वैवाहिक उम्र 21: राष्ट्र को कमजोर बनाने वाला “कानून”

नरेंद्र दामोदरदास मोदी कि केंद्र सरकार कि जल्दी बाजी को एक बार देश ने पुनः देखा है. मोदी सरकार देश को आगे बढ़ाने मजबूत करने की बातें बार बार करती है मगर इस कानून से समाज में जो अनैतिकता और लैंगिक अपराध बढ़ेंगे उसका देश के दूरगामी भविष्य प्रभाव पड़ेगा और देश बहुत कमजोर हो जाएगा.

दरअसल, देश में लड़कियों के लिए विवाह की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष किया गया है. इस प्रस्ताव को केबिनेट ने आनन-फानन में मंजूरी भी दे दी. कानून संसद में भी देखते ही देखते पास हो गया. जो यह दिखाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार की कामकाज की शैली कैसी है. अब इसके लिए सरकार मौजूदा कानूनों बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मीरिज एक्ट और हिन्दू विवाह अधिनियम में संशोधन करेंगी. देश में  पहले के कानून के अनुसार अभी पुरुषों की शादी की उम्र और महिलाओं की 18 साल है. नए प्रस्ताव के तहत महिलाओं की शादी की उम्र 21 वर्ष हो जायेगी.

हमारे संवाददाता ने इस संबंध में अनेक लोगों से बातचीत की और जानना चाहा कि आखिर यह कानून कितना सही और गलत है . अनेक लोगों के मुताबिक यह अत्यंत संवेदनशील मसला है, कानून से ज्यादा छेड़छाड़ उचित नहीं, इस नये कानून से लैंगिक अपराधों में इजाफा होगा. दरअसल, जिस तरह केंद्र सरकार जल्दीबाजी में एक बार पुनः शादी की उम्र को लेकर के विपक्ष और बौद्धिक वर्ग को विश्वास में लिए बगैर कानून बना दिया उससे सकारात्मक संदेश नहीं गया. बल्कि यह तथ्य उजागर हो गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार को सबको साथ लेकर चलने में विश्वास नहीं है अन्यथा इस अत्यंत महत्वपूर्ण समाज के संवेदनशील विषय पर कानून का कोड़ा बरसाने की जगह  समझदारी से काम लिया जा सकता था. माना जा रहा है कि लड़कियों के 21 वर्ष विवाह कानून के बाद बहुतेरी ऐसी स्थितियां पैदा होंगी जो समाज के लिए चिंता का सबब बन जाएंगी.

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देश के लिए बेहद नुकसान प्रद

जैसा कि हमेशा होता है हर पहलू के दो पक्ष होते हैं इस कानून को समाज के हित में बताने वाले भी लोग हैं. कानून का समर्थन करने वाले लोगों का कहना क 21 वर्ष की उम्र तक लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा पूरी हो पाती है.  और लड़कियां पूरी तरह परिपक्व हो जाती है जबकि इस के संबंध मे रीना मिश्रा ने  कहा कि विवाह की उम्र इक्कीस वर्ष तो ठीक है किंतु 18 वर्ष भी अनुचित नहीं है. इसके लिए कानून में संशोधन करने की आवश्यकता नहीं है जो 18 वर्ष में विवाह करना चाहता है उसे 18 वर्ष में विवाह करने दिया जाना चाहिए क्योंकि 18 वर्ष में भी महिला परिपक्व हो जाती है.

सामाजिक कार्यकर्ता सुनील जैन के मुताबिक लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष करने हेतु कानूनों में संशोधन करने से पहले सरकार को जनमत संग्रह करना चाहिए था, अभिभावकों की मर्जी जाननी चाहिए थी ना कि तानाशाही रवैया अपनाकर लोगों में कोई भी कानून थोप देना चाहिए. नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी सरकार देश की जनता के लिए होती है उसके भले के लिए होती है डंडा बताने के लिए नहीं समाज के कायदों को नष्ट करने के लिए नहीं होती सिर्फ आबादी रोकने के लिए रातों-रात या कानून लाया गया है जो पूरी तरह अनुचित है.

वरिष्ठ अधिवक्ता बीके शुक्ला के मुताबिक भारतीय समाज में 18 वर्ष की उम्र में लड़कियां परिपक्व हो जाती है. ऐसी स्थिति में उनकी शादी की उम्र तीन वर्ष और नहीं बढ़ाना चाहिए था इससे अपराध में वृद्धि होगी.

डॉक्टर  जी आर पंजवानी के मुताबिक 18 वर्ष की उम्र को बढ़ाना अनुचित है. पहले तो इससे पहले भी विवाह हो जाते थे. इसके बाद बहुत सोच समझ कर के मानक तौर पर विवाह को 18 वर्ष किया गया था.  इतनी उम्र तक युवतियां पूरी तरह परिपक्व हो जाती है फिर विवाह की उम्र बढ़ाने का क्या औचित्य है.

अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल के मुताबिक  लड़कियों की उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की आवश्यकता ही नहीं थी हमारे देश के वातावरण के अनुरूप 18 वर्ष की उम्र तक लड़की समझदार और विवाह योग्य हो जाती है.  इसके अलावा जिन संशोधनों का उल्लेख किया जा रहा है, वह भी उचित नहीं है.

व्यवसायी संजय जैन कहते हैं विवाह के लिए 18 वर्ष की उम्र को और नहीं बढ़ाना चाहिए था, आखिर उम्र में वृद्धि की आवश्यकता क्यों महसूस की जा रही है? इससे तो यौन शोषण के मामलों में इजाफा होगा उसका दोष कौन अपने सर पर लेगा. केंद्र सरकार ने जल्दी बाजी की है वह आज समाज में चिंता का सबब बन गई है.

वहीं अठारह साल की हेमा के मुताबिक लड़कियों के विवाह की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने से लड़कियों को नौकरी करने तथा अपनी स्थिति मजबूत करने का काफी समय मिलेगा. वैसे भी आजकल देशभर में परिस्थितियां बदली है और आमतौर पर देश में लड़कियां 21 वर्ष के आसपास ही विवाह कर रही है.

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इस महत्वपूर्ण मसले पर डॉ प्रमोद देवांगन कहते हैं

केन्द्र सरकार को जन हित के कार्यों की ओर ध्यान देना चाहिए, व्यर्थ के व्यर्थ के संशोधनों के फेर में नहीं उलझना चाहिए था. व्यस्कता के लिए 18 वर्ष काफी है और इस उम्र तक लड़कियां पूरी तरह परिपक्व  हो जाती है. केन्द्र सरकार को मजदूरों, भूमिहीन किसानों और मध्यम वर्गीय परिवारों को आर्थिक दशा सुधारने के संदर्भ में ध्यान देना चाहिए न कि ऐसे सामाजिक मसलों पर जिसका फैसला परिवार के मुखिया करते है.

शिक्षाविद घनश्याम तिवाड़ी के मुताबिक 18 वर्ष की उम्र में पूर्ण परिपक्वता नहीं आती जिसकी वजह से कई घरों में नव निवाहितों के बीच तकरार होती है और मामला न्यायालय तक पहुंच जाता है. विवाह की उम्र 21 वर्ष होने से लड़कियों को  समय मिलेगा और वह अपने पैरों पर खड़ी हो जायेंगी. इसलिए संशोधन जरूरी है था.

केबल संचालक मनोज पाहुजा के मुताबिक केन्द्र सरकार ने जल्दी बाजी में  फैसल किया है मगर मेरा मानना है कि इतने वक्त तक लड़की आत्मनिर्भर बन जायेगी और विवाह के बाद कम उम्र की लड़कियों को शारीरिक एवं मानसिक परेशानियां झेलनी पड़ती है, ऐसी स्थिति का सामना उन्हें नहीं करना पड़ेगा केंद्र सरकार का यह फैसला उचित ही है.

विवाह की उम्र में तब्दीली करने से जहां लाभ कम है वही समाज को हानि ज्यादा.

यह भी विचारणीय है कि विवाह के लिएलड़के और लड़की की उम्र 21 साल हो गई है दोनों एक समान. यह भी भारतीय समाज में परिवार के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न होने वाला है और पूरी तरह गलत है.

समाज में जो लैंगिक अपराध बढ़ेंगे आपका समाज ही जब साफ स्वच्छ नहीं होगा तो देश में कई तरह की बाधाएं उपस्थित होंगी और राष्ट्र कमजोर होगा ऐसा इस कानून के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है.

चुगली की आदत बच्चों में न पनपने दें

Writer- किरण सिंह

यहां की बात वहां करना, किसी के पीठपीछे उस की बुराई करना, किसी को भलाबुरा कहना आदि चुगली करना है. बच्चों में अकसर चुगली की आदत एक बार पड़ जाती है तो फिर यह उम्रभर रहती है.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, चुगली करना अपने दिल की भड़ास निकालने का एक माध्यम है  या यों कहें कि हीनभावना से ग्रस्त व्यक्ति चुगली कर के खुद को तुष्ट करने का प्रयास करता है. इसीलिए वह खुद में कमियां ढूंढ़ने के बजाय दूसरों की मीनमेख निकालने में अपनी ऊर्जा खपाता रहता है.

चुगलखोर व्यक्तियों की दोस्ती टिकाऊ नहीं होती

वैसे हम चुगलखोरों को लाख बुराभला कह लें लेकिन सच यह है कि निंदा रस में आनंद बहुत आता है. शायद यही वजह है कि अपेक्षाकृत चुगलखोरों के संबंध अधिक बनते हैं या यों कहें कि चुगलखोरों की दोस्ती जल्दी हो जाती है. लेकिन यह भी सही है कि उन की दोस्ती टिकाऊ नहीं होती क्योंकि वास्तविकता का पता लगने पर लोग चुगलखोरों से किनारा करने लगते हैं.

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बच्चों में चुगलखोरी

अकसर देखा गया है कि बच्चे जब  गलती करते हुए अभिभावकों द्वारा पकड़े जाते हैं और पैरेंट्स पूछते हैं कि कहां से सीखा, तो वे अपने को तत्काल बचाने के लिए अपने दोस्तों या फिर भाईबहनों का नाम ले लेते हैं जिस से पैरेंट्स का ध्यान उन पर से हट कर दूसरों पर चला जाता है. यहीं से चुगलखोरी की आदत लगने लगती है.

एक बार सोनू की मम्मी ने सोनू को पैसे चोरी करते हुए पकड़ लिया और फिर डांटडपट कर पूछने लगीं कि यह सब कहां से सीखा. सोनू ने तब अपना बचाव करने के लिए पड़ोस के दोस्त का नाम ले लिया. यह बात सोनू की मम्मी ने उस के दोस्त की मम्मी से कह दी. परिणामस्वरूप, सोनू के दोस्त ने सोनू को चुगलखोर कह कर उस से दोस्ती तोड़ ली और सोनू दुखी रहने लगा.

यहां पर सोनू की मम्मी को सोनू को यह सब किस ने सिखाया है, यह न पूछ कर चोरी के साइड इफैक्ट्स बता कर आगे से ऐसा न करने की सीख देनी चाहिए थी. साथ ही, यह भी बताना चाहिए था कि चुगली करना और चोरी करना दोनों ही गलत हैं.

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ऐसे बढ़ती है चुगली करने की प्रवृत्ति

कभीकभी  पैरेंट्स अनजाने में ही अपने बच्चों को आहत कर उन में चुगली करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं. दीपक के पापा हमेशा ही अपने बेटे दीपक की तुलना अपने दोस्त के बेटे कुणाल से करते हुए कुणाल की प्रशंसा कर दिया करते थे जिस से दीपक का कोमल सा बालमन आहत हो जाता था और वह कुणाल की तरह बनने की कोशिश करता था. जब उस की तरह बनने में नाकामयाब हो गया तो वह अपने पापा से कुणाल की  झूठीसच्ची चुगली करने लगा.

सो, मातापिता को बच्चों में छोटी उम्र से ही चुगली की आदत पनपने नहीं देनी है और उन्हें यह बताना है कि चुगली करना गलत है. बचपन से ही बच्चों में चुगली की आदत नहीं पनपेगी, तो बड़े हो कर भी वे खुद पर ध्यान देंगे बजाय किसी के प्रति कुंठित मन से चुगली करने के.

पिता बनने की भी हैं जिम्मेदारियां

Writer-  किरण आहूजा

मां ही नहीं पिता बनने की भी होती हैं कई जिम्मेदारियां. अगर आप पिता बनने वाले हैं, तो इन चुनौतियों के लिए अभी से तैयार रहें.

शिशु की देखभाल और उस की परवरिश की जिम्मेदारी मां की ही मानी जाती है और यह सच भी है कि मां मां होती है और शिशु के प्रति उस की जिम्मेदारी अहम होती है मगर पिता बनने की भी कई जिम्मेदारियां होती हैं जिन के बारे में अकसर लोगों को पता नहीं होता या इन की तरफ ध्यान नहीं देना चाहते हैं.

जब भी आप परिवार आगे बढ़ाने के बारे में सोचते हैं और बच्चे की प्लानिंग करते हैं, तो याद रखें कि पिता के नाते आप की भी कई जिम्मेदारियां हैं.

हालांकि आज पिता को ले कर कई धारणाएं गलत हो रही हैं. इस के विपरीत आज पिता भी मां की तरह बच्चे का खयाल रखने में पीछे नहीं हैं. आज के पिता मां की तरह ही बच्चे के प्रति हर काम में बराबरी के भागीदार हैं. लेकिन इस सब के लिए उन्हें अपनी कई आदतों को बदलना पड़ता है और नई आदतों को अपनी जिंदगी में शामिल करना होता है. इस के लिए जरूरी हैं कुछ बातें :

खुद को बदलना : अपने बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए खुद को बदलें. यानी कि जिस तरह आप का बच्चा सोचता है, आप को उस के सामने उसी तरह बात करनी होगी. बच्चों को अच्छे संस्कार या उन से किसी तरह की उम्मीद आप तब ही कर सकते हैं जब बच्चा आप की बातों में रुचि ले रहा हो.

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पितृत्व के बारे में जानें : पितृत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करें. जो पितृत्व सुख से गुजर चुके हैं उन से जानकारी लें. अपने बच्चे को शुरू से प्यार करें. उस की देखरेख वाले काम खुद करें, जैसे मां बच्चे को स्तनपान कराए तो फीड के बाद उसे आप संभाल सकते हैं. बच्चा बोतल का दूध पी रहा है तो उसे दूध पिलाने का काम आप कर सकते हैं. उसे नहलाना, डायपर बदलना पिता के लिए थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन करते रहने से आदत हो जाती है, साथ ही बच्चा पिता को पहचानने लगता है.

बच्चे के साथ अधिक समय बिताएं: नौकरी के कारण पिता के पास बच्चे के साथ समय गुजारने का ज्यादा वक्त नहीं होता. लेकिन फिर भी बिजी टाइम में कुछ समय तो बच्चे के लिए निकालना ही पड़ेगा. ऐसा करने से आप अपने बच्चे की जरूरतों को सम झेंगे. आप उसे जो सिखाएंगे, वह आजीवन याद रखेगा.

बच्चे के साथ बौंडिंग बनाने के लिए उस के साथ संबंध गहन बनाना जरूरी है. बच्चे से बात करें, पुचकारें. भले ही बच्चा आप की भाषा न सम झे पर आवाज सम झने लगेगा. आप के करीब आने लगेगा. कभी भी कहीं से आएं, उसे आवाज दें, उस के पास रुकें और प्यार करें. उसे खूब बोलबोल कर पुचकारें और हंसेंबोलें. इस तरह धीरेधीरे पिता और बच्चे में स्किन टू स्किन कौंटैक्ट बन जाएगा.

अच्छी परवरिश के लिए आर्थिक योजनाएं : आजकल की महंगाई और प्रतिस्पर्धा में अच्छी शिक्षा, अच्छा जीवनस्तर और अच्छे स्वास्थ्य के लिए पैसे की जरूरत होती है. ऐसे में पिता बनने से पहले बच्चे के भविष्य की आर्थिक योजनाएं जरूर बना लें.

शिशु के साथ खेलें: बच्चे के साथ रोजाना आधा घंटा खेलें. यदि चाहते हैं कि बच्चा आप की गोद में आ कर न रोए और आनंद ले तो उसे अपनी आदत डलवानी होगी, उस के जैसी हरकतें करनी होंगी और तरहतरह से मुंह बना कर उसे खुश करना होगा. मांबाप के साथ बच्चे का रिश्ता वैसा ही बनता है जैसे वे बनाते हैं. बड़े होने के बाद भी वे उसी मांबाप के करीब होते हैं, जिन्होंने उन्हें बचपन से समझा हो या प्यार किया हो.

रोल मौडल बनें : किसी बच्चे के लिए उस का रोल मौडल पिता होता है. इसलिए बच्चे की अच्छी परवरिश के साथ ही अपने अंदर की बुरी आदतों को छोड़ कर आप को अच्छी आदतें डालनी चाहिए ताकि आप का बच्चा आप से कुछ अच्छा सीख सके.

एक शोध में पाया गया है कि पिता बनने के बाद पुरुषों के लिए अपनी बुरी आदतें छोड़ना ज्यादा आसान होता है. अध्ययन बताते हैं कि पिता बनने के बाद धूम्रपान, शराब और अन्य बुरी लतें छूटने की संभावना पहले के मुकाबले बढ़ जाती हैं. दरअसल, बुरी आदतों का अपराधबोध तब गहरा हो जाता है जब व्यक्ति पर किसी और की जिम्मेदारी आ जाती है. ऐसे में शिशु के जन्म के साथ ही बहुत से लोग गलत आदतें छोड़ देते हैं.

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आप के द्वारा की गई गलतियों को बच्चे न दोहराएं, इस बात का खास ध्यान रखें. आप जो भी करते हैं, बच्चे उसे सीखते हैं और उस का अनुसरण भी करते हैं.

केयरिंग डैड बनें

बच्चे के पैदा होते ही पिता तुरंत कोई रिश्ता नहीं बना पाते. बच्चे के साथ मां जैसा अटैचमैंट पैदा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. मां तो बच्चे के काम आराम से अच्छी तरह कर पाती है, पर एक पिता के लिए ये काम थोड़े मुश्किल होते हैं. ऐसे में जरूरी है कि वे अपने शिशु को पहले दिन से ही ज्यादा से ज्यादा समय दें.

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जैसे:

उस की देखरेख वाले काम खुद करें.

शिशु की हरकतों को सम झें.

अपने बच्चे से स्किन टू स्किन कौंटैक्ट बनाएं.

शिशु से बात करें, पुचकारें, हंसें, बोलें.

शिशु के साथ खेलें.

शिशु को पहले दिन से ही ज्यादा से ज्यादा समय दें.

इन सब बातों को अपना कर आप अपने शिशु से मां की तरह करीब आ सकते हैं.

‘‘काला घोड़ा आर्ट कार्ट’’ से छोटे कारीगरों को उनका जीवन बसर करने में मिलेगी मदद

यूं तो मुंबई में हर वर्ष आयोजित होने वाले ‘काला घोड़ा आर्ट्स फेस्टिवल’  का आयोजन फरवरी 2022 में आएगा. यह काला घोड़ा अपनी थीम उड़ान के साथ पंख फैलाकर उड़ने के लिए तैयार है. क्योंकि यह फेस्टिवल कला के उत्सव को सेलिब्रेट करने का एक नोबल कॉज हैं.

मगर कोरोना महामारी के चलते जिन कलात्मक व्यापारियों व कारीगरों पर आर्थिक तंगी की मार पड़ी हुई थी, उनकी मदद के लिए दस दिसंबर 2021 से ऑनलाइन ‘काला घोड़ा आर्ट कार्ट’  की शुरूआत हुई है, जिसमें मुँह की बोली लगाकर कारीगरों को आर्थिक लाभ पहुंचाना मकसद है. यह आयोजन 30 नवंबर 2022 तक चलेगा.

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‘‘काला घोड़ा आर्ट कार्ट ऑनलाइन’’ ऐसे छोटे-मोटे मार्केट चालकों के लिए जीवनदान प्रदान करता हैं, जो अपने अनूठे और अद्भुत हस्तकला की कारीगरी को लोगों के सामने लाना चाहते हैं. ऐसे में ऑनलाइन के जरिए उनकी यह मेहनत लाखों लोगों के सामने आसानी से आ सकती हैं और इस महामारी से हुए नुकसान की भरपाई भी हो सकती हैं.

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‘‘काला घोड़ा एसोसिएशन’’ की माननीय अध्यक्ष ब्रिंदा मिलर कहती हैं-‘‘आर्ट कार्ट के माध्यम से हमारा प्रयास शिल्पकारों की अनूठी कलाओ और कृतियों को सामने लाना है.काला घोड़ा आर्ट कार्ट साल भर चलेगा,जो फरवरी के केवल नौ दिनों तक ही सीमित नहीं रहेगा.

इस कार्ट की मदद से छोटे कारीगरों को उनका जीवन बसर करने में मदद मिलेगी.’’ ‘काला घोड़ा आर्ट कार्ट’ के क्यूरेटर मयंक वलेशाह जी कहते हैं-‘‘काला घोड़ा आर्ट कार्ट में जिन शिल्पकारों की अद्भुत कला को लोग भुला चुके हैं, उनके द्वारा बनाए गए परिधान से लेकर, गहने, स्कार्फ, शर्ट और घर के जरूरी सामान सब कुछ एक ही जगह उपलब्ध है.

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यहां पर 500 आवेदकों में से देश के प्रतिभाशाली और भारतीय कला से सुसज्जित धनी ऐसे 50 कारिगिरीयों को चुना गया,जो अपनी बनाई हुई अद्भुत कारीगिरी को दिखा रहे हैं.इस कार्ट साइट पर बहुत सारे स्टाल्स प्रदर्शक विशेष हैं, जो भारत के कई राज्यों से है.

हमारा ज्यादातर झुकाव क्राफ्टमैंनशिप की तरफ हैं और हम पर्यावरण सम्बंन्धित ,आधुनिक युग में इस्तेमाल की जा रही वस्तुओँ की तरफ ज्यादा फोकस्ड है जो हमारी भारतीय पारंपरिक कला शैली को प्रस्तुत करता है.

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इस बार जो-जो इस कार्ट पर आएंगे खासकर तौर पर उन्हें हरियाणा के हिसार से हाथ की कढ़ाई किए हुए जूते, सूखे पत्तों से साड़ियों पर बनाई हुई प्रिंट,  अहमदाबाद के बनाए हुए बैग्स जो प्लास्टिक वेस्ट से बनी होंगी, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले से विंड चाइम्स और लैंप जो सुखी लौकी और पेपर से बने होंगे,  ऐसे कुछ अद्वितीय वस्तुएं मिलेंगी.

काला घोड़ा एसोसिएशन’’ की माननीय अध्यक्ष ब्रिंदा मिलर ने आगे कहा-‘‘इस साल हमे ऐसा ग्लोबल प्लेटफार्म देखने के लिए मिलेगा, जहां पर एक ही मंच पर एकलौते या सामूहिक तौर पर आए हुए कलाकृतियों में एक बात सबसे ज्यादा सामान्य होगी और वह है उनके द्वारा हमारी पारंपरिक बुनाई पर दिया गया महत्व, आधुनिक जीवन शैली में भी पुराने संस्कृति और कला से जुड़ी सामानों का किस तरह उपयोग हो और कैसे भारत की संस्कृति इनके माध्यम से उजागर हो और लोगों तक पहुचे,  ये काला घोड़ा आर्ट कार्ट की खासियत होगी.

वातावरण को शुद्ध और हरित बनाये रखने के साथ ही पशु मित्रवत संघों को भी प्रदर्शित करने का आग्रह यहाँ किया गया है.काला घोड़ा आर्ट कार्ट में हम लगातार उन लोगों की मदद करने में भी सक्षम हैं, जो इस दुनिया को बेहतर बनाने में हम सभी की मदद करते हैं.‘‘

रिश्ते अनमोल होते हैं

Writer- ज्योति गुप्ता

क्या कभी आप ने सोचा है कि जो लोग हर मुश्किल घड़ी में हमारा साथ देते हैं, हम उन्हें कितना समय दे पाते हैं. क्या अपने जीवन में हम उन की अहमियत को सम झते हैं? अगर हां, तो कितना? हमें शायद यह लगता है कि ये तो हमारे अपने हैं, कहां जाएंगे, लेकिन धीरेधीरे वे कब और कैसे हम से दूर होते जाते हैं, हमें पता भी नहीं चलता. हमें ऐसा लगता है कि हम इन के लिए ही तो दिनरात मेहनत करते हैं, काम करते हैं. शायद इसी बहाने के साथ हम एक ऐसी दुनिया की तरफ भागने लगते हैं जिस की कोई सीमा नहीं.

हम क्यों भाग रहे हैं, किस के लिए भाग रहे हैं, यह गौर से सोचते भी नहीं. रोज सुबह के बाद दिन, महीने और फिर साल… बस, यों ही गुजरते रहते हैं. जबकि, असल में जिंदगी का मतलब भीड़ में भागना नहीं है. हां, यह सच है कि हमारे लिए काम और सफलता दोनों जरूरी हैं.

इस के लिए हैल्दी कंपीटिशन की भावना हमारे अंदर होनी चाहिए. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि हम हमेशा काम को प्राथमिकता दें और परिवार को भूल जाएं. भई, जीवन में सबकुछ जरूरी है, इसलिए काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है. आखिर काम के नाम पर हमेशा आप के अपनों को ही कंप्रोमाइज क्यों करना पड़े.

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लौकडाउन ने दिया सबक

लौकडाउन ने सब को परिवार की अहमियत तो सिखा ही दी, साथ ही, हम सभी को यह सबक भी दिया कि जिंदगी में भले एक दोस्त हो लेकिन वह सच्चा हो. सिर्फ दिखावे के लिए सोशल मीडिया पर भीड़ बढ़ाने वाले रिश्तों से कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि रियल लाइफ में कितने लोग आप का साथ देते हैं, इस से फर्क पड़ता है.

रिलेशनशिप बौडिंग क्यों जरूरी है

मेदांता हौस्पिटल, गुड़गांव की डाक्टर नेहा गुप्ता का कहना है कि अगर अपने लोगों से बौडिंग स्ट्रौंग होती है तो हम मैंटली फिट रहते हैं और हमारी इम्युनिटी भी स्ट्रौंग होती है. आज के समय में रिश्ते लाइक और कमैंट में उल झ कर रह गए हैं. ऐसे में हमारे अहम रिश्ते दम तोड़ते जा रहे हैं और हम वर्चुअल दुनिया में ही खुशियां मना रहे हैं, जबकि यह  झूठी और बनावटी दुनिया है.

बाद में पछताने से बेहतर है कि कुछ छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर अपने अनमोल रिश्तों को जीवनभर के लिए अपना बना लें. फिर चाहे वे आप के परिवार के सदस्य हों, दोस्त हों या औफिस के सहकर्मी. याद रखिए, रिश्ते तोड़ना आसान है लेकिन इस के बाद के परिणामों को भुगतना मुश्किल होता है.

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रिश्तों को मजबूत बनाने के टिप्स :

माफी मांगने या माफ करने में न हिचकिचाएं.

एकदूसरे पर विश्वास करना सीखें.

खुल कर बात करें, चाहे वे मातापिता हों या बच्चे.

नोक झोंक प्यार का हिस्सा है, इसे दिल पर न लें.

रिश्ते तोड़ने का खयाल मन से निकाल दें.

सहकर्मी के साथ मजबूत रिश्ते बनाने के टिप्स :

खुद पहल करते हुए बातचीत शुरू करें और काम के अलावा भी एकदूसरे को जानने की कोशिश करें.

आगर औफिस में कोई आप से रिश्ता न रखना चाहे तो नकारात्मक राय न बनाएं और सिर्फ औफिस संबंधी कामों में ही उस की मदद करें.

सहकर्मियों में कौमन इंट्रैस्ट तलाशें, इस से दोस्ती करने में काफी आसानी होती है.

कलीग्स से रिलेशन स्ट्रौंग करने के लिए अपने बड़े या छोटे पद को भूल कर सब से एकसमान फ्रैंडली व्यवहार करें.

जब भी किसी सहकर्मी को आप की जरूरत पड़े तो बिना हिचकिचाए उस की मदद करें.

पर्सलन और प्रोफैशनल लाइफ को बैलेंस करना है जरूरी

परिवार के सदस्यों, दोस्तों की अकसर यही शिकायत रहती है कि हम उन्हें समय नहीं देते. जबकि हमें जब भी उन की जरूरत होती है वे हमारे साथ होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम घर और काम को बैलेंस कर के नहीं चलते हैं.

समय को बरबाद न करें

काम के समय को पर्सनल चीजों में न गंवाएं वरना औफिस का काम आप के लिए बो झ बन जाएगा और तय समय में पूरा भी नहीं हो पाएगा. अगर औफिस के समय ही काम खत्म हो जाएगा, तभी आप बिना किसी टैंशन के अपनी दूसरी जिम्मेदारियों को निभा पाएंगे.

जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ेगा भारी

अगर आप को अपनी क्षमता पता है और संकोच के कारण काम के लिए मना नहीं कर पा रहे हैं तो इस आदत को बदल दीजिए. आप अपने सीनियर्स से विनम्रता के साथ कह सकते हैं कि पहले आप जो काम कर रहे हैं उसे खत्म करने के बाद नए काम को पूरा कर पाएंगे.

महत्त्व के हिसाब से प्राथमिकता तय करें

अगर आप अपनी वर्कलाइफ को बैलेंस करना चाहते हैं तो सब से पहले अपनी प्राथमिकता तय करें. आप को रोज बहुत से काम करने होते हैं लेकिन आप को यह पता होता है कि कौन सा काम ज्यादा जरूरी है और किस काम को थोड़े समय के लिए टाला जा सकता है. इस से आप का दिमाग शांत रहेगा और काम भी हो जाएगा.

अविवाहित लड़कियों पर प्रश्नचिह्न क्यों

Writer-  तनुजा सिन्हा

लड़की 18 वर्ष की हुई नहीं कि घरपरिवार में लड़की की शादी करवा देना सिर से बोझ उतरने जैसा बन जाता है. कुछ लड़कियां कई वजहों से देर तक शादी नहीं करतीं तो उन पर चहुंओर से छींटाकशी शुरू हो जाती है. सवाल यह है कि अविवाहित लड़कियों पर समाज इतना प्रश्नचिह्न क्यों लगाता है?

युग बदला. परंतु हमारी विचारधारा न बदली. ऐसा कहना गलत न होगा. आज जरा भी नहीं बदला तो वह है हमारे समाज की संकुचित सोच. लगता है जैसे हमारे मध्यवर्गीय समाज ने न बदलने की कसम खा रखी हो, खासकर, लड़कियों के विवाह के मामले में.

हम 20वीं से 21वीं सदी में आ गए परंतु लड़कियों के विवाह के मामले में हमारा नजरिया आज भी पुरानी सोच पर ही स्थिर है. लड़कियों की शादी उचित समय पर हो जाए, 2 से 3 बच्चे हो जाएं, घरवाले छाती चौड़ी कर लें समाज में, खासकर ऐसे परिवारों के सामने जिन की बेटियां उन की नजरों में ‘बदकिस्मती’ से कुंआरी हैं.

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इस विषय में समाज की सब से अहम सोच या नजरिया, अपनेअपने शब्दों में जो भी कह लें, यह है कि लड़कियां बिना विवाह के पूर्ण नहीं. उन की खुशी, उन की पूर्णता शादी में ही है. पति होगा, बच्चे होंगे तो सारे संसार की खुशियां बच्ची को मिल जाएंगी.

ज्यादातर ये बातें सच प्रमाणित भी होती हैं और लड़कियां घरपरिवार बसा कर खुश भी हो जाती हैं, खासकर ऐसी लड़कियां जिन की प्राथमिकता घरपरिवार बसाना होता है. दूसरी तरफ ऐसी लड़कियां भी हैं जिन की प्राथमिकता पहले उन का कैरियर, उस के बाद अपनी पसंद या मातापिता की पसंद से घर बसाना होता है. शहरी क्षेत्रों में ऐसे विचार वाली लड़कियां ज्यादा या दूसरे शब्दों में कहें तो बहुतायत में होती हैं.

अगर मानसिक स्थिति पर गौर कर के इस विषय को देखा जाए तो हरेक शख्स का अपना खुद का नजरिया होता है. वहां पर शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों का प्रभाव बहुत कम हो जाता है. परिवेश की भूमिका भी अहम रोल निभाती है.

लड़कियों के विवाह के मामले में एक खास पहलू यह भी है कि ग्रामीण या छोटे शहरों के माहौल से आई लड़कियां जब पढ़लिख जाती हैं तो उन के सोचने का नजरिया बहुतकुछ बदल जाता है. ऐसी लड़कियां ही ज्यादातर घरेलू जुल्म की शिकार बनती हैं तब जब वे अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं या खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं.

उस वक्त विवाह के लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं रहतीं और शादी से इनकार करती हैं. उन पर उन के इनकार को इकरार में बदल देने का दबाव बनाया जाता है. कभी समाज का, कभी बीमार मातापिता का, कभी छोटे भाईबहनों का हवाला दिया जाता है और इमोशनल रूप से ऐसी लड़कियों को तोड़ दिया जाता है. नतीजा, वे विवाह के लिए हामी भर देती हैं.

अपनी औकात के अनुसार लड़का ढूंढ़ कर लड़की के हाथ पीले कर दिए जाते हैं और विदा कर के सिर का बो झ, समाज का बो झ हलका कर लिया जाता है. विवाह होते ही अधिकांशतया सारे बहाने गुम हो जाते हैं. शुरू में लड़की कुछ दुखी रहती है परंतु पति और ससुराल को निरपराध मान कर उन की खुशियों की खातिर समर्पित हो जाती है और पूरी जिंदगी समर्पित ही रहती है.

वह अपने सपनों को अपनी बंद मुट्ठी में भरी रेत की तरह देखती और हथेली खोल कर उसे हवा में उड़ने की आजादी दे देती है. पति और बच्चों का उच्च मुकाम और उन का मुसकराता चेहरा देखना अब उस का नया सपना होता है. उन की खुशियों में खुद की खुशियां ढूंढ़ना जीवन जीने का मकसद बन जाता है.

लड़कियों की जिंदगी के लिए अहम फैसले लेने का हक और निर्णय सुना देने का अधिकार समाज का छिपा और डरावना रूप आज भी कायम है. फर्क यह है कि पहले के लोगों की खुलेआम ऐसी सोच दिखती थी. अब आधुनिक होने का मुखौटा लगा है जिस से कि वैसी सोच सामने वाले को न दिखे, न वे दकियानूस की उपाधि से नवाजे जाएं.

दूसरा और अहम पहलू सामाजिक निंदा है. किसी लड़की ने शादी नहीं की, इस के पीछे जरूर कोई न कोई कहानी होगी. ऐसा समाज में उस के बीच के लोग सोचते हैं. शक की सूई लड़की पर घूमती रहती है. उस समाजरूपी सूई की बैटरी कभी खत्म नहीं होती और मौका मिलते चुभोने से भी लोग पीछे नहीं हटते.

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इस सूई की चुभन उसे कितनी पीड़ा देगी, यह सोचे बिना, वह अंदर से हिल जाएगी, ऊपर से मुसकराते हुए, जवाब हाजिर करना, खुद को मजबूत दिखाना उस की जरूरत बन जाती है. वरना यह समाज सवालों की सूई से घायल करता रहेगा. अब सवाल उठता है हमारी आप की सोच ऐसी क्यों हैं? अन्य मामलों में आधुनिकता का ढोल पीटने वाले हम लड़कियों के विवाह के मामले में क्यों कुंठित सोच के शिकार हैं.

जरूरी नहीं कि हर लड़की शादी में, घरपरिवार में रुचि रखती हो. हो सकता कुछ की उन की कुछ निजी मजबूरियां हों, कुछ को लाइलाज बीमारी हो, कुछ अपने घर की जिम्मेदारी को समर्पित हो गई हों. कोई भी कारण हो सकता है अविवाहित होने का. केवल प्यारमोहब्बत में असफलता ही कारण नहीं होता कुंआरेपन का. वे अपनी निजी वजह दुनिया वालों से या सहकर्मी से सा झा करती नहीं फिरेंगी.

खुद को सभ्य कहने वाले थोड़ा और सभ्य बन जाइए. अविवाहित लड़कियों के मुंह पर पऊ  फुसफुसाना उन की पीठपीछे उन की खिल्ली उड़ाना और शकभरे सवालों की बौछार से उन्हें लज्जित महसूस करवाना या अनापशनाप शादी के रिश्ते बताना आदि आदतें छोडि़ए. महिला ने जन्म लिया है तो क्या वह अपने जीवन का निर्णय लेने में सक्षम नहीं है?

कुछ प्रतिशत बुद्धिजीवी कहेंगे, क्यों नहीं हैं. परंतु उन बुद्धिजीवियों में 90 प्रतिशत मौका मिलते ही फुसफुसाने से भी परहेज नहीं करेंगे. लड़की के अविवाहित होने की वजह कुछ भी हो, इस विषय पर भी अपनी आधुनिक सोच को बढ़ाएं, न कि संकुचित करें.

हमारी एक परिचिता हैं, उन की उम्र करीब 65 वर्ष के आसपास है. मध्य आयु में पिता के गुजर जाने के बाद छोटेछोटे भाईबहनों को टीचर की नौकरी कर के पढ़ायालिखाया और शादी विवाह की. सारे भाईबहनों की शादी होतेहोते उन की उम्र 40-42 हो गई.

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सारे भाईबहन व्यवस्थित होने के बाद उन पर शादी का दबाव बनाने लगे. जब उन्होंने इनकार किया तो उन्हें यह बोल कर मानसिक आघात दिया गया कि आप को बुढ़ापे में कौन रखेगा? शिक्षिका दीदी उन के सवालों से सन्नाटे में आ गईं.

आज वे अकेली रहती हैं और अपने समाज के लोगों के लिए जीती हैं. वही लोग उन का परिवार हैं. भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, कौन जानता है? हो सकता है शिक्षिका दीदी को अंत समय में किसी की जरूरत ही न पड़े, पड़े भी तो अनेक ऐसे सामाजिक संस्थान हैं जो मजबूरों की मदद करते हैं. उन के चाहने वाले कम से कम वहां तक तो उन्हें छोड़ ही देंगे. विदेश प्रवास और मैट्रो सिटी में जा कर बसने वाले बच्चों के मातापिता भी बच्चों के होते हुए जीवन का अंतिम सफर अकेले ही तय कर रहे हैं. ऐसे लोगों से एक सवाल यह है कि उन के लिए आप का क्या सु झाव है?

व्हाट्सऐप ग्रुप में अश्लील मैसेज आए तो क्या करें

इंटरनैट ने जहां एक तरफ जीवन को आसान बनाया, वहीं दूसरी तरफ इस की खामियां भी सामने आई हैं. पहले जो मनचले लड़के गलीमहल्ले में स्कूलकालेज जाती लड़कियों को आतेजाते परेशान किया करते थे, अब वे सोशल मीडिया में परेशान करने लगे हैं.

लखनऊ के मडियांव थाना क्षेत्र के प्राइवेट स्कूल में औनलाइन पढ़ाई के लिए छात्रों द्वारा बनाए गए व्हाट्सऐप ग्रुप में एक छात्र अश्लील मैसेज भेज रहा था. एडिशनल कमिश्नर औफ पुलिस विवेक रंजन राय बताते हैं, ‘‘व्हाट्सऐप ग्रुप के अलावा यह छात्र स्कूल में ही कक्षा 8 की पढ़ने वाली लड़की के नंबर पर भी अश्लील मैसेज भेज रहा था. लड़की के मोबाइल पर फोन भी कर रहा था.’’

लड़की के परिवारजनों ने पुलिस को इस बात की शिकायत की थी जिस के बाद पुलिस की साइबर सैल ने पूरे मामले की विवेचना करनी शुरू की. विवेचना में पता चला कि इंटरनैट मैसेजिंग ऐप ‘टैक्स्ट नाउ’ के जरिए यह फोन कौल की जा रही थी. इंटरनैट के लिए वाईफाई का प्रयोग किया जा रहा था. जिस नंबर से मोबाइल को कनैक्ट कर के वाईफाई चलाया जा रहा था वह बच्चे की मां के नाम से रजिस्टर्ड था.’’

साइबर सैल ने मां के नंबर को देखा और बातचीत शुरू की तो पता चला कि बीएससी में पढ़ने वाला मोहम्मद सैफ यह काम कर रहा था. मोहम्मद सैफ ने अपने छोटे भाई के गु्रप में ये मैसेज भेजे और वहीं से पीडि़त लड़की का नंबर ले कर उस को भी मैसेज भेजने और कौल करने लगा. इंटरनैट मैसेजिंग ऐप ‘टैक्स्ट नाउ’ के जरिए फोन कौल करने से विदेशी नंबरों से कौल आती दिखती है. पुलिस ने आरोपी मोहम्मद सैफ को गिरफ्तार कर लिया.

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पीडि़त लड़की की मां कहती है, ‘‘औनलाइन पढ़ाई के दौरान व्हाट्सऐप गु्रप से लड़की का नंबर ले कर उस को मैसेज करना, कौल करना एक आम बात हो गई है. इस तरह की दिक्कतें तमाम पेरैंट्स और बच्चों के सामने आ रही हैं. संकोच और परेशानी से बचने के कारण पेरैंट्स इस बात को उठाते नहीं. कई बार बच्चे ही डर के कारण अपनी परेशानी बयान नहीं करते हैं.

‘‘हम ने सब से पहले यह शिकायत स्कूल के प्रबंध तंत्र से की. वहां से कहा गया कि यह मामला स्कूल के बाहर का है, ऐसे में हम कुछ नहीं कर सकते. जब स्कूल वालों ने पल्ला   झाड़ लिया तब हम थाने गए. वहां भी सही समाधान नहीं मिला. इस के बाद हम लखनऊ के पुलिस कमिश्नर के पास गए. वहां से मदद मिली और साइबर सैल को इस की जांच का काम दिया गया. आमतौर पर लोग इस तरह की परेशानी से बचने के लिए ही पुलिस में शिकायत करने से बचते हैं.’’

स्कूल ले जिम्मेदारी

पीडि़त लड़की की मां मोनिका मिश्रा कहती है, ‘‘जब स्कूल की औनलाइन पढ़ाई के दौरान वहां से नंबर ले कर या उसी ग्रुप में अश्लील मैसेज कोई भेज रहा हो तो स्कूल के टीचर और प्रबंधन को जिम्मेदारी लेनी चाहिए. आरोपी लड़के के पिता के दबाव में स्कूल खुद फैसला नहीं ले रहा था. आरोपी पक्ष किसी न किसी तरह से लड़की को ही दोषी ठहराने की कोशिश कर रहा था. जबकि लड़की पूरी तरह से अनजान थी. उस पर मानसिक दबाव पड़ रहा था. वह डिप्रैशन में जा रही थी. उस ने औनलाइन क्लास अटैंड करनी बंद कर दी थी. हम सब घर के लोग परेशान थे. स्कूल और पुलिस टालमटोल कर रहे थे. इस के बाद जब अधिकारियों से मिल कर शिकायत दर्ज कराई तब कहीं पुलिस ने कड़े कदम उठाए.

‘‘पुलिस को ऐसे मसलों में लड़की या उस के परिवार के लोगों की शिकायत पर आरोपी से पूछताछ करनी चाहिए. पुलिस और स्कूल अगर लड़कियों की मदद नहीं कर सकते तो उन को औनलाइन पढ़ाई के लिए ऐसे गु्रप्स नहीं बनाने चाहिए. औनलाइन के साथ ही साथ सोशल मीडिया का दौर बढ़ रहा है. ऐसे में साइबर सैल को और भी ऐक्टिव होना चाहिए ताकि पीडि़त पक्ष को न्याय के लिए दरदर भटकना न पड़े.’’

सोशल मीडिया पर रहें सावधान

सोशल मीडिया से लड़कियों के नंबर ले कर या फिर फेसबुक मैसेंजर पर तमाम तरह के मैसेज और कौल की जाने लगी है. जिन लड़कों के पास नंबर नहीं होते, वे फेसबुक के जरिए भी कौल करने लगते हैं. ऐसी शिकायतें बड़ी संख्या में मिल रही हैं. 108 नंबर की हैल्पलाइन में तैनात अर्चना सिंह बताती हैं, ‘‘लड़कियों और महिलाओं को ऐसे परेशान किया जाने लगा है. पुलिस के पास शिकायतें आ रही हैं. कुछ मामलों में यह ही नहीं पता चलता कि कौल कहां से और किस नंबर से की गई है. जिन मामलों में पुलिस नंबर तलाश लेती है वहां आरोपी पकड़ा जाता है. तमाम ऐप ऐसे आ गए हैं जिन के जरिए कौल करने में सही नंबर का पता करना मुश्किल हो जाता है.’’

अर्चना सिंह बताती हैं, ‘‘ऐसे मसलों से बचने के लिए जरूरी है कि लड़कियां बिना पहचान वाले लोगों को अपनी फ्रैंड लिस्ट में न जोडें़. अनजान लोग पहले फेसबुक और व्हाट्सऐप पर लड़कियों को फ्रैंडशिप रिक्वैस्ट भेजते हैं, फिर उन से जुड़ने के लिए प्रयास करते हैं. इस के बाद परेशान करना शुरू कर देते हैं. ऐसे हालात से बचने का एक ही तरीका है कि अनजान लोगों से दोस्ती न करें.

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लड़कियां डरें नहीं, सजग रहें

साइबर क्राइम में पीएचडी करने वाली डाक्टर दिव्या तंवर बताती हैं, ‘‘आने वाले दिनों में साइबर क्राइम हर तरह से बढ़ेगा. लड़कियों के साथ होने वाली परेशानियां इस का हिस्साभर हैं. फोन कौल और अश्लील मैसेज के साथ ही साथ लड़कियों के फोटो उन के प्रोफाइल से ले कर उन को किसी और के नग्न फोटो के साथ जोड़ने से ले कर पौर्न वीडियो में उन का फेस लगा कर बदनाम करने का काम किया जाता है.

‘‘सामान्यतौर पर किसी को यह पता नहीं चलता कि फोटो या वीडियो एडिट किया हुआ है. अगर कोई लड़की ऐसी हालत की शिकार होती है तो वह अपनी लिखित शिकायत पुलिस में दर्ज कराए. पुलिस मदद करेगी. आजकल इस तरह की शिकायतें औनलाइन भी दर्ज हो रही हैं.

‘‘अगर पुलिस बात नहीं सुनती तो उन पर सोशल मीडिया का दबाव बनने लगता है. बड़े अधिकारी मदद करते हैं. तमाम एनजीओ और मीडिया भी इस तरह से काम करते हैं कि गलत मैसेज या फोन करने वाला डरने लगता है. ऐसे में लड़कियां सजग रहें पर डरें नहीं. अपनी बात पेरैंट्स से कहें. वे बच्चों की मदद करते हैं. जब बच्चे बात को छिपाते हैं तो उन की दिक्ततें बढ़ने लगती हैं. ऐसे में जरूरी है कि लड़कियां डरें नहीं, सजग रहें. उन को परेशान करने वाला कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा.’’

बौयफ्रैंड पर भरोसा क्राइम नहीं

बौयफ्रैंड को ले कर समाज में एक गलत धारणा बन गई है कि बौयफ्रैंड लड़की के लिए अच्छा नहीं होता है. बौयफ्रैंड रखने वाली लड़कियों को गलत नजर से देखा जाता है. ऐसे में जिन लड़कियों के बौयफ्रैंड होते हैं वे अपराधबोध की भावना में रहती हैं, अपने बौयफ्रैंड को समाज के सामने लाने से कतराती हैं. इस की वजह यह होती है कि घरपरिवार और समाज को लगता है कि बौयफ्रैंड का मतलब यह होता है कि लड़की उस के साथ सैक्स संबंध बना सकती है.

समाज में शादी के पहले सैक्स की आजादी नहीं है. जरूरत इस बात की है कि सैक्स संबंध को बौयफ्रैंड से जोड़ कर न देखा जाए. बौयफ्रैंड को भी उसी नजर से देखा जाए जैसे 2 लड़कियों या 2 लड़कों की दोस्ती को देखा जाता है. बौयफ्रैंड का मतलब यह नहीं होता कि लड़कालड़की सैक्स संबंध बनाने को आजाद हो गए हैं.

समाज जब बौयफ्रैंड को सैक्स संबंधों के साथ जोड़ कर देखने लगता है तो लड़की के बारे में गलत धारणा बन जाती है. इसलिए लड़की में अपराधबोध हो जाता है और वह अपने बौयफ्रैंड को छिपाने लगती है. लड़की जब अपने बौयफ्रैंड को छिपाने लगती है तो कई तरह के अपराध हो जाते हैं. कुछ लड़कियों ने इस संबंध में अपने साथ हुई घटनाओं को बताया है, जिन के जरिए इस परेशानी को आसानी से सम  झा जा सकता है.

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दीपा आज बैंक में जौब करती है. वह बताती है, ‘‘मैं पहले गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी. मैं जब स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी कर के कालेज में पढ़ने के लिए गई तो पहली बार लड़कों को अपने क्लास में पढ़ते देखा. वहीं मेरी दोस्ती प्रताप के साथ हुई, जिसे आप मेरा बौयफ्रैंड कह सकते हैं. मेरी दोस्ती कई लड़कों से थी पर प्रताप कुछ खास था जिस से मैं निजी बातें शेयर करती थी.

‘‘एक दिन हम लोग होटल में खाना खाने गए. वहीं हमारे एक रिश्तेदार ने हमें देख लिया. मेरे घर तक यह बात पहुंच गई कि मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ होटल गई थी. हम शहर के रहने वाले थे. इस के बाद भी मु  झे घर में पहुंच कर तमाम तरह की बातें सुननी पड़ीं. जैसे, मेरा पढ़ने में मन नहीं लग रहा, अब मेरी शादी हो जानी चाहिए, मैं अपना कैरियर खराब कर रही हूं वगैरहवगैरह. ऐसी न जाने कितनी बातें सुननी पड़ीं.

‘‘मैं दोतीन दिन कालेज नहीं गई. इस के बाद यह बात मैं ने अपनी टीचर को बताई. वे हम लोगों को मनोविज्ञान पढ़ाती थीं. उन्होंने मेरी बात को सम  झा, प्रताप से बात की. इस के बाद मेरे और प्रताप के पेरैंट्स को बुला कर बात की. सब को सम  झाया कि जैसा आप लोग सम  झ रहे हो, वैसा नहीं है. दोनों अच्छे दोस्त हैं.

‘‘मेरे और प्रताप के परिवार वालों ने बात को सम  झा. घर वालों का समर्थन मिला. तब हमारा भी हौसला बढ़ा. हम अपराधबोध की भावना से बाहर निकल आए. इस के बाद हम ने आगे की पढ़ाई पूरी की. प्रताप का मेरे घर आनाजाना हो गया. मैं उस के घर आनेजाने लगी. हमारे घर वालों को यह लगा कि शायद हम आपस में शादी भी कर सकते थे. लेकिन हम ने खुद कभी इस बारे में नहीं सोचा था.

‘‘हमारे बीच ऐसा कोई संबंध नहीं था. हम ने बैंक में नौकरी की और प्रताप सांइटिस्ट बन गया. हम ने अलगअलग शादी की. आज भी हम आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं. एकदूसरे से मिलते हैं. मैं सोचती हूं कि अगर हमारी मनोविज्ञान वाली टीचर ने सही तरह से रास्ता नहीं दिखाया होता तो शायद बौयफ्रैंड को ले कर अपराधबोध में फंस जाती और प्रताप जैसे अच्छे दोस्त को खो देती.’’

हर बौयफ्रैंड धोखा नहीं देता

यह बात सही है कि अधिकतर युवा इस उम्र में सैक्स के आकर्षण में एकदूसरे के करीब आते हैं. ऐसे में पेरैंट्स और टीचर की जिम्मेदारी यह होती है कि वे इस बारे में लड़कियों को सजग रखें. बौयफ्रैंड बनाने में दिक्कत नहीं है. दिक्कत तब होती है जब आपस में सैक्स संबंध बन जाते हैं और गलती से बिना शादी के गर्भ ठहर जाता है.

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लड़के और लड़कियों दोनों को ऐसे हालात से बचना चाहिए. अगर वे इस के प्रति सजग रहते हुए दोस्ती करते हैं तो बौयफ्रैंड रखने में कोई बुराई नहीं है. इस को ले कर लड़कियां अपराधबोध में न पड़ें. हर बौयफ्रैंड धोखा नहीं देता. जरूरत सजग रहने की होती है. कई बार लोग दोस्ती, रिश्तेदारी में धोखा खा जाते हैं. इस का मतलब यह नहीं होता कि वे दोस्ती, रिश्तेदारी करना छोड़ दें.

हमारे समाज में सैक्स शिक्षा का अभाव है. इस वजह से लड़कियां यह नहीं सम  झ पातीं कि उन को किस लैवल तक छूट देनी चाहिए. कई बार लड़कियां गलत संगत में पड़ जाती हैं, अपना बुराभला नहीं सम  झ पातीं. इस कारण वे गलती कर बैठती हैं. इस तरह की घटनाएं ज्यादातर नशे की हालत में होती हैं.

इस के अलावा जब बौयफ्रैंड का चुनाव करने में गलती हो जाए तो भी दिक्कत होती है. वैसे लड़कियों में एक ‘सिक्स्थ सैंस’ होती है, जो उन्हें गलत कदम उठाने से रोकती है. कई बार नशे या धोखे में लड़कियां इस सिक्स्थ सैंस के अलार्म को सम  झ नहीं पातीं या इस की जानबू  झ कर अनदेखी कर देती हैं. यहीं से दिक्कत शुरू होती है. दिक्कत बौयफ्रैंड रखने में नहीं होती, गलती उस के साथ सैक्स संबंध बनाने के कारण होती है. ऐसे में शादी से पहले इस से बचें.

जरूरत बनते जा रहे बौयफ्रैंड

आज के समय में लड़कियां अपना कैरियर बनाने के लिए गांव, घर और अपने शहर से दूर पढ़ने जाती हैं. कई बार कालेज दूर होता है. अकेले आनाजाना पड़ता है. अकेली लड़की के लिए दिक्कतें होती हैं. रात में भी गली, सड़क और महल्ले में अंधेरे में खतरे हो सकते हैं.

ऐसे में अगर किसी कोचिंग से पढ़ कर वापस लौट रही लड़की के साथ कोई लड़का होता है तो उसे डर नहीं लगता. उस का हौसला बढ़ा रहता है. कोई अपराधी उस के साथ अपराध करने की हिम्मत नहीं कर पाता. यह जरूरी नहीं कि लड़का ‘हीमैंन’ या ‘हीरो’ जैसा ही हो. साधारण लड़के के भी साथ रहने से हौसला रहता है. सुरक्षा का जो काम कई बार भाई नहीं कर पाता, वह बौयफ्रैंड कर देता है. ऐसे में बौयफ्रैंड से खतरा नहीं, बल्कि सुरक्षा ही होती है.

अब समाज में ऐसे कानून बने हैं जिन के तहत लड़की की शिकायत करना लड़के पर भारी पड़ जाता है. ऐसे में बौयफ्रैंड आमतौर पर गलत हरकत करने की हिम्मत नहीं करता है. अपराध करने वाले लोग अनजान ही होते हैं. लड़कियों को अनजान लोगों के साथ संबंध नहीं रखने चाहिए. उन के साथ सुनसान जगह नहीं जाना चाहिए और कभी भी नशे वाली पार्टी में नहीं जाना चाहिए. आजकल नशे के ऐसे सामान मिलने लगे हैं जिन का सेवन करने से इंसान के सोचनेसम  झने व विरोध करने की क्षमता खत्म हो जाती है. इस तरह के हालात से लड़कियों को बचना चाहिए. बौयफ्रैंड रखने में कोई बुराई नहीं है, जरूरत इस बात की है कि बौयफ्रैंड के साथ संबंधों की सीमाओं को सम  झें. सीमाओं से बाहर जाना मुश्किल खड़ी कर देता है. बौयफ्रैंड इस से अलग नहीं होता है.

मनोविज्ञानी सुप्रीति बाली कहती हैं, ‘‘बौयफ्रैंड को ले कर कभी अपराधबोध न पालें. ऐसे रिश्तों के बारे में अपने घरपरिवार को बता कर रखें. ऐसे में उन का किसी बाहर वाले से जब इस का पता चलेगा तो उन को बुरा नहीं लगेगा. वे बात को सही तरह से सम  झ सकेंगे तो अगर समाज कुछ बुराभला भी कहेगा तब भी वे आप के साथ खड़े होंगे. समाज भी फिर उंगली नहीं उठा सकेगा.

‘‘बौयफ्रैंड को ले कर लड़की को तब अपराधबोध होता है जब घरपरिवार को जानकारी नहीं होती. वहीं से दिक्कतें शुरू होती हैं. अगर बौयफ्रैंड के साथ अपने रिश्तों को छिपाए नहीं तो परेशानी नहीं खड़ी होगी. बौयफ्रैंड को जब यह पता होता है कि उस के बारे में सब को पता है तो उस की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है.’’

मेटावर्स: वर्चुअल दुनिया की आजादी

मेटावर्स आधुनिक तकनीकी की एक काल्पनिक दुनिया होगी, जहां घर बैठे आप दुनिया के किसी भी माल में घूम कर शौपिंग का अहसास कर सकते हैं. मेटावर्स से हमारी जिंदगी में काफी कुछ बदल जाएगा, लेकिन अब सवाल यही उठ रहा है कि इस में कोई अपराध होगा तो उस से कैसे निपटा जाएगा?

इंटरनेट, कंप्यूटिंग और टेलीकम्युनिकेशन की दुनिया के साथ हो रहे लगातार दूसरे तकनीकी विकास और विस्तार के नए नाम मेटावर्स को ‘वर्चुअल एनवायरनमेंट’ यानी आभासी वातावरण कहा गया है.

मेटावर्स के सिलसिले में बात करने से पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर मेटावर्स है क्या? वैसे मेटा ग्रीक शब्द है, जिस का अर्थ होता है बियांड यानी आगे या उस पार. आप ने इस से बने शब्द मेटाबालिज्म, मेटाफिजिक्स, मेटाडेटा आदि सुने होंगे. अब मेटा को यूनिवर्स से जोड़ कर मेटावर्स बनाया गया है. इस तरह यह हमारे यूनिवर्स के साथ रची जा रही काल्पनिक  दुनिया होगी. अब तक हम इंटरनेट से जो कुछ करते थे, उसे अपने सामने स्क्रीन पर देखते थे.

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लेकिन मेटावर्स में हम स्क्रीन के उस पार भी पहुंच जाएंगे. बस, इस के लिए कुछ डिवाइस जैसे वीआर हैंडसेट, एआर ग्लासेज या स्मार्ट चश्मे, स्मार्टफोन आदि की जरूरत होगी. फिर साइबर स्पेस धीरेधीरे मेटावर्स में बदल जाएगा.

यह काम कैसे करेगा और लोगों को कितना लुभाएगा, इस से पहले इस तरह से समझना होगा.

किसी क्रिकेट प्रेमी के लिए कितना रोमांचक और वास्तविक एहसास वाला होगा, यदि वह घर बैठे दूसरे देश के स्टेडियम में खेले जा रहे टी20 मैच का एक दर्शक हो. वह भी हजारों दर्शकों के बीच चौकेछक्के और खिलाडि़यों की प्रतिस्पर्धा और हारजीत के रोमांच को दूसरे के साथ शेयर करे.

दूसरी परिकल्पना घर बैठे किसी शोरूम में विजिट किए गए बगैर नए मौडल की कार की तकनीकी जानकारियां पाने के साथसाथ उसे चला कर जांचपरख करने की भी है.

इसी तरह माल या औनलाइन कपड़े खरीदने से पहले छूने, पहन कर देखने का वर्चुअल एहसास होने पर उस के प्रति विश्वसनीयता बढ़ सकती है.

हर क्षेत्र में समय, श्रम और पैसे के व्यय को कम करने के लिए डिजिटल वर्ल्ड का नया परिवेश पिछले एक दशक से विकसित किया जा रहा है. कोशिश है कि वर्चुअल एनवायरमेंट को रियलिस्टिक बना कर पेश किया जा सके.

इन अवधारणाओं को जमीन पर उतारने के लिए वर्चुअल रियलिटी (वीआर) और आग्मेंटेड रियलिटी (एआर) की तकनीक बनाई जा चुकी है. छिटपुट प्रयोग और इस्तेमाल के प्रयास भी किए गए हैं, लेकिन उन का व्यापक विकास नहीं हो पाया.

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वीआर सिर्फ गेम तक ही सिमट कर रह गया और एआर बेहतर इंटरनेट की सुविधा के इंतजार में है. उस के साथ एआर को जोड़ने में इंटरनेट स्पीड को ले कर कई बाधाएं बनी रहीं. इसे ही मेटावर्स के जरिए नए सिरे से बहुपयोगी बनाने पर जोर दिया गया है.

वर्चुअल स्पेस का होगा कलेक्शन

वास्तव में मेटावर्स एक साथ जुटाए गए वर्चुअल स्पेस का वैसा कलेक्शन होगा, जिसे रियलिटी के साथ फिजिकली अपनाया जा सके. इस में वर्चुअल वर्ल्ड, आग्मेंटेड रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसे नए तकनीक इंटरनेट के सहारे काम करेंगे.

यानी कि मेटावर्स एक वर्चुअल दुनिया है, जहां कोई व्यक्ति फिजिकली मौजूद नहीं होते हुए भी अपनी उपस्थित को दर्ज करवा सकता है. उस के साथ महसूस किए जाने वाले वर्चुअल यूनिवर्स में थ्री डाइमेंशनल वर्चुअल स्पेस और उस की साझेदारी को इंटरनेट के जरिए जोड़ने का सिद्धांत बनाया गया है. इस टर्म को पहली बार नील स्टीफेंसन ने 1992 में अपने साइंस फिक्शन उपन्यास ‘स्नो क्रैश’ में गढ़ा था.

सीधे तौर पर समझें तो मेटावर्स एक तरह से वर्चुअल रियलिटी (वीआर) का ही विकसित रूप है. इस में छिपी कई संभावनाएं ठीक वैसी ही हैं, जैसा कि साधारण फोन या शुरुआती दिनों के मोबाइल फोन की तुलना में आज के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित स्मार्टफोन से मिलती हैं.

मेटावर्स के बहुपयोगी बनने के क्षेत्र में कई जटिलताएं हैं, जिस में कंप्यूटिंग तकनीक से ले कर इंटरनेट की स्पीड, उस की उपलब्धता और डेटा की खपत तक शामिल है.

इस के साथसाथ थ्रीडी वीडियो के कंटेंट, निजी डेटा की सुरक्षा तथा साइबर क्राइम भी मायने रखते हैं. अभी तक वीआर का जो कौंसेप्ट और बाजार में उपलब्ध गजेट है, उन के प्रति सामान्य दिलचस्पी नहीं बन पाने का मूल करण उस का केवल गेम से जुड़ा होना ही रहा है, जबकि मेटावर्स को सिर्फ थ्रीडी गेम के नजरिए से देखना एक भूल होगी.

मेटावर्स से बने डिजिटल दुनिया को और अधिक विकसित बनाने के लिए मोबाइल कनेक्टिविटी को बेहतर करने की जरूरत होगी. इस की उम्मीद 5जी के आने के बाद की जा सकती है.

अब लोगों की जुबान पर चढ़ चुका ‘फेसबुक’ शब्द चंद दिनों का मेहमान रह गया है. उस की जगह आने वाला ग्रीक शब्द ‘मेटा’ और उस का मैथेमेटिकल चिह्न इनफिनिटी को जेहन में बिठाने में कितना समय लगेगा, यह तो वक्त ही बताएगा. जबकि भविष्य का इंटरनेट कहे जाने वाले मेटावर्स (वर्चुअल एनवायरनमेंट) के लिए मार्क जुकरबर्ग ने माहौल बना कर अपनी धूमिल होती छवि को सुधारने की पूरी तैयारी कर ली है.

अपने ‘वर्कप्लेस’ नामक वर्चुअल रियलिटी मीटिंग ऐप और सोशल स्पेस ‘होराइजन्स’ के विकास के लिए उन की 10 बिलियन डालर निवेश के साथ 10 हजार चुने हुए प्रतिभाशाली प्रोफैशनल को नियुक्त करने की योजना है.

उल्लेखनीय है कि फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग वीआर के क्षेत्र में शुरू से ही सक्रिय रहे हैं. उन्होंने अपने आक्युलस हेडसेट के लिए इस क्षेत्र में भारी निवेश भी किया है.

साल 2014 में आक्युलस नाम की कंपनी को 2 अरब डालर में खरीदा था. तभी से होराइजन नाम की एक वैसी डिजिटल दुनिया बनाने के लिए काम किया जा रहा है, जहां लोग वीआर तकनीक की मदद से एकदूसरे से संवाद कायम कर सकें.

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फेसबुक ने कर दी है तैयारी

इसी साल अगस्त में फेसबुक ने ‘होराइजन वर्करूम्स’ नाम का एक फीचर जारी किया था, जिस में लोग वीआर हेडसेट पहन कर वर्चुअल रूम में एकदूसरे के साथ मीटिंग कर सकते हैं. ऐसा करते हुए रूम्स में लोग अपने ही थ्रीडी वर्जन के रूप में नजर आते हैं.

फेसबुक ने इसी सिलसिले में ‘वर्कप्लेस’ और ‘होराइजन्स’ ऐप बनाने की तैयार की है. वर्कप्लेस में वर्चुअल रियलिटी मीट होगा, जबकि होराइजन्स में सोशल स्पेस को जगह मिलेगी. हालांकि वर्चुअल रियलिटी का एक और ऐप ‘वीआरचैट’ पूरी तरह से औनलाइन हैंगआउट चैटिंग के लिए बनाया गया है.

इन से केवल आसपास की दुनिया से जुड़ना या बातचीत करना ही संभव हो पाता है. इस से अलग फेसबुक की नजर में मेटावर्स के वर्कप्लेस और होराइजन्स से अलग किस्म की वैचारिकता के व्यवहारिकता का संतुलित आकार बनेगा.

साथ ही कंपनी मेटावर्स के जरिए इंटरनेट तकनीकों को अगली लहर की तैयारी की कोशिशों का हिस्सा बन जाएगी. कंपनी की मानें तो मेटावर्स में रचनात्मक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर एक नया आयाम विकसित कर सकती है.

फेसबुक ने मेटावर्स की तैयारी की घोषणा ऐसे समय में की है, जब कंपनी कई समस्याओं से जूझ रही है. उसे कई बार तकनीकी खामियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है.

हाल में ही कई घंटों तक उस की सेवाएं बंद रही हैं. साथ ही भारत समेत कई देशों में इस के बेकाबू होने और अनियंत्रित प्रभाव देने जैसे आरोपों से भी जूझना पड़ रहा है.

बहरहाल, कंपनी वीआर और एआर को अगली पीढ़ी के औनलाइन सोशल एक्सपीरिएंस के मूल रूप में देख रही है. उस के द्वारा एक मजबूत प्रोटेक्ट टीम बनाई गई है. साथ ही कंपनी अपने फेसबुक रियल्टी लैब्स पर अरबों डालर खर्च करेगी.

अनेक कंपनियां कर रही हैं तैयारियां

फेसबुक ने इस पर शुरुआत में करीब 75 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है. इस के अलावा यूरोपियन यूनियन में 10 हजार लोगों को नौकरियां भी दी जाएंगी. उधर साउथ कोरिया ने साल 2023 तक सियोल को पहला मेटावर्स शहर बनाने का ऐलान कर दिया है.

फेसबुक के अलावा दुनिया की कई कंपनियां मेटावर्स में उतरने में जुटी हैं. इस में सौफ्टवेयर, हार्डवेयर, इंटरफेस क्रिएशन, प्रोडक्ट और फाईनैंशियल सर्विस देने वाली कैटेगरी हैं.

गूगल, एप्पल, स्नैपचैट ओर एपिक गेम्स भी मेटावर्स पर काम कर रहे हैं. फेसबुक के बाद डिज्नी ने भी मेटावर्स बनाने का ऐलान कर दिया है.

फेसबुक कंपनी का कहना है कि वह इस प्रोजेक्ट को एक लौंग टर्म विजन के नजरिए से देख रही है. वह इस विजन को हकीकत में बदलने को ले कर प्रतिबद्ध है और अगले कई सालों तक इस के लिए निवेश करने की उम्मीद करती है. वैसे इस के नतीजे आने का लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक अगले 5 साल में अंजाम तक पहुंचा जा सकता है.

फेसबुक के अनुसार महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि मेटावर्स में किसी एक कंपनी का अधिकार नहीं होगा और यह सशक्त प्लेटफार्म के रूप में बना इंटरनेट सभी के लिए उपलब्ध होगा.

जैसा कि तकनीक के स्वरूप से ही स्पष्ट हो चुका है कि इस में वीआर, एआर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कंप्यूटिंग, विविध टौपिक के थ्रीडी वीडियोज, गेम्स के कंटेंट, इंटरनेट प्रदाता कंपनियां आदि के अतिरिक्त गजेट की व्यापकता के लिए अलगअलग कंपनियां शामिल होंगी.

मेटावर्स में आप को कोई ड्रैस पसंद आए तो आप उसे वर्चुअल पहन कर, छू कर देख सकते हैं. जब ड्रैस फिट आए तो और्डर कर सकते हैं. इसलिए कुछ नामी फैशन कंपनियां और फिटनेस कंपनियां भी इस से जुड़ने की तैयारी कर रही हैं.

उल्लेखनीय है कि हाल ही में पौप स्टार आर्यना ग्रांदे और रैपर ट्रैविस स्कौट वीडियो गेम्स की दुनिया में चर्चित फोर्टनाइट के जरिए अपना प्रदर्शन कर चुके हैं, जिसे लोगों से अपने घरों में बैठ कर देखा है. रियलिटी को वर्चुअल बना कर प्रस्तुत करने का यह एक अच्छा उदाहरण बन चुका है.

फेसबुक को उम्मीद है कि जैसेजैसे मेटावर्स का काम आगे बढ़ेगा, वैसेवैसे दूसरी टेक कंपनियां इस से जुड़ती चली जाएंगी. फिर भी मेटावर्स के विकास को ले कर उपजने वाले जो भी नकारात्मक सवाल खड़े हो सकते हैं, उस संदर्भ में कहा जा सकता है कि सफलता मिलने में कई साल लग सकते हैं.

फिर भी इस के लिए कई टेक कंपनियों के बीच लगने वाली होड़ से इनकार नहीं किया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में वीआर तकनीक की अच्छी गुणवत्ता वाले हेडसेट आ चुके हैं. हम ने 360 डिग्री फिल्मांकन वाले थ्रीडी वीडियो बनाने में दक्षता हासिल कर ली है.

एआई में भी जबरदस्त विकास हुआ है. सब से बड़ी बात यह है कि हर तबके के लोगों के बीच तेजी से औनलाइन कार्यशैली विकसित हो रही है. गेम की दुनिया में हर रोज कुछ न कुछ नया हो रहा है. पिछले साल आए आक्युलस क्वेस्ट2 वीआर गेमिंग हेडसेट को खूब पसंद किया गया है.

मेटावर्स के विकसित हो जाने तक भारत में भी इंटरनेट से जुड़ी तमाम तकनीकी समस्याएं दूर हो जाएंगी और इस के प्रोडक्ट भारतीय उपभोक्ताओं को ध्यान में रखते हुए बाजार में उतारे जाएंगे.

साथ ही सोशल मीडिया, औनलाइन एजूकेशन और रिमोट हेल्थ सेक्टर से मिलने वाली सर्विस के नजरिए से भी इस की उपयोगिता काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगी.

उठते सवाल और आशंकाएं

मेटावर्स की दुनिया में सब से बड़ा सवाल तो डाटा लीक होने का उठता है. फेसबुक जैसे ऐप्स के पास यूजर का काफी डेटा जमा हो जाता है.

कहा तो यही जाता है कि इस का कोई गलत इस्तेमाल नहीं होगा लेकिन मेटावर्स में बहुत ज्यादा डेटा जमा होने के आसार हैं. यहां भी दावा किया जा रहा है कि डेटा लीक नहीं हो सकेगा. फिर भी इसे ले कर चिंताएं जताई जाने लगी हैं.

अगर डेटा लीक न भी हो तो भी लोगों का जो डेटा जमा होगा, उस का क्या किया जाएगा? क्या कोई एक कंपनी उस का मालिकाना हक रखेगी या यूजर के पास यह हक होगा कि अपने डेटा को लौक कर सके.

लोगों की प्राइवेसी में किसी दूसरे का दखल रोका जा सकेगा या नहीं, यह भी देखना होगा. वैसे तो इंटरनेट पर किसी को भी ब्लौक करने का औप्शन होता है लेकिन मेटावर्स में नई तकनीकी आएंगी तो क्या किसी को रोका जा सकेगा, इस पर भी शक जताया जा रहा है.

यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा है कि मेटावर्स में किसी को ट्रोल किया जाए या कोई क्राइम होगा तो कानून उस से कैसे निपटेगा?

सवाल यह भी उठ रहा है कि मेटावर्स की उस काल्पनिक दुनिया का कंट्रोल किस के हाथ में होगा? अब तक दुनिया के तमाम देशों में डिजिटल करेंसी को मान्यता नहीं मिली है, जबकि मेटावर्स में डिजिटल करेंसी से शौपिंग होगी.

ऐसे में धोखाधड़ी होगी तो कहां गुहार लगाई जाएगी. पूरी मेटावर्स इकानौमी आखिर काम कैसे करेगी? इसी तरह के अनेक सवाल लोगों के जेहन में उठ रहे हैं. इस तरह की समस्याओं से निपटने के संबंध में पहले ही विचार करना जरूरी होगा.

पोंगापंथ: अंधविश्वास से बिगड़ता घर का माहौल

Writer- धीरज कुमार

रागिनी का पूजापाठ वगैरह में पूरा विश्वास है, इसलिए वह धार्मिक कामों में ज्यादा दिलचस्पी लेती है, क्योंकि वह अपने मायके से विरासत में यही सब सीख कर आई है.

रागिनी के मातापिता मायके में पूजापाठ पर ज्यादा जोर देते थे, इसलिए रागिनी अपने पति को भी धार्मिक नियमकायदे के मुताबिक चलने के लिए बढ़ावा देती रहती है, जबकि उस का पति विकास नई सोच का है. वह अंधविश्वासों पर जरा भी भरोसा नहीं करता है. वह पूजापाठ को ढकोसला सम झता है.

विकास रागिनी को कई बार सम झाने की कोशिश कर चुका है कि इस तरह के पूजापाठ से कुछ नहीं होता है, बल्कि समय और पैसे की बरबादी होती है. लिहाजा, अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई और अपनी तरक्की पर ध्यान दो, लेकिन रागिनी इन बातों पर गुस्सा होने लगती है. विकास के लाख सम झाने पर भी उस में कोई बदलाव नहीं आया है.

यही वजह है कि रागिनी पूजापाठ के नाम पर फालतू में समय व पैसे खर्च करती है. इस से घर का महीनेभर का बजट गड़बड़ा जाता है, जबकि विकास किराए के मकान में रहता है.

न्यूक्लियर फैमिली होने के चलते विकास अपनी समस्या को किसी के सामने रख भी नहीं पाता है. रागिनी घर के एक कोने को मंदिर सा बना चुकी है, जहां कई फोटो और मूर्तियां लगी हुई हैं और रागिनी वहां घंटों बैठ कर पूजापाठ करती है.

कभीकभी विकास इन बातों से चिढ़ जाता है. इन सब बातों को ले कर उन दोनों में कई बार  झगड़ा भी हो चुका है और अब इस का असर उस के बच्चों पर भी पड़ रहा है.

विकास उस समय दंग रह गया, जब उस का 5वीं जमात में पढ़ रहा बेटा इम्तिहान देने जाने के दौरान पूजा वाले कमरे से यह प्रार्थना कर के निकला कि हे भगवान, इम्तिहान में पास कर दीजिए.

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पूछने पर उस का कहना था कि पूजापाठ करने से अच्छे नंबर आएंगे. उस की मां ने यह कभी नहीं बताया कि बेटा पूजापाठ करने से अच्छे नंबर नहीं आते हैं, बल्कि अच्छी तरह से पढ़ाईलिखाई करने से अच्छे नंबर आते हैं.

विकास का कहना है, ‘‘जिन घरों में पूजापाठ होता रहेगा, उन घरों के बच्चे विज्ञान की बातें कहां से सीख पाएंगे? ऐसे घर के बच्चे डाक्टरइंजीनियर कहां से बन पाएंगे? घर के माहौल का असर बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर पड़ता है.’’

डेहरी औन सोन की रहने वाली कनिका सिंह एक धार्मिक स्कूल की शिक्षिका हैं. वे घर में सुबहशाम टैलीविजन पर धार्मिक प्रवचन सुना करती थीं. उन का बेटा पढ़ने में काफी तेज था. वह 10वीं जमात में स्कूल में सब से ज्यादा अंकों से पास हुआ था.

कनिका सिंह अपने बेटे को इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला दिलवाना चाह रही थीं, तभी उन का बेटा एक दिन घर से चुपके से निकल कर तथाकथित बाबा के आश्रम में रहने के लिए भाग गया.

हालांकि उन के बेटे को वहां ऐंट्री नहीं मिल पाई और कुछ दिन में निराश हो कर वह वापस घर आ गया था. पूछने पर उस ने अपने शिक्षकों को बताया कि घर में ज्यादातर समय धार्मिक बातें सुन कर उस की सोच बदल गई थी. इसलिए वह धार्मिक संस्थान में रह कर धर्म के बारे में जानना चाहता था.

मनोज उपाध्याय पेशे से एक राष्ट्रीय अखबार के पत्रकार हैं. उन की पत्नी शुगर और ब्लड प्रैशर की मरीज हैं. डाक्टर उन की पत्नी को हिदायत दे चुके हैं कि समय से खाना खाइए और और सुबह खुली हवा में टहलिए. पूजापाठ और उपवास से जरा परहेज रखिएगा. लेकिन वे महीने में 1-2 बार व्रत जरूर रखती हैं.

मनोज उपाध्याय की पत्नी का कहना है, ‘‘व्रत करने से बीमारी नहीं होती है. पूजापाठ करने से ऊपर वाला खुश होता है. इस से बीमारी नहीं होगी, बल्कि उस की मेहरबानी से बीमारी ठीक होती है.’’

डाक्टर के मुताबिक, उन की बीमारी की अहम वजह बहुत ज्यादा उपवास करना और पूजापाठ के चलते देर से  नाश्ता और भोजन लेना है.

ऐसी औरतों को इस तरह की सीख बचपन से ही घरपरिवार में मिल चुकी होती है. लाख सम झाने पर भी वे सब बातों को सिरे से नकार देती हैं.

दरअसल, यह सब ब्राह्मणों, पंडितों, मौलवियों द्वारा दी गई सीख के चलते होता है. समाज के कुछ लोग समाज में अंधविश्वास और ढोंग फैला कर अपना कारोबार सदियों से चला रहे हैं.

इस सब के बावजूद आज भी लोग सम झने के लिए तैयार नहीं हैं, खासकर कम पढ़ेलिखे और नासम झ परिवारों में आज भी उन्हीं बातों को दोहराया जा रहा है, जो पोंगापंडित चाह रहे हैं. तभी आज भी उन का गोरखधंधा बेरोकटोक चल रहा है और अंधविश्वास की बेल दिनोंदिन फैलती जा रही है और वट वृक्ष का रूप ले रही है.

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लिहाजा, जरूरी है कि पतिपत्नी आपसी तालमेल बना कर अंधविश्वास और ढोंग का पूरी तरह बहिष्कार करें, वरना इस का असर आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ता रहेगा.

अब यह भी जरूरी हो गया है कि धर्मकर्म की बातों को विज्ञान की कसौटी पर भी कस कर देखा जाए. जैसे इस बार कोरोना महामारी फैली, तो क्या पूजापाठ करने से यह महामारी रुक गई? नहीं. जब तक कि वैक्सीन नहीं बनी और लोगों को लगनी शुरू नहीं हुई, तब तक यह बीमारी बढ़ रही थी.

अगर आम आदमी पूजापाठ पर विश्वास कर इस बीमारी को खत्म होने का इंतजार करता रहता, तो शायद यह बीमारी कभी भी खत्म नहीं होती और आम लोग वैसे ही मरते रहते, जैसे कोरोना महामारी के दौरान मर रहे थे.

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