‘‘देखिए सेठजी, मेरा बेटा आप का बहुत लिहाज करता है. वह आप पर मुझ से ज्यादा भरोसा करता है. हमेशा आप के कहे मुताबिक चलता रहा है. लेकिन वह अपना पैर तुड़वा बैठा है.

‘‘मैं मानता हूं कि उस से गलती हुई है. बच्चों से गलती हो जाती है. मगर उस के इलाज में काफी पैसे लग रहे हैं. बमुश्किल उसे आईसीयू में होश आया है. और अब वह जनरल वार्ड में पहुंच गया है,’’ रामनरेश हाथ जोड़े सेठ सुखसागर से कह रहे थे.

‘‘आप के कहे मुताबिक मैं ने उसे सरकारी अस्पताल के बजाय प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया. वहां की भारीभरकम फीस का खर्च उठाना मेरे बस की बात तो थी नहीं. वह सब खर्च आप ने उठाया. इस के लिए मैं आप का बहुत आभारी हूं. मगर अभी उस के पैर का आपरेशन होना है, जिस के लिए वे ढाई लाख रुपए मांग रहे हैं. अब आप ही का आसरा है,’’ उन्होंने आगे कहा.

‘‘मैं तो तुम्हारे बेटे के चक्कर में गजब की मुसीबत में फंस गया. ठीक है कि मैं ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराने के लिए कहा था, मगर मुझे क्या पता था कि इस में मेरे लाखों रुपए खर्च हो जाएंगे.

‘‘खर्च की तो मैं परवाह नहीं करता. मगर डाक्टर कह रहा था कि उस का पैर ठीक होना मुश्किल है. उसे काटना ही होगा. और बताइए इस अपाहिज को ले कर मैं क्या करूंगा?’’ सेठ सुखसागर बोले.

‘‘मेरा बेटा अपाहिज नहीं है सेठजी,’’ रामनरेश चिल्लाए, ‘‘मैं मानता हूं कि उस से गलती हुई है और उसे इस की सजा भी मिल गई है. मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं उस के इलाज से

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