1 दिसम्बर का दिन पूरे विश्व में एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना है. जागरूकता के तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है और कई अभियान चलाए जाते हैं जिससे इस महामारी को जड़ से खत्म करने के प्रयास किए जा सकें. साथ ही एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सकें.
विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी जिसका मकसद, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े मिथ को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था. चूंकि एड्स का अभी तक कोई इलाज नही है इसलिए यह आवश्यक है कि लोग एड्स के बारे में जितना संभव हो सके रोकथाम संबंधी जानकारी प्राप्त करे और इसे फ़ैलाने से रोके.
एड्स यानि एक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिन्ड्रोम एक खतरनाक बीमारी है जो हर किसी के लिए चिंता का विषय है. 1981 में न्यूयॉर्क में एड्स के बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ ''समलिंगी यौन क्रिया'' के शौकीन अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए. इलाज के बाद भी रोग ज्यों का त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी थी. फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी और इसे नाम दिया गया ''एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम'' यानी एड्स.