फर्जी काल का जाल

एक आमजन की कहानी

मेरे एक दोस्त को ऐसा ही एक फर्जी काल आया. उसे बताया गया कि वह अनजान आदमी सीबीआई या अपराध शाखा से बात कर रहा है और उसे डिजिटल रूप से गिरफ्तार किया जा रहा है. उसे अदालत में पेश होने के लिए कहा गया और धमकी दी गई कि अगर उस ने किसी को बताया तो उसे कड़ी सजा मिलेगी.

इन बातों को अगर हम ध्यान से देखें तो सम?ा सकते हैं कि यह एक फर्जीवाडे़ से ज्यादा कुछ नहीं है. जैसे कि कहा गया कि आप किसी को नहीं बताएंगे. इस से साफ है कि सामने वाला आप को डरा रहा है और ठगना चाहता है.

दरअसल, इस तरह के काल में लोगों को डराने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं. वे आप को आप के परिवार के सदस्यों के बारे में जानकारी देते हैं, आप के बैंक खाते की जानकारी मांगते हैं या आप पर किसी अपराध में शामिल होने का आरोप लगाते हैं.

सावधानी और समझदारी

* कभी भी अनजान नंबर से आने वाले काल या फोन पर ध्यान न दें.

* अगर आप को ऐसा फोन आता है, तो तुरंत पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करें.

* अपने परिवार और दोस्तों को इस तरह के जाल से सावधान रखें.

* कभी भी अपने बैंक खाते या निजी जानकारी किसी के साथ साझा न करें.

* अगर आप को कोई सम्मन मिलता है, तो उसे फर्जी होने या न

होने के लिए वकील या पुलिस स्टेशन में खुद जा कर बात करें.

हमारे कानूनी हक

हमारा संविधान हमें कई हक देता है, जो हमें इस तरह के जाल से बचने में मदद कर सकते हैं.

अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों की जानकारी हासिल करने का हक और अपने खिलाफ की गई कार्यवाही के खिलाफ अपील करने का हक हर आमजन को होता है.

फर्जी काल से कैसे बचें

फर्जी काल के जाल से बचने के लिए कुछ खास बातें :

* अपने फोन की सैटिंग्स को सिक्योरिटी में रखें.

* अपने बैंक खाते की जानकारी को महफूज रखें.

* अपने परिवार और दोस्तों को इस तरह के जाल से सावधान रखें.

* कभी भी अनजान नंबर से आने वाले काल यानी फोन पर ध्यान न दें.

फर्जी काल का जाल एक बढ़ता हुआ खतरा है, लेकिन हमें इस से डरने की जरूरत नहीं है. अगर हम सावधान और जागरूक रहें, तो इस जाल से

बच सकते हैं. हमें अपने हकों को जानना चाहिए और उन का इस्तेमाल करना चाहिए.

फर्जी काल सैंटर, कई चोर रास्ते

बैंक खाता अपडेट : फर्जी काल सैंटर आप को बैंक खाता अपडेट करने के लिए कहते हैं और आप को अपने खाते की जानकारी देने के लिए मजबूर करते हैं.

टैक्स चोरी : फर्जी काल सैंटर आप को टैक्स चोरी के आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी देते हैं और आप को अपने खाते से पैसे ट्रांसफर करने के लिए कहते हैं.

लौटरी विजेता : फर्जी काल सैंटर आप को लौटरी जीतने की खबर देते हैं और आप को अपने खाते में पैसे जमा करने के लिए कहते हैं.

क्रेडिट कार्ड अपडेट : फर्जी काल सैंटर आप को क्रेडिट कार्ड अपडेट करने के लिए कहते हैं और आप को अपने कार्ड की जानकारी देने के लिए मजबूर करते हैं.

नौकरी का औफर : फर्जी काल सैंटर आप को नौकरी का औफर देते हैं और आप को अपने खाते में पैसे जमा करने के लिए कहते हैं.

मैडिकल इंश्योरैंस : फर्जी काल सैंटर आप को मैडिकल इंश्योरैंस का औफर देते हैं और आप को अपने खाते में पैसे जमा करने के लिए कहते हैं.

पुलिस, सीबीआई काल : फर्जी काल सैंटर आप को पुलिस या सीबीआई से बताते हैं कि आप के खिलाफ केस दर्ज हुआ है और वे आप को अपने खाते से पैसे ट्रांसफर करने के लिए कहते हैं.

इन उदाहरणों से पता चलता है कि फर्जी काल सैंटर कितने खतरनाक हैं और लोगों को किस तरह से ठगते हैं, इसलिए हमें यह बात गांठ बांधने की जरूरत है कि डरना नहीं है और किसी लालच में नहीं आना है. किसी भी हालत में किसी को भी रुपए ट्रांसफर नहीं करने हैं.

अंधविश्वास की हद : बेटी की बलि

हमारा देश भारत ही है, जहां आज भी जादू और तंत्रमंत्र के नाम पर गैरों का ही नहीं, बल्कि अपनों का भी खून बहाया जा रहा है. इस का सीधा सा मतलब यह है कि पढ़ाई लिखाई के बावजूद इस देश के लोगों का पीछा अभी भी अंधविश्वास से नहीं छूटा है. इस के लिए अगर कोई कुसूरवार है, तो वह है हमारी सरकार और पढ़ाईलिखाई का सिस्टम. आइए, आज एक भयावह घटना से रूबरू होते हैं :

झारखंड के पलामू जिले से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है, जहां एक मां ने अपनी डेढ़ साल की बेटी की बलि दे कर अपनी ममता को ही दागदार कर दिया है. अपनी माली हालत सुधारने के नाम पर, तंत्रमंत्र के चक्कर में फंसी एक मां ने अपनी बेटी की हत्या कर दी और उस का कलेजा यानी लिवर तक खा लिया.

दरअसल, यह घटना अंधविश्वास और अनपढ़ता के बुरे असर का सुबूत है और हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे हम अपने समाज को इस काले अंधेरे से बाहर निकाल सकते हैं.

एक दिन गीता देवी नामक औरत ने अपनी नन्ही परी सी बेटी को ले कर पास के जंगल में जाने का फैसला किया, जहां उस ने पूजा की और बिना कपड़ों के डांस किया. इस के बाद उस ने धारदार चाकू से अपनी बेटी का गला रेत दिया, लाश के टुकड़े किए और फिर उस का कलेजा खा लिया.

यह घटना इतनी भयावह है कि हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या पैसा पाने के लिए एक मां अपनी बेटी की हत्या भी कर सकती है?

मानव बलि की खौफनाक सचाई

गीता देवी ने अपनी इस हैवानियत भरी हत्या के पीछे तंत्रमंत्र को वजह बताया है. उस के मुताबिक, उसे सपने में यह दिखा था कि अगर वह अपनी बेटी या पति की बलि देगी, तो उसे विशेष तंत्रविद्या हासिल होगी… और वह बिना सोचेसमझे यह कांड कर बैठी.

यह घटना एक बार फिर से यह साबित करती है कि अंधविश्वास और तंत्रमंत्र जैसी प्रथाएं समाज में कितनी खतरनाक हो सकती हैं. यह केवल एक बड़ा अपराध नहीं है, बल्कि समाज में फैले हुए अंधविश्वास और कुरीतियों का नतीजा भी है.

हमें अपने समाज को अंधविश्वास के चंगुल से छुड़ाने के लिए काम करना होगा और लोगों को पढ़ाना होगा, ताकि वे इन खतरनाक प्रथाओं से दूर रहें.

इस समस्या का समाधान पढ़ाईलिखाई और जागरूकता ही है. हमें अपने समाज में शांति और भाईचारा बनाए रखने के लिए काम करना होगा. यह घटना हमें याद दिलाती है कि कैसे अंधविश्वास और तंत्रमंत्र जैसी प्रथाएं समाज में खतरनाक हो सकती हैं.

दरअसल, ये प्रथाएं लोगों को गलत रास्ते पर ले जाती हैं और उन्हें अपराध करने के लिए उकसाती हैं. देश में अंधविश्वास और तंत्रमंत्र से जुड़ी कुछ घटनाएं इस तरह हैं :

-झारखंड के पलामू जिले में तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ कर एक औरत ने अपनी 2 साल की बेटी की बलि दे दी.

-ओडिशा के क्योंझर जिले में एक आदमी की हत्या कर दी गई.

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में अंधविश्वास के चलते एक आदमी की हत्या कर दी गई.

-उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक आदमी ने तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों से धोखाधड़ी की.

-बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक आदमी ने अंधविश्वास के फेर में फंस कर अपनी पत्नी की हत्या कर दी.

इन घटनाओं से यह साफ होता है कि अंधविश्वास और तंत्रमंत्र अभी भी हमारे समाज में एक बड़ी समस्या है, जिस के लिए सरकार और हर पढ़ेलिखे इनसान को जागरूकता मुहिम चलाने की जरूरत है.

एक दिन: तीन नेताओं के तीन बयान

आज हम देश के तीन बड़े नेताओं के बयान का विश्लेषण ले कर आए हैं. इन्हें पढ़समझ कर आप खुद अंदाजा लगाइए कि देश किस दिशा में जा रहा है. एक समय था जब देश के बड़े नेता सोच समझ कर जनता के बीच अपनी भावना व्यक्त करते थे. कहां गया वह समय और कहां जा रहा है हमारा भारत देश. पहला बयान है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का और दूसरा है गृह मंत्री अमित शाह का और तीसरा बयान है अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहिन…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार, 11 नवंबर, 2024 को आरोप लगाया कि कांग्रेस अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सामूहिक ताकत को तोड़ने की कोशिश कर रही है, ताकि उन के बीच विभाजन पैदा किया जा सके और उन की आवाज कमजोर की जा सके और अंततः उन के लिए आरक्षण समाप्त किया जा सके.

नरेंद्र मोदी ने ‘नमो एप’ के माध्यम से ‘मेरा बूथ, सब से मजबूत’ कार्यक्रम के तहत झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए कहा कि इसलिए मैं चार बार कहता रहता हूं कि एक रहेंगे, तो सेफ (सुरक्षित) रहेंगे. नरेंद्र मोदी ने झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन के पांच साल के शासन की विफलताओं को रेखांकित किया और कहा कि राज्य को प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए ‘भ्रष्टाचार, माफिया और कुशासन’ से मुक्त कराना होगा.

नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि झारखंड की जनता इस बार विधानसभा चुनाव में बदलाव को संकल्पित है और इस का सब से बड़ा कारण यह है कि सत्तारूढ़ गठबंधन ने राज्य की रोटी, बेटी और माटी पर वार किया है. उन्होंने कहा कि झारखंड इस बार बदलाव करने को संकल्पित हो गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कुछ ‘राष्ट्र विरोधी’ अपने निहित स्वार्थ के लिए समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने लोगों से उन्हें हराने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया. नरेंद्र मोदी ने गुजरात के खेड़ा जिले के चडताल में श्री स्वामीनारायण मंदिर की 200वीं वर्षगाठ पर आयोजित समारोह को डिजिटल तरीके से संबोधित किया.

पिछले पांच साल इन्होंने बड़ीबड़ी बातें कीं, लेकिन आज झारखंड के लोग देख रहे हैं कि इन के ज्यादातर वादे झूठे हैं. भाजपा झारखंड में ‘रोटी, बेटी और माटी’ के मुद्दे को जोरशोर से उठा रही है. इस के माध्यम से वह आदिवासी अस्मिता का सवाल
उठा कर बंगलादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासी महिलाओं का तथाकथित उत्पीड़न, धर्मांतरण, जमीन पर कब्जा और धोखा दे कर विवाह करने तथा इस के परिणामस्वरूप आदिवासियों की संख्या में लगातार कमी आने का मुद्दा उठा रही है .राज्य में झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की गठबंधन सरकार है.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने महसूस किया कि लोगों में भ्रष्टाचार और परिवारवाद को ले कर भी भारी गुस्सा है. उन्होंने कहा कि परिवारवादी पार्टियां, भ्रष्टाचारी तो होती ही हैं. साथ ही समाज के प्रतिभाशाली नौजवानों के रास्ते में सब से बड़ी दीवार होती हैं. झामुमो के परिवारवादियों ने कांग्रेस के ‘शाही परिवार’ से ऐसी गंदी चीजें सीखी हैं, जिस में उन्हें कुरसी और खजाना… इन दो चीजों की ही चिंता रहती है. नागरिकों की उन्हें परवाह हो नहीं होती है. उन्होंने कहा कि इसलिए इस बार के विधानसभा चुनाव में झामुमो गठबंधन की सत्ता से विदाई तय है.

समीक्षा करते हुए हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा है, वह दोतरफा है. यह कैसे भूल जाते हैं कि अगर आप किसी की तरफ एक उंगली उठाते हैं तो चार उंगलियां आप की तरफ भी होती हैं.

गृह मंत्री अमित शाह कहिन…

कांग्रेस को ‘डूबता जहाज’ करार देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार, 11 नवंबर, 2024 को कहा कि वे (कांग्रेस) चुनाव में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नहीं बचा सकती.

अमित शाह ने रांची जिले के तमार में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि ‘इंडिया’ गठबंधन ने झारखंड को बरबाद कर दिया. उन्होंने वादा किया कि चुनाव के बाद भाजपा यदि सत्ता में आई तो वह अगले पांच साल में इसे सब से अधिक समृद्ध राज्य बना देगी. उन्होंने आरोप लगाया कि झामुमो, कांग्रेस आदिवासियों को महज वोट बैंक समझती हैं, वे उन का सम्मान नहीं करती हैं. उन्होंने दावा किया कि घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की संख्या लगातार घटती जा रही है और ये घुसपैठिए झामुमोनीत (सत्तारूढ़) गठबंधन के वोट बैंक हैं.

कांग्रेस पर प्रहार करते हुए अमित शाह ने कहा कि राहुल गांधी की चार पीढ़ियां भी जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस नहीं ला सकती हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को कहा कि झारखंड में अगर भाजपा की सरकार बनती है, तो घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें राज्य से बाहर निकालने के अलावा उन के द्वारा हड़पी गई जमीन को वापस लेने के लिए एक समिति गठित की जाएगी.

गृह मंत्री के रूप में कांग्रेस पर अप्रत्यक्ष रूप से भी प्रहार किया जा सकता है, मगर जिस स्तर पर आ कर चार पीढ़ियां की बात जम्मूकश्मीर विधेयक 370 के संदर्भ में अमित शाह ने कही है, आप ही बताइए कि क्या वह शोभनीय है?

मल्लिकार्जुन खड़गे कहिन…

11 नवंबर, 2024, दिन सोमवार को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी बात कहते हुए बड़े बेचारे से लग रहे थे मगर उन्होंने जो कहा बड़ी बेबाकी से और बड़ा सच कहा है.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा विपक्ष को दबाने एवं निर्वाचित सरकारों को गिराने में विश्वास करती है. विधायकों की बकरियों की तरह खरीदफरोख्त की जाती है. उन्होंने नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर अडाणी और अंबानी के साथ मिल कर केंद्र सरकार चलाने का भी आरोप लगाया. उन्होंने योगी आदित्यनाथ को घेरते हुए कहा कि वे मुंह में राम, बगल में छुरी में विश्वास करते हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि मोदीजी सरकारें गिराने में विश्वास रखते हैं. वे विधायक खरीदते हैं. उन का काम विधायकों को बकरी के जैसे अपने पास रख लेना, पालना और फिर बाद में काट कर खाना है.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि मोदी और शाह ने विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई और अन्य केंद्रीय एजेंसियों को तैनात कर दिया है, लेकिन हम डरते नहीं हैं. हम ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, अपने प्राणों की आहुति दी.

उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी, शाह, अडाणी और अंबानी देश चला रहे हैं, जबकि राहुल गांधी और मैं संविधान और लोकतंत्र को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कटाक्ष किया कि मोदी आदतन झूठे हैं, जो कभी अपने वादे पूरे नहीं करते.

समीक्षा करें तो साफ है कि तीनों ही बयानों को पढ़ने के बाद आप देखेंगे की नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बयान अतिरेकपूर्ण हैं, वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान आत्मरक्षात्मक है. इन तीनों ही बयानों से ऐसा लगता है कि देश एक राजनीतिक संक्रमणकाल से गुजर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता.

BB18 ‘डौली चायवाला’ ने किया गर्लफ्रेंड का खुलासा, कमाई जानकर उड़ जाएंगे होश

बिग बौस 18 (Bigg Boss 18) हर नए एपिसोड के साथ और भी रोमांचक होता जा रहा है. घर में किसी का लव एंगल बनता दिख रहा है तो कोई आपस में लडता झगड़ता नजर आ रहा है. इसी बीच डौली चायवाला (Dolly Chaiwala) की बिग बौस में एंट्री हो चुकी है. सोशल मीडिया से पौपुलर हुआ यह चायवाला पहली बार माइक्रोसौफ्ट के संस्‍थापक बिल गेट के साथ इंटरनेट पर वीडियो शेयर चर्चा में आए थे. इन्होंने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर इस बारे में शेयर किया था. जिस वजह से उन्हे बिग बौस में एंट्री मिली है.

 

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इसके अलावा बिग बौस में एंट्री लेते ही चायवाला ने पहले चाय बनाई और सनसनी मचा दी. बाद में तजिंदर पाल सिंह बग्गा (Tjinderpal Singh Bagga) के साथ अपने फेमस अंदाज में उन्हे चाय पिलाई. ये मजेदार वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ है. इस वीडियो की खास बात ये है कि डौली वीडियो में नाटकीय ढंग से दूध को पैन में डालते हुए दिखाई देते है. बाकि घरवाले उनके लिए चीयर करते है, जबकि बिग बौस के सेट पर लौटे सलमान खान इसे देखकर हैरान हो जाते है.

हाल में अब डौली चायवाला ने सलमान खान के सामने ऐसी बात कह दी कि सलमान खान भी होश खो बैठे है. उन्होंने अपने रिलेशनशिप के बारे में खुलासा किया है और बताया कि उनकी गर्लफ्रेंड हैं  और 3 साल से साथ रहे हैं. डौली चायवाला की गर्लफ़्रेंड का नाम मनजीत कौर है. मनजीत, ईस्ट दिल्ली के निर्माण विहार में एक स्टौल चलाती हैं. डौली चायवाला से मिलने के बाद मनजीत को लोगों का खूब प्यार मिल रहा है और उनके स्टौल पर पहले से ज़्यादा लोग आ रहे हैं.

कौन है डौली चायवाला

डौली, महाराष्ट्र (Maharshtra) के नागपुर (Nagpur) का रहने वाला  हैं. उनका असली नाम सुनील पाटिल है. चाय बनाने और पिलाने के अपने अनोखे अंदाज़ के लिए वह इंटरनेट सेंसेशन बन गए हैं. बता दें कि नागपुर के सदर इलाके में पुराने वीसीए स्टेडियम के पास उनकी चाय की दुकान हैं. डौली चायवाला की दुकान को दुनिया ‘डौली की टपरी’ के नाम से जानती है. इनका चाय बनाने का अंदाज़ लोगों को काफ़ी पसंद है. बिल गेट्स के साथ चाय पीने के बाद डौली चायवाला रातों-रात स्टार बन गए थे.

इनका यह वीडियो इंटरनेट (Internet) पर वायरल हुआ था और उन्हें लाखों बार देखा जा चुका है. ये दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के शौकीन हैं और उन्हें एक्शन मूवीज पसंद  है. ये अक्सर चाय परोसते हैं, इस दौरान वे फ़ंकी गोल्डन गौगल्स, गोल्डन चेन और आकर्षक हेयरस्टाइल भी रखना पसंद करते हैं.

डौली चायवाला की कुल नेटवर्थ

डौली चायवाला की कुल संपत्ति की बात करे तो, 10 लाख से ज्यादा है जहां उनकी एक कप चाय की कीमत 7 रुपये है, तो वहीं उनकी हर रोज 2450 से रुपय की कमाई हो जाती है. कभी-कभी ये आकड़ा ज्यादा भी हो जाता है. हर दिन 350 से 500 कप चाय बिक जाती है. बिल गेट्स को चाय पिलाने के बाद डौली चायवाला की इनकम और भी ज्यादा बढ़ गई है. वे सेंसेशन बन गए. इतना ही नहीं उन्होंने देशदुनिया में भी चाय बनाकर पिलाई है और आज बिग बौस 18 के सेट में कमाल दिखाते नजर आ रहे है. जहां नेशनल टीवी पर जनता उनके हुनर को देख रही है.

दर्द : जिंदगी के उतार चढ़ावों को झेलती कनीजा

कनीजा बी करीब 1 घंटे से परेशान थीं. उन का पोता नदीम बाहर कहीं खेलने चला गया था. उसे 15 मिनट की खेलने की मुहलत दी गई थी, लेकिन अब 1 घंटे से भी ऊपर वक्त गुजर गया था. वह घर आने का नाम ही नहीं ले रहा था.

कनीजा बी को आशंका थी कि वह महल्ले के आवारा बच्चों के साथ खेलने के लिए जरूर कहीं दूर चला गया होगा.

वह नदीम को जीजान से चाहतीं. उन्हें उस का आवारा बच्चों के साथ घर से जाना कतई नहीं सुहाता था.

अत: वह चिंताग्रस्त हो कर भुनभुनाने लगी थीं, ‘‘कितना ही समझाओ, लेकिन ढीठ मानता ही नहीं. लाख बार कहा कि गली के आवारा बच्चों के साथ मत खेला कर, बिगड़ जाएगा, पर उस के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. आने दो ढीठ को. इस बार वह मरम्मत करूंगी कि तौबा पुकार उठेगा. 7 साल का होने को आया है, पर जरा अक्ल नहीं आई. कोई दुर्घटना हो सकती है, कोई धोखा हो सकता है…’’

कनीजा बी का भुनभुनाना खत्म हुआ ही था कि नदीम दौड़ता हुआ घर में आ गया और कनीजा की खुशामद करता हुआ बोला, ‘‘दादीजान, कुलफी वाला आया है. कुलफी ले दीजिए न. हम ने बहुत दिनों से कुलफी नहीं खाई. आज हम कुलफी खाएंगे.’’

‘‘इधर आ, तुझे अच्छी तरह कुलफी खिलाती हूं,’’ कहते हुए कनीजा बी नदीम पर अपना गुस्सा उतारने लगीं. उन्होंने उस के गाल पर जोर से 3-4 तमाचे जड़ दिए.

नदीम सुबकसुबक कर रोने लगा. वह रोतेरोते कहता जाता, ‘‘पड़ोस वाली चचीजान सच कहती हैं. आप मेरी सगी दादीजान नहीं हैं, तभी तो मुझे इस बेदर्दी से मारती हैं.

‘‘आप मेरी सगी दादीजान होतीं तो मुझ पर ऐसे हाथ न उठातीं. तब्बो की दादीजान उसे कितना प्यार करती हैं. वह उस की सगी दादीजान हैं न. वह उसे उंगली भी नहीं छुआतीं.

‘‘अब मैं इस घर में नहीं रहूंगा. मैं भी अपने अम्मीअब्बू के पास चला जाऊंगा. दूर…बहुत दूर…फिर मारना किसे मारेंगी. ऊं…ऊं…ऊं…’’ वह और जोरजोर से सुबकसुबक कर रोने लगा.

नदीम की हृदयस्पर्शी बातों से कनीजा बी को लगा, जैसे किसी ने उन के दिल पर नश्तर चला दिया हो. अनायास ही उन की आंखें छलक आईं. वह कुछ क्षणों के लिए कहीं खो गईं. उन की आंखों के सामने उन का अतीत एक चलचित्र की तरह आने लगा.

जब वह 3 साल की मासूम बच्ची थीं, तभी उन के सिर से बाप का साया उठ गया था. सभी रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया था. किसी ने भी उन्हें अंग नहीं लगाया था.

मां अनपढ़ थीं और कमाई का कोई साधन नहीं था, लेकिन मां ने कमर कस ली थी. वह मेहनतमजदूरी कर के अपना और अपनी बेटी का पेट पालने लगी थीं. अत: कनीजा बी के बचपन से ले कर जवानी तक के दिन तंगदस्ती में ही गुजरे थे.

तंगदस्ती के बावजूद मां ने कनीजा बी की पढ़ाईलिखाई की ओर खासा ध्यान दिया था. कनीजा बी ने भी अपनी बेवा, बेसहारा मां के सपनों को साकार करने के लिए पूरी लगन व मेहनत से प्रथम श्रेणी में 10वीं पास की थी और यों अपनी तेज बुद्धि का परिचय दिया था.

मैट्रिक पास करते ही कनीजा बी को एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. अत: जल्दी ही उन के घर की तंगदस्ती खुशहाली में बदलने लगी थी.

कनीजा बी एक सांवलीसलोनी एवं सुशील लड़की थीं. उन की नौकरी लगने के बाद जब उन के घर में खुशहाली आने लगी थी तो लोगों का ध्यान उन की ओर जाने लगा था. देखते ही देखते शादी के पैगाम आने लगे थे.

मुसीबत यह थी कि इतने पैगाम आने के बावजूद, रिश्ता कहीं तय नहीं हो रहा था. ज्यादातर लड़कों के अभिभावकों को कनीजा बी की नौकरी पर आपत्ति थी.

वे यह भूल जाते थे कि कनीजा बी के घर की खुशहाली का राज उन की नौकरी में ही तो छिपा है. उन की एक खास शर्त यह होती कि शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी, लेकिन कनीजा बी किसी भी कीमत पर लगीलगाई अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थीं.

कनीजा बी पिता की असमय मृत्यु से बहुत बड़ा सबक सीख चुकी थीं. अर्थोपार्जन की समस्या ने उन की मां को कम परेशान नहीं किया था. रूखेसूखे में ही बचपन से जवानी तक के दिन बीते थे. अत: वह नौकरी छोड़ कर किसी किस्म का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थीं.

कनीजा बी का खयाल था कि अगर शादी के बाद उन के पति को कुछ हो गया तो उन की नौकरी एक बहुत बड़े सहारे के रूप में काम आ सकती थी.

वैसे भी पतिपत्नी दोनों के द्वारा अर्थोपार्जन से घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी, जिंदगी मजे में गुजर सकती थी.

देखते ही देखते 4-5 साल का अरसा गुजर गया था और कनीजा बी की शादी की बात कहीं पक्की नहीं हो सकी थी. उन की उम्र भी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. अत: शादी की बात को ले कर मांबेटी परेशान रहने लगी थीं.

एक दिन पड़ोस के ही प्यारे मियां आए थे. वह उसी शहर के दूसरे महल्ले के रशीद का रिश्ता कनीजा बी के लिए लाए थे. उन के साथ एक महिला?भी थीं, जो स्वयं को रशीद की?भाभी बताती थीं.

रशीद एक छोटे से निजी प्रतिष्ठान में लेखाकार था और खातेपीते घर का था. कनीजा बी की नौकरी पर उसे कोई आपत्ति नहीं थी.

महल्लेपड़ोस वालों ने कनीजा बी की मां पर दबाव डाला था कि उस रिश्ते को हाथ से न जाने दें क्योंकि रिश्ता अच्छा है. वैसे भी लड़कियों के लिए अच्छे रिश्ते मुश्किल से आते हैं. फिर यह रिश्ता तो प्यारे मियां ले कर आए थे.

कनीजा बी की मां ने महल्लेपड़ोस के बुजुर्गों की सलाह मान कर कनीजा बी के लिए रशीद से रिश्ते की हामी भर दी थी.

कनीजा बी अपनी शादी की खबर सुन कर मारे खुशी के झूम उठी थीं. वह दिनरात अपने सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना करती रहती थीं.

और एक दिन वह घड़ी भी आ गई, जब कनीजा बी की शादी रशीद के साथ हो गई और वह मायके से विदा हो गईं. लेकिन ससुराल पहुंचते ही इस बात ने उन के होश उड़ा दिए कि जो महिला स्वयं को रशीद की भाभी बता रही थी, वह वास्तव में रशीद की पहली बीवी थी.

असलियत सामने आते ही कनीजा बी का सिर चकराने लगा. उन्हें लगा कि उन के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है और उन्हें फंसाया गया है. प्यारे मियां ने उन के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया था. वह मन ही मन तड़प कर रह गईं.

लेकिन जल्दी ही रशीद ने कनीजा बी के समक्ष वस्तुस्थिति स्पष्ट कर दी, ‘‘बेगम, दरअसल बात यह थी कि शादी के 7 साल बाद भी जब हलीमा बी मुझे कोई औलाद नहीं दे सकी तो मैं औलाद के लिए तरसने लगा.

‘हम दोनों पतिपत्नी ने किसकिस डाक्टर से इलाज नहीं कराया, क्याक्या कोशिशें नहीं कीं, लेकिन नतीजा शून्य रहा. आखिर, हलीमा बी मुझ पर जोर देने लगी कि मैं दूसरी शादी कर लूं. औलाद और मेरी खुशी की खातिर उस ने घर में सौत लाना मंजूर कर लिया. बड़ी ही अनिच्छा से मुझे संतान सुख की खातिर दूसरी शादी का निर्णय लेना पड़ा.

‘मैं अपनी तनख्वाह में 2 बीवियों का बोझ उठाने के काबिल नहीं था. अत: दूसरी बीवी का चुनाव करते वक्त मैं इस बात पर जोर दे रहा था कि अगर वह नौकरी वाली हो तो बात बन सकती है. जब हमें, प्यारे मियां के जरिए तुम्हारा पता चला तो बात बनाने के लिए इस सचाई को छिपाना पड़ा कि मैं शादीशुदा हूं.

‘मैं झूठ नहीं बोलता. मैं संतान सुख की प्राप्ति की उत्कट इच्छा में इतना अंधा हो चुका था कि मुझे तुम लोगों से अपने विवाहित होने की सचाई छिपाने में कोई संकोच नहीं हुआ.

‘मैं अब महसूस कर रहा हूं कि यह अच्छा नहीं हुआ. सचाई तुम्हें पहले ही बता देनी चाहिए थी. लेकिन अब जो हो गया, सो हो गया.

‘वैसे देखा जाए तो एक तरह से मैं तुम्हारा गुनाहगार हुआ. बेगम, मेरे इस गुनाह को बख्श दो. मेरी तुम से गुजारिश है.’

कनीजा बी ने बहुत सोचविचार के बाद परिस्थिति से समझौता करना ही उचित समझा था, और वह अपनी गृहस्थी के प्रति समर्पित होती चली गई थीं.

कनीजा बी की शादी के बाद डेढ़ साल का अरसा गुजर गया था, लेकिन उन के भी मां बनने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस के विपरीत हलीमा बी में ही मां बनने के लक्षण दिखाई दे रहे थे. डाक्टरी परीक्षण से भी यह बात निश्चित हो गई थी कि हलीमा बी सचमुच मां बनने वाली हैं.

हलीमा बी के दिन पूरे होते ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, लेकिन बच्चा था कि बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहा था. आखिर, आपरेशन द्वारा हलीमा बी के बेटे का जन्म हुआ. लेकिन हलीमा बी की हालत नाजुक हो गई. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद वह बच नहीं सकी.

हलीमा बी की अकाल मौत से उस के बेटे गनी के लालनपालन की संपूर्ण जिम्मेदारी कनीजा बी पर आन पड़ी. अपनी कोख से बच्चा जने बगैर ही मातृत्व का बोझ ढोने के लिए कनीजा बी को विवश हो जाना पड़ा. उन्होंने उस जिम्मेदारी से दूर भागना उचित नहीं समझा. आखिर, गनी उन के पति की ही औलाद था.

रशीद इस बात का हमेशा खयाल रखा करता था कि उस के व्यवहार से कनीजा बी को किसी किस्म का दुख या तकलीफ न पहुंचे, वह हमेशा खुश रहें, गनी को मां का प्यार देती रहें और उसे किसी किस्म की कमी महसूस न होने दें.

कनीजा बी भी गनी को एक सगे बेटे की तरह चाहने लगीं. वह गनी पर अपना पूरा प्यार उड़ेल देतीं और गनी भी ‘अम्मीअम्मी’ कहता हुआ उन के आंचल से लिपट जाता.

अब गनी 5 साल का हो गया था और स्कूल जाने लगा था. मांबाप बेटे के उज्ज्वल भविष्य को ले कर सपना बुनने लगे थे.

इसी बीच एक हादसे ने कनीजा बी को अंदर तक तोड़ कर रख दिया.

वह मकर संक्रांति का दिन था. रशीद अपने चंद हिंदू दोस्तों के विशेष आग्रह पर उन के साथ नदी पर स्नान करने चला गया. लेकिन रशीद तैरतेतैरते एक भंवर की चपेट में आ कर अपनी जान गंवा बैठा.

रशीद की असमय मौत से कनीजा बी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन उन्होंने साहस का दामन नहीं छोड़ा.

उन्होंने अपने मन में एक गांठ बांध ली, ‘अब मुझे अकेले ही जिंदगी का यह रेगिस्तानी सफर तय करना है. अब और किसी पुरुष के संग की कामना न करते हुए मुझे अकेले ही वक्त के थपेड़ों से जूझना है.

‘पहला ही शौहर जिंदगी की नाव पार नहीं लगा सका तो दूसरा क्या पार लगा देगा. नहीं, मैं दूसरे खाविंद के बारे में सोच भी नहीं सकती.

‘फिर रशीद की एक निशानी गनी के रूप में है. इस का क्या होगा? इसे कौन गले लगाएगा? यह यतीम बच्चे की तरह दरदर भटकता फिरेगा. इस का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. मेरे अलावा इस का भार उठाने वाला भी तो कोई नहीं.

‘इस के नानानानी, मामामामी कोई भी तो दिल खोल कर नहीं कहता कि गनी का बोझ हम उठाएंगे. सब सुख के साथी?हैं.

‘मैं गनी को लावारिस नहीं बनने दूंगी. मैं भी तो इस की कुछ लगती हूं. मैं सौतेली ही सही, मगर इस की मां हूं. जब यह मुझे प्यार से अम्मी कह कर पुकारता है तब मेरे दिल में ममता कैसे उमड़ आती है.

‘नहींनहीं, गनी को मेरी सख्त जरूरत है. मैं गनी को अपने से जुदा नहीं कर सकती. मेरी तो कोई संतान है ही नहीं. मैं इसे ही देख कर जी लूंगी.

‘मैं गनी को पढ़ालिखा कर एक नेक इनसान बनाऊंगी. इस की जिंदगी को संवारूंगी. यही अब जिंदगी का मकसद है.’

और कनीजा बी ने गनी की खातिर अपना सुखचैन लुटा दिया, अपना सर्वस्व त्याग दिया. फिर उसे एक काबिल और नेक इनसान बना कर ही दम लिया.

गनी पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया.

उस दिन कनीजा बी कितनी खुश थीं जब गनी ने अपनी पहली तनख्वाह ला कर उन के हाथ पर रख दी. उन्हें लगा कि उन का सपना साकार हो गया, उन की कुरबानी रंग लाई. अब उन्हें मौत भी आ जाए तो कोई गम नहीं.

फिर गनी की शादी हो गई. वह नदीम जैसे एक प्यारे से बेटे का पिता भी बन गया और कनीजा बी दादी बन गईं.

कनीजा बी नदीम के साथ स्वयं भी खेलने लगतीं. वह बच्चे के साथ बच्चा बन जातीं. उन्हें नदीम के साथ खेलने में बड़ा आनंद आता. नदीम भी मां से ज्यादा दादी को चाहने लगा था.

उस दिन ईद थी. कनीजा बी का घर खुशियों से गूंज रहा था. ईद मिलने आने वालों का तांता लगा हुआ था.

गनी ने अपने दोस्तों तथा दफ्तर के सहकर्मियों के लिए ईद की खुशी में खाने की दावत का विशेष आयोजन किया था.

उस दिन कनीजा बी बहुत खुश थीं. घर में चहलपहल देख कर उन्हें ऐसा लग रहा था मानो दुनिया की सारी खुशियां उन्हीं के घर में सिमट आई हों.

गनी की ससुराल पास ही के शहर में थी. ईद के दूसरे दिन वह ससुराल वालों के विशेष आग्रह पर अपनी बीवी और बेटे के साथ स्कूटर पर बैठ कर ईद की खुशियां मनाने ससुराल की ओर चल पड़ा था.

गनी तेजी से रास्ता तय करता हुआ बढ़ा जा रहा था कि एक ट्रक वाले ने गाय को बचाने की कोशिश में स्टीयरिंग पर अपना संतुलन खो दिया. परिणामस्वरूप उस ने गनी के?स्कूटर को चपेट में ले लिया. पतिपत्नी दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए और डाक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद बचाए न जा सके.

लेकिन उस जबरदस्त दुर्घटना में नन्हे नदीम का बाल भी बांका नहीं हुआ था. वह टक्कर लगते ही मां की गोद से उछल कर सीधा सड़क के किनारे की घनी घास पर जा गिरा था और इस तरह साफ बच गया था.

वक्त के थपेड़ों ने कनीजा बी को अंदर ही अंदर तोड़ दिया था. मुश्किल यह थी कि वह अपनी व्यथा किसी से कह नहीं पातीं. उन्हें मालूम था कि लोगों की झूठी हमदर्दी से दिल का बोझ हलका होने वाला नहीं.

उन्हें लगता कि उन की शादी महज एक छलावा थी. गृहस्थ जीवन का कोई भी तो सुख नहीं मिला था उन्हें. शायद वह दुख झेलने के लिए ही इस दुनिया में आई थीं.

रशीद तो उन का पति था, लेकिन हलीमा बी तो उन की अपनी नहीं थी. वह तो एक धोखेबाज सौतन थी, जिस ने छलकपट से उन्हें रशीद के गले मढ़ दिया था.

गनी कौन उन का अपना खून था. फिर भी उन्होंने उसे अपने सगे बेटे की तरह पालापोसा, बड़ा किया, पढ़ाया- लिखाया, किसी काबिल बनाया.

कनीजा बी गनी के बेटे का भी भार उठा ही रही थीं. नदीम का दर्द उन का दर्द था. नदीम की खुशी उन की खुशी थी. वह नदीम की खातिर क्या कुछ नहीं कर रही थीं. कनीजा बी नदीम को डांटतीमारती थीं तो उस के भले के लिए, ताकि वह अपने बाप की तरह एक काबिल इनसान बन जाए.

‘लेकिन ये दुनिया वाले जले पर नमक छिड़कते हैं और मासूम नदीम के दिलोदिमाग में यह बात ठूंसठूंस कर भरते हैं कि मैं उस की सगी दादी नहीं हूं. मैं ने तो नदीम को कभी गैर नहीं समझा. नहीं, नहीं, मैं दुनिया वालों की खातिर नदीम का भविष्य कभी दांव पर नहीं लगाऊंगी.’ कनीजा बी ने यादों के आंसू पोंछते हुए सोचा, ‘दुनिया वाले मुझे सौतेली दादी समझते हैं तो समझें. आखिर, मैं उस की सौतेली दादी ही तो हूं, लेकिन मैं नदीम को काबिल इनसान बना कर ही दम लूंगी. जब नदीम समझदार हो जाएगा तो वह जरूर मेरी नेकदिली को समझने लगेगा.

‘गनी को भी लोगों ने मेरे खिलाफ कम नहीं भड़काया था, लेकिन गनी को मेरे व्यवहार से जरा भी शंका नहीं हुई थी कि मैं उस की बुराई पर अमादा हूं.

अब नदीम का रोना भी बंद हो चुका था. उस का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया था. उस ने चोर नजरों से दादी की ओर देखा. दादी की लाललाल आंखों और आंखों में भरे हुए आंसू देख कर उस से चुप न रहा गया. वह बोल उठा, ‘‘दादीजान, पड़ोस वाली चचीजान अच्छी नहीं हैं. वह झूठ बोलती हैं. आप मेरी सौतेली नहीं, सगी दादीजान हैं. नहीं तो आप मेरे लिए यों आंसू न बहातीं.

‘‘दादीजान, मैं जानता हूं कि आप को जोरों की भूख लगी है, अच्छा, पहले आप खाना तो खा लीजिए. मैं भी आप का साथ देता हूं.’’

नदीम की भोली बातों से कनीजा बी मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘बड़ा शरीफ बन रहा है रे तू. ऐसे क्यों नहीं कहता. भूख मुझे नहीं, तुझे लगी है.’’

‘‘अच्छा बाबा, भूख मुझे ही लगी है. अब जरा जल्दी करो न.’’

‘‘ठीक है, लेकिन पहले तुझे यह वादा करना होगा कि फिर कभी तू अपने मुंह से अपने अम्मीअब्बू के पास जाने की बात नहीं करेगा.’’

‘‘लो, कान पकड़े. मैं वादा करता हूं कि अम्मीअब्बू के पास जाने की बात कभी नहीं करूंगा. अब तो खुश हो न?’’

कनीजा बी के दिल में बह रही प्यार की सरिता में बाढ़ सी आ गई. उन्होंने नदीम को खींच कर झट अपने सीने से लगा लिया.

अब वह महसूस कर रही थीं, ‘दुनिया वाले मेरा दर्द समझें न समझें, लेकिन नदीम मेरा दर्द समझने लगा है.’

गनी ने अपने दोस्तों तथा दफ्तर के सहकर्मियों के लिए ईद की खुशी में खाने की दावत का विशेष आयोजन किया था. उस दिन कनीजा बी बहुत खुश थीं. घर में चहलपहल देख कर उन्हें ऐसा लग रहा था मानो दुनिया की सारी खुशियां उन्हीं के घर में सिमट आई हों.

गनी की ससुराल पास ही के शहर में थी. ईद के दूसरे दिन वह ससुराल वालों के विशेष आग्रह पर अपनी बीवी और बेटे के साथ स्कूटर पर बैठ कर ईद की खुशियां मनाने ससुराल की ओर चल पड़ा था. गनी तेजी से रास्ता तय करता हुआ बढ़ा जा रहा था कि एक ट्रक वाले ने गाय को बचाने की कोशिश में स्टीयरिंग पर अपना संतुलन खो दिया. परिणामस्वरूप उस ने गनी के?स्कूटर को चपेट में ले लिया. पतिपत्नी दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए और डाक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद बचाए न जा सके.

लेकिन उस जबरदस्त दुर्घटना में नन्हे नदीम का बाल भी बांका नहीं हुआ था. वह टक्कर लगते ही मां की गोद से उछल कर सीधा सड़क के किनारे की घनी घास पर जा गिरा था और इस तरह साफ बच गया था. वक्त के थपेड़ों ने कनीजा बी को अंदर ही अंदर तोड़ दिया था. मुश्किल यह थी कि वह अपनी व्यथा किसी से कह नहीं पातीं. उन्हें मालूम था कि लोगों की झूठी हमदर्दी से दिल का बोझ हलका होने वाला नहीं.

उन्हें लगता कि उन की शादी महज एक छलावा थी. गृहस्थ जीवन का कोई भी तो सुख नहीं मिला था उन्हें. शायद वह दुख झेलने के लिए ही इस दुनिया में आई थीं. रशीद तो उन का पति था, लेकिन हलीमा बी तो उन की अपनी नहीं थी. वह तो एक धोखेबाज सौतन थी, जिस ने छलकपट से उन्हें रशीद के गले मढ़ दिया था.

गनी कौन उन का अपना खून था. फिर भी उन्होंने उसे अपने सगे बेटे की तरह पालापोसा, बड़ा किया, पढ़ाया- लिखाया, किसी काबिल बनाया. कनीजा बी गनी के बेटे का भी भार उठा ही रही थीं. नदीम का दर्द उन का दर्द था. नदीम की खुशी उन की खुशी थी. वह नदीम की खातिर क्या कुछ नहीं कर रही थीं. कनीजा बी नदीम को डांटतीमारती थीं तो उस के भले के लिए, ताकि वह अपने बाप की तरह एक काबिल इनसान बन जाए.

‘लेकिन ये दुनिया वाले जले पर नमक छिड़कते हैं और मासूम नदीम के दिलोदिमाग में यह बात ठूंसठूंस कर भरते हैं कि मैं उस की सगी दादी नहीं हूं. मैं ने तो नदीम को कभी गैर नहीं समझा. नहीं, नहीं, मैं दुनिया वालों की खातिर नदीम का भविष्य कभी दांव पर नहीं लगाऊंगी.’ कनीजा बी ने यादों के आंसू पोंछते हुए सोचा, ‘दुनिया वाले मुझे सौतेली दादी समझते हैं तो समझें. आखिर, मैं उस की सौतेली दादी ही तो हूं, लेकिन मैं नदीम को काबिल इनसान बना कर ही दम लूंगी. जब नदीम समझदार हो जाएगा तो वह जरूर मेरी नेकदिली को समझने लगेगा. ‘गनी को भी लोगों ने मेरे खिलाफ कम नहीं भड़काया था, लेकिन गनी को मेरे व्यवहार से जरा भी शंका नहीं हुई थी कि मैं उस की बुराई पर अमादा हूं.

अब नदीम का रोना भी बंद हो चुका था. उस का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया था. उस ने चोर नजरों से दादी की ओर देखा. दादी की लाललाल आंखों और आंखों में भरे हुए आंसू देख कर उस से चुप न रहा गया. वह बोल उठा, ‘‘दादीजान, पड़ोस वाली चचीजान अच्छी नहीं हैं. वह झूठ बोलती हैं. आप मेरी सौतेली नहीं, सगी दादीजान हैं. नहीं तो आप मेरे लिए यों आंसू न बहातीं. ‘‘दादीजान, मैं जानता हूं कि आप को जोरों की भूख लगी है, अच्छा, पहले आप खाना तो खा लीजिए. मैं भी आप का साथ देता हूं.’’

नदीम की भोली बातों से कनीजा बी मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘बड़ा शरीफ बन रहा है रे तू. ऐसे क्यों नहीं कहता. भूख मुझे नहीं, तुझे लगी है.’’

‘‘अच्छा बाबा, भूख मुझे ही लगी है. अब जरा जल्दी करो न.’’ ‘‘ठीक है, लेकिन पहले तुझे यह वादा करना होगा कि फिर कभी तू अपने मुंह से अपने अम्मीअब्बू के पास जाने की बात नहीं करेगा.’’

‘‘लो, कान पकड़े. मैं वादा करता हूं कि अम्मीअब्बू के पास जाने की बात कभी नहीं करूंगा. अब तो खुश हो न?’’ कनीजा बी के दिल में बह रही प्यार की सरिता में बाढ़ सी आ गई. उन्होंने नदीम को खींच कर झट अपने सीने से लगा लिया.

अब वह महसूस कर रही थीं, ‘दुनिया वाले मेरा दर्द समझें न समझें, लेकिन नदीम मेरा दर्द समझने लगा है.’

मैं सैक्स एंजौय नहीं कर पाती, क्या करूं?

सवाल
मैं 48 साल की हूं. सैक्स की इच्छा होती है पर गीलापन कम होता है. ऐसा नहीं है कि मैं चरम पर नहीं पहुंचती. बताएं मैं क्या करूं?
संभव है कि यह समस्या मेनोपौज की वजह से हो रही हो, क्योंकि मेनोपौज के बाद शरीर में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन की कमी हो जाती है और इस से भी यह समस्या हो जाती है.

 

जवाब
शरीर में ऐस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए आप आहार संबंधी जरूरतों पर ध्यान दें. खाने में मौसमी फल, हरी सब्जियां, दूध, पनीर आदि का नियमित सेवन करें और नियमित टहलें, व्यायाम करें.
सैक्स करते वक्त आप फिलहाल क्रीम का प्रयोग कर सकती हैं. इस से चिकनाई बनी रहेगी और सैक्स में आनंद भी आएगा. बेहतर है कि सैक्स से पहले फोरप्ले करें. इस से भी काफी हद तक सूखेपन की समस्या से बचा जा सकता है.
अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सरकारी नौकरी का मोह

‘‘अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम,’’ संत दास मलूक की यह पंक्ति आज के वक्त में बिलकुल ठीक बैठती है. खासकर बात जब सरकारी नौकरी की हो. देश में लाखों लोग सरकारी नौकरी में लगे हुए हैं जिन में कई लाख केंद्र सरकार में नौकरी कर रहे हैं और बाकी लोग विभिन्न राज्यों में. केंद्र और राज्य सरकारें इन कर्मचारियों पर अरबों रुपए हर माह खर्च करती हैं, लेकिन सरकार के खर्च के अनुरूप सरकारी मुलाजिम काम नहीं करते.

21वीं सदी में भारत जैसे विकासशील देश में हर युवा की यही ख्वाहिश होती है कि पढ़लिख कर किसी भी तरीके से उसे सरकारी नौकरी का तमगा मिल जाए. दुनिया में जहां विकसित देश के युवाओं का रुझान प्राइवेट जौब की तरफ है, वहीं हमारे देश में सरकारी नौकरी का मोह हर किसी को है. सरकारी नौकरी आज के दौर में भारत के नौजवानों की पहली पसंद बनी होने की कई वजहें हैं.

बेरोजगारी का आलम

आज के युवाओं की सीधी सी सोच है कि किसी भी तरह 12वीं पास या ज्यादा से ज्यादा ग्रेजुएशन कर के सरकारी नौकरी की तलाश में लग जाएं. देश में बेरोजगारी बहुत ज्यादा है और नौकरियां काफी कम. पहले तो सरकारी नौकरियां निकलती नहीं, अगर निकलती भी हैं तो पदों की संख्या काफी कम रहती है जबकि आवेदक काफी होते हैं.

society

देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में क्लर्क की वैकेंसी में 250 से अधिक आवेदन पीएचडीधारकों ने भेजे थे. इस बात से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए वे किस कदर बेचैन हैं.

सरकारी नौकरी में सिर्फ एक ही पेंच है और वह है आप को किसी भी तरह एक बार नौकरी मिल जाए, फिर तो आप राजा बन गए. जो लोग सरकार की तरफ से सारी सुखसुविधाओं का भोग करते हैं, उन में से ज्यादातर लोग कामचोरी करते हैं. काम करने का भी उन का अलग अंदाज होता है. हर काम के लिए चढ़ावा (रिश्वत) लेते हैं. चढ़ावा भी काम के हिसाब से रहता है. अगर  छोटा काम तो कम पैसों में बात बन जाती है, वरना मोटी रकम अदा करनी पड़ती है. यह हाल देश के लगभग सभी विभागों का है.

बात चाहे लाइसैंस बनवाने की हो, वोटर आईडी कार्ड की हो, पैंशन की हो या किसी भी प्रकार की, हर जगह कुछ ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो बिना रिश्वत के आप की फाइल को आगे नहीं बढ़ाते. सरकारी नौकरी का सब से ज्यादा सुख प्राथमिक स्कूल के शिक्षक भोग रहे हैं. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के स्कूलों का सब से बुरा हाल है. वहां के स्कूलों में शिक्षक कम हैं और जो हैं भी, वे पढ़ाते नहीं.

उत्तर प्रदेश में तो शिक्षक कईकई दिनों तक स्कूलों की शक्ल भी नहीं देखते. सरकार ने तमाम तरीके अपना लिए हैं, लेकिन शिक्षकों की कामचोरी पर अभी तक लगाम नहीं लग पाई. सरकारी नौकरी क्यों लोगों की पहली पसंद बनी हुई है? आखिर क्या कारण है कि लाखों रुपए के पैकेज को छोड़ कर सरकारी नौकरी करने की चाहत आज भी कम नहीं हो पा रही? इस के एक नहीं, बल्कि कई कारण हैं, जिन के चलते युवा सरकारी नौकरी पाने के पीछे कई साल लगा देते हैं.

सरकारी बनाम प्राइवेट जौब

  • प्राइवेट नौकरी में आप को अपने बौस के सीट से उठने का इंतजार होता है और देररात तक औफिस में रुक कर बौस के मेलमैसेज आने का इंतजार करना पड़ता है. मेल नहीं तो कभी किसी और जरूरी काम से रुकना पड़ता है. वहीं, सरकारी नौकरी में ऐसा कोई चक्कर ही नहीं है. यहां आप सिर्फ 8 घंटे के कर्मचारी हैं. उस के बाद तो कुरसी से उठ कर बेहतरीन सी अंगड़ाई लीजिए और घर जा कर परिवार के साथ मस्त शाम बिताइए.
  • प्राइवेट नौकरी में तरक्की और सैलरी पैकेज आप की परफौर्मेंस पर निर्भर करते हैं. आप अगर औफिस में बौस के मुताबिक अच्छा परफौर्म नहीं कर पाए तो सालों तक एक ही पद पर और एक ही सैलरी स्केल पर काम करना पड़ सकता है. वहीं, सरकारी नौकरी में अगर सैंट्रल गवर्नमैंट ने पे-कमीशन लागू कर दिया तो आप भले ही कामचोर या निकम्मे कर्मचारी हों, आप की तनख्वाह बढ़नी तय है.
  • प्राइवेट नौकरी में तो अकसर ओवरटाइम के नाम पर औफिस के पैंडिंग कामों को पूरा करने के लिए संडे को भी बुला लिया जाता है. अब बेचारे क्या करें, बौस का आदेश है. नौकरी करनी है तो परिवार के साथ एंजौयमैंट को भूलना ही पड़ेगा. वहीं, सरकारी मुलाजिम की तो हर हफ्ते छुट्टियां तय हैं. संडे तो संडे, हर शनिवार भी औफिस का गोला लग ही जाता है.
  • अगर आप प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं और आप का ऐक्सिडैंट हो जाता है तो आप को जितने दिनों की छुट्टियां चाहिए, उतने दिनों की पगार कटवानी होगी. इस के विपरीत सरकारी मुलाजिमों को मैडिकल लीव मिलती है और उस पर पूरे महीने की पगार भी मिलती है. सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए मैडिकल की सुविधा दे रखी है. इलाज के लिए सरकार की तरफ से मैडिकल अलाउंस यानी चिकित्सा भत्ता मिलता है. इस भत्ते से पीडि़त का पूरा इलाज भी होता है. यही नहीं, किसी भी सरकारी अस्पताल में पूरी तरह से फ्रीचैकअप की भी सुविधा मिलती है.
  • सरकारी कर्मचारियों को अपने पदों के अनुसार घरकिराया भत्ता भी मिलता है. इस के अलावा उच्च पदों वाले सरकारी कर्मचारियों को तो वेलमेंटेंड आवासीय भत्ता दिया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों को तो बड़े घरों की सुविधा मिलती है, जिस में लौन और आंगन जरूर होता है. एक आईएएस औफिसर को बड़े सरकारी घर के साथ घर में काम करने वाले नौकर व सिक्योरिटी गार्ड तक मिलते हैं. इस के अलावा सरकारी कर्मचारियों को दूसरी सहूलियतें भी मिलती हैं.
  • आज के दौर में कंपीटिशन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि प्राइवेट संस्थान आप को तभी पगार देगा जब आप अपनी पगार से कई गुना ज्यादा संस्थान को कमा कर दें. मंदी के समय प्राइवेट संस्थान में काम करने वालों को दिनरात टैंशन में काम करना पड़ता है. हर वक्त नौकरी जाने का खतरा सताता रहता है. अगर एक बार आप की नौकरी गई तो सेविंग्स के अलावा आप के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं होगा. वहीं, सरकारी नौकरी लग गई तो जीवनभर की फुरसत. नौकरी से रिटायर होने के बाद भी आप को तनख्वाह के तौर पर घर बैठे पैंशन व अन्य लाभ मिलते रहेंगे.
  • प्राइवेट नौकरी पर रहते हुए अगर आप किसी काम के लिए बैंक में लोन के लिए अप्लाई करते हैं, तो आप को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इस का कारण यह है कि आप की जौब कभी भी जा सकती है. इस के अलावा उस पर जुड़ने वाला इंट्रैस्ट रेट हर महीने आप को डराता है. सरकारी मुलाजिमों को सरकारी नौकरी के आधार पर आसानी से लोन भी मिल जाता है और उस पर ब्याज की दर भी कम पड़ेगी.

सुरक्षित भविष्य का मोह

उपरोक्त तमाम बातों से साफ है कि आज के आधुनिक युग में भी हमारे देश के युवाओं की पहली पसंद सरकारी नौकरी करना है. सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर कोचिंग संस्थान अरबों रुपए का बिजनैस कर रहे हैं. सिविल सर्विसेज परीक्षा में हर साल लाखों परीक्षार्थी बैठते हैं, जिन में से बामुश्किल कुछ सौ परीक्षार्थियों को नौकरी मिल पाती है. इतना सब होने के बाद भी सरकारी नौकरी से युवाओं का मोह भंग नहीं हो रहा है.

अगर आप किसी विभाग में बड़े ओहदे पर पहुंच गए तो आप की अफसरशाही अलग ही रहेगी. कुल मिला कर सरकारी नौकरी मिलने से भविष्य सुरक्षित हो जाता है और यह सुकून रहता है कि जिंदगी की गाड़ी अगर बहुत तेज भी न चली, तो इस बात पर शक नहीं है कि आराम से चलती रहेगी.

पेनिस के दर्द को न करें नजरअंदाज

किसी भी तरह से लिंग में दर्द महसूस होना कोई आम बात नहीं है. यह दर्द एक समय के बाद बहुत बड़ी समस्या का कारण भी बन सकता है. यदि किसी भी व्यक्ति के लिंग (पेनिस) में बारबार दर्द हो रहा है तो, उसे लिंग में हो रहे बदलाव पर ध्यान देना चाहिए.

लिंग यानी पेनिस में दर्द होने की कई वजह हो सकती है.

पेनिस में दर्द होने की वजह-

  • चोट लगने के कारण पेनिस में ब्लड इकट्ठा हो जाता है. इसलिए भी लिंग में दर्द होना शुरू हो जाता है.
  • कई बार इन्फैक्शन की वजह से भी पेनिस में दर्द होता है.
  • इसका एक कारण पैराफिमोसिस भी हैं. यह बहुत खतरनाक प्रॉबलम है. इसमें पेनिस हेड के उपर की स्किन टाइट होने के बावजूद पीछे की तरफ खींच तो जाती है लेकिन ऊपर नहीं आ पाती. ऐसे में वह पेनिस हेड के पीछे इकट्ठा हो कर फंस जाती है. इससे पेनिस हेड में सूजन आ जाता है और सेक्स के दौरान काफी दर्द होता है.
  • कई बार दर्द इतना बढ़ जाता है की वह पेनिस के आस-पास वाले हिस्सें को भी प्रभावित करने लगता है.
  • यदि पेनिस का दर्द काफी समय से है और बढ़ता ही जा रहा है ऐसे में डाक्टर की सलाह लेना बहुत जरूरी हैं.

डाक्टर को कब दिखाना चाहिए-

  • लिंग में अधिक खुजली होना.
  • पेनिस के रंग में बदलाव होना.
  • पेनिस पर घाव या दाने निकलने पर.
  • लिंग या उसके आस-पास की जगह में सूजन आना.
  • पेशाब संबंधी समस्याएं, जैसे बार-बार पेशाब आना, पेशाब में जलन या दर्द होना.

दर्द से कैसे बचें

  • सेक्स संबंध बनाने के समय हमेशा कंडोम का इस्तेमाल करें.
  • यदि आपको पेनिस हेड के ऊपर वाली स्किन यानी फोरस्किन में बारबार किसी तरह का इन्फैक्शन हो जाता है, तो ऐसे में साफ सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है और समय पर इसका इलाज करवाएं.
  • सेक्स संबंध बनाने से पहले ध्यान रहे जिसके साथ संबंध बना रहे हैं उसे किसी प्रकार का इन्फैक्शन तो नहीं है. अगर इन्फैक्शन है तो उसके साथ संबंध न बनाए.
  • सेक्स के दौरान ऐसे मूवमेंट या पोजीशन से बचें जिनमें लिंग में ज्यादा घुमाव या मोड़ हो.
  • हमेशा सरल व सुरक्षित सेक्स करें. एक्सपेरिमेंट के चक्कर में कोई भी गलत पोजीशन ट्राई न करें.

8वीं पास : कैसे थे आदित्य के पापा

‘‘देखिए सेठजी, मेरा बेटा आप का बहुत लिहाज करता है. वह आप पर मुझ से ज्यादा भरोसा करता है. हमेशा आप के कहे मुताबिक चलता रहा है. लेकिन वह अपना पैर तुड़वा बैठा है.

‘‘मैं मानता हूं कि उस से गलती हुई है. बच्चों से गलती हो जाती है. मगर उस के इलाज में काफी पैसे लग रहे हैं. बमुश्किल उसे आईसीयू में होश आया है. और अब वह जनरल वार्ड में पहुंच गया है,’’ रामनरेश हाथ जोड़े सेठ सुखसागर से कह रहे थे.

‘‘आप के कहे मुताबिक मैं ने उसे सरकारी अस्पताल के बजाय प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया. वहां की भारीभरकम फीस का खर्च उठाना मेरे बस की बात तो थी नहीं. वह सब खर्च आप ने उठाया. इस के लिए मैं आप का बहुत आभारी हूं. मगर अभी उस के पैर का आपरेशन होना है, जिस के लिए वे ढाई लाख रुपए मांग रहे हैं. अब आप ही का आसरा है,’’ उन्होंने आगे कहा.

‘‘मैं तो तुम्हारे बेटे के चक्कर में गजब की मुसीबत में फंस गया. ठीक है कि मैं ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराने के लिए कहा था, मगर मुझे क्या पता था कि इस में मेरे लाखों रुपए खर्च हो जाएंगे.

‘‘खर्च की तो मैं परवाह नहीं करता. मगर डाक्टर कह रहा था कि उस का पैर ठीक होना मुश्किल है. उसे काटना ही होगा. और बताइए इस अपाहिज को ले कर मैं क्या करूंगा?’’ सेठ सुखसागर बोले.

‘‘मेरा बेटा अपाहिज नहीं है सेठजी,’’ रामनरेश चिल्लाए, ‘‘मैं मानता हूं कि उस से गलती हुई है और उसे इस की सजा भी मिल गई है. मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं उस के इलाज से

मुंह मोड़ लूं. मेरे बेटे का पैर अच्छा हो जाए, इस के लिए मैं अपना घरबार तक बेच दूंगा.’’

‘‘अब आप को जो भी करना हो कीजिए. अब मैं कुछ नहीं कर सकता.’’

‘‘वह तो मैं करूंगा ही. अगर आप उसे इस महंगे अस्पताल में भरती नहीं कराते, तो मैं उस का सस्ते सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराता. अब भी देर नहीं हुई है. मैं उसे वहीं ले जाऊंगा.’’

अब आदित्य सरकारी अस्पताल में था. यहां उस के पापा रामनरेश के परिचित और बुजुर्ग डाक्टर कमल ने उन्हें भरोसा दिलाया कि सबकुछ ठीक से हो जाएगा.

इस बात को तो सभी जानते हैं कि प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने में कितना बड़ा खर्च आता है. मगर अब वहां के खर्चों को कौन उठाएगा, क्योंकि सेठ सुखसागर ने आगे और खर्च देने से इनकार कर दिया था, इसलिए वहां रहने का कोई मतलब नहीं था.

आदित्य तो यह जान कर हैरान रह गया कि सेठ सुखसागर ने उस के इलाज से अपना मुंह मोड़ लिया है.

‘‘देख ली न अपने चार्टर्ड अकांउंटैंट सेठजी की करामात. जब तक उन के लिए तुम जान देते रहे, तुम बहुत अच्छे थे. डाक्टर अब तुम्हारा पैर काटने को कह रहा है. अब उन्हें लग रहा है कि इस अपंगअपाहिज पर खर्च करने से क्या फायदा? अपंगअपाहिज उन के पीछे भागेगा कैसे. सो, इलाज से पीछे हट रहे हैं,’’ रामनरेश गुस्से में आ चुके थे.

‘‘मगर, मैं ऐसा कुछ होने नहीं दूंगा. अभी तो तुम्हें सरकारी अस्पताल में लिए चलता हूं. वहां मेरे एक परिचित डाक्टर कमल हैं. मु?ो पूरा भरोसा है कि वे तुम्हारा इलाज अच्छे से करेंगे. और जहां तक खर्चे की बात है, मैं अपना घर बेच दूंगा, मगर तुम्हें अपाहिज होने नहीं दूंगा. सेठ अपनेआप को सम?ाता क्या है,’’ उन्होंने आगे कहा.

सारे कागजात और एक्सरे रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर कमल बोले, ‘‘एक्सीडैंट हुआ है और चोट तो लगी ही है. थोड़ा समय लगेगा. मगर सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘मगर, वहां तो डाक्टर पैर काटने की बात बता रहे थे.’’

‘‘वहां इलाज करने का अपना ढंग है और मेरा इलाज करने का ढंग अलग है. मैं कोशिश करूंगा कि ऐसी नौबत ही न आए.’’

‘‘मैं कम पढ़ालिखा सही, मगर मेरा सहारा यही है डाक्टर साहब,’’ रामनरेश गिड़गिड़ाते हुए बोल रहे थे, ‘‘मैं अपनी सारी जमापूंजी खर्च कर दूंगा. घरमकान भी बेच दूंगा. भले ही बाद में मुझे मजदूरी क्यों न करनी पड़े. मगर, मैं यही चाहता हूं कि आदित्य अपाहिज न बने.’’

‘‘आप बिलकुल बेफिक्र रहें. वह ठीक हो जाएगा. मैं ने उस की सारी रिपोर्ट देखसमझ ली है. उस के पैर काटने की नौबत नहीं आएगी. वह पहले की तरह चलने और फुटबाल के पीछे भागने भी लगेगा. और आप तो यही चाहते हैं न? हां, उसे कुछ समय तक आराम करना होगा.’’

‘‘क्या आदित्य सचमुच ठीक हो जाएगा?’’ रामनरेश हैरानी से उन का मुंह देखते हुए बोले, ‘‘मैं आप का पूरे जन्म तक आभारी रहूंगा साहब.’’

आदित्य सारी बात को देख समझ रहा था, ‘तो क्या वह ठीक हो जाएगा. आइंदा ऐसी गलती मुझे से नहीं होगी,’ उस ने मन ही मन कहा.

फिर आदित्य सेठ सुखसागर के बारे में सोचने लगा कि उन के पीछे वह क्यों भागता रह गया, सिर्फ इसलिए कि वे पैसे वाले थे और पढ़ेलिखे भी थे. हमेशा वे उसे ले कर अपनी योजनाएं बनाते थे, जिस में वे उसे मोहरे की तरह इस्तेमाल करते आए थे. उस ने अपने प्लास्टर चढ़े पैर को देखा, तो उस के मुंह से आह सी निकल गई.

ओह, इस पैर को तो डाक्टर काटने को कह रहा था. इसे काटने के बाद तो वह हमेशा के लिए अपाहिज हो जाएगा. नहींनहीं, ऐसा कुछ होगा, तो वह कहीं का नहीं रहेगा. बिना पैर के वह दुनिया की इस दौड़ में कैसे आगे बढ़ेगा? और उस के सामने जैसे अपनी पुरानी यादें ताजा होने लगी थीं. पिछले कुछ समय पहले की ही तो बात थी.

‘‘वाह, आदित्य तुम ने तो कमाल कर दिया,’’ आदित्य की गर्लफ्रैंड सुरेखा

उसे देख कर मुसकराई थी, ‘‘दहीहांड़ी प्रतियोगिता में तो तुम ने कमाल कर दिया. 5 लाख रुपए का अवार्ड पाने के लिए बधाई. वैसे, इतने रुपए पा कर तुम क्या करोगे?’’

‘‘शुक्रिया सुरेखा. वैसे, मैं ने इसे अकेले नहीं जीता है, बल्कि मेरी टीम ने जीता है. ये रुपए तो सभी के बीच ही बंटेंगे.’’

आदित्य उसे देख कर मुसकराया था, ‘‘वैसे, तुम्हें भी इस में से कुछ हिस्सा दे दूंगा, क्योंकि तुम को देख कर ही मैं ने यह हिम्मत जुटाई थी. लेकिन जरा ठहरो, पहले मैं सेठ सुखसागर को तो शुक्रिया कह दूं.’’

एंकर बारबार माइक से अनाउंस कर रहा था कि विजेता टीम के सभी सदस्य मंच की ओर इकट्ठा हों. मगर जीत के जोश में वहां सभी जोश में थे और खुश थे. सो, उस की सुनता कौन. आदित्य को उस की टीम अपने कंधे पर उठा

कर विशाल गांधी मैदान का चक्कर काटने लगे थे. जीत का सुरूर कुछ ऐसा ही होता है.

आदित्य मन ही मन खुश हो रहा था. उसे जैसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि उस ने वह कारनामा कर दिखाया है, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी.

सेठ सुखसागर एंकर को समझ रहे थे, ‘‘अभी जीत का नशा है. जरा मैदान का चक्कर लगा लेने दो. हम भागे थोड़े ही जा रहे हैं. अपना ही लड़का और उस की टीम है. हमारे काम आता रहता है.’’

आखिरकार आदित्य अपनी टीम के साथ वापस मंच की ओर लौटा. उस ने और उस की टीम के सभी लड़कों ने नीली हाफ पैंट और सफेद टीशर्ट पहन रखी थी. दूर से ही देखने से लगता था कि ये सभी एक टीम के सदस्य हैं.

सुरेखा ने अब आदित्य को ध्यान से देखा. मिट्टीकीचड़ से सने आदित्य का चेहरा चमक से भरा जा रहा था. उस के गठीले बदन की मांसपेशियां जैसे धूप में सोने सी चमक रही थीं. बांहों में खिल रही मछलियां मचल रही थीं और उस का चौड़ा सीना टीशर्ट में से जैसे निकलना ही चाह रहा था और यह आदित्य उस का है, यह विचार मन में आते ही उस में गुदगुदी सी फैल गई.

अचानक ही अपनी टीम से घिरे आदित्य के जीत की ट्रौफी लेते ही पूरा गांधी मैदान जयकारों से गूंज उठा.

सेठ सुखसागर के होंठों पर गहरी मुसकान खेल गई. पिछले साल वे मुंबई गए थे, तो वहीं उन्होंने दहीहांड़ी प्रतियोगिता देखी थी. तभी उन के मन में विचार आया था कि वह पटना में भी इस का आयोजन करें, तो कैसा रहे. और फिर उन्होंने इसे पूरा भी कर दिया था.

सेठजी का धंधा कई तरह का था. इस के अलावा वे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजन करते रहते थे. इस में उन्हें काफी सुख और संतोष भी मिलता था. पहली बार उन्हें ऐसा लगा कि नौजवानों के लिए ऐसा आयोजन कर के उन्होंने एक अच्छा काम किया है.

आदित्य उन के महल्ले का ही लड़का था और स्थानीय कौमर्स कालेज से बीकौम की पढ़ाई कर रहा था.

पिछले साल की बात थी, जब एक दिन कुछ बदमाश सेठ सुखसागर के बंगले में उन के चैंबर में घुस गए थे. उसी समय वह उधर से ही गुजर रहा था, तो उसे शोरगुल सुनाई दिया. वह चैंबर में घुसा और थोड़ी ही देर में उन बदमाशों को खदेड़ दिया.

बाद में उस से एक स्टाफ ने दबी जबान से कहा भी कि उसे इस तरह बदमाशों से भिड़ना नहीं चाहिए था. आजकल तमंचेबंदूक मिलते हैं. अगर किसी ने गोली चला दी होती तो क्या होता. सेठ का क्या है. उस के पास तो अपने बौडीगार्ड और सिक्योरिटी हैं. सो, उसे रिस्क नहीं लेना था.

आदित्य हंस कर रह गया था. लेकिन सेठ सुखसागर उस से बहुत प्रभावित हुए थे. उसे अपने चैंबर में बैठा कर बढि़या चायनाश्ता कराने के बाद 2,000 रुपए दिए और शाबाशी दी थी. और इसी के साथ वह उन का शागिर्द सा बन गया था. वह उधर कभी भी आएजाए, उसे कोई रोकताटोकता नहीं था और सेठ उसे

500-1,000 रुपए यों पकड़ा दिया करते थे, जिस से उस का अपना शाहखर्ची चलता था.

आदित्य का खुद पर तो कुछ खास खर्च था भी नहीं. बस सुरेखा के लिए उसे कभीकभार गिफ्ट खरीदने होते या रैस्टोरैंट जाना होता, तो उसी का खर्च था.

आदित्य के पापा की फ्रैजर रोड में एक छोटी सी पान की दुकान थी. उन्होंने भी उस से यही कहा कि उसे बदमाशों से उलझाने की क्या जरूरत थी. सेठ का क्या है, लाखोंकरोड़ों में खेलता है. गुंडेबदमाश से उस का रोज का पाला पड़ता होगा. अगर उसे कुछ हो जाता, तो वे क्या कर लेते?

सेठ सुखसागर ने इस होनहार हीरे को पहचान लिया था. वे उसे गाहेबगाहे बुला भी लिया करते थे. वे थोड़ीबहुत मदद तो करते ही थे उस की, जिस से उस का जेबखर्च निकल आता था.

मगर उस के पापा कहते, ‘‘मैं इतनी मेहनत तुम्हारी खातिर करता हूं. तुम पढ़ाईलिखाई पर ध्यान दो. आगे यही काम देगा. ये पैसे वाले हम गरीबों का सिर्फ इस्तेमाल करते हैं.

‘‘ऐसी चर्चा है कि उन की नजर आने वाले विधानसभा चुनावों पर है, जिस के लिए वे उम्मीदवार होना चाहते हैं और इन चुनावों में तुम जैसों का वे लोग इस्तेमाल करेंगे,’’ वे इस के आगे डाक्टर भीमराव अंबेडकर के इस वाक्य को जोड़ देते, ‘‘पढ़ाईलिखाई शेरनी का वह दूध है, जिसे जो पीएगा, वह दहाड़ेगा.’’

यह सुन कर आदित्य हंस पड़ता था. पढ़ाई ही तो कर रहा हूं. मगर अभी सिपाहीचपरासी से ले कर लोक सेवा आयोग तक के इम्तिहान का जो हाल है, उसे वे भी तो पढ़तेसुनते होंगे. मगर 8वीं पास पापा को इस से क्या मतलब. उन्हें तो बस यही लगता है कि उस की पढ़ाई खत्म हुई नहीं कि वह गजटेड अफसर बन जाएगा.

रामनरेश ?ाल्ला कर कहते, ‘‘अभी कुछ ही दिनों बाद तुम्हारी ग्रेजुएशन के ऐग्जाम होने वाले हैं और तुम फालतू चक्कर में फंस कर अपना समय खराब कर रहे हो? कहीं ऐग्जाम खराब होंगे, तो तुम्हारी सारी मटरगश्ती हवा हो जाएगी, इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. तुम्हें ढंग की कोई नौकरी मिले, तो हमें भी चैन पड़े.

‘‘मैं ने तुम्हारे लिए कोई बहुत बड़ी इच्छा नहीं पाल रखी है. तुम साधारण ढंग से पढ़ोलिखो. कहीं टीचरक्लर्क भी लगे, तो मेरे लिए यही बहुत है. मैं तुम्हें कोई रिस्क लेते नहीं देखना चाहता. तुम ये सेठ के महल के चक्कर लगाने छोड़ो और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो.’’

मगर जब से आदित्य की सुरेखा से जानपहचान हुई थी, उस के खर्चे बढ़ गए थे. आखिर गर्लफ्रैंड है उस की. उसे कुछ उपहार वगैरह तो देना बनता ही है. फिर अपने लिए कुछ बढि़या ड्रैस भी तो हो. लोगों पर, खासकर साथियों के बीच इसी ड्रैसिंग सैंस के वजह से ही तो रोबदाब बना रहता है.  वैसे, अपना कोई टूह्वीलर हो, तो क्या कहने.

मगर आदित्य के पास लेदे कर एक पुरानी, टूटी सी साइकिल थी, जिसे देख कर वह झल्ला उठता था. इस फास्ट लाइफ में आजकल साइकिल पर कौन चलता है. पापा तो टूह्वीलर खरीदने से रहे. उन्हें तो कहीं आनाजाना तो होता नहीं. कोई शौकमौज भी नहीं है उन की. आराम से घर से दुकान तक पैदल ही आतेजाते हैं. बहुत हुआ तो शेयरिंग आटोरिकशा से आए या गए. सारी जिंदगी बस खोखे में बिठा कर बिता दी. यह भी कोई जिंदगी है.

सेठ सुखसागर के यहां काम करने वालों के काम की सहूलियत और आनेजाने के लिए उन के मकान में कुछ स्कूटी और बाइकें थीं, जिन का इस्तेमाल उन का स्टाफ करता था. कभीकभार वह उन से मांग भी लेता था. उस में यह सहूलियत भी थी कि उसे उस में पैट्रोल भरवाने की चिंता नहीं रहती थी.

उधर सेठजी को भी लगता कि ऐसे फ्री के सिक्योरिटी गार्ड कहां मिलते हैं. थोड़े से ही काम चल जाता है, नहीं तो बाउंसर, शूटर कितनी डिमांड रखते हैं आजकल. दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा के समय भी वे उस के ग्रुप को मनचाही रकम दान में देते थे और इन सब से उन लोगों के नएनए शूज और ड्रैस के खर्चे निकल आते थे.

सचमुच सेठजी दयालु थे, मगर इस के साथ ही वे प्रैक्टिकल भी थे. वे जानते थे कि दान का लाभ परलोक में मिले या न मिले, इहलोक में तो निकल ही जाता है. इस तरह उन्होंने अपने इर्दगिर्द एक सुरक्षा घेरा बना लिया था.

सेठजी और शायद वह भी यही सोचता है कि दुनिया ऐसे ही चलती है. इस बार सेठजी ने जो दहीहांड़ी की प्लानिंग की थी, उस के केंद्र में वही था. अब नौजवान लड़का है, तो उस की टीम भी होगी ही.

आदित्य अपने कालेज में फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी था और उस की अपनी टीम भी थी. उन्होंने अपनी योजना उसे समझाई, तो वह खुशी से उछल पड़ा. इस में करना कुछ खास नहीं और 5 लाख रुपए का इनाम है.

ऊपर से सेठजी यह भी कह रहे हैं कि उस की टीम के सभी सदस्यों के लिए नई ड्रैस का भी वे इंतजाम करेंगे. तो उसे और क्या चाहिए. यह भी तो एक तरह का खेल है, जिस में उसे भाग लेना चाहिए.

आदित्य की मम्मी को भी कुछ दिन अजीब लगा कि यह लड़का रोजरोज अपने कपड़े गंदे क्यों करता है, तो उस ने इस का राज खोला.

मां गंभीर हो कर बोलीं, ‘‘कितना खतरनाक है यह दहीहांड़ी का खेल. और जो ऊपर से गिरा और नाकामी हाथ लगी, तो इनाम तो मिलेगा नहीं, उलटे हाथपैर जो टूटेंगे, तो इलाज का खर्चा कहां से आएगा? तुम्हारे पापा अलग गुस्सा होंगे, सो तुम समझ लेना.’’

‘‘अरे मम्मी, कुछ नहीं होगा. तुम बेकार में चिंता करती हो. सेठजी बड़े दयालु और समाजसेवी हैं. वे हमारा ध्यान रखते हैं. उन के रहते हमें जरा भी चिंता करने की जरूरत नहीं है. जानती हो, जब हम शाम को फील्ड में इस का अभ्यास करते हैं, तो उस समय सेठजी हमारे लिए चायनाश्ता भी भिजवा देते हैं.’’

लगभग बीसेक दिन तक आदित्य ने अपनी टीम के साथ मानव पिरामिड बनाने का मुश्किल अभ्यास किया था. इस बीच वह कई बार गिरा, चोटें भी आईं. मगर सभी जोश में थे. कुछ अलग, कुछ खास करने का जज्बा ही कुछ अलग होता है.

सुरेखा उन्हें देखती, तो शक में पड़ जाती. अगर ये नाकाम हुए, तो क्या होगा? कालेज के खेल टीचर भी अचरज से उन्हें देखते और कहते, ‘‘जो करना है, अपने रिस्क पर करना.’’

एक दिन तो मानव पिरामिड बनाने के चक्कर में आदित्य अपना बैलेंस संभाल नहीं पाया और औंधे मुंह गिर पड़ा. वह तो खैरियत थी कि मुंह पर चोट नहीं लगी, मगर दाएं हाथ की हथेली में मोच आ गई थी.

आदित्य ने सुरेखा से सलाहमशवरा किया, तो उस ने दवा बाजार जीएम रोड में अपने एक रिश्तेदार की दुकान में भेज दिया था. उन्होंने उसे कुछ दवाएं दीं, जिस से वह जल्दी ही ठीक हो गया था.

मगर इस बीच आदित्य के पापा ने तो हंगामा कर दिया, ‘‘इस लड़के को हुआ क्या है. पढ़ाईलिखाई तो करनी नहीं, खाली खेलकूद में लगा रहता है. क्या जरूरत है ऐसे खतरनाक खेल खेलने की, जिस में जान का खतरा हो?’’

‘‘इस में जान का खतरा कैसे हो सकता है?’’ आदित्य ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘मुंबई और महाराष्ट्र में तो इस का आयोजन हर गलीमहल्ले में होता है. जब वहां कुछ नहीं होता, तो यहां क्या हो जाएगा?’’

‘‘मैं भी थोड़ीबहुत जानकारी रखता हूं रे,’’ पापा चिल्लाए, ‘‘वहां हर साल हादसे होते रहते हैं. लोग अपने हाथपैर तो तुड़वाते हैं ही, जान से भी हाथ धो बैठते हैं. यहां लोग इकमंजिले से गिरने पर घायल हो जाते हैं और तुम 50 फुट के मानव पिरामिड बना कर चढ़ोगे, तो सोचिए क्या होगा…’’

‘‘अब तैयारी तो पूरी है. फिर सेठजी  की इज्जत का भी सवाल है. मुझे तो यह करना ही है.’’

‘‘तुम्हें सेठजी की इतनी चिंता है और मेरी नहीं? सेठजी को अपनी इज्जत की इतनी ही चिंता है, तो वे अपने बेटे को क्यों नहीं तैयार करते? उसे तो मुंबई में महंगी तालीम दिला रहे हैं और तुम्हें बलि का बकरा बना रहे हैं.’’

‘‘आप तो हर बात को उलटी दिशा में ले जाते हैं. आप से तो बात करना ही बेकार है,’’ आदित्य झल्ला कर वहां से उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘उन की हैसियत है, तो वे अपने बेटे को मुंबई क्या, अमेरिका, रूस, जापान या इंगलैंड भी भेज सकते हैं.

आदित्य के पापा पैर पटकते हुए बाहर निकल गए.

अब आदित्य के सामने उस की मां थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि अपने बेटे को समझाएं कि पति को. मगर उन्हें यह ठीक ही लगता था कि बेटा भी कुछ गलत नहीं कर रहा. अरे, यही उम्र तो है, खेलनेखाने की. फिर तो बाद में हायहाय में जुटना ही है.

सेठ उस के कुछ खर्चे उठाता है, तो क्या बुरा करता है. इन की दुकान से दालरोटी चल जाए, यही बहुत है. फिर भी उसे अपने पापा से ढंग से बात करनी चाहिए थी.

मां ने आदित्य से यही कहा ही था कि वह बिफर पड़ा, ‘‘सेठ सुखसागर सिर्फ रुपएपैसे से ही नहीं भरेपूरे हैं, उन्होंने भी चार्टर्ड अकाउंटैंट की पढ़ाई दिल्ली से की है. पापा की तरह वे 8वीं पास नहीं हैं, जो दरदर की ठोकरें खाते फिरते हैं. एक छोटे से खोखे में जिंदगी गुजार दी हम ने. क्या मिला हमें? हमेशा गरीबी के बीच रोते?ांकते रहे हैं हम.’’

मां एकदम से सन्न रह गईं. बेटा यह क्या बोल रहा है. इस को कुछ खबर भी है कि इसी खोखे के बूते ही रामनरेश ने पूरा परिवार पाल दिया है. पहले गांव के परिवार को देखा और उन की भरपाई की, फिर यहां अपना छोटा सा ही सही, मकान बनाया है. आदित्य की भी जो यह पढ़ाई चल रही है, उस में भी तो खर्च हो रहा है.

आदित्य ने कोचिंग जौइन करने को कहा, तो उस के लिए भी उन्होंने कभी मना नहीं किया. और यह आदित्य आज क्या उलटीसीधी बक रहा है. कहीं उन्होंने सुन लिया तो हंगामा मच जाएगा.

मगर सवाल यह है कि आदित्य के दिमाग में आया कैसे कि उस के पापा सिर्फ 8वीं पास हैं. इस का क्या मतलब हुआ कि वे कमअक्ल हैं, कि वे बेचारे हैं. आज तक कभी उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं पसारा, बल्कि दूसरों को अपनी हैसियत से बढ़ कर कुछ दिया ही है. मगर इस आदित्य को क्या हुआ है…

इनाम के रुपयों में से आदित्य के हिस्से में महज 40,000 रुपए ही आए थे, जिस से उस ने एक सैकंडहैंड बाइक खरीद ली थी.

पापा ने आदित्य से कहा था, ‘‘ठीक है, टूह्वीलर ही खरीदना है, तो स्कूटी ले लो. इस से कभीकभार उन की दुकान के लिए वह कुछ सामान की खरीदारी कर के ला दिया करेगा. इस से उन्हें सहूलियत होगी. अभी से वह इसी बहाने खरीदफरोख्त भी सीख लेगा.

मगर स्कूटी के नाम से आदित्य चिढ़ गया. यह भी कोई सवारी है… यह तो फुटकर बनियों की गाड़ी है, जो इस से इधरउधर का सामान खरीद कर यहांवहां ढोते फिरते हैं. डिलीवरी बौय की तरह वह अपनी मेहनत के पैसों को इस में नहीं लगाने वाला.

बाइक की बात ही दूसरी है. स्कूटी तो ऐसा लगता है कि किसी टेबल के आगे बैठे हैं और बाइक पर अहसास होता है कि टांगों के नीचे कुछ दबा हुआ है.

कितना मजा आएगा, जब वह तेज रफ्तार से बाइक चलाएगा. लहरिया कट गाड़ी चलाने में तो वह पूरा उस्ताद है ही. उस के पापा अनपढ़ तो नहीं, मगर 8वीं पास पापा को इस सुख का क्या पता है.

सुरेखा ठीक कहती है, ‘‘यह जिंदगी तो मजे लेने के लिए है. बाकी तो सब रोना है ही जिंदगी में.’’

आदित्य रोते हुए अपनी जिंदगी नहीं बिता सकता. आखिरकार उस ने बाइक खरीद ही ली थी. सुरेखा के साथ जब वह गंगा पाथवे पर जाता, तो जैसे वह हवा में होता. जिंदगी जीना इसी को ही तो कहते हैं.

मगर पिछले हफ्ते रविवार की शाम को आदित्य का गंगा पाथवे पर एक्सीडैंट हो गया था. एक पिकअप वैन ने उसे ऐसी टक्कर मारी कि वह दूर तक घिसट गया. उसे होश तो तब आया, जब उस ने अपनेआप को अस्पताल में पाया. पूरे शरीर में जख्मों पर पट्टियां बंधी थीं. बायां पैर बुरी तरह फ्रैक्चर था.

पिकअप वैन वाला तो कब का भाग चुका था और पुलिस ने आदित्य के पर्स में रखे परिचयपत्र से उस के पापा और सेठ सुखसागर को भी जानकारी दी थी.

पुलिस का तो यह भी आरोप था कि एक तो उस की बाइक की स्पीड तय सीमा से ज्यादा थी और दूसरे वह लहरिया कट गाड़ी चला रहा था. इस आधार पर पुलिस ने उसी के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर दिए थे, जिसे बमुश्किल अपनी पहुंच के बल पर सेठ सुखसागर ने रफादफा कराया था.

सुरेखा भी एक दिन आदित्य को देखने आई थी और फिर जो वह लापता हुई, तो उस की खबर ही नहीं मिली. आजकल उस का फोन भी स्विच औफ हो चुका था.

वह सब तो अपनी जगह, मगर क्या आदित्य सचमुच अपाहिज हो जाएगा? सेठ सुखसागर तो यही कह रहे थे. मगर डाक्टर कमल ने उसे भरोसा दिलाया था कि वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा. उस के पापा का चेहरा उस समय कैसा निरीह हो गया था, जब वह सेठ सुखसागर से बातें कर रहे थे.

ये पैसे वाले ऐसे ही होते हैं क्या? सिर्फ इस्तेमाल करना भर जानते हैं? मगर उस के पापा कितनी मजबूती से बोले थे कि वे अपनी सारी जमापूंजी और घरबार तक उस के इलाज के लिए बेच डालेंगे. वे मजदूरी करने तक को तैयार हैं उस के लिए और वह उन्हें बेवकूफ, गंवार, 8वीं पास कहता रहा.

अब आदित्य की आंखें सही माने में पूरी तरह खुल चुकी थीं. मगर इस के पहले उसे पूरी तरह ठीक होना है. न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अपने पापा के लिए. यही उस का प्रायश्चित्त होगा. अब उसे जिंदगी में कुछ अच्छा कर के दिखाना ही है.

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