‘अनुपमा’ स्टार Sudhanshu Pandey ने गाया Sonu Nigam का ये गाना, चेहरे पर नजर आयी उदासी

Anupamaa एक्टर सुधांशु पांडे सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. वह अपने फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करते रहते हैं. वह ‘अनुपमा’ में वनराज के किरदार से काफी मशहूर है. वे अपनी दमदार एक्टिंग के कारण इन दिनों फैंस के बीच छाये हुए हैं.

अब ‘अनुपमा’ एक्टर ने इंस्टाग्राम पर एक नया वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में वह शाहरूख खान की फिल्म ‘कल हो ना हो’ का टाइटल सॉन्ग गाते हुए नजर आ रहे हैं. सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) की आवाज ने सबको आपना दीवाना बना दिया है.

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सुधांशु पांडे यानि वनराज ने इस वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शने में लिखा है कि ‘मुझे नहीं पता लेकिन मुझे ये गाना था. काम करने की थकान के बाद और खराब गले के साथ…मुझे इस गाने से सूकून मिलता है…चाहे मैं इसे गा लूं या सिर्फ सुन लूं. उन्होंने आगे ये भी लिखा कि सोनू निगम आप जीनियस हैं और इसके लिए मुझे माफ करिएगा.

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बता दें कि  यह सीरियल एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर आधारित है. वनराज (सुधांशु पांडे) शादीशुदा होते हुए भी काव्या से प्यार करता है. लेकिन समय के साथ-साथ वनराज को अपनी पत्नी की अहमियत समझ आती है लेकिन उसकी पत्नी खुद से दूर कर देती है. ऐसे में उसके पास अपनी गर्लफ्रेंड के पास दोबारा लौट जाने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं बचता.

आदित्य से मिलने दिल्ली पहुंची Imlie तो प्रकाश ने उठाया ये कदम

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’  में कहानी का ट्रैक में नया ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. सीरियल के बीते एपिसोड में आपने देखा कि आदित्य, इमली को पगडंडियां छोड़कर वापस दिल्ली आ चुका है और वह इमली को बहुत मिस कर रहा है. इस हालत में मालिनी को उस पर शक होता है.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि दिल्ली आने के बाद भी आदित्य, इमली की याद में खोया है  तो उधर इमली भी आदित्य को बहुत याद कर रही है. और ऐसे में वह प्रकाश के फोन से आदित्य को कॉल करती है.

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आदित्य की आवाज सुनकर इमली काफी इमोशनल हो जाती है. तो वहीं मालिनी आदित्य के फोन में अनजान नंबर देखकर मालिनी को शक होता है.

ऐसे में आदित्य के सोने के बाद मालिनी इस नंबर पर फोन लगाती है. और वह प्रकाश को बताती है कि वो आदित्य की पत्नी बोल रही है. ये बात सुनकर प्रकाश शॉक्ड हो जाता है.

 

तो वहीं प्रकाश इमली से उसके और आदित्य के रिश्ते के बारे में सच जानने की कोशिश करता है. और इमली उससे कहती है कि तुम ये बात किसी को नहीं बताओगे. इमली प्रकाश को इमोशनली ब्लैकमेल करना शुरू करती है और प्रकाश की बोलती बंद हो जाती है.

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तो वहीं दूसरी तरफ इमली, प्रकाश के साथ आदित्य से मिलने दिल्ली जाती है. अब इस सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा इमली हॉस्टल में रहती है या आदित्य के घर.

मौत के बाद, सबसे बड़ा अंधविश्वास!

आज भी “मौत” के बाद अंधविश्वास से घिरे लोग चाहते हैं कि हमारे परिजन पुन: जिंदा हो जाएं. इसके लिए अनेक तरह का अंधा प्रयास किया जाता हैं. जोकि सीधे-सीधे अंधश्रद्धा में तब्दील हो जाता है.

इससे आज की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था, जागरूकता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है. छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर के निकट ऐसी ही घटना घटी. जिसमें एक युवक की मौत के बाद घंटों उसके जीवित होने का अंधा प्रयास किया गया और निरंतर प्रार्थना चलती रही लोगों की समझाइश भी काम नहीं आई और यह प्रयास का ढोंग दूर-दूर तक चर्चा का सबब बन गया.

और एक दफा पुनः साबित हो गया कि अंधविश्वास और ढोंग में, हमारा समाज किस तरह अभी भी पूरी तरह शिकंजे में है.

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अंधविश्वास के साये में..

ऐसी ही कुछ घटनाएं हाल ही में छत्तीसगढ़ में घटित हुई हैं. जो चर्चा का मुद्दा बनी हुई है.

दरअसल, ऐसी घटनाएं कभी-कभी हमारे आसपास घटित होती हैं और लोगों का अंधविश्वास सर चढ़कर बोलने लगता है. मगर देखते ही देखते सच्चाई जब सामने आती है तो “सच “स्वीकार करना ही पड़ता है.

छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर से 30 किलोमीटर दूर स्थित तखतपुर शहर में मनियारी नदी में डूब एक युवक की मौत हो गई. उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया वहां परिजन पहुंच गए और घंटो ” प्रार्थना” और दूसरे तरीके से युवक को फिर जीवित करने की कोशिश की जाने लगी.चिकित्सक और स्टाफ उन्हें समझाता रहा कि युवक की मौत हो चुकी है.

मगर परिजन उसे मानने को तैयार नहीं थे और लगातार कर्मकांड आदि करते रहे. बहुत समय बाद परिवार यह मानने को तैयार हुआ कि युवक की मौत हो चुकी है. प्रशासन के अधिकारियों को इसके लिए आकर कड़े शब्दों में समझाइश देनी पड़ी.

स्थानीय एक पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया कि दरअसल जैकब हंस अपने दो दोस्तों के साथ पंजाब राज्य के जालंधर से अपने श्वसुर की अंत्येष्टि में शामिल होने तखतपुर आया था. घटना दिनांक को दोपहर वह अपने रिश्तेदारों के साथ नहाने के लिए मनियारी नदी के एनीकट में गया. यहां तैरना आता है कहकर गहरे पानी में चला लगा. उसे समझाया गया, मना किया गया, लेकिन जैकब नदी में आगे निकलता चला गया.

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आगे पानी के भंवर में उसकी सांस फूल गई और वह डूबने लगा. उसके फेफड़ों में पानी प्रवेश कर गया . किनारे पहुचाते उसकी मौत हो गई. पुलिस को सूचना दी गई और शव को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया.वहां डाक्टरों ने जैकब हंस को मृत घोषित कर दिया. इसके बाद शुरू हुआ परिचितों द्वारा उसे जिंदा करने का अभियान जो पूरी तरह से ढोंग सिद्ध हुआ.

युवक की मृत्यु की खबर सुनकर परिजन अस्पताल पहुंचते रहे और सभी ने जैकब को मृत मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद परिजन, उसके कुछ दोस्त विभिन्न प्रकार के प्रयास और प्रयोग करते रहे. शव के सीने को दबाकर उसके जीवित होने की बात कहते रहे . इस दौरान कई बार डाक्टरों और पुलिस ने परिजनों को समझाया, लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं हुए. बाद में प्रशासनिक कड़ाई बरतने के पश्चात परिजनों को सद्बुद्धि आई और उन्होंने माना कि अब कुछ नहीं हो सकता.

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Serial Story- इंद्रधनुष: भाग 3

जाने और कितनी देर ऋचा अपने ही खयालों में उलझी रहती यदि पिताजी का करुण चेहरा और उस से भी अधिक करुण स्वर उसे चौंका न देता, ‘क्या बात है, ऋचा? हम तुम्हारी भलाई के लिए कितने प्रयत्न करते हैं, पर पता नहीं क्यों तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने पर तुली रहती हो.’

‘क्या हुआ, पिताजी?’ ऋचा हैरान स्वर में पूछने लगी.

‘तुम्हें अजित से यह कहने की क्या जरूरत थी कि तुम कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हो?’

‘मैं ने जानबूझ कर नहीं कहा था, पिताजी. ऐसे ही बात से बात निकल आई थी. फिर मैं ने छिपाना ठीक नहीं समझा.’

‘तुम नहीं जानतीं, तुम ने क्या कह दिया. अब वे लोग कह रहे हैं कि हम ने यह बात छिपा कर उन्हें अंधेरे में रखा,’ पिताजी दुखी स्वर में बोले.

‘पर विवाह तो निश्चित हो चुका है, सगाई हो चुकी है. अब उन का इरादा क्या है?’ मां ने परेशान हो कर पूछा था, जो जाने कब वहां आ कर खड़ी हो गई थीं.

‘कहते हैं कि वे हमारी छोटी बेटी पूर्णिमा को अपने घर की बहू बनाने को तैयार हैं. पर मैं ने कहा कि बड़ी से पहले छोटी का विवाह हो ऐसी हमारे घर की रीति नहीं है. फिर भी घर में सलाह कर के बताऊंगा. लेकिन बताना क्या है, हमारी बेटियों को क्या उन्होंने पैर की जूतियां समझ रखा है कि अगर बड़ी ठीक न आई तो छोटी पहन ली,’  वह क्रोधित स्वर में बोले.

‘इस में इतना नाराज होने की बात नहीं है, पिताजी. यदि उन्हें पूर्णिमा पसंद है तो आप उस का विवाह कर दीजिए. मैं तो वैसे भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं,’ ऋचा ने क्षणांश में ही मानो निर्णय ले लिया.

कुछ देर सब चुप खड़े रहे, मानो कहने को कुछ बचा ही न हो.

‘ऋचा ठीक कहती है. अधिक भावुक होने में कुछ नहीं रखा है. इतनी ऊंची नाक रखोगे तो ये सब यहीं बैठी रह जाएंगी,’ मां ने अपना निर्णय सुनाया.

फिर तो एकएक कर के 8 वर्ष बीत गए थे. उस से छोटी तीनों बहनों के विवाह हो गए थे. ऋचा भी पढ़ाई समाप्त कर के कालिज में व्याख्याता हो गई थी. पिताजी भी अवकाश ग्रहण कर चुके थे.

अब तो वह विवाह के संबंध में सोचती तक नहीं थी. पर गिरीश ने अपने   व्यवहार से मानो शांत जल में कंकड़ फेंक दिया था. अब अतीत को याद कर के वह बहुत अशांत हो उठी थी.

‘‘अरे दीदी, यहां अंधेरे में क्यों बैठी हो? बत्ती भी नहीं जलाई. नीचे मां तुम्हें बुला रही हैं. तुम्हारे कालिज के कोई गिरीश बाबू अपनी मां के साथ आए हैं. अरे, तुम तो रो रही हो. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ ऋचा की छोटी बहन सुरभि ने आ कर कहा.

‘‘नहीं, रो नहीं रही हूं. ऐसे ही कुछ सोच रही थी. तू चल, मैं आ रही हूं,’’ ऋचा अपने आंसू पोंछते हुए बोली.

ड्राइंगरूम में पहुंची तो एकाएक सब की निगाहें उस की ओर ही उठ गईं.

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‘‘आप की बेटी ही पहली लड़की है, जिसे देख कर गिरीश ने विवाह के लिए हां की है. नहीं तो यह तो विवाह के लिए हां ही नहीं करता था,’’ ऋचा को देखते ही गिरीश की मां बोलीं.

‘‘आप ने तो हमारा बोझ हलका कर दिया, बहनजी. इस से छोटी तीनों बहनों का विवाह हो चुका है. मुझे तो दिनरात इसी की चिंता लगी रहती है.’’

ऋचा के मां और पिताजी अत्यंत प्रसन्न दिखाई दे रहे थे.

‘तो मुझ से पहले ही निर्णय लिया जा चुका है?’ ऋचा ने बैठते हुए सोचा. वह कुछ कहती उस से पहले ही गिरीश की मां और उस के मातापिता उठ कर बाहर जा चुके थे. बस, वह और गिरीश ड्राइंगरूम में रह गए थे.

‘‘एक बात पूछूं, आप कभी हंसती- मुसकराती भी हैं या यों ही मुंह फुलाए रहती हैं?’’ गिरीश ने नाटकीय अंदाज में पूछा.

‘‘मैं भी आप से एक बात पूछूं?’’ ऋचा ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न कर दिया, ‘‘आप कभी गंभीर भी रहते हैं या यों ही बोलते रहते हैं?’’

‘‘चलिए, आज पता चल गया कि आप बोलती भी हैं. मैं तो समझा था कि आप गूंगी हैं. पता नहीं, कैसे पढ़ाती होंगी. मैं सचमुच बहुत बोलता हूं. अब क्या करूं, बोलने का ही तो खाता हूं. पर मैं इतना बुरा नहीं हूं जितना आप समझती हैं,’’ गिरीश अचानक गंभीर हो गया.

‘‘देखिए, आप अच्छे हों या बुरे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. पुरुषों में तो मुझे विशेष रूप से कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘आप के अनुभव निश्चय ही कटु रहे होंगे. पर जीवन में किसी न किसी पर विश्वास तो करना ही पड़ता है. आप एक बार मुझ पर विश्वास तो कर के देखिए,’’ गिरीश मुसकराया.

‘‘ठीक है, पर मैं आप को सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हूं. दहेज में देने के लिए मेरे पिताजी के पास कुछ नहीं है,’’ ऋचा कटु स्वर में बोली.

‘‘हम एकदूसरे को समस्त गुणों व अवगुणों के साथ स्वीकार करेंगे, ऋचा. फिर इन बातों का तो कोई अर्थ ही नहीं है. मैं तुम्हें 3 वर्षों से देखपरख रहा हूं. मैं ने यह निर्णय एक दिन में नहीं लिया है. आशा है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.’’

गिरीश की बातों को समझ कर ऋचा खामोश रह गई. इतनी समझदारी की बातें तो आज तक उस से किसी ने नहीं कही थीं. फिर उस के नेत्र भर आए.

‘‘क्या हुआ?’’ गिरीश ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, ये तो प्रसन्नता के आंसू हैं,’’ ऋचा ने मुसकराने की कोशिश की. उसे लगा कि आंसुओं के बीच से ही दूर क्षितिज पर इंद्रधनुष उग आया है.

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Serial Story- इंद्रधनुष: भाग 1

‘‘वाह, आज तो आप सचमुच बिजली गिरा रही हैं. नई साड़ी है क्या?’’ ऋचा को देखते ही गिरीश मुसकराया.

‘‘न तो यह नई साड़ी है और न ही मेरा किसी पर बिजली गिराने का इरादा है,’’ ऋचा रूखेपन से बोली, जबकि उस ने सचमुच नई साड़ी पहनी थी.

‘‘आप को बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूं, पर यह रंग आप पर बहुत फबता है. फिर आप की सादगी में जो आकर्षण है वह सौंदर्य प्रसाधनों से लिपेपुते चेहरों में कहां. मैं तो मां से हमेशा आप की प्रशंसा करता रहता हूं. वह तो मेरी बातें सुन कर ही आप की इतनी बड़ी प्रशंसक हो गई हैं कि आप के मातापिता से बातें करने, आप के यहां आना चाहती थीं, पर मैं ने ही मना कर दिया. सोचा, जब तक आप राजी न हो जाएं, आप के मातापिता से बात करने का क्या लाभ है.’’

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गिरीश यह सब एक ही सांस में बोलता चला गया था और ऋचा समझ न सकी थी कि उस की बातों का क्या अर्थ ले, ‘अजीब व्यक्ति है यह. कितनी बार मैं इसे जता चुकी हूं कि मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’ सच पूछो तो ऋचा को पुरुषों से घृणा थी, ‘वे जो भी करेंगे, अपने स्वार्थ के लिए. पहले तो मीठीमीठी बातें करेंगे, पर बाद में यदि एक भी बात मनोनुकूल न हुई तो खुद ही सारे संबंध तोड़ लेंगे,’ ऋचा इसी सोच के साथ अतीत की गलियों में खो गई.

तब वह केवल 17 वर्ष की किशोरी थी और अनुपम किसी भौंरे की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराया करता था.

खुद उस की सपनीली आंखों ने भी तो तब जीवन की कैसी इंद्रधनुषी छवि बना रखी थी. जागते हुए भी वह स्वप्नलोक में खोई रहती थी.

उस दिन अनुपम का जन्मदिन था और उस ने बड़े आग्रह से ऋचा को आमंत्रित किया था. पर घर में कुछ मेहमान आने के कारण उसे घर से रवाना होने में ही कुछ देर हो गई थी. वह जल्दी से तैयार हुई थी. फिर उपहार ले कर अनुपम के घर पहुंच गई थी. पर वह दरवाजे पर ही अपना नाम सुन कर ठिठक गई थी.

‘क्या बात है, अब तक तुम्हारी ऋचा नहीं आई?’ भीतर से अनुपम की दीदी का स्वर उभरा था.

‘मेरी ऋचा? आप भी क्या बात करती हैं, दीदी. बड़ी ही मूर्ख लड़की है. बेकार ही मेरे पीछे पड़ी रहती है. इस में मेरा क्या दोष?’

‘बनो मत, उस के सामने तो उस की प्रशंसा के पुल बांधते रहते हो,’ अब उस की सहेली का उलाहना भरा स्वर सुनाई दिया.

‘वह तो मैं ने विवेक और विशाल से शर्त लगाई थी कि झूठी प्रशंसा से भी लड़कियां कितनी जल्दी झूम उठती हैं,’ अनुपम ने बात समाप्त करतेकरते जोर का ठहाका लगाया था.

वहां मौजूद लोगों ने हंसी में उस का साथ दिया था.

पर ऋचा के कदम वहीं जम कर रह गए थे.

‘आगे बढं़ ू या लौट जाऊं?’ बस, एकदो क्षण की द्विविधा के बाद वह लौट आई थी. वह अपने कमरे में बंद हो कर फूटफूट कर रो पड़ी थी.

कुछ दिनों के लिए तो उसे सारी दुनिया से ही घृणा हो गई थी. ‘यह मतलबी दुनिया क्या सचमुच रहने योग्य है?’ ऋचा खुद से ही प्रश्न करती.

पर धीरेधीरे उस ने अपनेआप को संयत कर लिया था. फिर अनुपम प्रकरण को वह दुस्वप्न समझ कर भूल गई थी.

उस घटना को 1 वर्ष भी नहीं बीता था कि घर में उस के विवाह की चर्चा होने लगी. उस ने विरोध किया और कहा, ‘मैं अभी पढ़ना चाहती हूं.’

‘एकदो नहीं पूरी 4 बहनें हो. फिर तुम्हीं सब से बड़ी हो. हम कब तक तुम्हारी पढ़ाई समाप्त करने की प्रतीक्षा करते रहेंगे?’ मां ने परेशान हो कर प्रश्न किया था.

‘क्या कह रही हो, मां? अभी तो मैं बी.ए. में हूं.’

‘हमें कौन सी तुम से नौकरी करवानी है. अब जो कुछ पढ़ना है, ससुराल जा कर पढ़ना,’  मां ने ऐसे कहा, मानो एकदो दिन में ही उस का विवाह हो जाएगा.

ऋचा ने अब चुप व तटस्थ रह कर पढ़ाई में मन लगाने का निर्णय किया. पर जब हर तीसरेचौथे दिन वर पक्ष के सम्मुख उस की नुमाइश होती, ढेरों मिठाई व नमकीन खरीदी जाती, सबकुछ अच्छे से अच्छा दिखाने का प्रयत्न होता, तब भी बात न बनती.

इस दौरान ऋचा एम.ए. प्रथम वर्ष में पहुंच गई थी. उस ने कई बार मना भी किया कि वरों की उस नीलामी में बोली लगाने की उन की हैसियत नहीं है. पर हर बार मां का एक ही उत्तर होता, ‘तुम सब अपनी घरगृहस्थी वाली हो जाओ, और हमें क्या चाहिए.’

‘पर मां, ‘अपने घर’ की दहलीज लांघने का मूल्य चुकाना क्या हमारे बस की बात है?’ मां से पूछा था ऋचा ने.

‘अभी बहुत भले लोग हैं इस संसार में, बेटी.’

‘ऋचा, क्यों अपनी मां को सताती हो तुम? कोशिश करना हमारा फर्ज है. फिर कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही,’ पिताजी मां से उस की बातचीत सुन कर नाराज हो उठे तो वह चुप रह गई थी.

पर एक दिन चमत्कार ही तो हो गया था. पिताजी समाचार लाए थे कि जो लोग ऋचा को आखिरी बार देखने आए थे, उन्होंने ऋचा को पसंद कर लिया था.

एक क्षण को तो ऋचा भी खुशी के मारे जड़ रह गई, पर वह प्रसन्नता उस वक्त गायब हो गई जब पिताजी ने दहेजटीका की रकम व सामान की सूची दिखाई. ऋचा निराश हो कर शून्य में ताकती बैठी रह गई थी.

‘25 हजार रुपए नकद और उतनी ही रकम का सामान. कैसे होगा यह सब. 3 और छोटी बहनें भी तो हैं,’ उस के मुंह से अनायास ही निकल गया था.

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Short Story: तितली… रंगबिरंगी

लेखक-  नीरज कुमार मिश्रा

रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मी और पापा के आपसी झगड़ों की कड़वी आवाज़ों से हुई . सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी ,चिकचिक सुनकर उसने चादर सर से ओढ़ ली ,आवाज़ पहले से कम तो हुई पर अब भी कानो से टकरा रही थी .

सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गयी थी पास में पड़े मोबाइल को टटोलकर उसमें एयरफोन लगाकर बड्स को कानो में कसकर ठूंस लिया और वॉल्यूम को फुल कर दिया .

अट्ठारह वर्षीय सियाली के लिए ये कोई नयी बात नहीं थी ,उसके माँबाप आये दिन ही झगड़ते रहते थे जिसका सीधा कारण था  उन दोनों के संबंधों में खटास का होना  …..ऐसी खटास जो एक बार जीवन में आ जाये तो आपसी रिश्तों की परिणिति उनका खात्मा ही होती है .

सियाली के माँबाप प्रकाश यादव और निहारिका यादव के संबंधों में ये खटास कोई एक दिन में नहीं आई बल्कि ये तो एक मध्यमवर्गीय परिवार के कामकाजी दम्पत्ति के आपसी सामंजस्य  बिगड़ने के कारण धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी   .

सियाली का पिता अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था उसका शक करना भी एकदम जायज था क्योंकि निहारिका का अपने आफिसकर्मी के साथ संबंध चल रहा था ,पतिपत्नी के हिंसा और शक समानुपाती थे ,जितना शक गहरा हुआ उतना ही प्रकाश की हिंसा बढ़ती गई और जिसका परिणाम परपुरुष के साथ निहारिका का प्रेम बढ़ता गया .

“जब दोनो साथ नहीं रह सकते तो तलाक क्यों नहीं दे देते … एक दूसरे को ”सियाली बिस्तर से उठते हुए झुंझुलाते हुए बोली

सियाली जब अपने कमरे से बाहर आई तो  दोनो काफी हद तक शांत हो चुके थे, शायद वे किसी निर्णय तक पहुच गए थे.

“तो ठीक है मैं कल ही वकील से बात कर लेता हूँ …..पर सियाली को अपने साथ कौन रखेगा?” प्रकाश ने निहारिका की ओर घूरते हुए कहा

“मैं समझती हूं ….सियाली को तुम मुझसे बेहतर सम्भाल सकते हो” निहारिका ने कहा ,उसकी इस बात पर प्रकाश भड़क सा गया

“हाँ …तुम तो सियाली को मेरे पल्ले बांधना ही चाहती हो ताकि तुम अपने उस ऑफिस वाले के साथ गुलछर्रे उड़ा सको और मैं एक जवान लड़की के चारो तरफ एक गार्ड बनकर घूमता रहूँ ”

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प्रकाश की इस बात पर निहारिका ने भी तेवर दिखाते हुए कहा कि “मर्दों के समाज में क्या सारी जिम्मेदारी एक माँ की ही होती है ?”

निहारिका ने गहरी सांस ली और कुछ देर रुक कर बोली

“हाँ …वैसे सियाली कभीकभी मेरे पास भी आ सकती है ….एकदो दिन मेरे साथ रहेगी तो मुझे भी ऐतराज़ नहीं होगा ”निहारिका ने मानो फैसला सुना दिया था

सियाली कभी माँ की तरफ देख रही थी तो कभी अपनी पिता की तरफ ,उससे कुछ कहते न बना पर इतना समझ गयी थी कि माँबाप ने अपनाअपना रास्ता अलग कर लिया है और उसका अस्तित्व एक पेंडुलम से अधिक नहीं है  जो दोनो के बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोल रही है  .

माँबाप के बीच इस रोज़रोज़ के झगड़े ने एक अजीब से विषाद से भर दिया था सियाली को  और इस विषाद का अंत शायद तलाक जैसी चीज से ही सम्भव था इसलिए सियाली के मन में कहीं न कहीं चैन की सांस ने प्रवेश किया कि चलो आपस की कहा सुनी अब खत्म हुई और अब सबके रास्ते अलगअलग है .

शाम को कॉलेज से लौटी तो घर में एक अलग सी शांति थी ,पापा भी सोफे में धंसे हुए चाय पी रहे थे ,चाय जो उन्होंने खुद ही बनाई थी ,उनके चेहरे पर कई महीनों से बनी रहने वाली तनाव की वो शिकन गायब थी ,सियाली को देखकर उन्होंने मुस्कुराने की कोशिश भी करी

“देख ले…. तेरे लिए चाय बची होगी ….ले ले मेरे पास आकर बैठकर पी ”

सियाली पापा के पास आकर बैठी तो पापा ने अपनी सफाई में काफी कुछ कहना शुरू किया. “मैं बुरा आदमी नहीं हूँ पर तेरी मम्मी ने भी तो गलत किया था उसके कर्म  ही ऐसे थे कि मुझे उसे देखकर गुस्सा आ ही जाता था और फिर तेरी माँ ने भी तो रिश्तों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी  ”

पापा की बातें सुनकर सियाली से भी नहीं रहा गया. “मैं नहीं जानती कि आप दोनो में से कौन सही है और कौन गलत पर इतना ज़रूर जानती हूं कि शरीर में अगर नासूर हो जाये तो आपरेशन ही सही रास्ता और ठीक इलाज होता है ” दोनो बापबेटी ने कई दिनों के बाद आज खुलकर बात करी थी ,पापा की बातों में माँ के प्रति नफरत और द्वेष ही छलक रहा था जिसे चुपचाप सुनती रही थी सियाली .

अगले दिन ही सियाली के मोबाइल पर माँ का फोन आया और उन्होंने सियाली को अपना एड्रेस देते हुए शाम को उसे अपने फ्लैट पर आने को कहा जिसे सियाली ने खुशीखुशी मान भी लिया था और शाम को माँ के पास जाने की सूचना भी उसने अपने पापा को दे दी जिस पर पापा को भी कोई ऐतराज नहीं हुआ .

शाम को “शालीमार अपार्टमेंट” में पहुच गई थी सियाली ,पता नहीं क्या सोचकर उसने लाल गुलाब का एक बुके खरीद लिया था ,फ्लैट नंबर एक सौ ग्यारह में सियाली पहुच गई थी.

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कॉलबेल बजाई ,दरवाज़ा माँ ने  खोला था , अब चौकने की बारी सियाली की थी माँ गहरे लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी ,माँग में भरा हुआ सिंदूर और माथे पर तिलक की शक्ल में लगाई हुई बिंदी ,सियाली को याद नहीं कि उसने माँ को कब इतनी अच्छी तरह से श्रंगार किये हुए देखा था ,हमेशा सादे वेश में ही रहती थी माँ और टोकने पर दलील देती

“अरे हम कोई ब्राह्मणठाकुर तो है नहीं जो हमेशा सिंगार ओढ़े रहें ….हम पिछड़ी जाति वालों के लिए सिंपल रहना ही अच्छा है ”

तो फिर आज माँ को ये क्या हो गया ?

उनकी सिम्पलीसिटी आज श्रंगार में कैसे परिवर्तित हो गई थी और क्यों वो जाति की दलीलें देकर सही बात को छुपाना चाह रही थी .

सियाली ने बुके माँ को दे दिये ,माँ ने बहुत उत्साह से बुके ले लिए और कोने की मेज पर सज़ा दिए .

“अरे अंदर आने को नहीं कहोगी सियाली से “माँ के पीछे से आवाज़ आई ,आवाज़ की दिशा में नज़र उठाई तो देखा कि सफेद कुर्ता और पाजामा पहने हुए एक आदमी खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था ,सियाली उसे पहचान गई ये माँ का सहकर्मी देशवीर था ,माँ इसे पहले भी घर भी ला चुकी थी .

माँ ने बहुत खुशीखुशी देशवीर से सियाली का परिचय कराया जिसपर सियाली ने कहा, “जानती हूँ माँ ….पहले भी तुम इनसे मिला चुकी हो मुझे ”

“पर पहले जब मिलवाया था तब ये सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त थे  पर आज मेरे सब कुछ हैं….हम लोग फिलहाल तो लिवइन में रह रहे हैं और तलाक का फैसला होते ही शादी भी कर लेंगे  ”

मुस्कुराकर रह गयी थी सियाली

सबने एक साथ खाना खाया , डाइनिंग टेबल पर भी माहौल सुखद ही था ,माँ के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी और ये चमक कृत्रिम या किसी फेशियल की नहीं थी ,उनके मन की खुशी उनके चेहरे पर झलक रही थी .

सियाली रात में माँ के साथ ही सो गई और सुबह वहीँ से कॉलेज के लिए निकल गयी ,चलते समय माँ ने उसे दो हज़ार रुपये देते हुए कहा

“रख ले…घर जाकर पिज़्ज़ा आर्डर कर देना  ”

कल से लेकर आज तक माँ ने सियाली के सामने एक आदर्श माँ होने के कई उदाहरण प्रस्तुत किये थे पर सियाली को ये सब नहीं भा रहा था और न ही उसे समझ में आ रहा था कि ये माँ का कैसा प्यार है जो उसके पिता से अलग होने के बाद और भी अधिक छलक रहा है.

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फिलहाल तो वो अपनी ज़िंदगी खुलकर जीना चाहती थी इसलिए माँ के दिए गए पैसों से सियाली  उसी दिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने चली गयी .

“पर सियाली आज तू ये किस खुशी में पार्टी दे रही है ?”महक ने पूछा

“बस यूँ समझो …आज़ादी की ”मुस्कुरा दी थी सियाली.

सच तो ये था कि माँबाप के अलगाव के बाद सियाली भी बहुत रिलेक्स महसूस कर रही थी ,रोज़रोज़ की टोकाटाकी से अब उसे मुक्ति मिल चुकी थी और सियाली अब अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी इसीलिए उसने अपने दोस्तों से  अपनी एक इच्छा बताई .

“यार मैं एक डांस ट्रूप (नृत्य मंडली ) जॉइन करना चाहती हूं ताकि मैं अपने जज़्बातों को डांस के द्वारा दुनिया के सामने पेश कर सकूं ”सियाली ने कहा जिसपर उसके दोस्तों ने उसे और भी कई रास्ते बताए जिनसे वो अपने आपको व्यक्त कर सकती थी जैसे ड्राइंग,सिंगिंग,मिट्टी के बर्तन बनाना पर सियाली तो मज़े और मौजमस्ती के लिए डांस ट्रूप जॉइन करना चाहती थी इसलिए उसे  बाकी के ऑप्शन नहीं अच्छे लगे .

अपने शहर के डांस ट्रूप “गूगल” पर खंगाले तो  “डिवाइन डांसर” नामक एक डांस ट्रूप ठीक लगा जिसमे चार मेंबर लड़के  थे और एक लड़की थी  ,सियाली ने तुरंत ही वह ट्रूप जॉइन कर लिया और अगले दिन से ही डांस प्रेक्टिस के लिए जाने लगी ,सियाली अपना सारा तनाव अब डांस के द्वारा भूलने लगी और इस नई चीज का मज़ा भी लेने लगी .

डिवाइन डांसर नाम के इस ट्रूप को परफॉर्म करने का मौका भी मिलता तो सियाली भी साथ में जाती और स्टेज पर सभी परफॉर्मेंस देते जिसके  बदले सियाली को भी ठीकठाक पैसे मिलने लगे ,इस समय सियाली से ज्यादा खुश कोई नहीं था ,वह निरंकुश हो चुकी थी न माँबाप का डर और न ही कोई टोकाटोकी करने वाला ,जब चाहती घर जाती और अगर नहीं भी जाती तो भी कोई पूछने वाला नहीं था उसके माँबाप  का तलाक क्या हुआ सियाली तो एक आज़ाद चिड़िया हो गई जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए आज़ाद थी .

सियाली का फोन बज उठा था ,ये पापा का फोन था .

“सियाली….कई दिन से घर नहीं आई तुम…क्या बात है?…..हो कहां तुम?”

“पापा मैं ठीक हूँ…..और डांस सीख रही हूँ”

“पर तुमने बताया नहीं कि तुम डांस सीख रही हो ”

“ज़रूरी नहीं कि मैं आप लोगों को सब बातें बताऊं …..आप लोग अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जी रहे हैं इसलिए मैं भी अब अपने हिसांब से ही जियूंगी”

फोन काट दिया था सियाली ने,पर उसका मन एक अजीब सी खटास से भर गया था .

डांस ट्रूप के सभी सदस्यों से सियाली की अच्छी दोस्ती हो गई थी पर पराग नाम के लड़के से उसकी कुछ ज्यादा ही पटने लगी .

पराग स्मार्ट भी था और पैसे वाला भी ,वह सियाली को गाड़ी में घुमाता और ख़िलातापिलाता ,उसकी संगत में सिहाली को भी सुरक्षा का अहसास होता था.

एक दिन पराग और सियाली एक रेस्तराँ में गए ,पराग ने अपने लिए एक बियर मंगाई

“तुम तो सॉफ्ट ड्रिंक लोगी सियाली ”पराग ने पूछा

“खुद तो बियर पियोगे और मुझे बच्चों वाली ड्रिंक …..मैं भी बियर पियूंगी ”एक अजीब सी शोखी सियाली के चेहरे पर उतर आई थी .

सियाली की इस अदा पर पराग भी बिना मुस्कुराए न रह सका और उसने एक और बियर आर्डर कर दी .

सियाली ने बियर से शुरुआत जरूर करी थी पर उसका ये शौक धीरेधीरे व्हिस्की तक पहुच गया था .

अगले दिन डांस क्लास में जब दोनो मिले तो पराग ने एक सुर्ख गुलाब सियाली की ओर बढ़ा दिया

“सियाली मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ”घुटनो को मोड़कर ज़मीन पर बैठते हुए पराग ने कहा  सभी लड़के लड़कियाँ इस बात पर तालियाँ बजाने लगे.

सियाली ने भी मुस्कुराकर गुलाब पराग के हाथों से ले लिया और कुछ सोचने के बाद बोली, “लेकिन मैं शादी जैसी किसी बेहूदा चीज़ के बंधन में नहीं बढ़ना चाहती …..शादी एक सामाजिक तरीका है दो लोगों को एक दूसरे के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए  जीवन बिताने का पर क्या हम ईमानदार रह पाते हैं ?”सियाली के मुंह से ऐसी बड़ीबड़ी बातें सुनकर डांस ट्रूप के लड़केलड़कियाँ शांत से दिख रहे थे.

सियाली ने रुककर कहना शुरू किया, “मैने अपनी माँबाप को उसके  शादीशुदा जीवन में हमेशा ही लड़ते हुए देखा है जिसकी परिणिति तलाक के रूप में हुई और अब मेरी माँ अपने प्रेमी के साथ लिवइन में रह रहीं है और पहले से कहीं अधिक खुश है  ”

पराग ये बात सुनकर तपाक से बोला कि वो भी सियाली के साथ लिवइन में रहने को तैयार है अगर सियाली को मंज़ूर हो तो,पराग की बात सुनकर उसके साथ लिवइन के रिश्ते को झट से स्वीकार कर लिया था सियाली ने.

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और कुछ दिनों बाद ही पराग और सियाली लिवइन में रहने लगे ,जहां पर दोनो जी भरकर अपने जीवन का आनंद ले रहे थे ,पराग के पास आय के स्रोत के रूप में एक बड़ा जिम था, जिससे पैसे की कोई समस्या नहीं आई

पराग और सियाली ने अब भी डांस ट्रूप को जॉइन कर रखा था और लगभग हर दूसरे दिन ही दोनो क्लासेज के लिए जाते और जी भरकर नाचते .

इसी डांस ट्रूप में गायत्री नाम की लड़की थी उसने सियाली से एक दिन पूछ ही लिया

“सियाली ….तुम्हारी तो अभी उम्र बहुत कम है ….और इतनी जल्दी किसी के साथ …..आई मीन….लिवइन में रहना ….कुछ अजीब सा नहीं लगता तुम्हे ?”

सियाली के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कुराहट आई और चेहरे पर कई रंग आतेजाते गए फिर सियाली ने अपने आपको संयत करते हुए कहा

“जब मेरे माँबाप ने सिर्फ अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचा और मेरी परवाह नहीं करी तो मैं अपने बारे में क्यों न सोचूँ……और…गायत्री  ….ज़िन्दगी मस्ती करने के लिए बनी है इसे न किसी रिश्ते में बांधने की ज़रूरत है और न ही रोरोकर गुज़ारने की ….और मैं आज पराग के साथ लिवइन में हूँ ….और कल मन भरने के बाद किसी और के साथ रहूंगी और परसों किसी और के साथ…..  उम्र का तो सोचो ही मत ….इनजॉय योर लाइफ यार…”

सियाली ये कहते हुए वहां से चली गयी थी जबकि गायत्री  अवाक सी खड़ी हुई थी .

तितलियाँ कभी किसी एक फूल पर नहीं बैठी ,वे कभी एक फूल के पराग पर बैठती है तो कभी दूसरे फूल के पराग पर….और तभी तो इतनी चंचल होती है और इतनी खुश रहती है तितली …रंगबिरंगी तितली ….जीवन से भरपूर तितली.

Serial Story- इंद्रधनुष: भाग 2

‘जब उन का समय आएगा, देखा जाएगा,’ मां उस का विवाह संबंध पक्का हो जाने से इतनी प्रसन्न थीं कि उस के आगे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं.

जब मां ने अजित को देखा तो वह निहाल ही हो गईं, ‘कैसा सुंदरसजीला दूल्हा मिला है तुझे,’ वह ऋचा से बोलीं.

पर वर पक्ष की भारी मांग को देखते हुए ऋचा चाह कर भी खुश नहीं हो पा रही थी.

धीरेधीरे अजित घर के सदस्य जैसा ही होता जा रहा था. लगभग तीसरेचौथे दिन बैंक से लौटते समय वह आ जाता. तब अतिविशिष्ट व्यक्ति की भांति उस का स्वागत होता या फिर कभीकभी वे दोनों कहीं घूमने के लिए निकल जाते.

‘मुझे तो अपनेआप पर गर्व हो रहा है,’ उस दिन रेस्तरां में बैठते ही अजित, ऋचा से बोला.

‘रहने दीजिए, क्यों मुझे बना रहे हैं?’ ऋचा मुसकराई.

‘क्यों, तुम्हें विश्वास नहीं होता क्या? ऐसी रूपवती और गुणवती पत्नी बिरलों को ही मिलती है. मैं ने तो जब पहली बार तुम्हें देखा था तभी समझ गया था कि तुम मेरे लिए ही बनी हो,’ अजित अपनी ही रौ में बोलता गया.

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ऋचा बहुत कुछ कहना चाह रही थी, पर उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा था. जब अजित ने पहली ही नजर में समझ लिया था कि वह उस के लिए ही बनी है तो फिर वह मोलभाव किस लिए. कैसे दहेज की एकएक वस्तु की सूची बनाई गई थी. घर के छोटे से छोटे सदस्य के लिए कपड़ों की मांग की गई थी.

ऋचा के मस्तिष्क में विचारों का तूफान सा उठ रहा था. पर वह इधरउधर देखे बिना यंत्रवत काफी पिए जा रही थी.

तभी 2 लड़कियों ने रेस्तरां में प्रवेश किया. अजित को देखते ही दोनों ने मुसकरा कर अभिवादन किया और उस की मेज के पास आ कर खड़ी हो गईं.

‘यह ऋचा है, मेरी मंगेतर. और ऋचा, यह है उमा और यह राधिका. हमारी कालोनी में रहती हैं,’ अजित ने ऋचा से उन का परिचय कराया.

‘चलो, तुम ने तो मिलाया नहीं, आज हम ने खुद ही देख लिया अपनी होने वाली भाभी को,’ उमा बोली.

‘बैठो न, तुम दोनों खड़ी क्यों हो?’ अजित ने औपचारिकतावश आग्रह किया.

‘नहीं, हम तो उधर बैठेंगे दूसरी मेज पर. हम भला कबाब में हड्डी क्यों बनें?’

राधिका हंसी. फिर वे दोनों दूसरी मेज की ओर बढ़ गईं.

‘राधिका की मां, मेरी मां की बड़ी अच्छी सहेली हैं. वह उस का विवाह मुझ से करना चाहती थीं. यों उस में कोई बुराई नहीं है. स्वस्थ, सुंदर और पढ़ीलिखी है. अब तो किसी बैंक में काम भी करती है. पर मैं ने तो साफ कह दिया था कि मुझे चश्मे वाली पत्नी नहीं चाहिए,’ अजित बोला.

‘क्या कह रहे हैं आप? सिर्फ इतनी सी बात के लिए आप ने उस का प्रस्ताव ठुकरा दिया? यदि आप को चश्मा पसंद नहीं था तो वह कांटेक्ट लैंस लगवा सकती थीं,’ ऋचा हैरान स्वर में बोली.

‘बात तो एक ही है. चेहरे की तमाम खूबसूरती आंखों पर ही तो निर्भर करती है, पर तुम क्यों भावुक होती हो. मुझे तो तुम मिलनी थीं, फिर किसी और से मेरा विवाह कैसे होता?’ अजित ने ऋचा को आश्वस्त करना चाहा.

कुछ देर तो ऋचा स्तब्ध बैठी रही. फिर वह ऐसे बोली, मानो कोई निर्णय ले लिया हो, ‘आप से एक बात कहनी थी.’

‘कहो, तुम्हारी बात सुनने के लिए तो मैं तरस रहा हूं. पर तुम तो कुछ बोलती ही नहीं. मैं ही बोलता रहता हूं.’

‘पता नहीं, मांपिताजी ने आप को बताया है या नहीं, पर मैं आप को अंधेरे में नहीं रख सकती. मैं भी कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हूं,’ ऋचा बोली.

‘क्या?’

पर तभी बैरा बिल ले आया. अजित ने बिल चुकाया और दोनों रेस्तरां से बाहर निकल आए. कुछ देर दोनों इस तरह चुपचाप साथसाथ चलते रहे, मानो कहने को उन के पास कुछ बचा ही न हो.

‘मैं अब चलूंगी. घर से निकले बहुत देर हो चुकी है. मां इंतजार करती होंगी,’  वह घर की ओर रवाना हो गई.

कुछ दिन बाद-

‘क्या बात है, ऋचा? अजित कहीं बाहर गया है क्या? 3-4 दिन से आया ही नहीं,’ मां ने पूछा.

‘पता नहीं, मां. मुझ से तो कुछ कह नहीं रहे थे,’ ऋचा ने जवाब दिया.

‘बात क्या है, ऋचा? परसों तेरे पिताजी विवाह की तिथि पक्की करने गए थे तो वे लोग कहने लगे कि ऐसी जल्दी क्या है. आज फिर गए हैं.’

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‘इस में मैं क्या कर सकती हूं, मां. वह लड़के वाले हैं. आप लोग उन के नखरे उठाते हैं तो वे और भी ज्यादा नखरे दिखाएंगे ही,’ ऋचा बोली.

‘क्या? हम नखरे उठाते हैं लड़के वालों के? शर्म नहीं आती तुझे ऐसी बात कहते हुए?  कौन सा विवाह योग्य घरवर होगा जहां हम ने बात न चलाई हो. तब कहीं जा कर यहां बात बनी है. तुम टलो तो छोटी बहनों का नंबर आए मां की वर्षों से संचित कड़वाहट बहाना पाते ही बह निकली.

ऋचा स्तब्ध बैठी रह गई. अपने ही घर में क्या स्थिति थी उस की? मां के लिए वह एक ऐसा बोझ थी, जिसे वह टालना चाहती थी. अपना घर? सोचते हुए उस के होंठों पर कड़वाहट रेंग आई, ‘अपना घर तो विवाह के बाद बनेगा, जिस की दहलीज पार करने का मूल्य ही एकडेढ़ लाख रुपए है. कैसी विडंबना है, जहां जन्म लिया, पलीबढ़ी न तो यह घर अपना है, न ही जहां गृहस्थी बसेगी वह घर अपना है.’

अपाहिज सोच: क्या जमुना ताई अपनी बेटी की भविष्य के लिए समाज से लड़ पाई

लेखिका- पारुल बंसल
एक ओर हमारा समाज पुराने रीतिरिवाज छोड़ नहीं पा रहा, वहीं दूसरी ओर इस वजह से हमारी सोच भी संकीर्ण  होती रही है. बेटी की पढ़ाई को ले कर हमारा समाज आज भी दोहरी सोच रखता है. क्या जमुना ताई अपनी बेटी कजरी की पढ़ाई को ले कर अपने पति भवानी सिंह और समाज से पंगा ले पाईं? क्या वह अपनी बेटी को ऊंची तालीम दिला पाईं?
मुरगे के बांग देते ही मानो गांवदेहात की अलार्म घड़ी बज जाती है. सभी लोग लोटे के साथ चल पड़ते हैं, खुले में शौच करने, जो उन का जन्मसिद्ध अधिकार है. भारत में न जाने कितने ही शौचालय बन चुके हैं, फिर भी उतने ही बनने अभी बाकी है. अरे, कुछ जगह तो यह आलम है कि उन्हें बंद किवाड़ के पीछे उतरती ही नहीं है. अब इन शौचालयों के बनने से औरतों और लड़कियों को तो जैसे जीवनदान ही मिल गया है. जमुना की तो जान में जान आ गई है, क्योंकि उस की बेटी कजरी अब बड़ी जो हो रही है.
वह नहीं चाहती थी कि जो समस्याएं गांव की कठोर जिंदगी में उस ने भुगती हैं, उन का सामना कजरी भी करे.
एक दिन सुबहसुबह कजरी अपने बिस्तर पर बैठी खूब रोए जा रही थी. उस का बापू भवानी सिंह घर के बाहर चबूतरे पर बैठा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. यह उस का खानदानी शौक रहा है और ऐसा शौक हरियाणा के हर गांव के मर्द की फितरत में शामिल है.
यह शौक वहां के मर्दों की शान को बढ़ा देता है. वहां के मर्दों को न तो कभी कोई काम करना होता है, सारा दिन यों ही चौपाल पर आदमी इकट्ठे करना और फालतू की चर्चाएं करना. जैसे देश के सारे बड़े कर्णधार यहीं पैदा हुए हैं. न खेती करना, न गायभैंस की देखभाल करना और न ही खेतखलिहानों को संभालना. बस, सारा दिन मुंह से मुंह जोड़ कर गपें हांकना.

कजरी की आवाज जैसे ही भवानी सिंह के कानों में पड़ी, उतनी ही तेज आवाज में वह जमुना को कोसने लगा, “अरे कहां मर गई… अपने साथ इसे भी ले जाती… यह क्यों मेरे कान पर भनभना रही है…”

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भवानी सिंह की नाराजगी जमुना के लड़का न जन पाने के चलते बनी हुई थी. जमुना के अंदर इन जलीकटी बातों से खून उबाल मार रहा था.
हालांकि ऐसी बातें उस के लिए कोई नया किस्सा नहीं थीं, मानो भवानी सिंह पति की जगह सास का किरदार निभा रहा हो. हमेशा बैठेबैठे मूंछों पर ताव देता रहता और जीभ से जहर उगलता रहता.
जमुना के दिल की सुनें, तो उस के हिसाब से भवानी सिंह उस की जिंदगी में सांप की तरह कुंडली मार बैठा था, जिसे छेड़े बिना ही डसने को तैयार रहता.
जमुना मन मसोस कर और जबान पर ताला डाल कर भवानी सिंह की पुकार की वजह जानने के लिए हाजिर हुई.
“अरे, आज तुम्हारी छोरी क्यों सुबक रही है?” भवानी सिंह ने पूछा.
यह सुन कर जमुना कजरी की ओर लंबेलंबे डग भरते हुए पहुंची.
कजरी एक कोने में खुद में सिमटी हुई सी पड़ी थी. उस ने अपने मुंह को घुटनों में ऐसे छिपा रखा था मानो कोई अपराध किया हो.
“ऐसे में रोते नहीं हैं… यह तो हर जनानी के साथ होता है.”
“पर मां, यह सब… गंदा…”
हांहां, ऐसा ही होता है. जब लड़की बड़ी होती है…”
“मैं समझी नहीं…”
“मतलब यह कि अब तुम सयानी हो गई हो. अब ये सब बातें बाद में, पहले तुम स्नानघर में जा कर नहा लो और यह कपड़ा इस्तेमाल करो.”
“अच्छा मां… पर एक दिन मैं ने चंपा को घासफूस और कुछ सूखे पत्ते इकट्ठे करते हुए देखा था. मैं ने उस से पूछा तो वह बोली थी कि तुझे भी समय आने पर सब पता चल जाएगा.
“बेटी, गरीब लोगों के पास इतना कपड़ा नहीं होता, जो माहवारी के मुश्किल दिनों में इस्तेमाल कर सकें, इसीलिए वे घासफूस, सूखे पत्ते का सहारा ही बहते हुए खून को रोकने के लिए करते हैं और यही बीमारी की वजह बनता है.”
“अरे, दोनों मांबेटी खुसुरफुसुर ही करती रहोगी या मेरे हुक्के में कोई कोयला भी डालेगा?” भवानी सिंह चिल्लाया.
“मेरा बस चले तो कोयला सीधे इन की चिता में ही डालूं. काम के न काज के दुश्मन अनाज के…”
“कहां है कजरी… ऐ छोरी… क्या मेहंदी लगी है?”
“वह आराम करेगी 2 दिन…”
“क्या हुआ…?”
“अरे वही… अब छोरी सयानी हो रही है.”
“अच्छा.”
“कजरी के बापू एक बात कहूं…”
“हां… हां, कहो, क्या कहना चाहती हो?”

“हमारी छोरी बड़ी होशियार है. अब उसे बड़े स्कूल जाना होगा. मास्टर साहब आए थे कल. कह रहे थे कि यह छोरी तुम्हारा नाम रोशन कर सकती है.”

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“भेजे में अक्ल नहीं है तेरे क्या… हमारे घर की छोरियां चूल्हाचौका सीखती हैं, काले अक्षर नहीं… अब बस  कोई अच्छा सा लड़का देख कर इस का ब्याह कर दूंगा,” भवानी सिंह बोला.
इतने में मास्टर साहब वहां आ गए और बोले, “मैं ने कजरी का फार्म मंगा लिया है.”
“अरे मास्टर साहब, आप तो सब जानते हैं, फिर भी… औरतें हमारे पैर की जूती हैं और जूती को कभी सिर पर नहीं रखा जाता. आज हमारा छोरा होता, तो हम उसे पढ़ने विदेश भी भेज देते.”
जमुना का मन अपने पति को जी भर कर गाली देने को हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘इस गांव के किसी मर्द ने कभी एक फली के दो टूक भी किए हैं… सब अपनी जनानियों के कामकाज पर निर्भर हैं. इन की मर्दानगी तो बस धोती में ही है. मूंछें तो इन को मुंड़वा ही देनी चाहिए. मर्द कहलाने के लायक ही नहीं हैं.
‘बेटा न हो पाने का सारा इलजाम मुझ पर मढ़ते रहते हैं. अब इन्हें कौन समझाए कि बेटा या बेटी पैदा होने में औरत और मर्द दोनों ही बराबर के हिस्सेदार होते हैं, पर कुसूर हम जनानियों का ही ठहराया जाता है.’
अपनी बेटी को बाहर पढ़ाने की जिद पूरी कराने को जमुना गांव की कई औरतों को इकट्ठा कर लाई और धरने पर बैठ गई. गांव के प्रधान तक खबर पहुंच गई. आज भवानी सिंह के घर पर पंचायत बैठेगी.
औरतों ने गांव की छोरियों को पाठशाला से बड़े स्कूल भेजने की बात रखी. बड़ा ही वादविवाद हुआ.
प्रधान जमुना से बोले, “यह नई रीति क्यों? हमारे गांव के बस छोरे पढ़े हैं, न कि छोरी.”
जमुना बोली, “यहां के छोरों ने आज तक एक चूहा भी मारा है? अब बारी छोरियों की है. ये अपने करतब दिखाएंगी. आप इन्हें एक मौका दे कर तो देखिए.”
भवानी सिंह को प्रधान की मरजी के साथ अपनी रजामंदी भी देनी पड़ी. अब जमुना दिन दूनी रात चौगुनी काम करने लगी, जिस से पढ़ाई के लिए पैसा इकट्ठा हो सके.
लेकिन भवानी सिंह को हुक्का गुड़गुड़ाने से ही फुरसत न थी. जमुना उस समय 8वीं पास थी. अंगूठाटेक जनानियों के बीच जब वह बैठती, तो वे उसे अध्यापिका का दर्जा देतीं, पर भवानी सिंह को इस की कोई कदर न थी.
इधर कजरी अपने नाम की तरह रूपरंग में सांवलीसलोनी थी, पर कजरी की पढ़ाईलिखाई ने उस के रंगरूप को बहुत पीछे कर दिया था.
कुछ सालों बाद एक गाड़ी भवानी सिंह के गांव में आ कर रुकी, जिस में से एक महिला अफसर उतरी.
यह देख कर भवानी सिंह भौचक्का रह गया कि एक औरत की इतनी इज्जत कैसे…?

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वह कजरी थी और आज जिला अधिकारी के पद पर कार्यरत थी.
यह देख कर भवानी सिंह ने अपनी मूंछों पर ताव दिया और बोला, “यह मेरी छोरी है. इस ने मेरा नाम रोशन कर दिया है…”
लेकिन भवानी सिंह की आंखें जमुना के आगे झुक जाती हैं, जिसे उस ने कभी सही माने में औरत का दर्जा ही नहीं दिया. हमेशा उसे कोल्हू का बैल ही समझा. पर, औरत में समाज को बदलने की ताकत होती जिसे भवानी सिंह जैसे निठल्ले, अनपढ़, जाहिल को समझने में शायद सदियां बीत जाएंगी.

‘महादेवी वर्मा सम्मान’ से नवाजे गए भोजपुरी फिल्म निर्माता ‘निशांत उज्ज्वल’

ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस (जीकेसी)के सौजन्य से महान कवियत्री और सुविख्यात लेखिका महादेवी वर्मा की जयंती के अवसर पर भोजपुरी फिल्म निर्माता निशांत उज्ज्वल को महादेवी वर्मा सम्मान से अंलकृत किया गया. महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान समारोह का आयोजन राजधानी पटना के भारतीय नृत्य कला मंदिर में हुआ, जिसमें निशांत उज्ज्वल समेत अलग-अलग क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले 16 विभूतियों को महादेवी वर्मा सम्मान से अंलकृत किया गया.

महादेवी वर्मा सम्मान से सम्मानित होने के बाद निशांत उज्ज्वल ने जे की सी का आभार जताने के साथ कहा-‘‘महादेवी वर्मा सम्मान मेरे लिए बेहद गौरवान्वित महसूस करने वाला है.यह मेरे लिए प्रेरणा है.’’ इस अवसर पर जीकेसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने अपने संबोधन में कहा-‘‘साहित्य जगत में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की तरह प्रकाशमान है.

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महादेवी वर्मा हिंदी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवियत्रियों में से हैं. वह हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं. महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं.’’

जीकेसी की प्रबंध न्यासी रागिनी रंजन ने कहा-‘‘साहित्य में महादेवी वर्मा का आविर्भाव उस समय हुआ,जब खड़ीबोली का आकार परिष्कृत हो रहा था.उन्होंने हिंदी कविता को बृजभाषा की कोमलता दी, छंदों के नए दौर को गीतों का भंडार दिया. उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा गया.’’

इस अवसर पर ‘महादेवी वर्मा सम्मान’’से सम्मानित की गई विभूतियों में रिपुसुदन श्रीवास्तव (साहित्य), श्री आलोक राज( गायन), अरूण प्रभा दास (मिथिला पेटिंग), मृणालिनी अखौरी (लोकगायन), पंखुरी श्रीवास्तव (शास्त्रीय संगीत), मनीष वर्मा (ब्लॉगर), निशांत उज्जवल (फिल्म), समीर परिमल (कविता), कुमार रजत (पत्रकारिता), मर्यादा कुलश्रेष्ठ निगम (शास्त्रीय नृत्य), श्यामल दास (पेटिंग), राजकुमार नाहर (शास्त्रीय संगीत), हिना रिजवी (शायरी), नीतु सिन्हा ‘तरंग (लेखन), प्रिया मल्लिक (पार्श्वगायन) और अनुशा चित्रांशी (लेखन) शामिल हैं.

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जीकेसी की प्रदेश अध्यक्ष डा. नम्रता आनंद ने अपने स्वागत भाषण में कहा-‘‘महादेवी वर्मा एक महान कवियत्री होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य जगत में एक बेहतरीन गद्य लेखिका के रूप में भी जानी जाती हैं.’’

वहीं आलोक राज ने कहा-‘‘महादेवी वर्मा जी एक मशहूर कवियत्री तो थी हीं, इसके साथ ही वह एक महान समाज सुधारक भी थीं. कवि निराला ने उन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’ भी कहा है.’’ विश्वरंजन ने कहा- ‘‘महादेवी वर्मा ने महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया और महिला शिक्षा को काफी बढ़ावा दिया था.’’

श्याम किशोर ने कहा कि महादेवी वर्मा ने महिलाओं को समाज में उनका अधिकार दिलवाने और उचित आदर सम्मान दिलवाने के लिए कई महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम उठाए थे.

कार्यक्रम के दौरान जूरी पैनल में शामिल सुशील भारती, डा.राजीव रंजन प्रसाद, शिवपूजन झा और मंजरी श्रीवास्तव, विशिष्ठ अतिथि अशोक प्रसाद, जीकेसी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष सुनील श्रीवास्तव, एजुकेशन सेल के अध्यक्ष दीपक कुमार वर्मा, युवा संभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाला सौरभ वर्मा समेत कई पदाधिकारी भी मौजूद थे.कार्यक्रम के दौरान समीर परिमल, कुमार रजत, हिना रिजवी हैदर, नीतु सिन्हा ‘तरंग ने कविता पाठ कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया.वहीं श्री आलोक राज और प्रिया मल्ल्कि ने पार्श्वगायन जबकि पंखुरी श्रीवास्तव और मर्यादा कुलश्रेष्ठ ने शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति देकर समां को बांध दिया.इस दौरान बीफॉर नेशन और दीदीजी फाउंडेशन के बच्चों ने डांस पर आधारित प्रस्तुति देकर लोगों का मन मोह लिया.

कला संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष देव कुमार लाल ने ‘देव कुमार लाल एंड फ्रेंडस’के साथ संगत कर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए. कार्यक्रम के अंत में जीकेसी कला संस्कृति प्रकोष्ठ और मीडिया सेल के अधिकारियों को प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया. अंत में धन्यवाद ज्ञापन जीकेसी की राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्रीमती रिद्धिमा श्रीवास्तव ने किया.कार्यक्रम का सफल संचालन आरजे श्वेता सुरभि और जीकेसी महिला संभाग की कार्यकारिणी अध्यक्ष संपन्नता वरूण ने किया.

समारोह में विशेष रूप से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपक कुमार अभिषेक, राष्ट्रीय सचिव संजय कुमार, प्रेम कुमार ,युवा संभागके प्रभारी राजेश सिन्हा संजू, धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव, बलिराम जी, अधिवक्ता संजय कुमार सिन्हा, अनुराग समरूप, अभिषेक शंकर, सुशांत सिन्हा, रश्मि लता, डॉ प्रियदर्शी हर्षवर्धन, रवि सिन्हा, हर्ष सिन्हा, सुभाषिनी स्वरूप, निखिल के डी वर्मा, कुमार गौरव, आशुतोष ब्रजेश, पीयूष श्रीवास्तव, सैयद सबीउद्दीन, राजेंद्र यादव, नागेंद्र जी, मधुप मणि पिक्कू, डॉ श्वेता, राजेश कुमार डब्लू, रंजीत प्रसाद सिन्हा आदि ने भी शिरकत की.

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