DCP किरण बेदी! के समय भी यही हाल था जो आज दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच है

नई दिल्ली: तीस हजारी कोर्ट का तमाशा पूरी दुनिया ने देखा. लोगों ने देखा कि कैसे कानून के रखवाले और संविधान के रक्षक दोनों कैसे जूझ रहे हैं. हालांकि आम आदमी को लूटने में दोनों ही माहिर होते हैं. हमने तो एक कहावत भी सुनी थी कि काले, सफेद, और खाकी वालों के दर्शन न हीं हो तो बेहतर है.

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले भी दिल्ली में वकील और पुलिस आमने-सामने आ चुके हैं लेकिन तब दिल्ली में डीसीपी थीं किरण बेदी. वही किरण बेदी जिन्हें ‘क्रेन बेदी’ भी कहा जाता है. दिल्ली के अलावा चेन्नई में भी वकील और पुलिस आमने-सामने आई थी.

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तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों की बीच हुई हिंसक झड़प के बाद अब पुलिसकर्मी विरोध प्रदर्शन पर उतर आए हैं. कमिश्नर की अपील के बाद भी मंगलवार को पुलिसकर्मियों ने पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की.

दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के जवानों ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक (Amulya Patnaik IPS) के सामने ‘हमारा सीपी(कमिश्नर) कैसा हो, किरण बेदी (Kiran Bedi) जैसा हो’ के नारे लगे. किरण बेदी ने ऐसा क्या किया जिसके कारण आज पुलिस कमिश्नर के सामने उनके जैसा कमिश्नर के नारे लगने लगे.

यह घटना 17 फरवरी 1988 की है. इस दिन डीसीपी किरण बेदी के दफ्तर में वकील पहुंचे हुए थे. इस बीच किसी बात पर बहस हो गई जो झड़प में बदल गई, इस दौरान बेकाबू भीड़ के कारण हालात ऐसे हो गए कि किरण बेदी को लाठीचार्ज कराना पड़ा. इस असर यह हुआ कि वकीलों ने दिल्ली की सभी अदालतों को बंद करा दिया. हालांकि इसके बाद भी एक न्यायाधीश ऐसे थे, जिन्होंने अपनी अदालत को खोले रखा और फैसले सुनाए.

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बवाल वाले दिन 17 फरवरी 1988 को याद करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस.एन. ढींगरा ने  बताया था कि उस दिन डीसीपी दफ्तर में वकीलों की वजह से हालात बेकाबू हो गए थे, ऐसे में नौबत लाठीचार्ज तक आ पहुंची थी. उन्होंने कहा कि जब तक हालात बेकाबू न हो कोई पुलिस अधिकारी लाठीचार्ज नहीं कराता. आखिर वह बैठे-बिठाए मुसीबत क्यों मोल लेना चाहेगा.

अब इस लड़ाई में दिल्ली पुलिस रिटायर्ड गजटेड औफिसर एसोसियेशन ने भी बुधवार को छलांग लगा दी. इसकी पुष्टि तब हुई जब एसोसियेशन के अध्यक्ष पूर्व आईपीएस और प्रवर्तन निदेशालय सेवा-निवृत्त निदेशक करनल सिंह ने दिल्ली के उप-राज्यपाल और पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा. पत्र में जिम्मेदारी वाले पदों पर मौजूद दोनो ही शख्शियतों से आग्रह किया गया है कि अब तक हाईकोर्ट में जो कुछ हुआ है दिल्ली पुलिस उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाने का विचार गंभीरता से करे.

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सेक्स स्कैंडल में फंसे नेता और संत

इस कड़ी में नया नाम मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता, राम मंदिर के आंदोलनकारी, केंद्र में गृह राज्यमंत्री और सांसद रह चुके स्वामी चिन्मयानंद का है.

इन्हीं स्वामी चिन्मयानंद के ऊपर यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाया गया है. ऐसे आरोप लगने वाले संतों में आसाराम बापू, नित्यानंद, राम रहीम के साथसाथ नेताओं में उत्तर प्रदेश से भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर, समाजवादी पार्टी में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति, बहुजन समाज पार्टी के नेता पुरुषोत्तम द्विवेदी के अलावा अमरमणि त्रिपाठी और आनंदसेन जैसे कई नाम शामिल हैं.

इन सभी संतों और नेताओं में स्वामी चिन्मयानंद का नाम सब से चौंकाने वाला है क्योंकि वे नेता और संत दोनों रहे हैं और राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहे हैं.

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शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम को मोक्ष मिलने की जगह बताया जाता है. शाहजहांपुर में यह आश्रम धार्मिक आस्था का एक बड़ा केंद्र माना जाता है. यह आश्रम शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर और बसअड्डे से तकरीबन 2 किलोमीटर दूर है.

शाहजहांपुरबरेली हाईवे पर मुमुक्षु आश्रम तकरीबन 21 एकड़ जमीन पर बना है. इस के परिसर में ही इंटर कालेज से ले कर डिगरी कालेज तक 5 शिक्षण  संस्थान चलते हैं.

मुमुक्षु आश्रम का दायरा शाहजहांपुर के बाहर दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश तक फैला है.

मुमुक्षु आश्रम की ताकत का ही फायदा ले कर साल 1985 के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के साथसाथ अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई थी. वे 3 बार सांसद और एक बार केंद्र सरकार में गृह राज्यमंत्री बने. दूसरों को मोक्ष देने का दावा करने वाला मुमुक्षु आश्रम स्वामी चिन्मयानंद को मोक्ष की जगह जेल के पीछे भेजने का जरीया बन गया.

स्वामी सुखदेवानंद ला कालेज में कानून की पढ़ाई करने वाली 24 साल की एक लड़की ने जब मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाया, तो पूरा देश सन्न रह गया. लेकिन बाद में स्वामी चिन्मयानंद ने यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भिजवा दिया.

नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते वीडियो के सामने आने पर खुद स्वामी चिन्मयानंद ने जनता से कहा था कि वे अपनी इस हरकत पर शर्मिंदा हैं.

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स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वे राम मंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में शामिल थे, जो मंदिर बनवाने की राजनीति कर रहे थे. भाजपा ने स्वामी चिन्मयानंद को 3 बार लोकसभा का टिकट दे कर सांसद बनाया और अटल सरकार में मंत्री बनने का मौका भी दिया.

स्वामी चिन्मयानंद उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के परसपुर क्षेत्र के त्योरासी गांव में साल 1947 में जनमे थे. उन का असली नाम कृष्णपाल सिंह है. साल 1967 में 20 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद वे हरिद्वार पहुंच गए. वहां उन का नाम स्वामी चिन्मयानंद हो गया.

तथाकथित संत होने के साथसाथ स्वामी चिन्मयानंद ने जेपी आंदोलन में भाग लिया. इमर्जैंसी में वे जेल गए. जनता पार्टी की सरकार बनी तो चिन्मयानंद शाहजहांपुर आ गए और स्वामी सुखदेवानंद के साथ रहने लगे.

स्वामी सुखदेवानंद की भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी से जानपहचान थी. यहीं चिन्मयानंद की मुलाकात भी उन से होती थी. राजनीति में दिलचस्पी रखने के चलते चिन्मयानंद उन के बेहद करीब हो गए.

‘सुखदेवानंद आश्रम’ की कुरसी पर चिन्मयानंद के बैठने के बाद वे उत्तर प्रदेश में प्रमुख संत नेता के रूप में उभरने लगे. यहीं से वे विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में भी आ गए.

यही वह समय था, जब विश्व हिंदू परिषद उत्तर प्रदेश में राम मंदिर को ले कर आंदोलन चला रही थी. उस के लिए मठ, मंदिर और आश्रम में रहने वाले संत मठाधीश बहुत खास हो गए थे.

विश्व हिंदू परिषद के अघ्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने उत्तर प्रदेश में जिन आश्रम के लोगों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा, उन में गोरखपुर जिले के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ और शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद और अयोध्या के महंत परमहंस दास प्रमुख थे.

विश्व हिंदू परिषद ने जब ‘राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति’ का गठन किया तो स्वामी चिन्मयानंद को उस का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया.

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बचाव के लिए वीडियो

पीडि़त लड़की ला कालेज में एलएलएम यानी मास्टर औफ ला की पढ़ाई कर रही थी. वह यहीं होस्टल में रहती थी. होस्टल में रहने के दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद की उस पर निगाह पड़ी. पढ़ाई के साथसाथ उसे कालेज में ही नौकरी भी दे दी गई थी.

लड़की सामान्य कदकाठी और गोरे रंग की थी. कालेज में पढ़ने वाली दूसरी लड़कियों की तरह उसे भी स्टाइल के साथ सजसंवर कर रहने की आदत थी. स्वामी चिन्मयानंद ने कई बार उस के जन्मदिन की पार्टी में भी हिस्सेदारी की थी.

लड़की की स्वामी चिन्मयानंद के करीबी होने की अपनी अलग कहानी है. पीडि़त लड़की का कहना है कि उसे योजना बना कर फंसाया गया. वह कहती है कि जब वह होस्टल में रहने आई तो एक दिन नहाते समय चोरी से उस का वीडियो बना लिया गया. इस के बाद उस वीडियो को वायरल कर के बदनाम करने की धमकी दे कर स्वामी चिन्मयानंद ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बलात्कार की भी वीडियो बनाई गई. इस के बाद उस के शोषण का सिलसिला चल निकला.

स्वामी चिन्मयानंद को मसाज कराने का बेहद शौक था. मसाज के दौरान ही वे कई बार सेक्स भी करते थे. अपने शोषण से परेशान लड़की ने अब इस तरह के वीडियो को बनाने का काम शुरू किया.

पीडि़त लड़की ने स्वामी चिन्मयानंद के तमाम वीडियो पुलिस को सौंपे हैं. इन में से 2 वीडियो वायरल भी हो गए. इन वीडियो में चिन्मयानंद नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते हुए देखे जाते हैं. इस में वे लड़की से बात कर रहे हैं. स्वामी खुद पूरी तरह से नग्नावस्था में हैं. लड़की से संबंध की बातें करते भी सुने जाते हैं. उन की आपसी बातचीत से ऐसा लग रहा है, जैसे उन दोनों के बीच यह सामान्य घटना है.

पीडि़त लड़की ने मसाज वाले ये दोनों वीडियो अपने चश्मे में लगे खुफिया कैमरे से तैयार किए थे. खुद को फ्रेम में रखने के लिए वह अपना चश्मा मेज पर उतार कर रखती थी, जिस से स्वामी चिन्मयानंद के साथ वह भी कैमरे में दिख सके. यह चश्मा लड़की ने औनलाइन शौपिंग से मंगवाया था.

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आरोप में घिरी सरकार

स्वामी चिन्मयानंद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच गहरा रिश्ता है. 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर बनवाने के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम किया था. दोनों ने मिल कर ‘राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति’ बनाई थी. ऐसे में उन के बीच एक करीबी रिश्ता था.

अटल सरकार में मंत्री पद से हटने के बाद ही स्वामी चिन्मयानंद का राजनीतिक रसूख हाशिए पर सिमट गया था. साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो स्वामी चिन्मयानंद का रसूख काफी बढ़ गया था. मुमुक्षु आश्रम का दरबार सत्ता का एक केंद्र बन गया था.

स्वामी चिन्मयानंद पर शोषण और बलात्कार का आरोप लगने के बाद जिस तरह से पीडि़त लड़की के खिलाफ रंगदारी मांगने और उस को पकड़

कर जेल में भेजा गया. उस के बाद विरोधी दल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ स्वामी चिन्मयानंद को बचाने के आरोप लगाने लगे.

समाजवादी पार्टी की नेता रिचा सिंह एक प्रतिनिधिमंडल के साथ शाहजहांपुर जेल में रंगदारी मांगने के आरोप में बंद आरोपी लड़की से मिलने गईं. जेल प्रशासन ने उन को मिलने नहीं दिया. इस बात के विरोध में सपा नेता जेल के गेट पर ही धरना देने लगे.

प्रतिनिधिमंडल में सपा नेता रिचा सिंह के साथ साबिया मोहानी, नाहिद लारी खान, निधि यादव, खुशनुमा, रेखा उपाध्याय प्रमुख थीं. सपा नेता पीडि़त लड़की के परिवार से मिले. परिवार के लोगों का दर्द सुन कर सपा नेताओं ने आरोप लगाया कि एक तरफ बलात्कार व शोषण के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद को इलाज के नाम पर अस्पताल में रखा गया, वहीं रंगदारी के फर्जी मुकदमे में लड़की को जेल भेज दिया गया.

समाजवादी पार्टी ही नहीं, ‘एडवा’ की नेताओं ने भी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गांधी प्रतिमा के पास धरना दिया.

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‘एडवा’ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली ने कहा कि पीडि़ता के बयान में बलात्कार का आरोप लगाने के बाद भी केस को कमजोर करने के लिए स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ जांच करने वाली एसआईटी ने बलात्कार का मुकदमा न दर्ज कर धारा 376 सी का मुकदमा लिखा है.

सुभाषिनी अली ने कहा कि सरकार किस तरह से स्वामी चिन्मयानंद को बचाने का काम कर रही है, यह दोनों मुदकमों में सम झा जा सकता है. कानून कहता है कि 7 साल से कम सजा के मामले में गिरफ्तारी जरूरी नहीं होती. रंगदारी के मामले में 3 साल की सजा का प्रावधान है. इस के बाद भी बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की को जेल भेज दिया गया.

‘एडवा’ नेताओं में सीमा कटियार, सुमन सिंह, सीमा राणा, नीलम तिवारी और सुधा सिंह शामिल रहीं.

कांग्रेस ने भी लखनऊ से शाहजहांपुर तक ‘न्याय यात्रा’ का आयोजन किया, पर सरकार ने कांग्रेस नेताओं को ‘न्याय यात्रा’ नहीं निकालने दी.

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कांग्रेस में खींचतान

कांग्रेस के कई जिलाध्यक्ष शनिवार, 12 अक्तूबर को खुल कर दिल्ली के प्रभारी पीसी चाको के समर्थन में आ गए. इन जिलाध्यक्षों ने उन नेताओं के खिलाफ ऐक्शन की मांग की है, जिन्होंने पीसी चाको को पद से हटाने की मांग की थी.

इस से पहले शुक्रवार, 11 अक्तूबर को शीला दीक्षित की कैबिनेट में रहे मंगतराम सिंघल, रमाकांत गोस्वामी, किरण वालिया, पूर्व पार्षद जितेंद्र कोचर और रोहित मनचंदा ने पीसी चाको को हटाने की मांग की थी. यह खबर भी आई थी कि शीला दीक्षित के बेटे और सांसद रह चुके संदीप दीक्षित ने शीला दीक्षित की मौत के लिए पीसी चाको को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हीं को चिट्ठी लिखी थी.

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अखिलेश दिखे रंग में

लखनऊ. काफी दिनों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रहे और अपनों में उलझे अखिलेश यादव ने हाल  में सरकारी बंगले में तथाकथित तोड़फोड़ को ले कर चल रही खबरों को उन्हें बदनाम करने की सरकारी साजिश करार देते हुए 13 अक्तूबर को कहा कि हाल के उपचुनावों में मिली हार और विपक्षी दलों के गठबंधन से परेशान भाजपा ने यह हरकत की है.

अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘सरकार मुझे बताए कि मैं कौन सी सरकारी चीज अपने साथ ले गया. मैं ने जो चीजें अपने पैसे से लगवाई थीं, वे मैं ले गया… भाजपा यह इसलिए कर रही है क्योंकि वह गोरखपुर और फूलपुर की हार स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वह यह समझ ले कि इस बेइज्जती के लिए जनता उसे सबक सिखाएगी.’’

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मोदी को घेरा

चेन्नई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समुद्र किनारे कचरा साफ करने वाले एक वीडियो पर रविवार, 13 अक्तूबर को कांग्रेस ने सवाल उठाया कि यहां उन के दौरे से पहले पूरे इलाके को साफ कर दिया था, तो क्या यह ‘नाटक’ था?

दरअसल, नरेंद्र मोदी 11 और 12 अक्तूबर को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अपनी दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्त्ता के लिए चेन्नई से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर तटीय शहर मामल्लापुरम आए थे. 12 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन की सुबह की सैर के दौरान समुद्र तट से प्लास्टिक और दूसरी तरह का कूड़ा बीनते देखा गया था. इस शूट में बहुत से कैमरामैन थे और शायद पहले सुरक्षा वालों ने जांचा था कि कहीं कोई बम तो नहीं है. उन सब ने सफाई की थी, ऐसा समाचार सरकार ने जारी नहीं किया.

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मंत्री पर फेंकी स्याही

पटना. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे 15 अक्तूबर को पटना मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल में डेंगू पीडि़तों का हाल जानने के लिए पहुंचे थे. इसी दौरान एक शख्स ने अचानक उन के ऊपर स्याही फेंक दी और मौके से फरार हो गया.

इस बारे में अश्विनी चौबे ने कहा, ‘‘सारे मीडिया पर स्याही फेंकी गई, उस के छींटे मुझे लगे. यह स्याही जनता पर, लोकतंत्र पर और लोकतंत्र के स्तंभ पर फेंकी गई है. ऐसे लोग निंदनीय हैं, उन की कड़ी बुराई होनी चाहिए.’’

बता दें कि अश्विनी चौबे कई विवादित बयानों को ले कर चर्चा में रहे हैं. पटना में भारी बारिश को उन्होंने हथिया नक्षत्र से जोड़ा था. इस के साथ ही एक पुलिस वाले को भी उन्होंने वरदी उतरवाने की धमकी दी थी.

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राहुल का बयान

सूरत. कांग्रेस नेता राहुल गांधी मानहानि के एक मामले में 10 अक्तूबर को सूरत की मजिस्ट्रेट अदालत में पेश हुए और उन्होंने कहा कि आपराधिक मानहानि के इस मामले में वे कुसूरवार नहीं हैं. यह मामला राहुल गांधी की तथाकथित टिप्पणी ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है’ से जुड़ा है.

सूरत (पश्चिम) से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ यह मामला दर्ज करवाया था. अदालत ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या वे इन आरोपों को स्वीकार करते हैं, तो उन्होंने कहा कि वे बेकुसूर हैं.

याद रहे कि कर्नाटक में 13 अप्रैल को कोलार में अपनी एक प्रचार रैली के दौरान राहुल ने कथित तौर पर कहा था, ‘‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी… आखिर इन सभी का उपनाम मोदी क्यों है? सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है?’’

यह मुकदमा किसी आरोपित मोदी ने दायर नहीं किया और पहली नजर में मामला बनता ही नहीं है.

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उबल गए कमलनाथ

झाबुआ. मध्य प्रदेश? के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 9 अक्तूबर को राज्य की झाबुआ विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के समर्थन में हुए एक रोड शो में हिस्सा लिया था और उस के बाद एक जनसभा को भी संबोधित किया था.

तब कमलनाथ ने कहा था, ‘‘भाजपा ने जो काम 15 सालों में नहीं किए, वे काम कांग्रेस की सरकार 15 महीने में कर दिखाएगी… भाजपा का काम सिर्फ झूठ बोलना है. इन का तो मुंह बहुत चलता है. सिर्फ बोलते जाएंगे, गुमराह करते जाएंगे… कहेंगे कि हिंदू धर्म खतरे में है और आगे कुछ नहीं बताएंगे. यह इन की ध्यान मोड़ने की राजनीति है. वे सचाई से आप का ध्यान मोड़ना चाहते हैं.’’

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पूनिया का प्रलाप

जयपुर. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने ‘भाजपा अल्पसंख्यक मोरचा’ की तरफ से देश के राष्ट्रपति रह चुके डा. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कांग्रेस को कोसते हुए कहा कि मुसलिमों को ले कर कांग्रेस का नजरिया हमेशा सिर्फ वोट बैंक ही रहा है, जबकि भाजपा ‘सब का साथ, सब का विकास’ पर यकीन करती है.

सतीश पूनिया यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने 55 सालों तक लूट और झूठ की ही राजनीति की है, जबकि भाजपा ने अटल बिहारी वापजेयी के काल से ले कर मोदी सरकार-2 तक अल्पसंख्यकों की तरक्की के लिए अनेक काम कर उन का भरोसा मजबूत किया है.

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नड्डा का नया शिगूफा

शिमला. भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद जगत प्रकाश नड्डा 9 अक्तूबर को पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के गृह जिले मंडी में गए थे. वहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यह प्यार और अपनापन उन्हें ताकत देता है. अमित शाह की अगुआई में भाजपा भारत की सब से बड़ी पार्टी बनी है और अब वे यह तय करेंगे कि भाजपा दुनिया की सब से बेहतरीन पार्टी बने. पार्टी के पास नए भारत का नजरिया है और वह हिम्मत भरे फैसले लेने से नहीं डरती.

दामोदर राउत का इस्तीफा

भुवनेश्वर. भाजपा के एक बड़े कद के नेता दामोदर राउत ने पार्टी में अपनी अनदेखी के चलते 16 अक्तूबर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वे इसी साल मार्च महीने में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) से निकाले जाने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे. बीजापुर उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों में उन का नाम शामिल नहीं किया गया था, इस बात से वे बड़े दुखी थे.

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बीजापुर उपचुनाव से पहले विधायक रह चुके अशोक कुमार पाणिग्रही भी भाजपा छोड़ चुके थे.

पानी पानी नीतीश, आग लगाती भाजपा

इस वजह से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में काफी अजीबोगरीब हालत पैदा हो गई है. अगले साल बिहार विधानसभा का चुनाव है और नीतीश कुमार पर हमला कर भाजपाई नए राजनीतिक समीकरण गढ़ने की ओर इशारा कर रहे हैं.

भाजपा के अंदरखाने की मानें तो भाजपा आलाकमान इस बार नीतीश कुमार की बैसाखी के बगैर अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का माहौल बना रहा है और इस काम के लिए गिरिराज सिंह जैसे मुंहफट नेताओं को आगे कर रखा है.

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ऐसे में नीतीश कुमार के सामने बड़े अजीब हालात पैदा हो गए हैं. अगर भाजपा उन से दामन छुड़ा लेती है, तो उन के सामने दूसरा सियासी विकल्प क्या होगा? क्या वे दोबारा लालू प्रसाद यादव की लालटेन थामेंगे? कांग्रेस की हालत ऐसी नहीं है कि उस से हाथ मिला कर जद (यू) को कोई फायदा हो सकेगा. हमेशा किसी न किसी के कंधे का सहारा ले कर 15 साल तक सरकार में बने रहने वाले नीतीश कुमार क्या अकेले विधानसभा चुनाव में उतरने की हिम्मत दिखा पाएंगे?

नीतीश कुमार की इसी मजबूरी का फायदा भारतीय जनता पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में उठाना चाहती है. कई मौकों पर कई भाजपा नेता कह चुके

हैं कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग के मुखिया को बदलने की जरूरत है. इस बार भाजपा के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए. इस से जद (यू) के अंदर उबाल पैदा हो गया था.

हालांकि भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यह कह कर मामले को ठंडा कर दिया था कि जब कैप्टन ही अच्छी तरह से कप्तानी कर रहा हो और चौकेछक्के लगा रहा हो तो कैप्टन बदलने की जरूरत नहीं होती है.

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6 अक्तूबर, 2019 को भाजपा की राजनीति कुछ दिलचस्प अंदाज में नजर आई. कुलमिला कर हालत ‘नीतीश से मुहब्बत, नीतीश से ही लड़ाई’ वाली रही. बारिश के पानी में पटना के डूबने के मसले पर भाजपा और जद (यू) के कई नेताओं के बीच जबानी जंग तेज होती गई थी.

एक ओर जहां भाजपा के नेता पटना को डूबने से बचाने के मामले में नीतीश कुमार को पूरी तरह से नाकाम बता रहे थे, वहीं दूसरी ओर ऐसे में एक बार फिर सुशील कुमार मोदी ढाल ले कर नीतीश कुमार के बचाव में उतर पड़े.

उन्होंने आपदा से निबटने के लिए नीतीश कुमार की जम कर तारीफ की और उन के दोबारा जद (यू) अध्यक्ष बनने पर बधाई भी दी.

वहीं भाजपा के कुछ नेता दबी जबान में कहते हैं कि सुशील कुमार मोदी 3 दिनों तक खुद ही राजेंद्र नगर वाले अपने घर में 7-8 फुट से ज्यादा पानी में फंसे रहे. नीतीश कुमार ने उन की कोई खोजखबर तक नहीं ली.

जब भाजपा के कुछ नेताओं ने सुशील कुमार मोदी को ले कर हल्ला मचाया, तब पटना के जिलाधीश लावलश्कर के साथ ट्रैक्टर और जेसीबी ले कर मोदी के घर पहुंचे और डिप्टी सीएम का रैस्क्यू आपरेशन किया.

जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि भाजपा के कुछ नेता मुख्यमंत्री पर राष्ट्रीय जनता दल से ज्यादा तीखा हमला कर रहे हैं. हमारे घटक दल ही विरोधी दल की तरह काम कर रहे हैं. इस से सरकार और गठबंधन दोनों की फजीहत हो रही है.

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मुंबई महानगरपालिका का बजट 70,000 करोड़ रुपए का है और हर साल बारिश के मौसम में पानी जमा होता है. चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलुरु और मध्य प्रदेश में भी भारी पानी जमा हुआ. आपदा के इस माहौल में साथ मिल कर काम करने के बजाय कुछ भाजपा नेता बयानबाजी करने में लगे रहे.

गौरतलब है कि पटना नगरनिगम का इलाका 109 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस की आबादी 17 लाख है. नगरनिगम का सालाना बजट 792 करोड़ रुपए का है और 75 वार्ड हैं.

बारिश का पानी जमा होने को ले कर सत्ताधारी दलों के नेता आपस में उलझे रहे और सचाई यह सामने आई कि पटना के सारे नाले जाम पड़े थे और पटना नगरनिगम नालों के नक्शे की खोज में लगा हुआ था. नालों का नक्शा ही निगम को नहीं मिला, जिस से सफाई को ले कर अफरातफरी का माहौल बना रहा और जनता गले तक पानी में डूबती रही.

दरअसल, पटना नगरनिगम के नालों को बनाने का जिम्मा किसी एक एजेंसी के पास नहीं है. शहरी विकास विभाग, बुडको, नगरनिगम, राज्य जल पर्षद और सांसदविधायक फंड से यह काम कराया जाता रहा है. जिसे जितने का ठेका मिला, उसे बना कर चलता बना. नगरनिगम ने भी उस से नालों की पूरी जानकारी ले कर रिकौर्ड में नहीं रखा.

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भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के नीतीश कुमार पर हमलावर होते ही जद (यू) के कई नेता उन पर तीर दर तीर चलाने लगे. जद (यू) के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि गिरिराज सिंह डीरेल हो गए हैं. वे नीतीश कुमार के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं. अगर जद (यू) नेताओं का मुंह खुल गया, तो गिरिराज सिंह पानीपानी हो जाएंगे.

भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी कहते हैं कि गिरिराज सिंह का राजनीतिक आचरण कभी ठीक नहीं रहा है और वे अंटशंट बयान देने के आदी हैं. उन्हें कोई सीरियसली लेता भी नहीं है.

गिरिराज सिंह कहते हैं कि पटना एक हफ्ते तक पानी में डूबा रहा और नीतीश कुमार के अफसर भाजपा नेताओं का फोन नहीं उठाते थे. पटना के जिलाधीश तक ने फोन रिसीव नहीं किया और न ही कौल बैक किया. इस से यह साफ है कि अफसरों को मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि किस का फोन उठाना?है, किस का नहीं. ताली सरदार को मिली है तो गाली भी सरदार को ही मिलेगी, इस बात को नीतीश कुमार को नहीं भूलना चाहिए.

शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि गिरिराज सिंह के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. उन की चिंता है कि जद (यू) के साथ भाजपा भी सरकार में है. ऐसे में भाजपा को भी जनता के सवालों का जवाब देना होगा.

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गिरिराज सिंह से पूछा गया था कि नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से सत्ता में हैं, तो क्या जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? तो उन का जवाब था कि बिलकुल लेनी चाहिए. इसी बात का बतंगड़ बना दिया गया है और कहा जा रहा है कि राजग टूटने के कगार पर है.

सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार राजग में खींचतान की बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि बिहार में कुदरती आपदा आई है, ऐसे में राजनीतिक आपदा का कयास लगाना बेमानी है. राजग में टूट की बात करने वाले दिन में सपना देख रहे हैं. राजग अटूट है. वैसे भी गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की बयानबाजी का कोई सियासी असर नहीं होता है.

पटना की जनता एक हफ्ते तक पानी में फंसी परेशान रही और नीतीश सरकार के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा अपनी जवाबदेही से बचने की कवायद में लगे रहे. उन की बात सुनेंगे तो हंसी भी आएगी और गुस्सा भी.

मंत्री महोदय बड़ी ही मासूमियत से कहते हैं कि पटना में जलजमाव के लिए पटना नगरनिगम के पहले के कमिश्नर अनुपम कुमार सुमन जबावदेह हैं. वे किसी की बात ही नहीं सुनते थे. मुख्यमंत्री से भी इस की शिकायत कई दफा की गई थी. अनुपम कुमार सुमन की लापरवाही और मनमानी की वजह से ही पटना की बुरी हालत हुई है. विभाग की ओर से अनुपम कुमार सुमन पर कार्यवाही की सिफारिश की जाएगी.

सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि नीतीश कुमार ने जानबूझ कर पटना को पानी में डूबने दिया. वे भाजपा नेताओं को उन की औकात बताना चाहते थे और जनता के सामने उन्हें नीचा दिखाने की साजिश रची गई.

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पटना की 2 लोकसभा सीट और 14 विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा का कब्जा है. पटना शहरी इलाकों में भाजपा का दबदबा होने की वजह से  ही नीतीश कुमार ने इन इलाकों पर ध्यान नहीं दिया. नीतीश कुमार के मन में हमेशा यह चिढ़ रहती है कि पटना की जनता उन की पार्टी को तवज्जुह नहीं देती है. कई भाजपाई नेता दबी जबान में यह कह रहे हैं कि पटना को जानबूझ कर डुबोया गया. मेन नालों को जहांतहां जाम कर के रख दिया गया था. पंप हाउसों की मोटर खराब थी. जब मौसम विभाग ने बारिश को ले कर रेड अलर्ट जारी किया था तो पंप हाउस की मोटर को ठीक क्यों नहीं कराया गया?

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि पटना के ड्रेनेज सिस्टम, पंप हाउस जैसे बुनियादी मसलों पर पहले से पूरी तैयारी होती और मौनीटरिंग का इंतजाम होता तो इतनी बुरी हालत नहीं होती. सांसद अश्विनी चौबे कहते हैं कि पटना की तबाही के लिए लालफीताशाही जिम्मेदार है.

पटना के एक हफ्ते तक बारिश के पानी में डूबने का मामला शांत होता नहीं दिख रहा है. इस मसले को जिंदा रख कर भाजपा मजबूत सियासी फायदा उठाने की कवायद में लगी हुई है. इस साल के आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद से ही भाजपा बिहार में भी ‘एकला चलो रे’ का माहौल बनाने में लगी हुई है.

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पटना में भारी जल जमाव के बाद भाजपा ने खुल कर इस कोशिश को तेज कर दिया है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पटना के डूबने के बाद अब नीतीश कुमार की राजनीति के भी डूबने के आसार हैं?

रावण वध में हुआ राजग की एकता का वध? 

भाजपा और जद (यू)  के बीच तनातनी पूरी तरह से खुल कर तब सामने आ गई, जब 8 अक्तूबर को दशहरे के मौके पर पटना के गांधी मैदान में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम में भाजपा का एक भी नेता नहीं पहुंचा.

14 सालों के राजग के शासन में पहली बार ऐसा हुआ. इस मसले को ले कर जद (यू) खासा नाराज है कि भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री के प्रोटोकौल का उल्लंघन किया है.

जद (यू) के विधान पार्षद रणवीर नंदन कहते हैं कि अगर भाजपा नेताओं के मन कोई छलकपट है, तो वह किसी गलतफहमी में न रहें. विधानसभा चुनाव में जनता उन्हें करारा जवाब देगी.

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भाजपा आपदा के मौके पर भी सियासी फायदा उठाने की जुगत में है, वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि रावण वध कार्यक्रम से ज्यादा जरूरी जलजमाव में फंसी जनता को राहत पहुंचाना था और भाजपा उसी में मसरूफ रही.

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि इस साल जनता की परेशानियों को देखते हुए उन्होंने दशहरा नहीं मनाया और न ही किसी आयोजन में हिस्सा लिया. पटना के सातों शहरी विधानसभा क्षेत्र का विधायक जनता की सेवा का हवाला दे कर कन्नी कटाता रहा.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इस मामले में किसी तरह की राजनीति से इनकार करते हुए कहा है कि भाजपा और जद (यू) के बीच किसी भी तरह का मतभेद नहीं है. राजग अटूट है.

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मोदी को आंख दिखाते, चक्रव्यूह में फंसे भूपेश बघेल!

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्तासीन होने के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. विधानसभा चुनाव के परिणाम स्वरुप मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की कमान संभाल ली और इसके साथ ही शुरू हो गया छत्तीसगढ़ सरकार का केंद्र सरकार के साथ आंख मिचौली का खेल. भूपेश बघेल बारंबार एहसास कराते हैं कि वे प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की परवाह नहीं करते.

मौके मिलते ही  उनके सामने  सीना तान कर खड़े हो जाते हैं. और फिर जब हकीकत का एहसास होता है तो हाथ जोड़ मुस्कुराते हुए गुलाब पेश करते हैं . यही सब कुछ इन दिनों धान खरीदी की महत्वाकांक्षी योजना के संदर्भ में भी दिखाई दे रहा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार यह वादा करके सत्तासीन हुई थी किसानों से 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदी जाएगी.

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इस बिना पर सत्ता पर कांग्रेस भाग्यवश काबिज भी हो गई. मगर इसके चलते छत्तीसगढ़ सरकार की आर्थिक हालत खस्ता हो चुकी है, अब नवंबर में धान खरीदी का आगाज होना था प्रत्येक वर्ष 1 नवंबर अथवा 15 नवंबर से धान खरीदी प्रारंभ हो जाया करती थी. मगर सरकार के संशय के कारण विपरीत स्थितियों के कारण, भूपेश सरकार ने पहली बार धान खरीदी को एक माह आगे बढ़ाते हुए 1 दिसंबर से खरीदी करने का ऐलान किया है. जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की हालत कितनी पतली हो चली है.

भूपेश सरकार अब केंद्र सरकार के समक्ष अनुनय विनय  कर रही है कि प्रभु हमारी रक्षा करो…!

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मंत्री आए सामने! दिखे चिंतातुर…

धान खरीदी के मसले पर आयोजित मंत्रिमंडल की उपसमिति की बैठक में 15 नवंबर से प्रस्तावित धान खरीदी के तय समय को बदल दिया गया. अब धान खरीदी का आगाज़  1 दिसंबर से होगी. इस बार 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.

बैठक के बाद खाद्य  मंत्री अमरजीत भगत और वन मंत्री मो. अकबर ने ने कहा कि, कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से पहले  वादा किया था, सरकार उस वादे को पूरा करेगी. हम 2500 रुपये कीमत के साथ ही किसानों से धान खरीदेंगे. पीडीएस के लिए 25 लाख मीट्रिक टन चावल लगता है और इसके लिए 38 लाख मीट्रिक टन धान की जरूरत होती है. बाकी शेष जो धान खरीदी का लक्ष्य है उसकी खरीदी को लेकर चर्चा हुई है. केंद्र सरकार से हमने आग्रह किया है.

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हमनें केंद्र सरकार से कहा है कि हम पूरा धान खरीदना चाहते हैं, जिस तरह से पूर्व में 24 लाख मीट्रिक टन उसना चावल जमा करने की अनुमति (पूर्ववर्ती  डाक्टर रमन सिंह सरकार को)  मिली थी, उसी तरह से इस बार भी केंद्र हमें अनुमति प्रदान करे. हमें उम्मीद केंद्र सरकार अनुमति मिल जाएगी. हम अपना वादा पूरा करेंगे. खरीदी को लेकर किसी तरह से दिक्कत नहीं आएगी. छत्तीसगढ़ सरकार  के मंत्रियों ने बड़ी चतुराई से धान खरीदी कि लेट  लतीफी को, मौसम पर डाल दिया और कहा

इस बार बेमौसम बारिश से धान के पैदावारी में देरी हुई है. लिहाजा खरीदी की शुरुआती समय-सीमा को आगे बढ़ा दिया गया है. इस बार 1 दिसंबर से धान खरीदी होगी. ताकि खरीदी केंद्रों तक किसान धान लेकर व्यवस्थित रूप से पहुँच सके. खरीदी की तैयारी करने के निर्देश विभाग को दे दिए गए हैं. खरीदी और संग्रहण केंद्रों में व्यापक तैयारी रखी जाएगी. किसानों को परेशानी न हो इस बात का विशेष ध्यान रखने को कहा गया है.

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मुश्किल मे है भूपेश सरकार!

छत्तीसगढ़  सरकार ने धान खरीदी को लेकर मुश्किलों में घिरने के बाद भी किसानों को बड़ा आश्वासन  दिया है. राज्य सरकार ने कहा है कि किसी भी सूरत में राज्य सरकार किसानों के धान खऱीदने से पीछे नहीं हटेगी. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि हर परिस्थिति में किसानों के धान खरीदी जाएगी.

कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने केंद्र से अनुनय विनय करते हुए जो कहा है वह गौरतलब है -” छत्तीसगढ़ के किसान भी भारत के ही किसान हैं. लिहाज़ा केंद्र सरकार को छत्तीसगढ़ के चावल खरीदने चाहिए.” उन्होंने कहा कि “उम्मीद है कि प्रधानमंत्री छत्तीसगढ़ के किसानों को अपना किसान मानेंगे.” चौबे ने कहा कि -“जब राज्य में भाजपाई सरकार थी तब उन्होंने भी 300 रुपये बोनस दिया था.

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तब केंद्र ने चावल भी खरीदे थे.” उन्होंने कहा-”  बोनस छत्तीसगढ़ की सरकार दे रही है. लिहाज़ा उसे( केंद्र को) चावल खरीदना चाहिए.” सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नवीन परिस्थितियों में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ने

बोनस देने की सूरत में छत्तीसगढ़ से चावल खरीदने से मना कर दिया है. पिछले साल सरकार ने करीब 81 लाख मीट्रिक टन चावल किसानों से खऱीदा था. जिसमें से मिलिंग के बाद 24 लाख मीट्रिक टन चावल केंद्र ने अपने पूल में जमा किया था. इस बार केंद्र सरकार ने किसानों को बोनस देने की सूरत में चावल लेने से मना कर दिया है. जिसे लेकर राज्य सरकार लगातार कोशिश कर रही है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तीन बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख चुके हैं. राज्यपाल अनुसुइया उईके छत्तीसगढ़ के राजभवन में केंद्र सरकार की प्रतिनिधि है,भूपेश  सरकार ने अनुरोध कर के राज्यपाल से भी केंद्र को,भूपेश सरकार के पक्ष में धान खरीदी का पत्र लिखवा कर अपनी पीठ ठोंक ली है.

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ना खाते बन रहा ना उगलते!

हालात छत्तीसगढ़ में निरंतर विषम बनते जा रहे हैं, एक तरफ भूपेश सरकार केंद्र सरकार को आंख दिखाने से नहीं चूकती,  दूसरी तरफ भरपूर मदद भी चाहती है. परिणाम स्वरूप केंद्र की मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ को तवज्जो देना बंद कर दिया है. इन्हीं परिस्थितियों के कारण छत्तीसगढ़ के विकास को मानो  ब्रेक लग गया है. हालात निरंतर शोचनीय होते चले जा रहे हैं. एक डौक्टर रमन का छत्तीसगढ़ था, जहां हर विभाग में विकास तीव्र  गति से दौड़ रहा था.

रुपए पैसों की कभी कमी नहीं हुआ करती थी मगर भूपेश सरकार में जहां सड़कें गड्ढों में बदल गई हैं वही गोठान शुभारंभ और छुट्टी वाला बाबा बनकर भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की गली कूचे में भटक कर रह गए हैं.अब धान खरीदी का ही मसला लें, भूपेश सरकार मानो एक चक्रव्यू में फंस चुकी है. धान खरीदी के मसले पर सत्ता में वापसी के बाद केंद्र सरकार की मदद नहीं मिलने से भूपेश सरकार पसीना पसीना है. केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान और प्रधानमंत्री मोदी तक धान खरीदी के लिए सहयोग की कामना के साथ भूपेश बघेल सरकार सरेंडर है. मगर जिस मिट्टी के बने हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,उससे यह प्रतीत होता है कि वह छत्तीसगढ़ सरकार की कोई मदद करने के मूड में नहीं है.

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एक था पहलू खान

14 अगस्त, 2019 को अदालत का फैसला आया, जिस में सभी आरोपी बरी हो गए.

मतलब साफ है कि सिस्टम ठीक से पैरवी नहीं करता और अदालतें इंसाफ नहीं करती हैं. यह सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि देश में खुली आजादी के लाखों फैसले ऐसे आए हैं जिन की बदौलत सिस्टम के प्रति नागरिकों में नफरत पैदा हुई है. देश की व्यवस्था से विश्वास डगमगाया है और अलगाववादी सोच पनपी है.

इस देश का सिस्टम और अदालतें बगावत के बीज बोती हैं. अराजकता की बुनियाद ही देश का सिस्टम है. ऐसे फैसलों के चलते ही देश आतंकवाद का शिकार है.

जोधपुर की सैशन कोर्ट ने काले हिरण के शिकार के मामले में फंसे सलमान खान को ले कर भी इसी तरह का फैसला दिया था और देशभर में अदालत के फैसले को ले कर मजाक का माहौल बना था.

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ये मामले देखने और सुनने में तो सरसरीतौर पर मजाक लगते हैं, मगर इंसाफ की उम्मीदों को अंदर तक नोच डालते हैं. सत्ता, सिस्टम व अदालतों को नागरिकों के खिलाफ खड़ा कर देते हैं.

पहलू खान पर आए फैसले को हिंदूमुसलिम नजरिए से मत देखिए. भारत का एक नागरिक सड़क पर मारा गया. वीडियो के जरीए सब ने देखा भी. काश, पुलिस और अदालत उस वीडियो को देख कर अनजान न बनतीं.

अगर एक नागरिक की मौत पर यही इंसाफ है तो यह मान लेना चाहिए कि आंखों पर पट्टी बांधे हाथ में इंसाफ का तराजू ले कर खड़ी इंसाफ की देवी ही आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, देशद्रोह और गद्दारी की सरगना है.

हमें यह मानने में बिलकुल गुरेज नहीं करना चाहिए कि पहलू खान की मौत सिर्फ एक इनसान की मौत नहीं, बल्कि इस देश के सिस्टम, सत्ता, सियासत और अदालत को बेमौत मार गई.

‘एक था पहलू खान’ नाम से फिल्में बनेंगी. देश में नए सिरे से चर्चाओं का दौर चलेगा और एक मरा हुआ इनसान इस देश की व्यवस्था को नंगा करेगा, जिस से लोगों का इंसाफ के तराजू से भरोसा उठेगा.

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पहलू खान की हत्या

पहलू खान की हत्या के मामले में अलवर जिला अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है. अदालत ने मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है.

बता दें कि साल 2017 में इस भीड़ ने गौतस्करी के शक में पहलू खान की पीटपीट कर हत्या कर दी थी. कोर्ट ने इस मामले में सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है.

1 अप्रैल, 2017 को हरियाणा के मेवात जिले के बाशिंदे पहलू खान जयपुर से 2 गाय खरीद कर अपने घर ले जा रहे थे. शाम के तकरीबन 7 बजे बहरोड़ पुलिया से आगे निकलने पर भीड़ ने उन की पिकअप गाड़ी को रुकवा कर पहलू खान और उस के बेटों के साथ मारपीट की थी. इलाज के दौरान पहलू खान की अस्पताल में मौत हो गई थी.

पहलू खान की हत्या के मामले में 8 आरोपी पकड़े गए थे, जिन में 2 नाबालिग थे. अलवर कोर्ट में 6 आरोपियों पर फैसला सुनाया गया, 2 नाबालिग आरोपियों की सुनवाई जुवैनाइल कोर्ट में हो रही है.

होगी एसआईटी जांच

राजस्थान सरकार ने पहलू खान की पीटपीट कर हत्या किए जाने के मामले की जांच एसआईटी से कराने का फैसला लिया है.

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सरकार ने यह फैसला तब लिया, जब कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने अलवर की निचली अदालत के फैसले को चौंकाने वाला बताया. कांग्रेस सरकार मामले की जांच फिर से कराने के लिए एसआईटी गठित करेगी.

लिंचिंग संरक्षण विधेयक

राज्य विधानसभा में 30 जुलाई को राजस्थान लिंचिंग संरक्षण विधेयक 2019 और प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा के लिए लाया गया विधेयक पास हो गया.

प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा के लिए लाए गए विधेयक को ‘राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक 2019’ का नाम दिया गया है. 30 जुलाई को इन दोनों विधेयकों को सदन में पेश किया गया था.

इन दोनों विधेयकों के कानून का रूप लेने के बाद राज्य सरकार जहां एक ओर प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा दे सकेगी, वहीं दूसरी ओर लिंचिंग से जुड़े अपराधों की रोकथाम के लिए भी सख्त कदम उठा सकेगी.

क्या है मौब लिंचिंग

नए विधेयक में धर्म, जाति, भाषा, राजनीतिक विचारधारा, समुदाय और जन्मस्थान के नाम पर भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा को मौब लिंचिंग माना है. इस में 2 या 2 से ज्यादा लोगों को मौब की परिभाषा में शामिल किया गया है.

लिंचिंग की घटना में पीडि़त की मौत हो जाने पर दोषियों को आजीवन कठोर कारावास के साथ 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का प्रावधान है, वहीं गंभीर रूप से घायल होने पर कुसूरवारों पर 10 साल का कठोर कारावास और 3 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है. मारपीट पर 7 साल के कठोर कारावास व एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है.

अगर कोई शख्स इलैक्ट्रौनिक माध्यम से समाज में नफरत बढ़ाने वाले संदेश भेजता है, तो ऐसे मामले में भी 5 साल तक का कारावास भुगतना पड़ेगा और एक लाख रुपए का जुर्माना भी देना होगा.

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इंस्पैक्टर रैंक का अफसर ही लिंचिंग से जुड़े मामलों की जांच करेगा. प्रदेश में आईजी रैंक व जिलों में डीएसपी रैंक का अफसर ही इस की मौनिटरिंग करेगा. तुरंत सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की सलाह पर स्पैशल जज नियुक्त कर सकेंगे. सैशन लैवल के जज ही ऐसे मामलों की सुनवाई कर सकेंगे.

इस बिल में प्रावधान किया गया है कि पीडि़त को राजस्थान विक्टिम कंपनसैशन स्कीम के तहत मदद दी जाएगी और दोषियों से जो जुर्माना वसूला जाएगा, उसे पीडि़त को दिया जाएगा.

औनर किलिंग

जाति, समुदाय और परिवार के नाम पर वैवाहिक या प्रेमी जोड़े में से किसी को भी जान से मारने पर आरोपियों को फांसी या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकेगी. ऐसे मामले गैरजमानती होंगे.

5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगेगा.

वैवाहिक जोड़े पर प्राणघातक हमला करने वालों को 10 साल से ले कर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. अगर हमला प्राणघातक

नहीं है, तब भी आरोपियों की 3 साल से 5 साल तक की कठोर सजा का प्रावधान है, जो साजिश में शामिल होगा, उस के लिए भी सजा के यही प्रावधान होंगे.

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शादी से रोके जाने पर पीडि़त जोड़े एसडीएम और डीएम के यहां अपील कर सकेंगे. इस में एसडीएम और मजिस्ट्रेट संबंधित लोगों को पाबंद कर सकेंगे. जो भी मामले दर्ज होंगे, उन का ट्रायल सैशन कोर्ट में होगा.

जिंदा इंसान पर भारी मरा जानवर

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़, जो अन्य पिछड़ा वर्ग के तेली तबके से है, इस बात से खफा हो गया था कि राजकुमार वाल्मीकि मरी गाय को घसीट क्यों रहा था? वह अपने सिर पर उठा कर क्यों नहीं ले जा रहा था? सड़क पर घसीटे जाने से गौमाता की बेइज्जती हो गई और जिस की सजा राजकुमार वाल्मिकी को भीड़ के सामने दे दी गई.

कोटा की सांगोद नगरपालिका में मरे जानवरों को उठाने का जिम्मा राजकुमार वाल्मीकि के पास है. वह एक मरी हुई गाय को घसीट कर ले जा रहा था, तभी कुछ नवहिंदुत्ववादी लोगों की नजर उस पर पड़ती है. ये लोग खुद सदियों तक ब्राह्मणों के अत्याचार सहते रहे, पर आज उन से ज्यादा धार्मिक हैं और हिंदुत्व की माता के प्रति एकदम सम्मान उमड़ पड़ता है.

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वे राजकुमार वाल्मीकि को रोक देते हैं और नगरपालिका के चेयरमैन देवकीनंदन राठौड़ को बुलाया जाता है. उस ने जैसे ही मामला देखा तो तो वह राजकुमार को मांबहन की गालियां देते हुए उस पर टूट पड़ा.

थप्पड़ों व रस्सियों से पीटते हुए राजकुमार को सम झाया जाता है कि हम ने हमारी मृत मां को ठिकाने लगाने के लिए तु झे जिम्मा दिया था. उस को कंधों पर उठा कर ले जाना चाहिए.

नगरपालिका चेरयमैन ने ठेका देते हुए शायद अर्थियों, फूलमालाओं की व्यवस्था भी टैंडर में की होगी. अपनी माता के अंतिम संस्कार के लिए महल्ले वालों को भी कंधा देने की बात लिखी होगी, क्योंकि अकेला इनसान तो अर्थी उठा कर नहीं ले जा सकता.

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है. जब वह दलित वाल्मीकि नौजवान की मृत गाय के लिए गालियां देते हुए पिटाई कर रहा था, तब उस के सैकड़ों समर्थक वीडियो बना कर उसे वायरल कर रहे थे और भाजपा नेता को उकसाने का काम कर रहे थे.

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इस घटना की एफआईआर दर्ज हो चुकी है. हर जगह इस काम की निंदा हो रही है. प्रदेश के सफाई वाले, वाल्मीकि समाज और दलित बहुजन संगठन भयंकर गुस्से में हैं. इस घटना के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं. चेतावनी दी गई है कि आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही नहीं की गई तो राज्यभर की सफाई व्यवस्था ठप कर दी जाएगी.

आखिर एक मरे हुए जानवर की इज्जत के लिए जिंदा दलित की इज्जत को क्यों बारबार तारतार किया जा रहा है? पुराने समय से ही गांवों में मरे पशु घसीट कर ही फेंक जाते रहे हैं. शहरों में ट्रैक्टरट्रौली में ले जाए जाते हैं, पर सांगोद के इस ठेकेदार को ट्रौली के पैसे नहीं मिलते थे. इस के चलते वह मरी गाय को घसीटते हुए ले जा रहा था.

झज्जर में भी मरे पशु की चमड़ी निकालते समय 5 दलित जिंदा जला दिए गए थे. उन की हत्या पर अफसोस जताने के बजाय विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन नेता गिरिराज किशोर ने कहा था, ‘हमारे लिए मरी हुई गाय जिंदा दलितों से ज्यादा पवित्र है.’

पिछले 20-25 सालों में वाल्मीकि समाज का बहुत हिंदुत्वकरण किया गया है. इन की बस्तियों में खूब शाखाएं लगाई जाती हैं. सेवा भारती के प्रकल्प चलते हैं. वंचित बस्ती भाजपाई गौभक्तों की सब से बड़ी प्रयोगशाला बन जाती है.

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सांगोद जैसी घटनाओं से दलित वाल्मीकियों को अपनी औकात सम झ आ जानी चाहिए कि उन की जगह एक मरे जानवर से भी कमतर है.

जिस तरह का लिंचिंग वाला समाज बनाया गया और दलित चुप रहे कि गाय के नाम पर मुसलिम मारा जा रहा है, हमारा क्या? आज हालात ये हैं कि मुसलिम जिंदा गायों के नाम पर लिंच किए जा रहे हैं और दलित मरी गायों के लिए, पर हर जगह चुप्पी है. मोहन भागवत तो कहते हैं कि इस तरह के कामों को लिंचिंग का नाम दे कर बदनाम किया जा रहा है.

इस घटना पर दलित चिंतक भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘‘सांगोद की घटना का सभी जगह विरोध होना चाहिए, एट्रोसिटी ऐक्ट में जो मुकदमा दर्ज हुआ है, उस पर तुरंत कार्यवाही हो. भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ की तुरंत गिरफ्तारी हो. भाजपा उसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करे और पीडि़त नौजवान को इंसाफ मिले.

‘‘जब तक यह न हो, हमें संवैधानिक तरीके से आंदोलन चलाना होगा. गंदगी करने वाले समाज को सफाई करने वाले समाज का मजबूत जवाब जानना चाहिए. जिन की माता गाय है, उन को ही उसे संभालना चाहिए, हम क्यों उठाएं किसी की मरी हुई मांओं को?’’

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राज्य में चौटाला राजनीति का सूर्योदय, 11 महीने में बदल दी हरियाणा की राजनीति

हरियाणा में बीजेपी ने 75 पार का सपना देखा था लेकिन महज 40 सीटों पर सिमट गई. जबकि 2014 में बीजेपी को 47 सीटें हासिल हुईं थी. यानी की बीजेपी को सात सीटों का नुकसान हुआ है. कांग्रेस को यहां बढ़त मिली है. कांग्रेस ने यहां 31 सीटें जीती हैं. इन सबके के बीच 11 महीने पहले बनी पार्टी जेजेपी ने दमदार प्रदर्शन करते हुए 10 सीटें जीती हैं. इस पार्टी के मुखिया हैं दुष्यंत चौटाला. इनेलो से निकाले जाने के बाद दुष्यंत चौटाला ने नई पार्टी जननायक जनता पार्टी बनाई और अब हरियाणा की राजनीति में दमदार एंट्री की है.

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हरियाणा विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को 11 सीटें मिलती दिख रही हैं. जेजेपी पिछले साल दिसंबर में जब आईएनएलडी (इंडियन नेशनल लोक दल) से निकलकर जेजेपी बनी तो पहले ही लिटमस टेस्ट में हरियाणा की जनता ने दिखा दिया था कि उसका रुख किधर है. जेजेपी ने अपनी ताकत का एहसास पहली बार तब कराया जब जींद विधानसभा के लिए इस वर्ष 28 जनवरी को उपचुनाव हुए.

बीजेपी, कांग्रेस, आईएनएलडी के साथ लड़ाई में दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय ने जेजेपी कैंडिडेट के तौर पर 37,631 वोट हासिल किए जबकि 2014 में इस सीट पर जीत हासिल करने वाली आईएनएलडी को महज 3,454 वोटों से संतोष करना पड़ा. 2014 के विधानसभा चुनावों में आईएनएलडी को पूरे हरियाणा में 19 सीटें मिली थीं.

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हरियाणा की राजनीति में चौटाल परिवार सबसे मजबूत माना जाता है. पिछले साल इस परिवार में अनबन हो गई थी. जिसका अजय चौटाला की अपने पिता और आईएनएलडी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला और भाई अभय चौटाला के साथ अनबन हो गई. उसके बाद नवंबर 2018 में अजय चौटाला और हिसार से उनके सांसद पुत्र दुष्यंत चौटाला को आईएनएलडी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उसके अगले ही महीने दिसंबर 2018 में दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन कर लिया. जेजेपी के बनने से आईएनएलडी को तगड़ा झटका लगा और उसके ज्यादातर पदाधिकारियों ने जेजेपी का रुख कर लिया.

इंडियन नेशनल लोकदल ने हरियाणा पर 2000 से 2004 के बीच आखिरी बार राज किया था और ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने थे. उस वक्त पार्टी को 90 में से 47 सीटें हासिल हुई थीं. 2005 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 9 सीटें मिलीं. 2009 में कुछ राहत मिली और आईएनएलडी ने 31 सीटों पर जीत दर्ज की.

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आईएनएलडी प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काटने के लिए तिहाड़ जेल में बंद हैं. चौटाला अगर जेल से छूट भी जाते हैं तो उनसे पार्टी में दोबारा जान फूंकने की उम्मीद नहीं के बराबर है क्योंकि वह 84 वर्ष के हो चुके हैं. अभय चौटाला अच्छे मैनेजर बताए जाते हैं, लेकिन वह अपने पिता की तरह जनता के बीच उतने लोकप्रिय नहीं हैं. इस चुनाव ने यह साबित कर दिया है.

पौलिटिकल राउंडअप: ओवैसी ने लताड़ा

हैदराबाद, अपने कड़वे बोलों के लिए बदनाम एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘फादर औफ इंडिया’ बताए जाने पर कहा कि डोनाल्ड ट्रंप एक जाहिल आदमी हैं और पढ़ेलिखे भी ज्यादा नहीं हैं. न तो उन को हिंदुस्तान के बारे में कुछ मालूम है और न ही उन को महात्मा गांधी के बारे में कुछ पता है. ट्रंप को दुनिया के बारे में भी कुछ मालूम नहीं है.

असदुद्दीन ओवैसी ने 25 सितंबर को कहा, ‘‘अगर ट्रंप को मालूम होता तो इस तरह की जुमलेबाजी नहीं करते. महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का खिताब इसलिए मिला, क्योंकि लोगों ने उन की कुरबानी को देख कर उन्हें यह उपाधि दी थी. इस तरह के खिताब दिए नहीं जाते, हासिल किए जाते हैं.’’

हाईकोर्ट हुआ सख्त

अहमदाबाद. हाईकोर्ट ने सरकारी जमीनों को धार्मिक संप्रदायों को दान देने पर बेहद कड़ी टिप्पणी करते हुए 25 सितंबर को कहा कि गुजरात सरकार किसी शख्स या किसी खास धार्मिक संप्रदाय को सार्वजनिक इस्तेमाल की जमीन को दान न दे. जब पूरा देश धर्मस्थलों से भरा पड़ा है, तो राज्य सरकार को किसी खास संप्रदाय पर दरियादिली नहीं दिखानी चाहिए.

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हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी 3 पक्ष वाले एक जमीन के  झगड़े में की जिस में राजकोर्ट नगरनिगम, एक कोऔपरेटिव सोसाइटी और एक धार्मिक ट्रस्ट शामिल हैं. नगरनिगम एक जमीन को धार्मिक ट्रस्ट को बेचना चाहता है लेकिन कोऔपरेटिव सोसाइटी का दावा है कि यह उस की जमीन है.

संजय सिंह को मिली कमान

दिल्ली. अपनी तेजतर्रार इमेज और बेबाक राय के लिए मशहूर आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को आगामी विधानसभा के लिए प्रभारी बनाया गया है.

इस के साथ ही 26 सितंबर को ‘आप’ की ओर से जारी बयान के मुताबिक, ‘पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव अपनी सरकार के ऐतिहासिक कामकाज के आधार पर लड़ेगी जिस ने चहुंमुखी विकास से राष्ट्रीय राजधानी की तसवीर बदल दी है. हमारे स्वयंसेवी स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली और जलापूर्ति क्षेत्र में दिल्ली सरकार के कामकाज की जानकारी घरघर तक पहुंचाएंगे.’

पिछले कुछ समय से आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपनी इमेज बनाने में ज्यादा कामयाब हुई है. अब संजय सिंह को देखते हैं कि वे चुनाव में वोटरों को अपने पक्ष में कैसे लाएंगे.

मांझी का तीर

कटिहार. बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके और हिंदुस्तानी अवाम मोरचा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मां झी ने 26 सितंबर को राजद नेता तेजस्वी यादव पर आरोप लगाया कि भाजपा के प्रति उन के दिल में ‘सौफ्ट कौर्नर’ है. बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के बाद से ही उन के लक्षण सही नहीं हैं.

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यह चिनगारी छोड़ने के साथ ही अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के नेता के चेहरे के सवाल पर जीतनराम मां झी ने कहा कि निजी तौर पर तेजस्वी उन्हें पसंद हैं, लेकिन इस का आखिरी फैसला महागठबंधन को करना है.

फट गए बादल

चंडीगढ़. भाजपा के करीबी रहे शिरोमणि अकाली दल के अब तेवर बदल गए हैं. उस के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने हरियाणा में अपनी पार्टी के एकमात्र विधायक के भाजपा में शामिल होने को गलत बताया.

कलांवली के विधायक बलकौर सिंह 26 सितंबर को नई दिल्ली में भाजपा में शामिल हो गए. उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की राज्य को ‘ईमानदारी’ सरकार देने के लिए तारीफ की.

इस बात से नाराज सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है और अकाली दल के मौजूदा विधायक को अपने खेमे में शामिल करने से उन के गठबंधन की मर्यादा टूट रही है.

भाजपा हर जगह मर्यादा की दुहाई देती है, लेकिन किसी दूसरी पार्टी के नेता को अपनी तरफ मिलाने से भी नहीं चूकती है.

परेड की डिमांड

भोपाल. यह किसी सेना की परेड की बात नहीं हो रही है, बल्कि मध्य प्रदेश के हाई प्रोफाइल हनी ट्रैप स्कैंडल में कई नेताओं और अफसरों के शामिल होने पर वहां के एक मंत्री गोविंद सिंह ने कहा है कि अपराधियों के खिलाफ केस दर्ज होना चाहिए. पुलिस को आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करना चाहिए और उन की पब्लिक में परेड करानी चाहिए.

27 सितंबर को मध्य प्रदेश कांग्रेस दफ्तर के बाहर एक बड़ा बिलबोर्ड लगाया गया जिस में लिखा था कि ‘चाल चरित्र चेहरे’ का दावा करने वाले शिवराज सिंह चौहान अपनी पार्टी के नेताओं के नाम हनी ट्रैप में आने के बाद भी चुप क्यों हैं? इस से पता चलता है कि कुछ तो गड़बड़ है.

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जोड़ीदारों का बंटवारा

मुंबई. एकजैसी विचारधारा के हिमायती रहे भाजपाइयों और शिव सेना वालों में काफी उठापटक के बाद सीटों का बंटवारा तकरीबन हो गया है. भारतीय जनता पार्टी राज्य में 144 सीटों पर और शिव सेना 126 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. दूसरे सहयोगी दलों के लिए 18 सीटें रखी गई हैं.

यही नहीं, भाजपा की तरफ से शिव सेना को उपमुख्यमंत्री पद भी दिया जा सकता है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस खुद कई बार कह चुके हैं कि वे आदित्य ठाकरे को उपमुख्यमंत्री बना सकते हैं.

सवाल उठता है कि अगर पिछले कुछ सालों में भाजपा ताकतवर हुई है तो उसे ऐसे गठबंधन की जरूरत ही क्यों पड़ती है?

प्रधानमंत्री की उम्मीद

चेन्नई. काफी दिनों के बाद भारत लौटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 सितंबर को कहा कि दुनिया की भारत से ‘बहुत उम्मीदें’ हैं और उन की सरकार देश को ‘महानता’ के उस रास्ते पर ले जाएगी जहां वह पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद साबित होगा. इस के साथ ही उन्होंने एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के खिलाफ अपनी मुहिम को दोहराया.

लेकिन प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि देश में धर्म, जाति, इलाके के नाम पर जिस तरह लोगों को बांटा जा रहा है, उन में जहर भरा जा रहा, उस से कैसे छुटकारा मिलेगा?

बढ़ी सियासी रार

कोलकाता. भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ममता सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि बंगाल में जंगलराज है. इस पर तृणमूल वाले बिदक गए और उन्होंने 28 सितंबर को कहा कि जेपी नड्डा राज्य में विकास नहीं देख सकते, क्योंकि वे खुद जंगल से आए हैं.

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तृणमूल के नेता फरहाद हकीम ने कोसते हुए कहा कि नड्डा को केंद्र में ‘जंगलराज’ क्यों नहीं दिखा, क्योंकि भाजपा की दोष से भरी नीतियों के चलते अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है और पूरे देश में नौकरियां गई हैं.

जितेंद्र सिंह के बोल बचन

जम्मू. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह 29 सितंबर को कटरा में नवरात्रि उत्सव का उद्घाटन करने गए थे. वहां उन्होंने लोगों से कहा कि वे माता वैष्णो देवी का धन्यवाद करें कि जम्मूकश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया गया है.

याद रहे कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म कर दिया था और राज्य को 2 केंद्रशासित क्षेत्रों जम्मूकश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था.

विधानसभा चुनाव सब में अकेले लड़ने की छटपटाहट

झारखंड में इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. मौजूदा विधानसभा का समय 28 दिसंबर, 2019 को खत्म हो रहा है. हर दल ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं, पर सब से खास बात यह है कि गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने वाली पार्टियां इस बार अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने की जुगत में लगी हुई हैं.

राजग से अलग हो कर जद (यू) अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुका है, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन से पल्ला  झाड़ कर कांग्रेस भी अपने दम पर चुनाव में हाथ आजमाने के मूड में है. भाजपा आलाकमान ने अकेले 65 सीटें जीतने का टारगेट फिक्स कर दिया है.

बिहार में भाजपा और जद (यू) का ‘हम साथसाथ हैं’ और  झारखंड में ‘हम आप के हैं कौन’ जैसा रिश्ता होगा.

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झारखंड जद (यू) के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने बताया कि  झारखंड में भ्रष्टाचार काफी बढ़ चुका है और संविधान भी खतरे में है. वहां मौब लिंचिंग की वारदातें बहुत ज्यादा हो रही हैं, इसलिए जद (यू)  झारखंड की सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगा.

उन्होंने दावा किया कि पार्टी के इस फैसले से बिहार में भाजपा और जद (यू) के रिश्ते पर कोई असर नहीं होगा. वैसे, कई राज्यों में भाजपा और जद (यू) का गठबंधन नहीं है. जद (यू) ‘नीतीश लाओ,  झारखंड बचाओ’ के नारे के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगा.

वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस भी अकेले ही चुनाव लड़ने की कवायद में लगी हुई है.

झारखंड कांग्रेस के प्रवक्ता आलोक दुबे कहते हैं कि पिछले कई विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस महागठबंधन में शामिल हो कर चुनाव लड़ती रही है, पर इस से उसे कोई खास फायदा नहीं हो पाया है.  झारखंड मुक्ति मोरचा के वोट कांग्रेस को नहीं मिल पाते हैं. इस वजह से पार्टी आलाकमान से गुजारिश की गई है कि इस बार ‘एकला चलो रे’ की नीति के तहत चुनावी अखाड़े में उतरना पार्टी के लिए बेहतर होगा.

लोकसभा चुनाव में  झारखंड समेत समूचे देश में ताकतवर बनने के बाद भाजपा ने भी इस बार अकेले ही विधानसभा चुनाव में उतरने की कवायद शुरू कर दी है. भाजपा आलाकमान इस बार अपने सहयोगी दलों के बगैर चुनाव लड़ने के नफेनुकसान का आकलन कर रहा है.

14 जुलाई, 2019 को भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा हालात का जायजा लेने रांची पहुंचे थे. पार्टी के सभी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को उन्होंने टास्क दिया है कि 65 सीटों पर चुनाव जीतने के लिए कमर कस लें. इस के अलावा 25 लाख सदस्य बनाने का टारगेट भी दिया गया है.

गौरतलब है कि 81 सीटों वाली  झारखंड विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 41 सीटों की जरूरत होती है और फिलहाल भाजपा की  झोली में 43 सीटें हैं.  झामुमो 19 सीटें जीत कर दूसरी सब से बड़ी पार्टी है.

बाबूलाल मरांडी के  झारखंड विकास मोरचा ने पिछले विधानसभा चुनाव में 8 सीटें जीती थीं, पर उस के 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे. कांग्रेस को 7 और दूसरों को 4 सीटें मिली थीं.

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भाजपा गठबंधन को 35 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2009 के चुनाव में उसे 11 फीसदी ही वोट मिले थे. पिछले लोकसभा चुनाव में  झारखंड में भाजपा को कुल 51 फीसदी वोट मिले थे.

मई, 2019 में हुए आम चुनाव में राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से उसे महज 12 सीटों पर जीत मिली थी और बाकी 2 सीटें कांग्रेस की झोली में गई थीं.  झामुमो, राजद,  झाविमो समेत वाम दलों का खाता नहीं खुल सका था.

लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की हार की सब से बड़ी वजह शुरू से ही घटक दलों की खींचतान रही थी. भाजपा को धूल चटाने के मकसद से कांग्रेस,  झामुमो,  झाविमो, राजद को मिला कर बनाया गया महागठबंधन खुद ही धराशायी हो गया था. चतरा लोकसभा सीट पर राजद और कांग्रेस दोनों ने अपनेअपने उम्मीदवार उतार कर महागठबंधन की एकजुटता के दावे को तारतार कर दिया था, वहीं हार के बाद सारे घटक दल एकदूसरे के सिर हार का ठीकरा फोड़ते रहे.

लोकसभा चुनाव के बाद राजद में इस कदर घमासान मचा कि पार्टी दो फाड़ हो गई. अभय सिंह को राजद का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, तो पार्टी के पहले के अध्यक्ष गौतम सागर राणा पार्टी से अलग हो गए. उन्होंने राजद (लोकतांत्रिक) बना कर पार्टी के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है, वहीं भाजपा भी भीतरी उठापटक से अछूती नहीं है.

मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ पार्टी के सीनियर लीडर रवींद्र राय, रवींद्र पांडे और सरयू राय ने मोरचा खोल रखा है. ऐसी हालत में किसी भी दल के लिए अकेले चुनाव लड़ना नई चुनौती खड़ी कर सकता है.

सियासी दलों के दावों और वादों के बीच हकीकत यही है कि आदिवासियों के नाम पर साल 2000 में बने  झारखंड की जनता को बेरोजगारी, विस्थापन और शोषण के सिवा अब तक कुछ नहीं मिला है. सियासी दल पिछले 19 सालों से ऊपर ही ऊपर घालमेल और तालमेल कर सरकार बनाने और गिराने का ड्रामा रच कर मलाई खाते रहे हैं.

आदिवासियों के लिए पिछले कई सालों से आवाज उठा रही दयामनि बारला कहती हैं कि जनजातियों की तरक्की के लिए आजादी के बाद से ले कर अब तक की सरकारी योजनाओं का रत्तीभर भी हिस्सा उन तक नहीं पहुंच सका है.

कोरबा समेत कई जनजातियां मिटने के कगार पर पहुंच चुकी हैं और किसी सियासी दलों को इस की फिक्र नहीं है, वहीं दूसरी ओर तकरीबन साढ़े 3 लाख आदिवासी विस्थापन का दर्द  झेलने को मजबूर हैं.

आदिवासियों की तरक्की के नाम पर  झारखंड राज्य बने 20 साल होने को हैं, पर अब तक न कोई कारगर औद्योगिक नीति बनी है और न ही विस्थापन और पुनर्वास नीति ही सही तरीके से आकार ले सकी है.

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भाजपा पर है रघुबर दास का दबदबा

टाटा स्टील के मजदूर और बूथ एजेंट से ले कर मुख्यमंत्री की कुरसी तक का सफर रघुबर दास के लिए आसान नहीं रहा है. साल 1980 में भाजपा के बनने के समय से ही वे पार्टी से जुड़े रहे और दलबदलू सियासत के बीच कभी भी उन्होंने दल बदलने की नहीं सोची.

रघुबर दास मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और उन का गांव बंधीपात्री है. उन के पिता चमन राम टाटा स्टील के लोको ट्रेन में खलासी थे.

3 मई, 1955 को जनमे रघुबर दास ने जमशेदपुर के भालूवासा होराइजन स्कूल से मैट्रिक पास की और उस के बाद जमशेदपुर के सहकारी कालेज से ही इंटर और बीएससी की पढ़ाई की. वे 3 भाई और 6 बहनें हैं. ललित दास उन के बेटे और रेणु साव बेटी हैं.

कालेज के दिनों में रघुबर दास ने छात्र संघर्ष समिति के संयोजक के तौर पर राजनीति का ककहरा सीखा. जमशेदपुर में जेपी आंदोलन की अगुआई की और बाद में जनता पार्टी से जुड़ गए. साल 1980 में भाजपा के बनने के समय ही पार्टी से जुड़े और उसी साल मुंबई में हुए भाजपा के पहले अधिवेशन में भी हिस्सा लिया. पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्वी सिंहभूम से 5वीं बार विधायक बने रघुबर दास ने रिकौर्ड 70,000 वोटों से जीत हासिल की थी.

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