जगनमोहन की राह पर अमित जोगी

छत्तीसगढ़

अमित जोगी हर दूसरे-तीसरे दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चैलेंज करते थे कि ‘मुझे गिरफ्तार किया जाए, मुझे गिरफ्तार किया जाए’. भूपेश बघेल ने उन की यह मंशा 3 सितंबर को पूरी कर ही दी.

अपने ही धुर विरोधी रहे अजीत जोगी पर भूपेश बघेल की ‘टेढ़ी’ नजर है, इसे सभी जानते हैं, मगर भूपेश बघेल उतने तल्ख नहीं हुए, जितने भाजपा की मंडली पर रहे हैं. शायद इस की वजह अजीत जोगी का विशाल कद और पहले के खट्टेमीठे संबंध रहे हैं.

अमित जोगी अपने पिता अजीत जोगी की बनाई राजनीतिक धरोहर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस पार्टी की कमान संभालने के बाद धुआंधार ढंग से भूपेश बघेल पर हमले कर रहे थे.

30 अगस्त को थाने पहुंच कर उन्होंने एक ज्ञापन सौंपा था और कहा था कि उन के पिता को जाति के मामले पर रंजिश के चलते फंसाया गया है.

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भूपेश बघेल के इशारे पर अमित जोगी को भी गिरफ्त में ले लिया गया. सब से अहम बात यह है कि जिस तरह ‘महाभारत’ में कृष्ण ने शिशुपाल को 100 गलतियां करने तक की छूट दे रखी थी, उस के बाद उसे मारने के लिए सुदर्शन चक्र चलाया था, यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ है. जब अमित जोगी के चैलेंज की हद हुई तो गिरफ्तारी हो गई…

मगर जरा रुकिए… छत्तीसगढ़ की राजनीति का यह घटनाक्रम एक ‘चैलेंजर गेम’ में भी बदल सकता है. कैसे… आगे देखते हैं…

भूपेश की घेराबंदी

इस में कोई दो राय नहीं है कि अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के राजनीतिक परिवारों में अपनी अहम जगह रखते हैं और शुरू से प्रदेश की राजनीति के केंद्र में रहे हैं. ये वे शख्सीयत हैं जो कभी चुप नहीं रहते, हमेशा जद्दोजेहद करते रहते है.

ऐसे में खास बात यह है कि अमित जोगी का यह कदम भूपेश बघेल को घेरना है और यह संदेश देना भी है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल बेदर्दी के साथ अपने राजनीतिक विरोधियों को निबटा रहे हैं.

एक बड़ा सच यह भी है कि जिस मामले में अमित जोगी को गिरफ्त में लिया गया है, वह चुनाव में उन की दोहरी नागरिकता को छिपाने का है और साल 2013 के विधानसभा चुनाव के दरमियान दी गई शपथ का है.

मजे की बात यह है कि तब अमित जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार थे और भाजपा उम्मीदवार समीरा पैकरा ने यह शिकायत की थी. यही वजह है कि भाजपा के बड़े नेता डाक्टर रमन सिंह, धर्मजीत कौशिक, प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी इस मामले पर खामोश हैं.

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यह है चाहत

अमित  जोगी अपनी पार्टी को जनता के बीच ले जा कर राजनीतिक हालात बदलना चाहते हैं. उन्होंने एक दफा कहा था कि जगनमोहन रेड्डी जब 15 साल तक जद्दोजेहद कर के मुख्यमंत्री बन सकते हैं, तो यह एक अच्छा उदाहरण है. जगनमोहन रेड्डी को एक तरह से अपना आदर्श बना कर अमित जोगी छत्तीसगढ़ की राजनीति में पेंगें भर रहे हैं.

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दुनिया की सबसे पुरानी पार्टी आज सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के पास बहुत अच्छा मौका था कि इन दो राज्यों में वो बीजेपी को कड़ी टक्कर दे. इस तरह कांग्रेस एक तीर से दो शिकार कर सकती थी. पहला तो ये कि लोकसभा के बाद बीजेपी का ग्राफ गिरा है दूसरा ये कि आर्टिकल 370 को खत्म करने के बाद बीजेपी को ये दिखाना कि आपके इस फैसले को जनता का समर्थन नहीं मिला. लेकिन ऐसा संभव नहीं दिख रहा. महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस भितरघात से जूझ रहा है. उसका मुस्तकबिल खुद कांग्रेस को भी नहीं बता.

21 अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं. बीजेपी सहित तमाम छोटे छोटे राजनीतिक दल चुनावी तैयारियों में जुटे हैं, सिर्फ कांग्रेस को छोड़कर. कांग्रेस में चुनावी तैयारी की कौन कहे – हरियाणा कांग्रेस का झगड़ा तो दिल्ली की सड़कों पर उतर आया है. हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के खिलाफ नया मोर्चा खोल दिया है. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने मुश्किल ये खड़ी हो गयी है कि चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ायें या फिर इन पचड़ों को निपटाएं. लेकिन ये कोई छोटा पचड़ा नहीं है. इसने सियासत में तूफान ला दिया है.

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तंवर कांग्रेस के दलित चेहरा थे और युवाओं में उनकी खास पकड़ है. ऐसे वक्त में तंवर को पार्टी से अलविदा कहना अपने आपमें बीजेपी की राह आसान करना है. हरियाणा में बीजेपी पहले से ही काफी मजबूत स्थिति में थी लेकिन अब तो लगता है यहां खेल एकतरफा ही होता जा रहा है. जब महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी संदेश यात्रा में व्यस्त थे, हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर अचानक कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे और समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गये. अशोक तंवर का आरोप है कि हरियाणा कांग्रेस में उम्मीदवारों को पैसे लेकर टिकट दिया जा रहा है और जो कार्यकर्ता पार्टी के लिए लगातार पसीना बहाते रहे हैं उन्हें को पूछ भी नहीं रहा है.

चुनाव की तारीख आने से पहले हरियाणा में सोनिया गांधी ने कई बदलाव किये थे. कांग्रेस नेतृत्व ने अशोक तंवर को हटा कर कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया था और विधानमंडल दल का नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को. इस तरह किरन चौधरी को भी किनाने कर दिया गया. अशोक तंवर ने तब तो कुछ नहीं बोला लेकिन अब वो खुलेआम टिकट बंटवारे में पैसे के लेन-देन का इल्जाम लगा रहे हैं.

बीजेपी ने 2009 विधानसभा से लगातार अपने वोट शेयर में बड़ा इज़ाफ़ा किया है. 2009 में बीजेपी के पास महज़ 9 फीसदी वोट थे और सिर्फ़ 4 सीटें मिली थी. लेकिन 2014 में 47 सीटें मिली और वोट शेयर 34.7 फीसदी हो गया जो कि 2014 लोकसभा चुनावों के वोट शेयर के आस-पास ही था. वहीं कांग्रेस ने 2009 विधानसभा चुनाव में 40 सीटें जीती थी और वोट शेयर लगभग 36 फीसदी था. लेकिन 2014 में सिर्फ 15 सीटें मिली और वोट शेयर 21 फीसदी पर आ गिरा जो कि लोकसभा चुनावों के वोट शेयर के आस-पास ही था.

लेकिन इस बार 2019 लोकसभा चुनावों में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के वोट शेयर में भी इज़ाफ़ा हुआ है जिसका एक फैक्टर इनेलो के वोटों का बंट जाना भी हो सकता है. बीजेपी ने 58 फीसदी वोट हासिल किए हैं और कांग्रेस ने 28 फीसदी. लगभग 30 फीसदी वोटों के अंतर को पाटना कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल होगा.

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अशोक तंवर को लेकर माना जाता रहा है कि वो राहुल गांधी के करीबी रहे हैं और चुनावों के ऐन पहले दबाव बनाकर हुड्डा ने उनका पत्ता साफ कर दिया. ये बात सही भी है कि राहुल गांधी की टीम में तंवर का नाम होता था. हुड्डा ने हरियाणा में एक रैली की थी और संकेत देने की कोशिश की कि अगर कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी मांगें नहीं मानीं तो वो नयी पार्टी बना लेंगे. चुनाव सिर पर आ गये थे लिहाजा सोनिया गांधी को हुड्डा की शर्तें माननी पड़ी. सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से तात्कालिक तौर पर झगड़ा तो खत्म हो गया लेकिन टिकट बंटवारे को लेकर लड़ाई फंस गयी. जाहिर है जो हुड्डा लगातार पांच साल तक अशोक तंवर के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे, भला उनके समर्थकों कों टिकट देकर अपने लिए आगे की मुसीबत क्यों मोल लेंगे?

हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार और राज्य की राजनीति को निकटता से देखने वाले सुभाष शर्मा बतातें हैं कि साल 2004 का जिक्र करना यहां बहुत जरूरी हो जाता है. क्योंकि ये वो साल था जब कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. इन चुनावों में भजनलाल को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा गया था. इन चुनावों में कांग्रेस को 90 में से 67 सीटें मिलीं थी. प्रचंड बहुमत देख सोनियां गांधी ने प्रदेश की कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंप दी गई. विरोध की आवाज भी दबा दी गई. क्योंकि उस वक्त कांग्रेस अपने पूरे रंग में थी. वाजपेयी सरकार को हराकर कांग्रेस सत्ता में लौटी थी. लेकिन उसके बाद क्या हुआ. हुड्डा के नेतृत्व में हरियाणा कांग्रेस का कद घटता गया. 2009 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की लहर के बावजूद हरियाणा में जीत केवल 40 सीटें ही जीती. अब बहुमत का आंकड़ा भी दूर था लेकिन किसी तरह जोड़-मोड़ के सरकार बनी और हुड्डा को फिर से प्रदेश की कमान सौंपी गई. पांच साल तक सरकार चली और फिर 2014 को चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस महज 15 सीटों पर सिमट गई. भाजपा ने केंद्र में सरकार बनाई और इसके  बाद हरियाणा में भी सरकार बनाई. मतलब साफ था कि हुड्डा से जनता नाखुश थी.

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हरियाणा की जनता को जो मैसेज गया है वो वहां के मतदाताओं का दिमाग बदलने में वक्त नहीं लगेगा. सब जानते हैं कि हरियाणा का वोटर दो खेमों में बंट हुआ है. हरियाणा का जाट समुदाय कभी भी दलितों को पसंद नहीं करता. ऐसे में कांग्रेस का जो पुश्तैनी वोटर था वो भी अब कांग्रेस से अलग हो जाएगा.

अकेले जूझती राबड़ी देवी

अपने बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप की हरकतों ने उन की टैंशन में कई गुना ज्यादा इजाफा कर दिया है. बेटी मीसा भारती को राजनीति में सैटल करने लिए 2 बार लोकसभा चुनाव के अखाड़े में उतारा गया, लेकिन उन्हें दोनों बार हार का मुंह देखना पड़ा.

कुलमिला कर राबड़ी देवी हर तरफ से परेशानियों से घिरी हुई हैं और उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी में वे किस तरह से पार्टी और परिवार को पटरी पर लाएं?

राबड़ी देवी पार्टी में नई जान फूंकने और परिवार को एकजुट करने की तमाम कोशिशें कर रही हैं, पर अपने पति की तरह सियासी दांवपेंच के खेल में वे माहिर नहीं हैं. साल 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में राजद को नए सिरे से खड़ा करना राबड़ी देवी के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुका है.

लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी में राजद ने राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव की अगुआई में पिछला लोकसभा चुनाव लड़ा था, पर वे दोनों अपनी पार्टी को एक भी सीट नहीं दिला सके. 40 में से 20 लोकसभा सीटों पर राजद ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एक भी उम्मीदवार को जीत नहीं मिली. मीसा भारती भी पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से जीत नहीं सकीं.

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साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद राजद और उस के घटक दलों को मिली करारी हार की समीक्षा के लिए संयुक्त समिति बनाने की बात अभी तक हवा में है. अब तक घटक दलों की एक भी मीटिंग नहीं हो सकी है. तेजस्वी यादव तकरीबन 3 महीने तक सियासी हलचल से भी गायब रहे.

राजद में उथलपुथल से लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी चिंतित हैं. लालू प्रसाद यादव ने अपने दोनों बेटों को संदेश भिजवाया है कि पार्टी के कार्यकर्ता हताश और निराश हैं. कार्यकर्ता ही अब पार्टी पर कई तरह के सवाल उठाने लगे हैं. वे कहने लगे हैं कि पार्टी को खूनपसीने से सींच कर खड़ा करने वाले लालू प्रसाद यादव जेल में हैं और उन का परिवार सत्ता के लालच में आपस में ही सिरफुटौव्वल कर रहा है.

लालू प्रसाद यादव ने अपने बेटों से साफ कह दिया है कि अगर पार्टी और परिवार में से एक को बचाने की नौबत आएगी, तो वे पार्टी को चुनेंगे.

उन की इस चेतावनी के बाद ही पटना से गायब तेजस्वी यादव वापस लौटे और पार्टी कार्यक्रम में भाग लिया.

21 अगस्त, 2019 की रात वे पटना जंक्शन के पास दूध मार्केट को तोड़ने के विरोध में धरने पर बैठे.

गौरतलब है कि दूध मार्केट को साल 1991 में लालू प्रसाद यादव ने ही बनवाया था. इस से पहले राजद की सदस्यता मुहिम की समीक्षा को ले कर 16 अगस्त, 2019 को बुलाई गई बैठक में तेजस्वी यादव नहीं पहुंचे थे. 4 घंटे तक चली बैठक में उन का इंतजार होता रहा.

18 अगस्त, 2019 को दोबारा बैठक बुलाई गई और उस में तेजस्वी यादव के मौजूद रहने का दावा राजद नेताओं ने किया. राबड़ी देवी बैठक में मौजूद थीं. उन्होंने कहा कि विरोधी कहते हैं कि राजद टूट गया है, लेकिन पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत हो रही है.

राबड़ी देवी ने पार्टी नेताओं से कहा कि लोकसभा चुनाव की हार को भूल कर नए सिरे से पार्टी को एकजुट कर आगे बढ़ाने के काम में लग जाएं. राज्य के हर बूथ पर कम से कम 100 सदस्य बनाने पर जोर दिया. गौरतलब है कि बिहार में 72,000 बूथ हैं.

पार्टी सूत्रों की मानें तो तेजस्वी यादव पार्टी पर एकाधिकार के साथ कानूनी पचड़ों से भी नजात चाहते हैं. पार्टी चलाने के लिए वे पार्टी और परिवार दोनों तरफ से कोई दखल नहीं चाहते हैं.

16 अगस्त को राबड़ी देवी ने तेजस्वी यादव को 3 बार फोन कर के पार्टी की बैठक में आने के लिए कहा, पर तेजस्वी ने उन की बात नहीं सुनी. पार्टी के सीनियर नेता भी तेजस्वी के इस रवैए से खासा नाराज हैं.

शिवानंद तिवारी कहते हैं कि तेजस्वी यादव के मीटिंग में रहने या नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, वहीं रघुवंश प्रसाद सिंह मजाकिया लहजे में यहां तक कह गए कि वे हमारे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं और अब सीधे शपथ लेने ही आएंगे.

भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि जनता के पैसों को गटकने और परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली पार्टी राजद की नैया को उस के मांझी ही डुबा रहे हैं, वहीं जनता दल (यूनाइटेड) के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि राजद की अगुआई कर भाजपा और जद (यू) को चुनौती देने का दावा करने वाले तेजस्वी यादव भगोड़े बन कर रह गए हैं. वे जानते हैं कि राजद की नैया डूब चुकी है और डूबते जहाज की सवारी कोई नहीं करना चाहता है.

साल 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद से राबड़ी देवी ने धीरेधीरे सियासी गलियारों से दूरियां बढ़ा ली थीं. मीडिया से भी उन्होंने खामोश दूरी बना रखी

थी. बिहार में सब से लंबे समय तक राज करने वाली दूसरी मुख्यमंत्री रही राबड़ी देवी फिर अपनी मनपसंद जगह ‘किचेन’ की ओर लौट चुकी थीं.

राबड़ी देवी 25 जुलाई, 1997 से 11 फरवरी, 1999 तक मुख्यमंत्री रही हैं. उस के बाद 3 मार्च, 1999 से 2 मार्च, 2000 तक और फिर 11 मार्च, 2000 से 6 मार्च, 2005 तक वे मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठीं. इस मामले में उन्होंने अपने पति लालू प्रसाद यादव को भी मात दे दी. वे तकरीबन 7 साल तक मुख्यमंत्री रहे थे. राज्य के पहले मुख्यमंत्री श्रीकष्ण सिंह का नाम सब से लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकौर्ड दर्ज है. वे तकरीबन 15 साल तक मुख्यमंत्री बने रहे थे.

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राजद की कमान नए हाथ में देने की तैयारी?

साल 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के लिए लालू प्रसाद यादव अपनी पार्टी राजद को नए सिरे से एकजुट कर सियासी अखाड़े में उतारना चाहते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद राजद अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. लालू प्रसाद यादव के बगैर राजद बिखर रहा है. इसी चिंता

को ले कर राजद के उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह और विधानसभा के अध्यक्ष रहे उदय नारायण चौधरी ने रांची रिम्स में लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की थी.

इस साल के आखिर तक राजद को नए तेवर और मुखिया से लैस करने की कवायद शुरू हो चुकी है. राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे को हटा कर नए अध्यक्ष की खोज भी जारी है.

तेजस्वी यादव की अगुआई में लोकसभा चुनाव लड़ने पर राजद को कोई फायदा नहीं हुआ था. इस से तेजस्वी यादव भी हताश हैं और पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी भी है. राजद ने 10 अक्तूबर, 2019 तक 75 लाख पार्टी सदस्य बनाने का टारगेट रखा है.

राजद का अगला प्रदेश अध्यक्ष बनने में विधानसभा के अध्यक्ष और राजद के संस्थापक सदस्य रहे उदय नारायण चौधरी का नाम सब से आगे है. हालांकि वे 10 साल तक विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं और जद (यू) का साथ देते रहे हैं. उन पर राजद को तोड़ने का आरोप लगाते हुए लालू प्रसाद यादव ने खुद साल 2014 में विधानसभा तक मार्च किया था.

दूसरा नाम विधानपरिषद के उपसभापति रहे सलीम परवेज का है जो पिछड़ी अंसारी बिरादरी से आते हैं. इस के अलावा दलित सिपाही शिवचंद्र राम और तनवीर हसन के नाम भी चर्चा में हैं.

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16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति ट्रंप से लेकर तमाम बड़े नेताओं को सुनाई खरी-खोटी

ग्रेटा ने बड़े तीखे शब्दों से विश्व के कई नेताओं पर इस त्रासदी से निपटने के लिए कुछ नहीं करने का भी आरोप लगाया. आपने हमें फेल कर दिया है. युवा पीढ़ी ये समझती है कि आपने हमसे धोका किया है. हम युवाओं की नजरें आप पर हैं और अगर आप लोगों ने हमें असफल किया तो हम आपको कभी भी माफ नहीं करेंगे.

आपको यहीं पर एक लाइन खींचनी होगी. दुनिया जाग चुकी है और चीजें अब बदल रही हैं..ये चाहे आपको पसंद हो या न हो.’ जानते  हैं ये भाषण किसका है. ये किसी देश के बड़े राजनेता का नहीं है न ही किसी मोटीवेशनल स्पीकर का है बल्कि ये कहना है 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग का. जोकि स्वीडन की पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं.

यूएन में आयोजित क्लाइमेट एक्शन समिट में दुनिया भर के नेताओं को फटकार लगाई. यूएन महासचिव गुतारेस के सामने दी गई ग्रेटा की स्पीच अब वायरल हो रही है और उनके सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. इस स्पीच के अलावा ग्रेटा थनबर्ग की एक तस्वीर भी वायरल हो रही है. क्लाइमेट एक्शन समिट में पहुंचे ट्रंप के पीछे खड़ी ग्रेटा जिस निगाह से ट्रंप को देख रही हैं वो लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. ग्रेटा की आंखों में नाराजगी साफ नजर आ रही है.

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ग्रेटा ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और इस आंदोलन को ‘Friday for future’ नाम दिया है. ग्रेटा कौन हैं, स्कूल जाने की उम्र में धरती बचाने का जिम्मा उठाने की प्रेरणा कहां से मिली, आइए ये सब जानते हैं.

10वीं क्लास की छात्रा ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 2003 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था. मां मलेना अर्नमैन स्वीडन की मशहूर ओपेरा सिंगर और पिता स्वांते थनबर्ग एक्टर हैं.‘Charity begins at home’ वाली कहावत से प्रभावित ग्रेटा ने पर्यावरण बचाने की शुरुआत अपने घर से की.

इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने माता पिता को लाइफ स्टाइल बदलने के लिए मनाया. पूरे परिवार ने नॉनवेज खाना छोड़ दिया और जानवरों के अंगों से बनी चीजों का इस्तेमाल बंद कर दिया. कार्बन उत्सर्जन जिन चीजों से होता है उन सब चीजों का इस्तेमाल सीमित कर दिया.

9 सितंबर 2018 को स्वीडन में आम चुनाव होने वाले थे. उससे पहले ही स्वीडन के जंगलों में आग लगी हुई थी और 262 सालों की सबसे भीषण गर्मी पड़ रही थी. ग्रेटा 9वीं क्लास में थीं और फैसला किया कि जब तक चुनाव नहीं निपट जाते, वो स्कूल नहीं जाएंगी.

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क्लाइमेट चेंज के खिलाफ ग्रेटा ने 20 अगस्त 2018 यानी आम चुनाव से पहले मोर्चा खोल दिया. सरकार के खिलाफ स्वीडन की संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. तीन हफ्ते तक प्रदर्शन करते हुए ग्रेटा ने पर्चियां बांटीं जिन पर लिखा होता था ‘मैं इसलिए ये कर रही हूं क्योंकि आप अडल्ट लोग मेरे भविष्य से खेल रहे हो.’ उस वक्त भी उनकी एक तस्वीर वायरल हुई थी.

ग्रेटा ने जमीन पर प्रदर्शन करते हुए सोशल मीडिया की ताकत को पहचाना और उसे अपना हथियार बनाया. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर अपने प्रोटेस्ट की तस्वीरें शेयर करके लोगों को इस मुहिम से जोड़ा. उन्हें कम समय में भारी समर्थन मिला.

फरवरी 2019 में ग्रेटा को वैश्विक पहचान तब मिली जब 224 शिक्षाविदों ने उनके समर्थन में एक ओपन लेटर पर साइन किए. पिछले महीने अमेरिका पहुंची ग्रेटा से एक रिपोर्टर ने पूछा कि क्या वो ट्रंप से मिलने वाली हैं? इस पर उन्होंने कहा कि जब ट्रंप मेरी बातों को सुनने वाले नहीं हैं तो उनसे मिलकर मैं अपना समय क्यों बरबाद करूंगी?डॉनल्ड ट्रंप ने ग्रेटा की स्पीच पर रिएक्शन दिया है. ट्वीट करते हुए ट्रंप ने लिखा ‘वह हैप्पी यंग गर्ल नजर आ रही है, जो उज्ज्वल और अद्भुत भविष्य की तलाश में है. देख कर अच्छा लगा.’ इस व्यंग्यात्मक कमेंट पर भी लोगों ने ट्रंप को आड़े हाथों लिया है.

Video Credit – Sky News

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मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कबड्डी

कबड्डी का खेल बड़ा ही दिलचस्प होता है. इस में कौन किस की टांग लाइन तक खींच रहा है, इस का सटीक अंदाजा तो कई बार रैफरी भी लगाने में गच्चा खा जाता है, तो मैदान से दूर खड़े दर्शकों की बिसात ही क्या, जो धूल फांकते किसी के आउट होने या पकड़े जाने पर तालियां पीटते रहते हैं.

आधी दौड़ और आधी कुश्ती के मिश्रण वाले इस देहाती खेल को मध्य प्रदेश के बड़ेबड़े कांग्रेसी इन दिनों पूरे दिलोदिमाग से खेल रहे हैं और जनता आंखें मिचमिचाते हुए इंतजार कर रही है कि कोई फैसला हो तो घर को जाए.

वैसे, नियमों और कायदेकानूनों के हिसाब से तो कबड्डी में 2 ही टीमें होनी चाहिए, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस का हाल जरा सा अलग है. यहां कांग्रेस की 3 टीमें एकदूसरे से भिड़ रही हैं और उस से भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि कौन सा खिलाड़ी किस टीम से खेल रहा है, इस का अतापता भी किसी को नहीं है. फिर यह तय कर पाना तो और भी मुश्किल काम है कि कौन किस की टांग खींच रहा है.

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लेकिन, इन तमाम गफलतों के बाद भी खेल जारी है और राह चलते लोग तमाशा देखते ताजा गड्ढों में गिर रहे हैं. मनोरंजन का कोई दूसरा साधन उन के पास है भी नहीं, क्योंकि अघोषित बिजली कटौती के चलते घरों में टैलीविजन बंद पड़े हैं और पत्नियां भी अंबानी के ‘जियो’ की कृपा से मायके वालों और सहेलियों से चैटिंग करने में बिजी हैं.

इन तीनों टीमों में से पहली टीम के कैप्टन घोषित मुख्यमंत्री और विधायक दल द्वारा पूरे विधिविधान से चुने गए कमलनाथ हैं, वहीं दूसरी टीम की कैप्टनशिप मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह के पास है, जो घोषित तौर पर कांग्रेस विधायक दल द्वारा न चुने गए मुख्यमंत्री हैं और तीसरी टीम के उस्ताद चिकनेचुपड़े चेहरे वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं जो घोषित टीम के कैप्टन बनतेबनते रह गए थे, लेकिन लाइन में अभी भी लगे हैं, पर दिक्कत यह है कि न कोई छींक रहा है और न कोई छीका टूट रहा है.

सियासी उठापटक के लिए पहचाने जाने वाले दिग्विजय सिंह ने कुछ दिन पहले मंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी थी, जिस में उन के द्वारा तबादलों के लिए की गई सिफारिशों पर कार्यवाही का हिसाब मांगा गया था.

इस धोबीपछाड़ दांव से कई मंत्री सही में घबरा उठे थे कि क्या जवाब दें. और मूल सवाल कहीं हिस्साबांटी का तो नहीं कि अच्छा, सारा का सारा खुद ही हजम कर गए और जिन मुलाजिमों और अफसरों से हम ने पेशगी ले रखी है, उन की फाइलें दबा गए.

अब सच जो भी हो, चिट्ठी का वाजिब असर हुआ और उन की टीम के मंत्री ब्योरा ले कर उन के बंगले पर पहुंच गए और एनओसी हासिल कर ली.

टीम नंबर 1 और टीम नंबर 3 के मंत्री यह कहते हुए बिदक गए कि आप होते कौन हैं हम से हिसाब मांगने वाले… एक युवा खिलाड़ी उमर सिंघार ने तो सीधे सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख डाली कि टीम नंबर 2 के कैप्टन बेवजह टीम नंबर 1 यानी असली टीम के मुखिया बनने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें जनता यानी दर्शकों ने तकरीबन 15 साल पहले ही फाउल पर फाउल करने के चलते खेल से बाहर कर दिया था.

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चूंकि वे पकड़े जाने से बचने के लिए बदन पर सरसों का तेल लगाए रहते हैं, इसलिए उन के खिलाफ ऐक्शन लिया जाए, जिस से असली टीम बेहिचक खेल कर जनता का मनोरंजन कर सके. आखिर विधानसभा की 114 सीटें कबड्डी खेलने के लिए ही तो मिली हैं, नहीं तो जनता का टाइम पास कैसे होगा.

जैसा कि पुराना व पुश्तैनी कांग्रेसी रिवाज है, राष्ट्रीय टीम की अध्यक्ष जिन्हें पहले से ही स्कोर और नतीजा मालूम था, चुप रहीं और चश्मा पोंछते हुए कंप्यूटर स्क्रीन पर अपने ‘स्वाभिमान

से संविधान यात्रा’ वाले प्रोजैक्ट का गुणाभाग लगाते हुए उस का रूट देखते हुए सोचती रहीं कि इन 3 राज्यों से कब, क्यों और कैसे कांग्रेस की जड़ें उखड़ी थीं और क्या अब भी ऐसा कोई टोटका है, जिसे आजमा कर नवहिंदुत्व का चक्रव्यूह बेधा जा सके.

अपने अभिमन्यु ने तो कुरुक्षेत्र छोड़ दिया है, लेकिन वे नहीं छोड़ सकतीं क्योंकि तेजी से देशभर के दलितों को हिंदू बना कर छला जा रहा है और यहां ये आपस में ही लड़ेमरे जा रहे हैं. जिन्हें अपने प्रदेश की परवाह नहीं, वे देश की परवाह क्या खाक करेंगे.

इस अनदेखी से भले ही तीनों टीमों के कप्तानों को ज्ञान प्राप्त हो गया है कि आलाकमान तो पहले से ही दुखी है, उसे और दुखी करना बेवकूफी की हद ही होगी.

लिहाजा, अब कबड्डी धीरेधीरे खेली जाए और लाइन छू कर वापस आ जाने का स्टाइल अपनाया जाए, क्योंकि बात अगर बढ़ी तो अब दूर तलक नहीं जा पाएगी और जनता बजाय तालियां पीटने के मुक्के मारने लगेगी. फिर सालोंसाल तक कबड्डी खेलने के लिए सत्ता का मैदान सपनों में भी नहीं मिलेगा, इसलिए बेहतरी इसी में है कि तीनों टीमों के कैप्टन पैवेलियन वापस लौट कर पंजा लड़ा कर मसला हल कर लें.

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पौलिटिकल राउंडअप: ‘आप’ ने पसारे पैर

सभाजीत सिंह ने शिक्षा के बाजारीकरण के खिलाफ लंबे समय तक आंदोलन चलाया है और शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों के दाखिले को ले कर छेड़े गए आंदोलन पर कई सामाजिक संगठनों ने उन्हें सम्मानित भी किया है.

जावड़ेकर की ‘मैं हूं न’

दिल्ली. अरविंद केजरीवाल के चुनावी वादों और ऐलानों से भारतीय जनता पार्टी में खलबली मची हुई है. इस से उन की आपसी खींचतान भी सामने आ रही है. बौखलाहट में नेता अलगअलग बयान दे रहे हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल का एक कार्यक्रम तक रद्द करा दिया गया.

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इसी सिलसिले में बुधवार, 28 अगस्त को दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा की तरफ से नए बने प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘मैं सब संभाल लूंगा.’

यह कहना जितना आसान लग रहा है उतना ही करना मुश्किल होगा, क्योंकि फिलहाल भाजपा अरविंद केजरीवाल के तोहफों वाले सियासी गणित में फंस कर रह गई है.

‘इंदिरा कैंटीन’ के बहाने

बैंगलुरु. कांग्रेस के सिद्धारमैया ने 15 अगस्त, 2017 को ‘इंदिरा कैंटीन’ योजना चलाई थी और आज बैंगलुरु में 173 ‘इंदिरा कैंटीन’ और 18 ‘मोबाइल इंदिरा कैंटीन’ काम कर रही हैं जिन में 5 रुपए में नाश्ता और 10 रुपए में दोपहर और रात का खाना मिलता है.

कांग्रेस सरकार गई तो अब इस योजना पर बंद होने के काले बादल मंडराने लगे हैं जबकि 28 अगस्त को कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा

कि राज्य सरकार की ‘इंदिरा कैंटीन’ बंद करने की कोई योजना नहीं है लेकिन वे उस के काम करने के तरीके की जांच कराना चाहते हैं.

इस से पहले एक रिपोर्ट आई थी जिस में कहा गया था कि पिछली सरकार की पसंदीदा योजना बंद होने के कगार पर है क्योंकि न तो राज्य सरकार ने और न ही वृहद बैंगलुरु महानगरपालिका ने कैंटीन के लिए बजट आवंटित किया है.

मुख्यमंत्री ने बताया कि ऐसी कुछ रिपोर्टें हैं जिन के मुताबिक कई जगह पर बढ़ा कर बिल दिखाया गया. रिकौर्ड में 100 लोगों को दिखाया गया, जबकि 1,000 लोगों का खाना वहां था.

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भाजपा अध्यक्ष की बदजबानी

कोलकाता. पश्चिम बंगाल में भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष के पुलिस वालों और तृणमूल कार्यकर्ताओं को पीटने संबंधी बयान के बाद कोलाघाट पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया.

पूर्वी मेदिनीपुर जिले के मेचेडा में 26 अगस्त की रात पार्टी के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिलीप घोष ने कहा था, ‘तृणमूल के गुंडों और पुलिस वालों से डरने की जरूरत नहीं है. राज्य के विभिन्न हिस्सों में भाजपा कार्यकर्ताओं पर अकसर हमले होते हैं. दोषियों को पकड़ने की जगह पुलिस फर्जी मामलों में हमारे लड़कों को फंसा रही है…

‘अगर आप पर हमला होता है तो तृणमूल के कार्यकर्ताओं और पुलिस वालों को पीट दीजिए. डरने की जरूरत नहीं. कोई भी दिक्कत होगी तो हम हैं न, सब संभाल लेंगे. अगर पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम को जेल भेजा जा सकता है तो तृणमूल के ये नेता तो हमारे लिए मच्छर, कीड़ेमकोड़े की तरह हैं.’

हर गांव के नेता के लिए यह संदेशा है कि जाओ, भाजपा के पांव पकड़ो.

मनोहर का सियासी दांव

चंडीगढ़. विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पांसा फेंक दिया है. उन्होंने 30 अगस्त को हरियाणा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए नई योजना शुरू की है जिस में उन लोगों को 6,000 रुपए हर साल दिए जाएंगे, जिन की सालाना आमदनी 1.80 लाख रुपए से कम है और 2 हैक्टेयर से कम जोतभूमि है. इस योजना को ‘मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना’ नाम दिया गया है.

इस के साथ ही परिवार के सदस्य जीवन बीमा या दुर्घटना बीमा या प्रधानमंत्री मानधन योजना के तहत पैंशन के भी लाभपात्र होंगे.

केपी यादव के बेहूदा बोल

गुना. मध्य प्रदेश की गुना संसदीय सीट से भाजपा सांसद केपी यादव ने महिला कलक्टर के खिलाफ बेहूदा टिप्पणी करते हुए उन्हें चाटुकार बोला और कहा कि कलक्टर सांसदों से मिलने के लिए गांवगांव जाती थीं और उन के चरण चुंबन करती थीं.

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याद रहे कि केपी यादव ने इस साल लोकसभा चुनाव में गुना से कांग्रेस के उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ जीत दर्ज की थी.

केपी यादव पहले कांग्रेस में ही थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहयोगी रह चुके हैं. पिछले उपचुनाव में अनदेखी का आरोप लगा कर वे कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए थे.

नीतीश बोले जींसटीशर्ट नहीं

पटना. बिहार सरकार ने सचिवालय में काम करने वाले अफसरों और मुलाजिमों के लिए एक फरमान जारी किया है जिस के तहत वे अब दफ्तर में जींसटीशर्ट पहन कर नहीं आ सकेंगे. उन के तड़कभड़क रंगों वाले कपड़ों के पहनने पर भी रोक लगाई गई है.

राज्य सरकार के अवर सचिव शिव महादेव प्रसाद की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि पदाधिकारी और कर्मचारी औफिस संस्कृति के खिलाफ कैजुअल ड्रैस पहन कर दफ्तर नहीं आएंगे. उन्हें फौर्मल ड्रैस पहन कर ही आना होगा.

सुप्रिया ने जताई चिंता

नासिक. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नेता सुप्रिया सुले ने कहा है कि अपने भंडार से सरकार को नकदी देने का भारतीय रिजर्व बैंक का फैसला संकेत देता है कि देश की माली हालत अच्छी नहीं है.

भारतीय रिजर्व बैंक ने 26 अगस्त को सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए का लाभांश और अधिशेष भंडार देने को मंजूरी दी थी. इस से वित्तीय घाटे के बढ़े बिना ही अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में मोदी सरकार को मदद मिलेगी.

इसी मुद्दे को ले कर केंद्र सरकार पर हमला करते हुए सुप्रिया सुले ने कहा, ‘यह दिखाता है कि देश की अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं है. विभिन्न औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं और बेरोजगारी बढ़ रही है.’

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गहलोत की इच्छा

बाड़मेर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकारी मैडिकल कालेज के लोकार्पण समारोह में कहा कि सरकार राज्य के हर जिले में मैडिकल कालेज खोलना चाहती है ताकि आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का फायदा जनता को मिल सके.

फिलहाल जैसलमेर, सिरोही, करौली और नागौर जैसे विकासशील जिलों में जल्दी ही मैडिकल कालेज खोलने के प्रयास किए जा रहे हैं.

याद रहे कि एक अस्पताल 8-10 साल में ही बन पाता है. आज कह दो, देखा जाएगा.

सियासी समोसे से लालू गायब

इस के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल में बंद होने की वजह से पार्टी बिखरने के कगार पर है और लालू प्रसाद यादव के दोनों लाड़ले उन की सियासी विरासत को संभालने में फिलहाल तो नाकाम साबित हो रहे हैं.

कभी बिहार की राजनीति की धुरी रहे लालू प्रसाद यादव जानते हैं कि साल 2020 में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव उन के लिए आरपार की लड़ाई साबित होगा. इस के लिए वे अपनी पार्टी को नई सजधज के साथ उतारने की कवायद में जुट गए हैं, पर उन की सब से बड़ी लाचारी है कि वे रांची जेल में बंद हैं. इतना ही नहीं, चारा घोटाला

में कुसूरवार ठहराए जाने की वजह से वे साल 2024 तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.

लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी में उन के लाड़ले बेटे तेजस्वी यादव की अगुआई में लोकसभा 2019 का चुनाव लड़ा गया और वे पूरी तरह से नाकाम रहे.

इस लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती भी पाटलिपुत्र से चुनाव हार गईं.

साल 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि लोकसभा चुनाव में इस पार्टी की मौजूदगी जीरो है.

साल 1997 में नई पार्टी राजद बनाने के बाद लालू प्रसाद यादव ने पूरे दमखम के साथ 1998 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिस में पार्टी को 17 सीटें हासिल हुई थीं. उस के बाद से लोकसभा में राजद की लगातार दमदार मौजूदगी री है. फिलहाल तो लालू प्रसाद यादव के लिए राहत की बात यह है कि 243 सीट वाली बिहार विधानसभा में उन की पार्टी राजद के 81 विधायक हैं और राजद ही विधानसभा में सब से बड़ी पार्टी है. जद (यू) के 71, भाजपा के 53 और कांग्रेस के 27 विधायक हैं.

विधानसभा में सब से बड़ी पार्टी होने के बाद भी पिछले लोकसभा चुनाव में राजद का खाता नहीं खुल सका. इस की सब से बड़ी वजह बिहार के सियासी अखाड़े से लालू यादव की गैरमौजूदगी होना रही.

बिहार में ज्यादातर नेताओं के बेटे अपने पिता लालू यादव की सियासी विरासत को संभालने और बाप जैसा रसूख पाने में नाकाम ही रहे हैं.

बिहार के पहले मुख्यमंत्री रहे श्रीकृष्ण सिंह के बेटे स्वराज सिंह और शिवशंकर सिंह विधायक तो बने, पर अपने पिता के कद को हासिल नहीं कर सके.

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समाजवादी नेता और राज्य के धाकड़ मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर कई बार विधायक और मंत्री तो बने, पर नेतागीरी के मामले में पिता जैसी ऊंचाई नहीं पा सके.

मुख्यमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह की बीवी तो सांसद बनीं, पर उन के बेटे राजनीति में कुछ नहीं कर सके. रेल मंत्री रहे ललित नारायण मिश्रा के बेटे विजय कुमार मिश्रा भी अपने पिता के बराबर की लकीर भी नहीं खींच सके.

भागवत झा आजाद के बेटे कीर्ति आजाद और जगदेव प्रसाद के बेटे नागमणि आज तक पिता के नाम पर ही राजनीति कर रहे हैं. वे अपना खास वजूद बनाने में नाकाम ही रहे हैं.

कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेंद्र सिंह के बेटे समीर सिंह और बुद्धदेव सिंह के बेटे कुणाल सिंह ने कई बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, पर जीत नहीं पाए. ‘शेरे बिहार’ कहे जाने वाले रामलखन सिंह यादव के बेटे प्रकाश चंद्र पिता जैसी हैसियत पाने को तरसते ही रह गए.

लालू प्रसाद यादव की बात करें तो 5 जुलाई, 1997 को जनता दल से अलग हो कर उन्होंने नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाई थी. उस के बाद साल 2005 तक बिहार पर राजद ने राज किया था. वे 2 दशकों तक बिहार में सरकार और सियासत की धुरी रहे, ऐसे में उन का सत्ता से दूर होना पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन गया है.

गौरतलब है कि जनवरी, 1996 में 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले का भंडाफोड़ हुआ था. इस घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया था. 17 साल तक की जांच और अदालती सुनवाई के बाद लालू प्रसाद यादव समेत पहले के मुख्यमंत्री और जद (यू) नेता जगन्नाथ मिश्र जो अब नहीं रहे, जद (यू) सांसद जगदीश शर्मा, राजद विधायक आरके राणा समेत 32 आरोपियों को सजा मिली है.

सत्ता और लगातार मिलती कामयाबी ने लालू प्रसाद यादव को बौरा भी दिया था. उन के बदलते तेवरों की वजह से उन के कई भरोसेमंद साथी एकएक कर उन का साथ छोड़ने लगे.

पहली बार उन की पार्टी राजद को सब से बड़ा झटका फरवरी, 2014 में लगा था, जब उन की पार्टी के 13 विधायकों ने उन्हें ‘बायबाय’ कर दिया था और सब उन के प्रतिद्वंद्वी रहे नीतीश कुमार के खेमे में जा बैठे थे.

सम्राट चौधरी, राघवेंद्र प्रताप सिंह, ललित यादव, रामलषण राम, अनिरुद्ध कुमार, जावेद अंसारी जैसे कद्दावर नेताओं ने लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़ दिया था. इन नेताओं का आरोप था कि लालू प्रसाद यादव ने राजद को कांग्रेस की बी टीम बना कर रख दिया है.

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इस झटके से लालू प्रसाद यादव उबर भी नहीं पाए थे कि उन के सब से भरोसेमंद सिपहसालार और आंखकान माने जाने वाले रामकृपाल यादव ने उन की ‘लालटेन’ छोड़ कर भाजपा का ‘कमल’ थाम लिया था. उस के बाद दानापुर के कद्दावर नेता श्याम रजक भी उन का साथ छोड़ नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल हो गए थे.

लालू प्रसाद यादव की सब से बड़ी कमजोरी यह रही है कि पार्टी के ऊंचे पदों पर वे अपने परिवार के लोगों को ही बिठाना चाहते हैं.

साल 1997 में जब चारा घोटाले में मामले में लालू यादव पहली बार जेल गए थे तो अपनी पत्नी राबड़ी देवी को रसोईघर से निकाल कर मुख्यमंत्री की कुरसी पर बिठा दिया था. उस के बाद वे जेल से ही राजपाट चलाते रहे.

अब कुछ महीने पहले जब चारा घोटाले पर अंतिम फैसला आने की सुगबुगाहट चालू हुई तो पार्टी के बड़े नेताओं के बजाय अपने बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव को आगे ला कर खड़ा कर दिया.

पिछले लोकसभा चुनाव में भी पाटलिपुत्र सीट से अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती को चुनाव मैदान में उतारा था और उस बाद भी वे चुनाव हार गईं.

पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफैसर राजीव रंजन कहते हैं कि बिहार की राजनीति में अब लालू प्रसाद यादव को फिर जीरो से शुरुआत करने की जरूरत होगी.

साल 1990 के विधानसभा चुनाव के समय जन्म लेने वाले बच्चे आज वोटर बन चुके हैं और वे अपने कैरियर के साथ नए बिहार का सपना भी देखबुन रहे हैं. नीतीश कुमार के 19 सालों के काम के सामने सामाजिक न्याय के मसीहा लालू प्रसाद यादव कमजोर नजर आने लगे हैं.

बदलते बिहार और नौजवान वोटरों के मनमिजाज को लालू प्रसाद यादव और उन के लाल अब तक भांप नहीं सके हैं. वे अभी भी सामाजिक न्याय, आरक्षण और लालटेन जैसे चुक गए नारों की ही रट लगाते रहते हैं. समय के साथ उन्होंने न खुद की सोच को बदला और न ही वे नए सियासी नारे ही पढ़ पाए हैं.

गौरतलब है कि बिहार में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 38 सीटों के अलावा 60 ऐसी विधानसभा सीटें भी हैं जहां दलित निर्णायक स्थिति में हैं, क्योंकि वहां उन की आबादी 16 से 30 फीसदी है.

राज्य के 38 जिलों व 40 लोकसभा सीटों और 243 विधानसभा सीटों पर जीत उसी की होती है, जो बिहार की कुल 119 जातियों में से ज्यादा को अपने पक्ष में गोलबंद करने में कामयाब हो जाता है.

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लालू प्रसाद यादव माय समीकरण (मुसलिमयादव) के बूते बिना कुछ काम किए 15 सालों तक बिहार पर राज करते रहे थे. नीतीश कुमार बारबार तरक्की का नारा लगाते रहे हैं, पर चुनाव के समय उन के इस नारे पर जातिवाद ही हावी होता रहा है. टिकट के बंटवारे में हर दल यही देखता है कि उन का उम्मीदवार किस जाति का है और जिस क्षेत्र से वह चुनाव लड़ रहा है, वहां कौनकौन सी जातियों के वोट उसे मिल सकेंगे. बिहार की कुल आबादी 10 करोड़, 50 लाख है और 6 करोड़, 21 लाख वोटर हैं. इन में 27 फीसदी  अतिपिछड़ी जातियां, 22.5 फीसदी पिछड़ी जातियां, 17 फीसदी महादलित, 16.5 फीसदी मुसलिम, 13 फीसदी अगड़ी जातियां और 4 फीसदी अन्य जातियां हैं.

वंचित मेहनतकश मोरचा के अध्यक्ष किशोरी दास कहते हैं कि जाति के नाम पर पिछड़ों और दलितों के केवल वोट ही लिए गए हैं, उन्हें आज तक किसी भी सियासी दल या सरकार ने कुछ नहीं दिया.

बिहार राज्य की राजनीति सामाजिक समीकरण से नहीं, बल्कि जातीय समीकरण से चलती रही है. हर दल का जातीय समीकरण है. कांग्रेस सवर्ण, मुसलिम और दलित वोट को गोलबंद करने में लगी रही है तो लालू प्रसाद यादव मुसलिमों और यादवों के बूते राजनीति चमकाते रहे हैं.

नीतीश कुमार कुर्मी, कुशवाहा, दलित और महादलित के वोट पाते रहे हैं, वहीं रामविलास पासवान दुसाध और महादलितों की बात करते रहे हैं. भाजपा अगड़ी जातियों के साथ वैश्यों और पिछड़ी जातियों को लुभाती रही है.

लालू प्रसाद यादव की ही बात करें तो वे भी हमेशा से पोंगापंथ के जाल में उलझे रहे हैं. पिछड़ों और दलितों को आवाज देने का दावा करने वाले लालू प्रसाद यादव भी चुनाव में जीत के लिए जनता से ज्यादा मंदिर और मजार पर यकीन करते रहे हैं.

चारा घोटाला में फंसने और उस के बाद उस मामले में आरोप साबित होने के बाद से लालू प्रसाद यादव अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सियासी और कानूनी मुश्किलों से जूझते रहे हैं. वे चारा घोटाला मामले में जेल में बंद हैं और उन की पार्टी का वजूद खतरे में है.

लालू प्रसाद यादव की सब से बड़ी गलती यही रही है कि उन्होंने अपनी पार्टी में दूसरे नेताओं को ताकतवर नहीं बनाया, ताकि पार्टी हमेशा उन की मुट्ठी में रहे. अपनी पार्टी के एक से 10वें नंबर तक केवल लालू प्रसाद यादव ही रहे. अब जब वे जेल गए हैं तो उन्हें अपनी इस गलती का अहसास हो रहा है, पर अब कुछ किया नहीं जा सकता है.

राष्ट्रीय जनता दल में रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, अब्दुलबारी सिद्दीकी जैसे कई धाकड़ और असरदार नेता हैं, पर लालू प्रसाद यादव ने कभी उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया. उन की हालत ऐसी कर के रखी कि लालू प्रसाद यादव के बगैर वे बेजार साबित हों. अब जो हालात पैदा हुए हैं, उन में पार्टी के विधायकों को एकजुट रखना सब से बड़ी चुनौती है.

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लालू प्रसाद यादव के स्टाइल की ठेठ गंवई सियासत की कमी बिहार को खल रही है. बिना किसी लागलपट के अपनी धुन में अपने मन की बात और भड़ास मौके बे मौके कह देने वाले लालू प्रसाद यादव के बगैर बिहार का राजनीतिक गलियारा सूना पड़ गया है.

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अकसर हंसीमजाक में कहते थे कि जब तक समोसे में आलू रहेगा, तब तक बिहार की राजनीति में लालू रहेगा. आज बिहार के सियासी समोसे से गायब लालू प्रसाद यादव झारखंड की जेल में बंद हैं, जिस से निश्चय ही पटना से ले कर दिल्ली तक के सियासी समोसे का मजा किरकिरा हो चुका है.

बदहाल सरकारी अस्पताल

गांवदेहात के तमाम इलाकों से राजधानी पटना तक के सरकारी अस्पतालों में इलाज का सही इंतजाम नहीं है. जिला अस्पताल या ब्लौक अस्पताल तो इन गरीबों को बड़े अस्पतालों में रैफर कर देते हैं, जबकि इन के पास राजधानी के अस्पतालों में जाने के लिए भाड़ा तक नहीं होता. मजबूर हो कर ऐसे लोग सूद पर या जेवर गिरवी रख कर इन सरकारी अस्पतालों में इलाज कराते हैं.

औरंगाबाद जिले के कंचननगर के बाशिंदे 25 साला जयप्रकाश का पूरा शरीर लुंज हो गया था. इलाज के लिए आसपड़ोस के लोगों ने चंदा जमा कर उसे एम्स अस्पताल, दिल्ली भिजवाया. एक महीने तक जांच होने पर भी बीमारी का पता नहीं चल सका और जयप्रकाश लौट कर अपने गांव चला आया.

अमीर तबके के लोग तो देशविदेश तक में अपना इलाज करा रहे हैं, पर गरीबों के लिए सरकारी इलाज भी मजाक बन कर रह गया है. सरकारी अस्पतालों में जचगी के लिए आई औरतों को कोई न कोई बहाना बना कर प्राइवेट अस्पतालों में आपरेशन से बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर किया जाता है.

सरकारी अस्पताल के बहुत से मुलाजिमों का इन प्राइवेट अस्पतालों से कमीशन बंधा हुआ है और यह खेल पूरे बिहार में बिना डर के खुलेआम चल रहा है.

गरीबों का इलाज

अगर अमीर लोग भी सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए जाते हैं तो उन का खासा खयाल रखा जाता है. पटना पीएमसीएच जैसे अस्पताल में भी जिन लोगों की पैरवी होती है, उन पर खासा ध्यान दिया जाता है. गरीबों की न तो कोई पैरवी होती है, न ही वे ज्यादा पैसा खर्च कर पाते हैं.

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जांच के नाम पर प्राइवेट और सरकारी अस्पताल के डाक्टरों का कमीशन बंधा हुआ है. जिस जांच का कोई मतलब नहीं होता है, वह भी कमीशन के फेर में कराई जाती है.

प्रदेश का सूरतेहाल

100 कुपोषित जिलों में से 18 जिले बिहार के हैं. इन जिलों में गोपालगंज, औरंगाबाद, मुंगेर, नवादा, बांका, जमुई, शेखपुरा, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, सारण, रोहतास, अररिया, सहरसा, नालंदा, सिवान, मधेपुरा, भागलपुर और पूर्वी चंपारण शामिल हैं.

11 जिलों में औसत से कम लंबाई के बच्चे हैं. उन जिलों में जमुई, मुंगेर, पटना, बक्सर, दरभंगा, खगडि़या, बेगूसराय, अररिया, रोहतास, मुजफ्फरपुर और सहरसा में ठिगनेपन की समस्या है.

सेहत का मतलब शारीरिक और मानसिक रूप से सेहतमंद होना है, लेकिन दोनों लैवलों पर बिहार की हालत ज्यादा चिंताजनक है. गरीबों की जबान पर एक नाम है पटना का पीएमसीएच सरकारी अस्पताल. बिहार के किसी कोने में भी गरीबों को अगर कोई गंभीर बीमारी होती है तो लोग सलाह देते हैं कि पटना पीएमसीएच में चले जाओ. लेकिन बहुत से मरीज यहां आ कर भी बुरी तरह फंस जाते हैं.

इस अस्पताल में बिहार के कोनेकोने से मरीज आते हैं. उन्हें यह यकीन होता है कि यहां अच्छा इलाज होगा, लेकिन यहां भी घोर बदइंतजामी है.

इस अस्पताल में 1,675 बिस्तर हैं लेकिन मरीजों की तादाद दोगुनी है. इमर्जैंसी में 100 से बढ़ा कर 200 बिस्तर किए गए हैं लेकिन स्टाफ की तादाद नहीं बढ़ाई गई है. ओपीडी में तकरीबन रोजाना 1,500 से ले कर 2,500 तक मरीज आते हैं.

इस अस्पताल में 1,258 नर्सों की जगह 1,018 नर्स बहाल हैं. 27 ओटी असिस्टैंट में से महज 19 ही बहाल हैं. 28 ड्रैसर में से महज 11 ही बहाल हैं. 37 फार्मासिस्ट की जगह 31 हैं. 21 लैब टैक्निशियन की जगह 14 हैं.

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ब्लड बैंक में 6 मैडिकल अफसरों में से महज 2 ही बहाल हैं. सैंट्रल इमर्जैंसी के लिए 25 डाक्टरों का कैडर बनना था जो आज तक नहीं बना है.

मर्द डाक्टरों से जचगी

बिहार के गांवदेहात के क्षेत्रों से ले कर शहर तक के सरकारी अस्पतालों में महिला डाक्टरों की कमी है. इस राज्य में 68 फीसदी महिला डाक्टरों के पद खाली हैं. स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के 533 फीसदी पद स्वीकृत हैं. इन में से महज 167 पद ही भरे गए हैं और 366 पद खाली हैं. संविदा पर नियुक्ति के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति ने 88 महिला डाक्टरों की नियुक्ति की जिस में से महज 48 लोगों ने योगदान किया.

बेगूसराय, जहानाबाद, वैशाली, कैमूर, सारण वगैरह जगहों के पीएचसी में मर्द डाक्टरों द्वारा एएनएम का सहारा ले कर जचगी कराने का सिलसिला जारी है. ऐसे डाक्टरों से औरतों का शरमाना लाजिमी है, पर मजबूरी में वे उन्हीं से जचगी करा रही हैं.

बिहार प्रदेश छात्र राजद के प्रभारी राहुल यादव का कहना है कि स्वास्थ्य सूचकांक के सर्वे में बिहार सब से निचले पायदान पर है. स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ने के बजाय इस राज्य में उस की लगातार गिरावट जारी है.

भारत और राज्य सरकार का सेहत से जुड़ा खर्च दुनिया में सब से कम है. बिहार देश में सब से कम खर्च करने वाला राज्य है जो राष्ट्रीय औसत से भी एकतिहाई कम खर्च करता है.

पिछले 12 सालों से सत्ता पर काबिज नीतीश सरकार का ध्यान शायद इस ओर नहीं है. ऐसा लगता है कि हमारा देश और राज्य दुनिया में ताल ठोंक कर परचम लहरा रहा है, लेकिन सचाई कुछ और ही है.

बिहार की सरकार स्वास्थ्य पर खर्च 450 रुपए प्रति व्यक्ति सालाना करती है, जबकि एक बार की डाक्टर की फीस 500 रुपए है. बिहार का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है.

सरकार की उदासीनता की वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं इस राज्य के गरीबों की जेब पर भारी पड़ती जा रही हैं और इलाज के लिए लोग घरखेत तक बेचने के लिए मजबूर हैं.

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डाक्टर जब मरीज के परिवार वालों को बोलता है कि 4 लाख रुपए जमा करो या फिर मरीज को मरने के लिए अपने घर ले जाओ, उस समय उन पर क्या गुजरती है, यह सोच कर कलेजा मुंह को आ जाता है. कभीकभार ऐसा भी होता है कि जमीनजायदाद बेचने के बाद भी मरीज की मौत हो जाती है. उस के बाद उस का परिवार सड़क पर आ जाता है.

सच तो यह है कि तरक्की का जितना भी ढोल पीट लिया जाए लेकिन सेहत के मामले में बिहार पूरी तरह फिसड्डी साबित हो चुका है.

मां के गर्भ में ही टूट चुकी थी 35 हड्डियां, रोंगटे खड़े कर देती है स्पर्श शाह की स्टोरी

आप सोच सकते हैं कि आपके शरीर की हड्डियां टूटी हों फिर भी आप भी आपके हौंसले न टूटे हों. आम इंसान के शरीर की एक भी हड्डी टूट जाती है तो महीनों तक बेड रेस्ट हो जाता है लेकिन एक ऐसा बच्चा जिसको ऐसी बीमारी है जो उसके शरीर की हड्डियां तोड़ देती है लेकिन फिर इस बच्चे का हौंसला नहीं टूटा. आज ये बच्चा पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है. आपने मोदी-ट्रंप के ह्यूस्टन कार्यक्रम को देखा ही होगा. इस कार्यक्रम में सबसे अलग कोई बात थी तो वो ये थी कि 16 साल का बच्चा वहां पर भारत का राष्ट्रीय गीत जन-गन-मन गा रहा था.

मोदी-ट्रंप की इस मुलाकात के बीच एक सबसे रोचक जानकारी है उस बच्चे की जोकि इस कार्यक्रम को अगुवाई कर रहा है. जब दोनों नेता एनआरजी स्टेडियम पहुंच जाएंगे तो सबसे यही बच्चा कार्यक्रम की शुरुआत करेगा. बच्चे का नाम है स्पर्श शाह.

स्पर्श शाह की उम्र 16 साल है और वो भारतीय मूल का है. स्पर्श राष्ट्रीय गान गा गाकर कार्यक्रम की शुरुआत करेगा. ये बच्चा जन्म से ही ऑस्टियोजेन्सिस इम्परफेक्टा नाम की बीमारी से पीड़ित है. स्पर्श पीएम मोदी से मिलने के लिए काफी उत्साहित भी हैं. बता दें कि स्पर्श शाह रैपर, सिंगर, लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर हैं, जो अमेरिका के न्यू जर्सी में रहते हैं.

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जानकारी के मुताबिक स्पर्श शाह की पिछले कुछ सालों में 130 से अधिक हड्डियां टूट चुकी हैं. बताया जाता है कि स्पर्श जब मां के पेट में थे, तभी उसकी 35 हड्डियां टूट चुकी थीं. बीमारी के कारण स्पर्श चल भी नहीं सकते. 16 साल के स्पर्श को कुल 100 से ज्यादा फ्रैक्चर हुए हैं.

शाह अगले एमिनेम बनना चाहते हैं और एक अरब लोगों के सामने परफॉर्म करना चाहते हैं. मार्च 2018 में रिलीज हुई ‘ब्रिटल बोन रैपर’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री में स्पर्श शाह की जीवन यात्रा को दिखाया गया. यह फिल्म उनकी बीमारी से लड़ने पर फोकस है. शाह का वीडियो देखने पर लगता है कि इतनी गंभीर बीमारी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाई.

स्पर्श शाह हाउडी मोदी कार्यक्रम में राष्ट्रगान गोने को लेकर उत्साहित हैं. वह कहते हैं कि”मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है कि मैं इतने सारे लोगों के सामने गा रहा हूं. मैं राष्ट्रगान गण, जन गण मन गाने के लिए उत्साहित हूं. मैंने पहली बार मोदी जी को मैडिसन स्क्वायर गार्डन पर देखा था, मैं मिलना चाहता था, मगर मैं उन्हें केवल टीवी पर ही देख पाया.

आगे स्पर्श कहते हैं कि मगर भगवान की दुआ है जो मैं उनसे मिलने जा रहा हूं और मैं राष्ट्रगान गाने को लेकर भी काफी उत्साहित हूं. स्पर्श तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने एमिनेम गीत “नॉट अफ्रेड” को कवर करते हुए एक वीडियो रिकॉर्ड किया. जिसे ऑनलाइन 65 मिलियन से अधिक बार देखा गया.

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अनंत सिंह सरकारी फंदे में

ललन सिंह को लोकसभा चुनाव में चुनौती देना बाहुबली विधायक अनंत सिंह यानी ‘छोटे सरकार’ को महंगा पड़ गया है. उन के पीछे पूरा सरकारी कुनबा पड़ गया है, जिस से उन की मुश्किलों का कोई अंत होता नहीं दिख रहा है.

साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के समय से ही नीतीश कुमार और अनंत सिंह के बीच ठनी हुई है. मोकामा से जब जनता दल (यूनाइटेड) ने अनंत सिंह को टिकट नहीं दिया तो उन्होंने 2 सितंबर, 2015 को जद (यू) से नाता तोड़ कर निर्दलीय चुनावी अखाड़े में कूद कर जद (यू) के उम्मीदवार नीरज कुमार को पटकनी दी थी. अनंत सिंह ने साल 2005 और साल 2010 का विधानसभा चुनाव जद (यू) के टिकट पर ही लड़ा और जीता था.

‘सरकार’ से पंगा लेना ‘छोटे सरकार’ को अब काफी महंगा पड़ने वाला है. उन के बाढ़ के लदमां के पुश्तैनी घर पर 16 अगस्त की सुबह 4 बजे पुलिस ने छापा मारा था. पुलिस को सूचना मिली थी कि विधायक और उन के समर्थक घर में छिपा कर रखे गए गैरकानूनी हथियारों को हटाने वाले हैं.

अनंत सिंह के घर की घेराबंदी कर छापामारी की गई. उन के घर से एक एके-47 रायफल, 2 हैंड ग्रैनेड और 26 कारतूस (7.62 एमएम) बरामद किए गए थे. एके-47 को प्लास्टिक के साथ कार्बन से पैक कर के रखा गया था.

कार्बन से पैक करने का मतलब है कि गाड़ी की जांच के दौरान एके-47 रायफल पुलिस और मैटल डिटैक्टर की पकड़ में नहीं आए.

घर के खपरैल वाले कमरे में संदूक के पीछे बड़ी ही चालाकी के साथ उसे छिपा कर रखा गया था. बरामद हैंड ग्रैनेड ऐक्सप्लोसिव-36 का है. एके-47 रायफल असैंबल की हुई?है.

पुलिस का मानना है कि जबलपुर और्डिनैंस फैक्टरी से एके-47 के पार्ट्स चोरी हुए थे. चोरों ने उसे मुंगेर में असैंबल किया था. छापामारी के बाद बाढ़ थाने में विधायक समेत कई अज्ञात लोगों पर केस दर्ज किया गया था.

अनंत सिंह और उन के गुरगों पर आर्म्स ऐक्ट, यूएपीए (अनलौफुल ऐक्टिविटीज प्रिवैंशन ऐक्ट) और विस्फोटक पदार्थ ऐक्ट की धाराएं लगाई गई हैं.

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यूएपीए साल 1967 में बना था. इस ऐक्ट की धारा 13 का आरोपित आरोपपत्र के 180 दिनों तक नजरबंद और 30 दिनों तक पुलिस की हिरासत में रखा जा सकता है. प्रतिबंधित हथियारों को रखने, इस्तेमाल करने और एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले के खिलाफ इस ऐक्ट का इस्तेमाल किया जाता है.

इसी साल जुलाई माह में इस ऐक्ट की कई धाराओं में संशोधन किया गया है, जिस के तहत किसी को आतंकवादी भी करार दिया जा सकता है.

अनंत सिंह का कहना है कि उन्हें बेवजह परेशान करने की नीयत से यह छापेमारी की गई है. जिस घर में छापा मारा गया है, वहां कोई नहीं रहता है. पुलिस ने उन्हें फंसाने के लिए उन के घर में एके-47 रायफल रख दी है. सरकार के इशारे पर उन के पुश्तैनी घर को तोड़ा जा रहा है. बिना किसी कुर्की और वारंट के घर को खोदा जा रहा है.

गौरतलब है कि कुख्यात भोला सिंह और उस के भाई मुकेश सिंह की हत्या की साजिश रचने के मामले की एक आडियो क्लिप पुलिस के हाथ लगी थी. उस में अनंत सिंह बड़े और कुछ छोटे हथियारों के बारे में बात कर रहे थे. आडियो को सुनने के बाद से ही पुलिस हथियारों की खोज में लगी हुई थी.

आडियो क्लिप में इस बात का भी जिक्र है कि एके-47 रायफल भोला सिंह और उस के भाई की हत्या के लिए मंगाई गई थी.

आडियो क्लिप पुलिस के हाथ लगने के बाद ही अनंत सिंह और उन के गुरगे सतर्क हो गए थे और हथियारों को छिपा कर रख दिया था. आडियो की आवाज से अनंत सिंह की आवाज का मिलान करने के लिए पुलिस उन की आवाज भी रैकौर्ड करा चुकी है.

17 अगस्त को पुलिस ने अनंत सिंह की गिरफ्तारी के लिए कोर्ट में अर्जी दी. उन पर यूएपीए की धारा-13, विस्फोटक ऐक्ट 3/4, आर्म्स ऐक्ट की धारा-25 (1-ए), 25 (1-एए), 25 (1-बी), 26/35 के अलावा आईपीसी की धारा 414, 120 बी के तहत बाढ़ थाने में केस दर्ज किया गया है.

बाढ़ थाने के थानेदार संजीत कुमार के बयान पर केस दर्ज किया गया है. केस का आईओ एएसपी लिपि सिंह को बनाया गया है. पुलिस ने अनंत सिंह के पुश्तैनी गांव के मकान के केयरटेकर सुनील राम को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.

अनंत सिंह पर पहले से ही बिहार और झारखंड के अलगअलग थानों में 53 आपराधिक मामले दर्ज हैं. इन में हत्या, हत्या की कोशिश, हत्या के लिए अपहरण, गैरकानूनी तरीके से हथियार और विस्फोटक सामान रखने के मामले शामिल हैं.

साल 2015 में जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के साथ मिल कर सरकार बनाई थी तो उस समय भी अनंत सिंह को सरकारी आफत का सामना करना पड़ा था. उस समय उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजना राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बहुत बड़ी सियासी चाल थी. अनंत सिंह को गिरफ्तार करा कर लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार से कई सालों पुराना बदला भी साध लिया था.

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साल 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के करीबी बाहुबली नेता शहाबुद्दीन को जेल में ठूंस दिया था. शहाबुद्दीन आज तक जेल से बाहर नहीं निकल सके हैं.

17 जून, 2015 को बाढ़ में 4 लड़कों के अपहरण और उन में से एक पवन यादव उर्फ पुटुस यादव की हत्या के मामले में अनंत सिंह 24 जून को जेल में ठूंस दिए गए थे. उस समय भी उन के घर की छापेमारी में इंसास रायफल की 6 मैगजीन, खून से सने कपड़े, बुलेटप्रूफ जैकेट वगैरह सामान बरामद किया गया था.

साल 2004 में जब एसटीएफ ने अनंत सिंह के गांव लदमां में छापा मारा था तो इन के गुरगों ने गोलीबारी शुरू कर दी थी, जिस में एसटीएफ के एक जवान की मौत हो गई थी. उस समय भी पुलिस ने अनंत सिंह के घर से ढेर सारे हथियार, कारतूस और गोलाबारूद बरामद किया था.

गौरतलब है कि अनंत सिंह के पनपने में नीतीश कुमार का बहुत बड़ा हाथ रहा है. वे नीतीश कुमार के लिए भीड़ और वोट जुटाने का काम करते थे और चुनाव में हर तरह से मदद करते थे.  पर अब मामला उलट गया है.

पर याद रहे कि भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले अनंत सिंह की अपनी जाति और अपने चुनाव क्षेत्र मोकामा में रौबिनहुड जैसी इमेज है. नीतीश कुमार को अगामी चुनावी में भूमिहार वोट का नुकसान हो सकता है.

गौरतलब है कि राज्य में भूमिहारों के 2.9 फीसदी वोट हैं. जमीन के मामले में मजबूत और दबंग भूमिहार जाति के बीच नीतीश कुमार को ले कर काफी नाराजगी है.

‘मगहिया डौन’ और मोकामा

पटना शहर से 90 किलोमीटर दूर बसी मोकामा नगरपालिका पटना जिले में ही आती है. 57 साल के बाहुबली नेता अनंत सिंह 3 बार मोकामा के विधायक रह चुके हैं. साल 2005 में पहली बार उन्होंने जद (यू) के टिकट से मोकामा विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की थी. उस के बाद साल 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जद (यू) से नाता तोड़ कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था और जद (यू) के उम्मीदवार नीरज कुमार को हराया था.

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मर्सडीज बैंज कार और बग्घी के शौकीन अनंत सिंह ‘मगहिया डौन’ के नाम से भी जाने जाते हैं. उन का दावा है कि वे अपने क्षेत्र में 10,000 से ज्यादा गरीब लड़कियों की शादी करा चुके हैं.

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