं ढूंढ़ पाते.

ये युवा फेस टू फेस बात करने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सऐप, टैक्स्ट मैसेज या मोबाइल फोन का सहारा लेते हैं. जाहिर सी बात है कि ये युवतियों के सामने नर्वस हो जाते हैं और उन से संबंध बनाने से कतराते हैं. पोर्न से उन्हें तत्काल आनंद और संतुष्टि मिलती है, जबकि वास्तविक दुनिया में सैक्स संबंध बनाने से पहले मित्रता, प्रेम, आत्मीयता या शादीविवाह जरूरी होता है.

डिजिटल सैक्स का यह एडिक्शन युवतियों की तुलना में युवकों को अधिक प्रभावित करता है. इस की वजह यह है कि इंटरनैट पोर्न में यौन संबंधों का आनंद उठाते हुए युवकों को ही अधिक दिखाया जाता है.

मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ‘‘हमारे देश में सैक्स के बारे में बात करना एक प्रकार से गुनाह माना जाता है. ऐेसे में यूथ्स के लिए अपनी सैक्सुअल जिज्ञासाओं को शांत करने का सब से आसान जरिया इंटरनैट पोर्न ही है. इस का एक दुष्प्रभाव यह है कि ये युवक इन पोर्न क्लिपिंग्स या फिल्मों के जरिए सैक्स ज्ञान प्राप्त करने के बजाय मन में ऊटपटांग ग्रंथियां पाल लेते हैं.’’

पोर्न नायक के अतिरंजित मैथुन और उस के यौनांग के अटपटे साइज को ले कर ये युवा अपने मन में हीनभावना पाल लेते हैं और खुद को नाकाबिल या कमजोर मान कर युवतियों का सामना करने से कतराते हैं. ये युवक अपने छोटे लिंग और कथित शीघ्रपतन की समस्या को ले कर अकसर मनोवैज्ञानिक या सैक्स विशेषज्ञों के चक्कर काटते नजर आते हैं. कुछ युवा तो झोलाछाप डाक्टरों या तंत्रमंत्र के चंगुल में भी फंस जाते हैं.

‘इंडिया इन लव’ की लेखिका इरा त्रिवेदी के मुताबिक डिजिटल सैक्स के मकड़जाल में फंस कर कई यूथ्स तो अपनी बसीबसाई गृहस्थी को भी तबाह कर बैठते हैं. दरअसल, पोर्न फिल्मों में हिंसक यौन संबंध दिखाए जाते हैं, जिन में युवतियों को जानवरों की तरह ट्रीट किया जाता है और उन के चीखनेचिल्लाने के बावजूद उन के साथ जबरन सैक्स करते दिखाया जाता है.

हाल ही में कोलकाता में एक महिला ने तलाक की अपील करते हुए शिकायत की कि उस का पति पोर्न फिल्मों के ऐक्शन उस पर दोहराना चाहता है. अजीबोगरीब आसनों में सैक्स करना चाहता है, जिसे सहन करना उस के बस की बात नहीं. पति के साथ यौन संबंध बनाने में उसे न तो रोमांस का अनुभव होता है, न ही आनंद आता है बल्कि सैक्स संबंध उस के लिए टौर्चर बन चुके हैं.

कुछ हद तक डिजिटल सैक्स की इस आधुनिक बीमारी का शिकार कई महिलाएं बन चुकी हैं. गायनोकोलौजिस्ट बताती हैं कि उन के पास कुछ महिलाएं वैजाइनल ब्यूटीफिकेशन के उपाय पूछने भी आती हैं, तो कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो अपने पति से संतान तो चाहती हैं मगर सैक्स नहीं करना चाहतीं. संतान की उत्पत्ति के लिए वे कृत्रिम रूप से गर्भाधान करना चाहती हैं.

82 वर्षीय जिंबारडो कहते हैं कि युवाओं को डिजिटल सैक्स के इस मकड़जाल से निकालने के लिए वास्तविक दुनिया में इन्वौल्व होने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा. उन्हें डिजिटल दुनिया से दूर रहने और अपने जैसे हाड़मांस के दूसरे लोगों से मिलनेजुलने और खासकर युवतियों से मिलनेजुलने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा.

पोर्न फैक्ट, जो चौंकाते हैं

–  आमतौर पर हम पोर्न की खपत विदेश में ज्यादा मानते हैं, लेकिन 2014 में हुए एक औनलाइन सर्वे में ‘पोर्नहब’ ने पाया कि भारत पोर्न कंटैंट का सब से बड़ा उपभोक्ता है.

–  भारतीय डैस्कटौप के बजाय स्मार्टफोन पर पोर्न ज्यादा देखते हैं.

–  देशभर में आंध्र प्रदेश के लोग पोर्न हब पर सब से कम समय 6 मिनट 40 सैकंड बिताते हैं जबकि पश्चिम बंगाल में रोज 9 मिनट 5 सैकंड और असम में यह आंकड़ा 9 मिनट 55 सैकंड का है.

– सनी लियोनी अब तक की सब से फेवरिट पोर्न स्टार है.

– दुनिया के ज्यादातर देशों में पोर्न फिल्म सोमवार को देखी जाती है जबकि भारत में शनिवार को.

इंद्रधनुष का आठवां रंग: जब पिता के दोस्त का शिकार बनी रावी

वसुधा की नजरें अभी भी दरवाजे पर ही टिकी थीं. इसी दरवाजे से अभीअभी रावी अपने पति के साथ निकली थी. पीली साड़ी, सादगी से बनाया जूड़ा, माथे पर बिंदिया, मांग में सिंदूर, हाथों में भरीभरी चूडि़यां… कुल मिला कर संपूर्ण भारतीय नारी की छवि को साकार करती रावी बहुत खूबसूरत लग रही थी. गोद में लिए नन्हे बच्चे ने एक स्त्री को मां के रूप में परिवर्तित कर कितना गरिमामय बना दिया था.

वसुधा ने अपना सिर कुरसी पर टिका आराम की मुद्रा में आंखें बंद कर लीं. उन की आंखों में 3-4 साल पहले के वे दिन चलचित्र की भांति घूम गए जब रावी के मम्मीपापा उसे काउंसलिंग के लिए वसुधा के पास लाए थे.

वसुधा सरकारी हौस्पिटल में मनोवैज्ञानिक हैं, साथ ही सोशल काउंसलर भी. हौस्पिटल के व्यस्त लमहों में से कुछ पल निकाल कर वे सोशल काउंसलिंग करती हैं. अवसाद से घिरे और जिंदगी से हारे हताशनिराश लोगों को अंधेरे से बाहर निकाल कर उन्हें फिर से जिंदगी के रंगों से परिचित करवाना ही उन का एकमात्र उद्देश्य है.

रावी को 3-4 साल पहले वसुधा के हौस्पिटल में भरती करवाया गया था. छत के पंखे से लटक कर आत्महत्या की कोशिश की थी उस ने, मगर वक्त रहते उस की मां ने देख लिया और उसे तुरंत हौस्पिटल लाया गया. समय पर चिकित्सा सुविधा मिलने से रावी को बचा लिया गया था. मगर वसुधा पहली ही नजर में भांप गई थीं कि उस के शरीर से भी ज्यादा उस का मन आहत और जख्मी है.

वसुधा ने हकीकत जानने के लिए रावी की मां शांति से बात की. पहले तो वे नानुकुर करती टालती रहीं, मगर जब वसुधा ने उन्हें पूरी बात को गोपनीय रखने और उन की मदद करने का भरोसा दिलाया तब जा कर उन्होंने अपने आधेअधूरे शब्दों और इशारों से जो बताया उसे सुन कर वसुधा का मासूम रावी पर स्नेह उमड़ आया.

शांति ने उन्हें बताया, ‘‘रावी दुराचार का शिकार हुई है और वह भी अपने पिता के खास दोस्त के द्वारा. पिता का जिगरी दोस्त होने के नाते उन के घर में उस का बिना रोकटोक आनाजाना था. कोई शक करे भी तो कैसे? उस की सब से छोटी बेटी रावी की सहेली भी थी. दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. एक दिन रावी अपनी सहेली से एक प्रोजैक्ट फाइल लेने उस के घर गई. सहेली अपनी मां के साथ बाजार गई हुई थी. अत: उस के पापा ने कहा कि तेरी सहेली का बैग अंदर रखा है. अंदर जा कर ले ले जो भी लेना है. उस के बाद जब रावी वापस घर आई, तो चुपचाप कमरे में जा कर सो गई. सुबह उसे तेज बुखार चढ़ गया. हम ने इसे काफी हलके में लिया. कई दिन तक जब रावी कालेज भी नहीं गई, तो हम ने सोचा शायद पीरियड नहीं लग रहे होंगे.

‘‘फिर एक दिन जब इन के दोस्त घर आए तो हमेशा की तरह उन्हें पानी का गिलास देने को भागने वाली रावी कमरे में जा कर छिप गई. तब मेरा माथा ठनका. मैं ने रावी का सिर सहलाते हुए उसे विश्वास में लिया, तो उस ने सुबकतेसुबकते इस घिनौनी घटना का जिक्र किया, जिसे सुन कर मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं ने तुरंत इस के पिता से पुलिस में शिकायत करने को कहा. मगर इन्होंने मुझे शांति से काम लेने को कह समझाया कि पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा कर केस करना तो बहुत आसान है, मगर उस की पेशियां भुगतना बहुत कष्टदाई होता है. अपराधी को सजा दिलवाना तो नाकों चने चबाना जैसा होता है. सब से पहले तो अपराध को साबित करना ही मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसे केस में कोई गवाह नहीं होता. फिर हर पेशी पर जब रावी को वकीलों के नंगे करते सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, तो हमारी फूल सी बेटी को फिर से उस हादसे को जीना पड़ेगा. अभी तो यह बात सिर्फ हमारे बीच में ही है, जब समाज में चली जाएगी तो बेटी का जीना मुश्किल हो जाएगा. पूरी जिंदगी पड़ी है उस के सामने… कौन ब्याहेगा उसे?’’

कुछ देर रुक शांति ने एक उदास सी सांस ली और फिर आगे कहना शुरू किया, ‘‘बेटी का हाल देख कर मन तो करता था कि उस दरिंदे को भरे बाजार गोली मार दूं, मगर पति की बात में भी सचाई थी. बेटी का वर्तमान तो खराब हो ही चुका था कम से कम उस का भविष्य तो खराब न हो, यही सोच कर हम ने कलेजे पर पत्थर रख लिया. रावी को समझाबुझा कर फिर से कालेज जाने को राजी किया. भाई उसे लेने और छोड़ने जाता. मैं भी सारा दिन उस के आसपास ही रहती. उसे आगापीछा समझाती, मगर उस की उदासी दूर नहीं कर सकी. इसी बीच एक दिन मैं थोड़ी देर के लिए पड़ोसिन के घर किसी काम से गई, तो इस ने यह कदम उठा लिया.’’

वसुधा बड़े ध्यान से सारा घटनाक्रम सुन रही थीं. जैसे ही शांति ने अपनी बात खत्म की, वसुधा जैसे नींद से जागीं. यों लग रहा था मानो वे सुन नहीं रही थीं, बल्कि इस सारे घटनाक्रम को जी रही थीं. उन्होंने शांति से रावी को अपने घर लाने के लिए कहा.

पहली बार वसुधा के सामने रावी ने अपनी जबान नहीं खोली. चुपचाप आंखें नीचे किए रही. दूसरी बार भी कुछ ऐसा ही हुआ. बस फर्क इतना था कि इस बार रावी ने नजरें उठा कर वसुधा की तरफ देखा था. इसी तरह 2 और सिटिंग्स हुईं. वसुधा उसे हर तरह से समझाने की कोशिश करतीं, मगर रावी चुपचाप खाली दीवारों को ताकती रहती.

एक दिन रावी ने बहुत ही ठहरे हुए शब्दों में वसुधा से कहा, ‘‘बहुत आसान होता है सब कुछ भूल कर आगे बढ़ने और जीने की सलाह देना. मगर जो मेरे साथ घटित हुआ वह मिट्टी पर लिखा वाक्य नहीं, जिसे पानी की लहरों से मिटा दिया जाए… आप समझ ही नहीं सकतीं उस दर्द को जो मैं ने भोगा है…जब दर्द देने वाला कोई अपना ही हो तो तन से भी ज्यादा मन लहूलुहान होता है,’’ और फिर वह फफक पड़ी.

वसुधा उसे सीने से लगा कर मन ही मन बुदबुदाईं कि यह दर्द मुझ से बेहतर और कौन समझ सकता है मेरी बच्ची.

रावी ने आश्चर्य से वसुधा की ओर देखा. उन की छलकी आंखें देख कर वह अपना रोना भूल गई. वसुधा उस की बांह थाम कर उसे 20 वर्ष पहले की यादों की गलियों में ले गईं.

‘‘स्कूल के अंतिम वर्ष में फेयरवैल पार्टी से लौटते वक्त रात अधिक हो गई थी. मैं और मेरी सहेली रूपा दोनों परेशान सी औटो की राह देख रही थीं. तभी एक कार हमारे पास आ कर रुकी. हम दोनों कुछ समझ पातीं, उस से पहले ही 2 गुंडों ने मुझे कार में खींच लिया. रूपा अंधेरे का फायदा उठा कर भागने में कामयाब हो गई. उस ने किसी तरह मेरे घर वालों को खबर दी. मगर जब तक वे मुझ तक पहुंच पाते गुंडे मेरी इज्जत को तारतार कर मुझे बेहोशी की हालत में सड़क के किनारे फेंक कर जा चुके थे.

‘‘मुझे अधमरी हालत में घर लाया गया. मांपापा रोतेधोते खुद को कोसते रह गए. मुझे अपनेआप से घिन होने लगी. मैं ने कालेज जाना छोड़ दिया. घंटों बाथरूम में अपने शरीर को रगड़रगड़ कर नहाती, मगर फिर भी उस लिजलिजे स्पर्श से अपनेआप को आजाद नहीं कर पाती. मुझे लगता मानो सैकड़ों कौकरोच मेरे शरीर पर रेंग रहे हों. एक दिन मुझे एहसास हुआ कि उस हादसे का अंश मेरे भीतर आकार

ले रहा है. तब मैं ने भी तुम्हारी ही तरह अपनी जान देने की कोशिश की, मगर जान देना इतना आसान नहीं था. मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. मैं बिलकुल टूट चुकी थी. मेरी इस मुश्किल घड़ी में मेरी मां मेरे साथ थीं. उन्होंने मुझे समझाया कि मैं क्यों उस अपराध की सजा अपनेआप को देने पर तुली हूं, जो मैं ने किया ही नहीं…शर्म मुझे नहीं उन दरिंदों को आनी चाहिए… धिक्कार उन्हें होना चाहिए…

‘‘और एक दिन मां मुझे अपनी जानपहचान की डाक्टर के पास ले गईं. उन्होंने मुझे इस पाप की निशानी से छुटकारा दिलाया. वह मेरा नया जन्म था और उसी दिन मैं ने ठान लिया था कि आज से मैं अपने लिए नहीं, बल्कि अपने जैसों के लिए जीऊंगी. मुझे खुशी होगी, अगर मैं तुम्हें वापस जीना सिखा सकूं,’’ वसुधा ने सब कुछ एक ही सांस में कह डाला मानो वे भी आज एक बोझ से मुक्त हुई हों.

‘‘आप को समाज से डर नहीं लगा?’’ रावी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कैसा डर? किस समाज से… अब मैं हर डर से आजाद हो चुकी थी. वैसे भी मेरे पास खोने के लिए बचा ही क्या था. अब तो मुझे सब कुछ वापस पाना था.’’

‘‘फिर क्या हुआ? मेरा मतलब. आप यहां, इस मुकाम तक कैसे पहुंचीं?’’ रावी को अभी भी वसुधा की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘उस हादसे को भूलने के लिए मैं ने वह शहर छोड़ दिया. आगे की पढ़ाई मैं ने होस्टल में रह कर पूरी की. अब बस मेरा एक मात्र लक्ष्य था मनोविज्ञान में मास्टर डिगरी हासिल करना ताकि मैं इनसान के मन के भीतर की उस तह तक पहुंच सकूं जहां वह अपने सारे अवसाद, राज और विकार छिपा कर रखता है. मैं ने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना कर अपनी लड़ाई लड़ी और उस पर विजय पाई,’’ थोड़ी देर रुक कर वसुधा ने रावी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहना जारी रखा, ‘‘बेटा, हमें यह जीवन कुदरत ने जीने के लिए दिया है. किसी और के कुकर्मों की सजा हम अपनेआप को क्यों दें? तुम्हें भी बहादुरी से अपनी लड़ाई लड़नी है… अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो…और हां, अपने बच्चे के नामकरण पर मुझे जरूर बुलाना,’’ वसुधा ने रावी के चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश की.

‘‘आप ने शादीक्यों नहीं की?’’ रावी ने यह जलता प्रश्न उछाला, तो इस बार उस की लपटें वसुधा के आंचल तक जा पहुंचीं. एक लंबी सांस ले कर वे बोलीं, ‘‘हां, यहां मैं चूक गई. मेरे साथ पढ़ने वाले डा. नमन ने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था. मैं भी उन्हें पसंद करती थी, मगर मेरी साफगोई शायद उन्हें पसंद नहीं आई. मैं ने शादी से पहले उन्हें अपने बारे में सब कुछ बता दिया, जिसे उन का पुरुषोचित अहं स्वीकार नहीं कर पाया. हालांकि उन्होंने शादी करने से मना नहीं किया था, मगर मैं ही पीछे हट गई. अब मुझे उन के प्यार में दया की बू आने लगी थी और इस मुकाम पर पहुंचने के बाद मैं किसी की दया की पात्र नहीं बनना चाहती थी. मैं जानती थी कि आज नहीं तो कल यह प्यार सहानुभूति में बदल जाएगा और मैं वह स्थिति अपने सामने नहीं आने देना चाहती थी.’’

‘‘फिर आप मुझे शादी करने के लिए क्यों कह रही हैं? यह परिस्थिति तो मेरे सामने भी आएगी.’’

‘‘वही मैं तुम्हें समझाना चाह रही हूं कि जो गलती मैं ने की वह तुम भूल कर भी मत करना. यह एक कड़वी सचाई है कि खुद कई गर्लफ्रैंड्स रखने वाले पुरुष भी पत्नी वर्जिन ही चाहते हैं. तुम्हें किसी को भी सफाई देने की जरूरत नहीं  है. जब तक तुम खुद किसी को नहीं बताओगी, तुम्हारे साथ हुए हादसे के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

‘‘मगर यह तो किसी को धोखा देने जैसा हुआ?’’ रावी अभी भी तर्क कर रही थी.

‘‘धोखा तो वह था जो तुम्हारे पापा के दोस्त ने तुम्हारे पापा को दिया… अपने परिवार को दिया… तुम्हारी मासूमियत और इनसानियत को दिया. हम औरतों को अब अपने लिए थोड़ा स्वार्थी होना ही पड़ेगा… जीवन के इंद्रधनुष में 8वां रंग हमें खुद भरना होगा. अच्छा एक बात बताओ तुम्हारा वह तथाकथित अंकल बिना किसी को कुछ बताए समाज में शान से रह रहा है न? फिर तुम क्यों नहीं? अगर सोने पर कीचड़ लग जाए, तो भी उस की शुद्धता में रत्ती भर भी फर्क नहीं आता. तुम्हें भी इस हादसे को एक बुरा सपना मान कर भूलना होगा,’’ कह वसुधा ने उसे सोचने के लिए छोड़ दिया.

‘‘अगर अंकल ने मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश की तो?’’ रावी ने अपनी शंका जाहिर की.

‘‘वह ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि ऐसा करने पर खुद उस की पहचान भी तो उजागर होगी और फिर कोई भी व्यक्ति अपने परिवार और समाज के सामने जलील नहीं होना चाहेगा,’’ वसुधा ने अपने अनुभव के आधार पर कहा.

बात रावी की समझ में आ गई थी. वह पूरे आत्मविश्वास के साथ उठ कर वसुधा के चैंबर से निकल गई. उस के कालेज के लास्ट ईयर के फाइनल ऐग्जाम का टाइमटेबल आ चुका था. उस ने मन लगा कर परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी से पास हुई. उस के बाद उस ने कंप्यूटर का बेसिक कोर्स किया और फिर उसी संस्थान में काम करने लगी. साल भर पहले एक अच्छा सा लड़का देख कर उस के घर वालों ने उस की शादी कर दी. उस के बाद रावी आज ही वसुधा से मिलने आई थी. अपने बेटे के नामकरण का निमंत्रण देने.

इस बीच वसुधा निरंतर शांति के संपर्क में रहीं. कदमकदम पर उन्हें राह दिखाती रहीं, मगर रावी से दूर ही रहीं. वे उसे खुद ही गिर कर उठने देना चाहती थीं. वे संतुष्ट थीं कि उन्होंने एक और कली को मुरझाने से बचा लिया.

रावी ने तो अपना वादा निभा दिया था, अब उन की बारी थी. अत: तैयार हो वे अपना पर्स उठा नन्हे मेहमान के लिए गिफ्ट लेने बाजार चल दीं.

तू रुक, तेरी तो: रुचि की अनकही कहानी

‘‘चटाक…’’

समर्थ ने आव देखा न ताव, रुचि के गालों पर  झन्नाटेदार तमाचा आज फिर रसीद कर दिया. तमाचा इतनी जोर का था कि वह बिलबिला उठी. आंखों से गंगायमुना बह निकली. वह गाल पकड़े जमीन पर जा बैठी.

समर्थ रुका नहीं, ‘‘तू रुक तेरी तो बैंड बजाता हूं अभी,’’ कहते हुए खाने की थाली जमीन पर दे मारी, फिर इधरउधर से लातें ही लातें जमा कर अपना पूरा सामर्थ्य दिखा गया.

5 साल का बेटा पुन्नू डर कर मां की गोद में जा छिपा.‘‘चल छोड़ उसे, बाहर चल,’’ समर्थ उसे घसीटे जा रहा था, ‘‘चल, नहीं तो तू भी खाएगा…’’ वह गुस्से से बावला हो रहा था.‘‘नई…नई… जाना आप के साथ, आप गंदे हो,’’

पुनीत चीखते हुए रो रहा था.‘‘ठीक है तो मर इस के साथ,’’ समर्थ ने  झटके से उसे छोड़ा तो वह गिरतेगिरते बचा. अपने आंसू पोंछता हुआ भाग कर वह मां के आंसू पोंछने लगा.

रुचि का होंठ कोने से फट गया था, खून रिस रहा था.‘‘मम्मा, खून… आप को तो बहुत चोट आई है. गंदे हैं पापा. आप को आज फिर मारा. मैं उन से बात भी नहीं करूंगा. आप पापा से बात क्यों करते हो, आप कभी बात मत करना,’’

वह आंसुओं के साथ उस का खून भी बाजुओं से साफ करने लगा, ‘‘मैं डब्बे से दवाई ले आता हूं,’’ कह कर वह दवा लेने भाग गया.रुचि मासूम बच्चे की बात पर सोच रही थी, ‘कैसे बात न करूं समर्थ से. घर है, तमाम बातें करनी जरूरी हो जाती हैं, वरना चाहती मैं भी कहां हूं ऐसे जंगली से बात करना.

2 घरों से हैं, 2 विचार तो हो ही सकते हैं, वाजिब तर्क दिया जा सकता है कोई है तो, पर इस में हिंसा कहां से आ जाती है बीच में. समर्थ को बता कर ही तो सब साफ कर के खाना तैयार कर दिया था समय पर. अम्माजी को आने में देर हो रही थी.

फोन भी नहीं उठा रही थीं. खाना तैयार नहीं होता, तो भी सब चिल्लाते.’‘‘अपने को गलत साबित होते देख नहीं पाते ये मर्द. बस, यही बात है,’’

अपनी सूजी आंखों के साथ जब अपने ये विचार अंजलि को बताए तो वह हंस पड़ी.‘‘यार देख, मन तो अपना भी यही करता है.

कोई अपनी बात नहीं मानता तो उसे अच्छे से पीटने का ही दिल करता है. पर हम औरतों के शरीर में मर्दों जैसी ताकत नहीं होती, वरना हम भी न चूकतीं, जब मरजी, धुन कर रख देतीं, अपनी बात हर कोई ऊपर रखना चाहता है.’’

‘‘तू तो हर बात को हंसी में उड़ा देना चाहती है. पर बता, कोई बात सहीगलत भी तो होती है.’’‘‘हां, होती तो जरूर है पर अपनेअपने नजरिए से.’’‘‘फिर वही बात. ऐसे तो गोडसे और लादेन भी अपने नजरिए से सही थे. पर क्या वे वाकई में सही कहे जा सकते हैं?’’

अंजली को सम झ नहीं आ रहा था, वह रुचि का ध्यान कैसे हटाए. आएदिन मासूम सी रुचि के साथ समर्थ की मारपीट की घटनाएं उसे कहीं अंदर तक  झिझिक झोड़ रही थीं, बेचारे नन्हे पुन्नू के दिलोदिमाग पर क्या असर होता होगा. सारी बातें सुनी उस ने, किचन से सटे पूजाघर में सुबह से बह रहे दूध, बताशे, गुड़, खीर, मिष्ठान के चढ़ावे की सुगंध आकर्षित लग रही थी.

मक्खियों, चीटियों की बरात से परेशान हो कर रुचि ने लाईजोल डालडाल कर किचन के साथसाथ पूजाघर को भी अच्छी तरह चमका डाला था. किचन के चारों कोनों में पंडित मुखानंद के बताए 5-5 बताशे रख कर दूध चढ़ाने के टोटके का आज भी पालन कर के अपने भाई के घर गई.

सास को लौटने में देर हो रही थी. चींटियों, मक्खियों के बीच रात का खाना बनाना मुश्किल हो रहा था. रुचि ने तंग आ कर सफाई का कदम उठाया था, क्या गलत किया उस ने. रुचि की कोई गलती आज भी उसे नहीं लगी. और फिर, गलती हो भी तो क्या कोई जानवरों की तरह सुलूक करता है भला? रोजरोज ऐसे बेसिरपैर के टोटके, पूजा, पाखंड उन का चलता ही रहता.

हैरानी तो यह कि बहुत मौडर्न बनने वाला समर्थ भी ये सब मानता है. पहले ही मना किया था रुचि से कि समर्थ कुछ ज्यादा ही जता रहा है अपने को, अच्छे से एक बार और सोच ले, फिर शादी कर.

पर मानी नहीं. पापा के सिर का बो झ जल्द से जल्द उतार कर उन्हें खुश देखना चाहती थी वह तो?‘‘तू भी न, गौ बनी हुई है, गौ के भी 2 सींगें, 4 लातें और लंबी दुम होती है, वक्त आने पर इस्तेमाल भी करती है. पर तू तो बिलकुल सुशील, संस्कारी अबला नारी बनी हुई है, बड़ेबड़े मैडल मिलेंगे तु झे क्या?

इतनी ज्यादती सहती क्यों है? डिपैंडैंट है इसलिए…’’ इतनी पढ़ीलिखी है, बोला था जौब कर ले. पर नहीं, पतिपरमेश्वर नहीं मानते. अरे, मानेंगे कैसे भला, फुलटाइम की दासी जो छिन जाएगी,’’ उस ने चिढ़ते हुए उस की ही बात कही. अंजलि का घर रुचि से कुछ ही दूर था.

बचपन से कालेज तक साथ पढ़ी अंजलि अपनी शादी के 2 महीने बाद ही पति के हादसे में हुई मौत के बाद वापस आ कर उसी स्कूल में पढ़ाने लगी थी. पड़ोस के ब्लौक में ही रुचि की शादी हुई थी तो अकसर अंजलि लौटते समय रुचि से मिलने आ जाया करती.

खूबसूरत रुचि को स्मार्ट समर्थ ने अपने को खुलेदिमाग का जता, उस के पिता हरिभजन के आगे अपने को चरित्रवान बताया, महात्मा गांधी, विवेकानंद आदि पर अपना पुस्तक संग्रह दिखा कर अच्छे होने का प्रमाण देदे कर, उस से शादी तो कर ली पर शादी के बाद ही उस की 18वीं सदी की मानसिकता सामने आ गई.

खुलेदिमाग की हर तरह की सफाईपसंद रुचि जाहिलों में फंस कर रह गई. पिता के संस्कार थे, ‘बड़ों  की आज्ञा का पालन करना है सदैव, अवज्ञा कभी नहीं,’ सो, किए जा रही थी. मां तो थी नहीं. पर नेकी, ईमानदरी, सत्य पर चलने वाले पिता ने अच्छे संस्कार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पर यहां उन बातों की न इज्जत है न जरूरत.

अब रुचि को कौन सम झाए, उस ने तो पिता की बातें गांठ बांध अंतस में बिठा ली हैं. बात वही है, ‘सबकुछ सीखा हम ने, न सीखी होशियारी.’ क्या करूं इस लड़की का? रोज ही मार खाए जा रही है. पर पिता से बताती भी नहीं कि वे आघात सह नहीं पाएंगे. लेदे के वही तो हैं उस के परिवार में.पुन्नू घर पर होता तो वे रोतेरोते अपनी मासूम जबां से मम्मा के साथ घटी पूरी हिंसा का ब्योरा अंजलि मौसी को देने की कोशिश करता.

‘कैसे दादी, बूआ, चाचू सभी पापा की साइड लेते हैं. कोई मम्मा को बचाने नहीं आता. कहते हैं, और मारो और मारो.’ अंजलि सोचती, वे बचाने क्या आएंगे, सभी एक थाली के चट्टेबट्टे हैं. जंगली गंवई हूश. छोटे से बच्चे में दिनबदिन कितना आक्रोश भरता जा रहा है, अंजलि देख रही थी.

इतनी नफरत, इतना गुस्सा उस अबोध के व्यक्तित्व को बरबाद किए जा रहा है. पर करती भी क्या? रुचि तो हठ किए बैठी थी कि उस की मूक सेवाकभी तो रंग लाएगी, एक दिन प्रकृति सब ठीक करेगी. अब तो पुन्नू भी पापा, चाचू के जैसे चीजें तोड़नेफेंकने लगा है.

गुस्सा होता तो घरवालों की तरह चीखता है. खाना उठा कर जमीन पर दे मारता, तो रुचि थप्पड़ रसीद करती. तो रुचि को ही डांट पड़ने लगती. उसे तुरंत साफ करने के लिए आदेश हो जाता. घर के लोग शह भी देते उसे. कितनी बार देखासुना है उन्हें कहते हुए, ‘लड़का है, लड़की थोड़ी ही है. मर्द है वह क्यों करेगा भला.

बहू, चल साफ कर जल्दी से, मुखानंद महाराज आते ही होंगे, इस की कुंडली का वार्षिक फल विचार कर के. आजा मेरे लाल, तू तो हमारे घर का वारिस है. तेरा कोई कुछ भी नहीं बिगड़ेगा. तु झे तो, मिनिस्टर बनना है.

आज वे तेरे और तेरे पापा समर्थ के लिए असरदार टोटका बताने वाले हैं. नई तावीज भी लाएंगे तेरे लिए.’उस दिन अंजलि स्कूल से लौटी तो रुचि के घर के आगे ऐंबुलैंस खड़ी देख कर माथा ठनका, किस को क्या हो गया? उस ने पांव तेजी से बढ़ाए, पास पहुंची तो देखा लोग रुचि को स्ट्रैचर पर डाले ऐंबुलैंस से निकाल कर घर में ले जा रहे हैं. रुचि बेसुध थी.

खून से लथपथ सिर फट गया था, खून बह कर माथेचेहरेगरदन, कपड़ों पर जम चुका था. कुछ अभी भी सिर से बहे जा रहा था. पड़ोसियों ने बताया, ‘घर मैं काफी देर तक आएदिन की तरह चीखपुकार होती रही थी. 2 घंटे से रुचि यों ही पड़ी रही.

तब जा कर ऐंबुलैंस ले आने का इन्हें होश आया. तब तक देर हो चुकी थी. रुचि ने ऐंबुलैंस में जाते ही दम तोड़ दिया.’रुचि के पिता हरिभजन को किसी भले मानस ने खबर दे दी थी. वह ही उन्हें थाम कर रुचि के अंतिम दर्शन करवाने ले आया था.

वे रुचि के खून सने सिर पर हाथ रख कर बिलख उठे. पुन्नू को लिपटा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. हादसे से अवाक अंजलि के रुंधे गले से शब्द ही नहीं निकल रहे थे. अंकल को क्या और कैसे ढाढ़स बंधाए. उस को देखते ही रुचि के पिता विलाप करते हुए बोल पड़े, ‘‘बेटी, इतना सब हो रहा था उस के साथ, तू ने कुछ बताया क्यों नहीं कभी.

न उस ने कभी कोई भनक लगने दी. लकवे के कारण एक पैर से लाचार मु झे यह कह कर कि ‘ससुराल में यहां पूजा, पंडित, शकुन, अपशकुन बहुत मानते विचार करते हैं, घर नहीं आने देती थी मु झे. खुद ही पुन्नू को ले कर हफ्ते में एकदो बार आ जाती थी. तू तो उस की पक्की सहेली थी.

तु झ से पूछता तो तू कहती बिलकुल ठीक है, आप उस की चिंता मत कीजिए. अब बता, ठीक है? चली गई मेरी रुचि. ‘वे अंजलि को, तो कभी रुचि के शव को पकड़ कर लगातार हिचकियों से रोए जा रहे थे.उन का कं्रदन सुन अंजलि का दिल टूकटूक हुआ जा रहा था.

अपनी आंखों के सैलाब को किसी तरह रोकते हुए वह बोली, ‘‘अंकल, संभालिए अपने को, आप की तबीयत पहले ही ठीक नहीं. इसी से रुचि ने कसम दे रखी थी आप से कुछ न कहूं. मैं क्या करती अंकल.

यहां आप की अच्छी सीख ने उसे बांधे रखा, जिन का इन जाहिलों के यहां कोई मोल नहीं था,’’ पुन्नू अंजलि को देखते ही उस से लिपट गया.‘‘अंजलि मौसी, इन सब ने मिल कर मेरी मम्मा को मारा. पापा ने दीवार पर मम्मा का सिर दे मारा था.

वे गिर पड़ीं. मम्मा तभी से मु झ से बोली नहीं बिलकुल भी. दादी ने पापा, चाचू को भगा दिया. अब  झूठ कह रही हैं कि मम्मा सीढ़ी से गिर पड़ी,’’ वह रुचि से लिपट कर जोरजोर से रोने लगा. ‘‘उठो न मम्मा, अपने पुन्नू से बोलो न. मैं छोड़ूंगा नहीं किसी को. बड़ा हो कर बैंड बजा दूंगा इन सब की,’’ वह समर्थ से सीखे हुए शब्दों को दोहराने लगा.

रोजरोज की चीखनेचिल्लाने व मारपीट की आवाजों से तंग आ कर आज किसी पड़ोसी ने 100 नंबर डायल कर दिया था. पुलिस आ गई. नन्हे पुन्नू के बयान पर तफ्तीश हुई.

2 दिन के अंदर पुलिस ने समर्थ और उस के भाई को धरदबोचा. उन्हें जेल हो गई. नन्हा पुनीत किस के पास रहता, समस्या थी. क्योंकि पुन्नू अपनी दादी, बूआ के पास रहने को बिलकुल तैयार न था. अंजलि उसे यह कह कर अपने साथ ले गई.

‘‘अंकल, आज के दौर में सज्जनता, सिधाई, संस्कारों का मोल सम झने वाले बहुत कम हैं. दुनिया के हिसाब से अपने को तैयार करना चाहिए और सामने आई चुनौतियों को सिधाई से नहीं, चतुराई से निबटना चाहिए. सिधाई से अकसर आज की दुनिया मूर्ख बनाती है, दबाती है, अपना उल्लू सीधा करती है.

जो, रुचि  झेलती रही. कितना सम झाया था उसे. अंकल, पुन्नू चाहे कहीं भी रहे मैं उस को दूसरा समर्थ कभी नहीं बनने दूंगी. आप निश्चित रहें अंकल. शादी के 2 महीने बाद ही दुर्घटना में पति प्रशांत की मौत के बाद निरुद्देश्य बंजर से मेरे जीवन को पुनीत के रूप में एक नया लक्ष्य मिल गया है.

अब आप भी मु झे अपनी रुचि ही सम िझए अंकल. मैं इसे ले कर आप से मिलने उसी के जैसे आती रहूंगी.’’ रुचि के पिता हरिभजन के कांपते बूढ़े हाथ अंजलि के सिर पर जा रुके थे. उन से कुछ बोलते न बना, केवल आंसू आंखों से बहे चले जा रहे थे. अंजलि भीगे मन से उन्हें पोंछने लगी.

पुन्नू ने दोनों हाथों से नाना और अंजलि मौसी को कस कर पकड़ लिया और आंखें मीचे वह गालों पर ढुलकते आंसुओं में अपनी मम्मा का एहसास ढूंढ़ रहा था.‘‘मम्मा…’’ उस की हिचकियों के साथ निकलता बारबार वह एक शब्द सभी के हृदय को बींध रहा था.

अनुगामिनी: क्यों पति को माफ करना चाहती थी सरिता ?

जि लाधीश राहुल की कार झांसी शहर की गलियों को पार करते हुए शहर के बाहर एक पुराने मंदिर के पास जा कर रुक गई. जिलाधीश की मां कार से उतर कर मंदिर की सीढि़यां चढ़ने लगीं.

‘‘मां, तेरा सुहाग बना रहे,’’ पहली सीढ़ी पर बैठे हुए भिखारी ने कहा.

सरिता की आंखों में आंसू आ गए. उस ने 1 रुपए का सिक्का उस के कटोरे में डाला और सोचने लगी, कहां होगा सदाशिव?

सरिता को 15 साल पहले की अपनी जिंदगी का वह सब से कलुषित दिन याद आ गया जब दोनों बच्चे राशि व राहुल 8वीं9वीं में पढ़ते थे और वह खुद एक निजी स्कूल में पढ़ाती थी. पति सदाशिव एक फैक्टरी में भंडार प्रभारी थे. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. एक दिन वह स्कूल से घर आई तो बच्चे उदास बैठे थे.

‘क्या हुआ बेटा?’

‘मां, पिताजी अभी तक नहीं आए.’

सरिता ने बच्चों को ढाढ़स बंधाया कि पिताजी किसी जरूरी काम की वजह से रुक गए होंगे. जब एकडेढ़ घंटा गुजर गया और सदाशिव नहीं आए तो उस ने राशि को घनश्याम अंकल के घर पता करने भेजा. घनश्याम सदाशिव की फैक्टरी में ही काम करते थे.

कुछ समय बाद राशि वापस आई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस ने आते ही कहा, ‘मां, पिताजी को आज चोरी के अपराध में फैक्टरी से निकाल दिया गया है.’

‘यह सच नहीं हो सकता. तुम्हारे पिता को फंसाया गया है.’

‘घनश्याम चाचा भी यही कह रहे थे. परंतु पिताजी घर क्यों नहीं आए?’ राशि ने कहा.

रात भर पूरा परिवार जागता रहा. दूसरे दिन बच्चों को स्कूल भेजने के बाद सरिता सदाशिव की फैक्टरी पहुंची तो उसे हर जगह अपमान का घूंट ही पीना पड़ा. वहां जा कर सिर्फ इतना पता चल सका कि भंडार से काफी सामान गायब पाया गया है. भंडार प्रभारी होने के नाते सदाशिव को दोषी करार दिया गया और उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया.

सरिता घर आ कर सदाशिव का इंतजार करने लगी. दिन भर इंतजार के बाद उस ने शाम को पुलिस में रिपोर्र्ट लिखवा दी.

अगले दिन पुलिस तफतीश के लिए घर आई तो पूरे महल्ले में खबर फैल गई कि सदाशिव फैक्टरी से चोरी कर के भाग गया है और पुलिस उसे ढूंढ़ रही है. इस खबर के बाद तो पूरा परिवार आतेजाते लोगों के हास्य का पात्र बन कर रह गया.

सरिता ने सारे रिश्तेदारों को पत्र भेजा कि सदाशिव के बारे में कोई जानकारी हो तो तुरंत सूचित करें. अखबार में फोटो के साथ विज्ञापन भी निकलवा दिया.

इस मुसीबत ने राहुल और राशि को समय से पहले ही वयस्क बना दिया था. वह अब आपस में बिलकुल नहीं लड़ते थे. दोनों ने स्कूल के प्राचार्य से अपनी परिस्थितियों के बारे में बात की तो उन्होंने उन की फीस माफ कर दी.

राशि ने शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. राहुल ने स्कूल जाने से पहले अखबार बांटने शुरू कर दिए. सरिता की तनख्वाह और बच्चों की इस छोटी सी कमाई से घर का खर्च किसी तरह से चलने लगा.

इनसान के मन में जब किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष को पाने की आकांक्षा बहुत बढ़ जाती है तब उस का मन कमजोर हो जाता है और इसी कमजोरी का लाभ दूसरे लोग उठा लेते हैं.

सरिता इसी कमजोरी में तांत्रिकों के चक्कर में पड़ गई थी. उन की बताई हुई पूजा के लिए कुछ गहने भी बेच डाले. अंत में एक दिन राशि ने मां को समझाया तब सरिता ने तांत्रिकों से मिलना बंद किया.

कुछ माह के बाद ही सरिता अचानक बीमार पड़ गई. अस्पताल जाने पर पता चला कि उसे टायफाइड हुआ है. बताया डाक्टरों ने कि इलाज लंबा चलेगा. यह राशि और राहुल की परीक्षा की घड़ी थी.

ट्यूशन पढ़ाने के साथसाथ राशि लिफाफा बनाने का काम भी करने लगी. उधर राहुल ने अखबार बांटने के अलावा बरात में सिर पर ट्यूबलाइट ले कर चलने वाले लड़कों के साथ भी मजदूरी की. सिनेमा की टिकटें भी ब्लैक में बेचीं. दोनों के कमाए ये सारे पैसे मां की दवाई के काम आए.

‘तुम्हें यह सब करते हुए गलत नहीं लगा?’ सरिता ने ठीक होने पर दोनों बच्चों से पूछा.

‘नहीं मां, बल्कि मुझे जिंदगी का एक नया नजरिया मिला,’ राहुल बोला, ‘मैं ने देखा कि मेरे जैसे कई लोग आंखों में भविष्य का सपना लिए परिस्थितियों से संघर्ष कर रहे हैं.’

दोनों बच्चों को वार्षिक परीक्षा में स्कूल में प्रथम आने पर अगले साल से छात्रवृत्ति मिलने लगी थी. घर थोड़ा सुचारु रूप से चलने लगा था.

सरिता को विश्वास था कि एक दिन सदाशिव जरूर आएगा. हर शाम वह अपने पति के इंतजार में खिड़की के पास बैठ कर आनेजाने वालों को देखा करती और अंधेरा होने पर एक ठंडी सांस छोड़ कर खाना बनाना शुरू करती.

इस तरह साल दर साल गुजरते चले गए. राशि और राहुल अपनी मेहनत से अच्छी नौकरी पर लग गए. राशि मुंबई में नौकरी करने लगी है. उस की शादी को 3 साल गुजर गए. राहुल भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर झांसी में जिलाधीश बन गया. 1 साल पहले उस ने भी अपने दफ्तर की एक अधिकारी सीमा से शादी कर ली.

सरिता की तंद्रा भंग हुई. वह वर्तमान में वापस आ गई. उस ने देखा कि बाहर काफी अंधेरा हो गया है. हमेशा की तरह उस ने सदाशिव के लिए प्रार्थना की और घर के लिए रवाना हो गई.

‘‘मां, बहुत देर कर दी,’’ राहुल ने कहा.

सरिता ने राहुल और सीमा को देखा और उन का आशय समझ कर चुपचाप खाना खाने लगी.

‘‘बेटा, यहां से कुछ लोग जयपुर जा रहे हैं. एक पूरी बस कर ली है. सोचती हूं कि मैं भी उन के साथ हो आऊं.’’

‘‘मां, अब आप एक जिलाधीश की भी मां हो. क्या आप का उन के साथ इस तरह जाना ठीक रहेगा?’’ सीमा ने कहा.

सरिता ने सीमा से बहस करने के बजाय, प्रश्न भरी नजरों से राहुल की ओर देखा.

‘‘मां, सीमा ठीक कहती है. अगले माह हम सब कार से अजमेर और फिर जयपुर जाएंगे. रास्ते में मथुरा पड़ता है, वहां भी घूम लेंगे.’’

अगले महीने वे लोग भ्रमण के लिए निकल पड़े. राहुल की कार ने मथुरा में प्रवेश किया. मथुरा के जिलाधीश ने उन के ठहरने का पूरा इंतजाम कर के रखा था. खाना खाने के बाद सब लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए. थोड़ी दूर चलने पर कार को रोकना पड़ा क्योंकि सामने से एक जुलूस आ रहा था.

‘‘इस देश में लोगों के पास बहुत समय है. किसी भी छोटी सी बात पर आंदोलन शुरू हो जाता है या फिर जुलूस निकल जाता है,’’ सीमा ने कहा.

राहुल हंस दिया.

सरिता खिड़की के बाहर आतेजाते लोगों को देखने लगी. उस की नजर सड़क के किनारे चाय पीते हुए एक आदमी पर पड़ गई. उसे लगा जैसे उस की सांस रुक गई हो.

वही तो है. सरिता ने अपने मन से खुद ही सवाल किया. वही टेढ़ी गरदन कर के चाय पीना…वही जोर से चुस्की लेना…सरिता ने कई बार सदाशिव को इस बात पर डांटा भी था कि सभ्य इनसानों की तरह चाय पिया करो.

चाय पीतेपीते उस व्यक्ति की निगाह भी कार की खिड़की पर पड़ी. शायद उसे एहसास हुआ कि कार में बैठी महिला उसे घूर रही है. सरिता को देख कर उस के हाथ से प्याली छूट गई. वह उठा और भीड़ में गायब हो गया.

उसी समय जुलूस आगे बढ़ गया और कार पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर दौड़ पड़ी. सरिता अचानक सदाशिव की इस हरकत से हतप्रभ सी रह गई और कुछ बोल भी नहीं पाई.

दिल्ली में वे लोग राहुल के एक मित्र के घर पर रुके.

रात को सरिता ने राहुल से कहा, ‘‘बेटा, मैं जयपुर नहीं जाना चाहती.’’

‘‘क्यों, मां?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्या मेरा जयपुर जाना बहुत जरूरी है?’’

‘‘हम आप के लिए ही आए हैं. आप की इच्छा जयपुर जाने की थी. अब क्या हुआ? आप क्या झांसी वापस जाना चाहती हैं.’’

‘‘झांसी नहीं, मैं मथुरा जाना चाहती हूं.’’

‘‘मथुरा क्यों?’’

‘‘मुझे लगता है कि जुलूस वाले स्थान पर मैं ने तेरे पिताजी को देखा है.’’

‘‘क्या कर रहे थे वह वहां पर?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं ने उन्हें सड़क के किनारे बैठे देखा था. मुझे देख कर वह भीड़ में गायब हो गए,’’ सरिता ने कहा.

‘‘मां, यह आप की आंखों का धोखा है. यदि यह सच भी है तो भी मुझे उन से नफरत है. उन के कारण ही मेरा बचपन बरबाद हो गया.’’

‘‘मैं जयपुर नहीं मथुरा जाना चाहती हूं. मैं तुम्हारे पिताजी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘मां, मैं आप के मन को दुखाना नहीं चाहता पर आप उस आदमी को मेरा पिता मत कहो. रही मथुरा जाने की बात तो हम जयपुर का मन बना कर निकले हैं. लौटते समय आप मथुरा रुक जाना.’’

सरिता कुछ नहीं बोली.

सदाशिव अपनी कोठरी में लेटे हुए पुराने दिनों को याद कर रहा था.

3 दिन पहले कार में सरिता थी या कोई और? यह प्रश्न उस के मन में बारबार आता था. और दूसरे लोग कौन थे?

आखिर उस की क्या गलती थी जो उसे अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ कर एक गुमनाम जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ा. बस, इतना ही न कि वह इस सच को साबित नहीं कर सका कि चोरी उस ने नहीं की थी. वह मन से एक कमजोर इनसान है, तभी तो बीवी व बच्चों को उन के हाल पर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ था. अब क्या रखा है इस जिंदगी में?

खट् खट् खट्, किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

सदाशिव ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने सरिता खड़ी थी. कुछ देर दोनों एक दूसरे को चुपचाप देखते रहे.

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगे? बड़ी मुश्किलों से ढूंढ़ते हुए यहां तक पहुंच सकी हूं,’’ सरिता ने कहा.

‘‘आओ,’’ सरिता को अंदर कर के सदाशिव ने दरवाजा बंद कर दिया.

सरिता ने देखा कि कोठरी में एक चारपाई पर बिस्तर बिछा है. चादर फट चुकी है और गंदी है. एक रस्सी पर तौलिया, पाजामा और कमीज टंगी है. एक कोने में पानी का घड़ा और बालटी है. दूसरे कोने में एक स्टोव और कुछ खाने के बरतन रखे हैं.

सरिता चारपाई पर बैठ गई.

‘‘कैसे हो?’’ धीरे से पूछा.

‘‘कैसा लगता हूं तुम्हें?’’ उदास स्वर में सदाशिव ने कहा.

सरिता कुछ न बोली.

‘‘क्या करते हो?’’ थोड़ी देर के बाद सरिता ने पूछा.

‘‘इस शरीर को जिंदा रखने के लिए दो रोटियां चाहिए. वह कुछ भी करने से मिल जाती हैं. वैसे नुक्कड़ पर एक चाय की दुकान है. मुझे तो कुछ नहीं चाहिए. हां, 4 बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकल आता है.’’

‘‘बच्चे?’’ सरिता के स्वर में आश्चर्य था.

‘‘हां, अनाथ बच्चे हैं,’’ उन की पढ़ाई की जिम्मेदारी मैं ने ले रखी है. सोचता हूं कि अपने बच्चों की पढ़ाई में कोई योगदान नहीं कर पाया तो इन अनाथ बच्चों की मदद कर दूं.’’

‘‘घर से निकल कर सीधे…’’ सरिता पूछतेपूछते रुक गई.

‘‘नहीं, मैं कई जगह घूमा. कई बार घर आने का फैसला भी किया पर जो दाग मैं दे कर आया था उस की याद ने हर बार कदम रोक लिए. रोज तुम्हें और बच्चों को याद करता रहा. शायद इस से ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था. पिछले 5 सालों से मथुरा में हूं.’’

‘‘अब तो घर चल सकते हो. राशि अब मुंबई में है. नौकरी करती है. वहीं शादी कर ली है. राहुल झांसी में जिलाधीश है. मुझे सिर्फ तुम्हारी कमी है. क्या तुम मेरे साथ चल कर मेरी जिंदगी की कमी पूरी करोगे?’’ कहतेकहते सरिता की आंखों में आंसू आ गए.

सदाशिव ने सरिता को उठा कर गले से लगा लिया और बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिया है. यदि तुम्हारे साथ जा कर मेरे रहने से तुम खुश रह सकती हो तो मैं तैयार हूं. पर क्या इतने दिनों बाद राहुल मुझे पिता के रूप में स्वीकार करेगा? मेरे जाने से उस के सुखी जीवन में कलह तो पैदा नहीं होगी? क्या मैं अपना स्वाभिमान बचा सकूंगा?’’

‘‘तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम से दूर रहूं,’’ सरिता ने रो कर कहा और सदाशिव के सीने में सिर छिपा लिया.

‘‘नहीं, मैं चाहता हूं कि तुम झांसी जाओ और वहां ठंडे दिल से सोच कर फैसला करो. तुम्हारा निर्णय मुझे स्वीकार्य होगा. मैं तुम्हारा यहीं इंतजार करूंगा.’’

सरिता उसी दिन झांसी वापस आ गई. शाम को जब राहुल और सीमा साथ बैठे थे तो उन्हें सारी बात बताते हुए बोली, ‘‘मैं अब अपने पति के साथ रहना चाहती हूं. तुम लोग क्या चाहते हो?’’

‘‘एक चाय वाला और जिलाधीश साहब का पिता? लोग क्या कहेंगे?’’ सीमा के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘बहू, किसी आदमी को उस की दौलत या ओहदे से मत नापो. यह सब आनीजानी है.’’

‘‘मां, वह कमजोर आदमी मेरा…’’

‘‘बस, बहुत हो गया, राहुल,’’ सरिता बेटे की बात बीच में ही काटते हुए उत्तेजित स्वर में बोली.

राहुल चुप हो गया.

‘‘मैं अपने पति के बारे में कुछ भी गलत सुनना नहीं चाहती. क्या तुम लोगों से अलग हो कर वह सुख से रहे? उन के प्यार और त्याग को तुम कभी नहीं समझ सकोगे.’’

‘‘मां, हम आप की खुशी के लिए उन्हें स्वीकार सकते हैं. आप जा कर उन्हें ले आइए,’’ राहुल ने कहा.

‘‘नहीं, बेटा, मैं अपने पति की अनुगामिनी हूं. मैं ऐसी जगह न तो खुद रहूंगी और न अपने पति को रहने दूंगी जहां उन को अपना स्वाभिमान खोना पड़े.’’

सरिता रात को सोतेसोते उठ गई. पैर के पास गीलागीला क्या है? देखा तो सीमा उस का पैर पकड़ कर रो रही थी.

‘‘मां, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप का कई बार दिल दुखाया है. आज आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं भी आप के समान अपने पति के स्वाभिमान की रक्षा कर सकूं.’’

सरिता ने भीगी आंखों से सीमा का माथा चूमा और उस के सिर पर हाथ फेरा.

‘‘मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा.’’

भोर की पहली किरण फूट पड़ी. जिलाधीश के बंगले में सन्नाटा था. सरिता एक झोले में दो जोड़े कपड़े ले कर रिकशे पर बैठ कर स्टेशन की ओर चल दी. उसे मथुरा के लिए पहली ट्रेन पकड़नी थी.

मिन्नी के पापा: क्या थी मिन्नी की कहानी ?

‘‘मेरे पापा कहां हैं मां?’’ अचानक यह सवाल सुन कर शांति हैरान रह गई, तभी मिन्नी ने फिर अपना सवाल दोहरा दिया, ‘‘मेरे पापा कहां हैं?’’

घबराई शांति ने बेटी को गोद में उठा कर चूम लिया, ‘‘तुम्हारे पापा विदेश गए हैं,’’ कहते हुए शांति का गला भर आया, आंखें भीग गईं.

‘‘विदेश क्या होता है मां?’’ मिन्नी ने छोटा सा सवाल कर दिया, तो शांति के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. उस ने मिन्नी को कस कर भींच लिया और भारी मन से जवाब दिया, ‘‘विदेश मतलब बहुत दूर. वहां से तुम्हारे पापा तुम्हारे लिए ढेर सारे अच्छेअच्छे खिलौने लाएंगे.’’

‘‘और फ्रौक भी?’’

‘‘हां बेटी, हां… सबकुछ. अब सो जाओ,’’ शांति की आंखें छलछला आईं. ‘‘अब बताऊंगी सीमा और चुन्नू को. कहते थे कि तुम्हारे पापा तुम को छोड़ कर भाग गए हैं,’’ मिन्नी हंसते हुए बोली. शांति चौंक उठी, ‘‘क्या कहा… मिन्नी, वे सब गंदे बच्चे हैं. उन के साथ मत खेला करो. तुम्हारे पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं. नहींनहीं… मेरा मतलब है…’’ वह हड़बड़ा गई. मिन्नी कुछ न समझ सकी. बेटी ने दिल के जख्म कुरेद दिए थे. शांति उस को गोदी में चिपकाए देर रात तक रोती रही. जब से सुरजन गुम हुआ था, शांति पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. एक बेसहारा जिंदगी, वह भी एक औरत की. गुजरबसर करने के लिए उसे कई घरों में काम करना पड़ता. पड़ोस के बच्चे अच्छेअच्छे कपड़ों में स्कूल जाते, तो मिन्नी भी जिद करती. मां की मजबूरियों से बेखबर वह कहती, ‘‘तुम बहुत कंजूस हो मां, मुझे भी मीरा की तरह कपड़े ला दो, मैं भी जाऊंगी स्कूल.’’ ‘‘हां, ला देंगे बेटी,’’ कह कर शांति अपनी बेबसी पर आंसू बहा देती.

मिन्नी न जाने कितने सवाल करती, पर शांति कोई झूठा सा बहाना बना कर टाल देती. अब उस का बरताव भी कुछ चिढ़चिढ़ा सा होता जा रहा था. वह कभीकभी मिन्नी की पिटाई भी कर देती. पछतावा भी होता, रो भी लेती. वह जिंदगी से ऊब चुकी थी, लेकिन फिर भी जीना था मिन्नी की खातिर.

समय गुजरता गया. मिन्नी 5 साल की हो गई. सुरजन को गए हुए भी 5 साल हो गए थे. ‘आज शादी की सालगिरह है,’ सोच कर शांति उदास हो गई. आज के दिन ही तो शांति की जिंदगी में वह हादसा हुआ था, एक भयानक हादसा. लेकिन उस का कुसूर भी तो कुछ नहीं था. शांति का पति सुरजन बहुत ज्यादा शराब पीता था. उस ने समझाया था कि शराब बुरी चीज है, इस ने लाखों घर बरबाद कर दिए हैं. इसे छोड़ सको तो छोड़ दो. यही तो वह कहती थी, कभी दबाव तो नहीं डाला. उस दिन भी जब सुरजन आया, तो नशे में चूर था. शांति ने पूछा, ‘‘साड़ी नहीं लाए क्या? भूल गए, आज हमारी शादी की सालगिरह है.’’ तब सुरजन ने बेहयाई से हंसते हुए बोतल सामने रख दी, ‘‘ले, आज मेरे साथ तू भी पी… अंगरेजी शराब है.’’

तब शांति को बहुत गुस्सा आया था. लेकिन उस ने इतना ही कहा, ‘‘आप थोड़ी सी पी लीजिए, पर मुझे मजबूर मत कीजिए. मुझे इस जहर से सख्त नफरत है.’’ अगर बात यहीं खत्म हो जाती, तो गनीमत थी. सुरजन ने बोतल मुंह से लगा ली और गटागटा पीते हुए आधी से ज्यादा खाली कर दी. फिर लड़खड़ाते हुए शांति का हाथ पकड़ कर वह बोला, ‘‘रानी, जब तक दारू जिंदा है, तुम्हारा आदमी मरने वाला नहीं. अरे, यह दारू नहीं अमृत है, अमृत. तुम बेकार के ढकोसले में पड़ी हो. लो, थोड़ी पी कर देखो.’’ फिर सुरजन ने जबरदस्ती शांति को पिलानी चाही. वह इनकार करती रही. तब उस ने जबरदस्ती बोतल उस के मुंह से लगा दी, तो वह तिलमिला उठी. उसे भी गुस्सा आ गया. बोतल छीन कर फेंकी तो वह जमीन पर गिर कर कई टुकड़ों में बिखर गई… और इसी के साथ उस की दुनिया भी बिखर गई.

सुरजन ने शांति को पीटना शुरू कर दिया. इतना पीटा कि वह बेहोश हो गई. होश में आने पर पता चला कि सुरजन कहीं चला गया है. उस समय मिन्नी पेट में थी. वह रोतीचिल्लाती इधरउधर भागी. पति को बहुत खोजा. महल्ले वाले भी दौड़े, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. वह जो गया तो चला ही गया. शाम होने वाली थी. अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. शांति ने धीरे से पूछा, ‘‘कौन है?’’ और उठ कर दरवाजे की ओर चल पड़ी. मिन्नी आंगन में खेल रही थी.शांति ने धीरे से दरवाजा खोला. सामने देखा तो मानो जमीन पैरों के नीचे से खिसक गई. बदन थरथर कांपने लगा. अचानक ही मुंह से चीख निकल पड़ी, ‘‘मिन्नी, तेरे पापा आए…’’ और वह बेहोश हो कर धड़ाम से गिर गई. शायद इतनी बड़ी खुशी को उस का कमजोर शरीर बरदाश्त न कर सका.

सुरजन सामने सिर झुकाए खड़ा था. मिन्नी हक्कीबक्की सी दौड़ी आई. वह कभी सुरजन की ओर देखती, तो कभी जमीन पर पड़ी मां की ओर. तभी मिन्नी रोने लगी. महल्ले के कुछ लोग आ गए. शांति के मुंह पर पानी के छींटे मारे तो होश आया. फिर भी संभलने में उसे काफी समय लगा. वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई. तरहतरह के सवालजवाब होते रहे.रात काफी हो चली थी. हालचाल पूछने वाले लोग जा चुके थे. अब घर में 3 जने थे, शांति, सुरजन और मिन्नी. सभी चुप थे, जैसे उन के पास अब बोलने को कुछ रहा ही नहीं. फिर शांति ने भरे गले से पूछा, ‘‘ठीक तो हो?’’ ‘‘हां,’’ सुरजन ने उदासी भरी आवाज में कहा.

‘‘आज हमारी याद…’’ शांति से पूरा वाक्य न बोला गया, गला भर आया. सुरजन ने घोर शर्म और अफसोस भरी आवाज में कहा, ‘‘पहले मुझे माफ कर दो. वैसे, मैं माफी मांगने के लायक नहीं, फिर भी… अगर हो सके…’’‘‘नहींनहीं, ऐसा मत कहो. बस यही बता दो कि कहां रहे? कैसे रहे? किसी परेशानी में तो नहीं थे?’’सुरजन कुछ देर खामोश रहा. छत की तरफ देखा, जैसे वह कुछ पढ़ रहा हो. फिर धीरेधीरे वह बताने लगा, ‘‘मैं उसी दिन रात की गाड़ी से कोलकाता चला गया. वहां मेरा एक दोस्त रहता था. उसी की मोटर वर्कशौप में काम करने लगा. वहां जल्दी ही मुझे एक दूसरा साथी मिल गया. उस का नाम था दिलीप. बिलकुल अकेला, नंबर एक का पियक्कड़. फिर क्या था. हर शाम को महफिल जमती. कभी मेरे कमरे पर, तो कभी दिलीप के घर पर. ‘‘वह टैक्सी ड्राइवर था. हम दोनों इतना घुलमिल गए कि एकदूसरे के बगैर चैन न पड़ता. मैं अपनेआप को आजाद परिंदा समझता, जिसे न किसी चीज की कमी थी, न कोई परवाह. ‘‘इसी झूठी मौजमस्ती और शराबखोरी के अंधेरे कुएं में जिंदगी के 5 कीमती साल कब डूब गए, पता नहीं चला. शायद यह अंधेरा कभी खत्म न होता, अगर दिलीप गुवाहाटी न चला गया होता.’’ सुरजन कुछ देर के लिए चुप रहा, फिर आगे बोला, ‘‘दिलीप के जाने से मुझे बहुत अकेलापन महसूस होने लगा. फिर भी कोई परेशानी नहीं हुई, शराब जो मेरे साथ थी.

‘‘तकरीबन 2 महीने बाद मुझे मालूम हुआ कि दिलीप आ गया है. मैं तुरंत काम से छुट्टी ले कर अपने दोस्त से मिलने चल दिया. रास्ते में मैं ने एक बोतल खरीद ली. सोचा, काफी दिनों बाद मेरा दोस्त आया?है, आज जम कर पिएंगे. ‘‘दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजा खुला तो दिलीप सामने खड़ा था. हाथ मिलाते हुए वह बोला, ‘तुम आ गए, अच्छा ही हुआ. मैं खुद आने वाला था. एक मिनट रुको, मैं अभी आया.’ ‘‘वह अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद मुझे आवाज दी. मैं भीतर गया तो देखा कि बैठक वाला कमरा बहुत करीने से और खूबसूरत ढंग से सजा हुआ?है. मैं कुछ सोच ही रहा था कि दिलीप ने हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, ‘बोलो, चाय चलेगी या शरबत?’ ‘‘मुझे उस की यह बात बड़ी अजीब सी लगी. मैं ने खीज कर कहा, ‘आज तुझे क्या हो गया है दिलीप? इतने दिनों बाद मिला है और पूछता है, चाय चलेगी या शरबत. अरे देख, तेरे वास्ते मैं खुद ले कर आया हूं. फटाफट 2 गिलास ले आ.’ ‘‘दिलीप ने मुंह फेरते हुए कहा, ‘इसे थैले में रख लो. मैं ने पीना छोड़ दिया है?’

‘‘मैं हैरान रह गया. कानों पर भरोसा नहीं हुआ. सोचा, कहीं दिलीप मजाक तो नहीं कर रहा. तभी उस ने आवाज दी, ‘सलमा, एक प्लेट में मीठा दे जाओ.’ ‘‘मैं चौंक उठा और पूछा, ‘यह सलमा कौन है?’ ‘‘दिलीप हंस दिया. वह जवाब देता, इस से पहले एक 5-6 साल की लड़की फुदकती हुई आई और दिलीप की गरदन में झूल गई. दिलीप ने उसे गोदी में उठा कर चूम लिया और बोला, ‘पिंकी, तुम ने चाचाजी को नमस्ते नहीं की… चलो, नमस्ते करो.’ ‘‘बच्ची ने दोनों हाथ जोड़ दिए. मैं ने नमस्ते का जवाब तो दे दिया, लेकिन मन और भी उलझ गया.

‘‘दिलीप ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘सुरजन, मैं ने शादी कर ली है. सलमा मेरी बीवी का नाम है. और यह है मेरी बेटी पिंकी?’ ‘‘तभी सलमा एक ट्रे में कुछ मीठा ले कर आ गई. 30-32 साल की उम्र, सांवला, छरहरा बदन, काफी सुंदर लग रही थी. दिलीप ने कहा, ‘सलमा, यह है मेरा जिगरी दोस्ती सुरजन.’‘‘सलमा ने नमस्ते की और अंदर चली गई. मैं ने दिलीप को शादी की बधाई दी. लेकिन बहुत से सवाल अब भी दिमाग में थे. आखिर पूछ ही लिया, ‘कहां से की शादी… यह सब चक्कर क्या है?’

‘‘दिलीप बोला, ‘अरे, मैं तो कब से एक जीवनसाथी की तलाश में था. अकेले आदमी की भी कोई जिंदगी होती है. जब मैं गुवाहाटी गया, वहीं सलमा से मुलाकात हो गई. बेचारी गरीब विधवा थी. इसे भी कोई सहारा चाहिए था और मुझे भी. फिर क्या था, हम दोनों ने शादी कर ली. ‘‘सलमा को भी सहारा मिल गया और मुझे पत्नी मिल गई. साथ ही, एक खिलौना भी मिला.’ ‘‘यह कह कर उस ने पिंकी के गालों को चूम लिया, ‘देखो, अब मैं कितना खुश हूं. मेरी जिंदगी में, इस सूने घर में जैसे बहार आ गई?है.’ ‘‘दिलीप ने मस्ती में भर कर कुछ ऐसे अंदाज में कहा कि मैं अंदर तक कांप गया. फिर भी बनावटी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘तब तो अब तुम से ही पिऊंगा… बड़े छुपे रुस्तम निकले, गुरु.’ ‘‘वह बोला, ‘नहीं, मैं ने शराब का नाम लेना ही छोड़ दिया है. मेरी और तुम्हारी दोस्ती अब सिर्फ इसी बात पर कायम रह सकती है कि तुम कभी मेरे सामने इस जहर का नाम भी मत लेना. मैं नहीं चाहता कि यह जहरीला पानी मेरे परिवार को तबाह कर दे. मेरी पत्नी भी तो इस से बहुत नफरत करती है.’ ‘वह एक पल के लिए चुप हो गया. फिर बोला, ‘सुरजन, मैं अकेलेपन को दूर करने के लिए शराब का झूठा सहारा लेता था. यही आदमी की सब से बड़ी भूल होती है. वैसे, इतनी बड़ी दुनिया में किसी चीज की कमी नहीं है. हो सके तो तुम भी शराब से तलाक ले कर कहीं घर बसा लो…’ ‘‘मैं ने गुस्से में कहा, ‘दिलीप, तुम्हारी गृहस्थी तुम को मुबारक. मैं आजाद पंछी की तरह जिंदगी बिताने में भरोसा रखता हूं, पिंजरे में कैद रह कर नहीं. मैं जा रहा हूं. मुझे नहीं चाहिए तुम्हारे उपदेश.’ ‘‘मैं उठ कर चल दिया. पता नहीं, क्यों मेरे पैर कांप रहे थे, तभी दिलीप का कहकहा गूंजा, ‘जाते हो तो जाओ, पर एक बात याद रखना, आजाद पंछी भी परिवार बसाने के लिए तड़पता है और फड़फड़ाता रहता है.’’’ इतना कह कर सुरजन खामोश हो गया. मिन्नी हैरानी से दोनों की ओर देख रही थी. शांति बुत की तरह बैठी सुन रही थी. वह धीरे से बोली, ‘‘फिर क्या हुआ?’’

सुरजन भीगी आवाज में बोला, ‘‘फिर क्या था, मेरे दिल में हाहाकार मच गया कि दिलीप एक विधवा औरत से शादी कर के, दूसरे की बच्ची को पालते हुए कितना खुश है. उस ने परिवार बसा कर शराब छोड़ दी. लेकिन, मैं ने शराब के लिए परिवार छोड़ दिया था. अपनी सुंदर पत्नी को छोड़ दिया. मुझे अपनी इस बच्ची के लिए भी मोह नहीं जागा, जिस का मुंह भी नहीं देखा था. ‘‘मैं नफरत और अपमान की आग में जलने लगा. बारबार खुद को धिक्कारा, ‘सुरजन, तू ने अपनी पत्नी को कहां बेसहारा बना कर छोड़ दिया? तू जालिम है, बहुत बड़ा मुजरिम है तू,’ ‘‘लेकिन, मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था…’’ कहतेकहते सुरजन की आंखों से आंसू बह चले.

वह कुछ रुक कर आगे बोला, ‘‘मैं ने बोतल निकाल कर गंदे नाले में फेंक दी. मुझे घर की याद ने आ घेरा. सोचने लगा कि पता नहीं, तुम कहां होगी? किस हाल में होगी? हालात ने तुम्हें क्या बना दिया होगा? इन्हीं खयालों ने मन को बेचैन कर दिया.’’ अब शांति भी रो पड़ी. कुछ देर बाद आंसू पोंछते हुए वह बोली, ‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘मैं सीधे अपने कमरे में चला गया. जल्दीजल्दी थोड़ाबहुत सामान बांधा और स्टेशन पर जा पहुंचा. मालिक के पास रुपए बाकी थे, वह भी लेने नहीं गया. मन करता था, कोई मुझे उड़ा कर पलभर में मेरे घर पहुंचा दे. ‘‘रात 11 बजे गाड़ी आई. एकएक पल मुझे सालों जैसा मालूम हो रहा था. रातभर के सफर के बाद गाड़ी यहां पहुंचने वाली थी. सुबह हो गई थी. रेल की पटरियों के किनारे टैलीफोन के खंभों पर बैठे परिंदे कुनकुनी धूप का मजा ले रहे थे. कुछ आसमान में उड़ रहे थे. परिदों का एक जोड़ा अपने नन्हे बच्चे को उड़ना सिखा रहा था. देख कर मन भर आया. तभी स्टेशन आ गया और धीरेधीरे गाड़ी रुक गई…’’

सुरजन चुप हो गया था. उस ने मिन्नी को अपनी गोद में खींच लिया.

मिन्नी धीरे से बोली, ‘‘पापा, अब कहीं मत जाना.’’

सुरजन ने मिन्नी का मुंह चूम लिया, ‘‘अब भला मैं अपनी रानी बेटी को छोड़ कर कहां जाऊंगा. एक टैक्सी खरीदूंगा, खूब पैसा कमाऊंगा, खूब अच्छीअच्छी चीजें लाया करूंगा तुम्हारे लिए. फिर तुम को और तुम्हारी मां को टैक्सी में बैठा कर सारा शहर घुमाया करूंगा.’’

‘‘और नानी के घर भी चलेंगे,’’ मिन्नी ने चहकते हुए कहा.

‘‘हां, सुनो शांति, झोले में मिठाई है. तुम भी खा लो और हमारी बेटी को भी दे दो.’’

शांति उठते हुए बोली, ‘‘आज हमारी शादी की सालगिरह है… सब तैयार हो जाओ, बाजार घूमने चलेंगे.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं, चलो मिन्नी बेटी, फौरन तैयार हो जाओ. आज हम तुम्हें बहुत से खिलौने ले कर देंगे. फिर तुम्हारी मां को एक नई साड़ी और…’’ सुरजन खुश हो कर बोला. ‘‘बसबस, बहुत हो गया, आज के लिए इतनी खरीदारी ही काफी?है… ज्यादा खुशी हजम करना मुश्किल हो जाएगा,’’ शांति ने हंसते हुए कहा और कपड़े बदलने के लिए भीतर चली गई.

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