‘‘देखिए सेठजी, मेरा बेटा आप का बहुत लिहाज करता है. वह आप पर मुझ से ज्यादा भरोसा करता है. हमेशा आप के कहे मुताबिक चलता रहा है. लेकिन वह अपना पैर तुड़वा बैठा है.

‘‘मैं मानता हूं कि उस से गलती हुई है. बच्चों से गलती हो जाती है. मगर उस के इलाज में काफी पैसे लग रहे हैं. बमुश्किल उसे आईसीयू में होश आया है. और अब वह जनरल वार्ड में पहुंच गया है,’’ रामनरेश हाथ जोड़े सेठ सुखसागर से कह रहे थे.

‘‘आप के कहे मुताबिक मैं ने उसे सरकारी अस्पताल के बजाय प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया. वहां की भारीभरकम फीस का खर्च उठाना मेरे बस की बात तो थी नहीं. वह सब खर्च आप ने उठाया. इस के लिए मैं आप का बहुत आभारी हूं. मगर अभी उस के पैर का आपरेशन होना है, जिस के लिए वे ढाई लाख रुपए मांग रहे हैं. अब आप ही का आसरा है,’’ उन्होंने आगे कहा.

‘‘मैं तो तुम्हारे बेटे के चक्कर में गजब की मुसीबत में फंस गया. ठीक है कि मैं ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराने के लिए कहा था, मगर मुझे क्या पता था कि इस में मेरे लाखों रुपए खर्च हो जाएंगे.

‘‘खर्च की तो मैं परवाह नहीं करता. मगर डाक्टर कह रहा था कि उस का पैर ठीक होना मुश्किल है. उसे काटना ही होगा. और बताइए इस अपाहिज को ले कर मैं क्या करूंगा?’’ सेठ सुखसागर बोले.

‘‘मेरा बेटा अपाहिज नहीं है सेठजी,’’ रामनरेश चिल्लाए, ‘‘मैं मानता हूं कि उस से गलती हुई है और उसे इस की सजा भी मिल गई है. मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं उस के इलाज से

मुंह मोड़ लूं. मेरे बेटे का पैर अच्छा हो जाए, इस के लिए मैं अपना घरबार तक बेच दूंगा.’’

‘‘अब आप को जो भी करना हो कीजिए. अब मैं कुछ नहीं कर सकता.’’

‘‘वह तो मैं करूंगा ही. अगर आप उसे इस महंगे अस्पताल में भरती नहीं कराते, तो मैं उस का सस्ते सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराता. अब भी देर नहीं हुई है. मैं उसे वहीं ले जाऊंगा.’’

अब आदित्य सरकारी अस्पताल में था. यहां उस के पापा रामनरेश के परिचित और बुजुर्ग डाक्टर कमल ने उन्हें भरोसा दिलाया कि सबकुछ ठीक से हो जाएगा.

इस बात को तो सभी जानते हैं कि प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने में कितना बड़ा खर्च आता है. मगर अब वहां के खर्चों को कौन उठाएगा, क्योंकि सेठ सुखसागर ने आगे और खर्च देने से इनकार कर दिया था, इसलिए वहां रहने का कोई मतलब नहीं था.

आदित्य तो यह जान कर हैरान रह गया कि सेठ सुखसागर ने उस के इलाज से अपना मुंह मोड़ लिया है.

‘‘देख ली न अपने चार्टर्ड अकांउंटैंट सेठजी की करामात. जब तक उन के लिए तुम जान देते रहे, तुम बहुत अच्छे थे. डाक्टर अब तुम्हारा पैर काटने को कह रहा है. अब उन्हें लग रहा है कि इस अपंगअपाहिज पर खर्च करने से क्या फायदा? अपंगअपाहिज उन के पीछे भागेगा कैसे. सो, इलाज से पीछे हट रहे हैं,’’ रामनरेश गुस्से में आ चुके थे.

‘‘मगर, मैं ऐसा कुछ होने नहीं दूंगा. अभी तो तुम्हें सरकारी अस्पताल में लिए चलता हूं. वहां मेरे एक परिचित डाक्टर कमल हैं. मु?ो पूरा भरोसा है कि वे तुम्हारा इलाज अच्छे से करेंगे. और जहां तक खर्चे की बात है, मैं अपना घर बेच दूंगा, मगर तुम्हें अपाहिज होने नहीं दूंगा. सेठ अपनेआप को सम?ाता क्या है,’’ उन्होंने आगे कहा.

सारे कागजात और एक्सरे रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर कमल बोले, ‘‘एक्सीडैंट हुआ है और चोट तो लगी ही है. थोड़ा समय लगेगा. मगर सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘मगर, वहां तो डाक्टर पैर काटने की बात बता रहे थे.’’

‘‘वहां इलाज करने का अपना ढंग है और मेरा इलाज करने का ढंग अलग है. मैं कोशिश करूंगा कि ऐसी नौबत ही न आए.’’

‘‘मैं कम पढ़ालिखा सही, मगर मेरा सहारा यही है डाक्टर साहब,’’ रामनरेश गिड़गिड़ाते हुए बोल रहे थे, ‘‘मैं अपनी सारी जमापूंजी खर्च कर दूंगा. घरमकान भी बेच दूंगा. भले ही बाद में मुझे मजदूरी क्यों न करनी पड़े. मगर, मैं यही चाहता हूं कि आदित्य अपाहिज न बने.’’

‘‘आप बिलकुल बेफिक्र रहें. वह ठीक हो जाएगा. मैं ने उस की सारी रिपोर्ट देखसमझ ली है. उस के पैर काटने की नौबत नहीं आएगी. वह पहले की तरह चलने और फुटबाल के पीछे भागने भी लगेगा. और आप तो यही चाहते हैं न? हां, उसे कुछ समय तक आराम करना होगा.’’

‘‘क्या आदित्य सचमुच ठीक हो जाएगा?’’ रामनरेश हैरानी से उन का मुंह देखते हुए बोले, ‘‘मैं आप का पूरे जन्म तक आभारी रहूंगा साहब.’’

आदित्य सारी बात को देख समझ रहा था, ‘तो क्या वह ठीक हो जाएगा. आइंदा ऐसी गलती मुझे से नहीं होगी,’ उस ने मन ही मन कहा.

फिर आदित्य सेठ सुखसागर के बारे में सोचने लगा कि उन के पीछे वह क्यों भागता रह गया, सिर्फ इसलिए कि वे पैसे वाले थे और पढ़ेलिखे भी थे. हमेशा वे उसे ले कर अपनी योजनाएं बनाते थे, जिस में वे उसे मोहरे की तरह इस्तेमाल करते आए थे. उस ने अपने प्लास्टर चढ़े पैर को देखा, तो उस के मुंह से आह सी निकल गई.

ओह, इस पैर को तो डाक्टर काटने को कह रहा था. इसे काटने के बाद तो वह हमेशा के लिए अपाहिज हो जाएगा. नहींनहीं, ऐसा कुछ होगा, तो वह कहीं का नहीं रहेगा. बिना पैर के वह दुनिया की इस दौड़ में कैसे आगे बढ़ेगा? और उस के सामने जैसे अपनी पुरानी यादें ताजा होने लगी थीं. पिछले कुछ समय पहले की ही तो बात थी.

‘‘वाह, आदित्य तुम ने तो कमाल कर दिया,’’ आदित्य की गर्लफ्रैंड सुरेखा

उसे देख कर मुसकराई थी, ‘‘दहीहांड़ी प्रतियोगिता में तो तुम ने कमाल कर दिया. 5 लाख रुपए का अवार्ड पाने के लिए बधाई. वैसे, इतने रुपए पा कर तुम क्या करोगे?’’

‘‘शुक्रिया सुरेखा. वैसे, मैं ने इसे अकेले नहीं जीता है, बल्कि मेरी टीम ने जीता है. ये रुपए तो सभी के बीच ही बंटेंगे.’’

आदित्य उसे देख कर मुसकराया था, ‘‘वैसे, तुम्हें भी इस में से कुछ हिस्सा दे दूंगा, क्योंकि तुम को देख कर ही मैं ने यह हिम्मत जुटाई थी. लेकिन जरा ठहरो, पहले मैं सेठ सुखसागर को तो शुक्रिया कह दूं.’’

एंकर बारबार माइक से अनाउंस कर रहा था कि विजेता टीम के सभी सदस्य मंच की ओर इकट्ठा हों. मगर जीत के जोश में वहां सभी जोश में थे और खुश थे. सो, उस की सुनता कौन. आदित्य को उस की टीम अपने कंधे पर उठा

कर विशाल गांधी मैदान का चक्कर काटने लगे थे. जीत का सुरूर कुछ ऐसा ही होता है.

आदित्य मन ही मन खुश हो रहा था. उसे जैसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि उस ने वह कारनामा कर दिखाया है, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी.

सेठ सुखसागर एंकर को समझ रहे थे, ‘‘अभी जीत का नशा है. जरा मैदान का चक्कर लगा लेने दो. हम भागे थोड़े ही जा रहे हैं. अपना ही लड़का और उस की टीम है. हमारे काम आता रहता है.’’

आखिरकार आदित्य अपनी टीम के साथ वापस मंच की ओर लौटा. उस ने और उस की टीम के सभी लड़कों ने नीली हाफ पैंट और सफेद टीशर्ट पहन रखी थी. दूर से ही देखने से लगता था कि ये सभी एक टीम के सदस्य हैं.

सुरेखा ने अब आदित्य को ध्यान से देखा. मिट्टीकीचड़ से सने आदित्य का चेहरा चमक से भरा जा रहा था. उस के गठीले बदन की मांसपेशियां जैसे धूप में सोने सी चमक रही थीं. बांहों में खिल रही मछलियां मचल रही थीं और उस का चौड़ा सीना टीशर्ट में से जैसे निकलना ही चाह रहा था और यह आदित्य उस का है, यह विचार मन में आते ही उस में गुदगुदी सी फैल गई.

अचानक ही अपनी टीम से घिरे आदित्य के जीत की ट्रौफी लेते ही पूरा गांधी मैदान जयकारों से गूंज उठा.

सेठ सुखसागर के होंठों पर गहरी मुसकान खेल गई. पिछले साल वे मुंबई गए थे, तो वहीं उन्होंने दहीहांड़ी प्रतियोगिता देखी थी. तभी उन के मन में विचार आया था कि वह पटना में भी इस का आयोजन करें, तो कैसा रहे. और फिर उन्होंने इसे पूरा भी कर दिया था.

सेठजी का धंधा कई तरह का था. इस के अलावा वे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजन करते रहते थे. इस में उन्हें काफी सुख और संतोष भी मिलता था. पहली बार उन्हें ऐसा लगा कि नौजवानों के लिए ऐसा आयोजन कर के उन्होंने एक अच्छा काम किया है.

आदित्य उन के महल्ले का ही लड़का था और स्थानीय कौमर्स कालेज से बीकौम की पढ़ाई कर रहा था.

पिछले साल की बात थी, जब एक दिन कुछ बदमाश सेठ सुखसागर के बंगले में उन के चैंबर में घुस गए थे. उसी समय वह उधर से ही गुजर रहा था, तो उसे शोरगुल सुनाई दिया. वह चैंबर में घुसा और थोड़ी ही देर में उन बदमाशों को खदेड़ दिया.

बाद में उस से एक स्टाफ ने दबी जबान से कहा भी कि उसे इस तरह बदमाशों से भिड़ना नहीं चाहिए था. आजकल तमंचेबंदूक मिलते हैं. अगर किसी ने गोली चला दी होती तो क्या होता. सेठ का क्या है. उस के पास तो अपने बौडीगार्ड और सिक्योरिटी हैं. सो, उसे रिस्क नहीं लेना था.

आदित्य हंस कर रह गया था. लेकिन सेठ सुखसागर उस से बहुत प्रभावित हुए थे. उसे अपने चैंबर में बैठा कर बढि़या चायनाश्ता कराने के बाद 2,000 रुपए दिए और शाबाशी दी थी. और इसी के साथ वह उन का शागिर्द सा बन गया था. वह उधर कभी भी आएजाए, उसे कोई रोकताटोकता नहीं था और सेठ उसे

500-1,000 रुपए यों पकड़ा दिया करते थे, जिस से उस का अपना शाहखर्ची चलता था.

आदित्य का खुद पर तो कुछ खास खर्च था भी नहीं. बस सुरेखा के लिए उसे कभीकभार गिफ्ट खरीदने होते या रैस्टोरैंट जाना होता, तो उसी का खर्च था.

आदित्य के पापा की फ्रैजर रोड में एक छोटी सी पान की दुकान थी. उन्होंने भी उस से यही कहा कि उसे बदमाशों से उलझाने की क्या जरूरत थी. सेठ का क्या है, लाखोंकरोड़ों में खेलता है. गुंडेबदमाश से उस का रोज का पाला पड़ता होगा. अगर उसे कुछ हो जाता, तो वे क्या कर लेते?

सेठ सुखसागर ने इस होनहार हीरे को पहचान लिया था. वे उसे गाहेबगाहे बुला भी लिया करते थे. वे थोड़ीबहुत मदद तो करते ही थे उस की, जिस से उस का जेबखर्च निकल आता था.

मगर उस के पापा कहते, ‘‘मैं इतनी मेहनत तुम्हारी खातिर करता हूं. तुम पढ़ाईलिखाई पर ध्यान दो. आगे यही काम देगा. ये पैसे वाले हम गरीबों का सिर्फ इस्तेमाल करते हैं.

‘‘ऐसी चर्चा है कि उन की नजर आने वाले विधानसभा चुनावों पर है, जिस के लिए वे उम्मीदवार होना चाहते हैं और इन चुनावों में तुम जैसों का वे लोग इस्तेमाल करेंगे,’’ वे इस के आगे डाक्टर भीमराव अंबेडकर के इस वाक्य को जोड़ देते, ‘‘पढ़ाईलिखाई शेरनी का वह दूध है, जिसे जो पीएगा, वह दहाड़ेगा.’’

यह सुन कर आदित्य हंस पड़ता था. पढ़ाई ही तो कर रहा हूं. मगर अभी सिपाहीचपरासी से ले कर लोक सेवा आयोग तक के इम्तिहान का जो हाल है, उसे वे भी तो पढ़तेसुनते होंगे. मगर 8वीं पास पापा को इस से क्या मतलब. उन्हें तो बस यही लगता है कि उस की पढ़ाई खत्म हुई नहीं कि वह गजटेड अफसर बन जाएगा.

रामनरेश ?ाल्ला कर कहते, ‘‘अभी कुछ ही दिनों बाद तुम्हारी ग्रेजुएशन के ऐग्जाम होने वाले हैं और तुम फालतू चक्कर में फंस कर अपना समय खराब कर रहे हो? कहीं ऐग्जाम खराब होंगे, तो तुम्हारी सारी मटरगश्ती हवा हो जाएगी, इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. तुम्हें ढंग की कोई नौकरी मिले, तो हमें भी चैन पड़े.

‘‘मैं ने तुम्हारे लिए कोई बहुत बड़ी इच्छा नहीं पाल रखी है. तुम साधारण ढंग से पढ़ोलिखो. कहीं टीचरक्लर्क भी लगे, तो मेरे लिए यही बहुत है. मैं तुम्हें कोई रिस्क लेते नहीं देखना चाहता. तुम ये सेठ के महल के चक्कर लगाने छोड़ो और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो.’’

मगर जब से आदित्य की सुरेखा से जानपहचान हुई थी, उस के खर्चे बढ़ गए थे. आखिर गर्लफ्रैंड है उस की. उसे कुछ उपहार वगैरह तो देना बनता ही है. फिर अपने लिए कुछ बढि़या ड्रैस भी तो हो. लोगों पर, खासकर साथियों के बीच इसी ड्रैसिंग सैंस के वजह से ही तो रोबदाब बना रहता है.  वैसे, अपना कोई टूह्वीलर हो, तो क्या कहने.

मगर आदित्य के पास लेदे कर एक पुरानी, टूटी सी साइकिल थी, जिसे देख कर वह झल्ला उठता था. इस फास्ट लाइफ में आजकल साइकिल पर कौन चलता है. पापा तो टूह्वीलर खरीदने से रहे. उन्हें तो कहीं आनाजाना तो होता नहीं. कोई शौकमौज भी नहीं है उन की. आराम से घर से दुकान तक पैदल ही आतेजाते हैं. बहुत हुआ तो शेयरिंग आटोरिकशा से आए या गए. सारी जिंदगी बस खोखे में बिठा कर बिता दी. यह भी कोई जिंदगी है.

सेठ सुखसागर के यहां काम करने वालों के काम की सहूलियत और आनेजाने के लिए उन के मकान में कुछ स्कूटी और बाइकें थीं, जिन का इस्तेमाल उन का स्टाफ करता था. कभीकभार वह उन से मांग भी लेता था. उस में यह सहूलियत भी थी कि उसे उस में पैट्रोल भरवाने की चिंता नहीं रहती थी.

उधर सेठजी को भी लगता कि ऐसे फ्री के सिक्योरिटी गार्ड कहां मिलते हैं. थोड़े से ही काम चल जाता है, नहीं तो बाउंसर, शूटर कितनी डिमांड रखते हैं आजकल. दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा के समय भी वे उस के ग्रुप को मनचाही रकम दान में देते थे और इन सब से उन लोगों के नएनए शूज और ड्रैस के खर्चे निकल आते थे.

सचमुच सेठजी दयालु थे, मगर इस के साथ ही वे प्रैक्टिकल भी थे. वे जानते थे कि दान का लाभ परलोक में मिले या न मिले, इहलोक में तो निकल ही जाता है. इस तरह उन्होंने अपने इर्दगिर्द एक सुरक्षा घेरा बना लिया था.

सेठजी और शायद वह भी यही सोचता है कि दुनिया ऐसे ही चलती है. इस बार सेठजी ने जो दहीहांड़ी की प्लानिंग की थी, उस के केंद्र में वही था. अब नौजवान लड़का है, तो उस की टीम भी होगी ही.

आदित्य अपने कालेज में फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी था और उस की अपनी टीम भी थी. उन्होंने अपनी योजना उसे समझाई, तो वह खुशी से उछल पड़ा. इस में करना कुछ खास नहीं और 5 लाख रुपए का इनाम है.

ऊपर से सेठजी यह भी कह रहे हैं कि उस की टीम के सभी सदस्यों के लिए नई ड्रैस का भी वे इंतजाम करेंगे. तो उसे और क्या चाहिए. यह भी तो एक तरह का खेल है, जिस में उसे भाग लेना चाहिए.

आदित्य की मम्मी को भी कुछ दिन अजीब लगा कि यह लड़का रोजरोज अपने कपड़े गंदे क्यों करता है, तो उस ने इस का राज खोला.

मां गंभीर हो कर बोलीं, ‘‘कितना खतरनाक है यह दहीहांड़ी का खेल. और जो ऊपर से गिरा और नाकामी हाथ लगी, तो इनाम तो मिलेगा नहीं, उलटे हाथपैर जो टूटेंगे, तो इलाज का खर्चा कहां से आएगा? तुम्हारे पापा अलग गुस्सा होंगे, सो तुम समझ लेना.’’

‘‘अरे मम्मी, कुछ नहीं होगा. तुम बेकार में चिंता करती हो. सेठजी बड़े दयालु और समाजसेवी हैं. वे हमारा ध्यान रखते हैं. उन के रहते हमें जरा भी चिंता करने की जरूरत नहीं है. जानती हो, जब हम शाम को फील्ड में इस का अभ्यास करते हैं, तो उस समय सेठजी हमारे लिए चायनाश्ता भी भिजवा देते हैं.’’

लगभग बीसेक दिन तक आदित्य ने अपनी टीम के साथ मानव पिरामिड बनाने का मुश्किल अभ्यास किया था. इस बीच वह कई बार गिरा, चोटें भी आईं. मगर सभी जोश में थे. कुछ अलग, कुछ खास करने का जज्बा ही कुछ अलग होता है.

सुरेखा उन्हें देखती, तो शक में पड़ जाती. अगर ये नाकाम हुए, तो क्या होगा? कालेज के खेल टीचर भी अचरज से उन्हें देखते और कहते, ‘‘जो करना है, अपने रिस्क पर करना.’’

एक दिन तो मानव पिरामिड बनाने के चक्कर में आदित्य अपना बैलेंस संभाल नहीं पाया और औंधे मुंह गिर पड़ा. वह तो खैरियत थी कि मुंह पर चोट नहीं लगी, मगर दाएं हाथ की हथेली में मोच आ गई थी.

आदित्य ने सुरेखा से सलाहमशवरा किया, तो उस ने दवा बाजार जीएम रोड में अपने एक रिश्तेदार की दुकान में भेज दिया था. उन्होंने उसे कुछ दवाएं दीं, जिस से वह जल्दी ही ठीक हो गया था.

मगर इस बीच आदित्य के पापा ने तो हंगामा कर दिया, ‘‘इस लड़के को हुआ क्या है. पढ़ाईलिखाई तो करनी नहीं, खाली खेलकूद में लगा रहता है. क्या जरूरत है ऐसे खतरनाक खेल खेलने की, जिस में जान का खतरा हो?’’

‘‘इस में जान का खतरा कैसे हो सकता है?’’ आदित्य ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘मुंबई और महाराष्ट्र में तो इस का आयोजन हर गलीमहल्ले में होता है. जब वहां कुछ नहीं होता, तो यहां क्या हो जाएगा?’’

‘‘मैं भी थोड़ीबहुत जानकारी रखता हूं रे,’’ पापा चिल्लाए, ‘‘वहां हर साल हादसे होते रहते हैं. लोग अपने हाथपैर तो तुड़वाते हैं ही, जान से भी हाथ धो बैठते हैं. यहां लोग इकमंजिले से गिरने पर घायल हो जाते हैं और तुम 50 फुट के मानव पिरामिड बना कर चढ़ोगे, तो सोचिए क्या होगा…’’

‘‘अब तैयारी तो पूरी है. फिर सेठजी  की इज्जत का भी सवाल है. मुझे तो यह करना ही है.’’

‘‘तुम्हें सेठजी की इतनी चिंता है और मेरी नहीं? सेठजी को अपनी इज्जत की इतनी ही चिंता है, तो वे अपने बेटे को क्यों नहीं तैयार करते? उसे तो मुंबई में महंगी तालीम दिला रहे हैं और तुम्हें बलि का बकरा बना रहे हैं.’’

‘‘आप तो हर बात को उलटी दिशा में ले जाते हैं. आप से तो बात करना ही बेकार है,’’ आदित्य झल्ला कर वहां से उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘उन की हैसियत है, तो वे अपने बेटे को मुंबई क्या, अमेरिका, रूस, जापान या इंगलैंड भी भेज सकते हैं.

आदित्य के पापा पैर पटकते हुए बाहर निकल गए.

अब आदित्य के सामने उस की मां थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि अपने बेटे को समझाएं कि पति को. मगर उन्हें यह ठीक ही लगता था कि बेटा भी कुछ गलत नहीं कर रहा. अरे, यही उम्र तो है, खेलनेखाने की. फिर तो बाद में हायहाय में जुटना ही है.

सेठ उस के कुछ खर्चे उठाता है, तो क्या बुरा करता है. इन की दुकान से दालरोटी चल जाए, यही बहुत है. फिर भी उसे अपने पापा से ढंग से बात करनी चाहिए थी.

मां ने आदित्य से यही कहा ही था कि वह बिफर पड़ा, ‘‘सेठ सुखसागर सिर्फ रुपएपैसे से ही नहीं भरेपूरे हैं, उन्होंने भी चार्टर्ड अकाउंटैंट की पढ़ाई दिल्ली से की है. पापा की तरह वे 8वीं पास नहीं हैं, जो दरदर की ठोकरें खाते फिरते हैं. एक छोटे से खोखे में जिंदगी गुजार दी हम ने. क्या मिला हमें? हमेशा गरीबी के बीच रोते?ांकते रहे हैं हम.’’

मां एकदम से सन्न रह गईं. बेटा यह क्या बोल रहा है. इस को कुछ खबर भी है कि इसी खोखे के बूते ही रामनरेश ने पूरा परिवार पाल दिया है. पहले गांव के परिवार को देखा और उन की भरपाई की, फिर यहां अपना छोटा सा ही सही, मकान बनाया है. आदित्य की भी जो यह पढ़ाई चल रही है, उस में भी तो खर्च हो रहा है.

आदित्य ने कोचिंग जौइन करने को कहा, तो उस के लिए भी उन्होंने कभी मना नहीं किया. और यह आदित्य आज क्या उलटीसीधी बक रहा है. कहीं उन्होंने सुन लिया तो हंगामा मच जाएगा.

मगर सवाल यह है कि आदित्य के दिमाग में आया कैसे कि उस के पापा सिर्फ 8वीं पास हैं. इस का क्या मतलब हुआ कि वे कमअक्ल हैं, कि वे बेचारे हैं. आज तक कभी उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं पसारा, बल्कि दूसरों को अपनी हैसियत से बढ़ कर कुछ दिया ही है. मगर इस आदित्य को क्या हुआ है…

इनाम के रुपयों में से आदित्य के हिस्से में महज 40,000 रुपए ही आए थे, जिस से उस ने एक सैकंडहैंड बाइक खरीद ली थी.

पापा ने आदित्य से कहा था, ‘‘ठीक है, टूह्वीलर ही खरीदना है, तो स्कूटी ले लो. इस से कभीकभार उन की दुकान के लिए वह कुछ सामान की खरीदारी कर के ला दिया करेगा. इस से उन्हें सहूलियत होगी. अभी से वह इसी बहाने खरीदफरोख्त भी सीख लेगा.

मगर स्कूटी के नाम से आदित्य चिढ़ गया. यह भी कोई सवारी है… यह तो फुटकर बनियों की गाड़ी है, जो इस से इधरउधर का सामान खरीद कर यहांवहां ढोते फिरते हैं. डिलीवरी बौय की तरह वह अपनी मेहनत के पैसों को इस में नहीं लगाने वाला.

बाइक की बात ही दूसरी है. स्कूटी तो ऐसा लगता है कि किसी टेबल के आगे बैठे हैं और बाइक पर अहसास होता है कि टांगों के नीचे कुछ दबा हुआ है.

कितना मजा आएगा, जब वह तेज रफ्तार से बाइक चलाएगा. लहरिया कट गाड़ी चलाने में तो वह पूरा उस्ताद है ही. उस के पापा अनपढ़ तो नहीं, मगर 8वीं पास पापा को इस सुख का क्या पता है.

सुरेखा ठीक कहती है, ‘‘यह जिंदगी तो मजे लेने के लिए है. बाकी तो सब रोना है ही जिंदगी में.’’

आदित्य रोते हुए अपनी जिंदगी नहीं बिता सकता. आखिरकार उस ने बाइक खरीद ही ली थी. सुरेखा के साथ जब वह गंगा पाथवे पर जाता, तो जैसे वह हवा में होता. जिंदगी जीना इसी को ही तो कहते हैं.

मगर पिछले हफ्ते रविवार की शाम को आदित्य का गंगा पाथवे पर एक्सीडैंट हो गया था. एक पिकअप वैन ने उसे ऐसी टक्कर मारी कि वह दूर तक घिसट गया. उसे होश तो तब आया, जब उस ने अपनेआप को अस्पताल में पाया. पूरे शरीर में जख्मों पर पट्टियां बंधी थीं. बायां पैर बुरी तरह फ्रैक्चर था.

पिकअप वैन वाला तो कब का भाग चुका था और पुलिस ने आदित्य के पर्स में रखे परिचयपत्र से उस के पापा और सेठ सुखसागर को भी जानकारी दी थी.

पुलिस का तो यह भी आरोप था कि एक तो उस की बाइक की स्पीड तय सीमा से ज्यादा थी और दूसरे वह लहरिया कट गाड़ी चला रहा था. इस आधार पर पुलिस ने उसी के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर दिए थे, जिसे बमुश्किल अपनी पहुंच के बल पर सेठ सुखसागर ने रफादफा कराया था.

सुरेखा भी एक दिन आदित्य को देखने आई थी और फिर जो वह लापता हुई, तो उस की खबर ही नहीं मिली. आजकल उस का फोन भी स्विच औफ हो चुका था.

वह सब तो अपनी जगह, मगर क्या आदित्य सचमुच अपाहिज हो जाएगा? सेठ सुखसागर तो यही कह रहे थे. मगर डाक्टर कमल ने उसे भरोसा दिलाया था कि वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा. उस के पापा का चेहरा उस समय कैसा निरीह हो गया था, जब वह सेठ सुखसागर से बातें कर रहे थे.

ये पैसे वाले ऐसे ही होते हैं क्या? सिर्फ इस्तेमाल करना भर जानते हैं? मगर उस के पापा कितनी मजबूती से बोले थे कि वे अपनी सारी जमापूंजी और घरबार तक उस के इलाज के लिए बेच डालेंगे. वे मजदूरी करने तक को तैयार हैं उस के लिए और वह उन्हें बेवकूफ, गंवार, 8वीं पास कहता रहा.

अब आदित्य की आंखें सही माने में पूरी तरह खुल चुकी थीं. मगर इस के पहले उसे पूरी तरह ठीक होना है. न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अपने पापा के लिए. यही उस का प्रायश्चित्त होगा. अब उसे जिंदगी में कुछ अच्छा कर के दिखाना ही है.

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