इन 4 कारणों से पुरुषों में बढ़ता है तनाव

तेजी से बदलती दिनचर्या और इस भागदौड़ भरी लाइफ में पुरुषों में तनाव एक आम समस्या बन गई है.
अपने रोजमर्रा के जीवन में पुरुष अकसर छोटीछोटी बातों पर तनाव ले लेते हैं. जो उन की हैल्थ के लिए हानिकारक तो है ही साथ ही उन के वैवाहिक जीवन के लिए चिंता का सबब बन सकता है. पुरुषों के बीच तनाव की समस्या, इस के लक्षणों की पहचान और इस से कैसा बचा जाए, ये हम आप को बताते हैं.

इन बातों का रखें ध्यान

तनाव पुरुषों के जीवन के लगभग सभी क्षेत्र को प्रभावित करता है, इसलिए जीवनशैली में बदलाव तनाव की समस्या को कम करने में मदद करता है. तनाव के कारण पुरुषों के स्वास्थ्य में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं.

1. ब्लड प्रैशर का बढ़ना

बढ़ते तनाव के चलते पुरुषों में ब्लड प्रैशर की समस्या आम बात है. हाईपर टैंशन के चलते भी ब्लड प्रैशर में बदलाव आता है, जिस के चलते पुरुष ज्यादा गुस्सा और चिड़चिड़े हो जाते हैं.

2. थका हुआ महसूस करना 

तनाव पुरुषों को शारिरीक रूप से तो कमजोर करता ही है पर मानसिक रूप से भी नुकसान पहुंचाता है. जिस के चलते पुरुष थका हुआ महसूस करने लगते हैं.

3. दिल तेजी से धड़कना

तनाव में घबराहट होना एक आम बात है, जिस के चलते आप की दिल की धड़कन तेजी से बढ़ने लगती है.

4. इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होना

तनाव, घबराहट होना, हाईपर टैंशन और दिल की धड़कन तेजी से बढ़ना इन सभी कारणों से इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर हो जाता है.

लाइफस्टाइल में बदलाव ही बचाव 

-योग और मैडिटेशन का प्रयोग करें, इस से मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के तनाव दूर करने में मदद मिलती है.

-तनाव से बचाव के लिए पर्याप्त नींद लें.

-अपनी परेशानियों को दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें.

-तनाव को कम करने के लिए आप अपनी पसंद का गाना सुनें. लाफ्टर थैरेपी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

क्या जिम जाने वाला अग्रेसिव होता है?

कुछ साल पहले की बात है. मैं दिल्ली देहात के एक गांव में एक इंटरनैशनल पहलवान के सगाई समारोह में गया था. वहां कई नामचीन लोग आए थे और माहौल बड़ा खुशनुमा था कि अचानक वहां कुछ नौजवान लड़कों का ग्रुप आया. सभी गांवदेहात के थे, पर पैसे वाले भी दिख रहे थे.

हैरत की बात थी कि उन नौजवानों में से कइयों के पास महंगी और मौडर्न पिस्टल थीं और ज्यादातर जिम में जा कर बौडी बनाए हुए थे. उन में जो लड़का सब से बीच में चल रहा था, वह बहुत हैंडसम था और उस की बौडी के तो कहने ही क्या. उस की महंगी शर्ट से बौडी के कट्स साफसाफ दिख रहे थे.

वे लड़के वहां कुछ देर रहे, चंद लोगों और दूल्हे से मुलाकात की और फिर अपनी महंगी गाड़ियों में चले गए.

यह सोच कर मेरे मन में सवाल उठा था कि जो लोग जिम जा कर बौडी बनाते हैं, क्या वे सभी अग्रेसिव होते हैं या हो जाते हैं? वजह, जो लड़के शादी में आए थे, वे दिखने में बदमाश जैसे नहीं थे, पर हाथ में पिस्टल और कसी हुई बौडी से ऐसा लग था कि अगर कोई उन से पंगे लेगा तो वे उसे छोड़ेंगे नहीं.

पैसे दे कर जिम में बौडी बनाने का चलन आजकल बहुत ज्यादा बढ़ गया है. बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटे कसबों में भी अब जिम खुलने लगे हैं. वहां ज्यादातर लड़के इसलिए बौडी बनाने जाते हैं कि दुनिया पर उन का रोब जमे, खासकर जवान लड़कियों पर. जब उन की बौडी दिखाने लायक बन जाती है, तो उन में अकड़ आ जाती है. पर क्या इस के पीछे कोई अग्रेशन होती है, जो उन्हें जिम तक ले जाती है?

anju-gupta
अंजू गुप्ता

इस मसले पर मुंबई के ‘आइडियल बौडी फिटनैस’ जिम में फिटनैस इंस्ट्रक्टर अंजू गुप्ता ने बताया, “जिम जाने से अग्रेशन का कुछ लेनादेना नहीं है, बल्कि जिम जाने से बौडी में जो बदलाव आता है, उस से तो बहुत अच्छा महसूस होता है.

“अमूमन जिम जाने वाले लोग अपने रूटीन को ले कर बहुत अनुशासित होते हैं, तो शायद देखने वाले को लगे कि वे अग्रेसिव हैं. एक बात और है कि जब जिम जाने वाले लोग किसी स्ट्रिक्ट डाइट पर होते हैं, तो उन का मैटाबौलिक रेट बढ़ जाता है, हार्ट रेट ज्यादा हो जाती है, पर यह फिटनैस का हिस्सा है.

“लेकिन अगर हम किसी एक तरह के ऐक्सरसाइज स्टाइल को अपनाते हैं तो ब्रेन को उसी की आदत पड़ जाती है, जिस से अग्रेशन बढ़ने का डर बना रहता है, इसलिए हमेशा जिम और ऐक्सरसाइज के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए. अपने को दूसरे ऐसे काम में बिजी रखना चाहिए, जो मन को शांत करते हैं. इस के अलावा खानपान का भी खास ध्यान चाहिए.”

kapil-gupta
कपिल गुप्ता

फरीदाबाद के 47 साल के कारोबारी कपिल गुप्ता अपने कालेज के दिनों से जिम में जाने लगे थे. एक समय ऐसा था जब वे अपने सिक्स पैक्स एब्स के लिए जाने जाते थे. तब उन्होंने अपना वजन 106 किलो से घटा कर 82 किलो किया था.

कपिल गुप्ता ने बताया, “मैं जिम में तरहतरह के लोगों से मिला हूं, पर मेरी नजर में कोई ऐसा नहीं आया, जो जिम जौइन करने के बाद अग्रेसिव हुआ हो. हां, अगर कोई शुरू से ही अग्रेसिव सोच का रहा होगा तो कहा नहीं जा सकता.

“जिम अपने शरीर को सेहतमंद रखने की ठीक वैसे ही जगह है, जैसे कोई दूसरे खेल की जगह. यहां आने वाले लोगों का मकसद यही रहता है कि वे अच्छी बौडी बनाएं और अपनी फिटनैस बरकरार रखें.

“जहां तक किसी के अग्रेसिव होने की बात है तो अगर कोई अपने स्वभाव से अग्रेसिव है, तो वह जिम क्या कहीं भी जैसे अपने घर, औफिस, बाजार या फिर किसी दूसरी जगह वैसा ही बरताव करेगा. यह तो बच्चों पर भी लागू होता है. अगर किसी बच्चे में एनर्जी ज्यादा है तो वह दूसरे बच्चों के मुकाबले अग्रेसिव होता है. अगर उस अग्रेसिवनैस का सही से इस्तेमाल किया जाए तो बच्चा शांत रहता है.

“हां, अगर जिम में कोई ऐक्सरसाइस के लिए सप्लीमैंट्स लेता है तो कभीकभार उस के साइड इफैक्ट के तौर पर ऐसे लोग अग्रेसिव हो जाते हैं, पर यह नहीं कहा जा सकता है कि जिम जाने वाले लोग अग्रेसिव हो जाते हैं या होते हैं.”

katoch
निश्चिंत कटोच

भारत के अल्ट्रा रनर निश्चिंत कटोच एक समय अपने ज्यादा वजन से परेशान थे. उन्होंने अपनी लगन से खुद में इस हद तक बदलाव किया कि वे आज कईकई किलोमीटर तक आसानी से दौड़ लेते हैं. इस सब बदलाव में जिम ने बड़ा रोल निभाया है.

निश्चिंत कटोच ने बताया, “यह सब वर्कआउट की इंटैंसिटी पर डिपैंड करता है. हार्ड ट्रेनिंग ऐक्सरसाइज से टैस्टोस्टेरोन के कुदरती लैवल में बढ़ोतरी होती है, जिस से अग्रेशन का लैवल बढ़ सकता है. इस पर कंट्रोल करने का तरीका यही है कि वर्कआउट और इंटैंसिटी में बैलैंस बनाया जाए. गुड मैंटल हैल्थ के लिए वर्कआउट को इस ढंग से करना चाहिए कि जिम जाने वाला अग्रेसिव न हो.”

इस मुद्दे पर एक बात बहुत ज्यादा अहम है कि जिम जाने वाले लोगों में से बहुत से ऐसे होते हैं, खासकर नौजवान, जो बौडी बनाने को ही जिंदगी की सब से बड़ी कामयाबी मानते हैं और उन के पास ऐसी कोई उपलब्धि नहीं होती है, जिस पर वे या उन का परिवार गर्व कर सके.

एड्स एक खतरनाक बीमारी है !

1 दिसम्बर का दिन पूरे विश्व में  एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना है. जागरूकता के तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है और कई अभियान चलाए जाते हैं जिससे इस महामारी को जड़ से खत्म करने के प्रयास किए जा सकें. साथ ही एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सकें.

विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी जिसका मकसद, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े मिथ को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था.  चूंकि एड्स का अभी तक कोई इलाज नही है इसलिए यह आवश्‍यक है‍ कि लोग एड्स के बारे में जितना संभव हो सके रोकथाम संबंधी जानकारी प्राप्‍त करे और इसे फ़ैलाने से रोके.

एड्स यानि एक्‍वायर्ड इम्‍युनोडेफिशिएंसी सिन्‍ड्रोम एक खतरनाक बीमारी है जो हर किसी के लिए चिंता का विषय है.  1981 में  न्यूयॉर्क में एड्स के बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ ”समलिंगी यौन क्रिया” के शौकीन अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए. इलाज के बाद भी रोग ज्यों का त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी थी. फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी और इसे नाम दिया गया ”एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम” यानी एड्स.

एड्स का मतलब 

– ए यानी एक्वायर्ड यानी यह रोग किसी दूसरे व्यक्ति से लगता है.

– आईडी यानी इम्यूनो डिफिशिएंसी यानी यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त कर देता है.

– एस यानी सिण्ड्रोम यानी यह बीमारी कई तरह के लक्षणों से पहचानी जाती है.

एड्स का बढ़ता क्षेत्र

कई देशों में एड्स मौत का सबसे बड़ा कारण बन गया है. पहली बार ऐसा हुआ है कि पिछले एक साल में अफ्रीका में एचआईवी के मामलों में कमी दर्ज की गई है . लेकिन सच यह भी है कि अब भी अफ्रीका में करीब 38 लाख लोग एचआईवी से बुरी तरह से प्रभावित हैं. पूरी दुनिया धीरे-धीरे जानलेवा बीमारी एचआईवी/एड्स की चपेट में आ रही है. संयुक्त राष्ट्र के नए आंकडों के अनुसार  एड्स एक भयावह बीमारी बनाते जा रहा है . संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि पूरी दुनिया में करीब 33.3 मिलियन लोग एचआईवी/ एड्स से ग्रस्त हो चुके हैं और हर साल करीब 53 लाख एड्स के नए मामले सामने आ रहे हैं. हर चौबीस घंटे में 7 हजार एचआईवी के नये मामले सामने आ रहे हैं. यही नहीं इस दौरान एक मिलियन संचारित यौन संक्रमण(एसटीडी) के मामले आ रहे हैं. दस साल में तेजी से फ़ैल रहा है यह बीमारी .  एड्स और एचआईवी से ग्रस्त लोगों की संख्या विशेषज्ञों द्वारा दस साल पहले लगाए गए अनुमानों से 50 फीसद अधिक है.

2019 तक 2.9 मिलियन लोग इस इंफेक्शन के संपर्क में आए हैं, जिसमें से 3 लाख 90 हजार बच्चे भी इसकी चपेट में आएं. इतना ही नहीं पिछले पांच सालों में  एड्स से ग्रसित लगभग 1.8 मिलियन लोगों की मौत हो चुकी है.

आमतौर पर देखा गया है कि एड्स अधिकतर उन देशों में है जहां लोगों की आय बहुत कम है या जो लोग मध्यवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखते हैं.

बहरहाल, एचआईवी एड्स आज दुनिया भर के सभी महाद्वीपों में महामारी की तरह फैला हुआ है जो कि पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है और जिसे मिटाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की कुल मामलों में से 15 से 24 साल की लड़कियां एचआईवी पीड़ित हैं. जबकि 23 फीसद कुल एचआईवी पीड़ितों में 24 की आयु के हैं. 35 फीसद मामले नए संक्रमणों के हैं. संयुक्त राष्ट्र सहायता के कार्य निदेशक पीटर पीयोट कहते हैं कि पूरी दुनिया को इस बात का अंदाजा हो चुका है कि एड्स कितना भयानक रूप ले चुका है.

एक अनुमान के अनुसार 2009-2019 तक करीब 40 लाख लोग एड्स की बलि चढ़ चुके है. इससे पहले के दशक में  एड्स से इतने लोगों की मौत नहीं हुई है. साथ ही पहली बार ऐसा हुआ है कि जहाँ से यह बीमारी फैलाना शुरू हुई वही अब इस बीमारी के मामले काफी कम प्रकाश में आ रहे है. पिछले एक साल में अफ्रीका में एचआईवी के मामलों में कमी दर्ज की गई है. लेकिन  अब भी अफ्रीका में करीब 38 लाख लोग एचआईवी से बुरी तरह से प्रभावित हैं.  यह हालत तब है जब इस बीमारी की रोकथाम के प्रयास ईमानदारी के साथ किए जा रहे हैं.

विश्व में ढाई करोड़ लोग अब तक इस बीमारी से मर चुके हैं और करोड़ों अभी इसके प्रभाव में हैं. अफ्रीका पहले नम्बर पर है, जहाँ एड्स रोगी सबसे ज्यादा हैं. भारत दूसरे स्थान पर है. भारत में अभी करीबन 1.25 लाख मरीज हैं, प्रतिदिन इनकी सँख्या बढ़ती जा रही है. भारत में पहला एड्स मरीज 1986 में मद्रास में पाया गया था.

क्या है एचआईवी और एड्स?

एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) एक ऐसा से एड्स होता है. जिस इंसान में इस वायरस की मौजूदगी एचआईवी पॉजिटिव कहते हैं. एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब एड्स रोगी नहीं होता. जब एचआईवी वायरस शरीर में प्रवेश हो जाता है, उसके बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. एचआईवी वायरस व्हाइट ब्लड सेल्स पर आक्रमण करके उन्हें धीरे-धीरे मारते हैं. इस कारण से कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं, जिनका असर तत्काल महसूस नहीं होता. यह लगभग 10 साल बाद प्रत्यक्ष रूप में सामने आती है. व्हाइट सेल्स के खत्म होने के बाद संक्रमणऔर बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम होने लगती है. परिणामस्वरूप शरीर में विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शन होने लगते हैं. एचआईवी इन्फेक्शन वह अंतिम पड़ाव है, जिसे एड्स कहा जाता है.

एचआईवी दो तरह का होता है. एचआईवी-1 और एचआईवी-2. एचआईवी-1 पूरी दुनिया में पाया जाता है.

भारत में भी 80 प्रतिशत मामले इसी श्रेणी के हैं. एचआईवी- 2 खासतौर से अफ्रीका में मिलता है. भारत में भी कुछ लोगों में इसके संक्रमण से पीड़ित पाए जाते हैं.

क्या है एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब ?

एच.आई.वी. पॉजिटिव होने का मतलब है, एड्स वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर गया है. इसका अर्थ यह नहीं है कि आपको एड्स है. एच.आई.वी. पॉजिटिव होने के 6 महीने से 10 साल के बीच में कभी भी एड्स हो सकता है. स्वस्थ व्यक्ति अगर एच.आई.वी. पॉजिटिव के संपर्क में आता है, तो वह भी संक्रमित हो सकता है. एड्स का पूरा नाम है ˜ एक्वार्यड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम ˜ और यह बीमारी एच.आई.वी. वायरस से होती है.

यह वायरस मनुष्य की प्रतिरोधी क्षमता को कमजोर कर देता है. एड्स एच.आई.वी. पॉजिटिव गर्भवती महिला से उसके बच्चे को, असुरक्षित यौन संबंध से या संक्रमित रक्त या संक्रमित सुई के प्रयोग से हो सकता है. जब आपके शरीर की प्रतिरक्षा को भारी नुकसान पहुंच जाता है, तो एच आई वी का संक्रमण, एड्स के रूप में बदल जाता है. अगर नीचे लिई हुई स्थितियों में से आपको कुछ भी है, तो आपको एड्स है : 200 से कम सी 4 डी सेल (200), 14 प्रतिशत से कम सी डी 4 सेल (14), मौकापरस्त संक्रमण (पुराना), मुंह या योनि में फफूंद, आंखों में सी एम वी संक्रमण (सीएमवी), फेफड़ा में पी सी पी निमोनिया, कपोसी कैंसर.

एच.आई.वी. पॉजिटिव को इस बीमारी का तब तक नहीं चलता, जब तक कि इसके लक्षण प्रदर्शित नहीं होते. इसका मतलब है वे जीवाणु जो शरीर की प्रतिरक्षा को कम करे. एच.आई.वी. से संक्रमित होने पर आपका शरीर इस रोग से लड़ने की कोशिश करता है. आपका शरीर रोग प्रतिकारक कण बनाता है, जिसे एंटीबॉडीज कहते हैं. एच.आई.वी. के जांच में अगर आपके खून में एंटीबॉडीज पाया जाता है, तो इसका मतलब है कि आप एच आई वी के रोगी हैं और आप एच आई वी पॉजिटिव (सकारात्मक एचआईवी) हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि आपको एड्स है. कई लोग एच आई वी पॉजिटिव होते हैं किंतु वे सालों तक बीमार नहीं पड़ते हैं.

समय के साथ एच आई वी आपके शरीर की प्रतिरक्षा को कमजोर कर देता है. इस हालत में, विभिन्न प्रकार के मामूली जीवाणु, कीटाणु, फफूंद आपके शरीर में रोग फैला सकते हैं, जिसे मौकापरस्त संक्रमण (अवसरवादी संक्रमण/पुराना) कहते हैं.

ऐसे फैल सकता है एड्स

* एचआईवी पॉजिटिव पुरुष या महिला के साथ अनसेफ (कॉन्डम यूज किए बिना) सेक्स से, चाहे सेक्स होमोसेक्सुअल ही क्यों न हो.

* संक्रमित (इन्फेक्टेड) खून चढ़ाने से.

* एचआईवी पॉजिटिव महिला से पैदा हुए बच्चे में. बच्चा होने के बाद एचआईवी ग्रस्त मां के दूध पिलाने से भी इन्फेक्शन फैल सकता है.

* खून का सैंपल लेने या खून चढ़ाने में डिस्पोजेबल सिरिंज (सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल में आने वाली सुई) न यूज करने से या फिर स्टर्लाइज किए बिना निडल और सिरिंज का यूज करने से.

* हेयर ड्रेसर (नाई) के यहां बिना स्टर्लाइज्ड (रोगाणु-मुक्त) उस्तरा, पुराना इन्फेक्टेड ब्लेड यूज करने से.

* सलून में इन्फेक्टेड व्यक्ति की शेव में यूज किए ब्लेड से. सलून में हमेशा नया ब्लेड यूज हो रहा है, यह इंशुअर करें.

ऐसे नहीं फैलता एड्स 

* चूमने से. अपवाद अगर किसी व्यक्ति को एड्स है और उसके मुंह में कट या मसूड़े में सूजन जैसी समस्या है, तो इस तरह के व्यक्ति को चूमने से भी एड्स फैल सकता है.

* हाथ मिलाना, गले मिलना, एक ही टॉयलेट को यूज करना, एक ही गिलास में पानी पीना, छीकने, खांसने से इन्फेक्शन नहीं फैलता.

* एचआईवी शरीर के बाहर ज्यादा देर तक नहीं रह सकता, इसलिए यह खाने और हवा से भी नहीं फैलता.

* रक्तदान करने से बशर्ते खून निकालने में डिस्पोजेबल (इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली) सुई का इस्तेमाल किया गया हो.

* मच्छर काटने से.

* टैटू बनवाने से, बशर्ते इस्तेमाल किए जा रहे औजार स्टर्लाइज्ड हों.

* डॉक्टर या डेंटिस्ट के पास इलाज कराने से. ये लोग भी आमतौर पर स्टरलाइज्ड औजारों का ही इस्तेमाल करते हैं.

इनके जरिए शारीर में पहुंचता है वायरस

* ब्लड

* सीमेन (वीर्य)

* वैजाइनल फ्लूइड (स्त्रियों के जननांग से निकलने वाला दव)

* ब्रेस्ट मिल्क

* शरीर का कोई भी दूसरा फ्लूइड, जिसमें ब्लड हो मसलन, बलगम

लक्षण –  एचआईवी से ग्रस्त इंसान शुरू में बिल्कुल नॉर्मल और सेहतमंद लगता है. कुछ साल बाद ही इसके लक्षण सामने आते हैं. अगर किसी को नीचे दिए गए लक्षण हैं, तो उसे एचआईवी का टेस्ट कराना चाहिए  .

* एक महीने से ज्यादा समय तक बुखार बने रहना, जिसकी कोई खास वजह भी पता न चले.

* बिना किसी वजह के लगातार डायरिया बने रहना.

* लगातार सूखी खांसी.

* मुंह में सफेद छाले जैसे निशान होना.

* बिना किसी वजह के लगातार थकान बने रहना और तेजी से वजन गिरना.

* याददाश्त में कमी, डिप्रेशन आदि.

एचआईवी के लिए मेडिकल टेस्ट  –  एड्स के लक्षणों से शक होने पर निम्न टेस्ट  कराये .

टेस्ट कराएं अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि

* कभी वह एचआईवी के संपर्क में आ गया होगा.

* पिछले 12 महीनों के दौरान अगर एक से ज्यादा पार्टनर के साथ उसके सेक्स संबंध रहे हों.

* अपने पार्टनर के सेक्सुअल बिहेवियर को लेकर वह निश्चिंत न हो.

* वह पुरुष हो और उसने कभी किसी पुरुष के साथ अनसेफ सेक्स किया हो. उसे एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) हो. वह हेल्थ वर्कर हो, जो ब्लड आदि के सीधे संपर्क में आता हो.

* वह प्रेग्नेंट हो.  बचाव ही  इलाज है!

दुनिया भर में तेजी से पांव पसारते जा रहे एड्स का इलाज भी तक खोजा नहीं जा  सका है, इससे बचाव में ही इसका कारगर इलाज है.

एड्स का कोई उपचार नहीं है. एड्स के लिए जो दवा हैं, वे या तो एच आई वी के जीवाणु को बढ़ने से रोकते हैं या आपके शरीर के नष्ट होते हुए प्रतिरक्षा को धीमा करते हैं. ऐसा कोई ईलाज नहीं है कि एच आई वी के जीवाणु का शरीर से सफाया हो सके. अन्य दवाएं मौकापरस्त संक्रमण को होने से रोकती हैं या उनका उपचार कर सकती हैं. आधिकांश समय, ये दवाइयां सही तरह से काम करती हैं.

हालांकि दवाओं की मदद से एचआईवी पॉजिटिव होने से लेकर एड्स होने तक के समय को बढ़ाया जा सकता है. दवाएं देकर व्यक्ति को ज्यादा लंबे समय तक बीमारियों से बचाए रखने की कोशिश की जाती है. इलाज के दौरान एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं. एजेडटी, डीडीएल, डीडीसी कुछ कॉमन ड्रग्स हैं, लेकिन इनका असर कुछ ही वक्त के लिए होता है.

होम्योपैथी होम्योपैथी कहती है कि बीमारियों से नहीं लड़ा जाता, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता.

लक्षण –  एचआईवी से ग्रस्त इंसान शुरू में बिल्कुल नॉर्मल और सेहतमंद लगता है. कुछ साल बाद ही इसके लक्षण सामने आते हैं. अगर किसी को नीचे दिए गए लक्षण हैं, तो उसे एचआईवी का टेस्ट कराना चाहिए  .

* एक महीने से ज्यादा समय तक बुखार बने रहना, जिसकी कोई खास वजह भी पता न चले.

* बिना किसी वजह के लगातार डायरिया बने रहना.

* लगातार सूखी खांसी.

* मुंह में सफेद छाले जैसे निशान होना.

* बिना किसी वजह के लगातार थकान बने रहना और तेजी से वजन गिरना.

* याददाश्त में कमी, डिप्रेशन आदि.

एचआईवी के लिए मेडिकल टेस्ट  –  एड्स के लक्षणों से शक होने पर निम्न टेस्ट  कराये .

* टेस्ट कराएं अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि

* कभी वह एचआईवी के संपर्क में आ गया होगा.

* पिछले 12 महीनों के दौरान अगर एक से ज्यादा पार्टनर के साथ उसके सेक्स संबंध रहे हों.

* अपने पार्टनर के सेक्सुअल बिहेवियर को लेकर वह निश्चिंत न हो.

* वह पुरुष हो और उसने कभी किसी पुरुष के साथ अनसेफ सेक्स किया हो. उसे एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) हो. वह हेल्थ वर्कर हो, जो ब्लड आदि के सीधे संपर्क में आता हो.

* वह प्रेग्नेंट हो.

बचाव ही  इलाज है!

दुनिया भर में तेजी से पांव पसारते जा रहे एड्स का इलाज भी तक खोजा नहीं जा  सका है, इससे बचाव में ही इसका कारगर इलाज है.

एड्स का कोई उपचार नहीं है. एड्स के लिए जो दवा हैं, वे या तो एच आई वी के जीवाणु को बढ़ने से रोकते हैं या आपके शरीर के नष्ट होते हुए प्रतिरक्षा को धीमा करते हैं. ऐसा कोई ईलाज नहीं है कि एच आई वी के जीवाणु का शरीर से सफाया हो सके. अन्य दवाएं मौकापरस्त संक्रमण को होने से रोकती हैं या उनका उपचार कर सकती हैं. आधिकांश समय, ये दवाइयां सही तरह से काम करती हैं.

हालांकि दवाओं की मदद से एचआईवी पॉजिटिव होने से लेकर एड्स होने तक के समय को बढ़ाया जा सकता है. दवाएं देकर व्यक्ति को ज्यादा लंबे समय तक बीमारियों से बचाए रखने की कोशिश की जाती है. इलाज के दौरान एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं. एजेडटी, डीडीएल, डीडीसी कुछ कॉमन ड्रग्स हैं, लेकिन इनका असर कुछ ही वक्त के लिए होता है.

होम्योपैथी होम्योपैथी कहती है कि बीमारियों से नहीं लड़ा जाता, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है. होम्योपैथिक इलाज में शरीर के इम्युनिटी स्तर को बढ़ाने की कोशिश की जाती है. इसके अलावा एड्स में होने वाले हर्पीज, डायरिया, बुखार आदि का इलाज किया जाता है.

एचआईवी पर काउंसलिंग  – एचआईवी टेस्ट और काउंसलिंग के लिए सरकार ने पूरे देश में 5 हजार इंटिग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) बनाए हैं. इन सेंटरों पर व्यक्ति की काउंसलिंग और उसके बाद बाजू से खून लेकर जांच की जाती है. यह जांच फ्री होती है और रिपोर्ट आधे घंटे में मिल जाती है. आमतौर पर सभी जिला अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और कुछ कम्यूनिटी हेल्थ सेंटरों पर यह सुविधा उपलब्ध है. यहां पूरी जांच के दौरान व्यक्ति की आइडेंटिटी गुप्त रखी जाती है. पहले रैपिड या स्पॉट टेस्ट होता है, लेकिन इस टेस्ट में कई मामलों में गलत रिपोर्ट भी पाई गई हैं. इसलिए स्पॉट टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद व्यक्ति का एलाइजा टेस्ट किया जाता है. एलाइजा टेस्ट में कन्फर्म होने के बाद व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव होने की रिपोर्ट दे दी जाती है.

एड्स के साथ जिंदगी

एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने का मतलब यह नहीं है कि जिंदगी में कुछ नहीं रहा. एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति भी आम लोगों की तरह जिंदगी जी सकते हैं.  अगर डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक चला जाए तो यह सम्भव  हैं. तो  आईये जानते है  एड्स के साथ जिंदगी जीने के लिए किन- किन  बातो का ध्यान रखे.

* अपने डॉक्टर से मिलकर एचआईवी इन्फेक्शन से संबंधित अपना पूरा मेडिकल चेकअप कराएं.

* टीबी और एसटीडी का चेकअप भी जरूर करा लें. डॉक्टर की सलाह के मुताबिक दवाएं लें.

* महिलाएं थोड़े-थोड़े दिनों बाद अपनी गाइनिकॉलिजकल जांच कराती रहें.

* अपने पार्टनर को इस बारे में बता दें.

* दूसरे लोग वायरस से प्रभावित न हों, इसके लिए पूरी तरह से सावधानी बरतें.

*अगर अल्कोहल और ड्रग्स का इस्तेमाल करते है , तो बंद कर दें.

* अच्छी पौष्टिक डाइट लें और टेंशन से दूर रहें.

* नजदीकी लोगों से मदद लें और वक्त-वक्त पर प्रफेशनल काउंसलिंग कराते रहें.

* ब्लड, प्लाज्मा, सीमेन या कोई भी बॉडी ऑर्गन डोनेट न करें.

दिमागी नामर्दी से बचें

दरअसल, जब विशाल 14-15 साल का किशोर था, तभी उसे हस्तमैथुन करने की आदत लग गई थी. हालांकि इस उम्र में ऐसा करना लाजिमी है और आमतौर पर सभी लड़के इसी तरीके से अपनी सैक्स भावना को शांत करते  हैं, लेकिन सुहागरात पर अपराधबोध की वजह से विशाल में वह जोश नहीं आया और न ही अंग में तनाव.

सुहागरात पर मिली नाकामी का उस के मन में इस कदर डर बैठ गया कि वह अपनेआप को नामर्द समझने लगा. वह अपनी पत्नी के करीब जाने से कतराने लगा. रात होते ही उसे घबराहट होने लगती. वह पत्नी के सोने का इंतजार करने लगता.

विशाल की शादी हुए एक महीना बीत चुका था, लेकिन वह शारीरिक संबंध नहीं बना पाया था. एक दिन उस ने मन पक्का कर के अपने एक खास दोस्त को यह समस्या बताई.

दोस्त को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है, इसलिए उस ने सलाह दी कि वह किसी माहिर डाक्टर को बता कर वह अपना चैकअप कराए, ताकि पता चले कि समस्या क्या है.

विशाल डाक्टर के पास गया. डाक्टर ने उस का अच्छी तरह चैकअप किया. कई जांच करने के बाद उसे शारीरिक तौर पर एकदम सही बताया यानी वह मर्द है और उस में ऐसी कोई कमी नहीं, जो सैक्स करने में बाधक हो.

डाक्टर ने विशाल को सलाह दी कि उस की समस्या जिस्मानी नहीं, बल्कि दिमागी है यानी तन से तो वह मर्द है, लेकिन मन से नामर्द, इसलिए उसे किसी माहिर मनोचिकित्सक से काउंसलिंग कराने को कहा.

विशाल उस मनोचिकित्सक के पास गया. काउंसलिंग के दौरान उस ने मनोचिकित्सक के सभी सवालों के जवाब दिए और कुछ सवाल अपनी तरफ से किए.

मनोचिकित्सक ने उस से कहा, ‘‘तुम शारीरिक रूप से पूरी तरह सेहतमद हो यानी मर्द हो, लेकिन पत्नी के पास जाते ही तुम्हारे मन में हस्तमैथुन करने का अपराधबोध आ जाता है, जो तुम्हें मन से नामर्द बना देता है.’’

मनोचिकित्सक ने विशाल को सलाह दी कि वह इस तरह का अपराधबोध छोड़ दे. यह तो एक सहज और सामान्य प्रक्रिया है. इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहिए. बीती बातों का अपराधबोध पालने की कोई तुक नहीं है. लिहाजा, यह डर अपने दिमाग से निकाल दे.

मनोचिकित्सक के साथ काउंसलिंग के बाद जब विशाल अपनी पत्नी के करीब गया तो उस के तनमन में वही सब अहसास हुआ, जो एक मर्द को होना चाहिए. उस रात उस की मर्दानगी जाग उठी और वह उस में पूरी तरह कामयाब रहा. इस के बाद उस की शादीशुदा जिंदगी आम जोड़े की तरह सुख से भरी हो गई.

विशाल की तरह अनेक नौजवान ऐसे हैं जो अपने द्वारा किए गए हस्तमैथुन या स्वप्नदोष की वजह से आत्मग्लानि से ग्रस्त हैं, जो उन्हें दिमागी तौर पर नामर्द बना देती है.

ऐसे ही एक नौजवान को हफ्ते में एकाध बार स्वप्नदोष होता था और इस वजह से वह खुद को नामर्द समझ रहा था. जब वह डाक्टर के पास गया तो उस की सोच गलत साबित हुई.

डाक्टर ने बताया कि किशोरावस्था में हर लड़के में वीर्य बनना शुरू हो जाता है, जो लगातार जारी रहता?है. जब वीर्य एक मात्रा से ज्यादा हो जाता है, तो वह अपनेआप निकल जाता है. जब कोई लड़का उत्तेजक सपना देखता है, तो उस का वीर्य गिर जाता है. इसे ही स्वप्नदोष कहते हैं.

स्वप्नदोष होना कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक कुदरती प्रक्रिया है. इस से किसी तरह की कमजोरी नहीं आती और न ही नामर्दी होती है.

हस्तमैथुन को ले कर कई गलत सोच फैली हुई हैं, जैसे इस से  कमजोरी आती है, शादी के बाद पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाएगा, अंग टेढ़ा हो जाएगा वगैरह. यह भी एक गलत सोच है कि खून की 50-100 बूंद  से वीर्य की एक बूंद बनती है, जबकि वीर्य का खून से कोई लेनादेना ही  नहीं होता.

हस्तमैथुन और स्वप्नदोष के बारे में गलत सोच उन लोगों ने फैलाई है, जो इसे नामर्दी की वजह बना कर पैसा कमाना चाहते हैं.

ऐसे नीमहकीमों के इश्तिहार वगैरह टैलीविजन और अखबारों में काफी देखे जा सकते हैं. कुछ इश्तिहार नामर्दी को दूर करने वाली दवाओं के होते हैं. इन के झांसे में आने से बचना चाहिए.

कुछ किशोर गंदी संगत में पड़ कर समलैंगिक मैथुन यानी गुदा मैथुन करने की आदत पाल लेते हैं. समलैंगिक संबंधों का भी अपराधबोध दिमागी रूप से नामर्द बना देता है.

औरत के पास जाने पर संबंध बनाने में नाकाम होना दिमागी वजहों से होता है, इसलिए पहले बनाए गए समलैंगिक संबंधों को भूल जाएं. यकीन मानिए. आप अपनी पत्नी के सामने पूरे मर्द साबित होंगे.

कुछ नौजवान शादी से पहले सैक्स वर्कर्स से संबंध बनाने की आदत पाल लेते हैं. शादी के बाद पत्नी से संबंध बनाने की बारी आती है, तो उन्हें डर लगता है कि कहीं उन की पोल खुल न जाए. उन्हें अपना डर दूर कर लेना चाहिए. शादी के पहले वे मर्द थे, तो शादी के बाद नामर्द कैसे हो सकते हैं?

दरअसल, जोश या तनाव आना दिमागी सोच पर निर्भर करता है. पत्नी के साथ सैक्स करते समय पहले  बनाए गए संबंधों का खयाल दिमाग में न लाएं.

जब किसी मर्द का वीर्य सैक्स शुरू करने से पहले या तुरंत बाद निकल जाए, तो उसे शीघ्रपतन कहा जाता है. इस के साथ भी कई भ्रांतियां जुड़ी हुई हैं, जैसे उस की सैक्स की ताकत कम है, वह सैक्स नहीं कर सकता या पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाएगा.

यदि ऐसा होता है, तो अपनेआप को नामर्द न समझें. जब मर्द बहुत ज्यादा जोश में होता है, तो उस का वीर्य जल्दी गिर जाता है. इस से कतई परेशान न हों.

कुछ नौजवान अपने अंग का छोटा होने की वजह से अपने को नामर्द मान बैठते हैं, जबकि यह सोच गलत है. तनाव में आया 3 इंच का अंग सामान्य माना जाता है, जो सैक्स करने व पत्नी  को पूरा सुख पहुंचाने के लिए काफी  है, इसलिए इस बात को ले कर चिंतित न हों.

कुछ इश्तिहारों में अंग बड़ा करने की दवा, तेल व उपकरणों के बारे में देखा जा सकता है. इन में कोई सचाई नहीं होती. अंग को किसी भी तरीके से बड़ा नहीं किया जा सकता है. इस के लिए किसी हकीम या तंबू वाले के पास मत जाइए, क्योंकि ये लोग आप को बेवकूफ बना कर खुद पैसा कमाते हैं. ऐसी कोई दवा आज तक नहीं बनी है, जिसे खा कर अंग की लंबाई बढ़ जाती है. वैसे भी हर किसी के अंग की लंबाई अलगअलग होती है.

दरअसल, नामर्द होने का मतलब है कि आदमी सैक्स संबंध बनाने में नाकाम है, चाहे वह संबंध बनाना चाहता हो. इस हालत में आदमी का अंग तनाव में नहीं आता या सिर्फ थोड़ी देर के लिए ही आता है.

किसी आदमी के नामर्द होने की  3 वजहें हैं, प्रजनन अंग में विकार, नशे की दवाएं या शराब का असर. तीसरी वजह में आदमी मानसिक तौर पर नामर्द होता है. ज्यादातर लोग इस हालात में ही होते हैं.

अगर कोई यह सोच ले कि वह सैक्स करने में नाकाम है, तो वह कभी कामयाब नहीं होगा. यह तो वही  बात हुई कि कोई सैनिक लड़ाई के मैदान में लड़ने से पहले ही हथियार डाल दे. ऐसे में भला वह जीत कैसे सकता है? लिहाजा, नामर्द होने का वहम मन से निकाल दें. अगर कोई दिक्कत है, तो हमेशा माहिर डाक्टर से ही सलाह लें.

जब मोबाइल फोन का अधिक प्रयोग, इनफर्टिलिटी के लिए हो घातक

31 साल की कामकाजी महिला नीलम को शादी के 3 साल बाद भी बच्चा न होने से वह घबरायी और डौक्टर के पास गयी, शुरुआती जांच के बाद डॉक्टर ने पाया कि उसका सब कुछ ठीक है,लेकिन ओव्यूलेशन सही समय पर नहीं हो रहा है. उसकी काउंसिलिंग की गई, तो पता चला कि उसकी मासिक धर्म का समय भी ठीक नहीं, इसकी वजह जानने के बाद पता चला कि उसका कैरियर ही उसकी इस समस्या का जड़ है. उसकी चिंता और मूड स्विंग इतना अधिक था कि उसे नार्मल होने में समय लगा और करीब एक साल के इलाज के बाद वह आईवीएफ के द्वारा ही मां बन पायी.

दरअसल आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पूरे दिन का एक बहुत बड़ा भाग व्यक्ति अपने मोबाइल फोन से चिपके हुए बिताता है. खासकर आज के युवा पूरे दिन डिजिटल वर्ल्ड में व्यस्त रहते हैं, ऐसे में उनकी शारीरिक अवस्था धीरे-धीरे बिगड़ती जाती है, जिसमें फर्टिलिटी की समस्या सबसे अधिक दिखाई पड़ रही है. इस बारें में वर्ल्ड औफ वुमन की फर्टिलिटी एक्सपर्ट डा. बंदिता सिन्हा का कहना है कि डिजिटल वर्ल्ड के आने से इसकी लत सबसे अधिक युवाओं को लगी है. वे दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहती हैं. 19 से 25 तक की युवा कुछ सुनना भी नहीं चाहतीं, उन्हें कुछ मना करने पर विद्रोही हो जाती हैं. ऐसे में उनके साथ अधिक समस्या है. 5 में से एक लड़की को कुछ न कुछ स्त्री रोग जनित समस्या इसकी वजह से आज है.

ऐसी ही एक 25 साल की लड़की मेरे पास आई जो बहुत परेशान थी, क्योंकि उसका मासिक धर्म रुक चुका था. उसे नीद नहीं आती थी. वह पोलीसिस्टिक ओवेरियन डिसीज की शिकार थी. जिसमें उसका वजन बढ़ने के साथ-साथ, डिप्रेशन, मूड स्विंग और हार्मोनल समस्या थी. इसे ठीक करने में 2 साल का समय लगा. आज वह एक अच्छी जिंदगी जी रही है, लेकिन यही बीमारी अगर अधिक दिनों तक चलती, तो उसे फर्टिलिटी की समस्या हो सकती थी.

ये समस्या केवल महिलाओं में ही नहीं, पुरुषों में भी अधिक है. इस बारें में मनिपाल फर्टिलिटी के चेयरमैन और यूरो एनड्रोलोजिस्ट डा. वासन एस एस बताते हैं कि वैज्ञानिको ने सालों से इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन (ईएमआर) का मानव शरीर पर प्रभाव के बारें में शोध किया है. यह हमारे आसपास के वातावरण और घरेलू उपकरणों जिसमें ओवन, टीवी, लैपटौप, मेडिकल एक्सरे आदि सभी से कुछ न कुछ मात्रा में आता रहता है, लेकिन इसमें सबसे खतरनाक है हमारा मोबाइल फोन. जिसे आजकल व्यक्ति ने अपने जीवन का खास अंग बना लिया है. अध्ययन कहता है कि इलेक्ट्रोमेग्नेटिक के अधिक समय तक शरीर में प्रवेश करने से कैंसर, सिरदर्द और फर्टिलिटी की समस्या सबसे अधिक होती है.

ये भी पढ़ें- वर्क फ्रॉम होम के दौर में ऑफिस का क्या

ऐसा देखा गया है कि जिन पुरुषों ने अपने से आधे मीटर की दूरी पर सेल फोन रखा, उनके भी ‘स्पर्म काउंट’ पहले से कम हुए. इतना ही नहीं 47 प्रतिशत लोग जिन्होंने मोबाइल फोन को अपनी पेंट के जेब में पूरे दिन रखा, उनका ‘स्पर्म काउंट’ अस्वाभाविक रूप से 11 प्रतिशत आम पुरुषों से कम था और यही कमी उन्हें धीरे-धीरे इनफर्टिलिटी की ओर ले जाती है. इतना ही नहीं जो लोग एक दिन में एक घंटे से अधिक मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं, उनमें भी 60 प्रतिशत असामान्य रूप से ‘सीमेन कंसंट्रेशन’ आम 35 प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा कम पाया गया.

रिसर्च यह भी बताती है कि पूरे विश्व में 14 प्रतिशत मध्यम और उच्च आयवर्ग के कपल जिन्होंने मोबाइल फोन का लगातार प्रयोग किया है, उन्हें गर्भधारण करने में मुश्किल आई. ये सेल फोन पुरुष और महिला दोनों के लिए समान रूप से घातक हैं.

इसके आगे डा.वासन कहते हैं कि मोबाइल के इस्तेमाल से फर्टिलिटी के कम होने की वजह को लेकर भी कई मत हैं. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मोबाइल से निकले इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन स्पर्म के चक्र को पूरा करने में बाधित करती है या यह डीएनए को कम कर देती है, जबकि दूसरे मानते हैं कि मोबाइल से निकले रेडिएशन के द्वारा उपजी हीट से स्पर्म काउंट कम होता जाता है. 30 से 40 प्रतिशत फर्टिलिटी के केसेज में अधिकतर पुरुषों में ही पुअर क्वालिटी की स्पर्म देखी गयी, जो चिंता का विषय है.

ये भी पढ़ें- पति-पत्नी के रिश्ते में कायम रखें रोमांस

मोबाइल फोन के अधिक प्रयोग से उसके रेडिएशन का लॉन्ग टर्म प्रभाव है, ये विश्व में साबित हो चुका है, क्योंकि मोबाइल के अधिक प्रयोग से दिमाग में उत्तेजना पैदा होती है, जिससे हार्मोनल इम्बैलेंस होता है, फलस्वरूप नींद पूरी न होना, तनावग्रस्त रहना, मूड स्विंग होना आदि समस्या होती है, ऐसे में कुछ सावधानियां रखनी जरुरी है.

– मोबाइल फोन का प्रयोग कम से कम करें, पुराने आप्शन लैंड लाइन का अधिक से अधिक प्रयोग करने की कोशिश करें.

– मोबाइल फोन में स्पीकर औन कर बात करें.

– अपने जेब में औन मोबाइल फोन को न रखें.

– रात में सोते समय मोबाइल फोन को अपने से दूर टेबल पर रखें, अलार्म के लिए बैटरी वाले घड़ी का इस्तमाल करें.

ये भी पढ़ें- पति-पत्नी के रिश्ते में कायम रखें रोमांस

– पुरुष मोबाइल फोन को ‘कैरी बैग’ में हमेशा रखने की कोशिश करें.

– रेडिएशन को कम करने वाले कवर का प्रयोग मोबाइल के लिए करें.

– पुरुष या महिला लैपटौप को हमेशा टेबल के ऊपर रखकर काम करें.

– ऐसा करने पर आप केवल अपने आप को ही स्वस्थ नहीं रखते, बल्कि एक स्वस्थ भविष्य के निर्माण के लिए भी खुद तैयार रहते है.

पैनक्रियाटिक रोगों की बड़ी वजहें

 लेखक- डा. विकास सिंगला

युवा कामकाजी प्रोफैशनल्स में अल्कोहल सेवन, धूम्रपान के बढ़ते चलन और गालस्टोन के कारण पैनक्रियाटिक रोगों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पैनक्रियाज से जुड़ी बीमारियों में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और पैनक्रियाटिक कैंसर के मामले ज्यादा हैं. लेकिन आधुनिक एंडोस्कोपिक पैनक्रियाटिक प्रक्रियाओं की उपलब्धता और इस बीमारी की बेहतर सम झ व अनुभव रखने वाली विशेष पैनक्रियाटिक केयर टीमों की बदौलत इस से जुड़े गंभीर रोगों पर भी अब आसानी से काबू पाया जा सकता है.

आधुनिक पैनक्रियाटिक उपचार न्यूनतम शल्यक्रिया तकनीक के सिद्धांत पर आधारित है और इसे मरीजों के लिए सुरक्षित व स्वीकार्य इलाज माना जाता है.

पेट के पीछे ऊपरी हिस्से में मौजूद पैनक्रियाज पाचन एंजाइम और हार्मोन्स (ब्लडशुगर को नियंत्रित रखने वाले इंसुलिन सहित) को संचित रखता है. पैनक्रियाज का मुख्य कार्य शक्तिशाली पाचन एंजाइम को छोटी आंत में संचित रखते हुए पाचन में सहयोग करना होता है. लेकिन स्रावित होने से पहले ही जब पाचन एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं तो ये पैनक्रियाज को नुकसान पहुंचाने लगते हैं जिन से पैनक्रियाज में सूजन यानी पैनक्रियाटाइटिस की स्थिति बन जाती है.

ये भी पढ़ें- दिल की बात जुबां पर लाएं लड़कियां

एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस इन में सब से आम बीमारी है, जो प्रतिदिन 50 ग्राम से ज्यादा अल्कोहल सेवन, खून में अधिक वसा और कैल्शियम होने, कुछ दवाइयों के सेवन, पेट के ऊपरी हिस्से में चोट, वायरल संक्रमण और पैनक्रियाटिक ट्यूमर के कारण होती है. गालब्लैडर में पनपी पथरी पित्तवाहिनी तक पहुंच सकती है और इस से पैनक्रियाज नली में रुकावट आ सकती है, जिस कारण एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस होता है. बुजुर्गों में ट्यूमर ही इस का बड़ा कारण है. इस में पेट के ऊपरी हिस्से से दर्द बढ़ते हुए पीठ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच जाता है. कुछ गंभीर मरीजों को सांस लेने में तकलीफ और पेशाब करने में भी दिक्कत आने लगती है.

इस बीमारी का पता लगने पर ज्यादातर मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है. मामूली पैनक्रियाटाइटिस आमतौर पर एनलजेसिक और इंट्रावेनस दवाइयों से ही ठीक हो जाती है. लेकिन थोड़ा गंभीर और एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस जानलेवा भी बन सकती है और इस में मरीजों को लगातार निगरानी व सपोर्टिव केयर में रखना पड़ता है.

ऐसी स्थिति में मरीज को नाक के जरिए ट्यूब डाल कर भोजन पहुंचाया जाता है. पैनक्रियाज के आसपास की नलियों से संक्रमित द्रव को कई बार एंडोस्कोपिक तरीके से या ड्रेनट्यूब के जरिए बाहर निकाला जाता है. उचित इलाज और विशेषज्ञों की देखरेख में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस से पीडि़त ज्यादातर मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं.

इस बीमारी की पुनरावृत्ति से बचने के लिए अल्कोहल का सेवन छोड़ देना चाहिए और गालब्लैडर से सर्जरी के जरिए पथरी निकलवा लेनी चाहिए. लिपिड या कैल्शियम लैवल को दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है. इस के अलावा, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस की डायग्नोसिस और इलाज में एंडोस्कोपिक स्कारलैस प्रक्रियाओं की अहम भूमिका होती है. इस में मरीज को लगातार दर्द या पेट के ऊपरी हिस्से में बारबार दर्द होता है. लंबे समय तक बीमार रहने पर भोजन पचाने के लिए जरूरी पैनक्रियाटिक एंजाइम की कमी और इंसुलिन के अभाव में डायबिटीज होने के कारण डायरिया की शिकायत हो जाती है. पैनक्रियाज और इस की नली की जांच के लिए इस में एमआरसीपी और एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड जैसे टैस्ट कराने पड़ते हैं.

पैनक्रियाटिक ट्यूमर भी धूम्रपान, डायबिटीज मेलिटस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और मोटापे के कारण होता है. इस के लक्षणों में पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पीलिया, भूख की कमी और वजन कम होना है. ऐसे मरीजों का सब से पहले सीटी स्कैन किया जाता है. जरूरत पड़ने पर ही ईयूएस और टिश्यू सैंपलिंग कराई जाती है. इस में लगभग 20 फीसदी कैंसर का पता लगते ही सर्जरी कराई जाती है, बाकी मरीजों को कीमोथेरैपी दी जाती है.

ये भी पढ़ें- कैसे हो कॉलेज में पर्सनालिटी डेवलपमेंट

कीमोथेरैपी के बाद बहुत कम जख्म रह जाता है और फिर मरीज की सर्जरी की जाती है. कीमोथेरैपी से पहले मरीज के पीलिया के इलाज के लिए कई बार ईआरसीपी और स्टेंटिंग भी कराई जाती है. ईआरसीपी के दौरान पित्तवाहिनी में स्टेंट डाला जाता है ताकि ट्यूमर के कारण आए अवरोध को दूर किया जा सके.

पैनक्रियाटिक कैंसर से पीडि़त कुछ मरीजों को तेज दर्द भी हो सकता है. ऐसे में उन्हें दर्द से नजात दिलाने के लिए ईयूएस गाइडेड सीपीएन (सेलियक प्लेक्सस न्यूरोलिसिस) कराया जाता है.

(लेखक मैक्स सुपरस्पैशलिटी हौस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली के गैस्ट्रोएंट्रोलौजी विभाग के निदेशक हैं.)     

  ब्रेन पावर के लिए खाएं ये फूड्स

हमारा ब्रेन पावर बढ़ाने में खानपान की अहम भूमिका होती है. अपने खानपान में निम्न चीजों को शामिल कर के आप तेज याद्दाश्त और दिमाग पा सकते हैं :

हरी पत्तेदार सब्जियों, जैसे पालक आदि में मैग्नीशियम और पोटैशियम प्रचुर मात्रा में होता है. इन के सेवन से मैमोरी शार्प होती है और दिमाग की क्षमता भी बढ़ती है.

नट्स और बीज में कई पोषक तत्त्व पाए जाते हैं और इन में विटामिन ई, स्वस्थ वसा और प्रोटीन होते हैं जोकि दिमाग के लिए काफी फायदेमंद हैं.

मसाले एंटीऔक्सीडैंट के अच्छे सोर्स होते हैं. हलदी, दालचीनी और अदरक का सेवन दिमाग के लिए फायदेमंद रहता है और ये मस्तिष्क में आने वाली सूजन को भी कम करते हैं.

कौफी मूड को अच्छा और शरीर को एक्टिव रखने में मदद कर सकती है. कैफीन और एंटीऔक्सीडैंट गुणों के कारण अल्जाइमर जैसी कुछ बीमारियों से भी कौफी बचाती है.

ये भी पढ़ें- दिमागी नामर्दी से बचें

वसायुक्त मछली, जैसे सैल्मन, ट्यूना या कौड ओमेगा-3 फैटी एसिड के अच्छे स्रोत हैं. याद्दाश्त तेज करने और मूड को बेहतर बनाने में ओमेगा-3 एस की अहम भूमिका है.

कई अध्ययनों से साफ हो चुका है कि दिमाग की ताकत बढ़ाने के लिए ब्लैकबेरी का सेवन फायदेमंद रहता है. शौर्ट टर्म मैमोरी लौस वाले इस का सेवन कर सकते हैं.

– किरण आहूजा   

हेल्थ: 21वीं सदी का बड़ा मुद्दा है बढ़ता बांझपन

चाहे तनाव हो, मोटापा हो, वायु प्रदूषण हो या देर से शादी होना, कुछ भी वजह हो, पिछले तकरीबन 50 सालों में मर्दों के शुक्राणुओं की तादाद में 50 फीसदी तक की कमी पाई गई है. इस में बेऔलाद जोड़ों के लिए स्पर्म डोनेशन का एक नया रास्ता तैयार हुआ है.

‘चाहिए 6 फुट लंबा, गोरा, गुड लुकिंग, अच्छे परिवार से, अच्छा पढ़ालिखा, आईआईटी/एमबीए, विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ा, सेहतमंद व आकर्षक होना चाहिए…’

आप को यह एक शादी का इश्तिहार लगा होगा, लेकिन यह इस से हट कर स्पर्म डोनर यानी शुक्राणु दान करने वाले की खोज के लिए है. बेऔलाद जोड़े इस सूटेबल स्पर्म के लिए कुछ भी कीमत देने को तैयार रहते हैं.

‘‘अस्पताल में आने वाले तकरीबन  40 फीसदी जोड़ों की स्पर्म डोनर से ऐसी ही मांग होती है, जबकि कुछ की कुछ खास मांगें भी होती हैं जैसे स्पर्म लंबे आदमी का होना चाहिए, क्योंकि वह जोड़ा चाहता है कि उस के बच्चे की लंबाई अमिताभ बच्चन जैसी होनी चाहिए.

‘‘कुछ जोड़े आईआईटी पास का स्पर्म चाहते हैं, क्योंकि वे अपने परिवार में एक आइंस्टाइन चाहते हैं, जबकि नवजात के गुण उस के मातापिता के मिलेजुले रूप से होते हैं, जो बाद में विकसित होते हैं,’’ यह कहना है डाक्टर अमिता शाह का, जो एक नामचीन आईवीएफ विशेषज्ञ हैं और कोलंबिया एशिया अस्पताल में प्रैक्टिस करती हैं.

ज्यादातर लोगों के दिमाग में यह घुसा हुआ है कि स्पर्म दान करना बहुत ही शर्मनाक बात है, लेकिन अब लोग धीरेधीरे इसे स्वीकार कर रहे हैं. बड़े कारोबारी, जो अपनी लक्जरी कार में स्पर्म दान के लिए आते हैं, के अलावा स्कूल व कालेज जाने वाले लड़के भी क्लिनिकों के हस्तमैथुन कमरे में अपनी मर्दानगी आजमाने आते हैं.

इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल साइंस के नियमों के तहत स्पर्म दान करने वाले की उम्र 21 साल से 45 साल की उम्र के बीच की होनी चाहिए, इस के बावजूद बहुत से टीनेजर भी स्पर्म दान करते हैं. यहां केवल पैसा ही आकर्षण का केंद्र नहीं है, बल्कि स्कूली लड़के एक क्लिनिक के दान कक्ष में अपना सैक्स का जोश शांत करने के लिए भी जाते हैं, क्योंकि ज्यादातर फर्टिलिटी क्लिनिकों का लुक काफी जबरदस्त होता है.

ये भी पढ़ें- करें खुद को मोटिवेट

नोएडा के मैक्स सैंटर ने तो मौडल क्लाडिया शिफर की मादक तसवीर लगाई हुई है, जिस से स्पर्म दान बढ़े. और भी बहुत से लोकल क्लिनिक हैं, जिन्होंने दान कक्ष को अच्छे से सजाया हुआ है. उदाहरण के तौर पर मयूर विहार, दिल्ली का ठकराल क्लिनिक है, जिस की दीवारों पर खूबसूरत महिलाओं की उत्तेजक तसवीरें लगी हैं और वे अपनी हथेलियों से अपने उभार दबा रही हैं. एक बार दान कक्ष में जाने के बाद आप खुद को नहीं रोक सकते.

ऐसा दान कक्ष छोटा व आरामदायक होता है. एक क्लिनिक के कमरे की दीवार पर लगे शीशे में नीली, गुलाबी बिकिनी पहने, चीनी मिट्टी से बनी मौडल मूर्तियां रखी थीं. इस के चारों तरफ की तसवीरों में भी औरतें नाममात्र के कपड़ों में थीं. कमरे के एक तरफ फोम के गद्दे वाला आरामदायक बिस्तर लगा था.

इस के पास की एक मेज पर एक विदेशी मैगजीन का ताजा अंक रखा हुआ था, बिकिनी विशेषांक था. दान करने वाले को जोश में लाने के लिए टैलीविजन व डीवीडी भी थीं, जिन पर उत्तेजक वीडियो देखी जा सकती थीं.

मैक्स सैंटर के एक मुलाजिम ने बताया कि आमतौर पर एक डोनर कक्ष में 5-15 मिनट का समय लेता है, पर हमेशा ऐसा नहीं होता कि एक परफैक्ट हैल्दी स्पर्म डोनर का वीर्य लिया ही जाए, क्योंकि अच्छी क्वालिटी के मानकों पर खरा उतरने के बाद ही उस के वीर्य को स्वीकार किया जाता है.

अभी हाल ही में एक औनलाइन इश्तिहार में चेन्नई के एक जोड़े ने साफतौर पर एक आईआईटी पास व खूबसूरत नौजवान के स्पर्म की मांग की थी, जिस के लिए वे लोग 50,000 रुपए प्रति मिलीलिटर तक देने को तैयार थे. उन की इस मांग ने इसे बहस का मुद्दा बना दिया है कि क्या सच में स्पर्म से नवजात का व्यवसाय और सामाजिक जिंदगी में जगह तय हो जाती है?

माहिरों का कहना है कि ऐसा बिलकुल नहीं है. ऐसा अनुरोध करना केवल हास्यास्पद है. लेकिन जोड़े ऐसा करते हैं, क्योंकि वे एक बेहतर वंशावली चाहते हैं.

कौंवैंट स्कूल से पढ़े दानदाताओं की सब से ज्यादा मांग है, क्योंकि आम सोच होती है कि दानकर्ता अच्छे समाज से है और वह वीर्य दान केवल पैसा कमाने के लिए नहीं करेगा.

मुंबई के डाक्टर अनीरधा मालपानी का कहना है कि यह केवल एक भरम है कि ऐसे दाताओं को सामान्य से ज्यादा मिलता है. कुछ क्लिनिकों व अस्पतालों का आरोप है कि हमारे 1,500-2,000 रुपए के भुगतान के अलावा भी जोड़े निजी तौर पर भी भुगतान करते हैं. कुछ जोड़े अपनी पेशकश औनलाइन पेश कर देते हैं.

मौलाना आजाद मैडिकल कालेज के छात्र रह चुके बालकृष्ण अय्यर ने बताया, ‘‘मैं ने छात्र जीवन में ही अपने स्पर्म दान किए थे. मैं हमेशा दूसरों की मदद करना चाहता था. मैं ने नागपुर के एक जोड़े को अपने स्पर्म दान किए थे. वे सरकारी महकमे में ऊंचे पद पर थे.

‘‘वे लोगों की नजरों में नहीं आना चाहते थे. मैं ने उन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. उन्होंने मेरा हवाई यात्रा का खर्चा भी उठाया और शहर के अच्छे थ्रीस्टार होटल का भी सारा खर्चा उठाया, क्योंकि इस सब में मु?ो एक हफ्ता लग गया था.

‘‘मु?ो स्पर्म दान करने के बदले 35,000 रुपए भी मिले थे. आज वह जोड़ा आगरा में 2 बच्चों के साथ रहता है. मु?ो खुशी है कि मेरा स्पर्म किसी के काम आया.’’

इस सामाजिक काम को करने के लिए बालकृष्ण अय्यर जैसे कई लोग हैं, जिन्होंने ऐसा इंटरनैट के जरीए किया है. वैसे तो स्पर्म दाताओं में 56 फीसदी शहरी होते हैं, पर अब गांवदेहात से भी ऐसे लोग आगे बढ़ने लगे हैं.

ये भी पढ़ें- पीरियड के 2 दिन पहले क्यों होता है दर्द

लेकिन यह माध्यम कितना सुरक्षित है, इस पर सवालिया निशान लगा है. नकली सीमन एक बड़ा जुआ है, जिस के बारे में जोड़ों को ठीक से जागरूक होना चाहिए. इस के बारे में जोड़ों को जानकारी देने के लिए बहुत से पेशेवर संस्थान भी हैं. वे जोड़ों को सेहतमंद स्पर्म मुहैया कराते हैं व खतरा घटाते हैं.

लेकिन अभी भी 10 फीसदी बेऔलाद जोड़े ऐसे हैं, जो क्लिनिक में आने से शरमाते हैं. वे पारिवारिक डाक्टर के पास जाना पसंद करते हैं, जो प्रक्रिया को सुपरवाइज करता है. इस तरह के केसों में डाक्टरी जांच अधूरी होती है, जिस से डर बना रहता है.

डाक्टर कहते हैं कि यह अच्छी बात नहीं है, क्योंकि ज्यादातर जोड़े पढ़ेलिखे हैं और इस के लिए वे बहुतकुछ देते हैं. पर पिछले दशक से अब तक स्पर्म दाताओं के नजरिए में बहुत से बदलाव आ गए हैं, फिर भी लोगों की सोच में बहुत सी भ्रांतियां हैं.

2 दशक पहले जब हम ने मुंबई में पहला स्पर्म बैंक शुरू किया था, तो हम से पूछा जाता था कि हम सार्वजनिक रूप से इस शब्द का इस्तेमाल कैसे करेंगे. उस समय डोनर पाना भी मुश्किल था, क्योंकि 25 साल पहले मर्दों का कहना था कि वे सड़क पर अपने जैसों को घूमता नहीं देखना चाहते, पर आज हमारे क्लिनिक में रोजाना 8-9 डोनर खुद आते रहते हैं.

भारत की जानीमानी डाक्टर अंजलि मालपानी कहती हैं कि यह अलग बात है कि इन दानदाताओं में से 70 फीसदी को रिजैक्ट कर दिया जाता है, क्योंकि नियम बहुत सख्त हैं. हर हफ्ते क्लिनिक 500 शीशी सेहतमंद स्पर्म इकट्ठा करता है. हमें मुलुंड, नवी मुंबई व पश्चिमी उपनगर से भी काफी तादाद में नौजवान विद्यार्थी मिलते हैं, जो मामूली पैसों पर उपलब्ध हैं, लेकिन हम आईसीएमआर के शुक्रगुजार हैं कि उस ने डोनर के लिए निश्चित उम्र व मानक तय कर दिए हैं.

दिल्ली के डाक्टर अनूप गुप्ता मानते हैं कि हर फर्टिलिटी क्लिनिक में  रोजाना स्पर्म डोनेशन के लिए 10-15 फोन आते हैं.

दक्षिण दिल्ली की थापर डायग्नोस्टिक लैब के डायरैक्टर सुनील थापर कहते हैं कि उन्हें स्कूली बच्चों से लगातार ईमेल रिक्वैस्ट मिलती रहती हैं. वे लिखते हैं कि स्पर्म दान के लिए वे पूरी तरह फिट हैं. पैसे के अलावा सैक्स के जोश के चलते भी वे अपना स्पर्म दान करना चाहते हैं.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के नियमों के तहत डोनर की उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए, लेकिन अकसर नियमों का पालन नहीं होता, जबकि नियमों के उल्लंघन पर फर्टिलिटी क्लिनिक का लाइसैंस रद्द होना व संचालकों को जेल भेजा जाना चाहिए.

डाक्टर अंजलि मालपानी का कहना है कि जब हम ने मुंबई में पहला स्पर्म बैंक खोला, तो एक मिलीलिटर वीर्य  में आसानी से 40-60 मिलियन स्पर्म मिल जाते थे, लेकिन अब ये घट कर तकरीबन 45 फीसदी हो गया है.

प्रजनन प्रणाली के भारतीय गाइडलाइंस के सहायक डाक्टर पीएम भार्गव कहते हैं कि स्पर्म (शुक्राणुओं) के घटने को साल 1990 के बीच में पश्चिम में नोटिस किया गया. कुछ भारतीय डाक्टर भी मानते हैं कि भारतीय मर्दों में भी शुक्राणुओं की संख्या लगातार घट रही है.

पश्चिमी अध्ययन बताते हैं कि हर साल शुक्राणुओं की तादाद 2 फीसदी की दर से घट रही है. इस हिसाब से अगले 40-50 सालों में कोई भी मर्द उपजाऊ नहीं रहेगा.

हिंदी फिल्म ‘विकी डोनर’ के कलाकार आयुष्मान खुराना का कहना है कि जब आप स्पर्मदाताओं जैसे गंभीर मुद्दों पर फिल्म बनाते हैं, तो इस विषय की खोज करनी होती है.

यह बहुत ही नोबल काम था. अगर रक्तदान जीवन देता है, तो स्पर्मदान जीवन की आज्ञा देता है. शहरी मर्दों  में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम हो गई है, जिस से स्पर्मदान आज की जरूरत है.

इसी फिल्म में आईवीएफ विशेषज्ञ की भूमिका निभाने वाले अन्नू कपूर का कहना है कि एक आम भारतीय सैक्स के बारे में बात क्यों नहीं करना चाहता? निजी तौर पर मु?ो यह सम?ा नहीं आता कि भारत में लोग सैक्स और हस्तमैथुन को ले कर इतना हल्लागुल्ला क्यों करते हैं? यह एक सामान्य चीज है, जो जीवन देती है. मेरे लिए सैक्स पवित्र है. हम इसी से जनमे हैं.                    द्य

छोटा मर्दाना अंग, चिंता की कोई बात नहीं

ऐसे तमाम लोग हैं, जो अपने अंग के आकार को ले कर तहतरह की चिंताएं और डर मन में पाले रहते हैं. कुछ लोग तो अपने अंग के आकार को ले कर हीनभावना का शिकार हो जाते हैं. यही वजह है कि लोगों द्वारा मन के समाधान के लिए सैक्सोलौजिस्ट से सब से ज्यादा पूछा जाने वाला यह सामान्य सवाल है. कभीकभी तो पिता अपने लिए ही  नही, अपने बेटे के लिए भी डाक्टर से पूछता है.

अपने अंग के आकार को ले कर चिंतित ज्यादातर लोग सैक्सोलौजिस्ट से किसी दूसरी समस्या के बहाने से मिलना पसंद करते हैं. इस बारे में चिंता करने वाले ज्यादातर लोग 20 से 40 साल की उम्र के बीच के होते हैं. छोटे अंग को ले कर चिंता होना तो वाजिब है, पर यह कोई समस्या नहीं है.

ये भी पढ़ें- जानें कैसे करें सेक्स को एंजॉय

सामान्य व असामान्य आकार

जिस तरह हर आदमी की नाक, आंखें और सिर का आकार अलग अलग होता है, उसी तरह हर आदमी के अंग की लंबाई, मोटाई और तनाव के समय उस का आकार अलग अलग होता है. किसी भी आदमी के आत्मविश्वास के लिए अंग का आकार बहुत अहमियत रखता है. ज्यादातर मर्द अपने अंग के छोटे आकार को ले कर चिंतित रहते हैं.

तकरीबन 45 फीसदी मर्द चाहते हैं कि उन का अंग बड़ा हो, जबकि एक सर्वे से पता चला है कि मर्दों से संबंध बनाने वाली 85 फीसदी औरतें अपने पार्टनर के अंग के आकार और उस से मिलने वाले शारीरिक सुख से संतुष्ट होती हैं.

तमाम लोगों को अंग के तनाव के बाद उस के आकार यानी लंबाई को ले कर चिंता सताती है, तो कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें बिना तनाव वाले अंग के आकार को देख कर चिंता होती है.

ये भी पढ़ें- वजन कम करने के लिए डाइट में नींबू का ऐसे करें इस्तेमाल

अब सवाल यह उठता है कि अंग का सामान्य आकार क्या है? अंग छोटा है या बड़ा, यह कैसे तय किया जाए?

औरत के अंग की लंबाई तकरीबन 15 सैंटीमीटर होती है, जिस में बाहर के भाग में तकरीबन 5 सैंटीमीटर ही कोई चीज महसूस करने की ग्रंथियां होती हैं, जबकि अंदर के बाकी 10 सैंटीमीटर भाग में तकरीबन कुछ महसूस नहीं होता है, इसलिए बिना तनाव वाले मर्दाना अंग के आकार को ले कर चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उस का इस्तेमाल महज पेशाब करने के लिए ही होता है.

पूरी तरह तनाव वाला अंग ही सैक्स करने के लिए इस्तेमाल होता है. इस तरह अंग की मोटाई कोई अहमियत नहीं रखती. औरत का अंग छोटी सी उंगली से ले कर बच्चे के सिर जितना चौड़ा हो सकता है. वह अपने अंदर प्रवेश किए मर्दाना अंग की मोटाई और आकार के मुताबिक खुद में बदलाव कर लेता है.

ये भी पढ़ें- क्या आप पेनकिलर एडिक्टेड हैं, तो पढ़ें ये खबर

मर्दाना अंग का नाप जानने के लिए सब से सही तरीका एसपीएल यानी स्ट्रैच्ड पेनिस लैंथ के रूप में जाना जाता है. जिस मर्द का एसपीएल जितना लंबा उस का अंग उतना लंबा माना जाता है.

ज्यादातर जवान मर्दों के अंग की लंबाई 5.24 इंच होती है. अंग की लंबाई के बारे में ज्यादातर सर्वे में यही लंबाई बताई गई है, तो फिर बड़ा अंग किसे कहा जाएगा? महज 0.6 फीसदी मर्दों का एसपीएल 6.8 इंच या इस से ज्यादा होता है, जबकि ज्यादा लंबा अंग होने पर चिंता करने की जरूरत नहीं है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें