ठगी के नए-नए तरीकों से रहें सावधान

शारीरिक और मानसिक मेहनत किए बिना पैसा कमाना आसान नहीं होता. मगर लोगों को यह बात समझ नहीं आती. इसी वजह से वे ठगों और जालसाजों के चक्कर में पड़ जाते हैं. लोगों को लालच दे कर ठगी करने वाले अपना शिकार बना लेते हैं. जब तक असलियत पता चलती है, तब तक उन का सबकुछ लुट जाता है.

मध्य प्रदेश के गोटेगांव में कुछ लोगों की नासमझी की वजह से ठगी का दिलचस्प मामला सामने आया है. लौकडाउन में घरों के अंदर कैद रहे ठगों ने अनलौक 1.0 में नोटों को 10 गुना करने का लालच दे कर यहां के कुछ युवकों को रुपयों की चपत लगा दी.

गोटेगांव पुलिस के मुताबिक, जबलपुर शहर के 5 ठगों ने शिक्षक कालोनी में रहने वाले देवेश दुबे को 5,000 रुपयों को  50,000 रुपयों में बदलने का प्लान समझाया.

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ठगों ने देवेश को समझाते हुए कहा, “पहले हमारे द्वारा बनाए गए नोटों को बाजार में चला कर देख लेना. यदि नोट बाजार में चल जाएं, तो हम नोट बनाने वाले कागज और केमिकल देंगे, जिन से घर बैठे आप नोट बना सकेंगे.”

देवेश को ठगों ने पहले 200 रुपए का एक असली नोट दिया,जो बाजार में चल गया. इस के बाद देवेश उन जालसाजों के चंगुल में फंस गया. जालसाजों ने देवेश से 5,000 रुपए ले कर नोट बनाने के लिए काले कागज की एक गड्डी और केमिकल दे दिए.

उन पांचों युवकों के चले जाने के बाद देवेश ने उन के बताए अनुसार काले कागज से केमिकल के इस्तेमाल से नोट बनाने की खूब कोशिश की, लेकिन नोट नहीं बने. तब उसे ठगे जाने का अहसास हुआ और उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई.

पुलिस ने जब इन ठगों को जबलपुर से गिरफ्तार कर पूछताछ की तो पता चला कि इन ठगों ने और भी कई लोगों को लालच दे कर अपने झांसे में ले कर इस तरह की ठगी की थी.

डिजिटल युग में ठगों द्वारा ठगी के नएनए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं. कभी मोबाइल पर इनामी कूपन और सर्टिफिकेट भेज कर, कभी एटीएम बंद होने की सूचना दे कर एटीएम का नंबर और ओटीपी मांग कर, फेसबुक पर फर्जी मैसेज के माध्यम से रुपयों की मदद मांग कर, तो कभी औनलाइन शौपिंग का डेटा चुरा कर पढ़ेलिखे लोगों को अपना निशाना बनाया जा रहा है.

अगर आप के पास रुपयों की डिमांड को ले कर अचानक ही किसी परिचित का कोई फोन और मेल आईडी है, तो उसे पेमेंट करने से पहले उस से फोन के जरीए बातचीत कर लें.  जल्दबाजी में रिप्लाई करने और रुपए भेज कर आप ठगी का शिकार हो सकते हैं.

बेहतर होगा कि आप ऐसा करने से पहले मेल या फोन कर  अपने परिचित से दोबारा इस की पुष्टि कर लें, वरना आप भी स्पूफ यानी किसी धोखाधड़ी के शिकार हो सकते हैं.

स्पूफ मेल और काल से साइबर अपराधी कर रहे हैं ठगी

साइबर अपराधियों ने अब काल और अन्य तरीकों को छोड़ कर ठगी का नया तरीका खोज निकाला है, जिसे जानकारों ने स्पूफ का नाम दिया है.

दरअसल, कुछ पढ़ेलिखे ठग इंटरनेट पर सौफ्टवेयर की मदद से स्पूफ मेल तैयार करते हैं. इस मेल में वह डिस्प्ले पर मेल भेजने वाले जानकार की ईमेल आईडी का इस्तेमाल करते हैं. इसे आप मुखोटा भी कह सकते हैं. इस के पीछे ठग अपना काम करता है. ऐसे में ठग मेल कर बड़ीबड़ी कंपनियों को अपना टारगेट बनाता है. इस के बाद उन्हीं के किसी परिचित क्लाइंट के नाम से रुपयों की डिमांड को ले कर मेल भेजा जाता है.

दर‌असल, यह मेल संबंधित कंपनी या व्यक्ति के किसी भी क्लाइंट या परिचित के मेल की कापी ही होता है. ऐसे में कंपनी या कोई भी परिचित परिचय होने के चलते फट से डिमांड किया हुआ रुपया मेल पर दिए अकाउंट में डलवा देते हैं. इस के बाद यह रुपया सीधा ठग के पास पहुंचता है.

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पीड़ित को ठगी का पता अपने क्लाइंट या परिचित को काल करने या उस के पेमेंट की डिमांड करने पर लगता है, लेकिन जब तक इस का पता लगता है, तब तक ठग अपना काम कर चुका होता है.

पुलिस के साइबर सेल में पदस्थ राकेश दीक्षित बताते हैं कि स्पूफ मेल के कई मामले सामने आ चुके हैं. कुछ महीने पहले ही दिल्ली में अलगअलग जगह बैठे नाइजीरियन गिरोह ने ग्रेटर नोएडा स्थित होटल क्राउन प्लाजा के एमडी को स्पूफ मेल कर 42 लाख रुपए खाते में डलवा लिए थे. उन्हें इस का पता क्लाइंट के रुपया न मिलने की काल आने पर लगा.

पता लगते ही उन्होंने तुरंत इस की शिकायत नोएडा के अन्वेषण अपराध केंद्र को दी. इस पर साइबर टीम ने 10 नवंबर, 2019  को दिल्ली से 4 नाइजीरियन को पकड़ कर खुलासा किया.

पुलिस की गिरफ्त में आए सभी नाइजीरियन युवकों का वीजा निरस्त हो चुका था. वे दिल्ली के बुराड़ी, पुष्प विहार, महरौली और देवली एक्सटेंशन में चोरीछिपे रह कर स्पूफ मेल के जरीए ठगी की वारदात को अंजाम दे रहे थे. पुलिस ने इन के पास से 34 लाख रुपए रिकवर करने के साथ ही इन के पास से 65 चेकबुक, 70 एटीएम, 65 बैंक अकाउंट और फर्जी सि‍म बरामद किए थे.

पुलिस अधिकारी ने बताया कि आरोपी कुछ सौफ्टवेयर और एप का इस्तेमाल कर स्पूफ काल करने के बाद लोगों से ठगी करते थे. आरोपी काल करने वाले शख्स के परिचित बन कर उन को काल करते थे. मोबाइल पर काल करते समय शख्स के परिचित का नंबर और नाम शो होने पर वह भी बिना जांचे रुपया ट्रांसफर कर देते थे. इस के बाद शख्स को अपने साथ ठगी होने का पता लगता था.

औनलाइन शौपिंग में भी ठगे जाने का खतरा

ज्यादातर मामलों में मोबाइल पर काल कर इनाम खुलने या एटीएम, सिम बंद होने के नाम पर ओटीपी मांग कर ठगी करना शामिल होता है, लेकिन अब लोगों को और अधिक सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि अब ठगों ने लोगों को ठगने के तरीके बदल लिए हैं. ये ठग अब नए तरीके से लोगों के घरों पर इनामी कूपन और सर्टिफिकेट भेज कर अपने जाल में फंसा रहे हैं.

गंभीर बात यह है कि लोग डर के मारे या अपनी जगहंसाई होने के डर से पुलिस तक इस की सूचना नहीं देते, जिस से ऐसे ठगों के हौसले बुलंद हो रहे हैं.

औनलाइन ठगी करने वाले अपराधियों द्वारा औनलाइन सामग्री खरीदने वाले लोगों का डेटा लीक कर संबंधित कंपनी के नाम से घर पर डाक से कुछ दिनों बाद स्क्रैच कार्ड भेजा जा रहा है. कार्ड को स्क्रैच करने पर लाखों रुपए इनाम में जीतने की जानकारी दी जाती है. इतना ही नहीं, व्यक्ति को जाल में फंसाने के लिए उसे लालच भी दिया जाता है.

ग्राहक झांसे में फंस कर स्क्रैच कार्ड पर लिखे हैल्पलाइन नंबर पर काल कर के जीता हुआ पैसा मांगते हैं तो शातिर ठग मोटी रकम होने की वजह से 50,000 रुपए पहले खाते में टैक्स के रूप में जमा कराने की कह कर ठगी कर रहे हैं. टैक्स जमा न कराने पर इनामी योजना लैप्स होने की भी बात कही जाती है.

कुछ जागरूक लोग इस तरह की ठगी से बच रहे हैं, परंतु कई लोग इन का शिकार भी बन रहे हैं.

ठग इतने शातिर हैं कि औनलाइन खरीदारी करने वालों का डेटा चुरा लेते हैं. इस से उन्हें ग्राहक के नाम, पते, मोबाइल नंबर और औनलाइन और्डर किए हुए सामान तक की डिटेल्स उपलब्ध रहती है. इस के बाद वह उसी औनलाइन शौपिंग कंपनी के नाम से फर्जी लेटर, शानदार डिजाइन के फर्जी स्क्रेच कूपन, एक लाख रुपए का सर्टिफिकेट बना कर डाक से निर्धारित पते पर भेज देते हैं.

कूपन में ठग हैल्पलाइन के नाम पर 2 मोबाइल नंबर डाल देते हैं. औनलाइन सामग्री खरीदने के बाद उसी कंपनी के नाम से डाक द्वारा शानदार डिजाइन के स्क्रेच कूपन, लैटर और सर्टिफिकेट दिखाते हैं, जिस से ग्राहक को उस पर पूरा भरोसा हो जाता है कि यह उक्त औनलाइन कंपनी द्वारा ही भेजा गया है. इसे देख कर कोई भी इन ठगों के जाल में फंस सकता है.

फेसबुक के जरीए भी की जा रही ठगी

ठगों के द्वारा औनलाइन ठगी का एक नया तरीका फेसबुक एकाउंट द्वारा दोस्तों से मदद के नाम पर पैसा मांगने का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. साइबर अपराधी फेसबुक एकाउंट हैक कर इस में जुड़े दोस्तों को मैसेज भेज कर इन से अपने खाते में रुपए मंगा रहे हैं.

मध्य प्रदेश के गुना शहर के एक व्यवसायी के फेसबुक एकाउंट को भी ठगों ने हैक कर लिया और उस में जुड़े दोस्तों को मैसेज कर लिखा कि मैं अस्पताल में हूं, मेरी मदद करो. मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है. इस ने एकांउट नंबर दिया और इस पर लोगों से रुपए मांगे.

हालांकि जब लोगों ने यह मैसेज पढ़ कर व्यवसायी को फोन किया, तो हकीकत सामने आ गई. इस के बाद व्यवसायी ने अज्ञात आरोपितों के खिलाफ कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई.

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पंजाबी महल्ला में रहने वाले अरुण सूद पुत्र प्रेमकुमार सूद होटल व्यवसायी हैं. इन्होंने बताया कि मेरे मित्र शैलेंद्र जैन ने 7-8 साल पहले मेरी फेसबुक आईडी बनाई थी. मैं सोशल मीडिया का कम ही इस्तेमाल करता हूं, इसलिए कुछ दिन बाद ही इस आईडी का पासवर्ड भूल गया था और चलाना भी बंद कर दिया. इस के बाद 11 नवंबर, 2019 को कुछ दोस्तों के फोन मेरे पास आए. इन लोगों ने पूछा कि तुम्हारी फेसबुक आईडी से तो रुपए मांगे जा रहे हैं. लोगों के काल आना बढ़े, तो फिर मैं ने मामले की शिकायत एसपी से की.

साइबर अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे बड़ेबड़े अधिकारियों के फर्जी फेसबुक एकाउंट से भी ठगी का अंजाम देने से नहीं चूकते.

लौकडाउन में नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा के एसडीएम राजेश शाह के फेसबुक एकाउंट के जरीए रुपयों की मदद मांगने का मामला दर्ज हुआ था.

ठगी के और भी हैं क‌ई तरीके, पर बरतें सावधानियां

बदलते जमाने के साथ ठगी करने वाले बदल चुके हैं. ऐसे ठगों से बचने के लिए आप को भी कमर कसनी होगी.

कभीकभी जालसाजों द्वारा आरबीआई के नाम फेक ईमेल ठगी करने के लिए भेजा जाता है. इस ईमेल में यूके में लगी किसी लौटरी को पाने के लिए ईमेल के जरीए पैनकार्ड, मोबाइल नंबर, बैंक का नाम, ब्रांच और अकाउंट की जानकारी मांगी जाती है.

ठग बैंक अकाउंट की जानकारी हासिल कर आप के अकाउंट से पैसे ट्रांसफर कर लेते हैं. आरबीआई ने विज्ञापन जारी कर लोगों को चेताया है कि इस तरह के झांसे में कतई न फंसें. वहीं आरबीआई ने सलाह दी है कि किसी भी अनजान आदमी को अपने अकाउंट की जानकारी न दें. किसी के भी साथ किसी तरह की लौटरी या पैसा पाने के लिए किसी भी तरह का पत्राचार न करें.

आरबीआई के मुताबिक, अगर आप के साथ ऐसा धोखा होता है, तो साइबर सेल में इस की शिकायत जरूर करें.

ठगी का एक और तरीका है एलआईसी बोनस ट्रांसफर का औफर. एलआईसी की पौलिसी में बहुत से लोगों का निवेश है. इस का फायदा उठा कर कुछ लोग एलआईसी से बोनस के नाम पर लोगों से ठगी कर रहे हैं.

एलआईसी ने लोगों को विज्ञापन के जरीए चेताया है कि एलआईसी के नाम पर आए कालर की पहचान और उन को आईआरडीए से जारी लाइसेंस को वेरिफाई करें. साथ ही, कोई भी शिकायत होने पर co_crm_fb@licindia.com पर शिकायत करें.

इसी तरह इंश्योरेंस रेगुलेटर आईआरडीए के नाम पर काल कर लोगों को इंश्योरेंस पौलिसी खरीदने की बात कही जाती है. हम आ पको बता दें कि आईआरडीए कोई इंश्योरेंस पौलिसी नहीं बेचता, सिर्फ इंश्योरेंस कंपनियों को रेगुलेट करता है. अगर आप को ऐसी कोई शिकायत है, तो आईआरडीए के टोल फ्री नंबर 155255 पर शिकायत कर सकते हैं.

क‌ई बार ठगी करने वाले नामीगिरामी कंपनियों के नाम पर ईमेल के जरीए नौकरी के औफर देते हैं. ये लोग पहले नौकरी के ईमेल के नाम पर सारी जानकारी हासिल कर लेते हैं, फिर नौकरी लगवाने के लिए लोगों से पैसों की डिमांड करते हैं. ऐसे किसी भी प्रकार के जौब औफर मिलने पर  सीधे उस कंपनी के एचआर डिपार्टमेंट से संपर्क करना चाहिए.

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कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम के नाम पर भारी रिटर्न का वादा कर के भी जालसाजी की जाती है. अगर कोई कंपनी आप से ऐसी स्कीम में निवेश करने के लिए कहती है, तो पहले जांच करें कि वह सेबी में रजिस्टर है कि नहीं. अगर आप को कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम से कोई शिकायत है, तो सेबी के टोल फ्री नंबर 1800 266 757 पर काल करें.

ठगी के और भी कई तरीके हैं. इन से बचने का सब से कारगर उपाय है, अपने पर भरोसा करें और शार्टकट से पैसा कमाने का लालच कतई न करें.

वहशीपन: 6 साल की मासूम के साथ ज्यादती

दिमाग में चढ़ा वहशियानापन इस हद तक पहुंच जाएगा कि न आगे सोचा न पीछे. अब तो रेप शब्द का नाम सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. चाहे किशोरी हो या मासूम, इससे फर्क नहीं पड़ता. बस, हवस पूरी करने का मौका चाहिए.

जी हां, ऐसा ही एक मामला 3 जुलाई, 2019 को सामने आया है. मासूम के साथ हुई घटना यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि वहशी कितना शातिर है. बच्ची के मां-बाप काम के सिलसिले में मेहनत मजदूरी करते हैं. घर में बच्ची के अकेले रहने का फायदा उठाते हैं वहशी. ऐसे शख्स जगह-जगह अपने शिकार की तलाश में रहते हैं. मौका मिलते ही ये बच्चियों व किशोरियों को धर दबोचते हैं और अपने मकसद को अंजाम देते हैं.

6 साल की बच्ची के साथ रेप…

3 जुलाई, 2019 को दिल्ली के द्वारका सेक्टर 23 के पास के एक गांव में 6 साल की एक मासूम के साथ रेप की घटना घटी. भले ही सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपी 24 साला मोहम्मद नन्हे को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बच्ची की हालत बेहद नाजुक है.

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सीसीटीवी फुटेज में घटना वाले दिन आरोपी लड़की के साथ दिखा है. उसे एक अलग जगह ले जाने के बाद आरोपी ने लड़की के साथ बलात्कार किया और भाग गया.

बच्ची की हालत नाजुक…

इलाके के एक बाशिंदे ने बच्ची को सड़क पर बेहोश और खून से लथपथ देखा. उस ने तुरंत ही पीसीआर को फोन किया. बच्ची को सफदरजंग अस्पताल ले जा कर भरती कराया गया. डाक्टरों ने कहा कि उस के प्राइवेट पार्ट की नसें फट गई हैं. अब तक वह कई सर्जरी से गुजर चुकी है.

पुलिस ने कहा कि आरोपी मोहम्मद नन्हे बेरोजगार था और उसी इलाके में रहता था. आरोपी भी लहूलुहान हालत में मिला था. उस ने अपना अपराध कबूल कर लिया है.

सामने आया पिता का दर्द…

आंखों में हताशा, निराशा लिए बच्ची के पिता ने कहा कि बिटिया आज ही बोली है, ”पापा, पापा.” वे कहते हैं, ”दिल्ली का बड़ा नाम सुना था. दो वक्त की रोटी के लिए कमाने आए थे यहां. क्या बताएं कि क्या हुआ.”

पीड़िता के पिता ने बताया, ”मेरे 4 बच्चे हैं. बिटिया दूसरे नंबर की है. इकलौती है. कमरे का किराया और बच्चों को पालने के लिए पैसों की जरूरत है, इसलिए दोनों काम करते हैं. 2 साल पहले काफी उम्मीदें लेकर दिल्ली आया था. लेकिन यहां गरीब के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. थोड़े दिन ठीक से चलता रहा, मगर अब बिटिया के साथ गलत काम हो गया.”

वहीं, बच्ची की मां ने बताया कि वहशी बच्ची को बहला कर मंदिर से ले गया था. उस ने टौफी का लालच दिया. बच्ची के साथ खेल रहे बच्चों को आरोपी ने धमका कर वहां से भगा दिया था.

क्या इंसाफ के लिए करना होगा आंदोलन…

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति जयहिंद का कहना है कि रेप करने वालों के खिलाफ, आंदोलन के बाद, दोषियों के लिए फांसी का कानून बना है, मगर यह कानून लागू नहीं हो पा रहा है. क्या दोबारा आंदोलन छेड़ना पड़ेगा ताकि दोषियों को फांसी की सजा मिल सके.

सफदरजंग अस्पताल में भरती पीड़ित बच्ची को देखने स्वाति जयहिंद पहुंचीं. उन्होंने कहा कि उस बच्ची के शरीर के हर हिस्से में खरोंच और चोट के निशान हैं. जगहजगह शरीर नोंचने के निशान रेप करने वाले के वहशीपन को उजागर करते हैं. बेशक, रेप का आरोपी गिरफ्तार हो गया हो, लेकिन क्या यह काफी है. उन्होंने सवाल उठाया कि कब ऐसा सिस्टम बनेगा जिस में बच्चों के रेपिस्ट को जल्द से जल्द फांसी हो?

उन्होंने मांग की कि मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो और आरोपी को फांसी की सजा दी जाए.

केजरीवाल पहुंचे बच्ची को देखने…

वहीं दूसरी ओर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस बच्ची को देखने सफदरगंज अस्पताल गए. उन्होंने कहा कि एक हैवान ने छोटी सी बच्ची के साथ गलत काम किया. डाक्टर ने बताया कि जब वे यहां आई थी तब उस की हालत बेहद खराब थी, पर अब ठीक है. मैं बच्ची के पिता से मिला. दिल्ली सरकार 10 लाख रुपए का मुआवजा देगी और अच्छा वकील खड़ा करेगी. जो दोषी है, सरकार उसे सजा दिलाएगी, ताकि यह दूसरों के लिए सबक बन सके.

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शासन-प्रशासन कानून अगर समय रहते सबक ले सके तो ठीक, वरना आने वाला समय रेपिस्टों का होगा. मासूमों को बचा सकते हो तो बचा लो. कोई कुछ न कर सकेगा.

अदालतें सुबूतों पर चलती हैं. अपराध को कोर्ट में साबित करना होगा. क्या पता, पुलिस की मार से बचने के लिए आरोपी ने हामी भरी हो.

यह तो समय ही बताएगा कि अदालत आरोपी की क्या सजा तय करती है, पर आप सावधान हो जाइए और ऐसे लोगों पर पैनी निगाह रखिए, चाहे पड़ोसी ही क्यों न हो.

यौन अपराध: लोमहर्षक कांड

जैसे-जैसे हम कथित रूप से सभ्य होते जा रहे हैं, देश में यौन अपराध बढ़ते चले जा रहे हैं. साथ साथ कानून भी सख्त होता जा रहा है. वस्तुतः यौन अपराध  जिस गति से बढ़ते चले जा रहे हैं वह एक सभ्य समाज के लिए चिंता का सबब है. दरअसल, पूर्व मे बलात्कार के बाद महिलाओं को अधमरा ही सही छोड़ दिया जाता था. क्योंकि कानून लाचर था. मगर अब जब कानून में तब्दीली करके उसे सरकार द्वारा सख्त बना दिया गया है,  यहां तक की फांसी प्रावधान किया गया है अपराधियों द्वारा अब कानून के भय के कारण बलात्कार के बाद  लड़कियों को मौत के घाट उतार दिया जाने लगा  है.

ऐसा ही एक लोमहर्षक कांड  छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के एक गांव में घटित हुआ है. जहां 14 वर्षीय एक  किशोरी को दो लोगों ने सिर्फ इसलिए जलाकर मार दिया कि उनके खिलाफ कानून  के पास कोई सबूत ना रह पाए और वे कानून के शिकंजे से बच जाएं.

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बेमेतरा जिले में एक  दिल दहला देने वाली शर्मनाक घटना हुई है. जिसकी गूंज आज संपूर्ण छत्तीसगढ़ में हो रही है.

जिले के दाढ़ी थाना क्षेत्र के मजगाँव में एक 14 वर्षीय किशोरी के साथ दो युवकों ने बलात्कार  की असफल  कोशिश की. बलात्कार की घटना को अंजाम देने विफल रहने वाले दोनों  युवकों ने  अपनी जान बचाने  किशोरी  पर मिट्टी तेल डालकर ज़िंदा जलाने का  असफल प्रयास किया.

80 पर्सेंट जल गई किशोरी

आरोपियों ने बलात्कार की असफल कोशिश के पश्चात किशोरी  पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर उसे 80 पर्सेंट से अधिक जला दिया. आरोपियों की मंशा यह थी कि उनके कुकृत्य को ना पुलिस जान पाए और ना मामला लोगों तक पहुंच सके. इसीलिए बड़े ही शातिर  तरीके से उन्होंने  किशोरी  को जला डाला. यही कारण है कि  हॉस्पिटल में उसकी मृत्यु हो गई. घटना की जानकारी  प्राप्त होते ही  जहां पुलिस अलर्ट हो गई और आरोपियों को धर दबोचा वहीं यह गंभीर घटना जब बेमेतरा जिला से लेकर संपूर्ण छत्तीसगढ़ में प्रसारित होती चली गई तो लोगों में रोष पैदा हो गया. बेमेतरा जिला की पुलिस के मुताबिक इस घटना की जानकारी मिलते ही किशोरी को राजधानी रायपुर रिफर किया गया. मगर महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि किशोरी  ने मृत्यु  से पुलिसवालों को अपना अंतिम  बयान दर्ज करा दिया था.

बेमेतरा पुलिस अधीक्षक दिव्यांग पटेल ने हमारे संवाददाता को  बताया  घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस ने तत्काल इस मामले में संज्ञान ले लिया था. यहां यह भी गौरतलब है कि घटना 22 जून सोमवार को  घटित हुई थी. बलात्कार की शिकार किशोरी का बयान लेने के बाद आरोपी दोनों युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया . पकड़े गए आरोपियों में जहाँ  एक नाबालिग 13 वर्ष का है वहीं दूसरा 22 वर्ष का    है. दोनों ही युवा गाँव के ही रहने वाले हैं.

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उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पूर्व इसी तरह हुई एक घटना में बेमेतरा सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र अंतर्गत  एक मासूम बच्ची को अगवा उसका रेप किया गया था. इस मामले को लेकर बेमेतरा शहर में जमकर हड़बोंग  हुआ था. पुलिस प्रशासन पर  लगातार सवाल उठाये जा  रहे थे. लगातार हो रहे प्रदर्शनों के बाद पुलिस आरोपी ट्रक ड्राईवर को गिरफ्तार करने सफल हो पाई थी. और अब यह मामला शांत ही हुआ है कि एक दूसरी लोमहर्षक घटना क्रम घटित हो गयी है.

8 वर्षीय बच्ची के साथ

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा  जिले में ही,  इसी  जून  माह के प्रारंभ में, एक 8 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म  का मामला सामने आया था.  घर के आंगन में सो रही बालिका का  अपहरण किया गया. फिर  रेप की घटना को अंजाम दिया गया. आरोपी कथित रूप से बालिका  को घर से करीब 20 मीटर दूर छोड़कर भाग गये . ग्रामीणों ने बच्ची को सड़क किनारे देखा था. पूछताछ में  बालिका ने परिजनों को अपने साथ हुई पूरी घटना बताई. इसके बाद मामले की शिकायत पुलिस से की गई. शिकायत मिलते ही पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया.   पुलिस को सूचना देकर बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया गया .

बालिका ने अपने साथ हुए वारदात की जानकारी दी जिसके बाद जिले में हड़कंप मच गया. फौरन पुलिस अधीक्षक दिव्यांग पटेल  अस्पताल पहुंचे. एसपी दिव्यांग पटेल ने  बताया कि बालिका ने अपने बयान में  वारदात की जानकारी दी.  अपहरणकर्ता ट्रक में उसे लेकर गया था और ट्रक से ही उसे छोड़कर चला गया. इस आधार पर बेमेतरा पुलिस चौक-चौराहों में लगे सीसीटीवी को खंगाल रही  रही थी मगर घटनाक्रम के पश्चात लोगों में आक्रोश फूट पड़ा और शिकायत गृहमंत्री तक पहुंच गई. अभी यह बलात्कार की घटना लोगों के जेहन से उतरी ही नहीं है कि पुनः दूसरी लोमहर्षक घटना घट गई.

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9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज

9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज : भाग 3

घर से निकलने से पहले रफीका ने बच्चों से कह दिया था कि वह संजय के साथ मां से मिलने कोलकाता जा रही है. 4 दिनों बाद वह वापस लौट आएगी. तुम सब ठीक से रहना, अपना खयाल रखना. किसी चीज की जरूरत पड़े तो निशा फूफी से कह कर ले लेना.

खैर, उस रात रेलगाड़ी वारंगल से तडेपल्लगुडम पहुंची तो रफीका की पलकें झपकने लगीं. वह सो गई तो संजय ट्रेन से प्लेटफार्म पर उतरा. स्टाल से उस ने एक पैकेट छाछ का लिया और वापस ट्रेन में अपनी सीट पर बैठ गया.

एक डिब्बे में छाछ पलट कर उस ने बड़ी सफाई से उस ने उस में नींद की 10 गोलियों का चूण मिला दिया. जब दवा छाछ में घुल गई तो उस ने नींद में सोई रफीका को जगा कर छाछ पिला दी.

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छाछ पीने के बाद वह फिर सो गई. उसे क्या पता था कि जीवन का हमसफर बनने वाला संजय यमराज बन कर उस की जिंदगी छीनने वाला है और अब वह चंद पलों की मेहमान है.

थोड़ी देर बाद दवा ने अपना असर दिखाना शुरू किया. संजय ने रफीका को हिलाडुला कर देखा. वह बेसुध पड़ी थी. उसी दौरान बड़ी सफाई से उस ने उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

फिर मौका देख कर रफीका को अंधेर में तडेपल्लीगुडम और राजमुंद्री रेलवे स्टेशन के बीच रेलगाड़ी से नीचे गिरा दिया. वह मन ही मन खुश हो रहा था. क्योंकि उस के और शाइस्ता के बीच का रोड़ा हमेशाहमेशा के लिए निकल गया था.

रफीका को ठिकाने लगाने के बाद सितमगर आशिक संजय अगले स्टेशन राजमुंद्री पर उतर गया. पूरी रात उस ने स्टेशन पर बिताई. फिर अगले 2 दिनों तक वह राजमुंद्री शहर में रहा और तीसरे दिन अकेले वारंगल वापस लौट आया.

संजय को अकेले आया देख कर मकसूद को अजीब लगा. उस ने उस से रफीका के बारे में पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया कि रफीका अपने एक रिश्तेदार के यहां रुक गई है. 2-4 दिनों में वापस लौट आएगी.

पता नहीं क्यों संजय का यह जवाब मकसूद के गले नहीं उतर रहा था. फिर उस ने सोचा कि हो सकता है लंबे समय के बाद वह मायके गई है, किसी रिश्तेदार से मिलने का मन हुआ हो, तो रुक गई हो. 2-4 दिन में खुद ही लौट आएगी. आखिर बच्चों की भी तो चिंता होगी उसे.

रफीका को कोलकाता गए 10 दिन बीच चुके थे. न तो रफीका घर वापस लौटी थी और न ही उस ने फोन किया था. मां को ले कर बच्चे भी परेशान हो रहे थे. संजय से पूछने पर वह गोलमोल जवाब दे देता था. मकसूद भी उस से पूछपूछ कर परेशान हो चुका था.

फिर मकसूद ने रफीका की मां के पास फोन किया और उस के बारे में पूछा. उस की मां ने कहा कि रफीका तो यहां आई ही नहीं. यह सुन कर मकसूद का माथा ठनक गया. उसे यह समझते देर नहीं लगी कि दाल में कुछ काला है. संजय ने रफीका के साथ जरूर कुछ ऐसावैसा कर दिया है.

इसी बीच कोरोना संकट को ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लौकडाउन की घोषणा कर दी, जिस से लोगों के घरों से निकलने पर सख्त पाबंदी लग गई.

मकसूद जिस कारखाने में काम करता था, ऐहतियात के तौर पर उस के मालिक ने उसे परिवार सहित शहर से गांव गोर्रेकुंठा शिफ्ट कर दिया था. जबकि संजय रफीका के बच्चों को साथ ले कर रहता था.

झूठी बातें कह कर उस ने बच्चों को अपनी बातोें में उलझाए रखा. उधर मकसूद संजय से फोन कर के पूछता रहा कि बताओ रफीका का तुम ने क्या किया. वह कहां है?

रफीका जिंदा होती तो वह आती. वह मर चुकी थी, फिर संजय क्या जवाब देता. इसलिए वह मकसूद से बचने लगा था. संजय समझ गया था कि मकसूद को सच के बारे में पता चल चुका है. कहीं मकसूद ने पुलिस को बता दिया तो उसे जेल जाना पड़ सकता है.

जेल जाने की सोच कर संजय डर गया. वह जेल नहीं जाना चाहता था. उसी समय उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म ले लिया. उस ने सोचा कि क्यों न वह मकसूद के पूरे परिवार को खत्म कर दे. जब परिवार में कोई जीवित नहीं रहेगा तो रफीका के बारे में पूछने वाला कोई नहीं होगा और यह राज सदा के लिए दफन हो जाएगा.

खतरनाक विचार मन में आते ही संजय आगे की योजना बनाने लगा. 20 मई, 2020 को मकसूद के बड़े बेटे शादाब का जन्मदिन था. संजय जानता था मकसूद बेटे का जन्मदिन धूमधाम से मनाता है. उस ने सोचा कि अगर खाने में जहर मिला दे तो खाना खाते ही पूरा परिवार यमलोक सिधार जाएगा और यह राज राज बन कर रह जाएगा.

मकसूद कई दिनों से संजय को बुला रहा था. लेकिन संजय उस से मिलने उस के घर नहीं जा रहा था. वह जान था कि मकसूद उसे क्यों बुला रहा है. 16 मई को फोन कर के मकसूद ने संजय को बेटे के जन्मदिन पर अपने यहां आमंत्रित किया. घर पर ही छोटी सी पार्टी का आयोजन है, तुम जरूर आना.

मकसूद जान रहा था कि वैसे तो संजय आ नहीं रहा है, लेकिन बर्थडे के नाम पर वह जरूर आएगा. उसी दौरान उस से रफीका के बारे में पूछूंगा. संजय ने पार्टी में सही समय पर आने के लिए हामी भर दी थी.

18 मई को संजय ने मैडिकल स्टोर से नींद की 60 गोलियां खरीदीं और घर में पीस कर रख दी. 20 मई की शाम मकसूद ने संजय को फोन कर के याद दिलाया कि उसे बेटे के जन्मदिन पर आना है. संजय ने हां में जवाब दिया और कहा कि वह पार्टी में जरूर आएगा.

20 मई, 2020 की रात 8 बजे संजय मकसूद के घर पहुंचा. घर में उस के परिवार के सभी लोग यानी पत्नी निशा, बेटी बुशरा खातून, बेटे शादाब आलम, सोहेल आलम, 3 वर्षीय नाती के साथ मकसूद का दोस्त शकील मौजूद थे. कारखाने के 2 और मजदूर श्रीराम और श्याम भी वहां आए थे. वे दोनों ऊपर के कमरे में ठहरे हुए थे.

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इसी बीच संजय मौका देख कर किचन में गया और नींद की 60 गोलियों का पाउडर दाल में मिला दिया और बाहर निकल आया. रात साढे़ 9 बजे खाना शुरू हुआ. संजय ने खाना खाने से साफ मना कर दिया. मकसूद और उस के परिवार वाले, शकील, श्रीराम और श्याम ने खाना खाया. खाना खाने के कुछ ही देर बाद नींद की गोलियों ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. एकएक कर सभी नींद के आगोश में समाते चले गए. संजय भी वहीं सो गया था.

संजय रात साढ़े 12 बजे उठा. सभी को हिलाडुला कर देखा. किसी के शरीर में हरकत नहीं हो रही थी. इस के बाद संजय ने घर में रखे बोरे में एकएक कर के सभी को भरा और घर से बोरा घसीटते हुए गांव के बाहर गोदाम के पास स्थित कुएं में डालता गया. उस का यह काम सुबह 5 बजे तक चला. सभी 9 लोगों को जिंदा कुएं में डालने के बाद संजय इत्मीनान से घर लौट आया और सो गया. वहां पानी में डूबने के बाद उन की मौत होती गई.

21 मई को कुछ चरवाहे अपनी भैंसों को चराते हुए कुएं की ओर गए. उन्होंने भैंसों को चरने के लिए छोड़ दिया और खेलने लगे. खेलतेखेलते उन की प्लास्टिक की गेंद कुएं में चली गई. गेंद को देखने के लिए उन्होंने कुएं में झांका तो भीतर का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए.

चरवाहे चीखते हुए उलटे पांव वहां से भागे. कुएं के भीतर पानी में लाशें तैर रही थीं. चरवाहों ने गांव पहुंच कर इस की सूचना ग्राम प्रधान को दी. ग्राम प्रधान ने इस घटना की खबर गिचिकोंडा थाने को दे दी.

घटना की सूचना मिलते ही एसओ शिवरामे पुलिस टीम ले कर गांव पहुंच गए. कुएं का निरीक्षण किया तो उस में 4 लाशें तैरती नजर आईं. जबकि 5 लाशें कुएं की तलहटी में बैठ गई थीं, जो अगले दिन पानी पर उतराती दिखाई दीं.

पूछताछ के बाद पुलिस कमिश्नर वी. रविंद्र ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के घटना की जानकारी पत्रकारों को दी. संजय ने एक हत्या छिपाने के लिए 9 और हत्याओं को अंजाम दिया था. सबूत मिटाने के लिए उस ने सभी के मोबाइल फोन छिपा दिए थे, जो बरामद कर लिए गए.

सीसीटीवी फुटेज में भी उसे देखा गया. संजय की घिनौनी करतूत से पूरी मानवता शर्मसार हुई. उसे उस के किए की सजा जरूर मिलेगी.

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– कथा में शाइस्ता परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज : भाग 2

दिल दहला देने वाली घटना को घटे 3 दिन बीत चुके थे. घटना को ले कर समूचे राज्य में दहशत थी. पुलिस पर जनता का काफी दबाव था.

लोग मांग कर रहे थे कि घटना का खुलासा जल्द से जल्द कर के हत्यारों को जेल भेजा जाए. जल्द खुलासा न होने पर लोगों ने पुलिस प्रशासन के खिलाफ बड़ा आंदोलन करने की चेतावनी भी दी. पुलिस कमिश्नर वी. रविंद्र ने डीसीपी वेंकट रेड्डी को घटना का खुलासा जल्द से जल्द करने के आदेश दे दिए.

घटना की छानबीन में यह मामला आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का प्रमाणित हो चुका था. मृतक मकसूद का दोस्त संजय कुमार यादव शक के दायरे में पहले ही आ चुका था. अब तक की जांच के दौरान जुटाए गए साक्ष्य संजय के खिलाफ थे.

24 मई, 2020 को पुलिस ने शक के आधार पर संजय को गिचिकोंडा से हिरासत में ले लिया. जब उस से पूछताछ की तो वह बारबार खुद को निर्दोष बताता रहा. पुलिस ने जब उस से सख्ती से रफीका के बारे में पूछा तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

संजय समझ चुका था अब और देर तक उस का नाटक चलने वाला नहीं है. इस के बाद वह डीसीपी रेड्डी के पैरों पर वह गिर कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘साहब, मुझे मत मारिए. मैं सचसच बताता हूं. सभी हत्याएं मैं ने ही की हैं.’’

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‘‘क्याऽऽ’’ संजय के मुंह से हत्या की बात सुन कर सभी पुलिसकर्मी हैरान रह गए.

‘‘क्या करता, सर. मैं मजबूर था. रफीका के बारे में सवाल पूछपूछ कर मकसूद और उस के घर वालों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था. राज छिपाने का मेरे पास यही आखिरी रास्ता बचा था…’’ इस के बाद संजय पूरी कहानी से परतदरपरत परदा उठाता चला गया.

संजय के बयान के आधार पर दिल हदला देने वाली कहानी कुछ ऐसे सामने आई –

45 वर्षीय मोहम्मद मकसूद आलम मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कोलकाता का रहने वाला था. करीब 25 साल पहले अपनी बीवीबच्चों को साथ ले कर तेलंगाना के वारंगल जिले के गोर्रेकुंठा में बस गया था. तब वारंगल जिला आंध्र प्रदेश में पड़ता था. पत्नी निशा आलम और 3 बच्चे शादाब, बुशरा खातून और सोहेल, मकसूद का बस यही घरसंसार था. ब्याह के बाद से बेटी बुशरा मायके में बेटे के साथ रहती थी.

मोहम्मद मकसूद आलम और उस की पत्नी निशा आलम बोरे बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करते थे. उसी फैक्ट्री में बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला 26 वर्षीय संजय कुमार यादव भी काम करता था.

मिलनसार, कर्मठ और व्यवहार कुशल संजय ने अपने व्यवहार से मकसूद ही नहीं, सभी कर्मचारियों के दिलों में जगह बना ली थी. मकसूद भले ही उम्र में संजय से 20 साल बड़ा था, लेकिन वह संजय को अपना दोस्त मानता था.

उस का मकसूद के घर भी आनाजाना था. मकसूद के बच्चे उसे चाचा कहते थे.

संजय की मकसूद के घर के भीतर तक पैठ बन गई थी. उस के घर वाले जानते थे कि वह नेक इंसान है और अकेला रहता है. मकसूद की पत्नी निशा जब भी कुछ अच्छा पकाती थी तो संजय को खाने पर जरूर बुलाती थी.

संजय की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक और मजे से चल रहा था. इसी बीच उस की किस्मत में रफीका आ कर बैठ गई. रफीका, मकसूद की पत्नी निशा के भाई की बेटी थी. किस्मत की मारी रफीका कई साल पहले कोलकाता से बच्चों को साथ ले कर फूफी के पास रहने आई थी. रफीका के 3 बच्चे थे. बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी.

5 साल पहले रफीका को उसके पति ने तलाक दे दिया था. तलाक के बाद से रफीका की जिंदगी तबाह हो गई थी. इस महंगाई के जमाने में 3-3 बच्चों का भरणपोषण करना कोई मामूली बात नहीं थी. वह भी तब जब आय का कोई स्रोत न हो. वह दिनरात इसी चिंता में रहती थी कि जीवन की नैया कैसे चलेगी, कौन हमारा खेवनहार होगा?

रफीका की सब से बड़ी बेटी शाइस्ता 15 साल की हो चुकी थी. रफीका को सब से ज्यादा उसी की चिंता सताती थी. रफीका की जिंदगी दूसरों के रहमोकरम पर चल रही थी. निशा से भतीजी की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी तो उस ने उसे कोलकाता से अपने पास गोर्रेकुंठा बुला लिया.

मालिक से सिफारिश कर के मकसूद ने रफीका को भी अपनी फैक्ट्री में नौकरी दिलवा दी. तभी से वह बच्चों को ले कर फूफी के साथ रह रही थी.

संजय मकसूद का दोस्त था. उस की घर में भीतर तक पैठ भी थी. संजय की नजर रफीका के गोरे चेहरे पर पड़ी तो वह उसे मन भा गई. कुंवारे संजय ने अपने दिल पर रफीका का नाम लिख दिया. जब संजय ने रफीका की कारुणिक कहानी सुनी तो उस के प्रति उस का प्रेम और भी बढ़ गया था.

उस दिन से संजय रफीका और उस के बच्चों का खास खयाल रखने लगा. वह उन की जरूरत के सामान ला कर देता रहता था. कह सकते हैं कि वह अभिभावक की तरह बच्चों की जरूरतें पूरी करने लगा. उस का समर्पण देख रफीका भी संजय की ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकी.

दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ते बनते गए. अब रफीका संजय के लिए दोनों वक्त का खाना पकाती, उसे खिलाती और उस के कपड़े भी धो कर देती थी.

दोनों ओर प्यार की चाहत थी. यह बात मकसूद और उस की पत्नी निशा को भी पता चल गई थी, लेकिन उन्होंने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की. संजय ने शहर में किराए का एक कमरा ले लिया था. रफीका और उस के बच्चों को साथ ले कर वह उसी कमरे में रहने लगा. दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. उन के बीच जिस्मानी संबंध भी बन चुके थे.

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रफीका संजय पर शादी करने के लिए दबाव बनाने लगी थी. वह अपने रिश्ते को छिपा कर नहीं जीना चाहती थी. क्योंकि समाज ऐसे रिश्ते को गंदी निगाहों से देखता है. वह पत्नी का पूरा हक चाहती थी. संजय ने उस से थोड़ा वक्त मांगा. इस पर रफीका राजी हो गई.

एक दिन संजय की शर्मनाक हरकत देख कर रफीका हैरान रह गई. वह बेटी समान शाइस्ता के गदराए जिस्म के साथ छेड़छाड़ कर रहा था. शाइस्ता उस से बचने के लिए इधरउधर भाग रही थी. संयोग से इसी बीच रफीका की नजर उस पर पड़ गई.

संजय की घिनौनी हरकत देख कर रफीका का खून खौल उठा. उस ने संजय को आड़े हाथों लेते हुए खबरदार किया और कहा कि आइंदा मेरी बेटी से दूर रहना. उस पर बुरी नजर डालने की कभी कोशिश की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. सीधे पुलिस में शिकायत कर दूंगी.

रफीका की धमकी काम कर गई. उस दिन के बाद से संजय शाइस्ता से दूरी बना कर रहने लगा. उस ने शाइस्ता को ले कर अपने मन में जो अरमान पाले थे, उन पर पानी फिर गया था, लेकिन वो ऐसा हरगिज होने देना नहीं चाहता था.

दरअसल, शातिर दिमाग वाला खतरनाक संजय दोहरा चरित्र जी रहा था. रफीका तो उस के लिए एकमात्र सीढ़ी थी, उस का निशाना तो उस की खूबसूरत और कमसिन बेटी शाइस्ता थी. रफीका से वह दिखावे के लिए प्यार करता था, जबकि शाइस्ता उस के दिल की रानी बन चुकी थी.

रानी को हासिल करने के लिए संजय के दिमाग में एक बड़ी योजना चल रही थी. योजना ऐसी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. संजय ने रफीका को रास्ते से हटा कर उस की बेटी शाइस्ता से ब्याह रचाने की योजना बना ली. वह समझ चुका था कि जब तक रफीका जिंदा रहेगी, शाइस्ता उस की नहीं हो सकती.

योजना के मुताबिक, 8 मार्च, 2020 को संजय मकसूद से यह कह कर रफीका के साथ गरीब रथ एक्सप्रैस से कोलकाता के लिए रवाना हुआ कि वह रफीका से निकाह करना चाहता है.

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वह उस के मांबाप के पास शादी की बात करने जा रहा है. इस पर न तो मकसूद ने कोई आपत्ति की और न ही उस की पत्नी निशा ने. मकसूद की ओर से रजामंदी मिलने के बाद ही 8 मार्च, 2020 की रात वारंगल से दोनों कोलकाता के लिए रवाना हुए थे. उस के तीनों बच्चे घर पर ही थे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

9 लाशों ने खोला एक हत्या का राज : भाग 1

9 लातेलंगाना का एक जिला है वारंगल. इसी जिले के थाना गिचिकोंडा क्षेत्र के गोर्रेकुंठा गांव के बाहर गोदाम से सटे कुएं के पास सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा थी.

गिचिकोंडा थाने के एसओ शिवरामे, डीसीपी (अर्बन) वेंकट लक्ष्मी, एसीपी श्याम सुंदर, पुलिस कमिश्नर वी. रविंद्र, थाना परवंथगिरी के एसओ किशन और साइबर क्राइम इंसपेक्टर जनार्दन रेड्डी भी वहां मौजूद थे.

दरअसल, कुएं के भीतर पानी में 4 लाशें तैर रही थीं. जरा सी देर में यह खबर आसपास के गांवों में भी फैल गई. इस के चलते क्षेत्र में सनसनी फैल गई. शवों को निकालने के लिए पुलिस ने मोटी रस्सी के सहारे कुएं में गोताखोरों को उतार दिया. घंटे भर की मशक्कत के बाद एकएक कर चारों लाशें बाहर निकाल ली गईं.

गांव के लोगों ने बताया कि चारों लाशें एक ही परिवार के लोगों की हैं, जो पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. यह परिवार कई साल पहले यहां आ कर बस गया था. मृतकों के नाम थे मोहम्मद मकसूद आलम, उस की पत्नी निशा आलम, बेटी बुशरा खातून और बेटा शादाब.

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ताज्जुब की बात यह थी कि ँस परिवार के 2 सदस्य लापता थे, जिस में एक मकसूद का बेटा सोहेल आलम और बुशरा खातून का 3 वर्षीय बेटा. उन का कहीं पता नहीं था. इन दोनों के लापता होने से पुलिस के माथे पर परेशानी की लकीरें खिंच गई थीं.

पुलिस ने लाशों का मुआयना किया, तो उन की स्थिति देख कर आत्महत्या करने का मामला लग रहा था, क्योंकि उन के शरीर पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे. अगर मृतकों की हत्या की गई होती तो उन के शरीर पर कहीं न कहीं चोट के निशान होते. जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था.

मामला आत्महत्या का है या हत्या का, इस का पता पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही चल सकता था. पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के चारों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल वारंगल भिजवा दिए. यह 21 मई, 2020 की बात है.

आगे की काररवाई करने के लिए पुलिस को चारों शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. लेकिन अगले दिन सुबह उसी कुएं में 5 और लाशें तैरती हुई दिखीं तो गांव ही नहीं समूचे जिले में सनसनी फैल गई. यह सोच कर पुलिस के भी हाथपांव फूल गए कि आखिर ये लाशें आ कहां से रही हैं.

पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और मोटी रस्सी के सहारे गोताखोरों को कुएं में उतार कर सभी लाशें बाहर निकलवाई. स्थानीय लोगों से लाशों की पहचान कराई गई तो उन में से 2 लाशों की शिनाख्त आसानी से हो गई. उन में से एक लाश मोहम्मद मकसूद परिवार के सोहेल आलम की और दूसरी बुशरा खातून के 3 वर्षीय बेटे की लाश थी.

थोड़ी कोशिश के बाद 3 लाशों की पहचान त्रिपुरा के रहने वाले प्रवासी मजदूर शकील अहमद और बिहार के रहने वाले प्रवासी मजदूर श्रीराम और श्याम के रूप में हुई. शकील, श्रीराम और श्याम के शरीर पर कई जगह चोटों के निशान थे, जबकि सोहेल और बच्चे के शरीर पर कोई चोट नहीं थी.

इस बार पुलिस को यह मामला आत्महत्या का नहीं लगा. शकील, श्रीराम और श्याम के शरीर पर चोटों को देख कर पुलिस का माथा ठनका कि कोई तो है जो इन की हत्याओं को आत्महत्या का रूप देना चाहता है. अगर ये आत्महत्या का मामला होता तो उन के शरीर पर कोई चोट नहीं होती, जबकि तीनों के शरीर पर चोटों के निशान थे.

इस का मतलब यह कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का था. हत्यारा जो भी है बहुत ही शातिर है. खैर, कानूनी काररवाई कर के पुलिस ने पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल गिचिकोंडा भिजवा दिया. साथ ही पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

23 मई को पुलिस के पास 9 लाशों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सभी की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक उन्हें कुएं में फेंका गया था, जिस से पानी में डूबने से उन की मौत हो गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मामला और भी पेंचीदा हो गया था. एक साथ इतने लोगों ने कुएं में कूद कर कैसे आत्महत्या की होगी, निश्चय ही यह मामला आत्महत्या के बजाय हत्या की ओर इशारा कर रहा था. इस घटना में कई लोगों के शामिल होने के संकेत मिल रहे थे. इस दिल दहलाने वाली घटना को जिस ने भी देखा, उस का कलेजा कांप उठा. लाशों के अंबार से समूचे इलाके में सनसनी फैली थी.

पुलिस ने घटना की जांचपड़ताल शुरू कर दी. घटना के एकएक पहलू पर बड़ी बारीकी से जांच की थी. छानबीन के दौरान पुलिस क ो पता चला कि मोहम्मद मकसूद आलम के पूरे परिवार की हत्या की जा चुकी है. उस परिवार में ऐसा कोई नहीं बचा है, जिस से कोई जानकारी हासिल हो सके.

इस से एक बात स्पष्ट हो गई कि हत्यारे जो भी थे, इस परिवार से रंजिश रखते थे, तभी पूरे परिवार का खात्मा कर दिया था. पुलिस का माथा यह सोच कर ठनका हुआ था कि हत्यारों ने मकसूद के परिवार के साथसाथ 3 प्रवासी मजदूरों की हत्या क्यों की? उस परिवार से इन का क्या कनेक्शन हो सकता है?

इस गुत्थी को सुलझाने का पुलिस के पास एक ही रास्ता बचा था. वह था मृतकों के फोन की काल डिटेल्स. काल डिटेल्स के आधार पर ही गुत्थी सुलझाई जा सकती थी. लेकिन पुलिस के पास मृतकों के फोन नंबर नहीं थे.

ताज्जुब की बात यह थी कि मकसूद के घर से सभी मोबाइल फोन गायब थे. इस से एक बात तो पक्की थी कि इस लोमहर्षक घटना में मकसूद का कोई बहुत करीबी शामिल रहा होगा. उस के पकड़े जाने पर ही घटना का खुलासा हो सकता है.

बहरहाल, जांचपड़ताल के दौरान पुलिस के हाथ एक मजबूत सूत्र लगा, जिस के सहारे वह मृतकों के फोन नंबर हासिल करने में कामयाब हो गई. दरअसल मोहम्मद मकसूद की पत्नी निशा आलम के बड़े भाई की बेटी रफीका मकसूद के घर से थोड़ी दूरी पर अपने 3 बच्चों के साथ किराए के कमरे में रहती थी.

रफीका की सब से बड़ी बेटी 15 साल की थी. उस का नाम शाइस्ता था. शाइस्ता की मां रफीका करीब 2 महीने से रहस्यमय ढंग से लापता थी. रफीका मकसूद के दोस्त संजय कुमार यादव के साथ वारंगल से कोलकाता मां से मिलने गई थी. 3 दिनों बाद संजय तो वारंगल वापस लौट आया था, जबकि रफीका वापस नहीं लौटी थी.

मकसूद के पूछने पर संजय ने उसे बताया था कि रफीका अपने रिश्तेदार के यहां रुक गई है, कुछ दिनों बाद घूमफिर कर लौट आएगी, चिंता की कोई बात नहीं. कई दिन बीत जाने के बाद भी जब रफीका बच्चों के पास वापस नहीं लौटी, तो मकसूद को चिंता सताने लगी. पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि मोहम्मद मकसूद ने जब संजय से रफीका के बारे में पूछा तो वह बिदक गया. उस के बाद दोनों के बीच विवाद हुआ.

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20 मई, 2020 को मकसूद के बड़े बेटे शादाब का जन्मदिन था. बेटे के जन्मदिन पर उस ने घर पर एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था.

पार्टी में मकसूद के परिवार के अलावा उस का दोस्त शकील और पड़ोस के 2 प्रवासी मजदूर श्रीराम और श्याम शरीक हुए थे. पार्टी रात 10 बजे तक चली थी.

शाइस्ता के बयान से संजय का चरित्र शक के दायरे में आ गया था. शाइस्ता से पुलिस को मकसूद आलम, उस की पत्नी निशा आलम, बेटी बुशरा और दोनों बेटों शादाब और सोहेल के फोन नंबर मिल गए.

पुलिस ने मकसूद आलम के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. शाइस्ता के द्वारा पुलिस ने संजय का भी फोन नबंर हासिल कर लिया था. उस के नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा दिया था, ताकि उस की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सके.

मकसूद की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि संजय और मकसूद के बीच कई बार लंबीलंबी बातें हुई थीं. घटना वाले दिन शाम 6 बजे के करीब मकसूद ने संजय को काल की. मकसूद का फोन 4 घंटे चालू रहा, फिर रात 10 बजे उस का और उस के पूरे परिवार के फोन बंद हो गए थे.

परेशान करने वाली बात यह थी कि घर के सभी सदस्यों के फोन एक ही समय पर कैसे बंद हुए. इस का मतलब साफ था कि उस वक्त हत्यारे मकसूद के घर में मौजूद थे. उन्होंने ने ही फोन स्विच्ड औफ कर के अपने कब्जे में ले लिए होंगे ताकि पुलिस उन तक आसानी से न पहुंच सके.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

Best of Crime Stories: मास्टरनी की खूनी डिगरी

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

फर्रूखाबाद के कोतवाली इंसपेक्टर संजीव राठौर अपने औफिस में बैठे थे, तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने उन के औफिस में प्रवेश किया. दिखने में वह संभ्रांत लग रहा था, लेकिन उस के माथे पर परेशानी की लकीरें थीं. राठौर ने उस व्यक्ति को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. आप अपनी परेशानी बताएं ताकि हम आप की मदद कर सकें.’’ ‘‘सर, मेरा नाम रमेशचंद्र दिवाकर है. मैं एटा जिले के अलीगंज थाना अंतर्गत झकरई गांव का रहने वाला हूं. मेरा छोटा भाई दिनेश कुमार दिवाकर पत्नी व बच्चों के साथ आप के ही क्षेत्र के गांव झगुवा नगला में रहता है. दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में है और श्रीनगर में तैनात है.

‘‘दिनेश 15 दिन की छुट्टी ले कर 6 जून को आया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचा. उस ने मुझे रात साढ़े10 बजे मोबाइल पर फोन कर के जानकारी दी थी कि वह घर के नजदीक पहुंच गया है. लेकिन 8 जून को उस की पत्नी रमा ने मेरी मां को जानकारी दी कि दिनेश घर आया ही नहीं है. उस का फोन भी नहीं लग रहा है. श्रीनगर कंट्रोल रूम को भी रमा ने दिनेश का फोन बंद होने की जानकारी दी है. भाई के लापता होने से मैं परेशान हूं और इसी सिलसिले में आप के पास आया हूं. इस मामले में आप मेरी मदद कीजिए.’’

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यह बात 10 जून की है.

कोतवाल संजीव राठौर ने रमेशचंद्र दिवाकर की बात गौर से सुनी, फिर बोले, ‘‘झगुवा नगला गांव, पांचाल घाट पुलिस चौकी के अंतर्गत आता है. 8 जून को इस गांव के बाहर एक युवक की अधजली लाश बरामद हुई थी. अज्ञात में पंचनामा भर कर लाश को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया था. लाश की कुछ फोटो हैं, आप उन्हें देख लो.’’

श्री राठौर ने लाश के फोटो मंगवाए फिर रमेशचंद्र को देखने के लिए थमा दिए. रमेशचंद्र ने सभी फोटो गौर से देखे और फफक पड़े, ‘‘सर, ये फोटो मेरे भाई दिनेश की लाश के हैं.’’

इस के बाद रमेशचंद्र ने मोबाइल फोन से घर वालों को सूचना दी तो घर में हाहाकार मच गया.

थानाप्रभारी संजीव राठौर ने रमेशचंद्र को धैर्य बंधाया, फिर मृतक के संबंध में जानकारियां जुटाईं. इस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘रमेशजी, आप को किसी पर शक है?’’

‘‘हां, है.’’ रमेशचंद्र गंभीर हो कर बोले.

‘‘किस पर?’’ संजीव राठौर ने अचकचा कर पूछा.

‘‘भाई दिनेश की पत्नी रमा और उस के आशिक अनमोल उर्फ अमन पर. हत्या की जानकारी रमा के भाई राहुल को भी होगी, लेकिन वह बहन के गुनाह को छिपाना चाहता है.’’

रमेशचंद्र दिवाकर की बात सुन कर संजीव राठौर चौंके. उन्होंने इस घटना की सूचना एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दे दी. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए दिनेश की हत्या का परदाफाश करने के लिए एडिशनल एसपी त्रिभुवन सिंह के निर्देशन में एक स्पैशल टीम बना दी. टीम में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर, कांस्टेबल तथा महिला सिपाहियों को शामिल किया गया.

रमा ने किया गुमराह

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक दिनेश के बड़े भाई रमेशचंद्र दिवाकर से पूछताछ की तथा उन का बयान दर्ज किया. पूछताछ में रमेशचंद्र ने बताया कि दिनेश 6 जून की रात घर आया था, लेकिन रमा यह कह कर गुमराह कर रही है कि वह घर नहीं आया. रमा के घर से 200 मीटर दूर अधजली लाश खेत में पाई गई थी, लेकिन वह लाश की शिनाख्त के लिए नहीं गई.

एक रोज बाद रमा ने अपने आप को बचाने के लिए सास को पति के लापता होने की जानकारी दी. सब से अहम बात यह कि जब वह झगुवा नगला स्थित रमा के घर गया तो उस ने अपने बच्चों से बात नहीं करने दी.

घर में ताला बंद कर वह भाई राहुल के साथ ससुराल यानी हमारे यहां आ गई. रमा मायके न जा कर ससुराल इसलिए आई ताकि ससुराल वाले उस पर शक न करें. गुमराह करने के लिए ही उस ने श्रीनगर कंट्रोल रूम को फोन किया था.

रमेशचंद्र ने जो अहम जानकारी दी थी, उस से पुलिस टीम ने एएसपी त्रिभुवन सिंह को अवगत कराया तथा हत्या का परदाफाश करने के लिए रमा तथा उस के सहयोगियों की गिरफ्तारी के लिए अनुमति मांगी. त्रिभुवन सिंह ने तत्काल पुलिस टीम को अनुमति दे दी. अनुमति मिलने पर पुलिस टीम ने रमा की ससुराल झकरई (एटा) में छापा मारा. रमा घर पर ही थी. पुलिस को देख कर वह रोनेधोने का नाटक करने लगी. लेकिन पुलिस टीम ने उस की एक नहीं सुनी और उसे गिरफ्तार कर फर्रूखाबाद कोतवाली ले आई.

रमा का मायका फर्रूखाबाद के चीनीग्राम में था. पुलिस टीम ने वहां छापा मार कर रमा के भाई राहुल दिवाकर को भी गिरफ्तार कर लिया. रमा का प्रेमी अनमोल उर्फ अमन फर्रूखाबाद जिले के थाना मेरापुर के गांव गुठना का रहने वाला था. पुलिस टीम ने उस के घर छापा मारा तो वह घर से फरार था.

घर पर उस के पिता महेश दिवाकर मौजूद थे. उन्होंने बताया कि अनमोल 2 दिन से घर नहीं आया है. पुलिस टीम ने जब उन्हें बताया कि पुलिस को एक हत्या के मामले में अनमोल की तलाश है तो वह आश्चर्यचकित रह गए.

जब पुलिस टीम लौटने लगी तब अनमोल के पड़ोसियों ने बताया कि अनमोल का एक जिगरी दोस्त है रामगोपाल, जो परचून की दुकान चलाता है. अनमोल जब भी फुरसत में होता है, तब रामगोपाल की दुकान पर पहुंच जाता है. दोनों घंटों बतियाते और अपने दिल की बात एकदूसरे को बताते हैं. रामगोपाल को पता होगा कि अनमोल कहां है.

दोस्त से मिली खास जानकारी

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने रामगोपाल को उस की परचून की दुकान से हिरासत में ले लिया और थाना कोतवाली ला कर जब उस से अनमोल के संबंध में पूछताछ की गई तो वह उस की जानकारी से मुकर गया.

इस पर पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तब उस ने बताया कि अनमोल का एक दोस्त कमलकांत शर्मा है, जो उसी के गांव गुठना का रहने वाला है. कमलकांत उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही है और इन दिनों कानपुर देहात जिले के महाराजपुर थाने में तैनात है. अनमोल संभवत: कमलकांत के ही संरक्षण में होगा.

रामगोपाल से अनमोल के संबंध में अहम जानकारी मिली तो पुलिस टीम ने महाराजपुर थाने से संपर्क कर के सिपाही कमलकांत शर्मा से मोबाइल पर बात की. कमलकांत ने पुलिस टीम के प्रभारी संजीव राठौर को बताया कि अनमोल उस के पास है और वह पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करना चाहता है.

यह सुनते ही पुलिस टीम की बांछें खिल गईं. इस के बाद पुलिस टीम सिपाही कमलकांत के आवास पर पहुंची और अनमोल को फर्रूखाबाद कोतवाली ले आई. अनमोल को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने उस के दोस्त रामगोपाल को थाने से रिहा कर दिया.

पुलिस टीम ने थाना कोतवाली पर अनमोल उर्फ अमन से दिनेश कुमार की हत्या के संबंध में पूछताछ शुरू की तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि वह दिनेश की पत्नी रमा से प्यार करता है. दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए थे. दिनेश नाजायज संबंधों का विरोध करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी और शव को खेत में फेंक कर जला दिया.

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अनमोल ने यह भी बताया कि उसे दिनेश की हत्या का कोई अफसोस नहीं है बल्कि खुशी है कि उस की जान बच गई. क्योंकि दिनेश उसे व उस की प्रेमिका को ही मारने आया था. इसी वजह से वह घर में बिना किसी को बताए छुट्टी ले कर घर आ गया था. पूछताछ के बाद अनमोल ने हत्या में प्रयुक्त रायफल भी बरामद करा दी, जो उस ने छिपा दी थी.

हो गया हत्या का परदाफाश

रमा का सामना जब अनमोल से हुआ तो उस ने गरदन झुका ली और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. रमा ने बताया कि पति दिनेश को उस पर शक हो गया था. इसीलिए उस ने प्रेमी के साथ मिल कर उसे मौत की नींद सुला दिया. हत्या में उस के भाई राहुल का हाथ नहीं है. लेकिन उसे हम दोनों द्वारा हत्या किए जाने की जानकारी हो गई थी.

पूछताछ के बाद रमा ने घर में खड़ी लाल रंग की वह स्कूटी बरामद करा दी, जिस पर रख कर उस के प्रेमी अनमोल ने लाश खेत में फेंकी थी. राहुल ने पूछताछ में साफ इनकार कर दिया कि उसे हत्या की जानकारी थी, लेकिन पुलिस ने उस की इस बात को खारिज कर दिया.

पुलिस टीम ने दिनेश कुमार की हत्या का परदाफाश करने तथा अभियुक्तों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा तथा एएसपी त्रिभुवन सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि अभियुक्तों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए कोतवाली प्रभारी संजीव राठौर ने मृतक के बड़े भाई रमेशचंद्र दिवाकर को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमा, अनमोल तथा राहुल के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और तीनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक अध्यापिका की पापलीला की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

उत्तर प्रदेश का फर्रूखाबाद शहर आलू और बीड़ी उत्पादन के लिए दूरदूर तक मशहूर है. यहां पर आलू खुदाई और बीड़ी बनाने वाले मजदूर ठेके पर काम करते हैं. आलू खुदाई का काम तो मात्र 3 महीने ही चलता है लेकिन बीड़ी बनाने का काम पूरे साल चलता है. यहां का बीड़ी उत्पादन का कारोबार कई राज्यों में फैला है.

बीड़ी व्यापार के लिए दूरदूर से व्यापारी आते हैं. इसे मजदूरों का शहर भी कहा जाता है. इस शहर का नाम फर्रूखाबाद कैसे पड़ा, इस की भी एक कहावत है. पहले फरख बात में बाद उस को कहते फर्रूखाबाद. यानी बात में फरख और विवाद. हर बात में झूठ फरेब का बोलबाला.

इसी फर्रूखाबाद जिले का एक गांव है चीनीग्राम. इसी गांव में देवकरन दिवाकर अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मालती के अलावा बेटी रमा तथा बेटा राहुल था. देवकरन दिवाकर प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. घर में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

उन की बेटी रमा खूबसूरत थी. जवानी की राह पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में और निखार आ गया. उसे चाहने वाले अनेक थे. लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी.

रमा बनना चाहती थी टीचर

रमा जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास कर छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर से बीए और बीएड किया था.

उसी दरम्यान उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राथमिक शिक्षकों की भरती का विज्ञापन जारी किया. रमा ने भी आवेदन किया लेकिन किसी कारणवश परीक्षा रद्द हो गई, जिस से रमा की शिक्षक बनने की तमन्ना अधूरी रह गई.

देवकरन को जवान बेटी के ब्याह की चिंता सताने लगी थी. इसलिए वह उस के लिए उपयुक्त लड़का तलाशने लगे. बेटी की इच्छानुसार वह किसी शिक्षक वर की तलाश में थे, लेकिन कोई शिक्षक वर मिल नहीं रहा था. उन्हीं दिनों एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें दिनेश कुमार के बारे में पता चला.

दिनेश कुमार के पिता राजेश दिवाकर एटा जिले के झकरई गांव में रहते थे. उन के 2 बेटे रमेशचंद्र व दिनेश कुमार थे. राजेश एक संपन्न किसान थे. वह बड़े बेटे रमेशचंद्र का विवाह कर चुके थे जबकि छोटा दिनेश कुमार अभी कुंवारा था. दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में श्रीनगर में तैनात था.

राजेश ने दिनेश को देखा तो उन्होंने उसे अपनी बेटी रमा के लिए पसंद कर लिया. दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद जनवरी, 2006 में सामाजिक रीतिरिवाज से दिनेश और रमा का विवाह धूमधाम से हो गया.

पढ़ीलिखी व सुंदर बहू पा कर दिनेश के घर वाले फूले नहीं समा रहे थे. ससुराल में रमा को सभी का भरपूर प्यार मिला. घर में उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. इस तरह से रमा का सुखमय जीवन व्यतीत होने लगा.

शादी के बाद भी शिक्षक बनने की तमन्ना रमा के दिल में थी. इस बाबत उस ने पति दिनेश और सासससुर से बात की तो उन्हें भी कोई ऐतराज नहीं था.

जब शिक्षक की भरती निकली तो रमा ने भी आवेदन कर दिया. उस ने पति दिनेश से अनुरोध किया कि वह किसी भी तरह से उसे नौकरी दिलवाने की कोशिश करें. दिनेश ने पत्नी की बात मान कर जीजान से कोशिश की तो रमा का चयन हो गया. उसे फर्रूखाबाद के राजेपुरा थानांतर्गत चाचूपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षिका के पद पर नौकरी मिल गई.

मायके से ही करने लगी ड्यूटी

नौकरी लग जाने के बाद रमा का ससुराल में रहना नामुमकिन सा हो गया. दरअसल, उस की ससुराल एटा जिले में थी और नौकरी फर्रूखाबाद जिले में लगी थी, जो उस के घर के नजदीक थी. इसलिए रमा मायके में रह कर अपनी ड्यूटी करती रही.

मायके से आनेजाने का साधन भी था और उस के रहने तथा खानेपीने की उचित व्यवस्था भी थी. सो उसे कोई परेशानी नहीं थी. इस के बावजूद दिनेश ने घूस दे कर रमा का तबादला एटा कराने का प्रयास किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

रमा का मायके में रहना न तो उस के पति दिनेश को पसंद था और न ही सासससुर को. लेकिन रमा की सरकारी नौकरी थी, इसलिए वे ज्यादा ऐतराज भी नहीं कर सकते थे. लेकिन कुछ दिनों बाद दिनेश ने मायके में रहने पर ऐतराज जताया तो रमा ने फर्रूखाबाद या उस के आसपास जमीन या प्लौट खरीद कर मकान बनाने की सलाह पति को दी.

रमा की सलाह मान कर दिनेश ने कोशिश शुरू की तो उस ने फर्रूखाबाद शहर से सटे झगुआ नगला गांव में एक प्लौट खरीद लिया और वहां 3 कमरे बनवा दिए. पूजापाठ कराने के बाद रमा इसी मकान में रहने लगी. स्कूल आनेजाने में पत्नी को परेशानी न हो, इस के लिए दिनेश ने एक स्कूटी यूपी78ए-0522 भी खरीद कर उसे दे दी.

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रमा अब तक एक बेटी और एक बेटे की मां बन चुकी थी. बच्चों की देखरेख व घरेलू काम के लिए उस ने एक महिला को अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. इस के अलावा रमा का भाई राहुल भी वहां आताजाता रहता था ताकि बहन के मन में असुरक्षा की भावना पैदा न हो. रमा की सास उर्मिला भी कभीकभी उस के पास आतीजाती रहती थी.

रमा को अपनी जवानी पर था गर्व

रमा 2 बच्चों की मां जरूर बन गई थी लेकिन उस का शारीरिक आकर्षण कम नहीं हुआ था. वह बनसंवर कर और महंगा काला चश्मा लगा कर स्कूटी पर घर से निकलती तो लोग उसे मुड़मुड़ कर देखते थे. रमा को स्वयं भी अपनी जवानी पर गर्व था.

लेकिन ऐसी जवानी का क्या, जिस का कोई कद्रदान न हो. दरअसल रमा का पति दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में श्रीनगर में तैनात था. उसे तीसरेचौथे महीने बड़ी मुश्किल से महीना या 15 दिन की छुट्टी मिलती थी.

दिनेश जब साथ होता तो रमा की जिंदगी में बहार आ जाती थी. वह उस के साथ खूब मौजमस्ती करती. लेकिन उस के जाने के बाद उस के जीवन में नीरसता आ जाती. उस का दिन तो स्कूल में बच्चों के बीच कट जाता लेकिन रात करवटें बदलते बीतती थीं. कभीकभी वह सोचती कि उस ने सैनिक के साथ ब्याह कर के भारी भूल की है. उसे तो ऐसा मर्द चुनना चाहिए था, जो उस की तमन्नाओं को पूरा करता.

रमा के मन में पति के प्रति हीनभावना पैदा हुई तो उस का मन भटकने लगा. अब वह जिस्मानी सुख के लिए किसी युवक की तलाश में जुट गई.

रमा ने ढूंढ लिया प्रेमी

उन्हीं दिनों एक रोज रमा की मुलाकात अनमोल उर्फ अमन से हुई. अनमोल फर्रूखाबाद जिले के थाना मेरापुर के गांव गुठना का रहने वाला था. उस के पिता महेशचंद्र दिवाकर सेना में थे किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन के परिवार में पत्नी राजवती के अलावा बेटा अनमोल तथा एक बेटी थी.

महेशचंद्र भी संपन्न किसान थे. उन के पास 20 बीघा उपजाऊ जमीन थी. कृषि उपज के साथ उन्हें पेंशन भी अच्छीखासी मिलती थी. उन के दोनों बच्चे पढ़नेलिखने में तेज थे. बेटी बीए करने के बाद बीएड कर रही थी जबकि अनमोल का चयन बीटीसी में हो गया था. वह एटा से 2 वर्षीय बीटीसी की ट्रेनिंग कर रहा था.

रमा की बुआ प्रीति की शादी अनमोल के ताऊ सुरेशचंद्र दिवाकर के बेटे मुकेश के साथ हुई थी इसलिए अनमोल रमा का खास रिश्तेदार भी था.

अनमोल शरीर से हृष्टपुष्ट व सुदर्शन युवक था. वह रहता भी ठाटबाट से था. रमा उसे अच्छी तरह जानती थी. अत: उस रोज अनमोल रमा के घर अचानक पहुंचा तो उसे देख कर रमा आश्चर्यचकित रह गई. दोनों एकदूसरे को कुछ देर तक अपलक देखते रहे.

रमा की खूबसूरती ने अनमोल के दिल में हलचल मचा दी. कुछ पलों के बाद रमा के होंठ फड़के, ‘‘मेरी याद कैसे आ गई अमन. तुम ने तो मुझे भुला ही दिया.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. तुम्हारी याद तो मुझे हमेशा सताती रहती है. आज फर्रूखाबाद शहर में कुछ काम था. तुम्हारी याद आई तो अपने कदम रोक नहीं पाया और चला आया. तुम से मिल कर दिल को बड़ा सुकून मिला. अब मैं चलता हूं. मौका मिला तो फिर आऊंगा.’’

‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे चले जाओगे. आज इतने दिनों बाद तो आए हो. कम से कम एक कप चाय तो पीते जाओ.’’ रमा ने मुसकराते हुए कहा.

अनमोल भी यही चाहता था. कुछ देर में ही रमा 2 कप चाय बना कर ले आई. चाय पीने के दौरान अनमोल की नजरें रमा की देह पर ही टिकी रहीं. इस दौरान जब दोनों की नजरें टकरातीं, अनमोल मुसकरा देता. उस की मुसकराहट से रमा के दिल में हलचल मच जाती. वह सोचती काश ऐसे पुरुष का साथ मिल जाए तो उस के जीवन में बहार आ जाए.

अनमोल रमा से मिल कर अपने घर लौटा तो रमा का खूबसूरत चेहरा उस के दिलोदिमाग में ही घूमता रहा. दूसरी ओर रमा का भी यही हाल था. वह अनमोल की आंखों की भाषा पढ़ चुकी थी. अनमोल जानता था कि रमा का पति फौज में है. वह महीना-15 दिन की  छुट्टी पर आता है और फिर चला जाता है. इसलिए रमा देह सुख की अभिलाषी है. अगर उस की तरफ कदम बढ़ाया जाए तो सफलता मिल सकती है.

अनमोल अब अकसर रमा के घर आने लगा. वह उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ जरूर लाता. रमा के बच्चे भी उस से हिलमिल गए और उसे अंकल कह कर बुलाने लगे. रमा और अनमोल दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़क रहे थे. लेकिन अपनी बात जुबान पर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे.

एक दिन अनमोल सुबह 10 बजे रमा के घर पहुंच गया. रमा उस समय घर पर अकेली ही थी. उस के बच्चे स्कूल गए थे और वह बनसंवर कर बाजार जाने की तैयारी कर रही थी. अनमोल को देख कर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘अरे अमन तुम, इस वक्त. बच्चे तो स्कूल गए हैं.’’

अनमोल रमा के चेहरे पर नजरें गड़ा कर बोला, ‘‘रमा, आज मैं बच्चों से नहीं तुम से मिलने आया हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ रमा खिलखिला कर हंसी, ‘‘इरादा तो नेक है.’’

‘‘नेक है तभी तो अकेले में मिलने चला आया. रमा, मैं तुम से बहुत प्यार करने लगा हूं.’’ अनमोल ने सीधे ही मन की बात कह दी.

‘‘अनमोल, तुम ने यह बात कह तो दी लेकिन जानते हो प्यार की राह में कितने कांटे हैं,’’ रमा ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘जानता हूं, फिर भी जब तुम चाहोगी, मैं सारी बाधाओं को तोड़ दूंगा.’’ अनमोल ने रमा के करीब जा कर कहा.

इस के बाद अनमोल के गले में बांहें डाल कर रमा ने कहा, ‘‘अमन, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. लेकिन शर्म की वजह से दिल की बात नहीं कह पा रही थी.’’

अनमोल ने रमा को पकड़ कर सीने से लगा लिया. फिर तो मर्यादा भंग होते देर नहीं लगी. जिस्मानी रिश्ते की नींव पड़ गई तो वासना का महल खड़ा होने लगा. अनमोल को जब भी मौका मिलता, वह रमा के घर आ जाता और इच्छा पूरी कर के चला जाता.

धीरेधीरे समय बीतता गया तो अमन ने भी अपना दायरा बढ़ा दिया. अब वह कईकई दिनों तक रमा के घर रुक कर मौजमस्ती करता. रमा रात को अपने बच्चों को डांटडपट कर दूसरे कमरे में सुला देती और खुद प्रेमी अनमोल के साथ रात भर जिस्मानी सुख क ा आनंद उठाती.

कहावत है कि औरत जब फिसलती है तो वह सारी मर्यादाओं को ताख पर रख देती है. रमा फिसली तो उस ने भी सारी मर्यादाओं पर पलीता लगा दिया. अनमोल के इश्क में अंधी रमा यह भूल गई कि वह 2 बच्चों की मां है. उस के परिवार की मानमर्यादा है और उस का पति देश की सुरक्षा में अपनी जान हथेली पर रखे हुए है.

बच्चों ने बता दी रमा की करतूत

अनमोल के आने का सिलसिला बढ़ता गया तो पासपड़ोस के लोगों की नजरों में दोनों खटकने लगे. कुछ महीने बाद दिनेश छुट्टी पर आया तो लोगों ने रमा और अनमोल के बारे में उसे बताया.

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पड़ोसियों की बात सुन कर दिनेश का माथा ठनका. उस ने अपनी बेटी व बेटे से पूछा तो दोनों ने बताया कि अमन अंकल घर आते हैं और रात को घर में रुकते हैं. मासूमों ने यह बात भी बताई कि मम्मी उन दोनों को अपने कमरे में नहीं लिटातीं. वह उन्हें डांट कर दूसरे कमरे में बंद कर देती हैं. खुद अमन अंकल के साथ सोती हैं.

दिनेश पत्नी रमा पर बहुत अधिक भरोसा करता था. लेकिन आज उस का भरोसा टूट गया था. उस ने गुस्से में पूछा, ‘‘रमा, हमारी गैरमौजूदगी में अनमोल यहां क्यों आता है? वह रात में क्यों रुकता है? तुम दोनों के बीच क्या खिचड़ी पकती है. वैसे मुझे उड़ती खबर मिली है कि तुम्हारे और अनमोल के बीच नाजायज संबंध हैं.’’

रमा न डरी न लजाई. बेबाक आवाज में बोली, ‘‘जिन के पति परदेश में होते हैं, उन की पत्नियों पर ऐसे ही इलजाम लगाए जाते हैं. इस में नया कुछ नहीं है. पड़ोसियों ने कान भरे और तुम ने सच मान लिया. तुम्हें अपनी पत्नी पर भरोसा करना चाहिए.’’

लेकिन दिनेश ने रमा की एक न सुनी. उस ने उसे जम कर पीटा और सख्त हिदायत दी कि अनमोल घर आया तो उस की खैर नहीं. उस ने अनमोल को भी उस के गांव जा कर फटकारा और उस के मांबाप से उस की शिकायत की.

दिनेश जितने दिन घर में रहा, अनमोल को ले कर उस का झगड़ा पत्नी से होता रहा. बात बढ़ जाती तो दिनेश रमा की पिटाई भी कर देता. छुट्टी खत्म होने के बाद दिनेश अपनी ड्यूटी पर चला गया.

दिनेश के जाते ही रमा और अनमोल का मिलन फिर से शुरू हो गया. हां, इतना जरूर हुआ कि अनमोल अब दिन के बजाए रात को आने लगा था. प्रेमिका की पिटाई से अनमोल आहत था. उस का मन करता कि वह दिनेश को सबक सिखा दे.

रमा जान चुकी थी कि उस के बच्चे उस की शिकायत दिनेश से कर देंगे, इसलिए वह अब बच्चों से भी सतर्क रहने लगी थी. बच्चों के सो जाने के बाद ही वह अनमोल को फोन कर घर बुलाती थी. अनमोल शराब पीता था. उस ने रमा को भी शराब का चस्का लगा दिया था. बिस्तर पर जाने से पहले दोनों जाम टकराते थे.

मई के महीने में दिनेश छुट्टी ले कर घर आया तो पता चला कि अनमोल मना करने के बावजूद उस के घर आता है. रमा उसे मना करने के बजाए उस के साथ शराब पीती है. यह सब जान कर दिनेश का खून खौल उठा.

उस ने जम कर रमा की पिटाई की और धमकी दी कि जिस दिन वह दोनों को साथ देख लेगा, उसी दिन उन के सीने में गोली उतार देगा. उस ने रमा के नाजायज रिश्तों की जानकारी अपने भाई रमेशचंद्र को भी दे दी. कुछ दिन घर रुक कर वह फिर वापस श्रीनगर चला गया.

लेकिन इस बार दिनेश का मन ड्यूटी पर नहीं लगा. उस ने किसी तरह अपने अधिकारी से आने के 20 दिन बाद ही 15 दिन की छुट्टी मंजूर करा ली. इस बार दिनेश ने छुट्टी मंजूर होने तथा घर आने की सूचना किसी को नहीं दी. हर बार वह छुट्टी मिलने की सूचना फोन से पत्नी को दे देता था. इस की वजह यह थी कि वह अचानक घर पहुंच कर देखना चाहता था कि पत्नी पीठ पीछे क्या करती है.

इधर दिनेश के जाते ही रमा और अनमोल फिर से मौजमस्ती में डूबने लगे. उन दोनों को विश्वास था कि अब 4 महीने बाद ही दिनेश छुट्टी ले कर घर आएगा.

लेकिन दिनेश 6 जून, 2019 की रात 11 बजे ही अपने घर झगुआ नगला आ गया. दरअसल वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ने तथा उन का काम तमाम करने ही आया था. उस रात रमा का प्रेमी अनमोल घर पर ही था और रमा के साथ बिस्तर पर था.

दिनेश ने दरवाजा पीटा तो रमा घबरा गई. दोनों ने जल्दीजल्दी अपने कपड़े दुरुस्त किए और रमा ने अनमोल को दूसरे कमरे की टांड पर छिपा दिया. फिर उस ने जा कर दरवाजा खोला तो सामने उस का पति दिनेश खड़ा था. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला भड़क रही थी.

दिनेश ने देर से दरवाजा खोलने की बाबत रमा से पूछा तो रमा ने गहरी नींद में होने का बहाना बनाया. इस पर दिनेश को शक हुआ तो उस ने रमा का हाथ मरोड़ दिया और पिटाई कर दी.

दिनेश को शक था कि अनमोल घर के अंदर ही कहीं है. अपने शक की पुष्टि के लिए उस ने सभी कमरों की तलाशी ली, लेकिन उसे अनमोल कहीं दिखाई नहीं दिया. अनमोल के न मिलने से दिनेश का गुस्सा कुछ कम हो गया. उस ने कहा कि तुम दोनों को आज मैं एक साथ पकड़ लेता तो दोनों ही जिंदा न रहते.

इस के बाद रमा ने अपने लटकेझटके दिखा कर दिनेश का बाकी बचा गुस्सा शांत किया. फिर रमा ने पति को बिस्तर पर संतुष्ट किया.

देह सुख प्राप्त करने के बाद दिनेश गहरी नींद में सो गया. पति के सो जाने के बाद रमा ने अनमोल को टांड से नीचे उतारा. दोनों ने आंखों ही आंखों में इशारा किया फिर दोनों गहरी नींद में सो रहे दिनेश के पास पहुंचे.

दिनेश की रायफल कमरे में ही रखी थी. अनमोल ने लपक कर रायफल उठाई और दिनेश के सीने में 2 गोलियां दाग दीं. दिनेश खून से लथपथ हो कर तड़पने लगा. इसी समय उस की छाती पर सवार हो कर रमा ने तार से उस का गला घोंट दिया.

हत्या करने के बाद दिनेश के शव को उन दोनों ने कमरे में छिपा दिया और बाहर से ताला बंद कर दिया. सवेरा होने से पहले उन्होंने कमरे से खून आदि साफ कर दिया था.

7 जून को दिनेश का शव कमरे में ही बंद रहा. बच्चों ने कमरा खोलने की जिद की तो रमा ने उन्हें बुरी तरह पीट दिया. फिर रात होने पर अनमोल ने दिनेश के शव को बोरी में भरा और स्कूटी पर रख कर गांव के बाहर खेत में फेंक दिया. लाश पहचानी न जाए, इस के लिए उस ने पैट्रोल डाल कर शव को जला दिया.

खून सनी चादर भी उस ने जला दी तथा दिनेश का बैग जिस में उस के कपडे़ वगैरह थे, बस स्टौप जा कर दिल्ली जाने वाली रोडवेज की एक बस में रख दिया तथा मोबाइल तोड़ कर फेंक दिया. ये सब करने के बाद अनमोल फरार हो गया.

8 जून को झगुआ नगला गांव के लोगों ने खेत में जली लाश देखी तो सूचना फर्रूखाबाद कोतवाली पुलिस को दी. शव की पहचान न होने से पुलिस ने शव अज्ञात में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इधर 8 जून को ही रमा ने सास उर्मिला को फोन कर जानकारी दी कि दिनेश छुट्टी ले कर घर आया, लेकिन घर नहीं पहुंचा.

तब 10 जून को रमेशचंद्र भाई का पता लगाने फर्रूखाबाद आया और कोतवाली में अज्ञात शव की फोटो देख कर दिनेश की पहचान की. इस के बाद शक के आधार पर उन्होंने रमा, उस के भाई राहुल तथा प्रेमी अनमोल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. कोतवाली पुलिस ने तीनों को पकड़ कर पूछताछ की तो हत्या का परदाफाश हुआ.

13 जून, 2019 को फर्रूखाबाद कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त अनमोल, राहुल और रमा को फर्रूखाबाद की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. रमा की बेटी तथा बेटा अपने दादादादी के पास सुरक्षित थे.

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अनमोल ने दिनेश को रायफल से 2 गोलियां मारी थीं. रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज पड़ोसियों ने जरूर सुनी होगी, लेकिन पुलिस इस बात का पता नहीं लगा पाई कि पड़ोसियों ने गोली की आवाज सुनने वाली बात जानबूझ कर छिपाए रखी या इस की कोई दूसरी वजह थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रिश्तों में घोटाला : भाग 3

अजमेरिन मायके आई तो स्वच्छंद हो गई. निकाह के बाद घर वालों ने भी उसे रोकनाटोकना बंद कर दिया था. अत: वह पहले की तरह तेजपाल से मिलनेजुलने लगी. शारीरिक मिलन भी होने लगा. तेजपाल, अजमेरिन की हर ख्वाहिश पूरी करने लगा. 3 महीने बाद अजमेरिन दोबारा ससुराल चली गई लेकिन इस बार वह तेजपाल का दिया मोबाइल भी लाई थी. इस मोबाइल से वह ससुराल वालों से नजर बचा कर बात कर लेती थी.

इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. अजमेरिन जब मायके आती तो प्रेमी तेजपाल के साथ गुलछर्रे उड़ाती और जब ससुराल में होती तो मोबाइल फोन पर बातें कर अपनी दिल की लगी बुझाती. देर रात मोबाइल फोन पर बतियाना न तो उस के सासससुर को अच्छा लगता था और न ही शौहर को. लतीफ ने कई बार उसे टोका भी. पर वह तुनक कर कहती, ‘‘क्या मैं अपने घर वालों से भी बात न करूं?’’

अजमेरिन को संयुक्त परिवार में रहना अच्छा नहीं लगता था. क्योंकि संयुक्त परिवार में बंदिशें थीं, सासससुर की हुकूमत थी, इसलिए जब मोबाइल फोन पर बात करने को ले कर टोकाटाकी होने लगी तो वह घर में झगड़ा करने लगी. सासससुर को तीखा जवाब देने लगी. घर में कलह बढ़ी तो साबिर अली ने अजमेरिन का चूल्हाचौका अलग कर दिया. घरजमीन का भी बंटवारा हो गया.

लतीफ अपने परिवार से अलग नहीं रहना चाहता था, लेकिन बीवी के आगे उसे झुकना पड़ा. अब वह अजमेरिन के साथ 2 कमरों वाले मकान में रहने लगा. अजमेरिन अलग रहने लगी तो वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो गई. उस ने शर्मोहया त्याग दी और बेरोकटोक घर से निकलने लगी. वह सासससुर से तो दूरियां बनाए रखती थी, पर पड़ोसियों से हिलमिल कर रहती थी.

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अलग होने के बाद अजमेरिन ने तेजपाल से आर्थिक मदद मांगी तो वह राजी हो गया. आर्थिक मदद के बहाने तेजपाल का अजमेरिन की ससुराल में आनाजाना शुरू हो गया.

बातूनी तेजपाल ने अपनी बातों के जाल में अजमेरिन के शौहर लतीफ को भी फंसा लिया. उस ने उसे शराब का चस्का भी लगा दिया. अब जब भी तेजपाल आता तो शराब और गोस्त जरूर लाता.

शाम को अजमेरिन मीट पकाती और तेजपाल और लतीफ की शराब की पार्टी शुरू हो जाती. तेजपाल जानबूझकर लतीफ को ज्यादा पिला देता, उस के बाद लतीफ तो जैसेतैसे खाना खा कर चारपाई पर पसर जाता और तेजपाल रात भर अजमेरिन के साथ रंगरलियां मनाता. सवेरा होने के पहले ही वह मोटरसाइकिल पर सवार हो कर अपने गांव की ओर रवाना हो जाता.

चूंकि तेजपाल कभीकभी ही आता था, सो लतीफ को उस पर शक नहीं हुआ. दूसरे जब वह आता था तो लतीफ की मुफ्त में दारू पार्टी होती थी. इसलिए वह स्वयं भी उस के आने का इंतजार करता था. तीसरे, जब कभी उसे बीज खाद के लिए पैसों की जरूरत होती थी तो वह बेहिचक उस से मांग लेता था. लतीफ तेजपाल को अपना हमदर्द और दोस्त मानता था, जबकि तेजपाल यह सब अपने स्वार्थ के लिए करता था.

कहते हैं कि चोर कितना भी शातिर क्यों न हो, एक न एक दिन उस की चोरी पकड़ी ही जाती है.

अजमेरिन और तेजपाल के साथ भी यही हुआ. हुआ यह कि उस शाम लतीफ ने तेजपाल के साथ शराब तो जम कर पी थी, लेकिन कुछ देर बाद उसे उल्टी हो गई थी.

आधी रात के बाद उस की आंखें खुलीं तो अजमेरिन कमरे में नहीं थी. वह कमरे से बाहर निकला तो उसे दूसरे कमरे में कुछ खुसरफुसर सुनाई दी. लतीफ का माथा ठनका. वह दबे पांव कमरे में पहुंचा तो उस ने शर्मनाक नजारा देखा. अजमेरिन अपने मायके के यार के साथ मौजमस्ती कर रही थी.

उन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख कर लतीफ मानो बुत बन गया. उसे बीवी व दोस्त से ऐसी उम्मीद न थी. अजमेरिन और तेजपाल ने लतीफ को अपने सिर पर खड़े देखा तो हड़बड़ाकर अलग हो गए.

उस ने गालीगलौज शुरू की तो तेजपाल भाग गया, पर अजमेरिन कहां जाती. लतीफ ने उस की जम कर पिटाई की. मौके की नजाकत भांप कर अजमेरिन ने गिरगिट की तरह रंग बदला और शौहर से माफी मांग ली.

लतीफ अपनी बसीबसाई गृहस्थी नहीं उजाड़ना चाहता था. इसलिए अजमेरिन को चेतावनी देते हुए माफ कर दिया. अपने लटकोंझटकों से उस ने शौहर को भी मना लिया. हवस औरत को बहुत नीचे गिरा देती है.

पति द्वारा माफ करने पर अजमेरिन को संभल जाना चाहिए था. पर मायके के यार को वह भुला नहीं पाई और पति धर्म भूल गई. कुछ समय बाद वह तेजपाल से फिर मिलने लगी.

तेजपाल को ले कर घर में शुरू हुई कलह ने पैर पसार लिए थे. लतीफ और अजमेरिन में झगड़ा बढ़ा तो बात घर से निकल कर बाहर आ गई. पड़ोसी जान गए कि झगड़ा क्यों होता है. साबिर अली भी बहू की बदचलनी से वाकिफ हो गया. लतीफ अब शराब पी कर घर आता और अजमेरिन को पीटता. पिटाई से अजमेरिन बुरी तरह चीखतीचिल्लाती.

शराब पीने के कारण लतीफ की आर्थिक हालत खराब हो गई थी. उस ने अपना खेत भी गिरवी रख दिया था. आर्थिक स्थिति खराब हुई तो लतीफ कमाई करने के लिए हैदराबाद चला गया. वहां उस का एक दोस्त मजदूर सप्लाई करने वाले किसी ठेकेदार के पास काम करता था. उस ने लतीफ को भी मजदूरी के काम पर लगवा दिया था.

शौहर परदेश कमाने चला गया, तो अजमेरिन मायके आ गई. मायके आ कर उस ने तेजपाल को रोरो कर अपने उत्पीड़न की व्यथा बताई. उस ने साफ कह दिया कि अब वह शौहर के जुल्म बरदाश्त नहीं करेगी.

वह उस से छुटकारा चाहती है. फिर मायके में रहने के दौरान ही अजमेरिन ने प्रेमी तेजपाल के साथ मिल कर शौहर के कत्ल की योजना बनाई और उस के वापस घर आने का इंतजार करने लगी.

10 मार्च को लतीफ हैदराबाद से वापस घर लौटा. आते ही उस ने अजमेरिन को मायके से बुलवा लिया. अजमेरिन पहले ही शौहर को हलाल करने की योजना बना चुकी थी. इसलिए वह बिना किसी हीलाहवाली के ससुराल वापस आ गई.

औरत एक बार फिसल जाए तो वह विश्वास के काबिल नहीं रहती. अजमेरिन भी विश्वास खो चुकी थी, सो लतीफ उसे शक की नजर से देखता था और अजमेरिन को पीट भी देता था. अजमेरिन तो कुछ और ही सोच कर आई थी, सो पिट कर भी जुबान बंद रखती थी.

8 अप्रैल की सुबह अजमेरिन ने मोबाइल फोन पर तेजपाल से बात की और देर शाम उसे घर बुलाया. तेजपाल समझ गया कि उसे क्यों बुलाया गया है. मोटरसाइकिल से वह रात 8 बजे बेहटा गांव पहुंच गया. उस ने अपनी मोटरसाइकिल मदरसे के सामने खड़ी की और पैदल ही अजमेरिन के घर पहुंच गया.

उस समय लतीफ घर में नहीं था. अजमेरिन ने उसे कमरे में बिठा दिया. देर रात लतीफ देशी शराब पी कर आया. अजमेरिन ने उसे खाना खिलाया फिर वह चारपाई पर जा कर लुढ़क गया.

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इस के बाद अजमेरिन तेजपाल के कमरे में पहुंची, जहां दोनों ने पहले हसरतें पूरी कीं. आधी रात के बाद दोनों लतीफ की चारपाई के पास पहुंचे और उसे दबोच लिया. दोनों ने मिल कर पहले लतीफ  की डंडों से पिटाई की फिर उसी के अंगौछे से गला कस कर उसे मार डाला.

हत्या करने के बाद शव को घर के बाहर बरामदे में तख्त पर डाल दिया. सुबह 4 बजे तेजपाल मोटरसाइकिल से फरार हो गया.

सुबह अजमेरिन रोनेपीटने लगी, तब घर और पड़ोसियों को लतीफ की हत्या की जानकारी हुई. कुछ देर बाद मृतक के पिता साबिर अली थाना ठठिया पहुंचे और बेटे की हत्या की सूचना दी.

तेजपाल और अजमेरिन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें 15 अप्रैल को कन्नौज के जिला सत्र न्यायाधीश के आवास पर उन के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रिश्तों में घोटाला : भाग 2

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर (देहात) के रसूलाबाद थाना अंतर्गत ककवन रोड पर एक गांव है सहवाजपुर. हिंदूमुसलिम की मिलीजुली आबादी वाला यह गांव पूरी तरह से विकसित है. सड़क मार्ग से जुड़ा होने के कारण गांव में दिन भर चहल पहल रहती है. यहां के ज्यादातर लोग या तो खेती करते हैं या फिर व्यवसाय. हफ्ते में हर बुधवार को यहां साप्ताहिक बाजार भी लगता है, जिस में आसपास के गांव के लोग आते हैं.

नूर आलम अपने परिवार के साथ इसी सहवाजपुर गांव में रहता था. उस के परिवार में बीवी खालिदा बेगम, 2 बेटियां अनीसा, अजमेरिन और बेटा ताहिर था. नूर आलम जूताचप्पल बेचने का काम करता था.

इस काम में उस का बेटा ताहिर भी मदद करता था. इसी धंधे से उस के परिवार का भरणपोषण आसानी से हो जाता था. बड़ी बेटी अनीसा का निकाह इरशाद के साथ कर दिया. इरशाद रसूलाबाद कस्बे में रहता था और फल बेचता था. अनीसा शौहर के साथ खुशहाल थी.

नूर आलम की बेटी अजमेरिन भाईबहनों में सब से छोटी थी. वह 5 जमात के आगे न पढ़ सकी. वह मां के साथ चौकाचूल्हा में हाथ बंटाने लगी थी.

गोरा चेहरा, नशीली आंखें और सुर्ख होठों पर कंपन लिए अजमेरिन जब मस्तानी चाल से घर से बाहर निकलती तो जवान युवकों की धड़कनें बढ़ जाती थीं. वह उसे देख कर फब्तियां कसते थे. उन की चुभती नजरें अजमेरिन को रोमांच से भर देती थीं.

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अजमेरिन के वैसे तो कई दीवाने थे, लेकिन 4 घर दूर रहने वाला तेजपाल उसे कुछ ज्यादा ही चाहता था. तेजपाल के पिता ओमप्रकाश किसान थे. उन के 3 बच्चों में तेजपाल सब से छोटा था. घर के बाहरी छोर पर उन की जनरल स्टोर की दुकान थी, जिस पर तेजपाल बैठता था. उन का बड़ा बेटा कानपुर शहर में नौकरी करता था, जबकि बेटी की शादी हो चुकी थी.

पड़ोस में रहने के कारण अजमेरिन और तेजपाल का आमनासामना अकसर हो जाता था. तेजपाल जहां अजमेरिन के रूप का दीवाना था, तो अजमेरिन भी तेजपाल के कुशल व्यवहार से प्रभावित थी. दोनों हंसबोल लेते थे.

अजमेरिन 20 साल की हो चुकी थी. उस के युवा तन में तरंगें उठने लगी थीं. तेजपाल भी 22 वर्ष की उम्र का बांका जवान था. उस की रातें भी बेचैनी से बीतती थीं. अजमेरिन जब भी उस की दुकान पर आती, तो तेजपाल उस के यौवन को निहारता रह जाता था. उसे इस तरह देखते देख अजमेरिन उसे मुसकरा कर देखती और हया से सिर झुका लेती. मोहब्बत का बीज शायद दोनों के मन में पड़ चुका था.

धीरेधीरे यह सिलसिला सा बन गया. जब भी अजमेरिन तेजपाल के सामने पड़ती, लाज से उस के गाल सुर्ख हो जाते. तेजपाल मंदमंद मुसकराते हुए उसे देखता तो वह और भी शरमा जाती. एक रोज एकांत पा कर अजमेरिन ने पूछ ही लिया, ‘‘मुझे देख कर यूं शरारत से क्यों मुसकराते हो?’’

‘‘इसलिए कि सीधीसादी अजमेरिन के हुस्न का खजाना मेरी आंखों में बस गया है.’’ तेजपाल ने कह दिया.

‘‘धत्त,’’ अजमेरिन ने तिरछी चितवन से उसे देखा और शरमा कर चली गई.

अब दोनों की निगाहें एकदूजे से कुछ कहने लगीं. एक रोज अजमेरिन तेजपाल की दुकान पर गई तो दुकान बंद थी. वह घर के अंदर गई तो तेजपाल खाना बना रहा था. दरअसल तेजपाल की मां बीमार थी, पिता उसे डाक्टर को दिखाने गए थे. अजमेरिन को शरारत सूझी तो वह बोली, ‘‘अपने हाथों से चपातियां ठोकते हो, शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘चलो, तुम्हें मेरी परेशानी देख कर रहम तो आया,’’ तेजपाल ने ठंडी सांस छोड़ी, ‘‘जब तुम जैसी कोई हसीना मिलेगी, ब्याह रचा लूंगा.’’

अजमेरिन के गालों पर गुलाब खिल गए. उस ने उसे तिरछी चितवन से निहारा और बिना जवाब दिए मुड़ कर जाने लगी. तेजपाल ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘मेरा चैन ओ करार छीन कर मुसकराती हो’’?

‘‘तुम ने भी तो मेरी रातों की नींद छीन रखी है.’’ अजमेरिन ने कहा.

दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ी तो दोनों मिलन का अवसर ढूंढने लगे. उन्हें यह मौका जल्द ही मिल गया. उस रोज अजमेरिन के घर वाले रिश्तेदार के घर गए थे और वह घर में अकेली थी. अजमेरिन ने ही तेजपाल को घर सूना होने की बात बता कर मिलन की राह सुझाई थी.

दोपहर के समय दुकान बंद कर तेजपाल, अजमेरिन के घर पहुंचा. उस समय वह उसी का इंतजार कर रही थी. तेजपाल ने धीरे से दरवाजा अंदर से बंद किया फिर अजमेरिन के पास आ कर उसे बांहों में भर लिया और शारीरिक छेड़छाड़़ करने लगा.

तेजपाल के इरादे को भांप कर अजमेरिन ने दिखावे के तौर पर विरोध किया, और बोली, ‘‘हंसना, बोलना और हंसीमजाक अपनी जगह ठीक है, लेकिन जो तुम चाहते हो वह पाप है.’’

‘‘पापपुण्य मैं नहीं जानता, मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि जो चेहरा मेरे सपनों में बस गया है, वह मुझे मिल जाए.’’ तेजपाल ने बाजू छोड़ कर उस का चेहरा हथेलियों में समेट लिया. धीरेधीरे तेजपाल का चेहरा नजदीक आता गया. इतना करीब कि सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकराने लगीं. तेजपाल की गुनगुनी सांसें अजमेरिन को कमजोर करने लगीं. इतना ज्यादा कि मर्यादा हार गई और हसरत जीत गई.

दोनों ही विशुद्ध कुंवारे थे. प्रथम मिलन का असीम आनंद दोनों को मिला तो वह इस आनंद को पाने के लिए लालायित रहने लगे. अजमेरिन मौका पा कर सामान लेने के बहाने तेजपाल की दुकान पर जाती और मौका पाते ही दोनों मिलन कर लेते.

तेजपाल तो इतना दीवाना हो गया था कि वह अजमेरिन से शादी रचाने को भी राजी था. लेकिन अजमेरिन जानती थी कि वह मुसलमान है, अत: हिंदू लड़के, वह भी पड़ोसी, से कभी उस के परिवार वाले शादी को राजी नहीं होंगे.

तेजपाल का समयअसमय अजमेरिन के घर आना पड़ोसियों को नागवार लगा. उन्होंने अजमेरिन के भाई ताहिर से शिकायत की तो उस का माथा ठनका. उस ने बहन पर नजर रखनी शुरू कर दी.

एक रोज तेजपाल बहाने से घर आया और अजमेरिन से मिला तो ताहिर ने छिप कर दोनों पर नजर रखी. इस का नतीजा यह निकला कि उस ने दोनों को एकदूसरे को चूमते देख लिया. उस समय तो उस ने बहन से कुछ नहीं कहा. लेकिन दूसरे रोज उसे अकेले में समझाया कि तेजपाल हिंदू है और तू मुसलमान. उस से तेरा रिश्ता कभी नहीं हो सकता. इसलिए तू उस का ख्वाब छोड़ दे.

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अजमेरिन ने भाई से वादा किया कि वह तेजपाल से कभी नहीं मिलेगी. तेजपाल को भी ताहिर ने समझा दिया. लेकिन यौवन की आरजू के आगे अजमेरिन भी हार गई और तेजपाल भी. कुछ माह बीतने के बाद दोनों फिर छिपछिप कर मिलने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों के नाजायज रिश्तों के चर्चे गांव की हर गली के मोड़़ पर होने लगे.

बदनामी ने पैर पसारे और बिरादरी में भी थूथू होने लगीं तो नूर आलम परेशान हो उठा. उस ने बेलगाम लड़की पर लगाम कसने के लिए, उस का जल्द ही जातिबिरादरी के लड़के के साथ निकाह करने की ठान ली. इस बाबत उस ने खोज शुरू की तो अजमेरिन के लिए उसे लतीफ पसंद आ गया.

लतीफ के पिता साबिर अली कन्नौज जनपद के ठठिया थाना अंतर्गत गांव बेहटा में रहते थे. उन की 4 औलादों में लतीफ सब से छोटा था. 2 बेटियां व एक बेटे की वह शादी कर चुके थे, जबकि लतीफ अभी कुंवारा था. लतीफ साधारण रंगरूप का था.

पिता के साथ वह किसानी करता था. नूर आलम ने जब लतीफ को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी अजमेरिन के लिए पसंद कर लिया. साल 2010 के जुलाई माह में अजमेरिन का शादी लतीफ के साथ हो गई.

अजमेरिन खूबसूरत थी. वह लतीफ की दुलहन बन कर ससुराल पहुंची तो ससुराल वालों ने उसे हाथोंहाथ लिया और उस के हुस्न की तारीफ की. खूबसूरत बीवी पा कर लतीफ जहां खुश था, वहीं अजमेरिन साधारण रंगरूप वाले शौहर को देख कर उदास थी. उस ने तो अपने प्रेमी तेजपाल जैसे युवक की तमन्ना की थी, लेकिन उस की तमन्ना अधूरी रह गई.

2 हफ्ते ससुराल में रहने के बाद अजमेरिन मायके आई तो उस का चेहरा मुसकराने के बजाय कुम्हलाया हुआ था. अजमेरिन का सामना तेजपाल से हुआ तो वह रो पड़ी, ‘‘तेजपाल, मेरी तो किस्मत ही फूट गई. न शौहर ढंग का मिला न घरद्वार. पता नहीं उस घर में मेरा जीवन कैसे कटेगा. मुझे तो ससुराल में भी तुम्हारी याद सताती रही.’’

तेजपाल अजमेरिन के गोरे गालों पर लुढ़क आए आंसुओं को पोंछते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे ससुराल चले जाने के बाद मुझे भी चैन कहां था. रातरात भर मैं तुम्हारे खयालों में ही खोया रहता था. आज मैं ने जब तुम्हें सामने देखा तो दिल को तसल्ली हुई. तुम किसी तरह की चिंता न करो. मैं तुम्हारा हमेशा साथ दूंगा.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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