कोरोना के समय ऐसे करें सेफ सेक्स

अगर कोरोना की महामारी के दौरान आपने और आपके साथी ने खुद को एकांतवास में ले लिया है तो ऐसे में आपकी सेक्स लाइफ में रोमांच लाने के कई तरीके हो सकते हैं. कोरोना वायरस के खौफ के साए में हम चेहरे पर तो हाथ का स्पर्श नहीं ले जा रहे हैं लेकिन बदन के अन्य हिस्सों को तो छुआ जा सकता है.

सेक्स सेफ है

यह बीमारी सेक्स से संक्रमित नहीं होती और न ही ऐसा कोई मामला सामने आया है कि किन्ही युगलों के बीच सेक्स के कारण इसका संक्रमण हो गया हो. यह मूल रूप से सांसों के माध्यम से गिरी बारीक बूंदों और किसी संक्रमित सतह को छूने से हो रही है.

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ओरल सेक्स से बचें

इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि कोविड-19 का संक्रमण योनी या गुदा मैथुन से हुआ हो. सेक्स के दौरान चूमना बहुत आम बात है लिहाजा इसका वायरस मुंह की लार के जरिए फैल सकता है. अगर आपका पार्टनर विदेष दौरे से लौटा/लौटी है तो उस स्थिति में चुंबन लेने से बचें! यात्रा करने के दो हफ्ते बाद ऐसा करना सुरक्षित है. कोविड-19 के ओरल-फिकल ट्रांसमिशन के भी सबूत मिले हैं, लिहाज़ा, ओरल सैक्स से बचना चाहिए.

यदि एक भी पार्टनर कोविड-19 का संदिग्ध रोगी है तो बेहतर यही होगा कि आप एक दूसरे से दूर रहे हैं और जांच के नतीजे मिलने तक अलग-अलग कमरों में ही सोएं.

स्ट्रैस रिलीवर

लेकिन अगर आपमें से किसी में भी किसी किस्म का लक्षण दिखायी नहीं दिया है और किसी संक्रमित व्यक्ति या सतह आदि के संपर्क में भी नहीं आए हैं तथा पूरे समय घर पर ही रहे हैं तो सेक्स से अच्छा और कोई तरीका आनंद लेने का नहीं हो सकता. यह तनावपूर्ण समय में बेचैनी दूर करने का सबसे बढ़िया उपाय है.

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फिलहाल यही सलाह है कि जितना हो सके घर पर रहें और रोज़मर्रा की जरूरतों का सामान खरीदने के वक़्त ही दूसरे लोगों के संपर्क में आएं. इस दौरान भी अन्य लोगों से कम से कम दो मीटर की दूरी बनाएं रखें. हालाकि इस स्थिति में कैजुअल सेक्स करना चुनौतीपूर्ण होगा!

हस्तमैथुन

किसी भी किस्म का अंतरर्वैयक्तिक संबंध तभी कायम करें जब ऐसा करना एकदम जरूरी हो. लिहाज़ा, आगामी कुछ हफ्तों में यौन संसर्ग कुछ कम हो सकता है. लेकिन यौन सुख प्राप्त करने के और भी कई तरीके हैं. जो मौजूदा हालात में उपयोगी साबित हो सकते हैं. इनमें सेक्सटिंग, वीडियो कौल, कामोत्तेजक साहित्य पढ़ना और हस्तमैथुन शामिल हैं. याद रखिये, आप अपने सबसे सुरक्षित सेक्स पार्टनर हैं. ऐसे में हस्तमैथुन बढ़िया विकल्प है और यह आपको कोविड-19 से बचाए रखेगा. ऐसे में भी हाथ धोना मत भूलिये और यदि आप सेक्स टौयज का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें भी सेक्स से पहले और बाद में 20 सेकंड अवश्य धो लें.

डा. अनूप धीर, डायरेक्टर अल्फा वन एंड्रोलॉजी ,फेलो औफ यूरोपीयन काउंसिल औफ सेक्सुअल मेडिसिन से बातचीत पर आधारित

प्रेम संबंधों को लीलता कोविड

कोविड का काला साया हजारों प्रेमसंबंधों को लील जाएगा. हम मौतों की बात नहीं कर रहे. शहरों में पनप रहे लवअफेयर युवाओं के अब अपने शहरगांव लौटने की वजह से आधेअधूरे रह गए. जिन को मिल कर बर्थडे मनाने थे, मांबाप के घर में मातम मना रहे हैं. जो उसी शहर में हैं तो भी एकदूसरे से मिल नहीं पा रहे. आज आधुनिक दौर की मोहब्बत/दोस्ती का दस्तूर यह है कि जो दिखा नहीं, वह दूर हुआ. सिर्फ फेसबुक, वीडियो चैट पर देखा जाएगा तो सिर्फ चेहरा दिखेगा, हाथों का टच नहीं होगा, बांहों की गिरफ्त नहीं. जो प्रेमसंबंध अभी अधपके थे वे तो गारंटी से सूख जाएंगे.

वैसे भी, युवा मन चंचल होता है. अगर शहर की डैशिंग पर्सनैलिटी नहीं है तो पड़ोस की आधीअधूरी से ही काम चला लो. सैक्सुअल अट्रैक्शन का न तो जेब से सीधा संबंध है, न स्मार्टनैस से. अगर 2 जवां हों तो यह कहीं भी पैदा हो सकता है. पुराना वाला छूट गया, तो कोई बात नहीं, नया हाजिर है जो कम से कम कोविड तक तो गारंटी से चलेगा.

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अब कोविड के बाद कौन, कहां पहुंचेगा, यह कौन जानता है. शहर बदल सकते हैं, चेहरे लटक सकते हैं, समस्याएं बदल सकती हैं. कोविड की डैथ किसी से लव सौंग छीन सकती है. डैथ की वजह से आई नई जिम्मेदारियां रंग में भंग डाल सकती हैं.

आज जो युवा पनपते प्रेम का पौधा छोड़ कर आए हैं उन्हें यह सोच कर चलना चाहिए कि उस की मार को सहने की क्षमता उन में बहुत कम है. सो, ज्यादा सपने न देखें. यदि व्हाट्सऐप संदेश सूखने लगें,  डीपी धूमिल होने लगे, आई लव यू की जगह बिजी दिखने लगे तो बेचैन न हों, यह कोविड की पैदा की गई नई सिचुएशन है. कोई बिट्रेयल हो, जरूरी नहीं.

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कोविड तो शादियों तक को खाने लगा हैप्रेमसंबंधों को तो छोड़ ही दें. यह महामारी ऐसी है जिस के फुटप्रिंट न जाने जीवन में कहांकहां पड़ेंगे. सफल वही होंगे जो हर एंगल से सोच रहे हैं.

इंसानों के बाद शेरों में भी बढ़ा कोरोना का खतरा

कोरोना वायरस ने 2 साल से दुनिया भर में इंसानों की जान को खतरे में डाल रखा है. अब जानवरों में सब से ताकतवर माने जाने वाले शेरों को भी कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है. शेर, बाघ ही नहीं दूसरे पशुओं पर भी कोरोना का खतरा मंडराने लगा है.

माना जा रहा है कि संक्रमित इंसानों के जरिए कोरोना वायरस ने शेरों के शरीर में प्रवेश किया. हालांकि अमेरिका के न्यूयार्क स्थित ब्रानोक्स जू में पिछले साल अप्रैल में ही 8 बाघ और शेर कोरोना पौजिटिव मिले थे, लेकिन भारत में पहली बार शेर संक्रमित मिले हैं.

पिछले साल हांगकांग में भी कुत्ते और बिल्लियों में कोरोना संक्रमण का पता चला था. भारत में घरेलू जानवरों में अभी तक कोरोना संक्रमण के कोई मामले सामने नहीं आए हैं.

मई के पहले सप्ताह में हैदराबाद के नेहरू जूलोजिकल पार्क में 8  एशियाई शेर कोरोना संक्रमित पाए गए. इन में 4 शेर और 4 शेरनियां थीं. इस जू में काम करने वाले कर्मचारियों को अप्रैल के चौथे सप्ताह में शेरों में कोरोना के लक्षण दिखाई दिए थे.

इन शेरों की खुराक कम हो गई थी. इस के अलावा उन की नाक भी बहने लगी थी. उन में सर्दी जुकाम जैसे लक्षण नजर आ रहे थे. कर्मचारियों ने जू के अधिकारियों को यह बात बताई. उस समय तक देश में कोरोना की दूसरी लहर का भयावह रूप सामने आ चुका था.

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जू के अधिकारियों ने इन शेरों की कोरोना जांच कराने का फैसला किया. जांच के लिए शेरों को ट्रंकुलाइज यानी बेहोश कर उन के तालू के निचले हिस्से से लार के नमूने लिए   गए. इन नमूनों को जांच के लिए हैदराबाद के सेंटर फौर सेल्युलर एंड मौलिक्यूलर बायोलौजी (सीसीएमबी) भेजा गया.

सीसीएमबी से शेरों की कोरोना जांच रिपोर्ट मई के पहले सप्ताह में हैदराबाद जू के अधिकारियों को मिली. इस में 8 शेरों की आरटीपीसीआर (कोरोना) जांच रिपोर्ट पौजिटिव आई.

एशिया में सब से बड़े जू में शुमार नेहरू जूलोजिकल पार्क हैदराबाद शहर की घनी आबादी वाले इलाके में बना हुआ है और 380 एकड़ में फैला है. सरकार ने कुछ दिन पहले ही कोरोना वायरस हवा के जरिए फैलने की बात कही थी. इस से यह माना गया कि शेरों में कोरोना वायरस ने या तो हवा के जरिए या देखरेख करने वाले किसी संक्रमित कर्मचारी के जरिए प्रवेश किया. नेहरू जूलोजिकल पार्क में कुल 12 एशियाई शेर हैं.

हैदराबाद का मामला सामने आने के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने देश भर में सभी जूलोजिकल पार्क, नैशनल पार्क और टाइगर रिजर्व बंद करने के आदेश दिए. साथ ही वन्यजीव अभयारण्यों को भी अगले आदेशों तक दर्शकों के लिए बंद करने की सलाह दी.

इस के बाद मई के पहले सप्ताह में ही उत्तर प्रदेश के इटावा में स्थित लायन सफारी के एक शेर में भी कोरोना वायरस मिला. इस की पुष्टि बरेली में इज्जतनगर स्थित भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में की गई जांच में हुई. इटावा की लायन सफारी से 14 शेरों के सैंपल जांच के लिए बरेली के आईवीआरआई भेजे गए थे. जांच में एक शेर में कोरोना वायरस पाया गया और एक संदिग्ध माना गया. बाकी 12 शेरों की कोरोना जांच रिपोर्ट निगेटिव आई.

इस लायन सफारी में 18 शेर और शेरनी हैं. इन में कुछ दिन पहले कोरोना के लक्षण नजर आए थे. इस से पहले हैदराबाद जू के शेरों में कोरोना वायरस की पुष्टि हो चुकी थी. ऐसी हालत में इटावा लायन सफारी प्रशासन ने भी शेरों की कोरोना जांच कराने का निर्णय लिया था. एक शेर की जांच रिपोर्ट पौजिटिव आने के बाद इस सफारी में शेरों की देखभाल में सतर्कता बढ़ा दी गई. इस के साथ ही सभी शेरों को अलगअलग आइसोलेशन में कर दिया गया, ताकि संक्रमण का फैलाव न हो.

मई के दूसरे सप्ताह में ही जयपुर में चिडि़याघर का बब्बर शेर ‘त्रिपुर’ भी कोरोना संक्रमित पाया गया. इस चिडि़याघर में एक सफेद बाघ चीनू और दूसरी शेरनी तारा को कोरोना संदिग्ध माना गया. ये सभी शेर जयपुर में नाहरगढ़ बायोलौजिकल पार्क में बनी लायन सफारी में रह रहे थे. इन शेरों की कोरोना सैंपल की जांच बरेली के आईवीआरआई में कराई गई थी. जयपुर से लायन सफारी के 13 सैंपल जांच के लिए बरेली भेजे गए थे.

जयपुर के नाहरगढ़ बायोलौजिकल पार्क में राजस्थान की पहली लायन सफारी 2018 में शुरू हुई थी. इस पार्क में करीब 36 हैक्टेयर में लायन सफारी बनी हुई है. यहां पहले 4 एशियाई शेर थे. इन में से कैलाश और तेजस नामक शेरों की मौत हो गई थी. अब लायन सफारी में शेरनी तारा और शेर त्रिपुर ही हैं.

सबसे पहले गुजरात के जूनागढ़ से तेजिका नामक शेरनी को जयपुर चिडि़याघर लाया गया था. बाद में उसे लायन सफारी में शिफ्ट कर दिया था. तेजिका ने 3 शावकों को जन्म दिया था. इन के नाम त्रिपुर, तारा और तेजस रखे गए. तेजिका की 3 साल पहले मौत हो गई थी. बाद में पिछले साल उस के बेटे तेजस की भी मौत हो गई. अब भाईबहन त्रिपुर और तारा बचे हैं. इन में तारा को कोरोना संदिग्ध माना गया है.

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संदिग्ध मानी गई शेरनी तारा, सफेद बाघ चीनू और एक पैंथर कृष्णा के सैंपल दोबारा जांच के लिए बरेली भेजे गए. शेर त्रिपुर को दूसरे वन्यजीवों से अलग कर क्वारंटाइन कर दिया गया. पार्क के सभी जानवरों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं दी जा रही हैं.  शेर, बाघ और दूसरे वन्यजीवों के व्यवहार पर सीसीटीवी से नजर रखी जा रही है. वन्यजीवों की देखभाल करने वाले केयरटेकरों को भी पीपीई किट मुहैया कराई गई है. इन केयरटेकरों को अब बाघ और शेरों के बाड़े तक जाने के लिए पानी में से निकलना पड़ता है ताकि इन के पैरों के जरिए किसी तरह का इंफेक्शन जानवरों तक न पहुंचे.

मध्य प्रदेश में इंदौर के जू में मांसाहारी वन्यजीवों के साथ विदेशी पक्षियों को भी दवाएं दी जा रही हैं. इन की आंखों को इंफेक्शन से बचाने के लिए दवा डाली जा रही है. पक्षियों के पिंजरों को सैनेटाइज किया गया है.

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इंदौर जू में दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के पक्षी बड़ी संख्या में हैं. इगुआना नाम की दुनिया की सब से बड़ी छिपकली को सुबहशाम हरी सब्जियां दी जा रही हैं. इगुआना छिपकली 3 मीटर तक लंबी और 50 किलोग्राम तक वजनी होती है. यह उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में पाई जाती है.

अंधविश्वास: दहशत की देन कोरोना माता

लेखक- शाहिद नकवी

जानकारी के मुताबिक, शुकुलपुर जूही गांव में कोरोना वायरस से 3 लोगों की मौत हो गई थी. इस के बाद वहां के लोगों में दहशत फैल गई.

इस पर गांव के लोकेश श्रीवास्तव ने 7 जून, 2021 को कोरोना माता का मंदिर बनवाने का फैसला किया. इस के लिए उन्होंने और्डर पर मूर्ति बनवाई और उसे गांव के एक चबूतरे के पास नीम के पेड़ के बगल में ही रखवा दिया.

इस के बाद कोरोना माता मंदिर में  2 समय होने वाली पूजा में भक्तों की भीड़ लगने लगी.

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वहां लिखा था कि कृपया दर्शन से पहले मास्क लगाएं, हाथ धोएं, दूर से दर्शन करें. इतना ही नहीं, एक तरफ लिखा गया कि कृपया सैल्फी लेते समय मूर्ति को न छुएं, तो दूसरी तरफ लिखा था कि कृपया पीले रंग के ही फूल, फल, कपड़े, मिठाई, घंटा वगैरह चढ़ाएं. मंदिर पर दर्शन करने आ रहे लोग ‘कोरोना माई की जय’ बोल रहे थे.

जब इस मंदिर की जानकारी प्रशासन को हुई, तो उस के हाथपैर फूल गए. मामला अंधविश्वास से जुड़ा होने के चलते पुलिस ने इसे गिराने का फैसला किया. वह जेसीबी ले कर गांव पहुंची और कोरोना माता की मूर्ति व मंदिर समेत बोर्ड को भी जमींदोज कर दिया. प्रशासन ने सारा मलबा गांव से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर फिंकवा दिया.

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हैरानी की बात तो यह है कि अंधविश्वास के चलते तैयार किए गए इस मंदिर में दूरदराज के लोग भी पहुंच रहे थे. वे डाक्टरों से ज्यादा ऐसे मंदिर और कोरोना माता पर यकीन कर रहे थे, जो उन का कभी भला नहीं करेंगे.

इस तरह के अंधविश्वास नए नहीं हैं. भारत में जब भी कोई महामारी फैली है, लोगों ने उस महामारी के नाम पर देवीदेवता बना दिए. छोटी माता, बड़ी माता बीमारियों को देख कर ही बनाई गई थीं.

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर लोग पढ़ेलिखे नहीं हैं और सुनीसुनाई बातों पर बड़ी जल्दी यकीन कर लेते हैं. कहीं गणेश के दूध पीने की अफवाह फैल जाती है, तो लोग दूध खरीद कर उसे मूर्तियों पर बहा देते हैं, तो कहीं पीरफकीरों के मजार पर लोग बिना सोचेसमझे चढ़ावा चढ़ा देते हैं, ताकि वे बीमारियों से बच सकें. लोगों की यह सोच गलत है.

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यूपी में ‘विशेष स्वच्छता अभियान’ से लगेगी मौसमी बीमारियों पर लगाम

लखनऊ. बरसात के बाद होने वाली मौसमी बीमारियों पर शिकंजा कसने के लिये निगरानी समितियों ने स्वच्छता को लेकर पूरी ताकत झोंक दी है. कोरोना की दूसरी लहर पर जीत हासिल करने में निगरानी समितियां बड़ा हथियार साबित हुई हैं. उनके माध्यम से राज्य सरकार 17.25 करोड़ लोगों तक पहुंच चुकी है. इस उपलब्धि को देखते हुए एक बार फिर से 63148 निगरानी समितियों के 04 लाख से अधिक सदस्यों को गांव और शहरी निकायों में गली-कूचों तक सफाई का कार्य तेजी से कराने की देखरेख में लगाया गया है.

बरसात से पहले की तैयारियां

सरकार की ओर से प्रदेश में शनिवार और रविवार को विशेष सफाई अभियान चलाए जा रहे हैं. नाले-नालियों की स्वच्छता पर जोर देने के साथ बरसात में जलभराव की समस्या को दूर किया जा रहा है. मच्छर जनित रोगों से बचाव के लिये लगातार सेनेटाइजेशन और फॉगिंग कराई जा रही है. मोहल्ला निगरानी समितियों को भी इस काम में जुटाया गया है.

स्वच्छ भारत से स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार करने में जुटी योगी सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर पर अन्य प्रदेशों से पहले जीत हासिल की है. अब तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए उसने तैयारियां पूरी कर ली है. इसके लिये गांव-गांव और शहरों में विशेष सफाई अभियान शुरू किये हैं. ग्राम पंचायतों में सफाई पर विशेष जोर दिया जा रहा है. इसके लिये प्रदेश के कुल 58189 ग्राम पंचायतों और 97499 राजस्व ग्रामों में विशेष स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है. 52916 सफाईकर्मी इस कार्य में जुटे हैं. यूपी में  पिछले एक दिन में 31156 राजस्व ग्रामों में सफाई हुई. 15396 राजस्व गांवों में सेनेटाइजेशन और 4787 में फॉगिंग की गए. प्रदेश के सभी नगर निगमों, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में कुल 12016 मोहल्ला निगरानी समितियों के 64175 सदस्य स्वच्छता अभियानों में जुटे हैं. उनकी देखरेख में नगरीय निकायों में कुल 1378 बड़े नालों, 5219 मझोले नाले और 12410 छोटे नालों की सफाई का काम पूरा कर लिया गया है.

निगरानी समितियां बनी

बीमारी से बचाव के लिये गांव-गांव गठित निगरानी समितियों के सदस्य प्रत्येक व्यक्ति के पास पहुंचकर उनको मौसमी व मच्छर जनित रोगों से बचाव के लिये स्वच्छता और सामाजिक दूरी के महत्व बता रहे हैं. हाथों को साबुन से धोना और मास्क पहनने की आदत लोगों में डालने के लिये जागरूक कर रहे हैं.

योगी सरकार ने बीमारी से रोकथाम के लिये ग्रामीण इलाकों में विशेष स्वच्छता अभियान चला रखा है. बड़े स्तर पर ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता अभियान चलाने वाला यूपी देश का पहला राज्य बना है. बरसात से पहले संक्रामक बीमारियों को रोकने में सरकार के प्रयास का बड़ा असर हुआ है.

गौरतलब है कि योगी सरकार की ओर से गांव-गांव तक बिछाए गये निगरानी समितियों के जाल से काफी अच्छे परिणाम सामने आए हैं. इतनी तेज रफ्तार से बीमारी की रोकथाम करने में लिये योगी सरकार के शानदार कोविड प्रबंधन को पूरी दुनिया में प्रशंसा मिली है. डब्ल्यूएचओ भी सरकार के प्रयासों की तारीफ कर चुका है. यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर बीमारी पर तेज गति से नियंत्रण करने के लिये यूपी सरकार की सराहना की है.

 फ्रंट लाइन वर्कर्स को दिया गया टीका-कवर

प्रदेश में बीमारियों से बचाव के लिये स्वच्छता अभियान में जुटे 86770 फ्रंट लाइन वर्कर्स व अन्य अधिकारी व कर्मचारियों को कोरोना से बचाव के लिये टीकाकरण की पहली डोज लग चुकी है. जबकि 66190 सफाई श्रमिकों को दूसरी डोज दी गई है. 26399 अन्य निकाय कार्मिकों को प्रथम डोज व 20991 कार्मिकों को दूसरी डोज का वैक्सीनेशन किया जा चुका है. राज्य सरकार के निर्देश पर सभी स्थानीय निकायों में सफाई कर्मचारियों एवं फ्रंट लाइन वर्कर्स के लिये ग्लब्स, मास्क और सेनेटाईजर भी दिये जा रहे हैं.

कोरोना की दूसरी लहर पर जीत हासिल करने में निभाई बड़ी भूमिका

कोरोना के खिलाफ योगी सरकार के ‘ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट’ रणनीति को मजबूती देने में निगरानी समितियों ने बड़ा योगदान दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बीमारी को रोकने के लिये प्रदेश में  निगरानी समितियों का गठन किया गया. समितियों से जुड़े चार लाख से अधिक सदस्यों ने घर-घर दस्तक देकर न सिर्फ लोगों को जागरूक करने का काम किया बल्कि कोरोना के लक्षण वाले मरीजों को मेडिकल  किट भी उपलब्ध कराई. इतनी बड़ी संख्या में निगरानी समितियों की तैनाती करने वाला यूपी देश का पहला राज्य बना. समिति के सदस्यों को प्रत्येक व्यक्ति में बीमारी के लक्षणों की पहचान का काम किया.

कोरोना में शादी ब्याह: इंसान से इंसान दूर, सामाजिकता हुई चूर चूर

बचपन में जब मैं गांव की शादी में जाता था, तब 2 लोगों पर मेरी नजरें जमी रहती थीं. पहला आदमी वह, जो मिठाइयों की कोठरी या कमरा संभालता था और दूसरा नाई समाज का वह आदमी, जिस के पास शादीब्याह वालों का वह नया चमचमाता संदूक होता था, जिस में शादी से जुड़ा खास और कीमती सामान होता था.

जिस आदमी पर मिठाई संभालने की जिम्मेदारी होती थी, मु झे उस से अनचाही जलन होती थी कि यह ऐसा क्या चौधरी बन गया, जो इस की इजाजत के बिना कोई बच्चा भी कमरे से 2 लड्डू नहीं ला सकता है.

दरअसल, गांवदेहात में शादी के घर में मिठाई की जिम्मेदारी उस आदमी को दी जाती थी, जो खुद साफसुथरा रहता हो, ईमानदार हो और जिस के हाथ में बरकत हो. ऐसे ही लोगों की सावधानी से बिना किसी फ्रिज के ऐसी मिठाइयां भी कईकई दिनों तक चल जाती थीं, जिन का जल्दी खराब होने का खतरा बना रहता था.

बताता चलूं कि तब के शादीब्याह में चीनी की बोरी के इस्तेमाल से लोगों की हैसियत पता चलती थी. जिन के घर शादी में मिठाई के लिए जितनी ज्यादा बोरियां खुलेंगी, वह उतना ही पैसे और रुतबे वाला. तब घराती और बराती को भी मीठा खाने से मतलब होता था.

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जहां तक संदूक वाले नाई समाज के आदमी की बात है, तो वह शादी वाले दिन सब से अहम माना जाता था. घर की औरतें जो सामान जैसे गहने, कपड़े और दूसरी चीजें उस संदूक में रखती थीं, उन्हें किस रस्म के दौरान कब और किसे देना है, यह वह आदमी बखूबी जानता था.

एक और बात तो बताना भूल ही गया. मुझे शादी के बाद की एक रस्म बहुत रिझाती थी, जिस में घर आई नई दुलहन के साथ उस का दूल्हा संटी मारने वाला खेल खेलता था. रस्में तो और भी बहुत होती थीं, पर इस रस्म का मजा अलग ही था.

हालांकि यह रस्म दूल्हादुलहन के संटी (शहतूत की पतली टहनी) मारने के खेल से शुरू होती थी, पर बाद में देवर को भी अपनी भाभी के साथ यह खेल खेलने दिया जाता था. बाकी लोग खड़े हो कर मजे लेते थे.

कहींकहीं आज भी इस रस्म को बस निभाने के लिए खेला जाता है, क्योंकि न तो शहरों में शहतूत के पेड़ मिलेंगे और न ही लोगों के पास इतना समय है कि वे शादी निबटने के बाद ऐसे खेलों का मजा ले सकें.

अब तो संदूक संभालने के लिए भी नाई समाज का सहारा नहीं लिया जाता है और न ही नातेरिश्तेदारों के पास इतना समय है कि वे किसी के घर की मिठाइयों का ब्योरा रखें. अब तो खानेपीने का काम हलवाई को ठेके पर दे दिया जाता है. दुकान से ही डब्बों में पैक हो कर मिठाइयां आ जाती हैं और संदूक ले जाने का रिवाज पुराना और बेतुका हो गया है.

पिछले डेढ़ साल में जब से कोरोना ने पूरी दुनिया पर अपना पंजा जमाया है, तब से शादीब्याह भी न के बराबर हुए हैं. अगर हुए भी हैं, तो ‘सोशल डिस्टैंसिंग’ के चलते लोगों की सीमित संख्या ने मजा किरकिरा कर दिया है.

भारत में तो बहुत से लोग इसे आपदा में अवसर मान कर सही ठहरा रहे हैं कि कम लोगों को शादी में ले जाने से बेवजह की फुजूलखर्ची नहीं होगी और बीमारी के समय लोग भी महफूज रहेंगे. पर इस का दूसरा पहलू यह भी है कि कोरोना काल में शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़ों के अरमान अधूरे रह गए हैं, जो ऐसे मौके को यादगार बनाना चाहते थे.

भारत में शादीब्याह उत्सव से कम नहीं होता है. परिवार, नातेरिश्तेदार, दोस्तयार का मिलनाजुलना होता है, हंसीमजाक होता है, खानापीना होता है, साथ ही समाज में अपना दायरा बढ़ाने का मौका होता है, जो अब नहीं हो पा रहा है. आपसी रिश्तों में मेलमिलाप तो क्या, सामाजिक दूरी बन रही है.

कोरोना काल में दिल्ली में हुई एक शादी का जिक्र छेड़ते हैं. पीरागढ़ी चौक के नजदीक एक राजसी बैंक्वैट हाल के फर्स्ट फ्लोर में इंतजाम था. हाल में घुसते ही बड़े दरवाजे से पहले जहां कभी खूबसूरत लड़कियां गुलाबजल छिड़क कर लोगों का स्वागत करती थीं, वहां एक थाल में मास्क रखे हुए थे और दूसरे थाल में हैंड सैनेटाइजर की बोतलें.

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भीतर नाममात्र के लोग इधर से उधर टहल रहे थे. दोनों पक्षों के बड़े ही नजदीकी रिश्तेदार या फिर यारदोस्त जमा हुए थे. पंडित का सारा ध्यान इसी बात पर था कि जल्दी से शादी निबटाए और दानदक्षिणा बटोर कर निकल ले.

शादियां तो देशभर में हुई थीं और बहुत सी तो अखबारों की सुर्खियां भी बनी थीं. कहीं दूल्हे की पेट से हुई भाभी बरात में नहीं जा पाई, तो कहीं दुलहन की खास सहेली को शादी में जाने की इजाजत नहीं मिली. 20 लोगों के ब्याह में किसे साथ ले जाएं और किसे हाथ जोड़ कर मना करें, यह सब से बड़ी दुविधा थी.

दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में रहने वाले एक एडवोकेट दीपक भार्गव के एकलौते बेटे हेमंत भार्गव की शादी 2 मई को तय की गई थी. दीपक भार्गव ने

30 अप्रैल को रोका और सगाई रस्म के लिए मयूर विहार में एक बैंक्वैट हाल बुक किया था और शादी के लिए मोतीनगर में इंतजाम कराया था, पर जैसा सोचा वह हो नहीं पाया.

दीपक भार्गव ने बताया, ‘‘दोबारा लौकडाउन लगने से हमारी मुश्किलें बढ़ गई थीं. लोगों का 30 अप्रैल के बाद दोबारा 2 मई को आना प्रैक्टिकल नहीं लग रहा था. लिहाजा, हम ने फैसला लिया कि 2 तारीख को मोतीनगर में ही तीनों रस्में पूरी कर लेंगे, क्योंकि वहां 350 लोगों का इंतजाम किया गया था.

‘‘पर, शादी से तकरीबन 5 दिन पहले मोतीनगर के बैंक्वैट हाल वालों का फोन आया कि वहां शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि पूरे स्टाफ को कोरोना हो गया है. इस तरह हमारा दोनों जगह दिया गया एडवांस फंस गया.

‘‘अब मुसीबत यह थी कि नया इंतजाम क्या करें, क्योंकि अब तो ज्यादा लोग भी बुलाने की इजाजत नहीं थी. फिर हम ने आननफानन में घर के पास एक बैंक्वैट हाल बुक किया, जहां मुश्किल से 50 लोग शादी में शामिल हुए.

‘‘वैसे कई बार यह भी खयाल आया कि शादी आगे सरका देते हैं, पर चूंकि अब मेरी पत्नी इस दुनिया में नहीं हैं और मेरी माताजी भी बीमारी की वजह से घर के काम नहीं कर सकती हैं, इसलिए  घर पर एक महिला सदस्य की बहुत जरूरत थी.

‘‘सच कहूं तो यह नाम की शादी थी. मेरे आसपड़ोस के लोग नहीं आ पाए. उन के लिए शादी से पहले घर के आगे ही एक स्पैशल पार्टी रखी और अपने सर्कल के लोगों को फिर कभी किसी मौके पर पार्टी दूंगा.’’

पूर्वी दिल्ली में रहने वाले एक जानकार ने बताया, ‘‘पिछले लौकडाउन में हमारे पड़ोस में एक लड़के की शादी हुई, तो पड़ोसी ने न तो ढंग से किसी को न्योता दिया और न ही कायदे की पार्टी दी, जबकि उन के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. वैसे, किसी दूसरे के घर अगर कोई समारोह होता, तो वे खानेपीने में सब से आगे रहते थे.

‘‘हमें सब से ज्यादा ताज्जुब तब हुआ, जब उसी घर में उन्हीं दिनों एक नई बहू और आ गई. बाद में पता चला कि उन का दूसरे लड़के का पहले से उस लड़की के साथ अफेयर चल रहा था, तो उन्होंने मौके का सही फायदा उठाया. न बैंडबाजा और न बरात, दुलहन चोखी  आ गई.

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‘‘कुछ दिन में किन्नर अपना नेग मांगने आए, तो उन्हें भी इस बात की कानोंकान खबर नहीं हुई कि इस घर में एक नहीं, बल्कि 2-2 बहुएं आई हैं. किन्नरों को एक शादी का नेग दे कर चलता कर दिया.’’

ऐसे ही एक पड़ोसी के यहां उन के दूर के जानकार के घर से एक दिन मिठाई आई, तो पता चला कि उन के बेटे की शादी हो गई है. वे लोग हैरान रह गए कि अभी तक तो कोई जिक्र नहीं किया, फिर कब लड़की देखी और कब रिश्ता पक्का किया… बाद में पता चला कि लड़की तो लड़के ने पहले ही पसंद कर रखी थी. इंटरकास्ट शादी थी.

दिल्ली के शास्त्री नगर में रहने वाले राकेश खंडेलवाल ने बताया, ‘‘त्रिनगर में मेरे एक कजिन के बेटे की शादी  7 दिसंबर, 2020 को होनी थी, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर है. उन के बहुत अरमान थे कि एक ही बेटा है, इसलिए धूमधाम से शादी करेंगे. उन्होंने बैंक्वैट हाल और होटल बुक करा रखा था.

‘‘लेकिन तभी उन के एक दोस्त ने बताया कि कोरोना के चलते सरकार ने फरमान जारी कर दिया कि अगर किसी शादी में 50 से ज्यादा लोग शामिल हुए, तो दूल्हे को अरैस्ट कर लिया जाएगा.

‘‘इस फरमान से मेरा कजिन बहुत डर गया. उस ने तय कर लिया कि 50 से 51 भी लोग नहीं होंगे, इसलिए उस ने हर घर से 1-1 आदमी का न्योता दिया. शादी के कपड़ों की खरीदारी भी ढंग से नहीं हो पाई. अशोक विहार की एक धर्मशाला में वर पक्ष की ओर से आयोजन किया गया, जिस में चाकभात, लेडीज संगीत का कार्यक्रम किया गया.

‘‘खैर, 20 आदमियों की बरात ले कर वे होटल सिटी पैलेस पहुंचे. कार्यक्रम में 50 के आसपास ही लोग थे, जो 2 गज की दूरी का भी पालन करते दिखे. डीजे की जो धमक होनी चाहिए थी, वह नहीं दिखी. पर शादी अच्छे से हुई.

‘‘मु झे निजी तौर पर लगता है कि अगर हर शादी इसी तरह से की जाए तो मजा आ जाए, क्योंकि यह टैंशन खत्म हो जाती है कि हम ने उन को नहीं बुलाया जो आते हैं, खाते हैं और उस के बाद भी शादी में कमियां निकाल जाते हैं.

‘‘हमारे देश में एक तबका ऐसा भी है, जो दिखावे के चलते शादीब्याह में कर्ज के बो झ तले दब जाता है. मेरे विचार से तो सरकार को एक ऐसा कानून बना देना चाहिए कि शादी में कम लोग ही हिस्सा लें. इस से गरीब बेवजह के कर्ज तले दबने से बच जाएगा.’’

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लेकिन शादीब्याह में ही तो लोग गिलेशिकवे भूल कर मजामस्ती करते हैं. बच्चे ऐसे रिश्तेदारों से मिलते हैं, जिन को उन्होंने कभी देखा ही नहीं होता है. वहीं तो पता चलता है कि कौन क्या कर रहा है, किस की बेटी ब्याहने लायक हो गई है, किस के बेटे की अच्छी नौकरी लग गई है. नेग और रस्मों का यह उत्सव कोरोना ने फीका कर दिया है.

शहरों ने गांव की शादी में मिठाई संभालने वाला ईमानदार शख्स छीन लिया, नाई समाज का संदूक वाहक कहीं गुम कर दिया, संटी खेलना भुलवा  दिया, पर कोरोना ने तो अपनों को अपनों से दूर कर दिया है. हमारी सामाजिकता  के उन उजले पहलुओं पर सवालिया निशान लगा दिया है, जो शादीब्याह में खट्टीमीठी यादें बनते हैं.

बस, जल्द ही दुनिया के इस काले सफे का अंत हो और दुनिया की रौनक लौट आए, दोगुनी ताकत से.

मौत के मुंह में पहुंचे लोग- भाग 2: सूरत में हुआ बड़ा भंडाफोड़

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अब गुजरात की कहानी पढि़ए. देश भर में साडि़यों के लिए मशहूर शहर सूरत में ग्लूकोज, नमक और पानी से लाखों की तादाद में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बना कर देश भर में महंगे दामों पर बेचे गए. मई की पहली तारीख को अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सूरत के ओलपाड़ इलाके में एक फार्महाउस पर छापा मार कर नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया था.

इस फैक्ट्री से 60 हजार नकली इंजेक्शन की शीशियां, 30 हजार स्टिकर और शीशी सील करने वाली मशीन बरामद कर 7 लोगों कौशल वोरा और पुनीत शाह तथा इन के साथियों को गिरफ्तार किया था.

इस गिरोह का नेटवर्क पूरे देश में था. गिरोह के लोग कोरोना काल में जरूरतमंदों को ये नकली इंजेक्शन ढाई हजार रुपए से ले कर 20 हजार रुपए तक में बेचते थे.

इस से पहले गुजरात की मोरबी पुलिस ने मोरबी कृष्णा चैंबर में ओम एंटिक जोन नामक औफिस में छापा मार कर 2 लोगों राहुल कोटेचा और रविराज लुवाणा को गिरफ्तार किया था. इन से 41 नकली इंजेक्शन और 2 लाख रुपए से ज्यादा नकद रकम बरामद हुई. इन्होंने बताया कि ये नकली इंजेक्शन अहमदाबाद के रहने वाले आसिफ से लाए थे. इस के बाद अहमदाबाद के जुहापुरा से मोहम्मद आसिफ और रमीज कादरी को पकड़ा गया.

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इन से 1170 नकली इंजेक्शन और 17 लाख रुपए से ज्यादा नकदी बरामद हुई. इन लोगों ने पुलिस को बताया कि वे सूरत के रहने वाले कौशल वोरा से ये इंजेक्शन लाए थे. इसी सूचना के आधार पर सूरत के ओलपाड़ में फार्महाउस पर छापा मारा गया, जहां नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री चल रही थी.

नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री का मास्टरमाइंड कौशल वोरा था. पुनीत वोरा उस का पार्टनर था. कौशल से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने अडाजण के उस के एजेंट जयदेव सिंह झाला को गिरफ्तार किया. झाला के पास से भी नकली इंजेक्शन बरामद हुए. गोल्ड लोन का काम करने वाला झाला करीब साल भर पहले कौशल के संपर्क में आया था. बाद में दोनों में दोस्ती हो गई.

सूरत का डाक्टर ही निकला जालसाज

सूरत पुलिस ने 3 मई, 2021 को भेस्तान के साईंदीप अस्पताल के एडमिन डा. सैयद अर्सलन, विशाल उगले और सुभाष यादव को गिरफ्तार किया. ये लोग 18 से 20 हजार रुपए में एक रेमडेसिविर इंजेक्शन बेच रहे थे जबकि इंजेक्शन की प्रिंटेड कीमत केवल 1250 रुपए थी.

डा. सैयद कोरोना मरीज की जान बचाने के लिए जरूरी होने की बात कह कर रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदने को मजबूर करता था. इंजेक्शन मंगवा कर भी वह चालाकी करता और मरीज को आधी डोज ही लगाता. यानी एक इंजेक्शन 2 मरीजों को लगाता था. किसीकिसी मरीज को तो वह इंजेक्शन लगाने का दिखावा ही करता था.

डा. सैयद अपने अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके मरीजों के नाम पर सिविल अस्पताल से ये इंजेक्शन मंगवाता था और बाद में विशाल तथा सुभाष की मदद से इन की कालाबाजारी करता था.

कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिए जरूरी टौसिलिजुमैब इंजेक्शन के नाम पर भी लोगों ने खूब पैसे कमाए. सूरत पुलिस ने मई के दूसरे सप्ताह में इस इंजेक्शन की कालाबाजारी करने के आरोप में अठवागेट के ट्राईस्टार अस्पताल में काम करने वाली नर्स हेतल रसिक कथीरिया, उस के पिता रसिक कथीरिया और डाटा एंट्री औपरेटर बृजेश मेहता को गिरफ्तार किया. ये लोग 40 हजार रुपए का इंजेक्शन करीब पौने 3 लाख रुपए में बेचते थे.

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इसी तरह अहमदाबाद पुलिस ने अप्रैल महीने के आखिर में एक ऐसे गिरोह को पकड़ा, जो रेमडेसिविर के नाम पर सौ रुपए की कीमत का ट्रेटासाइकल इंजेक्शन नकली स्टिकर लगा कर बेचता था. पुलिस ने इस गिरोह के 7 लोगों हितेश, दिशांत विवेक, नितेश जोशी, शक्ति सिंह, सनप्रीत और राज वोरा को गिरफ्तार किया. ये लोग अहमदाबाद के एक फाइवस्टार होटल हयात में बैठ कर ठगी का यह धंधा कर रहे थे.

इन के पास से ट्रेटासाइकल इंजेक्शन के डब्बे और रायपुर की एक कंपनी के नाम से रेमडेसिविर इंजेक्शन के नकली स्टिकर बरामद हुए. इस गिरोह ने अपने परिचितों और दोस्तों के संपर्क से गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, जामनगर और वापी जैसे बड़े शहरों में हजारों की तादाद में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन 4 से 10 हजार रुपए में बेचे थे.

जयपुर का अस्पताल निकला 2 कदम आगे

अब जयपुर की कहानी. राजस्थान की राजधानी जयपुर में पुलिस ने अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में 6 लोगों को गिरफ्तार किया. इन से पूछताछ के बाद एक निजी अस्पताल के फार्मासिस्ट और एक दवा डिस्ट्रीब्यूटर सहित तीन लोगों को और पकड़ा गया. पता चला कि इन में फार्मासिस्ट शाहरुख कोरोना पौजिटिव होने के बावजूद अस्पताल में काम कर रहा था. जयपुर के 2 निजी अस्पतालों पर भी पुलिस ने काररवाई की.

राजस्थान के सब से बड़े सरकारी कोविड अस्पताल आरयूएचएस जयपुर में हाउसफुल का बोर्ड लगा कर पीछे के रास्ते से मरीजों को बैड बेचे जाने का खुलासा मई की 8 तारीख को हुआ. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस काले सच को उजागर कर 23 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए दलाल नर्सिंग कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया.

नर्सिंग कर्मचारी ने 2 डाक्टरों के जरिए आईसीयू बैड दिलाने के लिए एक महिला मरीज से 2 लाख रुपए मांगे थे. सौदा एक लाख 30 हजार रुपए में तय कर 93 हजार रुपए पहले लिए जा चुके थे. इस बीच, महिला मरीज की मौत हो गई. इस के बाद भी नर्सिंग कर्मचारी यह कह कर पैसे मांग रहा था कि पैसा ऊपर तक जाएगा.

मई के पहले पखवाड़े में ही जयपुर में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में, निजी अस्पतालों के 3 नर्सिंग कर्मचारियों को गिरफ्तार किया. प्रशासन ने इस अस्पताल को सील कर दिया.

जयपुर पुलिस ने 11 मार्च को कोरोना मरीजों से धोखाधड़ी करने वाले शातिर लपका लालचंद जैन उर्फ कान्हा को गिरफ्तार किया. वह महंगे होटलों में रुकता ओर मरीजों के परिजनों को बड़े अस्पताल में भरती करवाने, औक्सीजन बैड दिलवाने और अच्छा इलाज करवाने के नाम पर हजारों रुपए ठगता था. वह इतना शातिर था कि मरीजों के परिजनों से ही गाड़ी मंगवा कर उस में घूमता और उन्हीं के पैसों से महंगी शराब मंगा कर पीता था.

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एक मोटे अनुमान के अनुसार, पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों से धोखाधड़ी के मामलों में अप्रैल और मई के महीने में 5 हजार से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए. सांसों के इन सौदागरों में कोई नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बना कर बेच रहा था तो कोई इन की कालाबाजारी कर रहा था. कोई औक्सीजन सिलेंडर सहित जीवन रक्षक मैडिकल उपकरणों की कालाबाजारी कर रहा था. एंबुलेंस वाले मरीज को लाने ले जाने के अलावा शव ले जाने के नाम पर बीस गुना तक ज्यादा पैसा वसूल रहे थे.

दिल्ली पुलिस ने मई के पहले पखवाड़े तक ऐसे जालसाजों के 214 बैंक अकाउंट सीज करा दिए थे.

इस के अलावा करीब 900 मोबाइल नंबरों को ब्लौक करवाया गया था. जालसाजों ने मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करने के साथ कम गुणवत्ता वाली पीपीई किट, सैनेटाइजर, मास्क और ग्लव्स भी बना कर बाजार में खपा दिए.

क्या सेक्स करने से भी हो सकता है कोरोना!

एक तरफ जहां कोरोना वायरस से बचाव के लिए सोशल डिस्टैंसिंग को जरूरी बताया जा रहा है, वहीं लोगों के मन में यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या सेक्स करने से भी कोरोना वायरस फैल सकता है? जानिए, सेक्स को ले कर जुङे तमाम सवालों के जवाब :

पार्टनर के साथ सेक्स करने से कोरोना वायरस फैलने का डर है क्या?

कोरोना वायरस संक्रमण से ही फैलता है मगर यह सेक्स से फैलता है, इस को ले कर अभी कोई ठोस वजह सामने नहीं आया है. मगर जब कोई सेक्स पार्टनर से इंटिमेट होता है तो इस वायरस के फैलने का खतरा हो सकता है. मगर यह तब होगा जब सेक्स पार्टनर में से कोई एक कोरोना वायरस से संक्रमित होगा.

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क्या सोशल डिस्टैंसिंग सेक्स पार्टनर पर भी लागू होता है?

बिलकुल. अगर सेक्स पार्टनर को सूखी खांसी, छींक अथवा नाक बहने के लक्षण हैं तो उस के साथ सेक्स करने से बचना चाहिए और अलग क्वारेंटीन करना चाहिए.

क्या फेस मास्क लगा कर सेक्स किया जा सकता है? यह कितना सेफ है?

सेक्स पार्टनर अगर कोरोना वायरस से संक्रमित है तो उस के साथ सेक्स संबंध बनाने से परहेज करें. इस दौरान दूसरे पार्टनर को भी इफैक्ट होने का चांस हो सकता है. इस का फेस मास्क से कोई लेनादेना नहीं है.

क्या ओरल सेक्स से भी कोरोना वायरस के फैलने का खतरा है?

कोरोना वायरस से संक्रमित सेक्स पार्टनर से ओरल सेक्स सेफ नहीं माना जा सकता क्योंकि इस प्रकिया में भी डीप टच होता है और पूरी संभावना है कि इस से दूसरा भी संक्रमित हो जाए. इसलिए यह कह सकते हैं कि ओरल सेक्स भी पूरी तरह सेफ नहीं है.

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इस समय सेक्स संबंध बनाने से पहले क्या करना चाहिए?

पार्टनर के साथ सेक्स करने से पहले हाइजीन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. बैडरूम में जाने से पहले कपड़े बदल लें. बेहतर होगा कि बाहर से आने के बाद चप्पलें आदि भी बदल लें. खुद को सैनिटाइज कर नहा लेना चाहिए. सब से जरूरी है कि अगर पार्टनर में कोरोना वायरस के कोई भी लक्षण दिखें तो बेहतर है कि अलगअलग रहें और चिकित्सक से संपर्क करें.

-डा. एल बी प्रसाद एमबीबीएस, एमडी, सीनियर कंसल्टैंट, फिजीशियन ऐंड डाइबेटोलोजिस्ट से बातचीत पर आधारित

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

पिछले साल कोरोना त्रासदी से सबक लेते हुए दुनिया के अधिकांश देशों ने इस बीमारी से भविष्य में निपटने के पुख्ता इंतजाम कर लिए थे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबक लेने के बजाए विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को जिताने की योजनाएं बनाते रहे. इस से लोगों के मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर में बरती गई उन की उदासीनता उन की किसी योजना का हिस्सा तो नहीं है…

इस साल कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश में कहर ढहाया. मरीजों को न दवाएं मिलीं न ही अस्पताल में बैड. चिकित्सा उपकरण भी नसीब नहीं हुए. इलाज नहीं मिलने से मरीज तड़प कर दम तोड़ते रहे. लाशों की कतारें लग गईं. कोरोना काल का यह संकट आजादी के बाद का सब से भयावह था.

21वीं सदी के इस सब से भयावह संकट काल में इस साल मार्चअप्रैल के महीने में जब देश में कोरोना वायरस अपना फन फैला रहा था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा नीत सरकार 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में सत्ता हासिल करने की कोशिशों में जुटी थी. मोदीजी का सब से बड़ा सपना पश्चिम बंगाल में भगवा झंडा फहराने का था. इस के लिए प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री अमित शाह और तमाम दूसरे प्रमुख नेता बंगाल में डेरा डाल कर रैलियां और चुनावी सभाएं कर रहे थे.

कोरोना का वायरस फलफूल रहा था. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस महामारी का भयानक रूप नजर नहीं आ रहा था. इस का नतीजा यह हुआ कि जिम्मेदार नौकरशाही भी लापरवाह हो गई. सरकारी और निजी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. मरीजों की जान बचाने के संसाधन कम पड़ते गए. हालात यह हो गए कि अस्पतालों में मरीजों के लिए बैड ही नहीं मिल रहे थे. आईसीयू बैड, वेंटिलेटर और औक्सीजन तो दूर की बात थी. मरीज अस्पतालों के बाहर और फर्श पर भी दम तोड़ रहे थे.

मोदी सरकार इस भयावह दौर में राजनीति करती रही. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुनावी रैलियां तब रोकीं, जब बंगाल में चौथे चरण के मतदान हो रहे थे. केवल पांचवें चरण के मतदान बाकी थे. इस बीच पूरे देश में हालात बेकाबू हो चुके थे. विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र सरकार से चिकित्सा संसाधनों की गुहार लगाते रहे, लेकिन केंद्र सरकार को यह सुनने की फुरसत ही नहीं थी.

देश में इस बीच सांसों के सौदागरों की नई फौज खड़ी हो गई. कोरोना मरीजों के लिए जीवनरक्षक समझे जाने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शनों और औक्सीजन सिलेंडरों की कालाबाजारी शुरू हो गई. संकट के दौर में धंधेबाजों ने पैसा कमाने के नएनए तरीके खोज निकाले. मरीजों के परिजनों से जालसाजी और धोखाधड़ी होती रही. लोगों ने नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्रियां लगा लीं. कोरोना से बचाव के काम आने वाली पीपीई किट, सैनेटाइजर, मास्क और ग्लव्ज भी निम्न गुणवत्ता के आ गए.

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कोरोना मरीजों के लिए औक्सीजन मिलनी मुश्किल हो गई. देशभर में औक्सीजन वितरण का जिम्मा मोदी सरकार ने अपने हाथ में ले लिया. औक्सीजन बांटने में भी राजनीति की गई. भाजपाशासित राज्यों को जरूरत से ज्यादा औक्सीजन आवंटित की जाती रही और कांग्रेस व दूसरे दलों के शासन वाले राज्यों से भेदभाव किया जाता रहा. इस का नतीजा यह हुआ कि औक्सीजन का संकट पैदा होने से मरीजों की जानें जाती रहीं.

वैक्सीन पर चली राजनीति

वैक्सीन को लेकर अभी तक राजनीति चल रही है. 45 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए केंद्र सरकार ने इस साल की शुरुआत में राज्यों को टीका देने की हामी भर ली, लेकिन राज्यों को पर्याप्त टीका ही नहीं मिला. लोगों की जान बचाने के लिए 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को भी टीके लगाने का फैसला केंद्र सरकार ने ले लिया, लेकिन केंद्र सरकार ने इन टीकों के खर्च की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी.

हजारों करोड़ रुपए का बोझ बढ़ने से राज्य सरकारों की आर्थिक हालत पतली होने लगी है. खास बात यह रही कि देश की जनता से टैक्स के रूप में वसूले गए पैसों से वैक्सीनेशन हो रहा है और सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगी हुई है.

अफसोस की बात यह भी रही कि मोदीजी ने अपनी दोस्ती निभाने और अपना नाम चमकाने और वाहवाही लूटने के लिए भारत के लोगों के हिस्से की वैक्सीन दूसरे देशों को भेज दी. लेकिन जब देश में त्राहित्राहि होने लगी तो सरकार को दूसरे देशों से मदद लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब पूरे देश में टीके का टोटा हो रहा है. लोगों को समय पर टीका नहीं लगने से कोरोना का खतरा कम नहीं हो रहा है.

अभी कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी दी जा रही है. अगर तीसरी लहर आई, तो बच्चों पर इस का सब से ज्यादा असर होने की आशंका जताई जा रही है. इस बीच, मई के पहले सप्ताह से उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना सहित दूसरी नदियों के तटों पर सैकड़ों की संख्या में लाशें मिलने लगीं. इन लाशों को देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना से दम तोड़ने वालों की लाशें जमीन में दफन कर दी गई या नदियों में बहा दी गई.

पिछले साल कोरोना से पहली बार भारत सहित पूरी दुनिया के लोगों का परिचय हुआ. कोरोना की इस पहली लहर को उस समय लौकडाउन कर के कुछ हद तक काबू कर लिया गया. हालांकि इस से देश की जनता के आर्थिक हालात बिगड़ गए.

ये हालात ठीक होते, इस से पहले ही कोरोना की दूसरी लहर आ गई. इस बीच, एक साल के दौरान मोदी सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. चिकित्सा संसाधन नहीं बढ़ाए गए. इस बार मोदी सरकार लापरवाह बनी रही. इस का नतीजा सब के सामने है.

इस से ज्यादा अफसोस की बात क्या होगी कि केंद्र सरकार का मंत्री सोशल मीडिया पर अपने रिश्तेदार के लिए किसी अस्पताल में बैड दिलाने की गुहार करता रहा. मंत्रियों और सांसदों के कहने पर भी अस्पतालों में मरीजों को बैड नहीं मिले. मोदी सरकार कोरोना पर काबू पाने के लिए अब कुएं खोदने की तैयारी कर रही है, लेकिन अब क्या फायदा, चिडि़या तो खेत चुग चुकी. क्योंकि देश में हजारोंलाखों लोग अपने परिजनों को खो चुके.

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कोरोना संकट के बीच, मई के महीने में ब्लैक फंगस के मामले एकाएक बढ़ गए. इस ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी थी. महामारी के दौर में सामने आई केंद्र सरकार की लापरवाही को ले कर पूरी दुनिया में भारत की किरकिरी होने लगी थी. और तो और मोदी के कट्टर समर्थक भी विरोध में उतर आए थे.

लुटेरे हो गए सक्रिय

खतरा अभी टला नहीं था. लुटेरों के रूप में सामने आए सांसों के सौदागरों ने ऐसी लूटखसोट शुरू कर दी, जिन से लोग भी परेशान हो गए. दिल्ली से जयपुर तक और लखनऊ से अहमदाबाद तक, सभी जगह इन सौदागरों ने कोरोना मरीजों से ठगी के नएनए हथकंडे अपनाए थे.

दिल्ली में कोरोना के नाम पर सब से ज्यादा ठगी की वारदातें हुईं. देश का आम आदमी सोचता है कि दिल्ली में बड़ेबड़े और नामी अस्पताल हैं. इन में अच्छा इलाज होता होगा, लेकिन कोरोना काल में हालात बिलकुल उलट रहे. सरकारी अस्पतालों में तो सामान्य मरीजों को छोडि़ए, मंत्रियों और अफसरों को भी कोरोना मरीजों के लिए बैड नहीं मिले, अस्पतालों में सुविधाओं की बातें तो दूर रहीं.

अस्पताल वालों के अलावा ठगों और जालसाजों ने कोरोना से जूझ रहे मरीजों के परिवार वालों से पैसे ठगने के नए से नए तरीके निकाल लिए थे. मरीजों के लिए जरूरी उपकरणों की कालाबाजारी करने वालों ने लोगों को जम कर लूटा.

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने अप्रैल के आखिरी सप्ताह में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने वाली एक फैक्ट्री पकड़ी. यह फैक्ट्री उत्तराखंड के कोटद्वार में चल रही थी. इसे सील कर दिया गया. इस मामले में एक महिला सहित 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन से बड़ी संख्या में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की भरी और खाली शीशियां, पैकिंग मशीन, पैकिंग मटीरियल, स्कौर्पियो गाड़ी सहित दूसरे वाहन जब्त किए गए.

इस फैक्ट्री का पता भी मुश्किल से चला. कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के बीच अप्रैल में जब जीवन रक्षक दवा के तौर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग पूरे देश में तेजी से बढ़ी, तो इस की कालाबाजारी की सूचनाएं पुलिस को मिलने लगी थीं.

क्राइम ब्रांच की टीम ने महरौली बदरपुर रोड पर स्थित संगम विहार से 23 अप्रैल को 2 लोगों मोहम्मद शोएब खान और मोहन कुमार झा को पकड़ा. इन के पास कुछ इंजेक्शन मिले. इन से पता चला कि बड़े शहरों में ये इंजेक्शन 40 से 50 हजार रुपए तक में बेचे जा रहे हैं.

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दिल्ली पुलिस ने की गिरफ्तारियां

इन से पूछताछ के आधार पर 25 अप्रैल को यमुना विहार से मनीष गोयल और पुष्कर चंदरकांत को पकड़ा गया. इन से पता चलने पर एक इवेंट मैनेजर साधना शर्मा को गिरफ्तार किया. इन तीनों से भी बड़ी संख्या में ये इंजेक्शन बरामद हुए. फिर 27 अप्रैल को हरिद्वार से वतन कुमार सैनी को पकड़ा. वतन बीफार्मा और एमबीए डिग्रीधारी है. उस के घर से पैकिंग मशीन, खाली शीशियां, पैकिंग मटीरियल आदि सामान मिला. वतन कुमार से पूछताछ के बाद रुड़की से आदित्य गौतम को गिरफ्तार किया गया.

कौमर्स ग्रैजुएट आदित्य गौतम फार्मेसी से जुड़ा काम करता है. उस ने हजारों की संख्या में बायोटिक इंजेक्शन की शीशियां खरीदीं. इन इंजेक्शनों की शीशियों पर कोटद्वार की फैक्ट्री में रेमडेसिविर के लेबल लगवाए.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर एक मशीन, लेबल तैयार करने के काम लिया कंप्यूटर और नकली इंजेक्शन की शीशियां बरामद कीं. इन लोगों ने बाकायदा अपना नेटवर्क बना रखा था, जिस के जरिए ये जरूरतमंदों से मोटी रकम ले कर उन्हें नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन देते थे.

इसी तरह दिल्ली पुलिस ने औक्सीजन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी का बड़ा मामला पकड़ा. दक्षिणी जिला पुलिस ने मई के पहले सप्ताह में लोधी कालोनी के सेंट्रल मार्केट में एक रेस्तरां बार ‘नेगे एंड जू बार’ में छापा मार कर 32 औक्सीजन कंसंट्रेटर के बौक्स बरामद किए. एक बौक्स में थर्मल स्कैनर और एन-95 मास्क मिले. पुलिस ने वहां से 4 लोगों रेस्तरां के मैनेजर हितेश के अलावा सतीश सेठी, विक्रांत और गौरव खन्ना को पकड़ा.

मगरमच्छों तक पहुंची पुलिस

इन से पूछताछ के आधार पर छतरपुर के मांडी गांव स्थित खुल्लर फार्महाउस में एक गोदाम पर छापा मारा. यहां से 398 औक्सीजन कंसंट्रेटर बरामद हुए. पूरे देश में कोरोना मारामारी के बीच पकड़े गए करीब 4 करोड़ रुपए कीमत के ये औक्सीजन कंसंट्रेटर कालाबाजारी से बेचे जा रहे थे.

पूछताछ में पता चला कि इस रेस्टोरेंट का मालिक नवनीत कालरा है. कालरा दिल्ली का प्रसिद्ध व्यवसाई है. पेज थ्री सोसायटी से जुड़े रहने वाले दलाल के कई फिल्मी सितारों और क्रिकेटरों से अच्छे संबंध हैं. वह होटल खान चाचा, नेगे एंड जू बार, टाउनहाल रेस्ट्रो बार, मिस्टर चाऊ के अलावा दयाल आप्टिकल्स से जुड़ा हुआ है.

वह इन रेस्टोरेंट की आड़ में औक्सीजन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी कर रहा था. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने कालरा के खान मार्केट के मशहूर रेस्टोरेंट ‘खान चाचा’ से 96 कंसंट्रेटर और बरामद किए. पता चला कि कालरा ने ये कंसंट्रेटर लंदन में रहने वाले अपने दोस्त गगन दुग्गल की कंपनी मैट्रिक्स सेल्युलर के संपर्कों की मदद से यूरोप और चीन से मंगवाए थे. गिरफ्तार गौरव खन्ना गगन की कंपनी का सीईओ और चार्टर्ड अकाउंटेंट है.

कोरोना का कहर शुरू होने और मांग बढ़ने पर कालरा ने बड़ी संख्या में कंसंट्रेटर बेच भी दिए थे. पुलिस ने कालरा की तलाश में उस के ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन सेंट्रल मार्केट में छापे की सूचना मिलने के बाद ही वह 2 लग्जरी गाडि़यों से परिवार के कुछ लोगों के साथ फरार हो गया.

पुलिस ने उस की तलाश में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड में भी छापे मारे. कोई सुराग नहीं मिलने पर पुलिस ने कालरा के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया.

पुलिस को आशंका थी कि कालरा विदेश भाग सकता है. इस बीच, कालरा ने गिरफ्तारी से बचने के लिए दिल्ली की एक अदालत में अग्रिम जमानत की अरजी लगा दी. यह अरजी खारिज हो गई. बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कालरा की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. बाद में कालरा को 17 मई, 2021 को दिल्ली पुलिस ने गुड़गांव से गिरफ्तार कर लिया.

विदेशी महिला भी हुई गिरफ्तार

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने ही देश भर में औक्सीजन सिलेंडर के नाम पर लोगों से धोखाधड़ी करने वाले मेवाती गिरोह के इमरान को राजस्थान के भरतपुर जिले से गिरफ्तार किया

यूं तो दिल्ली पुलिस ने कोरोना काल में लोगों से दवाओं और इंजेक्शन के नाम पर धोखाधड़ी करने और कालाबाजारी के मामलों में सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है. खास बात यह है कि इस में महामारी के इस दौर में अमानवीय बन कर मुनाफाखोरी करने में विदेशी भी पीछे नहीं रहे.

दिल्ली की शाहबाद डेयरी थाना पुलिस ने कैमरून की रहने वाली एक विदेशी महिला अश्विनगवा अशेलय अजेंबुह को गिरफ्तार किया. वह इंजेक्शन देने के पर दरजनों लोगों से लाखों रुपए की ठगी कर चुकी थी. पुलिस ने उस के दरजन भर बैंक खाते भी सीज करा दिए. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 16 मई, 2021 को 2 विदेशी जालसाज चीका बैनेट और जोनाथन को गिरफ्तार किया. इन में एक नाइजीरिया और दूसरा घाना का रहने वाला है. इन्होंने देश भर में करीब एक हजार लोगों से कोरोना की दवा और औक्सीजन के नाम पर 2 करोड़ रुपए की ठगी की थी. इन से 22 मोबाइल फोन, 165 सिमकार्ड, 5 लैपटौप और बड़ी मात्रा में डेबिट कार्ड बरामद हुए. इन के करीब 20 बैंक खाते भी मिले हैं.

दिल्ली पुलिस के सामने ऐसा ही एक और मामला भी आया, जिस में ठग ने देश भर में साइबर ठगी की यूनिवर्सिटी के नाम पर विख्यात झारखंड के जामताड़ा से ठगी की ट्रेनिंग ली थी.

कोरोना संकट में औक्सीजन सिलेंडर दिलाने के नाम पर ठगी करने वाले गिरोह के 4 बदमाशों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. इन में यूपी के फर्रुखाबाद का रहने वाला रितिक, गुरुग्राम निवासी योगेश सिंह, मोहम्मद आरजू और रवीश शामिल थे. इन से 4 मोबाइल, 16 सिमकार्ड, एक लैपटौप, 2 बाइक, एक स्कूटर और कुछ दस्तावेज बरामद किए गए.

इस गिरोह ने देश भर के लोगों से औनलाइन ठगी की वारदात की. दिल्ली में संत नगर, करोलबाग निवासी एक शख्स ने इन के खिलाफ करोलबाग में मुकदमा दर्ज कराया था. इस में रवीश ने जामताड़ा से साइबर ठगी की ट्रेनिंग ली थी.

कोरोना के कहर से कराह रहे गांव

आजकल वैश्विक महामारी कोरोना का कहर गांवदेहात के इलाकों में तेजी से बढ़ रहा है, फिर वह चाहे उत्तर प्रदेश हो, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश या फिर कोई दूसरा राज्य ही सही, जबकि राज्य सरकारों का दावा

है कि कोरोना महामारी का संक्रमण गांवों में बढ़ने से रोकने के लिए ट्रैकिंग, टैस्टिंग और ट्रीटमैंट के फार्मूले पर कई दिन से सर्वे किया जा रहा है यानी अभी तक सिर्फ सर्वे? इलाज कब शुरू होगा?

खबरों के मुताबिक, राजस्थान के जिले जयपुर के देहाती इलाके चाकसू में एक ही घर में 3 मौतें कोरोना के चलते हुई हैं.

यही हाल राजस्थान  के टोंक जिले का है. महज 2 दिनों में टोंक के अलगअलग गांवों में कई दर्जन लोगों की एक दिन  में मौत की कई खबरें थीं. इस के बाद शासनप्रशासन हरकत में आया.

जयपुर व टोंक के अलावा कई जिलों के गांवों में बुखार से मौतें होने की सूचनाएं आ रही हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा में भी गांवों में बहुत ज्यादा मौतें हो रही हैं. इसी तरह दूसरे गांवों में भी कोरोना महामारी के बढ़ने की खबरें आ रही हैं. हालांकि सब से ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के गांवों में हो रही हैं, उस से कम गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मौतें हो रही हैं.

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कोरोना की पहली लहर में गांव  बच गए थे, लेकिन इस बार गांवों से बुखारखांसी जैसी समस्याएं ही नहीं, बल्कि मौतों की लगातार खबरें आ रही हैं. पिछली बार शहर से लोग भाग कर गांव गए थे, लेकिन इस बार गांव के हालात भी बदतर होते जा रहे हैं.

गौरतलब है कि पिछले साल कोरोना बड़े शहरों तक ही सीमित था, कसबों और गांवों के बीच कहींकहीं लोगों के बीमार होने की खबरें आती थीं. यहां तक कि पिछले साल लौकडाउन में तकरीबन डेढ़ करोड़ प्रवासियों के शहरों से देश के गांवों में पहुंचने के बीच कोरोना से मौतों की सुर्खियां बनने वाली खबरें नहीं आई थीं, लेकिन इस बार कई राज्यों में गांव के गांव बीमार पड़े हैं, लोगों की जानें जा रही हैं. हालांकि, इन में से ज्यादातर मौतें आंकड़ों में दर्ज नहीं हो रही हैं, क्योंकि टैस्टिंग नहीं है या लोग करा नहीं रहे हैं.

राजस्थान में जयपुर जिले की चाकसू तहसील की ‘भावी निर्माण सोसाइटी’ के गिर्राज प्रसाद बताते हैं, ‘‘पिछले साल मुश्किल से किसी गांव से किसी आदमी की मौत की खबर आती थी, लेकिन इस बार हालात बहुत बुरे हैं. मैं आसपास के 30 किलोमीटर के गांवों में काम करता हूं. गांवों में ज्यादातर घरों में कोई न कोई बीमार है.’’

गिर्राज प्रसाद की बात इसलिए खास हो जाती है, क्योंकि वे और उन की संस्था के साथी पिछले 6 महीने से कोरोना वारियर का रोल निभा रहे हैं.

राजस्थान के जयपुर जिले में कोथून गांव है. इस गांव के एक किसान  44 साला राजाराम, जो खुद घर में आइसोलेट हो कर अपना इलाज करा रहे हैं, के मुताबिक, गांव में 30 फीसदी लोग कोविड पौजिटिव हैं.

राजाराम फोन पर बताते हैं, ‘‘मैं खुद कोरोना पौजिटिव हूं. गांव में ज्यादातर घरों में लोगों को बुखारखांसी की दिक्कत है. पहले गांव में छिटपुट केस थे, फिर जब 5-6 लोग पौजिटिव निकले तो सरकार की तरफ से एक वैन आई और उस ने जांच की तो कई लोग पौजिटिव मिले हैं.’’

जयपुरकोटा एनएच 12 के किनारे बसे इस गांव की जयपुर शहर से दूरी महज 50 किलोमीटर है और यहां की आबादी राजाराम के मुताबिक तकरीबन 4,000 है.

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गांव में ऐसा क्या हुआ कि इतने लोग बीमार हो गए? इस सवाल के जवाब में राजाराम बताते हैं, ‘‘सब से पहले तो गांव में 1-2 बरातें आईं, फिर 23-24 अप्रैल, 2021 को यहां बारिश आई थी, जिस के बाद लोग ज्यादा बीमार हुए.

‘‘शुरू में लोगों को लगा कि मौसमी बुखार है, लेकिन लोगों को दिक्कत होने पर जांच हुई तो पता चला कि कोरोना  है. ज्यादातर लोग घर में ही इलाज करा रहे हैं.’’

जयपुर में रहने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता और जनस्वास्थ्य अभियान से जुड़े आरके चिरानियां फोन पर बताते हैं, ‘‘कोरोना का जो डाटा है, वह ज्यादातर शहरों का ही होता है. गांव में तो पब्लिक हैल्थ सिस्टम बदतर है. जांच की सुविधाएं नहीं हैं. लोगों की मौत हो भी रही है, तो पता नहीं चल रहा. ये मौतें कहीं दर्ज भी नहीं हो रही हैं.

‘‘अगर आप शहरों के हालात देखिए, तो जो डाटा हम लोगों तक आ रहा है, वह बता रहा है कि शहरों में ही मौतें आंकड़ों से कई गुना ज्यादा हैं. अगर ग्रामीण भारत में सही से जांच हो, आंकड़े दर्ज किए जाएं तो यह नंबर कहीं ज्यादा होगा.’’

ग्रामीण भारत में हालात कैसे हैं, इस का अंदाजा छोटेछोटे कसबों के मैडिकल स्टोर और इन जगहों पर इलाज करने वाले डाक्टरों (जिन्हें बोलचाल की भाषा में झोलाछाप कहा जाता है) के यहां जमा भीड़ से लगाया जा सकता है.

गांवकसबों के लोग मैडिकल स्टोर पर इस समय सब से ज्यादा खांसीबुखार की दवाएं लेने आ रहे हैं. एक मैडिकल स्टोर के संचालक दीपक शर्मा बताते हैं, ‘‘रोज के 100 लोग बुखार और बदन दर्द की दवा लेने आ रहे हैं. पिछले साल इन दिनों के मुकाबले ये आंकड़े काफी ज्यादा हैं.’’

कोविड 19 से जुड़ी दवाएं तो अलग बात है, बुखार की गोली, विटामिन सी की टैबलेट और यहां तक कि खांसी के अच्छी कंपनियों के सिरप तक नहीं मिल रहे हैं. ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि खांसी और बुखार को लोग सामान्य फ्लू मान कर चल रहे हैं.

जयपुर जिले के चाकसू उपखंड से 7-8 किलोमीटर की दूरी पर छांदेल कलां गांव है. इस गांव में तकरीबन 200 घर हैं और हर घर में कोई न कोई बीमार है. पिछले दिनों यहां एक बुजुर्ग की बुखार के बाद मौत भी हो गई थी, जो कोरोना पौजिटिव भी थे.

कोरोना से मां को खो चुके और पिता का इलाज करा रहे बेटे ने बताया, ‘‘मैं  2 लाख रुपए से ज्यादा का उधार ले चुका हूं. अब तो रिश्तेदार भी फोन नहीं उठाते.’’

उस बेटे की आवाज और चेहरे की मायूसी बता रही थी कि वह हताश है. हो भी क्यों न, उस के घर से एक घर छोड़ कर एक बुजुर्ग की मौत हुई थी.

रमेश और उन की पत्नी 15 दिनों से बीमार हैं. जिन के यहां मौत हुई, वे  इन के परिवार के ही थे. हाल पूछने पर रमेश कहते हैं, ‘‘

15 दिन से दवा चल रही है. कोई फायदा ही नहीं हो रहा, अब क्या कहें…’’

रमेश की बात खत्म होने से पहले उन से तकरीबन 15 फुट की दूरी पर खड़े 57 साल के लोकेश कुमावत बीच में ही बोल पड़ते हैं, ‘अरे, बीमार तो सब हैं, लेकिन भैया यहां किसी को भी कोरोना नहीं है और जांच कराना भी चाहो तो कहां जाएं, अस्पताल में न दवा है और न ही औक्सीजन. घर में रोज काढ़ा और भाप ले रहे हैं, बुखार की दवा खाई है, अब सब लोग ठीक हैं. और मौत आती है तो आने दो, एक बार मरना तो सभी को है.’’

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गांवों के हालात कैसे हैं? लोग जांच क्यों नहीं करवा रहे हैं? क्या जांच आसानी से हो रही है? इन सवालों पर सब के अलगअलग जवाब हैं, लेकिन कुछ चीजें बहुत सारे लोगों में बात करने पर सामान्य नजर आती हैं.

‘‘गांवदेहातों में मृत्युभोजों और शादीबरातों ने काम खराब किया है. लोग देख रहे हैं कि सिर पर मौत नाच रही है, लेकिन फिर भी वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं,’’ ग्रामीण इलाके के एक मैडिकल स्टोर संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया.

एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा प्रभारी गांव में बुखार और कोविड 19 के बारे में पूछने पर कहते हैं, ‘‘कोविड के मामलों से जुड़े सवालों के जवाब सीएमओ (जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी) साहब ही दे पाएंगे, बाकी बुखारखांसी का मामला है कि इस  बार के बजाय पिछली बार कुछ नहीं था.

कई गांवों से लोग दवा लेने आते  हैं. फिलहाल तो हमारे यहां तकरीबन 600 ऐक्टिव केस हैं.’’

इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन 42 ग्राम पंचायतें आती हैं यानी तकरीबन 250 गांव शामिल हैं. चिकित्सा प्रभारी आखिर में कहते हैं, ‘‘अगर सब की जांच हो जाए, तो 40 फीसदी लोग कोरोना पौजिटिव निकलेंगे. गांवों के तकरीबन हर घर में कोई न कोई बीमार है, लक्षण सारे कोरोना जैसे, लेकिन न कोई जांच करवा रहा है और न सरकारों को चिंता है.’’

यह महामारी बेकाबू रफ्तार से ग्रामीण इलाकों पर अपना शिकंजा कसती जा रही है. हालात ये हैं कि ग्रामीण इलाकों के कमोबेश हर घर को संक्रमण अपने दायरे में ले चुका है. लगातार हो रही मौतों से गांव वाले दहशत में हैं. इस के बावजूद प्रशासन संक्रमण की रफ्तार थाम नहीं पा रहा है. यहां तक कि कोरोना जांच की रफ्तार भी बेहद धीमी है.

कोरोना की पहली लहर में ग्रामीण इलाके महफूज रहे थे, लेकिन दूसरी लहर ने शहर की पौश कालोनियों से ले कर गांव की पगडंडियों तक का सफर बेकाबू रफ्तार के साथ तय कर लिया है.

दूसरी लहर में ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस के संक्रमितों की तादाद में बेतहाशा रूप से बढ़ोतरी हुई है. हालात ये हैं कि कमोबेश हर घर में यह महामारी अपनी जड़ें जमा चुकी है. संक्रमितों की मौत के बाद मची चीखपुकार गांव की शांति में दहशत घोल देती है.

ग्रामीण इलाकों में हाल ही में सैकड़ों लोगों को यह महामारी मौत के आगोश में ले चुकी है. ग्रामीणों के घर मरीजों की मौजूदगी की वजह से ‘क्वारंटीन सैंटरों’ में तबदील होते जा रहे हैं. गलियों में सन्नाटा पसरा रहता है और चौपालें दिनभर सूनी पड़ी रहती हैं.

ज्यादातर ग्रामीण सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं. ऐसे में मजबूरी में उन्हें अपना इलाज खुद करना पड़ रहा है. मैडिकल स्टोरों से दवा खरीद कर वे कोरोना से जंग लड़ रहे हैं, जो सरकार के लिए शर्मनाक बात है.

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