Writer-  तनुजा सिन्हा

लड़की 18 वर्ष की हुई नहीं कि घरपरिवार में लड़की की शादी करवा देना सिर से बोझ उतरने जैसा बन जाता है. कुछ लड़कियां कई वजहों से देर तक शादी नहीं करतीं तो उन पर चहुंओर से छींटाकशी शुरू हो जाती है. सवाल यह है कि अविवाहित लड़कियों पर समाज इतना प्रश्नचिह्न क्यों लगाता है?

युग बदला. परंतु हमारी विचारधारा न बदली. ऐसा कहना गलत न होगा. आज जरा भी नहीं बदला तो वह है हमारे समाज की संकुचित सोच. लगता है जैसे हमारे मध्यवर्गीय समाज ने न बदलने की कसम खा रखी हो, खासकर, लड़कियों के विवाह के मामले में.

हम 20वीं से 21वीं सदी में आ गए परंतु लड़कियों के विवाह के मामले में हमारा नजरिया आज भी पुरानी सोच पर ही स्थिर है. लड़कियों की शादी उचित समय पर हो जाए, 2 से 3 बच्चे हो जाएं, घरवाले छाती चौड़ी कर लें समाज में, खासकर ऐसे परिवारों के सामने जिन की बेटियां उन की नजरों में ‘बदकिस्मती’ से कुंआरी हैं.

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इस विषय में समाज की सब से अहम सोच या नजरिया, अपनेअपने शब्दों में जो भी कह लें, यह है कि लड़कियां बिना विवाह के पूर्ण नहीं. उन की खुशी, उन की पूर्णता शादी में ही है. पति होगा, बच्चे होंगे तो सारे संसार की खुशियां बच्ची को मिल जाएंगी.

ज्यादातर ये बातें सच प्रमाणित भी होती हैं और लड़कियां घरपरिवार बसा कर खुश भी हो जाती हैं, खासकर ऐसी लड़कियां जिन की प्राथमिकता घरपरिवार बसाना होता है. दूसरी तरफ ऐसी लड़कियां भी हैं जिन की प्राथमिकता पहले उन का कैरियर, उस के बाद अपनी पसंद या मातापिता की पसंद से घर बसाना होता है. शहरी क्षेत्रों में ऐसे विचार वाली लड़कियां ज्यादा या दूसरे शब्दों में कहें तो बहुतायत में होती हैं.

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