बयार बदलाव की: नीला की खुशियों को किसकी नजर लग गई थी

रमन लिफ्ट से बाहर निकला, पार्किंग से गाड़ी निकाली और घर की तरफ चल दिया. वह इस समय काफी उल?ान में था. रात को 8 बजने वाले थे. वह साढ़े 8 बजे तक औफिस से घर पहुंच जाता था. घर पर नीला उस का बेसब्री से इंतजार कर रही होगी. पर उस का इस समय घर जाने का बिलकुल भी मन नहीं हो रहा था. कुछ सोच कर उस ने आगे से यूटर्न लिया और कार दूसरी सड़क पर डाल दी. थोड़ी देर बाद उस ने एक खुली जगह पर कार खड़ी की और पैदल ही समुद्र की तरफ चल दिया.

यह समुद्र का थोड़ा सूना सा किनारा था. किनारा बड़े बड़े पत्थरों से अटा पड़ा था. वह एक पत्थर पर बैठ गया और हिलोरें मारते समुद्र को एकटक निहारने लगा. समुद्र की लहरें किनारे तक आतीं और जो कुछ अपने साथ बहा कर लातीं वह सब किनारे पर पटक कर वापस लौट जातीं. वह बहुत देर तक उन मचलती लहरों को देखता रहा.

देखतेदेखते वह अपने ही खयालों में डूबने लगा. वह दुखी हो, ऐसा नहीं था. पर बहुत ही पसोपेश में था. उस के पिता का फोन आया आज औफिस में. उस के मातापिता अगले हफ्ते एक महीने के लिए उस के पास आने वाले थे. मातापिता के आने की उसे खुशी थी. वह हृदय से चाहता था कि उस के मातापिता उस के पास आएं. पर अपने विवाह के एक साल पूरा होने के बावजूद वह एक बार भी उन्हें अपने पास आने के लिए नहीं कह पाया. कारण कुछ खास भी नहीं था. न उस के मातापिता अशिक्षित या गंवार थे. न उस की पत्नी नीला कर्कश या तेज स्वभाव की थी. फिर भी वह सम?ा नहीं पा रहा था कि उस के मातापिता आधुनिकता के रंग में रंगी उस की पत्नी को किस तरह से लेंगे. यह बात सिर्फ नीला की ही नहीं, बल्कि उस की पूरी पीढ़ी की है. नीला दिल्ली में विवाह से पहले नौकरी करती थी. विवाह के बाद नौकरी छोड़ कर उस के साथ मुंबई आ गईर् थी. यहां वह दूसरी नौकरी के लिए कोशिश कर रही थी.

नीला हर तरह से अच्छी लड़की थी. कोमल स्वभाव, अच्छे विचारों व प्यार करने वाली लड़की थी. उस के मातापिता के आने से वह खुश ही होगी. लेकिन उस के संस्कारी मातापिता, खासकर उस की मम्मी, नीला की आदतों, उस के रहनसहन के तरीकों को किस तरह से लेंगे, वह सम?ा नहीं पा रहा था.

विवाह के बाद वह चंडीगढ़ अपने मातापिता के पास थोड़ेथोड़े दिनों के लिए 2 बार ही गया था. मम्मी और नीला की अधिकतर बातें फोन से ही होती थीं. मम्मी उस के स्वभाव की बहुत तारीफ करती थीं. नीला भी अपनी सास का बहुत आदर करती थी और उन को पसंद करती थी. पर यह एक महीने का सान्निध्य कहीं उन के बीच की आत्मीयता को खत्म न कर दे, वह इसी उधेड़बुन में था.

नीला देर से सो कर उठती थी. उस के औफिस जाने तक भी कभी वह उठ जाती, कभी सोई रहती थी. नाश्ते में वह सिर्फ दूध व कौर्नफ्लैक्स लेता था. इसलिए वह खुद ही खा कर नीला को दरवाजा बंद करने को कह कर औफिस चला जाता था. उसे मालूम था, नीला की नौकरी लगते ही उस की दिनचर्या बदल जाएगी. फिर उसे जल्दी उठना ही पड़ेगा. अभी शादी को समय ही कितना हुआ है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. वह सारे दिन फ्लैट में अकेली रहती है. सुबह से उठ कर क्या करेगी.

खाना बनाना भी उसे बहुत ज्यादा नहीं आता था, मतलब का ही आता था. हालांकि एक साल में वह काफी कुछ सीख गई थी पर अभी तक उन का खाना अकसर बाहर ही होता था. मम्मीपापा के आने से काम भी बढ़ेगा. नीला इतना काम कहां संभाल पाएगी और मम्मी से अपने घर का पूरा काम संभालने की उम्मीद करना गलत था. वे नीला की सहायता करें, यह तो ठीक लगता है पर… फिर कपड़े तो नीला उस के मातापिता के सामने कितने भी शालीन पहनने की कोशिश करे, उस के बावजूद उस के मातापिता को उस का पहनावा नागवार गुजर सकता है.

मम्मी की पीढ़ी ने अपने पति की बहुत देखभाल की है. हाथ में सबकुछ उपलब्ध कराया है. औफिस जाते पति की हर जरूरत के लिए उस के पीछेपीछे घूमती पत्नी की पीढ़ी वाली उस की मम्मी क्या आज की पत्नी का तौरतरीका बरदाश्त कर पाएंगी, वह सम?ा नहीं पा रहा था. नीला से अगर थोड़े दिन अपना रवैया बदलने को कहता है तो नीला उस के मातापिता के बारे में क्या सोचेगी. उन दोनों के रिश्ते औपचारिक हो जाएंगे. यह रिश्ता एकदो दिन का तो है नहीं. उस के मातापिता तो अब उस के पास आतेजाते रहेंगे.

यही सब सोच कर वह अजीब सी उधेड़बुन में था. अंधकार घना हो गया था. समुद्र की लहरें किनारे पर सिर पटकपटक कर उसे उस के विचारों से बाहर लाने का असफल प्रयास कर रही थीं. उस ने घड़ी पर नजर डाली. 10 बजने वाले थे. तभी मोबाइल बज उठा. नीला थी.

‘‘हैलो, कहां हो? अभी औफिस से नहीं निकले क्या? कितनी बार फोन किया, उठा क्यों नहीं रहे थे, ड्राइव कर रहे हो क्या?’’ नीला चिंतित स्वर में कई सवाल कर बैठी. ‘‘हां, ड्राइव कर रहा था. बस, पहुंच ही रहा हूं,’’ उस ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और उठ कर कार की तरफ चला गया.

घर पहुंच कर भी वह गुमसुम ही रहा. नीला आदत के अनुसार चुहलबाजी कर रही थी. अपनी भोलीभाली बातों से उसे रि?ाने का प्रयास कर रही थी. पर उस की चुप्पी टूट ही नहीं रही थी. ‘‘क्या बात है रमन, आज कुछ अपसैट हो. सब ठीक तो है न?’’ वह उस के घने बालों में उंगलियां फेरती हुई उस की बगल में बैठ गई. उस ने नीला की तरफ देखा. नीला मीठे स्वभाव की सरल लड़की थी. इसलिए वह उसे बहुत प्यार करता था. उस की आदतों की कोई कमी उसे नहीं अखरती थी. फिर वह देखता कि नीला ही नहीं, उस के हमउम्र दोस्तों की बीवियां भी लगभग नीला जैसी ही हैं. यह पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल भिन्न है.

वह प्यार से नीला को बांहों में कसता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कोई खास बात नहीं, बल्कि एक अच्छी बात है, चंडीगढ़ से मम्मीपापा आ रहे हैं एक महीने के लिए हमारे पास.’’

सुन कर नीला खुशी से उछल पड़ी, ‘‘अरे वाह, यह तो बहुत अच्छी खबर है. एक महीने के लिए मैं भी अकेले रहने की बोरियत से बच जाऊंगी. मम्मीपापा के साथ बहुत मजा आएगा. कब आ  रहे हैं?’’‘‘अगले हफ्ते की फ्लाइट है.’’

‘‘तो इतनी देर बाद क्यों बता रहे हो? आज तो देर हो गई. कल जल्दी आना, बहुत सारी चीजें खरीदनी हैं.’’ ‘‘हां, हां, तुम लिस्ट तैयार रखना. मैं जल्दी आ जाऊंगा. फिर चलेंगे.’’ मम्मीपापा के आने के नाम से नीला खुश व उत्साहित थी. उसे तो मम्मीपापा के साथ चंडीगढ़ वाली मस्ती करनी थी. इस से अधिक वह कुछ नहीं सोच पा रही थी. रमन उस के उत्साह को मुसकराते हुए देख रहा था.

चंडीगढ़ में तो सबकुछ हाथ में मिलता है. मम्मी की तैयारियां पहले से ही अपने बच्चों के लिए इतनी संपूर्ण रहती हैं कि उन्हें बीच में परेशान नहीं होना पड़ता. खानेपीने की चीजों से फ्रिज भर देती हैं. इस के अलावा काम करने वाले भी घर के पुराने नौकर हैं, तो नीला को चम्मच हिलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है और न उस से थोड़े दिनों के लिए कोई ऐसी उम्मीद रखता है. उस ने खुद कुछ किया तो किया, नहीं किया तो नहीं किया. अपने प्यारे स्वभाव के कारण वह मम्मीपापा की इतनी लाड़ली है कि वे उसे पलकों पर बिठा कर रखते हैं.

नीला अपनी रौ में ढेर सारी प्लानिंग कर रही थी. रमन कुछ कह कर या उसे कुछ सम?ा कर उस की खुशी में विघ्न नहीं डालना चाहता था. इसलिए उस ने मन ही मन सोचा, जो होगा देखा जाएगा. ‘‘अब बातें ही करती रहोगी या कुछ खाने को भी दोगी. कुछ बनाया भी है या बाहर से और्डर करूं?’’ वह हंसता हुआ नीला को छेड़ता हुआ बोला.

‘‘आज तो मैं ने पास्ता बनाया है.’’ ‘‘पास्ता बनाया है? अरे, कुछ रोटीसब्जी बना देतीं. यह सब रोजरोज मु?ा से नहीं खाया जाता.’’ ‘‘पर मु?ा से रोटी अच्छी नहीं बनती है,’’ नीला मायूसी से बोली. ‘‘कोई बात नहीं,’’ वह उस के गालों को प्यार से सहलाता हुआ बोला, ‘‘अभी बाहर से और्डर कर देता हूं. मम्मी आएंगी तो इस बार तुम रोटी बनाना जरूर सीख लेना.’’

‘‘ठीक है, सीख लूंगी.’’ एक हफ्ते बाद उस के मातापिता आ गए. उन की दिल्ली से फ्लाइट थी. फ्लाइट शाम की थी. वह औफिस से जल्दी नहीं निकल पाया. नीला ही उन्हें एयरपोर्ट लेने चली गई. उस ने औफिस से मम्मीपापा से फोन पर बात कर ली. उस के मातापिता पहली बार उस के पास आए थे, इसलिए वह बहुत संतुष्टि का अनुभव कर रहा था.

शाम को वह घर पहुंचा तो नीला मम्मीपापा के साथ बातें करने में मशगूल थी. मम्मीपापा भी उस की गृहस्थी देख कर बहुत खुश थे. चारों बैठ कर बातें करने लगे. उन्हें पता ही नहीं चला कि कितना समय गुजर गया. डिनर तो आज बाहर ही कर लेंगे, उस ने सोचा, इसलिए बोला, ‘‘मम्मीपापा चलिए ड्राइव पर चलते हैं, घूम भी लेंगे और खाना भी खा कर आ जाएंगे.’’

चारों तैयार हो कर चले गए. सुबह उस का औफिस था. उस की नींद और दिनों से भी जल्दी खुल गई. उस ने एकदो बार नीला को हौले से उठाने की कोशिश की पर वह इतनी गहरी नींद में थी कि हिलडुल कर फिर सो गई. वह उठ कर मम्मीपापा के कमरे की तरफ चला गया. तभी उस ने देखा कि मम्मी किचन में गैस जलाने की कोशिश कर रही हैं. वह किचन में चला गया.

‘‘क्या कर रही हैं मम्मी?’’ ‘‘चाय बना रही थी बेटा, तू पिएगा चाय?’’ ‘‘हां, पी लूंगा.’’ ‘‘और नीला?’’ ‘‘वह तो अभी…’’ ‘‘सो रही होगी, कोई बात नहीं. जब उठेगी तब पी लेगी. हम तीनों की बना देती हूं,’’ मां के चेहरे से उसे बिलकुल भी नहीं लगा कि उन्हें नीला के देर तक सोने पर कोई आश्चर्य हो रहा है. बातें करतेकरते तीनों ने चाय खत्म की. पर दिल ही दिल में वह अनमयस्क सोच रहा था कि ‘काश, नीला भी उठ जाती.’

औफिस का समय हो रहा था. वह तैयार होने चला गया. वह रोज सुबह अपने कपड़े खुद ही प्रैस करता था. खासकर शर्ट तो रोज ही प्रैस करनी पड़ती थी. मम्मी बाथरूम में थीं. प्रैस की टेबल लौबी में लगी थी. उस ने सोचा जब तक मम्मी बाथरूम से आती हैं तब तक वह शर्ट प्रैस कर लेगा. अभी वह प्रैस कर ही रहा था कि मम्मी बाथरूम से निकल आईं.

‘‘अरे, तू प्रैस कर रहा है बेटा, ला मैं कर देती हूं.’’ ‘‘नहींनहीं मम्मी, मैं कर लूंगा,’’ वह कुछकुछ ?ोंपता हुआ सा बोला. ‘‘नहींनहीं, मैं कर देती हूं. तू तैयार हो जा और नाश्ते में क्या खाएगा?’’ ‘‘मैं तो कौर्नफ्लैक्स और दूध लेता हूं.’’ ‘‘आजकल तो कुछ और नाश्ता कर ले. कौर्नफ्लैक्स और दूध तो रोज ही लेते हो तुम दोनों. जो नीला को भी पसंद हो…’’

‘‘नीला को तो उत्तपम बहुत पसंद है. वहां अलमारी में पड़े हैं पैकेट,’’ उस के मुंह से निकला. ‘‘ठीक है, मैं उत्तपम ही बना देती हूं. मु?ो और तेरे पापा को भी बहुत पसंद है,’’ मम्मी ने हंस कर कहा. उसे लगा मम्मी ने कुछ कहा नहीं पर सोच रही होंगी कि बीवी सो रही है और वह औफिस जाने के लिए चीजों से जू?ा रहा है. पर मम्मी के चेहरे पर उसे ऐसा कोई भाव नजर नहीं आया.

उस ने तृप्ति से नाश्ता किया. तब तक नीला भी उठ गई. अपनी तरफ से तो वह भी रोज से जल्दी उठ गई थी. वह सब को बाय करता हुआ औफिस चला गया. नीला बाथरूम से फ्रैश हो कर आई तो मम्मी ने उसे भी नाश्ता पकड़ा दिया.

वह औफिस में बैठा लंच के बारे में सोच रहा था. पता नहीं घर में क्या बना होगा. उस के मातापिता तो रोज बाहर का भी नहीं खा पाएंगे. उस ने नीला को फोन किया.

‘‘हैलो,’’ नीला की सुरीली व मासूम सी आवाज सुन कर वह सबकुछ  भूल गया. ‘‘लंच में कुछ बनाया भी है या नहीं? नहीं तो बाहर से और्डर कर लो.’’ ‘‘मम्मी ने बढि़या राजमाचावल बनाए हैं और मेरी पसंद की गोभी की सब्जी भी,’’ नीला के स्वर में मां के आने का सा लाड़लापन था. इठलाते हुए बोली, ‘‘आप को भी खाना है तो घर आ जाओ.’’

‘‘नहीं, तुम ही खाओ. मैं शाम को बचा हुआ खा लूंगा,’’ वह हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय तुम अच्छी बनाती हो. कम से कम शाम की बढि़या चाय पिला देना मम्मीपापा को,’’ जवाब में नीला भी बिना सोचेसम?ो हंस दी.

शाम को वह जल्दी घर पहुंच गया. तीनों बैठ कर चाय पी रहे थे. उस के आते ही मम्मीपापा ने नीला की बनाई चाय की तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए. वह मन ही मन मुसकरा दिया.’’ ‘‘मम्मी, नीला टमाटर का सूप भी बहुत अच्छा बनाती है. नीला, आज सूप बना कर पिला दो.’’

‘‘हां, आज मैं सूप बना दूंगी, ठीक है मम्मी?’’ ‘‘ठीक है. डिनर में क्या बनाऊं,’’ मम्मी किचन की तरफ जाती हुई बोलीं.

‘‘बाहर घूमने चलेंगे तो खाना खा कर आ जाएंगे,’’ वह बोला.‘‘नहींनहीं, कुछ तैयारी कर देती हूं. फिर घूमने जाएंगे. जब तक हम हैं,  तब तक घर का खा लो,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘हां मम्मा,’’ नीला लाड़ से मम्मी के गले में बांहें डालती हुई बोली, ‘‘आज दमआलू बना दो जैसे आप ने चंडीगढ़ में बनाए थे. सारी तैयारी मैं कर देती हूं. आप मु?ो बता दीजिए. बना आप दीजिए.’’

‘‘ठीक है, मैं अपनी गुडि़या की पसंद बनाऊंगी,’’ मम्मी प्यार से नीला की बलैयां लेती हुई बोलीं.

रमन सुखद आश्चर्य से मम्मी को देख रहा था. बदली सिर्फ उस की पीढ़ी ही नहीं है. उस के मातापिता की पीढ़ी ने भी खुद को कितना बदल लिया है.

मम्मी ने आननफानन डिनर की तैयारी की और चारों घूमने चल दिए. बाहर वह देख रहा था. नीला मम्मीपापा से ही चिपकी हुई है. कभी एक का हाथ पकड़ रही है तो कभी दूसरे का. कभीकभी तो उसे लग रहा था कि शायद मांबाप नीला के आए हैं और वह दामाद है.

नीला छोटीछोटी बातों में मम्मीपापा का बहुत ध्यान रख रही थी. घुमाते समय भी एकएक जगह के बारे में उन्हें बता रही थी और उस के मातापिता तो अपनी लाड़ली बहू पर फिदा हुए जा रहे थे.

रोज की यही दिनचर्या बीत रही थी. मम्मी ने किचन का लगभग सारा भार अपने ऊपर ले लिया था. नीला को जो कुछ बनाना आता था, वह भी पूरे मनोयोग से बना कर खिलाने की कोशिश करती. शाम को चारों घूमने निकल जाते. घर आ कर जहां नीला कपड़े बदलने में लग जाती, मम्मी किचन में पहुंच कर डिनर का बचा हुआ कार्य खत्म करतीं और फिर बैठ जातीं. तब तक नीला आती और बढि़या चाय बना कर मम्मीपापा को पिलाती. गजब का सामंजस्य था. कहीं कोई हलचल नहीं. कहीं कुछ गड़बड़ नहीं.

एक दिन उस ने पापा से नाइट क्लब  में जाने की बात कही. उस के मम्मीपापा उच्चशिक्षित थे. सहर्ष तैयार हो गए. वे तैयार होने कमरे में चले गए. वे दोनों भी तैयार होने चले गए. वह तैयार हो कर ड्राइंगरूम में बैठ गया. मम्मीपापा भी बाहर आ कर बैठ गए. थोड़ी देर बाद नीला तैयार हो कर निकली तो रमन सन्न रह गया. नीला ने घुटनों से ऊपर की स्लीवलैस लाल रंग की मिनी पहनी हुई थी.

वह घबरा कर मम्मीपापा के चेहरे देखने लगा. अभी तक की उस की ड्रैसेज को तो वे सहर्ष पचा रहे थे पर… उसे पता होता कि नीला आज क्या पहनने वाली है तो वह उसे मना कर देता. हालांकि नीला जहां जा रही थी वहां के माहौल के अनुरूप ही उस ने ड्रैस पहनी थी.

मम्मीपापा की नजर उस पर पड़ी तो दोनों मुसकरा दिए, ‘‘अरे वाह, नीला, तू तो पहचान में ही नहीं आ रही है. बहुत स्मार्ट लग रही है. किसी फिल्म की हीरोइन लग रही है,’’ पापा बोले.

‘‘हमारी बेटी किसी फिल्म हीरोइन से कम है क्या. जो भी पहनती है उस पर सबकुछ अच्छा लगता है,’’ मम्मी भी हुलस कर बोलीं.

सुन कर वह चारों खाने चित्त हो गया. उस के मम्मीपापा की सोच उस की कल्पना से बहुत आगे व आधुनिक थी. वह अपने दोस्तों के घरों की स्थितियों के बारे में सोचने लगा. जब उन की बीवियों और उन के मातापिताओं का आमनासामना होता है तो इन्हीं छोटीछोटी बातों पर उन की अपने बेटों की आधुनिक मिजाज बीवियों से, जो लाड़ली बेटियां रही हैं, खटपट मची रहती है. उन के मातापिताओं को अपनी बहुओं के देर से उठने से ले कर पहननेओढ़ने के तौरतरीकों, ठीक से खाना खाना न आना, काम करने की आदत न होना आदि तमाम बातों से शिकायतें थीं. और बहुओं को सासससुर की टोकाटाकी वह पहननेओढ़ने के बंधनों से सख्त नफरत थी. जिस में बेचारे बेटे या पति की दुर्दशा हो जाती थी.

बेटा अपनी पत्नी से प्यार करता है. वह उस की अच्छीबुरी आदतों के साथ सम?ाता करना चाहता है पर यह बात मातापिता नहीं सम?ा पाते. उन्हें अपना बेटा बेचारा लगने लगता है. वे नहीं सम?ा पाते कि बहू की बुराई या उसे नापसंद करना बेटे के हृदय को तोड़ देता है, उन के बीच के नाजुक रिश्ते, जो समय के साथ मजबूती पाया है, को कमजोर करता है. खैर, यह उन की समस्या है. उस ने सोचा, वह तो खामखां ही डर रहा था इतने दिनों से. इसलिए अपने मम्मीपापा को खुलेदिल से आने के लिए भी नहीं कह पा रहा था.

वे चारों साथ में खूब मस्ती कर रहे थे. घूमने जाते, हंसतेबोलते. हंसीमजाक से उस का छोटा सा फ्लैट हर समय गुलजार रहता. नीला को भले ही किचन का बहुत अधिक काम नहीं आता था पर उस के प्यार व उस की भावनाओं में मम्मीपापा के प्रति कहीं कमी नहीं थी. बल्कि, उन की उपस्थिति से वह उस से अधिक आनंदित हो रही थी.

धीरेधीरे मम्मीपापा के जाने का दिन करीब आ रहा था. जैसेजैसे उन के जाने का दिन करीब आ रहा था, नीला उदास होती जा रही थी. वह बराबर मम्मीपापा से मीठा ?ागड़ा करने पर तुली हुई थी.

‘‘आप वापस क्यों जा रहे हैं मम्मी, वहां क्या रखा है? आप के बच्चे तो यहां पर हैं. यहीं रहिए न.’’

‘‘फिर आएंगे बेटा. अब तुम आ जाओगे छुट्टी पर. साल में 2 बार तुम आ जाओगे, एक बार हम आ जाएंगे. मिलनाजुलना होता रहेगा,’’ पापा उसे दुलार करते हुए बोले.

‘‘लेकिन आप दोनों यहीं क्यों नहीं रह सकते हमेशा,’’ नीला लगभग रोंआसी सी हो गई.

मम्मी ने उसे सीने से लगा लिया, ‘‘हम यहीं रह गए तो तुम घर किस के पास जाओगे. अगली बार आएंगे तो ज्यादा दिन रहेंगे,’’ फिर उसे प्यार करते हुए बोली, ‘‘बहुत दिन घर भी अकेला नहीं छोड़ा जाता. तू तो हमारी लाखों में एक लाड़ली बेटी है. तेरे साथ तो हमें बहुत अच्छा लगता है.’’ पर नीला की आंखें भर आई थीं. नीला की भरी आंखें देख कर उस का हृदय भी भावुक हो रहा था. ‘‘पापा, थोड़े दिन और रुक जाइए न. मैं फ्लाइट का टिकट आगे बढ़ा देता हूं,’’ रमन बोला.

‘‘नहीं बेटा. इस बार रहने दो, अगली बार आएंगे तो घर का प्रबंध ठीक से कर के आएंगे तब ज्यादा दिन रह लेंगे.’’

मम्मीपापा के जाने का दिन आ गया. उन की शाम की फ्लाइट थी. उस दिन रविवार था. मम्मीपापा के न… न… करतेकरते भी नीला ने उन के लिए ढेर सारे गिफ्ट खरीदवाए थे. सुबह वह काफी जल्दी उठ कर मम्मीपापा के कमरे में चला गया. पापा मौर्निंग वाक पर गए हुए थे. वह मम्मी के पास जा कर बैठ गया.

‘‘मैं तेरे लिए चाय बना कर ले आती हूं,’’ मम्मी उठने का उपक्रम करती  हुई बोलीं.

‘‘नहीं मम्मी, रहने दो. मु?ो रोज चाय पीने की आदत नहीं है. बैठो आप. कल से आप कहां होंगी. इतने दिन तो पता ही नहीं चला. कब एक महीना बीत गया, बहुत अच्छा लगा आप के और पापा के आने से.’’

‘‘हमें भी तो बहुत अच्छा लगा बेटा तुम्हारे पास आने से. कितना ध्यान रखा तुम दोनों ने, कितना घुमाया, कितना खर्च किया हमारे ऊपर, इतनी सारी चीजें भी खरीद लीं.’’

‘‘कुछ नहीं किया मम्मी, फिर मातापिता को खुश करने से आशीर्वाद तो हमें ही मिलेगा.’’

‘‘कितनी प्यारी और मीठी बातें करते हो तुम दोनों,’’ मम्मी खुशी से छलक आई अपनी आंखों को पोंछती हुई बोलीं, ‘‘दिल को छू जाती हैं तुम्हारी बातें, तुम्हारी भावनाएं. खुशनसीब हैं हम कि हमारे ऐसे प्यारे बच्चे हैं. एक महीना बहुत खुशी से बीता.’’

‘‘पर आप पर काम का भार पड़ गया,’’ रमन संकोच से बोला, ‘‘दरअसल, नीला को अभी गृहस्थी का ज्यादा काम नहीं आता. धीरेधीरे सीख रही है. नौकरी करेगी तो जल्दी उठने की आदत भी पड़ जाएगी.’’

‘‘काम कोई माने नहीं रखता बेटा. नीला कोशिश करती है, आलसी नहीं है. उस से जो भी हो पाता है वह पूरा प्रयत्न करती है. कुछ कर न पाना और कुछ करना ही न चाहना, दोनों बातों में फर्क है. मुख्य तो स्वभाव होता है, भावनाओं और विचारों से यदि इंसान अच्छा है तो ये बातें कोई अहमियत नहीं रखतीं. आदतें बदल जाती हैं. काम करना आ जाता है. आजकल एकदो बच्चे होते हैं. बेटियां बहुत लाड़प्यार और संपन्नता में बड़ी होती हैं. उन के जीवन का ध्येय किचन या गृहस्थी का काम सीखना नहीं, बल्कि पढ़ाईलिखाई कर के कैरियर बनाना होता है. इसलिए विवाह होते ही उन से ऐसी उम्मीद करना गलत है.

‘‘नीला बहुत प्यारी लड़की है, उस के हृदय का पूरा प्यार और भावना हम तक पूरी की पूरी पहुंच जाती है. हम तो ऐसी बहू पा कर बहुत खुश हैं,’’ मां उस के चेहरे पर मुसकराती नजर डाल कर बोलीं, ‘‘अभी वह बच्ची है. कल को बच्चे होंगे तो कई बातों में वह खुद ही परिपक्व हो जाएगी.’’

‘‘जी मम्मी, मैं भी यही सोचता हूं.’’

‘‘और बेटा, आजकल लड़की क्या और लड़का क्या, दोनों को ही समानरूप से गृहस्थी संभालनी चाहिए. वरना लड़कियां, खासकर महानगरों में, नौकरियां कैसे करेंगी जहां नौकरों की भी सुविधा नहीं है.’’

‘‘जी मम्मी, मैं इस बात का ध्यान रखूंगा.’’

थोड़ी देर दोनों चुप रहे, फिर एकाएक रमन बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, सच बताऊं तो मैं नहीं सोच पा रहा था कि आप नीला की पीढ़ी की लड़कियों के रहनसहन की आदतों व पहननेओढ़ने के तरीकों को इतनी स्वाभाविकता से ले लेंगी, इसलिए…’’ कह कर उस ने नजरें ?ाका लीं.

‘‘इसीलिए हमें आने के लिए नहीं बोल रहा था,’’ मम्मी हंसने लगीं, ‘‘तेरे मातापिता अनपढ़ हैं क्या?’’

‘‘नहीं मम्मी, आप की पीढ़ी तो पढ़ीलिखी है. मेरे सभी दोस्तों के मातापिता उच्चशिक्षित हैं पर पता नहीं क्यों बदलना नहीं चाहते.’’

‘‘बदलाव बहुत जरूरी है बेटा. समय को बहने देना चाहिए. पकड़ कर बैठेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे? रिश्ते भी ठहर जाएंगे, दूरियां भी बढ़ेंगी…’’

‘‘यह सम?ा सब में नहीं होती मम्मी,’’ यह बोला ही था कि तभी उस के पापा आ गए. नीला भी आंखें मलतेमलते उठ कर आ गई और मम्मी की गोद में सिर रख कर गुडमुड कर लेट गई. मम्मी हंस कर प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

‘चलोचलो उठो, तुम्हारी नहीं, मेरी मम्मी हैं. पूरे महीने मु?ो मम्मी के पास नहीं फटकने दिया. खुद ही चिपकी रहीं,’’ छेड़ता हुआ रमन उसे धकेलने लगा. नीला और भी बांहें फैला कर मम्मी की गोद से चिपक गई. देख कर रमन हंसने लगा.

शाम को जाने की सारी तैयारी हो गई. वे दोनों मम्मीपापा को छोड़ने एयरपोर्ट चले गए. एयरपोर्ट के बाहर मम्मीपापा को छोड़ने का समय आ गया. वह दोनों को नमस्कार कर उन के गले लग गया. उस का खुद का मन भी बहुत उदास हो रहा था. पर उसे पता था वह तो कल से काम में व्यस्त हो जाएगा पर नीला को मम्मीपापा की कमी शिद्दत से महसूस होगी.

पापा से गले लग कर नीला मम्मी के गले से चिपक गई. मम्मी ने भी प्यार से उसे बांहों में भींच लिया. वह थोड़ी देर तक अलग नहीं हुई तो वह सम?ा गया कि भावुक स्वभाव की नीला रो रही है. मम्मी की आंखें भी भर आई थीं. नीला को अपने से अलग कर उस की आंखें पोंछती हुई प्यार से बोलीं, ‘‘जल्दी आएंगे बेटा. अब तुम आओ छुट्टी ले कर,’’ रमन भी पास में जा कर खड़ा हो गया. नीला के इर्दगिर्द बांहों का घेरा बनाते हुए बोला, ‘‘जी मम्मी, जल्दी ही आएंगे.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ मम्मीपापा ने दोनों के गाल थपके और सामान की ट्रौली धकेलते, उन्हें हाथ हिलाते हुए एयरपोर्ट के अंदर चले गए. रमन और नीला भरी आंखों से उन्हें जाते हुए देखते रहे. रमन सोच रहा था, बदलाव की बयार तो बहनी ही चाहिए चाहे वह मौसम की हो या विचारों की, तभी जीवन सुखमय होता है.

’’ मां उस के चेहरे पर मुसकराती नजर डाल कर बोलीं, ‘‘अभी वह बच्ची है. कल को बच्चे होंगे तो कई बातों में वह खुद ही परिपक्व हो जाएगी.’’

‘‘जी मम्मी, मैं भी यही सोचता हूं.’’

‘‘और बेटा, आजकल लड़की क्या और लड़का क्या, दोनों को ही समानरूप से गृहस्थी संभालनी चाहिए. वरना लड़कियां, खासकर महानगरों में, नौकरियां कैसे करेंगी जहां नौकरों की भी सुविधा नहीं है.’’

‘‘जी मम्मी, मैं इस बात का ध्यान रखूंगा.’’

थोड़ी देर दोनों चुप रहे, फिर एकाएक रमन बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, सच बताऊं तो मैं नहीं सोच पा रहा था कि आप नीला की पीढ़ी की लड़कियों के रहनसहन की आदतों व पहननेओढ़ने के तरीकों को इतनी स्वाभाविकता से ले लेंगी, इसलिए…’’ कह कर उस ने नजरें ?ाका लीं.

‘‘इसीलिए हमें आने के लिए नहीं बोल रहा था,’’ मम्मी हंसने लगीं, ‘‘तेरे मातापिता अनपढ़ हैं क्या?’’

‘‘नहीं मम्मी, आप की पीढ़ी तो पढ़ीलिखी है. मेरे सभी दोस्तों के मातापिता उच्चशिक्षित हैं पर पता नहीं क्यों बदलना नहीं चाहते.’’

‘‘बदलाव बहुत जरूरी है बेटा. समय को बहने देना चाहिए. पकड़ कर बैठेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे? रिश्ते भी ठहर जाएंगे, दूरियां भी बढ़ेंगी…’’

‘‘यह सम?ा सब में नहीं होती मम्मी,’’ यह बोला ही था कि तभी उस के पापा आ गए. नीला भी आंखें मलतेमलते उठ कर आ गई और मम्मी की गोद में सिर रख कर गुडमुड कर लेट गई. मम्मी हंस कर प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

‘‘चलोचलो उठो, तुम्हारी नहीं, मेरी मम्मी हैं. पूरे महीने मु?ो मम्मी के पास नहीं फटकने दिया. खुद ही चिपकी रहीं,’’ छेड़ता हुआ रमन उसे धकेलने लगा. नीला और भी बांहें फैला कर मम्मी की गोद से चिपक गई. देख कर रमन हंसने लगा.

शाम को जाने की सारी तैयारी हो गई. वे दोनों मम्मीपापा को छोड़ने एयरपोर्ट चले गए. एयरपोर्ट के बाहर मम्मीपापा को छोड़ने का समय आ गया. वह दोनों को नमस्कार कर उन के गले लग गया. उस का खुद का मन भी बहुत उदास हो रहा था. पर उसे पता था वह तो कल से काम में व्यस्त हो जाएगा पर नीला को मम्मीपापा की कमी शिद्दत से महसूस होगी.

पापा से गले लग कर नीला मम्मी के गले से चिपक गई. मम्मी ने भी प्यार से उसे बांहों में भींच लिया. वह थोड़ी देर तक अलग नहीं हुई तो वह सम?ा गया कि भावुक स्वभाव की नीला रो रही है. मम्मी की आंखें भी भर आई थीं. नीला को अपने से अलग कर उस की आंखें पोंछती हुई प्यार से बोलीं, ‘‘जल्दी आएंगे बेटा. अब तुम आओ छुट्टी ले कर,’’ रमन भी पास में जा कर खड़ा हो गया. नीला के इर्दगिर्द बांहों का घेरा बनाते हुए बोला, ‘‘जी मम्मी, जल्दी ही आएंगे.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ मम्मीपापा ने दोनों के गाल थपके और सामान की ट्रौली धकेलते, उन्हें हाथ हिलाते हुए एयरपोर्ट के अंदर चले गए. रमन और नीला भरी आंखों से उन्हें जाते हुए देखते रहे. रमन सोच रहा था, बदलाव की बयार तो बहनी ही चाहिए चाहे वह मौसम की हो या विचारों की, तभी जीवन सुखमय होता है.

शादी से पहले सैक्स, क्या रोमांस बढ़ाएगा दोगुना

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं.

विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

युवती का विवाह यदि अन्यत्र हो जाता है और वैवाहिक जीवन ठीकठाक चलता रहता है, घर में बच्चे भी आ जाते हैं, लेकिन यदि भविष्य में बच्चों को अपनी मां के किसी दूसरे पुरुष से संबंधों के बारे में पता चले तो उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचेगा, खासकर तब जब बच्चे टीनएज में हों. मां के प्रति उन के मन में घृणा व उन के बौद्धिक विकास पर भी इस का असर पड़ता है.

इन संबंधों के कारण कई बार पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक विवाद व लड़ाईझगड़े भी हो जाते हैं, जिन में युवकयुवती के अलावा कई और लोगों की जानें जाती हैं. इस के बावजूद यदि युवकयुवती शारीरिक संबंध बना लेने का निर्णय कर ही लेते हैं, तो गर्भनिरोधक विशेषकर कंडोम का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इस से गर्भधारण व यौन संक्रमण का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है.

डाकघर में गबन : मैरिट होल्डर की 1 करोड़ी करतूत

स्कूल में होशियार छात्र रहा था. 10वीं और 12वीं जमात के इम्तिहान में तकरीबन 85-90 फीसदी अंकला कर मैरिट में आया था. छोटे से कसबे में रहने वाले इस छात्र से उस के अपनों को बहुत उम्मीद थी, लेकिन वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने में लग गया.

तकनीक की उसे अच्छी समझ थी. लिहाजा, वह ऐशोआराम की जिंदगी बसर करने की सोच में लग गया. इस के चलते उस पर कमाई की धुन सवार हो गई और आगे पढ़ने में दिलचस्पी नहीं रही. फिर कोई बड़ा काम नहीं मिलता देख वह अपने कसबे के उपडाकघर में डाक सेवक के रूप में लग गया.

इसी उपडाकघर में काम करने के दौरान उस की खातेदारों के खातों पर नजर थी. उन की जमा रकम हड़पने के लिए उस ने बड़ी ही चतुराई से फर्जीवाड़े का रास्ता चुन लिया और धीरेधीरे कर के 20 खातेदारों के खातों से कुलमिला कर 1 करोड़, 66 लाख रुपए से ज्यादा का गबन कर लिया.

इस गबन का काफी समय तक तो पता ही नहीं चला, लेकिन जब धीरेधीरे पीडि़त खातेदार सामने आने लगे, तो इस शातिराना करतूत का राज खुलता चला गया.

गिरफ्तारी से बचने के लिए वह घर से भाग गया. दूसरे शहरों के बड़े होटलों में रुकता रहा, पर आखिरकार कुछ महीने बाद अपने कसबे में आया तो पकड़ा गया और अब जेल में है. उस से पुलिस पैसे की रिकवरी नहीं कर पाई है.

यह कांड राजस्थान के बूंदी जिले के नैनवा कसबे में हुआ. 25 साल के इस आरोपी का नाम प्रांशु जांगिड़ है.

डीएसपी शंकरलाल मीणा बताते हैं कि आरोपी प्रांशु जांगिड़ उस डाकघर में आधारकार्ड बनाने और आधारकार्ड अपडेट करने का भी काम करता था. उस ने फर्जी आधारकार्ड बना कर फर्जी खाते खोल लिए थे और इसी से गबन कर खुद व फर्जी खातों में नैफ्ट के जरीए रकम ट्रांसफर करता रहा. बिना खाताधारक की इजाजत के फर्जी दस्तखत कर उन के खातों को बंद कर दिया और खाते की रकम को ट्रांसफर करता रहा.

कंप्यूटर फ्रैंडली होने से उस ने उपडाकपालों की आईडी द्वारा खातों से रकम निकाल कर मालामाल होने के लिए शेयर मार्केट, ट्रेडिंग में रकम लगा दी, लेकिन यह रकम डूबती चली गई. इस के बाद वह बारबार गबन करता रहा, फिर गबन का भेद खुलने के डर से मई, 2024 में अपने कसबे नैनवा से फरार हो गया.

पिता गोपाल जांगिड़ ने अपने बेटे प्रांशु जांगिड़ के 11 मई, 2024 से गायब होने की पुलिस में गुमशुदगी दर्ज करवाई थी. इस के बाद से पुलिस उस की तलाश करती रही. उस ने फरार होने के बाद दिल्ली, इंदौर, गोवा, बैंगलुरु, ऋषिकेश के होटलों में फरारी काटी और ऐश की जिंदगी जी.

उपडाकघर में मई महीने में गबन उजागर हुआ. तब के कार्यवाहक डाक अधीक्षक ने अपनी विभागीय जांच समिति गठित की. इस जांच समिति ने 15,000 खातों की जांच की, जिस में से 20 लोगों के खातों से गबन की तसदीक हुई.

टोंक के डाक अधीक्षक तिलकेशचंद शर्मा ने 27 जून को प्रांशु जांगिड़ और तब के 5 उपडाकपालों के खिलाफ डाकघर की एफडी व एमआईएस योजना के 20 खातेदारों के खातों से 1 करोड़, 66 लाख, 85 हजार रुपए गबन करने का नैनवा पुलिस थाने में केस दर्ज कराया था.

नैनवां थानाधिकारी महेंद्र कुमार यादव, हैडकांस्टेबल भोजेंद्र सिंह, कांस्टेबल रामेश्वर, बंशीधर, राजेश की जांच और धरपकड़ के लिए टीम बनाई गई. पुलिस को आरोपी के नैनवा आने की सूचना मिली. इस के बाद आरोपी के घर को घेर कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया है.

बूंदी के एसपी हनुमान प्रसाद मीणा ने इस मामले का खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई, उन्हें सम्मानित किया.

पोस्ट औफिस के कार्यवाहक पोस्टमास्टर हरिमोहन ने खुलासा किया कि उन की आईडी का गलत इस्तेमाल कर प्रांशु जांगिड़ ने ग्राहकों के खातों से रकम निकाल कर अपने खाते में ट्रांसफर कर ली, जो गबन की श्रेणी में आती है.

पहले ग्राहकों का भरोसा जीता डाक अधीक्षक शैलेंद्र ने बताया कि उपडाकघर में काम कर रहे 3 पोस्टमास्टरों की पासवर्ड पौलिसी? (आईडी) का गलत इस्तेमाल कर आरोपी, डाकसेवक प्रांशु जांगिड़ ने खातेदारों के खातों से गबन किया है. आरोपी ने पहले ग्राहकों का भरोसा जीता और ग्राहक डाकघर में जमा कराने के लिए पैसा उसे देते रहे.

इसी का फायदा उठाया गया. जिन खातेदारों की रकम का गबन हुआ है, उन को घबराने की जरूरत नहीं है. इन को डाक विभाग की ओर से पूरा भुगतान किया जाएगा.

पीड़ितों ने पुलिस को बताया

सब से पहले रजलावता गांव के रहने वाले और रिटायर्ड ब्लौक शिक्षा अधिकारी दुर्गालाल कारपेंटर पीडि़त के तौर पर पुलिस के पास पहुंचे. पुलिस थाने में दी अपनी रिपोर्ट में उन्होंने आरोप लगाया कि उन की पत्नी गीता के नाम पर पोस्ट औफिस में खाता है, जिस में से 14 लाख, 20 हजार रुपए फर्जी तरीके से नैफ्ट के जरीए निकाल लिए गए.

18 अक्तूबर, 2023 को पोस्ट औफिस के मुलाजिम प्रांशु जांगिड़ से पत्नी गीता के नाम पर 10 लाख रुपए की एफडी करवाई गई थी, लेकिन बिना इजाजत के 29 अप्रैल को एफडी बंद कर 10 लाख रुपए खाते में ट्रांसफर कर दिए गए. इस के बाद बचत खाते और एफडी की रकम नैफ्ट के जरीए निकाल ली गई.

पुलिस ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर जांच शुरू की. पोस्ट औफिस मुलाजिम प्रांशु जांगिड़ के गायब होने के चलते उस पर इस गबन में शामिल होने का शक जताया गया.

इस के बाद खाताधारक नैनवा के रहने वाले पुरुषोत्तम कुम्हार ने रिपोर्ट में बताया कि उपडाकघर में एमआईएस (मासिक आय योजना) के तहत उन के और उन के बेटे प्रमोद प्रजापत के खातों में 9-9 लाख रुपए, कुल 18 लाख रुपए जमा किए गए थे. पता चला कि पोस्ट औफिस में मुलाजिम ने इन पैसों को निकाल कर नैफ्ट कर लिया.

हरिमोहन गौतम ने पुलिस को दी रिपोर्ट में लिखाया कि 26 दिसंबर, 2023 को उन की पत्नी रमा शर्मा के नाम पर एमआईएस योजना में 3 लाख रुपए जमा करवाए थे. 3 जनवरी, 2024 को एमआईएस योजना में 5 लाख रुपए जमा किए गए.

इन दोनों खातों की एमआईएस योजना में आने वाली ब्याज राशि जमा करने के लिए अलगअलग आरडी खोली गई थी, जो जमा हो रही है.

इन दोनों एमआईएस योजना के खाते प्रांशु जांगिड़ के जरीए खोले गए थे, लेकिन इन दोनों खातों के 8 लाख रुपए जमा नहीं हैं और खाते में जीरो बैलेंस है.

विभागीय जांच अधिकारी डाक निरीक्षक राजेश कुमार बैरवा ने गबन के पीडि़तों दुर्गालाल कारपेंटर, सुरेश जैन, अशोक जैन, पुरुषोत्तम कुम्हार, प्रमोद प्रजापत, सुशीला देवी और सुनिधि चंदेल के बयान लिए.

हत्या और नशे का कारोबार, फंसते बेरोजगार

मुंबई में नेता बाबा सिद्दीकी की हाईप्रोफाइल हत्या के बाद गैंगस्टर लौरैंस बिश्नोई का नाम फिर चर्चा में है. देशविदेश में पहले भी हो चुकी कई हत्याओं में लौरैंस बिश्नोई का नाम आया है. अब कहा जा रहा है कि बाबा सिद्दीकी की हत्या भी उसी के गैंग ने की है.

लंबे समय से लौरैंस बिश्नोई फिल्म स्टार सलमान खान को मारने की फिराक में है, ऐसा पुलिस का कहना है और लौरैंस बिश्नोई के कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया पर हैं, जिन में वह ऐसा कहते सुना जा रहा है. पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या में पुलिस उस का हाथ होना मानती है, तो सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या का जिम्मेदार भी लौरैंस बिश्नोई को ही माना जाता है.

यही नहीं, कनाडा सरकार ने आरोप लगाया है कि भारत के गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भी लौरैंस बिश्नोई गैंग ने की है.

कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई नागरिकों की टार्गेट किलिंग का आरोप भारत पर मढ़ा है, जिस के चलते दोनों देशों के बीच इस कदर खटास आ गई है कि दोनों देशों ने अपनेअपने राजदूतों को देश वापस बुला लिया है.

आखिर कौन है लौरैंस बिश्नोई? पंजाब के फिरोजपुर जिले के धत्तरांवाली गांव का रहने वाला और पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिगरी हासिल करने वाला सतविंदर सिंह उर्फ लौरैंस बिश्नोई की उम्र अभी महज

31 साल है और दिलचस्प बात यह है कि वह पिछले 12 साल से जेल में है यानी सिर्फ 19 साल की उम्र में वह जेल चला गया था. फिर उस ने ग्रेजुएशन और एलएलबी कब और कैसे की? वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में भी रहा. राजस्थान की जोधपुर जेल में भी रहा.

आजकल लौरैंस बिश्नोई गुजरात की जेल में बंद है. पुलिस कहती है कि वह जेल में रह कर अपना गैंग चला रहा है. उस के गैंग में 700 से ज्यादा क्रिमिनल्स हैं, जो उस के इशारे पर कभी भी कहीं भी किसी का भी ‘गेम’ बजा देते हैं.

क्या जेल प्रशासन व हमारी खुफिया एजेंसियां छुट्टी पर हैं? अगर नहीं तो फिर कैसे जेल की ऊंची और मजबूत दीवारों में कैद रहते हुए लौरैंस बिश्नोई ने इतना विशाल गैंग खड़ा कर लिया?

गोल्डी बरार नाम के अपराधी के संपर्क में वह कब और कैसे आया, जिस को उस के गैंग का लैफ्टिनैंट कमांडर कहा जाता है और जो कई साल से

विदेश में है. क्या जेल में रहते हुए किसी से संपर्क करना, किसी की सुपारी लेना, गैंग के सदस्यों से बात करना इतना आसान है?

आखिर लौरैंस बिश्नोई जेल में बैठ कर कैसे यह सब कर रहा है? गुजरात की जेल में रहने के बावजूद लौरैंस बिश्नोई इतना ताकतवर कैसे है? मोदी सरकार लौरैंस बिश्नोई को दूसरे मामलों में जांच के लिए गुजरात से बाहर दूसरी जेलों में ले जाने की हर कोशिश का विरोध क्यों कर रही है?

लौरैंस बिश्नोई जेल में रहते हुए कथिततौर पर भारत और विदेश में हत्याएं और जबरन वसूली कैसे कर सकता है? लौरेंस बिश्नोई को कौन बचा रहा है और किस के आदेश पर वह काम कर रहा है?

क्या लौरैंस बिश्नोई जेल में बंद अपराधी है या मोदी सरकार उसे सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रही है? क्या एक गैंगस्टर को जानबू?ा कर खुली छूट दी जा रही है? ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, जिन के जवाब अभी तक नहीं मिले हैं.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), जिस के सर्वेसर्वा अजीत डोभाल हैं, के मुताबिक, लौरैंस गैंग न सिर्फ 700 शूटरों के साथ काम करता है, बल्कि गैंग समय के साथ बड़ा होता जा रहा है. इस के औपरेशन जिस तरह 11 राज्यों में फैले हुए हैं, उस से लगता है कि ये गिरोह भी डी कंपनी यानी दाऊद इब्राहिम की राह पर चल रहा है.

गौरतलब है कि 90 के दशक में दाऊद इब्राहिम को भी बड़ा डौन अजीत डोभाल ने ही साबित किया था और दाऊद के खिलाफ उन के पास भारत से ले कर पाकिस्तान तक तमाम सुबूत भी मौजूद थे, बावजूद इस के दाऊद इब्राहिम कभी उन के शिकंजे में नहीं आया.

अब दाऊद इब्राहिम की तरह लौरैंस बिश्नोई का नाम खूब चर्चा में है. लेकिन यह पुलिस और खुफिया एजेंसियों के लिए डूब मरने की बात है कि एक क्रिमिनल 12 साल से आप की निगरानी में जेल में बंद है, फिर भी वह इतनी आसानी से बड़ीबड़ी वारदातों को अंजाम दे रहा है.

कभी सलमान खान को धमकी, तो कभी उस पर गोली चलवाना, कभी सिद्धू मूसेवाला की हत्या, कभी कनाडा में औपरेशन तो कभी इंगलैंड में क्राइम. हर बार ऐसे कांडों के बाद लौरैंस बिश्नोई का नाम लिया जाता है, तो हैरानी ही होती है कि वह जेल में बैठ कर कैसे यह सब कर रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के कंधे पर बंदूक रख कर कोई और इन तमाम सनसनीखेज कांडों को अंजाम दे रहा है?

दाऊद इब्राहिम के बारे में भारतीय जांच एजेंसियां कहती हैं कि उस ने ड्रग तस्करी, हत्याएं, जबरन वसूली के रैकेट के जरीए अपने नैटवर्क को बढ़ाया था. बाद में पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ मिल कर उस ने डी कंपनी बनाई, ठीक उसी तरह लौरैंस बिश्नोई ने भी अपना गिरोह बनाया और छोटेमोटे अपराधों से शुरुआत कर वह जल्दी ही उत्तर भारत के अपराध जगत पर छा गया.

एएनआई के मुताबिक, लौरैंस बिश्नोई गिरोह पहले पंजाब तक ही सीमित था, लेकिन अपने करीबी सहयोगी गोल्डी बरार की मदद से लौरैंस बिश्नोई ने हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के गिरोहों के साथ गठजोड़ कर एक बड़ा नैटवर्क तैयार कर लिया. यह गिरोह पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान, ?ारखंड समेत पूरे उत्तर भारत में फैल चुका है.

मुंबई में सरेआम बाबा सिद्दीकी को गोली मारने के आरोप में पकड़े गए 2 शूटर उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के एक गांव के हैं, जो अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए पुणे गए थे. ऐसे लाखों बेरोजगार नौजवान देश में हैं, जिन्हें चंद पैसे का लालच दे कर अपराध की काली दुनिया में घसीट लिया जाता है.

बात करते हैं बाबा सिद्दीकी की, जिन की 12 अक्तूबर, 2024 की देर रात मुंबई के बांद्रा इलाके में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी और पुलिस के मुताबिक इस हत्या की जिम्मेदारी लौरैंस बिश्नोई गैंग ने ली है.

बाबा जियाउद्दीन सिद्दीकी भारत के महाराष्ट्र में बांद्रा (वैस्ट) विधानसभा सीट के विधायक थे. बाबा ने बहुत पहले कांग्रेस जौइन की थी. मुंबई कांग्रेस के एक प्रमुख अल्पसंख्यक चेहरे बाबा सिद्दीकी ने कांग्रेसराकांपा गठबंधन के सत्ता में रहने के दौरान मंत्री के रूप में भी काम किया था.

वे साल 1999, साल 2004 और साल 2009 में लगातार 3 बार विधायक रहे थे और उन्होंने साल 2004 से साल 2008 के बीच मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के अधीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति एवं श्रम राज्य मंत्री के रूप में भी काम किया था.

बाबा सिद्दीकी ने साल 1992 से साल 1997 के बीच लगातार

2 कार्यकालों के लिए नगरनिगम पार्षद के रूप में भी काम किया था. अपनी मौत से पहले उन्होंने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष और महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति के संसदीय बोर्ड के रूप में काम किया था.

8 फरवरी, 2024 को उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और 12 फरवरी, 2024 को वे अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे.

बाबा सिद्दीकी का संबंध अंडरवर्ल्ड गैंग से माना जाता है. कहते हैं कि वे दाऊद इब्राहिम के करीबी थे. इसी के साथ वे कई फिल्म कलाकारों के भी करीबी दोस्त थे, जिन में सुनील दत्त का नाम भी शामिल था.

साल 2005 में सुनील दत्त की मौत के बाद भी बाबा सिद्दीकी उन के घर पर आते रहे थे. राजनीति में वे प्रिया दत्त के गुरु थे, लेकिन बाद में उन्होंने संजय दत्त को छोड़ कर बाकी दत्त परिवार से खुद को अलग कर लिया था.

फिल्म कलाकार सलमान खान और बाबा सिद्दीकी 2 दशकों से भी ज्यादा समय से करीबी दोस्त थे. सलमान खान हमेशा बाबा सिद्दीकी की सालाना इफ्तार पार्टियों में शामिल होते थे. वे हर मुश्किल समय में एकदूसरे के साथ खड़े रहते थे. वैसे, अनेक फिल्म हस्तियों के घर पर बाबा सिद्दीकी का उठनाबैठना था.

राजनीति में रहते और अंडरवर्ल्ड से नजदीकियों के चलते बाबा सिद्दीकी ने अथाह दौलत बना ली थी. इंफोर्समैंट डायरैक्टर (ईडी) ने साल 2018 में बाबा सिद्दीकी की 462 करोड़ रुपए की संपत्ति को अटैच किया था. यह संपत्ति बांद्रा (वैस्ट) में थी और इसे धन शोधन निरोधक अधिनियम के तहत जब्त किया गया था.

एजेंसी यह जांच कर रही थी कि क्या बाबा सिद्दीकी ने साल 2000 से साल 2004 तक महाराष्ट्र हाउसिंग और एरिया डवलपमैंट अथौरिटी के चेयरमैन के रूप में अपने पद का गलत इस्तेमाल कर पिरामिड डवलपर्स को बांद्रा में विकसित हो रहे स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी प्रोजैक्ट में मदद की थी. इस कथित घोटाले की रकम 2,000 करोड़ रुपए बताई गई थी.

कयास लगाए जा रहे हैं कि स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी रीडवलपमैंट का मामला भी बाबा सिद्दीकी की हत्या की वजह हो सकती है, क्योंकि कुछ रोज पहले से इस मामले में बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी, जो खुद एक नेता हैं, इस का विरोध कर रहे थे. ईडी इस मामले में बाबा सिद्दीकी की गिरफ्तारी की तैयारी में भी थी कि तभी उन की हत्या हो गई.

अगर बाबा सिद्दीकी को ईडी अरैस्ट करती तो जाहिर है स्लम घोटाले से ही नहीं, बल्कि बौलीवुड और अंडरवर्ल्ड के बीच कई रिश्तों से भी परदा उठता. कई राज बाहर आते.

रौ के एक अफसर रह चुके एनके सूद का कहना है कि बाबा सिद्दीकी अंडरवर्ल्ड और बौलीवुड के बीच मीडिएटर थे. दाऊद की डी कंपनी से उन के आज भी काफी नजदीकी संबंध थे.

उधर लौरैंस बिश्नोई और डी कंपनी के बीच दुश्मनी की कहानी भी बांची जा रही है और कहा जा रहा है कि बिश्नोई गैंग डी कंपनी को खत्म कर उस की जगह लेने की फिराक में है और बाबा सिद्दीकी की हत्या कर उस ने डी कंपनी को चुनौती दी है. ऐसे में लौरैंस बिश्नोई, दाऊद इब्राहिम या 462  करोड़ की प्रौपर्टी… बाबा सिद्दीकी की हत्या के पीछे बड़ा राज छिपा है.

इसी बीच देश में कई जगहों पर बहुत बड़ी मात्रा में ड्रग्स पकड़ी गई हैं. इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स का देश के भीतर आना और खपाया जाना बहुत बड़ी चिंता को जन्म देता है.

ड्रग्स का इस्तेमाल नौजवान तबका ज्यादा करता है. स्कूल, कालेज, औफिस से ले कर गांवदेहातों तक नौजवानों के बीच ड्रग्स की खपत बढ़ रही है. जाहिर है कि एक बहुत बड़ी साजिश के तहत देश के नौजवानों को कमजोर किया जा रहा है.

जिस दिन बाबा सिद्दीकी की हत्या हुई, उसी दिन यानी 12 अक्तूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस की स्पैशल ब्रांच और गुजरात पुलिस ने एक सा?ा अभियान में गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर से 518 किलो हेरोइन जब्त की. इंटरनैशनल मार्केट में इस की कीमत 5,000 करोड़ रुपए आंकी गई है.

इस से पहले 10 अक्तूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस ने पश्चिमी दिल्ली के रमेश नगर में एक दुकान से नमकीन के पैकेट में रखी 208 किलो कोकीन बरामद की थी.

इस कोकीन की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में तकरीबन 2,000 करोड़ रुपए आंकी गई है. यह ड्रग्स रमेश नगर की एक पतली गली में बनी एक दुकान में 20 पैकेटों में रखी थी और इस की आगे डिलीवरी की जानी थी.

वहीं, 1 अक्तूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस ने महिपालपुर इलाके में एक वेयरहाउस से 562 किलो हेरोइन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा बरामद किया था. जो ड्रग्स महिपालपुर से पकड़ी गई है, वह भारत के बाहर से लाई गई थी. 562 किलो कोकीन के अलावा जो 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा पकड़ा गया था, जो थाईलैंड से आया था.

स्पैशल सैल के एक अफसर के मुताबिक, 1 अक्तूबर और 10 अक्तूबर को दिल्ली के 2 अलगअलग इलाकों से जो ड्रग्स बरामद की गई, वह एक ही ड्रग्स रैकेट से संबंधित है. गुजरात के भरूच से बरामद ड्रग्स भी इसी रैकेट से जुड़ी है.

5 अक्तूबर, 2024 को गुजरात पुलिस ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ मिल कर भोपाल की एक फैक्टरी से 907 किलो मेफेड्रोन (एमडी) ड्रग्स बरामद की, जिस की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में 1,814 करोड़ रुपए आंकी गई.

तकरीबन 5,000 किलो कच्चा माल भी इस छापेमारी के दौरान बरामद किया गया. यह ड्रग्स भोपाल के बागोड़ा इंडस्ट्रियल ऐस्टेट में चल रही एक फैक्टरी से बरामद की गई थी.

देश में जिस तरह से बड़े पैमाने पर ड्रग्स पकड़ी जा रही है, यह हैरान करने वाली बात है. इस तरह के बड़ेबड़े ड्रग नैटवर्क भारत में कैसे काम कर रहे हैं? सीमापार से इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स की खेप अंदर कैसे आ रही है? बौर्डर सिक्योरिटी फोर्स और खुफिया एजेंसियां क्या कर रही हैं? ड्रग नैटवर्क भारत की सीमा में कैसे ड्रग्स पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं? इस संबंध में अभी तक कोई बड़ा किंगपिन गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ? ये सवाल बड़े अहम हैं.

बड़ी तादाद में ड्रग्स का पकड़ा जाना यह भी बताता है कि भारतीय बाजार में ड्रग्स की मांग बढ़ रही है और इसलिए ही इस की सप्लाई बढ़ी है. अगर डिमांड नहीं बढ़ती तो इतनी बड़ी मात्रा में सप्लाई नहीं होती. इस कारोबार में पैसा भी बहुत है, इसलिए अपराधी इस की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं.

पुलिस के ऐक्शन से पता चलता है कि ड्रग्स तस्करी के नैटवर्क और संगठित हुए हैं. हाल के सालों में ड्रग्स से जुड़े अपराध बहुत तेजी से बढ़े हैं.

गौरतलब है कि लौरैंस बिश्नोई को भी अगस्त, 2023 में सीमा पार से ड्रग्स की तस्करी के एक मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल से साबरमती सैंट्रल जेल में भेजा गया था.

साफ है कि जो गिरोह आतंक और हत्या का धंधा चला रहे हैं, वही ड्रग्स और जिस्मफरोशी का कारोबार भी कर रहे हैं. और यह सब उन के राजनीतिक आकाओं के संरक्षण में फलफूल रहा है.

भारत नौजवानों का देश है. यहां 18 से 30 साल की उम्र वाले लोगों की तादाद सब से ज्यादा है. यह ऊर्जा का काफी बड़ा और बहुत शक्तिशाली पुंज है. लेकिन मोदी सरकार इस शक्ति को देश के विकास में इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. सरकार इन नौजवानों को रोजगार नहीं दे पा रही है.

लाखोंकरोड़ों नौजवान आज भी बेरोजगार हैं, जिन्हें थोड़े से पैसे का लालच दे कर बहुत ही आसानी से बरगलाया जा सकता है. चंद रुपयों के लालच में ये किसी की भी जान ले सकते हैं. हत्या, अपहरण, देह व्यापार और नशे के कारोबार को बढ़ाने में यही नौजवान तबका बहुत बड़ा रोल निभा रहा है.

लौरैंस बिश्नोई या दाऊद इब्राहिम की तथाकथित डी कंपनी ऐसे ही बेरोजगार नौजवानों का इस्तेमाल कर रही है. वे इन्हें पैसे और हथियार मुहैया करा रहे हैं.

बाबा सिद्दीकी की हत्या में जितने नौजवान पुलिस की गिरफ्त में आते जा रहे हैं, वे सभी गरीब घरों के बेरोजगार हैं, जो मजदूरी के इरादे से महानगरों की तरफ गए और बड़ी आसानी से अपराधी गिरोहों के जाल में फंस गए. इन के पास से विदेशी असलहे भी बरामद हुए हैं.

सलमान के बाद बिहार के पप्पू यादव पर क्यों मंडराया लौरेंस बिश्नोई को खौफ

सलमान खान (Salman khan) पर लोरेंश बिश्नोई गैंग (Lawerence bishnoi gang) का खतरा मंडरा रहा था. उनको एक बार फिर से जान से मारने की धमकियां मिल रही थी. इसी बीच बिहार के बाहुबली नेता कहे जाने वाला पूर्णिया सांसद पप्पू यादव(Pappu Yadav) भी इन धमकियों का शिकार हो रहे है. पप्पू यादव को भी लोरेंस गैंग की तरफ से लिख कर धमकियां मिल रही है. जिसकी शिकायत भी पुलिस में दर्ज हुई है. हालांकि, सलमान खान से लोरेंस की धमकियां का कारण तो सभी मीडिया खबरों में वायरल है. लेकिन पप्पू यादव तक ये गैंग कैसे पहुंचा जानते है.

दरअसल, पप्पू यादव का खुद कहना है कि मुझे लोरेंस गैंग से धमकियां मिल रही हैं और मेरी हत्या हो जाती है तो इसकी जिम्मेदार सरकार होगी. पप्पू ने हर जिले में अपने लिए पुलिस एस्कोर्ट और कार्यक्रम स्थल पर सुरक्षा टाइट करवा दी है. लेकिन एक नेता होने के कारण उन्होंने लोरेंस बिश्नोई गैंग की लगातार दे रहे अंजामों पर गौर किया और इसके विरोध में उतरे. उन्होंने कहा कि मैं एक राजनीतिक व्यक्ति होने के कारण लोरेंस बिश्नोई का विरोध करता हूं. जिस कारण से लौरेंस ने मुझे भी धमकी भरे खत लिख कर मुझे जान से मारने की धमकी दी है. इतना ही नहीं ये धमकियां मोबाइल से भी दी गई है.

हालांकि, दिल्ली पुलिस में ये सब शिकायतों को दर्ज कराया गया है. शिकायत कनौट प्लेस थाने में दर्ज हुई है. एक शिकायत में यह दावा भी किया गया है कि शिकायत कराने वाले यादव के निजी सहायक (पीए) मोहम्मद सादिक आलम है जिन्होंने बताया है कि बृहस्पतिवार को उनके मोबाइल फोन पर दो संदेश आए, जिनमें भेजने वाले ने खुद को बिश्नोई गिरोह का मेंबर बताया और कहा कि वे यादव को जान से मार देंगे.

सुरक्षो हो टाइट

पप्पू यादव ने गृह मंत्रालय से ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा देने की मांग की है. पप्पू का कहना था कि अभी मुझे ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा दी जा रही है. लेकिन लगातार धमकियां मिलने से जान को खतरा ज्यादा है. सिक्योरिटी को ओर टाइट करना चाहिए. पप्पू ने चिट्ठी में यह भी बताया कि इससे पहले भी मुझ पर और मेरे परिवार के सदस्यों पर हमला हुआ है. पप्पू यादव के मुताबिक धमकी देने वाले ने दावा किया है कि लोरेंस बिश्नोई जेल से ही पप्पू यादव से बात करने की कोशिश कर रहा है.

बताते चले की सांसद पप्पू यादव के निवास अर्जुन भवन को उड़ाने की धमकी मिली थी. इन धमकियों के पीछे लोरेंस बिश्नोई गैंग का ही नाम सामने आया था. हालांकि, पुलिस की जांच के दौरान कुछ और ही कहानी निकली. पूर्णिया पुलिस के मुताबिक, यह लेटर फर्जी निकला. पूर्णिया के एसपी ने बताया कि पप्पू यादव को जितनी भी धमकियां मिली हैं, उन्हें पुलिस गंभीरता से ले रही है. लेकिन, सांसद के निवास को उड़ाने का मामला फर्जी पाया गया है.

हालांकि पुलिस की जांच के दौरान कुछ और ही कहानी निकली. पूर्णिया पुलिस के मुताबिक, यह लेटर फर्जी है. पूर्णिया के एसपी बताया कि पप्पू यादव को जितनी भी धमकियां मिली हैं, उन्हें पुलिस गंभीरता से ले रही है.

पप्पू यादव की पार्टी और उनकी पत्नी

राजेश रंजन जिन्हें ‘पप्पू यादव’ के नाम से जाना जाता है. एक राजनीतिज्ञ हैं. इनका जन्म 24 दिसंबर 1969 को हुआ. इन्होंने बिहार के कई निर्वाचन क्षेत्रों से निर्दलीय चुनाव जीते है. पप्पू यादव 2015 में ‘सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले’ सांसदों में से एक बने वर्तमान में जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.इन्होंने आम चुनावों में शरद यादव को हराया है. उनकी पत्नी रंजीत रंजन सुपौल से भी सांसद थीं, लेंकिन 2019 के आम चुनाव में जद(यू) से हार गईं थी. बता दें कि पप्पू यादव को राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी है.

अधूरी है सैक्स नौलेज, तो ले पूरी जानकारी

प्रेमिका को खुश रखने की युवा हर संभव कोशिश करते हैं, लेकिन जब सेक्स संबंधी समस्या हो तो उसे भी दूर करना होगा. युवा प्रेमियों को लगता है कि सेक्स का अधूरा ज्ञान उन्हें मंझधार में ले जा सकता है. सेक्स संबंधों के दौरान सेक्स क्षमता का बहुत महत्त्व है. सहवास करने की क्षमता ही व्यक्ति को पूर्ण पुरुष के रूप में स्थापित करती है.

कई ऐसे कारण हैं जिन पर हम खुल कर चर्चा नहीं करते न ही उन्हें दूर करने का उपाय खोजते हैं. नतीजतन, सेक्स लाइफ का मजा काफूर हो जाता है. ऐसी  कई समस्याएं हैं जिन्हें दूर कर हम वैवाहिक जिंदगी जी सकते हैं.

1. झिझक 

सहवास की पूर्ण जानकारी न होना, सेक्स के बारे में झिझक, संबंध बनाने से पहले ही घबराना, यौन दुर्बलता से सेक्स इच्छा की कमी, मानसिकरूप से खुद को सेक्स के प्रति तैयार न कर पाना, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, मोबाइल सेक्स आदि समस्याओं से युवावर्ग पीडित है. सेक्स में मंझधार में न रहें, समस्याओं को समझें व इन्हें दूर करें और सेक्स का भरपूर आनंद उठाएं.

2. सैक्स इच्छा में मानसिक कारणों को दूर करें

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में धनपदयश पाने की उलझन में फंसे युवा एक खास मुकाम तक पहुंचने के चक्कर में सहवास के बारे में अंत में सोचते हैं. वे इस तनाव से ऐसे ग्रस्त हो गए हैं कि उन का वैवाहिक जीवन इस से प्रभावित हुआ है.

3. सैक्स में डरें नहीं

डर यौनसुख को सब से ज्यादा प्रभावित करता है. इस की वजह से शीघ्र स्खलित होना, कोई देख लेगा, कमरे के बाहर आवाज सुनाई देने का डर, पार्टनर द्वारा उपहास, गर्भ ठहरने का खतरा आदि युवाओं की यौनक्षमता पर प्रश्नचिह्न लगा देते हैं. युवावस्था में यौन इच्छा चरम पर होती है इसलिए सेक्स संबंध जल्दीजल्दी बना लेते हैं, लेकिन धीरेधीरे समय में ठहराव कम हो जाता है, क्योंकि विवाह से पहले प्रेमिका से संबंध बनाना उसे अपराधबोध लगता है और वह शीघ्र स्खलित हो जाता है. इन सभी बातों को नजरअंदाज करते हुए सेक्स संबंध बनाएं.

4. मोबाइल सैक्स

इंटरनैट के परिवेश में आज का युवा मोबाइल पर सैक्सी फिल्में देखता है और खुद को भी सेक्स में लिप्त कर लेता है. यही कारण है कि वह वास्तविक जीवन में सेक्स का भरपूर आनंद नहीं उठा पाता.

5. स्वयं पर विश्वास करें

कुछ युवा स्वस्थ होते हुए भी सेक्स के प्रति आत्मविश्वासी नहीं होते. सहवास के दौरान वे धैर्य खो बैठते हैं. ऐसे युवाओं में कोई कुंठा छिपी होती है, जो उन्हें पूर्ण सेक्स करने से रोकती है. खुद पर विश्वास रखें, अन्यथा किसी अच्छे सैक्सोलौजिस्ट एवं मनोचिकित्सक को दिखाएं.

6. यौनांग पर चोट

किसी ऐक्सिडैंट या अत्यंत तेजी से शारीरिक संबंध बनाते हुए या कष्टप्रद आसनों से यौनांग को चोट पहुंचती है. इस से युवती का सेक्स से मन हटने लगता है. अत: यौनांग पर चोट न पहुंचे, ऐसा प्रयास करें.

7. शारीरिक कारण

आज युवाओं का सेक्स में सफल न हो पाना दवाओं का दुष्प्रभाव है. बीटा रिसेप्टार्स, प्रोपेनोलोल, मिथाइल डोपा, सिमेटिडिन आदि दवाएं सेक्स इच्छा में कमी लाती हैं. खुद को बीमारी से दूर रखने का प्रयास करें. यौनांग में कसावट होने (फिमोसिस) के फलस्वरूप दर्द, जलन होना, तनाव व स्खलन के कारण सहवास में कमी आ जाती है. अत: शल्यक्रिया द्वारा इसे दूर किया जा सकता है.

8. गुप्तांग में तनाव न आना

सहवास के दौरान तनाव न आना और यदि  तनाव आता भी है तो कम समय के लिए आता है. युवावस्था में ऐसा होने के कई कारण हैं, जैसे मातापिता का व्यवहार व मानसिक तनाव सेक्स क्रिया में असफलता की मुख्य वजह है.

9. सीमेन की मात्रा कम होना

कई बार स्खलन का समय सामान्य होता है, लेकिन सीमेन काफी कम मात्रा में निकलने से सेक्स के दौरान पूर्णआनंद नहीं आता. युवा यदि इस समस्या से पीडि़त हों तो चरमोत्कर्ष तक नहीं पहुंच पाते. ऐसे में सैक्सोलौजिस्ट से मिलें. मानसिक रूप से खुद को तैयार कर के सहवास करें, समस्या अवश्य दूर होगी.

10. इजाक्युलेशन

जब युवा अपने पार्टनर को संतुष्ट किए बिना ही स्खलित हो जाते हैं तो इसे इजाक्यूलेशन कहा जाता है. सैक्सुअल संबंधों के दौरान ऐसा होने से वैवाहिक जीवन में कड़वाहट आती है.

11. प्रीमैच्योर इजाक्युलेशन

युवाओं में सेक्स में और्गेज्म की अनुभूति इजाक्युलेशन से पूरी होती है. सहवास शुरू करने के 30 सैकंड से 1 मिनट पहले स्खलित होने पर उसे प्रीमैच्योर इजाक्युलेशन कहते हैं. गुप्तांग की कठोरता खत्म हो जाती है और इस वजह से पार्टनर की इच्छा पूरी नहीं हो पाती है. यह वास्तव में समस्या नहीं बल्कि चिंता, संतुष्ट न कर पाने का डर, मानसिक अशांति, मानसिक तनाव, डायबिटीज या यूरोलौजिकल डिसऔर्डर के कारण होता है. इस के लिए ऐंटीडिप्रैंसेट दवाओं का सेवन डाक्टर की सलाह ले कर करें.

12. ड्राइ इजाक्युलेशन

इस में पुरुषों की ब्लैडर मसल्स ठीक से काम नहीं करतीं, जिस कारण सीमेन बाहर नहीं निकल पाता. इस से फर्टिलिटी प्रभावित होती है, लेकिन आर्गेज्म या सेक्स संतुष्टि पर कोई असर नहीं पड़ता.

13. पौष्टिक आहार व पर्याप्त नींद लें

संतुलित व पर्याप्त पौष्टिक भोजन के अभाव में शरीर परिपुष्ट नहीं हो पाता. ऐसे में सीमेन का पतलापन और इजाक्युलेशन जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है. पर्याप्त नींद और भोजन से शरीर में सेक्स हारमोन का स्तर काफी बढ़ जाता है, जो सफल सहवास के लिए जरूरी है.

14. तनाव से दूर रहें

तनाव के दौरान कभी भी सेक्स संबंध न बनाएं. तनाव सेक्स प्रक्रिया को पूरी तरह प्रभावित करता है और इंसान को कई बीमारियों से ग्रसित कर देता है. मुंबई की मशहूर मनोचिकित्सक डा. यदुवीर पावसकर का मानना है कि युवाओं के एक बहुत बडे़ वर्ग, जिसे तनाव ने अपने घेरे में ले लिया है, को सेक्स से अरुचि होने लगी है. इस का मुख्य कारण भागदौड़ भरी दिनचर्या है.

15. फोरप्ले को समझें

शारीरिक संबंध बनाने से पहले पूर्ण शारीरिक स्पर्श, मुखस्पर्श, नख, दंत क्रीड़ा करने के बाद ही सहवास शुरू करें. सेक्स प्रक्रिया का पहला चरण फोरप्ले है. बिना फोरप्ले युवकों को उतनी समस्या नहीं आती लेकिन ज्यादा नोचनेखसोटने से युवती को पीड़ा हो सकती है. उस का सहवास से मन हट सकता है. इसलिए शारीरिक संबंध बनाते समय पार्टनर की भावनाओं की भी कद्र करें और अगर उसे इस दौरान दर्द हो रहा है तो अपने ऐक्शंस पर थोड़ा कंट्रोल करें.

16. सैक्स ऐंजौय करने के कुछ उपाय

–       पूरी नींद लें.

–       पौष्टिक आहार लें.

–       नियमित व्यायाम करें.

–       शराब या तंबाकू का सेवन न करें.

–       नियमित रूप से हैल्थ चैकअप करवाएं.

–       साल में 1-2 बार किसी हिल स्टेशन पर जाएं.

–       शारीरिक संबंध तभी बनाएं जब पार्टनर भी तैयार हो.

पहली बार सैक्स करते समय ब्लीडिंग होना जरूरी होता है क्या ?

सवाल
मैं 25 वर्षीय अविवाहिता युवती हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या प्रथम बार सैक्स करते समय ब्लीडिंग होनी जरूरी है और क्या उस समय दर्द भी होता है? मेरे मन में इस बात को ले कर अनेक डर व शंकाएं हैं. कृपया समाधान करें.

जवाब

पहली बार इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग हो यह जरूरी नहीं और न ही इसे वर्जिनिटी के साथ जोड़ें. कुछ लड़कियों को पहली बार सैक्स करते समय स्पौटिंग होती है, कुछ को कुछ घंटों तक ब्लीडिंग होती है तो कुछ को मासिकधर्म की तरह होती है. दरअसल, ब्लीडिंग होने का कारण सैक्स करते समय हाइमन का ब्रेक होना होता है. कई बार लड़कियों में हाइमन घुड़सवारी, मैस्ट्रूबेरेशन या टैंपून के प्रयोग से भी ब्रेक हो जाता है. सो, उन लड़कियों को फर्स्ट इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग नहीं होती. जहां तक पहली बार सैक्स के समय दर्द का सवाल है, वह भी तब होता है जब महिला शारीरिक व भावनात्मक रूप से पूरी तरह से तैयार न हो. अगर सैक्स से पहले फोरप्ले किया जाए और युवती इमोशनली और फिजिकली कंफर्टेबल हो तो दर्द नहीं होता. आप चाहें तो अपनी समस्या के लिए किसी गाइनीकोलौजिस्ट से भी संपर्क कर सकती हैं..

गरीबी और तंगहाली पर भारी पीरियड्स

इंगलिश की एक मशहूर कहावत है, ‘हैल्थ इज वैल्थ’. मतलब, सेहत ही कामयाबी की कुंजी है. पर अगर हम गरीब, तंगहाल लोगों की जांचपड़ताल कर के देखेंगे तो पाएंगे कि शायद वे अपनी जरूरी चीजों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.

सब से पहले गरीब समुदाय के लोग अपने पेट की पूजा करते हैं, फिर रहने का जुगाड़ देखते हैं और इस सब में सेहत का तो दूरदूर तक कोई नाम ही नहीं होता है.

गरीबों को जितने पैसे मिलते हैं, वे खाने और रहने में ही खर्च हो जाते हैं. सब से ज्यादा औरतें इन हालात की शिकार बनती हैं, जबकि औरतों को मर्दों से ज्यादा डाक्टरी मदद की जरूरत पड़ती है, चाहे वह जंचगी हो या बच्चे को दूध पिलाना या फिर माहवारी का मुश्किल समय.

माहवारी के दौरान कम आमदनी वाले या गरीब परिवार की औरतें ज्यादा संघर्ष करती हैं. औरतें ऐसे समय में होने वाले दर्द के लिए दवाएं, यहां तक कि अंदरूनी छोटे कपड़ों की कमी के चलते एक जोखिमभरी जिंदगी जीती हैं.

गरीबी इनसान को अंदर तक तोड़ देती है. न जाने कितनी ही औरतें घातक बीमारियों की शिकार बनती हैं और उन की जिंदगी तक खत्म हो जाती है, जो बहुत तकलीफदेह है. कई बार ज्यादा खून बहने से औरतों को कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं. पैसों की कमी के चलते उन्हें पूरी तरह से डाक्टरी इलाज तक नहीं मिल पाता है.

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गरीबी में माहवारी एक बड़ी समस्या है. इस बारे में मैं ने 20 औरतों से सवाल पूछने की तैयारी की, लेकिन महज  2 औरतों ने सवाल पूछने की इजाजत दी. मैं ने उन से कहा कि मैं अपनी महिला साथी को भी लाया हूं, आप अगर उन के साथ बात करने में सहमत हैं तो वे आप से बात कर सकती हैं, मगर उन्होंने साफ मना कर दिया.

जयपुर की घाटगेट कच्ची बस्ती में रहने वाली बबीता बताती हैं, ‘‘मैं महीने के दिनों में काफी ज्यादा दर्द महसूस करती हूं और साथ ही साथ पति और सासससुर की  झाड़ भी  झेलती हूं. इस से अच्छा तो मैं पेट से होने में महसूस करती हूं, जब मेरा महीना नहीं आता है.

‘‘मैं महीने के आने से इतना डर गई हूं कि मु झे अगर पूरे साल महीना न  आए और मैं पेट से रहूं तो मु झे कोई परेशानी नहीं.’’

जब रबीना नाम की एक औरत से पूछा गया कि वे माहवारी के दौरान किस तरह अपनी देखभाल करती हैं? तो उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पास अंदर पहनने के लिए बस एक ही लंगोटी है. मेरे घर में पैसों की कमी की वजह से खाना तो पेटभर मिल नहीं पाता है, ऐसे में हम अंदर पहनने वाले कपड़े कहां से लेंगे.

‘‘पैड तो दूर की बात है, उसे बिलकुल छोडि़ए सर. खाने को 2 रोटी मिल जाएं, वही बहुत हैं. मैं डरती हूं कि मेरी लड़की की उम्र अभी 9 साल है. जब उस की माहवारी शुरू होगी, तो मैं उसे कैसे संभालूंगी?

‘‘मेरे पेशाब की जगह पर बड़ेबड़े फोड़े हो जाते हैं, जिन में से गंदी बदबू आती है. मेरा शौहर तो मेरे पास आना दूर मेरे हाथ का बना खाना नहीं खाता. मैं एक ही कपड़ों में 5-7 दिन गुजारती हूं. माहवारी के दिनों में मैं ढंग से खाना भी नहीं खा सकती. मु झे चक्कर आते हैं.’’

‘‘हमें तो ओढ़नेबिछाने को कपड़े मिल जाएं वही बहुत है. ‘उन दिनों’ के लिए कपड़ा कहां से जुटाएं…’’ यह कहते हुए जयपुर के गलता गेट के पास सड़क पर बैठी सीमा की आंखों में लाचारी साफ देखी जा सकती है.

सीमा आगे कहती हैं, ‘‘हम माहवारी को बंद नहीं करा सकते, कुदरत पर हमारा कोई बस नहीं है. जैसेतैसे कर के इसे संभालना ही होता है. इस समय हम फटेपुराने कपड़ों, अखबार या कागज से काम चलाते हैं.’’

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सीमा के साथ 3 और औरतें बैठी थीं, जो मिट्टी के छोटे से चूल्हे पर आग जला कर चाय बनाने की कोशिश कर रही थीं. जब उन के बच्चे आसपास से सूखी टहनियां और पौलीथिन ला कर चूल्हे में डालते थे, तो आग की लौ थोड़ी तेज हो जाती थी.

वैसे, थोड़ी बातचीत के बाद ये औरतें सहज हो कर बात करने लगी थीं. वहीं बैठी रीना ने मुड़ कर अगलबगल देखा कि कहीं कोई हमारी बात सुन तो नहीं रहा, फिर धीमी आवाज में बोलीं, ‘‘मेरी बेटी तो जिद करती है कि वो पैड ही इस्तेमाल करेगी, कपड़ा नहीं. पर जहां दो टाइम का खाना मुश्किल से मिलता है और सड़क किनारे रात बितानी हो, वहां हर महीने सैनेटरी नैपकिन खरीदना हमारे बस का नहीं.’’

थोड़ी दूर दरी बिछा कर लेटी पिंकी से बात करने पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो हमेशा कपड़ा ही इस्तेमाल करती हूं. दिक्कत तो बहुत होती है, लेकिन क्या करें… ऐसे ही चल रहा है. चमड़ी छिल जाती है और दाने हो जाते हैं. तकलीफें बहुत हैं और पैसों का अतापता नहीं.’’

ऐसी बेघर, गरीब और दिहाड़ी पर काम करने वाली औरतों के लिए माहवारी का समय कितना मुश्किल होता होगा? इस सवाल पर बात करते हुए जयपुर के महिला चिकित्सालय में तैनात गायनी कृष्णा कुंडरवाल बताती हैं, ‘‘मैं जानती हूं कि गरीब औरतों के पास माहवारी के दौरान राख, अखबार की कतरनें और रेत का इस्तेमाल करने के सिवा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. पर यह सेहत के लिए कितना खतरनाक है, बताने की जरूरत नहीं है.’’

वहीं दूसरी ओर नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (2019-20) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांवदेहात के इलाकों में  48.5 फीसदी औरतें और लड़कियां सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, जबकि शहरों में 77.5 फीसदी औरतें और लड़कियां ऐसा करती हैं. कुलमिला कर देखा जाए, तो 57.6 फीसदी औरतें और लड़कियां ही इन का इस्तेमाल करती हैं.

औरतों से बात करने के बाद हमें  2 ऐसी समस्याओं का पता लगा, जिन से शायद हर कोई अनजान ही होगा. इस सर्वे को करते समय कई बातें सीखने को मिलीं. यहां पर सब से ज्यादा जरूरी है लोगों को जागरूक करना. इस की साफसफाई पर ध्यान देना और उपाय बताने के लिए लोगों को तालीम देना.

अगर लोगों को माहवारी के बारे में जागरूक करना शुरू नहीं किया गया, तो इस के अंजाम बहुत ही दयनीय हो सकते हैं.

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माहवारी के समय सही से साफसफाई का पालन न करना कई तरह की बीमारियों को न्योता देता है.

दरअसल, जिस ने गरीबी के साथ जिंदगी गुजारी है, उस को मालूम होता है कि मूलभूत सुविधाओं के बिना जिंदगी कितनी मुश्किल है.

संविधान के मुताबिक सभी को ये सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन यहां ठीक से खाना तक तो मिलता नहीं है, सैनेटरी पैड कहां से मुहैया होंगे.

वर्जिन गर्लफ्रैंड से सेक्स की अनूठी चाह

नेहा और सोहन की दोस्ती को अभी 2 महीने ही हुए थे कि सोहन उसे बातबात में टच करने की कोशिश करता. जब उसे यह बात पता चली कि नेहा वर्जिन है, तो वह उसे बहाने से एकांत में, होटल वगैरा में ले जा कर सैक्स करने को उत्तेजित करता. सोहन की यह बात नेहा को पसंद न आई औैर उस ने साफ कह दिया कि मेरे लिए सैक्स शादी के बाद ही उचित है. यह बात सुन सोहन भड़क उठा, क्योंकि उस के दोस्त भी उस का मजाक बनाते थे कि यार तू कैसा लड़का है जो अपनी गर्लफ्रैंड को इतने समय में भी सैक्स के लिए राजी नहीं कर पाया. ऐसे में उस ने बिना सोचेसमझे नेहा से ब्रेकअप कर लिया.

ऐसा सिर्फ नेहा औैर सोहन के साथ ही नहीं बल्कि अधिकांश युवकों के साथ होता है, क्योंकि उन के लिए प्यार के माने गर्लफ्रैंड से सैक्स है. ऐसे में जब आप को पता चले कि आप की गर्लफ्रैंड वर्जिन है तो उस पर जबरदस्ती वर्जिनिटी तोड़ने का दबाव न डालें औैर न ही खुद किसी दबाव में आएं बल्कि संयम बरतते हुए उसे वक्त दें ताकि वह तैयार हो जाए, आपसी सहमति से रिलेशन बनाने के लिए.

जब गर्लफ्रैंड हो वर्जिन

1. रखें खुद पर संयम

गर्लफ्रैंड वर्जिन हो और आप का खुद पर कंट्रोल मुश्किल हो रहा हो तो भी आप को संयम बरतना होगा. ऐसा न हो कि मौका मिलते ही चालू हो जाएं. भले ही आप के लिए यह पहला मौका नहीं है लेकिन आप की गर्लफ्रैंड का यह पहला चांस है. ऐसे में उसे चीजों को समझने में वक्त लगेगा और आप को भी उस की फीलिंग्स की कद्र करनी पडे़गी, तभी यह रिश्ता लंबे समय तक चल पाएगा.

2. बातोंबातों में प्यार दें

अपनी गर्लफ्रैंड को कभी प्यार से हग करें तो कभी उस के गालों पर किस करें, जब वह आप के प्रति करीबी महसूस करने लगे तो उसे समझाएं कि यह भी खूबसूरत एहसास है.

3. वर्जिन गर्लफ्रैंड से न करें सैक्स

वर्जिन गर्लफ्रैंड के साथ सैक्स करने में उसे हर्ट हो सकता है, जिस कारण वह दोबारा कभी सैक्स करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी. अत: गर्लफ्रैंड के साथ सैक्स करने की जिद न करें.

4. वर्जिन गर्लफ्रैंड को न समझें दब्बू

बातबात पर उसे यह कह कर नीचा दिखाने की कोशिश न करें कि यार तेरे तो कुछ बस का ही नहीं है, तभी तो तू आज तक वर्जिन है. हर समय डरती रहती है. तू तो मुझे खुश करने के लिए कुछ भी नहीं करती जबकि रेखा को देख वह अपने बौयफ्रैंड के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है. तू तो हमेशा ऐसे ही ढीलीढाली बनी रहेगी.

आप की ऐसी बातें सुन कर जहां वह दुखी होगी वहीं आप से दूरी भी बना लेगी.

5. ड्रिंक पिला कर न करें जबरदस्ती

आप की गर्लफ्रैंड अभी रिलेशन बनाने के मूड में नहीं है, लेकिन आप उस पर बारबार दबाव डाल रहे हैं. ऐसे में अपने ऐंजौयमैंट के लिए आप नशीला ड्रिंक पिला कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगेंगे तो इस से भले ही आप को कुछ पल का मजा मिल जाए, लेकिन यह मजा आप के लिए हमेशा की सजा भी बन जाएगा. इसलिए भूल कर भी यह गलती न करें.

6. वर्जिनिटी को न बनाएं इश्यू

आप की गर्लफ्रैंड वर्जिन नहीं है तो इस का अर्थ यह नहीं कि सैक्स के दौरान ब्रेकअप कर बैठें, जो ठीक नहीं है.

वर्जिनिटी की तय दकियानूसी बातें जैसे झिल्ली फटना आज के संदर्भ में महत्त्व नहीं रखतीं. आज युवतियां हर तरह के इवैंट्स में भाग लेती हैं. उन्हें स्वयं ही पता नहीं चलता कि कब उन की झिल्ली फट गई. इसलिए इन बातों को आधार बना कर अपनी प्रेम लाइफ को कष्टकारी न बनाएं.

7. वर्जिनिटी न पड़ जाए भारी

आप किसी पार्टी में गए हुए हैं और वहां आप की मुलाकात किसी ऐसी युवती से हो जाए जो वर्जिन हो. यह बात आप को उस से बात करने के दौरान पता चले औैर यह सुन कर ही आप उस से इंप्रैस हो कर उसे अपनी गर्लफ्रैंड बनाने का औफर दे डालें तो यह आप की सब से बड़ी भूल होगी.

हो सकता है कि वह अपने वर्जिन होने के ढोंग से आप को अपनी ओर आकर्षित करना चाह रही हो, जबकि इस के पीछे मकसद आप को फंसाना हो.

8. पोर्न वीडियोज देख कर न हों उत्तेजित

भले ही आप को सैक्स के बारे में नौलेज नहीं है, लेकिन बौयफ्रैंड को इंप्रैस करने के चक्कर में यदि आप पोर्न वीडियोज देखने लगें, तो इस का आप पर भी गलत प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि इस में पार्टनर के साथ दिखाए गए अधिकांश ऐक्शंस वास्तविक नहीं होते, लेकिन अगर आप इन्हें अपनी वास्तविक सैक्स लाइफ में अप्लाई करेंगे तो इन से आप को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

9. युवतियां वर्जिनिटी को न बनाएं पार्टनर की कमजोरी

बातबात पर पार्टनर को यह कहना कि तुम्हें मुझ जैसी वर्जिन गर्लफ्रैंड कभी नहीं मिलेगी औैर यह कह कर हर बार फरमाइशों की लिस्ट उस के सामने न रख दें. ऐसे में आप का बौयफ्रैंड भले ही थोड़े समय के लिए आप की मांगों को पूरा कर दे लेकिन एक वक्त ऐसा आएगा जब वह आप से दूर जाने में ही भलाई समझेगा. इसलिए अगर आप का पार्टनर आप से सच्चे दिल से प्यार करता है तो उस की कद्र करें न कि उसे अपनी वर्जिनिटी से ब्लैकमेल करने की कोशिश करें.

नेकी वाला पेड़: क्या हुआ जब यादों से बना पेड़ गिरा?

टन…टन… टन… बड़ी बेसब्री से दरवाजे की घंटी बज रही थी. गरमी की दोपहर और लौकडाउन के दिनों में थोड़ा असामान्य लग रहा था. जैसे कोई मुसीबत के समय या फिर आप को सावधान करने के लिए बजाता हो, ठीक वैसी ही घंटी बज रही थी. हम सभी चौंक उठे और दरवाजे की ओर लपके.

मैं लगभग दौड़ते हुए दरवाजे की ओर बढ़ी. एक आदमी मास्क पहने दिखाई दिया. मैं ने दरवाजे से ही पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

वह जल्दी से हड़बड़ाहट में बोला, ‘‘मैडम, आप का पेड़ गिर गया.’’

‘‘क्या…’’ हम सभी जल्दी से आंगन वाले गेट की ओर बढ़े. वहां का दृश्य देखते ही हम सभी हैरान रह गए.

‘‘अरे, यह कब…? कैसे हुआ…?’’

पेड़ बिलकुल सड़क के बीचोबीच गिरा पड़ा था. कुछ सूखी हुई कमजोर डालियां इधरउधर टूट कर बिखरी हुई थीं. पेड़ के नीचे मैं ने छोटे गमले क्यारी के किनारेकिनारे लगा रखे थे, वे उस के तने के नीचे दबे पड़े थे. पेड़ पर बंधी टीवी केबल की तारें भी पेड़ के साथ ही टूट कर लटक गई थीं. घर के सामने रहने वाले पड़ोसियों की कारें बिलकुल सुरक्षित थीं. पेड़ ने उन्हें एक खरोंच भी नहीं पहुंचाई थी.

गरमी की दोपहर में उस समय कोई सड़क पर भी नहीं था. मैं ने मन ही मन उस सूखे हुए नेक पेड़ को निहारा. उसे देख कर मुझे 30 वर्ष पुरानी सारी यादें ताजा हो आईं.

हम कुछ समय पहले ही इस घर में रहने को आए थे. हमारी एक पड़ोसिन ने लगभग 30 वर्ष पहले एक छोटा सा पौधा लगाते हुए मुझ से कहा था, ‘‘सारी गली में ऐसे ही पेड़ हैं. सोचा, एक आप के यहां भी लगा देती हूं. अच्छे लगेंगे सभी एकजैसे पेड़.’’

पेड़ धीरेधीरे बड़ा होने लगा. कमाल का पेड़ था. हमेशा हराभरा रहता. छोटे सफेद फूल खिलते, जिन की तेज गंध कुछ अजीब सी लगती थी. गरमी के दिनों में लंबीपतली फलियों से छोटे हलके उड़ने वाले बीज सब को बहुत परेशान करते. सब के घरों में बिन बुलाए घुस जाते और उड़ते रहते. पर यह पेड़ सदा हराभरा रहता तो ये सब थोड़े दिन चलने वाली परेशानियां कुछ खास माने नहीं रखती थीं.

मैं ने पता किया कि आखिर इस पौधे का नाम क्या है? पूछने पर वनस्पतिशास्त्र के एक प्राध्यापक ने बताया कि इस का नाम ‘सप्तपर्णी’ है. एक ही गुच्छे में एकसाथ 7 पत्तियां होने के कारण इस का यह नाम पड़ा.

मुझे उस पेड़ का नाम ‘सप्तपर्णी’ बेहद प्यारा लगा. साथ ही, तेज गंध वाले फूलों की वजह से आम भाषा में इसे लोग ‘लहसुनिया’ भी कहते हैं. सचमुच पेड़ों और फूलों के नाम उन की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं. उन के नाम लेते ही हमें वे दिखाई पड़ने लगते हैं, साथ ही हम उन की खुशबू को भी महसूस करने लगते हैं. मन को कितनी प्रसन्नता दे जाते हैं.

यह धराशायी हुआ ‘सप्तपर्णी’ भी कुछ ऐसा ही था. तेज गरमी में जब भी डाक या कुरियर वाला आता तो उन्हें अकसर मैं इस पेड़ के नीचे खड़ा पाती. फल या सब्जी बेचने वाले भी इसी पेड़ की छाया में खड़े दिखते. कोई अपनी कार धूप से बचाने के लिए पेड़ के ठीक नीचे खड़ी कर देता, तो कभी कोई मेहनतकश कुछ देर इस पेड़ के नीचे खड़े हो कर सुस्ता लेता. कुछ सुंदर पंछियों ने अपने घोंसले बना कर पेड की रौनक और बढ़ा दी थी. वे पेड़ से बातें करते नजर आते थे. टीवी केबल वाले इस की डालियों में अपने तार बांध कर चले जाते. कभीकभी बच्चों की पतंगें इस में अटक जातीं तो लगता जैसे ये भी बच्चों के साथ पतंगबाजी का मजा ले रहा हो.

दीवाली के दिनों में मैं इस के तने के नीचे भी दीपक जलाती. मुझे बड़ा सुकून मिलता. बच्चों ने इस के नीचे खड़े हो कर जो तसवीरें खिंचवाई थीं, वे कितनी सुंदर हैं. जब भी मैं कहीं से घर लौटती तो रिकशे वाले से बोलती, ‘‘भैया,

वहां उस पेड़ के पास वाले घर पर रोक देना.’’

लगता, जैसे ये पेड़ मेरा पता बन गया था. बरसात में जब बूंदें इस के पत्तों पर गिरतीं तो वे आवाज मुझे बेहद प्यारी लगती. ओले गिरे या सर्दी का पाला, यह क्यारी के किनारे रखे छोटे पौधों की ढाल बन कर सब झेलता रहता.

30 वर्ष की कितनी यादें इस पेड़ से जुड़ी थीं. कितनी सारी घटनाओं का साक्षी यह पेड़ हमारे साथ था भी तो इतने वर्षों से… दिनरात, हर मौसम में तटस्थता से खड़ा.

पता नहीं, कितने लोगों को सुकून भरी छाया देने वाले इस पेड़ को पिछले 2 वर्ष से क्या हुआ कि यह दिन ब दिन सूखता चला गया. पहले कुछ दिनों में जब इस की टहनियां सूखने लगीं, तो मैं ने कुछ मोटी, मजबूत डालियों को देखा. उस पर अभी भी पत्ते हरे थे.

मैं थोड़ी आश्वस्त हो गई कि अभी सब ठीक है, परंतु कुछ ही समय में वे पत्ते भी मुरझाने लगे. मुझे अब चिंता होने लगी. सोचा, बारिश आने पर पेड़ फिर ठीक हो जाएगा, पर सावनभादों सब बीत गए, वह सूखा ही बना रहा. अंदर ही अंदर से वह कमजोर होने लगा. कभी आंधी आती तो उसे और झकझोर जाती. मैं भाग कर सारे खिड़कीदरवाजे बंद करती, पर बाहर खड़े उस सूखे पेड़ की चिंता मुझे लगी रहती.

पेड़ अब पूरा सूख गया था. संबंधित विभाग को भी इस की जानकारी दे दी गई थी.

जब इस के पुन: हरे होने की उम्मीद बिलकुल टूट गई, तो मैं ने एक फूलों की बेल इस के साथ लगा दी. बेल दिन ब दिन बढ़ती गई. माली ने बेल को पेड़ के तने और टहनियों पर लपेट दिया. अब बेल पर सुर्ख लाल फूल खिलने लगे.

यह देख मुझे अच्छा लगा कि इस उपाय से पेड़ पर कुछ बहार तो नजर आ रही है… पंछी भी वापस आने लगे थे, पर घोंसले नहीं बना रहे थे. कुछ देर ठहरते, पेड़ से बातें करते और वापस उड़ जाते. अब बेल भी घनी होने लगी थी. उस की छाया पेड़ जितनी घनी तो नहीं थी, पर कुछ राहत तो मिल ही जाती थी. पेड़ सूख जरूर गया, पर अभी भी कितने नेक काम कर रहा था.

टीवी केबल के तार अभी भी उस के सूखे तने से बंधे थे. सुर्ख फूलों की बेल को उस के सूखे तने ने सहारा दे रखा था. बेल को सहारा मिला तो उस की छाया में क्यारी के छोटे पौधे सहारा पा कर सुरक्षित थे. पेड़ सूख कर भी कितनी भलाई के काम कर रहा था. इसीलिए मैं इसे नेकी वाला पेड़ कहती. मैं ने इस पेड़ को पलपल बढ़ते हुए देखा था. इस से लगाव होना बहुत स्वाभाविक था.

परंतु आज इसे यों धरती पर चित्त पड़े देख कर मेरा मन बहुत उदास हो गया. लगा, जैसे आज सारी नेकी धराशायी हो कर जमीन पर पड़ी हो. पेड़ के साथ सुर्ख लाल फूलों वाली बेल भी दबी हुई पड़ी थी. उस के नीचे छोटे पौधे वाले गमले तो दिखाई ही नहीं दे रहे थे. मुझे और भी ज्यादा दुख हो रहा था.

घंटी बजाने वाले ने बताया कि अचानक ही यह पेड़ गिर पड़ा. कुछ देर बाद केबल वाले आ गए. वे तारें ठीक करने लगे. पेड़ की सूखी टहनियों को काटकाट कर तार निकाल रहे थे.

यह मुझ से देखा नहीं जा रहा था. मैं घर के अंदर आ गई, परंतु मन बैचेन हो रहा था. सोच रही थी, जगलों में भी तो कितने सूखे पेड़ ऐसे गिरे रहते हैं. मन तो तब भी दुखता है, परंतु जो लगातार आप के साथ हो वह आप के जीवन का हिस्सा बन जाता है.

याद आ रहा था, जब गली की जमीनको पक्की सड़क में तबदील किया जा रहा था, तो मैं खड़ी हुई पेड़ के आसपास की जगह को वैसा ही बनाए रखने के लिए बोल रही थी.

लगा, इसे भी सांस लेने के लिए कुछ जगह तो चाहिए. क्यों हम पेड़ों को सीमेंट के पिंजड़ों में कैद करना चाहते हैं? हमें जीवनदान देने वाले पेड़ों को क्या हम इतनी जमीन भी नहीं दे सकते? बड़ेबुजुर्गों ने भी पेड़ लगाने के महत्त्व को समझाया है.

बचपन में मैं अकसर अपनी दादी से कहती कि यह आम का पेड़, जो आप ने लगाया है, इस के आम आप को तो खाने को मिलेंगे नहीं.

यह सुन कर दादी हंस कर कहतीं कि यह तो मैं तुम सब बच्चों के लिए लगा रही हूं. उस समय मुझे यह बात समझ में नहीं आती थी, पर अब स्वार्थ से ऊपर उठ कर हमारे पूर्वजों की परमार्थ भावना समझ आती हैं. क्यों न हम भी कुछ ऐसी ही भावनाएं अगली पीढ़ी को विरासत के रूप में दे जाएं.

मैं ने पेड़ के आसपास काफी बड़ी क्यारी बनवा दी थी. दीवाली के दिनों में उस पर भी नया लाल रंग किया जाता तो पेड़ और भी खिल जाता.

पर आज मन व्यथित हो रहा था. पुन: बाहर गई. कुछ देर में ही संबंधित विभाग के कर्मचारी भी आ गए. वे सब काम में जुट गए. सभी छोटीबड़ी सूखी हुई सारी टहनियां एक ओर पड़ी हुई थीं. मैं ने पास से देखा, पेड़ का पूरा तना उखड़ चुका था. वे उस के तने को एक मोटी रस्सी से खींच कर ले जा रहे थे.

आश्चर्य तो तब हुआ, जब क्यारी के किनारे रखे सारे छोटे गमले सुरक्षित थे. एक भी गमला नहीं टूटा था. जातेजाते भी नेकी करना नहीं भूला था ‘सप्तपर्णी’. लगा, सच में नेकी कभी धराशायी हो कर जमीन पर नहीं गिर सकती.

मैं उदास खड़ी उन्हें उस यादों के दरफ्त को ले जाते हुए देख रही थी. मेरी आंखों में आंसू थे.

पेड़ का पूरा तना और डालियां वे ले जा चुके थे, पर उस की गहरी जड़ें अभी भी वहीं, उसी जगह हैं. मुझे पूरा यकीन है कि किसी सावन में उस की जड़ें फिर से फूटेंगी, फिर वापस आएगा ‘सप्तपर्णी.’

लेखिका- मंजुला अमिय गंगराड़े

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