Writer- धीरज कुमार

रागिनी का पूजापाठ वगैरह में पूरा विश्वास है, इसलिए वह धार्मिक कामों में ज्यादा दिलचस्पी लेती है, क्योंकि वह अपने मायके से विरासत में यही सब सीख कर आई है.

रागिनी के मातापिता मायके में पूजापाठ पर ज्यादा जोर देते थे, इसलिए रागिनी अपने पति को भी धार्मिक नियमकायदे के मुताबिक चलने के लिए बढ़ावा देती रहती है, जबकि उस का पति विकास नई सोच का है. वह अंधविश्वासों पर जरा भी भरोसा नहीं करता है. वह पूजापाठ को ढकोसला सम झता है.

विकास रागिनी को कई बार सम झाने की कोशिश कर चुका है कि इस तरह के पूजापाठ से कुछ नहीं होता है, बल्कि समय और पैसे की बरबादी होती है. लिहाजा, अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई और अपनी तरक्की पर ध्यान दो, लेकिन रागिनी इन बातों पर गुस्सा होने लगती है. विकास के लाख सम झाने पर भी उस में कोई बदलाव नहीं आया है.

यही वजह है कि रागिनी पूजापाठ के नाम पर फालतू में समय व पैसे खर्च करती है. इस से घर का महीनेभर का बजट गड़बड़ा जाता है, जबकि विकास किराए के मकान में रहता है.

न्यूक्लियर फैमिली होने के चलते विकास अपनी समस्या को किसी के सामने रख भी नहीं पाता है. रागिनी घर के एक कोने को मंदिर सा बना चुकी है, जहां कई फोटो और मूर्तियां लगी हुई हैं और रागिनी वहां घंटों बैठ कर पूजापाठ करती है.

कभीकभी विकास इन बातों से चिढ़ जाता है. इन सब बातों को ले कर उन दोनों में कई बार  झगड़ा भी हो चुका है और अब इस का असर उस के बच्चों पर भी पड़ रहा है.

विकास उस समय दंग रह गया, जब उस का 5वीं जमात में पढ़ रहा बेटा इम्तिहान देने जाने के दौरान पूजा वाले कमरे से यह प्रार्थना कर के निकला कि हे भगवान, इम्तिहान में पास कर दीजिए.

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पूछने पर उस का कहना था कि पूजापाठ करने से अच्छे नंबर आएंगे. उस की मां ने यह कभी नहीं बताया कि बेटा पूजापाठ करने से अच्छे नंबर नहीं आते हैं, बल्कि अच्छी तरह से पढ़ाईलिखाई करने से अच्छे नंबर आते हैं.

विकास का कहना है, ‘‘जिन घरों में पूजापाठ होता रहेगा, उन घरों के बच्चे विज्ञान की बातें कहां से सीख पाएंगे? ऐसे घर के बच्चे डाक्टरइंजीनियर कहां से बन पाएंगे? घर के माहौल का असर बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर पड़ता है.’’

डेहरी औन सोन की रहने वाली कनिका सिंह एक धार्मिक स्कूल की शिक्षिका हैं. वे घर में सुबहशाम टैलीविजन पर धार्मिक प्रवचन सुना करती थीं. उन का बेटा पढ़ने में काफी तेज था. वह 10वीं जमात में स्कूल में सब से ज्यादा अंकों से पास हुआ था.

कनिका सिंह अपने बेटे को इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला दिलवाना चाह रही थीं, तभी उन का बेटा एक दिन घर से चुपके से निकल कर तथाकथित बाबा के आश्रम में रहने के लिए भाग गया.

हालांकि उन के बेटे को वहां ऐंट्री नहीं मिल पाई और कुछ दिन में निराश हो कर वह वापस घर आ गया था. पूछने पर उस ने अपने शिक्षकों को बताया कि घर में ज्यादातर समय धार्मिक बातें सुन कर उस की सोच बदल गई थी. इसलिए वह धार्मिक संस्थान में रह कर धर्म के बारे में जानना चाहता था.

मनोज उपाध्याय पेशे से एक राष्ट्रीय अखबार के पत्रकार हैं. उन की पत्नी शुगर और ब्लड प्रैशर की मरीज हैं. डाक्टर उन की पत्नी को हिदायत दे चुके हैं कि समय से खाना खाइए और और सुबह खुली हवा में टहलिए. पूजापाठ और उपवास से जरा परहेज रखिएगा. लेकिन वे महीने में 1-2 बार व्रत जरूर रखती हैं.

मनोज उपाध्याय की पत्नी का कहना है, ‘‘व्रत करने से बीमारी नहीं होती है. पूजापाठ करने से ऊपर वाला खुश होता है. इस से बीमारी नहीं होगी, बल्कि उस की मेहरबानी से बीमारी ठीक होती है.’’

डाक्टर के मुताबिक, उन की बीमारी की अहम वजह बहुत ज्यादा उपवास करना और पूजापाठ के चलते देर से  नाश्ता और भोजन लेना है.

ऐसी औरतों को इस तरह की सीख बचपन से ही घरपरिवार में मिल चुकी होती है. लाख सम झाने पर भी वे सब बातों को सिरे से नकार देती हैं.

दरअसल, यह सब ब्राह्मणों, पंडितों, मौलवियों द्वारा दी गई सीख के चलते होता है. समाज के कुछ लोग समाज में अंधविश्वास और ढोंग फैला कर अपना कारोबार सदियों से चला रहे हैं.

इस सब के बावजूद आज भी लोग सम झने के लिए तैयार नहीं हैं, खासकर कम पढ़ेलिखे और नासम झ परिवारों में आज भी उन्हीं बातों को दोहराया जा रहा है, जो पोंगापंडित चाह रहे हैं. तभी आज भी उन का गोरखधंधा बेरोकटोक चल रहा है और अंधविश्वास की बेल दिनोंदिन फैलती जा रही है और वट वृक्ष का रूप ले रही है.

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लिहाजा, जरूरी है कि पतिपत्नी आपसी तालमेल बना कर अंधविश्वास और ढोंग का पूरी तरह बहिष्कार करें, वरना इस का असर आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ता रहेगा.

अब यह भी जरूरी हो गया है कि धर्मकर्म की बातों को विज्ञान की कसौटी पर भी कस कर देखा जाए. जैसे इस बार कोरोना महामारी फैली, तो क्या पूजापाठ करने से यह महामारी रुक गई? नहीं. जब तक कि वैक्सीन नहीं बनी और लोगों को लगनी शुरू नहीं हुई, तब तक यह बीमारी बढ़ रही थी.

अगर आम आदमी पूजापाठ पर विश्वास कर इस बीमारी को खत्म होने का इंतजार करता रहता, तो शायद यह बीमारी कभी भी खत्म नहीं होती और आम लोग वैसे ही मरते रहते, जैसे कोरोना महामारी के दौरान मर रहे थे.

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