मेटावर्स आधुनिक तकनीकी की एक काल्पनिक दुनिया होगी, जहां घर बैठे आप दुनिया के किसी भी माल में घूम कर शौपिंग का अहसास कर सकते हैं. मेटावर्स से हमारी जिंदगी में काफी कुछ बदल जाएगा, लेकिन अब सवाल यही उठ रहा है कि इस में कोई अपराध होगा तो उस से कैसे निपटा जाएगा?

इंटरनेट, कंप्यूटिंग और टेलीकम्युनिकेशन की दुनिया के साथ हो रहे लगातार दूसरे तकनीकी विकास और विस्तार के नए नाम मेटावर्स को ‘वर्चुअल एनवायरनमेंट’ यानी आभासी वातावरण कहा गया है.

मेटावर्स के सिलसिले में बात करने से पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर मेटावर्स है क्या? वैसे मेटा ग्रीक शब्द है, जिस का अर्थ होता है बियांड यानी आगे या उस पार. आप ने इस से बने शब्द मेटाबालिज्म, मेटाफिजिक्स, मेटाडेटा आदि सुने होंगे. अब मेटा को यूनिवर्स से जोड़ कर मेटावर्स बनाया गया है. इस तरह यह हमारे यूनिवर्स के साथ रची जा रही काल्पनिक  दुनिया होगी. अब तक हम इंटरनेट से जो कुछ करते थे, उसे अपने सामने स्क्रीन पर देखते थे.

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लेकिन मेटावर्स में हम स्क्रीन के उस पार भी पहुंच जाएंगे. बस, इस के लिए कुछ डिवाइस जैसे वीआर हैंडसेट, एआर ग्लासेज या स्मार्ट चश्मे, स्मार्टफोन आदि की जरूरत होगी. फिर साइबर स्पेस धीरेधीरे मेटावर्स में बदल जाएगा.

यह काम कैसे करेगा और लोगों को कितना लुभाएगा, इस से पहले इस तरह से समझना होगा.

किसी क्रिकेट प्रेमी के लिए कितना रोमांचक और वास्तविक एहसास वाला होगा, यदि वह घर बैठे दूसरे देश के स्टेडियम में खेले जा रहे टी20 मैच का एक दर्शक हो. वह भी हजारों दर्शकों के बीच चौकेछक्के और खिलाडि़यों की प्रतिस्पर्धा और हारजीत के रोमांच को दूसरे के साथ शेयर करे.

दूसरी परिकल्पना घर बैठे किसी शोरूम में विजिट किए गए बगैर नए मौडल की कार की तकनीकी जानकारियां पाने के साथसाथ उसे चला कर जांचपरख करने की भी है.

इसी तरह माल या औनलाइन कपड़े खरीदने से पहले छूने, पहन कर देखने का वर्चुअल एहसास होने पर उस के प्रति विश्वसनीयता बढ़ सकती है.

हर क्षेत्र में समय, श्रम और पैसे के व्यय को कम करने के लिए डिजिटल वर्ल्ड का नया परिवेश पिछले एक दशक से विकसित किया जा रहा है. कोशिश है कि वर्चुअल एनवायरमेंट को रियलिस्टिक बना कर पेश किया जा सके.

इन अवधारणाओं को जमीन पर उतारने के लिए वर्चुअल रियलिटी (वीआर) और आग्मेंटेड रियलिटी (एआर) की तकनीक बनाई जा चुकी है. छिटपुट प्रयोग और इस्तेमाल के प्रयास भी किए गए हैं, लेकिन उन का व्यापक विकास नहीं हो पाया.

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वीआर सिर्फ गेम तक ही सिमट कर रह गया और एआर बेहतर इंटरनेट की सुविधा के इंतजार में है. उस के साथ एआर को जोड़ने में इंटरनेट स्पीड को ले कर कई बाधाएं बनी रहीं. इसे ही मेटावर्स के जरिए नए सिरे से बहुपयोगी बनाने पर जोर दिया गया है.

वर्चुअल स्पेस का होगा कलेक्शन

वास्तव में मेटावर्स एक साथ जुटाए गए वर्चुअल स्पेस का वैसा कलेक्शन होगा, जिसे रियलिटी के साथ फिजिकली अपनाया जा सके. इस में वर्चुअल वर्ल्ड, आग्मेंटेड रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसे नए तकनीक इंटरनेट के सहारे काम करेंगे.

यानी कि मेटावर्स एक वर्चुअल दुनिया है, जहां कोई व्यक्ति फिजिकली मौजूद नहीं होते हुए भी अपनी उपस्थित को दर्ज करवा सकता है. उस के साथ महसूस किए जाने वाले वर्चुअल यूनिवर्स में थ्री डाइमेंशनल वर्चुअल स्पेस और उस की साझेदारी को इंटरनेट के जरिए जोड़ने का सिद्धांत बनाया गया है. इस टर्म को पहली बार नील स्टीफेंसन ने 1992 में अपने साइंस फिक्शन उपन्यास ‘स्नो क्रैश’ में गढ़ा था.

सीधे तौर पर समझें तो मेटावर्स एक तरह से वर्चुअल रियलिटी (वीआर) का ही विकसित रूप है. इस में छिपी कई संभावनाएं ठीक वैसी ही हैं, जैसा कि साधारण फोन या शुरुआती दिनों के मोबाइल फोन की तुलना में आज के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित स्मार्टफोन से मिलती हैं.

मेटावर्स के बहुपयोगी बनने के क्षेत्र में कई जटिलताएं हैं, जिस में कंप्यूटिंग तकनीक से ले कर इंटरनेट की स्पीड, उस की उपलब्धता और डेटा की खपत तक शामिल है.

इस के साथसाथ थ्रीडी वीडियो के कंटेंट, निजी डेटा की सुरक्षा तथा साइबर क्राइम भी मायने रखते हैं. अभी तक वीआर का जो कौंसेप्ट और बाजार में उपलब्ध गजेट है, उन के प्रति सामान्य दिलचस्पी नहीं बन पाने का मूल करण उस का केवल गेम से जुड़ा होना ही रहा है, जबकि मेटावर्स को सिर्फ थ्रीडी गेम के नजरिए से देखना एक भूल होगी.

मेटावर्स से बने डिजिटल दुनिया को और अधिक विकसित बनाने के लिए मोबाइल कनेक्टिविटी को बेहतर करने की जरूरत होगी. इस की उम्मीद 5जी के आने के बाद की जा सकती है.

अब लोगों की जुबान पर चढ़ चुका ‘फेसबुक’ शब्द चंद दिनों का मेहमान रह गया है. उस की जगह आने वाला ग्रीक शब्द ‘मेटा’ और उस का मैथेमेटिकल चिह्न इनफिनिटी को जेहन में बिठाने में कितना समय लगेगा, यह तो वक्त ही बताएगा. जबकि भविष्य का इंटरनेट कहे जाने वाले मेटावर्स (वर्चुअल एनवायरनमेंट) के लिए मार्क जुकरबर्ग ने माहौल बना कर अपनी धूमिल होती छवि को सुधारने की पूरी तैयारी कर ली है.

अपने ‘वर्कप्लेस’ नामक वर्चुअल रियलिटी मीटिंग ऐप और सोशल स्पेस ‘होराइजन्स’ के विकास के लिए उन की 10 बिलियन डालर निवेश के साथ 10 हजार चुने हुए प्रतिभाशाली प्रोफैशनल को नियुक्त करने की योजना है.

उल्लेखनीय है कि फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग वीआर के क्षेत्र में शुरू से ही सक्रिय रहे हैं. उन्होंने अपने आक्युलस हेडसेट के लिए इस क्षेत्र में भारी निवेश भी किया है.

साल 2014 में आक्युलस नाम की कंपनी को 2 अरब डालर में खरीदा था. तभी से होराइजन नाम की एक वैसी डिजिटल दुनिया बनाने के लिए काम किया जा रहा है, जहां लोग वीआर तकनीक की मदद से एकदूसरे से संवाद कायम कर सकें.

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फेसबुक ने कर दी है तैयारी

इसी साल अगस्त में फेसबुक ने ‘होराइजन वर्करूम्स’ नाम का एक फीचर जारी किया था, जिस में लोग वीआर हेडसेट पहन कर वर्चुअल रूम में एकदूसरे के साथ मीटिंग कर सकते हैं. ऐसा करते हुए रूम्स में लोग अपने ही थ्रीडी वर्जन के रूप में नजर आते हैं.

फेसबुक ने इसी सिलसिले में ‘वर्कप्लेस’ और ‘होराइजन्स’ ऐप बनाने की तैयार की है. वर्कप्लेस में वर्चुअल रियलिटी मीट होगा, जबकि होराइजन्स में सोशल स्पेस को जगह मिलेगी. हालांकि वर्चुअल रियलिटी का एक और ऐप ‘वीआरचैट’ पूरी तरह से औनलाइन हैंगआउट चैटिंग के लिए बनाया गया है.

इन से केवल आसपास की दुनिया से जुड़ना या बातचीत करना ही संभव हो पाता है. इस से अलग फेसबुक की नजर में मेटावर्स के वर्कप्लेस और होराइजन्स से अलग किस्म की वैचारिकता के व्यवहारिकता का संतुलित आकार बनेगा.

साथ ही कंपनी मेटावर्स के जरिए इंटरनेट तकनीकों को अगली लहर की तैयारी की कोशिशों का हिस्सा बन जाएगी. कंपनी की मानें तो मेटावर्स में रचनात्मक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर एक नया आयाम विकसित कर सकती है.

फेसबुक ने मेटावर्स की तैयारी की घोषणा ऐसे समय में की है, जब कंपनी कई समस्याओं से जूझ रही है. उसे कई बार तकनीकी खामियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है.

हाल में ही कई घंटों तक उस की सेवाएं बंद रही हैं. साथ ही भारत समेत कई देशों में इस के बेकाबू होने और अनियंत्रित प्रभाव देने जैसे आरोपों से भी जूझना पड़ रहा है.

बहरहाल, कंपनी वीआर और एआर को अगली पीढ़ी के औनलाइन सोशल एक्सपीरिएंस के मूल रूप में देख रही है. उस के द्वारा एक मजबूत प्रोटेक्ट टीम बनाई गई है. साथ ही कंपनी अपने फेसबुक रियल्टी लैब्स पर अरबों डालर खर्च करेगी.

अनेक कंपनियां कर रही हैं तैयारियां

फेसबुक ने इस पर शुरुआत में करीब 75 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है. इस के अलावा यूरोपियन यूनियन में 10 हजार लोगों को नौकरियां भी दी जाएंगी. उधर साउथ कोरिया ने साल 2023 तक सियोल को पहला मेटावर्स शहर बनाने का ऐलान कर दिया है.

फेसबुक के अलावा दुनिया की कई कंपनियां मेटावर्स में उतरने में जुटी हैं. इस में सौफ्टवेयर, हार्डवेयर, इंटरफेस क्रिएशन, प्रोडक्ट और फाईनैंशियल सर्विस देने वाली कैटेगरी हैं.

गूगल, एप्पल, स्नैपचैट ओर एपिक गेम्स भी मेटावर्स पर काम कर रहे हैं. फेसबुक के बाद डिज्नी ने भी मेटावर्स बनाने का ऐलान कर दिया है.

फेसबुक कंपनी का कहना है कि वह इस प्रोजेक्ट को एक लौंग टर्म विजन के नजरिए से देख रही है. वह इस विजन को हकीकत में बदलने को ले कर प्रतिबद्ध है और अगले कई सालों तक इस के लिए निवेश करने की उम्मीद करती है. वैसे इस के नतीजे आने का लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक अगले 5 साल में अंजाम तक पहुंचा जा सकता है.

फेसबुक के अनुसार महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि मेटावर्स में किसी एक कंपनी का अधिकार नहीं होगा और यह सशक्त प्लेटफार्म के रूप में बना इंटरनेट सभी के लिए उपलब्ध होगा.

जैसा कि तकनीक के स्वरूप से ही स्पष्ट हो चुका है कि इस में वीआर, एआर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कंप्यूटिंग, विविध टौपिक के थ्रीडी वीडियोज, गेम्स के कंटेंट, इंटरनेट प्रदाता कंपनियां आदि के अतिरिक्त गजेट की व्यापकता के लिए अलगअलग कंपनियां शामिल होंगी.

मेटावर्स में आप को कोई ड्रैस पसंद आए तो आप उसे वर्चुअल पहन कर, छू कर देख सकते हैं. जब ड्रैस फिट आए तो और्डर कर सकते हैं. इसलिए कुछ नामी फैशन कंपनियां और फिटनेस कंपनियां भी इस से जुड़ने की तैयारी कर रही हैं.

उल्लेखनीय है कि हाल ही में पौप स्टार आर्यना ग्रांदे और रैपर ट्रैविस स्कौट वीडियो गेम्स की दुनिया में चर्चित फोर्टनाइट के जरिए अपना प्रदर्शन कर चुके हैं, जिसे लोगों से अपने घरों में बैठ कर देखा है. रियलिटी को वर्चुअल बना कर प्रस्तुत करने का यह एक अच्छा उदाहरण बन चुका है.

फेसबुक को उम्मीद है कि जैसेजैसे मेटावर्स का काम आगे बढ़ेगा, वैसेवैसे दूसरी टेक कंपनियां इस से जुड़ती चली जाएंगी. फिर भी मेटावर्स के विकास को ले कर उपजने वाले जो भी नकारात्मक सवाल खड़े हो सकते हैं, उस संदर्भ में कहा जा सकता है कि सफलता मिलने में कई साल लग सकते हैं.

फिर भी इस के लिए कई टेक कंपनियों के बीच लगने वाली होड़ से इनकार नहीं किया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में वीआर तकनीक की अच्छी गुणवत्ता वाले हेडसेट आ चुके हैं. हम ने 360 डिग्री फिल्मांकन वाले थ्रीडी वीडियो बनाने में दक्षता हासिल कर ली है.

एआई में भी जबरदस्त विकास हुआ है. सब से बड़ी बात यह है कि हर तबके के लोगों के बीच तेजी से औनलाइन कार्यशैली विकसित हो रही है. गेम की दुनिया में हर रोज कुछ न कुछ नया हो रहा है. पिछले साल आए आक्युलस क्वेस्ट2 वीआर गेमिंग हेडसेट को खूब पसंद किया गया है.

मेटावर्स के विकसित हो जाने तक भारत में भी इंटरनेट से जुड़ी तमाम तकनीकी समस्याएं दूर हो जाएंगी और इस के प्रोडक्ट भारतीय उपभोक्ताओं को ध्यान में रखते हुए बाजार में उतारे जाएंगे.

साथ ही सोशल मीडिया, औनलाइन एजूकेशन और रिमोट हेल्थ सेक्टर से मिलने वाली सर्विस के नजरिए से भी इस की उपयोगिता काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगी.

उठते सवाल और आशंकाएं

मेटावर्स की दुनिया में सब से बड़ा सवाल तो डाटा लीक होने का उठता है. फेसबुक जैसे ऐप्स के पास यूजर का काफी डेटा जमा हो जाता है.

कहा तो यही जाता है कि इस का कोई गलत इस्तेमाल नहीं होगा लेकिन मेटावर्स में बहुत ज्यादा डेटा जमा होने के आसार हैं. यहां भी दावा किया जा रहा है कि डेटा लीक नहीं हो सकेगा. फिर भी इसे ले कर चिंताएं जताई जाने लगी हैं.

अगर डेटा लीक न भी हो तो भी लोगों का जो डेटा जमा होगा, उस का क्या किया जाएगा? क्या कोई एक कंपनी उस का मालिकाना हक रखेगी या यूजर के पास यह हक होगा कि अपने डेटा को लौक कर सके.

लोगों की प्राइवेसी में किसी दूसरे का दखल रोका जा सकेगा या नहीं, यह भी देखना होगा. वैसे तो इंटरनेट पर किसी को भी ब्लौक करने का औप्शन होता है लेकिन मेटावर्स में नई तकनीकी आएंगी तो क्या किसी को रोका जा सकेगा, इस पर भी शक जताया जा रहा है.

यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा है कि मेटावर्स में किसी को ट्रोल किया जाए या कोई क्राइम होगा तो कानून उस से कैसे निपटेगा?

सवाल यह भी उठ रहा है कि मेटावर्स की उस काल्पनिक दुनिया का कंट्रोल किस के हाथ में होगा? अब तक दुनिया के तमाम देशों में डिजिटल करेंसी को मान्यता नहीं मिली है, जबकि मेटावर्स में डिजिटल करेंसी से शौपिंग होगी.

ऐसे में धोखाधड़ी होगी तो कहां गुहार लगाई जाएगी. पूरी मेटावर्स इकानौमी आखिर काम कैसे करेगी? इसी तरह के अनेक सवाल लोगों के जेहन में उठ रहे हैं. इस तरह की समस्याओं से निपटने के संबंध में पहले ही विचार करना जरूरी होगा.

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